पहली नौकरी और मनुष्य के प्रति अन्याय समाप्त करने की सौगंध : अब्राहम लिंकन

अब्राहम लिंकन ने ऑफेट नामक व्यक्ति के साथ अपना जीवन संवारने के उद्देश्य से माता-पिता तथा परिवार को छोड़ा था और वह अपने सौतेले तथा चचेरे भाइयों के साथ न्यू सलेम में रहने लगा था। न्यू सलेम में सबसे लम्बे तथा हंसमुख लड़के के रूप में अब्राहम लिंकन खूब चर्चित हो गया था परंतु एक बात उसे बुरी तरह खलती थी कि वह अभी तक एक घुमक्कड़ की जिंदगी जी रहा था। उसके हाथ में लकड़ी चीरने की कला थी। एक मजदूर की तरह वह किसी की भी लकड़ी चीरने का काम करता था और उससे मिली मामूली-सी मजदूरी से गुजारा कर लेता था।

पहली नौकरी और मनुष्य के प्रति अन्याय समाप्त करने की सौगंध : अब्राहम लिंकन
Abraham, though very young, was large for his age and had an axe put into his hands at once, and from that until his twenty third year he was almost constantly handling that instrument.
-Lord Longford
अब्राहम लिंकन ने ऑफेट नामक व्यक्ति के साथ अपना जीवन संवारने के उद्देश्य से माता-पिता तथा परिवार को छोड़ा था और वह अपने सौतेले तथा चचेरे भाइयों के साथ न्यू सलेम में रहने लगा था। न्यू सलेम में सबसे लम्बे तथा हंसमुख लड़के के रूप में अब्राहम लिंकन खूब चर्चित हो गया था परंतु एक बात उसे बुरी तरह खलती थी कि वह अभी तक एक घुमक्कड़ की जिंदगी जी रहा था। उसके हाथ में लकड़ी चीरने की कला थी। एक मजदूर की तरह वह किसी की भी लकड़ी चीरने का काम करता था और उससे मिली मामूली-सी मजदूरी से गुजारा कर लेता था।
ऑफेट ने न्यू सलेम में एक स्टोर खोल लिया था और वह अच्छी कमाई कर रहा था। एक दिन ऑफेट अब्राहम लिंकन के पास आया और बोला–"एबी यार, तू कब तक यूं लकड़ियां चीरकर गुजारा करता रहेगा। यार, तू अच्छा पढ़ा-लिखा है। तेरे पास डिग्री नहीं तो क्या हुआ, अच्छा दिमाग तो है। जन-सम्पर्क की कला भी बहुत अच्छी है और मैं एक चीज देख रहा हूं अब तेरे में नेता के गुण भी उदय हो रहे हैं। "
क्या बात करता है। मैं और नेता? मुझे तो नफरत है इस गंदे धंधे से। इस धंधे से जुड़े लोग आम आदमी को मूर्ख ही नहीं बनाते बल्कि उसके पैरों के नीचे की जमीन छीनकर उसे गुमराह भी करते हैं। आदमी को आदमी से लड़ाते हैं और पूरे देश को कमजोर करते हैं। अमेरिका में ही देख रहे हो किस तरह 'रेड इंडियन' को मार-पीटकर गुलाम बनाया जाता है, उन्हें बाजारों में बेचा जाता है, रिश्तेदारों को गिफ्ट के तौर पर गुलाम बनाकर भेंट किया जाता है। इस धरती के मूल निवासी हैं ये, इनकी इज्जत की बात तो छोड़िए, एक घड़ी चैन की जिंदगी नहीं जी सकते। जो गुलाम बनकर वस्तु की तरह बिकने तथा जानवरों की तरह पिटने को तैयार नहीं हैं, वे जंगलों में मारे-मारे घूम रहे हैं।"
