चुनाव सुधार

विभिन्न समितियों एवं आयोगों ने हमारी चुनाव प्रणाली एवं चुनाव मशीनरी के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया की जांच की है और सुधार के सुझाव दिए हैं। इन समितियों और आयोगों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है:

चुनाव सुधार

चुनाव सुधार

चुनाव सुधार से संबंधित समितियां

विभिन्न समितियों एवं आयोगों ने हमारी चुनाव प्रणाली एवं चुनाव मशीनरी के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया की जांच की है और सुधार के सुझाव दिए हैं। इन समितियों और आयोगों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है:
  1. चुनाव कानूनों में संशोधन पर संयुक्त संसदीय समिति (1971-72) |
  2. तारकुंडे समिति का गठन जयप्रकाश नारायण ने अपने संपूर्ण क्रांति आंदोलन के दौरान 1974 में किया था। इस गैर-सरकारी समिति ने 1975 ' अपनी रिपोर्ट दी थी।
  3. चुनाव सुधार के लिए दिनेश गोस्वामी समिति (1990) |
  4. अपराध और राजनीति के बीच के सांठगांठ की जांच करने के लिए वोहरा समिति (1993) ।
  5. चुनाव सुधार पर भारत के निर्वाचन आयोग की सिफारिशें (1998) |
  6. चुनाव खर्च सरकार द्वारा वहन करने पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) |
  7. चुनाव कानूनों में सुधार पर भारत की विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) ।
  8. संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग (2000-2002) | एम. एन. वेंकटचलैया इस आयोग के अध्यक्ष थे।
  9. प्रस्तावित चुनाव सुधारों पर भारत का चुनाव आयोग की रिपोर्ट (2004)।
  10. शासन में नैतिकता के सवाल पर भारत सरकार के दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट (2007) । वीरप्पा मोइली इस आयोग के अध्यक्ष थे।
  11. चुनाव कानूनों एवं चुनाव सुधारों से जुड़े तमाम सवालों को देखने के लिए 2010 में गठित तनखा समिति (कोर समिति) ।
  12. आपराधिक कानून में संशोधन पर जे.एस. वर्मा समिति की रिपोर्ट (2013)।
  13. भारतीय विधि आयोग की निर्वाचन निरर्हताएं पर 244वीं रिपोर्ट (2014) 
  14. चुनाव सुधार (2015) पर भारत के 255वें विधि आयोग की रिपोर्ट।
उपरोक्त समितियों एवं आयोगों की अनुशंसाओं के आधार पर चुनाव प्रणाली, चुनाव मशीनरी और चुनाव प्रक्रिया में कई सुधार किए गए। निम्नलिखित चार भागों में बांट कर इनका अध्ययन किया जा सकता है:
  1. 1996 के पहले के चुनाव सुधार
  2. 1996 का चुनाव सुधार
  3. 1996 के बाद के चुनाव सुधार
  4. 2010 से अब तक के चुनाव सुधार

1996 के पहले के चुनाव सुधार

वोट देने की आयु घटाना: 1988 के 61वें संविधान संशोधन अधिनियम के जरिए लोकसभा के साथ-साथ विधानसभाओं के चुनाव में वोट डालने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया। प्रतिनिधित्व से वंचित देश के युवाओं को अपनी भावनाओं को प्रकट करने का अवसर प्रदान करने और चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनने में मदद करने के उद्देश्य से ऐसा किया गया।
चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्तिः 1988 में प्रावधान किया गया कि चुनावों के लिए मतदाता सूची बनाने, पुनरीक्षण एवं संशोधन करने के काम में जो पदाधिकारी एवं कर्मचारी कार्यरत रहेंगे उन्हें यह काम करते रहने की अवधि तक चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्त माना जाएगा। इस अवधि के दौरान ये कर्मचारी चुनाव आयोग के नियंत्रण, देखरेख एवं अनुशासन के अधीन रहेंगे।
प्रस्तावकों की संख्या में वृद्धिः 1988 में राज्यसभा एवं राज्यों के विधान परिषदों के चुनाव के लिए नामांकन पत्रों पर प्रस्तावक के रूप में हस्ताक्षर करने वाले निर्वाचकों की संख्या बढ़ाकर चुनाव क्षेत्र के कुल निर्वाचकों का दस प्रतिशत या ऐसे दस निर्वाचक, जो कम हों, कर दिया गया। ऐसा व्यर्थ के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए किया गया।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन: 1989 में चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के इस्तेमाल की व्यवस्था की गई। प्रयोग के तौर पर पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल 1998 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली विधानसभा के चुनाव में हुआ। 1999 के गोवा विधानसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम का पूरे राज्य में इस्तेमाल हुआ।
