संसोधन संख्या एवं वर्ष | संविधान के संसोधित प्रावधान |
प्रथम संसोधन अधिनियम, 1951 |
1. सामाजिक और आर्थिक तथा पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिए विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्ति प्रदान की गई।
2. कानून की रक्षा के लिए संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था ।
3. भूमि सुधार एवं न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानून को नौवीं सूची में स्थान
4. विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तीन और प्रमुख कारणों से प्रतिबंध की कवायद, जैसे- लोक आदेश, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, किसी अपराध के लिए भड़काना । प्रतिबंधों को तर्कसंगत बनाया और इस प्रकार से न्याययोज्य हैं ।
5. यह व्यवस्था की कि राज्य टेडिंग और राज्य द्वारा किसी व्यापार या व्यवसाय के अधिकार का उल्लंधन करता है ।
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द्वितीय संसोधन अधिनियम, 1952 | लोकसभा में एक सदस्य के प्रतिनिधित्व को 7,50,000 लोगों से अधिक किया गया । |
तृतीय संसोधन अधिनियम, 1954 | संसद को खाद्य पदार्थ, पशुचारा, कच्चा कपास, कपास के बीज एवं कच्चे जूट के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर नियंत्रण के लिए लोक हित में शक्तिशाली बनाया गया। |
चौथा संसोधन अधिनियम, 1955 |
1. निजी संपत्ती के अनिवार्य अधिग्रहण के स्थान पर दी जाने वाली क्षतिपूर्ती की प्रमात्रा को न्यायालय की जाँच से बाहर किया गया।
2. किसी व्यापार को राष्ट्रीयकृत बनाने के लिए राज्यों को अधिकार ।
3. नौवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों की बढ़ोतरी ।
4. अनुच्छेद 31क के क्षेत्र में विस्तार (विधियों की व्यावृत्ति ) ।
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पांचवां संसोधन अधिनियम, 1955 | राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदान की गई की वह राज्यों के क्षेत्र, सीमा और नामों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावित केन्द्रीय विधान पर अपने मत देने के लिए राज्यमण्डलों हेतु समय-सीमा का निर्धारण करें । |
छठा संसोधन अधिनियम, 1956 | केंद्रीय सूची में नए विषयों का जुड़ाव, जैसे- अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के तहत वस्तुओं की खरीद-बिक्री पर कर और इसी संबंध में राज्यों की शक्तियों पर पाबंदियों । |
7वां संसोधन अधिनियम, 1956 |
1. राज्यों के चार वर्गो की समाप्ति; जैसे- भाग - क, भाग-ख, भांग-ग और भाग- घ इनके स्थान पर 14 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेशों की स्वीकृति ।
2. केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालयों के न्यायक्षेत्र का विस्तार ।
3. दो या उससे अधिक राज्यों के बीच सामूहिक न्यायालय की स्थापना ।
4. उच्च न्ययालय में अतिरिक्त न्यायाधीश एवं कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था ।
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8वां संसोधन अधिनियम, 1960 | अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण व्यवस्था में विस्तार और आंग्ल भारतीय प्रतिनिधि की लोकसभा एवं विधानसभाओं में दस वर्ष के लिए बढ़ोतरी | ( 1970 तक) |
9वां संसोधन अधिनियम, 1960 | भारत-पाक समझौते (1958) के अनुसार पाकिस्तान को बेरूबाड़ी संघ ( पश्चिम बंगाल स्थित ) के भारतीय राज्यक्षेत्र का समपर्ण । |
10वां संसोधन अधिनियम, 1961 | दादरा और नागर हवेली को भारतीय संघ में जोड़ना । |
11वां संसोधन अधिनियम, 1961 |
1. उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तनः संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था ।
2. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मण्डल में. रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती ।
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12वां संसोधन अधिनियम, 1962 | गोवा, दमन और दीव भारतीय संघ में शामिल । |
13वां संसोधन अधिनियम, 1962 | नागालैंड को राज्य का दर्जा और इसके लिए विशेष उपबंध । |
14वां संसोधन अधिनियम, 1960 |
1. पुदुचेरी भारतीय संघ में शामिल ।
2. हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन और दीव तथा पुडुचेरी के हल विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद की व्यवस्था ।
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15वां संसोधन अधिनियम, 1963 |
1. उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति या प्राधिकरण के खिलाफ । राज्यों के बाहर भी दायर करने का अधिकार रिट । यदि इसका कारण उसके क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ हो ।
2. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष ।
3. उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की उच्चयालय में कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था ।
4. एक उच्च न्यायालय से दूसरें में स्थानांतरण पर न्यायाधीशों को क्षतिपूरक भत्तों का भुगतान ।
5. उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उच्चतम न्यायालय में अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था |
6. उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की उम्र के निर्धारण हेतु प्रक्रिया की व्यवस्था ।
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16वां संविधान संसोधन, 1963 |
1. राज्यों को वाक् और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन और राष्ट्र की सुप्रभुता और अखंडता के हितों में संगम बनाने के अधिकारों पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की शक्ति प्रदान की गई ।
2. विधानमंडल के निर्वाचन में भाग लेने वाले अभ्यार्थियों, विधानमंडल के सदस्यों, मंत्रियों, न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक और लेखा परीक्षक द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप और संप्रभुत्व और अखंडता को शामिल किया गया ।
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17वां संविधान संसोधन, 1964 |
1. यदि भूमि का बाजार मूल्य बतौर मुआवजा न दिया जाए हो तो व्यक्तिगत हितों के लिए भू-अधिग्रहण प्रतिबंधित ।
2. नौवीं अनुसूची में 44 और अधिनियमों की बढ़ोतरी ।
