Jaankari Rakho & : संस्कृत व्याकरण https://m.jaankarirakho.com/rss/category/संस्कृत-व्याकरण Jaankari Rakho & : संस्कृत व्याकरण hin Copyright 2022 & 24. Jaankari Rakho& All Rights Reserved. परिशिष्ट & अनुवाद के लिए कुछ गद्यांश https://m.jaankarirakho.com/597 https://m.jaankarirakho.com/597 परिशिष्ट - अनुवाद के लिए कुछ गद्यांश
  1. श्यामा पत्र लिखती है। रमेश आम (आम्रं ) खाता है। तुमलोग कहाँ जाते हो ? वह रामायण पढ़े। मैं ध्यान से पढ़ता हूँ। तुझे संस्कृत (संस्कृतं) पढ़नी चाहिए। सीता अशोकवन में थी। नन्दन के साथ राम घर जाएगा।
  2. पेड़ से पत्ते गिरते हैं। दशरथ अयोध्या के राजा थे। जल में चन्द्रमा (चन्द्रं) देखो। मोहन पिता के साथ घर गया। हमलोग कल नाटक (नाटकं) देखेंगे। लड़के पाठशाला जाएँगे। अरुण सातवें वर्ग में पढ़ता है।
  3. मैं घर जाना (गृहं गन्तुम्) चाहता हूँ। नदी बहती है। रावण लंका का राजा था। तू यहाँ क्या करता है? वे दोनों स्कूल गए। मैं रात को दूध-भात (दुग्धं भक्तं च) खाता हूँ। वह बैठकर (उपविश्य) पढ़ती है। गरीबों को धन दो।
  4. लक्ष्मण राम के प्रिय भाई थे । बच्चा (शिशु :) दूध पीता था। घर में दीप जलता है। सीता मुनि के आश्रम में थी। घोड़े मैदान में तेजी से (वेगेन) दौड़ते हैं। तुम दोनों घर जाओ। सदा सत्य बोलो । भाई घर में नहीं है। मैं कहाँ रहूँगा ?
  5. वह दाल-भात खाएगा। तुम कहाँ रहोगे? कुएँ से जल लाओ। सुग्रीव राम के मित्र थे। खेत में फसल (शस्यम्) है। मैं घर जाकर पढूँगा। दूसरे का धन मत (मा) हरो। वह युद्ध में जीतेगा। दिनेश कल मुंगेर गया। सुरेश रामायण पढ़ेगा।
  6. वे कमल के फूल हैं। तुम जल्द उठ जाओ । इस कुएँ में पानी नहीं है। दो काले कुत्ते घूमते हैं। ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। आजकल मेघ नहीं बरसते हैं। दूध लाओ। बगीचे में लड़कियाँ फूल सूँघती हैं।
  7. वे मीठे फल हैं। वह मुंगेर जाएगा। ध्यान से पढ़ो। वह खाकर आएगा। प्रतिदिन रामायण पढ़नी चाहिए । देश स्वतन्त्र हो गया। देखो, आँधी (वात्या) आ गई। दो लड़कियाँ पाठशाला जाती हैं। लड़के पढ़ने (पठितुम् ) गए।
  8. अयोध्या के राजा राम थे। राम की पत्नी सीता थीं। सीता के दो पुत्र थे - लव और कुश। राम के साथ लव-कुश का युद्ध हुआ । वे सब वाल्मीकि मुनि के आश्रम में थे। राम के मित्र सुग्रीव किष्किन्धा में रहते थे (वसतिस्म) ।
  9. श्रम के बिना विद्या नहीं होती है। सीता कलम से (कलमेन) पत्र लिखती थी | मेरी माता रोटी पकाती है ( पचति) । तुम कल कहाँ गए थे ? प्रातः काल भ्रमण करना चाहिए। मेरे पिताजी कल काशी जाएँगे। तुम्हारे वर्ग में कितने (कति) छात्र हैं? वे लोग वहाँ कथा सुनते हैं। मन्त्रियों ने (मन्त्रिणः) अपना पद ग्रहण किया है।
  10. मेरे वर्ग में पचास छात्र हैं। तुम यहाँ बैठकर क्या करते हो? हरि के आने पर (हरौ आगते) मैं जाऊँगा। क्या तुम्हें मिठाई (मिष्टान्नं) पसन्द नहीं (न रोचते)? मेरे पिताजी काशी में रहते हैं। राजा दरिद्रों को धन देते हैं। चावल से भात होता है। गुरु को प्रणाम करना चाहिए। लड़के गेंद (कन्दुकं) खरीदते हैं। पिता के साथ रमेश घर गया।
  11. बिना दुःख के सुख नहीं मिलता। सुख सब चाहते हैं, किन्तु दुःख कोई भी (कश्चिदपि) नहीं। दुःख में लोग ( जनाः ) ईश्वर का स्मरण करते हैं, सुख में सब भूल जाते हैं (विस्मरन्ति) । अच्छे मित्र के साथ संगति करनी चाहिए। मित्र का विछोह (वियोगः) असह्य होता है।
  12. घर के मालिक ने चोरों को डंडे से पीटा (अताडयत्) । वे गुरुजन को प्रणाम करेंगे। रमेश परसों (परश्वः) बंगाल जाएगा। इस वर्ष (ऐषमः) अच्छी वर्षा नहीं हुई। इसलिए फसलें (शस्यानि) अच्छी नहीं हैं। उस नदी में मछलियाँ हैं। वे लोग इस गाँव से चले गए। तुम यहाँ रहो।
  13. गाय हमें दूध देती है। माली (मालाकारः) फूल चुनता था । राजा प्रजा का पालन करता है। गुरु शिष्य से पूछते हैं। विद्वान् की पूजा करनी चाहिए। तुम क्यों नाचते हो? वह कल घर नहीं जाएगा। रघु खेत बेचकर (विक्रीय) आया। आपकी बात वह नहीं सुनेगा। जगत् में वीर ही जीतते हैं।
  14. मैं पानी पीना चाहता हूँ। अब तुम घर जाओ। सूर्य डूबते (अस्तंगते सूर्ये) वह आ गया। यहाँ दो घोड़े दौड़ते हैं। हरि का छोटा भाई मेरे साथ पढ़ता है । मोहन कल (श्वः) काशी जाएगा। काशी में विश्वनाथजी का मन्दिर है। ध्यान से संस्कृत पढ़नी चाहिए।
  15. वे कल मुंगेर से आएँगे । रमा भात - दाल खाती है। मेरे पास रामायण नहीं है। तुम सुरेश के साथ घर जाओ | पटना कौन (कः) जाएगा? बकरियाँ मैदान में चरती हैं। क्या वह आज नहीं आएगा?
  16. प्रातःकाल प्रत्येक दिन टहलना चाहिए। वह (तत्) फूल अच्छा नहीं है। वे पत्ते हरे (हरितानि) हैं। वह बाघ से डरता है। सुरेन्द्र साँप को डंडे से (लगुडेन) मारता है। लड़के आज पढ़ने (पठितुम्) नहीं गए। हमलोग सबेरे जाएँगे।
  17. उसको पाठ याद करना चाहिए (स्मरेत् ) तुमलोग यहीं बैठो। जो मेहनत करेगा वह सफल होगा। स्त्रियाँ (स्त्रीयः) कथा सुनकर (श्रुत्वा) घर आईं । तुमलोग वहाँ जाकर क्या करोगे? मैंने आपकी (भवतः) बात सुनी। क्या उसके हाथ में रामायण है ?
  18. बड़ों को प्रणाम करना चाहिए । वह किसी (कस्मिंश्चित्) ऊँचे स्थान पर बसेगा। सबकी बात (वचन) सुननी चाहिए। क्या मेरे साथ तुम घर चलोगे? हाँ (आम्), आपके साथ चलूँगा । वह कल आया। सड़क पर घोड़े दौड़ते हैं।
  19. उस विद्यालय में कितने छात्र पढ़ते हैं? अष्टम वर्ग में सौ (शत) लड़के पढ़ते हैं। उसे दूध अच्छा नहीं लगता। मैं पुस्तक खरीदूंगा । उस पुस्तक में कितने पृष्ठ हैं? किसान भूखे को (बुभुक्षिताय) अन्न देता है। खेत की फसल नष्ट हो गई।
  20. हमलोग भारतवर्ष में रहते हैं। भारत की भूमि हमारी मातृभूमि है। मैं मातृभूमि को प्रणाम करता हूँ। भारत के उत्तर में (उत्तरस्यां ) हिमालय है। हिमालय से अनेक नदियाँ निकलती हैं। उनमें (तासु) गंगा प्रमुख है। गंगा के किनारे अनेक नगर हैं। 
  21. बिहार में अनेक विद्वान् उत्पन्न हुए | हम बिहार राज्य के निवासी हैं। यहाँ की धरती उपजाऊ (उर्वरा) है। अशोक मगध के सम्राट थे | उसका वहाँ जाना (गमनम्) ठीक नहीं है। लड़के खाकर स्कूल जाएँ | सब सुखी (सुखिनः) होवें।
  22. वसंत में कोयल कूकती है (कूजति) । इस (अस्याः) नदी का जल निर्मल है। तालाब में कमल के फूल खिले हुए हैं (विकसितानि सन्ति ) | दीप जलते हैं (ज्वलन्ति)। लड़के विद्यालय से घर गए। शोक मत (मा) करो । जाते हुए (गच्छन्तः) लड़के गिर पड़े। 
  23. जीत में पागल (उन्मत्तः) नहीं होना चाहिए। वे बैठकर (उपविश्य) अखबार (समाचारपत्रम्) पढ़ते हैं। पेड़ से पके (पक्वानि ) फल गिर गए। लता में हरे (हरितानि) पत्ते हैं। तुमलोग रामायण पढ़ो | उस (तस्याः) पाठशाला में लड़कियाँ पढ़ती हैं।
  24. सत्य की जीत हमेशा (सदा) होती है। जीवन में श्रम का बहुत महत्त्व है | सत्यवादी सबका प्यारा (प्रियः) होता है। हरिश्चन्द्र सत्यवादी राजा थे। सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए (परोपकाराय) होती है। पूरब मुँह होकर (पूर्वाभिमुखः) पूजा करो । वे अपना पाठ याद करें (स्मरन्तु ) ।
  25. गाँधीजी राष्ट्रपिता थे। उन्होंने सत्य और अहिंसा का सहारा (आश्रयं) नहीं छोड़ा (अत्यजत्) । वे स्वाधीनता संग्राम के महान् योद्धा थे। उनके सतत प्रयास से देश स्वतंत्र हुआ। उनकी पत्नी कस्तूरबा थी । गाँधीजी की वाणी आज भी (अद्यापि) अमर है। वस्तुतः वे युगपुरुष थे।
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Mon, 25 Dec 2023 15:11:22 +0530 Jaankari Rakho
परिशिष्ट & अनुच्छेद लेखन https://m.jaankarirakho.com/596 https://m.jaankarirakho.com/596 परिशिष्ट - अनुच्छेद लेखन
निबन्ध की तरह किसी भी विषय पर अनुच्छेद लिखा जा सकता है, किन्तु उसमें निबन्ध की तरह विभाग नहीं रहते। अनुच्छेद का आकार-प्रकार विस्तृत भी नहीं होता, वह सीमित पंक्तियों में लिखा जाता है।
अनुच्छेद लिखने में यह ध्यान रखना चाहिए कि उसकी भाषा सरल और सुबोध हो तथा संक्षेप में वर्ण्य विषय की मुख्य बातें समाविष्ट हो जाएँ। जिस विषय पर अनुच्छेद लिखना हो, उसकी सारी संक्षिप्त सामग्री एक ही अनुच्छेद (पैराग्राफ) में आ जानी चाहिए। उसका कोई अंश दूसरे अनुच्छेद में नहीं लिखा जाना चाहिए। नीचे कुछ विषयों पर अनुच्छेद लिखे गए हैं, जिनको दृष्टि में रखते हुए छात्रों को चाहिए कि वे अन्य विषयों पर भी अनुच्छेद लिखने का अभ्यास करें।
प्रातः कालः
प्रातःकालः अतिशोभनः भवति। तस्मिन् काले उदितः सूर्यः अन्धकारं नाशयति तथा प्रकाशं तनोति। अस्मिन् समये मन्दं मन्दं शीतलः पवनः वहति । खगाः कूजन्ति । पुष्पाणि विकसन्ति। सर्वे जनाः स्वकार्ये संलग्नाः भवन्ति । प्रातःकाले भ्रमणं स्वास्थ्यवर्द्धकम् उत्साहप्रदं च भवति ।
सरोवर:
ग्रामात् वहिः एकः मनोहरः सरोवरः वर्तते । तस्य जलम् अति निर्मलम् अस्ति। तस्मिन् विकसितानि कमलानि मनोहराणि दृश्यन्ते । पुष्पोपरि मकरंदलुब्धाः मधुकराः गुञ्जन्ति । अनेकविधाः पक्षिणः अपि तत्र सानन्दं कूजन्ति । सरोवरस्य तटे ध्यानमग्नाः वकाः अपि दृष्टिगोचराः भवन्ति। सरोवरस्य निर्मले जले जनाः स्नानं कुर्वन्ति।
भारतवर्षम्
अस्माकं देशः भारतवर्षम् अस्ति। अस्य उत्तरस्यां पर्वतराजः हिमालयः शोभते । भारतवर्षस्य संस्कृतिः प्राचीनतमा विद्यते। अस्मिन् देशे व्यास-वाल्मीकि-भवभूतिकालिदास प्रभृतयः महाकवयः अभवन् । अत्रत्यैः विद्वद्भिः सर्वविधानि शास्त्राणि निर्मितानि। गङ्गा-यमुना- सरयू-ब्रह्मपुत्रादयः नद्यः भारतभूमिम् उर्वरां कुर्वन्ति। अस्मिन् देशे षड् ऋतवो भवन्ति । पुरा अयम् सम्पन्नः देशः पराधीनः आसीत् । किन्तु इदानीं स्वतन्त्रः संजातः।
गङ्गानदी
गङ्गा एका पवित्रा नदी विद्यते । इयम् हिमालयात् निर्गच्छति। अस्याः जलं पवित्रं पापनाशकम् भवति। धार्मिकाः जनाः गङ्गायां स्नानं कृत्वा पुण्यं लभन्ते । हिन्दूनाम् सर्वाणि यज्ञकर्माणि गङ्गाजलेनैव सम्पन्नानि भवन्ति । अस्याः तटे अनेकानि विशालानि नगराणि तथा तीर्थस्थानानि अवस्थितानि सन्ति । श्रूयते पुरा नृपः भगीरथः स्वर्गात् गङ्गां पृथिव्याम् आनीतवान्।
हिमालय:
भारतस्य उत्तरस्याम् दिशि पर्वतराजः हिमालयः वर्तते । अयं पर्वतः हिमाच्छादितः अस्ति। हिमालयात् निर्गत्य नद्यः भारतभूमिम् उर्वरां कुर्वन्ति । अस्य कन्दरासु ऋषयः तपस्यां कुर्वन्तिस्म। अधुनापि तत्र दीर्घजीविनः योगिनः यदा-कदा दृश्यन्ते। हिमालये बहुविधानि काष्ठानि, खनिजद्रव्याणि औषधानि च मिलन्ति। अस्य उच्चतमे शिखरे महादेवस्य निवासः पुराणे वर्णितः । भारतीयानां कृते हिमालयः देवोपमः अस्ति।
मम विद्यालय:
मम विद्यालयः नद्याः तटे अवस्थितः । अस्मिन् विद्यालये नव प्रकोष्ठाः सन्ति। तेषु एकः कार्यालयः अस्ति । विद्यालये द्विशतं छात्राः पठन्ति। सर्वे छात्राः नुशासिताः सन्ति। योग्यतमाः शिक्षकाश्छात्रान् मनोयोगपूर्वकं अध्यापयन्ति । विद्यालयस्य परिसरे एका सज्जिता पुष्पवाटिका अपि विद्यते। एकं क्रीडाक्षेत्रम् अपि अस्ति। तस्मिन् छात्राः कन्दुकेन क्रीडन्ति ।
मम गृहम्
ग्रामस्य मध्ये पर्णनिर्मितं (फूस का बना) मम गृहम् अस्ति । गृहस्य अग्रे एकः राजमार्गः अस्ति। गृहस्य पूर्वस्यां दिशि एका वाटिका वर्तते । तस्याम् अनेकविधानि पुष्पाणि शाकाश्च सन्ति। मम गृहे पञ्च प्रकोष्ठाः विद्यन्ते, एकस्मिन् प्रकोष्ठे पाकः भवति । एकस्मिन् अन्नभण्डारः अस्ति। त्रिषु प्रकोष्ठेषु परिवारस्य जनाः निवसन्ति । मम गृहे एका दुग्धवती धेनुः अपि अप्ति। मम भ्राता अष्टमे वर्गे पठति । पिता कृषिकार्यं करोति ।
पुष्पम्
संसारस्य मनोहरं वस्तु पुष्पम् अस्ति । इदं अतिकोमलं भवति । पुष्पस्य कमलम्, चम्पा, पाटलम्, वकुलं, यूथिका, रजनीगंधा इत्यादयः बहवः प्रकाराः सन्ति । सुगन्धीनि पुष्पाणि प्रियाणि भवन्ति। पुष्पैः देवानाम् पूजनं भवति । पुष्पाणां सौरभं पवनः चतुर्दिक्षु प्रसारयति । मधुलोलुपाः भ्रमराः पुष्पाणाम् उपरि गुञ्जन्ति । रसिकैः जनैः पुष्पहारः वक्षसि धार्यते।
मम शरीरस्य अङ्गानि
मम शरीरे विभिन्नानि अङ्गानि सन्ति । मम द्वौ हस्तौ स्तः, याभ्याम् अहं सर्वाणि कार्याणि सम्पादयामि। द्वौ चरणौ स्तः याभ्याम् अहम् चलामि। नेत्राभ्यां पश्यामि। नासिकया श्वासं गृह्णामि त्यजामि, गंधं च जिघ्रामि । कर्णाभ्यां शृणोमि । मुखेन खादामि। मस्तिष्कप्रदेशे विविधाः भावाः सञ्चरन्ति । उदरं भोजनं पाचयति तथा रस-रक्तादिकं सृष्ट्वा सर्वाणि अङ्गानि पोषयति। वस्तुतः उदरम् अङ्गानाम् विवेकशीलः नायकः अस्ति।
आदर्श: : छात्र:
आदर्शछात्रः अध्ययनशीलः भवति । स सच्चरित्रः अनुशासितः अपि भवति। स सर्वदा गुरोः आज्ञां पालयति। आदर्शछात्रः हट्टे पण्यवीथिकायां (बाजार में) वा वृथा न भ्रमति। स न केवलं पाठाभ्यासं करोति सामाजिक कार्यम् अपि मनसा करोति । कुत्रापि उद्दण्डतां न प्रदर्शयति। आदर्शछात्रः परिश्रमी परोपकारी सत्यनिष्ठः च भवति । एतादृशः छात्रः एव अध्यापकानां सहपाठिनाम् अन्येषाम् च प्रियो भवति।
गौः
गौः एकः पोष्यः (पालतू) पशुः अस्ति। सा तृणम् अन्नं च खादति। गोः दुग्धं मधुरं शक्तिवर्द्धकं भवति। दुग्धात् नवनीतं भवति, दधि भवति घृतं च भवति। अनेकानि मिष्टान्नानि दुग्धेनैव निर्मीयन्ते । गोविट् (गोबर) उर्वरकरूपेण क्षेत्रस्य उर्वराशक्तिं वर्द्धयति । गोमूत्रम् अनेकान् रोगान् नाशयति । गोः वत्सः वृषभः हलं कर्षति । अतः कृषिकार्येऽपि गौः सहायिका भवति।
अश्वः
अश्वः द्रुतगामी पशुः अस्ति । अयं हरितं घासं खादति । अन्नम् अपि भक्षयति। अयं शोभनः वाहनः (सवारी) अस्ति । पुरा अश्वः चतुरंगिणी सेनायाम् प्रमुखः आसीत्। इदानीम् अपि शान्तिस्थापनार्थम् अश्वारोहिण: (घुड़सवार) सैनिकाः सन्ति । धनिकानां रसिकानां च कृते अयं प्रियः पशुः अस्ति। अस्मिन् यन्त्रयुगे अयं महत्त्वहीनः संजातः ।
गज:
गजः स्थूलतमः महान् पशुः भवति । स वृक्षाणां शाखापत्रादिकं खादति । अन्नं मोदकं च भक्षयति । अयं सुखदायकः वाहनः अस्ति । वर्षाकाले कर्दमे अपि (कीचड़ में भी) अयं चलति। प्राचीनसमये गजः अपि सेनायाः प्रमुखम् अङ्गम् आसीत्। इदानीं तु केवलं वरयात्रिकायां (बारात में) प्रदर्शने च अस्य उपयोगः भवति।
कुक्कुरः
कुक्कुरः मांसाहारी जन्तुः अस्ति । अयम् अन्नादिकम् अपि भक्षयति । कुक्कुरः स्वामिभक्तः भवति। अपरिचितं दृष्ट्वा अयम् उच्चस्वरेण बुक्कति । अस्य घ्राणशक्तिः अतितीव्रा भवति। अस्य बुक्कनं (भूँकना) श्रुत्वा चौराः पलायन्ते । सर्वस्मिन् देशे कुक्कुराः सन्ति। इदानीं प्रशिक्षिताः कुक्कुराः चौराणाम् चोरितवस्तूनाम् च अन्वेषणे उल्लेखनीयम् कार्यं कुर्वन्ति।
वसन्तः
वसन्तः ऋतुराजः कथ्यते । वसन्ते त्रिविधः समीर: वहति । वृक्षेषु नूतनानि पल्लवानि भवन्ति । उद्याने कोकिलाः कूजन्ति । अस्मिन् समये अनेकानि पुष्पाणि विकसन्ति । वसन्ते एव आम्र-लकुच- जम्बू-पनस-फलानि फलन्ति । वसन्तस्य शोभा अपूर्वा भवति ।
वर्षाकाल:
वर्षाकालः अति मनोरमः भवति। अस्मिन् काले आकाशः मेघैः आच्छादितः दृश्यते। वने मयूराः नृत्यन्ति । मण्डूका (मेढ़क) 'टर्र-टर्र' इति शब्दं कुर्वन्ति । वर्षायाः जलेन नद्यः तडागाः च सम्पूरिताः भवन्ति । क्षेत्राणि हरितानि दृश्यन्ते । वर्षायाः जलेन अन्न-फलशाकानाम् उत्पादनं अधिकं भवति ।
दुर्गापूजा
आश्विन मासस्य शुक्ले पक्षे दुर्गापूजनं भवति । अस्मिन् अवसरे दुर्गास्थाने देव्याः प्रतिमा स्थाप्यते । प्रतिपदायाः आरभ्य दशमीं यावत् भक्ताः गन्धपुष्पादिभिः देवीं अर्चयन्ति । बहवः जनाः दुर्गासप्तशती पाठं अपि कुर्वन्ति अथवा कारयन्ति (करवाते हैं)। विजयादशम्यां सायंकाले नद्याम् मूर्ति विसर्जनं क्रियते । श्रूयते चेतायां अस्मिन् एव दिने रामेण रावणः पराजितः अभवत् ।
सरस्वतीपूजा
माघशुक्लपञ्चम्यां सरस्वतीपूजनं भवति । अस्मिन् दिने छात्राः विद्यालये गंध-पुष्पफल-मिष्टान्नादिभिः सरस्वत्याः पूजां कुर्वन्ति । पूजायाः अनन्तरं प्रसादस्य वितरणं भवति। अस्मिन् अवसरे नृत्यगीतादि कार्यक्रमः आपि सम्पद्यते । परेः (दूसरे दिन) प्रातः काले नद्याम् तडागे वा प्रतिमायाः विसर्जनं क्रियते विद्यानुरागिनः अन्ये जनाः अपि सरस्वतीपूजनं कुर्वन्ति।
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Mon, 25 Dec 2023 15:08:53 +0530 Jaankari Rakho
समास https://m.jaankarirakho.com/595 https://m.jaankarirakho.com/595 समास
एकपदीभाव: : समासः – दो या दो से अधिक पदों का एक पद हो जाना समास कहलाता है; जैसे— गङ्गाजलम् (गङ्गायाः जलम्)।
जिस वाक्य से समस्त पद के अर्थ का बोध होता है, उसे विग्रह कहते हैं। यहाँ समस्त पद ‘गङ्गाजलम्' का विग्रह – ‘गङ्गायाः जलम् (गंगा का जल) हुआ। समास में पूर्वपद की विभक्ति का लोप हो जाता है, अतः गङ्गायाः में भी षष्ठी विभक्ति का लोप होकर ‘गङ्गाजलम्' सामासिक पद निष्पन्न हुआ।
समास के मुख्य छह भेद हैं— 1. अव्ययीभाव, 2. तत्पुरुष, 3. कर्मधारय, 4. द्विगु, 5. बहुव्रीहि और 6. द्वन्द्व । इन समासों के अतिरिक्त नञ्, अलुक्, मध्यमपदलोपी आदि कई गौण समास भी होते हैं।

