छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908

छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908

छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा 1. संक्षिप्त नाम तथा प्रसार
> इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम 'छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908' है।
> इसका प्रसार उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर तथा पलामू प्रमण्डल में होगा।
धारा 3. परिभाषाएँ
> कृषि वर्ष - वह वर्ष जो किसी स्थानीय क्षेत्र में कृषि कार्य हेतु प्रचलित हो ।
> भुगतबंध बंधक - किसी काश्तकार के हित का उसकी काश्तकारी से - उधार स्वरूप दिये गए धन के भुगतान को बंधक रखने हेतु इस शर्त पर अंतरण, कि उस पर के ब्याजों के साथ उधार बंधक की कालावधि के दौरान काश्तकारी से होनेवाले लाभों से वंचित समझा जाएगा।
>  जोत - रैयत द्वारा धारित भूखंड
> कोड़कर / कोरकर - ऐसी बंजर या जंगली भूमि जिसे भूस्वामी के अतिरिक्त किसी कृषक द्वारा तैयार की गयी हो। इसे जलसासन, अरियत या बाभला खनवत के नाम से भी जाना जाता है। 
> भूस्वामी (Landlord ) - वह व्यक्ति जिसने किसी काश्तकार को अपनी जमीन दिया हो।
> काश्तकार - वह व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति के अधीन भूमि धारण करता हो तथा उसका लगान चुकाने का दायी हो । काश्तकार के अंतर्गत भूधारक, रैयत तथा खूँटकट्टीदार तीनों को शामिल किया गया 
है ।
> लगान- रैयत द्वारा धारित भूमि के उपयोग या अधिभोग के बदले अपने भूस्वामी को दिया जाने वाला धन या वस्तु ।
> चल संपत्ति के अंतर्गत खड़ी फसल भी आती है।
> मुण्डारी खूँटकट्टीदारी - काश्तकारी- मुण्डारी खूँटकट्टीदार का हित
> भूधृति (Tenures ) - भूधारक का हित । इसके अंतर्गत मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी नहीं आती है।
> स्थायी भूधृति - वंशगत भूधृति।
> पुनर्ग्राह्य भूधृत्ति- वैसी भूधृति जो परिवार के नर वारिस नहीं होने पर, रैयत के निधन के बाद पुनः भूस्वामी को वापस हो जाए।
> ग्राम मुखिया - किसी ग्राम या ग्राम समूह का मुखिया । चाहे इसे मानकी, प्रधान, माँझी या अन्य किसी भी नाम से जाना जाता हो ।
> स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) - 1793 ई० में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के संबंध में किया गया स्थायी बंदोबस्त |
> डिक्री (Decree) - सिविल न्यायालय का आदेश ।
> अध्याय-2 काश्तकारों के वर्ग (Classes of tenants)
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा 4. - काश्तकारों के वर्ग
> काश्तकार के अंतर्गत भूधारक (Tenure Holders), रैयत (Raiyat), दर रैयत तथा मुण्डारी खूँटकट्टीदार को शामिल किया गया है।
> रैयत तीन प्रकार के हो सकते हैं
> अधिभोगी रैयत (Occupancy Raiyat) - वह व्यक्ति जिसे धारित भूमि पर अधिभोग का अधिकार प्राप्त हो।
> अनधिभोगी रैयत (Non-occupancy Raiyat) - वह व्यक्ति जिसे धारित भूमि पर अधिभोग का अधिकार प्राप्त न हो।
> खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत (Occupancy raiyat)
(Note - ऐसा काश्तकार / रैयत जो किसी रैयत के अधीन हो, दर रैयत कहलाता है।) 
धारा 5. “भू-धारक" का अर्थ
भू-धारक (land holder) का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी या दूसरे की जमीन खेती कार्य के लिए धारण किए हुए है एवं उसका लगान चुकाता हो।
धारा 6. रैयत का अर्थ
> रैयत के अंतर्गत वैसे व्यक्ति शामिल हैं जिन्हें खेती करने के लिए भूमि धारण करने का अधिकार प्राप्त 
हो ।
धारा 7. खूँटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत का अर्थ
> वैसे रैयत, जो वैसी भूमि पर अधिभोग का अधिकार रखते हों, जिसे उसके मूल प्रवर्तकों या उसकी पर परंपरा के वंशजों द्वारा जंगल में कृषि योग्य भूमि के रूप में विकसित किया गया हो, तो उसे खूँटकट्टी अधिकारयुक्त रैयत कहा जाता है ।
धारा 8. "मुण्डारी खूँटकट्टीदार" का अर्थ
> वह मुण्डारी जिसने जंगली भूमि के किसी हिस्से को जोत में लाने हेतु भूमि का अधिकार अर्जित किया हो, उसे मुण्डारी खूँटकट्टीदार कहा जाता है।
> अध्याय-3 भू-धारक
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा 9. भू-धारक लगान वृद्धि के लिए कब दायी न होगा
> यदि किसी भू-धारक के लगान में बंदोबस्त के समय से परिवर्तन न किया गया हो, उसके लगान में बढ़ोत्तरी नहीं की जाएगी।
धारा 9 क . भू-धारक या ग्राम मुखिया के लगान में वृद्धि
> भू-धारक या ग्राम मुखिया का लगान केवल उपायुक्त के पास दिये गये आवेदन पर पारित आदेश या राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश से ही बढ़ाया जा सकेगा 
धारा 11. भूधृत्तियों के कतिपय अंतरणों का रजिस्ट्रीकरण
इसमें भूधृत्ति/पट्टेदारी के अंतरणों के रजिस्ट्रीकरण से संबंधित प्रावधानों का वर्णन है।
धारा  13. भूधृत्ति का विभाजन या लगान का वितरण
> यदि किसी भूधृत्ति के विभाजन या वितरण की सूचना भूस्वामी को रजिस्ट्रीकृत डाक से भेज दिया गया हो, तो उस भूमि का लगान भू-स्वामी द्वारा देय होगा।
> यदि भूस्वामी ऐसे विभाजन या वितरण के लगान पर आपत्ति करता है तो, इसके लिए उपायुक्त के पास आवेदन कर सकता है।
धारा  14. पुनर्ग्रहणीय भूधृत्ति के पुनर्ग्रहण पर विल्लंगमों का वातिलीकरण
> कोई जमीन जो पुनर्ग्रहण योग्य हो, अपने पुनर्ग्रहण की तिथि पर पुनर्ग्रहित हो जाएगी।
> निम्न परिस्थितियों में पट्टे पर दी गयी भूमि का पुनर्ग्रहण नहीं किया जा सकेगा
» जहाँ निवासगृह, निर्माणशाला या अन्य स्थायी भवन निर्मित किया गया हो।
» जिस पर स्थायी उद्यान, बागान, हौज, नहर, पूजास्थल, श्मशान या कब्रिस्तान स्थापित किया गया हो।
» जहाँ किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्राधिकृत खदान बनाया गया हो।
अध्याय-4 - रैयत (Raiyat)
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा 16.  विद्यमान अधिभोगाधिकार का बना रहना 
> यदि किसी रैयत को इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व कानूनी रूप से, किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा भूमि में अधिभोगाधिकार (occupancy rights ) प्राप्त हो, तो इस बात के होते हुए भी कि उसने 12 वर्षों तक भूमि पर न तो खेती की है और न ही उसे धारित किया है, भूमि पर उसका अधिभोगाधिकार समाप्त नहीं होगा। 
धारा  17. बंदोबस्त रैयत की परिभाषा
> इस धारा के अंतर्गत बंदोबस्त रैयत को परिभाषित किया गया है। इसके अंतर्गत:
» वह व्यक्ति जिसने इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात् किसी ग्राम में स्थित भूमि को पूर्णतः या अंशतः पट्टे पर या रैयत के रूप में धारित किया हो, 12 वर्ष की अवधि समाप्त होने पर उस ग्राम का बंदोबस्त रैयत समझा जाएगा।
» कोई व्यक्ति जब तक रैयत के रूप में भूमि धारण करता है, वह रैयत की अवधि के तीन वर्ष पश्चात् तक ग्राम का बंदोबस्त रैयत समझा जाएगा।
» यदि कोई रैयत धारा - 71 के अधीन या बाद के जरिये भूमि का कब्जा वापस लेता है, तो जमीन के तीन वर्ष से अधिक समय तक बेकब्जा रहने के बावजूद वह बंदोबस्त रैयत समझा जाएगा।
धारा  18. भूईहरों तथा मुण्डारी खूँटकट्टीदारों का बंदोबस्त रैयत होना
