लिंकन का विवाह और परिवार

अब्राहम लिंकन का विवाह मैरी टॉड नामक लड़की से 1842 में हुआ था। मैरी टॉड श्रीमती एडवार्ड की बहन थी। श्रीमती एडवार्ड के पति इलीनॉइस के एटॉर्नी जनरल थे। वे विधान सभा में लिंकन के साथी थे।

लिंकन का विवाह और परिवार

लिंकन का विवाह और परिवार


Lincoln was so unlike all the men that I have ever known before or known since, that there is no one with whom I can compare him. But Merry Tod liked him, and got married with him.
-Joshua Speed
अब्राहम लिंकन का विवाह मैरी टॉड नामक लड़की से 1842 में हुआ था। मैरी टॉड श्रीमती एडवार्ड की बहन थी। श्रीमती एडवार्ड के पति इलीनॉइस के एटॉर्नी जनरल थे। वे विधान सभा में लिंकन के साथी थे।
मैरी टॉड के दादा मिलिट्री के जनरल रह चुके थे। मैरी टॉड की शिक्षा विशेष स्कूल में हुई थी, वह फ्रांसीसी बहुत अच्छी बोलती थी। वह एक अच्छी संगीतकार भी थी। नृत्य तथा कला में भी वह बहुत प्रवीण थी, परंतु लिंकन की तुलना में उसकी लम्बाई बहुत कम थी। वह केवल 5 फुट दो इंच लम्बी थी। उसकी नाक बहुत छोटी थी। चौड़ा माथा, गुलाबी त्वचा तथा भूरे बालों वाली मैरी टॉड अत्यधिक विदूषी तथा व्यवहार कुशल थी।
इससे पहले 1833 में लिंकन न्यू सलेम में एक लड़की के सम्पर्क में आए थे, इत्तफाक से इस लड़की का नाम भी मैरी था— पूरा नाम मैरी ओविंस । मैरी ओविंस लम्बी, सुंदर तथा बड़ी-बड़ी नीली आंखों वाली लड़की थी। वह बहुत ही लचीले स्वभाव की हंसमुख लड़की थी। उसकी अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। वह एक धनी परिवार की लड़की थी।
लिंकन को मैरी ओविंस से प्यार हो गया। 1836 में जब लिंकन एन रूटलैज के गम पर थोड़ा-थोड़ा काबू कर पाया था, तब मैरी ओविंस ने लिंकन के दिल को अपने काबू में कर लिया। मुलाकातें हुईं। धीरे-धीरे लिंकन के मन पर पड़ी एन के प्यार की धुंध छंट रही थी और मैरी ओविंस के प्यार का रंग चढ़ रहा था, परंतु 1837 में लिंकन ने न्यू सलेम को त्यागकर स्प्रिंगफील्ड जाने का मन बना लिया। जाने से ठीक पहले लिंकन ने मैरी ओविंस को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह उसे भूल जाए। लिंकन ने उसे समझाया कि उसका रास्ता मुसीबतों और चुनौतियों से भरा है। नाजों में पली वह खूबसूरत लड़की उसके साथ राजनीति के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर नहीं चल पाएगी। दिल पर पत्थर रखकर मैरी ओविंस लिंकन से अलग होने पर राजी हो गई। लिंकन के प्यार के बारे में टिप्पणी करते हुए
मैरी ओविंस ने कहा था—“ I thought him deficient in those little links which make up the chain of woman's happpiness...at least it was so in my case.
जब उसकी मृत्यु हुई तो मरने से ठीक पहले उसने लिंकन की प्रशंसा करते हुए कहा था— “Aman with a heart full of human kindness and a head full of common sense."