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18वां संविधान संसोधन, 1966 | इस शक्ति को स्पष्ट कर दियागया कि संसद को राज्य निर्माण का अधिकार है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि दो राज्यों को पृथक् का अधिकार भी उसमें निहित है। |
19वां संविधान संसोधन, 1966 | निर्वाचन अधिकरणों की व्यवस्था समाप्त और उच्च न्यायालयों को निर्वाचन याचिका पर सुनवाई की शक्ति प्रदान । |
20वां संविधान संसोधन, 1966 | उत्तर प्रदेश में कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता, जिनको उच्चतम न्यायालय ने अवैध घोषित किया था । |
21वां संविधान संसोधन, 1967 | सिंधी भाषा आठवीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल | |
22वां संविधान संसोधन, 1969 | असम में से एक अलग स्वायत्त राज्य मेघालय का निर्माण । |
23वां संविधान संसोधन, 1969 | अनुसूचित जाति / जनजाति एवं आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधित्व को लोकसभा एवं विधानसभा में इनके प्रतिनिधित्व की और अतिरिक्त दस वर्ष के लिए बढ़ोतरी ( 1980 तक) |
24वां संविधान संसोधन, 1971 |
1. संसद को यह अधिकार कि वह संविधान के किसी भी हिस्से का, चाहे वह मूल अधिकार हो, संसोधन कर सकती है।
2. राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संसोधन विधेयक को मंजूरी दी जानी जरूरी ।
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25वां संविधान संसोधन, 1971 |
1. संपत्ति के मूल अधिकार में कटौती।
2. अनुच्छेद 39 (ख) या ग में वर्णित निदेशक तत्वों को प्रभावी करने के लिए बनाई गई किसी भी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि अनुच्छेद 14, 19 और 31 द्वारा अभिनिश्चित अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौति नहीं दी जा सकती ।
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26वां संविधान संसोधन, 1971 |
प्रीवी पर्स और प्रांतीय राज्यों के पूर्व शासकों के विशेषाधिकार की समाप्ति ।
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27वां संविधान संसोधन, 1971 |
1. कुछ केंद्रशासित राज्यों के प्रशासकों को अध्यादेश जारी करने के प्रति शक्तिशाली बनाया गया ।
2. नए केंद्रशासित प्रदेशों अरुणाचल प्रदेश एवं मिजोरम के लिए कुछ विशेष उपबंध ।
3. नए राज्य मणिपुर के लिए विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद निर्माणा के लिए संसद को अधिकार ।
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28वां संविधान संसोधन, 1972 |
आईसीएस अधिकारियों के लिए विशेष विशेषाधिकारों को समाप्त कर संसद को उनकी सेवा शर्ते तय करने का अधिकार ।
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29वां संविधान संसोधन, 1972 |
नौवीं अनुसूची में दो केरल भू-सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया।
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30वां संविधान संसोधन, 1972 |
नगरिक अधिकार संबंधित मामलों में उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए 20,000 रूपये की जरूरत खत्म एवं यह व्यवस्था दी कि यदि विधि की वास्तविक व्याख्या का कोई मामला हो तो ही उच्चतम न्यायालय में अपील हो सकती है।
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31वां संविधान संसोधन, 1972 |
लोकसभा सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 |
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32वां संविधान संसोधन, 1973 |
आंध्रप्रदेश में तेलंगना क्षेत्र के लोगों की आकांक्षा के अनुसार उनकी संतुष्टि के लिए विशेष उपबंध |
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33वां संविधान संसोधन, 1974 |
संसद या विधानमंडल के अध्यक्ष / सभापति द्वारा किसी सदस्य के इस्तीफे को मंजूर करने की व्यवस्था, यदि वह महसूस करें कि त्यागपत्र स्वैच्छिक या वास्तविक है।
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34वां संविधान संसोधन, 1974 |
नौवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों के बीच भू-सुधार एवं भू-पट्टेदारी (Land tenure) अधिनियम शामिल ।
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35वां संविधान संसोधन, 1974 |
सिक्किम की संरक्षण व्यवस्था को वर्खास्त करते हुए उसे भारतीय संघ का सहयोगी राज्य बनाया गया। भारतीय राज्य में सिक्किम को जोड़े जाने की सेवा शर्तों के लिए 10वीं अनुसूची को जोड़ा गया।
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36वां संविधान संसोधन, 1975 |
सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बनाकर दसवीं अनुसूची को समाप्त कर दिया गया।
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37वां संविधान संसोधन, 1975 |
केंद्रशासित राज्य अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद की व्यवस्था ।
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38वां संविधान संसोधन, 1975 |
1. राष्ट्रपति के द्वारा आपातकाल की घोषणा गैर-वाद योग्य घोषित ।
2. राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों द्वारा जारी अध्यादेश गैर-वाद योग्य घोषित ।
3. राष्ट्रपति को विभिन्न आधारों पर राष्ट्रीय आपातकाल की विभिन्न घोषनाएँ करने की शक्ति प्रदान की गई।
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39वां संविधान संसोधन, 1975 |
1. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित विवादों को न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया। इन सबका निर्धारण संसद द्वारा निर्धारित प्राधिकरण के द्वारा किया जायेगा ।
2. नौवीं अनुसूची में कुछ केंद्रीय अधिनियमों का समायोजन ।
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40वां संविधान संसोधन, 1976 |
1. संसद समुद्रीय जल, महाद्वीपीय मग्रंतट, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (एस ई जैड) और भारत की समुद्री जोनों की सीमाओं के समय-समय पर निर्धारण की शक्ति ।
2. ज्यादातर भू - सुधार से संबंधित 64 और अन्य केंद्र और राज्य विधियों को नौवीं सूची में शामिल किया गया ।
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41वां संविधान संसोधन, 1976 |
राज्य लोक सेवा आयोग एवं संयुक्त सेवा आयोग के सदस्यों की आयु सीमा 60 से 62 वर्ष की गई ।
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42वां संविधान संसोधन, 1976 |
1. तीन नए शब्द जोड़े गए (समाजवादी, धर्म निरपेक्ष एवं ( सबसे महत्वपूर्ण संसोधन इसे. लघु संविधान के रूप में अखंडता ). जाना जाता है। इससे स्वर्ण सिंह समिति के सिफारिशों को प्रभावी बनाया ।)