> इस धारा में भुईहरों तथा मुण्डारी खूँटकट्टीदारों के बंदोबस्त रैयत होने से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है। इसके अंतर्गत: – 
(क) यदि किसी ग्राम में मंझिहस या बढखेता के रूप में ज्ञात भूमि के अतिरिक्त कोई भूमि 'छोटानागपुर भूधृत्ति अधिनियम, 1869' के तहत तैयार रजिस्टर में शामिल हो और वहाँ किसी भूईहर परिवार के सदस्य लगातार 12 वर्षों तक भूमि धारण करते आये हों, तो वे ( भूईहर परिवार के सदस्य) बंदोबस्त रैयत समझे जाएंगे।
(ख) किसी गाँव की ऐसी भूमि जो मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी का भाग न हो, फिर भी इस अधिनियम या इसके प्रारंभ से पूर्व प्रवृत किसी विधि के अधीन किसी अभिलेख में मुण्डारी खूँटकट्टीदारी के रूप में दर्ज कर दी गयी हो, तो ऐसे ग्राम के मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी परिवार के सभी पुरूष सदस्य जो उस गाँव में लगातार 12 वर्षों से भूमि धारण करते हों, बंदोबस्त रैयत समझे जाएंगे।
धारा  19. बंदोबस्त रैयतों के अधिभोगाधिकार
> वैसा व्यक्ति जो धारा-17 या धारा -18 के अंतर्गत किसी गाँव का बंदोबस्त रैयत हो, उस गाँव में उसके द्वारा रैयत के रूप में धारित सभी भूमि में अधिभोगाधिकार होगा।
धारा  21. भूमि के उपयोग के संबंध में अधिभोगी रैयत के अधिकार 
> कोई भी रैयत जिसे किसी भूमि के बारे में अधिभोगाधिकार हो, वह अपनी भूमि का उपयोग स्थानीय रीति/प्रथा द्वारा या इसके बिना भी काश्तकारी के लिए कर सकता है।
> वह अपनी भूमि का प्रयोग कृषि कार्य हेतु, ईंट और खपड़ों के विनिर्माण हेतु, पेयजल, कृषि कार्य या मत्स्य पालन हेतु कुएं की खुदाई या बाँध व आहरों के निर्माण हेतु तथा व्यापार व कुटीर उद्योगों के संचालन के लिए भवन बनाने के संदर्भ में कर सकता है।
> यदि कोई रैयत अपनी जोत के लगान का भुगतान करता है, तो ऐसी जोत पर किसी भी प्रयोजन के लिए निर्मित तालाब के उत्पादों में भू-स्वामी का हिस्सा 9/20 तथा रैयत का हिस्सा 11/20 होगा।
धारा  21 क . वृक्षों में अधिभोगी रैयत का अधिकार
>कोई भी रैयत जिसे किसी भूमि के बारे में अधिभोगाधिकार हो और उस भूमि के लगान का भुगतान नकद किया जाता हो या भूमि लगान मुक्त हो तो :
> रैयत उस भूमि पर वृक्ष और बांस लगा सकता है, उसे काट सकता है तथा उसे ले सकता है।
> रैयत उस भूमि पर लगे बाँस (चाहे उसके द्वारा न लगाया गया हो) को काट सकता है और ले सकता है।
> रैयत ऐसी भूमि पर खड़े किसी वृक्ष के फूलों, फलों एवं अन्य उत्पादों का प्रयोग कर सकता है तथा वृक्षों पर लाह एवं कुसवारी उगा सकता है तथा उसका प्रयोग कर सकता है।
> यदि ऐसी भूमि के लगान का भुगतान धारा - 61 के अनुसार किया जा रहा हो तो इस भूमि पर उत्पादित काष्ठ में भूस्वामी और रैयत का हिस्सा बराबर होगा।
> इस भूमि पर उगने वाले सभी वृक्षों के उत्पादों (फल, फूल व अन्य उत्पादों) में भू-स्वामी का हिस्सा 9/20 तथा रैयत का हिस्सा 11/20 होगा।
धारा  22. रैयत की बेदखली
> यदि अधिभोगी रैयत अपनी जोत पर धारा 21 या 21क द्वारा प्राधिकृत रीति से तथा संविदा की शर्तों के अनुरूप खेती करता रहा हो तो, उसे भू-स्वामी द्वारा किसी विनिष्ट आधारों के सिवा बेदखल नहीं किया जा सकेगा। 
धारा  24. लगान के भुगतान हेतु रैयत की बाध्यता
> अधिभोगी रैयत अपनी जोत के लिए उचित एवं साम्यिक दर से लगान का भुगतान करेगा। 
धारा  27. रैयत के जोत का लगान बढ़ाने की रीतियाँ 
> यदि इस अधिनियम या इसके पूर्व प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अधिकार-अभिलेख का प्रकाशन नहीं किया गया हो या ऐसे किसी अभिलेख की तैयारी के लिए आदेश निर्गत न किया गया हो तो अधिभोगी रैयत, जिसका लगान वृद्धि का दायी हो, तो केवल धारा 29 के अधीन उपायुक्त द्वारा पारित आदेश से ही लगान बढ़ाया जा सकेगा।
> यदि अधिकार अभिलेख प्रकाशित कर दिया गया हो या अभिलेख की तैयारी के लिए आदेश निर्गत कर दिया गया हो तो धारा 62, धारा 94 या धारा 99 में निर्दिष्ट दशाओं में धारा 29 के अधीन उपायुक्त के आदेश से तथा अन्य दशाओं में धारा 12 के अधीन राजस्व अधिकारी के पारित आदेश से ही लगान बढ़ाया जा सकेगा।
धारा  33 क . रैयत के जोत के लगान में कमी संबंधी प्रावधान
> रैयत के जोत का लगान निम्नांकित दशाओं में उपायुक्त द्वारा कम किया जा सकता है 
> यदि जोत का लगान धारा 29 के अधीन 1 जनवरी, 1911 और 31 दिसम्बर, 1936 के  बीच किसी समय बढ़ा दिया गया हो ।
> यदि जोत के किसी अंश या पूरी जोत की मिट्टी किसी आकस्मिक या क्रमिक कारणों से स्थायी या अस्थायी रूप से आकृष्ट (निम्नीकृत) हो गयी हो ।
> यदि जोत का स्वामी सिचांई का प्रबंध करने में असफल रहा है।
> यदि वर्तमान लगान के जारी रहने के दौरान मुख्य खाद्य फसलों के औसत स्थानीय मूल्य में गिरावट आ गया है।
> यदि रैयत द्वारा धारित भूमि का क्षेत्र उस क्षेत्र से कम है जिसके लिए उसके द्वारा पूर्व में लगान का भुगतान किया गया है।.
(Note- अधिनियम की धारा 24 से 36 तक लगान एवं उससे संबंधित पहलुओं के बारे में प्रावधान किया गया है ।)
धारा  37. अध्याय-5 खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
> खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत
> इस अधिनियम के अधिभोगी रैयत संबंधी प्रावधान उन रैयतों पर भी लागू होंगे, जिन्हें खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त हों, लेकिन:-
» यदि रैयत द्वारा इस अधिनियम के प्रारंभ के बीस वर्षों से अधिक पूर्व भूमि की काश्तकारी सृजित की गयी हो, तो भूमि का लगान नहीं बढ़ाया जाएगा।
» यदि भूमि के लगान में वृद्धि हेतु कोई आदेश पारित किया गया हो तो, लगान में वृद्धि उसी गाँव में समरूप भूमि के अधिभोगी रैयत पर लगाए गए लगान के आधे से अधिक नहीं होगी।
> अध्याय - 6 अनधिभोगी रैयत
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  38. अनधिभोगी रैयत का प्रारंभिक लगान और पट्टा
> अनधिभोगी रैयत की भूमि का लगान उसके और भूस्वामी के बीच किये गए करार के आधार पर तय किया जाएगा।
धारा  39. अनधिभोगी रैयत को अपनी जोत का लगान उसी प्रकार देना होगा जिस प्रकार अधिभोगी रैयत देते हैं।
धारा  40. अनधिभोगी रैयत के लगान की वृद्धि
> लगान में वृद्धि रजिस्ट्रीकृत करार तथा धारा 42 के अधीन करार के सिवाय नहीं बढ़ाया जा सकता है।
धारा  41. अनधिभोगी रैयत की बेदखली का आधार
> किसी भी अनधिभोगी रैयत को निम्नांकित आधारों में से किसी एक या अधिक के आधार पर ही बेदखल किया जा सकता है :
» तीसरे कृषि वर्ष के प्रारंभ के बाद 90 दिनों के अंदर पिछले दो कृषि वर्षों का लगान देने में असमर्थ रहा हो।
» जोत की भूमि का अनुपयुक्त प्रयोग जिसके कारण भूमि का मूल्य हासित हुआ हो अथवा इसे काश्तकारी प्रयोग के अनुपयुक्त बना देता हो ।
» यदि रैयत ने अपने और भूस्वामी के बीच हुए संविदा के किसी प्रावधान का उल्लंघन किया हो। » रजिस्ट्रीकृत पटट्टे की अवधि समाप्त हो गयी हो ।
» रैयत ने उचित लगान का भुगतान करने से इनकार कर दिया हो।
धारा  42. यदि रैयत ने उचित एवं साम्यिक लगान का भुगतान करने से इनकार कर दिया हो तो भूस्वामी रैयत को बेदखल करने हेतु उपायुक्त के कार्यालय में आवेदन देगा। उपायुक्त द्वारा विभिन्न पक्षों | को सुनने के पश्चात् ही बेदखली होने या न होने का निर्णय दिया जायेगा।
