Jaankari Rakho & : Physics https://m.jaankarirakho.com/rss/category/physics Jaankari Rakho & : Physics hin Copyright 2022 & 24. Jaankari Rakho& All Rights Reserved. General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | उष्मा https://m.jaankarirakho.com/1038 https://m.jaankarirakho.com/1038 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | उष्मा
  • उष्मा (Heat) उष्मा एक प्रकार का ऊर्जा है जिसे उष्मीय ऊर्जा कहते हैं । उष्मा ही ऐसी चीज है जिससे गर्मी और ठंडेपन का अनुभव होता है ।
    • आधुनिक गतिज सिद्धान्त ( Kinetic theory) के अनुसार पदार्थ के अणुओं की गति को ही उष्मा का कारण माना जाता है। अणुओं की गति तेज होने पर वस्तु की उष्मीय ऊर्जा बढ़ जाती है तथा अणुओं की गति कम होने पर वस्तु की उष्मीय ऊर्जा घट जाती है। अत: उष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है जिसका अस्तित्व वस्तुओं के अणुओं की गति के कारण है ।
  • ताप (Temperature)= उष्मा की प्रवाह की दिशा बताने हेतु जिस मूल राशि की आवश्यकता होती है उसे ताप कहते हैं । ताप तत्पता या शीतलता की आपेक्षिक माप या सूचक होता है।
    • जिस तरह द्रव ऊँचे तल से नीचे तल की ओर बहता है, गैस ऊचे दाब से नीचे दाब की ओर बहती है ठीक उसी -तरह उष्मा भी अधिक ताप वाली वस्तु से कम ताप वाली वस्तु की ओर बहती हैं।
उष्मा और ताप में अंतर
  1. किसी वस्तु में उष्मा देने पर उसका ताप बढ़ता है और उष्मा निकालने पर उसका ताप घटता है।
  2. भिन्न-भिन्न वस्तुओं में उष्मा की मात्रा भिन्न-भिन्न रहने पर भी सभी का ताप एक समान हो सकता है।
  3. अगर दो वस्तु में ऊष्मा की मात्रा समान है तो यह जरूरी नहीं है कि उसका ताप समान हो, उसका ताप अलग-अलग भी हो सकता है।
  4. अगर दो वस्तु एक-दूसरे के सम्पर्क में हों तो ऊष्मा के बहाव का पता उनके ताप के ज्ञान से लगाया जाता है।
  • तापमापी (Thermometer)- जिस उपकरण से ताप का मापन किया जाता है उसे तापमापी या थर्मामीटर कहते हैं । विभिन्न प्रकार के थर्मामीटर-
    1. द्रव तापमापी - द्रव तापमापी का सिद्धान्त तापमान परिवर्तन के साथ द्रव के आयतन में परिवर्त्तन पर आधारित होता है । द्रव तापमापी प्रायः दो प्रकार के होते हैं-
      1. Alcohal Thermometer- इस तापमापी में Alcohal (एथिल एल्कोहॉल) का इस्तेमाल होता है। इस तापमापी का प्रयोग अति ठंडे क्षेत्रों में होता है क्योंकि एल्कोहॉल का गलनांक या हिमांक अत्यंत निम्न (- 144°C) होता है।
      2. Mercury Thermometer - इस तापमापी से प्रायः मानव शरीर का ताप मापा जाता है । इस तापमापी को क्लीनिकल थर्मामीटर भी कहते हैं।
    2. गैस तापमापी— इस तापमानी में गैस का इस्तेमाल होता है। यह दो प्रकार के होते हैं-
      1. स्थिर आयतन गैस तापमापी - यह तापमापी चार्ल्स के नियम (Pa Tif V - cons.) पर कार्य करता है ।
        • इस तापमानी में हाइड्रोजन गैस के स्थिर आयतन का दाब मापकर ताप का पता लगाया जाता है। हाइड्रोजन गैस तापमानी से लगभग - 200°C से 500°C तक का ताप मापन किया जाता है। 500°C से ऊपर के ताप मापना हो तो नाइट्रोजन गैस का प्रयोग होता है। वहीं - 200°C से नीचे के ताप मापने हेतु हीलियम गैस का प्रयोग होता है।
      2. नियत दाब गैस थर्मामीटर - यह थर्मामीटर गे-लुसाक का नियम (Va Tif P = cons.) पर कर्य करता है ।
    3. प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी - किसी धातु का विद्युत प्रतिरोध ताप बढ़ने से बढ़ जाता है । इसी सिद्धान्त का प्रयोग कर इस थर्मामीटर को बनाया जाता है जिनमें प्लेटिनम धातु का इस्तेमाल किया जाता है इस थर्मामीटर से 1000°C तक का ताप मापा जा सकता है।
    4. ताप युग्म तापमापी (Thermocouple Thermometor )- यह थर्मामीटर "सीबेक प्रभाव" के सिद्धान्त पर कार्य करता है इससे - 200°C से 1600°C तक का ताप मापा जा सकता है।
      • सीबेक प्रभाव – जब दो भिन्न-भिन्न धातु युग्मों (ऐंटिमनी - विस्मथ या लोहा - ताँबा ) के तार को जोड़कर बंद परिपथ बनाते हैं और दोनों संधियों (जोड़) को भिन्न-भिन्न ताप पर रखते हैं तो परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है । इस प्रभाव को सीबेक प्रभाव कहते हैं तथा उत्पन्न विद्युत धारा को ताप विद्युत धारा कहते हैं ।
    5. Total Radiation Pyrometer - यह थर्मामीटर स्टीफन के नियम पर कार्य करता है। इस थर्मामीटर से अत्यधिक उच्च ताप की माप की जाती है। इसके द्वारा लगभग 800°C - 3000°C तक के ताप को मापा जा सकता है ।
      • स्टीफन का नियम - उच्च ताप वाली वस्तु के प्रति एकांक पृष्ठ क्षेत्रफल से प्रति सेकेंड उत्सर्जित विकिरण की मात्रा उसके परमताप के चतुर्थ घात के समानुपाती होता है।
        E α T4
      • यह थर्मामीटर उच्च तप्त वाली वस्तु से उत्सर्जित विकिरण के आधार पर ही उसका ताप मापता है।
    6. Optical Pyrometer— यह थर्मामीटर भी अत्यधिक उच्च तापमान को मापने हेतु प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा 800°C से 2700°C तक का ताप मापा जा सकता है यह थर्मामीटर "वीन के विकिरण संबंधि विस्थापन नियम पर कार्य” करता है।
      • वीन का सिद्धान्त- तप्त वस्तु से उत्सर्जित विकिरण में सर्वाधिक ऊर्जा वाले विकिरण का तरंग दैर्ध्य तथा वस्तु के परमताप का गुणनफल हमेशा नियत रहता है । 
        λ × T = constant
तापमान के पैमाने (Scales of Thermometer)
  • किसी भी तापमान मापन हेतु दो नियत बिंदु (Fixed Point) लेना आवश्यक होता है और यह नियत बिंदु को सदैव समान ताप पर होने वाली भौतिक परिघटना से संबंधित किया जाना जरूरी होता है।
    • लगभग सभी पैमाने में lower fixed point में पानी के बर्फ में बदलने के ताप तथा Higher Fixed Point के रूप में उबलते जल का ताप को कुल मान देकर निर्धारित किया जाता है। तापमान के विभिन्न स्केल निम्न है -
      1. Centrigrade or Celeius Scales- इसको फ्रांस के वैज्ञानिक सेल्सीयस ने बनाया था । इसका Lower Point Fixed Point 0°C तथा Higher Point Fixed Point 100°C होता है तथा दोनों Fixed Point की दूरी 100 बराबर भागों में बटाँ होता है ।
      2. Fahrenheit Scale - इसको इंग्लैंड के वैज्ञानिक फेरनहाईट ने बनाया था। इसका Lower Fixed Point 32°F तथा Higher Fixed Point 212°F होता है तथा इनके बीच की दूरी 180 बराबर भागों में बटाँ होता है। डॉक्टरी थर्मामीटर प्रायः फेरनहाईट स्केल में ही होता है ।
      3. केल्वीन स्केल- इसका Lower Fixed Point 273.15K होता है तथा Higher Fixed Point 373.15K होता है एवं दोनों बिंदु को बीच का भाग 100 बराबर भागों में बटाँ होता हैं इस स्केल का ताप का परम स्केल भी कहते हैं । 
  • Celcius, Fahrenheit तथा Kelvin Scales के बीच संबंध-

    • - 40°C ऐसा तापक्रम है जहाँ डिग्री सेंटीग्रेड और फॉरेनहाइट का पाठ्यांक एक ही होता है |
    • मानव शरीर का सामान्य ताप 36.9°C या 98.6°F या 310K होता है ।
  • त्रिक बिंदु (Triple Point) - किसी पदार्थ का त्रिक बिंदु वह ताप होता है जिसपर पदार्थ की तीनों अवस्था (ठोस, द्रव, गैस) 
  • एक साथ संतुलन में रहती है। पानी का त्रिक बिंदु 273.16K होता है I

उष्मीय प्रसार (Thermal Expansion )

  • उष्मा पाकर वस्तु का अपने आकार में बढ़ जाना ही उष्मीय प्रसार कहलाता है । उष्मीय प्रसार ठोस में सबसे कम तथा गैस में सबसे अधिक होता है। ठोस को गर्म करने पर उसकी लंबाई तथा आयतन दोनों में परिवर्त्तन होता है परंतु द्रव एवं गैस में केवल आयतन के परिवर्तन होता है ।
  • समान मात्रा में उष्मा दिये जाने पर भिन्न-भिन्न पदार्थों का प्रसार भिन्न-भिन्न अनुपात में होता है । किस पदार्थ में कितना प्रसार होगा यह प्रसार गुणांक पर निर्भर करता है। 
  1. रेखीय प्रसार गुणांक– 1°C तापमान बढ़ाने पर किसी वस्तु की एकांक लंबाई में होने वाली वृद्धि को रेखीय प्रसार गुणांक (α) कहते हैं ।

    प्रमुख पदार्थ का रेखीय प्रसार गुणांक-
    (i) ताँबा – 1.7 × 10-5K-1
    (ii) पीतल - 1.8 × 10-5K-1
    (iii) लोहा - 1.2 × 10-5K-1
    (iv) ऐलुमिनियम – 2.3 × 10-5K-1 
    (v) चाँदी - 1 9 × 10-5 K-1
    (vi) सीसा - 0.29 × 10-5K-1
  2. क्षेत्रीय प्रसार गुणांक– 1°C ताप को बढ़ाने पर किसी वस्तु के एकांक क्षेत्रफल में होने वाली वृद्धि को क्षेत्रीय प्रसार गुणांक (β) कहा जाता है।

  3. आयतन प्रसार गुणांक- 1°C ताप को बढ़ाने पर किसी वस्तु के एकांक आयतन में होने वाली वृद्धि को आयतन प्रसार गुणांक (ϒ) कहा जाता है। 

    • प्रमुख पदार्थ का आयतन प्रसार गुणांक -
      1. इनवार - 0.27 × 10-5 K-1
      2. पैराफीन - 58.8 × 10-5 K-1
      3. पानी - 20.7 × 10-5 K-1
      4. पारा - 18.2 × 10-5 K-1
      5. पाइरेक्स काँच - 1 × 10-5 K-1
      6. साधारण काँच - 2.5 × 10-5 K-1
  • विभिन्न प्रसार गुणांक का आपस में संबंध-

उष्मीय प्रसार के उदाहरण
  1. रेल की पटरियाँ बिछाते समय बीच के जोड़ पर कुछ खाली जगह छोड़ दी जाती है । इसका कारण है कि पटरियाँ लोहे (इस्पात) की बनी होती है तथा गर्म होने पर फैलती है।
  2. काँच की बोतल में जब कॉर्क फॅस जाती है तो बोतल की गर्दन को थोड़ा गर्म करते हैं जिससे गर्दन ढ़ीली हो जाती है तथा कॉर्क आसानी से बाहर निकल जाते हैं।
  3. वलय (Ring) को गर्म करने पर वह प्रसारित होकर फैल जाएगी इसी सिद्धान्त का उपयोग लकड़ी के पहिये पर लोहे के हाल चढ़ाने में किया जाता है ।
  4. लोहे के पुल बनाते समय गर्डरो को केवल एक सिरे पर कसते हैं उनके दूसरे सिरे को ठोस बेलन पर रख देते हैं ताकि . ताप बढ़ने तथा घटने से वे स्वतंत्रापूर्वक फैल एवं सिकुड़ सके ।
  5. मोटे काँच के गिलास में खौलता जल डालने पर गिलास चटक जाता है। इसका कारण यह है कि गर्म जल डालने पर काँच की दिवारों की अंदर की सतह तुरंत गर्म होकर बढ़ जाती है जबकि काँच के कुचालक होने पर बाहर की सतह उतनी ही बनी रहती है अतः अंदर एवं बाहर के प्रसार अलग-अलग होने के कारण गिलास चटक जाता है I
  6. जब दो भिन्न धातु की पट्टी जिनके तापीय प्रसार गुणांक अलग-अलग है, को एक साथ जोड़कर गर्म करने पर असमान प्रसार के कारण वे मुड़ जाएगी। ज्यादा फैलने वाली धातु की पट्टी उत्तलाकार सतह पर होगी और कम फैलने वाली धातु की पट्टी अवतलाकार सतह पर होगा।
  7. यदि किसी धनाभ के भीतर एक मोलाकार छिद्र है तो गर्म करने पर धनाभ के साथ गोलाकार छिंद्र का भी " यानि छिद्र बड़ा हो जाएगा।
    • गर्म करने पर तापीय प्रसार होने से आयतन बढ़ता है जिससे वस्तु का घनत्व घटता है वही तापमान कम होने पर आयतन घटता है और घनत्व बढ़ जाता है।
जल का असमान्य प्रसार
  • सामान्यतः पदार्थों को गर्म करने पर उनमें प्रसार होता है, तथा ठंडा करने पर उसमें संकुचन होता है परन्तु इसके अपवाद है- जल ।
  • जल को ठंडा करने पर 4°C तक तो उसका संकुचन होता है जिससे आयतन घटता है और घनत्व बढ़ता है परंतु 4°C से नीचे और ठंडा करने पर आयतन बढ़ने लगता है और घनत्व घटने लगता है । जब 0°C पर जल बर्फ बनता है तो उसका आयतन बढ़ जाता है, घनत्व घट जाता है ।
ऊष्मा के मात्रक
  • उष्मा का SI मात्रक जूल है। इसके अतिरिक्त उष्मा का I मात्रक कैलोरी है। उष्मा के विभिन्न मात्रक के बीच संबंध-
    1 कैलोरी = 4.2 जूल
    1 किलो कैलोरी 103 कैलोरी = 4200 जूल
    1 ब्रिटिश थर्मल = 252 कैलोरी
    1 थर्म = 105 ब्रिटिश थर्मल 
विशिष्ट उष्माधारित (Specific Heat Capacity )
  • किसी पदार्थ के 1 किलोग्राम द्रव्यमान का ताप 1K या 1°C से बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा को उस पदार्थ की विशिष्ट उष्माधारिता कहते हैं ।
    • विशिष्ट उष्मा धारिता का मात्रक जूल प्रति किलोग्राम प्रति केल्वीन (J kg-2 k-1 ) है तथा इसकी विमा [L2T-2K-1 ] है |
  • प्रमुख की विशिष्ट उष्मा धारिता का मान Jkg-1 K-1 में

  • पानी की विशिष्ट उष्मा धारिता अधिक होती है यही कारण है कि अन्य पदार्थों के मुकाबले पानी धीरे-धीरे गर्म तथा धीरे-धीरे ठंडा होता है।
  • उष्मा धारिता (Heat Capacity)- किसी वस्तु के किसी भी द्रव्यमान के नमूने का ताप IK या I°C से बढ़ाने हेतु लगे उष्मा की मात्रा को उस वस्तु की उष्मा धारिता कहते हैं। इसका मात्रक जूल प्रति केल्वीन (Jk-1) है।
    • उष्मा का परिणाम मापने हेतु जिस बरतन का उपयोग किया जाता है उसे कैलोरीमीटर कहते हैं। कैलोरीमीटर का निर्माण ताँबे से किया जाता है ।
न्यूनटन का शीतलन नियम
  • जब वस्तु को गर्म कर उसे उसे माध्यम रखते हैं जिसका ताप वस्तु के ताप से कम है तो वस्तु धीरे-धीरे ठंडा होने लगता है। वस्तु का ठंडा होने के संबंध में न्यूटन ने एक नियम दिया जो न्यूटन का शीतलन नियम कहलाता है।
  • न्यूटन का शीतलन नियम- वस्तु के उष्मांक्षय की दर (ठंडा होने) वस्तु के ताप तथा वस्तु के घेरने वाले माध्यम के ताप का अनुक्रमानुपाती होता है यह नियम तब लागू होता है, जब ताप का अन्तर बहुत कम हो ।
  • वस्तु के उष्माहानि की दर वस्तु की खुली सतह के क्षेत्रफल और सतह की प्रकृति पर भी निर्भर करती है। शीतलन की दर वस्तु स्तु की सतह के क्षेत्रफल के बढ़ने पर बढ़ती है और घटने पर घटती है।
  • एक गर्म वस्तु द्वारा 90°C से 80°C तक ठंडा होने में लगा समय उसके 40°C से 30°C तक ठंडा होने में लगा समय से कम होगा।
अवस्था. परिवर्त्तन (Change of State)
  • किसी ताप पर किसी पदार्थ का एक अवस्था से दूसरे में परिवर्तन होना अवस्था परिवर्तन कहलाता है।
  • गलनांक (Melting Point) - वह निश्चित ताप जिसपर कोई ठोस द्रव में बदलता है, पदार्थ का गलनांक कहलाता है ।
  • हिमांक (Freezing Point) - वह ताप बिंदु जिस पर पदार्थ का द्रव अवस्था ठोस में परिवर्तित होता है हिमांक कहलाता है। प्रायः हिमांक एवं गलनांक एक ही ताप बिंदु होते हैं और इनपर ठोस और द्रव परस्पर तापीय साम्य पर होते हैं ।
  • गलनांक एवं हिमांक को प्रभावित करने वाला कारक-
    1. वैसे पदार्थ जिसमें उष्मा देने से प्रसारित होता है इनका गलनांक दाब बढ़ाने से बढ़ता है ।
    2. कुछ पदार्थ (जैसे- बर्फ, ढला हुआ लोहा, एण्टीमनी स्मिथ, पीतल आदि) को ऊष्मा देने पर इनमें संकुचन होता है, ऐसे पदार्थ का गलनांक दाब बढ़ाने से घटता है।
    3. अशुद्धि मिलाने पर गलनांक एवं हिमांक कम हो जाते हैं।
क्वथनांक (Boiling Point) तथा संघनन (Condensation)-
  • वह निश्चित ताप जिस पर पदार्थ की द्रव अवस्था गैस अवस्था में परिवर्तित होती है क्वथनांक कहलाता है । क्वथनांक वही ताप बिंदु है जिस पर उसी पदार्थ की गैस अवस्था द्रव अवस्था में परिवर्तित होती है, यह प्रक्रिया संघनन कहलाता है। क्वथनांक तथा संघनन बिंदु एक ही ताप बिंदु है और इस ताप पर पदार्थ के द्रव तथा गैस तापीय साम्य में होते हैं।
  • क्वथनांक को प्रभावित करने वाला कारक-
    1. दाब बढ़ाने से क्वथनांक का मान बढ़ जाता है ।
    2. अशुद्धि मिलाने पर भी क्वथनांक का मान बढ़ जाता है ।
गुप्त उष्मा (Latent heat)
  • जब पदार्थ का अवस्था परिवर्तन होता है । (गलनांक, क्वथनांक के समय) तो पदार्थ को दी गई उष्मा उसका ताप को नहीं बढ़ता है, यह उष्मा पदार्थ के अवस्था बदलने में ही खर्च हो जाता है। यह उष्मा गुप्त उष्मा कहलाता है। अतः किसी वस्तु ,I गुप्त उष्मा, उष्मा का वह परिमाण है जो बिना ताप बदले उसे एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदलने के लिये आवश्यक है ।
गलन की गुप्त उष्मा (Lateut Heat of -Fusion) :
  • गलनांक पर किसी ठोस का 1kg द्रव्यमान बिना ताप बदले ठोस से द्रव में बदलने के लिये आवश्यक उष्मा के परिमाण को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। गलन के परिमाण को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं । गलन की गुप्त उष्मा का SI मात्रक जूल / किलोग्राम (Jkg-1) है।
  • बर्फ की गलन की गुप्त ऊष्मा का मान 336 × 103 J kg-1 है। इसका अर्थ है 1 kg बर्फ को 0°C पर ही पानी में बदलने हेतु 336 × 103 जूल उष्मा लगेगी ठीक इसके विपरित 0°C पर 1kg पानी जब बर्फ बनेगा तो 336 × 103 J उष्मा त्याग करेगा ।
  • चाँदी की गलन की गुप्त उष्मा का मान 102 × 103 J kg-1 है तथा सोना के गलन के गुप्त उष्मा का मान. 64.4 × 103 Jkg-1 है।
वाष्पण की गुप्त उष्मा (Latent Heat of Vaporization)
  • क्वथनांक पर किसी द्रव का 1 kg द्रव्यमान बिना ताप बदले द्रव से वाष्प में बदलने के आवश्यक उष्मा का परिमाण वाष्पण की गुप्त उष्मा कहलाता है, इसका भी मात्रक J kg-1 है। 
  • पानी के वाष्पण के गुप्त उष्मा का मान 2260 × 103 J kg-1 है। इसका अर्थ है 100°C ताप 1 kg पानी को वाष्प में बदलने हेतु 2260 × 103 जूल उष्मा देना पड़ेगा ठीक इसके विपरित 100°C ताप पर i kg वाष्प को पानी में बदलने हेतु 2260 × 103 जूल उष्मा का त्याग करेगी।
वाष्पीकरण (Vaporisation)
  • द्रव से वाष्प में परिणत होने की प्रक्रिया वाष्पीकरण कहलाता है। वाष्पीकरण दो प्रकार से होता है। (i) वाष्पण (Evaporation) तथा (ii) क्वथन (Boiling) I
    1. वाष्पण- द्रव का ऊपरी पृष्ठ का वाष्प में परिणत होना ही वाष्पण कहलाता है । वाष्पण की क्रिया निम्न बातों पर निर्भर करता है-
      • द्रव के खुले पृष्ठ का क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पण की क्रिया अधिक होती है।
      • द्रव का ताप जितना अधिक होता वाष्पण की क्रिया उतनी ही अधिक होती है।
      • द्रव का क्वथनांक जितना ही कम होता है उसका वाष्पण उतना ही अधिक होता है ।
      • द्रव के पृष्ठ के ऊपर की वायु की गति तेज है तो वाष्पण भी तेजी से होता है ।
      • द्रव के खुले पृष्ठ पर वायु का दाब जितना कम होगा वाष्पण उतनी तेजी से होगी। यही कारण है कि निर्वात में वाष्पण की क्रिया सबसे अधिक तेजी से होता है ।
      • यदि द्रव के खुले पृष्ठ पर वाष्प इकट्ठा हो रहा है तो द्रव के पृष्ठ के ऊपर वाष्प का दाब बढ़ेगा जिससे वाष्पण की क्रिया धीमी पड़ जाएगी।
    2. क्वथन– जब किसी द्रव को गर्म किया जाता है तो एक निश्चित ताप पर द्रव के पूरे भाग में वाष्प बनने लगता है। इस क्रिया को क्वथन कहते हैं तथा जिस ताप पर ऐसी क्रिया होती है उसे क्वथनांक कहते हैं । क्वथन निम्न बातों पर निर्भर करता है-
      • द्रव के वाष्प पर दाब का मान बढ़ने से द्रव का क्वथनांक बढ़ता है।
      • द्रव में अशुद्धि रहने से द्रव का क्वथनांक बढ़ जाता है।
वाष्पण (Evaporation)
  1. मिट्टी के घड़े रंध्रमय होती है जिससे घड़ा में भरा पानी ऊपरी पृष्ठ तक आ जाता है। यह पानी वाष्पित होता रहता है और वाष्पीत होने के लिये उष्मा भीतर के पानी से लेता है जिससे भीतर का पानी ठंडा रहता है।
  2. वाष्प बनने के लिए पसीना शरीर से ही आवश्यक ऊष्मा लेता है। शरीर के उष्मा कम होने से हमें ठंडक का अनुभव होता है। पंखे चलाने से वाष्पण की दर बढ़ जाती है जिससे और भी शीतलता का अनुभव होता है।
  3. ईथर या स्पिरिट को हथेली पर रखने से ठंडक का अनुभव होता है, इसका कारण भी वाष्पण है ।
  4. द्रव को ठंडा करने हेतु खुले पृष्ठ वाले वर्त्तन में रखा जाता है और पंखा चला दिया जाता है जिसे वाष्पण की दर बढ़ जाती है और द्रव शीघ्र ठंडा हो जाता है।
  5. कमरे को ठंडा करने हेतु दरवाजे, खिड़की पर खास प्रकार के ट्टी लगाकर उस पर पानी छिड़कते हैं। यह पानी वाष्पीत होने के लिए कमरे में अन्दर के हवा से उष्मा लेता है और हवा को ठंडी कर देता है ।
  • क्रांतिक ताप (Critical Temperature)- किसी गैस या वाष्प का क्रांतिक ताप वह ताप है जिसके ऊपर किसी भी ताप पर उस गैस या वाष्प को द्रवित नहीं किया जा सकता है चाहे उस पर कितना ही दाब क्यों न आरोपित किया जाय।
    • क्रांतिक ताप से नीचे के ताप पर गैस या वाष्प पर दाब आरोपित कर उसे द्रवित किया जा सकता है। CO2 का क्रांतिक दाब 31°C है।
  • क्रांतिक दाब (Critical Pressure)- क्रांतिक ताप पर कोई गैस जिस न्यूनतम दाब से द्रवित होता है, उस दाब को क्रांतिक दाब कहते हैं। CO2 का क्रांतिक दाब 73 atm है ।
  • क्रांतिक आयतन (Critical Volume)- क्रांतिक ताप एवं क्रांतिक दाब पर किसी गैस के एक किलोग्राम के द्रव्यमान का आयतन उस गैस का क्रांतिक आयतन कहलाता है।
    Note:- गैस और वाष्प में कोई निश्चित भेद नहीं है। सामान्यतः गैस क लिए वाष्प या वाष्प के लिये गैस शब्द का इस्तेमाल होता है।
उष्मा का संचरण (Gransmission o Heat)
  • ताप के अंतर रखने के कारण उष्मा का एक वस्तु से दूसरे वस्तु में स्थानांतरण ही उष्मा का संरचरण कहलाता है। उष्मा का संरचरण की तीन विधि है - 1. चालन (Conduction), 2. संवहन, 3. विकिरण ।
    1. चालन (Conduction )- इस विधि से पदार्थ के कण (अणु) अपना स्थान बदले उष्मा को दूसरे कण तक पहुँचा देते हैं। ठोस पदार्थ चालन विधि के द्वारा ही गर्म होते हैं ।
      • ठोस के अणु एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं अतः ठोस में उष्मा स्थानांतरण केवल चालन विधि द्वारा होता है।
    2. संवहन (Convection ) - इस विधि में पदार्थ के कण स्वंय स्थान बदलकर गर्म क्षेत्र से ठंडे क्षेत्र की ओर चलकर उष्मा को दूसरे कण तक पहुँचाते हैं। द्रव तथा गैसीय पदार्थ इसी विधि से गर्म होते हैं।
      • द्रव एवं गैस को जब गर्म किया जाता तो गर्म क्षेत्र वाला कण ठंडे क्षेत्र में तथा ठंडे क्षेत्र गर्म क्षेत्र की ओर आता है। इस कारण द्रव एवं गैस में एक प्रकार की धारा बन जाती है जिसे संवहन धारा (Convection Current) कहते हैं। इसी संवहन धारा के कारण गैस का द्रव माध्यम गर्म होता है ।
      • द्रव एवं गैस के अतिरिक्त संवहन धारा प्रकृति में भी पाये जाते हैं- स्थलीय वायु, समुद्री वायु, व्यापारिक वायु सभी संवहन धारा के उदाहरण हैं ।
      • धातु में मुक्त इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं जो गति करने हेतु स्वतंत्र होता है अतः धातु में उष्मा का स्थानांतरण चालन तथा संवहन दोनों ही विधि से होता है।
    3. विकिरण (Radiation )- जब उष्मा का स्थानांतरण बिना किसी माध्यम के ही होता है तो इस विधि को विकिरण कहते हैं ।
      • पृथ्वी पर सूर्य का उष्मा विकिरण विधि से ही पहुँचता है । विकिरण द्वारा उष्मा का संचरण निर्वात् में भी हो सकता है।
      • विकिरण विधि द्वारा उष्मा का संरचरण प्रकाश की तरह विद्युत-चुबंकीय तरंग की रूप में होता है ।
      • चालन तथा संवहन द्वारा उष्मा धीरे-धीरे संचरित होता है लेकिन विकिरण द्वारा उष्मा का संरचरण प्रकाश की चाल से होता है ।
      • विकिरण द्वारा उष्मा संचरण का मार्ग सरल रैखिक होता है जबकि चालन एवं संवहन विधि में उष्मा का संचरण टेढ़े-मेढ़े मार्ग से भी संभव है।
ऊष्मा चालकता (Thermal Conductivity)
  • सुचालक एवं कुचालक पदार्थों की भिन्नता का अध्ययन करने हेतु जिस भौतिक राशि की आवश्यकता होती है, उसे उष्मा चालकता कहते हैं या चालन विधि से उष्मा संचरित होने का गुण ही उष्मा चालकता कहलाता है ।
  • पदार्थ के उष्मा चालकता का मान जितना अधिक होता है उस पदार्थ में उष्मा का आदान-प्रदान उतने ही सुगमता से होता है।
  • SI मात्रक में उष्मा चालकता की परिभाषा किसी पदार्थ का उष्मा चालकता, उष्मा का वह परिमाण है जो स्थायी अवस्था में उस पदार्थ के एक वर्गमीटर क्षेत्रफल तथा । मीटर लंबी छड़ से प्रति सेकंड प्रवाहित होती है यदि छड़ के दोनों सिरों के बीच तापांतर 1 K हो तथा उष्मा का संचरण छड़ के सिरों के लंबवत हो ।
  • उष्मा चालकता का SI मात्रक वाट प्रति मीटर प्रति केल्विन (Wm-1 k-1 ) है तथा इसकी विमा (MLT-3 K-1 )
विकिरण (Radiation)
  • विकिरण शब्द का उपयोग दो अर्थ में होता है एक विकिरण उष्मा स्थानांतरण की विधि है और दूसरा विकिरण से तात्पर्य विकिरण ऊर्जा से है ।
  • विकिरण ऊर्जा (Radiant energy)- जब किसी वस्तु को गर्म कर निर्वात् में रखा जाता है तो उष्मा का पारा होता है, और यह क्षय विकिरण विधि से ही होता है क्योंकि निर्वात् में चालन या संवहन संभव नहीं है। अतः गर्म वस्तु के पृष्ठ से वस्तु के ताप के कारण जो ऊर्जा विकरित होती है, उसे विकिरण ऊर्जा कहते हैं। विकिरण ऊर्जा विद्युत चुंबकीय तरंग के रूप. तथा इसी रूप में संचरित होती है। -पुष्पा भी विकिरण ऊर्जा का का एक रूपे हैं।
  • निम्न ताप पर विकिरण की दर अल्प होती है ज्यों-ज्यों ताप बढ़ता जाता है विकिरण की दर तीव्र रूप से बढ़ती जाती है I
बोलोमीटर (Bolometer)
  • बोलोमीटर ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा विकिरण ऊर्जा को मापा जाता है। इसकी खोज एस. पी. लैंगले ने 1881 ई. में किया था | बोलोमीटर दो प्रकार के होते हैं ।
    1. Surface Bolometer— इस बोलोमीटर का व्यवहार सम्पूर्ण विकिरण की माप के लिए किया जाता है।
    2. Linear Bolometer- इस बोलो मीटर का इस्तेमाल काली वस्तु (Black Body) द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विकिरण ऊर्जा के माप के लिए होता है।
किरचॉफ का नियम
  • किरचॉफ के नियम के अनुसार किसी निश्चित ताप पर किसी दी गई तरंगदैर्ध्य के लिए सभी वस्तु की उत्सर्जन क्षमता तथा अवशोषण क्षमता का अनुपात एक ही होता है ।
  • किरचॉफ के नियम का सीधा अर्थ यह है विकिरण का अच्छा अवशोषण करता है अवशोषक अच्छे उत्सर्जक भी होते हैं। यदि कोई वस्तु किसी तरंगदैर्ध्य वह उसी तरंगदैर्ध्य के विकिरण का अच्छा उत्सर्जन भी करेगा ।
  • उत्सर्जन क्षमता- किसी निश्चित ताप पर किसी पृष्ठ की उत्सर्जन क्षमता उसके प्रति एकांक क्षेत्रफल द्वारा प्रति सेकंड उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा के कुल परिमाण बराबर होता है। इसे संकेत द्वारा निरूपित किया जाता है। इसका SI मात्रक Jm-5 S-1 या Wm-2 है।
  • अवशोषण क्षमता– किसी पृष्ठ द्वारा किसी समय में अवशोषित विकिरण ऊर्जा का परिमाण तथा उतने ही समय में उस पृष्ठ पर आपतित कुल विकिरण ऊर्जा के परिमाण के अनुपात को अवशोषण क्षमता कहते हैं इसे a से सूचित किया जाता है। चूँकि a ऊर्जा के मात्रा का अनुपात है अतः इसका कोई मात्रक नहीं होता है ।
  • कृष्ण पिंड (Black Body ) - यदि किसी वस्तु पर आपतित अनी तरंगदैर्ध्य के विकिरण पूर्णतः वस्तु द्वारा अवशोषित हो जाए तथा आपतित विकिरण का कोई भी भाग न तो परावर्तित हो और न संचरित हो ऐसी वस्तु को आदर्श कृष्ण पिंड ( Perfect Black Body) कहा जाता है।
  • कोई भी वस्तु पूर्ण कृष्ण पिंड नहीं हो सकता है। कुछ सीमा तक दीप कालिख (काजल), प्लैटिनम के कालिख से लेपित सतह को कृष्ण पिंड माना जा सकता है परंतु ये भी 1% विकिरण को परावर्तित कर देती है ।
  • आदर्श कृष्ण पिंड एक पूर्ण अवशोषक के साथ एक पूर्ण विकिरक भी कहा जाता अतः आदर्श कृष्ण पिंड को जब ऊँचे ताप तक गर्म किया जाता है तो यह सभी संभव तरंगदैर्ध्य के विकिरण को उत्सर्जित करता है। पूर्ण कृष्ण पिंड के अवशोषी क्षमता का मान 1 होता है ।
थर्मस फ्लास्क (Thermos Flask)
  • थर्मस फ्लास्क एक ऐसा पात्र है जिसमें बहुत देर तक गर्म वस्तु गर्म तथा ठंडी वस्तु ठंडी रहती है। इसका आविष्कार डेवार नामक वैज्ञानिक ने किया था ।
  • थर्मस फ्लास्क में उष्मा का तीनों विधि द्वारा स्थानांतरण न्यूनतम होने के कारण गर्म वस्तु बहुत देर तक गर्म तथा ठडी वस्तु बहुत देर तक ठंडी रहती है।
उष्मागतिकी (Thermodynamics)
  • भौतिकी की वह शाखा जिसमें उष्मा एवं यांत्रिक ऊर्जा के बीच संबंध तथा उनेक परस्पर पर रूपांतरण का अध्ययन किया जाता है उष्मा गतिकी कहलाता है।
  • सर्वप्रथम जूल ने अपने प्रयोग द्वारा उष्मा एवं कार्य के बीच संबंध स्थापित किया तथा यह भी सिद्ध किया की यांत्रिक ऊर्जा के अलावे रसायनिक तथा विद्युत ऊर्जा को भी उष्मा में बदला जा सकता है। जूल के अनुसार अगर W यांत्रिक कार्य से H उष्मा उत्पन्न होती है तो
            W ∝ H
    या     W = JH
            J को नियतांक या उष्मा का यांत्रिक तुल्यांक कहते हैं।
  • उष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम - यदि दो वस्तु तीसरी वस्तु से अलग-अलग तापीय साम्य की अवस्था में हो तो वह दोनों वस्तु भी आपस में तापीय साम्य की अवस्था में होगी।
  • तापीय साम्य (Thermal Equilibrium)– जब भिन्न ताप वाली दो वस्तु को संपर्क में लाते हैं तो उष्मा का प्रवाह अधिक ताप से कम ताप की ओर होता है और तब तक होता है जब तक दोनों का ताप बराबर न हो जाए। जब वस्तु का ताप समान हो जाता है तो उसी स्थिति में तापीय साम्य कहा जाता है I
  • उष्मागति का पहला नियम- उष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा-संरक्षण नियम का ही एक रूप है जिसको शब्दों में इस प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है- यदि कार्य कर सकने वाले किसी निकाय द्वारा यदि उष्मा अवशोषित हो तो अवशोषित उष्मा का परिमाण निकाय द्वारा किये गये वाह्य कार्य एवं उसकी आंतरिक उर्जा में वृद्धि के योग के बराबर होते हैं ।
    dQ = du + dw
    dQ = दिया गया ऊष्मा
    dU = आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि 
    dW = निकाय द्वारा किया गया बाह्य कार्य
  • उष्मा गति की दूसरा नियम - उष्मागतिकी का दूसरा नियम इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि किस दिशा उष्मीय ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। इस नियम को दो तरीके से व्यक्त किया जाता है-
    1. क्लाउसियस कथन- विना किसी बाहरी ऊर्जा के स्त्रोत से कियी यन्त्र द्वारा ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु में उष्मा का स्थानांतरण असम्भव है ।
    2. केल्वीन का कथन— सबसे ठंडे वातावरण में किसी वस्तु को इस वातावरण के ताप से कम ताप तक ठंडा करके यांत्रिक कार्य प्राप्त करना असंभव है ।
  • ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम- इस नियम का प्रतिपादन नर्स्ट नामक वैज्ञानिक ने किया था । इस नियम के अनुसार- परमशून्य ताप कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न

1. भिन्न-भिन्न व्यास के ताँबे के दो गोलों को भट्ठी से बाहर निकाला जाता है और समान दशा में दोनों को ठण्डा होने दिया जाता है, तो निम्न में से कौन सही है ?
(a) बड़े गोला के अपेक्षा छोटा गोला जल्दी ठण्डा होगा
(b) बड़ा गोला जल्दी ठण्डा होगा
(c) दोनों गोला समानदर से ठण्डा होगा
(d) छोटा गोला का ताप पहले गिरेगा और तब फिर बढ़ना शुरू होगा।
2. तप्त वस्तु से ऊष्मा की क्षति निर्भर करती है-
(a) केवल वस्तु के ताप पर
(b) केवल वातावरण के ताप पर
(c) वस्तु तथा उसके बगल के वातावरण के तापान्तर पर
(d) उपर्युक्त में कोई सही नहीं है
3. जल का कुछ द्रव्यमान और बर्फ का कुछ द्रव्यमान जो 0°C पर है उन्हें एक साथ मिला दिया जाता है तो ताप 
(a) गिरेगा
(b) बढ़ेगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा 
(d) जल तथा बर्फ के सापेक्षिक द्रव्यमान पर निर्भर करेगा
4. बर्फ का ताप 0°C से 4°C तक लाया जाता है। बर्फ पिघलने से जो पानी बनता है उसका घनत्व-
(a) बढ़ता जाएगा
(b) घटना जाएगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) न घटेगा, न ही बढ़ेगा
5. पानी का ताप 4°C से बढ़ाया जाता है। इसका घनत्व -
(a) बढ़ता जाएगा
(b) घटता जाएगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) न ही बढ़ेगा, न ही घटेगा
6. आपको दो प्याले में चाय दी गई है, एक अपने लिए दूसरा आपके मित्र के लिए। आपको अपने मित्र के लिए कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी है तो आप निम्न में से कौन-सा विकल्प आजमाएंगे ?
(a) चाय में चीनी डालकर मित्र की प्रतीक्षा करेंगे
(b) बिना चीनी डालकर मित्र की प्रतीक्षा करेंगे
(c) उपर्युक्त दोनों विकल्प हो सकता है इससे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
(d) कोई भी विकल्प उपर्युक्त नहीं है
7. वह ताप जिस पर बर्फ, पानी और इसका वाष्प संतुलन में रहे हैं, कहा जाता है-
(a) हिमांक
(b) क्वथनांक
(c) क्रांतिक बिन्दु
(d) त्रिक बिंदु
8. निम्न ताप मापने हेतु तापमापीय पदार्थ के रूप में सबसे उपर्युक्त गैस है-
(a) ऑक्सीजन
(b) टिलीयम
(c) नाइट्रोजन
(d) हाइड्रोजन
9. नियम आयतन थर्मामीटर जिस नियम पर कार्य करता है,वह है-
(a) पास्कल का नियम 
(b) वॉयल का नियम 
(c) आर्कमिडीज का नियम 
(d) चार्ल्स का नियम
10. जल को 0°C से 50°C तक गर्म किया जाता है तो इसका आयतन-
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) अपरिवर्तित रहता है
(d) पहले घटता है, फिर बढ़ता है
11. ताँबे की प्लेट में एक वृत्ताकार छिद्र है, ताँबे की प्लेट गर्म करने पर छिद्र का व्यास-
(a) सदैव घटता है
(b) सदैव बढ़ता है
(c) सदैव समान रहता है
(d) इनमें से कोई नहीं
12. धातु से बनी ठोस गेंद में एक कोटर (Cavity) है, गेंद को गर्म करने पर कोटर का आयतन -
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) अपरिवर्तित रहता है
(d) इसका आकार बदल जाता है
13. द्रवण के समय वस्तु का ताप-
(a) नियत रहता है
(b) बढ़ता है
(c) घटता है
(d) इनमें से कोई नहीं
14. सिर दर्द से परेशान आदमी को बाम से आराम पहुँचता है क्योंकि-
(a) इसमें ठण्डक उत्पन्न करनेवाला एक अवयव होता है।
(b) यह वाष्पीशील होता है
(c) इसका ताप मनुष्य के शरीर के ताप से कम होता है
(d) यह ठण्डा होता है,
15. वस्तु को गर्म करने पर उसके अणुओं-
(a) की चाल बढ़ जाएगी
(b) की ऊर्जा कम हो जाएगी
(c) का भार बढ़ जाएगा
(d) का भार घट जाएगा.
16. किसी वस्तु का ताप किसका सूचक है ?
(a) उसके अणुओं की कुछ ऊर्जा का
(b) उसके अणुओं की औसत ऊर्जा सत् ऊर्जा का
(c) उसके अणुओं के कुल वेग का
(d) उसके अणुओं के औसत गतिज ऊर्जा का
17. वस्तु का ताप सूचित करता है कि सम्पर्क करने पर ऊष्मा-
(a) उस वस्तु में अपेक्षाकृत अधिक ताप पर की वस्तु में प्रवाहित होगी ।
(b) अपेक्षाकृत कम ताप की वस्तु में उस वस्तु से प्रवाहित होगी ।
(c) उस वस्तु से पृथ्वी में प्रवाहित होगी ।
(d) पृथ्वी से उस वस्तु में प्रवाहित होगी ।
18. किसी वस्तु के ताप में वृद्धि का अर्थ है कि वस्तु की - 
(a) गतिज ऊर्जा बढ़ गई है
(b) स्थितिज ऊर्जा बढ़ गई है
(c) यांत्रिक ऊर्जा बढ़ गई है
(d) ऊष्मीय ऊर्जा बढ़ गई है
19. जब किसी वस्तु को ठंडा किया जाता है तब उसके अणुओं- 
(a) की ऊर्जा बढ़ जाती है 
(b) की चाल घट जाती है
(c) का द्रव्यमान बढ़ जाता है
(d) का भार बढ़ जाता है
20. ऊष्मा (Heat) एक प्रकार की ऊर्जा है जिसे कार्य में बदला जा सकता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण सबसे पहले किसने दिया 
(a) डेवी
(b) रमफोर्ड
(c) सेल्सियस
(d) फारेनहाइट
21. किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम बर्फ के दो टुकड़ों को आपस में पिसकर पिघला दिया ?
(a) रमफोर्ड
(b) जूल 
(c) डेवी
(d) सेल्सियस
22. जब कभी कार्य ऊष्मा में बदलता है या ऊर्जा कार्य में बदलती है तो किये गये कार्य व उत्पन्न ऊष्मा का अनुपात एक स्थिरांक होता है जिसे ऊष्मा का यांत्रिक तुल्यांक कहते हैं। इसका मान होता है-
(a) 4186 जूल /किलो कैलोरी
(b) 4.186 जूल / कैलोरी
(c) 4.186 × 107 अर्ग / कैलोरी
(d) उपर्युक्त सभी
23. जब कुछ पानी का लगातार मंथन (Churning) किया जाता है तब तब उसका ताप बढ़ जाता है। इस क्रिया में- 
(a) ऊष्मा ऊर्जा का रूपान्तरण ऊष्मीण ऊर्जा में होता है।
(b) ऊष्मीय ऊर्जा का रूपान्तरण ऊष्मा में होता है ।
(c) यांत्रिक ऊर्जा का रूपान्तरण ऊष्मीय ऊर्जा में होता है।
(d) ऊष्मीय ऊर्जा का रूपान्तरण यांत्रिक ऊर्जा में होता है।
24. वाष्प इंजन में उबले हुए जल का तापमान किस कारण से उच्च हो सकता है ?
(a) जल में विलीन पदार्थ होते हैं
(b) बॉयलर के अंदर निम्न दाब होता है
(c) बॉयलर के अंदर उच्च दाब होता है
(d) अग्नि अत्यधिक उच्च तापमान पर होती है
25. शीतकाल हैंडपम्प का पानी गर्म होता है, क्योंकि-
(a) शीतकाल में हमारा शरीर ठंडा होता है, अतः जल गर्म प्रतीत होता है
(b) पृथ्वी के भीतर तापमान वायुमंडल के तापमान से अधिक होता है।
(c) पम्पिंग क्रिया से घर्षण पैदा होता है, जिससे जल गर्म हो जाता है
(d) भीतर से जल बाहर निकलता है और परिवेश से ऊष्मा का अवशोषण कर लेता है
26. जलप्रपात के अधस्तल पर जल का तापमान ऊपर की अपेक्षा अधिक होने का कारण है-
(a) अधस्तल पर जल की स्थितिज ऊर्जा अधिक होती है
(b) अधरतल पर पृष्ठ ऊष्मा उपलब्ध कराता है
(c) गिर रहे जल की गतिज ऊर्जा ऊष्मा में बदल जाती है
(d) गिरता हुआ जल परिवेश से उष्मा का शोषण कर लेता है
27. गर्मियों में ताप 46°C हो जाने पर भी ऊँट गर्मी से राहत महसूस करता है-
(a) रेगिस्तानी पौधों की छाया में बैठकर
(b) अपने शरीर के ताप को 42°C तक बढ़ाकर
(c) अपने शरीर में पानी का संचय करके
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
28. बर्फ पर दाब बढ़ाने से उसका गलनांक (m.p.)-
(a ) घट जायेगा
(b) बढ़ जायेगा 
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) शून्य हो जायेगा
29. गैस तापमानी, द्रव तापमापियों की तुलना में ज्यादा संवेदी होते हैं, क्योंकि गैस- 
(a) की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होती है
(b) का प्रसार गुणांक अधिक होता है
(c) हल्की होती है
(d) की विशिष्ट ऊष्मा कम होती है।
30. ताप युग्म तापमानी (Thermo Couple Thermometer) किस सिद्धान्त पर आधारित है ? 
(a) सीब्रेक के प्रभाव पर
(b) जूल के प्रभाव पर
(c) पेल्टियर के प्रभाव पर
(d) इनमें से कोई नहीं
31. पूर्ण विकिरण उत्तापमानी (Total Radiation Pyrometer) किस सिद्धान्त पर आधारित है ?
(a) सीबेक के प्रभाव पर
(b) पेल्टियर के प्रभाव पर
(c) स्टीफन के नियम पर
(d) जूल के प्रभाव पर
32. दूर की वस्तुओं जैसे सूर्य आदि का ताप किस तापमापी के द्वारा मापा जाता है ?
(a) ताप युग्म तापमानी द्वारा
(b) प्लेटिनम प्रतिरोध तापमानी द्वारा
(c) पूर्ण विकिरण उत्तापमानी द्वारा
(d) इनमें से कोई नहीं
33. ठंडे देशों में पारा के स्थान पर ऐल्कोहॉल को तापमापी द्रव के रूप में वरीयता दी जाती है, क्योंकि-
(a) ऐल्कोहॉल का द्रवांक निम्नतर होता है।
(b) ऐल्कोहॉल ऊष्मा का बेहतर संचालक होता है।
(c) ऐल्कोहॉल पारा से अधिक सस्ता होता है।
(d) ऐल्कोहॉल का विश्व उत्पादन पारा से अधिक होता है। 
34. सूर्य का ताप मापा जाता है-
(a) प्लैटिनम तापमानी द्वारा
(b) गैस तापमानी द्वारा
(c) पाइरोमीटर तापमानी द्वारा
(d) वाष्पन दाब तापमानी
35. निम्नलिखित तापमापियों में से किसे पायरोमीटर कहा जाता है ?
(a) ताप विद्युत तापमानी
(b) विकिरण तापमापी
(c) गैस तापमानी
(d) द्रव तापमानी
36. केल्विन मान से मानव शरीर का सामान्य ताप है-
(a) 280
(b) 290
(c) 300
(d) 310
37. कौन-सा तापमान सेंटिग्रेड और फारेनहाइट दोनों तापक्रमों में एकसमान है ?
(a) 40°
(b) 100°
(c) - 100°
(d) -40°
38. न्यूनतम सम्भव ताप है-
(a) -273°C
(b) 0°C
(c) -300°C
(d) 1°C
39. फारेनहाइट स्केल पर किसी वस्तु का ताप 212°F सेल्सियस पैमाने पर उस वस्तु का ताप होगा-
(a ) - 32°C
(b) 40°C
(c) 100°C
(d) 112°C
40. सेल्सियस पैमाने का 0°C फारेनहाइट स्केल के कितने डिग्री के बराबर होगा ?
(a) 5°
(b) 32°
(c) 64°
(d) 273°
41. मानव शरीर का सामान्य तापक्रम 98.4°F है। इसके बराबर °C में तापक्रम है-
(a) 40.16
(b) 36.89
(c) 35.72
(d) 32.36
42. फारेनहाइट मापक्रम पर सामान्य वायुमण्डलीय दाब पर उबलते पानी का ताप होता है-
(a) 32°F
(b) 100°F
(c) 180°F
(d) 212°F
43. दिल्ली में जल का क्वथनांक 100°C है तो मसूरी में जल का तापमान क्या होगा ? 
(a) 100°C
(b) 100°C से कम
(c) 100°C से अधिक
(d) सभी असत्य है
44. एक मनुष्य का तापक्रम 60°C है, तो उसका तापक्रम फारेनहाइट में क्या होगा ?
(a) 140°F
(b) 120°F
(c) 130°F
(d) 98°F
45. किसी मनुष्य के शरीर का सामान्य तापक्रम होता है- 
(a) 98°F
(b) 98°C
(c) 68°F
(d) 66°F 
46. तप्त जल के थैलों में जल का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि-
(a) यह सरलता से मिल जाता है।
(b) यह सस्ता है और हानिकारक नहीं है
(c) इसकी विशिष्ट ऊष्मा अधिक है
(d) जल को गर्म करना आसान है
47. धातु की चायदानियों में लकड़ी के हैंडल क्यों लगे होते हैं ?
(a) लकड़ी ऊष्मा की कुचालक होती है।
(b) इससे बिजली का शॉक नहीं लगता है
(c) इससे पात्र सुन्दर लगता है
(d) इसमें स्वच्छता होती है।
48. जब गर्म पानी को मोटे कांच के गिलास के ऊपर छिड़का जाता है तो वह टूट जाता है। इसका क्या कारण है ? 
(a) अचानक ही गिलास विस्तारित हो जाता है।
(b) अचानक ही गिलास संकुचित हो जाता है।
(c) जल वार्षपत हो जाता है। 
(d) गिलास रसायनिक रूप से जल के साथ प्रतिकृत होता है ।
49. जब बर्फ को 0°C से 10°C तक गर्म किया जाता है, तो जल की आयतन-
(a) इकसार रूप से बढ़ती है
(b) इकसार रूप से कम होती है
(c) पहले बढ़ती है और उसके बाद कम होती है
(d) पहले कम होती है और उसके बाद बढ़ती है।
50. यदि जल को 10°C से 0°C तक ठंडा किया जाए तो -
(a) जल का आयतन 4°C तक तो कम होगा फिर बढ़ेगा
(b) जल का घनत्व लगातार बढ़ेगा और 4°C पर अधिकतम हो जाएगा।
(c) जल का आयतन लगातार घटेगा और 4°C पर न्यूनतम हो जाएगा।
(d) जल का घनत्व 4°C तक घटेगा फिर बढ़ेगा ।
51. साइकिल के ट्यूब अधिकांशतया गर्मियों में क्यों फटते हैं ? 
(a) गर्मी के कारण ट्यूब फट जाता है।
(b) गर्मी के कारण रबड़ बहुत कमजोर हो जाता है।
(c) गर्मी के कारण रबड़ कड़ा हो जाता है और हवा को जगह देने के लिए फैलती नहीं है।
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
52. शीशे की छड़ जब भाप में रखी जाती है, इसकी लम्बाई बढ़ जाती है परन्तु इसकी चौड़ाई-
(a) अप्रभावित रहती है
(b) घटती है 
(c) बढ़ती है
(d) अव्यवस्थित होती है
53. लोलक घड़ियाँ गर्मियों में सुस्त हो जाती है ?
(a) गर्मियों के दिन लम्बे होने के कारण
(b) कुण्डली में घर्षण के कारण
(c) लोलक की लम्बाई बढ़ जाती है जिससे इकाई दोलन में लगा हुआ समय बढ़ जाता है ।
(d) गर्मी में लोलक का भार बढ़ जाता है।
54. अत्यधिक शीत ऋतु में पहाड़ों पर पानी की पाइपलाइनें फट जाती है। इसका कारण है-
(a) पाइप ठण्डक से सिकुड़ जाता है।
(b) पाइप में पानी जमने पर सिकुड़ जाता है।
(c) पाइप में पानी जमने पर फैल जाता है।
(d) पाइप ठंडक पाकर बढ़ जाते हैं.
55. दो रेल पटरियों के मध्य जो पर एक छोटा सा स्थान क्यों छोड़ जाता है ?
(a) क्योंकि ऐसे स्थान छोड्ने से कुछ लागत बचेगी
(b) क्योंकि धातु गर्म करने पर फैलती तथा ठंडी होने पर संकुचित होती है।
(c) आवश्यक गुरूत्व बल उत्पन्न करने के लिए
(d) इनमें से कोई नहीं
56. किसी झील की सतह का पानी बस जमने की वाला है। लके झील अधः स्थल में जल का क्या तापमान होगा ?
(a) 0°C
(b) 1°C
(c) 2°C
(d) 4°C
57. शीतकाल में जब ठंड से जल जम जाता है, तब मछलियाँ और अन्य जलीय जीव-
(a) जीवित रह सकते हैं, क्योंकि जल का केवल ऊपरी परत ही जमता है
(b) अन्य गर्म स्थानों पर चले जाते हैं
(c) सुरक्षित जीवित रह सकते हैं, क्योंकि उनमें ठंड बर्दाश्त करने की अंतनिर्मित प्रणाली होती है
(d) मर जाते हैं।
58. ऊष्मा के संचरण (Transmissio of heat) की विधि है - 
(a) चालन (Conduction)
(b) संवहन (Convection)
(c) विकिरण (Radiation)
(d) उपर्युक्त सभी
59. ऊष्मा के संचरण की किस विधि में पदार्थ के अणु एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं नहीं जाते ?
(a) चालन
(b) संवहन
(c) विकिरण
(d) उपर्युक्त सभी
60. द्रवों तथा गैसों में ऊष्मा का स्थानान्तरण निम्नलिखित में से किस विधि द्वारा होता है ?
(a) चालन
(b) संवहन
(c) विकिरण
(d) इनमें से कोई नहीं
61. विद्युत् केतली में पानी गर्म होता है-
(a) चालन के कारण
(b) संवहन के कारण
(c) विकिरण के कारण
(d) इनमें से सभी 
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Tue, 30 Apr 2024 04:46:48 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | विद्युत https://m.jaankarirakho.com/1037 https://m.jaankarirakho.com/1037 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | विद्युत
  • Electricity शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द Electron से हुई है। Electron का शाब्दीक अर्थ होता है ऐम्बर । सर्वप्रथम ग्रीक दार्शनिक थेल्स ने ही बताया था कि - ऐम्बर को बिल्ली के खाल से रगड़ने पर ऐम्बर में आकर्षण का गुण आ जाता है ।
विद्युत आवेश (Electric Charge)
  • विद्युत आवेश दो प्रकार के होते हैं-
    1. धन आवेश (Positive Charge)- काँच के छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ने पर जो आवेश काँच पर होता है उसे धन आवेश कहते हैं । 
    2. ऋण आवेश (Negative Charge)- ऐबोनाइट के छडको ऊन से रगड़ने पर जो आवेश ऐबोनाइट पर होता है उसे ऋण आवेश कहते हैं।
      • आवेश उत्पन्न होने के कारणः- आवेश उत्पन्न होने का मुख्य कारण है: पदार्थ के परमाणु का इलेक्ट्रॉन। जब दो वस्तु को आपस में रगडा जाता है तो एक वस्तु से इलेक्ट्रॉन, निकलकर दूसरी वस्तु है कर दूसरी वस्तु में चला जाता है।
      • जिस वस्तु से इलेक्ट्रॉन बाहर निकलता है वह घन आवेशित हो जाता है तथा जिस वस्तु में इलेक्ट्रॉन प्रवेश करता है वह ऋण आवेशित हो जाता है।
      • जब भी दो वस्तु को रगड़ा जाता है तो दोनों आवेश एक साथ उत्पन्न होते हैं और उनका परिमाण एक-दूसरे के बराबर होता है ।
      • आवेश का न तो सृजन किया जा सकता है और न ही नाश। इसे आवेश का संरक्षण सिद्धांन्त कहते हैं ।
      • समान आवेश के बीच विकर्षण बल तथा असमान आवेश के बीच आकर्षण बल कार्य करता है।
      • आवेश का SI मात्रक कूलॉम है । 1 कूलॉम आवेश 6.25 x 1018 इलेक्ट्रॉन के आवेश के परिमाण के बराबर होते हैं। संसार में सबसे कम परिमाण का आवेश इलेक्ट्रॉन पर होता है। एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश का मान 1.6x10-19C (ऋण आवेश) होता है ।
  • आवेश की विमा [AT] है जहाँ A धारा तथा T समय की विमा है ।
कूलम्ब के नियम (Coulomb's Law)
  • कूलम्ब के दो आवेश के बीच कार्य करने वाले भाषण तथा विकर्षण बल के संबंध में दो नियम प्रतिपादित किये हैं-
    1. दो आवेश के बीच कार्य करने वलो तथा विकर्षण बल उन दोनों आवेश के गुणनफल के समानुपाती है । 
                      F ∝ a1 × a2
    2. दो आवेश के बीच कार्य करने वाले आकर्षण तथा विकर्षण बल उन दोनों आवेश के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

      k नियतांक (constant) है जिनका मान उस माध्यम के प्रकृति पर निर्भर करता है जिस माध्यम में आवेश रखा है।
  • कूलम्ब का नियम न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण नियम के समान है। दोनों नियम सिर्फ एक मुख्य अंतर है- गुरूत्वाकर्षण बल में सिर्फ आकर्षण होता है जबकि वैद्युत बल में आकर्षण एवं विकर्षण दोनों होता है ।
  • जब निर्वात में IC का दो आवेश (विपरित आवेश या समान आवेश) के बीच की दूरी 1 m हो तो उन दोनों आवेश के बीच 9 × 109 न्यूटन का विकर्षण (या आकर्षण) बल लगता है ।
  • जब दो आवेश के बीच की दूरी 10-14m से कम हो तब यहाँ कूलम्ब का नियम का पालन नहीं होता है। जब दो आवेश के बीच की दूरी 10-14m से कम होता है तो उनके बीच लगने वाले बल को नाभकीय बल कहते हैं ।
विद्युत विभव (Electric Potential)
  • एकांक धनात्मक अविश को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में जितना कार्य करना पड़ता है उसे उस बिन्दु का विभव कहते । विभव अदिश राशि है तथा उसका SI मात्रक वोल्ट (v) है ।
  • अगर 1 कूलम्ब आवेश को अनंत से किसी बिन्दु पर लाने में 1 जूल कार्य करना पड़े तो उस बिन्दु का विभव 1 वोल्ट होगा ।

