क्रिया-प्रकरण

धातुओं में तिङ् विभक्तियाँ लगाकर जो क्रिया - पद बनते हैं, उन्हें तिङन्त पद कहते हैं। जैसे—भवति, गच्छति, पिबतु, तिष्ठेत् आदि । सकर्मक और अकर्मक भेद से क्रिया दो तरह की होती है।

क्रिया-प्रकरण

क्रिया-प्रकरण

तिङन्त पद

क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। जैसे – भू, गम्, पा, स्था इत्यादि । 
धातुओं में तिङ् विभक्तियाँ लगाकर जो क्रिया - पद बनते हैं, उन्हें तिङन्त पद कहते हैं। जैसे—भवति, गच्छति, पिबतु, तिष्ठेत् आदि । सकर्मक और अकर्मक भेद से क्रिया दो तरह की होती है।
सकर्मक
जिसमें कर्म लगे, अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार और फल अलग-अलग रहें, उसे ‘सकर्मक' कहते हैं। जैसे- बालक दूध पीता है— 'बालकः दुग्धं पिबति’- -इस वाक्य में ‘पिबति’ क्रिया का व्यापार 'बालक' में है तथा पीने का फल ( पीया जाना) 'दूध' में है। इसलिए पीना यानी ‘पा' धातु सकर्मक हुआ। 
गमन, भोजन, दर्शन, पठन, पूजन, चिन्तन, ज्ञान, बन्धन, मुक्ति इत्यादि अर्थबोधक धातु सकर्मक कहलाते हैं।
अकर्मक
जिसमें कर्म की अपेक्षा नहीं रहे, अर्थात् क्रिया के व्यापार और फल दोनों एक ही में रहें, उसे अकर्मक कहते हैं। जैसे— 'महेश हँसता है' – 'महेशः हसति -  इस वाक्य में हँसने का काम और हँसना फल दोनों महेश में ही है। इसलिए 'हस्' धातु अकर्मक हुआ। 
हर्ष, शोक, लज्जा, भय, रोदन, नर्तन, शयन, जीवन, मरण, जागरण, वृद्धि, क्षय, सत्ता, स्थिति, दीप्ति (चमकना), खेल इत्यादि अर्थबोधक धातु अकर्मक कहलाते हैं।
ये सभी धातु भवादि, अदादि, जुहोत्यादि, दिवादि, स्वादि, तुदादि, रुधादि, तनादि, क्र्यादि तथा चुरादि, इन दस गुणों में बँटे हुए हैं।

काल

लेट्, संस्कृत में कालबोधक दस लकार हैं— लट्, लोट्, लङ्, विधिलिङ्, लृट्, लिट्, लुट्, लुङ् और लृङ्। यहाँ केवल प्रथम पाँच लकारों का ही उल्लेख किया जा रहा है। प्रत्येक लकार में तीन पुरुष होते हैं – 1. प्रथम पुरुष, 2. मध्यम पुरुष और 3. उत्तम पुरुष। प्रत्येक पुरुष में तीन वचन होते हैं – 1. एकवचन, 2. द्विवचन तथा 3. बहुवचन ।
लट्
लट् लकार वर्तमानकाल में होता है। जो समय बीत रहा है, उसे वर्तमानकाल कहते हैं। जैसे - बालक पढ़ता है— बालकः पठति। मैं हँसता हूँ — अहं हसामि। 
लोट्
लोट् लकार आज्ञा, अनुरोध, प्रश्न, आशीर्वाद इत्यादि अनुज्ञा अर्थ में होता है। जैसे— तुम पढ़ो – त्वम् पठ। वह घर जाए- स गृहं गच्छतु। मैं घर जाऊँ– अहम् गृहं — गच्छानि ?
लङ्
लङ् लकार का प्रयोग भूतकाल में होता है। जो समय बीत गया है, उसे भूतकाल कहते हैं। जैसे— रमेश विद्यालय गया – रमेशः विद्यालयम् अगच्छत् । मैं घर गया – अहम् गृहम् अगच्छम्। तुमने पुस्तक पढ़ी – त्वम् पुस्तकम् अपठः । 
विधिलिङ्
विधिलिङ् का प्रयोग ‘चाहिए’, ‘सकना तथा लोट् लकार (अनुज्ञा) के सभी अर्थों में होता है। जैसे— उसे सच बोलना चाहिए – स सत्यं वदेत् । मुझे रामायण पढ़नी चाहिए — अहं - रामायणं पठेयम्।
लृट्
लृट् लकार भविष्यत्काल में होता है। जो होनेवाला है, उसे भविष्यत्काल कहते हैं। जैसे—वह घर जाएगा - स गृहं गमिष्यति। मैं वेद पढूँगा – अहम् वेदम् पठिष्यामि। - तुम तमाशा देखोगे – त्वम् कौतुकं द्रक्ष्यसि। 