> अध्याय-7 अध्याय 4 तथा अध्याय 6 से छूट प्राप्त भूमी 
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  43. > भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमियों तथा अन्य भूमियों को अध्याय 4 और 6 के प्रावधानों से छूट 
> निम्नलिखित प्रकार के भूमियों पर न तो अधिभोगाधिकार (Occupancy rights) अर्जित
किया जा सकता और न ही इन पर अनधिभोगी रैयत (Non occupancy raiyat) संबधी प्रावधान लागू होंगे। अर्थात् इस प्रकार की भूमि लगान मुक्त होगी। ये हैं:
» अधिनियम की धारा 118 के अंतर्गत भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि, जिसे अभिधारी (Tenant) ने एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए रजिस्ट्रीकृत पट्टे पर अथवा एक वर्ष या कम समय के लिए लिखित या मौखिक पट्टे पर धारित किया हो।
» सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकार या रेलवे कम्पनी के लिए अर्जित भूमि ।
» किसी छावनी (Cantonment ) के भीतर सरकार की भूमि ।
» ऐसी भूमि जिसका उपयोग किसी विधिसम्मत प्राधिकारी द्वारा सड़क, नहर, तटबंध बाँध या जलाशय जैसे लोक कार्यों के लिए किया जा रहा हो ।
> अध्याय-8 जोतों और भूधृत्तियों के पट्टे और अंतरण
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  44 . रैयत का पट्टे का हकदार होना होगा। 
> प्रत्येक रैयत अपने भूस्वामी से एक पट्टा पाने का हकदार होगा जिसमें उसकी जोत की भूमि का परिमाप और सीमाएं, भूमि के लिए देय लगान की रकम, लगान की किस्तें, उपज के रूप में लगान दिये जाने की दशा में उपज का अनुपात तथा पट्टे की कोई विशेष शर्त का उल्लेख होगा।
धारा  45. जब कोई भूस्वामी किसी काश्तकार को कोई पट्टा देगा तो भूस्वामी पट्टे की शर्तों के अनुरूप एक प्रतिलेख पाने का हकदार होगा।
धारा  46. रैयतों द्वारा अपने अधिकारों के अंतरण पर प्रतिबंध
> रैयत द्वारा अपनी जोत या उसके किसी भाग पर अधिकार का 5 वर्ष से अधिक अवधि के लिए तथा विक्रय, दान या किसी अन्य संविदा द्वारा अंतरण नहीं किया जा सकता है।
> कोई रैयत अपनी जोत या उसके किसी भाग को 7 वर्षो से कम किसी भी अवधि के लिए भुगतबंध बंधक कर सकता है।
> कोई रैयत अपनी जोत या उसके किसी भाग को 15 वर्षो से कम किसी अवधि के लिए ऐसे बंधकदार को भुगतबंध बंधक कर सकता है, जो बिहार और उड़ीसा सहकारी समितियाँ अधिनियम, 1935 के अधीन रजिस्ट्रीकृत हो ।
(Note - भुगतबंध बंधक के तहत बंधक लेने वाला एक तय अवधि के लिए बंधक में दी गई भूमि के उत्पादन का उपभोग कर सकता है।)
> ऐसा अधिभोगी रैयत जो किसी अनुसूचित जनजाति का सदस्य हो, उपायुक्त की पूर्व मंजूरी से अपनी जोत या उसके किसी भाग का अधिकार विक्रय, विनिमय, दान या विल द्वारा अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को अंतरित कर सकता है, जो उसी पुलिस थाने के क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर का निवासी हो जिसके भीतर यह जोत स्थित हो।
> ऐसा अधिभोगी रैयत जो किसी अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्गों का सदस्य हो, उपायुक्त की पूर्व मंजूरी से अपनी जोत या उसके किसी भाग का अधिकार विक्रय, विनिमय, दान या विल द्वारा अनुसूचित जाति या पिछड़े वर्गों के किसी व्यक्ति को अंतरित कर सकता है, जो उसी जिले के क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर का निवासी हो जिसके भीतर यह जोत स्थित हो ।
> कोई अधिभोगी रैयत अपने जोत या उसके किसी भाग का अधिकार निम्न को अंतरित कर सकता है:
» बिहार एवं उड़ीसा सहकारी समिति अधिनियम, 1935 के तहत रजिस्ट्रीकृत किसी समिति को, किसी बैंक या कम्पनी या निगम को जिसका स्वामित्व केन्द्र या राज्य सरकार के पास है अथवा जिसमें अंश पूंजी का 51 प्रतिशत या अधिक केन्द्र या राज्य सरकार या दोनों मिलकर धारण करते हैं और जिसे कृषकों का कृषि के लिए उधार देने की दृष्टि से स्थापित किया गया हो।
> कोई अधिभोगी रैयत, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़े वर्ग का सदस्य नहीं है, अपनी जोत या उसके किसी भाग में अपने अधिकार का अंतरण विक्रय, विनिमय, दान, वसीयत, बंधक द्वारा अथवा अन्यथा किसी भी अन्य व्यक्ति को कर सकेगा।
> किसी जोत या उसके किसी भाग के संबंध में ऐसे वाद (मामले) जिनमें एक पक्षकार अनुसूचित जनजाति का सदस्य है और दूसरा पक्षकार अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, ऐसे वादों में उपायुक्त आवश्यक पक्षकार होगा। / धारा 46 (3क)]
> यदि रैयत ने उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन अपनी जोत या उसके किसी भाग के अपने अधिकार को किसी समयावधि के लिए अंतरित किया है, तो उस समयावधि की समाप्ति के तीन वर्षों के भीतर रैयत के आवेदन करने पर उपायुक्त किसी भी समय ऐसे जोत या भाग को उस रैयत के कब्जे में दे देगा। / धारा 46 ( 4 ) ]
> उपायुक्त स्वप्ररेणा से या यदि कोई अनुसूचित जाति का अधिभोगी रैयत इस आधार पर अंतरण के निरसन का आवेदन उपायुक्त को देता है कि अंतरण उपधारा-1 (क) के उल्लंघन में किया गया था, तो उपायुक्त ऐसे आवेदन के संबंध में नियम से जाँच करेगा। परन्तु ऐसा कोई आवेदन उपायुक्त द्वारा तब तक ग्रहण नहीं किया जाएगा, जब अधिभोगी अभिदारी ने अपने जोत या उसके किसी भाग के अंतरण की तारीख से 12 वर्षों की समयावधि के भीतर उसे फाइल किया हो । / धारा 46 (4क )] 
> यदि उपायुक्त जाँच के पश्चात् यह पाता है कि अंतरण में उपधारा-1 (क) का उल्लंघन नहीं हुआ है तो आवेदन को रद्द कर देगा और अंतरक (जिसने जोत अंतरित किया था) द्वारा अंतरीति (जिसे भूमि अंतरित की गयी थी) को मामले के अनुसार खर्च का भुगतान करने हेतु आदेश देगा। / धारा 46 (4ख ) ]
> यदि जाँच के बाद उपायुक्त यह पाता है कि उपधारा - 1 (क) का उल्लंघन किया गया हो, तो वह अंतरण को समाप्त कर देगा तथा अंतरीति (जिसे जोत अंतरित किया गया था) को ऐसे जोत या उसके भाग से बेदखल कर देगा और अंतरक (जिसने जोत अंतरित किया था) को उसका कब्जा दिला देगा।
परन्तु यदि अंतरीति ने ऐसे जोत पर किसी भवन या संरचना का निर्माण कर लिया हो और अंतरक उसके मूल्य का भुगतान नहीं करना चाहता हो, तो उपायुक्त अंतरीति को ऐसी संरचना को 02 वर्ष के अंदर हटाने का आदेश देगा तथा नहीं हटने पर उपायुक्त हटवा सकेगा। 
परन्तु यदि उपायुक्त को यह समाधान हो जाए कि अंतरीति ने ऐसे जोत या उसके भाग पर संरचना का निर्माण छोटानागपुर काश्तकारी संशोधन अधिनियम, 1969 के आरंभ से पूर्व किया है, तो उपायुक्त उपधारा-1 (क) के उल्लंघन के बावजूद वह ऐसे अंतरण को उस दशा में विधिमान्य कर सकेगा, जब अंतरीति समतुल्य मूल्य की समीप की कोई वैकल्पिक जोत या भाग उपलब्ध करा दे या उपायुक्त द्वारा अभिधारित प्रतिकर का भुगतान कर दे । [धारा 46 ( 4ग )] 
धारा  47. न्यायालय के आदेश के अधीन रैयती अधिकार के विक्रय पर प्रतिबंध
> किसी न्यायालय द्वारा किसी रैयत के जोत या उसके किसी भाग में अधिकार के विक्रय के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा।
> परन्तु निम्न स्थितियों में न्यायालय द्वारा जोत के अधिकार के विक्रय का आदेश पारित किया जा सकता है: –
» जोत के संबंध में बकाया लगान की वसूली के
