Jaankari Rakho & : History https://m.jaankarirakho.com/rss/category/history-32 Jaankari Rakho & : History hin Copyright 2022 & 24. Jaankari Rakho& All Rights Reserved. General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | सुभाषचन्द्र बोस और स्वतंत्रता का अंतिम चरण https://m.jaankarirakho.com/994 https://m.jaankarirakho.com/994 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | सुभाषचन्द्र बोस और स्वतंत्रता का अंतिम चरण
सुभाष चन्द्र बोस को महात्मा गांधी ने राष्ट्रभक्त कहा था। वे अपने समकालीन नेताओं में सबसे सटीक और कुशाग्रबुद्धि के थे। भारत की आजादी के लिए प्रारंभ से ही उनको अलग एवं सटीक विचारधारा था। समय के साथ सुभाष चन्द्र ने अपने विचारधारा और कर्मों एवं उपलब्धियों के बदौलत स्वयं को साबित किया । एवं अपने साहसी निर्णय से तो गाँधीजी तक को भी चुनौती दिए । प्रश्न तो यह बनता है कि अगर सुभाष चन्द्र बोस अपनी फौज के साथ भारत की धरती पर होते तो भारत कैसा होता ? ऐसे बहुतेरे प्रश्न बनते हैं किंतु उनके कार्य प्रणाली से अलग भारत को जीत प्राप्त हुई। लेकिन इस आजादी में सुभाष चन्द्र बोस की योगदान भी सराहनीय और अविस्मरणीय है । इस खण्ड में भारत छोड़ो आंदोलन के पश्चात आजादी की प्राप्ति तक के महत्वपूर्ण घटना भी द्वितीय खण्ड में है।

सुभाष चन्द्र बोस

  • ज्ञातव्य है कि सुभाष चन्द्र बोस की स्वतंत्रता संघर्ष में आगमन ने संघर्ष की दिशा को विचारधारा व प्रगतिगामी सोच दोनों स्तर पर तीव्रता प्रदान किया था।
  • सुभाष चन्द्र बोस अल्पायु से ही कुशाग्रबुद्धि के धनी व्यक्ति थे। नजरिया व कर्मों के बीच सामंजस्य एवं सटीकता ने उनके अल्पायु जीवन को भी उपलब्धियों से नवाजा था।
सुभाष चन्द्र बोस 
जन्म - 23 जनवरी 1897 
स्थान - कटक (उड़ीसा)   
माता - प्रभावती देवी
पिता - जानकी बोस
पत्नी - ऐमिली बोस
पुत्री - अनीता बोस
मृत्यु - विवादित (18 अगस्त, 1945 )
  • वर्ष 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि ग्रहण किया एवं 1920 ई. में भारतीय नागरिक सेवा (ICS) में उत्तीर्ण हुए।
  • कालांतर में सुभाष ने राष्ट्रीय आंदोलन में सम्पूर्ण सहयोग हेतु ICS से त्याग पत्र दे दिया।

सुभाष चन्द्र बोस और त्रिपुरी संकट

  • वर्ष 1938 के कांग्रेस के हरिपुरा (गुजरात) अधिवेशन में पहली बार अध्यक्ष (निर्विरोध) बने थे।
  • वर्ष 1939 में जबलपुर (MP) के त्रिपुरी में गाँधीजी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को पराजित कर कांग्रेस के दूसरी बार अध्यक्ष बने थे।
  • इस अधिवेशन में विजेता बनने के पश्चात भी सुभाष चन्द्र बोस ने गाँधीजी के मतभेद के कारण उन्होंने त्याग पत्र दे दिया था।
  • त्रिपुरी चुनाव में प्राप्त वोट
    1. सुभाष चन्द्र बोस - 1,588 वोट
    2. पट्टाभि सीतारमैया - 1,377 वोट
  • वर्ष 1939 में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर सुभाष चन्द्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना किया था।
  • इसी क्रम में सुभाष चन्द्र बोस को जुलाई 1940 में भारतीय सुभाष चन्द्र कानून के तहत गिरफ्तार कर कलकत्ता में बंद कर दिया गया था।
  • सुभाष चन्द्र बोस को भूख हड़ताल करने पर 5 दिसम्बर 1940 को उन्हीं के घर में नजरबंद कर दिया गया था।
  • 18 जनवरी 1941 को सुभाष चन्द्र बोस अपने घर से एक पठान जिआउद्दीन के वेश में निकल कर फरार हो गए थे।
  • भागने के क्रम में बोस सर्वप्रथम कार द्वारा गोआ गए थे। इसमें उनके भतीजा शिशिर बोस ने मदद किया था।
  • इसी क्रम में बोस सर्वप्रथम कार द्वारा गोआ गए थे। तथा वहाँ फ्रंटियर मेल (ट्रेन) के द्वारा पेशावर चले गए।
  • क्रांतिकारी भगत राम तलवार की मदद से वे काबुल पहुंचे थे। काबुल से उन्होंने ओरलैण्डो मैजोण्टा नामक इटली के नागरिक के पासपोर्ट (जाली पासपोर्ट) पर हवाई जहाज द्वारा सोवियत संघ की राजधानी मोस्को पहुंचे थे। तथा उसके पश्चात जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे थे।
  • 28 मार्च 1941 को बर्लिन पहुंचने के पश्चात बर्लिन में इनका स्वागत हिटलर के प्रमुख सहायक रिवेनट्राप ने किया था ।
  • जर्मनी में हिटलर ने प्रथम मुलाकात पर इनको नेताजी कहा था।
  • ज्ञातव्य है कि हिटलर को 'डेर फुहरर', मुसालिनी का 'डलथूडस' जैसे उपाधियां मिली थी। इस सबका मतलब नेताजी ही होता है।
  • ध्यातव्य है कि बर्लिन में ही सुभाष चन्द्र बोस को बर्लिन रेडियो से ब्रिटिश विरोधी प्रचार करने तथा जर्मनी में भारतीय युद्धबंदियों से एक आजाद हिंद फौज की स्थापना की अनुमति प्रदान किया था।
  • जर्मनी में ही सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो की स्थापना किया था तथा 1942 में दो सैनिक दस्ते भी स्थापित किए थे।
  • इसी यात्रा में सुभाष चन्द्र बोस ने रोम तथा पेरिस में दो स्वतंत्र भारत केन्द्र ( Free India Centre) की स्थापना किया था।
  • इसी समय जापान ने 15 फरवरी 1942 को सिंगापुर पर कब्जा कर भारतीय सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया।
  • इसी कालखण्ड में दिल्ली बमकांड से भागकर जापान में बसे रास बिहारी बोस ने जापान में ही इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की थी।
  • रास बिहारी बोस की कोशिशों से 28 से 30 मार्च 1942 को टोकियो (जापान) में एक सम्मेलन आयोजित किया गया।
  • इस सम्मेलन में कैप्टन मोहन सिंह, रास बिहारी बोस, निरंजन सिंह गिल के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) का गठन किया गया था।
  • 23 जून 1942 को बैंकाक में भी एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के 100 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था ।
  • ज्ञातव्य है कि बैंकाक सम्मेलन की अध्यक्षता रास बिहारी बासे ने किया था। इसी सम्मेलन में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना किया गया तथा सुभाष चन्द्र बोस को एशिया बुलाने का निर्णय लिया गया था।
  • बैंकाक सम्मेलन से पूर्व ही भारतीय सेना के कैप्टन मोहन सिंह ने 2500 युद्धबंदियों के साथ आजाद हिंद फौज की औपचारिक स्थापना कर दिया था । 
  • यह सेना कुछ कठिनाइयों के कारण पुनः भंग कर दी गई थी।

आजाद हिंद फौज

  • 13 जून 1943 को टोकियो और 2 जुलाई 1943 को सिंगापुर में सुभाष चन्द्र बोस का आगमन हुआ था।
  • इसी क्रम में 4 जुलाई को सुभाष चन्द्र बोस इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के अध्यक्ष बने। यहीं पर सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटेन के विरुद्ध आक्रमण करने की घोषणा किया था।
  • नेताजी 5 जुलाई 1943 सिंगापुर के टाउन हॉल में 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था। इसके साथ ही यह भी कहा था “हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है। तुम हमें खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा यह स्वतंत्रता की देवी की मांग है। "
  • इसी क्रम में 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथहॉल के एक विशाल जनसभा में बोस ने आजाद हिंद की अस्थायी सरकार बनाने की घोषणा किया था।
  • बोस इस सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सेनाध्यक्ष तीनों थे।
    वित्त विभाग - ए. सी. चटर्जी
    प्रचार विभाग - एस. ए. अय्यर
    महिला संगठन - लक्ष्मी स्वामीनाथन 
  • इस सरकार को निम्न राष्ट्रों का मान्यता प्राप्त हुआ था
    जापान
    चीन
    जर्मनी
    इटली
    कोरिया
    फिलीपीन्स
    मांचुको
    आयरलैंड
  • 25 अक्टूबर 1943 को ब्रिटेन तथा अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा कर दिया गया था।
  • 6 नवम्बर 1943 को जापान ने अपने कब्जे वाले दो भारतीय द्वीप को सुभाष चन्द्र बोस की अस्थायी सरकार को सौंप दिया।
  • सुभाष चन्द्र बोस ने अंडमान को शहीद द्वीप तथा निकोबार को स्वराज द्वीप नाम रखा था।
  • आजाद हिंद फौज की अनेकों टुकड़ियां बनाई गई जिनको ब्रिगेड कहा गया इसमें निम्न ब्रिगेड थे।
    1. महात्मा गाँधी बिगड
    2. अबुल कलाम आजाद ब्रिगेड
    3. जवाहर लाल नेहरू ब्रिगेड
    4. रानी लक्ष्मीबाई ब्रिगेड ( महिला ब्रिगेड )
    5. सुभाष ब्रिगेड ( सेनापति - शहनवाज खान)
  • इसी क्रम में यह सेना की एक टुकड़ी जनवरी 1944 को रंगून पहुंच गई। इसके पश्चात 4 फरवरी 1944 को एक टुकड़ी रंगनू से अराकान पहुंची तथा मार्च में इस सेना ने ब्रिटिश टुकड़ी को परास्त किया।
  • 14 अप्रैल 1944 को मणिपुर के मोरांग नामक स्थान पर ब्रिटिश सेना पराजित हुई तथा भारत का तिरंगा झंडा फहराया गया था।
  • इसी क्रम में फौज की एक टुकड़ी जापानी सेना के साथ कोहिमा पहुंच गई थी। 6 जुलाई, 1944 को सुभाष चन्द्र बोस रंगून रेडियो स्टेशन से गांधीजी को राष्ट्रपिता नाम से संबोधित किया था ।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की पराजय के साथ आजाद हिंद फौज की परान्न भी सुनिश्चित हो गई थी।
  • इसी क्रम में 13 अगस्त 1945 को सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर पहुंचे। 18 अगस्त 1945 को बोस और हबीबुर्ररहमान टोकियो जाने के लिए फारमोसा हवाई अड्डे से रवाना हुए किंतु विमान उड़ते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
  • आजाद हिंद फौज के सभी सैनिकों और अधिकारियों को अंग्रेजी ने 1945 में गिरफ्तार कर लिया था ।
  • ज्ञातव्य है 5 से 11 नवम्बर को गिरफ्तार अधिकारियों पर अंग्रेजों ने दिल्ली के लाल किले में इन पर मुकदमा चलाया गया।
  • इस मुकदमे के मुख्य अभियुक्त कर्नल ढिल्लो, कर्नल शहगल, तथा मेजर शहनवाज खां थे। इन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था।
  • ज्ञातव्य है आजाद हिंद के बचाव पक्ष के वकील तेज बहादूर सप्रु, जवाहरलाल नेहरू, अरूणा आसफ अली और के. एन. काटजू थे। इन सभी वकीलों का नेतृत्व भूलाभाई देसाई ने किया था ।
  • अंग्रेज सरकार ने तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी की सजा दी थी।
  • इस क्रियाविधि का विरोध समूचे भारत में होने लगा। भारत में नारा लगा था लाल किला को तोड़ दो, आजाद हिंद फौज को छोड़ दो।
  • तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवेल को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्युदंड की सजा को माफ कर देना पड़ा था।

गाँधीजी का उपवास 

  • अगस्त क्रांति (भारत छोड़ो आंदोलन) के दौरान लगातार हो रहे हिंसा के लिए आंदोलनकारियों को गलत साबित करने के लिए गाँधीजी पर अंग्रेजों ने दबाव डाला।
  • गाँधीजी ने आंदोलनकारियों को गलत नहीं माना बल्कि अंग्रेजों को यह संदेश दिया कि हिंसा का कारण क्रूरतापूर्वक आंदोलन का दमन है।
  • गाँधीजी ने इसी सरकारी दमन के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ फरवरी 1943 को उपवास प्रारंभ कर दिया।
  • गाँधीजी के उपवास की खबर मिलते ही पूरे देश में आक्रोश फैल गया। देश भर में प्रदर्शन, हड़ताल तथा प्रदर्शन का आयोजन किया जाने लगा गया था।
  • विदेश में भी गाँधीजी के उपवास पर प्रतिक्रिया प्रारंभ हो गया था। गाँधीजी को रिहा करने की भी बात प्रारंभ हो गया था।
  • इसी क्रम में वायसराय की कार्यकारिणी परिषद से तीन सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया था।
  • गाँधीजी के उपवास का प्रभाव :

राजगोपालाचारी योजना (CR Formula, 1944)

  • महात्मा गाँधी को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर पूना के आगा खां पैलेस में कैद कर लिया गया था।
  • 6 मई 1944 को ब्रिटिश सरकार ने स्वास्थ्य के आधार पर उनको रिहा कर दिया था।
  • जेल से रिहा होने के पश्चात गाँधीजी ने पुनः राजनीतिक गतिरोध दर करने के उद्देश्य से लीग और कांग्रेस मध्य सद्भावपूर्ण माहौल बनाने का प्रयास किया था।
  • 10 जुलाई 1944 को गांधीजी की स्वीकृति से सी. राजगोपालाचारी ने दोनों दलों के मध्य एक समझोते की योजना प्रस्तुत किया।
  • इसका उद्देश्य था
    1. मुस्लिम लीग स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करे तथा अंतरिम सरकार के निर्माण में कांग्रेस का सहयोग करें।
    2. युद्ध समाप्ति के पश्चात मुस्लिम बहुसंख्यक वाले क्षेत्र की सीमा निर्धारित किया जा सके।
    3. इस निर्धारित क्षेत्र में वयस्क मतदान प्रणाली के अंतर्गत लोगों के देशों के चयन के आधार पर अगर वे भारत से अलग रहना चाहे तो उनको भारत से बाहर किया जा सके।
    4. निवासियों की अदला-बदली उनकी स्वेच्छा पर निर्भर हो ।
    5. बंटवारे की दशा में, रक्षा, प्रतिरक्षा तथा संसाधनों एवं अन्य विषयों में पारस्परिक समझौता व्यवस्था हो ।
  • ज्ञातव्य है कि गांधीजी ने जिन्ना को यह सिद्धांत मानने के लिए काफी प्रयत्न किया था।
  • इसी क्रम में गांधीजी ने सर्वप्रथम उनको कायदे आजम (महान नेता) की उपाधि से संबोधित किया था।
  • इसी क्रम में सी. राजगोपालाचारी ने मुहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान मांग का भी समर्थन किया था।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच समझौता का प्रयास मूलाभाई देसाई के द्वारा भी किया गया था।

वेवेल योजना (The Wevell plan, 1945)

  • 1945 में मित्र राष्ट्रों की सफलता के साथ द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया। 21 मार्च, 1945 को केवल भारत में व्याप्त गतिरोध को समाप्त करने हेतु लंदन गए ।
  • लंदन पहुंचकर वेबल ने प्रधानमंत्री चर्चिल तथा भारत मंत्री एमरी से परामर्श कराने के पश्चात 14 जून 1945 को भारत लौटे थे।
  • भारत में व्याप्त तत्कालीन समस्याओं निजात हेतु वेवेल ने एक भारतीयों के समक्ष योजना प्रस्तुत किया। इसको ही 'वेवल योजना' कहा गया ।
  • इस योजना की प्रमुख बातें :
    1. कार्यकारिणी में मुस्लिम सदस्यों की संख्या सवर्ण हिंदुओं के बराबर होगी ।
    2. कार्यकारिणी परिषद् एक अन्तरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगी। गवर्नर जनरल बिना कारण विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं कर पायेंगे।
    3. कांग्रेस के सदस्य रिहा किये जायेंगे तथा शीघ्र ही शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया जाएगा।
    4. युद्ध समाप्त होने के पश्चात भारतीय स्वयं ही संविधान बनायेंगे।
    5. वायसराय के कार्यकारिणी परिषद को पुनर्गठित किया जाएगा तथा उसमें सभी दलों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
    6. परिषद् में वायसराय या सैन्य प्रमुख के अतिरिक्त शेष सभी सदस्य भारतीय होंगे तथा प्रतिरक्षा विभाग वायसराय के अधीन होगा।

शिमला सम्मेलन 1945

  • ज्ञातव्य है कि वेवेल योजना के प्रस्ताव पर विचार-विमर्श हेतु 25 जून से 19 जुलाई 1945 तक शिमला में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
  • ध्यातव्य है कि इस सम्मेलन में सभी समकालीन राजनीतिक दलों से 21 राजनेताओं (प्रतिनिधियों) ने भाग लिया था।
  • इस सम्मेलन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने भाग लिया।
  • इस सम्मेलन में शामिल होने वाले नेता :-
    अबुल कलाम आजाद (कांग्रेस)
    सरदार पटेल (कांग्रेस)
    जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस )
    खान अब्दुल गफ्फार खान (मुस्लिम लीग)
    मुहम्मद अली जिन्ना (मुस्लिम लीग)
    नवाब इस्माईल खां (मुस्लिम लीग )
    लियाकत खां (मुस्लिम लीग)
    मास्टर तारा सिंह (अकाली नेता )
  • ज्ञातव्य है कि गाँधीजी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया था । यद्यपि सम्मेलन के समय शिमला में ही मौजूद थे।
  • ज्ञातव्य है कि इस सम्मेलन में मतैक्यता का अभाव रहा इस कारण 14 जुलाई 1945 की बावसाय से सम्मेलन को असफल कहकर समाप्त कर दिया था।

भारत में आम चुनाव

  • ज्ञातव्य है कि जुलाई 1945 में इंगलैंड में चुनाव हुए थे। इसमें लेबर पार्टी की सरकार बनी थी।
  • इस नवीन सरकार में चर्चिल की जगह पर एटली इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने थे।
  • लेबर पार्टी भारत के प्रति उदार दृष्टिकोण रखती थी। एटली ने वेवेल को भारत बुलाकर उनसे बातचीत किया था।
  • वर्ष 1945-46 में सर्वप्रथम एटली ने भारत में आम चुनाव कराने की घोषणा किया जो प्रांतीय और केन्द्रीय विधान सभाओं के लिए होना था ।
  • इस चुनाव में सामान्य स्थानों पर कांग्रेस को तथा आरक्षित स्थानों पर लीग को सफलता प्राप्त हुई थी।
  • दिसम्बर 1946 को चुनाव परिणाम आए थे जो निम्न है-

चुनाव से सम्बन्धित तथ्य

  1. इस चुनाव में साम्प्रदायिक मत विभाजन का मुद्दा अत्यधिक प्रभावी था।
  2. पृथक निर्वाचन पद्धति
  3. इसमें प्रांतीय जनसंख्या के कुल मत का केवल 10% हिस्से ने ही मताधिकार का प्रयोग किया।
  4. केन्द्रीय व्यवस्थापिका के लिए चुनावों में कुल जनसंख्या के केवल 1% भाग को ही मताधिकार के योग्य माना गया था।

कैबिनेट मिशन, 1946

  • फरवरी 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय शिष्टमंडल भेजने की घोषणा किया था।
  • इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य थे।
  1. लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव)
  2. सर स्टेफोर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष)
  3. एनी अलेक्जेंडर (नौवहन विभाग के प्रथम लार्ड या नौसेना मंत्री)

कैबिनेट मिशन का आगमन और ब्रिटिश वापसी के कारण

  1. सरकारी विरोधी जनभावना और राष्ट्रवादियों की नीतियां एवं सफलता चरम पर थी।
  2. 1939 तक सेना से सिविल सेवा तक ब्रिटिश वर्चस्व था । किंतु यह धार-धीरे कम होता गया। भारतीयों का सेवाओं में वर्चस्व ने भी सेवा का भारतीयकरण किया।
  3. इसी क्रम में जब ब्रिटिश सरकार ने अहिंसक आंदोलनों का हिंसा से दमन किया तो इससे ब्रिटिश फासीवादी विचार का प्रबलता दिखा।
  4. आजाद हिंद फौज की बचाव के लिए समूचा राष्ट्र एकजूट हो गया था। अब राष्ट्रवाद अपने चरम परिणती पर था ।
  5. तत्कालीन परिस्थितियों में सरकार के पास भारतीयों के दमन का बस एक ही व्यवस्था था। अंतरिम शासन व्यवस्था किंतु यह व्यवस्था असंभव प्रतीत होने लगी थी I
  6. अंतर्राष्ट्रीय दबाव के साथ अब ब्रिटिश सरकार को महसूस होने लगा कि भारत से समझौता कर लिया जाए तथा शांतिपूर्ण ढंग से सत्ता सौंप दिया जाए।
  • 29 मार्च 1946 को पैथिक लारेंस ने कहा कि इसका उद्देश्य भारत के लिए संविधान तैयार करने के लिए एक शीघ्र ही एक कार्यकारिणी तैयार तथा अंतरिम सरकार के लिए आवश्यक प्रबंध करना था।
  • इसी क्रम में कैबिनेट मिशन के समझौता का अंतिम प्रयास करने के आशय से शिमला में त्रिदलीय सम्मेलन बुलाया गया। यह सम्मेलन 5 से 11 मई तक चला था।
  • ज्ञातव्य है कि इस सम्मेलन से मतैक्यता का अभाव था। इसी कारण मिशन ने 16 मई 1946 को अपने प्रस्तावों की घोषणा किया था। इसकी प्रमुख बातें निम्न थी-
    1. भारत एक प्रांत होगा तथा इसमें ब्रिटिश भारत के प्रांत तथा देशी दोनों राज्य शामिल होंगे। विदेशी मामले, प्रतिरक्षा केन्द्रीय सरकार के अधीन होंगे।
    2. संघीय विषयों को छोड़कर शेष विषयों एवं अवशिष्ट शक्तियों प्रांतों में निहित होगी। ऐसी रियासतें जो विषय तथा शक्तियां संघ को सौंप दे। इनके अतिरिक्त अन्य विषय तथा शक्तियां उनके पास सुरक्षित होगी।
    3. संविधान निर्मात्री सभा का गठन प्रांतीय विधान सभाओं तथा देशी रियासतों के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा। तथा प्रांत को उसकी जनसंख्या के अनुपात में सामान्यतः 10 लाख की आबादी में 1 प्रतिनिधि के अनुपात में सीटों की कुल संख्या आवंटित किया जाएगा।
    4. ज्ञातव्य है कि प्रांतों को तीन श्रेणियों क, ख, ग में बांटा गया था।
      (क) बंबई, बिहार, मध्य प्रांत, मद्रास, उड़िसा, संयुक्त प्रांत
      (ख) पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, सिंध और पंजाब
      (ग) असम और बंगाल
    5. इसी क्रम में मुस्लिम लीग के पाकिस्तान के मांग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया था। इसको ठुकराने का आधार था की इससे अल्पसंख्यकों की समस्या का समाधान नहीं होगा।
  • 29 जून, 1946 को कैबिनेट मिशन भारत से वापस चला गया। लीग तथा काग्र न चाहते हुए भी इसके प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया।
  • कैबिनेट मिशन के संबंध में गाँधीजी के विचार "यह योजना इस समय की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सबसे उत्कृष्ट योजना थी, उसमें ऐसे बीज थे जिनसे दुःख की मारी भारत भूमि यातना से मुक्त हो गई थी।'
  • संविधान सभा के लिए हुए चुनावों में ब्रिटिश भारत के प्रांतों के 296 स्थानों में काँग्रेस द्वारा 205 पर जीत प्राप्त हुआ। मुस्लिम लीग को इस विजय से समस्या उत्पन्न हो गया।
  • 22 जुलाई को अंतरिम सरकार की स्थापना से संबंधित प्रस्ताव कांग्रेस और लीग के समक्ष रखा।
  • नये प्रस्ताव के अनुसार अंतरिम सरकार में 14 सदस्य होंगे जिसमें 6 कांग्रेस मनोनीत करेगी तथा 5 को मुस्लिम लीग तथा 3 अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधि होंगे।
  • ज्ञातव्य है कि 3 अल्पसंख्यक प्रतिनिधि सदस्यों को लेकर कांग्रेस और लीग में विवाद उत्पन्न हो गया I कांग्रेस ने अपने प्रतिनिधित्व की पक्ष रखा जबकि मुस्लिम लीग ने स्वयं को इकलौता अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधि माना था।
  • मुस्लिम लीग को वायसराय का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं था । अतः उसने एक प्रस्ताव पारित कर "स्वतंत्र प्रभुतासंपन्न पाकिस्तान राज्य की स्थापना के लिए सीधी कार्यवाही के लिए तैयार हो गई।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही दिवस (Direct action day ) की घोषणा 16 अगस्त 1946 को कर दिया।
  • मुस्लिम लीग द्वारा घोषित सीधी कार्यवाही दिवस का उद्देश्य भारत के साम्प्रदायिकता को बढ़ाना तथा यह साबित करना था कि हिंदू और मुस्लिम एक नहीं है । और एक साथ नहीं रह सकते हैं।
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही (सीधी कार्यवाही) के दौरान कलकना नरसंहार, हत्या, बलात्कार की क्रीड़ा स्थली बन गई।
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के बिहार, बंगाल, पंजाब, दिल्ली सभी जगहों पर भयंकर रक्तपात हुआ था।

अंतरिम सरकार का गठन

  • ज्ञातव्य है कि कांग्रेस के द्वारा वायसराय के नवीनतम प्रस्तावों को स्वीकार कर लेने के पश्चात 1 अगस्त 1946 को वेबल ने कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार की गठन के लिए आमंत्रित किया था।
  • 24 अगस्त, 1946 को पंडित नेहरू के नेतृत्व में भारत की पहली अंतरिम राष्ट्रीय सरकार की घोषणा की गई थी, जिसमें मुस्लिम लीग की भागीदारी नहीं थी ।
  • अंतरिम सरकार का उद्देश्य भारत में संवैधानिक व राजनीतिक स्थिरता के साथ नये भारत के निर्माण को कार्यरूपेण परिणत करना था।
अंतरिम सरकार का मंत्रिमंडल
क्रम सं. नेता पद / कार्यभार
1. जवाहरलाल नेहरू र्काकारी परिषद के उपाध्यक्ष, विदेशी मामले, कॉमनवेल्थ संबंध
2. सरदार वल्लभ भाई पटेल गृह, सूचना एवं प्रसारण
3. बलदेव सिंह रक्षा
4. डॉन जॉन मथाई उद्योग एवं आपूर्ति
5. सी. राजगोपालाचारी शिक्षा
6. सी. राजगोपालाचारी शिक्षा
7. सी. एच. भाभा निर्माण, खनन एवं ऊर्जा
8. राजेन्द्र प्रसाद कृषि एवं खाद्य
9. जगजीवन राम श्रम
10. आसफ अली रेलवे
11. अब्दुररर्हमान निस्तर (मुस्लिम लीग) संचार
12. इब्राहिम इस्माइल (मुस्लिम लीग) वाणिज्य
13. गजनफर अली खान (मुस्लिम लीग ) स्वास्थ्य
14. लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) वित्त
15. जोगेन्द्र नाथ मंडल (मुस्लिम लीग) कानून
  • ज्ञातव्य है कि 2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने अपने सहकर्मियों के साथ वायसराय के काउंसिल के रूप में शपथ लिया था।
  • यह काउंसिल नेहरू के नेतृत्व में एक प्रकार से मंत्रिमंडल के रूप में कार्य करने लगा था।
  • इस काउंसिल का कार्य और राष्ट्र समर्पण के प्रभाव को देखते हुए बेल का कांग्रेस से डर लगा । अतः इन्होंने इसमें डर कर मुस्लिम लीग को शामिल होने के लिए मना लिया।
  • मुस्लिम लीग को काउंसिल करना इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि इसके बगैर काउंसिल असंतुलित थी। हालांकि वेवेल के मनाने के बावजूद मुस्लिम लीग संविधान सभा शामिल होने से इंकार किया था।

संविधान सभा और मुस्लिम लीग

  • अंतरिम सरकार के काउंसिल ( मंत्रिमंडल) में मुस्लिम वेवेल के मनाने पर शामिल हो गया था। लेकिन संविधान सभा में शामिल होने की स्पष्टीकरण अभी नहीं दिया था।
  • ज्ञातव्य है कि संविधान सभा के 12 सत्र और बैठकों के दौर हुए थे जिसमें पहला 9-24 दिसम्बर, 1946 में प्रारंभ हुआ और अंतिम बारहवां 24 जनवरी, 1950 को समाप्त हुआ था।
  • 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा के प्रथम बैठक में मुस्लिम लीग सम्मिलित नहीं हुई थी। इसी क्रम में लीग की अनुपस्थिति में बैठक हुआ और जवाहरलाल नेहरू द्वारा तैयार मसौदे को पारित किया गया था। इसमें "एक स्वतंत्र पूर्ण प्रभुतासम्पन्न गणराज्य की स्थापना का आदर्श लक्ष्य था, जिसे स्वायत्तता अल्पसंख्यकों को पर्याप्त संरक्षण देने का अधिकार तथा सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त होगी । "
  • ज्ञातव्य है कि मुस्लिम लीग ने मंत्रिमंडल द्वारा निर्णय लिये जाने हेतु आहूत की गई औपचारिक बैठक में भी भाग नहीं लिया ।
  • मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के सदस्यों द्वारा लिए गए निर्णय तथा नियुक्तियों पर भी सवाल उठाए। वित्त मंत्री के रूप में लियाकत अली खान मंत्रिमंडल के अन्य मंत्रियों के कार्य में बाधक बने थे।
  • ज्ञातव्य है कि मुस्लिम लीग ने हमेशा अपने उद्देश्य को सटीक रखा था। जिसमें उसको पृथक पाकिस्तान का निर्माण ही चाहिए था। लियाकत अली खान वित्त मंत्री थे जो हमेशा मंत्रिमंडल के अन्य मंत्रियों के कार्य में बाधक बन रहे थे।
  • संविधान सभा में कांग्रेस के मंत्रियों ने वायसराय को पत्र लिखकर मांग की मुस्लिम लीग के सदस्यों को त्यागपत्र देने का क अन्यथा वे मंत्रिमंडल से नामांकन वापस ले लेंगे।
  • इसी क्रम में लीग ने संविधान सभा को भंग करने की भी बात कर दी थी तथा लीग व कांग्रेस के बीच मतभेद और बढ़ गया I
  • मुस्लिम लीग के द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार के कारण ब्रिटिश सरकार ने यह निर्णय लिया कि संविधान सभा के निर्णय मुस्लिम बहुल इलाके में लागू नहीं किए जायेंगे।

एटली घोषणा पत्र फरवरी, 1947

  • ब्रिटेन में लेबर पार्टी के प्रधानमंत्री एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में 20 फरवरी, 1947 को एक ऐतिहासिक घोषणा किया "जून 1948 से पूर्व ही ब्रिटिश सरकार उत्तरदायी लोगों को सत्ता सौंप कर ब्रिटेन वापस आ जाएगी" ।
  • पंडित नेहरू ने एटली की घोषणा को एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय बताया। इसी क्रम में क्लीमेंट एटली ने लार्ड वेवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय नियुक्त किया था।
  • लार्ड वेवेल ने अपने वायसराय के पद के अंतिम दिनों में एक 'ब्रेक डाउन प्लान' के तहत 31 मार्च 1947 तक अंग्रेजी को भारत छोड़ने का पूर्ण रूप से सुझाव दिया था।

लार्ड माउंटबेटन (जून 1947)

  • ज्ञातव्य है कि 22 मार्च 1947 को माउंट बेटन ने भारत के 34वें भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल बनकर आए।
  • माउंटबेटन का प्राथमिक उद्देश्य भारत को अतिशीघ्र स्वतंत्रता देना और इस महाद्वीप की समस्याओं का शांतिपूर्ण निपटारा करना था । इसी क्रम में माउन्टबटन ने 15 अगस्त 1947 तक भारतीय सत्ता भारतीयों को सौंप दिया जाएगा।
  • वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में उलझे माउंटबेटन ने लगभग दो महीने तक भारत विभाजन टालने का प्रयास किया।
  • अंतत: माउंटबेटन इस निष्कर्ष पर पहुंचे जहां वे एकमत होकर स्वीकार किया कि भारत को विभाजित करना पड़ेगा।
  • माउंटबेटन ने 20 फरवरी 1947 के लिए वचन भाषण को ध्यान में रखकर इस निर्णय पर पहुंचे की भारत विभाजन की नीति भी शीघ्र तैयार किया जाए।
  • इस विवशता की स्थिति में नेहरू और सरदार पटेल ने विभाजन की स्थिति को स्वीकारा लेकिन गांधीजी ने इसका विरोध किया था।
  • इसी क्रम में अंतरिम सरकार के काल में मुस्लिम लीग की विरोध को देखकर सरदार पटेल ने कहा था, "जिन्ना विभाजन चाहते है या नहीं, अब हम स्वयं विभाजन चाहते हैं। "
  • 3 जून 1947 को प्रधानमंत्री एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में विभासरदार  योजना (3 जून योजना) की घोषणा किया था।
  • ज्ञातव्य है कि 3 जून की योजना मूलतः भारत विभाजन की योजना थी।
  • लाई वेवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबेटन के वायसराय बन जाने के पूर्व ही भारत में विभाजन के साथ स्वतंत्रता का फार्मूला भारतीय नेताओं द्वारा लगभग स्वीकार कर लिया गया था।

माउंटबेटन योजना के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. बंगाल तथा पंजाब में हिंदू तथा मुसलमान बहुसंख्यक जिलां के प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों की अलग बैठक बुलाई जाए और उसमें कोई भी पक्ष यदि प्रांत का विभाजन चाहेगा, तो विभाजन रद्द कर दिया जाएगा।
  2. विभाजन होने के दशा में दो डोमनियनों तथा संविधान सभाओं का निर्माण किया जाएगा।
  3. सिंध इस संबंध में अपना निर्णय स्वयं लेगा।
  4. इसी क्रम में उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह द्वारा यह पता लगाया जाएगा कि वे भारत के किस भाग के साथ रहना चाहते है।
  5. पंजाब, बंगाल और आसाम के विभाजन हेतु एक सीमा आयोग का गठन।
  6. रजवाड़ों को इस बात का निर्णय लेना था कि वे भारत में रहना चाहते है कि पकिस्तान में।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

  • माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को पास किया था I इसी उपबंध द्वारा ही 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ था ।
    इस अधिनियम के प्रमुख बिंदु :
    1. 15 अगस्त 1947 से भारत में भारत और पाकिस्तान नाम से डोमिनियन की स्थापना हो जाएगी।
    2. भारत के राज्यक्षेत्र में उन क्षेत्रों को छोड़कर जो पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे, ब्रिटिश भारत के सीमा प्रांत भी भारत में शामिल होंगे।
    3. देशी रजवाड़े दोनों में भारत-पाकिस्तान किसी भी डोमिनियन (अधिराज्य) में सम्मिलित हो सकते हैं।
    4. पाकिस्तान के राज्यक्षेत्र में पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, सिंध और उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत सम्मिलित होंगे। पूर्वी बंगाल प्रांत में असम का सिलहट जिला भी सम्मिलित होगा ।
    5. दोनों डोमिनियनों तथा प्रांतों का संचालन 1935 के अधिनियम के अनुसार ( जहां संभव हो सके) उस समय तक चलाया जाएगा जब तक कि संबंधित संविधान सभा इनके लिए संवैधानिक व्यवस्था कर लेती ।
  • 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि के समय भारत स्वतंत्र हो गया। आधी रात को दिल्ली में संविधान निर्मात्री सभा को संबोधित करते हुए ऐतिहासिक भाषण दिया था।
  • लार्ड माउंटबेटन को स्वतंत्र भारत का प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया तथा जवाहरलाल नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
  • 7 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना करांची पहुंचे। पाकिस्तान की संविधान सभा द्वारा 11 अगस्त की प्रथम बैठक में जिन्ना को राष्ट्रपति चुना गया था।
  • 14 अगस्त 1947 को जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने थे।
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Thu, 18 Apr 2024 06:56:52 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी युग https://m.jaankarirakho.com/993 https://m.jaankarirakho.com/993 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी युग
गाँधी जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन में सामान्य मनुष्य से महात्मा तक की यात्रा किया। इन्होंने यह साबित किया कैसे एक सामान्य सा व्यक्ति सिर्फ वैचारिक कटिबद्धता के दम पर दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्र तक को झुका सकता है। इनकी यात्रा अफ्रीका में व्यावसायिक थी किंतु वहां युग प्रवर्तक के रूप में बदल गई। भारत वापसी के पश्चात समकालीन राजनेताओं में मतैक्यता था कही वैचारिक तो कहीं सामाजिक दृष्टिकोण से गाँधी जी ने अपने प्रबुद्धता और साहसिक निर्णय के दम पर न सिर्फ एकजुट किया। बल्कि साथ में अपनी दिशा की तरफ मोड़ भारत को स्वतंत्र करने में मार्गदर्शित भी किया।
  • महात्मा गाँधी जी का व्यक्तित्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अतुलनीय था।
  • गाँधी की सोच, विचारधारा और कार्य पद्धति समकालीन विश्व में अद्वितीय थी। जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त नहीं होता था। उसके दो राष्ट्रों में घुटनों पर ला दिए।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जहां वर्चस्व की जंग दो-दो विश्वयुद्ध चल रहा था। नरसंहार जारी था उसी बीच सत्य, जैसे वैचारिक अवधारणाओं से भारत को स्वतंत्रता दिला दिए ।

महात्मा गाँधी

जन्म- 2 अक्टूबर, 1869
स्थल- पोरबंदर (गुजरात)
माता- पुतली बाई
पिता- मोहनदास करमचंद गाँधी
शादी / पत्नी- कस्तूरबा माखन
बच्चे- हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास, ‘जमनालाल बजाज' गाँधीजी के पाँचवें पुत्र की उपाधि प्राप्त थी।
शिक्षा- एल्फ्रेड स्कूल, राजकोट, श्यामलदास कॉलेज - ग्रेजुएट एवं द इनर टेम्पुल लंदन से बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त किया था।
मृत्यु- 30 जनवरी, 1948 (5:15 PM ) बिड़ला हाउस, दिल्ली
  • गाँधीजी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट तथा ग्रेजुएट की श्यामलदास कॉलेज से किया था।
  • ग्रेजुएशन के पश्चात 1889-91 तक 3 वर्ष कानून की शिक्षा ग्रहण किया था तथा बैरिस्टर एट लॉ की उपाधि लेकर लंदन से वापस आए थे।
  • गाँधीजी ने अपने प्रारंभिक जीवन का संघर्ष राजकोट तथा फिर बंबई में किया था।
  • इसी क्रम में एक व्यापारी दादा अब्दुला के व्यापारिक केस पर अफ्रीका 1893 में गए थे।

दक्षिण अफ्रीका में गाँधी

  • ज्ञातव्य है कि गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुँचने वाले तथा नाटाल ( सुप्रीम कोर्ट अफ्रीका) में खुद को रजिस्टर कराने वाले प्रथम व्यक्ति थे।
  • गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका पहुँचते ही प्रजातीय भेदभाव के शिकार हुए थे। डरबन से प्रिटोरिया जाने वाली ट्रेन में सिर्फ अश्वेत होने के कारण मोरित्सबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।
  • घटनाक्रम :-
    1893 - इंडियन ओपिनियन नामक पत्र प्रारंभ
    1894 - नाटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना
    1899 - बोअर पदक की प्राप्ति 
    1904 - डरबन में फिनिक्स आश्रम की स्थापना
    1906 - एशियाई रजिस्ट्रेशन एक्ट एशिया मूल के व्यक्ति को परमीट के लिए 8 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को रजिस्टर्ड होना पड़ता था।
    1906 - गाँधीजी को जुलु पदक प्राप्त हुआ 
    1908 - इस वर्ष जेल भी गए थे
    1909 - लंदन गए इसी वर्ष हिंद स्वराज ( अंग्रेजी) पुस्तक लिखी थी।
    1910 - जोहांसबर्ग से 21 मील दूरी पर 1100 एकड़ में जर्मनी के हरमन कालेनबाख की मदद से टालस्टाय आश्रम की स्थापना किया था।
    - इसी ट्रस्ट को TATA ने 25,000 रुपये भेजा था।
    - इस आश्रम में 6 से 16 वर्ष के आयु के बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा दिया जाता था।
    1912 - फिनिक्स ट्रस्ट की स्थापना
  • 1912 में गोपाल कृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहीं गाँधीजी से मुलाकात हुआ था। गाँधीजी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।
  • 1913 में गाँधी जी ने गिरमिटिया प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया था।
  • गिरमिटिया प्रथा : भारतीय मजदूरों को एक निश्चित समयावधि ( 5-10 ) वर्ष देश से बाहर कार्य करने की अनुमति प्रदान किया गया। 
  • गाँधी जी ने भारत वापसी पर अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान पर श्री जीवनलाल बैरिस्टर के मकान को किराए पर लिया।
  • इसी मकान में 1915 को सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की गई। इसे 17 जून 1917 को साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित कर इसका नामकरण साबरमती आश्रम कर दिया।
  • 9 जनवरी 1915 को गाँधी जी भारत वापस आए थे। 2003 से इसी दिन को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। गांधीजी अफ्रीका वापसी पर काठियावाड़ी किसान के वेश-भूषा में थे ।
  • भारत वापसी पर गोपाल कृष्ण गोखले ने गाँधी जी को आँख खोलकर तथा कान मुंद कर । वर्ष भारत भ्रमण का आदेश दिया।

महत्वपूर्ण आंदोलन

चंपारण सत्याग्रह

  • चंपारण बिहार का एक प्रांत है। समकालीन ब्रिटिश साम्राज्य में यहाँ किसानों का शोषण चरम पर था।
  • बिहार के इस प्रांत में तिनकठिया पद्धति प्रचलित था। इस पद्धति में जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती अनिवार्य थी।
  • 20वीं शताब्दी में यूरोप में निर्मित कृत्रिम नील ने भारत उत्पादित प्राकृतिक नील की बाजार में मांग कम कर दिया ।
  • तीन कठिया पद्धति में अनुबंधित किसानों का शोषण अब चरम पर था ।
  • वर्ष 1916 के लखनऊ अधिवेशन में गाँधीजी से मिलकर राजकुमार शुक्ल (चंपारण का किसान) ने चंपारण आने का न्योता दिए।
  • गाँधीजी अपने सहयोगी
    ब्रज किशोर
    सी०एफ० एंडूज
    डॉ० अनुग्रह नारायण सिंह
    राज किशोर प्रसाद
    महादेव देसाई
    नरहरि पारिख
    जे. बी. कृपलानी
  • सरकार ने एक जांच आयोग गठित किया था जिसमें गाँधीजी को शामिल किया था।
  • इस आयोग में गाँधीजी को भी शामिल किया गया था। इस आयोग के सुझाव पर अंग्रेज मालिक अवैध वसूली का 25% किसानों को देने पर राजी हो गए।
  • इसी आंदोलन में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने गाँधी जी को महात्मा से विभूषित किया था ।
  • ज्ञातव्य है कि एन. जी. रंगा ने गाँधीजी के सत्याग्रह का विरोध किया था ।

खेड़ा सत्याग्रह

  • गुजरात के खेड़ा क्षेत्र में कुनबी पाटीदार किसानों ने 1918 में अकाल पड़ने और प्लेग फैलने के कारण भू-राजस्व देने से मना किया।
  • किंतु सरकार ने भू-राजस्व से संबंधित समस पर ध्यान नहीं दिया और भू-राजस्व वसूलने का कार्य जारी रखा।
  • इसी क्रम में किसानों ने मोहन लाल पाण्ड्य के नेतृत्व में आंदोलन खड़ा कर दिया ।
  • 22 मार्च, 1918 को गाँधीजी ने इसको अपने नेतृत्व में लिया था । एवं इसको सत्याग्रह का रूप प्रदान किया था।
  • सरकार ने इस आंदोलन में भी गाँधीजी बात मानी और अंततः केवल समर्थ किसानों से ही लगान वसूलने का आदेश दिया ।
  • इस सत्याग्रह में गाँधीज़ी के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल, इंदुलाल याज्ञिक तथा गुजरात सभा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

रॉलेट एक्ट, 1919 (Rowlatt Act)

  • इंग्लैण्ड हाईकोर्ट के न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में 10 दिसम्बर 1917 को एक समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति का उद्देश्य भारत में बढ़ रहे उग्रपंथी क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने की युक्ति सुझाना था ।
  • इस आयोग का सुझाव-
    1. किसी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जाए
    2. संदिग्ध व्यक्ति के गतिविधियों पर निगरानी रखी जाए
    3. उस पर गुप्त रूप से मुकदमा चलाकर दंडित किया जाए।
  • इस समिति की रिपोर्ट 15 अप्रैल, 1918 को आई भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद सरकार ने 18 मार्च 1919 को रॉलेट एक्ट पास कर दिया।
  • भारतीयों ने इसे काला कानून के नाम से संबोधित किया। इस कानून के विरोध में एक नारा बना 'कोई वकील नहीं कोई दलील नही, कोई अपील नहीं'।
  • मदन मोहन मालवीय और मजहरूल हक ने इस कानून के विरोध में केन्द्रीय व्यवस्थापिका से इस्तीफा दे दिया।
  • गाँधीजी के सुझाव पर समूचे देश में इस कानून का विरोध प्रारंभ हो गया। 
  • इसी क्रम में गाँधीजी के आह्वान पर 6 अप्रैल, 1919 हड़ताल की घोषणा किया तथा सत्याग्रह सभा की स्थापना किया।
  • इसी क्रम में दिल्ली, अमृतसर, लाहौर, मुल्तान, जालंधर, अहमदाबाद इत्यादि जगहों पर हड़ताल एवं प्रदर्शन किए गए।
  • पंजाब में हिंसक घटना हुई । निहत्थी भीड़ पर पुलिस ने गोली चलाई।
  • गाँधीजी ने जब पंजाब जाने की योजना बनाई। तो पलवल ( वर्तमान हरियाणा) में ही गिरफ्तार कर बंबई भेज दिया गया।
  • पंजाब के उपगवर्नर, ओ. डायर समूचे पंजान में आतंक का राज स्थापित किया था ।
  • इसी क्रम में 9 अप्रैल को रामनवमी के दिन हिंदू-मुस्लिम ने संयुक्त रूप से विशाल जुलूस निकाला था।
  • इस आयोजन से घबड़ाकर सरकार ने दो बड़े नेता डॉ. सतपाल तथा किचलू को गिरफ्तार कर लिया । तथा अमृतसर से निर्वासित कर दिया।
  • इसके विरोध में एक विशाल जुलूस का आयोजन किया गया। इसी निहत्थी भीड़ पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई तथ्ज्ञा जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड जैसा अमानवीय कुकृत्य का प्रदर्शन किया।

जालियाँवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)

  • गाँधी जी ने 6 अप्रैल 1919 को रॉलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह सभा का आह्वान किया।
  • आंदोलन की तीव्रता के कारण ब्रिटिश सरकार इसका कुचलने के लिए आमादा थी ।
  • बंबई, अहमदाबाद, कलकत्ता, दिल्ली तथा अन्य नगरों में लगातार निहत्थे भीड़ पर गोली तथा लाठी चार्ज किया जा रहा था।
  • इसी क्रम में पंजाब आते समय रास्ते में पलवल (हरियाणा जिला) नामक स्थान पर गाँधीजी को गिरफ्तार कर बंबई भेज दिया गया।
  • 9 अप्रैल को डॉ. सतपाल तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
  • इस घटना से स्थानीय नागरिकों में आक्रोश था । तथा दोनों घटनाओं के विरोध स्वरूप एक सभा का आयोजन किया गया।
  • आक्रोश के दमन हेतु जनरल डायर अपनी टुकड़ी के साथ अमृतसर पहुंचा।
  • 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन दोपहर में जालियांवाला बाग में सभा का आयोजन पूर्वनिर्धारित था ।
  • जालियांवाला बाग बड़ा था किंतु तीन तरफ से बड़ी दीवार से घिरा हुआ था । निकलने के रास्ते पर खड़ा हो डायर ने भीड़ पर अपनी सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया।
  • इस घटना में लगभग 1000 लोग मारे गये। इस घटना को अंजाम कर्नल रेजीनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने दिया था।
  • इस घटना के आलोचना में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के एक सदस्य ने कहा था 'ऐसी बर्बरता की मिसाल संसार में कहीं नहीं है।"
  • इस घटना के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्राप्त अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दिया।
  • एस. शंकर नायर ने गवर्नर जनरल के कार्यकारी परिषद् से त्यागपत्र दे दिया।
  • इसी क्रम में 1 अक्टूबर, 1919 को हंटर समिति का गठन किया गया। इस समिति का उद्देश्य घटना की जांच पड़ताल करना था।
  • हंटर समिति ने मार्च 1920 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया था। इसके पूर्व हि दोषी लोगों  को बचाने हेतु इण्डेम्निटी बिल पास कर लिया था।
  • ज्ञातव्य है इस बिल में किसी भी अंग्रेज को दोषी नहीं माना गया था ।
  • इसी क्रम में कांग्रेस ने भी जलियावाला बाग हत्याकांड की जांच हेतु एक समिति गठित किया था।
  • ज्ञातव्य है इसी कालखण्ड में पंजाब में चमनदीप के नेतृत्व में डंडा फौज का गठन हुआ था।

खिलाफत आंदोलन (1919-24)

  • तुर्की का सुल्तान जो तत्कालीन खलीफा भी था। इसने जर्मनी का पक्ष लेकर ब्रिटेन के विरुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल हो गया।
  • भारतीय मुसलमानों को डर था कि युद्ध समाप्ति के पश्चात अंग्रेज तुर्की से बदला लेंगे। भारतीय मुसलमानों के लिए खलीफा महत्त्वपूर्ण था क्योंकि वह इस्लाम का सर्वोच्च धार्मिक नेता था।
  • इसी क्रम में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायड जार्ज ने यह घोषणा किया तुर्की के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय नहीं किया जाएगा।
  • 11 नवम्बर, 1918 को विश्वयुद्ध समाप्त हुआ और 10 अगस्त 1920 को सेब्रेस की संधि हुई।
  • सेव्रेस की संधि के अनुसार समूचे तुर्की को मित्र राष्ट्रों ने आपस में बांट लिया। इस प्रकार तुर्की का साम्राज्य विघटित हो गया।
  • इसके साथ खलीफा (सर्वोच्च इस्लामिक नेता) का भी अपमान किया। यही प्रमुख कारण था भारत में खिलाफत आंदोलन का।
  • नवम्बर, 1919 में महात्मा गाँधी द्वारा हिंदुओं एवं मुसलमानों का संयुक्त सम्मेलन दिल्ली में बुलाया। इसका उद्देश्य खिलाफत योजना के निर्धारण पर था।
  • जुलाई, 1921 में करांची में अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में मौलाना मुहम्मद अली सभापति थे।
  • इस आंदोलन में खान अब्दुल गफ्फार खां ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
  • इसी क्रम में खिलाफत का हल तुर्की ने स्वयं कर लिया।
  • नवम्बर, 1922 में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की में एक क्रांति हुई थी।
  • तुर्की के तत्कालीन सुल्तान जो समकालीन खलीफा भी थे, गद्दी से उतार दिया था।
  • इसी क्रम में तुर्की के सुल्तान, मुहम्मद चतुर्थ को गद्दी से उतार दिया एवं उनके स्थान पर मुस्तफा नया खलीफा घोषित किया गया।
  • खलीफा का समस्त राजनीतिक अधिकार समाप्त कर लिया गया। भारत की खिलाफत कमेटी ने इसके विरोध में 1924 में एक प्रतिनिधि मंडल को तुर्की भेजा ।
  • मुस्तफा कमाल पाशा इस प्रतिनिधि मंडल की अपेक्षा किया। बल्कि 3 मार्च 1924 को खलीफा पद ही समाप्त कर दिया।
  • इसी क्रम में मुस्तफा कमाल पासा ने तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित कर मित्र राष्ट्रों से संधि कर लिया। इसी के साथ खिलाफत आंदोलन समाप्त हो गया।

चौरी-चौरा कांड- 1922

  • तत्कालीन उ. प्र. के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा कस्बे में असहयोग आन्दोलन के समर्थन में एक जुलुस निकाला जा रहा था।
  • इस जुलुस का नेतृत्व भूतपूर्व सैनिक भगवान अहीर कर रहा था। पुलिसवालों ने भगवान अहीर तथा कुछ लोगों को इसके विरोध स्वरूप पंडित कर दिया।
  • इस घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप उग्र जनता ने पुलिस थाने को फूंक दिया जिसमें 22 पुलिसकर्मी भी मारे गए।
  • इस नृशंस हत्याकांड में 170 भारतीय लोग अभियुक्त बनाए गए। जिनको मृत्युदंड दिया गया था ।
  • इसी क्रम में मदन मोहन मालवीय ने बुद्धिमत्तापूर्ण पैरवी करते हुए 151 लोगों को फांसी से बचा लिया।
  • ज्ञातव्य है चौरी-चौरा हत्याकांड में भारतीय पक्ष के वकील पं. मदन मोहन मालवीय थे।
  • इस हिंसक घटना से क्षुब्ध होकर महात्मा गाँधी ने 12 फरवरी, 1922 के कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में असहयोग आंदोलन को स्थगित करवा दिया था।
  • ज्ञातव्य है मोतीलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, सी. राजगोपालाचारी, सी. आर. दास तथा मुहम्मद और शौकत अली (अली बंधु) ने गाँधी जी के आंदोलन वापसी के निर्णय का विरोध किया था।
  • नेताओं के गाँधीजी के विरोध का लाभ लेकर अंग्रेजों ने गाँधीजी को 10 मार्च, 1922 को गिरफ्तार कर लिया तथा 6 वर्ष कीसजा सुना दिया।
  • यह सजा न्यायाधीश ब्रुमफिल्ड जनता में असंतोष भड़काने के आरोप में सुनाया था।
  • इसी क्रम में खराब स्वास्थ्य के कारण गाँधीजी को 5 फरवरी, 1924 को रिहा कर दिया गया था।

साइमन कमीशन (The Simon Commission, 1927)

  • ज्ञातव्य है 1919 के अधिनियम में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड एक्ट के पारित होने के 10 वर्षों के बाद भारत में उत्तरदायी सरकार की कार्यों की समीक्षा का प्रावधान था ।
  • 1931 में इसके लिए ब्रिटिश सरकार को एक कमीशन नियुक्त करना था। लेकिन 1929 में होने वाले ब्रिटेन के आम चुनाव के मद्देनजर ।
  • ब्रिटेन की सरकार ने 8 नवम्बर, 1927 ई. को ही उस कमीशन की नियुक्ति कर डाली थी। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन को नियुक्त किया गया।
  • इस प्रकार इस आयोग ने लॉर्ड इर्विन के सुझाव पर किसी भी भारतीय सदस्य को इसमें शामिल नहीं किया गया था।
  • यह आयोग जातिगत (रंगभेद ) विभेद का सर्वोच्च उदाहरण था । इसमें एक भी भारतीय नहीं था इसलिए इस आयोग को श्वेत कमीशन की संज्ञा दिया गया था।
  • कांग्रेस ने प्रत्येक चरण पर इस आयोग का वरोध किया था। 1927 के कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में भी इसका विरोध किया गया।
  • इस आयोग का हिंदू महासभा कम्यूनिस्ट पार्टी, किसान मजदूर पार्टी, लिबरल फेडरेशन, हिंदु महासभा तथा अन्य पार्टियों ने विरोध किया था।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग में कमीशन के विरोध पर फुट पड़ गई थी। जिन्ना ने कमीशन का विरोध किया। जबकि मुहम्मद शफी के नेतृत्व में लीग का एक धड़ा कमीशन के सहयोग करने के पक्ष में था।
  • डिप्रेस्ड क्लास एसोसिएशन (अम्बेडकर द्वारा संचालित) तथा हरिजनों के कुछ संगठनों ने साइमन कमीशन का सहयोग किया था।
  • यह कमीशन 3 फरवरी 1928 को भारत (बंबई) पहुंचा। इस कमीशन का स्वागत हड़ताल काले झंडे इत्यादि से किया गया। साइमन गो बैक (Simon Go Back) के नारे लगाए गए।
  • ध्यातव्य है कि जब यह आयोग दिल्ली पहुंचा। इसके स्वागत के लिए एक भी भारतीय नहीं था । लाहौर में इस कमीशन का विरोध लाला लाजपत राय ने किया था।
  • इसी में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठी मारी और इसी में लाठी के प्रहार से पाला लाजपत राय को चोट आई और उनका देहावसान हो गया था।
  • लखनऊ में इसका विरोध का नेतृत्व पं. गोविन्द वल्लभ पंत ने किया था। पटना, कलकता तथा मद्रास में भी इसका विरोध किया गया था।
  • इस आयोग ने तमाम विरोध के बावजूद भारत में अपना कार्य तथा 27 मई, 1930 को अपना रिपोर्ट पेश किया था। इसकी मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित हैं-
    1. कमीशन ने द्वैध शासन को समाप्त कर राज्यों को स्वायतशासी बनाने का समर्थन किया।
    2. इस कमीशन ने भारतीयों को मताधिकार के विस्तार की सिफारिश किया था ।
    3. इस कमीशन ने प्रांतीय विधानमंडलों के विस्तार एवं मुसलमानों को विशेष प्रतिनिधित्व देने की बात कही थी।
    4. इसने गवर्नर एवं गवर्नर जनरलों के अधिकारों को बढ़ाने का सुझाव दिया था।
  • इसके अलावा साइमन कमीशन के अन्य महत्वपूर्ण सुझाव:-
    1. वर्मा को भारत से अलग करने
    2. सिंध को बंबई से अलग करने
    3. उड़ीसा को अलग प्रांत बनाना
    4. सेना का भारतीयकरण करने
  • इससे इतर रिपोर्ट पर बातचीत करने के लिए गोलमेज सम्मेलन (Round table conference) बुलाने की बात स्वीकारी गई थी।
  • भारतीयों की माँग 'स्वराज' पर यह कमीशन पूर्णतः चुप रहा था। इसी क्रम में भारतीयों ने भी अपने लिए संविधान की रूपरेखा तैयार किया जो नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना गया ।
  • ज्ञातव्य है 1935 का अधिनियम कुछ हद तक इसी रिपोर्ट पर आधारित था।

जिन्ना का 14 सूत्री फार्मूला

  • मुस्लिम लीग के प्रभावशाली नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट को मुस्लिम हितों के विरुद्ध बताया था। तथा मार्च 1929 में अपनी रिपोर्ट पेश किया था ।
  • इस रिपोर्ट में जिन्ना ने अपने संविधान निर्माण से संबंधित 14 महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
  • ज्ञातव्य है कि जिन्ना की अधिकतर मांगों को अगस्त 1932 के मि. मैकडॉनल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय में स्वीकार कर लिया गया था।

पूर्ण स्वराज, 1929

  • 1929 के पश्चात गाँधीजी का 1929 में पुनः सक्रिय राजनीति में वापसी हुआ। इसी क्रम में 1929 में लाहौर का ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन हुआ।
  • ज्ञातव्य है कि इस अधिवेशन में गाँधीजी का नाम अध्यक्ष पद के लिए नामित था किंतु गाँधीजी के अपना नाम के स्थान पर पं. जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बना दिया।
  • इस अधिवेशन की मुख्य बातें :
    1. नेहरू रिपोर्ट की डोमेनियन राज्य की दर्जे की योजना समाप्त कर दी गई।
    2. पूर्ण स्वाधीनता की मांग बुलंद की गई थी। नेहरू ने पूर्ण स्वाधीनता की मांग की इसका अर्थ था पूर्ण स्वराज ।
    3. गोलमेज सम्मेलन से संबंधित नीति (विदेश नीति) की घोषणा की गई।
    4. 31 दिसम्बर, 1929 को मध्य रात्रि में रावी नदी के तट पर जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा झंडा फहराया तथा स्वतंत्रता की घोषणा किया।
    5. 26 जनवरी, 1930, सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
    6. राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्वकर्ता गाँधी जी बन गए तथा इसी क्रम सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की घोषणा किया गया था। 

गाँधीजी की 11 सूत्री माँग

  • ज्ञातव्य है गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व 30 जनवरी 1930 को अपने समाचार-पत्र यंग इंडिया तथा 2 मार्च, 1930 को वायसराय इरविन को लिखे पत्र में अपने 11 सूत्री मांग रखी थी।
  • इसी क्रम में गाँधीजी ने यह आश्वासन दिया कि अगर हमारी 11 सूत्री मांगें मान लिया गया तो हम सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लेंगे।
  • गाँधीजी की 11 सूत्री मांगें निम्न थी -
    1. सैनिक खर्च 50% से कम किया जाए।
    2. लगान की राशि में 50% की कटौती | 
    3. सिविल सेवा के अफसरों के वेतन में कटौती। 
    4. विनिमय दर को घटाकर 1 शिलिंग 4 पेंस किया जाए।
    5. रक्षात्मक शुल्क लगे तथा विदेशी वस्त्रों के आयात को नियंत्रित किया जाए।
    6. भारतीय समुद्रतट कंवल भारतीय जहाजों के लिए आरक्षित किये जाए ।
    7. गुप्तचर विभाषा तो समाप्त कर दिया जाए या उस पर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया जाए।
    8. भारतीय आत्मरक्षा में आग्नेयशास्त्र रखे सके ।
    9. नमक कर की समाप्ति ।
    10. सभी राजनैतिक कैदियों को छोड़ दिया जाए।
    11. नशीली वस्तुओं की बिक्री बंद कर दी जाए।
  • ज्ञातव्य है कि गाँधीजी के सभी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तथा वायसराय ने गाँधीजी से मिलने से भी इंकार कर दिया।
  • सरकार ने आंदोलन के दमन में तीव्रता प्रारंभ कर दिया । सुभाष चंद्र बोस तथा अन्य कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • इससे बाध्य होकर गाँधीजी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया था।

व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940 ई.) (Individual Satyagraha)

  • कांग्रेस आंतरिक स्तर पर द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार की मदद करना चाहती थी किंतु लार्ड लिनलिथगो के कार्य पद्धति ने क्षुब्ध कर दिया था। 
  • उस क्रम कांग्रेस ने पन: आंदोलन का मार्ग चुना। ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि कांग्रेस के नीतियों को प्रतिष्ठा जनता में घटती जा रही थी।
  • ध्यातव्य है कि कांग्रेस यह साबित भी करना चाह रही थी कि भारत की जनता द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार के साथ नहीं है।
  • इसी क्रम में गाँधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का मार्ग चुना 17 अक्टूबर, 1940 को महाराष्ट्र के पवनार आश्रम से इस आद का प्रारंभ किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह के सत्याग्रही
1. प्रथम सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे
2. द्वितीय सत्याग्रही पं. जवाहरलाल नेहरू
3. तृतीय सत्याग्रही ब्रह्मदत्त
  • इस आंदोलन को किन्हीं कारणों से 7 दिसम्बर, 1940 को यह सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया था।
  • इसी आंदोलन के दौरान ही 'दिल्ली चलो' का नारा दिया गया था।
  • व्यक्तिगत सत्याग्रह को दिल्ली चलो आंदोलन की संज्ञा भी दिया गया था।

पाकिस्तान की माँग (1940 ई.) (The Demand of Pakistan)

  • मुहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता में 23 मार्च, 1940 को स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र की मांग लाहौर के अधिवेशन में हुआ।
  • अपने अध्यक्षीय भाषण में जिन्ना ने कहा था 'वह एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे'।
  • ध्यातव्य है कि स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र प्रस्ताव का प्रारूप सिकंदर हयात खान ने बनाया था।
  • अधिवेशन में प्रस्ताव की प्रस्तुति फजलुल हक ने की थी। तथा खुली कुज्जमां ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। 
  • 23 मार्च, 1943 मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान दिवस' मनाया गया था।
  • पाकिस्तान शब्द का सर्वप्रथम कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र रहमत अली ने किया था।
  • ज्ञातव्य है कि मुसलमानों के लिए सर्वप्रथम पृथक राष्ट्र का विचार का प्रस्ताव 1930 ई. में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में किया था।
  • इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव मुहम्मद इकबाल ने प्रस्तुत किया था। इसमें मुहम्मद इकबाल ने पश्चिमोत्तर मुस्लिम राज्य की आवश्यकता का जिक्र किया था।

क्रिप्स प्रस्ताव (Cripps proposal) (1942 ई.)

  • ज्ञातव्य है कि 11 मार्च, 1942 को क्रिप्स प्रस्ताव की घोषणा की गई थी।
  • 23 मार्च 1942 को मिशन भारत पहुंचा तथा 30 मार्च को 1942 को सर स्टैफोर्ड क्रिप्स ने अपनी योजना प्रस्तुत किया था।
  • इस मिशन के भारत आगमन का कारण
    1. भारत में ब्रिटिश सरकार को कांग्रेस और सहयोग चाहिए था ।
    2. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश मोर्चा कमजोर पड़ता जा रहा था।
    3. जापान का पर्ल हार्बर पर हमला और पूर्व एशिया में उसकी मजबूत स्थिति
    4. सुभाष चंद्र बोस जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण की योजना पर कार्यरत थे
    5. बर्मा में अंग्रेजों की स्थिति भी दयनीय श्री ।
  • समकालीन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति के बीच अंग्रेज और कांग्रेस करीब आ गए।
  • ब्रिटिश सरकार को भी अब कांग्रेस की सहायता महसूस हुई। ऐसी परिस्थिति में ब्रिटिश और कांग्रेस सहयोगी हो गए।
  • इसी क्रम में संभावित जापान आक्रमण को आधार मानकर बारदोली अधिवेशन में कांग्रेस ने अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया।
  • जापान आक्रमण के भय ने ब्रिटिश सरकार को भी डरा रखा था। इसमें सरकार को देश की जनता और कांग्रेस की जरूरत थी। ताकि आक्रमण से निपटा जा सके।
  • इसी उद्देश्य से क्रिप्स मिशन भारत भेजा गया था तथा चीन, अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया भी ब्रिटेन पर दबाव बना रहे थे कि वह भारत की राजनैतिक समस्या का समाधान करे।
  • इसी क्रम में सर स्टेफार्ड की अध्यक्षता में एक मिशन भारत आया था और अपनी योजना प्रस्तुत किया था।

भारत छोड़ो आंदोलन

  • समकालीन परिस्थितियों में गाँधीजी को यह आभास हुआ कि अगर अंग्रेज भारत में रुके तो जापानी भारत पर हमला कर देंगे।
  • इसलिए गांधीजी कहा कि अंग्रेज भारत को ईश्वर के हाथों में छोड़कर चले जाए।
  • 6-14 जुलाई 1942 के एक बैठक में महात्मा गाँधी की उपस्थिति में भारत छोड़ो आंदोलन पास किया गया था।
  • इस सम्मेलन की अध्यक्षता तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद ने किया था I
  • 7-8 अगस्त, 1942 को बंबई के ऐतिहासिक ग्वालियर टैंक में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक हुई थी। इसी में वर्धा प्रस्ताव (भारत छोड़ो) की पुष्टि हुई थी।
  • बहुत कम संसाधनों के साथ 8 अगस्त 1942 को यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया था। इसी के साथ भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हो गया था।

इस आंदोलन से पूर्व महात्मा गांधी का बयान

  1. सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी ना छोड़े परन्तु कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा कर दे।
  2. सैनिक अपने देशवासियों पर गोली चलाने से मना कर दें।
  3. छात्र तभी पढ़ाई छोड़े जब आजादी प्राप्त होने तक अपने इस दृढ़ निश्चय पर खड़े रह सके।
  • गाँधीजी ने इसी आंदोलन में 'करो या मरो का नारा दिया था ।
  • 9 अगस्त, 1942 को यह आंदोलन प्रारंभ हो गया आंदोलन के प्रारंभ होते ही ऑपरेशन जीरो आवर के तहत गाँधीजी तथा अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 
  • गाँधीजी साथ में सरोजनी नायडू-पूना के आगा खां पैलेस में रखा गया था।
  • अहमदनगर किले में रखे गए नेता-
    जवाहरलाल नेहरू
    अबुल कलाम आजाद
    गोविंद वल्लभ पंत
    आचार्य कृपलानी
    पट्टाभी सीतारमैया
  • राजेन्द्र प्रसाद को पटना के बांकीपुर जेल में रखा गया था।
  • भारत छोडो आंदोलन के समय भारत का प्रमुख सेनापति लार्ड वावेल था।
  • इसी आंदोलन में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल था ।
  • 1940 के रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद थे।
  • 1941 के 45 तक पांच वर्षों तक कांग्रेस का एक भी अधिवेशन नहीं हुआ था ।
  • इसी दौरान बंबई में कई स्थान से कांग्रेस का गुप्त रेडियो स्टेशन संचालित किया गया था।
  • इस रेडियो स्टेशनों को मद्रास तक सुना जा सकता था । राम मनोहर लोहिया नियमित रूप स रेडियो प्रसारित करते थे।
  • उषा मेहता भूमिगत होकर रेडियो प्रसारित करने वाले छोटे दल की सक्रिय सदस्य थी।
  • 1942 का आंदोलन किसानों के बीच व्यापक स्तर तक फैल गया था।
  • तत्कालीन वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने 1857 के पश्चात सबसे गंभीर विद्रोह भारत छोड़ो आंदोलन को कहा था।
  • जयप्रकाश नारायण हजारीबाग जेल से 9 नवम्बर 1942 को फरार हुए थे। किंतु गिरफ्तार कर पटना लाए गए थे।
  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अरुणा आसफ अली ने बंबई के ग्वालिया टैंक में कांग्रेस का झंडा फहराया था।
  • बीमारी के आधार पर 6 मई 1944 को गाँधीजी को रिहा कर दिया गया था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन सितम्बर 1919 ई. में हुआ था ।
  • ज्ञातव्य है कि 23 नवम्बर, 1919 को दिल्ली में सम्पन्न अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी के सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने किया था ।
  • मार्च, 1919 में संपन्न केन्द्रीय खिलाफत कमेटी की अध्यक्षता हसरत मोहानी ने किया था।
  • मार्च 1919 केन्द्रीय खिलाफत कमेटी के सचिव - शौकत अली
    अन्य सदस्य-
    मोहम्मद अली
    हकीम अजमल खां
    डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी
    मौलाना हसन
    अब्दुल बारी 
    मौलाना अबुल कलाम आजाद
  • 10 अगस्त, 1920 को सम्पन्न सेब्रेस की संधि (treaty of servers) द्वारा तुर्की का विभाजन तथा खलीफा का सभी धार्मिक स्थलों से नियंत्रण समाप्त कर दिया गया था।
  • ज्ञातव्य है कि खान अब्दुल गफ्फार खां के द्वारा खिलाफत आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई थी ।
  • गाँधीजी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने का एक ऐसा अवसर माना जो आगे 100 वर्षों तक नहीं मिलेगा।  
  • दिसम्बर, 1919 को मुस्लिम लीग ने हिंदुओं की तरफ दोस्ती के उद्देश्य से गोहत्या बंद करने का प्रस्ताव पारित किया था।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई हाजिम-उल-मुल्क की उपाधि हाकिम अजमल खां को प्रदान किया गया था। हाकिम अजमल खां ने इसको खिलाफत आंदोलन में त्याग दिया था।
  • मुहम्मद अली जिन्ना ने खिलाफत आंदोलन में गाँधीजी के शामिल होने पर उनका विरोध किया था ।
  • 1920 के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता वी. राघवाचारी ने किया था। इसी अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा गया था।
  • 'एक वर्ष में स्वराज' का नारा गाँधीजी ने 5 नवम्बर, 1920 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में दिया था ।
  • केन्द्रीय शासन के अनुपालन न होने पर गवर्नर जनरल को प्रांतीय सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार भी इसी अधिवेशन में प्रदान किया गया था।
  • इसी क्रम में इंग्लैंड में कोर्ट की स्थापना किया गया। उद्देश्य भारत • नियुक्त भ्रष्ट अंग्रेज अधिकारियों को दंडित करना था।
  • इस अधिवेशन के द्वारा द्वैध शासन की शुरूआत किया गया था जो वर्ष संसदीय बोर्ड के द्वारा | 1858 तक विद्यमान रही। एक कंपनी के द्वारा तथा दूसरा I
  • इसी अधिनियम में यह प्रावधान था कि गवर्नर जनरल को देशी राजाओं से युद्ध एवं संधि करने से पूर्व कंपनी के डायरेक्टरों से स्वीकृति लेना अनिवार्य कर दिया गया था।
  • असहयोग आंदोलन गाँधीजी द्वारा चलाया गया प्रथम आंदोलन था।
  • दिसम्बर, 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में तिलक स्वराज फंड की स्थापना किया गया था।
  • कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में ही स्वशासन के स्थान पर स्वराज को नया लक्ष्य बनाया था।
  • असहयोग आंदोलन के दौरान सबसे सफल अभियान विदेशी कपड़ों का बहिष्कार था ।
  • असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी कपड़ों को जलाए जाने को रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 'अविवेकी या निष्ठुर बर्बादी' कहा था।
  • असहयोग आंदोलन जब प्रारंभ हुआ तब भारत का वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड था।
  • चौरी-चौरा काण्ड के समय भारत का वायसराय अर्ल ऑफ रीडिंग (1921-26) था।
  • असहयोग आंदोलन के दौरान गाँधीजी द्वारा त्यागे गए पदक
    कैसरे-ए-हिन्द
    जुलु-युद्ध पदक
    बोआर युद्ध पदक
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Thu, 18 Apr 2024 05:47:33 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उग्रराष्ट्रवादी चरण (1905&1919) https://m.jaankarirakho.com/992 https://m.jaankarirakho.com/992 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उग्रराष्ट्रवादी चरण (1905-1919)
स्वतंत्रता संघर्ष के प्रथम चरण में उदारवादी राजनेताओं का वर्चस्व था। इनके विचार और कार्य पद्धति पूर्णतः संवैधानिक था । उदारवादियों की अंग्रेज सरकार के प्रति नीति के कारण भारत को आजाद होने में समय लग रहा था। इसके इतर अनेकों समस्याएँ थी जिसका उदय उदारवादी विचारधारा के कारण पैदा हो रहा था। इसी क्रम में नवीन एवं उग्र विचारधारा से प्रेरित राष्ट्रवादी नेताओं का स्वतंत्रता संग्राम में आगमन हुआ। कुछ हद तक विचारधारात्मक संघर्ष हुए किंतु स्वतंत्रता संघर्ष में तीव्रता दिखा एवं अन्य विचारधाराओं का भी आगमन हुआ जो भारत को स्वतंत्र कराने में अपने योगदान को सुनिश्चित किए ।

उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के उद्भव के कारण

  • 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में इस विचारधारा का जन्म हुआ। यह एक राजनीतिक क्रियाविधि थी जिसका उद्देश्य कांग्रेस के उदारवादी विचारधारा व उसके अनुनय-विनय की नीति का विरोध करना था।
  • राजनैतिक दृष्टिकोण से इस विचारधारा के संपोषकों का मानना था कि स्वराज मांगने में नहीं अपितु संघर्ष से प्राप्त होता है।
  • इसी क्रम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक दल इसी राजनीतिक क्रियाविधि का समर्थक था । इस दल का मानना था कि भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का ध्येय स्वराज होना चाहिए जिसे वह आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता से प्राप्त करे।
  • इसी उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थक विपिनचंद्र पाल ने कहा था हम वस्तु को स्वीकार नहीं कर सकते जिस वस्तु को प्राप्त करने की क्षमता न हो।" यह कथन स्वराज से संबंधित था।
  • ब्रिटिश शासन की आर्थिक शोषण की नीति ने देश को विपन्नता के कागार पर पहुँचा दिया था।
  • 1896 से 1900 के मध्य पड़ने वाले भयंकर दुर्भिक्षों (अकाल ) से लाख से अधिक लोग मारे गए। किंतु अंग्रेज शासक इसके प्रति उदासीन रहे ।
  • इसी क्रम में दक्षिण भारत में आए भयंकर प्लेग से हजारों लोगों की मृत्यु हो गई। इसके अतिरिक्त दक्षिण भारत में ही साम्प्रदायिक झगड़ों में जन-धन की अपार क्षति पहुँचा।
  • इन परिस्थितियों में सरकार की निरंतर उपेक्षा से देश की जनता का ब्रिटिश शासन से मोह भंग हुआ I
  • तात्कालिक राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों में भारतीय राजनेताओं ने यह महसूस किया कि अंग्रेज भारतीय लोगों के अधिकारों में वृद्धि करन की उपेक्षा उनकी अधिकारों में भी कटौती कर रही है ।
  • इसी क्रम में राष्ट्रवादियों ने तात्कालिक विभिन्न नियमों और अधिकारों की घोर निंदा किया जो लागू किए गए।

उग्रराष्ट्रवाद को प्रेरित करती घटनाएँ

  • समकालीन परिस्थितियों में विचारधारा और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने भारतीय जनमानस को प्रेरित किया।
  • इसमें निम्नलिखित घटनाओं ने भी उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा को प्रेरित किया था।
    1. 1892- इस भारतीय अधिनियम परिषद् ( 1892) की उग्रराष्ट्रवादियों ने इस बात से आलोचना किया कि यह अपने उद्देश्य की पूर्ति में असफल रहा है।
    2. 1897– इस वर्ष पूणे में नाटु बंधुओं को बिना मुकदमा चलाए देश से निर्वासित कर दिया गया तथा तिलक तथा अन्य नेताओं को राजद्रोह फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लंबे कारावास की सजा सुनाई गई।
    3. 1898 - भारतीय दंड संहिता की धारा 124A का दमनकारी कानून नए प्रावधानों के साथ पुनः स्थापित किया गया। तथा नई धारा 156A जोड़ दी गई थी।
    4. 1899- कलकत्ता कार्पोरेशन एक्ट के द्वारा कलकत्ता निगम के सदस्यों की संख्या कम कर दी गई।
    5. 1904 - इस वर्ष कार्यालय गोपनीयता कानून (official secrets act) द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता का दमन ।
    6. 1904– विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण और कड़ा कर दिया गया। तथा सरकार को सेनेट के द्वारा पारित प्रस्तावों पर विशेषाधिकार दिया गया।
  • ब्रिटिश सरकार के सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव भी विनाशकारी रहे । इसने शिक्षा के प्रसार में उपेक्षा की नीति अपनायी ।
  • इसी क्रम में तात्कालीन भारतीय राजनीतिज्ञ जिनको उग्रराष्ट्रवाद के संपोषक माना गया। बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, अरविंद इत्यादि ने भारतीय जनमानस से अपील किया कि आप अपनी सांस्कृतिक विरासत एवं शक्तियों को पहचाने। इस अपील ने भारतीय जनमानस में आत्मविश्वास का संचार किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ तथा तात्कालीन शिक्षा पद्धति ने भी अधिकतर लोगों को शिक्षित किया। किंतु साथ में बेरोजगारी और अर्द्धबेरोजगारी में वृद्धि हुई । इस कारण भी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध उग्रता में विकास हुआ।
  • इसी के बीच लॉर्ड कर्जन जिसका भारत में कुल 7 वर्ष का कार्यकाल था । इसने अपने कार्यों तथा विचार पद्धति से भारतीय जनमानस को उद्वेलित किया था।
  • कर्जन ने भारत को एक राष्ट्र मानने से भी इंकार किया था। तथा कांग्रेस को 'मन के उद्गार निकालने वाली संस्था' कहा था।
  • 1905 के बंगाल विभाजन के पश्चात् भारतीय जनता का आक्रोश अति तीव्र हो गया। साथ ही स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन के माध्यम से अहिंसक उग्रराष्ट्रवादी आंदोलन का प्रारंभ हुआ था I
  • उग्रराष्ट्रवादी विचारधारा को प्रेरित करने वाले आंदोलनकारियों में बाल गंगाधर तिलक प्रमुख थे। उन्होंने अंग्रेजी भाषा में मराठा और मराठी में केसरी के माध्यम से भारतीयों को जुझारू राष्ट्रवाद को प्रेरित किया था।
  • तिलक द्वारा प्रेषित सिद्धांत इस प्रकार थे-
    1. विदेशी शासन से घृणा करो, इससे किसी प्रकार का उम्मीद व्यर्थ है, अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए भारतीयों को स्वयं प्रयत्न करना चाहिए।
    2. स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य लक्ष्य स्वराज है ।
    3. राजनीतिक क्रियाकलापों में भारतीय प्रत्यक्ष भागीदारी करे।
    4. निडरता, आत्मविश्वास, आत्मत्याग भी भावना प्रत्येक भारतीय में अवश्य होना चाहिए।
    5. स्वतंत्रता पाने एवं हीन दशा से बाहर निकलने हेतु संघर्ष करना चाहिए।

मुस्लिम लीग की स्थापना, 1906

  • बंगाल विभाजन के पश्चात कर्जन का वास्तविक उद्देश्य का पूर्ति हो चुका था ।
  • मुसलमानों को बंगाल विभाजन के पक्ष में करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने प्रयास करना आरंभ कर दिया था।
  • अंग्रेज सरकार ने भारतीय मुसलमानों को कांग्रेस विरोधी किसी ऐसे संस्था का निर्माण को प्रेरित किया जो भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता हो ।
  • इसी क्रम में अंग्रेजों के समर्थक ढाका के नवाब सलीमउल्ला खां ने मोहम्मडन, एजुकेशन कांफ्रेंस के अवसर पर मुसलमानों के समक्ष एक अलग राजनीतिक संगठन बनाने का लक्ष्य रखा।
  • इस संगठन का प्राथमिक उद्देश्य था भारत के मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना किंतु कालांतर में इस संगठन की क्रियाविधि ने भारत में साम्प्रदायिकता को भी बढ़ावा दिया।
  • इस संस्था ने कांग्रेस तथा हिंदूवादी संगठनों का विरोध तथा मुस्लिम हितों की रक्षा की इसका परिणाम साम्प्रदायिकता को बढ़ना था।
  • ध्यातव्य है कि 1906 में आगा खां के नेतृत्व में शिमला प्रतिनिधि मंडल ने एक ऐसी मुस्लिम सभा का विचार किया था जो मुस्लिमों की राजनीतिक हितों का संरक्षण हो ।
  • इसी क्रम में ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षिक सम्मेलन के दौरान दिसम्बर 1906 में स्वागत समिति के अध्यक्ष तथा राजनीतिक बैठकों के संयोजक ढाका के नवाब सलीमुल्ला खां ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के गठन का प्रस्ताव किया था।
  • इसके अध्यक्ष वकार उल मुल्क थे। 56 सदस्यीय समिति का चयन किया गया था तथा मोहसिन मुल्क तथा वकार-उल-मुल्क को संयुक्त रूप से संगठन का सचिव नियुक्त किया गया ।
  • इसी क्रम में लखनऊ में मुस्लिम लीग का मुख्यालय बनाया गया । तथा आगा खां इसके प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
  • इस संगठन के तीन उद्देश्य थे-
    1. ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों की निष्ठा को बढ़ाना
    2. लीग के अन्य उद्देश्यों को बिना प्रभावित किए अन्य सम्प्रदायों के प्रति कटुता की भावना को बढ़ाने से रोकना
    3. मुसलमानों की राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना तथा उसको विस्तारित करना । 
  • ज्ञातव्य हो इस संगठन की स्थापना से अंग्रेजी सरकार व उसके अधिकारी अति उत्साहित थे।
  • इसी क्रम में वायसराय लार्ड मिंटों के निजी सचिव 'डनलप स्मिथ' ने अलीगढ़ कॉलेज के प्रधानाचार्य आर्कबोल्ड को पत्र लिखकर मुसलमानों का एक शिष्ट मंडल अपनी मांगों के साथ वायसराय से मिलने को आमंत्रित किया था।
  • 1 अक्टूबर, 1906 को सर आगा के नेतृत्व में एक मुस्लिम शिष्ट मंडल लार्ड मिण्टो से मिला था ।
  • इस प्रतिनिधि मंडल ने वायसराय के समक्ष माँगें रखी थी-
    1. मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक क्षेत्र
    2. विधानमंडलों में मुसलमानों को जनसंख्या के अनुपात में स्थान
    3. मुस्लिम शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना तथा सरकारी सहायता
  • ज्ञातव्य हो कि मुस्लिम लीग की वार्षिक अधिवेशन 1908 में अमृतसर में हुआ था। इसी अधिवेशन में आधिकारिक रूप से पृथक निर्वाचक मंडल की मांग की गई थी।
  • ध्यातव्य है कि 1909 के मार्ले-मिंटो सुधार में उपर्युक्त सभी मांगें मान ली गई थी।
  • इसी क्रम में मुस्लिम लीग की एक शाखा 1908 में लंदन में सैयद अमीर अली ने स्थापित किया था ।
  • ज्ञातव्य है कि मुस्लिम लीग के अधिवेशन कभी भी नियमित रूप से नहीं होते थे। यह हमेशा अनियमित रूप से चलता था।

कांग्रेस का कलकता और सूरत अधिवेशन

  • स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कांग्रेस में दो वैचारिक धड़ों का विकास हो चुका था एक पक्ष था नरम पंथी और दूसरा गरमपंथी । 
  • इसी क्रम में 1905 और 1907 के बीच एक ही नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच परस्पर मतभेद खुलकर सामने आये थे।
  • गरमपंथी विचारधारा के संपोषक क्रांतिकारी स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाना चाहते थे। जबकि नरमपंथी इसको सिर्फ केवल बंगाल तक ही सीमित रखना चाहते थे।
  • इसी क्रम में 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद अति उग्र हो गया था। और दोनों पक्ष दल के विभाजन तक पहुंच गए थे।
  • कलकना अधिवेशन में दोनों पक्षों की उग्रता को शांति मिली जब दादाभाई नौरोजी ने अध्यक्ष पद को ग्रहण किया था।
  • तिलक लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे तथा विपिन चंद्र पाल तिलक को अध्यक्ष बनाना चाहते थे।
  • इसी क्रम में राष्ट्रवादियों (गरमपंथी) को अध्यक्ष पद से दूर रखने हेतु नरम पंथ के क्रांतिकारियों ने एक कूटनीति कर दिया ।
  • इसी के बीच भूपेन्द्र नाथ बसु ने दादाभाई नौरोजी को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया था।
  • इसी अधिवेशन में गरमपंथियों ने

           

  • उपरोक्त सभी विषयों पर प्रस्ताव पारित कराया गया। पहली बार दादाभाई नौरोजी ने स्वराज को राष्ट्रीय आंदोलन घोषित किया था।
  • कांग्रेस में विरोध का स्वर 1906 के अधिवेशन में ही प्रखर हो चुका था। 1907 का कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन का स्थल नागपुर निर्धारित था। किंतु नरमपंथियों ने इसको अपने युक्ति के द्वारा सूरत में परिवर्तित करा लिया था ।
  • सूरत की स्वागत समिति में उदारवादियों की बहुमत थी। जबकि नागपुर के स्वागत समिति में उग्रपंथियों का बहुमत था ।
  • सूरत के कांग्रेस अधिवेशन (1907) में उदारवादियों ने पुनः एकबार कूटनीतिक चाल के द्वारा अपने ग्रुप के व्यक्ति रासबिहारी बोस को अध्यक्ष चयनित करवा दिया था।
  • इसी कारण सूरत के अधिवेशन में कांग्रेस में फूट पड़ गई थी । तिलक को अपने साथियों के साथ कांग्रेस छोड़कर अलग होना पड़ा था।
  • तिलक ने भी कांग्रेस से अलगाव के पश्चात भी अपना उग्रवादी आंदोलन जारी रखा था। इसी क्रम में अंग्रेजों ने बाल गंगाधर तिलक को कमजोर पाकर अंग्रेजों ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा लगा दिया था।
  • वर्ष 1908 में तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था। 6 वर्ष की कारावास की सजा सुनाई गई थी। तथा मांडले जेल में रखा गया था।
  • इसी क्रम में तिलक ने 1910 में लंदन के टाइम्स अखबार के वैदेशिक संवाददाता तथा इंडियन अनरेस्ट (Indian unrest) के लेखक वेलेंटाइन चिरोल के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था ।

मार्ले-मिन्टो सुधार (1909)

  • मार्ले-मिन्टो सुधार का लक्ष्य बढ़ते हुए उग्रवाद और राष्ट्रवाद को समाप्त करना तथा 1892 के अधिनियम के दोषों को समाप्त करना था।
  • इस अधिनियम को तत्कालीन भारत सचिव मार्ले तथा वायसराय मिन्टो के नाम पर मार्ले-मिन्टो सुधार अधिनियम (भारत परिषद् 1909 ई.) कहा जाता है।
  • ज्ञातव्य है कि सर अरुण्डेल समिति रिपोर्ट के आधार पर इसे फरवरी 1909 को पारित किया गया था।
  • मार्ले-मिण्टो सुधार अधिनियम को भारत परिषद् अधिनियम 1909 भी कहा जाता है।
  • इस अधिनियम के द्वारा केन्द्रीय विधान सभा तथा प्रांतीय विधान परिषद् में सीटों की संख्या में वृद्धि की गई थी।
  • इसी अधिनियम में भारत में 'फूट डालो और राज करो' नीति के अन्तर्गत मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र तथा मताधिकार की व्यवस्था की गई थी।
  • नरमपंथी विचारधारा के क्रांतिकारियों ने कांग्रेस में मार्ले-मिन्टो सुधार को पूरा समर्थन दिया था।
  • 1911 में सरकार ने उग्रवादी खेमे में बढ़ रही क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए “राजद्रोह सभा अधिनियम 1911'' पारित किया था।

दिल्ली दरबार, 1911

  • स्वदेशी आंदोलन का दमन करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उग्रपंथियों पर आक्रामकता की नीति से कार्य किया।
  • इसी क्रम में लाला लाजपत राय को 9 मई 1907 को गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया था।
  • इसी क्रम में सितम्बर 1907 को बिपिनचंद्र पाल को भी गिरफ्तार किया गया था।
  • 24 जून 1908 में अपने पत्र केशरी में लिखे दो लेखों हवाला देकर तिलक को राजद्रोह के अंतर्गत मुकदमा लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया।
  • अंग्रेजों ने उदारपंथियों पर दमनकारी हमले नहीं किए।
  • 6 मई 1910 को जार्ज पंचम इंग्लैंड के सम्राट बने थे। इसके उपलक्ष्य में 12 दिसम्बर 1911 को दिल्ली में एक राजदरवार का आयोजन किया गया था।
  • इसी आयोजन में लार्ड हार्डिंग द्वितीय ने सम्राट के तरफ से बंगाल विभाजन को रद्द करने की घोषणा किया था।
  • ज्ञातव्य है कि यह घोषणा अरूण्डेल समिति की सिफारिश पर किया था ।
  • इसी समय (1911) में भारत की राजधानी को कलकत्ता से हटाकर दिल्ली में स्थापित किया गया था। इसे 1912 में मूर्त रूप दिया गया था।

लखनऊ पैक्ट (1916 ई.)

  • कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन का ऐतिहासिक महत्व था कि इस सम्मेलन में कांग्रेस के नरमपंथी और गरमपंथी दलों का सम्मेलन हुआ था।
  • इसी सम्मेलन में मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हुआ था । यद्यपि ब्रिटिश शासन ने हमेशा एक बात का ध्यान रखा कि कांग्रेस व मुस्लिम लीग के बीच इससे भारतीय स्त्र स्वतंत्रता संघर्ष को कमत्तर किया जा सकता था ।
  • मुस्लिम लीग ने 1913 में अपने 7वें अधिवेशन में यह घोषणा किया कि मुस्लिम लीग का उद्देश्य है कि साम्राज्य के अंदर हिन्दुस्तान के लिए स्वराज घोषित करना।
  • इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह हिंदुस्तान के अंदर अन्य पार्टियों की सहयोग करेगी।
  • इसी क्रम में एक ऐतिहासिक घटना घटी थी। 1915 ई. में मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस का अधिवेशन में मुंबई में एक साथ हुआ था। यह पहला अवसर था जब लीग और कांग्रेस का अधिवेशन एक साथ हुआ था ।
  • इसी अधिवेशन के पश्चात 1916 का अधिवेशन भी लखनऊ में कांग्रेस के साथ लीग का भी अधिवेशन हुआ था।
  • ज्ञातव्य हो कि मुहम्मद अली जिन्ना तथा बाल गंगाधर तिलक, लीग-कांग्रेस समझौते के मुख्य सूत्रधार थे।
  • ध्यातव्य है कि 1916 से 1922 ई. तक का कालखण्ड इंडियन नेशनल कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच मतैक्य का कालखण्ड था।
  • लखनऊ समझोता महज एक अस्थायी समझौता था। मुस्लिम लीग ने इस समझौते के बावजूद पृथक अस्तित्त्र बनाए रखा तथा पृथक राजनीतिक अधिकारों की वकालत करती रही थी ।
  • लखनऊ पैक्ट की राजनैतिक समझौता 1922 तक चलता रहा और असहयोग आंदोलन के पश्चात् पुनः स्थित यथावत हो गई। क्योंकि लीग ने पुनः अपना पुराना रास्ता पकड़ लिया था।
  • ज्ञातव्य है कि सूरत अधिवेशन (1907) में जहाँ गरमपंथी विचारधारा के कांग्रेसियों को कांग्रेस से अलग किया गया था। 1916 के लखनऊ अधिवेशन में उनको पुनः प्रवेश दिया गया।
  • ज्ञातव्य है कि 1916 के लखनऊ अधिवेशन में ही कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की 'पृथक निर्वाचन' की माँग स्वीकार किया था। जो मुस्लिम लीग के एि सकारात्मक उपलब्धि थी ।
  • ज्ञातव्य है कि इतिहासकारों का मत है कि लखनऊ अधिवेशन ने भारत की राजनीति में साम्प्रदायिकता के उदय का मार्ग प्रशस्त किया था।
  • इसी क्रम में रमेशचंद्र मजूदमार ने माना है कि भविष्य में पाकिस्तान के विभाजन की नींव भी लखनऊ पैक्ट में पड़ा था।
  • ज्ञातव्य है कि 1907 के निष्कासित उग्रवादी कांग्रेसी पुनः कांग्रेस में वापसी किए थे। 1916 के लखनऊ अधिवेशन में। इस समझौता का सूत्रधार ऐनी बेसेंट एवं बाल गंगाधर तिलक थे।

होमरूल लीग (1916)

  • ज्ञातव्य हो 6 वर्ष की लंबी सजा के पश्चात 16 जून, 1914 को तिलक को मांडले जेल से रिहा किया गया था।
  • इसी क्रम में तिलक के राष्ट्रीय आंदोलन में पुनः सक्रिय वापसी से राष्ट्रवादी सक्रिय और उत्साहित हो गए थे।
  • इन लोगों ने स्वराज की प्राप्ति के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक संगठन की स्थापना का विचार किया।
  • इसी क्रम में बाल गंगाधर तिलक ने 28 अप्रैल, 1916 को बेलगाम (पूना) में 'होमरूल लीग' की स्थापना की घोषणा किया था।
  • एक अन्य होमरूल की स्थापना आयरिश मूल की महिला ऐनी बेसेंट ने किया था। इसकी स्थापना 1 सितम्बर, 1916 को हुआ था।
  • ऐसी बेसेंट ने 1914 में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। इनके दो समाचार पत्र थे, न्यू इंडिया एवं कॉमनवील थे।

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी घटनाएँ

  • भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन सत्ता के विरुद्ध उग्र क्रांतिकारी घटनाओं का आगाज महाराष्ट्र में हुआ था। किंतु कालांतर में इसका प्रधान केंद्र बिन्दु बंगाल में स्थापित हो गया ।
  • उग्र हिंसक क्रांतिकारियों की कार्य करने की पद्धति पुरातन और विदेशों के क्रांतियों से प्रेरित था।
  • उग्र हिंसक क्रांतिकारी गुप्त संगठन स्थापित करते तथा हथियार इकट्ठा करते, सरकारों के खजाना को लूटते तथा देशद्रोहियों की हत्या करते थे।

महाराष्ट्र में क्रांतिकारी घटनाएँ

  • महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन का प्रारंभ 1879 के रामोसी आंदोलन के प्रणेता बासुदेव बलवंत फड़के के द्वारा किया गया था।
  • रामोसियों ने सर्वप्रथम अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए पहली बार सशस्त्र विद्रोह किया था ।
  • इसी क्रम में सर्वप्रथम 22 जून 1897 को यूरोपियों की राजनीतिक हत्याएँ हुई थी।
  • इसी क्रम में चापेकर बंधुओं ने के प्लेग समिति के प्रधान वाल्टर चार्ल्स रैंड तथा लेफ्टिनेंट आयर्स्ट (Lt. Ayerst) की हत्या कर दी थी।
  • चापेकर बंधु पकड़े गए हत्याओं के अभियुक्त बने तथा 18 अप्रैल, 1898 को फांसी पर लटका दिया गया था।
  • इसी क्रम में चापेकर बंधुओं को गिरफ्तार करवाने वाले द्रविड़ बंधुओं (गणेश शंकर और रामचंद्र द्रविड़ ) को व्यापम मंडल के सदस्यों ने उन्हें मार डाला ।
  • कुछ समय के पश्चात व्यापम मंडल के उन सदस्यों को भी फांसी तथा आजीवन कारावास की सजा सुना दिया गया।
  • इस घटना पर टिप्पणी करते हुए बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केशरी में एक लेख लिखा । यह लेख अप्रत्यक्ष रूप से चापेकर बंधुओं के समर्थन में था ।
  • तिलक ने इस लेख में चापेकर बंधुओं के द्वारा किया गया अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की तुलना शिवाजी द्वारा अफजल खां की हत्या से किया था ।
  • इसी क्रम में राजगृह की धारा 124A लगाकर ब्रिटिश सरकार ने तिलक को 18 माह के लिए कारावास में डाल दिया था ।

व्यापम मंडल (Vaypam Mandal)

  • इसके संस्थापक दामोदर हरि और बालकृष्ण हरि चापेकर बंधु थे।
  • इस संस्था की स्थापना वर्ष 1896-97 में किया गया था ।
  • इसकी स्थापना का स्थान पूना (महाराष्ट्र) था ।
  • इस संस्था के स्थापना का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युववाओं को इकट्टा एवं जागृत करना था ।
  • इस संस्था में व्यापम एवं शस्त्र शिक्षा के माध्यम से ऐसे युवाओं को तैयार किया जाता था जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति लगा सके।

मित्र मेला और अभिनव भारत

  • गणपति उत्सव मनाने के उद्देश्य से 1899 में वी. डी. सावरकर के द्वारा नासिक में मित्र मेला की स्थापना किया गया था।
  • 1904 में मित्र मेला ही अभिनव भारत के रूप में परिणत हो गया था।
  • ज्ञातव्य है कि अभिनव भारत का महाराष्ट्र के क्रांतिकारी संगठनों में प्रथम स्थान था ।
  • इस संस्था की स्थापना का प्रेरणा मेजिनी की तरुण इटली जैसे गुप्त संस्था थी । इस संस्था का उद्देश्य भूमिगत क्रांतिकारी घटनाओं को संपादित करना था ।
  • इस संस्था के प्रमुख सदस्य गणेश सावरकर को 9 जून 1909 को नासिक के जिला दण्डनायक (DM) ने उनको काले पानी की सजा दी थी।
  • इस संस्था की अन्य शाखाएँ भारत के अन्य भागों में फैली हुई थी।
  • इस संस्था ने महादेव वापट को बम बनाने की कला सिखने के लिए पेरिस भेजा था।
  • इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य हिंसक घटनाओं के माध्यम से अंग्रेजों को भारत से बाहर कर राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना था ।
  • इसी क्रम में 1906 में वी. डी. सावरकर कानून की पढ़ाई करने ब्रिटेन चले गए थे किंतु फिर भी यह संस्था अबाध रूप से कार्य करती रही थी। 

अलीपुर षडयंत्र केस (Alipur Shadyantra case, 1908)

  • सरकार के कलकत्ता तथा मनिकटोला उधान में अवैध हथियारों के तलाशी के लिए अनेक स्थानों पर छापे मारे थे।
  • इसमें बहुत सारे क्रांतिकारी गिरफ्तार किए गए। इसमें दो घोष बंधु अरविन्द और बारीन्द्र घोष भी शामिल थे।
  • यही मुकदमा कालांतर में अलीपुर षडयंत्र केस के नाम से जाना गया।
  • इस केस में नरेन्द्र गोसाई सरकारी गवाह बन गए। 31 अगस्त 1908 को सत्येन्द्र बोस एवं कन्हाई लाल दत्त ने नरेन्द्र को जेल में ही मार दिया था।
  • इस केस में वरीन्द्र घोष गुट के सभी सदस्यों को आजीवन कालापानी की सजा दी गई थी।
  • प्रसिद्ध वकील चित्तरंजन दास के अथक प्रयास से अरविन्द घोष बरी हो गए। कालांतर में अरविंद घोष पांडिचेरी चले गए और ऑरोविले आश्रम की स्थापना किया एवं राजनीतिक गतिविधियों से संन्यास ले लिया।
  • ज्ञातव्य है कि 11 दिसम्बर, 1908 को अनुशीलन समिति को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था।

हावड़ा षडयंत्र केस (1910)

  • इसके प्रणेता जतीन्द्रनाथ मुखर्जी थे। इनको 'बाधा जतिन' के नाम से भी संबोधित किया जाता था।
  • डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेट शमशुल आलम की हत्या के आरोप में बाघा जतिन पर हावड़ा षडयंत्र केस चलाया गया था।
  • इस केस में 1 वर्ष की सजा हुई थी। ये युगांतर पार्टी के प्रमुख नेता थे।

दिल्ली में क्रांतिकारी आंदोलन

  • इस घटना को प्रणेता रास बिहारा बोस एवं सचीन्द्र सान्याल थे । तथा इसको मूर्त रूप मास्टर अमीर चन्द्र, मास्टर अवध बिहारी, बाल मुकुंद तथा बसंत कुमार ने दिया ।
  • पुलिस ने इस घटना में कुल 13 लोगों को गिरफ्तार किया था ।
  • इस घटना को दिल्ली षडयंत्र केस कहा गया क्योंकि इसको दिल्ली के चांदनी चौक में अंजाम दिया गया था।
  • भारत की राजधानी परिवर्तन 1912 में हो रहा था। इसी क्रम में वायसराय लार्ड हार्डिंग कलकत्ता से दिल्ली आए थे।
  • 23 दिसम्बर, 1912 को वायसराय लार्ड हार्डिंग के सवारी पर चांदनी चौक इलाके में बम फेंका गया।
  • इस घटना में लार्ड हार्डिंग बच गया जबकि अन्य सारे लोगों मारे गए थे।
  • इस घटना में गिरफ्तार किए गए 13 लोगों में : लोगों को फांसी दी गई तथा अन्य को देश से निर्वासित कर दिया गया।
  • इसी घटना के पश्चात रास बिहारी बोस जापान चले गए थे। जहां उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना किया था।
  • आजाद हिंद फौज की स्थापना में सुभाष चंद्र बोस की सहायता किया था रास बिहारी बोस ने ।

पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन

  • ज्ञातव्य है कि 1906 ई. के प्रारंभ में क्रांतिकारी आंदोलन फैल रहा था। पंजाब सरकार के उपनिवेशीकरण विधेयक के कारण किसानों में व्यापक जन असंतोष व्याप्त था।
  • इसका उद्देश्य चिनाब नदी क्षेत्र में भूमि चकबंदी को हतोत्साहित करना तथा संपत्ति के विभाजन के अधिकारों में हस्तक्षेप करना था।
  • इस समय ब्रिटिश सरकार ने जलकर में वृद्धि किया जनता में असंतोष फैल गया था।
  • इस आंदोलन के प्रणेता अजीत सिंह तथा लाला लाजपत राय थे। दोनों को गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया था।
  • इसी क्रम में अजीत सिंह ने लाहौर में अंजुमन - ए - मोहिब्बान-ए-वतन नामक संस्था की स्थापना किया था।

कामागाटामारू प्रकरण

  • कामागाटामारू प्रकरण का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में विशेष स्थान है। इस घटना ने समूचे पंजाब प्रांत में उग्रराष्ट्रवादी घटनाओं को पुनर्जीवित तथा प्रेरित किया था ।
  • पंजाब के एक क्रांतिकारी बाबा गुरूदत्त सिंह ने एक जापानी जलपोत कामाटागारू को भाड़े पर लिया ।
  • इस जहाज पर 351 पंजाब सिख एवं 21 मुस्लिम यात्री थे। इन सभी यात्रियों के साथ वे सिंगापुर से बैंकुवर जाने का प्रयास किए।
  • बाबा गुरुदत्त का उद्देश्य इन सभी यात्रियों के साथ में वैकूवर पहुँचकर स्वतंत्र एवं सुखमय जीवन व्यतीत करना तथा भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लेना था।
  • कनाडा सरकार ने इस जहाज को अपने बंदरगाह पर रुकने की अनुमति नहीं दिया। जहाज 27 दिसम्बर, 1914 को पुन: कलकत्ता लौट आया।
  • इस जहाज के सभी यात्रियों का विश्वास था ब्रिटिश सरकार के दबाव में कनाडा सरकार ने इन यात्रियों को बंदरगाह पर उतरने की अनुमति नहीं दिया था।
  • कलकत्ता बंदरगाह पर बाबा गुरुदत्त को गिरफ्तार करने का प्रयास किया गया। किंतु वे बच निकले।
  • इस जहाज के अन्य सभी यात्रियों को जबरदस्ती पंजाब भेजा जा रहा था। पुलिस व यात्रियों के बीच झड़प हुई और 22 यात्री मारे गए।
  • कामाटागारू यात्रियों ने शामिल लगभग सभी ने जो गदर पार्टी के सदस्य थे। भावष्य में पंजाब में क्रांतिकारी घटनाओं में हिस्सा लिया तथा लाहौर षडयंत्र ( लूट) घटना में मुख्य किरदार निभाए ।
  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 2014 में भारत सरकार ने इस घटना के या में 100 रु० का सिक्का भी जारी किया था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1916 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता अम्बिका चरण मजूमदार ने किया था।
  • 1916 ई. में मुस्लिम लीग तथा कांग्रेस के मध्य मुहम्मद अली जिन्ना तथा बाल गंगाधर तिलक ने समझौता कराया था ।
  • कांग्रेस के 1916 के अधिवेशन में बिहार ( चंपारण) के किसान राजकुमार शुक्ला ने गांधीजी को चंपारण के किसानों की समस्या से अवगत कराया था।
  • भारत में होमरूल लीग की शुरूआत सर्वप्रथम बाल गंगाधर तिलक ने किया था।
  • होमरूल लीग आंदोलन को गृह शासन आंदोलन के नाम से भी पुकारा जाता था ।
  • होमरूल लीग स्वतंत्रता संघर्ष युग का महत्वपूर्ण आंदोलन था क्योंकि इस आंदोलन में देश के समक्ष स्वशासन की एक ठोस योजना रखा गया था।
  • 1918 में तिलक तथा ऐनी बेसेंट द्वारा बनाए गए होमरूल लीग को एक कर दिया गया था ।
  • वर्ष 1914-18 तक प्रथम विश्वयुद्ध चला था।
  • ज्ञातव्य है कि कामाटागारू प्रकरण बाबा गुरूदीप सिंह से संबंधित था। यह एक जहाज का नाम था।
  • 1918 के विद्रोह समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में क्रांतिकारी आंदोलन महाराष्ट्र में प्रारंभ हुआ था।
  • 21 दिसम्बर, 1909 को नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने किया था।
  • नासिक "डयंत्र केस जिसमें मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या की गई थी। इसी में विनायक दामोदर सावरकर एवं अन्यों को अभियुक्त बनाया गया था।
  • क्रांतिकारियों की गुप्त अभिनव भारत की स्थापना 1904 में दामोदर सावरकर के द्वारा किया गया था।
  • मित्र मेला संघ की शुरूआत भी विनायक दामोदर सावरकर ने की थी।
  • राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) स्थापना 27 सितम्बर, 1925 को विजय दशमी दिन केशव बलिराम हेडगवार ने किया था।
  • ज्ञातव्य है कि 1910 में दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश जहाज से मुक्त होने के लिए एस. एस. मोरियो नामक जहाज से फ्रांस के मारसेलेस नामक बंदरगाह के करीब छलांग लगा दिया था। 
  • 1897 में रैंड की हत्या के साजिश के विरुद्ध संघर्ष में जनता के द्वारा बाल गंगाधर तिलक को लोकमान्य की उपाधि प्रदान किया गया था।
  • बंगाल में क्रांतिकारी विचारधारा का विस्तार करने का श्रेय वरीन्द्र कुमार घोष तथा भूपेन्द्र नाथ दत्त को जाता है।
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Wed, 17 Apr 2024 11:26:14 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उदारवादी चरण (1885&1905) https://m.jaankarirakho.com/991 https://m.jaankarirakho.com/991 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष का उदारवादी चरण (1885-1905)
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में काँग्रेस की स्थापना के प्रारंभिक दौर में उदारवादी विचारधारा प्रबल रहा। इसके पीछे अनेकों कारण थे किंतु सबसे प्रबल कारण था उदारवादी विचारधारा के समर्थक नेताओं का बौद्धिक एवं वैचारिक रूप से अहिंसक और शांतिप्रिय होना। ये सभी पढ़े-लिखे उच्च पदों पर आसीन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रख्यात और उपलब्धि, तथा उपाधियों से सर्वोच्च थे। इनकी महानता इनकी वैचारिक सटीकता और तर्कवाद में थी । इन्होंने भारत की जनमानस को राजनीतिक एवं मानव अधिकारों के लिए अंग्रेजों से अहिंसक विधि से लड़ना सिखाया। तथा एक क्रमागत तथा धीमा ही सही स्वतंत्रता आंदोलन का प्रारंभ किया।
  • उदारवादी विचारधारा तत्कालीन वैश्विक परिस्थितियों एवं भारतीय सामाजिक राजनीतिक दृष्टिकोण के अनुकूल थी। 
  • इस विचारधारा के राजनेताओं ने अति मुखरता से तर्कवाद, विज्ञानवाद तथा भारतीय शिक्षा जगत को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति से जोड़ा।
  • उदारवादियों ने भारतीय जनमानस को स्वतंत्रता आंदोलन का अभिप्राय समझाया एवं ब्रिटिश उपनिवेश के विरुद्ध राजनीतिक विरोध प्रारंभ किया।

उदारवादी कालखंड (1885-1905)

  • वर्ष 1905 तक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इन नेताओं का वर्चस्व था जिनको सामान्यतः उदारवादी कहा जाता था ।
  • ये नेता नरमपंथी राष्ट्रवादी या उदारवादी राजनेता के नाम से विख्यात थे।
  • इनकी विचारधारा शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक विधि से अंग्रेजों से विजय प्राप्त कर भारत को स्वतंत्र कराना था।
  • इनकं प्रमुख नेता

       

  • इन राजनेताओं को अंग्रेजों के न्यायप्रियता में घोर आस्था थी।
  • इसी कालखण्ड में कांग्रेस पर भी प्रबुद्ध मध्यमवर्गीय बुद्धजीवियों का भी कब्जा था जिसमें डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, पत्रकार इत्यादि थे।
  • उदारवादी नेताओं की माँगें सरकार को पत्र, प्रतिवेदन, स्मरण पत्रों तथा शिष्ट मंडलों के द्वारा सरकार को प्रस्तुत करते थे।
  • इनके अति उदारवादी एवं लचीले व्यवहार के कारण उग्रपंथी नेताओं ने इनके विचारधारा को "राजनीतिक भिक्षावृत्ति" (Political mendiconcy) की संज्ञा प्रदान किया था ।
  • उदारवादी नेताओं ने अपनी मांग मनवाने के उद्देश्य से भी कुछ संस्थाओं का निर्माण किया था।
  • 1887 में दादाभाई नौरोजी ने लंदन में भारतीय सुधार समिति तथा 1888 में विलियम डिग्वी की अध्यक्षता में ब्रिटिश कमेटी ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की थी।
  • उदारवादी नेता हमेशा संवैधानिक दायरे में रहकर कानून के दायरे में संवैधानिक प्रदर्शनों के पक्षधर थे।
  • ज्ञातव्य है कि उदारवादियों की राजनैतिक विरोध की नीति की दर थोड़ी धीमी थी किंतु इससे क्रमबद्ध राजनीतिक विकास की प्रक्रिया प्रारंभ हुआ था।
  • उदारवादियों के मतानुसार अंग्रेज भारतीयों को शिक्षित बनाना चाहते थे । तथा वे भारतीयों के वास्तविक समस्याओं से बेखबर है।
  • उदारवादियों ने मुख्यत: दो नीतियों का नुसरण किया था।
    1. भारतीयों में राष्ट्रप्रेम जागृत कर राजनीतिक मुद्दों पर उन्हें शिक्षित करना तथा उनमें एकता स्थापित करना
    2. ब्रिटिश सरकार तथा ब्रिटिश जनता को भारतीय पक्ष में करना तथा सकारात्मक सुधार के लिए प्रेरित करना ।
  • उन सभी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राष्ट्रवादियों ने 1899 में लंदन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ब्रिटिश कमेटी इंडिया की स्थापना किया गया था।
  • इसी क्रम में दादाभाई नौरोजी ने अपने जीवन का लंबा कार्यकाल लंदन में बिताया और भारतीय पक्ष में जनमत तैयार किया था ।

राष्ट्रीय आंदोलन में उदारवादियों का योगदान

  • इस क्रम में दिनेश वाचा, आर. सी. दत्त और दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश शासन की शोषणमूलक आर्थिक नीतियों का अनावरण किया ।
  • इसी के अन्तर्गत भारत में किए जा रहे आर्थिक शोषण के लिए दादा भाई नौरोजी ने " धन निकास सिद्धांत' का प्रतिपादन किया था।
  • इनके द्वारा स्पष्ट किया गया कि ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारत को दिन प्रतिदिन गरीब बनाया जा रहा है।
  • उदारवादियों ने अपने वैचारिक कटिबद्धता और तर्क के आधार पर जनमानस को ब्रिटिश सरकार के विरोध में खड़ा किया। और साबित किया कि भारत के शोषण, गरीबी तथा आर्थिक पिछड़ेपन का कारण ही ब्रिटिश उपनिवेश है।
  • इसी क्रम में उदारवादियां ने भारत की गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन को कम करने हेतु भारत में उद्योगों को बढ़ावा देने तथा स्वदेशां वस्तुओं के प्रयोग तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को भी बढ़ावा दिया था।
  • इसके अतिरिक्त भूराजस्व में कमी करने, नमक कर का उन्मूलन करने तथा बगान श्रमिकों की दशा सुधारने, सैन्य खर्च में कटौत का भी प्रस्ताव रखा था।

बंगाल विभाजन

  • सर्वप्रथम वर्ष 1903 में बंगाल विभाजन की घोषणा की गई थी सार्वजनिक स्तर पर ।
  • इसके पीछे का उद्देश्य था कि बंगाल राजनीतिक ( क्षेत्र के स्तर पर ) रूप से बहुत बड़ा है। इसके विभाजन से इसका विकास एवं प्रशासनिक नियंत्रण सुनिश्चित होगा ।
  • अर्थात् बंगाल अन्य सभी प्रेसीडेंसियों से बहुत बड़ा था। इसी कारण इसका विभाजन किया जा रहा है।
  • लेकिन इस विभाजन का उद्देश्य बंगाल में बढ़ते राष्ट्रवाद को कम करना ब्रिटिश सरकार को मजबूत करना था ।
  • लार्ड कर्जन ने 1905 ई. में बंगाल का विभाजन सांप्रदायिक आधार पर किया था।

  • ज्ञातव्य है कि तत्कालीन बंगाल फ्रांस के बराबर था इसकी आबादी कुल 7-8 करोड़ थी।
  • इसी क्रम में बंगाल इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि बंगाल ब्रिटिश सरकार की नींव बंगाल में ही पड़ी थी ।
  • इस योजना की प्रारंभिक भारतीय पक्ष से घोषणा 1903 के काँग्रेस के मद्रास अधिवेश में किया था। ।
  • इस अधिवेशन की अध्यक्षता मोहनलाल घोष ने किया था। इसी अधिवेशन में मोहन लाल घोष ने बंगाल के तत्कालीन गवर्नर रिजले का पत्र कर्जन को था जिसमें बंगाल विभाजन का जिक्र था।
  • इसी पत्र का हवाला देकर मोतीलाल घोष ने बंगाल विभाजन के डर को सार्वजनिक किया था।
  • इस पत्र के अंतर्गत विचार था " एकीकृत बंगाल एक शक्ति है एवं विभाजित बंगाल कमजोरी है। इसलिए हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि बंगाल बंट जाए और दुश्मन कमजोर हो जाए”। 
  • घटनाक्रम : 13 जुलाई 1905 इसी दिवस को कृष्ण कुमार मित्र ने अपने पत्र संजीवनी में इस बात का जिक्र किया कि अगर बंगाल विभाजन किया गया तो स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन प्रारंभ किया गया था।
  • 19 जुलाई, 1905 : इसी दिन को सर्वप्रथम लार्ड कर्जन ने जनता के समक्ष बंगाल विभाजन की रूपरेखा प्रस्तुत किया था ।
  • 07 अगस्त 1905 : कलकत्ता के टाउन हॉल में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का उद्देश्य बंगाल विभाजन के घोषणा का विरोध करना था। इसी आयोजन में स्वदेशी अपनाओ और विदेशी का विरोध करो की नीति प्रारंभ किया गया था।
  • इस आयोजन की अध्यक्षता मणिन्द्र नाथ नंदी ने किया था।
  • ज्ञातव्य है कि असम के कमिश्नर स्टेटशमैन कॉटन ने भी बंगाल विभाजन का विरोध किया था ।
  • 1 सितम्बर 1905 : कर्जन ने यह घोषणा किया कि 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल का विभाजन किया जाएगा। इसी तारीख से बंगाल विभाजन प्रभावी हो गया था।
  • इस घोषणा के विरोध स्वरूप समूचे बंगाल में एक आंदोलन प्रारंभ किया गया था।
  • 16 अक्टूबर 1905 को विभाजन के विरोध में राखी दिवस का आयोजन किया गया था।
    1. समूचे बंगाल में शोक दिवस का आयोजन किया गया था।
    2. रवींद्रनाथ टैगोर के कहने पर बंगाल में राखी दिवस का आयोजन किया गया था।
    3. राखी दिवस के आयोजन पर हिंदु मुस्लिमों ने संयुक्त एकता को प्रेसित किया। एक-दूसरे को राखी बांधी तथा एक-दूसरे की रक्षा की कसम लिया।
    4. इसी के उपलक्ष्य में आनंद मोहन बोस के द्वारा फेडरेशन हाल की स्थापना किया गया।
  • अक्टूबर 1905 : सुन् नाथ बनर्जी तथा आनंद मोहन बोस ने दो बड़ी जनसभाओं का आयोजन किया। यह बंगाल विभाजन के विरोध में इस सभा में 50,000 रुपये इकट्ठा हो गया था।

बंगाल विभाजन का प्रत्येक क्षेत्र में विरोध 

  • कला क्षेत्र में : इसी क्रम में अवनींद्र नाथ टैगोर ने भारतीय गौरवगाथा का इतिहास चित्र के रूप में प्रस्तुत किया।
  • 1906 में इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरियेंटल आर्ट (पूर्वी देशों की कला) की स्थापना किया।
  • इस संस्था के प्रथम छात्र नंद लाल बोस थे जिनको छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी।
  • इसी संस्था के एक अन्य छात्र प्रेम बिहारी नारायण रायजादा थे। जिन्होंने भारतीय संविधान की सुलेख (collegory) तैयार किया था ।
  • इसी क्रम में प्रेमचंद राय ने एक स्वदेशी कंपनी बंगाल केमिस्ट एवं फार्मास्यूटिकल की स्थापना किया था।
  • साहित्य के क्षेत्र में : साहित्य के क्षेत्र में बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप रवीन्द्र नाथ टैगोर ने ओमार सोनार बांग्ला लिखा था।
  • 1971 में बांग्लादेश जब नया देश बना तथा इसके प्रधानमंत्री मुजीबुर रहमान ने इसे राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया था।
  • स्वदेशी आंदोलन प्रथम आंदोलन था जिसमें पहली बार समाज के हर वर्ग की स्त्रियों ने भाग लिया था ।
  • ज्ञातव्य है कि इसी आंदोलन में सर्वप्रथम श्रमिक वर्ग की समस्याओं को राजनीतिक ढाँचा प्रदान किया गया था।
  • इसी आंदोलन में सर्वप्रथम 'आत्म निर्भरता' और 'आत्मशक्ति' का भी नारा दिया गया था।
  • ज्ञातव्य है कि 1906 के काँग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में स्वदेशी और बायकाट से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया था जो निम्नलिखित है-
  • इस आंदोलन के कांग्रेस का नजरिया एकदम सटीक था। उसका स्पष्टतः मानना था कि देश की सरकार में देश की नागरिकों की भागीदारी नहीं है। इसलिए सरकार इसके परिवर्तन पर विचार नहीं करती थी । इस कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बंगाल के बहिष्कार आंदोलन का समर्थन करती है।
  • कांग्रेस ने मांग किया कि भारत को भी अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों की शांति त अधिशासी उपनिवेश का दर्जा मिलना चाहिए।
  • साथ ही कांग्रेस ने अंग्रेजी विद्यालयों का बहिष्कार करने तथा राष्ट्रीय शिक्षण सस्थाओं में ही अध्ययन करने का प्रस्ताव पास किया था ।
  • इस अधिवेशन की अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने किया था वर्ष 1907-08 तक आते-आतं स्वदेशी आंदोलन की गति कुंद पड़ गई इसका प्रमुख कारण कांग्रेस का वैचारिक बंटवारा भी था ।

स्वदेशी आंदोलन के असफलता के कारण

  • 1908 ई. तक स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन का बाह्य उन्माद लगभग कुंद पड़ चुका था।
  • ब्रिटिश सरकार ने आंदोलनकारी लोगों के खिलाफ कठोर दंडात्मक नीति का प्रयोग किया था।
  • यह आंदोलन आगे चलकर नेतृत्वहीन हो गया था। वर्ष 1908 तक अधिक नेता गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए थे।
  • कांग्रेस के वैचारिक विभाजन सूरत (1907) के पश्चात इस आंदोलन पर भारी आघात पहुंचा था।
  • यह आंदोलन सामाजिक दृष्टिकोण से आंतरिक पैठ नहीं बना सका। इसकी पहुंच उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग तथा जमींदारों तक था।
  • यह आंदोलन मुसलमानों तथा किसानों को प्रभावित करने में पूर्णतः असफल रहा था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • स्वदेशी आंदोलन का प्रारंभ तथा तात्कालिक कारण बंगाल विभाजन ही था। इस अवधारणा के प्रस्तुतकर्ता अरविंद घोष थे।
  • स्वदेशी आंदोलन को समूचे देश में लागू करने की चाह रखने वाले नेता

       

  • किंतु समूचे देश में स्वदेशी / बहिष्कार आंदोलन लागू करना उदारवादी विचारधारा के नेताओं के गुट के विरुद्ध था ।

  • स्वदेशी आंदोलन के समय आंदोलन के जनसमर्थन एकत्र करने के उद्देश्य से अश्विनी कुमार दत्त ने स्वदेश बांधव समिति का आयोजन किया था।
  • इस आंदोलन में महिलाओं ने सक्रियता से भाग लिया था।
  • किसान और बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय स्वदेशी आंदोलन से दूर रहा।
  • स्वदेशी आंदोलन के समय 'वंदे मातरम्' भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का शीर्षक गीत बना था।
  • ब्रिटिश पत्रकार एच. डब्ल्यू. नेविन्स इस आंदोलन से जुड़े थे।
  • एच. डब्ल्यू. नेविन्स ने चार महीने तक भारत में रूक कर

       

  • कालांतर में एच. डब्ल्यू. नेविन्स ने अपने स्वदेशी आंदोलन के अनुभव को 'द न्यू स्पिरिट ऑफ इंडिया' नामक पुस्तक में लिखा था।
  • राष्ट्रीय आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के वातावरण में अवनीन्द्र नाथ टैगोर ने 1906 में अपने बड़े भाई गगनेन्द्र नाथ के साथ मिलकर इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरियेंटल आर्ट की स्थापना की थी।
  • इस सोसाइटी का उद्देश्य भारत की प्राचीन कला मूल्यों को जागृत कर आधुनिक भारतीय कला में चेतना का विस्तार करना था ।
  • दिसम्बर, 1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी के भारत आगम पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया था।
  • 12 दिसम्बर, 1911 को बंगाल विभाजन को रद्द कर दिया गया था। साथ ही कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को भारत की नवीन राजधानी घोषित किया गया था।
  • 1912 में बंगाल से उड़ीसा तथा बिहार को अलग कर दिया गया था।
  • असम को 1874 की स्थिति में रखा गया तथा इसके क्षेत्र में सिलहट को जोड़ दिया गया।
  • बंगाल विभाजन की घोषणा लॉर्ड कर्जन (1899 1905) के कार्यकाल में किया गया था।
  • बंगाल विभाजन में बंगाल के तात्कालिक गवर्नर 'ऐन्ड्रयूज हेंडरसन लीथ' फ्रेजर की मुख्य भूमिका थी। इनका कार्यकाल (1903- 1908) तक बंगाल के गवर्नर के रूप में था ।
  • बंगाल विभाजन के संबंध में 'सुरेन्द्र नाथ बनर्जी' ने कहा था " बंगाल विभाजन हमारे ऊपर बम की तरह गिरा " ।
  • ज्ञातव्य है कि रवीन्द्र नाथ टैगोर स्वदेशी आंदोलन के आलोचक थे । तथा East ( पूर्व ) एवं पश्चिम (West) के समन्वय भी थे।
  • बंगाल में ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का सुझाव कृष्ण कुमार ने अपनी पत्रिका 'संजीवनी' में दिया था।
  • स्वदेशी आंदोलन का मद्रास में नेतृत्व चिदंबरम पिल्लै ने किया था।
  • स्वदेशी आंदोलन में कपड़ा उद्योग को अत्यधिक क्षति हुई थी।
  • "भारत का वास्तविक जागरण बंगाल विभाजन के पश्चात प्रारंभ हुआ था।'' – महात्मा गाँधी
  • 16 अक्टूबर को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • 16 अक्टूबर (बंगाल विभाजन) को रवीन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर 'राखी दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है।
  • बंगाल नेशनल कॉलेज की स्थापना 14 अगस्त, 1906 को हुई थी।
  • 'अमार सोनार बांग्ला' गीत की रचना रवीन्द्र नाथ टैगोर ने स्वदेशी आंदोलन में धार देने के लिए किया था। आज यह बांग्लादेश की राष्ट्रगान है।
  • अरूण्डेल कमेटी (1906) के जी.एस. ह पर बंगाल को रद्द किय गया था।
  • लाला लाजपत राय ने अपना राजनीतिक गुरु इटली के क्रांतिकारी मैजिनी को माना था।
  • पंजाब के गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय को शेर-ए-पंजाब की उपाधि प्राप्त थी ।
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Wed, 17 Apr 2024 10:40:57 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | राष्ट्रवाद का उदय और काँग्रेस का गठन https://m.jaankarirakho.com/990 https://m.jaankarirakho.com/990 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | राष्ट्रवाद का उदय और काँग्रेस का गठन
भारत में राष्ट्रवाद का उद्भव क्रमबद्ध और लंबे अंतराल का परिणाम था। इसके पीछे 1857 से पूर्व की परिस्थितियाँ तथा औपनिवेशिक व्यवस्था से उपजी परिस्थितियाँ भी शामिल थी। भारतीय राष्ट्रवाद के प्रेरक तत्वों ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्षों के प्रेरणा को प्रबल किया। इसी क्रम में भारतीय बुद्धजीवियों ने भारत में नवीन वैचारिक, राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता तथा अधिकारों के उद्देश्य से कुछ संगठनों की गठन किया। इन संगठनों का सबसे प्रबल पक्ष था भारत की जनमानस को एक सूत्र में बाँध कर भारत को राष्ट्र के रूप में प्रदर्शित करना तथा औपनिवेशिक व्यवस्था से आजाद करना । काँग्रेस का गठन भी कुछ हद तक इससे ही प्रेरित है। डफरिन ने कांग्रेस गठन के लिए अपनी भारतीय जनता के प्रति उसका स्नेह और उनके दुदर्शा पर पीड़ा ही प्रदर्शित किया है। किंतु कुछ स्वतंत्रता सेनानी और इतिहासकार इसके पक्ष में नहीं है।

भारत में राष्ट्रवाद का उदय

  • भारत में राष्ट्रवाद का उदय का लंबा कालखण्ड था। इस क्रम में सामाजिक टकराव, तथा औपनिवेशिक नीतियों की अहम भूमिका थी भारतीय जनमानस के स्तर पर दो वर्गों का राष्ट्रवाद के उद्भव में प्रमुख योगदान था ।
  • भारतीय किसान तथा पारम्परिक हस्तशिल्प एवं अन्य ग्रामीण उद्योगों के श्रमिक, हालांकि ये प्रारंभिक मात्र थे इस क्रम में समाज सुधारक शिक्षाविद् तथा भारतीय क्रांतिकारियों ने भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद को प्रेरित किया था।

किसानों का शोषण

  • नवीन भूमि बंदोबस्ती व्यवस्था (स्थायी रैयतवाड़ी, महालवाड़ी) ने कुछ नई व्यवस्थाओं ( बाजार व्यवस्था) को जन्म दिया जो नवीन व शोषणकारी थी।
  • इसी क्रम पुरानी परम्परागत व्यवस्थाओं जैसे सामुदायिक अधिकार तथा चारागाह नीति को भी नष्ट कर दिया गया था।
  • भूराजस्व के नवीन नीतियों ने महाजनी ( सूद पर कर्ज लेने की व्यवस्था) व्यवस्था को जन्म दिया। जो कालांतर में अत्यंत घनघोर शोषक साबित हुआ।
  • इसी क्रम में बदले हुए सामाजिक व्यवस्था/परिवेश के महाजनों (सूद वसूलने वालों) व्यवस्था को बढ़ावा दिया।
  • इसी क्रम में बदले हुए सामाजिक व्यवस्था परिवेश में महाजनी ( सूद वसूलने वाले) के हाथों में भारत की संवृद्ध और गौरवशाली समाज और अर्थव्यवस्था पूर्णतः फंस गई थी।
  • आदिवासी क्षेत्रों में औपनिवेशिक व्यवस्था ने मूल निवासियों को उनके कार्यों और परम्परागत व्यवसाय से दूर किया था।