"बस...बस!" ऑफेट ने कहा – “तूने जो बातें कही हैं, वे यह साबित करने के लिए काफी हैं कि तेरे अंदर नेतृत्व के गुण हैं। जानकारी के साथ-साथ मनुष्यों के प्रति हमदर्दी भी तेरे दिल में मौजूद है। अरे, ऐसे नेताओं की ही तो इस देश को जरूरत है। हृदयहीन और उल्टी खोपड़ी के नेता तो बहुत हैं जो केवल चुनाव जीतते हैं, कुर्सियों से चिपक जाते हैं और बड़े नेताओं की हां में हां मिलाने लगते हैं। जमीन से जुड़े लोगों की समस्याएं और तकलीफें वे जानते तक नहीं। मैं तुझे एक राय देता हूं।'
"बोल।"
“तू यह लकड़ी चीरने का मजदूरों वाला काम छोड़ दे और कहीं नौकरी कर ले। नौकरी के साथ-साथ कानून की पढ़ाई शुरू कर और नेतागिरी में उतर। अभी तेरी लम्बाई और बढ़ेगी। तू पूरा साढ़े छ: फुट का जवान हो जाएगा। भीड़ में दूर से ही दिखाई पड़ेगा। नेता ऐसा ही होना चाहिए जो दूर से दिखे। पांच फुटे डगलस जैसे लड़के जब राजनीति में उतर सकते हैं तो साढ़े छ: फुट लम्बा जवान तू क्यों नहीं उतर सकता?"
"लेकिन।" लिंकन बोला- नौकरी है कहां?"
"आ मेरे साथ! मैं देता हूं तुझे नौकरी।" ऑफेट बोला।
"क्या कह रहा है?”
"सच कह रहा हूं, तू मेरे स्टोर का हिसाब-किताब देख। मैं तुझे 15 डालर मासिक दूंगा। इससे तू अपना खर्च चला, कानून की पढ़ाई कर और राजनीति में भाग्य आजमा । "
"सच।
“सच और केवल सच।" ऑफेट और लिंकन ने एक दूसरे से हथेलियां चटखाईं और हवा में हाथ उठाते हुए चिल्लाए – "हिप हिप हुर्रे । ”
बस, यहीं से लिंकन के जीवन की धारा बदल गई। एक साथ तीन फैसले लिए लिंकन ने। खर्च चलाने के लिए नौकरी करना–कानून की पढ़ाई करना और राजनीति में उतरना। ऑफेट ने लिंकन को आधार दिया था और लिंकन ने उसे वचन दिया कि वह वही करेगा जो वह चाहता है। ऑफेट ने लिंकन की मुलाकात न्यू सलेम डिबेटिंग सोसाइटी के सदस्यों से करवाई। इस सोसाइटी के सदस्य लिंकन के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लिंकन को बहुत जल्दी अपना नेता मान लिया। अब तो लिंकन से मिलने वालों का तांता लगने लगा। लिंकन स्टोर का हिसाब-किताब देखता और इन लोगों से बातचीत भी करता था। कुछ ही महीनों में लिंकन का नाम पूरे न्यू सलेम में चर्चित हो गया। जब वह गलियों में, सड़कों पर निकलता तो लोग हाथ हिलाकर उससे आत्मीयता दर्शाते और आदर देते।
राज्य विधानसभा के लिए प्रत्याशी
न्यू सलेम में आए लिंकन को अभी मुश्किल से एक वर्ष हुआ था कि ऑफेट तथा डिबेटिंग सोसाइटी के सदस्यों ने उसे इली नॉइस राज्य विधान सभा की सदस्यता के लिए चुनावों में खड़ा कर दिया। 1832 के चुनावों के लिए लिंकन ने नामांकन पत्र भरा और क्षेत्र में अपना परिचय देने के लिए चुनाव प्रचार आरंभ कर दिया। चुनाव की एक सभा को संबोधित करते हुए अब्राहम लिंकन ने कहा-
"I am young and unknown to many of you. I was born and have ever remained in the most humble walks of life, if the good people in their wisdom see fit to keep me in the background, I have been too familiar with disappointments to be very much chagrined.
