केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो
सी.बी.आई 1963 में गृह मंत्रालय के एक संकल्प द्वारा स्थापित हुई थी। बाद में इसे कार्मिक मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया गया और उसकी स्थिति वहां एक सम्बद्ध कार्यालय के रूप में रही'। बाद में स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट, (जो कि निगरानी के मामले देखता था) का भी सी.बी.आई में विलय कर दिया गया।
सी.बी.आई. की स्थापना की अनुशंसा भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए गठित संथानम् आयोग (1962-64) ने की थी। सी.बी.आई. कोई वैधानिक संस्था नहीं है। इसे शक्ति दिल्ली विशेष पुलिस अधिष्ठान अधिनियम, 1946 से मिलती है।
सी.बी.आई केन्द्र सरकार की मुख्य अनुसंधान ऐजेंसी है। शासन-प्रशासन में भ्रष्टाचार की रोकथाम तथा सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी बनाए रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका हैं। यह केन्द्रीय सतर्कता आयोग तथा लोकपाल की भी सहायता करती है।
एनआईए एवं सीबीआई द्वारा जांच किए जाने वाले विषयों की प्रकृति में अंतर होता है। एनआईए की स्थापना 2008 के मुंबई आतंकी आक्रमण के बाद हुई थी। केवल आतंकी घटनाओं, आतंकियों के वित्तपोषण तथा अन्य आतंकवाद से जुड़े अपराधों की जांच के लिए। वहीं सीबीआई भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध तथा गम्भीर एवं संगठित अपराध (आतंकवाद के अतिरिक्त) से जुड़े मामलों का अनुसंधान करता है।
सीबीआइ आदर्श वाक्य, उद्देश्य एवं दृष्टि
- आदर्श वाक्य (Motto): उद्यम, निष्पक्षता तथा ईमानदारी ।
- उद्देश्य (Mission) : संविधान तथा देश के कानून की रक्षा करना और इसके लिए गहराई से अनुसंधान करना तथा अपराधों के विकल सफल अभियोग दायर करना; पुलिस बल को नेतृत्व तथा दिशा-निर्देश देना तथा कानून लागू करने में अन्तर-राज्यीय तथा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए नोडल ऐजेन्सी के रूप में कार्य करना ।
- दृष्टि (Vision): अपने आदर्श वाक्य, उद्देश्य तथा व्यावसायिकता की जरूरत, पारदर्शिता, परिवर्तन के प्रति अनुकूलन तथा अपनी कार्य प्रणाली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के द्वारा सी.बी.आई अपने प्रयासों को निम्नलिखित पर केन्द्रित करेगी:
- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार से संघर्ष, आर्थिक एवं हिंसक अपराधों में सुविस्तारित अनुसंधान एवं अभियोग द्वारा कमी लाना।
- विभिन्न न्यायालयों के लम्बित मामलों के सफल अनुसंधान एवं अभियोग दायर करने के लिए प्रभावी प्रणाली एवं प्रक्रिया विकसित करना।
- साइबर तथा उच्च-प्रौद्योगिकी अपराधों से लड़ने में सहायता करना।
- कार्यस्थल पर ऐसा सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाना, जिससे टीम - भावना, मुक्त संचार तथा आपसी विश्वास को बढ़ावा मिले।
- राज्यों के पुलिस संगठनों तथा कानून लागू करने वाली ऐजेन्सियों के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग, विशेषकर मामलों की छानबीन और अनुसंधान में सहायता करना ।
- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठित अपराध लड़ाई में मुख्य भूमिका निर्वाह करना ।
- मानवाधिकारों की रक्षा करना तथा पर्यावरण, कलाओं, कला वस्तुओं (antiques) के साथ अपनी सभ्यता की विरासत की रक्षा करना।
- वैज्ञानिक अभिवृत्ति, मानवता तथा जांच- अनुसंधान तथा सुधार की भावना का अपने अंदर विकास करना।
- कार्य प्रणाली के प्रत्येक क्षेत्र में उत्कृष्टता तथा व्यावसायिकता के लिए प्रयासरत रहना, जिससे कि संगठन अपने प्रयत्नों एवं उपलब्धियों में शिखर पर पहुंचे।
मूल रूप में 1963 में सीबीआई की स्थापना निम्नलिखित छह संभागों (Divisions) के साथ की गई थी:
- अनुसंधान एवं भ्रष्टाचार निरोधक संभाग (दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना)
- तकनीकी संभाग (Technical Division)
