स्पॉटी लिंकन की राजनीति से वापसी

1846 से 1849 तक का समय अब्राहम लिंकन के लिए राजनीति में उभरकर आने का नहीं रहा। लिंकन ने इस इरादे के साथ 1846 में कांग्रेस में प्रवेश किया था कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उन्हें पहचान मिलेगी, परंतु ऐसा हो नहीं पाया।

स्पॉटी लिंकन की राजनीति से वापसी

स्पॉटी लिंकन की राजनीति से वापसी


As I would not be a slave, so I would not be a master - This exposes my idea of democracy. What so ever differs, to the extent of the difference, is no democracy.
-Abraham Lincoln
1846 से 1849 तक का समय अब्राहम लिंकन के लिए राजनीति में उभरकर आने का नहीं रहा। लिंकन ने इस इरादे के साथ 1846 में कांग्रेस में प्रवेश किया था कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उन्हें पहचान मिलेगी, परंतु ऐसा हो नहीं पाया।
न्यू सलेम में रहते हुए विधान सभा के सदस्य के रूप में लिंकन जिस तरह चर्चा में आ गए थे, राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में जाने के बाद उस तरह चर्चा में नहीं आए, अपितु उनकी अपनी पहचान भीड़ में गुम हो गई ।
वकालत का काम छोड़कर, आमदनी का काम छोड़कर लिंकन राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में काम करने के लिए वाशिंगटन आए थे, परंतु अमेरिका की राजधानी का मूड इतना अजीब-सा था कि वह उन्हें समझ ही नहीं पाई।
उन दिनों राष्ट्रीय राजधानी पर एक सवाल अपना कद बढ़ाकर इस तरह हावी हो गया था कि बाकी सारे सवाल उसकी आड़ में छिप गए से लगते थे। यह
सवाल था दास प्रथा का।
दास प्रथा अमेरिकी समाज के मुंह लग चुकी थी। जो बड़े-बड़े फार्मों के मालिक थे, बड़े कारखाने चला रहे थे, बड़े ठाठ के साथ रह रहे थे, उन सबको अपने लिए गुलामों की जरूरत महसूस होती थी।
दक्षिण अफ्रीका से अंग्रेजों द्वारा गुलाम बनाकर लाए गए लोगों को अमेरिका के दक्षिण भाग में बसा दिया गया था। पहले ये राज्य ब्रिटेन की कॉलोनी हुआ करते थे। 1776 में यह आजाद हो गए और अमेरिकी संघ में शामिल होकर संयुक्त राज्य अमेरिका के अंग बन गए परंतु नीग्रो जाति के इन काले लोगों से जानवरों की तरह काम लेने तथा इन्हें अमेरिका के दोयम दर्जे का नागरिक समझने की मनोवृत्ति समाप्त होने की बजाय और मजबूत होने लगी। अब अमेरिका के गोरे लोग इन्हें इसीलिए गुलाम बनाए रखना चाहते थे क्योंकि वे शरीर से बहुत मजबूत होते थे और जिन कामों को गोरे लोग नहीं कर सकते थे इन्हें वे अंजाम देते थे। सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को समाज अब अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था।
1776 में ब्रिटेन से आजाद होने के साथ ही सारे नीग्रो अमेरिका के विधिवत् नागरिक बन गए थे। उन्हें उम्मीद थी कि स्वाधीनता की लड़ाई के बाद जब अमेरिका का दक्षिणी हिस्सा ब्रिटेन से आजाद करा लिया जाएगा तो आजादी का असली लाभ उन्हें ही मिलेगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। अमेरिकी क्षेत्र ब्रिटेन से तो आजाद करा लिया गया परंतु उस क्षेत्र के विकास में जिन काले लोगों ने अपने घर परिवार से दूर रहकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी कठोर और यातनाओं भरा जीवन जिया था, उन्हें आजादी नहीं मिली। सिद्धांत: वे आजाद थे, क्योंकि आजाद देश के नागरिक थे, परंतु रंगभेद की नीति को कानूनी जामा पहनाकर कालों को गोरे अमेरिकी समाज ने फिर से गुलाम बना लिया था और अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने तथा अपने लिए सुविधाएं जुटाने की खातिर वह इनका पूरी तरह इस्तेमाल कर रहा था।
