General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी युग
गाँधी जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन में सामान्य मनुष्य से महात्मा तक की यात्रा किया। इन्होंने यह साबित किया कैसे एक सामान्य सा व्यक्ति सिर्फ वैचारिक कटिबद्धता के दम पर दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्र तक को झुका सकता है।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी युग
- महात्मा गाँधी जी का व्यक्तित्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अतुलनीय था।
- गाँधी की सोच, विचारधारा और कार्य पद्धति समकालीन विश्व में अद्वितीय थी। जिस ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त नहीं होता था। उसके दो राष्ट्रों में घुटनों पर ला दिए।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जहां वर्चस्व की जंग दो-दो विश्वयुद्ध चल रहा था। नरसंहार जारी था उसी बीच सत्य, जैसे वैचारिक अवधारणाओं से भारत को स्वतंत्रता दिला दिए ।
महात्मा गाँधी
- गाँधीजी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट तथा ग्रेजुएट की श्यामलदास कॉलेज से किया था।
- ग्रेजुएशन के पश्चात 1889-91 तक 3 वर्ष कानून की शिक्षा ग्रहण किया था तथा बैरिस्टर एट लॉ की उपाधि लेकर लंदन से वापस आए थे।
- गाँधीजी ने अपने प्रारंभिक जीवन का संघर्ष राजकोट तथा फिर बंबई में किया था।
- इसी क्रम में एक व्यापारी दादा अब्दुला के व्यापारिक केस पर अफ्रीका 1893 में गए थे।
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी
- ज्ञातव्य है कि गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुँचने वाले तथा नाटाल ( सुप्रीम कोर्ट अफ्रीका) में खुद को रजिस्टर कराने वाले प्रथम व्यक्ति थे।
- गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका पहुँचते ही प्रजातीय भेदभाव के शिकार हुए थे। डरबन से प्रिटोरिया जाने वाली ट्रेन में सिर्फ अश्वेत होने के कारण मोरित्सबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।
- घटनाक्रम :-
1893 - इंडियन ओपिनियन नामक पत्र प्रारंभ1894 - नाटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना1899 - बोअर पदक की प्राप्ति1904 - डरबन में फिनिक्स आश्रम की स्थापना1906 - एशियाई रजिस्ट्रेशन एक्ट एशिया मूल के व्यक्ति को परमीट के लिए 8 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को रजिस्टर्ड होना पड़ता था।1906 - गाँधीजी को जुलु पदक प्राप्त हुआ1908 - इस वर्ष जेल भी गए थे1909 - लंदन गए इसी वर्ष हिंद स्वराज ( अंग्रेजी) पुस्तक लिखी थी।1910 - जोहांसबर्ग से 21 मील दूरी पर 1100 एकड़ में जर्मनी के हरमन कालेनबाख की मदद से टालस्टाय आश्रम की स्थापना किया था।- इसी ट्रस्ट को TATA ने 25,000 रुपये भेजा था।- इस आश्रम में 6 से 16 वर्ष के आयु के बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा दिया जाता था।1912 - फिनिक्स ट्रस्ट की स्थापना
- 1912 में गोपाल कृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहीं गाँधीजी से मुलाकात हुआ था। गाँधीजी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले थे।
- 1913 में गाँधी जी ने गिरमिटिया प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया था।
- गिरमिटिया प्रथा : भारतीय मजदूरों को एक निश्चित समयावधि ( 5-10 ) वर्ष देश से बाहर कार्य करने की अनुमति प्रदान किया गया।
- गाँधी जी ने भारत वापसी पर अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान पर श्री जीवनलाल बैरिस्टर के मकान को किराए पर लिया।
- इसी मकान में 1915 को सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की गई। इसे 17 जून 1917 को साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित कर इसका नामकरण साबरमती आश्रम कर दिया।
- 9 जनवरी 1915 को गाँधी जी भारत वापस आए थे। 2003 से इसी दिन को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। गांधीजी अफ्रीका वापसी पर काठियावाड़ी किसान के वेश-भूषा में थे ।