  • अनावेशित वस्तु का विभव शून्य होता है। धन आवेशित वस्तु विभव धनात्मक होता है तथा ऋण आवेशित वस्तु का विभव ऋणात्मक होता है। पृथ्वी का विभव शून्य माना गया है।
विभवांतर (Potential difference)
  • विद्युत क्षेत्र के किन्हीं दो बिन्दुओं के विभव के अंतर को ही विभवांतर कहते हैं । विभवांतर भी अदिश राशि है और इसका SI मात्रक वोल्ट होता है ।
  • 1C आवेश को विद्युत क्षेत्र के एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक लाने में । जूल कार्य करना पड़े तो उन दोनों बिन्दुओं के बीच विभवांतर 1 वोल्ट होगा ।
  • विभवांतर, कार्य तथा आवेश के बीच संबंध से निम्न सूत्र प्राप्त होते हैं-

विद्युत धारा (Electric Current)
  • विद्युत आवेश के प्रवाह के दर को विद्युतधारा कहते हैं ।
  • जब चालक तार को दो भिन्न-भिन्न विभवों के आवेशों से या विद्युत स्त्रोत से जोड़ा जाता है तब निम्न विभव से उच्च विभव की ओर इलेक्ट्रॉन गमन करते हैं। इलेक्ट्रॉन के धारा के विपरित बहने वाली धारा को ही विद्युतधारा कहा जाता है ।
  • निम्न विभव से उच्च विभव की ओर इलेक्ट्रॉनिक धारा बहती है तथा उच्च विभव से निम्न विभव की ओर विद्युत धारा बहती है ।
  • विद्युत धारा के प्रवाह हेतु दो बिन्दु के विभव का अंतर होना अनिवार्य है। अगर दो बिन्दु का विभव समान है तो उनके बीच विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होगा ।
  • विद्युत धारा अदिश राशि है इसका SI मात्रक ऐम्पीयर (A ) है । विद्युतधारा का परिमाण छोटा रहने पर मिली ऐम्पीयर (aM) तथा माइक्रो एम्पीयर का भी प्रयोग होता है।

  • चालक (Conductors)– जिस पदार्थ से होकर विद्युत सुगमतापूर्वक गमन कर सकता है उसे चालक कहते हैं। चालक पदार्थ में मुक्त इलेक्ट्रॉन या मुक्त आयन (विलयन में) पाये जाते हैं।
    उदा०— ताम्बा, चाँदी, ग्रेफाइट, अम्ल क्षार या लवण युक्त जलीय विलयन ।
  • कुचालक (Insulators)– जिस पदार्थ से होकर विद्युत आसानी से गमन नहीं कर सकता है उसे कुचालक या विद्युतरोधी कहते हैं। ऐसे पदार्थ में मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं या नगण्य मात्रा में होते हैं।
    उदा०– रबड़, काँच, प्लास्टिक, अबरख, आसुत जल ।
  • अर्द्धचालक (Semi-conductor)- अर्द्धचालक वह पदार्थ है जिसमें सामान्य ताप पर मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं परन्तु विशेष अशुद्धि मिलाने पर या गर्म करने पर इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ जाती हैं और वे चालक की तरह व्यवहार करते हैं।
    उदा० - सिलिकॉन, जरमेनियम
विद्युत परिपथ (Electric Circuit)
  • जिस पथ से होकर विद्युतधारा का प्रवाह होता है उसे विद्युत परिपथ कहते हैं। विद्युत परिपथ से जब विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है तो वह बंद विद्युत परिपथ कहलाता है।
  • विद्युत परिपथ को दर्शाने हेतु कुछ प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल किया जाता है-

विद्युत परिपथ के अवयव एक सेल (cell) सेलों का समूह या बैटरी (battery) अवयवों को जोड़नेवाला चालक तार (wire ) तार संधि (junction ) खुली प्लग कुंजी ( plug key ) प्रतीक 11 F म खुला स्विच (open switch) बंद प्लग कुंजी बंद स्विच (closed switch) बिना संधि के तार क्रॉसिंग बल्ब (bulb) ऐमीटर (ammeter ) वोल्टमीटर (voltmeter) प्रतिरोधक (resistor)
प्रमुख विद्युत उपकरण
  1. गैल्वेनोमीटर (Galvanometer)
    • गैल्वेनोमीटर एक नाजुक विद्युतीय उपकरण है। इसका उपयोग विद्युत आवेश की उपस्थिति, आवेश की प्रकृति, धारा की उपस्थिति, धारा का दिशा मापने हेतु किया जाता है।
    • ‘गैल्वोनोमीटर का प्रतिरोध बहुत कम होता है। इसे विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
    • गैल्वोनोमीटर में शंट (एक प्रकार प्रतिरोधक तार ) जोड़कर इसे ऐमीटर तथा वोल्टमीटर में बदला जा सकता है।
  2. ऐमीटर (Ammeter)
    • ऐमीटर द्वारा ऐम्पीयर में धारा का प्रबलता का मापन किया जाता है। इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है।
    • ऐमीटर को विद्युत परिपथ का श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है।
    • गैलवोनोमीटर की कुंडली (Coil) में समांतर क्रम में शंट जोड़कर एमीटर बनाया जाता है ।
  3. वोल्टमीटर (Voltmeter)
    • वोल्टमीटर द्वारा विद्युत परिपथ के किन्हीं दो बिंदुओं के बीच का विभवांतर मापा जाता है। इसका प्रतिरोध काफी अधिक होता है।
    • वोल्टमीटर को विद्युत परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ जाता है।
    • गैल्वोनोमीटर के कुंडली में श्रेणीक्रम में शंट जोड़कर वोल्टमीटर बनाया जाता है।
ओम का नियम (Ohm's law)
  • जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने विद्युत परिपथ में प्रवाहित धारा, उनके सिरों के बीच का विभवांतर तथा चालक के प्रतिरोध के संबंध में एक नियम दिया जो ओम का नियम कहलाता है।
  • ओम का नियम:- यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन नहीं किया जाए तो उस चालक में प्रवाहित विद्युत धारा, उनके सिरों के बीच के विभवांतर के समानुपाती होता है। 

  • ओम के नियम से प्राप्त महत्वपूर्ण सूत्र -

  • प्रतिरोध का SI मात्रक ओम के नाम पर ओम रखा गया है जिसका संकेत Ω होता है ।
  • अंतराष्ट्रीय ओम (International Ohm)- यदि 0.0144521 kg शुद्ध पारे के स्तम्भ की लंबाई 1.063 मीटर और उसके एक समान अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल 10-10 m2 हो तब 0°C पर उसका प्रतिरोध एक अंतर्राष्ट्रीय ओम होता है।
  •  ओम नियम की सीमाएँ:-
    1. ओम का नियम धातु चालक तथा अन्य कुछ चालकों पर ही लागू होता है। सभी चालक पर ओम का नियम लागू नहीं होता है।
    2. रेडियो बाल्व, ट्रांजिस्टर, दिष्टकारी ( Rectifiers ) गैसों से जब विद्युत धारा गमन होता है तो यहाँ ओम का नियम लागू नहीं होता है।
  • प्रतिरोध (Resistance) तथा प्रतिरोधक (Resistor) का अर्थ अलग-अलग होता है-
    1. प्रतिरोध:- प्रतिरोध किसी चालक पदार्थ का वह गुण जिसके कारण वह अपने से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा का विरोध करती है।
    2. प्रतिरोधकः - प्रतिरोोक एक वस्तु जिसका अपना प्रतिरोध होता है ।
  • वे पदार्थ जो विद्युत का चालक होते हैं, उनका प्रतिरोध अत्यंत निम्न होता है। वे पदार्थ जो विद्युत का कुलाचक होते हैं, उनका प्रतिरोध अत्यधिक उच्च होता है ।
  • चालक के प्रतिरोध को प्रभावित करने वाला कारक-
    1. चालक का प्रतिरोध उसके लंबाई के समानुपाती होता है-
      • तार की लंबाई दुगुणा बढ़ा देने पर उसका प्रतिरोध भी दुगना हो जाएगा और लंबाई आधा कर देने पर प्रतिरोध भी आधा हो जाएगा।
    2. चालक का प्रतिरोध उसके अनुप्रस्थकाट के क्षेत्रफल (Area of Cross Section) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

      • अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल को दुगुणा कर दिया जाए तो प्रतिरोध घट कर आधा हो जाएगा या अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल को आधा कर दिया जाए तो प्रतिरोध बढ़कर दुगुणा हो जाएगा।
      • किसी चालक तार का प्रतिरोध उसके व्यास के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात् तार का व्यास बढ़ा दुगुना कर दिया जाए तो प्रतिरोध घटकर पहले का एक-चौथाई हो जाएगा या तार के व्यास को आधा कर दिया जाए तो प्रतिरोध बढ़कर पहले का चार गुणा हो जाएगा।
    3. चालक का प्रतिरोध उस पदार्थ पर भी निर्भर करता है जिस पदार्थ से चालक बना होता है।
      • समान लंबाई के नाइक्रोम का प्रतिरोध, कॉपर तार के प्रतिरोध के लगभग 60 गुणा अधिक होता है।
    4. ताप बढ़ाने पर चालक तार का प्रतिरोध बढ़ता है और ताप घटाने पर चालक तार का प्रतिरोध, घटता है।
      • कुछ मिश्रधातु (मैगनिन, कान्स्टनटन, नाइक्रोम) का प्रतिरोध ताप से अप्रभावित रहता है।
प्रतिरोधों का संयोजन (Combination of Resistors)
  • विद्युत परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा का मान परिपथ के प्रतिरोध पर निर्भर करता है । इच्छा के अनुरूप विद्युत धारा प्राप्त करने के हेतु दो या दो से अधिक प्रतिरोधों का संयोजन किया जाता है।
  • प्रतिरोधों का संयोजन मुख्यतः दो विधि से किया जाता है-
    1. श्रेणीक्रम संयोजन (Series Cobination) 
      • जब एक प्रतिरोधकों का अंतिम सिरा दूसरे प्रतिरोधक तार के पहले सिरे से, दूसरा प्रतिरोधक तार का दूसरा सिरा तीसरे प्ररितोधक तार के पहले से जोड़कर यहीं क्रम आगे बढ़ता है तो यह संयोजन श्रेणीक्रम संयोजन कहलाता है ।
      • श्रेणीक्रम में जितने भी प्रतिरोधक जुड़े होते हैं उन सभी में प्रवाहित होने वाला विद्युत धारा का मान समान होता है।
      • श्रेणीक्रम में जुड़े विभिन्न प्रतिरोधक के सिरों के बीच का विभवांतर अलग-अलग होता है।
      • श्रेणीक्रम में जुड़े सभी प्रतिरोधकों का समतुल्य प्ररितोध सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होते हैं।
        अगर चार प्रतिरोधकों का प्रतिरोध क्रमश: R1, R2, R3 तथा R4 हो तो इन सभी का समतुल्य प्रतिरोध (R)
                                                    R = R1 + R2 + R3 + R4
    2. समांतर क्रम संयोजन (Parallel Combination)
      • जब दो यो दो से अधिक प्रतिरोधकों के एक सिरों को एक साथ तथा दूसरे सिरा को एक साथ जोड़कर प्रतिरोध का संयोजन किया जाता है, तो यह संयोजन समान्तर क्रम संयोजन कहा जाता है।

      • समांतर क्रम संयोजन में जुड़े सभी प्रतिरोधकों में प्रवाहित होनेवाले विद्युत धारा का मान अलग-अलग होता है।
      • अलग चार प्रतिरोधक जिनता प्रतिरोध R1, R2, R3 तथा R4 हो और यह समांतर क्रम में जुड़ा हो तो परिपथ का समतुल्य (R) निम्न सूत्र से प्राप्त किया जाता है-

      • घरेलू विद्युत उपकरण समांतरक्रम में ही जोड़ा जाता है, इसके निम्न कारण हैं-
        1. समांतर क्रम से जुड़े विद्युत उपकरण में कोई एक उपकरण कार्य करना बंद कर देता है तो अन्य सभी विद्युत उपकरण सामान्य रूप से काम करते रहते हैं जबकि श्रेणीक्रम संयोजन में ऐसा नहीं होता है।
        2. समांतर क्रम से जुड़े सभी विद्युत उपकरण के लिए अलग-अलग स्विच होता है, जबकि श्रेणीक्रम से जुड़े सभी विद्युत उपकरण के लिए एक ही स्विच होता है।
        3. समांतर क्रम से जुड़े सभी विद्युत उपकरण को समान विभवांतर ( 220V) मिलता है जबकि श्रेणीक्रम से जुड़े सभी विद्युत उपकरण को समान विभवांतर नहीं मिल पाता है ।
        4. घरेलू विद्युत उपकरण में अलग-अलग परिमाण का विद्युत धारा की आवयकता होती है। जैसे हीटर को अधिक विद्युत धारा चाहिए बल्व को कम । विद्युत उपकरण की यह आवश्यकता केवल समांतर क्रम करके ही पूरा किया जा सकता है।
    3. मिश्रीत संयोजन (Mixed Combination)
      • प्रतिरोधकों का ऐसा संयोजन जिनमें श्रेणीक्रम तथा समांतर क्रम संयोजन एक साथ रहता है, मिश्रीत संयोजन कहलाता है-

सेल का विद्युत वाहक बल (Electromotive Force of a cell)
  • सेल का विद्युत वाहक बल जूल में ऊर्जा का वह परिणाम है जो सेल सहित विद्युत परिपथ में एक कूलॉम विद्युत आवेश प्रवाहित होने में• सेल द्वारा आपूर्ति की जाती है।
  • यदि सेल का आंतरिक प्रतिरोध हो, सेल से जुड़े विद्युत परिपथ का प्रतिरोध R हो और सेल द्वारा । विद्युत धारा परिपथ में प्रवाहित किया जाता हो तब सेल का विद्युत वाहक बल
    E = Ir + IR
  • सेल के विद्युत वाहक बल तथा सेल के विभवांतर से निम्न अंतर है-
    1. सेल का विद्युत वाहक बल (E) = Ir + IR · होता है जबकि सेल का विभवांतर (V) = IR होगा ।
    2. सेल का विद्युत वाहक बल सेल के विभवांतर से बड़ा होता है ।
    3. सेल का विद्युत वाहक बल का मान नियत होता है, जबकि सेल जैसे-जैसे पुराना होते जाता है उसका विभवांतर घटता जाता है।
    4. खुले परिपथ (जब सेल से धारा नहीं बहती है।) में सेल के दोनों सिरों के बीच लगा वोल्ट मीटर द्वारा मापा गया परिमाण सेल का विद्युत वाहक बल होगा और बंद परिपथ (जब धारा प्रवाहित हो) में वोल्टमीटर द्वारा मापा गया परिमाण सेल का विभवांतर होगा।
विद्युतीय कार्य (Electric Work)
  • जब दो भिन्न विभवों के बीच आवेश का गमन होता है तब विद्युतीय कार्य सम्पन्न होता है । विद्युत कार्य का भी SI मात्रक जूल है।
  • विद्युतीय कार्य = विभवांतर x आवेश
    या      W         =         VQ             .......(i)

विद्युत शक्ति (Electric Power ) 
  • किसी विद्युत परिपथ प्रति सेकण्ड किये गये कार्य को विद्युत शक्ति कहते हैं । शक्ति का SI मात्रक वाट है। 

  • विद्युत कार्य के सूत्र से विद्युत शक्ति का प्राप्त सूत्र

  • वाट शक्ति का छोटा मात्रक है । शक्ति का बड़ा मात्रक है-
  • 1 KW (किलोवाट) = 1000 W
    IHP (हॉर्स पॉवर)  = 746 W
विद्युत ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक
  • घरों में जो विद्युत ऊर्जा खर्च होता है उसे जूल में नहीं मापा जाता है क्योंकि जूल ऊर्जा छोटा मात्रक है।
  • घरों में खर्च विद्युत ऊर्जा किलोवाट घंटा (KWh) में मापा जाता है। KWh को ऊर्जा का व्यवसायिक मात्रक या वोर्ड ऑफ ट्रेड यूनिट या केवल यूनिट कहते हैं।
    1 Unit = 1KWh
              = 1000 Wh
              = 3600000Ws
              = 3.6 × 10 106J
  • घरों में खर्च की गई विद्युत ऊर्जा के लिये सूत्र- 

विद्युत धारा का उष्मीय प्रभाव ( Heating Effect of Electric Current)
  • विद्युतधारा के प्रवाह से किसी प्रतिरोधक या चालक में उष्मा उत्पन्न होने की घटना को विद्युतधारा का उष्मीय प्रभाव कहते हैं ।
  • विद्युतधारा के उष्मीय प्रभाव के संबंध में जूल ने तीन नियम प्रतिपादित किये हैं-
    1. किसी निश्चित समय में किसी चालक में उत्पन्न ऊष्मा, चालक में प्रवाहित विद्युत धारा के वर्ग के समानुपाती होता है I
      H ∝ I2 R तथा t = Cons tan t
    2. किसी निश्चित समय में निश्चित विद्युतधारा से चालक में उत्पन्न उष्मा चालक के प्रतिरोध के समानुपाती होता है।
      H ∝ R I तथा t = Cons tan t
    3. किसी निश्चित विद्युतधारा से किसी चालक में उत्पन्न ऊष्मा उस समय के समानुपाती होता है जितने समय तक चालक में धारा प्रवाहित होती है।
      H ∝ t I तथा R = Cons tan t
  • जूल के तीनों नियम को मिलाने पर
    H ∝ I2 Rt
    H = cons tan t × I2 Rt
    SI मात्रक में constnat का मान 1 होता है ।
    अतः उत्पन्न ऊष्मा (H) = I2 Rt
  • विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर काम करनेवाले विद्युत उपकरण है- विद्युत बल्व, ट्यूब लाईट, हीटर, विद्युत इस्त्री (आयरन), आर्क लैम्प, फ्यूज, ऐमीटर, वोल्टमीटर, विद्युत विकिरण (Electric Radiator), टेस्टर ।
  • विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित प्रमुख उपकरण-

    Electric Lamp (विद्युत बल्व )

    • विद्युत बल्व विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव पर आधारित उपकरण है जिसमें विद्युत ऊर्जा का रूपांतरण प्रकाश ऊर्जा में होता है ।
    • बल्व का फिलामेंट टंग्सटन का बना होता है जिसका गलनांक 3380°C है जिसके कारण यह पिघलता नहीं है ।
    • बल्व के भीतर निर्वात के स्थान पर अक्रिय गैस- नाइट्रोजन अथवा आर्गन भर दिया जाता है ताकि उच्च ताप पर टंग्सटन का ऑकसीकरण न हो ।
    • बल्व की शक्ति वाट के रूप बल्व पर अंकित रहता है। अधिक वाट के बल्व का प्रतिरोध कम तथा कम वाट के बल्व का प्रतिरोध अधिक होता हैं।
    • बोल्टेज को बढ़ाने पर बल्व की शक्ति बढ़ती है परंतु बल्व के फ्यूज होने की संभावना बढ़ जाती है।

Electric-heater (हीटर)

  • हीटर विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव पर आधारित उपकरण है ।
  • हीटर में नाइक्रोम के तार का उपयोग किया जाता है क्योंकि इसका प्रतिरोधकता तथा गलनांक बहुत ही उच्च होता है। नाइक्रोम को Heating element भी कहते कहते हैं।
  • विद्युतधारा बहने पर नाइक्रोम का तार गर्म होकर बहुत अधिक उष्मा देता है। इसमें प्रकाश की मात्रा कम होती है क्योंकि नाइक्रोम का तार गर्म होकर लाल रहता है जिससे अवरक्त किरण उत्सर्जित होता है ।
Electric Fuse (फ्यूज )
  • फ्यूज विद्युत धारा के उष्मीय प्रभाव पर आधारित एक सुरक्षा-व्यवस्था है ।
  • कभी-कभी परिपथ में विद्युत धारा का मान अचानक बढ़ जाता है जिससे परिपथ में आग लग सकती है तथा विद्युत उपकरण नष्ट हो सकते हैं। इसी स्थिति से बचने हेतु फ्यूज का इस्तेमाल होता है। फ्यूज अधिक धारा प्रवाहित होने पर विद्युत परिपथ को भंग कर देता है।
  • विद्युत परिपथ में अचानक धारा का मान बढ़ जाने का दो कारण है ।
    1. Over loading- घरेलू वायरिंग एक खास लोड पर की जाती है। जब भी इस लोड से अधिक विद्युत धारा ली जाती है तो उसे Overloading कहते हैं।
    2. Short-circutting- जब कभी संयोग से या गलत संयोजन करने से गर्म तार तथा उदासीन तार संपर्क में आ जाता है तो विद्युत परिपथ का प्रतिरोध बहुत कम हो जाता है जिससे धारा का मान बढ़ जाता है।
  • फ्यूज कम द्रवणांक तथा उच्च विशिष्ट प्रतिरोध का एक पतला तार है ।
  • फ्यूज को हमेशा गर्म तार से श्रेणीक्रम में लगाया जाता है।
  • अच्छा फ्यूज टिन का बना होता है। सस्ता फ्यूज टीन एवं तांबे के मिश्रधातु का बना होता है। कुछ फ्यूज टीन, ताँबे तथा के मिश्रधातु का भी बना होता है। इसके अलावे फ्यूज एलुमिनियम, कॉपर, आयरन तथा लेड का भी हो सकता है।
चुंबक (Magnet)
चुम्बक लोहे के एक काले रंग का ऑक्साइड है जिसे मैंग्नेटाइट कहते हैं । इसका रसायनिक सूत्र Fe3O4 है ।
  • चुम्बक में उत्तर - दक्षिण दिशा बतलाने का गुण होता है। दैशिक गुण के कारण ही इसे Lode - Stone कहा जाता है।
  • ध्रुव (Pole)– स्वतंत्रतापूर्वक झूलते चुम्बक हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में आकर रूकता है। चुम्बक के जो सिरा उत्तर दिशा में रूकता है उसे उत्तरी ध्रुव तथा जो सिरा दक्षिण दिशा में रूकता है उसे दक्षिणी ध्रुव कहते हैं ।
  • चुंबक के समान ध्रुव के बीच प्रतिकर्षण तथा असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण बल लगता है।
  • चुबंकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian ) - पृथ्वी के किसी स्थान पर स्वतंत्र रूप से लटके चुबंक के उत्तर - दक्षिण ध्रुव से जाते उदग्र काल्पनिक तल को उस स्थान का चुबंकीय याम्योत्तर कहते हैं ।
  • भौगोलिक याम्योत्तर (Geographical Meridian ) - पृथ्वी के भौगोलिक उत्तर-दक्षिण ध्रुव से जाते उदग्र काल्पनिक तल को भौगोलिक याम्योत्तर कहते हैं ।
  • पृथ्वी के चुबंकीय अक्ष– पृथ्वी भी एक विशाल चुबंक है। पृथ्वी के चुम्बकीय उत्तर-दक्षिण ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को पृथ्वी का चुबंकीय अक्ष कहते हैं ।
  • पृथ्वी के भौगोलिक उत्तर–दक्षिण ध्रुवों को मिलानेवाली रेखा को पृथ्वी का भौगोलिक अक्ष कहते हैं। पृथ्वी के केन्द्र पर चुबंकीय तथा भौगोलिक अक्ष का कोण 15° होता है।
चुबंकीय क्षेत्र (Magnetic field)
  • किसी चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें चुम्बक के प्रभाव का अनुभव किया, जा सके चुबंकीय क्षेत्र कहलाता है।
  • चुम्बक के इस प्रभाव को चुबंकीय क्षेत्र की तीव्रता से मापा जाता है जिसे संक्षेप में चुबंकीय क्षेत्र भी कहते हैं। यह एक सदिश राशि है।
  • चुबंकीय क्षेत्र के तीव्रता का मात्रक Weber / m2 या टेसला है ।
  • चुंबकीय क्षेत्र को चुबकीय क्षेत्र के रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता हैं। चुबकीय क्षेत्र में अवस्थित क्षेत्र रेखाओं का गुण-

    1. किसी चुंबक के चुबंकीय क्षेत्र में क्षेत्र - रेखाएँ एकसतत बंद वक्र (continuous closed curved ) की तरह रहता है। ये रेखाएँ चुबंक के उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव से हो हुए पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आ जाती है।
    2. ध्रुव के निकट क्षेत्र - रेखाएँ बहुत घनी होती है और जैसे-जैसे ध्रुव से दूरी बढ़ती है उसका घनत्व कम होता जाता है ।
    3. क्षेत्र-रेखा के किसी बिंदु पर खींची गई स्पर्शरेखा उस बिंदु पर उस क्षेत्र की दिशा बताती है ।
    4. जहाँ-जहाँ क्षेत्र-रेखा एक दूसरे के निकट रहते हैं वहाँ चुबंकीय क्षेत्र प्रबल होता है । चुबंक के ध्रुव के निकट चुबंकीय क्षेत्र प्रबल होता है।
    5. चुबंकीय क्षेत्र - रेखाएँ एक-दूसरे को काटती नहीं है।
    6. क्षेत्र - रेखाएँ एक ही दिशा में गमण करते हैं तथा एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं।
सीधे धारावाही तार के कारण चुबंकीय क्षेत्र-
  • 1820 ई० में Hanse Christian Oerested ने अपने प्रयोग से यह सिद्ध किया की जहाँ कहीं विद्युत आवेश गमण करता है उसके आस-पास चुबंकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
  • धारावाही तार (Current Carrying Wire) से धारा बहने से आस-पास चुबंकीय क्षेत्र उत्पन्न होने की घटनाओं को विद्युत धारा का चुबंकीय प्रभाव कहते हैं ।
  • सीधे धारावाही तार के कारण उत्पन्न चुबंकीय क्षेत्र की दिशा दाये हाथ के अंगूठे के नियम से ज्ञात किया जा सकता है। यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ से इस प्रकार पकड़े की अंगूठा तार से प्रवाहित धारा दिशा बताये तो मुड़ी हुई अंगुली चुबंकीय बल रेखा की दिशा को बतलाता है ।

धारावाही परिनालिका का चुबंकीय क्षेत्र
  • परिनालिका (Solenoid)- जब कुचालक पदार्थ के खोखली और बेलनाकार नली के ऊपर विद्युतरोधी चालक तार को सपल रूप से लपेटा जाता है तो इस व्यवस्था को परिनालिका कहते हैं ।

  • जब परिनालिका से धारा बहती है तो परिनालिका छड़ चुम्बक की तरह व्यवहार करता है यानि पारिनालिका का एक सिरा उत्तर ध्रुव तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव बन जाता है ।
  • परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुबंकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के दॉये हाथ के नियम से प्राप्त होता है— यही परिनालिका को दाहिने हाथ से इस प्रकार पकड़ा जाए कि उँगलियाँ धारा की दिशा में हो तो अॅगूठे की दिशा चुबंकीय क्षेत्र की दिशा होगी ।

अभ्यास प्रश्न

1. आवेश का SI मात्रक है-
(a) वोल्ट
(b) ओम
(c) कूलॉम
(d) ऐम्पीयर
2. विभव का SI मात्रक है-
(a) वोल्ट
(b) ओम
(c) कूलॉम
(d) ऐम्पीयर
3. विद्युत धारा का SI मात्रक है-
(a) वोल्ट
(b) ओम
(c) कूलॉम
(d) ऐम्पीयर
4. प्रतिरोध का SI मात्रक है-
(a) वोल्ट
(b) ओम
(c) कूलॉम
(d) ऐम्पीयर
5. विद्युत ऊर्जा का SI मात्रक है-
(a) वोल्ट
(b) ओम
(c) कूलॉम
(d) ऐम्पीयर
6. उपर्युक्त (Consumed) विद्युत ऊर्जा को किसमें मापा जाता है-
(a) वाट
(b) वाट - आवर
(c) किलोवाट आवर
(d) कूलॉम
7. किसी विद्युत बल्व पर 200V : 100W अंकित है। जब इसे 110V पर कार्य करने दिया जाता है तब इसके द्वारा उपर्युक्त शक्ति कितनी होगी ?
(a) 100 W
(b) 75 W
(c) 50 W
(d) 25 W
8. विद्युत वाहक बल का SI मात्रक है-
(a) ओम
(b) वोल्ट
(c) कूलॉम
(d) ऐम्पीयर
9. जूल / कूलॉम (J/C) किसके बराबर होते हैं-
(a) ओम के
(b) वोल्ट के
(c) ऐम्पीयर के
(d) वाट के
10. विद्युत-परिपथ में विद्युत धारा की माप किससे की जाती है-
(a ) ऐमीटर से
(b) वोलटामीटर से
(c) गैल्वेनोमीटर से
(d) इनमें से कोई नहीं
11. किसी निश्चित समय में किसी निश्चित प्रतिरोध वाले चालक में उत्पन्न उष्मा, धारा के-
(a) समानुपाती होता है
(b) वर्ग के समानुपती होता है।
(c) व्युतक्रमानुपाती होता है।
(d) वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होता है
12. कौन-सा उपकरण विद्युत प्रतिरोध को मापता है ?
(a) एमीटर
(b) पोटेंशियोमीटर
(c) वोल्टामीटर
(d) ओहम मीटर
13. जब साबुन का बुलबुला आवेशित किया जाता है, तब-
(a) यह सिकुड़ता है
(b) यह फैलता है
(c) इसके आकार में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
14. 1 वोल्ट कितने के बराबर होता है ?
(a) 1 जूल
(b) 1 जूल / कूलॉम
(c) 1 न्यूटन / कूलॉम
(d) 1 जूल / न्यूटन
15. एम. सी. बी. (M.C. B. ) जो लघु पथन (Short circuit) के मामले में विद्युत की पूर्ति को काट देता है, काम करता है- 
(a) धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर
(b) धारा के विद्युत लैपन प्रभाव पर
(c) धारा के रासायनिक प्रभाव पर
(d) धारा के धारा के प्रभाव पर
16. बिजली के पंखे की गति बदलने के लिए प्रयुक्त साधन है- 
(a) एम्लीफायर स्विच
(b) रेगुलेटर
(b) स्विच
(d) रेक्टिफायर
17. विद्युत् मरकरी लैम्प में रहता है-
(a) कम दाब पर पारा
(b) अधिक दाब पर पारा
(c) नियॉन और पारा
(d) इनमें से कोई नहीं
18. यदि किसी प्रतिरोधक तार को लम्बा किया जाए तो उसका प्रतिरोध-
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) स्थिर रहता है
(4) उपर्युक्त सभी
19. यदि किसी प्रारूपी पदार्थ का वैद्युत प्रतिरोध गिरकर शून्य हो जाती है, तो उस पदार्थ को क्या कहते हैं ?
(a) अतिचालक
(b) अर्द्धचालक
(c) चालक
(d) रोधी
20. चालक का विद्युत प्रतिरोध किससे स्वतंत्र होता है ? 
(a) तापमान
(b) दाब
(c) दैर्ध्य
(d) अनुप्रस्थ परिच्छेदी क्षेत्र
21. फ्लूरोसेंट लैम्प में चौक (Choke) का प्रयोजन क्या है ?
(a) करंट के प्रवाह को कम करना
(b) करंट के प्रवाह को बढ़ाना
(c) प्रतिरोधिता को कम करना
(d) वोल्टेज को क्षणिक कम करना
22. प्रदीप्ति नली में सर्वाधिक सामान्यतः प्रयोग होने वाली वस्तु है-
(a) सोडियम ऑक्साइड तथा आर्गन
(b) सोडियम वाष्प तथा नियॉन
(c) पारा वाष्प तथा ऑर्गन
(d) मरक्यूरिक ऑक्साइड तथा नियोजन
23. प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा के परिवर्तित करने वाली युक्त को कहते हैं-
(a) इनवर्टर 
(b) रेक्टीफायर
(c) ट्रान्सफार्मर
(d) ट्रान्समीटर
24. एकीकृत परिपथ में प्रयुक्त अर्द्धचालक चिप निम्न की बनी होती है ?
(a) कैल्सियम 
(b) कार्बन
(c) सिलिकॉन
(d) जिरकॉन
25. एक कृत्रिम उपग्रह में विद्युत ऊर्जा का स्त्रोत क्या है ? 
(a) थर्मोपाइल 
(b) सौर सेल
(c) डायनेमो
(d) लघु नाभिकीय रिएक्टर
26. ऐम्पियर क्या मापने की इकाई है ?
(a) वोल्टेज
(b) विद्युत् धारा
(c) प्रतिरोध
(d) पायर
27.जलते हुए बल्व विद्युत् बल्व के तन्तु का ताप सामान्यतः होता है- 
(a) 100°C से 500°C 
(b) 1000°C से 1500°C
(c) 2000°C से 2500°C 
(d) 3000°C से 3500°C
28. माइका (Mica) ........ है- 
(a) ऊष्मा और विद्युत् दोनों का कुचालक
(b) ऊष्मा और विद्युत दोनों का चालक
(c) ऊष्मा का कुचालक तथा विद्युत् का चालक
(d) ऊष्मा का चालक तथा विद्युत् का कुचालक
29. विद्युत् उत्पन्न करने के लिए कौन-सी धातु का उपयोग होता है?
(a) यूरेनियम
(b) लोहा
(c) ताँबा
(d) ऐल्युमीनियम
30. सामान्यतः प्रयोग में लायी जाने वाली प्रतिदीप्ति ट्यूबलाइट पर निम्नलिखित में से अंकित होता है
(a) 220 K 
(b) 273 K
(c) 6500 K 
(d) 9000 K
31. ट्यूब लाइट (Tube Light) में व्यय ऊर्जा का लगभग कितना भाग प्रकाश में परिवर्तित होता है ?
(a) 30-40%
(b) 40-50%
(c) 50-60% 
(d) 60-70%
32. विद्युत्धा रा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित घरेलू उपकरण है- 
(a) विद्युत् हीटर
(b) विद्युत् बल्व
(c) ट्यूब लाइट 
(d) उपर्युक्त सभी
33. 100 वाट वाले एक विद्युत लैम्प का एक दिन में 10 घंटे प्रयोग होता है । एक दिन में लैम्प द्वारा कितनी यूनिट ऊर्जा उपर्युक्त होती है ?
(a) 1 यूनिट
(b) 0.1 यूनिट
(c) 10 यूनिट
(d) 100 यूनिट
34. एक 100 वाट का बिजली का बल्व 10 घंटे जलता है, तो 5 रू. प्रति यूनिट की दर से विद्युत खर्च होगा-
(a) 5रू.
(b) 10रू.
(c) 25रू.
(d) 50रू.
35. किलोवाट - घंटा किसकी इकाई है ?
(a) विभवान्तर
(b) विद्युत शक्ति
(c) विद्युत ऊर्जा
(d) विद्युत विभव
36. 100 वाट का बिजली का बल्व यदि 10 घण्टे जले तो बिजली का खर्च होगा-
(a) 0.1 इकाई
(b) 1 इकाई
(c) 10 इकाई
(d) 100 इकाई
37. तड़ित चालक का आविष्कार किसने किया ?
(a) ग्राहम बेल
(b) लॉर्ड लिस्टर
(c) बेंजामिन फ्रेंकलिन
(d) आइन्स्टीन
38. तड़ित चालक बनाये जाते हैं-
(a) लोहे के
(b) एलुमिनियम के
(c) तांबे के
(d) इस्पात के
39. विद्युत् बल्व का तन्तु धारा प्रवाहित करने से चमकने लगता है, परन्तु तन्तु में धारा ले जाने वाले तार नहीं चमकते । इसका कारण है-
(a) तन्तु में तारों की अपेक्षा अधिक धारा रहती है।
(b) तन्तु का प्रतिरोध तारों की अपेक्षा कम होता है।
(c) तन्तु का प्रतिरोध तारों की अपेक्षा अधिक होता है।
(d) धारा प्रवाहित करने से केवल टंगस्टन धातु ही चमकती है।
40. निम्नलिखित अधातुओं में कौन-सा एक विद्युत् का मन्द चालक नहीं है ?
(a) सल्फर
(b) सिलीनियम
(c) ब्रोमीन
(d) फॉस्फोरस
41. नाइक्रोम के तार हीटिंग एलीमेन्ट ( Heating Elementरूप में प्रयुक्त किये जाते हैं, क्योंकि- 
(a) इसके तार खींचे जा सकते हैं
(b) इसका विशिष्ट प्रतिरोध उच्च है
(c) लाल तप्त होने पर ऑक्साइड नहीं बनाता है
(d) उपर्युक्त (b) और (c) दोनों के कारण
42. विद्युत बल्व के तन्तु के निर्माण में टंगस्टन का प्रयोग होता है, क्योंकि इसका
(a) उच्च विशिष्ट प्रतिरोध होता है
(b) निम्न विशिष्ट प्रतिरोध होता है
(c) उच्च प्रकाश उत्सर्जन क्षमता होती है
(d) उच्च गलनांक होता है
43. बिजली के बल्व के मुकाबले फ्लूरोसेन्ट ट्यूब अधिक पसन्द की जाती है, क्योंकि-
(a) उसकी रोशनी देने वाली सतह बड़ी होती है।
(b) वोल्टता की घट-बढ़ का उस पर असर नहीं पड़ता
(c) ट्यूब में विद्युत ऊर्जा लगभग पूरी तरह से प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
(d) उसकी रोशनी आंखों के लिए हानिकारक नहीं होती
44. बिजली के बल्व से हवा पूरी तरह से क्यों निकाल दी जाती है ?
(a) टंगस्टन तन्तु के उपचयन को रोकने के लिए
(b) बल्व के फूट जाने को रोकने के लिए
(c) अवशोषण के कारण प्रकाश की हानि को रोकने के लिए
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
45. बल्ब को तोड़ने पर तेज आवाज होती है, क्योंकि- 
(a) बल्ब के अन्दर निर्वात् में वायु तेजी से प्रवेश करती है
(b) बल्ब के अन्दर विस्फोटक गैस होती है।
(c) बल्ब का फिलामेन्ट वायु से क्रिया करता है।
(d) बल्ब के अंदर की गैस अचानक प्रसारित होती है
46. बिजली के बल्ब का फिलामेन्ट किस तत्व से बना होता है ? 
(a) कॉपर
(b) आयरन
(c) लेड
(d) टंगस्टन 
47. एक बिजली के फ्यूज तार (Fuse Wire ) में सामान्य अनुप्रयोगों के लिए निम्नलिखित में से कौन से गुण समूह का होना आवश्यक है ?
(a) मोटा तार उच्च गलनांक की मिश्रधातु, कम लम्बाई
(b) मोटा तार, निम्न गलनांक की मिश्रधातु, अधिक लम्बाई
(c) कम लम्बाई, निम्न गलनांक की मिश्रधातु, पतला. तार
(d) अधिक लम्बाई, निम्न गलनांक की मिश्रधातु, पतला तार
48. सामान्यतः प्रयुक्त सुरक्षा फ्यूज तार बनायी जाती है-
(a) टिन और निकिल की मिश्रधातु से
(b) लेड और लोहे के मिश्रधातु से
(c) निकिल और लेड की मिश्रधातु से
(d) टिन और लेड की मिश्रधातु से
49. एक विद्युत् सर्किट में एक फ्यूज तार का उपयोग किया जाता है- 
(a) संचारण में विद्युत् ऊर्जा के खर्च को कम करने के लिए
(b) वोल्टेज के स्तर को स्थिर रखने के लिए
(c) सर्किट में प्रवाहित होने वाले अधिक विद्युत धारा को रोकने के लिए
(d) विद्युत् तार को अधिक गर्म होने से बचाने के लिए
50. बिजली सप्लाई के मेंस में फ्यूज एक सुरक्षा उपकरण के रूप में लगा हुआ होता है। बिजली के फ्यूज के संबंध में कौन-सा कथन सही है ?
(a) यह मेन्स स्विच के साथ समानान्तर में संयोजित होता है ।
(b) यह मुख्यतः सिल्वर मिश्रधातुओं से बना होता है ।
(c) इसका गलनांक निम्न होता है ।
(d) इसका प्रतिरोध अति उच्च होता है ।
51. एक फ्यूज की तार को इन लक्षणों के कारण पहचाना जाता है ?
(a) न्यूनतम प्रतिरोधकता तथा उच्च गलनांक
(b) उच्च प्रतिरोधकता तथा उच्च गलनांक
(c) उच्च प्रतिरोधकता तथा निम्न गलनांक
(d) न्यूनतम प्रतिरोधकता तथा न्यूनतम गलनांक
52. घरेलू विद्युत उपकरणों में प्रयुक्त सुरक्षा फ्यूज तार उस धातु से बनी होती है, जिसका-
(a) प्रतिरोध कम हो
(b) गलनांक कम हो
(c) विशिष्ट घनत्व कम हो
(d) चालकत्व कम हो
53. एक फ्यूज तार का उपयोग ....... के लिए होता है।
(a) हानि पहुंचाए बिना उच्च विद्युत् धारा को प्रवाहित करना
(b) अत्यधिक धारा प्रवाह के समय विद्युत् परिपथ को तोडऋने
(c) किसी व्यक्ति को विद्युत् झटकों से बचाने
(d) इनमें से कोई नहीं
54. एक तार की लम्बाई L मीटर है, तार को खींचकर उसकी लम्बाई 2L मीटर कर दी जाती है, अब तार का प्रतिरोध हो जाएगा-
(a) पहले का दोगुना 
(b) पहले का चार गुना
(c) पहले का एक चौथाई
(d) अपरिवर्तित रहेगा
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Mon, 29 Apr 2024 09:47:05 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | प्रकाश https://m.jaankarirakho.com/1036 https://m.jaankarirakho.com/1036 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | प्रकाश
  • प्रकाश एक प्रकार का ऊर्जा है जिसकी सहायता से हम किसी वस्तु को देख पाते हैं। प्रकाश के बिना हमारी आँख कोई महत्व नहीं है ।
प्रकाश की प्रकृति
  • प्रकाश अयांत्रिक विद्युत चुंबकीय तरंग है। प्रकाश ऊर्जा को, ऊर्जा के अन्य रूपों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • श्वेत प्रकाश (सूर्य से आनेवाला प्रकाश) विभिन्न तरंगदैर्ध्य के प्रकाश तरंगों का मिश्रण है। इन प्रकाश तरंगों का तरंगदैर्ध्य . 4 × 10-7 m से 8 × 10-7 m तक होता है।
  • प्रकाश का वेग माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है। प्रकाश का सर्वाधिक वेग शून्य (निर्वात) में होता है। निर्वात में प्रकाश का वेग 3 × 108 m/s होता है। अन्य सभी माध्यमों में प्रकाश का वेग निर्वात से कम होता है। हवा में प्रकाश का वेग, निर्वात में, प्रकाश के वेग के बराबर ही माना जाता है।
  • प्रकाश तरंग को प्रारंभ में अतिसूक्ष्म कण माना गया बाद में इसे तरंग (अनुप्रस्थ) माना गया । आधुनिक क्वाटम सिद्धांत के अनुसार प्रकाश कण तथा तरंग दोनों स्वभाव रखता है। किसी माध्यम से गमण करते व्यक्त प्रकाश तरंग स्वभाव को दर्शाता है तथा पदार्थ के साथ अन्योन्य क्रिया (interaction) करते समय, कण स्वभाव को दर्शाता है ।
प्रकाश से संबंधित प्रमुख परिभाषिक शब्द :
  1. किरण (Ray)– प्रकाश स्त्रोत से निकलकर प्रकाश सरल रेखीय मार्ग से होकर सभी दिशाओं में गमण करता है। किसी भी दिशा में प्रकाश के सरल रेखीय गमन पथ को किरण कहते हैं । करण को तीर का चिन्ह देकर दर्शाया जाता है ।

  2. प्रकाश पुंज (Beam of light)- किसी निश्चित दिशा में जा रहे किरणों के समूह को प्रकाश पुंज कहते हैं। प्रकाशपुंज तीन प्रकार के होते हैं ।
    1. समांतर किरण - पुंज (Parallel Beam)- यदि प्रकाश पुंज की किरणें परस्पर एक-दूसरे के समांतर होती है तो उसे समांतर प्रकाशपुंज कहा जाता है। बहुत दूर के प्रकश स्त्रोत (सूर्य, तारा इत्यादि) से आ रही प्रकाशपुंज को समांतर प्रकाश-पुंज माना जाता है। 

    2. संसृत (अभिसारी) किरण पुंज (Convergent Beam ) - जब प्रकाश पुंज आगे बढ़ने पर एक बिन्दु पर मिलती है तब इसे संसृत या अभिसारी किरण - पुंज कहते हैं।

    3. अपस्तत (अपसारी) किरण पुंज (Divergent Beam) - यदि प्रकाश पुंज की किरणें किसी बिन्दु से निकलकर बढ़ने के साथ फैलती जाती है तब इसे अपस्तत या अपसारी किरण पुंज कहते हैं।

  3. पारदर्शी पदार्थ (Transpoarent Matter)- वे पदार्थ जिनसे होकर प्रकाश आसानी से पार कर जाता है पारदर्शी कहलाता है।
    उदा० - काँच, पानी, हवा आदि ।
  4. पारभासी पदार्थ (Translucent)- जिन पदार्थ से होकर प्रकाश का बहुत कम भाग ही आर-पार जा सके पारभासी पदार्थ कहलाता है।
    उदा० - घिसा हुआ काँच, तेल लगा कागज, रक्त, दूध आदि ।
  5. अपारदर्शी पदार्थ (Opaque Matter)- जिनसे होकर प्रकाश आर-पार नहीं जा सके अपारदर्शी पदार्थ कहलाता है ।
    उदा०- लकड़ी, लोहा, पत्थर, अलकतरा आदि ।
    NOTE:- हवा तथा निर्वात को छोड़कर, अन्य सभी माध्यम का मोटाई ही निर्धारित करता है कि वह पारदर्शी, अपारदर्शी या पारभासी होगा। जैसे - काँच का पतला भाग पारदर्शी होता है, कुछ और मोटा काँच पारभासी होता है जबकि बहुत मोटा काँच अपारदर्शी होता है ।
  6. प्रदीप्त वस्तु (Luminous Body )- यदि वस्तु प्रकाश का उत्सर्जन स्वयं करती है जो उसे प्रदीप्त कहा जाता है। जैसे- सूर्य, तारा, जलता बल्व ।
  7. अप्रदीप्त वस्तु (Non-luminous body)- जब कोई वस्तु प्रकाश का उत्सर्जन स्वयं नहीं करती है तो उसे अप्रदीप्त वस्तु कहते हैं जैसे- पृथ्वी, चन्द्रमा, ग्रह, पत्थर, आदि ।
  8. प्रकाशिकी (Optics)-- भौतिकी की वह शाखा जिसमें प्रकाश के गुण प्रकृति तथा प्रतिबिम्ब के बनने का अध्ययन किया जाता है प्रकाशिकी कहलाता है ।
प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)
  • किसी माध्यम से चलती हुई प्रकाश जब किसी दूसरे माध्यम के सतह से टकराती है तो प्रकाश का कुछ भाग पहले माध्यम में वापस लौट जाता है। यह क्रिया प्रकाश का परावर्त्तन कहलाता है।
  • प्रकाश जिस माध्यम के सतह से टकराकर वापस लौटता है उसे परावर्त्तक सतह कहते हैं । परावर्त्तक सतह के प्रकृति के अनुसार परावर्त्तन दो तरह से हो सकता है ।
    1. नियमित परावर्त्तन- जब प्रकाश की किरणें बहुत ही चिकनी, समतल और चमकीली सतह पर पड़ती है तो वे कुछ निश्चित नियम के अनुसार परावर्तित होता है। ऐसे परावर्त्तन को नियमित परावर्त्तन कहते हैं ।
    2. अनियमित परावर्त्तन- जब प्रकाश की किरणें रूखड़ी तथा चमकीली सतह पर पड़ती है तो प्रकाश अनियमित रूप से परावर्तित होती है। ऐसे परावर्त्तन अनियमित परावर्त्तन कहलाता है । 

