लोकपाल एवं लोकायुक्त
कल्याण उन्मुख होना आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों की पहचान है। इसलिए राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सरकार ने पहलकदमी की है।

लोकपाल एवं लोकायुक्त
विश्व परिदृश्य
- ओमबड्समैन प्रणाली
- प्रशासनिक न्यायालय प्रणाली
- प्रोक्यूरेटर प्रणाली
- प्रशासनिक स्व-निर्णय का दुरुपयोग अर्थात् सरकार द्वारा प्रदत्त शक्ति एवं प्राधिकार का दुरुपयोग;
- कुशासन अर्थात् लक्ष्यों को प्राप्त करने में अक्षमता
- प्रशासनिक भ्रष्टाचार अर्थात् काम करने के लिए इस की मांग करना;
- भाई भतीजावाद अर्थात् अपने सगे संबंधियों को रोजगार प्राप्ति आदि में सहायता प्रदान करना तथा
- अशिष्ट आचरण अर्थात अनेक प्रकार के दुर्व्यव्यहार जैसे-अपशब्दों का प्रयोग, आदि।
- कार्यपालिका की कार्रवाई से स्वतंत्रता;
- शिकायतों का निष्पक्ष एवं वस्तुनिष्ठ अनुसंधान;
- स्वत: अनुसंधान शुरू करने की शक्ति;
- प्रशासन की समस्त संचिकाओं तक निर्बाध पहुंच;
- कार्यपालिका के खिलाफ संसद को प्रतिवेदन देने का अधिकार;
- प्रेस तथा अन्य जगहों पर इसके कार्य को भारी प्रचार मिलता है, तथा;
- शिकायतों के निवारण की प्रत्यक्ष- सरल, अनौपचारिक, सस्ता तथा त्वरित कार्य पद्धति ।
भारत में स्थिति
- लोक सेवक जांच अधिनियम 1850
- भारतीय दंड संहिता, 1860
- विशेष पुलिस प्रतिष्ठान, 1941
- दिल्ली पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988
- जांच आयोग अधिनियम, 1952 ( राजनीतिक नेताओं तथा प्रमुख सार्वजनिक व्यक्तियों के लिए)
- अखिल भारतीय सेवाएं (आचार) नियमावली, 1968
- केन्द्रीय सिविल सेवाएं (आचार) नियमावली, 1964
- रेल सेवाएं (आचार) नियमावली, 1966
- मंत्रालयों/विभागों, सम्बद्ध एवं अधीनस्थ कार्यालयों तथा लोक उपक्रमों में निगरानी संगठन
- केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो, 1963
- केन्द्रीय सतर्कता आयोग, 1964
- राज्य सतर्कता आयोग, 1964
- राज्यों में भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो
- केन्द्र में लोकपाल (ओमबुड्समैन)
- राज्यों में लोकायुक्त (ओमबुड्समैन)
- प्रभागीय सतर्कता बोर्ड
- जिला सतर्कता अधिकारी
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
- सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों में उच्च न्यायालय
- प्रशासनिक न्यायाधिकरण (उर्दू न्यायिक निकाय)
- कैबिनेट सचिवालय में लोक परिवाद निदेशालय. 1988
- संसद एवं इसकी समितियां
- केरल जैसे राज्यों में "फाइल टू फील्ड " (खेतों तक संचिकाएं) कार्यक्रम | इस नवाचारी योजना में प्रशासक स्वयं गांवों / क्षेत्रों का दौरा करता है तथा लोगों की शिकायतें सुनता है और जहां कहीं संभव हो तत्काल कार्रवाई करते ।
लोकपाल
- वे स्वतंत्र व निष्पक्षता का प्रदर्शन करेंगे।
- उनकी जांच व कार्यवाही गुप्त रूप से होगी और इसका चरित्र, अनौपचारिक होगा।
- उनकी नियुक्ति जहां तक संभव हो गैर-राजनीतिक हो ।
- उनका स्तर देश में उच्चतम न्यायिक प्राधिकारियों के समान होगा।
- वे अपने विवेकानुसार क्षेत्र में व्याप्त अन्याय, भ्रष्टाचार व पक्षपात से संबंधित मामलों को देखेंगे।
- उनकी कार्यवाही में न्यायिक दखलअंदाजी नहीं होगी।
- अपने कर्तव्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के लिए इनमें पूर्ण शक्तियां निहित होंगी।
- उन्हें कार्यकारी सरकार से किसी प्रकार का लाभ अथवा आर्थिक लाभ की आशा नहीं करनी चाहिए।
- मई 1968 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा ।
- अप्रैल 1971 में, पुन: इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा।
- जुलाई 1977 में, मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सरकार द्वारा।
- अगस्त 1985 में, राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा।
- दिसंबर 1989 में वी. पी. सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार द्वारा।
- सितंबर 1986 में, देवगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा।
