Jaankari Rakho & : Economics & Economy https://m.jaankarirakho.com/rss/category/economics-economy Jaankari Rakho & : Economics & Economy hin Copyright 2022 & 24. Jaankari Rakho& All Rights Reserved. General Competition | Economics & Economy | गरीबी एवं बेरोजगारी https://m.jaankarirakho.com/949 https://m.jaankarirakho.com/949 General Competition | Economics & Economy | गरीबी एवं बेरोजगारी
  • गरीबी उस स्थिति को कहते है जब व्यक्ति को जीवन यापन करने हेतु निम्नतम अधारभूत जरूरतें (भोजन, वस्त्र, मकान) भी उपलब्ध नही हो पाते है। यह गरीबी वर्तमान में भी भारत जैसे विकासशील देश के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है।
  • विकासशील देश के संबंध में पहला वैश्विक गरीबी का अनुमान 'World Development Report 1990' में लगाया गया इस रिपोर्ट में गरीबी को निम्न तरह से परिभाषित किया गया- "गरीबी निम्नतम जीवनयापन स्तर प्राप्त करने की असर्मथता है ।
  • गरीबी को यू. एन. डी. पी. (UNDP) दो प्रकार से देखता है - आय गरीबी तथा मानव गरीबी
    • आय गरीबी (Income Poverty)- अगर व्यक्ति जीवन यापन हेतु आवश्यक निम्नतम वस्तु जैसे- वस्त्र, भोजन आवास भी अपने लिये उपलब्ध नही करा पाता है तो इसे आय गरीबी कहा जाता है।
    • मानव गरीबी (Human Poverty) - वह व्यक्ति जिन को संतोषजनक जीवन, दीर्घ आयु, स्वस्थ रहन सहन से वंचित रहना पड़े तो इसे मानव गरीबी कहा जाता है।
  • गरीबी अथवा निर्धनता के संबंध में दो धारणायें प्रचलित है अथवा गरीबी को दो प्रकार से परिभाषित किया जाता है - सापेक्ष गरीबी तथा निरपेक्ष गरीबी ।
  • सापेक्षिक गरीबी (Relative Poverty)
    • सापेक्षिक गरीबी से देश के जनसंख्या के विभिन्न वर्गों के बीच में आय-विषमता का पता चलात है । सापेक्षिक गरीबी जानने हेतु देश के उच्च आय वर्ग के उच्चतम 5 - 10 प्रतिशत लोगों की आय की तुलना निम्न आय वर्ग में निम्नतम 5-10% लोगों के आय स्तर से की जाती है तथा इससे प्राप्त परिणाम सापेक्षिक गरीबी को प्रदर्शित करता है ।
    • गरीबी की पाप हेतु सापेक्षिक गरीबी सिद्धांत का उपयोग प्रायः उन देशों में किया जाता है जिनकी अर्थव्यवस्था काफी समृद्ध है। सापेक्षिक गरीबी मापने हेतु दो विधी प्रचलित है- लारेंज वक्र तथा गिनी गुणांक ।
  • लारेंज वक्र (Lorenz Curve)
    • लारेंज वक्र धारणा का विकास 1905 में मैक्स ओ. लारेंज ने किया । इस वक्र या प्रत्येक बिन्दु उन व्यक्ति ( अथवा परिवार ) को प्रदर्शित करता है जो एक निश्चित आय प्रतिशत के नीचे है।
    • लारेंज वक्र खींचने के लिए x -अक्ष पर जनसंख्या का प्रतिशत तथा y-अक्ष पर आय का प्रतिशत लेते है । यदि 10% जनसंख्या के पास आय का 10% हो, 20% के पास आय का 20% हो अर्थात् x% जनसंख्या के पास आय का x% हो तो इसको दर्शाने वाली रेखा ग्राफ पर 45° पर होगा और इसे पूर्ण समता रेखा या निरपेक्ष समता रेखा कहते है. और यह बताता है कि . आय विषमता बिल्कुल भी नहीं है-

    • पूर्ण समता रेखा वाली स्थिति प्रायः विश्व के किसी भी देश में नही पायी जाती है। लारेंज वक्र दर्शाने हेतु पहले ज्ञात किया जाता है कितने प्रतिशत जनसंख्या के हिस्से में कितने प्रतिशत आय है फिर इनसे संबंधित बिन्दु को ग्राफ पर ज्ञात कर लिया जाता है । इन बिंदु से आने वाली वक्र को ही लारेंज वक्र कहते है ।

    • लारेंज वक्र पूर्ण समता रेखा के जितना करीब होगा आय विषमता उतनी कम होगी तथा लारेंज वक्र पूर्ण समता रेखा के जितना दूर होगा आय विषमता उनती अधिक होगी। अगर सम्पूर्ण आय किसी एक ही व्यक्ति के पास है जो इसे प्रदर्शित करने वाली रेखा AB होगा लारेंज वक्र पूर्ण समता रेखा के ऊपर नहीं उठेगा ।
  • गिनी गुणांक (Gini Coefficient)
    • सापेक्षिक गरीबी के मापन हेतु यह दूसरी तथा सबसे प्रचलित विधी है। वास्तव में गिनी गुणांक लारेंज वक्र का ही गणीतीय रूप है तथा इस गुणांक को लारेंज वक्र के सहायता से ही निकाला जाता है।
    • इस गुणांक का विकास इटली के सांख्यिकी विद कोरेडो गिनी ने विकसीत किया है।
    • गिनी गुणांक लारेंज वक्र तथा पूर्ण समता रेखा के बीच का क्षेत्रफल तथा पूर्ण समता रेखा के नीचे के सम्पूर्ण क्षेत्रफल को अनुपात है। 
    • गिनी गुणांक का मान 0 से लेकर 1 तक होता है। अगर गिनी गुणांक शून्य है तो इसका अर्थ है, प्रत्येक व्यक्ति को एक आय मिल रही हैं अर्थात् आय विषमता बिल्कुल भी नहीं है और अगर गिनी गुणांक का मान 1 है तो इसका अर्थ है एक ही व्यक्ति पूरी आय प्राप्त कर रहा है।
  • निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty)
    • जब मनुष्य अपने लिये बुनियादी आवश्यकता (जैसे- वस्त्र, भोजन, आवास, पेयजल, स्वास्थ्य सेवा) प्राप्त करने में भी असर्मथ रहता है तो इसे निरपेक्ष गरीबी कहते है।
    • निरपेक्ष गरीबी ज्ञात करेन हेतु सबसे पहले व्यक्ति के आदर्श जीवनयापन हेतु आवश्यक वस्तु (जैसे- अनाज, बिजली, स्वास्थ्य सेवा, आवास) निश्चित की जाती है। इसके बाद आवश्यक वस्तु के मौद्रीक योग निकालकर प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय निर्धारित की जाती है। प्रति व्यक्ति उपयोग व्यय को सामान्यतः गरीबी रेखा कहा जाता है। जनसंख्या का जितना प्रतिशत भाग गरीबी रेखा के नीचे होता है उसे गरीब माना जाता है।
    • भारत जैसे विकासशील जैसे देशों में गरीबी मापन हेतु या गरीबी के अध्ययन के लिए निरपेक्षता सिद्धांत का ही उपयोग होता है।
    • भारत में गरीबी मापन हेतु खर्च अथवा उपभोग विधि का प्रयोग किया जाता है। प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय के आधार पर गरीबी रेखा निर्धारित किया जाता है और जिन लोगों का प्रतिमाह उपभोग व्यय गरीबी रेखा से कम होता है उसे गरीब मान लिया जाता है। गरीबी मापन के इस विधि को Head count Method भी कहा जाता है।
    • भारत में निर्धनता रेखा परिभाषित करने के लिए योजना आयोग समय-समय पर समिति गठीतं किया। प्रमुख समिति जिनका गठन गरीबी रेखा परिभाषित करने हेतु हुआ-
      1. भारत में निर्धनता रेखा (गरीबी रेखा ) के निर्धारण का पहला अधिकारिक प्रयास योजना आयोग द्वारा जुलाई 1962 में किया गया गरीबी रेखा निर्धारण हेतु इस वर्ष एक समिति गठीत की गई।
        • इस समिति के सदस्य डी. आर. गाडगिल, अशोक मेहता, बी. एन. गांगुली, पी. एस. लोकनायन, पीताम्बर पन्त, वी. के. आर. वी. राव, श्रीमन्न नारायण तथा बाला साहेब सहस्त्रबुद्धे थे।
        • इस समिति ने बिना किसी आधार को स्पष्ट किये 1960-61 के प्रचलित मूल्य पर ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्र के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिमाह रू. 20 न्यूनतम उपयोग व्यय को आधार मान कर गरीबी मापन का सुझाव दिया। हालांकि समिति के इस दृष्टिकोण की तीव्र आलोचना हुई ।
      2. डॉ. वाई. के. अघल समिति
        • योजना आयोग ने पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 1977 में इस समिति का गठन किया जिसने जनवरी 1979 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की ।
        • इस समिति ने 1958 के भारतीय चिकित्सा शोध परिषद के न्यूनतम पोषाहार रिपोर्ट को आधार बनाकर ग्रामीण क्षेत्र हेतु प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र हेतु 2100 कैलोरी आवश्यकता की पूर्ति से कम होगा वह गरीबी रेखा से नीचे होंगे।
        • गरीबी मापन के इस प्रणाली को " भोजन ऊर्जा प्रणाली" भी कहते है।
      3. लकड़ावाला समिति
        • योजना आयोग ने इस समिति का गठन 1989 में किया। 1993 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
        • इस समिति ने अलग-अलग राज्यों के लिए प्रचलित मूल्य के आधार पर अलग-अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया। इस समिति के सुझावो को 9 वीं पंचवर्षीय योजना में निर्धनता की माप के लिए योजना आयोग ने स्वीकार कर लिया।
        • ग्रामीण क्षेत्र हेतु निर्धनता रेखा के लिए समिति ने कृषि श्रमिको के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाया तथा शहरी क्षेत्र हेतु औद्योगिक श्रमिको के उपभेक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनया।
      4. सुरेश तेंदुलकर समिति
        • योजना आयोग ने 2005 में तेंदुलकर समिति की नियुक्ति की । इस समिति के नियुक्ति करने का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना था कि भारत में गरीबी घट रही है या नही तथा समिति को नयी गरीबी रेखा भी परिभाषित करने को कहा गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट 2009 में प्रस्तुत की।
          इस समिति ने उपभोग व्यय निर्धारति करने हेतु जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक वस्तु के अलावे उन वस्तु को भी शामिल किया जो जीवन की गुणवत्ता हेतु आवश्यक है। इस तरह यह समिति गरीबों के व्यापक तथा बहुआयामी रूप को स्वीकार किया।
        • तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु उपयोग के लिए आवश्यक खाद्यान्न के अलावे छ: बुनियादी आवश्यकता को शामिल किया। 'ये छ :- बुनियादि आवश्यकताएँ हैं- शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादि संरचना (जैसे- सड़क, बिजली), स्वच्छ वातावरण महिलाओं को काम तथा लाभ तक व्यक्ति की पहुँच।
        • तेंदुलकर समिति के सिफारिश के अनुसार गरीबी रेखा हेतु प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय तथा गरीबी की प्रतिशत- 

5. सी. रंगराजन समिति
  • योजना आयोग ने 2012 में रंगराजन समिति की नियुक्ति की जिसने 2014 में अपना रिपोर्ट पेश किया।
  • इस समिति ने गरीबी रेखा निर्धारण हेतु उसी मेथडालजी को अपनाया जिसका उपयोग डॉ. वाई. के. अघल समिति ने अपनाया था।
  • यह समिति अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए रू. 972 तथा शहरी क्षेत्र के लिए रू. 1407 मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया।

तेंदुलकर कमेटी तथा रंगराजन कमेटी के बीच अंतर

  1. तेंदुलकर कमेटी (या समिति) ने राज्य स्तर पर ग्रामीण एवं शहरी गरीबी रेखा निर्धारण हेतु अखिल भारतीय शहरी गरीबी रेखा बास्केट का प्रयोग किया जबकि रंगराजन ने ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र के लिए दो अलग-अलग अखिल भारत गरीबी रेखा बास्केट लिया तथा उसके आधार पर राज्य स्तर पर ग्रामीण तथा शहरी गरीबी रेखा का निर्धारण किया ।
  2. तेंदुलकर कमेटी ने डॉ. वाई. के. अघल समिति के कैलोरी मापक सिद्धांत को नही माना जबकि रंगराजन कमेटी ने इस सिद्धांत को अपनाया। 
  3. उपभोग व्यय संबंधी आँकड़े NSSO द्वारा एकत्रित किया जाता है। तेंदुलकर कमेटी ने NSSO के आँकड़े में आधार पर ही गरीबी रेखा का निर्धारण किया परंतु रंगराजन कमेटी ने NSSO के आँकड़ों को संदिग्ध माना ।
  4. तेंदुलकर समिति के मेथडालजी पर आधारित गरीबी रेखा के तुलना में रंगराजन कमेटी के मेथडालजी आधार पर गरीबी का अनुमान ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में क्रमश: 19% तथा 41% अधिक रहा ।
  5. तेंदुलकर कमेटी के सिफारिश के आधार पर 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्र के गरीबी का प्रतिशत 25.7 तथा शहरी क्षेत्र में गरीबी का प्रतिशत 13.7 और अखिल भारतीय स्तर पर गरीबी का प्रतिशत 21.9 है। रंगराजन समिति में सिफारिश के आधार पर 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी का प्रतिशत 30.9 तथा शहरी क्षेत्र में गरीबी का प्रतिशत 26.4 और अखिल भारतीय स्तर पर गरीबी का प्रतिशत 29.5 है।

विभिन्न राज्यों में गरीबी का प्रतिशत (2011-12)

  • योजना आयोग ने NSSO (राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन) द्वारा परिवार उपभोग व्यय (2011-12) के संबंध में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर 2011-12 के लिए गरीबी रेखा और गरीबी के अनुपात को अधटन किया है।
  • योजना आयोग ने गरीबी रेखा निर्धारण हेतु तेंदुलकर स के सिफारिश को ही माना है। 2011-12 हेतु तेंदुलकर समिति के सिफारिश के आधार पर ग्रामीण क्षेत्र के लिये 816 मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय और शहरी क्षेत्र के लिये रू. 1000 पर अखिल भारतीय स्तर पर गरीबी रेखा निर्धारित की गई है।
  • उपभोग व्यय से संम्बन्धित आँकड़े एकत्र करने की विधी-
    • गरीबी से संबंधित सभी प्रकार के आँकड़ों को NSSO एकत्रित करती है। इन्ही आँकड़ो के आधार पर योजना आयोग यह सुनिश्चित करती है कि देश की कितनी प्रतिशत जनसंख्या गरीब है।
    • सर्वप्रथम पी. सी. महालनोबिस के सिफारिश पर 1958 में वित्त मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (NSS) की स्थापना की गई। 1970 में (NSS) का पुर्नगठन किया गया तथा 1971 में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की स्थापना एक स्वायत्त संस्थान के रूप में हुई ।
    • 23 मई 2019 के केंद्रीय सरकार ने NSSO तथा CSO (केंद्रीय सांख्यिकी संगठन) को मिलाकर (मर्ज करके) नेशनल स्टैटिकल ऑफिस (NSO) नाम की एक नई संस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है। वर्तमान में NSO अस्तित्व में नहीं आका है।
    • NSSO उपभोग व्यय संबंधित आँकड़े निम्न तरह से एकत्रित करती है।
  1. एकसमान संदर्भ अवधि or URP (Uniform Reference Period)
    • इस विधि 30 दिनों की स्मृति अवधि के दौरान उपयोग की गई सभी वस्तुओं से संबंधित आँकड़े एकत्र किये जाते है।
    • इस विधि का उपयोग NSSO 1993-94 से पहले करता था। वर्तमान में इस विधि का उपयोग नहीं होता है।
    • NSSO द्वारा वर्ष 2004-05 के लिए एकत्रित आँकड़ो के आधार पर अगर URP विधि का प्रयोग किया जाय तो राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी का अनुपात 27.5% प्रतिशत था जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का अनुपात 28.3% तथा शहरी क्षेत्र के लिए 27.3% है।
  2. मिश्रित संदर्भ अवधि or MRP (Mixed Reference Period)
    • इस विधि पिछले 365 दिन के दौरान उपयोग की गई पाँच गैर खाद्य मदें (वस्त्र, जूता तथा चप्पल, टिकाऊ वस्तुएँ, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा) तथा पिछले 30 दिनों में उपयोग की गई सभी वस्तुओं की माप की जाती है।
    • 2004-05 के लिए एकत्रित आँकड़ो के आधार पर MRP विधि का प्रयोग किया जाय तो राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी का अनुपात लगभग 21.8 प्रतिशत आता है। ग्रामीण क्षेत्र में 21.8 तथा शहरी क्षेत्र में 21.7 प्रतिशत ।
  3. संसोधित मिश्रित संदर्भ अवधि or MMRP (Modified Mixed Reference Period)
    • NSSO ने वर्ष 2009-10 तथा 2011-12 में इस विधि को अपनाकर आँकड़े एकत्रित किये।
    • इस विधि में उपयोग की जाने वाले कुछ वस्तु (जैसे- मांस-मछली, सब्जि, फल पान, तंबाकू, खाद्यन्न, शराब आदि) की माप पिछले 30 दिनों के बजाय पिछले 7 दिनों की स्मृति अवधि के लिये की जाती है तथा शेष 30 दिनों के आधार पर ही किया जाता है।

अरविंद पनगड़िया टास्क फोर्स (2015)

  • योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग की स्थापना हुई है। नीति आयोग ने गरीबो में पहचान हेतु अरविंद पनगड़िया की अध्यक्षता में एक कार्यदल (टास्कफोर्स) का गठन किया है। इस कार्य दल में अन्य सदस्य है- विवेक देबराय, सुरजीत भल्ला।
  • अरबिन्द पनगड़िया की अध्यक्षता में गठित यह कार्यदल गरीबी रेखा के अनुमान के सम्बन्ध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया पर आयोग ने सुझाव दिया है कि गरीबी से सम्बन्धित परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु निचले 40 प्रतिशत को गरीब के रूप में माना गया।
  • नीति आयोग का मानना है यदि गरीबी की संख्या जानना आवश्यक है तो ग्रामीण गरीबो का अनुमान ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा तथा शहरी गरीबो का अनुमान शहरी विकास मंत्रालय द्वारा किया जाना चाहिए ।

गरीबो के संबंध में प्रो. ए. के. सेन (Amartya Sen) का दृष्टिकोण

  • प्रो. ए. के. सेन एक अर्थशास्त्री है और इन्हे 1998 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया (प्रो. सेन ने 1973 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट) 'Poverty, Inequality and unemployment' में गरीबी मापने का एक नया दृष्टिकोण दिया।
  • प्रो. सेन के अनुसार जो व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है, वे सभी समान रूप से गरीब नही है। जो व्यक्ति गरीबी रेखा से जितना दूर होगा वह उतना ही अधिक गरीब होगा ।
  • प्रो. सेन का मानना है कि अगर हमे गरीबी की वास्तविक स्थिति का पता लगाना है तो गरीबी रेखा के नीचे सभी व्यक्तियों को गिनने के बजाय हमे प्रत्येक व्यक्ति के सम्बन्ध में गरीबी रेखा से आय की गिरावट को देखना चाहिए। गरीबो की आय की गरीबी रेखा से गिरावट को भाकित करके गरीबो को नापा जा सकता है।
  • प्रो. सेन का यह दृष्टिकोण सापेक्षिक तथा निरपेक्ष दोनों प्रकार के गरीबी मापने हेतु उपयुक्त है।

निर्धनता जाल (Poverty Trap)

  • निम्नतम जीवनयापन से भी वंचित होंना गरीबी कहलाता है। अगर कोई परिवार गरीब है तो उनके साथ कई तरह के समस्या आ जाती है और समस्या उस गरीब परिवार के आने वाले पीढ़ी को प्रभावित कर देता है जिससे गरीबो में आने वाली पीढ़ी भी गरीबी के जाल में फस जाता है जिसे हम निर्धनता का दुश्चक्र या निर्धनता जाल की संज्ञा देते है।
निर्धनता जाल के व्यक्तिगत स्वरूप

भारत में गरीबी के कारण

  • विश्व में अधिकांश गरीब भारत जैसे अर्द्ध विकसित देशों में ही निवास करते है । 1951-55 में भारत में 199 मिलियन लोग गरीब थे जो कुल जनसंख्या का 52.6% था। 1993-94 में भी लगभग 320 मिलियन लोग गरीब थे जो जनसंख्या का 36% था। योजना आयोग के अनुसार 2004-05 में गरीबो की संख्या 407.1 मिलियन था जो 2011-12 में घटकर 269.3 मिलियन रह गया है। तेंदुलकर कमेटी के अनुसार - (2011-12 ) गरीबी का प्रतिशत 21.9 है।
  • भारत में व्यापक स्तर पर पाये जाने वाले गरीबी का निम्न कारण है-
    1. लम्बे समय (200 वर्ष) तक भारत का गुलाम होना ।
    2. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
    3. कृषि का पिछड़ापन
    4. पूंजी का अभाव तथा धीमी गति से औद्योगिक विकास
    5. बेरोजगारी तथा अल्प रोजगार की समस्या
    6. आय, धन एवं संसाधनों का असमान वितरण
    7. प्राकृतिक संसाधनों का पर्याप्त दोहन नहीं हो पाना
    8. आधारिक संरचना का अविकसित होना
    9. अनुकूल सामाजिक वातावरण का अभाव
    10. पूंजीवाद विकास पद्धति
  • जब जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा गरीबी में जी रहा हो तो कई दुष्परिणाम निकल कर सामने आते है। गरीबी के प्रमुख दुष्परिणाम निम्न है-
    1. भुखमरी, कुपोषण, स्वास्थ्य की समस्या
    2. समाज में असमानता की वृद्धि
    3. जनसंख्या वृद्धि तेज होना
    4. अपराधिक गतिविधियों में वृद्धि होना
    5. निम्न जीवन स्तर
    6. अशिक्षा तथा बालश्रम की समस्या
    7. समावेशी विकास में बाधा
    8. बढ़ती हुई आत्महत्या की घटनाएँ

भारत में गरीबी उन्मूलन के उपाय

  1. गरीबी दूर करने का सबसे बेहतर कारगार उपाय है कृषि का आधुनिकीकरण कर उसका तीव्र विकास की जानी चाहिए क्योंकि आज 52% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से कृषि पर निर्भर है।
  2. देश में उपलब्ध प्रचुर प्राकृतिक संसाधन का भरपुर तथा अनुकूलतम उपयोग कर के आर्थीक विकास को तीव्र करना पड़ेगा ।
  3. जनसंख्या की वृद्धि दर को कम करना
  4. व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देकर स्वरोजगार के लिए नये अवसरो का सृजन करना
  5. आय तथा साधनों का समान वितरण हेतु आवश्यक कदम उठाना तथा कर प्रणाली में आवश्यक सुधार लाना
  6. सार्वजनिक वितरण प्रणाली को प्रभावपूर्ण तरीके से लागू करना
  7. बचत एवं पूंजी निर्माण को बढ़ावा देना
  8. गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन कार्यक्रम को प्रभावपूर्ण तरीके से क्रियान्वयन करना ।

बेरोजगारी (UNEMPLOYMENT)

  • बेरोजगारी उस स्थिति को कहते है जब व्यक्ति को काम करने की इच्छा एवं योग्यता रहने के बावजूद उन्हे काम या रोजगार नहीं मिलता है।
  • जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से या आलस्य के कारण काम नही करता है जो उसे बेरोजगार के श्रेणी में नही रखा जाता है। ठीक उसी प्रकार काम करने की इच्छा है परंतु अगर उनके पास योग्यता नहीं है जिसके कारण उसे काम नही मिलता है तो इस स्थिति को भी तो बेरोजगारी नही माना जाता है।
  • बेरोजगारी उस स्थिति को भी कहा जाता है जब व्यक्ति इच्छा के अनुरूप अथवा क्षमता के अनुरूप काम नहीं मिलता है या कुछ घंटो का ही काम मिल पाता है।
  • नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने बेरोजगारी को इस तरह से परिभाषित किया है- " लाभदायक काम के अभाव के स्थिति को बेरोजगारी कहते है।" अमर्त्य सेन ने रोजगार के तीन पहलू बताये है - आय पहलू ( income aspect ), उत्पादन पहलू (Production aspect) तथा पहचान पहलू ( Recognition aspect) इसका अर्थ है कि अगर व्यक्ति रोजगार में है तो उसे आय प्राप्ति होनी चाहिए उत्पादन बढ़नी चाहिए तथा उस व्यक्ति की समाज में पहचान मिलनी चाहिए।
  • शुरूआत में बेरोजगारी को सिर्फ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की समस्या माना जाता था परंतु वर्तमान समय में ऐसी कोई अर्थव्यवस्था नही है जहाँ बेरोजगारी की समस्या नही पाया जाता है। विभिन्न प्रकार के अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी उत्पन्न होने कारण अलग-अलग होते है। विकसित देशों में जहाँ बेरोजगारी की समस्या व्यापार चक्र के कारण उत्पन्न होती है वही विकासशील तथा अर्द्ध विकसित अर्थव्यवस्था में बरोजगारी की समस्या विकास की धीमी गति तथा संसाधनों के अनुकूलतम प्रयोग न होने के कारण उत्पन्न होती है ।

बेरोजगारी के विभिन्न रूप

  1. ऐच्छीक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment )- जब कोई श्रमिक प्रचलित मजदूरी पर काम करना नही चाहे तो उसे ऐच्छीक बेरोजगारी कहा जाता है। परंतु इस प्रकार के बेरोजगार श्रमिक को वास्तविक रूप से बेरोजगार नही माना जाता है।
  2. अनैच्छीक बेरोजगारी (Involuntary Unemployment )- जब प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार मजदूर को काम नही मिले तो इसे अनैच्छीक बेरोजगारी कहा जाता है। अनैच्छीक बेरोजगारी की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब रोजगार की मात्रा श्रमिकों की पूर्ति से कम हो ।
  3. घर्षणात्मक बेरोजगारी (Frictional Unemployment)- जब श्रमिक एक काम को छोड़कर दूसरे काम को पकड़ता है तो दोनों काम के बीच कुछ समय के लिए बेरोजगार हो जाता है। इस तरह में बेरोजगारी को घर्षणात्मक बेरोजगारी कहा जाता है। घर्षणात्मक बेरोजगारी को संघर्षात्मक तथा अस्थिर बेरोजगारी की भी संज्ञा दी जाती है।
    • घर्षणात्मक बेरोजगारी के निम्न कारण हो सकते है-
      1. श्रमिकों को काम की जानकारी का अभाव
      2. कच्चे माल की कमी
      3. मशीनों या यंत्रो का टूट जाना
      4. कार्यों का मौसमी स्वरूप
      5. नये कार्य करने हेतु प्रशिक्षण प्राप्त करना आदि
    • घर्षणात्मक बेरोज़गारी सभी प्रकार के अर्थव्यवस्था में पायी जाती है। कभी-कभी अर्थव्यवसथा के आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन के कारण भी इस प्रकार की बेरोजगारी उत्पन्न होती है।
  4. चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment )- चक्रीय बेरोजगारी मुख्यतः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पायी जाती है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यापारं चक्र घटित होते है। व्यापारचक्र की अवस्था में जब मंदी आती है तो कई लोग बेरोजगार हो जाते है। इस प्रकार की बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहा जाता है।
  5. संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment ) - संरचनात्मक बेरोजगारी तब उत्पन्न होती है जब अर्थव्यवस्था के औद्योगिक ढाँचे या संरचना में बदलाव आता है। संरचनात्मक बेरोजगारी मुख्यत: दो स्थितियों में उत्पन्न होती है-
    1. किसी उद्योग की निर्मित वस्तुओं की मांग कम हो जाए तब उद्योग का विकास ठप पड़ जाता है। जैसे- शराबबंदी लागू होने से शराब उद्योग का बंद हो जाना। सरकार द्वारा प्लास्टीक उद्योग को बंद करा देना ।
    2. उत्पादन में इस्तेमाल हो रहे तकनीक में परिवर्तन होना इस कारण पुराने कारीगर बेकार हो जाते है।
  6. मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment ) - कुछ उद्योग अथवा व्यवसाय (जैसे- चीनी मिल, स्वेटर, जैकेट उद्योग) मौसमी प्रकृति में होते है। ये उद्योग वर्ष के कुछ महीने उत्पादन करते है शेष महीने बंद रहते है । इस तरह के उद्योग में बंद होने से उत्पन्न बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी कहलाती है।
    • मौसमी बेरोजगारी भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से पायी जाती है क्योंकि ग्रामीण जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा कृषि कार्य संलग्न रहते है। कृषि कार्य मौसमी व्यवसाय है।
  7. अदृश्य/छिपी हुई/प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment)- जब किसी कार्य को करने हेतु जितने श्रमिक की आवश्यकता है उससे अधिक श्रमिक उस कार्य में लगे हो तब इसे अदृश्य बेरोजगारी कहा जाता है । अदृश्य बेरोजगारी के स्थिति में श्रमिक काम करते तो दिखाई पड़ते है परंतु वास्तविकता यह है कि कुछ श्रमिकों हटा दिया जाए तो काम पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
    • अदृश्य बेरोजगारी की स्थिति में श्रमिकों की सीमांत आवश्यकता शून्य होती है । भारत के कृषि क्षेत्रों में इसी प्रकार के बेरोजगारी व्याप्त है।

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप

  • भारत में पाये जाने वाले बेरोजगारी को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
    1. ग्रामीण बेरोजगारी
    2. औद्योगिक बेरोजगारी
    3. शिक्षित लोगों की बेरोजगारी
  1. ग्रामीण बेरोजगारी - भारत में बेरोजगारी की अधिकांश संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः दो प्रकार के बेरोजगारी पायी जाती है- मौसमी बेरोजगारी तथा छिपी हुई बेरोजगारी । ग्रामीण क्षेत्रों में पाये जाने वाले इस बेरोजगारी मुख्य कारण निम्न है-
    1. तीव्र जनसंख्या वृद्धि
    2. कृषि का पिछड़ापन तथा पारिवारिक कृषि जोतो का उपविभाजन।
    3. ग्रामीण क्षेत्रों में पाये जाने वाले लघु तथा कुटीर उद्योगों का पतन ।
    4. देश के उद्योगों का धीमी गति से विकास
    5. जीवन-निर्वाह कृषि
    6. आय बचत एवं पूंजी निर्माण का निम्न स्तर
    7. सरकार द्वारा चलाये जाने वाले ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का सही ढंग से क्रियान्वयन नही हो पाना
  2. औद्योगिक बेरोजगारी - जब देश में उद्योगों का विकास तथा विस्तार तेजी से नही होता है तो तकनीकी एवं गैर-तकनीकी रूप से कार्य करने की क्षमता रखने वाले लोगों को कांम नहीं मिल पाता है। तकनीकी तथा गैर-तकनीकी रूप से काम करने में सक्षम लोगों को जब काम नही मिल पाता है तो उसे हम औद्योगिक बेरोजगारी के श्रेणी में रखते है ।
    औद्योगिक बेरोजगारी के निम्न कारण है-
    (i) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
    (ii) रोजगार विहिन आर्थीक विकास
    (iii) उद्योगों में श्रम बचत प्रविधियो का बढ़ता हुआ प्रयोग
    (iv) बड़े पैमाने पर की जाने वाली कर्मचारी की छँटनी आदि ।
  3. शिक्षित बेरोजगारी- शिक्षित तथा प्रशिक्षण प्राप्त लोगों को जब काम नही मिलता है या क्षमता के अनुसार काम नही मिलता है तो उसे शिक्षित बेरोजगारी कहते है । तो उसे शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं। भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप धारण करती जा रही है तथा इसकी संख्या दिनानुदिन बढ़ती जा रही है।
    शिक्षित बेरोजगारी के निम्न कारण है-
    1. देश की शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण रही है। शिक्षण संस्थान डिग्रियाँ तो देते है, लेकिन रोजगार तथा पैसों से संबंधित शिक्षा का अभाव होता है। 
    2. रोजगार तथा पैसों से संबंधित शिक्षा के अभाव के कारण लोग सफेद पोश नौकरियाँ के तरफ आकर्षित होते है और खुद रोजगार सृजन नहीं कर पाते।
    3. देशों में उद्योगों का विकास तथा विस्तार धीमी गति से हुआ, जिसके कारण भी शिक्षित लोगों को रोजगार नही मिल पाया।
    4. बढ़ती हुई जनशक्ति को कहाँ तथा कितनी मात्रा में रोजगार उपलब्ध कराया जाए, इस संबंध में सरकार की नीति असफल रही है।
    5. देश में शिक्षा का विकास तेजी से हो रहा है परंतु उस अनुपात में रोजगार सृजन नहीं हो रहे है ।

बेरोजगारी के आधार (Basis of unemployment)

  • किसी व्यक्ति को हम कब और किस आधार पर बेरोजगार कहेंगे इस संबंध में अर्थशास्त्री प्रो. राजकृष्ण ने चार कसौटियो का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है-
    1. समय आधार पर बेरोजगार- यदि कोई व्यक्ति किसी वर्ष में पूर्णरोजगांरीय घंटे अथवा दिन से कम काम करता है तो उसे समय आधार पर बेरोजगार कहेंगें ।
    2. आय कसौटी पर बेरोजगार - यदि कोई व्यक्ति वांछित न्यूनतम स्तर से कम आय अर्जित करता है तो उसे आय कसौटी पर बेरोजगारी कहेंगें।
    3. इच्छुकता के आधार पर बेरोजगार- यदि कोई व्यक्ति वर्तमान में लगे हुए काम से अधिक कार्य करने के लिए इच्छुक है तो उसे इच्छुकता के आधार पर बेरोजगारी कहेंगें।
    4. निष्पादन आधार पर बेरोजगार - यदि किसी व्यक्ति को रोजगार से निकालने पर भी उत्पादन पर कोई प्रभाव नही पड़े तो उसे निष्पादन आधार पर बेरोजगार कहेंगें।

गरीबी एवं बेरोजगारी

Objective

1. भारत में गरीबी का का मुख्य कारण है
1. गरीबों के लिए अपर्याप्त सामाजिक सेवाएँ
2. कम आय अर्जक परिसम्पत्तियाँ
3. तीव्र आर्थिक सुधार
4. रोजगार में धीमी वृद्धि
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
2. निम्नलिखित में से कौन 'औद्योगिक कर्मकारों के लिए उपभोक्ता कीमत सूचकांक' (कन्ज्यूमर प्राइस इण्डेक्स नम्बर फॉर इण्डस्ट्रियल वर्कर्स) निकालता है ?
(A) भारतीय रिजर्व बैंक
(B) आर्थिक कार्य विभाग
(C) श्रम ब्यूरो
(D) कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग
3. गरीबी के अध्ययन में उपभोग वस्तुओं के अतिरिक्त NSSO R किन गैर-खाद्य मदों को भी शामिल करता है ? 
1. कपड़े
2. शिक्षा
3. जूता
4. वाहन
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1, 2 और 3 
(B) 1, 2 और 4 
(C) 1 और 2
(D) 1, 3 और 4
4. गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए गठित सुरेश तेन्दुलकर समिति के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. सुरेश तेन्दुलकर समिति का गठन वर्ष 2008 में किया गया।
2. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट दिसम्बर 2010 में प्रस्तुत की। 
3. इस समिति ने निर्धनता मापने के लिए एक नए व्यावहारिक फॉर्मूले का विकास किया। जिसके अन्तर्गत खाद्य वस्तुओं पर व्यय के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवहन पर भी होने वाले व्ययों को शामिल किया गया।
4. इस समिति के अनुसार भारत में कुल 37.5% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1 और 3
(C) 1, 2 और 3
(D) ये सभी
5. भारत में ग्रामीण गरीबी के क्या कारण हैं?
1. ग्रामीण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
2. सिंचाई के साधनों का विकास
3. कृषि क्षेत्र में अर्द्ध सामन्ती उत्पादन क्षेत्र का होना
4. गरीबी निवारण कार्यक्रमों की विफलता
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन
(A) 1. 2 और 4
(B) 1 और 2
(C) 2, 3 और 4
(D) 1, 3 और 4
6. नगरीकरण तथा गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या के बीच क्या सम्बन्ध होता है इस आलोक में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. हमारी पंचवर्षीय एवं वार्षिक योजनाओं में शहरी क्षेत्र में गन्दी बस्तियों के सुधार के प्रति उपेक्षा के का गरीबी की स्थिति अत्यधिक गम्भीर बनी हुई है।
2. शहरी क्षेत्र मे पूँजी प्रधान तकनीक में वृद्धि के कारण उत्पादन में वृद्धि प्राप्त हो जाती है. परन्तु इससे सापेक्ष रूप से रोजगार में वृद्धि नहीं होती ।
3. यहाँ पर संगठित क्षेत्र अपनी आय को सामूहिक सौदाशक्ति द्वारा उन्नत कर लेते हैं, जबकि असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों का जमीदारों, ठेकेदारों और उत्पादन के अन्य मालिकों द्वारा बुरी तरह शोषण किया जाता है।
4. नगरीकरण के कारण आय में काफी विषमता पैदा हो जाती है, जिससे गरीबों की स्थिति और बदतर हो जाती है।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
7. ग्रामीण एवं शहरी गरीबी तथा असमानता के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. गाँवों में गरीबी अपेक्षाकृत अधिक है। यहाँ प्रति व्यक्ति आय का औसत शहरों की तुलना में लगभग आधे के बराबर है। 
2. गाँवों में आय असमानता शहरों की अपेक्षाकृत कम है।
3.  ग्रामीण और शहरी गरीबों और अमीरों के बीच की खाई में कोई अन्तर नहीं है।
4. शहरी गरीबों की तुलना में सम्पेक्ष रूप से ग्रामीण गरीबों की स्थिति काफी अच्छी है।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें 
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
8. गरीबी के आर्थिक कारणों में निम्नलिखित में से किसको शामिल नहीं किया जा सकता है?
1. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि दर
2. कृषि की न्यून उत्पादकता
3. आय की असमानताएँ
4. व्यापक निरक्षरता
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1 और 4
(C) केवल 4
(D) केवल 2
9. अटल पेंशन योजना से सम्बन्धित कौन-से कथत असत्य है ?
(A) यह 18 वर्ष से 40 वर्ष तक के श्रमिकों के लिए है।
(B) यह संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए लागू है।
(C) इसमें 60 वर्ष के बाद कम से कम 1000 तक की पेन्शन देने का प्रावधान है।
(D) सरकार का उन्हीं व्यक्तियों के लिए होगा, जो 31 दिसम्बर 2015 तक इस योजना से जुड़ेगे ।
10. बेरोजगारी समस्या से गरीबी बढ़ती है, क्योंकि
(A) गरीबी रेखा नीचे रहने वालों की संख्या बढ़ती है
(B) जनसंख्या तेजी से बढ़ती है
(C) मुद्रा स्फीति तेजी से बढ़ती है
(D) ब्याज दर बढ़ती है
11. भारत जैसे अल्पविकसित क्षेत्र में अधिकांश बेरोजगारी निम्नलिखित में से किस तरह की होती है ?-
(A) संरचनात्मक 
(B) शिक्षित 
(C) प्रच्छन्न
(D) मौसमी
12. भारत में ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी निम्नलिखित में से किस प्रकार की पाई जाती है?
1. प्रच्छन्न या छिपी हुई बेरोजगारी
2. मौसमी बेरोजगारी
3. प्रत्यक्ष बेरोजगारी
4. शिक्षित
निम्नलिखित. कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1 और 4
(D) 1, 2 और 4
13. भारत में विगत 40 वर्षों में निरपेक्ष रूप से औद्योगिक बेरोजगारी बढ़ती है। निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा इसका मुख्य - कारण है ?
1. जनसंख्या के मुकाबले में शहरी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है
2. प्रामीण क्षेत्र में कुटीर एवं लघु उद्योगों का पतन हुआ है।
3. इस अवधि में आर्थिक दृष्टि से सक्रिय जनसंख्या में तेजी के साथ वृद्धि हुई है. जबकि आर्थिक विकास की दर उपरोक्त मात्रा में रोजगार के अबसर पैदा करने में असमर्थ रही है।
4. कृषि क्षेत्र की उपेक्षा के कारण इस अवधि में लोगों का पलापन गाँवों से शहरों की ओर हुआ है तथा औद्योगिक रोजगार लोच, लोचहीन होने के कारण इस क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
14. भारत में शिक्षित बेरोजगारी के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. शिक्षित लोगों की माँग एवं पूर्ति में असन्तुलना ।
2. दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था ।
3. शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण व्यवस्था ।
4. नौकरी तालाश करने बालों में तकनीकी प्रशिक्षण तथा आवश्यक योग्यता की कमी।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
15. भारत में शहरी बेरोजगारी के कारण के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें-
1. शिक्षित वर्ग की अधिकता ।
2. रोजगार लोच में कमी।
3. तीत्र आर्थिक समृद्धि दरा
4. श्रम प्रतिस्थापक तकनीकी के प्रयोग पर जोर ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 2 और 4
(D) ये सभी
16. भारत - जैसे विकासशील देश में अधिकांश बेकारी पाए जाने के कारण के आलोक में निम्नलिखित कथतों पर विचार कीजिए
1. देश में अधिक जनसंख्या होने के कारण विशाल श्रमशक्ति ।
2. देश में पूँजी का अभाव।
3. देश में आधारभूत संरचना का विकास ।
4. उद्यम एवं प्रबन्ध का अभाव।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 2 और 4
(D) ये सभी
17. प्रच्छनन बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि
(A) लोग बड़ी संख्या में बेरोजगार रहते हैं
(B) वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध नहीं है
(C) श्रमिक की सीमान्त उत्पादकता शून्य है
(D) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है
18. प्रच्छन्न बेरोजगारी के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. वैव्यक्ति जिनकी सीमान्त उत्पादकता शून्य है ।
2. वे व्यक्ति जो कार्यरत होते हैं और उनकी उस कार्य में पूर्ण आवश्यकता होती है।
3. ऐसे कामगार जो रोजगार में होते है, परन्तु उनकी उस स्थान पर कोई आवश्यकता नहीं होती।
4. ऐसे व्यक्ति जिनके कार्य छोड़ने पर कुल उत्पादन पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 2, 3 और 4
(C) 1, 2 और 4
(D) 1, 3 और 4
19. भारत में बेरोजगारी कम करने हेतु सर्वाधिक जोर दिया जाता है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित पर विचार करें
1. स्वराजेगार कार्यक्रमों का विस्तार करके ।
2. कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देकर |
3. श्रम शक्ति को विदेशों में रोजगार उपलब्ध कराकर ।
4. सरकारी विभागों में नए पदों का सूजन करके ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
20. 'लॉरैन्ज वक्र' से सम्बन्धित कथनों पर विचार करें।
1. इस वक के द्वारा किसी देश के लोगों के बीच आय विषमता को ज्ञात किया जाता है।
2. वर्ष 1905 में इसे मैक्स ओ लॉरेन्ज ने विकसित किया ।
3. लॉरिन्ज वक्र निरपेक्ष समता रेखा से जितना दूर होगा, आप विषमता उतनी ही अधिक होगी।
उपरोक्त में कौन-सा कथन सत्य हैं?
(A) 1 और 2 
(B) केवल 2
(C) 1 और 3.
(D) ये सभी
21. भारत में विद्यमान बेरोजगारी की समस्या को निम्नलिखित में से क्या कहा जा सकता है?
1. दीर्घकालीन बेरोजगारी
2. अल्पकालीन बेरोजगारी
3. चक्रीय बेरोजगारी
4. मौसमी बेरोजगारी
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें 
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4 
(D) ये सभी
22. निम्नलिखित में से किस कारण से संरचनात्मक बेरोजगारी उत्पन्न होगी ?
1. शिक्षित युवकों का पारम्परिक ज्ञान आधार ।
2. उद्योगों में मशीनों का प्रयोग ।
3. श्रमिकों को वर्ष भर कार्य न मिलना ।
4. सरकारी विभागों तथा उद्योगों में कम्प्यूटराइजेशन |
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1, 2 और 3
(B) 1, 2 और 4
(C) 2, 3 और 4
(D) ये सभी 
23. महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना बनाने, सम्पादन करने और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी निम्न में से की है?
(A) ग्राम सभा
(B) ग्राम पंचायत
(C) राज्य सरकार
(D) जिला ग्रामीण विकास अभिकरण
24. निम्नलिखित में से कौन-सा एक असमानता घटाने का उपाय नहीं है ?
(A) न्यूनतम - आवश्यकता कार्यक्रम
(B) अर्थव्यवस्था का उदारीकरण
(C) करारोपण
(D) भूमि सुधार
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Tue, 09 Apr 2024 06:28:09 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | कर & संरचना https://m.jaankarirakho.com/948 https://m.jaankarirakho.com/948 General Competition | Economics & Economy | कर - संरचना