बूथ कब्जा: 19898 में बूथ कब्जा होने पर चुनाव स्थगित करने या रद्द करने का प्रावधान किया गया। बूथ कब्जे में शामिल हैं- (i) मतदान केंद्र पर कब्जा कर लेना और अधिकारियों से मतपत्र या वोटिंग मशीन सरेंडर करा लेना, (ii) मतदान केंद्र को अपने कब्जे में ले लेना और सिर्फ अपने समर्थकों को वोट डालने की इजाजत देना, (iii) किसी भी मतदाता को मतदान केंद्र पर जाने को लेकर धमकाना और रोकना, तथा (iv) मतगणना केंद्र पर कब्जा कर लेना।
मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC ): चुनाव आयोग द्वारा मतदाता फोटो पहचान पत्र के उपयोग से निश्चित ही चुनाव प्रक्रिया सरल, सुचारू और त्वरित होगी। चुनावों में फर्जी मतदाता और किसी के बदले मत डालने की प्रथा को रोकने के लिए देश भर में मतदाताओं को फोटो पहचान पत्र जारी करने के लिए वर्ष 1993 में चुनाव आयोग द्वारा एक निर्णय लिया गया था। पंजीकृत मतदाताओं को ईपीआईसी जारी करने के लिए मतदाता सूची आधार होता है। सामान्यतया हर वर्ष पहली जनवरी को इस मतदाता सूची को संशोधित किया जाता है क्योंकि यह तिथि विशेष तिथि होती है। प्रत्येक भारतीय नागरिक जिसकी आयु उक्त तिथि से 18 या इससे अधिक है वह मतदाता सूची में शामिल होने और इसके लिए आवेदन करने का पात्र होता है। एक बार इस सूची में पंजीकृत होने के बाद वह ईपीआईसी पाने का पात्र होगा। इसलिए, ईपीआईसी का जारी करने की योजना लगातार चलने वाली सतत् प्रक्रिया है जिसे पूरा करने के लिए किसी समय सीमा का निर्धारण नहीं किया जा सकता है क्योंकि मतदाता का पंजीकरण एक सतत् और चलने वाली प्रक्रिया है (नामकरण दर्ज करने की अंतिम तिथि और मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बीच की अवधि को छोड़कर), इसमें 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले अधिक से अधिक लोगों को मतदान का अधिकार दिया जाता है। यह चुनाव आयोग की उन मतदाताओं को ईपीआईसी देने का सतत प्रयास है जो पिछले अभियान में छूट गए और नए मतदाता के रूप में जोड़ जाने हैं।

1996 के चुनाव सुधार

1990 में वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने तत्कालीन कानून मंत्री दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार समिति का गठन किया। समिति से चुनाव प्रणाली का विस्तार से अध्ययन करने और प्रणाली की कमियों को दूर करने के लिए अपने सुझाव देने को कहा गया। समिति ने 1990 में ही अपनी रिपोर्ट दे दी और चुनाव सुधार के कई सुझाव दिए। इनमें से कुछ अनुशंसाएं 1996 में लागू की गई। इनके बारे में नीचे बताया गया है:
उम्मीदवारों के नामों को सूचीबद्ध करना
उम्मीदवारों के नामों को सूचीबद्ध करने के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को तीन वर्गों में बांटा जाएगा। ये वर्ग हैं:
(i) मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवार,
(ii) पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवार, और;
(iii) अन्य (निर्दलीय) उम्मीदवार ।
चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची और मतपत्र में उनके नाम अलग-अलग उपरोक्त क्रम में रहेंगे तथा सभी वर्गों में नामों को वर्णक्रमानुसार रखा जाएगा।
राष्ट्रीय गौरव का अनादर करने पर अयोग्य घोषित करने का कानून: राष्ट्रीय गौरव अपमान निरोधक अधिनियम, 1971 के तहत निम्नलिखित अपराधों के लिए सजा प्राप्त व्यक्ति छह साल तक लोकसभा और राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होगा:
(i) राष्ट्रीय झंडे के अनादर का अपराध;
(ii) भारत के संविधान का अनादर करने का अपराध, और;
(iii) राष्ट्रगान गाने से रोकने का अपराध।
शराब बिक्री पर प्रतिबंधः मतदान खत्म होने की अवधि के 48 घंटे पहले तक मतदान केंद्र के इलाके में किसी दुकान, खाने की जगह, होटल या किसी भी सार्वजनिक या निजी स्थल में किसी तरह के शराब या नशीले पेय नहीं बेचा या बांटा जा सकता। इस कानून का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति 6 माह के कैद या 2000 रुपये के जुर्माने या दोनों सजा का भागी होगा।
प्रस्तावकों की संख्या: लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति अगर किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का उम्मीदवार नहीं है तो उसके नामांकन पत्र पर क्षेत्र के दस पंजीकृत मतदाताओं के हस्ताक्षर प्रस्तावक के रूप में होने चाहिए। अगर उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त दल का है तो सिर्फ एक प्रस्तावक की जरूरत होगी। ऐसा व्यर्थ के लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए किया गया था। उम्मीदवार की मृत्युः चुनाव लड़ रहे किसी उम्मीदवार का निधन मतदान के पूर्व हो जाने पर पहले चुनाव रद्द कर दिया जाता था और उसके बाद उस क्षेत्र में फिर से चुनाव प्रक्रिया शुरू होती थी। लेकिन अब मतदान के पूर्व चुनाव लड़ रहे किसी उम्मीदवार का निधन हो जाने पर चुनाव रद्द नहीं होता। हालांकि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के उम्मीदवार का निधन होने की स्थिति में उस दल को सात दिनों के अंदर दूसरा उम्मीदवार देने का विकल्प दिया जाता है। उप-चुनाव की समय सीमा: संसद या राज्य विधानमंडल के किसी सदन की सीट खाली होने के छह महीने के अंदर उप चुनाव कराना होगा। लेकिन यह व्यवस्था दो स्थितियों में लागू नहीं होती है:
  1. जिस सदस्य की खाली जगह भरी जानी है, उसका कार्यकाल अगर एक साल से कम अवधि का बचा हुआ हो, या
  2. जब चुनाव आयोग केंद्र सरकार से सलाह-मशविरा कर यह सत्यापित करे कि निर्धारित अवधि के अंदर उप-चुनाव कराना कठिन है।
मतदान के दिन कर्मचारियों का अवकाश: किसी भी व्यवसाय, व्यापार, उद्योग या अन्य संस्थान में कार्यरत पंजीकृत मतदाता को मतदान के दिन वैतनिक अवकाश मिलेगा। यह नियम दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों पर भी लागू होगा। इसका उल्लंघन करने वाले नियोजक को 500 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। हालांकि यह नियम वैसे मतदाताओं पर नहीं लागू होगा जिसकी अनुपस्थिति से वह जिस रोजगार में लगा है उसे खतरा या अत्यधिक नुकसान होता हो। दो से अधिक चुनाव क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध: एक साथ हो रहे आम चुनाव या उप चुनाव में कोई उम्मीदवार लोकसभा या विधानसभा की दो से अधिक सीटों से चुनाव नहीं लड़ सकता। ऐसा ही प्रतिबंध राज्यसभा और राज्यों के विधान परिषद के द्वि- वार्षिक या उप-चुनाव पर भी लागू होता है।
10 हथियार पर रोक: किसी मतदान केंद्र के आसपास किसी तरह के हथियार के साथ जाना संज्ञेय अपराध है। ऐसा करने पर दो साल की सजा या जुर्माना या दोनों दंड दिया जा सकता है। इसके अलावा कानून की अवहेलना करने वाले व्यक्ति का हथियार जब्त कर लिया जाएगा और उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। लेकिन यह व्यवस्था निर्वाचन पदाधिकारी, मतदान पदाधिकारी, किसी पुलिस अधिकारी या मतदान केंद्र पर शांति-व्यवस्था कायम करने के लिए बहाल किसी अन्य व्यक्ति पर लागू नहीं होता।
चुनाव प्रचार की अवधि में कमी: नामांकन वापस लेने की आखिरी तिथि और मतदान की तिथि के बीच का न्यूनतम अंतराल 20 दिनों से घटाकर 14 दिन कर दिया गया है।

1996 के बाद के चुनाव सुधार

राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति का चुनाव: 1977 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए प्रस्तावक एवं समर्थक निर्वाचकों की संख्या 10 से बढ़ाकर 50 कर दी गई। इसी तरह उप-राष्ट्रपति पद के लिए यह संख्या 5 से बढ़ाकर 20 कर दी गई। साथ ही निरर्थक उम्मीदवारों को रोकने के लिए दोनों पदों का चुनाव लड़ने के लिए जमानत की राशि 2500 रु. से बढ़ाकर 15000 रु. कर दी गई।
चुनाव ड्यूटी के लिए कर्मचारियों को बुलाना: 199812 में यह व्यवस्था की गई कि स्थानीय शासन, राष्ट्रीयकृत बैंकों, विश्वविद्यालयों, जीवन बीमा निगम, लोक उपक्रमों एवं सरकारी सहायता पाने वाले दूसरे संस्थानों के कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात करने के लिए बुलाया जा सकता है।
डाक मतपत्र के जरिए वोट डालना: 19993 में कुछ खास तरह के मतदाताओं के लिए डाक मतपत्र के जरिए वोट देने की व्यवस्था की गई। चुनाव आयोग सरकार के साथ सलाह-मशविरा कर किसी भी श्रेणी के व्यक्ति को इस सुविधा के लिए अधिसूचित कर सकता है और इस तरह अधिसूचित व्यक्ति अपने चुनाव क्षेत्र में डाक मतपत्र के जरिए वोट डालेगा। वह किसी अन्य तरीके से वोट नहीं दे सकता। प्रॉक्सी के जरिए वोट देने की सुविधा: 2003" में सशस्त्र सेना में कार्यरत वोटरों और ऐसे सशस्त्र बल में कार्यरत लोगों को जहां सेना अधिनियम लागू होता है, को प्रॉक्सी के जरिए वोट देने का विकल्प चुनने की सुविधा उपलब्ध कराई गई। ऐसे वोटर जो प्रॉक्सी के जरिए वोट डालना चाहते हैं उन्हें निर्धारित प्रपत्र में अपना प्रॉक्सी नियुक्त करना होगा और इसकी सूचना अपने निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव अधिकारी को देनी होगी।
उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक इतिहास, संपत्ति आदि की घोषणा: 2003 में चुनाव आयोग ने संसद या राज्य विधानमंडल का चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों को अपने नामांकन पत्र के साथ निम्नलिखित जानकारियां उपलब्ध कराने का आदेश जारी किया:
  1. क्या उम्मीदवार को पहले कभी किसी आपराधिक मामले में सजा मिली है, या निर्दोष करार दिया गया है या रिहा किया गया है? क्या उसे कैद की सजा या जुर्माना हुआ है?