- भारत वापसी पर गोपाल कृष्ण गोखले ने गाँधी जी को आँख खोलकर तथा कान मुंद कर । वर्ष भारत भ्रमण का आदेश दिया।
महत्वपूर्ण आंदोलन
चंपारण सत्याग्रह
- चंपारण बिहार का एक प्रांत है। समकालीन ब्रिटिश साम्राज्य में यहाँ किसानों का शोषण चरम पर था।
- बिहार के इस प्रांत में तिनकठिया पद्धति प्रचलित था। इस पद्धति में जमीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती अनिवार्य थी।
- 20वीं शताब्दी में यूरोप में निर्मित कृत्रिम नील ने भारत उत्पादित प्राकृतिक नील की बाजार में मांग कम कर दिया ।
- तीन कठिया पद्धति में अनुबंधित किसानों का शोषण अब चरम पर था ।
- वर्ष 1916 के लखनऊ अधिवेशन में गाँधीजी से मिलकर राजकुमार शुक्ल (चंपारण का किसान) ने चंपारण आने का न्योता दिए।
- गाँधीजी अपने सहयोगी
ब्रज किशोरसी०एफ० एंडूजडॉ० अनुग्रह नारायण सिंहराज किशोर प्रसादमहादेव देसाईनरहरि पारिखजे. बी. कृपलानी
- सरकार ने एक जांच आयोग गठित किया था जिसमें गाँधीजी को शामिल किया था।
- इस आयोग में गाँधीजी को भी शामिल किया गया था। इस आयोग के सुझाव पर अंग्रेज मालिक अवैध वसूली का 25% किसानों को देने पर राजी हो गए।
- इसी आंदोलन में रवीन्द्र नाथ टैगोर ने गाँधी जी को महात्मा से विभूषित किया था ।
- ज्ञातव्य है कि एन. जी. रंगा ने गाँधीजी के सत्याग्रह का विरोध किया था ।
खेड़ा सत्याग्रह
- गुजरात के खेड़ा क्षेत्र में कुनबी पाटीदार किसानों ने 1918 में अकाल पड़ने और प्लेग फैलने के कारण भू-राजस्व देने से मना किया।
- किंतु सरकार ने भू-राजस्व से संबंधित समस पर ध्यान नहीं दिया और भू-राजस्व वसूलने का कार्य जारी रखा।
- इसी क्रम में किसानों ने मोहन लाल पाण्ड्य के नेतृत्व में आंदोलन खड़ा कर दिया ।
- 22 मार्च, 1918 को गाँधीजी ने इसको अपने नेतृत्व में लिया था । एवं इसको सत्याग्रह का रूप प्रदान किया था।
- सरकार ने इस आंदोलन में भी गाँधीजी बात मानी और अंततः केवल समर्थ किसानों से ही लगान वसूलने का आदेश दिया ।
- इस सत्याग्रह में गाँधीज़ी के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल, इंदुलाल याज्ञिक तथा गुजरात सभा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
रॉलेट एक्ट, 1919 (Rowlatt Act)
- इंग्लैण्ड हाईकोर्ट के न्यायाधीश सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में 10 दिसम्बर 1917 को एक समिति का गठन किया गया।
- इस समिति का उद्देश्य भारत में बढ़ रहे उग्रपंथी क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने की युक्ति सुझाना था ।
- इस आयोग का सुझाव-
- किसी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जाए
- संदिग्ध व्यक्ति के गतिविधियों पर निगरानी रखी जाए
- उस पर गुप्त रूप से मुकदमा चलाकर दंडित किया जाए।
- इस समिति की रिपोर्ट 15 अप्रैल, 1918 को आई भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद सरकार ने 18 मार्च 1919 को रॉलेट एक्ट पास कर दिया।
- भारतीयों ने इसे काला कानून के नाम से संबोधित किया। इस कानून के विरोध में एक नारा बना 'कोई वकील नहीं कोई दलील नही, कोई अपील नहीं'।
- मदन मोहन मालवीय और मजहरूल हक ने इस कानून के विरोध में केन्द्रीय व्यवस्थापिका से इस्तीफा दे दिया।
- गाँधीजी के सुझाव पर समूचे देश में इस कानून का विरोध प्रारंभ हो गया।
- इसी क्रम में गाँधीजी के आह्वान पर 6 अप्रैल, 1919 हड़ताल की घोषणा किया तथा सत्याग्रह सभा की स्थापना किया।
- इसी क्रम में दिल्ली, अमृतसर, लाहौर, मुल्तान, जालंधर, अहमदाबाद इत्यादि जगहों पर हड़ताल एवं प्रदर्शन किए गए।
- पंजाब में हिंसक घटना हुई । निहत्थी भीड़ पर पुलिस ने गोली चलाई।
- गाँधीजी ने जब पंजाब जाने की योजना बनाई। तो पलवल ( वर्तमान हरियाणा) में ही गिरफ्तार कर बंबई भेज दिया गया।
- पंजाब के उपगवर्नर, ओ. डायर समूचे पंजान में आतंक का राज स्थापित किया था ।
- इसी क्रम में 9 अप्रैल को रामनवमी के दिन हिंदू-मुस्लिम ने संयुक्त रूप से विशाल जुलूस निकाला था।