    • प्रकाश के नियमित परवर्तन के दो नियम हैं-
      1. आपतीत किरण, परावर्तीत किरण तथा आपतन बिन्दु पर डाला गया लम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं ।
      2. आपतन कोण तथा परावर्त्तन कोण एक-दूसरे के बराबर होते हैं ।
  • प्रकाश की किरण अगर परावर्त्तक सलह पर लंबवत है तो प्रकाश की किरण परावर्त्तन के बाद उसी पथ पर लौट जाती है इस स्थिति में आपतन कोण तथा परावर्त्तन कोण का मान शून्य होता है । 
प्रतिबिम्ब (Optical Image)
  • जब किसी वस्तु से निकला हुआ किरण-पुंज परावर्त्तन या अपवर्तन के बाद किसी दूसरे बिन्दु पर मिलती है या मिलती हुई प्रतीत होती है तो यह दूसरा बिन्दु पहले बिन्दु का प्रतिबिम्ब कहलाता है। वस्तु के प्रत्येक बिन्दु का प्रतिबिम्ब बनता है और "प्रतिबिम्ब के समूह वस्तु का प्रतिबिम्ब कहते हैं।
  • प्रतिविम्ब दो प्रकार के होते हैं-
    1. वास्तविक प्रतिबिम्ब (Real Image)- जब किसी बिन्दु से निकला हुआ किरण-पुंज परावर्तन या अपवर्त्तन के बाद जिस बिन्दु पर वास्तव में मिलती है उस बिन्दु को वास्तविक प्रतिबिम्ब कहते हैं।
      • वास्तविक प्रतिबिम्ब हमेशा उल्टा बनता है और इसे पर्दे पर उतारा जा सकता है।
    2. आभासी या काल्पनिक प्रतिबिम्ब (Virtual image )- जब किसी बिन्दु से निकला हुआ किरण - पुंज परावर्त्तन या अपवर्त्तन के बाद जिस बिन्दु पर मिलती हुई प्रतीत होती है उस बिन्दु को आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं।
      • आभासी प्रतिबिम्ब हमेशा सीधा बनता है और इसे पर्दे पर उतारा नहीं जा सकता है।
समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब की विशेषताएँ
  • समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब अभासी वस्तु के आकार के बराबर तथा वस्तु के अपेक्षा सीधा बनता है।
  • वस्तु का प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है, वस्तु दर्पण से जितना आगे रहता है, प्रतिबिम्ब दर्पण से उतना ही पीछे बनता है ।
  • समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब का पाि उत्क्रमण (Lateral inversion) होता है अर्थात् प्रतिबिम्ब पलटा हुआ प्रतीत होता है।
  • वस्तु तथा प्रतिबिम्ब को मिलाने वाली रेखा दर्पण पर लम्बवत होता है ।
  • समतल दर्पण से परावर्त्तन के बाद प्रत्येक आपतीत किरण में 180 - 2i (π - 2i ) का विचलन होता है। ( i = आपतन कोण = परावर्त्तन कोण) ।  
  • अगर किसी वस्तु का पूरा प्रतिबिम्ब समतल दर्पण में देखना हो तो दर्पण की ऊँचाई वस्तु की ऊँचाई का आधा होना आवश्यक है ।
  • यदि कोई वस्तु दर्पण के सापेक्ष V चाल से गतिमान हो तो वस्तु और प्रतिबिम्ब के सापेक्ष गति 2v होगी।
  • अगर दो समतल दर्पण एक-दूसरे θ कोण पर हो तो उनके बीच रखी गयी किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब की संख्या

  • समतल दर्पण में प्रतिबिम्ब की ऊँचाई वस्तु की ऊँचाई के बराबर होती है । प्रतिबिम्ब वस्तु के अपेक्षा सीधी होती है। फलतः इसका आवर्धन '+1' होता है।
समतल दर्पण का उपयोग
  1. समतल दर्पण का सर्वाधिक प्रयोग आइने के रूप में किया जाता है ।
  2. इस दर्पण का उपयोग परिदर्शी (Periscope) तथा बहुदर्शी (Kaleidoscope) बनाने में किया जाता है।
  3. व्यस्त मार्ग पर बहुत अधिक मोड़नेवाले स्थान पर इसे लगाया जाता है जिससे चालक दूसरी ओर की गाड़ी को देख सके।
  4. समतल दर्पण का उपयोग बाल काटने वाले सैलून में किया जाता है ताकि लोग सिर के पीछे के भागों को देख सके ।
गोलीय दर्पण (Spherical Mirror)
  • यदि दर्पण का परावर्त्तक सतह किसी गोले का एक भाग हो तो वैसे दर्पण को गोलीय दर्पण कहते हैं ।
  • गोलीय दर्पण दो प्रकार के हो सकते हैं-
    1. अवतल दर्पण (Concave Mirror ) - वह गोलीय दर्पण जिसमें प्रकाश का परावर्त्तन उसके दबे भाग की ओर से होता है, तो उसे अवतल दर्पण कहते हैं। इस दर्पण को अभिसारी दर्पण भी कहते हैं।
    2. उत्तल दर्पण (Convex Mirror)- उत्तल दर्पण वह गोलीय दर्पण है जिसमें प्रकाश का परावर्त्तन उसके उभरे भाग से होता है। इस दर्पण को अपसारी दर्पण भी कहते हैं।

गोलीय दर्पण से संबंधित प्रमुख पद
  1. ध्रुव (Pole ) - गोलीय दर्पण के परावर्त्तक सतह के मध्य बिन्दु को ध्रुव कहते हैं। इसे P अक्षर से दर्शाया जाता है ।
  2. वक्रता केन्द्र (Centre of Curvature) - जिस खोखले गोले को काटकर दर्पण बनाया जाता है, उसे खोखले गोले के केन्द्र को वक्रता केन्द्र कहते हैं ।
  3. मुख्य अक्ष (Principal axis) - दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केन्द्र से होकर जाने वाली रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं । मुख्य अक्ष दर्पण के सतह पर लम्ब होती है और दर्पण के मध्य बिन्दु से होकर गुजरती है।
  4. वक्रता त्रिज्या (Radius of Curvature) ध्रुव और वक्रता केन्द्र के बीच दूरी को वक्रता त्रिज्या कहते हैं ।
  5. द्वारक (Aperture)– दर्पण के परावर्त्तक सतह के क्षेत्र को उसका द्वारक कहते हैं। इसका मान गोलीय दर्पण के घेरे द्वारा या उसके वक्रता केन्द्र पर बने ठोस कोण या घेरे के व्यास से ज्ञात किया जाता है।
  6. मुख्य फोकस (Principle Focus )- मुख्य अक्ष के समांतर आती किरण दर्पण से परावर्त्तन के बाद जिस बिन्दु पर मिलती है (अवतल दर्पण में), या जिस बिन्दु पर मिलती हुई प्रतीत होती है (उत्तल दर्पण में), उस बिन्दु को मुख्य फोकस अथवा फोकस कहते हैं।
    • अवतल दर्पण का फोकस वास्तविक तथा उत्तल दर्पण का फोकस अभासी होता है।
  7. फोकसान्तर (Focal length )- ध्रुव और फोकस के बीच की दूरी को फोकसान्तर या फोकस दूरी कहते हैं I
  8. आवर्धन (Magnification ) - प्रतिबिम्ब के ऊँचाई तथा वस्तु के ऊँचाई के अनुपात को ही आवर्धन कहते हैं।

विभिन्न स्थितियों में अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब बनना
  • स्थिति I - जब वस्तु अवतल दर्पण के फोकस और ध्रुव के बीच स्थित हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब अवतल दर्पण के पीछे बनता है। यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक, सीधा तथा वस्तु से बड़ा होता है ।
  • स्थिति II – जब वस्तु अवतल दर्पण के फोकस पर हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब अनंत ( बहुत दूर) पर बनता हैयह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु के तुलना में बहुत बड़ा होता है। 
  • स्थिति III - जब वस्तु अवतल दर्पण के वक्रता केन्द्र और फोकस के बीच हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब वक्रता केन्द्र और अनंत के बीच बनता है । यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु से बड़ा होता है ।
  • स्थिति IV – जब वस्तु अवतल दर्पण के वक्रता केन्द्र हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब वक्रता केन्द्र पर ही बनता है। यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु के बराबर होता है ।
  • स्थिति V - जब वस्तु अवतल दर्पण के वक्रता केन्द्र और अनंत के बीच हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब वक्रता केन्द्र और फोकस के बीच बनता है । यह प्रतिबिम्ब वास्तविक उल्टा और वस्तु से छोटा होता है ।
  • स्थिति VI – जब वस्तु अनंत (बहुत दूर) पर हो- इस स्थिति में प्रतिबिम्ब फोकस पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु के तुलना में बहुत छोटा होता है।
  • स्थिति VII – जब वस्तु ध्रुव पर हो- इस स्थिति में प्रतिबिम्ब ध्रुव पर ही बनता है। यह प्रतिबिम्ब अभासी, सीधा तथा वस्तु -बराबर होता है।
विभिन्न स्थितियों में उत्तल दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब बनना
  • उत्तल दर्पण में वस्तु को कहीं पर भी रखने पर प्रतिबिम्ब हमेशा सीधा अभासी और वस्तु से छोटा बनता है। प्रतिबिम्ब सदा दर्पण के पीछे ही बनता है।
    • स्थिति I – जब वस्तु उत्तल दर्पण के ध्रुव पर हो- इस स्थिति में प्रतिबिम्ब ध्रुव पर ही बनता है। प्रतिबिम्ब अभासी, सीधा एवं वस्तु के बराबर होता I
    • स्थिति II - जब वस्तु उत्तल दर्पण के ध्रुव तथा अनंत के बीच हो - इस स्थिति में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे ध्रुव तथा फोकस के बीच बनता है । प्रतिबिम्ब अभासी, सीधा तथा वस्तु से छोटा होता है ।
    • स्थिति III - जब वस्तु अनंत पर हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब उत्तल दर्पण के फोकस पर बनता है । यह प्रतिबिम्ब अभासी, सीधा और वस्तु के तुलना में बहुत छोटा होता है।
अवतल दर्पण का उपयोग-
  1. अवतल दर्पण का उपयोगं सोलर कुकर या सौर भट्ठी • प्रकाश को अभिसरित (Converged) करने में किया जाता है।
  2. कान, नाक तथा गले के डॉक्टर आंतरिक भाग का जाँच करने हेतु अवतल दर्पण का उपयोग करते हैं ।
  3. बाल-दाढ़ी बनाने वाले सैलून में व्यक्ति का बड़ा प्रतिबिम्ब बनाने हेतु अवतल दर्पण का उपयोग होता है।
  4. दंत चिकित्सक दाँत को स्पष्ट देखने हेतु अवतल दर्पण का प्रयोग करते हैं ।
  5. हेडलाइट, टॉर्च, टेबुल लैम्प का परावर्त्तक अवतल दर्पण के ही बने होते हैं ।
  6. परावर्त्तन दूरदर्शी बनाने हेतु अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है । 
  7. प्रदर्शन-कक्ष (Show-room) में विभिन्न आकार के प्रतिबिम्ब बनाने हेतु अवतल दर्पण ही उपयोग में लाये जाते हैं।
उत्तल दर्पण उपयोग-
  1. उत्तल दर्पण का दृष्टि क्षेत्र (Field of Vision)- काफी विस्तृत होता है। इस दर्पण से पीछे के बड़े क्षेत्र की वस्तुओं का प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। इस कारण से उत्तल दर्पण का प्रयोग स्कूटर, मोटरकार तथा बस इत्यादि में साइड मिरर के रूप में किया जाता है।
  2. सड़कों तथा गलियों के बल्व के ऊपर का परावर्त्तक उत्तल दर्पण का बना होता है ।
  3. प्रदर्शन कक्ष (Show-room) में छोटे-छोटे प्रतिबिम्ब बनाने हेतु उत्तल दर्पण का प्रयोग किया जाता है।
समतल, अवतल तथा उत्तल दर्पण के मुख्य अंतर-
  1. समतल दर्पण का परावर्त्तक सतह समतल, अवतल का दबा हुआ तथा उत्तल का उभरा हुआ होता है ।
  2. समतल तथा उत्तल दर्पण से बना प्रतिबिम्ब हमेशा दर्पण के पीछे बनता है जबकि अवतल दर्पण से बना प्रतिबिम्ब दर्पण के आगे भी बनता है तथा पीछे भी ।
  3. 3. समतल तथा उत्तल दर्पण से हमेशा काल्पनिक और उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है जबकि अवतल दर्पण से काल्पनिक (आभासी) एवं वास्तविक दोनों प्रतिबिम्ब बनता है ।
  4. समतल दर्पण की फोकस दूरी अनंत होती है जबकि अवतल और उत्तल दर्पण की फोकस दूरी मापने लायक होती है।
बिना स्पर्श किये विभिन्न दर्पण का पहचान
  • अगर दर्पण के बना प्रतिबिम्ब सीधा एवं वस्तु के ऊँचाई का बनता है और वस्तु को आगे पीछे करने पर भी प्रतिबिम्ब के आकार में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो, यह दर्पण समतल दर्पण है।
  • अगर दर्पण में बना प्रतिबिम्ब सीधा एवं वस्तु से बड़ा बनता है और वस्तु को दर्पण से थोड़ा दूर करने पर प्रतिबिम्ब का आकार बढ़ता है तो, यह दर्पण अवतल दर्पण है ।
  • अगर दर्पण में बना प्रतिबिम्ब सीधा एवं वस्तु से छोटा है और वस्तु को दर्पण से दूर करने पर प्रतिबिम्ब का आकार घटता - है तो, यह दर्पण उत्तल दर्पण है।
दर्पण सूत्र (Mirror Formula)
  • गोलीय दर्पण के लिए वस्तु की दूरी (u) प्रतिबिम्ब की दूरी (v) और फोकस दूरी (f) के बीच के संबंध को दर्पण सूत्र कहते हैं। 

  • गोलीय दर्पण द्वारा आवर्धन

    NOTE:- उत्तल दर्पण में आवर्धन हमेशा धनात्मक (+) होता है । अवतल दर्पण में वास्तविक प्रतिबिम्ब के लिए आव नि ऋणात्मक (-) तथा आभासी प्रतिबिम्ब के लिए आवर्धन धनात्मक (+) होता है।
गोलीय दर्पण में चिन्ह की परिपाटी ( Signconvention in Spherical Mirror)
  • दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब का स्थान निर्धारण करने के लिए दूरियों की चिन्ह परिपाटी की आवश्यकता होती है ताकि प्रतिबिम्ब की विभिन्न स्थितियों के बीच अंतर स्पष्ट हो सके-

  • अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या (R) तथा फोकस दूरी (f) ऋणात्मक होता है और उत्तल दर्पण की वक्रता त्रिज्या (R) तथा फोकस दूरी (f) धनात्मक होता है ।
प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)
  • जब प्रकाश एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी में तिरछी आपतीत होती है तो प्रकाश का कुछ भाग परावर्तित हो जाती है तथा कुछ भाग दूसरे माध्यम में प्रारंभिक पथ से कुछ मुड़ कर प्रवेश करती है। दूसरे माध्यम में प्रकाश के किरण के पथ बदलने की घटना प्रकाश का अपवर्त्तन कहलाता है ।
  • प्रकाश के अपवर्त्तन का कारण- प्रकाश के अपवर्त्तन का करण है, विभिन्न पारदर्शी माध्यम में प्रकाश की चाल का अलग-अलग होना। सघन माध्यम (Optically dencer) में प्रकाश की चाल कम तथा विरल माध्यम (Optically rare) में प्रकाश की चाल अधिक होती है ।
प्रकाश के अपवर्त्तन को समझने हेतु निम्न पद को जानना आवश्यक है-
  1. आपतित किरण- दो माध्यमों को अलग करने वाली सतह पर पड़नेवाली प्रकाश किरण को आपतित किरण कहते हैं ।
  2. आपतन बिन्दु– जिस बिन्दु पर आपतित किरण टकराती है उसे आपतन बिन्दु कहते हैं।
  3. अभिलंब— किसी सतह के किसी बिन्दु पर खींचे गये लंब को उस बिन्दु पर का अभिलंब कहते हैं।
  4. आवर्तित किरण- दूसरे माध्यम में मुड़कर जाती हुई प्रकाश किरण को अपवर्तित किरण कहते हैं।
  5. आपतन कोण- आपतित किरण, अभिलब के साथ जो कोण बनाती है उसे आपतन कोण कहते हैं ।
  6. अपवर्त्तन कोण- अपवर्तित किरण, अभिलंब के साथ जो कोण बनाती है उसे अपवर्त्तन कोण कहते हैं ।

  • जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाता है तो -
    1. प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाने पर अभिलंब की ओर मुड़ जाती है।
    2. प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाने पर अभिलंब से दूर हट जाती है ।
    3. जब कोई प्रकाश की किरण दो माध्यमों को अलग करने वाली सतह पर लंबवत पड़ती है, तो वह बिना मुड़े अर्थात् बिना अपवर्त्तन के सीधे निकल जाती है ।
  • अपवर्त्तन के नियम- अपवर्तन के दो नियम है-
    1. आपतीत किरण, आपतन बिन्दु पर अभिलंब तथा अपवर्तित किरण एक ही समतल में होते हैं I
    2. किन्हीं दो माध्यम और प्रकाश के किसी विशेष रंग के लिए आपतन कोण की ज्या ( Sine) और अपवर्त्तन कोण की ज्या (Sine) का अनुपात एक नियतांक (Constant) होता है। यदि आपतन कोण । तथा अपवर्त्तन कोण r हो तो 

      • इस नियतांक (onstant) की माध्यम 2 का माध्यम 1 के सापेक्ष अपवर्त्तनांक भी कहते हैं । इस नियम को पहली बार स्नेल ने निकाला था इसलिए इसे स्नेल का नियम भी कहते हैं ।
अपवर्त्तनांक (Refractive Index)
  • किसी माध्यम की प्रकाश की किरण की दिशा को बदलने की क्षमता को उस माध्यम का अपवर्त्तनांक कहते हैं।
  • किसी माध्यम का अपवर्त्तनांक निर्वात में प्रकाश की चाल (c) तथा उस माध्यम में प्रकाश के चाल के अनुपात को कहते हैं I

  • प्रमुख पदार्थ (माध्यम) का अपवर्त्तनांक

  • सबसे कम अपवर्तनांक वाली माध्यम निर्वात है तथा सबसे अधिक अपवर्त्तनांक वाला माध्यम हीरा है।
  • जिस माध्यम का अपवत्तनांक कम होता है उसमें प्रकाश की चाल अधिक होती है तथा जिस माध्यम का अपवर्तनांक अधिक होता है उसमें प्रकाश की चाल कम होती है।
प्रकाश के अपवर्त्तन के कारण होने वाली प्रमुख घटना
  1. पानी के सतह पर रखी छड़ मुड़ा हुआ दिखाई पड़ता है।
  2. पानी से भरी बाल्टी की गहराई कम प्रतीत होती है ।
  3. वायुमंडल के विभिन्न परतों द्वारा प्रकाश का अपवर्त्तन होने से तारे टिमटिमाते नजर आते हैं।
  4. वायुमंडलीय अपवर्त्तन के कारण ही सूर्योदय से पहले तथा सूर्यास्त के बाद भी सूर्य दिखाई पड़ते हैं।
  5. जल से भरे बर्त्तन में अवस्थित सिक्का ऊपर उठा दिखाई पड़ता है।
क्रांतिक या चरम कोण (Critical angle)
  • जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है, तब वह विशेष आपतन कोण जिसके संगत का अपवर्त्तन कोण 90° होता है, क्रांतिक कोण कहलाता है।
  • जब क्रांतिक कोण से आपतन कोण का मान अधिक हो जाता है, तब प्रकाश की किरण दूसरे माध्यम में नहीं जाकर उसी माध्यम में परावर्त्तन के नियम का पालन करते हुए परावर्तित हो जाती है।
पूर्ण आंतरिक परिवर्त्तन ( Hotal Internal reflection)
  • जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है और आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक होता है, तब प्रकाश की किरण का दूसरे माध्यम में अपवर्त्तन नहीं होता है और प्रकाश की किरण उसी माध्यम में प्रकाश के परावर्त्तन के नियम का पालन करते हुए लौट आती है। इस घटना को पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन कहते हैं।
  • पूर्ण आंतरिक परावर्तन के घटना हेतु निम्न शर्त का पूरा होना अनिवार्य है-
    1. प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए ।
    2. जिस विरल माध्यम में प्रकाश जा रही हो उस विरल माध्यम के लिए सघन माध्यम का आपतन कोण क्रांतिक कोण से अधिक होना चाहिए ।
  • पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन तथा परावर्तन में अंतर-
पूर्ण आंतरिक परावर्तन परावर्तन
1. प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर जाना चाहिए। 1. प्रकाश किरण किसी एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाना चाहिए।
2. आपतन कोण क्रांतिक कोण से बड़ा होता है। 2. आपतन कोण का मान कुछ भी हो सकता है।
3. यहाँ पर किरण का अपवर्त्तन या अवशोषण नहीं होता है । 3. यहाँ पर किरण का अपवर्तन एवं अवशोषण संभव है।
4. यह बहुत अधिक तीक्ष्ण (intense) होती है । 4. यह कम तीक्ष्ण होती है।
5. इसमें आपतीत किरण पूर्णतः लौट आती है। 5. इसमें आपतीत किरण अंशतः ही लौटती है ।
  • क्रांतिक कोण तथा अपवर्तनांक के बीच संबंध-

  • जिस माध्यम का अपवत्तनांक अपेक्षाकृत अधिक होता है उस माध्यम के लिए क्रांतिक कोण का मान कम होता है तथा जिस माध्यम का अपवर्त्तनांक अपेक्षाकृत कम होता है उस माध्यम के लिए क्रांतिक कोण का मान अधिक होता है।
    उदा०- एक माध्यम का क्रांतिक कोण 60° है उस माध्यम का अपवर्त्तनांक क्या होगा ?

  • कुछ प्रमुख पदार्थ का अपवर्त्तनांक एवं क्रांतिक कोण

   

  • पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन के कारण होनेवाली घटना
    1. पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन के कारण तेज गर्मी वाले दिन में मरीचिका दिखाई पड़ता है ।
      • मरीचिका (Mirage)-- मरीचिका एक धोखे की वस्तु या प्रकाशीय भ्रम है। गर्म क्षेत्रों में यात्री को यह आभास जलाशय का भ्रम उत्पन्न करता है।
    2. पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन के कारण तेज धूप में समतल चिकनी सड़क झिलमिलाते दिखाई पड़ता है और लगता है कि सड़क भींगा हुआ है ।
    3. ठंडे क्षेत्र में पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण दूर से आता जहाज उठता हुआ दिखाई पड़ता है। यह भी एक प्रकार दृष्टि भ्रम ( मरीचिका) है। इस दृष्टि भ्रम को लूमिंग (Looming) कहते हैं ।
    4. पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन के कारण तराशा हुआ हीरा चमकीला दिखाई देता है। बिना तराशा हुआ हीरा पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन नहीं कर पाता है ।
लेंस (Lens)
  • लेंस पारदर्शक पदार्थ का वह टुकड़ा है जो दो निश्चित ज्यामितीय सतह से घिरा होता है ।
  • लैंस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द लेन्टीन (Lentil ) से हुई है । लेंस का आकार हमारे देश में होने वाले मसूर दाल के दाने की तरह होता है ।
  • लेंस का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व बढ़ गया है। चश्मा, सूक्ष्मदर्शी, कैमरा, दूरदर्शी, प्रोजेक्टर सभी में लेंस का प्रयोग किया जाता है।
  • लेंस मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
    1. उत्तल या अभिसारी लेंस (Convex Lens)
    2. अवतल या अपसारी लेंस (Cocave Lens) 
      1. उत्तर लेंस- उत्तल लेंस बीच में मोटा तथा किनारे पर पतला होता है। उत्तल लेंस निम्न प्रकार के हो सकते हैं- 
        1. अवतल उभयोत्तल (Biconvex )- इस लेंस का दोनों तल उत्तल होता है।
        2. समतलोत्तल (Plano-Convex ) - इस लेंस का एक तल समतल दूसरा तल उत्तल होता है।
        3. अवतलोत्तल (Cancavo-Convex)- इस लेंस का एक तल अवतल और दूसरा तल उत्तल होता है।
      2. अवतल लेंस बीच में पतला तथा किनारे पर मोटा होता है I अवतल लेंस निम्न प्रकार के हो सकते हैं।
        1. उभयावत्तल (Biconvex )- इसका दोनों तल अवतल होता है । 
        2. समतलावतल (Plano - convave ) - इसका एक तल समतल तथा दूसरा तल अवतल होता है ।
        3. उत्तलावतल (Convexo-concave)- इस लेंस का एक तल अवतल और दूसरा तल उत्तल होता है।
लेंस से संबंधित प्रमुख पद
  1. वक्रता केंद्र (Centre of Curvature)- लेंस का गोलीय पृष्ठ वृहद गोला का भाग होता है, उस गोले के केन्द्र को वक्रता केन्द्र कहते हैं । लेंस में दो वक्रता केन्द्र होते हैं जिसे C1 तथा C2 से दर्शाया जाता है ।
  2. मुख्य अक्ष (Principal Axis )- किसी लेंस के दोनों वक्रता केन्द्र से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं ।
  3. प्रकाशिक केंद्र (Optical Centre)- लेंस का केन्द्र बिन्दु को प्रकाशिक केन्द्र कहते हैं। इसे 0 अक्षर से दर्शाया जाता है। प्रकाशिक केन्द्र से गुजरने वाली किरणें बिना विचलन के निर्गत हो जाती है।
  4. मुख्य फोकस (Focus )- मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरणें लेंस द्वारा अपवर्तन के बाद मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती है (उत्तल लेंस में) या जिस बिन्दु पर मिलती हुई प्रतीत होती है (अवतल लेंस में) उस बिन्दु को मुख्य फोकस कहते हैं। लेंस में दो फोकस होता है जिसे F1 तथा F2 द्वारा दर्शाया जाता है ।
  5. फोकसांतर या फोकस दूरी (Focal len प्रकाशिक केन्द्र और फोकस के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहते हैं । इसे f द्वारा दर्शाया जाता है।
  6. द्वारक (Aperature)- किसी गोलीय लेंस की वृत्ताकारं भाग का प्रभावी व्यास उस गोलीय लेंस का द्वारक कहलाता है ।
उत्तल लेंस द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना
  • स्थिति I - जब वस्तु अनंत (बहुत दूर) पर हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब लेंस के दूसरी ओर फोकस पर बनता है । यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु के तुलना में बहुत छोटा होता है।
  • स्थिति II - जब वस्तु लेंस तथा फोकस के बीच हो - इस स्थिति में प्रतिबिम्ब लेंस के उसी ओर बनता है जिस ओर वस्तु होता है। यह प्रतिबिम्ब काल्पनिक, सीधा तथा वस्तु से बड़ा होता है ।
  • स्थिति III - जब वस्तु फोकस पर हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब लेंस के दूसरी ओर अनंत पर बनता है। यह प्रतिबिम्ब वास्तविक उल्टा तथा वस्तु से बहुत बडा होता है।
  • स्थिति IV – जब वस्तु F1 तथा 2F1 के बीच स्थित हो - इस स्थिति में प्रतिबिम्ब 2F2 तथा अनंत के बीच बनता है। यह प्रतिबिम्ब वास्तविक उल्टा तथा वस्तु से होता है।
  • स्थिति V - जब वस्तु 2F1 पर स्थित हो - इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब 2F2 पर बनता है । यह प्रतिबिम्ब वास्तविक उल्टा तथा वस्तु के बराबर होता है।
  • स्थिति VI - जब वस्तु 2F1 तथा अनंत के बीच हो - इस स्थिति में प्रतिबिम्ब F2 तथा 2F2 के बीच बनता है। यह प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु से छोटा होता है।

अवतल लेंस द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना

  • अवतल लेंस द्वारा किसी वस्तु का हमेशा आभासी प्रतिबिम्ब ही बनता है चाहे वस्तु किसी भी स्थिति पर क्यों न रखी जाए ।
  • स्थिति I- जब वस्तु लेंस तथा अनंत के बीच हो - इस स्थिति में प्रतिबिम्ब लेंस तथा F2 के बीच बनता है । "यह प्रतिबिम्ब अभासी, सीधा तथा वस्तु से छोटा होता है ।
  • स्थिति II- जब वस्तु अनंत पर हो- इस स्थिति में वस्तु का प्रतिबिम्ब F2 पर बनता है । यह प्रतिबिम्ब अभासी, सीधा तथा वस्तु के तुलना में बहुत छोटा होता है।
लेंस सूत्र
  • लेंस के लिए वस्तु—दूरी (u) प्रतिबिम्ब दूरी (v) तथा फोकस दूरी (f) के बीच संबंध एक सूत्र द्वारा बताया जाता है जिसे लेंस सूत्र कहते हैं।

    • m का मान धनात्मक होने पर प्रतिबिम्ब अभासी होगा तथा m का मान ऋणात्मक होने पर प्रतिबिम्ब वास्तविक होगा ।
लेंस के लिए चिन्ह परिपाटी (Sign Convention for Lens)

  • उत्तल लेंस की फोकस दूरी धनात्मक है तथा अवतल लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक होती है।
लेंस में गोलीय विपथन (Spherical aberration in Lens)
  • मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरण लेंस द्वारा अपवर्तन के बाद फोकस से होकर गुजरती है लेकिन जब मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली किरण लेंस द्वारा अपवर्तन के बाद फोकस से होकर हीं गुजरती है, तो इस दोष को गोलीय विपथन कहते हैं।
बिना स्पर्श किये लेंस का पहचान करना
  • लेंस को बारी-बारी से पुस्तक के एक पृष्ठ के समीप लाने पर-
    1. यदि पृष्ठ में छपे अक्षर को लेंस से देखने पर अक्षर बड़ा दिखाई पड़े तो यह लेंस उत्तल होगा।
    2. यदि पृष्ठ में छपे अक्षर को लेंस से देखने पर अक्षर अपने वास्तविक अकार का दिखे तो वह लेंस नहीं है, वह एक काँच का टुकड़ा होगा ।
    3. यदि पृष्ठ में छपे अक्षर को लेंस से देखने पर अक्षर छोटा दिखाई पड़े तो यह अवतल लेंस होगा ।
लेंस की क्षमता (Power of Lens)
  • किसी लेंस की क्षमता या शक्ति, लेंस के उस सामर्थ्य की माप है जो प्रकाश की समांतर किरणों को एकत्रित करता है या फैलाता है ।
  • अधिक फोकस - दूरी का लेंस प्रकाश के समांतर किरणों को कम एकत्रित करता है या फैलाता है जबकि कम फोकस दूरी वाला लेंस प्रकाश के समांतर किरणों का अधिक एकत्रित करती है या फैलाती है।
  • किसी लेंस की क्षमता उस लेंस के फोकस दूरी के व्युत्क्रम द्वारा व्यक्त की जाती है-

  • लेंस की क्षमता का मात्रक डाइऑप्टर (D) ।1 डाइऑप्टर (1D) उस लेंस की क्षमता है जिसकी फोकस दूरी । m हो । 
  • लेंस की क्षमता का चिन्ह वही होता है जो चिन्ह उसकी फोकस दूरी की होती है अर्थात् उत्तललेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती हैं । 
लेंसो की संयोजन शक्ति
  • अगर भिन्न क्षमता वाले लेंस को एक-टूकरे के सम्पर्क में रखा जाए तो - सम्पर्क में रखे लेंस के निकाय की कुल क्षमता उन लेंसों की पृथक-पृथक क्षमताओं का बीजगणितीय योग के बराबर होता है ।
    उदा०- 1. चार लेंस जिनकी क्षमता क्रमशः +2D, -3D, + 4.5D, −0.5D है, इन्हें एक दूसरे के सम्पर्क में रखा गया है । इस लेंस की संयोजन क्षमता क्या होगा ?
    पूरेलेंस निकाय का संयोजन शक्ति
    = +2D + (−3D) + 4.5D + (−0.5D) 
    = +2D – 3D + 4.5D – 0.5D
    = +3D
    2. दो पतले लेंस की क्षमता +3.5D तथा - 2.5D है । इन्हें एक - दूसरे के संपर्क में रखा गया है। इस लेंस की संयोजन क्षमता क्या होगा ?
    संयोजन क्षमता
    = +3.5D + (−2.5 D ) 
    = ID
संयुक्त प्रकाश (Composite Light)
  • जिस प्रकाश में विभिन्न तरंगदैर्ध्य तथा आवृत्तियों के प्रकाश का मिश्रण रहता है उसे संयुक्त या बहुवर्णी प्रकाश कहते हैं। श्वेत प्रकाश संयुक्त प्रकाश है।
  • जिस प्रकाश में केवल एक रंग का प्रकाश होता है उसे एकवर्णी प्रकाश (Monochromic light) कहते हैं । जैसे- पीला रंग का प्रकाश, हरा रंग का प्रकाश ।
  • प्रकाश के सभी रंगों का तरंगदैर्ध्य एवं आवृत्ति भिन्न-भिन्न होता है । परन्तु सभी रंगों के आवृत्ति तथा तरंगदैर्ध्य का गुणनफल 3 × 1018 m/s ही होता है अर्थात् निर्वात में सभी प्रकाश का वेग 3 × 108 m/s ही होता है।
                   वेग = आवृत्ति × तरंगदैर्ध्य
प्रकाश का वर्ण विक्षेपण (Dispersion of Light)
  • किसी संयुक्त प्रकाश का विभाजित होकर अपने अवयवी रंगों के प्रकाश में अलग हो जाना ही उस संयुक्त प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कहलाता है।
  • सर्वप्रथम न्यूटन ने सूर्य से आने वाले श्वेत प्रकाश को प्रिज्म से गुजार कर विभिन्न रंगों में विभाजित किया था।
  • श्वेत प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कराने हेतु एक प्रिज्म की आवश्यकता होती है तथा प्रिज्म के दूसरी ओर एक श्वेत पर्दा रखा जाता है I
  • जब श्वेत प्रकाश को प्रिज्म से होकर गुजारा जाता है तब श्वेत पर्दा पर सात रंगों का एक रंगीन पट्टी (धब्बा की तरह ) दिखाई पड़ता है। पर्दे पर प्राप्त रंगीन पट्टी को वर्णपट ( Spectrum) कहते हैं।
  • अशुद्ध वर्णपट (Impure Spectrum ) - जब श्वेत प्रकाश का पतली किरणपुंज को प्रिज्म से गुजारा जाता है, तो पतली किरण पुंज के सभी किरणें सात रंगों में विभक्त हो जाती है, जिससे प्राप्त वर्णपट पर सभी रंग एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं। इसे वर्णपट को अशुद्ध वर्णपट कहते हैं I
  • शुद्ध वर्णपट (Pure Spectrum)- शुद्ध वर्णपट वह वर्णपट है जिसमें श्वेत प्रकाश के सातों रंग स्पष्ट अलग हो । शुद्ध वर्णपट प्राप्त करने हेतु स्पेक्ट्रोमीटर यंत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • श्वेत प्रकाश का वर्ण विक्षेपण होने से जो स्पेक्ट्रम (वर्णपट) प्राप्त होता है उसमें नीचे से ऊपर की ओर निम्न रंग क्रमानुसार. होते हैं-
    1. बैगनी (Violet)
    2. जामुनी (Indigo)
    3. नीला (Blue)
    4. हरा (Green)
    5. पीला (Yellow)
    6. नारंगी (Orange) 
    7. लाल (Red)
      इन रंगों को संक्षेप में बेनीआहपीनाला कहते हैं तथा अंग्रेजी में VIBGYOR कहते हैं।
  • कुछ लोग Indigo को नीला तथा Blue को आसमानी बोलते हैं। कुछ विद्वान Indigo और Blue के बदले मात्र एक रंग Blue का ही प्रयोग करते हैं और सात रंग के जगह छह रंग का प्रयोग कहते हैं।
  • किसी भी प्रकार का रंग का निर्धारण उसके तरंगदैर्ध्य से होता है। श्वेत प्रकाश के अवयवी सातों रंग का तरंगदैर्ध्य अलग-अलग होता है। निर्वात में विभिन्न रंगों का तरंगदैर्ध्य-

  • हमलोगों का आँख भी विभिन्न रंगों का पहचान उसके तरंगदैर्ध्य के आधार पर ही करता है।
  • बैंगनी का तरंगदैर्ध्य सबसे कम तथा आवृत्ति सबसे अधिक होती है तथा लाल रंग का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक तथा आवृत्ति सबसे कम होता है ।
  • किसी सघन माध्यम में बैगनी रंग का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है जिसके कारण प्रिज्म द्वारा इस रंग का विचलन सबसे अधिक होता है। लाल रंग का अपवर्तनांक सबसे कम होता है जिसके कारण प्रिज्म द्वारा इसका न्यूनतम विचलन होता है।
  • जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती है तो उसकी आवृत्ति यथावत रहती है परंतु उसका तरंगदैर्ध्य तथा वेग परिवर्तित हो जाता है। काँच में श्वेत प्रकाश के लाल रंग का वेग सबसे अधिक तथा बैगनी रंग का वेग सबसे कम होता है ।
  • पीला रंग को स्पेक्ट्रम (वर्णपट ) का माध्य रंग (Mean Colour) कहा जाता है।
प्रकाश के वर्ण विक्षेपण के क्या कारण है-
  • काँच या अन्य माध्यम में प्रकाश के विभिन्न रंगों का वेग भिन्न-भिन्न होता है। प्रत्येक रंग के किरणों का अपवर्त्तन कोण खास आपतन कोण के लिए भिन्न-भिन्न होता है। इसलिए विभिन्न रंग एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।
इन्द्रधनुष (The Rainbow)
  • इन्द्रधनुष एक प्रकार का प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है जो वर्षा के दिनों में, आकाश में सूर्य के विपरित दिखाई देते हैं।
  • इन्द्रधनुष बनने में वर्षा की बूँदे प्रिज्म की भूमिका निभाता है। सूर्य के श्वेत प्रकाश जब वर्षा के बूँदे में प्रवेश करता है तो निम्न प्रक्रिया के फलस्वरूप इन्द्रधनुष बनता है-
    1. सबसे पहले श्वेत प्रकाश का अपवर्त्तन तथा वर्ण-विक्षेपण होता है ।
    2. पुनः वर्ण-विक्षेपित किरणों का पूर्ण आंतरिक परावर्त्तन होता है ।
    3. और जब श्वेत प्रकाश वर्षा में बूँद से बाहर निकलती है एक बार फिर अपवर्तन होता है ।
  • कभी-कभी आकश में दो इन्द्रधनुष एक साथ दिखते हैं, इनमें एक चमकीला होता है, जबकि दूसरे पहले के अपेक्षा थोड़ा धुँधला होता है ।
  • चमकीले इन्द्रधनुष को प्राथमिक इन्द्रधनुष कहते हैं। इसमें लाल रंग बाहर की ओर होता है तथा बैगनी रंग अन्दर की ओर होता है।
  • धुँधला इन्द्रधनुष को द्वितीयक इन्द्रधनुष कहते हैं इसमें बैंगनी रंग बाहर की ओर तथा लाल रंग अन्दर की ओर होता है ।
प्रकाश का प्रकीर्णन (Scattering of light)
  • किसी कण पर पड़कर प्रकाश का एक भाग का विभिन्न दिशाओं में छितराने की घटना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है ।
  • प्रकाश का प्रकीर्णन उसके तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है। प्रकाश के प्रकीर्णन की मात्रा उसक तरंगदैर्ध्य के चतुर्थघात के व्युतक्रमानुपाती होता है।

  • उपर्युक्त संबंध के अनुसार जिस रंग का तरंगदैर्ध्य ज्यादा होगा उसका प्रकीर्णन कम होगा। यही कारण है कि लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है।
  • प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण हमें निम्न परिघटना देखने को मिलता है-
    1. आकाश का रंग दिन के समय नीला दिखाई पड़ता है।
    2. अंतरिक्ष से आकाश को देखने पर वह नीला न दिखाई देकर काला दिखाई देता है क्योंकि अंतरिक्ष में वायुमंडल की अनुपस्थिति के कारण प्रकीर्णन नहीं हो पाता है I
    3. सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई पड़ता है I
    4. दोपहर के समय सूर्य अपने वास्तविक रंग में दिखाई पड़ता है क्योंकि दोपहर के समय सूर्य के प्रकाश का प्रकीर्णन बहुत कम होता है।
    5. खतरे का संकेत लाल रंग होते हैं क्योंकि लाल रंग का तरंगदैर्ध्य सर्वाधिक होने के कारण इसका प्रकीर्णन कम होगा और यह ज्यादा दूर तक दिखाई देगा।
    6. अणुओं द्वारा प्रकाश का प्रकीर्णन का अध्ययन सर्वप्रथम भारतीय वैज्ञानिक सी. वी. रमण द्वारा किया गया था । इस कार्य हेतु उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।
प्रकाश के रंगों के बीच संबंध (Relation between colours of light)
  • प्रकाश के लाल, हरा तथा नीला रंग को प्राथमिक रंग या मूल रंग कहा जाता है क्योंकि इन तीनों रंगों से प्रकाश के अन्य सभी रंग को प्राप्त किया जा सकता है।
  • तीनों प्राथमिक रंग (लाल + हरा + नीला) मिलकर श्वेत प्रकाश (सूर्य प्रकाश जैसा) बनाते हैं ।
  • प्राथमिक रंग आपस में मिलकर निम्न रंग के प्रकाश उत्पन्न करते हैं-
    लाल + नीला = मेजेन्टा 
    नीला + हरा = स्यान (Cyan)
    लाल + हरा = पीला
  • मेजेन्टा, सायन तथा पीला रंग के प्रकाश को प्रकाश का द्वितीयक रंग कहते हैं ।
  • प्रकाश का द्वितीयक रंग, प्रकाश के प्राथमिक रंग के साथ मिलकर श्वेत प्रकाश उत्पन्न करते है, जो निम्न है -
    नीला + पीला = श्वेत 
    हरा + मेजेंटा = श्वेत
    लाल + सयान = श्वेत
  • जिन दो रंगों के प्रकाश से श्वेत प्रकाश उत्पन्न होता है, उन दोनों रंगों के प्रकाश को एक-दूसरे का सम्पूरक या पूरक रंग (Complementry Colours) कहते हैं, अर्थात्-
    1. नीला का पूरक रंग पीला है या पीला का पूरक रंग नीला है।
    2. हरा का पूरक रंग मेंजेटा है य मेजेंटा का पूरक रंग हरा है ।
    3. लाल का पूरक रंग सयान है या सयान का पूरक रंग लाल है। ।
वस्तुका रंग
  • श्वेत प्रकाश में हम वस्तु को जिस रंग में देखते हैं वास्तव में वह वस्तु उस रंग का होता नहीं है बल्कि वस्तु दिखने वाले रंग को परावर्तित करता है और परावर्तित रंग ही हमारे आँखों तक पहुँचता है।
  • लाल गुलाब श्वेत प्रकाश में लाल दिखता है इसका कारण है- लाल गुलाब श्वेत प्रकाश के अन्य छह रंग को अवशोषित कर सिर्फ लाल रंग को ही परावर्तित करता है ।
  • जब वस्तु अपने ऊपर आपतीत होने वाले सभी प्रकाश परावर्तित कर दे तो वह श्वेत दिखाई देता है तथा वस्तु अपने ऊपर आपतित होने वाले सभी प्रकाश अवशोषित कर ले तो वह काला दिखाई देता देगा।
  • लाल रंग की वस्तु सिर्फ श्वेत या लाल प्रकाश में ही लाल रंग में दिखेगा अन्य किसी रंग के प्रकाश में वह काला दिखाई देगा क्योंकि अन्य सभी रंगों के प्रकाश को वह पूर्णतः अवशोषित कर लेगा।
  • श्वेत (उजला) रंग की वस्तु श्वेत प्रकाश के श्वेत रंग का दिखाई देगा। अन्य सभी रंग के प्रकाश में श्वेत वस्तु उसी रंग में दिखेगा जो रंग प्रकाश का है क्योंकि श्वेत रंग की वस्तु सभी रंग के प्रकाश को परावर्तित करता है।
मानव नेत्र (Human Eye) 
  • मानव नेत्र ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक अद्भुत प्रकाशिय यंत्र है। यही कारण है कि आँख का अध्ययन प्रायः प्रकाशिकी (Optics) के अंतर्गत किया जाता है, परन्तु आँख एक मानव अंग है अतः इसका अध्ययन जीव विज्ञान के अंतर्गत ही मुख्य रूप से होता है।
  • हमारा आँख लगभग गोलीय है और नेत्र - गोलक का व्यास लगभग 2.3 cm होता है। नेत्र के निम्न महत्वपूर्ण भाग होते हैं-
    1. श्वेत पटल (Sclerotic ) - नेत्र गोलक का सबसे बाहरी भाग जो सफेद और मोटे अपारदर्शी चमड़े का बना होता है श्वेत पटल कहलाता है। 
    2. कॉर्निया (Cornea)– श्वेत पटल का अग्र भाग कुछ उभरा हुआ तथा पारदर्शी होता है इसे कॉर्निया कहते है।
    3. कोराइड (Choroid)- श्वेत पटल के ठीक नीचे की परत जो गहरे भूरे रंग की होती है कोराइड कहलाता कोराइड परत आगे आकर दो परतों में विभाजित हो जाती है- 
      1. कोराइड के आगे वाले अपारदर्शी परत जिसमें सिकुड़ने और फैलने का गुण होता है उसे आइरिस (परितारिका) कहते हैं ।
      2. आइरिस के ठीक पीछे के भाग को सिलियसी मांसपेशी कहलाता है इसी. मांसपेशी के द्वारा नेत्र लेंस जुड़ा होता है।
    4. पुतली (Pupi)- आइरिस के बीच में एक छोटा छिद्र होता है जिसे पुतली कहते हैं।
    5. नेत्र-लेंस (Eye Lens)- मानव का नेत्र लेंस लगभग-लगभग उत्तल होता है । यह लेंस प्रोटीन का बना होता है I
    6. दृष्टिपटल (Retina)– नेत्र का सबसे भीतरी परत दृष्टिपटल कहलाता है। रेटिना में दृक्तंत्रिका (Optic Nerves) होते हैं। जिसका संबंध मस्तिष्क से होता है।
    7. जलीय द्रव (Aqueous humour)- आँख के कॉर्निया तथा लेंस के बीच जो द्रव भरा रहता है उसे जलीय द्रव कहते हैं।
    8. काचाभ द्रव (Vitenous humour)— नेत्र-लेंस और रेटिना के बीच जो द्रव भरा रहता है उसे काचाभ द्रव कहते हैं ।
देखने की क्रियावधि
  • प्रकाश जब किसी वस्तु पर पड़ती है तो प्रकाश उस वस्तु से परावर्तित होकर आँख के कॉर्निया और जलीय द्रव से होते हुए नेत्र लेंस पर पड़ता है। नेत्र लेंस उस वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनाता है।
  • रेटिना पर जब प्रतिबिम्ब बनने की संवेदना उत्पन्न होती है तो यह संवेदना विद्युत सिग्नल में परिणत हो जाता है। यह विद्युत सिग्नल रेटिना से जुड़े Optic Nerves द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचता है। मस्तिष्क विद्युत सिग्नल का व्याख्या करता है और इसी व्याख्या के अनुरूप हम वस्तु को देख पाते हैं।
  • आँख में जाने वाला प्रकाश की मात्रा का नियंत्रण आइरिस द्वारा होता है। मंद प्रकाश में आइरिस पुतली के छिद्र को बड़ा कर देता ताकि अधिक से अधिक प्रकाश आँख में प्रवेश कर सके तथा तीव्र प्रकाश में आइरिस पुतली के छिद्र को छोटा कर देता है. जिससे कम प्रकाश आँख में प्रवेश कर सके। यही कारण है कि एकाएक तीव्र प्रकाश में जाने पर कुछ देर तक कुछ दिखाई नहीं देता है ।
  • समायोजना (Accomodation)- सिलियसी मांसपेशी नेत्र- लेंस का फोकस दूरी को बदलते रहता है ताकि पूरी स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन सकें। इसी गुण को समायोजना कहते हैं।
  • अंघ बिन्दु (Blind Spot)- वह स्थान जहाँ Optic Nerves रेटिना को छिद्रित कर मस्तिष्क में जाती है, अंध बिन्दु कहलाता है। अंध बिन्दु प्रकाश के लिए सं संवेदनशील नहीं है। अगर रेटिना के अंध बिन्दु पर किसी वस्तु तु का प्र प्रतिबिम्ब बनता है तो मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब का स्ष्ट व्याख्या नहीं कर पाता है और वह वस्तु हमें धुँधला नजर आता है।
  • पीत बिन्दु (Yellow Spot)- नेत्र लेंस का मुख्य अक्ष रेटिना को जिस बिन्दु पर काटता है उसे पीत बिन्दु कहते हैं । पीत बिन्दु पर बना प्रतिबिम्ब पूर्णतः स्पष्ट होता है।
आँख का निकट बिन्दु और दूर बिन्दु
  • बिना चश्मे की मदद से एवं बिना किसी तनाव के कम-से-कम जितनी कम दूरी की वस्तु को आँख स्पष्ट देख सकता है, उस दूरी को आँख का निकट बिन्दु कहते हैं । सामान्य आँख के लिए यह दूरी 25 cm होती है परन्तु बच्चा 25 cm से कम दूरी पर रखी वस्तु को स्पष्ट देख सकता है। 25 cm को स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहते हैं।
  • बिना चश्मे की मदद से एवं बिना किसी तनाव के अधिक-से-अधिक जिनती दूरी तक की वस्तु को आँख स्पष्ट देख सकती है, उस दूरी को आँख का दूर बिन्दु कहते हैं । सामान्य व्यक्ति के यह दूरी अनंत होती है।
प्रकाश संवेदी कोशिका (Light Sensitive Cells)
  • रेटिना पर दो प्रकार के प्रकाश संवेदी कोशिका होते हैं- दण्ड (Rods) तथा शंकु ( Cones) कोशिका ।
  • शंकु कोशिका तीव्र प्रकाश के प्रति संवेदनशील है जबकि मंद प्रकाश में यह कोशिका सक्रिय नहीं होता है। तीव्र प्रकाश में आँख शंकु कोशिका के मदद से ही देखता है।
  • प्रकाश के रंग की पहचान भी शंकु कोशिका द्वारा होता है। विभिन्न रंगों की पहचान हेतु अलग-अलग प्रकार के शंकु कोशिका होती है ।
  • मक्खी के रेटिना में पाराबैगनी रंग के पहचान के लिए भी शंकु कोशिका होती है जिससे मक्खी पाराबैगनी रंग का भी पहचान कर सकता है । परन्तु मनुष्य में यह शंकु कोशिका नहीं होता है।
  • दण्ड कोशिका मंद प्रकाश के प्रति संवेदनशील होता है तीव्र प्रकाश के लिए बहुत कम । मंद प्रकाश में हम किसी वस्तु को दण्ड कोशिका की मदद से ही देखते हैं।
  • मंद प्रकाश में हम वस्तु की पहचान कर लेते हैं परन्तु उनके रंगों की पहचान नहीं कर पाते हैं। इसका कारण यह है कि मंद प्रकाश में रंगों की पहचान करने वाला शंकु कोशिका सक्रिय नहीं रहता है।
दृष्टि निर्बंध (Persistence of Vision)
  • जब आँख किसी वस्तु को देखता है तो उसका प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है । वस्तु को आँख के सामने से हटा लेने पर 1/10 Sec. तक उस वस्तु को देखने की संवेदना रेटिना पर रहती है, इसे दृष्टि निर्बन्ध कहते हैं।
  • दृष्टि निर्बंध के कारण ही जलते हुए गोले को तेजी से घुमाया जाता है तो वह जलते हुए वलय के रूप में दिखाई देता है।
  • चलचित्र (फिल्म) भी दृष्टि निर्बंध सिद्धान्त पर बनाया जाता है। चलचित्र में वास्तव में किसी चीज के चलने का आभास स्थायी चित्रों की एक श्रृंखला से होती है। ऐसी श्रृंखला में प्रत्येक चित्र आने वाले चित्र से लगभग सटा रहता है।
  • चलचित्र कैमरे द्वारा खींचे गये चित्रों में दृश्यो के क्रम को किसी परदे पर 24 प्रतिबिम्ब प्रति सेकेण्ड या इससे भी अधिक दर से प्रक्षेपित किया जाता है और व्यक्ति को प्रतिबिम्ब का क्रमागत प्रभाव एक-दूसरे से मिला प्रतीत होता है ।
आँख से संबंधित प्रमुख रोग (Defects of Vision)
  1. निकट दृष्टि दोष ( Short Sightedness or Myopia)
    • निकट दृष्टि दोष वाले आँख निकट की वस्तु को देख पाता है, परन्तु दूर (अनंत) की वस्तु को साफ-साफ नहीं देख पाता है। ऐसे आँख के लिए दूर बिन्दु अनंत से कम होता है।
    • निकट दृष्टि दोष होने के दो कारण हैं-
      1. आँख का नेत्र गोलक का लम्बा होना जिससे नेत्र लेंस तथा रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाती है ।
      2. नेत्र लेंस का मोटा हो जाना या नेत्र लेंस का वक्रता अत्यधिक हो जाना जिससे नेत्र लेंस की फोकस दूरी घट जाती है।
    • नेत्र के इस दोष को दूर करने के लिए उचित क्षमता वाले अवतल लेंस का व्यवहार किया जाता है।
  2. दूर दृष्टि दोष (Long Sightedness or Hypermetropia)
    • दूर दृष्टि दोष वाला आँख दूर (अनंत) की वस्तु को साफ-साफ देख सकता है परन्तु नजदीक (25 cm) की वस्तु को साफ-साफ नहीं देख पाता है। ऐसे आँख के लिए निकट बिन्दु 25 cm से अधिक होता है ।
    • दूर दृष्टि दोष होने के दो कारण हैं-
      1. आँख का नेत्र - गोलक छोटा होना
      2. नेत्र - लेंस की फोकस - दूरी बढ़ जाना
    • नेत्र के इस दोष को दूर करने हेतु उचित क्षमता का उत्तल लेंस का व्यवहार किया जाता है ।
  3. जटा दृष्टि दोष (Presbyopia)
    • यह दोष बुढ़ापे में प्रायः होता है । इस दोष में व्यक्ति का आँख दूर दृष्टि एवं निकट दृष्टि दोनों दोष से प्रभावित हो जाता है ।
    • इस दोष का मुख्य कारण है आँख के सिलयरी मांसपेशी का कमजोर हो जाना जिससे नेत्र लेंस की लोचकता कम हो जाती है I
    • इस दोष को दूर करने के लिए बाइफोकल लेंस का उपयोग किया जाता है। बाइफोकल लेंस की नीचे में उत्तल लेंस होता है तथा ऊपर में अवतल लेंस होता है।
  4. अबिन्दुकता (Astigmatism)
    • इस दोष वाला आँख एक ही ऊँचाई की क्षैतिज तथा उदग्र वस्तु को एक लम्बाई की क्षैतिज तथा उदग्र वस्तु को एक लम्बाई में नहीं देख सकती है। 
    • इस दोष का मुख्य कारण है कॉर्निया का पूर्णतः गोल नहीं होना ।
    • इस दोष  को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का प्रयोग किया जाता है।
      • Note:- उपर्युक्त आँख के चारों दोष को दूर करने के लिए आजकल कॉन्टेक्ट लेंस का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
  5. मोतियाबिंद (Cataract)
    • अधिक आयु के व्यक्ति का नेत्र - लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है जिससे व्यक्ति को अंशतः या पूर्णतः दिखाई नहीं पड़ता है। इसी स्थिति को मोतियाबिंद कहा जाता है ।
    • शल्य चिकित्सा (Surgery) द्वारा मोतियाबिंद का सफल एवं सुरक्षित उपचार संभव है ।
  6. वर्णान्धता (Colour Blindness)
    • नेत्र के रेटिना में अगर लाल एवं हरे रंग की पहचान करने वाला शंकु कोशिका नहीं होता है, तो ऐसे नेत्र लाल एवं हरे रंग का पहचान नहीं कर पाता है। नेत्र के इस दोष को वर्णान्धता कहते हैं।
    • नेत्र में यह दोष एक प्रकार के जीन के आधार पर होता है और इसका उपचार संभव नहीं है।
    • प्रख्यात वैज्ञानिक एवं प्रथम परमाणु मॉडल देने वाले जॉन डाल्टन भी वर्णान्धता से पीड़ित थे । इस कारा इस रोग को डाल्टोनिज्म भी कहा जाता है ।
    • वर्णान्धता वाले व्यक्ति को ड्राइविंग लाइसेंस प्रदान नहीं किये जाते हैं ।
      Note:-
      1. नेत्रदान करते समय आँख का केवल अग्र भाग कॉर्निया ही दान किया जाता है।
      2. आँख का रंग आइरिस के रंग पर निर्भर करता है । आइरिस का रंग जलवायु एवं स्थान के अनुसार बदला हुआ पाया जाता है ।
आँख एवं फोटोग्राफी कैमरा में समानता
  1. आँख द्वारा देखने की क्रिया ठीक उसी प्रकार होती हैं जिस तरह फोटो कैमरा से फोटो खींचने की ।
  2. कैमरा में आगे लेंस होता है और पीछे फोटो-फिल्म ठीक उसी प्रकार आँख के आगे लेंस होता है और पीछे रेटिना I
  3. कैमरा में जो काम शटर का होता है ठीक ऐसा ही काम आँख का पलक करता है।
  4. कैमरा में जो काम (प्रकाश के परिणाम को नियंत्रित करना) डायफ्राम करता है ठीक वैसा ही काम आँख का पुतली करता है।
आँख और फोटोग्राफी कैमरा में अंतर 
  1. मानव का आँख एक सर्वप्रमुख संवेदी अंग (ज्ञानेन्द्रीय) है जिसकी मदद से प्रकाश की उपस्थिति में वस्तु को देखा जा सकता है। कैमरा मानव निर्मित यंत्र है जिससे वस्तु का प्रतिबिम्ब उतारा जा सकता है।
  2. नेत्र में रेटिना पर प्रतिबिम्ब बनता है जबकि कैमरा में फोटोफिल्म या फोटोग्राफीक पलेट पर प्रतिबिम्ब बनता है ।
  3. आँख में नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी नियत रहती है। कैमरा में लेंस और फोटोफिल्म की दूरी आवश्यकतानुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है।
  4. नेत्र के रेटिना पर बना प्रतिबिम्ब अस्थाई होता है जबकि कैमरा में बना प्रतिबिम्ब सथाई होता है।
दर्शन कोण (Angle of Vision)
  • देखे जाने वाली वस्तु आँखों पर जितना बड़ा कोण बनाती है, उसे उस वस्तु का दृष्टिकोण या दर्शन कोण कहते हैं I
  • वस्तु बड़ा है तो दर्शन कोण बड़ा बनता है। छोटी वस्तु का दर्शन कोण छोटा बनता है। लेकिन वस्तु की आँख से दूरी बढ़ने पर दर्शन कोण घटते जाता है ।
  • किसी वस्तु का आँख पर जितना बड़ा दर्शन कोण बनेगा वस्तु उतनी ही स्पष्ट दिखाई पड़ती है। सूक्ष्मदर्शी तथा दूरदर्शी जैसे यंत्र में वस्तु का दर्शन कोण आभासी रूप से जाता है जिससे वस्तु स्पष्ट दिखाई पड़ती है ।
  • सूक्ष्मदर्शी निकट स्थित सूक्ष्म वस्तु को बड़ा कर स्पष्ट दिखलाता है जबकि दूरदर्शी दूर की वस्तु को स्पष्ट दिखलाता है।
सरल सूक्ष्मदर्शी या आवर्धक लेंस (Simple Microscope)
  • सरल सूक्ष्मदर्शी एक कम फोकस दूरी वाला एक उत्तल लेंस है। इसके द्वारा छोटी वस्तु का बड़ा प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। इस सूक्ष्मदर्शी में लेंस के चारों प्लास्टिक अथवा टीन का फ्रेम लगा होता है तथा इस फ्रेम को पकड़ने के लिए एक हैण्डिल लगा रहता है ।
  • इस सूक्ष्मदर्शी द्वारा छोटे वस्तु को देखने हेतु वस्तु को सूक्ष्मदर्शी के उत्तल लेंस के प्रकाश केन्द्र और फोकस दूरी के बीच रखा जाता है जिससे वस्तु का बड़ा सीधा तथा आभासी प्रतिबिम्ब लेंस के उसी ओर बनता है जिस ओर वस्तु होता है।
  • सरल सूक्ष्मदर्शी का आवर्धन क्षमता-