मैरी टॉड इस लड़की की तुलना में अधिक आकर्षक तथा ऊर्जावान थी। मैरी टॉड का मुंह थोड़ा पतला था और ठोड़ी चौड़ी थी। उसे देखने से लगता था जैसे वह बहुत कम बोलती है, परंतु उसकी आंखें बहुत बोलती थीं। वह बीच-बीच में मुस्कराती थी तो बहुत अच्छी लगती थी। उसकी बांहें लचीली और सुंदर थीं, उसकी नजरें बहुत तेज तथा अर्थपूर्ण थीं। वह बुद्धिमान और भावुक थी, लेकिन उसे जब गुस्सा आता था तो वह काबू से बाहर हो जाती थी।
1839 का वह दृश्य अब भी आंखों के सामने साकार हो उठता है जब मैरी टॉड ने पहली बार लिंकन को देखा। वह अपने चचेरे भाई मेजर जॉन स्टुआर्ट के साथ एक पार्टी में आई थी जो स्प्रिंगफील्ड में विधान सभा के सदस्य लिंकन के सम्मान में आयोजित की गई थी। उस दिन मैरी टॉड खूब सज संवरकर आई थी। कोने में बैठे कुछ लोगों की ओर इशारा करते हुए मेजर जॉन स्टुआर्ट ने मैरी टॉड से कहा था—“देखो सामने जो लोगों का समूह बैठा ठहाके लगा रहा है, उसके ठीक बीच में बैठा व्यक्ति आज का विशेष मेहमान है। उसी के सम्मान में यह महफिल सजी है। उसका नाम अब्राहम लिंकन है। हम दोनों साथ-साथ वकालत करते हैं। तुम इस व्यक्ति से मिलोगी तो हैरान रह जाओगी। इसकी लम्बाई पूरी 6 फुट 4 इंच है। जब यह बोलता है तब सबकी बोलती बंद हो जाती है। कहानियां सुनाने में यह बहुत माहिर है और जानकारी में तो इसका जवाब नहीं। पूरे अमेरिका की एक भी बात ऐसी नहीं जो इसे मालूम न हो। "
मैरी टॉड उस समय तो लिंकन के पास नहीं गई। कनखियों से उसे देख-देखकर मन ही मन मोहित होती रही, परंतु पार्टी के दौरान एक ऐसा मौका आया जब मैरी टॉड लिंकन के ठीक बराबर में आकर बैठ गई। यह मौका था एक कविता पढ़ने का। मैरी टॉड को मेजर जॉन स्टुआर्ट ने तैयार किया था कि वह लिंकन के साथ वही कविता पढ़े जो वह पढ़ने वाला है। यह वही कविता थी जो मैरी टॉड को अच्छी तरह आती थी. लिंकन को उसे सस्वर पढ़ना था।
मैरी टॉड जब लिंकन के बराबर में आकर बैठी तो वह उसे देखकर हैरान रह गया। उसे मैरी ओविंस की याद आ गई, परंतु यह तो सुंदरता में उससे बहुत आगे थी– सांचे में ढली अप्सरा सी मैरी टॉड ने यकायक
कहा- "मेरा नाम मैरी है। मैं आपके साथ कविता पढ़ तो आपको कोई ऐतराज तो नहीं होगा। "
"श्योर... आप पढ़िए...लीजिए।" कहते हुए लिंकन ने कविता की प्रति मैरी टॉड की ओर बढ़ाई।
"यह कविता मुझे आती है...मैं बिना देखे पढूंगी, आप देखकर पढ़िए।"
"लेकिन...आप... आपको यह कैसे मालूम?" लिंकन ने हैरानी से कहा।
“मैं मेजर जॉन स्टुआर्ट की कजिन हूं। उन्होंने ही...।"
"ओह! थैंक गॉड।” लिंकन अब समझ गए कि मेजर ने ही यह बात मैरी को बताई है कि मैं यह कविता पढ़ने वाला हूं।
दोनों ने एक साथ कविता पढ़ी। मैरी की आवाज और कविता पढ़ने की शैली दोनों ही इतने सधे हुए और सुंदर थे कि लिंकन का मन प्रफुल्लित हो उठा। मैरी के साथ कविता की पंक्तियां गाकर लिंकन को सबसे बड़ी हैरानी इस बात की हो रही थी कि दोनों की गायिकी शैली में इतना तारतम्य कैसे है, जबकि आज उनकी पहली ही मुलाकात है। ऐसी ही कुछ हैरानी मैरी को
भी थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह लिंकन के लिए ही बनी है और उसे ऐसे ही किसी पुरुष का अपने लिए इंतजार था।