1. अव्ययीभाव समास

पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावः - जिसका पहला पद प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पदों का सुबन्त पदों के साथ समास होता है। जैसे – उपनगरम् (नगरस्य समीपम् – नगर के समीप ) । यहाँ 'उप' अव्यय पद का 'नगर' सुबन्त पद के साथ समास हुआ है। नीचे कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं।
प्रतिदिनम् (दिनं दिनं प्रति — प्रत्येक दिन) 
यथाशक्ति (शक्तिमनतिक्रम्य – शक्ति के अनुसार) 
उपकृष्णम् (कृष्णस्य समीपम् – कृष्ण के समीप) 
अनुरूपम् (रूपस्य योग्यम् — रूप में अनुकूल) 
अध्यात्मम् (आत्मनि अधि- आत्मा में) 
सचक्रम् (चक्रेण युगपत् — चक्र के साथ) 
निर्विघ्नम् (विघ्नानाम् अभावः – विघ्नों का अभाव) 
आजीवनम् (आजीवनात् – जीवनपर्यन्त)

2. तत्पुरुष समास

उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः - तत्पुरुष - - जिसमें उत्तरपद (पर) का अर्थ प्रधान हो, उसे समास कहते हैं। जैसे – राजपुत्रः (राज्ञः पुत्रः- - राजा का पुत्र ) । इस पद में पूर्वपद ‘राजा' प्रधान न होकर उत्तर (बादवाला) पद 'पुत्र' प्रधान है, इसलिए यह तत्पुरुष समास हुआ।
तत्पुरुष समास के छह भेद हैं- - द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष, चतुर्थी तत्पुरुष, पञ्चमी तत्पुरुष, षष्ठी तत्पुरुष और सप्तमी तत्पुरुष । 
द्वितीया तत्पुरुष – जिसका पूर्वपद द्वितीयान्त हो, उसे द्वितीया तत्पुरुष कहते हैं। जैसे - 
शरणप्राप्तः (शरणम् प्राप्तः - शरण को प्राप्त करनेवाला) 
वेदविद्वान् (वेदम् विद्वान् – वेद को जाननेवाला) 
गृहगतः (गृहम् गतः - घर को गया हुआ) 
कल्पनातीतः (कल्पनाम् अतीतः - कल्पना को पार कर गया)
तृतीया तत्पुरुष – जिसका पूर्वपद तृतीयान्त हो, उसे तृतीया तत्पुरुष कहते हैं। जैसे - 
ज्ञानहीनः (ज्ञानेन हीनः - ज्ञान से हीन) 
पितृसमः (पित्रा समः – पिता के समान) 
सुखयुक्तः (सुखेन युक्तः – सुख से युक्त) 
अग्निदग्धः (अग्निना -आग से जला हुआ)
दग्धः चतुर्थी तत्पुरुष – जिसके पूर्वपद में चतुर्थी विभक्ति हो, उसे चतुर्थी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे—
देशहितम् (देशाय हितम् – देश के लिए भलाई) 
कुण्डलहिरण्यम् (कुण्डलाय हिरण्यम् – कुण्डल के लिए सोना) 
पितृसुखम् (पित्रा सुखम् - पिता के लिए सुख) 
भूतबलिः [भूताय बलिः - भूत (जीव) के लिए बलि] 
पञ्चमी तत्पुरुष – पूर्वपद में यदि पञ्चमी विभक्ति हो, तो उसे पञ्चमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे—
सर्पभीतः (सर्पात् भीतः – साँप से डरा हुआ) 
चौरभयम् (चौरात् भयम् – चोर से भय ) 
गृहनिर्गतः (गृहात् निर्गतः - घर से निकला हुआ) 
स्वर्गपतितः (स्वर्गात् पतितः – स्वर्ग से गिरा हुआ) 
षष्ठी तत्पुरुष – जिसके पूर्वपद में षष्ठी विभक्ति हो, उसे षष्ठी तत्पुरुष कहते हैं।
अशोकवृक्षः (अशोकस्य वृक्षः – अशोक का वृक्ष) 
मूषिकराजः (मूषिकानाम् राजा – चूहों का राजा) 
सुखभोगः (सुखस्य भोगः – सुख का भोग) 
सूर्योदयः (सूर्यस्य उदयः – सूर्य का उदय) 
देवार्चनम् (देवानाम् अर्चनम् – देवताओं की पूजा) 
गङ्गाजलम् (गङ्गायाः जलम् – गंगा का जल)
सप्तमी तत्पुरुष– पूर्वपद में यदि सप्तमी विभक्ति हो, तो सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं। जैसे–
रणवीरः रः (रणे वीरः - रण में वीर)
शोकमग्नः (शोके मग्नः - शोक में मग्न) 
 धर्मनिपुणः – (धर्म में निपुण) 
व्यवहारकुशलः (व्यवहारे कुशलः - -व्यवहार में कुशल)

3. कर्मधारय समास

विशेषणं विशेष्येण कर्मधारयः – -विशेषण और विशेष्य (जिसकी विशेषता बताई जाए) का तथा उपमान (जिससे उपमा दी जाती है) और उपमेय (जिसकी उपमा दी जाती है) का जो समास होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे—मधुरवचनम् (मधुरं वचनम्— मधुर वाणी) । यहाँ 'मधुरम्' विशेषण है तथा 'वचनम्’ विशेष्य।
इसके कुछ अन्य उदाहरण हैं— नीलोत्पलम् (नीलं उत्पलम्— नीला कमल), चपलबालकः (चपलः बालकः - चंचल बालक)। कृष्णसर्पः (कृष्णः सर्पः सर्प), महादेवः (महान् देवः - महा देव), सुंदरपुरुषः (सुंदरः पुरुषः - सुंदर पुरुष), महानदी (महती नदी – बड़ी नदी) ।
उपमान और उपमेय के कुछ उदाहरण – चन्द्रमुखम् (चन्द्र इव मुखम्– चन्द्र के समान मुख)। यहाँ 'चन्द्र' उपमान है तथा ‘मुखम्’ उपमेय। कुछ अन्य उदाहरण हैं—घनश्यामः [घन इव श्यामः -घन (मेघ) की तरह श्याम], नवनीतकोमलम् [नवनीतम् इव कोमलम् – नवनीत (मक्खन) की तरह कोमल], मुनिशार्दूलः (शार्दूलः इव मुनिः - शार्दूल के समान मुनि)।

4. द्विगु समास

संख्यापूर्वो द्विगुः – जिस समास में पूर्वपद संख्यावाचक हो, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे—
त्रिफला (त्रयाणाम् फलानाम् समाहारः – तीन फलों का समूह ) 
पञ्चपात्रम् (पञ्चानाम् पात्राणाम् समाहारः - पाँच पात्रों का समूह) 
त्रिभुवनम् (त्रयाणाम् भुवनानाम् समाहारः - -तीन भुवनों का समूह ) 
दशाननः [दशानां आननानाम् समाहारः - दस आननों (मुखों) का समूह]
सप्तशती (शप्तानाम् शतानाम् समाहारः - सात सौ का समूह)

5. बहुव्रीहि समास

अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः - जिस समास में किसी पद (पूर्व या पर) का अर्थ प्रधान न होकर किसी अन्य पद का अर्थ प्रतीत हो, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसेलम्बोदरः (लम्बम् उदरं यस्य असौ – लम्बा है उदर जिसका, वह), अर्थात् गणेश। यहाँ न तो ‘लम्बम्’ का अर्थ प्रधान है और न ही 'उदरम्' का। इन दोनों से भिन्न इसका 'गणेश' अर्थ हो गया।
इसी प्रकार कुछ और उदाहरण हैं— पीतांबर: [ पीतम् अम्बरं यस्य असौ – पीत है अम्बर (वस्त्र) जिसका वह], अर्थात् विष्णु, चक्रपाणिः (चक्रं पाणौ यस्य सः -चक्र है हाथ में जिसके, वह), महात्मा ( महान् आत्मा यस्य सः - जिसकी आत्मा महान् हो, वह), जितेन्द्रियः (जितानि इन्द्रियाणि येन सः - जिसने इन्द्रियाँ जीत ली हैं, वह ), निर्भयः (निर्गतं भयं मात् सः - जिससे भय निकल गया हो, वह), महाशयः -  (महान् आशयो यस्य सः –  जिसका विचार महान् हो वह ) । 

