Jaankari Rakho & : Indian Polity https://m.jaankarirakho.com/rss/category/indian-polity Jaankari Rakho & : Indian Polity hin Copyright 2022 & 24. Jaankari Rakho& All Rights Reserved. General Competition | Indian Polity | संविधान संसोधन: एक नजर मे https://m.jaankarirakho.com/941 https://m.jaankarirakho.com/941 General Competition | Indian Polity | संविधान संसोधन: एक नजर मे

संविधान संसोधन: एक नजर मे (Constitutional Amendments at a Glance)

संसोधन संख्या एवं वर्ष संविधान के संसोधित प्रावधान
प्रथम संसोधन अधिनियम, 1951
1. सामाजिक और आर्थिक तथा पिछड़े वर्गो की उन्नति के लिए विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्ति प्रदान की गई।
2. कानून की रक्षा के लिए संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था ।
3. भूमि सुधार एवं न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानून को नौवीं सूची में स्थान
4. विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तीन और प्रमुख कारणों से प्रतिबंध की कवायद, जैसे- लोक आदेश, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, किसी अपराध के लिए भड़काना । प्रतिबंधों को तर्कसंगत बनाया और इस प्रकार से न्याययोज्य हैं ।
5. यह व्यवस्था की कि राज्य टेडिंग और राज्य द्वारा किसी व्यापार या व्यवसाय के अधिकार का उल्लंधन करता है ।
द्वितीय संसोधन अधिनियम, 1952 लोकसभा में एक सदस्य के प्रतिनिधित्व को 7,50,000 लोगों से अधिक किया गया ।
तृतीय संसोधन अधिनियम, 1954 संसद को खाद्य पदार्थ, पशुचारा, कच्चा कपास, कपास के बीज एवं कच्चे जूट के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर नियंत्रण के लिए लोक हित में शक्तिशाली बनाया गया।
चौथा संसोधन अधिनियम, 1955
1. निजी संपत्ती के अनिवार्य अधिग्रहण के स्थान पर दी जाने वाली क्षतिपूर्ती की प्रमात्रा को न्यायालय की जाँच से बाहर किया गया।
2. किसी व्यापार को राष्ट्रीयकृत बनाने के लिए राज्यों को अधिकार ।
3. नौवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों की बढ़ोतरी ।
4. अनुच्छेद 31क के क्षेत्र में विस्तार (विधियों की व्यावृत्ति ) ।
पांचवां संसोधन अधिनियम, 1955 राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदान की गई की वह राज्यों के क्षेत्र, सीमा और नामों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावित केन्द्रीय विधान पर अपने मत देने के लिए राज्यमण्डलों हेतु समय-सीमा का निर्धारण करें ।
छठा संसोधन अधिनियम, 1956 केंद्रीय सूची में नए विषयों का जुड़ाव, जैसे- अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के तहत वस्तुओं की खरीद-बिक्री पर कर और इसी संबंध में राज्यों की शक्तियों पर पाबंदियों ।
7वां संसोधन अधिनियम, 1956
1. राज्यों के चार वर्गो की समाप्ति; जैसे- भाग - क, भाग-ख, भांग-ग और भाग- घ इनके स्थान पर 14 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेशों की स्वीकृति ।
2. केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालयों के न्यायक्षेत्र का विस्तार ।
3. दो या उससे अधिक राज्यों के बीच सामूहिक न्यायालय की स्थापना ।
4. उच्च न्ययालय में अतिरिक्त न्यायाधीश एवं कार्यकारी न्यायाधीश की नियुक्ति की व्यवस्था ।
8वां संसोधन अधिनियम, 1960 अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण व्यवस्था में विस्तार और आंग्ल भारतीय प्रतिनिधि की लोकसभा एवं विधानसभाओं में दस वर्ष के लिए बढ़ोतरी | ( 1970 तक)
9वां संसोधन अधिनियम, 1960 भारत-पाक समझौते (1958) के अनुसार पाकिस्तान को बेरूबाड़ी संघ ( पश्चिम बंगाल स्थित ) के भारतीय राज्यक्षेत्र का समपर्ण ।
10वां संसोधन अधिनियम, 1961 दादरा और नागर हवेली को भारतीय संघ में जोड़ना ।
11वां संसोधन अधिनियम, 1961
1. उपराष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तनः संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था ।
2. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मण्डल में. रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती ।
12वां संसोधन अधिनियम, 1962 गोवा, दमन और दीव भारतीय संघ में शामिल ।
13वां संसोधन अधिनियम, 1962 नागालैंड को राज्य का दर्जा और इसके लिए विशेष उपबंध ।
14वां संसोधन अधिनियम, 1960
1. पुदुचेरी भारतीय संघ में शामिल ।
2. हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन और दीव तथा पुडुचेरी के हल विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद की व्यवस्था ।
15वां संसोधन अधिनियम, 1963
1. उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति या प्राधिकरण के खिलाफ । राज्यों के बाहर भी दायर करने का अधिकार रिट । यदि इसका कारण उसके क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ हो ।
2. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष ।
3. उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की उच्चयालय में कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था ।
4. एक उच्च न्यायालय से दूसरें में स्थानांतरण पर न्यायाधीशों को क्षतिपूरक भत्तों का भुगतान ।
5. उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उच्चतम न्यायालय में अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था |
6. उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की उम्र के निर्धारण हेतु प्रक्रिया की व्यवस्था ।
16वां संविधान संसोधन, 1963
1. राज्यों को वाक् और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन और राष्ट्र की सुप्रभुता और अखंडता के हितों में संगम बनाने के अधिकारों पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की शक्ति प्रदान की गई ।
2. विधानमंडल के निर्वाचन में भाग लेने वाले अभ्यार्थियों, विधानमंडल के सदस्यों, मंत्रियों, न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक और लेखा परीक्षक द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप और संप्रभुत्व और अखंडता को शामिल किया गया ।
17वां संविधान संसोधन, 1964
1. यदि भूमि का बाजार मूल्य बतौर मुआवजा न दिया जाए हो तो व्यक्तिगत हितों के लिए भू-अधिग्रहण प्रतिबंधित ।
2. नौवीं अनुसूची में 44 और अधिनियमों की बढ़ोतरी ।
18वां संविधान संसोधन, 1966 इस शक्ति को स्पष्ट कर दियागया कि संसद को राज्य निर्माण का अधिकार है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि दो राज्यों को पृथक् का अधिकार भी उसमें निहित है।
19वां संविधान संसोधन, 1966 निर्वाचन अधिकरणों की व्यवस्था समाप्त और उच्च न्यायालयों को निर्वाचन याचिका पर सुनवाई की शक्ति प्रदान ।
20वां संविधान संसोधन, 1966 उत्तर प्रदेश में कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता, जिनको उच्चतम न्यायालय ने अवैध घोषित किया था ।
21वां संविधान संसोधन, 1967 सिंधी भाषा आठवीं अनुसूची में 15वीं भाषा के रूप में शामिल |
22वां संविधान संसोधन, 1969 असम में से एक अलग स्वायत्त राज्य मेघालय का निर्माण ।
23वां संविधान संसोधन, 1969 अनुसूचित जाति / जनजाति एवं आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधित्व को लोकसभा एवं विधानसभा में इनके प्रतिनिधित्व की और अतिरिक्त दस वर्ष के लिए बढ़ोतरी ( 1980 तक)
24वां संविधान संसोधन, 1971
1. संसद को यह अधिकार कि वह संविधान के किसी भी हिस्से का, चाहे वह मूल अधिकार हो, संसोधन कर सकती है।
2. राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संसोधन विधेयक को मंजूरी दी जानी जरूरी ।
25वां संविधान संसोधन, 1971
1. संपत्ति के मूल अधिकार में कटौती।
2. अनुच्छेद 39 (ख) या ग में वर्णित निदेशक तत्वों को प्रभावी करने के लिए बनाई गई किसी भी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि अनुच्छेद 14, 19 और 31 द्वारा अभिनिश्चित अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौति नहीं दी जा सकती ।
26वां संविधान संसोधन, 1971
प्रीवी पर्स और प्रांतीय राज्यों के पूर्व शासकों के विशेषाधिकार की समाप्ति ।
27वां संविधान संसोधन, 1971
1. कुछ केंद्रशासित राज्यों के प्रशासकों को अध्यादेश जारी करने के प्रति शक्तिशाली बनाया गया ।
2. नए केंद्रशासित प्रदेशों अरुणाचल प्रदेश एवं मिजोरम के लिए कुछ विशेष उपबंध ।
3. नए राज्य मणिपुर के लिए विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद निर्माणा के लिए संसद को अधिकार ।
28वां संविधान संसोधन, 1972
आईसीएस अधिकारियों के लिए विशेष विशेषाधिकारों को समाप्त कर संसद को उनकी सेवा शर्ते तय करने का अधिकार ।
29वां संविधान संसोधन, 1972
नौवीं अनुसूची में दो केरल भू-सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया।
30वां संविधान संसोधन, 1972
नगरिक अधिकार संबंधित मामलों में उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए 20,000 रूपये की जरूरत खत्म एवं यह व्यवस्था दी कि यदि विधि की वास्तविक व्याख्या का कोई मामला हो तो ही उच्चतम न्यायालय में अपील हो सकती है।
31वां संविधान संसोधन, 1972
लोकसभा सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 |
32वां संविधान संसोधन, 1973
आंध्रप्रदेश में तेलंगना क्षेत्र के लोगों की आकांक्षा के अनुसार उनकी संतुष्टि के लिए विशेष उपबंध |
33वां संविधान संसोधन, 1974
संसद या विधानमंडल के अध्यक्ष / सभापति द्वारा किसी सदस्य के इस्तीफे को मंजूर करने की व्यवस्था, यदि वह महसूस करें कि त्यागपत्र स्वैच्छिक या वास्तविक है।
34वां संविधान संसोधन, 1974
नौवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों के बीच भू-सुधार एवं भू-पट्टेदारी (Land tenure) अधिनियम शामिल ।
35वां संविधान संसोधन, 1974
सिक्किम की संरक्षण व्यवस्था को वर्खास्त करते हुए उसे भारतीय संघ का सहयोगी राज्य बनाया गया। भारतीय राज्य में सिक्किम को जोड़े जाने की सेवा शर्तों के लिए 10वीं अनुसूची को जोड़ा गया।
36वां संविधान संसोधन, 1975
सिक्किम को भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बनाकर दसवीं अनुसूची को समाप्त कर दिया गया।
37वां संविधान संसोधन, 1975
केंद्रशासित राज्य अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद की व्यवस्था ।
38वां संविधान संसोधन, 1975
1. राष्ट्रपति के द्वारा आपातकाल की घोषणा गैर-वाद योग्य घोषित ।
2. राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों द्वारा जारी अध्यादेश गैर-वाद योग्य घोषित ।
3. राष्ट्रपति को विभिन्न आधारों पर राष्ट्रीय आपातकाल की विभिन्न घोषनाएँ करने की शक्ति प्रदान की गई।
39वां संविधान संसोधन, 1975
1. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित विवादों को न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया। इन सबका निर्धारण संसद द्वारा निर्धारित प्राधिकरण के द्वारा किया जायेगा ।
2. नौवीं अनुसूची में कुछ केंद्रीय अधिनियमों का समायोजन ।
40वां संविधान संसोधन, 1976
1. संसद समुद्रीय जल, महाद्वीपीय मग्रंतट, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (एस ई जैड) और भारत की समुद्री जोनों की सीमाओं के समय-समय पर निर्धारण की शक्ति ।
2. ज्यादातर भू - सुधार से संबंधित 64 और अन्य केंद्र और राज्य विधियों को नौवीं सूची में शामिल किया गया ।
41वां संविधान संसोधन, 1976
राज्य लोक सेवा आयोग एवं संयुक्त सेवा आयोग के सदस्यों की आयु सीमा 60 से 62 वर्ष की गई ।
42वां संविधान संसोधन, 1976
1. तीन नए शब्द जोड़े गए (समाजवादी, धर्म निरपेक्ष एवं ( सबसे महत्वपूर्ण संसोधन इसे. लघु संविधान के रूप में अखंडता ). जाना जाता है। इससे स्वर्ण सिंह समिति के सिफारिशों को प्रभावी बनाया ।)
2. नागरिकों द्वारा मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया। ( नया भाग 4क)
3. राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह के लिए बाध्यता ।
4. प्रशासनिक अधिकरणों एवं अन्य मामलों पर अधिकारों की व्यवस्था (भाग 12 ( 5 ) जोड़ा गया )
5. 1971 की जनगनणा के आधार पर 2001 तक लोकसभा सीटों एवं राज्य विधानसभा सीटों को निश्चित किया गया ।
6. संवैधानिक संसोधन को न्यायिक जाँच से बाहर किया गया। 
7. न्यायिक समीक्षा एवं रिट न्यायक्षेत्र में उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों की शक्ति में कटौती |
8. लोकसभा एवं विधानसभा के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ग की बढ़ोतरी ।
9. निदेशक तत्वों के कार्यान्वयन हेतू बनाई गई विधियों को न्यायालय द्वारा इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता है कि ये कुछ मूल अधिकारों का उल्लंधन हैं ।
10. संसद को राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में कार्यवाही करने के लिए विधियां बनाने की शक्ति प्रदान की गई और ऐसी विधियाँ मूल अधिकारों पर अभिभावी होगी ।
11. तीन नए निदेशक तत्व जोड़े गए अर्थात समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना, पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा।
12. भारत के किसी एक भाग में राष्ट्रीय आपदा की घोषणा ।
13. राज्य में राष्ट्रपति शासन के कार्यकाल में एक बार 6 माह से एक साल तक बढ़ोतरी ।
14. केंद्र को किसी राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैन्य बल भेजने की शक्ति |
15. पाँच विषयों का राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरण, जैसे- शिक्षा, वन, वन्य जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन एवं उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों का गठन और संगठन ।
16. संसद और विधानमंडल में कोरम की आवश्यकता की समाप्ति ।
17. संसद को यह निर्णय लेने में शक्ति प्रदान की कि समय-समय पर अपने सदस्यों एवं समितियों के अधिकार एवं विशेषाधिकार का निर्धारण करे ।
18. अखिल भारतीय विधिक सेवा के निर्माण की व्यवस्था ।
19. सिविल सेवक को दूसरे चरण पर जाँच के उपरांत प्रतिवेदन के अधिकार को समाप्त कर अनुशासनात्मक कार्यवाही को छोटा किया गया । (प्रस्तावित दण्ड के मामले में)
43वां संविधान संसोधन, 1977 (जनता सरकार द्वारा 1976 में 42वें संसोधन के मामलों को रद्य के संदर्भ में)
1. न्यायिक समीक्षा एवं रिट जारी करने के संबंध में उच्चतम न्यायलयों एवं उच्च न्यायालयों के न्याय क्षेत्र का पुनर्सयोजन ।
2. राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति हटा दी गई।
44वां संविधान संसोधन, 1978 ( 42वां संसोधन के तहत कुछ मामलों को रद्द करने के संदर्भ में जनता सरकार द्वारा प्रभावी)
1. लोकसभा एवं राज्य विधानमंडल के कार्यकाल को पूर्ववत् रखा गया (5 वर्ष)
2. संसद एवं राज्य विधानमंडल में कोरम के उपबंध को पूर्ववत रखा।
3. संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
4. संसद एवं राज्य विधानमंडल की कार्यवाही की रिपोर्ट के समाचारपत्र में प्रकाशन के लिए सांविधानिक संरक्षण प्रदान किया गया।
5. कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिए एक बार राष्ट्रपति को भेजने की शक्ति, परंतु पुनर्विचार के बाध्य यह बाध्यकारी होगी ।
6. अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रशासक की संतुष्टि के उपबंध को समाप्त किया गया ।
7. उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की कुछ शक्तियों को फिर से प्रदान किया गया।
8. राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में 'आंतरिक अशांति' शब्द के स्थान पर 'सशस्त्र विद्रोह शब्द रखा गया ।
9. राष्ट्रपति के लिए यह व्यवस्था बनाई गई कि वह केवल कैबिनेट की लिखित सिफारिश पर ही आपातकाल घोषित कर सकता है।
10. राष्ट्रीय आपात और राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सुरक्षा की दृष्टि से कुछ और व्यवस्थाएँ बनाई 1
11. मूल अधिकारों की सूची से संपत्ति का अधिकार समाप्त किया गया और इसे केवल विधिक अधिकार बनाया गया।
12. अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा सकता ।
13. उस उपबंध को हटाया गया जिसने न्यायालय के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवाद मामलों पर निर्णय देने की शक्ति छीन ली थी ।
45वां संविधान संसोधन, 1980
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण एवं लोकसभा व विधानसभा में आंग्ल-भारतीयों के विशेष प्रतिनिधित्व को और दस वर्ष के लिए ( 1990 तक) बढ़ाया गया ।
46वां संविधान संसोधन, 1982
1. राज्यों को विधियों में कमियों को समाप्त करने और ब्रिक्री कर बकायों को वसूलने में समर्थ बनाया गया।
2. कुछ वस्तुओं पर एक समान कर दर की व्यवस्था ।
47वां संविधान संसोधन, 1984
नौवीं अनुसूची में कुछ राज्यों के 14 भू-सुधार अधिनियमों को जोड़ा गया ।
48वां संविधान संसोधन, 1984
पंजाब में राष्ट्रपति शासन को ऐसे विस्तार हेतु दो विशेष शर्तो को पूरा किए बिना एक वर्ष से अधिक वर्षो के लिए बढ़ाया जाना ।
49वां संविधान संसोधन, 1984
त्रिपुरा में स्वायत्त जिला परिषद को संवैधानिक मंजूरी ।
50वां संविधान संसोधन, 1984
आसूचना संगठनों और सशस्त्र बलों या आसूचना हेतू स्थापित दूरसंचार प्रणालियों में कार्यरत व्यक्तियों के मूल अधिकारों को प्रतिबंधित करने की संसद को शक्ति ।
51वां संविधान संसोधन, 1984
मेघालय, अरुणाचलप्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के लिए लोकसभा में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था । इसी तरह नागालैंड मेघालय की विधानसभा में व्यवस्था ।
52वां संविधान संसोधन, 1985 (इसे दल-बदल विरोधी विधि के रूप में जाना जाता है।)
इसके तहत् संसद एवं राज्य विधानमंडल के सदस्यों को दल-बदल के मामले में निरर्हक ठहराने की व्यवस्था है इसके विस्तार से दसवीं अनुसूची को जोड़ा गया है ।
53वां संविधान संसोधन, 1986
मिजोरम के विशेष उपबंध एवं इसकी विधानसभा के लिए न्यूनतम 40 सदस्यों की व्यवस्था ।
54वां संविधान संसोधन, 1986
उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में बढ़ोतरी और भविष्य में संसद को साधारण विधि द्वारा इसमें परिवर्तन का अधिकार ।
55वां संविधान संसोधन, 1986
अरुणाचल प्रदेश के लिए विशेष व्यवस्था बनाते हुए इसके विधानसभा सदस्यों की संख्या निश्चित की गई।
56वां संविधान संसोधन, 1987
गेवा विधानसभा सदस्यों की संख्या 30 निश्चित की गई ।
57वां संविधान संसोधन, 1987
अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड विधानसभा में अनुसूचित जनजाति की सीटों का आरक्षण ।
58वां संविधान संसोधन, 1987
हिन्दी भाषा में संविधान का प्राधिकृत पाठ उपलब्ध कराया गया और संविधान के हिन्दी पाइ समान विधिक मान्यता प्रदान की गई।
59वां संविधान संसोधन, 1988
1. पंजाब में राष्ट्रपति शासन का तीन वर्ष के लिए विस्तारं ।
2. आंतरिक अशांति के आधार पर पंजाब में राष्ट्रीय आपात की घोषणा ।
60वां संविधान संसोधन, 1988
व्यवसाय, वृति और रोजगारों पर करों की सीमा को 250 रु. प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2500 रु. प्रतिवर्ष किया गया ।
61वां संविधान संसोधन, 1989
लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में मतदान की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई।
62वां संविधान संसोधन, 1989
अनुसूचित जाति एवं जनजाति का आरक्षण एवं लोकसी एवं विधानसभा में आंग्ल-भारतीयों को प्रतिनिधित्व में 10 वर्ष (वर्ष 2000 तक) वृद्धि |
63वां संविधान संसोधन, 1989
59वां संसोधन अधिनियम, 1988 के तहत पंजाब के संबंध में किये गयें परिवर्तन निरस्त किये गये। दूसरे शब्दों में, पंजाब में आपातकाल की व्यवस्था अन्य क्षेत्रों के समान की गई ।
64वां संविधान संसोधन, 1990
पंजाब में राष्ट्रपति शासन का विस्तार साढ़े तीन साल के लिए कर दिया गया ।
65वां संविधान संसोधन, 1990
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग में विशेष अधिकारी के स्थान पर बहुसदस्यीय व्यवस्था का उपबंध किया गया ।
66वां संविधान संसोधन, 1990
नौवीं सूची में विभिन्न राज्यों के 55 भू - सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया।
67वां संविधान संसोधन, 1990
पंजबा में राष्ट्रपति शासन का चार वर्ष के लिए विस्तार
68वां संविधान संसोधन, 1991
पंजबा में राष्ट्रपति शासन का पाँच वर्ष के लिए विस्तार
69वां संविधान संसोधन, 1991
केंद्रशासित राज्य दिल्ली को विशेष दर्जा देते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनाया गया। इस संसोधन में दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा एवं 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद की व्यवस्था भी की गई।
70वां संविधान संसोधन, 1992
राष्ट्रपति के निर्वाचन में निर्वाचन कॉलेज के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली विधानसभा के सदस्यों एवं केंद्रशासित राज्य पुड्डुचेरी को भी शामिल किया गया ।
71वां संविधान संसोधन, 1992
कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया । |इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या बढ़कर 18 हो गई।
72वां संविधान संसोधन, 1992
त्रिपुरा विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था ।
73वां संविधान संसोधन, 1992
पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस उदेश्य के लिए संसोधन में नया भाग - 9 जोड़ा गया जिसे 'पंचायत' नाम दिया गया और नई 11वीं अनुसूची में पंचायत की 29 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई ।
74वां संविधान संसोधन, 1992
शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई। इस | उदेश्य के लिए संसोधन ने नया भाग 9क जोड़ा जिसे 'नगरपालिकाएं' नाम दिया गया और नई 12वीं अनुसूची में नगरपालिकाओं की 18 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई।
75वां संविधान संसोधन, 1994
किराया न्यायालय की स्थापना जो किराया विवादों को सुलझाएं। यह न्यायालय किराया मामलों में मकान मालिक एवं किरायेदार के हितों के संबंध में नियामक एवं नियंत्रण स्थापित करेगें ।
76वां संविधान संसोधन, 1994
तामिलनाडू आरक्षण अधिनियम, 1994 को (जो राज्य के शैक्षणिक संस्थानों एवं राज्य सेवाओं को 69 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराता है ।) नौवीं अनुसूची में न्यायायिक समीक्षा से संरक्षण के लिए जोड़ा गया। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
77वां संविधान संसोधन, 1995
सरकारी नौकरियों में अनुयूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की प्रोन्नति के लिए आरक्षण की व्यवस्था । इस संसोधन ने उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रोन्नति के संबंध में दिए गए निर्णय को समाप्त कर दिया ।
78वां संविधान संसोधन, 1995
नौवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों के 27 और भूमि सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया। इसके बाद इस अनुसूची में कुल अधिनियमों की संख्या बढ़कर 282 हो गई। परंतु अंतिम प्रविष्टि संख 284 है।
79वां संविधान संसोधन, 1999
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षण एवं लोकसभा व विधानसभाओं मं आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधित्व को और 10 साल के लिए ( 2010 तक) बढ़ाया गया।
80वां संविधान संसोधन, 2000
केंद्र एवं राज्य के बीच राजस्व की वैकल्पिक अवमूल्यन योजना की व्यवस्था । यह व्यवस्था 10वें वित्त आयोग की सिफारिश के बाद की गई। सिफारिश में कहा गया था कि केंद्रीय करों एवं शुल्कों से प्राप्त कुल आय का 29 प्रतिशत राज्यों के बीच बांटना चाहिए ।
81वां संविधान संसोधन, 2000
राज्य को शक्ति प्रदान की गई कि वर्ष में भरी न जा सकी आरक्षित श्रेणी की रिक्तियों को अन्य अनुवर्ती वर्ष या वर्षो के दौरान भरी जाने वाली रिक्तियों की पृथक श्रेणी माना जाए। ऐसी रिक्तियों को उस वर्ष की रिक्तियों में न मिलाया जाए जिस वर्ष वे भरी जाएं और उन्हें उस वर्ष की कुल रिक्तियों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा में सम्मिलित न माना जाए। दूसरे शब्दों में इस संसोधन ने बैकलॉग रिक्तियों के मामले में 50 प्रतिशत तक की आरक्षण की सीमा को समाप्त कर दिया ।
82वां संविधान संसोधन, 2000
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पक्ष में यह व्यवस्था कि केंद्र एवं राज्य लोक सेवाओं में आरक्षण एवं प्रोन्नति क मसले पर अंकों एवं योग्यता में छूट का उपबंध ।
83वां संविधान संसोधन, 2000
अरूणाचल प्रदेश में पंचायतों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण की जरूरत नहीं है। राज्य की समूची जनसंख्या जनजातीय है, वहां कोई भी अनुसूचित जाति का नहीं है ।
84वां संविधान संसोधन, 2001
लोकसभा एवं राज्य विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण पर 25 वर्ष के लिए (226 तक) पाबंदी बढ़ाई गई। ऐसा जनसंख्या का सीमित करने के लिए किया गया। दूसरे शब्दों में, लोकसभा एवं विधानसभाओं में सीटों की संख्या 2026 तक यही रहेगी। यह व्यवस्था भी की गई कि राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण 1991 की जनगणना के आधार पर होगा ।
85वां संविधान संसोधन, 2001
सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति के मामले (जिनमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति के आरक्षण भी हैं) के लिए परिणामिक वरिष्ठता को जून 1995 से प्रभावी मानने की व्यवस्था ।
86वां संविधान संसोधन, 2002
1. प्रारंभिक शिक्षा को मूल अधिकार बनाया गया। नए अनुच्छेद 21क में घोषणा की गई कि 'राज्यों को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए ।
2. निदेशक तत्वों के मामले में अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु बदली गई, राज्य सभी बालकों को 14 वर्ष की आयु पूरी हो जाने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा ।
3. अनुच्छेद 51क के तहत एक नया मूल कर्तव्य जोड़ा गया जिसे पढ़ा गया, “यह हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य होगा किवह अपने बच्चे को चाहे वह उसके माता-पिता हो या अभिभावक 6 और 14 वर्ष की उम्र तक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराए ।"
87वां संविधान संसोधन, 2003
क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुर्निर्धारण का आधार 2001 की जनगणना के आधार पर होगा न कि 1991 की जनगणना पर जैसा कि 84वें संसोधन अधिनियम 2001 में व्यवस्था की गई थी।
88वां संविधान संसोधन, 2003
इस अधिनियम द्वारा सेवा कर के संबंध में उपबंध बनाये गये हैं। सेवाओं पर कर केंद्र द्वारा लगाया जायेगा लेकिन इसकी प्राप्तियां केंद्र और राज्य द्वारा संगृहित और विनियोजित संसद द्वारा सुझाये गये फॉर्मूले के अनुसार की जाएगी।
89वां संविधान संसोधन, 2003
इस संविधान संसोधन अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति 1. आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया है। अब इनके नाम क्रमशः राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग होगें । दोनों ही आयोगों में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य होगें । इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी । 
90वां संविधान संसोधन, 2003
यह संविधान संसोधन असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल एरियाज डिस्ट्रिक से असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर-अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्व प्रतिनिधित्व को कायम रखा है।
91वां संविधान संसोधन, 2003
इस संविधान संसोधन अधिनियम, द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया है। इसका उदेश्य दोषियों को लोक पद धारण करने से रोकना और दल-बदल कानून को मजबूती प्रदान करता है-
1. केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी ।
2. संसद के किसी भी सदन का सदस्य यदि दल-बदल के आधार पर सदस्यता निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा ।
3. राज्य में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। किंतु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी ।
4. राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यहद दल-बदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा ।
5. संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य चाहे वह किसी भी दल से संबंधित हो यदि दलबदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य किसी भी लाभप्रद राजनैतिक पद को धारित करने के लिए भी निरर्हक होगा। ऐसे पद से अभिप्राय है- (1) केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई पद जहाँ उस पद के लिए लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिए भुगतान किया जाता है, या (2) केंद्र या राज्य सरकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रणाधीन कोई पद जहाँ उस पद के लिए लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिए भुगतान किया जाता है, सिवाए जहाँ वेतन या पारिश्रामिक क्षतिपूरक प्रकृति का हो ।
6. दसवीं अनुसूची में वर्णित वह उपबंध, जिसके अनुसार यदि किसी दल के एक-तिहाई सदस्य दल-बदल करते हैं उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता, इस उपबंध को समाप्त कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि दोषियों को फूट के आधार पर कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है ।
92वां संविधान संसोधन, 2003
संविधान की आठवीं अनुसूची में चार अन्य भाषायें जोड़ी गयीं। ये भाषायें हैं- बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली । इनके साथ अनुसूचित भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गयी है ।
93वां संविधान संसोधन, 2005
राज्यों को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण करने हेतू विशेष उपबंध बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इन शैक्षणिक संस्थानों मं निजी क्षेत्र- .के संस्थान ।
94वां संविधान संसोधन, 2006
इस संविधान संसोधन द्वारा बिहार को एक जनजातीय मंत्री की नियुक्ति करने की बाध्यता से मुक्त करते हुए इस उपबंध को अब झारखंड एवं छत्तीसगढ़ के लिए लागू कर दिया गया है। इन दो नव गठित राज्यों के साथ ही यह उपबंध अब मध्यप्रदेश एवं ओडीसा में भी प्रभावी हो गया है। जहाँ यह पहले ही प्रयोग में था ।
95वां संविधान संसोधन, 2009
लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों तथा आंग्ल- इंडियन्स के लिए विशेष आरक्षण को अगले 10 वर्षो ( 2020 तक) बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
96वां संविधान संसोधन, 2011
"उरिया" (Oriya) के स्थान पर "उड़िया " ( Odia ) । अंग्रेजी भाषा की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित "उरिया" भाषा के उच्चारण को बदलकर "उड़िया" किया गया है।
97वां संविधान संसोधन, 2011
इस संसोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान एवं संरक्षण प्रदान किया गया। संसोधन द्वारा संविधान में निम्नलिखित तीन बदलाव किए गए:
(1) सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया ।
(2) राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश ।
(3) “सहकारी समितियां' नाम से एक नया भाग - 9ख संविधान में जोड़ा गया ।
98वां संविधान संसोधन, 2012
कर्नाटक राज्य के हैदराबाद- कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान। विशेष प्रावधान का लक्ष्य एक ऐसे संस्थागत क्षेत्र की स्थापना से है जो कि विकास की जरूरतों का पूरा करने के साथ ही मानव संसाधन को बढ़ाने और शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण से सेवा और आरक्षण के साथ रोजगार को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं संस्थानों को धन का न्यायसंगत आबंटन कर सकें ।
99वां संविधान संसोधन, 2014
सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नये निकाय "राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग” (National Judicial Appointments Commission) की स्थापना की। हलांकि वर्ष 2015 में सवोच्च न्यायालय ने इस संसोधन को असंवैधानिक एवं रद्द घोषित कर दिया। परिणाम स्वरूप पूर्व में चल रही कॉलेजियम प्रणाली पुनः लागू की गई ।
100वां संविधान संसोधन, 2015
भारत द्वारा कतिपय भू-भाग का अधिग्रहण एवं कुछ अन्य भू–भाग का बांग्लादेश को हस्तांतरण (अंतःक्षेत्रों की अदला-बदली तथा विपरीत दखल की अवधारणा के द्वारा), भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता 1974 तथा इसके प्रोटोकॉल 2011 के अनुपालन में । इस उदेश्य के लिए इस संशोधित अधिनियम ने चार राज्यों (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय एवं त्रिपुरा) के भू-भागों से संबंधित संविधान की पहली अनुसूची के प्रावधानों को संसोधित किया ।
101वां संविधान संसोधन, 2016
इस संसोधन ने देश में वस्तु और सेवा कर (वस्तु और सेवा कर) शासन की शुरूआत का मार्ग प्रशस्त किया । वस्तु और सेवा कर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगाएं जा रहें अप्रत्यक्ष करों की जगह लेगा। इसके द्वारा करों के कैस्केडिंग प्रभाव को हटाने और वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय बाजार प्रदान करने का लक्ष्य है। प्रस्तावित केंद्रीय और राज्य वस्तु और | सेवा कर उन सभी वस्तुओं पर लगाया जाएगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति शामिल है, सिवाय उन सभी के जो वस्तु और सेवा कर के दायरे से बाहर रखे गए हैं। तदनुसार, संसोधन में निम्नलिखित प्रावधान किये गयें हैं:
(1) वस्तुओं और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के प्रत्येक लेनदेन पर वस्तु और . सेवा कर लगाने के लिए कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं को समवर्ती कर लगाने की शक्तियां प्रदान की गई।
2. इसने संविधान के तहत् 'विशेष महत्व के के घोषित समान' की अवधारणा को खारिज कर दिया ।
3. वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्जीय लेनदेन पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर के लगाने के लिए प्रदान किया गया ।
4. राष्ट्रपति के आदेश एक वस्तु और सेवा कर परिषद की स्थापना ।
5. पांच साल की अवधि के लिए वस्तु और सेवा कर की शुरूआत के कारण राजस्व के नुकसान के लिए राज्यों को मुआवजे का प्रावधान किया।
6. सातवीं अनुसूची की संघ और राज्य सूची में कुछ प्रविष्टियों को प्रतिस्थापित और लोप किया गया ।
102वां संविधान संसोधन, 2018
1. राष्ट्रीय पिछड़ वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जो 1993 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था ।
2. पिछड़े वर्गो के संबंध में अपने कार्यो से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को राहत दी ।
3. राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिए राष्ट्रपति का अधिकार दिया |
103वां संविधान संसोधन, 2019
1. नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए कोई विशेष प्रावधान करने के लिए राज्य को सशक्त बनाना ।
2. राज्य का निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए इस तरह के वर्गो के लिए 10 प्रतिशत सीटों तक के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी गई है, चाहे वह सहायता प्राप्त हो या राज्य द्वारा सहायता प्राप्त न हो, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की अपेक्षा करता है। 10 प्रतिशत तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिकत होगा ।
3. राज्य को ऐसे वर्गो के पक्ष में 10 प्रतिशत नियुक्तियों या पदो के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी । 10 प्रतिशत तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 07:44:38 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संवैधानिक/गैर&संवैधानिक और सांविधिक संस्था https://m.jaankarirakho.com/940 https://m.jaankarirakho.com/940 General Competition | Indian Polity | संवैधानिक/गैर-संवैधानिक और सांविधिक संस्था
★ वैसी संस्थाएँ जिसकी चर्चा हमारे देश के संविधान के अनुच्छेदों में है, उसे संवैधानिक संस्था कहते हैं संवैधानिक संस्था कहते हैं । प्रमुख संवैधानिक संस्था निम्न है:-
संस्था अनुच्छेद
अंतर्राज्जीय परिषद 263
वित्त आयोग 280
संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग 315-323
निर्वाचन आयोग 324
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग 338
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग 338 (क)
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग 338 (ख)
वित्त आयोगः-
वित्तं आयोग एक संवैधानिक संस्था है । इसका गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 280 क तहत् किया गया है। इस संगठन में किसी भी प्रकार का बदलाव संविधान संसोधन के तहत् ही किया जाता है। यह एक पंचवर्षीय निकाय है, अर्थात इसका गठन प्रत्येक 5 वर्ष के अंतराल पर " होता है। इसका गठन राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है । वित आयोग में अध्यक्ष के सहित कुल 5 सदस्य होते हैं। वित्त आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सभी सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। वित्त आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपना त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को देता है। इस आयोग के अध्यक्ष और सदस्य पुर्नयुक्ति के पात्र होते हैं ।
नोट:-
(1) वित्त आयोग की सलाह सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होता है। इस आयोग का सलाह मानना या ना मानना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है।
(2) वित्त आयोग का सबसे प्रमुख काम केंद्र और राज्य के बीच राजस्व का बँटवारा करना होता है।
★ अनुच्छेद- 281 हमें वित्त आयोग की अनुशंसाओं की जानकारी देता है।
★ वित्त आयोग के अध्यक्ष अपना रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देते हैं । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाते हैं।
★ वित्त आयोग का अध्यक्ष वहीं व्यक्ति बन सकता है जो सार्वजनिक मामलों का जानकार हो, वहीं वित्त आयोग में जो 4 अन्य सदस्य होते हैं उनमें एक अच्छे अर्थशास्त्री होना चाहिए, एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होना चाहिए, एक वित्तीय मामलों का जानकार होना चाहिए और एक प्रशासनिक मामलों का जानकार होना चाहिए।
★ संविधान लागू होने से आज तक 15 वित्त आयोग का गठन किया जा चुका है। जिसमें प्रथम क्त्ति आयोग का गठन 1951 ई0 में के०सी० नियोगी की अध्यक्षता में हुआ, वहीं 15वें वित्त आयोग का गठन 2017 ई० में N. K सिंह की अध्यक्षता में हुआ । 15वें वित्त आयोग ने 2011 की जनगणना को आधार बनाते हुए अपनी सिफारिशें की है। 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें 2021-2026 तक लागू रहेगा ।