अनुवाद

मोहन ने रामायण पढ़ी – मोहनः रामायणम् अपठत् । 
देवदत्त वेद पढ़े – देवदत्तः वेदं पठतु | 
चोर धन हरते हैं— चौराः धनं हरन्ति। 
पृथ्वीराज ने संयुक्ता का हरण किया —– पृथ्वीराजः संयुक्ताम् अहरत् ।
नदी का पानी गिरता है— नद्याः जलम् पतति। 
भोज राजा हुआ — भोजः राजा अभवत् ।
हमलोग भात-दाल खाते हैं – वयम् भक्तं द्विदलं च खादामः । 
रात में दही नहीं खाना चाहिए— रात्र्यां दधि न खादेत्।  
यह मुनि का आश्रम है – अयम् मुनेः आश्रमः अस्ति।
वह युद्ध जीत गया – स युद्धम् अजयत्। 
सुदामा कृष्ण के मित्र थे – सुदामा कृष्णस्य सखा आसीत् । 
वे सच कहते हैं— ते सत्यं वदन्ति।
जंगल में बहुत फल हैं— वने बहूनि फलानि सन्ति । 
मैं काम करता हूँ — अहम् कार्यम् करोमि । 
सिंह वन में रहता है— सिंहः वने वसति । 
यहाँ बहुत दाता हैं— अत्र बहवः दातारः सन्ति । 
वे पाठशाला में क्या करते हैं? — ते पाठशालायां किं कुर्वन्ति ? 
महर्षि व्यास ने महाभारत लिखा- महर्षि व्यासः महाभारतम् अलिखत् । 
इस कुएँ का जल मीठा था – अस्य कूपस्य जलं मधुरम् आसीत् । 
तुम सच बोलो – त्वम् सत्यं वद। 
वह पढ़कर दौड़ेगा – स पठित्वा धाविष्यति। 
रमा पानी पीकर आती है – रमा जलं पीत्वा आगच्छति।

