चुनाव कानून

संविधान के अनुच्छेद 81 तथा 170 में संसद तथा राज्यों की विधानसभाओं में अधिकतम सीटों की संख्या संबंधी प्रावधान दिए गए हैं, साथ ही उन सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया है, जिनके आधार पर लोकसभा तथा राज्यों की विधान सभाओं में सीटों का आवंटन किया जाता है लेकिन ऐसी सीटों का वास्तविक आवंटन छोड़ दिया गया है, जो कि कानून द्वारा प्रदान किया जाता है।

चुनाव कानून

चुनाव कानून

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950

संविधान के अनुच्छेद 81 तथा 170 में संसद तथा राज्यों की विधानसभाओं में अधिकतम सीटों की संख्या संबंधी प्रावधान दिए गए हैं, साथ ही उन सिद्धांतों का भी उल्लेख किया गया है, जिनके आधार पर लोकसभा तथा राज्यों की विधान सभाओं में सीटों का आवंटन किया जाता है लेकिन ऐसी सीटों का वास्तविक आवंटन छोड़ दिया गया है, जो कि कानून द्वारा प्रदान किया जाता है।
उसी प्रकार, अनुच्छेद 171 किसी राज्य की विधान परिषद् में अधिकतम एवं न्यूनतम सीटों का प्रावधान करता है, और उन विधियों का भी उल्लेख करता है जिनका उपयोग कर सीटें भरी जाएंगी। लेकिन यहां भी ऐसी प्रत्येक विधि से वास्तव में कितनी सीटें भरी जाएंगी यह कानून पर छोड़ दिया गया है।
इस प्रकार जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 का अधिनियमन लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं तथा विधान परिषदों में सीटों के आवंटन के उद्देश्य से किया गया।
अधिनियम राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदान करता है कि वे चुनाव आयोग से परामर्श करके लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं एवं विधान परिषदों की सीटें भरने के लिए विभिन्न चुनाव क्षेत्रों की संख्या को सीमित कर सकते हैं।
अधिनियम पुनः लोकसभा चुनाव क्षेत्रों तथा विधानसभा एवं विधान परिषद् चुनाव क्षेत्रों के निर्वाचकों के निबंधन का प्रावधान करता है और ऐसे निबंधन के लिए योग्यताओं एवं अयोग्यताओं का भी।
अंत में, अधिनियम चुनाव के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान करता है:
  1. लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं एवं विधान परिषदों में सीटों का आवंटन
  2. संसदीय, विधानसभा एवं विधान परिषद् निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन
  3. निर्वाचन अधिकारी, जैसे- मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी, निर्वाचन निबंधन अधिकारी आदि
  4. संसदीय, विधानसभा एवं विधान परिषद् निर्वाचन क्षेत्रे के लिए मतदाता सूची
  5. राज्य सभा में संघीय क्षेत्रों के प्रतिनिधियों द्वारा भरी जाने वाली सीटों के बारे में प्रक्रिया का निर्धारण
  6. राज्य विधान परिषद् के चुनाव के उद्देश्य से स्थानीय प्राधिकारी 
  7. दीवानी न्यायालयों (सिविल कोर्ट) को छोड़ देना

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में चुनावों से संबंधित सभी प्रावधान नहीं थे, बल्कि इसमें लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं के लिए सीटों के आवंटन की तथा चुनाव क्षेत्रों के सीमांकन की व्यवस्था की गई थी। इसके अलावा मतदाता की अर्हता तथा मतदाता सूचियों के निर्माण का भी प्रावधान किया गया था।
संसद के दोनों सदनों तथा प्रत्येक राज्य की विधानसभा एवं विधान परिषद् के चुनाव, इन सदनों के लिए अर्हता एवं अयोग्यता, भ्रष्ट आचरण तथा अन्य चुनाव संबंधी प्रावधान तथा चुनाव संबंधी विवादों पर निर्णय - ये सब बाद में अपनाए जाने वाले उपायों पर छोड़ दिया गया। इसलिए इन बिन्दुओं पर प्रावधान करने के लिए जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 अधिनियमित किया गया।
मोटे तौर पर यह अधिनियम निम्नलिखित चुनावी विषयों से संबंधित हैं:
  1. संसद तथा राज्य विधायिकाओं के लिए अर्हताएं एवं अयोग्यताएं
  2. आम चुनावों की अधिसूचना
  3. चुनाव संचालन के लिए प्रशासनिक मशीनरी
  4. राजनीतिक दलों का निबंधन
  5. चुनाव संचालन
  6. मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों के लिए कुछ सामग्री की निःशुल्क आपूर्ति
  7. चुनाव संबंधी विवाद
  8. भ्रष्ट आचरण एवं चुनावी अपराध
  9. सदस्यों की अयोग्यता सम्बन्धी जांच से सम्बन्धित निर्वाचन आयोग की शक्तियां,
  10. उप चुनाव तथा रिक्तियां भरने की समय सीमा
  11. चुनाव से जुड़े अन्यान्य प्रावधान
  12. दीवानी न्यायालयों को छोड़कर
चुनाव कराने में निम्नलिखित विषय शामिल हैं:
(क) उम्मीदवार का नामांकन
(ख) उम्मीदवार और उनके ऐजेंट
(ग) चुनाव की सामान्य प्रक्रिया
(घ) मतदान
(च) मतगणना
(छ) अनेक स्थानों पर चुनाव
(ज) चुनाव परिणामों का प्रकाशन और मनोनयन/ नामांकन
(झ) सम्पत्तियों एवं देनदारियों की घोषणा
(ट) चुनाव खर्च
कानूनी प्रावधान, जो चुनाव के दौरान विवाद से जुड़े निम्नलिखित मामलों में सम्बन्धित हैं:
(i) उच्च न्यायालय में चुनाव सम्बन्धी याचिका का प्रस्तुतिकरण
(ii) चुनाव याचिका का मुकदमा
(iii) चुनाव याचिकाओं को वापस लेना
(iv) सर्वोच्च न्यायालय में अपील
(v) लागत के लिए लागत और प्रतिभूति/जमानत (Costs and Security for costs)