इस चुनाव प्रचार में लिंकन तथा उसके साथियों ने जमकर काम किया। इसका नतीजा यह हुआ कि न्यू सलेम में लोग लिंकन को अच्छी तरह जान गए, परंतु फिर भी यह प्रचार लिंकन को जीत न दिला सका। लिंकन को अपने क्षेत्र में 304 में से 277 मत प्राप्त हुए। क्षेत्र में नए होने के बावजूद लोगों के दिलों में जगह बनाने में वह पूरी तरह कामयाब हुआ था।
चुनाव की हार ने लिंकन के हौसले को तोड़ा नहीं। वह जानता था कि राजनीति में पहला ही कदम प्राय: इतनी बड़ी सफलता नहीं देता कि कोई चुनाव जीत जाए, परंतु चुनाव लड़ने से व्यक्ति जन-सम्पर्क में आ जाता है और आगे के लिए यहां से रास्ता बनाना सरल हो जाता है।
लिंकन ने इस अवसर को अपने लिए राजनीति में उतरने के प्रथम अध्याय के रूप में लिया और अगले अध्यायों को लिखने की तैयारी में जुट गया।
न्यू सलेम में लिंकन का प्रवास काल छ: वर्ष लम्बा रहा। इस अवधि में से एक वर्ष चुनाव के पहले बीत चुका था और पांच वर्ष उसके बाद बीते। इस पूरी अवधि का इस्तेमाल लिंकन ने अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि को मजबूत बनाने, शेक्सपीयर, बर्न आदि महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों के साहित्य का अध्ययन करने, कानून की पढ़ाई करने तथा राजनीति में अपने कदम जमाने के रूप में किया।
इसी बीच ऑफेट का स्टोर लड़खड़ाने लगा। ऑफेट ने उसे बंद करने का मन बना लिया, तब लिंकन ने अपने एक मित्र के साथ मिलकर स्टोर चलाने की योजना बना ली। ऑफेट ने स्टोर लिंकन को सौंप दिया, परंतु वह इतने घाटे में जा चुका था कि फिर संभल ही नहीं पाया। फिर एक दिन लिंकन के बिजनेस पार्टनर की मृत्यु हो गई और सारा दायित्व लिंकन के ही कंधों पर आ गया। लिंकन ने उसे निभाने के अनेकों प्रयास किए, परंतु वह निभा नहीं पाया और स्टोर 1100 डॉलर का कर्ज लिंकन के सिर डालकर बंद हो गया। इस कर्ज को उतारने का दायित्व लिंकन ने खुशी-खुशी अपने ऊपर ले लिया। जीवन में यह एक बड़ी आर्थिक चोट थी।
बिना पैसे के व्यापार में उतरने वाले बुद्धिजीवियों के साथ ऐसी तनाव में डालने वाली घटनाओं का घट जाना आम बात है। जब वे बाजार में खड़े होते हैं तो मन हो आता है कि वे भी व्यापार करें और मुनाफा कमाएं, परंतु बुद्धिजीवी प्रायः व्यापार में सफल नहीं हो पाते और यदि पूंजी उधार की हुई तो वह व्यापार उनके लिए गले का फंदा बन जाता है जो जीवन-भर उन्हें तकलीफ देता रहता है। ऐसा ही लिंकन के साथ हुआ। लिंकन की आर्थिक स्थिति शून्य थी जब वह 1831 में न्यू सलेम आया। 1832 में चुनाव हार जाने के बाद उसने स्टोर संभाला और कल्पना की थी कि यह स्टोर उसे इतना आर्थिक आधार देगा कि वह अपनी आर्थिक समस्या का समाधान कर लेगा, परंतु यह तो उसके लिए गले की हड्डी बन गया। 1832 से 1837 तक पूरे पांच वर्ष तक प्रयास करने के बावजूद लिंकन स्टोर के कारण सिर पर हुए कर्ज को उतार नहीं पाया।