Tax Structure in India ( कर संचय)

कर (Tax)

कर ऐसा भुगतान है जो अनिवार्य रूप से सरकार को परिवारों कम्पनी या संस्थागत ईकाई द्वारा दिया जाता है। कर देने वाला कर के बदले किसी सेवा प्राप्ति का दावा नहीं कर सकता है।

    • कर सरकार के द्वारा इसलिए लगाया जाता है कि वे अपनी व्यय संबंधी दायित्वों को पूरा कर सके तथा समाज आय का पुनर्वितरण हो । 
    • प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एनातोल मुराद (Anatol Murad ) ने कर को निम्न रूप से परिभाषित किया है- कर वह आवश्यक भुगतान है जो एक व्यक्ति या फर्म द्वारा सरकार को दिया जाता है। करदाता को सरकार से मिलने वाले लाभ का इससे कोई भी संबंध नहीं होता है ।"
    • कर भुगतान करना व्यक्ति की निजी जिम्मेवारी है। कर न देने पर सरकार की ओर से दण्ड दिया जाता है।

कराघात ( Impact of Tax)

सरकार द्वारा लगाये गये कर का तात्कालिक मौद्रीक बोझ जहाँ पड़ता है या सरकार के खजाने में कर जमा करने का दायित्व जिसके ऊपर है, वह बिंदु " कराघात" कहलाती है।

करापात (Incidence of Tax)

किसी कर के लगाये जाने के उपरांत इसका भुगतान वास्तव में जिसके द्वारा किया जात है उस बिंदु को 'करापात' कहते है।

कर विवर्तन (Shifting of Tax)

सरकार जिसके ऊपर कर लगाता है, वह इस स्थिति में हो की कर का कुछ या पूरा भाग दूसरो पर टाल सके. टालने की प्रक्रिया को ही कर विवर्तन कहते है ।

कराधान की विधियां (Methods of Taxsation)

1. प्रतिगामी कर प्रणाली (Regressive Tax System)
  • यदि कर की दर आय (या मात्रा) में वृद्धि के साथ क्रमशः घटती जाए तो उसे प्रतिगापी कर प्रणाली कहते है।
  • इस कर प्रणाली में कर का वास्तविक भार धनी वर्ग के अपेक्षा निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।
  • आधुनिक लोकतांत्रिक एवं समाजवादी दृष्टिकोण से यह एक अलोकप्रिय कर प्रणाली है तथा इसका प्रचलन न के बराबर है।
2. आनुपातिक कर प्रणाली (Proportional Tax System)
  • जब विभिन्न आयवर्ग (या उत्पादन) पर कर की दर एक समान हो तो कर की इस प्रणाली को आनुपातिक कर प्रणाली कहते है।
  • कर की यह प्रणाली न्यायसंगत नहीं है क्योकि इस प्रणाली में अमीर व गरीब दोनों पर समान बोझ पड़ता है।
3. प्रगतिशील कर प्रणाली (Progressive Tax System)
  • इस विधी के कर की दर आय बढ़ने के साथ-साथ बढ़ता जाता है। इस कर प्रणाली में अपेक्षाकृत कम आय पर कर की दर कम तथा अधिक आय पर कर की दर अधिक होती है।
  • इस कर प्रणाली में कर का वास्तविक भार निर्धन व्यक्ति पर कम तथा धनी व्यक्ति पर अधिक पड़ता है।
  • विश्व के अधीकांश देशों में यही कर प्रणाली प्रचलित है क्योंकि यह प्रणाली गरीबो के प्रति मित्रवत है।
4. अवक्रमिक कर प्रणाली (Degressive Tax System)
  • यह कर प्रणाली प्रगतिशील एवं आनुपातिक कर प्रणाली का मिश्रण है।
  • इस कर प्रणाली में प्रारंभ कर की दर आय बढ़ने के साथ बढ़ता है और एक निश्चित सीमा के बाद कर की दर स्थिर हो जाती है, चाहे आय कितनी भी क्यो न हो ।
एक अच्छी कर प्रणाली में निम्नलिखित पाँच विशेषताएँ होनी चाहिए-
  1. न्यायसंगत (Fairness) - जब करो को लोगो के भुगतान क्षमता के आधार पर लगया जाता है तो इसे करो में न्यायशीलता की स्थिति कहा जाता है। इसका अर्थ ये है कि कर की दर उच्च आय वर्ग के लिए अधिक होनी चाहिए तथा निम्न आय वर्ग के लिए कम होनी चाहिए ।
    • अर्थशास्त्री करो के न्यायशीलता के लिए दो तत्वो के समावेश पर बल देते है। ये दो तत्व है क्षैतिज तथा उर्ध्वाधर समानता ।
    • जब समान स्थितियों में व्यक्तियों द्वारा समान कर दिया जाए तो इसी क्षैतिज समानता कहते है। इसी तरह अगर आर्थीक रूप से ज्यादा सम्पन्न व्यक्तियों द्वारा अपेक्षाकृत अधिक कर दिया जा रहा तो इसे "उर्ध्वाधर समानता" कहते है ।
  2. दक्षता (Efficiency)- दक्षता किसी कर प्रणाली की वह क्षमता है, जिससे वह अर्थव्यवस्था के निष्पादन क्षमता को प्रभावित करती है।
    • अगर कर व्यवस्था अर्थव्यवस्था की बचत, निवेश तथा व्यय को प्रभावित नहीं करता है तो हम कह सकते है इस कर व्यवस्था में दक्षता का तत्व विद्यमान है।
  3. प्रशासनिक सरलता (Administrative Simplicity)
    • कर व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए ताकि करो की गणना, इसकी फाईलिंग तथा इसकी वसूली करना आसान हो। इसे ही प्रशासनिक सरलता कहते है।
  4. लचीलापन (Flexibility)- एक अच्छी कर व्यवस्था में लचीलापन होना अति-आवश्यक हैं। लचीलापन का अर्थ है कर में संसोधन करना आसान हो ताकि सरकार अपने आवश्यकता के अनुरूप जब भी चाहे कर की दर को बढ़ा सके या कर की दर को घटा सके।
  5. पारदर्शिता (Transparancy)- पारदर्शिता से तात्पर्य यह है, करदाताओं को यह बात पता होनी चाहिए कि उनके द्वारा चुकाये गये कर का उपयोग सरकार कैसे एवं किन-किन क्षेत्रों में कर रही है।

करो के प्रकार (Types of Tax)

  • कर मुख्यतः दो प्रकार के होते है- प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर
1. प्रत्यक्षकर (Direct Tax)
  • प्रत्यक्ष कर वह कर है जिसका अंतिम भार उस व्यक्ति को उठाना पड़ता है, जिसपर कर आरोपित होता है। प्रत्यक्ष कर के सम्बन्ध में कर से उत्पन्न कराघात तथा करापात दोनों ही एक ही व्यक्ति पर पड़ता है। इस कर का भार दूसरे व्यक्ति पर टाला नही जा सकता है।
  • प्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित गुण पाये जाते है-
    1. प्रत्यक्ष कर प्रगतिशील होते हैं। इसका भार निर्धन व्यक्ति पर कम तथा धनी व्यक्ति पर अधिक पड़ता है। ये कर आय की असमानता को दूर करते है । 
    2. इस कर को एकत्र करने के सरकार को अधिक व्यय नही करना पड़ता है। करदाता को स्वयं ही ये कर सरकार के पास जमा करने पड़ते है ।
    3. यह कर निश्चितता के सिद्धांत पर आधारित होते है । करदाता को पता होता है कि उनको कितना कर कब, कहाँ और कैसे देना है।
    4. यह कर लोचदार होते है। सरकार इस कर की दर को आसानी से घटा बढ़ा सकती है।
    5. प्रत्यक्ष कर सरल होते है तथा इनसे संबंधित कानून काफी स्पष्ट होते है। इनको समझना व इनका ब्योरा रखना कोई कठिन कार्य नहीं है।
    6. इस कर का भुगतान करना आसान होता है। इन करो का भुगतान अधिकतर उसी समय करना होता है जब लोगों के पास भुगतान करने की सुविधा होती है।
  • प्रशासनिक कठिनाइयों के कारण प्रत्यक्ष कर में कई प्रकार के दोष (Demerits) पाये जाते है। प्रत्यक्ष कर में पाये जाने वाले प्रमुख दोष निम्न है- 
    1. प्रत्यक्ष कर लोकप्रिय नहीं पाते है। करदाता को ये कर अधिक कष्ट दायक प्रतीत होते है। इन करो से बचने के लिए वह कपटतापूर्ण तरीके अपनाने के लिए मजबूर हो जाता है। 
    2. प्रत्यक्ष कर से बचना आसन होता है। व्यक्ति अपनी आय को कम बताकर इस कर से बच जाते है।
    3. इन करो में कभी-कभी भुगतान संबंधी कठिनाइयाँ का भी सामना करना पड़ता है। करदाता को कर के रूप में दी जाने वाली राशि को निर्धारित करने के लिए आयकर अधिकारियों के पास कई बार जाना पड़ता है, उसे अपना हिसाब-किताब दिखाना पड़ता है।
    4. कुछ प्रत्यक्ष कर ऐसे है जिन्हे एकत्र करने में सरकार को काफी खर्च करना पड़ जाता है।
    5. प्रत्यक्ष कर को लगाने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं होने के कारण सरकारी अधिकारी मनमाने ढंग से इस कर को आरोपित कर देते है जिससे भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ जाती है।
    6. प्रत्यक्ष कर पूंजी निर्माण में बाधक होते है। इस कर से लोगों का बचत कम हो जाता है जिससे पूंजी निर्माण की दर घट जाती है।

प्रमुख प्रत्यक्ष कर

1. आयकर (Income Tax)
  • भारत में आयकर सबसे पहले 24 जुलाई, 1860 में लगाया गया था। भारत में बजट के जनक माने जाने वाले जेम्स विल्सन ने 1860 में भारत के पहले बजट में आय कर लगाया था। उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड केनिंग थे।
  • 24 जुलाई 2010 को आयकर लगाये जाने का 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 24 जुलाई को आयकर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • आय कर व्यक्ति के विभिन्न आय स्त्रोतो पर लगाया जाता है। व्यक्ति के आय के प्रमुख स्त्रोत है- वेतन, व्यापार, व्यवसाय, सम्पत्ति, ब्याज प्राप्ति, लाभांस आदि ।
  • 2019-20 की बजट के अनुसार रू 5 लाख वार्षीक आय पर कोई आय कर देय नही होगा ।
  • वर्तमान में आय कर का नियमन आयकर अधिनियम 1961 द्वारा होता है।
  • कृषि से हुए आय पर कर लगाने का सुझाव सबसे पहले के. एन. राज समिति (1972) ने दिया था। यह कर सबसे पहले बिहार में 1938 में लगा था।
2. निगम कर (Corporate Tax)
  • कम्पनियों की निवल लाभ (आय) पर लगाये गये कर को निगम कर या कंपनी लाभ कर कहा जाता है। इस कर को कंपनी अधिनियम 1956 के तहत आने वाले सभी निजी और सार्वजनिक कम्पनी पर लगाया जाता है।
  • यह कर भी आयकर अधिनियम 1961 के तहत लगाया जाता है। 1960-61 के पूर्व कम्पनियों के लाभ पर जो कर लगता था उसे सुपर टैक्स कहा जाता था ।
  • 2019-20 में निगम कर रू 400 करोड़ टर्नओवर तक 25% तथा इसके ऊपर 30% है।
  • वर्तमान समय में निगम कर भारत सरकार के राजस्व प्राप्त करने का सबसे बड़ा स्त्रोत है और यह कर केंद्र सरकार राज्यों के मध्य विभाजित नहीं करता है।
3. न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternative Tax MAT)
  • शून्य कर कम्पनी (Zero Tax Company)- एसी कम्पनी जिसका शुद्ध लाभ धनात्मक है परंतु सरकार द्वारा प्रदान की गई रिसायत के कारण कम्पनी का कर योग्य लाभ शून्य हो जाता है, तो इसे शून्य कर कम्पनी कहते है। यह कम्पनी निगम कर के दायरे से बाहर हो जाती है।
  • शून्य कर कम्पनी को कर दायरे में लाने हेतु 1988-89 में MAT लागू किया गया परन्तु 1991-92 के आर्थिक सुधारों के दौरान इसे वापस ले लिया गया।
  • इस कर को पुनः 1997-98 के बजट में वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के द्वारा लागू किया गया। MAT की दर निगम कर की दर से कम होता है। MAT उन्ही कम्पनी पर लागू होता है जिसका शुद्ध लाभ कम से कम रू. 20 लाख हो |
4. संपत्ति कर (Property Tax)
  • लोगों द्वारा अर्जित आय के कारण आर्थीक बिषमता में वृद्धि न हो इस कारण केंद्र सरकार एक सीमा के बाद सम्पत्ति पर भी कर लगाती है।
  • सम्पत्ति कर के अंतर्गत तीन कर आते है- धन कर ( Wealth Tax), उपहार कर (Gift Tax) तथा इस्टेट ड्यूटी (Estate duty)
  • इस्टेट ड्यूटी (Estate duty)- यह पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति पर लगाने वाला Tax है, जिसे उत्तराधिकारी से वसूला जाता है। इस कर को उत्तराधिकार कर भी कहते है।
  • इस्टेट ड्यूटी भारत में पहली बार 1953 में लगाया गया था। इस कर को एल. के. झा कमिटी के सिफारिश पर 1985 में समाप्त कर दिया गया।
  • भारत में 1953 से 1986 कर इस्टेट ड्यूटी लागू रहा । इस कर की वित्त मंत्री सी. डी. देशमुख द्वारा लागू किया गया तथा जिस समय समाप्त किया गया उस समय वी. पी. सिंह वित्त मंत्री थे।
  • उपहार कर (Gift Tax) - किसी व्यक्ति से बिना किसी प्रतिफल के प्राप्त चल/अचल संपत्ति को उपहार कहा जाता है और इस. पर जो कर आरोपित होता है उसे उपहार कर कहते है। यह कर पहली बार 1958 में लगाया गया था परंतु 1998 में इसे समाप्त कर दिया गया। :
  • 2002-03 में इसे नये सिरे से फिर से लागू किया गया। 2002-03 में यह व्यवस्था बनायी गई कि व्यक्ति को रू 25,000 (वर्तमान में रू.50,000) से अधिक का उपहार प्राप्त होता है तो यह राशि उसके आय में जोड़कर अन्य आय की ही तरह इस पर भी आयकर देय होगा ।
  • उपहार कर वर्तमान में उपहार की इस कर समाप्त कर दिया गया है। यह कर को आयकर में ही समाहित कर दिया गया है। विवाह के समय प्राप्त बाहर रखा गया है।
  • धन कर (Wealth Tax) - इस कर को लगाने की संस्तुति निकोलस केल्डार ने 1957 में की थी। यह कर राज्य सरकार लगाती है। इसके तहत प्रत्येक वर्ष संपत्ति का मूल्यांकन करके कर लगाया जाताह है। इस कर की दर 1 प्रतिशत थी परंतु 2009-10 के बजट में इसे कर को समाप्त कर दिया गया।
  • इस तरह से तीनों ही सम्पत्ति कर इस्टेट ड्यूटी, उपहार कर, धन कर वर्तमान के समाप्त कर दिये गये है।
5. पूंजी लाभ कर (Capital Gains Tax)
  • जब कोई प्रतिभूती ( शेयर, बॉण्ड, डिवेन्चर ) या मकान अपने निर्माण लागत / क्रयलागत से अधिक मूल्य पर बिकता है तो इसे पूंजी लाभ कहते है। इस पर जो कर आरोपित होता है, वह पूंजी लाभ कर कहलाता है।
6. फ्रिंज लाभ कर (Fringe Benefit Tax)
  • एक नियोक्ता अपने कर्मचारी को वेतन के अतिरिक्त मनोरंजन, उपहार, रहने के लिए घर, यातायात सुविधा, फोन, रिटायरमेंट फण्ड आदि जैसे सुविधा देती है। इसे ही फ्रिंज लाभ कहते है।
  • इस पर जो कर आरोपित होता है उसे फ्रिंज लाभ कहते है। इस कर की शुरूआत 2005-06 में किया गया था जिसे 1 अप्रैल 2009 को समाप्त कर दिया गया।
7. प्रतिभूति विनिमय कर ( Securities Transaction Tax)
  • घरेलु स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों (शेयर, बॉण्ड, आदि) के लेन-देन पर लगाये जाने वाले कर को प्रतिभूति विनिमय कर कहते है।
  • इस कर की शुरूआत 1 अक्टूबर 2004 में हुई थी। इस कर की दरें केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित की जाती है एवं यह कर स्टॉक एक्सचेंज से वसूला जाता है।
  • प्रत्यक्ष करो की उगाही से जुड़े सभी मामलों का निपटारा तथा प्रत्यक्ष कर से संबंधित कानूनों के नियमन हेतु " सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सज' (CBDT) उत्तरदायी है ।
  • CBDT की स्थापना सेंट्रल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू एक्ट 1963 के अंतर्गत किया गया। इसने 1 जनवरी 1963 से काम करना शुरू किया ।
  • CBDT राजस्व विभाग के अंतर्गत आते है। इसमें अध्यक्ष के अलावे 5 सदस्य होते है।
  • कमोडिटीज ट्रैंजेक्शन टैक्स (CTT) ऐसा प्रत्यक्ष कर है जो लागू से पहले ही समाप्त हो गया । CTT की में कई गई थी जबकि 1 अप्रैल 2009 को इसे समाप्त कर दिया गया ।

अप्रत्यक्ष कर ( Indirect Tax)

  • अप्रत्यक्ष कर वे कर है जिन का प्रारंभिक भार एक व्यक्ति पर पड़ता है, परंतु उस भार को वह दूसरो पर टालने में सफल हो जाता है।
  • अप्रत्यक्ष कर के संबंध में कराधान (Impact) एक व्यक्ति पर पड़ता है जबकि करापात (Incidence) किसी और व्यक्ति को उठाना पड़ता है।
  • अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित गुण पाये जाते है-
    1. अप्रत्यक्ष कर प्रत्यक्ष कर के तुलना में सुविधा जनक होते है। करदाता को कर का भार अनुभव नही होता है। जैसे- कोई समान खरीदते समय ग्राहक ब्रिकी कर अदा करते है जिसका अनुभव भी उन्हें नही होता है ।
    2. अप्रत्यक्ष क़र अधिकांशतः वस्तु के कीमत में शामिल रहते हैं अत: इस प्रकार के करो से बचना प्रत्यक्ष करो की अपेक्षा कठिन है I
    3. अप्रत्यक्ष कर लोचदार स्वरूप के होते हैं। कर की आ जाती है। र को बढ़ाने या कमी करने पर सरकार की आय में काफी वृद्धि या कमी आ जाती है ।
    4. इस कर की सहायता से सरकार हानिकारक उपभोग पर प्रतिबंध लगाते है। जैसे- शराब, सिगरेट पर भारी मात्रा में ब्रिकी कर आरोपित कर कीमते बढ़ा दी जाती है ताकि त्रिकी कम से कम हो ।
    5. प्रत्यक्ष कर के तुलना में अप्रत्यक्ष कर का दायरा काफी विस्तृत होता है। वास्तव में लगभग प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में ये कर देने पड़ते है।
    6. इन करो की सहायता से देश के आंतरिक उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाया जा सकता है। आयात-निर्यात करो का उपयोग इसी उद्देश्य के लिए किया जाता है।
  • अप्रत्यक्ष करो में पाये जाने वाले प्रमुख दोष-
    1. अर्थशास्त्रियों के अनुसार अप्रत्यक्ष कर प्रतिगामी स्वरूप के होते है। इसका भार धनी व्यक्ति पर कम तथा निर्धन व्यक्ति पर अधिक पड़ता है।
    2. इस कर की मात्रा अनिश्चित होती है। इस कर के संबंध में यह अनुमान नही लगाया जा सकता कि वास्तव में सरकार को कितनी आय प्राप्त होगी । 
    3. अप्रत्यक्ष कर की एकत्र करने में सरकार को काफी अधिक धन का व्यय करना पड़ता है।
    4. अप्रत्यक्ष कर का अंतिम रूप से भुगतान देश के नागरिक ही करते है परंतु उन्हें यह पता ही नही चलता है कि उन्होनें कब और कितनी मात्रा में कर अदा किये है।
    5. प्रत्यक्ष कर की तरह अप्रत्यक्ष कर की भी चोरी की जाती है। जैसे- दुकानदार कई बार ग्राहक से ब्रिकी कर वसूल तो कर लेते है परंतु उन्हें कैशमेमो नहीं देते हैं और दुकानदार ये कर सरकार को नहीं चुकाते है।
    6. अप्रत्यक्ष कर वस्तु के कीमत को बढ़ाते है जिससे लोगों को अपनी आय का अधिक भाग वस्तुओं को खरीदने पर व्यय करना पड़ता है जिसके कारण बचत प्रभावित होता है।

प्रमुख अप्रत्यक्ष कर

1. सीमा शुल्क (Custom Duty)
  • देश में आयातित वस्तु अथवा देश से निर्यातित वस्तु पर लगाये जाने वाले कर को सीमा शुल्क कहते है।
  • आयातित की जाने वस्तु पर लगे शुल्क आयात शुल्क कहलाते है तथा निर्यात की जाने वाले वस्तु पर लगे को निर्यात शुल्क कहते है। परंतु वर्तमान में निर्यात शुल्क नहीं लगाये जाते है इसलिए आयात शुल्क ही सीमा शुल्क का पर्याय हो गया है।
  • आर्थिक सुधारों से पहले सीमा शुल्क की दर काफी उच्च थी, कुछ मामलो में इस कर की दर 300% से भी ज्यादा था परंतु 1995 में इस कर को घटाकर 50% तक ला दिया गया है। 
2. सेवा कर (Service Tax)
  • यह कर चैलैया समिति के सिफ़ारिश पर 1994-95 के केंद्रीय बजट में शुरू किया गया था ।
  • सर्वप्रथम 1994-95 में तीन सेवा - टेलीफोन, सामान्य बीमा तथा स्टॉक ब्रोकर्स पर 5% की दर से सेवा कर लगाया गया था।
  • वर्तमान में इस कर को GST से मिला दिया गया है।
3. केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty)
  • देश के भीतर उत्पादित वस्तु पर लगाये जाने वाले कर को उत्पाद शुल्क कहते है। केंद्र सरकार औद्योगिक तथा कृषि वस्तुओं (चाय, कॉफी छोड़कर) पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है।
  • मादक वस्तु जैसे- शराब, तम्बाकू उत्पाद, गाँजा पर राज्य सरकार उत्पाद शुल्क लगाता है। परंतु सिगरेट के उत्पादन पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क लगाता है।
4. मूल्यवृद्धि कर या वैट (Value Added Tax)
  • यह वह अप्रत्यक्ष कर है जो उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले मूल्यवृद्धि पर लगाया जाता है। उत्पाद के मूल्य तथा मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य के अंतर को मूल्य वृद्धि कहते है।
  • VAT वास्तव में उत्पादन के प्रत्येक वरण बिक्री कर है जो उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर मूल्यवृद्धि पर ही लगाया जाता है। इस विधी में पहले स्तर पर बिक्री कर लगाया जाता है। इसके बाद उत्पादक को मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद पर अदा किए गये करो की पूर्ण कटौती कर दी जाती है। इस प्रकार उत्पादक सरकार को केवल मूल्य वृद्धि पर ही कर का भुगतान करता हैं ।
  • भारत में केंद्र सरकार उत्पादन शुल्क के स्थान पर VAT आरोपित करती है जिसे CENVAT ( वेनवैट) कहते है और राज्य सरकार बिक्री कर (या व्यापार कर) के स्थान पर VAT आरोपित करती है।

VAT : टाइमलाइन

→ वैट का प्रथम प्रतिपादन 1918 में एफ. वान सीमेन्स ने किया था आगे चलकर मारिश फोर तथा कार्लशूप जैसे अर्थशास्त्रियों ने इसे और विकसीत किया।
→ सर्वप्रथम वैट 1918 में जर्मनी में लागू हुआ परंतु जर्मनी में यह सफल नही रहा ।
→ सफलतापूर्वक वैट को लागू करने वाला प्रथम देश फ्रांस है जहाँ VAT 1954 में लागू किया गया। 1967 तक यह समस्त यूरोपियन देश में लागू हो गया।
→ वर्तमान में लगभग सभी एशियाई देशों में VAT लागू है। परंतु USA (अमेरिका) में अब तक VAT को लागू नही किया है।
→ भारत में अप्रत्यक्ष कर के वर्तमान स्वरूप जाँच हेतु 1976 में एल. के. झा समिति का गठन हुआ था। झा कमेटी ने यह सुझाव दिया कि भारत के वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था के तहत VAT को लागू करना संभव नहीं है हाँलाकि कमेटी ने यह सिफारिश की प्रायोगिक तौर पर इसे विनिर्माण क्षेत्रों के उत्पादन पर लगाया जा सकता है। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन पर लगाये गये VAT को MANVAT (मैन्युफैक्चरिंग वैट) कहा गया । परंतु यह लागू नही हो पाया
→ उत्पाद शुल्क के इतिहास में 1986 का वर्ष एक ऐतिहासिक वर्ष माना जाना चाहिए क्योकि इसी वर्ष 1 मार्च 1986 को बी. पी. सिंह (तात्कालिन वित्तमंत्री) ने MODVAT लागू किया। MODVAT MANVAT का सुधारा गया रूप है जिसे Modified VAT या MODVAT कहा गया।
→ MODVAT के तहत यह व्यवस्था की गई कि किसी उत्पादक ईकाई (उत्पादन करने वाला कम्पनी) ने अपने उत्पाद में प्रयुक्त आगत (कच्चा माल) पर जो उत्पाद कर दिया है उसे उसके कुल दर दायित्व से घटा दिया जाएगा।
→ 1991 में उत्पाद शुल्क के संदर्भ में 2 प्रकार के दर लागू थी जिससे कर ढाचाँ काफी जटिल बन गया था। इस कर ढाचाँ के कभी वस्तुओं (उत्पाद) के वर्गीकरण को लेकर झगड़े होते थे तो कभी भ्रष्टाचार की समस्या उजागर होती थी ।
→ 2000-01 के बजट के उत्पाद शुल्क के विभिन्न दरो को मिलाकर 16% की एक मानक उत्पादन शुल्क दर सभी उत्पाद पर लागू कर दिया गया और इसे CENVAT (Central VAT) का नाम दिया गया।
→ इस प्रकार सैनवैट (CENVAT), मॉडवैट (MODVAT) का एक रूप है और इसे भी उत्पाद शुल्क के स्थान पर प्रत्यारोपित किया गया। MODVAT तथा CENVAT में मुख्य अंतर यह है कि MODVAT के अन्तर्गत कई प्रकार के उत्पाद शुल्क की दरे प्रचलित थी जबकि . CENVAT प्रणाली में 16% की एक मात्र दर प्रचलित होगी ।
→ 1991 में गठित चेलैया समिति ने यह सुझाव दिया किं धीरे-धीरे राज्य स्तर पर बिक्री कर के जगह स्टेट बैट लागू कर देना चाहिए। VAT को दर पर केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाना चाहिए तथा वसूली गयी राशि राज्यों को मिलनी चाहिए।
→ 1 अप्रैल 2003 से वैट लागू करने पर केंद्र तथा राज्यों के बीच सहमति बनी और इसे लागू कर दिया गया परंतु इस तिथी को एकमात्र राज्य हरियाणा ने अपने यहाँ वैट को लागू किया।
→ धीरे-धीरे भारत के सभी राज्यों में वैट लागू हो गया। सबसे अंत में वैट उत्तर प्रदेश द्वारा 1 जनवरी 2008 को लागू किया गया।
→ वैट (VAT) के तीन रूप है- उपभोग प्रकार का वैट (Consumption type VAT), आय वैट (Incomé VAT) तथा उत्पाद प्रकार का वैट (Product type VAT)
→ उपभोग प्रकार का वैट सबसे प्रचलित वैट है। भारत में इसी प्रकार का वैट लागू है। उपभोग प्रकार का वैट को रिटेल सेल्स टाइप वैट भी कहते है।
→ उपभोग प्रकार के वैट, फ्रांस में वैट लागू होने के बहुत समय बाद सबसे पहले ब्राजिल में हुआ।
→ वर्तमान समय में वस्तु तथा सेवाओं के उत्पादन तथा उपभोग पर लगने वाले करो को जी एस टी (GST) के मिला दिया गया है। GST लागू करने का भी आधार वही है जो वैट का है।
5. क्रय कर (Purchase Tax)
  • यह कर कुछ राज्य (पंजाब, हरियाणा ) ने कृषि उत्पाद जैसे गेहूँ की खरीद पर लगाया है।
  • इस कर को भी वर्तमान GST के अंतर्गत शामिल करने का विचार हैं परंतु कर आरोपित करने वाले राज्य विरोध कर रहे है।
  • अप्रत्यक्ष करो से सम्बन्धित सभी राजस्व समस्याओं का नियमन तथा नियंत्रण राजस्व विभाग के केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Excise and Custom ) द्वारा होता है।
  • बहुत से अर्थशास्त्री करो को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष आधार पर वर्गीकरण न करके करो का कर आधार पर वर्गीकरण करते है। यह वर्गीकरण निम्न है-
    • आय आधार पर लगने वाले कर
      1. आयकर
      2. निगम कर
      3. पूंजी लाभ कर
      4. व्यय कर आदि
    • सम्पत्ति के आधार पर लगने वाले कर
      1. सम्पत्ति कर
      2. इस्टेट ड्यूटी
      3. उपहार कर
    • वस्तु तथा सेवा के आधार पर लगने वाले कर
      1. उत्पाद शुल्क
      2. सीमा शुल्क
      3. GST

उपकर तथा अधिभार (Cess and Surcharge)

  • कर एक प्रकार का अनिवार्य अंशदान है जिसे सरकार किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए नही लगाता है इसके विपरित उपकर तथा अधिभार दोनों ही किसी उद्देश्य विशेष की पूर्ति के लिए राजस्व के उगाही के लिए लगाये जाते है।
  • उपकर कर के साथ कर आधार पर ही किसी विशेष प्रायोजन पर लगाया जाता है जबकि अधिभार कर के ऊपर कर है जिसकी गणना कर दायित्व पर की जाती है।
  • सामान्यत: उपकर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों करों के साथ लगाया जाता है जबकि अधिभार प्रत्यक्ष कर पर लगाया जाता है।
  • अधिभार तथा उपकर से प्राप्त राशि राज्यों के बीच नहीं बाटाँ जाता है, इससे प्राप्त राजस्व को उन्हीं उद्देश्यों पर लगाया जाता है जिनके लिए इन्हें लगाया गया है।

कर, शुल्क (Duty) तथा फीस में अंतर

  • कर (Tax)- जब बिना आवश्यक रूप से लाभ प्राप्त किए, कर आधार से सम्बन्धित होने के कारण भुगतान किया जाता है तो इसे कर कहते है। यानि कर के बदले किसी भी प्रकार की सेवा प्राप्त करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
  • शुल्क (Duty) - जब सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाएँ (जैसे- सड़क, बिजली, संचार, बैंकिंग, पोर्ट आदि) के प्रयोग से या लाभ प्राप्त कर के व्यक्ति कोई आर्थिक क्रिया करता तो इनके बदले जो अनिवार्य भुगतान किया जाता है उसे शुल्क कहते है। जैसे उत्पाद शुल्क, आयात शुल्क आदि। परंतु बहुत से देशों में शुल्क को भी कर ही कहा जाता है।
  • फीस (Fees) - सरकार द्वारा व्यक्तियों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए दिया गया भुगतान फीस कहलाता है। फीस की रकम साधारण तथा उसके बदले में दी जाने वाली सेवा की लागत के बराबर होती है। जैसे - जन्म, मृत्यु के रजिस्ट्रेशन फीस भूमि का रजिस्ट्रेशन फीस आदि ।
  • चुंगी (Octroi) - चुंगी एक प्रकार अप्रत्यक्ष कर है और इसे प्रवेश कर (Entry Tax) भी कहते है। इसे स्थानीय सरकार (नगर निगम, नगर पंचायत, पंचायत) लगाती है। अधिकांश राज्यों में इसे समाप्त कर दिया गया है।

कर लोच (Tax Elasticity)

  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि के परिणाम स्वरूप कर राजस्व में होने वाले वृद्धि के बीच पाये जाने वाले सम्बन्ध को कर लोच कहते है।
    • कर लोच = कर राजस्व में % परिवर्तन / राष्ट्रीय आय के प्रतिशत परिवर्तन

टैक्स रिटर्न (Tax Return)

  • टैक्स रिटर्न एक प्रकार का विवरण जिसे कर मुक्त आय से अधिक आय अर्जित करने वाला व्यक्ति को अनिवार्य रूप से भरना पड़ता है। यह विवरण में अर्जित आय के स्त्रोत, व्यक्ति द्वारा किये गये उन विनियोगो का विवरण देना होता है जिन पर आयकर में है। छूट इसके अलावे भी कई प्रकार के सूचनायें टैक्स रिटर्न फॉर्म में भरना पड़ता है।
  • टैक्स रिटर्न भरने के निश्चित तिथि की घोषण आयकर विभाग द्वारा किया जाता है तथा निश्चित तिथि से पहले टैक्स रिटर्न भर देना अनिवार्य होता है।
  • वर्तमान में रू. 5 लाख (वार्षिक) से अधिक आय वालो के लिये ऑनालइन (online) टैक्स रिर्टन भरना अनिवार्य है।

कर आश्रय (Tax Haven)

  • कुछ देश विदेशी नागरिकों को यह सुविधा देता है कि उस देश में रहकर जो व्यापार करेगें या वहाँ के उद्योगों में निवेश करेंगे उस पर उनको कर नहीं देना होगा या न्यूनतम मात्रा में ही कर देना होगा। ऐसे ही देश को Tax Haven कहते है ।
  • मॉरीशस, साइप्रस, सिंगापुर जैसे देश Tax Haven देशों के श्रेणी में आते है।

कर उत्प्लवता (Tax Bouyancy)

  • राष्ट्रीय आय तथा सरकार द्वारा कर ढांचे के सम्बन्ध में सुधार हेतु उठाये गये कदम के परिणामस्वरूप कर राजस्व में होने वाले परिवर्तनों के बीच के संबंध को कर उत्प्लवता कहते है । कर उत्प्लवता की गणना करते समय सम्पूर्ण राष्ट्रीय आय को आधार न लेकर जी. डी. पी. को ही लेते है।
  • आर्थिक समीक्षा (2015-16) के अनुसार- 

       

स्थायीखाता संख्या या पैन (Permanent Account Number or PAN)

  • पैन 10 अल्फा न्यूमेरिक की तरह एक संख्या जो राष्ट्रीय स्तर पर आयकर विभाग द्वारा जारी की जाती है। पैन का उद्देश्य संभावित आयकर दाताओं को चिह्नित करना है। पैन कार्ड में आयकर दाता ( या संभावित आयकर दाता) के नाम, फोटो, जन्म तिथि तथा हस्ताक्षर होता है, इस पर निवास स्थान का पता नहीं दिया रहता है।
  • पैन के पहले तीन अक्षर एक निश्चित सिरीज के रूप में अनवतर जारी है जो AAA से ZZZ तक होता है। (उदा. - AECPY7315P)
  • पैन का चौथा लेटर पैन धारक की स्थिति बतलाता है जैसे ( P = पर्सनल या इन्डिविजुअल हेतु, H = हिन्दु अनडिवाइडेड फैमिली हेतु, फर्म हेतु, A = सरकार हेतु उदा. - AECPY73159)
  • पैन का पाँचवा लेटर पैन धारक के सरनेम को व्यक्त करता है जैसे - लाल सर नम हेतु = L, झा सरनेम हेतु = J, यादव सरनेम हेतु Y.
  • पैन का 6ठें से लेकर 9वें अंक 0001 से 9999 तक हो सकता है। यह चार अंक पंजीकरण सिरीज व्यक्त करते हैं।
  • पैन के अंतिम अल्फावेट एक निर्धारित सूत्र के अनुसार आयकर विभाग तैयार करता है।
  • पैन प्रणाली का शुरूआत 1998 में हुई थी, पैन प्रणाली से पहले 'सामान्य परिचय पंजीकरण संख्या' प्रभावी था।

स्त्रोत पर कटौती या टीडीएस (Tax deducted at source or TDS)

  • जब कोई संस्था व्यापारिक कम्पनी या व्यक्ति अन्य व्यक्ति को वेतन, व्याज, लाभांस या अन्य रूप से कोई भुगतान करता है तो यह अनिवार्य है कि वह भुगतान के समय उस आय में आयकर अधिनियम के तहत निश्चित दर पर कटौती कर ले इसी कटौती को TDS कहते है।
  • TDS का सीधा अर्थ है व्यक्ति के आय का कुछ प्रतिशत (जो सरकार द्वारा निश्चित है ) व्यक्ति को आय देने वाला संस्था द्वारा काट लेना। TDS जिसका कटता है उसे Deductee कहते है। तथा TDS जो काटता है उसे Deductor कहते हैं। Deductor को TDS की राशि निश्चित समय के भीतर सरकार को जमा करना पड़ता है नही तो सरकार Deductor पर ब्याज और पेनल्टी लगा सकता है।
  • TDS काटने वाला संस्था आय प्राप्तकर्त्ता के सभी जानकारी आयकर विभाग को देता है। आय प्राप्त कर्त्ता को टैक्स रिर्टन भरते समय TDS का उल्लेख करना अनिवार्य है। आयप्राप्तकर्त्ता अगर कर दायरे में आता है तो TDS की राशि का कर दायित्व से समायोजित कर दिया जाता है अगर आय प्राप्तकर्त्ता कर दायरे में नहीं आता है तो टैक्स रिटर्न भरते समय टी डी एस रिफंड का क्लेम कर सकते है।
  • TDS के पीछे का उद्देश्य यही है कि कर चोरी को कम से कम किया जाए।

कर अपवंचन (Tax Evasion)

  • कर दायरे में आने के बावजूद भी कर का भुगतान नहीं करना या टैक्स रिटर्न नही भरना या टैक्स रिटर्न में भ्रामक जानकारी देकर कर से बच जाना कर अपवंचन कहलाता है।
  • कर अपवंचन गैर-कानूनी क्रिया है और यह अपराध के श्रेणी में आता है। | 

कर बचाव (Tax Avoidance)

  • अपने आय तथा सम्पत्ति को चाटर्ड एकाउन्टेन्ट की सलाह या सहायता इस प्रकार व्यवस्थित करना ताकि कर दायरे से बाहर हो जाए या न्यूनतम कर अदा करना पड़े इसे कर बचाव कहते है।
  • इस तरह से कर बचाव कानूनन अपराध नहीं है।

ग्रैच्युटी (Gratutity)

  • किसी नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारी को उसकी लगातार सेवाओं के बदले सेवा अवकाश पर दी जाने वाले एकमुश्त रकम को ग्रैच्युटी कहते है।
  • ग्रैच्युटी की गणना कर्मचारी के औसत वेतन, महगायी भत्ता तथा कर्मचारी द्वारा की गई सेवा के आधार पर की जाती हैं। समान्यतः 1 वर्ष की सेवा पर 15 दिन को ग्रैच्युटी की गणना के लिए लिया जाता है तथा ग्रैच्युटी प्राप्त करने के लिए न्यूनतम सेवा अवधि 5 वर्ष है। 

अग्रिम कर ( Advance Tax)

  • व्यापारिक ईकाई, कम्पनी तथा पेशवरो के लिए यह अनिवार्य है कि वे कर निर्धारण वर्ष में अपने कर दायित्व का कुछ भाग मार्च से पूर्व अग्रिम रूप से सरकार के पास जमा करें। इसे ही अग्रिम कर कहते है।
  • जिस किसी का कर दायित्व किसी वित्तीय वर्ष में रू. 10000 है उसे अग्रिम कर देना अनिवार्य है।

पूर्वकल्पित कर ( Pressumptive Tax)

  • इस कर को लगाने की सिफारिश 1991 में गठित चैलैया समिति ने की थी जिसे सर्वप्रथम 1991-92 में लागू किया गया परंतु बाद में इसे समाप्त कर दिया गया। इसकी पुनः शुरूआत 2009-10 में किया गया है।
  • वर्तमान व्यवस्था के अनुसार छोटे तथा मध्यम कम्पनी जिसकी कुल बिक्री रू. 2 करोड़ से अधिक नही है तो वह अपने सकल बिक्री का 8% आय मानकर उस पर कर दे सकती है। इसे ही पूर्व- कल्पित कर कहा जाता है। पूर्वकल्पित कर देने वाली इकाई को कारोबार का लेखा जोखा रखने से मुक्त कर दिया जाता है।

लैफर वक्र (Laffer Curve)

  • अर्थशास्त्री आर्थर लैफर द्वारा प्रतिपादित यह वक्र राजस्व प्राप्ति तथा कर के दर के बीच का संबंध बतलाता है। इस वक्र के अनुसार कर की एक इष्टतम दर पर ही अधिक राजस्व की प्राप्ति की जा सकती है।
  • अगर कर की दर इष्टतम दर से कम है तो कम राजस्व की प्राप्ति होगी अगर कर की दर इष्टतम दर से अधिक की प्रवृत्ति बढ़ेगी। 

रैमसे टैक्स रूल (Ramsy Tax Rule)

  • यह रूल कर के कुशल सिद्धांत (Efficient rule of Taxation) से सम्बन्धित है।
  • इस रूल के अनुसार सरकार को उन आगतो ( Inputs) तथा निर्गतो (Output) पर भारी करारोपण करनी चाहिए जिसकी मांग और पूर्ति अधिक बेलांच हैं (जैसे- सिगरेट की मांग)
  • इस रूल के तहत सरकार आर्थिक कुशलता को न्यूनतम हानि पहुँचाये बिना अधिक राजस्व प्राप्त कर सकता है।

विवरण- पत्र पहचान संख्या (Documents Identification Number or DIN)

  • करदाताओं की शिकायत में कमी लाने हेतु DIN प्रणाली की शुरूआत 2009-10 के बजट में की गई।
  • आयकर विभाग करदाता को प्रत्येक व्यवहार के संबंध में कम्प्यूटर जेनटेटेड एक नम्बर देता है जिसे DIN कहते है। इसके द्वारा करदाता की शिकायत तथा उसके संबंध में उठाये गये कदम के बिना विलम्ब पहचान किया जा सकता है।

वस्तु तथा सेवा कर या जीएसटी (Goods and Service Tax)