अब्राहम लिंकन का हृदय मानवता से लबालब भरा था। वे गरीबी और अभावों के उस नर्क से निकलकर आए थे जो इन काले लोगों के जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुका था। अमेरिकी उनका इस्तेमाल अपनी माली हालत मजबूत बनाने के लिए कर रहे थे और जानवरों से भी बदतर जीवन बिताने पर विवश थे। लिंकन नहीं चाहते थे कि मनुष्य के हाथों मनुष्य का शोषण हो और उसे इतना अपमानित जीवन जीना पड़े कि वह अपनी पहचान ही भूल जाए, परंतु उनके साथ सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि वे गुलामी की प्रथा का खुला विरोध नहीं कर सकते थे।
सारी दुनिया के लोग जानते हैं कि अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा का अंत करके अमेरिका के 11% कालों के साथ न्याय किया और उन्हें फिर से मानव की गरिमा प्रदान कर, सहज मानवीय जीवनशैली में जीवन बिताने की आजादी देकर गोरों से दुश्मनी मोल ली और इसी कारण उन्हें गोली से उड़ा दिया गया।
दुनिया जो मानती है वह बिल्कुल ठीक है, परंतु इस बिंदु तक पहुंचने में, दास प्रथा उन्मूलन की घोषणा करने की हैसियत प्राप्त करने में लिंकन को पूरे 33 वर्ष लगे।
गरीबों, पिछड़ों, शोषितों और पीड़ितों की पीड़ा और कराहों की आवाजों से विचलित होकर अब्राहम लिंकन ने अमेरिकी राजनीति में प्रवेश किया था। उन दिनों दास प्रथा को समाप्त करने के लिए संघर्ष करने वाले 'रेडिकल ग्रुप' ने लिंकन को बहुत प्रभावित किया था।
21 वर्ष का युवक एबी (तब अब्राहम लिंकन को प्यार से एबी कहा जाता था) जब अपनी पहचान परिवार से अलग तलाशने के संकल्प के साथ न्यू सलेम में आया था, तब उसका इरादा न राजनीति में जाने का था, न कानून की पढ़ाई करने का। परिवार में क्योंकि गरीबी और उपेक्षा के कारण गुजारा करना संभव नहीं हो पा रहा था, अत: उसने परिवार छोड़ दिया।
1830 में वह युवक अपने सौतेले भाई व सौतेली बहन के साथ न्यू सलेम में इसलिए आया था कि यहां आजीविका का कोई साधन हाथ आ जाएगा और वह अपने बहन-भाई दोनों को पढ़ा-लिखाकर किसी काबिल बनाएगा तथा बड़े भाई के दायित्व का निर्वाह करेगा। इस दायित्व के निर्वाह में ही उसे अपना भविष्य भी दिखाई दे रहा था, परंतु यहां आकर उसे दो बड़ी महत्त्वपूर्ण जमीनें हाथ लग गईं – एक यह कि पढ़ाई-लिखाई छोड़कर उसने जीवन में बड़ी भूल की है, मौका है यह भूल तुरंत सुधारी जानी चाहिए।
15 डालर प्रति माह की नौकरी करते हुए उसने अपनी पढ़ाई की क्षति पूर्ति करने तथा बहन-भाई के प्रति दायित्व निभाने का रास्ता तलाशा था।
जब वह स्टोर में बैठकर पढ़ाई करने लगा, चार पैसे बचाने लगा, तभी उसकी मुलाकात समाज के प्रति जागरूक लोगों से हो गई, ये लोग लिंकन में छिपी प्रतिभा को पहचान गए और उन्होंने उसके अंदर समाज के काम के प्रति रुचि पैदा करनी शुरू कर दी। इसी दौरान लिंकन की मुलाकात रेडिकल ग्रुप के लोगों से भी हुई, जिनसे उसे पता लगा कि अमेरिका के गोरे लोगों द्वारा काले लोगों का शोषण एक बहुत बड़ा मानवीय अन्याय है। यह अन्याय यदि नहीं मिटाया गया तो एक दिन अमेरिका में गृह युद्ध होगा और संयुक्त राज्य अमेरिका जिसे वाशिंगटन जैसे महान राष्ट्रपति ने बड़ी मेहनत और लगन से बनाया था, अपनी जड़ें मजबूती से जमाने से पहले ही टूटकर छिन्न-भिन्न हो जाएगा।