- इस आयोजन से घबड़ाकर सरकार ने दो बड़े नेता डॉ. सतपाल तथा किचलू को गिरफ्तार कर लिया । तथा अमृतसर से निर्वासित कर दिया।
- इसके विरोध में एक विशाल जुलूस का आयोजन किया गया। इसी निहत्थी भीड़ पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई तथ्ज्ञा जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड जैसा अमानवीय कुकृत्य का प्रदर्शन किया।
जालियाँवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919)
- गाँधी जी ने 6 अप्रैल 1919 को रॉलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह सभा का आह्वान किया।
- आंदोलन की तीव्रता के कारण ब्रिटिश सरकार इसका कुचलने के लिए आमादा थी ।
- बंबई, अहमदाबाद, कलकत्ता, दिल्ली तथा अन्य नगरों में लगातार निहत्थे भीड़ पर गोली तथा लाठी चार्ज किया जा रहा था।
- इसी क्रम में पंजाब आते समय रास्ते में पलवल (हरियाणा जिला) नामक स्थान पर गाँधीजी को गिरफ्तार कर बंबई भेज दिया गया।
- 9 अप्रैल को डॉ. सतपाल तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
- इस घटना से स्थानीय नागरिकों में आक्रोश था । तथा दोनों घटनाओं के विरोध स्वरूप एक सभा का आयोजन किया गया।
- आक्रोश के दमन हेतु जनरल डायर अपनी टुकड़ी के साथ अमृतसर पहुंचा।
- 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन दोपहर में जालियांवाला बाग में सभा का आयोजन पूर्वनिर्धारित था ।
- जालियांवाला बाग बड़ा था किंतु तीन तरफ से बड़ी दीवार से घिरा हुआ था । निकलने के रास्ते पर खड़ा हो डायर ने भीड़ पर अपनी सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया।
- इस घटना में लगभग 1000 लोग मारे गये। इस घटना को अंजाम कर्नल रेजीनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने दिया था।
- इस घटना के आलोचना में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के एक सदस्य ने कहा था 'ऐसी बर्बरता की मिसाल संसार में कहीं नहीं है।"
- इस घटना के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्राप्त अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दिया।
- एस. शंकर नायर ने गवर्नर जनरल के कार्यकारी परिषद् से त्यागपत्र दे दिया।
- इसी क्रम में 1 अक्टूबर, 1919 को हंटर समिति का गठन किया गया। इस समिति का उद्देश्य घटना की जांच पड़ताल करना था।
- हंटर समिति ने मार्च 1920 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया था। इसके पूर्व हि दोषी लोगों को बचाने हेतु इण्डेम्निटी बिल पास कर लिया था।
- ज्ञातव्य है इस बिल में किसी भी अंग्रेज को दोषी नहीं माना गया था ।
- इसी क्रम में कांग्रेस ने भी जलियावाला बाग हत्याकांड की जांच हेतु एक समिति गठित किया था।
- ज्ञातव्य है इसी कालखण्ड में पंजाब में चमनदीप के नेतृत्व में डंडा फौज का गठन हुआ था।
खिलाफत आंदोलन (1919-24)
- तुर्की का सुल्तान जो तत्कालीन खलीफा भी था। इसने जर्मनी का पक्ष लेकर ब्रिटेन के विरुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल हो गया।
- भारतीय मुसलमानों को डर था कि युद्ध समाप्ति के पश्चात अंग्रेज तुर्की से बदला लेंगे। भारतीय मुसलमानों के लिए खलीफा महत्त्वपूर्ण था क्योंकि वह इस्लाम का सर्वोच्च धार्मिक नेता था।
- इसी क्रम में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायड जार्ज ने यह घोषणा किया तुर्की के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय नहीं किया जाएगा।
- 11 नवम्बर, 1918 को विश्वयुद्ध समाप्त हुआ और 10 अगस्त 1920 को सेब्रेस की संधि हुई।
- सेव्रेस की संधि के अनुसार समूचे तुर्की को मित्र राष्ट्रों ने आपस में बांट लिया। इस प्रकार तुर्की का साम्राज्य विघटित हो गया।
- इसके साथ खलीफा (सर्वोच्च इस्लामिक नेता) का भी अपमान किया। यही प्रमुख कारण था भारत में खिलाफत आंदोलन का।
- नवम्बर, 1919 में महात्मा गाँधी द्वारा हिंदुओं एवं मुसलमानों का संयुक्त सम्मेलन दिल्ली में बुलाया। इसका उद्देश्य खिलाफत योजना के निर्धारण पर था।
- जुलाई, 1921 में करांची में अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन में मौलाना मुहम्मद अली सभापति थे।