1833 में आर्थिक विकल्प तलाशते-तलाशते लिंकन इतना तंग आ गया कि उसने लोहारगिरी का काम करके आजीविका कमाने का फैसला कर लिया। बढ़ईगिरी से जीवन शुरू करके लोहारगिरी पर आने का लिंकन का फैसला बड़ा विचित्र था, परंतु सिर पर स्टोर के कारण लदे कर्जे को उतारने तथा अपनी आजीविका कमाने का उसे कोई कारगर विकल्प मिल ही नहीं पा रहा था।
पोस्टमास्टर बन गया
लोहारगीरी का काम हाथ में लेने की बात जब उसने अपने दोस्तों को बताई तो उन्होंने उसे मना कर दिया। दोस्त जानते थे कि लिंकन में जन-सम्पर्क की गजब की प्रतिभा है। वह एक अच्छे दिल वाला और शानदार दिमाग वाला इंसान है। ऐसे व्यक्ति को कानून की पढ़ाई करनी चाहिए और राजनीति में जाना चाहिए। ये दोनों विकल्प एक-दूसरे के सहयोगी तथा पूरक हैं।
लिंकन को बात समझ में आ गई। उसने लोहारगीरी करके अपना भविष्य बिगाड़ने वाला विचार छोड़ दिया। उन्हीं दिनों न्यू सलेम में पोस्टमास्टर का स्थान रिक्त हुआ। लिंकन ने उसके लिए आवेदन किया और वह न्यू सलेम का पोस्टमास्टर बन गया। उसे प्रति वर्ष 155 डॉलर के वेतन पर नियुक्ति मिली थी। इस प्रकार उसका वेतन केवल 13 डॉलर प्रति माह से भी कम था।
इतने कम वेतन में गुजारा करना और फिर स्टोर का कर्जा उतारना सम्भव नहीं था, अतः लिंकन ने अतिरिक्त मेहनत करके पैसा जुटाने का फैसला ले लिया। उसने अनेक छोटे-छोटे काम अपने हाथ में ले लिए। कभी वह रेल की पटरियों को अलग करने के काम में जुटा पाया जाता, कभी किसी के खेत में फसल उगाने अथवा काटने का काम करते देखा जाता, कभी किसी कारखाने में रात की ड्यूटी करता और साथ ही क्षेत्रीय अखबारों के कार्यालयों में जाकर काम करता।
जिस आदमी को कल अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर बैठना था, वह आज जीविका चलाने के लिए और कर्जा उतारने के लिए वे सब काम कर रहा था, जिन्हें करते हुए आम आदमी भी झिझकता है, परंतु लिंकन के मन में कोई हीनता का भाव नहीं था। वह जानता था कि वह गरीब है और गरीब की ऐसी कोई प्रतिष्ठा नहीं होती जो छोटे कामों को हाथ लगाने से खराब हो जाए, दूसरे, कामों को छोटे या बड़े वर्गों में बांटने की अब्राहम लिंकन की आदत भी नहीं थी। वह काम को अपना धर्म मानता था। काम कोई भी हो, सब आजीविका के साधन हैं और मनुष्यों द्वारा ही सम्पन्न किए जाते हैं, ऐसी उसकी मान्यता थी।
राज्य विधान-सभा का सदस्य बना
उन दिनों भिग पार्टी एक वैचारिक दल के रूप में उभर रही थी। उसके नेता जॉन टी स्टुआर्ट थे।
एक दिन लिंकन जॉन स्टुआर्ट से मिलने पार्टी के कार्यालय गया। वे पार्टी के राष्ट्रीय नेता थे और 1834 में होने वाले चुनावों के लिए न्यू सलेम से अच्छे प्रत्याशी की तलाश में आए थे।
एक वर्ष पहले चुनाव हार चुके लिंकन की छवि साफ-सुथरी और अच्छी थी।