शिल्पकारों का शोषण

  • नवीन औपनिवेशिक व्यवस्था ने भारत में परम्परागत शिल्पकारों, हस्तशिल्प उद्योगों को नष्ट कर दिया था।
  • भारतीय हस्तशिल्प ब्रिटिश व्यवस्था के आगमन से ही नष्ट होना प्रारंभ हो गई थी। क्योंकि भारतीय रजवाड़ों के नष्ट होने से इनका पतन प्रारंभ हो गया क्योंकि भारतीय रजवाड़े हस्तशिल्प उद्योग के विकास और वृद्धि के संपोषक थे।
  • औद्योगिक व्यवस्था ने भारत को ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का प्रमुख बाजार बना दिया। ये वस्तुएँ बड़ी-बड़ी मशीनों से निर्मित होती थी इसी कारण सस्ती एवं उत्कृष्ट भी होती थी। भारतीय हस्तशिल्प उद्योग इनका बाजार के दृष्टिकोण से सामना नहीं कर पाया।
  • आर्थिक और सामाजिक शोषण का संयुक्त परिणाम था समकालीन जमीनी स्तर के क्रांति । ये क्रांति ही भविष्य के राष्ट्रवाद का समायोजन थे। जी. क

देश में राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक एकीकरण

  • ध्यातव्य है कि ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार और राजनीतिक भूभाग बहुत बड़ा था। इनके राजनीतिक क्षेत्र विस्तार में उत्तर के हिमालय से दक्षिण के कन्याकुमारी तथा पूर्व में असम से पश्चिम में खैबर दर्रे तक था।
  • इसमें कुछ भारतीय रियासतें प्रत्यक्षत: ब्रिटिश शासन में अंतर्निहित थी तो कुछ अप्रत्यक्ष ब्रिटिश शासन के अधीन थी ।
  • ब्रिटिश सरकार ने एक दक्ष कार्यपालिका, संगठित न्यायपालिका तथा संहिताबद्ध फौजदारी तथा दीवानी कानून लगभग समस्त अपने विस्तृत भारतीय उपमहाद्वीप साम्राज्य को नियंत्रित करने के उद्देश्य बना डाला था।
  • इसी क्रम में आर्थिक शोषण को ध्यान में रख औपनिवेशिक व्यवस्था ने तीव्र एवं द्रुतगामी परिवहन व्यवस्था भी बना दिया।
  • 1850 के पश्चात रेल लाइन भी बिछाने का कार्य प्रारंभ किया गया। रेलवे के लाभ सिर्फ औपनिवेशिक शक्ति को ही नहीं हुआ। बल्कि इसका अप्रत्यक्ष लाभ भारत को एकीकृत होने का मौका भी मिला था।
  • 1850 के पश्चात आधुनिक डाक व्यवस्था ने तथा बिजली के तारों ने देश को एकीकृत किया जो सामुहिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में सफल रहे थे।

पाश्चात्य शिक्षा तथा चिंतन से उपजा राष्ट्रवाद

  • भारतीय शिक्षा व्यवस्था पुरातन और परम्परावादी थी। इसकी अपनी विधा थी वैश्विक दृष्टिकोण से भारतीय शिक्षा भिन्न थी। किंतु जत्र भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली लागू हुई तो पाश्चात्य विचारों को अपनाने में मदद मिली जिससे भारत की राजनीतिक चिंतन को दिशा प्राप्त हुई I
  • ट्रैवेलियन, मैकाले तथा बेंटिक ने भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रारंभ किया तो इसका असर भारत की जनता पर दिखना प्रारंभ हो गया।
  • हालांकि भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रारंभ भारत में प्रशासनिक आवश्यकताओं के लिए किया गया था। किंतु भारत के लोगों को बेंथम, सीले, रूसो, स्पेंसर, वाल्टेयर जैसे विचारकों को पढ़ने का मौका मिला। 
  • इन विचारकों ने जनतंत्र, लोकतंत्र, मानव अधिकार, स्वतंत्रता, समानता जैसे विचारों को तर्कपूर्ण एवं प्रभावशाली विधि से रखा है। जो भारतीय जनमानस में राष्ट्रवादी भावनों को जगाने में सहयोगी साबित हुई थी ।
  • इसी क्रम में अंग्रेजी भने भारतीयों को भाषा के स्तर पर समतुल्य कर दिया जिसका प्रभाव था। भारतीयों ने अब अपने राजनीतिक व मानव अधिकार के साथ राष्ट्र और राष्ट्रवाद को तत्परता से विस्तारित किया।
  • अंग्रेजी माध्यम से नवशिक्षित मध्यमत्रर्ग ने (डॉक्टर, वकील, शिक्षक, पत्रकार) विदेश भ्रमण किया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक राष्ट्र के अनुसार प्रदर्शित किया और भारत में वापस आकर राष्ट्रवादी भावना को भी प्रेरित किया था।

प्रेस और समाचार-पत्रों ने राष्ट्रवाद में वृद्धि किया

  • ज्ञातव्य है 1877 में प्रकाशित होने वाले विभिन्न भाषायी एवं हिंदी समाचार पत्रों की संख्या लगभग 169 थी किंतु धीरे-धीरे इसकी संख्या 1 लाख तक पहुँच गई थी।
  • भारतीय प्रेस जहाँ उपनिवेशी शासन की आलोचना करता था नहीं भारतीय क्रांति एवं देशवासियों को आपसी एकता के लिए प्रेरित भी करता था ।
  • राष्ट्रवादी समाचार-पत्रों, जर्नल्स, पैम्पलेट तथा अन्य साहित्यों ने भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा को निरंतर प्रेरित और प्रसारित किया था।
  • 1857 की विद्रोह कुचलने के पश्चात् भी भारत के अनेक भौगोलिक क्षेत्रों में अंग्रेजों के प्रशासनिक और राजनीतिक नीतियों का विद्रोह जारी रहा था।
  • ज्ञातव्य है कि अंग्रेजों ने अपने राजनीतिक नियंत्रण के दम पर आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए भारत पर शासन किया था।
  • इसी क्रम में भारतीय जनता के हितों और अंग्रेजों के हितों के मध्य कोई भी साम्य नहीं था । यह भी कारण रहा निरंतर टकराव था ।
  • कुछ सुविधा संपन्न वर्ग को छोड़कर भारत पर ब्रिटिश शासन के दौरान राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध हमेशा भारतीय जनता को खड़ा किया था।
  • ब्रिटिश शासन ने अपने साम्राज्यवादी एवं शोषणकारी नीतियों से स्वयं अपने विनाश के लिए परिस्थितियाँ उत्पन्न किया था।
  • ब्रिटिश शासन के अंतर्गत लगभग समूचे श का एक राजनीतिक इकाई के रूप में एकीकरण हुआ था।
  • ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के क्षेत्र ऐसे थे जहाँ भारतीय शासन ते थे, किंतु वे पूर्णत: ब्रिटिश कृपा पर आश्रित थे। उनमें से कुछ के शासकों ने समय के साथ ब्रिटिश सत्ता का विरोध भी किया।

आर्थिक परिवर्तनों से उपजा राष्ट्रवाद

  • रेलवे के विकास ने भारत के सभी क्षेत्रों को जोड़ा एवं इसके निर्माण ने जनता का आर्थिक एवं सामाजिक शोषण किया।
  • रेलवे ने क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाया। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा लोगों में एकजुटता की भावना में वृद्धि हुई।
  • भारत ब्रिटिश उत्पादकों के लिए बाजार तथा ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत बन गया था ।
  • उद्योगों में काम करने वाले कामगारों के बीच जातीय, क्षेत्रीय और साम्प्रदायिक भावनाओं का लोप हुआ एवं एकता में वृद्धि हुई ।
  • कामगारों के बीच परस्पर संपर्क में वृद्धि हुई। इस एकजुटता ने ब्रिटिश शोषण के खिलाफ क्रांति के लिए प्रेरित किया।
  • 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में प्रारंभ हुए आधुनिक उद्योगों के विकास ने राष्ट्रीय चेतना के विकास में महती भूमिका निभाई।
  • उद्योगों के विकास होने से समाज में दो महत्वपूर्ण वर्ग पूँजीपति वर्ग एवं औद्योगिक मजदूर वर्ग का उदय हुआ ।
  • पूँजीपति एवं औद्योगिक मजदूर शासन भारत में औद्योगिक व वर्ग इन दोनों के विकास के लिए देश में बाधक था यह भी कारण था। विकास की आवश्यकता थी। किंतु ब्रिटिश वह इन दोनों का विरोधी था ।

काँग्रेस का गठन

  • 19वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी विचारधारा के सम्पोषक प्रारंभ से ही एक राष्ट्रीय स्तर की संख्या के निर्माण को प्रयासरत थे I
  • इस क्रम में राष्ट्रीय संगठन के निर्माण का श्रेय अंग्रेज सेवानिवृत्त अधिकारी ए. ओ. ह्यूम को प्राप्त हुआ।
  • ए. ओ. ह्यूम ने 1883 में ही भारत के प्रमुख नेताओं से संपर्क स्थापित किया । तथा इसी वर्ष अखिल भारतीय कांफ्रेस का आयोजन किया गया।
  • 1884 में ए. ओ. ह्यूम के प्रयत्नों से ही एक संस्था 'इंडियन नेशनल यूनियन' की स्थापना किया गया।
  • इसी यूनियन ने 1885 में राष्ट्र के विभिन्न प्रतिनिधियों का सम्मेलन पूना में आयोजित करने का निर्णय लिया।
  • इस सम्मेलन के आयोजन की जिम्मेदारी भी ए. ओ. ह्यूम को दिया गया। लेकिन पूना में हैजा फैलने के कारण उसी वर्ष 1885 में यह आयोजन बंबई में किया गया।
  • इस सम्मेलन में भारत के सभी प्रमुख शहरों के प्रतिनिधियों ने इस सम्मेलन में भाग लिया । इसी सम्मेलन में अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना किया गया।
  • इसी क्रम में ए. ओ. ह्यूम के अतिरिक्त सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनंद मोहन बोस कांग्रेस के प्रमुख निर्माता माने जाते हैं।
  • ज्ञातव्य है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने किया था। इस अधिवेशन में कुल 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था ।

कांग्रेस का उद्देश्य

  • लोकतांत्रिक राष्ट्रवादी आंदोलन चलाना ।
  • भारतीय जनभावना में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार-प्रसार तथा राजनीतिक शिक्षा प्रदान करना ।
  • आंदोलन के लिए मुख्यालय की स्थापना ।
  • देश के विभिन्न भागों के राजनीतिक नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के मध्य सेतु का निर्माण करना ।
  • एक सामान्य आर्थिक तथा राजनीतिक कार्यक्रम हेतु देशवासियों को एकजुट करना
  • भारतीय सामाजिक जटिलता (जाति, धर्म, सम्प्रदाय) से ऊपर उठकर जनमानस में एकता एवं राष्ट्रवाद की भावना में वृद्धि करना
  • भारत एवं ब्रिटेन के मध्य संबंधों को मधुर बनाना
  • जनता की माँगों को सूत्रीकरण कर उसको सरकार के समकक्ष प्रस्तुत करना । 
    इसी क्रम में कांग्रेस ने अपने प्रथम अधिवेशन में नौ प्रस्तावों का अनुमोदन किया था।
    1. शाही कमीशन के द्वारा भारत को भी उचित रीति से प्रतिनिधित्व प्राप्त हो
    2. इंडियन कौंसिल को भंग किया जाए
    3. केन्द्रीय तथा प्रांतीय लेजिस्लेटिव कौंसिलों का विस्तार किया जाए तथा
    4. निर्वाचित सदस्यों को आर्थिक बजट पर विचार करने की अनुमति प्रदान किया जाए।
    5. सिविल सेवा की परीक्षा इंग्लैंड के साथ भारत में भी करायी जाए तथा इसमें प्रवेश करने वालों की अधिकतम आयु 19 से बढ़ाकर 23 वर्ष किया जाए।
    6. सेना पर खर्च घटाया जाए।
    7. चुंगी फिर से लगाया जाए तथा बढ़े हुए सेना व्यय को यथेष्ट बनाया जाए।
    8. बर्मा को जिस पर अधिकार कर लिया गया था उसको स्वतंत्र करने की बात की गई।
    9. अगले वर्ष कलकता में आयोजन किया जाए।
    10. सभी प्रस्तावों को सभी प्रांतों के राजनीतिक संस्थाओं को भेजा जाए।

कांग्रेस के गठन से संबंधित विवाद ।

  • इतिहासकारों के बीच हमेशा इस विषय पर विवाद बना रहा कि कांग्रेस की स्थापना के पीछे छिपा उद्देश्य हमेशा से भिन्न थी ।
  • कुछ इतिहासकारों ने इस विषय पर लिखा है कि अंग्रेज तात्कालिक परिवेश भारतीय जनभावना को नियंत्रित किया जा सकने वाले एक संगठन के रूप में कांग्रेस की स्थापना किए थे।
  • इनका मानना था कि लॉर्ड डफरिन के परामर्श पर ह्यूम ने कांग्रेसी की स्थापना किया था।
  • संफ्टी वाल्व सिद्धांत-इसके मतानुसार डफरिन के आदेश पर ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना किया था।

गरम दल / नरम दल

  • कांग्रेस की स्थापना के प्रारंभिक वर्षों में नरल दल के राजनेताओं की विचारधार। प्रभावी रहा I
  • नरम दल के नेतृत्वकर्ता मुख्यतः राजवांमबध्य आंदोलन (constitutional agitation) अर्थात प्रशासन में रहकर भारतीयों की भागीदारी एवं राजनीतिक हित की बात करते थे ।
  • वही गरम दल के राजनेताओं ने अनुकूल प्रविघटन ( passive resitance) पद्धति पर कार्य किया था।
  • इसी क्रम में दोनों विचारधाराओं के बीच अपने-अपने विधाओं और वैचारिक श्रेष्ठता के लिए वर्चस्व की लड़ाई आंतरिक रूप से प्रारंभ हो गई।
  • गरम दल के नेताओं को अपनी उग्र अहिंसात्मक व ब्रिटिश शासन को अपने समक्ष उनके नीतियों पर झुकते हुए देखना पसंद था।
  • नरम दल के नेता प्रबुद्ध त शांत विचारधारा के ब्रिटिश सरकार को संवैधानिक व अहिंसा विधि से अपनी राजनीतिक हितों को मनवाना पसंद था।
  • उदारवादी विचारधारा के संपोषक राजनेता अत्यधिक शहरी क्षेत्रों से संबद्ध थे। इसमें मध्यमवर्गीय बुद्धजीवी जैसे डॉक्टर, वकील. इंजीनियर पत्रकार इत्यादि शामिल थे।
  • नरम दल के नेतृत्वकर्ताओं में दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, दिनेश वाचा, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी इत्यादि थे।
  • ये सभी लोग राष्ट्रीय / अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त थे एवं उपलब्धियों और उपाधियों से लैश व्यक्ति थे ।
  • ये सभी नरमपंथी राजनेताओं की एक समस्या भी थे शहरों से जुड़े सिर्फ छोटे से हिस्सों से जुड़े हुए राजनेता थे। इनलोगों का आम भारतीय (ग्रामीण) जनता से संपर्क न के बराबर था।
  • नरम दल और गरम दल का वैचारिक टकराव सूरत (1907) के कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में हुआ । कांग्रेस में प्रभावशाली उदारवादियों ने गरम दल ( उग्रवादियों) को कांग्रेस से निष्कासित करा दिया था।
  • इसी क्रम में उग्रवादी विचारधारा के चार प्रमुख राजनेता बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिनचन्द्र पाल तथा अरविंद घोष थे।
  • ये सभी राजनेता राजनैतिक व वैचारिक दृष्टिकोण से उग्र स्वभाव के थे। इनको नरमदल की संविधान के दायरे में रहकर अपनी मांगों को मनवाने की विधा में विश्वास नहीं था ।
  • इसी क्रम में बाल गंगाधर तिलक ने कहा कि "हमारा उद्देश्य आत्मनिर्भरता है भिक्षावृत्ति नहीं " ।
  • गरमपंथी विचारधारा के राजनेताओं को नरमपंथी के प्रार्थना एवं याचना की राजनीति से समस्या होती थी।
  • उग्रवादी दल सामूहिक आंदोलन के माध्यम से आत्म बलिदान और दृढ़निश्चय के दम से स्वराज की प्राप्ति चाहता था।
  • उग्रवादी दल के स्वराज का अर्थ या विदेशी नियंत्रण से पूर्ण स्वतंत्रता जबकि उदारवादी दल स्वराज अंतर्गत साम्राज्य के अंदर औपनिवेशिक चाहता था ।

कांग्रेस से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • कांग्रेस (लोगों का समूह ) शब्द की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका के इतिहास से हुई है।
  • 'भारतीय राष्ट्रीय संघ' यह कांग्रेस की पूर्वगामी संस्था मानी जाती है। इस संस्था का निर्माण का श्रेय लॉर्ड डफरिन को जाता है।
  • भारतीय राष्ट्रीय संघ को संस्था का रूप एलन अक्टोवियन ह्यूम ने दिया था।
  • भारतीय राष्ट्रीय संघ का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 'दादा भाई नौरोजी' के सुझाव पर किया गया था।
  • कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष बदरूद्दीन तैयबजी थे।
  • कांग्रेस के प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष जॉर्ज यूल थे।
  • कांग्रेस के 1911 के कलकत्ता म जन, गणन, मन का गायन किया गया था। 
  • 1 जनवरी, 1903 को दिल्ली दरबार में एडवर्ड सप्तम को भारत का सम्राट घोषित किया गया। 
  • कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्षा श्रीमती ऐनी बेसेंट (1917) थी।
  • कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष • सरोजनी नायडू (1925) थी।
  • निष्क्रिय विरोध का सिद्धांत का प्रतिपादन अरविंद घोष ने किया था।
  • ज्ञातव्य है कि कांग्रेस के इतिहासकार पट्टाभि सीतारमैया थे।
  • राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' की रचना बंकिमचन्द्र चटर्जी ने किया था।
  • कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन 1916 में बाल गंगाधर तिलक ने बोला था । 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा'।

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Wed, 17 Apr 2024 10:29:03 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | काँग्रेस के पूर्व के राजनीतिक संस्था https://m.jaankarirakho.com/989 https://m.jaankarirakho.com/989 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | काँग्रेस के पूर्व के राजनीतिक संस्था
18वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध तथा 19वीं का पूर्वार्द्ध भारत की जनमानस के लिए परिवर्तन एवं संघर्ष का दौर था । भारत की अति प्राचीन सभ्यता की समाज एवं राजनीति व्यवस्था प्रत्यक्ष पश्चिमी सभ्यता से टकरा रहा था। इस टकराव में विजय औपनिवेशिक व्यवस्था की हो रही थी। इस विजय के भी दो पक्ष थे प्रथम भारतीय पुरातन जड़ता समाप्त हो रही थी तथा दूसरा नवीन वैचारिक, राजनीतिक तथा नवीन सामाजिक व्यवस्था का निर्माण हो रहा था । काँग्रेस के गठन के पूर्व के समस्त राजनीतिक संस्थाओं का निर्माण भी इसी क्रम में हुआ। ब्रिटिश नवीन औपनिवेशिक व्यवस्था ने भारत की सामाजिक संस्थान को ठेस पहुँचाया। तात्कालीन भारत के प्रभुत्वशाली वर्ग के प्रभाव को क्षतिग्रस्त किया। खासकर जमींदार एवं समाज के सर्वोच्च वर्ग । इसी वर्ग के समर्थकों एवं सम्पोसकों ने इन संगठनों का निर्माण किया ताकि ब्रिटिश सरकार के नीतियों को राजनीतिक रूप से चुनौती दिया जा सके।
  • 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध सभी राजनीतिक संगठनों की स्थापना तत्कालीन प्रभावशाली वर्ग के द्वारा किया गया। 
  • इन संस्थाओं का स्वरूप अंशत: क्षेत्रीय किंतु इसका प्रभाव भविष्य में पूर्णतः राष्ट्रीय हुआ।
  • इन संस्थाओं का क्रियाविधि अपनी माँगों को याचिकाओं तथा प्रार्थनापत्रों के माध्यम से अपनी माँग को ब्रिटिश संसद तक पहुँचाना था।
  • इन संगठनों का प्रमुख उद्देश्य प्रशासनिक सुधार, प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी तथा शिक्षा का प्रसार करना था।
  • जबकि इसी क्रम में 19वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध में स्थापित संस्थाओं की स्थापना

  • राजा राममोहन भारतीयों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न करने वाले प्रथम व्यक्ति थे।
  • 1828 ई॰ में उन्होंने ‘विद्याचर्चा ' एवं उनके अनुयायियों ने 1836 में 'बंग भाषा प्रकाशक सभा' नामक संस्था की स्थापना किया था।
  • इस सभा का उद्देश्य धर्म, राजनीति तथा नैतिक सामाजिक विषयों पर विचार विमर्श करनी थी।
  • इसी क्रम में हेनरी विवियन डेरोजियो ने 1830 के दशक में 'द ईस्ट इंडियन' नामक समाचार-पत्र भी प्रकाशित किया। इसका उद्देश्य भी भारत में राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाना था ।

बंगाल के राजनीतिक संगठन

लैंडहोल्डर्स सोसाइटी (The Land Holders Society)

स्थापना – 1838 
संस्थापक – द्वारिका नाथ टैगोर
उद्देश्य - जमींदारों के हितों का संरक्षण
  • यह भारत की प्रथम राजनीतिक संगठन थी। इसके दो सचिव थे। भारतीय सचिव प्रसन्न कुमार ठाकुर थे जबकि अंग्रेज सचिव विलियम काब्री थे।
  • इस संस्था के एक प्रतिनिधि जॉन क्राफर्ड लंदन में इसका प्रतिनिधित्व करते थे ।
  • इस संस्था को बंगाल जमींदार सभा की भी संज्ञा दी गई थी।
  • इस संस्था के निम्न अंग्रेज सदस्य थे-

         

बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी (The Bengal British India Society)

स्थापना - 1843
संस्थापक - जॉर्ज थामसन
सचिव - प्यारी चंद्र मित्र
  • अंग्रेजी शासन के अधीन भारतीय कृषकों की वास्तविक दशा का अध्ययन करना तथा यथासंभव में परिवर्तन करना। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था।
  • यह संस्था 1846 ई. तक निष्क्रिय हो गई थी।
  • यह संस्था ब्रिटिश सोसाइटी का ही भारतीय रूप थी, जिसने लैंड होल्डर्स सोसाइटी को पीछे छोड़ दिया था।

ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन (The British Indian Association)

  • स्थापना - 31 अक्टूबर, 1851 ई०, कलकत्ता
  • संस्थापक अध्यक्ष - राजा राधाकांत देव
  • उपाध्यक्ष - राजा कालीकृष्णदेव 
  • इसके अन्य सदस्य

         

  • भारत के जमींदारों को राजनैतिक संरक्षण प्रदान करना इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था ।
  • इस संस्था का निर्माण लैण्ड होल्डर्स सोसाइटी तथा बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी को मिलाकर किया गया था।
  • बंगाल के बाहर भी इसकी शाखाएँ खोली गई थी। इसलिए इस संस्था को " भारतवर्षीय " सभा भी कहा जाता था।
  • इस संगठन ने नील विद्रोह की जाँच के लिए आयोग बैठाने की माँग की थी।
  • इस संगठन ने 1860 में अकाल पीड़ितों के लिए धन इकट्ठा किया था ।
  • ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन ने कैनिंग द्वारा 1860 ई. में आयकर लगाने का भी विरोध किया था।
  • यह एक राजनैतिक संस्था के रूप में 20वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से में रही थी।
  • कालान्तर में इस संस्था का कांग्रेस में विलय कर लिया गया था।
  • ज्ञातव्य है हिन्दू पैट्रियाट इस संस्था का प्रमुख पत्र था ।

इंडियन लीग (The Indian League )

स्थापना - 1875 कलकत्ता में
संस्थापक - शीसीर कुमार बोस
  • इसी संगठन से भविष्य में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी भी जुड़ गए थे।
  • इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य लोगों के अंदर राष्ट्रवाद के भावना को बढ़ावा देना था।
  • इस संस्था के अस्थायी अध्यक्ष शम्भूचंद्र मुखर्जी थे।
  • कुछ दस्तावेजों में इसके संस्थापक के रूप में शिशिर कुमार घोष को भी दर्शाया गया है। 

कलकत्ता स्टूडेण्ट्स एसोसिएशन

स्थापना - 1875 ई.
संस्थापक - आनंद मोहन बोस
  • इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य छात्रों के हितों का संवर्द्धन करना था।
  • कालांतर में इस संगठन से सुरेन्द्र नाथ बनर्जी भी जुड़ गए थे।

इंडियन नेशनल एसोसिएशन

स्थापना - 26 जुलाई, 1876
स्थान - कलकना के अल्बर्ट हाल
संस्थापक - सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनंद मोहन बास
  • इंडियन लीग की स्थापना के 1 वर्ष के भीतर ही 26 जुलाई एकेडमी 1876 को इसका स्थान इंडियन एसोसिएशन ने ले लिया था। 
  • इंडियन एसोसिएशन की स्थापना सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा आनंद मोहन बोस ने किया था ।
  • इसका प्रमुख उद्देश्य मध्यम वर्ग के साथ-साथ साधारण वर्ग को भी राष्ट्रवादी भावना को जागृत करना था । 
  • इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी थे। परन्तु इसके सचिव आनंद मोहन बोस थे। 
  • कालांतर में इसके अध्यक्ष कलकत्ता प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए थे। 
  • सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के अनुसार इसके निम्नलिखित उद्देश्य थे - 
    (a) देश की जनता की एक शक्तिशाली संस्था का गठन करना
    (b) सामान्य राजनीतिक स्वार्थों के आधार पर भारतीयों को सूत्रबद्ध करना
    (c) हिंदू एवं मुसलमानों के बीच मैत्री भाव बढ़ाना
  • इस संस्था न जमींदारों के स्थान पर मध्यम वर्ग को बढ़ावा दिया था ।
  • इस संगठन ने सिविल सर्विसेज आंदोलन चलाया था। जिसे 'भारती। जनपद सेवा आंदोलन' कहा गया था ।

भारतीय जनपद सेवा आंदोलन या सिविल सेवा आंदोलन

  • ज्ञातव्य है कि भारत में सिविल सेवा का जन्मदाता कार्नवालिस था। 
  • वर्ष 1853 से प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन होना प्रारंभ हुआ। इसी वर्ष से भारतीयों का चयन जनपद सेवा में प्रारंभ हुआ था। 
  • 1861 में इस परीक्षा में सम्मिलित होने की अधिकतम आयु 22 वर्ष थी तथा यह केवल लंदन में आयोजित होती थी । 
  • 1863 में भारत कर्म प्रथम I.C.S. सत्येन्द्र नाथ टैगोर हुए थे।
  • इसी क्रम में 1866 में इसकी आयु 21 वर्ष कर दिया गया था। वर्ष 1869 में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा 4 अन्य भारतीयों ने परीक्षा पास किया था।
  • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी असम के कलेक्टर थे जब उनको बर्खास्त कर दिया गया था। वर्ष 1874 में बनर्जी को बर्खास्त किया गया था।
  • 1877 में इस सेवा की आयु घटा कर 19 वर्ष कर दिया गया था।
  • कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन ने इसके विरोध में 1877 में टाउन हॉल में एक सभा बुलाई थी।
  • इस सभा में केशव चंद्र सेन भी उपस्थित हुए धं जो अपने समूचे जीवनकाल में कभी किसी राजनीतिक सभा में शामिल नहीं हुए थे।
  • एसोसिएशन ने 1879 में ब्रिटिश सरकार के समक्ष स्मृति पत्र पेश करने के लिए लाल मोहन घोष को ब्रिटेन भेजा था।
  • 1923 में सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भारत तथा ब्रिटेन दोनों स्थानों पर एक साथ होना प्रारंभ हो गया था।

बंबई के राजनीतिक संगठन

बंबई एसोसिएशन

स्थापना - 26 अगस्त, 1852
संस्थापक - दादाभाई नौरोजी
  • कलकत्ता के ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन के नमूने पर दादाभाई नौरोजी ने 26 अगस्त, 1852 ई० बंबई में 'बंबई एसोसिएशन' बनाई।
  • इस संगठन का मुख्य उद्देश्य सरकार को समय-समय पर ज्ञापन देना था ताकि हानिकारक समझे जाने वाले नियमों तथा सरकारी नीतियों के लिए सुझाव दिया जा सके।

बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन

स्थापना - 1885
संस्थापक - फिरोजशाह मेहता 
बदरूद्दीन तैयबजी
के. टी. तैलंग और
काशीनाथ त्रयम्बक
  • बंबई के चार बड़े नेताओं के प्रयासों से इस संगठन की स्थापना हुआ था।
  • जनवरी 1885 ई. को बंबई में नागरिकों की एक सभा गई इसकी अध्यक्षता जमशेदजी जीजाभाई ने किया था।
  • इस संगठन का उद्देश्य राजनीतिक व सामाजिक दृष्टिकोण से राष्ट्रवादी भावना का प्रचार प्रसार करना था।
  • बंबई प्रेसीडेंसी एसोसिएशन को पूर्व में बम्बे एसोसिएशन के नाम से जाना जाता था।
  • ज्ञातव्य है यह बंबई की प्रथम राजनीतिक संस्था थी ।

पूना सार्वजनिक सभा

स्थापना - 2 अप्रैल, 1870
संस्थापक - एम.जी. रानाडे
जी. वी. जोशी
एस. एच. चिपलूणकर
  • इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य जनता को सरकार की वास्तविकता से परिचित करना था और अधिकारों के प्रति सचेत करना था।
  • इस संस्था ने जनता और सरकार के मध्य सेतु का कार्य किया।
  • पूना सार्वजनिक सभा मुख्यतः स्त्रोदित मध्यवर्ग, जमींदारों तथा व्यापारियों के स्वार्थों की प्रतिनिधित्व करती थी।
  • इसके सदस्यों में अधिकांश ब्राह्मण तथा वैरव थे।

मद्रास की राजनीतिक संस्थाएँ

मद्रास नेटिव एसोसिएशन

स्थापना - 26 फरवरी, 1852 ई.
संस्थापक – गुजलू लक्ष्मी नेरसुचेट्टी
  • इस संस्था का उद्देश्य कानूनी तथा सरकारी नियमों के साथ जनता की समस्या का वकालत करना था।
  • ज्ञातव्य है इसी संस्था ने 1857 के विद्रोह की आलोचना किया था ।
  • ज्ञातव्य है कि कलकत्ता के ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की एक सभा 26 जनवरी, 1852 को मद्रास में आयोजित किया गया।
  • इस सभा के अध्यक्ष सी. वाई. मुदलियार तथा सचिव पी. रामानुजाचारी थे।
  • 13 जुलाई, 1852 को संस्था ने अपना नाम बदलकर मद्रास नेटिव एसोसिएशन रख दिया था।
  • इस संस्था ने अपने प्रतिनिधि माल्कन लेविन को नियुक्त किया था।

मद्रास महाजन सभा

स्थापना - 16 मई, 1886
संस्थापक - एम. वी. राघवाचारी
  • इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य स्थानीय संगठनों के कार्यों को समन्वित करना तथा महाजनों एवं किसानों के बीच के संघर्ष को रोकना था।
  • ध्यातव्य है कि इस संस्था के अध्यक्ष बी. राघवाचारी तथा सचिव आनन्द चालू चुने गए थे।
  • इस संस्था का प्रथम सम्मेलन 29 दिसम्बर, 1884 से 2 जनवरी, 1885 तक मद्रास में हुआ था।

विदेशी राजनीतिक संगठन

लंदन इंडिया सोसाइटी

स्थापना - 1 दिसम्बर, 1886, लंदन
संस्थापक - दादाभाई नौरोजी
  • इस संस्था का उद्देश्य ब्रिटिश की जनता को भारतीय समस्याओं और कष्टों से परिचित करना था।
  • कांग्रेस के पूर्व के राजनीतिक संस्थाओं का आंदोलन एवं अभियान
    1. 1875 में कपास पर आयात आरोपित करने में विरोध में
    2. सरकारी सेवाओं के भारतीयकरण हेतू (1878-79) में
    3. लार्ड लिंटन की अफगान नीति का विरोध 1878-79 से विरोध में
    4. शस्त्र अधिनियम ( 1878 ) के विरोध में
    5. वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ( 1878) के विरोध में
    6. 'प्लांटेशन लेवर' एवं 'इंग्लैंड इमिग्रेशन एक्ट' के विरोध में
    7. स्वयंसेवक सेना के प्रदेश के अधिकार के समर्थन में
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Wed, 17 Apr 2024 10:02:25 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | आधुनिक भारत में शिक्षा एवं प्रेस का विकास https://m.jaankarirakho.com/988 https://m.jaankarirakho.com/988 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | आधुनिक भारत में शिक्षा एवं प्रेस का विकास
भारतीय परम्परा में पौराणिक शिक्षा व्यवस्था आज तक विद्यमान है। यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत की धरोहर भी है। जैसा कि भारत पर विदेशी आक्रमण प्राचीनकाल से ही जारी थे। ये आक्रमणकारी विदेशी धरती से भारत कभी लूट तो कभी स्थायी वंश प्रणाली के तहत राज करने के उद्देश्य से भारत आए। इन विदेशी राज व्यवस्थाओं ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक तथा शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन किया। इसी क्रम में सबसे आखिरी औपनिवेशिक व्यवस्था ब्रिटेन ने भारत की शैक्षणिक पृष्ठभूमि को वैश्विक परिवर्तन के साथ मिला दिया । समकालीन अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन भारत की तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन के साथ सटीक बैठता है।

अंग्रेजी शासन में शिक्षा का विकास

  • भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास का प्रारंभ वारेन हेस्टिंग्स को कहा जाता है। इनके द्वारा 1781 में कलकत्ता म एक मदरसा स्थापित किया गया तथा उसमें फारसी तथा अरबी पढ़ाया जाता था। 
  • इसी क्रम में 1784 में अंग्रेज विद्वान विलियम जोंस ने कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना किया था।
  • इसी सोसायटी में विलकिंस द्वारा 1784 में भगवतगीता तथा इसके पश्चात् 1787 में हितोपदेश का अंग्रेजी में अनुवाद कराया।
  • इसी क्रम में विलियम जोंस ने 1789 में अभिज्ञान शांकुतलम् (कालिदास की पुस्तक) को अंग्रेजी में अनुवाद किया था।
  • विलियम जोंस के अनुवादक

  • इसी क्रम में 1791 में बनारस के एक विद्वान जोनाथन डंकन ने बनारस में एक संस्कृत कॉलेज की स्थापना किया था।
  • 1800 में लॉर्ड वेलेजली ने कंपनी के असैनिक अधिकारियों (ICS) की शिक्षा के लिए कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना किया था।
  • इसी क्रम में 1802 में फोर्ट विलियम कॉलेज का बंद कर दिया था। 1806 में इंग्लैंड के हेलवेरी में प्रशिक्षण प्रारंभ किया।
  • सर्वप्रथम 1813 के चार्टर में 1 लाख रुपया भारत में विद्या के प्रचार-प्रसार पर खर्च किया गया।
  • ईसाई मिशनरियों ने भी भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया था। अंग्रेजों ने ही सर्वप्रथम भारत में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया था।
  • अंग्रेजों ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सर्वप्रथम बंगाल फिर मद्रास को केन्द्र के रूप में विकसित किया।
  • 1818 ई. में प्रथम विशप ( पादरी) रेवरेंड मिडिलटन ने कलकत्ता में एक मिशनरी कॉलेज खोला, इसी कॉलेज को विशप कॉलेज के नाम से भी जाना जाता है।
  • भारतीय नवजागरण के अग्रदूत राजामोहन राय ने भी अंग्रेजी शिक्षा का पक्ष लिया और कलकत्ता के सूरीपाड़ा में एक स्कूल की स्थापना किया था।
  • वर्ष 1822 में कलकत्ता में कार्नवालिस स्क्वायर के समीक्षा 'एंग्लो हिंदू कॉलेज' की स्थापना किया गया था जिसको कालांतर में इंडियन एकेडमी के नाम से जाना गया था।
  • इसी क्रम में 1817 में डेविड हेयर की सहायता से 'हिन्दू कॉलेज' की स्थापना किया था। 1854 में उस विद्यालय को महाविद्यालय में परिवर्तित कर दिया था।
  • डेविड हेयर ने इस महाविद्यालय में संस्कृत तथा फारसी के पढ़ाई के स्थान पर अंग्रेजी माध्यम को अधिक बल दिया था ।

आंग्ल-प्राच्य विवाद

  • ईस्ट इंडिया कंपनी के वर्ष 1813 के चार्टर के एक्ट में भारत में शिक्षा के विषय एवं उसके प्रचार-प्रसार माध्यम के साथ 1 लाख रुपये वार्षिक बजट की घोषणा किया था।
  • इसी क्रम में एक विचार था कि उच्च सुविधा संपन्न वर्ग को शिक्षित कर दिया जाए। और उनके माध्यम से शिक्षा को सामान्य जन तक पहुँचाई जाए।
  • अधोमती निस्यंदन का सिद्धांत ( Infiltration theory) दी गई थी। इस सिद्धांत का प्रतिपादन लॉर्ड मैकाले ने किया था तथा इसकी घोषणा लॉर्ड ऑकलैंड किया था।
  • वारेन हेस्टिंग्स तथा लॉर्ड मिंटों के द्वारा प्राच्य विद्या का ही समर्थन किया था।
  • ज्ञातव्य है कि 7 मार्च, 1835 को अंग्रेजी भाषा को भारत में शिक्षा का माध्यम बना दिया गया था।

भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास

  • 1823 में गठित लोक लेखा समिति 1835 तक 20 विद्यालयों का संचालन कर रही थी ।
  • 1847 लॉर्ड हार्डिंग के द्वारा विद्यालयों में अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए नॉर्मल स्कूल की स्थापना किया था।
  • 1840 में बंबई में भारतीय शिक्षा समिति के स्थान पर शिक्षा बोर्ड की की स्थापना किया था।
  • 1851 में पुना संस्कृत कॉलेज और पूना अंग्रेजी को समाहित कर पुना कॉलेज की संज्ञा प्रदान किया गया।
  • 1844 में लॉर्ड ने 33 प्राथमिक विद्यालय खोले थे। इसी वर्ष हिंदू कॉलेज में इंजीनियरिंग की शिक्षा दिया जाने लगा।
  • 1847 में थॉमसन ने रूड़की (वर्तमान उत्तराखण्ड) में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना किया गया था।
  • 1835 ई. में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की नींव रखी गई थी।
  • 1852 में आगरा में सेंट जॉन्स कॉलेज की स्थापना की गई थी।

भारत में शिक्षा सुधार का विकास-क्रमं

1. 1854 चार्ल्स वुड का डिस्पैच
  • 19 जुलाई, 1854 को लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में शिक्षा के विकास का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ था।
  • इसी क्रम में बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रधान चार्ल्स वुड की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी।
  • इस समिति का उद्देश्य शिक्षा के नियामक पद्धति के गठन हेतु सुझाव प्रस्तुत करना था।
  • इस समिति के अध्यक्ष चार्ल्स वुड के नाम पर इस समिति को वुड का डिस्पैच की संज्ञा दिया गया था।
  • वुड की डिस्पैच समिति के द्वारा भारतीय शिक्षा से संबंधित वृहद स्तर की घोषणाएँ की गई थी। इसमें कुल 100 अनुच्छेद वर्णित थे। इसी कारण इसको भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा भी कहा गया था।
  • इसमें कुल 100 अनुच्छेद थे।
समिति के कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
(i) सरकार की शिक्षा नीति पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार-प्रसार बाली हो ।
(ii) शिक्षा में उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो परन्तु देशी भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाए।
(iii) गांवों में देशी भाषाओं की पाठशालाएँ स्थापित की जाए। तथा उनके ऊपर एंग्लों वर्नाकुलर हाई स्कूल तथा कॉलेज खोले गए।
(iv) इसी क्रम में पाँच प्रांतों में बंगाल, बंबई, मद्रास, उत्तर-पश्चिमी प्रांत और पंजाब में लोक शिक्षक के अधीन लोक शिक्षा विभाग की स्थापना किया जाए।
(v) लोक शिक्षा विभाग का उद्देश्य शिक्षा से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट सरकार को भेजना था ।
(vi) लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास में तीन विश्वविद्यालयों की स्थापना किया जाए ।
(vii) इसी क्रम में कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना किया गया था। इस प्रकार वुड के डिस्पैच में उच्च शिक्षा को वरीयता दिया गया था।
(viii) तकनीकी एवं व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना को प्राथमिकता देना ।
(ix) इसी घोषणा-पत्र में सर्वप्रथम महिला शिक्षा को उच्च स्तरीय बनाने का प्रयास किया गया था।
  • वर्ष 1855 में 'वुड के डिस्पैच' की सभी सफारिशें लागू कर दी गई। तथा तीनों प्रेसीडेंसियों लोक शिक्षा विभाग स्थापित कर दिया गया।
  • 1857 ई. में ही कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय खोले गए थे।
  • वर्ष 1840 से 1858 के बीच महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया। तथा इसी क्रम में जब जे. ई. डी. बेंथुन ने कलकत्ता बेथुन फीमेल स्कूल क्ज्ञ स्थापना किया था।
  • बेथुन शिक्षा परिषद (Council of education) के अध्यक्ष थे। इसका सर्वाधिक योगदान महिला पाठशालाओं
  • इसी कालखण्ड में पूसा (बिहार) में कृषि संस्थान तथा रुड़की में अभियांत्रिकी संस्थान (Engineering institute) की स्थापना किया था ।
  • पहला (i) चार्ल्सवुड जो अर्ल ऑफ एबरडीन (1852-55) की मिली-जुली सरकार में बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष थे। 1854 में भारत की भावी शिक्षा के लिए एक विस्तृत योजना बनायी ।
2. हंटर शिक्षा आयोग ( 1882-83) ( Hunter Education Commission)
  • चार्ल्स वुड के शिक्षा क्षेत्र के प्रगति की समीक्षा के लिए लार्ड की रिपन के कार्यालय में विलियम विल्सन हण्टर की अध्यक्षता में 1882 में हंटर आयोग की स्थापना किया गया था।
  • इस आयोग में कुल 20 सदस्य थे इसमें 8 सदस्य भारतीय थे। ज्ञातव्य है इस कालखण्ड में इंग्लैंड में (1880) उदारवादी दल का शासन था जिसके नेतृत्वकर्ता ग्लैडस्टोन थे।
  • हंटर आयोग का प्राथमिक उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के विकास की समीक्षा करना तथा सुझाव देना था।
  •  हंटर आयोग ने अपने सुझाव में साहित्यिक शिक्षा को बढ़ावा देने का कार्य किया। इसमें विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा शामिल थी। तथा दूसरी व्यावसायिक या व्यापारिक शिक्षा देना था।
  • इसमें प्रेसीडेंसी नगरों के अलावा अन्य सभी नगरों में भी महिला शिक्षा को बढ़ावा देने की बात कही गई थी।
  • इसी क्रम में 1882 में पंजाब में तथा 1887 में इलाहाबाद में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी।
3. रैले कमीशन (Raleign Commission 1902)
  • 1902 ई. में सर टॉमस रैले की अध्यक्षता में एक विश्वविद्यालय आयोग गठित किया गया था।
  • इस आयोग में दो भारतीय सदस्य भी शामिल थे। सैयद हुसैन बिलग्रामी तथा जस्टिस गुरदास बनर्जी ।
  • इस आयोग का प्राथमिक उद्देश्य विश्वविद्यालयों की स्थिति की समीक्षा करना था । तथा उनके कार्यक्षमता के विषय में सुझाव भी देना था।
  • इस आयोग को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा को इस आयोग से दूर रखा गया था।
  • इसी क्रम में वर्ष 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया था ।
4. भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (The Indian Universities Act, 1904)
  • इस आयोग के सुझात्र :
    1. उच्च शिक्षा में शोध को बढ़ावा देना एवं योग्यतम शिक्षकों एवं वैश्विक स्तर के पर्यावरण का निर्माण ।
    2. विश्वविद्यालयों में सीनेट के सदस्यों की संख्या न्यूनतम 50 कर दिया गया तथा अधिकतम 100 रखी गई। इसका कार्यकाल 6 वर्ष निर्धारित कर दिया गया।
    3. विश्वविद्यालय में सरकारी नियंत्रण को बढ़ा दिया गया।
    4. इस कानून के द्वारा सरकार ने विश्वविद्यालयों को पूर्णतः अधीन कर लिया।
    5. इस आयोग के द्वारा कर्जन ने उच्च शिक्षा को सरकारी नियंत्रण में लाने का प्रयास किया था।
    6. इसी क्रम में वर्ष 1902 में 5 वर्ष हेतु 5 लाख रुपये वार्षिक शिक्षा सुधार के निर्मित निर्धारित किया गया था।
    7. ज्ञातव्य है कि शिक्षा महानिदेशक की नियुक्ति लॉर्ड कर्जन के समय में हुई थी । एवं एच. डब्ल्यू. यू. आरेन्ज को प्रथम महानिदेशक नियुक्त किया गया था।
5. 1913 का सरकारी प्रस्ताव (Government resolution of 1913)
  • सर्वप्रथम बड़ौदा रियासत द्वारा 1906 में अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा प्रारंभ किया गया था।
  • इसी क्रम में गोपालकृष्ण गोखले के माँग पर ब्रिटिश सरकार ने 12 फरवरी, 1913 को निरक्षरता समाप्त करने की नीति स्वीकृत किया।
  • इसी क्रम में प्रांतीय सरकारों को समाज के निर्धन एवं अति पिछड़े वर्ग हेतु निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा देने का निर्देश दिया। तथा प्रत्येक प्रांत में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने का सुझाव भी दिया गया।
6. सैडलर आयोग (The solder commission) (1917-19)
  • भारत सरकार ने विश्वविद्यालयी शिक्षा में सुधार हेतु 1917 में सर माइकेल सैडलर के अध्यक्षता में कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति की थी।
  • सर माइकेल सैडलर लीड्स विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे। इनके आयोग में भारतीय सदस्य थे। 
    डॉ. आशुतोष मुखर्जी
    डॉ. जियाउद्दीन अहमद
  • इस आयोग ने 1904 के विश्वविद्यालय अधिनियम की आलोचना किया था। तथा इसी क्रम में कहा था कि शिक्षा में सुधार हेतु माध्यमिक स्तर के शिक्षा में सुधार अनिवार्य है।
इस आयोग के प्रमुख सुझाव
  • माध्यमिक शिक्षा 12 वर्ष का होना चाहिए। इसके लिए Intermediate college की स्थापना तथा उसके प्रशासन पर नियंत्रण हेतु माध्यमिक तथा उत्तर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की स्थापना का सुझाव दिया।
  • स्नातक की उपाधि 3 वर्ष की होनी चाहिए। इसके अलावा प्रावीण्य (Honours ) और स्नातक की उपाधि (Bachelor degree) का पाठ्यक्रम अलग होना चाहिए।
  • प्राचीन संबद्ध विश्वविद्यालयों के स्थान पर पूर्ण स्वायत आवासीय एवं एकात्मक स्वरूप के विश्वविद्यालय की स्थापना का सुझाव दिया था।
  • कलकत्ता विश्वविद्यालयों में महिलाओं की शिक्षा के लिए महिला शिक्षा बोर्ड के गठन का सुझाव दिया था।
  • व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना का सुझाव ।
  • इस आयोग के सुझावों को ध्यानगत वर्ष 1916 से 1921 के बीच सात विश्वविद्यालयों की स्थापना किया गया था।
    1916 - मैसूर विश्वविद्यालय एवं बनारस विश्वविद्यालय
    1917 - पटना विश्वविद्यालय
    1918 - उस्मानिया विश्वविद्यालय
    1920 - अलीगढ़ विश्वविद्यालय
    1921 में लखनऊ तथा ढाका विश्वविद्यालय
  • इसी क्रम में उत्तर प्रदेश में बोर्ड ऑफ सेकेण्ड्री एजुकेशन की भी स्थापना किया गया था।
7. हार्टोग समिति (The Hartog Committee, 1929)
  • 1929 में भारतीय परिनियत आयोग (Indian Statutory Commission) ने सर फिलिप हार्टोग की अध्यक्षता में एक सहायक समिति (Auxiliary Committee) की नियुक्ति की थी।
  • इस समिति ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिया-
    1. प्राथमिक शिक्षा पर प्रमुखता से बल दिया जाए।
    2. ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को मिडिल स्कूल तक ही शिक्षा दिया जाए। तत्पश्चात् औद्योगिक तथा व्यावसायिक शिक्षा दिया जाए।
    3. विश्वविद्यालयों की वर्तमान स्थित में बार हेतु । उच्च शिक्षा प्राप्त करने योग्य विद्यार्थियों के मानसिक विकास हेतु प्रयास किया गया।
    4. 1935 में इसी आयोग के सुझाव पर केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया था।
8. वर्धा योजना (Wardha Scheme)
  • 1935 में भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत प्रांतों को प्रांतीय स्वायता प्राप्त हुई थी।
  • अक्टूबर, 1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा महाराष्ट्र के वर्धा में शिक्षा पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था।
  • इसी क्रम में गाँधीजी के द्वारा अपने समाचार पत्र हरिजन (Harijan) में लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित किया गया। इन लेखों में मूलत: एक शिक्षा योजना प्रस्तुत किया गया था।
  • इसी क्रम में डॉ. जाकिर हुसैन (हुसैन समिति के अध्यक्ष ) गाँधीजी के परामर्स पर वर्धा शिक्षा योजना को आधार बनाकर उस शिक्षा योजना को अंतिम रूप प्रदान किया था। 
  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य हस्त उत्पादन कार्य (Manual productive work) था साथ ही शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को  व्यावसायिक एवं हस्तकला का ज्ञान दिया जाता था ।
  • इस शिक्षा योजना में विद्यार्थियों को 7 वर्ष तक मातृभाषा में अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी।
9. शिक्षा का सार्जेण्ट योजना (1944 ) ( Sargent plan or education)
  • 1944 में केन्द्रीय शिक्षण मंत्रणा मंडल के तत्कालीन शिक्षा सलाहकार जॉन सार्जेण्ट के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना तैयार किया गया था।
सार्जेण्ट योजना का सुझाव :
  • प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर के विद्यालयों में सुधार पर बल I
  • कनिष्ठ एवं उच्च आधार विद्यालय स्थापित करने का सुझाव ।
  • 6-11 वर्ष के बालक-बालिका को निःशुल्क शिक्षा जिसमें संस्कारी और व्यावसायिक दोनों शिक्षा शामिल हो।
  • प्रशासनिक सेवाओं में विश्वविद्यालय की स्नातक उपाधि की अनिवार्यता ।
  • शिक्षा का समवर्ती सूची में रखा गया।
10. राधा कृष्णनन शिक्षा आयोग (1948-49)
  • नवम्बर 1948 को भारत सरकार ने डॉ. राधाकृष्णनन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया था।
  • अगस्त 1949 में इसने अपने सुझाव पेश किए।
सुझाव-
  1. शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा जाए।
  2. विश्वविद्यालय प्रशिक्षण हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का गठन किया जाए।
  3. 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का गठन किया गया स्वायत रूप से।
  • विश्वविद्यालय शिक्षा के पर्यवेक्षण हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना किया जाए।
  • राधाकृष्णन आयोग की सिफारिश पर भारत सरकार ने 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना किया था।
  • 1956 में संसद द्वारा पारित कानून के माध्यम से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को स्वतंत्र निकाय का दर्जा प्रदान कर दिया गया।
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) शिक्षा, शोध, सुविधा और शिक्षा से संबद्ध अन्य विकास योजनाओं का पर्यवेक्षण एवं संपादन करता है।
  • ज्ञातव्य है कि 1947 में देश में 19 विश्वविद्यालय थे। वर्ष 2019 तक कुल है।

भारत में समाचार-पत्रों का इतिहास (The History of Indian Press)

  • भारत में सर्वप्रथम पुर्तगाली मिशनरियों के द्वारा 16वीं शताब्दी 1550 में सर्वप्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना किया गया था।
  • इसी क्रम में वर्ष 1557 में गोवा के पादरियों ने भारत में पहली पुस्तक की छपायी की थी।
  • 1684 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंबई में पहला प्रिंटिंग प्रेस लगाया था । यद्यपि अगले 100 वर्षों तक इस प्रेस में छपाई बंद रही थी।
  • इसी क्रम में कंपनी के असंतुष्ट कार्यकर्त्ता सर विलियम बोल्ट्स ने कंपनी से त्याग-पत्र देकर एक समाचार-पत्र प्रकाशित करने का प्रयास किया था।
  • वर्ष 1780 में जेम्स आगस्ट हिक्की ने सर्वप्रथम 'द ' बंगाल गजट' (The Bengal Gazette) अथवा कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर (The Calcutta General Advertiser) नामक पहला समाचार-पत्र प्रकाशित किया था।
  • 23 मार्च, 1782 को इस पत्र को वारेन हेस्टिंग्स ने बंद करवा दिया था ।
  • इसी क्रम में 1780 में प्रकाशित इंडिया गजट दूसरा भारतीय पत्र था।
    1784 - कलकत्ता गजट
    1785 - बंगाल जनरल
    1786-कलकत्ता क्रॉनिकल
    1785 - मद्रास कूरियर
  • 1818 में गंगाधन भट्टाचार्य के द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी में साप्ताहिक 'बंगला गजट' प्रथम भारतीय द्वारा प्रकाशित अखबार था ।
  • भारतीय भाषा में समाचार-पत्र निकालने की शुरूआत मार्शमैन ने किया था। प्रथम बंगाली मासिक पत्रिका दिग्दर्शन थी जो 1818 में प्रकाशित हुई थी।
  • 1818 में ही दूसरी साप्ताहिक पत्र 'समाचार दर्पण' का भी प्रकाशन किया था।
  • ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बकिंघम ने पत्रकारिता को एक नई पहचान प्रदान किया था।
  • इसी क्रम में राजा राम मोहन राव ने प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ किया था।
  • 1822 को मिरातुल अखबार का फारसी भाषा में अंग्रेजी भाषा में ब्रह्मलिन का प्रकाशन किया गया था।
  • 1822 में भवानीचरण बंदोपाध्याय ने कलकत्ता में समाचार चंद्रिका का प्रकाशन किया था।
  • राजा राममोहन राय को राष्ट्रीय प्रेस की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। ये भारतीय समाचार-पत्रों के स्वतंत्रता का प्रथम योद्धा कहा जाता है।
  • गवर्नर जनरल एडम्स ने अनुज्ञप्ति नियम (Licensing regulation, 1823) लाकर प्रेस पर प्रतिबंध लगाया था।
  • राजा राममोहन राय ने ‘तुहफतुल मुवाहिदीन' नामक फारसी पुस्तक का प्रकाशन किया था।
  • 1829 में राजाराम मोहन राय, द्वारकानाथ टैगोर तथा प्रसन्न कुमार टैगोर के संयुक्त प्रयास ने 'बंगदूत' का बंगाली में प्रकाशन किया गया था।
  • 1851 में दादाभाई नौरोजी ने 'रस्तगोफ्तार तथा अखबारे सौदागर' का प्रकाशन गुजराती भाषा में किया गया था।
  • 1853 में हरिश्चन्द्र मुखर्जी ने 'हिन्दू पैट्रियाट' का प्रकाशन कलकत्ता से किया था।

एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्र

टाइम्स ऑफ इंडिया - 1862
स्टेट्समैन - 1878
  • पायनियर का प्रकाशन 1865 इलाहाबाद में हुआ था। यह सरकार का समर्थक तथा भारतीय क्रांतिकारियों एवं जनता का आलोचक था।
  • पायनियर ने सिविल सर्विस का समर्थन किया था।
  • इंग्लिशमैन सर्वाधिक रूढ़िवादी और प्रतिक्रियावादी पत्र था। जबकि स्टेटसमैन संपादक राबर्ट नाइट थे यह अपने उदारवादी विचारों के लिए जाना जाता था।
  • इसी क्रम में मद्रास से प्रकाशित होने वाला अखबार 'मद्रास मेल' यूरोपीय वाणिज्यवादी भूस्वामियों तथा जमींदारों का प्रतिनिधित्व करता था।
  • इसी क्रम में 'सिविल एण्ड मिलिट्री गजट' ब्रिटिश सरकार का समर्थक था।
  • राजा राम मोहन राय के बाद बंगाल के प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने 1859 में सोम प्रकाश का बंगाली साप्ताहिक के रूप में प्रकाशन किया था।
  • नील किसानों का समर्थन सोमप्रकाश पत्रिका ने खुलकर किया था। इसी पत्र के विरोध में 1878 में लिंटन ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लगाया था।
  • इसी क्रम में क्रिस्टोफर पाल दास को भारतीय पत्रकारिता का राजकुमार भी कहा जाता है ।
  • वर्ष 1861 में देवेन्द्र नाथ टैगोर तथा मनमोहन घोष ने दैनिक पत्र इंडियन मिरर की स्थापना की थी । केशवचंद्र सेन तथा नरेन्द्र नाथ सेन भी इंडियन मिरर के संपादन से जुड़े थे।
  • केशवचन्द्र सेन ने बंगाली भाषा में सुलभ समाचार पत्र का भी प्रकाशन किया था।
  • 1866 में शिशिर कुमार घोष एवं मोतीलाल घोष ने अमृत बाजार पत्रिका का बंगाली साप्ताहिक के रूप स्थापना किया था।
  • इसी क्रम में 1873 के वर्नाकुलर प्रेस एक्ट के बचाव के लिए अमृत बाजार पत्रिका ने रातों-रात अंग्रेजी साप्ताहिक के रूप में परिवर्तित हो गई।
  • वीर राघवाचारी ने 1878 में हिन्दू को अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया था। 1889 में इस पत्र को दैनिक पत्र में परिवर्तित कर दिया गया था।
  • 1867 में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र कवि वचन सुधा का तथा 1872 में हरिश्चन्द्र मैग्नीज नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया था।
  • इसी क्रम में 1877 में मासिक पत्रिका हिन्दी प्रदीप का प्रकाशन बालकृष्ण भट्ट ने किया था।
  • बनारस से 1884 में 'भारत जीवन' का प्रकाशन रामकृष्ण वर्मा ने किया था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • अंग्रेजों ने भारत में 1781 ई. में वारेन हेस्टिंग्स के कार्यकाल में कलकत्ता में स्थापित हुआ था।
  • 1784 ई. में विलियम जोन्स के द्वारा कलकत्ता में एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना किया गया था।
  • चार्ल्स विल्किंसन के द्वारा 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' का अंग्रेजी में अनुवाद 1789 में किया गया था।
  • पेरिस की रॉयल एशियाटिक सोसायटी की सदस्य माइकल मधुसूदन थे।
  • 1778 में हालवेल के द्वारा संस्कृत व्याकरण का प्रकाशन किया गया था।
  • विलियम जोंस के द्वारा ही गीत गोविंद की अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था।
  • 'ए कोड ऑफ हिंदू लॉ' का 1794 में संस्कृत ग्रंथ का सर्वप्रथम अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था।
  • बनारस में जोनाथन डंकन ने प्रथम संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना किया था ।
  • फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना में सन् 1800 में लॉर्ड वेलेजली के द्वारा किया गया था।
  • विशप कॉलेज की स्थापना 1818 में डॉ. मिडिलटन ने कलकत्ता में किया था।
  • ' मालिक जोस' तथा फादर ऑफ इण्डोलॉजी की संज्ञा विलियम जोंस को प्रदान की गई थी। ·
  • शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन' सिद्धांत के प्रतिपादक एवं प्रवर्तक लॉर्ड मैकाले तथा आकलैंड को माना जाता है।
  • अंग्रेजी शिक्षा के विस्तार के लिए अंग्रेजी शिक्षा विस्तार योजना चार्ल्स ग्रांट की दिमाग की उपज थी।
  • ज्ञातव्य है कि भारत में आधुनिक शिक्षा का जनक चार्ल्स ग्रांट को कहा जाता है।
  • वर्ष 1792 में 'ब्रिटिश एशियाई प्रजा की सामाजिक स्थिति' नामक पुस्तक की रचना चार्ल्स ग्रांट ने किया था।
  • वुड का डिस्पैच मुख्यतः विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा व्यवस्था का आधार था। इसी के तत्वावधान में 1857 में कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना किया गया।
  • भारत में सर्वप्रथम 1853 में लोक शिक्षा विभाग की स्थापना किया गया था।
  • हंटर कमीशन में प्राथमिक शिक्षा के लिए मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रावधान किया गया था।
  • हंटर कमीशन के पश्चात भारत में पंजाब (1885) तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1887) की स्थापना किया गया था।
  • डॉ. एस. के. सैडलर लीड्स विश्वविद्यालय के कुलपति थे ।
  • रैले कमीशन (1902) में सैयद हुसैन विलग्रामी, जस्टिस गुरुदास बनर्जी दोनों भारतीय सदस्य थे।
  • वर्ष 1817 में राजा राम मोहन राय डेविड हेयर तथा एलेक्जेंडर डफ ने हिंदू कॉलेज की स्थापना किया था ।
  • शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता को डेविड हेयर ने महत्व दिया था।
  • वर्ष 1813 के चार्टर में 1 लाख रुपये शिक्षा पर खर्च करने का प्रावधान बनाया गया था।
  • 1835 के मैकाले स्मरण पत्र को भारत की आधुनिक शिक्षा प्रणाली का नींव कहा जाता है।
  • आंग्ल शिक्षा का समर्थन मुनरो तथा एल्फिंसटन ने किया था।
  • 'ग्राम शिक्षा योजना' जेम्स थामसन ने तैयार किया था ।
  • 1835 में लार्ड विलियम बैंटिक के समय भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली प्रारंभ हुई थी।
  • भारत में रूड़की में जेम्स थामसन के द्वारा 1847 में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की गई थी।
  • वर्ष 1854 में बंबई में ग्रांट मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई थी।
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Wed, 17 Apr 2024 08:56:13 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | प्रमुख भारतीय विद्रोह (जातिगत, जनजातीय, किसान व मजदूर आन्दोलन) https://m.jaankarirakho.com/987 https://m.jaankarirakho.com/987 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | प्रमुख भारतीय विद्रोह (जातिगत, जनजातीय, किसान व मजदूर आन्दोलन)
भारत की संस्कृति एवं सभ्यता में नई औपनिवेशिक व्यवस्था के प्रवेश ने नवीन परिवर्तन का प्रयास किया। इस परिवर्तन ने भारतीय जनमानस एवं व्यवस्था के जड़ में बैठे लोगों को अंदर तक विचलित किया। इस विचलन ने ही जनआक्रोश को उद्वेलित किया जो विद्रोह में परिवर्तित हो गए। विद्रोह का स्वरूप बहुआयामी एवं भारत के सभी क्षेत्रों राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक थ। भारतीय राष्ट्रवादी परिदृश्य में सभी विद्रोह सिर्फ पानी के बुलबुले की तरह थे। जिसको औपनिवेशिक अंग्रेजी सरकार ने कभी तुरंत तो कभी देर से कुचल दिया। किंतु इसके परिणाम स्थायी एवं दीर्घकालीन थे। इसी छोटे-छोटे बहुआयामी विद्रोहों ने भारतीय जनमानस को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा किया। अंततः भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रदूतों ने इसका लाभ अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने में किया।

विद्रोह का संयुक्त कारण

  • भारत की सामाजिक पृष्ठभूमि में कुछ स्थायी एवं दीर्घकालीन व्यवस्था के गुण थे। औपनिवेशिक व्यवस्था (अंग्रेजी सरकार) इसको समझने में असफल रही थी।
  • सम्पूर्ण भारत भौगोलिक दृष्टिकोण से अलग-अलग था किंतु सामाजिक जीवनशैली की मूल गुण लगभग एक जैसा था।
  • औपनिवेशिक शासन व्यवस्था ने भारत की नींव (धार्मिक अवधारणा) पर चोट किया। परिणाम स्वरूप भारतीय सांस्कृतिक जड़ के पुरोधाओं ने अंग्रेजों को भारत में जड़ विहीन कर दिया।
  • भारत की राजनीतिक व्यवस्था ( राजतंत्र ) को अंग्रेजों ने एक समय समाप्त कर अपनी नवीन व्यवस्था स्थापित तो किया। किंतु भारतीय जनतंत्र की अपने पुरातन व्यवस्थाओं के प्रति प्रेम ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध खड़ा किया था।

जनजाति/ आदिवासी आंदोलन

कारण :

  • आदिवासी बनैले क्षेत्र में रहने वाला मानव समुदाय था । इस समुदाय की जीवनशैली मुख्य धारा के नागरिक जीवन से पूर्णतः भिन्न था।
  • औपनिवेशिक व्यवस्था ने इनके जीवन शैली में सर्वप्रथम प्रवेश कर इनके सांस्कृतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि को तबाह करने का प्रयास किया था।
  • आदिवासी समुदाय अपने कृषि कारणों एवं परम्पराओं के लिए सुप्रसिद्ध था। जिसमें प्रमुख झुम कृषि था। इस पर प्रतिबंध भी विद्रोह का कारण बना था ।
  • आदिवासी/जनजाति एवं कृषि श्रमिकों से औपनिवेशिक व्यवस्था, जमींदार तथा साहुकारों ने बेगार, बंधुआ मजदूरी जैसे नवीन शोषण पद्धति से शोषण किया जो विद्रोह का कारण बना था ।
  • आदिवासी समूह में वर्गीय चेतना का अभाव था । इनके अंदर क्षेत्रीय एवं जातीय चेतना विद्यमान था । अंग्रेजी व्यवस्था ने आदिवासियों के मूल चरित्र को बदलने एवं उस पर प्रहार करने की कोशिश किया।
  • आधारभूत संरचना के विकास में लगे महिला आदिवासियों के शारीरिक शोषण ने भी अनेक आंदोलनों को प्रारंभ किया था।

चुआर विद्रोह (1768-72)

  • यह विद्रोह (1768-72) के बीच हुआ था । इसे भूमि विद्रोह भी कहा जाता है।
  • चुआर विद्रोह बंगाल के मेदिनीपुर जिले के आदिम लोगों ने किया था। इसका प्रमुख कारण लगान एवं अकाल में बढे हुए कर का दर था।
  • इस विद्रोह का नेतृत्व राजा जगन्नाथ तथा दुर्जन सिंह ने किया था। यह विद्रोह 30 वर्षों तक चलता रहा एवं अपने आस-पास इलाके को उजाड़ दिया था ।
  • इसी प्रकार छोटानागपुर तथा सिंहभूमि जिले की हो जनजाति ने भी बढ़े हुए राजस्व कर का विरोध किया था।

विजयनगरम का विद्रोह (1794 ई.)

  • दक्षिण भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा उत्तरी जिले को प्राप्त करने के उपरांत विजयनगरम के राजा को अपनी सेना भंग करने तथा 3 लाख रु. भेट देने पर विवश किया था।
  • राजा ने भेंट एवं कर देने से मना कर दिया तथा 1794 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था।

गंजाम का विद्रोह एवं गुमसुर विद्रोह (1800-1805)

  • 1800-1805 ई. में बीच में गंजाम विद्रोह का नेतृत्व श्रीकर भंज ने किया था।
  • इस विद्रोह का मुख्य केन्द्र मद्रास प्रेसीडेंसी ने चौकाकोल सरकार में स्थित गंजाम जिला था।
  • 1935 ई. में गुमसुर की जमींदारी के लगान के बकाए के प्रश्न पर हुए विद्रोह को (गुमसुर विद्रोह) कहा गया था।

पालीगारो का विद्रोह (1801-05)

  • टीपू सुल्तान के हार के पश्चात मालाबार तथा पालीगारो ने अंग्रेजों की 1801 ई. में संघर्ष प्रारंभ हुआ तथा 1805 तक जारी रहा।
  • इस विद्रोह व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह किया। का नेतृत्व वीर जी. कट्टवामन ने किया था।

दीवान वेलुथम्पी का विद्रोह (1808-09)

  • केरल के त्रावणकोर के राजा ने लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि को स्वीकार करने से मना कर दिया था।
  • इसके प्रति उत्तर में अंग्रेजों ने शासक को अपदस्थ कर दिया था। इसी क्रम में केरल के राजा के दीवान वेलुथम्पी ने विद्रोह कर दिया।
  • इस विद्रोह का समर्थन नायर बटालियन ने किया था। थम्पी के द्वारा सहयोग के लिए फ्रांस तथा अमेरिका में सम्पर्क स्थापित किया था।
  • इस संघर्ष का विद्रोह करते हुए वेलुम्पी घायल हुए तथा उनकी मृत्यु हो गई।

भील विद्रोह (1818-1921)

  • इस विद्रोह का मुख्य केन्द्र वर्ष 1818 में खानदेश (महाराष्ट्र) था। कुछ आदिम जातियां पश्चिमी तट के खानदेश में रहती थी ।
  • अंग्रेजों के द्वारा खानदेश प्रदेश पर भीलों के नेतृत्वकर्ता दशरथ के द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दिया।
  • वर्ष 1831 में इस विद्रोह ने पुनः आक्रोश पकड़ लिया।
  • 1857 में भागोजी तथा काजल सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया था।

भील विद्रोह का प्रसार

  • महाराष्ट्र के अतिरिक्त राजस्थान के भीलों ने भी शोषण के विरुद्ध युद्ध प्रारंभ कर दिया था।
  • मेवाड़ के राजा ने कर्नल रीड़ के सुझाव पर भेलाई तथा रखवाली संज्ञक कर को समाप्त कर दिया। यह कर भील स्वयं की सुरक्षा के लिए रखी जाने वाली बंदूकों के लिए लिया था ।
  • इस संज्ञक कर की समाप्ति के साथ, भीलों को महुआ कंफुल इकट्ठा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तथा तिसाला नामक भूमि कर रोपित कर दिया गया था।
  • इसी क्रम में भीलों ने 1821 में दौलत सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया था। बाद में इस आंदोलन का नेतृत्व मोतीलाल तेजावर ने किया।
  • मोतीलाल तेजावर ने जमींदारों द्वारा ली जाने वाली बेट बेगार के विरोध में नीमडा गाँव में भीलों का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया था ।
  • इस क्रम में मोतीलाल तेजावर को गिरफ्तार कर लिया गया तथा सेन्ट्रल जेल भेजा गया।

बघेरा विद्रोह 18-19

  • ओखा मण्डल (गुजरात) के बघेरा जनजाति के लोग विदेशी सामान का विरोध कर रहे थे।
  • इसी क्रम में बड़ौदा के गायकवाड़ों ने अंग्रेजी सेना की सहायता से अत्यधिक कर वसूली का प्रयास किया।
  • इस बढ़े हुए कर का विरोध बघेरा सरदार ने किया तथा 1818-19 में सशस्त्र विद्रोह कर दिया।
  • 1820 में यह विद्रोह दबा दिया गया था।

रामोसी विद्रोह (1822-41)

  • रामांसी जनजाति मुख्यत: पश्चिमी घाट (महाराष्ट्र) में रहने वाली एक आदिम जनजाति थी। इसने अंग्रेजों के कर वृद्धि से परेशान होकर 1822 में चितर सिंह के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया था।
  • इसी क्रम में महाराष्ट्र में सतारा के आस-पास लूट की गई थी। 1825-26 में अकाल के कारण रामोसी भूखमरी के शिकार हुए पुन: इन लोगों ने 3 वर्षों तक दक्कन क्षेत्र में लूटपाट किया था।
  • ज्ञातव्य है कि रामोसी समुदाय कभी मराठा साम्राज्य की सेना एवं पुलिस में अधिनस्थ कर्मचारी हुआ करते थे ।
  • अंग्रेजों ने 1839 में जब अंग्रेजों ने सतारा के राजा प्रताप सिंह को सिंहासन से हटा दिया तो 1840-41 में जनता में आक्रोश बढ़ गया। नरसिंह दत्तात्रेय पंतकर ने शर्माोसी का नेतृत्व किया था।

कूकी विद्रोह (1826-44)

  • मणिपुर एवं त्रिपुरा के मध्य अवस्थित ईसाई नामक पहाड़ी पर कुकी जनजाति निवास करती थी । 
  • 18वीं शताब्दी में अंग्रेजी सरकार ने झूम कृषि पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 
  • इसी क्रम में कूकी जनजाति ने ( 1826-44) के मध्य विद्रोह कर दिया था। इस विद्रोह को अंग्रेजों ने 1850 तक दबा दिया था।

अहोम विद्रोह (1828-33)

  • अहोम 'असम' के स्थायी निवासी थे। जब अंग्रेजों के अहान प्रदेश को अपने राज्य में मिलाने का प्रयास किया हो।
  • अंग्रेजों के इस कदम का अहोम लोगों ने विरोध किया था। 1828 में गोमधर कुंवर के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया ।
  • 1830 में अंग्रेजों के खिलाफ अहोम लोगों ने दूसरे विद्रोह की योजना का निर्माण किया था ।
  • अंग्रेजों ने अहोम लोगों से समझौता कर लिया एवं कूटनीतिपूर्वक उत्तरी असम के प्रदेश को महाराजा पुरंदर सिंह को दे दिया एवं विद्रोह को शांत करा दिया।

कोल विद्रोह (1831-48)

  • छोटानागपुर में रहने वाली कोल जाति भी अंग्रेजों के प्रशासन से असंतुष्ट थी ।
  • अंग्रेजों ने पहले भू-राजस्व में वृद्धि किया फिर 1822 में सरकार ने आदिवासियों द्वारा प्रयोग में ली जाने वाली चावल से निर्मित शराब पर कर लगा दिया।
  • ज्ञातव्य है इस विद्रोह को 'लरका विद्रोह' भी कहा गया है।
  • इस क्रिया के प्रतिक्रिया में कोल लोगों ने बुद्धो भगत के नेतृत्व में राँची, हजारीबाग, पलामू इत्यादि क्षेत्रों में विद्रोह कर दिया था।
  • इस विद्रोह को दबाने के लिए बैरकपुर एवं दानापुर छावनी में विलिकिन्सन तथा डेंट के नेतृत्व में सेना भेजी गई थी।
  • 1832 में बुद्धो भगत हजारों विद्रोहियों के साथ मारे गए। 1832 में कालांतर में गंगानारायण ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया था।

खोंड तथा सवार विद्रोह (1837-56)

  • ओडिशा प्रांत के खैडमाल क्षेत्र में निवास करने वाली आदिवासियों को खाँड जनजाति की संज्ञा दी गई है।
  • इस जनजाति ने 1837 से 1856 6 तक ब्रिटिश सत्ता का बिरोध किया था।
  • यह जनजाति नरबली प्रथा 'मोरिया' को प्रतिबंधित करने पर अंग्रेजों से क्षुब्ध थी।

  • इस क्रांति में 1846 ई. में चक्र बिसोई शामिल हुए तथा 1856 में राधाकृष्ण दण्डसेन शामिल हुए थे।
  • ज्ञातव्य है कि 1855 में चक्र त्रिसोई की कोई जानकारी नहीं मिलती है जबकि दण्डसेन को 1856 में अंग्रेजों ने फांसी दे दिया था।

गडकरी विद्रोही (1844)

  • इसका उद्भव 1844 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था।
  • गडकरी जाति मराठा किले में कार्यरत अनुवांशिक सैनिक थे। इसके बदले में उनको कर मुक्त भूमि प्राप्त होती है।
  • सेवा समाप्त किए जाने पर समनगढ़ तथा भुदरगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।
  • इस विद्रोह का नेतृत्व बाबाजी अहिरकर के द्वारा किया गया था।

संथाल विद्रोह (1855-56)

  • आदिवासी विद्रोहों में संथाल विद्रोह अत्यधिक शक्तिशाली था । इसको हुल विद्रोह भी कहा जाता है।
  • यह विद्रोह मुख्यतः भागलपुर जिले से लेकर राजमहल तक केन्द्रित था । इस प्रकार इस स्थान विशेष को दमन-ए-कोह नाम से संबोधित किया जाता है।
  • अंग्रेजों द्वारा 1793 की स्थापित भूराजस्व व्यवस्था में आदिवासियों ने अपनी जमीनें खो दी थी। साथ ही अंग्रेजी प्रशासन एवं शोषण ने लोगों को आक्रोशित किया था ।
  • सिद्धू तथा कान्हु नामक दो आदिवासियों ने 30 जून, 1855 को भगनीडीह में 6000 से अधिक आदिवासी एकत्रित हुए तथा विद्रोह कर दिया।
  • अंग्रेजों ने सैनिकों को विद्रोह दबाने के लिए लगाया तथा सिद्ध-कान्हु पर 10000 का इनाम घोषित कर दिया गया था।
  • अगस्त, 1855 में सिद्धू तथा फरवरी, 1856 में कान्हु एकड़े गए और इनको गोली मार दिया गया था ।
  • 1856 के अंत तक भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन तथा मेजर जनरल लॉयड ने क्रूरतापूर्वक विद्रोह किया था।
  • इसी क्रम में संथाल परगना को एक नया जिला घोषित कर दिया गया था।

भुयान और जुआंग विद्रोह (1867-68)

  • यह विद्रोह उडिसा के क्योझार क्षेत्र में हुआ था प्रारंभ में नायक के नेतृत्व में भुयान जनजाति ने विद्रोह किया था।
  • इस विरोध की जड़ क्योंझर के राजा की मृत्यु के पश्चात उनकी उत्तराधिकारी की नियुक्ति से संबंधित था ।
  • 1891 में त्रिद्रोह ने पुन: जागृत हो गया था। इसका नेतृत्व यह धरणीधर नामक व्यक्ति ने किया था ।
  • इस युद्ध में राजा को भागकर कटक में शरण लेना पड़ा था।

मुंडा विद्रोह (1895-1901)

  • यह विद्रोह कभी भी एक दिशा में एक साथ नहीं चला था। इसका कार्यकाल 1895-1901 था
  • इस विद्रोह को अलुगवती (उलगुलान) या महाविद्रोह भी कहा गया। इसको 'सरदारी विद्रोह' की उपमा भी प्रदान किया गया था।
  • सामान्यतः मुण्डा आदिवासी बिहार के छोटानागपुर पठार के रांची के दक्षिण भाग में निवास करते थे।
  • इनकी पारम्परिक भूमि व्यवस्था खुंटकरी या मुंडारी कहलाती थी । जो सामूहिक कृषि के लिए प्रचलित थी ।
  • औपनिवेशिक नवीन भूराजस्व व्यवस्था ने एकल कृषि व्यवस्था को जन्म दिया था।
  • एकल भूराजस्व व्यवस्था एवं शासन तथा प्रशासनिक शोषण के विरुद्ध बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1895 में आंदोलन प्रारंभ हो गया था।
  • बिरसा मुंडा का जन्म 1875 हुआ था। यह एक धार्मिक व्यक्ति था एकेश्वाद में विश्वास करता था।
  • बिरसा मुंडा ने सिंग बोगा की पूजा करने का आदेश की स्व‍ आदेश पारित किया था।
  • 1899 की क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अपनी जाति स्वशासन स्थापित करने के उद्देश्य से सिंहभूमि तथा राँची में विद्रोह का प्रारंभ किया था।
  • 5 जनवरी, 1900 तक यह विद्रोह समूचे क्षेत्र में फैल गया। इस विद्रोह में स्त्रियों ने भी मुख्य भूमिका निभाया।
  • इस विद्रोह का अंत अतिशीघ्र हो गया था। सैरयरकंब पहाड़ी पर ब्रिटिश सेना द्वारा मुंडा पराजित किया गया एवं गिरफ्तार कर लिया गया ।
  • जून 1900 बिरसा मुंडा की रांची जेल में हैजा नामक बीमारी के कारण मृत्यु हो गया था।
  • ब्रिटिश सरकार के द्वारा छोटानागपुर में काएतकारी कानून द्वारा कृषकों को कुछ राहत दिया था बेगारी तथा बंधुआ मजदूरी प्रतिबंधित कर दिया गया।

रानी गाइडिन्ल्यू का नागा आंदोलन (1917-31) 

  • इस आंदोलन का प्रारंभ नागा समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए चलाया गया था ।
  • इस आंदोलन ने कालांतर में अंग्रेजों की नीतियों का विरोध करते । हुए राजनीतिक स्वरूप धारण कर लिया।
  • इस कारण इसके नेतृत्वकर्ता 'जदोनांग' को 29 अगस्त, 1931 को फांसी दे दिया गया था।
  • इस आंदोलन का नेतृत्व कालांतर मैं 17 वर्षीय नागा युवती गाइडिन्ल्यु ने किया था।
  • गाइडिन्ल्यु ने नागा आंदोलन को सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़ दिया। जवाहर लाल नेहरू तथा आजाद हिंद फौज ने गाइडिन्ल्यु  को 'रानी' की उपाधि दिया था। 
  • रानी गाइडिन्ल्यू ने जदोनांग के विचारों के आधार पर 'हेक पिंथ' (धार्मिक विचार ) की स्थापना किया था।

किसान विद्रोह

कारण :

  • ब्रिटिश शासन की भूमि व्यवस्था जिसमें कर की दर उच्च थी तथा शोषण सर्वाधिक था।
  • जमींदार, साहुकार तथा आर्थिक शोषक वर्ग के खिलाफ समाज में क्रांति का प्रवाह हुआ।
  • 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में किसान अपने आर्थिक एवं सामाजिक हितों को लेकर जागरूक हो गए थे।

नील विद्रोह (Indigo Riots) (1859-60)

  • ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था में कुछ अवकाश प्राप्त अधिकारी बंगाल तथा बिहार के कुछ क्षेत्रों पर बलात कृषकों से खेती करवाते थे।
  • इस क्रम में किसानों को एक छोटी रकम के एवज में कृषि के पैदावार संबंधित करारनामा लिखवाते थे। कृषि की उपज की रकम बाजार मूल्य से अत्यधिक कम होता था । 
  • किसानों पर किए जाने वाले इस शोषण व्यवस्था को ददनी कहा जाता था।
  • ददनी प्रथा (व्यवस्था) बंगाल के नदिया जिले में स्थित गोविंदपुर गांव # 1859 में प्रारंभ हुआ था।
  • वर्ष 1860) तक ददनी प्रथा जैसोर, खुलना, राजशाही, ढांका, मालदा, दिनाजपुर इत्यादि जैसे स्थानों के साथ बंगाल के तथा बिहार तक फैल गया।
  • इस विद्रोह का प्रारंभ दिगम्बर विश्वास तथा विष्णु विश्वास के द्वारा किया गया था।
  • 31 मार्च, 1860 को अंग्रेजों ने डब्ल्यू. एस. सीटोनकर के नेतृत्व में नील आयोग (Indigo commission) का गठन किया था।
  • ज्ञातव्य हो प्रख्यात अखबार 'हिंदू पैट्रियाट' के संपादक 'हरिश्चन्द्र मुखर्जी' ने 'नील विद्रोह' का समर्थन किया था।
  • 1859 नील विद्रोह का वर्णन दीनबंधु मित्र ने अपने नाटक 'नील दर्पण' में किया था। यह आंदोलन भारतीय किसानों का प्रथन सफल आंदोलन था।

पाबना आंदोलन (Pabna peasant movement ) (1873-76)

  • इस विद्रोह का प्रारंभ बंगाल प्रांत के पवना जिले के युसुफशाही परगना में हुआ था ।
विद्रोह के कारण :
(i) जमींदारों के द्वारा कर की दर को कानूनी सीमा दर से कई गुना बढ़ा देना।
(ii) 1859 ई. के अधिनियम-10 के अन्तर्गत काश्तकारों को जमीन पर मिले अधिकारों से जमींदारों द्वारा वंचित करना।
  • वर्ष 1873 में किसानों ने पबना जिला के युसुफशाही किसान संघ की स्थापना किया तथा किसानों को संगठित करना प्रारंभ कर दिया था।
  • इस क्रम में संगठित किसानों ने अहिंसक लड़ाई की, जुलुस निकाले, लगान हड़ताल किया इत्यादि ।
  • इंडियन एसोसिएशन के सदस्य सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आनंद मोहन बोस तथा द्वारका गांगुली इत्यादि ने किसानों का समर्थन किया था।
  • इस क्रम में लेफ्टिनेंट गवर्नर कैम्पबेल ने भी पवना विद्रोह का समर्थन किया था। इसके पीछे सही तर्क था कि यह विद्रोह जमींदारों के शोषण एवं अत्याचार के विरुद्ध था। इसमें अंग्रेजों से कोई लेना-देना नहीं था ।
  • इस आंदोलन को कभी भी अंग्रेजों ने हिंसा के बल पर दमन नहीं किया था। इसके पीछे यही कारण था। नेतृत्व कर्त्ता ने नारा दिया था 'हम महारानी और सिर्फ महारानी के रैयत होना चाहते हैं। "
  • 1885 में बंगाल का काश्तकारी अधिनियम पारित हुआ जिसके अंतर्गत किसानों को उनकी जमीन वापस कर दी गई थीं।
  • ज्ञातव्य है कि इसी आंदोलन से संबंधित मुसर्रफ हुसैन ने 'जमींदार दर्पण' नामक नाटक लिखा था।

फड़के विद्रोह (1879)

  • इस विद्रोह के प्रमुख क्रांतिकारी बासुदेव बलवंत फड़के थे।
  • बासुदेव बलवंत फड़के 1857 की क्रांति के पश्चात प्रमुख व्यक्ति थे जो अंग्रेजों को हिंसा के माध्यम से बाहर करना चाहता था ।
  • गोविन्द रानाडे के धन बर्हिगमन सिद्धांत ने बासुदेव बलवंत फड़के को प्रेरित किया था।
  • इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1876-77 में भयंकर दुर्भिक्ष (अकाल) पड़ा। महाराष्ट्र की जनता भयंकर भूख की पीड़ा से ग्रसित थी । तथा औपनिवेशिक शासन व्यवस्था आम जनता की शोषण कर रही थी।
  • फड़के ने रामोसियो तथा महाराष्ट्र किसानों का एक 50 सदस्यीय संगठन है) का 50 | बनाया। इनका उद्देश्य अमीरों को लूट कर गरीबों की सहायता करना था ।
  • 21 जुलाई 1879 को निजाम सरकार के सहयोग से फड़के को गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • फड़के को गिरफ्तार को अदन जेल में निर्वासित कर दिया गया। 17 फरवरी, 1883 को वहां उनकी मृत्यु हो गई।
  • वासुदेव बलवंत फड़के के देहावसान के पश्चात दौलत रामोसी के द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व किया गया।

मोपला विद्रोह (Mopla riots )

  • मध्यकाल में अरब मूल के कुछ मुस्लिम केरल राज्य के मालाबार क्षेत्र में आकर बस गए थे।
  • सामान्यतः ये लोग इस्लाम धर्मावलंबी थ एवं पेशे से कृषक थे। जो उपलब्ध वातावरण की सभी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करते थे।
  • इस क्षेत्र में हिंदू जाति के उच्च वर्ग के स्वर्ण नम्बुदारी तथा नायर जमींदारों का प्रभाव था ।
  • मोपला इन उच्च वर्ग के (जिम्मी) जमींदारों के बंधुआ मजदूर थे। 19वीं शताब्दी में मोपालाओं की शिकायतें बढ़ती गई थी। उच्च लगान की दर एवं अन्य कारणों से शोषण मांपालाओं को होता था ।
  • वर्ष 1836-54 तक मालाबार क्षेत्र के एरनद और वल्लुवनाद तालुका में कुछ 20-30 विद्रोह थे।
  • हुए इस क्रम में मोपला विद्रोहियों को धार्मिक राजनीतिक विद्रोह का नेतृत्व माम्बराम के थंगल के द्वारा किया गया था।
  • इसी क्रम में मोपला विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ता अलावी तथा उसमें ज्येष्ठ पुत्र मंगद फजल पुल्कोया तथा थंगल को भारत से निर्वसित कर दिया गया।
  • 1921 में पुन: मोपला विद्रोह जागृत हो गया था इसका तात्कालिक कारण औपनिवेशिक शासन व्यवस्था का शोषण एवं जमींदारों का अत्याचार I
  • अप्रैल, 1920 में कॉंग्रेस के मालाबार जिला इकाई के मोपला विद्राह का समर्थन किया था ।
  • इसी क्रम में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन के साथ मोपला विद्रोह का भी समर्थन किया था। समर्थकों में मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा शौकत अली भी थे। 
  • इस समय मोपला विद्रोह का नेतृत्व एक धार्मिक नेता अली मुसलीयार कर रहे थे। 20 अगस्त 1921 को मजिस्ट्रेट टॉमस ने सेना को छापा मारने का आदेश दिया।
  • सेना ने तिरूरांगडी कं मस्जिद में छापा मारा। अली मुसलीयार को अंग्रेज बंदी बना पाने में असफल साबित हुए।
  • मस्जिद की छापे की खबर से अली मुसलियार के समर्थक हिंसक हो गए। वेल्लुवनाद तथा पोन्नानी तालुके के कुछ यूरोपीय अधिकारियों को हिंसक भीड़ ने मार डाला।
  • मोपलाओं के हिंसक भीड़ ने रेलवे लाइन उखाड़ दिया, सरकारी भवनों में आग लगा दिया। रेल की पटरिया उखाड़ दिया।
  • इसी क्रम में अलीमुसलियार के पश्चात मोपला विद्रोह का नेतृत्व वैरियन कुन्नाथ कुन अहमद हाजी ने किया था।
  • इस विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने कूटनीति का सहारा लिया। इस विद्रोह का स्वरूप साम्प्रदायिक कर दिया गया। क्योंकि जमींदार हिंदू थे तथा किसान, श्रमिक मुस्लिमा

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना गाँधीजी के द्वारा किया गया था।
  • डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी की स्थापना वी. आर. सिन्दे ने किया था वर्ष 1906 बंबई में।
  • नायर सर्विस सोसायटी की स्थापना मन्नार पद्मनाभा पिल्लई के द्वारा किया गया है।
  • ई. वी. रामास्वामी नायक के द्वारा तमिल भाषा में सच्ची रामायण की रचना किया गया है।
  • देव समाज के संस्थापक शिव नारायण अग्निहोत्री थे।
  • 1873 में सत्य शोधक समाज की स्थापना ज्योतिबा फूले के द्वारा किया गया था।
  • बहुजन समाज के संस्थापक शंकर राव जाधव तथा मुकुंद राव पाटिल थे।
  • 1899 में तेरूनेवल्लू में भयंकर दंगे हुए थे जिसका उद्देश्य मंदिर में नाडार समुदाय का मंदिर में प्रवेश पाना था।
  • एन. सी. शीतलवाड़ा, वी. एन. राव अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसायटी के प्रख्यात सदस्य थे।
  • सर्वेन्ट ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में किया था।
  • फरैजी आंदोलन के नेतृत्व बंगाल के फरीदपुर स्थित दाई मियां ने किया था।
  • फरैजी आंदोलन से भावार्थ था - अल्लाह का हुक्म मानने वाला।
  • समस्त भूमि अल्लाह की देन है यह किसने कहा था-दादू मिया।
  • किस आंदोलन का नेतृत्व सैयद अहमद रेलवी ने किया था। बहावी आंदोलन (1820-1870)
  • ज्ञातव्य है कि वहाबी आंदोलन का प्रमुख केन्द्र पटना था।
  • अली बंधु विलायत अली एवं इनायत अली दोनों वहाबी आंदोलन से संबंधित थे।
  • महाराष्ट्र में रामोसी कृषक जत्था वासुदेव बलवंत फड़के ने स्थापित किया था।
  • बंकिम चन्द्र चटर्जी का उपन्यास आनंद मठ संन्यासी विद्रोह से संबंधित था।
  • संन्यासी विद्रोह का प्रमुख कारण था तीर्थ स्थानों पर कर लगाने के कारण।
  • वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा संन्यासी विद्रोह पूर्णतः समाप्त कर दिया गया था।
  • संन्यासी विद्रोह की नारा था ऊं वंदे मातरम्।
  • बकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित उपन्यास का नाम था दुर्गेश नंदिनी (1865)
  • फकीर विद्रोह का नेतृत्व मजमून शाह तथा चिराग अली ने किया था।
  • फकीर विद्रोह में चिराग अली की सहायता किन दो हिंदुओं ने किया था - भवानी पाठक तथा देवी चौधरानी।
  • नामधारी आंदोलन के संस्थापक रामसिंह थे।
  • गुलामगिरी तथा सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक ज्योतिबा फूले की रचनाएं थी ।
  • दी ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास फेडरेशन तथा बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने किया था।
  • समाज समता संघ तथा अनुसूचित जाति परिसंघ का गठन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने किया था।
  • जस्टिस पार्टी आंदोलन के मुखिया टी. एन. मुदलियार थे।
  • हरिजन सेवक संघ के संस्थापक (1932) घनश्याम दास बिड़ला थे।
  • चुआर विद्रोह का नेतृत्व मेदनीपुर (बंगाल) के राजा जगन्नाथ थे।
  • खम्पाती विद्रोह असम में हुआ था।
  • मणिपुर में कूकी विद्रोह का प्रमुख कारण पोथांग लेना (बिना मजदूरी का सामान ढोना) था।
  • परीक्षित जमातिया का संबंध त्रिपुरा में था।
  • पाइक लोग लगान मुक्त भूमि का उपयोग करने वाले सैनिक थे।
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Wed, 17 Apr 2024 07:14:08 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | ब्रिटिश भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन https://m.jaankarirakho.com/986 https://m.jaankarirakho.com/986 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | ब्रिटिश भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन
18वीं शताब्दी में यूरोप में एक नवीन बौद्धिक क्रांति का सूत्रपात हुआ । तर्कवाद तथा वैज्ञानिक सोच की अवधारणा ने पुरातन विचारों एवं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। भारत के प्रबुद्ध एवं नवीन मध्यम वर्ग भी इस अवधारणा से प्रभावित हुआ। यही वह कालखण्ड था जब भारत में औपनिवेश व्यवस्था भी अपनी जड़ मजबूत कर रहा था। ज्ञातव्य है भारतीय सभ्यता पृथ्वी की उपलब्ध पुरातन जीवित सभ्यताओं में शामिल है । अर्थात् हमारी परम्परा, संस्कृति तथा समाज की जीवनशैली भी उतनी ही पुरातन एवं उलझी हुई है। कुछ परम्परा एवं शैली कठोर एवं परिवर्तन के काबिल थी क्योंकि इनमें जड़ता, शोषण और ये मानवीय दृष्टिकोण से निम्न थे। इन सभी सामाजिक जड़ता एवं कठोर पुरातन परम्पराओं पर पाश्चात्य एवं भारतीय समाज सुधारकों ने प्रश्न चिह्न किया तथा नवीन औपनिवेशिक व्यवस्था के सहयोग से इसमें परिवर्तन किया।
  • 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी व्यवस्था एवं परिवर्तन का प्रभाव भारतीय समाज पर स्थायी हो रहा था इसके पूर्व के सभी परिवर्तनों से यह भिन्न था।
  • इसका प्रारंभ भारत से सुदूर पश्चिम में यूरोपीय महाद्वीप में पनप रहे तर्कवाद, विज्ञानवाद एवं बौद्धिक के चेतना के कारण हुआ था।
  • भारत की नवीन शिक्षित मध्यम वर्ग जो सर्वप्रथम यूरोप की 'नवजागरण युग' के सम्पर्क में आयी इस वर्ग भारतीय जनमानस में चेतना के विकास में प्रमुख योगदान दिया था। 
  • यही वह कालखण्ड धा जब भारत का बौद्धिक केन्द्र बंगाल में स्थापित हुआ। अंग्रेजी आधुनिक शिक्षा से सुसज्जित बंगाली युवाओं ने क्रांति को प्रारंभ किया।
  • भारत के प्रबुद्ध युता वर्ग ने भारतीय सामाजिक धार्मिक जड़ता एवं अंधविश्वास को आम जनमानस के समक्ष रखा एवं उसके परिवर्तन की चुनौती स्वीकार किया।
  • जाति प्रथा समाज की बहुत बड़ी बुगई थी । जाति का निर्धारण वर्ण एवं जन्म आधारित था। ना कि कर्म आधारित । जातिगत कट्टरता ने समाज के निचले पायदान के लोगों के लिए सामाजिक जीवन को दुष्कर बना दिया था।
  • अछूत व्यवस्था, अस्पृश्यता एवं निम्न स्तरीय जीवन के शिकार समूचे हिंदु जनसंख्या का लगभग 20% हिस्सा बन चुका था।
  • सती प्रथा, शिशु बध, बाल विवाह तथा अस्पृश्यता अनिवार्य एवं अभिन्न सामाजिक बुराई था। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज की जटिलता एवं घनघोर परम्परावादी होना था ।
  • 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में लोकतंत्र एवं राष्ट्रवाद के उफान ने भारतीयों एवं भारत की सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं की भी प्रभावित करना पारंभ कर दिया। इसके प्रमुख प्रणेता कुछ शिक्षित भारतीय तथा कुछ विदेशी नागरिक भी थे।

देशी समाज सुधारक

राजा राम मोहन राय (1772-1833 )

  • तत्कालीन ब्रिटिश शासन में बंगाल में प्रारंभ हुए समाज सुधार आंदोलन के प्रणेता राजा राम मोहन राय थे।
  • इनको 'नवजागरण के अग्रदूत', सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक, आधुनिक भारत का पिता, नव प्रभात का तारा के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
  • इनका जन्म 22 मई, 1772 में बंगाल के हुगली जिले में स्थित राधा नगर में हुआ था।
  • इनके पिता रमाकांत जी बंगाल के नवाब के यहाँ कार्य में थे। इसी स्थान पर राम मोहन को 'राय रायां' की उपाधि भी प्राप्त हुई थी।
  • राजा राम मोहन ने अल्पायु (16 वर्ष की अवस्था) में ही विद्रोही प्रवृति अपनाते हुए हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया था।
  • वर्ष 1803 में पिता रमाकांत राय की मृत्यु के पश्चात् कंपनी में जॉन डिग्बी के दीवान बने थे तथा यहाँ 1814 तक कार्य किया था।
  • वर्ष 1809 में राजा राम मोहन राय ने फारसी भाषा में 'तुहफात-उल-मुवाहिद्दीन' अर्थात् एकेश्वरवादियों का उपहार नामक पुस्तक की रचना की थी।
  • 1814 में ही इनके द्वारा आत्मीय सभा की स्थापना किया गया जिसमें इनके सहयोगी द्वारका नाथ ठाकुर थे ।
  • 1816 में वेदांत सोसाइटी की स्थापना किया एवं 1820 में बाइबल के आधार पर 'प्रीस्टस ऑफ जीसस' नामक पुस्तक की रचना की थी। इस पुस्तक का प्रकाशन जॉन डिग्बी ने इंग्लैण्ड में कराया था।
  • 1821 में 'कलकत्ता यूनीटेरियन कमेटी' की भी स्थापना इनके द्वारा की गई थी।
  • इनके द्वारा 20 अगस्त, 1828 को 'ब्रह्म समाज' की स्थापना की गई थी। इसको प्रारंभ में 'ब्रह्म सभा' कहा गया था। किंतु कालांतर में यह ब्रह्म समाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
  • ब्रह्म समाज ने भारतीय समाज सुधार आंदोलन के विकास में महती योगदान दिया था। इसको अद्वैतवादी हिंदुओं की संस्था कहा जा सकता था।
  • ब्रह्म समाज ने 'मूर्ति पूजा', अवतारवाद, बहुदेववाद, पुरोहितवाद, इत्यादि विचारों का खंडन किया तथा ईश्वर की एकता पर बल दिया था।
  • इनके सहयोग ने 1817 में डेविड हेयर ने कलकत्ता में 'हिंदू कॉलेज' की स्थापना किया था तथा 1825 में वृंदांत कॉलेज की स्थापना किया गया था।
  • राजा राममोहन राय को 'पत्रकारिता का अग्रदूत' भी माना जाता है। समाचारों की आजादी के लिए इनके द्वारा जनजागरण किया गया था।
  • इनके द्वारा वर्ष 1821 में बंगाली में 'संवाद कौमुदी' और 'प्रज्ञा का चाँद' नामक पुस्तक की रचना की थी।
  • वर्ष 1822 में इनके द्वारा फारसी भाषा में मिरात-उल-अखबार प्रकाशित किया था ।
  • इनके द्वारा 'बंगला व्याकरण' का संकलन भी किया गया था। तथा 'हिंदू उत्तराधिकार नियम' नामक पुस्तक की रचना की गई थी।
  • वर्ष 1811 में राजा राम मोहन राय के बड़े भाई जगमोहन की मृत्यु के पश्चात । इनकी भाभी 'अलका मंजरी' को सती होना पड़ा था।
  • इस घटना से क्षुब्ध राजा राम मोहन राय ने वृहद स्तर सती प्रथा के खिलाफ पर समाज व्यापी आंदोलन चलाया। तथा विलियम बेंटिक को सती प्रथा के विरोधी कानून बनाने में मदद प्रदान किया।
  • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा का विरोध 'संवाद कौमुदी' के माध्यम से किया था।
  • वर्ष 1821 के नंपल्स क्रांति विफलता से दुखी राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1823 के स्पेनिश क्रांति की सफलता का इजहार भोज देकर किया था।
  • वर्ष 1831 में मुगल सम्राट अकबर || ने राम मोहन राय को 'राजा' की की उपाधि दिया था। तथा अपने पेंशन बहाली की वार्ता हेतु विलियम चतुर्थ के दरबार भेजा था।
  • राजा राम मोहन राय ने मुगल बादशाह अकबर ।। की पेंशन से संबंधित वार्ता हेतु, इंग्लैंड की यात्रा की थी।
  • 27 सितम्बर, 1833 को ब्रिस्टल (इंग्लैंड) में मस्तिष्क ज्वर के कारण इनकी मृत्यु हो गई।
  • अपने मृत्यु से पूर्व ही राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज का प्रन्यासकरण पत्र (trust deed) लिखा था।

ब्रह्म समाज

  • राजा राम मोहन राय द्वारा नामित द्वारका नाथ टैगोर ( रवीन्द्र नाथ टैगोर के पिताजी ) तथा पंडित रामचंद्र विद्या वागीश ने प्रारंभ में ब्रह्म समाज को संचालित किया।
  • ज्ञातव्य हो कि कलकत्ता के 'जेरासाकी' में तत्वरंजनी सभा की स्थापना देवेन्द्रनाथ टैगोर ने किया था। 1839 में यही परिवर्तित होकर तत्वबोधिनी सभा के रूप में सामने आई थी।
  • देवेन्द्र नाथ टैगोर के द्वारा 'तत्वबोधिनी' नामक पत्रिका बंगाली भाषा में प्रकाशित भी किया गया था यह पत्रिका ब्रह्म समाज की मुख्य पत्रिका थी।
  • इस पत्रिका के मुख्य संपादक ईश्वरचंद्र विद्यासागर, प्यारे रामचंद्र मित्र, राजनारायण बोस तथा राजेन्द्र लाल मित्र थे।
  • वर्ष 1840 में ब्रह्म समाज के सदस्यों का धर्मशास्त्र एवं विज्ञान तथा पौराणिक विषयों के ज्ञान के लिए 'तत्वबोधिनी' नामक स्कूल की स्थापना की गई थी।
  • समकालीन भारतीय समाज को प्रभावित करने का प्रयास ईसाई धर्म प्रचारक 'अलेक्जेंडर डफ' के द्वारा किया गया।
  • देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 'अलेक्जेंडर डफ' के 'भारतीय संस्कृति के दुष्प्रचार का विरोध किया एवं इसी क्रम में 'ब्रह्म धर्म' नामक धार्मिक पुस्तक का संकलन भी किया।
  • 1857 में देवेन्द्र नाथ टैगोर ने 'ब्रह्म समाज' की सदस्यता केशवचंद्र सेन को सौंप दिया एवं स्वयं संन्यास ले लिया।
  • केशवचंद्र सेन के कार्यकाल में ब्रह्म समाज के विस्तार एवं लोकप्रियता में घनघोर वृद्धि हुई ।
  • ब्रह्म समाज की बंगाल से बाहर पंजाब, उत्तर प्रदेश, बंबई एवं मद्रास में शाखाएँ खोली गई थी। वर्ष 1865 में बंगाल में ही ब्रह्म समाज की 65 शाखाएँ थी ।
  • केशनचंद्र सेन का अन्य धर्मों के प्रति झुकाव एवं सहृदयता के कारण देवेन्द्र नाथ टैगोर से वैचारिक टकराव प्रारंभ हो गए।
  • इसी क्रम में देवेन्द्र नाथ टैगोर ने केशव चंद्र सेन को उनके पद से मुक्त कर दिया। इस टकराव में केशवचंद्र सेन ने ब्रह्म समाज छोड़ दिया।
  • 1865 में ब्रह्म समाज में प्रथम जलगाव हुआ। कं चंद्र सेन ने अपनी नई संस्था आदि ब्रह्म समाज की स्थापना किया था । जो कालांतर में भारतीय ब्रह्म समाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ था।
  • 1870 ई. में केशवचन्द्र सेन 6 महीने के इंग्लैंड प्रवास में 70-80 भाषण दिए थे।
  • 1861 में केशवचंद्र सेन ने इंडियन मिरर नामक अंग्रेजी का प्रथम भारतीय दैनिक का संपादन भी किया था।
  • 1872 में केशव चंद्र सेन के प्रयासों से ब्रह्म विवाह एक्ट पारित हुआ था। इसके अन्तर्गत बाल विवाह, बहुपत्नी विवाह को अवैध घोषित कर दिया गया था।
  • कालांतर में केशव चंद्र सेन अपने मूल विचारों के विरुद्ध जाकर अपनी अल्पायु पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से कर दिया ।
  • इस घटना से ब्रह्म समाज के छवि को ठेस पहुँचा और इस विघअन दोबारा हो गया। इनके सहयोगी आनंद मोहन बोस तथा शिवनाथ शास्त्री के द्वारा 1878 में 'साधारण ब्रह्म समाज' की स्थापना किया गया था।
  • इसी क्रम में केशवचंद्र सेन ने स्त्री शिक्षा और पश्चिमी शिक्षा पर विशेष बल दिया था। इनके द्वारा इंडियन रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना किया गया था।
  • वर्ष 1884 में केशवचंद्र सेन की मृत्यु पर मैक्समूलर ने कहा था " भारत ने अपना श्रेष्ठतम पुत्र खो दिया" ।

वेद समाज एवं प्रार्थना समाज

  • 1864 में मद्रास में कं० श्री धरालु नायडु ने वेद समाज की स्थापना किया था।
  • ज्ञातव्य हो कि श्री धरालू नायडू पर केशवचंद्र सेन का अत्यधिक प्रभाव था। इसी कारण श्री धराल ने वेद समाज को 'दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज' कहा था।
  • केशवचंद्र के प्रभाव से ही 1867 में बंबई में डॉ० आत्माराज पांडुरंग ने 'प्रार्थना समाज' को स्थापित किया था। इसमें महादेव गोविन्द राणाडे पांडुरंग के सहयोगी थे।
  • 1871 में महादेव गोविन्द रानाडे ने 'सार्वजनिक समाज' की स्थापना किया था। इनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इनको 'महाराष्ट्र का सुकरात' नाम से संबोधित किया जाता है।
  • प्रार्थना समाज ने दलित अछूत तथा पिछड़ों के सुधार के लिए
    (A) दलित जाति मण्डल (Depressed Classed Mission)
    (B) समाज सेवा संघ (Social Service League)
    (C) दक्कन शिक्षा सभा (Duccan Education Society)
  • दक्कन एजुकेशन सोसाइटी को ही कालांतर में फांग्यूशन कॉलेज भी कहा गया था। रानाडे को पश्चिम भारत में सांस्कृतिक जागरण का अग्रदूत कहा गया था।
  • 1891 में महाराष्ट्र में विधवा विवाह को प्रचारित करने के उद्देश्य से महादेव गोविन्द रानाडे ने 'विडो रिमैरिज एसोसिएशन' की स्थापना किया था।
  • इसी क्रम में 1899 में धोंदो केशव कर्वे ने विधवा आश्रम संघ (विडो होम) की स्थापना पूना में किया था। जहाँ विधवाओं को आत्मनिर्भर बनाकर जीवन के लिए नए दृष्टिकोण पैदा करने की प्रेरणा दिया जाता था।
  • धोंदो केशव कर्वे फार्ग्युसन कॉलेज के अध्यापक को तथा विधूर थे उन्होंने एक विधवा से 1893 में विवाह किया था । कर्वे ने ही 1916 में महिला शिक्षा हेतु प्रथम महिला विश्वविद्यालय बर्बर में स्थापित किया।

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

  • 1820 ई. में पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर में इनका जन्म हुआ था। ये बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के व्यक्ति थे ।
  • 1839 में केवल 19 वर्ष की उम्र में कानून की शिक्षा प्राप्त कर लिया था ।
  • 1841 ई. में कलकत्ता स्थित कोर्ट विलियम कॉलेज के अंतर्गत स्थित संस्कृत कॉलेज में शिक्षक नियुक्त हुए थे।
  • 1841 ई. में ही कलकत्ता स्थित एक संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य नियुक्त हुए थे। इस नियुक्ति के पश्चात् सबसे पहले गैर-ब्राह्मणों को संस्कृत पढ़ाने का कार्य प्रारंभ किया।
  • उन्होंने संस्कृत पढ़ाने का नई विद्या प्रारंभ किया था एवं गैर-ब्राह्मणों को संस्कृत पढ़ाने के कारण इनका विरोध प्रारंभ हो गया था।
  • ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के द्वारा बंगाली भाषा के अक्षरों को पढ़ने तथा समझने के लिए 'वर्णो परिचय' नामक पुस्तक की रचना किया था।
  • 'वर्णो परिचय' नामक पुस्तक की रचना के कारण ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को आधुनिक बंगाली भाषा का पिता कहा गया है।
  • ये भारतीय इतिहास में प्रमुख स्त्री शिक्षा के सुधारक थे। 1849 में नारी की उच्च शिक्षा के लिए 'वेथून कॉलेज' का निर्माण कराया था।
  • इनके द्वारा कलकत्ता में मेट्रोपोलिटन कॉलेज की स्थापना किया गया था। यहाँ पर पुरुषों के बराबर महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया गया था।
  • ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रभाव से 1860 ई. में 'Age or concent act' पास हुआ था। जिसमें लड़की की शादी की उम्र कम-से-कम 10 वर्ष कर दिया गया। इससे कम उम्र की शादी को अपराध घोषित कर दिया गया ।
  • इनके द्वारा नारी शिक्षा में विकास के लिए अनेक उपाय किए गए थे।
  • ईश्वरचन्द्र के द्वारा अपने इकलौते पुत्र का विवाह विधवा स्त्री से किया । इस प्रकार यह युगांतकारी घटना थी ।
  • वर्ष 1855-58 के बीच 25 विधवाओं का विवाह करवाया।
  • इनके द्वारा डलहौजी के कार्यकाल में 984 लोगों के हस्ताक्षर लिए विधवा पुर्नविवाह के पक्ष में। इसी क्रम में बर्द्धमान के राजा महताब चंद्र तथा नादिया जिला के राजा श्री चंद्र के सहयोग से डलहौजी तथा इसके कार्यकारणी के समक्ष पत्र भेजे गए।
  • डलहौजी के द्वारा विधवा पुर्नविवाह के पक्ष में प्राप्त हुए पत्र को स्वीकृति भी कर दिया। किंतु कुछ समय में डलहौजी का सेवा समाप्त हो गया।  
  • डलहौजी के पश्चात कैनिंग ने इस पत्र का संज्ञान लेते हुए 26 जुलाई, 1856 को विधवा पुर्नविवाह अधिनियम remariage act) 1956 के धारा 15 के अन्तर्गत विधवा पुर्नविवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गया था।

दयानंद सरस्वती

  • इनका जन्म गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र के मौरवी रियासत के राजकोट जिला के टांकारा नामक स्थान / गाँव में 1824 ई. में हुआ था ।
  • इनके बचपन का नाम मूल शंकर था। वे 21 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर दिया था ।
  • वर्ष 1848 ई. में इनकी मुलाकात स्वामी पूर्णानंद जी से हुई। दयानंद सरस्वती इनकी शिष्यता ग्रहण किया था। पूर्णानंद जी ने मूल शंकर का नाम परिवर्तित कर दयानंद सरस्वती कर दिया।
  • वर्ष 1861 ई. में मथुरा पहुँच कर नेत्रहीन स्वामी विरजानंद जी को अपना गुरु बनाया था। इन्होंने विरजानंद जी से ही वैदिक ग्रंथों का आध्यात्मिक एवं दार्शनिक ज्ञान का अध्ययन प्राप्त हुआ था।
  • 1869 ई. में हरिद्वार में पाखंड खंडनी पताका (ध्वज) स्थापना किया था । इसका उद्देश्य धर्म के अंदर के आडंबरवाद को समाप्त करना था ।
  • 1874 ई. में दयानंद सरस्वती के द्वारा 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया था ।
  • दयानंद सरस्वती को इनके धार्मिक व सामाजिक सुधार के कारण इनकी तुलना जर्मनी के मार्टिन लूथर को किया जाता है।
  • इस प्रकार दयानंद सरस्वती को भारत का मार्टिन लूथर भी कहा गया था।
  • 1875 में आर्य समाज की स्थापना बंबई में किया गया। 
  • 1881 में दयानंद सरस्वत से प्रभावित होकर पंडिता रमाबाई अंबेडकर ने आर्य महिला समाज की स्थापना किया था।
  • 1889 में पंडिता रमाबाई ने 'शारदा सदन' तथा 'मुक्तिधाम' नामक दो संस्थान बनाए गए थे।
  • मुक्तिधाम - निराश्रित लोगों के लिए स्थापित किया गया था।
  • गौरक्षा समिति–दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापना किया गया था।
  • गौरक्षा सभा - बाल गंगाधार द्वारा स्थापना किया गया था।
  • गौरक्षा संघ - महात्मा गाँधी द्वारा स्थापना किया गया था।
  • 30 अक्टूबर, 1883 में जोधपुर की तवायफ नन्हीं जान के द्वारा दयानंद सरस्वती को जहर दे दिया गया।
  • दयानंद सरस्वती अपनी मृत्यु के समय अजमेर में थे।

  • आर्य समाज से सबसे प्रभावित क्षेत्र पंजाब था। साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी इसी क्रम महत्वपूर्ण था ।
  • आर्य समाज का दो नारा था जिसे दयानंद सरस्वती ने दिया था-
    (A) वेदों की ओर लौटो
    (B) कंगवंतो विश्वभारयम् (विश्व को आर्य बनाते चलो )
  • 1907 में वेलेन्टाइन शेरोल ने अपनी पुस्तक 'इंडियन अनरेस्ट' में भारत में अशांति का जनक माना था दो लोगों को व्यक्ति के रूप में बाल गंगाधर तिलक को तथा संस्था के रूप में आर्य समाज को माना था ।

  • स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन चलाया था। इसके अन्तर्गत हिंदू धर्म के परित्यन्त व्यक्तियों को पुनः हिन्दु धर्म में वापसी का प्रावधान था ।
  • 1886 में लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) की स्थापना किया गया था।
  • दयानंद सरस्वती का स्वामी श्रद्धानंद से भाषा को लेकर विवाद हो गया। श्रद्धानंद ने 1902 में हरिद्वार के कांगड़ी में गुरुकुल विश्वविद्यालय की स्थापना किया था ।

रामकृष्ण परमहंस

  • 1 मई, 1897 को कलकत्ता के पास बारानगर में 'रामकृष्ण परमहंस' की स्थापना स्वामी विवेकानंद के द्वारा किया गया था।
  • कालांतर में बेलूर इस मिशन का मुख्यालय लय बना था। इस मिशन के सिद्धांतों का आधार वेदांत दर्शन था।
  • स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। इनका मूल नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था जो कलकत्ता दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे।
  • स्वामी रामकृष्ण दक्षिणेश्वर के संत के नाम से भी विख्यात थे। इन पर भैरवी एवं तोतापुरी जैसे संतों का भी प्रभाव था ।
  • 5 वर्ष की अवस्था में इनकी शादी शारदामजी मुखोपाध्याय से हुआ था।

स्वामी विवेकानंद

  • स्वामी विवेकांनद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था।
  • 12 जनवरी को विवेकानंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
  • 1880 में इनकी मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। ये उनके अतिशीघ्र शिष्य बन गए। कालांतर में रामकृष्ण परमहंस की स्थापना किया।
  • 1891 में सम्पूर्ण भारत की यात्रा की तथा गरीबी एवं भूखमरी को प्रत्यक्ष अनुभव किया। भ्रमण में भारत की वास्तविक सामाजिक स्थिति का आभास होने पर समाज सुधार का प्रण लिया।
  •  राजस्थान स्थित खेताड़ी के महाराजा कुंवर अजीत राज सिंह के सुझाव पर अपना नाम बदलकर विवेकानंद रख लिया ।
  • 1893 में महाराजा के खर्च पर अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित होने वाले प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म ( सनातन धर्म) के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था । 
  • 11 सितंबर, 1893 को दिए गए अपने ओजस्वी भाषण दिया था। अपने भाषण एवं विद्वता के कारण वे सुप्रसिद्ध हो गए।
  • इनको अमेरिका के समाचार- र-पत्रों में तूफानी भ्रमण करने वाला साधु भी कहा गया था। स्वामी जी ने अपना भविष्यवाणी किया था कि "विश्व पर सर्वहारा वर्ग तथा दलितों का शासन होगा" और इसका पारंभ रूस तथा चीन से होगा।
  • स्वामी जी अगले 3 वर्षों तक शिकागो में निवास किया था। इस क्रम में इन्होंने फरवरी 1896 में न्यूयार्क में 'वेदान्त सोसाइटी' और कैलिफोर्निया में 'शांति आश्रम' की स्थापना किया था।
  • विवेकानंद ने पूरे अमेरिका, इंग्लैंड, स्त्रिट्जरलैंड तथा जर्मनी की यात्रा किया। 4 वर्षों के अपने यात्रा के पश्चात 1897 में भारत पहुँचे थे।
  • 1897 में भारत आगमन के पश्चात कलकत्ता में रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना किया था।
  • रामकृष्ण परमहंस मिशन का मुख्यालय वर्ष 1899 में कलकत्ता के वेलूर में स्थापित किया तथा इसका दूसरा मुख्यालय अल्मोडा के पास मायावती नामक स्थान पर स्थापित किया गया।
  • स्वामी विवेकानंद 1899 में पुनः अमेरिका गए थे। 1900 में इन्होंने पेरिस में आयोजित द्वितीय धर्म सम्मेलन " जिसका शीर्षक था "कांग्रेस ऑफ हिस्ट्री ऑफ रिलीजन' था भी इसको सम्बोधित किया था।
  • पेरिस वापसी के उपरांत कुछ वर्षों में 4 जुलाई, 1902 को कलकत्ता में इनका देहावसान हो गया था ।
  • स्वामी जी के विचार-
    मानव सेवा की सबसे बड़ा धर्म बताया था ।
    मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद का समर्थन किया था।
    नव हिंदू जागरण का संस्थापक भी इनको कहा गया था।

विदेशी समाज सुधारक

थियोसोफिकल सोसाइटल (The theosophical society) 

  • थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना 1875 में मैडम एच. पी. बलावत्सकी द्वारा न्यूयार्क (अमेरिका) में की गई थी। बलावत्सकी मूलत: रूस की स्थायी निवासी थी ।
  • कालांतर में अमेरिकी सहयोगी कर्नल एम. एस. अल्काट के सहयोग से 1879 में थियोसोफिकल सोसायटी का प्रधान कार्यालय न्यूयार्क से बंबई स्थापित कर दिया गया था ।
  • इसी क्रम में वर्ष 1862 में सोसाइटी का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय पद्रास के समीप आडयार में स्थापित किया गया।
  • ये पश्चिमी विचारक (थियोफिस्टो ) का पुर्नजन्म कर्म के सिद्धांत तथा सांख्य तथा वेदांत (उपनिषदों) को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे।
  • 1888 में एनी बेसेंट (आयरिश) ने इंग्लैंड में इस सोसायटी की सदस्यता ग्रहण किया तथा 1893 के शिकागो धर्म सभा में भी गई थी।
  • ऐनी बेसेन्ट ने 1907 में अल्काट की मृत्यु के पश्चात् सोसायटी की अध्यक्षा भी बनी थी। इस सोसायटी की विचारधारा को देव विज्ञान की संज्ञा भी दिया था।
  • ऐनी बेसेन्ट ने 1998 में बनारस में सेन्ट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना किया। यही कॉलेज कालांतर में 1916 में मदन मोहन मालवीय के प्रवासों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में परिणत हो गया था।
  • ऐनी बेसेंट ने इंग्लैंड के होमरूल लीग की भांति भारत में भी होमरूल लीग की स्थापना किया तथा स्वराज के आंदोलनों में महती भूमिका निभाई थी।
  • सामाजिक आधार पर थियोसोफिकल सोसायटी ने छुआछूत, जाति प्रथा तथा बाल विवाह का विरोध किया था।

वंग बंगाल आंदोलन (The young Bengal movement)

  • यंग बंगाल आंदोलन के संस्थापक हिंदू कॉलेज के एंग्लो इंडियन शिक्षक हेनरी विवियन डेरोजियो (1809-31) थे।
  • डेरोजियो फ्रांस की क्रांति से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अपने अनुयायियों एवं छात्रों को स्वतंत्र चिंतन के लिए प्रेरित किया था।
  • इस आंदोलन का प्रभाव बंगाल के बाहर भी पड़ा था। 1834 में एलफिंस्टन कॉलेज की स्थापना हुई थी। यहां के विद्यार्थियों ने यंग बंगाल के तर्ज पर चंग बाम्बे आंदोलन भी चलाया था।
  • डेरोजियो के द्वारा ईस्ट इंडिया दैनिक समाचार-पत्र का भी संपादन किया था।

अन्य धर्मों में सुधार आन्दोलन

मुस्लिम सुधार आंदोलन (Muslim reform novement)

  • 19वीं शताब्दी के धार्मिक सुधार आंदोलन में अनेक धर्मों की भांति मुस्लिम धर्म की कुरीतियों पर भी प्रहार हुआ ।
  • इस क्रम में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए थे।

अलीगढ़ आंदोलन (Aligarh movement) Aligarh

  • इस आंदोलन के प्रवर्तक सर सैयद अहमद खां थे। इनका जन्म दिल्ली में 17 अक्टूबर, 1817 को हुआ था। इनके पूर्वज मूलतः इरानी सामन्त थे।
  • 1857 की क्रांति काल में सर सैयद अहमद ईस्ट इंडिया कम्पनी के न्यायिक सेवा विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। इनकी तैनाती बिजनौर में थी।
  • 1857 की क्रांति में सर सैयद अहमद ने पूर्णतः ईस्ट इंडिया कंपनी के राजभक्त बने रहे।
  • इनके विचार में मुस्लिम सुधार का एकमात्र उपाय अंग्रेजी का एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली को अपनाना था।
  • इन्होंने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के अनेकों प्रयास किया था। तथा अपने विचार को व्यक्त करने हेतु 1870 में।
  • ‘तहजीब-उल-अखलाख' (सभ्यता एवं नैतिकता) नामक फारसी पत्रिका का संपादन किया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

  • 24 मई, 1875 को महारानी विक्टोरिया के वर्षगांठ के अवसर पर अलीगढ़ स्कूल (प्राइमरी) की स्थापना किया गया।
  • 8 जनवरी, 1877 को मुहम्मद एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज का नाम दिया गया।
  • ध्यातव्य है कि लार्ड लिंटन ने उस कॉलेज को शिलान्यास किया था । तथा विलियम म्योर (उत्तर प्रदेश के तत्कालिक गवर्नर ) ने इसके लिए भूमि प्रदान किया था।
  • इस कॉलेज के प्रथम प्रिसिंपल थियोडर बैक थे। इसी को 1920 में ' अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' के नाम से परिवर्तित कर दिया गया।
  • पीरी मुरीदी प्रथा - इस प्रथा में पीरी (सूफी) लोग अपने मुरीदो (सेवकों) को कुछ रहस्यमयी शब्द देकर उनके गुरु बन जाते थे। एवं मुरीदों से दासों जैसी सेवा लेते थे। सर सैयद अहमद ने इस प्रथा का विरोध किया था।
  • सर सैयद अहमद खान ने दास प्रथा को इस्लाम विरुद्ध माना था ।
  • सर सैयद अहमद ने 'इस्लाम पर टीका' लिखा तथा परम्परागत टीकाकारों पर टिप्पणी भी किया। एवं ज्ञान के आधार में वैज्ञानिकता को स्वीकार किया था।
  • सर सैयद अहमद खां ने हमेशा कांग्रेस का विरोध किया था।
  • वर्ष 1888 में बनारस के राजा शिवप्रसाद के सहयोग से ‘यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिएशन' की स्थापना किया था।
  • ज्ञातव्य हैं कि 1864 में सर सैयद अहमद ने कलकत्ता में साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की थी।
  • 1869 में इंग्लैंड गए तथा वही उनका सामना पश्चिमी सभ्यता एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली से हुआ था।
  • वर्ष 1876 तक सर सैयद अहमद खां अलीगढ़ के स्थायी निवासी बन गए थे।
  • 1898 में सर सैयद अहमद की देहावसान हो गया। इनकी मृत्युपरांत अलीगए आंदोलन का नेतृत्व मोहसिनुल मुल्क ने किया था।
  • सर सैयद अहमद खां के अलीगढ़ आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य "भारतीय मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़कर उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थित को सुदृढ़ करना था।

अहमदिया आंदोलन (Ahamdiya movement)

  • 1889 ई. में इस आंदोलन को पंजाब स्थित गुरुदासपुर जिले के कदिया नामक स्थान से उसको प्रारंभ किया था।
  • इस आंदोलन को इसके जन्म स्थान के आधार पर कदियानी आंदोलन भी कहा गया था।
  • ज्ञातव्य है कि मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म 1835 में पंजाब के गुरुदारु में हुआ था। इन्होंने अपने आप को ईश्वर का पैगम्बर बताया था।
  • अहमदिया आंदोलन का उद्देश्य मुस्लिम धर्म की कुरीतियों पर प्रहार करना था। इसने 'जेहाद' का विरोध किया था ।
  • मिर्जा गुलाम अहमद ने स्वयं को 'ईश्वर का पैगम्बर' बताया है जिसका उद्देश्य 'शुद्ध इस्लाम' की स्थापना करना है। इनके द्वारा 1890 में बहरीन - ए - अहमदिया नामक पुस्तक लिखी गई है।

देवबंद आंदोलन

  • यह इस्लाम के पुनर्जागरण आंदोलन था। इसका उद्देश्य कुरान एवं हदीस की शिक्षा को प्रचारित तथा प्रसारित करना था। तथा जेहाद की भावना को जीवित रखना था।
  • इस आंदोलन का प्रारंभ उलेमा 'मोहम्मद कासिम ननौत्वी' तथा 'राशिद अहमद गंगोही' के नेतृत्व में 1866 में हुआ था । इसकी स्थापना सहारनपुर के देवचंद नामक स्थान पर दारूल उलूम की स्थापना की गई थी।
  • 1885 में कांग्रेस की स्थापना का इस आंदोलन ने स्वागत किया था।
  • देवबंद स्कूल के समर्थकों में शिवली नूमानी (1875-1914) फारसी एवं अरबी के प्रतिष्ठित विद्वान थे।
  • शिवली नूमानी परम्परागत मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए औपचारिक शिक्षा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा तथा यूरोपीय भाषा को शिक्षा के माध्यम बनाने के समर्थक थे।
  • शिवाली महोदय के द्वारा लखनऊ में नवदत्तल उलमा तथा दारूल उलमा की स्थापना किया था।

सिक्ख सुधार आंदोलन (Sikh Reform Movement) 

  • सिक्ख धर्म समकालीन धर्मों में सबसे नवीन धर्म है। इसके प्रणेता गुरु नानक थे।
  • इस धर्म में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने हेतु प्रगतिशील विचार तथा तर्कबुद्धि के माध्यम से अनेक प्रयास किये गए थे।
  • इस क्षेत्र में प्रथम दयाल साहब ने किया जो निरंकारी आंदोलन के प्रणेता थे।
  • इसी क्रम में कूका आंदोलन भी चला था इसके प्रणेता भगत जवाहर मल थे। इसका प्रयास 1840 में किया गया था।
  • नामधारी आंदोलन (Namdhari movement) भी सिक्ख धर्म में व्याप्त बुराइयों के लिए ही प्रारंभ किया गया था।
  • नामधारी आंदोलन के प्रणेता बाबा राम सिंह (1816-85) एवं उनके शिष्य बालक सिंह थे। वह आंदोलन कूका आंदोलन का ही एक शाखा था।
  • नामधारी आंदोलन के समर्थक मूर्ति, वृक्ष तथा दारगाह की पूजा में विश्वास करते थे। 
  • 19वीं शताब्दी तक सिक्ख धर्म सुधार आंदोलन जारी रहा था । 

पारसी धर्म सुधार आंदोलन 

रहनुमाए माजदायासन सभा

  • इस सभा की स्थापना वर्ष 1851 ई. में बंबई में दादा भाई नौरोजी तथा उनके सहयोगियों के द्वारा किया गया था।
  • इस सभा का उद्देश्य पारसी समुदाय की स्थिति को सुदृढ़ करना था । तथा पारसी धर्म के प्राचीन पवित्रता एवं गौरव को स्थापित करना था ।
  • इस सभा के तत्वावधान में गुजराती भाषा में एक साप्ताहिक पत्र 'रास्त गोप्तार' (सत्यवादी) का प्रकाशन किया गया था !
  • इस संस्थान का प्रमुख उद्देश्य पारसी धर्म कर्मकांड तथा स्त्रियों की दशा आदि पर सुधार करना था ।
  • इस सभा के द्वारा पर्दा प्रथा खत्म करने का प्रयास भी किया गया था।