22 वर्षीय युवक लिंकन जब-जब रेडिकल ग्रुप के लोगों के बीच बैठता, उनकी बातें सुनकर वह दहल जाता था। फिर वह समाज को जागरूक बनाने वाले लोगों के बीच बैठता तो उसे पता लगता कि वे रेडिकल ग्रुप को पसंद नहीं करते। इन्हें सिरफिरा और विद्रोही समझते हैं। कुछ लोग जो गरीब हैं, वे इसलिए गरीब नहीं हैं कि उन्हें गुलाम बनाकर रखा गया है बल्कि इसलिए गरीब हैं कि उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने की आदत ही नहीं पड़ी है। वे दूसरों का सहारा लेकर खड़े होते हैं और वे उनका दोहन करते हैं। यदि वे अपने पैरों पर स्वयं खड़े होने के लिए आत्मविश्वास जुटा लें तो अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना लेंगे और तब उन्हें न कोई गुलाम बना सकेगा, न उनका शोषण कर सकेगा।
इसी बीच लिंकन की मुलाकात भिग पार्टी के नेताओं से हुई। भिग पार्टी के नेताओं के भाषण सुनने का लिंकन को चस्का लग गया था। जब भी किसी मित्र नेता का भाषण न्यू सलेम में होता तो लिंकन पहले से ही वहां पहुंच जाता और अपनी सीट से चिपककर बैठ जाता। वह उसकी एक-एक बात को ध्यान से सुनता और उस पर विचार करता।
धीरे-धीरे लिंकन की समझ में यह बात आ गई कि भिग पार्टी के नेता जो बात कहते हैं, वही ठीक है। वे कहते हैं कि दास प्रथा अमेरिकी समाज पर कलंक जरूर है, परंतु रेडिकल ग्रुप की तरह दास प्रथा के उन्मूलन का नारा लगाकर अमेरिकी संघ के टुकड़े-टुकड़े कर डालना समझदारी नहीं होगी। आज देश की हालत यह है कि वह विकास की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। विकास की प्रक्रिया में भूमि के मालिकों, कारखानों के स्वामियों को तथा अन्य धंधों का विकास करने में लगे लोगों को अपने-अपने कामों में अधिक उत्पादन के लिए काले लोगों की आवश्यकता है। काले लोगों की मेहनत से अमेरिका तरक्की कर रहा है, यदि दास प्रथा समाप्त कर दी गई तो ये काम नहीं करेंगे और अमेरिका की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी।
कुछ लोग तो यह मानते हैं कि अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए दूसरों को गुलाम बनाकर रखना मानवता के सिद्धांत के विरुद्ध है, परंतु कुछ बड़ी संख्या उन लोगों की है जो यह विश्वास रखते हैं कि अमेरिका को आर्थिक महाशक्ति बनाना है तो दास प्रथा को बरकरार रखना होगा। दासों की कॉलोनियां दक्षिणी भाग में हैं, परंतु अब पश्चिमी क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया तेज हो रही है। वहां बड़े-बड़े फार्मों पर दासों को ले जाकर उनसे काम कराए जाने की मांग तेजी से उठ रही है। ऐसे में यदि दास प्रथा की मुक्ति की बात उठी तो वे दक्षिणी व पश्चिमी सीमा के प्रांत में विद्रोह कर देंगे और वे अमेरिकी संघ से अलग हो जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका विघटित हो जाएगा।