- अगस्त 1998 में, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी के नेतृत्व वाली साझा सरकार द्वारा।
- अगस्त 2001 में, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार द्वारा।
- अगस्त 2011 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार द्वारा
- दिसम्बर 2011 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार द्वारा
लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम (2013)
- यह केंद्र में लोकपाल की स्थापना करना चाहता है, राज्यों में लोकायुक्त का | इस तरह यह राज्य और केंद्र के स्तर पर देश के लिए एक निगरानी तथा भ्रष्टाचार विरोधी रोडमैप प्रस्तुत करता है। लोकपाल के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत प्रधानमंत्री, मंत्रीगण, संसद सदस्य और A, B, C और O श्रेणी के अफसर तथा केंद्र सरकार के अफसर आते हैं।
- लोकपाल का एक अध्यक्ष होगा तथा अधिकतम 8 सदस्य होंगे जिनमें 50% सदस्य न्यायिक सेवा के होंगे।
- लोकपाल के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा महिलाओं के बीच से होंगे।
- एक चयन समिति जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा में विपक्ष का नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का कार्यरत न्यायाधीश और कोई प्रतिष्ठित न्यायवेत्ता जो राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति के चार सदस्यों की अनुशंसा पर नामित होंगे, वे सब लोकपाल का अध्यक्ष तथा इसके सदस्यों का चयन करेंगे।
- एक सर्च समिति चयन समिति (search commettee, selection committee) की मदद करेगी सदस्यों के चयन में सर्च समिति के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा महिलाओं के वर्ग से आते हैं।
- प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया गया है लेकिन बहुत सारे विषयों में वे लोकपाल से परे हैं। उनके खिलाफ आरोप के निपटारे के लिए विशेष प्रक्रिया अपनायी जाएगी।
- लोकपाल के दायरे (अधिकार क्षेत्र) में सभी वर्गों के सरकारी कर्मचारी है-ग्रुप A, B, C तथा D अधिकारियों सहित। केंद्रीय सतकता आयोग को लोकपाल द्वारा शिकायत भेजे जाने पर CVC (केन्द्रीय सतर्कता आयोग) ग्रुप A और B अधिकारियों से जुड़ी शिकायतों को प्राथमिक जांच के बाद वापस लोकपाल के पास भेज देता है आगे की कार्रवाई के लिए ग्रुप C तथा D के कर्मचारियों के मामले में सतर्कता आयोग अपने ही शक्तियों का प्रयोग करते हुए आगे बढ़ेगा। वह केन्द्रीय सतर्कता आयोग एक्ट के तहत ऐसा करेगा। अपनी रिपोर्ट वह लोकपाल को भेजेगा जो उसकी समीक्षा करेगा।
- लोकपाल को यह अधिकार होगा कि लोकपाल द्वारा प्रेषित मामलों पर वह किसी भी जांच - ऐजेंसी पर अधीक्षण तथा दिशा-निर्देश करे। सीबीआई पर भी।
- एक उच्च स्तरीय समिति (High powered committee) जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करेंगे, वह केंद्रीय जांच ब्यूरो के चुनाव के लिए अनुशंसा करेंगे।
- इसमें वे प्रावधान शामिल हैं जो भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त की गई संपत्ति को जब्त करेंगे तब भी जबकि अभियोजन की प्रक्रिया बाकी हो ।
- उसमें समय-सीमा स्पष्ट रूप से निर्धारित की हुई है। प्रारंभिक जांच के लिए यह तीन माह है जो तीन माह और बढ़ाया जा सकता है। विधिवत जांच के लिए यह छह माह है, जो कि एक बार में छह माह के लिए बढ़ाया जा सकता है। मुकदमे की समय सीमा एक साल है जो कि एक साल के लिए बढ़ाई जा सकती है। यह मुकदमा विशेष अदालत गठित कर चलाया जाना चाहिये।
- यह भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (prevention of corruption Act) के तहत अधिकतम दंड 7 साल से बढ़ाकर 10 साल करता है। इस एक्ट के खंड 7, 8, 9 तथा 12 के तहत न्यूनतम दंड तीन वर्ष होगा। खंड 15 के अंतर्गत प्रयास करने के लिए दंड कम से कम 2 साल रहेगा।
- जिन संस्थाओं का सरकार द्वारा पूर्णतः या अंशत: वित्तीयन होता है, वे लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आता हैं, लेकिन जिन संस्थाओं को सरकार वित्तीय सहायता देती है, वे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
