> झारखण्ड के अन्य जनजातियों की स्वशासन व्यवस्था / जातीय पंचायत से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
> झारखण्ड में कुल 32 जनजातियाँ पायी जाती हैं तथा इन सभी जनजातियों में स्वशासन की व्यवस्था विद्यमान है। इनमें से प्रमुख जनजातियों की स्वशासन व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों का विवरण पीछे के अध्यायों में दिया जा चुका है। अन्य जनजातियों की व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी होगा। इसका संक्षिप्त व सारणीवार विवरण आगे दिया जा रहा है।
> जनजाति
> स्वशासन व्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
> लोहरा/लोहार
> इस जनजाति की कोई संगठित शासन व्यवस्था नहीं है। परन्तु अपनी जातिगत समस्याओं को सुलझाने हेतु इनकी जाति पंचायत होती है।
> दो गाँवों के बीच के विवादों का निपटारा किसी खास मौके पर निर्मित अंतर्ग्रामीण परिषद् के द्वारा किया जाता है।
> भूमिज
> इस जनजाति की जातीय पंचायत का मुखिया प्रधान कहलाता है तथा यह वंशानुगत होता है।
> इस जनजाति में पैतृक संपत्ति का बंटवारा भाईयों में बराबर किया जाता है। यदि किसी परिवार में पुत्र नहीं है तो संपत्ति पर पुत्री का अधिकार होता है।
> इस जनजाति में सगोत्रीय विवाह को मान्यता प्राप्त नहीं है।
> महली
> इस जनजाति की कोई संगठित शासन व्यवस्था नहीं है। परन्तु गाँव स्तर पर पंचायत का गठन किया जाता है तथा इसी के माध्यम से आपसी विवादों का समाधान किया जाता है ।
> अपराधी को आर्थिक तथा शारीरिक दोनों प्रकार के दण्ड दिये जाते हैं।
> गंभीर अपराध के दोषी को सामूहिक भोज देने की सजा सुनायी जाती है।
> माल पहाड़िया
> इस जनजाति की स्वशासन व्यवस्था में ग्राम पंचायत का प्रधान माँझी कहलाता है।
> माँझी की सहायता गोड़ाइत तथा दीवान करते हैं।
> पंचायत का फैसला सभी को मानना होता है तथा निर्णय की अवहेलना करने वाले व्यक्ति को गाँव से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
> दो या अधिक गाँवों के विवाद को एक अंतर्ग्रामीण पंचायत द्वारा सुलझाया जाता है जिसका मुखिया सरदार कहलाता है।
> इस जनजाति में बिटलाहा जैसी सजा का प्रावधान नहीं है ।
> सौरिया पहाड़िया
> माल पहाड़िया की ही भांति इस जनजाति की स्वशासन व्यवस्था में ग्राम पंचायत का प्रधान माँझी कहलाता है ।
> माँझी का मुख्य कार्य सभी प्रकार के झगड़ों का निपटारा करना होता है। साथ ही वह धार्मिक क्रियाकलापों का संपादन भी करता है।
> माँझी के कार्यों में गोड़ाइत उसकी सहायता करता है।
> इस व्यवस्था में 15-20 गाँवों पर एक नायक तथा 78-80 गाँवों पर एक सरदार की व्यवस्था होती है। इन दोनों का कार्य अंतग्रमीण विवादों का निपटारा करना होता है।
> करमाली
> इस शासन व्यवस्था में सभी पद वंशानुगत होते हैं।
> इस जनजाति में कोई व्यवस्थित राजनीतिक संगठन नहीं पाया जाता है।
> गाँव में जातीय पंचायत का प्रधान मालिक कहलाता है। यह पद वंशानुगत होता है।
> मालिक गाँव के विवाह, गोत्र, यौन अपराध आदि मामलों का निष्पादन करता है।
> परगना स्तर पर सतगंवइया नामक पंचायत होती है जिसका प्रमुख कार्य अंतग्रमीण विवादों का निपटारा करना होता है।