भिग पार्टी के लोग बीच का रास्ता निकाल कर लाए थे। वे दास प्रथा की समाप्ति के लिए सही अवसर आने तक प्रतीक्षा करने तथा देश की अन्य समस्याओं के लिए कंजरवेटिव के विरुद्ध लड़ने की नीति पर काम कर रहे थे। गरीबी और शोषण तो शेष समाज में भी है। 87% गोरी आबादी में जो अन्याय और अत्याचार है उससे निपटने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और दास प्रथा उन्मूलन के लिए अनुकूल जमीन तैयार करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
युवा लिंकन को भिग पार्टी की नीतियां भा गईं। वे पार्टी में शामिल हो गए और 23 वर्ष की आयु में उन्होंने 1832 में न्यू सलेम से विधान सभा का चुनाव लड़ा। जिसमें वे सफल न हो पाए, परंतु राजनैतिक विचार अब उनके मस्तिष्क में जन्म ले चुका था और वे उस पर दृढ़ थे। अपने इसी विचार को पोषित करते हुए वे भिग पार्टी की राजनीति में जम गए और साथ ही शिक्षा की कमी पूरी करने लगे।
1833 में उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू कर दी और अगले ही वर्ष 1834 में विधान सभा का फिर चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई। 25 वर्ष की आयु में अब्राहम लिंकन न्यू सलेम से इलीनॉइस विधान सभा के सदस्य बने जो उनके तथा उनके परिवार के लिए गौरव की बात थी।
भिग पार्टी के मंच से राजनीति में उतरने वाले अब्राहम लिंकन के विचारों के केंद्र में दास प्रथा आ चुकी थी, परंतु वे संयुक्त राज्य के विघटन की कीमत पर दास प्रथा के उन्मूलन के लिए तैयार नहीं थे। अतः दास प्रथा से जुड़ी स्थितियों का समग्रता से अध्ययन करने के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि–'देखो और प्रतीक्षा करो तब तक जब तक स्थितियां अनुकूल न हो जाएं।'
उन्हें पता लगा कि 1820 में मिसौरी समझौता हुआ था जिसके तहत यह फैसला लिया गया था कि दास प्रथा को दक्षिण से बाहर नहीं निकलने दिया जाएगा। मिसौरी की सीमा से आगे वह कभी नहीं बढ़ने दी जाएगी तथा यह भी कि दास प्रथा की राजनीति करने की इजाजत किसी राजनैतिक दल को नहीं होगी। यह समस्या राजनीति से बाहर रखी जाएगी।
कुछ लोग यह तर्क दिया करते थे कि यदि समझौते का उल्लंघन किया गया तो गृहयुद्ध हो जाएगा। संघीय व्यवस्था को कायम रखने के लिए इस समझौते का अक्षरशः पालन किया जाना जरूरी है।
लेकिन लिंकन शुरू से ही इस बात से इंकार करते थे। समझौते का सच दिखाकर पूरे देश के लोगों को गुमराह करना उनकी दृष्टि में गलत था। इतने बड़े देश में विचारधाराओं की बहुलता तो थी ही, लोग अपने-अपने ढंग से सोचते थे, सोचने के लिए सब स्वतंत्र थे।
दक्षिणी राज्यों के लोगों का सदा यह तर्क रहता था कि दास प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की बजाय उसका दूसरे राज्यों में विस्तार किया जाना चाहिए यदि उसका विस्तार नहीं किया गया तो अमेरिका विकास की दौड़ में पिछड़ जाएगा।
दास प्रथा के विस्तार पर जोर देने वाले लोगों ने दास प्रथा विरोधियों की भावनाओं को इतनी चोट पहुंचाई थी कि वे भड़क उठे थे और इस बात पर जोर देने लगे थे कि सरकार कानूनन दास प्रथा समाप्त करे।
1837 में इलीनॉइस विधान सभा ने दास प्रथा समाप्त करने के लिए क्रांति पर उतारू लोगों के इरादों को गलत बताया तथा उनके द्वारा सदन के पटल पर लाए गए प्रस्ताव को यह कहकर निरस्त कर दिया कि कांग्रेस को संविधान यह अधिकार नहीं देता कि वह दक्षिणी राज्यों से दास प्रथा को समाप्त कर सके।