6. द्वन्द्व समास

चार्थे द्वन्द्वः -'च' (और) के अर्थ में सुबन्त पदों का जो समास होता है, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। द्वन्द्व समास के सभी पद प्रधान होते हैं। जैसे – रामकृष्णौ (रामश्च कृष्णश्च इति रामकृष्णौ — राम और कृष्ण) – यहाँ राम और कृष्ण दोनों पद प्रधान हैं। द्वन्द्व समास में समास होने पर 'च' का लोप हो जाता है। 
द्वन्द्व समास के तीन भेद हैं – (i) इतरेतर, (ii) समाहार एवं (iii) एकशेष।
(i) इतरेतर द्वन्द्व
इतरेतर द्वन्द्व में पदों के वचन के अनुसार ही वचन तथा अंतिम पद के लिंग के अनुसार ही समस्त पद का लिंग होता है। जैसे - 
रामः च लक्ष्मणः च- रामलक्ष्मणौ (राम और लक्ष्मण) 
दिनं च रजनी च – दिनरजन्यौ (दिन और रात ) 
हरिः च हरः च — हरिहरौ (हरि और हर) 
माता च पुत्रः च—मातापुत्रौ (माता और पुत्र) 
गुरुः च शिष्यः च— गुरुशिष्यौ (गुरु और शिष्य) 
सुखं च दुःखं च – सुखदुःखे (सुख :खे (सुख और दुःख) 
फलं च पुष्पं च पत्रं च – फलपुष्पपत्राणि (फल, फूल और पत्र)
(ii) समाहार द्वन्द्व
समाहार द्वन्द्व में दो या उससे अधिक पदों के समाहार (समूह, सम्मिलित रूप) का बोध होता है। प्राणी, बाघ और सेना के अंग-संबंधी शब्दों में समाहार द्वन्द्व होता है। समाहार द्वन्द्व एकवचनान्त और नपुंसकलिंग होता है। जैसे—
हस्तौ च पादौ च तेषाम् समाहारः  - हस्तपादम् (दोनों हाथ और दोनों पैर)
मृदंगः च पटहः च तयोः समाहारः  - मृदंगपटहम् (मृदंग और नगाड़ा) 
धनुः च शरः च अनयोः समाहारः - -धनुः शरम् (धनुष और तीर) 
गङ्गा च शोणः च तयोः समाहारः – गङ्गाशोणम् (गंगा और शोण)
काशी च प्रयागः च तयोः समाहारः – काशीप्रयागम् (काशी और प्रयाग)
(iii) एकशेष द्वन्द्व
जिस द्वन्द्व समास में दो या उससे अधिक पदों में एक शेष रह जाए तथा अन्य पदों का लोप हो जाए, उसे एकशेष द्वन्द्व कहते हैं। जैसे—
बालकः च बालकः च - बालकौ
लता च लता च – लते 
फलं च फलं च - फले 
देवः च देवः च देवः च – देवः
माता च पिता च–पितरौ - देवाः 

अलुक् समास

जिस समास के पूर्व पद में विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे अलुक् समास कहते हैं। जैसे - 
आत्मनेपदम्, दूरादागतः (दूर से आया हुआ) 
देवानाम्प्रियः (मूर्ख), वनेचरः, युधिष्ठिरः
उपर्युक्त उदाहरणों में आत्मने, दूरात्, देवानाम्, वने तथा युधि में विभक्ति का लोप नहीं हुआ है।

मध्यमपदलोपी समास

जिस समास में मध्यम (बीच वाला) पद का लोप हो जाए, उसे मध्यमपदलोपी समास कहते हैं। जैसे— सिंहासनम् (सिंहचिह्नितं आसनम् – इसमें 'चिह्नितम्’ मध्यम पद का लोप हो गया है। इसी प्रकार - देवब्राह्मणः (देवपूजकः ब्राह्मणः – देवपूजक ब्राह्मण)। छायातरुः (छायाप्रधानः तरुः ) – छायाप्रधान पेड़। व्यर्थः (विगतः अर्थः यस्मात् सः) — अर्थहीन, बेकार । पर्णकुटी (पर्णैः निर्मिता कुटी) – झोपड़ी । विन्ध्यगिरिः (विन्ध्यनामा गिरिः) – विन्ध्याचल । 
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Mon, 25 Dec 2023 15:05:08 +0530 Jaankari Rakho
स्त्री&प्रत्यय https://m.jaankarirakho.com/594 https://m.jaankarirakho.com/594 स्त्री-प्रत्यय
पुँल्लिंग या नपुंसकलिंग शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए जिन प्रत्ययों का प्रयोग होता है, वे स्त्री-प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे—(पुँ॰) ‘अश्व' का 'अश्वा' और (नपुं०) ‘हिमम्’ का ‘हिमानी’। यहाँ ‘अश्व’ में ‘टाप्' (आ) प्रत्यय तथा 'हिम' में 'आनुक्' (आन) का आगम होकर ‘ङीष्’ (ई) प्रत्यय लगने से ‘हिमानी’ सम्पन्न हुआ। आठ प्रमुख स्त्री-प्रत्यय हैंटाप्, डाप्, चाप् (आ), ङीप्, ङीष्, ङीन् (ई), ऊङ् (ऊ) तथा ति। नीचे इन प्रत्ययों से सम्पन्न कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं।

           

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Mon, 25 Dec 2023 14:59:31 +0530 Jaankari Rakho
तद्धित प्रत्यय https://m.jaankarirakho.com/593 https://m.jaankarirakho.com/593 तद्धित प्रत्यय
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अव्यय पदों में तद्धित प्रत्यय लगते हैं। अण्, इन्, ढक् आदि अनेक तद्धित प्रत्यय हैं। नीचे कुछ प्रमुख तद्धित प्रत्ययों का उल्लेख किया जा रहा है। जैसे—

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Mon, 25 Dec 2023 14:56:28 +0530 Jaankari Rakho
कृदन्त https://m.jaankarirakho.com/592 https://m.jaankarirakho.com/592 कृदन्त
तुमुन्, शतृ, शानच् आदि ‘कृत’ प्रत्यय कहलाते हैं। धातु के साथ इन कृत् प्रत्ययों के योग से जो पद बनते हैं, वे कृदन्त (कृत् + अन्त) कहलाते हैं।

'योग्य' तथा 'चाहिए' अर्थ में

तव्यत् (तव्य), अनीयर् (अनीय) आदि कृत प्रत्यय कहलाते हैं। 'योग्य’ तथा ‘चाहिए’ के अर्थ में इनका प्रयोग होता है। इन प्रत्ययों से युक्त शब्दों का प्रयोग विशेषण तथा क्रिया के रूप में होता है। तीनों लिंगों में ये प्रयुक्त होते हैं। जैसे—
पठ् + तव्यत् (तव्य) = पठितव्यम् (पढ़ने योग्य, पढ़ना चाहिए)
पठ् + अनीयर् (अनीय) क्रिया के रूप में = पठनीयम् (पढ़ने योग्य, पढ़ना चाहिए) 
> क्रिया के रूप में— 
तेन पुस्तकं पठितव्यम् (उसे पुस्तक पढ़नी चाहिए)।
> विशेषण के रूप में— 
पठनीयम् पुस्तकं पठितव्यम् (पढ़ने योग्य पुस्तक पढ़नी चाहिए)। 
कर्मवाच्य में सकर्मक धातु में तव्यत् आदि कृत्य प्रत्यय लगाने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति, कर्म में प्रथमा विभक्ति तथा क्रिया कर्म के अनुसार होती है। अर्थात्, कर्म के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार ही क्रिया होती है। जैसे—
राम को वेद (पुं०) पढ़ना चाहिए – रामेण वेदः पठितव्यः । 
उसे पत्रिका (स्त्री०) पढ़नी चाहिए – तेन पत्रिका पठितव्या । 
मुझे पुस्तक (नपुं०) पढ़नी चाहिए – मया पुस्तकं पठितव्यम् । 
भाववाच्य में अकर्मक धातु में तव्यत् आदि प्रत्यय लगने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति तथा क्रिया एकवचनान्त नपुंसकलिंग में होती है। जैसे—
उसे हँसना चाहिए – तेन हसितव्यम् । 
तुझे नहीं हँसना चाहिए - त्वया न हसितव्यम् । 
मुझे नहीं हँसना चाहिए – मया न हसितव्यम् ।
पुँल्लिंग में - पठितव्यः, पठनीयः ('देव' शब्द के समान) 
स्त्रीलिंग में— पठितव्या, पठनीया ('लता' शब्द के समान ) 
नपुंसकलिंग में – पठितव्यम्, पठनीयम् ('फल' शब्द के समान)

अनुवाद

मुझे काम करना चाहिए· मया कार्यं कर्तव्यम्। 
तुझे सद्ग्रन्थ लिखना चाहिए— त्वया सद्ग्रन्थः लेखितव्यः। 
लोगों को कथा सुननी चाहिए – जनैः कथा श्रोतव्या । 
शीला को समाचार पढ़ना चाहिए – शीलया समाचारः पठितव्यः ।  
महेश को फूल चुनना चाहिए – महेशेन पुष्पाणि चेतव्यानि । 
करने योग्य काम करना चाहिए – कर्तव्यं कार्यं कर्तव्यम् । 
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Mon, 25 Dec 2023 14:45:48 +0530 Jaankari Rakho
कुछ प्रेरणार्थक क्रियाएँ https://m.jaankarirakho.com/591 https://m.jaankarirakho.com/591 कुछ प्रेरणार्थक क्रियाएँ
पाठयति — पढ़ाता है
कारयति - करवाता है
बोधयति- समझाता है
पातयति—गिराता है
स्थापयति-  ठहराता है
प्रज्वालयति- जलाता है
दापयति — दिलाता है
क्राययति - खरीदवाता है
श्रावयति-सुनाता है 
दर्शयति—दिखलाता है 
स्मारयति - याद कराता है
स्वापयति - सुलाता है
भोजयति - खिलाता है
पाययति — पिलाता है 

अनुवाद करें

गुरु शिष्य को गणित पढ़ाता है — गुरु शिष्यं गणितं पाठयति। 
वह तमाशा दिखाता है - स कौतुकं दर्शयति । 
किसान दरिद्रों को खिलाता है— कृषकः दरिद्रान् भोजयति। 
पंडित कथा सुनाता है— पण्डितः कथां श्रावयति। 
माँ बच्चे को दूध पिलाती है— माता शिशुं दुग्धं पाययति।
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Mon, 25 Dec 2023 14:31:06 +0530 Jaankari Rakho
कारक और विभक्ति https://m.jaankarirakho.com/590 https://m.jaankarirakho.com/590 कारक और विभक्ति
क्रियान्वयिकारकम् - क्रिया के साथ जिसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध हो, उसे कारक कहते हैं। जैसे—‘बालकः पठति' (लड़का पढ़ता है) — इस वाक्य में 'पठति’ क्रिया का प्रत्यक्ष सम्बन्ध ‘बालकः’ से है, इसलिए 'बालकः' कर्ताकारक हुआ। 
संस्कृत में कारक के छह भेद माने गए हैं— कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण। क्रिया के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रहने के कारण सम्बन्ध और सम्बोधन को कारक नहीं माना जाता है। जैसे— रामस्य अश्वः धावति (राम का घोड़ा दौड़ता है)। इस वाक्य में ‘धावति' क्रिया का सम्बन्ध 'अश्वः' से है, न कि 'रामस्य' से; इसलिए ‘अश्वः' में कर्ताकारक हुआ और रामस्य में कोई कारक नहीं । 'अश्व' (घोड़ा) का सम्बन्ध चूँकि ‘राम’ से है, इसलिए 'राम' शब्द में षष्ठी विभक्ति हुई | 
विभक्ति—जिसके द्वारा कारक और वचनविशेष का बोध हो, उसे विभक्ति कहते हैं। प्रथमा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पञ्चमी, षष्ठी और सप्तमी -  ये सात विभक्तियाँ हैं। प्रत्येक विभक्ति में तीन वचन होते हैं।
कर्ताकारक में प्रथमा, कर्म में द्वितीया, करण में तृतीया, सम्प्रदान में चतुर्थी, अपादान में पञ्चमी, सम्बन्ध में षष्ठी तथा अधिकरण में सप्तमी विभक्ति लगती है। 
कर्ताकारक
स्वतन्त्रः कर्ता—क्रिया के सम्पादन में जो स्वतन्त्र हो, उसे कर्ताकारक कहते हैं। कर्ताकारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे— लड़का पुस्तक पढ़ता है—बालकः पुस्तकं पठति। इस वाक्य में पढ़ने की क्रिया बालक कर रहा है, इसलिए ‘बालकः’ कर्ताकारक हुआ।
प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा – शब्दार्थमात्र, संख्या, परिमाण, लिङ्ग या वचन मात्र का बोध होने पर प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे— 
शब्दार्थ मात्र में— उच्चैः, रामः, फलम् 
संख्या मात्र में— द्वौ बालकौ, त्रीणि फलानि 
परिमाण मात्र में— द्रोणो व्रीहिः (धान्य)
लिङ्ग मात्र में — तटः, नदी, तीरम् 
वचन मात्र में—बालकः (एकवचन), बालकौ (द्विवचन), बालकाः (बहुवचन)
सम्बोधने च - सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे— हे कृष्ण ! पुस्तक लाओ (हे कृष्ण! पुस्तकम् आनय) । इस वाक्य में 'हे कृष्ण' सम्बोधन है, इसलिए इसमें प्रथमा विभक्ति हुई। इसी तरह, 'हे सीते!', 'हे मुने!' आदि में समझना चाहिए। 
कर्मकारक
कर्तुरीप्सिततमं कर्म – कर्ता को क्रिया के द्वारा जो अत्यंत अभीप्सित हो, उसे कर्मकारक कहते हैं। जैसे— बच्चा चन्द्रमा को देखता है (बालः चन्द्रं पश्यति) । इस वाक्य में ‘बालः' कर्ता को 'पश्यति' क्रिया के द्वारा अभिलषित चन्द्रमा है, इसलिए 'चन्द्रं' कर्मकारक हुआ।
कर्मणि द्वितीया—कर्मकारक में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे— सीता रोटी खाती है (सीता रोटिकां खादति) । इस वाक्य में 'रोटिकां' कर्मकारक है, इसलिए इसमें द्वितीया विभक्ति हुई।
क्रियाविशेषणे च – क्रियाविशेषण में भी द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे— 1. कछुआ धीरे-धीरे चलता है-कच्छपः मन्दं-मन्दं चलति । 2. मोहन मीठी बात करता है - मोहनः मधुरं वदति।
उपर्युक्त प्रथम वाक्य में 'मन्द-मन्दं' तथा दूसरे वाक्य में 'मधुरं' क्रियाविशेषण हैं, इसलिए इनमें द्वितीया विभक्ति हुई ।
सर्वत:, परितः, अभितः (चारों ओर), उभयत: (दोनों ओर), प्रति, निकषा (समीप), धिक्, अनु, यावत् शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे - 
गाँव के चारों ओर खेत हैं— ग्रामं सर्वतः क्षेत्राणि सन्ति । 
घर के दोनों ओर पेड़ हैं — गृहम् उभयतः वृक्षाः सन्ति। 
नदियाँ समुद्र के पास जाती हैं - नद्यः समुद्रं प्रति गच्छन्ति। 
विद्यालय के निकट नदी है – विद्यालयं निकषा नदी अस्ति । 
राष्ट्र के अभक्त को धिक्कार है— राष्ट्रस्य अभक्तं धिक् ! 
वह पुस्तक की नकल करता है— स पुस्तकम् अनुकरोति। 
राम घर तक जाएगा — रामः गृहं यावत् गमिष्यति।
दुह्, याच्, प्रच्छ् आदि धातुओं के योग में दो कर्म होते हैं, और दोनों में द्वितीया जैसे - विभक्ति होती है। 
रमेश गाय दुहता है— रमेशः गां दुग्धं दोग्धि। 
किसान से अन्न माँगता है – कृषकम् अन्नं याचते। 
छात्र शिक्षक से पाठ पूछता है- -छात्रः शिक्षकं पाठं पृच्छति।
करणकारक
साधकतमं करणम्—क्रिया के करने में जो अत्यंत सहायक हो, उसे करणकारक कहते हैं। जैसे- - राधा कलम से लिखती है (राधा कलमेन लिखति ) । इस वाक्य में लिखना क्रिया का सहायक ‘कलम' है, इसलिए यह (कलम) करणकारक हुआ।
कर्तृकरणयोस्तृतीया - अनुक्त कर्ता, अर्थात् कर्मवाच्य और भाववाच्य के कर्ता में तथा करण में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे - 
कर्मवाच्य में – राम चन्द्रमा को देखता है — रामेण चन्द्रः दृश्यते । 
भाववाच्य में - मदन हँसता है— मदनेन हस्यते ।
करणकारक में— हरिण को बाण से बेधता है – मृगं बाणेन विध्यति। 
उपर्युक्त प्रथम वाक्य में कर्मवाच्य का कर्ता 'रामेण' है तथा दूसरे वाक्य में भाववाच्य का कर्ता ‘मदनेन’ है, इसलिए दोनों में तृतीया विभक्ति हुई ।
तीसरे वाक्य में ‘बाणेन' करणकारक है, इसलिए इसमें भी तृतीया विभक्ति हुई |
अपवर्गे तृतीया – कार्य-समाप्ति या फल-प्राप्ति के अर्थ में कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है | यथा – मासेन गणितं शिक्षितम् (एक मास में गणित सीख लिया)। त्रिक्रोशेन उत्तररामचरितं पठितम् (तीन कोस जाते-जाते उत्तररामचरित पढ़ लिया) ।
सहयुक्तेऽप्रधाने – सह, साकं, सार्द्धं (साथ) आदि शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे- - राम के साथ सीता वन गई — रामेण सह सीता वनम् अगच्छत्। यहाँ ‘सह' शब्द के योग में 'रामेण' में तृतीया विभक्ति लगी। इसी तरह साकं, सार्द्धं के योग में समझना चाहिए।
येनाङ्गविकार: – जिस अंग में विकार का ज्ञान हो उसमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे— पीठ का कुबड़ा – पृष्ठेन कुब्जः, पाँव से लँगड़ा – पादेन खञ्जः, कानों से बहरा – कर्णाभ्यां बधिरः । इन वाक्यांशों में क्रमशः ‘पृष्ठेन', 'पादेन' तथा 'कर्णाभ्यां अंगसूचक शब्दों में विकार रहने के कारण तृतीया विभक्ति हुई | 
प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम् – प्रकृति, जाति, आकृति, नाम आदि कई शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे— प्रकृत्या शूरः ( स्वभाव से वीर), जात्या ब्राह्मणः (जाति से ब्राह्मण), आकृत्या सुन्दरः (आकृति से सुन्दर), नाम्ना सुरेशः (नाम से सुरेश), सुखेन शेते (आराम से सोता है) इत्यादि ।
इत्थंभूत लक्षणे – जिस लक्षण से कोई व्यक्ति या पदार्थ पहचाना जाए, उसमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे – जटाभिः तापसः (जटाओं से तपस्वी ज्ञात होता है), शिखया हिन्दुः (चोटी से हिंदू मालूम पड़ता है), पुस्तकैः छात्रः (पुस्तकों से छात्र ज्ञात होता है)।