2. नागरिकों द्वारा मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया। ( नया भाग 4क)
3. राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह के लिए बाध्यता ।
4. प्रशासनिक अधिकरणों एवं अन्य मामलों पर अधिकारों की व्यवस्था (भाग 12 ( 5 ) जोड़ा गया )
5. 1971 की जनगनणा के आधार पर 2001 तक लोकसभा सीटों एवं राज्य विधानसभा सीटों को निश्चित किया गया ।
6. संवैधानिक संसोधन को न्यायिक जाँच से बाहर किया गया।
7. न्यायिक समीक्षा एवं रिट न्यायक्षेत्र में उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों की शक्ति में कटौती |
8. लोकसभा एवं विधानसभा के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ग की बढ़ोतरी ।
9. निदेशक तत्वों के कार्यान्वयन हेतू बनाई गई विधियों को न्यायालय द्वारा इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है कि ये कुछ मूल अधिकारों का उल्लंधन हैं ।
10. संसद को राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में कार्यवाही करने के लिए विधियां बनाने की शक्ति प्रदान की गई और ऐसी विधियाँ मूल अधिकारों पर अभिभावी होगी ।
11. तीन नए निदेशक तत्व जोड़े गए अर्थात समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना, पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा।
12. भारत के किसी एक भाग में राष्ट्रीय आपदा की घोषणा ।
13. राज्य में राष्ट्रपति शासन के कार्यकाल में एक बार 6 माह से एक साल तक बढ़ोतरी ।
14. केंद्र को किसी राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैन्य बल भेजने की शक्ति |
15. पाँच विषयों का राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरण, जैसे- शिक्षा, वन, वन्य जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन एवं उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों का गठन और संगठन ।
16. संसद और विधानमंडल में कोरम की आवश्यकता की समाप्ति ।
17. संसद को यह निर्णय लेने में शक्ति प्रदान की कि समय-समय पर अपने सदस्यों एवं समितियों के अधिकार एवं विशेषाधिकार का निर्धारण करे ।
18. अखिल भारतीय विधिक सेवा के निर्माण की व्यवस्था ।
19. सिविल सेवक को दूसरे चरण पर जाँच के उपरांत प्रतिवेदन के अधिकार को समाप्त कर अनुशासनात्मक कार्यवाही को छोटा किया गया । (प्रस्तावित दण्ड के मामले में)
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43वां संविधान संसोधन, 1977 (जनता सरकार द्वारा 1976 में 42वें संसोधन के मामलों को रद्य के संदर्भ में) |
1. न्यायिक समीक्षा एवं रिट जारी करने के संबंध में उच्चतम न्यायलयों एवं उच्च न्यायालयों के न्याय क्षेत्र का पुनर्सयोजन ।
2. राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति हटा दी गई।
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44वां संविधान संसोधन, 1978 ( 42वां संसोधन के तहत कुछ मामलों को रद्द करने के संदर्भ में जनता सरकार द्वारा प्रभावी) |
1. लोकसभा एवं राज्य विधानमंडल के कार्यकाल को पूर्ववत् रखा गया (5 वर्ष)
2. संसद एवं राज्य विधानमंडल में कोरम के उपबंध को पूर्ववत रखा।
3. संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
4. संसद एवं राज्य विधानमंडल की कार्यवाही की रिपोर्ट के समाचारपत्र में प्रकाशन के लिए सांविधानिक संरक्षण प्रदान किया गया।
5. कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिए एक बार राष्ट्रपति को भेजने की शक्ति, परंतु पुनर्विचार के बाध्य यह बाध्यकारी होगी ।
6. अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रशासक की संतुष्टि के उपबंध को समाप्त किया गया ।
7. उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की कुछ शक्तियों को फिर से प्रदान किया गया।
8. राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में 'आंतरिक अशांति' शब्द के स्थान पर 'सशस्त्र विद्रोह शब्द रखा गया ।
9. राष्ट्रपति के लिए यह व्यवस्था बनाई गई कि वह केवल कैबिनेट की लिखित सिफारिश पर ही आपातकाल घोषित कर सकता है।
10. राष्ट्रीय आपात और राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सुरक्षा की दृष्टि से कुछ और व्यवस्थाएँ बनाई 1
11. मूल अधिकारों की सूची से संपत्ति का अधिकार समाप्त किया गया और इसे केवल विधिक अधिकार बनाया गया।
12. अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा सकता ।
13. उस उपबंध को हटाया गया जिसने न्यायालय के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवाद मामलों पर निर्णय देने की शक्ति छीन ली थी ।
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45वां संविधान संसोधन, 1980 |
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण एवं लोकसभा व विधानसभा में आंग्ल-भारतीयों के विशेष प्रतिनिधित्व को और दस वर्ष के लिए ( 1990 तक) बढ़ाया गया ।
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46वां संविधान संसोधन, 1982 |
1. राज्यों को विधियों में कमियों को समाप्त करने और ब्रिक्री कर बकायों को वसूलने में समर्थ बनाया गया।
2. कुछ वस्तुओं पर एक समान कर दर की व्यवस्था ।
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47वां संविधान संसोधन, 1984 |
नौवीं अनुसूची में कुछ राज्यों के 14 भू-सुधार अधिनियमों को जोड़ा गया ।
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48वां संविधान संसोधन, 1984 |
पंजाब में राष्ट्रपति शासन को ऐसे विस्तार हेतु दो विशेष शर्तो को पूरा किए बिना एक वर्ष से अधिक वर्षो के लिए बढ़ाया जाना ।
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49वां संविधान संसोधन, 1984 |
त्रिपुरा में स्वायत्त जिला परिषद को संवैधानिक मंजूरी ।
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50वां संविधान संसोधन, 1984 |
आसूचना संगठनों और सशस्त्र बलों या आसूचना हेतू स्थापित दूरसंचार प्रणालियों में कार्यरत व्यक्तियों के मूल अधिकारों को प्रतिबंधित करने की संसद को शक्ति ।
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51वां संविधान संसोधन, 1984 |
मेघालय, अरुणाचलप्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के लिए लोकसभा में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था । इसी तरह नागालैंड मेघालय की विधानसभा में व्यवस्था ।