  • सर्वप्रथम GST, वैट नाम से 1954 में फ्रांस में लागू किया गया था। जी एस टी का आधार वही है जो वैट का है। वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगने वाले वैट या उत्पाद शुल्क, सेवाकर की अलग-अलग दरें अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को अत्यंत ही जटिल स्वरूप में ला दिया था इसलिए केंद्र और राज्य सरकार के सभी अप्रत्यक्ष कर ( उत्पाद शुल्क, VAT, सेवा कर) को एक साथ समाहित कर दिया गया है और इसे GST नाम दिया गया। भारत का GST मॉडल कनाडा के उपभोग वैट मॉडल पर आधारित है।

GST का विकास क्रम

  • GST लागू होने की प्रक्रिया 1 मार्च 1986 में MODVAT के लागू होने साथ प्रारम्भ हुई।
  • 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने GST मॉडल का प्रारूप तैयार करने हेतु असिम दास गुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी।
  • 2002 गठित केलकर समिति ने 2005 में GST लागू करने की सिफारिश की। 12 वें वित्त आयोग ने भी 2005 में GST लागू की सफारिश की थी।
  • फरवरी 2006 में तत्कालिन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने 1 अप्रैल 2010 से जी एस टी लागू करने की घोषना की परंतु यह लागू नही हो पाया।
  • जब भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बने तो उन्होंनें जी एस टी लागू करने का पूरा प्रयास किया और लागू करने हेतु संसद में संविधान संशोधन प्रस्तुत किया परंतु राजनैतिक कारणों से इस बार भी GST लागू नही हो सका ।
  • 2014 में जब पूर्ण बहुमत की NDA सरकार बनी तो पुन: GST लागू करने के प्रयासो में तेजी आयी ।
  • अंतत: GST लागू करने के संबंध में 101 वाँ संविधान संशोधन संसद में पारित हुआ । 8 दिस्मबर 2016 को तत्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद 1 जुलाई 2017 को पूरे भारत में GST लागू हो गया ।
  • 101 वें संविधान संसोधन के तहत संविधान में तीन नये अनुच्छेद जोड़ों गये है। अनुच्छेद 246A (GST के संबंध में नयी व्यवस्था) अनुच्छेद 269A (अंतराज्यीय व्यापार के संबंध में GST) तथा 279A ( जी एस टी कौंसिल)

GST में शामिल अप्रत्यक्ष कर

केंद्र सरकार का अप्रत्यक्ष कर
1. केंद्रीय उत्पाद शुल्क
2. अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
3. उत्पाद शुल्क (दवाइयाँ तथा प्रसाधन)
4. सेवा कर
5. कपड़ा तथा कपड़ा उत्पाद पर लगा अतिरिक्त उत्पाद शुल्क
6. अतिरिक्त सीमा शुल्क
7. विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क
8. सभी अधिभार तथा उपकर जो वस्तु पर लगते थे |
राज्य सरकार का अप्रत्यक्ष कर
1. VAT या बिक्री कर
2. मनोरंजन कर
3. केंद्रीय बिक्री कर
4. चुंगी या प्रवेश कर
5. क्रय कर
6. विलासिता कर
7. लॉटरी, सट्टा एवं जुए पर कर
8. राज्य के सभी अधिभार तथा उपकर जो वस्तु और सेवा से संबंधित है।
जो कर जी एस टी के दायरे से बाहर है
1. नशीली शराब पर कर
2. सीमा शुल्क
3. पाँच प्रकार के पेट्रोलियम उत्पाद (कच्चा पेट्रोलियम, डीजल, पेट्रोल, प्राकृति गैस, विमान ईंधन )

GST कर ढांचा

  • भारत में लागू GST दो स्तरीय है जिससे केंद्र तथा राज्य सरकारे एक साथ एक आधार पर बराबर-बराबर अनुपात में कर लगायेंगी। केंद्र द्वारा लागू GST को CGST तथा राज्य द्वारा GST को SGST कहते है। केंद्रशासित प्रदेशों के संबंध इसे UTGST कहा जाता है।
  • अगर किसी वस्तु (या सेवा) पर GST की दर 18% है तो 9% CGST तथा 9% SGST होगा तथा प्रत्येक राशि सम्बन्धित ( 9% केंद्र को 9% राज्य को ) खजाने में जमा की जाऐगी।
  • यदि वस्तु और सेवा एक से अधिक राज्यों से गुजरेगी या भारत में आयात की जाएगी तो उस पर जो जीसएटी होगी उसे IGST कहा जाता है। IGST केन्द्र सरकार द्वारा लागू होगा तथा इसकी वसूली भी केन्द्र करेगी ताकि वस्तु और सेवा का प्रवाह एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी बाधा के हो सके। आयतित वस्तु पर लगने वाला IGST, सीमा शुल्क ( Custom duty) के अतिरिक्त होगा।
  • GST की दरों का निर्धारण GST कौंसिल करती है। कौंसिल अब तक 1300 वस्तु तथा 500 सेवाओं पर कर आरोपित करने के लिए 0, 5, 12, 18 तथा 28 प्रतिशत के पाँच दर निर्धारित कर रखी है।
    • शून्य दर के अंतर्गत आने वाली वस्तु- इसमें एसी वस्तु है जो व्यक्ति के मूलभूत आवश्यकताओं से संबंधित है। जैसे- गर्भनिरोधक खाद्यान्न, दूध, दही, अंडा, बिना पैकिंग किया हुआ पनीर, शहद, ताजी सब्जि, आटा, बेसन, मैदा, चूड़ी, बिंदी, गोलियाँ, ब्रेड, हैन्डलूम उत्पाद ।
    • 5 प्रतिशत GST स्लैब में आनी वाली वस्तु- इसमें एसी वस्तु जो रोज प्रयोग में आते है परंतु इन्हे मूलभूत आवश्यक वस्तु नहीं कहा जा सकता है। जैसे- चाय, कॉफी, मिल्क पाउडर, पैकिंग किया हुआ पनीर, मसाला, दवा, फ्रोजन सब्जी, पिज्जा आदि ।
    • 12 प्रतिशत GST स्लैब में आने वाली वस्तु- इससे ऐसी वस्तु को रखा गया है जो प्राय: प्रतिदिन प्रयोग में आते है परंतु अनिवार्य या आवश्यक रूप से नहीं। जैसे- घी, मक्खन, काजू, मोबाइल फोन, सिलाई मशीन, अगरबत्ती, फलों का रस आदि ।
    • 18 प्रतिशत GST स्लैब में आने वाली वस्तु- इसमें एसी वस्तु को रखा गया है जो मध्यमवर्गीय परिवार प्रायः उपयोग करते है। जैसे- हेयर ऑयल, आइसक्रीम, पॉपकॉर्न, पूंजीगत वस्तुएँ, आयरण एण्ड स्टील, मिनरल वाटर, पास्ता, पैन ।
  • 28% GST स्लैब में आने वाली वस्तु - इसके अंतर्गत विलासिता की वस्तुएँ, प्रतिष्ठा सूचक वस्तुएँ तथा स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले वस्तु शामिल है।
  • GST कर ढांचा में कुछ वस्तु पर 28% GST दर के अलावा उपकर (सेस) की भी व्यवस्था है। पान मसाला पर 128%, तम्बाकू वाली वस्तु पर 290%, विलासिता वाले कार पर 15%, कोल्ड ड्रिंक पर 40%, कोयले पर रू. 400 प्रति टन की दर से GST लगता है।
  • उपकर इसलिए लगाया गया ताकि GST लागू करने से राज्यों को अगर राजस्व हानि होता है तो उसकी भरपाई हो सके ।
  • जी एस टी.लगाने पर यदि राज्यों को कोई घाटा होगा तो इसकी भरपाई करने के लिए केंद्र ने राज्यों को पांच वर्षों की गारंटी दी है। जहाँ जी एस टी से होने वाली क्षति की पूर्ति की बात है, पहले 3 वर्ष तक 100%, चौथे वर्ष में 75% तथा पाँचवें वर्ष में 50 % होगी ।
  • विद्युत तथा रीयल इस्टेट भी GST के बाहर है।
  • इस समय 81% से भी अधिक वस्तुएँ 18% या इससे कम GST स्लैब के अंतर्गत शामिल है।
  • सेवाओं के सम्बन्ध में भी, यही चार दरें - . 5, 12, 18 तथा 28 है। सभी प्रकार के सेवाओं को चार वर्गों में बाँट दिया गया है।

GST के प्रमुख विशेषताएँ

  • जी एस टी एकल कर प्रणाली है जिससे वस्तु तथा सेवा पर एक साथ कम से कम दरों पर कंरारोपित किया जाता है।
  • जी एस टी वैट की तरह एक मूल्य वर्द्धित कर हं है जो. . वस्तु के निर्माण से लेकर उपयोग तक प्रत्येक चरण किये जाने वाले मूल्यवर्द्धन (Value Addittion) पर लगेगा।
  • GST उत्पादन से लेकर उपयोग तक प्रत्येक चरण से होगा एवं किसी चरण में जितना भुगतान किया गया है, उसमें से उससे पहले चरण में किये गए कर भुगतान को घटा दिया जाएगा। इस तरह जी एस टी लगने के परिणामस्वरूप 'कर पर कर' की समस्या का सामाधान हो जाएगा।
  • GST एक गंतव्य आधारित उपयोग कर है क्योंकि GST का अंतिम रूप से भार उपभोक्ता पर ही पड़ता है। यह कर उसी राज्य अथवा संघ राज्य क्षेत्र को प्राप्त होगा जहाँ वस्तु और सेवा या उपयोग होगा।
  • GST लागू होने से राज्य अपनी मर्जी से कर की दर लागू नही कर सकेंगे एवं प्रत्येक राज्य में कर की दर एक समान होगी।
  • GST से संबंधित सभी कार्य जैसे- GST पंजीकरण, रिटर्न फाइलिंग, कर अदायगी, रिफन्ड ऑन-लाइन पूरे किये जाते है। अत: अब कर दाता को अधिकारी के पास चक्कर लगाने की जरूरत नही पडती तथा भ्रष्टाचार में कमी आयेगी।

जी एस टी कौंसिल (GST Council)

  • अनुच्छेद 279A के आवश्यकतानुसार 12 सितम्बर 2016 को GST Council की स्थापना की गई है।
  • GST Council की संरचना निम्न प्रकार है-
    अध्यक्ष — केंद्रीय वित्त मंत्री
    उपाध्यक्ष — सदस्यों में कोई एक जिसे सदस्य निर्वाचित करते है ।
    सचिव — भारत सरकार में राजस्व सचिव पदेन सचिव होता है।
    स्थायी आमंत्रित सदस्य — CBEC के अध्यक्ष
    सदस्य — केंद्रीय राज्य मंत्री ( राजस्व या वित्त प्रभार) तथा राज्यों के वित्त मंत्री या राज्य जिसे सदस्य हेतु नामित करे।
    सचिवालय — दिल्ली में है।
  • GST Council में कार्य निम्न है- 
  1. संघ, राज्यों तथा स्थानीय सरकार द्वारा आरोपित कर, उपकर तथा अधिभार के विषय में जिन्हें GST में शामिल किया जायेगा, यह सिफारिश करेगा।
  2. जो वस्तु GST से छूट गया है उसे शामिल करने का सिफारिश करेगा। 
  3. GST के -दरो की सिफारिश करेगा
  4. प्राकृतिक आपदा के समय धन उगाही करने हेतु विशेष दरो की सिफारिश करेगा।
  5. GST Council GST से संबंधित सभी मुद्दे पर निर्णय करेगी।
  • GST Council में निर्णय उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के भारित मत के तीन-चौथाई ( 3/4 ) बहुमत द्वारा किया जायेगा ।
  • मतदान में केंद्र सरकार के मत का भार कुल डाले गये वोटो के मत का एक-तिहाई होगा जबकि कुल राज्यों का संयुक्त मत का भार कुल डाले गये मतो का दो-तिहाई होगा।
  • GST Council में बैठक हेतु गणपूर्ति कुल सदस्य कुछ सदस्य का आधा (50%) की उपस्थिति से होगी जबकि किसी निर्णय हेतु 75% वोट अनिवार्य होगा।

जी एस टी नेटवर्क (GSTN)

  • जी एस टी नेटवर्क की स्थापना जी एस टी के आईटी अवसंरचना के रूप में की गई है। जी एस टी कर संरचना के अंतर्गत किये जाने वाले सभी ऑन-लाइन कार्य इसी नेटवर्क के माध्यम से होगा।
  • जी एस टी नेटवर्क का लक्ष्य है- कर अनुपालन के कार्य को सरल बनाना, करो के भुगतान प्रक्रिया को सरल बनाना ।
  • जी एस टी नेटवर्क की स्थापना केंद्र तथा राज्यों ने मिलकर किया है। यह नेटवर्क गैर-सरकारी तथा गैर-लाभकारी संगठन के रूप में हुआ है जिसमे केंद्र 24.5 प्रतिशत सभी राज्य 24.5 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते है । शेष बची हुई 51% हिस्सेदारी गैर - सरकारी वित्तीय संस्थानों की है।

ई-वे बिल (e-way bill)

  • ई-वे सिस्टम की शुरूआत 1 अप्रैल 2018 को की गई। ई-वी बिल एक प्रकार का दस्तावेज है जो वस्तु के अंतर्राज्यीय आवागमण की स्थिति में जारी किया जाता है।
  • GST कर अंतर्गत रू. 50,000 से अधिक मूल्य के वस्तु को 10 Km से बाहर त्रिकी के लिए ले जाने वाले वाहन के प्रभारी व्यक्ति द्वारा है। ई-वे बिल को ले जाना अनिवार्य होता है। ई-वे बिल पर वस्तुओं का विवरण तथा उस पर लगने वाले GST का पूर्ण विवरण होता है।
  • ई-वे बिल प्रणाली से कर योग्य वस्तु पर निगरानी रखना आसान होता है तथा कर चोरी में भी कमी आएगी।

कर - संरचना

Objective

1. निम्न कथनों पर विचार करें
1. प्रगतिशील कर प्रणाली में आय की दर बढ़ने के साथ-साथ कर की दर बढ़ती जाती है।
2. प्रतिगामी कर प्रणाली में एक सीमा तक आय बढ़ने से कर प्रतिशत में वृद्धि होती है तथा उसके बाद आय बढ़ने पर 0 भी कर की दर समान ही रहती है।
3. अधोगामी कर प्रणाली में आय बढ़ने के साथ-साथ कर प्रतिशत में कमी आने लगती है।
4. प्रतिगामी कर विकासशील देशों में प्रचलित है।
उपरोक्त में कौन सत्य कथन नहीं है?
कूट
(A) 1 और 2
(B) 1, 3 और 4
(C) 2 और 4
(D) 2. 3 और 4
2. निम्नलिखित में कौन-से कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाते हैं? 
1. आयकर
2. सीमा कर
3. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क
4. बिक्री कर
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
3. निम्नलिखित में से कौन-से राज्य सरकारों के कर राजस्व के मुख्य स्त्रोत हैं ?
1. मालगुजारी, स्टाम्प, रजिस्ट्रेशन शुल्क और मादक पदार्थों पर उत्पादन कर |
2. वाणिज्यिक कर ।
3. आयकर ।
4. केन्द्रीय कर एवं राजस्व में राज्यों का भार ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
4. भारतीय कर व्यवस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें 
1. भारतीय कर ढाँचा प्रशासनिक दृष्टि से कार्यकुशल नहीं है।
2. करों की अनेकता और एकीकरण का अभाव ।
3. कर ढाँचे में अन्तक्षेत्रीय असन्तुलन।
4. कर प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
5. निम्नलिखित में बिक्री कर व्यवस्था में बुनियादी समस्याएँ हैं
1. दरों की विविधता तथा विभिन्न रियायतों के कारण बिक्री कर प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव होना ।
2. विभिन्न राज्यों में बिक्री कर की दरों का अलग-अलग होना ।
3. बिक्री कर का आधार संकुचित होना
4. बिक्री कर में कर चोरी की सम्भावना का अधिक होना।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और
(C) 1, 2 और 4
(D) सभी 3
6. निम्नलिखित में कौन राजा चेलैया समिति की सिफारिश है ?
1. आय करों की दरों में कमी करना।
2. उत्पादन शुल्क के आधार को और व्यापक बनाना ।
3. अप्रत्यक्ष कर पर निर्भरता को बढ़ाना।
4. केवल अनुत्पादक सम्पत्ति पर सम्पत्ति कर लगाना ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
7. द्रव्य की पूर्ति यथावत् रहने पर यदि द्रव्य की माँग में वृद्धि होती है, तो
(A) कीमत-स्तर में गिरावट आ जाएगी
(B) ब्याज की दर में वृद्धि हो जाएगी
(C) ब्याज की दर में कमी हो जाएगी
(D) आय और रोजगार के स्तर में वृद्धि हो जाएगी
8. भारत जैसे अल्पविकसित देशों में परोक्ष कर वृद्धि की तुलना प्रत्यक्ष कर वृद्धि को तरजीह दी जाती है, क्यों ?
(A) प्रत्यक्ष करों को आसानी से जुटाया जा सकता है तथा कर चोरी सम्भव नहीं होती
(B) प्रत्यक्ष कर चुराने की जिम्मेदारी आसानी से तय की जा सकती है -
(C) प्रत्यक्ष करों का बोझ अपेक्षाकृत सम्पन्न वर्ग को सहन करना पड़ता है जबकि परोक्ष कर का बोझ सामान्य नागरिक पर पड़ता है
(D) यदि धनी वर्ग से कर वसूला जाए तभी समाजवाद की स्थापना की जा सकती है
9. निम्न में से किन्हें भारत में प्रत्यक्ष कर संवर्ग में सम्मिलित किया गया है?
1. निगम-कर
2. आय पर कर
3. सम्पत्ति कर
4. सीमा शुल्क
5. उत्पाद शुल्क
नीचे दिए गए कूटों का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए ।
(A) 1, 2 और 3
(B) 1, 2, 4 और 5
(C) 2 और 3
(D) 1, 3, 4 और 5
10. MODVAT का तात्पर्य है।
(A) उत्पादन शुल्क अन्तिम वस्तुओं पर लगाने की व्यवस्था
(B) उत्पादकों को शुल्क चुकाने के लिए लाभ देने की व्यवस्था
(C) उत्पादन शुल्क प्रत्येक स्तर पर लगाने की व्यवस्था
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
11. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, भारत में केन्द्रीय सरकार के कर राजस्व का स्रोत नहीं है?
(A) आय कर
(B) सीमाशुल्क
(C) सेवा कर
(D) मोटरयान कर
12. भारत में निगम कर किसी कम्पनी की आय पर लगाया जाता है। 
निम्नलिखित में से कौन-सी मद में निगम कर शामिल नहीं है?
(A) व्यवसाय से लाभ
(B) पूँजीगत अभिलाभ
(C) प्रतिभूतियों पर ब्याज
(D) परिसम्पत्तियों की विक्रय प्राप्ति
13. दीर्घकालीन वित्तीय नीति का उद्देश्य किसको स्थायित्व प्रदान करना है?
(A) प्रत्यक्ष कर
(B) अप्रत्यक्ष कर
(C) प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर राजस्व अनुपात
(D) कर राजस्व तथा राष्ट्रीय आय
14. राज्य सरकारों की आय का प्रमुख स्रोत है
1. केन्द्रीय करों में भाग
2. आर्थिक अनुदान
3. भूमि एवं मनोरंजन कर
4. आयकर
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
15. केन्द्रीय सरकार के लिए आगम की दृष्टि से दूसरा प्रमुख कर है
(A) सामाजिक एवं सुरक्षा अभिदान
(B) निगम कर
(C) वस्तुओं और सेवाओं पर घरेलू कर
(D) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा लेन-देन पर कर
16. निम्नलिखित में से कौन-सा कर केवल राज्य सरकारें ही लगा सकती हैं?
(A) राजस्व कर
(B) आयात-निर्यात कर
(C) आयकर
(D) सम्पत्ति कर
17. आनुपातिक कर प्रणाली के सम्बन्ध में सही उत्तर का चयन करें
(A) आय के सभी स्तरों पर समान दर, से कर लगाया जाता है।
(B) आय के सभी स्तरों पर कर की दर बढ़ती जाती है
(C) आय के सभी स्तर पर कर की दर घटती जाती है।
(D) उपरोक्त सभी
18. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, प्रगामी कर संरचना को निरूपित करता है?
(A) कर दर सभी आयों में समान है
(B) कर दर आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ बढ़ाती जाती है।
(C) कर दर आय में बढ़ोतरी के साथ-साथ घटती जाती है।
(D) प्रत्येक परिवार कर की समान राशि का भुगतान करता है।
19. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. वस्तु एवं सेवा कर, जो कि केलकर टास्क फोर्स द्वारा अनुशंसित किया गया है, एक प्रत्यक्ष कर है ।
2. उपकर एक अस्थायी कर है, जो किसी विशेष लक्ष्य को पाने के लिए लगाया जाता है और केवल प्रत्यक्ष कर पर ही लगाया जा सकता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(A) केवल 1 
(B) केवल 3
(C) 1 और 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2
20. विक्रय-कर जिसका भुगतान आप कोई टूथपेस्ट खरीदते समय करते हैं, निम्नलिखित से किस प्रकार का कर है ? 
(A) केन्द्र सरकार द्वारा आरोपित कर
(B) केन्द्र सरकार द्वारा आरोपित, किन्तु राज्य सरकार द्वारा संग्रहीत कर
(C) राज्य सरकार द्वारा आरोपित किन्तु केन्द्र सरकार द्वारा संग्रही कर
(D) राज्य सरकार द्वारा आरोपित एवं संग्रहीत कर
21. आयकर के लगाने, 'उद्ग्रहण करने और वितरण करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है ?
(A) संघ कर लगाता है, उद्ग्रहण करता है और कर प्राप्तियों का स्वयं और राज्यों के बीच वितरण करता है।
(B) संघ कर लगाता है, उद्ग्रहण करता है और कर प्राप्तियों को अपने लिए रख लेता है
(C) संघ कर लगाता है और उद्ग्रहण करता है लेकिन सभी प्राप्तियाँ राज्यों में वितरित कर दी जाती
(D) केवल आयकर पर लगाया गया अधिभार ही संघ और राज्यों के बीच बाँटा जाता है
22. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही सुमेलित है ?
(A) आयकर — अप्रत्यक्ष कर
(B) सीमा शुल्क — प्रत्यक्ष कर
(C) उत्पाद शुल्क — केन्द्र का अधिकतम कर आय स्रोत
(D) मनोरंजन कर — राज्यों का अधिकतम कर आय स्रोत
23. मूल्य वर्द्धित टैक्स (बैट) लगाया जाता है
(A) प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता पर
(B) उत्पादन के अन्तिम स्तर पर
(C) उत्पादन के प्रथम स्तर पर
(D) उत्पादन के अन्तिम बिक्री तक प्रत्येक स्तर पर
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Tue, 09 Apr 2024 05:04:09 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | सरकारी बजट https://m.jaankarirakho.com/947 https://m.jaankarirakho.com/947 General Competition | Economics & Economy | सरकारी बजट
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार केंद्र सरकार समस्त देश का वार्षिक वित्तीय विवरण (Arthual Financial Statement) तैयार करता है इसे केंद्र सरकार का बजट कहते है।
  • बजट में तीन लगातार वर्षों का आय और व्यय का विवरण रहता है, आनेवाले वर्ष का बजट अनुमान, चालू वर्ष का संशाधित बजट अनुमान तथा बीते वर्ष का वास्तविक प्राप्तियां तथा व्यव। परन्तु सरकार अधिकतर ध्यान बजट के उस भाग पर देता है जिसमें आने वाले वर्ष में सरकार के अनुमानित प्राप्ति (आय) तथा व्यय का ब्यौरा होता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 202 के अनुसार प्रत्येक राज्य सरकार राज्य का वार्षिक वित्तीय विवरण तैयार करता है, यह राज्य का बजट कहलाता है।

बजट का महत्व

  • बजट सरकार के राजकोषीय नीति का अनिवार्य हिस्सा है। बजट के माध्यम से सरकार आय और संपत्ति के बँटवारे में सुधार लाने हेतु काराधान (Taxsation) तथा आर्थिक सहायता (Subsidies) की घोषणा करता है।
  • बजट नीति (अथवा राजकोषीय नीति) द्वारा सरकार साधनों का आवंटन इस प्रकार करती है जिससे अधिकतम लाभ तथा समाजिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।
  • अर्थव्यवस्था में हमेशा अनुकूल स्थिति नहीं रहती है, कभी तेजी, कभी सुस्ती तो कभी मंदी का दौर आते रहता है। बजट के माध्यम से सरकार अर्थव्यवस्था में अनुकूल स्थिति बनाये रखने का हरसंभव प्रयास करती है।
  • बजट अर्थव्यवस्था में संपूर्ण राजकोषीय अनुशासन को स्थापित करता है। राजकोषीय अनुशासन से तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें सरकार की आय और व्यय में बीच आदर्श संतुलन बना रहे।

राजस्व प्राप्ति (Revenue Receipts)

  • सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ वे मौद्रिक प्राप्तियाँ है जिनके लौटने का दायित्व सरकार पर नहीं हो या जिसके साथ किसी संपत्ति की बिक्री नहीं जुड़ी हो। इस प्रकार की प्राप्ति से सरकार के संपत्ति में कोई कमी नहीं आती है।
  • राजस्व प्राप्ति दो प्रकार के होते है - 
    1. कर प्राप्तियाँ- सरकार को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष कर तथा अन्य किसी प्रभार से लगाये कर से जो प्राप्ति होती है वह कर प्राप्ति (जंग Revenue Recipts) कहलाता है। 
    2. करेत्तर प्राप्तियाँ- करंतर प्राप्तियाँ के अंतर्गत निम्न प्रकार के प्राप्तियाँ शामिल होती है। 
      1. फीम, लाइसेंस तथा परमिट से हुई प्राप्तियाँ |
      2. एसचीट- एसचीट का तात्पर्य सरकार की उस आय (प्राप्ति) से है जो उनलोगों के संपत्ति से प्राप्त होती है जिनकी मृत्यु बिना किसी कानूनी उत्तराधिकार के नियुक्त किए, हो जाती है अथवा लावारिस संपत्ति से हुई आय को ही एसचीट कहते है। लावारिस संपत्ति पर कानूनी रूप से सरकार का अधिकार होता है।
      3. विशेष आंकन (Special Assessment) से प्राप्ति । विशेष आंकलन वह भुगतान है जो सरकारी कार्यों के फलस्वरूप किसी संपत्ति में सुधार होना या उसके मूल्य में वृद्धि होने के कारण उसके मालिकों द्वारा सरकार को किया जाता है।
      4. जुर्माना व जष्ती से प्राप्त आय। जुर्माना व जष्ती सरकार कानून तोड़ने वालों से नियमानुसार वसूल करती है। जुर्माना व जष्ती लगाने का उद्देश्य आय प्राप्त करना नहीं होता है बल्कि लोगों को कानून पालन करने के लिए मजबूर करना होता है।
      5. सरकारी उद्यम (रेलवे, बिजली, इस्पात उद्योग आदि) से हुए लाभ से प्राप्त आय ।
      6. सरकार को प्राप्त होने वाले उपहार तथा अनुदान ।
  • राजस्व प्राप्ति = कर प्राप्ति + करेत्तर प्राप्ति

पूंजीगत प्राप्ति (Capital Receipts)

  • पूंजीगत प्राप्ति वं प्राप्तियाँ जो सरकार के दायित्व या ऋण में वृद्धि लाती है तथा सरकार की सम्पत्तियों में कमी लाती है।
  • पूंजीगत प्राप्ति के अंतर्गत निम्न प्राप्तियों को सम्मीलित किया जाता है ।
    1. सरकार जो ऋण देती है वह सरकार की परिसंपत्ति होती है। ऋणों के वसूली से प्राप्त आय पूंजीगत प्राप्ति कहलाती है। केंद्र सरकार, राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय आवश्यकता पूरा करने हेतु ऋण प्रदान करते है।
    2. उधार लेने के फलस्वरूप जो मुद्रा प्राप्त होती है उसे पूंजीगत प्राप्ति कहते हैं। सरकार सामान्य जनता से भारतीय रिजर्व बैंक से तथा शेष विश्व के देशों से उधार लेता है।
    3. विनिवेश से प्राप्त आय पूंजीगत प्राप्ति कहलाती है क्योंकि विनिवेश के फलस्वरूप सरकार की संपत्ति में कमी आ जाती है।

राजस्व व्यय (Revenue Ependiture)

  • राजस्व व्यय उस व्यय को कहते है जो सरकार के लिए न तो परिसंपत्तियों का निर्माण करते हैं और न ही सरकार की देयता (Liability) को कम करते हैं।
  • राजस्व व्यय के अंतर्गत निम्न व्यय आते है-
    1. ब्याज का भुगतान।
    2. आर्थिक सहायता पर होनेवाला व्यय ।
    3. प्रतिरक्षा पर किया गया व्यय ।
    4. कर्मचारी के तनख्वाह पेंशन पर किया गया व्यय ।
  • केन्द्र सरकार द्वारा राज्य एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को दिए जाने वाले अनुदान को भी राजस्व व्यय माना जाता है।

पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure )

  • पूंजीगत व्यय वे व्यय है जो सरकार के लिए परिसंपत्ति का निर्माण करते हैं तथा सरकार की देयता को कम करते है।
  • पूंजीगत व्यय के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण व्यय-
    1. भूमि तथा भवन पर किया गया व्यय ।
    2. मशीनरी तथा उपकरणों पर किया गया व्यय ।
    3. सरकार के द्वारा शेयरों की खरीद पर हुआ व्यय ।
    4. केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य व केन्द्रशासित प्रदेश तथा राज्य निगमों को दिया गया ऋण ।
  • सरकार के द्वारा किए जाने वाले व्यय को निम्न प्रकार से भी वर्गीकृत किया जाता है-
    1. विकास व्यय ( Development Expenditure )- विकास व्यय वह व्यय है जो आर्थिक विकास तथा सामाजिक कल्याण के लिए किया जाता है। कृषि स्वास्थ्य, सड़क, पुल, बिजली आदि पर किया गया व्यय विकास व्यय कहलाएगा। सरकार उद्योगों को विकास हेतु जो ऋण प्रदान करती है वो भी विकास व्यय कहलाता है।
    2. विकासेतर व्यय (Non-Development Expenditure ) - विकासेतर कार्यों पर किया जाने वाला व्यय विकासेतर व्यय कहलाता है। प्रशासन, पुलिस, सेना ऋणों पर ब्याज, आर्थिक सहायता आदि पर किया जाने वाला व्यय विकासेतर व्यय है।
    3. योजना व्यय ( Plan Expenditure )- योजना व्यय से तात्पर्य सरकार के उस व्यय से है जो चालू पंचवर्षीय योजना के अधीन कार्यक्रमों पर किया जाता है। कृषि, ऊर्जा, संचार, उद्योग, यातायात सार्वजनिक सेवाएँ आदि पर होनेवाले व्यय योजना व्यय है।
    4. योजनेतर व्यय ( Non-Plan Expenditure ) - योजना व्यय के अतिरिक्त अन्य सभी व्यय को योजनेतर व्यय कहा जाता है।  इसके मुख्य उदाहरण है- अनुदान, सुरक्षा, कानून तथा व्यवस्था, सरकार द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज भुगतान तथा आदि पर व्यय ।
  • केन्द्रीय बजट 2016-17 में वित्तीय वर्ष 2017-18 से योजना व्यय तथा योजनेतर व्यय के वर्गीकरण को समाप्त कर दिया गया है।

 बजट घाटा (Budget Deficit) 

  • जब सरकार का बजट व्यय सरकार के बजट प्राप्ति से अधिक होता है तो यह बजट घाटा कहलाता है । 
  • बजट घाटा तीन प्रकार के होते है- 1. राजस्व घाटा, 2. राजकोषीय घाटा 3. प्राथमिक घाटा ।
राजस्व घाटा ( Revenue Dificit )
  • राजस्व घाटा का संबंध केवल राजस्व बजट ( राजस्व प्राप्ति तथा राजस्व व्यय) से है। इसका संबंध पूंजीगत बजट से नहीं है।
  • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्ति । 
  • राजस्व घाटा का अर्थ है सरकार को प्रशासन, कानून व्यवस्था जैसे जिम्मेवारी पर अधिक खर्च हो रहा है और लोगों द्वारा दिए गए कर से उतनी प्राप्ति नहीं हो रही है।
  • राजस्व घाटा शब्दावली का उपयोग पहली बार भारतीय बजट में 1997-98 में हुआ था। किसी भी वित्त वर्ष के राजस्व घाटे को मात्रात्मक अथवा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • प्रभावी राजस्व घाटा (Effective Revenue Deficit)– इस पद का प्रयोग सर्वप्रथम 2011-12 के बजट में किया गया था। प्रभावी राजस्व घाटा में केन्द्र सरकार द्वारा राज्य अथवा केन्द्रशासित प्रदेशों को दिए जाने अनुदान को निकाल दिया जाता है।
  • प्रभावी राजस्व घाटा = राजस्व व्यय ( अनुदान को छोड़कर) - राजस्व प्राप्ति
  • सरकार बढ़ते हुए राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए या तो धन उधार लेना पड़ता है या विनिवेश करना पड़ता है।
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
  • " राजकोषीय घाटा" शब्द का उपयोग सर्वप्रथम भारत में 1991 में डॉ. मनमोहन सिंह के द्वारा किया गया था।
  • राजकोषीय घाटा का संबंध कुल बजट व्यय ( राजस्व + पूंजीगत व्यय) तथा उधार छोड़कर कुल बजट प्राप्ति से है।
  • राजकोषीय घाटा = कुल बजट व्यय - उधार छोड़कर कुल बजट प्राप्ति या ( राजस्व + पूंजीगत व्यय) - (राजस्व प्राप्ति उधार छोड़कर कुल पूंजीगत प्राप्ति )
  • राजकोषीय घाटा से सरकार को यह पता चलता है कि उसे भिन्न-भिन्न स्त्रोतों कितना उधार लेना पड़ेगा। राजकोषीय घाटा जितना अधिक होगा सरकार पर ऋण का उतना ही बड़ा बोझ आयेगा ।
  • राजकोषीय घाटा का देश की अर्थव्यवस्था पर निम्न प्रभाव पड़ सकते है-
    1. अगर सरकार राजकोषीय घाटा को पूरा करने हेतु घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाता है तो इससे मुद्रास्फीति उत्पन्न होगी।
    2. अगर सरकार शेष विश्व के देशों से उधार लेती है तो अन्य देशों पर निर्भरता बढ़ेगी जो एक तरह का आर्थिक गुलामी है।
    3. सरकार द्वारा उधार लिए जाने के फलस्वरूप देश के भावी पीढ़ी पर वित्तीय भार बढ़ जाता है।
    4. सरकार जो उधार लेती पुन: उसका ब्याज भुगतान करना पड़ता है। ब्याज का भुगतान बढ़ने से राजस्व घाटा बढ़ने राजकोषीय घाटा बढ़ने से राजस्व घाटा भी बढ़ने लगता है।
प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)
  • राजकोषीय घाटा तथा सरकार द्वारा भुगतान किए जाने वाले ब्याज के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते है ।
  • प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा ब्याज भुगतान।
  • प्राथमिक घाटे से सरकार को यह पता चलता है ब्याज भुगतान को छोड़कर अन्य कितनी उधार की आवश्यकता है।
  • शून्य प्राथमिक घाटा- अगर प्राथमिक घाटा शून्य है तो इसका अर्थ है सरकार उधार (ऋण) केवल अपने ब्याज के भुगतान के दायित्व को पूरा करने के लिए ही ले रहा है।
पूंजीगत घाटा (Capital Deficit)
  • बजट अथवा अर्थशास्त्र में " पूंजीगत घाटा" जैसा कोई शब्द नहीं है परंतु कभी-कभी समाचार पत्र के आर्थिक खबरों में इस शब्द का उपयोग किया जाता है। अगर पूंजीगत घाटा को स्पष्ट किया जाए तो यह पूंजीगत बजट से ही संबंधित होनी चाहिए अर्थात् पूंजीगत घाटा = पूंजीगत व्यय - पूंजीगत प्राप्ति
मौद्रीकृत घाटा (Monetised Deficit)
  • राजकोषीय घाटा को पूरा करने हेतु जो ऋण (उधार) सरकार RBI से लेती है उसे मौद्रीकृत घाटा के रूप में उल्लेखित किया जाता है।
  • "मौद्रीकृत घाटा" अवधारणा की शुरूआत भारत में 1997-98 से हुआ तथा इसे GDP के प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है।
बजेटरी घाटा (Budgetary Deficit )
  • बजेटरी घाटा का तात्पर्य कुल व्यय तथा कुल प्राप्ति से है।
  • बजेटरी घाटा या बजट घाटा = कुल व्यय - कुल प्राप्ति या ( राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) - ( राजस्व प्राप्ति + पूंजीगत प्राप्ति) या बजट व्यय - बजट प्राप्ति

घाटे का वित्त पोषण (Deficit Financing)

  • बजट में हुए घाटे को पूरा करने हेतु सरकार विभिन्न स्त्रोतों से ऋण लेती है। बजट में हुए घाटे को पूरा करने हेतु सरकार निम्न स्त्रोतों से ऋण लेता है।
  1. विदेशी ऋण- घाटे को पूरा करने के लिए यह सबसे उचित साधन है। विदेशी सरकार तथा अंतराष्ट्रीय संस्था से प्राप्त ऋण को विदेशी ऋण कहते है। संघ सरकार प्रत्यक्ष रूप से विदेशी सरकार से ऋण नहीं लेती बल्कि यह कम द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है।
  2. आंतरिक ऋण- आंतरिक ऋण के अंतर्गत सरकार द्वारा जारी प्रतिभूति तथा ट्रेजरी बिल्स के माध्यम से आये रूपये शामिल होता है। लेकिन सरकार आंतरिक ऋण की सीमा को बढ़ाते है तो जनता तथा निजी क्षेत्र के निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 1960, 1970, 1980 में आंतरिक ऋण के मात्रा बढ़ने से भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा सी गयी थी ।
  3. अन्य देयता- इसके अंतर्गत वे देयताये शामिल होती है जो सरकार को एक ऋणी के रूप में प्राप्त नही होता है बल्कि सरकार के खाते में एक बैंक की भूमिका के रूप से प्राप्त होते है। जैसे- डाकघर के बचत खाते में जमा रकम, NSC के अंतर्गत जमा रकम आदि ।
  4. वर्तमान में सभी प्रकार के सार्वजनिक ऋण के प्रबन्धन का काम RBI करता है। केन्द्रीय बजट 2007-08 में वित्त मंत्री ने सार्वजनिक ऋण के उचित प्रबन्धन हेतु ऋण प्रबन्ध ऑफिस स्थापना की बात कही थी अबतक इसकी स्थापना नहीं की गई है।

भारत सरकार के खाता

  • संविधान के अनुच्छेद 266 तथा 267 में बजट का संरचना दिया हुआ है जिसके अनुसार भारत सरकार के तीन प्रकार के खातों का जिक्र किया गया है जिन खातों से सभी प्रकार के सरकारी व्यवहार ( प्राप्ति व व्यय) किए जाते हैं।
1. समेकित कोष (Consolidated Fund )
  • अनुच्छेद 266(1) में समेकित कोष का उल्लेख किया गया है। इस कोष में सम्पूर्ण राजस्व प्राप्ति सरकार द्वारा जारी ट्रेजरी बिल्स, ऋण आदि रिकार्ड की जाती है।
  • इस कोष से निकासी हेतु संसद की अनुमति लेना अनिवार्य है। विनियोग विधेयक संसद में पारित होने के बाद सरकार इस कोष में धन की निकासी करता है।
2. सार्वजनिक खाता ( Public Account )
  • अनुच्छेद 266 (2) में सार्वजनिक खाता का उल्लेख किया गया है। इस खाते में ऐसे प्राप्ति रिकॉर्ड की जाती है जो वास्तव में सरकार की नहीं होती है बल्कि सरकार दूसरे के लिए अपने पास रखती है।
  • इस खाते से फण्ड निकालने हेतु संसद की स्वीकृति नहीं ली जाती है।
3. आकस्मिक कोष (Contingency Fund) 
  • इस कोष का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 267 में किया गया है।
  • सरकार की आकस्मिक व्यय को पूरा करने हेतु (जिसे संसद की स्वीकृति होने तक टाला ना जा सके) इस कोष की व्यवस्था की गई है। यह कोष केन्द्र सरकार के संबंध में राष्ट्रपति तथा राज्य सरकार में संबंध में राज्यपाल के प्रयोग के लिए सुरक्षित है।
  • 1999 में पारित अधिनियम के तहत इस कोष से अधिकतम Rs. 500 करोड़ निकाला जा सकता है, मूल में यह Rs. 50 करोड़ था ।
  • आकस्मिक कोष से निकाले गये रकम, बाद में संसद से अधिकृत होने पर संचित कोष से निकालकर इसमें डाल दिया जाता है। 

घाटे की वित्त व्यवस्था या हीनार्थ प्रबन्धन (Deficit Financing) 

  • जब सरकार जान बूझकर बजट में घाटा उत्पन्न करें और घाटे की पूर्ति अतिरिक्त नोटो को छापकर करें ताकि देश में मुद्रा की मात्रा बढ़े तो इसे घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं। 
घाटे के वित्त व्यवस्था के लाभ-
  1. सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था से धन प्राप्तं करके बेरोजगार साधनों को रोजगार प्रदान कर सकती है, जिसके फलस्वरूप उत्पादन बढ़ता है तथा आर्थिक विकास की दर ऊँची हो जाती है।
  2. घाटे की वित्त व्यवस्था भारत जैसे अल्प विकसित देश में उचितं होता है। क्योंकि यहाँ प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में है परन्तु मुद्रा के अभाव में इसका उचित दोहन नहीं हो पाता है। घाटे के वित्त व्यवस्था से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ती है जिससे राष्ट्रीय व्यय के प्रत्यक्ष वृद्धि होती है।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा धन प्राप्त करके रेलवे, सड़कों, नहरें, बिजली का विकास करना संभव हो पाता है जिससे देश की आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है।
  4. विकास गति तीव्र करने हेतु जहाँ कृषि तथा उद्योगों का विकास करना आवश्यक है वहीं सामाजिक विकास ( शिक्षा, स्वास्थ्य आदि) की भी अधिक आवश्यकता है। इनके विकास के लिए उचित मात्रा में धन घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा ही प्राप्त करना संभव हो पाता है।
घाटे के वित्त व्यवस्था के दोष
  1. घाटे के वित्त व्यवस्था से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है, लेकिन उत्पादन उसी अनुपात में नहीं बढ़ा तो कीमतें बढ़नी शुरू हो जाती है इसका आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है ।
  2. घाटे के वित्त व्यवस्था के फलस्वरूप लोगों की आय बढ़ जाती है जिससे लोग आयतीत उपभोक्ता वाली चीजों की माँग को बढ़ाने लगते हैं। अगर इन आयात सरकार नहीं बढ़ाती है तो फिर स्मलिंग को बढ़ावा मिलने लगता है।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था के कारण कीमतों में बढ़ोतरी होती है जिसके फलस्वरूप निर्यात कम हो जाते हैं तथा आयात बढ़ जाती जिससे देश का भुगतान संतुलन प्रतिकूल होने लगता है।
  4. घाटे के वित्त व्यवस्था के कारण कीमतों में वृद्धि होती है जिसके कारण निर्धन तथा निश्चित आयवाले व्यक्ति (नौकरी करने वाला) कम वस्तु तथा सेवाओं का उपभोग कर पाता है। इस प्रकार ऐसे लोगों के जीवन स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