लोक सेवा आयोग

★ इसके अंतर्गत संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोग आता है। संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 14 के अंतर्गत अनुच्छेद- 315 से 323 जानकारी देता है। संघ लोक सेवा आयोग के गठन संबंधी प्रावधान की चर्चा भारत शासन अधिनियम 1919 में की गई थी, जबकि राज्य लोक सेवा आयोग के गठन संबंधी प्रावधान की चर्चा भारत शासन अधिनियम 19354 में की गई थी । 
संघ लोक सेवा आयोगः-
  • संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। साथ ही साथ इस आयोग में कितने सदस्य होगें इसका निर्धारण भी भारत के राष्ट्रपति के द्वारा ही किया जाता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य अपना त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को देते हैं।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष का होता है। जो भी पहले पूरा हो उस अनुसार ये अपने पद को छोड़ते हैं ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य पुर्नयुक्ति के पात्र नहीं होते हैं
  • यह एक प्रकास का सलाहकारी प्रवृत्ति का आयोग होता है। इसकी सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को राष्ट्रपति निम्न आधार पर पद से हटा सकता है:-
    1. अगर वह दिवालियाँ घोषित हो जाता है ।
    2. अगर उस पर कदाचार या भ्रष्टाचार साबित हो जाता है
    3. अगर वह किसी अन्य लाभ के पद को ग्रहण कर लेता है ।
नोट:- संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्यों पर लगें भ्रष्टचार की जाँच अनुच्छेद - 145 के तहत् भारत का सर्वोच्च न्यायालय करता है। और इसकी सिफारिशें राष्ट्रपति को करता है। इस सिफारिश को राष्ट्रपति मानने के लिए बाध्य है ।
राज्य लोक सेवा आयोगः-
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल के द्वारा किया जाता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देते हैं।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष का होता है ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को उसी तरीका से हटाया जाता है जिस तरीका से संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को हटाया जाता है। अर्थात इसे भी भारत के राष्ट्रपति के द्वारा ही हटाया जाता है।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य संघ लोक सेवा आयोग में नियुक्त हो सकते हैं।
संयुक्त लोक सेवा आयोगः-
  • दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल के प्रस्ताव को पारित करने पर संसदीय अधिनियमों के तहत् संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन किया जाता है ।
  • 1966 ई0 में अल्प समय के लिए पंजाब और हरियाणा हेतू संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन किया जाता है।
  • संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष का होता है ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंपते हैं ।
  • इस आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को उसी तरीका से हटाया जाता है जिस तरीका से संघ लोकं सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को हटाया जाता है । अर्थात इसे भी भारत के राष्ट्रपति के द्वारा ही हटाया जाता है।
अनुच्छेदः - 315
यह अनुच्छेद कहता है एक संघ लोक सेवा आयोग होगा तथा प्रत्येक राज्य में एक राज्य लोक सेवा आयोग होगा ।
अनुच्छेदः - 316
यह अनुच्छेद हमें संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति तथा उसके कार्यकाल के विषय में जानकारी प्राप्त होता है |
अनुच्छेदः - 317
यह अनुच्छेद हमें संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के बर्खास्तगी और निलंबन (पद से हटाया जाना) के विषय में जानकारी देता है ।
अनुच्छेदः - 318
यह अनुच्छेद संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के सेवा शर्तों संबंधी नियम बनाने की शक्ति के बारें में बताता है।
अनुच्छेदः - 319
आयोग के सदस्यों द्वारा सदस्यता के समाप्ति के पश्चात् पद पर बने रहने पर रोक ।
अनुच्छेदः - 320
लोक सेवा आयोग के कार्य ।
अनुच्छेद:- 321
लोक सेवा आयोग के कार्यो को विस्तारित करने की शक्ति भारत की संसद को है ।
अनुच्छेदः - 322
यह अनुच्छेद हमें लोक सेवा आयोग पर होने वाले खर्च की जानकारी देता है
अनुच्छेदः - 323
यह अनुच्छेद हमें लोक सेवा आयोग के प्रतिवेदन की जानकारी प्रदान करता है I
★ संघ लोक सेवा आयोग अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को देता है । राष्ट्रपति इसे संसद के पटल पर रखवाता है। वहीं राज्य लोक सेवा आयोग अपना प्रतिवेदन राज्यपाल को देता है। राज्यपाल उसे विधानमंडल के समक्ष रखवाता है।

भारत का निर्वाचन आयोग/चुनाव आयोग Election Commission of India

⇒ इस आयोग के विषय में जनकारी हमें भारतीय संविधान के भाग- 15 के अंतर्गत अनुच्छेद 324 से 329 देता है । अनुच्छेद- 324 यह कहता है कि भारत का एक निर्वाचन आयोग होगा। इस आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को हुआ है। 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है। निर्वाचन आयोग के कई सारे काम हैं । जैसे:- (1) चुनाव करवाना (2) राजनैतिक दलों को मान्यता प्रदान करना (3) राजनैतिक दल के बीच चुनाव चिन्ह आबंटित करना (4) मतदाता सूची तैयार करवाना, इत्यादि...... । लेकिन ध्यान रहें कि निर्वाचन आयोग का सबसे प्रमुख काम चुनाव करवाना है। भारत का निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषद का चुनाव कराती है, लेकिन ध्यान रहें कि चुनाव में होने वाले विवाद का निपटारा करना निर्वाचन आयोग का काम नहीं है । राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में होने वाले विवाद को भारत का भारत का सुप्रीम कोर्ट सुलझाएगा तथा लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव में होने वाले विवाद का निपटारा उच्च न्यायलय करता है।
⇒ स्थापना के समय निर्वाचन आयोग 1 सदस्यीय संस्था था, 1989 ई. इसे 3 सदस्यीय संस्था बना दिया गया लेकिन इसे 1990 ई0 में इसे पुनः 1 सदस्यीय संस्था बना दिया गया। कलांतर में 1 अक्टूबर 1993 ई0 में निर्वाचन आयोग को 3 सदस्यीय संस्था बनाया गया। तब से लेकर आज तक यह 3 सदस्यीय संस्था बनी हई है। निर्वाचन आयोग में 1 मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा 2 अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं । इन सभी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष का होता है । जो भी पहले पूरा हो उस अनुसार ये सभी अपने पद को छोड़ते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त या अन्य निर्वाचन आयुक्त को उसी प्रक्रिया द्वारा पद से हटाया जाता है जैसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
नोटः- निर्वाचन आयोग में निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है ।
★ जब पहली बार भारत में 1951-52 में लोकसभा का चुनाव हुआ था तो उस समय भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दलों की संख्या 14 हुआ करती थी । वर्त्तमान में भारत में राष्ट्रीय राजनैतिक दलों की संख्या 8 है।
(1) भारतीय जनता पार्टी
(2) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
(3) बहुजन समाजवादी पार्टी
(4) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(5) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी
(6) ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस पार्टी
(7) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
(8) नेशनल पिपुल्स पार्टी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस:-
भारत की सभी राजनीतिक दलों में सबसे प्राचीन राजनीतिक दल कांग्रेस है। इसकी स्थापना 1885 ई0 में मुम्बई में की गई थी। कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा है ।
भारतीय जनता पार्टी:-
नेहरू मंत्रीमंडल से त्यागपत्र देने वाला प्रथम मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी हुए जिन्होनें नेहरू लियाकत समझौते के कारण त्यागपत्र दिया और कांग्रेस से अलग हटकर 1951 ई० में भारतीय जनसंघ नामक संगठन की स्थापना की । कलांतर में यही जनसंघ 1980 ई० में भाजपा के तौर पर स्थापित हुई । BJP के संस्थापक सदस्य अटल बिहारी बाजपेई, लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, आदि को माना जाता है। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह. कमल का फुल है।
ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस पार्टी:-
कांग्रेस से अलग होकर 1998 ई० में ममता बनर्जी ने इस पार्टी को स्थापित की। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह दो जोड़ा घास का फुल है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी:- 
कांग्रेस से अलग होकर ही 1999 ई0 में इस पार्टी की स्थापना हुई। इस पार्टी के संस्थापक सरद पवार हैं। इसका चुनाव चिन्ह घड़ी है ।
नेशनल पिपुल्स पार्टी:-
N.C.P से अलग होकर PA संगमा ने नेशनल पिपुल्स पार्टी की स्थापना 2013 में की। यह पार्टी मुख्यतः मेघालय में ज्यादा सशक्त है। इसका चुनाव चिन्ह पुस्तक है।
बहुजन समाजवादी पार्टी:-
एक बहुत बड़े अंबेडकरवादी नेता काशीराम के द्वारा 14 अप्रैल 1984 को यह पार्टी स्थापित किया गया। वर्त्तमान में इस पार्टी की कमांड मायावती के हाथ में है। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी:-
इसकी स्थापना नागपुर में 1925 ई0 में हुई थी। इसका चुनाव चिन्ह हसियाँ और बाली था |
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी:-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ही कुछ नेता अलग होकर 1964 ई0 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना किया। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह हसियाँ और हथौरा है ।

राष्ट्रीय दल के दर्जा प्राप्त करने की शर्ते

★ किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भारत के चुनाव आयोग के द्वारा दियें जाते हैं। राष्ट्रीय दल के दर्जा प्राप्त करने की निम्न शर्ते हैं:-
(1) अगर कोई पार्टी कम से कम 4 राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा प्राप्त करता है।
या
(2) लोकसभा के कुल सीट का 2 प्रतिशत (11 सीट) सीट 3 अलग-अलग राज्यों से प्राप्त करता है ।
या
(3) अगर कोई पार्टी लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में कम से कम 4 राज्यों में कुल पड़े वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करता है तथा 4 लोकसभा सीट 1 या अधिक राज्यों से जीतता है ।
★ राज्य स्तरीय दल के दर्जा प्राप्त करने की शर्तें:-.
(1) अगर कोई पार्टी किसी राज्य में लोकसभा के चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का 6 प्रतिशत मत प्राप्त करता है तथा 1 लोकसभा सीट जीतता है ।
या
(2) अगर कोई राजनीतिक दल किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करता है तथा 2 विधानसभा सीट जीतता है । 
या
(3) अगर कोई राजनीतिक पार्टी किसी राज्य में लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में कुल पड़े वैध मतों को 8 प्रतिशत मत प्राप्त करता है ।
या
(4) अगर किसी राज्य में कोई राजनीतिक दल विधानसभा के कुल सीट का 3 प्रतिशत सीट या 3 सीट ( जो भी अधिक हो) प्राप्त करता है ।
★ भारत में मुख्यतः दो प्रकार से चुनाव होता है ।
(1) First Past the Post System:-
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें सर्वाधिक मत प्राप्त होने पर उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है, उसे ही First Past the Post System कहते हैं। विशेषकर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में यह प्रावधान अपनाई जाती है। इस प्रणाली के तहत् भारत में लोकसभा, विधानसभा और पंचायती राज के अंतर्गत मुखिया, सरपंच, वार्ड सदस्य समिति, इत्यादि की चुनाव होती है।
(2) अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली:
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें उम्मीदवार को विजेता बनने हुतू कुल पड़े वैध मतों का 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक होता है। उसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली कहा जाता है। जैसे भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, विधानपरिषद, राज्यसभा सदस्य का चुनाव इसी प्रणानी के तहत् होता है ।

चुनाव के प्रकार

★ मुख्य तौर पर चुनाव तीन प्रकार के होते हैं:-
(1) आम चुनावः-
प्रत्येक 5 वर्ष पर लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल की समाप्ति पर जो चुनाव होता है, उसे ही आम चुनाव कहते हैं।
(2) मध्यावधि चुनावः-
अगर लोकसभा और विधानसभा अपने कार्यकाल के समाप्ति के पूर्व भंग हो जाता है, इस स्थिति में जो नई लोकसभा या विधानसभा के लिए चुनाव होता है, उसे मध्यावधि चुनाव कहा जाता है।
(3) उपचुनावः-
यदि लोकसभा या विधानसभा के सदस्यों का पद पर रहते हुए मृत्यु हो जाता है. या वह - त्यागपत्र दे देता है या किसी अन्य करणवश लोकसभा और विधानसभा का सीअ खाली होता है तो इस स्थिति में जो चुनाव होता है उसे उपचुनाव कहा जाता है। ध्यान रहें कि उपचुनाव के माध्यम से चुनें हुए सदस्य बचें हुए समय के लिए ही निर्वाचित होते हैं।

दलीय व्यवस्था

एकदलीय व्यवस्था वाला देश:-
वैसे देश जहाँ कहने को तो कई सारी राजनीतिक पार्टियाँ होती है, लेकिन मुख्य तौर पर सत्ता में हमेशा एक ही दल रहता है उसे एकदलीय व्यवस्था वाला देश कहा जाता है। इसका सर्वोकृष्ट उदाहरण चीन को माना जाता है।
द्विदलीय व्यवस्था वाला देश:-
वैसे देश जहाँ कहने को तो कई सारी राजनीतिक पार्टियाँ होती है, लेकिन मुख्य तौर पर सत्ता में हमेशा दो राजनीतिक दल रहता है उसे द्विदलीय व्यवस्था वाला देश कहा जाता है। इसका सर्वोकृष्ट उदाहरण अमेरिका और ब्रिओन को माना जाता है। अमेरिका में कभी डेमोक्रेटिव पार्टी की सरकार तो कभी रिपब्लिकन पार्टी की सरकार बनती है। उसी प्रकार ब्रिटेन में कभी लेबर पार्टी तो कभी कंजरबेटिव पार्टी की सरकार बनती है।
बहुदलीय व्यवस्था वाला देश:-
वैसे देश जहाँ कई सारी राजनीतिक दलें होती है और सत्ता में कोई भी दल आ सकता है उसे बहुदलीय व्यवस्था वाला देश कहा जाता है। इस व्यवस्था सबसे बेहतर उदाहरण अपना देश भारत है।
नोटः- संभवतः विश्व में सबसे ज्यादा राजनीतिक दल वाला देश भारत है।
★ आजादी से लेकर 1977 ई0 तक भारत में कांग्रेस की ही सरकार रही। जिस कारण इस कालखंड को एकदलीय व्यवस्था वाला कालखंड कहते हुए रजनी कोठारी ने कड़ी आलोचना की।
चुनाव सुधार से संबंधित समितिः-
(1) तारकुंडे समिति- 1974
(2) जे०पी० समिति- 1974
(3) दिनेश गोस्वामी समिति- 1990
(4) इन्द्रजीत गुप्ता समिति- 1998
(5) तनखा समिति - 2010
नोट:- 1993 ई0 में वोहरा समिति का गठन अपराधी और राजनेताओं के बीच के साँठगाँठ को पता लगाने के लिए किया गया ।

एक देश एक चुनाव

★ देश के उपर आर्थिक बोझ कम पड़े, विकासात्मक कार्यो में अवरोध ना हो, सुरक्षा बलों को अधिक परेशानी ना हो, इत्यादि को लेकर देश के भीतर लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ करवाने की जो योजना है, इसे ही एक राष्ट्र -एक चुनाव कहा जाता है। अगर ऐसा होता तो फिर क्षेत्रीय दलों का महत्व कम हो जायेगा जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
नोटः- 61वाँ संविधान संसोधन 1989 के तहत् मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया ।
★ 1952, 1957, 1962 और 1967 ई0 में पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं।

EVM

★ Electronic Voting Machine भारत वर्ष में 1982 ई0 में पहली बार EVM का प्रयोग केरल में हुआ था। इसके बाद 1998 में दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ विधानसभा क्षेत्र में इसका प्रयोग किया गया। 1999 ई0 में गोवा भारत का प्रथम राज्य बना जहाँ पूर्णतः विधानसभा चुनाव EVM के प्रयोग से संपन्न हुआ। इसके बाद 2004 में 14वीं लोकसभा चुनाव पूर्णतः EVM के प्रयोग से संपन्न हुआ । 2009 से लोकसभा और विधानसभा का चुनाव EVM के प्रयोग से ही होता हुआ आ रहा है।
NOTA (Non of the Above):-
जब किसी मतदाता को कोई उम्मीदबार पसंद नहीं होता है तो फिर वह EVM में NOTA का प्रयोग करता है । सर्वप्रथम 2013 ई0 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम के विधानसभा चुनाव में NOTA का प्रयोग किया गया है।
VVPAT (Votor Verifiable Paper Audit Trail):-
मतदाता ने जिस उम्मीदवार को मत दिया है उसे ही मृत पड़ा है या नहीं इसकी पुष्टि हेतू VVPAT का प्रयोग भारतीय चुनाव प्रणाली में की जाती हैं। सर्वप्रथम VVPAT का प्रयोग 2013 में नागालैंड के विधानसभा चुनाव में किया गया है।
नोट:- भारत Electronic Limited और Electronic Corporation of India Limited ने मिलकर 2013 में VVPAT Machine तैयार किया है ।
अनुच्छेदः - 324
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का एक निर्वाचन आयोग होगा। चुनावों का अधिक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित होता है।
अनुच्छेदः - 325
यह अनुच्छेद कहता है कि मतदाता सूची में नाम शामिल करते वक्त धर्म, मूलवंश, जाति और लिंग के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जायेगा ।
अनुच्छेदः - 326
लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव में वयस्क मताधिकार का प्रयोग किया जायेगा ।
अनुच्छेदः - 327
राज्य विधान मंडल के निर्वाचन को लेकर विशेष उपबंध करने की संसद की शक्ति ।
अनुच्छेद:- 328
राज्य विधानमंडल के निर्वाचन को लेकर विशेष उपबंध करने की उस राज्य विधानमंडल की शक्ति ।
अनुच्छेदः - 329
निर्वाचन संबंधी मामलों को लेकर न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन ।

दल-बदल अधिनियम

★ 52वाँ संविधान संसोधन अधिनियम 1985 में यह व्यवस्था की गई कि सांसदों एवं विधायकों द्वारा एक दल से दूसरे दल में जाने पर उन्हें निम्न स्थितियों में आयोग्य करार दिया जायेगा ।
(1) अगर कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी की सदस्यता से स्वेच्छा से त्यागपत्र देता है।
(2) अंगर कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी के विरोध में जाके मतदान करता है या मतदान से अनुपस्थित रहता है और 15 दिनों के भीतर अपनी पार्टी से माँफीनामा नहीं प्राप्त करता है।
(3) अगर कोई निर्दलीय सांसद या विधायक किसी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
नोटः- 52वाँ संविधान संसोधन 1985 यह प्रावधान करता था कि अगर किसी पार्टी (1 तिहाई) सांसद या 3 विधायक एक पार्टी से दूसरें पार्टी में जाता है तो उसकी सदस्यता समाप्त नहीं होगी। लेकिन दल-बदल अधिनियम को अधिक सशक्त बनाने के लिए 91वाँ संविधान संसोधन के तहत् एक तिहाई से बढ़ाकर दो तिहाई कर दिया गया है। अर्थात वर्त्तमान परिदृश्य में अगर किसी पार्टी के कुल विधायकों या सांसद का दो तिहाई सदस्य किसी दूसरें दल में जाता है, तब उसपर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होता है। लेकिन अगर उससे कम सदस्य जाता है तो फिर दल-बदलं अधिनियम लागू हो जाता है और सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जाती है।
★ लोकसभा के अध्यक्ष और विधानसभा के अध्यक्ष अगर अपनी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देता है तो उन पर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होता है
★ दल-बदल अधिनियम के तहत् निर्णय लोकसभा अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा लिया जाता है, लेकिन ध्यान रहें कि उनका निर्णय अंति निर्णय नहीं होता है बल्कि उसकी न्यायायिक समीक्षा की जा सकती है। किहोतो होलोहन मामला 1992 मे सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि अध्यक्ष के द्वारा दिए गए निर्णय की न्यायायिक समीक्षा की जा सकती है ।

कुछ अन्य संवैधानिक संस्था

★ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग का गठन 1978 ई0 में हुआ था। 89वाँ संविधान संसोधन 2003 के तहत् राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का विभाजन हुआ। वर्त्तमान स्थिति में अनुच्छेद- 338A के तहत् राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। इन दोनों आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के सेवा शर्तो का निर्धारण भारत के राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है । संभवतः दोनों आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्षो का होता है। यह दोनों आयोग अपना रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देता है । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता है । संसद इस रिपोर्ट की जाँच S.C, S.T के कल्याण को लेकर बनी समिति के द्वारा करवाता है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोगः-
इस आयोग का गठन 1993 ई0 मं किया गया था। हाल ही के दिनों में 102वाँ संविधान संसोधन अधिनियम के तहत् अनुच्छेद- 338B के तहत् इस आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 07:26:28 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | आपात उपबंध https://m.jaankarirakho.com/939 https://m.jaankarirakho.com/939 General Competition | Indian Polity | आपात उपबंध
★ भारतीय संविधान में आपात संबंधी प्रावधान भाग- 18 के अंतर्गत अनुच्छेद- 352 से 360 में देखने को मिलता है । भारतीय संविधान में मुलतः आपात संबंधी प्रावधान भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है। लेकिन आपात के दौरान मुल अधिकारों को निलंबन संबंधी प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान में 3 प्रकार की आपात की चर्चा है:-
(1) राष्ट्रीय आपात
(2) राष्ट्रपति शासन
(3) वित्तीय आपात
(1) राष्ट्रीय आपातः-
राष्ट्रीय आपात की घोषणा भारत के राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर अनुच्छेद 352 के तहत् तीन आधार पर करते हैं।
(1) युद्ध की स्थिति में ।
(2) बाह्य आक्रमण की स्थिति में ।
(3) सशस्त्र विद्रोह की स्थिति ।
⇒ 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् आंतरिक अशांति शब्द के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़े गए हैं ।
⇒ 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् ही यह भी प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के लिखित सिफारिश पर राष्ट्रीय आपात की घोषण करेगा ।
⇒ राष्ट्रपति की घोषणा के बाद एक माह के भीतर संसद की स्वीकृति दो तिहाई बहुमत से आवश्यक होती है। अगर संसद स्वीकृति दे देती है तो राष्ट्रीय आपात 6 माह तक लागू रहता है। प्रत्येक 6 माह पर संसद अगर स्वीकृति देती रहे तो यह अनिश्चित काल तक लागू रह सकता है।
⇒ जब राष्ट्रीय आपात युद्ध और बाह्य आक्रमण के आधार पर लागू होता है तो उसे बाह्य आपात कहते हैं । अनुच्छेद- 352 के तहत् जब बाह्य आपात लागू होता है तब अनुच्छेद 358 स्वतः लागू हो जाता है। और अनुच्छेद 19 में जो मौलिक अधिकार है वह निलंबित हो जाता है। इसके अलावे अन्य मौलिक अधिकार को निलंबित करने की घोषणा भारत की राष्ट्रपति अनुच्छेद 359 के तहत् करते हैं।
⇒ जब अनुच्छेद 352 की घोषणा सशस्त्र विद्रोह के आधार पर होता है तो इसे आंतरिक आपात कहते हैं । जब आंतरिक आपात लागू होता है तो अनुच्छेद 358 लागू नहीं होते हैं। अनुच्छेद 19 का मौलिक अधिकार निलंबित नहीं होता है ।
⇒ राष्ट्रीय आपात के दौरान दो मोलिक अधिकार अनुच्छेद 20 तथा 21 निलंबित नहीं होता है।
⇒ अभी तक 3 बार राष्ट्रीय आपात लागू हुए हैं।
(1) भारत-चीन युद्ध के कारण 1962 में पहली बार राष्ट्रीय आपात लागू हुआ था । इस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तथ राष्ट्रपति डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन थें। इस आपात के उदघोषणा को समाप्त जनवरी 1968 में किया गया था ।
(2) दूसरी बार आपात पाकिस्तान के भारत पर आक्रमण के कारण 1971 में घाषित किया गया। इस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी तथा राष्ट्रपति वी०वी० गिरी थें। इसे वापस 1977 ई0 में लिया गया था ।
(3) 1975 ई0 में आंतरिक अशांति के आधार पर तीसरी बार आपात की घोषणा की गई। इस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी तथा राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद थें। इसे वापस 1977 में लिया गया था ।
नाट:- (1) सामान्य स्थिति में भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था की ढाँचा देखने को मिलता है वहीं आपात की स्थिति में एकात्मक ढाँचा देखने को मिलती है।
(2) 38वाँ संविधान संसोधन 1975 के तहत् यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपात की न्यायायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है। कलांतर में 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् 38वाँ संविधान संसोधन के प्रावधानों को पलटते हुए यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति द्वारा घोषित आपात की न्यायायिक समीक्षा की जा सकती है।
अनुच्छेदः - 353
राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा के प्रभाव की जानकारी प्रदान करता है।
अनुच्छेदः - 353
राष्ट्रीय आपात के उद्घोषणा के प्रभाव की जानकारी प्रदान करता है ।
राष्ट्रीय आपात लागू होने पर निम्न प्रभाव पड़ता है:-
(1) राज्य की विधायी शक्ति, केंद्र सरकार के पास चला जाता है। इस समय राज्य सूची के विषय पर कानून भारत की संसद के द्वारा बनाया जाता है। साथ ही साथ इस समय राज्य सूची के विषय पर अध्यादेश जारी करने का अधिकार राष्ट्रपति को हो जाता है।
(2) राष्ट्रीय आपात के समय लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल को एक बार में 1 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है लेकिन आपातकाल की समाप्ति के 6 माह के भीतर नया चुनाव कराना आवश्यक होता है।
अनुच्छेद- 354
राष्ट्रीय आपात लागू होने की स्थिति में केंद्र और राज्य के बीच राजस्व वितरण में राष्ट्रपति के द्वारा संसोधन किया जा सकता है।
अनुच्छेद:- 355
केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह राज्यों को बाह्य आक्रमण से बचायें ।

राष्ट्रपति शासन

★ भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 356 और 365 के तहत् राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किये जाते हैं।
★ अनुच्छेद- 356 के तहत् तब लागू किये जाते हैं जब राज्य का संबैधानिक तंत्र विफल हो जाता है और राज्यपाल ऐसी अनुशंसा राष्ट्रपति से कर देते हैं। वहीं अनुच्छेद- 365 के तहत् किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन तब लागू होता है जब राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता है।
★ मंत्रीमंडल के सलाह मात्र से राष्ट्रपति के द्वारा राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दी जाती है। यह साधारण बहुमत से घोषणा 2 माह तक लागू रहता है और प्रत्येक 6 माह पर संसद इसे स्वीकृति देते रहें तो हय अधिकतम 3 वर्ष तक लागू रह सकता है ।
★ पहली बार राष्ट्रपति शासन पंजाब राज्य में लागू हुआ था।
★ सबसे अधिक वर्षो तक राष्ट्रपति शासन जम्मू-कश्मीर में लागू रहा है । (6 वर्ष)
★ सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन उत्तरप्रदेश और मणिपुर में 10-10 बार लागू हुआ है।
★ बिहार में अभी राष्ट्रपति शासन 8 बार लागू हुआ है जिसमें पहली बार 1986 में लागू हुआ था ।
★ राष्ट्रपति शासन लागू होने पर मौलिक अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
★ 38वाँ संविधान संसोधन 1975 के तहत् राष्ट्रपति द्वारा घोषित राष्ट्रपति शासन को न्याययिक समीक्षा के दायरें से बाहर कर दिया गया लेकिन 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् राष्ट्रपति द्वारा घोषित राष्ट्रपति शासन को न्याययिक समीक्षा के दायरें में लाया गया ।

वित्तीय आपात

★ जब देश में आर्थिक स्थिति संकट ग्रस्त हो तो मंत्रीमंडल के सलाह से भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद- 360 के तहत् वित्तीय आपात की घोषणा करते हैं। यह 2 माह तक लागू रहता है। 2 माह के भीतर संसद अगर स्वीकृति दे देता है (साधारण बहुमत) तो यह अनिश्चित काल तक के लिए लागू रहता है । आज तक भारतीय इतिहास में कभी भी अनुच्छेद- 360 का प्रयोग नहीं किया गया है।

राज्यभाषा

★ इस विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 17 के अंतर्गत अनुच्छेद- 343 से 351 देता है। मूल संविधान में 14 भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया था जो निम्न है:-
(1) हिन्दी
(2) संस्कृत
(3) पंजाबी
(4) गुजराती
(5) मराठी
(6) कन्नर
(7) तमिल
(8) तेलगू
(9) बंगाली 
(10) उड़िया 
(11) असममिया
(12) राजस्थानी
(13) मलयालम
(14) उर्दू
★ संविधान संसोधन के माध्यम से 8 भाषा को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया है। तत्पश्चात् राज्यभाषाओं की संख्या बढ़कर 22 हो गई है:- 
(1) 21वाँ संविधान संसोधन 1967 के तहत् सिंधी को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया।
(2) 71वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् नेपाली, मणिपुरी, और फाकणीं को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया ।
(3) 92वाँ संविधान संसोधन 2003 के तहत् बोडो, डोगरी, मैथली, संथाली को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया।
★ राष्ट्रीय हिन्दी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है, क्योंकि संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को भारत के राज्यभाषा के तौर पर हिन्दी को स्वीकृति प्रदान की थी ।
★ विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि 10 जनवरी को 1975 ई0 में पहली बार नागपुर में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था ताकि हिन्दी का वैश्विक स्तर पर विकास हो सकें ।
अनुच्छेदः- 343 ***
यह अनुच्छेद कहता है कि संघ की राज्यभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगा । ध्यान रहें कि 1 हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं है।
अनुच्छेदः - 344 ***
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि राज्यभाषा आयोग का गठन कर सके। इस अधिकार का करते हुए ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने B.G खडत्रे की अध्यक्षता में 1955 में प्रथम राज्यभाषा आयोग का गठन किया ।
अनुच्छेद:- 345
यह अनुच्छेद हमें राज्य की राजकीय भाषा के विषय में जानकारी प्रदान करता है। जैसे:- केरल की राजकीय भाषा मलयालम, कर्नाटक की राजकीय भाषा कन्नर, बिहार की राजकीय भाषा हिन्दी, इत्यादि है ।
अनुच्छेदः - 346
एक राज्य से दूसरें राज्य के साथ पत्राचार तथा केंद्र और राज्य के बीच पत्राचार की भाषा की जानकारी देता है ।
अनुच्छेदः - 347
किसी राज्य की अधिकतर जनसंख्या द्वारा जो भाषा प्रयोग में लायी जाती है उसको लेकर विशेष उपबंध किया जा सकता है ।
अनुच्छेद- 348 ***
यह अनुच्छेद हमें S.C, H.C, संसदीय अधिनियम और विधानमंडल द्वारा बनाए गए विधि के भाषा की जानकारी प्रदान करता है। सामान्य तौर पर सभी की भाषा अंग्रेजी ही होती है लेकिन संसद कानून बनाकर इसमें परिवर्तन कर सकती है।
अनुच्छेदः - 349
भाषा संबंधी उपबंधों को लागू करने हेतू विशेष प्रावधान की चर्चा है ।
अनुच्छेदः - 350
शिकायत निवारण हेतू किस भाषा का प्रयोग किया जायेगा यह जानकारी देता है ।
अनुच्छेदः - 350 (क) ***
बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए-1
अनुच्छेदः - 350 (ख) ***
भाषायी अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने हेतू अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा किया जायेगा ।
अनुच्छेदः - 351 ***
इस अनुच्छेद के माध्यम से हिन्दी भाषा के विकास को लेकर निर्देश दिए गए हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 07:04:03 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | स्थानीय स्वशासन (Local Self Goverment ) https://m.jaankarirakho.com/938 https://m.jaankarirakho.com/938 General Competition | Indian Polity | स्थानीय स्वशासन (Local Self Goverment )
★ इसके अंतर्गत हमें पंचायती राजव्यवस्था और नगर निगम के विषय में पढ़ना होता है ।
★ प्राचीन काल से ही भारत में स्थानीयं सतर पर शासन - प्रशासन के प्रमाण मिले हैं।
★ चोल काल के शासन-प्रशासन की सबसे बड़ी विशेषता ग्राम प्रशासन था ।
★ भारत में स्थानीय स्वाशासन का जनक लार्ड रिपन को माना जाता है।
★ मूल संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्व के अंतर्गत अनुच्छेद- 40 में ग्राम पंचायत के गठन की बात की गई है।
★ संविधान लागू होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को लेकर 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम और 1953 ई0 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा का गठन किया गया। लेकिन ये दोनों संगठन अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो गया, इसकी असफलता की जाँच हेतू 1957 ई0 में बलवंत राय मेहता कमिटि का गठन किया गया।
★ महात्मा गाँधी स्थानीय स्वशासन के प्रबल समर्थक थें । वहीं डॉ० भीम राव अम्बेडकर स्थानीय स्वशासन के विरोधी थें ।
बलवंत राय मेहता कमिटि :-
इस कमिटि को पंचायती राजव्यवस्था का वास्तुकार माना जाता है। इस कमिटि का गठन जनवरी 1957 में हुआ था । यह कमिटि अपनी रिपोर्ट नवंबर 1957 में प्रस्तुत की । इस रिपोर्ट को राष्ट्रीय विकास परिषद ने 1958 ई0 में स्वीकार किया। इस कमिटि की प्रमुख सिफारिशें निम्न है:- 
(1) पंचायती राजव्यवस्था को त्रीस्तरीय बनायी जानी चाहिए। जिसमें
     (क) ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत
     (ख) ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और
     (ग) जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन होना चाहिए । 
(2) जन भगीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
नोटः- देश में सर्वप्रथम पंचायती राजव्यवस्था का उदघाटन राजस्थान के नागौर जिला में 2 अक्टूबर 1959 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के द्वारा किया गया था। राजस्थान के बाद पंचायती राज का उदघाटन 11 अक्टूबर 1959 को आंध्रप्रदेश के महबूब नगर जिला में किया गया।
(3) पंचायती राजव्यवस्था शक्ति के विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता है।
अशोक मेहता कमिटि :-
जनता पार्टी सरकार के अंतर्गत प्रधानमंत्री मौरारजी देशाई के द्वारा- अशोक मेहता की . अध्यक्षता में कमिटि गठित किया गया जिसे अशोक मेहता कमिटि कहा गया। इस कमिटि का गठन दिसम्बर 1977 में हुआ था । यह कमिटि अपनी सिफारिशें अगसत 1978 में प्रस्तुत किया । इस कमिटि के द्वारा निम्न प्रकार के सिफारिशें की गई:-
(1) पंचायती राजव्यवस्था को दो स्तरीय बनाया जाना चाहिए। पहला (1) प्रत्येक 15 हजार ग्रामीण जनसंख्या पर मंडल पंचायत का गठन होना चाहिए। दूसरा (2) जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन होना चाहिए ।
(2) पंचायती राजव्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दी जानी चाहिए ।
(3) दल गत आधर पर पंचायती राज का चुनाव होना चाहिए ।
राजीव गाँधी (1984-89):-
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने पंचायती राजव्यवस्था को सशक्त बनाने हेतू हर संभव प्रयास किया । इन्हीं के शासनकाल के दौरान पंचायती राजव्यवस्था को लेकर 1985 ई0 में G.B.K_ राव समिति, 1986 ई0 में L. M सिंघवी समिति, 1988 ई० में थुंगल और गॉडगिल कमिटि तथा 1989 ई० में 64वाँ और 65वाँ संविधान संसोधन विधेयक लाया गया।
G.B.K राव समिति ने निम्न सिफारिशें की :-
(1) जिला स्तर पर जिला विकास आयुक्त की नियुक्ति की जानी चाहिए।
(2) S.C, S.T, OBC और महिला को उचित प्रतिनिधित्व मिलनी चाहिए।
(3) योजना के निर्माण में विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति को अपनाई जानी चाहिए।
नोटः- पंचायती राजव्यवस्था और नगर पालिका को संवैधानिक दर्जा देने हेतू पहली बार क्रमशः 64वाँ और 65वाँ संविधान संसोधन विधेयक लाया गया जिसे भारत की संसद पारित नहीं कर सकीं ।
★ L.M सिंघवी कमिटि के सिफारिश पर 73वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् पंचायती राजव्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया। 73वाँ संविधान संसोधन विधेयक को लोकसभा ने 22 दिसम्बर 1992 को और राज्यसभा 23 दिसम्बर 1992 को पारित किया तथा राष्ट्रपति ने स्वीकृति 20 अप्रैल 1993 को दिया। इसके ठीक 4 दिन बाद 24 अप्रैल 1993 को 73वाँ संविधान संसोधन लागू कर दिया गया। इस प्रकार पंचायती राजव्यवस्था को संवैधानिक दर्जा 73वाँ संविधन संसोधन के तहत् प्रदान किया गया। प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।
★ 73वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् भारतीय संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ते हुए पंचायती राज को शामिल किया गया तथा 29 विषय पंचायती राज को काम करने हेतू दियें गयें ।
नोट:- (1) भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ त्रीस्तरीय शासन प्रणाली देखने को मिलता है।
(2) भारतीय संघात्मक व्यवस्था में तृतीय तल 1992 में जोडत्रे गए। जबकि यह लागू 1993 में हुआ ।
★ पंचायती राजव्यवस्था को जब संवैधानिक दर्जा दिया गया था तो उस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री पी० वी० . नरसिम्हा राव थें ।
★ मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और दिल्ली ऐसे राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं जहाँ पंचायती राजव्यवस्था लागू नहीं होते हैं।
★ पंचायती राजव्यवस्था के अंतर्गत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए ।
★ पंचायतों का कार्यकाल ग्राम सभा की प्रथम बैठक से 5 वर्षो का होता है।
★ पंचायत के भंग होने पर 6 माह के भीतर चुनाव कराया जाना आवश्यक है लेकिन अगर कार्यकाल के पूरा होने में 6 माह का समय बाँकी हो तो फिर बचे हुए समय के लिए नया चुनाव नहीं करवाया जाता है।
★ पंचायत भंग होने की स्थिति में जो नया चुनाव होता है वह बचें हुए समय के लिए होता है ना कि पुरें 5 वर्ष के लिए ।
★ पंचायत के लिए चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा करवाया जाता है। इसका गठन अनुच्छेद- 243(K) के तहत् होता है। राज्य निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल करता है।
★ अनुच्छेद - 243 (E) के तहत् पंचायती राजव्यवस्था में आरक्षण का प्रावधान करता है। पंचायती राजव्यवस्था में S.C, S.T, OBC और महिला सभी को आरक्षण प्राप्त है ।
★ पंचायती राजव्यवस्था में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण का प्रावधान किया गया है। राज्य विधानमंडल आरक्षण की इस सीमा को आगे बढ़ा सकती है लेकिन घटा नहीं सकती है।
★ बिहार देश का प्रथम राज्य बना जिसने महिलाओं को 50 प्रतिशत तक पंचायती राजव्यवस्था में आरक्षण दिया ।
★ अनुच्छेद - 243 (I) के तहत् राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाता है । इस आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा किया जाता है ।
★ पंचायतों के विकास हेतू धन राशी राज्य की संचित निधि से आबंटित की जाती है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 06:56:58 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | केंद्र राज्य संबंध (Centre & State Relation) https://m.jaankarirakho.com/937 https://m.jaankarirakho.com/937 General Competition | Indian Polity | केंद्र राज्य संबंध (Centre - State Relation)
★ इस विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान के भाग- 11 के अंतर्गत अनुच्छेद -- 245 से 263 प्रदान है। भाग 11 को दो अध्याय में बाँटा गया है जिसमें से अध्याय- 1 हमें केंद्र राज्य विधायी संबंध (अनुच्छेद - 245 से 255) और अध्याय - 2 हमें केंद्र राज्य प्रशासनिक संबंध ( अनुच्छेद- 256 से 263) की जानकारी प्रदान करता है।
★ केंद्र राज्य संबंध के आधार पर शासन प्रणाली 3 प्रकार का होता है:-
(1) संघात्मक
(2) एकात्मक
(3) परिसंघात्म
(1) संघात्मक (Fererul Systeam):-
वैसी शासन प्रणाली जिसमें केंद्र और राज्य दोनों का यह अस्तिव हो, संघात्मक शासन प्रणाली कहलाती है । इस शासन प्रणाली में केंद्र अपने केंद्र में शक्तिशाली और राज्य अपने क्षेत्र में शक्तिशाली होता है। इस शासन प्रणाली की प्रमुख विशेषता निम्न है:- 
(1) संविधान लिखित हो ।
(2) संविधान सर्वोच्च हो ।
(3) स्वतंत्र न्यायपालिका हो ।
(4) द्विसदनीय विधायिका हो ।
नोट:- संघात्मक शासन प्रणाली को अविनाशी राज्यों का अविनाशी संगठन कहा जाता है। इस शासन प्रणाली का सर्वोकृष्ट उदाहरण अमेरिका को माना जाता है ।
(2) एकात्मक (Unitary Systeam):-
वैस शासन प्रणाली जिसमें समस्त शक्ति केंद्र में निहित हो, एकात्मक शासन प्रणाली कहलाता है। इस प्रकार की शासन प्रणाली खास तौर पर कम क्षेत्रफल और कम जनसंख्या वाले राज्यों में देखने को मिलता है । इस शासन प्रणाली का गुण निम्न है:-
(1) संविधान लिखित हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।
(2) संविधान सर्वोच्च हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है ।
(3) एक सदनीय या द्विसदनीय किसी भी प्रकार की विधायिका हो सकती है।
नोट:- एकात्मक शासन प्रणाली को विनाशी राज्यों का अविनाशी संगठन कहते हैं ।
(3) परिसंघात्मक (Confedration):-
वैसे शासन प्रणाली जिसमें समस्त शक्ति राज्य के पास हो, परिसंघात्मक शासन प्रणाली कहलाती है 1991 से पहले रूस परिसंघात्मक शासन प्रणाली वाला देश कहलाता था
नोटः- परिसंघात्मक शासन प्रणाली को अविनाशी राज्यों का विनाशी संगठन कहते हैं।
अनुच्छेद- 245
यह अनुच्छेद कहता है कि संसद द्वारा बनाया गया कानून पूरे भारत वर्ष में लागू होता है तो वहीं राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संबंधित राज्य में लागू होता है ।
★ भारत की कानून की निर्माण करने वाली सबसे बड़ी संस्था संसद है | ( बिहार दरोगा)
अनुच्छेद- 246
यह अनुच्छेद हमें 3 सुचियों (1) संघ सूची (2) राज्य सूची (3) समवर्ती सूची के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
★ संघ सूची में शामिल विषय पर कानून बनाने का अधिकार भारत की संसद को है। इस सूची में मुलतः 97 विषय था जबकि वर्त्तमान में 100 है। इस सुची के प्रमुख विषय निम्न है -
जैसे- रक्षा, विदेश, संचार, बड़े बंदरगाह, जनगणना, परमाणू उर्जा, संयुक्त राष्ट्र संघ, इत्यादि ।
★ राज्य सूची में मूलतः 66 विषय था जबकि वर्त्तमान में 61 है। इस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के विधानमंडल को है। इसके प्रमुख विषय निम्न है:- जैसे:- कृषि, राज्य पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, इत्यादि ।
★ समवर्ती सूची में मुलत5 47 विषय था जबकि वर्त्तमान में 52 विषय है। इस सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद और राज्य के विधानमंडल दोनों को होता है, लेकिन अगर दोनों बनाया हो तो इस स्थिति में संसद द्वारा बनाया गया कानून मान्य होता है। इस सूची के प्रमुख विषय निम्न है:- जैसे- शिक्षा, वन, परिवार, नियोजन, आर्थिक आयोजन, इत्यादि ।
★ 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् राज्य सूची के 5 विषय राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया। जो निम्न है:-
(1) शिक्षा 
(2) वन
(3) वन्य जीवों का संरक्षण
(4) माप-तौल
(5) न्याय प्रशासन 
★ अनुच्छेद- 247 संसद को यह अधिकार देता है कि वो अतिरिक्त न्यायालय की स्थापना कर सकता है।
अनुच्छेद:- 248
यह अनुच्छेद हमें अवशिष्ट विषयों की जानकारी प्रदान करता है। वैसे विषय जिसकी चर्चा ना संघ सूची में हो, ना राज्य सूची में हो और ना ही समवर्ती सूची में हो उस विषय को अवशिष्ट विषय में रखा जाता है। इस पर कानून बनाने का अधिकार भारत की संसद को होता हैं। जैसे- साइबर कानून ।
अनुच्छेद:- 249
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यसभा अगर अपनी दो तिहाई से संकल्प पारित करें कि राज्य सूची के विषय पर कानून संसद बनाएगी तो इस स्थिति में संसद ही राज्य सूची के विषय पर कानून बनाती है।
अनुच्छेदः - 250
यह अनुच्छेद कहता है कि आपात के दौरान राज्य सूची के विषय पर कानून संसद बनाएगी ।
अनुच्छेदः - 252
अगर दो या दो से अधिक राज्य संसद को यह सिफारिश करें कि उन राज्यों के लिए राज्य सूची के विषय पर कानून संसद बनाएगें तो इस स्थिति में संसद ही कानून बनाता है।
अनुच्छेदः - 253   
अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौता को लागू करने के लिए राज्य सूची के किसी विषय पर कानून संसद बनाता है।