सामाजिक कुरतियाँ एवं उसमें सुधार

सती प्रथा

  • सती प्रथा भारत में प्राचीन काल से मौजूद था। इसका प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. में गुप्त शासक भानु गुप्त के ऐरण अभिलेख से प्राप्त होता है।
  • ऐरण अभिलेख में गुप्त शासक के मित्र गोपराज की मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी के उनके साथ सती के होने का साक्ष्य प्राप्त हुआ हैं।
  • ज्ञातव्य है कि सती प्रथा के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता अति दिव थी। इसके विरोध में निर्णय लेना बहुत कठिन था। लेकिन काश्मीर के शासक सिकंदर ने इस पर प्रतिबंध 15वीं शताब्दी में लगाया था।
  • कालांतर में मुगल शासक अकबर ने भी इस प्रथा पर प्रतिबंध का प्रयास किया था। किंतु पूर्णतः सफल नहीं हो सका था। इसी क्रम में पेशवाओं ने भी इस प्रथा पर प्रतिबंध का प्रयास किया था।
  • इसी क्रम में अल्फासो डी. अल्बुकर्क (1509-15) ने पुर्तगाली गवर्नर ने भी अपने प्रभाव क्षेत्र में सती प्रथा को बंद की थी।
  • इसी क्रम में कुछ इतिहासकारों के अनुसार फ्रांसीसियों ने भी चंद्रनगर में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाई थी।
  • आधुनिक भारत में इस प्रथा को बंद करने हेतु अनेकों गवर्नर जनरलों ने प्रयास किया था। किंतु इसको पूर्णतः बंद करने का श्रेय लॉर्ड विलियम बैंटिक को जाता है।
  • विलियम बैंटिक को प्रेरित करने का कार्य राजाराम मोहन राय ने किया था। उसके पीछे कारण था इनके बड़े भाई जगमोहन की मृत्यु पर भाभी अलकामंजरी को जबरदस्ती सती बना देना ।
  • अंततः 8 नवम्बर, 1829 में लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रस्ताव रखा था। 4 दिसम्बर, 1829 को अंग्रेजी सरकार ने नियम 17 के अन्तर्गत सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया था।
  • प्रारंभ में यह कानून बंगाल में लागू किया गया था। 1830 ई. में इसको मद्रास तथा बंबई में भी लागू कर दिया गया। कालांतर में यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो गई। 

शिशुबध (Infant murder)

  • यह प्रथा कितनी प्राचीन थी इसके साक्ष्य नहीं प्राप्त हुए हैं। किंतु इस सर्वाधिक प्रचलन मध्यकाल में हुआ। बंगाल के प्रतिष्ठित लोगों तथा राजपूत समाज में यह प्रथा अत्यंत तीव्र थी।
  • इसका उल्लेख पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पुत्र दिलीप सिंह ने भी किया है। इसको प्रतिबंधित करने का प्रथम प्रयास ब्रिटिश गवर्नर जनरल सर जॉन शोर ने 1795 में किया था।
  • सर जॉन शोर ने बंगाल नियम 21 और वेलेजली ने 1804 में नियम 3 के अन्तर्गत नवजात / शिशु हत्या को सामान्य हत्या के बराबर ही दंडित करने का प्रावधान किया था।
  • इसी क्रम में लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-35) ने राजपुत प्रभाव क्षेत्र में शिशु हत्या पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था।
  • लॉर्ड हार्डिंग (1844-45) ने सम्पूर्ण भारत में बालिका शिशु की हत्या पर प्रतिबंध लगाकर इसको अवैध घोषित कर दिया था।

नरबली प्रथा (Human Sacrifice System)

  • भारतीय समाज में तंत्र-मंत्र की पुरातन मान्यताओं के कारण नरबलि की प्रथा प्रचलित थी।
  • इस प्रथा का उद्देश्य जनजाति / आदिवासी समाज अपने आराध्य को खुश करने का था।
  • नरबली प्रथा को प्रतिबंधित करने का श्रेय लॉर्ड हार्डिंग को जाता है।
  • कैम्पबेल नामक अंग्रेज अधिकारी ने इस प्रथा पर तीव्रता के साथ प्रहार किया तथा 1844-45 में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।

दास प्रथा (Slavery system)

  • भारत में प्राचीन काल में ही दास प्रथा प्रचलित थी कौटिल्य (चाणक्य) के राजनीति पर आधारित पुस्तक अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का उल्लेख प्राप्त होता है।
  • दिल्ली सल्तनत काल में फिरोजशाह तुगलक ने दासों का विभाग 'दीवान-ए-बंदगान' ही खोल रखा था।
  • समकालीन भारत नहीं समूचे विश्व में दास प्रथा चरम पर थी। अमेरिका, नीग्रो, रोमन जैसे देशों में इसका प्रचलन भी था एवं कठोरता से इसका पालन भी किया जाता था।
  • इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक फिरोजशाह तुगलक ने लगाया था। मुगल सम्राट अकबर के द्वारा 1562 ई. में दास प्रथा पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था।
  • आधुनिक भारत में सर्वप्रथम इस पर प्रतिबंध का प्रयास लिस्टन स्टैन होप ने 1823 में इंग्लैंड में किया था। जबकि ड्यूक ऑफ ग्लोस्तर ने भारत में दास प्रथा बंद करने का अनुरोध किया था।
  • इसी क्रम में 1789 में लॉर्ड कार्नवालिस ने दास प्रथा पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था। लॉर्ड एलनबरो ने 1843 में एक्ट V लगाकर दास प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करा दिया था।

बाल विवाह (Child Marriage )

  • यह भी भारत की प्राचीन काल से चली आ रही परम्परा थी । इसको प्रतिबंधित करने का प्रयास भारतीय राजतंत्र ने नहीं किया था।
  • इस समस्या का प्रतिरोध सर्वप्रथम 1872 में नेटिव मैरिज एक्ट पास करके किया गया था। इस कानून में 14 वर्ष से कम आयु का बालिकाओं का विवाह अवैध घोषित कर दिया गया। 
  • अगला प्रयास पारसी धर्म सुधारक वी. एम. मालाबारी के प्रयत्नों से 1891 में 'सम्पति आयु अधिनियम' पारित हुआ था ।
  • डॉ. हरविलास शारदा के प्रयत्नों से 1929 में 'शारदा एक्ट' पारित हुआ था। इसमें 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों एवं 14 वर्ष से कम आयु के लड़कियों का विवाह वर्जित कर दिया गया था।
  • शारदा अधिनियम लागू किए जाने के समय में भारत के गवर्नर लॉर्ड इरविन थे ।
  • इसी क्रम में बाल विवाह निरोधक अधिनियम वर्ष 1978 में पेश किया गया था। इसमें बालक की आयु 21 एवं बालिका की न्यूनतम आयु 18 वर्ष कर दिया गया।

विधवा पुनर्विवाह (Widow Remarriage)

  • स्त्रियों की दशा सुधारने हेतु सर्वप्रथम प्रयास ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने किया था। इसकी शुरूआत ईश्वरचंद्र ने अपने पुत्र का विवाह विधवा स्त्री से करके किया था।
  • इसके अतिरिक्त धोंदो केशव कर्वे, तथा वीरेसलिंगम पुण्टुलू ने भी इसमें अपना योगदान दिया था।
  • ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने विधवा विवाह को मान्यता दिलाने के लिए पुराने संस्कृत लेखों व वैदिक उल्लेखों का तर्क दिया था। इनके द्वारा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 (लॉर्ड कैनिंग) के द्वारा विधवा विवाह को वैध मान लिया गया।
  • डी. के. कर्वे फर्ग्यूसन कॉलेज के प्रोफेसर थे, 1893 में स्वयं एक विधवा से शादी किया। तथा विधवाओं के उद्धार हेतु विधवा पुनर्विवाह संघ की स्थापना किया था ।
  • इनके द्वारा 1893 में विधवा विवाह मंडली तथा 1899 में विधवा आश्रम की स्थापना की थी।
  • डी. के. कर्वे को भारत सरकार ने 1955 में पद्म विभूषण प्रदान किया था। इसी क्रम में इनको 1958 में भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
  • 1856 में हिंदू विधवा पुनर्विवाह के पश्चात 1872 में ब्रह्म मैरेज एक्ट या नैटिव मैरेज एक्ट गवर्नर जनरल नार्थ ब्रुक के समय पारित हुआ था। इस एक्ट का उद्देश्य अर्न्तजातीय विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह लागू किया गया था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1822 ई. में राजा राम मोहन राय की एक पुस्तक 'हिंदू उत्तराधिकार नियम' का प्रकाशन हुआ था।
  • 1821 में राजा मोहन राय ने अपने विचारों के सामान्य जनमानस तक पहुँचाने के उद्देश्य से संवाद कौमुदी तथा 'प्रज्ञानंद' का प्रकाशन किया था।
  • 'संवाद कौमुदी' सभवत: भारतीयों द्वारा संपादित प्रकाशित तथा संचालित प्रथम भारतीय समाचार पत्र था।
  • राजा राम मोहन राय ने फारसी भाषा में मिरातुल अखबार का भी प्रकाशन किया था।
  • 1825 में राजा राम मोहन राव ने वेदांत कॉलेज की स्थापना कराई थी।
  • सुभाष चंद्र बोस ने राजा राम मोहन राय को युगदूत की उपाधि से सम्मानित किया था।
  • ब्रह्म समाज में प्रथम विभाजन से पूर्व आचार्य केशवचंद्र सेन ने संगत सभा की स्थापना आध्यात्मिक तथा सामाजिक समस्याओं पर विचार करने के लिए किया था।
  • 1861 में केशवचंद्र सेन ने इंडियन मिरर नामक अंग्रेजी का प्रथम दैनिक का संपादन किया था।
  • आचार्य केशवचंद्र सेन के प्रयत्नों से मद्रास में वेद समाज तथा महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज का स्थापना हुआ था।
  • पाश्चात्य शिक्षा के विरोधियों में स्वामी श्रद्धानंद, लेखाराम और मुंशीराम प्रमुख थे ।
  • पाश्चात्य शिक्षा के समर्थक लाला हंसराज तथा लाला लाजपत राय थे। इनलोगों ने ही दयाराम एंग्लो वैदिक (DAV) की स्थापना 1889 में की थी। 
  • फेबियन आंदोलन के समर्थक ऐनी बेसेंट थीं। 
  • कन्याकुमारी का रॉक मेमोरियल स्वामी विवेकानंद के लिए समर्पित है।
  • राजा राम मोहन राय का जन्म राधानगर वर्धमान जिला में हुआ था ।
  • ऐनी बेसेंट की विचारधारा को कालांतर में दैव विज्ञान के नाम से जाना गया था।
  • देव समाज की स्थापना 1887 में शिवनारायण अग्निहोत्री ने लाहौर में किया था ।
  • सेवा समिति की स्थापना 1914 में हृदयनाथ कुंजरू ने इलाहाबाद में किया था।
  • सेवा समिति ब्याज स्काउट एसोसिएशन के संस्थापक श्रीराम वाजपेयी थे।
  • भील सेवा मंडल की स्थापना ठक्कर बापा ने 1922 में किया था।
  • पूजा सेवा सदन की स्थापना जे. के. देवधर एवं रमाबाई ने किया था।
  • देवबंद शाखा के संस्थापक कासिम ननौंवी थे।
  • सिक्ख सुधार आंदोलन के प्रणेता दयाल दास थे।
  • हुक्मनामा की रचना भी दयाल दास ने किया था ।
  • मोहम्मद लिटरेरी सोसाइटी की अब्दुल लतीफ ने किया था।
  • मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक बहरीन ए अहमदिया में अहमदिया आंदोलन के सिद्धांतों की व्याख्या किया था।
  • 1843 के एक्ट संख्या V में गुलामी ( दासता ) को गैर-कानूनी बना दिया गया था।
  • कुरान पर टीका लिखने वाले सैयद अहमद खां ने तहजीब उल अखलाक नामक पत्रिका निकाली थी ।
  • सैयद अहमद खां के विश्वासपात्र तथा सलाहकार थियोडर बेक थे |
  • दक्षिण भारत में विधवाओं के पुनर्विवाह से वेरेशलिंगम पुंतल संबंधित था।
  • डॉ. हरविलास शारदा के प्रयत्नों से 1829 में शारदा अधिनियम पारित हुआ था।
  • शारदा अधिनियम के अंतर्गत लड़कियों की विवाह की आयु 14 वर्ष तथा लड़कों की 18 वर्ष कर दिया गया था।
  • सामाजिक सेवा संघ की स्थापना मल्हार जोशी (बंबई) ने किया था।
  • राधाकांत देव बंगाली नेता थे जो सामाजिक धार्मिक सुधारों का विरोध किया था।
  • उत्तरी तमिलनाडु के पल्ली जाति ने स्वयं को आदिम जाति माना था।
  • अरब्बीपुरम आंदोलन 1888 में नारायण गुरू के द्वारा प्रारंभ किया गया था।
  • जस्टिस आंदोलन वर्ष 1916 में प्रारंभ किया गया था।
  • पेरियार ने तमिल में सच्ची रामायण नाम से रामायण की रचना की थी।
  • नारायण सर्विस सोसाइटी के संस्थापक डॉ. आर. शिन्दे थे।
  • केरल में छुआछूत की परम्परा को समाप्त करने के लिए बायकोम सत्याग्रह चलाया गया था।
  • नायर सर्विस सोसाइटी के संस्थापक डी. आर. शिन्दे थे।
  • गाँधीजी ने हरिजन उद्धार के लिए 1933-34 में देश व्यापी दौरा किया था।
  • राधास्वामी सतसंग की स्थापना 1861 ई. में आगरा में शिवदयाल साहब ने किया था।
  • 'दि एज ऑफ कंसेंट एक्ट' 1891 में पारित किया गया था ।
  • हाली पद्धति बंधुआ मजदूरी से संबंधित था।
  • 1924 में तारकेश्वर आंदोलन बंगाल में मंदिरों के भ्रष्टाचार के संबंध में चलाया गया था।
  • राजा राम मोहन राय को मुगल सम्राट अकबर II ने 'राजा' की उपाधि दिया था।
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Wed, 17 Apr 2024 05:57:31 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 1857 का विद्रोह https://m.jaankarirakho.com/985 https://m.jaankarirakho.com/985 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 1857 का विद्रोह
1857 की क्रांति का इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इस आंदोलन ने भारत के ग्रामीण व शहरी जड़ों को झकझोर दिया। यह पहला सामुहिक प्रयास था जिससे अंग्रेज भयभित हुए । 1857 की क्रांति महज जनाक्रोश था या सुव्यवस्थित स्वतंत्रता का संघर्ष ? इस विषय पर भारतीय एवं विदेशी इतिहासकारों में मतभेद है। किंतु सभी इस विषय पर मतैक्य है कि इस क्रांति ने अंग्रेजों को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार के लिए मजबूर किया था। भविष्य में ब्रिटिश शासन ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भारत को टुकड़ों में बांट दिया। किंतु इसके विपरित भारतीय जनता एवं उसके नेतृत्वकर्त्ताओं ने भी समकालीन विशिष्ट नीतियों का प्रयोग कर भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त कर दिया था। इस प्रकार 1857 की क्रांति हो या जनाक्रोश अपने दीर्घकालीन प्रभाव प्रस्तुत करने में सफल रहा था।
  • क्रांति का शाब्दिक अर्थ है पुराना में परिवर्तन, 1757 के प्लासी विजय के 100 वर्षों के पश्चात् भारतीय जनता का प्रयास भी इसी को सिद्ध करता है।
  • 1857 के क्रांति के संबंध में विद्वानों का अपना-अपना विचार था तथा क्रांति के स्वरूप पर मतभेद था किंतु सभी इस विषय पर एक थे कि क्रांति ने नवीन परिवर्तन को जागृत किया था।

1857 के विद्रोह के प्रमुख तत्व

  • विद्रोह के प्रतीक- रोटी और कमल
  • प्रतीक का निर्धारण- प्रतीक का निर्धारण गुरुदास बाबा के द्वारा किया गया था।
  • गुरुदास बाबा नाना साहब के शिक्षक (गुरू) थे।
देश के बाहर साजिशकर्त्ता:-
  • देश के बाहर इस योजना का निर्माण लंदन में हुआ था।
  • लंदन में क्रांति की योजना में अजीमुल्ला शामिल थे। ये नाना साहब पेशवा के सलाहकार थे।
  • अजीमुल्ला को क्रिमीया के युद्ध का अनुभव प्राप्त था।
विद्रोह के समय प्रमुख व्यक्तित्व
  • विद्रोह के समय भारत के बादशाह ' बहादुरशाह जफर' थे।
  • विद्रोह के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामस्टन थे।
  • अंग्रेजों का सेनापति- जार्ज ऐनिसन
  • विद्रोह प्रारंभ होते ही जार्ज ऐनिसन की मृत्यु कालरा से गई ।
  • इस क्रम में जार्ज ऐनिसन का स्थान पैट्रिक ग्रांट ने लिया था। ये लेफ्टिनेंट जनरल थे।
  • अगस्त 1857 को लंदन से कॉलिन कॅम्पबल नए सेनापति के रूप में नियुक्त होकर आए थे।
  • विद्रोहियों के घोषित सेनापति नाना साहब थे। नाना साहब का मूल नाम धोधूपंत था। ये पेशवा बाजीराव के गोद लिया हुआ पुत्र था।
  • विद्रोह में कुल 28 भारतीय रियासतों ने हिस्सा लिया था ।
  • इसमें 21 रियासतों ने अंग्रेजों का समर्थन किया था जबकि 7 रियासतें भारतीय सैनिकों के साथ थी।
  • एक विदेशी राष्ट्र नेपाल ने भी इस क्रांति में अंग्रेजों का साथ दिया था। नेपाल के तरफ से युद्ध करनेवाले सेनापति जंगबहादुर थापा थें।
विद्रोह में विस्मृत की गई विरांगनाएँ
  • अफ्रीकी महिला दस्ता- यह महिला दस्ता वेगम हजरत महल का बॉडिगार्ड था। इन सभी को मार दिया गया था। 
  • झलकारी बाई - दलित महिला
  • महावीरी देवी- झांसी युद्ध की विरांगना
  • अजीजन वाई- कानपुर की तत्रायत
  • शोभना देवी- मुजफ्फरनगर
  • धार की रानी दौपती
  • रायगढ़ की रानी अवंती बाई

सामाजिक कारण

  • अंग्रेजों ने भारत विजय के साथ ही भारतीय जनता के साथ अवांक्षित व्यवहार प्रारंभ कर दिया। इसमें सबसे प्रमुख था नसलीय भेदभाव ।
  • भारत की समाज समकालीन विश्व में सबसे पुरातन एवं जीवित सभ्यता का साक्षी था। इसके कुछ अच्छाई तथा बुराइयाँ दोनों थी। जिसमें अंग्रेजों ने हस्तक्षेप प्रारंभ कर दिया था।
  • भारतीय परम्परा में प्राचीन व्यवस्थाएँ एवं प्रथाओं ने जड़ बना लिया था। अंग्रेजों द्वारा इसमें परिवर्तन का प्रयास भी क्रांति का अप्रत्यक्ष कारण बना था।
  • भारतीयों के साथ अंग्रेजों का व्यवहार एवं विचार अपमान जनक था "Black and Dog's are not allowed" के बोर्ड के साथ भारतीय लोगों में दोयम दर्जे का व्यवहार होता था ।
  • सती प्रथा - विलियम बैटिक ने 1829 में इस पर प्रहार किया था।
  • नरबली प्रथा का दमन ( हार्डिंग के समय 1844 में किया था )
  • कन्या वध सर जॉन सोर 1795 में
  • दास प्रथा ( एलन बरो, - 1843 )
  • बाल विवाह अधिनियम, विधवा पुर्नविवाह अधिनियम (1856)
  • भारत की सामाजिक जड़ता का प्रमुख कारण जाति प्रथा थी । अंग्रेजों ने अंतरजातीय विवाह को प्रेरित किया उस पर भी भारतीय सवर्णों ने इसका विरोध किया था।
  • उपरोक्त सभी कारण अंशत: या पूर्णतः 1857 की क्रांति को प्रेरित किया था।

धार्मिक कारण

  • अंग्रेजों के प्रशासन में योग्यता के आधार पर धर्म को प्रोन्नति का आधार बनाया गया।
  • अप्रैल 1850 के लेक्सलोकी कानून ने भारतीय जनमानस में धार्मिक मत भिन्नता और अस्थिरता पैदा किया था।
  • अंग्रेजों के द्वारा जेलों में बंद कैदियों के रसोइयों को बदल दिया गया तथा प्रतिदिन इसाई धर्माधिकारी अपने धर्म का उपदेश दिया करता था। कैदियों में धर्म परिवर्तन का डर एवं दबाव भी आक्रोश पैदा किया।
  • भारतीय ग्रामीण एवं शहरी दोनों जनमानस में धर्म परिवर्तन का डर बैठा था। इस डर ने अंग्रेजों के खिलाफ जनाक्रोश पैदा किया था।
  • वर्ष 1813 में चार्टर में इसाई मिशनरियों को धर्म प्रचार की अनुमति प्राप्त हो गई थी।
  • 1850 के धार्मिक नियोग्यता अधिनियम (Religion Disability) के द्वारा इसाई धर्म ग्रहण करने वाले लोगों को अपनी पैतृक संपत्ति का अधिकारी माना गया था। साथ ही नौकरियों में प्रोन्नति तथा शिक्षण संस्थानों में प्रवेश की सुविधा प्रदान की गई थी।

राजनीतिक कारण

  • अंग्रेजों ने भारतीय व्यापार में एकाधिकार के उद्देश्य से परिवर्तन किया जिसका पत्यक्ष प्रभाव भारतीय जनमानस पर पड़ा था।
  • वेलेजली का सहायक संधि- वेलेजली ने भारतीय राजवंशों एवं नवाबों को अंग्रेजी प्रशासन के अधीन किया था। इस कानून ने अंग्रेजी साम्राज्य विस्तार में प्रभावशाली भूमिका निभाई। साथ ही भारतीय जनभावना को भी आक्रोशित किया था।
  • अवध विलय नीति- अंग्रेजों ने कुशासन का आरोप लगाकर अवध प्रांत को अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया था । अवध के नवाब का राज्य क्षेत्र बड़ा था एवं जनता का नवाब के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी तीव्र था। यही कारण था 1857 की क्रांति में नेतृत्व एवं बड़े भू-भाग का सहयोग भी सैनिकों को प्राप्त हुआ था।
  • हड़प नीति- लार्ड डलहौजी ने अंग्रेजी भारतीय रियासतों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया था। इस नीति का प्रभाव अंग्रेजी शासन एवं प्रशासन पर भी पड़ा। इसके प्रतिउत्तर में रियासतों के रजवाड़ों एवं नवाब अंग्रेजों के खिलाफ जनआक्रोश पैदा करने में सफल रहे थे।

दत्तक प्रथा की समाप्ति

  • मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने अपने ज्येष्ठ पुत्र मिर्जा जवां बख्श को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। लार्ड डलहौजी ने इसको बादशाह मानने से इन्कार कर दिया एवं बहादुरशाह जफर को लाल किला छोड़ने का आदेश दिया था तथा उनके छोटे पुत्र को उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
  • इसी क्रम में ब्रिटिश गर्वनर जनरल ऑकलैंड ने बादशाह को अपने दावे एवं अधिकार छोड़ने का आदेश दिया था ।
  • इसके पूर्व लॉर्ड डलहौजी ने 1854 में जमींदारों तथा जागीरों के जांच के लिए इनाम कमिशन का गठन किया था। इस कमिशन ने 35,000 जागीरों की जांच किया। जिसमें 20,000 जागीर जब्त कर लिए गए थे।

आर्थिक कारण

  • भारतीय आर्थिक शोषण नीति भारत को प्रत्यक्षतः प्रभावित किया था। इसमें स्थायी बंदोबस्ती (1793) रैयतबाड़ी व्यवस्था (1820 ) तथा महालवाड़ी व्यवस्था ( 1822 ) लागू किया गया था ।
  • शोषणवादी भूराजस्व व्यवस्थाओं ने भारतीय जनमानस को आंतरिक स्तर पर अंग्रेजों का विरोधी बना दिया ।

सैन्य कारण

संचित कारण:-
  • 1764 के बक्सर युद्ध के समय हेक्टर मुनरों ने नेतृत्व में लड़ रही भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किया था तथा ये भारतीय दल से जा मिले थे।
  • 1806 के वेल्लोर मठ के सैनिकों ने विद्रोह किया था।
  • 1824 के वर्मा युद्ध में भेजी गई सैन्य टुकड़ी में भी विद्रोह किया था।
  • 1825 के असम तोपखाना का विद्रोह हुआ था।
  • 1844 ई. में 34वीं एन. आई तथा 64वीं रेजिमेंट के सैनिकों ने विद्रोह किया था।
  • 1856 के सैन्य भर्ती अधिनियम- इसके अंतर्गत अंग्रेजी सेना में भर्ती होने वाले सैनिकों की नियुक्ति देश-विदेश कहीं भी की जा सकती थी। इससे भी भारतीय सैनिक आक्रोशित थे। 
तात्कालिक कारण:-
  • चर्बी लगे कारतूस की घटना पर विवाद हुआ।
  • अंग्रेजी सैन्य व्यवस्था में ब्राउनस बंदूक के स्थान पर इनफिल्ड राइफल (P-53) को रखा गया।
  • इनफिल्ड (P-53) की गोली बुलिज आर्सेनल मद्रास में बनती थी |
  • बुलिज आर्सेनल नामक गोली के टीप ( मुहाने पर गाय एवं सुअर की चर्बी लगती थी। जो विवाद का प्रमुख कारण था।
  • इस चर्बी की घटना की जांच के लिए स्मिथ आयोग की स्थापना किया गया था । तथा इस आयोग ने इस घटना का सत्य माना था।
  • 23 जनवरी 1857 को कलकत्ता के दमदम में 19 NI (देसी पैदल सैनिक) ने बगावत किया तथा इस दल को भंग कर दिया गया था।

विद्रोह का प्रारंभ एवं विस्तार

  • 23 जनवरी 1857 को दमदम में सैनिकों ने नए कारतूसों के प्रयोग से इनकार कर दिया था।
  • 26 फरवरी 1857 को बहरामपुर जो कलकत्ता से 120 मील दूर स्थित था। 19वीं N. I. ने कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया और विद्रोह कर दिया था।
  • 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी ( मुर्शिदाबाद के नजदीक) 34वीं एन.आई. (N.I.) रेजीमेंट के सैनिक मंगल पाण्डेय ने चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग का विरोध किया।
  • इसी क्रम में मंगल पाण्डे ने अपने सहयोगियों से चर्बीयुक्त कारतूस का विरोध करने का आह्वान किया था।
  • मंगल पाण्डे ने विद्रोह के क्रम में सारजेन्ट ह्यूरसन एवं लेफ्टिनेंट बाग को गोली मार दिया था।
  • 34वीं रेजीमेंट को भंग कर दिया गया। मंगल पाण्डेय गाजीपुर (बलिया) के निवासी थे।
  • चर्बीयुक्त कारतूस की खबर शीघ्र ही मेरठ पहुँचा। 24 अप्रैल 1857 को मेरठ में देसी घूड़सवार सेना के 85 सैनिकों ने चर्बीयुक्त कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया।
  • 18 मई, 1857 को मेरठ छावनी के सैनिकों ने खुला विद्रोह कर दिया।
  • इसी क्रम में विद्रोहियों ने दिल्ली पर हमला कर दिया। मेरठ में तैनात अंग्रेज अधिकारी जनरल हेविट जिनके पास सैनिक पर्याप्त सैनिक थे किंतु उसने विद्रोही सैनिकों से युद्ध नहीं किया।

दिल्ली में विद्रोह

  • 11 मई को बगावती सैनिक दिल्ली पहुंच गए।
  • 12 मई शस्त्रागार प्रमुख लेफ्टिनेंट विलोबी को पराजित किया तथा दिल्ली पर कब्जा कर लिया तथा मुगल सम्राट सम्राट बहादुरशाह जफर को पुनः भारत का शासक घोषित कर दिया।
  • 12 मई चांदनी चौक, दिल्ली, बहादुरशाह जफर ने बगावती विद्रोही सैनिकों को संबोधित किया। “मेरे पास खजाना नहीं की मैं तुम्हें वेतन दे सकूं। मेरे पास फौज भी नहीं की मैं तुम्हारा सहायोग कर सकूं। मेरे पास सल्तनत भी नहीं की मैं तुमलोगों की सहायता कर सकूं। क्योंकि इन विधर्मी अंग्रेजों ने हमसे सब छीन लिया अब तुम लोग इनसे सब छीन लो" 
  • 12 मई : दिल्ली में सैन्य परिषद् (Militory Council) का निर्माण किया गया। उसके प्रमुख बरेली के नवाब बख्त खां को बनाया गया।
  • इसी क्रम में बख्त खां ने बरेली में तथा अहमदुल्ला ने लखनऊ में जेहाद का नारा दिया था।
  • 13 मई को विद्रोह की लहर पंजाब पहुँच गया। जहाँ केवल फिरोजपुर में विरोध हुआ ।
  • 21 सितम्बर 1857 को जीनत महल की सूचना पर मुगल बादशाह बहादुरशाह ।। को हुमायूँ के मकबरे से गिरफ्तार किया गया था।

बादशाह के साथ गिरफ्तार होने वाले लोग

  • बहादुरशाह जफर - II के दोनों पुत्र एवं पोता, तीनो को अंग्रेजों ने गोलीमार दिया था। 
  • बहादुरशाह द्वितीय पर मुदकमा दिल्ली के लाल किले के दीवाने खास में चलाया गया था। 
  • बहादुरशाह द्वितीय के वकील गुलाम अब्बास थे ।
  • हसी मुकदमें में सरकारी गवाह अहसान उल्ला बने थे।
  • 7 अक्टूबर, 1857 को बहादुरशाह द्वितीय को देश निकालने की सजा दी गई थी तथा इनको रंगून भेज दिया गया।
  • 9th लेंसर रेजिमेंट ( थल सेना ) के लेफ्टिनेंट ओमनी के नेतृत्व में बैलगाड़ी से रंगून (म्यांमार) भेजा गया था।
  • दिल्ली विद्रोह में मुगल सेनापति- जनरल बख्त खां तथा खान बहादुर खान थे।
  • लार्ड कैनिंग ने दिल्ली विद्रोह को दबाने के लिए पंजाब से सेना बुलाई थी।
  • 14 सितम्बर 1857 को सर हेनरी बनार्ड तथा ब्रिगेडियर विल्सन की संयुक्त सेना ने दिल्ली में विद्रोहियों से युद्ध किया था।
  • छ: महीने के संघर्ष के पश्चात् 20 सितम्बर 1857 को दिल्ली पर अंग्रेजों ने पुनः कब्जा कर लिया था ।
  • मुगल बादशाह ने साथ उनकी पत्नी बेगम जीनत महल भी म्यांमार गई थी।
  • बहादुशाह जफर की मृत्यु 1862 को लकवे के तीसरा दौरा परने के कारण 7 नवम्बर सुबह 5 बजे हो गया था ।
  • बहादुरशाह जफर का मकबरा यांगून (म्यांमार) में स्थित है।
  • बहादुरशाह जफर के मकबरे को 'शेमी आरा' बहादुरशाह जफर की पोती ने डिजाइन किया था ।
  • इस मकबरे को लाल किला कहा जाता है।
  • कानपुर (5 जून 1857 ) 
    • नाना साहेब 'धोधू पंत'
    • ये पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे ।
    • इनका भी विद्रोह का मुख्य कारण व्यक्तिगत ही था। इनका विद्रोह अपनी पेंशन को लेकर था।
    • नाना साहब ने अपने प्रधानमंत्री अजीमुल्ला को कोर्ट का डायरेक्टर के पास पेंशन बहाली के उद्देश्य से भेजा था।
    • कानपुर में सती चौरा घाट - इस युद्ध में अंग्रेजों का नरसंहार किया गया था। भारत के विद्रोही सैनिकों के द्वारा ।
    • झाँसी - 5 जून 1857 
      नेतृत्वकर्त्ता - झाँसी की लक्ष्मीबाई
      मूल नाम - मणिर्कणिका
      पुकारा नाम- 'मनु'
    • काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारी की बेटी
    • लक्ष्मीबाई की शादी झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ था।
    • लक्ष्मीबाई को स्वयं का पुत्र नहीं था। इनके द्वारा एक दत्तक पुत्र गोद लिया गया था जिसका नाम दामोदर राव था ।
    • अंग्रेजों के द्वारा दत्तक को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर था। यही कारण था रानी ने अंग्रेजों का विरोध किया था।
    • बगावत का प्रारंभ झाँसी के हुआ था।
    • इसमें सेनापति गुरू बख्त थे। जिन्होंने अंग्रेज सैन्य अधिकारी टर्नबुल मारा गया था।
    • इसी क्रम में काल्पी के युद्ध में अंग्रेज अधिकारी हयूरोज ने रानी को पराजित किया था।
    • रानी लक्ष्मीबाई को पराजित के लिए हयूरोज एवं स्मीथ की संयुक्त सेना ने युद्ध किया था। 
  • इलाहाबाद 6 जून 1857 यहाँ का नेतृत्व लियाकत अली ने किया था। उनको पराजित कर अंग्रेजों ने सुलेम सराय में तोप से उड़ा दिया था।
    • महाराष्ट्र - यहाँ पर विद्रोह का प्रारंभ रंगो बापूजी गुते ने किया था जो 1840 में सतारा के राजा के वकिल थे।
    • अरनागीरी और कृष्णा ने मद्रास में विद्रोह का नेतृत्व किया था।
    • राजस्थान के कोटा में जयदयाल और हरदयाल ने विद्रोह का नेतृत्व किया था।
    • राधाकृष्ण दण्डसेना ने उड़िसा ( गंआम) में विद्रोह का नेतृत्व किया था।
    • जनरल विदहम को विद्रोही सैनिकों ने कानपुर के निकट पराजित किया था।

बिहार में 1857

  • बिहार में 1857 के क्रांति का प्रारंभ 12 जून, 1857 को देवघर जिला के रोहिनी गांव में प्रारंभ हुआ था । 
  • इस विद्रोह के प्रथम प्रयास को अंग्रेजों के द्वारा सफलतापूर्वक कुचल दिया गया। इनमें अंग्रेज अधिकारी मेजर नार्मन तथा सैनिक मारे गए। तीन भारतीय सैनिकों अमानत अली. सलामत अली व शेख हारों को 16 जून 1857 को आम के पेड़ में लटकाकर फांसी दे दिया गया।
  • 3 जुलाई को बिहार को पटना में संघर्ष प्रारंभ हो गया। इस संघर्ष का नेतृत्व गुरहट्टा मुहल्ला के पुस्तक विक्रेता पोर अली ने किया था।
  • इसी क्रम में बिहार का अफिम व्यापार के एजेंट लायल ने विद्रोह के दमन का प्रयास किया किंतु अपने सैनिकों सहित विद्रोहियों द्वारा मार दिया गया था।
  • इस प्रकार पटना के कमिश्नर टेलर ने विद्रोह को दबाने के उद्देश्य से अनेकों प्रयास किए थे।
  • 19 जून को टेलर ने पटना के तीन प्रतिष्ठित मुसलमानों- मुहम्मद हुसैन, अहमदुल्ला एवं वायजुल को बंदी बना लिया था।
  • शहर के विद्रोहियों ने इस घटना के आक्रोश में उपद्रव किया तथा अंग्रेजों ने लगभग 16 अन्य व्यक्तियों को मृत्युदंड दिया था।
  • खाजेकलॉ थाना के दारोगा को विद्रोह के पूर्व सूचना न देने के कारण स्थानांतरित कर दिया गया था। इसी क्रम में पीर अली को फांसी की सजा दी गई थी।
  • तत्कालीन पटना के कमिश्नर टेलर ने अपनी पुस्तक Our Crisis में पटना के विद्रोहियों एवं पीर अली के साहस की तारीफ किया है।
  • 25 जुलाई 1857 को मुजफ्फपुर में भी कुछ अंग्रेज अधिकारियों की कुछ असंतुष्ट विद्रोही सैनिकों ने हत्या कर दिया था।
  • इसी क्रम में सैनिकों का एक दल जगदीशपुर के जमींदार बाबू कुंअर सिंह से मिला तथा बिहार में बड़े स्तर पर क्रांति प्रारंभ हो गई।
  • कमिश्नर टेलर की कुदृष्टि बाबू कुंवर सिंह पर हमेशा से थी। इसका परिणाम हुआ कुंवर सिंह ने 4000 सैनिकों के सहयोग से विद्रोह कर दिया।
  • इसी क्रम में दानापुर के विद्रोही भागकर जगदीशपुर के जमींदार बाबू कुंवर सिंह के पास पहुँचे। इनके द्वारा सर्वप्रथम अपना जिला शाहबाद को अंग्रेजों से मुक्त कराया गया।
  • कुंवर सिंह ने जगदीशपुर में बंदूक तथा गोला-बारूद बनाने का कारखाना स्थापित किया एवं आरा नगर पर अधिकार कर लिया ।
  • अंग्रेज अधिकारियों ने दो सफल प्रयासों के पश्चात् आरा नगर पर कब्जा पुनः प्राप्त कर लिया। इसी क्रम में कुंवर सिंह की हवेली एवं मंदिर ध्वस्त कर दिया गया तथा सभी विद्रोहियों की संपत्ति भी जब्त कर ली गई थी।
  • इस क्रम में कुंवर सिंह गुरिल्ला बुद्ध पद्धति के अंतर्गत कैमूर की पहाड़ियों से विद्रोह जारी रखे थे तथा मिर्जापुर के निकट विजयगढ़ पर पड़ाव डाला था एवं रिंवा, बांदा होते हुए काल्पी पहुंच गए थे।
  • कुंवर सिंह जगदीशपुर से आगे बढ़ते हुए आजमगढ़ के जिला (उ.प्र.) के अतरौलिया पहुँचे जहाँ उन्होंने अंग्रेज अधिकारी मिलमैंन की सेना को पराजित किया था।
  • कुंवर सिंह ने विद्रोह को बिहार से बाहर मिर्जापुर, रीवा, बांदा तथा लखनऊ तक विस्तारित किया था।
  • कुंवर सिंह को पराजित करने हेतु अंग्रेजों ने पुनः मिलमैंन तथा डोम्स की संयुक्त सेना भेजी थी। किंतु कुंवर सिंह ने इसको भी पराजित कर दिया था।
  • इसी क्रम में लार्ड कैनिंग द्वारा भेजी गई सेना जिसके अधिकारी मार्क थे। इस सेना को भी कुंवर सिंह ने पराजित कर किया था।
  • अवध पहुँचकर कुंवर सिंह ने नवाब का मदद लिया तथा नवाब ने 1857 की क्रांति में कुंवर सिंह के साथ मिलकर कानुपर में अंग्रेजों के विरूद्ध बुद्ध भी लड़ा था।
  • कुंवर सिंह से आजमगढ़ में पराजय के पश्चात् लार्ड कैनिंग ने कुंवर सिंह के विरूद्ध कटार सैनिक कार्यवाही का आदेश दिया था।
  • 23 अप्रैल, 1858 को कैप्टन ली ग्रॉंड के नेतृत्व में युद्ध हुआ जिसमें ब्रिटिश सेना पराजित हुई। इस युद्ध में कुंवर सिंह नायल हुए थे तथा 26 अप्रैल 1858 को इनकी मृत्यु हो गया ।
  • कुंवर सिंह के मृत्यु के पश्चात इनके भाई अमर सिंह ने विद्रोह के नेतृत्व को संभाला किंतु कुछ ही दिनों में इनको जगदीशपुर से भागना पड़ा।
  • दो अंग्रेज अधिकारी विलियम टेलर तथा विसेंट आवर ने बिहार के विद्रोह को पूर्णतः दबा दिया।

क्रांति का परिणाम

  • 1857 के क्रांति में भारत में दूरगामी परिणाम हुए थे। जिसमें सबसे प्रमुख था भारत से मुगल साम्राज्य की समाप्ति। 
  • लॉर्ड कैनिंग ने 1 नवम्बर 1858 को इलाहाबाद के मिंटो पार्क में महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र पढ़ा था।
  • 1858 एक्ट में भारतीय शासन का बागडोर कंपनी के पास से हटाकर क्राउन (महारानी) के पास कर दिया गया।
  • भारत में गर्वनर जनरल को वायसराय बना दिया गया। जो अब भारत में महारानी का प्रतिनिधि था एवं इसकी जवाबदेही ब्रिटिश संसद के प्रति था ।
  • भारत में विलय नीति, राज्य हड़प नीति तथा देशी राज्यों में हस्तक्षेप की नीति को त्याग दिया गया।
  • भारतीय रजवाड़ों को यथास्थिति बनाए रखने को आदेश दिया गया था !
  • घोषणा पत्र में यह स्पष्ट कर गया था कि सरकार अब भारत के धार्मिक एवं सामाजिक मामलों में अहस्तक्षेप की नीति का पालन करेगी।
  • भारतीय सैनिकों एवं यूरोपीय सैनिकों के संख्या का अनुपात विद्रोह से पूर्व 5:1 था । इब इसको घटाकर 2:1 कर दिया गया।
  • भारतीय सैनिकों की संख्या जो विद्रोह से पूर्व 2 लाख 38 हजार थी इसको घटाकर 1 लाख 40 हजार कर दिया गया।
  • भारत की देखभाल के लिए नए भारतीय राज्य सचिव (Secretary State of India) की नियुक्ति की गई तथा इसकी सहायता हेतु 15 सदस्यों की मंत्री परिषद् बनाई गई थी। जिसमें 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा तथा 7 को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के द्वारा की जाती थी।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • मंगल पाण्डे बलिया (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे।
  • 1857 क्रांति के समय मुगल सेना के प्रमुख बख्त खां तथा बहादुर खान थे।
  • दिल्ली में क्रांति को दबाने के लिए कश्मीर, पटियाला, नाभा तथा जींद के राजाओं की मदद ली गई थी।
  • बंबई के गर्वनर एलफिंस्टन ने दिल्ली पर क्रांतिकारियों के हमले को नादिरशाह के आक्रमण से भी भयंकर बताया था।
  • "सती चौरा" कांड कानपुर से संबंधित है, इस घटना में अंग्रेज नागरिकों की हत्या भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा किया गया था।
  • क्रांतिकालीन भारत के अंग्रेज सचिव अर्ल स्टेनले ने ब्रिटिश पार्लियामेंट को 1857 की घटनाओं पर रिपोर्ट देते हुए उसे सिपाही विद्रोह का नाम दिया था।
  • तात्कालीन प्रसिद्ध उर्दू शायर मिर्जा गालिब का जन्म 1796 में आगरा में हुआ था तथा इनकी मृत्यु 1869 में दिल्ली में हुआ था।
  • इसी क्रम में 1857 के विद्रोह को व्यापारी शिक्षित वर्ग (मध्य, उच्च शिक्षा प्राप्त) तथा शासकों (जमींदारों) का साथ नहीं मिला था।
  • इस क्रांति (1857) में ग्वालियर का सिधियां राज घराना एवं हैदराबाद के निजाम ने अंग्रेजों की सर्वाधिक सहायता की थी।
  • 1857 की क्रांति में बिहार का मुंगेर क्षेत्र तथा राजस्थान का चित्तौड़ क्रांति के प्रभाव क्षेत्र से अछूते रहे थे ।
  • 1857 की क्रांति के समय बैरकपुर (मुर्शीदाबाद एवं बंगाल) ब्रिटिश कमांडिंग ऑफिसर सर जान बेनेट हैरेस थे। 
  • 1857 की क्रांति काल में तत्कालीन अंग्रेज गर्वनर ने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था।
  • 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय के कोर्ट मार्शल की अध्यक्षता 34वीं रेजिमेंट के सूबेदार मेजर जवाहर लाल तिवारी' ने की थी।
  • 1857 के क्रांति का दंडित अंतिम जीवित भुसाई सिंह (मिर्जापुर उत्तर प्रदेश) थे जिनकों 1907 में मुक्त कर दिया गया था।
  • 1857 की क्रांति के उपरांत भारतीय सेना में परिवर्तन के उद्देश्य से 'पील कमीशन' (आयोग) का गठन किया गया था।
  • 1858 के अधिनियम को भारतीय जनता का 'मैग्नाकार्टा' (महान अधिकार पत्र ) कहा जाता है।
  • वर्ष 1854 में अंग्रेजों द्वारा गठित इनाम कमीशन का उद्देश्यों जागीरों की जांच करना था।
  • अंग्रेज अधिकारी 'मेजर एडवर्ड ' ने कहा था 'भारत में हमारे अधिकार का अंतिम उद्देश्य देश को इसाई बनाना है । "
  • लार्ड कैनिंग के द्वारा मुगल शासक को उपाधि से बचित कर दिया गया था।
  • मुगल शासक अकबर || से बराबरी के स्तर पर मिलनेवाला अंग्रेज अधिकारी लार्ड एम्हर्स्ट (1823) था।
  • वर्ष 1803 में मुगल सम्राट ब्रिटिश संरक्षण में आए थे।
  • अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को बेगम जीनत महल के साथ रैंगून निर्वासित कर दिया गया था।
  • 1857 की क्रांति में कानपुर की प्रसिद्ध नर्तकी, अजीजन बाई ने अंग्रेजों का सामना किया था।
  • 1857 की क्रांति काल में बहादुरशाह जफर का सर्वाधिक परामर्शदाता हकीम अहसान उल्ला खान थे।
  • विद्रोह काल में मौलवी अहमदुल्ला पर अंग्रेजों ने 50,000 रुपये का इनाम घोषित किया था।
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Wed, 17 Apr 2024 05:09:01 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में ब्रिटिश शासकों की आर्थिक नीति एवं उसका प्रभाव https://m.jaankarirakho.com/984 https://m.jaankarirakho.com/984 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में ब्रिटिश शासकों की आर्थिक नीति एवं उसका प्रभाव
भारत में ब्रिटिश राज्य के स्थापना का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक शोषण था। ब्रिटेन ने अपनी व्यापारिक एवं आर्थिक लाभ के उद्देश्य से नीति में परिवर्तन किया। सभी समकालीन नीतियों दो तरफा थी। भारतीय संसाधनों का दोहन तथा सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से ब्रिटेन को सर्वाधिक लाभ प्राप्ति करना था।
  • अंग्रेजों के भारत आगमन से पूर्व भारत का व्यापार एवं अर्थव्यवस्था दोनों वैश्विक स्तर पर समृद्धशाली था ।
  • भारत की सकल घरेलू उत्पाद (अनुमानतः) समूचे विश्व में सर्वोपरी था। भारत का दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया तथा अनाज तथा कपड़ा का व्यापार होता था ।
  • सम्पूर्ण विश्व में समस्त उपभोक्ता वस्तुओं की मांग की पूर्ति में भारत सक्षम था। जबकि भारत को बहुत थोड़े वस्तुओं की आयात की आवश्यकता पड़ती थी ।
  • वैश्विक स्तर के व्यापारी भारत में सोने-चाँदी लेकर आते थे तथा भारत से वस्तुओं की खरीद करते थे ।
  • इतिहासकारों के अनुसार 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत के पास विश्व अर्थव्यवस्था का 23% हिस्सेदारी था। जबकि औपनिवेशिक शासन के पश्चात् उसमें निरंतर कमी आती गई।
  • भारत में वैश्विक व्यापारियों के द्वारा सोने-चाँदी से खरीद की जाती थी । अर्थात् भारत में वैश्विक सोने-चाँदी आगमन के मार्ग तो थे यही कारण था भारत लिए 'सोने का चिड़ियाँ' शब्द बन गया।
  • तत्कालीन इतिहासकारों के अनुसार भारत निर्मित 90 प्रकार का कपड़ा यूरोप के बाजार में बिकता था एवं भारतीय वस्तुओं की मांग सर्वोच्च थीं।
  • इतिहासकारों के अनुसार भारतीय कारीगरों द्वारा निर्मित मलमल की साड़ी उतनी महीन थी कि इसको एक अंगूठी के अंदर से भी पूरे धान को बाहर निकाला जा सकता था ।

औपनिवेशिक आगमन

  • साम्राज्यवाद - साम्राज्यवार अंग्रेजी भाषा के 'इम्पेरियलिज्म' शब्द से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है दूसरे देश के भू-क्षेत्र पर उपनिवेश बनाना |
  • उपनिवेशवाद- उसका अर्थ सामान्यतः साम्राज्यवाद के आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति की प्रक्रिया में सहयोगी होना होता है।
  • एक विद्वान के अनुसार- उपनिवेशवाद की प्रक्रिया एक अजगर की भांति कार्य करती है। इसमें विजीत राष्ट्र के राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक आवरण को तोड़कर नवीन व्यवस्था स्थापित किया जाता है। ठीक वैसे जिस प्रकार अजगर अपने शिकार ग्रहण से पूर्व सभी हड्डीयों को तोड़कर लचीला बना देता है।
  • सामान्यतः साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु है। जिनका उद्देश्य राजनीतिक एवं आर्थिक वर्चस्व को स्थापित करता है। किंतु कुछ बिंदुओं पर उनमें असमानता भी स्थापित है। जो निम्न है-

  • ब्रिटेन के द्वारा भारत के आर्थिक शोषण को रेखांकित सर्वप्रथम भारतीय अर्थशास्त्री दादा भाई नैरोजी ने किया था। 
  • दादाभाई नैरोजी ने Poverty and Unbritish rule of India नामक पुस्तक में भारत से हो रहे धन निकासी का सिद्धांत पेश किया था।
  • भारतीय धन निकासी सिद्धांत को ही कार्ल मार्क्स (Karl Marx ) ने "Bleeding Process" की संज्ञा दी थी।
  • इसी क्रम में भारतीय आई. सी. एस. अधिकारी (I.C.S. Officer) ने आर. सी. दत्त (R. C. Dutt) ने Economical History of India नामक पुस्तक लिखी थी।
  • इस पुस्तक में भारतीय राजतंत्र तथा औपनिवेशिक शासन के कर वसूली (Tax Collection) के बीच तुलना किया गया थां

ब्रिटेन का व्यापारिक एकाधिकार

  • प्रारंभ में ब्रिटेन के व्यापारी भारत के साथ व्यापार चांदी के निवेश से व्यापार करत थे। इससे उनको अतिशय लाभ प्राप्त होता था ।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी के लाभ एवं भारत के वस्तुओं की यूरोप के बाजार में मांग ने अंग्रेज व्यापारियों को भारत से व्यापार को प्रेरित किया।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में व्यापारिक एकाधिकार हेतु राजनीतिक विजय को नीति का पालन किया।
  • भारत में व्यापारिक बर्चस्व के लिए ब्रिटिश कंपनी दो समूहों से युद्ध कर रही थी। प्रथम यूरोपीय कंपनीयाँ तथा द्वितीय भारतीय देशी राज्य |
    1. चीनसुरा/दरा का युद्ध (1759 ) - इस युद्ध में अंग्रेजों ने डचों को पराजित कर भारत से बाहर कर दिया ।
    2. वांडिवास का युद्ध (1760) - उस युद्ध में अंग्रेजों ने फ्रांसीसी कंपनी को पराजित किया। इस हार के पश्चात् फ्रांसीसी कंपनी भारत के व्यापार से बाहर हो गई।

देशी राज्य

  • ईस्ट इंडिया कंपनी को औरंगजेब की मृत्यु (1707) के पश्चात् ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा।
  • उत्तरोत्तर मुगल के शासकों की नीतियाँ एवं स्वतंत्र नवीन देशी राज्यों ने अंग्रेजों को भारत विजय के मार्ग को आसान बना दिया था।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी की प्लासी (1757) विजय ने भारत के लिए एक नवीन आर्थिक नीतियों को प्रेरित किया।
भारत में ब्रिटेश उपनिवेशवाद
मुख्यतः तीन अलग चरणों से गुजरता था
1. वाणिज्यिक चरण (1757-1813)
2. औद्योगिक पूंजीवादी चरण (1813-1858)
3. वित्तीय पूंजीवादी चरण ( 1858-1947)
  1. वाणिज्यिक चरण (1757- 1813 ) - यह शोषण का व्यापारिक काल था । इस दौर में मुख्यत: अंग्रेजों ने बंगाल पर आर्थिक और राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित किया था।
    • इस दौर में इस्ट इंडिया कंपनी ने वस्तुओं को न्यूनतम मूल्य पर खरीदकर अधिकतम मूल्य पर बेचती थी।
    • इस्ट इंडिया का प्राथमिक उद्देश्य भारत की राजनीतिक ता एवं राजस्व पर नियंत्रण स्थापित करना था।
    • इस काल खण्ड में अंग्रेजों ने "मुक्त व्यापार नीति" (Free Trade Policy) का अनुपालन किया था।
    • प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एड्म स्मिथ (Adom Smith) का सिद्धांत 'अहसतक्षेप नीति' (Laises Fair) का क्रिया नवयन भी इसी कालखण्ड में हुआ था।
    • अंग्रेजों ने भारतीय व्यापारी, कृषक एवं नवाबों तीनों को लूटा था। कालांतर में कूटनीतिक प्रकार से नवाबों को बदनाम कर अंग्रेजों ने उनका स्थान ले लिया।
    • इस दौर में ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने भारत की परम्परागत कानून व्यवस्था को नष्ट किया एवं नवीन औपनिवेशिक व्यवस्थाओं को स्थापित किया था।
    • इस दौर को पर्सिवल स्पीयर महोदय ने 'खुली एवं बेशर्म लूट' कहा था।
  2. द्वितीय चरण (1813-1857 ) औद्योगिक पूंजीवाद का चरण-
    • यह यूरोप में नेपोलियन युग का दौर था । नेपोलियन बोनापार्ट की महाद्वीपीय व्यवस्था ने ब्रिटेन के व्यापार को संकुचित कर दिया था ।
    • नेपालियन की मृत्यु के पश्चात् भारत का कच्चा माल ब्रिटेन को प्राप्त हुआ तथा ब्रिटेन में निर्मित वस्तुएँ भारत सहीत वैश्विक व्यापार का हिस्सा बिना था।
    • 1760 के दशक में प्रारंभ हुआ औद्योगिक क्रांति ने भारत के हस्तशिल्प उद्योग को पूर्णतः नष्ट कर दिया।
    • इस दौर में विभेदकारी आयात-निर्यात कर लगाए। इसके अंतर्गत आयात कर मात्र 3-5% लगाया गया। जबकि निर्यात कर 10% था ।
    • इस विभेदकारी नीति के परिणाम में भारत में कपड़ा, बर्तन तथा कागज उद्योग नष्ट हो गए।
    • अंग्रेजों ने भारत में राजस्व सुधार के अन्तर्गत स्थायी बंदोबस्ती व्यवस्था लागू किया। जिसका उद्देश्य भारत में अपने लिए शसक्त एवं शक्तिशाली समर्थक वर्ग को खड़ा करना तथा कृषि शोषण को बढ़ाना था।
    • इस दौर में कृषि क्षेत्र के साथ वाणिज्य तथा समाज की मूलभूत नीतियों का भी शोषण हुआ।
  3. तृतीय चरण (1858-1947) वित्तीय पूंजीवाद का दौर-
    • इस दौर में भारत को पूर्णतः ऋणी बनाया गया तथा अंग्रेजों ने भारत के आधुनिक औद्योगिक विकास में भी रूचि नहीं लिया।
    • अंग्रेजों ने भारत में पूंजी निवेश के लिए चाय काफी एवं रबड़ तथा नील बागानों को चुना।
    • भारत में रेलवे का विकास हुआ। रेलवे के विकास का प्राथमिक उद्देश्य भारत से बच्चे माल के परिवहन को बढ़ाना था।
    • भारत में रेलवे विकास में विकास के निवेश को गारंटी प्रणाली" कहा गया।
    • अंग्रेजों ने भारत मैं सूती मीलों तथा इस्पातों के कारखानों में पूंजी का निवेश नहीं किया ।
    • भारत से प्राप्त पूंजी के बदौलत एक नवीन पूंजीपति वर्ग का उदय हुआ । इस वर्ग का भारत एवं वैश्विक स्तर पर श्रमिक वर्ग से संघर्ष भी प्रारंभ हो गया।
    • वित्तीय पूंजीवाद के दुष्परिणामों ने भारत को आर्थिक रूप से अत्यधिक खोखला बना दिया।
1858 का अधिनियम
  • ईस्ट इंडिया कंपनी की समस्त ऋण को भारत के द्वारा चुकाए जाने का प्रावधान था।
  • वेतन, भत्ते, तथा पेंशन के खर्चों को भी भारत पर ही सौंप दिया गया।
  • भारत का धन ब्रिटेन गया तथा वापसी में वही धन ऋण के रूप में भारत को प्राप्त होने लगा।
  • भारत एक गरीब राष्ट्र में परिवर्तित हो गया तथा दादाभाई नैरोजी ने इसी को धन निकासी सिद्धांत के रूप में सिद्ध किया।

धन बर्हिगमन सिद्धांत

  • धन बर्हिगमन सिद्धांत का अर्थ भारत की धन-संपत्ति का इंग्लैंड के हस्तांतरण से था । इस आर्थिक प्रवाह के माध्यम से भारत का सर्वाधिक क्षति होता था ।
  • धन बर्हिगमन सिद्धांत का प्रतिपादन प्रसिद्ध राष्ट्रवादी अर्थशास्त्री दादा भाई नौरोजी ने किया था।
  • 2 मई 1867 को लंदन में आयोजित इस्ट इंडिया एसोसिएशन की बैठक में दादा भाई नौरोजी ने अपनी लेख इंग्लैंड डेट टू इंडिया टू पावर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में प्रस्तुत किया था।
  • 'इंग्लैंड डेब्ट टू इंडिया' (भारत पर इंग्लैंड का ऋण ) नामक पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1901 में Swan Sonneschein ने लंदन में किया था।
  • धन विकास सिद्धांत का प्रबल समर्थन भारत के दो प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों डॉ. रमेश चंद्र दत्त एवं महादेव गोविन्द रानाडे ने लिया था।
  • धन विकास सिद्धांत का दो समाचार पत्र 'अमृत बाजार पत्रिका' तथा लोकमान्य तिलक की पत्रिका मराठा ने उसका विरोध किया था।
  • वर्ष 1813 के चार्टर एक्ट में कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार की समाप्ति कर दी गई थी इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव भारत के आर्थिक शोषण पर पड़ा था।
  • 1872 में महादेव गोविंद रानाडे ने भारत से पूंजी संसाधनों के बर्टिगमन की आलोचना किया था तथा दादाभाई नौरोजी ने इसको Evil's of Evil (अनिष्टों का अनिष्ट) की संज्ञा दी थी।
  • दादा भाई नौरोजी ने धन निकासी सिद्धांत को भारत के सभी दुखों का मूल माना था तथा इसके लिए ढ़ेरो लेखा लिखा था ।
  • प्रसिद्ध राष्ट्रवादी अर्थशास्त्री रमेश चंद दत्त ने धन निकासी सिद्धांत को 'बहते हुए घाव' की संज्ञा दी थी।
  • वर्ष 1901 में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में बजट पर भाषण प्रस्तुत करते हुए गोपाल कृष्ण गोखले ने धन निष्कासन सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या किया था ।

भारत में भूराजस्व व्यवस्था

  • भारत में कालांतर में भूराजस्व कल्याणकारी विषय रहा है। निम्न कर वसूली के दर के साथ किसानों को अर्त्याधिक कृषि सुविधाएं प्राप्त होती थी ।
  • औपनिवेशिक शासन प्रणाली ने नवीन शोषणवादी भूराजस्व व्यवस्था लागू किया। जिसका प्राथमिक उद्देश्य अत्यधिक धन की वसूली करना था ।
  • अंग्रेजों के द्वारा स्थापित द्वैध शासन ने बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के भूराजस्व एवं आर्थिक क्रियाविधि को पूर्णत: प्रभावित किया था।
  • भूराजस्व व्यवस्था

  • इन समस्त भूखंड पर अंग्रेज समर्थित स्थायी बंदोबस्ती अथवा जमींदारी प्रथा लागू किया गया।
  • इस प्रणाली को सर्वप्रथम बंगाल में लागू द्वैध शासन (1765) के साथ प्रारंभ किया गया था इसी क्रम में बंगाल में मुहम्मद रजां खां को बंगाल का नाइव सुबेदार नियुक्त किया गया था।
  • उसको अंग्रेज अधिशासित समस्त भूमि के 19% भूभाग पर लागू किया गया।
  • उस व्यवस्था को जमींदारी प्रथा / जागीरदारी प्रथा तथा इस्तेमरारी प्रथा भी कहा गया है।
  • सर्वप्रथम वर्ष 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल प्रांत के केंद्रीय खजाना को मुर्शीदाबाद से परिवर्तित कर कलकत्ता कर दिया।
  • उसी समय लगान में पंचशाला व्यवस्था लागू किया गया था। इसमें उच्चतम बोली लगाने वाले व्यक्ति को लगान वसूली का अधिकार प्रदान किया जाता था।
  • उसी क्रम में सर्वप्रथम 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट में बंगाल में कंपनी को स्थायी भू-प्रबंध करने का सुझाव दिया था।
  • वर्ष 1786 में कर्नवालिस बंगाल का गर्वनर जनरल बना। भूराजस्व की समस्या पर विचार के लिए उसने रेवेन्यू बोर्ड का गठन भी किया था।
  • लॉर्ड कार्नवालिस ने भूमि बंदोबस्ती के लिए जमींदारों को लगान वसूलने का अधिकार दिया था।
  • वर्ष 1790 में वार्षिक लगान के स्थान पर 10 वर्षीय लगान की व्यवस्था भी लागू कर दिया गया था।
  • 22 मार्च 1793 में लागू स्थायी बंदोबस्ती इस्तमरारी व्यवस्था, तथा जागीरदारी व्यवस्था भी कहा गया।
  • उस व्यवस्था में जमींदार अपनी जमींदारी सेवा के बदले 11% रखता है तथा बाकी शेष 89% अंग्रेजी खजाने में जमा करता था ।
  • स्थायी बंदोबस्ती व्यवस्था में बंगाल की भूमि का स्वामी जमींदार को मान लिया गया था। इसके द्वारा दिया जाने वाला लगान हमेशा के लिए निर्धारित कर दिया गया था।
  • इस व्यवस्था ने अंग्रेजी सरकार को जमींदारों के रूप में एक स्थायी सर्मथक प्राप्त हुआ था। इसका उपयोग अंग्रेजी ने भारत में अपने जड़ों को और मजबूत बनाने में किया।
  • इस व्यवस्था को सूर्यास्त भी कहा गया। क्योंकि 1793 के अधिनियम 14 में जमींदारो के संपत्ति जब्त करने का प्रावधान था। नियत तय समय ( सायं 5 बजे ) तक वसूली जमा नहीं करने पर जमींदारी की ठेका अन्य व्यक्ति को दे दिया जाता था ।

रैयतवाड़ी व्यवस्था (The Rayotwari System)

  • इस व्यवस्था में प्रत्येक जमीनधारक को भूस्वामी मानकर उसके साथ लगान देने की शर्तें तय कर दी गई थी।
  • इस व्यवस्था में लगान की शर्तें अस्थायी तथा परिर्वतनशील थी। 

  • इस व्यवस्था के जनक टॉमस मुनरो तथा कैप्टन रोड थे।
  • यह व्यवस्था सम्पूर्ण प्रसारित अंग्रेजी भूमि के 51% भू-भाग पर प्रचलित था।
  • वर्ष 1792 में मद्रास के बारामहल जिले में इसका प्रथम प्रयोग कर्नल रोड़ ने रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू किया था।
  • 1820-27 ई. में जब कर्नल रोड मद्रास का गर्वनर था। तब उसने रैयतवाडी व्यवस्था को समूचे मद्रास प्रेसीडेंसी में लागू किया था।
  • रैयतवाड़ी व्यवस्था को बंबई प्रेसीडेंसी में सर्वप्रथम 1825 ई. में लागू किया गया था।
  • इस व्यवस्था का लागू कराने में एल्फिंस्टन एवं चॉपलिन के रिपोर्ट की प्रमुख भूमिका थी।
  • वर्ष 1858 तक वह समूचे दक्षिण भारत में लागू कर दिया।
  • रैयतवाड़ी व्यवस्था में ही सरकार तथा किसानों के बीच सीधा सम्पर्क स्थापित हुआ था।
  • इस व्यवस्था में भूमि पर निजी स्वामित्व का लाभ जनसंखया के बहुत बड़े भाग को प्राप्त हुआ था।

महालवाड़ी व्यवस्था (The Mahalwari system)

  • इस व्यवस्था का सर्वप्रथम प्रस्ताव 1819 में हॉल्ट मैकेंजी ने किया था।
  • मैकेंजी ने ब्रिटिश सरकार को भूमि सर्वेक्षण ( पैमाइस ) का सुझाव दिया था । तथा भूमि संबंधित व्यक्तियों को आंकड़े सुरक्षित रखा गया था।
  • उस व्यवस्था में पहली बार लगान तय करने के लिए मानचित्रों तथा पंजियों का प्रयोग किया गया था।
  • इस व्यवस्था में भूराजस्व वसूली हेतू लगान के निर्धारण गाव के समुह (महाल) को इकाई माना गया था ।
  • उस प्रकार निर्धारित लगान वसूलने का दायित्व गांव के मुखिया को दिया गया था।
  • हॉल्ट मैकेन्जी के उत्तरोक्त प्रस्तावों को वर्ष 1822 के रेग्यूलेशन - 7 के माध्यम से लागू किया गया।
  • इस व्यवस्था को बिटीश शासित समस्त भूमि के 30% पर लागू किया गया था लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में वर्ष 1855 में सहारनपुर नियम के अनुसार लगान की एकमुश्त राशि 50% कर दिया गया।

  • 1813 के औद्योगिकरण ने इंग्लैड की आर्थिक विकास को तीव्र किया। इसका सीधा प्रभाव भारत में कच्चे माल की पैदावार को अड्डा बना दिया।
  • इंग्लैंड की औद्योगिक आर्थिक जरूरतों की पूर्ति हेतु भारत में कच्चेमाल उत्पादन का केन्द्र बना।
  • भारत में प्रारंभिक दौर में कपास एवं कच्चा रेशम ब्रिटेन के बुनकरों के लिए उगाया जाता था। साथ ही चीन को भी बेचा जाता था।
  • 1813 के चार्टर एक्ट के द्वारा भारत से मुक्त व्यापार करने के छूट मिल गया। 
  • 1833 – इस वर्ष अंग्रेज नागरिकों का भारत में भूमि खरीद पर छूट प्राप्त हुई थी। इसी अधिनियम ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का चाय एवं चीन से व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया था।
  • 1835 - इस वर्ष भारत के असम में पहला चाय बगान स्थापित किया था। इसी क्रम में 1838 इस वर्ष पहली बार चाय को लंदन भेजा गया था। 1839 - इस वर्ष भारत में प्रथम असम चाय कंपनी की स्थापना किया गया था।
  • भारत में कृषि की औद्योगिकरण ने भारत में कृषक मजदूरों के शोषण को बढ़ावा दिया था।
  • भारत में नील की खेती तथा कृषकों के शोषण का प्रारंभ की कहानी दीनबंधु मित्र ने अपनी पुस्तक 'नील दर्पण' में किया था।
  • भारतीय कृषकों के शोषण व अस्थिरता ने भारत में खेतीहर मजदूरों की संख्या में वृद्धिकर दिया। इसी क्रम में वर्ष 1928 में कृषि अध्ययन हेतु 'शाही' आयोग का गठन किया गया था।
  • भारत में बढ़ते खेतीहर मजदूर एवं कृषि आधारित समस्याओं ने भारत में ग्रामीण कृषक गरीबी को बढ़ाया।
  • इसी क्रम में वर्ष 1866-67 में भयंकर आकाल पड़े थे। डेनियन थाटनर ने 1890-1947 तक के आकालों को कृषि स्थिरता का काल कहा था।

भारत में गरीबी एवं अकाल का दौर

  • 1757 से 1947 ई. तक के लगभग 290 वर्षों में औपनिवेशिक व्यवस्था ने भारत में गरीबी एवं अकाल में वृद्धि हुई। जो भारतीय राजतंत्र में लगभग न के बराबर था।
  • औपनिवेशिक शासन व्यवस्था में 1757 से 1857 के बीच प्रथम अकाल 1769-70 में पड़ा था। यह इतना भीषण था कि बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा की एक तिहाई आबादी नष्ट हो गई थी।
  • इसी क्रम में 1781, 82 एवं 84 तथा 1792 ई. में मद्रास तथा उत्तरी भारत सूखा तथा अकाल पड़ा था।
  •  वर्ष 1837 में उत्तर प्रदेश तथा बिहार के कुछ क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा था। सरकार (ब्रिटिश) ने इस क्रम में तटस्थता की नीति अपनाई थी।
  • भारत में एक आकड़ों के अनुसार तथा विलयम डिग्बी के विचार में 2 करोड़ 88 लाख लोग मारे गए ।
  • 19वीं शताब्दी का सर्वाधिक जान-मान की क्षति 1876-78 ई. के अकाल में हुआ था।
  • 1942-43 में हुए बंगाल अकाल का प्रमुख कारण फसलों की असफलता थी।
  • भारत में प्रथम अकाल आयोग का गठन लार्ड लिंटन के कार्यकाल में हुआ था।
  • इसी क्रम में 'दुर्भिक्ष आयुक्त' की नियुक्ति की सिफारिश मैकडोनल आयोग ने दिया था।
  • 'प्रोस पोरस ब्रिटिश इंडिया' नामक पुस्तक की रचना विलियम डिग्बी से किया था ।
  • कमिचैरी प्रथा बिहार तथा उड़ीसा में प्रचलित थी जो सामान्यतः कृषि दास हुआ करते थे।
  • इसी क्रम में तमिलनाडु में 'पन्निवाल तथा  गुजरात में हाली' समुह मजदूर कृषि दास कहलात थे।

अन्य भारतीय उद्योगों का विकास

  • भारत में सबसे पहला उद्योग सूती वस्त्र उद्योग था जिसमें भारतीयों द्वारा पूंजी लगाया गया।
  • वर्ष 1818 में प्रथम सूती वस्त्र मील कोलकत्ता के निकट फोर्ट ग्लोस्टर में लगाया गया था। किंतु यह मिल का सफल संचालन नहीं हो सका था ।
  • द्वितीय मिल बंबई स्पनिंग एण्ड नीविंग कंपनी सन् 1853 में बंबई में कवास जी. एन. डाबर द्वारा स्थापित की गई थी।
  • देश का प्रथम जूट कारखाना जॉर्ज ऑकलैंड द्वारा 1855 ई. कलकत्ता के निकट रिशंग नामक स्थान पर लगाया गया था।
  • चीनी उद्योग भारत में सबसे पहले बेतिया (बिहार) में 1840 में लगाया गया था।
  • भारत में चाय उद्योग का विकास वर्ष 1850 ई. के पश्चात् हुआ था।
  • भारत में सीमेंट का प्रथम संयंत्र वर्ष 1905 में स्थापित किया गया था। इसी क्रम में 1910 में करनी सीमेंट कंपनी शुरू हुई थी ।
  • भारत में लोहा और इस्पात उद्योग की स्थापना 1870 में 870 में हुआ था।
  • बंगाल आयरन एवं स्टील कंपनी ने झरिया के निकट कुलटी एवं बंगाल में बर्नरपुर में अपने संयंत्र की स्थापना किया था।
  • 1907 में जमशेदजी टाटा के द्वारा TISCO की स्थापना जमशेदपुर में किया गया।
  • 1923 में भगवती विश्वेश्रैया आयरन एण्ड स्टील वर्क की स्थापना किया गया था। यह सार्वजनिक क्षेत्र की पहली इकाई थी।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 'चार्ल्स ग्रांट' को भारत में आधुनिक शिक्षा का जन्मदाता कहा गया है।
  • 'भारत में आधुनिक उद्योग की स्थापना वर्ष 1850 में हुई थी।
  • 'कार्ल मार्क्स' ने भारत में रेलवे की स्थापना को 'आधुनिक उद्योग का अग्रदूत' जननी की संज्ञा दी थी।
  • प्रथम आधुनिक पटसन मील की स्थापना वर्ष 1859 रिसड़ा बंगाल में हुई थी।
  • 'इंपीरियल प्रेफरेंस' शब्द का प्रयोग भारत में ब्रिटिश आयातों पर दी गई विशेष रियायतों के लिए किया जाता था।
  • बंबई में प्रथम सूती वस्त्र कारााना वर्ष 1854 में स्थापित किया गया था।
  • वर्ष 1822 में पहली बार औपचारिक रूप से महालवाडी व्यवस्था लागू किया गया था।
  • ब्रिटिश काल में बिहार में अफिम एवं शोरा का सर्वाधिक उत्पाद किया जाता था।
  • बिहार में सर्वप्रथम रेल लाईन लार्ड डलहौजी के कार्यकाल में लगाई गयी थी।
  • नील कृषकों की दुदर्शा पर बंगाल के प्रख्यात लेखक 'दीनबंधु मित्र' ने 'नील दर्पण' नामक पुस्तक की रचना किया था।
  • अंग्रेजों के द्वारा सर्वप्रथम केरल के वायनाड जिला में कॉफी (कहवा) बगान लगाए गए थे। 
  • भारत में सर्वप्रथम रेलवे लाईन का निर्माण वर्ष 1853 में बंबई व थाणे नगरों के बीच हुआ था।
  • भारत में अंग्रेजी शासन काल में स्थापित 1883 में पारित 'इल्बट बिल' का उद्देश्य भारतीय अदालतों में भारतीय एवं यूरोपीय व्यक्तियों के बीच के बराबरी को रोकना था। 
  • अंग्रेजी उपनिवेशकाल में भारत के उद्योगों का विकास पूंजी निवेश के कारण प्रभावित रहा था ।
  • वर्ष 1833 के चार्टर एक्ट में इस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
  • चार्ल्स वुड का घोषणा पत्र ( Dispatch, 1854) भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा ( महाधिकार पत्र ) कहा जाता है।
  • वर्ष 1911 का “इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल " पेश किया गया था। जिसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क तथा अनिवार्य बनाना था ।
  • वर्ष 1911 के इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल को "गोपाल कृष्ण गोने प्राथमिक शिक्षा का मौग्नाकाटी कहा था।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1931 के अधिनियम में मौलिक अधिकार एवं राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से संबंधित प्रस्ताव पारित किए गए थे।
  • वर्ष 1931 के कराची अधिवेशन के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।
  • भू-राजस्व से संबंधित कानून वर्ष 1762 में वर्द्धमान एवं मिदनापुर जिला में लागू किया गया था ।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने बोर्ड ऑफ रेवेन्यू का गठन किया था तथा इसकी नीलामी की अवधि 3 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया था।
  • इसी क्रम में वर्ष 1777 में इस संग्रह की अवधि को वार्षिक बना दिया तथा इसकी देखरेख के लिए यूरोपीय कलेक्टर भी नियुक्त किया गया था।
  • वर्ष 1835 में कैप्टन विनगेट के द्वारा रैयतवाड़ी व्यवस्था को बंबई प्रेसीडेंसी में लागू किया गया था।
  • लार्ड विलियम बैंटिक ने सूती वस्त्र बुनकरों के संबंध में कहा था “सूती वस्त्र बुनकरों के कंकाल भारत के मैदान को बंदरंग कर रहे हैं। "
  • ब्रिटिश शोषण के खिलाफ वर्ष 1859-60 में बंगाल के किसानों ने 'नील विद्रोह' किया था।
  • ब्रिटिश उपनिवेशकाल में 'होम चार्जेज' का अर्थ था-
    1. लंदन में इंडिया ऑफिस के भरण पोषण के लिए प्रयोग में लाए जाने वाली विधि
    2. भारत में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन तथा पेंशन देने हेतु प्रयोग में लाए जाने वाली विधि |
  • वर्ष 1835 में लार्ड मैकाले ने 1835 के प्रपत्र में शिक्षा के माध्यम को अंग्रेजी को लागू किया था ।
  • वर्ष 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अनुरोध पर राष्ट्रीय योजना समिति का निर्माण हुआ जिसके अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे।
  • अकाल को रोकने तथा अकाल पीड़ितों की सहायता हेतु वर्ष 1883 में 'अकाल संहिता' (famine code ) बनाया गया था ।
  • वर्ष 1916 में 'भारतीय औद्योगिक आयोग' की स्थापना किया गया था। इसके अध्यक्ष 'सर थामस हॉलैंड थे।
  • वर्ष 1907 में भारत में प्रथम औद्योगिक सम्मेलन का आयोजन किया गया था ।
  • अंग्रेजों ने वर्ष 1813 में भारतीय व्यापारिक शोषण हेतु 'मुक्त व्यापार नीति' (Free Trade Policy) का अनुपालन किया था।
  • भारत में सर्वप्रथम ग्रेट इंडियन पेनेनसुलर कंपनी ने सेवा प्रारंभ किया था।
  • वर्ष 1901 में 'Poverty and unbritish rule' नामक पुस्तक दादा भाई नैरोजी ने प्रकाशित की थी।
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Tue, 16 Apr 2024 10:45:21 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत के गर्वनर जनरल तथा वायसराय https://m.jaankarirakho.com/983 https://m.jaankarirakho.com/983 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत के गर्वनर जनरल तथा वायसराय
बक्सर युद्ध के पश्चात् ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में परिवर्तन का नया दौर प्रारंभ किया। तात्कालीक मुगल प्रशासन प्रणाली को बदल दिया एवं नवीन प्रशासनिक व्यवस्था में सत्ता के केंद्रीयकरण पर बल दिया। इस केंद्रीय एवं प्रभावशाली सत्ता का केंद्र सर्वप्रथम बंगाल का गर्वनर रॉबर्ट क्लाइव था जिसे भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक भी कहा गया है। समय के साथ अंग्रेजों ने इस पद के गरिमा एवं शक्ति में विस्तार किया। इस क्रम में 1773 के अधिनियम के अन्तर्गत बंगाल का गर्वनर को गर्वनर जनरल बना दिया गया। 1833 के अधिनियम में परिवर्तन कर बंगाल के गर्वनर जनरल को सम्पूर्ण भारत का गर्वनर जनरल नियुक्त कर दिया। 185, के क्रांति को कुचलने के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में 1858 का अधिनियम लागू किया। 1858 के अधिनियम ने भारत में युगांतकारी परिवर्तन किए जिसमें सबसे शक्तिशाली था भारत के गवर्नर जनरल को वासयसराय बना देना। भारत का वायसराय अब समूचे भारत का प्रमुख एवं ब्रिटेन के रानी ब्रिटिश संसद तथा व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था। भारत के प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग से लेकर अंतिम गवर्नर जनरल वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन तक सभी ने भारतीय समाज एवं आर्थिक गतिविधियों को सचालित एवं प्रभावित किया था।
  • बंगाल का प्रथम गर्वनर - लॉर्ड क्लाईव / रॉबर्ट क्लाइव 
  • बंगाल का प्रथम गर्वनर जनरल - वारेन हेस्टिंग्स
  • भारत के प्रथम गर्वनर जनरल - लॉर्ड विलियम बेंटिक
  • भारत के प्रथम वायसराय - लॉर्ड कैनिंग
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम गर्वनर जनरल/वायसराय - लॉर्ड लुईस माउंटबेटन
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय वायसराय गर्वनर जनरल - सी. राजा गोपालाचारी

अंग्रेज शासित भारत के अतिमहत्वपूर्ण ग़र्वनर / गर्वनर जनरल/वायसराय

बंगाल के गर्वनर

रॉबर्ट क्लाइव 
  • यह बंगाल का प्रथम गर्वनर था ।
  • इसने मात्र 17 वर्ष की अवस्था में 1742 ई. में एक साधारण क्लर्क के पद पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा प्रारंभ किया था।
  • अपने असाधारण प्रतिभा दम पर पहले सेनापति का पद प्राप्त किया। कालांतर में द्वितीय कर्नाटक युद्ध में अरकाट (कर्नाटक की राजधानी) का घेरा डाल अंग्रेजों को जीत दिलाई। 
  • रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व की सेना ने 14 मार्च 1757 को बंगाल स्थित फ्रांसीसी बस्ती चंद्रनगर पर कर लिया था।
    बंगाल के गर्वनर कार्यकाल
    लॉर्ड क्लाईव 1757-60
    हालवेल 1760
    वैंसीरार्ट 1760-65
    लॉर्ड क्लाइव 1765-67
    बल्सर्ट 1767-69
    कार्रियर 1769-1772
    वारेन हेस्टिंग्स 1772-1782
  • क्लाइव ने बंगाल के गर्वनर के कार्यकाल में बंगाल में द्वैध शासन स्थापित किया था ।
रॉबर्ट क्लाइव की उपाधियाँ :
  • रॉबर्ट क्लाईव को उमरा की उपाधि आलमगीर द्वितीय ने दिया था ।
  • इसको ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सिनियर पिट्स के द्वारा 'हेवेन बॉन जनरल' (स्वर्ग में जन्मा सेनापति) की उपाधि दी थी।
  • भारत में अंग्रेजी साम्राज्य आर्किटेक्ट को उपाधि भी रॉबर्ट क्लाइव को दिया गया है।
  • रॉबर्ट क्लाइव को अंग्रेजों का मष्तिस्क एवं ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक भी कहा गया है।
  • रॉबर्ट क्लाइव दो बार भारत में बंगाल का गर्वनर नियुक्त हुआ प्रथम ( 1757-60) तथा द्वितीय (1765-67)
  • इसने बंगाल गर्वनर के अपने द्वितीय कार्यकाल में बंगाल में द्वैध शासन लागू किया था।
  • रॉबर्ट क्लाइव के कार्यकाल में कुछ अन्य घटनाएं हुई जिसमें श्वेत विद्रोह, कर्मचारियों द्वारा उपहार लेने पर प्रतिबंध लगाया, सोसाइटी फॉर ट्रेड की स्थापना इत्यादि ।
  • इंग्लैण्ड वापसी के पश्चात रॉबर्ट क्लाईव ने 22 नवम्बर 1774 को स्टालिंटन में आत्महत्या कर लिया था।
  • 1760 में हालवेल अस्थायी गर्वनर बना। इसके कार्यकाल में काल कोठरी (Black Hole) की घटना हुई थी।
हेनरी वेनीस्टट (1760-65)
  • इसने मीर जाफर के स्थान पर मीर कासिम को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया था।
  • इसके कार्यकाल में 'पटना हत्या कांड' की घटना हुई थी। जिसमें मीर कासिम ने अंग्रेज नागरिकों की हत्या किया था ।
  • भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का नींव रखने वाला बक्सर युद्ध 21 अक्टूबर 1764 भी वेनीस्टार के कार्यकाल में ही हुआ था।
  • इसके समय ही प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध भी लड़ा गया था।
  • इसने रॉबर्ट क्लाइव द्वारा लागू किया गया 'सोसाइटी फॉर ट्रेड' नियम को समाप्त कर दिया।
कार्टियर (1769-72)
  • इसके समय में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था। सरकार ने आम जनता की मदद ने करते हुए सिर्फ धन कर वसूली पर ध्यान केंद्रित किया। कार्टियर की आलोचना के पश्चात् उसको वापस लंदन बुला लिया गया था।
भारत के गर्वनर जनरल कार्यकाल
लॉर्ड विलियम बेंटिक 1828-35
चार्ल्स मेटकाक 1835-36
लॉर्ड ऑकलैंड 1836-42
लॉर्ड एलनबरो 1842-44
लॉर्ड हार्डिग - I 1844-48
लॉर्ड डलहौजी 1848-56
वारेन कैनिंग 1856-62
  • ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियंत्रण के उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने अधिनियम 1773 पारित किया था। इस अधिनियम के अन्तर्गत बंगाल के गर्वनर को गर्वनर जनरल/ महाराज्यपाल बना दिया गया। 
वारेन हेस्टिंग्स (1772-17785)
  • यह बंगाल का प्रथम गर्वनर जनरल था । इसने अपने कार्यकाल में भारत में प्रशासिनक, समाजिक एवं आर्थिक संबंधों में अनेक परिवर्तन किया था।
  • यह बंगाल का प्रथम गर्वनर जनरल था। उसके द्वारा रॉबर्ट क्लाइव के द्वारा लगाया गया बंगाल का 'द्वैध शासन भी 1772 में समाप्त कर दिया गया।
  • इसने अवध राज्य से संबंधित "सुरक्षा प्रकोष्ठ की नीति/घेरे की नीति/रिंगफैस की नीति लागू किया था "
  • वर्ष 1781 में मुस्लिम सुधार के उद्देश्य से कलकत्ता में मदरसा स्थापित किया।
  • विलियम विलकिन्स ने इसके आदेश पर मनुस्मृति का अंग्रेजी भाषा में "ए कोड ऑफ जैन्टू ला" के नाम से अनुवाद किया था ।
  • 1784 में सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (कलकत्ता) की स्थापना कलकत्ता में किया था।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल की आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु 1772 में दस्तक प्रणाली (Tax free Business) को बंद कर दिया ।
  • 1774 इस वर्ष हेस्टिंग्स के द्वारा कलकत्ता में राजस्व विभाग की स्थापना किया गया था।
  • इसके द्वारा अन्य जगहों पर पथ कर ( toll tax) बंद कर दिया गया। केवल पांच स्थानों हुगली, ढाका, कलकत्ता, मुर्शीदाबाद तथा पटना में चुंगी लिया जाता था।
  • इसने राजकीय कोषागार का स्थान परिवर्तित कर मुर्शीदाबाद के स्थान पर कलकत्ता कर दिया।
  • वारेन हेस्टिंग्स ने सभी पुराने सिक्कों को वापस ले लिया तथा कलकत्ता के टकसाल से एक ही प्रकार का सिक्का जारी किया था।
  • इसके द्वारा भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना तथा एक वर्षीय बंदोबस्ती व्यवस्था लागू किया गया था।
  • यह ठेकेदारी या इजारेदारी व्यवस्था के तहत कंपनी के लिए वस्तुओं की खरीद करता था।
भारत में प्रथम सुप्रीम कोर्ट
  • सम्राट जॉर्ज पंचम ने 26 जुलाई 1774 चार्टर जारी कर कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना किया।
  • सर एलिजा इम्पे को प्रथम मुख्य न्यायाधीश एवं चेम्बरलीन स्टीफन तथा जॉन हाइड को सदस्य नियुक्त किया गया।
  • हेस्टिंग्स के प्रोत्साहन से जोनाथन डंकन ने 1782 में बनारस में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना - क्रिया था ।
  • वारेन हेस्टिंग्स कभी भी पिट्स इंडिया एक्ट (1784) के पक्ष में नहीं था। इसी कारण 1784 में पिट्स इंडिया एक्ट के लागू होने पर इसके विरोध में इंग्लैण्ड वापस चला गया।
  • इसके ब्रिटेन वापसी पर भारत में अन्यायपूर्ण तथा निरंकुश शासन प्रणाली के लिए महाभियोग का मुकदमा चलाया गया था। जो वर्ष 1788-95 तक चलता रहा कालांतर में ब्रिटिश सरकार ने इसे दोष मुक्त कर दिया था।
मैकफर्सन (1785-86)
  • यह अस्थायी गर्वनर जनरल था। इसने सम्पूर्ण भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य को 23 जिलों में विभक्त कर शासन किया था ।
लॉर्ड कर्नवालिस (1786-93)
  • इसको भारत में सिविल सेवा का जनक कहा गया है।
  • इसने न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कर्नवालिस कोड को लागू किया जो विकेन्द्रीकरण पर आधारित था।
  • स्थायी बंदोबस्त (1793) इसका जनक लॉर्ड कर्नवालिस था । इस व्यवस्था को जमींदारी / इस्तमरारी/विश्वेदारी/सूर्यास्त कानून या परमानेंट सेटलमेंट भी कहा गया ।
  • इसके कार्यकाल में तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1790-92) हुआ था।
  • श्रीरंगपट्टनम की संधि (1792)
  • चार प्रातिम न्यायालय की स्थापना
    → कलकत्ता
    → मुर्शीदाबाद
    → ढाका
    → पटना
  • रेवेन्यू बोर्ड की स्थापना किया।
  • 30 जुलाई 1805 से 5 अक्टूबर 1805 तक यह बंगाल का गर्वनर जनरल भी रहा ।
  • 5 अक्टूबर 1805 में गजीपुर में कर्नवालिस की मृत्यु हो गई। इसकी कब्र गाजीपुर में ही स्थापित है।
वेलेजली (1798-1805)
  • सहायक संधि के द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार
  • चतुर्थ आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1804)
  • फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना
  • 1802 बाजीराव द्वितीय-अंग्रेजों के मध्य बेसिन की संधि
सर जॉन बार्ली (1805-07)
  • वेल्लौर में सिपाही विद्रोह (1806 )

भारत के गर्वनर जनरल

लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-33)
  • इसके कार्य-
    1829- सती प्रथा समाप्ति 
    1830- ठगी प्रथा का अंत
    1833 - नरबली प्रथा का अंत
  • 1835- अंग्रेजी भारतीय प्रशासन की सरकारी भाषा घोषित | इसमें लॉर्ड मैकाले के सुझाव सम्मिलीत थे।
  • 1833 का चार्टर एक्ट पारित- 
  • 1803 मद्रास का गर्वनर । इसी क्रम में सैनिकों की जातिगत प्रतीक चिन्ह लगाने से मना किया था। वेल्लोर के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
चार्ल्स मेटकाफ (1835-36)
  • इसने प्रेस से प्रतिबंध हटा दिया। इसे समाचार-पत्रों को मुक्तिदाता भी कहा गया है।
लॉर्ड ऑकलैंड
  • प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध
लॉर्ड डलहौजी (1848-56)
  • 1848-48- प्रथम आंग्ल सिक्ख युद्ध
  • 29 मार्च 1849 को पंजाब का अंग्रेजी राज्य में विलय
  • 1850 द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध
  • 1853 प्रथम रेलवे लाइन का निर्माण
  • 1854 चार्ल्स वुड का डिस्पैच ( शिक्षा नीति का )
  • 1856 संथाल विद्रोह
  • 1852 प्रथम विद्युत तार की शुरूआत
  • सार्वजनिक निर्माण विभाग (Public work Department) तथा लोक सेवा विभाग की स्थापना ।
  • प्रसिद्ध व्यभ्रगत सिद्धांत (हडप नीति) की शुरूआत
वायसराय

लॉर्ड कैनिंग (1856-58)
  • 1857 का विद्रोह
  • 1856 का विधवा पुर्नविवाह अधिनियम
  • 1858 में महारानी विक्टोरिया भारत की सामग्री घोषित
  • 1857 - बंबई, कलकत्ता एवं मद्रास में (विश्वविद्यालय की स्थापना )
  • 1861 - भारतीय परिषद् अधिनियम ।
  • 1864 - भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम ।
  • 1861 कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास में एक उच्च न्यायालयों की स्थापना ।
  • भारतीय दंड संहिता (1858)
  • सिविल दंड प्रक्रिया संहिता (1859)

भारत का अंतिम गर्वनर जनरल/वायसराय

सर जॉन लॉरेंस (1864-69)
  • प्रसिद्ध अहस्तक्षेप नीति (रिंगफेश नीति) की शुरूआत
  • 1866 में उड़ीसा में अकाल
  • 1868-69 में राजपुताना तथा बुंदेलखंड में भयानक अकाल
  • रेलवे तथा नहरों का विस्तार
  • यूरोप संचार व्यवस्था स्थापित
लॉर्ड लिंटन (1876-80)
  • 1876-78 दक्षिण भारत में अकाल ।
  • 1878 रिचर्ड स्ट्रैची की अध्यक्षता से अकाल आयोग का गठन |
  • 1877 - दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन।
  • 1877 - महारानी विक्टोरिया को कैंसरे-ए-हिंद की उपाधि।
  • 1878 - वर्नाकुलर प्रेस एक्ट की घोषणा।
  • वैधानिक जनपद सेवा सम्मिलीत होने वाले भारतीयों की आयु 21 से घटाकर 19 वर्ष कर दिया गया था।
लॉर्ड रिपन (1880-84)
  • 1881 - प्रथम फैक्ट्री एक्ट ।
  • 1882 - हंटर आयोग (स्कूली शिक्षा हेतु ) की नियुक्ति ।
  • 1885- प्रसिद्ध इलवर्ट विल विवाद |
  • 1882 - स्थानीय स्वशासन की शुरूआत |
  • 1881 - जनगणना प्रणाली की स्थापना ।
  • 1881 में कश्मीर एवं नेपाल को छोड़ समूचे भारत में जनगणना किया गया था।
लॉर्ड डफरिन (1884-88)
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ।
  • द्वितीय आंग्ल- वर्मा बुद्ध
  • बंगाल कृषि अधिनियम (1885)
लॉर्ड कर्जन (1899-1905)
  • भारतीय विणीव अधिनियम 1904
  • लोक सेवा अधिनियम 1905
  • बंगाल विभाजन 1905
  • रेलवे बोर्ड का गठन 1905
  • पुलिस सुधार हेतु 1905
  • फ्रेजर कमिशन का गठन।
लॉर्ड मिंटो द्वितीय (1905-10)
  • मुस्लिम लीग का गठन 1906
  • आंग्ल- रूसी मित्रता 1907
  • खुदीराम बोस को फांसी
  • बालगंगाधर तिलक को 5 वर्ष का कारावास 1908
  • 1907 कांग्रेस का सूरत अधिवेशन
लॉर्ड हार्डिग II (1910-16)
  • ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम का आगमन (12 Dec. 1911)
  • 1911 दिल्ली दरबार का आयोजन भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली हस्तांतरण की घोषणा।
  • दिल्ली राजधानी बनी 1912
  • 1912 - हार्डिंग पर बम हमला।
  • 1912 - दिल्ली स्थायी राजधानी की घोषणा।
  • 4 अगस्त 1914 प्रथम विश्व युद्ध की शुरूआत।
  • 1915 - गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे।
  • 1915 - गोखले तथा फिरोज शाह मेहता का देहांत ।
लॉर्ड चेम्सफोर्ड (1916-21)
  • 1916- तिलक एवं बेसेंट द्वारा होमरूल लीग की स्थापना ।
  • 1916 - मदन मोहन मालवीय द्वारा बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना किया गया।
  • अप्रैल 1917 - गाँधी जी का चंपारण सत्याग्रह ।
  • 1919 - रॉलेट एक्ट घोषित |
  • 1920 - भारत ट्रेड युनियन का प्रथम अधिवेशन |
  • 1920 - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना ।
  • 1 अगस्त 1920 - गाँधी जी का असहयोग आंदोलन।
  • 13 अप्रैल 1919 - जलियाँवाला बाग हत्याकांड ।
लॉर्ड रीडिंग (1921-26)
  • 1 नवंबर 1921 - प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन
  • 1921 - मोपला विद्रोह । 
  • 1921 - साम्यवादी दल का गठन। 
  • 5 फरवरी 1922- चौरी-चौरा कांड
  • 11 फरवरी 1922- असहयोग आंदोलन समाप्त
  • 9 अगस्त 1925 - काकोरी हत्याकांड
  • 1926 - स्वामी श्रद्धानंद की हत्या ।
  • 1924- अखिल भारतीय साम्यवादी दल का गठन।
लॉर्ड इरविन (1926-31)
  • 1927 - साईमन कमीशन की नियुक्ति ।
  • 1928 - साइमन कमिशन का भारत आगमन का विरोध ।
  • 1928- इसी वर्ष सांडर्स की हत्या की गइ।
  • 8 अप्रैल 1929- भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त द्वारा सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंका गया था।
  • 1929 - शारदा अधिनियम विधेयक |
  • 1929 - 64 दिन के भूख हड़ताल पश्चात क्रांतिकारी जतिन दास की मृत्यु |
  • 1929- इरविन की बग्घी पर बम से हमला ।
  • 31 दिसम्बर 1929- कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन पर पूर्ण स्वराज की घोषणा ।
  • 12 मार्च 1930 - गाँधीजी की दांडी यात्रा ।
  • नवम्बर 1930 - प्रथम गोलमेज सम्मेलन |
  • 5 मार्च 1931- गाँधी इरविन समझौता |
लॉर्ड लिनलिथगो (1936-44)
  • 4 मई 1934 - सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ।
  • 14 फरवरी 1938 - हरिफ का कांग्रेस अधिवेशन एवं सुभाष बोस का अध्यक्ष पद पर चयन।
  • मार्च 1939 - गाँधी जी के विरोध के बावजूद सुभाष बोस त्रिपरी अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए।
  • अप्रैल 1939 - गाँधी जी के विरोध के कारण सुभाष चंद्र बोस का अध्यक्ष पद से इस्तिफा तथा 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना।
  • 1941 - रविन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु |
लॉर्ड वेवेल (1944-47)
  • मार्च 1946 - कॅबिनेट मिशन का भारत आगमन
  • 18 फरवरी 1946 - बंबई में नौसेना विद्रोह ।
  • 7 जुलाई 1946 - अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी ने कैबिनेट प्रस्ताव स्वीकार किया था।
  • 16 अगस्त 1946 - प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस।
  • 3 जून 1948 - ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत को आजाद करने की घोषणा किया।
माउंटबेटन (1947-48)
  • 3 जून 1947- *जून थर्ड प्लान' के अन्तर्गत इसने भारत विभाजन की घोषण किया।
  • 24 मार्च 1947 - माउंट बेटन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया।
  • 4 जुलाई 1947 - ब्रिटेन प्रधानमंत्री ऐटली ने ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत का स्वतंत्रता विधेयक पेश किया।
  • 15 अगस्त 1947 - भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुआ ।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की नींव लार्ड विलियम बैंटिक के द्वारा रखी गई थी।
  • महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र पढ़ के सुनाने वाला लार्ड कैनिंग था ।
  • लार्ड कॅनिंग ही भारत का प्रथम वायसराय था ।
  • लार्ड कैनिंग ही भारत का प्रथम वायसराय था ।
  • वर्ष 1789 में बंगाल में दास प्रथा का निर्यात बंद कर दिया गया था।
  • वर्ष 1856 में लार्ड कैनिंग के समय विधवा पूर्वविवाह अधिनियम पारित किया गया था।
  • लारेन्स ने कैम्पबेल के नेतृत्व में अकाल समिति का गठन किया था।
  • भारत में प्रशासनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए ब्रिटिश नागरिकों को प्रशिक्षित विविलम कॉलेज की स्थापना किया गया था।
  • लॉर्ड लिंटन के द्वारा अफगानिस्तान के प्रति अग्र (फारवर्ड) नीति का अनुसरण किया गया था।
  • लारेन्स ने कैम्पवेल के नेतृत्व में अकाल समिति का गठन किया था।
  • भारत में प्रशासनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए ब्रिटिश नागरिकों को प्रशिक्षित करने हेतु वेलेजली के द्वारा कलकत्ता का फोर्ट विनियम कॉलेज की स्थापना किया गया था।
  • लार्ड लिंटन के द्वारा अफगानिस्तान के प्रति अग्र (फारवर्ड) नीति का अनुसरण किया गया था।
  • सर जान लारेंस के द्वारा अहस्तक्षेप नीति का पालन किय गया था।
  • कैनिंग के समय वर्ष 1856 में विधवा पुर्नविवाह नीति का पालन किया गया था।
  • प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1843 ) लार्ड हार्डिंग के कार्यकाल में हुआ था।
  • वर्ष 1858 के अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को भारत का वायसराय कहा गया था।
  • लाई आकलैंड के कार्यकाल में शेरशाह सूरी मार्ग का नाम परिवर्तित कर जी. टी. रोड कर दिया गया था ।
  • मर जान लाएंन्स के समय में भारत से यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राफ सेवा प्रारंभ की गई थी।
  • लार्ड लिंटन अपनी साहित्यिक रचनाएँ ओवेन मेरेडिथ नाम से किया करता था ।
  • वर्ष 1876 में महारानी विक्टोरिया को 'रायल टाइटल एन्ट' के अंतर्गत 'कैसर-ए-हिन्द' की उपाधि प्रदान किया गया था।
  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली द्वारा संसद में भारतीय स्वतंत्रता विधेयक 4 जुलाई 1947 को प्रस्तुत किया गया।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन लॉर्ड विलिंगटन के कार्यकाल में हुआ था।
  • 1833 के चार्टर एक्ट के अन्तर्गत लार्ड विविसलयम बैंटिक भारत का गर्वनर जनरल बनकर आया था।
  • डलहौजी के समय 1853 में प्रथम विद्युत सेवा कलकत्ता से आगरा के बीच में प्रारंभ हुआ था।
  • राज्य हड़ नीति - डलहौजी
  • एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना (1784 ) - वारेन हेस्टिंग्स ने किया था।
  • न्यायिक संगठन की स्थापना किसने किया था लाई कर्नवालिस
  • कुशासन के आधार पर मैसूर राज्य का प्रशासन में विलय - लाई विलियम बैंटिक
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Tue, 16 Apr 2024 09:45:14 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 18वीं शताब्दी में स्थापित नवीन स्वायत्त राज्य एवं ब्रिटिश सत्ता का विस्तार https://m.jaankarirakho.com/982 https://m.jaankarirakho.com/982 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 18वीं शताब्दी में स्थापित नवीन स्वायत्त राज्य एवं ब्रिटिश सत्ता का विस्तार
वर्ष 1707 में औरंगजेब के मृत्यु के पश्चात् महान मुगल शासन के शक्ति, प्रतिष्ठा एवं केंद्रीय शासन व्यवस्था का पतन हुआ। मुगलो को सम्पूर्ण साम्राज्य जिसने वर्ष 1526 से 1707 तक भारत पर शासन किया था। अब उस सत्ता में निरंतर क्षति हो रही थी । उत्तरवर्ती मुगल शासको के कार्य काल में सभी अधिन राज्यों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित करना प्रारंभ कर दिया। उस क्रम में मुगल सत्ता का न केवल राजनीतिक सीमा संकुचित हुई साथ ही प्रशासनिक ढांचा भी ध्वस्त हो गया। मुगल साम्राज्य के क्षती के अनेकों कारण थे जिसमें प्रमुख था औरंगजेब की गल एवं अदूरदर्शी नीतियां तथा रिक्त राजकोष । उत्तरवर्ती मुगल शासकों के कमजोर होते ही । भारत में तीन स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। इन राज्यों का मुगल साम्राज्य से लगाव सिर्फ उपहार एवं भेंट तक सीमित था ।
17 वीं शताब्दी के स्वतंत्र राज्य 
राज्य वर्ष संस्थापक
1. बंगाल 1713 मुर्शीद कुल खां
2. बुंदेलखंड 1717 वीर दाउद तथा मुहम्मद अली खां
3. हैदराबाद 1724 चिनकिलिच खां
4. अवध 1739 सआदत खां
5. मैसूर 1761 हैदरअली 

बंगाल (Bengal)

17वीं शताब्दी में भौगोलिक दृष्टिकोण से आज के बंगाल में बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा राज्य शामिल थे। राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से बंगाल सम्पूर्ण भारत का सबसे संपन्न राज्य था। 1700 में जहां बंगाल की जनसंख्या महज 15000 थी वही 1750 में यह संख्या बढ़कर 1,50,000 हो गई। बंगाल के दो लिले राजनीतिक एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से संपन्न थे। कलकत्ता एवं मुर्शीदाबाद |

बंगाल में अंग्रेज-

  • अंग्रेजों ने 1613 से 1663 तक मुगल एवं शासित बंगाल में फैक्ट्री एवं कारखाने स्थापित कर शांतिपूर्ण व्यापार का लक्ष्य निर्धारित किया था।
  • 1616 में डॉ. बैंटन के द्वारा मुगल राजवंश की महिला के चिकित्सा उपचार के बदले 3000 रु. वार्षिक का के बदौलत अंग्रेजों को बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा में कर मुक्त व्यापार की अनुमति प्राप्त हुई थी।
  • 1651 - इस वर्ष मुगल सम्राट शाहशुजा के द्वारा इस्ट इंडिया कंपनी को सारा नील, रेशम तथा चीनी के व्यापार की अनुमति प्राप्त हुई।
  • 1658 बंगाल के तात्कालीक नवाब मीर जुमला ने अंग्रेजों के कंपनी के व्यापार को बंद कर दिया। किंतु राजनीतिक प्रक्रिया से अंग्रेजों ने शाइस्ता खां से पुनः व्यापारिक अधिकार प्राप्त किया था।
  • 1670 - 1700 उस कालखण्ड में अनिधिकृत व्यापार (Tax free) व्यापार करने वाले व्यापारी 'इंटरपोलर' ने बंगाल में व्यापारिक एकाधिकार जारी रखा। भविष्य में मुगल एवं अंग्रेज इनके व्यापारिक गतिविधी के कारण विरोधी बन गए थे ।
कंपनी एवं बंगाल के नवाब
  • मुर्शीद कुली खां (1717-27)
    • मुर्शीद कुली खां मूलत: दक्षिण का एक ब्राह्मण था । जिसने औरंगजेब के प्रभाव में इस्लाम धर्म स्वीकार लिया था। इसका उपनाम 'मुहम्मद हादी' था। इसके द्वारा स्थापित वंश नासिरी वंश के नाम से जाना गया।
    • मुर्शीद कुली खां भू-राजस्व का विशेषज्ञ था। इसके दौरान भारत में किए गए परिवर्तनों से औरंगजेब प्रभावित हुआ । औरंगजेब के द्वारा मुर्शीद कुली खां को बंगाल का राजस्व संबंधित दीवान नियुक्त किया गया।
    • ढाका के राजनीतिक माहौल से स्वयं को बाहर करने हेतु, इसने अपने दीवानी के कार्य को संचालित करने के लिए कार्य स्थल को ढ़ाका से मकसुदाबाद में स्थापित कर दिया।
    • वर्ष 1717 में मुर्शीद को मुगल सम्रा द्वारा बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया। इसी वर्ष फरूखशीयर ने 3000 रु. कर के बदले व्यापारिक छूट प्रदान किया। मुर्शीद कुली खां ने इस छूट का विरोध किया था।
    • मुर्शीद कुल खां स्वतंत्र बंगाल राज्य की प्रथम गर्वनर था। इसने ढ़ाका के स्थान का बंगाल की राजधानी मुर्शीदाबाद स्थापित कर दिया।
    • मुर्शीद कुली खां ने बंगाल में भू-राज्सव संबंधित अनेकों सुधार किया था ।
  • इजारेदारी प्रथा:- भूराजस्व वसूली हेतु ठेकेदारी व्यवस्था को बढ़ावा देना। इस व्यवस्था में पूर्व निर्धारित भूराजस्व वसूली की व्यवस्था में परिवर्तन किया गया। अब महाजन तथा व्यापारी भी भूराजस्व वसूली का ठेका ले सकते थे। इस कारण पूर्व के जमींदारों ने इस व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया।
    उस क्रम में तीन जमींदार विद्रोह हुए
    प्रथम - सीताराम, उदय नारायण एवं गुलाम अहमद
    द्वितीय - सुजात खां
    तृतीय - नजात खां
  • मुर्शीद ने 1979 में उड़ीसा का बंगाल में विलय कर लिया तथा अपने दामाद शुजाउद्दीन को वहां का सूत्रेदार नियुक्त किया।
  • मुर्शीद कुली खां स्वतंत्र तो था किंतु मुगल सम्राट को भेजता रहा।
शुजाउद्दीन (1727-39)
  • यह मुर्शीद कुली खां का दामाद था। इसको मुर्शीद कुली खां ने उड़ीसा का गवर्नर नियुक्त किया था। मुर्शीद के मृत्यु के पश्चात् स्वतंत्र बंगाल राज्य का दूसरा नवाब था ।
  • 1733 में बंगाल राज्य में बिहार का भी विलय कर लिया गया।
  • शुजाउद्दीन ने अलीवर्दी खां को बिहार का नाइब सूबेदार नियुक्त किया गया था।
  • वर्ष 1739 में शुजाउद्दीन की मृत्यु हो गई थी।
सरफराज खां (1739-40)
  • शुजाउद्दीन द्वारा नियुक्त बिहार के नाइन सूवेदार अलीवर्दी खां के साथ इसका राजस्व संबंधि विवाद हो गया।
  • 1740 में गिरीबा के बुद्ध में अलीवर्दी खां ने सरफराज को हराया तथा बंगाल का नवाब बना।
अलीवर्दी खां (1740-1756)
  • इसके द्वारा स्थापित वंश अफसार वंश या नाजाफी वंश के नाम से जाना गया। अलीवर्दी ने मुर्शीद कुली खां की वंश प्रणाली समाप्त कर दिया तथा अपनी वंश परंपरा प्रारंभ किया। अलीवर्दी के वंश का आखिरी शासक सिराजुद्दौला था ।
  • अलीवर्दी का मूल नाम 'मुहम्मद मिर्जा खान' था। इसने 'वीणा' नामक वाद्य यंत्र के वादन में महाराथ हासिल कर रखी थी।
  • अलीवर्दी ने मुगल सम्राट मुहम्मदशाह रंगीला को 2 करोड़ रूपये एकमुस्त देकर बंगाल के नवाब के पद को स्वतंत्र एवं वैधानिक बना लिया। इस राशि के पश्चात् इसने कभी भी मुगल सम्राट को नजराना नहीं दिया। मुगल बादशाह को नजराना देने वाला अलीवर्दी खां आखिरी नवाब था ।
  • अलीवर्दी खां के द्वारा एक कूटनीतिक निर्णय के अंतर्गत मराठा सरदार भोषले को 12 लाख रूपया वार्षिक एवं उड़ीसा का चौध देकर अपनी राजनीतिक सीमा को मराठा आक्रमण से सुरक्षित कर लिया था।
  • इसने अपने शासनकाल में यूरोपीय कंपनीयों को अपनी बस्तियों को किलाबंदी नहीं करने दिया तथा यूरोपीय की तुलना मधुमक्खीयों से किया था।
सिराज उद्दौला (1756-57)
  • एक विद्वान का कथन है " अत्यधिक विरोधी जीवन की आयु एवं उपलब्धि दोनों को कम कर देते है । "
  • यह कथन सिराजुद्दौला का अक्षरश: सत्य सिद्ध हुआ सिराज-उल्-दौला प्रभावशाली, दूरदर्शी तथा सक्षम शासक होने के बावजूद षडयंत्रकारियों के कुचक्र में फंस कर अपनी सत्ता एवं जीवन दोनों समाप्त कर लिया था।
  • सिराज का शाब्दिक अर्थ है- 'राज्य का प्रकाश पुंज'
  • अलीवर्दी खां ने मरते समय सिराज को यूरोपीय कंपनीयों के विरूद्ध सतर्क एवं शक्तिशाली नीति का पालन करने का कहा था।
  • सिराजुद्दौला अंतिम स्वतंत्र नवाब था । इसके पश्चात् बंगाल के सभी स्थापित नवाब कठपुतली नवाब थे।
  • सिराजुद्दौला के नवाब पद ग्रहण के पश्चात् अंग्रेजों ने व्यापारिक अनुमति नहीं प्राप्त किया तथा न ही नजराना पेश किया।
  • अभीचंद के अनुसार "अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को कभी भी बंगाल का नवाब माना ही नहीं था । "
  • दस्तक- अंग्रेजों को वर्ष 1717 में फर्रुखशीयर के द्वारा प्राप्त कर मुक्त व्यापार की अनुमति। कल के अंग्रेज फैक्ट्री का निदेशक उस पत्र को जारी करता था। भविष्य में अंग्रेज व्यापारी दूसरे देशी व्यापारियों को भी इसे बेचने लगे जो अंग्रेज एवं नवाब के बीच टकराव का कारण बना।
सिराज एवं अंग्रेजों का टकराव
  • अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के विद्रोहियों, दीवान राजवल्लभ एवं उसका पुत्र कृष्ण बल्लभ एवं शौकत जंग को कलकता . के किले में शरण दिया था।
  • दिवान राजवल्लभ बिहार के राजस्व एवं घसीटी बेगम के खजाने में भ्रष्टाचार का आरोपी था।
  • यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध के समय बंगाल स्थित सभी कंपनियां अपनी फैक्ट्री के किलाबंदी प्रारंभ प्रारंभ करने लगे। सिराज के मना करने पर फ्रांसीसीयों ने किलाबंदी बंद कर दिया जबकि अंग्रेजों ने आज्ञा मानने से इंकार कर दिया।
  • 4 जून 1756- सिराज ने कासीम बजार फैक्ट्री पर हमला किया तथा अंग्रेजों को पराजित किया।
  • 16 जून 1756- कलकत्ता (विलियम फोर्ट) पर हमला तथा फोर्ट के गवर्नर विलीयम ड्रेक एवं सेनापति मिंचन 'फुल्टा' द्वीप पर भागकर शरण लिए ।
  • 20 जून 1756- एक छोटी-सी कोठरी से 146 अंग्रेज बंद कर दिए गए। जिसमें 123 लोगों की मृत्यु हो गई। जीवित बचे 'हालवेल' ने इस घटना का किया। इसे कालांतर में 'ब्लैक होल' (Black Hole) नामक घटना से जाना गया।
  • समकालीन इतिहासकार गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक 'सियारूल मुतखैरिन' नामक पुस्तक में घटना का उल्लेख नहीं किया है।
  • ब्लैक होल (Black Hole) नामक घटना को 'A live of wonder' नामक पुस्तक में (holwell) हालवेल नामक अंग्रेज लेखक ने लिखा है।
  • कलकत्ता के दीवान मानीक चंद ने कटनीतिक विधि से कलकत्ता को गुनः अंग्रेजों को सौंप दिया।
अलीनगर की संधि (9 फरवरी 1757)
  • इस संधि के पीछे अंग्रेजों का दबाव एवं मराठों के खतरे का पूर्णतः भय सिराजुद्दौला पर दिखा था। इस संधि में अंग्रेज सिराजुद्दौला पर प्रभावशाली दिखें।
  • संधि की शर्ते-
    • अंग्रेजों को कलकत्ता में किलेबंदी का अधिकार
    • कलकत्ता से अंग्रेज सिक्क ढाल सकते है।
    • बंगाल में कोई भी शक्ति अंग्रेजों के अलावा किलाबंदी नहीं करेगा ।
    • बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में पूर्व की भाति कर मुक्त व्यापार की अनुमति ।
    • नवाब अंग्रेजों को 3 लाख रु. बुद्ध क्षतिपूर्ति के लिए देना तथा नवाब एवं अंग्रेज एक-दूसरे के समप्रभुता का सम्मान करेंगे।

प्लासी (Plassey)

प्लासी का कारण
  • सिराजुद्दौला की महत्वकांक्षी नीतियां
  • अंग्रेजों का बंगाल एवं भारत में राजनीतिक शक्ति बनने की महत्वकांझा
  • के. एम. पन्नीकर के अनुसार- "प्लासी का युद्ध नहीं बल्कि वह एक व्यापार एवं विश्वासघात था इसमें नवान्रियत के पद का क्रय-विक्रय किया गया । " मीरजाफर ने अपने नवाब सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात किया जबकि अंग्रेजों ने व्यापार किया।
  • सिराजुद्दौला के द्वारा अपने विरोधियों एवं अंग्रेजों का दमन नहीं किया। इस क्रम में सभी एकत्रित हो सिराजुद्दौला का दमन कर दिया।
सिराज के विरोधी
  • षड्यंत्रकारी
    • मीरजाफर (सेनापति)
    • राय दुर्लभ (सेना नायक )
    • अमीचंद्र (कलकत्ता का प्रभारी)
    • जगत सेठ (कलकता का अमीर)
    • खादिम खां (सेना का प्रभारी)
वाट्सन एवं क्लाइव
  • एक शर्त के अंतर्गत अमीचंद ने सिराजुद्दौला के खजाने से 50% तथा 30 लाख रुपये की मांग किया।
  • क्लाइव ने कूटनीति पूर्व दो कागज बनाए सफेद एवं लाल । सफेद ( वास्तविक कागज ) पर हस्ताक्षर किया जबकि लाल ( जाली ) पर हस्ताक्षर भी फर्जी किया।
  • इस युद्ध के परिणाम से पूर्व ही क्लाइव ने अमीचंद की हत्या करवा दिया।
प्लासी युद्ध (23 जून 1757)
  • क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेज सेना मुर्शीदाबाद पहुंच गई। उस युद्ध का स्थल नदिया जिले की सहायक नदी भागीरथी के तट पर प्लासी के मैदान में हुआ। इस युद्ध में पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार दो सेनापति राय दुर्लभ तथा मीरजाफर अपनी-अपनी सैनिक टुकड़ियों के साथ निष्क्रिय रहे। जबकि स्वामीभक्त सेनापति मीर मदन एवं मोहनलाल युद्ध के मैदान में शहीद हो गए। सिराजुद्दौला जब षड्यंत्र से परिचित हुआ युद्ध मैदान छोड़कर भाग गया। अंतत: मीरजाफर के पुत्र मीरन के द्वारा मुहम्मद बेग नामक सैनिक से सिराज की हत्या करा दिया गया।
  • इस युद्ध के अंत ने भारत में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना की नींव रखी तथा भविष्य में सम्पूर्ण भारत पर उनका एकाधिकार हो गया था।
मीरजाफर
  • सिराजुद्दौला की मृत्यु के पश्चात् पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार मीरजाफर अगला नवाब नियुक्त हुआ ।
  • यह मात्र कठपुतली शासक था वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के पास संग्रहित थी।
  • नवाब पद के प्राप्ति के पश्चात् पूर्व शर्तों के तहत मीरजाफर ने अकूत संपत्ति अंग्रेजो को सौंप दिया।
  • संभवतः एक दरवारी व्यक्ति ने मीरजाफर को मूर्खता के कारण कर्नल क्लाइव का गदहा कहा था।
  • रॉबर्ट क्लाइव फरवरी 1760 को वापस इंग्लैण्ड चला गया। नए नियुक्त कार्यवाहक गर्वनर हालवेल के आदेश पर मीरजाफर को नवाब के पद से मुक्त कर दिया गया।
  • हालवेल ने मीरजाफर के स्थान पर मीर कासिम को बंगाल का गर्वनर नियुक्त किया।
मीर कासिम (1760-63)
  • इसके समय बंगाल का गर्वनर वेनिस्टार्ट था।
  • मीर कासिम एवं अंग्रेजों के बीच संधि हुई।
  • नवाब पद प्राप्ति के पश्चात् मीर कासिम, वर्द्धमान, मिदनापुर तथा चटगांव का राजस्व अंग्रेजों को सौंप देगा।
  • सिलहट से चुना के व्यापार के लाभ का 50%-50% अंग्रेज एवं नवाब में बांटा जाएगा।
  • मीर कासिम का दुश्मन अंग्रेजों का दुश्मन माना जाता था।
मीर कासिम का प्रारंभिक कार्य-
  • तात्कालीक बंगाल की राजधानी मुर्शीदाबाद से मुंगेर परिवर्तित कर दिया जो बिहार में स्थित था। जो कि अंग्रेजों के प्रभाव से बहुत दूर था।
  • मीर कासिम ने बिहार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने हेतु नए कर रोपित किए तथा काले धन पर नियंत्रण स्थापित किया था।
  • मीर कासिम ने तोड़दार बंदूक की कंपनी भी स्थापित किया ।
  • जर्मनी के एक सैन्य विशेषज्ञ जिसका नाम " वाटर रिन हर्ट" था। उसको कासिम " मेजर समरू" के नाम से संबोधि त करता था। इसे अपनी सेना को नियंत्रण करने के लिए सौंपा।
  • अंग्रेज भक्त अधिकारी रामनारायण, राजवल्लभ एवं गोविंद राय ।
  • अंग्रेज भक्त अधिकारी राम नारायण, राजवल्लभ, गोविंद राय, नौबत राय ( इन सभी अंग्रेज भक्त अधिकारियों की भी हत्या करा दिया । )
  • मीर कासिम तथा गर्वनर वेनीस्टार्ट के बीच कुछ आर्थिक एवं राजनीतिक मतभेद भी हो गए।
  • दस्तक परमीट (Pass) इसका दुरूपयोग भी अंग्रेजों के द्वारा किया जा रहा था। जिससे मीर कासिम को आर्थिक घाटे हो रही थी।
  • अंग्रेजों एवं नवाब का मतभेद अब युद्ध में परिवर्तित हो गया।
  • पटना के अंग्रेज अधिकारी एलिस ने नवाब मीर कासिम के पटना कोठी पर छापा मारा एवं मीर कासिम के नौकर पर शोरा (बम बनाने में प्रयोग होता.. था) संग्रहण के आरोप लगाकर नवाब की कोठी को बंद कर दिया।
  • गुस्साए मीर कासिम पटना पहुँचकर अंग्रेजों के रिहायसी इलाके में घुसकर नरसंहार कर दिया। इसी घटना को कालांतर में पटना हत्याकांड भी कहा गया।
  • पटना हत्याकांड के पश्चात् भी मीर कासिम इलाहाबाद के किला पहुँचा जहाँ पहले से मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय एवं अवध के नवाब शुजाउद्दौला मौजूद था।
बक्सर युद्ध ( 22 अक्टूबर, 1764)

  • इस युद्ध से पूर्व ही बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक अंग्रेजों का दल छोड़ भारतीय संयुक्त सेना में शामिल हो गया ।
  • इस युद्ध के बीच में ही मुगलशासक शाहआलम द्वितीय अंग्रेजों के पक्ष में हो गए तथा मीर कासिम बुद्ध से भाग गया। अंतत: वर्ष 1777 में एक भिखारी के भेष में दिल्ली में मृत पाया गया था !
  • बक्सर युद्ध में भारतीय पक्ष से सिर्फ अ १ का नवाब सुजाउद्दौला ने युद्ध किया । अंत में इसने भी कर्नल फ्लेयर के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था।
  • पर्सी ब्राउन - बक्सर हार ने भारत को भाग्य की हथेली पर अगले 200 वर्षों तक की गुलामी उकर दिया।
  • मीर जाफर - वर्ष 1763-65 तक पुन: मीर जाफर को नवाब नियुक्त किया गया था। इस कार्यकाल में मीर जाफर ने अंग्रेजों को पूर्णत: कर मुक्त कर दिया। अंग्रेज अब सिर्फ नमक का (Salt tax) देते थे। 
  • 5 जनवरी 1765 को मीर जाफर की मृत्यु हो गई। अब अगले अनेक वर्षों तक बंगाल में कठपुतली नवाब ही नियक्त हुए थे। मुबारक -उद्-दौला (1766-70) बंगाल का आखिरी नवाब था ।
  • मुबारक की पेंशन घटाकर अंग्रेजों ने 10 लाख कर दिया था। वारेन हेस्टिंग्स ने 1775 में इस पद के अंत की घोषणा कर दिया।

इलाहाबाद की संधि 

बक्सर युद्ध विजय के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत के विजित अवध के नवाब एवं मुगल शासक शाहआलम द्वितीय के साथ संधि किया था। जो प्रायः दो संधियाँ थी। प्रथम 12 अगस्त, 1765 तथा द्वितीय 16 अगस्त 1765 की ।

बंगाल में द्वैध शासन

  • द्वैध शासक उद्दशत्रकर्त्ता लियो कॉर्टिस को माना जाता है।
  • बंगाल प्रशासिक दृष्टिकोण से दो भागों में विभक्त था निजामत एवं दिवानी। अंग्रेजों ने दोनों को बांट दिया।

अवध

  1. पश्चिम में कनौज से पूर्व में कर्मनाशा नदी तट फैला है। आज का उत्तर प्रदेश तब अवध प्रांत हुआ करता था। यह आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्धशाली राज्य था ।
  2. मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली दरबार कुल चार गुटों में बट गया था। ईरानी, तुरानी, अफगानी एवं हिंदुस्तानी |
  3. इनमें ईरानी शिया गुट का प्रभावशाली व्यक्ति सआदत खां बुरहानुन मुल्क को मुगलशासक सम्राट मुहम्मदशाह ने अवध का सूबेदार नियुक्त किया था।
  4. वर्ष 1722 में स्वतंत्र अवध राज्य की स्थापना किया था। सअदात खां ने भारत पर जादिरशाह को आक्रमण के लिए प्रेरित किया था। दिल्ली विजय के पश्चात ।
  5. नादिरशाह ने सआदत खां से मांग था शर्म के कारण उसने 1739 में विषमान कर आत्महत्या कर लिया था।
सफदरजंग 1739-54
  • सआदत खां निःसंतान था । इसलिए अवध की गद्दी उसके दामाद अबुल मंसूर खां सफदरजंग को प्राप्त हुई थी।
  • 1742 में एक युद्ध अभियान के अंतर्गत सफदरजंग ने पटना पर अधिकार कर लिया था।
  • 1748 में अहमदशाह अब्दाली भारत आक्रमण के समय सफदरजंग के योगदान से प्रभावित मुगल बादशाह ने इसको बजीर के रूप में नियुक्त किया था।
  • सफदरजंग के कार्यकाल में प्रशासनि दृष्टिकोण से समाज एवं राज्य पूर्णतः सुगठित था। इसके द्वारा लखनवी तहजीब को बढ़ावा दिया गया था।
शुजाउद्दौला (1754-57)
  • सफदरजंग के पश्चात् उसका पुत्र शुजाउद्दौला अवध का नवाब नियुक्त हुआ था।
  • 1761 में शुजाउद्दौला मराठों के विरूद्ध जाकर अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया था।
  • इसने बंगाल का विद्रोही नवाब मीर कासिम का साथ दिया तथा अपने राज्य में शरण दिया था।
  • अंग्रेजों के विरूद्ध भारत की त्रिगुटीय संघ में शामिल हो बक्सर (1764) का युद्ध लड़ा। इस युद्ध में इसकी पराजय हुई थी।
  • 1765 में क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कड़ा और इलाहबाद लेकर मुगलशासक शाहआलम द्वितीय को दे दिया। जब बादशाह कुछ राजनीतिक विवादों में ग्रस्त था तब शुजाउदौला ने अवध में उसको शरण दिया था।
आसफउदौला (1775-97)
  • इसने अवध की राजधानी के फैजाबाद को परिवर्तित कर लखनऊ स्थानांतरित कर दिया था।
  • 1775 ई. में इसके द्वारा फैजाबाद की संधि की गई थी।
  • इसके पश्चात् के नवाब ने भी अग्रेजों, मराठों एवं मुगल शासकों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने का प्रबल प्रयास किया।
  • अवध का अगला नवाब सआदत खां (1738-1814) ने अंग्रेजों से राज्य की सहायक संधि कर लिया था। अंग्रेजों ने अवध को मध्यवर्ती राज्य ( Buffer State) के रूप में परिवर्तित कर दिया।
  • इसी क्रम में अगले कुछ वर्षों तक मराठों का भी अवध पर पूर्ण नियंत्रण था।
  • अवध के नवाब आसउद्दौला के द्वारा फैजाबाद की संधि की गई थी। किंतु 1781 में हेस्टिंग्स ने इसका उलंघन किया।
  • फैजाबाद की संधि उल्लंघन में जॉन मिडलटन ने अवध के बेगमों से दुर्व्यवहार भी किया। इस कारण हंग्स्टिन पर ब्रिटेन में महाभियोग भी चलाया गया था।
  • वाजिद अली शाह (1847-56) अवध का अंतिम नवाब था। वर्ष 1854 में जेम्स आउट्रम के रिपोर्ट के आधार पर कुशासन का आरोप लगाया गया तथा 4 फरवरी 1856 में अवध का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया गया था।

हैदराबाद

  • हैदराबाद में स्वतंत्र राज्य की स्थापना चिनकिलिय खां के द्वारा किया गया।
  • इसका उपनाम निजामुलमुल्क था।
  • इसे पूर्वज समरकंद के निवासी थे ।
  • गाजीउद्दीन सिद्दीकी फिरोज जंग औरंगजेब के सेवा में कार्यरत था।
  • सम्राट बनने के पश्चात् फरूखशीयर के समय में ही दक्कन को हरा दिया था ।
  • किंग मेकर ( King maker) के नाम से मसहूर सैयद बंधुओं में हुसैन अली की षडयंत्रपूर्वक हत्या कराने की जिम्मेदारी निजाममुलक ने लिया था ।
  • 1722 में मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने इसे अपना वजीर नियुक्त किया था ।
  • 1723 में दिल्ली दरबार के षडयंत्रों से क्षुब्ध चिनकिलिय खां खां बादशाह की अनुमति लिए बगैर दक्कन (दक्षिण) लौट गया। बादशाह के आदेश पर हैदराबाद के सूबेदार मुनारिज खां को ।
  • निजाम के विरूद्ध कार्यवाही का आदेश दिया गया था। 11 अक्टूबर, 1724 को मुबरिज खां एवं निजामुलमुल्क के बीच शुकरखेड़ा 11 अक्टूबर 1724 का युद्ध हुआ । चिनकिलीय खां को बाजीराव पेशवा का साथ प्राप्त हुआ और इस युद्ध में निजाम विजयी रहा था ।
  • मुगल सम्राट मुहम्मदशाह के द्वारा निजामुलमुल्क की स्वतंत्रता को मान्यता देते हुए दक्कन का वायसराय नियुक्त किया गया था ।
  • सम्राट के द्वारा चिनकिलिय को आसफजाह की उपाधि प्रदान किया।
  • निजामुलमुल्क ने 1725 में हैदराबाद को अपनी राजधानी नियुक्त किया था।
  • निजामुलमुल्क एवं बाजीराव के बीच पालखेड़ा का युद्ध हुआ इसमें बाजीराव विजयी हुआ तथा 6 मार्च, 1728 को निजामुलमुल् एवं बाजीराव के बीच मुंशी शिवगांव की संधि हुई थी।
  • निजामुलमुल्क ने क्षत्रपति शाहूजी को चौथ एवं रदेशमुख देना प्रारंभ कर दिया था।

मैसूर

वर्ष 1336 में हरिहर और बुक्का नामक दो भाईयों ने दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किया। विजयनगर राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दक्षिण भारत का सर्वाधिक समृद्ध राज्य था। इसके प्रबल विरोधी बहमनी राज्य के संयुक्त सेना ने वर्ष 1565 में तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर पराजित किया । तालीकोट के पराजय में विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया। विजयनगर के राजनीतिक भू-भाग पर 16वीं शताब्दी में अनेक छोटे राजवंशों की नींव पड़ी जिसमें एक मैसूर भी था। मैसूर पर 'वाड्यार' वंश का शासन स्थापित हुआ।

वाड्यार वंश का एक सामान्य सैनिक हैदरअली ने अपनी महत्वाकांक्षा एवं साहस के दम पर स्वयं से मैसूर का शासक बन गया। तत्कालीन पड़ोसी राज्यों एवं अंग्रेजों ने हैदरअली एवं उसके पुत्र टीपू के राजनीतिक विस्तार पर अंकुश लगाया। समकालीन राजनीति में अंग्रेज सबसे प्रभावशाली प्रतिद्वंद्वी थे। उसी कारण अंग्रेजों ओर मैसूर के बीच चार युद्ध हुए और अंततः 1799 में टीपू की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने मैसूर के अस्तित्व को समाप्त कर दिया।

  • दक्षिण भारत के विजयनगर एवं बहमनी दो संमृद्धशाली राज्य थे। वर्ष 1565 में ब्रहमनी के संयुक्त सेना का विजयनगर साम्राज्य के साथ तालीकोट्टा (राक्षसतंगडी) नामक युद्ध हुआ ।
  • तालीकोट्टा (1565) के युद्ध में विजयनगर पराजित हुआ एवं इसके साम्राज्य का अंत हो गया।
  • विजयनगर साम्राज्य के ध्वंशासेश पर वर्ष 1612 में वेंकेट II ने मैसूर में वाडयार राजवंश की स्थापना किया। यह विजयनगर साम्राज्य का ही भू-भाग था ।
  • 18वीं शताब्दी में मैसूर का राजा चिक्का कृष्णदेव राय (अल्प वयस्क) था। किंतु इस राज्य का वास्तविक संचालन नंदराज (वित्त एवं प्रधानमंत्री) तथा देवराज ( सेनापति) नामक दो भाइयों के पास था। 
हैदरअली
  • हैदरअली का जन्म वर्ष 1721 में हुआ था । इसका जन्म स्थान मैसूर के कोलार (कर्नाटक) राज्य में स्थित था।
  • हैदरअली के पिता फतेह मोहम्मद मैसूर के राजा की सेना में उच्च पद पर कार्यरत थे।
  • वर्ष 1755 में अपनी कार्यकुशलता एवं दक्षता के दम पर तथा नंदराज के प्रभाव से डींडीगुल का सूबेदार नियुक्त किया गया।
  • हैदरअली निरक्षर व्यक्ति था । इसने अपनी सहायता हेतु खांडेराव नामक कुटिल विद्वान को अपना सलाहकार नियुक्त किया था।
  • हैदरअली ने अपने प्रभाव एवं महत्वकांक्षा में परिवर्तन कर फ्रांसीसियों की मदद से 1755 में डिंडीगुल में आधुनिक शास्त्रागार की स्थापना किया।
  • हैदरअली उच्च महत्वाकांक्षी व्यक्ति था । इसने खंडेराव की कूटनीतिक सहायता से मैसूर राज्य की राजमाल को अपने पक्ष में शामिल करने में सफल रहा।
  • मैसूर के प्रभावशाली मंत्री भाइयों, नंदराज एवं देवराज को चुनौती दिया तथा राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर आक्रमण किया था।
  • वर्ष 1761 में हैदरअली राजा के स्थान पर मैसूर का शासक बन बैठा।
  • यह वह कालखण्ड था जब आंग्ल- फ्रांसीसी संघर्ष चह रहे थे। भारत की राजनीतिक शक्तियाँ वर्चस्व की जंग लड़ रही थी! 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा राज्य भी समाप्त है गया था।
  • हैदरअली ने तात्कालीक राजनीतिक दशा का लाभ उठाया तथा अपनी राजनीतिक एवं सैन्य शक्ति को मजबूत बनाया।
  • हैदरअली के तीव्र विकास से उसके पड़ोसी राज्य मराठा, हैदराबाद के निजाम तथा अंग्रेजों को समस्या उत्पन्न होने लगी।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • टीपू सुल्तान जैकोबियन क्लब का सदस्य था।
  • हैदरअली का जन्म बुद्दीकोटा (कोलार जिला में हुआ था । )
  • ''आज पूरब का साम्राज्य मेरे कदमों में पड़ा है।" यह कथन किसका है- चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध के समय- वेलेजली ने कहा था।
  • मुहम्मद शाह (1719-48) के कार्यकाल में स्वतंत्र राज्य अवध की स्थापना हुई थी।
  • नादिर शाह के बुलाने पर स्वतंत्र अवध राज्य के संस्थापक सआदत खां के आत्म हत्या कर लिया था।
  • सआदत खां ने 'बुरहानुनमुल्क' की उपाधि धारण किया था।
  • शुजा-उद्-दौला ने बक्सर के युद्ध में भाग लिया था ।
  • छोटा इमामबाड़ा 1838 में मोहम्मद आदिलशाह ने बनाया था ।
  • 18वीं शताब्दी में त्रावणकोण (केरल) स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1729 में राजा मार्तण्ड वर्मा ने किया था ।
  • मार्तण्ड वर्मा के उत्तराधिकारी राम वर्मा के समय त्रवणकोर की राजधानी त्रिवेन्द्र संस्कृत विद्वानों का प्रसिद्ध केन्द्र था ।
  • 18वीं शताब्दी में केरल में कथककली नृत्य का विकास हुआ था।
  • सम्पूर्ण भारत में एकमात्र केरल ही राज्य था। इस राज्य में मातृसत्तात्मक समाज का प्रचलन था एवं सती प्रथा कभी भी लागू नहीं था।
  • मुगलशाह मुहम्मद (1719-48) द्वारा बगाल के प्रसिद्ध व्यापारी फतेहचंद को जगत सेठ की उपाधि प्रदान किया गया था।
  • मीर जाफर को नवाब बनाया जाना बंगाल की प्रथम क्रांति कही गयी थी। जबकि नवाब का पद त्याग देना बंगाल की दूसरी क्रांति (1760) कही जाती है।
  • अमीचंद के द्वारा षड्यंत्रकारियों एवं अंग्रेजों के बीच मध्यस्तता की गई थी। जिसका उद्देश्य सिराजुदौला को अपदस्त करना था ।
  • बक्सर के युद्ध के समय बंगाल का नवाब मीर जाफर था। (1763-65)
  • मीर कासीम के द्वारा नियुक्त मेजर समरू नामक सेनापति का वास्तविक नाम वाल्टर रीन हार्ड था ।
  • सरकारी अफसरों से मीर कासिम ने 'खिजरी' नामक कर वसूला था।
  • वर्ष 1765 में बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्थापित स्थापित किया गया था।
  • वर्ष 1770 में बंगाल में भयंकर दुभिक्ष की अवस्थ पैदा हो गयी थी ।
  • बंगाल में द्वौधशासन की व्यवस्था राबर्ट कलाइव के द्वारा लागू किया गया था।
  • बंगाल का अंतिम नवाब मुबारक-उदौला (1770-75) था।
  • पसीबल स्पीयर महोदय के द्वारा बंगाल के द्वौध शासन (1765-69) को 'खुली एवं बेशर्म लूट' की संज्ञा दी गई थी।
  • 'श्वेत विद्रोह' के समय में हुआ था।
  • बंधुआ मजदूरी परंपरा को सांगडी प्रथा कहते हैं।
  • धार्मिक कार्यों के लिए अनुदानित भूमि भी मदद -ए-मास जो भमि कर से मुक्त होती थी ।
  • पंजाब के राजा दिलीप सिंह का निधन 23 अक्टूबर 1293 को पेरिस में निधन हुआ था।
  • महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की राजधानी लाहौर थी।
  • रणजीत सिंह को सुप्रसिद्ध हीरा प्राप्त किया था - शाहशुजा से 
  • रणजीत सिंह सुमरचकिया मिसल से संबंधित थे।
  • गुरू गोविन्द सिंह के कृति का नाम जफरनामा है।
  • गुरू अर्जुन देव ने आदि ग्रंथ नामक कृति की रचना किया था ।
  • गुरुमुखी लिपि का आविष्कार गुरु अंगद के द्वारा किया गया था ।
  • अमृतसर नगर गुरू रामदास के द्वारा स्थापित किया गया था।
  • हेमकुंड में प्रसिद्ध सिक्ख गुरुद्वारा स्थित है।
  • वर्ष 1699 में प्रसिद्ध 'खालसा पंथ' की स्थापना की गई थी।
  • गुरू अर्जुन देव को मृत्युदण्ड जहांगीर ने दिया था जबकि गुरू तेज बहादुर (औरंगजेब) के द्वारा मार दिया गया था ।
  • पटना में गुरुगोविंद सिंह का जन्म हुआ था।
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Tue, 16 Apr 2024 08:56:46 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन https://m.jaankarirakho.com/981 https://m.jaankarirakho.com/981 General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन
यूरोप के बाजार में दक्षिण एशिया ( भारत ) की वस्तुओं की मांग अधिक थी । 15वीं शताब्दी में इन वस्तुओं के व्यापार हेतु अनेक यूरोपीय देशों में कंपनियाँ स्थापित की गई। किंतु इन कंपनियों के समक्ष दक्षिण एशिया के व्यापार के बीच अनेक चुनौतियाँ थी। जैसे- इटली का यूरोप के बाजार पर व्यापारिक एकाधिकार । दूसरी सबसे बड़ी चुनौती 1453 में बाइजेंटाइन (Byzantine ) साम्राज्य की राजधानी कुस्तुतुनियां (Constantino ) पर अरब साम्राज्य का आक्रमण एवं कब्जा । कुस्तुतुनिया Constantino) यूरोप से दक्षिण एशिया आनेवाले जल एवं स्थल दोनों मार्गों का प्रवेश द्वार था। उस मार्ग पर अरबों ने यूरोप के व्यापारिक गतिविधि को पूर्णतः बंद कर दिया। वर्षों तक व्यापारिक बंदी के पश्चात् यूरोप के राजवंशों एवं व्यापारियों को एक नवीन जलमार्ग की जरूरत थी। इसी कालखण्ड में नए साहसीक एवं नवीन भौगोलिक खोज भी हुए !