- इस आंदोलन में खान अब्दुल गफ्फार खां ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
- इसी क्रम में खिलाफत का हल तुर्की ने स्वयं कर लिया।
- नवम्बर, 1922 में मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की में एक क्रांति हुई थी।
- तुर्की के तत्कालीन सुल्तान जो समकालीन खलीफा भी थे, गद्दी से उतार दिया था।
- इसी क्रम में तुर्की के सुल्तान, मुहम्मद चतुर्थ को गद्दी से उतार दिया एवं उनके स्थान पर मुस्तफा नया खलीफा घोषित किया गया।
- खलीफा का समस्त राजनीतिक अधिकार समाप्त कर लिया गया। भारत की खिलाफत कमेटी ने इसके विरोध में 1924 में एक प्रतिनिधि मंडल को तुर्की भेजा ।
- मुस्तफा कमाल पाशा इस प्रतिनिधि मंडल की अपेक्षा किया। बल्कि 3 मार्च 1924 को खलीफा पद ही समाप्त कर दिया।
- इसी क्रम में मुस्तफा कमाल पासा ने तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित कर मित्र राष्ट्रों से संधि कर लिया। इसी के साथ खिलाफत आंदोलन समाप्त हो गया।
चौरी-चौरा कांड- 1922
- तत्कालीन उ. प्र. के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा कस्बे में असहयोग आन्दोलन के समर्थन में एक जुलुस निकाला जा रहा था।
- इस जुलुस का नेतृत्व भूतपूर्व सैनिक भगवान अहीर कर रहा था। पुलिसवालों ने भगवान अहीर तथा कुछ लोगों को इसके विरोध स्वरूप पंडित कर दिया।
- इस घटना के प्रतिक्रिया स्वरूप उग्र जनता ने पुलिस थाने को फूंक दिया जिसमें 22 पुलिसकर्मी भी मारे गए।
- इस नृशंस हत्याकांड में 170 भारतीय लोग अभियुक्त बनाए गए। जिनको मृत्युदंड दिया गया था ।
- इसी क्रम में मदन मोहन मालवीय ने बुद्धिमत्तापूर्ण पैरवी करते हुए 151 लोगों को फांसी से बचा लिया।
- ज्ञातव्य है चौरी-चौरा हत्याकांड में भारतीय पक्ष के वकील पं. मदन मोहन मालवीय थे।
- इस हिंसक घटना से क्षुब्ध होकर महात्मा गाँधी ने 12 फरवरी, 1922 के कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में असहयोग आंदोलन को स्थगित करवा दिया था।
- ज्ञातव्य है मोतीलाल नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू, सी. राजगोपालाचारी, सी. आर. दास तथा मुहम्मद और शौकत अली (अली बंधु) ने गाँधी जी के आंदोलन वापसी के निर्णय का विरोध किया था।
- नेताओं के गाँधीजी के विरोध का लाभ लेकर अंग्रेजों ने गाँधीजी को 10 मार्च, 1922 को गिरफ्तार कर लिया तथा 6 वर्ष कीसजा सुना दिया।
- यह सजा न्यायाधीश ब्रुमफिल्ड जनता में असंतोष भड़काने के आरोप में सुनाया था।
- इसी क्रम में खराब स्वास्थ्य के कारण गाँधीजी को 5 फरवरी, 1924 को रिहा कर दिया गया था।
साइमन कमीशन (The Simon Commission, 1927)
- ज्ञातव्य है 1919 के अधिनियम में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड एक्ट के पारित होने के 10 वर्षों के बाद भारत में उत्तरदायी सरकार की कार्यों की समीक्षा का प्रावधान था ।
- 1931 में इसके लिए ब्रिटिश सरकार को एक कमीशन नियुक्त करना था। लेकिन 1929 में होने वाले ब्रिटेन के आम चुनाव के मद्देनजर ।
- ब्रिटेन की सरकार ने 8 नवम्बर, 1927 ई. को ही उस कमीशन की नियुक्ति कर डाली थी। इस कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन को नियुक्त किया गया।
- इस प्रकार इस आयोग ने लॉर्ड इर्विन के सुझाव पर किसी भी भारतीय सदस्य को इसमें शामिल नहीं किया गया था।
- यह आयोग जातिगत (रंगभेद ) विभेद का सर्वोच्च उदाहरण था । इसमें एक भी भारतीय नहीं था इसलिए इस आयोग को श्वेत कमीशन की संज्ञा दिया गया था।
- कांग्रेस ने प्रत्येक चरण पर इस आयोग का वरोध किया था। 1927 के कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में भी इसका विरोध किया गया।
- इस आयोग का हिंदू महासभा कम्यूनिस्ट पार्टी, किसान मजदूर पार्टी, लिबरल फेडरेशन, हिंदु महासभा तथा अन्य पार्टियों ने विरोध किया था।
- इसी क्रम में मुस्लिम लीग में कमीशन के विरोध पर फुट पड़ गई थी। जिन्ना ने कमीशन का विरोध किया। जबकि मुहम्मद शफी के नेतृत्व में लीग का एक धड़ा कमीशन के सहयोग करने के पक्ष में था।