बजट के प्रकार

1. एक समान मद बजट (The line Item Budget)
  • इस बजट में प्रत्येक विभाग अपने अलग-अलग वित्तीय आवश्यकताओं को एक साथ समूहकृत मिलाकर देता है और फिर बजट में समूहकृत कार्य के लिए आवश्यक राशि का आवंटन कर दिया गया जाता है।
  • इस बजट में व्यय की राशि तो निर्देशित होता है परन्तु यह राशि खर्च किन-किन आवश्यकताओं हेतु एवं कितनी मात्रा में होगी इसका वर्गीकरण नहीं किया जाता है।
  • इस बजट में सबसे बड़ी कमी यह है कि इससे अलग-अलग इकाइयों के कार्यकलापों और उपलब्धियों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं मिल पाती।
2. निष्पादन बजट (Performing Budget)
  • यह बजट एकसमान मद बजट के ठीक विपरित है। इसकी शुरूआत भारत में वित्त वर्ष 1975-76 के बजट से किया गया है।
  • इस बजट में भिन्न-भिन्न मदें हेतु आवंटित व्यय की राशि का लक्ष्य एवं उद्देश्य स्पष्ट किए जाते हैं तथा लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जो कार्य नीति होती है इसको भी बजट में प्रस्तुत किया जाता है।
3. आउटकम बजट (Outcome Budget)
  • आउटकम बजट वह बजट है जिसमें सरकार के विभिन्न मंत्रालय एवं विभाग विभिन्न विकासात्मक कार्यक्रमों के परिमाण को रिपोर्ट कार्ड के रूप में वित्त मंत्री के समक्ष प्रस्तुत करता है और उसी के अनुरूप बजट का निर्माण वित्त मंत्री द्वारा किया जाता है।
  • इस प्रकार की बजटीय प्रक्रियाओं का मुख्य उद्देश्य बजटीय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना ताकि सरकार राजकोषीय नीति के मामले में जनता तथा सदन के प्रति अधिक जवाबदेह हो सके।
  • पहला आउटकम बजट 25 अगस्त 2005 को संसद में पारित किया गया था परन्तु वर्ष 2007-08 से आउटकम बजट तथां निष्पादन बज़ट को मिला दिया गया तथा बंजट को मिले जुले दस्तावेज का रूप दे दिया गया।
4. शून्य आधार बजट (Zero Base Budget) 
  • इस बजट अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिकी वित्त विशेषज्ञ पीटर फीट द्वारा प्रस्तुत किया गया था जिसे सर्वप्रथम अमेरिका में 1979 में प्रयोग किया गया।
  • इस प्रकार के बजटिंग में प्रत्येक संस्था या विभाग हरवार सब कुछ शून्य मानकर नए सिरे से बजट बनाती है तथा खर्च की जानेवाली राशि के संबंध में न्यायोचित आधार प्रस्तुत करती है।
  • शून्य आधारित बजट में सरकार मुख्यत: तीन प्रश्नों का उपयुक्त उत्तर पाकर ही बजट का निर्माण करता है।
    1. क्या हमें खर्च करना चाहिए
    2. हमें कितना खर्च करना चाहिए ?
    3. हमें कहाँ खर्च करना चाहिए ?
  • भारत में शून्य आधारित बजटिंग के शुरुआत 1987-88 के बजट से हुआ।
5. जेंडर बजटिंग (Gender Budgeting)
  • ऐसा बजट जिसमें संसाधनों का आवंटन लिंग के आंधार पर किया जाता है उसे जेंडर बजटिंग कहते हैं। यह बजट उन देशों के लिए उपयुक्त होता है जहाँ सामाजिक आर्थिक असमानता में लिंग के आधार पर विभेद दिखता हो। जैसे- भारत में। 
  • जेंडर बजटिंग का सबसे पहला प्रयोग सन् 1982 में ऑस्ट्रेलिया में किया गया था। भारत में इसकी शुरुआत 2005-06 के आम बजट से हुआ।

एफ.आर.बी.एम. अधिनिनियम, 2003 (FRBM Act. 2003)

  • अत्यधिक राजकोषीय घाटा कर में व्यापक विसंगतियां तथा अनुत्पादक सरकारी व्यय के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का तेज आर्थिक विकास नहीं हो रहा है। जब 1991 में आर्थिक सुधारों को लागू किया गया तब सरकार ने राजकोषीय नीति के संबंध में निम्न उपाय के तरफ ध्यान देने लगा-
    1. राजस्व तथा राजकोषीय घाटा का न्यूनतम करना ।
    2. व्यय का प्राथमिकता के अनुसार चुनाव तथा उसके परिणाम को सुनिश्चित करना ।
    3. कर की दरों को निम्न करके कर के आधार को बढ़ाना, कर चोरी को रोकना ।
  • 1991 में प्रारंभ की गई उपर्युक्त नीति को लागू करने हेतु सरकार के लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं थी जिससे सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। 26 अगस्त 2003 को FRMS Act. (Fical Responsibility and Budget Management Act) पारित किया गया ताकि राजकोषीय नीति के लिए मजबूत सांविधिक या बाध्यकारी व्यवस्था स्थापित हो सके। यह अधिनियम 5 जुलाई 2004 को प्रभावी हुआ ।
FRBMAct के प्रमुख अंश-
  1. भारत सरकार द्वारा राजकोषीय एवं राजस्व घाटे को कम करने के लिए कदम उठाते हुए 31 मार्च 2008 तक राजस्व घाटे को शून्य किया जाना था जिसे बाद पुनः 1 वर्ष के लिए बढ़ाया गया।
  2. राजस्व घाटे में प्रति वर्ष 0.5 प्रतिशत तथा राजकोषीय घाटे में प्रतिवर्ष 0.3 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया।
  3. राजकोषीय घाटा तथा राजस्व घाटा विशेष परिस्थिति में ही घोषित लक्ष्य को पार कर सकेंगे। जैसे- राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा के समय ।
  4. सरकार अर्थोपाय अग्रिम के अतिरिक्त किसी और प्रकार से R. B. I. से उधार नहीं लेगी।
  5. बजट एवं अनुदान के अतिरिक्त बजट पेश करते समय सरकार द्वारा निम्न तीन व्यक्तव्य प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा-
    1. राजकोषीय नीति रणनीति वक्तव्य (FPSS) 
    2. मध्य अवधि राजकोषीय नीति वक्तव्य (MTFPS ) 
    3. समष्टि अर्थशास्त्रीय रूपरेखा वक्तंव्य (MFS)
  6. वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए बजट के संबंध में सरकार की प्राप्ति तथा व्यय का त्रैमासिक समीक्षा की जाएगी।
  • नई सरकार द्वारा 2016-17 में FRBM Act के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए एक 5 सदस्यों वाली एक समिति गठित की गई। यह समिति जनवरी 2017 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दिया है परंतु रिपोर्ट की मुख्य सुझाव. लोगों के सामने आना बाकी है।

गोल्डन रूल (Golden Rule)

  • गोल्डन रूल राजकोषीय नीति से संबंधित है। है। इस रूल का आशय यह है कि सरकार को सिर्फ निवेश हेतु ही ऋण लेनी चाहिए ।
  • गोल्डन रूल का सार यही है कि सरकार अपनी पूंजीगत व्यय के लिए ऋण ले न कि राजस्व व्यय के लिए । 

भारत में बजटरी प्रक्रिया के विभिन्न चरण (Phases of Budgetary Process in India)

  • भारत में बजेटरी प्रक्रिया कुल 5 चरणों में संपन्न होती है-

1. बजट बनाना

  • बजट बनाने का काम वित्त मंत्रालय करता है प्रत्येक वर्ष के सितंबर महीने में वित्त मंत्रालय सभी विभागों को पत्र भेजता है कि वह अपने विभाग के संबंध में वह अनुमान तैयार करें।
  • विभिन्न मंत्रालय का अनुमान वित्त मंत्रालय को नवंबर-दिसंबर तक प्राप्त हो जाते हैं। फिर इससे मुख्य बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
  • वित्त मंत्रालय विभिन्न विभागों (रेलवे मंत्रालय भी शामिल) की व्यय अनुमान की समीक्षा करता है। वित्त मंत्री बजट के अनुमान को देखते हैं तथा प्रधानमंत्री से विचार-विमर्श के बाद उसमें संशोधन भी कर सकते हैं। अंत में बजट राष्ट्रपति को दिखाया जाता है। बजट की प्रमुख बातें मंत्रिपरिषद् को भी बताई जाती है।
  • बजट तैयार करते समय वित्त मंत्री सबसे अधिक वित्त आयोग की स्थितियों को ध्यान से रखता है तथा संस्तुतियों के अनुरूप ही वह राशि केंद्र तथा राज्य के बीच बांटता है।
  • बजट तैयार होने के बाद फरवरी महीने के अंतिम सप्ताह में वित्त मंत्री संसद में अपने अभिभाषण के साथ बजट पेश करते हैं। बजट के अंतर्गत निम्नलिखित प्रपत्र ( Documents) तथा विवरण पेश किया जाता है।
    1. अनुच्छेद 112 के अंतर्गत वार्षिक वित्तीय विवरण जिसमें आय और व्यय का अनुमान रहता है।
    2. अनुदान के लिए मांग। इसमें संचित निधि होने वाले व्यय का अनुमान रहता है।
    3. वित्त विधेयक
    4. FRBM Act. के तहत पेश किए जाने वाले अनिवार्य विवरण |
    5. व्यय बजट।
    6. प्राप्ति बजट |
    7. वित्त विधेयक की व्यवस्थाओं के संबंध में मेमोरेंडम ऑफ एक्सप्लेनेशन।
    8. बजट एक झलक ।
    9. आउटकम बजट (यह नीति आयोग द्वारा तैयार किया जाता है। इसकी शुरुआत नीति आयोग के स्थापना के बाद हुई हैं ।)

2. बजट का वैधानिकीकरण

  • बजट को कानूनी मान्यता मिल सके, इस हेतु बजट को संसद में कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है।
  1. वित्त मंत्री के भाषण के साथ बजट प्रस्तुत होता है। यह मुख्यतः दो भागों में पेश होता है। बजट भाग - A में व्यय संबंधी ब्योरा होता है तथा बजट भांग - B में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों के लगाने या वर्तमान कर ढांचे में सुधार या वर्तमान करो को उसी रूप में चलते रहने का प्रस्ताव होता है। बजट भाग - B के क्रियान्वयन हेतु सरकार को वित्त विधेयक पारित करवाना होता है।
  2. वित्त मंत्री द्वारा सदन में प्रस्तुत बजट पर संसद में बहस होता है परंतु वित्त मंत्री जिस दिन बजट संसद में प्रस्तुत करते हैं उस दिन कोई बहस नहीं होता है।
    बजट पर आम बहस पूरी के बाद संसद तीन अथवा चार हफ्तों के लिए स्थगित हो जाता है।
  3. जब तक संसद स्थगित रहता है उस समय अंतराल के दौरान संसद की स्थाई समिति, बजट के मांग व आदि की विस्तार से जांच करता है तथा कर संसद के दोनों सदनों के विचार हेतु रखा जाता है ।
    बजट के जाँच हेतु स्थाई समिति की व्यवस्था विभिन्न मंत्रालयों पर संसदीय वित्तीय नियंत्रण के उद्देश्य से 1993 में प्रारंभ की गई थी। जिसे 2004 में और अधिक विस्तृत किया गया।
  4. अनुच्छेद 113 के अनुसार सरकार राष्ट्रपति के संस्तुति पर, अनुदान के लिए मांग पेश करती है जिस पर संसद में व्यापक ब होता है। अनुदान की मांग पर संसद आपत्ति उठा सकती है, अस्वीकार कर सकती है, परंतु उसे बढ़ा नहीं सकती है। 
    • अनुदान के मांग में राजस्व व्यय तथा पूंजी व्यय को अलग-अलग दिखाया जाता है।
    • ऐसे व्यय जो संविधान के व्यवस्था के अंतर्गत समेकित कोष पर भारित है (जैसे- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के वेतन, पेंशन, न्यायाधीशों के वेतन, पेंशन आदि) उनके संबंध में सरकार को संसद से अनुमति नहीं लेनी पड़ती है।
    • अनुदान की मांग पर जब संसद में बहस होती है इस दौरान सरकार अपनी वित्त मंत्रालय के निष्पादन बजट तथा वार्षिक रिपोर्ट संसद सदस्यों को उपलब्ध करवाती है ताकि संसद सदस्य अनुदान की मांग पर व्यापक बस कर सकें।
    • अनुदान की मांग के अंतर्गत आम बजट में 109 मांगे होती है तथा रेल बजट में 32 मांगें होती है। प्रत्येक मांगों पर संसद सदस्य बहस करते हैं तथा प्रत्येक मांगों पर लोकसभा में अलग से मतदान होता है। अनुदान के मांग हेतु मतदान के संबंध में लोकसभा को विशेष शक्ति प्राप्त है, यह शक्ति राज्यसभा को नहीं है।
    • अनुदान की मांग पर बहस के दौरान संसद सदस्य कटौती प्रस्ताव भी ला सकता है कटौती प्रस्ताव तीन तरह के होते हैं।
      1. नीत कटौती प्रस्ताव- यह प्रस्ताव सरकार के नीति के प्रति असहमति व्यक्त करने का तरीका है। इसमें कहा . • जाता है कि मांग की राशि । रूपया कर दी जाए। संसद सदस्य चाहे तो अपनी तरफ से कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकता है।
      2. आर्थिक कटौती प्रस्ताव- इस प्रस्ताव में इस बात का उल्लेख होता है कि प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है। इसमें कहा जाता है कि मांग की राशि को निश्चित सीमा तक कम किया जाए।
      3. सांकेतिक कटौती प्रस्ताव - यह भारत सरकार के किसी दायित्व से संबंधित होता है। इसमें कहा जाता है कि मांग में 100 रूपये की कमी की जाए।
    • कटौती प्रस्ताव का उद्देश्य अनुदान के मांग में कटौती लाना नहीं होता है बल्कि प्रस्ताव में उल्लिखित विशिष्ट मद की ओर सदन का ध्यान आकृष्ट करना होता है।
    • कटौती प्रस्ताव सदन में लाया जाता है। उन पर बहस होती है परंतु सरकार का बहुमत होने के कारण यह कभी पास नहीं होता ।
    • अनुदान की मांग पर मतदान हेतु 26 दिन निर्धारित किए गए हैं। अंतिम दिन लोकसभा अध्यक्ष सभी शेष मांगों को मतदान के लिए पेश करता है तथा इसका निपटारा कर दिया जाता है फिर चाहे उस मांग पर चर्चा हुई हो या नहीं हुई हो |
    • अगर अनुदान की मांग संसद में पारित नहीं हो तो तुरंत ही सरकार गिर जाती है। ऐसी स्थिति में समेकित कोष पर जो भारित व्यय है, उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  5. लोकसभा में अनुदान की मांग पारित होने के बाद विनियोग विधेयक को संसद में पेश किया जाता है, उस पर विचार किया जाता है फिर उसे पारित कर दिया जाता है। इस विधेयक में किसी तरह का कोई संशोधन नहीं किया जाता सकता है। विनियोग' विधेयक पारित होते ही सरकार समेकित कोष से धन की निकासी कर सकती है।
    • लेखा अनुदान (Vote on Account)- सरकार समेकित कोष या संचित निधि से धन की निकासी तभी कर सकता है जब विनियोग विधेयक पारित जाए। लेकिन अगर सरकार विनियोग विधेयक तुरंत नहीं लाए या किसी अन्य कारण से विनियोग विधेयक के पारित होने से पहले ही रुपए की आवश्यकता हो जाए तो सरकार अनुच्छेद 116 (i) के तहत एक अग्रिम राशि संसद से मंजूर कराकर उसे समेकित कोष से निकाल सकती है। इसे ही लेखानुदान कहते हैं।
    • लेखानुदान में केवल व्यय पक्ष का उल्लेख किया जाता है तथा यह केवल दो महीने के लिए होता है। इसकी आवश्यकता प्रायः तब होती है जब आम चुनाव नजदीक हो तथा बजट बनाने का अधिकार नयी सरकार को हो ।
    • अनुदान (Vote for Credit ) - अगर आकस्मिक परिस्थितियों जैसे- युद्ध, आपदा में सरकार को बहुत अधिक धन की आवश्यकता हो तो संसद सरकार को एक बड़ी राशि व्यय करने की स्वीकृति दे सकती है। जिसे अनुदान कहते हैं। इसका उल्लेख अनुच्छेद 116 में किया गया है।
    • अनुपूरक अनुदान (Supplementary grant )- यदि विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष में किए जाने वाले राशि कम पड़ जाए या बजट में उल्लेख न की गई किसी सेवा पर खर्च आवश्यक हो जाए तो सरकार 115 (1) (9) के अनुसार अनुपूरक अनुदान संसद में पेश करती है जिसे संसद स्वीकृति देता है।
  6. वर्तमान चल रहे सभी करों को बढ़ाने या घटाने या उसी रूप में लागू करने तथा नई कर लागू करने हेतु सरकार को संसद से वित्त विधेयक पारित करवाना होता है।
    • बजट प्रस्तुत करने के तुरंत बाद सरकार संसद के समक्ष वित्त विधेयक रखता है। यह विधेयक केवल लोकसभा में ही तथा राष्ट्रपति के अनुमति मिलने पर ही लाया जाता है।
    • वित्त विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत होते ही अप्रत्यक्ष कर लागू हो जाता है जबकि प्रत्यक्ष कर साधारणतः आगामी अप्रैल से लागू होता है।
    • वित्त विधेयक विनियोग विधेयक के ठीक विपरीत है जहां वित्त विधेयक बजट के आय पक्ष को विधिक मान्यता प्रदान करता है। वही विनियोग विधेयक सरकार के व्यय को विधिक मान्यता प्रदान करता है।

3. बजट का क्रियान्वयन

  • वित्त विधेयक तथा विनियोग विधेयक पारित होते ही सरकार राजस्व वसूली तथा अधिकृत मदों पर व्यय करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसके बाद बजट का क्रियान्वयन हो जाता है।

4. लेखा-जोखा (आय व्यय ) की आडिट तथा ऑडिट रिपोर्ट

  • संविधान के अनुच्छेद 148 ( 1 ) के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की व्यवस्था है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • केंद्र सरकार के बजट के संपूर्ण आय तथा व्यय का ऑडिट CAG करता है तथा रिपोर्ट बनाकर राष्ट्रपति को सौंप देता है। राष्ट्रपति फिर इसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष पेश करता है।
  • CAG का यह कर्तव्य है कि वह पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में हो रही अपव्यय को सामने लाये तथा उसका समीक्षात्मक आलोचना करें।

5. राजस्व लेखा-जोखा की संसदीय जांच

  • संसद सर्वोपरि संस्था है जो सभी बजेटरी व्यवस्थाओं पर नियंत्रण रखती है। संसद की अनुमति के बाद ही सरकार समेकित निधि से व्यय कर सकती है। इसलिए संसद में बजट पर बहस होती है तथा इसके बाद वोटिंग होती है। इन सबके बावजूद सभी प्रकार के व्यय का गहराई से प्रत्येक पहलू का अध्ययन तथा परीक्षण संसद नहीं कर पाता है इसलिए अनुच्छेद 118 के तहत लोकसभा ने कुछ वित्तीय समिति का गठन किया है
    1. आकलन समिति
    2. सार्वजनिक उद्यम समिति
    3. विभागों से संबंधित स्टैंडिंग कमेटी
    4. रेलवे कनवेंशन कमिटी
    5. लोक लेखा समिति
  • यह समितियां सरकार द्वारा की जाने वाले व्यय का पुनर्निरीक्षण करती है तथा अपनी रिपोर्ट संसद को देती है। यह समितियां सरकार द्वारा की जाने वाले अनियमितताओं से संसद को पारिचित कराती है।

सरकारी बजट

Objective

1. निम्नलिखित में कौन-सा लोक व्यय में वृद्धि का कारण
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि
2. ऋण वित्तीयन
3. आर्थिक सहायताओं की राशि में वृद्धि
4. प्रशासन तन्त्र का विस्तार
निम्नलिखित कूट आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 2, 3 और 4
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
2. भारत में घाटे की वित्त व्यवस्था किसके लिए संसाधनों को बढ़ाने के लिए उपयोग की जाती है?
(A) आर्थिक विकास के लिए
(B) सार्वजनिक ऋण चुकाने के लिए
(C) भुगतान शेष का समायोजन करने के लिए
(D) विदेशी ऋण कम करने के लिए
3. पारम्परिक बजटीय घाटे को किस प्रकार किया जाता है? 
1. भारतीय रिजर्व बैंक के पास शेष नकदी आहरण से।
2. केन्द्र सरकार द्वारा जारी राजकोषीय हुण्डियों में निवल वृद्धि ।
3: कर राजस्व में वृद्धि करके ।
4. विदेशी ऋण लेकर ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
4. बजट निर्माण में निम्न में से कौन-से सिद्धान्त हैं?
1. बजट सन्तुलित होना चाहिए ।
2. विभागीय स्तर पर आकलन होना चाहिए।
3. बजट सकल नहीं निवल होना चाहिए।
4. राजस्व एवं पूँजीगत पक्षों का एकीकरण होना चाहिए ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
5. बजट के साथ विधायिका में निम्नलिखित में से कौन-से दस्तावेज रस्तुत किए जाते हैं ?
1. बजट सम्बन्धी व्याख्यात्मक स्मृति - पत्र
2. अनुदान माँगों का सारांश
3. विनियोग विधेयक
4. वित्त विधेयक
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
6. निम्नलिखित में कौन-सा कथन राजस्व के महत्त्व के सम्बन्ध में उपयुक्त है?
1. साधनों का आवंटन।
2. उत्पादन, रोजगार एवं कीमतों को प्रभावित करना। 
3. विदेशी मुद्रा की दर को प्रभावित करना ।
4. आय और सम्पत्ति के वितरण में समानता ।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
7. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय- प्रत्यक्ष कर
2. बजट घाटा = कुल व्यय- कुल आय
3. बजट घाटा = सकल राजस्व व्यय सकल राजस्व आय
4. राजकोषीय घाटा = राजस्व आय - बजट घाटा
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
1. घांटे की वित्त व्यवस्था कीमत वृद्धि को जन्म देती है।
2. घाटे की वित्त व्यवस्था से पूँजी निर्माण में सहायता मिलती है।
3. घाटे की वित्त व्यवस्था उत्पादन वृद्धि में सहायता करती है ।
4. घाटे की वित्त व्यवस्था सदैव अर्थव्यवस्था को कुप्रभाविंत करती है।
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें।
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
9. आम बजट प्रस्ताव संसद के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है, क्योंकि -
(A) संसद आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ वाली एक सभा है
(B) संसद बजट प्रस्तावों पर विचार करके सरकार के अपव्ययों पर प्रतिबन्ध लगाती है
(C) भारतीय संविधान में संसद को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है
(D) सार्वजनिक धन की प्राप्ति और व्यय के प्रावधान को जनता के प्रतिनिधियों की स्वीकृति मिलना आवश्यक है
10. भारत सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था की धन पूर्ति के लिए किस साधन का आश्रय ले सकती हैं?
1. नकद शेषों को कम करना
2. केन्द्रीय बैंक से ऋण लेना
3. मुद्रा का अवमूल्यन
4. अतिरिक्त करेन्सी मुद्रा छापना
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2 
(B) 1, 2 और 3
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी
11. गैर-योजना अनुदान केन्द्र राज्यों को निम्न उद्देश्य देता है
1. संविधान की धारा 275 (1) के अन्तर्गत मूल्यान्तर धन
2. प्रशासन सुधार हेतु
3. राज्य कर्मियों के वेतन एवं भत्ता हेतु
4. घाटा पूर्ति हेतु
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें
(A) 1 और 2
(B) 1, 2 और 3 
(C) 1, 2 और 4
(D) ये सभी 
12. मौद्रिक नीति एवं राजकोषीय नीति में क्या अन्तर है?
(A) मौद्रिक नीति मुद्रा की मात्रा व ब्याज दर के आधार पर सम्पूर्ण माँग को नियन्त्रित करती है जबकि राजकोषीय नीति इसके लिए बजट प्रणाली का सहारा लेती है
(B) मौद्रिक नीति मुद्रा की पूर्ति से सम्बन्धित है जबकि राजकोषीय R नीति ब्याज दर से सम्बन्धित है।
(C) मौद्रिक नीति सरकारी व्ययों को स्पष्ट करती है जबकि राजकोषीय नीति ब्याज दर से सम्बन्धित है
(D) मौद्रिक नीति स्वचालित है जबकि राजकोषीय विभेदात्मक है
13. यदि संकल राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान को निकाल दिया जाए तो अवशेष को कहा जाएगा
(A) सकल प्राथमिक घाटा
(B) बजटीय घाटा
(C) मौद्रीकृत घाटा
(D) राजस्व घाटा
14. राजकोषीय घाटा है
(A) कुल व्यय - कुल प्राप्तियाँ
(B) राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
(C) पूँजीगत व्यय-पूँजीगत प्राप्तियाँ- बाजार ऋण
(D) बजटीय घाटे का योग और सरकार का बाजार ऋण तथा दायित्व
15. भारतीय केन्द्र सरकार के बजट में राजस्व घाटे से ब्याज भुगतान घटाने पर प्राप्त होता है
(A) डेफिसिट फाइनेन्सिंग
(B) बजटीय घाटा
(C) राजकोषीय घाटा 
(D) प्राथमिक घाटा
16. निम्नलिखित प्रस्तावों में से किसका सन्दर्भित सम्बन्ध संघीय बजट से है?
(A) निन्दा प्रस्ताव
(B) ध्यानाकर्षण प्रस्ताव
(C) कटौती प्रस्ताव
(D) स्थगन प्रस्ताव
17. भारत सरकार की राजकोषीय नीति का निम्न में से कौन एक उद्देश्य नहीं है?
(A) पूर्ण रोजगार
(B) मूल्य स्थिरता
(C) अन्तर राज्यीय व्यापार
(D) धन तथा आय का न्यायोजित
18. राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबन्धन अधिनियम भारतवर्ष में कब पारित किया गया था ? 
(A) 2007
(B) 2005
(C) 2002
(D) 2003
19. निम्नलिखित में से कौन प्राथमिक घाटे का आकलन से होता:
(A) बजट घाटा - ब्याज अदायगियाँ
(B) बजट घाटा + ब्याज अदायगियाँ
(C) राजकोपीय घाटा - ब्याज अदायगियाँ
(D) राजकोषीय घाटा + ब्याज अदायगियाँ
20. रेलवे को सर्वाधिक आमदनी किस मद से होती है?
(A) माल दुलाई
(B) यात्री यातायात
(C) कोचिंग
(D) अन्य सेवाएँ
21. बजट तैयार करने का उत्तरदायित्व किसका है?
(A) राजस्व
(B) व्यय विभाग
(C) बजट
(D) आर्थिक मामलों का विभाग
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Mon, 08 Apr 2024 10:30:48 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | वित्त बाजार https://m.jaankarirakho.com/946 https://m.jaankarirakho.com/946 General Competition | Economics & Economy | वित्त बाजार
  • किसी भी देश के आर्थिक विकास में वहाँ के वित्त बाजार (Financial Market) का महत्वपूर्ण स्थान होता है। वित्त बाजार, उन क्षेत्रों से जहाँ बचत अधिक बचत निकाल कर उन क्षेत्रों तक पहुँचाता है जहाँ बचत की माँग है। 
  • वित्त की माँग तथा पूर्ति करने वाले में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है-

  • वित्त बाजार का प्रमुख कार्य-
  1. वित्तीय बाजार लोगों के बचत को गतिशील बनाता है। यह बाजार बेकार पड़े वित्त को ऐसी जगह ले जाता है जहाँ वास्तव में इसकी जरूरत है। 
    • वित्त (Finance) को एक पक्ष से दूसरे पक्ष को हस्तांतरित करने हेतु वित्त बाजार में अनेक वित्तीय प्रपत्र ( प्रतिभूति ) होते हैं। निवेशक अपने इच्छानुसार किसी भी वित्तीय प्रपत्र में निवेश कर सकते हैं।
  2. वित्त बाजार वित्त के मांग पक्ष तथा पूर्ति पक्ष को एक मंच पर लाकर प्रतिभूति के मूल्य तय करने में सहायक करते हैं। वित्त बाजार में प्रतिभूति का मूल्य मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है।
  3. वित्त बाजार एक ऐसा मंच है- जहाँ सभी प्रतिभूति के क्रेता तथा विक्रेता हर समय मौजूद रहता हैं जिससे प्रतिभूति में तरलता बनी रहती हैं। वित्त बाजार में निवेशक को यह सुविधा रहती है कि वे जब चाहे निवेश कर सकते हैं और जब चाहे निवेश को पुनः निकाल सकते हैं।
  4. किसी प्रतिभूति को खरीदने या बेचने के लिए प्रतिभूति के संबंध में कई प्रकार के सूचनाओं की आवश्यकता होती है। वित्त बाजार इस सूचनाओं को बिना किसी लागत के निवेशकों को उपलब्ध करवाता है।
  • वित्त बाजार में अनेक प्रकार के प्रतिभूति खरीदे - बेचे जाते हैं। इन प्रतिभूति में कुछ प्रतिभूति अल्पकालीन ( 1 वर्ष से कम) तथा कुछ दीर्घकालीन होते हैं। वित्तीय बाजार में व्यवहार की जानीवाली प्रतिभूति की भुगतान अवधि के आधार पर इसे दो भागों में विभक्त किया जाता है-

मुद्रा बाजार

  • मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमें अल्पकालीन प्रतिभूति व्यवहार ( खरीद-बिक्री) किया जाता है इस अल्पकालीन प्रतिभूति की भुगतान अवधि 1 वर्ष तक का होता है जिस कारण इसे निकट मुद्रा (Near Money) भी कहते हैं।
  • मुद्रा बाजार की प्रमुख विशेषताएँ-
    1. मुद्रा बाजार में तरलता काफी अधिक होती है। इस बाजार में तरलता बनाये रखने हेतु Discount Finance House of India (DFHI) की स्थापना की गई है।
    2. मुद्रा बाजार में होने वाले व्यवहारों के लिए दलाल की आवश्यकता नहीं होती है जिससे इस बाजार में क्रय-विक्रय पर कम खर्च होता है। 
    3. इस बाजार में व्यवहार की जाने वाली समस्त प्रतिभूति की भुगतान अवधि अधिकतम 1 वर्ष होता है।
    4. मुद्रा बाजार में किए जाने वाले व्यवहार बहुत तेज गति से होता है। अधिकांश व्यवहार तो टेलीफोन पर ही होता है जबकि कागजी कार्यवाही बाद में होती रहती है।
  • मुद्रा बाजार की प्रमुख प्रतिभूति-
  1. खजाना बिल (Treasury Bill)
    • यह प्रतिभूति सरकार अपनी अल्पकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु वित्तीय संस्थान अथवा जनता को जारी करती है।
    • इस प्रतिभूति को RBI सरकार की ओर से जारी करती है। इनकी अवधि प्राय: 14 दिन, 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन की होती है जिसको प्रायः व्यापारिक बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी (LIC, GIC, UTI) खरीदते हैं।
    • खजाना बिल पर RBI कोई ब्याज नहीं देता है। इसे RBI सदा कटौती पर खरीदने के लिए तैयार रहता है। खजाना बिल खरीदने के न्यूनतम राशि ₹25,000 है और इसे 25m के गुणक (Multiple) में खरीदा जा सकता है।
    • कटौती (Discount )- खजाना बिल को RBI हमेशा अंकित मूल्य से कम पर बेचता है जबकि अवधि पूर्ण होने . पर RBI इसका भुगतान अंकित मूल्य के बराबर करता हैं। इस दोनों मूल्य के अंतर को कटौती कहते हैं।
    • जीरो कूपर बॉण्ड (Zero Coupon Bond)- ऐसी प्रतिभूति जिसपर निश्चित दर से कोई ब्याज नहीं दिया जाता है जीरो कूपर ब बॉण्ड कहलाता है। खजाना बिल जीरो कूपन बॉण्ड के उदाहरण हैं।
  2. कॉमर्सियल पेपर (Commercial Paper-CP)
    • इस प्रतिभूति को अच्छी साख वाली कम्पनी अल्पकालीन, मौसमी तथा कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने हेतु जारी करती है।
    • CP 15 दिन से 12 महीने तक के लिए जारी किए जाते हैं तथा यह कटौती पर ही जारी किया जाता है परन्तु कभी-कभी इसे निश्चित ब्याज दर भी जारी किया जाता है।
    • इस प्रतिभूति को सामान्यतः बैंक, बीमा कम्पनी, या अन्य कोई फर्म खरीदती है। एक CP का मूल्य कम-से-कम ₹5 लाख होता है।
  3. अल्पसूचना ऋण (Call Money or Call Loans )
    • इस प्रकार के ऋण (प्रतिभूति) का व्यवहार प्राय: दोनों पक्ष (ऋणदाता एवं ऋणी) फोन पर ही कर लेते है तथा कागजी कार्यवाही बाद में की जाती है इस लिए इसे कॉलमनी कहा जाता है।
    • यह ऋण या प्रतिभूति मुद्रा बाजार में सार्वजनिक तरल प्रकृति के होते है क्योंकित इसकी भुगतान अवधि 1 दिन से लेकर 15 दिन तक होती है।
    • यह ऋण का प्रयोग प्रायः बैंक ही निम्न दो कारणों से करते है-
      1. वैधानिक तरलता अनुपात ( SLR ) को नियंत्रण करने हेतु
      2. आवश्यकता से अधिक नगदी को अल्पकाल में निवेश करने हेतु
    • कॉल मनी की न्यूनतम राशि ₹10 करोड़ होती है परन्तु अधिकांश लेन-देन ₹100 करोड़ के ही होते हैं।
  4. जमा प्रमाण पत्र (Certificate of Deposite or CD)
    • इस प्रतिभूति को भारतीय व्यापारिक बैंक, भारतीय वित्तीय संस्था (IDBI, IFCI, ICICI, SIDBI, EAXIM Bank) जारी करता है जिसके खरीददार व्यक्ति, संघ, कम्पनी या कोई निगम हो सकता है।
    • CD का अंकित मूल्य कम-से-कम 5 लाख होता है। एक निवेश को न्यूनतम ₹25 लाख का CD लेना आवश्यक होता है। इसे कटौती पर ही जारी किया जाता है ।
    • CD 91 दिन से 1 वर्ष के लिए जारी किए जाते तथा निवेशक क्रय करने के 45 दिन बाद अन्य व्यक्ति को यह प्रतिभूति हस्तांरित ( बेच) कर सकता है।
  5. वाणिज्यिक बिल ( Commerical Bill )
    • इस प्रतिभूति की आवश्यकता उधार बिक्री के लिए वित्त व्यवस्था करने हेतु पड़ती है।
    • इस बिल को विक्रेता द्वारा लिखा जाता है तथा क्रेता द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा क्रेता देय तिथि को भुगतान कर देता है।
    • अगर विक्रेता को देय तिथि से पहले धन की जरूरत होती है तो वह इस बिल को बैंक से भुना सकता है।
    • इस प्रतिभूति की अधिकतम अवधि 90 दिन होती है।

पूंजी बाजार (Capital Market)

  • पूंजी बाजार ऐसे बाजार होते हैं जिसमें दीर्घकालीन (1 वर्ष से अधिक) प्रतिभूति का व्यवहार होता है। इस बाजार की प्रमुख प्रतिभूति अंश (Shares) तथा ऋणपत्र ( Debentures) है।
  • पूंजी बाजार व्यावसायिक स्वामित्व में भिन्नता पैदा करते हैं। इस बाजार में लोग कम्पनी के शेयर खरीदते हैं जिसके फलस्वरूप कम्पनी का स्वामित्व अनेक लोगों के पास हस्तारित हो जाते हैं।
  • पूंजी बाजार के दो भाग होते हैं- 
    i. प्राथमिक बाजार (Primary Market) 
    ii. गौण बाजार ( Secondary Market)
  • प्राथमिक बाजार
    • प्राथमिक बाजार किसी स्थान विशेष का नाम नहीं है बल्कि कम्पनी जब अपना शेयर या ऋणपत्र पहली बार जनता को बेचती हैं तो इसी प्रक्रिया को प्राथमिक बाजार कहते हैं।
    • प्राथिमक बाजार वह बाजार है जहाँ पूँजी की तलाश में कम्पनी पहली बार पब्लिक के सम्पर्क में आती है।
    • इस बाजार के माध्यम से नई स्थापित एवं पुरानी दोनों प्रकार की कम्पनी पूंजी एकत्र करती है। जब नयी कम्पनी पहली बार प्राथमिक बाजार में अपना शेयर जारी करती है तो इसे आई.पी.ओ. (Initial Public Offer) कहते हैं। पुरानी कम्पनी जब कोई नया शेयर प्राथमिक बाजार में जारी करती है तो इसे एफ.पी.ओ. (FPO) कहते हैं।
    • मुद्रा बाजार में कोई कम्पनी निम्न तरीके से पूंजी एकत्रित करती हैं-
      1. पब्लिक निर्गमन (Public Issue ) - इस विधि में कम्पनी विवरण पत्र (Prospectus ) जारी कर जनता को शेयर या ऋणपत्र खरीदने हेतु आमंत्रित करती है। यह विधि का प्रयोग वह कम्पनी करती है जिसकी लिस्टिंग नहीं हुई है जो बिल्कुल नयी है। यह कम्पनी विवरण पत्र द्वारा कम्पनी का अधिकृत पूंजी, कम्पनी का उद्देश्य, कम्पनी के चाटर्ड एकाउन्टेंट, कम्पनी के फाउण्डर डाइरेक्टर के बारे में जनता को बताती है।
      2. बिक्री का प्रस्ताव (Offer for sale )- इस विधि में कम्पनी अपनी प्रतिभूति (शेयर या ऋण पत्र ) को पहले एक निश्चित मूल्य पर किसी मध्यस्थ ( दलाल या बैंक) को बेच देती है, पुनः यह मध्यस्थ ऊँचे मूल्य पर प्रतिभूति को जनता को बेचता है।
      3. निजी प्लेसमेंट (Private Placement )- इस विधि में कम्पनी प्रतिभूति को जनता को बेचने के स्थान पर बड़ी वित्तीय संस्था या दलाल को बेच देती है । पुनः ये वित्तीय संस्था या दलाल इस प्रतिभूति को अपने विशेष ग्राहक को ऊँचे मूल्य पर बेचती है।
        • कम्पनी Public Issue के तुलना में Private Placement को प्राथमिक देती है क्योंकि यह सस्ती विधि है।
      4. स्वत्व निर्गमन (Right Issue ) - इस विधि का प्रयोग वह कम्पनी करती है जो पहले भी शेयर बेच चुका है। 
        • पुरानी कम्पनी जब नया शेयर जारी करती है तो शेयर बेचने के लिए पहले कम्पनी को अपने पुराने शेयरधारक को आमंत्रित करना जरूरी होता है। पुराने शेयर धारक को यह अधिकार होता है कि वह कम्पनी के सारे नये शेयर खरीद ले, या कुछ ही खरीदे या सभी शेयर किसी दूसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दें।
      5. Electronic Initial Public Offer e : IPO - कम्पनी जब इंटरनेट के माध्यम से अपनी प्रतिभूति बेचती है तो इसे e : IPO कहते हैं। इस विधि द्वारा शेयर बेचने के लिए SEBI द्वारा बनाये गये नियम का पालन करना होता है। 
  • शेयर दो प्रकार के होते हैं-
    1. समता या इक्विटी शेयर (Equity Shares ) - ये वो शेयर हैं है जिनके धारक, कम्पनी के स्वामित्वधारी होते हैं तथा इन्हें कम्पनी के प्रबन्ध में हिस्सेदारी दी जाती है, इन्हें वोटिंग का अधिकार प्राप्त होता है।
    2. वरीयता प्राप्त शेयर (Preference Shares ) - इस शेयर धारक को वोटिंग प्राप्त नहीं होता है, परन्तु इन्हें लाभांश (Divident) प्राप्त करने में वरीयता प्राप्त होती है, चाहे कम्पनी को लाभ हो या हानि । 

गौण बाजार (Secondary Market)

  • जब प्रतिभूति (शेयर अथवा ऋणं पत्र) पहली बार बेची जाती है तो वह प्राथमिक बाजार की क्रिया कहलाती है । प्राथिमक बाजार में बिक चुके प्रतिभूति जब पुनः बेचा जाता है तो यह गौण बाजार की क्रिया कहलाती है। गौण बाजार की सभी क्रिया शेयर बाजार (Stock Exchange) के माध्यम से होता है।
  • गौण बाजार में वे कम्पनी भाग नहीं लेती है जो शेयर अथवा ऋण पत्र के प्राइमरी धारक (प्राथमिक बाजार के खरीददार) है।
  • कम्पनी अपने लिए फण्ड की उगाही प्राथमिक बाजार करते हैं, गौण बाजार में नहीं। गौण बाजार कम्पनी के प्रतिभूति में तरलता बनाये रखता है। जिससे कम्पनी के विनिमेय क्षमता (Marketability) बनती है।
  • गौण बाजार में प्रतिभूति के व्यहार से कम्पनी को न तो कोई लाभ होता है न कोई हानि । लाभ और हानि कम्पनी के प्राइमरी धारक को होता है।
  • गौण बाजार में शेयर की खरीद-बिक्री तब तक होती रहती है जब तक शेयर जारी करने वाले कम्पनी बन्द नहीं हो जाती है। प्राथमिक बाजार में जारी किए गये ऋण- पत्र गौण बाजार में अपनी परिपक्वता अवधि (Maturity Period) तक ही बने रहते हैं।

शेयर बाजार (Stock Exchange)

  • शेयर बाजार एक संगठित बाजार है जहाँ कम्पनियों, सरकार व अर्द्ध सरकारी संस्थानों द्वारा जारी प्रतिभूति का क्रय विक्रय होता है।
  • प्रत्येक शेयर बाजार की एक प्रबन्ध समिति होती है। शेयर बाजार के सभी व्यवहार प्रबन्ध समिति के नियंत्रण में होते हैं। प्रबन्ध समति ही कम्पनियों को शेयर बाजार में सूचीबद्ध ( Listing) करते हैं। बिना कम्पनी को सूचीबद्ध कराये, उस कम्पनी के शेयर को नहीं बेचा जा सकता है।
  • शेयर बाजार का सबसे बड़ा फायदा यह है, निवेशक जब चाहे प्रतिभूति में निवेश कर सकते हैं और जब जाहे निवेश को धन में बदल सकत हैं।
  • शेयर बाजार में सरकारी प्रतिभूति का व्यवहार (खरीद-बिक्री) सब्सिडियरी जेनरल लेजर (SGL) के माध्यम से होता था परन्तु 1994 से इन प्रतिभूति में व्यवहार थोक ऋण बाजार के माध्यम से होता है।
  • जब कोई निवेशक प्रतिभूतियों का क्रय उनके बाजार मूल्य में परिवर्तन से लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से करते हैं तो इसे सट्टा कहा जाता है। शेयर बाजार में नियमों के अधीन सट्टा भी लगाने की सुविधा उपलब्ध कराता है।
  • वर्तमान में भारत में 24 शेयर बाजार हैं जिसमें कोयम्बटूर शेयर बाजार निकासी चाहता है, इसका मामला वर्तमान में न्यायालय के अधीन है-

बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज (Bombay Stock Exchange)