केंद्र राज्य संबंध को बेहतर बनाने को लेकर गठित आयोग

(1) प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोगः-
इस आयोग का गठन 1966 ई0 में हुआ था। शुरूआती दौर में इस आयोग के अध्यक्ष मोरारजी देसाई थें, लेकिन जब वे उप-प्रधानमंत्री बन गए तरे उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा और फिर इस आयोग के अध्यक्ष के० हनुमनथैया बनें। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1969 ई0 में प्रस्तुत की जिसमें निम्न प्रकार की सिफारिसें की गई।
(1) अंतर्राज्जीय परिषद का गठन होना चाहिए ।
(2) राज्यपाल के पद पर गैर-राजनीतिक व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए।
(3) राज्यों में केंद्रीय पुलिस बलों की नियुक्ति तव की जायेंज व राज्य ने अनुरोध किया हो ।
(4) लोकपाल का गठन किया जाना चाहिए ।
नोटः- प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग के सिफारिश पर भारतीय संसद में पहली बार लोकपाल बिल 1968 में लाया गया था।
(2) राजमन्नार आयोगः-
तामिलनाडू राज्य सरकार के द्वारा 1969 ई० में वी०पी० राजमन्नार की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय आयोग गठित किया गया जिसके 2 अन्य सदस्य A L मुदालियर और चंद्रा रेड्डी थे। यह आयोग अपना रिपोर्ट 1971 ई0 में प्रस्तुत किया था। इस आयोग के किसी भी सिफारिश को भारत सरकार के द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था। इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न
(1) अनुच्छेद- 249 को निरस्त कर देना है।
(2) अनुच्छेद- 356, 357 और 365 को समाप्त " कर देना है।
(3) योजना आयोग को समाप्त कर देना है ।
(4) अखिल भारतीय सेवा को समाप्त कर देना है।
(5) वित्त आयोग को स्थायी आयोग बनाना है । इत्यादि......
(3) सरकारिया आयोगः-
1983 ई0 में R.S सरकारिया की अध्यक्षता में 3 सदस्सीय आयोग गठित हुआ जिसके दो अन्य सदस्य S.R सेन और वी० शिवरामन थें। यह आयोग अपना रिपोर्ट अंतिम रूप से 1987 ई0 में प्रस्तुत किया। इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न है:- 
(1) अनुच्छेद - 263 के तहत् अंतर्राज्जीय परिषद का गठन किया जाना चाहिए ।
(2) अनुच्छेद- 356 सोच-समझकर लागू किया जाना चाहिए ।
(3) राज्यपाल को 5 वर्षो तक पद पर रहने दिया जाना चाहिए ।
(4) अंतर्राज्जीय परिषदः-
सरकारिया आयोग के सिफारिश पर अनुच्छेद- 263 के तहत् 1990 ई0 में भारत में राष्ट्रपति के द्वारा अंतर्राज्जीय परिषद का गठन किया गया है। अंतर्राज्जीय परिषद के बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के द्वारा किया जाता है। •
(5) पुंछी आयोगः-
केंद्र राज्य संबंध को बेहतर बनाने के उदेश्य से 2007 ई० में मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में आयोग गठित हुआ। यह आयोग अपना रिपोर्ट 2010 ई0 में प्रस्तुत किया। इस आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न है:-
(1) राज्यपाल का कार्यकाल निश्चित हो ।
(2) अनुच्छेद- 352 और 356 का प्रयोग अंतिम विकल्प के तौर पर हो ।
(3) योजना आयोग और वित्त आयोग में बेहतर तालमेल हो । इत्यादि........
(6) क्षेत्रीय परिषदः - 
केंद्र राज्य संबंध को बेहतर बनाने के उदेश्य से संसदीय अधिनियम के तहत् क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया। अर्थात क्षेत्रीय परिषद एक सांविधिक आयोग है। भारत को मूलतः 5 क्षेत्रीय परिषद में बाँटा गया है:- 
(1) उत्तरी क्षेत्रीय परिषद -
इसके अंतर्गत लद्याख जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचलप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, इत्यादि आता है। इस क्षेत्रीय परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में है । 
(2) दक्षिणी क्षेत्रीय परिषदः -
इसके अंतर्गत कर्नाटक, केरल, तामिलनाडू, आंध्रप्रदेष, तेलंगना आता है। इसका मुख्यालय चेन्नई है ।
(3) पूर्वी क्षेत्रीय परिषदः- 
इसके अंतर्गत बिहार, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल आता है। इसका मुख्यालय कोलकात्ता में है ।
(4) पश्चिमी क्षेत्रीय परिषदः-
इसके अंतर्गत महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, इत्यादि राज्य आता है। इसका मुख्यालय मुम्बई में है ।
(5) मध्य क्षेत्रीय परिषदः-
इसके अंतर्गत उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आता है। इसका मुख्यालय इलाहाबाद में है।
★ पूर्वोतर क्षेत्रीय परिषद अधिनियम 1971 के तहत् पूर्वोतर परिषद का गठन 1972 ई0 में हुआ है। इसका मुख्यालय शिलौंग में है। इस क्षेत्रीय परिषद के अंतर्गत 8 राज्य आते हैं जो निम्न है:-
(1) अरूणाचल प्रदेश
(2) असम
(3) मेघालय
(4) नागालैंड
(5) मणिपुर
(6) मिजोरम
(7) त्रिपुरा
(8) सिक्किम
★ अपनी सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता के कारण लक्ष्यद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह किसी भी क्षेत्रीय परिषद के अंतर्गत नहीं आता है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 06:51:06 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | केंद्रशासित प्रदेश में शासन&प्रशासन https://m.jaankarirakho.com/936 https://m.jaankarirakho.com/936 General Competition | Indian Polity | केंद्रशासित प्रदेश में शासन-प्रशासन
★ इसके विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान के अंतर्गत भाग- 8 के अंतर्गत अनुच्छेद- 239 से 242 देता है।
अनुच्छेदः - 239
संघ राज्यों क्षेत्रों का प्रशासन
अनुच्छेदः - 240
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को कुछ केंद्रशासित प्रदेशों के लिए नियम कानून बनाने की शक्ति देता है।
अनुच्छेदः - 241
यह अनुच्छेद केंद्रशासित प्रदेशों के उच्च न्यायालय के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
★ मात्र दो केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जिसका अपना High Court है:-
(1) दिल्ली
(2) जम्मू-कश्मीर
★ जम्मू–कश्मीर राज्य पूर्नगठन विधेयक 2019, 31 अक्टूबर 2019 को लागू हुआ है तथा दादर - नागर हवेली और दमन तथा दीव पुर्नगठन विधेयक 26 जनवरी 2020 को लागू हुआ है। इन दोनों विधेयकों के लागू होने के बाद भारत में 8 केंद्रशासित प्रदेश वर्त्तमान में हो गयें हैं।
★ जम्मू-क -कश्मीर पुर्नगठन विधेयक 2019 के तहत् जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन लिया गया और इसे दो केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्याख में बाँटा गया।
★ दादर नागर हवेली और दमन तथा दीव पुर्नगठन विधेयक 2019 के तहत् दोनों केंद्रशासित प्रदेश को एक कर दिया गया ।

संघ राज्य क्षेत्र और केंद्रशासित प्रदेश में अंत

★ वैसे केंद्रशासित प्रदेश जिसका अपना विधानसभा होता है वह संघ राज्य क्षेत्र कहलाता है।
जैसे:- दिल्ली, पुड्डुचेरी और जम्मू-कश्मीर संघ राज्यक्षेत्र है ।
वहीं जहाँ विधानसभा नहीं है उसे केंद्रशासित प्रदेश मात्र कहा जाता है।
जैसे:- लद्याख, चंडीगढ़, लक्ष्यद्वीप, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, दादर नागर हवेली तथा दमन और दीव

राज्य और संघ राज्य क्षेत्र में अंत

★ केंद्र और राज्य के बीच जब विवाद होता है तो उसे Supreme Court में रखा जा सकता है, लेकिन केंद्र और संघ राज्य क्षेत्र के बीच विवाद होता है तो इसे Supreme Court में नहीं रखा जा सकता है। दूसरा अंतर यह है कि केंद्र और राज्य के बीच शक्ति का विभाजन होता है लेकिन केंद्र और संघ राज्यक्षेत्र के बीच शक्ति का विभाजन नहीं होता है।

दिल्ली को लेकर विशेष उपबंध

★ लद्याख, जम्मू-कश्मीर, पुड्डुचेरी और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के संवैधानिक प्रमुख को उपराज्यपाल कहा जाता है।
★ सर्वप्रथम दिल्ली में विधानसभा का गठन 1952 में हुआ था लेकिन 7वाँ संविधान संसोधन 1956 के तहत् राज्यों का जब पुर्नगठन किया गया तो दिल्ली विधानसभा को भंग कर दिया गया। कलांतर में यह माँग उठी कि दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया जाए। इसको लेकर बाल कृष्ण समिति का गठन हुआ। बाल कृष्ण समिति के सिफारिश पर ही 69वाँ संविधान संसोधन 1991 के तहत् दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान करते हुए दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा और 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद का गठन किया गया तथा दिल्ली के लिए विशेष उपबंध करने हेतू भारतीय संविधान में 2 नए अनुच्छेद- 99 और अनुच्छेद - 239 ( क, ख ) शामिल किया गया ।
★ 70वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् दिल्ली और पुड्डुचेरी संघ राज्यक्षेत्र के विधानसभा को यह अधिकार दिया गया कि वो राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग ले सकता है।
★ पुड्डुचेरी संघ राज्यक्षेत्र राज्य सूची के सभी विषय पर कानून बना सकता है लेकिन दिल्ली की विधानसभा 3 विषय करे छोड़कर (1) पुलिस (2) लोक व्यवस्था (3) भूमि के अलावे अन्य विषयों पर कानून बना सकता है।
★ दिल्ली, पुड्डुचेरी और जम्मू-कश्मीर के मुख्मंत्री की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 06:31:49 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | राज्य का शासन https://m.jaankarirakho.com/935 https://m.jaankarirakho.com/935 General Competition | Indian Polity | राज्य का शासन
  • इसके विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 6 के अंतर्गत अनुच्छेद- 152 से 237 देता है ।

राज्यपाल

  • अनुच्छेद- 153 कहता है कि प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा ।
अनुच्छेद- 154
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगा । अर्थात राज्य सरकार के सभी काम राज्यपाल के नाम से होगें ।
अनुच्छेद- 155
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगें ।
अनुच्छेद- 156
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यपाल का कार्यकाल उसके शपथ ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्षो का होगा लेकिन राष्ट्रपति जब चाहें तब राज्यपाल को उसके पद से हटा सकता है।.
नोट- राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यत्न पद है। राज्यपाल को पद से हटाने की प्रक्रिया का जिक्र भारतीय संविधान में नहीं है ।
अनुच्छेद- 157
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल बनने की योग्यता के विषय में जानकारी प्रदान करता है। राज्यपाल बनने के लिए निम्न योग्यता होनी चाहिए:-
(1) भारत का नागरिक हो
(2) उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
(3) लाभ के पद पर ना हो ।
(4) पागल / दिवालियाँ ना हो ।
नोट- व्यक्ति का संबंध जिस राज्य से हो वह उस राज्य का राज्यपाल नहीं बन सकता है। यानी फागू चौहान अगर उत्तरप्रदेश राज्य से आते हैं तो वे उत्तरप्रदेश का राज्यपाल नहीं बन सकते हैं। इसके अलावे अन्य किसी भी राज्य का वह राज्यपाल बन सकता है।
अनुच्छेद- 158
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल पद के लिए शर्तों के विषय में जानकारी प्रदान करता है। इस पद की निम्न शर्ते है-
(1) राज्यपाल के पद पर रहते हुए व्यक्ति दूसरा कोई लाभ का पद ग्रहण नहीं करेगा।
(2) राज्यपाल को आबंटित किये गए भवन में रहना होगा और विधानमंडल द्वारा निर्धारित वेतन भत्ता प्राप्त करना होगा ।
(3) अगर कोई व्यक्ति संसद या विधानमंडल का सदस्य है और वह राज्यपाल बन गया तो उसे शीघ्र संसद और विधानमंडल का सदस्यता छोड़नी होगी ।
(4) अगर कोई व्यक्ति एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल है तो इस स्थिति में वेतन किस अनुपात में राज्यों से दिया जायेगा इसका निर्धारण भारत के राष्ट्रपति करते हैं ।
⇒ राज्यपाल को वेतन 3,50,000 / - रुपया दिया जाता है।
अनुच्छेद- 159
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल के शपथ ग्रहण की जानकारी प्रदान करता है।
⇒ राज्यपाल को शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधिश दिलवाते हैं। I
अनुच्छेद- 160
किसी आकस्मिक स्थिति में राज्यपाल के पद रिक्त होने पर राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कौन करेगें इसका निर्धारण राष्ट्रपति करते हैं।
अनुच्छेद- 161 
यह अनुच्छेद हमें राज्यपाल को दिए गए क्षमादान की शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है । राष्ट्रपति के अनुरूप राज्यपाल भी 5 प्रकार से क्षमा प्रदान कर सकते हैं । (1) क्षमा (2) परिहार (3) प्रविलंबन (4) विराम (5) लघुकरण
⇒ राज्यपाल मृत्युदंड की सजा को माफ नहीं कर सकता है I
⇒ किसी भी राज्य का आदिवासी समुदाय से राज्यपाल बनने वाली प्रथम महिला द्रोपति मुर्मू (झारखंड) है।
⇒ स्वतंत्र भारत में किसी भी राज्य का राज्यपाल बनने वाली प्रथम महिला श्रीमति सरोजनी नाइडू (उत्तरप्रदेश) है ।

राज्यपाल के कार्य और अधिकार

⇒ मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है ।
⇒ मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राज्यपाल ही करते हैं ।
⇒ राज्य के महाधिवक्ता, राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्य ( अनुच्छेद- 243 (I), राज्य निर्वाचन आयोग 243 (A), राज्य लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद- 315 ), इत्यादि के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं ।
⇒ विधानमंडल के सत्र के आहुत करने, सत्रावसान करने तथा विघटन करने का अधिकार राज्यपाल को होता है ।
⇒ राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर विधानसभा को भंग कर सकता है।
⇒ विधानमंडल के सत्र में नहीं होने पर अगर कानून की आवश्यकता पड़ती है तो राज्यपाल अनुच्छेद- 213 के तहत् अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
⇒ अगर किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है तो राज्यपाल राष्ट्रपति से राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा अनुच्छेद- 356 के तहत कर सकता है।
⇒ राज्य का धन विधेयक राज्यपाल के पूर्व अनुमति से सर्वप्रथम विधानसभा में आता है।
अनुच्छेद- 162
इसमें राज्य की कार्यपालिका शक्ति के विस्तार की चर्चा है ।

राज्य मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री

⇒ अनुच्छेद- 163 कहता है कि राज्यपाल को उसके कार्यो में सलाह एवं सहयोग देने हेतू एक मंत्रिपरिषद होगा जिसे राज्य मंत्रिपरिषद कहा जाता है। राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा दिए गए सलाह एवं सहयोग को राज्यपाल एक वार पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है। राज्यपाल को सह अधिकार 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् प्राप्त हुए हैं।
⇒ राज्य मंत्रिपरिषद में मंत्री तीन प्रकार के होते हैं-
(1) कैबिनेट मंत्री
(2) राज्य मंत्री
(3) उपमंत्री
⇒ राज्य मंत्रिपरिषद का सदस्य बनने के लिए विधानसभा या विधान परिषद दोनों में से किसी भी एक सदन की सदस्ता आवश्यक है। साथ ही साथ बिना किसी सदन की सदस्यता के भी कोई भी व्यक्ति 6 माह तक राज्य मंत्रिपरिषद का सदस्य रह सकता है।
⇒ 91वाँ संविधान संसोधन 2003 यह प्रावधान करता है कि राज्य मंत्रिपरिषद के मंत्रियों की संख्यां विधानसभा के कुल सीट के 15% से अधिक तथा 12 से कम नहीं होगा |
अनुच्छेद- 164
यह अनुच्छेद कहता है कि विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्त राज्यपाल करेगें तथा मुख्यमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राज्यपाल ही करते हैं। मंत्री राज्यपाल के प्रसाद पर्यत्न पद धारण करते हैं। 
अनुच्छेद- 164 (2)
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य मंत्रिपरिषद सामुहिक तौर पर विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। अर्थात राज्य मंत्रिपरिषद का अस्तित्व में रहना या नहीं रहना विधानसभा के बहुमत पर निर्भर करता है ।
अनुच्छेद- 164 (3)
राज्य मंत्रिपरिषद के मंत्री अपने कर्तव्य निर्वहन से पूर्व तीसरीअनुसूची के प्रावधानों के तहत् शपथ ग्रहण करते हैं ।
अनुच्छेद- 164 (4)
यह अनुच्छेद कहता है कि बिना किसी सदन की सदस्यता के भी कोई व्यक्ति अधिकतम 6 माह तक मंत्री पद पर रह सकता है।
अनुच्छेद- 164 (5)
मंत्रियों के वेतन भत्ता का निर्धारण विधानमंडल करता है
⇒ मुख्यमंत्री विधानसभा का नेता होता है। मुख्यमंत्री बनने के लिए कम से कम उम्र 25 वर्ष होनी चाहिए ।
⇒ मुख्यमंत्री को शपथ राज्यपाल दिलाते हैं ।
⇒ मुख्यमंत्री अपना त्यागपत्र राज्यपाल को देता है।
⇒ समान्य तौर पर कोई भी व्यक्ति तब तक मुख्यमंत्री के पद पर रह सकता है, जब तक कि उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त होता है ।
⇒ किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री राष्ट्रपति के चुनाव में तब भाग नहीं लेगें जब वे विधानपरिषद के सदस्य होगें ।
⇒ मुख्यमंत्री पद से हटाने हेतू विपक्षी पार्टी के सदस्यों के द्वारा विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लायें जाते हैं, अगर यह अविश्वास प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित हो जाता है तो मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना होता है।
⇒ अगर कोई मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए विधानसभा में अविश्वास का प्रस्ताव आता है और मुख्यमंत्री विधानपरिषद का सदस्य हैं तो वह मतदान नहीं कर सकेगा ।
अनुच्छेद- 166
राज्य सरकार के कार्य संचालन की चर्चा है।
अनुच्छेद 167
यह अनुच्छेद हमें मुख्यमंत्री के कर्तव्यों के विषय में जानकारी प्रदान करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णयों से राज्यपाल को अवगत मुख्यमंत्री करवाएगें। अर्थात राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच योजक कड़ी के रूप में काम मुख्यमंत्री करते हैं।

राज्य का महाधिवक्ता

⇒ महाधिवक्ता राज्य का कानूनी सलाहकार होता है ।
⇒ महाधिवक्ता राज्य सरकार का सबसे बड़ी वकील होता है। पूरे राज्य के भीतर किसी भी न्यायलय में राज्य सरकार का पक्ष महाधिवक्ता ही रखता है।
⇒ महाधिवक्ता के रूप में उस व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जिसमें उच्च न्यायलय के न्यायधिश बनने की योग्यता हो। इसलिए महाधिवक्ता को 2,25,000 /- रुपया वेतन दिया जाता है। इसको वेतन राज्य की संचित निधि से मिलता है ।
⇒ अनुच्छेद- 165 के तहत् महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं ।
⇒ महाधिवक्ता का कोई कार्यकाल नहीं होता है। वह राज्यपाल के प्रसाद पर्यत्न अपने पद पर रहता है ।
⇒ महाधिवक्ता अपने पद पर रहते हुए निजी Practics कर सकता है।

राज्य का विधानमंडल

⇒ राज्य के भीतर कानून का निर्माण करने वाली सबसे बड़ी संस्था विधानमंडल है। अनुच्छेद- 168 कहता है राज्यपाल, विधानसभा और विधानपरिषद को मिलाकर विधानमंडल का कठन किया जाता है।
⇒ भारत के 28 राज्यों में विधानसभा है लेकिन विधानपरिषद भारत के मात्र 6 राज्यों में है। जिन 6 राज्यों विधानपरिषद है उसे द्विसदनीय विधायिका वाला राज्य कहते हैं। बाँकि बचे 22 राज्य एक सदनीय वाला राज्य है।

विधानपरिषद

⇒ इसके सृजन / समाप्ति के विषय में जानकारी अनुच्छेद- 169 देता है तो वहीं इसके संरचना के विषय में जानकारी अनुच्छेद- 171 देता है ।
⇒ अनुच्छेद- 171 कहता है कि विधानपरिषद में कम से कम 40 सदस्य और अधिक से अधिक संबंधित राज्य के विधानसभा के 1 / 3 (एक तिहाई से अधिक नहीं होगा ।
जैसे:- आंध्रप्रदेश में 50, तेलंगना में 40, कर्नाटक और बिहार में 75, महाराष्ट्र में 78 और उत्तरप्रदेश में 100 विधानपरिषद सीट है।
⇒ अनुच्छेद- 169 के तहत् राज्य के विधानसभा 2 / 3 (दो तिहाई बहुमत से संकल्प पारित कर विधानपरिषद के सृजन / समाप्ति को लेकर प्रस्ताव पारित करता है, तत्पश्चात् यह प्रस्ताव संसद के पास जाता है अगर संसद इसे स्वीकृति दे देता है तो विधानपरिषद का सृजन / समाप्ति हो जाता है।
⇒ विधानपरिषद राज्य का द्वितीय अथवा उच्च सदन है। साथ ही साथ यह एक स्थायी सदन भी है।
नोटः– विधानपरिषद एक ऐसा सदन है जिसे भंग नहीं किया जा सकता है, लेकिन समाप्त किया जा सकता है। > इस सदन का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम उम्र 30 वर्ष होनी चाहिए । इस सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षो का होता है। प्रत्येक 2 वर्ष पर 1 / 3 (एक तिहाई सदस्य पद मुक्त होते हैं।
⇒ विधानपरिषद के सदस्यों का चुनाव निम्न प्रकार से होता है:-
(1) 1 / 3 ( एक तिहाई सदस्यों के निर्वाचन में राज्य के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।
(2) 1/3 (एक तिहाई) सदस्य का निर्वाचन स्थानीय निकाय के चुने हुए प्रतिनिधी के द्वारा किया जाता है।
(3) 1 /6 सदस्यों का मनोनयन राज्यपाल के द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा तथा सहकारिता आंदोलन से किया जाता है।
(4) 1/12 भाग सदस्यों का निर्वाचन उच्च विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के शिक्षकगण के द्वारा किया जाता है ।
(5) 1/12 भाग सदस्यों का निर्वाचन ऐसे छात्रों के द्वारा किया जाता है जिनका स्नातक हुए 3 वर्ष या उससे अधिक हो गया हो ।

विधापरिषद के पदाधिकारी

⇒ अनुच्छेद- 182 कहता है कि विधानपरिषद में एक सभापति और एक उपसभापति होगा ।
⇒ विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति बनने के लिए विधानपरिषद का सदस्य होना जरूरी है।
अनुच्छेद- 183
यह अनुच्छेद हमें सभापति और उपसभापत्ति के पद रिक्त होने की जानकारी प्रदान करता है।
⇒ पद रिक्त निम्न स्थितियों में होता है:-
(1) त्यागपत्र:- विधानपरिषद के सभापति अपना त्यागपत्र उपसभापति को और उपसभापति अपना त्यागपत्र सभापति को देता है ।
(2) पद पर रहते हुए मृत्यु होने पर
(3) अगर सभापति और उपसभापति सदन का सदस्य नहीं रह जाता है ।
अनुच्छेद- 184
यह अनुच्छेद हमें सभापति के कार्य, अधिकार और शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
अनुच्छेद- 185
यह अनुच्छेद कहता है कि सभापति और उपसभापति को पद से हटाने का संकल्प विचाराधिन हो तो पीठासीन अधिकारी के तौर पर सभापति और उपसभापति काम नहीं कर सकेगें ।
नोट- (1) केंद्र के संदर्भ में अगर किसी साधारण विधेयक को एक सदन पारित कर देता है है तो विधेयक दूसरा सदन में जाता है। दूसरा सदन विधेयक को अधिक से अधिक 6 माह तक रोक कर रख सकता है।
(2) राज्य के संदर्भ में किसी साधारण विधेयक को विधानसभा पारित कर देता है तो यह विधेयक विधानपरिषद जाता है। विधानपरिषद इस विधेयक को पहली बार अधिक से अधिक 3 माह तक रोक सकता है, अगर 3 माह में विधानपरिषद पारित नहीं करता है तो यह विधेयक पुनः विधानसभा को लौट जाता है। विधानसभा इस विधेयक को पुनः पारित करता है, तत्पश्चात् यह विधेयक फिर से विधानपरिषद जाता है। इस बार विधानपरिषद 1 माह तक रोककर रख सकता है। इस 1 माह की अवधि के दौरान अगर विधानपरिषद पारित करता है तो ठीक है अन्यथा विधेयक उसी रूप में पारित समझा जाता है अर्थात "हम यह कह सकते हैं कि विधानसभा द्वारा पारित किसी साधारण विधेयक को विधानपरिषद अधिक से अधिक 4 माह तक रोक कर रख सकता है।

विधानसभा

⇒ अनुच्छेद- 170 कहता है कि प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा होगा। विधानसभा में कम से कम 60 और अधिक से अधिक 500 सदस्य होगें, लेकिन कुछ राज्य अनुच्छेद- 170 के प्रावधानों को नहीं मानता है ।
जैसे- सिक्किम - 32, मिजोरम - 40, गोवा - 40
⇒ विधानसभा का चुनाव प्रत्येक्ष तौर पर होता है जिसमें राज्य की पयस्क जनता भाग लेती है ।
⇒ समान्य तौर पर विधानसभा का कार्यकाल उसकी प्रथम बैठक से 5 वर्षो का होता है, लेकिन आपातकाल के दौरान इसके कार्यकाल को बढाया जा सकता है। साथ ही साथ अगर राज्य मंत्रिपरिषद अपना बहुमत खो देती • है तो समय से पूर्व ही विधानसभा को भंग किया जा सकता है।
⇒ विधानसभा को विघटित करने का अधिकार राज्यपाल को है। राज्यपाल ऐसा मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है।
⇒ विधानसभा के सत्र का आहुत और सत्रावसान करने का अधिकार भी राज्यपाल को ही है । 
⇒ विधानसभा को स्थगित विधानसभा का अध्यक्ष करता है ।
♦ विधानसभा के पदाधिकारीः
अनुच्छेदः - 178
यह अनुच्छेद कहता है कि विधानसभा में एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा ।
⇒ विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष विधानसभा का सदस्य ही बन सकता है ।
अनुच्छदे:- 179
यह अनुच्छेद हमें विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त होने के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
⇒ विधानसभा के अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को देते हैं
⇒ विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को विधानसभा के सदरूस साधारण बहुमत से संकल्प पारित कर पद से हटा सकते हैं।
अनुच्छेदः - 180
यह अनुच्छेद हमें विधानसभा अध्यक्ष के कार्य, अधिकार और शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
अनुच्छेदः - 181
विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को पद से हटाने संबंधी संकल्प विचाराधीन हो तो वो पीठासीन पदाधिकारी के तौर पर काम नहीं कर सकेगा ।
जैसे:- बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को पद से हटाने का संकल्प विधानसभा में लाया गया है तो वे अध्यक्ष के तौर पर काम नहीं कर सकेगें ।
♦ विधानसभा का सदस्य बनने के लिए निम्न योग्यता होनी चाहिए:- 
(1) भारत का नागरिक हो ।
(2) उम्र कम से कम 25 हो
(3) लाभ के पद पर ना हो।
(4) भारत के मतदाता सूची में ना हो ।
⇒ किसी भी राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या उस उस राज्य की जनसंख्या के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
जैसे:- सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तरप्रदेश है जिस कारण उत्तरप्रदेश की विधानसभा में सबसे ज्यादा 403 सीट है। वहीं सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है वहाँ की विधानसभा में सबसे कम 32- सीट है।
विधानसभा का कार्य:-
  • मुख्य तौर पर राज्य सुची और समवर्ती सुचीं के विषयों पर कानून का निर्माण राज्यों के विधानसभा के द्वारा ही किये जाते हैं ।
  • राज्य सरकार का अस्तित्व में रहना या नहीं रहना विधानसभा के ही बहुमत पर निर्भर करता है ।
  • वैसे संविधान संसोधन विधेयक जो भारत की संघीय ढाँचा में परिवर्तन करता है उस विधेयक को भारत के आधे से अधिक राज्यों के विधानसभा के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • राष्ट्रपति के चुनाव में विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं ।
  • राज्य के संदर्भ में कानून का निर्माण करनेवाली जो सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक संस्था है वो विधानसभा है ।
  • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति, इत्यादि को पद से हटाने की सुचना 14 दिन पूर्व देना होता है ।
  • राज्य धन विधेयक को जब विधानपरिषद पारित कर देती है तो उसे विधानपरिषद अधिक से अधिक 14 दिन तक रोक सकती है।
भारत के 8 केंद्रशासित प्रदेश में से 3 केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जहाँ पर विधानसभा है जो निम्न है-
(1) दिल्ली- 70
(2) पुड्डुचेरी-  30 
(3) जम्मू-कश्मीर- यहाँ की यथा स्थिति स्पष्ट नहीं है।

उच्च न्यायालय

√ उच्च न्यायालय के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 6 के अंतर्गत अनुच्छेद- 214 से 231 प्रदान करता है।
√ अनुच्छेद- 214 कहता है कि प्रत्येक राज्य में एक High Court होगा ।
√ 7वाँ संविधान संसोधन 1956 में यह प्रावधान किया गया कि दो या दो से अधिक राज्यों के लिए 1 उच्च न्यायालय हो सकता है।
√ वर्त्तमान में हमारे देश में कुल 25 उच्च न्यायालय है ।
√ 3 उच्च न्यायालय ऐसे हैं जिसका अधिकार क्षेत्र 1 से अधिक राज्य है जो निम्न है-
(1) मुम्बई हाई कोर्ट:- इसके अधिकार क्षेत्र में महाराष्ट्र और गोवा राज्य आ जाता है ।
(2) चंडीगढ़ हाई कोर्ट:- इसके अधिकार क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा राज्य आता है ।
(3) गुवाहाटी हाई कोर्टः- इसके अधिकार क्षेत्र में असम, अरुणाचलप्रदेश, नागालैंड और मिजोरम आता है ।
√ वर्त्तमान में भारत के 8 केंद्रशासित प्रदेशों में से मात्र 2 केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जिसका अपना हाई कोर्ट है:-
(1) दिल्ली
(2) जम्मू-कश्मीर
√ 6 केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं जो अलग-अलग राज्यों के क्षेत्राधिकार में आते हैं जो निम्न है:-
(1) अंडमान-निकोबार द्वीप समूहः- यह कोलकात्ता हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(2) पुडुचेरी:- यह चेन्नई हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है ।
(3) लक्ष्यद्वीप:- यह केरल हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(4) दादर - नागर हवेली और दमन तथा दीव:- यह मुम्बई हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(5) लद्याख:- यह जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
(6) चंडीगढ़:- यह चंडीगढ़ हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता है।
√ अनुच्छेद- 215 यह कहता है कि High Court एक अभिलेख न्यायालय है।
√ अनुच्छेद- 216 तहत् राज्य में High Court का गठन किया जाता है।
अनुच्छेद- 217
यह अनुच्छेद हमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के नियुक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। उन व्यक्तियों को न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया जाता है, जिसमें निम्न योग्यता हो:-
(1) भारत का नागरिक हो
(2) 10 वर्षो का न्याययिक अनुभव हो
या 
(3) 10 वर्षो तक उच्च न्यायलय में अधिवक्ता के यप में काम किया हो ।
या
(4) राष्ट्रपति के नज़र में विधि का बहुत बड़ा ज्ञाता हो ।
★ हाईकोर्ट के न्यायधीशों को शपथ संबंधित राज्य के राज्यपाल के द्वारा दिलाया जाता है।
★ हाईकोर्ट के न्यायधीशों का कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि उसके सेवा निवृत्ति की आयु 62 वर्ष होता है ।

भारत के सभी हाईकोर्ट

High Court स्थापना वर्ष मूल सथान
मुम्बई हाईकोर्ट 1862 ई० मुम्बई
मद्रास/चेन्नई हाईकोर्ट 1862 ई० चेन्नई
कोलकात्ता हाईकोर्ट 1862 ई० कोलकात्ता
इलाहाबाद हाईकोर्ट 1866 ई० इलाहाबाद (प्रयागराज )
कर्नाटक हाईकोर्ट 1884 ई० बंगलुरू
पटना हाईकोर्ट 1916 ई० पटना
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट 1928 ई० श्रीनगर
★ इलाहाबाद हाईकोर्ट मूल तौर पर आगरा में स्थापित हुआ था ।
★ उपर लिखे गए High Court भारत के आजादी के पूर्व स्थापित हुआ है।
★ भारत में उच्च न्यायालय का गठन होना प्रारंभ High Court अधिनियम 1861 के तहत् हुआ है।
High Court स्थापना वर्ष मूल स्थान
ओडिसा हाईकोर्ट 1948 ई० कटक
गुवाहाटी हाईकोर्ट 1948 ई० गुवाहाटी
राजस्थान हाईकोर्ट 1949 ई० जोधपुर
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट 1956 ई० जबलपुर
केरल हाईकोर्ट 1956 ई० एर्नाकुलम
गुजरात हाईकोर्ट 1960 ई० अहमदाबाद
दिल्ली हाईकोर्ट 1966 ई० दिल्ली
चंडीगढ़ हाईकोर्ट 1966 ई० चंडीगढ़
हिमाचलप्रदेश 1971 ई० शिमला
सिक्किम हाईकोर्ट 1975 ई० गंगटोक
उत्तराखंड हाईकोर्ट 2000 ई० नैनीताल
झारखंड हाईकोर्ट 2000 ई० राँची
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट 2000 ई० बिलासपुर
मेघालय हाईकोर्ट 2013 ई० शिलौंग
मणिपुर हाईकोर्ट 2013 ई० इम्फाल
त्रिपुरा हाईकोर्ट 2013 ई० अगरतल्ला
आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट 1 जनवरी 2019 अमरावती
तेलंगना हाईकोर्ट 1 जनवरी 2019 हैदराबाद
⇒ भाषायी आधार पर 1953 ई0 में आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुआ तो उस समय के आंध्रप्रदेश राज्य के लिए High Court का गठन 1954 ई0 में हैदराबाद में किया गया था।-
⇒ अनुच्छेद - 221 हमें Hight Court के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ता और पेंसन की जानकारी देता है।
⇒ High Court के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ता का निर्धारण भारत के संसदों के द्वारा निर्धारित किया जाता है संसद के द्वारा निर्धारित वेतन, भत्ता में कटौती नियुक्ति के बाद नहीं की जा सकती है लेकिन अगर वित्तीय आपात लागू हो तो कटौती की जा सकती है।
⇒ High Court के न्यायाधीशों को वेतन राज्य की संचित निधि से दी जाती है जबकि पेंसन भारत की संचित निधि से दिया जाता है।
⇒ High Court के मुख्य न्यायाधीशों का वेतन 2,50,000/- रुपया है जबकि अन्य न्यायाधीशों का वेतन 2,25,000/- रुपया है ।
⇒ अनुच्छेद- 229 हमें High Court के अधीन काम करने वाले अधिकारी एवं कर्मचारी तथा उसके उपर होने वाले व्यय (खर्च) के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
⇒ High Court के अधिकारी और कर्मचारी की नियुक्ति High Court के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा किया जाता है।
⇒ अनुच्छेद - 220 यह कहता ळै कि जिस High Court से न्यायाधीश सेवानिवृत्त हुआ है उस High Court में वकालत नहीं कर सकता है ।
⇒ अनुच्छेद- 222 यह कहता है कि भारत के राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके High Court के न्यायाधीश को दूसरें High Court में स्थानांतरित कर सकता है।
⇒ अनुच्छेद- 227 यह कहता है कि High Court अपने अधीन आने वाले अधीनस्था न्यायालय का अधिक्षण करेगा।
⇒ भारत तथा पूरे विश्व में सर्वाधिक न्यायाधीशों की संख्या वाला न्यायालय इलाहाबाद High Court है जहाँ न्यायाधीशों की संख्या 160 है ।