- यह ईमानदार तथा निडर सरकारी कर्मचारियों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करता है।
- लोकपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वह सरकार या किसी समर्थ अधिकारी की जगह खुद सरकारी कर्मचारियों के अभियोजन की अनुमति दे।
- यह ऐसे कई प्रावधानों से युक्त है, जो केंद्रीय जांच ब्यूरो को सशक्त बनाते हैं:
- एक अभियोजन निदेशक मंडल का गठन जिसके शीर्ष पर अभियोजन निदेशक हों और सब केंद्रीय जांच ब्यूरो के पूर्ण नियंत्रण में हो।
- केंद्रीय सतर्कता आयोग की अनुशंसा पर अभियोजन निदेशक की नियुक्ति ।
- सरकारी वकीलों से इतर अन्य वकीलों के लिए एक पैनल बनाना जो लोकपाल की सहमति से लोकपाल द्वारा भेजे गए मामलों की जांच करें।
- लोकपाल के अनुमोदन से लोकपाल द्वारा भेजे गए केस की जांच करने वाले केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारियों का स्थानांतरण।
- लोकपाल द्वारा प्रेषित केसों की जांच के लिए आयोग को पर्याप्त राशि (फंड) की व्यवस्था ।
- सभी इकाइयों जिन्हें विदेशों से दान में पैसा मिलता है और नो FCRA यानी विदेशी अनुदान नियभन एक्ट के तहत 10 लाख रुपये प्रतिवर्ष से ज्यादा अनुदान पाते हैं। वो लोकपाल के क्षेत्राधिकार के अधीन कर दिए गए है।
- इस एक्ट के लागू होने की तिथि से लेकर 365 दिनों की अवधि के भीतर राज्य विधायिका द्वारा कानून पारित कर लोकायुक्त गठित करने का अधिकार प्राप्त है। अत: यह एक्ट राज्यों को यह आजादी देता है कि उनके यहां लोकायुक्त की संरचना कैसी हो।
- किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ लोकपाल स्वत: संज्ञान लेते हुए (suomoto) कोई कार्रवाई शुरू नहीं कर सकता है।
- जोर शिकायत के प्रारूप पर है, विषय-वस्तु पर नहीं ।
- गलत और धोखेबाजी भरी शिकायतों के लिए कड़े दंड। सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ ऐसी शिकायतें लोकपाल के यहां शिकायत पर लगभ लगाती हैं।
- अनाम शिकायत की अनुमति नहीं हैं सादे कागज पर शिकायत नहीं कर सकते भले ही उसके साथ सहयोगी दस्तावेज हों और उसे डब्बे में गिरा दिया गया हो।
- जिस सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत है उसको कानूनी सहायता का प्रावधान
- 7 साल के भीतर शिकायत करने की बाध्यता ।
- प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत को निपटाने की बेहद अपारदर्शी विधि |
लोकायुक्त
- हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में मुख्यमंत्री को लोकायुक्त की परिधि में रखा गया है, जबकि महाराष्ट्र, उ.प्र., राजस्थान, बिहार व ओडिशा में यह लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
- मंत्रियों व उच्च अधिकारियों को लगभग सभी राज्यों के लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र में रखा गया है। महाराष्ट्र में पूर्व मंत्रियों व कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया गया है।
- हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश व असम राज्यों में विधानसभा सदस्यों को लोकायुक्त के दायरे में रखा गया है।
- स्थानीय निकायों, निगमों कंपनियों, समितियों के अधिकारियों को अधिकांश राज्यों में लोकायुक्त के जांच की परिधि में रखा गया है।
- लोकायुक्त, संबंधित राज्य के राज्यपाल को अपने कार्य निष्पादन का एक समेकित वार्षिक विवरण देते हैं। राज्यपाल इस विवरण को एक व्याख्यात्मक ज्ञापन पक्ष के साथ सदन में प्रस्तुत करता है। लोकायुक्त राज्य विधायिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
- लोकायुक्त जांच के लिए राज्य की जांच ऐजेंसियों की सहायता लेते हैं।
- वह राज्य सरकार के विभागों से संबंधित मामलों की फाइलों व दस्तावेजों को मांग सकता है।
- लोकायुक्त की सिफारिशें केवल सलाहकारी होती हैं। वे राज्य सरकार लिए बाध्यकारी नहीं हैं ।
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here