न्यू सलेम में उन्होंने लिंकन की बड़ी तारीफ सुनी थी। जब एक सबसे लम्बे 24 वर्षीय नवयुवक के रूप में अब्राहम लिंकन ने जॉन स्टुआर्ट से हाथ मिलाते हुए उन्हें अपना परिचय दिया तो वे लिंकन से इतने प्रभावित हुए कि उसे देखते रह गए। परंतु जब उन्हें पता चला कि लिंकन की शैक्षिक पृष्ठभूमि उतनी मजबूत नहीं है जितना कि उसका इरादा और व्यक्तित्व तब उन्हें थोड़ी-सी निराशा हुई, परंतु लिंकन के हौसले, विचारों की साफगोई तथा राजनीति के प्रति समर्पण भाव देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्होंने कहा- "अब्राहम, तुम कानून की पढ़ाई तुरंत शुरू कर दो। वक्त जाया मत करो, मैं देख रहा हूं कि एक अच्छे नेता बनने के गुण तुममें मौजूद हैं, परंतु राजनैतिक दांव-पेंचों को समझने तथा जनता की दृष्टि में विश्वसनीय बनने के लिए कानून की जानकारी और डिग्री दोनों का होना जरूरी है।"
लिंकन ने जॉन स्टुआर्ट की बात मान ली और कानून के पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया।
अब तो उसे कानून के अध्ययन की ऐसी लगन जाग गई कि उसने रात-दिन अध्ययन शुरू कर दिया। यद्यपि स्टोर के घाटे का कर्ज अब भी उसका चैन भंग किए हुए था, परंतु धीरे-धीरे उसे उतारते रहने के संकल्प के साथ लिंकन ने कानून की पढ़ाई पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया।
न्यू सलेम के कार्यालय अधिकारी ने अब्राहम लिंकन की कानून सीखने की लगन और मेहनत पर टिप्पणी करते हुए कहा था— “He was the most uncouth looking young man I ever saw. He seemed to have but little to say; seemed to feel timid, with a tinge of sadness visible in his countenance, but when he did talk all this disappeared for the time he demonstrated that he was both strong and acute. He surprised us more and more at every visit.
लिंकन के चेहरे पर दुख के चिन्ह दिखाई देना, एक बेचारगी-सी झलकना, एक झिझक और निराशा की पर्त का कभी-कभी आ जाना यह दर्शाता है कि उसके अंदर पता नहीं किस कारण से आत्मविश्वास की कमी थी। यह कमी लम्बे समय तक उसका पीछा करती रही। लार्ड लांग फोर्ड जिन्होंने लिंकन को बहुत नजदीकी से देखा था और जो मेरी टॉड नामक उसी लड़की से विवाह करना चाहते थे जिससे 1842 में लिंकन ने शादी की, तो यहां तक मानते हैं कि लिंकन के अंदर आत्मविश्वास की कमी तब तक देखी गई, जब तक वे अमेरिका के राष्ट्रपति बने। राष्ट्रपति बनने के बाद ही यह कमी उनके व्यक्तित्व से बाहर निकल सकी।
1834 में अब्राहम लिंकन को भिग पार्टी ने राज्य विधानसभा की सदस्यता के लिए अपना प्रत्याशी बनाया। अब्राहम लिंकन ने न्यू सलेम में अनेक सभाएं कीं और अपने व्यक्तित्व व विचारों के प्रभाव का जादू फैलाया। जादू काम कर गया।
लिंकन को इस बार न्यू सलेम से इलीनॉइस विधान सभा का सदस्य चुन लिया गया।
राजनीति में अब्राहम लिंकन की यह पहली जीत थी। इस जीत के साथ ही, अब्राहम का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया। अब उसने पूरी लगन और मेहनत से कानून की पढ़ाई करने और राजनैतिक दायित्वों का निर्वाह करने का संकल्प लिया।