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश

⇒ जब किसी कारणवश किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो जाता है या वो अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो जाते हैं तो, इस स्थिति में भारत के राष्ट्रपति उस उच्च न्यायालय से ही वरिष्टम न्यायाधीश को अनुच्छेद- 223 के तहत् उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्यं न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करते हैं |

अपर न्यायाधीश

⇒ जब किसी उच्च न्यायालय में काम का बोझ काफी बढ़ जाता है तथा बहुत ज्यादा मात्रा में केस Pending हो जाता है तो इस स्थिति में भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद- 224 के तहत् High Court के लिए अपर न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं । अपर न्यायाधीश की नियुक्ति अधिकतम 2 वर्षो के लिए होती है।

कार्य, अधिकार और शक्ति

मूल क्षेत्राधिकारः-
वैसे सीगी मामले जो सीधे तौर पर High Court में रखा जाता है उसे High Court के मूल क्षेत्राधिकार के अंतर्गत शामिल किया जाता है ।
जैसे:- (1) लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव में होने वाले विवाद
(2) आम नागरिकों के मौलिक अधिकार के हनन से संबंधित मामले
(3) विधानसभा और विधानपरिषद के चुनाव में होने वाले विवाद
(4) अधीनस्थ न्यायालय के वैसे मामले जिसमें विधि का प्रश्न समाहित हो ।
अपीलीय अधिकारः-
राज्य के भीतर सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय उच्च न्यायालय होता है । अधीनस्थ न्यायालय के निर्णयों के खिलाफ अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है ।
सेना न्यायालय ( Court Marshal):-
भारतीय सैनिकों के बीच अनुशासन बनाए रखने को लेकर सेना न्यायालय का गठन हुआ है । यह न्यायालय सैनिकों को बाह्य हस्तक्षेप से बचाता है। सेना न्यायालय सैनिकों को बाह्य हस्तक्षेप से बचाता है। सेना न्यायालय में सैनिकों के मामलों की सुनवाई नहीं होती है ।
⇒ सेना न्यायालय का न्यायाधीश सेना का ही सर्वोच्च कमांडर होता है ।
⇒ अनुच्छेद - 136 (2) यह कहता है कि सेना न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील Supreme Court में नहीं की जा सकती है। वहीं अनुच्छेद- 274 ( 4 ) यह कहता है कि सेना न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील High Court में नहीं किया जा सकता है।
⇒ अगर मौलिक अधिकार से संबंधित मामला हो तो फिर Supreme Court में अनुच्छेद- 32 के तहत् तथा High Court में अनुच्छेद- 226 के तहत् अपील की जा सकती है।
मोबाईल अदालत (Mobile Court):-
मोबाईल कोर्ट की अवधारणा का विकास का श्रेय भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० APJ अब्दूल कलाम अजाद को जाता है। इस न्याया की व्यवस्था को "पहिए पर न्याय" के नाम से जाना जाता है। इस न्याययिक व्यवस्था में न्याय से संबंधित आधारभूत ढाँचा का विकास एक बस में किया जाता है जिस कारण इसे पहिए पर न्याय के नाम से जाना जाता है ।
नोटः– मोबाईल कोर्ट के अंतर्गत सर्वप्रथम मामलों की सुनवाई 2007 ई० में हरियाणा के मेवात जिला में हुआ ।
लोक अदालत :-
लोक अदालत का अथा 'लोगों का न्यायालय' होता है। अस अदालत में निर्णय दोनों पक्षों के आपसी सहमती से होता है। यह आदालत गाँधी के विचारों से प्रेरित है। इस अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील न तो Supreme Court में और ना ही High Court में की जा सकती है। इस कोर्ट में कोई फीस नहीं लगता है। इस कोर्ट में निर्णय तीन सदस्यों के पीठ द्वारा किया जाता है जिसमें 1 सेवानिवृत्त न्यायाधीश, 1 वकील और 1 सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं।
परिवार न्यायालय (Family Court ) :-
उच्च न्यायालय के सलाह से राज्य सरकार के द्वारा 10 लाख से अधिक अबादी वाले नगरों में परिवारिक मामलों । जैसे- तलाक, विवाह, गुजाराभत्ता, बच्चों का संरक्षण, इत्यादि के निपटारें को लेकर परिवार न्यायालय का गठन प्रत्येक राज्य में 1984 ई0 में किया गया है। इस न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है।
Fast Track Court:-
लंबित अपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान हेतू 11वें वित्त आयोग के सिफारिश पर Fast Track Court गठन किये जाने का प्रावधान किया गया ।
अधीनस्था न्यायालय (Subordinate Court):-
इसके विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान के भाग- 6 के अंतग्रत अनुच्छेद- 233 से 237 प्रदान करता है। अधीनस्था न्यायालय के अंतर्गत जिला न्यायालय और सत्र न्यायालय आता है। जिला का सर्वोच्च न्यायायिक अधिकारी जिला न्यायाधीश होता है। जिला न्यायाधीश की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल के द्वारा अनुच्छेद- 233 के तहत् किया जाता है । जिला न्यायाधीश जब सिविल मामलों की सुनवाई करता है तो वह जिला न्यायाधीशं कहलाता है लेकिन जब वह अपराधिक मामलों का सुनवाई करता है तो सत्र न्यायाधीश कहलाता है ।
न्यायायिक पुर्नविलोकन (Judicial Review):-
यह. अमेरिकी संविधान की विशेषताओं में से एक प्रमुख विशेषता है। 1803 में अमेरिकी Supreme Court के मुख्य मुख्य न्यायाधीश सर जॉन मार्शल के द्वारा न्यायायिक पुर्नविलोकन की व्यवस्था का सुत्रपात किया गया। अमेरिकी न्यायायिक प्रणाली से ही. भारत में इसे अपनाया गया है प्रत्यक्ष तौर पर भारतीय संविधान के किसी भी अनुच्छेद में न्यायायिक पुर्नविलोकन की चर्चा नहीं है लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर इसकी चर्चा मुलतः अनुच्छेद- 13, 32 और 226 में है
★ भारतीय न्यायायिक प्रणाली के अंतर्गत न्यायायिक पुर्नविलोकन का अधिकार उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों को प्राप्त है।
★ कार्यपालिका द्वारा आदेश तथा विधायिका द्वारा निर्मित विधि संविधान के अनुरूप है या नहीं, इसकी जाँच करने का अधिकार न्यायपालिका को होता है। यही व्यवस्था न्यायायिक पुर्नविलोकन कहलाता है। इस व्यवस्था के तहत् न्यायपालिका नियंत्रण स्थापित करता है ।
★ भारतीय न्याययिक प्रणाली के अंतर्गत संविधान सर्वोच्च है। संविधान की व्याख्या करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को है यही कारण है कि न्यायायिक पुर्नविलोकन का अधिकार न्यायपालिका को दिया गया है |
जनहितवाद/लोकहितवाद (PIL:- Public Intest / Litigation):-
इस व्यवस्था का सुत्रपात सर्वप्रथम 1960 के दशक में अमेरिका में ही हुआ था। 1980 के दशक में यह व्यवस्था भारत में लाया गया। भारत में इस व्यवस्था का सुत्रपात न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर और P. N भगवति के द्वारा दिया गया है। भारतीय न्यायायिक व्यवस्था में इसे लागू 1985-86 में किये गए थें। उस समय भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश P.N भगवति थें ।
★ सामान्य कानूनी प्रक्रिया में जिस व्यक्ति का हित प्रभावित होता है वह न्यायालय के सरण में जाता है लेकिन अगर निरक्षरता, गरीबी, जानकारी इत्यादि के अभाव में अगर किसी व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाता है तो इस स्थिति में कोई सामाजिक संगठन या प्रभावित व्यक्ति के सगे-संबंधी प्रभावित व्यक्ति के लिए न्यायालय में आवाज उठाकर प्रभावित व्यक्ति को न्याय दिला सकता है उसे ही जनहितवाद/लोकहितवाद कहा गया।
न्यायायिक सर्कियता:-
1947 में अमेरिका में सर ऑर्थर के द्वारा न्यायायिक सर्कियता की अधिकल्पना की गई। न्यायायिक सर्कियता के तहत् न्यायापालिका, कार्यपालिका और विधायिका के काम नहीं करने की स्थिति में काम करने को लेकर हस्तक्षेप कर सकता है।
★ भारत में न्यायायिक सर्कियता का सुत्रपात 1970 के दशक में न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर और P. N भगवति के द्वारा किया गया है। .
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sun, 07 Apr 2024 05:50:06 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संघ का शासन https://m.jaankarirakho.com/934 https://m.jaankarirakho.com/934 General Competition | Indian Polity | संघ का शासन
  • इसकी चर्चा भारतीय संविधान के भाग -5 के अंतर्गत अनुच्छेद 52-151 के बीच में है। संघ के शासन को तीन भाग में बाँटकर पढ़ते हैं ।
    1. कार्यपालिकाः- काम का पालन करनेवाली संस्था या अधिकारी को कार्यपालिका के अंतर्गत रखा जाता है । इसकी चर्चा अनुच्छेद 52-78 के बीच में देखने को मिलती है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और महान्यायवादी आते हैं ।
    2. विधायिका:- विधि का निर्माण करनेवाली संस्था विधायिका कहलाती है। भारत में विधि का निर्माण करनेवाली सर्वोच्च संस्था संसद है । विधायिका के अंतर्गत मुलतः लोकसभा और राजसभा आती है। इसकी चर्चा अनुच्छेद 79-123 में है ।
    3. न्यायपालिकाः- न्याय देने वाली संस्था न्यायपालिका कहलाती है। इसकी चर्चा अनुच्छेद 124-151 के बीच में है। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायलय और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आते हैं ।

राष्ट्रपति (52-62)

  • राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है। यह देश की एकता, अखंडता और सुदृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। भारतीय संविधान में कार्यो का विवरण राष्ट्रपति के नाम से है इसलिए राष्ट्रपति को भारत का संवैधानिक प्रमुख माना जाता है। लेकिन राष्ट्रपति के कार्यो को वास्तविक तौर पर प्रधानमंत्री करवाता है; इसलिए प्रधानमंत्री को . कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख माना जाता है । 
  • भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होते हैं, इसलिए राष्ट्रपति को भारत राज्य का प्रमुख माना जाता है, वहीं भारत सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं क्योकिं भारत साकार के समस्त निर्णय मंत्रिपरिषद के नेतृत्व में प्रधानमंत्री ही लेते हैं। 
अनुच्छेद- 52
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा ।
अनुच्छेद - 53
यह अनुच्छेद कहता है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है । राष्ट्रपति अपने कार्य को स्वयं करते हैं या अपने अधिनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करवाते हैं ।
अनुच्छेद - 54
यह अनुच्छेद हमें राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल के विषय में जानकारी प्रदान करता है । राष्ट्रपति के चुनाव में सदस्यों का जो समूह भाग लेता है, उसे ही राष्ट्रपति का निर्वाचक मंडल कहते हैं।
अनुच्छेद-55
राष्ट्रपति के चुनाव के रीति या तरीका के विषय में जानकारी देता है ।

अनुच्छेद - 56
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति का कार्यकाल उसके शपथ ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्षो का होगा । इस अवधि के दौरान कभी भी राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के नाम संबोधित कर त्याग पत्र के माध्यम से अपने पद से इस्तीफा दे सकता है ।
अनुच्छेद-57
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत के भीतर कोई भी व्यक्ति जितनी बारं चाहें उतनी बार राष्ट्रपति बन सकता है। अर्थात राष्ट्रपति पुर्ननियुक्ति के पात्र होते हैं। भारत में एकमात्र राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद थें जो दोबारा पुर्ननियुक्त हुए थें । अनके अलावे अभी तक कोई भी राष्ट्रपति दोबारा नियुक्त नहीं हुए हैं।
अनुच्छेद-58
यह अनुच्छेद हमें राष्ट्रपति बनने की योग्यता के विषय में जानकारी प्रदान करता है । राष्ट्रपति बनने की निम्न योग्यता होनी चाहिए ।
(1) भारत का नागरिक हो ।
 (2) उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
 (3) लोकसभा के सदस्य बनने का योग्यता हो ।
(4) पागल या दिवालियाँ ना हो ।
(5) लाभ के पद पर ना हो ।
  • राष्ट्रपति के चुनाव में 50 प्रस्तावक तथा 50 अनुमोदक होना आवश्यक होता है । प्रस्तावक और अनुमोदक वही बन सकता है जो राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेता है। एक ही व्यक्ति प्रस्तावक और अनुमोदक नहीं बन सकता है ।
  • राष्ट्रपति के चुनाव में जमानत की राशी 15,000 /- रूपया होती है। अगर कोई उम्मीदबार राष्ट्रपति के चुनाव में कुल पड़े बैध मतों का 1/6 भाग हासिल नहीं कर पाता है तो उसका जमानत की राशी ज़ब्त कर ली जाती है।
अनुच्छेद-59
राष्ट्रपति पद की शर्तों के बारें में जानकारी प्रदान करता है । यह अनुच्छेद निम्न प्रावधान करता है-
(1) लाभ के पद पर आसीन व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं बन सकता है ।
(2) संसद द्वारा निर्धारित वेतन लेना होगा ।
(3) राष्ट्रपति को राष्ट्रपति भवन में रहना होगा ।
(4) अगर कोई विधानसभा सदस्य या अन्य किसी भी सदन का सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो उसे सदन की सदस्यता छोड़नी होगी।
अनुच्छेद-60
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति को शपथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश दिलायेगें ।
अनुच्छेद-61
यह अनुच्छेद कहता है कि अगर राष्ट्रपति संविधान का अतिक्रमण करता है अर्थात, संविधान का उल्लंघन करता है तो उस पर महाभियोग लगाकर उन्हें पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति पर महाभियोग संसद के दोनों सदनों में से कोई भी सदन लगा सकता है। लेकिन शर्त यह है कि 14 दिन पूर्व इसकी सुचना राष्ट्रपति को देना अनिवार्य है । संसद के सदनों में जब महाभियोग प्रक्रिया चल रहा हो तो राष्ट्रपति स्वयं अपना पक्ष संसद में रख सकता है या किसी के माध्यम से रखवा सकता है । संसद के दोनों सदनों को इस प्रक्रिया को विशेष बहुमत से पारित करना होता है । जैसे ही दोनों सदन विशेष बहुमत से प्रक्रिया को पारित कर देता है वैसे ही यह माना जाता है कि महाभियोग प्रक्रिया पूर्ण हुआ और राष्ट्रपति को अपने पद से त्यागपत्र देना होता है। अभी तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रक्रिया नहीं चलाया गया है।
नोट- (1) राष्ट्रपति पर चलने वाला महाभियोग प्रक्रिया एक अर्द्धन्यायिक प्रक्रिया है । 
(2) संसद के दोनों सदनों के मनोनित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लेते हैं लेकिन महाभियोग प्रक्रिया में भाग लेते हैं ।
(3) सभी राज्यों के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली, पुडुचेरी, जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं लेकिन महाभियोग प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं ।
अनुच्छेद-62
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति के पद रिक्त होने के विषय में जानकारी प्राप्त होता है । यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति के पद रिक्त होने के 6 माह के भीतर राष्ट्रपति का चुनाव होना आवश्यक है राष्ट्रपति का पद निम्न स्थिति में रिक्त हो सकता है-
(1) अगर राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के नाम त्यागपत्र देता है ।
(2) राष्ट्रपति के मृत्यू पश्चात
(3) राष्ट्रपति महाभियोग के तहत् हटाया गया हो ।
(4) अगर राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त हो गया हो।
  • उपर के तीन परिस्थिति में राष्ट्रपति का पद खाली होता है तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में काम करतें हैं । लेकिन चौथे स्थिति में वर्तमान के राष्ट्रपति ही जब तक पद पर बने रहते हैं जब तक कि उनका उत्तराधिकारी चुन कर नहीं आ जाता है।
अनुच्छेद- 55 संबंधी कुछ अल्य प्रावधान : 
भारत में मुख्यतः दो प्रकार से चुनाव होता है ।
(1) First Past the Post System:-
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें सर्वाधिक मत प्राप्त होने पर उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है, उसे ही First Past the Post System कहते हैं। विशेषकर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में यह प्रावधान अपनाई जाती है। इस प्रणाली के तहत् भारत में लोकसभा, विधानसभा और पंचायती राज की चुनाव होती है।
(2) अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणालीः
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें उम्मीदवार को विजेता बनने हुतू कुल पड़े बैध मतों का 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक होता है। उसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली कहा जाता है। जैसे भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, विधानपरिषद, राज्यसभा सदस्य का चुनाव इसी प्रणानी के तहत होता है।
1 M.P (संसद सदस्य) का मत मूल्य = सभी राज्यों के विधायकों के कुल मतों का योग / निर्वाचित संसद सदस्यों की संख्या
  • राष्ट्रपति के चुनाव में M.P और MLA के मतों का मूल्य 1971 की जनगणना के आधार पर निकाला जाता है।
  • सभी राज्यों के विधायकों के मतों का मूल्य अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है। सबसे अधिक मत मूल्य उत्तरप्रदेश के एक विधायक का होता है। वहीं कम मत मूल्य सिक्किम के एक विधायक का होता है।

अब तक भारत के निम्न राष्ट्रपति हैं-

क्र. सं. राष्ट्रपति शासनकाल
1. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 1950-1962
2. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962-1967
3. जाकिर हुसैन 1967-1969
4. वी.वी. गिरी 1969-1974
5. फखरुद्धिन अली 1974-1977
6. नीलम संजीव रेड्डी 1977-1982
7. ज्ञानी जैल सिंह 1982-1987
8. आर. वेंकटरमण 1987-1992
9. शंकर दयाल शर्मा  1992-1997
10. के. के. नारायणन 1997-2002
11. अब्दुल कलाम आजाद 2002-2007
12. श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल 2007-2012
13. प्रणब मुखर्जी 2012-2017
14. रामनाथ कोबिंद 2017-2022
15. श्रीमति द्रोपति मुर्मू 2022 - अब तक (2027)
  • देश के राष्ट्रपति का चुनाव पहली बार 1952 में हुआ था। 1950-52 तक राजेन्दग प्रसाद संविधान सभा द्वारा मनोनित राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहें थें। अभी तक के इतिहास में राष्ट्रपति के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का ही रहा है।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दार्शनिक राष्ट्रपति हुए । इन्होने भारत की सांस्कृतिक विरासत का नेतृत्व किया।
  • देश के प्रथम मुस्लिम राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन हुए । राष्ट्रपति के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल इन्हीं का है।
  • अभी-तक के दो राष्ट्रपति (1) डॉ. जाकिर हुसैन तथा (2) फकरुद्धिन अली अहमद का पद पर रहते हुए निधन हुआ है।
  • देश के प्रथम निर्दलीय राष्ट्रपति वी. वी. गिरी बनें हैं।
  • द्वितीय वरीयता के मत से राष्ट्रपति का चुनाव वी. वी. गिरी ने जीता है। साथ ही साथ सबसे कम मतांतर से चुनाव वी. वी. गिरी ने ही जीता था ।
  • राजेन्द्र प्रसाद के अलावा दो बार राष्ट्रपति का चुनाव नीलम संजीव रेड्डी ने लड़ा है। नीलम संजीव रेड्डी दोनों बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष के पद पर थें ।
  • एकमात्र राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह है जिन्होंने पॉकेट वीटो या जेबी वीटो का प्रयोग किया है |
  • आर. वेंकटरमण ने अपने कार्यकाल के आधार पर अपनी आत्मकथा My Presidention Years लिखा है ।
  • शंकर दयाल शर्मा एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जो उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और राज्यपाल सभी पदों पर रहें हैं ।
  • देश के प्रथम दलित राष्ट्रपति के. आर. नारायणन (केरल) हैं ।
  • देश के एकमात्र वैज्ञानिक राष्ट्रपति अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम थें।
  • भारत की प्रथम एकमात्र महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल है ।
  • प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बनने से पूर्व भारत के वित्त मंत्री पद पर रहें हैं ।
  • रामनाथ कोबिंद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति के रूप में है ।
  • देश को सर्वाधिक राष्ट्रपति देने वाला राज्य तामिलनाडू है।
    1. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    2. आर. वेंकटरमण
    3. APJ अब्दुल कलाम अजाद
  • रामनाथ कोबिंद, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, शंकर दयाल शर्मा, जाकिर हुसैन राष्ट्रपति बनने से पूर्व राज्यपाल के पद पर कार्यरत थें ।
  • कुल 6 राष्ट्रपति ऐसे हैं जो उपराष्ट्रपति भी बनें हैं।
    (1) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    (2) जाकिर हुसैन
    (3) वी. वी. गिरी
    (4) आर. वेंकटरमण
    (5) शंकर दयाल शर्मा
    (6) के. आर. नारायणन
  • राधाकृष्णन और के. आर. नारायणन राज्य न्यायिक के पद पर रहें हैं।
  • जाकिर हुसैन का संबंध जामिया मिलिया इस्लामिया विश्व विद्यालय से रहा है।
  • वी. वी. गिरी मजदूर नेता रहें हैं।
  • ज्ञानी जेल सिंह राष्ट्रपति बनने से पूर्व गृहमंत्री के पद पर रह चुके हैं।

राष्ट्रपति के कार्य, अधिकार और शक्ति

क्षमादान का अधिकांरः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-72 राष्ट्रपति को 5 प्रकार से क्षमादान का अधिकार प्रदान करता है । जो निम्न है-
(1) क्षमा:-
जब राष्ट्रपति बिना किसी शर्त के किसी दोषी व्यक्ति को पूर्णतः माफ कर देता है तो उसे ही क्षमा कहा जाता है।
(2) परिहार:-
जब राष्ट्रपति किसी दोषी व्यक्ति के सजा की मात्रा को कम कर देता है तो उसे परिहार कहा जाता है ।
जैसे - 10 वर्ष की सजा को कम करके 5 वर्ष कर दिया जाना ।
(3) लघुकरण:-
जब किसी दोषी व्यक्ति के सजा की प्रकृति में बदलाव किया जाता है तो इसे ही लघुकरण कहा जाता है।
जैसे - मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना ।
(4) विरामः-
कुछ विशेष परिस्थिति में, जैसे - विकलांगता, गर्भवती महिला तथा बुढ़ापा, इत्यादि में सजा पर रोक लगा दिया जाना विराम कहलाता है ।
(5) प्रविलंबन:-
कुछ समय के लिए सजा को टालना प्रविलंबन कहलाता है ।

वीटो संबंधी अधिकार

  • वीटो लैटिन भाषा का शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ रोकना होता है। भारत के राष्ट्रपति को वीटो संबंधी अधिकार अनुच्छेद-111 देता है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई भी विधेयक जब राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस विधेयक पर स्वीकृति दे भी सकता है या नहीं दे सकता है। अगर राष्ट्रपति ने विधेयक पर स्वीकृति नहीं दिया तो यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने वीटो का प्रयोग किया है।
    वीटो चार प्रकार के होते हैं-
    (1) आत्यांतिक वीटो
    (2) निलंबनकारी वीटो
    (3) पॉकेट / जेबी वीटो
    (4) विशेषित वीटो
  • उपर्युक्त लिखित वीटो में से भारत के राष्ट्रपति विशेषित वीटो के अलावे अन्य सभी वीटो का प्रयोग करतें हैं। जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति विशेषित वीटो का प्रयोग भी करता है ।
विधेयक दो प्रकार के होते हैं-
(1) सरकारी विधेयकः-
वैसा विधेयक जो भारत सरकार के मंत्री द्वारा लाया जाता है सरकारी विधेयक कहलाता है ।
(2) गैर-सरकारी विधेयकः-
वैसा विधेयक जो मंत्री के अलावे अन्य संसद सदस्य के द्वारा लाया जाता है उसे गैर-सरकारी विधेयक कहते हैं ।
(1) आत्यांतिक वीटो:-
जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति देने से सीधे तौर पर इंकार कर देता है तब यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने आत्यांतिक वीटो का प्रयोग किया है।
इस विधेयक का प्रयोग गैर-सरकारी विधेयक पर किया जाता है
(2) निलंबनकारी विधेयक:-
संसद के दोनों सदनो द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस विधेयक को एक बार पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है। अगर राष्ट्रपति विधेयक को पुर्नविचार के लिए लौटाता है तो यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने निलंबनकारी वीटो का प्रयोग किया है।
(3) पॉकेट वीटो :-
जब संसद द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस पर ना सहमति देता है और ना ही असहमति व्यक्त करता है, तत्पश्चात यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया है 1
नोट- भारत के एकमात्र राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह थें जिन्होंने डाकघर संसोधन आधिनियम 1986 पर पॉकेट वीटो की प्रयोग किया था ।
कार्यपालिका संबंधी अधिकार:-
अनुच्छेद-: 53 यह कहता है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगा । राष्ट्रपति के द्वारा उपराष्ट्रपति को शपथ दिलाया जाना, प्रधानमंत्री की नियुक्ति, प्रधानमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति, महान्यायवादी की नियुक्ति, राज्यपाल की नियुक्ति, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य की नियुक्ति, इत्यादि राष्ट्रपति के कार्यपालिका संबंधी अधिकार के अंतर्गत आता है।
विधायिका संबंधी अधिकार:-.
विधायिका के अंतर्गत लोकसभा और राजसभा आता है। लोकसभा और राजसभा को लेकर राष्ट्रपति को अधिकार प्राप्त हाकते हैं वे राष्ट्रपति के विधायिका संबंधी अधिकार कहलाते हैं। जो निम्न हैं-
(1) राष्ट्रपति संसद के दोनों के सत्रों का आहुत और सत्रावसान करता है।
(2) राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के सलाह पर लाकसभा को भंग करता है।
(3) जब किसी विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों के बीच मतभेद होता ळै तो इस स्थिति में अनुच्छेद - 108 के तहत् राष्ट्रपति संयुक्त अधिवेशन बुलाता है।
(4) राष्ट्रपति राजसभा में 12 सदस्यों का मनोनयन साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा के क्षेत्र से करते हैं ।
अध्यादेश जारी करने का अधिकारः-
भारत शासन अधिनियम 1935 भारत के राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्रदान करता है । अध्यादेश जारी करना के विधायी संबंधी अधिकार में आता है । भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के तहत् अध्यादेश जारी करता है । राष्ट्रपति निम्न स्थितियों में अध्यादेश जारी करता है-
(1) अगर संसद के दोनों सदन सत्र में ना हो ।
(2) अगर-संसद के एक सदन सत्र में हो और दूसरा सत्र में ना हो।
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश अधिकतम 6 माह तक लागू हो रहता है लेकिन संसद के सत्र शुरू होने के 6 सप्ताह तक ही रहता है।
  • कुछ विधेयक ऐसे होते हैं जो राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से संसद के सदनों में लाये जाते हैं। जैसे- धन विधेयक, राज्य निर्माण संबंधी विधेयक, अनुदान की माँग, संचित विधि से धन निकालने संबंधी विधेयक, इत्यादि । 
राष्ट्रपति के सलाहकारी अधिकारः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 143 राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से कानूनी मसलों पर सलाह लेने का अधिकार प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को सलाह देने को बाध्य है, लेकिन राष्ट्रपति सलाह मानने को बाध्य नहीं होता है।
आपात संबंधी अधिकार:-
अनुच्छेद- 352 के तहत् राष्ट्रपति आपात की घोषणा भारत के राष्ट्रपति मंत्रीमंडल के लिखित सिफारिस पर करता है ।
अनुच्छेद:- 356 के तहत् राष्ट्रपति मंत्रीमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति शासन की घोषणा करता है । 
अनुच्छेद- 360 के तहत् राष्ट्रपति मंत्रीमंडल के सलाह पर वित्तीय आपात की घोषणा करता है।
राजनयिक अधिकारः-
भारत के लिए राजदूत या राजनयिक की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं तथा अन्य देशों से आने वाले राजदूत या राजनयिक से सर्वप्रथम परिचय प्राप्त भारत के राष्ट्रपति करते हैं ।
राष्ट्रपति के विशेषाधिकारः- 
(1) पद पर रहते हुए राष्ट्रपति के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं किया जा सकता है।
(2) पद पर रहते हुए अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति ने जो काम किया है उसको लेकर उसे न्यायलय में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
(3) पद पर रहते राष्ट्रपति के खिलाफ अपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
(4) पद पर रहते राष्ट्रपति के खिलाफ दिवानी मुकदमा चलाया जा सकता है लेकिन 2 माह पूर्व इसकी जानकारी राष्ट्रपति को देनी होती है ।
सैन्य संबंधी अधिकारः-
भारतीय सेना को तीन वर्गो में बाँट गया है- (1) थल सेना (2) जल सेना (3) वायू सेना
  • तीनों सेना का कमांडर भारत का राष्ट्रपति होता है। युद्ध की घोषणा तथा समाप्ति की घोषणा भारत का राष्ट्रपति ही करता है
राष्ट्रपति के विवेकाधिकारः-
समान्यतः भारत के राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के सलाह एवं सहयोग से काम करते हैं। लेकिन अगर कुछ विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति मंत्रिपषिद के सलाह के बिना अथवा स्वयं निर्णय लेता है वही राष्ट्रपति का विवेकाधिकार कहलाता है । जो निम्न है-
(1) लोकसभा के चुनाव में जब किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति किसे आमंत्रित करेगें ये राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर है। लेकिन भारतीय राजव्यवस्था में चली आ रही परंपरा के अनुसार राष्ट्रपति सबसे बड़े इल या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है ।
(2) अगर किसी प्रधानमंत्री ने लोकसभा में बहुमत खो दिया हो तो उस प्रधानमंत्री के बात को मानना या ना मानना राष्ट्रपति के विवके पर निर्भर करता है ।
(3) अगर प्रधानमंत्री का निधन अचानक हो गया हो और उसका अगला कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं हो तो अगला प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किसे किया जायेगा यह राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
(4) संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस विधेयक को एक बार पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है। यह निर्णय राष्ट्रपति अपने विवेक से लेता है ।

उपराष्ट्रपति (63-70)

  • यह देश का दुसरा सर्वोच्च पद है। यह पद अमेरिका से लिया गया है। इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 63-70 के बीच में है।
अनुच्छेद-63
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा ।
अनुच्छेद-64
यह अनुच्छेद कहता है कि उपराष्ट्रपति राजसभा का पदेन सभापति होगा; अर्थात जो उपराष्ट्रपति होगा वही राजसभा का सभापतित्व करेगा । उपराष्ट्रपति राजसभा का सदस्य नहीं होता है लेकिन इसके बावजूद वो सभापतित्व करता है ।
नोट- राजसभा एक ऐसा सदन है जिसका सभापतित्व उसके सदस्य नहीं करते हैं।
अनुच्छेद-65
यह अनुच्छेद कहता है राष्ट्रपति का पद खाली हो तो उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में काम करेगें। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में काम करता है तब उन्हें राष्ट्रपति के समान ही वेतन भत्ता तथा अन्य उपलब्धियाँ प्राप्त होता है। इस दौरान उपराष्ट्रपति का पद खाली होता है, उसको भरने का कोई उपबंध नहीं है ।
अनुच्छेद:-66
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी प्रावधान ।
उपराष्ट्रपति बनने की योग्यता निम्न है-
(1) भारत का नागरिक हो ।
(2) उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
(3) राज्यसभा सदस्य बनने की योग्यता रखता हो ।   
(4) पागल या दिवालियाँ ना हो ।
(5) लाभ के पद पर ना हो । 
  • उपराष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होता है।
  • उपराष्ट्रपति का पहली बार चुनाव 1952 में हुआ था ।
  • पहली बार (1952) तथा दूसरी बार (1957) में उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन के द्वारा संपन्न हुआ ।
  • 11वाँ संविधान संसोधन 1961 के द्वारा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में बदनाव करते हुए यह प्रावधान किया गया कि उपराष्ट्रपति का चुनाव संयुक्त अधिवेशन के आधार पर नहीं होगा बल्कि उपराष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होगा ।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव प्रणाली में लोकसभा राजसभा के सभी सदस्य भाग लेते हैं। इसके अलावे अन्य कोई भाग नहीं लेता है ।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में 20 प्रस्तावक तथा 20 अनुमोदक होते हैं।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में जमानत की राशी 15,000/- रूपया होती है -
अनुच्छेद-67
यह अनुच्छेद कहता है कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल उसके शपथ ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्षो का होगा। अपने कार्यकाल के दौरान उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित कर त्याग पत्र दे सकता है।
अनुच्छेद-68
यह अनुच्छेद हमें उपराष्ट्रपति के पद रिक्ति होने के विषय में जानकारी प्रदान करता है। पद रिक्ति होने के 6 माह के भीतर नये उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव होना आवश्यक होता है। उपराष्ट्रपति का पद निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है ।
(1) त्याग पत्र द्वारा ।
(2) पद पर रहते हुए मृत्यू हो जाने पर ।
(3) पद से हटा दिये गये. पर। -
नोट- उपराष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत राजसभा से होती है। जिससे लोकसभा को सिर्फ सहमत होना होता है ।
अनुच्छेद-69
यह अनुच्छेद कहता है कि उपराष्ट्रपति को शपथ राष्ट्रपति दिलायेगें ।
अनुच्छेद-70
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति का पद दोनों खाली हो जाये तब, राष्ट्रपति के रूप में कार्य देश के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश करेगें
नोट— भारत के एकमात्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश मो हिदायतुल्ला थें जिन्होंने 1969 में भारत के राष्ट्रपति के रूप में काम किया है।
अनुच्छेद-71
यह अनुच्छेद कहता है कि अगर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में कोई वाद-विवाद होता है तो उसका निपटारा भारत का सुप्रीम कोर्ट करेगा।
उपराष्ट्रपति के कार्यः
(1) आकस्मिक राष्ट्रपति का पद खाली होने पर राष्ट्रपति के रूप में काम करना । 
(2) राजसभा का सभापतित्व करना ।
(3) रजसभा में जब किसी विधेयक पर मतदान होता है तो सभापति पहली बार मतदान नहीं करता है, लेकिन जब मत विभाजन के बारें में बराबर की स्थिति उत्पन्न होती है तब सभापति निर्णायक मत देता है।

अब तक के उपराष्ट्रपति

क्र. सं. उपराष्ट्रपति शासनकाल
1. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1952-1962
2. जाकिर हुसैन 1962-1967
3. वी. वी. गिरी 1967-1969
4. गोपाल स्वरूप पाठक 1969-1974
5. वी. डी. जत्ती 1974-1979
6. मो. हिदायतुल्ला 1979-1984
7. आर. वेंटरमण 1984-1987
8. शंकर दयाल शर्मा 1987-1992
9. के. आर. नारायणन 1992-1997
10. कृष्णकांत 1997-2002
11. भैरो सिंह शेखावत 2002-2007
12. हामिद अंसारी 2007-2017
13. वेकैंया नायडू 2017-2022
14. जगदीप धनखर 2022 - अब तक (2027)
  • दो उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और मो. हामिद अंसारी ने लगातार दो कार्यकाल को पूरा किया ।
  • तीन उपराष्ट्रपति र्निविरोध चुने गयें हैं, जो निम्न है-
    (1) सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    (2) मो. हिदायतुल्ला
    (3) शंकर दयाल शर्मा
  • अभी तक सुप्रीम एकमात्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश मो. हिदायतुल्ला हुए जिन्होंनें भारत के उपराष्ट्रपंति के तौर पर पूर्ण कार्यकाल पूरा किया है ।
  • उपराष्ट्रपति के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल वी. वी. गिरी का है।
  • एकमात्र उपराष्ट्रपति प्रो. कृष्णकांत हैं जिनका निधन पद पर रहते हुए हुआ है।
  • श्री भैरो सिंह शेखावत एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जो राष्ट्रपति का चुनाव हार गयें।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति बनने से पहले राजदूत या राजनयिक के पद पर थें ।

प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद

अनुच्छेद-74
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति को उसके कार्यो में सलाह एवं सहयोग देने हेतू एक मंत्रिपरिषद होगा जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होता है। राष्ट्रपति से यह आशा की जाती है कि वह मंत्रिपरिषद के सलाह एवं सहयोग से काम करें।
मंत्रिपरिषद में मंत्री तीन प्रकार के होते हैं-
(1) कैबिनेट मंत्री
(2) राज्य मंत्री
(3) उपमंत्री
  • कैबिनेट मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है। सभी प्रकार का निर्णय कैबिनेट मंत्री के द्वारा ही लिए जाते हैं। राज्यमंत्री और उपमंत्री, कैबिनेट मंत्री का सहयोगी होता है ।

मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में अंतरः

मंत्रिपरिषद मंत्रिमंडल
1. मंत्रीपरिषद की चर्चा मूल संविधान के अनुच्छेद-74 में है। 1. मंत्रिमंडल शब्द की चर्चा मूल संविधान में नहीं था । 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् इस शब्द को जोड़ा गया।
2. मंत्रियों का वैसा समूह जिसमें कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री शामिल होता है उसे मंत्रिपरिषद कहते हैं । 2. मंत्रियों का वैसा समूह जिसमें सिर्फ कैबिनेट मंत्री शामिल होता है उसे मंत्रिमंडल कहते हैं ।
3. यह बड़ा निकाय हैं । 3. यह छोटा निकाय है ।
4. इसकी बैठक नहीं होती है। 4. इसकी बैंठक होती है। बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यहाँ पर निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता है।
  • केंद्रीय मंत्रीपरिषद में मंत्रियों की संख्या लोकसभा के कुल सीट के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। इसका निर्धारण 91वाँ संविधान संसोधन 2003 के तहत् किया गया है। इस संविधान संसोधन के तहत् यह भी निर्धारित किया गया कि राज्यमंत्री परिषद में मंत्रियों की संख्या विधानसभा के कुल सीट के 15 प्रतिशत के अधिक नहीं होगा ।
  • दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश में मंत्रियों की संख्या विधानसभा के कुल सीट का मात्र 10 प्रतिशत होता है |
अनुच्छेद-75 (1)
यह अनुच्छेद कहता है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा । अर्थात हम यह कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नियुक्त होने वाला अधिकारी होता है ।
  • लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त भारत के राष्ट्रपति करते हैं |
अनुच्छेद-75 (2)
यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद - पर्यत्न पद धारण करेगा।
अनुच्छेद-75 (3)
यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रिपरिषद सामुहिक तौर पर लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगा। अर्थात केंद्रीय मंत्रिमंडल तब तक अस्तित्व में रह सकती है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त है।
अनुच्छेद-75(4)
यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रीगण अपना कर्तव्य निर्वहन से पहले राष्ट्रपति के समक्ष पद और गोपनियता का शपथ लेगें ।
नोट- मंत्री सुचना की गोपनियता का शपथ लेता है जबकि संसद सदस्य कर्तव्यों के निर्वहन का शपथ लेता है ।
अनुच्छेद-75(5)
यह अनुच्छेद कहता है कोई व्यक्ति लोकसभा / राज्यसभा का सदस्य नहीं है फिर भी वह मंत्री बन सकता है, लेकिन मंत्री बनने के 6 माह के भीतर दोनों में से किसी भी एक सदन का सदस्य होना आवश्यक होता है अन्यथा उन्हें मंत्री पद से हटना होता है।
नोट- मंत्री बनने के लिए दोनों में से (लोकसभा / राजसभा) किसी भी एक सदन की सदस्यता आवश्यक होती है।

विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव में अंतर-

विश्वास प्रस्ताव अविश्वास प्रस्ताव
1. यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाता है । 1. यह प्रस्ताव लोकसभा में आता है ।
2. यह सत्ता पक्ष के द्वारा लाया जाता है । 2. यह प्रस्ताव विपक्षी पार्टियों के द्वारा लाया जाता है।
3. अगर यह प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित नहीं होता है तो सरकार गिर जाती है । 3. यह प्रस्ताव लोकसभा के 50 सदस्यों के लिखित समर्थन से लाया जाता है तथा इस प्रस्ताव का कारण बताना भी आवश्यक होता है।
4. इस प्रस्ताव के माध्यम से सत्ता पक्ष यह दिखलाता है कि लोकसभा में उसे बहुमत प्राप्त है। 4. अगर मतदान के दौरान अविश्वास प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित हो जाता है तो सरकार गिर जाती है।
5. सर्वप्रथम यह प्रस्ताव 1963 ई. में प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था ।

प्रधानमंत्री

  • भारत सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। साथ ही साथ कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है। 
  • प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति दिलाते हैं ।
  • प्रधानमंत्री अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है । प्रधानमंत्री के त्यागपत्र देने से पुरा मंत्रिमंडल बर्खास्त हो जाता है ।
  • प्रधानमंत्री के निधन होने से भी मंत्रिमंडल बर्खास्त हो जाता है। अभी तक भारतीय इतिहास में तीन ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनका पद पर रहते हुए निधन हुआ है, वे निम्न हैं-
    1. पंडित जवाहर लाल नेहरू 
    2. लाल बहादुर शास्त्री
    3. श्रीमति इन्दिरा गाँधी
  • एकमात्र प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री हैं जिनका निधन भारत से बाहर ताशकंद में हुआ ।
  • पंडित जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन होने के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य गुलजारी लाल नंदा ने किया था ।
निम्नलिखित में से कौन भारत के प्रधानमंत्री रहें हैं ?
(क) शंकर दयाल शर्मा
(ख) गुलजारी लाल नंदा
(ग) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(घ) फकरुद्धिन अहमद
कार्यकालः
समान्यतः प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 वर्षो का होता है लेकिन कोई भी प्रधानमंत्री अपने पद पर तब तक . रहतें हैं. जब तक कि उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त रहता है ।
प्रधानमंत्री का कार्यकाल कितने वर्षो का होता है ?
(क) 5 वर्ष
(ख) जब तक लाकसभा का सदस्य हो ।
(ग) जब तक राज्यसभा का सदस्य हो ।
(घ) जब तक लोकसभा में बहुमत प्राप्त हो ।
  • भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए दोनों सदनों (लोकसभा / राज्यसभा) में से किसी भी एक सदन का सदस्य होना आवश्यक होता है। जैसे- नरेंद्र मोदी लोकसभा का सदस्य हैं तथा मनमोहन सिंह राज्य सभा का सदस्य थें ।
  • प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है |
  • अगर कोई व्यक्ति किसी सदन का सदस्य नहीं है फिर भी वह अधिकतम 6 माह तक प्रधानमंत्री के पद पर रह सकता है लेकिन 6 से अधिक समय तक बनें रहने के लिए उसे दोनों में किसी एक सदन की सदस्यता लेनी आवश्यक होती है ।
  • ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के लिए 'हाउस ऑफ कॉमन' का सदस्य होना आवश्यक होता है ।
  • ब्रिटेन के संदर्भ में लोकसभा की तुलना 'हाउस ऑफ कॉमन' तथा राज्यसभा की तुलना 'हाउस ऑफ लॉर्डस' से की जाती है ।
प्रधानमंत्री किन परिस्थिति में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं करता है ?
उत्तर- कोई प्रधानमंत्री तब अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं करता है जब वह राज्यसभा का सदस्य होता है लेकिन अगर प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य है तो वो अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कर सकता है। जैसे- नरेंद्र मोदी मतदान कर सकते हैं लेकिन मनमोहन सिंह मतदान नहीं कर सकते थें ।

अब तक कि प्रधानमंत्री

क्र सं. प्रधानमंत्री कार्यकाल
1. पंडित जवाहर लाल नेहरू 1947-1964
2. लल बहादुर शास्त्री 1964-1966
3. इन्दिरा गाँधी 1966-1977 तथा 1980-1984
4. मोरारजी देसाई 1977-1979
5. चौधरी चरण सिंह 1979-1980
6. इन्दिरा गाँधी 1980-1984
7. राजीव गाँधी 1984-1989
8. विश्वनाथ प्रताप सिंह 1989-1990
9. चन्द्रशेखर 1990-1991
10. पी. बी. नरसिम्हा राव 1991-1996
11. अटल बिहारी वाजपेई 1996 (मात्र 13 दिन के लिए)
12. एच. डी. देवगौरा 1996-1997
13. आई. के. गुजराल 1997-1998
14. अटल बिहारी वाजपेई 1998-2002
15. मनमोहन सिंह 2002-2014
16. नरेंद्र मोदी 2014 से अब तक

कुल 6 ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो प्रधानमंत्री बनने से पूर्व किसी ना किसी राज्य के मुख्यमंत्री थें, जो निम्न हैं-

क्र. सं. मुख्यमंत्री राज्य
1. मोरारजी देसाई बंबई प्रांत
2. चौधरी चरण सिंह उत्तरप्रदेश
3. विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तरप्रदेश
4. पी. बी. नरसिम्हा राव आंध्रप्रदेश
5. एच. बी. देवगौरा कर्नाटक
6. नरेंद्र मोदी गुजरात
  • सबसे अधिक उम्र में प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड मोरारजी देसाई ( 81 वर्ष) तथा सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड राजीव गाँधी (40 वर्ष) के नाम दर्ज है।
  • अभी तक मात्र दो ऐसे हैं जो अलग-अलग अवधि में प्रधानमंत्री रहें हैं-
    1. इन्दिरा गाँधी
    2. अटल बिहारी वाजपेई
  • देश की प्रथम और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी बनी है।
  • विश्वनाथ प्रताप सिंह को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया गया था ।
  • अभी तक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे बड़ी कार्यकाल पंडित जवाहर लाल नेहरू का रहा है वहीं सबसे छोटा कार्यकाल अटल बिहारी वाजपेई का रहा है ।
  • दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री बनने वाले प्रथम राजनेता पी. बी. नरसिम्हा राव हुए।
  • भारत को सर्वाधिक प्रधानमंत्री उत्तरप्रदेश राज्य ने दिया है ।
  • चौधरी चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लोकसभा का सामना नहीं किये थें ।
  • निम्न प्रधानमंत्री हैं जो राज्यसभा के सदस्य थें-
    1. इंदिरा गाँधी
    2. एच. डी. देवगौरा
    3. मनमोहन सिंह
    4. आई. के. गुजराल
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारत के प्रधानमंत्री की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति से की है।
  • भरत के राष्ट्रपति की तुलना ब्रिटेन के राजा या रानी से की जाती है।

उप प्रधानमंत्र

  • उप प्रधानमंत्री कोई संवैधानिक पद नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार का कैबिनेट मंत्री होता है। विशेषकर भारतीय राजनीतिक में तुष्टिकरण की राजनीतिक करने हेतू यह पद कभी-कभी सृजित किया जाता है। यह जरूरी नहीं है कि प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में उप प्रधानमंत्री कोई का कार्य करें |
  • भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल बनें थें ।
क्र. सं. प्रधानमंत्री उप प्रधानमंत्री
1. पं. जवाहर लाल नेहरू सरदार बल्लभ भाई पटेल
2. श्रीमति इन्दिरा गाँधी मोरारजी देसाई
3. मेरारजी देसाई चौधरी चरण सिंह तथा जगजीवन राम
4. विश्वनाथ प्रताप सिंह देवी लाल
5. चंद्रशेखर देवी लाल
6. अटल बिहारी वाजपेई लाल कृष्ण अडवाणी
7. चौधरी चरण सिंह V. D. चौहान
  • प्रधानमंत्री भारत सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है। भारत सरकार की समस्त नीतियों की घोषणा प्रधानमंत्री करते हैं।
  • भारत के विदेश नीति को मूर्त रूप भारत के प्रधानमंत्री देते हैं ।
  • आपदा स्थिति में आपदा प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
  • भारत के सेनाओं के राजनीतिक प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं ।
  • नीति आयोग (योजना आयोग), राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद, राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद, अंतर्राजीय परिषद, इत्यादि संगठन के बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं ।

महान्यायवादी (Attornoy Genral of India)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-76 यह कहता है कि भारत का एक महान्यायवादी होगा। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है । राष्ट्रपति महान्यायवादी के रूप में उस व्यक्ति को नियुक्त करता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिश बनने की योग्यता हो । महान्यायवादी का अपना कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत्न पद धारण करता है।
  • महान्यायवादी भारत सरकार का सर्वोच्च कानूनी सलाहकार अथवा वकील होता है। पूरे भारत के भीतर सभी न्यायलयों में भारत सरकार का पक्ष महान्यायवादी रखता है।
  • महान्यायवादी को वही वेतन भत्ता प्राप्त होता है जो राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित किया जाता है। इन्हें वर्तमान समय में सुप्रीम कोर्ट के अनुकूल 2,50,000/- रूपया वेतन प्रतिमाह भारत की संचित निधी से दिया जाता है।
  • अनुच्छेद- 88 कहता है कि महान्यायवादी संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में जाकर बैठ सकता है, बोल सकता है. लेकिन मतदान नहीं कर सकता है।
  • महान्यायवादी पद पर रहते हुए निजी प्रैक्टिस कर सकता है। लेकिन वैसे मामले जिसका एक पक्षकार भारत 1 सरकार हो. उसकी पैरवी नहीं कर सकता है।
  • भारत का प्रथम महान्यायवादी एम. सी. शीतलवाड़ बनें हैं। (1950-1963, सबसे लंबा कार्यकाल)
  • महान्यायवादी के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल शोली सोराबजी का था । (1989-1990)
  • वर्तमान में भारत का महान्यायवादी के. के. वेनूगोपाल हैं। (2017 - से अब तक 2022 )
अनुच्छेद-73
 संघ के कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
अनुच्छेद-77
भारत सरकार के कार्य संचालन
अनुच्छेद-78
प्रधानमंत्री का कर्तव्य ***
♦ यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रिपरिषद ने जो निर्णय लिया है उस निर्णय को राष्ट्रपति को अवगत प्रधानमंत्री करवाएगें अर्थात, हम यह कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच एक योजक कड़ी के रूप में काम करता है ।

संसद (Parliament)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 79 यह कहता है कि राष्ट्रपति, लोकसभा और राजसभा को मिलाकर संसद का गठन किया जाता है। भारत के भीतर कानून का निर्माण करनेवाली सर्वोच्च संस्था संसद है। संसद के अंतर्गत जो दो सदन लोकसभा और राजसभा आता है, इन दोनों सदनों के सदस्यों को सांसद कहा जाता है।
  • भारत के लोकसभा की तुलना अमेरिका के प्रतिनिधि सभा तथा ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन से की जाती है।
  • भारत के राजसभा की तुलना अमेरिका के सीनेट तथा ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्डस से की जाती है |
  • अमेरिकी कांग्रेस के अंतर्गत प्रतिनिधि सभा में 435 सदस्य तथा सीनेट में 100 सदस्य होते हैं। इन दोनों संस्थाओं का चुनाव प्रत्यक्ष होता है जिसमें अमेरिका की आम जनता भाग लेती है ।

राजसभा

  • अनुच्छेद - 80 कहता है कि भारत का एक सदन राज्यसभा होगा। इसे उच्च सदन, द्वितीय सदन या बड़ो का सदन कहा जाता है। पहली बार राजसभा के लिए चुनाव 1952 ई. में हुए थें। 1954 ई. में राजपरिषद का नाम बदलकर राजसभा किया गया। यह एक स्थायी सदन है जिस कारण इसे भंग नहीं किया जा सकता है। इस सदन का कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि सदन के सदस्यों का कार्यकाल होता है। सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षो का होता है। प्रत्येक वर्ष इस सदन के एक तिहाई सदस्य पदमुक्त होते हैं ।
  • राज्यसभा की संरचना: 

     

नोट:- अनुच्छेद - 80 ( 3 ) कहता है कि राष्ट्रपति 12 सदस्यों को साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा के क्षेत्र से मनोनित करेगें ।
  • राजसभा के लिए चुनाव Election Commission of India के द्वारा करवाया जाता है। यह चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होता है ।
  • राजसभा सदस्य बनने की योग्यताः
    (1) भारत का नागरिक हो ।
    (2) उम्र कम से कम 30 वर्ष हो ।
    (3) लाभ के पद ना हो ।
    (4) भारत के मतदाता सूची में नाम हो ।
    (5) पागल या दिवालिया ना हो ।
नोट:- 2003 ई. में इस व्यवस्था को समाप्त किया गया कि जिस व्यक्ति का नाम जिस राज्य के मतदाता सूची में है उस राज्य से ही चुनकर जायेगा और यह व्यवस्था बनाई गई कि कोई भी भारतीय नागरिक किसी राज्य से राजसभा का सदस्य बन सकता है। जैसे- रंजीता रंजन छत्तीसगढ़ से राजसभा का सदस्य बनने वाली है।
  • राजसभा के सदस्यों के निर्वाचन में राज्य के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। जैसे- बिहार के 16 राजसभा सीटों के लिए जब चुनाव होता है तो उसमें बिहार के विधानसभा के 243 निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।
  • राजसभा के पदधिकारी:
अनुच्छेद - 89
यह अनुच्छेद कहता है कि राजसभा का एक सभापति होगा और एक उपसभापति होगा । राजसभा का सभापतित्व उपराष्ट्रपति करते हैं जो कि राजसभा का सदस्य नहीं होते हैं लेकिन राजसभा का -उपसभापति बनने के लिए राजसभा का सदस्य होना आवश्यक है।
अनुच्छेद- 90
यह अनुच्छेद उपसभापति के पद रिक्ति के बारे में जानकारी प्रदान करता है । उपसभापति का पदं निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है:-
(1) उपसभापति अपना त्यागपत्र सभापति को देता है, लेकिन सभापति अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है ।
(2) जब उपसभापति राजसभा का सदस्य नहीं रह जाता है ।
(3) उपसभापति को राजसभा साधारण बहुमत से संकल्प पारित कर पद से हटा देता है । (4) पद पर रहते हुए उपसभापति का निधन हो गया हो ।
अनुच्छेद- 91
सभापति के कार्यधिकार शक्ति के विषय में जानकारी प्राप्त होता है। साथ ही साथ सभापति के रूप में कोई भी काम करें उसके भी कार्य अधिकार शक्ति की जानकारी देता है।
अनुच्छेद- 92
यह अनुच्छेद कहता है कि सभापति और उपसभापति को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तो पीठासीन पदाधिकारी (सभापति / उपसभापति ) के तौर पर काम नहीं कर सकेगें अर्थात, अगर राजसभा के सभापति वेंकैया नाइडू को पद से हटाने का संकल्प राजसभा में आया हो तो वे सभापति के रूप में काम नहीं करेगें ।

लोकसभा

भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 81 कहता है कि संसद का एक सदन लोकसभा होगा। लोकसभा को निम्न सदन / जनता का सदन / लोकप्रिय सदन या प्रथम सदन कहा जाता है। लोकसभा के लिए पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए हैं। जनता का सदन का नाम बदलकर 1954 में लोकसभा किया गया।

लोकसभा बनने की योग्यताः
(1) भारत का नागरिक हो ।
(2) उम्र कम से कम 25 वर्ष हो ।
(3) भारत के मतदाता सूची में नाम हो ।
(4) लाभ के पद पर ना हो ।
(5) पागल या दिवालियाँ ना हो ।
लोकसभा का चुनावः
यह चुनाव Election Commission of India के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान के द्वारा होता है। इस चुनाव में भारत की आम जनता भाग लेती है।
आंग्ल-भारतीयः
यूरोपीय पिता औरं भारतीय माता से जो संतान की उत्पत्ति हुआ है, उसे ही आंग्ल-भारतीय समुदाय का माना गया है। संविधान लागू होने के समय आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों की संख्या लाखों में थी इस कारण संविधान सभा में भारतीय समुदाय के लोगों को लोकसभा और विधानसभा में प्रतिनिधित्व दिया ।
अनुच्छेद-331
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह 2 आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों को लोकसभा में मनोनित कर सकता है ।
अनुच्छेद-333
यह अनुच्छेद राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह विधानसभा में 1 आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन कर सकता है।
  • हाल ही के दिनों में केंद्र के मोदी सरकार ने 104वाँ संविधान संसोधन अधिनियम 2019 के तहत् आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों के मनोनयन संबंधी प्रावधान को समाप्त कर दिया है।
लोकसभा की संरचनाः
लोकसभा में अधिकतम सदस्यों की संख्या 550 हो सकती है
अनुच्छेद - 81 (1) (क)
यह अनुच्छेद कहता है, लोकसभा में भारत के 28 प्रांतों से 530 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते हैं।
अनुच्छेद - 81 (1) (ख)
यह अनुच्छेद कहता है कि लोकसभा में सभी केंद्रशासित प्रदेश से 20 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते हैं।
  • मूल संविधान में लोकसभा सीटों की संख्या 500 हुआ करता था। 7वाँ संविधान संसोधन 1956 के तहत “लोकसभा में सीटों की संख्या 500 से बढ़ाकर 525 कर दिया गया। कलांतर में 31वाँ संविधान संसोधन 1973 के तहत सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 किया गया ।
  • Protem Speaker (अस्थायी अध्यक्ष): लोकसभा में से नवनिर्वाचित सदस्यों में से सबसे वरिष्ठ सदस्य को Protem Speaker के रूप में नियुक्त भारत के राष्ट्रपति करते हैं । इनका सबसे प्रमुख काम यह है कि ये लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाते हैं।
  • Protem Speaker का कोई कार्यकाल नहीं होता है।
  • लाकसभा के सदस्य अगर बिना किसी शपथ ग्रहण के सदन की कार्यवाही में भाग लेता है तो उसे प्रतिदिन के हिसाब से 500/- रूपया जुर्माना देना पड़ता है।

लोकसभा के पदाधिकारी:

अनुच्छेद-93
यह अनुच्छेद कहता है, लोकसभा का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा ।
  • लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष वही हो सकता है जो लोकसभा का सदस्य होता है।
  • लोकसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही साधारण बहुमत के आधार पर एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष को चुनता है ।
अनुच्छेद- 94
यह अनुच्छेद हमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त होने के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है-
(1) निधन होने के पश्चात्
(2) त्यागपत्र देने परः- लोकसभा का अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को देता है और उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को देता है।
(3) अगर लोकसभा संकल्प पारित करके साधारण बहुमत से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को पद से हटा देता है।
अनुच्छेद- 95
यह अनुच्छेद हमें अध्यक्ष के कार्य, अधिकार, शक्ति अथवा अध्यक्ष के रूप में जो भी व्यक्ति काम करें उसके कार्य, अधिकार, शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
अनुच्छेद-96
यह अनुच्छेद कहता है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तो वे पीठासीन अधिकारी के तौर पे काम नहीं कर सकेगें ।
अध्यक्ष के कार्यः
(1) लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का शपथ ग्रहण नहीं होता है
(2) लोकसभा में जब किसी विधेयक पर मतदान होता है तो पहली बार अध्यक्ष मतदान में भाग नहीं लेते हैं, लेकिन मतदान के दौरान बराबर की स्थिति उत्पन्न होती है तब लाकसभा के अध्यक्ष निर्णायक मत डालते हैं ।
(3) लोकसभा के अध्यक्ष, अध्यक्ष बनने के बाद अपनी पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दे सकता है। इस स्थिति में उन पर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होता है।
(4) भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 110 के तहत् धन विधेयक को परिभाषित लोकसभा के अध्यक्ष के द्वारा किया जाता है। धन विधेयक साधारण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है, नही तो सरकार गिर जाती है। यह विधेयक राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से सर्वप्रथम लाकसभा में लाया जाता है ।
(5) भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 108 के तहत् संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा तब बुलाया जाता है जब किसी विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों के बीच मतभेद हो जाता है, विशेषकर संयुक्त अधिवेशन साधारण विधेयक को लेकर ही बुलाया जाता है। आज तक भारतीय इतिहास में 3 बार संयुक्त अधिवेशन बुलायें गयें हैं।
(1) दहेज प्रथा प्रतिशेध अधिनियम 1961 को लेकर 1962 में।
(2) बैकिंग सेवा अधिनियम 1977 को लेकर 1978 में ।
(3) निवारक निरोध कानून POTA को लेकर 2002 में ।
नोट- धन विधेयक और संविधान संसोधन विधेयक को लेकर संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाया जा सकता है।
  • संयुक्त अधिवेशन में विधेयक को पारित साधारण बहुमत के आधार पर किया जाता है। साथ ही साथ संयुक्त अधिवेशन का क्रियाकलाप लोकसभा के प्रक्रिया के तहत् होता है ।
  • संयुक्त अधिवेशन बुलाता राष्ट्रपति है लेकिन इसकी अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष करतें हैं। अगर अध्यक्ष नहीं होता है तब उपाध्यक्ष अध्यक्षता करता है, लेकिन जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं होता है तब राजसभा का उपसभापति अध्यक्षता करता है और जब उपसभापति भी नहीं होते हैं तब लोकसभा के 6 सदस्यों के पेनल में से उपस्थित कोई सदस्य करता है ।
  • लोकसभा में विपक्ष का नेताः- सत्ता पार्टी के अलावे वैसी कोई भी राजनीतिक पार्टी जो लोकसभा के कुल सीट के 10% या 1 / 10 भाग सीट प्राप्त करता है तो उस पार्टी के किसी नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा दिया जाता है। अगर एक से अधिक पार्टियों को 10% से अधिक सीट प्राप्त होता है तो इस स्थिति में सबसे अधिक सीट प्राप्त करने वाले पार्टी को विपक्षी पार्टी का दर्जा दिया जाता है। विपक्ष के किसी नेता को विपक्ष के नेता का भी दर्जा दिया जाता है। लोकसभा में विपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है । लोकसभा में विपक्ष पद नेता को स्वीकृति 1969 ई. में मिली है। लोकसभा में प्रथम विपक्ष का नेता 1969 ई. में रामसुभग सिंह बनें थें, वहीं वर्तमान समय में लोकसभा के विपक्ष का नेता कांग्रेस के अधिरंजन चौधरी हैं ।
  • लोकसभा की गणमूर्ति (Quorum):- Quorum वह न्यूनतम संख्या होती है जिसके मौजूद होने से सदन में काम की शुरूआत हो जाती है। लोकसभा का Quorum उसकी कु संख्या का 1 / 10 भाग अर्थात 55 होता है, वहीं राज्यसभा का Quorum भी उसकी कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होता है अर्थात, राज्यसभा का Quorum 25 होता है ।
  • विधि की निर्माण की प्रक्रियाः- विधि के निर्माण हेतू सबसे पहले विधेयक तैयार किया जाता है। विधेयक, संबंधित मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है। विधेयक को जिस सदन में रखना होता है, उस सदन के सभापति अध्यक्ष को विधेयक की सुचना एक माह पूर्व देना आवश्यक होता है तत्पश्चात् निर्धारित तिथि को विधेयक उस सदन में रखा जाता है। विधेयक को लेकर 3 वाचन होता है-

प्रथम वाचन:-

इस वाचन में विधेयक को लाने का उदेश्य बताना होता है, साथ ही साथ विधेयक पर होने वाले खर्च को भी बताता है। जब विधेयक भारत के राजपत्र में प्रकाशित हो जाता है तब यह माना जाता है कि प्रथम वाचन पूरा हुआ ।

द्वितीय वाचनः-

 इस वाचन के दौरान विधेयक पर वाद विवाद और चर्चा होता है। इस वाचन के दौरान ही विधेयक जाँच हेतू प्रबर समिति को सौंपा जाता है । इस वाचन के दौरान ही विधेयक में संसोधन होता है ।

प्रबर समितिः-
किसी विधेयक के जाँच हेतू गठित समिति प्रबर समिति कहलाता है। दोनों सदनों का अलग अलग प्रबर समिति भी होता है तथा दोनों सदनों का संयुक्त प्रबर समिति भी होता है। संयुक्त प्रवर समिति में 45 सदस्य होते हैं, जिसमें से 30 सदस्य लोकसभा तथा 15 सदस्य राज्यसभा से आते हैं, लेकिन वहीं दोनों सदनों के अलग-अलग प्रबर समिति होने पर सदस्यों की संख्या 30 होती है। प्रवर समिति को अपनी रिर्पोट 3 महिना के अंदर सौंपना होता है ।

तृतीय वाचन:-

चर्चा-परिचर्चा के बाद जब मतदान होता है, तब यह माना जाता है कि तृतीय वाचन पूर्ण हुए। तीनों वाचन पूरा होने के बाद विधेयक एक सदन से दूसरें सदन में जाता है। दूसरा सदन विधेयक पर निम्न निर्णय लेतें हैं-
(क) स्वीकृति प्रदान करेगा ।
(ख) स्वीकृति प्रदान नहीं करेगा ।
 (ग) संसोधन के साथ स्वीकृति प्रदान करेगा।
 (घ) विधेयक पर कोई निर्णय नहीं देगा। 
  • उपर्युक्त लिखित पहली स्थिति में यह माना जाता है कि दोनों सदनों नक विधेयक को पारित कर दिया, तत्पश्चात् यह विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है और अगर राष्ट्रपति अनुमति दे देता है तो विधेयक कानून बन जाता है।
  • उपर्युक्त लिखित ख, ग, घ की स्थितियों में यह माना जाता है कि संसद के दोनों सदनों के बीच मतभेद हो गया है, तब राष्ट्रपति के द्वारा सामंजस्य बैठाने हेतू अनुच्छेद-1 - 108 के तहत् संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता हैं ।
> दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए जाता है तो राष्ट्रपति उस पर निम्न निर्णय दे सकता है— 
(1) स्वीकृति प्रदान कर सकता है।
(2) स्वीकृति प्रदान नहीं भी कर सकता है ।
ऐसा राष्ट्रपति गैर-सरकारी विधेयक पर करता है।
(3) राष्ट्रपति विधेयक को पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है।
(4) राष्ट्रपति विधेयक पर कोई निर्णय नहीं भी दे सकता है
अनुच्छेद:- 97
यह अनुच्छेद हमें लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति और उपसभापति के वेतन की जानकारी प्रदान करता है ।
अनुच्छेद:- 98
यह अनुच्छेद हमें संसद के सचिवालय के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
> लोकसभा का अपना सचिवालय होता है तथा राज्यसभा का अपना सचिवालय होता है दिन-प्रतिदिन के काम को निपटाता है । सचिवालय का प्रमुख महासचिव होता है । । सचिवालय
लोकसभा के महासचिवः-
लोकसभा के महासचिव की नियुकित लोकसभा के अध्यक्ष करतें हैं। यह एक प्रशासनिक पद होता है। लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बाद, तीसरा सबसे बड़ा पदाधिकारी महासचिव को माना जाता है। लोकसभा के प्रथम महासचिव M. N कौल बनें हैं। लोकसभा के प्रथम महिला महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव बनीं है। वर्तमान लोकसभा के महासचिव उत्पल सिंह 1
राज्यसभा के महासविच:-
राज्यसभा के महासचिव की नियुक्ति राज्यसभा के सभापति करते हैं । सभापति और उपसभापति के बाद, तीसरा सबसे महत्वपूर्ण पद महासचिव का पद है। यह एक प्रशासनिक पद है। राज्यसभा के प्रथम महासचिव S. N मुखर्जी बनें हैं। वर्तमान में राज्यसभा के महासचिव प्रमोद चंद्र मोदी हैं।
नोट- लोकसभा का प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर तथा प्रथम उपाध्यक्ष श्री अनंत शयनम आयंगर बनें हैं। - वर्तमान में लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला हैं ।
  • जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र 'बाहरी दिल्ली' है तो वहीं सबसे छोटा लोकसभा क्षेत्र लक्ष्यद्वीप है ।
  • क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र लद्याख है तो वहीं सबसे छोटा लोकसभा क्षेत्र चाँदनी चौक है।
संसद सदस्यों की अयोग्यता/निरर्हताः
(1) अगर कोई संसद सदस्य भारत की नागरिकता का परित्याग कर दकता है। 
(2) अगर संसद सदस्य पागल या दिवालियाँ हो जाता है ।
(3) अगर क़ोई संसद सदस्य बिना सदन के अध्यक्ष और सीपति को सुचना के लगातार 60 दिनों तक अनुपस्थित रहता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जायेगी ।
(4) कोई भी व्यक्ति एक ही समय में दोनों सदन का सदस्य नहीं बन सकता है। अगर कोई व्यक्ति एक ही समय में दोनों सदन का सदस्य बन जाता है तो उसे एक सदन की सदस्यता छोड़नी होती है, अगर व्यक्ति एक सदन की सदस्यता नहीं छोड़ता है तो यह माना जाता है कि वह पहले से जिस सदन का सदस्य है उस सदन की सदस्यता समाप्त हो गई है। ***
(5) अगर कोई व्यक्ति संसद के साथ-साथ विधानसभा का सदस्य भी बन जाता है तो इस स्थिति में 14 दिन के भीतर दोनों में से किसी एक जगह की सदस्यता छोड़नी होती है। ***
(6) अगर कोई संसद सदस्य न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाता है और उसे 2 वर्ष से अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाता है ।
संसद के सत्रः-
संवैधानिक तौर पर संसद के दो सत्रो का आयोजन होना चाहिए, लेकिन एक वर्ष में संसद के 3 सत्रों का आयोजन होता है। भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि संसद के दो सत्रों के बीच का समय अंतराल 6 माह से ज्यादा नहीं हो सकता है ।
(1) बजट सत्रः-
यह सत्र प्रथम एवं सबसे बड़ा सत्र होता है । यह सत्र फरवरी से मई के बीच में चलता है।
(2) मानसून सत्रः-
यह सत्र जुलाई और अगस्त माह में आयोजित होता है ।
(3) शीत सत्र:-
यह वर्ष का अंतिम सत्र होता है। यह सत्र नवम्बर-दिसम्बर में आयोजित होता है ।
संसद की कार्यविधिः-
संसद में समान्यतः कार्य सुबह के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक चलता है। जिसमें दोपहर 1 से 2 बजे का समय विश्राम काल होता है । संसद की कार्यवाही की शुरूआत राष्ट्रगान जन-गण-मन से जबकि कार्यवाही की समाप्ति राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् से होता है।
प्रश्न कालः -
सुबह 11 से 12 बजे का समय प्रश्न काल कहलाता है । इस अवधि के दौरान संसद सदस्य संबंधित विभाग के मंत्री से प्रश्न पूछता है तथा मंत्री उसका जबाव देता है। प्रश्न मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-
(1) तारांकित प्रश्नः - वैसे प्रश्न जिसका जबाव मौखिक देना होता है तारांकित प्रश्न कहलाता है। इस पर पूरक प्रश्न पूछा जा सकता है। यह प्रश्न हरे रंग के कागज पर लिखा जाता है ।
(2) अतारांकित प्रश्नः- वैसे प्रश्न. जिसका जबाव लिखित देना होता है अतारांकित प्रश्न कहलाता है। इस पर पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता है। यह प्रश्न सफेद कागज में लिखा जाता है।
(3) अल्पसूचना प्रश्न :- 10 दिन से कम समय में सुचना देकर जो किसी लोक- महत्व के मुद्दा को उठाते हुए संसद सदस्यों के द्वारा प्रश्न पूछा जाता है उसे ही अल्पसूचना प्रश्न कहा जाता है इस प्रश्न का जबाव भी मौखिक ही दिया जाता है इसलिए इस पर भी पूरक प्रश्न पूछा जा सकता है। यह प्रश्न हल्के गुलाबी रंग के कागज पर लिखा जाता है।
शून्य काल (12 से 1 बजे ):-
प्रश्न काल के ठीक बाद के समय को शून्य काल कहा जाता है। इस अवधि को शून्यकाल नाम भारतीय मीडिया के द्वारा 1962 ई. में दिया गया है। यह संसदीय व्यवस्था में भारत की देन मानी जाती है ।
संसदीय समितिः-
संसद का काम काफी व्यापक होता है जिस कारण संसद अपने सभी कार्यो को पूरा नहीं कर पाता है। वैसे काम जो संसद नहीं कर पाते हैं, उन कार्यो को करने हेतू ही संसदीय समितियाँ गठित की जाती है । संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती है। (1) स्थायी | (2) अस्थायी
(1) स्थायी:- वैसी समिति जो हमेशा अस्तित्व में रहता है स्थायी समिति कहलाता
(2) अस्थायी: - इसे तदर्थ समिति भी कहा जाता है। किसी खास प्रायोजन के लिए जब समिति गठित की जाती है और उदेश्य के पूरा होते ही समिति भंग कर दिया जाता है उसे ही अस्थायी या तदर्थ समिति कहते हैं ।

स्थायी समिति

वित्तीय समिति:-
सरकार के वित्तीय कार्य से संबंधित संसदीय समिति को वित्तीय समिति कहा जाता है। वित्तीय समिति तीन प्रकार का होता है ।
(1) लोकलेखा समितिः-
यह भारत की सबसे प्राचीनतम वित्तीय समिति है। इस समिति का गठन भारत शासन अधिनियम 1919 के तहत् 1921 में किया गया है। इस समिति में वर्ततान में 22 सदस्य हैं। जिसमें 15 सदस्य लोकसभा और 7 सदस्य राज्यसभा से आते हैं। 1967 ई. में यह प्रावधान किया गया कि इस समिति का अध्यक्ष लाकसभा में विपक्ष का कोई नेता होगा। लोकसभा के विपक्ष के नेता को समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त लोकसभा का अध्यक्ष करता है । इस समिति का सबसे प्रमुख काम भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) के रिपोर्ट की जाँच करना है । (CAG) के रिपोर्ट की जाँच कर अपना प्रतिवेदन लोकसभा के अध्यक्ष को देता है ।
(2) प्राक्कलन समितिः-
इस समिति को कई नाम जैसे- आकलन समिति / स्थायी मितव्यता समिति / Estimate Committee के नाम से जाना जाता है। 1950 ई. में भारत के वित्त मंत्री जॉन मथाई के सिफारिस पर बजट के पूर्व अनुमान को लेकर प्राक्लन समिति का गठन किया गया। इस समिति में सदस्यों की संख्या 30 होती है । यह भारत की सबसे बड़ी स्थायी संसदीय समिति है । इस समिति के सभी सदस्य लोकसभा से ही आते हैं। इस समिति का अध्यक्ष सत्ताधारी दल का ही कोई नेता हो सकता है।
सरकारी उपक्रम / लोक उपक्रम समितिः- .
कृष्ण मेनन समिति के सिफारिस पर 1964 ई. में सरकारी उपक्रम समिति का गठन किया गया है। इस समिति में कुल 22 सदस्य होते हैं। जिसमें से 15 सदस्य लोकसभा तथा 7 सदस्य राज्यसभा से आते हैं । समान्यतः इस समिति के अध्यक्ष भी सत्ताधारी दल का ही कोई नेता होता है। इस समिति का सबसे प्रमुख काम सरकारी कंपनी जैसे - Air India, LIC, BSNL इत्यादि के लेखाओं ( Account) की जाँच करना होता है ।
> उपर्युक्त लिखित तीनों समितियों के सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष का होता है । कोई भी मंत्री इन समितियों का सदस्य नहीं बन सकता है। इन समितियों के सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के आधार पर होता है ।
कार्य मंत्रणा समितिः-
संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग कार्य मंत्रणा समिति होता है । इस समिति का कार्य प्रतिदिन के कार्य प्रणाली को निर्धारित करना होता है ।
  • लोकसभा के कार्य मंत्रणा समिति में 15 सदस्य होते हैं। लोकसभा के कार्य मंत्रणा समिति का अध्यक्ष लोकसभा का अध्यक्ष होता है ।
  • राज्यसभा के कार्य मंत्रणा समिति में 11 सदस्य होते हैं । इस समिति का अध्यक्ष राज्यसभा का सभापति होता है।
महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतिः-
1997 में महिला सशक्तिकरण समिति का गठन हुआ । इस समिति का सबसे प्रमुख काम राष्ट्रीय महिला आयोग के रिपोर्ट की जाँच करना है। इस समिति में कुल 30 सदस्य होते हैं जिसमें 20 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा से आते हैं ।
अनु० जाति / अनु0 जनजातिः-
इस समिति में कुल 30 सदस्य होते हैं जिसमें से 20 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा से आते हैं। SC और ST आयोग के रिपोर्ट की जाँच करना इस समिति का सबसे प्रमुख काम होता है ।
विशेषाधिकार समितिः-
संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग विशेषाधिकार समिति होता है। इस समिति का मुख्य कार्य संसद सदस्यों के विशेषाधिकार के हनन की जाँच करना है। लोकसभा के विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य होते हैं जबकि राज्यसभा के विशेषाधिकार समिति में 10 सदस्य होते हैं ।
विभागीय स्थायी समितिः-
विभागीय स्थायी समिति का सुख्या 24 है। इसमें से 8 समिति राज्यसभा के अधीन आता है तो वहीं 16 समिति लोकसभा के अधीन आता है। प्रत्येक विभागीय स्थायी समिति में कुल 31 सदस्य होते हैं। जिसमें से 21 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा से आते हैं । .