  2. नामांकन पत्र दाखिल करने के छह महीने पहले, क्या उम्मीदवार किसी लंबित मामले का अभियुक्त है, जिसमें दो साल या इससे अधिक अवधि की कैद की सजा हो सकती है और उस मामले में अभियोग दाखिल हो चुका है या कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया गया है? अगर ऐसा है तो इसका विवरण दाखिल करें।
  3. उम्मीदवार, उसकी पत्नी/पति और आश्रितों की संपत्ति (अचल, चल, बैंकों में जमा राशि आदि) का विवरण |
  4. देनदारी, अगर हो, खासकर क्या किसी सरकारी वित्तीय संस्थान या सरकार का बकाया है।
  5. उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता।
शपथ पत्र में कोई गलत जानकारी देना अब चुनावी अपराध है। इसके लिए छह माह तक के लिए कैद की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकता है।
राज्यसभा चुनाव में बदलाव: 2003 में राज्यसभा " चुनाव से संबंधित निम्नलिखित बदलाव किए गए:
  1. राज्यसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की आवासीय अर्हता हटा ली गई। इसके पहले उम्मीदवार को जिस राज्य से निवार्चित होना होता था, उसे वहां का मतदाता होना जरूरी होता था। अब उसका देश के किसी संसदीय क्षेत्र का वोटर होना पर्याप्त होगा।
  2. राज्यसभा चुनाव में गुप्त मतदान की जगह खुला मतदान शुरू किया गया। ऐसा राज्य सभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग पर रोक लगाने एवं पैसे के खेल को समाप्त करने के लिए किया गया। नयी व्यवस्था में राजनीतिक दल के निर्वाचक को मतपत्र पर मुहर लगाने के बाद अपनी पार्टी के नामित ऐजेंट को मतपत्र दिखाना होता है।
यात्रा व्यय की छूट: 2003 के प्रावधान के अनुसार राजनीतिक दल का चुनाव प्रचार करने वाले नेताओं का यात्रा व्यय उम्मीदवार के चुनाव खर्च में नहीं शामिल किया जाएगा।
मतदाता सूची आदि की निःशुल्क आपूर्ति: 2003 के प्रावधान के अनुसार सरकार लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को मतदाता सूची की प्रति तथा आवश्यक सामग्री निःशुल्क उपलब्ध कराएगी। साथ ही चुनाव आयोग को संबंधित चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं या मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को निर्धारित सामग्री उपलब्ध करानी होगी।
राजनीतिक दलों को चंदा लेने की स्वतंत्रता: 2003 में राजनीतिक दलों को किसी व्यक्ति या सरकारी कंपनी छोड़कर बाकी किसी कंपनी से कोई भी राशि स्वीकार करने की स्वतंत्रता थी। अब आयकर में राहत का दावा करने के लिए उन्हें 20,000 रुपए से अधिक के हर चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। साथ ही चंदे के रूप में दी गई रकम पर कंपनी को भी आयकर में छूट मिलेगी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समय का आवंटन: 2003 के प्रावधान के तहत किसी मुद्दे को दिखाने या प्रचारित करने या जनता को संबोधित करने के लिए चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को केबल टेलीविजन नेटवर्क तथा दूसरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समान रूप से समय आवंटित करेगा। यह आवंटन पिछले चुनाव में मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की उपलब्धियों के आधार पर होगा।
ईवीएम में ब्रेल (Braille Signage) लिपि को शुरू करनाः आयोग को दृष्टिहीन मतदाताओं द्वारा किसी सहायक के बिना मतदान करने के लिए उन्हें सुविधा प्रदान करने हेतु ब्रेल लिपिबद्ध ईवीएम को शुरू करने के लिए दृष्टिहीनों के विभिन्न संघों से अभ्यावेदन प्राप्त हुआ है। आयोग ने विस्तृत रूप में इस प्रस्ताव पर विचार किया और वर्ष 2004 में हुए आंध्र प्रदेश की असिफनगर विधान सभा उप-चुनाव के दौरान ईवीएम में ब्रेल फीचर डालने की कोशिश की। वर्ष 2005 में, बिहार, झारखंड और हरियाणा के विधानसभा चुनावों के दौरान एक विधानसभा क्षेत्र में इसका प्रयास किया गया था। वर्ष 2006 में, विधानसभा चुनावों के दौरान असम, पश्श्चम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल राज्यों के एक विधानसभा क्षेत्र में इसका प्रयास किया गया था। वर्ष 2008 में विधानसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में भी इसका प्रयास किया गया था।
आयोग ने पंद्रहवें लोक सभा चुनावों (2009) और साथ ही साथ कतिपय राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में ऐसा ही ब्रेल फीचर डाला था | 