  • सरल सूक्ष्मदर्शी का फोकस दूरी जितना कम रहता है आवर्द्धन उतना ही अधिक होता है-
संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope)
  • संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में दो उत्तल लेन्स होते हैं। दोनों उत्तल लेंस को एक नली में इस प्रकार लगया जाता है ताकि दोनों लेन्स का मुख्य अक्ष एक ही हो ।
  • सूक्ष्मदर्शी का जो लेंस वस्तु के समीप होता है उसे अभिदृश्यक (Objectlens) कहते हैं तथा जोलेंस आँख के समीप होता है उसे नेत्रिका (Eyelens) कहते हैं ।
  • अभिदृश्यक लेंस का घेरा ( Aperture) तथा फोकस दूरी छोटा होता है तथा नेत्रिका का घेरा तथा फोकस दूरी दोनों बड़ा होता है ।
  • संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के दोनों लेंस इस प्रकार फीट रहता है कि अभिदृश्यक के द्वारा बना प्रतिबिम्ब नेत्रिका के लिए वस्तु का काम करता है, जिसका प्रतिबिम्ब और बड़ा तथा स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी (25 cm) पर बनता है ।
  • आवर्द्धन तथा आवर्द्धन क्षमता में निम्न अंतर है-

  • संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का आवर्द्धन अधिक होने के-
    1. अभिदृश्यक की फोकस - दूरी कम होनी चाहिए ।
    2. नेत्रिका की फोकस - दूरी कम होना चाहिए ।
    3. सूक्ष्मदर्शी की नली (जिसमें दोनों लेंस फीट रहते हैं) की लंबाई अधिक होनी चाहिए ।
दूरबीन ( Telescope)
दूरबीन एक ऐसा प्रकाशिय यंत्र है जिसका दूर की वस्तु को स्पष्ट रूप से देखने में किया जाता है । दूरबीन दो प्रकार के होते हैं-
1. खगोलीय दूरबीन (Astronomical Telescope)
2. पार्थिव दूरबीन (Terrestrial Telescope)
  1. खगोलीय दूरबीन
    • इस दूरबीन से आकाशीय पिण्ड जैसे - ग्रह, तारा का स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनाकर देखा जाता है ।
    • खगोलीय दूरबीन में भिन्न त्रिज्या की दो खोखली नली होते हैं। बड़ी त्रिज्या वाले नली के अन्दर बाहर छोटी त्रिज्या वाले नली को खिसकाया जा सकता है।
    • बड़े त्रिज्या वाले नली के बाहरी छोर पर अधिक फोकस दूरी का उत्तल लेंस होता है जो वस्तु के तरफ रखा जाता है इसे अभिदृश्यक कहते हैं ।
    • छोटी त्रिज्या वलो नली के बाहरी किनारे पर कम फोकस दूरी वाला एक उत्तल लेंस होता है । इसे नेत्रिका कहते हैं ।
    • खगोलीय दूरबीन में प्रतिबिम्ब देखने हेतु इसका दो प्रकार से समयोजन किया जाता है।
      1. सामान्य समायोजन - अगर अभिदृश्यक लेंस तथा नेत्रिका लेंस का समायोजन इस प्रकार से किया जाए कि अनंत पर स्थिर वस्तु का प्रतिबिम्ब भी अनंत पर बने तो इसे सामान्य समायोजन कहते हैं । इस तरह से बना प्रतिबिम्ब बड़ा तो होता है परन्तु उल्टा होता है।
        • सामान्य समायोजन में खगोलीय दूरबीन का

        • दूरबीन के नली की आवश्यक लंबाई
          L = fo + fe
          fo = अभिदृश्यक की फोकस दूरी fe = नैत्रिका की फोकस दूरी
        • सामान्य समायोजन में खगोलीय दूरबीन का आवर्द्धन क्षमता अधिक होने के लिए अभिदृश्यक की फोकस दूरी अधिक तथा नैत्रिका की फोकस दूरी कम होनी चाहिए।
      2. स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी के लिए समायोजना- अगर खगोलीय दूरबीन के अभिदृश्यक तथा नेत्रिका को इस प्रकार समायोजन किया जाए कि अनंत पर स्थित वस्तु का प्रतिविम्व आँख से 25 cm की दूरी पर बने तो इसे स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी के लिए समायोजना कहते हैं। इस स्थिति में भी वस्तु का प्रतिबिम्ब उल्टा ही बनता है।
        • स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर खगोलीय दूरबीन का आवर्द्धन क्षमता

        • इस समायोजना हेतु खगोलीय दूरबीन की नली की लंबाई

  2. पार्थिव दूरबीन
    1. खगोलीय दूरवीन में बना प्रतिविम्व उल्टा होता है। अगर इस दूरवीन में इस प्रकार की व्यवस्था कर दी जाए कि बना प्रतिविम्व सीधा हो तो वह पार्थिव दूरबीन बन जाएगा ।
    2. पार्थिव दूरबीन तीन उत्तल लेंस होता है एक अभिदृश्यक (उत्तल लेंस), एक नेत्रिका (उत्तल लेंस) तथा इन दोनों के बीच एक और उत्तल लेंस होता है जिसका मुख्य प्रायोजन होता प्रतिबिम्ब को सीधा करना ।
    3. पार्थिव दूरबीन का भी खगोलीय दूरवीन के तरह दोनों प्रकार से समायोजना हो सकता है।
      1. जब प्रतिविम्ब अनन्त पर बनता है, तब
        • दूरवीन के नली की लंबाई = fo + 4f + fe
                      f = बीच वाले उत्तल लेंस की फोकस दूरी
      2. जब प्रतिबिम्व स्पष्ट दृष्टि के न्यूनतम दूर पर बनता हो, तब

Note :- संयुक्त सूक्ष्मदर्शी, विभिन्न प्रकार के दूरवीन का विस्तृत अध्ययन करने हेतु देखे- NCERT PHYSICS (वर्ग - 12 ) | अगर आप NDA तथा CDS के परीक्षा देते हैं तो अनिवार्य रूप से पुस्तक अध्ययन करें।

  • जब दो प्रकाश तरंगे किसी माध्यम में एक साथ चलती है तो माध्यम के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश की तीव्रता, उन तरंगों के अलग—अलग तीव्रता के योग से भिन्न होता है। कुछ बिन्दुओं पर प्रकाश की तीव्रता बहुत अधिक पायी जाती है जबकि कुछ बिन्दुओं पर बिल्कुल अँधेरा रहता है। इस घटना को प्रकाश का व्यतीकरण कहते हैं।
  • माध्यम के जिस बिन्दु पर प्रकाश की तीव्रता अधिक होती है, उन बिन्दुओं पर हुए व्यक्तिकरण को संपोषी व्यतिकरण (Constructive Interferance) कहते हैं ।
  • माध्यम के जिस बिन्दु पर प्रकाश की तीव्रता बहुत कम होती है अर्थात् अँधेरा रहता है, उस बिन्दु पर हुए व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण (Distructive interference) कहते हैं।
  • व्यतिकरण प्रकाश के तरंग सिद्धांत की पुष्टि करता है। थॉमस यंग ने सर्वप्रथम अपने प्रयोग द्वारा व्यतिकरण के घटना को दिखाया।
  • व्यतिकरण की घटना हेतु माध्यम से संरचरण करने वाले प्रकाश तरंग की आवृत्ति समान होनी चाहिए।
  • व्यतिकरण के कारण निम्न परिघटना हमें देखने को मिलता है-.
    1. साबुन के बुलबुलों का रंगीन दिखाई पड़ना।
    2. सीडी (CD) का श्वेत प्रकाश में रंगीन दिखाई पड़ना।
    3. जल की सतह पर फैले तेल का परत का रंगीन दिखाई पड़ना ।
प्रकाश का विवर्तन (Diffractio of Light)
  • प्रकाश तरंग के संरचण मार्ग में अगर प्रकाश के तरंगदैर्ध्य (400 nm - 800 nm ) कोटि का कोई अवरोध रखा जाए तो, प्रकाश उस अवरोध के किनारे से टकराकर मुड़ जाता है अथवा अपने सरलरेखीय पथ से विचलित हो जाता है और प्रकाश वहाँ भी पहुँच जाता है जहाँ पूरी तरह अन्धकार होनी चाहिए । प्रकाश की यह घटना विवर्तन कहलाता है।
  • प्रकाश का विर्वन भी प्रकाश के तरंग सिद्धान्त की पुष्टि करता है।
प्रकाश का ध्रुवण (Polarization of Light)
  • जब प्रकाश की तरंगे प्रकाश स्त्रोत से निकलक सभी संभव दिशाओं में गतिमान होता है तो इसे प्रकाश तरंग को अध्रुवी प्रकाश कहते हैं।
  • सूर्य से आने वाली प्रकाश, विद्युत बल्व, मोमबत्ती, ट्यूब लाईट आदि के प्रकाश अध्रुवीय प्रकाश है।
  • प्रकाश के तरंगों के कम्पन को किसी एक दिशा में, लाने की क्रिया को प्रकाश का ध्रुवण कहते हैं । ध्रुवण का अर्थ होता है- एक दिशा में लाना ।
  • ध्रुवीत प्रकाश प्राप्त करने हेतु विभिन्न प्रकार के क्रिस्टल या पोलराइडो का प्रयोग किया जाता है।
  • ध्रुवण की घटना यह पूष्टि करता है कि के प्रकाश की तरंग की प्रकृति अनुप्रस्थ है।

अभ्यास प्रश्न

1. जब प्रकाश की किरण दो माध्यमों को अलग करनेवाली सतह पर लंबवत पड़ती है, तो वह
(a) अभिलंब की ओर मुड़ जाती है
(b) सात रंगों में टूट जाती है
(c) बिना मुड़े सीधे निकलती है।
(d) अभिलंब से दूर मुड़ जाती है
2. समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब होता है-
(a) वास्तविक
(b) काल्पनिक
(c) A तथा B दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
3. किस दर्पण द्वारा किसी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब मिल सकता है-
(a) सतमल दर्पण
(b) अवतल दर्पण
(c) उत्तल दर्पण
(d) तीनों प्रकार के दर्पण से 
4. किस दर्पण द्वारा किसी वस्तु का आभासी प्रतिबिम्ब प्राप्त किया जा सकता है ?
(a) केवल समतल दर्पण द्वारा
(b) केवल अवतल दर्पण द्वारा
(c) केवल उत्तल दर्पण द्वारा
(d) तीनों प्रकार के दर्पण से
5. किसी वस्तु का छोटा तथा अभासी प्रतिबिम्ब किस दर्पण बनता है-
(a) समतल
(b) अवतल
(c) A तथा B दोनों
(d) उत्तल
6. कहाँ पर स्थित वस्तु का प्रतिबिंब अवतल दर्पण के फोकस पर बनता है-
(a) फोकस पर 
(b) वक्रता केन्द्र पर
(c) ध्रुव पर
(d) अनंत पर
7. गोलीय दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब का आवर्धन m ऋणात्मक है इसका अर्थ है कि प्रतिबिंब 
(a) वस्तु से छोटा है
(b) वस्तु से बड़ा है
(c) सीधा है
(d) उल्टा है
8. एक प्रकाश किरण समतल दर्पण पर लंबवत् आपतित होती है। परावर्त्तन कोण का मान होगा-
(a) 0°
(b) 45°
(c) 90°
(d) 135°
9. समतल दर्पण के फोकस - दूरी का मान होता है-
(a) शून्य
(b) अनंत
(c) शून्य एवं अनंत के बीच
(d) इनमें कोई नहीं
10. किसी शब्दकोश के छोटे-छोटे अक्षरों को पढ़ने के लिए कौन उपयुक्त है
(a) 50 cm फोकस दूरी का उत्तल लेंस
(b) 50 cm फोकस दूरी का अवतल लेंय
(c) 50 cm फोकस दूरी का अवतल लेंस
(d) 5 cm फोकस दूरी का उत्तल लेंस
11. किस लेंस में केवल काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनते हैं ।
(a) अवतल लेंस
(b) उत्तल लेंस
(c) बाइफोकल लेंस
(d) इनमें से कोई नहीं
12. निम्नलिखित में किसका उपयोग लेंस बनाने में नहीं किया जाता है—
(a) प्लैस्टीक
(b) लकड़ी
(c) मिट्टी
(d) काँच
13. निम्न में किसके द्वारा वास्तविक प्रतिबिंब प्राप्त किया जा सकता है -
(a) काँच की समतल पट्टी
(b) अवतल लेंस
(c) उत्तल लेंस
(d) इनमें से कोई नहीं
14. सरल सूक्ष्मदर्शी में किसका उपयोग होता है-
(a) उत्तल लेंस का
(b) अवतल लेंस का
(c) उत्तल दर्पण
(d) अवतल दर्पण
15. सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करने पर आपतन कोण तथा अपवर्त्तन कोण में क्या संबंध रहता है ?
(a) दोनों कोण बराबर होते हैं
(b) आपतन कोण बड़ा होता है
(c) अपवर्त्तन कोण बड़ा होता है
(d) कोई निश्चित संबंध नहीं है
16. मानव नेत्र में किस प्रकार लेंस पाया जाता है ? 
(a) अवतल 
(b) उत्तल
(c) बाइफोकल
(d) बेलनाकार
17. आँख अपने लेंस की फोकस दूरी को बदलकर दूर या निकट की वस्तु को साफ-साफ देख सकता है। आँख के इस गुण को कहते हैं-
(a) दूर दृष्टिता
(b) समंजन - क्षमता
(c) निकट - दृष्टिता
(d) जरा - दूरदर्शिता
18. आँख के लेंस की फोकस दूरी, किसके द्वारा परिवर्तित होती है-
(a) पुतली
(b) रेटिना
(c) सिलियरी पेशियाँ
(d) आइरिस
19. नेत्रलेंस की फोकस - दूरी कम हो जाने पर कौन-सा रोग होता है-
(a) निकट दृष्टि दोष
(b) दूर-दृष्टि दोष
(c) जरा - दूरदर्शिता
(d) इनमें कोई नहीं
20. किस दृष्टि दोष में किसी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है।
(a) निकट-दृष्टि दोष 
(b)- दूर-दृष्टि दोष
(c) जरा - दूर दर्शिता 
(d) इनमें कोई नहीं
21. स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए किसका उपयोग होता है- 
(a) प्रिज्म
(b) उत्तल दर्पण
(c) अवतल दर्पण
(d) कॉच का स्लैब
22. एक प्रिज्म किनते सतह से घिरा रहता है- 
(a) 6
(b) 5
(c) 4
(d) 3
23. निम्नलिखित में से किसका उपयोग लेंस बनाने के लिए नहीं A किया जा सकता है ? I
(a) हवा
(b) पानी
(c) पारा
(d) काँच
24. लेंस के कितने मुख्य फोकस होते हैं ?
(a) 1
(b) 2
(c) 4
(d) 8
25. आँख का रेटिना कैमरे के किस भाग जैसा काम करता है-
(a) शटर
(b) द्वारक
(c) लेंस
(d) फ्लिम
26. कैमरे का जो काम डायफ्राम करता है, आँख में वही काम करता है-
(a) काचाभद्रव
(b) जलीयं द्रव
(c) पुतली
(d) कॉर्निया
27. नेत्र लेंस की फोकस दूरी अधिक हो जाने से कौन सा दृष्टि दोष होता है ?
(a) निकट दोष
(b) दूर-दृष्टि दोष
(c) जरा-दूरदर्शिता
(d) इनमें से कोई नहीं
28. किसी लेंस की फोकस- दूरी निर्भर करता है
(a) लेंस की वक्रता त्रिज्या पर
(b) लेंस की पदार्थ का अपवर्तनांक
(c) प्रकाश का रंग 
(d) इन सभी पर
29. हमें घास का रंग हरा दिखाई देता है क्योंकि-
(a) यह हरे रंग के प्रकाश को वापस हमारी आँखों पर परावर्तित करता है
(b) यह हमारी आँखों पर सफेद प्रकाश को परावर्तित करती है
(c) यह हरे रंग के अलावा अन्य सभी प्रकाश को परावर्तित करती है
(d) यह हरे रंग के प्रकाश को अवशोषित करती है
30. दो प्राथमिक रंग, लाल और नीले के मिश्रण से कौन-सा सेकेंडरी रंग प्राप्त होता है ?
(a) सफेद
(b) पीला
(c) मैजेंटा
(d) सियान
31. कौन - सा यंत्र समुद्र के स्तर से ऊपर की वस्तुओं को देखने के लिए पनडुब्बी में प्रयोग किया जाता है ?
(a) पाइरोमीटर
(b) एपीडियास्कोप
(c) पेरिस्कोप
(d) ओडोमीटर
32. किसल साल में ओले रोमर ने इतिहास में पहली बार प्रकाश की गति को मापा था ?
(a) 1776 ई.
(b) 1676 ई.
(c) 1876 ई.
(d) 1867 ई.
33. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है ? 
(a) मुख कोटर की जांच के लिए डॉक्टरों द्वारा उत्तल दर्पण का इस्तेमाल किया
(b) अवतल दर्पण परावर्तक के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं ।
(c) उत्तल दर्पण परावर्तक के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं 
(d) उत्तल दर्पणों को हजामत बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए
34. आवर्द्धक लेंस वास्तव में क्या होता है ? 
(a) समतल - अवतल लेंस
(b) अवतल लेंस
(c) उत्तल लेंस
(d) बेलनाकार लेंस
35. पानी से भरे कप की तली में एक पत्थर रखा है। पत्थर की आभासी गहराई है-
(a) इसकी वास्तविक गहराई के बराबर
(b) इसकी वास्तविक गहराई से कम
(c) इसकी वास्तविक गहराई से अधिक
(d) या तो a या c में कोई
36. एक अन्तरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में आकाश कैसा दिखायी देगा ?
(a) बैंगनी
(b) लाल
(c) नीला
(d) काला
37. बरसात के दिन जल पर छोटी तैलीय परतों में चमकीलें रंग दिखायी देते हैं।
(a) प्रकीर्णन
(b) परिक्षेपण
(c) अपवर्तन
(d) ध्रुवण
38. तरण ताल वास्तविक गहराई से कम गहरा दिखायी देता है। इसका कारण है-
(a) अपवर्तन
(b) प्रकीर्णन
(c) परावर्तन
(d) व्यतिकरण
39. एक तालाब के किनारे एक मछुआरा मछली को भाले से मारने की कोशिश करता है । तद्नुसार उसे निशाना कैसे लगाना चाहिए ?
(a) जहाँ मछली दिखाई दे, उसके ऊपर
(b) सीधे मछली पर
(c) जहाँ मछली दिखाई दे, उसके नीचे
(d) पानी की ऊपरी सतह पर
40. फोटॉन (Photon) किसकी मूलभूत यूनिट / मात्रा है ?
(a) प्रकाश
(b) गुरुत्वाकर्षण
(c) विद्युत
(d) चुम्बकत्व
41. विकिरण की कण प्रकृति की पुष्टि किससे की जाती है ? 
(a) व्यतिकरण 
(b) प्रकाश वैद्युत प्रभाव
(c) विवर्तन
(d) ध्रुवीकरण
42. प्रेसबायोपिया दृष्टि का एक अपवर्तक दोष है, जो इनमें से किस कारण से होता है ?
(a) केवल सिलियरी मांसपेशियों के धीरे-धीरे कमजोर होने से
(b) केवल आईलैंस के कम होते हुए लचीलेपन के कारण
(c) दोनों, सिलियरी मांसपेशियों के धीरे-धीरे कमजोर होने और आइलेंस के कम होते हुए लचीलेपन के कारण हुए
(d) सिलियरी मांसपेशियों और आईलेंस की अचानक शिथिलता 
43. सोडयम वाष्प लैम्प प्रायः सड़क प्रकाश के एिल प्रयुक्त होते हैं, क्योंकि-
(a) ये सस्ते होते हैं
(b) इनका प्रकाश एकवर्णी है और पानी की बूंदों से गुजरने पर विभक्त नहीं होता
(c) ये आँखों के लिए शीतल है
(d) ये चमकदार रोशनी देते हैं
44. निम्नलिखित तिथियों में से किसमें दोपहर को आपकी छाया सबसे छोटी होती है ?
(a) 25 दिसम्बर
(b) 21 मार्च
(c) 21 जून
(d) 14 फरवरी
45. आइन्स्टीन के E = mc2 समीकरण में 'c' द्योतक है-
(a) ध्वनि वेग का
(b) प्रकाश वेग का
(c) प्रकाश तरंगदैर्ध्य
(d) एक स्थिरांक 
46. किसी तारे के रंग से पता चलता है, उसके- 
(a) भार का
(b) आकार का
(c) ताप का
(d) दूरी का 
47. प्रकाश की गति किसके बीच से जाते हुए न्यूनतम होती है ?
(a) काँच
(b) निर्वात्
(c) जल
(d) वायु
48. परावर्तित प्रकाश में ऊर्जा-
(a) आपतन कोण पर निर्भर नहीं करती है
(b) आपतन कोण के बढ़ने के साथ बढ़ती है
(c) आपतन कोण के बढ़ने के साथ घटती है
(d) आपतन कोण 45° के बराबर होने पर अधिकतम हो जाती है
49. यदि साबुन के दो भिन्न-भिन्न व्यास के बुलबुलों को एक नली द्वारा एक-दूसरे के सम्पर्क में लाया जाए, तो क्या घटित होगा ?
(a) दोनों बुलबुलों का आकर वही रहेगा
(b) छोटा बुलबुला और छोटा व बड़ा बुलबुला और बड़ा हो जाएगा
(c) समान आकार प्राप्त करने के लिए छोटा बुलबुला बड़ा व बड़ा बुलबुला छोटा हो जाएगा
(d) दोनों बुलबुले सम्पर्क में आते ही फट जाएँगे
50. हमें वास्तविक सूर्योदय से कुछ मिनट पूर्व ही सूर्य दिखायी देने के कारण है-
(a) प्रकाश का प्रकीर्णन
(b) प्रकाश का विवर्तन
(c) प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
(d) प्रकाश का अपवर्तन
51. प्रकाश में सात रंग होते हैं। रंगों को अलग करने का क्या तरीका है ?
(a) एक प्रिज्म से रंगों को अगल-अलग किया जा सकता है।
(b) फिल्टर से रंगों को अलग-अलग किया जा सकता है।
(b) पौधों से रंगों को अलग-अलग किया जा सकता है। 
(d) रंगों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है
52. श्वेत प्रकाश को नली में कैसे पैदा करते हैं ?
(a) ताँबे के तार को गर्म करके
(b) तन्तु को गर्म करके 
(c) परमाणु को उत्तेजित करके
(d) अणुओं को दोलित कर
53. जब सूर्य क्षितिज के निकट होता है, अर्थात् सुबह और शाम को, तब वह लालिमायुक्त दिखायी देता है। इसका कारण क्या है ? 
(a) लाल प्रकाश का वायुमण्डल द्वारा न्यूनतम प्रकीर्णन होता है
(b) लाल प्रकाश कावायुमण्डल द्वारा सर्वाधिक प्रकीर्णन होता है
(c) सुबह और शाम में सूर्य का यही रंग होता है
(d) पृथ्वी का वायुमण्डल लाल प्रकाश उत्सर्जित करता है
54. संचार में प्रयुक्त फाइवर ऑप्टिक केवल किस सिद्धांत पर कार्य करता है ?
(a) प्रकाश के नियमित परावर्तन
(b) प्रकाश के विकीर्ण परावर्तन
(c) प्रकाश के अपवर्तन
(d) प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
55. सूर्य छिपने से पहले दीर्घवृत्तीय प्रतीत होता है, क्योंकि- 
(a) उस समय सूर्य अपना आकार परिवर्तित कर लेता है ।
(b) प्रकाश का प्रकीर्णन हो जाता है ।
(c) प्रकाश के अपवर्तन का प्रभाव पड़ता है I
(d) प्रकाश के विवर्तन का प्रभाव पड़ता है
56. तन्तु प्रकाशिक संचार में संकेत किस रूप में प्रवाहित होता है ? 
(a) प्रकाश तरंग
(b) रेडियो तरंग
(c) सूक्ष्म तरंग
(d) विद्युत तरंग
57. तारे टिमटिमाते हैं-
(a) अपवर्तन के कारण
(b) परावर्तन के कारण
(c) ध्रुवण के कारण
(d) प्रकीर्णन के कारण
58. निम्नलिखित प्रकार के काँचों में से कौन-सा एक पराबैंगनी किरणों का विच्छेदन कर सकता है ?
(a) सोडा काँच
(b) पाइरेक्स काँच
(c) जेना काँच
(d) क्रूक्स काँच
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Mon, 29 Apr 2024 05:10:30 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | ध्वनि https://m.jaankarirakho.com/1035 https://m.jaankarirakho.com/1035 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | ध्वनि
  • जब शांत जल में पत्थर के छोटे टकड़े को फेंका जाता है तो जल में जहाँ पत्थर गिरता है वहाँ एक Disturbance (विक्षोभ ) उत्पन्न होता है जो विक्षोभ एक घेरे के रूप में निश्चित चाल से आगे बढ़ता है ।
  • इसी प्रकार के विक्षोभ को यांत्रिक तरंग (Mechanical Wave) कहते हैं तथा उसके आगे बढ़ने की प्रक्रिया को Wave Motion कहते हैं ।
  • Wave दो प्रकार के होते हैं-
    1. Transverse Wave (अनुप्रस्थ तरंग)
    2. Longitudinal Wave (अनुदैर्ध्य तरंग)
अनुप्रस्थ तरंग
अनुप्रस्थ तरंग वह तरंग है जिसमें माध्यम के कण अपनी माध्य स्थितियों पर तरंग के संचरण की दिशा में लंवत् गति करते हैं।

  • अनुप्रस्थत तरंग के उदाहरण:-
    1. तालाब के शांत जल में पत्थर फेंकने पर जल की सतह अनुप्रस्थ तरंग उत्पन्न होता है।
    2. रस्सी को दिवार में बांधकर एक सिरे को पकड़कर ऊपर नीचे हिलाने पर अनुप्रस्थ तरंग उत्पन्न होता है।
  • अनुप्रस्थ तरंग किसी द्रव्यात्मक माध्यम में तब उत्पन्न होता है तब वह माध्यम दृढ़ (Rigid ) हो । गैस में Rigidity (दृढ़ता) नहीं होती है अतः गैस में अनुप्रस्थत रंग उत्पन्न नहीं होता है।
  • द्रव के ऊपरी सतह पर ही अनुप्रस्थ तरंग उत्पन्न होता है । द्रव के भीतर नहीं ।
  • अनुप्रस्थ तरंग से ऊपर की ओर अधिकतम विस्थापन को Crest ( श्रृंग) तथा नीचे की ओर अधिकतम विस्थापन को Trough (गर्त ) कहते हैं।
अनुदैर्ध्य तरंग
अनुदैर्ध्य तरंग वह तरंग है जिसमें माध्यम के कण अपनी माध्य स्थितियों पर तरंग के संचरण की दिशा के समांतर गति करते है। 
  • अनुदैर्ध्य तरंग उदाहरण:-
    1. वायु और गैस में ध्वनि तरंग अनुदैर्ध्य होती है I
    2. स्प्रिंग में उत्पन्न तरंग अनुदैर्ध्य होती है ।
    3. यदि किसी छड़ को बीच में कसकर उसके एक सिरे को भींगे कपड़े से लंबाई की दिशा में रगड़े तो छड़ में अनुदैर्ध्य तरंग उत्पन्न होती है।

  • अनुदैर्ध्य तरंग संपीड़न (Compression) तथा विरलन (Rarefaction) के रूप में आगे बढ़ती है।
विद्युत चुंबकीय तरंग (Electro Magnetic Waves)
यांत्रिक तरंग (अनुप्रस्थ तथा अनुदैर्ध्य ) तरंग के संरचरण के लिए द्रव्यात्मक माध्यम (Material Medium) की आवश्यकता होती है। जो तरंग के संरचरण के लिए द्रव्यमान माध्यम की जरूरत नहीं होती है, जो तरंग निर्वात में भी संचरण कर सकता है उसे विद्युत चुंबकीय तरंग कहते हैं ।
उदा०:- प्रकाश तरंग, अवरक्त विकिरण पाराबैंगनी तरंग, X-तरंग आदि
प्रमुख विद्युत चुंबकीय तरंग
  1. y-ray ( मामा किरण)
    • तरंग दैर्ध्य 6x10-4 to 1x10-11 m
    • आवृत्ति 5x1022 to 3x1019 Hz
    • y-rays के खोज का श्रेय वैकुरल को है।
  2. X-ray.
    • तरंग दैर्ध्य 1x10-11 to 3×10-8 m
    • आवृत्ति 3 x 1019 to 1x1016 Hz
    • X-rays के खोज का श्रेय रॉन्जन को है ।
    • X-rays का उपयोग
      1. X-rays की सहायता से मनुष्य के शरीर को आर पार देखा जा सकता है। X-ray के उपयोग शल्य चिकित्सा (Surgery) में होता है।
      2. क्षय-रोग (TB) के उपचार में भी X-rays का उपयोग होता है ।
      3. X-rays का उपयोग कैन्सर के इलाज में भी होता है।
      4. X-rays के प्रयोग से कुछ पदार्थों के क्रिस्टल रचना का अध्ययन किया जाता है।
      5. X-rays की सहायता से नकली और असली मूल्यवान पदार्थ की जाँच की जाती है।
      6. शरीर के अंदर छीपी वस्तु का पता भी X-rays से लगाया जाता है ।
      7. पुल, गटर के दरार का पता भी X-rays की सहायता से लगाया जाता है ।
  3. पारा बैंगनी
    • तरंग दैर्ध्य 6 x 10-10 to 4x10-7
    • आवृत्ति 5x1017 to 8x1014 Hz
    • पाराबैगनी किरण की खोज रिटर ने किया था ।
    • पारावे ग्नी का उपयोग:-
      1. पाराबैगनी किरण में प्रतिदीप्ति उत्पन्न करने का गुण होता है। इस गुण का उपयोग खनिज नमूनों के जाँच में होता है ।
      2. पाराबैगनी शरीर पर कम मात्रा में पड़कर विटामिन-D उत्पन्न करता है।
      3. फैक्ट्री या प्रयोगशाला के वायुमंडलल से बैक्टीरिया हटाने में पाराबैगनी का उपयोग होता है ।
      4. किमती पत्थर के पहचान में भी पाराबैंगनी किरण का उपयोग होता है।
      5. दस्तावेज के जालसाजी की जाँच भी पाराबैंगनी किरण की सहायता से की जाती है।
  4. दृश्य प्रकाश
    • तरंग दैर्ध्य 4x10-7 to 8x10-7 m
    • आवृत्ति 8x1014 to 4x1014 Hz
    • दृश्य प्रकाश के खोज का श्रेय न्यूनटन को है ।
  5. अवरक्त किरण
    • तरंग दैर्ध्य 8x10-7 to 3x10-5 m
    • आवृत्ति 4 x 1014 to 3x1013 Hz.
    • अवरक्त विकिरण का खोज विलियन हर्शेल ने किया था ।
    • अवरक्त विकिरण का उपयोग-
      1. मांसपेशी के तनाव के उपचार में
      2. कृत्रिम उपग्रह को सौर सेल द्वारा विद्युत ऊर्जा देने में
      3. धुँध, कुहासा, बादलों वाली स्थिति में फाटोग्राफी करने में ।
      4. पौधा घरों में पौधा को गर्म रखने में
      5. सौर-कुकर में
      6. मौसम - विज्ञान में
  6. उष्मा विकिरण
    • तरंग दैर्ध्य 10-5 to 10-1 m
    • आवृत्ति 3×1013 to 3×109 Hz
  7. माइक्रो तरंग
    • तरंग दैर्ध्य 10-3 to 0.3.m
    • आवृत्ति 3×1011 to 1×109 Hz
  8. रेडियो-तरंग
    • तरंग दैर्ध्य 10 to 104.m
    • आवृत्ति 3x107 to 3x104 Hz
    • रेडियो तथा माइक्रो तरंग विकिरण का प्रयोग रेडियो तथा TV संचार पद्धति में होता है ।
तरंग संबंधित प्रमुख पद :
  1. आयाम (Amplitude) :- माध्यम का कोई भी कण अपनी साम्यावस्था के दोनों ओर जितना अधिक-से-अधिक विस्थापित होता है उस दूरी को आयाम कहते ।

  2. आवर्त्तकाल (Time Period) :- माध्यम के किसी कण को एक कम्पन या एक दोलन में जितना समय लगता है, उसे तरंग का आवर्त्तकाल कहते हैं। इसे T से सूचित किया जाता है और इसका मात्रक सेकेण्ड है। 
  3. आवृत्ति (Frequency ) :- माध्यम का कोई कण एक सेकेण्ड में जितना कम्पन करता है वही उस तरंग की आवृत्ति कहलाता है। इसे प्रायः n से सुचित किया जाता है। आवृत्ति का मात्रक हर्ट्ज है।
    यदि माध्यम के किसी कण की आवृत्ति और आवर्त्तकाल क्रमश: n और T हो तो

  4. तरंगदैर्ध्य (Wavel Length) :- दो समीपवर्ती श्रृंग और गर्त्त (अनुप्रस्थ तरंग में) अथवा समीप वाले संपीड़न और विरलन के केन्द्र के बीच की दूरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं । अथवा एक आवर्त्तकाल में तरंग द्वारा तय की गई दूरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं। इसे 2 (लेम्डा) से सूचित किया जाता है इका मात्रक मीटर होता है।
  5. तरंग वेग (Wave Valocity ) :- एक सेकेण्ड तरंग जितनी दूरी तय करती है उसे तरंग - वेग कहते हैं। इसे प्रायः V से सूचित किया जाता है।
  • तरंग दैर्ध्य, तरंग चाल तथा आवृत्ति में संबंध :-

     

प्रगामी तरंग (Progessive Wave)

प्रगामी तरंग माध्यम में उत्पन्न एक प्रकार का विक्षोभ है जो बिना अपना रूप बदले माध्यम के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक कणों के आवर्त्ति कंपन द्वारा एक निश्चित चाल से आगे की ओर बढ़ता रहता है।
उदा० :- 1. हवा में संरचित ध्वनि तरंग प्रगामी अनुदैर्ध्य के संचरण की दिशा में लंबवत कंपन करते हैं।
            2. शांत जल की सतह पर संचरित तरंग अनुप्रस्थ प्रगामी तरंग है ।

अप्रगामी तरंग ( Stationary Wave)

जब समान आयाम तथा आवृत्ति की दो प्रगामी तरंग किसी माध्यम से चलती है तो उनके अध्यारोपण से एक ऐसी तरंग बनती है जो किसी- दिशा में आगे नहीं बढ़ती है बल्कि बारी-बारी से फैलती और सिकुड़ती रहती है। इस प्रकार की तरंग अप्रगामी तरंग कहलाती है।
  • अप्रगामी तरंग, तरंग नहीं है बल्कि एक कंपन है क्योंकि इसमें विक्षोभ का संचरण नहीं होता है।
    उदा० :- 1. स्वरमापी (Sonometer) में दो सेतुओं के बीच तने तार में अप्रगामी अनुप्रस्थ तरंग उत्पन्न होता है।
                2. Organ pipe में अनुदैर्ध्य अप्रगामी तरंग उत्पन्न होता है।

ध्वनि तरंग

ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जिसके कान पर पड़ने से सुनने की संवेदना होती है।
  • ध्वनि एक प्रकार अनुदैर्ध्य तरंग है I
  • ध्वनि तरंग के आवृत्ति परिसर-
    1. Audible Wave (श्रव्य परास) :- सामान्य मनुष्य को ध्वनि की संवेदना कंपन की आवृत्ति के एक निश्चित परास के बीच होती है। यह परास 20 Hz - 20,000 Hz के बीच रहता है। 20 Hz - 20,000 Hz के बीच के तरंग को Audible Wave कहते हैं। मनुष्य ने तो 20 Hz से कम और न ही 20,000 Hz से अधिक आवृत्ति के ध्वनि तरंग को सुन सकता है।
    2. Infrasonic Wave ( अपश्रव्य तरंग ):- 20 Hz से कम आवृत्ति वाले ध्वनि तरंग को अपश्रव्य तरंग कहते हैं ।
      • हाथी, ह्वेल जैसे जानवर 20 Hz से कम की ध्वनि तरंग उत्पन्न करता है।
      • • ज्वालामुखी उद्भेदन तथा भूकंप होने पर 20 Hz से कम आवृत्ति की तरंग उत्पन्न होती है।
    3. Ultrasonic Wave:- जिस तरंग की आवृत्ति 20,000 Hz से अधिक होती है उसे पयश्रव्य तरंग कहते हैं ।
      • आजकल आधुनिक विधियों द्वारा 5 × 105 KHz (5000 × 105 Hz) आवृत्ति तक का पराश्रव्य तरंग उत्पन्न किया जा सकता है ।
      • चमगादड़ के अलावे कुत्ता, बिल्ली, चिड़ियाँ सूँस (डॉलफीन के समान जलीय जीव) कुछ कीड़े-मकोड़े पराश्रव्य तरंग उत्पन्न करते हैं और उसे सून भी सकते हैं।
      • पराश्रव्य तरंग में अत्यधिक ऊर्जा रहने तथा तरंदैर्ध्य बहुत छोटा होने के कारण इस तरंग का उपयोग कई क्षेत्रों में होता है।
        प्रमुख उपयोग निम्न है-
        1. द्रवों में पराश्रव्य तरंग की चाल ज्ञात कर द्रव की रसायनिक संरचना, सांद्रण, अवशोषण, संपीडयता आदि का पता लगाया जाता है।
        2. समुद्र की गहराई मापने हेतु भी पराश्राव्य तरंग का इस्तेमाल किया जाता है।
        3. स्कंदन (Coagulation) प्रक्रिया में पराश्रव्य तरंग का उपयोग किया जाता है।
      • स्कंदन (Coagulation) :- यदि किसी द्रव में ठोस के सूक्ष्म कण तैर रहें हो, तो उस द्रव में पराश्रव्य तरंगों को भेजने पर ये कण आपस में मिलकर बड़े होने लगते है । और नीचे बैठ जाते हैं। यह क्रिया स्कंदन कहलाता है।
    4. पराश्रव्य तरंग का उपयोग धातु के भीतर के दरारों का पता लगाने में किया जाता है ।
    5. छोटे-छोटे जीव (चूहा, मछली, मेढ़क ) पर पराश्रव्य तरंग डालकर उन्हें अंगहीन बनाया जाता पराश्रव्य तरंग से बैक्टीरिया को भी खत्म किया जाता है । अथवा भार डाला जाता है।
    6. Ultrasonography, Echocardiography गुर्दे के पत्थर तोड़ने में, मोतियाबिंद हटाने में पराश्रव्य तरंग का उपयोग होता है।

ध्वनि का चाल

  • विभिन्न माध्यमों में ध्वनि तरंग की चाल भिन्न-भिन्न होती है। यह चाल ठोस में अधिकतम, द्रवों में उससे कम और गैस में न्यूनतम होती है ।
  • 20°C पर विभिन्न माध्यमों को ध्वनि की चाल- 

Note :- वायु में ध्वनि की चाल 0°C पर 331 m/s होता है तथा 20°C पर 344 m/s होता है।

ध्वनि के चाल को प्रभावित करने वाला कारक:-

  1. ताप के स्थिर रहने पर हवा में ध्वनि की चाल हवा के दाब पर निर्भर नहीं करता है यानि दाब के बदलने पर ध्वनि के वेग में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
  2. ताप बढ़ने पर ध्वनि की चाल बढ़ जाती है। 1°C ताप के बढ़ने से हवा में ध्वनि की चाल 0.61 m/s बढ़ जाती है।
  3. आई हवा (जलवाष्पयुक्त) में ध्वनि की चाल शुष्क हवा ( जलवाष्प रहित ) में ध्वनि की चाल से अधिक होती है ।
  4. ध्वनि तरंग की चाल माध्यम के वेग का भी प्रभाव पड़ता है। यदि माध्यम की गति तरंग-गति के दिशा में हो तो ध्वनि-तरंग की चाल बढ़ जाती है तथा इसकी दिशा विपरित होने पर तरंग की चाल घट जाती है।
सोनिक बूम (Sonic boom)
जब ध्वनि उत्पन्न करने वाली वस्तु ध्वनि के चाल से अधिक चाल से गतिमान होता है तो वे वायु में प्रघाती तरंग उत्पन्न करता है ।
  • प्रघाती तरंग में इतनी अधिक ऊर्जा रहती है कि इसके प्रभाव से मकान के खिड़की, दरवाजे के काँच टूट जाते हैं कभी कभी पूरा इमारत क्षतिग्रस्त हो जाता है, अगर व्यक्ति के कान तक यह तरंग पहुँचता है तो व्यक्ति के श्रवण शक्ति खत्म हो जाती है।
मैक संख्या (Mach Number)
मैक संख्या से प्रायः वायुयान अथवा ऐसे वस्तु की चाल मापी जाती है जो ध्वनि के चाल से अधिक चाल से गतिमान रहता है।
  • मैक संख्या = किसी माध्यम से ध्वनि की चाल / उसी माध्यम में ध्वनि की चाल
  • मैक संख्या 1. से तात्पर्य है वस्तु ध्वनि के चाल से चल रहा है। मैक संख्या 2 से तात्पर्य है वस्तु ध्वनि के चाल से दुगुणी चाल से चल रहा है।
  • मैक संख्या 1 से अधिक चाल को Supersonic तथा मैक संख्या 5 (ध्वनि के चाल का पाँच गुणा ) से अधिक चाल को Hypersonic कहते हैं।
ध्वनि के लक्षण
  1. तारत्व (Pitch)
    • तारत्व ध्वनि का वह गुण है जिससे ध्वनि मोटा या पतला सुनाई देता है।
    • मोटी ध्वनि की तारत्व निम्न होता है जबकि पतली ध्वनि का तारत्व अधिक होता है ।
    • तारत्व आवृत्तिर पर निर्भर करता है अधिक तारत्व वाली ध्वनि की आवृत्ति अधिक तथा कम तारत्व वाली ध्वनि की आवृत्ति कम होती है ।
    • पुरूष की आवाज से स्त्रियों की आवाज पतली होती है क्योंकि स्त्रियों के आवाज का तारत्व उच्च होता है। बच्चों के आवाज की उच्च तारत्व का होता यही कारण है कि बच्चों का आवाज भी पतला होता है।
    • तारत्व का मापन संभव नहीं इसे हम मस्तिष्क से सिर्फ अनुभव कर सकते हैं।
  2. प्रबलता (Loudness)
    • ध्वनि की प्रबलता वह गुण है जिसके कारण ध्वनि धीमी अथवा तेज सुनाई पड़ती है ।
    • अधिक प्रबलता वाली ध्वनि अधिक ऊर्जा होती है तथा ध्वनि तरंग का आयाम अधिक होता है। कम् प्रबलता की ध्वनि में कम ऊर्जा रहती है और इसका आयाम कम होता है ।
    • ध्वनि जैसे-जैसे ध्वनि-स्त्रोत से दूर होते जाता है उसकी प्रबलता तथा आयाम दोनों घटते जाता है।
    • साधारण बातचित में ध्वनिका आयाम 10-9 होता है।
    • ध्वनि की प्रबलता (Loundness) तथा ध्वनि की तीव्रता (Intensity) दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं ।
    • ध्वनि की प्रबलता कानों की संवेदनशीलता की माप है जबकि तीव्रता एकांक क्षेत्रफल से प्रति सेकेण्ड गुजरने वाली ऊर्जा है। समान तीव्रता वाली ध्वनि को भी हमारा कान एक को दूसरे की अपेक्षा अधिक प्रबल सुन सकता है।
    • ध्वनि की तीव्रता का मापन डेसीबल (dB) में मापा जाता है।
    • प्रमुख ध्वनि स्त्रोत एवं उनकी तीव्रताः-
      1. साधारण बातचीत - 30-40 dB
      2. जोर से बातचीत - 50-60 dB
      3. ट्रक-ट्रैक्टर - 90-100 dB
      4. साइरन - 110-120 dB
      5. जेट विमान - 140-150 dB
      6. मिसाइल - 180 dB
    • WHO के अनुसार मानव के सर्वोत्तम ध्वनि 45 dB की होती है। 75 dB की अधिक की ध्वनि मानव कान को हानि पहुँचा सकता है। मनुष्य अधिकतम 130 dB की ध्वनि सुन सकता है लेकिन 85 dB से अधिक तीव्रता की ध्वनिसे मनुष्य बहरा हो सकता है जबकि 150 dB की अधिक ध्वनि की तीव्रता से मनुष्य पागल हो सकता है।
  3. गुणता (Timber)
    • गुणता ध्वनि को वह लक्षण है जिससे हमारा कान समान तारत्व एवं समान तीव्रता की विभिन्न ध्वनि में अंतर कर सकता है।
    • अगर एक साथ हारमोनियम तथा तबला समान तारत्व और समान तीव्रता की ध्वनि निकाल रहा है तो हमारा कान गुणता के आधार पर यह जान जाता है कि कौन-सी ध्वनि हारमोनियम का है और कौन-सी ध्वनि तबला का ।
    • एक विशेष आवृत्ति की ध्वनि को tone का जाता है तथा विभिन्न tone से उत्पन्न ध्वनि को स्वरक हा जाता है।
ध्वनि के गुण
  1. ध्वनि का परावर्त्तन (Reflection of Sound)
    • ध्वनि तरंग का किसी परावर्त्तक सतह से टकराकर वापस उसी माध्यम में लौटने की घटना को ध्वनिका परावर्तन कहते हैं ।
    • प्रकाश छोटी परावर्त्तक सतह से भी परावर्तित हो सकता है परन्तु ध्वनि को परावर्तित करने के लिए परावर्त्तक सतह अपेक्षाकृत बड़ी होनी चाहिए ।
    • ध्वनि के परावर्त्तन के लिए परावर्त्तन का समतल होना आवश्यक नहीं है।
    • ध्वनि का परावर्त्तन उन्हीं नियमों के अनुसार होता जो प्रकाश के परावर्त्तन के नियम हैं ।
    • ध्वनि के परावर्त्तन के होने वाली महत्वपूर्ण घटना :-
      1. प्रतिध्वनि (Echo)
        • किसी विस्तृत अवरोध से ध्वनिका टकराकर परावर्तित होने से उस ध्वनि का पुनः सुने जाने की घटना को प्रतिध्वनि या Echo कहते हैं ।
        • हमारे मस्तिष्क में ध्वनि की संवेदना 0.1 sec तक बनी रहती है। स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि और परावर्तित ध्वनि के बीच कम-से-कम 0. 1 sec का समय - अंतराल होनी आवश्यक है।
        • 0.1 sec में ध्वनि (344 m/s x 0.1 sec = 34.4m) 34.4m की दूरी तय करती है अतः स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए अवरोधक की ध्वनि स्त्रोत से न्यूनतम दूरी 17.2 m अवश्य होनी चाहिए ।
        • प्रतिध्वनि के व्यवहारिक उपयोगः-
          1. प्रतिध्वनि का उपयोग कर ध्वनि के चाल को मापा जाता है ।
          2. चमगादड़ प्रति ध्वनि का उपयोग कर अपने रास्ते में पड़ने वाले अवरोध का पता लगा लेते हैं और बचकर निकल जाते हैं ।
          3. प्रतिध्वनि का उपयोग मेडिसीन के क्षेत्र में Echo Cardiography तथा Ultrasonography जैसे उपकरण में होता है। 
      2. अनुररण (Reverberation)
        • किसी बड़े हॉल में उत्पन्न होने वाली ध्वनि दिवारों से बारबार परावर्तन के कारण काफी समय तक बनी रहती है अब तक यह इतनी कम न हो जाये क यह सुनाई ही न पड़े। यह बारंबर परावर्त्तन जिसके कारण ध्वनि निर्बंध (Persistance of Sound) होता है जिसे अनुरणन कहते हैं ।
        • अनुरणन को कम करने के लिए सभा भवन की छत और दिवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थ लगाये जाते हैं।
      3. ध्वनि के बहुलित परावर्त्तन (Multiple Reflection) के उदाहरणः-
        1. मेघगर्जन की धवन जो धीरे-धीरे मंद होकर समाप्त होती है इसका कारण हैं मेघगर्जन की धवन का बादल के परतों द्वारा कई बार परावर्त्तन होता है और एक-एक कर हमारे कानों तक पहुँचता है।
        2. डॉक्टरी स्टेथोस्कोप में भी ध्वनि के बहुलित परावर्त्तन सिद्धान्त का उपयोग होता है।
        3. हॉर्न, बिगुल, मेगाफोन, लाउडस्पीकर जैसे यंत्र इस प्रकार बनाये जाते हैं की प्रारंभ में इनकी ध्वनि सभी दिशाओं में नहीं फैलती है। पहले इस यंत्र के नली वाली संरचना में ध्वनि का कई बार परावर्त्तन होता है और सभी ध्वनि एकजुट होकर यंत्र के शंकुनुमा चौड़े मुँह से प्रबलता के साथ निकलता है।
  2. ध्वनि का अपर्त्तन (Refraction of Sound)
    • जब ध्वनि तरंग एक माध्यम से दूसरे माध्यम से जाता है तो अपने मार्ग से थोड़ा विचलित हो जाती है इस घटना को ध्वनि का अपवर्तन कहते हैं।
    • ध्वनि के अपवर्त्तन के कारण ही ध्वनि दिन के समय कम क्षेत्र तक ही सुनी जा सकती है जबकि रात के समय ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती है।
  3. प्रणोदित कम्पन (Forced Vibration)
    • कम्पन करने की क्षमता रखने वाली वस्तु पर जब बाहर से कोई आवर्त्त बल लगाया जाता है तो वस्तु लगाये जाने वाले बल के आवर्त्तकाल से कम्पन करने लगता है। वस्तु के इस प्रकार के कम्पन को प्रणोदित कम्पन कहते हैं । प्रणोदित कम्पन का आयाम हमेशा समान रहता है ।
    • मंदित कम्पन (Dansped Vibration) :- किसी भी प्रकार के कम्पन करने वाली वस्तु पर v क प्रतिरोधक बल लगता है। यह प्रतिरोधक बल या को माध्यम के घर्षण के कारण उत्पन्न होता है या फिर कम्पीत वस्तु के आंतरिक घर्षण के कारण । इस तरह से कम्पीत वस्तु पर प्रतिरोधक बल के काम करने से वस्तु का आयाम घटता है और अन्त में समाप्त हो जाता है। ऐसा कम्पन मंदिन कम्पन कहलाता है ।
      सरल दोलक के लोलक का कम्पन मंदि कम्पन के उदाहरण हैं।
    • अनुनाद (Resonace ) :- जब किसी कम्पन करने वाली वस्तु पर कोई ऐसा बल कार्य करता है जिसका आवर्त्तकाल वस्तु आवर्त्तकाल से भिन्न हो तो वस्तु का आयाम बहुत ही कम होता है परन्तु जब वस्तु पर क्रियाशील बल का आवर्त्तकाल वस्तु के आवर्त्तकाल के बराबर हो तो वस्तु का आयाम अधिकतम होता है । प्रणोदित कम्पन की इसी स्थिति को अनुनाद कहते हैं ।
    • अर्थात् अनुनाद प्रणोदित कम्पन की वह स्थिति है जिसमें वस्तु और उसपर क्रियाशील बल का आवर्त्तकाल बराबर होता है। 
    • अनुनाद के उदाहरणः-
      1. जब मेज पर रेडियो या अन्य बाध यंत्र बनते हैं जो मेज पर रखे गिलास प्लेट खड़-खड़ करने लगता है इसका कारण अनुनाद है। यानि वर्त्तन की आवृत्ति संगीत ध्वनि के आवृत्ति के बराबर होने पर दोलन का आयाम बढ़ जाता है और वे लड़खड़ाने लगते हैं।
      2. तार-वाद्य यंत्र जैसे- सितार अनुनाद के सिद्धान्त पर ही कार्य करता है। इस यंत्र में मुख्यतार के बगले में कई तार लगे होते । मुख्य तार को बजाते हैं तो बगले वाले तार अनुनादित हो जाते हैं और स्वर की तीव्रता बढ़ जाती है।
      3. अनुनाद के कारण ही खाली वर्त्तन में जल भरने पर उससे निकलने वाली ध्वनि का स्वर बदलते रहता है।
      4. रेडियो भी अनुनाद के सिद्धान्त पर काम करता है ।
  4. ध्वनि का व्यतिकरण (Interference of Sound)
    • अध्यारोपण (Super imposition)— जब दो ध्वनि तरंग एक साथ एक रेखा पर चलती है तो एक तरंग को दूसरी तरंग से मिलने की क्रिया को अध्यारोपण कहते हैं ।
    • जब दो ध्वनि तरंग एक-दूसरे पर अध्यारोपित होती है तो परणामी ध्वनि की तीव्रता कही पर महत्तम तथा कहीं पर न्यूनतम होती है इस घटना को ध्वनि का व्यतिकरण कहते हैं।
    • जहाँ पर ध्वनि तरंग की तीव्रता महत्तम होती है उसे संपोषी व्यतिकरण तथा जहाँ पर ध्वनि तरंग की तीव्रता न्यूनतम होती है उसे विनाशी व्यतिकरण कहते हैं ।
    • दो ध्वनि तरंग के व्यतिकरण हेतु आवश्यक शर्तें:-
      1. तरंगों की आवृत्ति बराबर होनी चाहिए ।
      2. तरंगों का अयाम बराबर होनी चाहिए ।
      3. किसी बिन्दु पर दोनों तरंगों के कारण विस्थापन एक ही रेखा पर होनी चाहिए ।
    • कुहरे वाली रात में जाज को संकेत देने हेतु सायरन का इस्तेमाल होता है। सायरन की ध्वनि निकट और दूर तक सुनी जाती है । परन्तु बीच के कुछ क्षेत्र में साइरन की ध्वनि सुनाई नहीं पड़ती है। इसका कारण व्यतिकरण है।
  5. ध्वनि का विवर्त्तन (Diffraction of Sound)
    • ध्वनि तरंग का तरंग दैर्ध्य लगभग 1 m का होता है। जब तरंग दैर्ध्य कोटि का अवरोध ध्वनि के मार्ग में आता है तो ध्वनि अवरोध के किनारे से मुड़कर आगे बढ़ जाती है। इस घटना को ध्वनि का विवर्त्तन कहते हैं ।
    • विवर्त्तन के कारण ही बाहर से आने वाली ध्वनि, दरवाजा, खिड़की से टकराकड़ मुड़ती है और हमारे कानों तक पहुँचती है।
मानव का कान की संरचना (Structure of Human Ears) 
मानव का कान तीन भागों में बँटा होता है:-
1. बाहरी कान, 2. मध्य कान, 3. आंतरिक कान
  1. बाहरी कान:- मनुष्य के बाहरी कान में कर्ण पल्लव (Pinnal) तथा कर्णनलिका (ear canal) होता है। बाहरी कान बाहर से खुला रहता है और परिवेश से ध्वनि तरंग को एकत्रित कर मध्य कान में भेजने का कार्य करता है।
  2. मध्य कान:- Ear Canal से कसकर बँधी एवं तनी हुई झिल्ली होती है जिसे Eardrum (कर्णपट ) कहते हैं। Eardrum द्वारा ही बाहरी कान तथा मध्य कान से अलग होता है। मध्य कान में तीन हड्डी होती है- hammer, anivl तथा Strirrup | मध्य कान ध्वनि तरंग को आंतरिक कान में संचरित कर देता है ।
  3. आंतरिक कान:- आंतरिक कान में द्रव से भरी एक नली होती है जिसे Cochlea (कर्णावर्त) कहते हैं। इसका आकार घोंघा की तरह होता है। इसका आकार घोंघा की तरह होता है। यह नली Stirrup हड्डी से जुड़ा रहता है। Cochlea में विशेष प्रकार की तंत्रिका कोशिका होती है जिसका संबंध हमारे मस्तिष्क से रहता है ।
हम सुनते कैसे है:-
जब हवा में ध्वनि तरंग कंपन करता है तो ये कंपन बाहरी कान के ear canal द्वारा eardrum में पहुँचता है । eardrum में ध्वनि तरंग पहुँचता है तो eardrum में कंपन उत्पन्न होता है जिससे मध्यकर्ण का तीनों हड्डी कंपन करने लगता है जिसके बाद कंपन का आयाम बढ़ जाता है और यह कंपन Cochlea में पहुँचता है। Cochlea में पहुँचते ही ध्वनि तरंग विद्युत संकेतों में परिवर्तित हो जाते हैं। विद्युत संकेत Cochlea से जुड़े तंत्रिका कोशिका द्वारा मस्तिष्क को भेज दिये जाते हैं। मस्तिष्क इसकी व्याख्या ध्वनि के रूप में करता है।
  • SONAR - समुद्री जहाज, समुद्र गहराई मापने या समुद्र में छिपे वस्तु का पता लगाने के लिए प्रतिध्वनि का उपयोग करता है। इस तकनीक को SONAR (Sound Navigation and Ranging) कहते हैं ।