अनुवाद

घोड़ा वहाँ दौड़ता है — अश्वः तत्र धावति । 
हे रमेश ! श्याम यहाँ है— रमेश ! श्यामः अत्र अस्ति। 
नरेश और महेश खेलते हैं – नरेशमहेशौ खेलतः । 
हाथी नहीं दौड़ते हैं — गजाः न धावन्ति। 
राम अखबार पढ़ता है. - रामः समाचारपत्रं पठति ।
सड़क के दोनों ओर पेड़ हैं— मार्गम् उभयतः वृक्षाः सन्ति। 
लक्ष्मण ने राम से कहा - लक्ष्मणः रामं प्रति अवदत् ।
खरहा तेजी से दौड़ता है - शशकः वेगेन धावति ।
पुत्र के साथ पिता जाता है — पुत्रेण सह पिता गच्छति। 
बैल को डंडे से पीटता है — वृषभं दण्डेन ताडयति। 
वह आँखों का अन्धा है—स नेत्राभ्याम् अन्धः अस्ति। 
दिनेश सरल स्वभाव का है – दिनेशः प्रकृत्या सरलः । 

सम्प्रदानकारक

कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम् – जिसको दिया जाए, उसे सम्प्रदानकारक कहते हैं। जैसे- - ब्राह्मण को वस्त्र देता है (ब्राह्मणाय वस्त्रं यच्छति) । इस वाक्य में ब्राह्मण को वस्त्र देने की बात कही गई है, इसलिए 'ब्राह्मणाय' सम्प्रदानकारक हुआ।
चतुर्थी सम्प्रदाने – सम्प्रदानकारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे— छात्र को पुस्तक देता है (छात्राय पुस्तकं ददाति) । इस वाक्य में छात्र सम्प्रदानकारक है, इसलिए इसमें चतुर्थी विभक्ति लगाकर 'छात्राय' हुआ।
नमः, स्वस्ति आदि शब्दों के योग में भी चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे— राम को प्रणाम—रामाय नमः, शारदा को प्रणाम – शारदायै नमः लोगों का कल्याण हो — जनेभ्यः स्वस्ति ।
रुच्यर्थानां प्रीयमाण: - रुच् धातु तथा उसके समानार्थक अन्य धातुओं के योग में प्रसन्न होनेवाले में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे— बच्चे को लड्डू अच्छा लगता है- बालकाय मोदकं रोचते।
अपादानकारक
ध्रुवमपायेऽपादानम् – जिस निश्चित स्थान से कोई वस्तु अलग हो, उसे अपादानकारक कहते हैं। जैसे— 'पेड़ से पत्ते गिरते हैं. - वृक्षात् पत्राणि पतन्ति'। इस वाक्य में पेड़ से पत्ते अलग होते हैं, इसलिए 'वृक्षात्' अपादानकारक हुआ।
अपादाने पञ्चमी -  अपादान में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे— 'घर से लड़का जाता है’—गृहात् बालकः गच्छति'। इस वाक्य में ‘गृहात्' अपादानकारक है, इसलिए इसमें पञ्चमी विभक्ति हुई।
जिससे कोई वस्तु उत्पन्न हो, उसमें भी पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे - रस से रक्त उत्पन्न होता है— रसात् रक्तम् प्रजायते।
बहिः (बाहर), आरात् (समीप), ऋते (बिना), दिशा, देश वाचक आदि शब्दों के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे - 
गाँव के बाहर विद्यालय है— ग्रामात् बहिः विद्यालयः अस्ति। 
घर के समीप खेत है— गृहात् आरात् क्षेत्रम् अस्ति। 
परिश्रम के बिना विद्या नहीं होती है— परिश्रमात् ऋते विद्या न भवति। 
गाँव से उत्तर तालाब है – ग्रामात् उत्तरस्यां तडागः अस्ति। 
भारत से पश्चिम इंगलैंड है— भारतात् पश्चिमायाम् आंग्लदेशः।
भीत्रार्थानां भयहेतुः—भयार्थक और रक्षार्थक धातुओं के योग में भय का जो कारण रहता है उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे— वह साँप से डरता है — सः सर्पात् बिभेति। सिपाही बदमाशों से लोगों की रक्षा करते हैं – राजपुरुषाः दुष्टेभ्यः जनान् रक्षन्ति।
पृथग्विनाभ्यां द्वितीयातृतीये च – पृथक् (अलग) और बिना शब्दों के योग में पञ्चमी, तृतीया और द्वितीया तीनों विभक्तियाँ होती हैं। जैसे— आँवले के तेल से अलग यह तेल है—आमलकी तैलात् (तैलेन, तैलं) पृथक् इदम् तैलम्— धर्म के बिना सुख नहीं मिलता—धर्मात् (धर्मेण, धर्मं) बिना सुखं न मिलति।
अन्यार्थैः– अन्य, इतर, अतिरिक्त, भिन्न आदि अन्यार्थक शब्दों के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे – मित्र के सिवा दूसरा कौन सहायक हो सकता है—मित्रात् अन्यः कः सहायकः भवति? सरकार से अलग यह संघ है— सर्वकारात् भिन्नः अयं संघः ।
सम्बन्धकारक
षष्ठी शेषे– कर्तादि कारकों से भिन्न ‘शेष', अर्थात् स्व-स्वामिभावादि सम्बन्धकारक में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे- - राम का दूत-रामस्य दूतः । यहाँ राम और दूत में स्वस्वामिभाव सम्बन्धकारक है। देवदत्त का बेटा – देवदत्तस्य पुत्रः – यहाँ जन्य-जनकभाव सम्बन्ध है। इसी तरह, किसी भी प्रकार के सम्बन्धकारक में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे – विद्यालय का छात्र- - विद्यालयस्य छात्रः, माता का हृदय – मातुः हृदयम्, राष्ट्र का नेता – राष्ट्रस्य नेता आदि । 
दूरम् अन्तिकम् (समीप), कुशलम्, हितम् आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है। दूरम् और अन्तिकम् के योग में पञ्चमी विभक्ति भी होती है। जैसे— 
गाँव से दूर विद्यालय है - ग्रामस्य (ग्रामात्) दूरं विद्यालयः अस्ति। 
विद्यालय के समीप कुआँ है— विद्यालयस्य (विद्यालयात्) अन्तिकं कूपः अस्ति। 
आपका कल्याण हो - भवतः कुशलं भवेत्।
समाज की भलाई करनी चाहिए – समाजस्य हितं कुर्यात् ।
तुल्यार्थैस्तृतीया च— तुल्य, सम आदि समानार्थबोधक शब्दों के योग में षष्ठी और तृतीया दोनों विभक्तियाँ होती हैं। जैसे— सत्य के समान तप नहीं है— सत्यस्य (सत्येन) तुल्यं तपः नास्ति।
अधिकरणकारक
आधारोऽधिकरणम् – क्रिया के आधार को अधिकरण कहते हैं। जैसे– 'विद्यालय में छात्र पढ़ते हैं — विद्यालये छात्राः पठन्ति'। इस वाक्य में छात्रों के पढ़ने का आधार ‘विद्यालय’ है, इसलिए 'विद्यालये' अधिकरणकारक हुआ।
सप्तम्यधिकरणे- अधिकरणकारक में सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे— 'पेड़ पर कौआ है—वृक्षे काकः अस्ति । इस वाक्य में 'वृक्षे' अधिकरणकारक है, इसलिए इसमें सप्तमी विभक्ति हुई ।
निर्धारणे षष्ठी – अनेक में से यदि किसी एक वस्तु की महत्ता बताई जाए, तो वहाँ षष्ठी और सप्तमी दोनों विभक्तियाँ होती हैं। जैसे— पर्वतों में हिमालय श्रेष्ठ है— पर्वतेषु (या पर्वतानां) हिमालयः श्रेष्ठः । कवियों में कालिदास श्रेष्ठ हैं — कविषु ( या कवीनां) कालिदासः श्रेष्ठः।

अनुवाद

राजा गरीब को धन देता है  - राजा निर्धनाय धनं ददाति । 
श्रीकृष्ण को प्रणाम — श्रीकृष्णाय नमः । 
राम विद्यालय से आता है — रामः विद्यालयात् आगच्छति। 
गाँव से बाहर बगीचा है – ग्रामात् बहिः उद्यानम् अस्ति। 
वह बाघ से डरता है. -सः व्याघ्रात् बिभेति। 
विज्ञान से भिन्न साहित्य है – विज्ञानात् भिन्नं साहित्यम् अस्ति। 
रमेश का घोड़ा चरता है – रमेशस्य अश्वः चरति। 
घर के समीप पेड़ हैं — गृहस्य अन्तिकं वृक्षाः सन्ति । 
राष्ट्र का हित करना चाहिए – राष्ट्रस्य हितं कुर्यात् । 
ऑफिस में किरानी हैं— कार्यालये लिपिकाः सन्ति । 
क्या इस गाँव में सज्जन नहीं हैं— किम् अस्मिन् ग्रामे सज्जनाः न सन्ति ? 
पण्डितों में जगन्नाथ श्रेष्ठ थे – पण्डितेषु जगन्नाथः श्रेष्ठः आसीत्।
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Mon, 25 Dec 2023 14:21:56 +0530 Jaankari Rakho
क्रिया&प्रकरण https://m.jaankarirakho.com/589 https://m.jaankarirakho.com/589 क्रिया-प्रकरण

तिङन्त पद

क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे – भू, गम्, पा, स्था इत्यादि । 
धातुओं में तिङ् विभक्तियाँ लगाकर जो क्रिया - पद बनते हैं, उन्हें तिङन्त पद कहते हैं। जैसे—भवति, गच्छति, पिबतु, तिष्ठेत् आदि । सकर्मक और अकर्मक भेद से क्रिया दो तरह की होती है।
सकर्मक
जिसमें कर्म लगे, अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार और फल अलग-अलग रहें, उसे ‘सकर्मक' कहते हैं। जैसे- बालक दूध पीता है— 'बालकः दुग्धं पिबति’- -इस वाक्य में ‘पिबति’ क्रिया का व्यापार 'बालक' में है तथा पीने का फल ( पीया जाना) 'दूध' में है। इसलिए पीना यानी ‘पा' धातु सकर्मक हुआ। 
गमन, भोजन, दर्शन, पठन, पूजन, चिन्तन, ज्ञान, बन्धन, मुक्ति इत्यादि अर्थबोधक धातु सकर्मक कहलाते हैं।
अकर्मक
जिसमें कर्म की अपेक्षा नहीं रहे, अर्थात् क्रिया के व्यापार और फल दोनों एक ही में रहें, उसे अकर्मक कहते हैं। जैसे— 'महेश हँसता है' – 'महेशः हसति -  इस वाक्य में हँसने का काम और हँसना फल दोनों महेश में ही है। इसलिए 'हस्' धातु अकर्मक हुआ। 
हर्ष, शोक, लज्जा, भय, रोदन, नर्तन, शयन, जीवन, मरण, जागरण, वृद्धि, क्षय, सत्ता, स्थिति, दीप्ति (चमकना), खेल इत्यादि अर्थबोधक धातु अकर्मक कहलाते हैं।
ये सभी धातु भवादि, अदादि, जुहोत्यादि, दिवादि, स्वादि, तुदादि, रुधादि, तनादि, क्र्यादि तथा चुरादि, इन दस गुणों में बँटे हुए हैं।

काल

लेट्, संस्कृत में कालबोधक दस लकार हैं— लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ्, लृट्, लिट्, लुट्, लुङ् और लृङ्। यहाँ केवल प्रथम पाँच लकारों का ही उल्लेख किया जा रहा है। प्रत्येक लकार में तीन पुरुष होते हैं – 1. प्रथम पुरुष, 2. मध्यम पुरुष और 3. उत्तम पुरुष। प्रत्येक पुरुष में तीन वचन होते हैं – 1. एकवचन, 2. द्विवचन तथा 3. बहुवचन ।
लट्
लट् लकार वर्तमानकाल में होता है। जो समय बीत रहा है, उसे वर्तमानकाल कहते हैं। जैसे - बालक पढ़ता है— बालकः पठति। मैं हँसता हूँ — अहं हसामि। 
लोट्
लोट् लकार आज्ञा, अनुरोध, प्रश्न, आशीर्वाद इत्यादि अनुज्ञा अर्थ में होता है। जैसे— तुम पढ़ो – त्वम् पठ। वह घर जाए- स गृहं गच्छतु। मैं घर जाऊँ– अहम् गृहं — गच्छानि ?
लङ्
लङ् लकार का प्रयोग भूतकाल में होता है। जो समय बीत गया है, उसे भूतकाल कहते हैं। जैसे— रमेश विद्यालय गया – रमेशः विद्यालयम् अगच्छत् । मैं घर गया – अहम् गृहम् अगच्छम्। तुमने पुस्तक पढ़ी – त्वम् पुस्तकम् अपठः । 
विधिलिङ्
विधिलिङ् का प्रयोग ‘चाहिए’, ‘सकना तथा लोट् लकार (अनुज्ञा) के सभी अर्थों में होता है। जैसे— उसे सच बोलना चाहिए – स सत्यं वदेत् । मुझे रामायण पढ़नी चाहिए — अहं - रामायणं पठेयम्।
लृट्
लृट् लकार भविष्यत्काल में होता है। जो होनेवाला है, उसे भविष्यत्काल कहते हैं। जैसे—वह घर जाएगा - स गृहं गमिष्यति। मैं वेद पढूँगा – अहम् वेदम् पठिष्यामि। - तुम तमाशा देखोगे – त्वम् कौतुकं द्रक्ष्यसि। 

अनुवाद

मोहन ने रामायण पढ़ी – मोहनः रामायणम् अपठत् । 
देवदत्त वेद पढ़े – देवदत्तः वेदं पठतु | 
चोर धन हरते हैं— चौराः धनं हरन्ति। 
पृथ्वीराज ने संयुक्ता का हरण किया —– पृथ्वीराजः संयुक्ताम् अहरत् ।
नदी का पानी गिरता है— नद्याः जलम् पतति। 
भोज राजा हुआ — भोजः राजा अभवत् ।
हमलोग भात-दाल खाते हैं – वयम् भक्तं द्विदलं च खादामः । 
रात में दही नहीं खाना चाहिए— रात्र्यां दधि न खादेत्।  
यह मुनि का आश्रम है – अयम् मुनेः आश्रमः अस्ति।
वह युद्ध जीत गया – स युद्धम् अजयत्। 
सुदामा कृष्ण के मित्र थे – सुदामा कृष्णस्य सखा आसीत् । 
वे सच कहते हैं— ते सत्यं वदन्ति।
जंगल में बहुत फल हैं— वने बहूनि फलानि सन्ति । 
मैं काम करता हूँ — अहम् कार्यम् करोमि । 
सिंह वन में रहता है— सिंहः वने वसति । 
यहाँ बहुत दाता हैं— अत्र बहवः दातारः सन्ति । 
वे पाठशाला में क्या करते हैं? — ते पाठशालायां किं कुर्वन्ति ? 
महर्षि व्यास ने महाभारत लिखा- महर्षि व्यासः महाभारतम् अलिखत् । 
इस कुएँ का जल मीठा था – अस्य कूपस्य जलं मधुरम् आसीत् । 
तुम सच बोलो – त्वम् सत्यं वद। 
वह पढ़कर दौड़ेगा – स पठित्वा धाविष्यति। 
रमा पानी पीकर आती है – रमा जलं पीत्वा आगच्छति।