- अपराध अभिलेख एवं सांख्यिकी संभाग (Crime Records and Statistics Division)
- शोध संभाग (Research Division)
- कानूनी एवं सामान्य संभाग (Legal and General Division)
- प्रशासन संभाग (Administrations Division)
वर्तमान में (2019) सी.बी.आई की निम्नलिखित सात शाखाएं हैं:
- भ्रष्टाचार निरोधक शाखा
- आर्थिक अपराध शाखा
- विशेष अपराध शाखा
- नीतिगत एवं समन्वय शाखा
- प्रशासनिक शाखा
- अभियोग निदेशालय
- केन्द्रीय फोरेन्सिक विज्ञान प्रयोगशाला
निदेशक सी.बी.आई का प्रमुख होता है। उसके सहयोग के लिए विशेष निदेशक अथवा अतिरिक्त निदेशक होता है। इसके अतिरिक्त अनेक संयुक्त निदेशक, उप-महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक तथा पुलिस रैंक के अन्य कार्मिकों होते हैं। कुल मिलाकर इसमें लगभग 5000 कार्मिक होते हैं, लगभग 125 फोरेन्सिक वैज्ञानिक तथा 250 विधि अधिकारी कार्य करते हैं।
सी.बी.आई निदेशक पुलिस महानिरीक्षक के रूप में, दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (Delhi Special Police Establishment) सी.बी.आई के प्रशासन के लिए जिम्मेदार होता है। 2003 में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त अधिनियम (CVC Act, 2003 ) पारित होने के पश्चात् दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के अधीक्षक भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के अंतर्गत अपराध अनुसंधान का कार्य देखते हैं और इसका अधीक्षण केन्द्रीय सतर्कता आयोग करता है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के द्वारा सी.बी.आई निदेशक को दो वर्षों की कार्य अवधि की सुरक्षा मिली है।
लोकपाल तथा लोकायुक्त एक्ट, 2013 ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 का संशोधन किया और केंद्रीय जांच ब्यूरों के गठन संबंधी निम्नांकित बदलाव किये:
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति, जिसमें लोकसभा में विपक्ष का नेता तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश हो, की अनुशंसा पर केंद्र सरकार केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति करती है।
- लोकपाल तथा लोकायुक्त एक्ट, 2013 के तहत केसों के अभियोजन के कार्यान्वयन के लिए अभियोजन का एक निदेशक मंडल होना चाहिए जिसके शीर्ष पर एक निदेशक होगा। यह निदेशक भारत सरकार के संयुक्त सचिव पर से नीचे का कोई अधिकारी नहीं होना चाहिए। यह केंद्रीय जांच ब्यूरो के नियंत्रण तथा निगरानी में कार्य करेगा। इस की नियुक्ति केंद्र सरकार केंद्रीय निगरानी आयोग की अनुशंसा पर करेगी। उसका कार्यालय दो वर्ष का होगा।
- केंद्र सरकार को केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारी जिला पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के नियुक्त करने चाहिए। यह नियुक्ति वह समिति करती है जिसमें अध्यक्षक के रूप में केंद्रीय निगरानी आयुक्त हो तथा निगरानी आयुक्तगण, गृह मंत्रालय के सचिव तथा कार्मिक विभाग के सचिव होंगे।
बाद में, केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति संबंधी समिति के गठन में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अधिनियम, 2014 ने एक परिवर्तन किया। यह एक्ट कहता है कि जहां लोकसभा में विपक्ष का कोई मान्य नेता न हो वहां लोकसभा में जो सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होगी, उसका नेता समिति का सदस्य होगा।
सीबीआई के कार्य हैं:
- केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, घूसखोरी तथा दुराचार आदि मामलों का अनुसंधान करना।
- राजकोषीय तथा आर्थिक कानूनों के उल्लंघन के मामलों का अनुसंधान करना, जैसे- आयात-निर्यात नियंत्रण से सम्बन्धित कानूनों का अतिक्रमण, सीमा शुल्क तथा केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, विदेशी मुद्रा विनिमय विनियमन, आदि के उल्लंघन के मामले।