- डिप्रेस्ड क्लास एसोसिएशन (अम्बेडकर द्वारा संचालित) तथा हरिजनों के कुछ संगठनों ने साइमन कमीशन का सहयोग किया था।
- यह कमीशन 3 फरवरी 1928 को भारत (बंबई) पहुंचा। इस कमीशन का स्वागत हड़ताल काले झंडे इत्यादि से किया गया। साइमन गो बैक (Simon Go Back) के नारे लगाए गए।
- ध्यातव्य है कि जब यह आयोग दिल्ली पहुंचा। इसके स्वागत के लिए एक भी भारतीय नहीं था । लाहौर में इस कमीशन का विरोध लाला लाजपत राय ने किया था।
- इसी में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने लाठी मारी और इसी में लाठी के प्रहार से पाला लाजपत राय को चोट आई और उनका देहावसान हो गया था।
- लखनऊ में इसका विरोध का नेतृत्व पं. गोविन्द वल्लभ पंत ने किया था। पटना, कलकता तथा मद्रास में भी इसका विरोध किया गया था।
- इस आयोग ने तमाम विरोध के बावजूद भारत में अपना कार्य तथा 27 मई, 1930 को अपना रिपोर्ट पेश किया था। इसकी मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित हैं-
- कमीशन ने द्वैध शासन को समाप्त कर राज्यों को स्वायतशासी बनाने का समर्थन किया।
- इस कमीशन ने भारतीयों को मताधिकार के विस्तार की सिफारिश किया था ।
- इस कमीशन ने प्रांतीय विधानमंडलों के विस्तार एवं मुसलमानों को विशेष प्रतिनिधित्व देने की बात कही थी।
- इसने गवर्नर एवं गवर्नर जनरलों के अधिकारों को बढ़ाने का सुझाव दिया था।
- इसके अलावा साइमन कमीशन के अन्य महत्वपूर्ण सुझाव:-
- वर्मा को भारत से अलग करने
- सिंध को बंबई से अलग करने
- उड़ीसा को अलग प्रांत बनाना
- सेना का भारतीयकरण करने
- इससे इतर रिपोर्ट पर बातचीत करने के लिए गोलमेज सम्मेलन (Round table conference) बुलाने की बात स्वीकारी गई थी।
- भारतीयों की माँग 'स्वराज' पर यह कमीशन पूर्णतः चुप रहा था। इसी क्रम में भारतीयों ने भी अपने लिए संविधान की रूपरेखा तैयार किया जो नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना गया ।
- ज्ञातव्य है 1935 का अधिनियम कुछ हद तक इसी रिपोर्ट पर आधारित था।
जिन्ना का 14 सूत्री फार्मूला
- मुस्लिम लीग के प्रभावशाली नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट को मुस्लिम हितों के विरुद्ध बताया था। तथा मार्च 1929 में अपनी रिपोर्ट पेश किया था ।
- इस रिपोर्ट में जिन्ना ने अपने संविधान निर्माण से संबंधित 14 महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे।
- ज्ञातव्य है कि जिन्ना की अधिकतर मांगों को अगस्त 1932 के मि. मैकडॉनल्ड के साम्प्रदायिक निर्णय में स्वीकार कर लिया गया था।
पूर्ण स्वराज, 1929
- 1929 के पश्चात गाँधीजी का 1929 में पुनः सक्रिय राजनीति में वापसी हुआ। इसी क्रम में 1929 में लाहौर का ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन हुआ।
- ज्ञातव्य है कि इस अधिवेशन में गाँधीजी का नाम अध्यक्ष पद के लिए नामित था किंतु गाँधीजी के अपना नाम के स्थान पर पं. जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बना दिया।
- इस अधिवेशन की मुख्य बातें :
- नेहरू रिपोर्ट की डोमेनियन राज्य की दर्जे की योजना समाप्त कर दी गई।
- पूर्ण स्वाधीनता की मांग बुलंद की गई थी। नेहरू ने पूर्ण स्वाधीनता की मांग की इसका अर्थ था पूर्ण स्वराज ।
- गोलमेज सम्मेलन से संबंधित नीति (विदेश नीति) की घोषणा की गई।
- 31 दिसम्बर, 1929 को मध्य रात्रि में रावी नदी के तट पर जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा झंडा फहराया तथा स्वतंत्रता की घोषणा किया।
- 26 जनवरी, 1930, सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
- राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्वकर्ता गाँधी जी बन गए तथा इसी क्रम सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की घोषणा किया गया था।
गाँधीजी की 11 सूत्री माँग
- ज्ञातव्य है गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व 30 जनवरी 1930 को अपने समाचार-पत्र यंग इंडिया तथा 2 मार्च, 1930 को वायसराय इरविन को लिखे पत्र में अपने 11 सूत्री मांग रखी थी।