यह सच है कि अब्राहम लिंकन मनुष्यों द्वारा मनुष्यों के शोषण की राजनीति का करारा जवाब देने के लिए राजनीति में आए थे। गरीब घर में जन्म लेने तथा एक-एक पैसे के लिए संघर्ष करने के कारण वे अच्छी तरह जानते थे कि इस बड़े और सम्पन्न देश में गरीब आदमी को जीवन में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
सबसे बड़ी चुनौती तो दास प्रथा थी जो 1776 से पहले, दक्षिण अफ्रीका के नीग्रो लोगों को खेतों पर काम करने के लिए अमेरिका लाने से शुरू हुई थी। देश में लगभग 11% आबादी नीग्रो आदिवासियों की थी। काली चमड़ी वाले ये अफ्रीकावासी अमेरिका के दक्षिणी भाग में बसाए गए थे। 1776 तक इन पर ब्रिटेन का शासन था। 1776 में इन्हें आजादी मिली और काले तथा गोरे दोनों प्रकार के निवासियों को मिलाकर अमेरिकी संघ का निर्माण किया गया, परंतु संविधान का निर्माण करते समय भी इनके साथ भेदभाव बरता गया। गोरे लोग चाहते थे कि कालों को समान नागरिक का दर्जा न दिया जाए और उन्हें गुलाम बनाकर रखने की अमेरिकियों को छूट दी जाए।
अमेरिकी संघ के सदस्य होने के बावजूद ये काले लोग गोरों के शोषण से अपने-आपको मुक्त न रख सके और गोरों द्वारा गुलाम बनाकर रखे जाने की परंपरा और मजबूत होने लगी। इस प्रथा का विरोध तो यहां-वहां देखने को मिल रहा था, परंतु कोई भी इसके उन्मूलन के लिए कठोर कदम उठाने के पक्ष में नहीं था। ऐसे में अब्राहम लिंकन इनके हितों के लिए देवदूत बनकर अमेरिका की राजनीति में उतरे।
1834 में राज्य विधान सभा में पहुंचने के साथ ही उन्होंने घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी आदमी के द्वारा आदमी को गुलाम बनाया जाना और उसका किसी तरह के शोषण का विरोध करेगी। अमेरिका की 87% गोरी आबादी में बहुत कम लोग ऐसे थे जो गुलामी प्रथा का उन्मूलन चाहते थे, अधिकतर लोग तो यही मानते थे कि काले लोगों का जन्म गोरों की सेवा करने के लिए हुआ है, अतः उन्हें अधिकारों की मांग नहीं उठानी चाहिए। यदि दास प्रथा समाप्त हो गई तो अमेरिका का कृषि उत्पादन क्षेत्र ढह जाएगा। उन दिनों अमेरिका औद्योगिक शक्ति नहीं बना था। कृषि उत्पादन का काम चुनौतीपूर्ण था। गोरे मालिक काली जाति के लोगों को गुलाम बनाकर उनके पसीने की कमाई पर अपनी सम्पन्नता का महल खड़ा करना चाहते थे।
लिंकन ने गोरों के इन घृणित इरादों को चुनौती देते हुए विधान सभा में कदम रखा।
यद्यपि भिग पार्टी अल्पमत में थी और डेमोक्रेटिक पार्टी बहुमत में। डेमोक्रेटिक वाले भिग पार्टी के प्रतिनिधियों को सदन में टिकने नहीं देते थे। फिर भी लिंकन ने हार नहीं मानी। लिंकन की समझ में यह बात आ गई थी कि अमेरिका की गोरी आबादी कालों का शोषण करने के लिए एकजुट है अतः उनके मतों से जीत कर आए प्रतिनिधि भिग पार्टी वालों को सिर नहीं उठाने देंगे, परंतु सत्य को जीत दिलाना अपना फर्ज मानकर वे मैदान में डट गए।
एन रूटलैज से प्यार
21 वर्ष की आयु में जब अब्राहम लिंकन ने न्यू सलेम में पहला कदम रखा था तब वे एन रूटलैज नामक सुंदर लड़की के पिता के घर में किराए पर रहे। रूटलैज को लिंकन के व्यक्तित्व से लगाव हो गया और वह मन-ही-मन उसे चाहने लगी।