भारत में पुर्तगालियों का आगमन

  • भारत पहुँचने वाले नवीन जलमार्ग की खोज में प्रमुख योगदान पुर्तगाल के राजा डॉनहेनरी 'हेनरी द नेविगेटर' एवं स्पेन की रानी इसाबले की थी ।
  • इन भौगोलिक खोजों में चीन निर्मित कम्पास (दिकसूचक) एवं यूरोप में निर्मित मानचित्र ने प्रमुख योगदान दिया।
  • प्रथम प्रयास 1487 में पुर्तगाल के यात्री बाथलुम्पू डियास (Bartholomphu Dias) ने किया। इसकी नाव भी अफ्रीका महाद्वीप की उत्तरी द्वीप तक ही पहुँच सकी। इस स्थल को डियास ने 'तूफानी (The Cape of Good Hope) के नाम से संबोधित किया।
  • पुर्तगाल राजकुमार डॉन हेनरीक 'हेनरी द नेविगेटर' ( Portagus do Indess ) ( इस्टाडा) नामक कंपनी की स्थापना किया एवं इसका मुख्यालय लिस्बन (Lisbun) में स्थापित किया। प्रिंस हेनरी इस कंपनी के संस्थापक सदस्य थे।
  • प्रिंस हेनरी के प्रतिनिधि के रूप में ही वास्कोडिगामा ने भारत की यात्रा आरंभ किया। वास्कोडिगामा तीन जहाज ( राफेल, ग्रैब्रियल तथा बोरियो ) के साथ पुर्तगाल में भारत के लिए निकला था।
  • 90 दिन के समुद्री यात्रा के पश्चातु वास्कोडिगामा भारत के पथ प्रदर्शक अब्दुल मजीद की सहायता से कालीकट नामक बंदरगाह पर पहुँचा। वास्कोडिगामा 17 मई 1498 को भारत पहुँचने वाला प्रथम जलमार्ग यात्री था। इसने पूर्व से पश्चिम को नवीन मार्ग से जोड़ा एवं इस मार्ग को मशाला मार्ग भी कहा गया।
  • कालीकट ‘कप्पकडापू' नामक बंदरगाह पर बांस्कोडिगामा का जहाजी बेड़ा पहुँचा। जहाँ के हिन्दू शासक 'जेमेरिन' (इसकी पैतृक उपाधि) से सद्भावपूर्ण ढंग से इसका स्वागत किया। अपने यात्रा के वापसी में इसने मशाला एवं कुछ अन्य वस्तुओं की खरीद किया। इन वस्तुओं को यूरोप के बाजार में बिक्री से 60 गुना अधिक लाभ प्राप्त हुआ।
  • वर्ष 1500 में मशाला मार्ग पर द्वितीय व्यापारिक अभियान पैट्रोअम्बारेज कैनाल के द्वारा किया गया। कैवाल की यात्रा का उद्देश्य पूर्णत: कूटनीतिक आधार पर भारत में पुर्तगाल के लिए व्यापारिक आधारशिला का निर्माण करना था ।

कैप्टन वॉस्कोडिगामा

  • वास्कोडिगामा ने कुल तीन बार भारत की यात्रा की थी। वर्ष 1498, 1502 एवं 1524 में।
  • वर्ष 1524 में वह आखिरी बार पुर्तगाली वायसराय बनकर कोचीन पहुँचा । उसी वर्ष इसकी मृत्यु मलेरिया के कारण हो गई। वास्कोडिगामा की कब्र कोचीन में ही अवस्थित है।
  • दक्षिण पूर्वी तटपर पुर्तगालियों की एक मात्र बस्ती सैंटथामे थी । काली मिर्च एक मशाला व्यापार पर एकाधिकार हेतु पुर्तगालियों ने प्रथम कोठी का निर्माण ( 1503 में) कांचीन में किया था ।
  • द्वितीय कोठी पुलिकट एवं फिर कन्नूर में वर्ष 1505 में किया गया था ।
पुर्तगाल के प्रभावशाली गर्वनर
  1. फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (Frasisis co De - Almedda) (1505-1509)
    • अल्मीडा के प्रभावशाली नीतियों में सबसे सर्वोच्च था शांतजल नीति ( Blue Water Plicy) इस नीति का प्रमुख उद्देश्य व्यापारिक एकाधिकार एवं सर्वोच्चता को स्थापित करना था ।
    • इसने मिस्र, गुजरात एवं तुर्की के संयुक्त सेना को पराजित किया। इसके कार्यकाल में पुर्तगाली हिंद महासागर के नौसेन्य शक्ति में सर्वोच्च में हो गए थे। समकालीन इतिहासकारों के द्वारा पुर्तगालियों को 'सागर के स्वामी' जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया।
  2. अल्फांसो डी अल्बुकर्क (Alfanso-De-Albuquerque) (1509-1515)
    • भारत में पुर्तगाली शक्ति की वास्तविक संस्थापक अल्बुर्कक ही था।
    • वर्ष 1510 में बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से गोवा जैसे समृद्धशाली बंदरगाह को बलपूर्वक प्राप्तकर लिया था।
    • 1511 में अल्बुर्कक ने मलक्का पर कब्जा कर लिया तथा 1515 में फारस की खाड़ी में अवस्थित हामूर्ज बंदरगाह को युद्ध में जीत लिया था।
    • अल्बुर्कक प्रथम गर्वनर था जिसने भारत में स्थायी पुर्तगाली बस्तियों के निर्माण पर विचार किया तथा भारत के स्त्रियों से अपने सैनिकों को विवाह की अनुमति भी प्रदान किया।
    • इसने पुर्तगाली प्रभाव क्षेत्र में सती प्रथा बंद करा दिया था । राममोहन राय का अग्रगामी भी कहा जा सकता है।
    • अल्बुकर्क का मजार गोवा में अवस्थित है।
  3. नूनो द कुन्हा (Nuno Da Cunha) (1529-38)
    • 1529 में इसको भारत का गर्वनर नियुक्त किया गया। अल्बुर्कक के पश्चात् सबसे प्रभावशाली गवर्नर साबित हुआ था। इसने 1530 में पुर्तगली प्रशासनिक कार्य का कें कोचीन के स्थान पर गोवा बना दिया।
    • उसने गुजरात के शासक बहादुरशाह तथा मुगलशासक हुमायूँ के बीच के मतभेद का लाभ उठाया। कून्हा 1534 बेसीन द्वीप तथा 1535 में द्वीव पर कब्जा कर लिया।
  • गौसिया द नारनोन्हा (Garcia Da Narnoneha ) :- वर्ष 1538 में यह भारत का पुर्तगाली गर्वनर नियुक्त हुआ। इसके कार्यकाल में पुर्तगाली भारत के दमन, द्वीप, मद्रास, बंबई के साथ दक्षिण एशिया में प्रमुख व्यापारिक अड्डे स्थापित किए। पुर्तगाल का सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र सीलोन (श्रीलंका) भी था।
    • 1559–60 तत्र पुर्तगालियों के पास 60 से अधिक ने दुर्ग तथा 100-150 लगभग जहाजों का बेड़ा था। किंतु यह प्रभाव लंबे समय तक नहीं रह सका। वर्ष 1580 में स्पेन पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया। स्पेन के कब्जे के पश्चात् पुर्तगाली भारत में कमजोर होते चले गए। इसी क्रम में डचों (Dutch) एवं अन्य व्यापारिक कंपनियों ने प्रतिस्पर्द्धा में पराजित किया। वर्ष 1761 तक मात्र तीन द्वीप- गांवा, दमन एवं द्वीव पुर्तगालियों के पास रह गया था।
  • पुर्तगालियों के पतन का कारण-
    • विवाह नीति
    • भ्रष्ट प्रशासन
    • दोषपूर्ण एवं अनियंत्रित व्यापार प्रणाली
    • धार्मिक नीति
    • अन्य व्यापारिक कंपनियों का भारत आगमन इत्यादि ।
  • पुर्तगालियों का भारत में योगदान-
    • पुर्तगालियों ने गोवा में प्रथम प्रेस की स्थापना किया तथा आयुर्वेद पर आधारित पुस्तक की छपाई कराया। ध्यात्व्य हो कागज का आविष्कार चीन में हुआ था।
    • नौतन ( बंदरगाह) तथा जहाज निर्माण उद्योग का विकास एवं विस्तार भारत में पुर्तगालियों ने किया था।
    • गोथिक स्थापत्य कला का विकास भी पुर्तगालियों के द्वारा किया गया था।

कार्ट्ज - अरमेडा-काफिला व्यवस्था (Cartaz-Armodia-Cafila System)

  • कार्ट्ज का तात्पर्य परमिट से है । पुर्तगालियों को एकाधिकार कार समुद्री शक्ति पर था। किसी भी व्यापारिक जहाज को बगैर परमिट के समुद्री व्यापार की अनुमति नहीं था। इसका परमिट (Pass) पुर्तगली ही प्रदान करते थे। परमिट (Pass) प्राप्त की हुई जहाज की सुरक्षा में काफिला (Cafila ) अरमेडा (जहाजों का जत्था ) चलता था। जो समुद्री लूट-पाट से सुरक्षित करता था। इसी व्यवस्था को कार्ट्ज-अरमेडा-काफिला व्यवस्था कहा गया। 
    • तत्कालीन मुगल बादशाह की जहाजों को भी कार्ट्ज लेना पड़ता था । पुर्तगाली स्वयं की 'समुद्र का स्वामी' कहते थे।
    • किसी भी भारतीय एवं अरब के जहाज को गोला-बारूद एवं काली मिर्च के व्यापार की अनुमति नहीं थी । उस पर सिर्फ पुर्तगालियों का एकाधिकार था।

डच (Dutch)

हॉलैण्ड (नीदरलैण्ड) के निवासी को डच (Dutch ) कहा जाता है। 15वीं शताब्दी में हॉलैण्ड यूरोप व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। पुर्तगाल द्वारा दक्षिण एशिया ( भारत ) से लिस्बन (Lisbun) लाए गए व्यापारिक वस्तुओं को यूरोप के बाजार तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी डचों के पास थी । पुर्तगाली नौसेना में बड़े जहाज थे किंतु डचों ने छोटे नौकाओं का निर्माण किया जिसे फ्लूटशीप कहा गया। इसको ( चप्पू) हाथों से भी चलाया जा सकता था। इस प्रकार डचों ने पुर्तगाली व्यापारिक साम्राज्य को पहले यूरोप में चुनौती दिया फिर भारत में | भारत की वस्तुओं का यूरोप में मांग एवं उसकी किमतों से आकर्षित होकर डचों ने दक्षिण एशिया के व्यापार में कमी दिखाई। प्रारंभ में डचों ने मशाला द्वीप पुंज (इंडोनेशिया) में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किया तथा मशाला व्यापार के क्षेत्र में एकाधिकार हासिल किया। किंतु कुछ वर्षों में भारतीय व्यापारिक साम्राज्य में हिस्सेदारी हेतु पुर्तगाल को चुनौती दिया। 1580 में स्पेन का पुर्तगाल पर कब्जे के पश्चात् पुर्तगाली नौसैनिक शक्ति भारत में कमजोर पड़ती गई। उसी का फायदा डचों ने उठाया एवं पुर्तगाल के व्यापारिक खंडहर पर अपना साम्राज्य स्थापित किया।
  • 1595 में प्रथम डच यात्री हाउटमैन भारत आया था। भारत से अपनी धन संपत्ति के साथ वापस डच गया। इसकी यात्रा वृत्तांत ने एवं कुछ अन्य कारणों ने डचों को दक्षिण एशिया (भारत) से व्यापार को प्रेरित किया।
  • 16वीं शताब्दी में डच (नीदरलैंड) यूरोप के व्यापारी गतिविधि का प्रमुख केन्द्र था।
  • वर्ष 1602 मे डच (नीदरलैंड) की संसद द्वारा प्रस्तावित विधेयक से डच इ इंडिया कंपनी की स्थापना की गई।
  • इस कंपनी का नाम 'बेरेनिग्दे ओस्त डेडिसे' (Vereenigde ost Indiscne Compagnic) मतलब 'यूनाइटेड इस्ट इंडिया कम्पनी ऑफ नीदरलैंड' था।
  • डच संसद द्वारा प्राप्त प्रस्ताव में इस कंपनी को 21 वर्षों के लिए भारत एवं देशों के साथ, युद्ध करने, व्यापार करने, संधि करने, स्थायी सेना रखने तथा दुर्ग बनाने का अधिकार प्राप्त था ।
  • इस कंपनी की संयुक्त पूँजी 65 लाख गिल्डार थी तथा समूचे यूरोप में निर्मित कंपनियों में प्रथम कंपनी की जिसने प्रारंभ में सिर्फ मशाला व्यापार पर स्वयं को केन्द्रीत किया। 
  • डच संसद के आदेशानुसार इसमें 17 सदस्य नियुक्त किए गए। इसलिए उस इस्ट इंडिया कंपनी को 'जेंटलमैन - 17' भी कहा गया है।
  • 1602 में डचों ने पुर्तगालियों को बैरम के युद्ध में पराजित किया था तथा गुजरात, कोरोमंडल एवं बंगाल बिहार उडीसा में अपनी फैक्ट्रीयाँ धीरे-धीरे स्थापित किया।
  • डचों ने 'बादेर हेग' के नेतृत्व में वर्ष 1605 में प्रथम व्यापारिक कोठी मसुलीपत्तम (आंध्र प्रदेश) में स्थापित किया ।
  • डचों ने दूसरी कोठी 1610 में पुलिकट (उड़ीसा) में स्थापित किया था। जहाँ उनके स्वर्ण सिक्के ( पैगोडा) हाल जाते थे। पुलिकट को डचों ने प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रूप में स्थापित किया ।
  • डचों ने वर्ष 1690 में पुलिकट से अपने व्यापारिक मुख्यालय को बदलकर नागपट्टनम कर दिया।
  • डच कंपनी के द्वारा बंगाल में अपनी प्रथम फैक्ट्री 1627 में पीपली में स्थापित की गई थी। कुछ राजनीतिक कारणों से पीपली को छोड़ बालासौर चले गए।
  • 1653 में चीनसुरा में डचों ने 'गुस्तावस' नामक किले का निर्माण किया था।
  • 1616 में सूरत में स्थित डच इस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार निदेशालय सर्वाधिक लाभ कमाने वाला प्रतिष्ठान था।
  • उच्चों द्वारा स्थापित अन्य कारखानें
    • विमलीपट्टनम
    • कोचीन (1663)
    • चिनसुरा (1653)
    • कारिकल (1645)
  • डचों का व्यापारिक विस्तार 1630-1665 तक जारी रहा। इस कालखण्ड में भारत से दक्षिण एशिया के अनेक द्वीप एवं देशों पर इनका व्यापारिक साम्राज्य स्थापित था ।
  • 17वीं शताब्दी में भारत से किए जानेवाले मशालों के व्यापार पर डचों का एकाधिकार था ।
  • वर्ष 1759 में 'बेदरा' में अंग्रेज सेनापती क्लाईव के नेतृत्व में डचों से अंग्रेजों ने युद्ध हुआ। उस युद्ध में उच पराजित हुए। इसी युद्ध के पश्चात् अंग्रेज निरंतर शक्तिशाली होते गए जबकि डचों का पतन प्रारंभ हो गया।
  • पुर्तगाली व्यापारिक साम्राज्य को डचों के द्वारा ध्वस्त किया गया था। जबकि अंग्रेजों की नौसेना शक्ति ने डचों को पराजित कर दिया ।

अंग्रेज (The English)

अंग्रेज 16वीं शताब्दी में व्यापारिक उद्देश्य से भारत आए थे। यूरोप से भारत समस्त कंपनियों की भांति इनका भी उद्देश्य भारत से व्यापार के द्वारा कंपनी के लाभ को सर्वाधिक करना था। भारत में सर्वाधिक लाभ उसी को प्राप्त होता जिस कंपनी को देशी रजवाड़ों का संरक्षण प्राप्त होता था। अंग्रेजों को भारत में व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करने हेतु दो तरफा संघर्ष करना पड़ा था। एक तरफ यूरोप की कंपनियाँ तथा दूसरी भारत की तात्कालीन राजनीति सत्ता । इस क्रम में सर्वाधिक लाभ से प्रेरित इंगलैंड के राजा चार्ल्स - II ने कंपनी को विशेषाधिकार वर्ष 1661 में प्रदान किया। इस विशेषाधिकार के पश्चात् अंग्रेज भारत में राजनीतिक एवं व्यापारिक दोनों स्तर पर स्वयं को शक्तिशाली कर पाए। अंग्रेजों का सबसे बेहतरीन गुण था समय के साथ स्वयं को शक्तिशाली बनाना इस गुण के साथ अंग्रेज ने क्रमबद्ध तरीके से समूचे भारत पर अपनी शक्ति स्थापित करते गए। बक्सर युद्ध के पूर्व अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत के देशी तथा यूरोपीय शक्तियों को पराजित किया था। बक्सर युद्ध (21 अक्टूबर, 1764 ) के पश्चात् भारत के नीति निर्माता बन बैठे। 1765 का बंगाल का द्वैध शासन प्रथम कानून का भारतीय जनता पर लागू किया गया। इस क्रम में 1947 तक संवैधानिक विकास प्रक्रिया के साथ भारत का आर्थिक, वैचारिक एवं राजनीतिक शोषण जारी रखा। अंततः अनेकों विधि से भारतीय राजनेताओं एवं जनता ने भारत की स्वतंत्रता को संरक्षित (1947) में संरक्षित किया।
  • 1980 – में विलियम डेक (नाविक) द्वारा समुद्री मार्ग से पुरी दुनिया का चक्कर लगाया था। 
  • 1588 – में अंग्रेजों ने स्पेनिश अमेंडा (नाव का बेड़ा) को पराजित कर अंग्रेजी नौसेना की सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया। इस विजय से प्राप्त वस्तुओं एवं उनके मूल्य ने भारत से व्यापार के लिए अंग्रेजों को प्रेरित किया।
  • 1593 - इसी क्रम में 'जेम्स लंकास्टर' नामक अंग्रेज 'रेड ड्रैगन' नामक जहाज से तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में पहुँचा। इस प्रकार भारत पहुँचने वाला प्रथम अंग्रेजी जहाज "रेड ड्रैगन' था।
  • 1599 – जान मिडेनहॉल स्थलमार्ग से भारत पहुँचने वाला प्रथम अंग्रेज व्यापारी था। भारत के साथ स्थल मार्ग से व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करने वाली कंपनी लीवेंट (Livent) थी।
  • सितम्बर, 1599 - ब्रिटेन के व्यापारी जान मेयर ने सितम्बर 1599 ई. को व्यापारियों के सहयोग से एक कंपनी का गठन किया था। इस कंपनी का नाम 'Governer and Company of marchant of landon treding to the east Indies' था।
  • प्रारंभ में इस कंपनी का उद्देश्य इंडोनेशिया द्वीप (मशाला द्वीप) के साथ मशालों का व्यापार करना था। इस कंपनी को जॉन की कंपनी (John's Company) भी कहा गया । 
  • दिसंबर, 1600 - ब्रिटेन की महारानी ऐजिलाबेथ टेलर प्रथम ने कंपनी को 15 वर्षों के लिए व्यापार की अनुमति प्रदान किया। परन्तु कभी भी 3 वर्ष पूर्व की सूचना देकर सरकार कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर सकती थी ।
  • कैप्टन हॉकिन्स (1608-1611 ) - हॉकिन्स, तुर्की तथा फारसी दोनों भाषाओं का जानकार था। हॉकिन्स ने जहांगीर से मुगलों की राजकीय भाषा फारसी में बात किया। इसका प्रभाव जहांगीर पर सकारात्मक पड़ा।
    • मुगल शासक जहांगीर ने हॉकिन्स को 400 मनसब प्रदान किए एवं 'फिरंगी खान' की उपाधि भी प्रदान किया।
    • जहाँगीर ने हॉकिन्स की शादी अर्मेनियाई इसाई मुबारक शाह की बेटी से करा दिया था ।
    • हॉकिन्स के साथ ही प्रसिद्ध यात्री विलीयम फिंच (Willium Finch) भी भारत आया था।
    • विलीयम फिंच (Willium Finch) ने ही अनारकली की दंत कथाओं का वर्णन किया है।
    • विलीयम फिंच (Willium Finch) के द्वारा जहांगीर की संपत्ति तथा उसके दरबारी कानूनों का भी वर्णन किया है।
    • इसी क्रम में जहागीर ने हॉकिन्स को अंग्रेजी फैक्ट्री बनाने की अनुमति तो प्रदान किया। किंतु बोहरा व्यापारियों एवं पुर्तगालियों के दबाव में आकर आदेश वापस ले लिया था।
    • अंततः वर्ष 1608-11 तक हॉकिन्स भारत में रहा तथा उसके बाद असफल होकर वापस चला गया था।
  • 1611 - इस वर्ष मसुलीपत्तनम (आंध्र प्रदेश) में अंग्रेजों के द्वारा भारत में प्रथम अस्थायी कारखाना स्थापित किया गया था।
  • 29 नवम्बर, 1612 - ब्रिटिश कमांडर, मिडलटन तथा सेनापति थामस बेस्ट के नेतृत्व में स्वाल्ली नामक स्थान पर पुर्तगालियों का अंग्रेजों से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजी नौशक्ति ने पुर्तगालियों पर विजय प्राप्त किया इस युद्ध के पराजय के पश्चात् पुर्तगाली व्यापारिक एकाधिकार समाप्त होता गया ।
  • स्वाल्ली (1613 ) - युद्ध से प्रभावित जहाँगीर ने एक आज्ञापत्र के माध्यम से अंग्रेजों की प्रथम कोठी की स्थापना किया था । 1613 में सूरत में स्थापित कारखाना अंग्रेजों की स्थापित प्रथम स्थायी कारखाना था।
    • 1663 - इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने 10 पाउंड वार्षिक कर के बदले में बंबई किराए पर अंग्रेजों को दे दिया। अगले 8 वर्षों में गेराल्ड अंगियार (बंबई के संस्थापक) ने बंबई को आधुनिक रूप दिया था। इस नवीन संरचना के पश्चात् बंबई को पूर्ण आधुनिक शहर में परिवर्तन कर दिया गया तथा बंबई का प्रथम संस्थापक 'जार्ज ऑक्साईन' था।
    • 1688 - इस वर्ष इंग्लैंड में गौरवमय रक्तहीन MODERN HISTORY हुई । अहिंसा के दम पर सत्ता में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। उदारवादी दल की सत्ता स्थापित हुई। इस राजनीतिक परिवर्तन के क्रम में नए राजा एवं रानी भी स्थापित किए गए। विलीयम तृतीय एवं मेरी राज- रानी बनाए गए।
      • इस कालखण्ड में इस्ट इंडिया कंपनी की भांति भारत से व्यापार करते हुए अनेक कंपनीयाँ बनाई गई। कुछ नवीन व्यापारियों के एक समूह के द्वारा "न्यू इंडिया कंपनी" भारत से व्यापार के उद्देश्य से स्थापित की गई। 'न्यू इंडिया' कंपनी के द्वारा 'न्यू ब्रीज' नामक जहाज भी खरीद लिया गया ।
      • इंग्लैंड के तत्कालीम राजनीतिक सत्ता के सहयोग से 'न्यू इंडिया कंपनी' को भारत से व्यापार की अनुमति भी प्राप्त हो गया।
      • वर्ष 1608 से भारत में व्यापार कर रही पुरानी कंपनी 'जॉन की कंपनी' थी। न्यू इंडिया कंपनी को भारत में प्रस्पिर्द्धा इसी कंपनी से करना था ।
    • 1708 - इस वर्ष तक भारत के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से तीन अन्य कंपनियाँ भी गठित हो गई। इन सभी कंपनियों को आपसी व्यापारिक संघर्ष प्रारंभ हो गया और भारत की व्यापारिक स्थिति असंतुलित हो गई।
      • इस व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा की समस्या से बचाव हेतु गुडाल्फीन के राजकुमार के द्वारा इंग्लैंड की संसद में यूनाइटेड बिल का प्रस्ताव रखा गया। जिसके अन्तर्गत तीनों कंपनियों का सम्मीलन करना था।
      • अंततः एक नवीन कंपनी 'The united and Company of marchant of london treding to the east' का गठन किया गया।
      • इसी कंपनी को संक्षिप्त में East India Company भी कहा जाता है ।

    इस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार

    • पश्चिमी तट पर -
      • अंग्रेजों ने वर्ष 1613 में सूरत में अपना प्रथम स्थायी कारखाना स्थापित किया था।
      • 1623 ई. तक भड़ौच, बड़ौदा, खम्भात, अहमादाबाद एवं आगरा तक कंपनियाँ (फैक्ट्रीयाँ) स्थापित हो गई।
      • ईरान के सैन्य सहयोग के दम पर अंग्रेजों ने 1628 में हमुर्ज के बंदरगाह पर कब्जा कर लिया।
    • बंबई- पुर्तगालियों से दहेज में अंग्रेज राजा चार्ल्स-11 को 1661 में प्राप्त हुआ।
    • 1669-77 – जेराल्ड अंगियार ने बंबई को विकसित किया। -
      • बंबई में अंग्रेजों ने सिक्के ढालने की व्यवस्था स्थापित किया। कालांतर में यहाँ के ढाले सिक्के समूचे भारत में मान्य हुए।
    • 1687 - इस वर्ष में बंबई पश्चिमी तटों का केन्द्र (मुख्यालय) बन गया।

    पूर्वी तटों पर कंपनी का विस्तार

    • 1611- इस वर्ष अंग्रेजों ने मसुलीपट्टनम (आध्रं प्रदेश ) में प्रथम अस्थायी कारखाना स्थापित किया था।
    • 1626 – अरमागांव (पुलीकट के निकट) में अंग्रेजों ने दूसरी बस्ती का निर्माण कराया था।
    • 1632 - इस वर्ष गोलकुंडा के शासक ने सुहरा फरनान (Golden order) प्रदान किया। इस फरमान (आदेश) में 500 पैगोडा ( डचों की स्वर्ण मुद्रा) के बदले गोलकुंडा के बंदरगाह पर मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान किया था। जबकि वर्ष 1661 में अंग्रेजों को सिक्का ढालने का अधिकार प्राप्त हुआ था।
    • 1633 - इस वर्ष उड़ीसा में बालासोर, हरिपुर तथा कासिम बाजार ( पश्चिम बंगाल ) पटना (बिहार) इत्यादि स्थान पर व्यापारिक कोठियाँ स्थापित करने की अनुमति प्राप्त हुआ ।
    • इस वर्ष 'फ्रांसीसी डे' नाम अंग्रेज के द्वारा चंद्रगीरी के शासक 'दरमेला वेंकट्टप्पा' से जमीन लीज पर प्राप्त किया तथा वहाँ 'मद्रास' नामक शहर की स्थापना कराई।
      • मद्रास के किले का नाम 'सेंट फोर्ट जार्ज' रखा।

    बंगाल में कंपनी का विस्तार

    • 1651 में हुगली में व्यापारिक कंपनी का निर्माण कराया गया था। इस कोठी की स्थापना का श्रेय 'ब्रिजमैन' को जाता है। ब्रिजमैन के साथ डॉ. बैटन ने बंगाल के शासक शाहशुजा की बहन का इलाज किया था। इस घटना के पश्चात् शाहशुजा ने 3000 Rs. के बदले बंगाल में कर मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान किया था।
    • 1658 – इस वर्ष बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के समस्त क्षेत्र मद्रास स्थित सेंट जॉर्ज फोर्ट के अधीन कर दिया गया था।
    • 1686 – एक राजनीतिक घटना के पश्चात् औरंगजेब ने अंग्रेजों को हुगली के तट पर दंडित किया तथा समस्त व्यापारिक गतिविधि बंद कर बस्तियाँ खाली करने का आदेश भी दिया था।
    • 1690 – एक अंग्रेज अधिकारी जॉब चारनाक ने मुगलों को 1,50,000 Rs. जुर्माना भुगतान किया तथा पुनः व्यापारिक अधिकार प्राप्त किया था। अंग्रेजों ने सूतानाती नामक गांव भी खरीद लिया था।
    • 1690 - बंगाल में वर्द्धमान के जमींदार शोभा सिंह तथा रहिम खान के द्वारा विद्रोह कर दिया गया। इसके साथ तत्कालीन बंगाल की समस्त शक्तियाँ अपनी फैक्ट्रीयाँ किलाबंद करने लगी। इसी अवसर का लाभ अंग्रेजों ने भी उठाया तथा अपनी फैक्ट्रीयों की किलाबंदी कर लिया। किलाबंदी का आदेश तात्कालीन बंगाल के शासक अजीमुशान के द्वारा दिया गया था।
    • 1698 – अजीमुशान ने 1200 Rs. के बदले तीन गांव अंग्रेजों को सौंप दिया था। इसी गांवों के स्थान पर वर्ष 1700 ई. में जॉब चारनाक ने कलकत्ता नामक शहर की स्थापना किया। कलकत्ता में हो 'फॉर्ड विलीयम' किले की स्थापना किया गया 'चार्ल्स आयर' को इस किले का संस्थापक नियुक्त किया गया था।
    • 1709 ई. में बंगाल के शासक शाहसुजा ने सीमा शुल्क 32% से घटाकर 2½% कर दिया था।

    अंग्रेजों का व्यापारिक मैग्नाकार्टा

    • 1717–मुगल शासक फर्रुखशीयर पिलीया रोग से पीड़ित था। अंग्रेज डॉक्टर जॉन सरमन अपने दल के साथ मुगल दरबार पहुँचे तथा इसके रोग का इलाज किया। इसके शिष्टमंडल में चार सदस्य थें।
      (i) सर जॉन सरमन
      (ii) डॉ. हॅमिल्टन (पिलीया विशेषज्ञ)
      (iii) ख्वाजा सेहूर्द (अर्मेनिया का द्भाषिया)
      (iv) एडवर्ड एटीफेशन विलीयम
      • इस शिष्टमंडल से फर्रूखशीवर प्रभावित हुआ तथा भारत में अंग्रेजों को व्यापारिक एकाधिकार की असीमित शक्तियाँ प्रदान कर दिया। 
      • रु. 3000 के बदले बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में कर मुक्त व्यापार का अधिकार ।
      • कलकत्ता के नजदीक 38 गांव अंग्रेजों को खरीदने का अधिकार प्रदान किया।
      • रु. 10,000 के बदले अंग्रेजों को सूरत के बंदरगाह में करमुक्त व्यापार का अधिकार ।
      • बंबई में ढाले सिक्के को समूचे भारत में चलाने का अधिकार ।
      • आम्स महोदय ने इस 1717 के व्यापारिक एकाधिकार को अंग्रेजों का 'मैग्नाकार्टा' कहा था।

    फ्रांसीसी (The French)

    यूरोप में फ्रांस भी शक्तिशाली राष्ट्रों में शामिल था तथा यूरोप में अंग्रेजों का प्रमुख प्रतिद्वंदी भी था। कुछ राजनीतिक एक राष्ट्र की समस्याओं के कारण फ्रांस में व्यापारिक कंपनी का निर्माण एवं नौसैन्य शक्ति को मजबूत होने में समय लग गया। फ्रांस में कंपनी निर्माण की प्रक्रिया फ्रांस के तात्कालिन राजा लूई-14 के कार्यकाल में प्रारंभ हुआ था। फ्रांस के मंत्री कोलबर्ट (Colbert) एवं रिचलू (Reschlu) के पहल पर फ्रेंच इस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी ।
    • वर्ष 1664 में स्थापित फ्रांसीसी कंपनी को "कंपनी द इंडस ओरियंटल (Companie des Indes Orientals) नाम दिया गया था। यह कंपनी पूर्णत: फ्रांसीसी सरकार के नियंत्रण में थी ।
    • भारत पहुँचने वाला प्रथम फ्रांसीसी दल 1667 में फ्रैंक मैरो की अध्यक्षता में भारत पहुँचा था । इस दल का सहयोगी ईरानी का स्थायी निवासी 'मकरारा' भी था।
    • वर्ष 1668 में सूरत में फ्रांस के द्वारा प्रथम फ्रांसीसी फैक्ट्री की स्थापना की गई थी। इसी क्रम में व्यापार विस्तार के उद्देश्य से ईरानी सहयोगी "मकरारा" के ग से पूर्वी तट पर वर्ष 1609 में मसुलीपट्टम में फ्रांसीसी कंपनी स्थापित किया गया।
    • फ्रांसीसी शक्ति विस्तार के क्रम में व 1672 में एडमिरल डेला रे गोलकुंडा के सुल्तान को परास्त कर सैंटथामें को बलपूर्वक प्राप्त कर लिया।
    • फ्रांसीसी कंपनी के निदेशक फ्रांसीसी मार्टिन ने अपने सहयोगी 'बेलांग लेस्सिने' की सहायता से वेलांडपुरम के मुस्लिम सूबेदार शेर खां लोदी से पुर्दुचुरी नामक गांव प्राप्त किया था। इस गांव का नामांकरण 'पांडिचेरी' के नाम से किया गया।
    • वर्ष 1701 में पांडिचेरी को पूर्वी तट स्थित समस्त बस्तियों का प्रमुख केंद्र बना दिया गया था।
    • डच फ्रांसीसी व्यापारिक संघर्ष में डचों ने अंग्रेजों की सहायता से पांडिचेरी छीन लिया था। किंतु 1697 संपन्न रिजविक की संधि के पश्चात् पांडिचेरी पुनः फ्रांसीसी को प्राप्त हो गया।
    • पांडिचेरी के कारखाने में ही फ्रांसीसी निदेशक 'फ्रांसीसी मार्टिन' ने एक किले का निर्माण कराया। इस किले का नाम मार्टिन ने फॉर्टलूई रखा।
    • फ्रांस वर्ष 1674 में बंगाल के तत्कालीन नवाब शाइस्ता खां (औरगजेब का मामा) ने कुछ भूमि आवंटित किया था। इसी जमीन पर वर्ष 1690-92 में चंद्रनगर स्थापित किया था। 

    फ्रांसीसी कंपनी द्वारा स्थापित कारखाने

    • 1721, मॉरीशस
    • 1724, मालाबार स्थित माहे
    • 1739, कराइकल
    • वर्ष 1731 में चंद्रनगर (बंगाल) के प्रमुख रूप में फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले की नियक्ति हुई थी।
    • फ्रांसीसी व्यापारिक अक्रामकता में डुप्ले को बहुत योगदान था। इसके कार्यकाल में फ्रांसीसी व्यापारिक साम्राज्य में क्षणिक विस्तार हुआ।
    • डुप्ले (Duple) ने भारत में व्यापारिक साम्राज्य विस्तार के लिए भारत के आंतरिक राजनीति में प्रवेश एवं हस्तक्षेप प्रारंभ किया था। इसके हस्तक्षेप ने अंग्रेज एवं फ्रांसीसी सेना को युद्ध के लिए प्रेरित किया ।

    आंग्ल- फ्रांसीसी संघर्ष

    1. प्रथम कर्नाटक युद्ध (1740-48)
    2. द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54)
    3. तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-63)
    • कर्नाटक युद्ध के कारण-
      • इन दोनों कंपनियाँ व्यापारिक महत्वकांक्षा के लिए भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने लगी। राजनीतिक वर्चस्व के दम पर भारत में व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त किया जा सकता था। इस कारण दोनों कंपनियाँ युद्धरत हो गई।
      • यूरोप में अस्ट्रिया (Austria) की महारानी मारिया थेरेसा के मृत्यु के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष प्रारंभ हो गया था। यूरोप में इंग्लैंड एवं फ्रांस दोनों देश लड़ रहे थे। भारत का प्रथम कर्नाटक युद्ध इस युद्ध का विस्तार मात्र था ।
      • भारत के राजनीति में केन्द्रीय एवं शक्तिशाली सत्ता का अभाव था। जो समूचे भारत को बांधकर रख सके। भारत के तीनों शक्तियाँ मराठा, मुगल एवं निजाम तीनों आपसी संघर्ष में व्यस्त थे। इस कारण विदेशी कंपनियों को अपने राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ाने में मदद प्राप्त हुआ।
      • विलीयम फिंच (Willium Finch) ने ही अनारकली की दंत कथाओं का वर्णन किया हैं।
    • प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48)-
      • अंग्रेज कैप्टन बनैट के नेतृत्व की एक सेना ने पांडिचेरी जा रही एक फ्रांसीसी जहाज पर कब्जा कर लिया ।
      • पांडिचेरी फ्रांसीसीयों का मुख्यालय था जहां जहाज जा रही थी।
      • कर्नाटक के गवर्नर डुप्ले (Duple) ने मारीशस के तत्कालीन फ्रांसीसी सेनापति ला बूर्दन के सहयोग से डुप्ले ने मद्रास के अंग्रेज गवर्नर निकोलस मोर्स को आत्मसमपर्ण के लिए मजबूर कर दिया। इस युद्ध में अंग्रेज फ्रांसीसी नौसेन्य शक्ति के समक्ष आत्मसमर्पण कर चुके थे।
      • इसी क्रम में कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन ने कप्तान महफूज अली के नेतृत्व में 10,000 सैनिकों ने नवाब की सेना को पराजित कर दिया। यह युद्ध सेंटथॉमे नदी के मुहाने पर लड़ा जा रहा था। इस युद्ध को कालांतर में सेंटथॉमे का युद्ध भी बोला गया था।
      • इस युद्ध के विस्तार में 1748 में अंग्रेज रॉयल एडमिरल बोस्कार्बन के नेतृत्व में एक जहाजी बेड़ा ने पांडिचेरी की घेराबंदी की परन्तु असफल रहे।
      • यूरोप में अंग्रेज और फ्रांसीसी सेना के बीच युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध का उद्देश्य था अस्ट्रिया का उत्तराधिकार प्राप्त करना। एक्स-ला-शापेल संधि ने इस युद्ध को समाप्त किया। इसी संधि से भारत में भी प्रथम कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया। इस संधि से मद्रास पुनः अग्रेजों को प्राप्त हो गया था।
    • द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54 )-
      • प्रथम कर्नाटक युद्ध में विजय के पश्चात् फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले अति महत्वाकांक्षी हो गया। साम्राज्य विस्तार हेतु उसने कर्नाटक के आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप प्रारंभ कर दिया था।
      • डुप्ले के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने हैदराबाद के निजाम के चचेरे भाई मुज्जफर जंग का साथ दिया। साथ में नवाव अनवरुद्दीन का जीजा चंदा साहब था ।
      • इन दोनों संघों के बीच 3 अगस्त, 1749 को अंबूर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज एवं उनके समर्थक प्रथम चरण में पराजित हुए। दूसरे चरण में क्लाइव ने 'अर्काट के घेरा' की नीति से युद्ध का अंग्रेजों के पक्ष में पलट दिया।
      • चंदा साहब ने अंबूर (1749) में अनवरुद्दीन को पराजित कर मार डाला। इस युद्ध विजय के पश्चात् चंदा साहब की कर्नाटक में ताजपोशी हुई। हैदराबाद में मुज्जफर जंग भाई नासीर जंग से पराजित हुआ था। लेकिन 1750 में भाई नासीर की मृत्यु के पश्चात् मुज्जफर जंग दक्कन का सुबेदार बन गया।
      • इस युद्ध के विस्तार क्रम में अंग्रेजों का सहयोगी एवं कर्नाटक पूर्व नवाब अनवरुद्दीन का पुत्र मुहम्मद अली त्रिचनापल्ली के किले में भाग कर शरण लिया था। इसी किले में दो प्रसिद्ध अंग्रेज अधिकारी राबर्ट क्लाईव एवं स्ट्रींगर लॉरैस मौजूद थे। डुप्ले ने इस किले की घेराबंदी कर दिया। किला से क्लाईव यूक्तिपूर्वक बाहर निकल गया। इस किले से भागकर क्लाईव ने अर्काट घेरा की योजना बनाई थी।
      • राबर्ट क्लाईव ने बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से अर्काट (कर्नाटक की राजधानी) की घेराबंदी कर दिया। इस किले में तत्कालीन फ्रांस सर्मथित नवाब चंदा साहब मौजूद थे। चंदा साहब का क्लाईव से युद्ध हुआ। इस युद्ध में चंदा साहब गिरफ्तार कर तंजौर लाए गए जहाँ उनका कत्ल कर दिया गया था।
      • इस युद्ध के हार के पश्चात् फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले का कार्यकाल समाप्त कर दिया गया। दो यूरोपीय प्रभावशाली अधिकारी डुप्ले एवं क्लाईव थे । क्लाईव का भाग्योदय इस युद्ध विजय के पश्चात् हुआ जबकि डुप्ले का अंत हो गया।
      • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सीनीयर पीट्स ने राबर्ट क्लाईव को Haven Born Genral (स्वर्ग में जन्मा जनरल) की उपाधि प्रदान किया था।
      • डुप्ले को फ्रांस बुलाने के पश्चात् 'गोदहे' को फ्रांस का गवर्नर बनाय गया था।
      • द्वितीय कर्नाटक युद्ध की समाप्ति पांडिचेरी की संधि के पश्चात् हुआ था।
    • तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-63)-
      • इस युद्ध का प्रारंभ का तात्कालिक कारण था- दो अंग्रेज अधिकारी क्लाइव एवं सन द्वारा बंगाल स्थित फ्रांसीसी बस्ती चंद्रनगर पर बलपूर्वक अधिकार ।
      • वर्ष 1760 में अंग्रेज एवं फ्रांसीसी सेना के बीच वॉडिवास नामक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व सर आयर कूट ने किया जबकि फ्रांसीसी सेना को काउंट द लाली का नेतृत्व प्राप्त हुआ था । 
      • 16 जनवरी 1761 को पांडिचेरी पर अंग्रेजों ने पूर्णतः अधिकार कर लिया । 
      • तृतीय कर्नाटक युद्ध में वांडिवास युद्ध का नेतृत्व फ्रांसीसी सेनापति काउंट द लाली ने किया था। फ्रांसीसी सेना के पराजय के पश्चात् काउंट द लाली को अंग्रेजों ने केंदी बनाकर इंग्लैंड भेज दिया। विगत 2 वर्षों तक सेनापति काउंट दलाली अंग्रेजों के कैद में रहे उसके बाद फ्रांस को सौंप दिया। फ्रांस के राजा लुई 16 के आदेश पर त्रस्ताइल (बस) के किले में काउंट द लाली को फांसी दे दिया गया था।

    महत्वपूर्ण तथ्य

    • 1511 - पुर्तगालियों के द्वारा मलाया द्वीप स्थित मलक्कापर कब्जा कर लिया।
    • 1515- फारस खाड़ी के मुहाने स्थित हरमुज बंदरगाह पर पुर्तगालियों के द्वारा कब्जा कर लिया गया।
    • 1530 - उस वर्ष पुर्तगालियों के द्वारा गोवा की प्रशासनिक केन्द्र स्थापित किया ।
    • 1540 - प्रथम जेसइट मिशन फादर आकाविया एवं फादर मासरत अकबर के दरबार पहुँचा ।
    • 1560 - इस वर्ष पुर्तगालियों के द्वारा प्रथम इसाई धार्मिक न्यायालय की स्थापना । इस न्यायालय का उद्देश्य विधर्मी लोगों को सजा करना था।
    • 1612 - सूरत में इसी वर्ष अंग्रेज कप्तान थामस बेस्ट के नेतृत्व की सेना ने पुर्तगालियों को पराजित किया था ।
    • 1580 - इस वर्ष पुर्तगाल पर स्पेन का कब्जा हो गया। यह प्रमुख कारण था पुर्तगाली शक्ति का भारत में पराजित होने का ।
    • 1576 - डचों ने भारत आगमन के साथ दक्षिण एशिया से पुर्तगालियों को इस वर्ष तक बाहर कर दिया था।
    • 1613 - उस वर्ष पुर्तगालियों ने सूरत में मुगल शासक के शाही जहाज लूट लिए। जहांगीर इस घटना के पश्चात् सूरत के मुगल गवर्नर को पुर्तगालियों को दंडीत करने का आदेश दिया था। मुर्बरक खां ने अंग्रेजी नौसेना के कप्तान डॉबटन की सहायता से पुर्तगालियों को सामुद्रिक युद्ध में पराजित किया ।
    मुगल शासक एवं इसाई धर्म
    • कुल तीन बार पुर्तगाली मिशनरीज को अकबर ने सनिवेदन बुलाया था-
      1. 28 फरवरी 1580 को दो पादरी रोडक्लफो एक्वाविवा तथा ऐटोनियों मांसरेट दरबार पहुँचे।
      2. 1590 में दरबार पहुँचे तथा
      3. 1595 में तीसरा मिशन अकबर के दरबार में पहुँचा था ।
    • वर्ष 1606 में जहाँगीर के कार्यकाल में विशाल चर्च को कॉलेजियम या पादरी आवास बनाए रखने की अनुमति दी गई थी।
    • 1608 में आगरा में एक दीक्षा स्थान आयोजित किया गया।
    • इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम का राजदूत कैप्टन हॉकिन्स की जहाँगीर के दरबार में 1608 में उपस्थित हुआ था। हॉकिन्स के विद्वाता से प्रशन्न होकर जहांगीर ने अर्मेनियाई इसाई मुबारक शाह की बेटी से उसकी शादी करा दिया था।
    • पुर्तगालियों ने मुगल शासन के विरूद्ध जाकर हुगली को बंगाल की खाड़ी में लूट-पाट का अड्डा बना दिया था।
    • 1611 में स्थापित मसुलीपट्टनम का कारखाना प्रथम अस्थायी कारखाना है क्योंकि कुछ राजनीतिक विरोध के कारण इनको बंद करना पड़ गया था। तदोपरांत 1613 सूरत में अंग्रेजों ने प्रथम स्थायी कारखाना किया था।
    • वर्ष 1688 में बंबई एवं पश्चिमी समुद्र से मुगल बंदरगाहों का घेरा डाला जाने वाले हजयात्रियों को बंदी बनाने का प्रयास किया। इस कृत्य से गुस्साए औरंगजेब ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का "आदेश दिया था। मुगल शासक ने अंग्रेजों को माफी मांगने पर मजबूर कर दिया था।
    • भारत में व्यापारिक विस्तार के लिए अंग्रेज फ्रांसीसी संघर्ष हुए थे जिसमें विजयी रहे। इस विजय का प्रमुख कारण अंग्रेजी नौसेना का मजबूत होना था।
    • 1580 में पुर्तगाल का स्पेन के साथ जुड़ गया एवं स्पेन पतन के साथ पुर्तगाल का भी पतन हो गया ।
    • 1632 में पटना में इन (Dutch) इस्ट इंडिया कंपनी का प्रवेश द्वारा था जो आर्थिक तंगी के कारण बंद हो गया। वर्तमान में पटना लॉ कॉलेज उसी स्थान पर अवस्थित है।
    • नील की सबसे सर्वोच्च किस्म बनाया में तैयार की जाती थी।
    • विलियम हैजेज (1681-84 ) बंगाल का प्रथम चीफ एजेंट था।
    • एशिया में मुक्त व्यापार करने वाले व्यापारी इंटरपोलर कहलाते थे ।
    • फ्रांसीसी बस्तियों का वास्तविक संस्थापक फ्रांसीसी मार्टिन को माना जाता है।
    • फिजियोक्रेट :- मुक्त व्यापार करने के पक्षधर फ्रांसीसी फिजियोक्रॅट कहलायें ।
    • यूरोप से भारत आए 1616 इंनिश कंपनी ने अपनी प्रथम फैक्ट्री 1620 में तंजौर के ट्रेकबार में ( तमिलनाडु) में स्थापित किया था। जबकि दूसरी फैक्ट्री सीतारामपुर (बंगाल) में स्थापित किया था।
    • 1725 में डेनिश कंपनीयां अपना समस्त व्यापार अंग्रेजों न बेच दिया एवं वापस चले गए।
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    Tue, 16 Apr 2024 07:07:43 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मराठा साम्राज्य https://m.jaankarirakho.com/980 https://m.jaankarirakho.com/980 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मराठा साम्राज्य

    मराठा के पूर्वज मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक लोग हुआ करते थे। सिसोदिया वंश के शासक अपने आप को सूर्यवंशी कहा करता था ।

    मराठो के उदय के कई सारे कारण थे जिसमें जदुनाथ सरकार, एम०जी राणडे, सरदेसाई जैसे इतिहासकारो का मानना है कि मराठा साम्रज्य का उदय औरंगजेब के हिन्दु विरोधी नीति के कारण हुआ ।

    ग्रांट डफ नामक विद्धान ने मराठो के उत्पति को आकस्मिक अगिनकाण्ड की भाँति बताया है ।

    मराठा साम्रज्य के संस्थापक के रूप में शिवाजी का विवरण देखने को मिलता है | शिवाजी का जन्म अप्रैल 1627 ई0 में महाराष्ट्र के पूणे के शिवनेर दूर्ग मे हुआ था। इनके पिता शाहजी भोसलें जबकि माता जीजा बाई थी कालांतर में शाहजी भोंसले ने तुकाबाई मोहित से विवाह किया । इस प्रकार तुकबाई माहिते शिवाजी के सौतेली माँ हुई। शाहजी भोसले अपनी उपेक्षित पत्नी जीजाबाई तथा शिवाजी को पूना का जागीर सौंप कर खुद बीजापूर के सुल्तान के अधीन नौकरी कर लिया इस प्रकार शिवाजी को अपने पिता शाहजी भोंसले से पुना की जागीर प्राप्त हुआ। शिवाजी के संरक्षक दादाजी कोंडदेव थे इन्हीं के दिशा-निर्देशन में शिवाजी ने हिन्दु धर्म तथा हिदुत्व की रक्षा की शपथ ली । दादाजी कोंडदेब के दिशा निदेर्शन में ही शिवाजी मात्र 18 वर्ष की उम्र में 1645 ई. तक राजगढ, कोण्डाना, तोरण जैसे किला को जीतकर अपने आकर्षक व्यक्तित्व का परिचय दिया । यह भी मराठा साम्म्रज्य के उदय का कारण बना। दादाजी कोंडदेव को शिवाजी का राजनीतिक गुरू माना जाता है इनका निधन 1647 ई में हो गया। शिवाजी के अध्यात्मिक गुरू गुरूरामदास थे इन्होने दासबोध नामक ग्रंथ की रचना किया है। रामदास महाराष्ट के भक्ति अदोलन के एक प्रमुख संत हुआ करते थे। शिवाजी का विवाह मात्र 13 वर्ष की अवस्था में 1640 ई. में साईबाई निम्बालकर के साथ हुआ । 

    शिवाजी में 1656 ई. में रायगढ़ को अपनी राजधनी बनाया | और शासन करना शुरू किया शिवाजी की बढ़ रही शक्तियों को कुचलने हेतू बीजापूर के सुल्तान ने 1659 ई में अफजल खाँ को भेजा। लेकिन शिवाजी ने अफजल खाँ की हत्या कर दी इससे शिवाजी का मान-सम्मान और प्रतिष्ठा काफी बढ़ा। 1660 ई. शिवाजी के समकालीन मुगल बदशाह औरंगजेब ने शिवाजी की बढ़ रही शक्तियों के कुचलने हेतू शाइस्ता खाँ को भेजा । शाइस्ता खाँ शिवाजी को पराजित नहीं कर सका । शाइस्ता खाँ येन-केन-प्राकारेण शिवाजी से अपना जान बचाकर भागा तत्पश्चात् औरंगजेब ने शिवाजी को घेरने हेतु जयसिंह को भेजा ।

    जयसिंह ने शिवाजी के राज्य को चारों ओर घेर लिया। तत्पश्चात् शिवाजी और जयसिंह के बीच 1665 ई. में पुरंदर की संधि हुई । इस संधि के तहत् शिवजी अपने 35 किलों में से 23 किला मुगलों को सौंप दिया। साथ ही साथ इस संधि के तहत् शिवाजी मुगल राजदरबार में उपस्थित होने के शर्त के तहत् मई 1666 ई. में शिवाजी मुगलों के आगरा दरवार में उपस्थित हुए। लेकिन जब शिवाजी को मुगल राजदरबार में उचित सम्मान नहीं मिला तत्पश्चात् वे औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर दिया । शिवाजी के विद्रोह के पश्चात् उन्हें कैद कर आगरा के जयपुर भवन में रखा गया। लेकिन शिवाजी तुरंत षड्यंत्र के तहत् अगस्त 1666 ई. में जयपुर के भवन से भागने में सफल हुआ ।

    शिवाजी ने मुगलों के मुख्य व्यापारिक केंद्र सुरत को दो बार 1664 तथा 1670 में लुटा । शिवाजी से प्रभावित होकर औरंगजेब शिवाजी के शासनकाल के दौरान उन्हें "राजा" की उपाधि प्रदान की। शिवाजी के शासनकाल के दौरान उन्हें सहयोग देने हेतू 8 मंत्रियों का एक परिषद था जसे अष्टप्रधान कहा जाता था। जो निम्न है-

    1. पेशवा- प्रधानमंत्री को पेशवा कहा जाता था । यह सबसे महत्वपूर्ण पद था ।
    2. सर-ए-नौबतः - सेनापति को कहा जाता था ।
    3. अमात्यः- राजस्व मंत्री या मंत्री को कहा जाता था ।
    4. सुमन्तः - विदेश मंत्री को कहा जाता था ।
    5. वाकयानवीस:- गुप्तचर को कहा जाता था ।
    6. चिटनिस :- पत्र को आदान-प्रदान करने वाला ।
    7. पंडितराव :- धार्मिक एवं दान विभाग प्रमुख ।
    8. न्यायधिशः - न्यायिक कार्य करने वाला ।
    ★ शिवाजी ने जून 1674 ई. में काशी के प्रसिद्ध विद्वान श्री गंगा भट्ट के द्वारा अपना राज्याभिषेक करवाया तथा छत्रपति की उपाधि धारण किया। शिवाजी अपने शासनकाल के दौरान अपने साम्राज्य के क्षेत्रों को दो वर्गो में बाँटा-
    (1) स्वराज्य:-
    वैसा क्षेत्र जहाँ प्रत्यक्ष तौर पर शिवाजी या मराठों का शासन था उसे स्वराज्य कहा जाता था। इन क्षेत्रों से किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं लिया जाता था ।
    (2) मुघतई:-
    वैसा क्षेत्र जो मुगलों या बीजापुर के सुल्तान के अधीन था लेकिन शिवाजी उस पर अपना अधिकार बताता था। इन क्षेत्रों से ही चौथ एवं सरदेश मुखी नामक कर लिया जाता था ।
    करः-
    शिवाजी अपने पड़ोसी क्षेत्रों के शासक को कहा करते थें कि आप अपने उत्पादन का एक चौथाई हमें राजस्व के रूप में दे दीजिए तत्पश्चात् हम आपके राज्य पर आक्रमण नहीं करेगें। इसे ही चौथ कहा जाता था ।
    सरदेशमुखी:-
    जिन क्षेत्रों पर मुगलों या बीजापुर के सुल्तान का शासन था उन क्षेत्रों से जो शिवाजी कर की वसूली किया करते थें उसे ही सरदेशमुखी कहा जाता था ।
    • शासन-प्रशासन करते हुए अंततः 1680 ई. में शिवाजी का निधन हुआ उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनके पुत्र शम्भा जी बना।

    • शिवाजी ने अपना पहला राजनीतिक अभियान 1643 ई. में सिंहगढ़ के किला का किया। वही शिवाजी के अंतिम राजनीतिक अभियान 1676-78 के दौरान कर्नाटक का अभियान रहा है । इस अभियान के अंतर्गत शिवाजी ने 1678 ई. में जिंजी के किला का अभियान किया । यहाँ का किलादार अब्दुल्ला हब्शी था । इस अभियान के पश्चात् शिवाजी बीमार रहने लगें और अंततः 1680 ई. में "ज्वर (बुखार)" से उनका निधन हो गया। शिवाजी की सात पत्नी थी उनमें से पुतलीबाई शिवाजी के निधन के पश्चात् सती हो गयीं

    शिवाजी के उत्तराधिकारी

    • शिवाजी के उत्तराधिकरी के रूप में उसके पुत्र शम्भाजी का विवरण देखने को मिलता है। उन्होनें उज्जैन के प्रसिद्ध विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार बनाया । इनका मुगलों के साथ हमेशा संघर्ष होते रहा था । अंततः 1689 ई. में मुगल सेनापति मर्खरम खाँ ने शम्भाजी और कवि कलश की हत्या कर दी । 
      शम्भाजी के उत्तराधिकारी के रूप में उसके बड़े भाई राजाराम का विवरण देखने को मिलता है। इन्होनें अपनी द्वितीय राजधानी सतारा को बनाया । मुगलों से संघर्ष करते हुए 1700 ई. में मारे गए। इनका उत्तराधिकारी इनका अल्प वयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय बना। शिवाजी द्वितीय की माता ताराबाई थी जो कि मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका शिवाजी द्वितीय के शासनकाल के दौरान बनी रही थी ।
      1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल बादशाह बहादुरशाह प्रथम वनें इन्होनें शम्भाजी के पुत्र साहुजी को मुगल कैद से छोड़ दिया । तत्पश्चात् साहुजी महाराष्ट्र लौटे। साहुजी ने ताराबाई से अपने अधिकार की माँग की। इसी संदर्भ में 1707 ई. ताराबाई और साहुजी के बीच खेड़ा का युद्ध हुआ । इस युद्ध में बालाजी विश्वनाथ के साथ देने के कारण साहुजी की जीत हुई तत्पश्चात् साहुजी 1708 ई. में सतारा में अपना राज्याभिषेक करवाया और छत्रपति की उपाधि धारण की ।
      साहुजी ने अपना पेशवा बालाजी विश्वनाथ को बनाया। पेशवा का पद वंशानुगत था। पेशवा लोग पुणे में रहा करते थें । बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना जाता है।

    पेशवा काल (1713-1720)

    • बालाजी विश्वनाथ को प्रथम पेशवा माना जाता है । इनका शासनकाल 1713-1720 है। इनके निधन के पश्चात् अगले पेशवा बाजीराव प्रथम बनें हैं। इनका शासनकाल 1720-40 है।

    बालाजी विश्वनाथ (1713 - 1720)

    बाजीराव प्रथम (1720-40)

    • ये अपने शासनकाल के दौरान कुल 29 युद्ध लड़े। इन्हें रिचर्ड टेम्पल नामक विद्वान ने लड़ाकू पेश्वा का उपाधि प्रदान किया। मस्तानी नामक मुस्लिम महिला के साथ संबंध होने के कारण यह काफी अधिक चर्चा में रहा था । 1728 ई. में इनका संघर्ष हैदराबाद के निजाम के साथ हुआ था । इस संघर्ष को पालखेड़ा के युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में बाजीराव प्रथम की जीत हुई । इस युद्ध की समाप्ति "मुंशी शिवगाँव की संधि" के तहत् हुआ है। ये दिल्ली के उपर आक्रमण करने वाला प्रथम पेशवा था । इन्होनें 1737 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया उस समय मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला था । जो दिल्ली छोड़ने को तैयार हो गया । इन्होनें 1739 ई. में पुर्तगालियों से वसीन का क्षेत्र छीन लिया। इनका निधन 1740 ई. में हो गया ।

    बालाजी बाजीराव (1740-61)

    • इन्हें भारतीय इतिहास में नाना साहब के नाम से जाना जाता है। इनके शासनकाल के दौरान 1749 ई. में मराठा छत्रपति साहुजी का निधन हो गया । इन्हीं के शासनकाल के दौरान 1750 ई. में संगोला की संधि हुई। यह संधि मराठा पेशवा तथा छत्रपति के बीच हुआ । इस संधि के तहत् छत्रपति की सारी शक्तियाँ मराठा पेशवा ने अपने में समेकित कर लिया। इनके शासनकाल में पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ ।

    पानीपत का तृतीय युद्ध

    • यह युद्ध 1761 ई. में मराठों और अफगानों के बीच हुआ। इस युद्ध में मराठों का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ और विश्वास राव भाऊ ने किया था । ये दोनों युद्ध लड़ते हुए हुए मारे गए। इस युद्ध में अफगानों का नेतृत्व अहमदशाह अब्दाली ने किया। इस युद्ध में मराठों की हार हुई। इस युद्ध के हार को ना सह पाने के कारण बालाजी बाजीराव का निधन 1761 ई. में हो गया ।
      बालाजी बाजीराव का उत्तराधिकारी माधव राव ( 1761 - 72 ) बना। इन्होनें मराठों की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस लौटाने का प्रयास किया । इन्होनें मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया । अचानक 1772 ई. में TV नामक बिमारी के कारण इनका निधन हो गया। माधवराव का उत्तराधिकारी उसका भाई नारायण राव बना । नारायण राव की हत्या उनके चाचा रघुनाथ राव ने कर दी और खुद को पेशवा घोषित किया। रघुनाथ राव के पश्चात् अगले पेशवा नारायण राव के पुत्र माधव नारायण राव द्वितीय बनें जो अल्प वयस्क था। इनके शासनकाल के दौरान बारह भाई सभा परिषद नामक संस्था शासन प्रशासन को देखा करती थी। 12 भाई सभा परिषद में दो महत्वपूर्ण सदस्य नाना फडनवीश और महादजी सिंधिया थें। नाना फडनवीश का वास्तविक नाम बालाजी जर्नादन भानू था । इन्हें ग्रांड टफ नामक विद्वान ने मराठों का मैक्यावेली कहकर पुकारा है। माधव नारायण राव द्वितीय के बाद के पश्चात् अगले पेशवा बाजीराव द्वितीय बनें हैं।

    बाजीराव द्वितीय

    • यह अंतिम पेशवा था । बाजीराव द्वितीय अंग्रेजो की मदद से पेशवा बना था । सहायक संधि को स्वीकार करने वाला प्रथम पेशवा बाजीराव द्वितीय था। मराठों के पतन में सर्वाधिक योगदान बाजीराव द्वितीय का ही रहा है। इनके शासनकाल के दौरान द्वितीय और तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ है। वहीं प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध माधवनारायण राव द्वितीय के शासनकाल के दौरान हुआ था । तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध के दौरान अंग्रेजी कंपनी ने मराठा पेशवा पद को 1818 ई. में समाप्त कर दिया तथा बाजीराव द्वितीय को पेंशन देकर कानपुर के निकट विदुर भेज दिया । यहीं 1853 ई. में बाजीराव द्वितीय का निधन हो गया। इनका अपना कोई पुत्र नहीं था लेकिन इन्होनें एक पुत्र गोद लिया था उसका नाम घोंदू पंत था । इन्हें भारतीय इतिहास में नाना साहेब के नाम से जाना जाता है। इनके पिता बाजीराव द्वितीय के निधन के पश्चात् अंग्रेजी सरकार ने पेंसन देना बंद कर दिया जिसकी पैरवी इन्होनें अपने सलाहकार को इंग्लैंड भेजकर करवाया। इसके बावजूद अंग्रेजी सरकार नाना साहेब को पेंसन देने से इंकार कर दिया। जिस कारण नाना साहेब 1857 के विद्रोह में कानपूर से भाग लिए और जब इनकी हार होने लगीं तो ये नेपाल भाग गये । उसके पश्चात् इनका कोई खबर नहीं मिली ।

    आंग्ल मराठा युद्ध

    • कुल मिलाकर भारतीय इतिहास में तीन आंग्ल-मराठा युद्ध हुए हैं।
    (1) प्रथम - आंग्ल युद्धः-
    यह युद्ध 1775–82 के दौरान हुए हैं। इस युद्ध के दौरान बंगाल के गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थें। इस युद्ध में मराठों की हार हुई लेकिन इसके बावजूद पूना के उपर मराठों का अधिपत्य बना रहा। इस युद्ध की समाप्ति 1782 ई. में हुए सालबाई के संधि के तहत् हुआ ।
    (2) द्वितीय - आंग्ल मराठा युद्धः-
    यह युद्ध 1803-05 के दौरान हुए हैं । अंग्रेजो ने इस युद्ध के माध्यम से मराठा शक्ति को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया। इस युद्ध के समय बंगाल के गर्वनर जनरल लॉर्ड वेलेजली थें ।
    पिण्डारी:-
    यह मराठों का सहयोगी था । जो महाराष्ट्र के जंगल में रहता था और एक विशेष प्रकार का शराब पिण्ड का सेवन करता था। इसे मेल्कम ग्रे नामक विद्वान ने मराठों का कुत्ता कहकर पुकारा है। कलांतर में पिण्डारियों का दमन बंगाल के गर्वनर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स के द्वारा किया गया ।
    (3) तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध:-
    यह युद्ध 1817-1819 के दौरान हुए हैं। इस युद्ध के समय बंगाल के गर्वनर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स थें । इस युद्ध में मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय को जगह-जगह हार का सामना करना पड़ रहा था । बाजीराव द्वितीय कोरे गाँव तथा अष्टी के युद्ध पराजित होने के पश्चात् अंग्रेज अधिकारी मेल्कम के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। तत्पश्चात् अंग्रेजों ने 1818 ई. में पेशवा के पद को समाप्त कर दिया गया ! इस युद्ध के पश्चात् माराठा साम्राज्य के ऊपर अंग्रेजों के शासन की स्थापना हुई ।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. 'पुरन्दर की सन्धि' द्वारा मुगलों को प्रदान किए गए दुर्गों में से कौन-सा दुर्ग शिवाजी के द्वारा पुनर्विजित नहीं किया जा सका था ?
    (a) पुरन्दर
    (b) माहुली
    (c) लोहागढ़
    (d) शिवनेर
    2. शाहजी ने किससे पूना की जागीर प्राप्त की थी?
    (a) मुगलों से
    (b) आदिलशाह से
    (c) निजामशाही से
    (d) पुर्तगालियों से
    3. पानीपत का तीसरा युद्ध कब लड़ा गया ?
    (a) 14 जनवरी, 1760
    (b) 5 जनवरी, 1767
    (c) 14 जनवरी, 1767
    (d) 5 नवम्बर, 1556 
    4. किस मराठा राज्य ने सबसे अन्त में अंग्रेजों की सहायक सन्धि स्वीकार की थी?
    (a) गायकवाड़
    (b) सिन्धिया
    (c) होल्कर
    (d) भोसले
    5. औरंगजेब द्वारा 1660 ई. में किसको शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति का दमन करने के लिए नियुक्त किया गया था?
    (a) खफी खाँ 
    (b) शाइस्ता खाँ
    (c) दिलेर खाँ
    (d) मुबारिज खाँ
    6. मराठा घुड़सवार सेना की पच्चीस घुड़सवारों वाली सबसे छोटी इकाई थी
    (a) नायक
    (b) हवलदार
    (c) सरनौबत
    (d) जुमलादार
    7. शिवाजी की मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकार के लिए इनमें से किनके बीच लड़ाई हुई?
    (a) शम्भाजी और शिवाजी की विधवा
    (b) शम्भाजी और बाजीराव
    (c) राजाराम और शम्भाजी 
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
    8.  किस पेशवा के काल में मराठा शक्ति अपनी चरम सीमा पर पहुँची ?
    (a) बाजीराव प्रथम
    (b) माधवराव प्रथम
    (c) नारायण राव
    (d) बालाजी द्वितीय ( नाना साहब )
    9. पेशवाओं के अन्तर्गत मराठा नौसेना की जिम्मेदारी एक असाधारण योग्यता वाले नायक के हाथ में सौंपी गई, जिसका नाम था
    (a) कान्होजी आंग्रे
    (b) रावजी अप्पाजी
    (c) रामचन्द्र गणेश
    (d) फतेहसिंह भोंसले
    10. निम्नलिखित में से किन स्थानों पर धार्मिक भवनों के निर्माण में अहिल्याबाई ने बहुत धन खर्च किया?
    1. रामेश्वरम
    2. जगन्नाथपुरी
    3. द्वारका
    4. केदारनाथ
    नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर निर्दिष्ट कीजिए
    (a) 1 और 2
    (b) 2 और 3
    (c) 1, 2 और 3
    (d) 1, 2 3 और 4
    11. किसने कहा था “ हमें इस जर्जर वृक्ष के तने आक्रमण करना चाहिए, शाखाएँ तो स्वयं ही गिर जाएँगी”?
    (a) शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के लिए
    (b) बाजीराव प्रथम ने मुगल साम्राज्य के लिए
    (c) औरंगजेब ने दक्षिण राज्यों के लिए
    (d) क्लाइव ने बंगाल के नवाब के लिए
    12. निम्न में से मराठों से सम्बन्धित कौन-सा एक कथन सही नहीं है?
    (a) मराठा आन्दोलन ने शाहजी द्वारा उड़ीसा में एक वास्तविक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना का आरम्भ किया
    (b) पेशवा के पद पर बाजीराव 1720 ई. में आरूढ़ हुआ
    (c) मराटों द्वारा राजस्थान, दोआब के कुछ भाग एवं पंजाब पर आधिपत्य का प्रयत्न 1741 ई. में किया गया
    (d) मराठा आन्दोलन मराठा सरदारों के नेतृत्व में होने वाला एक आन्दोलन था
    13. कथन (A) : आजमशाह ने महाराष्ट्र में अपनी अनुपस्थिति के दौरान शाहू से नर्मदा क्षेत्र का नियन्त्रण सम्भालने की प्रार्थना की।
    कारण (R) : यह अनुभव किया गया था कि उस क्षेत्र में शाहू की उपस्थिति ताराबाई को कमजोर करेगी तथा आजम की अनुपस्थिति के दौरान मुगल अधिकार क्षेत्रों की सुरक्षा करेगी।
    कूट :
    (a) A और R दोनों सही हैं, तथा R. A की सही व्याख्या है
    (b) A और R दोनों सही हैं, परन्तु R, A की सही व्याख्या नहीं है
    (c) A सही है, किन्तु R गलत है
    (d) A गलत है, किन्तु R सही हैं 
    14. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. बाजीराव प्रथम ने दिल्ली के सम्राट की ओर से सैयद बन्धुओं से स्वराज का फरमान प्राप्त किया।
    2. बालाजी विश्वनाथ ने वसीन पर अधिकार कर के प्रयोजन से पुर्तगालियों के विरुद्ध सैन्य अभियान किया।
    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    15. निम्नलिखित में से किस स्थान के शासक ने अफजल खाँ के अधीन 1659 ई. में शिवाजी के विरुद्ध एक विशाल सेना भेजी थी?
    (a) बीदर
    (b) बीजापुर
    (c) गोलकुण्डा
    (d) खानदेश
    16. निम्न में से कौन-सा सुमेलित नहीं है? 
    (a) गुमाश्ता - सरदेशमुखी वसूल करने वाला अधिकारी
    (b) सहोत्रा - चौथ की आय का 6% पन्त - सचिव के लिए
    (c) पतदाम-विधवा पुनर्विवाह पर लगाया गया कर
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
    17. राजाराम की पत्नी एवं शिवाजी द्वितीय की माता नाम क्या था ?
    (a) जीजाबाई
    (b) अहिल्याबाई 
    (c) अवन्तिबाई
    (d) ताराबाई
    18. शिवाजी के अष्टप्रधानों में से दो को छोड़कर बाकी सभी को युद्ध में हिस्सा लेना होता था। इनमें से कौन अपवाद थे?
    1. पेशवा
    2. अमात्य
    3. पण्डित राव
    4. न्यायाधीश
    5. सचित्र
    कूट :
    (a) 1 और 5 
    (b) 2 और 3
    (c) 1 और 3
    (d) 3 और 4
    19. मराठा प्रशासन में 'पागा' क्या था ?
    (a) स्वतन्त्र सैनिक 
    (b) राज्य आश्रित सैनिक
    (c) पेशेवर सैनिक 
    (d) दूसरे देश के सैनिक
    20. पुर्तगालियों से सालसेट और बसीन मराठों ने चिमनाजी के नेतृत्व में कब जीत लिए ?
    (a) 1695 ई. 
    (b) 1713 ई.
    (c) 1720 ई.
    (d) 1739 ई.
    21. निम्न में से कौन अंग्रेज शिवाजी के राज्याभिषेक में उपस्थित हुआ और उसने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की ओर से उपहार भेंट किए थे?
    (a) रोल्ट
    (b) हेनरी ऑक्सिडेन
    (c) विलियम फिंच
    (d) विलियम लैंगहार्न
    22. मराठों द्वारा अंग्रेजों के साथ 1782 ई. की सालबाई की सिन्धि किसके आग्रह पर की गई थी ? 
    (a) पेशवा
    (b) गायकवाड़
    (c) सिन्धिया
    (d) होल्कर
    23. वह कौन- - सा मराठा सरदार था जिसे अलीवर्दी खाँ ने उड़ीसा के एक भाग का राजस्व प्रदान किया था ? 
    (a) रघुजी भोंसले
    (b) त्र्यम्बकराव घबाड़े
    (c) रानोजी सिन्धिया
    (d) मल्हारराव होल्कर
    24. शिवाजी की राजधानी कहाँ थीं?
    (a) रायगढ़
    (b) सिधुदुर्ग
    (c) पूना
    (d) कोल्हापुर
    25. निम्न में कौन-सा कथन सही सुमेल नहीं है? 
    (a) अमात्य / मजूमदार - राजस्व विभाग की देखरेख
    (b) गुरुनवीस/चिनिस - पत्र व्यवहार
    (c) दबीर / सुमन्त - विदेशी विभाग
    (d) सर नौबत - धार्मिक मामले
    26. शिवाजी की प्रशासन व्यवस्था में वाकियानवीस का क्या कार्य था ?
    (a) राज कर्मचारियों को मिलने वाले भुगतानों लोक लेखाओं की जाँच और प्रतिहस्ताक्षर
    (b) राजा की दैनिक गतिविधियों की दैनिकी रखना दरबार की घटनाओं
    (c) राजा के पत्राचार की देखभाल करना
    (d) धार्मिक उत्सव आयोजित करना तथा लोक नैतिकता का नियन्त्रक होना
    27. मराठा तोपखाने का प्रमुख व्यवस्थापक था 
    (a) इब्राहिम खाँ गार्दी 
    (b) मीर हबीब
    (c) खाण्डे राव दभदे
    (d) कन्होजी
    28. शिवाजी ने 'चौथ और 'सरदेशमुखी' वसूल करने का  निर्णय क्यों लिया? 
    (a) आय का साधन बढ़ाने हेतु
    (b) अपना भू-भाग बढ़ाने के लिए
    (c) राजनीतिक प्रभाव के सुदृढ़ीकरण हेतु
    (d) मुस्लिम शासकों के विरोध के कारण
    29. निम्न में कौन-सा कथन असत्य है ? 
    (a) शिवाजी की मन्त्रिपरिषद् - अष्टप्रधान
    (b) चौथ - राजस्व का 1/4 भाग 
    (c) हिन्दू - पद पादशाही उपाधि - बाजीराव
    (d) सालबाई सन्धि- 1780 ई. 
    30. सामाजिक सुधार, राष्ट्रीय पुनर्जीवन तथा मराठा शक्ति के उदय के लिए किस मराठा सन्त का सर्वाधिक महत्व है? 
    (a) एकनाथ
    (b) तुकाराम 
    (c) समर्थ रामदास
    (d) वामन पण्डित 
    31. निम्न में से किसे मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना गया?
    (a) वालाजी बाजीराव 
    (b) बालाजी विश्वनाथ
    (c) बाजीराव प्रथम
    (d) नारायण राव
    32. नाना साहेब के नाम से कौन पेशवा प्रसिद्ध रहा? 
    (a) बालाजी बाजीराव 
    (b) बाजीराव प्रथम
    (c) बालाजी विश्वनाथ
    (d) माधवराव प्रथम
    33. वह मराठा सरदार कौन था जिसने लाहौर पर अधिकार कर लिया और थोड़े समय के लिए पंजाब को मराठा आधिपत्य में ले लिया?
    (a) रघुनाथ राव
    (b) माधव राव
    (c) सदाशिव राव भाऊ
    (d) विश्वास राव
    34. मराठों के अधीन 'सरंजाम' क्या था ?
    (a) व्यापारी से लिया जाने वाला कर
    (b) राजस्व व्यवस्था जिसमें भूराजस्व का निर्धारण जमीन की नाप के आधार पर किया जाता था
    (c) मराठा प्रधानों द्वारा शासक को दी जाने वाली भेंट
    (d) जमीन की इकाई जिसका राजस्व सैनिक अधिकारियों को उनके वेतन के बदले दिया जाता था
    35. निम्न में से किसके मध्य 1731 ई. में वारना सन्धि हुई थी ? 
    (a) सतारा के शाहू छत्रपति तथा हैदराबाद के निजाम
    (b) कोल्हापुर के शम्भाजी तथा सतारा के शाहू छत्रपति
    (c) कोल्हापुर के शम्भाजी तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी
    (d) बाजीराव प्रथम तथा मोपाल के नवाब
    36. मराठी इतिवृत्त कहलाते थे 
    (a) चात 
    (b) बखार
    (c) बुरंजि
    (d) बाही
    37. मराठों की वह महिला सरदार कौन थी जिसने राजाराम की मृत्यु के बाद ( 1700 ई. के बाद) भी मुगल साम्राज्य के विरुद्ध स्वतन्त्रता संघर्ष जारी रखा 
    (a) अहिल्याबाई 
    (b) मुक्ताबाई
    (c) ताराबाई
    (d) जीजाबाई 
    38. शिवाजी और बाजीराव प्रथम के बीच एक उभयनिष्ठ विशेषता थी, जिसने युद्धों में उनकी सफलता सुनिश्चित की थी
    (a) हिन्दू पद पादशाही
    (b) हिन्दू राजाओं का समर्थन
    (c) छापामार युद्ध पद्धति 
    (d) संगठित और प्रशिक्षित सेना
    39. किस कारण से पेशवाकालीन मराठा प्रशासन दुर्बल हुआ ?
    (a) जागीर प्रथा का पुनरुत्थान
    (b) चौथा तथा सरदेशमुखी वसूल नहीं
    (c) निजाम के साथ शत्रुता
    (d) पुर्तगालियों के साथ दीर्घकालीन युद्ध
    40. रायगढ़ के स्थान पर 'जिन्जी' को मराठा कार्यकलापों का केंद्र किसने बनाया? 
    (a) ताराबाई
    (b) राजाराम
    (c) शम्भाजी
    (d) शाहू
    41. उत्तर भारत का वह कौन-‍सा भौगोलिक क्षेत्र है जहाँ मराठों को सर्वप्रथम पैर जमाने का अवसर मिला? 
    (a) बुन्देलखण्ड 
    (b) मालवा
    (c) बघेलखण्ड
    (d) बूँदी-कोटा
    42. शिवाजी का अन्तिम सैन्य अभियान था 
    (a) कर्नाटक अभियान
    (b) सलेहर का अभियान
    (c) जंजीरा के सिद्दियों के विरुद्ध अभियान
    (d) कोंडाना का अभियान
    43. मराठा काल में स्थायी घुड़सवार सेना एवं अस्थायी घुड़सवार सेना कहलाती थी 
    (a) पागा / बरगीर एवं सिलहदार
    (b) सिलहदार एवं पागा / बरगीर
    (c) पागा एवं बरगीर
    (d) बरगीर एवं पागा
    44. किसने 'प्रतिनिधि' पद का सृजन किया जो पदक्रम में पेशवा से भी ऊपर था ? 
    (a) शम्भाजी 
    (b) राजाराम
    (c) ताराबाई
    (d) शाहू
    45. मराठों ने सर्वप्रथम किसके अधीन कार्य कर प्रशासनिक अनुभव प्राप्त किया?
    (a ) देवगिरि के यादवों के अधीन
    (b) बीजापुर एवं गोलकुण्डा के अधीन
    (c) बहमनी सुल्तानों के अधीन
    (d) मुगल शासकों के अधीन
    46. मराठा मण्डल या परिसंघ ( मराठा सेनानायकों के बीच मराठा साम्राज्य का विभाजन) की नींव किसने डाली? 
    (a) शाहू 
    (b) बालाजी बाजीराव
    (c) बाजीराव प्रथम
    (d) राजाराम
    47. पेशवा के उत्थानोपरान्त मराठा शासनतन्त्र पेशवा के सचिवालय 'हुजूर दफ्तर' से संचालित होता था, वह स्थान कहाँ था?
    (a) सतारा
    (b) कोल्हापुर
    (c) पुणे
    (d) पुरन्दर
    48. किसने दिल्ली में मुगल बादशाह की सहायता के लिए रखे गए अपनी सेना का वेतन चुकाने के लिए दिल्ली के दीवान-ए-आम की छत से चाँदी निकलवा ली?
    (a) सदाशिव राव भाऊ
    (b) रघुनाथ राव
    (c) मल्हारराव
    (d) इनमें से कोई नहीं
    49. मराठा साम्राज्य का अन्तिम पेशवा था?
    (a) माधवराव
    (b) नारायण राव
    (c) माधवराव नारायण
    (d) बाजीराव II
    50. 1770 ई. में दिल्ली की गद्दी पर शाह आलम II को पुनर्स्थापित करने वाला मराठा सरदार था
    (a) महादजी सिन्धिया
    (b) नाना फड़नवीस
    (c) मल्हारराव होल्कर
    (d) रघुनाथ राव
    51. किस मराठा पेशवा को 'मैकियावेली' कहा जाता था ?
    (a) नाना फड़नवीस
    (b) बाजीराव - I
    (c) बालाजी बाजीराव
    (d) बालाजी विश्वासराव
    52. ग्वालियर राज्य की स्थापना किसने की थी ?
    (a) माधवराव सिन्धिया
    (b) बाजीराव सिन्धिया
    (c) महादजी सिन्धिया
    (d) जीवाजीराव सिन्धिया
    53. 'ऊपरी' निम्नलिखित में से किस एक को निर्दिष्ट करता है?
    (a) मराठी कविता की एक विधा जिसका मराठा काल में प्रादुर्भाव हुआ था।
    (b) मराठा शासन के अधीन धारित भूघृति (टेनेनी टेन्योर ) की एक श्रेणी
    (c) मराठा शासन में न्यायालय का एक पदधारी
    (d) मराठा शासन के अधीन उत्पीड़क भूस्वामियों के विरुद्ध विद्रोह करने वाले कृषकों का समूह
    54. शिवाजी की निम्नलिखित पलियों में कौन सती हुई? 
    (a) पुतलीबाई 
    (b) सकवारबाई
    (c) सोयराबाई
    (d) इनमें से कोई नहीं
    55. निम्न में से शिवाजी के विषय में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
    (a) फारसी इतिहासकार खफी खाँ ने शिवाजी की धार्मिक नीति की प्रशंसा की है
    (b) 'हिन्दवी स्वराज्य' की प्राप्ति के उद्देश्य से शिवाजी आगरे में सम्राट औरंगजेब से मिले
    (c) शिवाजी ने अपने पीछे एक स्थायी साम्राज्य छोड़ा
    (d) शिवाजी ने व्यापार एवं वाणिज्य की उपेक्षा की
    56. निम्न में से किस पेशवा के बारे में कहा जाता है कि उसकी मृत्यु के साथ ही मराठा साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हो गया?
    (a) माधवराव प्रथम 
    (b) नारायण रात्र
    (c) माधवनारायण रात्र
    (d) बालाजी बाजीराव
    57. बसीन को सन्धि ( 1802 ई.) के विषय में इतिहासकारों ने कहा है कि अंग्रेजों ने यह सन्धि 'शून्य' के साथ की। यह शून्य कौन था ?
    (a) बाजीराव द्वितीय
    (b) रघुनाथ रात्र
    (c) नाना फड़नवीस
    (d) दौलतराव सिन्धिया
    58. शिवाजी का राज्याभिषेक कहाँ और कब हुआ था?
    (a) कोंकण में, 1653 में 
    (b) मुम्बई में, 1665 में
    (c) पूना में 1660 में
    (d) रायगढ़ में, 1674 में
    59. शिवाजी का जन्म कहाँ हुआ था ?
    (a) पुरन्दर
    (b) पूना
    (c) रायगढ़
    (d) शिवनेर
    60. निम्न में से कौन-सा सुमेलित नहीं है?
    (a) सूरजमल-जाट
    (b) मल्हार राव - होल्कर
    (c) बालाजी बाजीराव - छत्रपति
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
    61. निम्न में कौन-सा कथन असत्य है?
    (a) मराठा साम्राज्य के ग्राम का निम्न अधिकारी कुलकर्णी होता था
    (b) मराठों का नौसैनिक अड्डा 'कोलाबा' में था
    (c) शिवाजी का जन्म 1627 ई. में शिवनेर में हुआ था
    (d) पुरन्दर की सन्धि शिवाजी के साथ 1664 में हुई
    62. शिवाजी मुगलों को कैद से भागने के समय कौन से नगर में कैद थे?
    (a) ग्वालियर
    (b) आगरा 
    (c) दिल्ली
    (d) कानपुर
    63. अहमदशाह अब्दाली के भारत पर आक्रमण और पानीपत की तीसरी लड़ाई का तात्कालिक कारण क्या था ?
    (a) वह मराठों द्वारा लाहौर से अपने वाइसराय तैमूरशाह के निष्कासन का बदला लेना चाहता था ।
    (b) उसे जालन्धर के कुंठाग्रस्त राज्यपाल अदीना वेग खान ने पंजाब पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया था।
    (c) ऋह मुगल प्रशासन को चहार महल (गुजरात, औरंगाबाद सियालकोट तथा पसरूर ) के राजस्व का भुगतान न करने के लिए दण्डित करना चाहता था
    (d) वह दिल्ली की सीमाओं तक के पंजाब के सभी उपजाऊ मैदानों को हड़प कर अपने राज्य में क्लिय करना चाहता था।
    64. 'मोडी लिपि का प्रयोग किसके अभिलेखों में किया जाता था ?
    (a) वाडवारों के
    (b) जमोरिनों के
    (c) होय्सलों के
    (d) मराठों के
    65. शिवाजी ने मुगलों को किस युद्ध में हराया था ? 
    (a) पुरन्दर 
    (b) रामगढ़
    (c) सलहेर
    (d) शिवनेर
    66. निम्न में से किस सन्धि द्वारा पेशवा मराठा राज्य का वास्तविक मुखिया बन गया ? 
    (a) बसीन की सन्धि
    (b) संगोला की सन्धि
    (c) सुरजी-अर्जुनगाँव की सन्धि
    (d) सालवाई की सन्धि 
    67. रघुनाथ राव ने 1757 में दिल्ली पर आक्रमण कर किसे मीर बक्शी नियुक्त किया? 
    (a) नजीबुद्दौला
    (b) अहमदशाह बंगश
    (c) गाजीउद्दीन
    (d) शुजाउद्दौला
    68. निम्न में से किस व्यक्ति ने हैंदव धर्मोद्धारक एवं गौब्राह्मण प्रतिपालक की उपाधि धारण की?
    (a) शिवाजी 
    (b) बालाजी विश्वनाथ
    (c) बालाजी बाजीराव
    (d) इनमें से कोई नहीं
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    Tue, 16 Apr 2024 05:17:32 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | सूरी वंश (1540&1555) https://m.jaankarirakho.com/979 https://m.jaankarirakho.com/979 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | सूरी वंश (1540-1555)

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये एवं कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चयन करें- 
    1. शेरशाह का बचपन का नाम 'फरीद खाँ' था।
    2. शेरशाह का आरंभिक शिक्षा जौनपुर में संपन्न हुई।
    3. शेरशाह को 'शेर खाँ' की उपाधि बहार खाँ लोहानी ने प्रदान किया।
    4. शेरशाह ने चंदेरी के युद्ध में मुगलों के विरूद्ध लड़ा था।
    उपर्युक्त में से कौन-सा / से सत्य है/हैं ?
    (a) 1, 2 एवं 4
    (b) 1, 2 एवं 3
    (c) 1, 3 एवं 4
    (d) उपर्युक्त सभी
    2. अकबर का पुर्वगामी/ अग्रगामी किसे माना जाता है ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी
    (b) अशोक
    (c) शेरशाह सूरी
    (d) फिरोजशह तुगलक
    3. किस युद्ध के जीतने के पश्चात् फरीद खाँ या शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि धारण की ?
    (a) कन्नौज
    (b) चौसा 
    (c) कालिंजर
    (d) मालवा
    4. पद्मावती नामक ग्रंथ की रचना किसने किया था ?
    (a) मलिक मुहम्मद जायसी
    (b) धोयी
    (c) अब्बास खाँ शेखानी
    (d) अब्दुल हमीद लाहौरी
    5. द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना भारत में किसने किया था ?
    (a) बहलोल लोदी 
    (b) शेरशाह सूरी
    (c) मुहम्मद लोदी
    (d) अहमद शाह अब्दाली
    6. निम्नलिखित में से शेरशाह सूरी द्वारा किया गया वह कौन-सा अभियान था जिसे शेरशाह के चरित्र पर काला धब्बा के समान माना जाता है ?
    (a) मालवा अभियान 
    (b) मारवाड़ अभियान
    (c) कालिंजर अभियान
    (d) रायसीन अभियान
    7. हेमू निम्नलिखित में से सूरी वंश के किस शासक का प्रधानमंत्री था ?
    (a) जलाल खाँ
    (b) मुबरिज खाँ
    (c) सिकंदर शाह सूरी
    (d) शेरशाह सूरी
    8. शेरशाह के शासनकाल में प्रांतों को क्या कहा जाता था ?
    (a) सूबा
    (b) ग्राम
    (c) परगना
    (d) जिला
    9. शेरशाह ने किसके निरीक्षण में राज्य की भूमि की वास्तविक माप करवाया था ?
    (a) अहमद खाँ
    (b) मुजारिज खाँ
    (c) टोडरमल
    (d) इस्लाम शाह
    10. निम्नलिखित में से किस शासक ने पट्टा और कबुलियत प्रथा का प्रचलन किया ?
    (a) सिकंदर सूरी
    (b) अकबर
    (c) शेरशाह सूरी
    (d) इब्राहिम लोदी
    11. विचार कीजिये:-
    1. शेरशाह की लगान व्यवस्था मुख्यरूप से रैयतवाड़ी थी।
    2. शेरशाह के शासनकाल उत्पादन 1/3 भाग कर के रूप में लिया जाता था।
    3. सूरी वंश के अंतर्गत प्रशासन की सबसे छोटी इकाई 'ग्राम' होती थी।
    4. दीवान-ए-बरीद के अधिकारी को बरीद-ए-मूमलिक कहा जाता था।
    उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं ?
    (a) 1, 2 एवं 4 
    (b) 1, 2, 3 एवं 4
    (c) 3 एवं 4
    (d) 1 एवं 3
    12. 'सराय' क्या था ?
    (a) अस्पताल
    (b) यात्रियों के ठहरने हेतु किया गया प्रबंध
    (c) गरीब बच्चों को शिक्षा के लिए एक प्रकार का मदरसा
    (d) न्याय व्यवस्था के अन्तर्गत एक प्रकार के अदालत ।
    13. निम्नलिखित में से किसका निर्माण शेरशाह सूरी द्वारा नहीं किया गया था ?
    (a) रोहतासगढ़ का किला
    (b) किला-ए-कुहना
    (c) रंगमहल
    (d) इनमे से कोई नहीं
    14. शेरशाह सूरी के बचपन का नाम था ?
    (a) टीपू 
    (b) शेर खाँ
    (c) फरीद खाँ
    (d) इनमे से कोई नहीं
    15. फरीद जो बाद में शेरशाह सूरी बना, ने कहाँ से शिक्षा प्राप्त की थी ?
    (a) सहसाराम (सासाराम)
    (b) पटना
    (c) जौनपुर
    (d) लाहौर
    16. शेरशाह की 'प्रशासनिक व्यवस्था' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
    1. परगना, सिकंदर के अधिकार में था।
    2. मुसिफ, भूराजस्व की वसूली की देख-रेख करता था।
    3. शेरशाह ने सोने चाँदी और तांबे के सिक्के चलवाएँ।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा /से सही है / हैं ?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    17. चाँदी का 'रुपया' किसने शुरू किया ? 
    (a) अकबर
    (b) शेरशाह 
    (c) अलाउद्दीन खिलजी
    (d) बख्तियार खिलजी 
    18. शेरशाह के संदर्भ में निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है ?
    (a) उसे अपने पिता से जौनपुर की जागीर मिली।
    (b) वह मुहम्मद-बिन-तुगलक के बाद उत्तर भारत में बड़ा साम्राज्य स्थापित करने वाला शासक बना।
    (c) उसने कश्मीर तक साम्राज्य विस्तार किया था ।
    (d) उसके द्वारा बनवाई गई सड़कों व सरायों को साम्राज्य की धमनियाँ कहा गया।
    19. शेरशाह का मकबरा कहाँ स्थित है ? 
    (a) सासाराम 
    (b) दिल्ली
    (c) कालिंजर
    (d) सोनारगाँव
    20. निम्नलिखित में से किस स्मारक का निर्माण शेरशाह ने करवाया था 2
    (a) दिल्ली की किला - ए - कुहना मस्जिद
    (b) जौनपुर की अटाला मस्जिद
    (c) गौर की बारा सोना मस्जिद
    (d) दिल्ली की कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद
    21. “मात्र एक मुट्ठी बाजरे के चक्कर में मैंने अपना साम्राज्य खो दिया होता।" इस कथन का संबंध है ? 
    (a) मुहम्मद-बिन-तुगलक
    (b) औरंगाबाद से से
    (c) शेरशाह से
    (d) अलाउद्दीन खिलजी
    22. शेरशाह के शासनकाल में गाँव के प्रशासन के लिए अधिकारी था-
    (a) मुकद्दम 
    (b) शिकदार
    (c) सूबेदार
    (d) इनमे से कोई नहीं
    23. शेरशाह की लगान व्यवस्था थी ?
    (a) महालवाड़ी
    (b) रैय्यतवाड़ी
    (c) स्थायी बंदोबस्त
    (d) इनमे से कोई नहीं
    24. किस मध्यकालीन शासक ने 'रूपिया' का प्रचलन कराया ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी 
    (b) मुहम्मद बिन तुगलक
    (c) शेरशाह सूरी
    (d) बलवन
    25. निम्नलिखित में से किस शासक ने भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलों में राज्य का हिस्सा निर्धारित करते हुए दरों की सूची तैयार की थी ? 
    (a) शाहजहाँ
    (b) अकबर
    (c) शेरशाह
    (d) अलाउद्दीन खिलजी
    26. शेरशाह के समय तांबे के 'दाम' और 'चाँदी' के 'रुपया' का विनिमय दर क्या थी ? 
    (a) 16 : 1 
    (b) 32 : 1
    (c) 48 : 1
    (d) 64 : 1
    27. ग्रांड ट्रंक सड़क जोड़ती है-
    (a) कोलकाता व मुंबई
    (b) दिल्ली व चेन्नई
    (c) कोलकाता व अमृतसर
    (d) लुधियाना तिरूपति
    28. निम्नलिखित में से किस सुल्तान ने पहले 'हजरत-ए- आला' की उपाधि अपनाई और बाद में सुल्तान की ? 
    (a) बहलोल लादी
    (b) सिकंदर लोदी
    (c) शेरशाह सूरी
    (d) इस्लामशाह सूरी
    29. पटना को प्रांतीय राजधानी बनाया था-
    (a ) शेरशाह ने
    (b) अलाउद्दीन हुसैनशाह
    (c) इब्राहिम लोदी ने
    (d) शहजादा
    30. 'जाब्ती प्रणाली' किसकी उपज थी ?
    (a) गयासुद्दीन तुगलक 
    (b) सिकंदर लोदी
    (c) शेरशाह
    (d) अकबर
    31. शेरशाह को उसके पिता हसन खाँ ने एक जागीर के प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया था, वह जागीर थी- 
    (a) सहसराम / सासाराम 
    (b) पटना
    (c) हाजीपुर
    (d) खवासपुर
    32. दक्षिण बिहार का वास्तविक शासक बनकर शेर खाँ ने उपाधि धारण की ?
    (a) हजरत-ए-आला 
    (b) अमीन-उद्-दौला
    (c) शेरशाह
    (d) इनमे से कोई नहीं
    33. किस अभियान के समय अचानक बारूद में विस्फोट हो जाने के कारण शेरशाह की मृत्यु हो गई ?
    (a) रायसीन अभियान के समय
    (b) मालदेव की सेनाओं से संघर्ष के समय
    (c) चित्तौड़ अभियान के समय
    (d) कालिंजर अभियान के समय
    34. शेरशाह के बारे में क्या असत्य है ?
    (a ) शेरशाह ने उपज का 1/3 भाग कर के रूप में निर्धारित किया।
    (b) शेरशाह के समय में किसानों को 'जरीबाना' (सर्वेक्षण शुल्क ) तथा महासिलाना (कर संग्रह शुल्क ) भी चुकाना पड़ता था। 
    (c) भूमि की पैमाइश हेतु शेरशाह ने 32 अंक वाले सिकंदरी गज एवं सन् की डंडी का प्रयोग किया।
    (d) शेरशाह ने सासाराम में एक सुंदर किले का निम्प्रण करवाया।
    35. शेरशाह कालीन प्रशासन में 'फोतदार' था-
    (a) कोषाध्यक्ष
    (b) फौजदारी मामलों का प्रधान
    (c) दीवानी मामलों का प्रधान
    (d) इनमे से कोई नहीं
    36. शेरशाहकालीन प्रशासन में कानूनगो का काम था- 
    (a) भूमि संबंधी रिकार्डों के रखना
    (b) भू-राजस्व वसूल करना 
    (b) a और b दोनों
    (d) a तथा b में से कोई नहीं
    37. किसने शेरशाहकालीन ग्राम प्रशासन के संदर्भ में कहा एक जराक्षीण मृत्युमुख में पहुँचने ही वाली वृद्धा अपने सिर पर स्वर्णाभूषणों से भरा टोकरा रखे यात्रा पर निकल पड़े, तब भी किसी चोर या लुटेरे की हिम्मत तक नहीं हुई कि वह बुढ़िया के पास भटक भी जाए क्योंकि उन्हें मालूम है कि इसके लिए शेरशाह कितना बड़ा दण्ड दे सकता है ?
    (a) अब्बास खाँ सेरवानी
    (b) मोरलैंड
    (c) परमात्मा शरण
    (d) के. आर. कानूनगो
    38. "शेरशाह द्वारा निर्मित सड़क व सराय अफगान साम्राज्य की धमनियाँ थी"- यह किसकी उक्ति है ? 
    (a) मोरलैंड
    (b) परमात्मा शरण
    (c) अब्बास खाँ सेरवानी
    (d) के. आर. कानूनगो
    39. शेरशाह के भूराजस्व व्यवस्था के संदर्भ क्या सही नहीं है ?
    (a) भू-सर्वेक्षण के आधार पर एक रजिस्टर खसरा खत्यान तैयार किया गया।
    (b) 'राई' (भू-राजस्व निर्धारण के लिए फसल दरों की सूची) लागू किया गया।
    (c) उपज के आधर पर भूमि की तीन श्रेणियाँ उत्तम, मध्यम एवं निम्न |
    (d) भू-राजस्व की दर उपज का 1/6 भाग तय किया गया।
    40. शेरशाह ने 'अशर्फी' 'रूपया' दाम नामक नये सिक्के चलवाएँ व जिन धातुओं से बने होते थे वे हैं:- 
    (a) सोना, चाँदी, ताँबा 
    (b) सोना, ताँबा, चाँदी
    (c) ताँबा, चाँदी, सोना
    (d) चाँदी, चाँदी, तांबा
    41. सूर वंश के हिन्दू प्रधानमंत्री हेमू पहले रेवाड़ी के बाजार में नमक बेचा करता था। मगर वह बहुत प्रतिभा सम्पन्न था। उसने अपने जीवन में लड़ी गयी 24 लड़ाइयों में से 22 को जीता था। हेमू ने किस उपलक्ष्य में विक्रमादित्य की उपाधि धारण की ? 
    (a) आगरा दिल्ली पर अधिकार करने के उपलक्ष्य में
    (b) हुमायूँ को हराने के उपलक्ष्य में 
    (c) अकबर को हराने के उपलक्ष्य में
    (d) इनमे से कोई नहीं
    42. शेरशाह द्वारा जारी रूपये के बारे में किस इतिहासकार ने लिखा है कि- "यह रूपया वर्त्तमान ब्रिटिश मुद्रा- प्रणाली का आधार है। " 
    (a) कनिंघम 
    (b) स्मिथ
    (c) कानूनगो
    (d) ए. एल. श्रीवास्तव
    43. अधोलिखित में से किस विद्वान ने शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित सासाराम के मकबरे को ताजमहल से भी सुन्दर कहा है-
    (a) कनिंघम 
    (b) स्मिथ
    (c) कानूनगो
    (d) ए. एल. श्रीवास्तव
    44. मध्यकाल में जारीबाना का संबंध है- 
    (a) सर्वेक्षण शुल्क से 
    (b) कर संग्रह शुल्क से
    (c) आयात शुल्क से
    (d) टॉल टैक्स से
    45. सूरी वंश का अंतिम शासक कौन था ? 
    (a) इस्लामशाह 
    (b) जलाल खाँ
    (c) सिकंदर सूरी
    (d) इनमे से कोई नहीं
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    Tue, 16 Apr 2024 04:52:18 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मुगल काल (1526&1707) https://m.jaankarirakho.com/978 https://m.jaankarirakho.com/978 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मुगल काल (1526-1707)
    • मुगल शब्द की उत्पत्ति मंगोल एवं तुर्क के मिश्रण से हुआ है। भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक बाबर को माना जाता है। बाबर में दो महान रक्तों का मिश्रण था। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का 5वाँ तथा माता की ओर से चंगेज खाँ का 14वाँ वंशज था ।
    • बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगना में हुआ था, जो अब उज्बेकिस्तान में है।
    • बाबर का वास्तविक नाम "जहीरूद्दीन मुहम्मद" था । तुर्की भाषा में बाबर का अर्थ "बाघ" होता है।
    • बाबर के दादा का नाम सुल्तान अबुसेद था जबकि दादी ऐसान दौलत बेग थी। माता कुतलुगनिगार खाँ थी जबकि पिता उमरशेख मिर्जा (चगताई तुर्क ) फरगना का शासक था।
    • बाबर अपने पिता के मृत्यु के बाद 11 वर्ष की अल्पायु में 1494 ई. में फरगना की गद्दी पर बैठा ।
    • बाबर ने अपने फरगना के शासनकाल में 1501 ई. में समरकंद पर अधिकार किया, जो मात्र 8 महीने तक उसके कब्जे में रहा ।
    • 1504 ई. में काबूल विजय के उपरांत बाबर का काबुल और गजनी पर अधिकार हो गया।
    • 1507 ई. में बाबर ने "बादशाह" की उपाधि धारण की। "बादशाह" की उपाधि धारण करने से पूर्व बाबर "मिर्जा" की पैतृक उपाधि धारण करता था।
    बाबर का भारत पर आक्रमण
    • बाबर ने भारत पर 5 बार आक्रमण किया। बाबर ने 1519 ई. में "युसूफजाई जाति" के विरूद्ध अभियान कर "बाजौर" और "भेरा" को अपने अधिकार में किया।
    • बाबर का कहना है कि उसने इस किले को जीतने के लिए बारूद एवं तोपों का प्रयोग किया। भारत को बारूद की जानकारी थी, लेकिन उत्तर भारत में इसका आम उपयोग बाबर के आगमन के समय ही शुरू हुआ ।
    • 1520-21 ई. में बाबर पुनः सिंधु नदी को पार कर "स्यालकोट" एवं "सैय्यदपुर" को भी अपने अधिकार में कर लिया ।
    • 1524 ई. में बाबर के पेशावर अभियान के समय, पंजाब के गर्वनर दौलत खाँ अपने पुत्र दिलावर खाँ को बाबर के पास भारत पर आक्रमण करने के लिए संदेश भेजवाया। संभवतः इसी समय राणा सांगा ने भी बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा था । (आलम खाँ लोदी - चाचा इब्राहिम का )

    पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526)

    • 1526 ई. में पानीपत के मैदान में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी एवं बाबर के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमें इब्राहिम लोदी की हार हुई और वह मारा गया ।
    • इस युद्ध में बाबर ने पहली बार "तुलगमा युद्ध पद्धति" का प्रयोग किया। बाबर ने तुलगमा युद्ध का प्रयोग उज्बेकों से ग्रहण किया ।
    • इस युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में "उस्मानी पद्धति" ( रूमी विधि) का प्रयोग किया था। इस पद्धति में दो गाड़ियों के बीच व्यवस्थित जगह छोड़कर तोप को रखकर चलाया जाता था।
    • पानीपत के युद्ध में बाबर के तोपखाने का नेतृत्व उस्ताद अली और मुस्तफा खाँ नामक दो योग्य अधिकारियों ने किया था ।
    • भारत विजय के उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक काबुल वासी को एक-एक चाँदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया । इसी वजह से बाबर को कलंदर" की उपाधि दी गई।

    खानवा का युद्ध (17 मार्च 1527

    • खानवा युद्ध का मुख्य कारण बाबर का पानीपत युद्ध के पश्चात् भारत में रहने का निश्चय किया था । यह युद्ध चितौड़ के राजा राणा सांगा और बाबर के मध्य लड़ा गया। इस युद्ध में राणा सांगा की हार हुई। इसी युद्ध के दरम्यान् “जिहाद” (धर्मयुद्ध) का नारा दिया तथा शराब के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया ।
    • खानवा के युद्ध में अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए बाबर ने मुस्लमानों से वसूल किये जाने वाले "तमगा कर" को समाप्त कर दिया । 
    • खानवा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने "गाजी" अर्थात काफीरों के हत्यारा (गैर-मुसलमान) का उपाधि धारण की ।

    चंदेरी का युद्ध (29 जनवरी 1528, मध्यप्रदेश

    • यह युद्ध बाबर और मेदिनी राय के बीच हुआ जिसमें मेदिनी राय पराजित हुआ ।

    घाघरा का युद्ध (6 मई 1529

    • इस युद्ध में बाबर ने बिहार और बंगाल की संयुक्त अफगान सेना को पराजित किया, जिसका नेतृत्व महमूद लोदी ने किया था ।
    मृत्यु
    • 26 दिसम्बर 1530 ई. को बाबर की आगरा में मृत्यु हो गई । बाबर को पहले आगरा के आरामबाग में दफनाया गया परंतु बाबर के वसीयत को ध्यान में रखते हुए उन्हें काबूल में दफनाया गया। काबूल में ही बाबर का मकबरा है ।
    मूल्यांकन
    • बाबर कुषाणों के बाद पहला ऐसा शासक था जिसने काबूल और कंधार को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा।
    • बाबर को "मुबइयान" पद्य शैली का जन्मदाता माना जाता है।
    • बाबर ने विभिन्न प्रकार के पत्रों का संकलन किया जिसे रिसाल-ए- उसज या खत - ए - बाबरी कहते हैं ।
    • बाबर ने अपनी मातृभाषा तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा लिखा जिसे तुजुक - ए - बाबरी कहते हैं। इसका फारसी में अनुवाद "पायन्दा खाँ" तथा अब्दुर्रहीम खानखाना ने "बाबरनामा' के नाम से किया और श्रीमति बेबरिज ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया ।
    • "बाबरनामा' में बाबर ने विजयनगर के शासक "कृष्णदेव राय" को समकालीनभारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया ।
    • बाबर बागों को लगाने का बड़ा शौकिन था । उसने आगरा में "ज्यामितीय विधि" से एक बाग लगवाया, जिसे “नूर–ए–अफगान” कहा जाता था, परंतु अब इसे "आरामबाग" कहा जाता है ।
    • बाबर के प्रधान सेनापति मीरबकी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया ।
    • बाबर के दरबार में दो महान निशानेबाज थें- (1) उस्ताद अली जो बंदूकची थें। (2) मुस्तफा खाँ - तोपची ।
    • बाबर बंदूक चलाने की कला ईरान से सीखा जबकि "तुगलमा पद्धति" शैबानी खाँ उज्बेग खाँ से सीखा ।

    हुमायूँ (1530-40 & 1555-56 ई.)

    • हुमायूँ का जन्म “माहम बेगम" के गर्भ से 6 मार्च 1508 ई. को काबूल में हुआ था। बाबर के चार पुत्रों - हुमायूँ, कामरान, अस्करी और हिंदाल में हुमायूँ सबसे बड़ा था ।
    • हुमायूँ का शाब्दिक अर्थ भाग्यवान होता है।
    • हुमायूँ के विषय में विस्तार पूर्वक जानकारी हुमायूँ नामा से मिलती है। जिसकी रचना उसकी बहन गुलबदन बेगम ने की है।
    • हुमायूँ शासक बनने से पूर्व बदख्शाँ का सूबेदार था । (अफगान )
    • हुमायूँ का राज्याभिषेक 30 दिसम्बर 1530 ई. को आगरा में हुआ।
    • हुमायूँ एक मात्र शासक था जिसने अपने भाईयों में साम्राज्य का विभाजन किया । इन्होनें अपने पिता के इच्छा को ध्यान में रखते हुए अपने भाई कामरान को काबूल, कंधार, अस्करी को संम्भल का क्षेत्र (राजस्थान) जबकि हिंदाल को अलबर (राजस्थान) प्रदान दिया ।
    • हुमायूँ अपने चचेरा भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शाँ प्रदेश दिया।
    • 1533 ई. में हुमायूँ ने दिल्ली में दीनपनाह नामक नगर की स्थापना किया ।
    सैन्य अभियान
    • हुमायूँ ने 1531 ई. में कालिंजर के शासक प्रताप रूद्रदेव पर अपना पहला आक्रमण किया । कालिंजर के किले पर आक्रमण के समय ही उसे यह सुचना मिली कि अफगान सरदार महमूद लोदी बिहार से जौनपूर की ओर बढ़ रहा है। अतः कालिंजर के राजा प्रताप रूद्रदेव से धन और सैनिकों की क्षतिपूर्ति लेकर हुमायूँ वापस आगरा लौट आया ।
    • 1532 में हुमायूँ एवं बिहार के शासक महमूद लोदी के बीच दोहारिया या दौरा का युद्ध हुआ । इस युद्ध में हुमायूँ की विजय हुई तथा महमूद लोदी को पीछे हटना पड़ा तथा वह राजनीति से अलग हो गया ।
    • हुमायूँ 1532 ई. चुनार के किला का घेरा डाला। यह किला शेर खाँ के अधिकार में था । लगभग 6 महिना तक, इस किला का घेरा रखने के बावजूद भी जब हुमायूँ को सफलता नहीं मिली तब उन्होनें शेर खाँ से एक समझौता कर लिया। इस समझौता के शर्त के मुताबिक हुमायूँ को शेरशाह एक मोटी रकम दिया। बदले में हुमायूँ ने शेरशाह को चुनार के किला का प्रधान स्वीकार कर लिया ।
    • हुमायूँ 1534 में बिहार में मुहम्मद जबान मिर्जा तथा मुहम्मद सुल्तान मिर्जा के विद्रोह को दबाया ।
    • 1535 ई. में हुमायूँ का संघर्ष गुजरात के शासक बहादुर शाह के साथ हुआ । वस्तुतः इसी वर्ष बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। चित्तौड़ का शासक विक्रमाजीत सिंह था जो अवयस्क था इसलिए संरक्षिका के रूप में रानी कर्णावती सत्ता को संभाली थी। कर्णावती बहादुरशाह से निपटने के लिए हुमायूँ के पास राखी भेजकर सहायता माँगी परंतु हुमायूँ सहायता देने से इन्कार कर दिया जो हुमायूँ की भूल थी । बहादुरशाह जब चित्तौड़ विजय कर लौट रहा था उसी समय हुमायूँ मध्यप्रदेश के मांडु नामक स्थान पर उसके रास्ता को रोका। बहादुरशाह को पराजित कर उसे गुजरात से भी बाहर निकाल दिया तथा वे गुजरात पर अपना अधिकार कर लिया एवं अपने भाई हिंदाल को गुजरात का सूबेंदार नियुक्त किया। हालाँकि अधिक दिनों तक हुमायूँ गुजरात को अपने अधिकार में नहीं रख सका। वे अपने तोपची खमी खाँ तथा पुर्तगालियों की सहायता से शीघ्र ही गुजरात पर अधिकार कर लिया ।
    • हुमायूँ 1538 ई. में बंगाल का विजय किया एवं उसका नाम जन्नताबाद रखा। हलांकि इससे पूर्व शेरशाह बंगाल को बुरी तरह से लूट चुका था । फिर भी हुमायूँ 9 महीना तक बंगाल में रहकर अपने जीत का जश्न मनाता रहा एवं बंगाल का पुर्ननिर्माण किया उनकी महान भूल थी ।
    • जून 1539 ई. में हुमायूँ एवं शेरशाह के बीच चौसा का युद्ध (बक्सर) हुआ। इस युद्ध में हुमायूँ की पराजय हुई | जब वह जान बचाकर भाग रहा था, उस समय उसे नदी पार करने में सर्वाधिक सहयोग शिहाबुद्दीन निजाम खाँ ने दिया। उस से खुश होकर जब हुमायूँ दोबारा हिन्दुस्तान का बादशाह बना उन्होनें निजाम खाँ को एक दिन के लिए हिन्दुस्तान का बादशाह बनाया। इसी दरम्यान् उन्होनें चमड़ा का सिक्का जारी किया। जो हिन्दुस्तान के इतिहास में एकमात्र उदाहरण है ।
    • मई1540 ई. में हुमायूँ और शेरशाह के बीच कन्नौज या बिलग्राम का युद्ध हुआ जिसमें हुमायूँ की पराजय हुई | उसे हिन्दुस्तान छोड़ना पड़ा तथा शेरशाह अपने को हिन्दुस्तान का सुल्तान घोषित किया ।

    हुमायूँ का निष्कासित जीवन

    • कन्नौज के युद्ध में शेरशाह द्वारा हुमायूँ को पराजित करने के बाद आगरा और दिल्ली पर शेरशाह का अधिकार हो जाने के पश्चात् हुमायूँ सिंध होते हुए ईरान के शाह के पास चला गया।
    • अपने निर्वासित जीवन के दौरान ही हुमायूँ ने मीरअली अकबर की पुत्री हमीदा बानो बेगम से 1541 ई. में निकाह किया, कलांतर में अमरकोट के शासक के पास शरण लेने के दौरान हमीदा बेगम बानो ने 1542 ई. में मुगल राजवंश के महान सम्राट अकबर को जन्म दिया।
    • निर्वासन के दौरान हुमायूँ काबुल में रहा। हुमायूँ ने पुनः 1545 ई. में ईरान के शासक की सहायता से कंधार एवं काबूल पर अधिकार कर लिया ।
    • 1553 ई. में शेरशाह के उत्तराधिकारी इस्लामशाह की मृत्यु के बाद अफगान साम्राज्य विघटित होने लगा। अतः ऐसी स्थिति में हुमायूँ को पुनः अपने राज्य प्राप्ति का अवसर मिला ।
    • 1554 ई. में हुमायूँ अपनी सेना के साथ पेशावर पहुँचा। 1555 ई. में उसने लाहौर पर कब्जा कर लिया ।
    • 1555 ई. में लुधियाना से लगभग 19 मील पूर्व में सतलज नदी के किनारे "मच्छीवाड़ा" नामक स्थान पर हुमायूँ एवं अफगान सरदार हैबत खाँ एवं तातार खाँ के बीच संघर्ष हुआ। जिसमें हुमायूँ की जीत हुई और संपुर्ण पंजाब पर मुगलों का अधिकार हो गया।
    • 22 जून 1555 ई. को हुमायूँ एवं सिकंदर सूर के बीच सरहिन्द (पंजाब) का युद्ध हुआ, इसमें हुमायूँ की विजय हुई तथा वह दिल्ली पहुँचकर जूलाई 1555 ई. में अपने को बादशाह घोषित किया। इस प्रकार मुगल साम्राज्य की पुर्नस्थापना हुई।
    • जनवरी 1556 में दिल्ली के दीनपनाह नामक पुस्तकालय से गिरने के कारण हुमायूँ की मृत्यु हो गई ।
    • हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में है जिसका निर्माण उसकी पत्नी हमीदा बानों बेगम ने करवाया जो ईरानी संस्कृति से प्रभावित है। जिसका वास्तुकार मिर्जा ग्यास बेग था । इसे मुगलों का कब्रिस्तान कहा जाता है |
    • हुमायूँ की मृत्यु के बाद इतिहासकार लनपूल ने कहा है कि " हुमायूँ जीवन भर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाते हुए ही मर गया ।”
    • ऐसा माना जाता है कि हुमायूँ ज्योतिष में विश्वास करता था, इसलिए उसने सप्ताह के सात दिन सात रंग के कपड़े पहनने के नियम बनाए ।
      • रविवार :- पीला रंग
      • शनिवार :- काला रंग
      • सोमवारः- सफेद रंग

    शेरशाह सूरी (1540-1545)

    • शेरशाह का जन्म 1472 ई. में पंजाब के बाजौर (होशियारपुर) के नरनौल नामक स्थान पर हुआ ।
    • शेरशाह के बचपन का नाम फरीद खाँ था ।
    • पिता - हसन खाँ था जो जौनपुर राज्य के अंतर्गत सासाराम का जागीरदार था ।
    • शेरशाह का आरंभिक शिक्षा जौनपुर में हुई जहाँ उन्होनें अरबी और फारसी भाषा की शिक्षा लिया ।
    • 1522 ई. में शेरशाह दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खाँ लोहानी के यहाँ नियुक्त हुआ । यहीं पर शेरशाह द्वारा एक शेर को मार डालने के कारण बहार खाँ लोहानी ने उसे "शेर खाँ" की उपाधि दी तथा अपने पुत्र जलाल खाँ का संरक्षक नियुक्त हुआ ।
    • 1528 ई. के चंदेरी के युद्ध में वह बाबर की सेना में शामिल हुआ एवं मुगलों के साथ लड़ा।
    • 1529 में घाघरा के युद्ध में वह महमूद लोदी के साथ हो गया, इसी समय बाबर ने हुमायूँ को इससे सतर्क रहने की सलाह दी।
    • 1530 ई. में शेरशाह ने चुनार ( उत्तरप्रदेश) के किलेदार ताज खाँ की विधवा पत्नी लाड मलिका से विवाह कर चुनार के किले पर अधिकार प्राप्त किया ।
    • 1539 ई. में चौसा के युद्ध (बिहार) में मुगल सम्राट हुमायूँ को पराजित कर शेर खाँ "शेरशाह" की उपाधि धारण की ।
    • 1540 ई. में कन्नौज या बिलग्राम के युद्ध में पराजित कर हुमायूँ को भारत से निर्वासित कर दिया। शेरशाह ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार 68 वर्ष की उम्र में उत्तर भारत में "सूर वंश" अथवा "द्वितीय अफगान” साम्राज्य की स्थापना किया ।
    • राजधानी - आगरा
    • शेरशाह को अकबर का अग्रगामी माना जाता है । 
    • शेरशाह के विषय में जानकारी का सबसे प्रमुख स्त्रोत तारीख - ए - शेरशाही या तोहफा - ए - अकबरशाही है जिसकी रचना अब्बास खाँ शेरवानी ने किया ।
    • इनके समकालीन इतिहासकार "मलिक मुहम्मद जायसी" था जिन्होनें “पदमावती" नामक ग्रंथ की रचना किया।

    सैन्य अभियान

    (1) गक्खरो से युद्धः- 1541 ई. में शेरशाह का गक्खर जाति के लोगों से युद्ध हुआ, जिसमें शेरशाह उनकी शक्ति को खत्म तो न कर सका पर उनकी रोकथाम के लिए उसने पश्चिमोत्तर सीमा पर रोहतासगढ़ के किले का निर्माण करवाया । ( पंजाब )
    (2) मालवा पर आक्रमण:- शेरशाह ने 1542 ई. में मालवा पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया । ( शासक- मल्लू खा) ।
    (3) रायसीन अभियानः- 1543 ई. में शेरशाह ने रायसीन पर आक्रमण किया (मध्यप्रदेश)। माना जाता है कि शेरशाह ने इस अभियान में धोखे से राजपूत शासक पूरनमल को मार डाला। पूरनमल के मृत्यु के बाद राजपूत स्त्रियों ने जौहर कर लिया। रायसीन की यह घटना शेरशाह के चरित्र पर एक कलंक माना जाता है।
    (4) मारवाड़ का यह अभियान:- शेरशाह 1544 ई. में जोधपुर के खिलाफ अभियान किया। जोधपुर मारवाड़ की राजधानी थी । यहाँ का शासक मालदेव था । लंबे समय तक दोनों के बीच संघर्ष हुआ। मालदेव की ओर से "जयता" और "कुम्पा" नामक सेनापति शेरशाह को कड़ी टक्कर दी। हलांकि अंततः दोनों वीरगति को प्राप्त किए। मारवाड़ अभियान में शेरशाह बड़ी मुश्किल से विजय प्राप्त किया इसलिए शेरशाह ने कहा मैनें मुट्ठी भर बाजरा के लिए समस्त हिन्दुस्तान को खो दिया ।
    (5) कालिंजर अभियानः- 1545 ई. में शेरशाह का अंतिम अभियान कालिंजर (बुंदेलखंड, मध्यप्रदेश) का अभियान था। कहा जाता है कि शेरशाह ने कालिंजर के शासक कीरत सिंह की एक नाचने-गाने वाली दासी को हथियाने के लिए कालिंजर पर आक्रमण किया था, जिसको कीरत सिंह ने देने से इंकार कर दिया था।
    • इस अभियान के दौरान शेरशाह ने किले की दीवार को गोला बारूद से उड़ा देने की आज्ञा दी। उसी दौरान “उक्का” नामक आग्नेयास्त्र दीवार से टकराकर लौट गया और शेरशाह के नजदीक आकर फट गया और उसमें आग लग जाने से 22 मई 1545 को शेरशाह की मृत्यु हो गई ।

    शेरशाह के उत्तराधिकारी

    • शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका छोटा पुत्र जलाल खाँ, इस्लामशाह की उपाधि धारण कर शासक बना। (1545-1553)
    • इस्लामशाह के पश्चात् उसका पुत्र फिरोज खाँ सिंहासन पर बैठा, लेकिन जल्द ही उसकी हत्या मुबारिज खाँ ने कर दी ।
    • 1553 ई. में मुबारिज खाँ "मुहम्मद आदिल शाह" की उपाधि धारण कर शासक बना। इसी का प्रधानमंत्री “हैमू” था, जिसे 1556 में पानीपत के द्वितीय युद्ध में अकबर द्वारा हराया गया था ।
    • 22 जून 1555 ई. को सरहिन्द के युद्ध में हुमायूँ ने सूर वंश के अंतिम शासक सिकंदर शाह सूरी को पराजित कर भारत में मुगल सत्ता को पुर्नस्थापित किया ।

    केंदीय शासन

    • शेरशाह पूर्णतः एकतंत्रात्मक शासन पद्धति में विश्वास रखता था तथा संपूर्ण शक्ति को अपने हाथों में केंद्रित रखता था। फिर भी इतने विशाल साम्राज्य पर शासन करने के लिए उसे कुछ लोगों के सहयोग की आवश्यकता थी । अतः उसने कुछ विभागों की स्थापना की, जो निम्नलिखित थें-
      • दीवान - ए - वजारतः- यह विभाग आर्थिक मामलों की देख-रेख करता था । इसका अध्यक्ष " वजीर" होता था। इसका पद प्रधानमंत्री के समान था ।
      • दीवान-ए-आरिज / अर्ज:- इस विभाग के अधिकारी को "आरिज - ए - मुमालिक" कहा जाता था। सैन्य संबंधी कार्य इस विभाग के अंतर्गत आते थें ।
      • दीवान - ए - रिसालतः-यह अन्य राज्यो के साथ पत्र-व्यवहार आदि के जरियें संपर्क रखता था ।
      • दीवान-ए-ईशा:- यह सामान्य प्रशासन विभाग था ।
      • दीवान - ए - कजाः- यह न्याय विभाग था, जिसके प्रमुख अधिकारी को "काजी" कहा जाता था।
      • दीवान - ए - बरीद:- यह गुप्तचर विभाग था। जिसके अधिकारी को बरीद-ए-मुमालिक कहा जाता था।
    प्रांतीय प्रशासनिक व्यवस्थाः- शेरशाह सूरी का साम्राज्य काफी विस्तृत था । अतः उसने अपने साम्राज्य को अनेक प्रांतों में विभक्त कर रखा था। प्रत्येक सूबा का सर्वोच्च अधिकारी "सूबेदार" होता था ।
    स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्थाः- शेरशाह का स्थानीय शासन तीन भागों में वर्गीकृत था- (1) सरकार (2) परगना (3) ग्राम 
    • इक्ताओं (सूबा) को “सरकार" (जिला) में विभक्त किया जाता था । प्रत्येक सरकार में दो प्रमुख अधिकारी होते थें जो हैं- 
      (1) शिकदार-ए-शिकदरान:- यह समान्य प्रशासन के कार्य को देखता था ।
      (2) मुंसिफ - ए - मुसिफान:- यह न्यायिक अधिकारी होता था ।
    • प्रत्येक सरकार कई "परगनों" में बँटा था । प्रत्येक परगने में एक शिकदार, एक मुसिफ, एक फोतदार और दो कारकुन ( कलर्क) होते थें ।
    • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई "ग्राम" थी जिसके प्रमुख मुखिया होता था ।
    राजस्व अधिकारी- भू-शेरशाह ने अपने विश्वसनीय अधिकारी “अहमद खाँ" के निरीक्षण में राज्य की भूमि की वास्तविक माप कराई।
    • शेरशाह ने भूमि की माप के लिए 'गज-ए-सिकंदरी का प्रयोग करवाया। इसमें मापन के लिए सन से बनी रस्सी का उपयोग किया जाता था ।
    • किसानों को शोषण से बचाने के लिए शेरशाह ने "पट्टा" और "कबूलियत" प्रथा का प्रचलन किया ।
    • "पट्टा" एक राजकीय पत्र होता था जिसमें उपज के क्षेत्र, उत्पादन एवं भू-राजस्व की जानकारी लिखी होती थी। किसानों से कबूलियत" के रूप में सहमति पत्र हासिल कर लिया जाता था।
    • शेरशाह की लगान व्यवस्था मुख्य रूप से 'रैय्यतवाड़ी' थी, जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया जाता था।
    • शेरशाह के काल में उत्पादन का 1/3 भाग कर के रूप में लिया जाता था।
    • लगान (कर) के अतिरिक्त किसानों को जरीबाना' (सर्वेक्षण शुल्क) एवं "महासिलाना (कर संग्रह शुल्क) नामक कर भी देने पड़ते थें, जो क्रमशः भू-राजस्व का 2.5 प्रतिशत एवं 5 प्रतिशत होता था।

    सार्वजनिक कार्य

    • शेरशाह ने सड़को का निर्माण व्यापक स्तर पर करवाया साथ ही यात्रियों के ठहरने हेतु 1700 "सरायों' का निर्माण करवाया। प्रत्येक सराय की देख-रेख एक "शिकदार" करता था।
    • इतिहासकार कानूनगो ने इन सरायों को साम्राज्य रूपी शरीर की धमनियाँ” कहा है।
    • शेरशाह द्वारा बनाई गई चार सड़के प्रसिद्ध है जो है-
      1. पहली सड़क बंगाल में सोनार गाँव से शुरू होकर दिल्ली, लाहौर होती हुई पंजाब में अटक तक। जिसे “सड़क–ए–आजम” कहा जाता था। इसे ही आगे चलकर लॉर्ड ऑकलैंड ने जी.टी. रोड कह के पुकारा ।
      2. दूसरी सड़क आगरा से बुरहानपुर तक। 
      3. तीसरी सड़क आगरा से जोधपुर होती हुई चित्तौड़ तक ।
      4. चौथी सड़क लाहौर से मुल्तान तक ।

    मुद्रा व्यवस्था

    • शेरशाह ने अत्यंत विकसित मुद्रा व्यवस्था प्रचलित की, उसने पुराने घिसे-पिटे सिक्कों के स्थान पर शुद्ध चाँदी का “रुपया” (180 ग्रेन) ओर ताँबे का “दाम” (380 ग्रेन) चलाया।
    • शेरशाह ने अपने सिक्कों पर अपना नाम, पद एवं टकसाल का नाम अरबी एंव देवनागरी लिपि में खुदवाया।
    • शेरशाह द्वारा जारी रुपये के बारें में "स्मिथ" ने लिखा है- "यह रुपया वर्तमान ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली का आधार है।"

    भवन व इमारतें

    • शेरशाह के शासनकाल में चाँदी के रुपये एवं ताँबे के दाम का अनुपात 1:64 था ।
    • शेरशाह ने हुमायूँ द्वारा निर्मित "दीनपनाह" को तुड़वाकर उसके ध्वंसावशेषों से दिल्ली में "पुराने किले" का निर्माण करवाया। उसने दिल्ली के पुराना किला में "किला - ए - कुहना" नामक मस्जिद का निर्माण करवाया ।
    • शेरशाह ने अपने साम्राज्य की पश्चिमोत्तर सीमा पर " रोहतासगढ़ का किला" बनवाया ।
    • शेरशाह द्वारा निर्मित सासाराम के मकबरे को पूर्वकालीन स्थापत्य कला की पराकाष्ठा और नवीन शैली के प्रारंभ का द्योतक माना जाता है । कनिंघम ने शेरशाह के मकबरे को ताजमहल से भी सुंदर कहा है ।

    अकबर (1556–1605 ई.)