  • BSE भारत का ही नहीं एशिया का सबसे पुराना शेयर बाज़ार है जिसकी स्थापना 1875 में हुई थी, स्वतंत्रता के बाद सरकार ने 1956 में इसे शेयर बाजार की मान्यता दिया ।
  • BSE के सूचकांक (INDEX) को BSE Sensitive Index या SENSEX कहते हैं। यह सूचकांक 30 अग्रनी कम्पनी के शेयर पर आधारित है जिसकी शुरूआत 1986 में हुआ था।
  • शेयर बाजार का सूचकांक शेयर बाजार के रूझान को प्रदर्शित करता है। यदि सूचकांक बढ़ रहा है तो इसका अर्थ है, निवेशक यह मान रहे अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी है और कम्पनियां भविष्य में लाभ अर्जित करेगा।
  • BSE में शेयर खरदी-बिक्री हेतु ऑन-लाईन ट्रेडिंग की भी व्यवस्था है।

National Stock Exchange (NSE)

  • BSE में केवल बड़े-बड़े कम्पनी का ही शेयर बिकते थे अतः शेरवानी कमेटी के सिफारिश पर NSE की स्थापना नवम्बर 1992 में एक Public Limited कम्पनी के रूप में किया गया।
  • NSE में ट्रेडिंग हेतु कोई विशेष स्थान नहीं है, यह शेयर बाजार पूरे देश के प्रमुख शहरों में अपनी टर्मिनल स्थापित किए हैं। निवेशक . किसी भी टर्मिनल पर जाकर पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत माध्यम से शेयर खरीद-बेच सकते हैं। किसी एक शेयर का मूल्य NSE के सभी टर्मिनल पर समान होते हैं।
  • NSE के सूचकांक को NIFTY कहते हैं जो NSE में सूचीबद्ध 50 बड़ी कम्पनी के शेयर पर आधारित हैं।
  • NSE के प्रवर्तक निम्न हैं-
    1. IDBI
    2. IFCI
    3. ICICI
    4. LIC
    5. GIC
    6. The SBI Capital Market Limitd
    7. The Stock Holding Corporation of India Limited
    8. The Infrastructure Leasing and Financial Limited

Over The Counte Exchange of India (OTCEI)

  • छोटे कम्पनी में भी निवेशक निवेश कर सके इस हेतु OTCEI की स्थापना भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के अंतर्गत अक्टूबर 1990 में की गई।
  • OTCEI पर मध्यम एवं छोटी आकार की कम्पनी जिनकी प्रदत्त पूंजी 30 लाख से 20 करोड़ रुपये है, वे ही सूचीबद्ध हो सकती हैं।
  • OTCEI पर भी प्रतिभूति के सौदे करने के लिए कोई विशेष स्थान नहीं है। इस एक्सचेंज के काउंटर/ कार्यालय पूरे देश के प्रमुख शहरों में खुले हैं। शेयर खरीद-बिक्री हेतु कोई भी व्यक्ति काउंटर पर जाकर काउंटर ऑपरेटर के माध्यम से सौदा कर सकता है।
  • OTCEI के प्रवर्तक निम्न हैं-
    1. UTI
    2. ICICI
    3. IDBI
    4. IFCI
    5. IFCI
    6. LIC 
    7. GIC
    8. SBI Capital Market Ltd.
    9. Canbank Financial Service Ltd. 
  • शेयर बाजार पर ट्रेडिंग निम्न 5 चरणों में पूरा होता है- 
    1. शेयर बाजार में शेयर की खरीद-बिक्री करने के लिए सर्वप्रथम, दलाल (Broker) का चयन करना पड़ता है। दलाल का संबी में पंजीकृत होना अनिवार्य है।
      • दलाल एक व्यक्ति, साझेदारी फर्म, बैंक अथवा कंपनी हो सकता है।
    2. शेयर की खरीद-बिक्री हेतु डिमेट खाता (Demate Account) खोलना अनिवार्य है। इसी डिमेट खाता में इलेक्ट्रॉनिक रूप से शेयर रखा जाता है या निकाला जाता है।
      • इस समय भारत में दो डिपॉजटरी संस्थान (Depository Institution) हैं जो डीमेंट खाता खोलती है।
        1. National Securities Depository Limited (NSDL)
        2. Central Depository Services Limited (CDSL)
      • निवेशक डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के माध्यम से इन डिपॉजिटरी संस्थान के संपर्क में आते हैं। डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट SEBI के अनुसार, दलाल, बैंक या अन्य संस्था हो सकता है।
    3. आदेश देना (Placing an order )- डीमेट खाता खुलते हैं निवेशक दलाल को प्रतिभूति खरीद/बिक्री हेतु आदेश दे सकता है। यह आदेश व्यक्तिगत रूप से, मोबाइल/लैंडलाइन अथवा ई-मेल पर दी जा सकती है।
      • आदेश देते समय निवेशक दलाल को क्रय विक्रय की जानेवाली शेयर की जानकारी देता है और यह भी बता देता है सौदा किस मूल्य तक क़रना है।
    4. आदेश को पूरा करने के बाद दलाल एक Contract Note तैयार करता है और हस्ताक्षरित करके निवेशक को दे देता है। निवेशक इस Contract Note को अपने पास Proof of Transaction के रूप में रखता है।
      • Contracte note क्रय विक्रय की जाने वाले शेयर के नाम, उनकी संख्या उनका मूल्य तथा दलाली (Brokerage) लिखी रहती है।
    5. निबटारा (Settlement)- शेयर बाजार में शेयर की खरीद/बिक्री का यह अंतिम चरण है। निबटारा का अर्थ है शेयर का विक्रेता के डीमेट खाते से क्रेता क डीमेट खाते में चला जाना । निबटारा दो प्रकार से होता है-
      1. T+2 निबटारा- इसका अर्थ है, प्रतिभूति में व्यवहार (शेयर खरीद / बिक्री) सोमवार को हुआ है तो वह बुधवार को निपट जाएगा।
      2. अग्रिम निबटारा या T + 5 or T - 7 निबटारा।
    • शेयर बाजार में सभी प्रकार के शेयर की खरीद बिक्री सोमवार से शुक्रवार सुबह 9:55 बजे से 3:30pm तक होता है । 
  • यदि शेयर बाजार में प्रतिभूति में व्यवहार निर्धारित समय ( 9:55 am to 3:30 pm) के पूर्व या पश्चात् किया जाता है तो इसे कर्ब ट्रेडिंग (Kerb Trading) कहते हैं।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड Securities and Exchange Board of India (SEBI)

  • निवेशकों को हितों की रक्षा करने के लिए शेयर बाजार को नियंत्रण किया जाना अति आवश्यक है। शेयर बाजार पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु पूंजी निर्गमन अधिनियम 1947 पारित कर इसे लागू किया गया। लेकिन यह अधिनियम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा ।
  • शेयर बाजार पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु 1992 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना की गई। सरकार द्वारा सेवी की स्थापना के मुख्य उद्देश्य निम्न थे-
    1. शेयर बाजार पर नियंत्रित स्थापित कर, वहाँ पर व्यवहार करने वाले सभी पक्षकार को कुशल सेवा उपलब्ध कराना ।
    2. सेबी का प्रथम उद्देश्य है निवेशकों की सुरक्षा प्रदान करना क्योंकि निवेशकों के अभाव में शेयर बाजार का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
    3. आंतरिक ट्रेडिंग को रोकना और करने वाले को दंडित करना ।
      • आंतरिक ट्रेडिंग (Insider Trading )- कम्पनियों के संबंध में गुप्त जानकारी रखने दलाल सट्टेबाजी के दौरान प्रतिभूति खरीद/बिक्री करता है, तो वह हमेशा लाभ की स्थिति में ही रहता है जिससे आम निवेशकों के हितों को ठेस पहुँचाती है। इसे इनसाइडर ट्रेडिंग कहते हैं । 
    4. दलालों पर नियंत्रण रखना ।
  • SEBI के कार्य-
    1. शेयर बाजार से संबंधित अनुचित व्यवहार ( गलत तरीके से खरीद / बिक्री) को रोकना तथा आचार-संहिता (Code of Conduct) लागू करना।
    2. दलाल, उप-दलाल, एजेण्ट का रजिस्ट्रेशन करना |
    3. निवेशकों को खरीद/बिक्री करने हेतु सूचनाएँ उपलब्ध करवाना तथा प्रतिभूति में व्यवहार संबंधी शिक्षा प्रदान करना ।
    4. शेयर बाजार का अंकेक्षण (Audit) करना ।
    5. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का रजिस्ट्रेशन एवं संचालन करना ।

क्रेडिट रेटिंग

  • क्रेडिट रेटिंग ऋणी या उधार लेने वाले की साख क्षमता या उधार लौटाने की क्षमता का निर्धारण करते हैं।
  • क्रेडिट रेटिंग का मुख्य कार्य यह है उधार देने वाले को उधार लेने वाले की भुगतान क्षमता का मूल्यांकन कर प्रस्तुत करना ताकि उधार देने वाले यह जान सके उसका मूलधन तथा ब्याज की अदायगी की संभावना कितनी है।
  • क्रेडिट रेटिंग वित्तीय बाजार को विकसित होने क्रेडिट रेटिंग के विभिन्न श्रेणी- सहायक है। क्रेडिट रेटिंग की अवधारणा की शुरूआत 1909 में अमेरिका में हुई ।
  • क्रेडिट रेटिंग के विभिन्न श्रेणी-
    AAA- यह रेटिंग प्रदर्शित करता है कि मूलधन और ब्याज अदायगी करने में कम्पनी पूरी तरह से सुदृढ़ है कोई भी प्रतिकूल परिवर्तन इसे प्रभावित नहीं करेगी।
    AA- यह AAA के तुलना में थोड़ा खराब है।
    A- AA के तुलना में खराब। यह रेटिंग प्रदर्शित करता है कि अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल परिस्थिति में कम्पनी प्रभावित हो सकती है।
    BBB- यह रेटिंग का अर्थ है निवेश भुगतान की दृष्टि से सामान्य रूप से सुरक्षित है।
    C- पर्याप्त जोखिम भरा ।
  • भारत प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी-
    1. CRISIL (क्रेडिट इनफार्मेशन सर्विसेज ऑफ इण्डिया लि.)
    2. ICRA (इनवेस्टमेंट इनफार्मेशन एण्ड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इण्डिया लि. )
    3. CARE (क्रेडिट एनालिसिस एण्ड रिसर्च लि.)
    4. FRIPL (फिच रेटिंग इण्डिया प्राइवेट लि. )
    5. CIBII (क्रेडिट इनफार्मेशन ब्यूरो इण्डिया लि. )
    6. CRIS (Comparative Rating Index of Sovereigns) - इस रेटिंग की शुरूआत 31 जनवरी 2012 को वित्त मंत्रालय द्वारा किया गया है। यह स्वतंत्र देशों की क्रेडिट रेटिंग का तुलनात्मक आकलन प्रस्तुत करता है।
  • विश्व की तीन प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी-
    1. स्टैंडर्ड एण्ड पुउर्स
    2. मूडीज
    3. फिच (FITCH)

विश्व के प्रमुख स्टॉक मार्केट इन्डेक्स

  1. डीजोन्स : न्यूयॉर्क (USA) स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक है जो 30 कम्पनियों के शेयर पर आधारित है। यह व्यापक रूप से पूरे विश्व में देखे जाने वाला सूचकांक है।
  2. नसडाक (Nasdap) कम्पोजिट इन्डेक्स - यह USA के शेयर बाजार का सूचकांक है जिसकी शुरूआत 8 फरवरी 1971 को हुई ।
  3. SP500– इस इन्डेक्स में USA स्टॉक मार्केट की 500 बड़ी कम्पनी के शेयर शामिल हैं।
  4. FTSE100— यह लन्दन स्टॉक मार्केट का सूचकांक है जो यूरोपीयन मार्केट की गतिविधियों पर प्रकाश डालता है।
  5. निक्की- यह टोकियो स्टॉक एक्सचेंज का इन्डेक्स है।
  6. मिडडेक्स- फ्रैंकफर्ट (जर्मनी)
  7. हैग सेना- हांगकांग
  8. सिमेक्सव- स्टेट्स टाइम्स - सिंगांपुर
  9. KOSPI- दक्षिण कोरिया
  10. SET- थाइलैंड
  • बाजार पूंजीकरण की दृष्टि से विश्व के पाँच बड़े स्टॉक एक्सचेंज-
    1. न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज
    2. NASDAQ
    3. टोकियो स्टॉक एक्सचेंज
    4. लन्दन स्टॉक एक्सचेंज
    5. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज

राष्ट्रीय बचत पत्र (NSC) (National Saving Certificates)

  • राष्ट्रीय बचत पत्र योजना डाक विभाग के माध्यम से चलता है। इस योजना के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति (निवेशक) एक निश्चित धनराशि 5 वर्षों के लिए किसी भी डाकघर में जमा कर सकता है। डाक विभाग 5 वर्ष बाद NSC में निवेशित धनराशि निवेशक को चक्रवृद्धि ब्याज रहित वापस कर देता है।
  • NSC में निवेश किए गए धन पर आयकर में छूट का प्रावधान है, इस कारण वेतन भोगी (जो आयकर के दायरे में आते हैं) इसकी ओर आकर्षित होते हैं और इसमें निवेश करते हैं।
  • NSC पूरे देश के सभी अधिकृत डाकघर व मुख्य डाकघर में उपलब्ध रहते हैं। NSC में निवेश की न्यूनतम सीमा ₹500 है और अधि कतम की कोई सीमा नहीं है। डाक विभाग NSC पर 8.5% वार्षिक दर से ब्याज का भुगतान करता है।
  • NSC में निवेशित राशि को 5 वर्ष से पहले नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन निवेशक की मृत्यु होने पर अथवा न्यायपालिका के आदेश से 5 वर्ष पूर्व भी निवेशित राशि निकाला जा सकता है।
  • NSC में निवेशित राशि पर बैंक आसानी से लोन (ऋण) देने हेतु भी तैयार रहता है।

किसान विकास पत्र (KVP) (Kisan Vikas Patra)

  • KVP भारत सरकार की ऐसी योजना है जिसमें निवेशित धनराशि 8 वर्ष 7 महिना में दुगुणा हो जाता है।
  • इस योजना भारत सरकार के लघु बचत सचिवालय (Directorate of small saving) द्वारा चलायी जाती है, जिसका मुख्य उद्देश्य है किसानों की मदद करना।
  • किसान विकास पत्र का यह अर्थ नहीं की इसमें केवल किसान ही निवेश कर सकते हैं बल्कि इसका अर्थ यह है कि इस योजना से जो धन इकट्ठा होगा सरकार उसका प्रयोग किसानों के हित में ही करेगी। 
  • KVP में निवेश की न्यूनतम सीमा ₹100 है अधिकतम की कोई सीमा नहीं है। KVP में ट्रस्ट, कम्पनी, व्यावसायिक ईकाई, NRI निवेश नहीं कर सकते हैं।
  • KVP में निवेशित राशि समय से पहले भी निकाला जा सकता है। यह सुविधा निवेश के ढाई वर्ष बाद कटौती पर उपलब्ध होती है।
  • सकरार ने 01.12.2011 से इस योजना को बंद कर दिया है। 

सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) (Public Provident Fund).

  • PPF सरकार की एक ऐसी बचत योजना है जिसमें कोई भी व्यक्ति (सरकारी अथवा गैर-सरकारी नौकरी करने वाले या अन्य व्यक्ति ) निवेश कर सकता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को वृद्धावस्था आय सुरक्षा प्रदान करना है।
  • PPF खाते डाकघरों द्वारा संचालित होते हैं जिसमें 15 वर्ष तक प्रतिवर्ष निश्चित धनराशि (न्यूनतम ₹1000 अधिकतम ₹100000 ) जमा करना पड़ता है। यह राशि एकमुश्त या किश्तों में जमा किया जाता है। इस खाते में जमा राशि पर 8.70% (संशोधित होता रहता हैं) वार्षिक दर से चक्रवृद्धि ब्याज दिया जाता है।
  • PPF खाते में से 15 वर्ष से पहले धन नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन आकस्मिक समय में एक सीमा तक धन को निकाला जा सकता है परन्तु यह सुविधा सातवें वर्ष से प्राप्त होती है।
  • PPF खाते को एक डाकघर से दूसरे डाकघर में हस्तांतरित करवाया जा सकता है।

मासिक आय योजना (MIS) (Monthly Income Scheme)

  • यह योजना डाक विभाग के माध्यम से संचालित होता है। इस योजना के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति निश्चित धनराशि जमा करके निर्धारित अवधि तक प्रतिमाह ब्याज प्राप्त कर सकता है तथा जमा राशि की परिपक्वता (Maturity) पूर्ण होने पर मूलधन प्राप्त कर सकता है।
  • इस खाते की परिपक्वता अवधि 5 वर्ष है। यदि आज कोई व्यक्ति खाते में धनराशि जमा करता है तो 5 वर्ष तक प्रतिमाह ब्याज मिलते रहेगा और पाँच वर्ष बाद मूलधन वापस हो जाएगा। जिनका खाता 08.12.2008 से 30.11.2011 के बीच खुला है उसे परिपक्वता पूरा होने पर मूलधन का 5% बोनस भी प्राप्त होगा ।
  • MIS में संयुक्त (Joint) तथा एकल (Single) दोनों प्रकार के खाते खुलते हैं। एकल खाते में न्यूनतम ₹6000 अधिकतम ₹ 4,50.000 जमा किया जा सकता है। संयुक्त खाते में न्यूनतम ₹6000 तथा अधिकतम ₹9 लाख जमा किया जा सकता है।
  • MIS खाते को 1 वर्ष बाद कभी भी बंद किया जा सकता है। लेकिन इस पर कुछ कटौती देनी होती है।
  • MIS खाते को एक डाकघर से दूसरे डाकघर में हस्तांतरित करवाया जा सकता है।

बीमा (Insurance)

  • मानव जीवन व मानव की सम्पत्ति की क्षति से होने वाले हानि को कम अथवा समाप्त करने का एक ही माध्यम है, जिसे बीमा कहते हैं।
  • बीमा एक ऐसा अनुबंध (Contract) है जिसमें बीमा कम्पनी एक निश्चित शुल्क लेकर बीमाधारी (Insured ) का जोखिम का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लेता है।
  • बीमा कम्पनी जोखिम वहन करने हेतु जो शुल्क लेती है उसे Premium कहते हैं तथा जितनी राशि की बीमा कराया जाता है उसे Sum Assured कहते हैं। वह contract list जिस पर बीमा समझौता की शर्तें लिखी जाती है उसे Policy कहते हैं।
  • बीमा के प्रकार (Types of Insurance) 
    • बीमा मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं जीवन बीमा (Life Insurance ) तथा सामान्य बीमा ( Genral Insurance)। लेकिन आज ऐसा कोई भी जोखिम नहीं है, जिसका बीमा न हो सके। वर्त्तमान समय कालाकार अपनी अंगुलियों का, गायिका अपने मधुर स्वर का, नर्तकी अपने पैरों का, अभिनेत्री अपने सौंदर्य का भी बीमा करा सकती है।
      1. जीवन बीमा (Life Insurance)
        • यह बीमा व्यवसाय सर्वाधिक प्रचलित है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का बीमा करा सकता है ताकि व्यक्ति के जीवन की क्षति होने पर, उसके परिवार का जोखिम कम हो सके।
        • जीवन बीमा में सुरक्षा तथा विनियोग दोनों तत्व निहित होते हैं। यदि पॉलिसी की अवधि समाप्त होने से पहले ही बीमाधारी की मृत्यु हो जाये तो बीमित राशि बोनस रहित परिवार को मिल जाती है, यह सुरक्षा तत्व है और इस अवधि में मृत्यु न हो तो बीमाधारी को ही बीमित राशि बोनस रहित प्राप्त हो जाती है, यह विनियोग तत्व है।
      2. सामान्य बीमा (General Insurance)- जीवन बीमा के अतिरिक्त अन्य सभी बीमा सामान्य बीमा के अंतर्गत आते हैं। सामान्य बीमा निम्न प्रकार के हो सकते हैं-
        1. स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance)- अगर कोई व्यक्ति बिमार पड़ जाये और बिमारी के इलाज पर उसे खर्च करना पड़े तो बीमा कम्पनी से मुक्ति दिला सकता है। यह सुविधा प्राप्त करने हेतु स्वास्थ्य बीमा करवाना पड़ता है।
          • स्वास्थ्य बीमा 'के अंतर्गत बीमा कम्पनी व्यक्ति को प्रीमियम के बदले, किसी विशेष बिमारी में होने वाले खर्चे को, विशेष सीमा तक पूरा करने का वचन देती है ।
        2. मोटर बीमा (Motor Insurance)-
          • यह बीमा वाहन मालिक को अपने वाहन की क्षति के प्रति सुरक्षा देता है तथा वाहन को चलाने से तृतीय पक्ष को हुए नुकसान / क्षति का जोखिम वहन करता है ।
          • मोटर बीमा कराना अनिवार्य होता है क्योंकि तीसरे पक्ष को हुए नुकसान / क्षति के लिए वाहन का मालिक कानूनन जवाबदेह होता है।
      3. अग्नि बीमा (Fire Insurance ) - इसके अंतर्गत बीमा कम्पनी बीमाधारी को निश्चित प्रीमियम बदले यह अश्वासन देती है कि यदि उसकी संपत्ति को अग्नि से क्षति होती है तो वह बीमे के राशि तक क्षति को पूरा करेगी।
      4. चोरी बीमा (Theft Insurance ) - यह बीमा बीमाधारी को संपत्ति की चोरी से होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करता है । बीमा कम्पनी बीमित राशि तक संपत्ति की चोरी से होने वाली क्षति को पूरा करने का वचन देती है ।
        • यह बीमा अनुबंध प्राय: एक वर्ष के अवधि के लिए होता है ।
      5. सामुद्रीक बीमा (Marine Insurance ) - विदेशी व्यापार समुद्र मार्ग से किया जाता है। समुद्र के अंदर, जहाज और माल दोनों असुरक्षित होते हैं। जहाज और माल अथवा कर्मचारी को हुए हानि से समुद्रीक बीमा सुरक्षा प्रदान करता है।
      6. विश्वस्तता बीमा (Fidelity Insurance )- यह बीमा अनुबंध बीमा कम्पनी एवं किसी नियोक्ता (Employer) के मध्य होता है। इसके अंतर्गत बीमा कम्पनी नियोक्ता को उसके कर्मचारी के द्वारा किए जाने वाले कपट, बेईमानी तथा गबन से होने वाले क्षतिपूर्ति की गारंटी देता है।
        • जिस कर्मचारी अथवा कर्मचारी के लिए यह बीमा करवाया जाता है उसकी सेवा शर्तों में परिवर्तन बीमा कम्पनी के विचार-विमर्श किए बिना नहीं किया जा सकता है।
    • सामान्य बीमा में केवल सुरक्षा तत्व ही विद्यमान होते हैं। बीमा कम्पनी केवल वास्तविक हानि का क्षतिपूर्ति करता है, इनसे किसी प्रकार का लाभ नहीं कमाया जा सकता है।

इंश्योरेंस एवं एश्योरेंस में अंतर (Difference between Insurance and Assurance)

  • Assurance - एश्योरेंस शब्द का प्रयोग जीवन बीमा के लिए किया जाता है। जीवन बीमा शब्द का अर्थ है कि बीमाधारी को बीमा कम्पनी से भुगतान अवश्य मिलेगा । अर्थात् एक निश्चित अवधि में बीमाधारी की मृत्यु होने पर भी और उस अवधि तक उसके जीवित रहने पर भी । LIC का प्रसिद्ध टैग लाइन "जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी " इसी Assurance शब्द की पुष्टि करता है।
    • एक व्यक्ति अपने जीवन पर दो या अधिक पॉलिसी ले सकता है। निश्चित समय बाद उसकी मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी अथवा निश्चित समय बाद स्वयं उसे प्रत्येक पॉलिसी से राशि प्राप्त करने का अधिकार होता है।
  • Insurance इस शब्द का प्रयोग सामान्य बीमा ( अग्नि बीमा, स्वास्थ्य बीमा आदि) के लिए किया जाता है। यहां इस शब्द का अर्थ है कि बीमाधारी को बीमा कम्पनी केवल क्षति के दशा में ही भुगतान करेगा अगर क्षति नहीं होती है तो बीमा कम्पनी कोई भुगतान नहीं करेगा।
    • कोई व्यक्ति अपने संपत्ति एक से अधिक बीमा कम्पनी से बीमा करवाता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि क्षति होने पर सभी कम्पनी हानि को अलग-अलग पूरा करेगी बल्कि क्षति का भुगतान सभी कम्पनी मिलकर एक निश्चित अनुपात में करेगा ।
    • संपत्ति के होने वाले क्षति का बीमा करा लेने से संपत्ति के प्रति व्यक्ति का कर्त्तव्य कम नहीं होता है। एक व्यक्ति अगर गोदाम की बीमा करा लिया है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि गोदाम आग लग जाने पर व्यक्ति खड़ा खड़ा तमाशा देखता रहेगा और सोचेगा की गोदाम का बिमा तो करवाया हुआ है। बीमा कम्पनी सबसे पहले देखेगा कि व्यक्ति आग बुझाने का सभी संभावित प्रयास किया है कि नहीं अगर ऐसा नहीं हुआ तो बीमा कम्पनी क्षति के भुगतान से मनाकर सकता है।

भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India or IRDAI)

  • IRDA की स्थापना मल्होत्रा समिति के सिफारिशों के आधार पर वर्ष 2000 में हुई। भारत सरकार द्वारा पारित अधिनियम के तहत् IRDA की स्थापना हुई है। IRDA का मुख्यालय हैदराबाद में है ।
  • IRDA की स्थापना एक सवायत्त संस्था के रूप में किया गया है, इसके लिए 1 अध्यक्ष 5 पूर्णकालीन सदस्य तथा 4 अंशकालिक सदस्य की व्यवस्था की गई है। इन सभी की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा किया जाता है।
  • IRDA के प्रमुख कार्य-
    1. बीमा कंपनियों का पंजीयन करना तथा उस पर नियंत्रण बनाये रखना ।
    2. पॉलिसी धारक के हितों की रक्षा करना ।
    3. प्रीमियम का दरें तथा शर्तों पर निगरानी रखना ।
    4. बीमा के क्षेत्र में व्यावसायिक संगठनों का बढ़ावा देना ।
    5. बीमा कम्पनी की वित्तीय स्थिति तथा उसके द्वारा किये जाने वाले निवेश का मापदंड तैयार करना ।

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) (Life Insurance Corporation of India)

  • 19 जनवरी 1956 को भारत में कार्य कर रहे लगभग 245 भारतीय एवं विदेशी बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया । 1 सितबंर 1956 को सभी राष्ट्रीयकृत बीमा कंपनियों को मिलाकर " भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) " की स्थापना किया गया तथा 1956 में बीमा क्षेत्र में निजी कम्पनियों के खुलने पर रोक लगा दिया गया।
  • 1956 में बीमा कम्पनी का राष्ट्रीयकरण करने के दो मुख्य उद्देश्य थे-
    1. बेहतर जिंदगी जिने हेतु लोगों के बीच बीमा का प्रचार-प्रसार करना ।
    2. प्रीमियम के माध्यम से इकट्ठा हुए पूंजी का उपयोग राष्ट्र निमाण हेतु किया जा सके।
  • 1993 में गठित मल्होत्रा समिति के सिफारिश पर बीमा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भारतीय एवं विदेशी कंपनियों के खुलने पर लगी रोक को हटा दिया गया है।

साधारण बीमा निगम (GIC) (General Insurance Corporation)

  • भारत सरकार ने अधिनियम पारित कर साधारण बीमा क्षेत्र में कार्य कर रहे लगभग 107 भारतीय एवं विदेशी बीमा कम्पनी का 1972 में राष्ट्रीयकरण कर दिया।
  • इन सभी राष्ट्रीयकृत कम्पनी को मिलाकर कंपनी अधिनियम 1956 के तहत 22 नवंबर 1972 को 'भारतीय साधारण बिमा निगम' (GIC) की स्थापना की।
  • 1 जनवरी 1973 को GIC अपने चार धारक कम्पनी के साथ कार्य करना शुरू किया । GIC के चार धारक कम्पनी-
    1. नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
    2. दि न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
    3. दि ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
    4. यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
  • वर्तमान समय GIC में दो परिवर्तन आ गये हैं-
    1. नवंबर 2000 में GIC को भारतीय पुन बीमाकर्ता के रूप में अधिसूचित कर दिया गया है। GIC का नया नाम GIC Re. कर दिया गया है।
    2. मार्च 2000 में GIC के चारों धारक कम्पनी को स्वतंत्र कर दिया गया। अब ये चारों कम्पनियाँ सीधे भारत सरकार के स्वामित्व के अधीन आ गये हैं।

एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कम्पनी (AIC) (Agriculture Insurance Company of India Limited)

  • कृषि बीमा को बढ़ावा देने हेतु AIC की स्थापना 20 दिसंबर 2002 को कंपनी अधिनियम 1956 के तहत किया गया।
  • यह 1 अप्रैल 2003 को कार्य करना शुरू किया।
  • 1999 में प्रारंभ की गई " राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना" तथा जनवरी 2016 में प्रारंभ की गई " प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना" का संचालन AIC के द्वारा ही किया जा रहा है।

पुनर्बीमा एवं दोहरा बीमा (Re. Insurance and Double Insurance )

  • पुनर्बीमा जब एक बीमा कम्पनी किसी दूसरी बीमा कम्पनी को अपना जोखिम हस्तांतरित करने के उद्देश्य से बीमा करवाती है तो इसे पुनर्बीमा कहते हैं। यह बीमा अनुबंध दो कम्पनियों के बीच होता है । पुनर्बीमा से मूल बीमाधारी की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता । उसका संबंध तो केवल उसी कम्पनी से रहता है जिसका बीमा पत्र उसके पास है।
  • दोहरा बीमा (Double Insurance ) - जब एक ही संपत्ति अथवा व्यक्ति अपने जीवन का दो बार बीमा करवाता है तो उसे दोहरा बीमा कहते हैं। जीवन को दो बीमा करवाने से व्यक्ति लाभ प्राप्त कर सकता है परंतु संपत्ति का दोहरा बीमा करवाने से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है।

बीमा कानून (संशोधन) अधिनियम 2015

  • अधिनियम के प्रमुख प्रावधान-
    1. इस अधिनियम के तहत् बीमा अधिनियम 1938, साधारण बिमा अधिनियम 1972, तथा IRDA अधिनियम 1999 में व्यापक संशोधन किए गए है। 
    2. बिमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 26% से बढ़ाकर 49% कर दिया गया है।
    3. जीवन बिमा परिषद् तथा साधारण बिमा परिषद की स्थापना की गई है।
    4. IRDA से बिना पंजीकरण कराये पॉलिसी बेचने पर 10 वर्षों तक कारावास ।
    5. नियमों का उल्लंघन करने पर बीमा ऐंजटों या बीमा कम्पनी पर ₹1 करोड़ से ₹25 करोड़ तक जुर्माना का प्रावधान किया गया है।
    6. पॉलिसी धारक के हित में उस अवधि को 3 वर्ष तक सीमित कर दिया जाएगा जिसमें पॉलिसी को गलत विवरण आदि के आधार पर खारिज कर दिया गया है।

वित्त बाजार

Objective

1. निम्नलिखित में से कौन-सी कम्पनी एक शेयर बाजार की क्रियाओं के नियन्त्रण से सम्बन्धित है ?
(A) सेल
(B) सेबी
(C) सिडबी
(D) स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया
2. संवेदी सूचकांक (Sensex) में चढ़ाव का तात्पर्य है
(A) बम्बई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत सभी कम्पनियों के शेयरों के मूल्य में चढ़ाव
(B) राष्ट्रीय शेयर बाजार के साथ पंजीकृत सभी कम्पनियों के शेयरों के मूल्य में चढ़ाव
(C) बम्बई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत एक कम्पनी समूह के शेयरों के मूल्य में समग्र चढ़ाव
(D) बम्बई शेयर बाजार के साथ पंजीकृत एक कम्पनी समूह से सम्बन्धित सभी कम्पनियों के शेयरों के मूल्य में चढ़ाव
3. निम्नलिखित पर विचार कीजिए
1. बाजार ऋणादान (Market Borrowing)
2. ट्रेजनी बिल्स (Treasury Bill)
3. भारतीय रिजर्व बैंक को निर्गमित विशेष प्रतिभूतियाँ (Special Securities Issued to RBI)
इनमें से कौन-से आन्तरिक ऋण (Internal Debt ) का/के घटक हैं/हैं?
(A) केवल ।
(B) 1 और 2
(C) केवल 2
(D) ये सभी
4. विघटित UTI - II से प्रबन्धन में निम्नलिखित में से कौन-सी संस्था सम्मिलित नहीं है ? 
(A) भारतीय स्टेट बैंक
(B) बैंक ऑफ इंडिया
(C) सामान्य जीवन बीमा निगम 
(D) जीवन बीमा निगम (LIC)
5. सेबी (SEBI) के कार्यों में सम्मिलित है
(A) स्टॉक एक्सचेंजों के कार्यों को विनियमित करना
(B) शेयर बाजारों से सम्बन्धित अनुचित एवं धोखाधड़ी से परिपूर्ण व्यापारिक कार्यों पर रोक लगाना
(C) प्रतिभूतियों के अन्तरंग व्यापार (Inside Trading) को नियन्त्रित करना
(D) उपरोक्त सभी
6. गिल्ट आधारित बाजार के मायने क्या हैं?
(A) सर्राफा बाजार
(B) सरकारी प्रतिभूतियों का बाजार
(C) शस्त्र बाजार
(D) धातु बाजार
7. 'गिल्ट - एज्ड' में बिपणु सम्बन्धित है।
(A) धातुओं के व्यापार से
(B) ऋणपत्रों के व्यापार से
(C) सरकारी प्रतिभूतियों के व्यापार से
(D) शस्त्रों के व्यापार
8. इन्साइड ट्रेडिंग सम्बन्धित है
(A) शेयर बाजार से
(B) घुड़दौड़ से
(C) करारोपण से
(D) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से
9. पूँजी बाजार से आशय है
(A) शेयर बाजार से
(B) वस्तु बाजार से
(C) मुद्रा बाजार से
(D) उपरोक्त सभी
10. वित्तीय निवेशों के विशिष्ट व्यवहार में, मन्दड़िया (Bear) शब्द किसका द्योतक है?
(A) उस निवेशक का, जो यह महसूस करता है कि अमुक प्रतिभूति की कीमत गिरने वाली है.
(B) उस निवेशक का, जो यह महसूस करता है कि अमुक शेयरों की कीमत बढ़ने वाली है
(C) उस शेयरधारक या बॉण्डधारक का, जिसकी किसी वित्तीय अन्यथा, कम्पनी में हिस्सेदारी
(D) उस उधारदाता का, जो कर्ज देता है या बॉण्ड खरीदता है
11. इरडा (IRDA) नियमन करती है
(A) बैंकिंग कम्पनियों का 
(B) बीमा कम्पनियों का
(C) फुटकर व्यापार का
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. स्थापना वर्ष के अनुसार निम्न को बढ़ते हुए क्रम में व्यवस्थित करें
1. एलआईसी
2. आईडीबीआई
3. सेबी
4. यूटीआई
सही उत्तर नीचे लिखे कूट से दें
(A) 1, 2, 4, 3
(B) 2, 1, 3, 4
(C) 1, 2, 3, 4
(D) 1, 3, 4, 2
13. वर्ष 2000-01 के दौरान भारत के निम्नलिखित प्रमुख शेयर बाजारों में सर्वाधिक कारोबार करने वाला बाजार है
(A) बम्बई शेयर बाजार
(B) कलकत्ता शेयर बाजार
(C) दिल्ली शेयर बाजार
(D) राष्ट्रीय शेयर बाजार
14. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. सेंसेक्स, बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में उपलब्ध 50 अधिकतम महत्त्वपूर्ण स्टॉकों पर आधारित होता है।
2. सेंसेक्स के परिकलन के लिए सभी सेंसेक्स स्टॉकों को - आनुपातिक भारिता दी जाती है। 
3. न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज विश्व की सबसे पुरानी स्टॉक एक्सचेंज
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(A) केवल 2
(B) 1 और 3
(C) 2 और 3
(D) इनमें से कोई नहीं
15. पूँजी बाजार, मुद्रा बाजार से किस सन्दर्भ में भिन्न है ?
(A) पूँजी बाजार केवल एक राज्य में कार्य करता है जबकि मुद्रा बाजार कई राज्यों में
(B) पूँजी बाजार दीर्घावधि वित्त आधार के लिए है, जबकि मुद्रा बाजार लघु अवधि के लिए
(C) पूँजी बाजार मुद्रा बाजार के मुकाबले विकासशील राष्ट्रों में अधिक व्यवहार में है
(D) पूँजी बाजार पूँजीवादी राष्ट्रों का ही पहचान चिह है
16. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक सही सुमेलित नहीं है ? 
(A) जापान : निक्की
(B) सिंगापुर : शॅकाम्प
(C) यू के : एफ टी एस ई
(D) यू एस ए : नास्दाक
17. निक्की क्या है ?
(A) जापान का विदेशी विनिमय बाजार
(B) देश के योजना आयोग का जापानी नाम
(C) जापान के केन्द्रीय बैंक का नाम
(D) टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज में अंश मूल्य सूचकांक
18. भारतीय यूनिट ट्रस्ट का उद्देश्य है
(A) अपनी आय का लाभ लघु विनियोजकों को प्रदान करना 
(B) धन को इस प्रकार विनियोजित करना जिससे औद्योगिक विकास का संवर्धन हो
(C) लोगों की बचत को एकत्र करना
(D) उपरोक्त सभी
19. सरकार ने बीमा व्यवसाय के नियमन के लिए गठन किया है 
(A) सेबी को
(B) भारतीय रिजर्व बैंक को
(C) इन्श्योरेंस नियमन एवं विकास प्राधिकरण को 
(D) साधारण बीमा निगम को
20. रिसर्जेन्ट इण्डिया. बॉण्ड ( Resurgent India Bond) जारी किए गए थे। यूएस डॉलर में पाउण्ड स्टलिंग में और
(A) जापानी येन में
(B) जर्मन मार्क में
(C) यूरो में
(D) फ्रांसीसी फ्रैंक में
21. 'एक्चुअरीज' शब्द सम्बन्धित है
(A) बैंकिंग से
(B) बीमा से
(C) शेयर बाजार से
(D) इनमें से कोई नहीं
22. बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने पर्यावरण अनुकूल इक्विटी सूचकांक भी जारी करना शुरू किया है जिसे क्या नाम दिया गया है? 
(A) ग्रीनंक्स 
(B) डॉलेक्स 
(C) राष्ट्रीय ग्रीन इण्डेक्स 
(D) मंगलौर ग्रीन इण्डेक्स 
23. BOLT-BSE Online Trading की शुरुआत वर्ष क्या थी? 
(A) 1980 
(B) 1990
(C) 1995
(D) 2000
24. वायदा बाजार आयोग का विलय किसके साथ हुआ? 
(A) भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड
(B) भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण
(C) भारतीय औद्योगिक प्राधिकरण
(D) वित्त कम्पनी विकास प्राधिकरण
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Mon, 08 Apr 2024 08:48:22 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | बैंकिग एवं मौद्रिक नीति https://m.jaankarirakho.com/945 https://m.jaankarirakho.com/945 General Competition | Economics & Economy | बैंकिग एवं मौद्रिक नीति
  • बैकिंग, वर्तमान समय में किसी भी देश के आर्थिक विकास का आधारशिला है। बैंक (Bank) शब्द का प्रारंभ कब से हुआ यह एक रहस्यमय विषय है।
  • पुराने समय इटली के व्यापारी जो पैसों का लेन-देन कारोबार करता था उसे Banchi अथवा Bancheri कहा जाता था, माना जाता है कि Banchi शब्द से है बैंक (Bank) शब्द की उत्पत्ति हुई ।
  • बैंक वह वित्तीय संस्था है जो लोगों के रूपये का अपने पास जमा के रूप में स्वीकार करती है और उनको उपभोग अथवा निवेश के लिए उधार देती है।
  • भारतीय बैकिंग कंपनी एक्ट में बैकिंग को निम्न रूप से परिभाषित किया गया है-
    "बैंकिंग कम्पनी वह है जो बैंकिंग का कार्य करती है। बैंकिंग कार्य का अर्थ है, उधार देने अथवा निवेश हेतु जनता से जमा हेतु मुद्रा स्वीकार करना तथा जनता द्वारा भुगतान माँगने पर चेक, ड्राफ्ट या अन्य प्रकार से भुगतान करना । "

बैंकों के प्रकार (Types of Banks)

1. वाणिज्यिक बैंक (Commercial Bank)
  • यह बैंक मुख्य रूप से जनता का जमा स्वीकार करके उत्पादकों या व्यापारियों को अल्पकालीन व मध्यकालीन ऋण देती है।
  • यह बैंक अपने ग्राहकों के लिए कई प्रकार के ऐंजसी का कार्य भी करते हैं। जैसे - रूपया भेजना, शेयर की खरीद-बिक्री, बीमा किस्त जमा करना आदि। 
  • यह बैंक प्राय: जनता के जमा राशि पर कम ब्याज देती है तथा ऋणों पर अधिक ब्याज लेती है।
  • भारत में दो प्रकार क वाणिज्यिक बैंक कार्य कर रहे हैं--
    1. विदेशी वाणिज्यिक बैंक (Foreign Commercial Banks)
      • ऐसे बैंक जिसकी उत्पत्ति विदेशों में हुई, उसका मुख्यालय अन्य देश में है लेकिन उनकी शाखाएं भारत में स्थित है विदेशी वाणिज्यिक बैंक कहलाते हैं।
      • विदेशी वाणिज्यिक बैंक, विदेशी विनिमय (Foreign Exchang) का भी काम करते हैं ।
      • भारत में स्थित प्रमुख विदेशी वाणिज्यिक बैंक-
        1. Standard Charterad Bank मुख्यालय- लंदन (ग्रेट ब्रिटेन)
        2. Citi Bank मुख्यालय- न्यूयार्क (यू.एस.ए.)
        3. HSBC Bank मुख्यालय- लंदन (ग्रेट ब्रिटेन)
        4. Berclays Bank मुख्यालय- लंदन (ग्रेट ब्रिटेन)
        5. Bank of America मुख्यालय - Charlotte (USA)
        6. DBS Bank मुख्यालय- सिंगापुर
    2. भारतीय वाणिज्यिक बैंक (Indian Commercial Banks)
      • जिन बैंक की स्थापना भारत में हुई उसे भारतीय वाणिज्यिक बैंक कहते हैं। यह बैंक दो तरह के हो सकते हैं।
  1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (Public Sectors Bank)
    • इन बैंकों का कम से कम 51% स्वामित्व सरकार के पास होता है। सार्वजनिक क्षेत्रों की बैंकों की संख्या पहले 21 थी। 21 सार्वजनिक बैंक में IDBI Bank Ltd. तथा SBI शामिल है।
    • हाल में केन्द्र सरकार ने देश की जीडीपी में वृद्धि तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन बनाने हेतु 10 सरकारी बैंकों का आपस में विलय कर दिया है, इसके पश्चात् भारत में सार्वजनिक या सरकारी बैंकों की संख्या मात्र 12 (IDBI Bank Ltd. को छोड़कर) रह गयी है।
    • विलय होने वाला बैंक-
      • पंजाब नैशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय हो गया है।
      • कैनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक का आपस में विलय हुआ है।
      • यूनियन बैंक आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का आपस में विलय हुआ है।
      • इंडियन बैंक, इलाहाबाद बैंक का विलय हुआ है।
    • सार्वजनिक बैंक -
      1. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, मुख्यालय - मुंबई, स्थापना- 1 जुलाई, 1955
      2. पंजाब नेशनल बैंक मुख्यालय- नई दिल्ली, स्थापना- 1894
      3. बैंक ऑफ बड़ौदा, मुख्यालय - बरोदड़ा (गुजरात), स्थापना- 20 जुलाई, 1908 
      4. केनरा बैंक, मुख्यालय - बेंगलुरू, स्थापना- 1906
      5. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, मुख्यालय - मुंबई, स्थापना- 11 नवंबर, 1919
      6. बैंक ऑफ इंडिया, मुख्यालय - मुंबई, स्थापना- 7 सितम्बर, 1906
      7. इंडियन बैंक, मुख्यालय- चेन्नई, स्थापना- 15 अगस्त, 1907
      8. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, मुख्यालय- मुंबई, स्थापना- 21 दिसंबर, 1911
      9. इंडियन ओवरसीज बैंक, मुख्यालय- चेन्नई, स्थापना- 10 फरवरी, 1937
      10. यूको बैंक, मुख्यालय- कोलकाता, स्थापना- 6 जनवरी, 1943
      11. बैंक ऑफ महाराष्ट्र, मुख्यालय- पूणे, स्थापना- 1935
      12. पंजाब एंड सिंध बैंक, मुख्यालय- नई दिल्ली, स्थापना- 24 जून, 1908
    • भारतीयों द्वारा स्थापित प्रथम भारतीय बैंक अवध कॉमर्शियल बैंक था जिसकी स्थापना 1881 में हुई थी।
    • पूर्ण रूप से भारतीयों द्वारा भारतीयों के पैसों से स्थापित भारत का पहला बैंक पंजाब नेशनल बैंक था जिसकी स्थापना 1894 में हुई थी।
    • भारत में 19 जुलाई, 1969 को 14 बड़े व्यावसायिक बैंकों तथा 15 अप्रैल, 1980 को छ: बड़े व्यावसायिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
  2. निजी क्षेत्र के बैंक ( Private Sectors Bank)
    • निजी क्षेत्र के बैंक वे बैंक हैं जिनपर निजी क्षेत्र या व्यक्तियों का स्वामित्व होता है।
    • इन बैंकों पर किसी व्यक्ति का उतना ही नियंत्रण होता है जितने उसके पास शेयर होते हैं।
      • प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंक-
        1. Axis Bank
        2. Indusland Bank
        3. HDFC Bank
        4. Bandhan Bank
        5. Kotak Mahindra Bank
        6. Yes Bank 
        7. ICICI Bank
        8. Federal Bank
        9. DCB Bank
        10. RBL Bank 