- पेशेवर अपराधियों के संगठित गिरोहों द्वारा किए गए ऐसे गंभीर अपराधों का अनुसंधान, जिनका राष्ट्रीय या अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव हुआ हो।
- भ्रष्टाचार निरोधक ऐजेन्सियों तथा विभिन्न राज्य पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करना।
- राज्य सरकार के अनुरोध पर किसी सार्वजनिक महत्व के मामले को अनुसंधान के लिए हाथ में लेना।
- अपराध से सम्बन्धित आंकड़ों का अनुरक्षण तथा आपराधिक सूचनाओं का प्रसार ।
सी. बी. आई भारत सरकार की एक बहु- अनुशासनिक अनुसंधान ऐजेंसी है, जो भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध तथा पारम्परिक अपराधों के अनुसंधान के मामले हाथ में लेती है। सामान्यत: यह केन्द्र सरकार, केन्द्रशासित प्रदेशों तथा उनके लोक उद्यमों के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के अनुसंधान तक अपने को सीमित रखती है। यह हत्या, अपहरण, बलात्कार आदि जैसे गंभीर अपराधों के मामले भी राज्य सरकारों द्वारा संदर्भित किए जाने पर हाथ में लेती है। ऐसे मामले उच्चतम न्यायालय / उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश प्राप्त होने पर भी हाथ में लेती है।
सी.बी.आई भारत में इंटरपोल के "नेशनल सेंट्रल ब्यूरो" के रूप में भी कार्य करती है। सी.बी.आई की इंटरपोल शाखा कानून लागू करने वाली भारतीय ऐजेन्सियों तथा इंटरपोल के सदस्य देशों के अनुसंधान सम्बन्धी गतिविधियों का समन्वय करती है।
केंद्र सरकार तथा उसके प्राधिकरण में संयुक्त सचिव के पद या उससे उच्च पर के अधिकारियों द्वारा किये। अपराध दोषों की जांच करने के लिए केंद्रीय निगरानी ब्यूरो केंद्र सरकार की पूर्वानुमति लेनी पड़ेगी।
हालांकि, 6 मई, 2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने उस कानूनी प्रावधान को अमान्य कर दिया, जिसमें केंद्रीय निगरानी ब्यूरो को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच करने के लिए पूर्वानुमति की जरूरत थी ।
एक संविधान पीठ ने फैसला दिया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के धारा 6A जिसमें संयुक्त सचिव तथा उसके ऊपर के स्तर के अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा किसी भी प्रारंभिक जांच के दायरे से बाहर रखने का निर्देश संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है।
अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए सी.बी.आई के निदेशक ने कहा, "यह एक एतिहासिक फैसला है। यह कई मामलों की जांच में आयोग का सक्षम बनाएगा। संविधान पीठ ने जिस प्रावधान को समाप्त कर दिया है उससे लटके पड़े केसों का निपटारा होगा। हम लोग बहुत पहले से इस विचार के थे कि वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ जांच के लिए पूर्वानुमति आवश्यक नहीं।"
फैसला लिखते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "भ्रष्टाचार देश का दुश्मन है। एक भ्रष्ट नौकरशाह को चाहे वह कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न हो, को खोज निकालना और दंडित करना PC Act 1988 के अधीन एक अनिवार्य अधिदेश है। सरकारी सेवक होने से उसे एकसमान न्याय से छूट के योग्य नहीं बनता। निर्णय लेने की शक्ति भ्रष्ट अधिकारियों को दो वर्गों में नहीं बांटती क्योंकि वे सामान्य अपराधी हैं। उन्हें जांच और पूछताछ की एक ही प्रक्रिया से गुजरना है।"
पीठ ने कहा, "DSPE Act की धारा 61 (जो एक दर्जे के अधिकारियों को सुरक्षा देता है) सीधे-सीधे नुकसान देह है। यह PC Act, 1988 के लक्ष्य और तर्क के खिलाफ है। यह उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार को पकड़ने तथा दंडित करने के लक्ष्य को कमजोर करता है। यह कैसे संभव है कि दो सरकारी कर्मचारी जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार या घूसखोरी के आरोप हैं या आपराधिक गतिविधि के आरोप हैं | PC Act, 1988 के अंतर्गत उन दोनों के खिलाफ अलग-अलग तरह की कार्रवाई होगी, केवल इस कारण कि उनमें से कोई कनिष्ठ पदाधिकारी तो कोई वरिष्ठ अधिकारी?"