    • अकबर का शाब्दिक अर्थ "महान" होता है।
    • अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. (रविवार) को अमरकोट के राजपूत राजा वीरसाल के राजमहल में हुआ ।
    • अकबर के पिता हुमायूँ थें जबकि माता हमीदा बानो बेगम थी और धाया माँ (परिचायक ) माहम अनगा थी।
    • 3 वर्ष की आयू में अकबर की भेंट अपने पिता से पुनः हुई जब हुमायूँ ने 1545 में काबूल और कंधार का विजय किया। यहीं उसका नाम "जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर" रखा गया ।
    • अकबर जब 9 वर्ष की आयु का था, उस समय पहली बार उसे गजनी का सूबेदार नियुक्त किया गया तथा मुनीम खाँ को अकबर का संरक्षण नियुक्त किया गया ।
    • हुमायूँ जब 1555 ई. में हिन्दुस्तान का पुर्नविजय किया तब उन्होनें अकबर को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया एवं बैरम खाँ को अकबर का संरक्षक नियुक्त किया गया।
    • अकबर जब लगभग 14 वर्ष का था तब उसके पिता हुमायूँ का निधन हो गया तत्पश्चात् फरवरी 1556 ई. को पंजाब के गुरूदासपुर के कलानौर नामक स्थान पर ईट के चबूतरा के ऊपर अपना राज्याभिषेक करवाया तथा अपना नाम "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह गाजी" रखा ।
    • अकबर के बचपन का नाम जलाल था ।
    • अकबर का शिक्षक अब्दुल लतीफ ईरानी विद्वान था ।
    • हुमायूँ की मृत्यु के बाद दिल्ली और आगरा में पुनः सूर वंशी आदिलशाह के प्रधानमंत्री हेमू ने अधिकार कर लिया ।

    पानीपत का द्वितीय युद्ध (5 नवंबर 1556

    • अकबर और हेमू के सेनाओं के बीच पानीपत (हरियाणा) के मैदान में भीषण युद्ध हुआ जिसमें हेमू की हार हुई और पुनः अकबर ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर विशाल साम्राज्य की स्थापना किया ।

    हेमू

    • हेमू रेवाड़ी का निवासी था जो वैश्य (बनिया) कुल में पैदा हुआ था। इसका मूल नाम हेमचंद्र था।
    • सूरवंशी शासक आदिलशाह के शासनकाल में हेमू प्रधानमंत्री बनाया गया ।
    • मुस्लिम शासन में मात्र दो हिन्दु टोडरमल एवं हेमू ही प्रधानमंत्री के पद पर पहुँच सकें थें, जबकि मात्र एक ही हिंदु “दिल्ली” के सिंहासन पर बैठा ।
    • हेमू 22 युद्ध लड़ चुका था और उसमें से एक में भी उसे हार का मुँह नहीं देखना पड़ा था। इसलिए “आदिलशाह” ने इसे "विक्रमादित्य" की उपाधि प्रदान किया । "विक्रमादित्य की उपाधि करने वाला 14वाँ अंतिम शासक था ।
    • हेमू दिल्ली के गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिंदु सम्राट था।

    बैरम खाँ का संरक्षण काल (1556-60)

    • हुमायूँ ने जब अकबर को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया, उसी समय उसने अपने वफादार बैरम खाँ को अकबर का संरक्षक नियुक्त किया था ।
    • बैरम खाँ फारस के शिया संप्रदाय से संबंधित था ।
    • 1556 ई. में जब अकबर शासक नियुक्त हुआ, वह अल्पवयस्क था । अतः 1556 से 1560 तक बैरम खाँ द्वारा शासन संबंधी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ करने के कारण इस काल को बैरम खाँ का संरक्षण काल कहा जाता है।
    • बैरम खाँ की ईमानदारी के कारण उसे “खान-ए-खाना" की उपाधि से सम्मानित किया गयां
    • बैरम खाँ का बढ़ रहा प्रभाव अकबर के संबंधियों तथा राजपरिवार से जुड़े हुए लोगों को रास नहीं आया । राजपरिवार में बैरम खाँ के खिलाफ एकगुट का निर्माण हुआ जिसे "अतखा" खेल गुट कहते हैं। इसमें माहम अनगा, जीजी अनगा, अद्यम खाँ जैसे लोग शामिल थें। इन लोगों ने बैरम खाँ के खिलाफ षड्यंत्र करना तथा अकबर का कान भरना आरंभ किया। अकबर स्वयं भी 1560 आते-आते वयस्क हो चुका था वह प्रशासन में किसी का हस्तक्षेप स्वीकार करना नहीं चाहता था । अतः उन्होनें भी बैरम खाँ से छुटकारा पाने की चेष्टा की ।
    • बैरम खाँ अपने प्रति हो रहें षड्यंत्रों से निराश होकर विद्रोह कर दिया। जिसके बाद पंजाब के तिलवाड़ा नामक स्थान पर बैरम खाँ एवं मुगल शाही सेना के बीच युद्ध हुआ जिसमें बैरम खाँ पराजित हो गया। उसे बंदी बनाकर अकबर के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अकबर ने बैरम खाँ के प्रति सम्मान दिखाते हुए उदारता पूर्ण व्यवहार किया तथा बैरम खाँ के समक्ष तीन प्रस्ताव रखा-
      1. बैरम खाँ बादशाह का व्यक्तिगत सलाहकार बन जायें ।
      2. बैरम खाँ काल्पी और चन्देरी (मध्यप्रदेश) का सूबेदार बन जायें ।
      3. बैरम खाँ मक्का चले जायें।
    • बैरम खाँ मक्का जाने की बात को स्वीकार किया। जब बैरम खाँ मक्का जा रहा था उसी समय गुजरात के पाटन नामक स्थान पर 1560 ई. में मुबारक खाँ नामक युवक ने बैरम खाँ की हत्या कर दिया क्योंकि मुबारक खाँ के पिता की हत्या बैरम खाँ ने मच्छीवाड़ा के युद्ध में किया। वही पर बैरम खाँ को दफना दिया गया।
    • बैरम खाँ की हत्या के बाद अकबर ने उसकी विधवा पत्नी सलीमा बेगम से निकाह कर लिया, तथा उसके पुत्र अब्दुर्रहीम को गोद ले लिया। आगे चलकर इसे भी " खान - ए - खाना" की उपाधि प्रदान किया गया ।

    पेटीकोट शासन/पर्दा शासन (1550-62/64)

    • बैरम खाँ का संरक्षण समाप्त होने के बाद अकबर के ऊपर राजपरिवार की कुछ महिलाएँ और अकबर के संबंधी (अतखा खेल) से जुड़े हुए लोगों का नियंत्रण स्थापित हुआं लगभग 1560-62 / 64 तक इस गुट का प्रभाव अकबर के ऊपर रहा इसीलिए इस काल को पर्दा शासन सा पेटीकोट शासन के नाम से जाना जाता है ।

    साम्राज्य विस्तार उत्तर भारत अभियान

    (1) मालवा:- अकबर 1561 ई. में आधम खाँ के नेतृत्व में मालवा का अभियान किया। इस समय यहाँ के शासक बाज बहादुर था । जो पराजित होकर भाग गया तत्पश्चात् उसकी पत्नी रूपमती आत्महत्या कर ली ।
    1562 में पीर मुहम्मद खाँ को मालवा का सूबेदार बनाया गया तथा ढक्कनी राज्यों की मदद से बाजबहादुर पुनः आक्रमण कर पीर मुहम्मद खाँ की हत्या कर कब्जा कर लिया। अब्दुल्ला खाँ उज्बेग ने पुनः मुगल कब्जा स्थापित किया और बाजबहादुर मुगल मनसबदार बना दिया गया।
    नोट- बाजबहादुर और रूपमति की समाधि उज्जैन में है ।
    (2) चुनार:- यहाँ अफगानों का शासन था। 1562 ई. में अब्दुल्ला खाँ के नेतृत्व में इसे जीतकर मुगल साम्राज्य में मिलाया गया ।
    (3) आमेर (1562) :- आमेर के राजा भारमल (बिहारीमल ) ने राजपूत शासको में सबसे पहले अकबर की अधीनता स्वीकार की तथा अपनी पुत्री हरखाबाई का विवाह अकबर से किया। इसी से पुत्र सलीम उत्पन्न हुआ। अकबर ने भारमल के पुत्र भगवानदास और पौत्र मानसिंह को उच्च मनसबदार प्रदान किया । ( हरखाबाई / जोधाबाई / मरियम उज्जमानी)
    (4) मेड़ता (1562 ) :- इस समय यहाँ के शासक जयमल थें जिसे मुगल सेनापति सरफुद्दीन ने पराजित कर इस पर अधिकार कर लिया। जयमल भागकर मेवाड़ के राणा उदय सिंह के यहाँ शरण ली ।
    (5) गोंडवाना या गढ़कटंगा (1564):- मध्य भारत में गोंडवाना एक स्वतंत्र राज्य था । इस राज्य पर संग्रामशाह की विधवा रानी दुर्गावती के संरक्षण में उसके अल्पायु पुत्र वीर नारायण का शासन था। रानी दुर्गावती महोबा के चंदेल वंश से संबंधित थी ।
    • 1564 में आसफ खाँ ने रानी दुर्गावती को पराजित कर गोंडवाना को जीत लिया ।
    (6) मेवाड़ (1567):- 1567 ई. में अकबर ने स्वयं मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ का अभियान किया ।
    एकमात्र राजपूत राज मेवाड़ अंत तक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं किया । यहाँ पर सिसोदिया राजपूत वंश का शासन था । यहाँ के शासक उदय सिंह था । 1568 ई. में चित्तौड़ पर मुगलों द्वारा अधिकार कर लिया गया। हलांकि फिर भी राजा उदयसिंह ने अपनी नई राजधानी उदयपुर से मुगलों से प्रतिरोध जारी रखा। उदयसिंह के तरफ से जयमल और फतेहसिंह अकबर के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया। अकबर चित्तौड़ में हजारों राजपूतों की हत्या की तथा महिलाएँ जौहर कर ली । अकबर के इस अभियान को उसके चरित्र पर काला धब्बा माना जाता है । इसे मिटाने के लिए अकबर आगरा के किला के मुख्य द्वार पर जयमल और फतेहसिंह की मूर्ति लगवाया ।

    हल्दीघाटी का युद्ध (1576 ई)

    • 1572 ई. में उदयसिंह के मृत्यु के बाद उसका पुत्र महाराणा प्रताप मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने गोगुंडा नामक स्थान पर राज्याभिषेक कराया । महराणा प्रताप ने उदयपुर के बाद मेवाड़ की राजधानी कुंभलगढ़ स्थानांतरित की ।
    • 18 जून 1576 ई. को अरावली की पहाड़ी में स्थित हल्दीघाटी नामक स्थान पर महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच युद्ध हुआ जिसे हल्दीघाटी का युद्ध कहा जाता है। महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की हार हुई। वह राणा झाला की सहायता से जान बचाकर भागने में सफल रहा। महाराणा प्रताप मृत्युपर्यन्त ( 1597) अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं किया ।
    • इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व आसफ खाँ एवं मानसिंह ने किया था ।
    • महाराणा प्रताप के बाद उनका पुत्र अमरसिंह ने भी अकबर और जहाँगीर के खिलाफ अपना विद्रोह जारी रखा। अंततः 1615 ई. में जहाँगीर एवं अमरसिंह के बीच सशर्त समझौता हुआ जिसके तहत् अमरसिंह जहाँगीर की अधीनता स्वीकार कर लिया ।
    (7) रणथंभौर (1569):- यहाँ पर सूरजनराय का शासन था।
    (8) कालिंजर (1569):- यहाँ बद्येल राजा रामचंद्र का शासन था । उसनें इसे मुगलों को सौंप दिया था । यहाँ का राज्यपाल मजनू खाँ को बनाया गया ।
    (9) मारवाड़, बीकानेर एवं जैसलमेर (1570):- मारवाड़, बीकानेर एवं जैसलमेर के शासक क्रमश: चंद्रसेन, कल्याणमल एवं हरराय ने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार किया।
    (10) गुजरात की विजय (1572-73 ) :- गुजरात आक्रमण के लिए अकबर को राजकुमार इतमाद खाँ द्वारा आमंत्रित किया गया। अकबर 1572 ई. गुजरात के खिलाफ अभियान किया। इस समय यहाँ के शासक मुजफ्फर खाँ तृतीय था ।
    • गुजरात विजय के बाद अकबर ने उसे एक प्रांत के रूप में संगठित किया और मिर्जा अजीज कोका के अधीन कर स्वयं राजधानी लौट गया।
    • आगरा में अकबर ने विद्रोह का समाचार पाकर पुन: अहमदाबाद की ओर प्रस्थान किया। फलत: 1573 ई. में अकबर शीघ्र ही 9 दिनों के भीतर गुजरात पहुँचकर उसका विजय किया । इतिहासकार "स्मिथ" ने अकबर के इस अभियान को संसार के इतिहास का सबसे द्रुतगामी (तेजगति वाला) अभियान बताया।
    • अकबर ने अपनी गुजरात विजय की स्मृति में राजधानी फतेहपुर सीकरी में एक बुलंद दरवाजा बनवाया था।
    • अकबर ने पहली बार खंभात में समुद्र को देखा और पुर्तगालियों से भी पहली मुलाकात हुई।
    • गुजरात विजय के उपरांत अब्दुर्रहीम को खान-ए-खाना की उपाधि दी गई।
    • टोडरमल द्वारा गुजरात में प्रथम भूमि बंदोबस्त लागू किया गया ।
    (11) बंगाल एवं बिहार का विजय ( 1574-76):- यह अभियान मुनीम खाँ खानखाना के नेतृत्व में हुआ । यहाँ का शासक दाउद खॉ था।
    (12) काबुल (1581 ) :- अकबर के काबूल अभियान के समय यहाँ का शासक मिर्जा हकीम था जो अकबर का सौतेला भाई था, वह बार-बार विद्रोह कर स्वयं को बादशाह घोषित किया। अंततः मानसिंह के नेतृत्व में काबूल पर कब्जा कर लिया गया। अकबर ने बख्तुन्निसा वेगम को काबूल का सूवेदार बनाया। बाद में यहाँ का सूबेदार मानसिंह को बनाया गया ।
    • उल्लेख मिलता है कि पुर्तगाली विद्वान मान्सरेट भी इसी अभियान पर अकबर के साथ गया था।
    (13) कश्मीर (1585-86 ) :- 1585-86 ई. में अकबर ने कश्मीर को विजीत करने के लिए राजा भगवानदास तथा कासीम खाँ के नेतृत्व में सेना भेजी, जिसमें कश्मीर का राजा युसूफ खाँ पराजित हुआ और मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। किंतु बाद में उसके पुत्र याकूब ने विद्रोह कर दिया, जिसे कुचलने के बाद कश्मीर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया ।
    नोट- कश्मीर के युसूफाजाई कबीले के विद्रोह को दबाने के क्रम में ही बीरबल मारा गया ।
    (14) सिंध ( थट्टा ) 1591:- इस यहाँ के शासक जानीवेग था । 1591 में अब्दुर्रहीम के नेतृत्व में सिंघ को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिलाया गया ।
    • 1592 ई. में उड़ीसा के शासक निसार खाँ को पराजित कर मानसिंह ने उड़ीसा को मुगल साम्राज्य में मिलाया ।
    • 1595 ई. में ब्लूचिस्तान के शासक पन्नी अफगान को मीर मासूम ने पराजित कर मुगल साम्राज्य में मिलाया।
    • 1595 में कंधार के शासक मुज्फ्फर हुसैन को शाह बेग ने पराजित कर मुगल साम्राज्य में मिलाया ।

    दक्षिण भारत का सैन्य अभियान

    • मुगलों में अकबर प्रथम शासक था, जिसने दक्षिण भारत का अभियान किया।
    • अकबर के समकलीन दक्षिण भारत में चार राज्य थें- खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर तथा गोलकुंडा। इसमें एकमात्र खानदेश जिसे दक्षिण का प्रवेश द्वार कहा जाता है, ने अकबर की अधीनता स्वीकार किया ।
    • अकबर दक्षिण विजय के लिए अब्दुर्रहीम तथा उसके पुत्र मुराद के नेतृत्व में एक विशाल फौज भेजा। अकबर के अहमदनगर अभियान के समय वहाँ का शासक बहादुरशाह था जो अवयस्क था । इस समय शासन की बाँगडोर उसकी बुआ तथा वीजापुर की शासिका चाँदबीबी के हाथ में था । चाँदबीबी परिस्थिति की नाजूकता को समझते हुए मुगल सेना से समझौता कर लिया जिसके तहत् मुगलों को "बरार" का क्षेत्र दे दिया। कुछ ही दिनों के पश्चात् अहमदनगर प्रशासन से जुड़े लोगों ने चाँदबीबी को प्रशासन से अलग कर दिया एवं मुगलों के साथ हुए समझौते का उल्लंघन करना शुरू कर दिया। इसके चले अकबर 1599 में अब्दुर्रहीम तथा दानियाल के नेतृत्व में एक विशाल फौज अहमदनगर के खिलाफ भेजा स्वयं अकबर भी इस अभियान पर गया। मुगल फौज पूरे अहमदनगर का विजय कर अपने अधिकार में ले लिया ।
    • खानदेश के शासक मलिक राजा फारूकी के मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मीरन बहादुर शासक बना जिन्होनें मुगलो की अधीनता त्याग दी। फलतः अकबर खानदेश के खिलाफ अभियान किया तथा उस पर विजय प्राप्त की । इसी राज्य स्थित असीरगढ़ का किला अकबर का अंतिम विजय अभियान था जिसे उन्होनें जनवरी 1601 ई. में जीता ।
    नोट- दक्षिण विजय के बाद ही अकबर ने "सम्राट" की उपाधि धारण की।

    प्रशासनिक व्यवस्था

    • मुगलकालीन सैन्य व्यवस्था पुर्णतः मनसबदारी प्रथा पर आधारित थी। इसे अकबर ने आरंभ किया था।
    • 1577 में अकबर ने इसे एकल प्रणाली के रूप में आरंभ किया किंतु बाद में 1592 ई. में इसे "जात" व "सवार" के द्विवर्गीकरण से युक्त कर दिया, जिसमें "जात" मनसबदार की हैसियत व "सवार" घुड़सवारों की संख्या को निर्देर्शित करता था ।
    • अबुल फजल ने “आइने -ए-अकबरी" में मनसब के 66 वर्गों का उल्लेख किया है।

    धार्मिक नीति

    • अकबर की धार्मिक नीति "सुलह - ए - कुल" की नीति पर आधारित थी, जो सार्वभौमिक समन्वय की बात करता है। अकबर ने यह सिद्धांत अपने गुरू अब्दुल लतीफ से सीखा था।
    • 1562 ई. में दास प्रथा का अंत किया ।
    • 1563 ई. में तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति कर दी ।
    • 1564 ई. में जजिया कर को समाप्त कर दिया ।
    • 1575 ई. में फतेहपुर सिकरी में इबादत खाने का निर्माण कर प्रत्येक वृहस्पतिवार को धार्मिक चर्चा का आयोजन सुनिश्चित किया ।
    • 1578 ई. में इबादत खाने में सभी धर्मो के लोगों को प्रवेश की अनुमति दी ।
    क्र. सं. धर्म गुरू
    1. हिन्दु देवी तथा पुरूषोत्तम
    2. पारसी मेहरजी राणा, दस्तूरजी राणा (अकबर ने सूर्य नमस्कार इन्हीं से सीखा था ।)
    3. ईसाई / पुर्तगाली अकाबीवा और मॉन्सरेट
    4. जैन
    हरिविजय सूरी (जगत गुरू)
    जिन चंद्र सूरी (युग प्रधान)
    नोट- अकबर ने इसी दौरान पुर्तगालियों / ईसाईयों को लाहौर और आगरा में चर्च बनवाने की अनुमति दी ।
    • अकबर 1579 ई में मजहर की घोषण किया । इसकी प्रेरणा उन्हें शेख मुबारक, फैजी एवं अबुल फजल से मिली थी।
    • अकबर 1582 ई. में दीन-ए-इलाही या तोहिद-ए-इलाही या तहकीक-ए-इलाही नामक एक नयें धर्म की स्थापना किया। जिसे दैवीय एकेश्वरवाद के नाम से जाना जाता है ।
    • दीन-ए-इलाही धर्म स्वीकार करने वाला प्रथम एवं अंतिम हिंदु बीरवल था ।
    • अबुल फजल दीन-ए-इलाही धर्म का मुख्य पुरोहित था ।
    • अकबर के धार्मिक जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव उनके धार्मिक गुरू अब्दुल लतीफ का था ।
    • अकबर हिन्दु धर्म से काफी प्रभावित था । वह सूर्यपासना करता था । अकबर हिन्दु पर्व त्योहारों को राजदरबार में मनाना आरंभ किया। अकबर हिन्दु राजा के सिर पर तिलक चंदन लगाने, झरोखा दर्शन, तुलादान जैसी हिन्दु प्रथाओं को लागू किया ।
    • 1583 ई. में अकबर ने "हिजरी संवत्" की जगह एक नए संवत् के रूप में "इलाही संवत्" को अपनाया ।

    अकबर के नवरत्न 

    • अकबर के दरबार में नौ विशेष दरबारी थें, जिन्हें "अकबर के नवरत्न" के नाम से जाना जाता है-
    (1) बीरबल:-
    बीरबल का जन्म कालपी में 1528 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, इसके बचपन का नाम महेशदास था। वह एक कुशल वक्ता, कहानीकार एवं कवि था । सम्राट ने इन्हें "कविराज" व "राजा" की उपाधि प्रदान किया। अकबर ने बीरबल को न्याय विभाग के प्रधान का पद दिया । बीरबल एकमात्र हिन्दु था जिन्होनें दीन-ए-इलाही धर्म को अपनाया । 1586 ई. में कश्मीर के युसूफजाई विद्रोह को दबाने के क्रम में वह मारा गया ।
    (2) अबुल फजल:-
    ये सूफी शेख मुबारक का पुत्र था जिनका जन्म 1550 ई. में हुआ था। इन्होनें “आइने–अकबरी” और “अकबरनामा” जैसे पुस्तकों की रचना किया। ये दीन-ए-इलाही धर्म के मुख्य पुरोहित थें। अबुल फजल की हत्या 1602 ई. में जहाँगीर के आदेश पर वीर सिंह बुंदेला ने किया जब वे दक्षिण से आगरा की ओर आ रहें थें ।
    (3) टोडरमल:-
    इनका जन्म अवध के जिला सीतापुर के तहसील लहरपुर में हुआ था । अकबर के यहाँ आने से पूर्व ये शेरशाह सूरी के यहाँ नौकरी करते थे। 1572 ई. इन्हें गुजरात का दीवान बनाया गया। इनकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण इनके द्वारा किये गये भूमि सुधार था । टोडरमल को अकबर ने दीवान-ए-अशरफ का पद दिया । टोडरमल भागवत् पुराण का फारसी में अनुवाद किया । निधन- 1589 |
    • अकबर के दीवान राजा टोडरमल (खत्री जाति) ने 1580 ई. में दहसाल बन्दोबस्त व्यवस्था लागू की ।
    (4) तानसेनः-
    इनका जन्म 1506 ई. में ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनका असली नाम रामतनु था। तानसेन अकबर के दरबार में आने से पूर्व रीवाँ के राजा रामचंद्र के दरबार में रहते थें। ये अकबर के दरबार का प्रसिद्ध संगीतकार था। इन्हें संगीत सम्राट के नाम से भी जाना जाता है । अकबर ने इन्हें कण्ठाभरण वाणी विलास की उपाधि दिया । तानसेन ध्रुपद गायन शैली के विशेषज्ञ थें। इनकी प्रमुख कृतियाँ- मियाँ की टोड़ी, मियाँ का मल्हार, मियाँ का सारंग, दरबारी कान्हरा आदि थी।
    (5) मानसिंहः-
    ये आमेर के राजा भारमल के पौत्र तथा भगवानदास का पुत्र था । इन्होनें मुगल साम्राज्य विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। मानसिंह के प्रभाव में आकर अकबर धार्मिक रूप से काफी उदार हुआ एवं अकबर पर हिन्दु धर्म का व्यापक प्रभाव पड़ा।
    • अकबर ने भगवान दास को अमीर-उल-ऊमरा की उपाधि दी।
    (6) अब्दुर्रहीम खानखानाः-
    यह बैरम खाँ का पुत्र था, जिसे गुजरात विजय के बाद अकबर ने "खान खाना" की उपाधि से सम्मानित किया था। ये जहाँगीर के अध्यात्मिक गुरू थें। इन्होनें बाबर की आत्मकथा तुजुक—ए-बाबरी का फारसी भाषा में बाबरनामा के नाम से अनुवाद किया ।
    (7) फैजी:-
    यह अबुल फजल का बड़ा भाई था । यह अकबर के दरबार में राजकवि के पद पर आसीन था । अकबर ने इन्हीं के नेतृत्व में “अनुवाद विभाग" की स्थापना किया ।
    • फैजी ने लीलावती का फारसी में अनुवाद किया । इन्होनें सूरदास द्वारा रचित नलदमयन्ति का फारसी में अनुवाद "सहेली" नाम से किया ।
    • पंचतंत्र का फारसी भाषा में अनुवाद अबुल फजल ने अनवर - ए - सादात नाम से तथा हुसैन फैज ने यार-ए-दानिश नाम से किया।
    • हाजी इब्राहिम सरहदी ने अथर्ववेद का, मुल्लाशाह मोहम्म्द ने राजतरंगिनी का फारसी में अनुवाद किया ।
    • नकीब खाँ, अब्दुल कादिर बदायूँनी तथा शेख सुल्तान ने रामायण एवं महाभारत का फारसी में अनुवाद किया । महाभारत का नाम रज्मनामा (युद्धों की पुस्तक) रखा ।
    • अकबर के काल को हिन्दी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है।
    • दसवंत एवं बसावन अकबर के दरबार के चित्रकार थें ।
    • अकबर ने शीरी कलम की उपाधि अब्दुस्समद को एवं जड़ी कलम की उपाधि मुहम्मद हुसैन कश्मीरी को दिया ।
    (8) मुल्ला दो प्याजा:-
    यह अरबी मूल का था और इन्हें भोजन में दो प्याज बहुत पसंद थें इसलिये अकबर ने इनका नाम मुल्ला दो प्याजा रख दिया । यह व्यंगकार था । (हँसी-मजाक )
    (9) हकीम - हुकामः -
    यह अकबर के पाकशाला (भोजनालय) का प्रधान था ।
    • अकबर ने सर्वप्रथम आगरा को पुनः फतेहपुर सिकरी को अपना राजधानी बनाया तत्पश्चात् जल संकट के कारण उन्होनें लाहौर को कुछ समय के लिए राजधानी बनाया।
    • अकबर नगाड़ा नामक वाद्ययंत्र बजाता था ।
    • राजस्व प्राप्ति के लिए अकबर ने जब्ती प्रणाली को अपनाया था।
    • स्थापत्य कला के क्षेत्र में अकबर की महत्वपूर्ण कृतियाँ है- आगरा का लाल किला, फतेहपुर सीकरी में शाही महल, दीवाने खास, पंच महल, बुलंद दरवाजा, इबादतखाना, इलाहाबाद का किला और लाहौर का किला ।
    • इलाहाबाद नामक नगर की स्थापना अकबर ने किया ।
    • अकबर ने सत्ती प्रथा पर अंकुश लगाने की चेष्टा किया ।
    • मुगल शासकों में अकबर निरक्षर था ।
    • अकबर की शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता मनसबदारी प्रथा थी ।
    • अकबर के समकालीन प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती थें ।
    • अकबर की मृत्यु 16 अक्टूबर 1605 को हुई । उसे आगरा के निकट सिंकंदरा में दफनाया गया ।

    जहाँगीर (1605–1627)

    • जन्म:- 1569 ई. में फतेहपुर सिकरी में
    • मूल नाम :- सलीम
    • पुरा नाम:- नुरूद्दीन मुहम्मद जहाँगीर
    • पिता:- अकबर
    • माता:- मरियम उज्जमानी (हरखाबाई / जोधाबाई)
    • राज्याभिषेक:- 1605 (गुरूवार)

    प्रारंभिक कार्य

    जहाँगीर शासक बनने के बाद 12 अध्यादेश जारी किया। जो प्रमुख है-
    (1) करों (जकात, तमगा आदि) का निषेध
    (2) सप्ताह में दो दिन गुरूवार (जहाँगीर के राज्याभिषेक के दिन ) एवं रविवार (अकबर का जन्मदिन) को पशु हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध।
    (3) मदिरा तथा सभी प्रकार के मादक द्रव्यों की बिक्री का निषेध, आदि ।
    • जहाँगीर न्याय की जंजीर के लिए प्रसिद्ध रहा था । इन्होनें आगरा के किले की शाह बुर्ज के मध्य एक न्याय की जंजीर लगवाई ताकि दुःखी जनता अपनी शिकायतों को सम्राट के सम्मुख रख सकें ।

    शहजादा खुसरों का विद्रोह (1606)

    • जहाँगीर के गद्दी पर बैठने के पश्चात् खुसरों मानसिंह और अजीज कोका की सहायता से विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह में सिक्ख धर्म के 5वें गुरु अर्जुनदेव ने भी साथ दिया था।
    • जहाँगीर ने विद्रोह को दबाते हुए खुसरों को आगरा के किले में बंदी बनाकर रखा गया। बाद के वर्षो में खुर्रम के साथ दक्षिण अभियान के समय खुसरों की हत्या कर दी गई। बाद में इसका शव इलाहाबाद में लाकर दफना दिया गया।
    • बादशाह जहाँगीर ने सिखों के 5वें गुरु अर्जुनदेव को खुसरों को समर्थन देने के कारण मौत के घाट उतार दिया ।

    नूरजहाँ

    • यह मुलतः ईरान की रहने वाली थी। इसके बचपन का नाम मेहरून्निसा था। इनके पिता ग्यास बेग था जिसे जहाँगीर ने “एत्मादुद्दौला" की उपाधि प्रदान की। इनकी माता अस्मत बेगम थी जो गुलाब से इत्र निकालने की विधि खोजी थी ।
    • एत्मादुद्दौला का मकबरा आगरा में है जिसका निर्माण नूरजहाँ ने करवाया । सर्वप्रथम पितरादुरा का प्रयोग इसी में हुआ।
    • इनका पति अली कुली बेग था जिसे शेर अफगान कहा जाता था । इन्हीं से नूरजहाँ को लाडली बेगम नामक पुत्री की प्राप्ति हुई । लाडली बेगम का विवाह जहाँगीर के पुत्र शहरयार के साथ हुई।
    • 1607 ई. में शेर अफगान की मृत्यु के बाद मेहरून्निसा अकबर की विधवा सलीमा वेगम की सेवा में नियुक्त हुई । सर्वप्रथम जहाँगीर ने नवरोज त्योहार के अवसर पर मेहरून्निसा को देखा उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर जहाँगीर ने 1611 में उससे विवाह कर लिया।
    • विवाह के बाद उसे “नूरमहल" की उपाधि दी गई। बाद में यह उपाधि "नूरजहाँ" (संसार की रोशनी) कर दी गई।
    • नूरजहाँ, जहाँगीर के साथ झरोखा दर्शन देती थी। सिक्कों पर बादशाह के साथ उसका भी नाम अंकित होता था ।
    • माना जाता है कि शाही आदेशों पर बादशाह के बाद नूरजहाँ के हस्ताक्षर भी होते थे।

    राजनैतिक अभियान

    मेवाड़ विजय:-
    जहाँगीर 1615 में मेवाड़ के शासक अमर सिंह को पराजित कर मेवाड़ को अपने साम्राज्य में मिलाया ।
    कांगड़ा विजयः-
    जहाँगीर ने 1620 ई. में कांगड़ा दुर्ग का अभियान किया। माना जाता है कि कांगड़ा दुर्ग का अभियान करने में अकबर भी असफल रहा था ।
    • कांगड़ा किला जीतने के उपलक्ष्य में जहाँगीर ने एक गाय को कटवाकर जश्न मनाया था।
    दक्षिण अभियानः-
    जहाँगीर दक्षिण भारत के खिलाफ अभियान किया । दक्षिण विजय की जिम्मेबारी उन्होनें खुर्रम को सौपा। दक्षिण भारत के अहमदनगर में जहाँगीर को सर्वाधिक चुनौती यहाँ के वजीर मलिक अंबर ने दिया जो अबीसीनिया मूल का था । मलिक अंबर गुरिल्ला / छापामार युद्ध नीति का विशेषज्ञ था ।
    • जहाँगीर की अधीनता बीजापुर के शासक आदिलशाह ने भी स्वीकार किया ।
    • दक्षिण विजय की खुशी में जहाँगीर ने खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि दिया।

    कंधार की पराजय

    • कंधार अपने सामरिक और व्यापारिक महत्व के कारण भारत और फारस का मेरूदंड था । यह भारत का प्रवेश द्वार और मध्य एशिया और फारस से आने वाले आक्रमणकारियों को रोकने का प्रकृतिक युद्ध मोर्चा भी था ।
    • 1622 ई. में फारस के शाह अब्बास ने कंधार को मुगलों से पुनः छीन लिया। फलतः जहाँगीर के शासनकाल में ही कंधार, ईरानियों के कब्जे में चला गया था ।

    विदेशियों के दौरे

    • कैप्टन हॉकिंस और सर टॉमस रॉ जहाँगीर के शासनकाल में व्यापारिक अनुमति प्राप्त करने भारत आए ।
    • हाकिंस एक साहसिक अंग्रेज नाविक था जो 1608 ई. में भारत ( सूरत में ) आया था; वह इंगलैंड के राजा जेम्स प्रथम से भारत के मुगल सम्राट अकबर के नाम एक पत्र लाया था। किंतु वह पहुँचा तो सम्राट अकबर की मृत्यु हो चुकी थी और जहाँगीर बादशाह बन गया था।
    • हाकिंस जहाँगीर से आगरा में मिला (1609) और फारसी में बात की। कैप्टन हाकिंस को जहाँगीर ने "इंगलिश खान" की उपाधि से सम्मानित किया था ।
    • सुर टॉमस रो 1615 में जेम्स प्रथम के राजदुत से सूरत में अंग्रेजों को व्यापार करने के लिए "फ़रमान " प्राप्त काने सफल हुआ।

    मृत्यु

    • महावत खाँ ने झेलम नदी के तट पर 1626 ई. में जहाँगीर को बंदी बना लिया ।
    • 28 अक्टूबर 1627 को भीमवार नामक स्थान पर जहाँगीर की मृत्यु हो गयी। उसे लाहौर के शहादरा में रावी नदी के तट पर दफना दिया गया ।
    • जहाँगीर के मकबरा का निर्माण नूरजहाँ ने करवाया ।

    अन्य तथ्य

    • जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक - ए - जहाँगीरी लिखा जिसे पूरा करने का श्रेय मौतबिंद खाँ को है |
    • जहाँगीर के समय को चित्रकला का स्वर्णकाल कहा जाता है।
    प्रमुख चित्रकारः-
    आगा राजा, अबुल हसन, मुहम्मद नासिर, मुहम्मद मुराद, उस्ताद मंसूर, विशनदास, फारूख बेग इत्यादि ।
    • जहाँगीर ने आगा रजा के नेतृत्व में आगरा में चित्रणशाला की स्थापना की।
    • उस्ताद मंसूर एवं अबुल हसन को जहाँगीर ने क्रमशः नादिर - अल- उस एवं नादिरूज्जमा की उपाधि प्रदान की। मंसूर पक्षी का चित्र बनाता था।
    • जहाँगीर ने संस्कृत के कवि जगन्नाथ को "पंडित राज" की उपाधि दी।
    • जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि कोई चित्र चाहे वह किसी मृतक व्यक्ति या जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया गया हो, मैं देखते ही तुरंत बता सकता हूँ कि यह किस चित्रकार की कृति है ।
    • अशोक के कौशाम्बी स्तंभ पर समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति तथा जहाँगीर का लेख उत्कीर्ण है ।
    • जहाँगीर ने सवार पद में दो अस्पा एवं सिंह अस्पा की व्यवस्था की। सर्वप्रथम यह पद महावत खाँ को दिया गया ।

    शाहजहाँ (1627-1657)

    प्रारंभिक जीवन

    • शाहजहाँ का जन्म लाहौर में 1592 ई. को मारवाड़ के राजा उदय सिंह की पुत्री जगतगोसाई (जोधाबाई) के गर्भ से हुआ था ।
    • शाहजहाँ के बचपन का नाम खुर्रम था ।
    • दक्षिण भारत में अहमदनगर के वजीर मलिक अंबर के विरूद्ध सफलता से खुश हो जहाँबीर ने खुर्रम को शाहजहाँ की उपाधि प्रदान की।
    • शाहजहाँ का विवाह 1612 ई. में नूरजहाँ के भाई आसफ खाँ की पुत्री "अर्जुमंदबानों बेगम" से हुआ था, जो इतिहास में "मुमताज महल" के नाम से विख्यात हुई। शाहजहाँ ने इन्हें “मल्लिका-ए-जमानी" की उपाधि दी थी ।
    • 1627 ई. में शाहजहाँ के मृत्यु के बाद मुगल इतिहास में पहली बार उत्तराधिकारी के मुद्दे पर खुर्रम और शहरयार के मध्य युद्ध हुआ ।
    • 1627 ई. में पिता जहाँगीर की मृत्यु के समय शाहजहाँ दक्षिण भारत में था । यहाँ दिल्ली में जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजहाँ ने शहरयार को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया ।
    • शाहजहाँ ने आसफ खाँ (वकील) तथा राज्य दीवान ख्वाजा अबुल हसन की सहायता से उसका विरोध किया और अंततः युद्ध में विजयी होने के बाद उसने सत्ता ग्रहण किया।
    • 1628 ई. को शाहजहाँ " अबुल मुजफ्फर शहाबुद्दीन मुहम्मद साहिब किरन - ए - सानी" की उपाधि धारण करके गद्दी पर बैठा। आगरा में शाहजहाँ का राज्याभिषेक हुआ ।
    • 1631 ई. में मुमताज तहल का निधन हो गया । उन्हीं के याद में शाहजहाँ ने आगरा में ताजमहल का निर्माण करवाया ।
    • ताजतहल का निर्माण 1631 से 1653 के बीच हुआ। इसके निर्माण में प्रयुक्त होने वाला संगमरमर मकराना (राजस्थान) से लाया जाता था । इनके दोनों ओर मस्जिद स्थित है जिनका निर्माण लाल पत्थर से हुआ है। यूनेस्को में 1983 ई. में इसे विश्व विरासत सूची में शामिल किया ।
    • उस्ताद ईसा ने ताजमहल की रूप रेखा तैयार किया ।
    • ताजमहल का निर्माण करने वाला मुख्य स्थापत्य कलाकार उस्ताद अहमद लाहौरी था ।

    उत्तराधिकारी का युद्ध

    शाहजहाँ को चार पुत्र और तीन पुत्री थी ।

    पुत्र

    (1) दारा शिकोह :-
    यह शाहजहाँ का सबसे बड़ा और योग्य पुत्र था। शाहजहाँ उसे अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। इन्होनें 52 उपनिषदों का "सिर-ए-अकबर" (महान रहस्य) नाम से फारसी में अनुवाद किया । पंजाब का सूबेदार था ।
    • लेनपूल में दारा शिकोह को "लघु अकबर" की संज्ञा दिया ।
    • शाहजहाँ ने दारा शिकोह को बुलंद इकबाल की उपाधि दिया । "मज्म - उल - बहरीन" दारा की मूल रचना थी !
    (2) शाहशुजाः-
    बंगाल का सूबेदार ।
    (3) औरंगजेब:-
    ढ़क्कन का सूबेदार ।
    (4) मुरादबख्शः-
    गुजरात का सूबेदार ।

    पुत्री

    (1) जहाँआरा:-
    उत्तराधिकारी के युद्ध में दारा का साथ दी। यह विदुषी थी इन्होनें सूफी संत मोइनुद्दीन पर मोनिस-अल-अरवाह तथा मुल्ला शाह बदख्शी पर रिसाला साहिबिया लिखी ।
    (2) रौशन आरा:- 
    उत्तराधिकारी के युद्ध में औरंगजेब का साथ दी ।
    (3) गौहन आराः- 
    उत्तराधिकारी के युद्ध में शाहशुजा का साथ दी ।
    • सितंबर 1657 में शाहजहाँ के गंभीर रूप से बीमार पड़ने और मृत्यु का अफवाह फैलने के कारण उसके पुत्रों के बीच उत्तराधिकारी का युद्ध आरंभ हुआ।
    (1) बहादुरगढ़ का युद्ध (बनारस):-
    यह युद्ध फरवरी 1658 को शाहशुजा और मुगल शाही सेना के बीच हुआ । शाही सेना का नेतृत्व दारा शिकोह का पुत्र सुलेमान शिकोह एवं जयसिंह कर रहा था। इसमें शाहशुजा की पराजय हुई |
    (2) धरमट का युद्ध (उज्जैन):-
    यह युद्ध अप्रैल 1658 को औरंगजेब एवं मुगल शाही सेना के बीच हुई । इस युद्ध में दारा शिकोह की ओर से शाही सेना का नेतृत्व जोधपुर के राजा जसवंत सिंह व कासिम खाँ ने किया। इस युद्ध में अंततः शाही सेना पराजित हुई।
    (3) सामूगढ़ का युद्ध:-
    यह युद्ध जून 1658 ई. में औरंगजेब एवं दारा शिकोह के बीच हुआ। इसमें दारा की पराजय हुई। वह दिल्ली होते हुए ब्लुचिस्तान भाग गया। फलतः औरंगजेब पहले आगरा पर अधिकार किया पुनः दिल्ली पर अधिकार किया तथा जुलाई 1658 ई. में उन्होनें अपने को बादशाह घोषित करते हुए अपना राज्याभिषेक करवाया तथा शाहजहाँ को बंदी बनाकर आगरा के किला में रखा।
    (4) खाजवाँ का युद्ध (इलाहाबाद):-
    यह युद्ध जनवरी 1659 ई. में औरंगजेब तथा शाहशुजा के बीच हुई। इसमें शाहशुजा की पराजय हुई तथा वह हिन्दुस्तान छोड़कर भाग गया ।
    (5) देवराय का युद्ध (अजमेर):-
    यह युद्ध मार्च 1659 ई. में औरंगजेब तथा दारा शिकोह के बीच हुई। यह उत्तराधिकारी का अंतिम युद्ध था। इसमें दारा की पराजय हुई, उसे पकड़कर इस्लाम विरोधी करार देकर फाँसी पर लटका दिया। इस प्रकार उत्तराधिकारी के युद्ध में अंतिम विजय औरंगजेब की हुई तथा वह बादशाह बना।

    प्रमुख व्रिदोह

    बुंदेला राजपुत का विद्रोहः—
    शाहजहाँ के शासनकाल में 1628 में बुंदेला सरदार जुझार सिंह के नेतृत्व में बुंदेलों ने शाहजहाँ के विरूद्ध विद्रोह किया। तत्पश्चात् शाहजहाँ स्वयं इस अभियान पर गया और विद्रोह को दबाया। अंततः 19 1629 ई. में जुझार सिंह ने आत्म समर्पण कर दिया। जुझार सिंह ने 5 वर्ष तक वफादारी से मुगल बादशाह की सेवा की और दक्षिण के युद्धों में भाग लिया । 1634 ई. में वह अपनी राजधानी ओरछा वापस चला गया । 1635 ई. में उसने गोंडवाना पर आक्रमण कर उसकी राजधानी चौरागद को जीत लिया तथा शासक प्रेमनारायण को मार दिया। एक अधीनस्थ शासक दूसरें अधीनस्थ शासक पर बिना बादशाह की आज्ञा के आक्रमण करें यह मुगल नीति के अनुसार अपराध था । अतः शाहजहाँ ने उसे गोंडवाना के बराबर जागीर देने को कहा जिसे मानने से जुझार सिंह ने इंकार कर दिया। अंततः मुगल सेना ने औरंगजेब के नेतृत्व में आक्रमण किया । 1635 में यह विद्रोह समाप्त हो गया ।
    नोटः- बुंदेलों का सबसे प्रभावी विद्रोह औरंगजेब के शासन काल में छत्रसाल के नेतृत्व में हुआ था ।

    खान-ए-जहाँलोदी का विद्रोह

    • शाहजहाँ के शासनकाल में एक अन्य विद्रोह उसके एक योग्य एवं सम्मानित अफगान सूबेदार "खान-ए-जहाँ लोदी" ने किया था ।
    • खान-ए-जहाँ लोदी ढ़क्कन का सूबेदार था । इसने बुंदेला विद्रोह दबाने में शाहजहाँ का साथ दिया था ।
    • अंततः 1631 ई. में खान-ए-जहाँ मारा गया और उसी के साथ विद्रोह समाप्त हो गया ।

    पुर्तगालियों का विद्रोह

    • शाहजहाँ के शासनकाल आते-आते भारत में पुर्तगालियों शक्ति काफी मजबूत हो गया । पुर्तगाली भारतीय समाज और धर्म में अनावश्यक हस्तक्षेप करता था । वह हिन्दु और मुसलमानों को इसाई धर्म अपनाने के लिए विवश करता था और बाजारों में लूटमार प्रारंभ कर दी ।
    • शाहजहाँ ने 1632 ई. में पुर्तगालियों के विद्रोह को दबाने का आदेश दिया । अततः 4 महीने के बाद हुगली पर अधिकार कर लिया गया ।
    सिख विद्रोह:-
    शाहजहाँ एवं 6ठें सीख गुरू हरगोविन्द के बीच संघर्ष हुए, दोनो के बीच संघर्ष के मुख्य कारण, राजनीतिक और धार्मिक बिबाद था इस संघर्ष में सिख गुरु की पराजय हुई। वह काश्मीर के कीरतपुर के पहाड़ी में जाकर छिप गया ।

    साम्राज्य विस्तार (दक्षिण अभियान )

    अहमद नगरः– शाहजहाँ ने महावत खाँ के नेतृत्व में अहमदनगर पर आक्रमण किया और अंततः 1633 ई. तक उसे जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया तथा सुल्तान हुसैन शाह को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया गया ।
    गोलकुंडाः- अहमद नगर को साम्राज्य में मिलाने के बाद शाहजहाँ ने गोलकुंडा पर दबाब डाला। अंततः 1636 ई. में गोलकुंडा के शासक शख अब्दुल्ला कुतुबशाह ने मुगलो से संधि का ली।
    • गोलकुंडा पर अधिकार हो जाने के बाद शाहजहाँ औरंगजेब को दक्षिण के सुबेदार नियुक्त करके दिल्ली चला गया।
    • कलांतर में गोलकुंडा के वजीर मुहम्मद सईद ( मीर जुमला ) ने शाहजहाँ को कोहिनूर हीरा भेंट किया था ।
    बीजापूरः- शाहजहाँ ने बीजापूर के शासक आदिलशाह II पर 1636 में आक्रमण किया और वह शाहजहाँ की अधीनता स्वीकार कर लिया ।
    नोट- औरंगजेब को दो बार दक्षिण का सूबेदार बनाया गया था। प्रथम बार 1636-44 तक, द्वितीय बार 1653 – 56 तक ।

    मध्य एशिया व उत्तर पश्चिम अभियान

    कंधार :-
    जहाँगीर के समय में 1622 ई. में कंधार मुगलों के अधिकार से निकलकर ईरानियों के हाथ में जा चुका था।
    • 1638 ई. में कंधार का किलेदार अली मर्दान खाँ ने ईरान के शाह के डर से कंधार का दुर्ग मुगलों को सौंप दिया। इस प्रकार कंधार पुनः मुगलों को प्राप्त हो गया ।
    • 1648 ई. में ईरान के शासक शाह अब्बास द्वितीय ने कंधार पर आक्रमण पर किया । उस समय कंधार का मुगल गर्वनर दौलत खाँ था । मुगल सेना की तरफ से किले की कोई सहायता पहुँच पाती, तब तक उस पर शाह अब्बास ने अधिकार कर लिया । 
    नोट:- 1649 से कंधार हमेशा के लिए भारत से छीन गया ।

    महत्वपूर्ण तथ्य

    • शाहजहाँ के शासन काल को स्थापत्य कला का स्वर्णकाल कहा जाता है
    शाहजहाँ द्वारा बनवायी गयी मुख्य इमारतः– ताजमहल, आगरा का मोती मस्जिद, दिल्ली का लाल किला, दीवाने - आम, दीवाने खास, दिल्ली का जामा मस्जिद एवं लाहौर किला स्थित शीश महल, आदि...
    नोट- हुमायूँ के मकबरा को ताजमहल का पूर्ववर्ती माना जाता है ।
    • शाहजहाँ ने कोहिनूर हीरा जड़ित 'तख्त-ए-ताऊस" / मयूर सिंहासन का निर्माण कराया, जिसे बे बादल खाँ के नेतृत्व में तैयार किया गया ।
    • शाहजहाँ ने संगीतज्ञ लाल खाँ को "गुण समन्दर" की उपाधि एवं पंडित जगन्नाथ को "महाकविराय" की उपाधि दी जिसने “गंगालहरी” नामक पुस्तक लिखी ।

    धार्मिक और राजपूत नीति

    • 1632 में शाहजहाँ अपने पिता के शासनकाल में बनवाए गए मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया तथा मुस्लिम कन्याओं का हिन्दुओं से विवाह पर रोक लगा दिया।
    • कालांतर में खंभात के निवासियों की प्रार्थना पर वहाँ गोवध पर रोक लगा दिया ।
    • अकबर द्वारा आरंभ इलाही संवत्" की जगह पुनः हिजरी संवत् का शुरूआत किया ।
    • विदार शाहजहाँ ने किसी भी राजपूत को सूबेदार का पद नहीं दिया। अपवाद स्वरूप राजा रघुनाथ को "शाही दीवान” जैसे महत्वपूर्ण पद दिया गया ।
    • शाहजहाँ का दरबारी कवि पहले कुदसी था, परंतु बाद में अबुकालीन हो गया ।
    • कृषि विकास के लिए "फैज" नामक नहर खुदवाया ।
    • अकबर की " आइन-ए-दहशाला" में परिवर्तन कर इजारेदारी या ठेकेदारी प्रथा को अपनाया ।
    • शाहजहाँ ने कश्मीर को लाहौर से, थट्टा को मुल्तान से, उड़ीसा को बंगाल से अलग कर 3 नए सूबे बनाया जिससे मुगल सम्राज्य में सूबों की संख्या 18 हो गई ।
    • शाहजहाँ ने मुगल साव्राज्य की राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरित की तथा शाहजहाँनाबाद नगर की स्थापना की। अकबर द्वारा मुगलकाल में अपनाई गई सिजदा को समाप्त कर चहार - ए - तस्लीम और जमीनबोस की परंपरा शुरू की।
    • शाहजहाँ लंबे समय तक औरंगजेब के बंदी के रूप में आगरा के किला में रहा, इस दरम्यान उसके साथ जहाँ आरा सेवा में रही। 1666 में शाहजहाँ का निधन हो गया। उसे आगरा के ताजमहल में मुमताज महल के कब्र के बगल में दफना दिया गया ।

    औरंगजेब (आलमगीर), (1658-1707)

    • औरंगजेब का जन्म 1618 ई. में गुजरात के " दोहद" नामक स्थान पर मुमताज महल के गर्भ से हुआ था, लेकिन उसके बचपन का अधिकांश समय नूरजहाँ के पास बीता ।
    • औरंगजेब का विवाह 1637 में फारस के राजघरानें के शाहनवाज की पुत्री दिलरास बानों बेगम (राबिया बीबी) से हुआ । औरंगजेब की पुत्री का नाम मेहरून्निसा था ।
    • औरंगजेब ऐसा मुगल शासक था जिसने दो वार राज्याभिषेक करवाया।
    • राज्याभिषेक के अवसर पर औरंगजेब ने "अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब बहादुर आलमगीर बादशाह गाजी" की उपाधि धारण की ।
    नोट- व्यक्तिगत चरित्रिक गुणों के कारण औरंगजेब को जिंदापीर के नाम से जाना जाता था।
    • औरंगजेब ने जहाँआरा को "सहिबात - उज-जमानी" की उपाधि प्रदान की ।

    राजनैतिक अभियान

    दक्षिण अभियान में नेतृत्व का क्रमः- शाइस्ता खाँ - जयसिंह - मुअज्जम - बहादुर खाँ - शाहआलम- स्वयं औरंगजेब
    बीजापुरः- 1656 की संधि को पूर्ण न कर पाने के आरोप में जयसिंह के नेतृत्व में बीजापुर पर आक्रमण किया गया । इस समय तक जयसिंह ने शिवाजी के साथ पुरंदर की संधि ( 1665 ) के तहत् यह आश्वासन ले लिया थ कि शिवाजी मुगलों की सहायता करेगा ।
    • 1666 ई. तक जयसिंह का यह अभियान असफल हो गया क्योंकि गोलकुंडा व मराठों की मदद भी बीजापुर को मिलती रहीं इस कारण औरंगजेब जयसिंह से नाखुश हो गया और उसे वापस बुला लिया ।
    • 1672-73 ई. में जब सिकंदर आदिलशाह शासक बना तो उसके समय दरबार दो गुटों में बँट गया, जिसमें एक गुट का नेतृत्व ख्वासा खाँ और दूसरे का बहलोल खाँ कर रहा था ।
    • इस गुटबंदी ने वहाँ की राजनीतिक एकता को प्रभावित किया अंततः 1686 ई. में औरंगजेब ने स्वयं नेतृत्व किया और बीजापुर को अपने साम्राज्य में मिला लिया ।
    गोलकुंडा:- 1678 ई. तक यहाँ अब्दुल्ला कुतुबशाह का शासन था और वह किसी भी तरीके से अपने साम्राज्य को बचाने में सफल रहा। किंतु जब अबुल हसन शासक बना तो प्रशासन की वास्तविक जिम्मेदारी दो ब्राह्मण भाईयों मदन्ना और अखन्ना पर थी, जिनकी शिवाजी से मित्रवत संबंध था ।
    • 1687 ई. में औरंगजेब स्वयं गोलकुंडा का अभियान कर उसे अपने साम्राज्य में मिलाया ।
    मराठा अभियान:- शिवाजी के नेतृत्व में मराठा मुगल संघर्ष की शुरूआत हुई और पुरंदर की संधि ( 1665) से अल्पकालिक समझौता भी हुआ ।
    • 1680 ई. में शिवाजी के मृत्यु के बाद ओरंगजेब ने कूटनीति की जगह शक्ति का सहारा लिया और शिवाजी के पुत्र शंभाजी की हत्या करवा दी तथा साहू (1689) को गिरफ्तार कर लिया ।

    प्रमुख विद्रोह

    जाट विद्रोहः- औरंगजेब के शासनकाल में तिलपत के जमींदार गोकुल जाट के नेतृत्व में जाटों ने विद्रोह कर दिया । मुगल सेना ने गोकुल को पराजित कर मृत्युदंड दिया ।
    • दूसरा जाट विद्रोह राजाराम के नेतृत्व में किया गया। राजाराम ने मुगल सेनापति की हत्या कर सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरें में लूट-पाट की।
    • इतिहासकार मनूची के अनुसार, "राजाराम ने अकबर की हड्डियों को खोद कर जला भी दिया ।" परंतु 1688 ई. में राजाराम एक युद्ध में परास्त हुआ और मारा गया ।
    • तीसरा जाट विद्रोह राजाराम के भतीजे चूड़ामन के नेतृत्व में हुआ जो दबाया नहीं जा सका, क्योंकि औरंगजेब इस समय दक्षिण विस्तार में लगा हुआ था । अंततः सूरजमल के नेतृत्व में जाटों ने एक स्वतंत्र राज्य भरतपुर की स्थापना की । 
    बुंदेला विद्रोह:- चंपतराय बुंदेला ने 1661 ई. में विद्रोह किया । हलाँकि इस विद्रोह को जल्द ही दबा दिया गया। कलांतर में चंपतराय के बेटे छत्रशाल ने पुनः विद्रोह किया ।
    • 1705 ई. में औरंगजेब ने उससे संधि कर ली। 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद वह बुंदेलखंड का स्वतंत्र शासक बना।
    सतनामी विद्रोह:- सतनामी एक कृषक समुदाय का लोग था । इनका निवास क्षेत्र नारनौल था । इनके विद्रोह का कारण 1672 ई. में एक सैनिक और एक किसान के बीच लड़ाई का मुद्दा बना और इस क्षेत्र में विद्रोह शुरू हो गया, लेकिन मुगल साम्राज्य ने जल्द ही इस विद्रोह को दबा दिया ।
    राजपूत विद्रोहः
    मारवाड़:- मारवाड़ का शासक जसवंत सिंह था । 1678 में जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई। मारवाड़ का कोई अधिकारिक उत्तराधिकारी घोषित ना होने के कारण औरंगजेब ने अस्थायी तौर पर मारवाड़ को केंदीय प्रशासन के अधीन कर दिया, जो आगे विद्रोह का कारण बना।
    • जसवंत सिंह का अल्पवयस्क पुत्र अजीत सिंह था जिसे दुर्गादास मारवाड़ का शासक बनाना चाहता था। फलतः दुर्गादास अजीत सिंह और उसकी माता जोधपुर जाकर विद्रोह शुरू कर दिया।
    • औरंगजेब का पुत्र अकबर II ने दुर्गादास के बहकावे में आकर अपने पिता के खिलाफ विद्रोह किया।
    • 1679 में विद्रोह को दबाने के लिए मुगल सेना मारवाड़ भेजी गयी। अंततः मारवाड़ पर मुगलों का पुनः नियंत्रण स्थापित हो गया |
    • इस अभियान के दौरान ही 1679 ई. में औरंगजेब ने हिन्दुओं पर "जजिया कर लगाना प्रारंभ कर दिया।
    सिख विद्रोह:- औरंगजेब के विरूद्ध विद्रोह करने वाले में सिख अंतिम थें। यह उसके काल का एकमात्र विद्रोह था जो धार्मिक कारणों से हुआ था । सिख विद्रोह प्रमुखतः 1675 ई. में गुरू तेगबहादुर को प्राणदंड दिये जाने के बाद प्रारंभ हुआ ।
    • गुरू तेगबहादुर की मृत्यु के पश्चात् गुरू गोविन्द सिंह ने औरंगजेब की धार्मिक नीतियों का हमेशा विरोध किया । उन्होनें आनंदपुर में अपना मुख्यालय बनाया । गुरू गोविन्द सिंह ने अपनी मृत्यु से पहले ही "गुरू की गद्दी" को समाप्त कर दिया था और सिखों को एक कट्टर संप्रदाय बनाने में अपनी भूमिका अदा की।
    • औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी बहादुरशाह प्रथम ने गुरू गोविन्द सिंह के साथ संधि कर ली और गुरु ने दक्षिण भारत के युद्धों में उसका साथ दिया। 

    धार्मिक नीति 

    • औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान तथा रूढ़ीवादी शासक था। उसने कुरान (शरीयत) को अपने शासन का आधार बनाया ।
    • औरंगजेब ने मुद्राओं पर कलमा खुदवाना बंद कर दिया ।
    • औरंगजेब ने नवरोज का त्योहार मनाना, भाँग की खेती करना, गाना बजाना, झरोखा दर्शन, तुलादान प्रथा आदि पर प्रतिबंध लगा दिया ।
    • औरंगजेब ने दरबार में संगीत पर पाबंदी लगा दी तथा सरकारी संगीतज्ञों को अवकाश दे दिया । औरंगजेब स्वयं वीणा बजाने में दक्ष था ।
    • औरंगजेब ने 1665 ई. में हिन्दु मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया । इसके शासनकाल में तोड़े गए मंदिरों में सोमनाथ का मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर एवं वीर सिंह देव द्वारा जहाँगीर काल में मथुरा में निर्मित केशव राय मंदिर था।
    • औरंगजेब दारूल हर्ब (काफिरों का देश ) को दारूल इस्लाम (इस्लाम का देश ) बनाना चाहता था ।
    • औरंगजेब के शासनकाल में मुगल सेना में सर्वाधिक हिंदु सेनापति था।
    • फ्रांसीसी यात्री फ्रांकोइस बरनीयर औरंगजेब के चिकित्सक था ।
    • औरंगजेब की मृत्यु 20 फरवरी 1707 को हुई । इसे खुलदाबाद जो अब रोजा कहलाता है, में दफनाया गया। औरंगजेब के समय सूबों की संख्या 20 थी । 

    प्रमुख शब्द

    वकील:- सम्राट के बाद शासन के कार्यों को संचालित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी वकील होता ( नियुक्त - मंत्री)
    दीवान या वजीरः- राजस्व एवं वित्तीय विभाग अकबार के द्वारा लाया गया। ( अकबर के द्वारा लाया गया ।)
    मीर बख्शी:- सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता था । यह पद अकबर के शासन काल से प्रारंभ हुआ ।
    विजारत:- मंत्रिपरिषद को कहा जाता था।
    मनसबदारी व्यवस्थाः- यह दशमलब पद्वति पर आधरित थी, जिसमें 10 से 5000 तक मनसब दिया जाता था ।
    मनसब का अर्थ 'पद' होता है और इससे निम्न बातों का पता चलता है
      • अधिकारी की पदानुमान की स्थिति
      • धारक का वेतन
      • नियत संख्या में सेना, धोड़े व हथियार का ज्ञान
    • मनसबदार का आशय ऐसे व्यक्तियों से था, जो राजकीय नैकरी में थे । ये एक समेकित व्यवस्था थी जिससे सैन्य, नागरिक तथा अमीर - कुलीन सभी शामील थी ।
    • 1577 में अकबार द्वारा इसकी शूरूआत की गई जो पहले यकल व्यवस्था के रूप में थी ।
    • 1592 ई. में इसका द्विवर्गीकरण कर 'जात' व 'सवार' पद से युक्त कर दिया गया ।
    • 'जात' व्यक्तिगत पद तथा वेतन से जुड़ा था तो सवार उसके पास घुड़सवारी की संख्या से ।
    • आइने अकबरी में 66 मनसब का उल्लेख किया गया। किंतु व्यवहारतः में 33 मनसब ही प्रदान किये जाते थे |
    • 2500-5000 - अमीर-ए-आजम, 500-2500 अमीर – 500 - मनसबदार

    उत्तर मुगल काल (1707-1857)

    बहादुर शाह प्रथमः- 1707-1712
    जहाँदार शाहः- 1712-1713
    फर्रुखशियरः- 1713-1719
    रफी - उद्-दरजातः- फरवरी - जून 1719 ( क्षयरोग निधन )
    रफी-उद-दौला:- जून - सितम्बर 1719 (क्षयरोग निधन )
    मुहम्मदशाहः- 1719-1748
    अहमदशाहः- 1748-1754
    आलमगीर द्वितीयः- 1754-1758
    शाहजहाँ तृतीयः- 1758-1759
    शाहआलम द्वितीयः- 1759-1806
    अकबर द्वितीयः- 1806-1837
    बहादुरशाह द्वितीयः- 1837-1857
    • औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उसके तीनों पुत्र मुअज्जम, मुहम्मद आजम तथा मुहम्मद कामबख्स में उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ, मिसमें मुअज्जम विजयी रहा ।
    • औरंगजेब के मृत्यु के समय मुअज्जम काबुल, आजम गुजरात और कामबख्स बीजापुर का सूबेदार था ।
    • जून 1707 ई. जाजऊ ( आगरा व धोलपुर के मध्य) नामक स्थान पर हुए उत्तराधिकरी के संघर्ष में मुअज्जम की सेना ने आजम को पराजित कर मुगल सिंहासन पर अधिकार किया।
    • 1707 ई. में मुअज्जम उत्तराधिकारी के युद्ध में सफल होने के बाद बहादुर शाह प्रथम की उपाधि धारण कर दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।

    बहादुरशाह प्रथम (1707-1712)

    • बहादुरशाह को उसकी शासकीय क्षमता में अभिरूचि न होने के कारण "शाह - ए - बेखबर" के उपनाम से जाना जाता है । (खफी खाँ)
    • बहादुरशाह ने सिखों के 10वें गुरू गोविन्द सिंह के साथ मेल-मिलाप के संबंध स्थापित कियें।
    • इन्हीं के शासनकाल में गोविन्द सिंह की हत्या 1708 ई. में नर्मदा नदी के तट पर गुल खाँ नामक पठान ने कर दिया ।
    • गुरू गोविन्द सिंह के मृत्यु के पश्चात् एक सिख नेता बंदा बहादुर के नेतृत्व में पंजाब में सिखों ने बगावत कर दी । इससे तंग आकर बहादुरशाह ने सिखों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का फैसला किया।
    • अंततः इसी नेता के विरूद्ध लड़ते हुए 1712 ई. में बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु हो गई ।
    • 1712 ई. में बहादुरशाह के मृत्यु के पश्चात् उसके चार पुत्रों- जहाँदार शाह, अजीम -उस-शान, रफी-उस-शान और जमान शाह के बीच उत्तराधिकारी का युद्ध हुआ जिसमें जहाँदार शाह सफल रहा।

    जहाँदार शाह (1712-1713)

    • जहाँदार शाह को "लंपट भूर्ख" कहा जाता था ।
    • जहाँदार शाह इरानी दल के नेता जुल्फिकार खाँ के सहयोग से गद्दी प्राप्त किया जिस कारण उन्हें वजीर का पट दिया ।
    • जहाँदार शाह ने आमेर के राजा जयसिंह को "मिर्जा राजा सवाई जयसिंह" की उपाधि दिया ।
    • जहाँदार के समय जजिया पर रोक लगा दी गई।
    • कृषि के क्षेत्र में इजारेदारी की प्रथा का शुरूआत किया।
    • 1713 ई. में जहाँदार शाह का भतीजा फर्रुखशियर ने हिन्दुस्तानी अमीर सैय्यद बंधु के सहयोग से बादशाह को सिंहासन से अपदस्थ कर हत्या करवा दी ।

    फर्रुखशियर (1713-1719)

    • फर्रुखशियर को "घृणित कायर भी कहा जाता था ।
    • फर्रुखशियर के शासनकाल में सैय्यद बंधु अब्दुल्ला खाँ "वजीर" तथा हुसैन अली "मीरबख्सी" के पद पर नियुक्त हुए ।
    • 1717 ई. में फर्रुखशियर ने एक फरमान के जरियें अंग्रेजों को व्यापारिक छूट प्रदान की । इसे कंपनी का "मैग्नाकार्टा” कहा जाता । फर्रुशियर के शासनकाल में ही सिख नेता बंदाबहादुर को मृत्युदंड दे दिया गया ।
    • सैय्यद बंधुओं के बढ़ते हस्तक्षेप से भयभीत होकर फर्रुखशियर इनके खिलाफ षड्यंत्र रचने लगा, लेकिन समय से पूर्व इस षड्यंत्रों की जानकारी सैय्यद बंधुओं को लगने से उन्होनें मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ, मारवाड़ के अजीत सिंह के सहयोग से जून 1719 ई. में फर्रुशियर की हत्या करवा दिया । 
    • फर्रुशियर के हत्या के बाद सैय्यद बंधुओं ने रफी-उद-दरजात को गद्दी पर बैठाया, जिसकी जल्द ही बिमारी के कारण निधन हो गया। तत्पश्चात रफी-उद-दौला को गद्दी पर बैठाया। वह अफीम का आदि था। इसकी भी जल्द ही मृत्यु हो गई । इसके पश्चात् रफी-उद-दौला के पुत्र रौशन अख्तर (मुहम्मद शाह) को सैय्यद बंधुओं ने अगला शासक बनाया।

    विभिन्न गुट

    सैय्यद बंधु :- इसे भारतीय इतिहास में "किंग मेकर" के नाम से जाना जाता है। इन्होनें कुल चार लोगों को मुगल बादशाह बनाया ।
    सैय्यद बंधु (दो भाई):- अब्दुल्ला खाँ और हुसैन अली खाँ था । सैय्यद बंधुओं के विरोधी नेताओं में तूरानी दल के संस्थापक चिनकिलिच खाँ प्रमुख थें। इन्हीं के प्रयासों से मुहम्मद रंगीला के समय में इन दोनों भाईयों की हत्या कर दी गर्द।
    तुरानी गुटः- ये मध्य एशिया के सुन्नी मुसलमान थें। सैय्यद बंधुओं के पतन के बाद मुगल दरबार में इसी गुट का बोलबाला था। इस गुट में निजाम-उल-मुल्क (चिनकिलिच खाँ), अमीन खाँ और जकारिया खाँ प्रमुख था।
    ईरानी गुटः— ये शिया मुसलमान था। इस गुट में जुल्फिकार खाँ, सआदत खाँ, अमीर खाँ प्रमुख था।
    अफगानी गुटः- इस गुट में मुहम्मद खाँ एवं मुहम्मद बंगस प्रमुख थें ।

    मुहम्मद शाह रंगीला (1719-1748)

    • मुहम्मद शाह को अधिक समय हरम में बिताने तथा उसके असंयत और विलासी आचरण के कारण "रंगीला बादशाह" कहा जाता था ।
    • मुहम्मद शाह के शासनकाल में 1739 ई. में ईरान के शासक नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया । नादिरशाह को ईरान का “नेपोलियन" कहा जाता था । (करनाल का युद्ध 1739)
    • नादिरशाह शाहजहाँ के द्वारा बनवायें गयें मयूर सिंहासन और कोहिनूर हीरा लेकर वापस ईरान चला गया ।
    • मयूर सिंहासन पर बैठने वाला अंतिम मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला था |
    • मुहम्मद शाह के शासनकाल में नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमदशाह अब्दाली ने भी विशाल सेना के साथ पंजाब पर आक्रमण किया ।

    अहमदशाह बहादुर (1748-1754)

    • अहमदशाह का कार्यकाल अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के लिए जाना जाता है ।
    • अपने कुल सात आक्रमणों में अहमदशाह अब्दाली ने अहमदशाह के कार्यकाल में सबसे ज्यादा आक्रमण किया ।
    • अहमदशाह ने हिजड़ो के सरदार जावेद खाँ को "नवाब बहादुर" की उपाधि प्रदान की । 

    आलमगीर द्वितीय (1754-1758)

    • इसका मूल नाम अजीजुद्दीन था ।
    • प्लासी के युद्ध के समय मुगल बादशाह था ।
    • 1758 ई. को इमाद-उल-मुल्क ने आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी तथा बहादुरशाह प्रथम के पौत्र शाहजहाँ तृतीय (1758-59 ) को सिंहासन पर बैठा दिया ।

    शाहआलम द्वितीय (1759-1806 )

    • आलमगीर के पुत्र अली गौहर ने बिहार में शाहआलम द्वितीय के नाम से स्वयं को मुगल बादशाह घोषित किया ।
    • शाहआलम द्वितीय ने 1764 ई. में हुए ऐतिहासिक महत्व के बक्सर युद्ध में मीरकासिम तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ मिलकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरूद्ध लड़ाई लड़ी।
    • बक्सर के युद्ध में हार के बाद कई वर्षो तक शाहआलम द्वितीय अंग्रेजों का पेंशनभोगी बना रहा।
    • 1772 ई. में मराठा सरदार महादजी सिंधिया ने पेंशनभोगी शाहआलम द्वितीय को एक बार फिर राजधानी दिल्ली के मुगल सिंहासन पर बैठाया ।
    • शाह आलम द्वितीय के कार्यकाल में ही अंग्रेजों ने 1803 ई. में दिल्ली पर कब्जा कर लिया ।
    • गुलाम कादिर खाँ ने 1806 ई. में शाह आलम द्वितीय की हत्या करवा दी ।
    • शाह आलम द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अकबर द्वितीय शासक बना।
    • शाह आलम द्वितीय के शासनकाल में जनवरी 1761 ई. में अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ ।

    अकबर द्वितीय (1806 - 1837 )

    • अकबर द्वितीय अंग्रेजों के संरक्षण से बनने वाला प्रथम मुगल बादशाह था ।
    • अकबर द्वितीय ने ही राममोहन राय को "राजा" की उपाधि दी ।

    बहादुरशाह द्वितीय (1837 – 1857 )

    • बहादुरशाह द्वितीय "जफर" के उपनाम से शायरी लिखा करता था, इसलिए इसे "बहादुरशाह जफर" के नाम से भी जाना जाता है।
    • 1857 ई. के संग्राम में विद्रोहियों का साथ देने के कारण रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहाँ इसकी मृत्यु हो गई और वहाँ ही दफना दिया गया।
    • यह मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक था । इसकी मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य का भारत में अंत हो गया ।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. तुर्की भाषा में बाबर का शब्दिक अर्थ होता है ?
    (a) बाघ
    (b) शेर
    (c) चीता
    (d) महान
    2. बाबर ने काबुल और गजनी पर अधिकार कब स्थापित किया ?
    (a) 1494
    (b) 1504
    (c) 1507
    (d) 1519
    3. बाबर ने 1519 ई. में किस जाति के विरूद्ध अभियान कर 'बाजौर और भैरा' को अपने साम्राज्य में मिलाने का काम किया ?
    (a) अफरसियाब
    (b) युसूफजाई 
    (c) तुरानी
    (d) मंगोलॉयड
    4. विचार कीजिए -
    1. बाबर अपने पिता की ओर से चंगेज खाँ का वंशज था जबकि अपनी माता की ओर से तैमूर का वंशज था।
    2. बादशाह की उपाधि धारन करने से पूर्व बाबर मिर्जा की पैतृक उपाधि धारण करता था।
    उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/है ?
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 2 
    (c) 1 और 2
    (d) न तो 1 न ही 2
    5. अधोलिखित में बाबर विजित प्रदेशो को कालक्रमानुसार व्यवस्थित किजिये एवं कूट का प्रयोग कर सही का चयन कीजिए।
    1. काबुल
    2. समरकंद 
    3. सियालकोट
    4. पेशावर
    5. बाजौर
    कूट:
    (a) 1, 2, 3, 4, 5
    (b) 2, 1, 3, 4, 5
    (c) 2, 1, 5, 3, 4
    (d) 1, 3, 5, 4, 2
    6. मुगल वंश के संस्थापक बाबर द्वारा सर्वप्रथम निम्नलिखित में से किस युद्ध में 'तुलगमा युद्ध पद्धति' का प्रयोग किया गया था ?
    (a) खनावा का युद्ध (1527)
    (b) चंदेरी का युद्ध (1528)
    (c) पानीपथ का युद्ध (1526)
    (d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
    7. पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर द्वारा प्रयोग किया जाने वाला तोपखाने का नेतृत्व निम्न में से किसने किया था ?
    (a) उस्ताद अली 
    (b) मुस्ताफा खाँ
    (c) A और B दोनों
    (d) खरंम खाँ
    8. बाबर ने अधोलिखित में से किस युद्ध के दौरान 'जिहाद' ( धर्म युद्ध) का नारा दिया तथा शराब के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया ?
    (a) घाघरा का युद्ध 
    (b) खानवा का युद्ध
    (c) चंदेरी का युद्ध
    (d) पानीपत का प्रथम युद्ध
    9. खनावा के युद्ध (1527) के संबंध में विचार कीजिये-
    1. यह युद्ध बाबर एवं अफगान शासक महमूद लोदी के बीच लड़ा गया था।
    2. इस युद्ध को जीतने के पश्चात बाबर ने 'गाजी' की उपाधि धारण की।
    3. इस युद्ध के दौरान बाबर ने मुसलमानो से वसूल किये जाने वाले 'तमगा कर' अथवा व्यापारिक कर को समाप्त कर दिया।
    उपर्युक्त में से कौन - सा / से या गलत है / हैं ?  
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 एवं 2
    (d) 2 एवं 3
    10. बाबर का मकबरा अवस्थित है-
    (a) शहादरा
    (b) काबुल
    (c) आगरा
    (d) दिल्ली
    11. मुबईयान पद्धशैली का जन्मदाता किसे माना जाता है।
    (a) सुल्तान अनुसंद 
    (b) उमर शेख मिर्जा
    (c) बाबर
    (d) हूमायूँ
    12. बाबर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक - ए - बाबरी' मूलतः किस भाषा में लिखा था ?
    (a) फारसी
    (b) तुर्की
    (c) अरबी
    (d) उर्दू
    13. 'तुजुक - ए - बाबरी' का फारसी में अनुवाद 'बाबरनामा' शीषर्क से किसके द्वारा किया गया ?
    (a) बेवरीज
    (b) पायन्दा खाँ
    (c) अबुल फजल
    (d) अब्दुर्रहीम खान खाना
    14. बाबर द्वारा लड़ा गया वह कौन सा निर्णायक युद्ध था जिसमे भारत में मुगल वंश की नीव पड़ी-
    (a) खानवा
    (b) पानीपत का प्रथम युद्ध
    (c) तराइन का प्रथम युद्ध
    (d) पानीपत का द्वितीय युद्ध
    15. बाबरनामा में बाबर ने किस शासक को अपने समकालीन भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है ? 
    (a) कृष्ण देव राय
    (b) मूहम्मद लोदी
    (c) अलाउद्दीन मसूदशाह
    (d) देवराय - II 
    16. बाबर के किस सेनापति ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था ? 
    (a) शैरवानी खाँ 
    (b) मीर बक्की
    (c) उस्ताद अली
    (d) मुस्तफा खाँ 
    17. बाबर बंदूक चलाने की कला सीखा था- 
    (a) अफगान से 
    (b) ईराक से
    (c) तुर्क से
    (d) ईरान से कोई नहीं
    18. बाबर ने विभिन्न प्रकार के पत्रों का संकल्न किया था जिसे क्या कहा जाता है ? 
    (a) रिसाल-ए- उसज 
    (b) दार-उल- हर्ब
    (c) तुजुक - ए - बाबरी
    (d ) गज - ए - बाबरी
    19. हुमायूँ का शब्दिक अर्थ होता है-
    (a) महान 
    (b) तेजस्वी
    (c) भाग्यवान
    (d) उपर्युक्त सभी
    20. हुमायूँ शासक बनने से पूर्व कहाँ का सूबेदार था ? 
    (a) समरकंद 
    (b) बदख्शाँ
    (c) फरगना
    (d) स्यालकोट
    21. हुमायूँ ने अपने चचेरा भाई सुलेमान मिर्जा को निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र प्रदान किया ?
    (a) कंधार
    (b) संभल
    (c) बदरख्शाँ
    (d) अलवर
    22. हुमायूँ के द्वारा 1531 ई. कलिंजर का अभियान किया गया। इस समय यहाँ का शासक कौन था ?
    (a) शेर खाँ में
    (b) प्रताप रूद्रदेव
    (c) मुहम्मद सुल्तान मिर्जा
    (d) बहादर शाह
    23. हुमायूँ ने चुनार के किले का घेराव कब किया ?
    (a) 1531 ई.
    (b) 1532 ई.
    (c) 1533 ई.
    (d) 1534 ई.
    24. अधोलिखित में से किसने गुजरात के शासक बहादुर शाह के विरूद्ध हुमायूँ के पास राखी भेज कर मदद की गुहार लगायी ?
    (a) रानी दुर्गावती
    (b) रानी कर्णावती 
    (c) चाँद बीबी
    (d) रानी दिग्धा
    25. निम्नलिखित युद्धो को कालक्रमानुसार व्यवस्थित कीजिये- 
    (a) बिलग्राम, चौसा, सरहिंद
    (b) चौसा, सरहिन्द, बिलग्राम
    (c) चौसा, बिलग्राम, सरहिंद
    (d) सरहिंद, चौसा, बिलग्राम
    26. भारत में अधोलिखित में से किसने अपनी एक दिन के शासन काल के दौरान चमड़ा का सिक्का जारी किया था ? 
    (a) सुजात खाँ
    (b) निजाम खाँ 
    (c) हुमायूँ
    (d) शेरशाह
    27. वह निर्णायक युद्ध कौन-सा था जिसमें मुगलवंश की सत्ता को उखाड़ फेका और एक नये वंश सूरी वंश को स्थापित किया ?
    (a) चौसा का युद्ध
    (b) बिलग्राम/कन्नौज का युद्ध
    (c) सरहिंद का युद्ध
    (d) दोहरिया / दौरा का युद्ध
    28. हुमायूँ चौसा के युद्ध (1539 ई.) के युद्ध में शेरशाह सूरी से पराजित होकर निम्नलिखित में से किसके सहायता से भागने में सफल हुआ ?
    (a) फरीद खाँ
    (b) निजाम खाँ
    (c) खफी खाँ
    (d) ईरान से कोई नहीं
    29. हुमायूँ भारत से निर्वासित होने के पश्चात् अपना जीवन कहाँ व्यतित किया ?
    (a) कंधार
    (b) काबुल
    (c) बदरखाँ
    (d) समरकंद
    30. सरहिंद का युद्ध (22 जून, 1555) किसके बीच लड़ा गया था ?
    (a) हुमायूँ एवं शेरशाह सूरी
    (b) हुमायूँ एवं सिकंदर सूरी
    (c) अकबर एवं सिकंदर सूरी
    (d) NOT
    31. हुमायूँ का मकबरा कहाँ स्थित है ? 
    (a) सिकंदरा 
    (b) दिल्ली
    (c) आगरा
    (d) फिरोजपुर
    32. हुमायूँ की मृत्यु पर किस इतिहासकार ने कहा है कि “हुमायूँ जीवन भर लड़खड़ाता रहा और लड़खराते हुए ही मर गया" ? 
    (a) खफी खाँ 
    (b) अब्दुर रहीम खाने खाना
    (c) बदायूँनी
    (d) लेनपुल
    33. निम्नलिखित में से कौन ऐसा शासक था जो ज्योतिष में अत्यधिक विश्वास करता था ? 
    (a) बाबर 
    (b) शेरशाह
    (c) हुमायूँ
    (d) अकबर
    34. अकबर का मूल नाम क्या था ?
    (a) जहीरूद्दीन मुहम्मद अकबर
    (b) जलालुीन मुहम्मद अकबर
    (c) जलाल खाँ
    (d) NOT
    35. सर्वप्रथम अकबर को कहाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया था ?
    (a) काबुल
    (b) गजनी
    (c) संभबलपुर
    (d) कालान्नौर
    36. अकबर के संबंध में विचार कीजिये-
    1. इसका जन्म 15 Oct. 1542 को अमरकोट के राजा वीरसाल क राजमहल में हुआ।
    2. वह गणित का बहुत बड़ा ज्ञानी था।
    3. इसका शाब्दिक अर्थ महान होता है।
    4. इसका राज्याभिषेक 14 वर्ष के उम्र में गुरूदासपुर के निकट कलानौर नामक स्थान पर किया गया।
    उपर्युक्त में से कौन - सा /से सही है/हैं ?
    (a) 1, 2 एवं 4
    (b) 2, 3 एवं 4
    (c) 1, 3 एवं 4
    (d) उपर्युक्त सभी 
    37. अकबर के शासनकाल में कौन-सा क्षेत्र हेमू के नियंत्रण में था ?
    (a) दिल्ली, मथुरा 
    (b) अजमेर, बालाकोट
    (c) गुजरात, दिल्ली
    (d) आगरा, दिल्ली
    38. हेमू एवं अकबर के बीच 5 Nov. 1556 को निम्नलिखित में से कौन-सा युद्ध लड़ा गया था ?
    (a) पानीपत का द्वितीय युद्ध 
    (b) बिलग्राम / कन्नौज का युद्ध
    (c) तलीकोटा का युद्ध
    (d) हल्दीघाटी का युद्ध
    39. मध्यकाल के दौरान एक मात्र हिन्दु शासक कौन था जो दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था ?
    (a) पृथ्वीराज चौहान
    (b) हेमचन्द्र
    (c) महेश दास
    (d) मान सिंह
    40. किस काल को बैरम खाँ का संरक्षण का काल कहा जाता है ? 
    (a) 1545-1560
    (b) 1556-1560 
    (c) 1556-1564
    (d) 1560-1562
    41. विचार कीजिये-
    1. माहम अनगा
    2. जीजी अनगा
    3. अधम्म खाँ
    4. बैरम खाँ
    5. मुनिम खाँ
    उपर्युक्त में से कौन-सा / से अतरवा खेल गुट से संबंधित सदस्य है/हैं ?
    (a) 1. 2. 4 एवं 5
    (b) 1, 2 एवं 3
    (c) 1, 2, 3 एवं 5
    (d) 1 एवं 3
    42. बैरम खाँ मुगल घराने के संयंत्रो से निराश होकर विद्रोह कर दिया तत्पश्चात किस स्थान पर बैरम खाँ एवं मुगलशाही सेना के बीच युद्ध हुआ ? 
    (a) तिलवारा 
    (b) पाटन
    (c) मच्छीवाड़ा
    (d) कलानौर
    43. खान-ए-खाना की उपाधि से किसे सम्मानित किया गया?
    (a) अर्द्ध रहीम
    (b) बैरम खाँ
    (c) A और B दोनों
    (d) NOT
    44. मालवा का अभियान 1561 ई. में अकबर ने किसके नेतृत्व में किया ?
    (a) पीर मुहम्मद
    (b) अब्दुला खाँ उज्बेग
    (c) आश्रम खाँ
    (d) मुबारक खाँ
    45. बाज बहादुर और रूपमती का समाधि कहाँ अवस्थित है?
    (a) गाजीपुर 
    (b) गुजरात
    (c) अजमेर
    (d) उज्जैन
    46. किस राजपुत शासको ने सर्वप्रथम अकबर की अधीनता स्वीकार की थी ?
    (a) भारमल 
    (b) जयमल
    (c) उदय सिंह
    (d) सूरजन राय
    47. अकबर के शासन काल के समय गोंडवाना या गढ़कटंगा की शासिका कौन थी ? 
    (a) जोधाबाई
    (b) रूपमती
    (c) कर्णावती
    (d) दुर्गावती
    48. अधोलिखित में से अकबर के किस अभियान को उसके चरित्र पर कलंक या काला धब्बा माना जाता है |
    (a) आमंड 
    (b) मेवाड
    (c) रणथंमोर
    (d) गोंडवाना
    49. हल्दीघाटी का युद्ध 1 जून 1576 ई. को महाराणा प्रताप एवं अकबर के बीच लड़ा गया था। नीचे दिये गए विकल्प का प्रयोग कर बताइए कि यह युद्ध किस पहाड़ी के निकट हुआ था ?
    (a) त्रिशूल
    (b) माउंट आबू
    (c) अरावली
    (d) अजंता
    50. हल्दी घाटी युद्ध का नेतृत्व मुगल सेना की ओर से किसने किया था ?
    (a) आसफ खाँ एवं मानसिंह
    (b) अब्दुल्ला खाँ एवं महेश दास
    (c) दौलत खाँ एवं मानसिह
    (d) मुहम्मद खाँ एवं अब्दुल्ला खाँ
    51. अकबर जिस समय गुजरात अभियान किया था उस समय वहाँ के शासक कौन था ?
    (a) इतमाद खाँ
    (b) मुजफ्फर खाँ
    (c) मिर्जा हकीम खाँ
    (d) युसूफ खाँ
    52. टोडरमल द्वारा सर्वप्रथम भूमि बंदोवस्त कहाँ लागू किया गया था ? 
    (a) मालवा में
    (b) गुजरात में
    (c) काबुल में
    (d) बंगाल में
    53. अधोलिखित में से किस विद्वान ने अकबर के गुजरात अभियान को सबसे द्रुतगामी या तेज गति वाला अभियान बताया है ?
    (a) ए. ल. श्रीवास्तव 
    (b) कनिंघम
    (c) स्मिथ
    (d) मान्संरट
    54. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए एवं कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिए-
    1. सिसोदिया राजपूत वंश ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।
    2. अकबर ने पहली बार खम्भात की खाड़ी में समुद्र को देखा और यही पुर्तगालियों से भी मुलाकात की।
    उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं ?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 एवं 2
    (d) NOT
    55. निम्नलिखित में कौन-सा पुर्तगाली अकबर के साथ काबुल अभियान पर गया था ?
    (a) संत जुवियर
    (b) पेल्सर्ट
    (c) मानसरेट
    (d) नुनीज
    56. बीरबल किस विद्रोह को दबाते हुए मारा गया ?
    (a) सिंध
    (b) भील विद्रोह
    (c) जाट विद्रोह
    (d) युसूफजाई विद्रोह
    57. अकबर द्वारा विजेत प्रदेशों को कालक्रमानुसार व्यवस्थित कीजिए-
    1. गुजरात
    2. कश्मीर
    3. बंगाल एवं बिहार
    4. ब्लूचिस्तान
    कूट :
    (a) 2, 1, 3, 4
    (b) 1, 2, 3, 4
    (c) 1, 3, 2, 4
    (d) 4, 3, 2, 1
    58. बंगाल एवं बिहार को अकबर ने किस वर्ष मुगल साम्राज्य में मिलाया ?
    (a) 1581 ई. 
    (b) 1576 ई.
    (c) 1580 ई.
    (d) 1572 ई.
    59. अकबर ने गुजरात विजय के उपलक्ष्य में निम्नलिखित में से किसका निर्माण करवाया था ?
    (a) फतेहपुर सीकरी
    (b) बुलंद दरवाजा
    (c) पंचमहल
    (d) आगरा का लाल किला
    60. निम्नलिखित में से किस राज्य ने स्वेच्छा से अकबर की अधीनता स्वीकार की ? 
    (a) अहमद नगर 
    (b) बीजापुर
    (c) खानदेश
    (d) गोलकुंडा
    61. दक्षिण भारत के विजय के लिए किसके नेतृत्त्व में मुगल सम्राट अकबर द्वारा एक विशाल फौज भेजा गया था ?
    (a) अदुरहीम 
    (b) दौलत खाँ
    (c) मानसिंह
    (d) आदम खाँ 
    62. पानीपत का प्रथम युद्ध किसके बीच हुआ था ? 
    (a) बाबर और राणा सांगा के बीच
    (b) हेमू और अकबर के बीच
    (c) हुमायूँ और शेर खाँ के बीच
    (d) बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 
    63. 1527 ई. मैं खानवा के युद्ध में बाबर ने मेवाड़ के किस राजा हराया था ?
    (a) राणा प्रताप
    (b) मानसिंह 
    (c) सवाई उदय सिंह
    (d) राणा सांगा 
    64. निम्नलिखितक में से किसने अपने बादशाह पति के लिये मकबरे का निर्माण कराया था ? 
    (a) शाह बेगम ने
    (b) हमीदा बानो बेगम
    (c) मुमताज महल ने
    (d) मेहरूनिसा बेगम ने
    65. बाबर के संदर्भ में निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है ?
    (a) इसे भारत प्रवेश हेतु राणा सांगा ने आमंत्रित किया था।
    (b) बाबर ने सिंधु नदी पार कर भारत में प्रवेश किया था।
    (c) इसने सर्वप्रथम 'भेरा' और स्यालकोट का किला जीता।
    (d) इस समय पंजाब पर तुर्कों का शासन था ।
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    Mon, 15 Apr 2024 09:16:15 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | भक्ति एवं सूफी आंदोलन https://m.jaankarirakho.com/977 https://m.jaankarirakho.com/977 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | भक्ति एवं सूफी आंदोलन

    सूफी आंदोलन

    • इस्लाम धर्म में एक सुधारवादी तथा रहस्यवादी आंदोलन चला जिसे सूफी आंदोलन के नाम से जाना जाता है।
    • सूफी के आदेशों को सिलसिला के नाम से जाना जाता है। 
    • सुफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सफा शब्द से हुई है, जिसका अर्थ पवित्रता होता है ।
    • सुफी आंदोलन की शुरूआत फारस (पर्शिया) यानि ईरान से माना जाता है।
    • जो लोग सूफी संतों से शिष्यता ग्रहण करते थें उन्हें मुरीद कहा जाता था।
    • सूफी जिन आश्रम में रहते थें उसे खानकाह या मठ से जाना जाता था ।
    • सूफी संतों पीर - मुरीद (गुरू-शिष्य) परंपरा को बढ़ावा दिया ।
    • सूफी संत दो भागों में बँटकर अपने विचारों का प्रसार किया-
      1. बा-शारा - इस्लामी सिद्धांत के समर्थक
      2. बे-शारा - इस्लामी सिद्धांत से परे अपने सिद्धांतों के अनुकूल कार्य करते थें 
    • आइने अकबरी के लेखक अबुल फजल कुल 14 सूफी सिलसिला की चर्चा करता है, जिसमें 5 सिलसिला को भारत में प्रमुखता प्राप्त हुई ।
    (1) चिश्ती संप्रदाय :- यह सबसे उदारवादी संप्रदाय है ।
    ♦ भारत में - मोइनुद्दीन चिश्ती
    प्रमुख संत:-
    बख्तियार काकी, निजामुद्दीन ओलिया, अमीर खुसरो, शेख सलीम चिश्ती
    • यह सभा अर्थात संगीत के माध्यम से अपने विचारों का प्रसार करता था ।
    • बाबा फरीद की रचनाएँ गुरू ग्रंथ साहिब में शामिल है ।
      • दक्षिण भारत के चिश्ती - शेख बुरहानुद्दीन गरीब
    (2) सुहरावर्दी:-
    ♦ संस्थापक:- शेख शिहाबुद्दीन उमर सुहारवर्दी 
    ♦ सुदृढ़ संचालक:- बदरूद्दीन जकारिया
    ♦ मुख्य केंद्र:- सिंध और सुल्तान
    ♦ फिरदौसी:- बिहार और बंगाल
             ↓
    ♦ याहिया मनेरी:- मनेर
    (3) सतारी: - शेख अब्दुल्ला सतारी
    ♦ मुख्य केंद्र:- बिहार
    (4) कादिरी:- सैय्यद अब्दुल कादिर अल जिलानी
    ♦ भारत में:- मुहम्मद गौस (शिष्य तानसेन)
    • गने-बजाने के विरोधी थें ।
    • राजकुमार दारा इसी संप्रदाय को मानता था ।
    (5) नक्शबंदीः- ख्वाजा उबेदुल्ला
    ♦ भारत:- ख्वाजा बकी बिल्लाह शेख अहमद सरहिन्दी
    • औरंगजेब इसी संप्रदाय को मानता था।

    भक्ति आंदोलन

    • हिंदु धर्म में जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति बताया गया है।
    • मोक्ष का अर्थ जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होना होता है ।
    • हिंदु धर्म में मोक्ष पाने के लिए तीन मार्गो की चर्चा की गयी है ।
      1. कर्म मार्ग:- इसका विवरण वेदों में मिलता है।
      2. ज्ञान मार्ग:- उपनिषद
      3. भक्ति मार्ग:- भागवत् संप्रदाय या वैष्णव संप्रदाय
    • मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग भक्ति मार्ग है।
    • भक्ति आंदोलन की शुरूआत 6ठी शताब्दी ई. से तमिल क्षेत्र से हुई है जो कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में फैल गयी ! यानी भारत में भक्ति आंदोलन की शुरूआत दक्षिण भारत से माना जाता है ।
    • दक्षिण भारत में 12 वैष्णव संत अलवार तथा 63 शैव संत नयनार ने अपने विचारों के माध्यम से भक्ति भावना को आंदोलन का रूप दिया ।
    • भाक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में लाने का श्रेय रामानंद को दिया जाता है ।
    • रामानंद की शिक्षा से दो संप्रदायों की शुरूआत हुआ ।

             

    क्र. सं. संत दर्शन
    1. शंकराचार्य अद्वैतवाद
    2. रामानुजाचार्य विशिष्टा द्वैतवाद
    3. माध्वाचार्य द्वैतवाद
    4. निम्बाकाचार्य द्वैताद्वैतवाद
    5. विष्णु स्वामी शुद्ध द्वैतवाद
    भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतः
    (1) रामानुजाचार्यः- राम | श्री संप्रदाय की स्थापना ।
    ♦ जन्म - 1017 - मद्रास के निकट पेरूम्बर में
    • भक्ति आंदोलन के प्रारंभिक प्रतिपादक रामानुजाचार्य
    (2) रामानंदः- जन्म - 1299 - प्रयाग
    • राम और सीता के अराधना को समाज के समक्ष रखना ।
    • 12 शिष्य में 2 स्त्री - (1) पद्मावती और (2) सुरसी
    प्रमुख शिष्यः 
    रैदास हरिजन
    कबीर जुलाहा
    धन्ना जाट
    सेना नाई
    पीपा राजपूत
    (3) कबीर दास:- कबीर का जन्म 1440 में वाराणसी में एक विधवा ब्राह्मण के गर्भ से हुआ ।
    ♦ लोक लज्जा- वाराणसी के लहरतारा
    ♦ पालक माता-पिता- नीरू और नीमा
    ♦ पत्नी- लोई
    ♦ एकेश्वरवाद
    ♦ उपदेश - सबद
    ♦ वीणा का संग्रह - बीजक (रमैनी, सबद, साखी)
    ♦ सिकंदर लोदी के समकालीन थें ।
    ♦ 1510 - मगहर
    (4) चैतन्य प्रभुः- 1486 नवद्वीप (बंगाल) - जन्म
    ♦ पिता- जगन्नाथ मिश्र
    ♦ माता- शची देवी
    ♦ वास्तविक नाम विश्वम्बर
    • गोसाई संघ की स्थापना
    • संकीर्तन के माध्यम से अपनी धार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्त किया।
    • कृष्ण का अवतार
    • दार्शनिक सिद्धांत - अचिंत्य भेदाभेदवाद

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    सूफी आंदोलन

    1. निम्नलिखित में से कौन-सा सूफी सन्त सुहरावर्दी सिलसिले से सम्बन्धित था?
    (a) मीर सैयद अली हमदानी
    (b) शेख बहाउद्दीन जकारिया
    (c) शेख निजामुद्दीन औलिया
    (d) शेख नासिरुद्दीन चिराग-ए-देहलवी
    2. निम्नलिखित युग्मों में से गलत युग्म को पहचानिए
    (a) चिश्ती -दिल्ली एवं दोआब
    (b) फिरदौसी- पंजाब
    (c) सुहरावर्दी-सिन्ध
    (d) नक्सबंदी कश्मीर
    3. कौन भारतीय सन्त 'मुजाहिद-ए-अल्फ सानी' कहलाते थे?
    (a) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती
    (b) बहाउद्दीन जकारिया
    (c) शाह वली उल्लाह
    (d) शेख अहमद सरहिन्दी
    4. 'इल्मे इलाही मुहम्मदी' नामक रहस्यवादी सिद्धान्त का प्रतिपादन किस सूफी सन्त ने किया था?
    (a) ख्वाजा मीर दर्द
    (b) शेख मूसा
    (c) शेख शफुद्दीन याह्या मनियारी
    (d) मुल्लाशाह बदख्शी
    5. निम्नलिखित चिश्ती सम्प्रदाय के सन्तों को तिथि क्रमानुसार व्यवस्थित कीजिए-
    1. शेख निजामुद्दीन औलिया
    2. सैयद मोहम्मद गेसूदराज
    3. बाबा फरीद गजशंकर
    4. शेख नासिरुद्दीन चिराग-ए-देहलवी
    कूट :
    (a) 1. 2, 3, 4
    (b) 4, 3, 2, 1
    (c) 1, 3, 4, 2
    (d) 3, 1, 4, 2
    6. शेख निजामुद्दीन औलिया ने 'आइन-ए-हिन्द' की उपाधि से किसे विभूषित किया था?
    (a) शेख सिराजुद्दीन उस्मानी
    (b) शेख नासिरुदीन चिराग-ए-देहलवी
    (c) ख्वाजा सैयद मोहम्मद सूदराव
    (d) शेख बहाउद्दीन जकारिया
    7. कीन सूफी सन्त महबूब-ए-इलाही कहलाता था?
    (a) ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
    (b) बाबा फरीद
    (c) कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
    (d) शेख निजामुद्दीन औलिया
    8. निम्नलिखित सूफियों में से किसने भारत को 'पृथ्वी का स्वर्ग' कहा है?
    (a) बाबा फरीद
    (b) शेख निजामुद्दीन
    (c) अमीर खुर्द
    (d) अमीर खुसरो
    9. किस सूफी सम्प्रदाय ने योग क्रिया को अपनाया था?
    (a) कादरी
    (b) शतारी
    (c) चिश्तिया
    (d) इनमें में कोई नहीं
    10. निम्नलिखित में से किस सूफी ने अलागीन खिलजी को कहा कि मेरे मकान के दो दरवाजे हैं यदि सुल्तान एक के द्वारा आएगा, तो मैं दूसरे के द्वारा बाहर चला जाऊँगा
    (a) निजामुद्दीन औलिया
    (b) कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
    (c) फरीदुद्दीन - गंज- ए शंकर
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
    11. सूफीमत के विषय में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. सूफी, धर्मशास्त्रों द्वारा अपनाए गए कुरान और सुनना ( पैगम्बर की परम्पराएँ) की व्याख्या करने की मताग्रही परिभाषाओं और शैक्षिक विधियों के आलोचक थे।
    2. सूफियों ने कुरान की व्याख्या अपने व्यक्तिगत अनुभ के आधार पर की।
    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2  
    12. निम्न कथनों को ध्यानपूर्वक पढ़ें
    1. भारत में चिश्ती सम्प्रदाय के संस्थापक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती थे।
    2. 1192 ई. में वे मोहम्मद गोरी के साथ भारत आए और अजमेर में बस गए। 
    3. शेख गेसूदराज ने दक्षिण भारत में गुलबर्गा को अपना निवास स्थान बनाया।
    उपरोक्त कथनों में कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
    (a) केवल 3
    (b) 2 और 3
    (c) 1 और 2
    (d) 1, 2 और 3
    13. वह सूफी सन्त कौन था जिसे अपने युग का श्रेष्ठतम संगीतज्ञ माना जाता था और जिसने अपने आपको 'अनहल-हक' घोषित किया था?
    (a) राबिया
    (b) अल-गज्जाली
    (c) पीर बोधन
    (d) मंसूर बिन हल्लाज
    14. महिला सूफी राधिया कहाँ की थी?
    (a) बसरा
    (b) बगदाद
    (c) भक्का
    (d) मदीना
    15. सूफियों की भाषा में 'जियारत' क्या था ?
    (a) सूफी सन्तों के मकबरों की, बरकत (आध्यात्मिक कृपा) प्राप्त करने के लिए, तीर्थयात्रा
    (b) ईश्वरीय नाम गायन
    (c) फुतूह (बे - माँगा दान) पर चलाई जा रही निःशुल्क रसोई अर्पित करना
    (d) औकाफ (पूर्त न्यास) स्थापित करना
    16. 'कलीला - ब - दिम्ना' नामक पुस्तक निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है ?
    (a) हिन्दू दर्शन पद्धतियाँ
    (b) शासन करने की कला
    (c) सूफी सन्तों के वचन
    (d) अरबी वैज्ञानिक पद्धतियाँ
    17. 'खानकाह क्या था?
    (a) कवि अमीर खुसरो की रचनाएँ
    (b) सिकन्दर लोदी का दरबार
    (c) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की जन्मभूमि
    (d) सूफी सन्तों का निवास स्थान
    18. सूफीवाद के विषय में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
    (a) वे परमात्मा से साक्षात्कार के लिए आतुर रहते थे
    (b) वे इस्लाम की मूलात्मा में विश्वास करते थे न कि उसके सैद्धान्तिक आडम्बर में
    (c) त्रे अनुवायियों के आचरण को नियन्त्रित करने के लिए गुरु की आवश्यकता को स्वीकार करते थे
    (d) वे आत्मा के पारगमन के सिद्धान्त को अस्वीकार करते थे
    19. भारत में चिश्ती सूफियों ने 'विलायत' नामक संस्था विकसित की जिसका उद्देश्य निम्नलिखित में से किस एक से था?
    (a) सूफियों का आवास
    (b) राज्य नियन्त्रण से मुक्त आध्यात्मिक क्षेत्र
    (c) खानकाह अनुशासन
    (d) सूफियों का अन्तिम विश्राम स्थल
    20. निम्नलिखित में से किस सन्त को 'सुल्तान तारकिन' कहा गया है?
    (a) कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
    (b) हमीमुद्दीन नागौरी
    (c) निजामुद्दीन औलिया
    (d) शेख सलीम चिश्ती
    21. 'दस्तार बन्दान' कौन कहलाते थे? 
    (a) सूफी सन्त 
    (b) खान
    (c) मलिक
    (d) उलेमा
    22. निम्नलिखित में से किस सूफी सन्त ने यौगिक क्रिया को अपनाया और सिद्ध कहलाए ?
    (a) फरीद
    (b) सलीम चिश्ती
    (c) निजामुद्दीन औलिया
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
    23. सूफी विचारधारा में तर्क- ए-दुनिया का अर्थ है ? 
    (a) उद्बुद्ध विश्व 
    (b) विश्व का परित्याग
    (c) सहिष्णु संसार
    (d) इनमें से कोई नहीं
    24. 'हुनुज दिल्ली दूरस्थ ( दिल्ली अभी दूर है ) यह कथन किसका है?
    (a) गाजी मलिक 
    (b) शेख सलीम चिश्ती
    (c) निजामुद्दीन औलिया
    (d) अमीर खुसरो
    25. ख्याजा कुतुबुद्दीन को 'बख्तियार' की उपाधि किसने प्रदान की थी?
    (a) ख्वाजा उस्मान हारुनी
    (b) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती
    (c) अब्दुल कादिर जिलानी
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं
    26. निम्नलिखित सूफियों में से किसको 'अलख' कहा जाता था?
    (a) ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती 
    (b) शेख सलीम चिश्ती
    (c) अब्दुल अजीज मक्की
    (d) अब्दुल कुद्दूस गंगोही
    27. निम्नलिखित फारसी कवियों में से किसे 'भारत का सादी' कहा जाता है ?
    (a) अमीर हसन
    (b) अमीर खुसरो
    (c) शेख अबुल फैजी
    (d) हुसैन सनाई
    28. चिश्तिया मत के सन्दर्भ में कौन-सा कथन गलत है? 
    (a) चिश्तिया सूफी मत की स्थापना ख्वाजा अबू अन्दाल चिश्ती ने की थी
    (b) भारत में सर्वप्रथम इसका प्रचार ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के द्वारा हुआ था
    (c) कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य थे
    (d) उपरोक्त में से कोई नहीं

    भक्त आन्दोलन

    1. गुरु ग्रन्थ साहिब अपनी मौजूदा शक्ल में किसके द्वारा किया गया था ?
    (a) गुरु नानक देव 
    (b) गुरु अर्जुन देव
    (c) गुरु गोविन्द सिंह
    (d) गुरु अमरदास
    2. निम्न में कौन-सा सुमेल असत्य है ?
    (a) शंकरदेव - कामरूप में वैष्णव धर्म के प्रवर्तक
    (b) तुकाराम - अभंग
    (c) सैयद मोहम्मद - महदवी आन्दोलन जौनपुरी
    (d) शेख निजामुद्दीन - चिराग - ए - देहलवी ओलिया
    3. गौरांग महाप्रभु के बारे में निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है ?
    (a) चैतन्य को ही गौरांग महाप्रभु कहा गया
    (b) इन्होंने कृष्ण भक्ति का प्रचार किया
    (c) इनके बचपन का नाम निमाई था
    (d) कीर्तन जैसी प्रक्रिया का बहिष्कार किया गया
    4. मध्यकालीन भारत का वह कौन-सा सन्त कवि था जिसने षड्दर्शन के मूल्यों को अस्वीकार किया तथा 'निपख' मार्ग का अनुमोदन किया? 
    (a) कबीर
    (b) मलूकदास
    (c) दादू दयाल
    (d) रैदास
    5. रैदास, सेना और कबीर किसके अनुयायी थे ? 
    (a) नामदेव 
    (b) रामानुज
    (c) वल्लभाचार्य
    (d) रामानन्द
    6. पंजाबी सूफी कवि जो कुरान पाक और अन्य धार्मिक ग्रन्थों का कटु आलोचक था
    (a) बुल्लेशाह
    (b) शाह हुसैन 
    (c) सुल्तान बहू
    (d) मियाँ मीरशाह हुसैन 
    7. अष्टछाप के कवियों में कौन-कौन कवि शामिल थे? 
    (a) कुम्भनदास 
    (b) कृष्णदास
    (c) नन्ददास
    (d) ये सभी
    8. यह कथन किसका है; “ईश्वर मनुष्य के गुणों को देखता है, उसकी जाति को नहीं; दूसरे संसार में कोई जाति नहीं है?" 
    (a) कबीर 
    (b) गुरु नानक
    (c) चैतन्य
    (d) रामानन्द
    9. मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के किस मुसलमान कवि ने अनिवार्यतः हिन्दू पौराणिक नायकों पर काव्य रचना की?
    (a) कुतुबन
    (b) रसखान
    (c) मुल्ला दाउद
    (d) अमीर खुसरो
    10. निम्नलिखित में से किन्होंने संन्यास नहीं लिया था ? 
    (a) नानक एवं चैतन्य
    (b) चैतन्य एवं वल्लभाचार्य
    (c) वल्लभाचार्य एवं नानक
    (d) नानक एवं विज्ञानेश्वर
    11. निम्नलिखित में से किसने अपने उपदेशों में समाज एवं परिवार के लिए महिलाओं के महत्त्व को पहचाना? 
    (a) गुरु नानक 
    (b) सन्त रविदास
    (c) सन्त ज्ञानेश्वर
    (d) सन्त तुकाराम
    12. निम्नलिखित में से कौन महानुभाव सम्प्रदाय का संस्थापक था?
    (a) एकनाथ
    (b) चक्रधर
    (c) ज्ञानेश्वर
    (d) तुकाराम
    13. निम्नलिखित सन्तों का सही तिथिक्रम क्या है?
    1. वल्लभाचार्य
    2. शंकराचार्य
    3. रापानुजाचार्य
    4. निम्बाकाचार्य
    5. माधवाचार्य
    कूट :
    (a) 1, 2, 3, 4, 5 
    (b) 4, 3, 2, 1, 5
    (c) 2, 3, 5, 4, 1
    (d) 3, 1, 4, 2,5
    14. महाराष्ट्र के निम्नलिखित सन्तों का सही कालानुक्रम नीचे दिए कूट से निर्दिष्ट कीजिए.
    1. एकनाथ
    2. रामदास
    3. तुकाराम
    4. नामदेव
    कूट :
    (a) 1, 2, 3, 4
    (b) 4, 3, 2. 1
    (c) 2, 1, 4,3
    (d) 4, 1, 3, 2
    15. 'योग कलन्दर' पुस्तक का रचयिता थे- 
    (a) अबू अली कलन्दर 
    (b) कुतुबुद्दीन कलन्दर
    (c) सैयद मुर्तजा
    (d) इनमें से कोई नहीं
    16. प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई के पति का नाम था 
    (a) राणा रतन सिंह 
    (b) राजकुमार भोजराज
    (c) राणा उदयसिंह
    (d) राणा सांगा
    17. भक्ति आन्दोलन का सामाजिक परिणाम था 
    (a) गुरु के महत्त्व में वृद्धि
    (b) स्त्रियों के सम्मान में वृद्धि
    (c) सिख धर्म का उदय
    (d) क्षेत्रीय भाषाओं की समृद्धि
    18. गुरु अर्जुनदेव द्वारा संकलित आदिग्रन्थ साहिब के निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक कथन सही नहीं हैं:
    (a) इसका संकलन सत्रहवीं शताब्दी के प्रथण दशक में हुआ था
    (b) इसमें कबीर, नानक जैसे निर्गुण सन्तों के पद संकलित हैं
    (c) इसमें प्राय: सगुण भक्ति के सन्तों के पद हैं
    (d) इसमें बाबा फरीद की उक्तियाँ हैं
    19. निम्नलिखित में से कौन-कौन भक्ति मार्ग के निर्गुण पंथ के प्रमुख सदस्य थे?
    1. कबीर
    2. नानक
    3. रैदास
    4. मीरा
    कूट :
    (a) 2 और 3
    (b) 1, 2 और 3
    (c) 1, 3 और 4
    (d) ये सभी
    20. निम्नलिखित में से किस एक मध्ययुगीन भक्ति सन्त को बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन ने अपने दरबार के पाँच रत्नों में से एक के रूप में संरक्षण प्रदान किया? 
    (a) वल्लभाचार्य 
    (b) जयदेव
    (c) चैतन्य
    (d) नरसी मेहता
    21. निम्नलिखित में से कौन सोलहवीं शताब्दी में कर्नाटक में दासकूट आन्दोलन से सम्बद्ध थे?
    (a) अकिंचनदास 
    (b) पुरन्दरदास
    (c) रैदास
    (d) रामदास
    22. निम्न में से किस भक्त-सन्त को पुष्टिमार्ग का जहाज कहा गया ?
    (a) सूरदास
    (b) मीराबाई
    (c) चैतन्य
    (d) रज्जब
    23. भक्ति आन्दोलन को राजस्थान में फैलाने वाले थे 
    (a) निम्बार्क
    (b) नानक
    (c) दादू
    (d) सूरदास
    24. चैतन्य महाप्रभु किस सम्प्रदाय से जुड़े थे? 
    (a) श्री सम्प्रदाय
    (b) बारकरी सम्प्रदाय
    (c) गौड़ीय सम्प्रदाय 
    (d) इनमें से कोई नहीं
    25. निम्नलिखित में से किस भक्ति सन्त ने बेदान्तसूत्र की संस्कृत में टीका लिखी?
    (a) रामानन्द
    (b) तुलसीदास
    (c) लल्लेश्वरी
    (d) वल्लभाचार्य
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    Mon, 15 Apr 2024 07:51:23 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | विजयनगर और बहमनी साम्राज्य https://m.jaankarirakho.com/976 https://m.jaankarirakho.com/976 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | विजयनगर और बहमनी साम्राज्य

    विजयनगर साम्राज्य (1336-1565)

    • विजयनगर का शाब्दिक अर्थ "जीत का शहर" होता है ।
    • विजयनगर राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का ( 1336 ) नाम के दो भाईयों ने की, जिनके तीन और भाई थें।
    • हरिहर और बुक्का वारंगल के काकतीय राजा के सामंत थें और बाद में कांपिली (कर्नाटक) नामक राज्य में मंत्री बन गयें।
    • जब एक मुस्लमान विद्रोही को शरण देने के कारण कांपिली पर मुहम्मद बिन तुगलक ने आक्रमण करके उसे जीत लिया तो इन दोनों भाईयों को बंदी बनाकर इस्लाम में दीक्षित कर लिया ।
    • इस्लाम धर्म स्वीकार करने के उपरांत इन्हें विद्रोहियों के दमन के लिए दक्षिण भारत भेजा गया ।
    • दक्षिण भारत में फैली अराजकता और तुर्क सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाकर तुंगभद्रा नदी के किनारे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान को विजयनगर के रूप में बसाया और शासन करने लगें ।
    • हरिहर और बुक्का ने अपने पिता की स्मृति स्मृति में संगम वंश की नींव रखी।
    • ये दोनों भाई अपने गुरू विधारण्य की प्रेरणा से पुनः हिंदू बनें और विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की ।
    • विजयनगर साम्राज्य के 4 राजवंश (संगम, सालुव, तुलुव और अरावीडु वंश) ने 300 वर्षो से अधिक समय तक शासन किया ।
    • विजयनगर साम्राज्य की राजधानियाँ भी बदलती रही, जिनका क्रम है- आनेगोंडी → विजयनगर (हम्पी ) → पेनूकोंडा और चंद्रगिरी ।
    • विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (कर्नाटक, बेल्लारी जिला, तुंगभद्रा ) है ।

    संगम वंश (1336 - 1485)

    प्रमुख शासक

    हरिहर प्रथम ( 1336 - 1356)

    • यह इस वंश का प्रथम शासक हुआ । इन्होनें सर्वप्रथम अपनी राजधानी आनेगोंडी को बनाया और शासन के सातवें वर्ष राजधानी स्थानांतरित कर विजयनगर को बनाया ।
    • इसका मुख्य सलाहकार संत विधारण्य था जिन्होनें "संगीतसार" नामक ग्रंथ की रचना किया।
    • इन्हीं के शासनकाल में महाराष्ट्र में 1347 में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई जिस कारण विजयनगर साम्राज्य का विस्तार रूक गया।
    • 1356 में इनका निधन हो गया ।

    बुक्का प्रथम (1356-1377)

    • हरिहर प्रथम के निधन के बाद बुक्का प्रथम शासक बना, जिन्होनें "वेदमार्ग प्रतिष्ठापक" की उपाधि धारण की।
    • बुक्का प्रथम के काल में दक्षिण भारत के मदुरै राज्य के खिलाफ अभियान कर उसे जीतकर विजयनगर साम्राज्य में शामिल किया गया। इस अभियान का नेतृत्व बुक्का प्रथम का पुत्र कंपन ने किया था। इस बात की जानकारी "मदुरै विजयम” नामक ग्रंथ से मिलती है जिसकी रचना कंपन की पत्नी गंगा देवी ने की है।
    • इनके शासनकाल में बहमनी साम्राज्य से संघर्ष हुआ। बुक्का प्रथम ने मुद्गल के किले पर आक्रमण कर संघर्ष की शुरूआत की। इस संघर्ष के दौरान बहमनी के शासक मुहम्मदशाह प्रथम था । इस युद्ध में पहली बार तोपो (बारूद ) का प्रयोग हुआ ।
    • माना जाता है कि हरिहर और बुक्का ने संयुक्त शासन चलाया। (पहली बार कुषाणों ने संयुक्त शासन चलाया ।)

    हरिहर द्वितीय (1377-1406)

    • 1377 ई. में बुक्का प्रथम के निधन के बाद हरिहर द्वितीय शासक बना ।
    • हरिहर द्वितीय इस साम्राज्य का पहला शासक हुआ जिसने " महाराजाधिराज" की उपाधि धारण किया ।
    • ऋग्वेद के सुप्रसिद्ध टीकाकार सायण इनके प्रधानमंत्री थें।
    • निधन - 1406 ई. I

    देवराय प्रथम (1406-1422)

    • इनके शासनकाल में इटली यात्री "निकोलोकाण्टी" 1420 ई. में भारत की यात्रा पर आया ।
    • इनके दरबार में लखन्ना या लक्ष्मीधर नामक व्यक्ति विदेश मंत्री के पद पर था। इन्हें समुंद्री व्यपार की बेहतर जानकारी थी ।
    • देवराय प्रथम पहली बार तुर्की मुसलमानों को सेना में भर्ती किया ।
    • इन्होनें सिंचाई हेतू हरिहर नदी और तुंगभद्रा नदी पर बांध बनवाया जिससे अनेक नहरें निकाली गई।
    • देवराय प्रथम का संघर्ष बहमनी के सुल्तान फिरोजशाह बहमन के साथ हुआ। वस्तुतः इस संघर्ष में बहमनी के सुल्तान की विजयी हुई । देवराय प्रथम ने अपनी पुत्री का विवाह बहमनी के सुल्तान के साथ किया ।
    • बहमनी और विजयनगर के बीच 1357 ई. से ही संघर्ष का दौर आरंभ हो गया जो लगभग 200 वर्षो तक चलते रहा। दोनों के बीच संघर्ष का मूलकारण कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के बीच के रायचूर दोआब पर अधिकार करने को लेकर होता था ।

    देवराय द्वितीय (1422-1446)

    • देवराय द्वितीय संगम वंश का सबसे महान शासक था।
    • देवराय द्वितीय गजबेटकर (हाथियों का शिकारी) इमादिदेवराय की उपाधि धारण की ।
    • तेलगू विद्वान श्रीनाथ इनके दरबार में रहता था। इन्होनें “हरविलासम्" नामक ग्रंथ की रचना की थी ।
    • इन्होनें भारी संख्या में मुसलमानों को अपनी सेना में शामिल किया।
    • इनके काल में फारस (ईरान) के यात्री अब्दुर्रज्जाक 1442 में भारत की यात्रा पर आया ।
    • देवराय द्वितीय ने संस्कृत ग्रंथ "महानाटक सुधानिधि" एवं "ब्रह्मसूत्र' पर भाष्य लिखा ।
    • मृत्यु :- 1446 ई0
    • देवराय द्वितीय का उत्तराधिकारी मल्लिकार्जुन हुआ जिसे प्रौददेवराय कहा जाता है ।
    • अंतिम शासक:- विरूपाक्ष द्वितीय

    सालुव वंश (1485-1505)

    • 1485 ई. में संगम वंश के शासक विरूपाक्ष द्वितीय की उसके ही सेनापति सालुव नरसिंह ने हत्या कर विजयनगर में दूसरे राजवंश सालुव वंश की नींव रखीं।
    • अंतिम शासक- इम्माडि नरसिंह की हत्या वीर नरसिंह ने करके तुलुव वंश की स्थापना किया ।

    तुलुव वंश (1505-1565)

    • 1505 में वीर नरसिंह ने तुलुव वंश की स्थापना किया। इनका निधन 1509 में हो गया तत्पश्चात् उसका सौतेला भाई कृष्णदेवराय शासक बना।

    कृष्णदेवराय (1509-1529)

    ● कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के सबसे महान शासक थें।
    • कृष्णदेव राय अपनी माता नागल देवी के नाम पर नागलापुर नामक नगर की स्थापना की ।
    • इनके शासनकाल में पुर्तगाल यात्री डोमिंग पायस और बारबोसा 1515 ई. में भारत की यात्रा पर आया ।
    • इनके दरबार में तेलगू साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थें, जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता था । अष्टदिग्गज तेलगू कवियों में पेड्डाना सर्वप्रमुख था । इनके शासन काल को तेलगू साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है।
    • कृष्णदेव राय ने तेलगू में "आमुक्तमाल्याद" एवं संस्कृत भाषा में "जाम्बवती कल्याणम्" नामक ग्रंथ की रचना की ।
    • पेड्डाना को तेलगु भाषा का पितामाह कहते थें । इन्होनें हरिकथाशरणसय तथा मनुचरित की रचना किया ।
    • तेनालीराम, कृष्णदेव राय के दरबार में रहता था, जिन्होनें "पाण्डुरंग महामात्य" की रचना किया।
    • इनके दरबार में लक्ष्मीधर नामक संगीतकार रहता था जिन्होनें संगीत सूर्योदय नामक ग्रंथ लिखा ।
    • कृष्णदेव राय स्वयं आन्ध्रभौज, आन्ध्र - पितामह तथा अभिनवराज जैसी उपाधियाँ धारण किया ।

    सैन्य अभियान

    • कृष्णदेव राय 1510 में बीदर के शासक महमूद शाह को पराजित किया ।
    • 1512 में रायचूर - दोआब और गुलवर्गा के दुर्गो को भी जीत लिया।
    • 1513 - 18 ई. के बीच उड़ीसा के गजपति शासक के विरूद्ध कई बार युद्ध अभियान किया । उड़ीसा के शासक प्रताप रूद्रदेव ने कृष्णदेव राय से संधि कर उससे अपनी पुत्री का विवाह कराया।
    • 1520 ई. में कृष्णदेव राय ने गोलकुंडा को हराकर वारंगल पर अधिकार कर लिया । अतः मात्र 10 वर्षो में कृष्णदेव राय ने अपने सभी विरोधियों को पराजित कर दक्षिण भारत में स्वयं एवं विजयनगर की प्रभुसत्ता को सिद्ध भी कर दिया ।
    • कृष्णदेव राय ने हजारा एवं विट्ठलस्वामी मंदिर का निर्माण करवाया।
    • कृष्णदेव राय मुगल शासक बाबर का समकालीन था ।

    उत्तराधिकारी

    • कृष्णदेव राय का निधन 1529 ई. में हो गया तत्पश्चात् उसका सौतेला भाई अच्युत देवराय शासक बना। पुर्तगाली यात्री नूनिज इन्हीं के शासनकाल में 1535 में भारत आया ।
    • इसके पश्चात् सदाशिव राय शासक बना, जिस पर उसके मंत्री "रामराय” का अत्यधिक प्रभाव था।
    • रामराय एक योग्य शासन - प्रबंधक था परंतु सफल कूटनीतिज्ञ न था । उसने बहमनी राज्य के खंडों से बने पाँच मुसलमानी राज्यों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा, बीदर और बरार) में परस्पर फूट डालने और एक-दूसरें के विरूद्ध सहायता देने की नीति अपनाई ।
    • कलांतर में रामराय के खिलाफ दक्षिण भारत के चारों मुस्लिम राज्यों (अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा और बीदर) ने "मुस्लिम महासंघ" का निर्माण कर 1565 ई. में तालीकोटा या राक्षसी तागंडी या बन्नीहट्टी के युद्ध में रामराय को परास्त किया ।
    • उल्लेखनीय है कि संयुक्त मोर्चे में बरार शामिल नहीं था । 
    • इस युद्ध के पश्चात् रामराय को पकड़कर उसकी हत्या कर दी गई, विजयनगर को लूट कर ध्वस्त कर दिया गया । इस प्रकार तालीकोटा के युद्ध से विजयनगर का पतन हो गया |
    • वर्तमान में कर्नाटक के हम्पी नामक स्थान पर इसके अवशेष मिलते हैं ।
    • तालिकोटा युद्ध के बाद सदाशिव ने तिरूमल के सहयोग से पेनुकोंडा को राजधानी बनाकर शासन प्रारंभ किया ।
    • कलांतर में तिरूमल ने तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव को अपदस्थ कर पेनुकोंडा में अरावीडू वंश की स्थापना किया जो विजयनगर साम्राज्य के ऊपर शासन करने वाला चौथा एवं अंतिम राजवंश था ।

    अरावीडू वंश (1570-1672)

    • संस्थापक:- तिरूमल
    • इस वंश के शासक वेकट द्वितीय ने चंद्रगिरि को अपनी राजधानी बनाया ।
    • वेंकट द्वितीय के शासनकाल में ही वोडेयार ने 1612 ई. में मैसूर राज्य की स्थापना की थी ।
    • अंतिम शासक:- श्रीरंग तृतीय
    • विजयनगर के शासकों तथा बहमनी सुल्तानों के हितों का टकराव तीन अलग-अलग क्षेत्रों में था- तुंगभद्रा के दोआब में, कृष्णा-गोदावरी के डेल्टा क्षेत्र में और मराठवाड़ा प्रदेश में ।
    • तुंगभद्रा दोआब कृष्ण और तुंगभद्रा नदियों के बीच पड़ता था ।

    केन्द्रीय प्रशासन

    • विजयनगर साम्राज्य में राजतंत्रात्मक एवं वंशानुगत शासन व्यवस्था का प्रचलन था । इस समय राजा को "राय" कहकर पुकारा जाता था। 
    • राजा के चयन में "नायकों" की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी ।
    • विजयनगर कालीन सेनानायकों को " "नायक" कहा जाता था ।
    • नायक को वेतन के बदले जो भू-खंड दिया जाता था उसे "आमरम्" कहा जाता था ।
    • युवराज के राज्याभिषेक को “युवराज पट्टाभिषेक" कहा जाता था ।
    • सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश होता था ।
    • राजा को परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद होता था जिसे सभानायक कहते थें ।

    प्रांतीय प्रशासन

    • विजयनगर में प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए साम्राज्य को कई प्रांतों बाँटा गया। कृष्णदेव राय के काल में 6 प्रांतो का विवरण मिलता है ।

    • विजयनगर प्रशासन में आयंगर और नायंगर व्यवस्था का प्रचलन था ।
    अयंगरः-
    ग्रामीण प्रशासन के संचालन के लिए प्रत्येक गाँव को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संगठित किया गया और इनके संचालन के लिए 12 अधिकारियों की नियुक्ति की गई, जिन्हें सामूहिक रूप से आयंगर कहा गया।
    नायंगरः-
    सैन्य प्रशासन से जुड़ा है 1

    भूमि के प्रकार

    उबलिः-
    ग्राम में विशेष सेवाओं के बदले दी जाने वाली लगानमुक्त भूमि की भू-धारण पद्धति थी ।
    रत्तकोडगे:-
    युद्ध में शौर्य का प्रदर्शन करने वाले मृत लोगों के परिवार को दी गई भूमि कहा जाता था ।
    कुट्टगि:-
    ब्राह्मण मंदिर या बड़े भूस्वामी, जो स्वयं कृषि नहीं करते थें, किसानों को पट्टे पर भूमि दे देते थें, ऐसी भूमि को कुट्टगि कहा जाता था।
    • वे कृषक मजदूर जो भूमि के क्रय-विक्रय के साथ ही हस्तांतरित हो जाते थें, कूदि कहलाते थें।
    • विजयनगर का सैन्य विभाग कदाचार कहलाता था तथा इस विभाग का उच्च अधिकारी दण्डनायक या सेनापति होता था।
    • टकसाल विभाग को जोरीखाना कहा जाता था ।
    • उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बसे लोगों को "बड़वा' कहा जाता था ।
    • चेट्टियों की तरह व्यापार में निपुण दस्तकार वर्ग के लोगों को वीर पंजाल कहा जाता था ।
    • विजयनगर में दास - प्रथा प्रचलित थी । मनुष्यों के क्रय-विक्रय को वेसवग कहा जाता था।
    • मंदिर में रहने वाली स्त्री को देवदासी कहा जाता था।
    • सिंचाई व्यवस्था में पूंजी निवेश द्वारा भी आय प्राप्त की जाती थी, जिसे तमिल क्षेत्र में "दासवंदा" तथा आंध्र कर्नाटक क्षेत्र में ’कोट्टकुडगे" कहा जाता था ।

    भू-राजस्व

    • विजयनगर राज्य की आय का सबसे बड़ा स्त्रोत "लगान" था जिसकी दर ऊपज का 1/6 हुआ करता था ।
    • इस समय विवाह कर प्रचलन था जो 'वर' एवं 'वधु' दोनों से लिया जाता था।
    • विधवा से विवाह करने वाले इस कर से मुक्त था।

    सिक्का

    • विजयनगर का सर्वाधिक प्रसिद्ध सिक्का स्वर्ण का "वराह" था जो 52 ग्रेन का होता था । इसे ही पैगोडा कहा जाता था।
    • चाँदी के छोटे सिक्के को "तार" कहा जाता था।
    • हरिहर प्रथम के सिक्का पर हनुमान एवं गरूड़ की आकृतियाँ अंकित है ।
    • सदाशिव राय के सिक्का पर लक्ष्मी नारायण का अंकन मिलता है।
    • पुर्तगालियों ने विजयनगर के सिक्कों की तुलना "हूण" से की है।

    सामाजिक व्यवस्था

    • वर्ण एवं जाति व्यवस्था का प्रचलन था ।
    • ब्राह्मणों को सर्वाधिक विशेषाधिकार प्राप्त था इन्हें मृत्युदंड से मुक्त रखा जाता था।
    • समाज में क्षत्रिय वर्ण की अनुपस्थिति के कारण ब्राह्मणों के बाद दूसरा स्थान चेट्टियों या शेट्टियों का था। व्यवसाय / व्यापार करता था ।
    नोट:- विजयनगर साम्राज्य में दस्तकार श्रेणी "बढ़ई" को विशेष स्थान प्राप्त था ।
    • सदाशिव राय ने नाईयों पर से कर हटा दिया था ।
    • पर्दा पर्था का प्रचलन नहीं था ।
    • वेश्यावृत्ति का प्रचलन था ।
    • सत्ती प्रथा विद्यमान था । सत्ती होने वाली स्त्रियों की स्मृति में "प्रस्तर स्मारक” बनायें जाते थें।
    • समाज में बाल विवाह, दहेज प्रथा, विधवा विवाह का प्रचलन था ।
    • युद्ध में वीरता दिखाने वाले पुरूष को "गंडपेद्र" नामक आभूषण पैरों में पहनाया जाता था।

    बहमनी साम्राज्य

    • बहमनी साम्राज्य की स्थापना मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में 1347 ई. में अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने किया। इनका मूल नाम हसन गंगू एवं जफर खाँ था । (1347 ई.-1358 ई.)
    • अलाउद्दीन हसन ने हिन्दुओं के प्रति उदार नीति अपनाई । उसने राज्य में जजिया की वसूली पर प्रतिबंध लगा दिया ।
    • फरवरी 1358 ई. में बहमन शाह की मृत्यु हो गई ।

    मुहम्मदशाह I (1358 - 1375ई.)