अभ्यास प्रश्न

1. 1°C ताप बढ़ने से ध्वनि का वेग कितना बढ़ता है ?
(a) 0.01 m
(b) 0.61 m
(c) 0.2 m
(d) इनमें से कोई नहीं
2. प्रगामी तरंग और अप्रगामी तरंग से भिन्न है-
(a) इस गुण में कि यह माध्यम द्वारा अवशोषित होती है
(b) ऊर्जा में जो वहन करती है
(c) आवृत्ति में
(d) तरंग दैर्ध्य में
3. हवा में ध्वनि तरंग की तीव्रता
(a) आवृत्ति के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है
(b) आवृत्ति के वर्गमूल के अनुक्रमानुपाती
(c) आवृत्ति के वर्गमूल के व्युतक्रमानुपाती
(d) आवृत्ति से स्वतंत्र
4. ध्वनि-तरंग तथा प्रकाश - तरंग में एक प्रमुख समानता है-
(a) वायु में इनका वेग समान है 
(b) दोनों ही अनुप्रस्थ तरंग है
(c) दोनों निर्वात् से होकर गति कर सकता है
(d) दोनों व्यतिकरण प्रदर्शित करता है
5. जब ध्वनि तरंग का संचरण होता है तो संचरण होता है-
(a) माध्यम के कण का
(b) ऊर्जा का
(c) आयाम का
(d) द्रव्यमान का
6. 4 तथा 1 वायुमंडलीय दाब पर वायु में ध्वनि के चाल का अनुपात होगा-
(a) 1:1
(b) 1:4
(c) 4:1
(d) 3:4
7. आवृत्ति और आर्त्तकाल का गुणनफल होता है-
(a) 1
(b) 2
(c) 4
(d) 8
8. किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकंड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को कहते हैं-
(a) ध्वनि का तारत्व
(b) ध्वनि की तीव्रता
(c) पराध्वनि
(d) सोनार
9. एक स्टेथोस्कोप में हृदय के धड़कन की ध्वनि स्टेथोस्कोप नली में गमन करती है-
(a) सोनिक बूम जैसा
(b) एक सरल रेखा में
(c) नली में वारंवार परावर्त्तन द्वारा
(d) नली में मुड़ जाने के कारण
10. मानव कान का वह भाग जो एक द्रव से भरा रहता है, वह है-
(a) कर्णावर्त (Cochlea)
(b) मुग्दरक ( Hammer)
(c) कर्णे पल्लव (Pinna)
(d) निहाई (Anvil)
11. ध्वनि है-
(a) बल का एक रूप
(b) आयतन का एकरूप 
(c) ऊर्जा का एक रूप
(d) कोई सही नहीं है
12. अनुदैर्ध्य तरंग की रचना होती है-
(a) एक संपीडन और एक विरलन से
(b) एक श्रृंग और एक गर्त्त से
(c) A तथा B दोनों से
(d) इनमें से कोई नहीं
13. अनुप्रस्थ तरंग की गति-
(a) संपीडन और विलयन के रूप में होती है
(b) श्रृंग और गर्त्त के रूप होती है
(c) केवल संपीडन में होती है
(d) केवल श्रृंग के रूप में होती है
14. दो क्रमागत संपीडन अथवा दो क्रमागत विरलनों के बीच की दूरी होती है-
(a) एक तरंग का तरंगदैर्ध्य
(b) एक तरंग के तरंगदैर्ध्य का आधा
(c) एक तरंग के तरंगदैर्ध्य का एक-तिहाई
(d) एक तरंग के तरंगदैर्ध्य का एक-चौथाई
15. दो क्रमिक श्रृंग अथवा गर्त्तो के बीच की दूरी होती है-
(a) तरंग का तरंगदैर्ध्य
(b) तरंग के तरंगदैर्ध्य का आधा
(c) एक तरंग के तरंगदैर्ध्य का एक-चौथाई
(d) इनमें से कोई नहीं
16. किसी माध्यम में किसी तरंग के कंपित कणों के माध्य स्थिति से महत्तम विस्थापन को कहते हैं-
(a) तरंग का विस्थापन
(b) तरंग का तरंगदैर्ध्य
(c) तरंग का आयाम
(d) तरंग की आवृत्ति
17. अनुदैर्ध्य तरंग कहाँ उत्पन्न हो सकता है-
(a) ठोस, द्रव गैस तीनों में
(b) केवल ठोस में
(c) केवल द्रव में
(d) केवल गैस में
18. ध्वनि के बहुलित परावर्त्तन का उपयोग निम्नलिखित में किसमें किया जाता है ?
(a) डॉक्टरी स्टेथोस्कोप में
(b) मेगाफोन में
(c) हॉर्न में
(d) सभी में
19. किसी संगीत यंत्र की ध्वनि तीव्रता मापी जाती है-
(a) महों
(b) हेनरी
(c) लक्स
(d) डेसीबल
20. वायु के तापमान में परिवर्तन ध्वनि का निम्नलिखित में कौन-सा गुण प्रभावित होता है ?
(a) तरंगदैर्ध्य 
(b) विस्तार 
(c) आवृत्ति
(d) तीव्रता
21. मेघ गर्जना सुनने पर व्यक्ति अपना मुँह खोलता है, जिससे कि- 
(a) डर को दूर कर सके
(b) दोनों कानों के कर्णपटल पर वायु के दाब को बराबर करने के लिए
(c) अधिक ध्वनि प्राप्त कर सके
(d) मुँह से वायु बाहर निकालने के लिए
22. निमग्न वस्तुओं का पता लगाने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले उपकरण को कहते हैं-
(a) राडार
(b) सोनार
(c) क्वासर
(d) स्पंदक
23. मनुष्यों के लिए मानक ध्वनि स्तर है-
(a) 90 db
(b) 60 db 
(c) 120 db
(d) 100 db
24. एकॉस्टिक (Acoustic) विज्ञान है- 
(a) प्रकाश से संबंधित
(b) ध्वनि से संबंधित
(c) जलवायु से संबंधित
(d) धातु से संबंधित
25. इको साउण्डिंग का प्रयोग होता है-
(a) ध्वनि में कम्पन उत्पन्न करने के लिए
(b) ध्वनि की आवृत्ति बढ़ाने के लिए
(c) समुद्र की गहराई मापने के लिए
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
26. पराध्वनिक विमान ...... नामक एक प्रघाती तरंग पैदा करते हैं।
(a) संक्रमण तरंग
(b) पराश्रव्य तरंग
(c) अनुप्रस्थ तरंग
(d) ध्वनि बूम
27. वह उपकरण जो ध्वनि तरंगों की पहचान तथा ऋजुरेखन के लिए प्रयुक्त है क्या कहलाता है ?
(a) राडार
(b) सोनार
(c) पुकर
(d) उक्त में कोई नहीं
28. ध्वनि तरंगें नहीं चल सकती हैं-
(a ) ठोस माध्यम में
(b) द्रव माध्यम में
(c) गैसीय माध्यम में
(d) निर्वात् में
29. लगभग 20°C के तापक्रम पर किस माध्यम में ध्वनि की गति अधिकतम होगी ?
(a) हवा
(b) ग्रेनाइट
(c) पानी
(d) लोहा
30. जेट वायुयान 2 मैक के वेग से हवा में उड़ रहा है। जब ध्वनि का वेग 332 मी./से. है तो वायुयान की चाल कितनी है ?
(a) 166 मी./से.
(b) 66.4 मी./से.
(c) 332 मी./से.
(d) 664 मी./से.
31. निम्नलिखित में से किस एक में ध्वनि चाल सबसे अधिक होती है ?
(a) 0°C पर वायु में
(b) 100°C पर वयु में
(c) जल में
(d) लकड़ी में
32. निम्नलिखित में से किस एक प्रकार की तरंग का प्रयोग रात्रि दृष्टि उपकरण में किया जाता है ?
(a) रेडियो तरंग
(b) सूक्ष्म तरंग
(c) अवरक्त तरंग
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
33. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही नहीं है ?
(a) गैसों में ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्ध्य होती है।
(b) 20 हर्ट्ज से कम आवृत्ति की ध्वनि तरंगें पराश्रव्य तरंगें कहलाती हैं।
(c) उच्चतर आयामों वाली ध्वनि तरंगें अपेक्षाकृत प्रबल होती I
(d) उच्च श्रव्य आवृत्तियों वाली ध्वनि तरंगें तीक्ष्ण होती है ।
34. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है ? ध्वनि का वेग- 
(a) माध्यम की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है
(b) गैसों में अधिकतम और द्रवों में न्यूनतम होता है
(c) ठोसों में अधिकतम और द्रवों में न्यूनतम होता है
(d) ठोसों में अधिकतम और गैसों में न्यूनतम होता है
35. आर्द्र वायु में धवन का वेग शुष्क वायु की तुलना में अधिक होता है, क्योंकि आर्द्र वायु में-
(a) शुष्क वायु की तुलना में घनत्व अधिक होता है।
(b) शुष्क वायु की तुलना में घनत्व कम होता है ।
(c) शुष्क वायु की तुलना में दाब अधिक होता है ।
(d) शुष्क वायु की तुलना में दाब कम होता है ।
36. पास आती हुई रेलगाड़ी की सीटी की आवृत्ति या तीक्ष्णता बढ़ती जाती है, ऐसा किस घटना के कारण होता है ? 
(a) बिग बैंग सिद्धान्त
(b) डॉप्लर प्रभाव
(c) चार्ल्स नियम
(d) आर्किमिडीज़ का नियम 
37. डॉप्लर प्रभाव सम्बन्धित है-
(a) ध्वनि
(b) जनसंख्या
(c) मनोविज्ञान
(d) मुद्रा प्रचलन
38. किसी ध्वनि स्त्रोत की आवृत्ति में होने वाले उतार-चढ़ाव को कहते हैं- 
(a) रमण प्रभाव
(b) डॉप्लर प्रभाव
(c) क्राम्पटन प्रभाव
(d) प्रकाश-विद्युत् प्रभाव
39. जब हम कमरे के अंदर बैठे रहते हैं तो यद्यपि हम बराबर के कमरे में बातचीत करने वाले व्यक्तियों को देखते हैं तो नहीं, परन्तु नकी आवाज अवश्य सुन लेते हैं। इसका कारण है ध्वनि का-
(a) परावर्तन
(b) अपवर्तन
(c) व्यतिकरण
(d) विवर्तन
40. समुद्र में स्थान-स्थान पर ऊँचे प्रकाश घर (Light House) बनाये जाते हैं जहाँ से बड़े-बड़े साइरन बजाकर जहाजों को संकेत भेजे जाते हैं। कभी-कभी जहाज नीरव क्षेत्र (Silence Zone) में पहुँच जाते हैं, जहाँ साइरन की ध्वनि सुनाई नहीं देती है। ये नीरव क्षेत्र ध्वनि तरंगों के किस गुण के कारण निर्मित होते हैं ? 
(a) परावर्तन
(b) व्यतिकरण
(c) अपवर्तन
(d) अनुनाद
41. जब किसी स्थान पर दो लाउडस्पीकर साथ-साथ बजते हैं, तो किसी स्थान विशेष पर बैठे श्रोता को इनकी ध्वनि नहीं सुनाई देती है। इसका कारण है-
(a) परावर्तन
(b) व्यतिकरण
(c) अपवर्तन
(d) अनुनाद
42. रेडियो का समस्वरण स्टेशन उदाहरण है-
(a) परावर्त्तन
(b) अनुनाद
(c) व्यतिकरण
(d) अपवर्तन
43. जब हम जल के नीचे सुराही भरने के लिए रखते हैं तो जैसे-जैसे सुराही भरती जाती है वैसे-वैसे हमें विशेष प्रकार की ध्वनि सुनायी देती है। इसका कारण है-
(a) विवर्तन
(b) व्यतिकरण
(c) अनुनाद
(d) परावर्तन
44. कहा जाता है कि जब तानसेन गाता था तो खिड़की के कांच का कांच के गिलास के टुकड़े-टुकड़े हो जाते थे । यदि ऐसा संभव भी हो तो वह ध्वनि के किस गुण के कारण होगा ? 
(a) परावर्तन
(b) अपवर्तन
(c) अनुनाद
(d) व्यतिकरण
45. हम रेडियो की घुण्डी घुमाकर विभिन्न स्टेशनों के कार्यक्रम सुनते हैं । यह सम्भव है-
(a) अनुनाद के कारण
(b) विस्पन्द के कारण 
(c) व्यतिकरण के कारण
(d) विवर्तन के कारण
46. जब सेना पुल को पार करती है तो सैनिकों को कदम से कदम मिलाकर न चलने का निर्देश दिया जाता है, क्योंकि-
(a) दाब बढ़ने से पुल टूटने का खतरा रहता है ।
(b) पैरों से उत्पन्न ध्वनि के अनुनाद के कारण पुल टूटने का खतरा रहता है ।
(c) डाप्लर प्रभाव के कारण पुल टुटने का खतरा रहता है।
(d) इनमें से कोई नहीं
47. गूंजहीन हॉल (Dead Hall) का अनुरणन काल होता है- 
(a) शून्य सेकण्ड
(b) 0–8 सेकण्ड
(c) 1.8 सेकण्ड
(d) 8 सेकण्ड
48. अनुरणन काल तथा हॉल के आयतन के बीच सम्बन्ध का प्रतिपादन किया है-
(a) डॉप्लर ने
(b) न्यूटन ने
(c) सेबिन ने
(d) लाप्लास ने
49. सोनार (Sonar) अधिकांशतः प्रयोग में लाया जाता है-
(a) अन्तरिक्ष यात्रियों द्वारा
(b) डॉक्टरों द्वारा
(c) इन्जीनियरों द्वारा I
(d) नौसंचालकों द्वारा
50. प्रतिध्वनि तरंगों के ....... के कारण उत्पन्न होती है- 
(a) अपवर्तन
(b) अवशोषण
(c) परावर्तन
(d) विवर्तन
51. स्टेथोस्कोप ध्वनि के किस सिद्धान्त पर कार्य करता है ?
(a) परावर्तन
(b) अपवर्तन
(c) विवर्तन
(d) ध्रुवन
52. एक व्यक्ति को अपनी प्रतिध्वनि सुनने के लिए परावर्तक तल से कितनी दूर खड़ा रहना चाहिए ?
(a) 224 फीट
(b) 56 फीट
(c) 28 फीट
(d) 100 फीट
53. ध्वनि तरंगे किसके कारण प्रतिध्वनि उत्पन्न करते हैं ?
(a) अपवर्तन 
(b) विवर्तन
(c) परावर्तन
(d) इनमें से कोई नहीं
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Sun, 28 Apr 2024 09:55:19 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | सरल आवर्त्त गति https://m.jaankarirakho.com/1034 https://m.jaankarirakho.com/1034 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | सरल आवर्त्त गति
सरल आवर्त्त गति
  • आवर्त गति (Periodic Motion ) :- किसी वस्तु द्वारा एक निश्चित समय अंतराल में एक ही निश्चित पथ पर अपनी गति को दुहराती है तो इस गति को आवर्त्त गत कहते हैं। आवर्त गति का एकचक्र पूरा होने में लगा समय को आवर्त्तकाल (Time periodior T) कहते हैं।
    उदा० 1 सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की गति आवर्त्त गति है जिसका आवर्त्तकाल 1 वर्ष है। 
    2. पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा की गति आवर्त गति है जिसका आवर्त्तकाल 27.3 दिन है।
  • दोलनी और या कंपन गति (Oscillatory or Vibratory Motion):- जब आवर्त्त गति एक ही पथ पर किसी निश्चित बिन्दु के- आगे-पीछे होती है तो इसे दोलनी गति कहते हैं।
    उदा०- लोलक की गति सितारे के तार अथवा ढोल (तबला) का कंपन दोलनी गति है ।
    Note:- 1. सभी दोलनी गति आवर्त्त गति होती है. त्ति गति होती है परन्तु सभी आवर्त गति व सभी आवर्त गति दोलनी गति नहीं होती हैं।
    2- पृथ्वी गति आक्त गति है पर यह दोलनी गति नहीं है क्योंकि पृथ्वी की गति किसी बिंदु के आगे-पीछे नहीं होती है।
सरल आवर्त्तगति (S.H.M.)
यदि कोई कण निश्चित बिन्दु के इधर-उधर एक सरल रेखा में इस प्रकार गतिशील हो कि कण का त्वरण निश्चित बिन्दु से कण की दूरी अथवा विस्थापन के समानुपाती हो तथा त्वरण की दिशा विस्थापन के विपरित अर्थात् निश्चित बिन्दु की ओर हो तो इस तरह की गति को सरल आवर्त गति कहते हैं ।

  • सरल आवर्त गति से संबंधित प्रमुख पद :
    1. माध्य स्थिति:- पथ AOB तथा BOA में बिन्दु O के दोनों ओर की गति (OA तथा OB) समान समय से पूरा होता है और कण का दोलन बंद होने पर वह बिन्दु O पर विरामावस्था में चला आता है। बिन्दु O को माध्य बिन्दु (Mean Position) तथा बिन्दु A तथा B को अंत: बिन्दु (Last position) कहते हैं ।
    2. विस्थापन:- माध्य स्थिति O से P तक की दूरी विस्थापन कहलाता है जबकि O से A या O से B तक की दूरी कण का महत्तम विस्थापन (x) कहलाता है। O से दाहिनी ओर विस्थापन धनात्मक तथा बायी ओर विस्थापन ऋणात्मक माना जाता है ।
    3. आयाम (Amplitude) :- माध्यस्थिति से महत्त्म विस्थापन ( OA तथा OB) को आयाम कहते हैं ।
    4. 4. आवर्त्तकाल (Periodic time) :- एक दोलन पूरा करने में लिया गया समय आवर्त्तकाल कहलाता है । कण का एक दोलन तब पूरा होगा जब कण O से B, B से A पुनः A से O तक आयेगा ।
    5. आवृत्ति (Frequency): - एक सेकेंड में कोई कण जितना दोलन पूरा करता है उसे दोलन की आवृत्ति कहते हैं। इसे η से सूचित किया जाता है।
  • आवृत्ति आवर्त्तकाल (T) के व्युतक्रम के बराबर होता है-

  • आवृत्ति का मात्रक Hz (Hertz ) है । आवृत्ति η को प्रायः कोणीय आवृत्ति भी व्यंक्त किया जाता है ।

  • कोणी आवृत्ति का SI मात्रक Rads-1
  • सरल आवर्त गति करने वाले कण का प्रमुख समीकरणः-
    अगर सरल आवर्त गति करने वाले कण का आयाम A हो आवर्त्तकाल T हो तो माध्य बिन्दु से t समय बाद कण का-

नोटः- सरल आवर्त गति के सभी समीकरण कलनविधि (Calculus method) से प्राप्त किये जाते हैं जिसका विस्तार से विवरण NCERT वर्ग-11 के भौतिकी विषय के अध्याय-10 में दिया गया है परन्तु प्रतियोगिता परीक्षा में इसकी आवश्यकता नहीं है ।
  • सरल आवर्तगति करने वाले कण जब अपने माध्य स्थिति से गुजरता है तो उसका विस्थापन (x), त्वरण, बल तथा स्थितिज ऊर्जा शून्य् होता है जबकि वेंग एवं गतिज ऊर्जा महत्तम होता है।
  • सरल आवर्त्त गति करने वालों कण जब अपने अंत बिन्दु से गुजरता है तो उसका विस्थापन, त्वरण, बल, स्थितिज ऊर्जा महत्तम होता है जबकि वेग एवं गतिज ऊर्जा शून्य होता है ।
सरल लोलक (Simple Pendulum)
जब किसी पूर्णतः लचीले, लंबे, भाररहित, धागे से एक भारी कण लटका दिया जाए तथा कण उस धागे से लटककर घर्षणरहित दोलन करें तो उसे आदर्श लोलक कहते हैं । परन्तु ऐसी स्थिति प्राप्त करना कठिन है अ आदर्श लोलक के निकटतम गुण वाले लोलक को सरल लोलक कहते हैं ।
  • अगर किसी सरल लोलक के धागे की लम्बाई । हो तो उस सरल लोलक का आवर्त्तकाल

  • सरल लोलक का आवर्त्तकाल उसकी लंबाई (l) तथा गुरूत्वीय त्वरण (g) पर निर्भर करता है । यह लोलक के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
आवर्त्तकाल पर आधारित प्रमुख उदाहरण-
  1. अगर झूला झुलते समय कोई लड़का झूला पर खड़ा हो जाता है तो लोलक की लम्बाई घट जाती है जिससे आवर्त्तकाल भी घट जाता है क्योंकि Tα√t । अतः झूला जल्दी-जल्दी दोलन करता है ।
  2. झूला झुलने वाले लड़का के पास अगर एक लडका आकर बैठ जाएगा तो झूले के आवर्त्तकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि आवर्त्तकाल द्रव्यमान पर निर्भर नहीं हा करता है।
  3. पृथ्वी के ऊपर या नीचे जाने पर लोलक घड़ी का आवर्त्तकाल बढ़ जाएगा और लोलक घड़ी सुस्त हो जाएगा क्योंकि पृथ्वी के ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है।
  4. मुक्त रूप गिरती लिफ्ट, कृत्रिम उपग्रह में g का मान शून्य होता है अतः इसमें लोलक - घड़ी का आवर्त्तकाल भी शून्य होना यानि लोक-घड़ी काम नहीं करेगी।
  5. गर्मी के दिनों में लोलक की लम्बाई बढ़ जाती है जिससे आवर्त्तकाल बढ़ जाता है और घड़ी सुस्त हो जाती है जबकि ठंड में लोलक की लम्बाई घट जाती है जिससे आवर्त्त घट जाता है जिससे घड़ी तेज ( Fast ) हो जाता है ।
    • Note:- सरल लोलक आवर्त्तकाल उसके आयाम पर निर्भर नही करता है।
सेकंडी लोलक
वह सरल लोलक जिसका आवर्त्तकाल 2 sec होता है उसे सेकंडी लोलक कहा जाता है |
  • अगर g का मान 9.8ms-2 हो तो सेकंडी लोलक की लंबाई 1 m (0.993m) होता है।

अभ्यास प्रश्न

1. सरल आवर्त गति में जो भौतिक राशि का मान नियत रहता है वह है- 
(a) विस्थापन
(b) आवर्त्तकाल
(c) गतिज ऊर्जा
(d) स्थितिज ऊर्जा
2. सरल आवर्त गति में त्वरण समानुपाती होता है-
(a) आवृत्ति के
(b) विस्थापन के
(c) वेग के
(d) दोलन काल के
3. सरल आवर्त गति से वस्तु के वेग और त्वरण के बीच कलांतर (Phase difference) होता है-
(a) 0°
(b) 90°
(c) 180°
(d) 45°
4. सरल आवर्त गति में त्वरण और विस्थापन में कलांतर (Phase difference) होता है-
(a) 2π
(b) π
(c) π/2
(d) 0
5. सरल आवर्त गति में किसी कण के लिए मध्यमान स्थान पर होती है-
(a) महत्तम ऊर्जा
(b) महत्तम गतिज ऊर्जा
(c) महत्तम त्वरण
(d) इनमें कोई नहीं
6. इनमें किसका त्वरण एक समान है-
(a) वृत्तीय गति
(b) स्वतंत्र रूप से गुरूत्व के अधीन गिर रही वस्तु
(c) सरल आवर्त गति
(d) सभी
7. किसी सरल लोलक का गोलक पारे से भरा खोखला गोला है । यदि आधे पारे को निकाल दिया जाए तो लोलक का आवर्त्तकाल - 
(a) बढ़ जाएगा
(b) घट जाएगा 
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) 1 sec हो जाएगा
8. जब लोलक का झूलता गोलक अपनी संतुलन स्थिति को पार करता तब उसकी ऊर्जा होती है-
(a) शून्य
(b) पूर्णतः स्थितिज
(c) पूर्णतः गतिज
(d) अंशतः स्थितिज और अंशतः गतिज
9. सरल लोलक का आवर्त्तकाल-
(a) ध्रुवों पर अनंत होता है
(b) विषुवत रेखा से अधिक ध्रुवों पर होता है
(c) दोनों स्थान पर समान होता है
(d) ध्रुव से अधिक विषुवत रेखा पर होता है ।
10. एक लकड़ी झूले पर बैठी है। यदि वह खड़ी हो जाए तो झूलने का दोलन काल-
(a) बढ़ जायेगा
(b) घट जाएगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) कोई नहीं
11. 1m लंबाई वाले एक सेकंडी लोलक को पृथ्वी से चंद्रमा पर ले जाया जाता है। यदि चंद्रमा की सतह पर गुरूत्वीय त्वरण पृथ्वी के सतह पर के गुरूत्वीय त्वरण का 1/6 हो, तो चंद्रमा की सतह पर सेकंडी लोलक की लंबाई होगी-
(a) 1/6 m
(b) 1 m
(c) 6 m
(d) √6m
12. सरल आवर्त गति में चलते हुए एक कण का आयाम 0.07.m है तथा आवर्त्तकाल 2.5 sec है। इसका महत्तम वेग होगा- 
(a) 0.176 ms-1
(b) 0.170 ms-1
(c) 0 ms-1
(d) 1.700 ms-1
13. सरल आवर्त गति से गतिशील कण का वेग अधिकतम होता है-
(a) दोनों छोर पर
(b) माध्य बिन्दु पर
(c) छोरों के समीप
(d) कभी भी नहीं
14. सरल आवर्त्त गति से गतिशील कण का वेग न्यूनतम होता है-
(a) दोनों छोर पर
(b) माध्य बिन्दु पर
(c) छोरों के समीप
(d) कभी भी नहीं
15. सरल आवर्त गति से गतिशील कण का त्वरण अधिकतम होता है-
(a) दोनों छोर पर 
(b) माध्य बिन्दु पर
(c) इनमें से दोनों
(d) कभी भी नहीं
16. सरल आवर्त्त गति से गतिशील कण का त्वरण न्यूनतम होता है ।
(a) दोनों छोर पर
(b) माध्य बिन्दु पर
(c) कभी भी नहीं
(d) इनमें से कोई नहीं
17. लोलक का आवर्त्तकाल पृथ्वी के केन्द्र पर- 
(a) शून्य होगा
(b) अनन्त होगा
(c) शून्य और अनन्त के बीच होगा
(d) इनमें से कोई नहीं
18. कृत्रिम उपग्रह में लोलक की आवर्त्तकाल 
(a) शून्य होगा
(b) अनन्त होगा
(c) शून्य और अनन्त के बीच होगा
(d) इनमें से कोई नहीं
19. एक सरल लोलक ऊपर जाते हुए लिफ्ट में है । इसका दोलन-
(a) बढ़ेगा
(b) घटेगा
(c) शून्य होगा
(d) अनन्त होगा
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Sun, 28 Apr 2024 09:21:16 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | Properties of Matter https://m.jaankarirakho.com/1033 https://m.jaankarirakho.com/1033 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | Properties of Matter
प्रत्यास्थता· (Elasticity) :
अगर किसी वस्तु पर बाहर से बल लगाया जाता है तो उसकी आकार या आयतन में परिवर्तन आता है परन्तु वस्तु अपने अंतराअणुक बल (Intermolecular Foce) के कारण बाहर से लगाये जाने वाले बल का विरोध करती है तथा बल हटाते हैं अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है अथवा आने की प्रयत्न करती है। वस्तु के इसी गुण को प्रत्यास्थता कहते हैं ।
  • विरूपक बल (Deforming Force):- वस्तु पर लगने वलो बाह्य बल को विरूपक बल कहते हैं तथा इस बल के कारण वस्तु में होने वाले परिवर्तन को विरूपण (Deformation) कहते हैं ।
  • वैसा पदार्थ जिस पर से विरूपक बल हटा लेने पर वह अपने पूर्व आकार को पूर्णतः प्राप्त कर लेते हैं Perfectly elastic (पूर्णतः प्रत्यास्थ) पदार्थ कहलाते हैं।
  • पैँसा पदार्थ जिस पर विरूपक बल हटाने पर वह अपने पूर्व स्थिति में नहीं लौटा यानि पूरी तरह विरूपित हो जाता है उसे अप्रत्यास्थ या प्लैस्टीक कहते हैं।
प्रतिबल (Stress) :
जब वस्तु पर विरूपक बल लगता है जो वस्तु के कणों के बीच सापेक्षिक स्थानान्तरण होने के कारण एक आंतरिक बल की उत्पत्ति होती है। वह वल वस्तु को पूर्व की स्थिति में लाने की चेष्टा करता हैं इस बल का मान लगाये जाने वाले विरूपक बल के बराबर और विपरित होता है। इसी वल को प्रतिबल कहते हैं ।
  • प्रतिबल का cgs पद्धति में मात्रक dyne cm-2 होता है जबकि SI पद्धति में Nm-2 अथवा Pascal हाता है। इसकी विमा [ML-1 T-2] होता है।
विकृति ( Strain ) :
अगर वस्तु पर विरूपक बल लगाने पर वस्तु में विरूपता (Deformation) उत्पन्न होती है तो इसी विरूपता को विकृति कहते हैं।
  • विकृति मात्रकहीन और विमाहीन भौतिक राशि है ।
  • विकृति तीन प्रकार के होते हैं-
    1. अनुदैर्ध्य विकृति (longitudinal Strain) - अगर L लंबाई की वस्तु पर विरूपक बल लगाने से वस्तु के लंबाई में परिवर्त्तन 1 होता है तो l/L को अनुदैर्ध्य विकृति कहते हँ । अनुदैर्ध्य विकृति केवल ठोस पदार्थ में पाया जाता है।
    2. आयतन विकृति (Voluem Strain) - अगर किसी वस्तु का आयतन v है और उसपर बल लगाने से उसके आयतन में परिवर्त्तन v होता है तो v/V को आयतन विकृति कहते हैं । द्रव तथा गैस में भी आयतन विकृति पायी जाती है।
    3. अपरूपण विकृति (Shearing Strain) - अपरूपण विकृति में वस्तु की केवल आवृत्ति बदल जाती है, उसके आयतन में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।

  • अपरूपण विकृति केवल ठोस में पायी जाती है।
प्रत्यास्था सीमा (Elastic Limit) :
अगर वस्तु पर बल (पतिबल) लगाया जाता है तो वस्तु अपनी पहली स्थिति से विरूपित हो जाता है लेकिन बल हटाते ही वह पूर्व स्थिति में लौट आती है। लेकिन बल का मान बढ़ाने पर एक ऐसी स्थिति आयेगी की बल को हटाने पर भी वस्तु अपने प्रारंभिक स्थिति में नहीं लौटेगी यानि पदार्थ की प्रत्यास्यता का गुण समाप्त हो जाएगा। पदार्थों का यही सीमा जिसके आगे उसकी प्रत्यास्था या गुण समाप्त हो जाता है. प्रत्यास्था सीमा कहलाता है। ।
  • आरोपित बल का मान अगर प्रत्यास्थता सीमा से अधिक हो जाता है तब वस्तु अपने पूर्व स्थिति में नहीं लौट पाती है I
हुक का नियम (Hooke's law) :
इस नियम का प्रतिपादन 1678 में रॉबर्ट हुक ने किया था। इस नियम के अनुसार- "कम विरूपण के लिए, प्रतिबल हमेशा विकृति के समानुपाती होता है।"

  • प्रतिबल तथा विकृति के अनुपात को प्रत्यास्था गुणांक (Modulus of elasticity) कहते हैं। इसे E के रूप में सूचित किया जाता है।
यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Young's Modulus of Elasticity) :
  • कम विरूपण के अनुदैर्ध्य प्रतिबल तथा अनुदैर्ध्य विकृति के अनुपात को वस्तु के पदार्थ का यंग प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं।
  • यंग प्रत्यास्थता गुणांक (Y) = अनुदैर्ध्य विकृति / अनुदैर्ध्य प्रतिबल
  • यंग प्रत्यास्थता गुणांक SI मात्रक Nm2 तथा cgs मात्रक dyne / cm2 है। इसका विमा ML-1 T-2 है।
आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (Bulk Modulus of Elsticity) :
  • कम विरूपण के लिए प्रतिबल और आयतन विकृति के अनुपात को आयतन प्रत्यास्थता गुणांक कहते हैं। इसे K से सूचि किया जाता है।
    आयतन प्रत्यास्थता गुणांक (K) = प्रतिबल / आयतन विकृति = अनुदैर्ध्य प्रतिबल / अनुदैर्ध्य विकृति
  • आयतन प्रत्यास्थता गुणांक का SI मात्रक Nm2 होता इसकी विमा [ML-1 T-2 ] होती है।
  • आयतन गुणांक के व्युत्क्रम या I/K को पदार्थ की Compressibility (संपीड्यता) कहते हैं ।
दृढ़ता गुणांक (Modulus of Rigidity) :
कम विरूपण के लिए प्रतिबल तथा अपरूपण विकृति के अनुपात को दृढ़ता गुणांक कहते हैं। इसे n से सूचित करते हैं।
दृढ़ता गुणांक n = प्रतिबल (स्पर्शरेखीय ) / अपरूपण विकृति
  • दृढ़ता गुणांक का SI मात्रक Nm2 तथा विमा ML-1 T-2 होता है ।
प्वासों का अनुपात (Poisson Ratio) :
कम विरूपण के लिए पाश्र्वींय विकृति और अनुदैर्ध्य विकृति के अनुपात को प्वासो अनुपात कहते हैं इसे σ से सूचित करते हैं।
प्वासो अनुपात = पाश्वय विकृति / अनुदैर्ध्य विकृति
  • जब हम किसी तार को सिरों पर बल लगा कर खींचते हैं तो तार के लंबाई तथा तार के व्यास में परिवर्तन आता है। तार के लंबाई हुआ परिवर्त्तन अनुदैर्ध्य विकृति है जबकि तार के व्यास में हुआ परिवर्तन पार्श्वीय विकृति (lateral strain) है।
  • प्वासो के अनुपात का न तो कोई मात्रक होता है और न ही कोई विमा ।
दाब (Pressure) :
प्रति एकांक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते हैं यानि-
दाब = बल/क्षेत्रफल
  • दाब का SI मात्रक N/m2 (न्यूटन / मी2 ) होता है। N/m2 को वैज्ञानिक ब्लेज पास्कर (Blaise Pascal) के सम्मान में पास्कल भी कहते हैं।
  • जितने क्षेत्रफल में दो वस्तु एक-दूसरे के संपर्क में रहती है वह क्षेत्रफल को संपर्क क्षेत्रफल (Contact Area) कहते हैं। संपर्क क्षेत्रफल को बढ़ाकर किसी वस्तु द्वारा लगाये जाने वाले दाब को घटाया जा सकता है। इस सिद्धान्त के उदाहरण निम्न हैं-
    1. दलदल वाली भूमि पर व्यक्ति तख्ता रखकर चलता है जिससे मनुष्य का भार बड़े क्षेत्रफल पर बैट जाता है और भूमि पर दाब कम पड़ता है और मनुष्य धंसने से बच जाता है।
    2. ऊँट के पैर फैले-फैले होते हैं जिसके कारण बालू पर ऊँट के पैर का दाब एक स्थान पर कम पड़ता है जिससे ऊँट बालू पर आसानी से चल पाता है।
    3. भारी बाहनों के टायर चौड़े होते हैं तथा पीछे के टायर जोड़े में होते हैं जिससे वाहन का भार बड़े क्षेत्रफल में वितरित हो जाता ..है और टायर पर कम दाब पड़ता है ।
    4. गीली मिट्टी पर ट्रैक्टर आसानी से गुजर जाते हैं क्योंकि ट्रैक्टर के पीछे टायर काफी चौड़ा होता है ।
    5. मकानों की दीवार का आधार भूमि के अंदर चौड़ा बनाया जाता है जिससे मकान का भार बड़े क्षेत्रफल में वितरित हो जाता है और दाब कम पड़ता है।
  • संपर्क क्षेत्रफल को कम करके दाब को बढ़ाया जाता है। यही कारण है कि काटने वाले अथवा छेद करने वाले औजार (चाकू, आरी,  कैंची, सूई) में बहुत कम क्षेत्रफल का धार या नोक होता है जिससे कम बल लगाने पर भी औजार द्वारा अधिक दाब डाला जाता है।
घनत्व (Density) :
एकांक आयतन में पदार्थ का जो परिमाण होता है उसे पदार्थ का घनत्व कहते हैं ।
घनत्व = द्रव्यमान/आयतन
  • घनत्व का SI मात्रक kg/m3 है। किसी पदार्थ का घनत्व पदार्थ की शुद्धता जाँचने में सहायक होता है ।
  • सोना का घनत्व 19300 kg/m3 होता है तथा पानी घनत्व 1000 kg/m3 होता है।
प्रणोद (Thrust) :
द्रव अगर किसी वरतन में रखा जाता है तो द्रव बरतन के पेंदे के साथ-साथ बरतन की दीवार पर भी बल लगाता है तथा यह बल सतह के लंबवत लगता है ।
  • किसी द्रव द्वारा बरतन के पृष्ठ या सतह पर लगाये जाने वाले लंबवत बल को प्रणोद कहते हैं ।
  • प्रणोद का बल वहीं होता है जो बल का होता है यानि प्रणोद का SI मात्रक न्यूटन होता है ।
  • प्रणोद और दाब में निम्न अंतर है- किसी पृष्ठ के पूरे क्षेत्रफल पर लगे लंबवत बल को प्रणोद कहते हैं जबकि पृष्ठ के एकांक क्षेत्रफल पर लगनेवाले बल को दाब कहते हैं।
द्रव में दाब
किसी स्थिर द्रव में द्रव के दाब के चार नियम है-
  1. द्रव को जिस बरतन में रखा जाता है द्रव उस बरतन के भीतरी सतह पर दाब डालता है ।
  2. द्रव के भीतर किसी बिंदु पर द्रव का दाब सभी दिशाओं में समान होता है।
  3. द्रव के भीतर किसी बिंदु पर द्रव का दाब गहराई के समानुपाती होता है ।
  4. द्रव में किसी बिंदु पर द्रव का दाब द्रव के घनत्व के समानुपाती होता है ।
  • द्रव के दाब से संबंधित पास्कल के नियम-
    किसी बंद द्रव के किसी भाग पर डाला गया दाब सभी दिशाओं में समान रूप से संचरित होता है। इसे ही पास्कल का नियम कहते हैं। पास्कल का यह नियम सभी तरल पदार्थ पर लागू होता है ।
  • पास्कल के नियम के प्रयोग कर Hydraulic lift, Hydraulic Press तथा Hydraulic brake बनाये जाते हैं ।
उत्प्लावकता (Buoyancy)
जब किसी वस्तु को द्रव में डुबाया जाता है तो द्रव डुबी ही वस्तु पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है जिसके कारण वस्तु के भार में अभासी कमी आ जाती है। इसी बल को वस्तु पर द्रव की उत्प्लावकता कहते हैं और इस बल को उत्प्लावन बल कहते हैं ।
  • उत्प्लावन का गुण सभी तरल (द्रव तथा गैस) में होता है ।
  • उत्प्लावकता का अध्ययन कर यूनानी वैज्ञानिक आर्किमीडिज ने एक नियम प्रतिपादित किया जिसे आर्किमीडिज का सिद्धान्त कहते हैं।
  • आर्किमीडिज सिद्धान्त के अनुसार - "जब कोई वस्तु को किसी द्रव या गैस से पूर्णतः या अंशतः डुबायी जाती है तो उसके भार में अभासी कमी आ जाती है जो वस्तु के डूबे हुए भाग द्वारा हटाये गये द्रव या गैस के भार के बराबर होता है।'
  • अगर किसी वस्तु को द्रव में डुबाया जाता है तो वस्तु पर दो बल कार्य करता है ।
    1. वस्तु का भार w1 जो वस्तु पर नीचे की ओर लगता है ।
    2. द्रव की उल्लावकता w2 जो वस्तु पर ऊपर की ओर लगता है ।
  • इन दोनों बल के परिमाण से निम्न स्थिति बनती है-
    1. अगर w2 बडा हो w2 सेतो वस्तु द्रव में नीचे डूबती जाऐगी
      Note : किसी द्रव में किसी वस्तु को डूबने के लिए वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से अधिक होनी चाहिए।
    2. अगर W1 = w2 हो तो वस्तु द्रव में पूरी तरह डूबकर तैरती रहेगी। 
      Note : द्रव में पूर्णतः डूबकर तैरने के लिए वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व के बराबर होनी चाहिए ।
    3. अगर w1 < w1 तब वस्तु द्रब में अंशतः डूबकर तैरगी।
      Note : द्रव में अंशतः डूबकर वस्तु के प्लवन करने के लिए वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से कम होनी चाहिए ।
महत्वपूर्ण तथ्य–
  1. लोहे का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक होता है इसलिए लोहे की सूई या काँटी पानी में डूब जाती है परन्तु लोहे के टुकड़े को पीटकर नाव का आकार दे दिया जाए तो यह पानी में तैर सकता है। इसी सिद्धान्त पर लोहे के जहाज बनाये जाते हैं । 
  2. मनुष्य के शरीर का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है परन्तु सिर का घनत्व पानी के घनत्व से अधिक होता है इसलिए मनुष्य पानी में डूबने लगता है।
  3. समुद्र के पानी का घनत्व नदी अथवा झील के पानी के घनत्व से अधिक होता है अतः नदी के अपेक्षा समुद्र में तैरना आसान है ।
  4. बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है इसी कारण बर्फ पानी पर तैरता है। बर्फ जब पानी पर तैरता तो बर्फ का 11/12 भाग पानी के भीतर डूबा रहता है और 1/12 भाग पानी के ऊपर रहता है।
  5. समुद्र के पानी का घनत्व साधारण पानी के घनत्व से अधिक रहता है जिसके कारण समुद्र के पानी में तैरते समय बर्फ का 8/9 भाग पानी के भीतर तथा 1/9 भाग पानी ऊपर रहता है।
  6. समुद्र में बड़े-बड़े बर्फ के चट्टान पानी में तैरता रहता है। चूँकि समुद्र में बर्फ का 1/9 भाग ही पानी के ऊपर रहता है जिसके कारण कोहरे वाली रात के समय जहाज का इनसे टकराने का खतरा बना रहता है। 1912 में टाइटैनिक जहाज इसी तरह बर्फ के चट्टान से टकराकर नष्ट हो गया था ।
आपेक्षिक घनत्व (Relative Dencity) :
किसी पदार्थ का घनत्व एवं प्रमाणिक पदार्थ के घनत्व के अनुपात को उस पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व कहते हैं ।
आपेक्षिक घनत्व = किसी पदार्थ का घनत्व / प्रमाणक पदार्थ का घनत्व
  • अगर प्रमाणिक पदार्थ के रूप में पानी को लिया जाए तब -
    आपेक्षिक घनत्व = वस्तु का घनत्व / 4°C पर पानी का घनत्व
    अतः वस्तु का घनत्व = वस्तु का आपेक्षिक घनत्व × पानी का घनत्व
  • आपेक्षिक घनत्व एक प्रकार के राशिओं का अनुपात है अतः इसकी कोई मात्रक नहीं होता है ।
  • आपेक्षिक घनत्व को हाइड्रोमीटर यंत्र से मापा जाता है ।
पृष्ठ तनाव (Surface Tension) :
द्रव का मुक्त पृष्ठ (Free & Surface) हमेशा सिकुड़कर अपने क्षेत्रफल का न्यूनतम बनाने की प्रवृत्ति रखता है। द्रव के इसी गुण, जिसके कारण वह सिकुड़कर अपने मुक्त पृष्ठ का क्षेत्रफल न्यूनतम बनाने की प्रवृत्ति रखता है, पृष्ठ तनाव कहलाता है।

किसी द्रव के मुक्त पृष्ठ पर AB रेखा की कल्पना करें जो द्रव के पृष्ठ C और D को एक दूसरे से अलग करती है। C और D पृष्ठ दूसरे से अलग होना चाहती है जिससे द्रव के पृष्ठ पर तनाव रहता है। यही तनाव पृष्ठ तनाव है।
  • अगर AB की लंबाई | माना जाए तथा द्रव के पृष्ठ के तनाव के कारण 1 पर संकुचन बल का परिमाण F हो तो 

  • पृष्ठ तनाव अदिश राशि है जिसका मात्रक N/m (न्यूटन प्रति मीटर) है । पृष्ठ तनाव की विमा [MT-2] होता है।
  • पानी का पृष्ठ तनाव 72.9 × 10-3 Nm-1 तथा पारा का पृष्ठ तनाव 486 × 10-3 Nm-1 होता है।
  • पृष्ठ तनाव का cgs मात्रक dyne cm-1 होता है।
  • ससंजन बल (Cohesive Force)- एक ही पदार्थ के दो अणुओं के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को संसंजन बल कहते हैं । ठोस में संसंजन बल कहते हैं। ठोस में संसंजन बल का परिमाण सबसे अधिक द्रव में कम तथा गैसों में नगण्य होता है ।
  • आसंजन बल (Adhesive Force)- भिन्न पदार्थों के दो अणुओं के बीच लगने वाले आकर्षण बल को आसंजन बल कहा जाता है।
  • ब्लैक बोर्ड पर चॉक से लिखना, कागज पर पेंसिल से लिखना आसंजन बल के कारण ही संभव है।
  • संसजन और आसंजन बल के परिमाण से होने वाला कुछ घटना-
    1. संसंजन बल के कारण ही द्रव की दो बूंद संपर्क में आते ही मिलकर एक हो जाता है।
    2. काँच के प्लेट पानी से भींग जाता है क्योंकि पानी और काँच के अणुओं के बीच आसंजन पानी के अणुओं के बीच संसंजन से अधिक होता है।
    3. पारा काँच को नहीं भिगोता क्योंकि पारा और कॉच के बीच आसंजन पारे के अणुओं के बीच संसंजन से काफी कम होता है।
अणविक परास (Molecular Range ) :
किसी अणु से वह अधिकतम दूरी जहाँ तक अणुओं के आकर्षण रहता है, आणविक परास कहलाता है। आणविक परास का मान लगभग 10-9 m तक रहता है। 10-9 m से अधिक दूरी पर अणुओं का आकर्षण काम नहीं करता है ।
  • पृष्ठ फिल्म (Surface Film )- किसी द्रव के मुक्त पृष्ठ से आणविक परास (10-9 m) की मोटाई की पतली झिल्ली को पृष्ठ कहा जाता है।
  • पृष्ठ फिल्म के प्रति एकांक क्षेत्रफल में निहित ऊर्जा (Surface Energy) कहा जाता है। Surface Energy का SI मात्रक Jm-2 होता है तथा इसकी विमा MT-2 होता है।
    पृष्ठ ऊर्जा = पृष्ठ तनाव × पृष्ठ क्षेत्रफल
स्पर्श कोण (Angle of contact ) :