अस्थायी/तदर्थ समिति

पुस्तकालय समितिः-
इस समिति में कुल 9 सदस्य होते हैं जिसमें से 6 सदस्य लोकसभा और 3 सदस्य राज्यसभा से आते हैं ।
नियम समितिः-
संसद के दोनों सदन का अलग-अलग नियम समिति होता है। -लोकसभा के नियम समिति में 15 सदस्य होते हैं तथा इस समिति की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं। राज्यसभा के नियम समिति में 16 सदस्य होते हैं तथा इसकी अध्यक्षता राज्यसभा के सभापति/उपराष्ट्रपति करते हैं।
कार्य सलाहकार समितिः-
संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग कार्य सलाहकार समिति होता है। लोकसभा के कार्य सलाहकार समिति में 15 सदस्य होते हैं। इस समिति की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। राज्यसभा के कार्य सलाहकार समिति में 10 सदस्य होते हैं। इस समिति की अध्यक्षता राज्यसभा का सभापति / उपराष्ट्रपति करता है।
प्रवर समितिः-
यह एक अस्थायी समिति है ।
अधिनस्थ विधायन संबंधी समितिः-
इसका गठन 1953 ई. में हुआ है। लोकसभा के अधिनस्थ विधायन संबंधी समिति में 15 सदस्य होते हैं, वहीं राज्यसभा के अधीनस्थ विधायन संबंधी समिति में 15 सदस्य ही होते हैं।
संयुक्त संसदीय समिति (JPC):-
किसी घटना विशेष की जाँच हेतू इस कमिटी कस गठन किया जाता है। इस कमिटी में राज्यसभा का जितने सदस्य होते हैं, ठीक उसका दोगुना सदस्य लोकसभा का होता है। अभी तक गठित प्रमुख सुयुक्त संसदीय समिति निम्न है-
क्र. सं. वर्ष घोटाला अध्यक्ष
1. 1987 बोफोर्स घोटाला बी. शंकरानंद
2. 1992 हर्षा मेहता का शेयर घोटाला राम निवास मिर्जा
3. 2002 केतन पारिक का शेयर घोटाला अमर मनीक त्रिपाठी
4. 2004 कीटनाशक घोटाला सरद पवार
5. 2011 टू जी एक्सपेट्रम घोटाला पी.सी. चाको
नोट- पहली बार Joint Parliamentry Committee का गठन 1987 में हुआ है।
♦ विधेयक के समाप्त होने तथा नां होने की स्थितियाँ:- विधेयक के सदन में रखें जाने तथा विधेयक के समाप्त के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का अनुच्छेद प्रदान करता है ।
(1) अगर कोई विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में आता है और लोकसभा पारित कर देता है फिर यह विधेयक राज्यसभा में जाता है और उसी समय लोकसभा भंग हो जाता है तो विधयेक समाप्त हो जाता है
(2) अगर कोई विधेयक सर्वप्रथम राज्यसभा में आता हैं और राज्यसभा पारित कर देता है और उसी समय लोकसभा भंग हो जाता है तो विधयेक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(3) अगर कोई विधेयक राज्यसभा में आता है और उसी दौरान राज्यसभा का सत्र समाप्त हो जाता है तो विधेयक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

बजट

√ बजट एक लेख पत्र होता है। जिसमें सारकार के एक वर्ष के आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है। भारतीय संविधान में वजट शब्द का प्रयोग नहीं है, बल्कि बजट के स्थान पर वार्षिक वित्तीय विवरण शब्द का उल्लेख है। संसद के सदनों के समक्ष वजट भारत के राष्ट्रपति के द्वारा रखा जाता है, वहीं बजट पेश भारत के वित्त मंत्री द्वारा किया जाता है। अभी तक सबसे ज्यादा बार बजट पेश मोरारजी देशाई (10 बार) ने किया है। वार्षिक वित्तीय विवरण शब्द की चर्चा अनुच्छेद- 112 में है ।
अनुदान की माँग:-
इसकी चर्चा अनुच्छेद- 113 में है। जिस प्रस्ताव के द्वारा सरकार अपने खर्च से संबंधित माँगों " को संसद के समक्ष स्वीकृति के लिए रखवाता है उसे अनुदान की माँग कहा जाता है। यह माँग राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से लोकसभा में सर्वप्रथम लाया जाता है। इस माँग पर ही कटौती प्रस्ताव लाया जाता है। कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार का होता है- (1) सांकेतिक कटौती (2) साधारण कटौती ( 3 ) नीति असहमति कटौती
(1) सांकेतिक कटौतीः- इस प्रस्ताव के द्वारा माँगी गई राशी में से 100 रुपया कम करने का प्रस्ताव किया जाता है। I
(2) साधारण कटौती:- इस प्रस्ताव द्वारा माँगी गई राशी में से कुछ रूपया कम करने का प्रस्ताव किया जाता है । जैसे - 10,000 रुपया के बदले 9,000 रुपया दिया जायें।
(3) नीति असहमति कटौती:- इस प्रस्ताव के द्वारा जिस नीति के तहत् धन की माँग की गई है उस नीति को ही खारिज करते हुए धन न देने का प्रस्ताव पारित किया जाता है।

गिलोटिन

  • यह एक फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। बिना चर्चा के अनुदान की माँग को मतदान के लिए रख दिया जाना गिलोटिन कहलाता है ।
विनियोग विधेयकः-
इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 114 में है । यह एक प्रकार का धन विधेयक होता है । वैसा विधेयक जिसके द्वारा भारत की संचित निधि से धन निकाला जाता है उसे विनियोग विधेयक कहते हैं ।
संचित निधि:-
इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 में है । वैसे निधि जिसमें भारत सरकार के समस्त आय जमा होते हैं उसे भारत की संचित निधि कहा जाता है। भारत की संचित निधि पर निम्न व्यय (खर्च) भारित होता है ।
(1) राष्ट्रपति का वेतन, भत्ता, पेंशन
(2) लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन, भत्ता, पेंशन
(3) राज्यसभा के सभापति और उपसभापति का वेतन, भत्ता, पेंशन
(4) सुप्रीम के न्यायधिशों का वेतन, भत्ता, पेंशन, इत्यादि........ |
> अनुच्छेद 266 में ही राज्य के संचित निधि की चर्चा है। राज्य सरकार की समस्त आय राज्य की संचित निधि में जमा होती है। इस आय में निम्नलिखित व्यय (खर्च) भारित होते हैं। जैसे- राज्यपाल का वेतन भत्ता, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन, भत्ता, पेंशन, विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति का वेतन, भत्ता, पेंशन, हाई कोर्ट के न्यायधिशों का वेतन, भत्ता, पेंशन, इत्यादि..... |
नोट:- हाईकोर्ट के न्यायधिशों को वेतन राज्य के संचित निधि से दिया जाता है जबकि पेंशन भारत की संचित निधि से दिया जाता है ।
अनुपूरक बजट (अनुच्छेद- 115 ):-
बजट के माध्यम से एक वर्ष हेतू जो खर्च आबंटित होता है अगर वह राशी समय से पहले खर्च हो जाता है तो बचें हुए समय के लिए जो बजट लाया जाता है उसे अनुपूरक बजट कहते हैं। इस बजट के माध्यम से संसद से राशी की स्वीकृति दी जाती है ।
लेखानुदान (अनुच्छेद- 116 ) :-
इसे अग्रिम या पेशगी अनुदान कहा जाता है। जब किसी वजह से बजट समय पर पारित नहीं हो पाता है तो बजट के एक हिस्से को व्यय (खर्च) करने की अनुमति जिस प्रस्ताव के द्वारा दिया जाता है उसे लेखानुदान कहते हैं।
राष्ट्रपति का अभिभाषण:-
इस विषय में जानकारी हमें अनुच्छेद- 87 देता है । राष्ट्रपति का अभिभाषण मंत्रिपरिषद के द्वारा तैयार किया जाता है । इस अभिभाषण में सरकार की उपलब्धियाँ तथा सरकारों की नीतियों की घोषणा की जाती है ।
धन्यवाद प्रस्तावः-
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रस्ताव लाया जाता है, उसे ही धन्यवाद प्रस्ताव कहा जाता है। यह प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में लाया जाता है। इस प्रस्ताव का पारित होना आवश्यक होता है, अन्यथा सरकार गिर जाती है।
धन विधेयक:-
धन विधेयक के बारें में विषेश उपबंध अनुच्छेद- 109 में है, वहीं धन विधेयक की परिभाषा अनुच्छेद- 110 में है। धन विधेयक को परिभाषित लोकसभा का अध्यक्ष करता है। धन विधेयक. राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से सर्वप्रथम लोकसभा में लाया जाता है। लोकसभा को इसे साधारण बहुमत से पारित करना होता है, तत्पश्चात् यह विधेयक राज्यसभा में जाता है। राज्यसभा इस विधेयक को ना अस्वीकार कर सकता है और नाहीं इसमें संसोधन कर सकता है। राज्यसभा धन विधेयक में संसोधन करने करने की सिर्फ सिफारिश कर सकता है। राज्यसभा इस विधेयक को अधिक से अधिक 14 दिन तक रोक सकता है। इस अवधि के दौरान राज्यसभा धन विधेयक को स्वीकार करती है तो ठीक है, अन्यथा धन विधेयक स्वीकार किया हुआ माना जाता जायेगा । अर्थात हम कह सकते हैं कि धन विधेयक को लेकर राज्यसभा को नगन्य अधिकार प्राप्त होते हैं। धन विधेयक पर स्वीकृति देने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होता है, क्योंकि यह विधेयक राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से लाया जाता है।
> लोकसभा द्वारा परिभाषित धन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट तक में चुनौती नहीं जा सकती है। इसी तरह विधानसभा अध्यक्ष द्वारा परिभाषित धन विधेयक को उच्च न्यायलय में चुनौती नहीं दी जा सकती है ।
वित्त विधेयक:-
वैसा विधेयक जिसका संबंध वित्तीय मामलों से होता है, वित्त विधेयक कहलाता है। वित्त विधेयक साधारण विधेयक और धन विधेयक का मिश्रित रूप होता है। वित्त विधेयक का वह हिस्सा जो साधारण विधेयक है उसे संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है। साथ ही साथ उस विधेयक को साधारण विधेयक के तरह ही पारित किया जाता है लेकिन वित्त विधेयक का वह हिस्सा जो धन विधेयक होता है उसे धन विधेयक के तरह पारित किया जाता है। वित्त विधेयक से संबंधित उपबंध अनुच्छेद- 117 में है ।
नोट- सभी धन विधेयक वित्त विधेयक हो सकता है लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं हो सकता है ।

> निम्नलिखित प्रावधानों को धन विधेयक के अंतर्गत शामिल किया जाता है:- 
(1) किसी कर को लगाना
(2) किसी कर को हटाना 
(3) कर की दर बढ़ना और घटाना
(4) भारत की संचित निधि से धन को निकालना या जमा करना
(5) भारत के आकस्मिक निधि से धन निकालना या जमा करना
(6) भारत सरकार के द्वारा ऋण लिया जाना या ऋण चुकता करना । इत्यादि...

न्यायपालिका

  • भारत में न्यायपालिका के तीन स्तर होते हैं, जिसमें सर्वोच्च स्थान पर भारत का सुप्रीम कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट नीचे - हाई कोर्ट है और हाई कोर्ट के नीचे Subordinate Court है ।
नोटः- भारतीय न्यायायिक व्यवस्था एकहरी और एकिकृत है।
  • संघीय न्यायपालिका के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग - 5 तथा अनुच्छेद- 124 से 147 देता है ।
  • भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत् संघीय न्यायलय की स्थापना 1937 में हुई । संविधान लागू होने के बाद संघीय न्यायलय ही 28 जनवरी 1950 से भारत के Supreme Court के रूप में जाना जाने लगा ।
  • भारत का Supreme Court नई दिल्ली में स्थित है। समान्यतः सुप्रीम कोर्ट की बैठक नई दिल्ली में होती है लेकिन राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से इसकी बैठक भारत के किसी भी शहर में आयोजित की जा सकती है। जैसे कि Supreme Court की बैठक श्रीनगर और हैदराबाद में आयोजित किया जा चुका है ।
  • Supreme Court देश का सर्वोच्च अपीलिय न्यायलय है।
  • संविधान का व्याख्याकार Supreme Court है ।
  • देश के आम नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक Supreme Court है ।
  • संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वो Supreme Court में न्यायधिशों की संख्या में इजाफा कर सकता है लेकिन कमी नहीं कर सकता है। यही कारण है कि संसद ने बढ़ते काम के दबाब को देखते हुए Supreme Court में न्यायधिशों की संख्या में इजाफा किया है।
  • जब Supreme Court का गठन हुआ था तो उस समय न्यायधिशों की संख्या 8 हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे न्यायधिशों की संख्या में इजाफा हुआ। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 34 न्यायधिश है जिसमें 1 मुख्य न्यायधिश तथा 33 अन्य न्यायधिश हैं ।
  • Supreme Court के मुख्य न्यायधिश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति वर्तमान के मुख्य न्यायधिश के सिफारिश पर करते हैं, वहीं Supreme Court के अन्य न्यायधिश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति मुख्य न्यायधिश के सिफारिश पर करते हैं ।
  • राष्ट्रपति न्यायधिशों की नियुक्ति में "कॉलेजियम' का मदद लेता है। कॉलेजियम व्यवस्था 1990 के दशक में अस्तित्व में आया है। इसमें 5 सदस्य होते हैं जो कि Supreme Court के ही न्यायधिश होते हैं।
  • कॉलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने 99वाँ संविधान संसोधन 2014 के तहत् NJAC (National Judicial Appoitment Commission) राष्ट्रीय न्यायायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रावधान किया । इस संस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई | Supreme Court ने इस संस्था को खारिज कर दिया, जिस कारण आज भी न्यायधिशों की नियुक्ति में कॉलेजियम व्यवस्था ही अस्तित्व में है ।
  • सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिशों का कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि उसके सेवा निवृत्ति की आयु 65 वर्ष होता है।
  • अनुच्छेद- 125 हमें Supreme Court के न्यायधिशों के वेतन भत्ता और पेंशन के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • Supreme Court के वेतन भत्ता और पेंशन भारत की संचित निधि पर भारित होता है |
  • वर्तमान में Supreme Court के मुख्य न्यायधिशों को 2,80,000 रुपया तथा अन्य न्यायधिशों को 2,50,000 रुपया वेतन के तौर पर दिया जाता है।
त्याग पत्रः-
Supreme Court के न्यायधिश अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति को देकर पद खाली कर सकता है।
पद से हटाया जाता है । :-
Supreme Court के न्यायधिशों को पद से हटाने संबंधी प्रावधान की चर्चा अनुच्छेद- 124 (4) तथा अनुच्छेद- 124 (5) में है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिशों को हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में हो सकता है लेकिन शर्त यह है कि अगर राज्यसभा हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत करता है तो राज्यसभा के 50 सदस्यों का लिखित समर्थन आवश्यक है। लेकिन अगर लोकसभा हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत करता है तो लोकसभा के 100 सदस्यों का लिखित समर्थन आवश्यक होता है । जो भी सदन इस प्रक्रिया को शुरूआत करता है उसे पहले इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है, तत्पश्चात् यह प्रस्ताव दूसरे सदन में जाता है। दूसरे सदन को भी इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है। 
नोट- अभी तक Supreme Court के एकमात्र न्यायधिश वी० रामास्वामी पर यह प्रक्रिया चलाया गया, लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों के बाहर जाने के कारण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाया । . लेकिन
  • अनुच्छेद- 124 (6) हमें Supreme Court के न्यायधिशों के शपथ ग्रहण के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद- 124 (1) यह कहता है कि भारत का एक Supreme Court होगा ।
  • अनुच्छेद- 124 (2) यह कहता है कि न्यायधिशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगें ।
  • अनुच्छेद- 124 (3) Supreme Court के न्यायधिश बनने की योग्यता के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
  • Supreme Court के न्यायधिश बनने की निम्न योगरूता होनी चाहिए:-
    (1.) एक या एक से अधिक उच्च न्यायलय में कम से कम 5 वर्षो तक न्यायधिश के पद पर रहा हो।
                           या
    (2) एक या एक से अधिक उच्च न्यालय में कम से कम 10 वर्षो तक अधिवक्ता (वकील) रहा हो ।
                           या
    (3) राष्ट्रपति के नज़र में विधि का बहुत बड़ा ज्ञाता हो ।
अनुच्छेद- 126
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के कार्यकारी मुख्य न्यायधिश के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • अगंर Supreme Court के मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित रहते हैं या काम करने में असमर्थ होते हैं या पद पर रहते हुए निधन हो जाता है तो इस सभी स्थितियों में भारत के राष्ट्रपति Supreme Court के वरिष्टम न्यायधिश को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करते हैं।
अनुच्छेद- 127
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के तदर्थ न्यायधिश (Adhoc Judge) की नियुक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
> जब Supreme Court में Quorum की अनुपस्थिति में काम बाधित होता है तो काम बाधित ना हो इसको लेकर मुख्य न्यायधिश तदर्थ न्यायधिश की नियुक्ति करता है ।
अनुच्छेद- 128
यह अनुच्छेद कहता है कि सेवा निवृत्ति के बाद भी (रिटायर्ड के बाद) Supreme Court के न्यायधिश कुछ विशेष परिस्थितियों में Supreme Court की बैठक में भाग ले सकते हैं।
अनुच्छेद- 129
यह अनुच्छेद कहता है कि Supreme Court एक अभिलेख न्यायलय है
अनुच्छेद- 130
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के स्थान के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • भारत का Supreme Court नई दिल्ली में स्थित है।
अनुच्छेद- 131
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार या मूल क्षेत्राधिकार के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
  • वैसे मामले जिसे सीधे तौर पर Supreme Court में रखा जाता है वह Supreme Court के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है ।
जैसे-
(1) दो राज्यों के बीच होने वाला विवाद
(2) भारत सरकार और राज्य सरकार के बीच होने वाला विवाद
(3) भारत सरकार तथा दो या दो से अधिक राज्यों के बीच होने वाला विवाद
अपीलीय क्षेत्राधिकारः-
सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायलय है। इस न्यायलय में उच्च न्यायलय के निर्णय या आदेश के खिलाफ अपील की जाती है। सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय क्षेत्राधिकार के विषय में जानकारी अनुच्छेद - 132, 133, 134 और 136 प्रदान करता है।
संवैधानिक मामलों से जुड़े अपील:-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 132 कहता है कि उच्च न्यायलय के निर्णय में विधि का प्रश्न शामिल हो और उच्च न्यायलय अनुच्छेद- 134 (A) के तहत् असका प्रमाण पत्र दे देता है तो उसकी सुनवाई की अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है।
अनुच्छेद- 133
सिविल मामलों को लेकर हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है ।
अनुच्छेद- 134
अपराधिक या दांडिक मामलों को लेकर हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है ।
अनुच्छेद- 136
सुप्रीम कोर्ट में अपील को लेकर विशेष इजाजत दी जाती है। वैसे मामले जो ना तो संवैधानिक है, ना सिविल है और ना हीं अपराधिक है उन मामलों को लेकर अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है।
पुर्नविचार संबंधी अधिकारः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 137 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह अपने द्वारा दिए गए निर्णय पर पुर्नविचार कर सकता है तथा अपने पुराने निर्णय को पलट भी सकता है ।
जैसे- सुप्रीम कोर्ट ने बेरूवादी वाद 1960 में यह निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है, कलांतर में केशवानंद भारती वाद 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने निर्णय को पलटते हुए यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है।
सलाहकारी अधिकारः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 143 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह कानूनी मसलों पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकता है। सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए बाध्य है लेकिन राष्ट्रपति सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है ।
Writ जारी करने का अधिकारः-
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद- 32 के तहत् 5 प्रकार का रिट (याचिका) जारी कर सकता है।
(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(2) परमादेश
(3) अधिकार पृच्छा लेख
(4) प्रतिशेध लेख
(5) उत्प्रेशन
  • सुप्रीम कोर्ट भारत के आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक होता है।
  • देश के सर्वोच्च न्यायलय के द्वारा घोषित विधि देश की सभी न्यायलयों पर बाध्यकारी है । (अनुच्छेद-141)
  • सुप्रीम कोर्ट के प्रथम मुख्य न्यायधिश “हीरालाल जेकानियाँ" बनें हैं।
  • सबसे अधिक वर्षो तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश के पद पर यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (1978-1985) रहें हैं ।
  • सबसे कम वर्षो तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश के पद पर कमल नारायण सिंह (17 दिन ) रहें हैं।

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक Comptroller and Auditor Genral of India

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 148 से 151 CAG के विषय में जानकारी प्रदान करता है। CAG भारत सरकार के सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है।
  • अनुच्छेद- 148 कहता है कि भारत का एक नियंत्रक महालेखा परीक्षक होगा जिसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष का होता है । जो भी पहले पूरा हो उस अनुसार ये अपना पद छोड़ते हैं।
  • इनका वेतन 2,50,000 /- रुपया होता है।
  • CAG अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है।
  • CAG को उसी तरीका से पद से हटाया जाता है जैसे कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिशों को हटाया जाता है। अर्थात संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से पद से हटाया जाता है।
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम नियंत्रक महालेखा परीक्षक "नरहरी राव" बनें हैं। तो वहीं वर्त्तमान में भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू हैं ।
  • CAG के कार्य अधिकार शक्ति के विषय में जानकारी हमें अनुच्छेद- 149 से प्राप्त होता है।
  • संघ सरकार और राज्य सरकार के लेखाओं के प्रारूप के विषय में जानकारी हमें अनुच्छेद- 150 प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद- 151 यह जानकारी देता है कि CAG अपना रिपोर्ट किसे देता है ।
    • केंद्र सरकार के संदर्भ में CAG अपना रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देता है । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता है । संसद इस रिपोर्ट की जाँच लोक लेखा समिति से करवाता है । लोक लेखा समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा के अध्यक्ष को सौंपती है ।
    • राज्य के संदर्भ में CAG अपना रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है। राज्यपाल इस रिपोर्ट को राज्य विधानमंडल के पटल पर रखवाता है। राज्य का विधानमंडल इस रिपोर्ट की जाँच राज्य की लोक लेखा समिति से करवाता है । यह समिति अपना रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को सौंपती है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 09:42:24 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | मौलिक कर्तव्य https://m.jaankarirakho.com/933 https://m.jaankarirakho.com/933 General Competition | Indian Polity | मौलिक कर्तव्य
  • विश्व के अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में मौलिक कर्तव्य संबंधी प्रावधान वहाँ के संविधान में नहीं है। जैसे- अमेरिका के संविधान में मौलिक कर्तव्य नहीं है। वही साम्यवादी विचार धाराओं वाले देशों के संविधान में मौलिक कर्तव्य शामिल है। जैसे- रूस के संविधान में ।
  • भारत के मूल संविधान में मौलिक कर्तव्य नहीं था । भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्य संबंधी प्रावधान रूस के संविधान से लिए गए है ।
  • 1975 ई0 में इन्दिरा गाँधी की सरकार ने जब आपातकाल लागू किया तो लोगों के कुछ कर्तव्य होना चाहिए इसको लेकर सरदार स्वर्ण सिंह की अध्यक्षता में एक 12 सदस्यीय कमिटि का गठन किया जिसे स्वर्ण सिंह कमिटि कहा गया। इस कमिटि ने 8 मौलिक कर्तव्य शामिल करने की सिफारिस किया ।
  • इन्दिरा गाँधी की सरकार ने मौलिक कर्तव्य को शामिल करने के लिए 42वाँ संविधान संसोधन 1976 में किया। इसके तहत भारतीय संविधान में 10 मौलिक कर्तव्य शामिल किये गयें। बाद के दिनों में 86वाँ संविधान संसोधन 2002 के तहत 11वाँ मौलिक कर्तव्य को शामिल किया ।

भारतीय संविधान के अंतर्गत कुल 11 मौलिक कर्तव्य निम् है।

  1. संविधान का पालन करें तथा उसके आर्दशों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
  2. स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आर्दशों को हृदय में संजोए रखें।
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।
  4. राष्ट्र की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और मातृत्व की भावना का विकास करें जो धर्म, भाषा और क्षेत्र या वर्ग पर - आधारित सभी भेदभाव से परे हो तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्री समान के विरूद्ध हो ।
  6. समाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करें ।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण को जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव है, रक्षा और उसका संवर्द्धन करें तथा. प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञान तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें तथा हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्ति और सामुहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सत्त प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए उपलब्धि की नई उँचाइयों को छू सके। 
  11. 6 से 14 वर्ष के बच्चे के माता पिता और प्रतिपाल्य के संरक्षक, उन्हें शिक्षा का अवसर प्रदान करें ।
  • मौलिक कर्तव्य को लागू करने के लिए 1999 ई0 में 'वर्मा' समिति का गठन किया।
  • 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के अभिवादन को अनिवार्य बना दिया, लेकिन 2018 ई0 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने निर्णय को बदलते हुए यह कहा कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान का अभिवादन अनिवार्य नहीं है।
  • मौलिक कर्तव्य की चर्चा भारतीय संविधान के भाग - 4 ( क ) के अंतर्गत अनुच्छेद 51 (क) में है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 09:29:37 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | राज्य के नीति निर्देशक https://m.jaankarirakho.com/932 https://m.jaankarirakho.com/932 General Competition | Indian Polity | राज्य के नीति निर्देशक
इसकी चर्चा भारतीय संविधान के भाग - 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 36-51 के बीच की गई है। यह प्रावधान भारतीय संविधान में आयरलैंड से लिए गए हैं। यह ऐसे अधिकार हैं जिसे न्यायलय अपने आदेश से लागू नहीं कर सकता है।
कुछ विद्वानों की रायः
(1) ग्रेनविल ऑस्टिन:- इन्होनें DPSP को संविधान का आत्मा कहा है।
(2) L.M सिंधवी :- इसने DPSP को जीवन देने वाली व्यवस्था कहा है।
(3) M.C चांग्ला:- इन्होनें कहा है कि अगर DPSP . को भारत में लागू कर दिया जाता है तो भारत स्वर्ग के समान हो जायेगा ।
(4) K.T शाहः- इसने DPSP को चेक के समान बताया है जिसे बैंक अपने हियाब से अदा करता है ।
(5) आइबर जेनिंग्स:- इन्होनें कहा कि DPSP कर्मकांडी अकांक्षा है ।
(6) T.T कृष्णामाचारी :- इन्होने कहा है कि यह भावनाओं का स्थायी कुड़ाघर है ।
(7) K. C व्यीहर:- इन्होनें DPSP को कहा है कि यह लक्ष्य एवं आकांक्षों का घोषणापत्र है।
DPSP को लेकर प्रमुख संविधान संसोधनः
(1 ) 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् 3 नए राज्य के नीति निर्देशक तत्व जोड़े गये हैं ।
      (1) 39 (क)      (2) 43 (क)     (3) 48 (क) |
(2) 97वाँ संविधान संसोधन 2011 के तहत् 1 नए राज्य के नीति निर्देशक तत्व जोड़े गये हैं।
      (1) 48 (ख)
(3) 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत अनुच्छेद- 38 के भाषा में परिवर्तन किया गया।
(4) 86वाँ संविधान संसोधन 2002 के तहत अनुच्छेद- 45 में परिवर्तन किया गया है।
राज्य के नीति निर्देशक को तीन श्रेणीयों में बाँटा गया है-
 (1) गाँधीवादी तत्वः- इसके अंतर्गत अनुच्छेद 40, 43, 43 (ख), 46, 47, 48 आते हैं।
(2) समाजवादी तत्वः- इसके अंतर्गत अनुच्छेद 38, 39, 39 (क), 41, 42, 43, 43 (क), 47 आते हैं।
(3) उदारवादी तत्वः- इसके अंतर्गत अनुच्छेद 44, 45, 48, 48 (क), 49, 50, 51 आते हैं।
♦ अनुच्छेद- 43, 47 गाँधीवादी और समाजवादी दोनों के अंतर्गत आते हैं
♦ अनुच्छेद- 48 गाँधीवादी और उदारवादी दोनों के अंतर्गत आते हैं ।
अनुच्छेद-36
इसके अंतर्गत राज्य के नीति निर्देशक तत्व के संदर्भ में राज्य को परिभाषित अनुच्छेद-36 में किया गया है । 
अनुच्छेद-37
यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्व न्यायलय में वाद योग्य नहीं होगा।
अनुच्छेद-38
राज्य ऐसी विधि व्यवस्था बनाएगी ताकि लोक कल्याण में अभिवृद्धि हो सकें ।
अनुच्छेद-39
राज्य इस प्रकार से नीति का निर्धारन करेगा ताकि-
(1) स्त्री और पुरूष दोनों को काम प्राप्त करने का समान वेतन प्राप्त हो सकें ।
(2) स्त्री और पुरूष दोनों को समान काम के लिए समान वेतन प्राप्त हो सकें ।
(3) धनों का समान वितरण हो सकें ।
अनुच्छेद-39 (क)
गरीब लोगों को न्याय मिल सकें। इस हेतू राज्य निःशुल्क कानूनी सहायता लोगों को उपलब्ध करवा सकें ।
अनुच्छेद- 40
ग्राम पंचायत के गठन संबंधी प्रावधान
अनुच्छेद- 41
कुछ विशेष परिस्थिति जैसे- बुढ़ापा, बेरोजगारी में राज्य लोगों को काम उपलब्ध करवा सकें ।
अनुच्छेद- 42
प्रसूति सहायता ।
अनुच्छेद-43
मजदूरों को निर्वाह योग्य मजदूरी और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की बात की गई है।
अनुच्छेद- 43 (क)
राज्य विधान बनाकर उद्योगों के प्रबंधन में मजदूरों की भागीदारी सुनिश्चित करेगा ।
अनुच्छेद- 43 (ख)
सहकारी समिति को प्रोत्साहन दिया जायेगा ।
अनुच्छेद-44
इसमें समान सिविल संहिता का प्रावधान है। भारत का एकमात्र राज्य गोवा है जहाँ यह अनुच्छेद लागू है। समान सिविल संहिता का अर्थ सभी धर्मो के लिए एक समान कानून होना है ।
अनुच्छेद- 45
6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का शिशुप्त देख-रेख और उनको शिक्षा उपलब्ध करवाया जाना ।
अनुच्छेद- 46
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति या अन्य दुर्बल वर्ग के लोगों जो शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं उन्हें 'अर्थ' संबंधी सहयता उपलब्ध करवाया जाना और राज्य सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा ।
अनुच्छेद- 47
राज्य लोगों के जीवन स्तर और पोषाहार स्तर में वृद्धि करने का प्रयास करेगा तथा नशीला / मादक पेय पदार्थ पर प्रतिबंध लगा सकेगा ।
नोट- बिहार में शराबबंदी अनुच्छेद- द- 47 के तहत् ही हुई है।
अनुच्छेद- 48
कृषि और पशुपालन को उन्नत बनाने की बात कहीं गई है।
नोट— भारत के भीतर किसी भी राज्य में 'गौ' हत्या पर प्रतिबंध अनुच्छेद- 48 के तहत् ही लगाया जाता है।
अनुच्छेद - 48 (क)
प्राकृतिक पर्यावरण, वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण का प्रयास राज्य करेगा ।
नोट- इस अनुच्छेद के प्रावधानों को लागू करने के लिए ही 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर, 1992 में प्रोजेक्ट एलीफेंट, 2002 में जैव विविधता अधिनियम लाया गया।
अनुच्छेद- 49
राष्ट्रीय स्मारकों को संरक्षण देने की बात कहीं गई है।
अनुच्छेद-50
कार्यपालिका का न्यायपालिका से पृथ्थकरण किया जायेगा ।
अनुच्छेद-51
अंतर्राष्ट्रीय शांति और संवृद्धि को बढ़ावा देने का प्रयास करेगा।
नोट- अनुच्छेद - 51 के तहत् ही भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता, भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला. समझौता तथा गुटनिरपेक्ष जैसी आंदोलन की स्थापना हुई है।
भाग - 4 के बाहर के नीति निर्देशक तत्वः
अनुच्छेद-335
यह अनुच्छेद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को भारत और राज्य सरकार के अधिन नियुक्ति में दावा पेश करने का अधिकार देता है । 
अनुच्छेद- 350 (क)
प्राथमिक स्तर पर बच्चों को मातृ-भाषा में शिक्षा उपलब्ध करवाने का राज्य प्रयास करेगा ।
अनुच्छेद-351
हिन्दी भाषा के उन्नति हेतू दिशा-निर्देश दिया गया है।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 09:27:06 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | मूल अधिकार https://m.jaankarirakho.com/931 https://m.jaankarirakho.com/931 General Competition | Indian Polity | मूल अधिकार
मैलिक अधिकार के विषय में जानकारी में भारतीय संविधान के भाग-3 के अंतर्गत अनुच्छेद 12-35 प्राप्त कराता है ।
विशेषता:
(1) मौलिक अधिकार की सुरक्षा एवं गारंटी में भारत का उच्चतम न्यायलय प्रदान करता है ।
(2) मौलिक अधिकार के हनन / उल्लंघन के स्थिति में न्यायपालिका इसे बहाल करवाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि मौलिक अधिकार न्यायोचित या वाद योग्य है ।
(3) मौलिक अधिकार असीमित है।
(4) मौलिक अधिकार में संसोधन संसद कर सकती है।
(5) मौलिक अधिकार देश के भीतर राजनैतिक लोकतंत्र को स्थापित करता है ।
मैग्नाकार्टाः-
सर्वप्रथम ब्रिटेन का राजा जॉन किंग ने 1215 ई. में सामंतों के दवाब में आकर ब्रिटेन के आम नागरिकों के लिए जो अधिकारों की घोषणा की है, उसे ही मैग्नाकार्टा कहा गया। भारतीय संविधान का भाग-3 हमें मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिस कारण भारतीय संविधान के भाग-3 को मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
  • कांग्रेस ने अपने 1931 के करांची अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार से मौलिक अधिकार की माँग की जिसका प्रारूप · पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था ।
  • मूल संविधान में मौलिक अधिकार की संख्या 7 थी। जिसमें संपति का अधिकार भी मौलिक अधिकार में आता था लेकिन भारतीय संसद ने 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् संपति के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी से हटा दिया तथा अनुच्छेद- 31 को निरस्त कर दिया । जिस कारण वर्तमान समय में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है जो निम्न है-
    (1) समता / समानता का अधिकार (14-18)
    (2) स्वतंत्रता का अधिकार (19-22)
    (3) स्वषण के विरूद्ध अधिकार (23-24) 
    (4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (25-28)
    (5) शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार (29-30)
    (6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (32) 
नोट- वर्तमान समय में संपति के अधिकार को 300 (क) में रखा गया है जिसके तहत् संपति का अधिकार एक विधिक/ कानूनी अधिकार है।
अनुच्छेद-12
इस अनुच्छेद के अंतर्गत मौलिक अधिकार के संदर्भ में राज्य को परिभाषित किया गया है। राज्य के अंतर्गत संसद, विधानमंडल तथा संसद और विधानमंडल द्वारा स्थापित संस्था भी आता है ।
अनुच्छेद-13
यह अनुच्छेद कहता है कि संविधान लागू होने से पहले की कोई विधि या संविधान लागू होने के बाद बनाई गई कोई विधि मौलिक अधिकार को सीमित या समाप्त करती है तो वह विधि मान्य नहीं होगा ।
न्यायिक पुर्नाविलोकन (Judicial Review):-
यह मूलतः अमेरिका संविधान की विशेषता है। इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 13, 32, और 226 में की गई है। भारत में शक्ति के पृथ्ककरण का सिद्धांत को लागू किया गया है।
कार्यपालिका द्वारा जारी आदेश, विधायिका द्वारा निर्मित विधि संविधान के अनुरूप है या नहीं इसकी जाँच करने का अधिकार न्यायपालिका को होता है, इसे ही न्यायिक पुर्नाविलोकन कहते हैं। यह प्रावधान इसलिए किया गया है क्योंकि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च है तथा कार्यपालिका और विधायिका मनमानी ना कर सकें ।
♦ समता का अधिकारः
अनुच्छेद- 14
विधि के समक्ष समानता का अधिकार
अनुच्छेद- 15
सामाजिक (जाति, धर्म, लिंग, स्थान) समानता का अधिकार
अनुच्छेद- 16
लोक नियोजन में समानता
अनुच्छेद- 17
अस्पृश्यता का अंत (छुआ-छूत)
अनुच्छेद- 18
उपाधि का अंत |

इसमें तीन क्षेत्र (सेना क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र तथा पुलिस क्षेत्र) में छुट दिया गया है।