    • अलाउद्दीन हसन के मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुहम्मद शाह प्रथम शासक बना।
    • इन्हीं के काल में विजयनगर एवं बहमनी के बीच संघर्ष का दौर आरंभ हुआ ।
    • मुहम्मद शाह प्रथम का सारा जीवन विजयनगर और वारंगल से युद्ध एवं विजय से संबंधित रहा।
    • मुहम्मद शाह प्रथम का सबसे बड़ा योगदान बहमनी की प्रशासनिक व्यवस्था को व्यवस्थित करना था ।
    • राज्य प्रबंधन के लिए उसने राज्य को चार तर्फी या अतराफों (प्रांतो)- (गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार व बीदर) नें विभाजित किया और प्रत्येक का प्रबंध एक प्रांताध्यक्ष को सौंप दिया जिसे सेना रखना अनिवार्य था।
    • इसी के काल में बारूद का प्रयोग पहली बार हुआ जिससे रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा हुई।
    • 1375 ई. में मुहम्मद शाह प्रथम की मृत्यु हो गई ।

    मुहम्मदशाह I के उत्तराधिकारी

    • 1375 ई. में मुहम्मद शाह प्रथम की मृत्यु के पश्चात् अगले 22 वर्षो में 5 सुल्तान सत्तारूढ़ हुए। अलाउद्दीन मुहम्मद (1375-78), दाउद ( 1378), मुहम्मद शाह द्वितीय (1378-97), गयासुद्दीन (1397 ) और शम्सुद्दीन दाउद (1397) क्रमबार राजगद्दी पर बैठे। बहमनी साम्राज्य में इन शासकों का शासन कोई विशेष महत्व नहीं रखता ।

    ताजुद्दीन फिरोजशाह (1397-1422)

    • बहमनी राज्य का अगला महत्वपूर्ण शासक ताजुद्दीन फिरोजशाह था । जिसने 1397 से 1422 ई. तक शासन किया।
    • फिरोजशाह ने खेरला के शासक नरसिंह राय को हराकर बरार का प्रांत जीता। उसने विजयनगर के शासक देवराय प्रथम को पराजित कर संधि करने पर बाध्य कर दिया था ।
    • फिरोजशाह कला प्रेमी और एक सुलेखक था । उसे अरबी, फारसी और तुर्की के अलावा तेलगू, मराठी एवं मलयालम भाषा का अच्छा ज्ञान था । इन्होनें भीमा नदी के तट पर फिरोजाबाद की स्थापना किया।

    शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम (1422-1436)

    • शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने अपनी राजधानी गुलबर्गा से स्थानांतरित कर बीदर को बनाया । इस नवीन राजधानी को मुहम्मदाबाद के नाम से जाना जाता है ।
    • शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम ने 1425 ई. में तेलंगना, 1426 ई. में माहुर और 1429 ई. में मालवा के साथ युद्ध किया ।
    • इसकी उदारता के कारण इसे अहमद शाह बली या संत अहमद भी कहा जाता है
    • ऐसा माना जाता है कि दक्षिण के प्रसिद्ध संत हजरत गेसू दराज से उसका धनिष्ठ संबंध था ।
    • गेसू दराज ने उर्दू पुस्तक "मिराज - उल - आशिकीन" की रचना की थी ।

    अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436-1458)

    • अलाउद्दीन अहमद द्वितीय (1436 - 1458 ई.) अपने पिता की तरह योग्य एवं विद्वान शासक था ।
    • इनका संपुर्ण शासनकाल में तेलंगना, गुजरात, खानदेश, विजयनगर, मालवा और उड़ीसा के साथ युद्ध में व्यतीत हुआ ।
    • इसके शासनकाल में महमूद गवाँ को राज्य की सेवा में लिया गया ।

    हुमायूँ शाह (1458–1461)

    • अलाउद्दीन द्वितीय के बाद उसका पुत्र हुमायूँ शाह गद्दी पर सत्तासीन हुआ । जिसने 1458 ई. से 1461 ई. तक शासन किया।
    • हुमायूँ शाह के शासन में महमूद गवाँ एक योग्य सेनानायक था। यही कारण है कि हुमायू शाह के शासनकाल की समस्त सफलताओं का श्रेय महमूद गवाँ को जाता है।
    • हुमायू शाह को उसके क्रूर स्वभाव के कारण 'जालिम' कहा जाता है ।
    • हुँमायू शाह को दक्कन का नीरों कहा गया है।
    • हुँमायू शाह के मृत्यु के पश्चात् उसका अल्प वयस्क पुत्र निजामुद्दीन अहमद तृतीय (1461-63 ई.) सत्ता पर आसीन हुआ। इसके समय प्रधानमंत्री महमूद गवाँ का नियंत्रण संपूर्ण राज्य पर था ।
    • इसके समय के बहमनी साम्राज्य अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत हो गया था।
    • आंतरिक प्रबंधन के लिए महमूद गवाँ ने राज्य को आठ प्रांतों में विभक्त किया और प्रत्येक में तरफदार नियुक्त किए ।
    • 1482 ई. में शम्सुद्दीन मुहम्मद तृतीय (1463-1482) ने मुहम्मद गवाँ को राजद्रोह के आरोप में फाँसी दे दी।
    • अंततः दो दशकों के अंदर ही बहमनी साम्राज्य का पतन हो गया।
    • महमूद गवाँ ने बीदर में मदरसा की स्थापना करवाया ।
    • महमूद गवाँ ने ईरान, ईराक और मिश्र के साथ पत्रों का आदान-प्रदान किया। इस पत्र व्यवहार को "रिजायुल इन्शा" के नाम से जाना जाता है।
    • 1470 ई. में रूसी यात्री निकितन बहमनी साम्राज्य की यात्रा पर आया । ( मुहम्मद तृतीय)
    • बहमनी वंश के अंतिम शासक कलीमउल्लाह थें । 
    • बहमनी वंश का संस्थापक जीवन में कुछ बनने की धुन लेकर साहसिक मार्ग पर निकला एक अफगान था। जिसका नाम था अलाउद्दीन हुसन । उसका उत्थान गंगू नामक एक ब्राह्मण की सेवा में रहते हुए हुआ । इसलिए वह "हसनगंगू' के नाम से जाना जाता है। गद्दीनशीन होने के बाद उसने अलाउद्दीन हसन बहमन शाह का खिताब अपनाया। कहते हैं, कि वह अपने को ईरानी वीर पुरूष बहमन शाह का वंशज बताता था ।

    अन्य प्रांतीय राज्यों का उदय

    जौनपूर

    • गोमती नदी के किनारें जौनपूर नगर की स्थापना फिरोज शाह तुगलक द्वारा अपने चचेरे भाई जौना खाँ की स्मृति में करायी गयी थी । जो बाद में शर्की साम्राज्य की राजधानी बनीं।
    • स्वतंत्र जौनपूर राज्य की स्थापना का श्रेय जौनपूर के सूबेदार मलिक हुसैन सरवर को जाता है ।
    • 1389 ई. में मलिक सरवर मुहम्मद शाह (फिरोज तुगलक का पुत्र) का वजीर बना ।
    • मलिक सरवर ने सीमाओं का कोल (अलीगढ़) सँभल तथा मैनपुरी तक विस्तार किया। 1399 ई. में इसका मृत्यु हो गया।
    नोट:- मलिक सरवर को ख्वाजा जहान के नाम से भी जाना जाता है ।
    • ख्वाजा जहान को मलिक-उस-शर्क (पूर्व की स्वामी) की उपाधि 1394 ई. में फिरोजशाह तुगलक के पुत्र सुल्तान महमूद ने दी थी।

    जौनपूर के अन्य प्रमुख शासक

    • मुबारक शाह (1399–1402 ई.), शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह ( 1402-1436 ई.), महमूद शाह (1436 - 1451 ई.) और हुसैन शाह (1458-1500 ई.) ।
    • लगभग 75 साल स्वतंत्र रहने के बाद जौनपूर पर बहलोल लोदी ने कब्जा कर लिया ।
    • शर्की शासन के अंतर्गत विशेषकर इब्राहिम शाह के समय में जौनपूर में साहित्य एवं स्थापत्य कला के क्षेत्र में हुए विकास के कारण जौनपूर को भारत के सिराज के नाम से जाना गया।
    • अटालादेवी की मस्जिद ( जौनपूर) का निर्माण 1408 ई. में शर्की सुल्तान इब्राहिम शाह द्वारा किया गया था ।
    • अटालादेवी मस्जिद का निर्माण कन्नौज के राजा विजयचंद्र द्वारा निर्मित अटालादेवी के मंदिर को तोड़कर किया गया।
    • जामा मस्जिद का निर्माण 1470 ई. में हुसैनशाह सर्की के द्वारा एवं लाल दरवाजा मस्जिद का निर्माण मुहम्मदशाह के द्वारा किया गया था ।

    मालवा

    • 1401 में दिलावर खाँ ने स्वतंत्र राज्य के रूप में मालवा की स्थापना की तथा धार को अपनी राजधानी बनाया ।
    • 1405 ई. दिलावर खाँ की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अल्प खाँ 'हुसंगसाह' की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा । उसने मांडू को अपनी राजधानी घोषित की।
    • हुसंगसाह सूफी संत शेख बुरहानद्दीन का शिष्य था ।
    • उसने नर्मदा नदी के किनारें होशंगाबाद नामक नगर की स्थापना की ।
    • 1436 ई. में हुसंगशाह के पुत्र मुहम्मद शाह की उसके वजीर महमूद खिलजी ने हत्या कर दी और सत्तासीन होकर मालवा में खिलजी वंश की नींव रखी।
    • महमूद खिलजी मालवा का योग्यतम शासक था। उसने गुजरात, बहमनी, मेवाड़ राज्यों से युद्ध कियें ।
    • मेवाड़ के राणा कुंभा के साथ युद्ध के उपरांत महमूद खिलजी और राणा कुंभा दोनों ने जीत का दावा किया तथा इसके उपलक्ष्य में राणा कुंभा ने चित्तौड़ में "विजय स्तंभ" तो महमूद खिलजी ने मांडू में (सात मंजिले वाले स्तंभ) का निर्माण करवाया ।
    • 1469 ई. में महमूद खिलजी की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र गयासुद्दीन गद्दी पर बैठा। वह नितांत विलासी प्रवृति का शासक सिद्ध हुआ ।
    • ऐसा माना जाता है कि गयासुद्दीन के महल में 16000 (सोलह हजार) दासियाँ थी जिनमें से कई हिन्दु सरदारों की पुत्रियाँ थी ।
    • उसने तुर्की और इथियोपियाई दासियों की एक अंगरक्षक सेना गठित की थी ।
    • कालांतर में महमूद शाह द्वितीय के शासनकाल के दौरान गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1531 ई. में मालवा पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया तथा महमूद शाह द्वितीय मारा गया ।
    • अंततः बादशाह अकबर ने 1562 ई. में अब्दुल्ला खाँ के नेतृत्व में मालवा पर विजय हेतु मुगल सेना भेजी । उस समय वहाँ का शासक बहादुर शाह था। जिसे परास्त कर मालवा को अंतिम रूप से मुगल साम्राज्य का हिस्सा बना लिया गया।

    गुजरात

    • गुजरात के शासक राजाकर्ण को पराजित कर अलाउद्दीन ने 1297 ई. में इसे दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था ।
    • 1391 ई. में मुहम्मद शाह तुगलक द्वारा नियुक्त गुजरात का सूबेदार जफर खाँ ने सुल्तान मुजफ्फर शाह की उपाधि धारण कर 1407 ई. में गुजरात का स्वतंत्र सुल्तान बना ।
    • गुजरात के प्रमुख शासक थें:- अहमदशाह (1411–52 ई.), महमूदशाह बेगरा (1458-1511 ई.) और बहादुरशाह (1526-37 ई.)
    • अहमदशाह ने असावल के निकट साबरमती नदी के किनारें अहमदाबाद नामक नगर बसाया और पाटन से राजधानी हटाकर अहमदाबाद को राजधानी बनाया ।
    • गुजरात का सबसे प्रसिद्ध शासक महमूदशाह बेगरा था ।
    • महमूद बेगरा ने गिरनार के निकट मुस्तफाबाद नामक नगर और चम्पानेर के निकट मुहम्दाबाद नगर बसाया।
    • 1572 ई. में अकबर ने गुजरात को मुगल साम्राज्य में मिला लिया ।
    • पुर्तगाली यात्री बारबोसा के अनुसार बचपन से ही महमूद बेगड़ा को किसी जहर का नियमित तौर पर सेवन कराया गया था। यदि कोई मक्खी उसके हाथ पर बैठ जाती थी तो वह तुरंत फुलकर मर जाती थी ।

    मेवाड़ (आधुनिक उदयपुर)

    • अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में मेवाड़ के गुहिल्लौत राजवंश के शासक रतन सिंह को पराजित कर मेवाड़ को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया ।
    • दिल्ली सल्तनत की राजनीतिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर हम्मीर देव ने 1314 ई. में मेवाड़ राज्य की पुनः स्थापना कर वहाँ सिसोदिया वंश की नींव रखी।
    • हम्मीर देव ने मुहम्मद बिन तुगलक के समय चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तथा लगभग 64 वर्षो तक शासन किया ।
    • 1420 ई. में मोकल गद्दी पर बैठा । उसने अनेक मंदिरों का जीर्णोधार करवाया तथा एकालिंग मंदिर के चारों ओर परकोटे का निर्माण करवाया ।
    • 1433 ई. में मोकल के मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र राणा कुंभा मेवाड़ का शासक बना। उसके काल में मेवाड़ की शक्ति में प्रभावी वृद्धि हुई ।
    • राणा कुंभा ने मारवाड़ के अधिकांश भाग को विजित कर अपने राज्य में शामिल कर लिया ।
    • मालवा पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में उसने 1448 ई. में चित्तौड़ में "कीर्ति स्तंभ" का निर्माण जिसे हिन्दु देवशास्त्र का चित्रित कोष कहा जाता है ।
    • राणा कुंभा ने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव द्वारा रचित " गीत गोविन्द" पर "रसिकप्रिया" नामक टीका लिखी ।
    • राणा कुंभा के मृत्यु के पश्चात् रायमल और तदोपरांत राणा सांगा (1509 - 1528 ई.) ने शासन सँभाला।
    • 1518 में खतोली के युद्ध में राणा सांगा ने दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को पराजित किया ।
    • 1527 ई. में खानवा के युद्ध में राणा सांगा बादशाह बाबर से पराजित हुआ ।
    • कालांतर में मेवाड़ की शक्ति क्षीण होती चली गई और अंततः जहाँगीर के समय इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।

    बंगाल

    • भौगोलिक रूप से दिल्ली से दुर स्थित होने के कारण बंगाल पर दिल्ली के शासकों का नियंत्रण उतना मजबूत नहीं रह पाता था, जितना अन्य प्रांतों पर रहता था । अतः समय-समय पर वहाँ विद्रोह होते रहते थें ।
    • बलबन के काल में तुगरिल खाँ के विद्रोह के दमन के पश्चात् बलबन के पुत्र बुगरा खाँ को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया।
    • बलबन की मृत्यु के पश्चात् बुगरा खाँ को ही वहाँ का स्वतंत्र शासक मान लिया गया और उसने नासिरूद्दीन की उपाधि धारण की ।
    • गयासुद्दीन तुगलक ने भी बंगाल पर अभियान किया तथा बंगाल का कुछ हिस्सा अपने अधीन कर लिया और शेष भाग नासिरूद्दीन को दे दिया ।
    • मुहम्मद बिन तुगलक के समय बंगाल पुनः स्वतंत्र राज्य बन गया और वहाँ 1340 ई. में फखरूद्दीन मुबारक शाह ने स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया ।
    • 1345 ई. में शम्सुद्दीन इलिहास शाह ने संपुर्ण बंगाल को अपने अधिकार में ले लिया। उसके शासनकाल में फिरोजशाह तुगलक ने प्रथम बार बंगाल पर आक्रमण किया; किंतु विफल रहा।
    • तत्पश्चात् सिकंदर शाह गद्दी पर बैठा जिसने 1368 ई. में पाण्डुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण करवाया। इसके काल में फिरोजशाह तुगलक ने पुनः आक्रमण किया और पुनः विफल रहा |
    • कलांतर में गयासुद्दीन आजमशाह ( 1389-1409) और अलाउद्दीन हुसैनशाह (1493 - 1518 ई.) नामक दो प्रसिद्ध शासक हुए। इनके शासनकाल में बंगाल शक्तिशाली राज्य बना रहा ।
    • अलाउद्दीन हुसैनशाह चैतन्य महाप्रभु का समकालीन था।
    • हिन्दुओं के प्रति उदारता के कारण उसे "कृष्ण का अवतार”, “नृपति तिलक" और "जगत भुषण" जैसी उपाधियाँ से नवाजा गया।
    • 1518 ई. में हुसैन शाह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र नुसरत शाह गद्दी पर बैठा ।
    • नुसरत शाह ने गौड़ में "सोना मस्जिद" एवं "कदम रसूल मस्जिद" का निर्माण करवाया ।
    • इस वंश के अंतिम शासक गयासुद्दीन महमूद शाह को शेरशाह ने 1538 ई. में बंगाल से भगाकर समूचे बंगाल पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया ।
    • तत्पश्चात् अकबर ने बंगाल को मुगल साम्राज्य का हिस्सा बनाया ।

    कश्मीर

    • 1301 ई. में सूहादेव ने कश्मीर में सुदृढ़ हिंदु राजवंश की नींव डाली ।
    • उत्तर भारत के राज्यों में कश्मीर अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण महत्वपूर्ण रहा है ।
    • 1339-40 ई. में शाहमीर ने सुल्तान शमसुद्दीन की उपाधि धारण कर कश्मीर में शाहमीर वंश की स्थापना की । वह कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक था।
    • सिकंदर शाह (1389 - 1413 ) के मंत्री सुहाभट्ट ने धर्म परिवर्तन कर सिकंदर शाह के सहयोग से कश्मीर में बलपूर्वक हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया।
    • कश्मीर का सुप्रसिद्ध शासक सुल्तान जैन - उल - आबिदीन था । जिसने 1420-70 ई. के मध्य शांति और प्रजा हित में कार्य किया ।
    • आबिदीन ने जजिया और गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया।
    • अपने कल्याण कारी कार्यो और प्रजा के प्रति उदार नीति के कारण आज भी कश्मीर के लोग आबिदीन को बड़शाह (महान सुल्तान) कहते थें।
    • जैन-उल-आबिदीन को कश्मीर का अकबर कहा जाता है ।

    खानदेश

    • तुगलक वंश के पतन के समय फिरोजशाह तुगलक के सूबेदार मलिक अहमद राजा फारूक्की ने नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के बीच 1382 ई. में खानदेश की स्थापना की ।
    • खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी । इसका सैनिक मुख्यालय असीरगढ़ था ।
    • 1601 ई. में अकबर ने खानदेश को मुगल साम्राज्य में मिला लिया ।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    विजयनगर सम्राज्य (1336-1565)

    1. विजयनगर राज्य की स्थापना किसने की थी ?
    (a) देवराय I तथा हरिहर - II
    (b) हरिहर तथा बुक्का
    (c) देवराय III
    (d) कृष्णदेव राय
    2. निम्न में से कौन सा कथन सही है?
    1. विजयनगर का शाब्दिक अर्थ जीत का शहर होता है।
    2. विजयनगर के संस्थापक वारंगल के काकतीय राजा सामंत थे 
    3. मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर तथा बुक्का दोनों भाईयों को इस्लाम धर्म में दीक्षित किया था
    (a) 1 और 2 
    (b) 3 और 4
    (c) 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3
    3. विजयनगर साम्राज्य पर राज (शासन) करने वाले राजवंशों का सही क्रम क्या है?
    (a) संगम, सालुत्र, अरात्रीडु, तुलुव
    (b) तुलुव, सालुव, संगम, अरावीडु
    (c) संगम, सालुव, तुलुत्र, अरावीदु
    (d) अरावीडु, संगम, तुलुव, सालुव
    4. विजयनगर साम्राज्य की राजधानियों का सही क्रम क्या है?
    (a) आनेगोंडी, हम्पी, पेनुकोंडा, चन्द्रगिरि 
    (b) हम्पी, आनेगोंडी, पेनुकोंडा, चन्द्रगिरि 
    (c) चन्द्रगिरि, आनेगोंडी, पेनुकोंडा, हम्पी
    (d) पेनुकोड़ा, आनेगोंडी, हम्पी, चन्द्रगिरि
    5. विजयनगर सम्राज्य के अंतर्गत संगम वंश का प्रथम शासक कौन था?
    (a) हरिहर - I 
    (b) बुक्का-I
    (c) देवराय - I
    (d) देवराय - II
    6. निम्न में से कौन सा कथन सही है?
    1. हरिहर - 1 का मुख्य सलाहकार संत विद्यारण्य था
    2. इन्होंने संगीतसार नामक ग्रंथ की रचना की थी
    (a) केवल-1
    (b) केवल-2 
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 न ही 2
    7. विजयनगर के किस राजवंश के शासनकाल में बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई थी ?
    (a) संगम वंश
    (b) सालुव वंश
    (c) तुलुव वंश
    (d) अरावीडु वंश
    8. वेदमार्ग प्रतष्ठापक की उपाधि किसने धारण की थी?
     (a ) देवराय - II 
    (b) नुक्का - I
    (c) कृष्णदेवराय
    (d) हरिहर - II
    9. निम्न में से कौन सा कथन असत्य है ?
    (a) बहमनी साम्राज्य से संघर्ष की शुरूआत हरिहर - I ने किया था
    (b) इस संघर्ष के दौरान बहमनी के शासक मुहम्मदशाह - I था 
    (c) इस युद्ध में पहली बार तोपों (बारूद) का प्रयोग हुआ था
    (d) विजयनगर साम्राज्य का हरिहर - II पहला शासक हुआ जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी
    10. निकोलोकाण्टी इटली का यात्री किसके समय में भारत की यात्रा पर आया था?
    (a) देवराय - I
    (b) देवराय - II
    (c) कृष्णदेवराय
    (d) अच्युतदेवराय
    11. विजयनगर सम्राज्य तथा बहमनी साम्राज्य के बीच संघर्ष का मूल कारण क्या था?
    (a) गोदावरी और महानदी बेसीन
    (b) कावेरी नदी बेसीन
    (c) तुंगभद्रा तथा कावेरी नदी के बीच का क्षेत्र
    (d) रायचूर दोआब
    12. संगम वंश का अंतिम शासक कौन था? 
    (a) विरूपाक्ष - II 
    (b) मल्लिकार्जुन
    (c) नरसिंह
    (d) इम्माड़ि
    13. विजयनगर में दूसरे राजवंश सालुव वंश की नींव किसने रखी थी ? 
    (a) नरसिंह
    (b) इम्माड़
    (c) वीर नरसिंह
    (d) कृष्णदेव राय
    14. विजयनगर साम्राज्य का सबसे महान शासक कौन था?
    (a) देवराय - I
    (b) देवराय - II
    (c) कृष्णदेव राय
    (d) नरसिंह
    15. हरविलास नामक ग्रंथ की रचना किसने की - 
    (a) विद्यारण्य 
    (b) कृष्णदेव राय
    (c) श्रीनाथ
    (d) लक्ष्मीधर
    16. डोमिंग पायस और बारबोसा किसके शासनकाल में भारत आया था?
    (a) कृष्णदेव राय
    (b) अच्युत देवराय
    (c) देवराय - I
    (d) देवराय - II
    17. आमुक्तमाल्याद एवं जाम्बवती कल्याणम् नामक ग्रंथ की रचना किसने की थी ?
    (a) पेड्डाना 
    (b) लक्ष्मीधर
    (c) श्रीनाथ
    (d) कृष्णदेवराय
    18. विजयनगर साम्राज्य के किस राजा ने आंध्रभोज, आन्ध्र पितामह तथा अभिनवराज जैसी उपाधियाँ धारण की थी? 
    (a) कृष्णदेवराय 
    (b) देवराय-II
    (c) हरिहर - II
    (d) देवराय-I
    19. कृष्णदेव राय ने किस वर्ष रायचूर दोआब और गुलबर्गा के दुर्गों को जीता था?
    (a) 1520 ई.
    (b) 1515 ई.
    (c) 1510 ई.
    (d) 1512 ई.
    20. हजारा एवं बिठ्ठलस्वामी मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?
    (a) देवराय - I
    (b) बुक्का-I
    (c) कृष्णदेव राय
    (d) देवराय - II
    21. पूर्तगाली यात्री नूनिज किसके शासनकाल में भारत आया था ? 
    (a) कृष्णदेव राय 
    (b) अच्युतदेवराय
    (c) देवराय - I
    (d) देवराय - II
    22. तालीकोटा के युद्ध में मुस्लिम महासंघ के संयुक्त मोर्चा में कौन शामिल नहीं था?
    (a) अहमदनगर
    (b) बीजापुर 
    (c) गोलकुंडा
    (d) बीदर
    23. तालीकोटा, राक्षसी तांगडी या बन्नीहट्टी का युद्ध कब हुआ था?
    (a) 1560 ई.
    (b) 1526 ई.
    (c) 1565 ई.
    (d) 1556 ई.
    24. किसने तुलुव वंश के अंतिम शासक सदाशिव को अपदस्थ कर अरावीडू वंश की स्थापना की थी? 
    (a) तिरूमल II
    (b) श्रीरंग-II
    (c) वैंकट-II
    (d) इनमें से कोई नहीं
    25. अरावीडू वंश के किस शासक ने चन्द्रगिरि को अपनी राजधानी बनाया?
    (a) तिरूमल 
    (b) सदाशिव
    (c) वैंकट-II
    (d) श्रीरंग-II
    26. निम्न में से कौन सा कथन सही है-
    1. अरावीडू वंश के शासनकाल के समय वोडेयार ने मैसूर राज्य की स्थापना की थी
    2. अरावीडू वंश का अंतिम शासक श्रीरंग- III था
    (a) केवल-1
    (b) केवल-2 
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 न ही 2 
    27. विजयनगर साम्राज्य के संबंध में उसके प्रशासनिक इकाईयों के संदर्भ में कौन सा क्रम सही है?
    (a) प्रांत - जिला - ऊर - वलनाडु 
    (b) मंडल - कोट्टम - नाडु - मेलग्राम
    (c) कोट्टम - नाडु - ऊर - मंडल 
    (d) वलनाडु - मंडल - नाडु - ऊर
    28. विजयनगर सम्राज्य में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई क्या थी?
    (a) कोट्टम
    (b) नाडु
    (c) ऊर
    (d) मंडल
    29. निम्न में से कौन सा कथन असत्य है-
    (a) विजयनगर सम्राज्य में उत्तर भारत से दक्षिण भारत में आकर बसे लोगों को बड़वा कहा जाता था
    (b) विजयनगर सम्राज्य में निपुण दस्तकार वर्ग के लोगों को वीर पंजाल कहा जाता था
    (c) विजयनगर सम्राज्य में दास प्रथा का प्रचलन नहीं था
    (d) इस काल में मंदिरों में रहने वाली स्त्री को देवदासी कहा जाता था
    30. विजयनगर सम्राज्य में स्वर्ण सिक्के को क्या कहा जाता था ?
    (a) वराह
    (b) तार
    (c) आहत
    (d) निस्क
    31. पूर्तगालियों ने विजयनगर के सिक्कों की तुलना किससे की है?
    (a) अरबी से
    (b) फारसी से
    (c) हूण से
    (d) मंगोल से
    32. निम्न में कौन सा कथन असत्य है-
    (a) विजयनगर साम्राज्य में वर्ण एवं जाति प्रथा का प्रचलन था
    (b) समाज में क्षत्रिय वर्ण की अनुपस्थिति के कारण व्यापारी वर्ग के लोगों को दूसरा स्थान प्राप्त था
    (c) विजयनगर सम्राज्य में पर्दा प्रथा का प्रचलन था
    (d) वेश्यावृत्ति तथा सती प्रथा का प्रचलन था
    33. विजयनगर साम्राज्य में किस व्यक्ति के पैरों में गंडपेद्र नामक आभूषण पहनाया जाता था ? 
    (a) अध्यापन करने वाले को
    (b) शिकार में निपुण व्यक्ति को
    (c) यज्ञ करवाने वाले पुरोहित को
    (d) युद्ध में वीरता दिखाने वाले व्यक्ति को
    34. विजयनगर सम्राज्य के समाज में कौन सी प्रथा का प्रचलन नहीं था? 
    (a) बाल विवाह 
    (b) दहेज प्रथा
    (c) विधवा विवाह
    (d) पर्दा प्रथा
    35. विजयनगर का प्रथम शासक कौन था जिसने पूर्तगालियों के साथ संधि की? 
    (a) हरिहर
    (b) बुक्का
    (c) देवराय - III
    (d) कृष्णदेवराय
    36. कौन सा स्थान विजयनगर साम्राज्य में गलीचा निर्माण के लिए प्रसिद्ध था ? 
    (a) पुलिकट 
    (b) विजयनगर
    (c) कालीकट
    (d) वारंगल
    37. विजयनगर के किस शासक ने बीदर के सुल्तान के रूप में महमूद शाह को पुनर्स्थापित करने के उपलक्ष्य में ‘“यवनाराज्यस्थापनाचार्य" की उपाधि धारण की ? 
    (a) देवराय-I 
    (b) देवराय - II
    (c) कृष्णदेवराय
    (d) इनमें से कोई नहीं
    38. किस विजयनगर सम्राट ने उम्मात्तूर के विद्रोही सामंत गंगराय का दमन किया? 
    (a) कृष्णदेवराय 
    (b) देवराय -I
    (c) देवराय - II
    (d) अच्युतदेवराय
    39. विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय ने गोलकुंडा का युद्ध किस राजा के साथ लड़ा था? 
    (a) कुली कुतुब शाह
    (b) कुतुबुद्दीन ऐवक
    (c) इस्माइल आदिल शाह
    (d) प्रतापरूद्र गजपति
    40. विजयनगर सम्राज्य के वित्तिय व्यवस्था की मुख्य विशेषता क्या थी? 
    (a) अधिशेष लगान
    (b) भू-राजस्व
    (c) बंदरगाहों से आमदनी
    (d) मुद्रा प्रणाली
    41. विजयनगर सम्राज्य के राजाओं द्वारा धार्मिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किये जानेवाले मंच को क्या कहा जाता था ?
    (a) महनत्रमी दिब्बा 
    (b) लोटस महल
    (c) हजारा रामा
    (d) विरूपाक्ष
    42. किसके राज्य में कल्याण मंडप की रचना मंदिर निर्माण का एक विशिष्ट अभिलक्षण था ? 
    (a) चालुक्य 
    (b) चंदेल
    (c) राष्ट्रकूट
    (d) विजयनगर
    43. प्रसिद्ध विरूपाक्ष मंदिर कहाँ स्थित है ? 
    (a) भद्राचलम 
    (b) चिदम्बरम
    (c) हम्पी
    (d) श्रीकालहस्ति
    44. प्रसिद्ध विजय विठ्ठल मंदिर जिसके 56 तक्षित स्तंभ संगीतमय स्वर निकलते हैं, कहाँ अवस्थित है ? 
    (a) बेलूर 
    (b) भद्राचलम
    (c) हम्पी
    (d) श्रीरंगम

    बहमनी सम्राज्य

    1. निम्न में से कौन सा कथन सही है-
    1. बहमनी साम्राज्य की स्थापना मोहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में हुई थी
    2. इस साम्राज्य की स्थापना अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने किया था
    (a) केवल-1
    (b) केवल-2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 न ही 2
    2. बहमनी सम्राज्य की राजधानी कहाँ थी? 
    (a) मान्यखेट 
    (b) चन्द्रगिरि
    (c) गुलबर्गा
    (d) पंनूकोण्डा
    3. अलाउद्दीन हसन बहमन शाह के बाद बहमनी सम्राज्य का शासक कौन बना?
    (a) मुहम्मद शाह -I 
    (b) शिहाबुद्दीन अहमद-I
    (c) मुहम्मद शाह - I
    (d) अलाउद्दीन अहमद-II
    4. मुहम्मद शाह -I के संबंध में कौन सा कथन असत्य है- 
    (a) इन्हीं काल में विजयनगर और बहमनी के बीच संघर्ष का दौर आरंभ हुआ था
    (b) इसने अपने राज्य को चार प्रांतों में बांट दिया
    (c) इसी के काल में बारूद का पहली बार प्रयोग हुआ था
    (d) इसकी मृत्यु 1475 AD में हो गयी
    5. बहमनी सम्राज्य के किस शासक ने विजयनगर के शासक देवराय प्रथम को पराजित कर संधि करने पर मजबूर किया?
    (a) मुहम्मद शाह - I 
    (b) ताजुद्दीन फिरोजशाह
    (c) शम्सुद्दीन दाऊद
    (d) शिहाबुद्दीन अहमद्
    6. बहमनी साम्राज्य के किस शासक ने अपनी राजधानी गुलबर्गा से बीदर स्थानांतरित किया था? 
    (a) शिहाबुद्दीन अहमद-I
    (b) ताजुद्दीन फिरोजशाह
    (c) मुहम्मद शाह -I
    (d) दाऊद
    7. शिहाबुद्दीन अहमद शाह के द्वारा लड़े गये युद्ध के साथ किसका मिलान सही है-
    1. तेलांगना - 1425 AD
    2. माहुर - 1426 AD
    3. मालवा - 1429 AD
    (a) 1 और 2
    (b) 2 और 3
    (c) 1, 2 और 3
    (d) 1 और 3
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    Mon, 15 Apr 2024 06:19:25 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | दिल्ली सल्तनत (1206 & 1526) https://m.jaankarirakho.com/975 https://m.jaankarirakho.com/975 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | दिल्ली सल्तनत (1206 - 1526)
    भूमिका:-
    तुर्की आक्रमण के पश्चात् भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई, जिसके अंतर्गत कुल 5 राजवंश क्रमशः गुलाम वंश (1206–1290 ), खिलजी वंश (1290 - 1320), तुगलक वंश (1320 - 1414), सैय्यद (1414-1451), लोदी वंश (1451-1526 ) शासन किया जिसमें सर्वाधिक वर्षो तक तुगलक वंश ने शासन किया जबकि सबसे कम वर्षो तक शासन खिलजी शासकों ने किया ।

    गुलाम वंश (1206-1290)

    • गुलाम वंश को दास वंश / इल्बरी तुर्क वंश / ममलूक वंश के नाम से भी जाना जाता है ।
    • इस राजवंश का सर्वाधिक उपर्युक्त नाम हबीबुल्लाह द्वार प्रस्तावित ममलूक वंश ही मान्य है ।

    कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210)

    • ऐबक मुहममद गौरी के तीन प्रमुख गुलाम याल्दोज, कुबाजा के साथ शामिल था ।
    • मुहम्मद गौरी के निधन के पश्चात् ऐबक ने पूरे उत्तर भारतीय क्षेत्र में ममलूक वंश की स्थापना किया ।
    • कुतुबुद्दीन ऐबक ने उत्तराधिकारी युद्ध की चुनौती का सामना अपनी कुशल वैवाहिक नीति से किया ।
    • ऐबक ने याल्दोज की पुत्री से विवाह किया।
    • ऐबक ने अपनी पुत्री का विवाह तुर्की दास इल्तुतमिश से किया ।
    • ऐबक ने अपनी बहन का विवाह कुबाचा से किया ।
    • ऐबक गौरी के निधन के पश्चात् शासन अपने हाथ में ले लिया, लेकिन उसने न तो अपने नाम के सिक्के चलवाए और न ही खुत्बा पढ़वाया ।
    • ऐबक ने “मलिक" और "सिपहसालार " की उपाधियों से ही शासन किया। उन्होनें सुल्तान की उपाधि धारण नहीं किया ।
    • कुतुबुद्दीन लाहौर को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया ।
    • 1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़ा से अचानक गिर जाने के वजह से उसकी मृत्यु हो गई ।
    • ऐबक कुरान का अच्छा जानकार था एवं कुरान के अनुसार ही अपना आचरण करता था, इसलिए ऐबक को " कुरान खाँ" कहा जाता था ।
    • ऐबक को "लाखबख्श " भी कहा जाता था ।
    • मिन्हाज -उस- सिराज ने ऐबक को हातिम द्वितीय की उपाधि दिया।
    • ऐबक को भारत में इस्लामी स्थापत्य कला का जनक माना जाता है ।
    • ऐबक ने 1194 ई. में दिल्ली में जैन मंदिर के स्थान पर कुव्वत - उल - इस्लाम मस्जिद (प्रथम मस्जिद) तथा 1196 में अजमेर में संस्कृत कॉलेज के स्थान पर अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण करवाया (हरिकेलि नाटक का अंश उद्धत है- विग्रहराज चर्तुथ )
    • ऐबक ने दिल्ली में 1206 में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य आरंभ किया । ( 4 मंजिल) परंतु इसे पूरा इल्तुतमिश ने करवाया ।

    आरामशाह (1210)

    • कुतुबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी के रूप में आरामशाह का विवरण मिलता है जो अयोग्य था जिस कारण दिल्ली की जनता ने उसे शासक मानने से इंकार कर दिया ।
    • उस समय के बदाँयू के प्रातांध्यक्ष इल्तुतमिश ने दिल्ली के निकट जड नामक स्थान पर "आरामशाह" को परास्त कर दिल्ली की सत्ता पर अधिकार कर लिया।

    इल्तुतमिश (1211-1236)

    • इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क था। कुतुबुद्दीन ऐबक के मृत्यु के समय वह बदाँयू का गर्वनर था ।
    • इल्तुतमिश को "गुलामों का गुलाम" कहा जाता है।
    • इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । ऐसा इसलिए क्योंकि ऐबक और आरामशाह ने लाहौर से ही शासन किया जबकि इल्तुतमिश ने लाहौर की बजाय दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। साथ ही पहली बार 1229 ई. में इलतुतमिश को ही बगदाद के खलीफा मुस्तान सिर बिल्हाह ने सुल्तान पद का प्रमाण पत्र दिया, जो कि दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक हुआ ।

    कार्य

    (1) इल्तुतमिश ने ही सर्वप्रथम दिल्ली के अमीरों का दमन किया।
    (2) इल्तुतमिश ने चालीस तुर्क अमीर तथा गुलामों के दल को संगठित किया जिसे तुर्कान - ए - चहलगामी या "चालीसा दल" कहा जाता था ।
    (3) इल्तुतमिश ने याल्दोज को 1215 ई. में तराईन के मैदान में परास्त कर बंदी बना लिया और उसकी हत्या कर दिया जिसे तराईन का तृतीय युद्ध माना जाता है।
    (4) बंगाल का ग्यासुद्दीन आजम खिलजी इल्तुतमिश की अधीनता मानने से इन्कार कर दिया तत्पश्चात् इल्तुतमिश ने 1225 ई. में बंगाल पर आक्रमण कर अधीनता मनवाया।
    (5) मंगोल संकटः-
    भंगोलिया का शासक चंगेज खाँ था । इसका मूल नाम तेमूचीनी था। इसके पिता येसूगाई बहादुर था। चंगेज खाँ खुद को "ईश्वर का अभिशाप" कहा करता था। मंगोल आक्रमण से बचने के लिए ख्वारिज्म के शासक मंगवरनी को इल्तुतमिश ने भारत में आश्रय नहीं दिया जिससे खुश होकर चंगेज खाँ भारत पर आक्रमण किया, परंतु सिंधु नदी तट से ही लौट गया ।
    • इल्तुतमिश पहला तुर्क सुल्तान था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के जारी किये। इन्होनें चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल चलवाया ।
    • कुतुबमीनार का निर्माण पूर्ण करने का श्रेय इल्तुतमिश को ही जाता है ।
    • इल्तुतमिश के दरबार में प्रसिद्ध इतिहाकार मिन्हाज -उस- सिराज रहता था जिन्होनें तबकात - ए - नासिरी की रचना किया था ।
    • इल्तुतमिश अपने बड़े पुत्र महमूद के निधन हो जाने के कारण उनके याद में दिल्ली में सुल्तानगदी का मकबारा बनवाया ।
    • इल्तुतमिश का निधन 1236 ई. में हो गया । इन्होनें अपना उत्तराधिकारी अपनी योग्य पुत्री रजिया सुल्तान को नियुक्त किया, परंतु उसकी मृत्यु के अगले दिन ही अमीरों ने उसके अयोग्य पुत्र रूकनुद्दीन फिरोजशाह को सुल्तान बना दिया। उसके शासनकाल में उसकी माँ शाह तुर्कान छायी रहीं ।

    रजिया सुल्तान (1236-1240)

    • रजिया जनता की हस्तक्षेप से शासिका बनीं।
    • रजिया सुल्तान पहली मुस्लिम महिला थी जिसने शासन की बागडोर संभाली।
    • रजिया ने पर्दा त्याग कर पुरूषों की भाँति कुबा (कोट) व कुलाहा (टोपी) पहनकर जनता के समक्ष आने लगी ।
    • रजिया ने अबीसिनिया निवासी एक गुलाम मलिक जलालुद्दीन याकूत को अमीर-ए-आखुर" अर्थात अश्वशाला प्रधान के पद पर नियुक्त किया ।
    • इन नियुक्तियाँ से खफा उसके एक अमीर अल्तुनिया, जिसे रजिया ने तबरहिन्द ( भटिंडा ) का इक्तादार नियुक्त किया था, ने विद्रोह कर दिया जिसमें अमीर वर्ग ने उसका साथ दिया। हलाँकि बाद में रजिया ने अल्तुनिया को अपने साथ मिलाने के लिए उससे शादी कर ली ।
    • रजिया जब अमीरों का दमन करने राजधानी से बाहर निकली तभी जलालुद्दीन याकूत को तुर्क अमीरों ने मारकर राजधानी में मुईजुद्दीन बहरामशाह को बैठा दिया ।
    • ऐसा माना जाता है कि जब रजिया, अल्तुनिया के साथ राजधानी वापस लौट रही थी, तभी रास्ते में षड्यंत्रकारी डाकूओं ने कैथल के पास 13 अक्टूबर 1240 को हत्या कर दिया।
    ♦ एलफिंस्टन के अनुसार, "यदि रजिया स्त्री ना होती तो उसका नाम भारत के महान शासकों में लिया जाता ।”
    ♦ मिन्हाज लिखता है - "भाग्य ने उसे पुरूष नहीं बनाया, वरना उसके समस्त गुण उसके लिए लाभप्रद हो सकते थें रजिया में वे सभी प्रशंसनीय गुण थें जो एक सुल्तान में होने चाहिए ।"

    रजिया के बाद शासक

    • 1240 में रजिया के मृत्यु के बाद बहरामशाह शासक बना।
    • बहरामशाह अपने शासनकाल में एक नए पद "नायब" अथवा नायब-ए-मुमलिकात का सृजन किया, जो संपुर्ण अधिकारों का स्वामी होता था ।
    • 1242 में इसकी हत्या कर दी गई।
    • 1242 में बहराम शाह की हत्या के बाद अमीरों ने अलाउद्दीन मसूद शाह को सुल्तान बनाया ।
    • बलवन ने 1246 में मसूदशाह को बंदी बनाकर इल्तुतमिश के पौत्र नासिरूद्दीन महमूद को सुल्तान बनाया ।
    • नसिरूद्दीन महमूद धर्मपारायण और सच्चरित्र था, परंतु वह नाममात्र का सुल्तान था।
    • नसिरूद्दीन ने शासन का कार्य नायब - ए - मुमलिकात बलवन को सौंप दिया जिससे बलवन का कद काफी बढ़ गया।
    • बलवन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरूद्दीन महमूद से किया ।
    • नासिरूद्दीन महमूद ने बलवन को "उलूग खाँ" की उपाधि दिया।
    • नासिरूद्दीन महमूद ऐसा सुल्तान था जो अपना जीवन निर्वाह टोपी सिलकर करता था ।
    • 1265 में नासिरूद्दीन महमूद की मृत्यु के बाद बलवन दिल्ली का सुल्तान बना ।

    बलवन (1266-1286)

    • बलवन इल्बरी तुर्क का था । बचपन में मंगोलों ने पकड़कर उसे दास के रूप में ख्वाजा जलालुद्दीन के हाथ बेच दिया । ख्वाजा उसे शिक्षा देकर 1223 में दिल्ली लाया
    • बलवन अपनी योग्यता और दूरदर्शिता के कारण उन्नति करता गया और कलांतर में इल्तुतमिश के चालीसा दल का सदस्य बना।
    • इसका वास्तविक नाम बहाउद्दीन था और वह गियासुद्दीन बलवन के नाम से गद्दी पर बैठा ।
    • बलवन स्वयं को ईरान के अफरसियाब वंश का बताता था ।
    • बलवन का प्रसिद्ध कथन था - जब भी मैं किसी निम्न कुल के व्यक्ति को देखता हूँ तो अत्यधिक क्रुद्ध होकर मेरा हाथ स्वयं तलवार पर चला जाता है ।
    • बलवन ने अपने विरोधियों की समाप्ति के लिए लौह व रक्त की नीति अपनाया ।
    • चालीसा दल को समाप्त कर दिया |
    • बलवन ने राज्य में दैवीय राजत्व का सिद्धांत प्रतिपादित किया । इसके अनुसार बलवन ने स्वयं नियाबत - ए - खुदाई ( ईश्वर का प्रतिनिधि) तथा जिल्ल-ए-इलाही ( ईश्वर की छाया) बताया था।
    • “राजत्व” से तात्पर्य उन सिद्धांतों, नीतियों तथा कार्यों से है, जिन्हें सुल्तान अपनी प्रभुसत्ता, अधिकार एवं शक्ति को स्पष्ट करने के लिए अपनाता था ।
    • के. ए. निजामी के अनुसार "बलवन दिल्ली सल्तनत का एक मात्र ऐसा सुल्तान है, जिसने राजत्व के विषय में विचार स्पष्ट रूप से रखें ।"
    • बलवन ने सिजदा (दंडवत् ) एवं पाबोस (पैर चूमना ) प्रथा की शुरूआत किया ।
    • बलवन ने ईरानी त्योहार "नवरोज' को मनाना प्रारंभ किया ।
    • बलवन ने दीवान - ए - अर्ज ( सैन्य विभाग) की स्थापना किया ।
    • गुप्तचर अधिकारी को बरीद कहा जाता था ।
    • बलवन के दरबार में फारसी के प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरों व अमीर हसन रहता था।
    • बलवन का निधन 1286 में हो गया ।

    बलवन के उत्तराधिकारी

    • बलवन की इच्छा अपने ज्येष्ठ पुत्र मुहम्मद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने की थी, परंतु बलवन के जीवनकाल में ही वह मंगोलो से संघर्ष करता हुआ मारा गया इसलिए बलवन ने अपना उत्तराधिकारी मुहम्मद के पुत्र कैखुसरों को घोषित किया ।
    • बलवन की मृत्यु के बाद उसके विश्वस्तों ने ही उसके आदेश की अवहेलना करते हुए बुगरा खाँ के अल्पवयस्क विलासी पुत्र कैकुबाद को सुल्तान बनाया (बुगरा खाँ - बलवन का पुत्र) और कैखुसरों की हत्या करवा दिया।
    • कैकुबाद को फिरोज खिलजी ने मारकर यमुना में फेकवा दिया और तीन महीने तक उसके पुत्र शमसुद्दीन क्यूमर्स के संरक्षण में रहा और जून 1290 में उसकी हत्या कर फिरोज खिलजी दिल्ली का अगला सुल्तान बना।
    • इस सत्ता परिवर्तन के साथ ही ममलूक वंश का अंत हो गया और खिलजी वंश के शासन की स्थापना हुआ।

    खिलजी वंश (1290-1320)

    • खिलजी वंश की स्थापना जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 1290 ई. में किया। इस वंश के अंतर्गत 5 शासको यथा- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह व नासिरूद्दीन खुसरोशाह ने 30 वर्षो तक शासन किया।
    • इस काल की मुख्य विशेषताएँ यह रही कि इस दौरान तत्कालीन भारतीय सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक संरचना में मूलभूत परिवर्तन हुए । यही कारण है कि खिलजी वंश को एक क्रांति के रूप में देखा जाता है।
    • खिलजी क्रांति का सामान्य अर्थ है- जाति व नस्ल आधारित शासन व्यवस्था की समाप्ति, क्योंकि अब उच्च समझे जाने वाले इल्बरी तुर्कों के स्थान पर निम्न तुर्क खिलजियों ने सत्ता संभाल ली।
    • मुहम्मद हबीब ने तुर्कों के आगमन को नगरीय क्रांति से जोड़ा था तो अलाउद्दीन खिलजी के कार्यों से वह "ग्रामीण क्रांति" की बात करते हैं ।

    जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-1296)

    • ये बलवन के कार्यकाल में सैनिक सेवा में शामिल हुआ और इन्होनें कई अवसरों पर मंगोल आक्रमण का मुकाबला कर सफलता प्राप्त की ।
    • जलालुद्दीन का राजनीतिक उत्कर्ष कैकुबाद के समय में प्रारंभ हुआ। कैकुबाद के समय वह सर-ए-जहाँदार (शाही अंगरक्षक) के पद पर था । कैकूबाद उसको शाइस्ता खाँ की उपाधि दी ।
    • 1290 में कैकूबाद द्वारा निर्मित किलोखरी (उत्तरप्रदेश) के महल में जलालुद्दीन न अपना राज्याभिषेक कराया और दिल्ली का सुल्तान बना। इन्होनें किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया । राज्याभिषेक के समय उनकी आयु 70 वर्ष थी ।
    • जलालुद्दीन ने "अहस्तक्षेप की नीति" अपनाया ।
    • जलालुद्दीन के समय 1292 ई. में अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया।
    • जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल में मंगोल नेता चंगेज खाँ का नाती उलूग खाँ अपने हजारों समर्थकों के साथ भारत पहुँचा एवं उन्होनें इस्लाम धर्म को अपना लिया जो "नवीन मुसलमान" के नाम से जाना गया ।
    • दक्षिण भारत पर प्रथम मुस्लिम आक्रमण देवगिरी (महाराष्ट्र) के यादव शासक रामचंद्र पर जलालुद्दीन खिलजी के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में हुआ था ।
    • जुलाई 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने सुल्तान जलालुद्दीन को कड़ा मानिकपुर बुलाकर गले मिलते समय धोखे से चाकू मारकर हत्या कर दी और सत्ता पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया ।

    अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316)

    • अलाउद्दीन खिलजी का मूल नाम अली गुरशास्प था यह जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा एवं दमाद था । इन्होनें अपने चाचा एवं ससुर की हत्या कर गद्दी प्राप्त किया । (जन्म - 1266-67, पिता- शिहाबुद्दीन खिलजी)
    • सुल्तान बनने के पूर्व अलाउद्दीन खिलजी कड़ा मानिकपुर (इलाहाबाद) का सूबेदार था ।
    • अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली में प्रवेश कर बलवन के लाल महल में विधिवत रूप से अपना राज्याभिषेक करवाया ।
    • अलाउद्दीन खिलजी शुरू में एक नया धर्म चलाना चाहता था तथा पूरे विश्व को जीतना चाहता था, परंतु दिल्ली के कोतवाल अलाउलमुल्क के कहने पर इन दोनों इच्छा को त्याग दिया ।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने "सिकंदर-ए-सानी" की उपाधि धारण किया। इसे द्वितीय सिकंदर भी कहा जाता है ।
    • अलाउद्दीन खिलजी चार अध्यादेश जारी किए। (गद्दी पर बैठते समय )

    उत्तर भारत अभियान

    गुजरात अभियान (1298-99 ई):-
    अलाउद्दीन खिलजी उलूग खाँ और नूसरत खाँ के नेतृत्व में गुजरात पर आक्रमण किया। इस समय वहाँ के शासक रायकर्ण थें, जो आक्रमण का सामना नहीं कर सका और वह दक्षिण की ओर भाग गया। रायकर्ण ने देवगिरी के शासन रामचंद्र देव के यहाँ शरण ली।
    • सुल्तान की सेना ने गुजरात विजय के बाद सूरत सहित कई नगरों व सोमनाथ मंदिर को लूटा, इसी अभियान के समय खम्भात बंदरगाह पर आक्रमण के समय नूसरत खाँ ने एक हिन्दु हिजड़ा मलिक काफूर को 1 हजार दिनार में खरीदा जिस कारण इसे 1000 दिनारी भी कहा जाता है। कालांतर में इसी के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी ने, दक्षिण भारत को जीता ।

    रणथंभौर अभियान (1301 ई.)

    • अलाउद्दीन खिलजी ने उलूग खाँ एवं नूसरत खाँ के नेतृत्व में राजपुताना राज रणथंभौर पर आक्रमण किया इस समय यहाँ के शासक हम्मीरदेव था। माना जाता है कि यहाँ लगभग 1 साल तक सुल्तान की सेना को कोई सफलता नहीं मिली। अंत में 1301 ई. में हम्मीर देव का प्रधानमंत्री रणमल सुल्तान से जा मिला तत्पश्चात हम्मीर देव युद्ध में मारा गया जिसके बाद उसकी पत्नी रंगदेवी अनेक राजपूत महिलाओं के साथ जौहर ( आग में कूदकर आत्मदाह कर ली ।
    • इसी अभियान के समय नुसरत खाँ मारा गया ।

    चित्तौड़ अभियान (1303 ई.)

    • अलाउद्दीन खिलजी 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया ऐसा माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता से प्रभावित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ अभियान किया ।
    • मलिक मोहम्मद जयसी ने अपनी रचना "पद्मावत" में इसका उल्लेख किया है ।
    • इस अभियान में अमीर खुसरों अलाउद्दीन खिलजी के साथ था ।
    • इस समय चित्तौड़ का शासक राणा रतन सिंह थें ।
    • इसी अभियान के दौरान मंगौल तारगी बेग ने दिल्ली में सुल्तान की अनुपस्थिति की लाभ उठाकर चढ़ाई कर दी, परंतु अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ की घेराबंदी नहीं तोड़ा ।
    • चित्तौड़ के राणा रतन सिंह ने घेरेबंदी के सात माह बाद आत्मसर्मपण कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ विजय के बाद यहाँ का शासक अपने बेटे खिज्र खाँ को नियुक्त किया और चित्तौर का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया ।

    मालवा अभियान (1305 ई.)

    • अलाउद्दीन खिलजी 1305 ई. में मुल्तान के सुबेदार आइन-उल-मुल्क के नेतृत्व में मालवा पर आक्रमण कर उसे जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाया ।
    • 1308 ई. में सुल्तान ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में मारवार (शासक शीतल देव ) को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाया ।
    • अलाउद्दीन खिलजी 1311 ई में जालौर का विजय किया इस समय यहाँ के शासक कान्हण देव था।

    दक्षिण भारत अभियान

    • अलाउद्दीन खिलजी मध्य युग का पहला शासक था जिन्होनें विंध्य पार किया इनके दक्षिण अभियान के विषय में जानकारी हमें बरनीकृत "तारीख-ए-फिरोजशाही तथा अमीर खुसरों" की रचना 'खजायन - उल - फुतहू' एवं इसामी की रचना 'फुतहू -उस-सलातीन' से मिलती है |
    • अलाउद्दीन खिलजी मलिक काफूर के नेतृत्व में दक्षिण भारत का अभियान किया ।
    देवगिरी अभियान ( 1307-08 ई):-
    अलाउद्दीन खिलजी (1307-08 ई.) में मलिक काफूर के नेतृत्व में देवगिरी पर आक्रमण किया। मलिक काफूर ने यहाँ के शासक रामचंद्र देव को पराजित कर दिल्ली भेज दिया ।
    • ऐसा माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने राजा के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे "राय रायन" की उपाधि दी, साथ ही उसका राज्य वापस कर दिया। इस व्यवहार से रामचंद्र इतना प्रभावित हुआ कि उसने फिर कभी भी सुल्तान के विरूद्ध विद्रोह नहीं किया ।
    तेलंगाना (वारंगल ) अभियान:-
    लाउद्दीन खिलजी 1309 ई. में मलिक काफूर के नेतृत्व में वारंगल पर आक्रमण किया इस समय यहाँ के शासक प्रताप रूद्र देव था। दोनों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें जल्द ही प्रतापरूद्रदेव सर्मपण कर दिया और सुल्तान की अधीनता स्वीकार किया। इसी अवसर पर प्रतापरूद्रदेव ने मल्लिक काफूर को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा सौंपा।
    पांड्य अभियान (1311):-
    अपांड्य राज भारत के अंतिम दक्षिण छोड़ पर पर था । वहाँ सुंदर पांड्य और वीर पांड्य दोनों भाई के बीच सिंहासन को लेकर गृह युद्ध चल रहा था ।
    • सुन्दर पांड्य ने अपने भाईयों के विरूद्ध सुल्तान अलाउद्दीन खिजली से सहायता माँगी। सुल्तान ने अवसर का लाभ उठाकर 1311 ई. में मलिक काफूर को आक्रमण के लिए खलजी
    • काफूर ने जल्द ही पांड्य राज्य की राजधानी मदुरै पर अधिकार कर लिया, वीर पांड्य वहाँ से भाग खड़ा हुआ । मलिक काफूर ने नगर में लूटपाट की अनेक मंदिर नष्ट किये। अपने साथ वह लूटपाट की अपार धन संपत्ति लाया, जो इसके पूर्व कभी नहीं लाया था ।
    देवगिरी पर पुनः आक्रमणः-
    राजा रामचंद्र देव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शंकर देव या सिंहन देव गद्दी पर बैठा । उसने अपने को दिल्ली शासन से स्वतंत्र कर लिया और कर देना बंद कर दिया।
    • प्रतिक्रिया स्वरूप 1313 ई. में सुल्तान ने मलिक काफूर को पुनः देवगिरी पर आक्रमण के लिए भेजा, इस युद्ध में शंकर देव मारा गया। यहाँ भी काफूर ने विभिन्न नगरों को लूटा | 

    अलाउद्दीन खिलजी के अनुसार

    • अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का ऐसा पहला सुल्तान था जिसने उलेमा वर्ग की उपेक्षा करते हुए धर्म पर राज्य नियंत्रण स्थापित किया, अर्थात उलेमा वर्ग का विरोध किया ।
    सैन्य सुधारः -
    अलाउद्दीन खिलजी पहला ऐसा सुल्तान था जिसने स्थायी सेना की व्यवस्था किया। अलाउद्दीन खिलजी ने सैनिकों को नगद वेतन देना शुरू किया। इससे पूर्व सैनिकों को जागीर देने की प्रथा प्रचलित थी । ऐसा माना जाता है कि एक सैनिक का वेतन 234 टंका प्रतिवर्ष था ।
    • अलाउद्दीन खिलजी सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा तथा घोड़ों को दागने की प्रथा का शुरूआत किया ।
    • अलाउद्दीन खिलजी एक अस्पा दो अस्पा का प्रचलन किया |
    आर्थिक सुधारः-
    अलाउद्दीन खिलजी ने पहले से प्रचलित जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर दिया ।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने दान दी गयी अधिकांश भूमि को छीनकर खालसा भूमि में परिवर्तित कर दिया ।
    • पूर्णतः केंद्र के नियंत्रण में रहने वाली भूमि पर अलाउद्दीन खिलजी ने कर की दर को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया ।
    • इन्होनें सल्तनत में गैर मुसलमानों पर चार प्रकार के कर लगा रखें थें जिनमें जजिया कर, खराज या भुमी कर, गृह कर और चारागाह कर आदि थें ।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण प्रणाली को दृढ़ता से लागू किया । इन्होनें जीवन निर्वाह की आवश्यक वस्तुओं के मूल्य को स्थायी कर दिया । 
    • बाजार का सबसे बड़ा अधिकारी सदर-ए-रियासत' कहलाता था, जिसकी नियुक्ति सुल्तान करता था ।
    • सदर-ए-रियासत के अधीन तीन अधिकारी (1) शहना ( निरीक्षक), (2) बरीद ( गुप्तकर अधिकारी) और (3) मुन्हीयाँ (गुप्तचर) नियुक्त किये जाते थें 
    • अलाउद्दीन खिलजी को "सार्वजनिक वितरण प्रणाली का जनक कहा जाता है ।
    • सराय अदल सरकारी सहायता प्राप्त बाजार था । जहाँ वस्त्र एवं अन्य वस्तुओं का व्यापार होता था ।
    • सहना - ए - मंडी बाजार का दरोगा होता था ।

    खिलजी वंश का पतन

    • अलाउद्दीन खिलजी के मृत्यु (1316 ई.) के बाद क्रमशः शिहाबुद्दीन उमर, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी तथा नासिरूद्दीन खुसरोशाह जैसे अयोग्य शासक सत्ता पर बैठें।
    • कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316 - 1320 ई.) पहला सुल्तान शासक था जिसने अपने आप को खलीफा घोषित किया। 1317 ई. में देवगिरी की पुर्नविजय उसकी एक बड़ी उपलब्धि थी !
    • बाद के दिनों में वह विलासी प्रवृत्ति का हो गया और दरबार में भी स्त्रियों की पौशाके धारण करने लगा।
    • मुबारक शाह खिलजी की हत्या कर खुसरों शाह शासक बना। वह अपने आप को पैगंबर का सेनापति कहता था !
    • ग्यासुद्दीन तुगलक ने खिलजी वंश के अंतिम सुल्तान खुसरों शाह की हत्या कर स्वयं को सुल्तान घोषित किया और तुगलक वंश की नीव डाली।

    तुगलक वंश (1320-1414)

    • 1320 ई. में गयासुद्दीन तुगलक ने खिलजी वंश के अंतिम शासक खुसरों शाह की हत्या कर दिल्ली सल्तनत में एक नए वंश तुगलक वंश की स्थापना की ।

    प्रमुख शासक

    गयासुद्दीन तुगलक शाह (1320-1325 ) :-
    गयासुद्दीन तुगलक या गाजी मलिक तुगलक वंश का संस्थापक था । यह वंश "कराना तुर्क" के वंश के नाम से भी प्रसिद्ध था, क्योंकि गयासुद्दीन तुगलक का पिता कराना तुर्क था।
    • गाजी मलिक का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उसकी माँ पंजाब की एक जाट महिला थी और पिता बलबन का तुर्की दास था ।
    • गाजी मलिक अपनी योग्यता व कठिन परिश्रम के कारण अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में दीपालपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया ।
    • मंगोलों को पराजित करने के कारण गयासुद्दीन तुगलक "मलिक-उल-गाजी" के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
    • दिल्ली का पहला सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक था जिसने 'गाजी' (काफिरों का घातक) की उपाधि धारण किया।
    • गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप स्थित पहाड़ियाँ पर रोमन शैली में तुगलकाबाद नामक नगर स्थापित किया ।
    • गयासुद्दीन तुगलक ने अलाउद्दीन के समय में लिये गये अमीरों की भूमि को पुनः लौटा दिया।
    • 1324 ई. में गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।
    • बंगाल विजय से लौटते वक्त उसने उत्तरी बिहार के क्षेत्र मिथिला के हरिसिंह देव को पराजित किया एवं तिरहुत के क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया ।
    • गयासुद्दीन तुगलक ने सिंचाई के लिए कुएँ एवं नहरों का निर्माण करवाया। संभवतः नहरों का निर्माण करने वाला गयासुद्दीन तुगलक पहला शासक था। 
    • 1325 ई. में बंगाल अभियान से वापस लौटते समय गयासुद्दीन तुगलक की आगवानी के लिए दिल्ली के समीप अफगानपुर में उसके पुत्र जौना खाँ द्वारा स्वागत के लिए लकड़ी का भवन निर्मित किया गया था । जब मंडप के नीचे सुल्तान के स्वागत का जश्न मनाया जा रहा था तभी अचानक हाथियों के आ जाने से वह मंडप गिर गया और मलबे के नीचे गयासुद्दीन तुगलक दबकर मर गयें।
    • गयासुद्दीन तुगलक को सुफी संत निजामुद्दीन औलिया ने कहा था- हुनूज दिल्ली दूरस्थ |
    मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई):-
    गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खाँ, मुहम्मद बिन तुगलक की उपाधि धारण कर सुल्तान बना ।
    • मध्यकालान सभी सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था ।
    • मुहम्मद बिन तुगलक को उनकी सनक भरी योजना के कारण विरोधी तत्वों का मिश्रण, स्वप्नशील, पागल, रक्तपिपासु कहा गया ।

    योजनाएँ

    (1) राजधानी परिवर्तनः-
    मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरी स्थानांतरित किया और इसका नाम दौलताबाद रखा।
    • इसका सबसे पहला कारण देवगिरी का साम्राज्य के केंद्र में स्थित होना था । सुल्तान ऐसे स्थान को राजधानी बनाना चाहता था। जो सामरिक महत्व का होने के साथ-साथ राज्य के केंद्र में स्थित है ।
    • दौलताबाद से दिल्ली पर मंगोलों या अन्य विदेशी आक्रमणों को रोकना संभव नहीं था। इसलिए उसने अपनी भूल स्वीकार कर ली और 1335 ई. में राजधानी पुनः दिल्ली स्थानांतरित कर ली ।
    (2) दोआब क्षेत्र में कर वृद्धिः-
    मुहम्मद बिन तुगलक ने 1325 ई. में दोआब क्षेत्र में कर की दर बढ़ा दिया। लेकिन उसी समय अकाल पड़ने के कारण जनता कर अदा करने में सक्षम नहीं था। इसके वावजूद उसके अधिकारियों ने बलपूर्वक कर की वसूली किया, जिस कारण मुहम्मद बिन तुगलक जानता के बीच अलोकप्रिय हो गया।
    (3) सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन :-
    मुहम्मद बिन तुगलक चाँदी की कमी को दूर करने के उदेश्य से ताँबा और काँसा का सिक्का जारी किया जिसका मूल्य सोना और चाँदी के मुद्रा के समान था। 
    • मुहम्मद बिन तुगलक चीन और ईरान से प्रभावित होकर सांकेतिक मुद्रा चलाया ।
    • मुहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में अफ्रीका के मोरक्को यात्री इब्नबतूता ( 1333 ) भारत आया, उसे सुल्तान ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया ।
    • 1342 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक ने इब्नबतूता को अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा।
    • इब्नतूता ने रिहला (अरबी भाषा) नामक ग्रंथ की रचना किया।
    • मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में 1336 ई. में हरिहर एवं बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य तथा 1347 ई. में अलाउद्दीन बहमनशाह ने बहमनी साम्राज्य की स्थापना किया।
    • मुहम्मद बिन तुगलक के दरबार में जैन विद्वान जिन प्रभासुरी तथा राजशेखर रहता था।
    • दिल्ली सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक पहला सुल्तान था जो हिन्दु के त्योहार मुख्यतः होली में भाग लेता था।
    • दिल्ली सल्तनत में मुहम्मद बिन तुगलक के समय सर्वाधिक विद्रोह हुआ ।
    • 1351 ई. में विद्रोह को दबाने हेतु थट्टा (सिंध) जाते समय सुल्तान रास्ते में बीमार पर गया । अंततः मार्च 1351 ई. में सुल्तान की मृत्यु हो गई ।
    • मुहम्मद बिन तुगलक के मृत्यु पर टिप्पणी करते हुए बदायूँनी ने लिखा है कि "सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को सुल्तान से मुक्ति मिल गई ।"
    • एडवर्स टॉमस ने मुहम्मद बिन तुगलक को धनवानों का राजकुमार कहा ।
    फिरोजशाह तुगलक ( 1351 से 1388 ) :-
    मोहम्मद बिन तुगलक के निधन के पश्चात् 1351 ई. में उसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक शासक बना, इनकी माता राजपुत सरदार की पुत्री थी ।
    • फिरोजशाह तुगलक का राज्याभिषेक दो बार हुआ। पहले 22 मार्च 1351 को थट्टा (सिंध) में उसके बाद अगस्त 1351 में दिल्ली में हुआ ।
    कर व्यवस्था:-
    फिरोजशाह तुगलक 24 प्रकार के अतिरिक्त करों "अबवाब" को समाप्त कर दिया किन्तु चार महत्वपूर्ण कर जारी रखें। (1) खराज ( 2 ) जजिया (3) जकात (4) खूम्सा। इसके अतिरिक्त "हक ए शर्ब" नामक सिंचाई कर भी लगाया जिसकी दर 1 / 10 थी । 
    • फिरोजशाह तुगलक ब्राह्मणों पर जजिया कर लगाने वाला पहला मुसलमान शासक था।

    सैन्य अभियान

    • फिरोजशाह तुगलक के समय बंगाल दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण से बाहर हो गया । 1360 में फिरोजशाह तुगलक ने उड़ीसा पर आक्रमण कर जगन्नाथ मंदिर को नष्ट कर दिया और काफी धन लूटा |
    • 1365 ई. में फिरोजशाह तुगलक ने हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी मंदिर को नष्ट कर वहाँ के पुस्तकालय से लूटे गये तेरह सौ ग्रंथों में से कुछ को फारसी में विद्वान अपाउद्दीन द्वारा ढलायते - फिरोजशाही नाम से अनुवाद कराया। 

    अन्य कार्य 

    • फिरोजशाह तुगलक अपनी आत्मकथा फुतुहात - ए - फिरोजशाही लिखी ।
    • इन्होनें बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए दफ्तर - ए - रोजगार नामक नये विभाग का निर्माण करवाया ।
    • F.S.T ने लोगों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने हेतु राजकीय अस्पताल का निर्माण करवाया जिसे दार-उल- सफा कहा गया ।
    • फिरोजशाह तुगलक के दरबार में सबसे अधिक दास (1 लाख 80 हजार) रहता था।
    • फिरोजशाह तुगलक ने फतेहाबाद, हिसार, फिरोजपुर, जौनपुर और फिरोजाबाद नामक नगर का निर्माण करवाया।
    • फिरोजशाह तुगलक ने कुतुबमिनार का मरम्मत करवाई ।
    • फिरोजशाह तुगलक द्वारा अशोक के स्तंभों को मेरठ एवं टोपरा से दिल्ली लाया गया ।
    • इसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया ।
    • इसने जियाउद्दीन बरनी एवं शम्स - ए - शिराज अफीफ को अपना संरक्षण प्रदान किया ।
    • फिरोजशाह तुगलक ने चाँदी एवं ताँबे के मिश्रण से सिक्के जारी किए जिसे "अद्धा" एवं "विख" कहा जाता है ।
    • फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में "फिरोजाबाद कोटला दुर्ग" का निर्माण करवाया ।
    • फिरोजशाह तुगलक का निधन 1388 में हो गया ।
    • फिरोजशाह तुगलक के दरबार में बरनी नामक विद्वान रहता था जिन्होनें तारीख-ए-फिरोजशाही तथा फतबा-ए-जहाँदारी नामक ग्रंथ की रचना किया।

    फिरोजशाह तुगलक के उत्तराधिकारी (1388-1414)

    • 1388 में फिरोजशाह तुगलक के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी तुगलकशाह बना । इन्होनें अपना नाम गयासुद्दीन तुगलक द्वितीय रखा । ( 1388-89 )
    • शीघ्र ही इसके स्थान पर अबुबर्क ( 1389-90 ) शासक बना परंतु अबुबर्क को हटाकर मुहम्मदशाह शासक बना। इसके स्थान पर हुमायूँ खाँ शासक बना जिन्होनें अपना नाम अलाउद्दीन सिकंदर शाह रखा।
    • तुगलक वंश के अंतिम शासक के रूप में नासिरूद्दीन महमूद शाह (1394 - 1412 ) का विवरण मिलता है। इनके समय में दिल्ली से पालम तक शासन रह गया था जबकि फिरोजाबाद में  नुसरतशाह का शासन था अर्थात एक साथ एक ही वंश के अंतर्गत दो शासक समानांतर रूप से शासन किया। 
    • नासिरूद्दीन महमूद शाह के शासन काल में 1398 ई. में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया।
    • जब तैमूर दिल्ली पर आक्रमण किया तब नासिरूद्दीन महमूद शाह भागकर गुजरात चला गया। तैमूर के भारत से वापस लौटने के बाद पुनः नासिरूद्दीन महमूद शाह अपने वजीर मल्लू इकबाल की सहायता से दिल्ली लौटा ।
    • कुछ ही दिनों बाद मल्लू इकबाल मुल्तान के सूबेदार तथा तैमूर के प्रतिनिधि खिज्र खाँ से संघर्ष करते हुए मारा गया। फलतः महमूद शाह ने दौलत खाँ लोदी को अपना वजीर नियुक्त किया ।
    • 1412 में नासिरूद्दीन महमूद शाह का निधन हो गया । फलतः दौलत खाँ लोदी अपने को शासक घोषित कर दिया परंतु 1414 ई. में खिज्र खाँ ने दौलत खाँ लोदी को अपदस्थ कर अपने को शासक घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली में तुगलक वंश के स्थान पर सैय्यद वंश के शासन की स्थापना हुई ।

    सैय्यद वंश (1414-1451)

    • सैय्यद वंश का संस्थापक खिज्र खाँ था । (37 वर्ष) यह सैय्यद वंश का काफी प्रतापी शासक भी था ।
    • सैय्यद वंश स्वयं को इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद का वंशज मानते थें ।
    • सल्तनत काल में शासन करने वाला यह एकमात्र शिया वंश था ।
    • 1398 ई. में तैमुर के भारत आक्रमण के समय खिज्र खाँ ने उसकी सहायता की परिणामतः तैमुर ने भारत वापसी पर उसे मुलतान, लाहौर एवं दिपालपुर का सुबेदार नियुक्त किया। तत्पश्चात् 1414 ई. में वह दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा ।
    • शासक बनने के बाद खिज्र खाँ ने सुलतान की उपाधि धारण नहीं किया बल्कि खुद को "रैय्यत–ए–आला” कहा अर्थात तैमूर का “मातहत”।
    • खिज्र खाँ ने सिक्कों पर तुगलक सुलतान का नाम रहने दिया, नये सिक्कों पर उसने तैमुर तथा उसके पुत्र शाहरूख मिर्जा का नाम अंकित करवाया ।
    • खिज्र खाँ अपने शासनकाल में तैमुर के पुत्र एवं उत्तराधिकारी शाहरूख के प्रतिनिधि के रूप में शासन करने का दिखावा करता था। 20 मई 1421 ई. को खिज्र खाँ की मृत्यु हो गई ।

    मुबारकशाह (1421-1434)

    • खिज्र खाँ के पश्चात् उसका पुत्र मुबारकशाह 'सुलतान' की उपाधि धारण कर शासक बना।
    • मुबारकशाह ने 'खुत्वा' पढ़वाया और अपने नाम के सिक्के चलवाए साथ ही खुत्बे से तैमुर वंशजों व सिक्कों से तुगलक वंश के शासकों का नाम हटवा दिया। उसने सिक्कों पर अपना नाम 'मुईज-उद्-दीन मुबारक' खुदवाया।
    • मुबारकशाह ने 1433 ई. में यमुना नदी के किनारे "मुबारकाबाद" नामक नगर की स्थापना किया ।
    • “याहिया–बिन अहमद सरहिंदी' मुबारकशाह के दरबार में रहता था जिन्होनें “तारीख-ए-मुबारकशाही" नामक ग्रंथ की रचना किया ।
    • 19 फरवरी 1434 ई. सिद्धपाल नामक व्यक्ति ने मुबारकशाह की हत्या कर दिया ।

    मुहम्मदशाह (1434-1443)

    • मुबारकशाह का अपना कोई पुत्र नहीं था । जिस कारण सरवर - उल - मुल्क ने उसके भाई फरीद खाँ के पुत्र मुहम्मद शाह को शासक बनाया जो एक अयोग्य शासक था ।
    • मुहम्मद शाह ने अपना वजीर सरवर -उल-मुल्क को बनाया । इसके काल में वास्तविक शक्ति सरवर -उल-मुल्क पास ही थी ।
    • इनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत पर मालवा के शासक महमुद खिलजी ने आक्रमण किया, किन्तु सही समय पर सरहिन्द के (पंजाब) अफगान राज्यपाल बहलोल लोदी की सैन्य सहायता के कारण दिल्ली सल्तनत महमूद खिलजी के आक्रमण से बच गई।
    • सुल्तान मुहम्मद शाह ने बहलोल लोदी का सम्मान किया और उसे अपना "पुत्र" कहकर पुकारा। साथ ही “खान–ए–खाना” की उपाधि से विभुषित किया ।
    • 1443 ई. में मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गई ।

    अलाउद्दीन— आलमशाह (1443-1451)

    • मुहम्मद शाह के निधन के पश्चात् उसका पुत्र अलाउद्दीन "आलमशाह" की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा जो कि इस वंश का अंतिम शासक था ।
    • 1447 ई. में आलमशाह बदायूँ चला गया। उसे यह नगर अच्छा लगा और वह दिल्ली के बजाय वही स्थायी रूप से बस गया। इन्हीं के शासनकाल में अप्रैल 1451 में बहलोल लोदी का राज्याभिषेक हुआ जिन्होनें दिल्ली सल्तनत में प्रथम अफगान वंश की नीव डाली ।
    • आलमशाह 1476 ई. में अपनी मृत्यु के समय तक बदायूँ में रहा ।

    लोदी वंश (1451-1526ई.)

    • सल्तनत युग में दिल्ली के सिंहासन पर राज्य करने वाले राजवंशों में लोदी वंश अंतिम था ।
    • बहलोल लोदी द्वारा दिल्ली सल्तनत में प्रथम अफगान वंश (लोदी वंश) की नींव रखी गई। लोदी वंश के कुल तीन शासक हुए।
      • बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)
      • सिंकदर लोदी (1489–1517 ई.)
      • इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.)

    बहलोल लोदी (1451-1489 ई)

    • बहलोल लादी सुल्तान बनने से पूर्व सरहिंद का सूबेदार था ।
    • बहलोल लोदी लोदियों की एक महत्वपूर्ण जनजाति 'शाहूखेल' से संबंधित था तथा उसने तुर्की की जगह कवीलाई अफगानी शासन को बढ़ावा दिया।
    • बहलोल लोदी जौनपुर के शर्की शासक हुसैनशाह को पराजित कर जौनपुर राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया जो कि उराकी सबसे बड़ी सफलता थी और वहाँ के शासक के रूप में अपने पुत्र बारबक लोदी को नियुक्त किया ।
    • बहलोल लोदी ने बहलोल नामक चाँदी का सिक्का चलाया जो अकबर के पहले तक उत्तरी भाग में विनिमय का मुख्य साधन बन गया ।
    • तारीख-ए-दाउदी के लेखक अब्दुल्लाह के अनुसार - "सामाजिक सम्मेलनों के अवसर पर वह कभी सिंहासन पर नहीं बैठा और न ही उसने सरदारों को खड़ा रहने दिया" । आम दरबार तक में वह सिंहासन पर न बैठकर एक गलीचे में बैठता था ।
    • बहलोल लोदी अपने सरदारों को "मकसद -ए-अली" कहकर पुकारता था ।
    • 1486-87 ई. में बहलोल लोदी ने ग्वालियर के शासक रायकर्ण को पराजित किया जो कि उसका अंतिम अभियान था।
    • ग्वालियर से वापस दिल्ली लौटते समय "लु” लगने से बीमार पड़ गया और जुलाई 1489 में मिलावली (उत्तरप्रदेश) में बहलोल लोदी की मृत्यु हो गई ।

    सिकंदर लोदी (1489-1517ई.)

    • 1489 ई. में बहलोल लोदी के मृत्यु के बाद उसका तीसरा पुत्र निजाम खाँ "सिंकंदर लोदी" के नाम से गद्दी पर बैठा। (9 पुत्र)
    • सिंकंदर लोदी की माता एक हिंदू थी ।
    • सिंकंदर लोदी वंश का व दिल्ली सल्तनत का अंतिम महान शासक माना जाता था ।
    • उसने 1504 ई. में आगरा शहर की स्थापना की और 1506 ई. में इसे अपना राजधानी बनाया।
    • उसने कुतुबमीनार की मरम्मत करायी ।
    • सिकंदर ने मुसलमानों में प्रचलित अनेक कुप्रथाओं को बंद कराया । जैसे- उसने मुहर्रम में ताजिया निकालना बंद करवा दिया तथा साथ ही महिलाओं को पीरों की मजारों पर जाने या उनकी याद में जुलूश निकालने की मनाही की। उसने यमुना में हिन्दुओं के स्नान पर रोक लगाया। उन्हें वहाँ बाल मुड़वाने से रोका।
    • वह फारसी भाषा का जानकार था तथा फारसी में "गुलरूखी" उपनाम से कविताएँ लिखता था ।
    • उसके शासन काल में कई संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद हुआ। आयुर्वेद पर औषधि की अनुवादित पुस्तक को "फरहंग-ए-सिकंदरी" नाम से जाना गया ।
    • इन्होनें नगरकोट (HP) के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़े को कसाइयों को दे दिया ।
    • सिंकंदर लोदी का बजीर मियाँ भुआँ प्रतिष्ठित विद्वान था जिसने "तिब्ब-ए-सिकंदरी" नामक ग्रंथ की रचना की ।
    • सिंकंदर लोदी की मृत्यु 1517 ई. में गले की बीमारी से हुई ।
    • सिंकंदर लोदी ने भूमि मापन के लिए गजे सिकंदरी का प्रचलन किया ।
    नोट- गज की वास्तविक लंबाई के बारें में विद्वानों में मतभेद है फिर भी आमतौर पर यह 30 से 33 इंच रहा होगा।
    • सिंकंदर लोदी का कथन था "यदि मैं अपने गुलाम को भी पालकी पर बैठा दूँ तो मेरे एक आदेश पर ये सरदार उसे कंधों पर उठा लेगें ।"

    इब्राहिम लोदी (1517 - 1526 ई.)

    • सिकंदर लोदी के मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र इब्राहिम लोदी 1517 ई. में गद्दी पर बैठा ।
    • इब्राहिम लोदी 1518 ई. में ग्वालियर को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाया ।
    • 1518 ई. में खतोली के युद्ध में मेवाड़ के शासक राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को पराजित किया ।
    • इब्राहिम लोदी ने दरवार के शक्तिशाली सरदारों का दमन किया जिस कारण वह अलोकप्रिय हो गया। ऐसा माना जाता है कि इब्राहिम लोदी के इसी उदंड व्यवहार के कारण भारत पर बाबर के आक्रमण के समय सरदारों ने इब्राहिम लोदी का साथ छोड़ दिया, जिस कारण इब्राहिम लोदी की पराजय हुई |

    पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526) (हरियाणा

    • लाहौर के राज्यपाल दौलत खाँ और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ लोदी ने इब्राहिम लोदी से असंतुष्ट होकर काबूल के शासक बाबर को दिल्ली पर आक्रमण के लिए आमंत्रित किया ।
    • अप्रैल 1526 में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें इब्राहिम लोदी की सेना पराजित हुई और युद्ध में वह मारा गया।
    • इब्राहिम लोदी मध्यकालीन भारत का एकमात्र सुल्तान था जो युद्ध भूमि में मारा गया।
    • इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक था। इनके निधन के साथ ही दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया और दिल्ली पर एक नए राजवंश मुगल वंश की स्थापना हुई ।

    इक्ता व्यवस्था

    • इक्ता एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ हस्तांतरणीय लगान अधिन्यास है ।
    • इक्ता एक ऐसा भू–क्षेत्र होता था जो मुख्यतः सैनिकों को उस क्षेत्र के प्रशासनिक संचालन के लिए दिया जाता था ।
    • इक्ता की सर्वप्रथम परिभाषा - निजामुल - मुल्क - तुसी द्वारा रचित सियासतनामा में दी गई ।
    • बड़े इक्तेदारों को मुक्ता, वलि या मालिक भी कहा जाता था ।
    • भारत में सर्वप्रथम मुहम्मद गौरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को "हाँसी" (हरियाणा) का इक्तेदार बनाया। किन्तु इक्ता को सुव्यवस्थित रूप देने का श्रेय इलतुतमिश को दिया जाता है।
    • दिल्ली सल्तनत में सर्वप्रथम इक्ता प्रथा इल्तुतमिश प्रारंभ किया ।
    • बलबन ने ख्वाजा नामक अधिकारी की नियुक्ति किया जो इक्ता से होने वाले आय को ज्ञात करता था ।
    • अलाउद्दीन खिलजी ने इक्ता प्रथा को समाप्त किया था ।
    • इक्ता प्रथा की दोबारा शुरूआत फिरोजशाह तुगलक ने किया।
    • इक्ता के पर्याय के रूप में "विलायत" शब्द का भी प्रयोग हुआ है ।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. गुलाम वंश का सर्वाधिक मान्य नाम हबीबुल्लाह द्वारा क्या प्रस्तावित किया गया ?
    (a) दास वंश
    (b) गुलाम वंश
    (c) इल्बरी तुर्क वंश
    (d) ममलूक वंश
    2. ममलूम वंश के संस्थापक है ?
    (a) मो. गौरी
    (b) महमूद गजनवी   
    (c) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (d) याल्दोज 
    3. कुतुबुद्दीन ऐबक ने कौन-सी उपाधि धारण नहीं की ?
    (a) सुल्तान 
    (b) मलिक
    (c) सिपहसलार
    (d) लाखबख्श
    4. कुतुबुद्दीन ऐबक की राजधानी कहाँ थी ? 
    (a) दिल्ली
    (b) लाहौर
    (c) कन्नौज
    (d) लखनौती
    5. कुतुबुद्दीन ऐबक ने किसकी स्मृति में दिल्ली में कुतुबमीनार की नींव रखी ?
    (a) मो. गौरी 
    (b) बख्तियार खिलजी
    (c) बख्तियार काकी
    (d) मोइनुद्दीन चिश्ती
    6. कुतुबुद्दीन ऐबक का उत्तराधिकारी बना है ?
    (a) इल्तुतमिश
    (b) बहराम शाह 
    (c) अरामशाह
    (d) मोहम्मद शाह
    7. गुलामों का गुलाब किसे कहा जाता है ?
    (a) कुतुबुद्दीन ऐबक 
    (b) इल्तुतमिश
    (c) अरामशाह 
    (d) बलवन 
    8. दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता हैं ?
    (a) इल्तुतमिश 
    (b) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (c) बलवन
    (d) मो. गौरी
    9. दिल्ली सल्तनत की राजधानी लाहौर के स्थान पर दिल्ली को सर्वप्रथम बनाने का श्रेय दिया जाता है ?
    (a) बलवन 
    (b) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (c) मो. गौरी
    (d) इल्तुतमिश
    10. किस विद्वान का मानना है कि भारत में मुस्लिम संप्रभुता का वास्तविक श्री गणेश इल्तुतमिश से ही प्रारंभ होता है?
    (a) के. एम. निजामी
    (b) आर. पी. त्रिपाठी 
    (c) मिन्हाज - उस - सिराज
    (d) लेनपुल
    11. तराइन का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ है ?
    (a) बाल्दोज और इल्तुतमिश
    (b) याल्दांज और कुतुबुद्दीन ऐबक
    (c) याल्दोज और कुवाचा
    (d) कुवाचा और ऐवक
    12. कौन ऐसा सुल्तान था जिन्होंने सर्वप्रथम दिल्ली के अमीरों का दमन किया, चालीसा दल का गठन किया - और खलीफा का प्रमाण-पत्र प्राप्त किया ?
    (a) कुतुबुद्दीन ऐबक 
    (b) इल्तुतमिश
    (c) बलवन
    (d) रजिया सुल्तान
    13. इल्तुतमिश ने अपना उत्तराधिकारी किसे घोषित किया ?
    (a) शाहतुर्कान 
    (b) रूकनुद्दीन फिरोजशाह
    (c) रजिया सुल्तान
    (d) बहराम शाह
    14. कुतुबुद्दीन ऐबक के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये -
    1. यह एक तुर्क गुलाम था ।
    2. उसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
    3. उसने तराइन युद्ध के बाद भारत में सल्तनत का विस्तार किया।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा / से सही नहीं है/हैं ?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) उपर्युक्त सभी
    15. कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु किस कारण हुई ?
    (a) उसके एक विश्वासपात्र कुलीन ने छुरा मारकर हत्या कर दी।
    (b) पंजाब पर अधिकार करने हेतु उसने गजनी के शासक याल्दांज से युद्ध किया, जिसमें उसकी मृत्यु हो गई ।
    (c) कालिंजर के किले में घेरा डालते समय लगी चोटों से उसकी मृत्यु हो गयी।
    (d) चोगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिर जाने के कारण मृत्यु हो गई।
    16. इल्तुतमिश के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. उसने तुर्कों की भारत विजय को स्थायित्व प्रदान किया।
    2. ख्वारिज्म शाह के खतरे को टालने हेतु उसने लाहौर के लिए कूच किया।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा / से सही नहीं है/हैं
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 12
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    17. ख्वारिज्म साम्राज्य के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. ख्वारिज्म साम्राज्य मध्य एशिया का सबसे शक्तिशाली राज्य था।
    2. 1218 ई. में मंगोलों ने इसे नष्ट कर दिया।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा से सही नहीं है / हैं ?
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 12 
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) इनमें से कोई नहीं 
    18. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. रजिया को उत्तराधिकारी नियुक्त करने में अमीरों और उलेमाओं ने इल्तुतमिश को रजामंद कर लिया।
    2. रजिया के शासनकाल में राजतंत्र और तुर्क सरदारों के बीच संघर्ष कभी नहीं हुआ।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा / से सही नहीं है/हैं ?
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    19. चहलगामी ( चालीसा ) कौन थे ?
    (a) उलेमा
    (b) अफगान सैनिक
    (c) तुर्क सरदार
    (d) रजिया के वफदार
    20. रजिया का विश्वासपात्र अमीर याकूत खाँ कहाँ का निवासी था ?
    (a) ईरान
    (b) मिश्र
    (c) अबीसिनिया 
    (d) मंगोल
    21. दिल्ली सल्तनत के किस सुल्तान को 'उलुग से जाना जाता था ? 
    (a) ऐबक के नाम
    (b) मोहम्मद तुगलक
    (c) बलवन
    (d) इल्तुतमिश
    22. बलवन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
    1. यह अपने आपको ईरानी अफरासियाब का वंशज मानता था।
    2. इसने सत्ता को शक्तिशाली बनाकर सारी शक्ति अपने हाथो में केंद्रित की।
    3. बलवन ने एक सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज का पुनर्गठन किया।
    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
    (a) केवल 1 और 2 
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 3
    (d) केवल 1. 2 और 3
    23. बलवन ने अपनी पुत्री का विवाह किसके साथ करवाया ?
    (a) कैकुवाद 
    (b) जलाउद्दीन खिलजी
    (c) नसीरूद्दीन महमूद
    (d) निजाम-उल-मुल्क - जुनैदी
    24. सजदा और पैबोस की रस्म दिल्ली सल्तनत के किस शासक ने आरंभ की ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी 
    (b) बलवन
    (c) इल्तुतमिश
    (d) सिकंदर लोदी
    25. निम्न में कौन मंगोल योद्धा युवराज जलालुद्दीन का पीछा करते हुए सिंधु नदी के तट तक जा पहुँचा था ।
    (a) चंगेज खाँ 
    (b) बातू खाँ
    (c) तैर बहादुर
    (d) इनमें से कोई नहीं
    26. दिल्ली सल्तनत के किस शासक ने 'खून और फौलाद' की नीति अपनाई ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी
    (b) बलवन
    (c) मोहम्मद तुगलक
    (d) सिकंदर लोदी
    27. दिल्ली सल्तनत के प्रशासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
    1. अर्ज-ए-मामलिक सैन्य विभाग का प्रमुख था
    2. अर्ज-ए-मामलिक सेना का प्रमुख भी होता था ।
    उपर्युक्त कथनो में कौन-सा/से सही है/ है ?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    28. 'कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद' के सदंर्भ में निम्नलिखित कथनो में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
    1. मीनार के उत्तर- पूर्व में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण इल्तुतमिश द्वारा करवाया गया था।
    2. इसके आयताकार प्रांगण में 27 हिंदू और जैन मंदीरो ( जिन्हे ध्वस्त कर दिया गया था) के स्तंभ एवं वास्तुशिल्प के टुकड़े शामिल है।
    3. यह दिल्ली के सुल्तानो द्वारा निर्मित प्रथम शहर जिसे दिल्ली - ए - कुहना (पुराना शहर ) कहा जाता था, की सामूहिक मस्जिद थी।
    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-
    (a) केवल 1
    (b) केवल 1 और 3
    (c) केवल 2 और 3 
    (d) 1, 2 और 3
    29. बलवन के सदंर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
    1. उसने नसीरूद्दीन महमूद के समय नायब का पद धारण किया।
    2. उसने मदिरा का सेवन त्याग दिया और राजदरबार में ह्रास-परिहास व हँसने पर प्रतिबंध लगाया।
    उपर्युक्त कथनो में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    30. निम्नलिखित में से कौन कुतुबमीनार के निर्माण से संबंधित है ?
    1. इल्तुतमिश
    2. अलाउद्दीन खिलजी
    3. फिरोजशाह तुगलक
    4. इब्राहिम लोदी
    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए-
    (a) केवल 1 और 2 
    (b) केवल 1, 2 और 3
    (c) केवल 1, 2 और 4   
    (d) 1, 2, 3 और 4
    31. "यदि रजिया स्त्री न होती तो उसका नाम भारत के महान शासको में लिया जाता" यह कथन किस विद्वान का है ।
    (a) के. एम. निजामी 
    (b) मिन्हाज
    (c) बरूनी
    (d) एलफिंस्टन
    32. नायब के पद का सृजन किसने किया है ?
    (a) बहराम शाह
    (b) अलाउद्दीन मसूद शाह
    (c) नसिरूद्दीन महमूद
    (d) बलवन
    33. कौन ऐसा सुल्तान था जो अपना जीवन निर्वाह टोपी सी कर करता था ?
    (a) बहराम शाह
    (b) नासिरूद्दीन महमूद
    (c) अलाउद्दीन मसूद शाह
    (d) बलवन
    34. बलवन स्वयं को किस वंश का बताता था ?
    (a) संशबन 
    (b) यामनी
    (c) अफरसियाब
    (d) इल्बरी तुर्क
    35. के. एम. निजामी के अनुसार दिल्ली सल्तनत का एक मात्र सुल्तान जिसने राजत्व के विषय विचार स्पष्ट रूप से रखे।
    (a) बलवन
    (b) इल्तुतमिश
    (c) रजिया सुल्तान
    (d) कुतुबुद्दीन ऐबक 
    36. फारसी के प्रसिद्ध विद्वान अमीर खुसरो और अमीर हसन ममलूक वंश के किस शासक के दरबार में रहता था ।
    (a) अलाउद्दीन खिलजी
    (b) मो. - वि. तुगलक
    (c) बलवन
    (d) इल्तुतमिश
    37. बलवन का निधन कब हुआ है ?
    (a) 1285 ई.
    (b) 1286 ई.
    (c) 1287 ई.
    (d) 1288 ई.
    38. बलवन का उत्तराधिकारी कौन बना है ?
    (a) कैकुबाद 
    (b) के. खुसरो
    (c) बुगरा खाँ
    (d) शमसूदीन क्यूस
    39. निम्नलिखित में से कौन सी एक विशिष्टा 'इक्ता व्यवस्था' की नही है ?
    (a) इक्ता एक राजस्व एकत्रित करने की व्यवस्था थी
    (b) सियासतनामा इक्ता व्यवस्था की जानकारी की स्त्रोत था
    (c) इक्ता से एकत्रित राजस्व सीधा सुल्तान के खाते में जाती थी
    (d) मुक्ती को इक्ता से एकत्रित राजस्व से सैनिक रखने पड़ते थे।
    40. रजिया के पतन का सबसे मुख्य कारण 'एलफिंस्टन' ने माना है ?
    (a) उसका स्त्री होना
    (b) याकूत से प्रेम करना
    (c) पर्दा-प्रथा त्यागना 
    (d) तुर्की अमीरो का विरोध 
    41. राजस्व का सिद्धांत' किसने स्थापित किया ?
    (a) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (b) इल्तुतमिश
    (C) बलवन
    (d) रजिया बेगम
    42. निम्नलिखित में से कौन-सा शासक इल्बरी तुर्क नही था?
    (a) इल्तुतमिश
    (b) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (c) बलवन
    (d) रूक्नुद्दीन फिरोजशाह
    43. अरबी परंपरा के आधार पर भारत में नई मुद्रा व्यवस्था लागू करने का श्रेय निम्नलिखित में से किसको है ?
    (a) इल्तुतमिश
    (b) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (c) बलवन
    (d) अलाउद्दीन मसूदशाह
    44. 'ढ़ाई दिन का झोपड़ा' क्या है ?
    (a) मस्जिद
    (b) मंदिर
    (c) संत की झोपड़ी 
    (d) मीनार
    45. निम्नलिखित में से कौन मध्यकालीन भारत की प्रथम महिला शासिका थी ?
    (a) रजिया सुल्तान
    (b) चांदबीबी
    (c) दुर्गावती
    (d) नूरजहाँ
    46. मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खाँ भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर निम्न में से किसके काल में आया था ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी 
    (b) इल्तुतमिश
    (c) बलवन
    (d) एंबक
    47. दिल्ली का कौन सुल्तान मंगोल नेता चंगेज खाँ का समकालीन था ?
    (a) इल्तुतमिश
    (b) रजिया
    (c) बलवन
    (d) बलाउद्दीन खिलजी
    48. चंगेज खाँ का मूल नाम था-
    (a) खासुल खान 
    (b) एशूगई
    (c) तेमुचिन
    (d) ओगदी
    49. अपनी शक्ति को समेकित करने के बाद बलवन ने भव्य उपाधि धारण की-
    (a) तूतिए - हिंद
    (b) जिल्ले-इलाही
    (c) कैसरे-हिन्द
    (d) दीने-इलाही
    50. निम्नलिखित में से कौन सा कथन बलवन के संबंध में सत्य नही है ?
    (a) उसने इक्तादारी व्यवस्था का प्रारंभ किया
    (b) उसने नियामत-ए-खुदाई के सिद्धांत का प्रतिपादन किया
    (c) उसने तुर्कान - ए - चहलगानी का प्रभाव समाप्त किया।
    (d) उसने बंगाल कं विद्रोह का दमन किया।
    51. खिलजी वंश के संस्थापक थे ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी 
    (b) जलालुद्दीन खिलजी
    (c) मुबारक शाह
    (d) खुसरो शाह
    52. जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को 'शाइस्ता खाँ' की उपाधि किसने प्रदान की ?
    (a) कैकुबाद
    (b) बलवन
    (c) अलाउद्दीन खिलजी
    (d) के खुसरो
    53. जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने अपना राज्याभिषेक करवाया?
    (a) लाल महल 
    (b) दिल्ली
    (c) किलोखरी
    (d) मुबारकबाद
    54. नवीन मुसलमान किसे कहा गया ?
    (a) चांगेज खाँ के साथ आये मुसलमानों को
    (b) अरबी मुसलमानो को
    (c) तुर्क मुसलमानो को
    (d) उल्गू खाँ के साथ आये उनके समर्थको को
    55. जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कब हुई ?
    (a) 1294 ई. 
    (b) 1295 ई.
    (c) 1296 ई.
    (d) 1297 ई.
    56. कौन ऐसा सुल्तान था जिन्होने अपने चाचा और ससुर को हत्या कर गद्दी प्राप्त की थी ?
    (a) अलाउद्दीन खिलजी 
    (b) मुबाकरशाह
    (c) बलवन
    (d) इल्तुतमिश
    57. अलाउद्दीन खिलजी ने विधिवत रूप से अपना राज्याभिषेक करवाया ?
    (a) किलोखरी
    (b) लालमहल
    (c) कड़ा माणिकपु
    (d) दिल्ली
    58. सिकन्दर-ए-सानी की उपाधि किसने धारण की है ?
    (a) बलवन 
    (b) जलालुद्दीन खिलजी
    (c) अलाउद्दीन खिलजी
    (d) मुबाकर शाह
    59. गद्दी पर बैठते समय किस शासक ने चार अध्यादेश जारी किया ?
    (a) बलवन
    (b) अलाउद्दीन खिलजी
    (c) मुबाकरशाह
    (d) जलालुद्दीन फिरोज खिलजी
    60. किस अभियान के दौरान एक हजार दीनार में मलिक काफूर को खरीदा गया ?
    (a) चित्तौड़
    (b) रणथम्बोर
    (c) मालवा
    (d) गुजरात
    61. अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत का अभियान किसके नेतृत्व में किया ? 
    (a) नूसरत खाँ
    (b) उलूग खाँ
    (c) मलिक काफूर
    (d) अलाउमुल्क
    62. दिल्ली का पहला सुल्तान जिसने 'उलेमा वर्ग' की उपेक्षा करते हुए धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया ? 
    (a) अलाउद्दीन खिलजी
    (b) इल्तुतमिश 
    (c) बलवन
    (d) मो.-बिन-तुगलक
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    Mon, 15 Apr 2024 04:51:03 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | तुर्कों का आक्रमण https://m.jaankarirakho.com/974 https://m.jaankarirakho.com/974 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | तुर्कों का आक्रमण
    • भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना का श्रेय तुर्कों को दिया जाता है ।
    • तुर्क, चीन की उत्तरी पश्चिमी सीमाओं पर निवास करनेवाली एक लड़ाकू एवं बर्बर जाति थी ।
    • तुर्क उमैय्यावंशी शासकों के संपर्क में आने के बाद इस्लाम धर्म के संपर्क में आए। कलांतर में उन्होनें इस्लाम धर्म स्वीकार लिया।
    • अल्पतगीन अफगान प्रदेश में गजनवी साम्राज्य की स्थापना किया। अल्पतगीन के बाद इस्हाक उसके बाद बलक्तगीन गद्दी पर बैठा ।
    • बलक्तगीन की मृत्यु के बाद पीराई ने गजनी पर अधिकार कर लिया पर वह एक अयोग्य शासक था, जिसे हटाकर सुबुक्तगीन गद्दी पर बैठा ।
    सुबुक्तगीनः-
    सुबुक्तगीन आरंभ में अलप्तगीन का गुलाम था । कलांतर में अलप्तगीन ने सुबुक्तगीन को अपना दमाद बना लिया और "अमीर-उल-उमरा" की उपाधि से सम्मानित किया ।
    • भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्क शासक सुबुक्तगीन ही था ।
    • सुबुक्तगीन ही प्रथम तुर्की था, जिसने हिंदूशाही शासक जयपाल को पराजित किया ।
    • सुबुक्तगीन के निधन के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी 998 ई. में गजनी का शासक बना।

    महमूद गजनबी (यामिनी वंश)

    • महमूद गजनबी 998 ई. में शासक बना। उस समय उसकी आयु 27 वर्ष थी। महमूद गजनबी 1000 से 1027 ई के बीच 17 बार भारत पर आक्रमण किया ।
    उदेश्यः-
    महमूद गजनबी मध्य एशिया में एक बड़े साम्राज्य की स्थापना के लिए धन प्राप्त करने के उदेश्य से भारत पर आक्रमण किया ।
    • महमूद ने 1000 ई. में भारत पर आक्रमण शुरू किया तथा सीमावर्ती क्षेत्र के दुर्गो को जीता। तत्पश्चात् 1001 ई. में पंजाब के हिन्दूशाही राजवंश के उपर आक्रमण किया। इसकी राजधानी वैहिन्द थी । इस राजवंश के संस्थापक कल्लर था। इस समय यहाँ के शासक जयपाल थें जो पराजित होकर आत्मग्लानिवश आत्महत्या कर लिया। उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र आनंदपाल हुआ।
    • 1009 ई. में हिन्दुशाही राजा आनंदपाल से बैहिन्द के निकट महमूद का युद्ध हुआ जिसमें आनंदपाल पराजित हुआ ।
    • महमूद गजनवी का 1008 में नगरकोट के विरूद्ध हमले को मूर्तिवाद के विरूद्ध पहली महत्वपूर्ण जीत बतायी जाती है।
    • महमूद गजनवी ने बुतशिकन अर्थात मूर्तिभंजक की उपाधि धारण किया।
    • 1014 ई. में थानेश्वर पर आक्रमण किया ।
    • 1018 ई. में महमूद ने कन्नौज क्षेत्र पर आक्रमण किया । वहाँ गुर्जर प्रतिहार के प्रतिनिधि राज्यपाल का शासन था जो भाग खड़ा हुआ ।
    • भारत में महमूद गजनवी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभियान 1025-26 में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण था (गुजरात, शिव मंदिर) उस समय वहाँ का शासक भीम प्रथम था । इस युद्ध में 50000 लोग मारे गयें। महमूद इस मंदिर को पूर्णतः नष्ट करके इसकी अकूत संपत्ति को लेकर सिंध के रेगिस्तान से वापस लौट गया ।
    • महमूद ने अंतिम आक्रमण 1027 ई. में जाटों के विरूद्ध किया और उन्हें पराजित किया क्योकि सोमनाथ को लूटकर वापस जाते समय महमूद को पश्मिोत्तर में सिंध के जाटों ने क्षति पहुँचाई थी ।
    • महमूद गजनवी इस्लामी जगत का पहला सुल्तान था जिसे खलीफा ने सुल्तान पद का प्रमाण पत्र दिया ।
    • महमूद गजनवी ने यामिनी उद्दद्दौला (सम्राज्य का दाहिना हाथ ) एवं यामिनी उल-मिल्लत (मुस्लमानों का संरक्षक) की उपाधि धारण किया ।

    मुहम्मद गौरी (शंसबनी वंश)

    • भारत में मुसलमानों के साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मुइजुद्दीन मुहम्मद बिन साम था, जिसे शिहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी अथवा “गौर वंश का मुहम्मद" भी कहा जाता है।
    • 12वीं शताब्दी के मध्य में गौरी वंश का उदय हुआ । गजनी साम्राज्य के अंतर्गत एक छोटा प्रांत गौर था। मुहम्मद गौरी 1173 ई. में यहाँ का शासक बना । ushan
    • साम्राज्य स्थापना के उदेश्य से 1175 ई. से 1205 ई. के मध्य गौरी ने कई बार भारत पर आक्रमण किये ।
    • मुहम्मद गौरी भारत पर पहला आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर किया । मुल्तान के मुसलमानों को पराजित कर उसने वहाँ अधिकार कर लिया।
    • मुल्तान से आगे बढ़ते हुए 1178 ई. में उसने पाटन (गुजरात) पर आक्रमण किया, परंतु गुजरात के शासक भीम द्वितीय माउंट आबू पर्वत पर उसे बुरी तरह परास्त किया जो किसी तुर्क मुस्लिम शासक की भारत में पहली हार थी।
    • मुहम्मद गौरी 1179 में पेशावर को 1181 लाहौर, 1185 सियालकोट को जीता। 
    • लाहौर को केंद्र बनाकर 1189 में मुहम्मद गौरी ने भटिंडा के दुर्ग को जीता। उस समय भटिंडा का शासन पृथ्वीराज चौहान के पास था। भटिंडा के दुर्ग पर कब्जा कर लेने से पृथ्वीराज चौहान अत्यंत क्रोधित हुए और यही तराईन के युद्ध का तत्कालीक कारण बना।
    तराईन का प्रथम युद्ध (हरियाणा):-
    यह युद्ध 1191 ई. में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ जिसमें पृथ्वीराज चौहान विजयी हुए ।
    तराईन का द्वितीय युद्धः-
    यह युद्ध 1192 ई. में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी की जीत हुई। इसी विजय के बाद दिल्ली में गौर साम्राज्य की स्थापना हुई ।
    • इतिहासकार वी. ए. स्मिथ ने कहा है कि- तराईन का द्वितीय युद्ध ऐसा निर्णायक युद्ध साबित हुआ जिसने भारत पर मुसलमानों की आधारभूत सफलता निश्चित कर दिया। बाद में होने वाले आक्रमण परिणाम थें ।
    • तराईन के युद्ध के बाद गौरी ने हाँसी, समाना, मेरठ, अलीगढ़ पर अधिकार कर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
    चंदावर का युद्ध (फिरोजाबाद, उत्तरप्रदेश):-
    यह युद्ध मुहम्मद गौरी तथा कन्नौज के गहड़वाल वंश के शासक जयचंद के बीच हुआ जिसमें जयचंद की हार हुई और वह मारा गया।
    • मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने 1203 में बिहार विजय, 1204-05 बंगाल विजय एवं असम पर 1206 में आक्रमण किया ।
    • 1206 ई. में मुहम्मद गौरी भारत से वापस जाते हुए सिंध नदी के पास दमयक नामक स्थान पर कुछ लड़ाकू जातियों के हमले में मारा गया।
    • मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद भारत में तुर्की साम्राज्य का शासन कुतुबद्दीन ऐबक ने संभाला। जिन्होनें दिल्ली में ममलूक वंश के शासन की स्थापना किया।
    • मुहम्मद गौरी के साथ प्रसिद्ध संत शेख मोइनुद्दीन चिश्ती भारत आए । संत मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में चिश्ती संप्रदाय की स्थापना किया।
    • मुहम्मद गौरी ने भारत में लक्ष्मी की आकृति वाला सिक्का जारी किया।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. महमूद गजनवी ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया ?
    (a) 16
    (b) 17
    (c) 18
    (d) 19
    2. महमूद गजनवी के किस आक्रमण के समय अलबरूनी उसके साथ था ?
    (a) कन्नौज
    (b) थानेश्वर
    (c) वैहिंद
    (d) नागरकोट
    3. सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी के आक्रमण के समय गुजरात के शासक कौन थे ? 
    (a) भीम II 
    (b) भीम III
    (c) भीम I
    (d) इनमें से कोई नहीं
    4. महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण कब हुआ ?
    (a) 1025
    (b) 1027
    (c) 1030
    (d) 1028
    5. किस सुल्तान द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्के के एक तरफ अरबी तथा दूसरी तरफ संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ ?
    (a) अलप्तगीन
    (b) सुबुक्तगीन
    (c) महमूद गजनवी
    (d) मुहम्मद गौरी
    6. किस सुल्तान ने यामिनि-उद्दौला और यामिनि उलमिल्लत की उपाधि धारण की ?
    (a) अल्पतगीन
    (b) सुबुक्तगीन
    (c) मुहम्मद गौरी
    (d) महमूद गजनवी
    7. मोहम्मद गौरी ने भारत पर पहला आक्रमण कब किया है?
    (a) 1173 
    (b) 1175
    (c) 1178
    (d) 1189
    8. भारतीय शासकों से हारने वाला प्रथम तुर्क मुसलमान था ?
    (a) मुहम्मद गौरी
    (b) महमूद गजनवी
    (c) सुबुक्तगीन
    (d) अलप्तगीन
    9. तराईन का द्वितीय युद्ध कब हुआ है ?
    (a) 1191
    (b) 1192
    (c) 1193
    (d) 1194
    10. लक्ष्मी की आकृति वाला सिक्का जारी करने वाला सुल्तान कौन था ?
    (a) मा. गौरी
    (b) महमूद गजनवी
    (c) इल्तुतमिश
    (d) बलवन
    11. महमूद गजनवी ने किस वंश से संबंधित होने का दावा किया?
    (a) अब्बास वंश
    (b) गुलाम वंश
    (c) अफरासियाब वंश
    (d) इनमें से कोई नहीं
    12. गजनवी राजवंश की स्थापना किसने की थी ?
    (a) सुबुक्तगीन
    (b) अल्पतगीन
    (c) महमूद
    (d) ऐबक
    13. वैहिंद (पेशावर के निकट ) की लड़ाई किस-किस के बीच लड़ी गई ?
    (a) महमूद और जयपाल
    (b) महमूद और आनंदपाल
    (c) महमूद और जयचंद
    (d) मो. गौरी और पृथ्वीराज चौहान
    14. 'बुतशिकन' ( मुर्तिभंजक) की संज्ञा किसे प्राप्त थी ?
    (a) महमूद गजनवी
    (b) सुबुक्तगीन
    (c) मुहम्मद गौरी
    (d) अलप्तगीन
    15. महमूद गजनवी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. उसने 1025 ई. में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया |
    2. वह भारत पर मुस्लिम शासन स्थापित करना चाहता था।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा / से सही नहीं है/हैं ?
    (a) केवल 1 
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    16. मुइज्जुद्दीन मुहम्मद-बिन- साम के भारत आक्रमण के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है-
    (a) उसने गोमल दर्रे को पार करके मुल्तान और कच्छ को जीत लिया।
    (b) उसे गुजरात में हार का सामना करना पड़ा ।
    (c) उसने भारत विजय के लिए पंजाब में एक मजबूत आधार कायम करना जरूरी नहीं समझा।
    (d) 1191 ई. में तराइन की लड़ाई में गौरी की फौज बूरी तरह पराजित हुई ।
    17. बारहवी सदी के अंत में मध्य एशिया का वह कौन-सा शासक था, जिसने भारत में केंद्रीय मुस्लिम राजनीतिक व्यवस्था स्थापित की, जो बाद तक कायम रही ? 
    (a) अलप्तगीन
    (b) महमूद गजनवी
    (c) मुहम्मद-बिन-साम (मुहम्मद गौरी)
    (d) जलालुद्दीन मंगवरनी
    18. मो. गौरी के किस सेनापति ने नालंदा विश्वविद्यालय को ध्वस्त किया।
    (a) कुतुबउद्दीन ऐवक 
    (b) बाल्दोज
    (c) कुत्राचा
    (d) बख्तियार खिलजी
    19. मोहम्मद गौरी के साथ भारत आने वाला प्रसिद्ध मुफी संत कौन था ?
    (a) निजामुद्दीन औलिया
    (b) शंख बुरहानउद्दीन गरीब
    (c) मोईनउद्दीन चिश्ती
    (d) इनमें से कोई नहीं  
    20. 'सुल्तान' की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक कौन था ?
    (a) महमूद गजनवी
    (b) मुहम्मद गौरी
    (c) इल्तुतमिश
    (d) बख्तियार खिलजी
    21. मुहम्मद गौरी की हत्या कब हुई ?
    (a) 15 मार्च 1206
    (b) 18 मार्च 1206
    (c) 19 मार्च 1205
    (d) 17 मार्च 1205
    22. 'किताब - उल हिंद' नामक ग्रंथ की रचना किसने की ?
    (a) फिरदौसी
    (b) अरबी
    (c) फरूखी
    (d) अलबरूनी
    23. भारत में पोलो खेल का प्रचलन किया- 
    (a) चूनानियों ने 
    (b) अंग्रेजों ने
    (c) तुकों ने
    (d) मुगलों ने
    24. भारत में मुहम्मद गौरी ने किसको प्रथम अक्ता प्रदान किया था ?
    (a) ताजुद्दीन बाल्दीज
    (b) कुतुबउद्दीन ऐवक
    (c) शम्सुद्दीन इल्तुतमिश
    (d) नासिरूद्दीन कुवाचा
    25. अलबेरूनी के अनुसार 'अत्यज' (चतु:वर्ण के नीचे का वर्ग) में शामिल थे-
    (a) धोबी, मांची, जादुगर, डालिया व ढाल बनाने वाले
    (b) नाविक, मछुआ, व्याध, जुलाहा
    (c) a और b दोनों
    (d) न ही a और न ही b
    26. मुहम्मद गौरी के आक्रमणों का निम्न में से कौन-सा परिणाम नहीं हुआ ?
    (a) पंजाब से लेकर बंगाल तक फिर से उतरी भारत एक केंद्रीय सत्ता के अधीन हो गया।
    (b) भू-राजस्व से प्राप्त आर्थिक साधन अब प्रत्यक्ष रूप से शासक को हाथों में केन्द्रिय हो गया।
    (c) उत्तरी भारत में एक नगरीय क्रांति का सूत्रपात हुआ ।
    (d) इनमें से कोई नहीं
    27. नालंदा विश्वविद्यालय के विनाश का कारण था ? 
    (a) मुसलमान
    (b) कुषाण 
    (c) सीथियन्स
    (d) मुगल 
    28. मुहम्मद गौरी को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है ? 
    (a) शहाबुद्दीन 
    (b) मुइजुद्दीन 
    (c) मुहम्मद बिन कासिम
    (d) इनमें से सभी
    29. मुहम्मद गौरी का अंतिम आक्रमण किसके विरूद्ध हुआ ? 
    (a) करमाथी 
    (b) गजनवी
    (c) सोलंकी
    (d) पंजाब के खोखर
    30. 'तराईन का द्वितीय युद्ध ऐसा निर्णायक युद्ध समझना चाहिए जिसने भारत पर मुसलमानों की आधारभूत सफलता निश्चित कर दिया। बाद के दिनों में होने वाले आक्रमण इसके परिणाम मात्र थे'- यह कथन किसका है?
    (a) वी. ए. स्मिथ
    (b) लेनपूल
    (c) ईश्वरी प्रसाद
    (d) अलबेरूनी
    31. मुहम्मद गौरी एवं कन्नौज के राजा जयचंद के मध्य 1194 ई. में हुआ युद्ध किस नाम से प्रसिद्ध है ? 
    (a) तराईन का प्रथम युद्ध
    (b) तराईन का द्वितीय युद्ध
    (c) चंदावर का युद्ध
    (d) पानीपत का प्रथम युद्ध
    32. 'जवाबित' थे-
    (a) कृषि संबंधित कानून
    (b) राज्य कानून
    (c) हिन्दुओं से संबंधित मामले
    (d) इनमें से कोई नहीं
    33. चंगेज खान का मूल नाम था- 
    (a) जासुल खान 
    (b) एशुगई
    (c) तेमुचिन
    (d) ओगंदी
    34. मुहम्मद गौरी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भारतीय आक्रमण था-
    (a) मुल्तान पर आक्रमण
    (b) तराईन का प्रथम युद्ध
    (c) तराईन का द्वितीय युद्ध
    (d) भटिण्डा पर आक्रमण
    35. पंजाब में हिन्दुशादी राजवंश को किसने स्थापित किया ? 
    (a) वसुमित्र 
    (b) कल्लर
    (c) जयपाल
    (d) महिपाल
    36. महमूद गजनवी ने भारत पर प्रथम आक्रमण किस राज्य के विरूद्ध किया ?
    (a) हिन्दुशाही/ब्राह्मणसाही
    (b) अलवर
    (c) कठिवावाड के सोलंकी
    (d) इनमें से कोई नहीं
    37. मुहम्मद गौरी विजित प्रदेशों की देखभाल के लिए निम्नलिखित में से किस विश्वसनीय जनरल को छोड़कर गया था ? 
    (a) नासिरूद्दीन
    (b) इल्तुतमिश
    (c) कुतुबउद्दीन ऐबक
    (d) मलिक कपूर
    38. हिन्दुशाही राज्य की राजधानी थी-
    (a) वैहिन्द/ओहिन्द 
    (b) कलिंजर
    (c) अजमेर
    (d) इनमें से कोई नहीं
    39. महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण का उद्देश्य क्या था ?
    (a) इस्लाम का प्रचार
    (b) गजनी साम्राज्य का विस्तार
    (c) मूर्तियों को तोड़ना एवं मंदिरों को लूटना
    (d) मध्य एशिया में एक बड़े साम्राज्य की स्थापना के लिए धन प्राप्त करना 
    40. महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण किसके विरूद्ध था ?
    (a) तोमर
    (b) प्रतिहार
    (c) सोलंकी
    (d) जाट
    41. हिन्दुशाही राज्य का कौन-सा शासक तुर्कों से बार-बार पराजित होने के कारण ग्लानिवश आत्मदाह कर लिया ? 
    (a) जयपाल 
    (b) आनंदपाल
    (c) त्रिलोचन
    (d) भीमपाल
    42. महमूद गजनवी के साथ भारत आनेवाले इतिहासकारों में कौन शामिल नहीं था ?
    (a ) 'शाहनामा' का लेखक फिरदौसी
    (b) ‘किताब-उल-हिन्द' का लेखक अलबरूनी
    (c) 'तारीख-ए-वामिनी' का लेखक अरबी
    (d) 'तारीख-ए-सुबुक्तगीन' का लेखक वैहाकी
    43. महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामस्वरूप कौन-सा शहर फारसी संस्कृति का केन्द्र बन गया ? 
    (a) लाहौर
    (b) दिल्ली
    (c) दौलताबाद
    (d) इनमें से कोई नहीं
    44. पंजाब में हिन्दुशाही राजवंश को किसने स्थापित किया ? 
    (a) वसुमित्र
    (b) कल्लर
    (c) जयपाल 
    (d) महिपाल
    45. निम्नलिखित में से किसने ढोल की तेज आवाज के साथ एक महिला का अपने पति की चिता के साथ स्वतः को जला लेने के दृश्यों का भयानक चित्रण किया है ?
    (a) इब्नतूता
    (b) बरनी
    (c) बदायूंनी
    (d) अमीर खुसरो
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    Sun, 14 Apr 2024 11:00:51 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | अरबों द्वारा सिंध पर विजय https://m.jaankarirakho.com/973 https://m.jaankarirakho.com/973 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | अरबों द्वारा सिंध पर विजय
    • भारत पर सर्वप्रथम मुस्लिम आक्रमण 711 ई. में उबैदुल्लाह के नेतृत्व में हुआ। इसके बाद 711 ई. में ही बुदैल के । नेतृत्व में दूसरा आक्रमण हुआ। ये दोनों ही आक्रमण असफल हुए।
    • 712 ई. में मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में पहला सफल मुस्लिम आक्रमण भारत पर हुआ। उस समय सिंध पर दाहिर का शासन था जो राजा चच का वंशज था ।
    • भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय अरबों की अपेक्षा तुर्कों को दिया जाता है ।
    • 8वीं शताब्दी ई. की भारत में सबसे महत्वपूर्ण घटना सिंध के उपर अरब आक्रमण था।
    • सिंध की राजधानी ब्राह्मणवाद / आरोह थी ।
    • अरबों की सिंध विजय वृतांत “चचनामा” नामक ग्रंथ में वर्णित है जिसकी रचना अली अहमद ने किया है। अरबी भाषा में इसकी रचना अबु मुआसिर ने किया है ।
    उदेश्यः- इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार और लूट की धनराशी से धनवान बनना ।
    • मुहम्मद बिन कासिम 713 ई. में मुल्तान का विजय किया यहाँ से उसे अत्यधिक सोना मिला जिस कारण मुल्तान को "स्वर्णनगरी" कहा जाने लगा ।
    • सिंध के पूर्व गुर्जर प्रतिहार जैसा शक्तिशाली राज्य होने के कारण अरबी सत्ता का विस्तार सिंध से बाहर नहीं हो # सका।
    • 714 ई. में अरब जगत में राजनीतिक संकट उत्पन्न होने के कारण मुहम्मद बिन कासिम वापस अरब बुला लिया गया एवं रास्ते में ही उसकी हत्या कर दी गई।
    • मुल्तान एवं सिंध में अरबी लोग स्थायी रूप से रहने लगें और "करमातिया' नामक एक संप्रदाय का उदय हुआ ।
    नोटः– अरबों को यह श्रेय दिया जाता है कि उसने चीन द्वारा अविष्कृत कागज, कंपास, छपाई खाना, बारूद आदि के ज्ञान को यूरोप पहुँचाया।
    • सिंध विजय के प्रभाव के संबंध में लेनपूल ने कहा है कि "सिंध को अरबों ने विजित तो किया, किंतु यह विजय ऐतिहासिक और इस्लाम धर्म की घटना मात्र ही रही।"
    • सिंध विजय से भारत में राजनीतिक क्षेत्रों में एक नए कर का प्रचलन हुआ जिसे "जजिया कर” कहा जाता था। यह एक प्रकार का सुरक्षात्मक कर था जो गैर मुस्लमानों से लिया जाता था । यह कर महिला, बच्चा, अपाहिज बेरोजगार, ब्राह्मण से नहीं लिया जाता था । इस कर को लगाने का श्रेय मुहम्मद बिन कासिम को जाता है।
    • अरबों ने सिंध में उँट पालन और खजूर उत्पादन का प्रचलन किया ।
    • पंचतंत्र का अरवी अनुवाद कलिलावादिम्ना नाम से किया गया।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. भारत पर सर्वप्रथम मुस्लिम आक्रमण कब हुआ ?
    (a) 710 ई. 
    (b) 711 ई.
    (c) 712 ई.
    (d) 713 ई.
    2. भारत पर सर्वप्रथम सफल मुस्लिम आक्रमण कब हुआ ?
    (a) 710 ई.
    (b) 711 ई.
    (c) 712 ई.
    (d) 713 ई.
    3. सिंध पर जब अरबी मुसलमानो का आक्रमण हुआ उस समय कश्मीर में किस वंश का शासक था।
    (a) कार्कोट वंश 
    (b) उत्पल वंश
    (c) लोहार वंश
    (d) इनमें से कोई नहीं
    4. चीन द्वारा अविष्कृत कागज, कपास, छपाई खाना, इत्यादि के शान को यूरोप तक पहुँचाने का श्रेय किसे जाता है।
    (a ) ईरानी
    (b) तुर्क
    (c) अरब
    (d) इनमें से कोई नहीं
    5. अरबों द्वारा भारत विजय का कारण था ?
    (a ) देश में सर्वोच्च शक्ति का अभाव
    (b) सिंध शासक दाहिर की अदूरदर्शिता
    (c) मुसलमान नेतृत्व का कुशल होना
    (d) उपर्युक्त सभी
    6. अरब आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के समय का राजा था ?
    (a) यशोवर्मन
    (b) दाहिर
    (c) चाय
    (d) अर्जुन
    7. किसके नेतृत्व में अरबो ने सिंध पर पहला सफल अभियान किया ?
    (a) अब्दुल्ला बिन उमर
    (b) अल हरीस
    (c) अल मुहल्लब
    (d) मुहम्मद बिन कासिम
    8. मुहम्मद बिन कासिम ने सर्वप्रथम सिध के किस क्षेत्र को जीता?
    (a) देवल
    (b) सहबन
    (c) रावर 
    (d) आरोर
    9. किस अभियान के दौरान उस क्षेत्र को जीतकर मुहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर की दूसरी विधवा पत्नी लाड देवी और दाहिर की दो पुत्रियो सूर्या देवी और परमल देवी को बंदी बनाकर दमिश्क में खलीफा के पास भेजा जो अंत में उसकी मृत्यु का कारण बनी ?
    (a) आरोर
    (b) ब्राह्मणवाद
    (c) रावर
    (d) देवला
    10. सिंध की विजय के प्रभाव के संबंध में किसने कहा कि "सिंध को अरबो ने विजित तो किया, किंतु यह विजय ऐतिहासिक और इस्लाम धर्म की घटना मात्र ही रही।"
    (a) लेनपूल
    (b) हेबल
    (c) डॉ. ईश्वरी प्रसाद
    (d) इनमें से काई नहीं
    11. 'पंचतंत्र' का अरबी अनुवाद किस नाम से किया गया है?
    (a) ब्रह्मसिद्धांत
    (b) खंडनखंडरखाद्य
    (c) कालिलावादिम्ना
    (d) इनमें से कोई नहीं
    12. अरबो ने सिंध में किन दो का प्रचलन प्रारंभ किया ?
    (a) बकरी पालन और आलू उत्पादन
    (b) गाय पालन और मशरूम उत्पादन
    (c) भैंस पालन और बादाम उत्पादन
    (d) ऊँट पालन और खजूर उत्पादन
    13. भारत में सर्वप्रथम किस मुसलमान आक्रमणकारी ने जजिया कर' वसूला
    (a) बावर
    (b) मुहम्मद बिन कासिम
    (c) मुहम्मद गौरी
    (d) महमूद गजनवी
    14. मो. बिन कासिम के किस अभियान के दौरान दाहिर मारा गया
    (a) देवल अभियान
    (b) मुल्तान अभियान
    (c) रावर अभियान
    (d) ब्रह्मणवाद अभियान
    15. अरबी मुसलमानो ने सिंध के किस शहर को 'स्वर्ण नगरी' को उपमा दी
    (a) मुल्तान 
    (b) देवल
    (c) निरूम
    (d) संहबन
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    Sun, 14 Apr 2024 10:48:59 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | इस्लाम धर्म का उदय https://m.jaankarirakho.com/972 https://m.jaankarirakho.com/972 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | इस्लाम धर्म का उदय
    • इस्लाम धर्म का उदय 7वीं शताब्दी ई. में हुआ है । इस्लाम का शाब्दिक अर्थ "अल्लाह के प्रति समर्पित होना” होता है। इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को मुस्लमान कहा गया ।
    • इस्लाम धर्म का प्रर्वतक या संस्थापक पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब को माना जाता है। पैगम्बर का शाब्दिक अर्थ "ईश्वर का दूत" होता है। मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में सउदी अरब के मक्का में कुरेस कबीला में हुआ था ।
    • मुहम्मद साहब के पिता अब्दुल्ला, माता अमीना, दादा अब्दुल मुतालीब तथा चाचा अबु तालीब थें। इनका पालन-पोषण इनके दादा अब्दुल भुतालीब ने किया क्योंकि इनके जन्म के पूर्व ही मुहम्मद साहब के पिता का मृत्यु हो चुका था।
    • मुहम्मद साहब का विवाह 25 वर्ष की अवस्था में "खदीजा" नामक विधवा के साथ हुआ जो व्यापारी हुआ करती थी मुहम्मद साहब के दो पुत्र और चार पुत्रियाँ थी ।
    • 40 वर्ष की अवस्था में 610 ई. में हीरा नामक गुफा में मुहम्मद साहब को ज्ञान प्राप्ति हुई तत्पश्चात् उन्होनें बहुदेववाद का विरोध करते हुए एकेश्वरवाद पर बल दिया ।
    • जुलाई 622 ई. में हजरत मुहम्मद साहब मक्का से मदीना की यात्रा किए जिसे हिजरी संवत् कहा जाता है। इस्लाम जगत का पहला संवत् हिजरी संवत् को माना जाता है ।
    • हजरत मुहम्मद साहब गैर मुसलमानों को जिम्मी की श्रेणी में रखा तथा उनसे जजिया कर वसूला। जजिया एक सुरक्षात्मक कर था जो गैर मुसलमानों से लिया जाता था । यह कर आमदनी का 1 / 10, 1 / 20, 1 / 30 भाग तक होता था । महिला, अपाहिज बच्चा, बेरोजगार, ब्राह्मण इत्यादि से यह कर नहीं लिया जाता था ।
    • मुहम्मद साहब ने अपने जीनवकाल में मिल्लत व्यवस्था दिया अर्थात उन्होनें कहा कि सभी मुसलमान एक है इसमें राज्य का कोई खास अस्तित्व नहीं है ।
    • कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है। हजरत साहब "कुरान की शिक्षा का ही उपदेश दिया करते थें। देवदूत जिब्रियल ने मुहम्मद साहब को कुरान अरबी भाषा में संप्रेषित किया
    • हजरत हुहम्मद साहब का निधन 632 ई. में हो गया। उन्हें “मदीना" में दफनाया गया हजरत मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी “खलीफा' कहलाए। 1924 ई. में तुर्की के शासक मुस्तफा कमाल पाशा ने खलीफा पद को समाप्त किया। मुहम्मद साहब के निधन के पश्चात् इस्लाम धर्म में दो संप्रदाय शिया और सुन्नी में विभाजित हो गया। कलांतर में शिया और सुन्नी के बीच कर्बला (ईराक) के मैदान में युद्ध हुआ जिसमें बड़े पैमाने पर शिया मारें गयें उन्हीं के याद में मुहर्रम मनाया जाता है।
    • इस्लाम धर्म का व्यापक प्रसार को देखते हुए सिर्फ खलीफा के माध्यम से इस धर्म का संचालन और निगरानी संभव नहीं रहा। फलतः कलांतर में इस्लामी साम्राज्य को कई प्रांतो में बाँटा गया जिसे सल्तनत कहा गया। इसके प्रधान सुल्तान कहलाते थें ।
    • इस्लामी जगत का पहला सल्तनत गजनी बना जबकि पहला सुल्तान महमूद गजनबी बना ।
    • हजरत मुहम्मद साहब के जन्म दिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नवी पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
    • इब्न ईशाक ने सर्वप्रथम मुहम्मद साहब का जीवनी लिखा है।
    • ईरानियों ने हमारे देश को "हिंदुस्तान" कह कर संबोधित किया तथा यूनानियों ने इसे " इंडिया" कहा है।
    • भारत की जनता के संदर्भ में "हिन्दू" शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अरबों द्वारा किया गया था ।
    • नमाज के दौरान मुसलमान भक्का के तरफ मुँह करके खड़े होते हैं। भारत में मक्का पश्चिम की ओर की दिशा को किबला कहा जाता है ।
    • सुन्नी उन्हें कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास रखते हैं । सुन्ना मुहम्मद साहब के कथनों व कार्यों का विवरण है ।
    • हजरत अली की शिक्षाओं में विश्वास रखने वाले को शिया कहा गया है। हजरत अली मुहम्मद साहब के दामाद थें ।
    • भारत में सर्वप्रथम इस्लाम का आगमन अरबों के जरिए हुआ । अरबों ने सिंध को जीत लिया और सबसे पहले भारत के इसी भाग में इस्लाम एक महत्वपूर्ण अंग बना ।