स्रोता हैरान थे कि दो अजनबियों के एक साथ गाने में जो स्वर ताल का मेल दिखा था और उससे उपजी मिठास उनके मन की गहराइयों में उतर गई थी, वह सब कैसे संभव हुआ।
लिंकन और मैरी टॉड के बीच हुई इस पहली मुलाकात ने दोनों को बेचैन कर दिया। इस भेंट के बाद दोनों के दिलों में खलबली मच गई। वे एक दूसरे की ओर खिंचने लगे थे। मैरी टॉड अमीर घराने की लड़की थी। उसके घर में काम करने के लिए नौकर-चाकर थे तथा साधनों की कोई कमी नहीं थी। जीवन की कठोरता और अभावों से मैरी टॉड का परिचय तनिक भी नहीं था। उसे जिंदगी सुंदरता और सुख का एक मोहक गुलदस्ता लगती थी।
अब्राहम लिंकन बिल्कुल विपरीत जमीन पर खड़े थे। आयु के 30 साल पूरे कर चुके लिंकन ने अभी तक यह नहीं जाना था कि जिंदगी खूबसूरत और खुशियों से भरी एक सौगात है। उन्होंने तो यही जाना था कि जिंदगी जीवन-यापन के लिए तथा कुछ कर दिखाने के लिए किया जाने वाला सतत् संघर्ष है जिसमें से खुशियों के अंकुर तो यद कदा ही फूटते हैं, देखो तब दुखों और अभावों के काले बादल छाए रहते हैं तथा सहमाते हैं, आशा की किरणें यदा-कदा ही छिटकती हैं, निराशा के साए पीछा नहीं छोड़ते।
स्त्री के साथ का सुख अभी तक लिंकन ने भावना के स्तर पर ही देखा था, वह भी आधा-अधूरा और दुख व त्रासदी के चौखटे में मढ़ा हुआ। ऐसा सुख जो उनके चेहरे पर से दुख, अभाव तथा निराशा की परछाइयां हटा दे और उन्हें आनंद के अनंत सागर में डुबोकर आनंदमय कर दे, अभी तक वे महसूस नहीं कर पाए थे।
मैरी टॉड को पहली बार देखने के बाद ही पता नहीं क्यों लिंकन को लगा कि सीमाहीन आनंद का झोंका-सा उनके जीवन में आया है और उनके तन और मन में सुखद अनुभूति की तरंग बनकर समाता चला गया है। जी करता है कि वे गाएं, नाचें और दोस्तों के साथ जोर-जोर से बातें करें, बात-बात पर खुलकर हंसें और नए-नए इरादे, बुलंद करें। ऐसा उत्साह तो उन्होंने जीवन में पहले कभी महसूस नहीं किया था। क्या सचमुच मैरी टॉड के व्यक्तित्व में कोई ऐसा जादू है या फिर यह स्त्री को देखकर पुरुष के मन में होने वाली एक रोमांटिक प्रतिक्रिया मात्र है?
जब-जब वे अपने आपसे यह प्रश्न पूछने, उन्हें जवाब मिलता –'मैरी टॉड के व्यक्तित्व में एक ऐसा जादू है जो तन और मन के अस्तित्व की परतों में प्रवेश करके दोनों को पुलकायमान कर रहा है। यही वह लड़की है जिसकी उन्हें तलाश है। जो लड़कियां अब तक उनके जीवन में आईं वे हवा के खूबसूरत झोंके की तरह थीं जो आते हैं तो मन उनकी महक में पागल हो जाता है और जब हमें पीछे छोड़ते हुए आगे... और आगे चले जाते हैं तो मन एक दर्द-भरी टीस से कसक उठता है।'
लिंकन के जीवन में ऐसे झोंके आए थे और उनके गुजर जाने की दर्द भरी टीस अब भी उनके सीने में मौजूद थी, परंतु मैरी टॉड ऐसा कोई झोंका नहीं है जो गुजर जाए और एक और कसक छोड़ जाए जीवन-भर तड़पाने को मैरी टॉड तो जीवन की ऊर्जा से सराबोर एक सरस और सुंदर व्यक्तित्व है जो एक बार आकर फिर कभी जाएगा ही नहीं, ऐसा संदेश दे गया गया है। उसकी खुशबू तन-मन के पोर-पोर को बेधती हुई समूचे अस्तित्व में समा गई है, बस प्रतीक्षा है कि वह व्यक्तित्व कब पूरी तरह अपना हो जाए और जीवन खुशियों से भर जाए।