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52वां संविधान संसोधन, 1985 (इसे दल-बदल विरोधी विधि के रूप में जाना जाता है।) |
इसके तहत् संसद एवं राज्य विधानमंडल के सदस्यों को दल-बदल के मामले में निरर्हक ठहराने की व्यवस्था है इसके विस्तार से दसवीं अनुसूची को जोड़ा गया है ।
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53वां संविधान संसोधन, 1986 |
मिजोरम के विशेष उपबंध एवं इसकी विधानसभा के लिए न्यूनतम 40 सदस्यों की व्यवस्था ।
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54वां संविधान संसोधन, 1986 |
उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में बढ़ोतरी और भविष्य में संसद को साधारण विधि द्वारा इसमें परिवर्तन का अधिकार ।
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55वां संविधान संसोधन, 1986 |
अरुणाचल प्रदेश के लिए विशेष व्यवस्था बनाते हुए इसके विधानसभा सदस्यों की संख्या निश्चित की गई।
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56वां संविधान संसोधन, 1987 |
गेवा विधानसभा सदस्यों की संख्या 30 निश्चित की गई ।
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57वां संविधान संसोधन, 1987 |
अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड विधानसभा में अनुसूचित जनजाति की सीटों का आरक्षण ।
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58वां संविधान संसोधन, 1987 |
हिन्दी भाषा में संविधान का प्राधिकृत पाठ उपलब्ध कराया गया और संविधान के हिन्दी पाइ समान विधिक मान्यता प्रदान की गई।
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59वां संविधान संसोधन, 1988 |
1. पंजाब में राष्ट्रपति शासन का तीन वर्ष के लिए विस्तारं ।
2. आंतरिक अशांति के आधार पर पंजाब में राष्ट्रीय आपात की घोषणा ।
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60वां संविधान संसोधन, 1988 |
व्यवसाय, वृति और रोजगारों पर करों की सीमा को 250 रु. प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2500 रु. प्रतिवर्ष किया गया ।
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61वां संविधान संसोधन, 1989 |
लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में मतदान की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई।
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62वां संविधान संसोधन, 1989 |
अनुसूचित जाति एवं जनजाति का आरक्षण एवं लोकसी एवं विधानसभा में आंग्ल-भारतीयों को प्रतिनिधित्व में 10 वर्ष (वर्ष 2000 तक) वृद्धि |
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63वां संविधान संसोधन, 1989 |
59वां संसोधन अधिनियम, 1988 के तहत पंजाब के संबंध में किये गयें परिवर्तन निरस्त किये गये। दूसरे शब्दों में, पंजाब में आपातकाल की व्यवस्था अन्य क्षेत्रों के समान की गई ।
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64वां संविधान संसोधन, 1990 |
पंजाब में राष्ट्रपति शासन का विस्तार साढ़े तीन साल के लिए कर दिया गया ।
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65वां संविधान संसोधन, 1990 |
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग में विशेष अधिकारी के स्थान पर बहुसदस्यीय व्यवस्था का उपबंध किया गया ।
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66वां संविधान संसोधन, 1990 |
नौवीं सूची में विभिन्न राज्यों के 55 भू - सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया।
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67वां संविधान संसोधन, 1990 |
पंजबा में राष्ट्रपति शासन का चार वर्ष के लिए विस्तार
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68वां संविधान संसोधन, 1991 |
पंजबा में राष्ट्रपति शासन का पाँच वर्ष के लिए विस्तार
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69वां संविधान संसोधन, 1991 |
केंद्रशासित राज्य दिल्ली को विशेष दर्जा देते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनाया गया। इस संसोधन में दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा एवं 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद की व्यवस्था भी की गई।
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70वां संविधान संसोधन, 1992 |
राष्ट्रपति के निर्वाचन में निर्वाचन कॉलेज के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली विधानसभा के सदस्यों एवं केंद्रशासित राज्य पुड्डुचेरी को भी शामिल किया गया ।
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71वां संविधान संसोधन, 1992 |
कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया । |इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या बढ़कर 18 हो गई।
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72वां संविधान संसोधन, 1992 |
त्रिपुरा विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था ।
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73वां संविधान संसोधन, 1992 |
पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस उदेश्य के लिए संसोधन में नया भाग - 9 जोड़ा गया जिसे 'पंचायत' नाम दिया गया और नई 11वीं अनुसूची में पंचायत की 29 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई ।
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74वां संविधान संसोधन, 1992 |
शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस | उदेश्य के लिए संसोधन ने नया भाग 9क जोड़ा जिसे 'नगरपालिकाएं' नाम दिया गया और नई 12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं की 18 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई।
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75वां संविधान संसोधन, 1994 |
किराया न्यायालय की स्थापना जो किराया विवादों को सुलझाएं। यह न्यायालय किराया मामलों में मकान मालिक एवं किरायेदार के हितों के संबंध में नियामक एवं नियंत्रण स्थापित करेगें ।
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76वां संविधान संसोधन, 1994 |
तामिलनाडू आरक्षण अधिनियम, 1994 को (जो राज्य के शैक्षणिक संस्थानों एवं राज्य सेवाओं को 69 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराता है ।) नौवीं अनुसूची में न्यायायिक समीक्षा से संरक्षण के लिए जोड़ा गया। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