> परगना से ऊपर 20-22 गाँवों की एक पंचायत होती है जिसे बाईसी कहा जाता है।
> इस जनजाति में शारीरिक के साथ-साथ आर्थिक दण्ड का भी प्रावधान है।
> गोड़ाइत द्वारा पंचायत की बैठक की सूचना गाँव के लोगों तक पहुँचाया जाता है।
> परहिया
> इस जनजाति में गाँव पंचायत का मुखिया महतो कहलाता है तथा इसका सहायक कहतो या खतो कहलाता है। महतो द्वारा प्रथागत नियमों के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
> प्रत्येक गाँव में एक जाति पंचायत होती है जिसे भैयारी या जातिगोठ कहा जाता है।
> 8-10 गाँवों को मिलाकर एक अंतग्रमीण पंचायत का गठन किया जाता है, जिसे कारा भैयारी कहा जाता है। यह एक या अधिक गाँवों के विवादों का निपटारा करता है।
> गाँव के धार्मिक क्रियाकलापों का संपादन महतो द्वारा ही किया जाता है।
> गाँव के कल्याण हेतु बैगा द्वारा पूजा-पाठ आदि संबंधित क्रियाकलापों का संपादन किया जाता है।
> कोरबा / कोरवा
> कोरबा जनजाति की अपनी जातीय पंचायत पायी जाती है। इसके माध्यम से शादी-विवाह, यौन अपराध, जमीन-जायदाद, संपत्ति का बँटवारा, तलाक, डायन-बिसाही आदि से संबंधित मामलों का निष्पादन किया जाता है।
> ग्राम पंचायत का प्रधान मुखिया कहलाता है।
> अंतर्ग्रामीण विवादों के निपटारे हेतु बड़ा मुखिया नामक पद का प्रावधान है।
> इस जनजाति में गवाहों को शपथ दिलाकर आरोपों की सत्यता का पता लगाया जाता है।
> जाति से बाहर विवाह करने पर व्यक्ति को बिटलाहा की ही भांति समाज से निष्कासित किया जा सकता है।
> समाज से निष्कासित व्यक्ति भोज भात के द्वारा पुनः समाज में शामिल किया जा सकता है। इस प्रथा को भात - भीतर कहा जाता है।
> असुर
> असुर पंचायत के प्रमुख अधिकारी महतो, बैगा, पुजार तथा गोड़ाइत होते हैं। असुर पंचायत में गाँव के सभी व्यस्क पुरूष सदस्य भाग लेते हैं।
> पांच गाँवों के वरिष्ठ नागरिक मिलकर पंच का निर्माण करते हैं। गाँव के सभी विवादों का निपटारा पंच द्वारा ही किया जाता है। पंच द्वारा शारीरिक तथा आर्थिक दोनों प्रकार के दण्ड दिये जाते हैं।
> बिरहोर
> बिरहोर जनजाति के लोग शिकार समूह के रूप में बँटे होते हैं जिसे ठंडा कहा जाता है। यह टंडा ही बिरहोरों का सर्वोच्च संगठन है। इसका मुखिया नाये कहलाता है।
> नाये का सहयोगी दिगुआर या कोतवार कहलाता है।
> गाँव के विवादों को सुलझाने हेतु टंडा तथा नाये के साथ सभी परिवारों के मुखिया की सभा होती है जिसमें विवादों का निपटारा किया जाता है।
> बिरजिया
> इस जनजाति में जातीय पंचायत की व्यवस्था पायी जाती है जिसका मुखिया कोई गणमान्य व्यक्ति होता है।
> जातीय पंचायत द्वारा ही सभी प्रकार के मामलों का निपटारा किया जाता है।
> इनकी जातीय पंचायत में बैगा, बेसरा, धावक तथा गाँव के बुजुर्ग व सम्मानित लोग शामिल होते हैं।
> सबर
> सबर जनजाति की अपनी जातीय पंचायत होती है जिसका प्रमुख प्रधान कहलाता है।
> प्रधान की सहायता गोड़ाइत करता है जो प्रधान के सभी आदेशों एवं संदेशों को गाँव के लोगों तक पहुँचाने का कार्य करता है।
> जातीय पंचायत द्वारा ही गाँव के सभी विवादों का निपटारा किया जाता है।
> जातीय पंचायत के सभी पद वंशानुगत होते हैं।
> खोंड