उपसर्ग, उपसर्ग से युक्त धातु

प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आङ् (आ), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप - ये प्रादि (22) उपसर्ग कहलाते हैं। उपसर्ग धातु के आदि में तथा प्रत्यय धातु के अन्त में लगते हैं।
उपसर्ग के लगने से धातु के अर्थ में विचित्र परिवर्तन हो जाता है। जैसे—‘गच्छति' का अर्थ होता है—‘जाता है', किन्तु उसमें 'आ' उपसर्ग लगने से ‘आगच्छति’ हो जाता है, जिसका अर्थ होता है — 'आता है'।
नीचे कुछ अर्थसहित उपसर्ग से युक्त धातु दिए जा रहे हैं। 
भू (भवति) - होता है
प्र + भवति प्रभवित–निकलता है 
अनु + भवति = अनुभवति — अनुभव करता है 
सम् + भवति संभवति — उत्पन्न होता है 
गम् (गच्छति) - जाता है
आ + गच्छति आगच्छति—आता है 
अनु + गच्छति = अनुगच्छति – पीछे-पीछे चलता है 
अव + गच्छति अवगच्छति— जानता है 
निर् + गच्छति = निर्गच्छति – निकलता है 
प्रति + आ + गच्छति = प्रत्यागच्छति—लौटता है
हृ (हरति) -हरण करता है
प्र + हरति = प्रहरति — प्रहार करता है 
सम् + हरति = संहरति — संहार करता है 
वि + हरति = विहरति — विचरण करता है 
परि + हरति = परिहरति — दूर करता है 
उत् + हरति = उद्धरति — उद्धार करता है 
कृ (करोति) — करता है
अप + करोति = अपकरोति - अपकार करता है 
अनु + करोति = अनुकरोति — नकल करता है 
उप + करोति = उपकरोति – उपकार करता है 
अधि + करोति =  अधिकरोति — अधिकार करता है 
नी (नयति) – ले जाता है 
आ + नयति =  अपनयति — लाता है
अनु + नयति = अनुनयति — अनुनय करता है 
अप + नयति — आनयति — दूर करता है
सृ (सरति ) - जाता है
अनु + सरति = अनुसरति — पीछे-पीछे चलता 
निः + सरति = निःसरति — निकलता है 
स्था (तिष्ठति) - ठहरता है
उत् + तिष्ठति = उत्तिष्ठति-उठता है 
उप + तिष्ठति = उपतिष्ठति – समीप रहता है 
सद् (सीदति) – दुःखी होता है
प्र + सीदति = प्रसीदति – प्रसन्न होता है 
अव + सीदति अवसीदति—दुःखी होता है = 
नि + सीदति = निषीदति – बैठता है
पत् (पतति) — गिरता है
उत् + पतति = उत्पतति  - उड़ता है 
प्र + नि + पतति = प्रणिपतति—प्रणाम करता है
नम् (नमति) – झुकता है
प्र + नमति = प्रणमति- - प्रणाम करता है
रुह् (रोहति) — उगता है
प्र + रोहति = प्ररोहति — उगता है, जनमता है 
आ + रोहति =  आरोहति — चढ़ता है 
विश् (विशति) – घुसता है 
प्र + विशति = प्रविशति – प्रवेश करता है - 
उप + विशति = उपविशति — बैठता है
तृ (तरति) — तैरता है
अव + तरति = अवतरति — उतरता है

अनुवाद

वह सुख का अनुभव करता है— सः सुखम् अनुभवति । 
लड़के घर से आते हैं — बालकाः गृहात् आगच्छन्ति। 
राम गुरु को देखकर खड़ा होता है— रामः गुरुं दृष्ट्वा उत्तिष्ठति । 
श्याम बदमाश को मारता है— श्यामः दुष्टं प्रहरति । 
राघव वेद जानता है — राघवः वेदम् अवगच्छति। 
छात्र पुस्तक की नकल करते हैं — छात्राः पुस्तकम् अनुकुर्वन्ति । 
गङ्गा हिमालय से निकलती है— गङ्गा हिमालयात् निःसरति। 
वह शिक्षक को प्रणाम करता है – सः शिक्षकं प्रणमति | 
बच्चा कोठे पर चढ़ता है— बालकः सौधम् आरोहति ।
चिड़ियाँ उड़ती हैं - खगाः उत्पतन्ति ।
वह राज्य पर अधिकार करता है - सः राज्यम् अधिकरोति ।

‘स्म' अव्यय का प्रयोग

लिट् लकार, अर्थात् परोक्ष अनद्यतन भूतकाल के अर्थ में लट् लकार के प्रथम (अन्य) पुरुष की क्रियाओं में 'स्म' लगता है। यथा- - भवतिस्म, कुर्वन्तिस्म आदि। मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष में ‘स्म' का प्रयोग नहीं होता। अतः, गच्छतिस्म या गच्छामिस्म जैसा प्रयोग करना सर्वथा भ्रामक है |

अनुवाद

युधिष्ठिर ने यज्ञ किया था – युधिष्ठिरः यजतिस्म। 
राम ने रावण को मारा- - रामः रावणं हन्तिस्म। 
राम और लक्ष्मण वन गए थे – राम-लक्ष्मणौ वनं गच्छतः स्म । 
तुलसीदास ने रामायण लिखी— तुलसीदासः रामायणं लिखतिस्म। 
देवताओं ने युद्ध किया था – देवाः युद्धं कुर्वन्तिस्म।
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Mon, 25 Dec 2023 13:37:21 +0530 Jaankari Rakho
क्रियाविशेषण https://m.jaankarirakho.com/588 https://m.jaankarirakho.com/588 क्रियाविशेषण
जिस विशेषण से क्रिया के गुण या अवस्था का बोध हो, उसे क्रियाविशेषण कहते हैं। क्रियाविशेषण में द्वितीया विभक्ति होती है तथा वह एकवचनान्त नपुंसकलिंग होता है। यथा - 
स मधुरं वदति – वह मीठा बोलता है | 
कच्छपः मन्दं-मन्दं चलति – कछुआ धीरे-धीरे चलता है। 
छात्रः द्रुतं पठति- - छात्र तेजी से पढ़ता है। 
साधु कथयति–साधु कहता है। 
कालः शीघ्रं गच्छति - समय जल्दी चला जाता है। 
अव्ययीभाव और बहुव्रीहि समास से निष्पन्न कतिपय विशेषणों का प्रयोग क्रियाविशेषण के समान होता है। यथा—
सविनयं निवेदयति—विनयपूर्वक निवेदन करता है।
निर्भयं गच्छति — निडर होकर जाता है l
सहासं वदति - हँसते हुए बोलता है। 
यथाशक्ति धनं ददाति — शक्तिभर धन देता है। 
नीचे कुछ विभिन्न क्रियाविशेषण-पद दिए जा रहे हैं। 
सुखेन वसति- आराम से रहता है। 
वेगेन धावति — तेजी से दौड़ता है। 
समूलं अपतत् – जड़ से गिर पड़ा। 
स बद्धाञ्जलिः अवदत् — वह हाथ जोड़कर बोला । 
श्यामः हसन् गच्छति - श्याम हँसते हुए जाता है । 
कपोताः एकचित्तीभूय उत्पतिताः – कबूतर एकमत होकर उड़ गए। 
प्रातः भ्रमेत् — सुबह में टहलना चाहिए। 
मृषा न वदेत् – झूठ नहीं बोलना चाहिए | 
स नूनं आगमिष्यति — वह जरूर आएगा। 
सुरेशः गृहं गत्वा पठति – सुरेश घर जाकर पढ़ता है।
नक्तम् ओदनं न खादेत् — रात में भात नहीं खाना चाहिए । 
स पठितुं शक्नोति – वह पढ़ सकता है। 
नदीम् उभयतः वृक्षाः सन्ति — नदी के दोनों ओर पेड़ हैं। 
अचिरं फलं दास्यति — शीघ्र फल देगा। 
दिनेशः श्वः पठिष्यति – दिनेश कल पढ़ेगा। 
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Mon, 25 Dec 2023 13:23:35 +0530 Jaankari Rakho
विशेषण https://m.jaankarirakho.com/587 https://m.jaankarirakho.com/587 विशेषण
विशेष्य (संज्ञा) की संख्या, अवस्था, गुण इत्यादि विशेषता बतानेवाले शब्द विशेषण कहलाते हैं। संस्कृत में विशेष्य के जो लिंग, विभक्ति और वचन होते हैं, विशेषण के भी वे ही लिंग, विभक्ति और वचन होते हैं। जैसे -
1. यह सुन्दर लड़का है — अयं सुन्दरः बालकः अस्ति।
2. यह सुशील लड़की है — इयं सुशीला बालिका अस्ति । 
3. यह सुन्दर फूल है— इदं सुन्दरं पुष्पम् अस्ति।
उपर्युक्त वाक्यों में प्रत्येक विशेष्य में दो-दो विशेषण हैं। प्रथम वाक्य में विशेष्य ‘बालक’ (लड़का) पुँल्लिंग, एकवचन है, इसलिए उसके विशेषण ‘अयं’ (इदम्– पुँ० – यह) और 'सुन्दर : ' भी पुँल्लिंग, एकवचन में प्रयुक्त हुए। 
दूसरे वाक्य में विशेष्य 'बालिका' (लड़की) स्त्रीलिंग, एकवचन है, इसलिए उसके विशेषण ‘इयं’ (इदम् – स्त्री० – यह) और 'सुशीला' भी स्त्रीलिंग, एकवचन 
में प्रयुक्त हुए। 
तीसरे वाक्य में विशेष्य 'पुष्पं' (फूल) नपुंसकलिंग, एकवचन है, इसलिए उसके विशेषण ‘इदं’ (इदम्– नपुं० – यह) और 'सुन्दरं' भी नपुं०, एकवचन में प्रयुक्त हुए। 
> पुँल्लिंग विशेष्य-विशेषण तीनों वचनों में - 
एकवचन – सुन्दर लड़का – सुन्दरः बालकः 
द्विवचन – दो सुन्दर लड़के – सुन्दरौ बालकौ 
बहुवचन – (कई) सुन्दर लड़के – सुन्दराः बालकाः 
> स्त्रीलिंग विशेष्य-विशेषण तीनों वचनों में—
एकवचन – सुशील लड़की – सुशीला बालिका 
द्विवचन – दो सुशील लड़कियाँ - सुशीले बालिके - 
बहुवचन – कई सुशील लड़कियाँ – सुशीलाः बालिकाः 
> नपुंसकलिंग विशेष्य-विशेषण तीनों वचनों में
एकवचन – सुन्दर फल – सुन्दरं फलम् 
द्विवचन - दो सुन्दर फल – सुन्दरे फले 
बहुवचन – (कई) सुन्दर फल – सुन्दराणि फलानि
> 'एक' संख्यावाचक विशेषण तीनों लिंगों में—
पुँल्लिंग - एक लड़का – एकः बालकः 
स्त्रीलिंग — एक लड़की – एका बालिका - 
नपुंसकलिंग – एक फूल – एकं पुष्पम् 
> तद्' (वह) सार्वनामिक विशेषण तीनों लिंगों में—
'पुँल्लिंग - वह पुरुष – सः पुरुषः 
स्त्रीलिंग — वह नारी – सा नारी
नपुंसकलिंग — वह फूल -  तत् पुष्पम्
> नीचे विभिन्न विशेषणों से युक्त विशेष्य दिए जा रहे हैं।
होशियार लड़का – बुद्धिमान् बालकः 
होशियार लड़की – बुद्धिमती बालिका 
विद्वान् पुरुष–विद्वान् पुरुषः 
विद्वान् स्त्री – विदुषी स्त्री 
वे लड़के— ते बालकाः 
वे लड़कियाँ—ताः बालिकाः 
वे पत्ते— तानि पत्राणि
इस विद्यालय का -  अस्य विद्यालयस्य
इस पाठशाला का - अस्याः पाठशालायाः 
इस घर में— अस्मिन् गृहे
इस सभा में — अस्यां सभायाम्
गहरे कुएँ में— गम्भीरे कूपे
उस छात्र का - तस्य छात्रस्य 
उन छात्रों का – तेषाम् छात्राणाम् 
कोई पुरुष – कश्चित् पुरुषः 
कोई नारी – काचित् नारी 
कोई फूल – किञ्चित् पुष्पम् 
काला बकरा —कृष्णः छागः 
काली गाय – कृष्णा गौः 
काला फूल कृष्णम् पुष्पम् 
पका फल- पक्वम् फलम्

अनुवाद

यह सुन्दर फूल है— इदं सुन्दरं पुष्पम् अस्ति। 
दो बुद्धिमान बालक हैं – बुद्धिमन्तौ बालकौ स्तः । 
सुशील लड़कियाँ जाती हैं – सुशीला बालिकाः गच्छन्ति । 
- उजली बकरी चरती है – श्वेता अजा चरति । 
वे फल कहाँ हैं? — तानि फलानि कुत्र सन्ति ? 
इस विद्यालय में बहुत छात्र हैं — अस्मिन् विद्यालये बहवः छात्राः सन्ति। 
उस कुएँ का जल मीठा है — तस्य कूपस्य जलं मधुरम् अस्ति । 
इस तालाब में फूल हैं— अस्मिन् तडागे पुष्पाणि सन्ति। 
उस वन में सिंह है— तस्मिन् वने सिंहः अस्ति। 
उस कुएँ से जल लाता है— तस्मात् कूपात् जलम् आनयति। 
क्या वह स्त्री जाती है? – किं सा नारी गच्छति ? 
अवध इस विद्यालय का छात्र है- -अवधः अस्य विद्यालयस्य छात्रः अस्ति।
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Mon, 25 Dec 2023 13:21:25 +0530 Jaankari Rakho
अव्यय https://m.jaankarirakho.com/586 https://m.jaankarirakho.com/586 अव्यय
लिंग, विभक्ति या वचन के कारण जिन शब्दों में किसी तरह का परिवर्तन न हो, वे अव्यय कहलाते हैं। नीचे कुछ अव्यय अर्थसहित दिए गए हैं।

अनुवाद

हमेशा सच बोलना चाहिए – सदा सत्यं वदेत् । 
राकेश इस समय खाता है— राकेशः इदानीं खादति । 
सोहन कल घर जाएगा – सोहनः श्वः गृहं गमिष्यति। 
रमेश कल पटना गया - रमेशः ह्यः पाटलिपुत्रम् अगच्छत् । 
पानी थोड़ा गरम है – जलम् ईषत् उष्णम् अस्ति।  
रात में दही नहीं खाना चाहिए – नक्तं दधि न खादेत् । 
झूठ कभी नहीं बोलना चाहिए – कदापि मिथ्या न वदेत् । 
तुम क्यों नहीं जाते हो ? – त्वम् कथम् न गच्छसि ? 
मैं सुबह टहलता हूँ — अहम् प्रातः भ्रमामि। 
वह बार-बार पढ़ता है — सः पुनः पुनः पठति।
वे दूसरे दिन घर जाएँगे - ते अन्येद्युः गृहं गमिष्यन्ति। 
रमा चुपचाप उठकर चली गई – रमा तूष्णीम् उत्थाय अगच्छत्। 
क्या श्याम भी खेलता है? – किं श्यामः अपि खेलति ? 
हाँ, श्याम भी खेलता है — आम्, श्यामः अपि खेलति । 
सब जगह सज्जन हैं — सर्वत्र सज्जनाः सन्ति। 
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Mon, 25 Dec 2023 13:15:16 +0530 Jaankari Rakho
सर्वनाम https://m.jaankarirakho.com/585 https://m.jaankarirakho.com/585 सर्वनाम
सर्व, विश्व, उभ, उभय, तद्, यद्, इंदम्, अदस्, किम्, युष्मद्, अस्मद् इत्यादि सर्वादिगणीय शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। युष्मद्, अस्मद्, तद्, इदम् आदि सर्वनाम शब्दों में सम्बोधन नहीं होता। नीचे कुछ सर्वनाम शब्दों के रूप दिए जा रहे हैं।

शेष सभी विभक्तियों के रूप पुँल्लिंग ‘तद्' शब्द के समान होंगे। यथा—तेन, ताभ्याम्, तैः आदि

अनुवाद

(मध्यम पुरुष एवं उत्तम पुरुष से सम्बद्ध)
तुम क्या पढ़ते हो ? — त्वम् किं पठसि ? 
तुम वहाँ घूमते हो —त्वम् तत्र भ्रमसि। 
तुम दोनों क्या खाते हो ? - युवाम् किं खादथः ? 
तुम दोनों वहाँ लिखते हो— युवाम् तत्र लिखथः। 
क्या तुमलोग घूमते हो? – किं यूयम् भ्रमथ? 
तुमलोग कहाँ जाते हो ? — यूयम् कुत्र गच्छथ? 
मैं नहीं पढ़ता हूँ — अहम् न पठामि ।  
मैं यहाँ खाता हूँ — अहम् अत्र खादामि। 
हम दोनों नहीं लिखते हैं— आवाम् न लिखावः ।
हम दोनों पढ़ते हैं — आवाम् पठावः ।  
संख्यावाचक एकवचनान्त 'एक'