परिसीमन अधिनियम, 2002

भारत के संविधान के अनुच्छेद 82 तथा 170 प्रत्येक राज्य को क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों (संसदीय निर्वाचन क्षेत्र एवं विधानसभा क्षेत्रों) में बंटवारे तथा पुनर्स्थापन का प्रावधान करते हैं और इसका आधार जनगणना, 2001 है। ऐसे प्राधिकार द्वारा जैसा कि संसद कानून द्वारा निर्धारित करे।
साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 तथा 332 लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या का पुनर्निधारण का प्रावधान जनगणना, 2001 के आधार पर करते हैं।
वर्तमान में संसदीय एवं विधानसभाई क्षेत्रों का सीमांकन 1971 की जनगणना पर आधारित है। विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में देश के विभिन्न भागों में असमान जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ किसी एक ही राज्य में लोगों/मतदाताओं का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर सतत् अप्रवास, विशेषकर गांवों से शहरों की ओर, का परिणाम यह हुआ है कि एक ही राज्य में निर्वाचन क्षेत्रों के आकार में भारी अंतर है।
इस प्रकार, परिसीमन अधिनियम, 2002' का अधिनियम एक सीमांकन आयोग के गठन के लिए किया गया जिसका उद्देश्य 2001 की जनगणना के आधार पर सीमांकन को प्रभावी बनाया जाना था जिसमे कि उपरिलिखित निर्वाचन क्षेत्रों के आकार में एकरूपता स्थापित की जा सके। प्रस्तावित सीमांकन आयोग 2001 की जनगणना के आधार पर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या को पुनर्निधारित भी करेगा. लेकिन 1971 की जनगणना के आधार पर निर्धारित सीटों की कुल संख्या को बिना प्रभावित किए।
अधिनियम इस बारे में कुछ दिशा-निर्देश देता है कि ऐसा परिसीमन किस तरीके से संभव बनाया जाए। अधिनियम में नये परिसीमन आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह संसदीय एवं विधानसभाई निर्वाचन क्षेत्रों का सीमांकन करे। विशेष रूप से यह भी प्रावधान किया गया कि आयोग अपना कार्य 31 जुलाई, 2008' के पहले अवश्य पूर्ण कर ले।
प्रस्तावित सीमांकन प्रत्येक आम चुनाव पर लागू होगा लोकसभा तथा विधानसभाओं के लिए जबकि आयोग के अंतिम आदेश प्रकाशित हो जाएं। यह इन आम चुनावों के बाद होने वाले उप-चुनावों पर भी लागू होगा'।

चुनाव संबंधी अन्य अधिनियम

  1. संसद (अयोग्यता निरोधक) अधिनियम, 1959 यह घोषणा करता है कि सरकार के अंतर्गत कतिपय लाभ के पद पदधारक के संसद सदस्य चुने जाने के लिए अयोग्यता नहीं बनेंगे।
  2. अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम, 1976 अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की सूची में समावेशन एवं बहिष्करण का प्रावधान करता है - कतिपय जातियों एवं जनजातियों का, ताकि संसदीय एवं विधानसभाई निर्वाचन क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन संभव हो सके। 
  3. संघशासित क्षेत्र अधिनियम, 1963
  4. दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार अधिनियम, 1991
  5. राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952' राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव से संबंधित कतिपय मामलों का नियमन करता है।
चुनाव से संबंधित नियमावलियाँ
  1. निर्वाचक का निबंधन नियमावली, 1960 मतदाता सूची के निर्माण एवं प्रकाशन का प्रावधान करती है।
  2. चुनाव संचालन नियमावली, 1961' निष्पक्ष तथा स्वतंत्र संसदीय एवं विधानसभा चुनाव संचालन को सुसाध्य बनाती है।
  3. समकालिक सदस्यता निषेध नियमावली, 1950 
  4. लोकसभा सदस्य ( दल-बदल के आधार पर अयोग्यता) नियमावली 1985
  5. राज्यसभा सदस्य ( दल-बदल के आधार पर अयोग्यता ) नियमावली 1985
  6. राष्ट्रपति एवं उप राष्ट्रपति चुनाव नियमावली, 1974 
  7. लोकसभा सदस्य (संपत्तियों एवं देनदारियों की घोषणा ) नियमावली, 2004
  8. राज्यसभा सदस्य (संपत्तियों एवं देनदारियों की घोषणा ) नियमावली, 2004

चुनाव से संबंधित आदेश

  1. चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 संसदीय एवं विधानसभा क्षेत्रों से संबंधित राजनीतिक दलों की मान्यता के लिए चुनाव चिन्हों के ब्यौरे, आरक्षण, विकल्प तथा आवंटन का प्रावधान करता है।
  2. राजनीतिक दलों का निबंधन (अतिरिक्त जानकारी प्रस्तुतीकरण) आदेश, 1992 विभिन्न संघों, अथवा भारतीय नागरिकों के निकायों द्वारा अतिरिक्त जानकारियां प्रस्तुत करने के लिए प्रावधान करता है जो कि राजनीतिक दल के रूप में चुनाव आयोग से साथ निबंधित होना चाहते हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here