व्यापारिक बैंक के कार्य (Functions of Commercial Bank)

  • व्यापारिक बैंक के कार्य को तीन भागों में बांटा जाता है। 1. प्राथमिक कार्य, 2. गौण कार्य तथा 3. इलेक्ट्रॉनिक बैकिंग कार्य सेवाए।
  • व्यापारिक बैंक के दो प्राथमिक कार्य हैं जमा स्वीकार करना तथा ऋण देना ।
  • व्यापारिक बैंक जनता के धन को जमा स्वीकार करता है। बैंक जमा करने हेतु कई प्रकार के खाता (Account) होते हैं। बैंक में निम्न प्रकार के खाते होते हैं-
  1. सावधि जमा खाता (Fixed Deposite Account)
    • इस खातों में एक निश्चित अवधि के लिए रुपया जमा किया जाता है। यदि जमाकर्त्ता को अपनी रकम की आवश्यकता, अवधि पूर्ण होने से पहले पड़ जाती है तो कुछ कटौती या ब्याज काट कर बैंक उस रकम को लौटा देता है।
    • इस खाते के जमा पर बैंक अधिक ब्याज देती है प्रायः जमा की अवधि जितनी लम्बी होती है ब्याज उतना अधिक होता है।
    • इस खाते में जमा रकम को बैंक की सावधि देनदारी (Time Liability) कहते हैं ।
  2. चालू जमा खाता (Current Deposite Account)
    • इस खातों में जमाकर्त्ता जितनी बार चाहे रुपया जमा कर सकता है और कभी भी रुपया निकाल सकता है।
    • यह खाता सामान्यतः व्यापारी वर्ग रखते हैं तथा रुपया प्रायः चेक द्वारा निकलवाया जाता है। अमेरिका में इस खांता को चेक खाता कहा जाता है।
    • साधारणत: बैंक इस खातों के जमा पर ब्याज नहीं देता है और यदि जमा रकम न्यूनतम आवश्यक राशि से कम है तो बैंक कुछ सेवा चार्ज वसूल करती है।
  3. बचत जमा खाता (Saving Deposite Account )
    • यह खाता लोगों को छोटी-छोटी बचतों को प्रोत्साहन देने के लिए होता है।
    • इस खाते में जमा राशि पर बैंक बहुत कम ब्याज देती है।
    • इस खाते में जमा राशि को बैंक की माँग देनदारी कहा जाता है।
  4. आवर्ती जमा खाता (Recurring Deposite Account)
    • इस प्रकार के खाते में जमाकर्ता एक निश्चित समय के लिए प्रतिमास निश्चित रकम जमा करता है।
    • इस खातों में अन्य सभी खातों क तुलना में बैंक अधिक व्याज देती है।
    • इस खाते में जमा राशि की बैंक की काल देनदारी ( Time Liability) कहते हैं।
    • विभिन्न खातों में जमा राशि पर ब्याज दर का निर्धारण पहले RBI करता है परन्तु अब यह अधिकार व्यापारिक बैंक को दे दिया गया है। परन्तु ब्याज दर की ऊपरी सीमा का निर्धारण RBI ही करता है।
    • इस खाते में जमा राशि को बैंक की माँग देनदारी (Demand Liability) कहते हैं।
  • बैंक का दूसरा प्रमुख कार्य है लोगों को ऋण देना । ऋण देने हेतु बैंक जमानत की माँग करते हैं तथा ऋण की राशि जमानत से कम होती है। व्यापारिक बैंक निम्न प्रकार के ऋण देते हैं।
    1. नगद शाख (Cash Credit) -
      • इसमें बैंक निश्चित जमानत पर एक निश्चित राशि निकलवाने का अधिकार देता है। ऋणी इसी निश्चित सीमा के अंदर रकम निकालता है और जमा भी करता रहता है।
      • इस व्यवस्था में बैंक वास्तव में निकलवाई गई राशि पर ही प्याज होता है।
    2. अधिविकर्ष (Overdratt) - यह सुविधा चालू खाते वाले ग्राहक को बैंक देता है। जिसमें जमाकर्ता अपने जमा राशि से अधिक राशि निकाल सकता है।
      • बैंक यह सुविधा अल्पकाल के लिए अपने विश्वसनीय ग्राहक को ही देता है सभी चालू खातों वाले ग्राहकों को नहीं ।
    3. मांग ऋण (Demand Loan)-
      • यह ऋण हेतु बैंक अपने ग्राहकों का सावधि जमा, सरकारी प्रतिभूति, जीवन बीमा पत्र आदि जमानत के रूप में रखती है ।
      • इष ऋणों की मांग ऋण इसलिए कहा जाता है क्योंकि बैंक कभी भी इनकी मांग कर सकता है।
    4. अवधि ऋण (Term Loan)-
      • ये ऋण ग्राहकों को निश्चित समय के लिए मशीनरी, ट्रक, स्कूटर, मकान आदि खरीदने के लिए प्रदान करते हैं।
      • इसका भुगतान ग्राहक मासिक त्रैमासिक छ: माही अथवा वार्षिक किस्तों में करते हैं।
  • व्यापारिक बैंक धन जमा करने तथा ऋण देने के अलावे अपने ग्राहकों के एजेन्ट के रूप में भी कार्य करते हैं-
    1. बैंक अपने ग्राहकों की ओर से चैक, किराया, ज्याज इत्यादि एकत्रित करता है और उनकी ओर से करो, बीमा की किश्ते जमा करता है।
    2. ग्राहकों का पैसा बैंक एक जगह से दूसरे जगह भेजता है।
    3. बैंक अपने ग्राहकों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रतिभूति खरीदता, बेचता है और उसको सुरक्षित रखता है।
    4. बैंक अपने ग्राहकों के सम्पत्ति का ट्रस्टी तथा प्रबंधक का भी कार्य करता है।

बैंक ड्राफ्ट (Bank Draft)

  • बैंक ड्राफ्ट एक वित्तीय पूर्जा है जिसकी सहायता से धन एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है।
  • बैंक में धन जमा कर कोई भी ड्राफ्ट जारी करवा सकता है तथा ड्राफ्ट का प्राप्तकर्ता अपने स्थान पर जिस बैंक ब्रांच पर ड्राफ्ट लिखा गया है, को ड्राफ्ट प्रस्तुत करके धन एकत्रित कर सकता है।
  • बैंक प्राय: अन्य स्थानों पर अपनी ब्रांच पर ड्राफ्ट जारी करता है परन्तु बैंक किसी अन्य बैंक पर भी ड्राफ्ट जारी कर सकता है बशर्तें उस बैंक से पहले बैंक का समझौता हो ।
  • बैंक ड्राफ्ट जारी करने हेतु बैंक कुछ कमीशन लेता है। बैंक बिना कमीशन भी ड्राफ्ट जारी कर सकता है। यदि ग्राहक से बैंक का बहुत अच्छा संबंध हो ।

पे आर्डर या बैंकर्स चैक (Pay Order or Banker's Cheque)

  • पे आर्डर ऐसे बैंक ड्राफ्ट को कहा जाता है जिसका भुगतान उसी शहर में होता है जहाँ से इसे जारी किया गया है। पे आर्डर को स्थानीय बैंक ड्राफ्ट भी कहा जाता है।
  • व्यापारिक बैंक द्वारा दी जाने वाली प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग सेवाएँ-
  1. इलेक्ट्रॉनिक फण्ड हस्तांतरण (Electronic Fund Transfer or EFT)
    • इस पद्धति में इंटरनेट के इस्तेमाल से रुपया एक खाते से दूसरे खाते में हस्तांतरित किया जा सकता है।
    • EFT के द्वारा ग्राहक के खाते में सीधे वेतन, पेंशन, कमीशन की राशि जमा हो जाती है या उनके खाते से सीधे बिजली बिल, बीमा का किस्त, ऋण का किस्त को हस्तांतरित किया जा सकता है।
  2. स्वचालित टेलर मशीन (Automated Teller Machines or ATM)
    • ATM ऐसी स्वचालित मशीन है जिसमें प्लास्टिक कार्ड (डेबिट या क्रेडिट कार्ड) डालने तथा अपनी व्यक्तिगत पहचान संख्या (PIN) टाईप करके रुपया निकलवाया तथा जमा करवाया जा सकता है।
    • भारत के सभी ATM को जोड़ने वाला नेटवर्क को नेशनल फाइनेंशियल स्विच कहते हैं। इस ATM नेटवर्क का संचालन ‘“भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम" करता है।
    • ATM के प्रकार-
      1. बैंक का ATM - इस ATM का स्वामित्व बैंक के पास होता है और उसका संचालन भी बैंक स्वयं करते हैं। ऐसे ATM में बैंक अपना LOGO लगाते हैं।
      2. ब्राउन लेबल ATM- इस प्रकार के ATM में नगद की व्यवस्था तथा इंटरनेट सर्वर की व्यवस्था बैंक स्वयं करते हैं तथा शेष काम तीसरे पक्ष द्वारा करवाई जाती है । इस ATM पर भी बैंक अपना लोगों (LOGO) लगाते हैं।
      3. व्हाइट लेबल ATM - गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनी द्वारा संचालित ATM को व्हाइट लेबल ATM कहते हैं। इस पर किसी बैंक का लोगों नहीं लगा रहता है।
  3. 3. टेली बैंकिंग (Tele-Banking)
    • इस सुविधा के अंतर्गत बैंक का ग्राहक फोन पर किसी समय अपने खाते का शेष व कुछ अंतिम व्यवहारों की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  4. कोर बैंकिंग (Core Banking)
    • कोर बैंकिंग का पूरा नाम Core Banking Solution (CBS) या centralised Banking Solution (CBS) है।
    • इस पद्धति में ग्राहक एक विशेष ब्रांच में खाता खोल कर पूरे देश में उस बैंक की किसी भी ब्रांच में जाकर अपना बैंकिंग कार्य करवा सकता है।
    • इस पद्धति में ग्राहक ब्रांच का ग्राहक से बैंक का ग्राहक बन जाता है।
  5. राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फण्ड हस्तांतरण (National Electronic Fund Transer- NEFT)
    • इस पद्धति से व्यक्ति, फर्म या कम्पनी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से फण्ड एक बैंक ब्रांच से दूसरी बैंक ब्रांच में भेज सकता है।
    • NEFT में फण्ड को समूहों में निपटाया जाता है तथा निपटाने का काम एक विशेष समय पर किया जाता है।
    • RBI के निर्देशानुसार NEFT सोमवार से शुक्रवार तक प्रत्येक दिन 11 बार निपटाए जाते हैं। निपटान अवधि 9:00 AM से 2:00 निर्धारित की गई है।
    • शनिवार को NEFT व्यवहारों को दिन में 5 बार निपटाया जाता है इस निपटान का समय 9:00 AM से 1:00PM रहता है।
    • NEFT सुविधा के अंतर्गत हस्तांतरित किये जाने वाले धन की कोई न्यूनतम व अधिकतम सीमा नहीं है परंतु धन भेजने वाले ग्राहक का NEFT बैंक ब्रांच में खाता नहीं है तो नगदी क बदले उसके द्वारा हस्तांतरित किए जानेवाले धन की सीमा ₹50,000 है।
    • NEFT सुविधा द्वारा धन भेजने वालों को फीस के साथ सेवाकर देना पड़ता है परंतु धन प्राप्त करने वाले ग्राहक को फीस नहीं देना पड़ता है।
    • NEFT सुविधा द्वारा विदेशों में न तो धन भेजा जा सकता है न ही विदेशों से धन प्राप्त किया जा सकता है।
  6. रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (Real Time Gross Settlement or RTGS)
    • NEFT के तरह RTGS द्वारा भी फण्ड को एक बैंक ब्रांच से दूसरे बैंक ब्रांच में भेजा जाता है परन्तु RTGS पद्धति में फण्ड को समूहों में नहीं बल्कि एक-एक करके स्वतंत्र रूप से निपटाया जाता है।
    • RTGS धन हस्तांतरित करने वाली तीव्रतम पद्धति है परंतु RTGS की सुविधा केवल कोर बैंकिंग सोल्यूशन बैंक ब्रांच पर ही उपलब्ध हो सकती है।
    • RTGS व्यवहारों के लिए न्यूनतम राशि सीमा ₹2 लाख है जबकि अधिकतम राशि की कोई सीमा नहीं है।
    • RBI के निर्देशानुसार RTGS सेवा बैंकों में सोमवार से शुक्रवार 9 AM से 4.30 PM तक तथा शनिवार को 9 AM से 1.30PM तक उपलब्ध रहती है।

IFSC Code

  • इन्डिन फाइनेन्शियल सिस्टम कोड 11 अक्षरों का अल्फान्यूमेरिक कोड है जो NEFT, RTGS, ECS प्रणाली में प्रयोग लाया जाता है।
  • IFSC कोड में 11 अक्षर होता है जिसमें पहला चार वर्णमाला के अक्षर बैंकों के नाम को प्रदर्शित करते हैं तथा अन्तिम छह संख्या अक्षर बैंकों का शाखा प्रदर्शित करता है । पाँचवा अक्षर शून्य होता है जो भविष्य में प्रयोग के लिए आरक्षित होता है।

MICR Code

  • मैग्नेटिक इन्क कैरेक्टर रिक्रागनीशन प्रतीकों को पहचानने वाली टेक्नोलॉजी है जिसका प्रयोग बैंकिंग उद्योग में चेकों में किया जाता है।

SWIFT Code

  • स्विफ्ट (SWIFT - Society for World wide Interbank Financial Tele Communications) एक तरह का मैसेजिंग नेटवर्क है जिसका उपयोग वित्तीय संस्थान जानकारी को सुरक्षित रूप से भेजने के लिए किया करते हैं।
  • SWIFT कोड का उपयोग दो अंतरर्राष्ट्रीय बैंकों के बीच भुगतान के लिए किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार घरेलू ट्रांजेक्शन हेतु IFSC कोड का उपयोग किया जाता हैं ।
  • SWIFT भुगतान संदेश से जाता है, जिसके आधार पर संबंधित प्रतिष्ठान एक-दूसरे के खातों के माध्यम से आगे की कार्रवाई कर सकते हैं।
  • SWIFT केवल संदेशों को हस्तांतरित करता है न कि धनराशि का ।

व्यापारिक बैंक का वर्गीकरण (Classification of Commercial Bank)

  • देश के व्यापारिक बैंक संस्थानों को निम्नलिखित दो वर्ग में विभाजित किया जा सकता है-
    1. अनुसूचित बैंक (Scheduled Commerical Bank)
      • अनुसूचित बैंक वह बैंक है जिसका नाम रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की अनुसूची द्वितीय में शामिल है।
      • इस अनुसूची में उन्हीं बैंकों को शामिल किया जाता है जो निम्नलिखित शर्तें पूरी करती हैं-
        1. बैंक की प्रदत्त पूंजी और संचित कोष ₹5 लाख से कम न हो ।
        2. भारतीय रिजर्व बैंक को इस बात की संतुष्टि हो कि बैंक का कोई भी क्रियाकलाप जमाकर्ता के हित में हानिकारक नहीं होगा।
    2. गैर अनुसूचित बैंक (Non - Scheduled Commericial Bank)
      • जो बैंक RBI अधिनियम 1934 के अनुसूचि द्वितीय में शामिल नहीं है वह गैर अनुसूचित व्यापारिक बैंक कहलाते हैं।
      • इस तरह के बैंकों की संख्या में अब निरन्तर कमी आ रही है, अब इसकी संख्या नाम मात्र की है।

केन्द्रीय बैंक The Central Bank

  • केन्द्रीय बैंक देश का सर्वोच्च बैंक होता है तथा यह देश के संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करता है। यह बैंक देश के सभी प्रकार के नोट छापता है, सरकार के बैंक का कार्य करता है तथा देश के मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करता है।
  • भारत में रिवर्ज बैंक, इंग्लैण्ड में बैंक ऑफ इंग्लैंड और अमेरिका में फेडरल रिजर्व सिस्टम केन्द्रीय बैंक है।
  • विश्व का पहला केंद्रीय बैंक 1668 में स्वीडन में स्थापित हुआ था परन्तु वास्तव में केन्द्रीय बैंक का आरंभ सन् 169 इंगलैंड की स्थापना के बाद हुआ। 

भारतीय रिवर्ज बैंक (Reserve Bank of India)

  • रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की स्थापना RBI अधिनियम 1934 के तहत् 1 अप्रैल, 1935 को ₹5 करोड़ की अधिकृत पूँजी से हुई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद | जनवरी 1949 को रिवर्ज बैंक का राष्ट्रीयकरण किया गया।
  • रिजर्व बैंक का मुख्यालय मुम्बई में है तथा इनके चार स्थानीय बोर्ड है जिनके मुख्यालय मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई एवं नई दिल्ली में है ।
  • भारत में केन्द्रीय बैंक की स्थापना का प्रथम प्रयास 1914 में चैम्बरलीन कमीशन को जाता है। इनकी संस्तुति पर 1921 में इम्पीरियल बैंक की स्थापना हुई थी परन्तु यह एक व्यापारिक बैंक था जो केन्द्रीय बैंक कुछ ही कार्यों का संपन्न करता था ।
  • हिल्टन यंग आयोग महला आयोग था जिसने केन्द्रीय बैंक के रूप में रिवर्ज बैंक ऑफ इण्डिया नाम की संस्तुति की।
  • RBI के कार्यों का संपादन 20 सदस्यों का एक केन्द्रीय निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है। 20 सदस्यों में एक गर्वनर, चार उप- गर्वनर, 1. वित्त मंत्रालय द्वारा नियुक्त सकरारी अधिकारी 10 ऐसे निदेशक होते हैं जो भारत के आर्थिक मामलों के जानकार होते हैं तथा 4 निदेशक RBI के स्थानीय बोर्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • RBI के प्रत्येक स्थानीय बोर्ड में 5 सदस्य होते हैं जिनकी नियुक्ति केन्द्र सरकार 4 वर्षों के लिए करते हैं।

केन्द्रीय बैंक (RBI) तथा व्यापारिक बैंक में अंतर

  1. केन्द्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा करना होता है, जबकि व्यापारिक बैंक का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
  2. केंद्रीय बैंक जनता के साथ सीधा लेन-देन नहीं करता जबकि व्यापारिक बैंक जनता के साथ सीधा लेन-देन करता है ।
  3. केंद्रीय बैंक सरकारी संस्था होती है जबकि व्यापारिक बैंक सरकारी तथा गैर-सरकारी दोनों हो सकते हैं।
  4. केंद्रीय बैंक बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करते हैं जबकि व्यापारिक बैंक केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में कार्य करते हैं।
  5. केंद्रीय बैंक को नोट जारी करने का पूर्ण एकाधिकार होता है जबकि व्यापारिक बैंक नोट जारी नहीं कर सकते हैं।

RBI का कार्य Functions of Central Bank (RBI)

  1. नोट जारी करना
    • रिजर्व बैंक का मुख्य कार्य है नोट जारी करना इसके लिए RBI के पास एक अलग नोट जारी करने वाला विभाग है जिसका बैंकिंग कार्य कोई लेना-देना नहीं है।
    • 1956 तक RBI अनुपातिक कोष प्रणाली के तहत नोट जारी करता था जिसके अनुसार पत्र मुद्रा के कुल मूल्य का 40 प्रतिशत सोने या विदेशी प्रतिभूति रखना अनिवार्य था शेष 60 प्रतिशत सरकारी प्रतिभूति के रूप में रखना पड़ता था ।
    • 1956 से नोट जारी करने हेतु न्यूनतम आरक्षित प्रणाली अपनायी गई जिसके तहत् 515 करोड़ (115 करोड़ा का सोना + 400 करोड़ की विदेशी प्रतिभूति) का कोष रखना पड़ता था जिसे 31 अक्टूबर 1957 के बाद RBI एक्ट में संसाधन करके 515 करोड़ से घटाकर 200 करोड़ कर दिया गया ।
    • संसार के सभी केन्द्रीय बैंक ही नोट जारी करने का काम करते हैं परन्तु मानिटरी अथारिटी ऑफ सिंगापुर ऐसे केन्द्रीय बैंक हैं जो नोट जारी नहीं करता है।
    • निम्न कारणों से केवल केन्द्रीय बैंक ही नोट जारी करते हैं-
      1. केन्द्रीय बैंक को नोट जारी करने का अधिकार प्राप्त होने से मौद्रिक प्रणाली में समरूपता आती है।
      2. देश की जनता को मुद्रा पर विश्वास बना रहता है क्योंकि केन्द्रीय बैंक को सरकार का संरक्षण प्राप्त रहता है।
      3. मुद्रा की आपूर्ति पर एक केन्द्रीय नियंत्रण संभव हो जाता है।
      4. नोट जारी करना एक लाभदायक व्यवसाय है। नोट जारी करने का कार्य केन्द्रीय बैंक के नियंत्रण में होने के कारण इससे प्राप्त लाभ को सरकारी कोष में जमा कराया जा सकता है।
    • भारत के प्रमुख छापेखाने (Printing Press)
      1. इण्डिया सिक्योरिटी प्रेस, नासिक (महाराष्ट्र )
        • इस प्रेस में डाक संबंधी लेखन सामग्री (जैसे- डाक टिकट, स्टांम पेपर), बैंकों का चेक, बॉण्ड आदि की छपाई होती है। 
        • इस प्रेस से राज्य सरकार, सरकारी क्षेत्र के उपक्रम के प्रतिभूति की भी छपाई की जाती है।
      2. सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस, हैदराबाद
        • इसकी स्थापना 1982 में किया गया था। इसका काम वहीं है जो इण्डिया सिक्योरिटी प्रेस नासिक का है। इसकी स्थापना दक्षिणी राज्यों के माँग को पूरा करने हेतु स्थापित किया गया है।
      3. करेन्सी प्रेस नोट नासिक (महाराष्ट्र )
        • इस प्रेस में ₹10, ₹50, ₹ 100, ₹ 500 तथा ₹1000 का नोट छपता है।
      4. बैंक नोट प्रेस देवास (मध्य प्रदेश )
        • इस प्रेस में ₹20, ₹50, ₹ 100 00 और ₹ 500 तथा इससे उच्च वर्ग के नोट छापा जाता है।
        • यहाँ नोट प्रेस के स्थायी तथा प्रतिभूति पत्रों के स्याही भी तैयार किया जाता है।
      5. करेन्सी नोट प्रेस मैसूर (कर्नाटक)
        • यह एक अत्याधुनिक मुद्रण प्रेस है जहाँ सभी प्रकार के नोट छापे जाते हैं।
      6. सिक्योरिटी पेपर मिल, होशंगाबाद ( मध्य प्रदेश )
        • यहाँ पर करेन्सी नोट तथा नॉन ज्यूडिशियल स्टांप पेपर की छपाई में काम आने वाला कागज का उत्पादन होता है।
        • यह पेपर मिल 1967-68 में चालू किया गया था।
    • सिक्कों के उत्पादन हेतु भारत में चार टकसाले स्थापित हैं। ये टकसाल मुम्बई (1930), कोलकाता (1903), हैदराबाद (1950) तथा नोएडा (1989) में स्थापित है।
    • मुम्बई तथा कोलकाता की टकसालों में सिक्कों के अलावा विभिन्न प्रकार के पदक ( मेडल) का भी उत्पादन होता है।
  2. सरकार का बैंक के रूप में कार्य
    • केन्द्रीय बैंक देश के सरकार के बैंकर एवं एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। केन्द्रीय बैंक सरकार के लिए उसी तरह काम करता है जिस तरह व्यापारिक बैंक अपने ग्राहक के लिए करते हैं।
    • रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार को अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है ताकि सरकार अपने सार्वजनिक व्यय तथा सार्वजनिक प्राप्ति के बीच अस्थायी घाटे को पूरा कर सके ।
  3. बैकों का बैंक के रूप में कार्य
    • केन्द्रीय बैंक देश के अन्य बैंकों के लिए बैंकर का कार्य करता है।
    • बैंकों का बैंक होने के कारण RBI निम्न कार्य करते हैं-
      1. यह व्यापारिक बैंकों के कार्यों का निरीक्षण करता है ।
      2. व्यापारिक बैंकों को लाइसेंस जारी करता है।
      3. विदेशी व्यापारिक बैंक को भारत में शाखा खोलने की अनुमति देता है।
      4. बैंकों को आपस में विलय करने की अनुमति देता है। 
  4. अंतिम ऋणदाता के रूप में कार्य
    • RBI अंतिम ऋणदाता के रूप में बैकिंग व्यवस्था को नियंत्रित रखता है।
    • अंतिम ऋणदाता का अर्थ है कि जब व्यापारिक बैंक को कहीं से भी ऋण प्राप्त न हो तब वह RBI से ऋण की माँग करता है और RBI उचित प्रतिभूति के आधार पर ऋण उपलब्ध करवाता है।
  5. विदेशी मुद्रा का संरक्षक के रूप में कार्य-
    • देश की मुद्रा के बाहरी मूल्य को स्थिर रखना RBI का एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसकी सफलता संपन्न करने के लिए केन्द्रीय बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा के कोष को संरक्षित रखता है।
  6. समाशोधन गृह (Clearing House) के रूप में कार्य
    • RBI समाशोधन गृह का कार्य भी करता है। इसका अर्थ है कि केन्द्रीय बैंक दसरे बैंक का हिसाब-किताब भी रखता है। हर एक बैंक का खाता RBI में होता है और इन बैंकों के पास एक दूसरे के चेक आते हैं, उनका भुगतान RBI द्वारा कर दिया जाता है।
  7. साख मुद्रा का नियंत्रण करना
    • साख मुद्रा का नियंत्रण करना RBI का महत्वपूर्ण कार्य है। साख नियंत्रण का तात्पर्य मुद्रा की मात्रा को देश के मौद्रिक आवश्यकताओं के अनुसार कमी या वृद्धि करने से है।
  8. उपरोक्त कार्यों के अलावे केन्द्रीय बैंक (RBI) अन्य कार्य भी करता है जिसमें कुछ निम्न है -
    1. कृषि के विकास हेतु साख सुविधाओं की व्यवस्था करना ।
    2. IMF विश्व बैंक तथा अन्य अंतराष्ट्रीय वित्तीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
    3. फटे-पुराने नोट को वापस लेकर नये नोट प्रदान करता है।
    4. आर्थिक सूचनाओं एवं आँकड़ों को इकट्ठा कर समय-समय पर प्रकाशित करना ।

मौद्रिक नीति (Monetary Policy)

  • किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। RBI भारत का केन्द्रीय बैंक है जो हर दो महीने पर मौद्रिक नीति की समीक्षा प्रस्तुत करता है।
  • मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य महँगाई ( मुद्रास्फीति ) पर नियंत्रण रखना है, इसके साथ ही बाजार में कितनी नगदी हो जिससे आर्थिक गतिविधियों को गति मिले इसके लिए भी मौद्रिक नीति में उपाय किए जाते हैं।
  • RBI की मौद्रिक नीति या साख नियंत्रण नीति के दो मुख्य उपकरण ( उपाय) है-

  1. रीपो रेट- रेपो रेट वह दर होता है, जिसपर बैंकों को RBI अल्पकालीन ऋण देते है। रीपो रेट कम होने का मतलब बैंकों द्वारा दिये जाने कई ऋण ( लोन ) सस्ते हो जाऐंगे वही रीपो रेट बढ़ाने का आशय है कि बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण महँगे हो जायेंगे। 
  2. रिवर्स रेपो रेट - रिवर्स रीपो रेट, वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आर बी आई में जमा धन पर ब्याज मिलता है।
    • बाजार में मुद्रा की तरलता बढ़ाने हेतु RBI रिवर्स रेपो रेट को घटा देता है और मुद्रा की तरलता घटाने हेतु RBI रिवर्स रिपो रेट को बढ़ा देता है।
  3. बैंक दर- बैंक दर ब्याज़ की वह न्यूनतम दर है जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक (RBI) अंतिम ऋणदाता होने के कारण बैंकों को ऋण देने के लिए तैयार रहता है।
    • बैंक दर बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ती तथा ऋण महँगा होता है जिससे साख की माँग कम हो जाती है। इसके विपरित बैंक दर कम करने पर ऋण सस्ती हो जाती है जिससे साख की माँग बढ़ती है।
  4. नगद निधि ( कोष ) अनुपात (CRR)
    • बैंक की कुल जमाओं का वह न्यूनतम अनुपात जो उसे RBI के पास अनिवार्य रूप से रखना पड़ता है उसे CRR (Cash Reserve Ratio) कहते हैं।
    • यदि RBI बैंकों को साख या नगद प्रवाह को कम करना चाहता है तो CRR को बढ़ा देगा और यदि RBI साख या. नगद प्रवाह का विस्तार करना चाहता है तो CRR को घटा देगा।
    • जुलाई, 1989 में CRR की दर 15% थी। 1991 से CRR के दर में निरन्तर कमी लायी गयी है। इस समय इसका दर 4%# है।
  5. वैधानिक तरलता अनुपात ( SLR ) - प्रत्येक बैंक को अपनी परिसंपत्तियों का एक निश्चित प्रतिशत अपने पास नगद रूप में या अन्य तरल संपत्ति के रूप में कानूनी तौर पर रखना पड़ता है, जिसे SLR (Statutory Liquidity Ratio) कहते हैं।
    • बाजार में साख के प्रवाह को कम करने के लिए RBI SLR की दर बढ़ाता है तथा RBI साख का विस्तार करना चाहता है तो SLR की दर घटा देता है।
  6. खुले बाजार की क्रियाएँ- खुले बाजार की क्रिया द्वारा RBI जनता या बैंकों से सरकारी प्रतिभूति को अपने लिए खरीदता या बेचता है।
    • जब RBI प्रतिभूति को बेचती है तब अर्थव्यवस्था का नगद कोष RBI के पास हस्तांतरित हो जाता है और बाजार की तरलता घट जाती है। इसके विपरित RBI जब प्रतिभूति को खरीदती है तो बाजार में तरलता बढ़ जाती है।

स्विज ऑपरेशन (Switch Operation )

  • RBI द्वारा खुले बाजार क्रियाओं का प्रयोग केवल साख नियंत्रण हेतु ही नहीं बल्कि इसका प्रयोग सरकारी प्रतिभूति के क्रय विक्रय के माध्यम अथवा राजकोषीय नीति के रूप में भी किया जाता है।
  • रिजर्व बैंक द्वारा अल्प अवधि वाले प्रतिभूति का क्रय करना तथा उसके स्थान पर लम्बी अवधि वाले प्रतिभूतियों का विक्रय करना, जिससे अन्तिम भुगतान अवधि लम्बी हो सके, को स्विच ऑपरेशन कहते हैं।

मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण

  • गुणात्मक उपकरण के तहत् RBI साख के विभिन्न क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण बनाकर रखती है। इसका प्रभाव बाजार के तरलता पर नहीं पड़ता है।
  1. सीमांत आवश्यकता (Margin Requirement) 
    • जमानत वाली वस्तु के वर्त्तमान मूल्य तथा जमानत पर दिये जा रहे ऋण के अंतर को सीमांत आवश्यकता कहते हैं।
    • यदि RBI अर्थव्यवस्था की किसी विशेष व्यावसायिक क्रिया के लिए साख के प्रवाह को सीमित करना चाहता तो उस क्षेत्र के ऋण पर सीमांत आवश्यकता बढ़ा देता है। इसके विपरित, यदि साख का विस्तार किया जाना है तो सीमांत आवश्यकता को कम कर दिया जाता है।
  2. साख का राशनिंग ( Rationing of Credit)
    • जब RBI विभिन्न व्यावसायिक कार्य हेतु दिए जाने वाले ऋण की कोटा निर्धारित कर देता है, तो इसे साख की राशनिंग कहते हैं।
    • साख का राशनिंग RBI तब करता है जब अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से सट्टे की क्रियाओं के लिए दिए जाने वाले ऋण पर रोक लगानी होती है।
  3. नैतिक प्रभाव (Moral Sausion)- कभी-कभी RBI व्यापारिक बैंक पर नैतिक प्रभाव डालकर उन्हें मौद्रिक नीति के अनुसार काम करने के लिए सहमत कर लेता है।
    • नैतिकं प्रभाव में ‘मनाने' तथा 'दबाव' डालने का मिश्रण पाया जाता है। RBI व्यापारिक बैंक को अपनी मौद्रिक नीति का पालन करने हेतु पहले मनाता है अन्यथा दबाव डालकर अपनी नीति मनवाता है।
    • नैतिक प्रभाव एक मात्रात्मक उपाय भी है और एक गुणात्मक उपाय भी है, परन्तु इसे गुणात्मक उपाय के श्रेणी में रखा जाता है।
  4. प्रत्यक्ष कार्यवाही (Direct Action)- RBI प्रत्यक्ष कार्यवाही तब करता है जब कोई व्यापारिक बैंक मौद्रिक नीति का पालन नहीं करता है।
    • प्रत्यक्ष कार्यवाही के तहत् RBI बैंक का लाइसेंस रद्द कर सकता है या भारी जुर्माना लगा सकता है।
  5. विभेदक ब्याज दर (Differential Rate of Interest Scheme)
    • विभेदक ब्याज दर नीति की शुरूआत 1972 में किया गया था जिसके तहत बैंकों को निर्देश दिया गया था कि वे अपने कुल ऋण का कम से कम 1% ऋण निर्धन व्यक्ति को 4% ब्याज दर पर आवंटित करें।
    • विभेदक ब्याज दर योजना का उद्देश्य समाज के गरीब एवं कम आय वर्ग वाले व्यक्ति को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाना है।

तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility or LAF)

  • नरसिंहम समिति (1998) के सुझाव पर LAF को क्रमिक रूप से पहले अन्तरिम रूप में 1999 में तथा अन्तिम रूप से 2000 में RBI ने लागू किया। 
  • LAF एक मौद्रिक नीति का अस्त्र है जिसके तहत RBI बाजार में दिन प्रतिदिन आधार पर तरलता को समायोजित करता है।
  • LAF के अन्तर्गत मुद्रा बाजार की आवश्यकता के अनुसार प्रतिदिन आधार पर रिजर्व बैंक बैंकिंग प्रणाली से फण्ड के क्रय तथा विक्रय के लिए तैयार रहता है। 
  • LAF रीपो तथा रिजर्व रीपो के माध्यम से कार्य करता है। रीपो तथा रिवर्ज रिपो LAF के अन्तर्गत आते हैं।
  • नयी स्कीम के तहत् LAF की अवधि 7 दिन से घटकर 1 दिन कर दिया गया। नयी नीति के तहत रिपो रेट का निर्धारण RBI द्वारा समय-समय पर की जाती है तथा रिवर्स रिपो रेट की दर रीपो रेट से 1% कम होती है।
  • LAF के अन्तर्गत उधार लेने वाला कोई भी हो सकता है। सभी व्यापारिक बैंक, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सरकार, गैर-बैकिंग वित्तीय संस्थाएँ LAF के तहत RBI से उधार पा सकते हैं।

सीमान्त स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility or MSF)

  • MSF की शुरूआत RBI ने 9 मई 2011 को किया । इसके तहत् अनुसूचित व्यापारिक बैंक, RBI से अपने शुद्ध जमा का 1% ऋण रातभर के लिए ले सकते हैं।
  • MSF के अन्तर्गत प्राप्त ऋण पर ब्याज दर LAF के अन्तर्गत रीपो दर से 1% अधिक होगी।
  • MSF के अन्तर्गत न्यूनतम उधारी की राशि ₹1 करोड़ है जबकि LAF के न्यूनतम उधारी राशि 5 करोड़ रूपया है।
  • LAF के अन्तर्गत ऋण लेने के लिए उधार लेनेवाली संस्थाएँ SLR कोटा की प्रतिभूतियाँ को गिरवी नहीं रख सकती है जबकि MSF के अन्तर्गत ऋण लेने के लिए SLR कोटा में रखी गई प्रतिभूतियाँ गिरवी जा सकती है।

बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार पर ब्याज दर का निर्धारण

  1. प्रधान उधारी दर (Prime lendig Rate or PLR)- किसी बैंक की प्रधान उधारी दर वह ब्याज दर है जिस पर बैंक अपने सबसे विश्वसनीय ग्राहक को जिसके संबंध में जाखिम शून्य है, उधार देने के लिए तैयार हो ।
  2. आधार दर प्रणाली (Base Rate) -
    • RBI ने जुलाई 2010 से PLR स्थान आधार दर प्रणाली को लागू किया।
    • आधार दर (Base Rate) का निर्धारण फण्ड की लागत के आधार पर होता जिसमें आपरेटिंग लागत तथा क्रेडिट रिस्क भी सम्मिलित रहता है।
    • आधार दर वह ब्याज दर है जिसके नीचे कोई भी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने ग्राहकों को कोई भी ऋण नहीं प्रदान करेंगे।
  3. सीमांत निधि लागत पर आधारित उधार दर (Magrinal Cost of funds based lending Rate or MCLR)
    • रिजर्व बैंक ने बेस रेट के स्थान पर 1 अप्रैल 2016 MCLR लागू किया। MCLR के अन्तर्गत बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार पर न्यूनतम ब्याज दर का निर्धारण बैंक द्वारा प्राप्त फंड की औसत लागत द्वारा न होकर उसकी सीमान्त लागत द्वारा होती है।
    • फंड की सीमान्त लागत से आशय किसी सम्भावित उधार लेने वाले के संबंध में फंड की एक अतिरिक्त इकाई की व्यवस्था में बैंक की लगनेवाली लागत से है।

जोखिमों से बैंकों का संरक्षण

  • बैंक आधुनिक अर्थव्यवस्था के आधार स्तम्भ है। अगर बैंक असफल होते हैं तो इसका प्रभाव पूरे अर्थव्यस्था पर पड़ता है।
  • किसी भी जोखिमों से बैंकों को संरक्षित करने के लिए केन्द्रीय बैंक (RBI) तीन अस्त्रों का प्रयोग करते हैं-
    1. नगद अनुदान (CRR ) - CRR के तहत बैंकों द्वारा प्राप्त जमा का एक निश्चित भाग RBI के पास रखना अनिवार्य होता है।
    2. SLR के रूप में बैंकों को अपनी प्राप्त जमा का एक निश्चित भाग अपने पास अत्यधिक तरल संपत्ति को रखना अनिवार्य होता है। 
      • SLR और CRR को जोखिमों के विरूद्ध बैंकों की सुरक्षा की प्रथम पंक्ति कहा जाता है।
    3. पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio or CAR)-
      • CAR को जोखिम भारित परिसम्पत्ति अनुपात के नाम से भी जाना जाता है। इस अनुपात का प्रयोग जमाकर हित को संरक्षित करने तथा बैंकिंग प्रणाली में स्थिरता बनाये रखने हेतु किया जाता है।
      • बैंकिंग सेक्टर के सुचारु रूप से परिचालन हेतु CAR के संबंध अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मापद विकसित किये गये हैं जिन्हें हम "बेसेल मापदण्ड " कहते हैं।

बेसल मानक (Basel Norms)

  • 1975 में स्विटजरलैंड के बेसेल शहर में स्थित बैंक ऑफ इन्टरनेशनल सेटिलमेंट (BIS) ने G-20 समूह के केंद्रीय बैंकों के गर्वनर की एक समिति गठीत की जिसे BCBS (Basel Committee on Banking Supervision) के नाम से जाना जाता है।
  • BCBS मीटिंग में जो समझौता हुआ उसे बेसेल इकाई या बेसेल समझौता कहा जाता है। इस समय तक तीन बेसेल समझौते– बेसेल I, बेसेल II, बेलसेल II हो चुके हैं।
  • बेसेल I समझौता 1988 में हुआ था तथा यह मानक को लागू करना बाध्यकारी नहीं था फिर भी भारत ने इसे 1992 में अपनाया। इस मानक में पूंजी पर्याप्तता अनुपात 8 प्रतिशत रखा गया था।
  • बेसेल II मानक 2004 में जारी किया गया जिसका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली को एक सशक्त प्रबन्धन प्रणाली बनाया जाना था। RBI के अनुसार सभी भारतीय बैंकों ने यह मानक प्राप्त कर लिया है। इस मानक में पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) को 9 प्रतिशत रखा गया।
  • सितम्बर 12, 2010 को बेसेल कमेटी ने दिसम्बर 2009 में प्रस्तावित तथा जुलाई 2010 में संशोधित बैंकिंग क्षेत्र के लिए उच्चतर पूंजी आवश्यकता, तरलता नियमों तथा आकस्मिक व्यवस्थाओं को लागू करने की घोषणा की जिसे बेसेल - III नाम से जानते हैं।
  • अंतराष्ट्रीय स्तर पर बेसेल - III मानकों को पूर्ण रूप से लागू की तय समय सीमा 1 जनवरी, 2019 थी। इस मानक में पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) को 9 प्रतिशत से बढ़ाकर 11.5 प्रतिशत कर दिया गया ।

गैर निष्पादक परिसम्पत्तियाँ (Non-Performing Assets or NPA)