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. इस्लाम धर्म का मुख्य आधार क्या था ?
    (a) खिलाफत
    (b) एकेश्वरवाद
    (c) बहुदेववाद
    (d) कुरान
    2. मुसलमानो से निम्न में कौन कर लिये जाते थे ?
    (a) सदका
    (b) जकात
    (c) उश्र
    (d) इनमें से सभी
    3. हजरत मोहम्मद साहब के निधन के पश्चात प्रथम खलीफा कौन बने ?
    (a) अबू ब्रक
    (b) उमर
    (c) उस्मान
    (d) अली
    4. इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब किस कबिला से संबंधित थे।
    (a) खजराज
    (b) कुरेश
    (c) आमीर
    (d) उबेदा
    5. हजरत मोहम्मद साहब को ज्ञान की कुरेश उबेदा प्राप्ति मक्का के हीरा नामक गुफा में कब हुई है ?
    (a) 610 ई.
    (b) 622 ई.
    (c) 632 ई.
    (d) 595 ई.
    6. हजरत मोहम्मद साहब का पालन-पोषण किसने किया है ?
    (a) अब्दुला
    (b) अमीना
    (c) अबु तालीब
    (d) खदीजा
    7. हिजरी संवत् की शुरूआत कब हुई है ?
    (a) 621 ई.
    (b) 622 ई.
    (c) 623 ई.
    (d) 624 ई.
    8. मोहम्मद साहब ने किस ग्रंथ की शिक्षाओ का उपदेश दिया ?
    (a) कुरान
    (b) सरियत
    (c) जवाबीत
    (d) मिल्लत
    9. खलीफा का पद कब समाप्त हुआ ?
    (a) 1918
    (b) 1920
    (c) 1922
    (d) 1924
    10. भारत में इस्लाम धर्म का आगमन किसके जरिये हुआ ?
    (a) अरब
    (b) तुर्क
    (c) मंगोल
    (d) तैमूर
    11. इस्लाम धर्म का उदय किस शताब्दी में हुआ ?
    (a) छठी शताब्दी
    (b) सातवी शताब्दी
    (c) आठवी शताब्दी
    (d) नवमी शताब्दी
    12. भारतीय मुसलमान नमाज के दौरान किस दिशा में मुँह करके नमाज पढ़ते है ?
    (a) पूर्व
    (b) पश्चिम
    (c) दक्षिण
    (d) उत्तर
    13. भारत की जनता के लिये सर्वप्रथम हिन्दु शब्द का प्रयोग किसने किया है ?
    (a ) ईरानी
    (b) यूनानी
    (c) अरब
    (d) तुर्क
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    Sun, 14 Apr 2024 10:37:24 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मध्यकालीन भारतीय इतिहास का स्त्रोत https://m.jaankarirakho.com/971 https://m.jaankarirakho.com/971 General Competition | History | (मध्यकालीन भारत का इतिहास) | मध्यकालीन भारतीय इतिहास का स्त्रोत

    (1) तारीख - उल - हिन्दः- यह किताब किताब - उल - हिन्द के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी रचना अलबरूनी द्वारा की गई है। इस पुस्तक को 11वीं सदी का दर्पण कहा जाता है।
    (2) ताज-उल-मासिरः- इसकी रचना हसन निजामी द्वारा की गई है । यह अरबी एवं फारसी दोनों भाषाओं में लिखीं गई है (1192-1228)
    (3) तारीख ए - फिरोजशाही:- इसके रचनाकार जियाउद्दीन बरनी है। (बलवन - फिरोजशाह तुगलक)
    (4) फुतूहात - ए - फिरोजशाही:- फिरोजशाह तुगलक (शासन प्रबंधन)
    (5) जैनुल अखबारः- अबी सईद ।
    इसमें ईरान के इतिहास का विवरण है । (महमूद गजनबी)
    (6) तबकात - ए - नासिरी:- मिन्हाज-उस-सिराज ( 1192 - 1260)
    (7) तारीख - ए - मसूदी:- अल बैहाकी (महमूद गजनबी)
    (8) किताब- उल - रेहलाः- इब्नबतूता (अरबी भाषा)
    (9) किताब-उल- यामिनीः- उत्बी (सुबुक्तगीन और महमूद गजनबी)
    (10) खजायन - उल - फुतूहः- अमीर खुसरो
    (11) फतवा - ए - जहाँदारी:- जियाउद्दीन बरनी (शरीयत के अनुसार मुस्लिम शासकों के लिए आदर्श राजनीतिक संहिता का वर्णन किया।)
    (12) तारीख - ए -सलातीन - ए - अफगान या तारीख - ए - शाही:- अहमद यादगार (लोदी वंश)
    (13) तुजुक - ए - बाबरी / बाबरनामा:- यह बाबर की आत्मकथा । बाबर ने इस कृति की रचना तुर्की भाषा में की थी । इस पुस्तक में बाबर ने 5 मुस्लिम राज्यों - दिल्ली, बहमनी, बंगाल, गुजरात व मालवा तथा हिन्दु राज्यों - विजयनगर व मेवाड़ का उल्लेख किया है।
    (14) हुमायूँनामा:- इस पुस्तक की रचना हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम ने फारसी भाषा में अकबर के कहने पर की थी ।
    (15) तारीख - ए - शेरशाही:- इसके लेखक अब्बास खाँ शेरवानी था। इससे शेरशाह के शासनकाल की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति की जानकारी मिलती है ।
    (16) तारीख - ए - रशीदी:-  इस पुस्तक की रचना मिर्जा हैदर दुगलात ने की थी । इस पुस्तक में 1540 ई. के कन्नौज के युद्ध का सजीव वर्णन है । 
    (17) तारीख-ए-फरिश्ता:- इसकी रचना मुहम्मद कासीम फरिश्ता द्वारा की गई है।
    (18) तबकात-ए-अकबरी:- इसकी रचना ख्वाजा निजामुद्दीन अहमद द्वारा की गई है।
    (19) अकबरनामा: - इसकी रचना अबुल फजल द्वारा की गई है। अकबर के शासनकाल में जानने हेतू यह सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक रचना है ।
    इसके प्रथम भाग में बाबर व हुमायूँ के शासनकाल का वर्णन है, दूसरे भाग अकबर के शासनकाल के प्रथम 46 वर्षो का वर्णन है, जबकि तीसरे भाग को आइन-ए-अकबरी कहा जाता है ।
    (20) तुजुक - ए - जहाँगीरी:- यह जहाँगीर की आत्मकथा है। इस रचना को पूर्ण करने में मौतबिंद खाँ और बक्सी को जाता है।
    (21) पादशाहनामा:- काजविनी
    (22) शाहजहाँनामाः- इनायत खाँ
    (23) बादशाहनामा:- अब्दुल हामिद लाहौरी
    (24) मुतखाब - उल --लुबाब :- खफी खाँ
    (25) आलमगीरनामा:- मिर्जा मुहम्मद काजिम
    (26) मासिर - ए - आलमगीरीः- साकी मुस्तैद खाँ
    (27) फूतूहात - ए - आलमगीरी:- ईश्वरदास नागर
    (28) नुस्खा - ए - दिलकुशाः- भीमसेन
    (29) तुगलकनामा:- अमीर खुसरों
    (30 ) नूहसिपहर:- अमीर खुसरों

    विदेशी यात्रियों का विवरण

    (1) अलबरूनी:- अलबरूनी ख्वारिज्म से महमूद गजनबी के साथ भारत आया था। इनका मूल नाम "अबू रैहान" था ।
    (2) इब्नबतूताः- यह अफ्रीका के मोरक्को का रहनेवाला था जो मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल के दौरान 1333 ई. में भारत आया था।
    मार्कोपोलो:- यह इटली के वेनिस का रहने वाला था । इन्होनें 13वीं शताब्दी ई. के दौरान दक्षिण भारत की यात्रा किया। इन्हें मध्यकालीन यात्रियों का राजकुमार कहा जाता है।
    (4) निकोलोकोण्टी:- यह इटली का रहने वाला था, जो 1420-21 के दौरान विजयनगर साम्राज्य की यात्रा पर आया था । इस समय वहाँ के शासक देवराय प्रथम थें। इन्होनें ट्रैवल्स ऑफ निकोलोकाण्टी नामक ग्रंथ की रचना की है।
    (5) अब्दुर्रज्जाक:- यह फारस का रहने वाला था जो 1442-43 ई. में देवराय द्वितीय के शासनकाल के दौरान विजयनगर साम्राज्य की यात्रा किया।
    (6) डोमिंगो पायस और बारबोसा:- ये दोनों पुर्तगाल के रहने वालें थें जिन्होनें कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान विजयनगर साम्राज्य की यात्रा किया।
    (7) फर्नाडिस नूनिजः- यह पुर्तगाली यात्री, इतिहासकार और घोड़े का व्यापारी था। इन्होनें अच्युतदेवराय के शासनकाल के दौरान विजयनगर साम्राज्य की यात्रा किया |
    (8) निकितिन (1470-1474):- यह रूसी घोड़ों का व्यापारी था। इसने मुहम्मद तृतीय के शासनकाल में बहमनी राज्य की यात्रा की ।
    (9) बार्थेमा ( 1502-08):- पुर्तगाली यात्री था जो विजयनगर की यात्रा पर आया था।
    (10) सीजर फ्रेडरिक (1567–1568):- पुर्तगाली यात्री सीतर फ्रेडरिक ने तालीकोटा के युद्ध के बाद विजयनगर साम्राज्य का भ्रमण किया ।
    (11) राल्फ फिच (1583-1591 ) :-  यह फतेहपुर सीकरी और आगरा पहुँचने वाला पहला अंग्रेज व्यापारी था। यह मुगल शासक अकबर के शासनकाल में भारत आया था।
    (12) विलियम हॉकिन्स (1608-1611):- यह जहाँगीर के रबार में ब्रिटिश राजा जेम्स प्रथम का राजदूत बनकर आया ।
    (13) सर टॉमस रो (1615-1618):- जहाँगीर के दरबार में आने वाले दूसरे शिष्टमंडल के नायक सर टॉमस रो अपने गुरू टैरी के साथ यहाँ लगभग तीन वर्ष तक रहा। माण्डू और अहमदाबाद की यात्रा के दौरान जहाँ के साथ रहा । "पूर्वी द्वीपों की यात्रा" नामक विवरण में इसने मुगल दरबार के षड्यंत्र एवं धोखाधड़ी का वास्तविक विवरण प्रस्तुत किया था । इसने मुगल सम्राट जहाँगीर से भारत में अंग्रेजी फैक्ट्री स्थापित करने का कानूनी अधिकार प्राप्त किया ।
    (14) पियेत्रो देला वाले:- यह इतावली यात्री 1622 ई. में जहाँगीर के काल में सूरत पहुँचा । इन्होनें भारतीय धार्मिक सहिष्णुता और सत्ती प्रथा का विवेचना की ।
    (15) फादर - एन्थाना मोंसेरातः- पुर्तगाली फादर मोंसेरात फादर एक्वाविका के साथ 1580 ई. में मुगल सम्राट अकबर के दरबार में आया था। फादर मोंसेरात को शाहजादा मुराद का शिक्षक नियुक्त किया गया था ।
    (16) विलियम फिंच:- यह हॉकिन्स के साथ 1608 ई. में जहाँगीर के शासनकाल में सूरत आया। केवल विलियम फिंच ही ऐसा यात्री हैं, जिसने अनारकली की दंतकथा का उल्लेख किया है।
    (17) पीटर मुण्डी (1630-1634 ) :- यह इटली यात्री शाहजहाँ के शासनकाल में भारत आया था। इसने शाहजहाँ के काल में पड़े अकाल का वर्णन किया है ।
    (18) फ्रांसिस्को पेलसार्ट:- यह डच यात्री था, जो जहाँगीर के काल में भारत आया था ।
    (19) बौप्टिस्ट ट्रैवर्नियर ( 1638-1663 ) :- यह फ्रांसीसी यात्री था, जिन्होनें 6 बार भारत की यात्री की । यह पेशे से जौहरी था । (हीरे का व्यापारी)
    (20) निकोलाओ मनूची (1653-1708) :- यह इटली का था। इसने भारत आकर शाहजादा द्वारा शिकोह की सेना में तोपची के रूप में नौकरी की। दाराशिकोह की मृत्यु के बाद इसने चिकित्सक का पेशा अपना लिया । "स्टोरियो दो मोगोर" नामक संस्मरण लिखा। इसे 17वीं सदी का दर्पण कहा जाता है।
    (21) फ्रांसिस वर्नियर ( 1656 - 1717 ) :- यह फ्रांसीसी यात्री पेशे से चिकित्सक था। इसने मुगल साम्राज्य का विशद इतिहास " Travel in the Mughal Empire" नाम से किया है।

    पुरातात्विक साक्ष्य

    1. कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद तथा अढ़ाई दिन का झोपड़ा कुतुबुद्दीन ऐवक
    2. कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबक (इल्तुतमिश ) ( F. S. T, सिकंदर लोदी, आर स्मिथ)
    3. लाल महल बलवन
    4. अलाई दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी
    5. उखा मस्जिद मुबारक शाह (राजस्थान)
    6. तुगलकाबाद का किला गयासुद्दीन तुगलक
    7. गयासुद्दीन का मकबरा गयासुद्दीन तुगलक
    8. फिरोजशाह कोटला दुर्ग F.S.T
    9. मोठ का मस्जिद सिकंदर लोदी के प्रधानमंत्री मियाँभुवा
    10. जहाँपनाह नगर M. B. T दिल्ली
    11. शेख निजामुद्दीन औलिया का मकबरा M. B. T दिल्ली
    12. अतारकिन का दरवाजा इल्तुतमिश (जोधपुर)
    13. सुल्तानगदी अथवा नासिरूद्दीन का मकवरा (दिल्ली) इल्तुतमिश
    14. जमैयत खाना मस्जिद और हजार खंभा महल अलाउद्दीन खिलजी
    15. आदिलाबाद का किला M.B.T दिल्ली

    मुगलकालीन इमारतें एक नजर में

    इमारतें स्थान शासक
    काबुली बाग में स्थित मस्जिद पानीपत बाबर
    जामी मस्जिद सम्भल (रूहेलखंड ) बाबर
    आगरे की मस्जिद आगरा (लोदी किले के भीतर) बाबर
    बाबरी मस्जिद आयोध्या बाबर के सेनापति मीर बकी
    फतेहाबाद की मस्जिद पंजाब (हिसार जिला) हुमायूँ
    दीनपनाह नगर (धर्म का शरण - स्थल) दिल्ली हुमायूँ
    पुराणा किला दिल्ली शेरशाह
    किला-ए-कुहना (पुराने किले के भीतर) दिल्ली शेरशाह
    शेरगढ़ या दिल्ली शेरशाही दिल्ली शेरशाह
    शेरसूर नगर कन्नौज को बरबाद करके शेरशाह
    रोहतासगढ़ का किला उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत शेरशाह
    शेरशाह का मकबरा सासाराम (बिहार) शेरशाह
    हुमायूँ का मकबरा दिल्ली हाजी बेगम ( अकबर की सौतेली माँ)
    आगरा का किला आगरा अकबर
    जहाँगीर महल आगरा अकबर
    अकबरी महल आगरा अकबर
    जहाँगीरी महल फतेहपुर सीकरी अकबर
    दीवाने - आम फतेहपुर सीकरी अकबर
    दीवाने-खास फतेहपुर सीकरी अकबर
    पंचमहल (हवामहल) फतेहपुर सीकरी अकबर
    तुर्की सुल्तान का महल फतेहपुर सीकरी अकबर
    मरियम महल फतेहपुर सीकरी अकबर
    जामा मस्जिद फतेहपुर सीकरी अकबर
    बुलन्द दरवाजा फतेहपुर सीकरी अकबर
    शेख सलीम चिश्ती का मकबरा फतेहपुर सीकरी अकबर
    इस्लामशाह का मकबरा (शेख सलीम चिश्ती का पौत्र) फतेहपुर सीकरी अकबर
    लाहौर का किला लाहौर अकबर
    इलाहाबाद में 40 स्तम्भों वाला किला ( अकबर कालीन अंतिम इमारत) इलाहाबाद अकबर
    अकबर का मकबरा सिकन्दरा जहाँगीर
    ऐतमादुद्यौला का मकबरा आगरा नूरजहाँ
    जहाँगीर का मकबरा शहादरा (लाहौर) नूरजहाँ

    शाहजहाँ कालीन आगरे की इमारते 

    दीवाने - आम आगरा शाहजहाँ
    दीवाने-खास आगरा शाहजहाँ
    मच्छी भवन आगरा शाहजहाँ
    शीश महल आगरा शाहजहाँ
    खास महल आगरा शाहजहाँ
    शाह बुर्ज आगरा शाहजहाँ
    नगीना मस्जिद आगरा शाहजहाँ
    मोती मस्जिद आगरा शाहजहाँ
    जामी मस्जिद आगरा जहाँआरा

    शाहजहाँ कालीन दिल्ली की इमारते 

    शाहजहाँनाबाद दिल्ली शाहजहाँ
    जामा मस्जिद दिल्ली शाहजहाँ
    लाल किला दिल्ली शाहजहाँ
    दीवाने - आम दिल्ली शाहजहाँ
    दीवाने-खास दिल्ली शाहजहाँ
    मोती महल दिल्ली शाहजहाँ
    हीरा महल दिल्ली शाहजहाँ
    रंग महल दिल्ली शाहजहाँ
    नहरे - बहिश्त दिल्ली शाहजहाँ
    ★ आगरे की मोती मस्जिद शाहजहाँ ने बनवाया था जबकि दिल्ली में लाल किले के अंदर मोती मस्जिद ( पुर्णतः संगमरमर) औरंगजेब ने बनवाया था ।

    लाहौर के किले में स्थित शाहजहाँ कालीन इमारते 

    दीवाने - आम लाहौर शाहजहाँ
    शाहबुर्ज लाहौर शाहजहाँ
    शीश महल लाहौर शाहजहाँ
    नौलखा महल लाहौर शाहजहाँ
    ख्वाब महल लाहौर शाहजहाँ

    औरंगजेब कालीन इमारते

    रबिया -उद्-दुर्रानी का मकबरा औरंगाबाद औरंगजेब
    बादशाही मस्जिद (बीबी का मकबरा) लाहौर औरंगजेब
    मोती मस्जिद (लाल किले के भीतर) दिल्ली औरंगजेब

    वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उत्तर

    1. तारीख-ए-उल-हिन्द की रचना की गई है-
    (a) हसन निजामी
    (b) अलबरूनी
    (c) जियाउद्दीन बरनी
    (d) अत्री सईद
    2. चचनामा अरबों की सिंध विजय की जानकारी का मूल्य स्त्रोत है। यह ग्रंथ मूलतः किस भाषा में लिखा गया है ?
    (a) अरबी 
    (b) फारसी
    (c) हिन्दी
    (d) संस्कृत
    3. दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी ताज-उल-मासिर नामक ग्रंथ से मिलती है इसकी रचना किसने की है ?
    (a) हसन निजामी
    (b) मिन्हाज - उल - सिराज
    (c) जियाउद्दीन बरनी
    (d) इनमें से कोई नहीं
    4. 'तूतीनामा' के रचनाकार कौन थे ?
    (a) फिरदौसी
    (b) बरनी
    (c) निजामुद्दीन औलिया
    (d) जिया नक्शवी
    5. खजायन-उल-फुतूह किसकी रचना है ?
    (a) जियाउद्दीन बरनी
    (b) अहमद बादगार
    (c) इन्नबतूता
    (d) अमीर खुसरो
    6. बादशाहनामा का लेखक निम्नलिखित में से कौन है ? 
    (a) अब्दुल हामिद लाहौरी
    (b) अबुल फजल
    (c) शाहजहाँ
    (d) सादुल्लाह खान
    7. 'प्रद्युम्नाभ्युदय' नामक नाट्क की रचना किसने की हैं ? 
    (a) रवि वर्मन 
    (b) जयदेव
    (c) विद्यानाथ
    (d) कल्हण
    8. 'आलमगीरनामा' नामक ग्रंथ का संकलन निम्नलिखित में से किसके द्वारा किया गया है ? 
    (a) गुलबदन बेगम 
    (b) मुहम्मद काजिम
    (c) जहाँगीर
    (d) अब्दुल कादिर बदायूँनी
    9. 'हम्मीर महाकाव्य' की रचना किसने की है ? 
    (a) जयदेव
    (b) भास्कराचार्य 
    (c) चंद्रबरदाई 
    (d) नयन चंद्रसूरी
    10. 'तारीख-ए-शेरशाही' की रचना किसने की है ? 
    (a) मलिक मो. जावसी 
    (b) शेरशाह सूरी
    (c) इस्लामशाह
    (d) अब्बास खाँ शेरवानी
    11. तुजुक -ए-बाबरी में बाबर ने किस मुस्लिम राज्य की चर्चा नहीं की है ? 
    (a) दिल्ली 
    (b) विजयनगर
    (c) बहमनी
    (d) बंगाल
    12. 'अकबरनामा' की रचना किसने की हैं ? 
    (a) अबुल फजल 
    (b) अकबर
    (c) फरिश्ता
    (d) निजामुद्दीन अहमद
    13. भारत की जलवायु, रहन-सहन, कृषि इत्यादि का वर्णन 'नूहसिपहर' नामक ग्रंथ में है यह ग्रंथ किसकी कृति है ?
    (a) अमीर खुसरो 
    (b) ईशामी
    (c) भीमसेन
    (d) आनंद भट्ट
    14. इब्नबतूता के संदर्भ में निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है ?
    (a) उसने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की कला एवं साहित्य के एक दयाशील संरक्षक के रूप में ख्याति से आकर्षित होकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया ।
    (b) वह मुल्तान और कच्छ के रास्ते दिल्ली पहुँचा
    (c) मुहम्मद-बिन-तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया।
    (d) श्रीलंका में भी उसे काजी का पद प्रदान किया गया ।
    15. कुतुबमीनार को चार मंजिला बनाने का श्रेय किसे जाता है ?
    (a) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (b) इल्तुतमिश
    (c) फिरोजशाह तुगलक
    (d) सिंकंदर लोदी
    16. राजस्थान के बयाना में 'उरवा मस्जिद' बनवाया गया है।
    (a) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (b) बलवन
    (c) अलाउद्दीन खिलजी
    (d) मुबारक शाह खिलजी
    17. भारत में मुस्लिम शासन - व्यवस्था का वास्तविक संस्थापक माना जाता है ?
    (a) अरबों को
    (b) तुर्कों को
    (c) मंगोलो को
    (d) मध्य यूरोपीय को
    18. मार्कोपोलो की भारत यात्रा (1271 ईसवी) ने यूरोप में किस कारण से अत्यधिक ख्याति प्राप्त की ?
    (a) उसके द्वारा भारत के लिए सुरक्षित मार्ग की खोज करने के लिए
    (b) उसके द्वारा भारत के अनेक राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण स्थापित करने के लिए बंध
    (c) पूर्वी देशों में व्यापारिक, धार्मिक और सामाजिक अवस्थाओं के विवरण के लिए
    (d) उपर्युक्त सभी
    19. प्राचीन भारत की अपेक्षा मध्यकालीन भारत का इतिहास अधिक सरलता से जाना जा सकता है, जिसका मुख्य कारण है ?
    (a) इतिहासकारों की बहुतायत
    (b) साहित्यिक स्त्रोतों की उपलब्धता
    (c) मृद्भाडों की बहुतायत
    (d) इनमें से कोई नहीं
    20. अरबों द्वारा सिंघ की विजय का इतिहास हमें किस ऐतिहासिक रचना से सर्वप्रथम मिलता है ? 
    (a) तुगलकनामा
    (b) रेहेला
    (c) अखबार अलसिन चलहिंद
    (d) चचनामा
    21. किस विदेशी यात्री को प्रकृति प्रेमी माना जाता है, जिसने अपनी रचनाओं में भी पशु-पक्षियों वनस्पति आदि का सुंदर वर्णन किया है ?
    (a) अलबरूनी
    (b) इब्नबतूता
    (c) मार्कोपोलो
    (d) अब्दुर्रज्जाक
    22. मुगलकाल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
    1. बादशाहनामा शाहजहाँ के काल में लिखी गई ।
    2. विलियम जोंस द्वारा अकबरनामा का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया।
    उपर्युक्त कथनों में कौन-सा /से सही है/ हैं ?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2 
    23. किसकी आत्मकथा के बारे में इतिहासकार लेनपुल ने लिखा है कि "उसकी आत्मकथा उन बहुमूल्य लेखों में से एक हैं, जो समस्त युगों में बहुमूल्य रही है।" 
    (a) फिरोजशाह तुगलक
    (b) हुमायूँ
    (c) बाबर
    (d) इनमें से कोई नहीं
    24. निम्नलिखित में से वह कौन-सी पहली रचना है जिसमें आज के अर्थ में इतिहास के बहुत से लक्षणों का बोध होता है ?
    (a) मूषिकवंश
    (b) हर्षचरित
    (c) विक्रमांकदेवचरित
    (d) राजतरंगिणी
    25. आदिलाबाद के किले का निर्माण किसने करवाया था ? 
    (a) मो. बिन तुगलक 
    (b) फिरोज शाह तुगलक
    (c) अलाउद्दीन खिलजी
    (d) इल्तुतमिश
    26. दिल्ली स्थित सुल्तानगढ़ी अथवा नासुरूद्दीन के मकबरे के निर्माण कर्त्ता कौन है ?
    (a) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (b) रजिया सुल्तान
    (c) इल्तुतमिश
    (d) बलवन
    27. शेख निजामुद्दीन औलिया का मकबरा स्थित है ?
    (a) अजमेर
    (b) जोधपुर 
    (c) उदयपुर
    (d) दिल्ली
    28. 'महाभारत' का बंगला भाषा में प्रथम अनुवाद किसने किया?
    (a) हुसेन शाह 
    (b) काशी राम दास
    (c) कृतिवास
    (d) मालधर बसु
    29. मुसलीम कानून की पुस्तक 'मुबईयान' की पद शैली में रचना किसने की है ?
    (a) गुलबदन बेगम 
    (b) बाबर
    (c) जहाँगीर
    (d) मुल्ला दाउद
    30. 'चु-फान-ची' नामक पुस्तक रचना है ?
    (a) इत्तिंग
    (b) फाहयान
    (c) हेवनसंग
    (d) चाऊ जू कुआ
    31. निकितिन किस साम्राज्य की यात्रा पर आया था ?
    (a) विजयनगर
    (b) बहमनी
    (c) मुगल
    (d) इनमें से कोई नहीं
    32. 'सीजर फेड्रीक' किस देश के यात्री थे ?
    (a) रूस
    (b) पुर्तगाल
    (c) इटली
    (d) फारस
    33. भारत आने वाला प्रथम अंग्रेज व्यापारी कौन था ?
    (a) राल्फ फिंच
    (b) विलियम हाकिस
    (c) सर टॉमस रो
    (d) मुजसेरा
    34. पिटर मुंडी कहाँ का यात्री था ?
    (a) पुर्तगाल
    (b) ब्रिटेन
    (c) इटली
    (d) स्पेन
    35. जहाँगीर की 'प्रेयशी' अनारकली की दंत कथा का उल्लेख करने वाला एक मात्र विदेशी यात्री कौन था ?
    (a) हॉकिंस 
    (b) एडवर टैरी
    (c) पीटर मुंडी
    (d) विलियम फिंच
    36. 'ट्रेवल्स इन इंडिया' किसकी रचना है ?
    (a) फ्रांसिस्को पेलसार्ट 
    (b) जीन बैप्टिस्ट ट्रैवर्नियर
    (c) निकोलो मनूची
    (d) फ्रांसिस वर्नियर
    37. सत्रहवी (17 वी) सदी का दर्पण भारत के किस ग्रंथ को कहा जाता है ?
    (a) ट्रेवल इन द मुगल एम्पायर
    (b) टेवल्स इन इण्डिया
    (c) स्टोरियो दो मोगोर
    (d) इनमें से कोई नहीं
    38. आगरे के मस्जिद का निर्माण किसने करवाया है ?
    (a) बाबर
    (b) हूमायूँ
    (c) अकबर
    (d) शाहजहाँ
    39. पंजाब के हिसार जिला में स्थित फतेहाबाद मस्जिद का निर्माण किसने करवाया है ?
    (a) बाबर
    (b) हूमायूँ
    (c) शेरशाह 
    (d) अकबर
    40. कन्नौज को बर्बाद करके शेरसूर नगर स्थापित किसने किया ?
    (a) हुमायू
    (b) बाबर
    (c) शेरशाह
    (d) अकबर
    41. 'फतेहपुर सीकरी' में बुलंद दरवाजा का निर्माण किसने करवाया है ?
    (a) अकबर
    (b) जहाँगीर
    (c) नूरजहाँ
    (d) शेरशाह
    42. आगरा के 'नगीना मस्जिद' का निर्माण किसने करवाया ?
    (a) अकबर 
    (b) जहाँगीर
    (c) शाहजहाँ
    (d) औरंगजेब
    43. दिल्ली में लाल किले के अंदर मोती मस्जिद किसने बनवाया ?
    (a) शाहजहां
    (b) जहाँगीर
    (c) औरंगजेब
    (d) अकबर
    44. 'महाभारत' का फारसी भाषा में अनुवाद किसने करवाया ? 
    (a) बदयूँनी
    (b) नकीब खाँ
    (c) अब्दुल कादिर
    (d) इनमें सभी
    45. अथर्ववेद का फारसी भाषा में अनुवाद किसने कराया ?
    (a) हाजी इबराहीम सरहिंदी
    (b) राजा टोडरमल
    (c) दाराशिकोह
    (d) अबुल फजल
    46. गणित की पुस्तक लीलावती का फारसी भाषा में अनुवाद किसने किया ?
    (a) फैजी
    (b) मौलाना शाह
    (c) फायदा खाँ
    (d) अब्दुल रहीम खाने खाना
    47. पुराणों का अध्ययन करने वाला प्रथम मुसलमान कौन था?
    (a) अबूबकर कूफी 
    (b) अलबरूनी
    (c) बरूद्दीन 
    (d) सिराज अफूक
    48. किताब - उल - हिंद का हिन्दी भाषा में अनुवाद किसने किया है ?
    (a) सचाऊ
    (b) एडवंड साची
    (c) रजनीकांत शर्मा
    (d) अशोक मेहता
    49. भारतीय में क्रमबंध इतिहास लिखने की परम्परा को विकसित करने का श्रेय प्राप्त है। 
    (a) तुर्क 
    (b) मुगल
    (c) अरबी
    (d) A और B
    50. अलबरूनी ने कितने प्रकार के चंडालो का उल्लेख किया है ? 
    (a) 5
    (b) 6
    (c) 8
    (d) 7
    51. इस्लामी दुनिया का सबसे बुद्धिमान मूर्ख किस बादशाह को माना जाता है ? 
    (a) मोहम्मद बिन तुगलक
    (b) फिरोजशाह तुगलक 
    (c) बलवन
    (d) ग्यासुद्दीन तुगलक
    52. प्रथम मुस्लीम कवि कौन था जिसने हिन्दी शब्दो का खुलकर प्रयोग किया
    (a) आमीर खुसरो
    (b) हुसैन सलीम
    (c) मिर्जा हैदर
    (d) इनमें से कोई नहीं
    53. "राजकीय मुकुट का प्रत्येक मोती गरीब किसान की अश्रुपूरित आँखो से गिरी हुई रक्त की घनीभूत बूंद है।" किसने कहा है ? 
    (a) अलबरूनी
    (b) अमीर खुसरो
    (c) निजामुद्दीन औलिया
    (d) इनमें से कोई नहीं
    54. निम्नलिखित में से कौन अमीर खुसरो की रचना नही है?
    (a) किरान-उस सदायन 
    (b) मिफता उल फुतुह
    (c) आशिफा 
    (d) तूर्तीनामा
    55. जियाउद्दीन बरनी ने किस सुल्तान के विषय में यह कहा कि उसके शासन काल में प्रत्येक हिन्दु का घर टकसाल बन गया था।
    (a) अलाउद्दीन खिलजी
    (b) मोहम्मद बिन तुगलक
    (c) फिरोजशाह तुगलक
    (d) ग्यासुद्दीन तुगलक
    56. मिन्हाज ने किस सुल्तान के विषय में यह कहा कि- "कोई भी राजा इतना दयालु सहानुभूति रखने वाला, विद्वानो तथा वृद्धो के प्रति श्रद्धालु राजा अपने प्रयासो से कभी साम्राज्य पर आसीन नही हुआ।”
    (a) इल्तुतमिश
    (b) कुतुबुद्दीन ऐबक
    (c) रजिया सुल्तान
    (d) बलवन
    57. शाहनामा के रचियता कौन है ?
    (a) अलबरूनी
    (b) फिरदौसी
    (c) फरूखी
    (d) उत्बी
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    Sun, 14 Apr 2024 09:00:13 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | गुप्तोत्तर काल https://m.jaankarirakho.com/970 https://m.jaankarirakho.com/970 General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | गुप्तोत्तर काल

    गुप्तोत्तर काल

    गुप्तोत्तर काल में गुप्त साम्राज्य के गुप्त अवशेष पर उत्तर भारत में कई सारे राजवंशों का उदय हुआ ।
    जैसे-
    (1) थानेश्वर (हरियाणा)- वर्धन वंश
    (2) कन्नौज (उत्तरप्रदेश)- मैखरी वंश
    (3) पल्लभी (गुजरात) - मैत्रक वंश
    (4) पंजाब- हुण वंश
    (5) बंगाल- चंद्रवंश
    (6) मालवा (मध्यप्रदेश ) - यशोधर्मन वंश
    (7) कामरूप / प्रांता ज्येतिषपुर (असम) - वर्मन वंश

    -: वर्धन वंश :-

    इस वंश की स्थापना पुष्सभूतिवर्द्धन ने किया और उन्होनें अपनी राजधानी थानेश्वर को बनाया । इस वंश के प्रथम प्रभावशाली शासक के रूप में प्रभाकर वर्ध्दन का वर्णन मिलता है । जिन्होनें सर्वप्रथम परमभट्टारक और महराजाधिराज जैसी उपाधि धारण किया। इनकी पत्नी यशोमति थी, जिनसे इन्हें दो पुत्र राजवर्द्धन और हर्षवर्द्धन तथा एक पुत्री राज्यश्री की प्राप्ति हुई ।
    राज्यग्री का विवाह कन्नौज के मोखरी वंश के शासक ग्रहवर्मा के साथ हुआ । ग्रहवर्मा की हत्या मालवा के शासक देवगुप्त ने कर दिया और राज्यग्री को बना लिया तत्पश्चात् राजवर्द्धन ने देवगुप्त की हत्या कर दिया लेकिन शंशांक के द्वारा धोखा से राज्यवर्द्धन मारा गया । अशोक कट्टर शैव धर्माम्वलंबी था। जिन्होनें बोध गया के बोधी वृक्ष को कटवा दिया ।

    -: हर्षवर्धन (606–647) :-

    हर्षवर्धन को अंतिम हिन्दू शासक माना जाता है तथा इनके निधन को भारतीय इतिहास के परिवर्तन बिन्दू की संज्ञा इतिहासकार V. A स्मिथ ने दिया ।
    हर्षवर्धन 606 ई. में गद्दी पर बैठा था। इनका शासन 647 ई. तक रहा। यह अंतिम हिन्दू साम्राज्य था जो पूरे उत्तर भारत पर शासन किया था । हर्षवर्धन को शीलादित्य के नाम से भी जाना जाता है । हर्षवर्धन ने 611 ई. में कन्नौज (उत्तरप्रदेश) को अपनी राजधानी बनाया। हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग 629 ई. में भारत की यात्रा पर आया था। ह्वेनसांग को यात्रियों में राजकुमार निती का पंडित तथा वर्तमान शाक्य मुनी के नाम से जाना जाता है। हवेनसांग बौद्ध धर्म से संबंधित विषय में जानकारी एकत्रित करने के लिए भारत आया था ।
    उन्हानें नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन और अध्यापन का काम किया था। हवेनसांग के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थें। आज भी हमलोग हवेसांग को उनकी रचना सी-यू-की के लिए याद करते हैं। इस ग्रंथ से हमें हर्षकालीन भारत के बारें में जानकारी मिलती है। हवेसांग ने हर्षवर्धन को वैश्य जाति का बताया है तथा हवेसांग ने आरोप लगाया है कि हर्षकालीन भारत में चोर और डाकुओं का बोलबाला है। हर्षवर्धन, पूरे उत्तर भारत के उपर शासन किया। इसके साम्राज्य में मात्र एक उत्तर भारतीय राज्य कश्मीर शामिल नहीं था । हर्षवर्धन बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय को मानता हर्षवर्धन प्रत्येक 5 वर्षो पर प्रयाग में एक धार्मिक सभा का आयोजन किया करता था जिसे महामोक्षपरिषद कहा जाता है। हर्षवर्धन के शासन काल में बौद्ध धर्म का एक सम्मेलन कन्नौज में हुआ जिसे 5वीं बौद्ध सम्मेलन का संज्ञा दिया जाता है । इस सम्मेलन में हर्षवर्धन ने बौद्ध भिक्षुओं को काफी दान में दिया था। 
    हर्षवर्धन पूरे उत्तर भारत को जीतने के बाद दक्षिण भारत को जीतने की चेष्टा किया इसी क्रम में हर्षवर्धन नर्मदा नदी के पर हर्षवर्धन और चालुक्य वंशी शासक पुलकेशीन द्वितीय के बीच युध् हुआ। जिसमें हर्षवर्धन को पराजय सामना करना पड़ा। इस युद्ध के विषय में जानकारी हमें एहोल प्रस्सति अभिलेख से मिलती है। जिसकी रचना पुलकेशीन द्वितीय के राजकवि रविकृति ने संस्कृत भाषा में किया ।
    हर्षवर्धन एक विद्वान शासक था जिन्होनें प्रिय-दर्शिका, नागानंद और रत्नावली नामक ग्रंथ की रचना किया। इनके दरबारी कवि वाणभट्ट था जिन्होनें हर्षचरित, कादम्बरी नामक ग्रंथ की रचना किया। जिससे हमें हर्षकालीन भारतीय साम्राज्य की जानकारी प्राप्त होती है। इनके शासनकाल में मथुरा सुती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केंद्र था ।
    हर्ष के प्रशासन में अवन्ति युद्ध एवं शांति का अधिकारी था। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अधिकारीः-
    (1) सिघानंद - सेनापति 
    (2) कुन्तल - अश्वसेना का प्रधान
    (3) स्कंदगुप्त- हस्तसेना का प्रधान
    (4) सामत महाराज - नागरिक प्रशासन का प्रमुख
    हर्ष 641 ई. में अपना दुत चीन भेजा तत्पश्चात् 643 और 645 ई. में चीनी दुत भारत की यात्रा पर आया। हर्ष का निधन 647 ई. में हो गया इसके निधन को भारतीय इतिहास में एक परिवर्तन बिंदु की संज्ञा दी जाती है । हर्ष का कोई अपना पुत्र नहीं था । उसके उत्तराधिकारी के रूप में अजून नामक स्थनीय अधिकारी का वर्णन मिलता है। जो काफी अयोग्य था इसी कारण कुछ ही दिनों के पश्चात् वर्धन वंश का पतन हो गया।
    नोट- पाँचवी बौद्ध सम्मेलन कन्नौज (रप्रदेश) हुआ था ।
    शशांक की मृत्यु 616 ई. में हो गई।
    चीनी यात्री हवेनसांग बताया है कि हर्ष की राजकीय आय चार भागों में बाँटी जाती थी । एक भाग राजा के खर्चे के खर्चे के लिए रखा जाता था, दूसरा भाग विद्वानों के लिए, तीसरा भाग पदाधिकारियों के लिए और चौथा भाग धार्मिक कार्यो के लिए । उसने यह भी बताया है कि राज्य के मंत्री और ऊँचे अधिकारियों को जागीर दी जाती थी । लगता है, अधिकारियों को वेतन और पुरस्कार के रूप में भूमि देने की सामंती प्रथा हर्ष ही शुरू की ।

    -: दक्षिण भारत का इतिहास :-

    -: संगम काल (100 ई से 250 ई.) :-

    संगम का अर्थ सभा, परिषद या संगोष्ठि होता है। यह एक तमिल भाषा का शब्द है।
    संगम काल के विषय में जानकारी हमें संगम साहित्य से मिलती है जिसकी रचना तीन संगमों के दौरान हुआ ।

    प्रथम संगम

    • स्थल- मदुरै (तामिलनाडु)
    • अध्यक्ष- अंगरत्त ऋषि
    • सदस्य - 89
    • अवधि - 4400 वर्ष
    • उपलब्ध ग्रंथ— नहीं है । (क्योंकि मदुरै शहर समुद्र में विलीन हो जाने के कारण )

    द्वितीय संगम

    • स्थल- कटापुरम
    • अध्यक्ष– अगत ऋषि लेकिन बाद में उनका शिष्य तोलका - पिय्यर बना ।
    • सदस्य- 59
    • अवधि - 3700
    • उपलब्ध ग्रंथ— तौलकापियम, जो एक तमिल व्याकरण ग्रंथ है जिसकी रचना तोलकापियर द्वारा किया गया है।

    तृतीय संगम

    • स्थल- उत्तरी मदुरै
    • अध्यक्ष- नककीरर
    • सदस्य- 49
    • अवधि - 1850
    तीनों संगमों को संरक्षण पाण्ड्य शासकों ने दिया था ।
    संगम साहित्य से ज्ञात होता है कि दक्षिण में आर्य सभ्यता का प्रसार ऋषि अगस्त ने किया । इनका जन्म काशी में हुआ था। इन्हें “तलिल साहित्य के जनक" के रूप में जाना जाता है ।
    तमिल प्रदेश के विषय में जानकारी हमें तमिल महाकाव्य से मिलती है ।
    (1) शिल्पादिकारमः-
    • रचियेताः- इलांगेअदिगंल (चेर शासक शेन गुट्टबन का भाई) 
    ♦ इससे हमें (पाजेबा पायल) की कहानी का विवरण मिलता है ।
    • नायक:- केवलम् (वसाय)
    • सहनायक:- नडुजेलियन
    • नायिकाः– कण्णगी (कन्या)
    • सह–नायिकाः- माधवी (वेश्या)
    इसकी कथा कावेरीपट्टनम से संबंधित है।
    शिल्पादिकारम् को तमिल साहित्य का इलियड माना जाता है। इस ग्रंथ का संबंधता बौद्ध धर्म से है ।
    (2) मणिमेखलै (मणियुक्त कंगन):-
    • लेखकः- सीतलैसतनार
    • नायिकाः- मणिमेखलै (माधवी की पुत्री (बौद्ध भिक्षुणी बन गई ) (माधवी की भी पुत्री)
    • नायक:- उदयन कुमार / अक्षय कुमार
    यह ग्रंथ भी बौद्ध ग्रंथ से संबंधित है।
    इस ग्रंथ को तमिल साहित्य का ओडीसी कहा जाता है।
    (3) जीवक चिंतामणिः-
    • लेखक:- तिरूतकक देवर (जैन सन्यासी)
    • नायक:- जीवक
    • नायिकाः- चिंतामणि 
    यह जैन धर्म से प्रभावित ग्रंथ है । 

    -: संगमकालीन राजनीतिक इतिहास:-

    संगमकाल नें तीन महत्वपूर्ण राज्य का विवरण मिलता है ।
    (1) चेर (2) चोल (3) पाण्डय
    (1) चेर:-
    चेर शब्द की उत्पत्ति तमिल शब्द चेरल से हुई है जिसका अर्थ पर्वतीय देश होता है । चेर राजा चेरतलन ( पर्वतीय देश का स्वामी) कहलाते थें ।
    संगम कालीन राज्यों में सबसे प्राचीन चेर राज्य था जो वर्तमान केरल में स्थित है। चेर राज्य के बारें में पहली जानकारी ऐतरेय ब्राह्मण में मिलती है। इसमें चेर के लिए चेरापदा नाम आया है।
    चेर राज्य की राज्यधानी वंधि (केरल) थी जबकि राजकीय चिन्ह तीर-धनुष था। इसका दो महत्वपूर्ण बंदरगाह (1) मुजरिस ( 2 ) तोण्डी था ।
    चेर राज्य का संस्थापक उदयिन जेरल था। (इसका काल लगभग 130 ई माना जाता है। इनके विषय में कहा गया है कि इन्होनें महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले योद्धा को भोजन करवाया इसी कारण इसे महाभोजन उदयिन जेरल की उपाधि दी गई है।
    चेर वंश के सबसे महान शासक के रूप में शेनगट्टवन या धर्म परायण गुट्टवन का विवरण मिलता है। इसे लाल चेर के नाम से भी जाना जाता है। इन्होनें सती पुजा या पत्नी पुजा की शुरूआत किया तथा कण्णगी के मंदिर का निर्माण करवाया । चेर शासक आदिग इमान को दक्षिण में गन्ने की खेती प्ररंभ का श्रेय प्राप्त है। अंतिम शासक सैईयै ( 210 ई)
    मामुलनार ने उल्लेख किया है कि पनदोंग ने अपनी केस गंगा की धारा में छिपा रखा था।

    -: पाण्डय वश :-

    पाण्ड्य का शाब्दिक अर्थ प्राचीन प्रदेश होता है। इस राज्य का वर्णन सर्वप्रथम मेगास्थनीज के ग्रंथ में माबर नाम से किया गया है। मेगास्थनीज के अनुसार यह राज्य मोतियों के लिए प्रसिद्ध था। पाण्ड्य राज्य की राजधानी मदुरै। इसका प्रतीक चिन्ह मछली था। 
    प्रमुख शासक:-
    पाण्ड्य वंश का संस्थापक नेडियोन था। नेडियोन का अर्थ लम्बा आदमी होता है। नेडियोन ने पहरूली नदी को अस्तित्व को प्रदान किया तथा समंद्र पुजा प्रारंभ किया ।
    इस वंश का सबणे महान शासक नेडुजेलियन था । इन्होनें तलैया लंगानम् ( 290 ई.) के युहद में चेर और चोल राजा को पराजित किया। चेर शासक शेय (हाथ की आँख वाला) को पाण्ड्य बंदीगृह में डाल दिया । नककीरर जैसे विद्वान इनके दरबार में रहते थें। इन्होनें रोमन सम्राट अगस्टस के दरबार में अपना दूत भेजा था ।
    इस वंश का अंतिम शासक नालिलवकौडन था ।

    -: चोल :-

    संगमकालीन राजवंशों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण चोल राजवंश था। चोल राज्य वर्तमान आंध्रप्रदेश और तामिलनाडु के क्षेत्र में स्थित था ।
    चोल राज्य का राजकीय चिन्ह बाघ था। इस राजवंश के राजधानी के रूप में उड़ैयूर या तंजाबूर का विवरण मिलता है। इसकी सबसे प्रसिद्ध बंदरगाह कावेरोपटनम थी जिसे पुहार भी कहते थें ।
    संस्थापकः- इलनजेतचेन्नी
    सबसे महान शासक- कारिफाल ने बेन्नी के युद्ध में 11 राजाओं के संगठन पराजित किया साथ ही ही कारगील ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त कर वहाँ से 1.50 लाख युद्ध बंदियों को पकड़कर भारत लाया और उसी के सहायता से कावेरी पट्नम बंदरगाह का निर्माण करवाया ।
    रूद्रण- पहिनपल्लै
    करिकाल के निधन के साथ ही चोल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया ।
    संगम साहित्य को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
    (1) पत्थुधातुः-
    यह 10 संक्षिप्त पदों का संग्रह है। इन संक्षिप्त पदों में पाण्ड्य राजा नेडुजेलियन और चोल राजा कारगिल के विषय में जानकारी मिलती है । (दूसरी सदी)
    (2) इत्युथौक:-
    यह आठ कविताओं का संग्रह है।
    (3) पदिनेनकीलकन्कुः-
    यह 18 छोटी कविताओं का संग्रह है। इन कविताओं में तिरुवल्लुवर द्वारा रचित कुरल या तिरुककरल उत्कृष्ट रचना है। इस रचना में राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, आचारशास्त्र और प्रेम जैसे विषय सम्मिलित है ।
    तमिल में प्रेम संबंधी मानवीय पहलू पर आधारित रचनाओं को "आगम' तथा राजाओं की प्रशंसा, साताजिक जीवन, नैतिकता, वीरता संबंधी रचनाओं को "पुरम" कहा जाता था ।
    संगम युग में उड़ैयूर कपास के व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र होने के कारण विख्यात था ।
    तिरूवल्लुवर की रचना "कुरल" को तमिल भूमि का बाईबिल कहा जाता है। इसे तमिल ग्रंथों में लघुवेद भी कहा जाता है।
    प्राचीनतम तमिल देवता मरूगन कर्तिकेय रेंद के समान थें ।

    -: चोल साम्राज्य (9वीं से 12वीं शताब्दी) :-

    9वीं शताब्दी ई. के मध्य में दक्षिण भारत में चोल सम्राज्य की स्थापना विजयालय ने किया इसीलिए विजयालय को चोल साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक कहा जाता है।
    चोल शासक पल्लवों के सामंत थें।
    विजयालय (850-575) ने तंजौर (तामिलनाडु) को अपनी राजधानी बनाया ।
    विजयालय देवी दुर्गा का उपासक था । उन्होनें ने तंजौर में देवी दुर्गा का एक मंदिर बनवाया तथा स्वयं नरकेसरी की उपाधि धारण किया।
    अगले शासक आदित्य प्रथमं ( 875-907 विजयालय का पुत्र)
    आदित्य प्रथम (875–907):-
    इन्होनें पल्लव शासक से तोण्डमण्डलम् का क्षेत्र छीन लिया और कोदण्डराम की उपाधि धारण किया।
    अगले शासक - परातक प्रथम (907 - 953 आदित्य प्रथम का पुत्र)
    परातक प्रथम (907-953):-
    इन्होनें पाण्ड्य शासक से मदुरै छीन लिया एवं मदरईकोण की उपाधि धारण किया। इसके वाद मुडरादित्य, परान्तक द्वितीय और उत्तम चोल वंश के शासक हुए।
    राजराज प्रथम (985–1014) - परान्तक द्वितीय का था:
    इसे अरिमोलिवर्मन के नाम से भी जाना जाता है, जो कि चोल साम्राज्य का प्रथम महान शासक था इन्होनें साम्राज्य विस्तार के लिए लौह एवं रक्त की नीति अपनाया । राजराज प्रथम ने चेर शासक, पाण्ड्य शासक और श्रीलंका के राजा महेंद्र पंचम को पराजित कर अपने साम्राज्य का काफी विस्तार किया ।
    राजराज प्रथम श्रीलंका पर आक्रमण कर लगभग आधा उत्तरी श्रीलंका का विजय कर उसे अपने साम्राज्य में शामिल कर लिया तथा इस जीते हुए क्षेत्रों का नाम मामुण्डी चोल-मंडलम रखा, इसकी राजधानी पोलो न्नरूवा (श्रीलंका) को बनाया जो वर्तमान में जननाथ मंगलम् के नाम से जाना जाता है। राजराज प्रथम शैव धर्म को मानता था । इन्होनें शिवपांदशेखर, मामुण्डीचोलदेव जैसी उपाधियाँ धारण किया ।
    राजराज प्रथम ने अपनी राजधानी तंजौर में एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण करवाया जिसे वृहदेश्वर शिव मंदिर या राजराजेश्वर शिव मंदिर के नाम से जाना है ।
    राजेन्द्र प्रथम ( 1014-1044) ( सबसे महान )
    पूरे श्रीलंका को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाया ।
    बंगाल के उपर आक्रमण  किया | (महिपाल भाग गया ।)
    बंगाल विजय के उपलक्ष्यः-
    गंगईकोडचोलदेव की उपाधि धारण किया । तंजौर के बगल में गंगईकोंडचोलपुरम नामक नगर की स्थापना किया तथा तथा उसे अपनी राजधानी बनाया। गंगईकोंडचोलपुरम में एक तालाब का निर्माण करवाया जिसमें गंगा दी के जल को डाला गया इसलिए इस तालाब को चोलगंगम के नाम से जाना जाता है ।
    गडारकोंड की उपाधि धारण किया। 
    राजेंद्र शैव ध क साथ ही चोल साम्राज्य का पतन होने लगा।
    ♦ विजयालय द्वारा स्थापित चोल चोल वंश के अंतिम शासक- ( 1070 - हत्या जनता ) 
    अधिराजेंद्र इनसे पूर्व राजेंन्द्र द्वितीय इनका राज्याभिषेक युद्ध भूमि में हुआ ।
    वेंगी के चालुक्य वंश के राजेद्र द्वितीय को कुलातुंग प्रथम (1070-1120) के नाम से गद्दी पर बैठाया ।
    अंतिम शासक- राजेंद्र तृतीय (1279 में पाण्ड्य शासक की अधीनता स्वीकार लिया)

    -: चोल प्रशासन :-

    चोल काल में दो प्रकार के शासन व्यवस्था के विषय में जानकारी मिलती है।
    (1) केंद्रीय प्रशासन (2) स्थानीय स्वशासन या ग्राम व्यवस्था
    (1) केंद्रीय प्रशासन:-
    चोलवंश में राजतंत्रात्मक एवं वंशानुगत शासन व्यवस्था का प्रचलन था ।
    राजा को परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होता था जिसे उडनकुट्टन कहते थें ।
    चोल काल में दो प्रकारी के अधिकारी वर्गो का विवरण मिलता है।
    (1) परून्दरम्ः– यह उच्च स्तरीय अधिकारी होता था ।
    (2) सेरून्द्ररम्:- यह निम्नस्तरीय अधिकारी होता था ।
    पूरा साम्राज्य प्रांत में बँटा था ।

    • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव था ।
    गाँव दो प्रकार का होता था-
    (1) बड़ा गाँव' - तनयूर
    (2) छोटा गाँव - सिरूर
    (2) स्थानीय स्वशासन या ग्राम प्रशासनः-
    चेल कालीन व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण विशेषता स्थानीय स्वशासन या ग्राम प्रशासन था। चोल काल में तीन प्रकार के स्थानीय स्वशासन का विवरण मिलता है। I
    (1) ऊर:-
    इस काल में ऊर सर्वसाधारण के गाँव का संगठन था अर्थात जिस गाँव में सभी जाति के लोग रहते थें ।
    (2) सभा या महासभाः-
    सभा या महासभा ब्राह्मणों के गाँव का संगठन था ।
    (3) नगुरम:-
    इसका गठन व्यापारिक और औद्योगिक क्षेत्र में होता था ।

    -: चोल कालीन संस्कृति और साहित्य:-

    चोल काल में सर्वाधिक शासकों ने शैव धर्म को अपनाया। हलांकि इस समय शेव धर्म, वैष्णव धर्म, बौद्ध धर्म का भी व्यापक विकास हुआ ।
    चोल शासक राजराज प्रथम ने तंजौर में वृहदेश्वर शिव मंदिर का निर्माण करवाया जिसे इतिहासकार पर्सी ब्राउन ने भारतीय वस्तुकला का निकर्ष कहा ।
    राजराज प्रथम द्वारा निर्मित गंगईकोंडचोलपुरम के वृहदेश्वर मंदिर को पर्सी ब्राउन ने सगीत की भाँति संवेदना उत्पन्न करने वाली महान कलात्मक निर्माण कहा है।
    इस समय की सबसे उत्तम मुर्ति नटराज शिव की मूर्ति है जो ताँबे की बनी हुई है। ये मुर्तियाँ प्रायः चतुर्भुज है।
    चोल काल में साहित्य कला के क्षेत्र में विकास हुआ। सर्वाधिक विकास तमिल भाषा का हुआ जो है-
    (1) तमिल रामायण :- कवि कंबल
    (2) नलबेम्बाः– पुगलेन्दी, आ.........

    -: पत्लव वंश (575-897 ई) :-

    पल्लव का संस्कृत भाषा में अर्थ कांमल लता या पत्ता होता है, जबकि तमिल भाषा में इसका अर्थ डाकू होता है ।
    पल्लव वंश का वास्तविक संस्थापक सिंहविष्णु को माना जाता है। जो वैष्णव धर्म को मानता था । इन्होनें अपनी राजधानी काँची (तामिलनाडु) को बनाया ।
    सिंहविष्णु की राजसभा में संस्कृत के विद्वान भारवि रहता था जिन्होनें किराताजुनियम नामक ग्रंथ लिखा !
    सिंहविष्णु का उत्तराधिकारी उसका पुत्र महेंद्रवर्मन प्रथम ( 600 - 630 ई.) हुआ। ये एक महान निर्माता, कवि एवं संगीतज्ञ शासक था । महेंद्रवर्मन प्रथम ने " मत्तविलास प्रहसन" नामक नाटक की रचना किया।
    प्रसिद्ध संगीतज्ञ रूद्राचार्य से महेंद्रवर्मन प्रथम ने संगीत की दीक्षा ली।
    महेंद्रवर्मन प्रथम जैन धर्म को मानता था लेकिन अरपार नाममक शैव संत के प्रभाव में आकर शैव धर्म को अपना लिया ।
    महेंद्रवर्मन प्रथम और चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय के बीच पुल्लूर का युद्ध हुआ जिसमें पुलकेशिन द्वितीय विजयी हुए और महेंद्रवर्मन प्रथम मारा गया ।
    महेंद्रवर्मन प्रथम का उत्तराधिकारी नरसिंहवर्मन प्रथम (630-668 ई.) हुआ। इन्हीं के शासनकाल में चीनी यात्री हवेनसांग काँची की यात्रा किया था।
    काशाककुटी ताम्रपत्र और मद्यवंश के अनुसार पल्लव राजवंश के शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने श्रीलंका के मानवर्मा को सहायता देने के लिए एक शक्तिशाली नौसेना सिंहल भेजी ।
    नरसिंहवर्मन प्रथम ने बादामी के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय को पराजित कर वतापीकोण्ड की उपाधि धारण किया तथा "महामल्ल" की भी उपाधि धारण किया ।
    नरसिंहवर्मन प्रथम के काल में ही महाबलिपुरम् (तामिलनाडु) में एकाश्म मंदिर का निर्माण हुआ जिसे रथ मंदिर कहा जाता है ।
    पल्लव वंश के सबसे महान शासक के रूप में नरसिंहवर्मन द्वितीय का विवरण मिलता है । (700-728 ई.) इनके दरबार में संस्कृत विद्वान दंडी रहता था जिन्होनें दशकुमार चरत, काव्य दर्शन की रचना किया ।
    नरसिंहवर्मन द्वितीय ने राजासिंह, आगमप्रिय, शंकर भक्त जैसी उपाधि धारण किया है
    अरब आक्रमण के समय पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय था ।
    नरसिंहवर्मन द्वितीय ने काँची में कैलाशनाथ मंदिर तथा महाबलिपुरम में शोर मंदिर का निर्माण करवाया।
    वैलूरपाल्यम् अभिलेख में दंतिवर्मन को विष्णु का अवतार कहा गया है।
    इस वंश के अंतिम शासक अपराजितवर्मन था जिसे चोल शासक आदित्य प्रथम ने पराजित कर पल्लव क्षेत्र को चोल साम्राज्य में शामिल कर लिया ।

    -: राष्ट्रकूट (752-973) :- 

    राष्ट्रकूट का शाब्दिक अर्थ देश का प्रधान होता है।
    दक्षिण में राष्ट्रकूटों का शासन पाल और प्रतिहार वंशों के शासन का समकालीन था ।
    इस वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग था जिन्होनें वानापी के चालुक्य वंश के शासक की निवर्मन द्वितीय को पराजित कर कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के क्षेत्र में चालुक्य वंश के स्थान पर राष्ट्रकूट वंश का शासन की स्थापना की ।
    इन्होनें अपनी राजधानी मात्यखेत / मालखंड (कर्नाटक) को बनाया ।
    राष्ट्रकूट की भाषा कन्नड़ थी |
    दंतिदुर्ग ने मालवा पर अभियान किया और (752 - 758) हिणगर्भ (महादान) यज्ञ किया। जिसमें प्रतिहारों ने द्वारपाल की भूमिका निभाया ।
    इसके उत्तराधिकारी के रूप में कृष्ण प्रथम (758-773) का विवरण मिलता है। जिन्होनें एलोरा (महाराष्ट्र) के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण करवाया जो बेसर शैली में निर्मित शिव मंदिर है ।
    ध्रुव ( 780-793):-
    इसे धारावर्ष के नाम से भी जाना जाता है। ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का शासक था जिसने कन्नौज पर अधिकार करने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया ।
    त्रिपक्षीय संघर्ष:-
    कन्नौज (उत्तरप्रदेश) को लेकर पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट के मध्य लगभग 100 वर्षो तक संघर्ष चला जिसकी शुरूआत प्रतिहार शासकों ने किया। इसमें सर्वाधिक पराजय का सामना पाल शासकों को करना पड़ा। सर्वाधिक बार विजयी राष्ट्रकूट को मिली लेकिन अंतिम रूप से विजयी प्रतिहार शासकों की हुई ।
    अमोघवर्ष (814–878):-
    इस वंश का सबसे महान शासक था जो जैनधर्म को मानता था । इन्होनें कन्नड़ भाषा में कविराजमार्ग नामक ग्रंथ की रचना किया ।
    आदिफरान के रचनाकार जिनसेन, गणितजार संग्रह के रचियेता महावीराचार्य एवं अमोघवर्ष के लेखक सकतायना अमोघ्वर्ष के दरबार में रहते थें। अमोघवर्ष तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर प्राण का त्याग किया ।
    इन्द्र तृतीय (914–922):-
    अरब यात्री अलमसूदी इसी के काल में भारत आया ।
    कृष्ण तृतीय (939-968):-
    इस वंश का अंतिम महान शासक था ।
    तककोलम् का युद्ध (949):-
    यह युद्ध राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय एवं चोल शासक परातक प्रथम के बीच हुआ जिसमें कृष्ण तृतीय की जीत हुई ।
    कृष्ण तृतीय ने रामेश्वरम् में विजय स्तंभ एवं देवालय का निर्माण करवाया। इनकी राजसभा में कन्नड़ भाषा का कवि पोन्न निवास करता था, जिसने शांतिपुरान की रचना किया ।
    अंतिम शासकः-
    इस वंश के अंतिम शासक के रूप में कर्क द्वितीय (974) का वर्णन मिलता है। जिसे कल्याणी के चालुक्य शासक तैलव द्वितीय ने पराजित कर चालुक्य वंश की स्थापना किया ।
    12वीं सदी के राष्ट्रकूट वंश के 5 शिलालेख कर्नाटक राज्य में मिले हैं।
    राष्ट्रकूट काल में कन्नड़ भाषा के तीन महान विद्वान पम्प, पोन्न, रन्ना का विवरण मिलता है इसे कन्नड़ भाषा का त्रिरत्न कहा जाता है ।
    एलोरा गुफाओं का निर्माण राष्ट्रकूटों ने कराया था । एलोरा में गुफाओं व शैलकृत मंदिरों का संबंध हिन्दुओं, बौद्धों एवं जैनों से है।

    -: चालुक्य वंश (550-757 ई) :-

    चालुक्यों की कई शाखाओं वातापी के चालुक्य, वेगी के चालुक्य तथा कल्याणी का चालुक्य का विवरण मिलता है। इनमें से वातापी का चालुक्य चालुक्यों की प्राचीनतम शाखा है। जिसे पश्चिमी चालुक्य के नाम से भी जाना जाता है ।
    चालुक्यों की मुल शाखा का उदय स्थल वातापी (आधुनिक बादामी) कर्नाटक में था । उसे स्थल बदामी होने के कारण इसे बादामी का चालुक्य कहा जाता है ।
    वातापी का चालुक्य (550-757 ) :-
    • वातापी के चालुक्य वंश के संस्थापक जयसिंह थें।
    • चालुक्यों की राजधानी वातापी (आधुनिक बादामी)
    • कीर्तिवर्मन प्रथम ( 566 - 597) को वातापी का प्रथम निर्माता कहा जाता है।
    • इस वंश के सबसे महान शासक के रूप में पुलकेशिन द्वितीय ( 609-642 ) का विवरण मिलता है। इन्होने महाराजाधिराज, परमभागवत् जैसी उपाधि धारण की थी ।
    • पुलकेशिन द्वितीय के विषय में जानकारी हमें एहोल अभिलेख से मिलती है, जिसकी रचना उसके दरबारी कवि रवीकीर्त्ति ने किया था।
    • पुलकेशिन द्वितीय ने उत्तर भारत के शासक हर्षवर्धन को नदी के तट पर 618 ई में युद्ध में हराया ।
    पल्लव वंशी शासक नरसिंहवर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को 642 ई. में हराया और उसकी हत्या कर दिया साथ ही वातापी कोंड की उपाधि धारण किया ।
    अंतिम शासक के रूप में कीर्तिवर्मन द्वितीय का विवरण मिलता है जिसकी हत्या दंतिदुर्ग ने कर दिया और वातापी के चालुक्य वंश के स्थान पर राष्ट्रकूट वंश की स्थापना किया।

    -: कल्याणी के चालुक्य :-

    कल्याणी के चालुक्य वंश के संस्थापक के रूप में तैलप द्वितीय का विवरण मिलता है। जिन्होनें राष्ट्रकूट के अंतिम शासक कर्क द्वितीय को पराजित कर चालुक्य वंश की स्थापना किया।
    इनकी राजधानी मान्यखेत थी । कलांतर में सोमेश्वर प्रथम (1043-1068 ) जो 1043 ई. में शासक बना। अपनी राजधानी मान्यखेत से कल्याणी में स्थानांतरिक की । सोमेश्वर प्रथम चोल शासकों से लगातार पराजित होने के कारण तुंगभद्रा नदी में डूबकर आत्म हत्या कर ली ।

    विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126)

    यह इस वश का सबसे महान शासक था। इनके राजकवि विल्हन थें जिन्होनें विक्रमांक देव चरित्र की रचना किया एवं विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरा की रचना किया।
    अंतिम शासक सोमेश्वर षष्ठ (1181-1189 ई.) था।

    बेंगी के चालुक्य

    इस वंश के संस्थापक विष्णुवर्धन इनकी राजधानी बेंगी (आंध्रप्रदेशवंश का सबसे महान शासक विजयादित्य तृतीय था। इसके सेनापति पंडरंग था।

    -: पाल वंश (750–1150) :-

    ग्रंथः
    • दायभाग ( हिन्दुविधि):- जीमूतवाहन
    • रामचरितः– संध्याकर नंदी
    • लौकेश्वर शतक:- वज्रदत्त
    पाल शासक बौद्ध का अनुयायी था ।
    संस्थापक:- गोपाल (75C-770)
    गोपाल ने ओदितपुरी (बिहार) में बौद्ध मठ का निर्माण करवाया ।
    उत्तराधिकारी इसका पुत्र धर्मपाल हुआ जो (770-810) ई. तक शासन किया। धर्मपाल कन्नौज में रहें संघर्ष में उलझा रहा। इन्होनें कन्नौज के शासक इंद्रायुध को पराजित कर अपने संरक्षण में चक्रायुद्ध को वहाँ शासक बनाया |
    गुजराती कवि सोड्दल ने इन्हें उत्तरापथ स्वामी की उपाधि दिया।
    विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा सोनपुर महाविहार (वर्तमान बंगलादेश) की स्थापना करवाया।
    पाल वंश का अगला शासक देवपाल ( 810-850 ई.) हुआ। इन्होनें ही मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया।
    इनके शासनकाल में अरब यात्री सुलंगान भारत आया था। इन्होनें पाल वंश को रूहमा कहकर संबोधित किया।
    देवपाल के पश्चात् विग्रहपाल, नारायणपाल, राज्यपाल, गोपाल द्वितीय, विग्रहपाल द्वितीय शासक बनें।
    महिपाल प्रथम ( 978-1038 ई.) को पालवंश का द्वितीय संस्थापक माना जाता है क्योंकि इनके शासन काल में पालों की शक्ति पुर्नस्थापित हुई ।
    महिपाल ने बौद्ध भिक्षु अनिशा के नेतृत्व में एक धर्मप्रचारक मंडल तिब्बत भेजा था।
    पाल वंश के अंतिम शासक के रूप में मदनपाल का विवरण मिलता है।

    -: सेन वंश (1070–1230 ई) :-

    पाल वंश के पतन के पश्चात बंगाल में सेन राजवंश की स्थापना हुई । 
    सेन वंश की स्थापना सामंतसेन ने "राद" नामक स्थान पर की।
    इसकी राजधानी 'नवद्वीप' थी ।
    सामंतसेन का उत्तराधिकारी विजयसेन (1095-1158 ई.) था जो सेन वंश का प्रथम महान शासक था। जिसने परमेश्वर, परम भट्टारक तथा महाराजाधिराज जैसी उपाधि धारण किया।
    विजयसेन शैव धर्म का अनुयायी था । इन्होनें देवपाड़ा में प्रघुनेश्वर मंदिर (शिव) का निर्माण करवाया ।
    देवपाड़ा प्रशस्ति जिसकी रचना कवि धोयी ने किया है। इससे हमें विजयसेन के विजयों के बारें में जानकारी मिलती है। इसमें यह उल्लेख है कि विज् यसेन ने नेपाल (नव्य) एवं मिथिला (वीर) राज्य को पराजित किया ।
    विजयसेन की उपलब्धियों से प्रभावित होकर श्री हर्ष नामक कवि ने उसकी प्रशंसा में विजयप्रशस्ति काव्य की रचना किया । 
    बल्लालसेन (1158-1178):-
    यह विजयसेन का उत्तराधिकारी था । यह एक विद्वावन शासक था तथा विद्वानों को संरक्षण देता था।
    दानसागर और अदभुतसागर नामक ग्रंथ की रचना बल्लाल सेन ने किया । अदभुत सागर का पूर्ण रूप लक्ष्मण सेन ने दिया ।
    बल्लाल सेन को बंगाल में जाति प्रथा और कुलीन प्रथा को संगठित करने का श्रेय प्राप्त है । उसे बंगाल के ब्राह्मणों और कायस्यों में कुलीन में प्रथा का प्रवर्त्तक माना जाता है।
    बल्लाल सेन शैव धर्म को मानता था इन्होनें भी परमभट्टारक, महाराधिराज जैसी उपाधियाँ धारण किया।
    लक्ष्मण सेन (1178-1205 ई.):
    वल्लाल सेन का उत्तराधिकारी लक्ष्मण सेन हुआ । इन्होनें बंगाल की प्रचीन राजधानी "गौड़” के निकट ही एक अन्य राजधानी लखनौती की स्थापना किया।
    जीधर उसका दरबारी कवि था ।
    लक्ष्मण सेन के दरबार में गीत गोविन्द के लेखक जयदेव, पवनदूत क े लेखक धोयी, ब्राह्मणसर्वस्व क ेलेखक हलायुध रहते थें ।
    हलायुध लक्ष्मण सेन का प्रधान न्यायधीश तथा मुख्यमंत्री था ।
    लक्ष्मण सेन गहड़वाल शासक जयचंद्र को पराजित किया था ।
    लक्ष्मण सेन वैष्णव धर्म का अनुयायी था उसने "परमभागवत" की उपाधि धारण किया।
    लक्ष्मण सेन ने लक्ष्मण संवत का प्रचलन किया | (UPPCS)
    लक्ष्मण सेन बंगाल का अंतिम हिन्दु शासक था।
    ⇒  सेन राजवंश प्रथम राजवंश था जिसने अपने लेख हिंदी में लिखवाया ।
    इसकी राजभाषा संस्कृत थी ।
    अंतिम शासक केशव सेन था ।

    -: कश्मीर के राजवंश :-

    कश्मीर के हिन्दू राज्य के विषय में जानकारी हमें कल्हन के राजतरंगिनी से मिलती है।
    राजतरंगिनीः-
    यह ऐसा संस्कृत साहित्य है जिसमें क्रमबद्ध तरीका से इतिहास लिखने का पहली बार प्रयास किया गया |
    कल्हन की राजतरंगिनी में कुल आठ तथा लगभग 8000 श्लोक है।
    ⇒ पहले तीन तरंग से कश्मीर के प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है ।
    चौथे से छठे तरंग में कर्कोट एवं उप्पल वंश का उल्लेख है ।
    ⇒ सातवें एवं आठवें तरंग में लोधरवंश का लेख है ।
    यह ग्रंथ ऐतिहासिक रूप से इसीलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कल्हण ने पक्षपातरहित होकर राजा के गुण-दोषों का वर्णन किया है।
    कश्मीर पर शासन करनेवाले वंश इस प्रकार है-
    (1) कार्कोट वंश (2) उत्पल वंश (3) लोहार वंश
    (1) कार्कोट वंश:-
    627 ई. में दुर्लभवर्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना किया ।
    हवेनसांग इनके शासनकाल में कश्मीर की या पर आया था ।
    दुर्लभवर्धन के बाद उसका पुत्र दुर्लभक (632 - 682 ) शासक बना । दुलर्भक के बाद चंद्रपीड शासक बना जो एक न्यायप्रिय शासक था । तत्पश्चात् तारापीड शासक बना। कल्हना ने इसे क्रूर एवं निर्दभी बताया।
    इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक ललितादित्य मुकतापीड (724 - 760 ई.) था । इन्होनें कश्मीर में मार्त्तण्ड मंदिर का निर्माण करवाया ।
    मुकतापीड कन्नौज शासक यशोवर्मन को पराजित किया जो कि उसकी सबसे बड़ी जीत थी ।
    कार्कोट वंश का अंतिम शासक जयापीड हुआ जिनका निधन 810 ई. में हो गया। इनके निधन के साथ ही इस वंश के शासन की समाप्ति हुई ।
    (2) उत्पल वंशः -
    कर्कोट वंश बाद कश्मीर में उत्पल वंश के शासन की स्थापना हुई ।
    इस वंश के संस्थापक अवंतिवर्मन (855-883 ई.) था।
    इन्होनें अवन्तिपुर नामक नए नगर की स्थापना किया।
    इनके अभियंता सूरभ ने सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाया।
    980 ई. में उत्पल वंश की रानी दिघा एक महत्वाकांक्षिणी शासिका हुई ।
    1003 ई. में रानी के मृत्यु के बाद संग्रामराज शासक बना जिसने कश्मीर में लोहार वंश की नींव रखी।
    (3) लोहार वंशः - 
    इस वंश के संस्थापक संग्रामराज था (1003-1028 ) |
    इसके बाद अनंत राजा हुआ । उसकी पत्नी सूर्यमती प्रशासन को सुधारने में उसकी सहायता करती थी ।
    लोहार वंश के का शासक हर्ष विद्वान, कवि तथा कई भाषाओं का ज्ञाता था । कल्हण हर्ष का आश्रित कवि था ।
    हर्ष को कश्मीर का नीरो कहा जाता था । इसके शासनकाल में कश्मीर में भयानक अकाल पड़ा था ।
    लोहार वंश का अंतिम शासक जयसिंह ( 1128-1155 ई.) हुआ । इन्होनें अपने शासनकाल में यवनों को पराजित किया ।
    कल्हण ने राजतरंगिणी की रचना जयसिंह के काल में किया और इसी के साथ राजतरंगिणी का विवरण भी समाप्त हो जाता है।
    1329 ई. में कश्मीर तुर्कों के अधीन हो गया।
    कश्मीर पर शासन करने वाले तुर्क शासकों में सर्वाधिक लोकप्रिय शासक "जैन -उल-अविदीन" हुआ जिसे "कश्मीर का अकबर" कहा जाता है । 

    -: राजपूत वंश :-

    उत्तर भारत में छठी शताब्दी के पश्चात् अधिकांश राजवंश राजपूत थें, इसीलिए 7वीं से बारहवीं शताब्दी के उत्तर भारतीय इतिहास को "राजपूत काल" माना जाता है ।
    महत्वपूर्ण राजपूत राज्य वंश
    अजमेर चौहान
    दिल्ली तोमर
    जेजाकभुकती (बुंदेलखंड)  चंदेल
    त्रिपुरी कलचुरि
    कन्नौज गहड़वाल
    गुजरात चालुक्य ( सोलंकी)
    मालवा परमार
    राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रचलित है। कुछ विद्वान इसे भारत में रहने वाली एक जाती मानते हैं तो कुछ अन्य की संतान ।
    कुछ विद्वान राजपूतों को आपू पर्वत पर वशिष्ठ के अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ मानते हैं। यह सिद्धांत चंदरबरदाई की "पृथ्वी राजरासो" पर आधारित है ।

    -: गुर्जर प्रतिहार वंश :-

    गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति गुजरात व दक्षिण-पश्चिम राजस्थान में हुई थी। प्रतिहारों के अभिलेखों में इन्हें श्रीराम के अनुज लक्ष्मण का वंशज बताया गया है ।
    पुलकेशिन द्वितीय के एहोल अभिलेख में सर्वप्रथम गुर्जर जाति का उल्लेख मिलता है।
    इस वंश के संस्थापक के रूप में नागभट्ट प्रथम (730 - 736 ) का विवरण मिलता है। ग्वालियर प्रशस्ति में उसे मलेच्छो ( अरबों ) नाशक बताया गया है।

    -: वत्सराज (775–800 ई) :-

    वत्सराज एक शक्तिशाली शासक था जिसे प्रतिहार सम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । इन्होनें त्रिपक्षीय संघर्ष में सर्वप्रथम भाग लिया तथा पाल वंश के शासक धर्मपाल को पराजित किया परंतु राष्ट्रकूट शासक ध्रुव से पराजित हो गया । 
    वत्सराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय (800-233 ई.) गद्दी पर बैठा । उसने कन्नौज पर अधिकार करके उसे प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी बनाया।

    -: मिहिरभोज प्रथम ( 836 - 885) :-

    मिहिरभोज इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था।
    इन्होनें अपनी राजधानी कन्नौज को बनाई थी ।
    मिहिरभोज प्रथम विष्णुभक्त था इसने विष्णु के सम्मान में " आदिवराह" एवं प्रभास जैसी उपाधि धारण की।
    मिहिरभोज की उपलब्धियों की चर्चा उसके ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख में की गई है।
    निहिभोज के पश्चात् उसका पुत्र महेंद्रपाल प्रथम (885 - 910 ई.) शासक बना। इन्होनें राष्ट्रकूट शासक इन्द्र तृतीय को पराजित किया ।
    महेंद्रपाल के दरबार में प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर निवास करता था, जो उसका राजगुरू था।
    राजशेखर ने कर्पूर मंजरी, काव्यमीमांसा, बालरामायण आदि ग्रंथों की रचना किया ।
    महिपाल प्रथम (912–944):-
    इसके शासन काल में बगदाद यात्री अलमसूदी राजा को बौरा कहकर पुकारता था जो संभवतः आदिवराह का अशुद्ध उच्चारण है।
    अतिम शासकः-
    यशपाल/गहड़वाल ने कन्नौज पर अधिकार कर गुर्जर प्रतिहार वंश का अंत कर दिया ।

    -: कन्नौज का गहड़वाल वंश (राठौर वंश) :-

    गहड़वालों का मूल निवास स्थान विध्यांचल का पर्वतीय वन प्रांत माना जाता है ।
    चंद्रदेव ने कन्नौज में गहड़वाल वंश की स्थापना की। इन्होनें “महाराधिराज" की उपाधि धारण की । इन्होनें अपनी राजधानी वाराणसी को बनाया ।

    गोविन्द चंद्र (1114-1155 ई)

    गोविन्द चंद्र गहड़वाल वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था ।
    वह स्वंभ विद्वान शासक था। उसे उसके लेखों में "विविध विद्या विचार वाचस्पति" कहा गया है ।
    लक्ष्मीधर गोविन्दचंद्र का शांति एवं युद्ध मंत्री था। वह शास्त्रों का प्रकाण्ड पंडित था। इन्होनें कृत्यकल्परू नामक ग्रंथ की रचना किया ।
    गोविन्दचंद्र की एक रानी कुमारदेवी ने सारनाथ में धर्मचक्र जिन विहार बनवाया ।

    जयचंद (1170–1194)

    इस वंश के अंतिम शासक के रूप में जयचंद का विवरण मिलता है ।
    यचंद ने संस्कृत के प्रख्यात कवि श्री हर्ष को संरक्षण प्रदान किया जिसने "नौषाद चरित्र” एवं “खंडन–खंड" की रचना की।
    पृथ्वीराज तृतीय ने स्वंवर से जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था।
    1194 ई. में चंदावर के युद्ध में जयचंद मुहम्मद गौरी से पराजित हुआ तथा मारा गया।
    कलांतर में इल्तुतमिश ने कन्नौज पर अधिकार कर गहड़वाल वंश के शासन को समाप्त कर दिया ।

    -: शाकभरी का चौहान वंश :-

    7वीं शताब्दी में वासुदेव द्वारा स्थापित शाकंभरी ( साभंर एवं अजमेर) के चौहान राज्य का इतिहास में विशेष स्थान है।
    इस वंश के विषय में जानकारी हमें विग्रह राज द्वितीय के हर्ष प्रस्तर अभिलेख से मिलती है ।
    चौहान, प्रतिहार शासकों के सामंत थें । 10वीं शताब्दी के प्रारंभ में वाकपतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अपने को स्वतंत्र कर लिया।
    प्रमुख शासकः
    अजयराज:-
    अजयराज 12वीं शताब्दी में चौहान वंश का शासक बना। इन्होनें अजमेर नगर की स्थापना की तथा इसे अपनी राजधानी बनाया था।
    अजयराज का उत्तराधिकारी अर्णोराज एक महत्वपूर्ण शासक था। उसने अजमेर के निकट सुल्तान महमूद की सेना को पराजित किया था ।
    विग्रहराज प्रथम अथवा वीसलदेव (1153-1163):
    √ वीसलदेव की सबसे बड़ी सफलता तोमरों की स्वाधीनता समाप्त करके उन्हें अपना बनाना था।
    √ वीसलदेव ने "हरिकेल” नामक एक संस्कृत नाटक की रचना की। इस नाटक की कुछ अंश "अढ़ाई दिन का झोपड़ा” नामक मस्जिद की दीवारों पर उत्कीर्ण किये गयें हैं।
    √ वीसलदेव ने अजमेर में सरस्वती का प्रसिद्ध बनावाया ।
    √ इनके दरबार में सोमदेव रहता था। जिन्होनें कथा सरितसागर एवं ललितविग्रह राज नामक ग्रंथ की रचना की।
    पृथ्वीराज चौहान (1178-1192
    पृथ्वीराज चौहान अथवा पृथ्वीराज तृतीय को राय पिथौरा भी कहा जाता है। ये चौहान वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। इन्होनें अपनी राजधानी दिल्ली का नवनिर्माण किया।
    तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई ):-
    मुहम्मद गौरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच यह युद्ध हुआ। जिसमें पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई ।
    तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ई):-
    यह युद्ध भी नुहम्मद गौरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ । इसमें पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और बंदी बना लिया गया । तथा कुछ समय बाद उनका निधन हो गया।
    पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चंदबरदाई ने "पृथ्वीराजरासो" नामक ग्रंथ की रचना किया ।
    जयानक ने "पृथ्वीराज विजय" नामक संस्कृत काव्य की रचना किया।
    कलांतर में गौरी के गुलाम कुतुब-उद-दीन ऐबक ने दिल्ली तथा अजमेर पर आक्रमण कर के चौहानों की सत्ता का अंत कर दिया।

    -: जेजाकभुक्ति का चंदेल वंश :-

    जेजाकभुक्ति (बुंदेलखण्ड) (उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश) में 9वीं शताब्दी में चंदेल वंश की स्थापना नन्नुक ने किया । उन्होनें अपनी राजधानी खजुराहों (मध्यप्रदेश) को बनाया ।
    नन्नुक के पौत्र जयशक्ति अथवा जेजा के नाम पर यह प्रदेश जेजाकभुक्ति कहलाया ।
    प्रमुख शासकः
    यशोवर्मन (925-950 ई.):-
    यह एक सम्राज्यवादी शासक था। इन्होनें मालवा, चेदी और महाकोशला को जीतकर अपने सम्राज्य का विस्तार किया। 
    यशोवर्मन ने खजुराहों का प्रसिद्ध विष्णु मंदिर (चतुर्भुज मंदिर) का निर्माण करवाया । 
    धंगदेव ( 950 -10007 ई.)
    धंग यशोवर्मन का पुत्र था। इन्हें प्रतिहार से पूर्ण स्वतंत्रता का वास्तविक श्रेय दिया जाता है ।
    इन्होनें अपनी राजधानी कालिंजर को बनाया ।
    इन्होनें ग्वालियर को जीतकर अपने सम्राज्य में मिलाया जो कि उसकी प्रमुख विजय थी ।
    इन्होनें भटिंडा के शादी शासक जयपाल को सुबुकतगीन के विरूद्ध सैनिक सहायता प्रदान किया ।
    धंग ने खजुराहों में जिननाथ, विखनाथ, वैद्यनाथ आदि भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया । 
    धंग के शासनकाल में निर्मित खजुराहों का विख - विख्यात मंदिर स्थापत्य कला कला का एक विशिष्ट उदाहरण है।
    धंग के बाद उसका पुत्र गंगदेव राजा हुआ ।
    विद्याधर (1019-1029 ई.):-
    विद्यसागर गंगदेव का पुत्र था जो चंदेल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली था !
    विद्यासागर ने 1019 ई. में गुर्जर प्रतिहार शासक राज्यपाल का वध कर दिया, क्यों वह महमूद गजनवी से युद्ध करने के बजाय भाग खड़ा हुआ था।
    विद्यासागर ने मालवा के परमार शासक भोज तथा कलचुरि शासक गोगेयदेव को पराजित कर उसे अपने अधिन कर लिया ।
    चंदेल वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक परमादिदेव अथवा परमल था ।
    1182 ई. में पृथ्वीराज ने उसे पराजित कर मोहबा पर तथा 1203 ई. में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने कलिंजर पर अधिकार कर लिया। अंततः 1205 ई. में चंदेल राज्य दिल्ली में मिल गया ।

    -: मालवा का परमार वंश :-

    परमार वंश की स्थापना 9वीं शताब्दी के प्रारंभ में नर्मदा नदी के उत्तर मालवा (प्राचीन अवन्ति) क्षेत्र में उपेन्द्र अथवा कृष्णराज ने किया । इस वंश के शासक प्रारंभ में प्रतिहारों के सामंत थें ।
    परमार वंश के प्रथम शक्तिशाली शासक के रूप में सीयक अथवा श्री हर्स का विवरण मिलता है ।
    परमारों की आरंभिक राजधानी उज्जैन थी जो बाढ़ में धार हो गई।
    प्रमुख शासकः
    वाकपतिमुंज (973-995 ) :
    • मालवा में परमारों की शक्ति का उदय वाकपतिमुंज के समय में प्रारंभ हुआ ।
    • इन्होनें धार में मुज सागर झील का निर्माण कराया।
    • मुंज ने श्रीवल्लभ, पृथ्वीवल्लभ, अमोघवर्ष आदि उपाधि धारण किया।
    • “कोपेम" दानपत्र से पता चलता है कि इन्होनें हूणों को पराजित किया ।
    • इनके दरबार में पदमगुप्त, धनंजयध, धनिक तथा छलायुद्ध जैसे विघ्दान रहते थें।
    राजा भोज (1000-1055):
    • इस वंश के एक महान शासक के रूप में राजाभोज का विवण मिलता है।
    • उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार इन्होनें तुर्कों को पराजित तथा धार को अपनी राजधानी बनाया ।
    • राजाभोज ने बवसाहसांकः अर्थात नवविक्रादित्य की उपाधि धारण किया । भोज अपनी विद्वना के कारण कविराज की उपाधि से विख्यात थें। इन्होनें चिकित्साशास्त्र पर आयुर्वेदसर्वस्व तथा स्थापत्य शास्त्र पर समरांगण सूत्तधार ग्रंथ की रचना किया जो उल्लेखनीय है ।
    • भोज ने अपने नाम पर भोजपूर नामक नगर बसाया तथा भोजसर नामक एक तालाब भी बनवाया ।

    -: गुजरात (अन्हिलवाड़) का चालुक्य अथवा सोलंकी :-

    चालुक्य वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था, इन्होनें गुजरात के एक बड़े भाग को जीतकर अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया ।
    इस वंश के शासक जैन धर्म के पोषक एवं संरक्षक थें ।
    प्रमुख शासकः
    भीम प्रथम (1022–1064):
    भीम प्रथम इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था इनके शासनकाल में महमूद गजनवी ने 1025 ई. में गुजरात पर आक्रमण कर सोमनाथ मंदिर को लूटा ।
    भीमप्रथम ने सोमनाथ मंदिर को पत्थर से निर्मित करवाया (जो पहले लकड़ी और फिर ईंटो द्वारा निर्मित था।)
    भीम प्रथम के सेना नायक विगलशाह ने माउंट आबू पर प्रसिद्ध जैन मंदिर ( दलिवाड़ा मंदिर) का निर्माण करवाया ।
    नोट:- सोमनाथ मंदर से संबंधित एक अन्य मान्यता के अनुसार इस मंदिर का पननिर्माण कुमार पाल ने करवाया।
    जयसिंह सिद्धराज (1094 -1143):
    • जयसिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण किया ।
    • प्रसिद्ध जैन आयार्य हेमचंद्र इनके दरबार में रहते थें ।
    • सिद्धराज शैव धर्म को मानता था |
    • इन्होनें सिद्धपुर में रूद्रमहाकाल मंदिर बनवाया ।
    • इन्होनें आबू पर्वत पर एक मंडप का निर्माण करवाया जहाँ उसने हाथियों पर आरूद अपने सात पूर्वजों की मूर्तियों को प्रतिष्ठापित करवाया ।
    कुमारपाल (1143–1172):
    • कुमारपाल को जैन आचार्य हेमचंद्र ने जैन धर्म में दीक्षित किया। इन्होनें “परम अर्हत" की उपाधि धारण किया तथा संपुर्ण साम्राज्य में अहिंसा के सिद्धांत को लागू किया ।
    • कुमारपाल ने सोमनाथ के मंदिर को अंतिम रूप से पुर्ननिर्माण करवाया तथा जैन आचार्य हेमचंद्र के साथ सोमनाथ मंदिर में शिव की अर्चना किया।
    अजयपाल (1172 - 1176):-
    अजयपाल कुमारपाल का उत्तराधिकारी था । अनके शासनकाल में शैव एवं जैन धर्मावलंबियों के मध्य गृहयुद्ध हुआ ।
    मूलराज द्वितीय (1176–1178) ने 1178 ई. में आबू पर्वत के निकट मुहम्मद गौरी को हराया।
    चालुक्य वंश का अंतिम शासक भीम द्वितीय था ।
    भीम द्वितीय ने मुहम्मद गौरी के गुजरात आक्रमण ( 1178) को विफल कर दिया ।
    1198 ई. में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने गुजरात पर आक्रमण कर आदिलवाड़ पर अधिकार कर लिया ।

    -: गुप्तोत्तर कालीन अन्य राजवंश :-

    -: गौड़ वंश :-

    गौड़ बंगाल का प्रमुख राजवंश था
    शशांक गौड़ वंश का प्रमुख राजवंश था ।
    शशांक हर्षवर्धन का समकालीन था ।
    शशांक ने हर्षवर्धन के भाई राज्यवर्धन का वध किया |
    शशांक के निधन के पश्चात् गौड़ का निधन हो गया ( 602 - 620 ई.)
    शशांक शैव धर्म का अनुयायी था । इन्होनें बोधिवृक्ष को कटवाकर उसकी जड़ों में आग लगा दिया ।

    -: वल्लभी के मैत्रक वंश :-

    मैत्रक वंश की स्थापना भट्टारक ने किया । ये गुप्तों के अधिन सामंत था। इन्होनें गुप्त वंश के पतन का लाभ उठाकर स्वयं को गुजरात और सौराष्ट्र का शासक घोषित कर दिया और वल्लभी को अपनी राजधानी बनाई ।
    वल्लभी बौद्ध धर्म एवं शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र था ।

    -: कलचुरि (चेदि) वंश :-

    इस वंश की स्थापना कोकल्ल प्रथम ने किया ।
    इन्होनें अपनी राजधानी त्रिपुरी को बनाया ।
    कलचुरि संभवतः चंद्रवंशीय क्षत्रीय था ।
    गांगेयदेव (1019–1040) इस वंश का सबसे महान शासक था। जिसने विक्रमाकदत्य की उपाधि धारण की थी ।
    1181 आते-आते इस वंश का पतन हो गया। इस वंश के शासक "त्रंकूटक संवत्" का प्रयोग करता था जो 248–49 में प्रचलित हुआ था ।

    -: पूर्वी गंग वंश :-

    इस वंश के सबसे प्रतापी शासक राजा अनंत वर्मा चोडगंग था। (976-1048)
    इन्होनें पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
    पूर्वी गंग वंश द्वारा निर्मित कोर्णाक का सूर्य मंदिर भी विश्व विख्यात है ।
    इस वंश की राजधानी कलिंगनगर था जो वर्तमान में आंध्रप्रदेश में है ।

    -: काकतीय वंश :-

    इस वंश के शासक चालुक्य के सामंत थें।
    इस वंश के संस्थापक बीटा प्रथम था । इन्होनें नलगोंडा (हैदराबाद) में एक छोटे से राज्य का गठन किया जिसकी राजधानी अंमकोण्ड थी ।
    इस वंश के सबसे योग्य एवं महान शासक के रूप में रूद्र प्रथम का विवरण मिलता है । जिन्होनें अपनी राजधानी वारंगल को बनाया ।
    ⇒ रूद्र प्रथम के बाद महादेव व प्रथम गणपति शासक बना।
    गणपति ने विदेशी व्यापार को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया । इनके काल में मोटुपल्ली (आंध्रप्रदेश) सबसे प्रमुख बंदरगाह था।
    इस वंश का अंतिम शासक प्रताप रूद्र - ( 1295–1323) था।

    -: होयसल वंश :-

    होयसल वंश देवगिरी के यादव वंश के समान ही द्वारसमुद्र के यादव कुल का था । इसलिए इस वंश के राजाओं ने अपने को यादवकुलतिलकाय कहा है।
    द्वारसमुद्र के होयसल वंश की स्थापना विष्णुवर्धन ने किया है।
    इस वंश की राजधानी द्वारसमुद्र (आधुनिक हलेविड ) था ।
    वेलूर में चेन्ना केशव मंदिर का निर्माण विष्णुवर्धन ने 1117 में करवाया ।
    इस वंश का अंतिम शासक वीरबल्लाल तृतीय था जिसे मलिक काफूर ने हराया ।

    -: यादव वश :-

    देवगिरी के यादव वंश की स्थापना भिल्लभ पंचम ने किया। इसकी राजधानी देवगिरी थी।
    इस वंश का सबसे प्रतापी शासक सिंहण था ।
    इस वंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचंद्र था जिसने अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफुर के सामने आत्म समर्पण किया ।
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    Sun, 14 Apr 2024 06:43:13 +0530 Jaankari Rakho
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    शुंग वंश (185 ई.पू.- 75 ई.पू.)

    • संस्थापक - पुष्यमित्र शुंग (ब्राह्मण जाति)
    पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई. पू. में मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके शुंग वंश की स्थापना की ।
    बार्णभट्ट ने हर्ष चरित में पुष्यमित्र को "अनार्य" कहा है। पुष्यमित्र कट्टर ब्राह्मणवादी था

    ⇒ धनदेव के अयोध्या अभिलेख के अनंसार पुष्यमित्र ने दो अश्वमेघ यज्ञ करवाया। पतंजलि उनके लिए यह यज्ञ करवाया ।
    पतंजलि पुष्यमित्र के राजपुरोहित थें ।
    संभवतः पुज्यमित्र बौद्ध विरोधी था, लेकिन भरहुत स्तूप बनाने का श्रेय पुष्यमित्र शुंग को ही दिया जाता है ।
    विजय अभियानः
    (1) विदर्भ (बरार ) :- 
    विदर्भ का शासक यज्ञशेन था । यज्ञसेन को शुंगों का "स्वाभाविक शत्रु' बताया गया है । पुष्यमित्र के आदेश से अग्निमित्र ने विदर्भ पर आक्रमण कर यज्ञसेन को पराजित कर विदर्भ को अपने साम्राज्य में मिलाया । 
    (2) यवन आक्रमण:-
    पुष्यमित्र शुंग के समय में यवन आक्रमण हुआ था । इस यवन आक्रमण को पुष्यमित्र शुंग ने अपने पुत्र अग्निमित्र के नेतृत्व में विफल किया ।
    डेमेट्रियस (दिमित्र) यवन राजा था जो पुष्यमित्र था जो पुष्यमित्र का समकालीन था ।
    (3) खारवेल से युद्ध:-
    मौर्यकाल के अंतिम दिनों में कलिंग भी स्वतंत्र हो गया था ।
    कलिंग का राजा खारवेल था। खारवेल ने मगध पर आक्रमण कर पुष्यमित्र शुंग को पराजित किया । (हाथीगुफा अभिलेख)
    पुष्यमित्र शुंग के समय हुए यवन आक्रमण, विदर्भ विजय वृतांत तथा यज्ञसेन की चचेरी बहन मालविका और अग्निमित्र के प्रेम कहानी के विषय में जानकारी हमें कालिदास के प्रसिद्ध नाटक “मालविकाग्निमित्रा” से मिलती है।
    पुष्यमित्र शुंग की दो राजधानी थी-
    (1) राजनीतिक राजधानी - पाटलिपुत्र
    (2) सांस्कृतिक राजधानी - विदिशा (मध्यप्रदेश)
    इण्डो-यूनानी (हिन्द यवन) को पुष्यमित्र शुंग ने पराजित किया ।
    पतंजलि ने संस्कृत भाषा की प्रथम पुस्तक पाणिनी के अष्टाध्यायी पर नामक टीका लिखा है | 
    पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी-
    पुष्यमित्र के मृत्यू के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शासक बना।
    पुष्यमित्र के शासनकाल में अग्निमित्र विदिशा का गोप्ता (उपराजा ) था ।
    अग्निमित्र के बाद क्रमशः वसुज्यष्ठ, वसुमित्र, आध्रंक, पुलिदंक, घोष, वज्रमित्र, भागवत तथा देवभूति का विवरण मिलता है ।
    शुंग वंश के 9वें शासक के रूप में भागभद्र या भागवत का विवरण मिलता है इन्होनें भागवत धर्म को अपनाया था ।
    भागभद्र के दरबार में यवन राजदूत हेलियोडोरस भारत की यात्रा पर आया जो भागवत धर्म को अपना लिया तथा भगवान विष्णु के सम्मान में विदिशा या वेसनगर (मध्यप्रदेश) गरूड़ स्तंभ लेख का निर्माण करवाया। उस पर भगवान विष्णु के लिए देवदेवस्य शब्द का प्रयोग किया | 
    ⇒ इस वंश का अंतिम शासक देवभूति था इसके मंत्री वासुदेव ने इसकी हत्या कर शुंग वंश के स्थान पर कण्व वंश के शासन की नींव डाली।
    नोट - (1) शुंग काल में ही संस्कृत भाषा तथा हिंदु धर्म का पुनरूत्थान हुआ । इनके उत्थान में पतंजलि का विशेष योगदान था।
    (2) मनुस्मृति के वर्तमान स्वरूप की रचना इसी काल में हुई है ।
    (3) शुंग राजाओं का काल वैदिक अथवा ब्राह्मण धर्म का पुर्नजागरण काल माना जाता है।
    (4) इस काल में ही भागवत धर्म का उदय व विकास हुआ तथा वासुदेव विष्णु की उपासना प्रारंभ हुई।
    (5) मौर्यकाल में स्तूप कच्ची ईटों और मिट्टी की सहायता से बनते थें, परंतु शुंग काल में उनके निर्माण में पाषाण का प्रयोग हुआ।

    कण्व वंश (75 ई.पू - 30 ई.पू.)

    इस वंश के संस्थापक के रूप में वासुदेव का विवरण मिलता है ।
    इस वंश के कुल 4 शासक हुए जो है -
    (1) वासुदेव
    (2) भूमिमित्र
    (3) नारायण
    (4) सुशमा
    इस वंश के अंतिम शासक के रूप में सुशमा का विवरण मिलता है। इसकी हत्या सिमुक ने कर दी तथा इस वंश के स्थान पर आन्ध्र सातवाहन वंश के शासन की नींव डाली।

    आन्ध्र सातवाहन वंश (30 ई.पू - 250 ए.डी.)

    सातवाहन वंश का संस्थापक सिमुक था ।
    सातवाहन वंश का शासन क्षेत्र मुख्यतः महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक था ।
    पुराणों में इन्हें आंध्रभृत्य तथा अभिलेखों में सातवाहन कहा गया है।
    इस राजवंश की राजधानी प्रतिष्ठान / पैठान थी ।
    सातवाहन की राजकीय भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी थी।
    सातवाहन वंश किसी न किसी रूप में लगभग तीन शताब्दियों तक बना रहा, जो प्राचीन भारत में किसी एक वंश का सर्वाधिक कार्यकाल है ।
    सातवाहन वंश के प्रमुख शासकः
    • शातकर्णी प्रथमः- यह सातवाहन वंश का पहला महान शासक था । इनके विषय में जानकारी नानाघाट अभिलेख (पुणे) से मिलती है जिसकी रचना उसकी पत्नी नयनिका ने की है ।
    शातकर्णी प्रथम ने दक्षिणा पथपति तथा अप्रतिहतचक्र की उपाधि धारण किया।
    शातकर्णी प्रथम ने अपनी पत्नी के नाम पर रजत मुद्राएँ चलाया । 
    हाल :-
    इस वंश के 17वें शासक के रूप हाल का विवरण मिलता है विद्वान शासक था ।
    ⇒ हाल ने प्राकृत भाषा में "गाथा सप्तशती" की रचना किया।
    ⇒ इनकी राजभाषा में बृहत्कथा के रचयिता गुणाद्य तथा कातंत्र नामक संस्कृत व्याकरण के रचयिता सर्ववर्मन रहता था ।
    गौतमीपुत्र सातकर्णी ( 106 - 130 ई):- 
    यह इस वंश का सबसे महान शासक था। इनके विषय में जानकारी इनकी माता गौतमी बलश्री के नासिक अभिलेख से मिलती है। इस अभिलेख के अनुसार उसके घोड़ो ने तीन समुद्रों का पानी पिया था ।
    इनका संघर्ष शक शासक नहपान के साथ वेनुगंगा नदी के तट हुआ जिसमें गौतमीपुत्र शातकर्णी विजयी रहें ।
    इन्होने बौद्ध संघ को "आजकालकिय" तथा कार्ले के भिक्षुसंघ को करजक" नामक ग्राम दान में दियें ।
    नासिक के जोगलथंबी से चाँदी का सिक्का मिला है। जिनमें एक तरफ नहपान तथा दूसरी तरफ गौतमी पुत्र शातकर्णी नाम है।
    वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी ( 130 - 154 ई):-
    इन्होने आंध्रप्रदेश पर विजय प्राप्त किया तत्पश्चात् प्रथम आंध्र सम्राट की उपाधि धारण किया ।
    पुलुमावी ने अमरावती स्थित बौद्ध स्तूप का किलाबंदी करवाया ।
    पुलुमावी का संघर्ष शक शासक रूद्रदामन के साथ हुआ जिसमें पुलुमावी की हार हुई परंतु वैवाहिक संबंध होने के कारण सातपाहन राज्य को क्षति नहीं पहुँचाया ।
    अंतिम महान शासक के रूप में यज्ञश्री शातकर्णी (174-203 ई.) का विवरण मिलता है । इनके सिक्का पर जलपोत या सिक्का का आकृति मिलता है।
    नोट- सातवाहन राज्य ने उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सेतु का काम किया।
    प्रशासनिक व्यवस्थाः-
    भारत में सामंती प्रथा का जनक सातवाहन शासकों को माना जाता है। साथ ही साथ इस काल में सामंतो की तीन श्रेणियाँ थी जो है- 
    (1) राजा (2) महाभौज (3) सेनापति
    इस काल में जिला को "आहार" कहा जाता था। 
    इस काल में अधिकारी को "अमात्य" और "महामात्य" कहा जाता था ।
    इस काल में ग्रामीण क्षेत्रों के प्रशासक को गौल्मिक कहा जाता था ।
    गौल्मिक एक सैनिक टुकड़ी का प्रधान होता था जिसमें नौ रथ, नौ हाथी, पच्चीस घोड़े और पैंतालिस पैदल सैनिक होते थें । 
    आर्थिक व्यवस्था एवं मुद्राएँ:-
    राजा कृषकों के उपज का 1/6 भाग के रूप में प्राप्त करता था ।
    व्यवसायों एवं शिल्पियों के श्रेणियों के प्रधान को "श्रेष्ठिन" कहा जाता था।
    सातवाहनों ने ही सर्वप्रथम सीसा के सिक्का का प्रचलन किया ।
    सोना- सुवर्ण, चाँदी - कार्पाषण 
    सामाजिक संगठनः-
    इस काल में महिलाओं की स्थिति अच्छी थी। इस काल में प्रदा प्रथा का प्रचलन नहीं था ।
    राजपरिवार की महिलाएँ बौद्ध धर्म को पक्षय देती थी जबकि पुरूष वैदिक धर्मो को ।
    राजाओं के नाम मातृप्रधान है किंतु सातवाहन समाज पितृसत्तात्मक था क्योकिं राज सिंहासन का उत्तराधिकारी पुत्र ही होता था ।
    समाज में अंतर्जातीय विवाह होता था ।
    ब्राह्मनों को कर मुक्ति भूमि अनुदान देने की प्रथा की शुरूआत सर्वप्रथम सातवाहनों ने ही किया है।
    सातवाहनों की महत्वपूर्ण स्थापत्य कला है- कार्त का चैत्य व अमरावती का स्तूप
    सातवाहनों ने पहले स्थानीय अधिकारी के रूप में मौर्य के अधीन काम किया था ।
    सातवाहन के सनाव में सर्वाधिक सीसा के मुद्रा का प्रचलन था।
    सातवाहनों ने आरंभिक दिनों में अपना शासन आंध्र से शुरू किया।
    मौर्या के बाद दक्षिण भारत में सबसे प्रभावशाली राज्य सातवाहन था ।
    इस समय गोदावरी डेल्टा की भूमि काफी ऊपजाऊँ थी जिसके विषय में यह कहा जाता था कि भूमि पर एक व्यक्ति के सालभर के अनाज का उत्पादन होता था । 

    चेदि वंश/महामेघवाहन वंश

    कलिंग के चंदि वंश के विषय में जानकारी का स्त्रोत खारवेल का हाथी गुम्फा अभिलेख है।
    इस वंश की स्थापना महामेघवाहन ने किया।
    इस वंश का सबसे महान शासक खारवेल था ।
    सर्वप्रथम रोम के साथ तमिल एवं चेर शासकों ने व्यापार आरंभ किया।

    मौर्योत्तर काल (185ई.पू. - 319ए.डी.)

    मौर्योत्तर काल में भारत के उपर 4 विदेशी आक्रमण हुआ, जिसका क्रम निम्न है-
    (1) हिन्द यूनानी
    (2) शक
    (3) पहलव
    (4) कुषाण

    हिन्द यूनानी

    मौर्योत्तर काल में सर्वप्रथम हिन्द यूनानी शासकों ने आक्रमण किया जो वैक्टिरिया के रहने वाले थें जिस कारण इमे बैक्टिरियन आक्रमण भी कहा जाता है।
    (हिन्द कुश)
    हिन्द यवन शासक भारत में दो भाग में बँटकर शासन किया।
    (1) डेमिट्रियस कुलः-
    इस कुल के संस्थापक डेमिट्रियस थें इन्होनें अपनी राजधानी साकल (पंजाब) को बनाया, इस कुल के सबसे महान शासक के रूप में मिनार का वर्णन मिलता है। मिनार सभी हिन्द यूनानी शासकों में सबसे महान था । मिनार और बौद्ध भिक्षुक के बीच नागसेन से प्रश्न पूछ रहें थें इसका संकलन मिलिन्दपन्हो नामक ग्रंथ में मिलता है। इस ग्रंथ की रचना नागसेन ने किया है। मिना प्रथम विदेशी शासक था जो भारत आकर बौद्ध धर्म को अपनाया।
    (2) युक्रेटाइडीज कुल:--
    इस कुल के संस्थापक युक्रेटाइडीज थें इन्होनें अपनी राजधानी तक्षशिला को बनाया। इस वंश के सबसे महान शासक के रूप में आन्ती आल कीडरा का वर्णन मिलता है, इन्हीं का राजदूत बनकर हेलियोडोरस शुंग वंश के 9वें शासक भाग्यग्रद्र के दरबार में पहुँचा था । हेलियोडोरस ने मध्यप्रदेश के विदशा या वेगनगर में अपनी खर्चे से गरुड़ स्तंभ लेख का निर्माण करवाया जो कि एक निजी अभिलेख है ।
    भारत में सर्वप्रथम लेख युक्त और चित्रयुक्त सोना का सिक्का हिन्दु यवन शासकों ने जारी किया था जिसें ड्रम कहा जाता था ।
    सर्वप्रथम मिनांडर ने सोने के सिक्के जारी किए थे ।
    नाटक के समय पर्दा गिराने की प्रथा अर्थात यवनीका की शुरूआत हिन्द यूनानी शासकों के द्वारा ही किया गया था।
    हिन्द यवन शासकों को भारत का गोलमिर्च (कालीमिर्च) काफी पसंद था जिस कारण इसे यवन प्रिय कहा जाता था।
    युक्रेटाइडिज कुल के अंतिम शासक- हर्मियस
    बैक्ट्रिया में अंतिम हिन्द यवन शासक- हेलियोक्लीज था ।

    शक

    शक मुलतः मध्य एशिया के रहने वाले थें जो यूची काबिला से पराजित होकर भारत आया था ।
    शक शासक अपने को क्षत्रक कहकर पुकारा करता था । शकों ने भारत में 4 शाखाओं में बँटकर शासन किया ।
    (1 ) तक्षशिला का क्षत्रकः- इसके संस्थापक मेऊस था ।
    (2) मथुरा का क्षत्रकः- इसके संस्थापक राजुल / राजबुल था । 
    (3) नासिक का क्षत्रकः- इसके संस्थापक भूमक थें । इस वंश के सबसे महान शासक नहपान था जिसका संघर्ष सातवाहन शासक गौतमीपुत्र सातकर्णी के साथ वेन गंगा नदी के तट पर हुआ जिसमें नहपान मारा गया। तत्पश्चात् नासिक के शक शासित क्षेत्रों को गौतमीपुत्र सातकर्णी न अपने साम्राज्य में मिला लिया ।
    (4) उज्जैन का क्षत्रकः- इस वंश के संस्थापक चाष्टान था जबकि इस वंश के सबसे महान शासक रूद्रदामन था । रूद्रदामन का संघर्ष सातवाहन शासक विशिष्ट पुत्र पुलुमावी के साथ हुआ जिसमें पुलुमावी का पराजय का सामना करना पड़ा इसके बावजूद रुद्रदामन सातवाहन राज्यों को (130 - 150 ए.डी.) क्षति नहीं पहुँचाया। संस्कृत भाषा में रूद्रदामन ने पहला अभिलेख जारी किया था जो जूनागढ़ अभिलेख है । अंतिम शक शासक के रूप में रूद्र सिंह तृतीय का वर्णन मिलता है जिसे चुद्रगुप्त विक्रमादित्य पराजित कर शकों का अंतिम रूप से उन्मूलन किया ।
    रूद्रदामन ने सुदर्शन झील (गुजरात) का पुर्नर्निमाण करवाया । (गर्वनर -- सुविशाख)
    विक्रम संवत् - 57 ई.पू. ।

    पहलव

    शक के पश्चात भारत के उपर पहलवों ने आक्रमण किया जो मुलतः परसिया अर्थात ईरान का रहने वाला था । पहलव वंश के संस्थापक मिथ्रेडेट्सन था जबकि इस वंश के सबसे महान ( 171-130 ई.पू.) शासक के रूप में गोन्डोफार्निस का विवरण मिलता है इन्होनें अपनी राजधानी पेशावर (पाकिस्तान) को बनाया । गोन्डोफर्निस का एक अभिलेख तख्त–ए–बही पाकिस्तान से खरोष्ठी लिपि में मिलता है । गोन्डोफर्निस (20 ई. - 41 ई.) के शासनकाल में ईसाई धर्म प्रचारक सेंट थॉमस (पुर्तगाल) भारत के यात्रा पर आया था ।

    कुषाण (यूची / तोखरी)

    प्रश्न: कुषाण वंश के शासकों का संक्षिप्त वर्णन करें।
    उत्तरः कुषाण वंश के संस्थापक फुजुल कडंफिसस था जो बौद्ध धर्म को मानता था । इसके उत्तराधिकारी के रूप में मेंबिम कडफिसस का वर्णन मिलता है जो शैव धर्म को मानता था । कुषाण शासकों में सर्वप्रथम सोने का सिक्का बिम कडफिसस ने जारी किया था। इसके उत्तराधिकारी के रूप में कनिष्क का वर्णन मिलता है जो कि कुषाण वंश का तीसरा शासक था । कनिष्क 78 ई. में गद्दी पर बैठा और उन्होनें राजसिंघासन ग्रहण करते ही 78 ई. में शक् संवत् का शुरूआत किया ।
    विक्रमादित्य के तरह राम के शासक "सीजर" की उपाधि धारण करता था ।
    प्रश्नः कनिष्क का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।
    उत्तरः कनिष्क कुषाण शासकों में सबसे महान शासक था । कुषाण वंश के तीसरें और सबसे महान शासक के रूप में वर्णन मिलता है जो कि 78 ई. में गद्दी प्राप्त किया और उन्होनें 78 ई. में एक संवत् की शुरूआत की जिसे शक् संवत् कहा जाता है। भारत का राष्ट्रीय पांचांग इसी संवत् पर आधारित है। कनिष्क की दो राजधानी थी-
    (1) सांस्कृतिक राजधानीः- इसकी सांस्कृतिक राजधानी मथुरा थी ।
    (2) राजनीतिक राजधानी:- पुरूषपुर या पेशावर ( पाकिस्तान ) थी ।
    प्रश्नः कनिष्क की राजधानी थी ?
    (क) मथुरा (ख) पाटलिपुत्र (ग) पेशावर (घ) उज्जैन
    भारत का सबसे शुद्धतम सोना का सिक्का कुषाण शासकों के द्वारा खासकर कनिष्क के द्वारा जारी किया गया । कनिष्क खुद को देवपुत्र कहकर पुकारा करता था । कनिष्क चीन के उपर आक्रमण किया । कनिष्क बौद्ध धर्म को मानता था। इसके शासन काल में ही 102 ई. में चतुर्थ बौद्ध सम्मेलन का आयोजन किया गया कुण्डल वन कश्मीर में। जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने किया जबकि उपाध्यक्ष पाटलिपुत्र निवासी अश्वघोष बनें । इसी सम्मेलन के दौरान बौद्ध धर्म दो भागों में हीनयान और महायान में बँट गया । कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान शाखा को मानता था ।
    प्रश्नः कनिष्क के दरबार की शोभा कौन-कौन थें ?
    उत्तरः वसुमित्र, असुघोष, चरक, नागार्जुन, पार्श्व इत्यादि कनिष्क के दरबार के शोभा थें। वसुमित्र ने महाविमाषसुत्र नामक ग्रंथ की रचना किया जबकि अश्वघोष ने बुद्ध चरित्रनम् नामक ग्रंथ की रचना किया है । चरक कनिष्क के दरबार का राजवैद्य था जो चरक संहिता का रचना किया। जबकि नागार्जुन ने भारत में शुन्यवाद का विकास किया जिस कारण उसे भारत का आइंस्टीन कहा जाता है। नागार्जुन ने माध्यमिक सुत्र नामक ग्रंथ की रचना किया जिसमें सापेक्षता के सिद्धांत को प्रस्तुत किया है |
    कनिष्क का निधन 105 ई. में हो गया और छोटे-छोटे अयोग्य उत्तराधिकारी के कारण कुषाण वंश का पतन हो गया। इस वंश के अंतिम शासक के रूप में वासुदेव का वर्णन मिलता है।
    कनिष्क को द्वितीय अशोक कहा जाता है ।

    गुप्त साम्राज्य (319–550 ए.डी.)