कुछ ऐसी ही दशा मैरी टॉड के मन की भी थी। मैरी टॉड ने जब से लिंकन को देखा था उसे लगा कि लम्बाई में उससे एक फुट दो इंच बड़ा यह लड़का उसी के लिए बनाया गया है। लम्बाई बेशक अलग-अलग हो पर दिल अलग-अलग नहीं रह गए हैं। मैरी टॉड का दिल लिंकन के लम्बे छरहरे व्यक्तित्त्व में समाकर वहीं रह गया था। अब वह उससे अगली मुलाकात का बहाना तलाशती रहती थी।
मैरी टॉड को अपना बनाने की कल्पना मात्र से लिंकन का सीना सवाया हो जाता था, परंतु साथ ही उसे यह डर सताने लगता था कि वह लड़की एक कंगाल तथा बौद्धिक संपदा में निमग्न व्यक्ति के साथ कैसे सुखी रह पाएगी। मैरी टॉड क्या जाने कि गरीबी और जीवन संघर्ष के दिए कितने घावों से उसका तन और मन घायल है। वह क्या जाने कि किस तरह अभावों में बच्चे पैदा होते हैं और उपेक्षाओं में पलकर बड़े होते हैं, जिंदगी उनकी कैसी-कैसी परीक्षाएं लेती है। किसी में सफल होते और किसी में असफल रह जाते वे कैसे अपने पैरों पर खड़े हो पाते हैं। ऐसे ही तो खड़ा था लिंकन। विधायक और वकील बनने के बाद भी उसे अभी तक विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वह अपने जीवन में आने वाली किसी लड़की को जिसे वह बहुत चाहता है, न्याय दे पाएगा।
लिंकन के सबसे करीबी दोस्त स्पीड से यह बात छिपी न रह सकी कि लिंकन मैरी टॉड को लेकर बहुत परेशान है। वह उसे चाहता भी है और उसे पाने, अपनी जिंदगी में लाने की कल्पना से डरता भी है। अब भी लिंकन स्पीड के साथ उसी के बिस्तर पर सोता था और उसी के घर में रह रहा था। जिस आदमी के पास किराए पर घर लेने तक की गुंजाइश न हो वह विवाह करेगा तो पत्नी को कहां और कैसे रखेगा, यह बात बेहद उलझी हुई थी।
स्पीड ने लिंकन की कठिनाई को सहानुभूति के साथ समझा तथा आश्वासन दिया कि वह चिंता न करे, सब कुछ ठीक हो जाएगा।
लिंकन के एक अन्य मित्र डॉक्टर एनान जी हैनरी तथा साइमन फेंकिस को जब लिंकन की कठिनाई का पता लगा तो वे गंभीर हो गए।
डॉक्टर हैनरी चिकित्सक थे और साइमन फ्रेंकिस स्प्रिंगफील्ड में भिग पार्टी के समाचार पत्र के सम्पादक थे। डॉक्टर हैनरी की मदद से साइमन फ्रेंकिस आगे बढ़ा। उसने अपने घर पर लिंकन तथा मैरी टॉड को एक साथ मिलाने का फैसला कर लिया। एक ही दिन और एक ही समय दोनों को साइमन फ्रेंकिस ने अपने घर आमंत्रित किया। दोनों को यह नहीं बताया गया था कि यह बुलावा उन्हें आपस में मिलाने के लिए है।
पहले लिंकन साइमन के घर पहुंचा। वह आकर बैठा ही था कि मैरी टॉड आ गई। मैरी टॉड ने जब यह देखा कि लिंकन वहां पहले से ही मौजूद है तो उसे आश्चर्य हुआ, परंतु लिंकन को वहां देख उसका मन इतना गदगद हो गया था कि उसने आश्चर्य व्यक्त नहीं किया। दोनों ने ईश्वर द्वारा उन्हें दिया गया यह एक अवसर माना।
दोनों चहककर मिले और बहुत देर तक बातें करते रहे। बातों ही बातों में दोनों ने अपने मन की बातें भी कह लीं और यह समझ भी लिया कि वे एक-दूसरे के लिए ही पैदा हुए हैं। दोनों ने विवाह करने का फैसला कर लिया।