विधि के समक्ष समानता:-
इसका अर्थ होता है कि विधि के समक्ष सभी लोग समान है चाहें वो अमीर हो या गरीब । अनुच्छेद-14 में विधि का शासन तथा विधियों के समान संरक्षण की चर्चा है। विधि के समक्ष समानता ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है ।
भारत में अधिकारः
(1) मौलिक अधिकारः-
भारतीय संविधान के भाग-3 के अंतर्गत अनुच्छेद 12-35 में जिस अधिकार की चर्चा है वो सभी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आते है।
(2) संवैधानिक अधिकार:-
भारतीय संविधान के भाग-3 तथा अनुच्छेद 12-35 के अलावे जो अनुच्छेद हमें अधिकार देते हैं संवैधानिक अधिकार कहलाता है।
जैसे- अनुच्छेद-301 (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अधिकार ) 
(3) कानूनी या विधिक अधिकार:-
वैसे अधिकार जिसकी चर्चा संविधान में नहीं है लेकिन भारत की संसद या विधान मंडल कानून बनाकर प्रदान करती है कानूनी अधिकार कहलाता है।
जैसे - मातृत्व अवकास का अधिकार
(4) मानव अधिकार:- 
वे अधिकार जो व्यक्ति को मानव होने के नाते प्राप्त होता है मानवाधिकार कहलाता है।
(5) सुचना का अधिकारः-
संसद ने 2005 ई. में कानून बनाकर सुचना का अधिकार अधिनियम 2005 हमें यह अधिकार प्रदान किया जिस कारण हम इसे कानूनी अधिकार मान सकते हैं।
(6) मतदान का अधिकार:- 
मतदान के अधिकार की चर्चा स्पष्टता पूर्वक भारतीय जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत् धारा 62 में किया गया है और यह अधिनियम भारतीय संसद ने बनाया है। जिस कारण इसे कानूनी या विधिक की श्रेणी में रखते है ।
(7) संपत्ति का अधिकारः-
 मूल संविधान में यह एक मौलिक अधिकार था लेकिन संसद ने 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् अनुच्छेद- 300 (क) में इसे शामिल किया ।
♦ अपवाद: SC, ST और OBC
मूल संविधान में SC और ST को आरक्षण का प्रावधान किया गया लेकिन OBC को आरक्षण का प्रावधान नहीं था। OBC वर्ग के लोगों का आरक्षण V. P मंडल आयोग के सिफारिस पर प्रधामंत्री विश्वनाथ सिंह के द्वारा 1 प्रदान किया गया । OBC वर्ग के लोगों को 27% तक आरक्षण प्रदान किया गया। प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का - गठन 1953 ई. में काका कालेकर की अध्यक्षता में हुआ, वहीं द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन 1979 ई. में V. P मंडल की अध्यक्षता में हुआ ।
♦ क्रिमीलेयर:
इन्दिरा सहनी केस 1992 के द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने क्रिमीलेयर का सिद्धांत दिया। पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत वैसे लोग जिनका वर्तमान में सलाना आय 8 लाख रूपया या उससे अधिक हो वे क्रिमीलेयर श्रेणी में आते हैं।
ओ.बी.सी. वर्ग के वैसे लोग जो क्रिमीलेयर की श्रेणी में आते हैं उन्हें 27% आरक्षण का लाभ प्राप्त नहीं होता है।
स्वतंत्रता का अधिकार (19-22) :
अनुच्छेद-19
वर्तमान में यह अनुच्छेद 6 प्रकार के स्वतंत्रता की बात करता है ।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ( बोलने की, पुतला जलाने की, झण्डा फहराने की सुचना का अधिकार)
  • सभा करने का अधिकार (हथियार वर्जित)
  • चारों ओर भ्रमण करने का अधिकार (भारत में)
  • भारत में कहीं भी बस जाने की स्वतंत्रता
  • संपत्ति का अधिकार (अर्जित)
  • व्यवसाय करने का अधिकार
नोट- संपत्ति का अधिकार अब कानूनी अधिकार हो गया जिसे सरकार छीन सकती है।
अनुच्छेद- 20
दोष सिद्धि से संरक्षण
★ यह अनुच्छेद दोषी को तीन प्रकार का संरक्षण प्रदान करता है ।
(1) अपराधी जिय समय अपराध करता है उसे उसी समय के कानून के हिसाब से सजा दिया जायेगा ।
(2) अपराधी को एक गलती की एक ही सजा दिया जायेगा ।
(3) अपराधी स्वयं के खिलाफ गवाहीं नहीं दे सकता है।
अनुच्छेद-21
प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता
★ यह अनुच्छेद हमें गरिमापूर्ण और स्वतंत्र जीवन जीने का अधिकार व्रदान करता है। इस अनुच्छेद को व्यापक रूप मेनका गाँधी वाद 1978 के द्वारा प्रदान किया गया। इस अनुच्छेद के तहत् निम्न अधिकारों को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है। 
प्राण की स्वतंत्रता
(1) हम आत्महत्या नहीं कर सकते हैं।
(2) हमारा प्राण कोई नहीं ले सकता है ।
(3) हम पर्यावरण में प्रदूषण नहीं फैला सकते हैं।
(4) अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना
दैहिक स्वतंत्रता
(1) हम अकेला रह सकते हैं। (एकांतवास)
(2) विदेश जाने की स्वतंत्रता
(3) निजता का अधिकार
(4) व्यभिचार (Adualty) ( शादी होने के बाद भी हम किसी से संबंध रख सकते हैं।- लड़के-लड़कियाँ के स्वेच्छा पूर्वक)
नोट - (1) पिरथीनाथ बनाम भारत संघवाद 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने आत्म हत्या के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया ।
(2) ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य वाद 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने निर्णय को पलटते हुए यह कहा कि आत्म हत्या करना मौलिक अधिकार नहीं है। लोगों को अपने जीवन जीने पर जोर देनी चाहिए ।
आत्महत्याः
भारतीय दंड संहिता धारा 309 के तहत् आत्म हत्या करना दण्डनीय अपराध है ।
अनुच्छेद - 21 (क)
यह मूल संविधान में नहीं था । इसे 86वाँ संविधान संसोधन 2002 के तहत् शामिल किया गया तथा यह कहा गया कि राज्य का यह कर्तव्य होगा कि 6-14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाया जायें अर्थात, हम यह कह सकते हैं कि अनुच्छेद - 21 (क) के तहत् शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है।
अनुच्छेद- 22 
गिरफ्तारी के विरूद्ध संरक्षण
यह अनुच्छेद गिरफ्तार होने वाले व्यक्ति को तीन प्रकार का संरक्षण देता है-
(1) गिरफ्तारी का कारण जान सकें ।
(2) गिरफ्तार होने के 24 घंटा के भीतर जज के समक्ष ले जाया जायें |
(3) अपना मनपसंद वकील रख सकता है।
नोट- अनुच्छेद- 22 दो प्रकार के लागों को प्राप्त नहीं होता है- 
(1) शत्रु देश के विदेशी नागरिक को
(2) निवारक निरोध कानून के तहत् जिसे गिरफ्तार किया जाता है।
निवारक निरोध क़ानूनः-
वैसा कानून जिसके तहत्- अपराध करने वाले व्यक्ति को अपराध करने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाता है ताकि, अपराध ना हो । यह कानून भारतीय संविधान के अंतर्गत समवर्ती सूची में शामिल है जिस कारण इस पर नियम केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार दोनों बना सकती है। इस कानून को रॉलेट एक्ट की संज्ञा दी जाती है तथा इस कानून को भारतीय संविधान की आवश्यक बुराई भी कहा जाता है । इस कानून के तहत् किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर अधिकतम 3 माह तक नज़रबंद किया जा सकता है। इसमें अधिकतम समय तक नज़रबंद रखने हुतू सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है। अगर सलाहकार परिषद सिफारिस करता है तब ही 3 माह से अधिक समय तक नज़रबंद किया जा सकता है । 
मौलिक अधिकार और राष्ट्रीय आपातः-
अनुच्छेद- 352 के तहत् जब राष्ट्रीय आपात लागू होता है तो हमारे मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं। लेकिन राष्ट्रीय शासन और वित्तीय आपात लागू होने से मालिक अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
यदि युद्ध और बाह्य आक्रमण के आधार पर अनुच्छेद- 352 लागू होता है तो अनुच्छेद- 358 स्वतः लागू हो जाते हैं तथा हमारा मौलिक अधिकार अनुच्छेद- 19 निलंबित हो जाते हैं। अनुच्छेद- 19 के अलावे अन्य मौलिक अधिकार को निलंबित करने की घोषणा भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद- 359 के तहत् करते हैं।
  • 44वाँ संविधान संसोधन 1978 में यह प्रावधान किया गया कि अपातकाल के दौरान में अनुच्छेद- 20 और 21 निलंबित नहीं होंगे। अर्थात ये दोनों ऐसे मौलिक अधिकार हैं जो कभी भी निलंबित नहीं होते हैं।
शोषण के विरूद्ध अधिकार ( 23-24 )
अनुच्छेद- 23
मानव के र्दुव्यवहार और बलातश्रम पर प्रतिबंध लगाता है।
नोट- अनुच्छेद- 23 के प्रावधानों को प्रभावी तरीका से लागू करने के लिए ही बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम 1976 में लाया गया ।
अनुच्छेद- 24
14 साल से कम उम्र के बच्चों को कारखाना या किसी भी खतरनाक काम में शामिल नहीं किया जायें।
बचपन बचाओ आंदोलन:-
यह आंदोलन कैलाश सत्यर्थी के द्वारा चलाया गया। इस आंदोलन के द्वारा कैलाश सत्यर्थी ने कारखाना में काम कर रहें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मुक्त कराकर निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने का काम किया।
इस कार्य के लिए ही कैलाश सत्यर्थी को 2014 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( 25-28)
अनुच्छेद- 25
यह अनुच्छेद हमें अपने धर्म को स्वतंत्रता पूर्वक मानने, उसके अनुरूप आचरण करने तथा अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार देता है । इस अनुच्छेद के प्रावधानों के कारण ही सिख धर्म के लोग कृपान रखते हैं ।
♦ बौद्ध, जैन तथा सीख हिन्दु धर्म का अंग है ।
अनुच्छेद- 26
धार्मिक कार्यो का प्रबंधन
अनुच्छेद- 27
किसी भी के वृद्धि या पोषण में जो व्यय किये जाएगें उसपर "कर" नहीं लगेगा।
अनुच्छेद- 28
सरकारी धन से चल रहें संस्था में धार्मिक शिक्षा नहीं दिया जाएगा ।
शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार (29 - 30)
अनुच्छेद- 29
यह अनुच्छेद अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को बचाकर रख सकता है ।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यकों को भी अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति बचाकर रखने का अधिकार है।
नोट- भारत में अल्पसंख्यक होने का आधार धार्मिक तथा भाषायी है।
  • भारत में हिंदु बहुसंख्यक के अंतर्गत आते हैं। इसके अलावे अन्य सभी समुदाय जैसे- मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, इत्यादि अल्पसंख्यक समुदाय में आते हैं ।
अनुच्छेद- 30 
यह अनुच्छेद् अल्पसंख्यक समुदाय के लोग को यह अधिकार देता है कि वह अपना शैक्षणिक संस्थान खोलकर वहाँ शासन-प्रशासन भी चला सकता है I
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (32)
अनुच्छेद- 32
अनुच्छेद- 32 यह कहता है कि अगर हमारे मौलिक अधिकार का हनन होता है तो हम उसे बहाल करवाने के लिए सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। इसे ही संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहा जाता है। 
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार संविधान की आत्मा एवं हृदय अनुच्छेद- 32 को माना जाता है।
  • मौलिक अधिकार हनन होने की स्थिति में अगर हम अनुच्छेद- 32 के सुप्रीम कोर्ट जाते है, तो वही अनुच्छेद- 226 के तहत्ं हाई कोर्ट जा सकते हैं। इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट याचिका (Writ) जारी करता है । 
याचिका (Writ) 5 प्रकार का होता है जो निम्न है -
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण 2. परमादेश 3. अधिकार पृच्छा लेख 4. प्रतिशेधं लेख 5. उत्प्रेषण
सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट के रिट जारी करने में अंतर-
सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट
1. सुप्रीम कोर्ट पूरे भारत वर्ष के लिए रिट जारी करता है। 1. हाई कोर्ट संबंधित राज्य के लिए रिट जारी करता है । जैसे- पटना हाई कोर्ट बिहार के लिए, इलाहाबाद हाई कोर्ट उत्तरप्रदेश के लिए |
2. सिर्फ मौलिक अधिकार के हनन होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट रिट जारी करता है । 2. हाई कोर्ट मौलिक अधिकार का हनन, कानूनी अधिकार का हनन, संवैधानिक अधिकार का हनन इत्यादि में रिट जारी करता है ।
3. सुप्रीम कोर्ट के विरूद्ध कहीं भी अपील नहीं की जा सकती है।
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण ( हवियस कर्पस):
इसका शाब्दिक अर्थ 'सशरीर प्रस्तुत करना होता है। इस रिट के माध्यम से न्यायलय गिरफ्तार हुए व्यक्ति को 24 घंटा के भीतर न्यायलय के समक्ष सशरीर प्रस्तुत करने का आदेश देता है। इस रिट के माध्यम से अनुच्छेद - 21 और 22 (मौलिक अधिकार) की रक्षा होती है ।
2. परमादेश (मेंडामस):
इसका शाब्दिक अर्थ 'हम आदेश देते हैं' होता है। यदि लोक महत्व के पद पर बैठे हुए पदाधिकारी अपने कर्तव्य का निर्वहन सही ढंग से नहीं करता है तब यह रिट / याचिका जारी किया जाता है। राष्ट्रपति, राज्यपाल और प्राइवेट व्यक्ति को लेकर यह स्टि जारी नहीं किया जाता है ।
3. अधिकार पृच्छा - लेख (को-वेरेन्टो):
इसका शाब्दिक अर्थ 'किस अधिकार से' होता है। इस रिट के माध्यम से किसी लोक महत्व के पद पर बैठे पदाधिकारी के पद की वैधानिकता की जाँच की जाती है। यह रिट प्रसाद-प्रयत्न के पद को लेकर जारी नहीं होता है । यह रिट राष्ट्रपति को लेकर जारी हो सकता है लेकिन राज्यपाल को लेकर जारी नहीं हो सकता है, क्योंकि राज्यपाल के प्रसाद - प्रयत्न पद हैं।
4. प्रतिशेध (प्रोहिविशन):
इसका शाब्दिक अर्थ 'रोकना' होता है। यह एक न्यायिक रिट है। यह रिट उपर के न्यायलय नीचे के न्यायलय को लेकर तब जारी करता है जब सुनवाई (निर्णय) नहीं हुआ हो ।
5. उत्प्रेषण (सरटियोरी):
इसका शाब्दिक अर्थ 'प्रमाणित करना होता है। यह भी एक प्रकार का न्यायिक रिट है । यह रिट उपर के न्यायलय नीचे के न्यायलय को लेकर तब जारी करता है जब निर्णय हो गया हो ।
नोट- पोस्टमार्टम की संज्ञा उत्प्रेशन रिंट को दिया जाता है ।
नोट- न्यायिक रिट हमेशा उपर के न्यायलय नीचे के न्यायलय को लेकर जारी करता है
अनुच्छेद- 33
खुफिया बल, पुलिस बल, सुरक्षा एजेंसी, सशस्त्र पुलिस बल, इत्यादि के बीच अनुशासन बनायें रखनें को लेकर इन लोगों के मौलिक अधिकारं पर युक्ति-युक्त प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
अनुच्छेद- 34
अगर देश के किसी क्षेत्र में मार्सल लॉ (सेना का कानून ) लागू हो और उस क्षेत्र के लिए सेना ने कोई आदेश दण्डादेश पारित किया हो तो संसद को स्वीकृति देनी होती है ।
अनुच्छेद- 35
यह अनुच्छेद संसद को यह अधिकार देता है कि संसद मौलिक अधिकार को अधिक से अधिक प्रभावी बना सकता है।
मौलिक अधिकार को लेकर न्यायपालिका और विधायिका के बीच होने वाले विवाद -
(1) सुप्रीम कोर्ट ने गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्यवाद 1967 के माध्यम से यह कहा है कि संसद मौलिक अधिकार में संसोधन नहीं कर सकती है।
(2) भारतीय संसद ने 24वाँ संविधान संसोधन 1971 के द्वारा यह प्रावधान किया कि मौलिक अधिकार में संसद संसोधन कर सकती है l
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 09:14:33 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | नागरिकता https://m.jaankarirakho.com/930 https://m.jaankarirakho.com/930 General Competition | Indian Polity | नागरिकता
  • नागरिकता के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग- 2 प्रदान करता है। नागरिकता की चर्चा अनुच्छेद 5-11 में है । भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है, जो ब्रिटेन से लिया गया है। 
नोट- अमेरिका और स्वीटजरलैंड में दोहरी नागरिकता का प्रवाधान है।
♦ किसी भी देश में दो प्रकार की नागरिकता होती है ।
(क) देशी    (ख) विदेशी
  • भारत के भीतर भारत के देशी नागरिकों को समस्त मौलिक अधिकार ( 12-35) प्राप्त होता है वही विदेशी नागरिकों को अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 और 30 प्राप्त नहीं होता है। इसके अलावा विदेशी नागरिकों को समस्त मौलिक अधिकार प्राप्त होता है । अर्थात हम यह कह सकते हैं कि अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 और 30 सिर्फ भारत के नागरिकों को प्राप्त होता है ।
  • विदेशी नागरिक दो प्रकार के होते हैं-
(1) मित्र देश का विदेशी नागरिकः-
वैसा देश जिसके साथ भारत का युद्ध नहीं हुआ हो मित्र देश का विदेशी नागरिक कहलाता है । 
जैसे:- अमेरिका, रूस, फ्रांस, इत्यादि......
(2) शत्रु देश का विदेशी नागरिकः-
वैसे देश जिसके साथ भारत का युद्ध हुआ हो शत्रु देश के विदेशी नागरिक कहलाता है । 
जैसे- चीन, पाकिस्तान, इत्यादि......
नोट- अनुच्छेद-22 मित्र देश के विदेशी नागरिक को प्राप्त होता है वही शत्रु देश के विदेशी नागरिक को प्राप्त नहीं होता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-11 यह कहता है कि भारत में नागरिकता तथा समाप्त करने का शक्ति भारत के संसद को है । भारतीस संसद इय अधिकार का प्रयोग करते हुए नागरिकता को लेकर कानून 1955 ई. में बनाया, जिसे नागरिकता अधिनियम 1955 कहते हैं। इस अधिनियम में इस बात का जिक्र है कि भारत की नागरिकता 5 प्रकार से प्रप्त होती है तथा 3 प्रकार से समाप्त की जाती है। जो निम्न है-
♦ नागरिकता प्राप्त करने की 5 शर्तें:
1. जन्म के आधार पर 2. वंश के आधार पर 3. देशीकरण 4. पंजीकरण 5. भुमि - विस्तार
♦ नागरिकता रद्य करने की तीन शर्ते:
1. बर्खास्त किये जाने पर
2. वंचित किये जाने पर
3. परित्याग द्वारा
अनुच्छेद-5
संविधान लागू होने के समय नागरिकता प्राप्त करने की शर्तें की जानकारी प्रदान करता है।
1. माता या पिता में से कोई भी एक भारतीय हो या फिर दोनों भारतीय हो ।
2. संविधान लागू होने के 5 वर्ष पूर्व से भारत में रह रहा हो ।
अनुच्छेद-6
आजादी के बाद सीधे तौर पर पाकिस्तान से आने वाले नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाती है।
अनुच्छेद-7
भारत से पाकिस्तान गयें तथा पाकिस्तान से पूनः भारत लौटे नागरिकों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाती है ।
अनुच्छेद-8
भारतीय मूल के नागरिकों के नागरिकता अधिकार के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
Person of Indian Origin (भारतीय मूल का व्यक्ति ):-
वैसे नागरिक जो मूलतः भारतीय मूल के रहने वाले थें लेकिन किसी कारणवश दूसरे देशों की नागरिकता ग्रहण कर लिया हो, भारतीय मूल का व्यक्ति कहलाता है।
NRI (Non Residential Indian):-
वैसे नागरिक जिनके पास भारत की नागरिकता, भारतीय पासपोर्ट और वीजा हो परंतु किसी सिलसिले में भारत से बाहर रहता हो NRI कहलाता है । इनकों वही अधिकार प्राप्त होता है जो भारतीय नागरिकों के पास होता है ।
जैसे- सरकारी नौकरी करने का अधिकार, मतदान करने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, इत्यादि......
अनुच्छेद-9
अगर कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी दूसरे देश का नागरिकता ग्रहण कर लेता है तो स्वतः उसका भारत से नागरिकता समाप्त हो जाती है।
अनुच्छेद-10
संसद को यह अधिकार है कि नागरिकों की अधिकारों की बारंबारता को बनाए रख सकें ।
नागरिकता प्राप्त करने की 5 शर्ते :
(1) जन्म के आधार परः-
अगर किसी व्यक्ति का जन्म 26 जनवरी 1950 को या उसके बाद भारत में हुआ हो, तथा उसके माता-पिता में से कोई भी भारतीय हो तो उनके बच्चों को जन्म के आधार पर नागरिकता मिल जाएगी।
2. वंश के आधार परः-
26 जनवरी 1950 के बाद अगर किसी व्यक्ति का जन्म भारत से बाहर हुआ हो, लेकिन उनके माता-पिता में से कोई भी भारतीय हो तो भी उसे भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाएगी ।
3. भूमि विस्तारः-
अगर भारत सरकार किसी क्षेत्र को जीतकर भारत में मिलाता है तो वहाँ का नागरिक भारतीय नागरिक कहलाएगें। अगर भारत सरकार अधिसुचना जारी कर नागरिकता देने की बात कह दी हो तो ।
4. देशीकरण:-
अगर कोई व्यक्ति देशीकरण के तहत् नागरिकता लेना चाहता है तो उसे निम्न शर्तों को पूरा करना होगा-
(1) वह वयस्क हो तथा अच्छे चरित्र का हो।
(2) भारतीय संविधान में वर्णित 22 भाषाओं में किसी एक भाषा का अच्छा जानकार हो ।
(3) भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा वयक्त करता हो ।
(4) वह ऐसे देश का नागरिक हो जहाँ भारतीयों को देशीकरण के द्वारा नागरिकता प्राप्त हो सकें। 
(5) वह अपने देश की नागरिकता त्याग कर दिया हो और इसकी सुचना भारत सरकार को दे दी हो ।
नोट- अगर कोई व्यक्ति उपर्युक्त लिखित किसी भी शर्त को पूरा नहीं करता हो लेकिन उसका योगदान विश्व साहित्य, विश्व शांति, विश्व दर्शन, मानवता, इत्यादि को लेकर हो तो उसे बिना किसी शर्त से भारत की नागरिकता प्रदान की जा सकती है ।
जैसे- मदर टेरेसा को भारत की नागरिकता प्रदान की गई है।
  • एकमात्र भारतीय महिला मदर टेरेसा है जिसें शांति के क्षेत्र में सन् 1979 ई नोबेल पुरस्कार दिया गया है।
5. पंजीकरण:-
कोई भी व्यक्ति लगातार 7 वर्षो तक भारत में रहकर पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकता है। साथ ही साथ अगर कोई भारतीय पुरूष किसी विदेशी से विवाह करता है तो उसके पत्नी को पजीकरण के माध्यम से नागरिकता मिल जाएगी ।
नागरिकता समाप्त होने की 3 शर्तेः
(1) अगर कोई व्यक्ति लगातार 7 वर्षो से भारत से बाहर रह रहा हो ।
(2) अगर किसी ने धोखे से भारत की नागरिकता प्राप्त की हो और यह खबर भारत सरकार को लग गई हो !
 (3) भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा नहीं रखता हो ।
(4) पंजीकरण या देशीकरण के माध्यम से भारत की नागरिकता प्राप्त की हो और नागरिकता प्राप्त होनें के 5 वर्षों के भीतर किसी न्यायलय के द्वारा 2 वर्ष या उससे अधिक की सजाया सुनाया गया हो । 
OCI (Over Citigion of India):-
वैसे नागरिक जो भारत छोड़कर NRI हो गये हैं, उन्हें भारत आने के लिए OCI नागरिकता दिया जाता है ।
अपवाद- (1) सुचाव नहीं लड़ सकते हैं। (2) वोट नहीं दे सकते हैं ।
नोट - (1) पाकिस्तान तथा बंगलादेश के लोग OCI के अंतर्गत नहीं आते हैं।
(2) पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, चीन, भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका इन देशों के लोग POI (Person of Indian Origian) के श्रेणी में नहीं आते हैं ।
(3) जो भारत के मूल नागरिक होते हैं उनकी नागरिकता किसी भी स्थिति में समाप्त नहीं होती है।
(4) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधामंत्री, राज्यपाल, इत्यादि का पद भारत के नागरिक ही प्राप्त कर सकती है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 08:53:08 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संघ और राज्य क्षेत्र https://m.jaankarirakho.com/929 https://m.jaankarirakho.com/929 General Competition | Indian Polity | संघ और राज्य क्षेत्र
संघ और राज्य क्षेत्र के विषय में जानकारी में भारतीय संविधान का भाग-1 तथा अनुच्छेद 1-4 तक प्रदान करता है।
अनुच्छेद-1
इस अनुच्छेद से हमें यह पता चलता है कि इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ है । यह अनुच्छेद दो बात स्पष्ट करता है । (1) भारत का संवैधानिक नाम (2) भारत राज्यों का संघ
नोट- भारत का दो संवैधानिक नाम है।
 (क) इंडिया (ख) भारत 
राज्य निर्माण की प्रक्रिया:-
किसी राज्य का विभाजन कर नये राज्य का निर्माण हेतू विधेयक गृह मंत्रालय के द्वारा तैयार किया जाता है। विधेयक सर्वप्रथम राष्ट्रपति के पास रखा जाता है, राष्ट्रपति इस विधेयक को बिना अनुमति के संबंधित राज्य के विधानमंडल को भेजता है । विधानमंडल को इस विधेयक पर विचार करने हेतू 30 दिनों का समय दिया जाता है, अगर विधानमंडल 30 दिनों में विधेयक को स्वीकार कर लेता है तो ठीक है और अगर विधेयक को विधानमंडल अस्वीकार भी करता है तो भी इससे विधेयक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात, राज्य निर्माण प्रक्रिया में राज्य के विधानमंडल को नगन्य अधिकार प्राप्त होता है। राज्य विधानमंडल से लौटने के बाद पुनः ये विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता हैं तत्पश्चात् इस विधेयक पर राष्ट्रपति अपनी अनुमति देता है। राष्ट्रपति के अनुमति देने के बाद ये विधेयक संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है। जिस सदन में विधेयक रखा जाता है सर्वप्रथम वह सदन विधेयक को पारित करता है उसके बाद विधेयक को दूसरें सदन में रखा जाता है । दूसरा सदन भी इसे साधारण बहुमत से पारित करता है। जब दोनों सदन इस विधेयक को पारित कर देता है तब यह विधेयक पूनः राष्ट्रपति के पास जाता है । राष्ट्रपति जैसे ही विधेयक पर अनुमति देता है वैसे ही नए राज्य का निर्माण हो जाता है।
नोट- राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका संसद के द्वारा निभाया जाता है।
अनुच्छेद-2
इस अनुच्छेद के तहत् भारत की संसद किसी नए राज्य को भारत में मिला सकती है।
अनुच्छेद-3
इस अनुच्छेद के तहत् भारत की संसद किसी राज्य का विभाजन कर नए राज्य का निर्माण कर सकती है तथा किसी राज्य के क्षेत्र, सीमा तथा नाम में परिवर्तन कर सकती है। ये सभी कार्य साधारण बहुमत से भारत की संसद करती है।
जैसे- अनुच्छेद-3 के तहत् ही बिहार का विभाजन कर झारखंड का गठन हुआ, मैसूर का नाम बदलकर कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर तथा लद्याख का निर्माण किया जाना, दादर नगर हवेली तथा दमन और दीव को आपस में मिलाकर एक केंद्रशासित प्रदेश बना दिया जाना ।
देशी रियासतों का एकीकरणः-
आजादी के समय भारत में 542 देशी रियासत थें। जिसमें सबसे बड़ा देशी रियासत हैदराबाद तथा सबसे छोटा देशी रियासत बिलवारी था । देशी रियासत को भारत में मिलाने के उदेश्य से सरदार पटेल के नेतृत्व में देशी रियासत मंत्रालय का गठन किया गया। सरदार पटेल 542 देशी रियासत में से 539 देशी रियासत को भारतीय संघ राज्य में मिला लिया। सरदार पटेल को इस काम में सहयोग बी. पी. मेनन और लॉर्ड माउंट बेटन ने किया ।
भारत को राजनैतिक तथा भौगोलिक तौर पर एक सूत्र में बाँधने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है। जिस कारण सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। साथ ही साथ सरदार पटेल का जन्म दिवस 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जर्मनी का एकीकरण 1871 ई. में बिस्मार्क ने किया ।
(1) जम्मू-कश्मीर:-
आजादी के समय जम्मू-कश्मीर में डोगरा वंश का शासन था और शासक हरिसिंह थें। इन्होने ये निर्णय किया लम ना तो भारत में जायेगें और नाहीं पाकिस्तान में । लेकिन 20 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सैनिक घुसपैठियों . के रूप में जब जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण किया, तब राजा हरिसिंह भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई। भारत सरकार ने राजा हरिसिंह के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि अगर आप जम्मू-कश्मीर को भारत में मिला ले तो भारत सरकार हर संभव मदद करेगा। राजा हरिसिंह के पास विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के सिवाय और दूसरा कोई चारा नहीं था, जिस कारण हरिसिंह ना चाहते हुए भी 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर को भारत में मिलाने के उदेश्य से विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया ।
(2) जूनागढ़ :-
यह देशी रियासत वर्तमान समय में गुजरात में स्थित है। इसे जनमत संग्रह के द्वारा फरवरी 1948 ई में मिलाया गया । यह एक ऐसा देशी रियासत था जिसके शासक ने जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा कर दिया, लेकिन इसके बावजूद भी इसे भारत में शामिल किया गया ।
(3) हैदराबाद:-
आजादी के समय सबसे बड़ा देशी रियासत हैदराबाद था । इस देशी रियासत ने एक वर्ष तक यथा स्थिति बनायें रखने के संधि पर भारत सरकार के साथ समझौता किया । इस देशी रियासत को सरदार पटेल के दिशा निर्देशानुसार सैनिक या पुलिस कार्यवाही के तहत् ऑपरेशन पोलो के तहत् सितम्बर 1948 में भारत में मिला लिया ।
राज्यों का पुर्नगठनः
(1) धर आयोग:-
संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायलय के अवकाश प्राप्त न्यायधिश एस. के. धर की अध्यक्षता में जून 1948 ई. में एक 4 सदस्यीय आयोग गठित किया, जिसका काम राज्यों के पुर्नगठन हेतू सिफारिस करना था कि राज्यों का गठन भाषायी आधार पर हो या प्रशासनिक आधार पर । धर आयोग ने अपनी रिपोर्ट दिसम्बर 1948 ई. में प्रस्तुत किया और कहा कि राज्यों का पुर्नगठन प्रशासनिक आधार पर होनी चाहिए।
(2) J.V.P. आयोगः-
ज्वाहर लाल नेहरू, बल्लभ भाई पटेल और पट्टाभी सीतारमैया के नेतृत्व में राज्यों के पुर्नगठन हेतू दिसम्बर 1948 ई. में कमिटि गठित किया, जिसे J. V. P. कमिटि कहा जाता है । इस कमिटि ने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 1949 में प्रस्तुत किया और कहा कि भारत में राज्यों का पुर्नगठन प्रशासनिक आधार पर ही होनी चाहिए ।
♦ पंजाब का विभाजन शाह आयोग के सिफारिश पर 1966 ई में हुआ ।
मूल संविधान में भारतीय राज्यः-
मूल संविधान में भारतीय राज्यों को चार वर्गो में बाँटा गया था-
भाग-क
इसके अंतर्गत ब्रिटिश प्रांत आते थें ।
जैसे- बिहार, बंगाल, उड़ीसा, मद्रास, मध्य प्रांत, संयुक्त प्रांत, इत्यादि.......
भाग - ख
इसके अंतर्गत बड़े देशी रियासत आते थें ।
जैसे- हैदराबाद, जम्मू - कश्मीर, मैसूर, इत्यादि.......
भाग-ग
इसके अंतर्गत छोटे देशी रियासत आते थें ।
जैसे- भोपाल, अजमेर, बिलवारी, इत्यादि..........
भाग-घ
इसके अंतर्गत जीते हुए क्षेत्र आते थें ।
जैसे- अंडमान-निकोबार द्वीप समूह
नोट- भाषायी आधार पर गठित प्रथम राज्य आंध्रप्रदेश है। जिसका गठन 1953 में हुआ है ।
फज़ल अली आयोग:-
डॉ. फज़ल अली की अध्यक्षता में राज्यों के पुर्नगठन हेतू 1953 ई. में आयोग गठित हुआ । इस आयोग के दो अन्य सदस्य के. एम. पन्नीकर और हृदयनाथ कुंजरू थें। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में प्रस्तुत किया जिसमें यह सिफारिश किया कि भारत राज्यों का पुर्नगठन भाषा के आधार पर होगा। इस आयोग के सिफारिश पर ही भारत में राज्यों का पुर्नगठन 7वाँ संविधान संसोधन 1956 के तहत् भाषायी आधार पर किया गया ।
फजल अली आयोग के सिफारिश के तहत् भाषायी आधार पर गठित 14 राज्य निम्न हैं-
1. जम्मू-कश्मीर 
2. पंजाब
3. राजस्थान
4. मुंबई
5. कर्नाटक
6. केरल
7. मद्रास
 8. आंध्रप्रदेश
9. उड़िसा
10. बिहार
11. संयुक्त प्रांत 
12. मध्य प्रांत
13. बंगाल
14. असम
⇒ भारत का 15वाँ राज्य 1960 को गुजरात तथा महाराष्ट्र बना । 
⇒ भारत का 16वाँ राज्य 1963 को नागालैंड बना ।
⇒ भारत का 17वाँ राज्य 1966 को हरियाणा बना ।
⇒ भारत का 18वाँ राज्य 1971 को हिमाचल प्रदेश बना ।
नोट- पंजाब का विभाजन कर के ही हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ
⇒ 1972 में मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा का गठन हुआ, तत्पश्चात राज्यों की संख्या बढ़कर 21 हो गई ।
⇒ भारत का 22वाँ राज्य 36वाँ संविधान संसोधन 1973 के तहत् सिक्किम बना ।
⇒ 1987 ई. में अरूणाचल प्रदेश, मिजोरम और गोवा का गठन हुआ जिससे राज्यों की संख्या बढ़कर 25 हो गई ।
⇒ 1 नवम्बर 2000 ई. को मध्यप्रदेश का विभाजन कर छतीसगढ़ बनाया गया। यह भारत का 26वाँ राज्य बना ।
⇒ 9 नवंबर 2000 ई. को उत्तरप्रदेश का विभाजन कर उत्तराखंण्ड बनाया गया जिससे राज्यों की संख्या 27 हो गई।
⇒ 15 नवंबर 2000 ई. को बिहार का विभाजन कर झारखंड का गठन किया गया। अतः अब राज्यों की संख्या 28 हो गई ।
⇒ 2 जून 2014 को आंध्रप्रदेश का विभाजन कर तेलंगना का गठन किया गया। यह भारत का 29वाँ राज्य था ।
  • अगस्त 2019 में जम्मू–कश्मीर को पुर्नगठित करने हेतू विधेयक लाया गया जिसके तहत् जम्मू-कश्मीर राज्य से राज्य का दर्जा छीन कर उसे दो केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्याख में बाँट दिया गया । अतः राज्य की संख्या 29 से घटकर 28 हो गई।
♦ वर्तमान में भारत देश के अंदर 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं ।
नोट - नये राज्यों के निर्माण होने पर दो अनुसूची में परिवर्तन होता है। पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची ।
  • 100वाँ संविधान संसोधन 2015 के तहत् भारत और बंगलादेश के बीच भूमि समझौता हुआ जिसके तहत् भारत के कुछ क्षेत्र बंगलादेश को सौपें गए तथा बंगलादेश का कुछ क्षेत्र भारत को सौपा गया ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 08:03:12 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संविधान की प्रस्तावना https://m.jaankarirakho.com/928 https://m.jaankarirakho.com/928 General Competition | Indian Polity | संविधान की प्रस्तावना
  • प्रस्तावना को भारतीय संविधान का आत्मा, दर्पण, कुँजी या सार कहा जाता है।
  • पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के प्रथम बैठक के दौरान 13 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा के समक्ष उदेश्य प्रस्ताव रखा। इस उदेश्य प्रस्ताव को संविधान सभा ने अपने द्वितीय बैठक के दौरान 22 जनवरी 1947 को स्वीकार किया । यह उदेश्य प्रस्ताव बाद में भारतीय संविधान की प्रस्तावना बनीं।

प्रस्तावना

हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण - प्रभुत्व, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना 4 देशों से प्रभावित है। 
    1. अमेरिका 2. ऑस्ट्रेलिया 3. फ्रांस 4. रूस
(1) अमेरिका:-
विश्व का प्रथम देश अमेरिका है जिसने अपने संविधान में प्रस्तावना को शामिल किया । अमेरिका का अनुशरन करते ही भारत ने भी अपने संविधान में प्रस्तावना को शामिल किया।
(2) ऑस्ट्रेलिया:-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का भाषा ऑस्ट्रलिया से लिया गया है।
(3) फ्रांस:-
(क) फ्रांसीसी क्रांति 1789 के दौरान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का नारा दिया गया। इस क्रांति से प्रभावित होकर ही भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व शब्द जोड़ा गया ।
(ख) प्रस्तावना में 5 प्रकार की स्वतंत्रता की बात कही गई है जो निम्न है-
1. विचार 2. अभिव्यक्ति 3. धर्म 4. उपासना 5. विश्वास
(ग) प्रस्तावना में दो प्रकार की समानता की बात की गई है। 
1. प्रतिष्ठा की समानता  2. अवसर की समानता
(घ) प्रस्तावना में एक बंधुत्व स्थापित करने की बीत की गई है
(4) रूस:-
रूसी क्रांति 1917 के दौरान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की बात की गई है। इस क्रांति से प्रभावित होकर ही संविधान की प्रस्तावना में न्याय शब्द जोड़े गयें हैं । प्रस्तावना में तीन प्रकार की न्याय की बात की गई है। 
1. सामाजिक 2. आर्थिक 3. राजनीतिक