अनुवाद 

एक लड़का दौड़ता है— एकः बालकः धावति। 
एक लड़की पढ़ती है — एका बालिका पठति । 
एक फल है— एकम् फलम् अस्ति। 
एक बकरी चरती है— एका अजा चरति। 
एक हरा पत्ता है— एकम् हरितम् पत्रम् अस्ति। 
एक विद्यालय में छात्र नहीं हैं – एकस्मिन् विद्यालये छात्राः न सन्ति। 
हमलोग यहाँ खाते हैं — वयम् अत्र खादामः ।  
हमलोग घर नहीं जाते हैं— वयम् गृहं न गच्छामः । 
यहाँ एक फूल है— अत्र एकं पुष्पं अस्ति।
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Mon, 25 Dec 2023 13:11:52 +0530 Jaankari Rakho
सुबन्त पद https://m.jaankarirakho.com/584 https://m.jaankarirakho.com/584 सुबन्त पद
जैसा कि कहा जा चुका है, प्रत्येक सुबन्त पद लिंग, वचन, पुरुष और कारक से युक्त रहा करता है। संस्कृत में छह कारक माने गए हैं— कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण सम्बन्ध और सम्बोधन कारक नहीं हैं, क्योंकि इनका क्रिया के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं है।
कर्ता—क्रिया करनेवाला कर्ता कहलाता है। कर्ताकारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे—मोहन पढ़ता है— मोहनः पठति । यहाँ 'मोहनः' कर्ताकारक है।
कर्म – क्रिया का फल जिसपर पड़े, उसे 'कर्म' कहते हैं। कर्मकारक में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे- - सः चन्द्रं पश्यति — वह चन्द्रमा देखता है। यहाँ देखना क्रिया का असर ‘चन्द्रं’ पर पड़ रहा है, इसलिए यह कर्मकारक हुआ।
करण - क्रिया करने में जो अत्यंत सहायक हो, उसे करणकारक कहते हैं। करणकारक में तृतीया विभक्ति होती है, जैसे – यन्त्रेण कार्यम् करोति – यन्त्र से काम करता है। इस वाक्य में काम करने का साधन यन्त्र है, इसलिए ‘यन्त्रेण' में करणकारक हुआ।
सम्प्रदान – जिसको कुछ दिया जाए, उसे सम्प्रदानकारक कहते हैं। सम्प्रदानकारक मे चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे— ब्राह्मणाय गां ददाति — ब्राह्मण को गाय देता है। इस वाक्य में गाय देने की बात ब्राह्मण के लिए है, इसलिए ‘ब्राह्मणाय' सम्प्रदानकारक हुआ। 
अपादान – जिससे कोई वस्तु अलग हो, उसे अपादानकारक कहते हैं। अपादानकारक में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे— वृक्षात् पत्रं पतति — पेड़ से पत्ता गिरता है। इस वाक्य में पेड़ से पत्ता का अलग होना प्रतीत होता है, इसलिए ‘वृक्षात्' में अपादानकारक हुआ।
सम्बन्ध–जिससे किसी तरह का सम्बन्ध सूचित हो, उसे सम्बन्धकारक कहते हैं। सम्बन्धकारक में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे— रामस्य अश्वः अस्ति- - राम का घोड़ा है। इस वाक्य में अश्व (घोड़ा) का सम्बन्ध राम से है, इसलिए ‘रामस्य’ में षष्ट् विभक्ति हुई |
अधिकरण — आधार (अवलंब) को अधिकरणकारक कहते हैं। अधिकरणकारक सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे – वृक्षे काकः अस्ति – पेड़ पर कौआ है। इस वाक्य में कौए के रहने का आधार वृक्ष है, इसलिए 'वृक्षे' अधिकरणकारक हुआ।
सम्बोधन – जिससे किसी को पुकारने का भाव सूचित हो, उसे सम्बोधनकारक कहते हैं। सम्बोधनकारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे— हे दिनेश ! अयि सीते! अरे दुष्टाः !
यहाँ संक्षेप में कारकों का स्वरूप बतलाया गया है, विशेष जानकारी के लिए कारकप्रकरण' देखना चाहिए।
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Mon, 25 Dec 2023 12:55:49 +0530 Jaankari Rakho
अनुवाद कैसे करें ? https://m.jaankarirakho.com/583 https://m.jaankarirakho.com/583 अनुवाद कैसे करें ?
जिस गद्यांश या वाक्य का संस्कृत में अनुवाद किया जाए उसे पहले सावधानी से पढ़कर काल, पुरुष, कारक, वचन, क्रिया आदि की पूरी जानकारी कर लेनी चाहिए । कर्तृवाच्य में कर्ता के पुरुष और वचन के अनुसार ही क्रिया के पुरुष और वचन होते हैं।
कर्ता यदि प्रथम पुरुष, एकवचन हो, तो उसकी क्रिया भी प्रथम पुरुष, एकवचन की होगी। इसी तरह, कर्ता यदि द्विवचन हो, तो क्रिया भी द्विवचन तथा कर्ता यदि बहुवचन हो, तो क्रिया भी बहुवचनान्त होगी। जैसे-
1. लड़का जाता है— बालकः गच्छति। 
2. दो लड़के जाते हैं — बालकौः गच्छतः।
 3. लड़के जाते हैं - बालकाः गच्छन्ति।
उपर्युक्त प्रथम वाक्य में 'लड़का (बालकः ) ' प्रथम पुरुष, कर्ताकारक, एकवचन है, इसलिए उसकी क्रिया ‘गच्छति' प्रथम पुरुष एकवचन की हुई। दूसरे वाक्य में ‘दो लड़के (बालकौ) ' प्रथम पुरुष, द्विवचन रहने के लिए उसकी 'गच्छतः ' क्रिया भी प्रथम पुरुष, द्विवचन में हुई। इसी प्रकार, तीसरे वाक्य में 'लड़के (बालकाः)' प्रथम पुरुष, बहुवचन रहने से उसकी ‘गच्छन्ति' क्रिया भी प्रथम पुरुष, बहुवचन में हुई।
यदि मध्यम पुरुष का कर्ता रहे तो क्रिया भी मध्यम पुरुष की होगी तथा कर्ता के वचन के अनुसार ही क्रिया का भी वचन होगा। जैसे—
1. तुम जाते हो – त्वं गच्छसि ।
2. तुम दोनों जाते हो— युवाम् गच्छथः ।
3. तुमलोग जाते हो— यूयम् गच्छथ।
उपर्युक्त प्रथम वाक्य में 'तुम ( त्वम् ) ' मध्यम पुरुष, कर्ताकारक एकवचन है। इसलिए उसकी ‘गच्छसि क्रिया भी मध्यम पुरुष एकवचन में हुई। दूसरे वाक्य में 'तुम दोनों (युवाम्)' मध्यम पुरुष, द्विवचन है, इसलिए उसकी 'गच्छथः’ क्रिया भी मध्यम पुरुष, द्विवचन की हुई । इसी तरह, तीसरे वाक्य में 'तुमलोग (यूयम्) ' मध्यम पुरुष, बहुवचन है, अतः उसकी 'गच्छथ' क्रिया भी मध्यम पुरुष, बहुवचन की हुई ।
कर्ता यदि उत्तम पुरुष का हो, तो उसकी क्रिया भी उत्तम पुरुष की होगी और कर्ता के वचन के अनुसार ही क्रिया का वचन होगा। जैसे - 
1. मैं जाता हूँ — अहं गच्छामि। 
2. हम दोनों जाते हैं- -आवाम् गच्छावः । 
3. हमलोग जाते हैं — वयम् गच्छामः ।
उपर्युक्त प्रथम वाक्य में 'मैं (अहम् ) ' उत्तम पुरुष, कर्ताकारक, एकवचन है, इसलिए उसके अनुकूल 'गच्छामि' क्रिया भी उत्तम पुरुष एकवचन की हुई। दूसरे वाक्य में 'हम दोनों (आवाम्)’ उत्तम पुरुष, द्विवचन है। अतः उसकी क्रिया 'गच्छावः' भी उत्तम पुरुष, द्विवचन में हुई। इसी प्रकार, तीसरे वाक्य में 'हमलोग (वयम्)' उत्तम पुरुष, बहुवचनान्त कर्ता की क्रिया ‘गच्छामः' भी उत्तम पुरुष, बहुवचन में हुई । 
सामान्य नियमानुसार वाक्य के आदि में कर्तृ- पद मध्य में द्वितीयादि तथा अन्त में क्रिया-पद देना चाहिए। जैसे— रामः पुस्तकं पठति- - राम पुस्तक पढ़ता है। संस्कृत वाक्य में यदि उलट-फेर भी हो जाए, तो किसी तरह की गड़बड़ी नहीं होगी। जैसेपुस्तकम् पठति रामः ।
'राम और श्याम घर जाते हैं — ऐसे द्विवचनान्त वाक्य का अनुवाद 'राम-श्यामौ गृहं गच्छतः’ अथवा ‘रामः श्यामश्च गृहं गच्छतः' ऐसा होगा। इसका एक अन्य प्रकार भी है, रामः गृहं गच्छति श्यामश्चापि — राम घर जाता है और श्याम भी।
अनुवाद करते समय यह देखना चाहिए कि मूल वाक्य का भाव पूर्ण रूप से स्पष्ट हुआ है या नहीं। कोरे शब्दानुवाद से सब जगह काम नहीं चलता। उदाहरणार्थदिनेश और महेश में दाँतकटी रोटी है। इसका 'दिनेश महेशयोः दन्तैश्छिन्ना रोटिका चलति' ऐसा शाब्दिक अनुवाद न होकर 'दिनेश- महेशयोः घनिष्ठतमा मैत्री विद्यते' ऐसा भावानुवाद होना चाहिए । 'गाँधीजी महापुरुष और महात्मा थे' इसका अनुवाद 'गाँधी महोदयः महात्मा महापुरुषश्चासीत् ' ऐसा करना चाहिए । यहाँ 'जी' सम्मानसूचक है, इसलिए इसका भावानुवाद 'महोदयः' के रूप में हुआ है।
एक वाक्य में यदि प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष के कर्ता रहें, तो क्रिया उत्तम पुरुष के बहुवचन की होगी। जैसे– 'हम, तुम और राम चलेंगे' -अहञ्च त्वञ्च रामश्च गमिष्यामः ।
यदि मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष के कर्ता एकसाथ रहें, तो क्रिया द्विवचनान्त उत्तम 'तुम और हम चलेंगे' – त्वञ्च अहञ्च गमिष्यावः । पुरुष की होगी। जैसे-
यदि प्रथम पुरुष और मध्यम पुरुष के कर्ता एकसाथ रहें, तो क्रिया द्विवचनान्त मध्यम पुरुष की होगी। जैसे– 'राम और तुम जाओगे'– रामश्चत्वञ्च 
गमिष्यथः ।
क्रिया-पद में क्रिया के अनुकूल अर्थ वाले धातु के प्रयोग से अनुवाद सुन्दर समझा ‘जाता है। जैसे—'वह भोजन करता है' – इसका अनुवाद 'स भोजनं करोति' से अच्छा ‘स खादति' होगा। 
यहाँ कुछ संकेतमात्र दिए गए हैं। जहाँ तक हो सके, अनुवाद की भाषा सरल, सुबोध, सुन्दर एवं मूल भाव को स्पष्ट करनेवाली होनी चाहिए, तभी अनुवाद सफल
समझा जाएगा।
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Mon, 25 Dec 2023 12:53:02 +0530 Jaankari Rakho
पुरुष https://m.jaankarirakho.com/582 https://m.jaankarirakho.com/582 पुरुष
वक्ता उत्तम पुरुष, श्रोता (सुननेवाला) मध्यम पुरुष तथा जिसके बारे में कहा जाए उसे प्रथम (अन्य) पुरुष कहते हैं।
अर्थात्, ‘अस्मद्’ (मैं) शब्द उत्तम पुरुष (फस्ट पर्सन), 'युष्मद्' (तू) शब्द मध्यम पुरुष (सेकंड पर्सन) तथा इन दोनों के अतिरिक्त संसार के जितने शब्द हैं वे सब प्रथम (अन्य) पुरुष (थर्ड पर्सन) कहलाते हैं।
यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि संस्कृत का प्रथम पुरुष, जिसे अन्य पुरुष भी कहा जाता है, अँगरेजी का 'फस्ट पर्सन' नहीं है। शब्दार्थ साम्य से प्रायः ऐसा भ्रम उत्पन्न हो जाता है। नीचे इसे और भी स्पष्ट किया जा रहा है ।
उत्तम पुरुष (फस्ट पर्सन) – ‘अस्मद्' (मैं) शब्द के अहम्, आवाम्, वयम् से अस्मासु तक जितने रूप हैं, सब उत्तम पुरुष कहलाते हैं।
मध्यम पुरुष (सेकंड पर्सन) – ‘युष्मद्' (तू) शब्द के त्वम्, युवाम्, यूयम् से युष्मासु तक जितने रूप हैं, मध्यम पुरुष कहलाते हैं।
प्रथम पुरुष (थर्ड पर्सन) – अस्मद् और युष्मद् शब्दों को छोड़कर यह (इदम्), वह (तद्), राम, कृष्ण, देव, दानव, स्त्री, पुरुष, शिक्षक, छात्र, पुस्तक, पशु, पक्षी, कीट, पतंग, वृक्ष, पर्वत, नदी, उत्तम, नीच, पण्डित, मूर्ख आदि संसार के जितने शब्द हैं, प्रथम पुरुष या अन्य पुरुष कहलाते हैं।
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Mon, 25 Dec 2023 12:51:41 +0530 Jaankari Rakho
वचन https://m.jaankarirakho.com/581 https://m.jaankarirakho.com/581 वचन
जिससे किसी पदार्थ की संख्या का बोध हो, उसे वचन कहते हैं। संस्कृत में तीन वचन होते हैं— एकवचन, द्विवचन और बहुवचन प्रथमादि प्रत्येक विभक्ति में तीन-तीन वचन होते हैं।

एकवचन

जिससे एक का बोध हो, उसे एकवचन कहते हैं। जैसे— 
अश्वः -  एक घोड़ा (पुंल्लिंग) 
बालिका - एक लड़की (स्त्रीलिंग) 
फलम् - एक फल (नपुंसकलिंग)
'एक' शब्द एकवचनान्त होता है। इसलिए 'एक घोड़ा दौड़ता है', इसका अनुवाद ‘एकः अश्वः धावति' ऐसा होगा, किन्तु यदि इस वाक्य में 'एकः' शब्द नहीं भी दिया जाए, तब भी ‘अश्वः धावति' का अर्थ— 'एक घोड़ा दौड़ता है' होगा, क्योंकि 'अश्वः’ कर्ताकारक एकवचन है। इसी तरह 'बालिका पठति' – एक लड़की पढ़ती है; ‘फलं पतति’—एक फल गिरता है — इन वाक्यों में 'बालिका' और 'फलं’ एकवचनान्त हैं। 
द्वय, युग, युग्म, युगल आदि द्विवचनबोधक तथा त्रय, त्रितय, चतुष्टय, वर्ग, समूह, गण, कुल आदि बहुत्वबोधक होने पर भी एकवचनान्त होते हैं। जैसे— छात्र-द्वयं पठति — दो छात्र पढ़ते हैं | बाल-समूहः गृहं गच्छति – बच्चों का दल घर जाता है।

द्विवचन

जिससे दो का बोध हो, उसे द्विवचन कहते हैं। जैसे-
अश्वौ: – दो घोड़े (पुंल्लिंग) 
बालिके— दो लड़कियाँ (स्त्रीलिंग) 
फले – दो फल (नपुंसकलिंग) 
ऊपर ‘अश्वौः’, ‘बालिके' तथा 'फले' शब्द कर्ताकारक, द्विवचन के रूप में दिखाए गए हैं। हिन्दी में द्विवचन नहीं होता, इसलिए हिन्दी में द्विवचन का बोध कराने के लिए हिन्दी वाक्य में स्पष्ट रूप से 'दो' शब्द का प्रयोग किया जाता है; जैसे - ऊपर 'दो घोड़े', 'दो लड़कियाँ' जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं। केवल 'घोड़े' या 'लड़कियाँ' कहने से द्विवचन का बोध नहीं होकर बहुवचन का बोध होगा। किन्तु, संस्कृत में अलग से 'दो' शब्द नहीं लगाना पड़ता है।