4 नवम्बर, 1842 को दोनों विवाह के बंधन में बंध गए। दोनों इस विवाह से बहुत खुश थे। लिंकन के रिश्तेदार विवाह में शामिल न हो सके, परंतु मैरी टॉड के माता-पिता तथा रिश्तेदार इस रिश्ते से बहुत खुश थे।
मैरी जानती थी कि उसने एक ऐसे आदमी को अपना पति चुना है जो बन संवरकर रहने की बजाय बड़े-बड़े काम करने में ज्यादा विश्वास रखता है। विवाहित जीवन की खुशियों में मस्त होकर घूमने की बजाय देश और समाज की समस्याओं से जूझते रहना ही जिस व्यक्ति का मिशन है, ऐसे व्यक्ति को जान-बूझकर अपना पति बनाने के बाद मैरी टॉड को कोई मलाल नहीं था। उनके व्यवहार तथा विचारों से इस तथ्य की पुष्टि होती है।
उन्होंने अपनी एक सहेली के पत्र के जवाब में लिखा – "He deems me unwrorthy of notice, as I have not met him in the gay world for months with the usual comfort of misery, I imagine that others were as seldom gladdened by his presence as my humbleself"
हरवर्ट अगर ने एक स्थान पर विवाह के कई वर्ष बाद, मैरी टॉड और लिंकन के बारे में विचार व्यक्त करते हुए लिखा—'मैरी के लिए लिंकन एक सही चॉइस नहीं था। मैरी सदा बन ठनकर रहने वाली सुंदर और खुशनुमा स्त्री थी, जबकि लिंकन अपने बारे में अत्यधिक लापरवाह अस्त-व्यस्त, अव्यवहारिक और मूडी व्यक्ति था। यद्यपि लिंकन के व्यक्तित्त्व के ये गुण बहुत कीमती थे, परंतु एक स्त्री के साथ वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए यह गुण उपयुक्त नहीं कहे जा सकते।'
लिंकन के न खाने का कोई निश्चित समय होता था, न सोने का, न उठने का जबकि पत्नी को सामाजिक प्रतिष्ठा का सदा ख्याल रहता था और अपने परिवार के स्तर को सजाने-संवारने पर वह पूरा ध्यान देती थी।
लिंकन का ध्यान पूरी तरह उसके 'कैरियर' पर था। वह अपने देश में अपने लिए ऐसी जगह बनाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहता था जहां खड़े होकर उसे वे सब फैसले लेने का अवसर मिल सके जिन्हें वह ठीक समझता था। अर्थात लिंकन एक खास विचार एक खास उद्देश्य के लिए जी रहा था, जबकि मैरी टॉड को सुख-सुविधाओं, प्यार और समर्पण की जरूरत थी।
विवाह के ठीक पहले लिंकन ने ग्लोब टावर्न में दो कमरों का एक मकान लिया था उसी में वे दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे। विवाह के बाद मैरी टॉड को घर के सारे काम स्वयं ही करने पड़ते थे, जबकि विवाह से पहले उसने कभी घर के किसी काम को हाथ नहीं लगाया था। उसकी मां ने भी कभी घर का काम नहीं किया था। लेकिन लिंकन की आमदनी इतनी नहीं थी कि घर में कोई नौकर रखा जा सके, मैरी टॉड ने अगस्त 1843 में अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। उसका नाम रखा गया रॉबर्ट लिंकन। विवाह के नौ महीने 10 दिन बाद पैदा होने वाले इस बच्चे के जन्म के समय भी मदद के लिए मैरी टॉड एक नर्स का इंतजाम नहीं कर पाई थी।
1844 में, विवाह के दो वर्ष बाद लिंकन ने अपना घर तो खरीद लिया था, परंतु उसे सजाने-संवारने के लिए उपयुक्त फर्नीचर तक की व्यवस्था करना मुश्किल था। बच्चा छोटा था, उसकी देखभाल करने के साथ-साथ मैरी टॉड को खाना बनाने, कपड़ों की सिलाई करने, कपड़ों की धुलाई करने आदि सभी काम स्वयं करने पड़ते थे।
