जनजातियों का सामान्य परिचय

जनजातियों का सामान्य परिचय

जनजातियों का सामान्य परिचय
> झारखण्ड में जनजातियों का अधिवास पुरापाषाण काल से ही रहा है।
> विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में भी जनजातियों की चर्चा मिलती है।
> झारखण्ड की जनजातियों को वनवासी, आदिवासी, आदिम जाति एवं गिरिजन जैसे शब्दों से पुकारा जाता है। 
> आदिवासी शब्द का शाब्दिक अर्थ 'आदिकाल से रहने वाले लोग' है।
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत् भारत के राष्ट्रपति द्वारा जनजातियों को अधिसूचित किया जाता है। 
> झारखण्ड राज्य में कुल 32 जनजातियाँ निवास करती हैं जिसमें सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजातियाँ क्रमशः संथाल, उराँव, मुण्डा एवं हो हैं।
> झारखण्ड में 24 जनजातियाँ प्रमुख श्रेणी में आती हैं। शेष 08 जनजातियों को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा गया है जिसमें बिरहोर, कोरवा , असुर, पहरिया, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, बिरजिया तथा सबर शामिल हैं।
> आदिम जनजातियों की अर्थव्यवस्था कृषि पूर्वकालीन है तथा इनका जीवन-यापन आखेट, शिखर और झूम कृषि पर आधारित है।
> झारखण्ड में खड़िया और बिरहोर जनजाति का आगमन कैमूर पहाड़यों की तरफ से माना जाता है। 
> मुण्डा जनजाति के बारे में मान्यता है कि इस जनजाति ने रोहतास क्षेत्र से होकर छोटानागपुर क्षेत्र में प्रवेश किया। 
> झारखण्ड में नागवंश की स्थापना में मुण्डा जनजाति का अहम योगदान रहा है।
> उराँव जनजाति दक्षिण भारत के निवासी थे जो विभिन्न स्थानों से होकर छोटानागपुर प्रदेश में आये। इनकी एक शाखा राजमहल क्षेत्र में जबकि दूसरी शाखा पलामू क्षेत्र में बस गयी।
> झारखण्ड राज्य की जनजातियाँ श्रीलंका की बेड्डा तथा आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों से साम्यता रखते हैं। 
> झारखण्ड के आदिवासी प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड प्रजाति से संबंध रखते हैं। * जार्ज ग्रियर्सन ( भाषा वैज्ञानिक ) ने झारखण्ड क्षेत्र की जनजातियों को ऑस्ट्रिक एवं द्रविड़ दो समूहों में विभाजित किया है।
> भाषायी आधार पर झारखण्ड की अधिकांश जनजातियाँ ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार तथा द्रविड़ियन/ द्रविड़ भाषा परिवार से संबंधित हैं। ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार का संबंध ऑस्ट्रिक महाभाषा परिवार से है। ऑस्ट्रिक महाभाषा परिवार के अंतर्गत ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार के अलावा ऑस्ट्रोनेशियन भाषा परिवार (दक्षिण-पूर्व एशिया) शामिल हैं। द्रविड़ भाषा परिवार बोलने वाली अधिकांश जनसंख्या दक्षिणी एशिया में निवास करती है।
> भाषायी विविधता के आधार पर उराँव जनजाति का संबंध 'कुडुख' भाषा से है, जबकि माल पहाड़िया एवं सौरिया पहाड़िया जनजाति 'मालतो भाषा' (द्रविड़ समूह भाषा) संबंधित हैं। शेष जनजातियों का संबंध 'ऑस्ट्रिक' भाषा समूह से है ।
> 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड में जनजातियों की कुल संख्या 86,45,042 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 26.2% है।
> 2011 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड में आदिम जनजातियों की कुल संख्या 1,92,425 है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 0.72% है।
> झारखण्ड की कुल जनजातीय आबादी को लगभग 91% ग्रामीण क्षेत्र में तथा 9% शहरी क्षेत्र में निवास करती है। 
> झारखण्ड का जनजातीय समाज मुख्यतः पितृसत्तात्मक है।
> झारखण्ड की जनजातियों में प्राय: एकल परिवार की व्यवस्था पायी जाती है।
> झारखण्ड के जनजातीय समाज में लिंगभेद की इजाजत नहीं होती है।
> यहाँ की जनजातियों में विभिन्न गोत्र पाए जाते हैं। गोत्र को किली, कुंदा, पारी आदि नामों से जाना जाता है। 
> जनजातियों के प्रत्येक गोत्र का एक प्रतीक / गोत्रचिह्न होता है, जिसे टोटम कहा जाता है। प्रत्येक गोत्र से एक प्रतीक/गोत्रचिह्म (प्राणी, वृक्ष या पदार्थ) संबंधित होता है, जिसे हानि पहुँचाना या इसका प्रयोग सामाजिक नियमों द्वारा वर्जित होता है।
> जनजातियों के प्रत्येक गोत्र अपने आप को एक विशिष्ट पूर्वज की संतान मानते हैं।
> पहाड़िया जनजाति में गोत्र की व्यवस्था नहीं पायी जाती है। 
> जनजातियों में समगोत्रीय विवाह निषिद्ध होता है।