> खोंड जनजाति में गाँव के मुखिया को गौटिया कहा जाता था जो गाँव के सभी विवादों का समाधान करता था। वर्तमान समय में इस जनजाति में यह पद विद्यमान नहीं है। में सर्वसम्मति से सरपंच का चयन किया जाता
> वर्तमान समय में इस जनजाति है जो ग्राम पंचायत का प्रधान होता है।
> बथुड़ी
> बथुड़ी जनजाति में परंपरागत पंचायत व्यवस्था पायी जाती है जिसका प्रधान दोहर कहलाता है। यह पद वंशानुगत होता है तथा यह धार्मिक क्रियाकलापों का भी संपादन करता है।
> इस जनजाति में सभी विवादों का निराकरण पंचायत द्वारा ही किया जाता है।
> अंतर्ग्रामीण पंचायत का मुखिया प्रधान कहलाता है।
> सगोत्र विवाह को गंभीर अपराध माना जाता है।
> किसान
> इस जनजाति में जातीय पंचायत की व्यवस्था पायी जाती है जो गाँव के विवादों का निपटाने का कार्य करती है।
> कई गाँवो को मिलाकर परगना पंचायत की स्थापना होती है जो अंतर्ग्रामीण विवादों का निपटारा करती है।
> पंचायत के प्रमुख अधिकारी महतो, कोतवार तथा सरदार होते हैं।
> पंचायत की बैठक बुलाने वाले व्यक्ति को पंचायत के संचालन का सारा खर्च वहन करना होता है।
> बंजारा
> इस जनजाति में कोई व्यवस्थित स्वशासन प्रणाली नहीं पायी जाती है।
> गाँव की समस्याओं के निवारण हेतु एक सामुदायिक परिषद् का गठन किया जाता है जिसका प्रमुख नायक होता है ।
> नायक का चुनाव बंजारा जनजाति के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है।
> बिंझिया
> इस जनजाति की अपनी जातीय पंचायत होती है जिसके प्रधान मादी तथा गद्दी होते हैं। जातीय मामलों का निराकरण जातीय पंचायत में ही किया जाता है।
> इस जनजाति में प्रत्येक घर के प्रतिनिधि सदस्य मिलकर एक प्रतिनिधि समिति का गठन करते हैं, जिसका प्रमुख करटाहा कहलाता है।
> करटाहा ही सभी प्रकार के विवादों का निराकरण करता है तथा इसका फैसला अंतिम व सभी को मान्य होता है।
> इस जनजाति में गोमांस का भक्षण वर्जित है तथा गोमांस का भक्षण करने पर समाज से बहिष्कृत करने का प्रावधान है।
>>कुछ अपराधों के मामले में गाँव को सामूहिक भोज देने पर समाज से बहिष्कृत लोगों को पुनः समाज में शामिल कर लिया जाता है।
> गोंड
> इस जनजाति में जातीय पंचायत की व्यवस्था पायी जाती है जिसका मुखिया बैगा होता है जिसे सयाना भी कहा जाता है।
> गाँव के सभी विवादों का निपटारा जातीय पंचायत में ही किया जाता है जहाँ सर्वसम्मति से निर्णय लिये जाते हैं।
> पंचायत द्वारा सुनाये गये फैसले की अवहेलना करने पर व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
> क्षमा मांगने एवं जाति भोज देने पर बहिष्कृत व्यक्ति को पुनः समाज में शामिल किया जा सकता है।
> चेरो
> चेरो जनजाति में स्वशासन की व्यवस्था विद्यमान है जिसकी अपनी पंचायत होती है। इसी पंचायत में गाँव के विभिन्न विवादों का समाधान किया जाता है।
> इस जनजाति में गाँव, अंचल तथा जिला स्तर पर पंचायत की व्यवस्था होती है ।.गाँव तथा अंचल स्तर के पंचायत का प्रधान मुखिया तथा जिला स्तर के पंचायत का प्रधान सभापति कहलाता है।
> पंचायत के निर्णय का उल्लंघन करने पर दोषी को जाति व समाज से बहिष्कृत करने का भी प्रावधान है।
> चीक बड़ाइक
> इस जनजाति में कोई व्यवस्थित स्वशासन की प्रणाली विद्यमान नहीं है ।