1843 से लेकर 1853 के बीच दस वर्ष के अंतराल में मैरी टॉड ने चार बच्चों को जन्म दिया। लिंकन के दूसरे बेटे का नाम विली लिंकन तथा तीसरे का टैड लिंकन था। एक लड़के एडी की 1850 में 4 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी जिसे सहन करना लिंकन व मैरी दोनों को बहुत मुश्किल हुआ।
मैरी ने अपने तीनों बेटों को अच्छी शिक्षा दिलाने तथा उनकी अच्छी तरह परवरिश करने पर पूरा ध्यान दिया। वह जानती थी कि उसके पति के पास तनिक भी समय नहीं है कि वह बच्चों का ध्यान रख सकें, अतः घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारियों को उन्होंने सदा स्वयं निभाया।
लिंकन का पूरा ध्यान इस बात पर रहता था कि देश की एकता और विकास की गतिविधियों में कहां अवरोध आ रहा है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है और उनसे कैसे निबटा जा सकता है।
राष्ट्रीय राजनीति में आने की उनकी तमन्ना 1846 में पूरी हो गई थी जब वे कांग्रेस के सदस्य चुन लिए गए। उसके बाद उनके काम करने और राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को निभाने के तरीकों में और गंभीरता आ गई थी।
लिंकन परिवार 1844 से 1861 तक पूरे सत्रह वर्ष तक इसी घर में रहा। 1861 में राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद लिंकन को वाशिंगटन में रहने के लिए जाना पड़ा था। सत्रह वर्ष की यह अवधि पति-पत्नी को एक-दूसरे को पूरी तरह समझने, एक-दूसरे की भावनाओं तथा विचारों का आदर करना सीखने के लिए काफी थी।
इस बीच बच्चे बड़े हो गए थे। पहला बच्चा रॉबर्ट लिंकन तो पूरे 18 वर्ष का हो गया था।
कर्तव्य और आदर भाव
लिंकन की पत्नी और लिंकन के बीच रोमांटिक जीवन की चर्चाएं सुनने को नहीं मिलतीं। जो लोग इस दम्पती के नजदीक रहे उन्होंने केवल एक ही बात देखी कि मैरी टॉड को जिस तरह का जीवन पसंद था, उस तरह के जीवन के लिए लिंकन जैसा व्यक्ति तनिक भी उपयुक्त नहीं था, परंतु लिंकन का व्यक्तित्त्व, पत्नी के प्रति उनका व्यवहार और उनके विचार मैरी टॉड के लिए आकर्षण का केंद्र थे।
मैरी ने विचार के स्तर पर लिंकन का सदा आदर किया। इस बात का सदा ख्याल रखा कि उनके विचारों के प्रवाह में कोई व्यवधान न आए, उनकी भावनाओं को कोई चोट न पहुंचे।
विवाह करने से पहले ही मैरी ने यह समझ लिया था कि जिस व्यक्ति को वे अपना जीवन साथी बनाने जा रही हैं, वह साधारण गृहस्थ बनकर नहीं रह सकता है। गरीबी की ऊबड़-खाबड़ जमीन से संघर्ष करते हुए ऊपर उठा वह व्यक्ति अपने जीवन का कोई उद्देश्य रखता है जिसे पूरा किए बिना उसके लिए जीवन का कोई अर्थ नहीं है। पत्नी, बच्चे और गृहस्थ जीवन तो जिंदगी के हिस्से हैं जिन्हें निभाया जाएगा, परंतु उसकी दृष्टि कहीं और है, उसके बिना वह नहीं रह सकता।
अतः मैरी ने अपनी जरूरतों व इच्छाओं की वेदी पर लिंकन को कसने की कभी कोशिश नहीं की। वे एक तरह से लिंकन की जीवन-साधना में पूरे समर्पण भाव से सहयोगिनी बन गईं। लिंकन के जीवन पथ में कोई व्यवधान न आए, इस ध्रुव-धारणा के साथ उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।