  • बैंक जो ग्राहकों को ऋण देते हैं, वह ऋण बैंक की परिसम्पत्तियाँ (Assets) कहलाता है तथा बैंक द्वारा प्राप्त विभिन्न जमाएँ बैंक की देयता (Liability) कहलाता है।
  • बैंक द्वारा दिये जाने ऋण (परिसम्पत्ति) को भागों में बाँटा जाता है-
    1. ऐसे ऋण जिनके ब्याज तथा मूलधन की प्राप्ति सामान्य हो, या नियमित हो उसे अच्छा ऋण (Good Loans) कहते हैं।
    2. ऐसे ऋण जिनपर एक निश्चित समयावधि तक बैंक को उसके मूलधन तथा ब्याज की किश्त का भुगतान नहीं मिला हो, उसे हम गैर निष्पादक ऋण या परिसम्पत्ति (NPA) कहते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार भारत में बैंकिंग क्षेत्र में NPA की पहचान के लिए 31 मार्च 2014 से 90 दिन मानक स्वीकार किया गया है। जिसके अनुसार यह माना गया है कि जिन सामान्य ऋणों के संबंध में 1 वर्ष में एक तिमाही या 90 दिनों से ब्याज या मूलधन की किश्त का भुगतान नहीं मिला हो उसे NPA के श्रेणी में बाँटा जाता है-
    1. सब स्टैंडर्ड सम्पत्तियाँ सब स्टैंडर्ड परिसंपत्ति को रखा जाता है जो पिछले 12 महीने से अधिक NPA रही हो। इसके अंतर्गत आने वालो अग्रिम (ऋण) ऐसे अग्रिम है जिनके पीछे रखी गई प्रतिभूतियाँ / सम्पत्ति ऋणों के भुगतान को सुरक्षित करने की स्थिति में होती है।
    2. संदिग्ध परिसम्पत्तियाँ- इसके अंतर्गत उन परिसम्पत्तियाँ रखा जाता है जो 12 महीने से अधिक NPA रही हो। इसके पीछे रखी गई परिसम्पत्तियाँ सामान्यत: सब स्टैंडर्ड होती है।
    3. हानिवाली परिसम्पत्तियाँ ऐसी सम्पत्तियाँ जिन्हें बैंक के आन्तरिक तथा बाहरी अंकेक्षक या केंद्रीय बैंक पर्यवेक्षक ने हानि वाली सम्पत्ति के रूप में पहचान की हो तथा जिन्हें बैंक द्वारा आंशिक या पूर्ण रूप से अपलिखित नहीं किया गया हो।
  • बैंकिंग सेक्टर में बढ़ते हुए NPA का अर्थ है बैंक के लाभ में कमी, तरलता का बाधित होना, सुरक्षा खतरे में पड़ना तथा अन्तिम रूप से बैंक का दिवालिया होना अंततः बैंक का बंद हो जाना।

गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएँ (Non-Banking Financial Companies or NBFCs)

  • RBI एक्ट 1997 के अनुसार NBFC एक संस्था या कम्पनी है जिसका मुख्य व्यवसाय किसी भी योजना के तहत जमा लेना एवं ऋण देना है।
  • कंपनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत कम्पनी भी अगर किसी भी तरह से जमा स्वीकार करती है और उधार (ऋण) देने का काम करती है वह NBFC कहलाता है।
  • NBFC.RBI के नियंत्रण में आते हैं कम्पनीज अधिनियम के तहत नहीं तथा RBI उन NBFC के प्रति बहुत कड़ा रूख अपनाता है। जो जमा स्वीकार करती है।
  • रिजर्व बैंक ने गैर बैंकिंग कम्पनी (NBFC) को दो भागों में बाँटा है-
    1. जमा स्वीकार करने वाली NBFC
    2. जमा नहीं स्वीकार करने वाली NBFC
  • NBFC 12 महीने से अधिक तथा 60 महीने से कम समय हेतु ही जमा स्वीकार कर सकती है तथा RBI द्वारा निर्धारित ब्याज दर से अधिक ब्याज नहीं दे सकती है।
  • रिजर्व बैंक के अनुसार ऐसी NBFC जिन्हें गैर सार्वजनिक जमा कम्पनी के रूप में पंजीकृत किया गया है, उन्हें ₹200 करोड़ की न्यूनतम पूंजी रखना अनिवार्य होगा, अन्य बैंकों की यह सीमा ₹ 300 करोड़ का है।
  • फरवरी 2018 में RBI ने पंजीकृत NBFC के लिए लोकपाल योजना शुरू की है NBFC लोकपाल कार्यालय चार मेट्रो केंद्र अर्थात् चेन्नई, कोलकाता मुंबई और नई दिल्ली में कार्य करेंगे।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Bank)

  • आर. जी. सरैया की अध्यक्षता में गठित बैंकिंग आयोग ने जनवरी 1972 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसमें ग्रामीण बैंक अथवा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अथवा क्षेत्रीय बैंक की स्थापना की बात कही गयी थी ।
  • एम. नरसिंहम की अध्यक्षता में ग्रामीण बैंकिंग पर गठित समिति (1975) की संस्तुति पर 2 अक्टूबर 1975 को क्षेत्रीय ग्रामीण की स्थापना की गई। तब इसकी संख्या 5 थी।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना मुख्य रूप से दो उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया गया था-
    1. समाज के कमजोर वर्ग को सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना ।
    2. ग्रामीण क्षेत्रों में बचत को बढ़ावा देना तथा वहाँ हो रहे उत्पादक गतिविधियों में सहयोग देना ।
  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा प्रर्वतक बैंक 50:15:35 के अनुपात में पूँजी लगाती है।
  • केलकर समिति के सुझाव पर सरकार ने 1987 से नए क्षेत्रीय बैंक की स्थापना करना बंद कर दिया है।
  • 2005 से क्षेत्रीय बैंकों को परस्पर जोड़ने तथा उनके प्रवर्तक बैंकों में विलय की प्रक्रिया शुरू की गई। 31 मार्च 2017 तक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्य 56 थी। 1 अप्रैल 2019 तक इसकी संख्या 49 हो गयी ।

सहकारी बैंक (Co-operative Bank)

  • सहकारी समितियों द्वारा संचालित होने वाले बैंक को सहकारी बैंक कहते हैं। यह बैंक जिस राज्य में होते हैं उसी राज्य के नियमों के अधीन संचालित होते है ।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी बैंक कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन आदि के लिए ऋण उपलब्ध कराती है, जबकि शहरी क्षेत्र में स्वरोजगार, लघु उद्योग तथा व्यक्तिगत ऋण के लिए साख उपलब्ध कराते हैं।
  • भारत में सहकारी बैंकों का गठन तीन स्तरों पर होता है। राज्य सहकारी बैंक संबंधित राज्य का शीर्ष संस्था होती है इसके बाद केंद्रीय अथवा जिला सहकारी बैंक जिलास्तर पर कार्य करते हैं एवं तृतीय स्तर पर प्राथमिक ऋण समितियाँ होती है जो कि ग्राम स्तर पर कार्य करता है।

लघु वित्त बैंक (Small Finance Bank)

  • RBI ने जुलाई 2014 में लघु वित्त बैंक की स्थापना हेतु दिशा-निर्देश जारी किया ।
  • वित्तीय समावेशन को बढ़ाने के उद्देश्य से तथा छोटे किसान और लघु उद्योगों को आसानी से वित्त उपलब्ध कराने हेतु इस बैंक की स्थापना की जाती है।
  • लघु वित्त बैंक को भी अन्य व्यापारिक बैंकों की तरह RBI के नियमों का पालन करना पड़ता है तथा यह बैंक में किसी भी स्तर तक ज़माएँ स्वीकार कर सकता है।
  • लघु वित्त बैंक ATM कार्ड/डेबिड कार्ड/क्रेडिट कार्ड जारी कर सकता तथा ही म्युचुअल फंड, बीमा तथा पेंशन जैसे वित्तीय उत्पाद बेच सकता है। इन बैंकों को RBI के निर्देशानुसार 75% ऋण प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को प्रदान करना होता है ।

इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक (India Post Payments Bank)

  • इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक का शुभारंभ 1 सितंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में किया था।
  • इस बैंक की स्थापना संचार मंत्रालय के डाक विभाग के अंतर्गत की गई है तथा यह बैंक देश में फैले 1.55 लाख डाकघर एवं डाक कर्मचारी के माध्यम से पूरे देश में बैंकिंग सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
  • इस बैंक की स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य डाकघरों एवं डाक कर्मचारी के माध्यम से आम आदमी को सबसे सुलभ, किफायती और भरोसेमंद बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध करवाना है।

भारतीय महिला बैंक

  • इस बैंक की स्थापना 19 नवंबर, 2013 को भारत सरकार द्वारा ₹1000 करोड़ की प्रारंभिक पूंजी के साथ हुआ।
  • इस बैंक का मुख्य उद्देश्य सभी वर्गों के महिलाओं को वित्तीय सुविधा प्रदान करना तथा आर्थिक रूप से महिलाओं को सशक्त बनाना था।
  • 2016 में भारतीय महिला बैंक को SBI में विलय कर दिया गया।

बैंकिंग लोकपाल योजना (Banking Ombudsman Scheme)

  • बैंकिंग लोकपाल योजना की शुरूआत RBI ने 1995 में किया तथा अब तक इसमें दो बार संशोधन (वर्ष 2002 तथा 2006 ) किया गया है।
  • बैंकिंग लोकपाल का कार्य है बैंक के ग्राहकों की शिकायत को सुनना तथा उसके समाधान हेतु आवश्यक कदम उठाना।
  • बैंकिंग लोकपाल एक अर्द्धन्यायिक इकाई है जिसकी नियुक्ति रिवर्ज बैंक करता है तथा इसके अंतर्गत सभी प्रकार के ग्राहक (देश के नागरिक या विदेशी नागरिक) की शिकायत को सुना जाता है।
  • बैंकिंग लोकपाल द्वारा पारित आदेश अंतिम और बाध्यकारी नहीं होता है बल्कि इस आदेश के विरूद्ध रिजर्व बैंक के डिप्टी गर्वनर के नेतृत्व में गठित अपीलीय प्राधीकरण में अपील की जा सकती है।

भारत के प्रमुख शीर्ष बैंक 

  1. भारतीय औद्योगिक विकास बैंक लिमिटेड (Industrial Development Bank of India or IDBI)
    • औद्योगिक क्षेत्रों को साख उपलब्ध करवाने हेतु सरकार ने जुलाई 1964 में इस बैंक की स्थापना की।
    • 1976 तक यह बैंक RBI का एक अनुषंगी बैंक था परन्तु 1976 इसे RBI से अलग कर इसका पूर्ण स्वामित्व भारत सरकार अपने पास ले लिया।
    • 11 अक्टूबर 2004 RBI द्वारा IDBI की एक अनुसूचित बैंक का दर्जा दे दिया है।
  2. भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India or SIDBI)
    • इस बैंक की स्थापना 2 अप्रैल, 1990 को किया गया तथा इसका मुख्यालय लखनऊ में है।
    • यह बैंक छोटे उद्योगों को व्यापारिक बैंक, सहकारी बैंक तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के माध्यम से वित्त उपलब्ध करवाता है।
  3. भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड (Indian Finance Corporation of India Ltd. or IFCI)
    • इस संस्था की स्थापना एक विशेष अधिनियम द्वारा 1948 में किया। यह देश की सबसे पुरानी वित्तीय संस्था है। इसका मुख्यालय कोलकाता में अवस्थित है।
    • 1 जुलाई 1993 को इस संस्था के स्वरूप को बदलकर कम्पनी का रूप दे दिया गया तथा इसका पंजीयन भी कम्पनी अधिनियम 1996 के तहत किया जा चुका है। 
    • वर्त्तमान में इस संस्था को पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में विलय करने की योजना है।
  4. भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक लिमिटेड (Industrial Investment Bank of India Ltd.)
    • इस बैंक की स्थापना संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत 20 मार्च 1985 को हुआ। इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है।
    • पहले इस बैंक का नाम भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक था 1997 में इसका नाम बदलकर भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक लिमिटेड किया गया।
  5. भारत निर्यात - आयात बैंक (Export - Import Bank of India or Exim Bank)
    • निर्यातकों एवं आयातकों को वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराने हेतु इस बैंक की स्थापना 1 जनवरी 1982 को किया गया था।
    • इसका मुख्यालय मुम्बई में अवस्थित है।
  6. राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank or NHB)
    • इस बैंक की स्थापना रिजर्व बैंक की सहायक संस्था के रूप में जुलाई 1988 में किया गया।
    • यह बैंक देश में आवास संबंधी वित्त व्यवस्था के लिए शीर्षस्थ बैंक है तथा यह बैंक देश के आवास वित्त कम्पनियों का नियंत्रण तथा पर्यवेक्षक का भी काम करता है।
  7. राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) (National Bank for Agricutlure and Rural Development)
    • यह देश में कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त उपलब्ध कराने वाली शीर्ष संस्था है।
    • इसकी स्थापना 12 जुलाई, 1982 को हुआ था। 
    • यह बैंक शीर्ष संस्था के रूप में देश के अन्य वित्तीय संस्था जैसे- सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, व्यापारिक बैंक को वित्त उपलब्ध करवाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक गतिविधियों के लिए ऋण देती है।
  8. भूमि विकास बैंक (Land Development Bank)
    • किसानों को दीर्घ कालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु इस बैंक की स्थापना की गई है। यह बैंक किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है।
    • इस बैंक को भूमि बंधक बैंक कहा जाता है क्योंकि यह बैंक किसानों की अचल सम्पत्ति (भूमि) को बंधक रखकर ऋण प्रदान करते हैं।
    • इस बैंक का ढाँचा दो स्तर वाला है राज्य स्तर पर केन्द्रीय भूमि विकास बैंक तथा जिला स्तर पर प्राथमिक भूमि विकास बैंक की स्थापना की गई है।
    • भारत में भूमि विकास बैंक की स्थापना स्वतंत्रता से पूर्व ही सर्वप्रथम मद्रास में हुआ था।

बैंकिंग शब्दावली

  1. वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion ) - वित्तीय समावेशन का अर्थ है बैंकिंग एवं वित्तीय सुविधाओं को समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाना। कम आय व कमजोर वर्ग के लिए ऋण व वित्तीय सेवाओं तक सुगमतापूर्वक पहुँच ही वित्तीय समावेशन है।
  2. फ्री बैंकिंग (Free Banking)- यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें नोट जारी करने का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक के पास नहीं होता बल्कि सभी बैंकों को प्राप्त होता है।
  3. एम-बैंकिंग (M-Banking or Mobile - Banking)- मोबाइल बैंकिंग वह प्रणाली है जिसमें मोबाइल फोन (या अन्य फोन) के प्रयोग के द्वारा किसी ग्राहक के खाते के साथ जोड़कर बैंकिंग कार्य को किया जाता है।
  4. शाखा रहित बैंकिंग (Branchless Banking)—- ऐसी बैंकिंग व्यवस्था जिसमें बैंक बिना शाखा खोले, बैंकिंग सेवा प्रदान करते हैं शाखा -रहित बैंकिंग कहलाता है। इसे अन्तर्गत बैंक अपना एजेन्ट नियुक्त करता है और उसे सरलतापूर्वक कार्य करने वाला टर्मिनल दे देता है तथा ग्राहक को स्मार्ट कार्ड निर्गत कर दिए जाते हैं। पूरा बैंकिंग कार्य 'आवाज निर्देशित प्रणाली' के द्वारा होता है अर्थात् इनके द्वारा किए गये प्रत्येक बैंकिंग कार्य की पुष्टि बोलकर मुख्य शाखा से हो जाती है।
    • इस तरह की सुविधा सामान्यत: दूरस्थ पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों के लिए किया जाता है। सर्वप्रथम 2006 में कॉरपोरेशन बैंक ने इस तरह की सुविधा शुरू की थी।
  5. सामाजिक बैंकिंग (Social Banking) ऐसे बैंक जो निवेश तथा ऋण के सामाजिक प्रयोग की दृष्टि से कार्य करते हैं, वे उन परियोजनाओं के लिए ऋण देते हैं जो पर्यावरणीय या सामाजिक उद्देश्य से संबंधित होती है उन्हें सामाजिक बैंक कहते हैं।
  6. लीड बैंक योजना (Lead Bank Scheme)-
    • इसकी शुरूआत RBI ने जिलों के अर्थव्यवस्था को सुधारने हेतु 1969 में किया था। इसके अंतर्गत प्रत्येक जिले के लिए एक बैंक को लीड बैंक घोषित कर दिया जाता है और यह बैंक जिला स्तर पर ऋणों की योजना बनाने, सरकारी कार्यक्रमों से संबंधित वित्त प्रबंधन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  7. शैडो बैंकिंग- ये ऐसे बैंक हैं जो बैंकिंग प्रणाली के अंतर्गत नहीं आते हैं, परन्तु मौद्रिक नीति को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अंतर्गत निवेश बैंक, म्यूचूअल फण्ड जैसे संस्था को रखा जा सकता है।
  8. इस्लामिक विकास बैंक (Islamic Development Bank) - इस तरह का पहला बैंक 1974 में सबसे पहले मिश्र में खुला था जिसका मुख्य उद्देश्य इस्लामिक देशों तथा समुदाय में ऐसे बैंक की स्थापना करना है जो कुरान के सिद्धान्तों पर आधारित हो जो सूदखोरी को अस्वीकार करता है तथा जो ब्याज पर ऋण देना मना करता है।
    • भारत में पहला इस्लामिक बैंक कोच्चि (केरल) में खुला है।
  9. इकाई बैंकिंग (Unit Banking)-- इस बैंकिंग प्रणाली में बैंक केवल एक स्थान पर रहकर कार्य करता है उसकी कोई शाखा नहीं होती है। । यह बैंकिंग प्रणाली का प्रचलन USA में है।
  10. शाखा बैंकिंग (Branch Banking)- इस बैंक प्रणाली में बैंक का एक मुख्य कार्यालय (मुख्यालय) होता है और बैंक पूरे देश या क्षेत्र में अपनी शाखाएँ खोलकर बैंकिंग व्यापार करता है। यह बैंकिंग प्रणाली अत्यन्त लोकप्रिय है, भारत, कनाडा, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया में शाखा बैंकिंग का ही प्रचलन है।
  11. यूनिवर्सल बैंकिंग (Universal Banking)- यूनिवर्सल बैंकिंग से तात्पर्य एक ऐसे बैंक अथवा संस्था से है जो व्यापारिक बैंक के सभी कार्यों के साथ मर्चेन्ट बैंक, म्युचुअल फण्ड, क्रेडिट कार्ड, हाउसिंग फाइनेन्स, बीमा आदि की भी व्यवस्था करता है अर्थात् सभी वित्तीय उत्पाद एवं सेवाएँ एक साथ एक ही जगह पर उपलब्ध कराए जाते हैं।
  12. मर्चेण्ट बैंकिंग (Merchant Banking)- उद्यमियों तथा निवेशकों के बीच काम करने वाले वित्तीय मध्यस्थ को मर्चेण्ट बैंकर्स कहा जाता है। ये पूंजी का इकट्ठा करने में तथा अन्य वित्तीय मामलों में उद्यमियों को राय देते हैं। मर्चेण्ट बैंक की शुरूआत 1993 में हुई थी तथा मर्चेण्ट बैंकिंग को SEBI के प्रत्यक्ष नियंत्रण में ला दिया गया है।
  13. बैड बैंक (Bad Bank)- बैड बैंक एक ऐसा बैंक होगा जो बैंक के डूबते ऋण या जोखिम पूर्ण ऋण (NPA) को अच्छे से प्रबंधित करेगा। बैंकों का NPA को यह बैंकिंग व्यवस्था में पुनः लाने का प्रयास करेंगा ताकि बैंकों के ऋण देने की क्षमता में पुनः वृद्धि हो सके।
  14. रिटेल बैंकिंग (Retail or Personal Banking)
    • पहले बैंक केवल उत्पादक कार्यों हेतु ही ऋण प्रदान करते थे उपभोग की आवश्यकता की पूर्ति हेतु ऋण प्रदान नहीं करते थे। परन्तु आजकल बैंक व्यक्तिगत ऋण जैसे शिक्षा ऋण, गृह ऋण, आटो ऋण भी व्यापक रूप से दे रहे हैं। इसी प्रकार के बैंकिंग क्रियाओं को रिटेल बैंकिंग कहते हैं।
  15. वोस्ट्रो खाता (Vostro Accounts )- विदेशी बैंक के द्वारा भारतीय बैंकों में खोले गये खाता को वास्ट्रों खाता कहते हैं। विनिमय नियंत्रण की दृष्टि से इस खाते को Non Resident Account भी कहते हैं।
  16. नोस्ट्रो खाता (Nostro Accounts)- भारतीय बैंक द्वारा विदेशी बैंकों के साथ विदेशी मुद्रा में खोले गये खाता को नोस्ट्रो खाता कहते हैं।

बैंकिंग एवं मौद्रिक नीति

Objective

1. निम्नलिखित में से कौन-से मामलों में भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को नियंत्रित करता है ?
1. परिसम्पत्तियों की तरलता 
2. शाखा विस्तार
3. बैंकों का विलय
4. बैंकों का समापन
कूट :
(A) 1 और 4
(B) 2, 3 और 4
(C) 1, 2 और 3
(D) 1, 2, 3 और 4
2. ग्रामीण परिवारों को निम्नलिखित में से कौन सीधी ऋण सुविधा प्रदान करता है/ करते हैं ?
1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
2. कृषि और ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक
3. भूमि विकास बैंक
कूट :
(A) 1 और 2
(B) केवल 2
(C) 1 और 3
(D) 1, 2 और 3
3. किसी बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था (एन. बी. एफ. आई.) के बीच अन्तर यह है कि
(A) बैंक अपने ग्राहकों के साथ सीधा व्यवहार करता है जबकि गैर-बैंकीय वित्तीय संस्था बैंकों और सरकार के साथ आदान-प्रदान करती है।
(B) बैंक अपने ग्राहकों की पूरी श्रृंखला के साथ वित्त संबंधी अनेक क्रियाकलापों में संलग्न होता है जबकि गैर-बैंकीय वित्तीय संस्था का मुख्यतः बड़े उद्यमों की आवधिक ऋण . आवश्यकताओं से संबंध होता है।
(C) बैंक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों ही प्रकार के ग्राहकों से लेन-देन करता है जबकि गैर-बैंकीय वित्तीय संस्था का सम्बन्ध मुख्यत: केवल विदेशी कम्पनियों के वित्त से होता है
(D) बैंक की मुख्य रुचि केवल व्यावसायिक लेन-देन और बचत/निवेश के क्रियाकलापों की सहायता में होती है जबकि गैर-बैंकीय वित्तीय संस्था की मुख्य रुचि मुद्रा के स्थिरीकरण में होती है
4. खुले बाजार की क्रियाएँ
(A) राजकोषीय उपाय हैं जो सरकार का ऋण लेने में सहायता देती है
(B) एक मौद्रिक उपाय है जिसका सम्बन्ध अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा को नियन्त्रित करता
(C) एक मौद्रिक उपाय है जिससे भुगतान शेष के असन्तुलन को दूर किया जाता है
(D) एक मौद्रिक उपाय है जिसका प्रयोग सन्तुलित बजट बनाने के किया जाता है
5. खुले बाजार की क्रियाएँ साख नियन्त्रण में अप्रभावी होंगी यदि
(A) व्यापारिक बैंक अपने कोषों के आधार पर साख का विस्तार एवं संकुचन करते हैं
(B) व्यापारिक बैंक अपने नकद कोषों के परिवर्तन के साथ साख का विस्तार अथवा संकुचन नहीं करते
(C) उपरोक्त दोनों सत्य हैं
(D) उपरोक्त दोनों असत्य हैं
6. कौन-सा कथन सत्य है ?
(A) केन्द्रीय बैंक, बैंक दर और व्यापारिक बैंक बाजार दर निर्धारित करते हैं
(B) केन्द्रीय बैंक बाजार दर और व्यापारिक बैंक दर निर्धारित करते हैं
(C) बैंक दर और बाजार दर समानार्थी हैं
(D) बैंक दर और बाजार दर का कोई सम्बन्ध नहीं
7. 'खुले बाजार' की क्रियाओं से अभिप्राय है
(A) प्रतिभूतियों का खुले बाजार में क्रय-विक्रय
(B) खुले बाजार में किसी भी प्रकार के बिलों का क्रय-विक्रय
(C) खुले बाजार में किसी भी प्रकार के बिलों व प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय
(D) उपरोक्त सभी
8. जब केन्द्रीय बैंक खुले बाजार में प्रतिभूतियाँ बेचता है, तो इससे सम्भव है कि
(A) अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़े और ब्याज दर भी बढ़े
(B) अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़े और ब्याज दर घटे
(C) -अर्थव्यवस्था में तरलता कम हो और ब्याज दर भी बढ़े.
(D) अर्थव्यवस्था में तरलता कम हो और ब्याज दर भी घटे
9. कौन-सा सिद्धान्त केंद्रीय बैंक के निर्देशक सिद्धान्तों में सम्मिलित नहीं है?
(A) मुद्रा चलन का अधिकार
(B) जनता से प्रत्यक्ष बैंकिंग क्रियाएँ
(C) मौद्रिक नीति-निर्धारक
(D) साख नियन्त्रण
10. साख नियन्त्रण के उद्देश्यों में सम्मिलित है
(A) विनिमय दरों में स्थिरता
(B) कीमत स्तर में स्थिरता
(C) आय एवं रोजगार की उच्च स्तर पर स्थिरता
(D) उपरोक्त सभी
11. गुणात्मक साख नियन्त्रण अधिक प्रभावी है
(A) स्फीतिक दशाओं को रोकने में
(B) अवस्फीतिक दशाओं को कम करने में
(C) आयातों को रोकने में
(D) निर्यातों को बढ़ाने में
12. भारत में बैंकों द्वारा प्राथमिक क्षेत्र ऋणदान से तात्पर्य किसको ऋण देने से है?
(A) कृषि
(B) लघु (माइक्रो ) एवं छोटे उद्यम
(C) दुर्बल वर्ग
(D) उपरोक्त सभी
13. बैंक दर में वृद्धि सामान्यतः इस बात का संकेत है कि
(A) ब्याज की बाजार दर के गिरने की सम्भावना है
(B) केन्द्रीय बैंक अब वाणिज्यिक बैंकों को कर्ज नहीं दे रहा
(C) केन्द्रीय बैंक सस्ती मुद्रा नीति का अनुसरण कर रहा है
(D) केन्द्रीय बैंक महँगी मुद्रा नीति का अनुसरण कर रहा है
14. मौद्रिक नीति नियन्त्रित करती है
(A) केवल माँग प्रेरित मुद्रा प्रसार को
(B) केवल लागत प्रेरित मुद्रा प्रसार को
(C) A और B
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
15. बैंक दर के बढ़ने से
(A) साख का संकुचन होता है
(B) साख का प्रसार होता है
(C) उपरोक्त दोनों स्थितियाँ सम्भव हैं
(D) उपरोक्त दोनों स्थितियाँ असम्भव हैं
16. कौन-सी विधि गुणात्मक नियन्त्रण की परिधि में नहीं आती?
(A) नैतिक अनुनयन
(B) खुले बाजार की क्रियाएँ
(C) प्रचार
(D) प्रत्यक्ष कार्यवाही
17. साख निर्माण की सम्पूर्ण प्रक्रिया में हम निम्नलिखित पक्षों को सम्मिलित करते हैं
(A) मौद्रिक संस्था अथवा केन्द्रीय बैंक
(B) बैंकिंग पद्धति अथवा अर्थव्यवस्था के बैंक
(C) जमा करने वाले तथा उधार लेने वाले व्यक्ति
(D) उपरोक्त सभी
18. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा संबैधानिक तरलता अनुपात को बढ़ाने का निम्न में से क्या प्रभाव पड़ता है ?
(A) बैंकों की साख सृजन क्षमता कम होगी
(B) ब्याज दर घट जाती है
(C) निजी क्षेत्र पर ऋण की मात्रा बढ़ जाती है
(D) बैंकों की आय बढ़ती है
19. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नकद आरक्षण अनुपात को बढ़ाने पर निम्न में से क्या प्रभाव पड़ता है ?
(A) मुद्रा - आपूर्ति बढ़ जाती
(B) मुद्रा - आपूर्ति घट जाती
(C) मुद्रा - आपूर्ति स्थिर रहती
(D) ब्याज दर अप्रभावी रहती
20. निम्न में से कौन कथन नचिकेत मोर समिति की शिफारिशों में शामिल नहीं है?
(A) उपभोक्ता मूल्य आधारित मँहगाई दर से जमा पर ब्याज
(B) किसी न भी क्षेत्र में 30 मिनट की पैदल दूरी पर बैंक हो
(C) NBFC को बैंकों के एजेन्ट के रूप में काम करने अनुमति हो
(D) इनमें से कोई नहीं
21. वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) में वृद्धि का होता है
(A) बैंकों के पास कम नकदी
(B) सरकार को अधिक संसाधन की प्राप्ति
(C) बैंकों की लाभदायकता में कमी
(D) उपरोक्त सभी
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Mon, 08 Apr 2024 05:35:21 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | मुद्रा एवं मुद्रास्फीति https://m.jaankarirakho.com/944 https://m.jaankarirakho.com/944 General Competition | Economics & Economy | मुद्रा एवं मुद्रास्फीति
  • विनिमय (Exchange) मानव जीवन की सामान्य प्रक्रिया है । अर्थशास्त्र में विनिमय की जरूरत तब पड़ती है जब जितना मानव के अधिकार में है या जितनी मात्रा में मानव उत्पादन करते हैं वह मानव के जरूरत से अधिक होता है।
  • मुद्रा का जन्म विनिमय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए हुआ है, इसलिए मुद्रा की परिभाषा एक ऐसी वस्तु के रूप में की जाती है जो सामान्य रूप से विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार की जाती है।

वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System)

  • वस्तु विनिमय प्रणाली, उस प्रणाली को कहते हैं जब किसी वस्तु या सेवा का विनिमय किसी अन्य वस्तु या सेवा के साथ प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है।
  • विनिमय की प्रारंभिक अवस्था में व्यापार वस्तु विनिमय पर ही आधारित था । यह प्रणाली काफी समय तक प्रचलित रही, लेकिन वस्तुओं के प्रत्यक्ष विनिमय में अनेक कठिनाई और असुविधाएँ थी ।

वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ (Drawbacks of the Barter System)

  • इस प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग में कठिनाई थी। आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से तात्पर्य यह है कि किसी एक व्यक्ति . की वस्तु दूसरे की आवश्यकता और दूसरे व्यक्ति की वस्तु पहले की आवश्यकता से पूरा करती है।
  • आवश्यकताओं का दोहरा संयोग के अभाव के कारण वस्तु विनिमय प्रणाली में व्यापार करने की लागतें बहुत ऊँची होती है।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य की समान ईकाई का अभाव पाया जाता है। इसके अभाव में वस्तु का मूल्य व्यक्त करना बहुत कठिन होता है।
  • इस प्रणाली में भविष्य में किए जाने वाले भुगतान या स्थगित भुगतान करना बहुत कठिन है ।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा के अभाव में धन का संचय करना संभव नहीं होता है।
  • वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य का हस्तांतरण करना अर्थात् एक स्थान से दूसरे स्थान भेजना कठिन है।

मुद्रा की परिभाषा (Definition of Money)

  • अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवेश सर्वप्रथम विनिमय के माध्यम के रूप से हुआ था। अतः कोई भी वस्तु जो विनिमय का माध्यम का कार्य करती है उसे मुद्रा कहा जाता है।
  • वर्तमान समय में मुद्रा का कार्य इतना विस्तृत हैं कि मुद्रा की एक सर्वसम्मत परिभाषा देना कठिन हैं। विभिन्न अर्थशास्त्री ने मुद्रा को अलग-अलग तरकेि से परिभाषित करता किया है।
    1. डॉ. मार्शल की परिभाषा:- "मुद्रा में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित की जाती है, जो बिना संदेह अथवा विशेष जाँच के वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने तथा खर्चों को चुकाने में साधारणतया प्रचलित रहती है। "
    2. रॉबर्टसन की परिभाषा:- " मुद्रा वह वस्तु है जिसे वस्तुओं का मूल्य चुकाने तथा अन्य प्रकार के व्यावसायिक दायित्व को निबटाने के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। "
    3. सेलिगमैंन की परिभाषा :- " मुद्रा वह वस्तु है, जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त है । "
    4. क्राउथर की परिभाषा:- "कोई भी ऐसी वस्तु मुद्रा है जो विनिमय के साधन के रूप में सामान्यतः स्वीकार की जाती है तथा मूल्यमापन एवं मूल्य संचय का भी कार्य करती है।"
    5. कोलर्बन की परिभाषा:- " मुद्रा मूल्यमापन तथा भुगतान का साधन है।"
    6. प्रो. हार्टले बिदर्स की परिभाषा:- " मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती हो ।
    7. प्रो. नैप की परिभाषा:- "कोई की वस्तु जो राज्य मुद्रा घोषित कर दी जाए, मुद्रा कहलाती है। "

आदेश तथा न्यास मुद्रा (Fiat and fiduciary Money)

  • आदेश मुद्रा (Fiat Money) - आदेश मुद्रा उस मुद्रा को कहा जाता है जो सरकार के आदेश से अर्थव्यवस्था में प्रचलित रहती है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के नोट तथा सिक्के आते हैं।
  • न्यास मुद्रा (Fiduciary Money)- न्यास मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जो प्राप्तकर्त्ता तथा अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है।
    उदाहरण:- चेक, सोना, चाँदी।

मुद्रा के मौद्रिक मूल्य तथा मुद्रा के वस्तु मूल्य अंतर

  • मुद्रा का मौद्रिक मूल्य:- किसी नोट या सिक्के पर जो मूल्य अंकित रहता है, वह मूल्य मुद्रा का मौद्रिक मूल्य कहलाता है।
  • मुद्रा का वस्तु मूल्य:- मुद्रा जिस वस्तु या धातु से बनी होती है, उस वस्तु या धातु के मूल्य को मुद्रा का वस्तु मूल्य कहते हैं।

मुद्रा का वर्गीकरण (Classification of Money)

  • मुद्रा का वर्गीकरण मुख्यतः पाँच भागों में किया जाता है-.
    1. पूर्ण काय मुद्रा (Full Bodied Money):- मुद्रा पर अंकित मूल्य उसके वस्तु मूल्य के बराबर होते हैं तो उसे पूर्ण काय मुद्रा कहते हैं।
      • पूर्ण काय मुद्रा सिक्कों के रूप में प्राय: होती है। अंग्रेजी शासनकाल से चलने वाला चाँदी का एक रूपया का सिक्का पूर्ण काय मुद्रा था।
    2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full Bodied Money)- प्रतिनिधि पूण काय मुद्रा के अंतर्गत कागजी नोट आते हैं जिसे सरकारी जारी करती है। ये नोट पूर्ण काय मुद्रा का प्रतिनिधित्व करता है।
    3. साख मुद्रा (Credit Money)- साख मुद्रा वह मुद्रा है जिसका मौद्रिक मूल्य उसके वस्तु मूल्य से काफी अधिक होता है।
    4. करेंसी मुद्रा (Currency Money)- यह वह मुद्रा है जो नोटों और सिक्का के रूप में प्रचलन में होता है। इस मुद्रा को स्वीकार करना कानूनन रूप से आवश्यक है।
    5. बैंक मुद्रा (Bank Money)- बैंक मुद्रा से तात्पर्य बैंकों द्वारा किए गये साख निर्माण से है। बैंक इस साख का निर्माण, लोगों को रूपया उधार देकर करते हैं।
    6. प्रामाणिक मुद्रा (Standard Money)- प्रामाणिक मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जिसका सरकार या मौद्रिक नीति के आदेश द्वारा अर्थव्यवस्था के परिचालन होता है। इसी के प्रयोग द्वारा सरकार अपने दायित्वों का पूरा करती है ।
मुद्रा के अन्य प्रकार
  1. प्लास्टीक मनी:- विभिन्न बैंक अथवा वित्तीय संस्था द्वारा जारी डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड को प्लास्टीक मनी कहा जाता है।
    • डेबिट कार्ड (Debit Card) - डेबिट कार्ड बैंक के ग्राहक को उसकी बैंक में जमा राशि के बदले में जारी किया जाता है।
    • क्रेडिट कार्ड (Credit Card)- क्रेडिट कार्ड बैंक अपने उन ग्राहकों को जारी करता है जिनकी साख बैंक की नजरों में बहुत अच्छी है। क्रेडिट कार्ड प्राप्त करने के लिए बैंक खातों में रूपया होना जरूरी नहीं है।
  2. नजदीकी मुद्रा (Near Money) वह संपत्ति जिसे आसानी तथा कम समय में मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है नजदीकी मुद्रा कहलाता है।
    उदाहरण :- सोना, हीरा, चाँदी आदि ।
  3. गर्म मुद्रा (Hot Money) वह मुद्रा जिसके विनिमय दर गिरने की संभावना हमेशा बनी रहती है तथा जिसमें शीघ्र पलायन कर जाने की प्रवृत्ति हो, उसे गर्म मुद्रा कहते हैं।
  4. दुर्लभ मुद्रा (Hard Currency )- अंतराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा की आपूर्ति, माँग के अनुसार कम होती है उसे दुर्लभ मुद्रा कहते हैं। जैसे- डॉलर, पौंड, यूरो
  5. सुलभ मुद्रा (Soft Currency)- अंतराष्ट्रीय बाजार में जिस मुद्रा की आपूर्ति, माँग के अपेक्षा अधिक होती है या वह मुद्रा जो अंतराष्ट्रीय बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाती है सुलभ मुद्रा कहलाता है।
  6. कॉशन मनी (Caution Money)- किसी भी संविदा (ठेका) और दायित्व को पूर्ण करने के लिए जमानत के तौर पर मांगी जाने वाली राशि को कॉशन मनी कहते हैं। 

मुद्रा के कार्य (Function of Money)

मुद्रा के प्राथमिक कार्य-
  1. मुद्रा का प्रमुख कार्य है विनिमय का माध्यम होना । मुद्रां क्रय तथा विक्रय दोनों में ही एक मध्यस्थ का कार्य करता है।
  2. मुद्रा का दूसरा प्रमुख कार्य है वस्तु तथा सेवाओं के मूल्य का मापन करना । मुद्रा के द्वारा सभी वस्तु के मूल्य को मापा जा सकता है तथा व्यक्त किया जा सकता है।
मुद्रा के द्वितीयक कार्य-
  1. मुद्रा के फलस्वरूप स्थगित भुगतान तथा उधार लेन देन की प्रक्रिया सरल हो जाती है।
  2. मुद्रा मूल्य संचय का कार्य करती है। मूल्य संचय का तात्पर्य आय के उस हिस्से से है जिन्हें व्यक्ति भविष्य के लिए बचा कर रखता है।
  3. मुद्रा के रूप में पूँजी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा एक स्थान से दूसरे मुद्रा के कारण पूँजी में गतिशीलता आंती स्थान तक भेजना आसान हो जाता है।
मुद्रा के आकस्मिक कार्य-
  1. वर्त्तमान समय से विश्व के सभी देशों में चैक, ड्राफ्ट का प्रचलन है। इन साख पत्रों का आधार मुद्रा ही है।
  2. मुद्रा के रूप में धन खर्च करके एक उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है वहीं उत्पादक अधिकतम लाभ को प्राप्त करता है।
  3. मुद्रा के प्रचलन होने से किसी देश के राष्ट्रीय आय का मापन आसान हो जाता है। वस्तु विनिमय प्रणाली में राष्ट्रीय आय को मापना संभव नहीं है।
  4. मुद्रा उपभोक्ता को निर्णय लेने में सहायता करते हैं । अर्थशास्त्री प्रो. ग्राहम के अनुसार मुद्रा के रूप में धन संचय करके उपभोक्ता रिस्थितियों के अनुसार वस्तुओं को खरीदने के संबंध में सही निर्णय ले सकता है।
अर्थशास्त्री प्रो. कोलर्बन तथा पाल इन्जिंग ने मुद्रा के सभी कार्यों को केवल दो भागों में बाँटा है-
  1. अगत्यात्मक कार्य (Static function)- अगत्यात्मक कार्य से तात्पर्य मुद्रा के स्थिर तथा निष्क्रिय कार्यों से है। मुद्रा के ये कार्य अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं, उसमें गति पैदा करने में कोई सहायता नहीं करते । अगत्यात्मक कार्य के अंतर्गत मुद्रा के प्राथमिक तथा द्वितीयक कार्य शामिल हैं।
  2. गत्यात्मक कार्य (Dynamic Function)- इसमें मुद्रा के उस कार्य को सम्मीलित किया गया है जो अर्थव्यवस्था में गति प्रदान करते हैं।
मुद्रा के प्रमुख गत्यात्मक कार्य-
(i) मुद्रास्फीति व अवस्फीति जैसे स्थिति को दूर करना
(ii) अंतराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार में सहायता
(iii) मौद्रिक नीति का प्रयोग करके अधिकतम सामाजिक कल्याण को प्राप्त करना 
(iv) मानवीय तथा प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग संभव बनाना।

बचत एवं साख (Saving and Credit)

  • अर्थशास्त्री प्रो. केन्स के अनुसार किसी भी देश में पूंजी का निर्माण वहाँ के नागरिकों के बचत की प्रवृत्ति पर निर्भर है। बचत जितनी अधिक होगी, पूँजी का निर्माण उतना ही अधिक होगा ।
  • देश में पर्याप्त पूंजी उपलब्ध होने पर निवेश के अधिक अवसर उपलब्ध हो पाते हैं, जिससे देश के आर्थिक विकास को बल मिलता है।
  • व्यक्ति का बचत उसके आय का वह हिस्सा है जो वर्त्तमान आवश्यकताओं की संतुष्टि पर होने वाले व्यय के बाद शेष रह जाता है।
    बचत = कुल आय - उपभोग व्यय 
  • देश के नागरिकों की बचत की प्रवृत्ति बचत करने की शक्ति, बचत करने की इच्छा तथा बचत करने की सुविधाओं से प्रभावित होती है।
  • साख (Credit)– क्रेडिट शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'क्रेडो' शब्द से हुई हैं, जिसका अर्थ है विश्वास करना । साख का संबंध विश्वास अथवा भरोसा करने से है।
    • किसी व्यक्ति अथवा संस्था की साख का तात्पर्य उसकी ईमानदारी तथा ऋण लौटाने की क्षमता से है।
    • अर्थशास्त्री प्रो. किनले ने साख को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है- 'साख व्यक्ति का वह शक्ति है, जिससे वह किसी अन्य व्यक्ति को भविष्य में भुगतान करने की प्रतिज्ञा पर अपनी आर्थिक वस्तु सौंप देता हैं। "
    • साख को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ कहा जाता है। अर्थव्यवस्था जब वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था तब भी साख का इस्तेमाल होता था । मुद्रा के प्रचलन के बाद साख- प्रणाली का बहुत अधिक विस्तार हुआ है।
साख के लाभ (Advantages of Credit)
  1. साख पूँजी को गतिशीलता प्रदान कर उद्योग एवं व्यापार के विकास में सहायता करते हैं।
  2. साख पूँजी के उत्पादकता में वृद्धि करते हैं। इसके द्वारा बैंक बेकार पड़ी पूँजी को, उन लोगों तक पहुँचाता है जो इसका उपयोग उत्पादक कार्यों में करते हैं।
  3. साख बचत एवं पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित करती है।
  4. मुद्रा की तुलना में साख का विस्तार एवं संकुचन अधिक सरलता एवं शीघ्रता से किया जा सकता है।

भारत की मौद्रिक प्रणाली (Monetary System of India)

