मूल कर्तव्य

मूल कर्तव्य
स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशें
- संसद किसी आर्थिक दंड या सजा का प्रावधान तब कर सकती है, जब कोई किसी कर्तव्य के अनुपालन से इन्कार कर दे।
- मूल अधिकारों के लागू करने के आधार या मूल कर्तव्यों के अरुचिकर होने के आधार पर कोई भी कानून इस तरह का अर्थ दंड या सजा लगाने का प्रावधान अदालत द्वारा नहीं करेगा।
- कर अदायगी भी नागरिकों का मूल कर्तव्य होना चाहिए।
मूल कर्तव्यों की सूची
- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करे।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखे।
- देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे ।
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी भेदभाव से परे हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
- हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करे।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्द्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दया भाव रखें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहे।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रगति और उपलब्धि की नई ऊचाइयों को छू ले।
- 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा जोड़ा गया।
मूल कर्तव्यों की विशेषताए
- उनमें से कुछ नैतिक कर्तव्य हैं तो कुछ नागरिक उदाहरण के लिए स्वतंत्रता संग्राम के उच्च आदर्शों का सम्मान एक नैतिक दायित्व है, जबकि राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना नागरिक कर्तव्य ।
- ये मूल्य भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्म एवं पद्धतियों से संबंधित हैं। दूसरे शब्दों में, ये मूलत: भारतीय जीवन पद्धति के आंतरिक कर्तव्यों का वर्गीकरण हैं।
- कुछ मूल अधिकार जो सभी लोगों के लिए हैं चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, लेकिन मूल कर्तव्य केवल नागरिकों के लिए हैं न कि विदेशियों के लिए' ।
- निदेशक तत्वों की तरह मूल कर्तव्य गैर-न्यायोचित हैं। संविधान में सीधे न्यायालय के जरिए उनके क्रियान्वयन की व्यवस्था नहीं है। यानी उनके हनन के खिलाफ कोई कानूनी संस्तुति नहीं है यद्यपि संसद उपयुक्त विधान द्वारा इनके क्रियान्वयन के लिए स्वतंत्र है।
मूल कर्तव्यों की आलोचना
- कर्तव्यों की सूची पूर्ण नहीं है क्योंकि इनमें कुछ अन्य कर्तव्य जैसे- मतदान, कर अदायगी, परिवार नियोजन आदि समाहित नहीं हैं। असल में कर अदायगी के कर्तव्य को स्वर्ण सिंह समिति की संस्तुति मिली थी।
- कुछ कर्तव्य अस्पष्ट, बहुअर्थी एवं आम व्यक्ति के लिए समझने में कठिन हैं। उदाहरण के लिए विभिन्न शब्दों की भिन्न व्याख्या हो सकती है 'उच्च आदर्श', 'समग्र संस्कृति', 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण' आदि।
- अपनी गैर न्यायोचित चलते इन्हें आलोचकों द्वारा नैतिक आदेश करार दिया गया। प्रसंगवश स्वर्ण सिंह समिति ने मूल कर्तव्यों को न निभाने पर अर्थ दंड व सजा की सिफारिश की थी।
- संविधान में इन्हें शामिल करने को आलोचकों द्वारा अतिरेक करार दिया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि संविधान में शामिल मूल कर्तव्यों को उन सभी को मानना है जो संविधान से संबद्ध न भी हों।
- आलोचकों ने कहा कि संविधान के भाग IV में इनको शामिल करना, मूल कर्तव्यों के मूल्य व महत्व को कम करती है। उन्हें भाग तीन के बाद जोड़ा जाना चाहिए था, ताकि वे मूल अधिकारों के बराबर रहते।
मूल कर्तव्यों का महत्व
- अपने अधिकारों का प्रयोग करते वक्त यह नागरिकों को अपने देश के प्रति कर्तव्य की याद दिलाते हैं। नागरिकों को अपने देश, अपने समाज और अपने साथी नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों के संबंध में भी जानकारी रखनी चाहिए।
- मूल कर्तव्य राष्ट्र विरोधी एवं समाज विरोधी गतिविधियों, जैसे-राष्ट्र ध्वज को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने के खिलाफ चेतावनी के रूप में करते हैं।
- मूल कर्तव्य नागरिकों के लिए प्ररेणा स्रोत हैं, और उनमें अनुशासन और प्रतिबद्धता को बढ़ाते हैं। वे इस सोच को उत्पन्न करते हैं कि नागरिक केवल मूक दर्शक नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में सक्रिय भागीदार हैं।
- मूल कर्तव्य, अदालतों को किसी विधि की संवैधानिक वैधता एवं उनके परीक्षण के संबंध में सहायता करते हैं। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि किसी कानून की संवैधानिकता की दृष्टि से व्याख्या में यदि अदालत को पता लगे कि मूल कर्तव्यों के संबंध में विधि में प्रश्न उठते हैं तो अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 (6 स्वतंत्रताओं) के संदर्भ में इन्हें तर्कसंगत माना जा सकता है और इस प्रकार ऐसी विधि को असंवैधानिकता से बचाया जा सकता है।
- मूल कर्तव्य विधि द्वारा लागू किए जाते हैं। इनमें से किसी के भी पूर्ण न होने पर या असफल रहने पर संसद उनमें उचित अर्थदंड या सजा का प्रावधान कर सकती है।
वर्मा समिति की टिप्पणियां
- राष्ट्र गौरव अपमान निवारण अधिनियम (1971) यह भारत के संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान के अनादर का निवारण करता है।
- बहुत से आपराधिक कानून लोगों के मध्य भाषा, मूल वंश, जन्म स्थान, धर्म आदि के आधार पर विभेद फैलाने वाले को दंड देने की व्यवस्था करते हैं।
- सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम (1955) 1 जाति एवं धर्म से संबंधित अपराधों पर दंड की व्यवस्था करता है।
- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) घोषणा करती है कि राष्ट्रीय अखण्डता के लिए पूर्वग्रह से ग्रस्त अभ्यारोपण और अभिकथन दंडात्मक अपराध होगा।
- विधि विप्त) क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1976 किसी सांप्रदायिक संगठन को गैर-कानूनी घोषित करने की व्यवस्था करता है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) भ्रष्टाचार में संलिप्त, धर्म के आधार पर मत मांगने, लोगों में धर्म, जाति, भाषा के आधार पर विभेद बढ़ाने वाले संसद सदस्यों एवं राज्य विधानमंडल सदस्यों को अयोग्य घोषित करने की व्यवस्था करता है।
- वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 वनों की अनियंत्रित कटाई एवं वन भूमि के गैर-वन उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल पर रोक लगाता है।
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