 लिए ।
» किसी उधार या बैंक ऋण की वसूली के लिए
» बिहार उड़ीसा लोक मांग वसूली अधिनियम द्वारा उपबंधित प्रक्रिया के अधीन ।
परन्तु यदि किसी जोत या उसका भाग अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का है तो उसे किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को ही बेचा जा सकता है। 
धारा  48. भुईहरी भूधृत्ति के अंतरण पर प्रतिबंध
> किसी र्भुइहरी कुटुंब का कोई सदस्य अपने द्वारा धारित भुईहरी भृधृत्ति या उसके किसी भाग को उसी रीति और उसी परिमाण तक अंतरित कर सकता है, जैसे कोई आदिवासी रैयत अपने जोत या उसके भाग के अधिकार को अंतरित करता है ।
> राज्य सरकार भुईहरी कुटुंब के किसी व्यक्ति को उसके भूधृत्ति का विक्रय, दान, विनिमय, विल द्वारा अंतरित करने का नियम बना सकती है।
> उपरोक्त रीतियों के अतिरिक्त अन्य किसी भी रीति द्वारा भुईहरी भूधृत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता है।
> यदि किसी भुईहरी भूधृत्ति या उसके भाग का अंतरण उपरोक्त रीतियों का उल्लंघन करके किया गया हो तो, उपायुक्त स्वप्ररेणा से या ऐसे सदस्य के आवेदन पर अंतरीति (जिसे जमीन अंतरित किया गया हो) को बेदखल कर सकेगा।
(Note - भुईहरी कुटुंब का कोई सदस्य किसी कृषि प्रयोजन के लिए कर्ज जुटाने हेतु बिहार उड़ीसा सहकारी समिति अधिनियम, 1935 के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी सोसायटी या बैंक को अथवा राज्य या केन्द्र सरकार की स्वामित्व वाली किसी कंपनी या निगम को अपनी भृधृति या उसके भाग का अधिकार सादा बंधक द्वारा अंतरित कर सकता है। ) 
> यदि भुईहरी कुटुंब का कोई सदस्य छोटानागपुर भृधृति अधिनियम, 1869 के तहत परिभाषित किसी ग्राम में भुईहरी भूधृति धारण करता है, तो वह अपनी भूधृत्ति या उसके किसी भाग को उसी रीति से और उसी सीमा तक अंतरित कर सकता है जैसा कोई अधिभोगी रैयत धारा 46 की उपधारा (3) के अधीन अपनी जोत में अपने अधिकार का अंतरण करता है। 
> यदि किसी भुईहरी भूधृत्ति का कोई सदस्य अपनी भुईहरी भूधृत्ति या उसके किसी भाग को पट्टे द्वारा अंतरित करे तो पट्टेदार उसमें अधिभोगाधिकार अर्जित नहीं करेगा।
धारा  48 क . भुईहरी भूधृत्ति के विक्रय पर प्रतिबंध
> कोई भी न्यायालय किसी भुईंहरी भूधृत्ति के अधिकार के विक्रय हेतु कोई आदेश पारित नहीं कर सकेगा।
> किसी भुईंहरी कुटुंब द्वारा धारित किसी भुईहरी भूधृत्ति के संबंध में बकाया लगान की वसूली हेतु भुईहरी भूधृत्ति की बिक्री का आदेश पारित नहीं किया जाएगा। ऐसे लगान की वसूली भूधृति में शामिल भूमि की उपज की कुर्की या विक्रय द्वारा या ऋणी की किसी अन्य जंगम संपत्ति के विक्रय द्वारा ही किया जा सकेगा।
धारा  49. कतिपय प्रयोजनों के लिए भुईहरी भूधृत्ति का अंतरण
> धारा 46, 47 एवं 48 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी अधिभोगी रैयत या भुईहरी कुटुंब का कोई सदस्य अपनी जोत या उसके किसी भाग को निम्न प्रयोजनों के लिए अंतरित कर सकेगा: – 
» किसी औद्योगिक उद्देश्यों के लिए या कोई ऐसा प्रयोजन जो राज्य सरकार उसके सहायक प्रयोजन के लिए अधिसूचित करे, या इनमें से किसी प्रयोजन के लिए अपेक्षित भूमि में गम्य पथ के प्रयोजन हेतु।
» किसी खनन कार्य के उद्देश्य से या कोई ऐसा प्रयोजन जो राज्य सरकार उसके सहायक प्रयोजन के लिए अधिसूचित करे, या इनमें से किसी प्रयोजन के लिए अपेक्षित भूमि में गम्य पथ के प्रयोजन हेतु ।
धारा  50. भूस्वामी द्वारा भूधृत्ति या जोत का अर्जन
> धारा 46 और 47 में किसी बात के होते हुए भी उपायुक्त भूस्वामी द्वारा आवेदन देने पर निम्न प्रयोजनों के लिए भूधृत्ति के अर्जन की अनुमति प्रदान कर सकेगा:-
» खैराती, धार्मिक या शैक्षणिक प्रयोजनों के लिए।
» राज्य सरकार द्वारा खनन के प्रयोजनों के लिए।
> उपायुक्त अभिनिश्चित भूमि के बाजार मूल्य के अतिरिक्त अर्जित हितों के धारक को बाजार मूल्य पर 20 प्रतिशत की रकम अधिनिर्णित करेगा।
> यदि जोत के किसी भाग पर मंदिर, मस्जिद या पूजा के अन्य स्थान, पवित्र उपवन, कब्र या श्मशान हों, तो उपायुक्त भूमि के अर्जन को प्राधिकृत नहीं करेगा।
> अध्याय - 9  लगान के बारे में साधारण उपबंध
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  52. किस्त
> अभिधारी (tenant) द्वारा लगान का भुगतान कृषि वर्ष की प्रत्येक तिमाही के अंत पर चार किस्तों में किया जाएगा।
धारा  53. लगान भुगतान की रीतियाँ
> लगान का भुगतान माल कचहरी में या डाक मुद्रादेश (money order) द्वारा उपायुक्त के माध्यम से किया जा सकता है।
धारा  54. लगान तथा उसके ब्याज के लिए रसीद
> भूस्वामी द्वारा लगान या उस पर ब्याज या दोनों का भुगतान प्राप्त होने पर एक हस्ताक्षरित रसीद अभिधारी का दिया जाये ।
> लगान के भुगतान की रसीद देने में असफल होने पर भुस्वामी या उसके अभिकर्ता को एक माह का सादा कारावास या एक सौ रूपये जुर्माना या दोनों का दण्ड दिया जा सकता है।
धारा  58. लगान का बकाया एवं उस पर ब्याज
> यदि देय तिथि को सूर्यास्त के पूर्व लगान का भुगतान नहीं किया जाता है, तो उसे लगान का बकाया समझा जाएगा। 
> यदि भूस्वामी राज्य सरकार है तो कृषि वर्ष के अंत में लगान का भुगतान नहीं किए जाने पर उसे लगान का बकाया समझा जाएगा।
> लगान की बकाया राशि पर अधिकतम 6.25 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज प्रभारित किया जाएगा।
> यदि अभिधारी किसी कृषि वर्ष में बकाया लगान की राशि का भुगतान अगले कृषि वर्ष के भीतर कर दे तो संदेय लगान की राशि पर अधिकतम तीन प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा। 
धारा  59. भूधारक की बेदखली एवं बकाया के कारण पट्टे का रद्द किया जाना
> यदि भूधारक का लगान बकाया हो तो उसका पट्टा रद्द करते हुए उसे बेदखल किया जा सकता है।
धारा  60. लगान के बकाये का काश्तकारी पर प्रथम भार होना
> काश्तकारी का लगान काश्तकारी पर प्रथम भार होगा। परन्तु यदि लगान के बकाये के भुगतान हेतु काश्तकारी का विक्रय कर दिया जाये, तो खरीददार उस काश्तकारी का विक्रय की तारीख के पूर्व के लगान के भार से मुक्त होगा।
धारा  61. वस्तुरूप में देय लगान का रूपांतरण
> यदि भूधारक द्वारा लगान वस्तुरूप में दिया जाता रहा हो, तो वह इसे धन लगान के रूप में रूपांतरित करने हेतु उपायुक्त या किसी राजस्व अधिकारी के पास आवेदन देगा। 
> उपायुक्त या राजस्व अधिकारी उचित जाँच के पश्चात् वस्तु लगान के बदले धन लगान के रूप में दी जाने वाली राशि का निर्धारण करेगा। 
धारा  61 क . अधिभोग जोत के लगान का रूपांतरण
> यदि किसी अधिभोग जोत का लगान वस्तुरूप में भुगतान किया जाता रहा हो और राज्यपाल उसे रूपांतरित करने हेतु अधिसूचना जारी करता है तो उपायुक्त स्वप्रेरणा से या रैयत अथवा भूस्वामी के आवेदन करने पर धन लगान के रूप में भुगतान की जाने वाली राशि का निर्धारण कर सकेगा।
धारा  62. रूपांतरित लगान के अपरिवर्तित रहने की कालावधि
> यदि धारा 61 के अधीन किसी जोत का लगान रूपांतरित किया गया हो तो अगले 15 वर्षो तक वहाँ लगान बढ़ाया या घटाया नहीं जाएगा।
> इसे भूस्वामी द्वारा की गयी अभिवृद्धि अथवा जोत के क्षेत्र में परिवर्तन तथा उपायुक्त या राजस्व अधिकारी के आदेश से ही 15 वर्ष पूर्व बढ़ाया जा सकता है।