द्रव और ठोस के संपर्क बिन्दु P पर द्रव के बक्र पृष्ठ पर खींची गई स्पर्श रेखा द्रव के अंदर ठोस के सतह PQ के साथ जो 0 कोण बनाती है उसे स्पर्श कोण कहते हैं ।
  • स्पर्श कोण का मान न्यूनतम 0° तथा अधिकतम 180° होता है ।
  • जो द्रव ठोस को भिगोती है उनके लिए स्पर्श कोण न्यून कोण होता है तथा यह आकृति अवतल (Concave Shape ) होता है।
  • शुद्ध जल और काँच के लिए स्पर्श कोण 0° होता है परन्तु साधारण जल और काँच के लिए स्पर्श कोण 8° होता है ।
  • जो द्रव ठोस को नहीं भिगोता है उसके लिए स्पर्श कोण समकोण से अधिक अर्थात् अधिककोण होता है ।
  • पारे तथा काँच के लिए स्पर्श कोण का मान 135° होता है ।
पृष्ठ तनाव के उदाहरणः-
  1. पानी के पृष्ठ पर सूई का तैरना पृष्ठ तनाव के कारण ही होता है ।
  2. साबुन के बुलबुले बनने का कारण पृष्ठ तनाव है। साबुन के बुलबुले के अंदर का दाब बाहर के वायुमंडलीय दाब से अधिक होता है।
  3. रंग लगानेवाला ब्रश को रंग में डुबाया जाता है तो उसके बाल बिखर जाते हैं, लेकिन जब ब्रश को बाहर निकाला जाता है तो पृष्ठ तनाव के कारण उसके बाल चिपक जाते हैं।
  4. काँच के पट्टियों के बीच अगर जल के पतली परत है तो पृष्ठ तनाव के कारण काँच के पट्टियों को लम्वत् अलग करने में अधिक बल लगाना पड़ता है ।
  5. काँच के सिरो को जब गर्म किया जाता है तो पिघला काँच गोल हो जाता है। इसका कारण पृष्ठ तनाव है।
  6. तालाब या गड्ढ़ों में भरे जल में मिट्टी तेल डालने पर जल का पृष्ठ तनाव घट जाता है जिससे मच्छर के लार्वा डूबकर मर जाते हैं।
  7. पिघला हुआ शीशा पृष्ठ तनाव के कारण ही गोल बूंदों के रूप में जमकर गोल छर्रे में बदल जाता है ।
  8. पृष्ठ तनाव के कारण ही वर्षा की बूंद गोलाकार होता है ।
  9. अशांत समुद्र को शांत करने के लिए जहाज तेल गिराता है क्योंकि तेल से समुद्र के पानी का पृष्ठ तनाव घट जाता है जिससे लहरों की ऊचाई घट जाती है।
  10. पृष्ठ तनाव के कारण कपूर को स्वच्छ जल पर छिड़कने पर उसके कण तेजी से इधर-उधर नाचते हैं।
  11. गर्म भोजन का पृष्ठ तनाव ठंडे भोजन के पृष्ठ तनाव से कम होते हैं जिसके कारण गर्म भोजन जीभ के अधिक क्षेत्रफल को घेरता है और भोजन स्वादिष्ट लगता है।
पृष्ठ तनाव के प्रभावित करने वाला कारक-
  1. किसी द्रव का पृष्ठ तनाव द्रव के पृष्ठ के सम्पर्क वाले माध्यम पर निर्भर करता है। अगर पानी के पृष्ठ का सम्पर्क हवा से है तो पृष्ठ तनाव 7.2 × 10-2 N/m होता है जबकि पानी के पृष्ठ का सम्पर्क जल वाष्प से है तो पृष्ठ तनाव 7.0 × 10-2 N/m होता है। 
  2. द्रव अगर दूषित हो जाता है तो पृष्ठ तनाव घट जाता है।
  3. ताप बढ़ने से द्रव का पृष्ठ- तनाव घट जाता है और क्रांतिक ताप पर पृष्ठ तनाव का मान शून्य हो जाता है ।
  4. द्रव में विद्युत प्रवाहित करने पर द्रव का पृष्ठ तनाव घट जाता है |
  5. द्रव में किसी पदार्थ के घुलने से द्रव का पृष्ठ तनाव बदल जाता है । द्रव में अकार्बनिक पदार्थ घुलने से द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ बढ़ जाता है जबकि द्रव में कार्बनिक पदार्थ घुलने से द्रव का पृष्ठ तनाव घट जाता है।
    • Note : नमक (अकार्बनिक) घुलने पर द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ता है जबकि डिटरजेन्ट (कार्बनिक) घुलने पर द्रव का पृष्ठ तनाव घट जाता है।
  6. द्रव का घनत्व बदलने से भी पृष्ठ तनाव बदल जाता है।
कोशिकाकर्षण (Capillarity)
किसी द्रव में एक केशनली को अंशतः डुबाया जाता है तो द्रव केशनली में कुछ उपर चला जाता है। यह घटना Capillarity कहलाता है।
  • जो द्रव काँच को भिगोता है (जैसे- जल) वह कोशनली के ऊपर चढ़ता है।
  • जो द्रव काँच को नहीं भिगोता है (जैसे- पारा) वह केशनली के नीचे आता है।
  • ऐसा द्रव जिसके लिए स्पर्श कोण का मान 90° से कम होता है वह केशनली के ऊपर चढ़ता है तथा जिस द्रव के लिए केशनली का मान 90° से अधिक होता है वह केशनली में नीचे खिसक जाता है।
  • केशनली की त्रिज्या जितनी कम होगी द्रव कैशनली में उतना ही ऊपर चढ़ेगा।
  • केशिका कर्षण के उदाहरण-
    1. लालटेन में मिट्टी का तेल बत्ती के धागे में बनी केशिकाओं के द्वारा ही ऊपर चढ़ता है।
    2. खेतों में दिया गया जल पौधों के तनों एवं जड़ों में बनी असंख्य केशनली से चढ़कर पत्ती तक पहुँचता है।
    3. मिट्टी का ढेला को पानी में रखने पर ढेला पूरा भीग जाता है।
    4. पेन की नींव बीच में चिरी (Slit) रहती है जिससे उसमें बारीक केशनली बन जाती है, नींव को इंक में दुबाने पर कुछ इंक केशनली बीच में चढ़ जाती हैं।
      • नोट:- रीफिल से इंक नींव तक गुरुत्व बल के कारण आता है।
    5. जल से भरी बाल्टी में तौलिया का एक सिरा रखने पर पूरा तौलिया भींग जाता है I
श्यानता (Viscosity)
  • तरल का वह गुण जिससे वह अपनी भिन्न-भिन्न परतों के बीच आपेक्षिक गति का विरोध करता है, उस तरल की श्यानता कहलाता है ।
  • जो द्रव जितना ज्यादा गाढ़ा होता है वह उतना ही ज्यादा श्यान होता हैं जल के तुलना में कोलतार, ग्लिसरीन, शहद आदि की श्यानता अधिक होती है।
  • श्यानता का गुण द्रव तथा गैस दोनों में होता है । द्रव में श्यानता अणुओं के मध्य ससंजक बलों के कारण होता है जबकि गैस में श्यानता गैस के अणुओं की एक परत से दूसरी परत में विसरण के कारण होता है।
  • ताप बढ़ने पर गैस की श्यानता बढ़ती है जबकि द्रव की श्यानता घटती है।
  • किसी तरल का श्यानता का मापन श्यानता गुणांक (Coefficient of Viscocity) से किया जाता है ।
  • श्यानता गुणांक (η) का SI मात्रक kg m-1 s-1 या Nsm-2 होता है तथा इसे Pas (Pascal Second) से भी व्यक्त किया जाता है। श्यानता गुणांक की विमा (ML-1 T-1 ) होता है।
  • श्यानता गुणांक cgs मात्रक Poise होता है।
    1 Nsm-2 = 1 Pas = 10 Poise
धारा रेखीय गति ( Streamline motion)
जब तरल के प्रत्येक बिन्दु पर का परिमाण और दिशा समय के साथ नहीं बदलता है तो तरल की ऐसी गति धारा रेखीय गति कहलाती है ।
  • विक्षुब्ध गति (Trubulent motion) :- जब किसी तरल की गति ऐसी होती है कि उनमें प्रत्येक बिनदु पर वेग का परिणाम और दिशा हमेशा समय के साथ बदलता रहता है तो वैसी गति को विक्षुब्ध गति कहते हैं।
  • क्रांतिक वेग (Critical Velocity) :- किसी तरल की गति की वह निश्चित मान जिससे कम मान पर तरल की गत धारारेखीय हो तथा जिससे अधिक पर तरल की गति विक्षुब्ध हो, क्रांतिक वेग कहलाता है ।
  • Stoke's Formula:- जब कोई वस्तु श्यान द्रव में गुरूत्व के अधीन गिरती है तो श्यान द्रव जिसकी परत श्यानता के कारण स्थिर रहती है उसमें गति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण तरल में श्यान बल उत्पन्न होता है जो वस्तु के गति का विरोध करता है। इस विरोधी बल का मान वस्तु के वेग के साथ बढ़ता जाता है और अन्त में इस बल का मान वस्तु के भारत के बराबर हो जाता है। इसके बाद वस्तु प्राप्त वेग से समरूप गति से गिरती है और यह वेग नियत होता हैं इस नियत वेग को सीमान्त वेग (Terminal Velocity) कहते हैं।
  • अगर r त्रिज्या वाले कोई वस्तु (η) श्यानता गुणांक वाले तरल में सीमान्त वेग v से गिरती है तो वस्तु के सम्पर्क वाली हो के बीच श्यान बल |F = 6πηrv होगा। इसे Stroke's law कहते हैं ।
  • किसी वस्तु का सीमान्त वेग वस्तु के त्रिज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है यानि त्रिज्या जितना अधिक होता है सीमान्त वेग उतना ही अधिक होता है ।
  • श्यानता तथा सीमांत वेग का उदाहरण:-
    1. बादल का बननाः- वायु में उपस्थित जलवाष्प जब धूलकण पर संघनित होता है तो बहुत छोटी-छोटी बूँदे बनती है। इन बूँदों का वायु में भार बहुत कम होता है। जिसके वायु के श्यान बल के कारण ये कण शीघ्र ही सीमांत वेग को प्राप्त कर लेते हैं जिसका मान बहुत कम होता है। इनके कम वेग के कारण ये आकाश में तैरती प्रतीत होती है। इसे बादल कहा जाता है ।
    2. जल वाष्प के छोटी-छोटी बूँदे वायु के श्यान बल के कारण शीघ्र ही सीमांत वेग प्राप्त कर लेती है। चूँकि सीमांत वेग का मान त्रिज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है यही कारण छोटी बूँद कम चाल से और बड़ी बूंद अधिक चाल से नीचे गिरती है।
    3. पैरासूट से गिरता व्यक्ति पहले बहुत तेजी से गिरता है परन्तु वायु के श्यामता के कारण वह शीघ्र ही सीमांत वेग को प्राप्त कर लेता है अतः वह पृथ्वी पर सुरक्षित उतर जाता है।

Note:- स्टोक के सूत्र का महत्वपूर्ण उपयोग इलेक्ट्रॉन के आवेश को निर्धारित करने के लिए मिलिकन विधि में होता है।

अभ्यास प्रश्न

1. प्रतिबल और विकृति का अनुपात क्या कहलाता है : 
(a) घूर्णन गुणांक
(b) पृष्ठ तनाव
(c) प्रत्यास्थता गुणांक
(d) श्यानता गुणांक
2. प्रत्यास्थता गुणांक का मात्र है-
(a) न्यूटन / मी
(b) किग्रा मीर2
(c) न्यूटन मीटर
(d) किग्रा मी-1
3. किसी ठोस को दबाने पर उसके परमाणुओं की स्थितिज ऊर्जा-
(a) बढ़ेगी
(b) घटेगी
(c) अपरिवर्तित रहेगी
(d) इनमें से कोई नहीं
4. हुक का नियम तब लागू होता है जब प्रत्यास्थता विकृत्ति सामान्यतः
(a) बड़ी
(b) छोटी
(c) कुछ भी
(d) एकांक होती है
5. ताप बढ़ने पर प्रत्यास्थता का नाम प्रायः-
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) नियत रहता है
(d) शून्य होता है 
6. पायसन का अनुपात-
(a) केवल ठोस के लिए होता है
(b) केवल द्रव के लिए होता है
(c) केवल गैस के लिए होता है
(d) सबो के लिए होता है
(e) किसी के लिए नहीं होता है
7. विकृति का मात्रक है-
(a) मी / से
(b) किग्रा / मी
(c) नहीं होता
(d) न्यूटन मी
8. निम्नलिखित में चार तार एक ही पदार्थ को बने हैं। जब इनपर समान तनाव आरोपित किया जाता है तो किसमें अधिक प्रसार (Extension) होता है ? 
(a) लम्बाई 50 cm, व्यास 0.5mm
(b) लम्बाई 100 cm, व्यास 1 mm
(c) लम्बाई 200 cm, व्यास 2 mm
(d) लम्बाई 300 cm, व्यास 3 mm
9. दाब के संचरण का सिद्धान्त- 
(a) चार्ल्स के नियम से होता है।
(b) न्यूटन के नियम से होता है
(c) पास्कल के नियम से होता है।
(d) Boyle के नियम से होता है
10. एक बर्फ के टुकड़े के भीतर एक पत्थर का टुकड़ा है। यह पानी से भरे वर्त्तन में तैरता है । जब बर्फ पिघल जाता है, तब पानी का तल-
(a) अपरिवर्तित रहेगा
(b) नीचे गिरेगा
(c) ऊपर उठेगा
(d) इनमें से कोई नहीं
11. द्रव में पूर्णतः या अंशतः डूबी वस्तु के भार में अभासी सभी-
(a) वस्तु के आयतन के बराबर आयतन
(b) द्रव के भार के बराबर होती है
(c) वस्तु के डूबे हुए भाग द्वारा हटाये गये द्रव के भार के बराबर होती है
(d) ऊपर के सभी कथन असत्य हैं।
12. किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व बराबर है- 
(a) पदार्थ का घनत्व / प्रमाणिक पदार्थ का घनत्व
(b) पदार्थ का घनत्व / किसी दूसरे पदार्थ का घनत्व
(c) पदार्थ का घनत्व / पारा का घनत्व
(d) प्रमाणिक पदार्थ का घनत्व / पदार्थ का
13. दाब बल और क्षेत्रफल में संबंध होता है- 
(a) दाब = बल x क्षेत्रफल
(b) दाब = बल / क्षेत्रफल
(c) दाब = क्षेत्रफल / बल 
(d) दाब = बल + क्षेत्रफल 
14. बंद द्रव के किसी भाग पर डाला गया दाब सभी पाया दिशाओं में "समान रूप से संचरित होता है। यह नियम कहा जाता है-
(a) न्यूटन का नियम
(b) गैलीलियों का नियम
(c) पास्कल का नियम
(d) दाब का नियम 
15. किसी द्रव में किसी वस्तु को अंशतः डूकर प्लवन करने के लिए वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से होना चाहिए 
(a) कम
(b) बराबर
(c) अधिक
(d) कुछ निश्चित नहीं
16. किसी ताप पर पानी का घनत्व महत्तम होता है ? 
(a) 0°C पर
(b) 2°C पर
(c) 3°C पर
(d) 4°C पर
17. ताप वृद्धि से द्रव के पृष्ठ तनाव 
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) अपरिवर्तित रहता है
(d) इनमें से कोई नहीं
18. किड़े-मकौड़े जल के पृष्ठ पर बिना डूबे हुए चल तथा दौड़ सकते हैं, क्योंकि- 
(a) पृष्ठ तनाव के गुण के कारण जल के पृष्ठ पर प्रत्यास्थ P झिल्ली बन जाती है । 
(b) कीड़े-मकौड़े हल्के हाते हैं।
(c) कीड़े-मकौड़े पनी पर तैरते हैं।
(d) कीड़े-मकौड़े के पैरों में झिल्ली होती है जो उन्हें सीधी रखती है।
19. ताप बढ़ने से द्रव के श्यानता गुणांक का मान- 
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) अपरिवर्तित रहता है
(d) इनमें कोई नहीं
20. यदि एक छोटी वर्षा बूँद हवा से होकर गिरती है तो -
(a) इसका वेग बढ़ता जाएगा
(b) इसका वेग घटता जाएगा
(c) यह कुछ समय के लिए नियत वेग, के साथ गिरेगी तब इसका वेग बढ़ेगा
(d) इसका वेग कुछ समय के लिए बढ़ता जाएगी और तब इसका वेग नियत हो जाएगा
21. ताप के बहने से गैस के श्यानता गुणांक का मान- 
(a) बढ़ता है.
(b) घुटता है 
(c) अपरिवर्तित रहता है 
(d) इनमें से कोई नहीं
22. बरनौली का प्रमेय तरल की गति के लिए तब लागू होता है जब यह गति हो-
(a) धारा रेखीय
(b) विक्षुब्ध
(c) धारा रेखीय या विक्षुब्ध
(d) अंशतः धारा रेखीय और अशतः विक्षुब्ध
23. हवा में गिरती तेल बूँद सीमान्त वेग प्राप्त करती है जो- 
(a) बूंद के त्रिज्या के अनुक्रमानुपाती है।
(b) त्रिज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती है
(c) त्रिज्या के व्युत्क्रमानुपाती है।
(d) त्रिज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती है।
24. निम्नलिखित में किसे हाइड्रोजन बैलून आसानी से उठा पायेगा ? 
(a) इस्पात का 1 kg
(b) ढीले ढंग से पैक किये हुए पंखों का 1 kg
(c) पानी का 1 kg
(e) नमक का 1 kg
25. चलाया हुआ द्रव कुछ समय के बाद विराम में आ जाता है । इसका कारण है-
(a) पृष्ठ तनाव
(b) श्यानता
(c) अणुओं के बीच आकर्षण बल
(d) स्थायित्व
26. बरनौली प्रमेय अनुप्रयोग है-
(a) न्यूटन के तृतीय गति नियम का
(b) टॉरसीले प्रमेय का
(c) हुकनियम का
(d) ऊर्जा - संरक्षण नियम
27. एक प्वॉयज श्यानता गुणांक S.I मात्रक का-
(a) दस गुणा होता है
(b) बराबर होता है
(c) एक दसवाँ भाग होता है
(d) एक सौवा भाग होता है
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Sun, 28 Apr 2024 07:11:04 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | Circular &amp; Rotational Motion https://m.jaankarirakho.com/1032 https://m.jaankarirakho.com/1032 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | Circular & Rotational Motion
Circular Motion
अगर कोई वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नियत चाल से चलता है तो उसकी गति वृत्तीय गति कहलाती है ।
  • वृत्त एक बहुभुज आकृति है जिसकी अनंत भुजाएँ हैं यही कारण है कि वृत्तीय पथ पर गतिशील वस्तु अपनी दिशा लगातार बदलता रहता है। दिशा बदलने के कारण वस्तु का वेग बदलता रहता है भले ही चाल उसकी एक समान हो ।
  • वृत्तीय गति में वस्तु का वेग बदलता रहता है जिसके कारण वस्तु को त्वरित कहा जाता है अतः एक समान वृत्तीय गति त्वरित गति का उदाहरण है।
कोणीय विस्थापन (Angular Displacement) :
जब कोई वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर गति करता है तो अपनी प्रारंभिक स्थिति के सापेक्ष वस्तु तिने कोण से घूम जाता है उसे कोणीय विस्थापन कहते हैं । 

  • रेखीय विस्थापन (l) = वृत्ताकार पथ की त्रिज्या (r) × कोणीय विस्थापन (Q)
  • कोणीय विस्थापन सदिश राशि है। इसका SI मात्रक रेडियन है। कोणीय विस्थापन की विमा नहीं होती है यह विमाहीन भौतिक राशि है ।
कोणीय वेग (Angular Velocity)
कोणीय विस्थापन के दर को कोणीय वेग कहते हैं। कोणीय वेग को (ω) के रूप में लिखा जाता है।
  • कोणीय वेग का SI मात्रक रेडियन / सेकेण्ड (Rad/ Sec) है। कोणीय वेग की विमा [T-1 ] होती है। कोणीय वेग सदिश राशि है।
  • अगर कोई वस्तु T सेकेण्ड में वृत्ताकार मार्ग की पूरा चक्कर या 2π रेडियन कोण घूमता है तो उसकी कोणीय वेग 

    T वस्तु का आवर्त्त काल (Time period) है अगर वस्तु 1 sec में n चक्कर लगाता है तो उस वस्तु का आवर्त्तकाल

अभिकेन्द्र त्वरण (Centripetal acceleration) :
जब वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर गतिशील रहता है तो वस्तु का वेग लगातार बदलता रहता है जिसके कारण इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि वृत्तीय गति से त्वरण रहता है । वृत्तीय गति में त्वरण की दिशा वृत्त के केन्द्र की ओर होती है जिसके कारण इस त्वरण को अभिकेन्द्र त्वरण कहते हैं ।
  • इस त्वरण की दिशा गति के दिशा के लम्बवत् होती है इसलिए उसे अभिलम्ब त्वरण भी कहते हैं । 
  • अगर वस्तु r त्रिज्या वाले वृत्ताकार मार्ग पर v वेग से गतिशील हो तो अभिकेन्द्र त्वरण

अभिकेन्द्र बल (Centripetal Force) :
वृत्तीय गति पर वस्तु पर v2/r परिमाण का त्वरण 0 कार्य करता है। न्यूटन की गति नियम के अनुसार त्वरण किसी बल से ही उत्पन्न हो सकता है। वृत्तीय पथ पर गतिशील वस्तु पर एक बल कार्य करता है। जिसकी दिशा वृत्त के केन्द्र की ओर होती है। इस बल को 'अभिकेन्द्र बल कहते हैं ।

  • अभिकेन्द्र बल कोई नया बल नहीं है और वृत्तीय गति के कारण इसकी उत्पत्ति भी नहीं होती है ।
    उदा०-
    1. पत्थर को धागे से बाँधकर जब वृत्तीय गति में घूमाते हैं तो धागे का तनाव अभिकेन्द्र बल प्रदान करते हैं ।
    2. 2. सूर्य के चारों ओर ग्रहों की वृत्तीय कक्षा में गुरूत्वाकर्षण बल अभिकेन्द्र बल प्रदान करते हैं।
    3. न्यूक्लीयस के चारों ओर इलेक्ट्रॉन की वृत्तीय गति के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल न्यूक्लीयस और इलेक्ट्रॉन के बीच के विद्युत आकर्षण बल से प्राप्त होता है। 
अपकेन्द्र बल (Centri Fungal Force) :
वृत्तीय गति में घूमती वस्तु पर एक कल्पीत बल कार्य करने लगता है जो अपकेन्द्री बल कहलाता है। अपकेन्द्री बल अभिकेन्द्र बल के बराबर किन्तु विपरित दिशा में होता है यानि अपकेन्द्र बल की दिशा केन्द्र के बाहर की ओर होती है ।
  • अपकेन्द्र बल वास्तविक बल नहीं है । यह काल्पनिक बल है ।
  • अपकेन्द्र (Centrifugal) के सिद्धान्त पर कई उपकरण बनाये हैं, परन्तु इस उपकरण में कहीं भी अपकेन्द्र बल कार्य नहीं करता है ।
    1. Centri pungal drier
    2. Cream Sparator
    3. Speed governor (इंजन का चाल नियंत्रक)
    4. Centripugal Pump
  • अगर पानी से भरी हुई बाल्टी को वृत्तीय पथ में घुमाया जाता है तो बाल्टी सिर के ऊपर आकर उलट जाती है फिर भी उसमें एक बूँद पानी नहीं गिरता ऐसा इसलिए होता है कि अपकेन्द्र बल पानी को बाल्टी की पेंदी की ओर दबाया रहता है।
गुरूत्व केन्द्र (Centre of gravity)
किसी वस्तु का गुरूत्व केन्द्र वह बिन्दु है जहाँ वस्तु का समसत भार कार्य करता है वस्तु को चाहे किसी भी स्थिति में क्यों न हो ।
  • वस्तु का भार गुरूत्व केन्द्र के ठीक नीचे की ओर कार्य करता है अतः गुरूत्व केन्द्र पर वस्तु के बराबर ऊपरी मुखी बल लगाकर हम वस्तु को संतुलित रख सकते हैं।
  • कुछ नियमित वस्तु (वस्तु जिसका आकार नहीं बदलता हो) का गरूत्व केन्द्र-
    1. समान छड़- छड़ के अक्ष का मध्य बिन्दु
    2. त्रिभुजाकार ठोस - माध्यिकाओं का कटान बिन्दु
    3. वर्गाकार ठोस - विकर्णों का कथन कटान बिन्दु
    4. आयताकार ठोस - विकर्णों का कटान बिन्दु
    5. ठोस गोला- गोले का केन्द्र
  • कोई वस्तु का संतुलन स्थायी बना रहे इसके लिए निम्न शर्तों को पूरा करना होता है-
    1. वस्तु का गुरूत्व केन्द्र अधिक से अधिक नीचा होना चाहिए।
    2. गुरूत्व केन्द्र से होकर गुजरने वाली ऊर्ध्वाधर रेखा (Vertically line) वस्तु के आधार होकर गुजरनी चाहिए ।
      उदा०-
      1. स्थायी संतुलन प्राप्त करने के लिए पहाड़ पर चढ़ता व्यक्ति आगे की ओर झुक जाता है। झुकने से गुरूत्व केन्द्र से होकर गुजरने वाली रेखा पैरों के पास आधार से होकर गुजरती है।
      2. स्थायी संतुलन बिगड़ने के कारण बस पर ओवर लोडिंग करने की सलाह नीं दी जाती है ।
      3. पीसा का ऐतिहासिक मीनार तिरछी होते हुए भी नहीं गिरती है क्योंकि गुरूत्व केन्द्र से होकर जानी वाली ऊर्ध्वाधर रेखा मीनार के आधार से होकर गुजरती है।
घूर्णन गति (Rotatary Motion )
  • घूर्णन गति में कोई वस्तु एक निश्चित अक्ष के 0 ( axis) पर घूमता है। यह अक्ष वस्तु के अन्दर से गुजरती है।
  • घूर्णन गति से वस्तु के भिन्न-भिन्न भागों की रेखीय गति भिन्न-भिन्न होती है। अक्ष के समीप स्थित कण का रेखीय वेग कम कि अक्ष से दूर स्थित कण का रेखीय वेग अधिक होता है । 
  • घूर्णन गति वस्तु के प्रत्येक कण का कोणीय वेग एक समान बना रहता हैं।
  • घूर्णन गति के उदाहरण
    1. बिजली के पंखे का घूमता हुआ ब्लेड
    2. नाचता लट्टू
जड़त्व आघूर्ण (Moment of Inertia)
वस्तु का वह गुण जो उसकी घूर्णन गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करता है, जड़त्व आघूर्ण कहलाता है ।

कोणीय संवेग (Angular Momentum)
घूर्णन गति कर कर किसी वस्तु का कोणीय संवेग = वस्तु का जड़त्व आघूर्ण × कोणीय वेग
      L = Iω
  • कोणीय संवेग का SI मात्रक kgm2/s या Js (जूल - सेकेण्ड ) होता है इसकी विमा (ML2T-1 ) होता है I
  • घूर्णन करती वस्तु के गतिज ऊर्जा तथा कोणीय संवेग में संबंध-

बल-आघूर्ण (Torque)-
किसी वस्तु को किसी अक्ष के परितः घुमाने के लिए बल की आवश्यकता होती है। बल द्वारा किसी वस्तु को अक्ष के परितः घुमाने की प्रवृत्ति को बल-आघूर्ण कहते है ।

अगर वस्तु को XY अज्ञ के परितः घूर्णन करना है तो वस्तु पर F बल आरोपित करना होगा। वस्तु अगर XY अक्ष के d दूरी पर हो तो बल आघूर्ण
L = d × F
बल-आघूर्ण (L) = बल (F) × बाहुभुजा (d)
  • बल-आघूर्ण सदिश राशि है इसका SI मात्रक Nm (न्यूटन - मीटर) है।
  • बाहुभुजा (अक्ष XY से वस्तु की दूरी - d) जितनी अधिक होगी बल-आघूर्ण का मान उतना ही अधिक होगा और घूर्णन गति कराने के लिए समान बल आरोपित कर अधिक बल-आघूर्ण प्राप्त किया जा सकता है जैसे-
    1. घरों में पीसने के काम में आनेवाला जाँता ( Quern) का हत्था कील से दूर लगाया जाता है ताकि कम बल लगाकर जाँता को असानी से घूमाया जा सके।
    2. दरवाजा का हैण्डल हमेशा कब्जे से दूर लगाया जाता है ।
    3. चापाकल के हैण्डल का हत्था लम्बा बनाया जाता है।
    4. कुम्हार के चाक में घुमाने के लिए लकड़ी फँसाने का गड्ढा चाक के परिधि के पास बनाया जाता है।
बल युग्म (Couple)
किसी वस्तु पर दो बराबर किन्तु विपरित दिशाओं में कार्य करने वाले समान्तर बलों को बल युग्म कहते हैं ।
  • बल युग्म के प्रभाव से वस्तु अपने अक्ष के परितः घूर्णन करता है ।

    बल युग्म (Couple) = आरोपित बल (F) × बल युग्म भुजा (L)
  • बल युग्म सदिश राशि है इसका SI मात्रक N. m होता है ।
कोणीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त
अगर क़िसी अक्ष के परितः घूर्णन कर रही वस्तु पर कोई बल आघूर्ण नहीं लगाया जाए तो वस्तु के कोणीय संवेग का मान नियत रहता है । इसे कोणीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त कहते हैं ।
  • कोणीय संवेग संरक्षण के उदाहरण:-
    1. डोरी से बँधी पत्थर को हाथ से पकड़कर घूमाते हैं। यदि हाथ को एकाएक रोक लिया जाए तो डोरी स्वयं हाथ से लिपटती जाती है और पत्थर के टुकड़े का वेग बढ़ता जाता है इसका कारण है पत्थर जैसे-जैसे हाथ के समीप आता है उसका जड़त्व आघूर्ण घट जाता है और कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धान्त के अनुसार कोणीय वेग बढ़ता जाता है।
    2. व्यक्ति हाथ फैलाकर एक घूर्णी मंच (Turn table) पर खड़ा घूम रहा है अगर व्यक्तिं अपना दोनों हाथ अपनी ओर मोड ले तो मंच की गति तेज हो जाती है इसका कारण है कि व्यक्ति के हाथ अपने ओर मोड़ने पर जड़त्व आघूर्ण का मान घट जाता है और कोणीय वेग बढ़ जाता है।
    3. घूर्णन करने वाले disc (चकती) पर जब कोई मच्छड़ बैठता है तो द्रव्यमान बढ़ने से जड़त्व आघूर्ण का मान बढ़ जाता है फलस्वरूप कोणीय वेग घट जाता है।
    4. पृथ्वी जब सूर्य के निकट आता है तो घूर्णन त्रिज्या का मान कम होता है जिससे जड़त्व आघूर्ण का मान घट जाता है और पृथ्वी, का कोणीय वेग बढ़ जाता है।
    5. तैराक पानी में कूदने से पहले अपने हाथ-पाँव मोड़ लेता है ताकि वह अपने जड़त्व आघूर्ण को कम कर सके ऐसा करने पर कोणीय संवेग संरक्षण सिद्धान्त से वह हवा में आसानी से कलैया (loop) ले लेता है क्योंकि उसका कोणीय वेग बढ़ जाता है।
बल का आवेग (Impulse of Force)
  • बल तथा जब तक बल लगता है उस समय अंतराल के गुणफल को बल का आवेग कहते हैं।
  • अगर F बल किसी वस्तु पर t1 से t2 समय तक लगता है तो बल का आवेग = F × (t2−t1
  • आवेग का SI मात्रक kg ms-1 होता है तथा इसकी विमा MLT-1 होता है।
  • बल का आवेग वस्तु के रेखीय संवेग के परिवर्तन के बराबर होता है आवेग = P2 - P1
  • किसी वस्तु पर प्रबल बल अल्प समय तक लगे तो वस्तु का संवेग में काफी परिवर्तन आ सकता है ऐसे बल को आवेगी बल (Impulsive Force) कहते हैं। टक्कर (Collision) एवं विस्फोट (Explosian) के समय उत्पन्न बल आवेगी बल के उदाहरण हैं ।
  • सामान्यतः टक्कर में बहुत कम समय लगता है परंतु वस्तुओं के संवेग में बहुत अधिक परिवर्तन होता है जिसके कारण आवेगी बल का परिमाण बहुत अधिक प्रबल होता है-
    उदा०—
    1. क्रिकेट का खिलाड़ी तेजी से आती हुई गेंद को पकड़ते समय अपने हाथ को थोड़ा पीछे की ओर हटा लेता है। क्योंकि कैच लेने की क्रिया में खिलाड़ी के हाथों में धक्के (बल) का आवेग संवेग परिवर्तन के बराबर होता है। चूँकि आवेग बल × समय–अंतराल अतः खिलाड़ी जिद्दल अधिक समय गेंद को रोकने में लगाऐगा उतना ही उसके हाथों में धक्का कम लगेगा। इसलिए खिलाड़ी गेंद के हाथ में आते ही अपना हाथ पीछे खींचता है और इस प्रकार खिंचता है कि t का मान बढ़ जाए जिससे F का मान कम हो ।
    2. सीमेंट के बने पक्के फर्श की अपेक्षा रेतीले या कच्चे फर्श पर कूदने से कम चोट लगती है क्योंकि कच्चे या रेतीले फर्श पर कूदने से फर्श थोड़ा नीचे धँसता है, जिससे पैर के स्थिर होने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है और समय बढ़ जाने से बल का मान कम हो जाता है। यही कारण है कि ऊँची कूट, कुश्ती के लिए जमीन मुलायम रखी जाती है।
    3. कार में स्प्रिंग और धक्का अवरोधक का उपयोग ऊँची-नीची अथवा टेढ़ी-मेढ़ी सड़कों पर चलते समय लगने वाले झटको को काफी हद तक कम करने के लिए होता है। 
टक्कर (Collision )
  • टक्कर का ऐसा Process है जिसमें दो या दो से अधिक वस्तु आपस में टकराते हैं या फिर परस्पर अन्योन्याक्रिया (mutual interaction) से प्रभावित होकर अपना गति-पथ बदल देते हैं।
  • ऊर्जा के विचार से टक्कर तीन प्रकार के होते हैं-
    1. पूर्णतः प्रत्यास्थ टककर या प्रत्यास्थ टक्कर ( Perfectly elastic or Elastic collision)- यदि टक्कर के पहले और बाद में निकाय की कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहे तो इसे प्रत्यास्थ टक्कर या पूर्णतः प्रत्यास्थ टक्कर कहते हैं।
    2. अप्रत्यास्थ टक्कर ( Inelastic Collision ) - यदि टक्कर में निकाय की कुल गतिज ऊर्जा घट जाती है तो इसे अप्रत्यास्थ टककर कहते हैं।
    3. पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर (Perfectly inelastic Collision)- यदि दो वस्तु टक्करके बाद एक साथ सट जाये तथा एक ही साथ गतिशील हो तो इसे पूर्णतः अप्रत्यास्थ टक्कर कहा जाता है ।
    4. विस्फोटी टक्कर (Explosive Collision)— यदि दो वस्तु की टक्कर के क्रम में उनका कोई विस्फोटक पदार्थ अचानक विस्फोट कर दे तो निकाय की गतिज ऊर्जा अचानक बढ़ जाती है, किंतु निकाय का कुल संवेग हमेशा नियत रहता है । इस प्रकार के टक्कर को विस्फोटी टक्कर कहा जाता है।
NOTE:- टक्कर के सभी प्रकारों में गतिज ऊर्जा अनिवार्यतः अचर नहीं रहती है लेकिन रैखिक संवेग अनिवार्यतः अचर रहता है।

अभ्यास प्रश्न

1. जब कोई कण किसी वृत्त के चारों ओर घूमता है तो वह बल, जो इसे एक समान गति से गतिमान रखता है, कहा जाता है ?
(a) अभिकेन्द्र बल
(b) परमाणिक बल
(c) आंतरिक बल
(d) गुरूत्वाकर्षी बल
2. नियम चाल से एक वृत्त में चलती वस्तु-
(a) त्वरित नहीं होती है
(b) का एक नियत वेग होता है।
(c) का अंदर की ओर त्रैज्य त्वरण होता है
(d) का बाहर की ओर त्रैज्य त्वरण होता है
3. किसी कण का समरूप वृत्तीय गति में होता है-
(a) स्थिर वेग स्थिर त्वरण
(b) परिवर्त्तन शील वेग परिवर्त्तनशील त्वरण
(c) स्थिर वेग परिवर्त्तनशील त्वरण
(d) परिवर्त्तनशील वेग तथा स्थिर त्वरण
4. जब दूध को मथा जाता है तो मक्खन इससे अलग होता है जिस का कारण है-
(a) गुरूत्वीय बल 
(b) घर्षण बल
(c) अभिकेंद्र
(d) संसंजक बल
5. एक साइकिल सवार एक मोड़ पर घूमते समय अंदर की ओर झुक जाता है क्योंकि-
(a) उसे आराम मिलता है I
(b) वह न्यूटन के तीसरे नियम का पालन करता है।
(c) उसे अधिक अभिकेन्द्र बल मिलता है
(d) उसे अपकेंद्र बल के कारण खिंचाव मिलता है।
6. मोड़ के निकट सड़क को ढाल बनाया जाता है जिससे की-
(a) मोटरगाड़ी का भार कम हो
(b) मोटरगाड़ी भीतर की ओर न गीरे
(c) वृत्तीय गति के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र बल उत्पन्न हो
(d) मोटरगाड़ी के पहियों और सड़क के बीच घर्षण बल कम हो
7. एक समान कोणीय वेग से एक वृत्ताकार पथ पर गति करती हुई वस्तु का त्वरण स्थिर रहता है-
(a) सिर्फ परिमाण में
(b) सिर्फ दिशा में
(c) परिमाण और दिशा दोनों में
(d) न तो परिमाण में न तो दिशा में
8. एक मोटरगाड़ी जिसका द्रव्यमान 500 kg है एक मोड़ पर घूमती है । मोड़ की त्रिज्या 60m है। यदि घर्षण गुणांक 0.75 है तो महत्तम चाल कितना होगा जिससे मोटरगाड़ी को मोडा जा सकता है। (g = 9.8m/s2 लें)
(a) 20m/s 
(b) 21m/s
(c) 30m/s 
(d) 32m/s
9. 10m त्रिज्या वाले वृत्ताकार पथ पर नियत वेग से घूमती हुई वस्तु पर IN का बल लग रहा है। वस्तु की गतिज ऊर्जा निकालें-
(a) 10J
(b) 5J
(c) 8J
(d) 0J
10. बल और समय का जब तक बल कार्य करता है, गुणनफल कहा जाता है ?
(a) जड़त्व
(b) त्वरण
(c) आवेग
(d) संवेग
11. एक जेट इंजन कार्य करता है-
(a) द्रव्यमान - संरक्षण के सिद्धान्त पर
(b) ऊर्जा - संरक्षण के सिद्धान्त पर
(c) रैखिक संवेग-संरक्षण के सिद्धान्त पर
(d) कोणीय संवेग - संरक्षण के सिद्धान्त पर
12. द्रव्यमान m तथा वेग v से चलता हुआ वस्तु दीवार से लंबवत टकराता है और टक्कर के बाद उसी वेग से लौटता है। दीवार को दिया गया संवेग है-
(a) mv 
(b) zmv
(c) ½ mv
(d) शून्य
13. 1g और 4g वाले दो गतिमान पिंडों की गतिज ऊर्जा समान है। उनके रैखिक संवेग का अनुपात है-
(a) 4:1 
(b) √2:1
(c) 1:2
(d) 1:16
14. पूर्णतः प्रत्यास्थ टक्कर में 
(a) केवल संवेग संरक्षित रहता है।
(b) संवेग एवं गतिज ऊर्जा दोनों संरक्षित रहते हैं
(c) न संवेग और न गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(d) केवल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है ।
15. समान ताप पर दो बॉल टकराते हैं। संरक्षित भौतिक राशि है-
(a) ताप
(b) वेग
(c) गतिज ऊर्जा
(d) संवेग
16. यदि पृथ्वी के ध्रुवों की बर्फ पिघलकर भूमध्य क्षेत्र में आ जाए, तो दिन-रात की अवधि-
(a ) घट जाएगी
(b) बढ़ जाएगी
(c) 24 घंटे ही रहेगी
(d) अनिश्चित हो जाएगी
17. जब किसी निकाय में क्रियाशील बल-आघूर्ण शून्य हो, तो निम्नलिखित में कौन अचर होगा-
(a) बल
(b) कोणीय संवेग
(c) रैखिक संवेग
(d) रेखीय आवेग
18. यदि घूमते हुए टेबुल पर एक मनुष्य अपना हाथ फैलाकर चक्रणी गति कर रही हो तो जब वह अपने हाथ को झुकाएगा तो उसकी चक्रणी दर (spinning rate) -
(a) घट जाएगी
(b) बढ़ जाएगी
(c) में कोई परिवर्तन नहीं होगा
(d ) शून्य हो जाएगी
19. यदि किसी घूमती हुई वस्तु का जड़त्व आघूर्ण उसके द्रव्यमान के पुनर्वितरण के कारण बढ़ जाता है तो इसका कोणीय वेग-
(a) घट जाता है
(b) बढ़ जाता है
(c) शून्य हो जाता है
(d) अपरिवर्तित रहता है
20. वस्तु की एक समान वृत्तीय गति में त्वरण
(a) त्रिज्या के सीध बाहर की ओर लगता है।
(b) त्रिज्या के सीध में भीतर केन्द्र की ओर लगता है
(c) वृत्तीय पथ की स्पर्शी रेखा की दिशा में लगता है।
(d) इनमें से कोई नहीं
21. वृत्ताकार पथ पर गतिमान यंत्र में एक 'यात्री-
(a) अपकेन्द्र बल का अनुभव करता है
(b) प्रेक्षित करता है कि जमीन पर अन्य लोग अपकेन्द्र बल का अनुभव कर रहे हैं।
(c) अपकेन्द्र बल अनुभव नहीं करता है
(d) सभी कथन सही है
22. वेग और त्वरण की दिशा एक-दूसरे की लम्बवत् होती है-
(a) रेखीय गति में 
(b) गुरूत्वीय गति में
(c) वृत्तीय गति में
(d) इनमें से कोई नहीं
23. वृत्तीय गति करते हुए पिण्ड की चाल और पथ की त्रिज्या दोनों को दुगुणा कर देने पर अभिकेन्द्र बल-
(a) दोगुणा होगा
(b) तिगुणा होगा
(c) चौगुणा होगा
(d) अपरिवर्तित रहेगा
24. पृथ्वी सूर्य के चारों ओर तथा चद्रमा पृथ्वी की चारों ओर घूमता है-
(a) गुरूत्वीय बल के कारण
(b) अभिकेन्द्र बल के कारण
(c) अपकेन्द्र बल के कारण
(d) इनमें से कोई नहीं
25. एक क्षैतिज वृत्त में स्थिर चाल से घूमती हुई वस्तु के लिए नियत रहता है-
(a) वेग
(b) त्वरण
(c) बल
(d) गतिज ऊर्जा
26. एक सरल मशीन 120 kg के प्रयास से 720 kg भार उठा सकता है। मशीन का यांत्रिक लाभ है-
(a) 10
(b) 1/6
(c) 6
(d) 0
27. प्रथम श्रेणी के उत्तोलक का उदाहरण है-
(a) सरौता
(b) कँची
(c) पहिया
(d) मनुष्य का हाथ
28. एफर्ट (Effort) क्या है-
(a) यह एक प्रकार का बल आघूर्ण है।
(b) वह बल जो उत्तोलक पर लगाया जाता है।
(c) यह शक्ति है
(d) यह वजन है
29. किसी स्थिर अक्ष के परितः परिक्रमण कर रही वस्तु में होगी-
(a) वृत्तीय गति
(b) रैखिक गति
(c) घूर्णन गति
(d) A और C दोनों
30. एक धावक लम्बी छलांग लाने से पहले कुछ दूरी तक दौड़ता है, क्योंकि-
(a) दौड़ने से छलांग लगाना आसान हो जाता है
(b) इससे उसका शरीर गर्म हो जाता है
(c) छलांग लगाते समय उसके शरीर की गति जड़ता उसको ज्यादा दूरी तय करने में मदद करती है
(d) छलांग लगाते समय यह फिसलता नहीं
31. किसी व्यक्ति को मुक्त रूप से घूर्णन कर रहे घूर्णी मंच पर अपनी (कोणीय) चाल कम करने के लिए क्या करना चाहिए ? 
(a) अपने हाथ एक साथ मिला लें
(b) अपने हाथ ऊपर उठा लें
(c) अपने हाथ बाहर की तरफ फैला दें
(d) हाथ ऊपर उठाकर बैठ जाए
32. डोरी से बँधे हुए एक पत्थर को तेजी से वृत्त घुमाया जाता है। घुमाते समय अचानक डोरी टूट जाती है, तो
(a) पत्थर स्पर्श रैखिकः उड़ जाता है
(b) पत्थर भीतर की ओर त्रिज्यतः गति करता है
(c) पत्थर बाहर की ओर त्रिज्यतः गति करता है
(d) पत्थर की गति उसके वेग पर निर्भर करती है
33. एक भू–उपग्रह अपने कक्ष में निरंतर गति करता है ? यह अपकेन्द्र बल के प्रभाव से होता है, जो प्राप्त होता है- 
(a) उपग्रह को प्रेरित करनेवाले रॉकेट इंजन से
(b) पृथ्वी द्वारा उपग्रह पर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण से
(c) सूर्य द्वारा उपग्रह पर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण से
(d) उपग्रह द्वारा पृथ्वी पर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण से
34. एक मूस्थिर उपग्रह अपनी कक्षा में निरन्तर गति करता है। यह अपकेन्द्र बल के प्रभाव से होता है, जो प्राप्त होता है-
(a) उपग्रह को प्रेरित करने वाले रॉकेट ईंजन से
(b) पृथ्वी द्वारा उपग्रह पर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण से
(c) सूर्य द्वारा उपग्रह पर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण से
(d) उपग्रह द्वारा पृथ्वी पर लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण से
35. वाशिंग मशीन (Washing Machine) का कार्य सिद्धान्त है-
(a) उपकेन्द्रण
(b) अपोहन 
(c) अपकेन्द्रण
(d) विसरण
36 जब दूध को प्रबल ढंग से मथा जाता है, तो उसमें से क्रीम किस कारण से अलग हो जाती है ?
(a) अपकेन्द्री बल
(b) अभिकेन्द्री बल
(c) गुरुत्व बल
(d) घर्षण बल
37. साइकिल चलाने वाला मोड़ लेते समय क्यों झुकता है ?
(a) साइकिल और आदमी की गति समान होनी चाहिए वरना साइकिल फिसल जाएगी।
(b) वह झुकता है ताकि गुरुत्व केन्द्र आधार के अंदर बना रहे, वह उसे गिरने से बचाएगा।
(c) वह झुकता है, ताकि वक्र मार्ग पर चलने के लिए पहियाँ पर दबाव डाला जा सके।
(d) वह झुकता है, ताकि वक्र को और तेजी से पार कर सके।
38. निम्न में से कौन-सा नियम इस कथन को वैध ठहराता है कि द्रव्य का न तो सृजन किया जा सकता है और न ही विनाश ?
(a) ऊर्जा संरक्षण का नियम
(b) ला शातेलिए का नियम
(c) द्रव्यमान संरक्षण का नियम
(d) परासरण का नियम
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Sun, 28 Apr 2024 06:11:12 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | कार्य, ऊर्जा एवं शक्ति https://m.jaankarirakho.com/1031 https://m.jaankarirakho.com/1031 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | कार्य, ऊर्जा एवं शक्ति

कार्य (Work )

बल और बल की दिशा में तय की गई दूरी के गुणनफल को बल के द्वारा किया गया कार्य कहा जाता है।
  • कार्य = बल x बल के दिशा में तय की गई दूरी [W = FS]
  • कार्य तभी सम्पन्न होता है जब किसी वस्तु पर बल लगे और वह वस्तु विस्थापित हो I
  • कार्य हमेशा बल के द्वारा सम्पन्न होता है, किसी वस्तु के द्वारा नहीं।
  • कार्य अदिश राशि है। इसका SI मात्रक न्यूनटन-मीटर (Nm) है। Nm को ब्रिटेन के वैज्ञानिक-जेम्स जूल के सम्मान में जूल भी कहते हैं।
             1J = 1 Nm
  • एक जूल (1J) कार्य की वह मात्रा है जो एक न्यूटन के बल द्वारा किसी वस्तु को बल की दिशा में 1 m की दूरी विस्थापित होने पर किया जाता है।
  • अनेक स्थितियों में वस्तु की गति उस पर आरोपित बल की दिशा में एक कोण पर होता है। ऐसी स्थिति में कार्य का मापन W = FS सूत्र द्वारा नहीं किया जाता है क्योंकि चली गई दूरी ( S), लगाये गये बल की सही-सही दिशा में नहीं होती है।
  • अगर वस्तु के गति की दिशा और लगाये गये बल की दिशा के बीच Q कोण बनता हो तब कार्य (W) = F cos θ × S
शून्य कार्य (Zero work)
  • बल यदि वस्तु के गति के दिशा से समकोण पर कार्य करता है तो गति की दिशा और बल की दिशा के बीच कोण 90° होता है । इस स्थिति में किया गया कार्य-
    W  = Fcos θ x S
         = F cos 90° x S
  • बल की दिशा एवं वस्तु के गति के दिशा के बीच 90° का कोण बने तो किया गया कार्य शून्य होगा ।
  • शून्य कार्य के उदाहरण-
    1. व्यक्ति अगर क्षैतिज दिशा में कुछ दूरी तक सूटकेस ढोता है तो उनके द्वारा किया गया कार्य शून्य होगा ।
    2. वृत्तीय मार्ग में गतिमान वस्तु पर किया गया कार्य भी शून्य होता है । 
    3. सूर्य की परिक्रमा करती हुई पृथ्वी की स्थिति में किया गया कार्य शून्य होता है और पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए आग्रह की स्थिति में भी किया गया कार्य शून्य होता है। ?
ऋणात्मक कार्य (Negativ Work)
  • बल, यदि वस्तु की गति की दिशा के विपरित कार्य करता है तो गति की दिशा और बल की दिशा के बीच 180° का कोण बनता है । ऐसी स्थिति में किया गया कार्य-
    W = F cos θ x S
    = F cos 180° x S
    = - FS
  • बल की दिशा एवं वस्तु की गति की दिशा के बीच 180° का कोण बने तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है I
    उदा.-
    1. घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है ।
    2. किसी वस्तु को अलग सीधे उपर फेंका जाए तो पृथ्वी के गुरुत्व बल द्वारा किया गया कार्य ऋणात्मक होता है ।
NOTE:- 
  1. किया गया कार्य धनात्मक होता है जब बल वस्तु के गति के दिशा में काम करता है।
  2. किया गया कार्य ऋणात्मक होता है जब बल वस्तु के गति के दिशा के विपरित कार्य करता है ।
  3. किया गया कार्य शून्य होता है जब बल वस्तु के गति की दिशा से समकोण पर कार्य करता है ।
ऊर्जा (Energy) :
  • कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं I
  • ऊर्जा का SI मात्रक वही होता है जो कार्य का SI मात्रक है। यानि ऊर्जा का SI मात्रक भी जूल (J) है । 
  • कार्य की तरह ऊर्जा भी अदिश राशि है ।
  • किसी वस्तु को अपनी गति के कारण जो ऊर्जा होती है उसे Kinetic Energy (गतिज ऊर्जा) कहते हैं। किसी वस्तु को उस की स्थिति या आकृति के कारण जो ऊर्जा होती है उसे Potential Energy ( स्थितिज ऊर्जा) कहते हैं।
  • गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा के योग को Mechanical Energy (यांत्रिक ऊर्जा) कहते हैं ।
  • गतिज ऊर्जा (Ek) = ½mv2
    m = वस्तु का द्रव्यमान
    v = वस्तु के वेग
  • गतिज ऊर्जा वस्तु के द्रव्मान तथा उसकी चाल के धर्म का समानुपाती होता है। यदि वस्तु का द्रव्यमान दुगुणा कर दे तो गतिज ऊर्जा भी दुगुणी होंगी लेकिन उसकी चाल समान होनी चाहिए।
  • यदि वस्तु की चाल दुगुणी जाए गतिवा ऊर्जा, चौगुणी हो जाएगी।
  • गतिज ऊर्जा के उदाहरण-
    1. बंदूक से छोड़ी गई गोली
    2. धनुष से छोड़ा गया तीर
    3. गतिमान हथौड़ा
    4. गिरती वर्षा का बूँद
    5. बहती हवा
    6. नाचना लट्टू
    7. जल विद्युत शक्ति स्टेशन पर गिरती जल के गतिज ऊर्जा का इस्तेमाल विद्युत उत्पन्न करने में किया जाता है।
स्थितिज ऊर्जा (EP)
अगर m द्रव्यमान की वस्तु पृथ्वी तल से h ऊँचाई तक उठाया गया है तो वस्तु पर पृथ्वी का गुरूत्व बल mg नीचे की ओर लगता है । अतः गुरुत्व बल के विरूद्ध किया गया कार्य
W = बल x दूरी
    = mg x h
    = mgh
यह कार्य वस्तु और पृथ्वी के निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है अतः
स्थितिज ऊर्जा (EP) = mgh 
  • EP को गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा भी कहा जाता है। 
  • किसी वस्तु की स्थितिज ऊर्जा उस वस्तु के ऊँचाई और उसके द्रव्यमान पर निर्भर करती है।
  • स्थितिज ऊर्जा के उदाहरण-
    1. पहाड़ी पर स्थित जलाशय के पानी में स्थितिज ऊर्जा होती है।
    2. मकान के छत पर रखी ईट
    3. लपेटी हुई कमानी
    4. धनुष की तनी हुई डोरी
    5. गुलेल में खींची हुई रबड़ पट्टी की स्थितिज ऊर्जा का इस्तेमाल पत्थर फेंकने में किया जाता है।
गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा
  1. गतिज ऊर्जा गति के कारण कार्य करने की क्षमता है, जबकि स्थितिज ऊर्जा संरूपण के कारण कार्य करने की क्षमता है।
  2. स्थितिज ऊर्जा गुप्त रूप में संचित ऊर्जा है, जबकि गतिज ऊर्जा संचित ऊर्जा नहीं है ।
  3. स्थितिज ऊर्जा आपेक्षिक है, जबकि गतिज ऊर्जा आपेक्षिक नहीं है।
ऊर्जा का रूपांतरण
ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में बदली जा सकती है, इसके उदाहरण निम्न हैं:-
  1. माचिस की तीली जलता है तो रसायनिक ऊर्जा का रूपांतरण प्रकाश एवं उष्मा ऊर्जा में होता है ।
  2. Termo-couple (ताप - वैद्युत युग्म) में उष्मा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा में होता है ।
  3. विद्युत-चुंबक में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतरण चुबंकीय ऊर्जा में होता है ।
  4. टेलीफोन अथवा विद्युत - घंटी में विद्युतीय ऊर्जा का रूपांतरण ध्वनि-ऊर्जा में होता है ।
  5. डायनेमो अथवा टरबाइन में यांत्रिक ऊर्जा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा में होता है।
  6. विद्युत पंखा में विद्युत ऊर्जा का रूपांतरण यांत्रिक ऊर्जा में होता हैं।
  7. विद्युत के बल्व में विद्युत ऊर्जा का रूपांतरण प्रकाश एवं उष्मा ऊर्जा में होता है।
  8. बिजली के हीटर में विद्युत ऊर्जा का रूपांतरण उष्मा ऊर्जा में होता है।
  9. संचायक सेल में रसायनिक ऊर्जा का रूपांतरण विद्युत ऊर्जा में होता है।
  10. Electrolysis में विद्युत ऊर्जा का रूपांतरण रसायनिक ऊर्जा में होता है।
  11. ईधन के जलने पर रसायनिक ऊर्जा का रूपांतरण उष्मा ऊर्जा में होता है।
  12. फोटोग्राफी प्लेट पर प्रकाश की रसायनिक प्रतिक्रिया में प्रकाश का रूपांतरण रसायनिक ऊर्जा में होता है।
  13. श्वेत तप्त धातु के पिंड में उष्मा का रूपांतरण प्रकाश में होता है ।
  14. भाप इंजन में उष्मा का रूपांतरण गतिज ऊर्जा में होता है ।
  15. घूमते हुए पहिए में ब्रेक लगाने पर गतिज ऊर्जा का रूपांतरण उष्मा ऊर्जा में होता है।
  16. गुरूत्व के अधीन गिरती हुई वस्तु का स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में रूपांतरित होती है ।
  17. किसी वस्तु को फेंकने पर पेशीय ऊर्जा का रूपांतरण गतिज ऊर्जा में होता है।
  18. पृथ्वी पर से कोई वस्तु को उठाने पर पेशीय ऊर्जा का रूपांतरण स्थितिज ऊर्जा में होता है ।
  19. रेडियो में विद्युत ऊर्जा का रूपांतर ध्वनि ऊर्जा में होता है।
  20. सौर सेल (Solar Cell) प्रकाश ऊर्जा का रूपांतर वैद्युत ऊर्जा में करता है ।
  21. सौर जल ऊष्मक (Solar Water Heater) प्रकाश ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में रूपांतरित करता है ।
  22. गैस स्टोव, कुकिंग गैस (LPG) के रसायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करता है I
शक्ति (Power)
प्रति इकाई समय में किये गये कार्य को शक्ति कहते हैं अर्थात् शक्ति कार्य करने की दर है ।