लिंकन इस समय राज्य की विधान सभा के सदस्य थे। उनका मत दास प्रथा समाप्त कराने वालों के पक्ष में था, परंतु देश के हालात की उन्हें इतनी गहरी समझ थी कि उन्होंने हृदय के स्थान पर बुद्धि से काम लिया और दास प्रथा के उन्मूलन के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रहे लोगों का साथ देने की जल्दबाजी नहीं की। उस समय कोई बड़ी राजनैतिक पार्टी दास प्रथा के उन्मूलन का खतरा उठाने को तैयार नहीं थी। लिंकन की भिग पार्टी भी नहीं। लिंकन यथास्थिति के पक्ष में थे। उनकी पार्टी दास प्रथा के साथ छेड़छाड़ करने के पक्ष में नहीं थी। लिंकन की पूरी सहानुभूति दासों के साथ थी। वे नहीं चाहते थे कि मनुष्यों द्वारा मनुष्यों की गुलामी एक दिन भी कायम रहे, परंतु साथ ही यह भी जानते थे कि दास प्रथा के साथ की गई छेड़छाड़ पूरे राष्ट्र को विघटन के कगार पर पहुंचा सकती है, अत: दिल पर पत्थर रखकर वे इस आघात को सह गए कि उनकी पार्टी ने दास प्रथा उन्मूलन के प्रयासों को संविधान विरोधी करार दिया और वे चुपचाप पार्टी के कदम का समर्थन करते रहे।
1844 में लिंकन ने दास प्रथा पर अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए वक्तव्य जारी किया जिसमें कहा गया था—“हम सब अमेरिका वासियों का कर्तव्य है कि हम संघीय एकता बनाए रखने के लिए दासता को उन्हीं राज्यों में रहने दें, जहां वह है। उसका विस्तार होने से रोकें। एक दिन दास प्रथा अपनी मौत मर जाएगी। इस प्रक्रिया में समय लग सकता है, परंतु देश के संघीय ढांचे को कोई आंच नहीं आएगी।"
इसी वक्तव्य में उन्होंने यह भी मत व्यक्त किया कि जो लोग गुलामों को अपनी सम्पत्ति मानते हैं, उनके मालिक हैं और यह कहकर उन्हें मुक्त नहीं करना चाहते कि उन पर उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा खर्च किया है तो उन्हें इस बात के लिए राजी किया जाना चाहिए कि वे क्षति पूर्ति की रकम लेकर इन गुलामों को मुक्त कर दें। सरकार ऐसा फंड बनाए जिससे गुलामों के मालिकों को रकम देकर गुलामों की मुक्ति कराई जा सके।
कांग्रेस के सदस्य
1846 में अब्राहम लिंकन ने कांग्रेस की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ा। वे चुनाव जीत गए।
अब उनके सामने समस्या आई वाशिंगटन जाने की। उनकी पत्नी अब तक दो बच्चों को जन्म दे चुकी थी। दोनों ही लड़के थे। सबसे बड़ा बेटा रॉबर्ट लिंकन 3 वर्ष का हो चुका था।
लिंकन की पत्नी इस बात से बहुत खुश थी कि उन्हें कांग्रेस की सदस्यता मिल गई है, परंतु इस बात से उन्हें बड़ी परेशानी हुई कि लिंकन को वाशिंगटन जाना पड़ेगा, वकालत का काम बंद करना पड़ेगा और परिवार को स्प्रिंगफील्ड में छोड़ अकेले ही वाशिंगटन जाकर रहना पड़ेगा।
लिंकन ने पत्नी को समझाया कि राष्ट्र की सेवा के लिए इतना त्याग तो करना ही पड़ेगा। अभी बच्चे क्योंकि ज्यादा बड़े नहीं हुए हैं, उनकी शिक्षा की समस्या सामने नहीं है, अतः दोनों जगह रहा जा सकता है। कुछ दिन पत्नी बच्चों के साथ स्प्रिंगफील्ड में रहे और कुछ दिन वाशिंगटन में मिले कांग्रेस सदस्यों के आवास में।