> इसे राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश के आधार पर ही 15 वर्ष पूर्व घटाया जा सकता है।
धारा  63. भूस्वामी द्वारा लगान के अतिरिक्त अवैध रकम वसूलने पर दण्ड
> यदि कोई भूस्वामी काश्तकार से विधिपूर्वक देय लगान एवं बकाया ब्याज के अतिरिक्त कोई धनराशि या वस्तु वसूलता है या अतिरिक्त भुगतान की शर्त रखता है, तो भूस्वामी छह माह के साधारण कारावास या पाँच सौ रूपये जुर्माना या दोनों के दण्ड का भागी होगा। 
> अध्याय - 9 क बंजर भूमि का बंदोबस्त
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  63 क . बंजर भूमि का बंदोबस्त पट्टे पर किया जाना
> राज्य सरकार की बंजर भूमि का बंदोबस्त विहित प्रारूप में पट्टे पर किया जाएगा। पट्टा दो प्रतियों में तैयार किया जाएगा, जिनमें से एक प्रति संबंधित रैयत को दी जाएगी तथा एक प्रति जिले के उपायुक्त को भेज दी जाएगी। 
धारा  63 ख . बंदोबस्त को अपास्त ( रद्द ) किया जाना
> यदि उपरोक्त रीति से बंदोबस्त किसी भूमि पर बंदोबस्त की तारीख से पाँच वर्षों की समयावधि में खेती न की गयी हो अथवा उसका संक्रमण किया गया हो, तो जिले का उपायुक्त बंदोबस्त को अपास्त करने तथा ऐसी भूमि का पुन: बंदोबस्त करने हेतु स्वतंत्र होगा।
अध्याय - 10 - भूस्वामी तथा काश्तकार के लिए प्रकीर्ण उपबंध
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  64. उपायुक्त के आदेश से भूमि का कोड़कर में परिवर्तन
> किसी गाँव के कृषक या भूमिहीन श्रमिक उपायुक्त की पूर्व अनुज्ञा से भूमि को कोड़कर में परिवर्तित कर सकते हैं।
(Note- रैयत द्वारा परती भूमि या टाँड को कोड़ कर तैयार किया गया धान का खेत, कोड़कर कहलाता है। इस प्रकार तैयार खेत प्रारंभ में लगान से मुक्त होता है तथा बाद में लगान का निर्धारण किया जाता है जो सामान्य लगान दर से कम होता है। )
धारा  66. भूमी को कोड़कर में परिवर्तित करने पर प्रतिषेध
>>कोई कृषक किसी अन्य व्यक्ति के प्रत्यक्ष कब्जे वाले बगीचे, कृष्य भूमि (cultivated land) या वास भूमि (homestead) को कोड़कर में परिवर्तित नहीं कर सकता है।
धारा  67. कोड़कर में अधिभोगाधिकार
> ऐसा रैयत जो किसी भूमि को जोतता या धारित करता हो और उस जोत को उसने या उसके परिवार के किसी सदस्य ने कोड़कर में परिवर्तित कर दिया है, तो इस बात के होते हुए भी की उसने उस भूमि पर बारह वर्षों तक खेती नहीं की है या उसे धारण नहीं किया है, उस भूमि पर अधिभोगाधिकार होगा।
धारा  67 क . कोड़कर में संपरिवर्तित भूमि के लगान का निर्धारण
> कोड़कर में बदले जाने के बाद प्रथम कृषि वर्ष की फसल की कटाई के चार वर्ष बाद तक लगान देय नहीं होगा। चार वर्ष की अवधि के उपरांत कोड़कर भूमि पर लगान की दर गाँव में तृतीय वर्ग की धनहर भूमि के लिए प्रचलित दर से अनधिक या रूढ़ि के अनुसार इस दर के आधे से अधिक नहीं होगी।
धारा  68. काश्तकार को बेदखल किया जाना
> किसी भी काश्तकार को किसी डिक्री या उपायुक्त के आदेश के सिवाय उसकी काश्तकारी से बेदखल नहीं किया जा सकता है।
धारा  69 . यदि किसी अधिभोगी या अनधिभोगी रैयत द्वारा उचित तरीके से भूमि का उपयोग नहीं किया जाता है या उसने अधिनियम के किसी शर्त का उल्लंघन किया हो, तो उसे बेदखल किया जा सकता है। परन्तु यदि उसने निर्धारित समयवाधि में आदेश द्वारा निर्धारित प्रतिकर की रकम चुका दी हो, तो उसकी बेदखली रद्द की जा सकती है।
धारा  71. कोई बेदखल काश्तकार बेदखली की तिथि से एक वर्ष (अधिभोगी रैयत की दशा में 3 वर्ष) के भीतर काश्तकारी के कब्जे में प्रतिस्थापित कर दिये जाने की प्रार्थना करते हुए उपायुक्त को आवेदन दे सकता है।
धारा  71 क . विधिविरूद्ध अंतरित भूमि पर अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को पुनः कब्जा वापस दिलाना 
> यदि किसी समय उपायुक्त को पता चल जाये कि अनुसूचित जनजाति के रैयत की जमीन का अंतरण धारा 46 का उल्लंघन करके या कपटपूर्ण तरीके से कराया गया है, तो वह अंतरीति को सफाई देने का उपयुक्त समय प्रदान करेगा तथा अंतरीति को प्रतिकर का भुगतान किए बिना ही जमीन से बेदखल करके अंतरक को भूमि वापस दे सकेगा। 
> अंतरक या उसका कोई वारिस उपलब्ध नहीं होने या ऐसे प्रत्यावर्तन के लिए सहमत न होने की दशा में, उस भूमि को स्थानीय नियम के अनुसार अनुसूचित जनजाति के दूसरे रैयत के साथ पुनर्बदोबस्त कर सकेगा।
> यदि अंतरीति ने अंतरण की तारीख से 30 वर्षों के भीतर ऐसी जोत या उसके किसी भाग पर किसी भवन का निर्माण कर लिया हो और अंतरक उसका मूल्य चुकाने को रजामंद न हो, तो उपायुक्त अंतरीति को 2 वर्ष के भीतर उस भवन को हटाने का आदेश देगा। ऐसा नहीं करने पर उपायुक्त उस भवन को हटवा सकेगा।
> यदि उपायुक्त को यह समाधान हो जाए कि अंतरीति ने बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियम, 1969 लागू होने के पूर्व ही ऐसी जोत पर भवन का निर्माण कर लिया है, तो वह अंतरीति | को आदेश देगा कि वह अंतरक को उसके आस-पास समतुल्य का कोई जोत उपलब्ध करा दे या अंतरक के पुनर्वास के लिए उपायुक्त द्वारा निर्धारित प्रतिकर चुका दे। अंतरीति द्वारा ऐसी शर्तों पर सहमत हो जाने पर वह अंतरण को विधिमान्यता प्रदान कर सकेगा।
> यदि उपायुक्त को यह समाधान हो जाए कि अंतरीति ने कब्जा द्वारा भूमि पर हक अर्जित किया है तथा अंतरित भूमि को अंतरक को पुनर्बंदोबस्त कर देना चाहिए तो अंतरक को उपायुक्त के पास उतनी धनराशि जमा करानी होगी जितनी रकम में भूमि का अंतरण किया गया था अथवा उपायुक्त उस भूमि के बाजार मूल्य तथा भूमि में किए गए सुधारों को ध्यान में रखते हुए प्रतिकर का निर्धारण कर सकेगा।
धारा  71 ख . विधिविरूद्ध अंतरित भूमि के संबंध में दण्ड
> यदि इस अधिनियम की धारा 46 का उल्लंघन करके या कपटपूर्ण तरीके से किसी भूमि का अंतरण किया जाय और अंतरीति को इसकी जानकारी हो, तो अंतरीति तीन वर्ष तक के कारावास या एक हजार रूपये तक जुर्माना या दोनों से दण्डित होगा। अपराध जारी रहने की दशा में, अपराध की अवधि तक अंतरीति को प्रत्येक दिन अधिकतम पचास रूपये अतिरिक्त जुर्माना देना होगा।
धारा  72. रैयत द्वारा भूमि का अभ्यर्पण (surrender)
> यदि कोई रैयत किसी पट्टे या करार से आबद्ध न हो, तो वह किसी कृषि वर्ष के अंत में उपायुक्त की पूर्व मंजूरी से अपने जोत को अभ्यर्पित कर सकता है। परन्तु इस बात की सूचना रैयत द्वारा भूस्वामी को अभ्यर्पण के चार माह पूर्व देनी होगी। यदि वह ऐसी सूचना नहीं देता है तो अभ्यपर्ण के पश्चात् अगले कृषि वर्ष के लिए जोत के लगान का भुगतान भूस्वामी को करना होगा। 
> रैयत द्वारा पट्टे को अभ्यर्पित करने के पश्चात् भूस्वामी उस जोत का पट्टा किसी अन्य काश्तकार को दे सकता है या स्वयं उस पर खेती कर सकता है।
धारा  73. रैयत द्वारा भूमि का परित्याग
> यदि कोई रैयत भूस्वामी को बिना कोई सूचना दिए पट्टे का परित्याग कर दे तथा उस पर स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा खेती करना बंद कर दे। साथ ही उस पर देय लगान का भुगतान भुगतान भी न करे, तो भूस्वामी चालू कृषि वर्ष की समाप्ति के बाद किसी दूसरे रैयत को पट्टा दे सकता है या स्वयं उस पर खेती कर सकता है । 