    पृष्ठभूमि:-
    चौथी सदी ई. के प्रारंभ में कोई बड़ा संगठित राज्य अस्तिव में नहीं था । यद्यपि कुषाण एवं शक शासकों का शासन चौथी सदी ई. तक जारी रहा लेकिन उनकी शक्ति काफी कमजोर हो गई थी और सातवाहन वंश का शासन तृतीय सदी ई. के मध्य से पहले ही समाप्त हो गया था । ऐसी राजनीतिक स्थिति में गुप्त राजवंश का उदय हुआ ।
    गुप्त वंश का आरंभिक राज्य उत्तरप्रदेश और बिहार में था । गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तरप्रदेश अधिक महत्व वाला प्रांत था, क्योकिं आरंभिक गुप्त मुद्राएँ और अभिलेख मुख्यतः उत्तरप्रदेश से ही पाए गए हैं |
    गुप्त संभवतः वैश्य थें तथा कुषाणों के सामंत थें ।
    गुप्त राजवंश के इतिहास के रूत्रोतः-
    गुप्त राजवंश का इतिहास जानने के निम्नलिखित स्त्रोत है।
    (1) साहित्यिक स्त्रोत (2) पुरातात्विक स्त्रोत (3) विदेशी यात्रियों का विवरण
    साहित्यिक रूत्रोतः-
    विशाखदत्त के नाटक देवीचंद्रगुप्तम से गुप्त शासक रामगुप्त एवं चंद्रगुप्त द्वितीय के बारे में जानकारी मिलती है।
    • इसके अलावे कालीदास की रचनाएँ जैसे- ऋतुसंहार, कुमारसंभवम्, मेघदूतम्, मालविकाग्निमित्रम्, अभिज्ञान शाकुतंलम् तथा शूद्रक कृत मृच्छकटिकम् और वात्स्यायन कृत "कामसुत्र" से भी गुप्त राजवंश के विषय में जानकारी मिलती है ।
    पुरातात्विक स्त्रोतः- 
    पुरातात्विक स्त्रोत में अभिलेखों, सिक्को तथा स्मारकों से गुप्त राजवंश के विषय में जानकारी मिलती है।
    समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख से उसके बारें में जानकारी मिलती है।
    स्कन्दगुप्त के भीतरी स्तंभ लेख से हूण आक्रमण के बारें में जानकारी मिलती है, जबकि स्कंदगुप्त के " जूनागढ़” अभिलेख से इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि उसने सुदर्शन झील का पुर्ननिर्माण करवाया ।
    गुप्तकालीन राजाओं के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इस काल में सोने के सिक्को को "दीनार", चाँदी के सिक्के को "रूपक" अथवा "रूष्क" तथा ताँबे के सिक्को को "माषक" कहा जाता था ।
    गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्कों का सबसे बड़ा ढेर राजस्थान प्रांत के "बयाना" से प्राप्त हुआ था ।
    अजंता एवं बाघ की गुफाओं के कुछ चित्र भी गुप्तकालीन माने जाते हैं ।
    विदेशी यात्रियों के विवरण:
    • फाहियानः-
    यह चीनी यात्री था और चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था। इसने मध्यप्रदेश का वर्णन किया है।
    • हवेनसांगः-
    इसने कुमारगुप्त प्रथम बुधगुप्त आदि गुप्त शासको का उल्लेख किया है। इसके विवरण से ही यह पता चलता है कि कुमारगुप्त ने नालंदा महाविहार की स्था करवाई थी। 
    प्रमुख शासकः
    • श्रीगुप्तः-
    गुप्तवंश का संस्थापक श्रीगुप्त था। जिसने "महाराज" की उपाधि धारण की थी । महाराज सामंतों की उपाधि होती थी जिससे पता चलता है कि वह किसी शासक के अधीन शासन करता था। (280-319 ई.) का विवरण मिलता है। इसके उत्तराधिकारी के रूप में उसके पुत्र घटोत्कच (280-319 ई.) का विवरण मिलता है।
    • चंद्रगुप्त प्रथम (319-334 ई):- 
    घटोत्कच के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम राजा बना।
    चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का प्रथम प्रभावशाली शासक हुआ जिस कारण इस गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
    गुप्त वंश के प्रथम शासक चंद्रगुप्त प्रथम हुए जिन्होनें महाराजाधिराज की उपाधि प्रदान किया।
    चंद्रगुप्त प्रथम 319-20 ई. में अपने राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में एक संवत् चलाया जिसे गुप्त संवत् कहा जाता है।
    प्रश्न: गुप्त वंश और शक् संवत् में कितना वर्ष का अंतर है ?
    उत्तरः 241 वर्ष
    चंद्रगुप्त प्रथम ने लिच्छवी राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया जो संभवतः नेपाल की रहने वाली थी।
    गुप्त वंश के शासकों में चंद्रगु "थम पहला शासक हुआ जिसने सिक्के जारी कियें।
    चंद्रगुप्त प्रथम कुमारदेवी से विवाह के उपलक्ष्य में सोना का सिक्का जारी किया जिसके एक तरफ चंद्रगुप्त प्रथम और कुमारदेवी का चित्र अंकित था जबकि दूसरे तरफ सिंहवाहिनी दुर्गा देवी का चित्र अंकित था । इस सिक्का को राजा रानी प्रकार, कुमार देवी प्रकार, लिच्छवी प्रकार या सिंहवाहिनी प्रकारका सिक्का कहा जाता है।
    • समुद्रगुप्त ( 335–380):-
    चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी उसका पुत्र समुद्रगुप्त हुआ । इनकी माता लिच्छवी की थी जिस कारण इन्हें लिच्छवी द्रौहित ( लिच्छवी का नाती) कहा जाता है।
    समुद्रगुप्त के बचपन का नाम लाँच था ।
    समुद्रगुप्त के विषय में विस्तारपूर्वक जानकारी हमें प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद अभिलेख से मिलती है जिसकी रचना उसके दरबारी कार्य हरिषेन ने संस्कृत भाषा में किया है।
    अगर प्रयाग प्रशस्ति लेख पर विश्वास करते हैं तो यह देखा जाता है कि समुद्रगुप्त को अपने जीवन में कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ा। इन्होनें "धरणीबद्ध, पार्थिवप्रथमवीर" की उपाधि धारण किया ।
    अशोक निर्मित प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख मूलतः कौशाम्बी में स्थित था जिसे अकबर ने इलाहाबाद में स्थापित करवाया। इस स्तंभ पर जहाँगीर तथा बीरबल का भी उल्लेख मिलता है। (अशोक - समुद्रगुप्त - अकबर-बीरबल - जहाँगीर)
    समुद्रगुप्त अशोक का विपरीत था । अशोक शांति और अनाक्रमण की नीति में विश्वास करता था, तो समुद्रगुप्त हिंसा और विजय में आनंद पाता था । जी.ए
    यदि हम इलाहाबाद के प्रशस्ति पर विश्वास करें तो प्रतीत होता है कि समुद्रगुप्त आर्यावर्त्त के 9 राज्य और दक्षिणावर्त्त के 12 राज्यों को जीतकर अपने राज्यों में मिलाया और यह भी प्रतीत होता है कि उन्हें कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा। उसे अपनी बहादुरी और युद्ध कौशल के कारण इतिहासकार वी. ए. स्मिथ ने भारत के नेपोलियन की संज्ञा दिया ।
    चंद्रगुप्त प्रथम ने ही सर्वप्रथम "परमभागवत" की उपाधि धारण किया ।
    समुद्रगुप्त की प्रतिष्ठा और प्रभाव भारत के बाहर भी फैला। एक चीनी स्त्रोत के अनुसार श्रीलंका के राजा मेघवर्मन ने गया में बुद्ध का मंदिर बनवाने की अनुमति प्राप्त करने के लिए समुद्रगुप्त के पास दूत भेजा था। अनुमति दी गई और यह मंदिर विशाल बौद्ध विहार के रूप में विकसित हो गया ।
    समुद्रगुप्त की कुल 6 मुद्राएँ हमें प्राप्त होती है। मुद्राएँ उनके जीवन और कार्य पर प्रकाश डालती है।
    (1) गरूड़ प्रकार 
    (2) धनुर्धारी प्रकार 
    (3) परशु प्रकार
    (4) अश्वमेघ प्रकार
    (5) व्याघ्रनन प्रकार 
    (6) वीणावादन प्रकार
    समुद्रगुप्त को उसके सिक्के पर वीणावादन करते हुए दिखाया गया है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि समुद्रगुप्त वीणा बजाते थें ।
    समुद्रगुप्त ने "कृष्णचरित्र" नामक ग्रंथ की रचना किया जिस कारण उसे कविराज कहा जाता है।
    समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था । ताम्रपत्र में समुद्रगुप्त को "परम भागवत" की उपाधि मिली है।
    समुद्रगुप्त ने बौद्ध भिक्षु वसुबंधु को संरक्षण दिया था ।
    समुद्रगुप्त अपनी विजय के पश्चात् अश्वमेघ यज्ञ किया तथा "अश्वमेघ पराक्रम' की उपाधि धारण की।
    नोट- चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त के पूना अभिलेख में समुद्रगुप्त को अनेक अश्वमेघ यज्ञ करने वाला कहा गया है ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय "विक्रमादित्य" ( 380-412):-
    गुप्त वंशावली में समुद्रगुप्त के पश्चात् चंद्रगुप्त द्वितीय का नाम आता है, परंतु दोनों शासको के बीच रामगुप्त नामक एक दुर्बल शासक के अस्तित्व का भी पता चलता है ।
    रामगुप्त शकों से पराजित हो गया था तथा उन्होनें अपनी पत्नी ध्रुवदेवी को शकों को देने के लिए तैयार हो गया था ।
    रामगुप्त ने ताँबा का सिक्का चलाया था।
    रामगुप्त का छोटा भाई चंद्रगुप्त द्वितीय था जिन्होनें शकों को पराजित कर रामगुप्त की विधवा पत्नी से विवाह कर लिया ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय के विषय में जानकारी हमें दिल्ली में कुतुबमीनार के पास खड़े लौह स्तंभ पर खुदे हुए अभिलेखसे मिलता है जिसे महरौली स्तंभ लेख या चंद्र स्तंभ लेख के नाम से भी जाना जाता है, जो आज भी वैज्ञनिकों के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है क्योंकि इसमें जिस धातु का प्रयोग किया गया है उसमें आज भी जंग नहीं लगा है |
    उदय गिरी गुहा अभिलेख में भी चंद्रगुप्त द्वितीय की विजयों का उल्लेख मिलता है |
    चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में कालक्रम की दृष्टि से मथुरा का स्तंभ लेख पहला प्रमाणिक गुप्त लेख है, जिसमें तिथी का उल्लेख हुआ है ।
    वैवाहिक संबंध तथा साम्राज्य विस्तारः-
    चंद्रगुप्त द्वितीय ने वैवाहिक संबंध और विजय दोनों तरह से अपनी साम्राज्य का विस्तार किया ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय ने नाग राजकुमारी कुबेरनागा के साथ विवाह करके नाग वंश के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये और बाद में अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वकाटक वंश के राजा रूद्रसेन द्वितीय के साथ किया। इन्होनें अपने पुत्र कुमारगुप्त प्रथम का विवाह कदम्ब शासक काकुत्सवर्मन की पुत्री से किया था।
    वैवाहिक संबंध के फलस्वरूप मध्य भारत स्थित वकाटक राज्य पर रूप से अपना प्रभाव जमाकर चंद्रगुप्त द्वितीय ने पश्चिमी मालवा और गुजरात पर प्रभुत्व स्थापित कर लिय इस विजय से चंद्रगुप्त द्वितीय को पश्चिमी समुद्र तट मिल गया जो व्यापार वाणिज्य के लिए प्रसिद्ध था। इससे मालवा एवं उसका मुख्य नगर उज्जैन समृद्ध हुआ ।
    उज्जैन को चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी द्वितीय राजधानी बनाया जबकि पहली राजधानी पाटलिपुत्र थी ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय एवं शक:-
    चंद्रगुप्त द्वितीय ने उज्जैन के अंतिम शक शासक रूद्रसिंह तृतीय को पराजित किया। संभवतः शकों पर विजय के उपरांत ही चंद्रगुप्त द्वितीय ने "विक्रमादित्य” की उपाधि धारण किया था ।
    विक्रमादित्य का अर्थ होता है- पराक्रम का सूर्य
    भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य की संख्या 14 है, जिसमें सर्वाधिक लोकप्रिय विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीय है ।
    भारतीय अनुश्रुतियों में चंद्रगुप्त द्वितीय को शकारि अर्थात शकों के विजेता के रूप में जाना जाता है !
    चंद्रगुप्त द्वितीय ने शकों पर विजय के उपलक्ष्य में मालवा क्षेत्र में व्याघ्र शैली के चाँदी के सिक्के चलाए ।
    अन्य नाम एवं उपाधियाँ चंद्रगुप्त द्वितीय काः
    • अन्य नामः-
    देवगुप्त, देवराज एवं देवश्री
    • उपाधिः- 
    विक्रमांक, विक्रमादित्य, परमभागवत ।
    कला एवं साहित्यः-
    चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल का स्मरण युद्धो के कारण नहीं बल्कि कला एवं साहित्य के प्रति उसके अगाध अनुराग के कारण किया जाता है !
    चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में नौ विद्वानों की मंडली निवास करती थी, जिसे नवरत्न कहा गया है। जिसमें अमरसिंह, कालीदास, शंगु, घटकपर, वररुचि, वराहमिहीर, धनवन्तरि, क्षपणक, वेतालभट्टथा।
    सभी विद्वानों में सबसे महान कालीदास था जिसे "भारत का सेक्सपियर" कहा जाता था ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाहियान ( 399-414) भारत आया था।
    फाहियानः
    फाहियान चीन मध्य एशिया पेशावर के स्थल मार्ग से 399 ई. में भारत आया व ताम्रलिप्ति से श्रलंका तथा पूर्वी द्वीपों से होते हुए समुद्री मार्ग से 414 ई. में स्वदेश लौटा।
    वर्णनः
    इन्होनें कहा मध्यदेश ब्राह्मणों का देश था । यहाँ लोगों को मृत्युदंड नहीं दिया जाता था केवल आर्थिक दंड का प्रावधान था। मध्यदेश के लोग किसी जीवित प्राणी की हत्या नहीं करते थें ।
    मध्यदेश के लोग क्रय-विक्रय में कौड़ियो का प्रयोग करता था ।
    फाहियान ने पवित्र बौद्ध स्थानों का भ्रमण किया । इनहोने पाटलिपुत्र में अशोक ला राजमहल देखा तथा उससे इतना प्रभावित हुआ कि उसे देवताओं द्वारा निर्मित बताया !
    नोट- चीनी ग्रंथों में भारत को "यिन- तू" कहा गया है।
    चंद्रगुप्त द्वितीय के समय पाटलिपुत्र एवं उज्जैन विद्या के प्रमुख केंद्र था ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय का सचिव "वीरसेन" शैव धर्मानुयायी था और सेनापति "आम्रकार्दव" बैद्ध अनुयायी था ।
    चंद्रगुप्त द्वितीय का काल ब्राह्मण धर्म के चरमोत्कर्ष का काल था ।
    कुमारगुप्त प्रथम या महेन्द्रादित्यः-
    चंद्रगुप्त द्वितीय का उत्तराधिकारी उसका पुत्र कुमारगुप्त प्रथम हुआ परंतु कुमारगुप्त प्रथम के पूर्व एक और शासक का विवरण मिलता है, वह ध्रुव देवी का पुत्र गोविन्दगुप्त था । यह विवादस्पद है ।
    कुमारगुप्त के बिलसड़ अभिलेख, मंदसौर अभिलेख, करमदंडा अभिलेख आदि से उसके शासनकाल की जानकारी मिलती है।
    कुमारगुप्त प्रथम के समय के सर्वाधिक गुप्तकालीन अभिलेख प्राप्त हुए हैं।
    मंदसौर अभिलेख एक प्रशस्ति के रूप में है जिसकी रचना " वत्सभार्ट" ने की ।
    कुमारगुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किया। 
    मध्य भारत में रजत सिक्के का प्रचलन इसी के काल में हुआ ।
    कुमारगुप्त ने मुद्राओं पर गरुड़ के स्थान पर मयूर की आकृति उत्कीर्ण करवाया ।
    कुमारगुप्त प्रथम ने महेन्द्ररदित्य, श्री महेन्द्र तथा महेन्द्र अश्वमेघ इत्यादि उपाधि धारण किया ।
    नालंदा विश्वविद्यालय को "आक्सफोर्ड ऑफ महायान" कहा जाता है।
    स्कंदगुप्त (455-467 ई ):-
    कुमारगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी स्कंदगुप्त हुआ ।
    भीतरी स्तंभ लेख के अनुसार प्रथम हूण आक्रमण इसी के समय में हुआ था।
    जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार स्कंदगुप्त ने हूणों के आक्रमण को विफल कर दिया। 
    जूनागढ़ अभिलेख में हूणों को " म्लेच्छ" कहा गया है।
    हूण:-
    हूण राज्य फारस से खेतान तक फैला हुआ था, जिसकी मुख्य राजधानी अफगानिस्तान में बामियान थी ।
    प्रथम हूण आक्रमण "खुशनवाज" के नेतृत्व में स्कंदगुप्त के समय हुआ ।
    तोरमान और मिहिरकुल प्रसिद्ध हूण शासक हुए।
    मिहिरकुल को बौद्ध धर्म से घृणा करनेवाला और मूर्तिभंजक कहा गया है।
    जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार स्कंदगुप्त ने सुदर्शन झील के पुनरूद्धार का कार्य सौराष्ट्र के गर्वनर पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित को सौपा था ।
    स्कंदगुप्त ने झील के किनारें एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था ।
    सुदर्शन झील
    शासक गर्वनर
    चंद्रगुप्त मौर्य (निर्माण) पुष्यमित्र वैश्य
    अशोक (पुर्ननिर्माण) तुसास्प
    रूद्रदामन (पुर्ननिर्माण) सुविशाख
    स्कंदगुप्त (पुर्ननिर्माण) पर्णदत्त
    स्कंदगुप्त ने वृषभशैली के नए सिक्के जारी कियें ।
    स्कंदगुप्त ने 466 ई. में चीनी सम्राट साँग के दरबार में एक राजदूत भेजा ।
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    Sun, 14 Apr 2024 05:40:51 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | छठी शताब्दी ई.पू. का भारत https://m.jaankarirakho.com/968 https://m.jaankarirakho.com/968 General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | छठी शताब्दी ई.पू. का भारत
    महाजनपद का उदयः- आर्य जातियों के परस्पर विलानींकरण से जनपदों का विस्तार हुआ और महाजनपद बनें ।
    6ठीं शताब्दी ई.पू. में 16 महाजनपद भारत में था इस बात की जानकारी हमें बौद्ध ग्रंथ "अंगुत्तर निकाय" महावस्तु एवं जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में मिलता है। इसमें सबसे शक्तिशाली "मगध' महाजनपद थें ।
    अश्मक एक ऐसा महाजनपद था जो दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के किनारे था ।
    वज्जि एवं मल्ल में गणतंत्रात्मक व्यवस्था थी जबकि अन्य में राजतंत्रात्मक व्यवस्था का प्रचलन था ।
    विश्व में पहला- गणतंत्र लिच्छवि के द्वारा वैशाली में स्थापित किया गया।
    वैशाली का लिच्छवी गाणराज्य विश्व का प्रथम गणतंत्र माना जाता है जो वज्जि संघ की राजधानी हैं। इसका गठन 500 ई.पू. में हुआ था।
    विश्व का सबसे प्राचीन वैभवशाली महानगर पाटलिपुत्र है ।
    (1) काशी:-
    इसकी राजधानी वाराणसी थी । "सोननंद जातक" से ज्ञात होता है कि मगध कोशल तथा अंग के उपर काशी का अधिकार था । :-
    (2) कोशल:-
    रामायणकालीन कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या थी । यह उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में सई नदी तक तथा पश्चिम लेकर पूर्व में गंडक नदी तक फैला था ।
    (3) अंग:-
    अंग की राजधानी प्रचीन काल में व्यापार-वाणिज्य के लिए प्रसिद्ध थी
    (4) वज्जि:- 
    यह आठ राज्यों का संघ का था। इसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवी, मिथिला के विदेह तथा कुण्डग्राम के ज्ञातृक विशेष रूप से प्रसिद्ध थें।
    (5) चेदि:- 
    महाभारत काल में यहाँ का शासक शिशुपाल था जिसका वध कृष्ण द्वारा किया गया ।
    (6) वत्सः- 
    इसकी राजधानी कौशांबी थी । बुद्धकाल में यहाँ पौरव वंश का शासन था जिसके राजा उदयन थें
    (7) कुरू:- 
    इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी । बुद्ध के समय यहाँ के राजा कौरव्य था ।
    (8) शूरसेन:- 
    इसकी राजधानी मथुरा थी । यहाँ के राजा बुद्धकाल में अवंतिपुत्र था जो बुद्ध के प्रमंख शिष्यों में एक था।
    (9) अश्मकः-
    इसकी राजधानी पोतन या पोटली थी जो कि दक्षिण भारत की एकमात्र जनपद थी ।
    (10) गंधारः- 
    इसकी राजधानी तक्षशिला थी । प्राचीन काल में तक्षशिला शिक्षा का एक प्रसिद्ध केंद्र था ।
    (11) कंबोज:- 
    इसकी राजधानी राजपुर अथवा हाटक थी। प्राचीन समय में यह जनपद अपने श्रेष्ठि घोड़ों के लिए विख्यात था ।
    (12) मगध :-
    मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह या गिरिब्रज थी कालांतर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र स्थानांतरित हुई ।
    रज्जैन का प्राचीन नाम अवन्तिका है।

    मगध

    परिचयः

    प्राचीन काल में मगध 16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली था । इसका विस्तार मूलतः दक्षिण बिहार के क्षेत्र में था। इसके अंतर्गत आधुनिक पटना और गया जिला शामिल है।

    भौगोलिक स्थितिः

    इसके उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में विंध्य पर्वत, पूर्व में चंपा से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत है ।

    प्रमुख राजवंश

    हर्यक वंश (544–412 ई.पू.)

    • संस्थापक:- बिम्बिसार
    • राजधानीः- राजगृह या गिरिब्रज ( पाटलिपुत्र )
    प्रमुख शासकः
    बिम्बिसार (544-492 ईपू.):- बिम्बिसार इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था । इसे मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । ( 15 वर्ष की आयु में राजा बना)
    जैन साहित्य में इसे " श्रेणिक" के नाम से जाना जाता है ।
    बिम्बिसार वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपने राज्य की सीमा को विस्तार किया-
    (1) पहली पत्नी महाकोशला थी जो कोशल राज्य की पुत्री थी और प्रसनजित की बहन थी । इनके साथ दहेज में काशी प्रांत मिला जिससे एक लाख की वार्षिक आय आती थी ।
    (2) दूसरी पत्नी वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी चेल्लना थी, जिससे अजातशत्रु का जन्म हुआ ।
    (3) तीसरी पत्नी क्षेमा थी जो पंजाब के मद्र कुल की राजकुमारी थी।
    (4) चौथी पत्नी आम्रपाली थी जो वैशाली की गणिका थी ।
    बिम्बिसार अंग को जीतकर उसे अपने साम्राज्य में मिलाया । यहाँ के शासक ब्रह्मदत्त था । परंतु मगध में मिलाने के पश्चात् अजातशत्रु को वहाँ का शासक बनाया गया ।
    बिम्बिसार को सेनिया अर्थात नियमित तथा स्थायी सेना रखने वाला भी कहा जाता है ।
    बिम्बिसार ने अवन्ति के शासक चंडप्राद्योत से मित्रता कर लिया तथा अपने राजवैद्य जीवक को उसके ईलाज के लिए भेजा ।
    बिम्बिसार बौद्ध धर्म का अनुयायी था ।
    बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने 492 ईपू. में कर दिया।
    अजातशत्रु (492 ईपू . - 460ई.पू.)
    इसका उपनाम कुणिक था । यह प्रारंभ में जैन धर्म का अनुयायी था ।
    अजातशत्रु के समय में ही राजगृह के सप्तपणी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ जिसमें प्रसेनजित की हार हुई परंतु बाद में दोनों में समझौता हो गया ।
    प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से किया। इससे अजातशत्रु को काशी प्राप्त हुआ ।
    अजातशत्रु अपने कूटनीतिक मित्र वर्षकार की सहायता से वैशाली पर आक्रमण कर इसे जीतकर अपने साम्राज्य मिलाया। इस युद्ध में अजातशत्रु ने रथमशल तथा महाशिलाकंटक नामक हथियार का प्रयोग किया। में
    अजातशत्रु अपने पिता की हत्या कर गद्दी प्राप्त किया जिस कारण इसे पितृहत्या भी कहा जाता है।
    अजातशत्रु अपने पिता की हत्या कर गद्दी प्राप्त किया बदले में अपने पुत्र के द्वारा मारा गया, यानी इसकी हत्या इसके पुत्र उदायिन ने किया ।
    अजातशत्रु को वैशाली को जीतने में 16 वर्ष का समय लगा।
    राजगीर पाँच पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
    उदायिन (460 ई.पू. - 444 ई.पू.)
    पुराणों एवं जैन ग्रंथों के अनुसार उदायिन ने गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र (कुसुमपुर) नामक नगर की स्थापना किया। 
    इन्होनें अपनी राजधान थे की बनाया।
    ये जैन धर्म को मानते थें ।
    हर्यक वंश का अंतिम शासक उदायिन का पुत्र नागदशक था जिसे उसे अमात्य (मंत्री) शिशुनाग ने हत्या कर हर्यक वंश के स्थान पर शिशुनाग वंश की स्थापना किया।

    शिशुनाग वंश (412-344 ईपू.)

    शिशुनागः-
    इस वंश का संस्थापक शिशुनाग को माना जाता है। इसी के नाम पर इस वंश का नाम शिशुनाग पड़ा।
    इन्होने अवंति तथा वत्स राज्य पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिलाया ।
    इन्होने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया ।
    इसके शासन के समय मगध साम्राज्य के अंतर्गत बंगाल से लेकर मालवा तक का भू-भाग शामिल था ।
    महावंश के अनुसार शिशु नाग की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र कालाशोक गद्दी पर बैठा ।

    कालाशोक (394-366 ई.पू.)

    इसका नाम पुराण तथा दिव्यावदान में काकवर्ण मिलता है।
    इसने वैशाली के सथान पर पुनः पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया।
    इसी के शासन काल में द्वितीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित हुआ ।
    बाणभट्टं द्वारा रचित हर्षचरित के अनुसार काकवर्ण को अपने राजधानी पाटलिपुत्र में घुमते समय महापदमनंद नामक व्यक्ति ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी ।
    महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक का दस पुत्र था जिसने कालाशोक के निधन के पश्चात 20 वर्ष तक शासन किया ।
    इस वंश के अंतिम शासक के रूप में नंदिवर्द्धन का विवरण मिलता है। 1

    नंद वंश (344-323- ई.पू.)

    पुराणों के अनुसार इस वंश के संस्थापक महापदम्नंद एक शुद्र था ।
    इसने सर्वक्षत्रातंक (क्षत्रियों का नाश करने वाला) तथा भार्गव (दूसरे परशुराम का अवतार) की उपाधि धारण किया। महापदम्नंद ने कलिंग को जीतकर मगध सम्राज्य में मिलाया ।
    इसने एक विशाल सम्राज्य की स्थापना किया तथा "एकाराट" और "एकक्षत्र" की उपाधि धारण किया ।
    महापदम्नंद के आठ पुत्र थें । घनानंद भी इसका पुत्र था जो नंद वंश का अंतिम शासक था ।
    घनानंद को उग्रसेन यानी बड़ी सेना का स्वामी कहा जाता है ।
    घनानंदः-
    यह सिकंदर का समकालीन था। इसके समय में 326 ई.पू. में सिकंदर भारत पर आक्रमण किया। यूनानी लेखक ने इसे अग्रमीज कहा है।
    घनानंद के दरबार में चाणक्य आया था जिसे घनानंद ने अपमानित किया था । कलांतर में बदले की भावना से चाणक्य अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य की मदद से घनानंद की हत्या कर मौर्य वंश की नींव रखी।
    अभिलेखीय साक्ष्य से प्रकट होता है कि नंद राजा के आदेश से एक नहर कलिंग में खोदी गई ।
    गृहपति का अर्थ किसान होता है।
    महाजनपद काल में श्रेणियों के संचालक को श्रेष्ठिन कहा जाता था ।

    पूर्वोतर भारत के छोटे-छोटे रजवाड़ों और गाणराज्यों का विलय धीरे-धीरे मगध सम्राज्य में हो गया। परंतु पश्चिमोत्तर भारत की स्थिति भिन्न थी । कंबोज, गंधार और मद्र आदि के राजा आपस में ही लड़ते थें तथा इस क्षेत्र में कोई भी मगध सम्राज्य जैसा शक्तिशाली नहीं था जो इन राजवंशों को संगठित कर सकें। इसी वजह से यह द्वोत्र अराजकता एवं अव्यवस्था का वातावरण व्याप्त था । ऐसी स्थिति में विदेशी आक्रांताओं का ध्यान भारत के इस भू–भाग की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था । परिणामस्वरूप यह क्षेत्र विदेशी आक्रमणों का शिकार हुआ।
    भारत पर सर्वप्रथम विदेशी आक्रमण ईरान के हखमनी वंश के (एशिया) राजाओं ने किया।
    जिस समय मगध के राजा अपना क्षेत्र बढ़ा रहें थें उस समय ईरान के हखमनी शासक भी अपना राज्य का विसतार कर रहें थें ।

    हखमनी साम्राज्य (ईरानी)

    इस वंश की स्थापना 6ठीं शताब्दी ई. पू. में साइरस द्वितीय (558-529 ईपू.) ने किया ।
    साइरस द्वितीय एक महत्वाकांक्षी शासक था । अतः थोड़े ही समय में वह पश्चिमी एशिया का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बन गया ।
    प्लिनी के विवरण से पता चलता है कि साइरस द्वितीय ने कपिशा नगर को ध्वस्त किया ।
    साइरस द्वितीय की मृत्यु कैस्पियन क्षेत्र में डरबाइक नामक एक पूर्वी जनजाति के विरूद्ध लड़ते हुए हुई तथा उसका पुत्र केम्बिसीज द्वितीय (529-522 ईपू.) शासक बना जो गृह युद्ध में उलझा रहा जिस कारण भारत की ओर कोई विस्तार नहीं हो सका ।

    दारा प्रथम (डेरियस प्रथम) (522-486ईपू.)

    • भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता दारा प्रथम को 516 ई.पू. में मिला ।
    दारा के यूनानी सेनापति स्काईलैक्स ने सिंधु से 516 ई.पू. में मिला । 
    दारा प्रथम ने 516 ई. पू. में सर्वप्रथम गंधार को जीतकर फारसी साम्राज्य में शामिल किया ।
    भारत का पश्चिमोत्तर भाग दारा के साम्राज्य का 20वाँ प्रांत था। यहाँ से इसे 360 टैलेन्ट सोना राजस्व के रूप में प्राप्त होता था ।
    दारा प्रथम का अधिकार कंबोज एवं गंधार पर भी था ।

    क्षयार्ष/जरक्सीज (486-465 ईपू )

    • यह दारा का पुत्र था । इन्होने अपनी फौज में भारतीयों का पुत्र था । इन्होनें अपनी फौज में भारतीयों को शामिल किया।
    इस साम्राज्य का अंतिम शासक दारा तृतीय (360–330 ईपू) हुआ |
    दारा तृतीय को यूनानी सिकंदर ने शासन समाप्ति हुई। श्री गोगामेला के ब ( 331 ईपू.) में पराजित किया इस प्रकार ईरानी
    हखमनी वंश के शासनकाल में 28 प्रांत था ।
    प्रभावः
    (1) अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा प्रारंभ हुई।
    (2) पश्चिमोत्तर भारत में खरोष्टी लिपि का विकास हुआ जो अरबी लिपि के तरह दाई सं बाईं लिखी जाती थी।
    • फारसी स्वर्ण मुदा:- डेरिक कही जाती थी ।
    • फारसी रजत मुदाः- सिगलोई कही जाती थी ।

    यूनानी आक्रमण (326 ईपू.)

    प्राचीन भारत में दूसरा विदेशी आक्रमण एवं पहला यूरोपीय आक्रमण यूनानियों के द्वारा किया गया।
    भारत पर सर्वप्रथम यूनानीवासी सिंकदर ने 326 ई. पू. में आक्रमण किया ।

    सिकन्दर

    ⇒ फिलिप द्वितीय जो सिंकदर का पिता था, 359 ई. पू. में यूनान के छोटे से प्रांत मकदूनिया या मेसीडोनिया का शासक बना। इसकी हत्या 329 ई. पू. में कर दी गई।
    • माँ:- ओलंपिसस
    • पत्नी:- रूखसान
    ♦ सिकन्दर - अरस्तु - प्लेटो- सुकरात
    पिता के मृत्यु के पश्चात सिकन्दर सत्तारूद हुआ।
    सिकन्दर का जन्म 356 ई. पू में हुआ। सिकंदर को एलेक्जेंडर के नाम से भी जाना जाता है । वह अरस्तु का शिष्य था।
    सिकंदर का मुख्य सेनापति सेल्यूकस निकेटर था ।
    सिकंदर का जल सेनापति निर्याकस था ।
    सिकंदर का प्रिय घोड़ा बऊकेफला था जो झेलम के युद्ध में मारा गया। इसी के याद में सिकंदर भारत से लौटते वक्त झेलम नदी के तट पर बऊकेफला नामक नगर की स्थापना किया ।
    सिकंदर सर्वप्रथम न सिर्फ एशिया माइनर (तुर्की) और इराक को बल्कि ईरान को भी जीत लिया। ईरान से वह भारत की ओर बढ़ा ।
    इतिहास के पिता कहे जाने वाले हेरोडोटस और अन्य यूनानी लेखकों ने भारत का वर्णन अपार संपत्ति वाले देश के रूप में किया था। सिकंदर भारत की अपार संपत्ति पर ललचाया था। इसी कारण उन्होने भारत पर आक्रमण किया । 
    सिकंदर को विश्व विजेता इस कारण कहा जाता है क्योकि सिकंदर वैसे सभी क्षेत्रो को जीत लिया जिसकी जानकारी ग्रीक लोगों को थी । 
    ♦ उदाहरण:- ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत, आदि...
    ईरान पर विजय पा लेन के बाद सिकन्दर काबुल की ओर बढ़ा जहाँ से हिंदुकुश पर्वत (खैबर दर्रा) पार करते हुए 326 ई.पू. में भारत आया । सिन्धु नदी तक पहुँचने में उन्हें 5 महीना लगा। सिकंदर 19 महिना तक भारत में रूका था।
    तक्षशिला के शासक आम्भी सिकंदर के सामने घुटने टेक दिया और उसे सहयोग का वचन दिया।
    झेलम / वितस्ता/ हाइडेस्पीज का युद्धः-
    यह युद्ध पंजाब के शासक पोरस और सिकंदर के बीच हुआ जिसमें पोरस की हार हुई।
    सिकंदर की सेना व्यास नदी को पार करने से इंकार कर दिया ।
    सिकंदर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में निकैया नामक नगर की स्थापना किया।
    सिकंदर 325 ई. पू. में स्थलमार्ग से भारत से वापस लौट गया।
    सिकंदर की मृत्यु 323 ईपू. में ईराक के बेबीलोन में मात्र 33 वर्ष की अवस्था में हो गया।
    सिकंदर के साथ आने वाले इतिहासकार निर्याकस आनेसिक्रिटस तथा अरिस्टोबुलस था ।
    सिकंदर के काल में भारत में बढईगिरी सबसे उन्नत दस्तकारी थी। बढ़ई रथ, नाव और जहाज बनाते थें I
    इतिहासकार विसेंट स्मिथ ने लिखा है कि सिकंदर आँधी की तरह आया और चला गया परंतु भारत अपरिवर्तित रहा ।
    सिकंदर द्वारा स्थापित नगरः
    (1) निकैया ( विजयनगर )
    (2) बुकेफला (झेलम के तट)
    (3) सिकन्दरिया (काबुल एवं सिंघ)
    19 माह तक भारत में रहने के बाद सिकंदर की सेनाओं ने व्यास नदी के आगे बढ़ने से इंकार कर दिया । फलस्वरूप उसे वापस लौटना पड़ा। उसने अपने संपुर्ण विजित क्षेत्र को चार प्रशासनिक ईकाइयों में बाँट दिया-
    (1) प्रथम प्रांत :- सिंधु नदी के उत्तर तथा पश्चिमी भागों में बनाया गया तथा यह क्षेत्र फिलिप के अधीन कर दिया गया।
    (2) दूसरा प्रांत:- सिंधु तथा झेलम के बीच के भू-भाग को बनाया गया तथा यहाँ का शासन आम्भी के अधीन कर दिया गया।
    (3) तीसरा प्रांत:- झेलम - व्यास - पोरस
    (4) चौथा प्रांतः- सिंधु नदी के निचले भाग शासन - पिथोन
    सिकंदर को वापस लौटते समय अनेक गणराज्य के विरोध का सामना करना पड़ा जिसमें सबसे प्रबल विरोध मालवा तथा क्षुद्रक गणों के संघ का था। इस संघर्ष में सिकंदर घायल हुआ। अंततः मालवा पराजित हुआ और अनेक राज्य के सभी नर-नारी तथा बच्चे मौत के घाट उतार दिए गए।
    सिंधु नदी के मुहाने पर पहुँचकर सिकंदर ने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त कर दिया। सेना के एक टुकड़ी को जलमार्ग द्वारा निर्याकस के नेतृत्व में भेज दिया एवं स्वयं स्थल मार्ग से अपने देश की ओर लौटा ।
    > प्रश्नः भारत में सिकंदर के सफलता के क्या-क्या कारण थें ?
    (1) उस भारत में कोई केंद्रीय सत्ता नहीं थी ।
    (2) उसकी फौज बेहतर थी ।
    (3) उसे देशद्रोही (आम्भी ) शासको से सहायता मिली।
    सिकंदर के आक्रमण के समय अश्वक एक सीमांत गणराज्य था जिसकी राजधानी मस्सग थी। यूनानी लेखकों के अनुसार सिकंदर के विरूद्ध हुए युद्ध में बड़ी संख्या में पुरूष सैनिकों के मारे जाने के पश्चात् यहाँ की स्त्रियों ने शस्त्र धारण किया था ।

    मौर्य साम्राज्य (322-185 ईपू.)

    मौर्य वंश (जानकारी का स्त्रोत)

    साहित्य साक्ष्यः
    कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र विशाखदत्त कृत्त मुद्राराक्षस सोमदेव कृत बृहत्कथामंजरी तथा पतंजलि के महाभाष्य आदि से जानकारी मिलती है।
    बौद्ध ग्रंथ में दीपवंश, महावंश, दिव्यावदान आदि प्रमुख है।
    जैन ग्रंथ में भद्रबाहु का कल्पसूत्र एवं हेमचंद का परिशिष्ट पर्वन।
    नोट- इन सभी ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण अर्थशास्त्र है जो मौर्य प्रशासन के अतिरिक्त चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन पर भी प्रकाश डालता है ।
    विदेशी विवरणः
    विदेशी विवरण में मेगास्थनीज की इंडिका मौर्य इतिहास की जानकारी उपलब्ध कराने का प्रमुख स्त्रोत है।
    जस्टिन आदि यूनानी विद्वानों ने चंद्रगुप्त मौर्य को "सैंड्रोकोट्टस" कहा है। जबकि प्लूटार्क ने एण्ड्रोकोटस कहकर पुकारा ।
    सर्वप्रथम विलियम जोन्स ने ही सेंड्रोकोटस की पहचान चंद्रगुप्त मौर्य से की है ।
    जस्टिन चंद्रगुप्त और सिकंदर के बीच हुई मुलाकात का वर्णन करता है 1
    मेगास्थनीज यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था जो चद्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र में रहता था। इन्होनें इण्डिका में पाटलिपुत्र का विस्तार से वर्णन किया।
    पुरातात्विक साक्ष्यः
    इस काल के पुरातात्विक साक्ष्यों में अशोक का अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण है।,
    अशोक के अभिलेखों के अतिरिक्त शक महाक्षत्रप रूद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख भी गौर्य इतिहास के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
    मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी काली पॉलिश वाले मृदभांड तथा चाँदी व ताँबे के पंचमार्क (आहत सिक्के) से भी मिलती है ।

    मौर्य साम्राज्य

    स्थापनाः
    मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त ने अपने गुरू चाणक्य की मदद से नंद वंश के शासक घनानंद को पराजित कर दिया। इन्होने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया |
    चंद्रगुप्त मौर्य की माता का नाम मूर था जिसका संस्कृत में अर्थ मौर्य होता है, इसलिए इस वंश का नाम मौर्य वंश पड़ा। चंद्रगुप्त मूल रूप से उत्तरप्रदेश के पीपली वन का रहने वाला था ।
    मौर्य वंश के शासक "क्षत्रिय" के थें ।
    विशाखदत्त ने चंद्रगुप्त के लिए वृषल शब्द का प्रयोग किया यानी निम्न कुल का बताया ।
    प्रमुख शासकः
    • चंन्द्रगुप्त मौर्य ( 322-298 ई.पू.)
    चंद्रगुप्त मौर्य एक महान विजेता साम्राज्य निर्माता तथा कुशल प्रशासक था । 
    चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में ईरान (फारस ) से लेकर पूर्व में बंगाल, उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कर्नाटक (मैसूर) तक फैला था । अतः हम कह सकते हैं कि प्रथम भारतीय साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने किया था ।
    संभवतः 305 ई.पू. में यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच युद्ध हुआ जिसमें चंद्रगुप्त की जीत हुई। तत्पश्चात् संधि शर्तों के अनुसार सेल्यूकस 500 हाथी लेकर बदले में एरिया (हेरित) अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (ब्लुचिस्तान ) एवं पेरीपेनिसदाई ( काबूल) का क्षेत्र चंद्रगुप्त को सौंप दिया साथ ही साथ अपनी पुत्री हेलिना का विवाह चंद्रगुप्त से कर दिया। इस बात का उल्लेख सिर्फ एप्पियानस नामक यूनानी ही देता है।
    सेल्युकस ने अपने राजदूत मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा ! यूनानी लेखक पाटलिपुत्र को "पोलिब्रोथा” कहकर पुकारता था।
    बंगाल पर चंद्रगुप्त मौर्य की विजय के बारे में जानकारी महास्थान अभिलेख से मिलती है।
    मालवा, गुजरात, महाराष्ट्र को जीतकर सर्वप्रथम अपने साम्राज्य में मिलाया। साथ ही साथ दक्कन के क्षेत्र को भी जीतने का श्रेय सर्वप्रथम चंद्रगुप्त को ही जाता है |
    चंद्रगुप्त मौर्य के दक्षिण विजय के विषय में जानकारी हमें तमिल ग्रंथ अहनानर एवं मुरनानर तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है।
    सोहगौरा (ताम्रपत्र, गोरखपुर) तथा महास्थान अभिलेख (बांग्लादेश के बोगरा जिला ) चंन्द्रगुप्त मौर्य से संबंधित है। ये अभिलेख अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्यों के संबंध में विवरण देता है ।
    रूद्रदामन के गिरनार अभिलेख से ज्ञात होता है कि चंद्रगु मौर्य ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र का प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अधीन कर लिया। इस प्रदेश में पुष्यगुप्त जो चंद्रगुप्त का राज्यपाल था, इन्होनें सुदर्शन झील का निर्माण करवाया ।
    जैन ग्रंथ राजावली कथा के उल्लेख मिलता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने पुत्र बिन्दुसार को गद्दी सौंपा ।
    चंद्रगुप्त का महल लकड़ी का बना था ।
    परिशिष्ट पर्व नामक जैन ग्रंथ यह उल्लेख करता है कि चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म को अपने जीवन के अंतिम चरण में अपनाया ।
    चंद्रगुप्त जैन मुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा लिया ।
    चंद्रगुप्त मौर्य अपने जीवन का अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में बिताया तथा 298 ई.पू. में उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया जिसे जैन धर्म में सल्लेखना या संथारा कहा जाता है। 
    प्लूटार्क के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने 6 लाख की सेना लेकर चाणक्य संपुर्ण भारत को रौंद डाला ।
    चाणक्य को कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है।
    चाणक्य के बचपन का नाम विष्णुगुप्त था । 
    चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था।
    महावंश टीका में उल्लेख मिलता है कि चाणक्य तक्षशिला का एक ब्राह्मण था ।
    बृहत्कथाकोष के अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम यशोमति था ।
    चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना किया। अर्थशास्त्र से हमें मौर्य साम्राज्य के राजनीतिक गतिविधी की जानकारी मिलती है । 
    कौटिल्य के अर्थशास्त्र की तुलना मैकियावेली के प्रिंस से की जाती है।
    जब राजा दरबार में बैठा हो तो उसे प्रजा से बाहर प्रतीक्षा नहीं करवानी चाहिए- कौटिल्य
    प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है और प्रजा के हित में उसका हित है- कौटिल्य
    अर्थशास्त्र में 15 अभिकरण और 180 प्रकरण है ।
    सप्तांग सिद्धांत के अनुसार राज्य का सातवाँ अंग मित्र है।
    विशाखदत्त मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त मौर्य की चर्चा विस्तार पूर्वक की गई है। इस ग्रंथ में चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र माना गया तथा उसे वृषल यानी निम्न कुल का बताया गया है।
    कुम्रहार से पाटलीपुत्र के प्राचीन अवशेष मिलता है।
    बुलंदीबाग, पाटलिपुत्र का प्राचीन नगर था । यहाँ से लकड़ी का विशाल भवन मिला। इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय स्नूपर महोदय को है ।
    कौटिल्य का संबंध तक्षशिला विद्या केंद्र से था। मौर्य काल में शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र तक्षशिला को माना जाता है ।

    मेगास्थनीज 

    यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था जो चंद्रगुप्त के पाटलिपुत्र दरबार में आया था |
    इन्होने इंडिका नामक ग्रंथ की रचना किया जिससे हमें मौर्य प्रशासन के विषय में जानकारी मिलता है।
    मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को 7 वर्गो में विभाजित किया था-
    (1) दार्शनिक (2) किसान (3) अहीर (4) सैनिक (5) कारीगर (6) निरीक्षक (7) सभासद
    इनमें सर्वाधिक संख्या किसानों की थी । 
    भारतीय लिखने की कला को नहीं जानते थें यह मेगास्थनीज की उक्ति है ।

    बिन्दुसार (298–273 ई.पू.)

    ⇒ चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी उसका पुत्र बिन्दुसार हुआ। जो 298 ई.पू. में मगध की राजगद्दी पर बैठा। इनकी माता दुर्रधरा थी ।
    बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय को मानता था । इस संप्रदाय की स्थापना मक्खलिपुत्र गोशाल ने किया था।
    बिंदुसार को अमित्रद्यात यानी शत्रु विनाशक के नाम से भी जाना जाता है।
    बिंदुसार को वायूपुराण में भद्रसार / वारिसार कहा गया है जबकि जैन ग्रंथ में सिंहसेन कहा गया है।
    स्ट्रैबो के अनुसार, सीरिया का शासक एंटियोकस प्रथम ने डाइमेकस नामक एक राजदुत बिंदुसार के दरबार में भेजा था, जिसे मेगास्थनीज का उत्तराधिकारी माना जाता है।
    बिंदुसार सीरिया के शासक एण्टिओकस प्रथम से सखी अंजीर, अंगूरी मदिरा एवं एक दार्शनिक की माँग किया था। सीरियाई सम्राट ने दो चीजें अंजीर और मदिरा भेज दिया परंतु दार्शनिक के संबंध में कहा की यूनानी कानून के अनुसार दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता ह ।
    मिस्र के शासक टॉलमी तृतीय फिलाडेल्फस ने "डायनोसिस' नामक राजदूत बिंदुसार के दरबार में भेजा ।
    बिंदुसार के शासनकाल में दो विद्रोह तक्षशिला में हुआ था । इसे दबाने के लिए पहले सुसीम को भेजा गया बाद में अशोक को ।
    बिन्दुसार के काल में भी चाणक्य ही प्रधानमंत्री था ।
    दिव्यावदान से ज्ञात होता है कि उसकी राज्यसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिषी पिंगलवत्स निवास करता था ।

    अशोक (273–232 ई.पू.)

    अशोक का जन्म 304 ई. पू. में पाटलिपुत्र में हुआ था ।
    इनकी माता का नाम सुभद्रांगी था जिसे धर्मा के नाम से भी जाना जाता है। जबकि अशोक के पिता बिन्दुसार थें । 
    अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई.पू. में हुआ। इससे पहले अशोक उज्जैन का राज्यपाल था ।
    सभी मौर्य शासकों में सबसे महान अशोक था।
    सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भइयों की हत्या कर सिंहासन प्राप्त किया ।
    अशोक के उसके अभिलेखों में सामान्यतः देवनाम, प्रियदर्शनी (देवों का प्यारा) कहा गया है।
    अशोक नाम का उल्लेख मध्यप्रदेश के गुर्जरा तथा कर्नाटक के मास्की, नेट्टूर तथा उदेगोलम अभिलेखमें मिलता है।
    पुराणों में उसे अशोकवर्धन तथा दीपवंश में करमोली कहा गया है।
    राज्याभिषेक से संबंधित मास्की के लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को बुद्ध शाक्य कहा है।
    अशोक की 5 पत्नी असंधिता, देवी, कारूवाकी, पद्मावती तथा तिष्यारक्षा थी जिसे अशोक के उपर सर्वाधिक प्रभाव कारुवाकी का पड़ा ।
    भाब्र/वैराट (राजस्थान) अभिलेख में अशोक के लिए मगध सम्राट नाम आया है।
    असम से अशोककालोन कोई भी साक्ष्य नहीं मिला है जिस आधार पर हम कह सकते हैं कि यह क्षेत्र अशोक के साम्राज्य से बाहर था ।
    अशोक पहला भारतीय राजा हुआ जिसने अपने अभिलेखों के सहारे सीधे अपनी प्रजा को संबोधितकिया ।
    नोट- अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई में पाद्रेटी फैन्येलर ने सबसे पहले दिल्ली में अशोक के स्तम्भ से लगाया किन्तु अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथथम जेम्स प्रिंसेप ने 1837 ई में पढ़ा।
    भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया ।

    अशोककालीन प्रांत

    प्रांत राजधानी
    उत्तरापथ तक्षशिला
    अवंति उज्जयिनी
    कलिंग तोसली
    दक्षिणापथ सुवर्ण गिरी
    प्राची (मध्यप्रांत)  पाटलिपुत्र
    अशोक का मूल्यांकनः
    प्राचीन भारत के इतिहास में अशोक को महानतम सम्राटो में सबसे आगे रखा जाता है। अशोक के शासनकाल में भारतवर्ष ने अभूतपूर्व राजनीतिक एकता एवं स्थायित्व प्राप्त किया। सही अर्थों में अशोक प्रथम राष्ट्रीय सम्राट था, जिसने विश्व इतिहास में भारत का नाम दर्ज कराया ।
    अशोक के उत्तराधिकारी:
    अशोक का निधन 232 ई. पू. में पाटलिपुत्र में हो गया। उसका पुत्र कुणाल हुआ ।
    अशोक के पौत्र दशरथ ने 8 वर्षो तक शासन किया तथा अशोक की भाँति उन्होनें देवनाम प्रिय की उपाधि धारण किया तथा आजीवक संप्रदाय के साधुओं के लिए गया जिले में नागार्जुनी पहाड़ी पर तीन गुफाएँ निर्मित करवाया ।
    मौर्य वंश के अंतिम शासक के रूप में बृहद्रथ का विवरण मिलता है। उसका सेनापति पुष्यमित्र शुंग था । पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई.पू. में बृहद्रथ को सेना का निरीक्षण करते समय धोखा से उसकी हत्या कर दी। बृहद्रथ की हत्या के साथ ही मौर्य वंश का अंत हो गया ।

    मौर्यकालीन प्रांत

    चंद्रगुप्त मौर्य के समय प्रांतों की संख्या 4 थी जबकि अशोक के समय प्रांत 5 हो गई ।
    मौर्य काल में प्रांत को चक्र कहा जाता था। प्रांतों का शासन राजवंशीय कुमार या आर्यपुत्र नामक पदाधिकारी द्वारा चलाया जाता था ।
    सैन्य व्यवस्थाः
    मौर्य राजाओं की सेना बहुत संगठित तथा बड़े आकार में व्यवस्थित थी ।
    मेगास्थनीज के अनुसार मौर्यो के पास नंदो से तीन गुनी अधिक सेना थी।
    जस्टिन चंद्रगुप्त की सेना को "डाकुओं का गिरोह' कहता था ।
    कौटिल्य ने सेना को तीन श्रेणियों में विभाजित किया ।
    (1) पुश्तैनी सेना
    (2) भाटक सेना
    (3) नगरपालिका सेना
    न्याय व्यवस्थाः
    मौर्यकाल में सम्राट सर्वोच्च तथा अंतिम न्यायालय एवं न्यायाधिश था। ग्राम सभा सबसे छोटा न्यायालय था जहाँ वृद्धजन अपना निर्णय देते थें । 1
    अर्थशास्त्र में दो तरह के न्यायालयों की चर्चा की गई है-
    (1) धर्मस्थीयः-
    इसके अनुसार दीवानी अर्थात स्त्रीधन तथा विवाह संबंधी विवादों का निपटारा होता था।
    (2) कंटक शोधन:-
    इसके द्वारा फौजदारी मामला अर्थात हत्या तथा मारपीट जैसी समस्याओं का निपटारा होता था ।
    गुप्तचर व्यवस्थाः
    गुप्तचर से संबंधित विभागों को "महामात्यासर्फ” कहा जाता था।
    अर्थशास्त्र में गुप्तचरों को गदपुरूष तथा इसके प्रमुख अधिकारी को "सर्पमहामात्य" कहा जाता था ।
    संस्थाः
    जो एक जगह संगठित होकर गुप्तचरी करता था उसे संस्था कहा जाता था।
    संचारः
    जो जगह-जगह जाकर गुप्तचरी करता था उसे संचार कहा जाता था ।
    गुप्तचर के अलावा शांति व्यवस्था बनाए रखने तथा अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस भी थी जिसे अर्थशास्त्र में रक्षिण कहा गया है । 
    सामाजिक व्यवस्थाः
    मौर्य काल में दास प्रथा का प्रचलन था ।
    स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी। स्त्रियाँ पुनर्विवाह कर सकती थी यानी विधवा विवाह का प्रचलन था ।
    कुछ विधवाएँ स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करती थी, जिन्हें छंदवासिनी कहा गया ।
    समाज में वेश्यावृत्ति का प्रचलन था तथा उसे राजकीय संरक्षण भी प्राप्त था।
    संभ्रांत घर की स्त्रियाँ प्रायः घरों में रहती थी । कौटिल्य ने ऐसे स्त्रियों को अनिष्कासिनी कहा है।
    सत्ती प्रथा का प्रचलन नहीं था ।
    स्त्री और पुरूष दोनों को मोक्ष (तलाक) लेने का अधिकार प्राप्त था । कौटिल्य ने मोक्ष शब्द तलाक के लिए प्रयुक्त किया है। 
    मेगास्थनीज ने धार्मिक व्यवस्था में डायोनिसस एवं हेराक्लीज की चर्चा की है, जिसकी पहचान क्रमशः शिव एवं विष्णु से की गई है।
    मौर्यकालीन अथर्वव्यवस्था:
    मौर्यकाल की अर्थव्यवस्था के तीन स्तंभ थें, जिन्हें सम्मिलित रूप से वार्ता (वृत्तिका साधन) कहा जाता था ।
    (1) कृषि (2) पशुपालन (3) वाणिज्य या व्यापार
    कुषिः -
    मौर्यकाल मुख्यतः कृषि प्रधान था । भूमि पर राज्य तथा कृषक दोनों का अधिकार होता था ।
    राजकीय भूमि की व्यवस्था करने वाला प्रधान अधिकारी सीताध्यक्ष कहलाता था ।
    कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में कृष्ट-जुती हुई भूमि, आकृष्ट- बिना जुती हुई भूमि, स्थल - ऊँची भूमि का उल्लेख किया है ।
    अदेवमातृक भूमि - वैसी भूमि जहाँ बिना वर्षा के भी अच्छी खेती होती थी ।
    राज्य में आय का प्रमुख स्त्रोत भूमिकर था । यह मुख्यतः उपज का 1/6 भाग होता था । भूमिकर दो प्रकार का होता था ।
    (1) सेतुकर कर (2) वनकर संबंधित विषय

    परिशिष्ट

    साम्राज्य में मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति के पूर्व इनके चरित्र को काफी जाँचा - परखा जाता था, जिसे उपधा परीक्षण कहा जाता था।
    प्रशासकों में सबसे छोटा गोप था, जो दस ग्रामों का शासन संभालता था ।
    अशोक के समय जनपदीय न्यायालय के न्यायाधीश को राजुक कहा जाता था।
    नंदवंश को विनाश करने में चंद्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा प्रवर्त्तक से सहायता प्राप्त की थी ।
    अशोक ऐसा शासक था जो अपने बड़े भाई सुसीम की हत्या कर गद्दी प्राप्त किया ।
    साँची बौद्ध कला व मूर्तिकला का निरूपन करता है।
    पाटलिपुत्र के प्रशासन का वर्णन इण्डिका में है।
    साँची का स्तूप अशोक ने बनवाया।
    अशोक के साम्राज्य में श्रीलंका शामिल नहीं था ।
    पाटलिपुत्र में अशोक का शिलालेख नहीं मिला है।
    सहिष्णुता, उदारता और करूणा के त्रिविध आधार पर राजवंश की स्थापना अशोक ने किया ।
    सम्राट अशोक प्रायः जनता के संपर्क में रहता था ।
    अर्थशास्त्र में शुद्रो के लिए "आर्य" शब्द का प्रयोग हुआ है |
    अशोक का समकालीन तुरमय मिस्त्र का राजा था।
    कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र 15 अधिकरण और 180 प्रकरण में विभाजित है ।
    स्तम्भ मौर्य काल का सबसे अच्छा नमूना है ।
    6ठें शिलालेख में अशोक घोषणा करता है कि "किसी भी समय, चाहे मैं खाता रहूँ या रानी के साथ विश्राम करता रहुँ या अपने अतःशाला में रहुँ, मैं जहाँ भी रहुँ, मेरे महामात्य मुझे सार्वजनिक कार्य के लिए संपर्क कर सकते हैं।
    अत्यंत पॉलिश किये गयें एकाश्म अशोक स्तंभ जिस पाण्डुरंजित बालुकाश्म के एकल टुकड़ों में तक्षित किये गयें हैं, वह मिर्जापुर के समीप चुनार से निकाला गया है।
    विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस चंद्रगुप्त मौर्य के समय में राजदरबार की दुरभिसंधियों के बारे में बताता है।
    तिस्स नामक श्रीलंकाई शासक अपने आप को मौर्य सम्राट अशोक के आदर्शो के अनुरूप ढ़ालने की कोशिश किया।
    मौर्यो कर राजकीय वर्ष आषाढ़ (जुलाई) से आरंभ होता था।
    अशोक की गृह और विदेश नीति बौद्ध धर्म के आदर्शो से प्रेरित है।
    अपने साम्राज्य के भीतर अशोक एक तरह के अधिकारियों की नियुक्ति की जो राजूक कहलाते थें और इन्हें प्रजा को न केवल पुरस्कार ही, बल्कि दंड देने का भी अधिकार सौपा गया। (न्यायिक कार्य करने के लिए)
    ईसा पूर्व दूसरी और पहली सदियों के ब्राह्मी अभिलेख श्रीलंका में मिले हैं।
    अशोक ने नारी सहित समाज के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म का प्रचार करने के लिए धम्म महामात्र बहाल किए ।
    अशोक ने पशु-पक्षियों की हिंसा पर रोक लगा दिया और अपनी राजधानी में तो प्राणी को मारना पूर्णतः निषिद्ध कर दिया ।
    अशोक ने लोगों को "जियों और जीने दो' का पाठ पढाया ।
    मिस्र में अखनातून ने ई.पू. चौदहवी सदी में शांतिवादी नीति को अपनाया था।
    भारत का प्रथम अस्पताल एवं औषधि बाग का निर्माण अशोक ने करवाया था ।
    अशोक ने बौद्ध होते हुए भी हिंदु धर्म में आस्था नहीं छोड़ी। इसका प्रमाण उसकी "देवनामप्रिय की उपाधि" है।
    सिंहली अनुभुति - दीपवंश और महावंश के अनुसार अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति हुई ।
    ⇒व मौर्य शासको में अशोक और उसका पौत्र दशरथ बौद्ध धर्म का अनुयायी था ।
    रज्जुक मौर्य शासन में अधिकारी था इसकी स्थिति आधुनिक जिलाधिकारी जैसी थी, जिसे राजस्व तथा न्याय दोनों क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त था ।
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    Sat, 13 Apr 2024 09:58:33 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | प्रचीन भारत में धार्मिक आंदोलन https://m.jaankarirakho.com/967 https://m.jaankarirakho.com/967 General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | प्रचीन भारत में धार्मिक आंदोलन
    6ठी शताब्दी ई.पू. ब्राह्मण धर्म के खिलाफ कुल 62 सम्प्रदाय का उदय हुआ जिसमें वौद्ध और जैनधर्म सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ ।

    जैन धर्म

    जैन शब्द संस्कृत के "जिन" शब्द से बना है जिसका अर्थ विजेता होता है ।
    जैन धर्म में कुल 24 तीर्थकर यानी पथ-प्रदर्शक का विवरण मिलता है जिसमें दो तीर्थकर को ऐतिहासिकता प्राप्त है जो है-
    23वाँ तीर्थकर - पार्श्वनाथ 
    24वाँ तीर्थकर - महावीर
    स्वामी जैन धर्म की स्थापना का श्रेय जैनियों के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव या आदिनाथ को जाता है ।
    प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव और 22वें तीर्थकर अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।

    पार्श्वनाथ (23वाँ)

    पार्श्वनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन का पुत्र था । इनके अनुयायियों को निग्रोथ कहा जाता था।
    पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म की स्थापना किया जो इस प्रकार है:- (1) सत्य (2) अहिंसा (3) असतेय (4) अपरिग्रह
    पार्श्वनाथ ने नदियों को भी अपने धर्म में प्रवेश दिया क्योंकि जैन ग्रंथ में स्त्री संघ की अध्यक्ष्ता "पुष्पचूला" का विवरण मिलता है ।
    पारसनाथ की पहाड़ी जैन धर्म से संबंधित है
    पार्श्वनाथ को झारखंड के गिरीडीह जिले में सम्मेद पारसनाथ पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुआ ।
    ऐसा माना जाता है कि पार्श्वनाथ की शिष्यता महावीर के माता-पिता ने ग्रहण किया था ।

    महावीर स्वामी (24वाँ )

    जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक एवं 24वें व अंतिम तीर्थकर के रूप में महावीर स्वामी का विवरण मिलता है।
    महावीर का शाब्दिक अर्थ पराकर्मी या विजेता होता है।
    जीवन परिचयः
    • जन्म:- 540 ई.पू. कुण्डग्राम (वैशाली) बिहार
    • पिता:- सिद्धार्थ (वज्जि संघ के ज्ञातृक कुल के प्रधान)
    • माता:- त्रिशला ( लिच्छवी शासक चेटक की बहन )
    • पत्नी:- यशोदा (कुंडिंय गोत्र की कन्या)
    • पुत्री:- प्रियदर्शनी (अनोज्जा)
    • दमादः - जामालि (प्रथम शिष्य )
    • गृहत्याग:- 30 वर्ष की आयु में बड़े भाई नंदीवर्धन के आज्ञा से ।
    ज्ञान प्राप्ति:-
    12 वर्ष के कठोर तपस्या के पश्चात 42 वर्ष की आयु में वैशाली के जान्भिक ग्राम में साल वृक्ष के नीचे ऋजुपालिका नदी के तट पर हुआ। तब से वर्द्धमान (बचपन का नाम), महावीर अर्थात पराकर्मी, जीन अर्थात विजेता, कैवल्य अर्थात इन्द्रियों को जीतने वाला कहलाया ।
    मृत्यु (निर्वाण ) :- ( 72 वर्ष की अवस्था )
    468 ई.पू. राजगीर के पावापूरी में मल्ल राजा सृस्तिपाल के दरबार में हुआ।
    जैन धर्म में सर्वाधिक बल अहिंसा पर दिया गया जिस कारण जैन धर्म में युद्ध और कृषि दोनों वर्जित है, क्योंकि दोनों में जीवों की हिंसा होती है ।
    भारत में सर्वाधिक व्यापारी वर्ग के लोगों ने इस वर्ग को स्वीकार किया।
    ⇒ महावीर ने अपने जीवनकाल में एक संघ की स्थापना किया जिसमें 11 अनुयायी था जिसे गणधर कहा गया।
    जैन धर्म पुर्नजन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करता था । उनके अनुसार कर्मफल ही जन्म और मृत्यु का कारण है।

    जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ:

    पंच महाव्रत / अणुव्रत
    (1) अहिंसा:- जीव की हत्या ना करना ।
    (2) सत्य:-  सदा सत्य बोलना। (अमृषा)
    (3) अपरिग्रहः- धन जमा ना करना ।
    (4) अस्तेयः- चोरी ना करना । (अचौर्य)
    (5) ब्रह्मचर्य:- इन्द्रियों को वश में करना ।
    नोट- इन पाँच व्रतों में उपर के चार पार्श्वनाथ ने दिये थें, जबकि पाचवाँ व्रत "ब्रह्मचर्य" महावीर ने जोड़ा ।
    त्रिरत्न:-
    कर्मफल से मुक्ति कि लिए त्रिरत्न का अनुशीलन आवश्यक है।
    (1) सम्यक् दर्शन:- वास्तविक ज्ञान
    (2) सम्यक् ज्ञानः- सत्य में विश्वास
    (3) सम्यक् आचरणः- सांसारिक विषयों से उत्पन्न सुखःदुख के प्रति समभाव
    दर्शनः
    • अनेकांतवादः- बहुरूपता का सिद्धांत
    • सप्तभंगीय / स्यादवादः- सापेक्षता का सिद्धांत
    नोट:- जैन धर्म में सृष्टिकर्ता के रूप में ईश्वर को नहीं स्वीकार किया गया।
    सल्लखनाः-
    भूखे-प्यासे रहकर प्राण का त्याग करना ।
    जैन साहित्यः-
    जैन साहित्य को आगम कहा जाता था जिसमें 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छंदसूत्र, 4 मूलसूत्र, आदि है। इन आगम ग्रंथों की रचना श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो ने किया ।
    जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलता है। जबकि प्रारंभिक जैन साहित्य अर्द्ध मगधी भाषा में लिखा गया है !
    • आचारांग सूत्र:- जैन भिक्षुओं के आचार नियम व विधि निषेधों का विवरण ।
    • भगवती सूत्र:- महावीर के जीनव, 16 महाजनपद
    • न्यायधम्मका सूत्र:- महावीर के शिक्षाओं का संग्रह
    भद्रबाहु ने संस्कृत भाषा में कल्पसूत्र की रचना किया जिसमें तीर्थकरों का जीवन चरित्र है ।
    नोट:- जैन धर्म में 18 पापों की कल्पना की गई है।
    जैन संगीतियाँ:
    • महावीर के समकालीन शासक थें- बिम्बिसार, चंडप्रद्योत, अजातशत्रु, उदायिन, दधिवाहन व चेटक ।
    • जैन धर्म मानने वाले शासक:- चन्द्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, अमाघवर्ष (राष्ट्रकूट), उदायिन, आदि ।
    • प्रथम जैन सम्मेलन के दौरान पाटलिपुत्र के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य था।
    • उदयगिरी पहाड़ी में जैन भिक्षुओं के लिए एक गुफा का निर्माण करवाया।
    • गंग वंश के राजा राजमल चतुर्थ का मंत्री व सेनापति चामुंड राय ने 974 ई. में गोमतेश्वर की मूर्ति का निर्माण कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में करवाया जहाँ प्रत्येक 12 वर्ष पर महामस्तकाभिषेक किया जाता है |

    परिशिष्ट

    • आजीवक संप्रदाय का संस्थापक मक्खलिपुत्र गोशाल था जो प्रारंभ में महावीर का शिष्य था । इनके मत को नियति वाद कहा जाता है, जिसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु भागय द्वारा पर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है।
    • उत्तरप्रदेश का कौशाम्बी नगर बौद्ध एवं जैन दोनों का तीर्थस्थली है ।
    • "समाधि मरण" जैन धर्मा से संबंधित है ।
    • जैन धर्म में पूर्ण ज्ञान के लिए "कैवल्य" शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
    • जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि की रचना एवं पालन-पोषण सार्वभौमिक विधान से हुआ |
    • जैन धर्म के अनुसार संसार नित्य और शाश्वत है यानी इसमें किसी समय प्रलय नहीं होगा जबकि उत्थान और पतन का दौर चलता रहेगा । 
    • यापनीय जैन धर्म का एक सम्प्रदाय था जिसकी उत्पत्ति दिगंबर संप्रदाय से हुई थी।
    • जैन धर्म में युद्ध और कृषि दोनों वर्जित है, क्योंकि दानों में जीवों की हत्या होती है ।
    • बौद्धों की तरह जैन लोग भी आत्म में मूर्तिपूजक नहीं था। बाद में वे महावीरों और तीर्थकरों की पूजा करने लगें । इसके लिए सुन्दर और विशाल पत्थर की प्रतिमाएँ कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश से निर्मित हुई ।
    • कर्नाटक में स्थापित जैन मठ को बसाद कहा जाता है ।
    • कर्नाटक में जैन धर्म का प्रचार चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया |
    • 'जियो और जीने दो' महावीर स्वामी ने कहा था ।
    • महावीर ने जैन स्वामी की स्थापना पावापुरी में करवाया ।
    • महावीर के निधन के पश्चात् जैन संघ का अध्यक्ष आर्य सुधर्मन हुआ ।
    • परिशिष्ट पर्व- हेमचंद्र
    • 16 महाजनपद का उल्लेख भगवतीसुत्र में मिलता है। 
    • जैन धर्म को अंतिम राजकीय संरक्षक गुजराज के चालुक्य वंश के राजाओं ने दिया था।
    • महावीर ने पहला उपदेश राजगीर में दिया ।
    • ऋषभदेव का संबंध आयोध्या से था ।
    • महावीर के अध्यात्मिक गुरू पार्श्वनाथ थें। (R.S. शर्मा)
    • महावीर के परिवार का संबंध मगध के राजपरिवार से था क्योंकि उनकी माता त्रिशला लिच्छिवी नरेश चेतक की बहन थी। चेतक मगध नरेश बिम्बिसार के ससुर थें ।
    • महावीर एक गाँव में एक दिन से अधिक तथा एक शहर में 5 दिन से अधिक ना टिकते थें।

    बौद्ध धर्म

    बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थें । बुद्ध का अर्थ "प्रकाशमान" अथवा "जगत" होता है। इन्हें एशिया का ज्योतिपुंज (Light of Asia) कहा जाता है ।
    गौतम बुद्धः जीवन परिचयः
    • जन्मः- 563 ई.पू. कपिलवस्तु के लुम्बिनी नेपाल (अशोक के रूम्मिदेई स्तंभ लेख)
    • बचपन का नामः– सिद्धार्थ (गोत्र-गौतम)
    • पिता का नामः- शुद्धोधन (कपिल वस्तु के शाक्य गण के प्रधान)
    • माता का नाम:- महामाया (कोलिय गणराज्य की कन्या)
    • पालन - पोषणः- मौसी प्रजापति गौतमी
    • पत्नीः- यशोधरा ( अन्य नाम - गोपा, बिम्बा, भदकच्छना)
    • पुत्रः- राहुल
    • घोड़ाः– कथक
    • सारथी:- चाण
    • मृत्यु:- 483 ई.पू. (मल्लों की राजधानी कुशीनगर, देवरिया, उत्तरप्रदेश) जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
    गौतम बुद्ध का अन्य नाम शाक्यमुनि, कनकमुनि और तथागत था।
    गौतम बुद्ध को 4 दृश्य ने गृह त्याग को विवश किया था जो है— (1) वृद्ध व्यक्ति (2) बीमार व्यक्ति (3) मृत व्यक्ति (4) सन्यासी (प्रसन्न मुद्रा में)
    घटना प्रतीक
    जन्म कमल व साँड
    गृह त्याग घोड़ा
    ज्ञान पीपल (बोधि) वृक्ष 
    निर्वाण पद चिन्ह
    मृत्यु (महापरिनिर्वाण ) स्तूप
    सिद्धार्थ 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया जिसे बौद्ध धर्म में "महापरिनिष्क्रण" कहा गया है। तत्पश्चात् सिद्धार्थ वैशाली के समीप सांख्य दर्शन के आचार्य आलारकलाम तथा राजगृह के समीप रूद्रक रामपुत्र से मिले जो बुद्ध के प्रारंभिक गुरू थें ।
    6 वर्ष के कठिन तपस्या के पश्चात् 35 वर्ष की आयु में निरंजना (पुन - पुन ) नदी के तट पर पीपल वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा की राज सिद्धाथ को ज्ञान की प्राप्ति हुई तत्पश्चात् सिद्धाथ बुद्ध कहलाएँ और वह स्थान बोधगया कहलाया। बौद्ध धर्म में इस घटना को निर्वाण / सम्बोधि कहा जाता है।
    बुद्ध का शाब्दिक अर्थ ज्ञान ज्ञान की प्राप्ति होता है ।
    बुद्ध ने अना प्रथम उपदेश सारनाथ (ऋषिपतनम्, उत्तरप्रदेश) के मृगदाव वन में अपने 5 ब्राह्मण साथियों को पाली भाषा में दिया जिसे बौद्ध धर्म में महाधर्म चक्रप्रवर्तन कहते हैं ।
    बुद्ध ने सर्वप्रथम “तपस्सु" तथा "भल्लिक" नामक दो शूद्रों को बौद्ध धर्म का अनुयायी बनाया ।
    उन्होनें मगध को अपना प्रचार केन्द्र बनाया।
    बुद्ध के राजगृह पहुँचने पर बिम्बिसार ने उनका स्वागत किया और वेणुवन विहार दान में दिया। राजगृह में ही मोगदलायम्, उपाली, अभय आदि इनके शिष्य बनें ।
    अपने प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर बुद्ध ने वैशाली में महिलाओं को संघ में प्रवेश की अनुमति दी ।
    बौद्ध धर्म अपनाने वाली प्रथम महिला प्रजापति गौतमी है।
    ज्ञान प्राप्ति के 20वें वर्ष बुद्ध श्रावस्ती पहुँचे तथा वहाँ अंगुलिमाल नामक डाकू को अपना शिष्य बनाया।
    बौद्ध धर्म ने महिलाओं और शूद्रों को जोड़कर समाज के उपर गहरा प्रभाव छोड़ा।
    नोट- बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश कोशल की राजधानी श्रावस्ती में दिया ।
    गौतम बुद्ध ने अंतिम उपदेश कुशीनगर में सुभद्द को दिया ।
    महापरिनिर्वाणः
    बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर अपने शिष्य चुंद के यहाँ सुकरमाद्दव भोज्य सामग्री खाई और अतिसार रोग से पीड़ित हो गए । तत्पश्चात् यही पर 80 वर्ष की अवस्था में 483 ई. में बुद्ध का निधन हो गया जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है ।
    महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अस्थि अवशेष को 8 जगह - मगध, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकप्प, रामग्राम, पावा, कुशीनगार और वेथादीप भेजा गया । इन्ही आठ क्षेत्रों में स्तूप बनाया गया ।
    शिक्षाएँ एवं सिद्धांतः
    त्रिरत्न:- (1) बुद्ध (2) धम्म (3) संघ
    ⇒ चार आर्य सत्यः- (1) दुःख (2) दुःख समुदाय (3) दुःख निरोध (4) दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा
    बुद्ध " समस्त विश्व दुःखों से भरा है" का सिद्धांत उपनिषद से लिया ।
    दुःख का कारण बुद्ध ने तृष्णा (इच्छा) को बताया जो अज्ञानता के कारण उत्पन्न होता है ।
    इन सांसारिक दुःखों से मुक्ति हेतु गौतम बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग का पालन करने को कहा है-
    (1) सम्यक् दृष्टिः- वस्तु के वास्तविक स्वरूप की समझ
    (2) सम्यक् संकल्पः- लोभ, द्वेष व हिंसा से मुकत विचार
    (3) सम्यक् वाक्:- अप्रिय वचना का त्याग
    (4) सम्यक् कर्मान्तः– सही कामों का अनुसरण 
    (5) सम्यक् आजीविका :- सदाचार युक्त आजीविका
    (6) सम्यक् व्यायाम :- मानसिक / शारिरीक स्वास्थ्य
    (7) सम्यक् स्मृतिः - सही भाव / सात्विक भाव
    (8) सम्यक् समाधिः- एकग्रता
    ⇒ बुद्ध के अनुसार आष्टांगिक मार्गो का पालन करने से तृष्णा नष्ट हो जाती है और तीन से निर्वाण की प्राप्ति हो जाता है।
    दस शीलः
    (1) सत्य
    (2) अहिंसा
    (3) अस्तेय
    (4) अपरिग्रह
    (5) मद्य सेवन ना करना
    (6) असमय भोजन ना करना 
    (7) सुखप्रद विस्तर पर ना सोना
    (8) आभूषणों का त्याग
    (9) स्त्रियों से दूर रहना
    (10) नृत्यगान से दूर रहना
    बुद्ध ने अपना उपदेश जनसाधारण की भाषा पालि में दिया।
    निर्वाण का अर्थ है " दीपक का बुण जाना' यानी जीवन -‍ मरण चक्र से मुक्त हो जाना ।
    बुद्ध ने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। 
    दर्शनः
    (1) अनेश्वरवादः - यानी ईश्वर की सत्ता को मानने से अंकार कर दिया ।
    (2) शून्यतावादः- संसार की समस्त पुए या पदार्थ सत्ताहीन है ।
    (3) क्षणिकवादः- संसार में भी चीज स्थायी नहीं है ।
    बौद्ध धर्म में पुर्नजन्म को मान्यता हैं I
    बुद्ध ने जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था को अस्वीकार किया है ।
    संघ एवं कार्य प्रणाली:
    • संघ में प्रविष्ट को उपसम्पदा कहा जाता था जबकि शपथ ग्रहण को प्रवज्जा कहा जाता था ।
    • संघ में अल्पवयस्क, चोर, हत्यारा, ऋणी व्यक्ति, दास तथा रोगी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित था ।
    • बौद्ध संघ की संरचना गणतंत्र प्रणाली पर आधारित थी ।
    • बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था एवं जाति प्रथा का विरोध किया ।
    • संघ की बैठक प्रत्येक आमावस्या या पूर्णिमा को होता था जिसमें निर्णय जनतांत्रिक ढंग से लिया जाता था।
    • बौद्धो के लिए महीने का चार दिन- आमावस्या, पूर्णिमा और दो चतुर्थी दिवस उपवास के दिन होते थें।
    • वर्षा ऋतु के दौरान मठों में प्रवास के दौरान भिक्षओं द्वारा जो अपराध स्वीकारोक्ति समारोह होता था उसे "पवरत्न" कहा जाता था ।
    • बौद्धो का सबसे पवित्र त्योहार वैशाख की पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है।
    • बौद्ध धर्म के अनुयायी दो भागों में विभाजित थें- (1) भिक्षुक (2) उपासक
    स्तूपः- स्तूप का शाब्दिक अर्थ होता है किसी वस्तु का देर ।
    चैत्यः- बौद्धो का पूजा स्थल
    विहार : - वौद्धो का निवास स्थल
    प्रसिद्ध बौद्ध स्थलः- महाबोधि मंदिर (बिहार), महापरिनिर्वाण मंदिर (उत्तरप्रदेश), धमेख स्तूप (उत्तरप्रदेश)
    बुद्ध की प्रथम मुर्ति संभवतः मथुरा कला में बनी थी। जबकि बुद्ध की सर्वाधिक मूर्ति गंधार शैली में बनी है।

    भागवत धर्म

    भागवत् धर्म के संस्थापक के रूप में कुष्ण को जाना जाता है। कृष्ण की चर्चा दो रूपों में की गई है-

    कृष्ण के इन दोनों रूप की चर्चा का विरण छांदोग्य उपनिषद से मिलती है।
    जैन परंपरा के अनुसार वासुदेव कृष्ण जैन धर्म के 22वें तीर्थकर अरिष्टनेमी के समकालीन थें।
    भागवत धर्म के सिद्धांत श्रीमद्भागवत् गीता में निहित है । भागवत गीता के रचनाकार वेदव्यास है ।
    श्रीमद्भागवत् गीता में मोक्ष के साधना के रूप में जन्म, कर्म तथा भक्ति को सामान महत्व दिया है। भागवत गीता की मुख्य शिक्षा निष्काय कर्मयोग (कर्म करों, फल की चिंता मत करों) को भागवत बतलाया गया है । 
    भागवत धर्म का उदय मौर्योतर ल में हुआ माना जाता है। इस धर्म के विषय में प्रारंभिक जानकारी उपनिषदों से मिलती है। परंतु 'इंडिका ग्रंथ' के रचयिता में मेगास्थनीज का मानना है कि मौर्यकाल में भी भागवत धर्म का प्रचलन था। उन्होनें इंडिका में लिखा शुरसेन यानि मथुरा के लोग हेराक्लीज कुष्ण का युनानी रूपान्तरण है।
    मैर्योतर काल में शुंग वंश के संस्थापक के रूप में पुष्यमित्र शुंग का विवरण मिलता है। शुंग वंश में कुल 10 शासक हुए थें। शुंग वंश के 9वें शासक रूप में भागभद्र था। भागभद्र के दरबार में 'हेलियोडोटस' आया। हेलियोडोटस ने भागवत धर्म को अपना लिया और भगवान विष्णु के सम्मान में इन्होने मध्यप्रदेश के विदिशा (वेसनगर) में एक स्तंभलेख का निर्माण किया जिसे गरूड़ लेख स्तंभ कहा जाता है। इस गरूड़ लेख स्तंभ पर हेलियोडोटस ने "ओम नमों भगवते वासुदेवाय नमः" अंकित करवाया। यह स्तंभलेख सबसे प्राचीन अभिलेख है जो हमें वैष्णव / भागवत धर्म की जानकारी प्रदान करता है।
    वैष्णव धर्म का सर्वाधिक विकास गुप्तकाल में हुआ । परम् भागवत की उपाधि धारण करने वाला गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय था। इनके दरबार 9 विद्वान रहा करता था जिसे नवरत्न कहा गया। इन्हीं नवरत्न में से एक कालिदास नामक विद्वान थें जिसकी रचना "रघुवंशम' में भगवान विष्णु को शेष सेया का लेटे हुए चित्रण किया है।
    गुप्तवंश के शासक स्कंदगुप्त के जुनागढ़ अभिलेख की शुरूआत भगवान विष्णु के स्तुति से होती है।
    देवगढ़ के दशावतार मंदिर का निर्माण गुप्तकाल में भगवान विष्णु के सम्मान में किया गया।
    गुप्तकाल में भगवान विष्णु का सबसे लोकप्रिय अवतार वराह अवतार था ।
    वैष्णव धर्म के सिद्धांतः
    (1) अवतारवादः - भगवान विष्णु के 10 अवतार की जानकारी मिलती है।
    (2) वीरपूजा:- कालांतर में वैष्णव धर्म के कृष्ण के अतिरिक्त उनके वंश के चार अन्य देवताओं की पूजा की जाने लगी जिसे वीरपूजा कहा गया तथा इन पाँचों देवताओं को पंचवीर कहा गया है। ये पंचवीर निम्न हैं-
    1. वासुदेवः - देवकीपुत्र 
    2. संकर्षणः- वासुदेव और रोहिणी से उत्पन्न पुत्र
    3. प्रधम्नः - कृष्ण और रूक्मिणी से उत्पन्न पुत्र
    4. अनिरूद्धः - प्रधम्न के पुत्र
    5. साम्ब:- कृष्ण और जाम्बवती से उत्पन्न पुत्र
    (3) चतुर्व्यूहः- भागवत धर्म में पाँच वीरो की पूजा का विधान था । पाँचवे वीर साम्ब को ईरानी सूर्य संप्रदाय से संबंध हो जाने के कारण अलग कर दिया गया। जिस कारण वैष्णव धर्म में अब चार वीरों की पूजा होती है जिसे चतुर्व्यूह कहा जाता है ।
    वैष्णव धर्म का विकास दक्षिण भारत में हुआ । दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म को मानने वाले को अलवार कहा गया । दक्षिण भारत में 12 अलवार संतों का विवरण देखने को मिलता है। जिनमें से एक महिला स्मंत है।

    शैव धर्म

    शिव के उपासक शैव कहलाए तथा इससे संबंधित धर्म को शैव धर्म कहा जाता है। भारत के प्राचीनतम धर्मो में एक धर्म शैव धर्म है।
    हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत एक स्थल मोजनजोदड़ो की खुदाई हुई, मोजनजोदड़ो से मूर्ति मिली जो एक पत्थर पर सन्यासी ध्यान की मुदा में बैठा हुआ था और इस सन्यासी की पहचान शिव से की गई। इससे जानकारी मिलती है। कि शैव धर्म की उत्पत्ति हड़प्पा काल में भी हुई थी। हड़प्पा सभ्यता में शिव के दो रूप की पूजा होती थी-
    (1) शिव
    (2) शिव लिंग
    लिंग पूजा की शुरूआत हड़प्पा काल से ही मानी जाती है। लिंग पूजा के विषय में जानकारी देने वाला ग्रंथ मतस्य पुराण है।
    भारत की दुसरी सभ्यता वैदिक सभ्यता है। वैदिक सभ्यता के विषय में जानकारी हमें वैदिक साहित्य से मिलती है। वैदिक साहित्य के अंतर्गत- वेद, ब्रह्मण ग्रंथ, अरण्यक, उपनिषद आते हैं ।
    ऋग्वेद में भगवान शिव के लिए रूद्र शब्द का प्रयोग किया गया है। ऋग्वेद में रूद्र को अंतरिक्ष का देवता बताया गया है ।
    उत्तरवैदिक काल में भगवान शिव की पहचान शिव से की गई है।
    रूद्र की पत्नी के रूप में पार्वती की चर्चा की गई है। इसकी जानकारी हमें तैतरीय अरण्यक में देखने को मिलता है ।
    भगवान शिव की प्राचीनतम मूर्ति पहली शताब्दी ई. में मद्रास के निकट रेनीगुटां में "सिद्ध मुडिभल्लम लिंग” के रूप में प्राप्त हुई ।
    ⇒ शैव धर्म के सिद्धांत:-
    शैव धर्म के अनुसार सृष्टि अथवा जगत के तीन रत्न है-
    (1) शिव - यह कर्ता है |
    ( 2 ) शक्ति - यह कारण है।
    (3) बिन्दु - यह अपादान है I
    शिव स्वयंभू है, अतः इनका अवतार नहीं होता है । वायुपुराण यह उल्लेख करता है कि शिव ने लकुलिश नामक ब्रह्मचारी के रूप में जन्म लिया ।
    वामन पुराण हमें यह जानकारी देता है कि शैव धर्म के 4 सम्प्रदाय है-
    (1) पाशुपत सम्प्रदाय
    (2) कापालिक सम्प्रदाय
    (3) कालामुख सम्प्रदाय
    (4) लिंगायत सम्प्रदाय
    (1) पाशुपत संम्प्रदायः-
    शैव धर्म का सबसे प्रचीनतम संप्रदाय पाशुपत संप्रदाय है इसके संस्थापक " लकुलिश" है। पाशुपत संप्रदाय के अनुयायी को पंचार्थिक कहा जाता था। इस संप्रदाय का प्रापंत्र ग्रंथ "पाशुपत सूत्र" है।
    (2) कापालिक संप्रदायः-
    कापालिकों के ईष्टदेव भैरव थे जो शंकर का अवतार माना जाता है। इस संप्रदाय का मुख्य केंद्र श्रीशैल नामक स्थान था जिसका प्रमाण भवभूति के "मालती माधव' नामक ग्रंथ से मिलती है। यह संप्रदाय अत्संत भयंकर और आसुर प्रकृति का था इसमें भैरव को सुरा और नरवली प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता था ।
    (3) कालामुखः- 
    इस संप्रदाय के अनुयायी कापालिक वर्ग के ही थें। किन्तु वे उनसे भी अतिवादी थें। शिवपुराण में इन्हें महाव्रतधर कहा गया है। इस संप्रदाय के अनुयायी नर कपाल में भोजन, जल तथा सुरापन करते थें और शरीर में भस्म लगाते थें ।
    (4) लिंगायत संप्रदायः-
    शैव धर्म का विस्तार दक्षिण भारत में भी हुआ है । इस धर्म के उपासक दक्षिण भारत में लिंगायत या जंगम कहे जाते थें। वसब पुराण में इस संप्रदाय के प्रवर्तक अल्लव प्रभू एवं उनके शिष्य सम्पादने लिंगायतो का मुख्य धार्मिक केंद्र था ।
    दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार नयनारों संतो ने लिया ! नयनार संतों की संख्या 63 थी। इनके श्लोकों के संग्रह को तीरुमुड़े कहा जाता है। इसका संकलन नाम्बि - अण्डला - नाम्बि ने किया है।
    दक्षिण भारत में शैव धर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव एवं चोलों के समय लोकप्रिय रहा ।
    महाराष्ट्र के एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकुटवंशी शासक कृष्ण प्रथम ने करवाया। यह मंदिर वेसरशैली में निर्मित है जो भगवान शिव को समर्पित है।
    चोल शासक राजराज प्रथम ने अपनी राजधानी तंजौर में एक शिव मंदिर का निर्माण किया जिसे राजराजेश्वर मंदिर या वृहदेश्वर शिव मंदिर कहा जाता है।
    नोट- (1) पशुपति नाथ का मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडु में स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित है। ये मंदिर पैगोड़ा शैली में निर्मित है।
    (2) कुषाण शासकों का मुदा पर शिव एवं नंदी दोनों का अंकन एक साथ है।
    महाजनपदों के उदय के कारणः
    6वीं शताब्दी ई. पू. में पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बिहार में लोहे का व्यापक प्रयोग होने से बड़े-बड़े प्रादेशिक या जनपद राज्यों के निर्माण के लिए उपर्युक्त परिस्थितियाँ बनी 
    लोहे के बने खेती के नए औजारों और उपकरणों की मदद से किसान आवश्यकता से अधिक अनाज पैजा करने लगें, असीलिए राजा अपने सैनिको के लिए और प्रशासनिक प्रयोजनों के लिए इस अनाज को जमा कर सकता था।
    इन भौतिक लाभों के कारण किसानों को अपनी जमीन से लगाव होना स्वाभाविक था, साथ ही वे अपने पड़ोस के क्षेत्रों में भी जमीन हड़प कर फैलने लगें। लोगों जनें प्रबल निष्ठा अपने जन या कबीले के प्रति थी, वह अब अपने जनपद या स्वसंबंध भू-भाग के प्रति हो गई ।
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    Sat, 13 Apr 2024 09:14:53 +0530 Jaankari Rakho
    General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | हड़प्पा सभ्यता https://m.jaankarirakho.com/966 https://m.jaankarirakho.com/966 General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | हड़प्पा सभ्यता
    ⇒ विश्व की पहली सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता है । इस सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है । इस सभ्यता का विकास इराक में दजला और फरात नदी के तट पर हुआ था ।
    ⇒ विश्व की दूसरी सभ्यता मिस्र की सभ्यता है जिसका विकास नील नदी के किनारें हुआ है । (नील नदी की देन मिस्र) को कहा जाता है
    ⇒ विश्व की तीसरी परंतु सर्वाधिक विकसित सभ्यता हड़प्पा सभ्यता है ।
    ♦ हड़प्पा की समकालीन सभ्यताः- 
    (1) मेसोपोटामिया की सभ्यता
    (2) मिस्र की सभ्यता
    (3) चीन की सभ्यता
    ♦ हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नामः-
    हड़प्पा सभ्यता को कई नामों से जाना जाता है जैसे-
    (1) सिंधु सभ्यता
    (2) सिंधु घाटी की सभ्यता
    (3) हड़प्पा सभ्यता
    ♦ सर्वाधिक उपर्युक्त नामः-
    सभी नामों में सबसे अधिक उपयोग में आने वाले नाम हड़प्पा सभ्यता है क्योंकि इस सभ्यता के अंतर्गत सबसे पहले हड़पपा नामक सथल का ही उत्खनन हुआ !
    ♦ हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण:-
    इस सभ्यता को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। अलग-अलग विद्वानों ने इसका अलग-अलगं काल निर्धारित किया है जैसे-
    क्र. सं. विद्वान निर्धारित तिथि
    1. जॉन मार्सल 3250 बी.सी. - 2750 बी.सी.
    2. अर्नेस्ट मैके 2800 बी.सी. - 2500 बी.सी.
    3. मधव स्वरूप वत्स 2700 बी.सी. - 2500 बी.सी.
    4. सी. जे. गैड 2350 बी.सी. - 1700 बी.सी.
    5. मार्टीमर हवीलर 2500 बी.सी. - 1700 बी.सी. 
    6. फेयर सर्विस 2000 बी.सी. - 1500 बी.सी.
    ♦ सर्वाधिक मान्य काल - 2500 बी.सी. - 1900 बी.सी.
    C- 14 (कार्बन डेटिंग / रेडियों कार्बन विधि
    2300 बी.सी. - 1700 बी.सी. 
    ⇒ इतिहास के दृष्टिकोण से:- इतिहास के दृष्टिकोण से इसे आद्य - ऐतिहासिक (Proto-historical age) में रखा जाता है, क्योंकि हड़प्पाकालीन लिपि प्राप्त हुआ है परन्तु इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
    ⇒ धातु के दृष्टिकोण से:- धातु के दृष्टिकोण से इसे कांस्ययुगीन सभ्यता में रखा गया है, क्योंकि इस काल में ताँबा और टिन के मिश्रण से बनें काँसा का प्रयोग वृहद स्तर पर देखने को मिलता है

    खोजकर्ताः

    (1) हड़प्पा की खोज पहली बार 1826 ई. में चार्ल्स मैसन नामक व्यक्ति ने किया ।
    (2) 1853 ई. में ब्रिटिश अभियंता अलेंक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा संस्कृति की मोहर देखी । मुहर के उपर वृषभ और कुल 6 अक्षर अंकित थें, लेकिन उन्होनें उसका महत्व नहीं समझा ।
    (3) हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्सल के निर्देशन में “राय बहादुर दयाराम साहनी ने किया था ।
    ⇒ भौगोलिक विस्तारः- इसका विस्तार वर्तमान समय के तीन देश (1) भारत (2) पाकिस्तान (3) अफगानिस्तान में देखने को मिलता है । इस संस्कृति का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ है ।
    • पाकिस्तानः- पंजाब, सिंध और ब्लुचिस्तान
    • भारतः- जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र
    • अफगानिस्तानः- मुंडीगाक और सुर्तोगोई
    ♦ चौहदीः

    ♦ आकृतिः - त्रिभुजाकार
    ♦ क्षेत्रफलः 12,99,600 वर्ग किलोमीटर
    ⇒ हड़प सभ्यता का क्षेत्रफल वर्तमान के पाकिस्तान से बड़ा तो है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा तीसरी और दूसरी शताब्दी ई. पू. विश्व का सबसे बड़ा सभ्यता हड़प्पा सभ्यता था । (क्षेत्रफल)

    हड़प्पा सभ्यता

    ⇒ अब तक इस उपमहादेश में हड़प्पा संस्कृति के लगभग 2800 स्थलों का पता लग चुका है जिसमें से केवल 6 स्थल सर्वाधिक विकसित अवस्था में पाया गया है जिसे नगर की संज्ञा दी गई है। जो निम्न है-
    (1) हड़प्पाः- यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मदगोमरी जिला में रावी नदी के किनारें सिथत है। इस स्थल का उत्खनन कार्य 1921 ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हुआ ।
    (2) मोहनजोदड़ोः- इसका शाब्दिक अर्थ मृतकों / प्रेतों का टीला होता है क्योंकि यहाँ से बड़े पैमाने पर नरकंकाल प्राप्त हुए हैं । मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के किनारे लड़काना जिला में स्थित है। इस स्थल का उत्खनन कार्य राखालदास बनर्जी के संरक्षण में 1922 ई. में हुआ ।
    नोट- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दो सर्वाधिक महत्व के नगर थें। दोनों नगर एक-दूसरे से 483 किलोमीटर दूर थें और ये दोनों आपस में सिन्धु नदी के द्वारा जुड़ा हुआ था ।
    • पिग्गॉट नामक विद्वान ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को विस्तृत हड़प्पा सभ्यता के संयुक्त राजधानी की संज्ञा दिया है ।
    (3) चन्हूदरों: -यह प्रांत पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिन्धु नदी के किनारे स्थित है। यह मोहनजोदड़ो से 30 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। इस स्थल का उत्खनन कार्य मैके तथा एन. जार के द्वारा किया गया है ।
    (4) लोथलः-  यह भारत के गुजरात प्रांत में भोगवा नदी के किनारे स्थित है। इसका उत्खनन कार्य रंगनाथ राव के में संरक्षण हुआ |
    (5) कालीबंगा :- इसका शाब्दिक अर्थ काली रेग की चूरियाँ होता है। यह राजस्थान हनुमानगढ़ जिला के घग्घर नदी के किनारे स्थित है। इसका उत्खनन कार्य अमलानंद घोष, बी. बी. लाल तथा बी. के. थापर के नेतृत्व में हुआ ।
    (6) बनावलीः- यह हरियाणा के हिसार जिला में रंगोई नदी के तट पर स्थित है। इसका उत्खननकर्ता रविंद्र सिंह विस्ट था।
    नोट- हड़प्पा सथ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो है जबकि भारत में इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी है। जो हरियाणा में घग्गर नदी पर स्थित है।
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता से संबंधित सर्वाधित स्थल गुजरात से मिले हैं। जैसे- लोथल, रंगपुर, रोजदी, सुरकातदा, धौलावीरा, आदि.....
    ⇒ हड़प्पा को प्रारूप स्थल कहा जाता है क्योंकि यहीं से उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं को आधार मानकर अल्य स्थलों को हड़प्पा कालीन होने की संज्ञा दी जाती है।
    • प्राक् हड़प्पीय/हड़प्पा पूर्व:- कालीबंगा, बनवाली . 
    • उन्नत हड़प्पा संस्कृतिः– हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदरों, लोथल, कालीबंगा बनावली, सुतकागेंडोर, सुरकोटदा
    • उत्तर हड़प्पाः- रंगपुर, रोजदी
    नोट - धौलावीरा और राखीगढ़ी में हड़प्पा संस्कृति की तीनों अवस्थाएँ मिलती है।
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएँ:- हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता इसकी नगर-योजना प्रणाली थी |
    ⇒ हड़प्पा काल में नगरों का निर्माण काफी योजनाबद्ध तरीका से होता था। पहला रिचमी भाग जो समान्यता ऊँचा होता था, इसमें राज-महाराज तथा शासक वर्ग के लाग रहते थें। दूसरा, पूर्वी भाग जो नीचा होता था इसमें आम जनता निवास करती थी ।

    ⇒ समान्यता पूर्वी एवं पश्चिमी भागों के अलग-अलग किलाबंदी होता था, हलांकि कालीबंगा से दोनों के एक ही किलाबंदी का विवरण मिल है।
    ⇒ धौलावीरा से त्रिस्तरीय नगरों का प्रमाण मिला है।
    (1) राजप्रसाद वाला क्षेत्र - राजा
    (2) मध्यवर्ती नगर- व्यापारी वर्ग
    (3) नीचला नगर- आम जनता
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत मकान या घर पक्की ईंट से निर्मित होता था ।
    ⇒ हड़प्पा काल में सड़के एक- दूसरें को समकोण पर काटते हुए आगे की ओर बढ़ती थी जिससे पूरा नगर चौकोर अर्थात Chears Board की भाँति दिखाई पड़ता था । सड़के तीन प्रकार की पायी गयी है-
    (1) सबसे चौड़ी सड़क- सबसे चौड़ी सड़क मोहनजोदड़ो में देखने को मिलती है। यह 33 फीट चौड़ी है। इसे राजपथ की संज्ञा दी जाती है।
    (2) मध्यम चौड़ी सड़क  aushan
    (3) गली वाली पतली सड़क
    ⇒ सड़को का निर्माण कच्ची ईंट या मिट्टी की सहायता से होता था ।
    भवनः 
    सड़को के किनारे सुनियोजित तरीका से भवनों का निर्माण होता था । समान्यता एक मंजिले भवन बनते थें। हलांकि मोहनजोदड़ो से दो मंजिले तथा 30 कमरे वाले भवन प्राप्त हुए हैं, जिसे सभा भवन या College भवन की संज्ञा दी गई है।
    ⇒ इस काल में भवन की जुड़ाई इंग्लिश बॉड पद्धति या ग्रीड पद्धति के आधार पर होता था ।
    ⇒ भवन की दरवाजा मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलकर गली की ओर खुलती थी। प्रायः सफाई और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका प्रबंध किया जाता है। अपवाद स्वरूप लोथल नगर के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलता था ।
    ⇒ इस सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत या भवन मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल अन्नागार या धान्यागार या कोठागार है । जिसकी लंबाई 45.71 मी. और चौड़ाई 15.23 मी. है।
    ⇒ इस सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मी. लंबा, 7.01 मी. चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है। बताया जाता है कि यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना होगा, जो भारत के हर धर्म में आवश्यक रहा है।
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता उसकी जल निकासी प्रणाली थी। मोहनजोदड़ो की जल निकासी प्रणाली अदभुत थी ।
    ⇒ कालीबंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएँ थें ।
    ⇒ एक उन्नत जल - प्रबंधन व्यवस्था का साक्ष्य धौलावीरा से प्राप्त हुआ है।
    हड़प्पा सभ्यता के निर्माता:-
    इस हड़प्पा के निर्माताओं के निर्धारण का महत्वपूर्ण स्त्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल है। सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं। इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु हड़प्पा में चार प्रजातियाँ के लोग निवास करती थी-
    (1) भू-मध्यसागरीय 
    (2) प्रोटो- आस्ट्रेलायर
    (3) अल्पाइन
    (4) मंगोलाइड
    ⇒ सबसे ज्यादा भू-मध्यसागरीय प्रजाति के लाग थें ।
    ⇒ सबसे प्रिय देवता - आद्य शिव / शिव
    ⇒ सबसे प्रिय पशु - एक श्रृंगी बैल / बसहा बैल
    ⇒ सबसे आदरनीय पक्षी - फाख्ता
    ⇒ सबसे आदरणीय वृक्ष - पीपल
    ⇒ सबसे आदरणीय नदी - सिंधु
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता के लोग बहुदेववादी थें ।
    ⇒ भारत में पहला मूर्ति पूजा का प्रमाण हड़प्पाकाल में देखने को मिलता है |
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता के लोग देवी और देवता दोनों की पूजा किया करते थें |
    ⇒ हड़प्पाकालीन सभ्यता का लोकप्रिय देवता शिव थें। शिव की पूजा दो रूपों में करतें थें। पहला शिवलिंग की पूजा जिसका सर्वाधिक प्रचलन था । लिंग पूजा की शुरूआत हड़प्पा काल से हुआ है। दूसरा शिव के मानव रूप की पूजा, इसका प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिला है। मोहनजोदड़ो से एक शील पर ध्यान की मुद्रा में एक योगी के सिर पर तीन सींग है। उसके चारों ओर एक हाथी एक बाघ, एक गेंडा है । आसन के नीचे एक भैंसा है और पाँवो पर दो हिरण है । मुहर पर चित्रित देवता को पशुपति महादेव बतलाया गया है।
    ⇒ हड़प्पाकालीन मानव देवीयाँ की पूजा भी दो रूपों में करती थी। पहला देवी के योनी रूप की पूजा और दूसरा मानव स्वरूप में पूजा। हड़प्पा हड़प्पा में पक्की मिट्टी की स्त्री मुर्तिकाएँ भारी संख्या में मिली है। एक मुर्तिकला में गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है। यह संभवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधे के जन्म और वृद्धि से रहा होगा। इस लिए मालूम होता है कि हड़प्पाई लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थें जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस की पूजा करते थें ।
    ⇒ हड़प्पा तथा मिस्र की सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक थी ।
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता से मूर्ति के प्रमाण मिले हैं परन्तु मंदिर के प्रमाण नहीं मिले है। लेकिन इसी के समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया में मंदिर का निर्माण किया जाता था । 
    ⇒ हड़प्पा वासी प्रकृति पूजा में भी विश्वास रखते थें। हड़प्पा वासी सूर्य की पूजा भी करते थें । लोथल के उत्खनन से स्वास्तिक चिन्ह का प्रमाण मिला है जो सूर्य का प्रतीक है।
    ⇒ हड़प्पा वासी पशु-पक्षी, नदी- झरना, पेड़-पौधा, जीव-जंतु, आदि सभी की पूजा किया करते थें। 
    ⇒ हड़प्पाकाल के लोगों का सबसे प्रिय पशु एक सींग वाला जानवर (यूनीकान) जो गेंडा हो सकता है या बसहा बैल था। उसके बाद महत्व का कूबड़ वाला साँड़ ।
    ⇒ हड़प्पावासी यज्ञ प्रथा से भी परिचित थें। विभिन्न अवसरों पर उनके द्वारा यज्ञ किए जाते । कालीबंगा, लोथल एवं वनमाली से अग्निकुंड के साक्ष्य मिले हैं।
    ⇒ हड़प्पावासी यज्ञ के अवसर पर पशुओं की आहुति भी देते थें जिसका साक्ष्य कालीबंगा से मिला है।
    ⇒ हड़प्पावासी एहलौकिक (इस जीवनकाल में) पारलौकिक (मृत्यु के बाद) दोनों जीवन में आस्था रखते थें।
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से बड़ी तादाद में तावीज मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग भूत-प्रेत में विश्वास रखते थें।
    आर्थिक जीवन:-
    हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी । भारत में नगरीयकरण का पहला साक्ष्य हड़प्पाकाल में एक संपन्न कृषि व्यवस्था, पशुपालन, उद्योग-धंधा तथा व्यापार वाणिज्य का विवरण मिलता है।
    कृषिः - 
    हड़प्पाकाल में कृषि व्यवस्था विकसित अवस्था में था । इस समय अधिशेष उत्पादन का विवरण मिलता है ।
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहुँ, जौ, राई, मटर, चावल, कपास, तिल, सरसों आदि फसलों से अवगत थें।
    ♦ कपासः -
    सबसे पहले कपास उत्पादन करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है। चूँकि कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में ही हुआ, इसलिए यूनान के लोग इसे सिन्डन कहने लगे जो सिन्धु शब्द से निकला है।
    ♦ जौ:-
    इस सभ्यता के लोग दो किस्म के जौ उगाते थें । बढ़िया या उत्तम कोटी के जौ का प्रमान बनावली से मिला है।
    ♦ चावल:-
    चावल का साक्ष्य लोथल से प्राप्त हुआ है। गुजरात के रंगपुर से धान की भूसी का प्रमाण मिला है।
    ⇒ हड़प्पा मोहनजोदाड़ो तथा कालीबंगा से अनाज के बड़े-बड़े कोठारों का प्रमाण मिला है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि किसानों से राजस्व लिया जाता था |
    ⇒ हड़प्पावासी दो फसल एक साथ उगाने की कला से परिचित थें इसका साक्ष्य कालीबंगा से मिला है। जहाँ एक समय एक ही खेत में चना और सरसों को उपजाने का विवरण मिलता है।
    ⇒ कालीबंगा से ही जूते हुए खेत का प्रमाण मिला है।
    ⇒ बनवाली से हल का प्रमाण मिला है। हल में ताँबा, पीतल, लकड़ी, पत्थर आदि के फाल का प्रयोग किया जाता था । 
    ⇒ हड़प्पा सभ्यता की मुख्य फसल गेहुँ और जौ थी।
    ⇒ हड़प्पावासी रागी (मडुआ) से परिचित नहीं थें । 
    ♦ पशुपालनः-
    कृषि पर निर्भर होते हुए भी हड़प्पाई लोग बहुत सारे पशु पालते थें। वे गाय, भैंस, बैल, बकरी और सुअर पालते थें। ये लोग कुत्ता और बिल्ली भी पालते थें ।। इन दोनों के पैर के निशान मिले हैं। वे गधे और उँट भी रखते थें और शायद इसे ढ़ोने के काम में प्रयोग किया जाता है।
    हड़प्पाई लोगों को हाथी और गैडे का भी ज्ञान था। खासतौर पर गुजरात में बसे लोग हाथी पालते थें ।
    ♦ घोड़ा:- 
    गुजरात के सुरकोटड़ा घोड़ा की हड्डी प्राप्त हुआ है। इसके अलावे मोहनजोदड़ो और लोथल से घोड़े की मिट्टी की बनी हुई और आग में पकी हुई मूर्ति प्राप्त हुआ है जिसे टेराकोटा कहा जाता है।

    हड़प्पा सभ्यता

    उद्योग-धंधा:-
    हड़प्पा काल में विभिन्न प्रकार के उद्योग-धंधे का प्रचलन था । जैसे - मृदभांड उद्योग, वस्त्र निर्माण उद्योग, धातु उद्योग आदि से हड़प्पावासी परिचित थें ।
    ⇒ हड़ण सभ्यता के उत्खनन से दो प्रकार के मृदभांड प्राप्त हुए हैं।
    (1) गेरूआ रंग का मृदभांड
    (2) लाल एवं काले रंग का मृदभांड
    ⇒ लोथल से एक चित्रित मृदभांड मिला है जिस पर कौआ और लोमड़ी का चित्र बनाया गया है इससे स्पष्ट होता है कि विष्णु शर्मा की रचना पंचतंत्र की कहानी से हड़प्पावासी परिचित थें ।
    ⇒ हड़प्पा काल में वस्त्र निर्माण उद्योग का प्रचलन था । मोहनजोदड़ो के उत्खनन से सुती वस्त्र का एक टुकड़ा का साक्ष्य मिला है।
    ⇒ हड़प्पावासी वस्त्र की सिलाई, रंगाई, छपाई आदि कला से भी परिचित थें। इसका प्रमाण धौलावीरा में मिला है।
    ⇒ हड़प्पावासी लोहा से परिचित नहीं थें इसके अन्य धातु जैसे- सोना, चाँदी, ताँबा, टीन, काँसा इत्यादि से परिचित थें ।
    ⇒ भारत में लोहा का प्रचलन पहली बार 1000 ई प. से आरंभ हुआ माना जाता है ।
    ⇒ वर्तामान के भारत में लोहा का पहला साक्ष्य उत्तरप्रदेश के अंतरंजी खेड़ा में देखने को मिला है।
    व्यापारः-
    ⇒ हड़प्पा काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार था। इस काल में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय दोनों प्रकार के व्यापार का प्रचलन था ।
    • हड़प्पा काल में सर्वाधिक विदेशी व्यापार मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ होता था ।
    ⇒ हड़प्पा एवं मेसोपोटामिया के बीच व्यापारिक क्षेत्र में दिलमुन तथा माकन मध्यस्ता का करता था। दिलमुन की पहचान आज की फारस की खाड़ी में स्थित बहरीन से की गई है जबकि माकन की पहचान मकरान तट से की गई है । 
    ⇒ हड़प्पा कालिन सबसे विकसित बंदरगाह के रूप में लोथल का विवरण मिलता है।
    ⇒ हड़प्पाकाल में व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली के आधार पर होता था । लेन-देन में मुहर का प्रयोग होता था जो सेलखड़ी की बनी हुई थी ।
    ⇒ मोहनजोदड़ो के उत्खनन से नृत्य करती हुई काँसे की नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है जो भ्रष्ट मोम तकनिक से बनी हुई है।
    ⇒ हड़प्पावासी माप-तौल आदी कला से भी परिचित थें। इस गिनती में 16 एवं उसके गुणज का प्रयोग होता था । जो दशमलव प्रणाली की सुचक है।
    ⇒ लोथल से तराजू का पल्ला जवकि मोहनजोदड़ो से बाट की प्राप्ति हुई है।
    क्र. सं. आयातित वस्तु प्रदेश
    1. ताँबा खेतड़ी, ब्लुचिस्तान
    2. चाँदी अफगानिस्तान, इरान
    3. टिन अफगानिस्तान
    4. सोना अफगानिस्तान, इरान, कर्नाटक
    5. गोमेद सौराष्ट्र
    6. लाजवर्त मेसोपोटामिया
    7. शीशा ईरान

    राजनीतिक जीवन:-

    हड़प्पा काल में स्पष्ट तौर पर किसी राजनीतिक संगठन का आभाष (उदय) नहीं हुआ था । इस काल में शासन प्रणाली राजतंत्रात्मक या जनतंत्रात्मक थी। इसको लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। इसी बीच व्हीलर नामक विद्वान ने यह कहा कि हड़प्पा काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली ना होकर जनतंत्रात्मक प्रणाली हुआ करता था । अधिकतर विद्वानों का मानना था कि हड़प्पा काल में व्यापारी या वाणिक वर्ग सबसे अधिक शक्तिशाली था जिस कारण काल में शासन-प्रशासन वाणिक वर्गो के हाथ में इस करता था।
    (1) हंटर के अनुसारः- "मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक ना होकर जनतंत्रात्मक था।"
    (2) व्हीलर के अनुसारः- "सिन्धु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।"

    हड़प्पा सभ्यता

    सामाजिक जीवन:-
    हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से जो साक्ष्य मिले हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि हड़प्पाकाल में संभ्वतः मातृसत्तात्मक समाज का प्रचलन था क्योंकि उत्खनन से बड़े पैमाने पर महिलाएँ की मूर्ति मिली है।
    ⇒ हड़प्पा काल के समाज में चार वर्ग के लोग रहते थें जैसे- (1) पुरोहित (विद्वान ) ( 2 ) योद्धा (3) व्यापारी (4) श्रमिक |  ।
    ⇒ हड़प्पा कालीन लोग शाकाहारी और माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थें |
    ⇒ लोथल से मछनी पकड़ने का काँटा, कालीबंगा से पशुओं की कटी हुई हड्डीका साक्ष्य मिला है।
    ⇒ हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थें। स्त्री और पुरूष दोनों आभूषण धारण करते थें |
    ⇒ हड़प्पा से ताँबे का दर्पण, काजल लगाने की सलाई तथा चन्हूदड़ों से लिपस्टिक का साक्ष्य मिला है।
    ⇒ यहाँ के लोग मनोरंजन के लिए चौपड़ और पासा खेलते थें |
    ⇒ लोथल से शतरंज के साक्ष्य मिले हैं जबकि हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से पासे की साक्ष्य मिले हैं
    ⇒ हड़प्पाकाल में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के तीन विधियाँ का प्रचलन था ।
    (1) पूर्ण समाधिकरणः- इसके तहत संपुर्ण शव को भूमि में दफना दिया जाता था । यह विधि सबसे ज्यादा प्रचलित थी ।
    (2) आंशिक समाधिकरणः- इसके अंतर्गत पशु-पक्षियों के खाने के बाद बचे शेष भाग को भूमि में दफना दिया जाता था ।
    (3) दाह-संस्कार 
    ⇒ हड़प्पा के उत्खनन से एक अनोखी कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है जिसे RH - 37 कब्रिस्तान नाम दिया गया है।
    ⇒ लोथल से युगल शवाधान का साक्ष्य मिले हैं।
    ⇒ रोपड़ से एक कब्र के भीतर मानव शरीर के साथ कुत्ता का शरीर का साक्ष्य मिला है।
    पतनः
    क्र. सं. विद्वान पतन के कारण
    1. गार्डन चाइल्ड एवं व्हीलर बह्य एवं आर्यो के आक्रमण
    2. जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके एवं S. R. राव बाढ़
    3. ऑरेल स्टेइन, अमलानंद घोष जलवायु परिर्वतन
    4. M.R. साहनी भूतात्विक परिवर्तन / जलप्लावना
    5. जॉन मार्सल प्रशासनिक शिथिलता
    6. के. यू. आर. कनेडी प्राकृतिक आपदा (मलेरिया, महामारी)
    • इसमें सर्वाधिक मान्य मत "बाढ़" को बताया गया है।
    • हाल ही हुए उत्खनन से IIT खड़गपुर को सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कुछ प्रमाण मिला है। इस प्रमाण के आधार पर कहा जा रहा है कि इस सभ्यता के पत्तन का अहम कारण जलवायु परिवर्तन को माना गया है।

    सिन्धु सभ्यता स्थलों से प्राप्त अवशेष एवं वस्तुएँ

    ♦ हड़प्पाः
    शवाधान पेटिका, RH - 37 कब्रिस्तान, शंख का बना बैल, पीतल की इक्का गाड़ी, स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा, गेहूँ व जौ के दाने, अन्नागार, स्वास्तिक एवं चक्र के साक्ष्य, तांबे का पैमाना, इत्यादि.......
    ♦ मोहनजोदड़ोंः
    वृहद स्नानागार, मातृदेवी की मूर्ति, काँसे की नर्तकी की मूर्ति, राज मुद्रांक, मुद्रा पर अंकित पशुपति नाथ की मूर्ति, सूति कपड़ा, हाथी का कपाल खंड, घोड़े के दाँत एवं गीली मिट्टी के दीये के साक्ष्य, गले हुए ताँबे के ढ़ेर, सीपी की बनी हुई पटरी, कुंभकारों के 6 भट्टो के अवशेष तथा मिट्टी का तराजू, सबसे बड़ी ईंट का साक्ष्य अदि..........
    ♦ चन्हूदरों:
    अलंकृत हाथी, वक्राकार ईंट, कंघा, लिपस्टिक, मेकप का समान, चार पहियों वाली गाड़ी, मनके, बिल्ली का पीछा करता हुआ कुत्ता, गुड़िया, शीशा, आदि......
    ♦ कालीबंगा:
    आयताकार 7 अग्नि वेदिकाएँ, जुते हुए खेत का साक्ष्य, काँच एवं मिट्टी की चुरियाँ, सिलबट्टा, सूती कपड़ो की छाप, माणिक्य एवं मनके, बेलनाकार मोहरें, मिट्टी के खिलौना, तथा प्रतीकात्मक समाधियाँ आदि..... ।
    ♦ लोथलः 
    बंदरगाह, धान (चावल) और बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, तीन युगल समाधियाँ, धान की भूसी, मनका उद्योग के साक्ष्य, ताँबे का कुत्ता, छोटा दिशा मापक यंत्र इत्यादि........
    ♦ सुरकोटदाः
    घोड़े की अस्थियाँ एवं विशेष प्रकार का कब्रगाह ।
    ♦ बनावलीः
    हल की आकृति वाले मिट्टी के खिलौने, जौ, ताँबे के बाणाग्र आदि......

    हड़प्पा सभ्यता

    ⇒ सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थलः- 
    क्र. सं. प्रमुख स्थल नदी प्रांत खोजकर्ता
    1. हड़प्पा रावी पंजाब प्रांत दयाराम साहनी
    2. मोहनजोदड़ो सिंधु सिंध प्रांत राखलदास बनर्जी
    3. चन्हुदड़ो सिंधु सिंध प्रांत गोपाल मजुमदार
    4. कालीबंगा घग्गर राजस्थान अमलानंद घोष, बी.बी. लाल, बी.के. थापर
    5. कोदीजी सिंधु सिंध प्रांत फजल अहमद खान
    6. सुतकागेंडोर दाश्क ब्लुचिस्तान ऑरेल स्टेइन
    7. रंगपुर भादर/ मादर गुजरात रंगनाथ राव
    8. धौलावीरा लूनी गुजरात R.S. बिस्ट, J.P. जोशी
    9. रोपड़ सतलज पंजाब यज्ञदत्त शर्मा
    10. राखीगढ़ी घग्गर हरियाणा सूरजभान
    11. आलमगीरपुर हिण्डन उत्तरप्रदेश यज्ञदत्त शर्मा
    हड़प्पा सभ्यता की लिपी:-
    हड़प्पा लिपि का पहला नमूना / प्रमाण 1853 में पता चला लेकिन यह 1923 ई. में प्रकाश में आया ।
    हड़प्पा लिपि का मूल चिन्ह - 64
    अक्षर- 200-400 
    हड़प्पा लिपि का नामकरण विद्वानों के द्वारा किया गया। उन्होंनें इसका नाम - पिक्टोग्राफ / चित्रात्मक/भावचित्रात्मक
    हड़प्पाई लिपि दाएँ से बाएँ की ओर लिखा जाता था ।
    हड़प्पा लिपि के प्रमाण से सबसे ज्यादा चित्र - U आकार तथा मछली का चित्र देखने को मिलता है।
    ⇒ कुछ महत्वपूर्ण तथ्य ( Some Important Points):
    • हड़प्पा सभ्यता के लोग शेर से परिचित नहीं थें ।
    • हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत एकमात्र "स्टेडियम" का पता धौलावीरा से लगा है।
    • स्वतंत्र भारत का पहला उत्खनित स्थल रोपड़ है । यह वर्तमान भारत के पंजाब प्रांत में स्थित है।
    • मोहनजोदड़ो को नखलिस्तान का भाग भी कहा जाता है।
    • पुजारी के प्रस्तर का प्रमाण मोहनजोदड़ों से मिला है।

    वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization)

    भूमिका:
    सैंधव सभ्यता के पश्चाप भारत में जिस सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ उसे वैदिक सभ्यता या आर्य सभ्यता की हैं। इस सभ्यता के निर्माता आर्य था। इस सभ्यता का ज्ञान वेदों से होता है, जिसमें ऋग्वेद सर्वप्राचीन होने के कारण सबसे महत्वपूर्ण है ।
    वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा विकसित एक ग्रामीण सभ्यता थी । आर्यो की भाषा संस्कृत थी। आर्य का शाब्दिक अर्थ श्रेष्ठ या कुलीन होता है । सर्वप्रथम मैक्समूलर ने 1853 ई. में आर्य शब्द का प्रयोग एक श्रेष्ठ जाति के रूप में किया ।

    ऋग्वैदिक काल (1500 बी. सी. 1000 बी.सी.):-
    इस काल में ऋग्वेद की रचना हुई जो कि इस काल के जानकारी के विषय में एकमात्र स्त्रोत है ।
    ⇒ सिन्धु सभ्यता के विपरीत वैदिक सभ्यता मुलतः ग्रामीण सभ्यता थी । आर्यो का आरंभिक जीवन पशु चारण पर आधारित था ।
    ⇒ ऋग्वेद की अनेक बातें ईरान की मूल ग्रंथ जेन्द अवेस्ता से मिलती जुलती है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वैदिक आर्य इरान से होकर भारत आयें थें ।
    नोट- यूनेस्को ने "ऋग्वेद" को विश्व मानव धरोहर के साहित्य में शामिल किया है ।
    • आर्यो का मूल निवास स्थानः
    क्र. सं. विद्वान निवास स्थान 
    1. प्रो. मैक्समूलर मध्य एशिया (बैक्ट्रिया)
    2. बाल गंगाधर तिलक उत्तरी ध्रुव
    3. दयानंद सरस्वती तिब्बत
    4. पेन्का जर्मनी
    5. गाइल्स हंगरी
    6. अविनाश चंद्र दास सप्त सैंधव प्रदेश
    • समान्यतः यह माना जाता है कि आर्य मध्य एशिया के निवासी थें |
    भौगोलिक दशाः-
    आर्यो के आरंभिक इतिहास की जानकारी का मुख्य स्त्रोत ऋगवेद है। ऋग्वेद में आर्य के निवास स्थल के लिए सप्त सैंधव क्षेत्र का उल्लेख मिलता है, जिसका अर्थ है- सात नदियों का क्षेत्र । ये नदियाँ है - सिंधु, सरस्वती, शतुद्रि, विपासा, परूषणी, वितस्ता, अस्किनी ।
    ⇒ ऋग्वेद में कुल 25 नदियों का विवरण मिलता है। इस काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु, जबकि सबसे पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है, जिसे देवीतमा, मातेतमा एवं नदीतमा भी कहा जाता है। ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार, जबकि यमुना नदी का तीन बार उल्लेख हुआ है।
    ⇒ ऋग्वेद में हिमालय पर्वत एवं इसकी एक चोटी मुजवत का भी उल्लेख किया गया है।
    • ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ:
    क्र. सं. प्रचीन नाम आधुनिक नाम
    1. परूषणी रावी
    2. शतुद्रि सतलज
    3. अस्किनी चिनाब
    4. वितस्ता झेलम
    5. विपासा व्यास
    6. गोमती गोमल
    7. कुंभा काबल
    8. सदानीरा गंडक
    9. सिन्धु इण्डस 
    10. कुमु कुर्रम
    ⇒ वैदिक काल के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत वैदिक साहित्य है। वैदिक साहित्य की रचना 1500 बी.सी. - 600 बी.सी. के बीच हुआ। वैदिक साहित्य के अंतर्गत वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, अरण्यक, उपनिषद आता है।
    ⇒ वैदिक साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण वेद है। वेद का शाब्दिक अर्थ पवित्र ज्ञान या जानना होता है |
    ⇒ वेद की रचना ईश्वर से किया है इसीलिए वेद को अपौरूषेय कहा गया है। वेद की रचना संस्कृत भाषा में हुई वेदव्यास ने किया । वेद का संकनल गुप्तकाल में वेद की संख्या 4 है- 
    (1) ऋग्वेद
    (2) यजुर्वेद
    (3) सामवेद
    (4) अथर्ववेद
    ऋग्वेद:- 
    यह सभी वेदों में सबसे प्राचीन है। इसमें 10 मंडल, 1028 सुक्त, और 10580 ऋचाएँ हैं। वेद के पढ़ने वाले ऋषि को "होतृ" कहते हैं ।
    ⇒ ऋग्वेद का सबसे पुराना मंडल दूसरा तथा सातवाँ है, जबकि सबसे नया मंडल पहला तथा दशवाँ है ।
    ⇒ ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का उल्लेख है जिसकी रचना विश्वामित्र ने किया है ।
    ⇒ 7वाँ मंडल- भगवान विष्णु
    ⇒ 9वाँ मंडल - सोम (शिव)
    ⇒ 10वाँ मंडल— ब्रह्मा और चातुष्वर्ण्य समाज

    वैदिक सभ्यता

    ⇒ यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना उत्तरवैदिक काल में हुई ।
    यजुर्वेद:-
    इसमें यज्ञों के नियमों व विद्यानों का संकलत है। इसीलिए इसे कर्मकांडीय वेद भी कहा जाता है।
    ⇒ यजुर्वेद गद्य और पद्य दोनों में है। यजुर्वेद के दो भाग है:-
    (1) शुल्क यजुर्वेद ( केवल पद्य)
    (2) कृष्ण यजुर्वेद ( यह गद्य एवं पद्य दोनों में है !)
    ⇒ यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को अर्ध्वयु कहा जाता है ।
    ⇒ इस वेद में कुल 1990 मंत्र संग्रहीत है।
    ⇒ यजुर्वेद के प्रमुख उपनिषद - कपोपनिषद, मैत्रायत्री और श्वेताश्वरूपनिषद
    • सभवेदः-
    साम का अर्थ गान होता है। असमें मुख्यतः यज्ञो के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है। सात स्वरों (सा, रे, ग, म, प, ध, नि ) की उत्पत्ति इसी से हुई है।
    ⇒ सामवेद में कुल 1875 ऋचाएँ हैं।
    ⇒ सामवेद में मूल रूप से 99 मंत्र है, शेष ऋग्वेद से लिए गए हैं।
    ⇒ सामवेद के मंत्रों के उच्चारण करने वाले ऋषि को उद्गाता कहा जाता है। इसमें मुख्यतः सूर्य के स्तुति का मंत्र है ।
    ⇒ सामवेद के प्रमुख उपनिषद - छांदोगय तथा जैमिनीय
    • अथर्ववेदः-
    यह सबसे आधुनिक वेद है। इसकी रचना अथर्वा ऋषि के द्वारा किया गया। इसमें 731 सुक्त, 20 अध्याय तथा लगभग 6000 मंत्र है ।
    ⇒ इसमें आर्यो के साथ-साथ अनार्यो का भी उल्लेख है ।
    ⇒ इस वेदों में जादू-टोना, रोग निवारण, तंत्र-मंत्र, औषधि प्रयोग इत्यादि का विवरण मिलता है ।
    ⇒ इसमें सभा और समिति को प्रजापति के दो पुत्री की संज्ञा दिया गया है।
    ⇒ इस वेद के पाठकर्ता को ब्रह्मा कहा जाता है ।
    • अथर्ववेद का उपनिषदः - मुंडकोपनिषद प्रश्नोपनिषद तथा मांडूक्योपनिषद
    नोट- इन चारों वेदों को संहिता कहा जाता है।

    वैदिक सभ्यता

    राजनीतिक स्थितिः
    • ऋग्वैदिक समाज कबीलाई व्यवस्था पर आधारित था । कबीले का एक राजा होता था जिसे गोप कहा जाता था ।
    • आर्यो को पंचजन भी कहा गया है, क्योंकि इनके पाँच कबील (कुल) थें- अनु, द्रुहु, पुरू, तुर्वस तथा यदु ।
    • आर्यो की प्रशासनिक इकाई पाँच वर्गों में विभक्त था जिसका कर्म कुल, ग्राम, विश, जन और राष्ट्र । 
    • इस काल में अनेक जनतांत्रिक संस्थाओं का विकास हुआ जिनमें सभा समिति, और विदथ प्रमुख था । इसमें सबसे बड़ी प्रशासनिक संगठन के रूप में जन का विवरण मिलता है।
    • ऋग्वैदिक काल की सबसे प्राचीन जनतांत्रिक संगठन विदथ । (122 ) - आमजन का संगठन
    • इस काल में सभा और समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी ।
    • सभा ( 8 ) :- सभा संभ्रात एवं श्रेष्ठ लोगों का संगठन था ।
    • समिति ( 9 ) :- यह आमजन का संगठन था ।
    • ऋग्वेद में शतदाय शब्द का विवरण मिलता है। इसका अर्थ होता है किसी व्यक्ति के जान की कीमत 100 गाय ।
    • ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को द्विज कहा गया है, जिसके तहत् इन जातियों को जनेऊ पहनने का अधिकार था ।
    • इस काल में बलि एक प्रकार का कर था जो प्रजा स्वेक्षा से राजा को देता था । इस समय राजा के पास स्थायी सेना नहीं होता था ।
    • ऋग्वेद में राजा को "गौप्ता जनस्य" अर्थात कबीले का संरक्षक कहा जाता था । 
    • इस काल में 'गाय' को पवित्र पशु माना जाता था।
    • आर्यो की अधिकांश लड़ाइयाँ गायों को लेकर ही हुई है।
    • गाय के लिए अधन्या (ना मारे जाने योग्य पशु) माना जाता था । गविष्टि गाय की महत्ता बताने वाला शब्द है । गाय की हत्या करने वालों के लिए वेदों में मृत्युदंड अथवा देश से निकाले जाने की व्यवस्था थी ।
    • पणि नामक व्यापारी गाय की चोरी के लिए कुख्यात था।
    • पुत्री को दुहिता कहा जाता था क्योंकि वही गाय का दूध दुहती थी ।
    • घोड़ा आर्य समाज का अति उपयोगी पशु था ।
    • व्यापार पर पणि का अधिकार था । व्यापार मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली द्वारा होता था ।
    • इस काल में सूदखोर को वेकनॉट कहा जाता था ।

    परिशिष्ट

    • प्रार्थना को सूक्त कहा जाता था जिसका अर्थ होता है अच्छी तरह से बोला गया ।
    • वैदिक काल में ऋग्वेद का उच्चारण किया जाता था, श्रवण किया जाता था लेकिन ध्यान रहें पढ़ा नहीं जाता क्योंकि वेदों की रचना कई शताब्दी बाद हुआ ।

    विविध

    • दस्यु वे लोग थें जो यज्ञ नहीं करते थें तथा दूसरी भाषा बोलते थें ।
    • दास - युद्ध में बंदी बनायें गये पुरूष व स्त्री होते थें ।
    • ऋग्वेद की रचना- सप्त सैंधव क्षेत्र में, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना - गंगा-यमुना के क्षेत्र में ।
    • जनपद का शाब्दिक अर्थ - जन के बसने की जगह है ।
    • ऋग्वैदिक आर्यो की धर्म - प्रकृति पूजा और यज्ञ था।
    • शतपथ ब्राह्मण से संबंधित राजा विदेह माधव से संबंधित ऋषि गौतम रहुगण था ।
    • आर्यो के आर्कटिक होम सिद्धांत तिलक द्वारा दिया गया।
    • सभी स्मृति ग्रंथों में सबसे प्राचीन मनुस्मृति है जो समाज व्यवस्था से संबंधित है।
    • तीन पगों में तीनों लोक को माप लेने के कारण विष्णु को उपक्रम कहा गया है।
    • ऋग्वैदिक काल से संबंधित मृदभांड - गोरूवर्णी मृदभांड है।
    • उत्तरवैदिक काल से संबंधित - चित्रित धूसर मृदभांड है।
    • मैत्रायणी संहिता में नारी को सुरा और पांसा के साथ तीन प्रमुख बुराइयों में शामिल किया गया है।
    • सबसे प्राचीनतम पुराण मत्स्य पुराण है।
    • वैदिक सुग में जौ को "यव" जबकि चावल को "व्रीहि" कहा जाता था ।
    • प्रथम विधि निर्माता मनु था।
    • कृष्ण भक्ति का प्रथम और प्रधानग्रंथ श्रीमद्भागवतगीता है।
    • दशराज युद्ध परूषणी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया था।
    • धर्म शास्त्रों में भू-राजस्व का दर 1/6 था ।
    • 800 बी.सी. – 600 बी. सी. - ब्राह्मण युग
    • उत्तरवैदिक काल के वेद विरोधी और ब्राह्मण विरोधी धार्मिक अध्यापकों को श्रमण कहा जाता था ।
    • असतो माँ सद्गमय ऋग्वैद से लिया गया है
    • अछूत की अवधारणा स्पष्ट रूप से उदित धर्मशास्त्र के काल में हुई ।
    • वैदिक युग में प्रचलित लोकप्रिय शासन प्रणाली गणतंत्र थी ।
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    Sat, 13 Apr 2024 06:29:11 +0530 Jaankari Rakho