2010 से लेकर अब तक के चुनाव सुधार

एक्जिट पोल पर प्रतिबंध: 2009 के प्रावधान के अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के दौरान एक्जिट पोल करने और उसके परिणामों को प्रकाशित करने पर रोक लग गई है। इस तरह चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचित अवधि के दौरान कोई व्यक्ति कोई एक्जिट पोल नहीं कर सकता तथा प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या किसी और तरीके से उस पोल के परिणामों को प्रकाशित-प्रचारित नहीं कर सकता। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाला व्यक्ति दो साल तक के कैद, या जुर्माना या दोनों का भागी होगा।
"एक्जिट पोल" का मतलब जनमत सर्वेक्षण है कि वोटरों ने किस तरह वोट किया है या फिर चुनाव में सभी वोटरों ने किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार के बारे में क्या सोचा है। अयोग्य घोषित कराने के लिए मामला दर्ज कराने की समय सीमा: 2009 में भ्रष्ट तरीका अपनाने वाले व्यक्ति को अयोग्य करार देने की प्रक्रिया सरल बनाने का प्रावधान किया गया। इसमें भ्रष्ट तरीका अपनाने का दोषी पाये गए व्यक्ति को अयोग्य करार देने के लिए उसके मामले को तीन माह के अंदर राष्ट्रपति के पास पेश करने का समय अधिकृत अधिकारी को दिया गया है।
भ्रष्ट तरीके के घेरे में सभी अधिकारी: 2009 में सभी अधिकारियों, चाहे वे सरकारी सेवा में हों या चुनाव आयोग द्वारा चुनाव संचालित कराने के लिए प्रतिनियुक्त किए गए हों, को किसी उम्मीदवार से चुनाव में उसकी जीत की संभावनाएं बढ़ाने के लिए किसी तरह की मदद लेने पर भ्रष्ट तरीका अपनाने के घेरे में लेने का प्रावधान किया गया।
जमानत की राशि में बढोतरी: 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों द्वारा जमा की जाने वाली जमानत की राशि सामान्य कोटि के उम्मीदवारों के लिए दस हजार से बढ़ाकर 25 हजार और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए पांच हजार से बढ़ाकर बारह हजार रुपए कर दी गई। इसी तरह राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले सामान्य कोटि के उम्मीदवारों की जमानत राशि पांच हजार से बढ़ाकर दस हजार और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए ढाई हजार से पांच हजार रुपए कर दी गई। ऐसा अगंभीर उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने से रोकने के लिए किया गया।
जिला में अपीलीय अधिकारी: 2009 में मतदाता निबंधन पदाधिकारी के किसी आदेश के खिलाफ सुनवाई के लिए जिला में अपीलीय अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान किया गया। पहले ऐसी शिकायतों की सुनवाई राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी किया करते थे। इस तरह मतदाता सूची को अद्यतन करने के क्रम में किसी क्षेत्र के मतदाता निबंधन पदाधिकारी के किसी आदेश के खिलाफ जिला दंडाधिकारी, या अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी या कार्यपालक दंडाधिकारी या जिला समाहर्ता या समान स्तर के किसी अन्य अधिकारी के पास अपील की जाएगी। इसके आगे जिला दंडाधिकारी या अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी के किसी आदेश के खिलाफ राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी के पास अपील होगी।
विदेशों में रहने वाले भारतीयों को वोट का अधिकार: 2010 में विभिन्न कारणों से विदेशों में रहने वाले भारतीयों को वोट का अधिकार प्रदान करने का प्रावधान किया गया। इसके अनुसार भारत का हर नागरिक-(i) जिसका नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं है, (ii) जिसने किसी दूसरे देश की नागरिकता नहीं ग्रहण की है, और (iii) जो नौकरी, शिक्षा या किसी अन्य कारणों से भारत के अपने सामान्य निवास के बजाए विदेश में रहा है (चाहे अस्थायी रूप से या नहीं) - अपना नाम अपने संसदीय/विधानसभा क्षेत्र, जो उसके पासपोर्ट में अंकित है, की मतदाता सूची में दर्ज करा सकता है।
चुनाव सुधार
मतदाता सूची में ऑनलाइन नामांकन: वर्ष 2013 में, मतदाता सूची में नामांकन के लिए ऑनलाइन फाइलिंग के लिए एक प्रावधान किया गया था। इस उद्देश्य के लिए केन्द्र सरकार ने चुनाव आयोग से परामर्श कर नियम बनाएं जिन्हें मतदाता पंजीकरण (संशोधन) नियम, 2013 के नाम से जाना जाता है । इन नियमों ने मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 में कतिपय संशोधन किया।