> कोई अधिभोगी रैयत तीन वर्ष के भीतर तथा अनधिभोगी रैयत एक वर्ष के भीतर उपरोक्त भूमि पर कब्जा वापस करने का आवेदन दे सकता है। यदि उपायुक्त को यह समाधान हो जाए कि रैयत ने जोत का परित्याग स्वेच्छा से नहीं किया है, तो वह बकाया लगान के भुगतान के पश्चात रैयत को भूमि का कब्जा वापस करने हेतु आदेश दे सकता है।
75. भूमि की माप
> किसी संपदा, भूधृत्ति या मुण्डारी खूँटकट्टीदार - काश्तकारी के प्रत्येक भूस्वामी को भूमि का सामान्य सर्वेक्षण तथा इसकी माप करने का अधिकार होगा।
> यदि भूमि के अधिभोगी द्वारा सर्वेक्षण या माप का विरोध किया जाता है, तो भूस्वामी उपायुक्त के पास एक आवेदन देगा तथा उपायुक्त उचित जाँच के पश्चात् इस संबंध मे आवश्यक दिशा-निर्देश देगा।
> अध्याय-11 रूढ़ि और संविदा 
> धारा 
> प्रमुख प्रावधान
धारा  76-79 . इस भाग में रूढ़ि एवं संविदा से संबंधित कई प्रावधान हैं। परीक्षा के दृष्टिकोण से संबंधित प्रावधान अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं। 
> अध्याय-12 अधिकार-अभिलेख (Record of Rights) और लगानों का निर्धारण 
> धारा
> प्रमुख प्रावधान 
धारा  80. सर्वेक्षण करने और अधिकार –अभिलेख तैयार करने का आदेश देने की शक्ति 
> राज्य सरकार किसी राजस्व अधिकारी द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र, संपदा या भृधृत्ति का सर्वेक्षण कराने तथा उसका अधिकार अभिलेख तैयार करने का आदेश दे सकती है।
धारा  81. अभिलिखित की जाने वाली विशिष्टियाँ
> धारा 80 के द्वारा पारित आदेश में काश्तकार का नाम, उसका वर्ग, भूमि की स्थिति व सीमाएं, भूस्वामी का नाम, भुगतेय लगान, लगान निर्धारण की प्रक्रिया तथा अन्य शर्तों का वर्णन होगा। 
धारा  82. जल के विषय में सर्वेक्षण करने तथा अधिकार अभिलेख तैयार करने का आदेश
> राज्य सरकार भूस्वामी, काश्तकारों या अन्य व्यक्तियों के बीच जल के उपयोग या बहाव से संबंधित विवादों का समाधान करने तथा उसका सर्वेक्षण करने का आदेश राजस्व अधिकारी को दे सकती है।
धारा  85. उचित लगान का परिनिर्धारण (settlement of rent)
> किसी क्षेत्र में सर्वेक्षण या अधिकार अभिलेख के आधार पर राजस्व अधिकारी किसी काश्तकार द्वारा धारित भूमि का उचित लगान परिनिर्धारित कर सकेगा।
धारा  86.  लगान परिनिर्धारण के दौरान उठने वाले विवाद / मामले
> लगान के परिनिर्धारण के दौरान उठने वाले किसी विवाद पर राजस्व अधिकारी विचार करते हुए धारा 85 के तहत लगान का परिनिर्धारण करेगा।
धारा  87. राजस्व अधिकारी के समक्ष वादों का संस्थित किया जाना (institution of suits before reveue officer)
> अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के बाद विभिन्न पक्षों के बीच उत्पन्न किसी वाद को राजस्व अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। राजस्व अधिकारी संबंधित मामले को किसी सक्षम न्यायालय को अंतरित कर सकता है।
धारा  89. राजस्व अधिकारी द्वारा पुनरीक्षण (revision by revenue officer)
> राज्य सरकार द्वारा नामित कोई राजस्व अधिकारी आवेदन करने पर या स्वप्रेरणा से अधिकार-अभिलेख के प्रारूप में दी गई किसी प्रविष्टि या आदेश के 12 महीनों के भीतर उसका पुनरीक्षण कर सकेगा।
धारा  90. अधिकार अभिलेखों की भूलों की राजस्व अधिकारी द्वारा शुद्धि
> अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के प्रमाण पत्र की तारीख से 5 वर्षों के भीतर शुद्धि का आदेश दे सकेगा।
धारा  91. अधिकार अभिलेख के आदेश का रोका जाना
> अधिकार अभिलेख की तैयारी के किसी आदेश को अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के पश्चात् छ: माह तक उपायुक्त या सिविल न्यायालय द्वारा रोका नहीं जा सकेगा। 
92. अधिकार अभिलेख संबंधी विषयों में न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन
> अधिकार अभिलेख की तैयारी से संबंधित कोई वाद किसी न्यायालय में नहीं लाया जाएगा। 
धारा  93. अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन तक उपायुक्त या सिविल न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों पर रोक 
> अधिकार अभिलेख के अंतिम प्रकाशन से छः माह तक संबंधित भूमि या उसके किसी काश्तकार को प्रभावित करने वाला कोई आवेदन न तो उपायुक्त को दिया जाएगा और न ही सिविल न्यायालय में कोई वाद दायर किया जाएगा।
धारा  96. करार या समझौते को लागू कराने की राजस्व अधिकारी की शक्ति
> इस अध्याय के अधीन अधिकार अभिलेख तैयार करने और विवादों का विनिश्चय करने में राजस्व अधिकारी किसी भूस्वामी और उसके अभिधारी के बीच किए गये किसी वैध करार या समझौते को कार्यान्वित करेगा।
> अध्याय-13 भूमि संबंधी शर्ते एवं उनका रूपांतरण और अभिलेख
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  101. नयी भूमि संबंधी शर्तों के विरूद्ध प्रतिषेध
> इस अधिनियम के प्रारंभ से और उसके बाद व्यक्तिगत सेवा करने की एकमात्र शर्त पर लगानमुक्त काश्तकारी के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि संबंधी शर्त के साथ काश्तकारी का सृजन नहीं किया जाएगा।
धारा  103. भूमि संबंधी शर्त के वर्तमान मूल्य का निर्धारण
> यदि किसी न्यायालय के लिए किसी भूमि संबंधी शर्त के मूल्य का निर्धारण आवश्यक हो, तो यह पिछले दस वर्षों या उससे कम अवधि का औसत मूल्य माना जाएगा।
धारा  104. लगान तथा भूमि संबंधी शर्तों के मूल्य के लिए वाद की प्रक्रिया
> यदि लगान की वसूली के किसी वाद में, काश्तकारी की भूमि संबंधी शर्तों के मूल्य की वसूली की मांग भी की जाय, तो देखा जाएगा कि भूमि संबंधी शर्तों का मूल्य और देय लगान का योग उचित लगान से अधिक हो जाता है या नहीं। यदि यह राशि उचित लगान से अधिक है तो न्यायालय उचित लगान के संबंध में निर्णय देगा।
धारा  105. भूमि संबंधी शर्तों का स्वेच्छा से रूपांतरण
> यदि कोई भूमि किसी भूमि संबंधी शर्त के अधीन धारित की जाती है तो अभिधारी या भूस्वामी राजस्व अधिकारी के पास उन शर्तों के रूपांतरण हेतु लिखित आवेदन कर सकता है।
> राजस्व अधिकारी इस संबंध में अपने विवेक से रूपांतरण के लिए उचित राशि का निर्धारण कर शर्तों का रूपांतरण कराएगा।
धारा 106 से 117. तक भूमि संबंधी शर्तों, उनके रूपांतरण तथा अभिलेख के संबंध में प्रावधान हैं, जो परीक्षा की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं।
>अध्याय-14 भूस्वामियों की विशेषाधिकारयुक्त भूमि का अभिलेख
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  118. भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि की परिभाषा
> इस धारा के अंतर्गत निम्न प्रकार की भूमियों को भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि माना जाएगा, वैसी भूमि :
» जिसे भूस्वामी अपने स्टॉक (उपकरणों यथा - हल, बैल, ट्रैक्टर आदि) से या अपने सेवकों द्वारा या भाड़े के मजदूरों द्वारा जोतता हो या
» जो किसी अभिधारी द्वारा एक वर्ष से अधिक अवधि के पट्टे पर अथवा एक वर्ष या उससे कम अवधि के लिखित या मौखिक पट्टे पर धारित हो व रूढ़ि द्वारा विशेषाधिकार भूमि माना जाता हो ।
» वैसी भूमि जो राँची और धनबाद जिलों को छोड़कर तथा सिंहभूम जिले के पटमदा, इचागढ़ तथा चांडिल थानों को छोड़कर छोटानागपुर प्रमण्डल में जिरात के रूप में ज्ञात हैं और