बहुवचन

जिससे दो से अधिक का बोध हो, उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे - 
अश्वाः - कई घोड़े (पुँल्लिंग) 
बालिकाः - कई लड़कियाँ (स्त्रीलिंग) 
फलानि - कई फलं (नपुंसकलिंग) 
ऊपर ‘अश्वाः’, ‘बालिकाः' तथा 'फलानि' शब्द कर्ताकारक, बहुवचन के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। वर्षा, प्राण, सिकता (बालू), असु (प्राण), दार, कति आदि शब्द बहुवचनान्त हैं। जैसे— वर्षाः भवन्ति — वर्षा होती है। प्राणाः निर्गच्छन्ति- - प्राण निकलते हैं। कति छात्राः पठन्ति- -कितने छात्र पढ़ते हैं? उत्तम पुरुष में तथा किसी का सम्मान प्रकट करने के अर्थ में एकवचन के स्थान में भी बहुवचन का प्रयोग होता है। जैसे—‘अहं पठामि (मैं पढ़ता हूँ)' के स्थान में ‘वयं पठामः' का प्रयोग हो सकता है। इसी तरह आदर करने के लिए 'गुरुवराः आगच्छन्ति' (गुरुवर आते हैं) – ऐसा प्रयोग किया जाता है।
टिप्पणी - संख्यावाची 'एक' शब्द एकवचन में एकः, एका, एकम्; द्वि शब्द सदा द्विवचन में द्वौ, द्वे और त्रि से अष्टादशन् तक बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। ऊनविंशति से ऊपर संख्या शब्द सदा एकवचन में प्रयुक्त होते हैं।
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Mon, 25 Dec 2023 12:50:31 +0530 Jaankari Rakho
लिंग https://m.jaankarirakho.com/580 https://m.jaankarirakho.com/580 लिंग
जिससे पुम् (पुरुष) वर्ग, स्त्रीवर्ग और नपुंसकवर्ग का बोध हो, उसे लिंग कहते हैं। संस्कृत में लिंग तीन प्रकार के होते हैं— पुँल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग।
  1. पुँल्लिंग - जिससे पुरुषवर्ग के शब्दों का बोध हो, उसे पुँल्लिंग कहते हैं। जैसेगजः, मेघः, पर्वतः, त्यागः, विजयः, बालकः, नरः इत्यादि ।
  2. स्त्रीलिंग- - जिससे स्त्रीवर्ग के शब्दों का बोध हो, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे— रमा, लता, मतिः, सम्पत्तिः, नदी, लक्ष्मीः इत्यादि।
  3. नपुंसकलिंग – जिससे नपुंसकवर्ग के शब्दों का बोध हो, उसे नपुंसकलिंग कहते हैं। जैसे—फलम्, ज्ञानम्, अध्ययनम्, जीवितम् इत्यादि।
संस्कृत में लिंग-निर्णय बड़ा विचित्र है। इसमें आँख मूँदकर जाति के आधार पर लिंग-निर्णय नहीं किया जा सकता । उदाहरणार्थ, शरीरवाची 'देह' शब्द पुँल्लिंग, 'तनु' शब्द स्त्रीलिंग तथा 'शरीर' नपुंसकलिंग माना जाता है। इसी तरह, स्त्रीवाची ‘दारा' शब्द पुँल्लिंग, 'नारी' शब्द स्त्रीलिंग तथा 'कलत्र' शब्द नपुंसक है। नीचे तीनों लिंगों के कुछ शब्द दिए जा रहे हैं।

पुल्लिंग

रामः, गजः, अश्वः, छागः (बकरा), मेष: (भेड़), काकः, बकः ( बगुला), सर्पः, भेकः (मेढक), त्यागः, पाकः, भावः, कर: ( हाथ ), विजयः, विनयः, मेघः, पर्वतः, सुरः, असुरः, सागरः ग्रन्थः (पुस्तक), कालः, शर: (बाण), कंठः, नखः, केशः (बाल), स्तनः, मासः, घासः, आहार, आमोदः, आघातः, उत्साहः, अवतारः, उपदेशः, कामः, कोपः, क्षोभः, क्रोधः, प्रकाशः, काय: (शरीर), दाहः, द्रोहः, पाठः, न्यायः, निषेधः, भ्रमः, भोगः, मार्गः, बोधः, लाभः, लोभः, विलापः, विवाहः, विश्रामः, शापः, स्नेहः, हासः (हँसी), आश्रमः, वृन्दः, आचारः, समूहः, वेगः, आदर्शः, आधारः, दर्शकः, द्योतकः, नर्तकः, निवेदकः, पाचकः, पाठकः, शासकः, गायकः, पोषकः, सेवकः, वातः (हवा), कर्ता, नेता, श्रोता, हर्ता, राजा, आत्मा, अरिः, असिः (तलवार), अग्निः, निधिः, विधिः, वारिधिः, वायुः, मठः, दीपः, शकट: (गाड़ी), दर्पण: (ऐनक) ग्राम: इत्यादि पुँल्लिंग हैं। 

स्त्रीलिंग

बालिका, गङ्गा, कन्या, आज्ञा, सभा, दया, कृपा, लता, आशा, भक्तिः, गतिः मतिः, कृतिः, प्राप्तिः, आसक्तिः, कीर्तिः (यश), क्रान्तिः, कान्तिः (शोभा), दृष्टिः, पुष्टिः, पूर्तिः, गीतिः, तृप्तिः, वृद्धिः, वृष्टिः (मेघ), नीतिः, श्रुतिः, शक्तिः, मुक्तिः, युक्तिः, श्रान्तिः, सम्पत्तिः, सृष्टि: (संसार), स्तुतिः, उन्नतिः, जातिः, धूलिः, स्मृतिः, बुद्धिः, रात्रिः, शान्तिः, हानिः, भूमिः, मूर्तिः, वाणीः, जननी, नदी, देवी लक्ष्मीः युवती, दासी, नगरी, गोपी, रजनी (रात), वल्ली (लता), विदुषी (पंडिता), राज्ञी (रानी), दुहिता (कन्या), स्वसा (बहन), निशा (रात), वीणा (बीन), दिक् (दिशा), प्रतिपद्, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पूर्णिमा, अमावस्या, राका (पूर्णिमा की रात), कवयित्री, रचयित्री, नेत्री (स्त्री-नेता) इत्यादि स्त्रीलिंग हैं। 

नपुंसकलिंग

अध्ययनम्, पठनम्, गमनम्, शयनम्, अर्चनम्, क्रन्दनम्, हसनम्, जीवनम्, आह्वानम्, गानम्, ज्ञानम्, पानम् (पीना), दानम्, त्राणम्, धावनम् (दौड़ना), नर्तनम्, प्रेषणम् (भेजना), रेचनम्, दोहनम्, बन्धनम्, भाषणम्, रक्षणम्, रोदनम्, वञ्चनम्, सेवनम्, स्थानम्, स्नानम्, स्मरणम्, हसितम्, गीतम्, जीवितम्, शयितम्, मरणम्, शुक्लत्वम्, देवत्वम्, आधिपत्यम्, स्तेयम् (चोरी), सख्यम् (मिताई), माधुर्यम्, सौन्दर्यम्, लाघवम्, गौरवम्, शैशवम्, शुभम्, अशुभम्, राज्यम्, चरित्रम्, पवित्रम्, मित्रम् (दोस्त), पत्रम्, पुष्पम्, फलम्, वनम्, अरण्यम्, हिमम्, शीतम्, उष्णम्, जलम्, कमलम्, उदकम्, अन्नम्, वस्त्रम्, भोजनम्, दुग्धम्, मांसम्, लवणम्, घृतम्, तैलम्, व्यञ्जनम्, इन्धनम्, उद्यानम्, मुखम् रूपम्, बलम्, हृदयम्, चन्दनम्, सुखम्, दुःखम्, पापम्, पुण्यम्, नयनम्, शस्त्रम्, शास्त्रम्, तटम्, तीरम्, क्षेत्रम् (खेत), आम्रम्, विषम्, अमृतम्, पुस्तकम्, संगीतम्, मूल्यम्, मूलम्, धनम्, स्वर्णम्, लोहम्, रक्तम्, विवरम् (बिल), हलम् (हल), कुलम्, स्थलम्, बीजम्, पत्तनम् (शहर), अङ्गम्, चित्रम्, काव्यम्, सैन्यम्, धान्यम्, युद्धम्, त्रिपथम्, चतुष्पथम्, द्वयम्, त्रितयम्, त्रयम्, शतम्, सहस्रम्, वारि, दधि, अक्षि (आँख), अस्थि (हड्डी), यशः (यशस्), मनः (मनस्), तपः (तपस्), शिरः (शिरस्) इत्यादि नपुंसक शब्द कहलाते हैं।
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Mon, 25 Dec 2023 12:48:38 +0530 Jaankari Rakho
पद&प्रकरण https://m.jaankarirakho.com/579 https://m.jaankarirakho.com/579 पद-प्रकरण
जिन शब्दों या धातुओं में विभक्तियाँ नहीं रहतीं, वे प्रातिपदिक शब्द या धातु कहलाते हैं। जैसे—राम, सूर्य, हरि, धावत्, भू, गम्, पठ् आदि। संस्कृत में शब्दों और धातुओं का इस तरह प्रयोग नहीं होता ।
जस् आदि सुप् विभक्ति से युक्त शब्द या धातु पद कहलाते हैं। सु, औ, विभक्ति से युक्त शब्द सुबन्त तथा तिप्, तस्, झि आदि तिङ् विभक्ति से युक्त धातु तिङन्त कहलाते हैं। संस्कृत में इन्हीं सुबन्त और तिङन्त पदों का प्रयोग किया जाता है। 
सुबन्त पद,यथा -
         रामः, सूर्यः, धावन्, मुनेः, वयम् आदि 
तिङन्त पद, यथा - 
        भवति, अभवत्, गच्छति, पठामि आदि 
पद के पाँच प्रकार होते हैं – 1. संज्ञा (विशेष्य) 2. विशेषण 3. सर्वनाम 4. अव्ययं 5. क्रिया।
1. संज्ञा – जो जाति, व्यक्ति, द्रव्य आदि किसी के नाम या भाव का संकेत करता है, उसे संज्ञा या विशेष्य कहते हैं। जैसे- मनुष्यः, सिंहः, रामः, वायुः, सौन्दर्यम्, पठनम् आदि
प्रत्येक संज्ञा लिंग, वचन, पुरुष, कारक और विभक्ति से जुड़ी रहती है। जैसेबालकः पठति (लड़का पढ़ता है) । इस वाक्य में बालकः शब्द पुँल्लिंग, एकवचन, प्रथम पुरुष और कर्ताकारक है। कर्ताकारक में प्रथमा विभक्ति होती है।
2. विशेषण – जिससे संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता का बोध हो, उसे विशेषण कहते हैं। जैसे— उत्तमः, नीचः, लघ्वी, मृदुः, कठोरः, मधुरम् आदि
3. सर्वनाम – सर्वादिगण में परिगणित शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। इनके अधिकांश शब्द किसी संज्ञा के स्थान पर आते हैं। जैसे— सर्व, यद्, तद्, इदम्, अस्मद्, युष्मद् इत्यादि
4. अव्यय – जिसके रूप में परिवर्तन न हो, उसे अव्यय कहते हैं। जैसे— इदानीं, सायं, कुत्र, चिरं, तत्र, किं, यदा इत्यादि
5. क्रिया – जिस धातु से क्रिया के अर्थ का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे— गच्छति, वहति, करोमि, पठसि इत्यादि

अभ्यास 

1. पद किसे कहते हैं? प्रातिपदिक शब्द और पद में क्या अन्तर है ? बताएँ।
2. पद के कितने भेद हैं? सोदाहरण बताएँ।
3. संज्ञा और विशेषण की परिभाषा बताएँ।
4. निम्नलिखित शब्दों में जो शुद्ध हों उनपर लगाएँ ।
(क) वालकान्– बालकान् 
(ख) दातृनाम् – दातॄणाम्
(ग) मूर्खेन – मूर्खेण
(घ) रन्धनम् – रण्धनम्
(ङ) बाण - बान
(च) वीना – वीणा
(छ) प्रवीण – प्रवीन
(ज) गुण – गुन
5. निम्नलिखित शब्दों में जो शुद्ध हों उनपर लगाएँ ।
(क) नदीसु – नदीषु 
(ख) धूलिसात् – धूलिषात्
(ग) आत्मसात् — आत्मषात्
(घ) अभिषेकः – अभिसेकः
(ङ) निसेधः – निषेधः —
(च) वृशभः वृषभः
(छ) विसः - विषम् 
(ज) पीयूसः - पीयूषः
(झ) परुषः -परुसः
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Mon, 25 Dec 2023 12:46:40 +0530 Jaankari Rakho
सन्धि & प्रकरण https://m.jaankarirakho.com/578 https://m.jaankarirakho.com/578 सन्धि - प्रकरण
दो वर्गों में अतिशय सामीप्य के कारण जो विकार उत्पन्न होता है, उसे सन्धि कहते हैं। जैसे - 
               देव + आलयः = देवालयः 
सन्धि तीन प्रकार की होती है — 1. स्वर सन्धि 2. व्यञ्जन सन्धि और 3. विसर्ग सन्धि।

स्वर सन्धि

स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण का जो मेल होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं; जैसे - 
               रमा + ईशः रमेशः 
स्वर सन्धि के मुख्य पाँच भेद हैं — 1. दीर्घ 2. गुण 3. वृद्धि 4. यण् और 5. अयादि।
1. दीर्घ सन्धि
अकः सवर्णे दीर्घः - -अक्, अर्थात् अ, इ, उ, ऋ, लृ के बाद यदि सवर्ण स्वर हो, तो दोनों स्वर के स्थान में दीर्घ हो जाता है। जैसे - 
               धन + अर्थी = धनार्थी
नीचे कुछ और उदाहरण दिए जा रहे हैं
अ + अ = आ                  राम + अनुजः = रामानुजः
अ + आ = आ                 रत्न + आकर: = रत्नाकारः
आ + अ = आ                 दया + अर्णवः = दयार्णवः 
आ + आ = आ                विद्या + आलयः = विद्यालयः 
इ या ई के बाद यदि इ या ई हो, तो दोनों के स्थान में दीर्घ ईकार हो जाता है। जैसे—
इ + इ = ई              रवि + इन्द्रः = रवीन्द्रः
इ + ई = ई              कवि + ईश्वरः = कवीश्वरः
ई + इ = ई              मही + इन्द्रः = महीन्द्र:
ई + ई = ई              लक्ष्मी + ईशः = लक्ष्मीशः
उ या ऊ के बाद यदि उ या ऊ हो, तो दोनों के स्थान में ऊ हो जाता है। जैसे
उ + उ = ऊ         भानु + उदयः = भानूदयः
उ + ऊ = ऊ        लघु + ऊर्मिः = लघूर्मिः
ऊ + उ = ऊ        वधू + उत्सवः = वधूत्सवः
ऊ + ऊ = ऊ       वधू + ऊहनम्: = वधूहनम्
ॠ के बाद यदि ॠ हो, तो दोनों के स्थान में ॠ हो जाता है। जैसे—
               पितृ + ऋणम् = पितॄणम्
2. गुण सन्धि
आद्गुणः -अवर्ण (अ, आ) के बाद यदि इ या ई आए, तो दोनों मिलकर ए, उ या ऊ आए, तो दोनों मिलकर ओ तथा यदि ऋ या ॠ आए, तो दोनों मिलकर अर् हो जाता है। जैसे - 
अ या आ + इ या ई = ए
सुर + इन्द्रः = सुरेन्द्रः 
नर + ईशः = नरेशः 
महा + इन्द्रः = महेन्द्रः
महा + ईश्वरः = महेश्वरः
अ या आ + उ या ऊ = ओ
हित + उपदेशः = हितोपदेशः
एक + ऊनविंशतिः = एकोनविंशतिः
गङ्गा + उदकम् = गङ्गोदकम्
महा + ऊर्मिः = महोर्मिः 
अ या आ + ॠ = अर्
देव + ऋषिः = देवर्षिः
महा + ऋषिः = महर्षिः
3. वृद्धि सन्धि 
वृद्धिरेचि – अवर्ण (अ, आ) के बाद यदि ए, ऐ, ओ, औ रहे तो दोनों के स्थान में वृद्धि आदेश होता है। अर्थात्, अ या आ के बाद यदि ए या ऐ रहे, तो दोनों मिलकर ऐ तथा ओ या औ रहे, तो दोनों मिलकर औ हो जाता है। जैसे
अद्य + एव : = अद्यैव                            
परम + ऐश्वर्यम् = परमैश्वर्यम्
ग्राम + ओकः = ग्रामौकः                       
गङ्गा + ओघः = गङ्गौघः
चित्त + औदार्यम् = चित्तौदार्यम्              
महा + औषधम् = महौषधम्
4. यण्स न्धि 
इको यणचि – इक्, अर्थात् इ, उ, ऋ, लृ के बाद यदि कोई भिन्न (विजातीय) स्वर हो, तो इ के स्थान में य्, उ के स्थान में व्, ऋ के स्थान में र् तथा लृ के स्थान में ल् हो जाता है। जैसे-
यदि + अपि = यद्यपि                      
अति + आचारः = अत्याचार:
सु + आगतम् = स्वागतम्                 
अनु + एषणम् = अन्वेषणम्
पितृ + आदेश: = पित्रादेशः             
पितृ + उपदेशः = पित्रुपदेशः
लृ + आकृतिः = लाकृतिः 