- इसी क्रम में गाँधीजी ने यह आश्वासन दिया कि अगर हमारी 11 सूत्री मांगें मान लिया गया तो हम सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस ले लेंगे।
- गाँधीजी की 11 सूत्री मांगें निम्न थी -
- सैनिक खर्च 50% से कम किया जाए।
- लगान की राशि में 50% की कटौती |
- सिविल सेवा के अफसरों के वेतन में कटौती।
- विनिमय दर को घटाकर 1 शिलिंग 4 पेंस किया जाए।
- रक्षात्मक शुल्क लगे तथा विदेशी वस्त्रों के आयात को नियंत्रित किया जाए।
- भारतीय समुद्रतट कंवल भारतीय जहाजों के लिए आरक्षित किये जाए ।
- गुप्तचर विभाषा तो समाप्त कर दिया जाए या उस पर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया जाए।
- भारतीय आत्मरक्षा में आग्नेयशास्त्र रखे सके ।
- नमक कर की समाप्ति ।
- सभी राजनैतिक कैदियों को छोड़ दिया जाए।
- नशीली वस्तुओं की बिक्री बंद कर दी जाए।
- ज्ञातव्य है कि गाँधीजी के सभी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तथा वायसराय ने गाँधीजी से मिलने से भी इंकार कर दिया।
- सरकार ने आंदोलन के दमन में तीव्रता प्रारंभ कर दिया । सुभाष चंद्र बोस तथा अन्य कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
- इससे बाध्य होकर गाँधीजी ने अपना सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया था।
व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940 ई.) (Individual Satyagraha)
- कांग्रेस आंतरिक स्तर पर द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार की मदद करना चाहती थी किंतु लार्ड लिनलिथगो के कार्य पद्धति ने क्षुब्ध कर दिया था।
- उस क्रम कांग्रेस ने पन: आंदोलन का मार्ग चुना। ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि कांग्रेस के नीतियों को प्रतिष्ठा जनता में घटती जा रही थी।
- ध्यातव्य है कि कांग्रेस यह साबित भी करना चाह रही थी कि भारत की जनता द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार के साथ नहीं है।
- इसी क्रम में गाँधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का मार्ग चुना 17 अक्टूबर, 1940 को महाराष्ट्र के पवनार आश्रम से इस आद का प्रारंभ किया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह के सत्याग्रही | ||
1. | प्रथम सत्याग्रही | आचार्य विनोबा भावे |
2. | द्वितीय सत्याग्रही | पं. जवाहरलाल नेहरू |
3. | तृतीय सत्याग्रही | ब्रह्मदत्त |
- इस आंदोलन को किन्हीं कारणों से 7 दिसम्बर, 1940 को यह सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया था।
- इसी आंदोलन के दौरान ही 'दिल्ली चलो' का नारा दिया गया था।
- व्यक्तिगत सत्याग्रह को दिल्ली चलो आंदोलन की संज्ञा भी दिया गया था।
पाकिस्तान की माँग (1940 ई.) (The Demand of Pakistan)
- मुहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता में 23 मार्च, 1940 को स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र की मांग लाहौर के अधिवेशन में हुआ।
- अपने अध्यक्षीय भाषण में जिन्ना ने कहा था 'वह एक स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे'।
- ध्यातव्य है कि स्वतंत्र मुस्लिम राष्ट्र प्रस्ताव का प्रारूप सिकंदर हयात खान ने बनाया था।
- अधिवेशन में प्रस्ताव की प्रस्तुति फजलुल हक ने की थी। तथा खुली कुज्जमां ने प्रस्ताव का समर्थन किया था।
- 23 मार्च, 1943 मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान दिवस' मनाया गया था।
- पाकिस्तान शब्द का सर्वप्रथम कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र रहमत अली ने किया था।
- ज्ञातव्य है कि मुसलमानों के लिए सर्वप्रथम पृथक राष्ट्र का विचार का प्रस्ताव 1930 ई. में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में किया था।
- इस अधिवेशन में यह प्रस्ताव मुहम्मद इकबाल ने प्रस्तुत किया था। इसमें मुहम्मद इकबाल ने पश्चिमोत्तर मुस्लिम राज्य की आवश्यकता का जिक्र किया था।
क्रिप्स प्रस्ताव (Cripps proposal) (1942 ई.)