नोटा (NOTA) विकल्प शुरू करना: उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार चुनाव आयोग ने उपर्युक्त में से कोई नहीं के लिए मतदाता पत्रों / ईवीएम मशीनों में प्रावधान किया ताकि मतदान केन्द्र तक आने वाले मतदाता चुनाव में खड़े हुए किसी भी उम्मीदवारों में से किसी को चुनने का फैसला न करने वाले अपने मतदान की गोपनीयता को बनाए रखते हुए ऐसे उम्मीदवारों को मत नहीं डालने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें। नोटा के लिए प्रावधान को 2013 में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और राजस्थान के राज्य विधानसभाओं के आम चुनाव से ही लागू कर दिया गया और सोलहवीं लोक सभा (2014) के लिए आम चुनावों के साथ वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम के राज्य विधानसभा चुनावों में जारी रहा। 
उम्मीदवार को जमानत राशि लौटाने के उद्देश्य से नोटा (NOTA) के विरुद्ध मत देने वाले मतदाताओं को उम्मीदवार को मिले हुए वैध मतदाताओं में नहीं गिना जाता। अगर नोटा के पक्ष में मत देने वाले मतदाताओं की संख्या किसी भी उम्मीदवार को मिले मतों से अधिक है तब भी जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत मिले, उसे ही निर्वाचित घोषित किया जाएगा। 
2001 में चुनाव आयोग ने भारत सरकार को तटस्थ मतों (neutral vote) का प्रावधान रखने के लिए कानून में संशोधन का प्रस्ताव भेजा था, उन के लिए जो किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में मत देना नहीं चाहते। 2004 में पीयूसीएल (People's Union for Civil Liberties) ने नोट नहीं देने के अधिकार के संरक्षण के लिए मतपत्र एवं ईवीएम में आवश्यक गोपनीय प्रावधान के लिए याचिका दायर की सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में चुनाव आयोग को ईवीएम एवं मतपत्र में 'उपरोक्त में से कोई नहीं' (None of the Above, NOTA) का प्रावधान करने का आदेश दिया। 
मतवाता निरीक्षण पेपर ऑडिट ट्रायल (Voter Verifiable Paper Audit Trial, VVPAT) की शुरुआत: वीवीपीएटी ईवीएम से जुड़ी एक स्वतंत्र प्रणाली है, जो मतदाताओं को अनुमति देती है कि वे यह सत्यापित कर सकते हैं कि उनका मत उक्त उम्मीदवार को पड़ा है जिसके पक्ष में उन्होंने मत डाला था। जब मत पड़ता है तो एक स्लिप मुद्रित होती है और सात सेकंड के लिए एक पारदर्शी खिड़की उम्मीदवार की क्रम संख्या, नाम तथा चुनाव चिन्ह उजागर होता है। इसके पश्चात् स्लिप कटकर मुहरबंद वीवीपीएटी ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है। यह प्रणाली मतदाता को पेपर रसीद के आधार पर अपने मत को चुनौती देने की सुविधा प्रदान करती है। नियमों के अनुसार, मतदान केन्द्र के प्रिसाइडिंग ऑफिसर को मतदाता की असहमति दर्ज करनी होती है और मतगणना के समय उसका हिसाब रखा जाता है, अगर चुनौती असत्य पाई जाती है। 
वीवीपीएटी (VVPAT) के उपयोग के लिए नियम में संशोधन 2013 में किया गया। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने वीवीपीएटी को चरणों में शुरू करने की अनुमति दी थी, और इसे 'स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की अपरिहार्य जरूरत' बताया था। न्यायालय ने अनुमान किया था कि वीवीपीएटी मतदान प्रणाली की परिशुद्धता सुनिश्चित करेगा और विवाद की स्थिति में मतों की हाथ से गिनती में भी 
सहायक होगा। वीवीपीएटी का प्रथम उपयोग 2013 में नागालैंड के नोकासेन विधानसभा चुनाव क्षेत्र में किया गया था। इसके पश्चात् राज्य विधानसभाओं के आम चुनावों में इसका उपयोग हो रहा है। 2014 के लोक सभा चुनावों में आठ चुने हुए लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में वीवीपीएटी का उपयोग किया गया। ईवीएम के साथ वीवीपीएटी मतदान प्रणाली में सटीकता तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
जेल या पुलिस हिरासत में रह रहा व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है: वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय में पटना उच्च न्यायालय के एक आदेश को बहाल रखा जिसमें यह कहा गया था कि एक व्यक्ति को जेल या पुलिस हिरासत में होने की वजह से मतदान का अधिकार नहीं हो, वह निर्वाचक नहीं है, इसलिए संसद या विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में ये नए प्रावधान 4 जोड़े गए:
  1. पहला प्रावधान स्पष्ट करता है कि मतदान से रोके जाने के कारण (जेल में या पुलिस हिरासत में रहने के कारण) कोई व्यक्ति जिसका नाम मतदाता सूची में प्रविष्ट है, निर्वाचक होने से नहीं रोका जाएगा।
  2. दूसरा प्रावधान स्पष्ट करता है कि एक संसद सदस्य अथवा विधानसभा सदस्य तभी अयोग्य माना जाएगा जबकि वह इस अधिनियम के अंतर्गत अयोग्य हो, किसी अन्य आधार पर उसे अयोग्य नहीं माना जाएगा।
परिणामत: जो व्यक्ति जेल में या पुलिस हिरासत में हैं, उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति है।
सिद्धदोषी सांसदों एवं विधायकों की तत्काल अयोग्यता प्रभावी: 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि अभियोग पत्रित सांसद और विधायक अपराध के लिए दोषी सिद्ध होने पर अपील के लिए तीन माह का नोटिस दिए जाने के बिना ही संसद या विधानसभा की सदस्यता से तत्काल प्रभाव से अयोग्य हो जाएंगे।
न्यायालय की सम्बद्ध पीठ ने जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (4) को असंवैधानिक मानकर रद्द कर दिया जो सिद्धदोष कानून • बनाने वालों को उच्चतम न्यायालय में दोषसिद्धि अथवा सजा पर रोक के लिए अपील का प्रावधान करती थी। पीठ ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि यह व्यवस्था भविष्य प्रभावी है और जो लोग उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय में दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील कर चुके हैं, वे इस आदेश से बरी ही रहेंगे।
पीठ ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 102 एवं 191 के दो प्रावधानों को पढ़ने से पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति के संसद के किसी सदन अथवा विधानसभा का सदस्य चुने जाने से अयोग्य करने तथा सदस्य बनने के लिए एक ही कानून बनाना है। इस प्रकार संसद को अनुच्छेद 102 तथा 191 के अंतर्गत यह शक्ति नहीं है कि एक व्यक्ति को संसद या विधानसभा का सदस्य चुने जाने से अयोग्य करने तथा एक व्यक्ति को संसद या विधानसभा सदस्य बने रहने देने से अयोग्य करने के सम्बन्ध में अलग-अलग कानून बनाए।"
पीठ ने कहा, "अधिनियम की धारा 8(4), जो कि संसद या विधानसभा के वर्तमान सदस्यों को अधिनियम के अंतर्गत अयोग्यता से बचाने में प्रयुक्त होती है अथवा उस तारीख को आगे बढ़ाने में प्रयुक्त होती है जिस तारीख को संसद या विधानसभा के वर्तमान सदस्यों की अयोग्यता प्रभावी होगी. संसद को संविधान से प्राप्त शक्तियों के बाहर है। "
पीठ के अनुसार, "अनुच्छेद 102 तथा 191 की सकारात्मक शर्तों को देखने के बाद हम मानते हैं कि संसद को सांसद या विधानसभा के लिए चुने जाने के लिए वही अयोग्यता या निरर्हता निर्धारित करने की शक्ति है जो कि संसद या विधानसभा के वर्तमान सदस्यों के लिए हो सकती है। हम यह भी मानते हैं कि संसद या विधानसभा के वर्तमान सदस्यों के मामले में संविधान के अनुच्छेद 101 तथा 190 के प्रावधान संसद को वह तारीख आगे बढ़ाने से रोकते हैं जबसे अयोग्यता प्रभावी होगी। इसलिए संसद ने अधिनियम की धारा 8 की उपधारा (4) का अधिनियमन करके अपनी शक्तियों की सीमा लांघी है और उसी अनुसार धारा 8 की उपधारा (4) संविधान का उल्लंघन करती है। 
सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (द्वितीय संशोधन एवं मान्यकरण ) विधेयक, 2013 संसद में लाया गया। हालांकि बाद में सरकार ने इस विधेयक को वापस लिया।
चुनाव खर्च की सीमा बढी: 2014 में केन्द्र सरकार ने बड़े राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए खर्च सीमा बढ़ाकर रु.70 लाख (पहले रु.40 लाख ) कर दी। अन्य राज्यों एवं संघशासित प्रदेशों में यह सीमा रु.5 लाख (पहले 16-40 लाख रुपये) की गई।
इसी प्रकार बड़े राज्यों में विधानसभा सीट के लिए चुनावी खर्च की 16 लाख रुपये से बढ़ाकर 28 लाख रुपये की गई जबकि अन्य राज्यों एवं संघशासित राज्यों के लिए यह सीमा 20 लाख रुपये (पहले 8-16 लाख रुपये) की गई।
राज्यवार सीमा तालिका 71.1 में इस अध्याय के अंत में प्रदर्शित है। ईवीएम एवं मतपत्रों पर उम्मीदवारों के फोटो: चुनाव आयोग के एक आदेशानुसार 1 मई, 2015 के बाद होने वाले किसी भी चुनाव में ईवीएम एवं मतपत्रों पर उम्मीदवारों का फोटो, नाम तथा पार्टी चुनाव चिन्ह के साथ प्रकाशित रहेंगे ताकि इस बारे में मतदाताओं के भ्रम का निवारण हो सके।