> विवाह पूर्व सगाई की रस्म केवल बंजारा जनजाति में ही प्रचलित है।
> सभी जनजातियों में वैवाहिक रस्म-रिवाज में सिंदूर लगाने की प्रथा है। केवल खोंड जनजाति में जयमाला की प्रथा प्रचलित है। 
> जनजातियों में विवाह संबंधी कर्मकाण्ड पुजारी द्वारा संपन्न कराया जाता है जिन्हें पाहन, देउरी, नाये आदि कहा जाता है। कुछ जनजातियों में ब्राह्मण द्वारा भी यह संपन्न कराया जाता है ।
> झारखण्ड की जनजातियों में सामान्यतः बाल विवाह की प्रथा नहीं पायी जाती है ।
झारखण्ड की जनजातियों में प्रचलित प्रमुख विवाह प्रकार
1. क्रय विवाह
  • इस विवाह के अंतर्गत वर पक्ष के द्वारा वधु के माता-पिता/अभिभावक को धन दिया जाता है। 
  • प्रमुख जनजातियाँ – संथाल, उराँव, हो, खड़िया, बिरहोर, कवर
  • संथाल जनजाति में इस विवाह को 'सादाई बापला', खड़िया जनजाति में 'असली विवाह' तथा बिरहोर जनजाति में 'सदर बापला' कहा जाता है। 
  • मुण्डा जनजाति में इस विवाह के दौरान दिए जाने वाले वधु मूल्य को 'कुरी गोनोंग' कहते हैं। 
 2. सेवा विवाह
  • इस विवाह के अंतर्गत वर द्वारा विवाह से पूर्व अपने सास-ससुर की सेवा की जाती है। 
  • प्रमुख जनजातियाँ - संथाल, उराँव, मुण्डा, बिरहोर, भूमिज, कवर 
  • संथाल जनजाति में इस विवाह को 'जावाय बापला' तथा बिरहोर जनजाति में 'किरींग जवाई बापला' कहा जाता है।
 3. विनिमय विवाह
इस विवाह को गोलट विवाह या अदला-बदली विवाह भी कहा जाता है। 
इस विवाह के अंतर्गत एक परिवार के लड़के तथा लड़की का विवाह दूसरे परिवार की लड़की तथा लड़के के साथ की जाती है। 
प्रमुख जनजातियाँ झारखण्ड की लगभग सभी जनजातियों में प्रचलित 
संथाल जनजाति में इस विवाह को 'गोलाइटी बापला' तथा बिरहोर जनजाति में 'गोलहट बापला' कहा जाता है। 
4. हठ विवाह
> इस विवाह के अंतर्गत एक लड़की जबरदस्ती अपने होने वाले पति के घर में आकर रहती है। 
> प्रमुख जनजातियाँ - संथाल, मुण्डा, हो, बिरहोर 
> हो जनजाति में इस विवाह को 'अनादर विवाह' तथा बिरहोर जनजाति में 'बोलो बापला' कहा जाता है। 
5. हरण विवाह
  • इस विवाह के अंतर्गत किसी लड़के द्वारा एक लड़की का अपहरण करके उससे विवाह किया जाता है। 
  • प्रमुख जनजातियाँ – उराँव, मुण्डा, हो, खड़िया, बिरहोर,
  • सौरिया पहाड़िया, भूमिज सौरिया पहाड़िया में इस विवाह का प्रचलन सर्वाधिक है। 
6. सह-पलायन विवाह 
  • इस विवाह में माता-पिता की अनुमति के बिना एक लड़का व लड़की भाग कर विवाह कर लेते हैं।
  • प्रमुख जनजातियाँ मुण्डा, खड़िया, बिरहोर
7. विधवा विवाह 
  • इस विवाह के अंतर्गत किसी विधवा लड़की का विवाह किया जाता है।
  • प्रमुख जनजातियाँ संथाल, उराँव, मुण्डा, बंजारा, बिरहोर
> झारखण्ड की जनजातियों में पायी जाने वाली कुछ प्रमुख संस्थाएँ अखरा (पंचायत स्थल/नृत्य का मैदान), सरना (पूजा स्थल) एवं युवागृह (शिक्षण-प्रशिक्षण हेतु संस्था) आदि हैं।
> ताना भगत तथा साफाहोड़ (सिंगबोंगा के प्रति निष्ठा रखने वाले) समूहों को छोड़कर शेष जनजातीय समाज प्राय: मांसाहारी होते हैं ।
> जनजातियों का प्राचीन धर्म सरना है जिसमें प्रकृति पूजा की जाती है।
> जनजातियों के पर्व-त्योहार सामान्यतः कृषि एवं प्रकृति से संबद्ध होते हैं।
> झारखण्ड की अधिकांश जनजातियों के प्रमुख देवता सूर्य हैं, जिन्हें विभिन्न जनजातियों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
> जनजातीय समाज में मृत्यु के बाद शवों को जलाने तथा दफनाने दोनों की प्रथा प्रचलित है। इसाई उराँव में शवों को अनिवार्यतः दफनाया जाता है।
> झारखण्ड की जनजातियों का प्रमुख आर्थिक क्रियाकलाप कृषि कार्य है। इसके अतिरिक्त जीविकोपार्जन हेतु पशुपालन, पशुओं का शिकार, वनोत्पादों का संग्रह, शिल्कारी कार्य व मजदूरी जैसी गतिविधियाँ भी अपनाते हैं। 
> वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री हेतु यहाँ की जनजातियों में हाट का महत्वपूर्ण स्थान है।
> राज्य की तुरी जनजाति एक स्थान से दूसरी स्थान पर घूमते रहते हैं तथा उस घर में पहुँचते हैं जहाँ हाल ही में किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई हो या एक शिशु का जन्म हुआ हो। यह जनजाति अपने घरों की नर्म, गीली मिट्टी को पेंट करने के लिए अपनी उंगलियों का प्रयोग करती है। ये अपने घरों की सजावट पौधों और पशु प्रजनन स्वरूपों में करते हैं ।
 
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