व्यञ्जन सन्धि

व्यञ्जन वर्ण का स्वर वर्ण अथवा व्यञ्जन वर्ण के साथ जो सन्धि होती है उसे व्यञ्जन सन्धि कहते हैं। जैसे - 
उत् + लेख: = उल्लेखः                  
दिक् + अम्बरः = दिगम्बर: 
स्तोः श्चुना श्चुः तो -सकार या तवर्ग के साथ यदि शकार या चवर्ग का योग हो, क्रमशः सकार के स्थान में शकार तथा तवर्ग के स्थान में चवर्ग हो जाते हैं। जैसे - 
रामस् + शेते = रामश्शेते               
सत् + चरित्रः = सच्चरित्रः
सत् + जनः = सज्जन:                 
विपद् + जालम् = विपज्जालम् 
ष्टुना ष्टुः सकार या तवर्ग के साथ यदि षकार या टवर्ग का योग हो, तो सकार के  स्थान में षकार तथा तवर्ग के स्थान में टवर्ग हो जाता है। जैसे—
आकृष् + तः = आकृष्टः                         
तत् + टीका = तट्टीका 
सत् + ठक्कुरः = सट्ठक्कुरः                    
उत् + डयनम् : = उड्डयनम् 
झलां यशोऽन्ते- - पदान्त झल् के स्थान में जश् होता है, अर्थात् स्वर वर्ण, वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण या य, र, ल, व और ह आगे रहें, तो पदान्त क् का ग्, च् का ज्, ट् का ड्, त् का द् और प् का ब् हो जाता है। जैसे— 
वाक् + ईशः = वागीशः                      
दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः
जगत् + बन्धुः = जगद्बन्धुः                  
अप् + जम् = अब्जम्
अच् + अन्तः = अजन्तः                    
षट् + रिपुः = षड्रिपुः 
यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा – यदि पदान्त में वर्ग का प्रथम या तृतीय वर्ण रहे और आगे सानुनासिक वर्ण रहे, तो वर्ग के प्रथम और तृतीय वर्ण के स्थान में उसी वर्ग का पञ्चम वर्ण हो जाता है, विकल्प से। जैसे-
सद् + मित्रम् = सन्मित्रम्, सद्मित्रम्
षट् + मासाः = षण्मासाः, षड्मासाः
तोर्लि— यदि लकार (ल्) आगे रहे, तो पदान्त त्, द् के स्थान में ल् और न् के स्थान में अनुनासिक के साथ ल् हो जाता है। जैसे
उत् + लेखः = उल्लेखः                      
तत् + लयः = तल्लयः
महान् + लाभः = महाँल्लाभः              
विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति 
शश्छोऽटि– पदान्त में यदि झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, क और प के परे श हो, तो श् के स्थान में छ हो जाता है ( पदान्त तवर्ग के स्थान में श्चुत्व होकर चवर्ग हो जाता है।) । जैसे— 
तद् + शिवः = तच्छिवः                   
तद् + शिरः = तच्छिरः
मोऽनुस्वारः पदान्त म् के बाद यदि कोई व्यञ्जन वर्ण हो,  तो म् का अनुस्वार हो जाता है। जैसे -
सम् + सारः = संसार :                    
सम् + योगः = संयोगः
मधुरम् + हसति = मधुरंहसति         
भारम् + वहति = भारंवहति 
वा पदान्तस्य – पदान्त म् के बाद यदि स्पर्श वर्ण (कवर्ग से पवर्ग तक) हो, तो पदान्त म् का अनुस्वार या परवर्ती वर्ण का पञ्चम वर्ण हो जाता है। जैसे=
मृत्युम् + जयः = मृत्युंजयः, मृत्युञ्जयः
सम् + कल्पः = संकल्पः, सङ्कल्पः
सम् + गमः = संगमः, सङ्गमः

विसर्ग सन्धि

स्वर या व्यञ्जन वर्ण के साथ विसर्ग की जो सन्धि होती है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे—
निः + आधारः = निराधारः 
मनः + हरः = मनोहरः 
विसर्जनीयस्य सः - विसर्ग के बाद यदि तवर्ग का प्रथम या द्वितीय वर्ण हो, तो विसर्ग या विसर्ग के स्थान में स् हो जाता है। जैसे- 
विष्णुः + त्राता = विष्णुस्त्राता
वा शरि- - यदि विसर्ग के आगे श, ष, स रहें, तो विकल्प से विसर्ग का विसर्ग या क्रम से श्, ष्, स् हो जाता है। जैसे-
उत्थितः : + शावकः = उत्थितश्शावकः, उत्थितःशावकः 
सुप्तः + षट्पदः = सुप्तष्षट्पदः, सुप्तः षट्पदः 
निः + सन्देहः = निस्सन्देहः, निःसन्देहः
यदि विसर्ग के आगे च या छ हो, तो विसर्ग का श्, त या थ हो, तो स् और ट या ठ हो, तो ष् हो जाता है। जैसे-
निः + चलः = निश्चलः
सरः + तीरे = सरस्तीरे
तरोः + छाया = तरोश्छाया
धनु: + टंकारः = धनुष्टंकारः

णत्व - विधान

एक ही पद में ऋ, ॠ, र् या ष् के बाद न हो, तो उसका ण हो जाता है। जैसे - 
भ्रातृ + नाम् = भ्रातॄणाम्। नृणाम्, दातृणाम्, पुष्णाति आदि 
चतुर् + नाम् = चतुर्णाम् 
यदि ऋ, र, ष् और न के बीच में स्वर वर्ण, कवर्ग, पवर्ग, य, व, ह और अनुस्वार भी पड़ जाएँ तब भी न का ण होता है। जैसे―
मृगेण, गुरुणा, रमेण, मूर्खेण, ग्रहेण, कराणाम् आदि 
पदान्त न् का मूर्द्धन्य ण् नहीं होता । जैसे – मृगान्, हरीन्, रामान्, भ्रातॄन्, नरान् आदि
रन्धनम्, ग्रन्थनम्, रघुनन्दनः वारिनिधिः, शत्रुघ्नः, त्रिनयनः प्रनष्टः, दुष्पानम् इत्यादि में न का ण नहीं होता।
वाणी, वेणी, फणी, मणि, बाणः, कल्याणः, पुण्यम्, गुणः, गणः, गणिका, वेणुः, वीणा, पाणिः, चाणक्यः, कणः, अणुः, विषाणः, निर्वाणः, कङ्कणम् आदि में ण स्वभावतः रहता है । 

षत्व विधान 

अ, आ के अतिरिक्त दूसरे स्वर वर्ण, कवर्ग या र के परे प्रत्यय के स का ष होता है। जैसे-
साधुषु, भ्रातृषु, देवेषु, चतुर्षु, नदीषु, वारिषु, वाक् + सु = वाक्षु (क् + ष = क्ष) 
'सात्' प्रत्यय के स का ष नहीं होता। जैसे– धूलिसात् एवं अग्निसात् 
अनुस्वार और विसर्ग के बीच में रहने पर भी स का ष होता है। जैसे— 
हवींषि, चुक्षुःषु, आशीषु 
पुंसु के स का ष नहीं होता।
इकारान्त और उकारान्त उपसर्ग के परे सिध्, स्था, सिच्, सद् आदि धातुओं के स का ष हो जाता है। जैसे-
                          निषेधः, प्रतिष्ठितः, अभिषेकः, निषीदति इत्यादि
अंगुष्ठः, विषमः, युधिष्ठिरः, सुषेणः, गोष्ठः, विषयः, सुषमा, मातृष्वसा इत्यादि शब्दों में स का ष होता है । वृषभः, आषाढः, मञ्जूषा, कोषः, अभिलाषः, ग्रीष्मः, उत्कर्षः, औषधम्, पाषाणः, दोषः, हर्षः, वर्षम्, द्वेषः, परुषः (कठोर), पीयूषः (अमृत), मेषः, पुष्पम्, भाषा, महिषः, मूषकः, कष्टम्, वाष्पः, इषुः (बाण), शीर्षः, विषः, प्रदोषः, षोडशः इत्यादि में ष स्वाभाविक रूप से होता है।
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Mon, 25 Dec 2023 11:44:24 +0530 Jaankari Rakho
संस्कृत व्याकरण https://m.jaankarirakho.com/577 https://m.jaankarirakho.com/577 संस्कृत व्याकरण
संस्कृत वाङ्मय में व्याकरण का स्थान सर्वोपरि है। बिना व्याकरण के न्याय, साहित्य, मीमांसा, वेदान्त इत्यादि किसी भी शास्त्र का सम्यक् ज्ञान नहीं हो सकता। व्याकरण का अर्थ ही होता है, जिससे शुद्ध शब्दों का ज्ञान हो - 'व्याक्रियन्ते व्युत्पाद्यन्ते शब्दा अनेनेति व्याकरणम्'।
व्याकरण में भाषा-संबंधी नियम रहने के कारण भाषा मर्यादित एवं परिष्कृत रहती है। अतएव व्याकरण का महत्त्व अक्षुण्ण है।
व्याकरण के मुख्य रूप से तीन भाग हैं— वर्ण, पद और वाक्य | वर्णों से पद और पदों से वाक्य बनते हैं।

वर्ण

जिस सार्थक ध्वनि का खंड नहीं हो सके, उसे वर्ण या अक्षर कहते हैं। वर्ण के दो भेद होते हैं— स्वर और व्यञ्जन ।
स्वर वर्ण
जिस सार्थक ध्वनि के उच्चारण में अन्य किसी वर्ण की सहायता नहीं ली जाए, उसे स्वर वर्ण कहते हैं। स्वर के उच्चारण में अन्दर से आनेवाली ध्वनि में किसी तरह की रुकावट नहीं होती है। स्वर 13 हैं— अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ऌ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वर के तीन भेद हैं— ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत
ह्रस्व स्वर- - ह्रस्व स्वर के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है। ये पाँच हैं— अ, इ, उ, ऋ और लृ । ह्रस्व को मूल ध्वनि या मूल स्वर भी कहते हैं । 
दीर्घ स्वर -  दीर्घ स्वर के उच्चारण में ह्रस्व से दुगुना समय लगता है, यानी ह्रस्व के उच्चारण से कुछ अधिक जोर लगाना पड़ता है। दीर्घ स्वर आठ हैं — आ, ई, ऊ, ॠ, ए, ऐ, ओ और औ ।
प्लुत स्वर — प्लुत स्वर के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक जोर लगाना पड़ता है। इसका प्रयोग सम्बोधन वगैरह में होता है। जैसे— हे कृष्ण !
व्यञ्जन वर्ण
जिसका उच्चारण स्वर की सहायता से हो, उसे व्यञ्जन वर्ण कहते हैं। ये संख्या में 33 हैं।
कवर्ग -     क  ख  ग  घ  ड.
चवर्ग -      च  छ  ज  झ  ञ
टवर्ग -      ट   ठ  ड  ढ  ण 
तवर्ग -      त   थ  द  ध   न 
पवर्ग -      प   फ  ब  भ  म 
अन्त:स्थ -  य  र  ल  व        ऊष्म - श  ष  स  ह 
अनुस्वार और विसर्ग – वर्णों के अंतर्गत अनुस्वार (.) और विसर्ग (:) की गणना नहीं होने पर भी ये वर्णों की तरह कार्य करते हैं। अनुस्वार का उच्चारण नाक से तथा विसर्ग का उच्चारण आधा 'ह' के समान होता है।
स्पर्श – क से लेकर म तक के वर्ण स्पर्श कहलाते हैं । 
अन्तःस्थ – य, र, ल और व को अन्तःस्थ वर्ण कहते हैं। 
ऊष्म – श, ष, स और ह को ऊष्म वर्ण कहते हैं।
घोष – वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण तथा य, र, ल, व और ह घोष होते हैं। 
अघोष – वर्गों के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा श, ष, स अघोष होते हैं। 
अल्पप्राण – वर्गों के प्रथम, तृतीय, पंचम तथा य, र, ल, व वर्ण अल्पप्राण होते हैं। 
महाप्राण – वर्गों के द्वितीय, चतुर्थ तथा श, ष, स, ह वर्ण महाप्राण होते हैं। 

वर्गों का उच्चारण-स्थान

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः – अ, आ, कवर्ग, ह् और विसर्ग का उच्चारण-स्थान कण्ठ है। इसलिए ये कण्ठ्य वर्ण कहलाते हैं।
इचुयशानां तालुः – इ, ई, चवर्ग, य् और श् का उच्चारण - स्थान तालु है, इसलिए ये तालव्य वर्ण कहलाते हैं।
ऋटुरषाणां मूर्द्धा — ऋ, ॠ, टवर्ग, र् और ष् का उच्चारण - स्थान मूर्द्धा है, इसलिए ये मूर्द्धन्य वर्ण कहलाते हैं ।
लृतुलसानां दन्ताः – लृ, तवर्ग, ल् और स् का उच्चारण दाँत से होता है, इसलिए ये दन्त्य वर्ण कहलाते हैं।
उपूपध्मानीयानामोष्ठौ — उ, ऊ और पवर्ग का उच्चारण - स्थान ओष्ठ है, इसलिए ये ओष्ठ्य वर्ण कहलाते हैं।
एदैतो: कण्ठतालुः – ए और ऐ का उच्चारण-स्थान कण्ठ और तालु है, इसलिए इन्हें कण्ठ्य-तालव्य कहते हैं।
ओदौतोः कण्ठौष्ठम्—ओ और औ का उच्चारण कण्ठ और ओष्ठ से होता है, इसलिए इन्हें कण्ठ्यौष्ठ्य वर्ण कहते हैं ।
वकारस्य दन्तोष्ठम् – वकार का उच्चारण दन्त और ओष्ठ से होता है, इसलिए ये दन्त्यौष्ठ्य कहलाते हैं।
ञमङणनानां नासिका च -ञ्, म्, ङ्, ण् और न् का उच्चारण स्थान कण्ठ, तालु आदि के अतिरिक्त नासिका भी है। अनुस्वार का भी उच्चारण - स्थान नासिका है।

प्रत्याहार

व्याकरण में प्रत्याहार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। दो वर्ण वाले प्रत्याहार अनेक वर्णों का बोध कराते हैं। प्रत्याहार का मुख्य आधार निम्नलिखित माहेश्वर सूत्र हैं।
1. अइउण् 2. ऋलृक् 3. एओङ् 4. ऐऔच् 5. हयवरट् 6. लण् 7. ञमङणनम् 8. झभञ् 9. घढधष् 10. जबगडदश् 11. खफछठथचटतव् 12. कपय् 13. शषसर् 14. हल्
ये चौदह माहेश्वर सूत्र हैं। इन सूत्रों के आधार पर ही अण्, अक् आदि प्रत्याहार बनाए जाते हैं। इनके अंतिम वर्ण ण्, क्, ङ् आदि हलन्त होते हैं। दो वर्ण वाले प्रत्याहार की रचना में पहला वर्ण इन्हीं सूत्रों से लिया जाता है जो हलन्त नहीं होता। दूसरा अंतिम वर्ण हलन्त होता है जो इन्हीं सूत्रों के अंतिम हलन्त वर्णों से लिया जाता है। अपेक्षित प्रत्याहार के अंतर्गत इन्हीं दोनों वर्गों के बीच पड़नेवाले वर्णों की गणना की जाती है। इस गणना में हलन्त वर्णों को छोड़ दिया जाता है, किन्तु प्रत्याहार का पहला वर्ण जोड़ा जाता है।
उदाहरण के लिए, ‘अण्' प्रत्याहार को ही लिया जाए। इसमें उपर्युक्त नियमानुसार अ, इ, उ ये तीन वर्ण आते हैं। 'अक्' प्रत्याहार में अ, इ, उ, ऋ एवं लृ ये पाँच वर्ण होते हैं। नीचे कुछ प्रमुख प्रत्याहार दिए जा रहे हैं - 
अण्— अ, इ, उ 
अक्— अ, इ, उ, ऋ, लृ 
अच्—अ, इ, उ, ऋ, ऌ, ए, ओ, ऐ, औ 
अट्— अ, इ, उ, ऋ, ऌ, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, र 
इक् – इ, उ, ऋ, ऌ  
एङ्– ए, औ
एच् – ए, ओ, ऐ, औ 
ऐच्— ऐ, औ 
खर्—ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प, श, ष, स 
जश् — ज, ब, ग, ड, द 
झय् – झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द, ख, फ, छ, ठ, थ, च, ट, त, क, प 
झश्— झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द 
यण्— य, व, र, ल
हश्—ह, य, व, र, ल, ञ, म, ङ, ण, न, झ, भ, घ, ढ, ध, ज, ब, ग, ड, द
इनके अतिरिक्त भी अश्, अल्, हल् आदि कुछ प्रत्याहार और हैं।

अभ्यास

1. वर्ण किसे कहते हैं तथा उसके कितने भेद हैं ?
2. मूल स्वर और दीर्घ स्वर किसे कहते हैं ? सोदाहरण बताएँ।
3. स्पर्श वर्ण किसे कहते हैं?
4. तालु से कौन-कौन वर्ण उच्चरित होते हैं? बताएँ।
5. स्वर वर्ण और व्यञ्जन वर्ण में क्या अंतर है ?
6. निम्नलिखित वर्गों में स्वर वर्णों को रेखांकित करें।
ख, अ, क, ई, प, आ, श, ऊ, ए, ध, औ, ह, ऐ, ग, श, ओ, इ, व
7. अंतःस्थ वर्ण किसे कहते हैं ?
8. महाप्राण में कौन-कौन वर्ण हैं?
9. पवर्ग का उच्चारण-स्थान बताएँ।
10. वकार का उच्चारण किस-किस स्थान से होता है ? बताएँ ।
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Mon, 25 Dec 2023 11:05:45 +0530 Jaankari Rakho