- ज्ञातव्य है कि 11 मार्च, 1942 को क्रिप्स प्रस्ताव की घोषणा की गई थी।
- 23 मार्च 1942 को मिशन भारत पहुंचा तथा 30 मार्च को 1942 को सर स्टैफोर्ड क्रिप्स ने अपनी योजना प्रस्तुत किया था।
- इस मिशन के भारत आगमन का कारण
- भारत में ब्रिटिश सरकार को कांग्रेस और सहयोग चाहिए था ।
- द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटिश मोर्चा कमजोर पड़ता जा रहा था।
- जापान का पर्ल हार्बर पर हमला और पूर्व एशिया में उसकी मजबूत स्थिति
- सुभाष चंद्र बोस जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण की योजना पर कार्यरत थे
- बर्मा में अंग्रेजों की स्थिति भी दयनीय श्री ।
- समकालीन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति के बीच अंग्रेज और कांग्रेस करीब आ गए।
- ब्रिटिश सरकार को भी अब कांग्रेस की सहायता महसूस हुई। ऐसी परिस्थिति में ब्रिटिश और कांग्रेस सहयोगी हो गए।
- इसी क्रम में संभावित जापान आक्रमण को आधार मानकर बारदोली अधिवेशन में कांग्रेस ने अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया।
- जापान आक्रमण के भय ने ब्रिटिश सरकार को भी डरा रखा था। इसमें सरकार को देश की जनता और कांग्रेस की जरूरत थी। ताकि आक्रमण से निपटा जा सके।
- इसी उद्देश्य से क्रिप्स मिशन भारत भेजा गया था तथा चीन, अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया भी ब्रिटेन पर दबाव बना रहे थे कि वह भारत की राजनैतिक समस्या का समाधान करे।
- इसी क्रम में सर स्टेफार्ड की अध्यक्षता में एक मिशन भारत आया था और अपनी योजना प्रस्तुत किया था।
भारत छोड़ो आंदोलन
- समकालीन परिस्थितियों में गाँधीजी को यह आभास हुआ कि अगर अंग्रेज भारत में रुके तो जापानी भारत पर हमला कर देंगे।
- इसलिए गांधीजी कहा कि अंग्रेज भारत को ईश्वर के हाथों में छोड़कर चले जाए।
- 6-14 जुलाई 1942 के एक बैठक में महात्मा गाँधी की उपस्थिति में भारत छोड़ो आंदोलन पास किया गया था।
- इस सम्मेलन की अध्यक्षता तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद ने किया था I
- 7-8 अगस्त, 1942 को बंबई के ऐतिहासिक ग्वालियर टैंक में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक हुई थी। इसी में वर्धा प्रस्ताव (भारत छोड़ो) की पुष्टि हुई थी।
- बहुत कम संसाधनों के साथ 8 अगस्त 1942 को यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया था। इसी के साथ भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हो गया था।
इस आंदोलन से पूर्व महात्मा गांधी का बयान
- सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी ना छोड़े परन्तु कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा कर दे।
- सैनिक अपने देशवासियों पर गोली चलाने से मना कर दें।
- छात्र तभी पढ़ाई छोड़े जब आजादी प्राप्त होने तक अपने इस दृढ़ निश्चय पर खड़े रह सके।
- गाँधीजी ने इसी आंदोलन में 'करो या मरो का नारा दिया था ।
- 9 अगस्त, 1942 को यह आंदोलन प्रारंभ हो गया आंदोलन के प्रारंभ होते ही ऑपरेशन जीरो आवर के तहत गाँधीजी तथा अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- गाँधीजी साथ में सरोजनी नायडू-पूना के आगा खां पैलेस में रखा गया था।
- अहमदनगर किले में रखे गए नेता-
जवाहरलाल नेहरूअबुल कलाम आजादगोविंद वल्लभ पंतआचार्य कृपलानीपट्टाभी सीतारमैया
- राजेन्द्र प्रसाद को पटना के बांकीपुर जेल में रखा गया था।
- भारत छोडो आंदोलन के समय भारत का प्रमुख सेनापति लार्ड वावेल था।
- इसी आंदोलन में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल था ।
- 1940 के रामगढ़ के कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद थे।
- 1941 के 45 तक पांच वर्षों तक कांग्रेस का एक भी अधिवेशन नहीं हुआ था ।
- इसी दौरान बंबई में कई स्थान से कांग्रेस का गुप्त रेडियो स्टेशन संचालित किया गया था।
- इस रेडियो स्टेशनों को मद्रास तक सुना जा सकता था । राम मनोहर लोहिया नियमित रूप स रेडियो प्रसारित करते थे।
- उषा मेहता भूमिगत होकर रेडियो प्रसारित करने वाले छोटे दल की सक्रिय सदस्य थी।