प्रस्तावना के संबंध में विद्वानों का मत

(1) एन. ए. पालकीवाला:- 
प्रस्तावना को संविधान का परिचय पत्र कहा ।
(2) मो. हिदायतुल्लाः-
ये सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश थें। इसने प्रस्तावना को अमेरिका के घोषणा पत्र के समान बताया ।
(3) आर्मेस्टर वार्कर:-
ये ब्रिटिश विद्वान था । इसने प्रस्तावना को कुँजी नोट बताया।
(4) पंडित ठाकुर प्रसाद भारगवः-
ये संविधान सभा के सदस्य थें, जिन्होनें प्रस्तावना को संविधान का सम्मानित भाग बताया ।
(5) सर अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यरः-
इन्होनें कहा प्रस्तावना हमारे दीर्घकालीक सपनों का विचार है ।
(6) के. एम. मुंशी:-
इन्होनें कहा प्रस्तावना हमारे संप्रभु, लोकतांत्रिक, गणराज्य का भविष्यफल है।
  • बेरूवादी संघवाद 1960 में सुप्रीम कोर्ट ने सह कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है। इसलिए संसद उसमें संसोधन नहीं कर सकती है।
  • केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद 1973 के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने निर्णय को पलट दिया और कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है और संसद उसमें संसोधन कर सकती है।
    संसद इस अधिकार का प्रयोग करते हुए 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् प्रस्तावना में 3 नए शब्द जोड़े ।
    (1) समाजवाद (2) पंथ - निरपेक्षता (3) अखंडता
नोट- अभी तक प्रस्तावना में सिर्फ एक बार संसोधन हुआ है। यह संसोधन सरदार स्वर्ण सिंह कमिटि के अनुशंसापर हुआ है।
  • मूल संविधान के अनुसार भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को संप्रभुत्व, संपन्न, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य घोषित करता है। वही 42वाँ संविधान संसोधन के बाद प्रस्तावना भारत को संप्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करता है। 
बंधुत्व:-
इसका शाब्दिक अर्थ भाई-चारा होता है।
गणराज्य:-
वैसा देश या राष्ट्र जहाँ के राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होते हैं, गणराज्य कहलाता है। भारत एक गणराज्य है क्योंकि भारत का राष्ट्राध्यक्ष राष्ट्रपति निर्वाचित होते हैं
लोकतंत्र / प्रजातंत्र / जनतंत्र ( Democracy):-
डेमोक्रेसी ग्रीक भाषा के दो शब्द डेमोस + क्रेसिया से मिलकर बना है। जिसमें डेमोस का अर्थ 'लोक' तथा क्रेसिया का अर्थ 'शासन' होता है । वैसी शासन प्रणाली जिसमें शक्ति का अंतिम स्त्रोत आम जनता होता है ।
★ अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के अनुसार 'लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए तथा जनता के द्वारा शासन प्रणाली है।
★ लोकतंत्र दो प्रकार के होते हैं-
 (1) प्रत्यक्ष लोकतंत्र (2) अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
(1) प्रत्यक्ष लोकतंत्रः-
वैसी शासन प्रणाली जिसमें कानून के निर्माण में प्रत्यक्ष तौर पर जनता की भागीदारी होता है, प्रत्यक्ष लोकतंत्र कहलाता है । इसका सबसे बेहतर उदाहरण स्वीटजरलैंड है।
(2) अप्रत्यक्ष लोकतंत्रः-
वैसी शासन प्रणाली जिसमें कानून के निर्माण में आम जनता नहीं बल्कि आम के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की भागीदारी होती है, अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहलाता है। विश्व के अधिकतर देशों में इसी प्रकार के शासन प्रणाली का प्रचलन देखने को मिलता है। जैसे- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इत्यादि..........
  • हम भारत के लोग.... ...अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मर्पित करते हैं - इसका अर्थ यह होता है कि भारतीय संविधान को स्वीकार तथा अपने उपर लागू भारत की जनता ने किया है। प्रस्तावना ही हमें यह जानकारी देता है कि भारतीय संविधान भारत की जनता को समर्पित है ।
संप्रभुत्व-संपन्नः–
वैसे राष्ट्र या देश जिसके आंतरिक एवं बाह्य मामलों के नीति निर्माण में किसी दूसरे देश का हस्तक्षेप ना हो, संप्रभुत्व-संपन्न राष्ट्र कहलाता है। जैसे भारत एक संप्रभुत्व-संपन्न देश है। भारत जब 1949 ई. में राष्ट्रमंडल की सदस्यता ग्रहण की तो भारतीय जनता को आशंका हुआ कि भारत की संप्रभुत्व फिर से खतरे में है । इस आशंका को दूर करते हुए ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि- "राष्ट्रमंडल की सदस्यता स्वेच्छा से लिया गया निर्णय है, हम अपनी इच्छा से इसकी सदस्यता का परित्याग कभी भी कर सकते हैं । "
समाजवादः:-
समाजवाद एक विचारधारा है। इसका अर्थ समाज में हर रूप में समानता स्थापित करना है। भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद अस्तित्व में है। लोकतांत्रिक समाजवाद का मूल तत्व मिश्रित अर्थव्यवस्था है। भारतीय अर्थव्यवस्था भी मिश्रित अर्थव्यवस्था है। मिश्रित अर्थव्यवस्था उस व्यवस्था को कहा जाता हैं जिसमें निजी और सरकारी दोनों कंपनियों का सह अस्तित्व हो ।
पंथनिरपेक्षताः-
यह शब्द मूल संविधान में नहीं था । इसे 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् संविधान में जोड़ा गया। पंथनिरपेक्षता का अर्द्ध धर्म को राजनीतिक से अलग करना होता है। वैसा देश या वैसा राष्ट्र जहाँ सभी धर्मो के लोग आपस में मिल-जुलकर रहता हो, धर्म निरपेक्ष/पंथनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाता है या वैसा देश या राष्ट्र जहाँ सरकार का अपना कोई धर्म ना हो धर्म-निरपेक्ष कहलाता है । जैसे- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है ।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्यवाद 1973 के द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मुल ढाँचा का सिद्धांत दिया और कहा कि संसद मुल ढँचा में संसोधन नहीं कर सकती है। पंथ - निरपेक्षता मूल ढाँचा में शामिल है, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का संसोधन संसद नहीं कर सकती है।
  • प्रस्तावना हमें भारत की प्रकृति के विषय में जानकारी प्रदान करता है । प्रस्तावना के अनुसार भारत एक संप्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य है।
  • प्रस्तावना भारत के लक्ष्य के विषय में भी जानकारी प्रदान करता है । प्रस्तावना के अनुसार भारत का लक्ष्य भारत के लोगों के बीच स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व स्थापित करना है।
  • प्रस्तावना ही हमें यह बताता है कि संविधान सभा में भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को स्वीकार किया ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 07:52:22 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संविधान का स्त्रोत https://m.jaankarirakho.com/927 https://m.jaankarirakho.com/927 General Competition | Indian Polity | संविधान का स्त्रोत
भारतीय संविधान के दो प्रकार के स्त्रोत हैं-
(1) आंतरिक स्त्रोत (2) बाह्य स्त्रोत
(1) आंतरिक स्त्रोत:-
1773 के रेगूलेटिंग एक्ट से 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम तक जो अधिनियम पारित हुए हैं इनमें से जिस प्रावधान को भारतीय संविधान में शामिल किया गया वे भारतीय संविधान के आंतरिक स्त्रोत के अंतर्गत शामिल होते हैं। आंतरिक स्त्रोत के अंतर्गत भारतीय संविधान पर सबसे ज्यादा प्रभाव भारत शासन अधिनियम 1935 का प्रभाव पड़ा है। जिस भारतीय संविधान को 1935 के अधिनियम का कार्बन कॉपी भी जाता है। 1935 के अधिनियम से दो तिहाई प्रावधान भारत के संविधान में शामिल किया गया है।
(2) बाह्य स्त्रोतः-
विश्व के अलग-अलग देशों से जो प्रावधान भारतीय संविधान में शामिल किये गयें हैं उसे ही बाह्य स्त्रोत के अंतर्गत रखा जाता है। जो निम्न है-
(1) अमेरिका: - मौलिक अधिकार, संविधान सर्वोच्च होगा, स्वतंत्र न्यायपालिका, न्यायिक पूर्नाविलोकन, दबाब समूह, निर्वाचित राष्ट्रपति, राष्ट्रपति पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति का पद, न्यायिक समीक्षा, जनहितवाद न्यायिक सर्कियता, इत्यादि........ ।
(2) आयरलैंडः- राज्य के नीति निर्देशक तत्व, राज्यसभा में राष्ट्रपति के द्वारा साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज़ सेवा के क्षेत्र में 12 सदस्यों के मनोनयन संबंधी प्रावधान, राष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी प्रणाली ।
नोटः- आयरलैंड के संविधान (1937) में राज्य के नीति निर्देशक तत्व का प्रावधान स्पेन के संविधान से लिया गया है।
(3) दक्षिण अफ्रीका:- संविधान संसोधन की प्रक्रिया, राज्यसभा के सदस्यों के निर्वाचन संबंधी प्रावधान
(4) ऑस्ट्रेलिया:- प्रस्तावना की भाषा, संयुक्त अधिवेशन, व्यापार - वाणिज्य की स्वतंत्रता, समवर्ती सूची संबंधी प्रावधान
(5) रूस:- मौलिक कर्तव्य, प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय संबंधी प्रावधान
(6) फ्रांस:- गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली, प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व संबंधी प्रावधान
(7) जापान:- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया
(8) कनाडा:- संघात्मक शासन प्रणाली, अवशिष्ट शक्ति केंद्र के पास होगा, शक्ति का विभाजन, राज्यपाल की नियुक्ति
(9) जर्मनी:- आपातकाल के समय मौलिक अधिकार पर पड़ने वाले प्रभाव संबंधी प्रावधान
नोटः- (क) जर्मनी के संविधान को वाइमर का संविधान कहा जाता है।
(ख) मूल तौर पर भारतीय संविधान में आपातकालीन संबंधी प्रावधान भारत शासन अधिनियम 1935 से लिए गए है।
(10) ब्रिटेन:- विधि का शासन, संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति की स्थिति, संसदीय विशेषाधिकार, मंत्रिमंडल प्रणाली, संसदीय शासन प्रणाली, प्रमाधिकार लेख, एकल नागरिकता

संविधान का भाग

  • मूल तौर पर भारतीय संविधान को 22 भागों में बाँटा गया है परंतू वर्तमान समय में भारतीय संविधान में कुल 25 भाग है तथा 395 अनुच्छेद है। जो निम्न है -
भाग संबंध अनुच्छेद
भाग-1 संघ और राज्य क्षेत्र 1-4
भाग-2 नागरिकता 5-11
भाग-3 मौलिक अधिकार 12-35
भाग-4 राज्य के नीति निर्देशक तत्व 36-51
भाग-4 (क) मौलिक कर्तव्य 51 (क)
भाग-5 संघ का शासन 52-151
भाग-6 राज्य का शासन 152-237
भाग-7 निरस्त 238
भाग-8 केंद्रशासित प्रदेश 239-242
भाग-9 पंचायत 243
भाग-9 (क) नगर पालिका 243
भाग-9 (ख) सहकारी 243
भाग-10 अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र में शासन 244
भाग-11 केंद्र और राज्य संबंध 245-263
भाग-12 वित्त, संपत्ति और संविदा 264-300 (क)
भाग-13 व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता 301-307
भाग-14 लोक सेवा आयोग 308-323
भाग-14 (क) अधिकरण 323 (क)
भाग-15 निर्वाचन आयोग 324-329
भाग-16 कुछ वर्गों के लिए विशेष प्रावधान 330-342
भाग-17 राजभाषा 343-351
भाग-18 आपात उपबंध 352-360
भाग-19 प्रकीर्ण 361-367
भाग-20 संविधान संसोधन 368
भाग-21 अस्थायी, संक्रमणशील और विशेष प्रावधान 369-392
भाग-22 संविधान के लागू होने, संविधान का नाम और संविधान का हिन्दी पाठ्यक्रम 393-395
नोट:- (1) भारतीय संविधान का भाग-2 को दो अध्याय में बाँटा गया है जिसमें अध्याय-1 हमें केंद्र और राज्य के विधायी संबंध (अनुच्छेद 245-255) के विषय में जानकारी प्रदान करता है। तथा अध्याय-2 हमें केंद्र और राज्य के प्रशासनिक संबंध ( अनुच्छेद 256-263) के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
(2) 7वाँ संविधान संसोधन 1956 के तहत भारतीय संविधान का भाग-7 को निरस्त कर दिया गया।
(3) 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् भाग - 4 - 4 (क) और 14 (क) जोड़ा गया, 74वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् 9 (क) जोड़ा गया तथा 97वाँ संविधान संसोधन 2011 के तहत् 9 (ख) जोड़ा गया।

संविधान की अनुसूचियाँ

  • मूल संविधान में 8 अनुसूची था नेकिन संविधान संसोधन के माध्यम से और अनुसूची नवमीं, दशर्मी, ग्यारहवीं तथा बारहवीं जोड़ी गई। तत्पश्चात् अनुसूचियों की संख्या 12 हो गई।
नवम अनुसूची:- 
 प्रथम संविधान संसोधनं 1951 के तहत् इसे शामिल किया गया। इसमें भूमि सुधार की चर्चा है। इस अनुसूची के शामिल होने के समय हमारे देश का प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू थें। इस अनुसूची में शामिल विषयों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जाती थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी 2007 को यह फैसला दिया कि 24 अप्रैल 1973 के बाद 9वीं अनुसूची में शामिल कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
दशर्मी अनुसूची:-
इसे 52वाँ. संविधान संसोधन 1985 के तहत् शामिल किया गया। इसमें दल-बदल अधिनियम की चर्चा है। इस अनुसूची के शामिल होने के समय हमारे देश का प्रधानमंत्री राजीव गाँधी थें।
ग्यारहवीं अनुसूची:-
इसे 73वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् शामिल किया गया। इसमें पंचायती व्यवस्था की चर्चा है। पंचायती राजव्यवस्था को 29 विषय पर काम करने का अधिकार दिया गया।
बारहवीं अनुसूची:-
74वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् इसे शामिल किया गया। इसमें नगर पालिका या नगर निगम को शामिल किया गया नगर निगम को 18 विषय पर काम करने का अधिकार दिया गया।
नोट:- ग्यारहवीं और बारहवीं अनुसूची जब शामिल किया गया था उस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव थें ।
प्रथम अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें भारतीय राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश ( नाम, क्षेत्रफल) के विषय में जानकारी प्राप्त होता है।
द्वितीय अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें भारतीय राजव्यवस्था के अंतर्गत आने वाले पदाधिकारी जैसे- राष्ट्रपति, राजसभा के सभापति और उपसभापति, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, इत्यादि के वेतन भत्ता और पेंसन के विषय में जानकारी प्राप्त होता है।
नोट:- उच्च न्यायलय के न्यायधिशों को वेतन राज्य के संचित विधि से दिया जाता है, जबकि पेंसन भारत की संचित विधि से दिया जाता है।
तृतीय अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें भारतीय राजव्यवस्था के अंतर्गत आने वाले पदाधिकारियों जैसे- संसद सदस्य, सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिश हाई कोर्ट के न्यायधिश, इत्यादि के शपथ ग्रहण के विषय में जानकारी प्राप्त होता है।
नोट:- तीसरी अनुसूची से हमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल के शपथ ग्रहण के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होता है। राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की चर्चा अनुच्छेद - 60, उपराष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की चर्चा अनुच्छेद- 69 तथा राज्यपाल के शपथ ग्रहण की चर्चा अनुच्छेद-159 में है।
  • राष्ट्रपति को शपथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश दिलाते है ।
  • उपराष्ट्रपति को शपथ राष्ट्रपति दिलाते हैं |
  • प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को शपथ राष्ट्रपति दिलाते हैं।
  • राज्यपाल को शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधिश दिलाते हैं । 
  • मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को शपथ राज्यपाल दिलाते है ।
चौथी अनुसूची:-
इस अनुसूची में राज्यसभा सीटों के बटवारा के विषय में जानकारी प्राप्त होता है । जैसे- उत्तरप्रदेश को राज्यसभा में 31 सीट तथा बिहार को 16 सीट दिये गये हैं ।
पाँचवी अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें अनुसूचित क्षेत्रों के शासन-प्रशासन के विषय में जानकारी प्राप्त होता है। अनुसूचित क्षेत्रों में शासन प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाता है।
नोटः- जनजातीय सलाहाकार परिषद का गठन पाँचवी अनुसूची के तहत् किया जाता है।
छठी अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के अनुसूचित क्षेत्रों के शासन-प्रशासन के विषय में जानकारी प्राप्त होता है ।
नोट:- स्वायतशासी जिला परिषद का गठन छठी अनुसूची के अंतर्गत किया जाता है।
सातवीं अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें तीन प्रकार के सूची संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषय में जानकारी प्राप्त होता है ।
संघ सूची:-
इसमें मुलतः 97 विषय था जबकि वर्तमान समय में 100 विषय हैं। इस सूची में शामिल विषयों पर कानून संसद बनाती है। भारत के भीतर कानून का निर्माण करनेवाली सबसे बड़ी संस्था संसद है।
जैसे - रक्षा, विदेश सेवा, जनगणना, संयुक्त राष्ट्र संघ, बड़े बंदरगाह, इत्यादि.......
राज्य सूची:-
इसमें मुलतः 66 विषय थें लेकिन 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् राज्य सूची के 5 विषय को हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया। तत्पश्चात राज्य सूची में विषयों की संख्या 61 हो गई। इस सूची के विषय पर कानून राज्य विधान मंडल बनाती है।
जैसे - कृषि, पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्थानीय स्वशासन, इत्यादि.........
समवर्ती सूची:-
इस सूची में मुलतः 47 विषय था जबकि वर्तमान में 52 विषय है। इस सूची के विषयों पर कानून संसद या विधान में से कोई भी बना सकता है। लेकिन अगर किसी विषय पा कानून संसद और विधानमंडल दोनों बनाती है तो इस स्थिति में संसद द्वारा निर्मित कानून मान्य होगा ।
जैसे - विवाह, तालाक, दंड प्रक्रिया, आर्थिक नियोजन, शिक्षा, वन, वन्य जीवों का संरक्षण, माप-तौल, न्याय प्रशासन, इत्यादि......
नोट:- शिक्षा, वन, वन्य जीवों का संरक्षण, माप-तौल, न्याय प्रशासन को 42वाँ संविधान संसोधन 1976 के तहत् राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में जोड़ा गया । 7वीं अनुसूची में हमें केंद्र और राज्य के बीच होने वाले शक्तियों के विभाजन के विषयों में जानकारी प्राप्त होता है । 
आठवीं अनुसूची:-
इस अनुसूची से हमें राज्य भाषा के विषय में जानकारी प्राप्त होता है। मूल संविधान में 14 भाषा थी। हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, मराठी, कन्नर, तमिल, तेलगू, बंगाली, उड़िया, असमिया, राजस्थानी, मलयालम, उर्दू को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया । कलांतर में 8 और भाषा को संबंधित संसोधन के माध्यम से जोड़ा गया, जिससे राज्य भाषाओं की संख्या बढ़कर 22 हो गई ।
  • 21वाँ संविधान संसोधन 1967 के तहत् सिन्धीं को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया। सिंधी पंजाब तथा गुजरात में बोला जाता है।
  • 71वाँ संविधान संसोधन 1992 के तहत् तीन भाषा को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया है जो निम्न है-
    (1) नेपाली - यह सिक्किम में बोला जाता है।        न
    (2) मणिपुरी - यह मणिपुर में बोला जाता है ।       म
    (3) कोकनी - यह गोवा में बोला जाता है ।           क
  • 92वाँ संविधान संसोधन 2003 के तहत् 4 भाषा को राज्यभाषा का दर्जा दिया गया है जो निम्न है-
    (1) बोडो - यह असम में बोला जाता है।
    (2) डोगरी - यह जम्मू-कश्मीर में बोला जाता है।
    (3) मैथली - यह बिहार में बोला जाता है ।
    (4) संथाली - यह झारखंड में बोला जाता है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 07:33:59 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संविधान सभा https://m.jaankarirakho.com/926 https://m.jaankarirakho.com/926 General Competition | Indian Polity | संविधान सभा
  • कैबिनेट मिशन योजना के सिफारिश पर भारत के लिए संविधान के निर्माण हेत्तू संविधान सभा का गठन किया गया । कैबिनेट मिशन योजना का भारत में आगमन 24 मार्च 1946 को हुआ । इस आयोग में कुल तीन सदस्य थें जो निम्न हैं-

  • पेंथिक लॉरेंस ने कैबिनेट मिशन योजना की अध्यक्षता की। कैबिनेट मिशन योजना ने अपनी सिफारिश मई 1946 ई. में प्रस्तुत की । इस सिफारिस में कैबिनेट मिशन योजना ने यह कहा कि भारत के संविधान निर्माण हेतू संविधान सभा का गठन किया जायेगा । संविधान सभा में प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 1 सदस्य को शामिल किया जायेगा।
  • कैबिनेट मिशन ने संविधान सभा में कुल 389 सदस्य निर्धारित किए जिसमें से 296 सदस्य ब्रिटिश प्रांत से आने थे तो वही 93 सदस्य देशी रियासत से आने थें। आजादी के बाद संविधान सभा का पूर्णगठन हुआ और संविधान सभा में सदस्यों की संख्या घटकर 299 हो गया। जिसमें 229 सदस्य ब्रिटिश प्रांत से शामिल होने थें तो वही 70 सदस्य देशी रियासत से शामिल होने थें । संविधान सभा के अंतिम बैठक में मात्र 284 सदस्य मौजूद थें ।
  • संविधान सभा के सदस्य आंशिक रूप से निर्वाचित हुए थें तथा आंशिक रूप से मनोनित थें ।
  • संविधान सभा के लिए जो चुनाव जुलाई-अगस्त 1946 में हुआ उसमें आम जनता ने भाग नहीं लिया था बल्कि, विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लिए थें ।
  • 296 सीट के लिए जो चुनाव हुए उसमें 208 सीट कांग्रेस, 73 सीट मुस्लिम लीग तथा 15 सीट अन्य छोटी-छोटी पाटियों को प्राप्त हुआ ।
  • संविधान सभा की स्थापना या प्रथम बैठक 9 दिसम्बर 1946 को दिल्ली में हुआ। इस बैठक में कुल 211 सदस्य मौजूद थें जिसमें सबसे वरिष्ट डॉ० सच्चीदानंद सिन्हा थे जिन्हें संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष बनाया गया।
    स्थायी अध्यक्ष:- राजेन्द्र प्रसाद
    उपाध्यक्षः- H.C मुखर्जी और V.T कृष्णामाचारी
    सचीवः- H.B. R आयंगर
    संवैधानिक सलाहाकार:- B.N राव
    प्रतीक चिन्ह:- हाथी
  • संविधान सभा के समक्ष 13 दिसम्बर 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उदेश्य प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव को संविधान सभा ने 22 जनवरी 1947 को स्वीकार किया । यही उदेश्य प्रस्ताव बाद में जाकर भारतीय संविधान का प्रस्तावना बना ।
  • भारतीय संविधान को बनने में 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा ।
  • भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हो गया और इस तिथि को हमारे संविधान का कुछ प्रावधान जैसे- अनुच्छेद 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324 इत्यादि लागू हुए अर्थात हम यह कह सकते हैं कि संविधान आंशिक रूप से लागू 26 नवंबर 1949 को ही हो गया ।
  • भारत का संविधान पूर्ण से लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ क्योकिं भारत ने 26 जनवरी 1930 को अपना पहला स्वधीनता या स्वतंत्रता दिवस मनाया था ।
  • 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
नोटः- भारतीय संविधान में नागरिकता संबंधी प्रावधान 1949 ई में ही लागू हो गया था।
प्रारूप कमिटी - 
संविधान निर्माण करने वाली सभी समितियों में सबसे विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण समिति प्रारूप समिति था। प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को हुआ है। इस कमिटि में कुल 7 सदस्य थें, जिसमें अध्यक्ष डॉ० भीमराव अम्बेडकर थें । भीमराव अम्बेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है। आजादी से पहले संविधान सभा में इनका चुनाव बंगाल प्रेसीडेंसी से हुआ था लेकिन आजादी के बाद डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद के प्रयास से डॉ० अम्बेडकर मुम्बई प्रेसीडेंसी से संविधान सभा के सदस्य बन गए।

प्रारूप कमिटी के सात सदस्य निम्न है-

  1. डॉ० भीमराव अम्बेडकर
  2. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
  3. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर
  4. एन. माधव राव (बी. एल. मित्र के स्थान पर)
  5. एन. गोपाल स्वामी आयंगर
  6. मोहम्मद सादुल्ला
  7. डी. पी. खेतान ( इनकी मृत्यू के बाद टी. टी. कृष्णामाचारी सदस्य बनें।
  • संविधान निर्माण के दौरान संविधान के सदस्यों ने 60 देशों के संविधान को पढ़ा। संविधान बनाने में लगभग 64 लाख (63,96,729) खर्च हुआ।
  • संविधान के मूल प्रति को सुरक्षित हिलीयम गैस में रखा गया है।
  • संविधान सभा के सदस्यों ने अपनी सातवीं बैठक में महात्मा गाँधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित किया ।
  • संविधान सभा की कुल 11 बैठक हुई। (कुछ अन्य स्त्रोतों में 12 है ।)
  • संविधान के उपर कुल 3 वाचन हुए हैं जिसमें प्रथम वाचन 4 नवंबर 1948 से 9 नवंबर 1948 के बीच, द्वितीय वाचन 15 नवंबर 1948 से 17 अक्टूबर 1949 तथा तृतीय वाचन 14 नवंबर 1949 से 26 नवंबर 1949 |
  • संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुआ है। इस बैठक में निम्न निर्णय गयें हैं-
    1. संविधान सभा के सदस्यों ने सर्वसम्मति के आधार पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति मनोनित किया । राजेन्द्र प्रसाद 1950-52 तक मनोनित राष्ट्रपति रहें। पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव 1950 ई. में हुआ। राजेन्द्र प्रसाद 1952 ई. में पहली बार निर्वाचित राष्ट्रपति हुए ।
    2. संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को भारत का राष्ट्रगान के रूप में जन-गन-मन को स्वीकार किया। जन-मन-मन के रचयिता रविंद्र नाथ टैगोर है। राष्ट्रगान में कुल पाँच पद है। इसे गाने में 52 सेकेण्ड का समय लगता है वहीं संक्षिप्त रूप से गाने में 20 सेकेण्ड का समय लगता है । संसद की कार्यवाही की शुरूआत दिन के 11 बजे से राष्ट्रगान जन-गन-मन से ही होता है ।  जन-गन-मन हिन्दी भाषा के भारत-भाग्य विधाता शीर्षक से प्रकाशित हुआ है । राष्ट्रगान पहली बार कांग्रेस ने 1911 के कलकत्ता अधिवेशन में गाया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता पंडित विशन नारायणं धर ने किया था ।
    3. संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रगीत के रूप में वन्दें मातरम् को स्वीकार किया । इस गीत के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी हैं। यह गीत आनंदमंठ नामक ग्रंथ से लिया गया है । राष्ट्रगीत को गाने में 65 सेकेण्ड का समय लगता है । यह गीत पहली बार कांग्रेस के 1896 के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता रहीम तुल्ला स्यानी ने की थी ।
नोट:- 
  1. संविधान सभा में निर्णय आपसी सहमति और समायोजन के आधार पर लिया गया था ।
  2. भारत में राजकीय चिन्ह के रूप में सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ को 26 जनवरी 1950 को स्वीकार किया गया था ।
  3. 1947 से 1950 के दौरान भारत में शासन-प्रशासन संविधान सभा ने भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत चलाया ।
  4. संसद की कार्यवाही की समाप्ति राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् से होता है ।
  5. भारत के लिए संविधान की माँग सर्वप्रथम 1895 ई. में बाल गंगाधर तिलक ने किया था ।
  6. 1922 ई. में महात्मा गाँधी ने इच्छा जाहिर किया कि भारतीय अपने संविधान का निर्माण अपने इच्छानुसार करेगें ।
  7. 1938 ई. में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इच्छा जाहिर किया कि भारतीय अपने संविधान का निर्माण वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जायेगा ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 07:06:51 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Indian Polity | संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि https://m.jaankarirakho.com/925 https://m.jaankarirakho.com/925 General Competition | Indian Polity | संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
  • 1600 ई0 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। इस समय ब्रिटेन की महारानी (चार्टर) एलिजा बेथ प्रथम थी, जिन्होनें कंपनी को भारत तथा पूर्वी एशियाई देशों के व्यापार करने का अधिकार दिया। जिस समय भारत में ब्रिटिश कंपनी की स्थापना हुई उस समय भारत में मुग़ल सम्राज्य का शासन था और शासक अकबर थें। अंग्रेज जहाँगीर के शासनकाल से व्यापार करना प्रारंभ किया। अंग्रेज तथा मुग़लों के बीच संघर्ष (लड़ाई) औरंगजेब के शासनकाल से प्रारंभ हुआ । औरंगजेब का निधन 1707 ई0 में हो गया तथा उसके बाद कोई भी योग्य मुग़ल बादशाह नहीं हुआ ।
    1757 ई0 में हुए पलासी युद्ध के फलस्वरूप ब्रिटिश कंपनी ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता स्थापना की । यह युद्ध बंगाल के नवाब सिराजुदौला और रॉबर्ट क्लाइव के बीच हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई ।
    1764 ई0 में बक्सर का युद्ध हुआ । इस युद्ध में एक तरफ भारत की संयुक्त की सेना अवध के नवाब सुजाउदौला, मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय तथा बंगाल के अपदस्त नवाब मीरकासीम थें तथा यहीं दुसरी ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शामिल था। कंपनी के तरफ से नेतृत्व हेक्टर मुनरों कर रहा था। इस युद्ध में ब्रिटिश कंपनी की जीत हुई। इस युद्ध की समाप्ति 1765 के इलाहाबाद के संधि के तहत् हुआ । इस संधि के तहत् कंपनी को बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा के क्षेत्र में कर वसूलने का अधिकार अर्थात कंपनी को दिवानी अधिकार प्राप्त हुआ । 1771. जाते-जाते कंपनी बंगाल की सत्ता पूर्णतः अपने नियंत्रण में कर लिया, जिस कारण ब्रिटिश संसद ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने नियंत्रण . में लाने हेतू सन् 1773 में प्रथम अधिनियम 1773 का रेगूलेटिंग एक्ट पारित किया । 
  • 1173 का रेगूलेटिंग एक्ट:-
    इस एक्ट के पारित होने के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री लार्ड नॉर्थ था। इस एक्ट की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
    (क) इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गर्वनर का पदनाम बदलकर बंगाल का गर्वनर 1. जनरल किया गया ।
    (ख) इस अधिनियम के तहत् मद्रास एवं मुम्बई के गर्वनर बंगाल के गर्वनर जनरल के अधिन हो गये, जबकि पहले सभी प्रेसीडेंसियों के गर्वनर एक-दूसरे से अलग थें ।
    (ग) इस अधिनियम के अंतर्गत कलकत्ता में 1774 में उच्चतम न्यायलय की स्थापना की गई। जिसमें एक मुख्य न्यायधिश तथा तीन अन्य न्यायधिश थें ।
             मुख्य न्यायधिश- सर एलिजा इम्पे
             तीन अन्य न्यायधिश - हाइड लिमेस्टर चैम्बर्स
    (घ) इसके तहत् कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने तथा भारतीय लोगों से रिश्वत तथा उपहार लेने पर प्रतिबंध लगा दिया ।
  • 1781 का संसोधन अधिनियम (Amending Act of 1781):-
    रेगूलेटिंग एक्ट 1773 के कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने अमेडिंग एक्ट ऑफ 1781 पारित किया जिसे बंदोबस्त कानून (Act of settlement) के नाम से जाना जाता है ।
    (क) इस एक्ट के तहत् बंगाल के गर्वनर जनरल तथा कलकत्ता के उच्चतम न्यायलय का कार्य निर्धारण किया गया।
  • 1784 का पिट्स इंडिया एक्ट:-
    यह एक्ट 1784 ई0 में इंगलैंड के प्रधानमंत्री बिलियम पिट के द्वारा पारित किया गया जिस कारण इस अधिनियम को पिट्स इंडिया एक्ट कहा जाता है। इस एक्ट की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है-
    (क) इस एक्ट तहत् के ब्रिटिश संसद ने ब्रिटिश कंपनी पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने के पश्चात लंदन में दो संस्था Board of Director तथा Board of Controller की स्थापना की गई। B.O.D नामक संस्था कंपनी के व्यापारिक मामला को देखता था, जबकि B.O.C नामक संस्था कंपनी के राजनीतिक मामला को देखता था ।
    (ख) इस एक्ट के तहत् कंपनी द्वारा भारत में जीती गई क्षेत्र को ब्रिटिश - अधिपत्य का क्षेत्र कहा गया।
    (ग) पीट्स इंडिया एक्ट में संशोधन करने के लिए 1786 में एक एक्ट पारित किया गया जिसे 1786 का एमेंडमेंट एक्ट कहा जाता है।
    (घ) 1786 के एमेडमेंट एक्ट के तहत् ब्रिटिश गर्वनर जनरलों को वीटो (विशेषाधिकार) - का अधिकार प्राप्त हुआ ।
    (ङ) 1784 के पीट्स इंडिया एक्ट के लागू होने के कारण ही बंगाल के गर्वनर जनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिग्स ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और वापस लंदन चले गयें!
    • वीटो लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ रोकना होता है ।
  • 1793 का चार्टर एक्ट:-
    इस एक्ट के तहत् पहली बार भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार पर नियंत्रण करने का प्रयास किया गया, क्योंकि इस एक्ट में यह कहा गया कि अगले बीस वर्षो तक कंपनी को भारत में व्यापार करने का एकाधिकार रहेगा ।
  • 1813 का चार्टर एक्ट:-
    इस एक्ट की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
    (क) इस एक्ट के तहत् कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को आंशिक रूप से समाप्त किया गया ।
    (ख) इस एक्ट के पारित होने के बाद भी कंपनी को भारत में चाय के व्यापार करने का एकाधिकार प्राप्त था तथा एशियाई देश चीन के याथ पूर्णतः एकाधिकार व्यापार करने का अधिकार प्राप्त था ।
    (ग) इस एक्ट के तहत् भारत का दरवाजा व्यापार करने के लिए पूर्णतः खोल दिया गया।
    (घ) इस एक्ट में यह प्रावधान किया गया कि भारतीय लोगों के लिए प्रतिवर्ष शिक्षा पर 1 लाख रुपया खर्च किया जायेगा ।
    (ङ) इस एक्ट में इसाई मिशनरियों को भारत में इसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने का खुली छूट मिली।
  • नोट:- भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यापार करने का एकाधिकार 1600 ई में दिया गया लेकिन इससे पूर्व 1593 ई. में ब्रिटिश कंपनी लिवेंट को स्थल मार्ग से व्यापार करने का एकाधिकार प्राप्त था ।
1833 का चार्टर एक्ट:-
इस एक्ट के मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित है-
(क) इस एक्ट के तहत् कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को पूर्ण रूप से समाप्त किया ।
(ख) इसके तहत् कंपनी को भारत में पूर्णतः प्रशासनिक कंपनी बना दिया गया ।
(ग) इस कानून के तहत् कंपनी में होने वाले नियुक्ति पर हो रहें भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया गया। नियुक्ति तथा नियोजन में भेदभाव रंग, धर्म, तथा जाति के आधार पर होता था ।
(घ) इस अधिनियम ने कंपनी का भारतीय लोगों को नियुक्त होने का अवसर प्रदान किया ।
(ङ) इस एक्ट के तहत् बंगाल के गर्वनर जनरल का पदनाम बदलकर भारत का गर्वनर जनरल किया गया। भारत का प्रथम गर्वनर जनरल लॉर्ड बिलियम बैटिंक थें ।
1853 का चार्टर एक्ट:-
इस एक्ट की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है—
(क) सिविल सेवकों की नियुक्ति हेतू प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया गया।
(ख) विधान परिषद की स्थापना या गठन की चर्चा की गई ।
1858 का भारत परिषद अधिनियम:-
इस अधिनियम को भारत के शासन को बेहतर बनाने का अधिनियम कहा जाता है। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है-
(क) भारत के शासन को ब्रिटिश कंपनी के हाथों से लेकर ब्रिटिश क्राउन या सांसद को सौंप दिया गया ।
(ख) भारत के गर्वनर जेनरल का पदनाम बदलकर भारत का वायसराय किया गया। प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग बनें ।
(ग) इस अधिनियम के तहत् मुग़ल सत्ता या मुग़ल बादशाह के पद को समाप्त कर दिया गया। मुग़ल सत्ता की स्थापना पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 ई. से हुआ है।
(घ) इस अधिनियम के तहत Board of Director तथा Board of Controller का पद समाप्त कर दिया गया। इसके स्थान पर भारत सचिव का पद लाया गया ।
(ङ) इस अधिनियम के तहत ही भारत में शासन-प्रशासन चलाने के उदेश्य से 15 सदस्यीय भारत परिषद नामक संगठन की स्थापना की गई।
  • नोट:- 1858 ई. में भारत का प्रथम भारत सचिव लॉर्ड स्टेनली बने तथा आजादी के समय भारत सचिव के पद पर लॉर्ड लिस्टोवेल थें ।
1873 का अधिनियम:-
इस अधिनियम में कहा गया कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को कभी भी भंग किया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रावधान के तहत ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को 1 जनवरी 1884 ई. को भंग कर दिया गया ।
1861 का भारत परिषद अधिनियम:-
इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है-
(क) वायसराय को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
(ख) इस अधिनियम के तहत सर दिनकर रॉ, बनारस के राजा तथा पटियाला के महाराज को विधान परिषद में मनोनित किया गया । .
(ग) इस अधिनियम के तहत भारत में मंत्रीमंडल व्यवस्था या पोर्ट फोलियों प्रणाली या संविभागीय प्रणाली की व्यवस्था की शुरूआत हुई ।
(घ) इस अधिनियम के तहत बंगाल में 1862, उत्तरी-पश्चिमी प्रांत में 1866 तथा पंजाब में 1897 ई. में विधान परिषद का गठन किया गया ।
1892 का भारत परिषद अधिनियम:-
1885 ई. में कांग्रेस नामक संस्था की स्थापना हुई । कांग्रेस के दवाब में आकर ही अंग्रेजों ने 1892 का भारत परिषद अधिनियम पारित किया । इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता निम्न है -
(क) अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरूआत हुई ।
(ख) विधानपरिषद के सदस्यों को प्रश्न पुछने का अधिकार दिया गया।
(ग) विधानपरिषद के सदस्यों को बोलने का अधिकार दिया गया लेकिन मतदान करने का अधिकार नहीं दिया गया ।
  • नोटः- भारत में पहली बार बजट 1860 ई में जेम्स विलसन के द्वारा प्रस्तुत किया गया ।
इस अधिनियम को मार्ले-मिन्टो का अधिनियम कहा जाता है। क्योंकि इस अधिनियम को पारित करवाने में भारत का सचिव लॉर्ड मार्ले तथा भारतीय वायसराय लॉर्ड मिन्टो द्वितीय का योगदान था। इस अधिनियम के पारित होने के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री एच. एच. एक्विथ थें । इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता निम्न है-
(क) मुसलमानों को पृथक (अलग) निर्वाचन करने का अधिकार दिया गया ।
(ख) वायसराय के कार्यकारिणी परिषद एक भारतीय सदस्य को शामिल किया गया। कार्यकारिणी परिषद में शामिल होने वाला प्रथम भारतीय सर सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा हुए ।
(ग) इस अधिनियम के तहत विधानपरिषद के सदस्य को पूरक ( पूरा) प्रश्न पुछने का अधिकार दिया गया।
(घ) इस अधिनियम के तहत विधानपरिषद के सदस्यों को बजट पर मतदान करने का अधिकार दिया गया।
1919 का भारत शासन अधिनियम:-
इस अधिनियम को भारत सचिव लॉर्ड मांटेग्यू तथा भारतीय वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने मिलकर बनाया जिस कारण इस अधिनियम को मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार कहते है । यह एक प्रकार का सैंवैधानिक सुधार था । इस अधिनियम के पारित होने के समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री लॉयर्ड जार्ज था। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता निम्न है-
(क) सिख, इसाई और आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया ।
(ख) महिलाओं को मतदान करने का अधिकार दिया गया ।
(ग) द्विसदनीय विधायी का गठन किया गया जिसमें एक सदन राज्य परिषद तथा दुसरा केंद्रीय विधान सभा हुआ ।
(घ) केंद्रीय बजट को राज्य के बजट से अलग कर दिया ।
(ङ) यह प्रावधान किया गया कि सिविल सेवकों की नियुक्ति हेतू प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन लंदन के साथ-साथ भारत में भी होगा ।
(च) प्रांतों में द्वैध शासन लागू किया गया।
  • नोट:-
    1. प्रांतों में द्वैध शासन के जनक लियोनस कर्टियस को माना जाता है।
    2. बंगाल में द्वैध शासन 1765 ई में रॉबर्ट क्लाइव ने लागू किया था। वहीं द्वैध शासन को समाप्त वारेन हेस्टिंग्स ने 1772 ई में किया ।
    3. 1919 का भारत शासन अधिनियम 1921 ई लागू हुआ था ।
    4. 1919 के जाँच हेतू 1927 ई में साइमन कमीशन आयोग का गठन किया गया था।
    5. 1919 के अधिनियम के तहत ही लोक लेखा समिति का गठन किया गया।
    6. इस अधिनियम के तहत ही लोक सेवा आयोग का गठन 1926 ई में हुआ था ।
1935 का भारत शासन अधिनियमः-
साइमन कमीशन के रिपोर्ट (1930) के आधार पर भारत शासन अधिनियम 1935 बनकर तैयार हुआ । ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित यह सबसे बड़ा अधिनियम था। इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था। यह अधिनियम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था क्योंकि भारतीय संविधान का अधिकतर प्रावधान इसी एक्ट से लिये गए है, भारत के संविधान को 1935 के अधिनियम का कार्बन कॉपी भी कहते हैं। इस अधिनियम के पारित होने के समय भारतीय वायसराय लॉर्ड वेलिंग्टन थें तो ब्रिटेन का प्रधानमंत्री स्टेनले ब्लाडबिन थें। इस अधिनियम की आलोचना करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गुलामी या दास्ता का अधिकार पत्र कहा । इस की निम्नलिखित विशेषता है -
(क) ब्रिटिश प्रांत तथा देशी रियासत को मिलाकर अखिल भारतीय संघ का निर्माण किया जायेगा. 1-
(ख) प्रांतों में विधानसभा चुनाव करवाएँ जायेगें । इसी एक्ट के तहत भारत में पहली - बार प्रांतीय विधानसभा का चुनाव 1937 ई. में हुआ ।
(ग) इस अधिनियम के तहतं दलित, महिला, मजदूर, इत्यादि को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया।
(घ) इस एक्ट के तहत भारत को वर्मा से अलग किया गया। वर्मा 1936 ई. में भारत से अलग हुआ ।
(ङ) इस अधिनियम के तहत प्रांतो में द्वैध शासन को समाप्त कर दिया गया ।
(च) इस अधिनियम के तहत केंद्र में द्वैध शासन लागू किया गया।
(छ) इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता प्रांतीय स्वायत्ता है।
  • नोटः- कांग्रेस ने 1936 के लखनऊ अधिवेशन (अध्यक्ष- जवाहर लाल नेहरू) में 1935 के भारत सरकार अधिनियम को अस्वीकार कर दिया ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here
]]>
Sat, 06 Apr 2024 06:32:38 +0530 Jaankari Rakho