  • भारत के मौद्रिक प्रणाली को कागजी मुद्रा मान (Managed Currency Standard) कहा जाता है तथा नोटों को जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित प्रणाली (Minimum Reserve System) कहा जाता है।
  • भारत में धातु के सिक्कं तथा कागजी नोट दोनों ही साख मुद्रा है। सिक्कं सीमित विधि ग्राह्य (Limited Legal Tender) है तथा कागजी नोट असीमित विधि ग्राह्य (Unlimited Legal Tender) है।
  • भारत में सभी कागजी नोट रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं, किन्तु Rs. 1 का नोट तथा सभी सिक्के भारत सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं। इन्हें Indian Coinage Act. के अधीन जारी किया जाता है। किंतु समस्त करेंसी ( नोट + सिक्के) को केवल RBI ही जारी (Issue) करता है।
  • RBI समस्त जारी की गई करेंसी के पीछे एक न्यूनतम सुरक्षित कोष रखता है । सुरक्षित कोष में न्यूनतम Rs. 115 करोड़ का सोना तथा Rs. 85 करोड़ की विदेशी प्रतिभूतियां होती हैं अर्थात् सुरक्षित कोष का कुल मूल्य केवल Rs. 200 करोड़ है।
  • RBI का सुरक्षित कोष अर्थव्यवस्था में चलित करेंसी का एक छोटा सा भाग है। सुरक्षित कोष का सोना केवल कागजी मुद्रा का आधार है, कागजी नोट को सोने में परिवर्तित करनेवाला भंडार नहीं। भारत की करेंसी अपरिवर्तनीय है।

मुद्रा एवं मुद्रास्फीति

Objective

1. वस्तु विनिमय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें- 
(A) वस्तु के बदले वस्तु का ही लेन-देन होता है
(B) वस्तु का विनिमय वस्तु से नहीं किया जाता है
(C) वस्तु का विनिमय धातुओं से किया जाता है
(D) उपरोक्त सभी
2. किसी अर्थव्यवस्था में व्यापारी वर्ग हिसाब की ईकाई के रूप में प्रयोग कर सकते हैं-
(A) सिर्फ एक पाई जाने वाले वस्तु
(B) केवल मुद्रा
(C) कोई भी वस्तु चाहे वह पाई जाती है या नहीं
(D) कोई मुद्रा जो वर्त्तमान समय प्रचलन में है
3. वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था की धारणा में -
(A) वस्तुओं को वस्तुओं में बदला जाता है
(B) वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलन में होती है
(C) मुद्रा का प्रयोग किया जाता है
(D) A तथा B दोनों
4. निम्नलिखित में से कौन-सी मुद्रा की पर्याप्त परिभाषा है-
(A) कोई भी वस्तु जिसे कम भुगतान के रूप में स्वीकार किया जाता है
(B) कोई भी वस्तु जिसका सोने की एक निश्चित दर पर विनिमय किया जाता है 
(C) कोई भी वस्तु जिसे बैंक स्वीकार करने को तैयार है
(D) कोई भी वस्तु जो सामान्य रूप से वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिमय के रूप में स्वीकार की जाती है।
5. वस्तु विनिमय प्रणाली की निम्नलिखित में कौन सी कठिनाई नहीं है ?
(A) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग
(B) मूल्य के सामान्य इकाई का पाया जाना
(C) स्थगित भुगतान की प्रणाली का अभाव
(D) स्थगित भुगतान की प्रणाली का अभाव
6. किसी देश की मुद्रा की कुल मात्रा में शामिल होता है- 
(A) सिक्के 
(B) बिल
(C) करेंसी और बैंक जमा
(D) सोना तथा नोट
7. मुद्रा के लिए अपना कार्य करने से पहले निम्नलिखित में से कौन - सा गुण आवश्यक है ?
(A) स्वीकृति
(B) मूल्य की स्थिरता
(C) टिकाऊपन
(D) पहचान
8. वस्तु विनिमय प्रणाली की मुख्य कठिनाई थी -
(A) आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव
(B) मूल्यमापन की कठिनाई
(C) A तथा B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
9. मुद्रा का प्राचीनतम रूप है-
(A) धातु मुद्रा
(B) सिक्के
(C) वस्तु मुद्रा
(D) पत्र मुद्रा
10. किस धातु का मुद्रा के रूप में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है ?
(A) लोहा
(B) ताँबा
(C) पीतल
(D) चाँदी और सोना
11. मुद्रा का प्राथमिक कार्य कौन-सा है ?
(A) मूल्य का संचय
(B) विलंबित भुगतान का मान
(C) मूलय का हस्तांतरण
(D) विनिमय का माध्यम
12. बचत को प्रभावित कराने प्रमुख तत्व है-
(A) बचत करने की क्षमता
(B) बचत करने की इच्छा
(C) बचत करने की सुविधाएँ
(D) इनमें सभी
13. निम्नलिखित में से मुद्रा का प्राथमिक कार्य कौन-सा है ?
(A) मूल्य का संचय
 (B) मूल्य का हस्तांतरण
(C) मूल्य का मापदंड
(D) साख का आधार
14. केंद्रीय बैंक द्वारा कौन-सी  मुद्रा जारी की जाती है ?
(A) चलन मुद्रा .
(B) साख मुद्रा
(C) सिक्के
(D) इनमें से सभी
15. निम्नलिखित में से कौन-सी निकट मुद्रा है ?
(A) समय जमा
(B) विनिमय पत्र
(C) ट्रेजरी बिल
(D) उपरोक्त सभी
16. किसने कहा- "मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें" ?
(A) केन्ज
(B) प्रो. थामस
(C) हाद्रे
(D) हार्टले विदर्स
17. पूर्ण कार्य मुद्रा वह मुद्रा है जिसमें सिक्के पर अंकित मूल्य और उसमें लगी धातु का -
(A) मूल्य बराबर है
(B) मूल्य कम है
(C) मूल्य अधिक है
(D) मूल्य शून्य है
18. निम्नलिखित में से मुद्रा का गौण कार्य कौन-सा नहीं है ?
(A) स्थगित भुगतानों का मान
(B) मूल्य का मापदंड
(C) मूल्य का संचय
(D) मूल्य का हस्तांतरण
19. साख मुद्रा वह मुद्रा है जिसमें मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से होता है-
(A) अधिक
(B) कम
(C) बराबर
(D) इनमें से कोई नहीं
20. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा वह मुद्रा है जिसमें मुद्रा पर अंकित मूल्य तथा वास्तविक मूल्य-
(A) बराबर नहीं होते
(B) बराबर होते हैं
(C) एक-दूसरे से अधिक होते हैं
(D) एक-दूसरे से कम होते हैं
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 11:20:19 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | राष्ट्रीय आय https://m.jaankarirakho.com/943 https://m.jaankarirakho.com/943 General Competition | Economics & Economy | राष्ट्रीय आय
  • वर्तमान समय में सभी अर्द्धविकसित एवं विकासशील देश का मुख्य उद्देश्य है- आर्थिक विकास को अधिक तेज बनाना।
  • राष्ट्रीय आय के माप से ही हमें यह जानकारी प्राप्त होती है कि किसी देश का आर्थिक विकास हो रहा है या नहीं ।
  • देश के प्राकृतिक संसाधनों पर श्रम और पूँजी लगाकर उनका उपयोग किया जाता है उससे प्रत्येक वर्ष एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं के योग को ही राष्ट्रीय आय कहते हैं।
  • राष्ट्रीय आय की धारणा को जानने से पहले अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को समझना आवश्यक है।

आय का चक्रीय प्रवाह (The Circular Flow of Income)

  • आय और उत्पाद के चक्रीय प्रवाह के दृष्टिकोण से एक अर्थव्यवस्था को प्राय: पाँच श्रेणी में बाटाँ जाता है-
    1. उत्पादक क्षेत्र - यह क्षेत्र वस्तुओं और सेवाओं का उत्पाद करता है।
    2. गृहस्थ क्षेत्र - यह क्षेत्र वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करता है। गृहस्थ, उत्पादन के साधन (भूमि, पूँजी, श्रम एवं उद्यम ) के स्वामी होते हैं।
    3. सरकारी क्षेत्र - यह क्षेत्र कराधान एवं आर्थिक सहायता आदि से संबंधित कार्य करता है।
    4. शेष विश्व क्षेत्र - यह क्षेत्र निर्यात और आयात करता है।
    5. वित्तीय क्षेत्र - यह क्षेत्र मुद्रा उधार देता है एवं जमाएँ स्वीकार करता है। 
  • आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह से तात्पर्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मौद्रीक आय के प्रवाह या वस्तुओं और सेवाओं के चक्रीय प्रवाह से है।
  • आय के चक्रीय प्रवाह के दो मुख्य कारण हैं-
    1. किसी एक दिशा में होने वाले वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह के साथ-साथ उससे विपरित दिशा में मुद्रा का प्रवाह होता है ।
    2. एक क्षेत्र को जो प्राप्तियाँ मिलती है, वे दूसरे क्षेत्र को किए जाने वाले भुगतान के बराबर होता है।
  • आय के प्रवाह से तात्पर्य मुद्रा के प्रवाह से है। जबकि उत्पाद के प्रवाह से अभिप्राय वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह से है। आय के प्रवाह को मौद्रीक प्रवाह तथा उत्पाद के प्रवाह को वास्तविक प्रवाह कहा जाता है।
  • सामान्य रूप से किसी देश की अर्थव्यवस्था को केवल दो क्षेत्र उत्पादक क्षेत्र तथा उपभोक्ता क्षेत्र (गृहस्थ क्षेत्र) में बाँट दिया जाए तो इनके बीच निम्न रूप से उत्पादन, आय एवं व्यय का प्रवाह निरंतर चलता रहता है।

राष्ट्रीय आय की परिभाषा

अल्फ्रेड मार्शल की परिभाषा -
  • "किसी देश का श्रम तथा पूँजी, प्राकृतिक संसाधनों पर क्रियाशील होकर प्रतिवर्ष वस्तुओं का एक शुद्ध समूह उत्पन्न करे हैं जिसमें भौतिक तथा अभौतिक पदार्थ तथा सभी प्रकार की सेवाएँ सम्मिलित रहती है। यह देश का राष्ट्रीय आय कहलाता है । "
  • अल्फ्रेड मार्शल के अनुसार राष्ट्रीय आय एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है। 
प्रो. पीगू की परिभाषा -
  • "राष्ट्रीय आय किसी समाज की वास्तविक आय का वह भाग जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित है, जिसे मुद्रा के रूप में मापा जाता है।"
  • प्रो. पीगू के अनुसार एक निश्चित अवधि में देश के नागरिकों के संपूर्ण आय को राष्ट्रीय आय माना है।
प्रो. फिशर की परिभाषा -
  • “वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग जिसका उस वर्ष में प्रत्यक्ष रूप  से उपभोग किया जाता है । "
  • मार्शल और पीगूं के ठीक विपरित फिशर ने उत्पादन की अपेक्षा उपभोग को राष्ट्रीय आय का आधार माना हैं।

राष्ट्रीय आय लेखांकन की मूल धारणाएँ (Basic Concepts of National Income Accounting)

देश की घरेलू सीमा- 
  • राष्ट्रीय आय लेखा विधि भी घरेलू सीमा शब्द का प्रयोग विशेष अर्थों में किया जाता है। घरेलू सीमा की परिभाषा में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जाता है-
    1. देश की राजनीतिक या भौगोलिक तथा समुद्री सीमा ।
    2. देश के निवासियों द्वारा दो या दो से अधिक देशों के बीच चलाए जाने वाले जलयान तथा वायुयान।
    3. मछली पकड़ने की नौकाएँ, तेल व प्राकृतिक गैस यान जो अंतराष्ट्रीय जल सीमा में या उस सीमा में देश के निवासियों द्वारा चलाए जाते हैं जिनमें देश को तेल खोजने का अधिकार है।
    4. देश का विदेशों में स्थित दूतावास, वाणिज्य दूतावास तथा सैनिक प्रतिष्ठान, वैज्ञानिक स्टेशन आदि । परंतु भारत में अमेरिका का दूतावास भारत की घरेलू सीमा का अंग नहीं है।
देश के सामान्य निवासी तथा गैर निवासी-
  • एक देश के सामान्य निवासी से अभिप्राय उस व्यक्ति या संस्था से है जो उस देश में समान्यतया रहता है या स्थित है जिसकी आर्थिक रूचि उस देश में केंद्रित हैं।
  • यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष से अधिक समय के लिए विदेश में रहता है तो वह विदेश का सामान्य निवासी कहलाता है वह देश के लिए गैर निवासी हो जाएगा।
घरेलू तथा राष्ट्रीय धारणाएँ -
  • घरेलू उत्पाद या आय की धारणा का संबंध किसी देश की घरेलू सीमा में सभी उत्पादकों (सामान्य निवासी + गैर निवासी) द्वारा उत्पादित उत्पादन से है।
  • राष्ट्रीय उत्पाद या आय की धारणा का संबंध किसी देश के सभी सामान्य निवासी द्वारा देश की घरेलू सीमा तथा शेष विश्व में किए गए उत्पाद से है।
⇒ राष्ट्रीय उत्पाद या आय = घरेलू उत्पाद या आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
⇒ घरेलू उत्पाद या आय = राष्ट्रीय उत्पाद या आय - विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय 
⇒ विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = सामान्य निवासी द्वारा शेष विश्व में प्राप्त साधन आय - गैर निवासियों द्वारा उस देश में प्राप्त साधन आय 
सकल एवं शुद्ध धारणाएँ-
  • सकल (Gross) शब्द का प्रयोग शुद्ध (Net) शब्द की तुलना में विस्तृत अर्थों में किया जाता है।
⇒ शुद्ध उत्पाद या आय = सकल उत्पाद या आय - मूल ह्रास
⇒ सकल उत्पाद या आय = शुद्ध उत्पाद या आय + मूल ह्रास
⇒ मूल्य ह्रास = सकल उत्पाद या आय - शुद्ध उत्पाद या आय
  • मूल्य ह्रास (Depreciation) से तात्पर्य एक लेखा वर्ष में सामान्य टूट फूट, अनुमानित अप्रचलन तथा आकस्मिक हानि से है।
बाजार कीमत एवं साधन लागत धारणाएँ-
  • बाजार कीमत की धारणा व्यय दृष्टिकोण की धारणा है जबकि साधन लागत की धारणा आय दृष्टिकोण की धारणा है।
⇒ बाजार कीमत = साधन लागत + अप्रत्यक्ष कर - आर्थिक सहायता
⇒ साधन लागत = बाजार कीमत - अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता

राष्ट्रीय आय

Objective

1. राष्ट्रीय आय का सृजन होता है-
(A) उपभोग द्वारा
(B) विनिमय द्वारा
(C) वितरण द्वारा
(D) उत्पादक क्रियाओं द्वारा
2. भारत में वित्तीय या लेखा वर्ष की अवधि-
(A) 1 जनवरी - 31 दिसंबर
(B) 1 अप्रैल - 31 मार्च
(C) 1 जुलाई 30 जून
(D) 1 सितंबर 31 अगस्त
3. भारत के राष्ट्रीय आय का सर्वप्रथम अनुमान लगाया था ?
(A) महात्मा गांधी
(B) जवाहर लाल नेहरू
(C) सरदार पटेल
(D) दादा भाई नौरोजी
4. राज्य घरेलू उत्पाद का आकलन किया जाता है-
(A) वर्त्तमान मूल्यों पर
(B) स्थिर मूल्य पर
(C) A तथा B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
5. भारत की प्रमुख आर्थिक समस्या है-
(A) निर्धनता.
(B) बेरोजगारी
(C) A तथा B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
6. भारत सरकार का नवीन आर्थिक नीति कब लागू हुई ?
(A) 1984-85 में 
(B) 1990-91 में
(C) 1994-95 में 
(D) 2001-02 में
7. राष्ट्रीय आय में सम्मिलित रहती है-
(A) घरेलू उद्योगों की आय
(B) विदेशों से प्राप्त आय 
(C) A तथा B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
8. किसी अर्थव्यवस्था में एक चक्रीय प्रवाह का निर्माण करते हैं-
(A) उत्पादन
(B) आय
(C) व्यय
(D) तीनों
9. दादाभाई नौरोजी के अनुसार 1868 में भारत का प्रति व्यक्ति आय कितनी थी ?
(A) ₹20
(B) ₹25
(C) ₹30
(D) ₹50
10. आय की गणना किस पद्धति द्वारा की जाती है ?
(A) उत्पादन गणना विधि
(B) व्यय गणना विधि
(C) आय-गणना विधि
(D) इनमें सभी
11. राष्ट्रीय आय के माप हेतु उत्पत्ति अथवा उत्पादन गणना विधि का सर्वप्रथम प्रयोग हुआ था- 
(A) अमेरिका में
(B) जर्मनी में
(C) ब्रिटेन में
(D) भारत में
12. हमारे रहन-सहन के स्तर को प्रभावित करता है-
(A) राजकीय आय
(B) राष्ट्रीय आय
(C) प्रतिव्यक्ति आय
(D) इनमें से कोई नहीं
13. राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से वृद्धि होती है-
(A) उपभोग में 
(B) विनियोग में
(C) A तथा B दोनों में
(D) इनमें से कोई नहीं
14. निम्नांकित में किस राज्य के प्रतिव्यक्ति आय सबसे कम है ?
(A) तामिलनाडु 
(B) मध्य-प्रदेश
(C) बिहार
(D) झारखंड
15. बिहार के किस जिले में प्रतिव्यक्ति आय सर्वाधिक है ?
(A) नालंदा
(B) रोहतास
(C) सिवान
(D) शिवहर
16. बिहार के किस जिले में प्रतिव्यक्ति आय सबसे कम है ?
(A) भागलपुर
(B) पटना
(C) गया  
(D) सीतामढ़ी
 
17. राष्ट्रीय आय का अर्थ है-
(A) सरकार की आय
(B) परिवारिक आय
(C) सार्वजनिक उपक्रमों की आय
(D) उत्पादन के साधनों की आय
18. वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है जिसका उस वर्ष प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है। राष्ट्रीय आय का यह परिभाषा किसने दी ?
(A) मार्शल ने
(B) प्रो० फिशर ने
(C) प्रो० पीगू ने 
(D) रस्किन ने
19. वर्तमान मूल्यों पर प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर स्थिर मूल्यों पर प्रति व्यक्ति की आय की वृद्धि दर से अपेक्षाकृत अधिक है, क्योंकि स्थिर मूल्यों पर प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर में ध्यान रखा जाता है- 
(A) जनसंख्या वृद्धि की दर का
(B) मूल्यस्तर की वृद्धि दर का
(C) मुद्रास्फीति की वृद्धि दर का
(D) वेतनदर में वृद्धि दर का
20. यदि एक दी हुई समयावधि में कीमतें तथा मौद्रिक आय दोनों दुगुनी हो जाए तो वास्तविक आय-
(A) दुगुनी हो जाएगी
(B) आधी रह जाएगी
(C) अपरिवर्तित रहेगी
(D) कीमते वास्तविक आय को प्रभावित नहीं करती है
21. भारत में हाल में राष्ट्रीय आय की माप में क्या बड़ा परिवर्त्तन किया गया है ?
(A) आधार वर्ष व गणना विधि दोनों बदलाव किया गया है।
(B) आधार वर्ष 2004-05 से बदलकर 2011-12 किया गया है।
(C) गणना साधन- लागत से बदलकर बाजार कीमतों पर P की गई है।
(D) गणना चालू कीमतों से बदलकर स्थिर कीमतों पर की गई है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 10:46:59 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Economics & Economy | अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था की परिभाषा https://m.jaankarirakho.com/942 https://m.jaankarirakho.com/942 General Competition | Economics & Economy | अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था की परिभाषा

अर्थशास्त्र की परिभाषा

  • अर्थशास्त्र दो शब्द अर्थ (धन) तथा शास्त्र ( वैज्ञानिक अध्ययन) से मिलकर बना है । अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें मनुष्य की धन संबंधी कार्यों का अध्ययन किया जाता है।
  • अर्थशास्त्र को अंग्रेजी में Economics कहते हैं। Economics दो ग्रीक शब्द Oikos (घरेलू) तथा Nemein (प्रबंध) से मिलकर बना है।
  • अर्थशास्त्र में मनुष्य के उन सभी कार्यों का अध्ययन होता है जिन्हें वे असीमित आवश्यकताओं को संतुष्ट करने वाले सीमित साधन को प्राप्त करने के संबंध में करते हैं।

विभिन्न अर्थशास्त्रीयों द्वारा दिये अर्थशास्त्र की परिभाषा

एडम स्मिथ की परिभाषा
  • ''अर्थशास्त्र राष्ट्रों के धन की प्रकृति तथा कारणों की खोज है। "
  • एडम स्मिथ को आधुनिक अर्थशास्त्र का पिता कहा जाता है।
  • एडम स्मिथ ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "An Enquiry into the Nature and Causes of wealth of Nations" को 1776 ई. में प्रकाशित किया था।
  • कार्लाईल, रस्किन तथा मौरिस जैसे अर्थशास्त्री ने एडम स्मिथ के परिभाषा को यह कहकर आलोचना की है कि उन्होंने अर्थशास्त्र में धन को मनुष्य से अधिक महत्व दिया है जो अनुचित है।
डॉ. मार्शल की परिभाषा
  • ''अर्थशास्त्र मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्यों उस भाग का अध्ययन करता है जिसका घनिष्ठ संबंध कल्याण प्रदान करने वाले भौतिक पदार्थों की प्राप्ति तथा उनका उपयोग करने से है। "
  • डॉ. मार्शल की प्रसिद्ध पुस्तक "Principle of Economics" का प्रकाशन 1890 में हुआ था ।
  • अर्थशास्त्री रोविन्स ने डॉ. मार्शल की परिभाषा को यह कहकर आलोचना की है कि, अर्थशास्त्र में सभी आर्थिक कार्यों का अध्ययन होता हैं चाहे वे भौतिक हो या अभौतिक, चाहे उनसे कल्याण में वृद्धि हो अथवा न हो ।
रोबिन्स की परिभाषा
  • "अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो विभिन्न उपयोग वाले सीमित साधनों तथा उद्देश्यों से संबंध रखने वाले मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता हैं।"
  • रोबिन्स के उपर्युक्त परिभाषा को दुर्लभता संबंधी परिभाषा भी कहा जाता है।
  • रोबिन्स की प्रसिद्ध पुस्तक "An Essay on the Nature and Significance of Economic Science" का प्रकाशन 1932 में हुआ था ।
  • डरबिन, प्रेजर, ऐली जैसे अर्थशास्त्री ने रोबिन्स के परिभाषा का आलोचना यह कहकर की है कि, रोबिन्स ने अर्थशास्त्र को केवल चयन या मूल्य निर्धारण का शास्त्र बना दिया है।
नोबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री सैम्युअलसन की परिभाषा
  • ''अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति तथा समाज किस प्रकार मुद्रा के माध्यम से अथवा इसके बिना विभिन्न वस्तुओं कं उत्पादन के लिए वैकल्पिक उपयोगों वाले दुर्लभ साधनों का प्रयोग करते हैं और इन वस्तुओं को वर्तमान तथा भविष्य के उपभोग के लिए समाज के विभिन्न लोगों तथा वर्गों के बीच बाँटते हैं। यह साधनों के बंटवारे में किए जाने वाले सुधारों के लाभों व लागतों का विश्लेषण करता है। "

आर्थिक क्रिया (Economic Activity)

  • आर्थिक क्रिया का तात्पर्य उन क्रियाओं से है जिनका संबंध आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए सीमित साधनों के प्रयोग से है।
  • अर्थशास्त्र के अंतर्गत मुख्यरूप से आर्थिक क्रियाओं का ही अध्ययन होता है। आर्थिक क्रियाओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है।
1. उत्पादन (Production)
  • उत्पादन वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध वस्तुओं तथा सेवाओं की उपयोगिता या मूल्य में वृद्धि करने से है।
  • उत्पादन के चार मुख्य साधन हैं- भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यमी ।
2. उपभोग (Consumption) 
  • उपभोग वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध व्यक्तिगत तथा सामूहिक आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं की उपयोगिता के उपभोग से है।
3. निवेश (Invesment)
  • निवेश वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध भविष्य में वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन से है।
  • निवेश के माध्यम से मनुष्य की आवश्यकता को अप्रत्यक्ष रूप से संतुष्टि मिलती है। 
विनिमय (Exchange)
  • विनिमय वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध किसी वस्तु या उत्पादन के साधन के क्रय-विक्रय से है ।
  • विनिमय को 'कीमत निर्धारण' भी कहा जाता है।

अर्थशास्त्र के प्रकार

  • नार्वे के अर्थशास्त्री रैगनर फ्रिश ने अर्थशास्त्र को दो भागों में बाँटा है-
1. व्यष्टि अर्थशास्त्र ( Micro Economics)
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में केवल एक आर्थिक ईकाई की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
    उदाहरण- व्यक्तिगत गृहस्थ, व्यक्तिगत फर्म, व्यक्तिगत उद्योग के आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन।
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र को संक्षेप में कीमत सिद्धान्त कहा जाता है।
2. समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
  • समष्टि अर्थशास्त्र में संपूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
    उदाहरण- राष्ट्रीय आय, बेरोजगारी, निर्धनता, मुद्रास्फीति का अध्ययन
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र के दो अलग-अलग शाखाएँ हैं परंतु ये एक-दूसरे से संबंधित है।

दुर्लभता और चयन (Scarcity and Choice)

  • दुर्लभता उस स्थिति को कहते हैं जिसमें साधनों की पूर्ति उनकी माँग से कम होती है।
  • मनुष्य की आवश्यकता असीमित होती है परंतु आवश्यकता को संतुष्ट करने वाले साधन सीमित है।
  • आवश्यकता को संतुष्ट करने वाले साधन के दुर्लभ (सीमित) होने के कारण " चयन" की समस्या उत्पन्न होती है।
  • चयन से तात्पर्य निर्णय लेने की प्रक्रिया से है। निर्णय ये लेना पड़ता है कि सीमित साधनों का प्रयोग किस प्रकार किया जाए ताकि - 
    - उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो ।
    - उत्पादक अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके ।
    - राष्ट्र अधिकतम सामाजिक कल्याण प्राप्त करें।
  • दुर्लभता तथा चयन का संबंध अटूट है तथा चयन का मुख्य कारण दुर्लभता ही है।

अर्थव्यवस्था (Economy)

  • अर्थव्यवस्था का अर्थ उस व्यवस्था या संगठन से है जिसके अंतर्गत सभी नागरिक अपने आर्थिक क्रियाकलाप द्वारा जीविकोपार्जन अर्थात् आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  • अर्थव्यवस्था एक सामाजिक व्यवस्था है जो किसी देश अथवा राज्य के नागरिकों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उनकी आर्थिक क्रियाओं में समन्वय स्थापित करती है।
  • अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है जिससे यह प्रकट होता है कि विशेष क्षेत्र के लोग किस प्रकार अपनी जीविका कमाते हैं।

अर्थव्यवस्था के प्रकार

  • साधनों के स्वामित्व के आधार पर विश्व के विभिन्न देशों में तीन प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती है।
1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy)
  • पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को बाजार अर्थव्यवस्था भी कहते हैं। इस अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं को बाजार शक्तियों के अधीन स्वतंत्र छोड़ा दिया जाता है। आर्थिक क्रियाओं पर सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
  • इस अर्थव्यवस्था में लोगों को निजी सम्पत्ति रखने तथा उसको अपनी इच्छानुसार प्रयोग करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है। सरकार लोगों के इस अधिकार की रक्षा करती है।
  • इस अर्थव्यवस्था में कीमत का निर्धारण बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के बाजार में माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा तय होती है।
  • इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन मुख्य रूप से लाभ प्राप्त करने के लिए किया जाता है। उद्यमों के बीच लाभ कमाने हेतु गलाकाट प्रतियोगिता पायी जाती है।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विचारधारा के प्रवर्त्तक एड्म सिमथ है। एड्म स्मिथ ने अर्थव्यवस्था में सरकार को अहस्तक्षेप की नीति अपनाए जाने का समर्थन किया।
  • पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र अर्थव्यवस्था भी कहते हैं।
  • अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, कनाडा आदि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदाहरण हैं।
2. समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialistic Economy)
  • समाजवाद एक आधुनिक विचारधारा है जिसका प्रादूर्भाव तब हुआ जब पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में कई प्रकार की विसंगतियाँ आ गई।
  • इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन के सभी साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होता है तथा सरकार समाज की प्रतिनिधि होती है।
  • इस अर्थव्यवस्था का उद्देश्य लाभ की प्राप्ति न होकर सामाजिक कल्याण होता है। आर्थिक न्याय एवं अवसरों की समानता इस व्यवस्था के मूल आधार है।
  • इस अर्थव्यवस्था में सरकार ही प्रमुख उद्यमी होते हैं जिस कारण प्रतियोगिता का अभाव होता है।
  • इस अर्थव्यवस्था को केंद्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था भी कहते हैं।
  • पूर्व सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था एक समाजवादी अर्थव्यवस्था थी ।
3. मिश्रीत अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)
  • अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स ने सर्वप्रथम अहस्तक्षेप की नीति को त्यागने के बात की तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था की अवधारणा दी।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था में पूँजीवाद तथा समाजवादी, दोनों की विशेषताएँ पायी जाती हैं।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों का सह-अस्तित्व पाया जाता है तथा उनमें स्वस्थ प्रतियोगिता पायी जाती है।
  • मिश्रीत अर्थव्यवस्था में सरकार लोकतांत्रिक योजनाओं के द्वारा देश के आर्थिक विकास के लिए प्रयत्नशील रहती है। इन योजनाओं में सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्र को समान महत्व दिया जाता है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था, मिश्रीत अर्थव्यवस्था का सबसे अच्छा उदाहरण है।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में मिश्रीत अर्थव्यवस्था अपनाने के मुख्य कारण-
    1. स्वतंत्रता के समय निजी क्षेत्र इतना मजबूत नहीं था कि वह केवल अपने दम पर राष्ट्र के विकास का उत्तरदायित्व निभा सके।
    2. स्वतंत्रता के समय राज्य भी ऐसी अवस्था में नहीं था कि पूरी तरह से समाजवादी व्यवस्था के अनुरूप राष्ट्र का विकास कर सके।
    3. इस काल में राष्ट्र के पास पूँजी उपलब्धता का अभाव था, इसलिए समाजवादी व्यवस्था को नहीं अपनाया जा सकता था।
    4. सरकार अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका कम ही रखना चाहती ताकि व्यापक रूप फैले गरीबी तथा बेरोजगारी पर ध्यान दिया जा सके।
    5. भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के अनुरूप बनाने हेतु भी मिश्रीत अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।
4. विकसित अर्थव्यवस्था ( Developed Economy)
  • जिन देशों की राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय अधिक होता है तथा वहाँ के नागरिकों का जीवनस्तर अपेक्षाकृत ऊँचा होता है, उसे विकसित अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
  • विश्व बैंक के अनुसार जहाँ प्रतिव्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 12,056 डॉलर या उससे अधिक है, वह विकसित अर्थव्यवस्था कहलाती है। विकसित अर्थव्यवस्था को उच्च आय वर्गवाली अर्थव्यवस्था भी कहते हैं।
  • अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि विकसित अर्थव्यवस्था के उदाहरण हैं। 
5. विकासशील अर्थव्यवस्था ( Developing Economy)
  • विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होता है तथा ये देश निर्धन देशों की श्रेणी में आते हैं।
  • विश्व बैंक ने विकासशील अर्थव्यवस्था को दो श्रेणी में विभाजित किया है-
    1. निम्न मध्यम आय वर्ग अर्थव्यवस्था- इस अर्थव्यवस्था में प्रतिव्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 996 डॉलर से 3895 डॉलर के बीच होता है।
    2. उच्च मध्यम आय वर्ग अर्थव्यवस्था इस अर्थव्यवस्था में प्रतिव्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 3896 डॉलर से 12055 डॉलर तक होता है।
  • भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, चीन आदि विकाशील अर्थव्यवस्था है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था को विकासशील अर्थव्यवस्था निम्न कारणों के कारण कहा जा सकता है -
    1. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय आय तथा प्रतिव्यक्ति आय में लगातार वृद्धि हुई है। प्रथम पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय आय में वृद्धि प्रतिशत 3.7% था वीं आठवीं में बढ़कर 5.8% हो गया। 1991 के आर्थिक सुधार के बाद देश में विकास दर औसत लगभग 7% रहा ।
    2. भारत में कृषि उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ उत्पादकता में भी काफी सुधार हुआ है।
    3. भारत में बचत एवं पूँजी निर्माण में काफी सुधार हुआ है।
    4. भारत में परिवहन सिंचाई, बिजली, शिक्षा स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का विस्तार हुआ है।
    5. राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का भार कम होता जा रहा है और सेवा क्षेत्र का भाग लगातार बढ़ रहा है।
    6. विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में भी भारत ने काफी सफलता प्राप्त की है। अणु परीक्षण किए हैं, अग्नि तथा पृथ्वी जैसे मिसाइल विकसित कर लिए हैं।
  • विश्व बैंक के अनुसार ऐसी अर्थव्यवस्था जिनकी प्रतिव्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 995 डॉलर या इससे कम है उन्हें अल्पविकसित या निम्न आय वर्ग अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
6. अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था (Underdeveloped Economy)
  • अर्द्धविकसित अर्थव्यवस्था या अर्द्धविकसित देश वह है जहाँ प्रतिव्यक्ति आय कम होता है, पूँजी का अभाव होता है, उत्पादन की विधियाँ पुरानी होती है तथा विकास की गति धीमी एवं स्तर निम्न होता है जिसके कारण गरीबी, बेकारी ( बेरोजगारी) की समस्या व्याप्त होती है। परंतु ऐसे देशों में विकास की अपार संभावनाएँ मौजूद रहती हैं, जिनके भरपूर दोहन द्वारा ये देश अपनी स्थिति को सुधार सकते हैं।
  • भारत के अर्द्धविकसित देश है। भारत में अर्द्धविकसित होने के निम्न विशेषताएँ मौजूद हैं-
    1. प्रति व्यक्ति निम्न आय
    2. कृषि की प्रधानता
    3. आय तथा भूमि का असमान वितरण 
    4. जनसंख्या का वृहद आकार
    5. गरीबी तथा बेरोजगारी की समस्या
    6. पूँजी निर्माण की निम्न दर 
    7. प्राकृतिक संसाधनों का अल्प उपयोग
    8. निम्न कोटि की मानव पूंजी
    9. निम्न उपभोग स्तर
    10. कमजोर आर्थिक संगठन 
7. बंद और खुली अर्थव्यवस्था (Closed and Open Economy)
  • "बंद अर्थव्यवस्था" वह अर्थव्यवस्था है जिसमें शेष विश्व के साथ आयात-निर्यात की अनुमति नहीं होती। इसमें देश की भौगोलिक सीमा के अंदर ही व्यापार संभव है। इस अर्थव्यस्था में कोई दूसरा देश घरेलू स्टॉक मार्केट में भागीदार नहीं बन सकता और लोग या निवेशक केवल अपने लिए या देश स्तर पर ही निवेश कर सकते हैं।
  • ब्राजील अर्थव्यवस्था को बंद अर्थव्यवस्था की संज्ञा दी जाती है।
  • "खुली अर्थव्यवस्थां" वहं अर्थव्यवस्था है जिसमें शेष विश्व के साथ आयात व निर्यात संभव है। इसमें लोग और निवेशक - विश्व बाजार में निवेश कर सकते हैं।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था को निम्न कारणों से बंद अर्थव्यवस्था कहा जा सकता है-
    1. सबसे प्रमुख है भारतीय रूपये बंद मुद्रा है। यह केवल नेपाल और भूटान में ही प्रयोग लाया जा सकता है।
    2. विश्व के अन्य मुद्राओं के सापेक्ष RBI रूपये या विदेशी विनिमय दर पर अधिक नियंत्रण रखता है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था निम्न कारणों से एक खुली अर्थव्यवस्था है-
    1. विदेशी निवेशकों हेतु भारतीय शेयर बाजार पूरी तरह से खुला है।
    2. भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक देश है ।
    3. 1991 के आर्थिक नीति जिसके तहत् उदारीकरण, निजीकरण अर्थव्यवस्था की पूरी तरह से खुला बना दिया है।
    4. भारत WTO का संस्थापक सदस्य है तथा कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं जिसके तहत बिना किसी प्रतिबन्ध आयात-निर्यात हो रहे हैं।
      ''भारत वर्त्तमान समय में एक खुली अर्थव्यवस्था का वाहक है इसे चंद अर्थव्यवस्था कहना तर्कसंगत नहीं होगा।"
  • विश्व आर्थिक मंच (WEF) के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष क्लॉस श्वाब के अनुसार आज भी भारत की छवि बंद अर्थव्यवस्था वाली है। उनके अनुसार भारत को आज भी निवेश, रोजगार सृजन, परंपरागत शिक्षा प्रणाली और ढाचागत विकास क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र (Sectors of Economy)

1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sectors)
  • प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है। यह क्षेत्र मनुष्य का प्राचीनतम व्यवसाय है। इस क्षेत्र के द्वारा उत्पादित वस्तु जीवन यापन हेतु अनिवार्य होता है ।
  • प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत निम्न क्षेत्र आते हैं-
    (i) कृषि
    (ii) पशुपालन
    (iii) वानिकी
    (iv) मत्स्यपालन
    (v) खनन आदि
  • प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र हेतु कच्चा माल को तैयार करता है ।
2. द्वितीयक क्षेत्र ( Secondary Sectors)
  • अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को अपनी गतिविधियों में कच्चे माल की तरह उपयोग करता है द्वितीयक क्षेत्र कहलाता है।
  • द्वितीय क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहते हैं। इस क्षेत्र के अंतर्गत विनिर्माण, निर्माण, विद्युत, गैस तथा जलापूर्ति आते हैं।
  • द्वितीयक क्षेत्र के विकास करने पर ही प्राथमिक क्षेत्र का विकास होता है ।
3. तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sectors)
  • तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में वस्तुओं का नहीं, वरन सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। यह क्षेत्र प्राथमिक तथा द्वितीयकं क्षेत्र को अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराता है।
  • सेवा क्षेत्र के अंतर्गत निम्न आर्थिक क्रियाएँ आते हैं-
    1. व्यापार, होटल तथा रेस्ताएँ
    2. लोक प्रशासन एवं प्रतिरक्षा
    3. परिवहन, संचार, भंडारण
    4. बैंकिंग, बीमा, रियल एस्टेंट
    5. चिकित्सा, शिक्षा आदि
  • वर्त्तमान समय सूचना-प्रौद्योगिकी का विकास अपने चरमोत्कर्ष पर है तथा वैश्वीकरण का प्रभाव काफी प्रबल हो चुका है। इसके फलस्वरूप कुछं ऐसी आर्थिक क्रिया का महत्व बढ़ा है, जिन्हें अर्थव्यवस्था का चतुर्थक एवं पंचक क्षेत्र की संज्ञा दी जाती है।
4. चतुर्थक क्षेत्र (Quaternary Sectors)
  • इस क्षेत्र में ज्ञान आधारित सेवाओं को शामिल किया जाता है। इस क्षेत्र में कर प्रबंधक, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स, शोध एवं अनुसंधानकर्ता जैसे उन्नत सेवाओं को शामिल किया जाता है।
5. पंचक क्षेत्र (Quinary Sectors)
  • इस क्षेत्र में गोल्ड कॉलर प्रोफेशनल्स को शामिल किया जाता है जो अपने-अपने क्षेत्र के उच्च विशेषज्ञ होते हैं।
  • यह क्षेत्र नए-नए विचारों, तकनीकों, शोध एवं अनुसंधानों एवं भविष्य के लिए बेहतर संभावनाओं पर कार्य करते हैं।

अर्थशास्त्र एवं अर्थव्यवस्था की परिभाषा

Objective

1. भारतीय अर्थव्यवस्था है-
(A) अतिविकसित
(B) विकसित
(C) अत्यंत पिछड़ी
(D) विकासशील
2. भारत में आय और धन का वितरण है-
(A) पूर्ववत्
(B) समान
(C) प्रगतिशील
(D) असमान
3. भारत की प्रतिव्यक्ति आय है-
(A) बहुत ऊँची
(B) उच्च मध्यम
(C) निम्न
(D) इनें से कोई नहीं
4. निम्नलिखित देशों में सबसे अधिक प्रतिव्यक्ति आय कहाँ है ?
(A) भारत
(B) जापान
(C) चीन
(D) स्विट्जरलैंड
5. भारत में कृषि में श्रमशक्ति का कितना हिस्सा लगा है ?
(A) 20%
(B) 25%
(C) 58%
(D) 80%
6. भारत की प्रमुख आर्थिक समस्या है-
(A) अशिक्षा
(B) सिंचाई का अभाव
(C) भ्रष्टाचार
(D) गरीबी एवं बेकारी
7. भारत के अर्थव्यवस्था में किसकी प्रधानता है ?
(A) पूँजी
(B) जनसंख्या
(C) कृषि
(D) इनमें से कोई नहीं
8. अर्द्धविकसित का पर्यायवाची शब्द है ?
(A) अमीर
(B) निर्धन
(C) संपन्न 
(D) इनमें से कोई नहीं
9. एक अर्थव्यवस्था का सृजन होता है-
(A) प्राकृतिक संसाधन से
(B) भौतिक संसाधन से
(C) मानवीय संसाधन से
(D) इनमें सभी
10. अर्थव्यवस्था के प्रमुख प्रकार हैं-
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) अनेक
11. अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्ति का निजी संस्था का अधिकार रहता है ?
(A) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में
(B) समाजवादी अर्थव्यवस्था में
(C) मिश्रीत अर्थव्यवस्था में
(D) इनमें से कोई नहीं
12. एक समाजवादी अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक बल दिया जाता है ?
(A) आर्थिक स्वतंत्रता पर
(B) उत्पादन कुशलता पर
(C) अधिकतम लाभ अर्जित करने पर
(D) लोक कल्याण पर
13. निम्नलिखित में कौन मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषता है ?
(A) निजी क्षेत्र
(B) सार्वजनिक क्षेत्र
(C) A तथा B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
14. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत का मुख्य आर्थिक उद्देश्य है ?
(A) तीव्र आर्थिक विकास
(B) उत्पादक रोजगार सृजन
(C) निर्धनता निवारण
(D) इनमें से सभी
15. आर्थिक विकास माप के लिए सबसे उपर्युक्त सूचकांक है ?
(A) राजकीय आय
(B) प्रतिव्यक्ति आय
(C) राजनीतिक स्थायित्व
(D) इनमें से कोई नहीं
16. निम्न में किस देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था है ? 
(A) चीन
(B) अमेरिका
(C) भारत
(D) इनमें से सभी
17. निम्न में कौन सा देश विकसित अर्थव्यवस्था का उदाहरण है -
(A) इंडोनेशिया
(B) श्रीलंका
(C) भारत
(D) अमेरिका
18. अर्द्धविकसित देशों की कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश भाग संलग्न रहता है-
(A) प्राथमिक क्षेत्र में
(B) औद्योगिक क्षेत्र में
(C) सेवा क्षेत्र में
(D) सभी क्षेत्रों में
19. निम्न में किस क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र कहे जाते हैं-
(A) औद्योगिक क्षेत्र
(B) कृषि - क्षेत्र
(C) सेवा क्षेत्र
(D) इनमें से कोई नहीं
20. आर्थिक संरचना का एक मुख्य अंग है-
(A) शिक्षा
(B) स्वास्थ्य सेवाएँ
(C) यातायात एवं संचार
(D) इनमें से कोई नहीं
21. पशुपालन तथा मत्स्यपालन किस क्षेत्र के अंग हैं ?
(A) प्राथमिक क्षेत्र
(B) द्वितीयक क्षेत्र
(C) तृतीयक क्षेत्र
(D) इनमें से कोई नहीं
22. निम्न में कौन सामाजिक संरचना के अंग हैं ?
(A) शिक्षा एवं प्रशिक्षण 
(B) स्वास्थ्य सेवाएँ
(C) आवास
(D) इनमें सभी
23. जिस देश की राष्ट्रीय आय अधिक होती है उसे कहा जाता है ?
(A) अविकसित
(B) विकसित
(C) अर्द्धविकसित
(D) विकासशील
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 09:10:27 +0530 Jaankari Rakho