एन रूटलैज लिंकन से विवाह करना चाहती थी, परंतु लिंकन की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी। अतः उसके पिता ने उसे लिंकन से विवाह करने की अनुमति नहीं दी। पिता ने उसका विवाह मेकनामर नामक युवक के साथ तय कर दिया। उसकी आदमनी अच्छी थी। विवाह करने के बाद मेकनामर अपने परिवार के पास न्यूयॉर्क चला गया।
इसके बाद वह नहीं लौटा। एन के पिता बीमार रहते थे। वे भी एक दिन चल बसे। अब एन अकेली रह गई। वह बहुत दुखी रहने लगी। लिंकन को जब-जब वक्त मिलता तो एन को मिलते और उसका दुख कम करते। एक दिन एन ने कहा– "मुझे पूरा विश्वास है कि जिस लड़के के साथ मेरी शादी तय की गई थी, वह अब नहीं लौटेगा। वह इस शादी से खुश नहीं है। पिता की जिद के कारण शादी तय तो हो गई, परंतु वह अब मुझसे शादी करने नहीं आएगा। शायद ईश्वर हम दोनों को मिलाना चाहता है। मैं अब अपना रिश्ता उससे तोड़ती हूं, बोलो तुम मुझसे शादी करोगे?"
लिंकन तो पहले से ही यही चाहता था, परंतु क्योंकि विधान सभा का सदस्य बन जाने के बावजूद उसकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरी थी, अतः थोड़ा संकोच था, परंतु जब एन ने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया तो लिंकन ने उसे थाम लिया।
परंतु पता नहीं, ऐसी क्या बात हो गई कि एन उसी दिन बीमार पड़ गई। पिता द्वारा तय की गई सगाई को तोड़कर अपनी मर्जी से लिंकन के साथ शादी करने का फैसला लेते ही उसके मन में एक बड़ा द्वंद्व उत्पन्न हो गया। उसका कोमल मन दो हिस्सों में बंट गया, एक मन कहता था कि वह पिता को दिए गए अपने वचन का पालन करे क्योंकि पिता अब नहीं रहे, दूसरा मन कहता था कि हालात ने लिंकन को फिर से उससे मिला दिया है, अतः वह अपने मंगेतर की प्रतीक्षा करना बंद करे, उससे सगाई तोड़ दे और लिंकन के साथ विवाह कर ले। अपने प्यार को मरने से रोक ले।
बेचारी कोमल हृदया लड़की मन में पैदा हुए उस दो-फाड़ करने वाले द्वंद्व को न सह सकी और उसकी मानसिक हालत बिगड़ गई। लिंकन ने उसे अस्पताल में दाखिल करा दिया। वह उसे रोज देखने जाता था। उसे देखकर वह बुरी तरह रोती थी। लिंकन उसका सिर अपनी गोद में रख लेता था और उसे बहुत प्यार करता था, परंतु फिर भी पता नहीं क्यों वह अपने आपको संभाल नहीं पाई और 25 अगस्त, 1835 को एन की मृत्यु हो गई।
1890 में अब्राहम लिंकन की शहादत के 25 वर्ष बाद एन की कब्र से उसके शरीर के अवशेष निकाले गए और उन्हें लिंकन की प्रेमिका के रूप में सम्मान देते हुए एक महत्त्वपूर्ण स्थल पर दफनाया गया जहां पर्यटकों का आना जाना रहता है। उसकी कब्र पर प्रसिद्ध कवि एडगर ली मास्टर्स की ये पंक्तियां खुदवाई गईं—“I am An Rutledge who sleep beneath these weeds. Beloved of Abraham Lincoln. wedded to him, not through Union. But through separation. Bloom forever 'O' Republic from the dust of my bosom. '
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