» जो धनबाद जिले में एवं सिंहभूम जिले के पटमदा, इचागढ़ और चांडिल थानों में "मान" के रूप में ज्ञात हैं और
» जो छोटानागपुर भूधृति अधिनियम, 1869 के अधीन तैयार किसी रजिस्टर में मंझिहस या बठखेता हैं।
धारा 119 से 123 .  तक भूस्वामी की विशेषाधिकारयुक्त भूमि के सर्वेक्षण तथा अभिलेख से संबंधित प्रावधान हैं।
धारा  124. कुछ भूमि को भूस्वामी के विशेषाधिकारयुक्त भूमि के रूप में अभिलिखित नहीं किया जाना
> जहाँ किसी गाँव में कोई भूमि छोटानागपुर भूधृत्ति अधिनियम, 1869 के अधीन तैयार रजिस्टर में मंझिहस या बठखेता के रूप में दर्ज हो, उस गाँव की अन्य भूमि को भूस्वामी की विशेषाधिकार भूमि के रूप में अभिलिखित नहीं किया जाएगा।
> अध्याय-15 अधिकार अभिलेख तथा खूँटकट्टी अधिकार वाले रैयत, ग्राम मुखिया तथा अभिधारियों के अन्य वर्गों की बाध्यताएँ
> धारा 
> प्रमुख प्रावधान
धारा  127. राज्य सरकार के आदेश से राजस्व अधिकारी द्वारा किसी स्थानीय क्षेत्र में खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत, ग्राम मुखिया, अभिधारियों के किसी वर्ग के अधिकारों या बाध्यताओं का एक अभिलेख तैयार किया जाएगा।
धारा  130. अभिलेख की प्रविष्टि या उसके लोप के संबंध में विवादों के विनिश्चय हेतु वाद 
> यदि इस अध्याय के तहत तैयार अभिलेख की किसी प्रविष्टि की शुद्धता या उसमें से किसी गलत लोप के संबंध में कोई विवाद उठे, तो अभिलेख के अंतिम प्रकाशन के प्रमाण पत्र के तीन माह के भीतर राजस्व पदाधिकारी के समक्ष वाद किया जा सकेगा।
धारा  134. अनभिलिखित भूमि (unrecorded land) का खूँटकट्टी भूमि के वर्ग से अपवर्जन (exclusion) 
> जब किसी स्थानीय क्षेत्र के लिए खूँटकट्टीदार अधिकारयुक्त अभिधारियों के अधिकार तथा बाध्यताओं का अभिलेख तैयार कर लिया जाय, तो उस क्षेत्र की अनभिलिखित भूमि ( ऐसी भूमि जिसे अभिलेख में दर्ज न किया गया हो) के संबंध में खूँटकट्टी अधिकार अर्जित किया जा सकता है।
> अध्याय-16 उपायुक्त द्वारा संज्ञेय विषयों की न्यायिक प्रक्रिया
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  135. उपायुक्त के न्यायालय का स्थान
> इस अधिनियम के अधीन वादों तथा आवेदनों की सुनवाई हेतु उपायुक्त अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किसी भी स्थान पर न्यायालय लगा सकेगा तथा प्रत्येक सुनवाई और विनिश्चय (फैसला) खुले न्यायालय में होगा।
धारा  136. वाद या आवेदन देने का कार्यालय
> उपायुक्त के समक्ष वाद या आवेदन जिले के राजस्व कार्यालय में, उप-कलक्टर के कार्यालय में तथा सक्षम राजस्व अधिकारी के कार्यालय में दिया जा सकेगा।
धारा  138. भूमि के एक से अधिक जिले या अनुमंडल में स्थित होने पर अधिकारिता
> यदि भूमि एक से अधिक जिले या अनुमंडल में स्थित हो, तो संबंधित वाद का निर्णय उस जिले या अनुमंडल में किया जाएगा जहाँ भूमि का ज्यादा भाग स्थित हो।
धारा  139. कतिपय वादों और आवेदनों का उपायुक्त द्वारा संज्ञान लिया जाना
> पट्टों के प्रदान या वचनबंध के प्रतिलेख, अभिधारी द्वारा देय लगान का निर्धारण, कृषि भूमि से किसी काश्तकार को बेदखल करने या कृषि के किसी पट्टे को रद्द करने से संबंधित सभी वादों पर केवल उपायुक्त द्वारा संज्ञान लिया जा सकता है।
धारा  139 क. उपायुक्त की अनन्य अधिकारिता
> अध्याय - 12 के अधीन रहते हुए कोई भी न्यायालय किसी ऐसे वाद को ग्रहण नहीं करेगा जिस पर आवेदन धारा 139 के अधीन उपायुक्त द्वारा संज्ञेय हो और ऐसे किसी आवेदन पर उपायुक्त का निर्णय अंतिम होगा।
धारा  140. सामूहिक वाद या आवेदन
> एक ही ग्राम में भूमि धारण करने वाले अभिधारियों की किसी भी संख्या द्वारा या उनके विरूद्ध कोई वाद या आवेदन सामूहिक रूप से उपायुक्त के पास किया जा सकेगा तथा इसे किसी भी आधार पर उपायुक्त द्वारा खारिज नहीं किया जा सकेगा।
धारा  142. सह- अंशधारी द्वारा लगान के लिए वाद
> सह-अंशधारी भूस्वामी, अभिधारी से लगान के अपने शेयर की वसूली के लिए वाद दे सकेगा। 
धारा  143-168.  धारा 143 से 168 तक वादों के निपटारे, पक्षकारों की पेशी, गवाही, वादों पर निर्णय आदि से संबंधी प्रक्रियाओं का वर्णन है।
धारा  169. अंतिम सुनवाई में पक्षकार का हाजिर न होना
> यदि वाद की अंतिम सुनवाई के दिन दोनों में से कोई पक्षकार हाजिर न हो तो मामले को खारिज कर दिया जायेगा। यदि दोनों में से कोई एक ही पक्षकार हाजिर हो तो, सबूतों के आधार पर निर्णय कर दिया जायेगा। 
धारा  170. निर्णय
> उपायुक्त द्वारा खुले न्यायालय में निर्णय सुनाया जाएगा तथा निर्णय अंग्रेजी में लिखा जाएगा।  
धारा  171. स्थानीय जांच 
> इस अधिनियम के अधीन किसी वाद के संबंध में उपायुक्त किसी पदाधिकारी से स्थानीय जांच कराकर प्रतिवेदन (Report) ले सकेगा। 
धारा  172–176. धारा 172 से 176 तक वादी को प्रतिवादी द्वारा भुगतान से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है। 
धारा  177. लगान के अधिकार का दावा अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाना 
> यदि उपायुक्त के समक्ष अभिधारी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यह अभिवचन किया जाता है कि धारित भूमि पर लगान पाने का अधिकार भूस्वामी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को है, तो ऐसे अन्य व्यक्ति को वाद का पक्षकार बना दिया जायेगा।
धारा  178. अनधिभोगी रैयत की बेदखली के लिए वाद
> किसी अनधिभोगी रैयत द्वारा लगान का भुगतान न किये जाने पर इच्छुक भूस्वामी एक ही वाद में पट्टा रद्द करने या बेदखली तथा बकाए की वसूली का वाद ला सकेगा। 
धारा  178क. कब्जा के पूर्व जोत की उपज में अनधिभोगी रैयत का अधिकार
> यदि किसी अनधिभोगी रैयत के विरूद्ध धारा 178 के तहत बेदखली का आदेश जारी किया गया हो, तो न्यायालय द्वारा कब्जा देने के पूर्व अनधिभोगी रैयत को संबंधित जोत पर अपने द्वारा उपजायी गई फसल को काटने का अधिकार होगा।
धारा  179. भूस्वामी द्वारा पट्टा नहीं देने पर उपायुक्त की रैयत को पट्टा देने की शक्ति
> यदि किसी रैयत को पट्टा देने का आदेश जारी कर दिया जाय और भूस्वामी आदेश की तारीख के पश्चात् तीन माह तक रैयत को पटा देने में असफल रहे, तो उपायुक्त अपने हस्ताक्षर से रैयत को पट्टा दे सकेगा।
धारा  180. उपायुक्त की डिक्रियों और आदेशों का लागू किया जाना
> उपायुक्त द्वारा पारित डिक्री या आदेश के निष्पादन के लिए कोई भी आवेदन आदेश की तारीख से तीन माह के भीतर ही लिया जा सकेगा।
धारा  181-185.  धारा 181 से 185 तक उपायुक्त की डिक्री और आदेशों के निष्पादन से संबंधित प्रावधान हैं, जो परीक्षा की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं।
धारा  186. कुर्की और विक्रय से छूट
> उपायुक्त द्वारा जारी किसी आदेश को लागू करने में निम्नलिखित को कुर्की तथा विक्रय से छूट प्राप्त होगी:–
(क) निर्णीत-ऋणी एवं उसकी पत्नी व बच्चों के पहनने के वस्त्र और बिस्तर
(ख) निर्णीत-ऋणी की आजीविका के लिए आवश्यक कृषि कर्म के औजार व उपकरण, उसके मवेशी तथा बीज ।
(ग) कृषक के घर की सामग्री तथा भवन
(घ) लेखा-बही।
(ड.) श्रमिकों तथा घरेलू सेवकों की मजदूरी ।
(च) भावी भरण-पोषण का अधिकार |
धारा  186क. डिक्रियों के निष्पादन पर प्रतिबंध