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77वां संविधान संसोधन, 1995 |
सरकारी नौकरियों में अनुयूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की प्रोन्नति के लिए आरक्षण की व्यवस्था । इस संसोधन ने उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रोन्नति के संबंध में दिए गए निर्णय को समाप्त कर दिया ।
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78वां संविधान संसोधन, 1995 |
नौवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों के 27 और भूमि सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया। इसके बाद इस अनुसूची में कुल अधिनियमों की संख्या बढ़कर 282 हो गई। परंतु अंतिम प्रविष्टि संख 284 है।
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79वां संविधान संसोधन, 1999 |
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षण एवं लोकसभा व विधानसभाओं मं आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधित्व को और 10 साल के लिए ( 2010 तक) बढ़ाया गया।
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80वां संविधान संसोधन, 2000 |
केंद्र एवं राज्य के बीच राजस्व की वैकल्पिक अवमूल्यन योजना की व्यवस्था । यह व्यवस्था 10वें वित्त आयोग की सिफारिश के बाद की गई। सिफारिश में कहा गया था कि केंद्रीय करों एवं शुल्कों से प्राप्त कुल आय का 29 प्रतिशत राज्यों के बीच बांटना चाहिए ।
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81वां संविधान संसोधन, 2000 |
राज्य को शक्ति प्रदान की गई कि वर्ष में भरी न जा सकी आरक्षित श्रेणी की रिक्तियों को अन्य अनुवर्ती वर्ष या वर्षो के दौरान भरी जाने वाली रिक्तियों की पृथक श्रेणी माना जाए। ऐसी रिक्तियों को उस वर्ष की रिक्तियों में न मिलाया जाए जिस वर्ष वे भरी जाएं और उन्हें उस वर्ष की कुल रिक्तियों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा में सम्मिलित न माना जाए। दूसरे शब्दों में इस संसोधन ने बैकलॉग रिक्तियों के मामले में 50 प्रतिशत तक की आरक्षण की सीमा को समाप्त कर दिया ।
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82वां संविधान संसोधन, 2000 |
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पक्ष में यह व्यवस्था कि केंद्र एवं राज्य लोक सेवाओं में आरक्षण एवं प्रोन्नति क मसले पर अंकों एवं योग्यता में छूट का उपबंध ।
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83वां संविधान संसोधन, 2000 |
अरूणाचल प्रदेश में पंचायतों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण की जरूरत नहीं है। राज्य की समूची जनसंख्या जनजातीय है, वहां कोई भी अनुसूचित जाति का नहीं है ।
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84वां संविधान संसोधन, 2001 |
लोकसभा एवं राज्य विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण पर 25 वर्ष के लिए (226 तक) पाबंदी बढ़ाई गई। ऐसा जनसंख्या का सीमित करने के लिए किया गया। दूसरे शब्दों में, लोकसभा एवं विधानसभाओं में सीटों की संख्या 2026 तक यही रहेगी। यह व्यवस्था भी की गई कि राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण 1991 की जनगणना के आधार पर होगा ।
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85वां संविधान संसोधन, 2001 |
सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति के मामले (जिनमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति के आरक्षण भी हैं) के लिए परिणामिक वरिष्ठता को जून 1995 से प्रभावी मानने की व्यवस्था ।
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86वां संविधान संसोधन, 2002 |
1. प्रारंभिक शिक्षा को मूल अधिकार बनाया गया। नए अनुच्छेद 21क में घोषणा की गई कि 'राज्यों को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए ।
2. निदेशक तत्वों के मामले में अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु बदली गई, राज्य सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी हो जाने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।
3. अनुच्छेद 51क के तहत एक नया मूल कर्तव्य जोड़ा गया जिसे पढ़ा गया, “यह हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य होगा किवह अपने बच्चे को चाहे वह उसके माता-पिता हो या अभिभावक 6 और 14 वर्ष की उम्र तक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराए ।"
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87वां संविधान संसोधन, 2003 |
क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुर्निर्धारण का आधार 2001 की जनगणना के आधार पर होगा न कि 1991 की जनगणना पर जैसा कि 84वें संसोधन अधिनियम 2001 में व्यवस्था की गई थी।
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88वां संविधान संसोधन, 2003 |
इस अधिनियम द्वारा सेवा कर के संबंध में उपबंध बनाये गये हैं। सेवाओं पर कर केंद्र द्वारा लगाया जायेगा लेकिन इसकी प्राप्तियां केंद्र और राज्य द्वारा संगृहित और विनियोजित संसद द्वारा सुझाये गये फॉर्मूले के अनुसार की जाएगी।
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89वां संविधान संसोधन, 2003 |
इस संविधान संसोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति 1. आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया है। अब इनके नाम क्रमशः राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग होगें । दोनों ही आयोगों में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य होगें । इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी ।
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90वां संविधान संसोधन, 2003 |
यह संविधान संसोधन असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल एरियाज डिस्ट्रिक से असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर-अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्व प्रतिनिधित्व को कायम रखा है।
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91वां संविधान संसोधन, 2003 |
इस संविधान संसोधन अधिनियम, द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया है। इसका उदेश्य दोषियों को लोक पद धारण करने से रोकना और दल-बदल कानून को मजबूती प्रदान करता है-
1. केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी ।