ऊर्जा और शक्ति में अंतर
  1. ऊर्जा कार्य करने की क्षमता है जबकि शक्ति कार्य करने की समय-दर है ।
  2. ऊर्जा कार्य सम्पन्न में लगे समय पर निर्भर नहीं करता है।
  3. ऊर्जा का SI मात्रक जूल है जबकि शक्ति का SI मात्रक वाट है।
औसत शक्ति (Average Power) :

  • द्रव्यमान ऊर्जा संबंध
    आइंस स्टाइन के अनुसार द्रव्यमान का ऊर्जा में तथा ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है।
    अगर m द्रव्यमान पूर्ण रूप से ऊर्जा में परिणत हो जाए तो परिवर्तित ऊर्जा (E)-
    E = mc2
    C = निर्वात में प्रकाश की चाल
    इस सूत्र के अनुसार अगर | gram द्रव्यमान ऊर्जा में परिणत होता है तो कुल 9 x 1013] ऊर्जा उत्पन्न होगी।
 ऊर्जा - संरक्षण के सिद्धान्त :
  • ऊर्जा संरक्षण नियम यह बताता है कि ऊर्जा को न तो उत्पन्न की जा सकती है न ही नष्ट, किंतु ऊर्जा का एक रूप से रूपांतरण हो सकता है I
  • गुरुत्व के अधीन मुक्त में रूप में गिर रही वस्तु ऊर्जा संरक्षण नियम का पालन करता है ।

अभ्यास प्रश्न

1. यदि 2500 कार्य करने में किसी मशीन को 5 see का समय लगता है तो उसकी शक्ति होगी ?
(a) 250 W
(b) 125 KW
(c) 0.5 W
(d) 0.5 KW
2. किसी वस्तु के रविंग को तिगुणा करने से उसकी गतिज ऊर्जा होगी-
(a) दुगुणी
(b) चौगुणी
(c) नौगुणी
(d) तिगुणी
3. 20 kg के लोहे के गोला को तथा 10 kg के ऐलुमीनियम के गोला को किसी मीनार पर से गिराया गया। जब गोला पृथ्वी से 10m ऊपर है तो उनका-
(a) त्वरण समान होगा
(b) संवेग समान होगा
(c) स्थितिज ऊर्जा समान होगा
(d) गतिज ऊर्जा समान होगा
4. 1 kg की वस्तु की गतिज ऊर्जा | तब होगी जब इसकी चाल होगा-
(a) 45m/s
(b) 1m/s
(c) 1.4m/s
(d) 4.4 m/s
5. किसी गतिशील पिंड का वेग आधा करने से उसकी गतिज ऊर्जा होगी-
(a) आधी
(b) दोगुणी
(c) चौगुणी
(d) चौथाई
6. 1 न्यूटन मीटर बराबर है-
(a) 1 वाट का
(b) 1 जूल का
(c) 1 न्यूटन का
(d) 1 मीटर सेकंड का
7. संपीड़ित कमानी (Compressed Spring) में धारित ऊर्जा है-
(a) गतिज
(b) स्थितिज
(c) ध्वनि
(d) इनमें से कोई नहीं
8. किसी पहाड़ी पर चढ़ती कार में होती है-
(a) केवल स्थितिज ऊर्जा
(b) केवल गतिज ऊर्जा
(c) गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा दोनों
(d) न तो गतिज ऊर्जा न ही रथीतिज ऊर्जा
9. जब कोई वस्तु मुक्त रूप से कुछ ऊँचाई से गिरता है, तब वस्तु की कुल ऊर्जा-
(a) बढ़ती जाती है।
(b) घटती जाती है
(c) पहले बढ़ती हैं, फिर घटती है
(d) अपरिवर्तित रहती है
10. जब किसी वस्तु को ऊपर की ओर फेंका जाता है तब वह जैसे-जैसे ऊपर की ओर जाती है-
(a) उसकी गतिज ऊर्जा में कमी होती है
(b) उसकी गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है।
(c) उसकी स्थितिज ऊर्जा में कमी होती हैं।
(d) किसी प्रकार के ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
11. ऊपर से नीचे की ओर गिरते पिंड में कौन-सी ऊर्जा होती है-
(a) केवल गतिज ऊर्जा
(b) केवल स्थितिज ऊर्जा
(c) गतिज तथा स्थितिज ऊर्जा दोनों
(d) कोई ऊर्जा नहीं होती है
12. ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर गिरने के क्रम में किसी पिंड के ऊर्जा का रूपांतरण होता है-
(a) गतिज ऊर्जा का स्थितिज ऊर्जा में
(b) स्थितिज ऊर्जा का गतिज ऊर्जा में
(c) स्थितिज ऊर्जा का विद्युत ऊर्जा में
(d) ऊर्जा का रूपांतरण नहीं होता है।
13. जब पृथ्वी तल से किसी वस्तु की ऊर्जा दुगुणी कर दी जाए तो उसकी स्थितिज ऊर्जा हो जाती है-
(a) एक-चौथाई
(b) आधी
(c) दुगुणी
(d) चौगुणी
14. यदि दो व्यक्ति अलग-अलग 5 kg की दो वस्तु को 30m की ऊँचाई पर क्रमश: 2 तथा 4 मीनट में ले जाते हैं, तो वस्तु पर किया गया कार्य-
(a) दोनों व्यक्ति द्वारा समान होगा
(b) पहले व्यक्ति द्वारा अधिक होगा
(c) दूसरे व्यक्ति द्वारा अधिक होगा
(d) संभवतः दोनों व्यक्ति द्वारा शून्य होगा
15. घर्षण बल द्वारा किया गया कार्य सदा होता है- 
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक 
(c) शून्य 
(d) इनमें से कोई नहीं
16. वृत्तीय पथ पर घूमती हुई वस्तु के विस्थापन में अभिकेन्द्र बल s द्वारा किया गया कार्य होगा-
(a) ऋणात्मक
(b) धनात्मक
(c) शून्य
(d) इनमें से कोई नहीं
17. 20 kg के वजन को जमीन के ऊपर 1 मी० की ऊँचाई पर पकड़े रखने के लिए किया गया कार्य है- 
(a) 20 जूल
(b) 200 जूल
(c) 981 जूल
(d) शून्य जूल
18. एक व्यक्ति एक दीवार को धक्का देता है, पर उसे विस्थापित करने में असफल रहता है, तो वह करता है- 
(a) कोई भी कार्य नहीं
(b) ऋणात्मक कार्य
(c) धनात्मक परन्तु अधिकतम कार्य नहीं
(d) अधिकतम कार्य
19. सूर्य की ऊर्जा उत्पन्न होती है-
(a) आयनन द्वारा 
(d) ऑक्सीजन द्वारा
(c) नाभिकीय विखण्डन द्वारा
(b) नाभिकीय संलयन
20. डायनेमो परिवर्तित करता है- 
(a) उच्च वोल्टेज को निम्न वोल्टेज में
(b) विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में
(c) यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत कर्जा में
(d) निम्न वोल्टेज को उच्च वोल्टेज में
21. प्रकाश वोल्टीय सेल के प्रयोग से सौर ऊर्जा का रूपान्तरण करने से निम्न में से किसका उत्पादन होता है ? 
(a) प्रकाशीय ऊर्जा 
(b) विद्युत ऊर्जा
(c) ऊष्मीय ऊर्जा
(d) यांत्रिक ऊर्जा 
22. जब हम रबड़ के गद्दे वाले सीट पर बैठते हैं या गद्दे पर लेटते हैं तो उसका आकार परिवर्तित हो जाता है। ऐसे पदार्थ में पाया जाता है-
(a) गतिज ऊर्जा
(b) स्थितिज ऊर्जा
(c) संचित ऊर्जा
(d) विखण्डन ऊर्जा 
23. निम्नलिखित में से किसमें गतिज ऊर्जा नहीं है ? 
(a) चली हुई गोली
(b) बहता हुआ पानी
(c) चलता हथौड़ा
(d) खींचा हुआ धनुष
24. जब एक चल वस्तु की गति दुगुनी हो जाती है तो उसकी गतिज ऊर्जा-
(a) दुगुनी हो जाती है
(b) चौगुनी हो जाती है
(c) समान रहती है
(d) तीन गुनी बढ़ जाती है। 
25. सीढ़ी पर चढ़ने में अधिक ऊर्जा खर्च होती है, क्योंकि- 
(a) व्यक्ति गुरूत्वाकर्षण के विरुद्ध कार्य करता है।
(b) व्यक्ति गुरुत्व के विरूद्ध कार्य करता है ।
(c) व्यक्ति गुरूत्व की दिशा में कार्य करता है।
(d) व्यक्ति कोई कार्य ही नहीं करता
26. निम्नलिखित में से कौन-सा नियम इस कथन को वैध ठहराता है कि द्रव्य का न तो सृजन किया जा सकता है और न ही विनाश ?
(a) ऊर्जा संरक्षण का नियम
(b) ला शातेलिए का नियम
(c) द्रव्यमान संरक्षण का नियम
(d) परासरण का नियम
27. एक कण का द्रव्यमान m तथा संवेग p हैं। इसकी गतिज ऊर्जा होगी-
(a) mp
(b) p2m
(c) p2/m
(d) p2/2m
28. स्वचालित कलाई घड़ियों में ऊर्जा मिलती है-
(a) करचल ऐंठन से 
(b) बैटरी से
(c) द्रव क्रिस्टल से
(d) हमारे हाथ के विभिन्न संचालन से
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Sun, 28 Apr 2024 05:21:53 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | प्रक्षेप्य गति https://m.jaankarirakho.com/1030 https://m.jaankarirakho.com/1030 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | प्रक्षेप्य गति
  • जब किसी वस्तु को जमीन के सतह से कुछ ऊँचाई पर से क्षैतिज दिशा (जमीन के सतह के सामान्तर) में फेंका जाता है तब उस वस्तु को को प्रक्षेप्य (Projectile ) कहते हैं । और वस्तु के गति को प्रक्षेप्य गति कहते हैं ।

  • प्रक्षेप्य गति के उदारहणः-
    1. चलती रेलगाड़ी की खिड़की से किसी वस्तु को गिराना ।
    2. चलते हुए हवाई जहाज से बम गिराना
    3. राइफल से गोली को छोड़ना
    4. किसी भी दिशा में पत्थर के टुकड़े को फेंकना
    5. खिलाड़ी द्वारा भाला को फेंकना
    6. पानी के टंकी के आधार के समीप वाले छेद से तेज रफ्तार से पानी का निकालना ।
  • अगर किसी वस्तु को क्षैतिज तल से θ कोण पर u वेग से फेंका जाए तो प्रारंभिक वेग u दो भागों में बॅट जाता है- क्षैतिज दिशा में वेग - u cos θ होता है तथा ऊर्ध्वाधर दिशा में वेग - u sin θ होता है-

  • ऊपर की ओर की गति u sin θ गुरुत्व बल के विपरित रहता है परन्तु क्षैतिज दिशा की गति u cos θ पर गुरूत्वीय बल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है ।
  • यदि वस्तु अपने पथ से उच्चतम स्थान P तक पहुँचने पर t समय लेता है, तो, गति समीकरण

अब वस्तु जितना समय (t) - O से P पहुँचने से लेता है उतना ही समय P से B पर पहुँचने में लेगा
अतः उड़ान काल (Time of Flight) = 2t 

       

वस्तु द्वारा क्षैतिज दिशा में O से B तक की दूरी को परास कहते हैं जिसे R से सूचित किया जाता है।

परास का मान θ तथा प्रक्षेपण कोण θ पर निर्भर करता है I यदि θ = 45° हो तो

अतः वस्तु महत्तम परास तब प्राप्त करेगा जब वस्तु को 45° कोण से फेंका जाए।

लंबी कूद भाला फेंक में महत्तम परास की जरूरत होती है इसलिए इसमें फेकें जाने वाली वस्तु 45° के कोण बनाकर फेंका जाता है। 

वस्तु का महत्तम ऊँचाई (H)-

H का मान महत्तम त होगा जब sinθ का मान महत्तम हो। अगर sinθ का मान 90° है तो sinθ = 1 होगा। 1 sin θ का महत्तम मान है।

अतः कोई वस्तु महत्तम ऊँचाई तब प्राप्त करेगा जब वस्तु को 90° के कोण से फेंका जाए ।

NOTE: प्रक्षेप्य गति में जितने भी समीकरण प्राप्त हुए हैं उनके लिए यह मान लिया गया है कि-
  1. पृथ्वी चपटी है।
  2. पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण प्रत्येक ऊँचाई पर समान है।
  3. वायु के कारण घर्षण नगण्य है ।

अभ्यास प्रश्न

1. किसी नियत प्रक्षेपण वेग के लिए पिड का परास अधिकतम तब होता है जब उसे प्रक्षेपित किया जाता है क्षैतिज तल से
(a) 30° के कोण पर
(b) 45° के कोण पर
(c) 60° के कोण पर
(d) 90° के कोण पर
2. क्षैतिजतः कुछ ऊँचाई पर जाते हुए एक बमबर्षक को पृथ्वी पर किसी लक्ष्य पर बम मारने के लिए उसे बम तब गिराना चाहिए-
(a) लक्ष्य के ठीक ऊपर है
(b) लक्ष्य से आगे निकल जाता है
(c) लक्ष्य के पीछे से
(d) इनमें तीनों सही है।
3. प्रक्षेप्य पथ का आकार होता है-
(a) सरलरेखीय
(b) वृत्ताकार 
(c) परवलयकार
(d) वक्र रेखीय
4. एक लड़का गेंद को 100m उर्ध्वाधर ऊपर की ओर फेंक सकता है, तो वह गेंद को कितनी अधिकतम क्षैतिज दूरी तक फेंक सकता है-
(a) 150m
(b) 200m
(c) 100 m
(d) 75m
5. तोप का एक गोला 1 km/sec के वेग से क्षैतिज तल के साथ 30° का कोण बनाता हुआ छोड़ा जाता है तो गोला उच्चतम बिंदु पर पहुँचने में कितना समय लेगा (g = 10m/sec2 ले)
(a) 51.02 sec
(b) 50 sec
(c ) 25 sec 
(d) 8 sec
6. तोप का एक गोला 2 km/sec के वेग से क्षैतिज तल के साथ 45° को कोण बनाकर छोड़ा जाता है तो गोला तपे से कितनी दूरी पर पृथ्वी से टकरायेगा । (g = 10m / sec2 ले)
(a) 4 × 105
(b) 4 × 106
(c) 4000 m 
(d) 5 ×105
7. एक शिकारी वृक्ष पर लटके एक बंदर के सिर को लक्ष्य करके गोली चलाता है, गोली चलाते ही बंदर कूद जाता है, वैसी दशा में गोली-
(a) बंदर के सिर में छेद कर देगी
(b) बंदर के सिर के ऊपर चली जाएगी
(c) बंदर के सिर के नीचे चली जाएगी
(d) बंदर के सिर को छेद भी सकती है और नहीं भी
8. किसी मकान की छत से एक गेंद गिरायी जाती है और उसी समय एक दूसरी गेंद क्षैतिजतः फेकी जाती है। कौन-सी गेंद जमीन पर पहले गिरेगी-
(a) क्षैतिज फेकी गेंद पहले गिरेगी
(b) पहला गेंद पहले गिरेगी
(c) दोनों गेंद जमीन पर एक साथ गिरेगी
(d) इनमें कोई नहीं
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Sun, 28 Apr 2024 04:59:33 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | घर्षण https://m.jaankarirakho.com/1029 https://m.jaankarirakho.com/1029 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | घर्षण
घर्षण (Friction)
जब कभी कोई वस्तु किसी दूसरी सतह पर सरकती है या लुढ़कती है या चलने की चेष्टा करती है तो स्पर्श में आने वाली सतह के बीच एक बल लगता है जो वस्तु के गति का विरोध करता है। यही विरोधी बल घर्षण बल कहलाता है।
  • घर्षण एक प्रकार का बल है जो हमेशा गति के विपरित दिशा में कार्य करता है। 
  • घर्षण बल सतह के खुरदरेपन पर निर्भर करता है जो सतह जितना खुरदुरी होगी उसमें उतना अधिक घर्षण होगा। ऐसा कोई सतह नहीं है जो पूर्णत: घर्षण रहित हो।
घर्षण की उत्पत्ति
  • ऐसा माना जाता है कि घर्षण की उत्पत्ति आणविक बलों के कारण होता है। जब दो सतह एक-दूसरे के संपर्क में आता है तो दोनों सतह के अणुओं के बीच आकर्षण बल लगाता है जिसके कारण दोनों सतह आपस में चिपक जाते हैं। जब एक वस्तु दूसरे पर सस्कती है तो बल लगाना आवश्यक हो जाता है क्योंकि दोनों सतह आणविक आकर्षण के कारण चिपका रहता है। अतः घर्षण एक प्रकार का आणविक आकर्षण है।
सर्पी घर्षण (Sliding Friction )
  • जब कोई वस्तु किसी सतह पर खिसकने की रहती है, तो उस स्थिति में गति के दिशा के विपरित जो घर्षण बल लगता है उसे सर्पी घर्षण कहते हैं।
लोटनीक घर्षण

जब वस्तु की गति लुढ़ककर या लोटन करके होती है तो उस स्थिति में गति की दिशा के विपरित जो घर्षण बल लगता है उसे लोटनीक घर्षण कहते हैं।

XY सतह पर M एक वस्तु है। M वस्तु पर उसका भार W नीचे की ओर लगता है तथा संपर्क सतह XY की प्रतिक्रिया R ऊपर की ओर लगता है। R तथा W एक दूसरे के बराबर और विपरित दिशा में लगता है जिसके कारण वस्तु संतुलन के अवस्था में है।

  • स्थिर घर्षण (Static Friction) : जब M वस्तु पर P बल लगता है तो वस्तु खिसकता नहीं है क्योंकि P के विपरित दिशा में एक घर्षण बल F लगता है। इसी घर्षण बल को स्थिर घर्षण कहते हैं।
  • सीमांत घर्षण (Limiting Friction) : अगर M वस्तु पर लगने वाले बल P का मान बढ़ाते हैं तो एक समय ऐसा आता है कि वस्तु खिसकने - खिसकने को हो जाता है। ऐसी स्थिति में P का मान विपरित दिशा में लगने वाले बल F के बराबर हो जाता है। F के इसी महत्तम मान को सीमांत घर्षण कहते हैं।
  • गतिज घर्षण (Dynamic or Kinetic Friction) : सीमांत घर्षण के बराबर बल लगाने बल पर वस्तु खिसकने - खिसकने को हो जाता है। अब वस्तु को गति में लाने हेतु सीमांत घर्षण के मान से कम मान के बल की आवश्यकता होती है । घर्षण बल के इस मान को गतिज घर्षण कहते हैं।
Note :- गतिज घर्षण का मान सीमांत घर्षण से कम होता है।

घर्षण के नियम :

  1. घर्षण बल की दिशा हमेशा वस्तु को चलाने वाले बल के विपरित होती है।
  2. किन्हीं दो सतहों के बीच घर्षण बल का मान वस्तु पर सतह की अभिलंब प्रतिक्रिया के मान के समानुपाती होता है। 
                 F ∝ R

    μ एक प्रकार का नियतांक है जिसे घर्षण गुणांक कहते हैं।
  3. घर्षण गुणांक (μ) का मान सतह के प्रकृति पर निर्भर करता है।
  4. यदि सतहों के बीच लगने वाले अभिलंब प्रतिक्रिया बल स्थिर हो, तो घर्षण बल संस्पर्श सतह के आकार या क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं 'करता है।
घर्षण गुणांक (Coefficient of Friction )
दो सतहों के बीच सीमांत घर्षण बल (F) का मान उनके बीच अभिलंब प्रतिक्रिया (R) के मान के समानुपाती होता है-
        F ∝ R
        F = μR
μ को घर्षण गुणांक या सीमांत घर्षण गुणांक कहते हैं ।
  • अगर दो सतहों के बीच गतिज घर्षण Fk हो तो गतिज घर्षण गुणांक = μk = Fk/Rहोगा ।
  • सीमांत घर्षण गुणांक का मान गति घर्षण गुणांक के मान से अधिक होता है क्योंकि सीमांत घर्षण का मान गतिज घर्षण के मान से अधिक होता है।
  • सीमांत घर्षण गुणांक तथा गतिज घर्षण गुणांक दोनों को मान सामान्यतः 1 से कम होता है ।
  • घर्षण गुणांक का कोई मात्रक या बीमा नहीं होती है क्योंकि घर्षण गुणांक एक ही प्रकार के राशि का अनुपात है।
घर्षण कोण (Angle of Friction)

दो सतहों के बीच के सीमांत घर्षण F और अभिलंब प्रतिक्रिया R के संयोजन से परिणामी प्रतिक्रिया R' प्राप्त होता है। R' तथा R के बीच λ कोण बनता है। इसी कोण को घर्षण कोण कहते हैं ।

विराम कोण (Angle of Repose)

आनत सतह (Inclined plane) पर स्थित वस्तु का वह अधिकतम कोण जिस पर वस्तु संतुलित अवस्था में रहता है तथा कोण का मान बढ़ाने पर वस्तु आनत तल पर गति करने लगता है, विराम कोण कहलाता है ।
M द्रव्यमान की वस्तु आनत तल पर है तथा विराम कोण θ के बराबर है। इस स्थिति वस्तु का भार W ठीक नीचे की ओर लगता है | W का एक घटक W cosθ AB के लम्बवत है जो अभिलम्ब प्रतिक्रिया R को संतुलित करता है। W का दूसरा घटक Wsine है जो वस्तु को खिसकाने की चेष्टा करता है तथा सीमांत घर्षण बल के द्वारा संतुलित होता है।

घर्षण कोण की परिभाषा से μ = tanλ तथा विराम कोण की परिभाषा से μ = tanθ
     अतः tanλ = tanθ
      या        λ = θ
अतः सीमांत संतुलन की स्थिति में घर्षण कोण तथा विराम कोण का मान बराबर होता है-
अगर-
  1. θ = λ तो वस्तु संतुलन की स्थिति में होगी ।
  2. θ = λ तो वस्तु चरम घर्षण की स्थिति में होगी ।
  3. θ > λ तो वस्तु को त्वरित गति होगी ।
तरल घर्षण (Fluid Friction)
जब कोई वस्तु किसी तरल (गैस या द्रव) में गतिशील रहता है तो वह सामने के तरल को बगल में विस्थापित कर देता है। तरल का कुछ भाग वस्तु को आगे बढ़ाता है। इससे तरल को तो गति प्राप्त होता है परन्तु वस्तु की गतिज ऊर्जा घट जाती है। ऊर्जा की यह कमी वस्तु पर अवरोधक बल उत्पन्न करता है। यह बल तरल घर्षण कहलाता है।
  • तरल घर्षण वस्तु के आकार तथा Shape पर निर्भर करता है। अधिक अनुप्रस्थ काट (Area of Cross Section) वाले वस्तु पर तरल घर्षण अधिक होता है। धारा रेखीय रूप ( Stream line shape) वाले पिण्ड पर तरल घर्षण कम होता है।
  • तरल घर्षण तरल के घनत्व पर भी निर्भर करता है पानी के अपेक्षा हवा में घर्षण कम होता है।
  • वस्तु का वेग भी तरल घर्षण को प्रभावित करता है। कम वेग होने पर घर्षण बल वेग के समानुपाती होता है। अधिक वेग पर घर्षण वेग के वर्ग के समानुपाती होता है। जब वेग ध्वनि के वेग के बराबर हो तो घर्षण वेग के घन के समानुपाती होता है ।
घर्षण कम करने के उपाय-
  1. रूखड़ी सतह को चिकना करके घर्षण को कम किया जा सकता है ।
  2. रूखड़े सतहों के बीच ग्रीज या तेल डालने से घर्षण बहुत कम हो जाता है। इस क्रिया को स्नेहन (Lubrication) कहते हैं।
  3. सतहों पर ऑक्साइड के परत बना देने पर घर्षण का मान कम हो जाता है।
  4. महीन पाउडर डालने से सम्पर्क सतहों के बीच घर्षण घट जाता है ।
  5. गाड़ी के पहिए में घर्षण घटाने हेतु वॉल वेयरिंग का उपयोग होता है।
  6. मोटरगाड़ी, विमान का आकार धारा रेखीय बनाया जाता है ताकि वायुघर्षण कम हो।
  7. घर्षण कम करने हेतु ग्रेफाइट या काला शीशा का भी इस्तेमाल होता है। 
दैनिक जीवन में घर्षण का महत्व
  1. घर्षण न हो तो हम न तो खड़े हो सकते हैं न ही किसी वस्तु को पकड़ सकते हैं। 
  2. घर्षण के कारण ही हम पृथ्वी पर चल सकते हैं ।
  3. घर्षण के बिना इंजन गाड़ी को नहीं खींच पाता।
  4. घर्षण से लाभ तथा हानि दोनों है। इस कारण घर्षण को आवश्यक दोष माना जाता है।

अभ्यास प्रश्न

1. लोटनीक, स्थैतिक तथा सर्पी घर्षण के कारण बलों को व्यवस्थित किया जाए तो सही व्यवस्था होगी-
(a) लोटनीक, स्थैतिक, सर्पी
(b) लोटनीक, सर्पी, स्थैतिक
(c) स्थैतिक, सर्पी, लोटनीक
(d) सर्पी, स्थैतिक, लोटनीक
2. एक खिलौना कार को संगमरमर के सूखे फर्श, संगमरमर के गीले फर्श, फर्श पर बीछे समाचार पत्र तथा तौलिया पर चलाया जाता है। कार पर विभिन्न पृष्ठों द्वारा लगे घर्षण बल का बढ़ता क्रम होगा-
(a) सगमरमर का गीला फर्श, संगमरमर का सुखा फर्श, समाचार पत्र, तौलिया
(b) समाचार पत्र, तौलिया, संगमरमर का सुखा फर्श, संगमरमर I का गीला फर्श
(c) तौलिया, समाचार पत्र, संगमरमर का सुखा फर्श, संगमरमर का गीला फर्श
(d) संगमरमर का गीला फर्श, संगमरमर का सुखा फर्श, तौलिया, समाचार पत्र
3. स्थैतिक घर्षण होता है-
(a) सर्पी घर्षण से अधिक
(b) सर्पी घर्षण से कम
(c) सर्पी घर्षण के बराबर  
(d) इनमें से कोई नहीं
4. घर्षण बढ़ाने का एक उपाय है-
(a) पॉलिश करना
(b) धारा रेखीय आकृति बनाना
(c) रूखड़ा करना
(d) स्नेहक का प्रयोग करना
5. घर्षण है-
(a) शत्रु
(b) मित्र
(c) शत्रु एवं मित्र दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
6. यदि सभी पदार्थ केवल न्यूट्रॉन जैसे विद्युतीय उदासीन कणों से मिलकर बना होता, तब-
(a ) घर्षण का अस्तित्व नहीं रहता
(b) डोरी से तनाव नहीं होता
(c) स्प्रिंग बल का अस्तित्व नहीं होता
(d) सभी कथन सही है ।
7. घर्षण बल लगता है आपेक्षिक गति के-
(a) दिशा में
(b) दिशा के विपरित
(c) दिशा के लंबवत
(d) दिशा के साथ किसी भी कोण पर
8. चरम घर्षण, स्थिर घर्षण पर-
(a) न्यूनतम मान है
(b) महत्तम मान है
(c) दुगुणा है
(d) आधा है
9. घर्षण गुणांक
(a) एक विमाहीन राशि है
(b) की विमा MLT-2 है 
(c) दो संपर्क सतह के बीच लगने वाला घर्षण बल है
(d) इनमें कोई नहीं
10. 100 kg द्रव्यमान की एक वस्तु को खींचने के लिए 4kg -wt बल की आवश्यकता होती है। वस्तु औरसतह के बीच घर्षण गुणांक है-
(a) 0.1
(b) 0.01
(c) 0.04
(d) 0.04 M
11. यदि अभिलंब बल दुगुणा कर दिया जाए तो घर्षण गुणांक -
(a) दुगुणा हो जाएगा
(b) चौगुणा हो जाएगा
(c) समान रहेगा
(d) आधा हो जाएगा
12. एक आनत तल का झुकाव कोण 30° होने पर उस पर स्थित एक वस्तु A नीचे की ओर ठीक फिसलने की स्थिति में होता है । A के स्थान पर दूसरा वस्तु B रखने पर पाया जाता है कि तल का झुकाव कोण 40° होने पर वस्तु तल पर नीचे की ओर ठीक फिसलने की स्थिति में आता है। तब-
(a) निश्चित रूप से A की मात्रा > B की मात्रा
(b) निश्चित रूप से A की मात्रा ∝ B की मात्रा
(c) निश्चित रूप से A की मात्रा = B की मात्रा 
(d) A तथा B के लिए घर्षण गुणांक भिन्न है ।
13. किसी रूध क्षैतिज तल पर रखे 10 kg द्रव्यमान का एक आयताकार ब्लॉक 15 N के बल से क्षैतिज दिशा में खींचा जाता है। यदि संपर्क सतह के बीच घर्षण गुणांक μ = 0.2 तथा g = 10m/s2 हो तो ब्लॉक 
(a) 20 N के घर्षण बल का अनुभव करेगा
(b) 15 N के घर्षण बल का अनुभव करेंगा।
(c) 1.5ms-2 के त्वरण से आरोपित बल की दिशा में गतिशील होगा- 
(d) 0.5ms के त्वरण से आरोपित बल के दिशा के विपरित गतिशील होगा। 
14. सड़क पर चलने की अपेक्षा बर्फ पर चलना कठिन है, क्योंकि- 
(a) बर्फ सड़क से सख्त होती है।
(b) सड़क बर्फ से सख्त होती है I 
(c) जब हम अपने पैर से धक्का देते हैं तो बर्फ कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती । 
(d) बर्फ में सड़क की अपेक्षा घर्षण कम होता है ।
15. रोड़ी युक्त सड़क की तुलना में बर्फ पर चलना कठिन होता है, क्योंकि
(a) बर्फ मुलायम एवं स्पंजी होता है जबकि रोड़ी कठोर है ।
(b) पैर तथा बर्फ के मध्य घर्षण बल रोड़ी एवं पैर के मध्य घर्षण बल की तुलना में कम होता है I 
(c) बर्फ पर घर्षण बल रोड़ी की तुलना में अधिक होता है I
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
16. लकड़ी के सिलैंडराकार पात्र (Barrel) को खींचने की जगह लुढ़काना आसान होता है, क्योंकि-
(a) जब उसे खींचा जाता है, तो वस्तु का भार कार्यकारी होता है।
(b) लुढकन अवस्था का घर्षण बल फिसलन अवस्था के घर्षण बल की तुलना में बहुत कम होता है। 
(c) खींचने की अवस्था में सड़क के सम्पर्क में बैरल का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होता है ।
(d) उपर्युक्त विकल्पों के अतिरिक्त कोई विकल्प I
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Sat, 27 Apr 2024 10:59:06 +0530 Jaankari Rakho
General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | गुरूत्वाकर्षण https://m.jaankarirakho.com/1028 https://m.jaankarirakho.com/1028 General Competition | Science | Physics (भौतिक विज्ञान) | गुरूत्वाकर्षण
  • भारतीय ज्योतिषी आचार्य भाष्कराचार्य ने 12वीं शताब्दी में एक ग्रंथ लिखा जिसका नाम था- सिद्धान्त शिरोमणि । इस पुस्तक में उन्होंने अपनी सर्वप्रमुख खोज - गुरूत्वाकर्षण और गुरूत्व की चर्चा की ।
  • आचार्य भाष्कराचार्य ने गुरूत्वाकर्षण और गुरूत्व को निम्न प्रकार से समझाया-
    • कोई वस्तु पृथ्वी पर इसलिए गिरती है कि पृथ्वी इसको अपने केन्द्र की ओर खींचती है। आकाशीय पिण्डों के बीच आकर्षण का बल कार्य करता है जिससे वे अपना कक्ष नहीं छोड़ते है।
  • बाद के समय में इसी नियम को न्यूटन ने स्वतंत्र रूप से बताया जो आजकल न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण नियम से प्रसिद्ध है। 
आइजक न्यूटन (1642-1727)
  • आइजक न्यूटन का जन्म इंगलैण्ड में एक नि परिवार में हुआ था। वे 1661 ई. में शिक्षा ग्रहण करने कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये। 1665 में कैंब्रिज में प्लेग फैल गया जिससे आइजक न्यूटन को 1 वर्ष की छुट्टी मिल गयी। ऐसा कहा जाता है कि इसी 1 वर्ष में उनके ऊपर सेब गिरने की घटना हुई। इसी घटना ने न्यूटन को गुरूत्व बल खोजने को प्रेरित किया तथा उन्होंने गुरूत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम खोज निकाला। न्यूटन एक महान गणितज्ञ भी थे। I की एक नई शाखा Calculus (कलन) की खोज की। न्यूटन अपनी सभी खोज तथा अनुसंधान केवल 25 वर्ष की आयु में ही पूरी कर ली थीं।
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम (Universal law of Gravitation)
  • न्यूटन ने 1687 में गुरूत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम दिया जिसके अनुसार - ब्रह्मांड का एक वस्तु प्रत्येक दूसरे वस्तु की एक बल से आकर्षित करती है जिसका परिमाण :-
    1. वस्तु के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती होता है ।
    2. उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।
      अगर दो वस्तु का द्रव्यमान m1 तथा m2 हो और उनके बीच की दूरी r हो तो 

  • G एक नियतांक है जिसे गुरूत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं। G का मान वस्तु के प्रकृति, उनके द्रव्यमान, उनके बीच की दूरी, माध्यम, समय, ताप आदि पर निर्भर नहीं करता है तथा ब्रह्मांड के सभी वस्तु के लिए एक ही होता है जिसके कारण G को सार्वत्रिक गुरूत्वाकर्षण नियतांक कहते है।
G का SI मात्रक :

G का मान
  • G का मान सर्वप्रथम हेनरी केंवेंडिश ने निकाला था। G का आधुनिक स्वीकृत मान 6.673 x 10-11 Nm2/kg2 है ।
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम का महत्व
  1. गुरूत्वाकर्षण बल के ही कारण हम सब पृथ्वी से बँधे रहते हैं।
  2. चंद्रमा पर पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल आवश्यक अभिकेंद्र बल प्रदान करता है जिसके कारण चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर वृत्ताकार पथ पर घूमता है। ठीक इसी प्रकार अन्य ग्रह के उपग्रह भी उन ग्रह की परिक्रमा करते हैं।
  3. पृथ्वी पर सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा पर घूमते रहने के लिए आवश्यक अभिकेंद्र बल देता है। ठीक इसी प्रकार अन्य ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं।
  4. चंद्रमा और सूर्य के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण ही समुद्र में ज्वार-भाटा आते हैं।
गुरूत्वीय त्वरण
  • यदि दो यस्तु में एक वस्तु पृथ्वी हो तो उनके बीच लगनेवाले गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्व बल कहा जाता है। इसी पल के कारण पृथ्वी सभी वस्तु को अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती हैं।
  • स्वतंत्रतापूर्वक गिरते हुए किसी वस्तु पर गुरुत्व बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है उसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं। इसे g किया जाता है।
  • गुरुत्वीय त्वरण के कारण ही ऊपर की ओर फेंकी गयी वस्तु के वेग में कमी आती है तथा नीचे आती हुई वस्तु के वेग में वृद्धि होती है ।

G तथा g के बीच संबंध

  • यदि पृथ्वी का द्रव्यमान M मान लें तथा त्रिज्या R मान ले तो पृथ्वी की सतह में नगण्य ऊँचाई पर m द्रव्यमान की वस्तु पर गुरुत्वाकर्षण नियम के अनुसार लगा गुरुत्व बल

  • g का मान गुरूत्वाकर्षण नियंताक G, पृथ्वी के द्रव्यमान M तथा पृथ्वी के त्रिज्या R पर निर्भर करता है । ४ का मान वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
  • हवा का प्रतिरोध नगण्य रहने पर गुरूत्व के अधीन गिरने वाली सभी वस्तु ( हलकी या भारी) के त्वरण समान होते हैं।
  • g का मान 9.8m/s2 के बराबर होता है ।

G तथा g में अंतर
  • G एक सार्वत्रिक नियतांक है, जिसका मान वस्तु के प्रकृति, द्रव्यमान, उनके बीच की दूरी, समय आदि पर निर्भर नहीं करता है तथा ब्रह्मांड के सभी वस्तु के लिए G का मान समान रहता है। इसके विपरित g का मान पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, मंगल इत्यादि के लिए भिन्न-भिन्न होता है।
गुरूत्वीय त्वरण g के मान में परिवर्तन
  1. पृथ्वी के सतह से ऊपर जाने पर g का मान घटता है।
    अगर वस्तु पृथ्वी सतह से h ऊँचाई पर है तो वस्तु का पृथ्वी के केंद्र से दूरी r = R + h होगी अतः वस्तु (m) पर लगा गुरुत्व बल

  2. पृथ्वी के सतह के नीचे जाने पर भी g का मान घटता है।
  3. g का मान ध्रुवों पर अधिकतम तथा भूमध्य रेखा (विषुवत रेखा) पर न्यूनतम होता है । भूमध्य रेखा पर g का मान 9.85m/s2 होता है तथा विषुवत रेखा पर g का मान 9.78 m/s2 होता है।
    • इस परिवर्त्तन का कारण है कि पृथ्वी पूर्ण रूप से गोलाकार नहीं है। ध्रुवों पर यह चपटी है तथा भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है तथा  ध्रुवीय त्रिज्या पृथ्वी का 6357 km है जबकि पृथ्वी का विषुवतीय त्रिज्या 6378 km है।
    • पृथ्वी के घूर्णन पर भी g का मान निर्भर करता है। यदि पृथ्वी घूर्णन करना बंद कर दें तो g का मान ध्रुव को छोड़कर सभी स्थानों पर बढ़ जाएगा तथा ध्रुव के मान के बराबर हो जाएगा
    • यदि पृथ्वी का घूर्णन वेग अधिक हो जाए तो ध्रुवों को छोड़कर शेष सभी स्थानों पर गुरूत्वीय त्वरण का मान घट जाएगा और यदि पृथ्वी के घूर्णन का वेग वर्त्तमान के 17 गुणा हो जाए तो विषुवत रेखा पर गुरूत्वीय त्वरण का मान शून्य हो जाएगा ।
गुरुत्व के अधीन गिर रही वस्तु का गति समीकरण :
जब हम वस्तु को ऊपर फेकते हैं तो वस्तु एक निश्चित ऊँचाई तक जाती है, वहाँ क्षणभर के लिए रूकती है और अंत में त्वरीत गति से नीचे की ओर गिरती है । इस प्रकार की गति मुक्तपतन ( Free Fall) कही जाती है।
ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर गति के लिए निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होते हैं-
     V = u+ gt
     h = ut + ½ gt2
     v2 = u2 + 2gh
NOTE :- वस्तु की नीचे की ओर गति धनात्मक मानी जाती है ।
ऊर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर गति के लिए निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होते हैं--
      v = u - gt
      h = ut – ½ gt2
      v2 = u2 – 2gh
NOTE:- ऊपर की ओर दिशा ऋणात्मक मानी जाती है।
यदि गेंद को ऊपर की ओर प्रारंभिक वेग u से फेंका जाए तो -
(i) वह ऊपर जाएगा और वेग घटता जाएगा ।
(ii) महत्तम ऊँचाई h पर जाकर उसका वेग शून्य हो जाएगा ।
(iii) अंतः वस्तु नीचे ओर पृथ्वी पर गिरेगा

1. उच्चतम बिंदु पर पहुँचने में लगा समय :

मान लें की उच्चतम बिन्दु पर पहुँचने में समय लगता है और यहाँ पहुँचने पर गेंद का वेग (v) शून्य हो जाएगा

2. महत्तम ऊँचाई :

3. ऊपर जाकर नीचे आने में लगा कुल समय

अगर गेंद वापस अपनी प्रारंभिक स्थिति पर आ जाती है तो विस्थापन

4. उच्चतम बिन्दु से नीचे आने में लगा समय

यदि उच्चतम बिन्दु से नीचे आने में लगा समय T हो तो
T = (ऊपर जाकर नीचे आने में लगा कुल समय) - ऊपर जाने में लगा समय

ऊपर जाने में लगा समय = नीचे आने में लगा समय

भार (Weight)

  • किसी वस्तु को पृथ्वी जिस बल से अपने केंद्र की ओर आकर्षित करती है, उसे गुरूत्व-बल कहते हैं।
  • किसी वस्तु का भार पृथ्वी द्वारा उसपर लगाए गए गुरुत्व बल के बराबर होता है । भार को प्रायः W से सूचित करते हैं। यदि वस्तु का द्रव्यमान m हो, तो वस्तु का भार

    भार का मात्रक न्यूटन होता है।
  • वस्तु का भार चन्द्रमा पर = 1/6 (उसी वस्तु का भार पृथ्वी पर ) चन्द्रमा पर गुरुत्वीय त्वरण का मान पृथ्वी पर के मान 1/6 होता है।
द्रव्यमान और भार में अंतर
  1. द्रव्यमान वस्तु के द्रव्य की मात्रा है जबकि भार पृथ्वी द्वारा वस्तु पर पृथ्वी के केंद्र की ओर लगे गुरुत्व बल के बराबर होता है ।
  2. द्रव्यमान में केवल परिमाण होता है । यह अदिश राशि है जबकि भार में परिमाण और दिशा दोनों होते हैं यह सदिश राशि है ।
  3. द्रव्यमान को दंड तुला मापा जाता है जबकि भार कमानीदार तुला द्वारा मापा जाता है I
  4. द्रव्यमान का SI मात्रक किलोग्राम है जबकि भार का SI मात्रक न्यूटन है ।
  5. स्थान के परिवर्तन से द्रव्यमान नहीं बदलता है जबकि स्थान के परिवर्तन से भार बदल जाता है I
केप्लर का नियम :
  • केप्लर ने सूर्य के चारों ओर गति करने वाले ग्रहों के लिये तीन नियम प्रतिपादित किये-
    1. केप्लर का प्रथम को कक्षा का नियम (Law of orbits) कहते हैं जो इस प्रकार है- सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में परिक्रमण करता है तथा कक्षा के एक फोकस पर सूर्य स्थित रहता है ।
    2. केप्लर के दूसरे नियम को क्षेत्र का नियम (Law of area) कहते हैं जो इस प्रकार है- किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलानेवाली रेखा समान समय में समान क्षेत्रफल तय करती है।
      • केप्लर का दूसरा नियम कोणीय संवेग संरक्षण के नियम पर आधारित है I
    3. केप्लर का तीसरा नियम को परिभ्रमण काल का नियम (Law of Periods) कहते हैं जो इस प्रकार है- किसी भी ग्रह का सूर्य के चारों ओर परिक्रमण काल का वर्ग ग्रह के दीर्घवृत्ताकार कक्षा के अर्द्ध दीर्घ अक्ष के तृतीय घातके समानुपाती होता है
                                                           T2 α r3
      • केप्लर के तीसरा नियम से यह स्पष्ट है कि जो ग्रह सूर्य से जितना दूर है उसका परिभ्रमण काल उतना ही अधिक होगा।
उपग्रह की गति
  • जिस से ग्रह का उपग्रह अपनी कक्षा में चक्कर लगाता है तो उसे ग्रह / उपग्रह का कक्षीय वेग कहते हैं। 
कक्षीय वेग की गणना :
अगर पृथ्वी का द्रव्यमान M और इसकी त्रिज्या R है तथा पृथ्वी के केन्द्र से r दूरी वाले (r > R) कक्ष पर m द्रव्यमान का उपग्रह कक्षीय वेग v से पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है। पृथ्वी द्वारा उपग्रह पर क्रियाशील गुरूत्वीय बल F = GMm/r2 है जो उपग्रह पर अभिकेन्द्र बल प्रदान करता है। इसी बल के फलस्वरूप कक्षा पर गतिशील रहता है ।

  • अतः उपग्रह का कक्षीय वेग उपग्रह के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है लेकिन कक्षा की त्रिज्या (r) पर निर्भर करता है । त्रिज्या अधिक होने पर कक्षीय वेग का मान कम होता है ।
  • अगर कोई उपग्रह पृथ्वी के सतह से बहुत निकट की कक्षा में चक्कर लगाता है तो उसे ध्रुवीय उपग्रह कहते हैं तथा उसकी कक्षीय वेग v = √gR होता है जहाँ R = पृथ्क्वी की त्रिज्या । ध्रुवीय उपग्रह का कक्षीय वेग 8 × 103 m/sec तथा आवर्त्तकाल 84 sec होता है। इस उपग्रह का उपयोग मौसम संबंधी जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है। 
  • भू-स्थिर उपग्रह- ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के भूमध्य रेखा के किसी खास स्थान के सामने हमेशा रहता है, पृथ्वी के उस स्थान के सापेक्ष्ज्ञ स्थिर होता है भू स्थिर उपग्रह कहलाता है। इस उपग्रह की पृथ्वी से ऊँचाई 35870 km (लगभग 3600 km) होता है तथा इसका आवर्त्तकाल 24 घंटे का होता है ।
  • भूस्थिर उपग्रह का उपयोग संचार संदेश प्रेपित एवं प्राप्त करने में किया जाता है जिसके कारण इसे संचार उपग्रह भी कहते हैं। भारत का प्रथम भूस्थिर उपग्रह APPLE है।
  • दूर - संवेदी उपग्रह या सूर्य-सम्बद्ध उपग्रहः- वह उपग्रह जो पृथ्वी के किसी भी स्थान के ऊपर से वहाँ के समायानुसार एक खास समय पर गुजरता है सूर्य - सम्बद्ध उपग्रहं कहलाता है।
  • दूर - संवेदी उपग्रह एक स्थान के ऊपर नियत समय पर गुजरता है। अतः वहाँ के क्षेत्र का इसके द्वारा लिया गया चित्र रोज की स्थिति का जायजा लेने एवं तुलनात्मक अध्ययन में काम आता है।
  • भारहीनता का अनुभव कृत्रिम उपग्रह के अंदर होता होता है। किसी भी उपग्रह पर हमेशा त्वरण (g) पृथ्वी की केन्द्र की ओर लगता- है तथा उसमें रखी वस्तु अथवा मानव का आभासी भार शून्य होता है क्योंकि उसपर लगने वाला सम्पूर्ण गुरूत्वीय बल उसको घुमाने के लिए अभिकेन्द्र बल का कार्य करता है।
भारहीनता के प्रभाव :
  1. पृथ्वी पर स्थित मानव खाना खाते हैं तो कंठ के नीचे गुरुत्व बल से खाया गया पदार्थ खींच लिया जाता है। परंतु कृत्रिम उपग्रह के अंदर मानव को खाना खाने में दिक्कत होती है।
  2. एक गिलास में रखा पानी पृथ्वी पर उलटने पर गिर जाता है । पर उपग्रह में गिलास उलट देने पर पानी नहीं गिरता ।
  3. उपग्रह के अंदर आर्कमिडीज का उत्ल्वाक बल कार्य नहीं करता है।
  4. उपग्रह के अंदर ऊपर-नीचे का भेद नहीं है। वस्तु को छोड़ देने पर भी वह नीचे नहीं गिरता है ।
  5. उपग्रह के अंदर सरल दोलक घड़ी बंद हो जाती है।
पलायन वेग
किसी ग्रह या आकाशीय पिंड के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से भाग जाने मात्र के लिए जितना न्यूतम वेग आवश्यक होता है वही उस ग्रह या आकशीय पिंड के लिए पलायन वेग कहलाता है।
पृथ्वी पर पलायन वेग (vc) का मान

m = पृथ्वी का द्रव्यमान
R = त्रिज्या पृथ्वी का मान
  • पलायन वेग का परिमाण छोटी वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
  • पलायन वेग का परिमाण ग्रह के द्रव्यमान एवं त्रिज्या के अनुपात का समानुपाती होता है।
  • पलायन वेग का मान उपग्रह के कक्षीय चाल का √2 गुणा होता है । अतः उपग्रह के चाल को √2 गुणा कर दें तो वह अपनी कक्षा से पलायन कर जाएगा।
  • पृथ्वी के सतह के लिए पलयन वेग का मान 11.2 km/sec होता है ।
चन्द्रमा पर वायुमंडल नहीं होने का कारण
  • जब सूर्य के ताप से चन्द्रमा का वायु गर्म होता है तो वायु में उपस्थित गैसीय पदार्थ की चाल काफी बढ़ जाती है। इस चाल चन्द्रमा पर के पलायन वेग के मान 2.4 km/sec से अधिक हो जाता है, जिसके कारण गैस-अणु पलायन कर जाते हैं और वहाँ वायुमंडल नहीं पाया जाता है I
कृष्ण पिंड (Black hole)
जब अत्यधिक आपसी गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पिंड सिकुड़ता है तो उसका द्रव्यमान समान रहता है परंतु त्रिज्या घट जाती है जिसके कारण पलायन वेग का मान बढ़ता है क्योंकि-

इस क्रम एक स्थिति ऐसी आती है जब पलायन चाल का मान प्रकाश की चाल 3 × 108 m/sec से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में प्रकाश पिंड पर जाता है लेकिन गुरुत्व बल को पार कर हमारी ओर नहीं आ पाता । अतः इस पिंड का कृष्ण पिंड या Black hole कहते हैं। Black hole के लिए।