पीठ ने आगे कहा कि, “धारा 6A का प्रावधान भ्रष्ट वरिष्ठ अधिकारियों को पकड़ने की प्रक्रिया को बाधित करता है क्योंकि बिना केंद्र सरकार का पूर्वानुमति के केंद्रीय जांच ब्यूरो प्रारंभिक जांच भी नहीं कर सकता गहन जांच तो बाद की बात है। धारा 6A के अंतर्गत प्राप्त सुरक्षा भ्रष्ट को बचाने की प्रवृत्ति है । "
यह बताते हुए कि भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों को कोई सुरक्षा नहीं दी जा सकती, पीठ ने कहा: " जांच का लक्ष्य है सच का पता लगाना और जो कानून इस लक्ष्य के लिए बाधक बनता है वह अनुच्छेद 14 के पैमाने पर खरा नहीं उतर सकता। कानून का उल्लंघन हमारी राय में, समानता को नकारता है। अनुच्छेद 14 के अंतर्गत धारा 6A अनुच्छेद 13 इन पक्षों के अनुसार असरहीन है।
विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (Special Police Establishment) (सी.बी.आई की एक शाखा) राज्य पुलिस बलों का पूरक है। राज्य पुलिस बलों के साथ विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (SPE) दिल्ली पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 के अंतर्गत अनुसंधान और अभियोग दायर करने को समवर्ती शक्तियों का उपयोग करती है। हालांकि इन दोनों ऐजेन्सियों के बीच दोहराव या परस्पर व्यापन (overlapping) की स्थिति न आए, इसके लिए निम्नलिखित प्रशासनिक व्यवस्था की गई है:
- एस.पी.ई. उन्हीं मामलों को लेगा जो कि केन्द्र सरकार तथा इसके कर्मचारियों से अनिवार्यतः सम्बन्धित हैं; भले ही उनमें राज्य सरकार के कुछ कर्मचारी भी संलग्न हों।
- राज्य पुलिस बल उन्हीं मामलों को लेगा जो कि राज्य सरकार तथा उसके कर्मचारियों से अनिवार्यतः सम्बन्धित हों, भले उनमें केन्द्र सरकार के कुछ कर्मचारी भी संलग्न हों।
- एस. पी.ई. लोक उद्यमों अथवा वैधानिक निकायों के कर्मचारियों के विरुद्ध मामलों को भी हाथ में लेगा जो केन्द्र सरकार द्वारा संस्थापित एवं वित्त पोषित हैं।
सी.बी.आई अकादमी गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में अवस्थित है। इसने 1996 से कार्यारम्भ किया। इसके पूर्व सी. बी. आई प्रशिक्षण केन्द्र, नई दिल्ली में प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित होते थे।
सी.बी.आई अकादमी दृष्टि लक्ष्य (vision) है, "अपराध अनुसंधान अभियोग दायर करने तथा सतर्कता कार्य के प्रशिक्षण में उत्कृष्टता प्राप्त करना।" इसका लक्ष्य है सी.बी.आई के मानव संसाधन का प्रशिक्षण, साथ ही राज्य पुलिस तथा सतर्कता संगठनों को भी पेशेवर उद्यमी, निष्पक्ष, निर्भीक तथा राष्ट्र के प्रति समर्पित बनाने के लिए प्रशिक्षण देना है।
अकादमी प्रशिक्षण गतिविधियों का केन्द्र है। यहां उपयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पहचान की जाती है तथा प्रशिक्षुओं के नामांकन को नियमित किया जाता है, साथ ही वार्षिक प्रशिक्षण कैलेण्डर का भी निर्माण किया जाता है।
गाजियाबाद की सी.बी.आई अकादमी के अतिरिक्त कोलकाता, मुंबई तथा चेन्नई में तीन क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र भी कार्यरत हैं।
प्रशिक्षण पाठ्यक्रम दो प्रकार के होते हैं:
- लघु अवधि का सेवाकालीन (in service) पाठ्यक्रम: सी.बी.आई. अधिकारियों, राज्य पुलिस, केन्द्रीय अर्द्ध-सैनिक बलों तथा केन्द्रीय लोक उद्यमों के लिए।
- लम्बी अवधि का मूल पाठ्यक्रमः सीधे नियुक्त डी.एस.पी, उप-निरीक्षक तथा सी.बी.आई सिपाहियों के लिए 3
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