2. संसद के किसी भी सदन का सदस्य यदि दल-बदल के आधार पर सदस्यता निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा ।
3. राज्य में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। किंतु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी ।
4. राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यहद दल-बदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा ।
5. संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य चाहे वह किसी भी दल से संबंधित हो यदि दलबदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य किसी भी लाभप्रद राजनैतिक पद को धारित करने के लिए भी निरर्हक होगा। ऐसे पद से अभिप्राय है- (1) केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई पद जहाँ उस पद के लिए लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिए भुगतान किया जाता है, या (2) केंद्र या राज्य सरकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रणाधीन कोई पद जहाँ उस पद के लिए लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिए भुगतान किया जाता है, सिवाए जहाँ वेतन या पारिश्रामिक क्षतिपूरक प्रकृति का हो ।
6. दसवीं अनुसूची में वर्णित वह उपबंध, जिसके अनुसार यदि किसी दल के एक-तिहाई सदस्य दल-बदल करते हैं उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता, इस उपबंध को समाप्त कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि दोषियों को फूट के आधार पर कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है ।
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92वां संविधान संसोधन, 2003 |
संविधान की आठवीं अनुसूची में चार अन्य भाषायें जोड़ी गयीं। ये भाषायें हैं- बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली । इनके साथ अनुसूचित भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गयी है ।
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93वां संविधान संसोधन, 2005 |
राज्यों को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण करने हेतू विशेष उपबंध बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इन शैक्षणिक संस्थानों मं निजी क्षेत्र- .के संस्थान ।
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94वां संविधान संसोधन, 2006 |
इस संविधान संसोधन द्वारा बिहार को एक जनजातीय मंत्री की नियुक्ति करने की बाध्यता से मुक्त करते हुए इस उपबंध को अब झारखंड एवं छत्तीसगढ़ के लिए लागू कर दिया गया है। इन दो नव गठित राज्यों के साथ ही यह उपबंध अब मध्यप्रदेश एवं ओडीसा में भी प्रभावी हो गया है। जहाँ यह पहले ही प्रयोग में था ।
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95वां संविधान संसोधन, 2009 |
लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों तथा आंग्ल- इंडियन्स के लिए विशेष आरक्षण को अगले 10 वर्षो ( 2020 तक) बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
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96वां संविधान संसोधन, 2011 |
"उरिया" (Oriya) के स्थान पर "उड़िया " ( Odia ) । अंग्रेजी भाषा की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित "उरिया" भाषा के उच्चारण को बदलकर "उड़िया" किया गया है।
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97वां संविधान संसोधन, 2011 |
इस संसोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान एवं संरक्षण प्रदान किया गया। संसोधन द्वारा संविधान में निम्नलिखित तीन बदलाव किए गए:
(1) सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया ।
(2) राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश ।
(3) “सहकारी समितियां' नाम से एक नया भाग - 9ख संविधान में जोड़ा गया ।
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98वां संविधान संसोधन, 2012 |
कर्नाटक राज्य के हैदराबाद- कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान। विशेष प्रावधान का लक्ष्य एक ऐसे संस्थागत क्षेत्र की स्थापना से है जो कि विकास की जरूरतों का पूरा करने के साथ ही मानव संसाधन को बढ़ाने और शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण से सेवा और आरक्षण के साथ रोजगार को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं संस्थानों को धन का न्यायसंगत आबंटन कर सकें ।
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99वां संविधान संसोधन, 2014 |
सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नये निकाय "राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग” (National Judicial Appointments Commission) की स्थापना की। हलांकि वर्ष 2015 में सवोच्च न्यायालय ने इस संसोधन को असंवैधानिक एवं रद्द घोषित कर दिया। परिणाम स्वरूप पूर्व में चल रही कॉलेजियम प्रणाली पुनः लागू की गई ।
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100वां संविधान संसोधन, 2015 |
भारत द्वारा कतिपय भू-भाग का अधिग्रहण एवं कुछ अन्य भू–भाग का बांग्लादेश को हस्तांतरण (अंतःक्षेत्रों की अदला-बदली तथा विपरीत दखल की अवधारणा के द्वारा), भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता 1974 तथा इसके प्रोटोकॉल 2011 के अनुपालन में । इस उदेश्य के लिए इस संशोधित अधिनियम ने चार राज्यों (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय एवं त्रिपुरा) के भू-भागों से संबंधित संविधान की पहली अनुसूची के प्रावधानों को संसोधित किया ।
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101वां संविधान संसोधन, 2016 |
इस संसोधन ने देश में वस्तु और सेवा कर (वस्तु और सेवा कर) शासन की शुरूआत का मार्ग प्रशस्त किया । वस्तु और सेवा कर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगाएं जा रहें अप्रत्यक्ष करों की जगह लेगा। इसके द्वारा करों के कैस्केडिंग प्रभाव को हटाने और वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय बाजार प्रदान करने का लक्ष्य है। प्रस्तावित केंद्रीय और राज्य वस्तु और | सेवा कर उन सभी वस्तुओं पर लगाया जाएगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति शामिल है, सिवाय उन सभी के जो वस्तु और सेवा कर के दायरे से बाहर रखे गए हैं। तदनुसार, संसोधन में निम्नलिखित प्रावधान किये गयें हैं:
(1) वस्तुओं और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के प्रत्येक लेनदेन पर वस्तु और . सेवा कर लगाने के लिए कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं को समवर्ती कर लगाने की शक्तियां प्रदान की गई।
2. इसने संविधान के तहत् 'विशेष महत्व के के घोषित समान' की अवधारणा को खारिज कर दिया ।
3. वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्जीय लेनदेन पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर के लगाने के लिए प्रदान किया गया ।
4. राष्ट्रपति के आदेश एक वस्तु और सेवा कर परिषद की स्थापना ।
5. पांच साल की अवधि के लिए वस्तु और सेवा कर की शुरूआत के कारण राजस्व के नुकसान के लिए राज्यों को मुआवजे का प्रावधान किया।
6. सातवीं अनुसूची की संघ और राज्य सूची में कुछ प्रविष्टियों को प्रतिस्थापित और लोप किया गया ।
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102वां संविधान संसोधन, 2018 |
1. राष्ट्रीय पिछड़ वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जो 1993 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था ।
2. पिछड़े वर्गो के संबंध में अपने कार्यो से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को राहत दी ।
3. राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिए राष्ट्रपति का अधिकार दिया |
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103वां संविधान संसोधन, 2019 |
1. नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए कोई विशेष प्रावधान करने के लिए राज्य को सशक्त बनाना ।
2. राज्य का निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए इस तरह के वर्गो के लिए 10 प्रतिशत सीटों तक के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी गई है, चाहे वह सहायता प्राप्त हो या राज्य द्वारा सहायता प्राप्त न हो, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की अपेक्षा करता है। 10 प्रतिशत तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिकत होगा ।
3. राज्य को ऐसे वर्गो के पक्ष में 10 प्रतिशत नियुक्तियों या पदो के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी । 10 प्रतिशत तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा ।
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संस्था | अनुच्छेद |
अंतर्राज्जीय परिषद | 263 |
वित्त आयोग | 280 |
संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग | 315-323 |
निर्वाचन आयोग | 324 |
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग | 338 |
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग | 338 (क) |
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग | 338 (ख) |
भारत के सभी हाईकोर्ट
High Court | स्थापना वर्ष | मूल सथान |
मुम्बई हाईकोर्ट | 1862 ई० | मुम्बई |
मद्रास/चेन्नई हाईकोर्ट | 1862 ई० | चेन्नई |
कोलकात्ता हाईकोर्ट | 1862 ई० | कोलकात्ता |
इलाहाबाद हाईकोर्ट | 1866 ई० | इलाहाबाद (प्रयागराज ) |
कर्नाटक हाईकोर्ट | 1884 ई० | बंगलुरू |
पटना हाईकोर्ट | 1916 ई० | पटना |
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट | 1928 ई० | श्रीनगर |
High Court | स्थापना वर्ष | मूल स्थान |
ओडिसा हाईकोर्ट | 1948 ई० | कटक |
गुवाहाटी हाईकोर्ट | 1948 ई० | गुवाहाटी |
राजस्थान हाईकोर्ट | 1949 ई० | जोधपुर |
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट | 1956 ई० | जबलपुर |
केरल हाईकोर्ट | 1956 ई० | एर्नाकुलम |
गुजरात हाईकोर्ट | 1960 ई० | अहमदाबाद |
दिल्ली हाईकोर्ट | 1966 ई० | दिल्ली |
चंडीगढ़ हाईकोर्ट | 1966 ई० | चंडीगढ़ |
हिमाचलप्रदेश | 1971 ई० | शिमला |
सिक्किम हाईकोर्ट | 1975 ई० | गंगटोक |
उत्तराखंड हाईकोर्ट | 2000 ई० | नैनीताल |
झारखंड हाईकोर्ट | 2000 ई० | राँची |
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट | 2000 ई० | बिलासपुर |
मेघालय हाईकोर्ट | 2013 ई० | शिलौंग |
मणिपुर हाईकोर्ट | 2013 ई० | इम्फाल |
त्रिपुरा हाईकोर्ट | 2013 ई० | अगरतल्ला |
आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट | 1 जनवरी 2019 | अमरावती |
तेलंगना हाईकोर्ट | 1 जनवरी 2019 | हैदराबाद |
अब तक भारत के निम्न राष्ट्रपति हैं-
क्र. सं. | राष्ट्रपति | शासनकाल |
1. | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद | 1950-1962 |
2. | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 1962-1967 |
3. | जाकिर हुसैन | 1967-1969 |
4. | वी.वी. गिरी | 1969-1974 |
5. | फखरुद्धिन अली | 1974-1977 |
6. | नीलम संजीव रेड्डी | 1977-1982 |
7. | ज्ञानी जैल सिंह | 1982-1987 |
8. | आर. वेंकटरमण | 1987-1992 |
9. | शंकर दयाल शर्मा | 1992-1997 |
10. | के. के. नारायणन | 1997-2002 |
11. | अब्दुल कलाम आजाद | 2002-2007 |
12. | श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल | 2007-2012 |
13. | प्रणब मुखर्जी | 2012-2017 |
14. | रामनाथ कोबिंद | 2017-2022 |
15. | श्रीमति द्रोपति मुर्मू | 2022 - अब तक (2027) |
वीटो संबंधी अधिकार
अब तक के उपराष्ट्रपति
क्र. सं. | उपराष्ट्रपति | शासनकाल |
1. | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | 1952-1962 |
2. | जाकिर हुसैन | 1962-1967 |
3. | वी. वी. गिरी | 1967-1969 |
4. | गोपाल स्वरूप पाठक | 1969-1974 |
5. | वी. डी. जत्ती | 1974-1979 |
6. | मो. हिदायतुल्ला | 1979-1984 |
7. | आर. वेंटरमण | 1984-1987 |
8. | शंकर दयाल शर्मा | 1987-1992 |
9. | के. आर. नारायणन | 1992-1997 |
10. | कृष्णकांत | 1997-2002 |
11. | भैरो सिंह शेखावत | 2002-2007 |
12. | हामिद अंसारी | 2007-2017 |
13. | वेकैंया नायडू | 2017-2022 |
14. | जगदीप धनखर | 2022 - अब तक (2027) |
मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में अंतरः
मंत्रिपरिषद | मंत्रिमंडल |
1. मंत्रीपरिषद की चर्चा मूल संविधान के अनुच्छेद-74 में है। | 1. मंत्रिमंडल शब्द की चर्चा मूल संविधान में नहीं था । 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् इस शब्द को जोड़ा गया। |
2. मंत्रियों का वैसा समूह जिसमें कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री शामिल होता है उसे मंत्रिपरिषद कहते हैं । | 2. मंत्रियों का वैसा समूह जिसमें सिर्फ कैबिनेट मंत्री शामिल होता है उसे मंत्रिमंडल कहते हैं । |
3. यह बड़ा निकाय हैं । | 3. यह छोटा निकाय है । |