> कई गाँव मिलकर अंतग्रमीण पंचायत का गठन करते हैं जिसका प्रमुख राजा कहलाता है। राजा की सहायता दीवान, पानरे आदि द्वारा की जाती है।
> इस जनजाति की शासन व्यवस्था में सभी पद वंशानुगत होते हैं।
> सभी विवादों का निपटारा अंतग्रमीण पंचायत द्वारा प्रथागत नियमों के आधार पर किया जाता है।
> बेदिया
> इस जनजाति में व्यवस्थित स्वशासन प्रणाली पायी जाती है।
> गाँव स्तर पर निर्मित पंचायत का मुखिया 'प्रधान' कहलाता है। इसे महतो भी कहा जाता है।
> गाँव के स्तर पर सभी मामलों का निपटारा प्रधान ही करता है तथा इसका सहयोगी गड़ौत कहलाता है।
> कई गाँवों को आपस में मिलाकर अंतग्रमीण पंचायत का गठन किया जाता है, जिसका मुखिया सरकार कहलाता है।
> संपूर्ण समाज के स्तर पर अवस्थित पंचायत के प्रमुख को परगनैत कहा जाता है।
> इस व्यवस्था में सभी पद वंशानुगत होते हैं।
> कोरा
> कोरा जनजाति की अपनी परंपरागत ग्राम पंचायत होती है जिसका मुखिया 'महतो' कहलाता है।
> महतो की सहायता के लिए प्रामाणिक तथा जोगमाँझी दो पद हैं।
> ग्राम पंचायत में प्रचलित रीति-रिवाजों के आधार पर निर्णय लिये जाते हैं।
> गोड़ाइत
> इस जनजाति में विभिन्न मामलों का निपटारा जातीय पंचायत के माध्यम से किया जाता है।
> इस जनजाति में पिता की संपत्ति पुत्रों में बराबर-बराबर विभाजित की जाती है तथा पुत्री को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
> तलाक एवं विधवा विवाह के मामले जातीय पंचायत के पास सुनवाई के लिए जाते हैं।
> कवर
> इस जनजाति में जातीय पंचायत की व्यवस्था पायी जाती है जिसका मुखिया ‘सयाना' कहलाता है।
> जातीय पंचायत के अतिरिक्त इनकी ग्राम पंचायत भी होती है जिसका मुखिया पटेल या प्रधान कहलाता है ।
> कई गाँवों को मिलाकर अंचल स्तरीय पंचायत का भी गठन किया जाता है, जो अंतर्ग्रामीण विवादों का निपटारा करता है।
> कई अंचलों को आपस में मिलाकर एक केन्द्रीय पंचायत का गठन किया जाता है, जो संपूर्ण क्षेत्र से संबंधित विवादों का निवारण करता है।
> कोल
> इस जनजाति में परंपरागत पंचायत की व्यवस्था पायी जाती है जिसका मुखिया ‘माँझी' कहलाता है।
> इसी पंचायत में गाँव के सभी मामलों का निपटारा किया जाता है तथा पंचायत का फैसला सभी को मान्य होता है।
> खरवार
> खरवार जनजाति में जातीय पंचायत की व्यवस्था पायी जाती है तथा इसका प्रमुख 'मुखिया' कहलाता है।
> गाँव के प्रायः सभी मामले जातीय पंचायत द्वारा ही सुलझाये जाते हैं।
> दो या अधिक गाँवों के विवादों का निराकरण अंतग्रमीण पंचायत द्वारा किया जाता है। चार गाँव के पंचायत को चट्टी, पांच गाँव के पंचायत को पचौरा तथा सात गांव के पंचायत को सतौरा कहा जाता है।
> किसी व्यक्ति द्वारा पंचायतों का निर्णय नहीं मानने पर उसे गाँव से बहिष्कृत कर दिया जाता है।
> बैगा
> इस जनजाति में परंपरागत रूप से जातीय पंचायत की व्यवस्था विद्यमान रही जिसका प्रमुख 'मुकद्दम' कहलाता है। यह पद वंशानुगत होता है।
> मुकद्दम की सहायता के लिए ग्रामीणों द्वारा निर्वाचित दो पद सयाना तथा सिख होते हैं।
> पंचायत के फैसले को गाँव के लोगों तक पहुँचाने का कार्य एक संदेशवाहक करता है जिसे चारिदार कहा जाता है है।
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