- सभी तारे जीवन के अंतिम अवस्था में कृष्ण पिंड में परिवर्तित हो जाता है

अभ्यास प्रश्न

1. निर्वात में स्वतंत्रतापूर्वक गति करते हुए सभी पिंड -
(a) की चाल समान होगी 
(b) का त्वरण समान होगा
(c) का वेग समान होगा
(d) पर बल बराबर होगा
2. दो कणों के बीच गुरूत्वाकर्षण बल होता है उनके बीच की दूरी के-
(a) समानुपाती
(b) वर्ग के समानुपाती
(c) र्ग के व्युत्क्रमानुपाती
(d) व्युत्क्रमानुपाती
3. दो पिंड के बीच गुरूत्वाकर्षण बल निम्नलिखित में किसपर निर्भर नहीं करता है ?
(a) उनके द्रव्यमान के गुणनफल पर
(b) उनके बीच के दूरी पर
(c) उनके बीच के माध्यम पर
(d) गुरूत्वाकर्षण नियतांक पर
4. गुरूत्वीय त्वरण की मान-
(a) पृथ्वी के सभी जगह पर बराबर होता है।
(b) सभी स्थानों पर बराबर होगा
(c) चन्द्रमा पर अधिक, क्योंकि उसकी त्रिज्या कम है
(d) पृथ्वी के अक्षांश पर निर्भर करता है
5. निम्नलिखित में किस स्थान पर गुरूत्वीय त्वरण का मान महत्तम होगा ?
(a) माउंट एवरेस्ट की चोटी पर
(b) कुतुबमीनार की चोटी पर
(c) भूमध्य रेखा के किसी स्थान पर
(d) अंटार्टिका के किसी स्थान  पर
6. यदि कोई अंतरिक्ष यान पृथ्वी के केन्द्र से पृथ्वी की त्रिज्या की दुगुणी दूरी पर हो, उसका गुरूत्वीय त्वरण होगा-
(a) 2.45m/s2
(b) 4.9m/s2
(c) 9.8 m/s2
(d) 19.6m/s2
7. यदि कोई ग्रह हो जिसका द्रव्यमान तथा त्रिज्या दोनों पृथ्वी से आधी हो तो उस ग्रह की सतह पर गुरूत्वीय त्वरण क्या होगा-
(a) 9.8m/s2
(b) 19.6m/s2
(c) 4.9m/s2
(d) 2.45m/s2
8. विराम से मुक्त रूप से गिरते हुए पिंड द्वारा तय की गयी दूरी समानुपाती होती है-
(a) गिरने के कुल समय का
(b) पिंड के द्रव्यमान का
(c) गुरूत्वीय त्वरण के वर्ग का
(d) गिरने के समय के वर्ग का
9. पृथ्वी के सतह पर गुरूत्वीय त्वरण और चंद्रमा की सतह पर गुरुत्वीय त्वरण का अनुपात होता है-
(a) √6:1 
(b) 1:√6
(c) 1:6
(d) 6:1
10. किसी वस्तु का भार - 
(a) उसके जड़त्व को दर्शाता है ।
(b) उसके द्रव्यमान के बराबर होता है किंतु उसे भिन्न मात्रक द्वारा दर्शाया जाता है ।
(c) पृथ्वी द्वारा उसपर लगे आकर्षण बल के बराबर होता है ।
(d) उस वस्तु में पदार्थ के घनत्व पर निर्भर करता है ।
11. जब किसी वस्तु की विषुवतीय रेखा से ध्रुव की ओर ले जाया जाता है, तो उसका भार-
(a) बढ़ता है 
(b) घटता है
(c) तेजी से घटता है
(d) न बढ़ता है, न घटता है
12. किसी वस्तु का भार कहाँ अधिक होगा ? 
(a) बिषुवत रेखा पर 
(b) पृथ्वी के केंद्र पर
(c) पृथ्वी के ध्रुव पर
(d) इनमें सभी स्थानों पर समान रहेगा
13. पृथ्वी के केन्द्र पर गुरूत्वीय त्वरण का मान होता है- 
(a) महत्तम 
(b) शून्य
(c) न्यूनतम
(d) अनंत
14. गुरूत्वाकर्षण के नियतांक G का मान 
(a) सभी ग्रह पर समान रहता है।
(b) भिन्न-भिन्न ग्रहों पर भिन्न होता है
(c) पृथ्वी पर सबसे अधिक होता है
(d) सूर्य पर सबसे कम होता है।
15. दो द्रव्यमानों के बीच गुरूत्वाकर्षण बल है- 
(a) उनके बीच की दूरी के अनुक्रमानुपाती
(b) उनके बीच की दूरी के वेग के अनुक्रमानुपाती
(c) द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती
(d) द्रव्यमानों के गुणनफल के व्युतक्रमानुपाती
16. गुरुत्वीय त्वरण-
(a) पृथ्वी - पृष्ठ से ऊँचाई के साथ बढ़ेगा
(b) पृथ्वी पृष्ठ से ऊँचाई के साथ घटेगा
(c) एक स्थान से दूसरे स्थान पर अक्षांस के अनुसार बदलेगा
(d) इनमें कोई नहीं
17. गुरूत्वीय त्वरण का मान- 
(a) पृथ्वी के पृष्ठ से ऊँचाई का मान बढ़ने से बढ़ता है
(b) ऊँचाई का मान कम होने कम होता है
(c) एक स्थान से दूसरे स्थान पर अक्षांस के अनुसार बदता है।
(d) इनमें कोई नहीं 
18. पृथ्वी पर एक आदमी का भार 65 kg है। इसका भार चक्कर काटने वाले कृत्रिम उपग्रह में होगा- 
(a) 65 kg 
(b) 130 kg
(c) 32.5 kg
(d) 0°
19. पृथ्वी अपनी गति को कितने गुणे बढ़ा दे कि पृथ्वी के पृष्ठ पर वाली पृथ्वी का सम्पर्क छोड़ दे -
(a) 10 गुणा
(b) 20 गुणा
(c) 17 गुणा
(d) 5 गुणा
20. लिफ्ट पर एक आदमी खड़ा है। लिफ्ट समरूप वेग से ऊपर जा रहा है। आदमी का वजन-
(a) बढ़ता हुआ मालूम पड़ेगा
(b) घटता हुआ मालूम पढ़ेगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) इनमें कोई नहीं
21. लिफ्ट पर एक आदमी खड़ा है। लिफ्ट समरूप त्वरण ऊपर जा रहा है। आदमी का वजन
(a) बढ़ता हुआ प्रतीत होगा 
(b) घटता हुआ प्रतीत होगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) इनमें से कोई नहीं
22. ग्रह चलता है-
(a) गुरूत्वाकर्षण बल से
(b) नाभकीय बल से
(c) अनुदैर्ध्य बल से
(d) उपरोक्त में सभी से
23. उपग्रह चलता है-
(a) पृथ्वी के गुरूत्वीय आकर्षण के कारण
(b) पृथ्वी के अनुदैर्ध्य बल के कारण
(c) दोनों के कारण
(d) किन्हीं के कारण नहीं
24. यदि पृथ्वी पर वायुमंडल न हो तो दिन की अवधि
(a) बढ़ जाती है
(b) घट जाएगी
(c) अपरिवर्तित रहती है
(d) जाड़े में घट जाती है गर्मी में बढ़ जाती है
25. अगर पृथ्वी घूमना बन्द कर दें, तो आपका वजन 
(a) बढ़ेगा
(b) घटेगा
(c) अपरिवर्तित रहेगा
(d) इनमें से कोई नहीं
26. पृथ्वी के त्रिज्या आधी हो जाए पर उसका द्रव्यमान नहीं बदले तो दिन होगा-
(a) 24 घण्टा
(b) 12 घण्टा
(c) 6 घण्टा
(d) 4 घण्टा
27. लिफ्ट में मनुष्य का प्रत्यक्ष वजन वास्तविक वजन से कम कब रहता है ?
(a) जब लिफ्ट तेजी से नीचे जा रही हो
(b) जब लिफ्ट समान गति से नीचे आ रही
(c) जब लिफ्ट समान गति से ऊपर जा रही हो
(d) जब लिफ्ट तेजी से ऊपर जा रही हो
28. निम्नलिखित में से किसने न्यूटन से पूर्व ही बता दिया था कि सभी वस्तुएँ पृथ्वी की ओर गुरूत्वाकर्षण होती है ?
(a) आर्यभट्ट
(b) वराहमिहिर
(c) बुद्धगुप्त
(d) ब्रह्मगुप्त
29. किसी वस्तु का भार उस समय न्यूनतम होता है, जब उसे रखा जाता है-
(a) उत्तरी ध्रुव पर
(b) दक्षिणी ध्रुव पर
(c) विषुवत रेखा पर
(d) पृथ्वी के केन्द्र पर
30. चन्द्रमा पर वायुमंडल नहीं है, क्योंकि-
(a) वह पृथ्वी के पास है
(b) वह सूर्य की परिक्रमा करता है
(c) वह सूर्य से प्रकाश पाता है
(d) यहाँ परमाणुओं का पलायन वेग उनके वर्ग माध्य मूल वेग से कम है
31. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही नहीं है ? 
(a) किसी भी पिण्ड का भार भिन्न-भिन्न ग्रहों पर भिन्न-भिन्न होता है।
(b) किसी भी पिण्ड का द्रव्यमान पृथ्वी पर, चंद्रमा पर और रिक्त आकाशा में समान होता है ।
(c) किसी भी पिण्ड की भारहीनता की स्थिति उस पर लगने वाले गुरूत्वीय बल के प्रति संतुलित होने पर होती है।
(d) पृथ्वी की सतह पर समुद्र तल पर किसी भी पिण्ड का भार और द्रव्यमान समान होता है ।
32. कक्षा में अंतरिक्षयान में भारहीनता की अनुभूति का कारण है- 
(a) बाहरी गुरुत्वाकर्षण का अभाव
(b) कक्षा में त्वरण बाहरी गुरुत्वाकर्ष्मण के कारण त्वरण के बराबर होता है ।
(c) बाहरी गुरुत्वाकर्षण, किन्तु अंतरिक्ष यान के भीतर नहीं 
(d) कक्षा में अंतरिक्ष यान में ऊर्जा का न होना
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Sat, 27 Apr 2024 09:33:28 +0530 Jaankari Rakho
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विराम (Rest) एवं गति (Motion) :
  • यदि किसी वस्तु की स्थिति किसी अन्य वस्तु के अपेक्षा समय के साथ नहीं बदलता है तो उस वस्तु को विराम में कहा जाता है। किसी वस्तु को गति में कहा जाता है जब उसकी स्थिति किसी अन्य वस्तु के सापेक्ष समय के साथ बदलता रहता है। सभी गतिशील वस्तु में यह समान्य लक्षण रहता है कि वे समय के साथ अपनी स्थिति बदलते रहते हैं।
  • भौतिकी वह शाखा जिसमें वस्तु के गति के बारे में अध्ययन किया जाता है यांत्रिकी (Mechanics) कहलाता I यांत्रिकी को तीन भाग में बाँटा गया है।
    1. स्थैतिकी (Statistics)— इस शाखा के अंतर्गत उन वस्तु का अध्ययन होता है जो विराम में है।
    2. गतिकी (Kinematics)– इस शाखा के अंतर्गत उन वस्तु का अध्ययन होता है जो गति में है। Kinematics शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द Kinema से हुई है। Kinema शब्द का अर्थ होता है Motion)
    3. Dynamics- यह वह शाखा है जिसमें वस्तु से गति उत्पन्न होने वाले कारणों का अध्ययन होता है।
  • किसी वस्तु में अलग-अलग तीन तरह की गति पायी जा सकती हैं-
    1. स्थानान्तरित गति (Translatory Motion ) -- जब किसी वस्तु की अलग-अलग स्थिति को मिलाने वाली रेखा की दिशा नहीं बदलती है तब उसकी गति स्थानान्तरित गति कहलाती है।
      उदा० - ऊपर से गिरता गेंद, पटरी पर दौड़ता ट्रेन ।
    2. चक्रीय गति (Rotatory Motion)- जब वस्तु की गति इस प्रकार होती है कि वस्तु में प्रत्येक बिन्दु एक वृत्त पर धूमता है, तब ऐसी गति को चक्रीय गति कहते हैं।
    3. आवर्त गति (Periodic Motion)- जब वस्तु एक निश्चित समय अंतराल पर अपनी गति दुहराती रहती है तब उसकी गति आवर्त गति कहलाती है ।
      उदा० - पृथ्वी की गति, सरल लोलक की गति
दूरी (Distance) एवं विस्थापन (Displacement)
  • आम बोल चाल की भाषा में दूरी एवं विस्थापन का अर्थ एक ही होता है परन्तु भौतिकी दोनों के अर्थ भिन्न-भिन्न होते है ।
  • किसी गतिशील वस्तु द्वारा तय की गई मार्ग की वास्तविक लंबाई दूरी कहलाता है। वस्तु जब एक स्थिति से दसरी स्थिति तक चलती है, तब वस्तु की प्रारंभिक स्थिति एवं अंतिम स्थिति के बीच के सबसे छोटी दूरी को विस्थापन कहते हैं ।
  • यदि वस्तु सरल रेखा मार्ग पर बिना दिशा परिवर्तन किये चले तो तय की गई दूरी तथा विस्थापन दोनों ही बराबर होंगे।
  • किसी गतिशील वस्तु द्वारा तय की गई दूरी शून्य नहीं हो सकता है परंतु उसका विस्थापन शून्य हो सकता है। अगर गतिशील वस्तु गति करते हुए अपनी प्रारंभिक स्थिति पर पहुँच जाता है तो उसका विस्थापन शून्य होगा ।
अदिश (Scalar) तथा सदिश (Vector) राशि
  • जिस भौतिक राशि को पूर्ण रूप से व्यक्त करने हेतु केवल परिमाण ( साईज या माप) की जरूरत होती है अदिश राशि कहलाता है। जिसे भौतिक राशि को पूर्ण रूप से व्यक्त करने हेतु परिमाण एवं दिशा दोनों की जरूरत होती है सदिश राशि कहलाता है।
    • प्रमुख अदिश भौतिक राशि - द्रव्यमान दूरी, चाल आयतन कार्य, ऊर्जा, समय, विद्युतधारा, दाब, ताप आदि।
    • प्रमुख सदिश भौतिक राशि - विस्थापन वेग, बल त्वरण, संवेग, कोणीय संवेग आदि ।
चाल (Speed)
  • चाल से हमें यह पता चलता है कि कोई गतिशील वस्तु तेज चल रही है अथवा धीमी । प्रति इकाई समय में तय की गई दूरी को ही चाल कहते हैं।

  • चाल का SI मात्रक m/s है परंतु इसे cm/s तथा km/h में भी प्रायः मापा जाता है।
  • गाड़ी की चाल बताने हेतु उसमें Speedometer लगा होता है। Speedometer चाल km/h में बताता है। गाड़ी द्वारा चली गई दूरी बताने वाला यंत्र Odometer है । Odometer किलोमीटर में दूरी को रिकॉर्ड करता है।
  • यदि वस्तु बराबर समय अंतराल में बराबर दूरी तय करें, चाहे समय अंतराल कितना भी छोटा क्यों न हो तो कहा जाता है वस्तु एकसमान चाल (Uniform speed) से चल रही है। वस्तु जब समान समय अंतराल में असमान दूरी तय करती है तब उसकी चाल, असमान चाल (nonuniform speed) कही जाती है ।
वेग (Velocity) 
  • वेग वह भौतिक राशि जो गतिशील वस्तु की चाल एवं दिशा दोनों बतलाता है। वस्तु का वेग दी हुई दिशा में प्रति ईकाई समय में उसके द्वारा चली गई दूरी होती है। 

  • दी हुई दिशा में चली गई दूरी को विस्थापन कहते हैं। अतः-

  • वेग का भी SI मात्रक वही होता जो चाल का होता है। दोनों भौतिक राशि में अंतर यह है कि चाल अदिश राशि है तथा वेग सदिश राशि है ।
  • गतिशील वस्तु का चाल तथा वेग तभी बराबर होंगे जब वस्तु सीधी रेखा पर चलती है। अगर वस्तु सीधी रेखा नहीं चल रहा है तो उसका चाल एवं वेग बराबर नहीं होंगे।
  • गतिशील वस्तु का औसत चाल कभी शून्य नहीं होता है उसका औसत वेग शून्य हो सकता है।
  • हम अपने रोज की जिंदगी में Velocity या Speed शब्द का उपयोग अलग-अलग नहीं करते हैं । प्रायः दोनों के लिये Speed शब्द का ही उपयोग करते हैं।
त्वरण (Acceleration)
  • अगर वस्तु का वेग बदल रहा हो (घट रहा हो या बढ़ रहा हो ) तो कहा जाता है कि वस्तु त्वरित अवस्था में है । वेग के परिवर्तन के दर को ही त्वरण कहते हैं I

  • वेग में परिवर्त्तन = अंतिम वेग - प्रारम्भिक वेग 

  • त्वरण का SI मात्रक m/s2 या ms-2 होता है परंतु त्वरण को कभी-कभी cm/s2 तथा km/h2 में भी व्यक्त किया जाता है।
  • अगर वस्तु एक समान वेग से चल रहा हो तो उसका त्वरण शून्य होगा । वस्तु का वेग बढ़ रहा है तो त्वरण धनात्मक होगा अगर वेग घट रहा है तो त्वरण ऋणात्मक होगा। ऋणात्मक त्वरण को मंदन (Retardation) कहते हैं।
  • अगर वस्तु सीधी रेखा पर चलती है और समान समय अंतराल में उसका वेग समान दर से बढ़ता है तो वस्तु में एक समान त्वरण होगा। एक समान त्वरण गति के उदाहरण-
    1. स्वतंत्र रूप से गिरती हुई वस्तु
    2. सड़क पर ढ़ाल पर चलता साईकिल जब सवार पैर नहीं चला रहा हो और वायु का प्रतिरोध नगण्य हो ।
    3. आनत समतल से नीचे लुढ़कती गेंद ।
  • अगर समान समय अंतराल में वस्तु का वेग असमान रूप से परिवर्तित होता है तो वस्तु में असमान त्वरण होगा ।
    उदा० - भीड़-भाड़ वाली सड़क पर मोटरसाईकिल की गति ।
  • एक समान त्वरित गति के समीकरण

  • हमें ध्यान रखना होगा की -
    1. यदि वस्तु विराम से चलना शुरू करती है तब उसका प्रारंभिक वेग (u) = 0 होगा।
    2. अगर वस्तु गति करते हुए विराम में आ जाता है तो उसका अंतिम वेग (v) = 0 होगा |
    3. अगर वस्तु एक समान वेग से गतिशील है तो त्वरण (a) = 0 होगा ।
ग्राफ (Graph)
  • ग्राफ का उपयोग कर चाल अथवा वेग त्वरण तथा वस्तु द्वारा चली गई दूरी को ज्ञात किया जा सकता है। गति आधारित ग्राफों में समय सदैव x - अक्ष पर लिया जाता है और दूरी, चाल, वेग का सदैव y - अक्ष पर ही लिया जाता है ।
  • गति के विभिन्न स्थितियों में ग्राफ निम्न प्रकार से होगा-

1. एक समान चाल से गति कर रही वस्तु का दूरी - समय ग्राफ हमेशा एक सरलरेखा होता है ।

विभिन्न समय पर वस्तु की स्थिति दिखानेवाला दूरी - समय ग्राफ

BC तथा AB के अनुपात को ढाल या प्रवणता (Slope) कहते हैं । यानि दूरी - समय ग्राफ की ढ़ाल द्वारा चाल का पता चलता है।

2. स्थिर वस्तु का दूरी - समय ग्राफ समय - अक्ष के समांतर होता है।

3. यदि कोई वस्तु एक समान चाल से गतिशील है तो चाल-समय ग्राफ  एक सरल रेखा होगा ।

चाल समय ग्राफ द्वारा वस्तु द्वारा तय की गई दूरी ज्ञात कर सकते हैं।
AD अथवा BC ऊँचाई चाल v है तथा AB (t2 – t1) समय अंतराल है।
तय की गई दूरी = AD या BC × AB
                     = आयत ABCD का क्षेत्रफल
                     = 20 m/s × (50s – 10s)
                      = 800 m

4. यदि वस्तु असमान चाल से चलती है तो उसका दूरी समय ग्राफ बक्र रेखा (Curved line) होता है

5. एक समान वेग की वस्तु का विस्थापन समय ग्राफ एक सरल रेखा होता है।

6. यदि कोई वस्तु एक समान वेग से गतिशील है तो वेग समय ग्राफ एक सरल रेखा होगा ।

बल (Force)
  • वस्तु की गति से लाने हेतु दबाना या खिंचना पड़ता है। दबाव अथवा खिंचाव को ही बल कहते हैं। हमें दैनिक जीवन में कई ऐसे प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसें दबाना (Push), खींचना (Pull) उठाना, तानना, ऐंढना पड़ता है, इन सब के रूप में हम बल का ही प्रयोग करते हैं । बल के बारे में पूर्ण और सही जानकारी तब प्राप्त हुई जब न्यूटन ने गति संबंधि नियम • दिया । न्यूटन के गति नियम से ही बल की परिभाषा प्राप्त होती है।
  • बल को देखा तो नहीं जा सकता है परंतु बल के प्रभाव को हम देख सकते हैं बल किसी वस्तु पर लगकर पाँच तरह के प्रभव उत्पन्न कर सकते हैं-
    1. बल किसी स्थिर वस्तु को गति में ला सकता है।
    2. बल गतिशील वस्तु को रोक सकता है।
    3. बल किसी गतिशील वस्तु के चाल में परिवर्तन ला सकता है।
    4. बल गतिशील वस्तु की दिशा बदल सकता है।
    5. बल किसी वस्तु की आकृति अमाप को परिवर्तित कर सकता है ।
  • प्रकृति में होने वाले सभी घटना प्रकृति में पाये जाने वाले मूल बलों के कारण होती है। प्रकृति में चार प्रकार के मूल बल का अस्तित्व है।
    1. गुरूत्वाकर्षण बल– दो वस्तु के द्रव्यमान के कारण लगने वाले आकर्षण बल को गुरूत्वाकर्षण बल कहते है । ब्रह्माण्ड में तारों के बनावट में गुरूत्वाकर्षण बल मुख्य भूमिका अदा करता है। गुरूत्वाकर्षण बल में निम्न गुण पाये जाते हैं I
      1. गुरूत्वाकर्षण बल में हमेशा आकर्षण बल ही होता है।
      2. कम द्रव्यमान वाली वस्तु के लिये इस बल का मान कम तथा अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु के लिए इस बल का मान अधिक होता है ।
      3. यह बल बहुत अधिक दूरी तक कर्य करता है।
      4. यह एक केन्द्रीय बल है अर्थात् यह बल वस्तु के केन्द्रों को मिलाने वाली रेखा के दिशा में काम करता है ।
      5. इस बल की खोज न्यूटन ने किया था ।
    2. विद्युत-चुंबकीय बल - दो वस्तु के बीच उसमें निहित आवेश की उपस्थिति के कारण लगने वाले बल को विद्युत चुंबकीय बल कहते हैं। विद्युत चुबंकीय बल में निम्न गुण पाये जाते हैं।
      1. इस बल में आकर्षण और विकर्षण दोनों का गुण पाया जाता है। यह बल कूलम्ब के नियम के अनुसार कार्य करता है।
      2. इस बल का प्रभाव कम दूरी तक होता है।
      3. गुरुत्वाकर्षण बल के तरह यह बल भी केन्द्रीय बल है ।
      4. यह बल गुरूत्वाकर्षण बल से 1036 गुणा तथा दुर्बल या मंद बल से 10 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है ।
    3. न्यूक्लीयर बल- परमाणु के नाभिक में पाये जाने वाले प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन (अथवा प्रोटॉन प्रोटॉन, न्यूट्रॉन न्यूट्रॉन) के बीच लगने बल न्यूक्लीयर बल कहते हैं । इस बल का पता तब चला जब युकावा ने Mesonfield theory प्रत्येक परमाणु के नाभिक इसी बल के कारण स्थायी होता है। न्यूक्लीयर बल में निम्न गुण पाये जाते हैं--
      1. प्रकृति सबसे अधिक शक्तिशाली बल न्यूक्लीयर बल है। यह बल गुरूत्वाकर्षण बल से 1038 गुणा, विद्युत चुंबकीय बल से 102 गुणा तथा दुर्बल या मंद बल से 1013 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है।
      2. इस बल में आकर्षण होता है तथा यह बल बहुत कम दूरी (10-14m) तक ही लगता है ।
      3. यह केन्द्रीय बल नहीं है यह अकेन्द्रीय बल है ।
      4. यह बल परमाणु के नाभिक पर पाये जाने वाले आवेश पर निर्भर नहीं करता है।
    4. दुर्बल या मंद बल (Weak Force)- जब परमाणु के इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन आपस में प्रतिक्रिया करते हैं तो पोजिट्रॉन, एन्टी-न्यूट्रीनों जैसे कण उत्सर्जित होते हैं । इन अतिरिक्त कणों का उत्सर्जन दुर्बल या मंद बल के कारण ही होता है दुर्बल बल में निम्न गुण पाये जाते हैं-
      1. इस बल का विस्तार बहुत कम होता है। इसका प्रभाव सिर्फ प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के भीतर ही होता है ।
      2. यह बल गुरूत्वाकर्षण बल से 1035 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है ।
संतुलित (Balanced ) तथा असंतुलित (Unbalanced ) बल
  • किसी वस्तु पर कार्यरत सभी बल के परिणामी शून्य होते हैं तो बलों को संतुलित बल कहा जाता है।
  • संतुलित बल किसी वस्तु पर लगता है तो उस वस्तु की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है तथा ऐसा प्रतीत होता है कि वस्तु पर कोई बल ही नहीं लग रहा है। 
  • किसी वस्तु पर प्रभाव डालने वाले बलों का परिणामी यदि शून्य नहीं है तो बलों का असंतुलित बल कहा जाता है।
  • असंतुलित बल लगने पर वस्तु की स्थिति बदल जाती है अर्थात् यह बल से उत्पन्न प्रभाव को हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं ।
  • आम बोल-च -चाल की भाषा में अगर बल शब्द का उपयोग करते हैं, वह बल असंतुलित बल ही होता है परन्तु हम असंतुलित शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं | न्यूटन के गति नियम में जितनी बार बल का उल्लेख होता है वह असंतुलित बल ही होता है।
स्पर्श (Contact) तथा असम्पर्क (non-contact) बल
  • स्पर्श बल वह बल जिसको आरोपित करने हेतु वस्तु को स्पर्श करना पड़ता है I
    उदा०-- पेशीय बल, तनाव, अभिलंब बल, घर्षण बल
  • कुछ बल बिना स्पर्श किये आरोपित होते हैं ये बल असम्पर्क बल कहलाते हैं-
    उदा० - चुंबकीय बल, स्थिर वैद्युत बल, गुरूत्वाकर्षण बल 
न्यूटन के प्रथम गति नियम
  • अगर वस्तु विराम अथवा गति में हैं तो वह विराम अथवा गति में ही रहना चाहती हैं जब तक उस पर कोई बल आरोपित नहीं हो।
  • न्यूटन का प्रथम गति नियम इटली के महान वैज्ञानिक गैलीलियों के जड़त्व के नियम के समान है जिस कारण प्रथम गति नियम को जड़त्व का नियम कहते हैं ।
  • जड़त्व (Inertia) जड़त्व वस्तु का वह गुण है जिसके कारण स्थिर वस्तु स्थिर तथा गतिशील वस्तु गति में रहना चाहती है। जड़त्व वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। अधिक द्रव्यमान वाली वस्तु का जड़त्व अधिक तथा कम द्रव्यमान वाली वस्तु का जड़त्व कम होता है।
  • जड़त्व तीन प्रकार के होते हैं:-
    1. स्थिर जड़त्व (Inertia of Rest)- स्थिर जड़त्व के कारण वस्तु स्थिर ही रहना चाहती है ।
      उदा०-- घोड़ा एकाएक दौड़ता है तो सवार पीछे की तरफ गिर जता है । यह स्थिर जड़त्व के कारण होता है
    2. गति जड़त्व (Inertia of Motion)- गतिज जड़त्व वस्तु का वह गुण है, जिस गुण के कारण अगर वस्तु गति में है तो गति में ही रहना चाहता है। 
      उदा०-- तीव्र गति से दौड़ता घोड़ा एकाएक रूकता है तो सवार आगे की ओर झुक जाता है।
    3. दिशा जड़त्व (Inertia of direction)– यह वस्तु का वह गुण है जिस गुण के कारण वस्तु अपनी गति के दिशा में ही रहना चाहता हैं ।
      उदा०- तीव्र गति से घूमते पहीए में लगा कीचड़ स्पर्शीय रूप से छिटकते हैं।
  • न्यूटन के प्रथम गति नियम से बल की परिभाषा प्राप्त होती है जो इस प्रकार है- बल वह भौतिक कारण है जो किसी वस्तु पर लगकर उसकी विराम अवस्था या गति अवस्था में परिवर्तन लाता है या लाने की चेष्टा करता है ।
  • जड़ या न्यूटन के प्रथम नियम पर आधारित उदाहरण-
    1. बस या रेलगाड़ी के अचानक चलने से उसमें खड़ा यात्री पीछे की ओर गिर जाता है।
    2. कंबल को तेजी से झटकने पर उसके धूलकण अलग हो जाते हैं ।
    3. छड़ी से पीटने पर कंबल का धूल निकलना ।
    4. पेड़ की शाखा को जोड़ से हिलाने पर फल और पत्तियों का गिरना ।
    5. काँच की खिड़की पर बंदूक की गोली तथा एक बड़े पत्थर का अलग-अलग प्रभाव पड़ना ।
    6. चलती हुई गाड़ी अचानक रूकने पर यात्री का आगे की ओर झुक जाना ।
    7. दौड़ता हुआ व्यक्ति का एकाएक रूक नहीं पाना ।
    8. लंबी कूद वाले खिलाड़ी का कूदने से पहले तेज दौड़ना ।
    9. एक समान वेग से चल रही रेलगाड़ी में ऊपर की ओर उछाली गई गेंद उछालने वाले के हाथ में ही लौट जाना ।
    10. चलती बस की दिशा बदलने से यात्री का एक ओर झुक जाना ।
संवेग (Momentum)
  • वस्तु के गति एवं उसके द्रव्यमान के गुणनफल को संवेग कहते हैं। अगर वस्तु गति में न होकर विराम में है तो उसका संवेग शून्य होगा।
  • संवेग = द्रव्यमान × वेग
         p = mv
  • संवेग का SI मात्रक किलोग्राम मीटर प्रति सेकण्ड (Kg.m/s) होता है।
न्यूटन के गति का दूसरा नियम
  • किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उस पर लगाये जाने वाले बल के समानुपाती है तथा यह परिवर्तन बल की दिशा में होता है।
  • न्यूटन के द्वितीय गति नियम बल एवं संवेग के बीच संबंध बतलाता है तथा इसी संबंध से बल व्यंजक प्राप्त होता है।
  • द्वितीय गति के अनुसार-
    बल =  द्रव्यमान × त्वरण
    F = ma
  • बल का SI मात्रक kgm/s2 होता है जिसे महान वैज्ञानिक न्यूटन के सम्मान में न्यूटन कहते हैं ।
  • न्यूटन के दूसरे गति नियम पर आधारित उदाहरण-
    1. कराटे के खिलाड़ी द्वारा एक ही प्रहार से ईट को समूह को तोड़ डालना ।
    2. ऊँची कूद की खिलाड़ी के गिरने की जगह पर स्पंज का गद्दे रखा होना ।
    3. कच्चे फर्श के तुलना में पक्के फर्श पर गिरने से अधिक चोट लगना ।
    4. बॉल को कैच करते समय खिलाड़ी अपने हाथ को पीछे खिंचता है ।
    5. बॉक्सर सामने के बॉक्सर के पंच प्रभाव को कम करने हेतु सिर पीछे कर लेता है।
    6. गाड़ी में उत्पन्न धक्का को मंद करने हेतु उसमें  स्प्रिंग लगा होता है ।
न्यूटन के गति का तीसरा नियम
  • जब कभी एक वस्तु किसी दूसरी वस्तु पर बल लगाती है, दूसरी वस्तु पहली वस्तु पर बराबर और विपरित बल लगाती है। पहली वस्तु द्वारा लगाये बल को क्रिया (action) कहते हैं तथा दूसरी वस्तु द्वारा लगाये बल को प्रतिक्रिया (Reaction) कहते हैं ।
  • तृतीय नियम को इस प्रकार भी कहा जाता है- प्रत्येक क्रिया के बराबर और विपरित प्रतिक्रिया होती है।
  • क्रिया और प्रतिक्रिया बल हमेशा दो भिन्न-भिन्न वस्तु पर कार्य करते हैं परन्तु वे साथ-साथ कार्य करते हैं ।
  • तृतीय गति नियम पर आधारित उदाहरण:-
    1. मनुष्य जब नदी के किनारे नाव से बाहर कूदता है तो नाव पीछे हट जाती है।
    2. जेट वायुयान: रॉकेट का उड़ान भरना
    3. मनुष्य का जमीन पर टहलना
    4. पानी में तैरना या नाव खेना
    5. कुए से जल खींचते समय रस्सी टूटने पर पीछे गिर जाना
    6. घोड़ा गाड़ी का घोड़े द्वारा खींचना
संवेग संरक्षण के नियम
  • संवेग संरक्षण नियम:- जब दो या दो से अधिक वस्तु एक दूसरे के ऊपर कार्य करती है, तो उसका सम्पूर्ण संवेग स्थिर रहता है, बशर्ते कोई बाहरी बल उस पर न लगे ।
  • संवेग संरक्षण नियम इस प्रकार भी कहा जा सकता है- संवेग को कभी उत्पन्न या नष्ट नहीं किया जा सकता है।
  • अगर गति करते हुए दो वस्तु टकराती है तो टकराने से पूर्व तथा टकराने के बाद का संवेग बराबर होता है ।
  • संवेग संरक्षण नियम के उदाहरण-
    1. रॉकेट और जेट वायुयान संवेग संरक्षण सिद्धान्त पर कार्य करते हैं ।
    2. गोली दागने से पहले गोली और बंदूक का कुल संवेग शून्य होता है अतः गोली छूटने के बाद बंदूक गोली के विपरित दिशा में चलता है ताकि संवेग शून्य बना रहे ।
    3. जब हवा से भरे गुब्बारा में छेद होता है तो हवा तेजी से बाहर निकलती है। इससे हवा के संवेग में परिवर्तन के बराबर एवं विपरित गुब्बारा का संवेग परिवर्तन होता है. इसी कारण गुब्बारा हवा निकलने के विपरित दिशा में चलने लगता है।

अभ्यास प्रश्न

1. किसी समय अंतराल में विस्थापन का परिमाण उस समय अंतराल में वस्तु द्वारा-
(a) तय की गई दूरी के हमेशा बराबर होता है
(b) तय की गई दूरी से अधिक होता है।
(c) तय की गई दूरी से हमेशा कम होता है
(d) तय की गई दूरी से कम हो सकता है
2. यदि किसी वस्तु द्वारा तय की गई दूरी समय के अनुक्रमानुपाती होती है, तो
(a) वस्तु का वेग शून्य है
(b) वस्तु एक समान चाल से चल रही है
(c) वस्तु का त्वरण अचर है
(d) वस्तु का वेग एक समान है
3. निम्नलिखित में कौन अदिश राशि हैं-
(a) विस्थापन 
(b) त्वरण
(c) चाल
(d) वेग
4. यदि कोई वस्तु पटना से राँची जाता है और पुनः राँची से पटना वापस जाता है, तो उस व्यक्ति का विस्थापन होगा-
(a) शून्य
(b) पटना से राँची के बीच की दूरी
(c) राँची से पटना के बीच की दूरी का दुगुना
(d) अनंत
5. जब एक गेंद को सीधे ऊपर की ओर हवा में फेंका जाता है, तब वह H ऊँचाई तक पहुँचने के बाद वापस आ जाता है, तो  गेंद द्वारा तय की गई कुल दूरी होगी-
(a) H
(b) V2H
(c) 2H
(d) शून्य
6. जब कोई वस्तु एक निश्चित बिंदु के आगे-पीछे चलती है, तो इस गति को कहते हैं-
(a) दोलनी गति
(b) आवर्त गति
(c) त्वरित गति
(d) इनमें से सभी
7. जब कोई वस्तु एक समान गति से चलती है, तब उसके लिए दूरी - समय ग्राफ की प्रकृति होती है-
(a) एक बक्र रेखा
(b) एक सरल रेखा
(c) एक वृत्त
(d) इनमें से कोई नहीं
8. 24 cm/sec की प्रारंभिक चाल और 4cm/s2 के त्वरण से गतिमान वस्तु कितने समय के बाद रूक जाएगी ?
(a) 4 sec. के बाद 
(b) 6 sec. के बाद
(c) 10 sec. के बाद
(d) 12 sec. के बाद
9. समान त्वरण से गतिमान वस्तु का वेग -
(a) घटता जाएगा
(b) बढ़ता जाएगा
(c) शून्य हो जाएगा
(d) घटता जाएगा या बढ़ता जाएगा
10. वाहनों की चाल मापने हेतु कौन-सा उपकरण वाहन में लगे होते हैं- 
(a) ओडोमीटर
(b) स्पीडोमीटर
(c) एक्सिलरोमीटर
(d) अल्टीमीटर
11. निम्नलिखित में से कौन एक सदिश राशि नहीं है ?
(a) संवेग
(b) वेग
(c) कोणीय वेग
(d) द्रव्यमान
12. अदिश राशि है-
(a) ऊर्जा
(b) बल आघूर्ण
(c) संवेग
(d) उपर्युक्त सभी
13. निम्नलिखित में से कौन-सी राशि सदिश नहीं है ? 
(a) विस्थापन
(b) वेग 
(c) बल
(d) आयतन
14. निम्नलिखित में से कौन-सी राशि सदिश नहीं है ?
(a) विस्थापन
(b) वेग
(c) बल
(d) आयतन
15. निम्नलिखित में सदिश राशि है-
(a) वेग
(b) द्रव्यमान
(c) समय
(d) लम्बाई
16. निम्नलिखित में से कौन-सा एक व्युत्पन्न परिमाण नहीं है ?
(a) घनत्व
(b) द्रव्यमान
(c) आयतन
(d) चाल
17. पदार्थ के संवेग और वेग के अनुपात से कौन-सी भौतिक राशि प्राप्त की जाती है ?
(a) वेग
(b) त्वरण
(c) द्रव्यमान
(d) बल
18. जड़त्व का गुण :
(a) किसी-किसी वस्तु में होता है ।
(b) प्रत्येक वस्तु में होता है ।
(c) किसी भी वस्तु में नहीं होता है ।
(d) केवल गतिशील वस्तु में होता है।
19. जब किसी वस्तु की गति त्वरित होती है तो
(a) उसकी चाल में हमेशा वृद्धि होती है।
(b) उसके वेग में हमेशा वृद्धि होती है।
(c) वह हमेशा पृथ्वी की ओर गिरती है ।
(d) उनपर हमेशा कोई बल कार्य करता है।
20. गति करने के लिए स्वतंत्र किसी वस्तु पर कोई बल लगाया गया। यदि बल का परिमाण तथा वस्तु वस्तु का द्रव्यमान ज्ञात हो, तो न्यूटन के दूसरे नियम की सहायता से हम
(a) वस्तु का भार ज्ञात कर सकते हैं।
(b) वस्तु की चाल ज्ञात कर सकते हैं।
(c) वस्तु की त्वरण ज्ञात कर सकते हैं ।
(d) वस्तु की स्थिति ज्ञात कर सकते हैं ।
21. जब किसी वस्तु पर कोई बाह्य बल लगता है तब वह बल के दिशा में त्वरित हो जाती है। इस प्रकार उत्पन्न त्वरण वस्तु- 
(a) पर लगे बल के समानुपाती होता है।
(b) के वेग के समानुपाती होता है।
(c) के द्रव्यमान के समानुपाती होता है ।
(d) के जड़त्व के समानुपाती होता है।
22. कोई अचर बल 0.6 kg द्रव्यमान के किसी पिंड में 0.08m/s2 का त्वरण उत्पन्न करता है तो बल का परिमाण है-
(a) 0.048 N 
(b) 0 N 
(c) 48 N 
(d) 0.48 N
23. कोई बल 10 g द्रव्यमान की वस्तु A में 8m/s2 का त्वरण उत्पन्न करता है और दूसरा बल 20g द्रव्यमान की वस्तु B में 5m/s2 का त्वरण उत्पन्न करता है तो
(a) B की अपेक्षा A पर बड़ा बल लगता है। 
(b) A की अपेक्षा B पर बड़ा बल लगता है। 
(c) A और B दोनों पर समान बल लगा है। 
(d) A और B दोनों पर लगा वल शून्य है I
24. किसी गतिशील पिंड का वेग आधा करने से उसका संवेग हो जाता है-
(a) आधा
(b) दुगुणा
(c) चौगुणा
(d) चौथाई
25. न्यूटन के गति के तीसरे नियम के अनुसार क्रिया तथा प्रतिक्रिया से संबद्ध बल
(a) हमेशा एक ही वस्तु पर लगे होने चाहिए
(b) भिन्न-भिन्न वस्तु पर लगे हो सकते हैं
(c) हमेशा भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर ही लगे होना चाहिए
(d) का परिमाण बराबर होना जरूरी नहीं है किंतु उनकी दिशा समान होनी चाहिए
26. किसी बल्लेबाज द्वारा क्रिकेट की गेंद को मारने पर गेंद जमीन पर लुढ़कती है। कुछ दूरी चलने के पश्चात गेंद रूक जाती है। गेंद रूकने के लिए धीमी होती है, क्योंकि
(a) बल्लेबाज ने गेंद को पर्याप्त प्रयास से हिट नहीं किया है।
(b) वेग गेंद पर लगाए बल के समानुपाती है ।
(c) गेंद पर गति की दिशा के विपरित एक बल कार्य कर रहा है ।
(d) गेंद पर कोई असंतुलित बल कार्यरत नहीं है अतः गेंद विरामावस्था में आने के लिए प्रयासरत है ।
27. किसी वस्तु के जड़त्व की माप होती है-
(a) वस्तु की चाल से
(b) वस्तु कहाँ स्थित है उससे
(c) वस्तु के द्रव्यमान से
(d) इनमें से कोई नहीं
28. साइकिल, मोटरसाइकिल, कार और रेलगाड़ी में किसका जड़त्व अधिक है-
(a) सभी का जड़त्व बराबर है
(b) मोटरसाईकिल का जड़त्व अधिक है
(c) रेलगाड़ी का जड़त्व अधिक है
(d) साईकिल का जड़त्व अधिक है।
29. बल को होता है-
(a) केवल परिमाण
(b) केवल दिशा
(c) परिमाण और दिशा दोनों
(d) न तो परिमाण न तो दिशा
30. न्यूटन (N) SI मात्रक है-
(a) बल का
(b) वेग का
(c) संवेग का
(d) कार्य का
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Sat, 27 Apr 2024 07:11:26 +0530 Jaankari Rakho
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विज्ञान (Science)

विज्ञान शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द Scientia से हुई है जिसका अर्थ होता है "जानना" । अतः किसी भी तथ्य को जानने हेतु जो प्रयास किया जाता है एवं प्रयास के फलस्वरूप जो ज्ञान प्राप्त होता है वही विज्ञान कहलाता है ।

भौतिकी (Physics)

भौतिकी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुआ है जिसका अर्थ होता है प्रकृति। भौतिकी ऐसा विषय है जो हमें प्रकृति और प्राकृतिक घटना के बारे में विस्तार से बताता है।

मात्रक (Unit)

विज्ञान मापन पर आधारित है। किसी भी quantity की माप हेतु मानक माप की आवश्यकता होती है। इसी मानक माप को quantity unit कहते हैं।
  • किसी भी quantity के परिमाण को दर्शाने हेतु दो बातों का पता होना आवश्यक है-
    1. Unit जिसमें quantity को व्यक्त किया गया है।
    2. Numeral (संख्यांक) जिससे ये पता चल सके की quantity में unit कितनी बार शामिल है ।

                   

भौतिक राशि (Physical quantities)
भौतिक के नियमों को जिन पदों में व्यक्त किया जाता है उसे भौतिक राशि कहते हैं । यह दो प्रकार के होते हैं ।
  1. मूल राशि (Basic quantity )-- वे राशि जो स्वतंत्र मानी जाती है मूल राशि कहलाती है I
    उदा०- लंबाई, द्रव्यमान, समय
  2. व्युत्पन्न राशि (Derived quantity)- वे भौथ्तक राशि जो मूल राशि के सहायता से व्यक्त किया जाता है व्युत्पन्न राशि कहलाती है ।
    उदा० - आयतन, घनत्व, क्षेत्रफल
  • मूल राशि के मात्रक को मूल मात्रक (Basic Unit) तथा व्युत्पन्न राशि के मात्रक को व्युत्पन्न मात्रक (Derived Unit) कहते हैं ।
  • पूरे विश्व पाये जाने वाले प्रमुख मात्रकों की पद्धति :
    1. फुट-पाउंड - सेकंड पद्धति (FPS System ) - इस पद्धति में लंबाई का मात्रक फुट, द्रव्यमान का मात्रक पाउंड तथा समय का मात्रक सेकंड होता है। इस पद्धति को ब्रिटिश पद्धति भी कहते हैं । 
    2. सेंटीमीटर- ग्राम-सेकंड पद्धति (CGS System)- इस पद्धति में लंबाई का मात्रक मीटर द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम, समय का मात्रक सेकंड है। इस system (पद्धति) को मीटरी पद्धति भी कहते हैं ।
    3. 3. मीटर - किलोग्राम सेकंड पद्धति (MKS System)- इस पद्धति में लंबाई मात्रक मीटर, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम तथा समय का मात्रक सेकंड होता है।
मात्रकों का अंतर्राष्ट्रीय पद्धति :
  • 1960 में पेरिस में सम्पन्न 11वीं तौल एवं माप महासम्मेलन में मात्रकों के अंतर्राष्ट्रीय पद्धति का जन्म हुआ । इस सम्मेलन में छह मूल मात्रकों को परिभाषित किया गया ।
  • 1970 में 14वीं माप-तौल महासम्मेलन हुआ जिनमें 1 और मूल मात्रक - मोल को परिभाषित किया गया। अतः मूल मात्रकों की संख्या 7 हो गयी।
  • मात्रकों के अंतर्राष्ट्रीय पद्धति के अंतर्गत ज्यामिति के दो राशि - समतल कोण (Plane angle) तथा धन कोण (Solid angle) जो की भौतिक राशि नहीं है उन्हें संपूरक मात्रक के रूप में परिभाषित किया गया ।
  • मात्रकों का अंतर्राष्ट्रीय पद्धति को - Systeme international d' Unites अथवा संक्षेप में SI Unit कहते हैं।
  • SI Unit के सात मूल मात्रक
    1. लंबाई - मीटर (m)
    2. द्रव्यमान - किलोग्राम ( kg)
    3. समय - सेकंड (S)
    4. विद्युत धारा - ऐम्पीयर (A)
    5. तापमान - केल्वीन (K)
    6. ज्त्योति तीव्रता - कैण्डला (cd)
    7. पदार्थ का परिमाण - मोल (mol)
  • SI Unit के दो संपूरक मात्रक :
    1. Plane angle - radian (red)
    2. Solid angle - Steradian (sr).
  • प्राय: SF Unit के मूल मात्रकों में किसी राशि के मापों को व्यक्त करना आसान नहीं होता है अतः अंतर्राष्ट्रीय सहमति से SI Prefixes परिभाषित किये गये हैं जो निम्न हैं-

  • व्युत्पन्न मात्रक (Dervied Unit)— व्युत्पन्न मात्रक को मूल मात्रक के पदों में व्यक्त किया जाता है- 

  • प्रमुख व्युत्पन्न भौतिक राशि तथा उनका SI मात्रक

विमा (Dimensions)
किसी भौतिक राशि का मात्रक प्राप्त करने के लिये मूल मात्र को पर लगाये जाने वाले घातों (Powers) को इस भौतिक राशि की विमा कहते हैं-

इस उदाहरण के वेग की विमा लंबाई में 1 और समय में - 1 है ।
  • भौतिक राशि की विमा व्यक्त करने के लिए उस राशि को Big bracket [ ] के अंदर लिखा जाता है ।
    जैसे- [वेग] = वेग का विमा
    [त्वरण] = त्वरण का विमा
  • मूल मात्रक की विमा

विमीय सूत्र
किसी भी भौतिक राशि के मात्रक और लंबाई, द्रव्यमान और समय मूल मात्रकों के बीच के संबंध को दर्शाने वाले व्यंजक को विमीय सूत्र कहते हैं ।

       

  • प्रमुख मात्रक के बीच संबंध
    1. 1 कैरेट = 200mg ( मिलीग्राम) 
    2. 1 मीटर = 39.37 इंच
    3. 1 मील = 5282 फीट = 1.609 किलोमीटर
    4. 1 एंग्स्ट्रॉम = 10-8 सेंटीमीटर = 10-10 मीटर 
    5. 1 प्रकाश वर्ष = 9.46 × 1015 मीटर
    6. 1 पारसेक = 3.084 × 1016 मीटर 
    7. 1 माइक्रोन = 10-6 मीटर 
    8. 1 atm (atomic mass unit) = 1.6604 × 10-27 kg
    9. 1 जूल = 107 अर्ग = 0.239 कैलोरी
    10. 1 न्यूटन = 105 डाईन

अभ्यास प्रश्न

1. निम्न में कौन आधारी राशि नहीं है-
(a) द्रव्यमान
(b) वेग
(c) समय
(d) विद्युत धारा
2. SI मात्रक में कितने आधारी (Basicunit) मात्रक है-
(a) तीन
(b) चार
(c) नौ
(d) सात
3. मापन (Measurement) मुख्य रूप से एक प्रक्रिया (Process) है- 
(a) गणना की
(b) अंतर स्पष्ट करने की
(c) तुलना करने की
(d) बदलने की
4. किसी राशि के परिमाण (Magnitude) के पूर्ण विवरण के लिए आवश्यक है-
(a) मात्रक (Unit)
(b) संख्यांक (Numeral)
(c) मात्रक और संख्यांक दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
5. डाईन सेकंड मात्रक है--
(a) बल का
(b) आवेग का
(c) ऊर्जा का
(d) शक्ति का
6. पृष्ठ तनाव का मात्रक होता है-
(a) Nm-2
(b) Nm-1
(c) Kgm-1
(d) Kgm-2
7. भौतिक राशि निम्नांकित रूप से परिभाषित की जा सकती है-
(a) वह जिसमें द्रव्यमान हो
(b) वह जिसमें भार हो। 
(c) वह जिसमें विमा हो
(d) वह जो मापी नहीं जा सके
8. ML-1T-1 विमीय सूत्र है-
(a) पृष्ठ तनाव का
(b) श्यानता गुणांक का
(c) संवेग का
(d) यंग-गुणांक का
9. निम्नलिखित में किस भौतिक-राशि युग्म की विमायें समान हैं-
(a) कार्य और ऊर्जा
(b) बल और संवेग
(c) बल और शक्ति
(d) संवेग और ऊर्जा
10. भौतिक राशि निम्नांकित रूप से परिभाषित की जाती है-
(a) वह जिसमें द्रव्यमान हो
(b) वह जिसमें भार हो
(c) वह जिसमें विमा हो 
(d) वह जो मापी न जा सके
11. यदि द्रव्यमान, लंबाई और समय के मात्रक आधे कर दिए जाए तो दाब का मात्रक हो जाएगा-
(a) चौथाई
(b) आधा
(c) दुगुणा
(d) चौगुणा
12. sinθ की विमाऍ है-
(a) L2 
(b) M 
(c) ML 
(d) नहीं होती हैं 
13. निम्नलिखित में कौन मूल मात्रक है-
(a) लम्बाई, बल, समय 
(b) लम्बाई, द्रव्यमान, समय 
(c) द्रव्यमान, आयतन, ऊँचाई
(d) द्रव्यमान, वेग दाब
14. निम्नलिखित में किस जोड़े की विमा समान है-
(a) कार्य और शक्ति
(b) संवेग और ऊर्जा
(c) बल और शक्ति
(d) कार्य और ऊर्जा 
15. 25 kgms-1 निम्नलिखित को व्यक्त कर सकता है--
(a) कोणीय संवेग
(b) रेखीय-संवेग
(c) बल
(d) दाब
16. निम्नलिखित में से कौन-सी अविमीय राशि है ?
(a) विकृति
(b) श्यानता गुणांक
(c) गैस नियतांक
(d) प्लांक नियतांक
17. एक खगोलीय इकाई सम्बन्धित है-
(a) सूर्य एवं पृथ्वी के बीच की दूरी से 
(b) चन्द्रमा एवं पृथ्वी के बीच की दूरी से
(c) सूर्य एवं चन्द्रमा के बीच की दूरी से
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
18. निम्नलिखित युग्मों में से किन भौतिक राशियों के समान विमीय सूत्र नहीं है ?
(a) बल एवं दाब
(b) कार्य एवं ऊर्जा
(c) आवेग एवं संवेग
(d) भार एवं बल
19. 'यंग प्रत्यास्थता गुणांक' का SI मात्रक है-
(a) डाइन / सेमी.
(b) न्यूटन / मी.
(c) न्यूटन / मी.2
(d) मी.2 / से.
20. 'पारसेक' (Parsec) इकाई है- 
(a) दूरी
(b) समय की
(c) प्रकाश की चमक की
(d) चुम्बकीय बल की
21. विद्युत मात्रा की इकाई है-
(a) एम्पियर
(b) ओम
(c) वौल्ट
(d) कुलम्ब
22. 'कैण्डेला' मात्रक है-
(a) ज्योति फ्लक्स
(b) ज्योति प्रभाव
(c) ज्योति दाव
(d) ज्योति तीव्रता
23. ‘कार्य का मात्रक है—
(a) जूल
(b) न्यूटन
(c) वाट
(d) डाइन
24. 'प्रकाश वर्ष' किसकी इकाई है ?
(a) दूरी
(b) समय
(c) प्रकाश
(d) धारा
25. निम्नलिखित में से समय का मात्रक नहीं है-
(a) अधि वर्ष
(c) चन्द्र माह
(c) प्रकाश वर्ष
(d) इनमें से कोई नहीं
26. 'एम्पीयर' क्या नापने की इकाई है ?
(a) वोल्टेज
(b) करेन्ट
(c) प्रतिरोध
(d) पावर
27. 'डेलीबल' किसे नापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है ?
(a ) खून में हीमोग्लोबीन
(b) पेशाब में शक्कर
(c) वातावरण में ध्वनि
(d) वायु में कण
28. 'बल' की एस.आई. (SI) यूनिट क्या है ?
(a) केल्विन
(b) न्यूटन
(c) पैस्कल
(d) वोल्ट
29. मात्रकों की अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति कब लागू की गई ?
(a) 1969 ई.
(b) 1971 ई.
(c) 1983 ई.
(d) 1991 ई.
30. SI पद्धति में लेंस की शक्ति की इकाई क्या है ?
(a) वाट 
(b) डायोप्टर
(c) ऑप्टर
(d) मीटर
31. निम्नलिखित में से कौन-सा एक सुमेलित नहीं है ?
(a) डेसीबल - ध्वनि की प्रबलता (तीव्रता ) की इकाई
(b) अश्व शक्ति - शक्ति की इकाई
(c) समुद्री मील - नौसंचालन में दूरी की इकाई
(d) सेल्सियस - ऊष्मा की इकाई
32. 'ल्यूमेन' किसका मात्रक है ?
(a) ज्योति तीव्रता का
(b) ज्योति फ्लक्स का
(c) उपर्युक्त दोनों का
(d) इनमें से कोई नहीं
33. भौतिक मात्रा 'ज्याति' की इकाई क्या है ?
(a) सीमेंस
(b) टेस्ला
(c) लक्स
(d) वेबर
34. पास्कल' इकाई है–
(a) आद्रता की
(b) दाब की
(c) वर्षा की
(d) तापमान की
35. जूल' निम्नलिखित की इकाई है-
(a) ऊर्जा
(b) बल
(c) दाब
(d) तापमान
36. ‘हटर्ज' (Hz) क्या मापने की यूनिट है ?
(a) तरंगदैर्ध्य
(b) तरंगों की स्पष्टता
(c) तरंगों की तीव्रता
(d) तरंगों की आवृत्ति
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Sat, 27 Apr 2024 05:59:27 +0530 Jaankari Rakho