- 1942 का आंदोलन किसानों के बीच व्यापक स्तर तक फैल गया था।
- तत्कालीन वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने 1857 के पश्चात सबसे गंभीर विद्रोह भारत छोड़ो आंदोलन को कहा था।
- जयप्रकाश नारायण हजारीबाग जेल से 9 नवम्बर 1942 को फरार हुए थे। किंतु गिरफ्तार कर पटना लाए गए थे।
- 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अरुणा आसफ अली ने बंबई के ग्वालिया टैंक में कांग्रेस का झंडा फहराया था।
- बीमारी के आधार पर 6 मई 1944 को गाँधीजी को रिहा कर दिया गया था।
महत्वपूर्ण तथ्य
- अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन सितम्बर 1919 ई. में हुआ था ।
- ज्ञातव्य है कि 23 नवम्बर, 1919 को दिल्ली में सम्पन्न अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी के सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने किया था ।
- मार्च, 1919 में संपन्न केन्द्रीय खिलाफत कमेटी की अध्यक्षता हसरत मोहानी ने किया था।
- मार्च 1919 केन्द्रीय खिलाफत कमेटी के सचिव - शौकत अली
अन्य सदस्य-मोहम्मद अलीहकीम अजमल खांडॉ. मुख्तार अहमद अंसारीमौलाना हसनअब्दुल बारीमौलाना अबुल कलाम आजाद
- 10 अगस्त, 1920 को सम्पन्न सेब्रेस की संधि (treaty of servers) द्वारा तुर्की का विभाजन तथा खलीफा का सभी धार्मिक स्थलों से नियंत्रण समाप्त कर दिया गया था।
- ज्ञातव्य है कि खान अब्दुल गफ्फार खां के द्वारा खिलाफत आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई थी ।
- गाँधीजी ने खिलाफत आंदोलन को हिंदुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने का एक ऐसा अवसर माना जो आगे 100 वर्षों तक नहीं मिलेगा।
- दिसम्बर, 1919 को मुस्लिम लीग ने हिंदुओं की तरफ दोस्ती के उद्देश्य से गोहत्या बंद करने का प्रस्ताव पारित किया था।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई हाजिम-उल-मुल्क की उपाधि हाकिम अजमल खां को प्रदान किया गया था। हाकिम अजमल खां ने इसको खिलाफत आंदोलन में त्याग दिया था।
- मुहम्मद अली जिन्ना ने खिलाफत आंदोलन में गाँधीजी के शामिल होने पर उनका विरोध किया था ।
- 1920 के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता वी. राघवाचारी ने किया था। इसी अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा गया था।
- 'एक वर्ष में स्वराज' का नारा गाँधीजी ने 5 नवम्बर, 1920 को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में दिया था ।
- केन्द्रीय शासन के अनुपालन न होने पर गवर्नर जनरल को प्रांतीय सरकारों को बर्खास्त करने का अधिकार भी इसी अधिवेशन में प्रदान किया गया था।
- इसी क्रम में इंग्लैंड में कोर्ट की स्थापना किया गया। उद्देश्य भारत • नियुक्त भ्रष्ट अंग्रेज अधिकारियों को दंडित करना था।
- इस अधिवेशन के द्वारा द्वैध शासन की शुरूआत किया गया था जो वर्ष संसदीय बोर्ड के द्वारा | 1858 तक विद्यमान रही। एक कंपनी के द्वारा तथा दूसरा I
- इसी अधिनियम में यह प्रावधान था कि गवर्नर जनरल को देशी राजाओं से युद्ध एवं संधि करने से पूर्व कंपनी के डायरेक्टरों से स्वीकृति लेना अनिवार्य कर दिया गया था।
- असहयोग आंदोलन गाँधीजी द्वारा चलाया गया प्रथम आंदोलन था।
- दिसम्बर, 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में तिलक स्वराज फंड की स्थापना किया गया था।
- कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में ही स्वशासन के स्थान पर स्वराज को नया लक्ष्य बनाया था।
- असहयोग आंदोलन के दौरान सबसे सफल अभियान विदेशी कपड़ों का बहिष्कार था ।
- असहयोग आंदोलन के दौरान विदेशी कपड़ों को जलाए जाने को रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 'अविवेकी या निष्ठुर बर्बादी' कहा था।
- असहयोग आंदोलन जब प्रारंभ हुआ तब भारत का वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड था।
- चौरी-चौरा काण्ड के समय भारत का वायसराय अर्ल ऑफ रीडिंग (1921-26) था।
- असहयोग आंदोलन के दौरान गाँधीजी द्वारा त्यागे गए पदक
कैसरे-ए-हिन्दजुलु-युद्ध पदकबोआर युद्ध पदक
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