1847 में लिंकन स्प्रिंगफील्ड छोड़कर वाशिंगटन आ गए। वाशिंगटन के साथ उनकी एक कल्पना जुड़ी थी। वे सोचा करते थे कि जब राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने के बाद वाशिंगटन जाकर रहेंगे तो उनके परिचय का दायरा बहुत बढ़ जाएगा। दोस्तों की संख्या बहुत बढ़ जाएगी तथा जीवन का आनंद कई गुना हो जाएगा, परंतु यहां आने के बाद उन्हें पता लगा कि राष्ट्रीय राजनीति तो सीमाहीन महासागर की तरह है। यहां बहुत लोग हैं। बड़े-बड़े विद्वान और महान विचारक हैं, परंतु सब अपने आप में व्यस्त हैं। जीवन का जैसा आनंद न्यू सलेम और स्प्रिंगफील्ड में था, वैसा वाशिंगटन में नहीं मिल पाया।
हां, एक बात जरूर थी, लिंकन की पत्नी मैरी टॉड के इरादे बहुत ऊंचे हो गए थे। उनकी कल्पनाएं बहुत बढ़ गई थीं। उन्होंने सोचा था कि अब जीवन की उन तमाम इच्छाओं को पूरा करने का अवसर मिलेगा जो उन्होंने राजनैतिक ऊंचाइयों वाले पति के साथ जोड़ी थीं। अब वे कीमती कपड़े पहनेंगी, अच्छी-अच्छी चीजों से अपना आवास सजाएंगी, बच्चों पर खुले हाथ खर्च करेंगी और अपनी सहेलियों तथा रिश्ते की अन्य स्त्रियों के साथ अपनी उपलब्धियों की डींग हांकेंगी, परंतु थोड़े दिन खुलकर खर्च करने के बाद ही उनकी समझ में आ गया था कि जो उन्होंने सोचा था, वह गलत था।
लिंकन का जीवन तो ईमानदारी और सत्य का एक अनूठा आदर्श था। उनसे ऐसी उम्मीदें रखना व्यर्थ था कि वे अपनी पत्नी और बच्चों को अधिक सुविधाएं जुटाने के लिए विशेष प्रयास करेंगे और सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल अपने हित में करेंगे। जनता की मेहनत की कमाई से सरकारें चलती हैं और सरकारी धन पर जनता का हक होता है नेताओं का नहीं, लिंकन इस सिद्धांत को मानने वाले थे।
पत्नी को जल्दी ही समझ आ गया कि उनका पति दूसरों से पूरी तरह अलग है और वह अलग ही रहेगा। उसे इतना पारिवारिक नहीं बनाया जा सकता कि वह जनता की कमाई में से हिस्सा मारकर अपने घर ले आए। उन्होंने अपने आपको बदलने का निश्चय कर लिया। पति के विचारों से उन्हें तनिक भी ऐतराज नहीं था। उनके विचारों की महानता का वे आदर करती थीं, अतः उन्होंने अपने इरादों को समेट लिया। लिंकन के सामने कामों की इतनी व्यस्तता रहती थी कि वे रात को देर तक जुटे रहते थे और प्रायः रात को देर से आ पाते थे और बच्चे इंतजार करते-करते सो जाते थे। रॉबर्ट को अधिक इंतजार रहता था। विली तो अभी बहुत छोटा था। वह तो मां की गोद में रहता था या पालने में सोता रहता था।
मैरी टॉड को घर में बच्चों की देखभाल करने, घर के काम संभालने और समय मिलने पर कुछ पुस्तकें पढ़ लेने के अलावा कोई और काम नहीं था।
1847 से 1849 तक लिंकन वाशिंगटन में रहे। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति मिस्टर पोक थे। उन्होंने 1846 में मैक्सिको पर आक्रमण किया था। अमेरिका मैक्सिको के कब्जे से कैलीफोर्निया, नवादा, ऊटा, एरीजोना, न्यू मैक्सिको तथा कोलोराडो व वियोमिंग आदि भाग खाली कराना चाहता था।
युद्ध में काफी खून-खराबा हुआ। युद्ध के बाद जो प्रतिक्रिया आई उसमें दो धाराएं साफ दिखाई दे रही थीं। एक धारा का मानना था कि अमेरिका ने मैक्सिको के साथ युद्ध छेड़कर अच्छा किया। किसी भी स्वाभिमानी राष्ट्र के लिए यह जरूरी है कि वह उसे नुकसान पहुंचाने वाले देश को सबक सिखाए तथा जो उसे ठीक लगता है उसे हासिल करे।