4. इसकी बैठक नहीं होती है। | 4. इसकी बैंठक होती है। बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यहाँ पर निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता है। |
विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव में अंतर-
विश्वास प्रस्ताव | अविश्वास प्रस्ताव |
1. यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाता है । | 1. यह प्रस्ताव लोकसभा में आता है । |
2. यह सत्ता पक्ष के द्वारा लाया जाता है । | 2. यह प्रस्ताव विपक्षी पार्टियों के द्वारा लाया जाता है। |
3. अगर यह प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित नहीं होता है तो सरकार गिर जाती है । | 3. यह प्रस्ताव लोकसभा के 50 सदस्यों के लिखित समर्थन से लाया जाता है तथा इस प्रस्ताव का कारण बताना भी आवश्यक होता है। |
4. इस प्रस्ताव के माध्यम से सत्ता पक्ष यह दिखलाता है कि लोकसभा में उसे बहुमत प्राप्त है। | 4. अगर मतदान के दौरान अविश्वास प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित हो जाता है तो सरकार गिर जाती है। |
5. सर्वप्रथम यह प्रस्ताव 1963 ई. में प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था । |
अब तक कि प्रधानमंत्री
क्र सं. | प्रधानमंत्री | कार्यकाल |
1. | पंडित जवाहर लाल नेहरू | 1947-1964 |
2. | लल बहादुर शास्त्री | 1964-1966 |
3. | इन्दिरा गाँधी | 1966-1977 तथा 1980-1984 |
4. | मोरारजी देसाई | 1977-1979 |
5. | चौधरी चरण सिंह | 1979-1980 |
6. | इन्दिरा गाँधी | 1980-1984 |
7. | राजीव गाँधी | 1984-1989 |
8. | विश्वनाथ प्रताप सिंह | 1989-1990 |
9. | चन्द्रशेखर | 1990-1991 |
10. | पी. बी. नरसिम्हा राव | 1991-1996 |
11. | अटल बिहारी वाजपेई | 1996 (मात्र 13 दिन के लिए) |
12. | एच. डी. देवगौरा | 1996-1997 |
13. | आई. के. गुजराल | 1997-1998 |
14. | अटल बिहारी वाजपेई | 1998-2002 |
15. | मनमोहन सिंह | 2002-2014 |
16. | नरेंद्र मोदी | 2014 से अब तक |
कुल 6 ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो प्रधानमंत्री बनने से पूर्व किसी ना किसी राज्य के मुख्यमंत्री थें, जो निम्न हैं-
क्र. सं. | मुख्यमंत्री | राज्य |
1. | मोरारजी देसाई | बंबई प्रांत |
2. | चौधरी चरण सिंह | उत्तरप्रदेश |
3. | विश्वनाथ प्रताप सिंह | उत्तरप्रदेश |
4. | पी. बी. नरसिम्हा राव | आंध्रप्रदेश |
5. | एच. बी. देवगौरा | कर्नाटक |
6. | नरेंद्र मोदी | गुजरात |
उप प्रधानमंत्र
क्र. सं. | प्रधानमंत्री | उप प्रधानमंत्री |
1. | पं. जवाहर लाल नेहरू | सरदार बल्लभ भाई पटेल |
2. | श्रीमति इन्दिरा गाँधी | मोरारजी देसाई |
3. | मेरारजी देसाई | चौधरी चरण सिंह तथा जगजीवन राम |
4. | विश्वनाथ प्रताप सिंह | देवी लाल |
5. | चंद्रशेखर | देवी लाल |
6. | अटल बिहारी वाजपेई | लाल कृष्ण अडवाणी |
7. | चौधरी चरण सिंह | V. D. चौहान |
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 81 कहता है कि संसद का एक सदन लोकसभा होगा। लोकसभा को निम्न सदन / जनता का सदन / लोकप्रिय सदन या प्रथम सदन कहा जाता है। लोकसभा के लिए पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए हैं। जनता का सदन का नाम बदलकर 1954 में लोकसभा किया गया।
लोकसभा के पदाधिकारी:
प्रथम वाचन:-
इस वाचन में विधेयक को लाने का उदेश्य बताना होता है, साथ ही साथ विधेयक पर होने वाले खर्च को भी बताता है। जब विधेयक भारत के राजपत्र में प्रकाशित हो जाता है तब यह माना जाता है कि प्रथम वाचन पूरा हुआ ।
द्वितीय वाचनः-
इस वाचन के दौरान विधेयक पर वाद विवाद और चर्चा होता है। इस वाचन के दौरान ही विधेयक जाँच हेतू प्रबर समिति को सौंपा जाता है । इस वाचन के दौरान ही विधेयक में संसोधन होता है ।
तृतीय वाचन:-
क्र. सं. | वर्ष | घोटाला | अध्यक्ष |
1. | 1987 | बोफोर्स घोटाला | बी. शंकरानंद |
2. | 1992 | हर्षा मेहता का शेयर घोटाला | राम निवास मिर्जा |
3. | 2002 | केतन पारिक का शेयर घोटाला | अमर मनीक त्रिपाठी |
4. | 2004 | कीटनाशक घोटाला | सरद पवार |
5. | 2011 | टू जी एक्सपेट्रम घोटाला | पी.सी. चाको |
भारतीय संविधान के अंतर्गत कुल 11 मौलिक कर्तव्य निम् है।
इसमें तीन क्षेत्र (सेना क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र तथा पुलिस क्षेत्र) में छुट दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट | हाई कोर्ट | ||
1. | सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत वर्ष के लिए रिट जारी करता है। | 1. | हाई कोर्ट संबंधित राज्य के लिए रिट जारी करता है । जैसे- पटना हाई कोर्ट बिहार के लिए, इलाहाबाद हाई कोर्ट उत्तरप्रदेश के लिए | |
2. | सिर्फ मौलिक अधिकार के हनन होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट रिट जारी करता है । | 2. | हाई कोर्ट मौलिक अधिकार का हनन, कानूनी अधिकार का हनन, संवैधानिक अधिकार का हनन इत्यादि में रिट जारी करता है । |
3. | सुप्रीम कोर्ट के विरूद्ध कहीं भी अपील नहीं की जा सकती है। |
प्रस्तावना
प्रस्तावना के संबंध में विद्वानों का मत
संविधान का भाग
भाग | संबंध | अनुच्छेद |
भाग-1 | संघ और राज्य क्षेत्र | 1-4 |
भाग-2 | नागरिकता | 5-11 |
भाग-3 | मौलिक अधिकार | 12-35 |
भाग-4 | राज्य के नीति निर्देशक तत्व | 36-51 |
भाग-4 (क) | मौलिक कर्तव्य | 51 (क) |
भाग-5 | संघ का शासन | 52-151 |
भाग-6 | राज्य का शासन | 152-237 |
भाग-7 | निरस्त | 238 |
भाग-8 | केंद्रशासित प्रदेश | 239-242 |
भाग-9 | पंचायत | 243 |
भाग-9 (क) | नगर पालिका | 243 |
भाग-9 (ख) | सहकारी | 243 |
भाग-10 | अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र में शासन | 244 |
भाग-11 | केंद्र और राज्य संबंध | 245-263 |
भाग-12 | वित्त, संपत्ति और संविदा | 264-300 (क) |
भाग-13 | व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता | 301-307 |
भाग-14 | लोक सेवा आयोग | 308-323 |
भाग-14 (क) | अधिकरण | 323 (क) |
भाग-15 | निर्वाचन आयोग | 324-329 |
भाग-16 | कुछ वर्गों के लिए विशेष प्रावधान | 330-342 |
भाग-17 | राजभाषा | 343-351 |
भाग-18 | आपात उपबंध | 352-360 |
भाग-19 | प्रकीर्ण | 361-367 |
भाग-20 | संविधान संसोधन | 368 |
भाग-21 | अस्थायी, संक्रमणशील और विशेष प्रावधान | 369-392 |
भाग-22 | संविधान के लागू होने, संविधान का नाम और संविधान का हिन्दी पाठ्यक्रम | 393-395 |
संविधान की अनुसूचियाँ
प्रारूप कमिटी के सात सदस्य निम्न है-