जून 2015 में पांच राज्यों में छह उप-चुनाव हुए जिनमें प्रथम बार मतपत्रों पर उम्मीदवारों के फोटो का उपयोग किया गया।
चुनाव आयोग ने यह संज्ञान लिया है कि कई बार एक ही चुनाव क्षेत्र में एक ही नाम से अनेक उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं। यद्यपि दो या अधिक एक ही नाम वाले उम्मीदवारों के नाम के साथ उपयुक्त उपसर्ग लगाए जाते हैं, आयोग के विचार में मतदाताओं को मतदान के समय किसी भी प्रकार की सुविधा या भ्रम न हो, इसके लिए अतिरिक्त उपाय किए जाने आवश्यक हैं।
फोटो उम्मीदवार के नाम तथा चुनाव चिन्ह के बीच में उजागर रहेगा।
आयोग ने व्याख्या की कि यदि कोई उम्मीदवार फोटो देने में विफल रहता है, तब भी यह उसका नामांकन खारिज करने का आधार नहीं बनेगा।
अब उम्मीदवार को अपना हाल का खिंचा फोटो, श्वेत श्याम या रंगीन चुनाव अधिकारियों को नामांकन के समय सौंपना होगा। फोटो में कोई भी वर्दी, टोपी तथा काले चश्मे का उपयोग नहीं करना है। 
नकद दान की सीमा कम की गई: 2017 बजट में किसी व्यक्ति द्वारा किसी राजनीतिक दल को गुप्त रूप से दिए जाने वाले दान/भेंटराशि / चंदा की सीमा 20,000/- रुपये से कम करके 2000/- रुपये कर दी गयी। इसका अर्थ यह हुआ कि अब राजनीतिक दल दान के रूप में किसी व्यक्ति से दो हजार रुपये से अधिक की राशि नहीं ले सकते। हालांकि दो हजार से कम राशि की प्राप्ति की सूचना राजनीतिक दल द्वारा निर्वाचन आयोग को देना अनिवार्य नहीं है। उनके लिए दो हजार रुपये से अधिक की दान राशि का हिसाब रखना अनिवार्य है।
कॉरपोरेट अंशदानों पर से कैप हटा: बजट 2017 में किसी कम्पनी के पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभ का 7.5 प्रतिशत तक अंशदान को सीमा समाप्त कर दी गयी है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि अब कोई कम्पनी किसी दल को कितनी भी धनराशि दान के रूप में दे सकती है। इसके अलावा अब कम्पनी का ऐसे दान को अपने मुनाफे और
घाटे के खाते में दर्ज कराने का दायित्व भी नहीं रहा। चुनावी बांड की शुरुआत: 2018 में केन्द्र सरकार ने चुनावी बॉण्ड योजना की अधिसूचना जारी की। इस योजना की घोषणा 2017 के बजट में की जा चुकी थी। इसे राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नगद दान के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका उद्देश्य में राजनीतिक वित्तपोषण, अथवा फंडिंग में शुद्ध धनराशि के आगम और पूर्ण पारदर्शिता को प्रोत्साहित करना है। इस योजना की प्रमुख विशेषताएं हैं:
  1. चुनावी बॉण्ड का अर्थ है- वचन पत्र (Promissory note ) के रूप में एक बाण्ड जारी करना, जो कि धारक का बैंकिंग इंस्ट्रूमेंट होगा और जिस पर देने वाले अथवा क्रय करने वाले का नाम अंकित नहीं होगा।
  2. चुनावी बॉण्ड किसी भी भारतीय नागरिक अथवा किसी ऐसे व्यक्ति या संस्थान द्वारा खरीदा जा सकता है जो भारत में निगमित अथवा स्थापित हो।
  3. चुनावी बॉण्ड का इस्तेमाल ऐसे राजनीतिक दलों को दान देने के लिए हो सकता है जिन्हें पिछले चुनाव में कुल मतों के कम-से-कम एक प्रतिशत मत प्राप्त हुए हों- चाहे लोकसभा अथवा विधानसभा चुनावों में।
  4. चुनावी बॉण्ड का किसी अर्ह राजनीतिक दल द्वारा केवल एक अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से ही भुनाया जा सकता है।
  5. चुनावी बॉण्ड रु.1000/- रु.10,000/- रु. 1,00,000, रु.10,00,000/-, तथा रु. 1,00,00,000/- के मूल्य वर्ग में जारी किए जाते हैं।
  6. खरीदार द्वारा दी गई सूचना को अधिकृत बैंक गोपनीय रखता है जिसे किसी भी प्राधिकारी को किसी भी कारण या उद्देश्य से नहीं बताया या साझा किया जा सकता, एक अपवाद सक्षम न्यायालय है जिसे उक्त सूचना किसी कानून लागू करने वाली ऐजेंसी द्वारा दायर किए गए आपराधिक मामले में ऐसी सूचना मांगने पर दी जाएगी।
विदेशी वित्त पोषण / फंडिंग की अनुमतिः बजट 2018 में राजनीतिक दलों को विदेशी स्रोतों से चंदा / अंशदान प्राप्त करने की अनुमति दी गयी है। अर्थात्, राजनीतिक दल अब विदेशी कम्पनियों से चंदा प्राप्त कर सकते हैं। उसी अनुरूप विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 में संशोधन कर दिया गया है। इस संशोधन के तहत विदेशी कम्पनी की परिभाषा को संशोधित कर दिया गया है।
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