दूसरी धारा युद्ध विरोधियों की थी। इसी धारा में भिग पार्टी ने स्वर में स्वर मिलाया और सदन में इस बात को लेकर भारी हंगामा खड़ा किया। लिंकन युवा नेता के रूप में उभरकर सामने आए थे। वे अपनी पार्टी में अपनी शीर्ष पहचान बनाने के लिए बहुत उत्सुक थे। उन्होंने पार्टी की युद्ध के बारे में नीति को स्पष्ट करने का दायित्व संभाला और सदन में सत्तारूढ़ दल को धार पर रखते हुए उसकी घोर आलोचना की। मैक्सिको के विरुद्ध युद्ध को गैर-जरूरी बताते हुए उन्होंने राष्ट्रपति पोक की इस बात के लिए कटु आलोचना की कि उन्होंने मैक्सिको के विरुद्ध युद्ध छेड़कर व्यर्थ ही अमेरिकी सैनिकों का खून बहाया है।
स्पॉटी लिंकन
सरकार ने कांग्रेस के सामने बहस करके उसे पारित करने के लिए युद्ध सम्बंधी एक प्रस्ताव रखा था। जिसका उद्देश्य युद्ध के लिए मैक्सिको को पूरी तरह दोषी ठहराना तथा उससे युद्ध की कीमत वसूल करना था।
भिग पार्टी ने इस प्रस्ताव की कटु आलोचना की और इसके विरुद्ध मतदान किया। भिग पार्टी के बहुत प्रयत्नों के बावजूद यह प्रस्ताव गिर नहीं पाया, परंतु पार्टी की देश में भारी किरकिरी हो गई।
युद्ध के समय अमेरिकी जनता पूरी तरह अमेरिका के साथ थी तथा उसे यह बात बर्दाश्त नहीं थी कि युद्ध के लिए उसके देश को जिम्मेदार ठहराया जाए। जनता के रुख की परवाह न करते हुए भिग पार्टी के उभरते नेता लिंकन ने राष्ट्रपति और उनकी पार्टी की नीतियों को बेनकाब करने का संकल्प ले लिया और उन्होंने सदन में इस आशय के अनेक प्रस्ताव पारित किए कि जिस 'स्पॉट' (स्थान) पर युद्ध हुआ, सैनिकों का रक्त बहाया गया, उस स्थान को युद्ध के लिए चुनना और ऊपर से मैक्सिको को युद्ध के लिए दोषी ठहराना, सरासर गलत है। इसके लिए राष्ट्रपति पोक दोषी हैं, वे अमेरिका की जनता के सामने अपनी गलती स्वीकार करें।
लिंकन के इन प्रस्तावों से कांग्रेस में बार-बार हंगामे हुए और बहसें चलीं, परंतु जनता में यह संदेश गया कि भिग पार्टी का युवा नेता अब्राहम लिंकन एक दम सिरफिरा है जो अपने ही देश पर युद्ध का दोष मढ़ रहा है।
अनेक संगठन सक्रिय हो गए। उन्होंने सड़कों पर प्रदर्शन किए और 'स्पॉटी लिंकन गो बैक' के नारे लगाए। लिंकन पर इन नारों का कोई असर नहीं हुआ, उन्होंने अपना सरकार विरोधी अभियान जारी रखा। परंतु मीडिया में इसकी भारी प्रतिक्रिया हुई।
अनेक समाचार पत्रों ने लिंकन को 'स्पॉटी लिंकन' शीर्षक से छापा और अपने ही देश के राष्ट्रपति को कठघरे में खड़े करने के लिए उन्हें आड़े हाथों लिया। मीडिया ने लिंकन के इस रुख की इतनी आलोचना की कि वे पूरे देश में बदनाम हो गए।
उनके चुनाव क्षेत्र की जनता ने लिंकन की इस भूमिका को राष्ट्र विरोधी माना और फैसला कर लिया वे इस व्यक्ति को दोबारा चुनकर कांग्रेस में नहीं भेजेंगे।
1847 गुजर गया, 48 गुजर गया, 1849 में फिर से चुनावों की घोषणा हो गई। पार्टी ने लिंकन को फिर चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़ा किया, लेकिन जनता ने ऐसा खुला विरोध किया कि पार्टी हैरान रह गई। स्वयं लिंकन को भी ऐसी उम्मीद नहीं थी। क्षेत्र की जनता उनसे इतनी नाराज हो जाएगी। उन्होंने क्षेत्र के लिए बड़े काम किए थे, परंतु युद्ध पर लिंकन की गलत नीति के कारण जनता इतने विरोध पर उतर आई कि इस बार उसने लिंकन को नहीं चुना।
1849 में झख मारकर लिंकन वाशिंगटन से स्प्रिंगफील्ड वापस आ गए और राजनीति का विचार दिमाग से निकालकर वकालत के काम में जुट गए।
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