उपसर्ग, उपसर्ग से युक्त धातु

प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आङ् (आ), नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप - ये प्रादि (22) उपसर्ग कहलाते हैं। उपसर्ग धातु के आदि में तथा प्रत्यय धातु के अन्त में लगते हैं।
उपसर्ग के लगने से धातु के अर्थ में विचित्र परिवर्तन हो जाता है। जैसे—‘गच्छति' का अर्थ होता है—‘जाता है', किन्तु उसमें 'आ' उपसर्ग लगने से ‘आगच्छति’ हो जाता है, जिसका अर्थ होता है — 'आता है'।
नीचे कुछ अर्थसहित उपसर्ग से युक्त धातु दिए जा रहे हैं। 
भू (भवति) - होता है
प्र + भवति प्रभवित–निकलता है 
अनु + भवति = अनुभवति — अनुभव करता है 
सम् + भवति संभवति — उत्पन्न होता है 
गम् (गच्छति) - जाता है
आ + गच्छति आगच्छति—आता है 
अनु + गच्छति = अनुगच्छति – पीछे-पीछे चलता है 
अव + गच्छति अवगच्छति— जानता है 
निर् + गच्छति = निर्गच्छति – निकलता है 
प्रति + आ + गच्छति = प्रत्यागच्छति—लौटता है
हृ (हरति) -हरण करता है
प्र + हरति = प्रहरति — प्रहार करता है 
सम् + हरति = संहरति — संहार करता है 
वि + हरति = विहरति — विचरण करता है 
परि + हरति = परिहरति — दूर करता है 
उत् + हरति = उद्धरति — उद्धार करता है 
कृ (करोति) — करता है
अप + करोति = अपकरोति - अपकार करता है 
अनु + करोति = अनुकरोति — नकल करता है 
उप + करोति = उपकरोति – उपकार करता है 
अधि + करोति =  अधिकरोति — अधिकार करता है 
नी (नयति) – ले जाता है 
आ + नयति =  अपनयति — लाता है
अनु + नयति = अनुनयति — अनुनय करता है 
अप + नयति — आनयति — दूर करता है
सृ (सरति ) - जाता है
अनु + सरति = अनुसरति — पीछे-पीछे चलता 
निः + सरति = निःसरति — निकलता है 
स्था (तिष्ठति) - ठहरता है
उत् + तिष्ठति = उत्तिष्ठति-उठता है 
उप + तिष्ठति = उपतिष्ठति – समीप रहता है 
सद् (सीदति) – दुःखी होता है
प्र + सीदति = प्रसीदति – प्रसन्न होता है 
अव + सीदति अवसीदति—दुःखी होता है = 
नि + सीदति = निषीदति – बैठता है
पत् (पतति) — गिरता है
उत् + पतति = उत्पतति  - उड़ता है 
प्र + नि + पतति = प्रणिपतति—प्रणाम करता है
नम् (नमति) – झुकता है
प्र + नमति = प्रणमति- - प्रणाम करता है
रुह् (रोहति) — उगता है
प्र + रोहति = प्ररोहति — उगता है, जनमता है 
आ + रोहति =  आरोहति — चढ़ता है 
विश् (विशति) – घुसता है 
प्र + विशति = प्रविशति – प्रवेश करता है - 
उप + विशति = उपविशति — बैठता है
तृ (तरति) — तैरता है
अव + तरति = अवतरति — उतरता है

अनुवाद

वह सुख का अनुभव करता है— सः सुखम् अनुभवति । 
लड़के घर से आते हैं — बालकाः गृहात् आगच्छन्ति। 
राम गुरु को देखकर खड़ा होता है— रामः गुरुं दृष्ट्वा उत्तिष्ठति । 
श्याम बदमाश को मारता है— श्यामः दुष्टं प्रहरति । 
राघव वेद जानता है — राघवः वेदम् अवगच्छति। 
छात्र पुस्तक की नकल करते हैं — छात्राः पुस्तकम् अनुकुर्वन्ति । 
गङ्गा हिमालय से निकलती है— गङ्गा हिमालयात् निःसरति। 
वह शिक्षक को प्रणाम करता है – सः शिक्षकं प्रणमति | 
बच्चा कोठे पर चढ़ता है— बालकः सौधम् आरोहति ।
चिड़ियाँ उड़ती हैं - खगाः उत्पतन्ति ।
वह राज्य पर अधिकार करता है - सः राज्यम् अधिकरोति ।

‘स्म' अव्यय का प्रयोग

लिट् लकार, अर्थात् परोक्ष अनद्यतन भूतकाल के अर्थ में लट् लकार के प्रथम (अन्य) पुरुष की क्रियाओं में 'स्म' लगता है। यथा- - भवतिस्म, कुर्वन्तिस्म आदि। मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष में ‘स्म' का प्रयोग नहीं होता। अतः, गच्छतिस्म या गच्छामिस्म जैसा प्रयोग करना सर्वथा भ्रामक है |

अनुवाद

युधिष्ठिर ने यज्ञ किया था – युधिष्ठिरः यजतिस्म। 
राम ने रावण को मारा- - रामः रावणं हन्तिस्म। 
राम और लक्ष्मण वन गए थे – राम-लक्ष्मणौ वनं गच्छतः स्म । 
तुलसीदास ने रामायण लिखी— तुलसीदासः रामायणं लिखतिस्म। 
देवताओं ने युद्ध किया था – देवाः युद्धं कुर्वन्तिस्म।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here

Facebook पर फॉलो करे – Click Here

Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here

Google News ज्वाइन करे – Click Here