मैरी टॉड की अब्राहम लिंकन के साथ निभाई भूमिका पर नजर डालें तो पता लगता है कि भारत में स्त्री से जो अपेक्षाएं की जाती हैं और भारतीय स्त्री जिस तरह पति की सफलता के लिए अपने आपको पूरे समर्पण भाव से अर्पित कर देती है, उसी तरह मैरी टॉड ने अपने आपको लिंकन की सफलता के लिए अर्पित कर दिया।
यदि मैरी टॉड अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता देतीं तथा लिंकन पर उनकी पूर्ति के लिए दबाव डालतीं जैसा कि पश्चिमी स्त्रियों में देखने को मिलता है तो शायद लिंकन सफलता की सर्वोच्च ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाते।
क्या था लिंकन के पास- -एक बिखरा हुआ बेतरतीब जीवन, जीवन संघर्ष के घात-प्रतिघातों में चोट खाया हुआ तन और मन। यदि मैरी टॉड ने पति के सामने अंग्रेज आधुनिकाओं की तरह अपनी शर्तें रखी होतीं तो वे या तो रोकर भाग जाते या फिर अपना रास्ता बदल देते। यदि वे पत्नी से अलग हो जाते तो उनका जीवन इस तरह नहीं संभल पाता जिस तरह उसे मैरी टॉड ने संभाला था। उन्हें एक ऐसे साथी की बेहद जरूरत थी जो उनके जीवन के अंतरंग क्षणों में उनके साथ रहे और अपनी कोमलता तथा मानवता से बाहर की दुनिया से मिलने वाले उनके घावों की मरहम पट्टी करे, ताकि वे स्वस्थ होकर फिर से उनसे लड़ सकें और जीतकर आएं। मैरी टॉड ने यह भूमिका बखूबी निभाई। यदि किसी कारण वश लिंकन और मैरी टॉड का तलाक हो जाता तो ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो मैरी टॉड को चाहते थे, वे उसे अपनी जीवन सहचरी बना लेते और वह सब सुख देते जिसकी उसे दरकार थी, परंतु उस स्थिति में लिंकन का जीवन वृक्ष ढह जाता। वे अपने एक या दो बच्चों के साथ पत्नी की जुदाई नहीं सह पाते और टूटकर रास्ते में कहीं बिखर जाते।
यदि मैरी टॉड ने लिंकन पर इतना दबाव डाला होता कि वे अपनी वैचारिक संघर्ष की दुनिया को छोड़कर पत्नी की भावनाओं को सहलाने में लग जाते और उसके खूबसूरत जिस्म से चिपके रहना ही अपनी नियति बना बैठते, तब वे अमेरिका के राष्ट्रपति पद तक नहीं पहुंच पाते और जो शानदार अध्याय अपने खून और पसीने से उन्होंने अमेरिका के इतिहास में लिखा, उससे अमेरिका वंचित रह जाता। तब शायद अमेरिका टूटकर बिखर गया होता। टुकड़े-टुकड़े हो गया होता और आज 2005 में विश्व की सबसे बड़ी निर्णायक ताकत के रूप में हम अमेरिका को देख रहे हैं, शायद अमेरिका वैसा नहीं बन पाता।
इतिहासकार लिंकन पर लिखते समय उनकी पत्नी मैरी टॉड की उनके जीवन में सहयोगी भूमिका का चाहे जितना बखान कर लें, परंतु फिर भी उनके उस आभार से मुक्त नहीं हो पाएंगे जो लिंकन जैसे महापुरुष को तराशने और बनाने में उन्होंने किया।
बताते हैं कि उनके मन में खूब खर्च करने और खूब बन-ठनकर रहने की जो इच्छा थी, उसे उन्होंने तब पूरा किया जब लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए थे। अर्थात वह महान स्त्री समय और परिस्थिति के महत्त्व को भली भांति समझती थी। अपने मन की युवा इच्छाओं को उसने पूरे सत्रह वर्ष तक अपने मन के किसी कोने में संभालकर रखा और उन्हें तब परवान चढ़ाया जब उनका परिवार खुलकर खर्च करने की स्थिति में आ गया।
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