> किसी डिक्री के निष्पादन में किसी रैयत या दर रैयत को कारागार में निरूद्ध नहीं किया जाएगा। साथ ही उसके दखल घर तथा अन्य भवन एवं उनकी सामग्रियों तथा उनसे सटी और उपभाग के लिए आवश्यक भूमि की बिक्री नहीं की जा सकेगी।
धारा  188. निष्पादन वारंट के प्रभाव की समयावधि
> किसी निष्पादन वारंट का प्रभाव उपायुक्त द्वारा निश्चित अवधि तक ही होगा। यह अवधि वारंट पर उपायुक्त के हस्ताक्षर से अधिकतम साठ दिन तक होगी।
धारा  191. निर्णीतऋणी को गिरफ्तार कर लिये जाने पर प्रक्रिया
> किसी धन के भुगतान संबंधी डिक्री के निष्पादन में किसी निर्णीत- ऋणी को गिरफ्तार किया जा सकता है यदि:
» वह तुरंत पूरी राशि न्यायालय में जमा न कर दे या
» लेनदार को भुगतान की राशि का इंतजाम न कर दे या
» उपायुक्त को यह समाधान न करा दे कि उसके पास भुगतान का कोई वर्तमान साधन नहीं है। 
> गिरफ्तार ऋणी को पचास रूपये तक की धनराशि के भुगतान हेतु अधिकतम छह सप्ताह तक तथा इससे अधिक की धनराशि के भुगतान हेतु अधिकतम छह माह तक ही जेल में रखा जा सकता है।
धारा  192. जेल से मुक्त होने पर आगे की कार्यवाहियां
> जब कोई निर्णीत ऋणी सिविल जेल से मुक्त कर दिया गया हो, तो उसे उसी डिक्री या आदेश के लिए दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।
> यदि डिक्री अधिकतम पचास रूपये के लिए हो जेल से मुक्त व्यक्ति को उपायुक्त उसके दायित्व से मुक्त घोषित कर सकता है।
> पचास रूपये से अधिक रूपये की डिक्री के संबंध में डिक्री के निष्पादन हेतु जेल से मुक्त व्यक्ति की संपत्ति को कुर्क किया जा सकता है।
धारा  193. बंदियों के निर्वाह के लिए आहार - धन
> जिस व्यक्ति ने निर्णीत ऋणी के वारंट हेतु आवेदन दिया हो, वह वारंट जारी किये जाने के समय बंदी के जीवन-निर्वाह हेतु न्यायालय में तीस दिनों के लिए उपायुक्त द्वारा निर्धारित दर से आहार - धन जमा करायेगा।
> जब तक ऋणी को जेल में बंद रखा जाता है तब तक वह व्यक्ति माह के प्रारंभ में उसी दर से आहार-धन का भुगतान करेगा।
> किसी बंदी के निर्वाह हेतु व्यय किए गये आहार - धन को वाद खर्चों में जोड़ा जाएगा। 
धारा  194. कृषक की बेदखली या कब्जा दिलाने के आदेश का निष्पादन
> किसी कृषक को किसी भूमि से बेदखल करने या उसको भूमि का कब्जा दिलाने से संबंधित आदेश का निष्पादन हकदार व्यक्ति को भूमि का कब्जा या दखल दिलाकर किया जायेगा। 
> यदि कोई व्यक्ति जिसके विरूद्ध आदेश पारित किया गया हो, इस आदेश के निष्पादन का विरोध करता है, तो उपायुक्त अपनी मजिस्ट्रेट की शक्तियों का प्रयोग करते हुए आदेश को लागू कराएगा।
धारा  195. वास्तविक कृषक से भिन्न अभिधारी के पट्टे का रद्दकरण, बेदखली या पुनःस्थापन 
> यदि किसी वास्तविक कृषक से भिन्न अभिधारी के विरूद्ध पटट् को रद्द करने या अभिधारी की बेदखली या किसी अभिधारी को उस भूमि का कब्जा दिलाने का आदेश हो तो :
» इसकी उदघोषणा संबंधित कृषकों या अभिधारियों में डोंगी पिटवाकर की जाएगी या 
» आदेश की अधिसूचना संबंधित भूमि के भीतर या अन्य किसी सहज स्थान पर चिपकाया जाएगा।
धारा  196. अविभक्त सपंदा या भूधृत्ति के अंशधारी के पक्ष में दी गयी लगान की डिक्री का निष्पादन 
> यदि उपायुक्त द्वारा किसे अविभक्त संपदा या भूधृत्ति के अंशधारी के पक्ष में लगान की डिक्री हेतु आदेश दिया जाता है, तो ऐसी भूधृत्ति की बिक्री के लिए आवेदन तब तक प्राप्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसका निष्पादन, उस जिले के भीतर जहां वाद दिया गया हो, निर्णीत-ऋणी की जंगम संपत्ति (movable property) के विरूद्ध न कर लिया जाय। 
धारा  198. कतिपय दशाओं में स्थावर संपत्ति (immovable property) के विरूद्ध निष्पादन 
> किसी ऐसे धन के भुगतान के लिए, जो लगान के बकाये के रूप में वसूलनीय हो तथा ऋणी के शरीर या जंगम संपत्ति (movable property ) के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती हो, तो निर्णीत-लेनदार ऐसे ऋणी की किसी स्थावर संपत्ति (immovable property) के विरूद्ध निष्पादन का आवेदन कर सकेगा।
धारा  200. अभिग्रहण (acquisition) और विक्रय के बीच अंतराल
> इस अध्याय के अधीन किसी जंगम संपत्ति (movable property) के अभिग्रहण (acquisition) तथा उसकी बिक्री के बीच कम से कम 10 दिनों का अंतराल अवश्य होना चाहिए । 
धारा  202. अधिकारियों द्वारा खरीद का प्रतिषेध
> इस अध्याय के अधीन बिक्री की जाने वाली संपत्तियों की खरीद वारंट का निष्पादन करने वाले अधिकारी और उसके किसी अधीनस्थ द्वारा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः नहीं किया जाएगा।
धारा  206.अभिगृहीत संपत्ति में अन्य व्यक्ति द्वारा हित का दावा किया जाना
> यदि किसी अभिगृहीत किए जाने वाले जंगम संपत्ति (movable property) में कोई अन्य व्यक्ति हित का दावा करे, तो उपायुक्त इस संबंध में जाँच करेगा तथा संपत्ति का विक्रय रोक देगा, यदि उसे ऐसा करने का पर्याप्त कारण दिखाई पड़े ।
> यदि दावेदार निष्पादन की जाने वाली संपत्ति पर अपना अधिकार सिद्ध करने में असफल रहे तो उपायुक्त दावेदार को कार्यवाहियों का खर्च वहन करने का आदेश देगा।
धारा  208. लगान के बकाये की डिक्री के निष्पादन में भूधृत्ति या जोत की बिक्री
> जब किसी जोत के बकाये लगान हेतु उपायुक्त द्वारा कोई डिक्री पारित की जाय, तो डिक्रीदार ऐसी जोत की बिक्री हेतु आवेदन कर सकेगा और इसे बेचा जा सकेगा।
> इस बिक्री की प्रक्रिया में जब किसी आदिवासी या अनुसूचित जाति के रैयत की जोत की बिक्री की जाय, तो ऐसी भूमि की बिक्री सबसे उंची बोली लगाने वाले ऐसे व्यक्ति को बेची जाएगी, जो आदिवासी या अनुसूचित जाति का सदस्य हो । आदिवासी या अनुसूचित जाति से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को तब तक जोत की बिक्री नहीं की जा सकेगी, जब तक कि बोली लगाने वाले आदिवासी या अनुसूचित जाति के सदस्य ने उद्घोषणा में उल्लिखित राशि से कम की बोली न लगायी हो ।
धारा  210. जोत के लगान के बकाये हेतु अन्य संपत्ति का विक्रय
> यदि किसी भूधृत्ति या जोत के विक्रय के बाद भी डिक्री की गई रकम का कोई अंश देय रह जाए, तो निर्णीत ऋणी की किसी अन्य जंगम (movable) या स्थावर (immovable) संपत्ति का विक्रय कर बकाया रकम का भुगतान किया जाएगा। 
धारा  211. जब अन्य व्यक्ति भूधृत्ति या जोत पर विधिपूर्ण कब्जा रखने का दावा करे
> यदि किसी भूधृत्ति या जोत की बिक्री के नियत दिन के पूर्व, कोई व्यक्ति उपायुक्त के समक्ष यह दावा करे कि डिक्री की प्राप्ति के समय उस व्यक्ति का जोत पर विधिपूर्ण कब्जा था, तो उपायुक्त ऐसे पक्षकार का परीक्षण करेगा। यदि ऐसा पक्षकार डिक्री की रकम न्यायालय में जमा कर दे तो उपायुक्त बिक्री रोक देगा और साक्ष्य लेने के बाद दावे का न्याय निर्णय करेगा।
धारा  212. ऋण की राशि तथा क्रेता को दिये जाने वाले प्रतिकर की राशि जमा कर देने पर स्थावर संपत्ति के विक्रय को अपास्त करने का आवेदन
> यदि किसी डिक्री के निष्पादन में किसी स्थावर संपत्ति (immovable assets) का विक्रय कर दिया गया हो, तो कोई ऐसा व्यक्ति जो विक्रय के ठीक पहले ऐसी संपत्ति पर स्वामित्व रखता हो या विक्रय के पूर्व विधिपूर्वक अर्जित किसी हक के अधीन उसमें दावा करता हो, विक्रय की तारीख के 90 दिनों के भीतर उपायुक्त के न्यायालय में उक्त विक्रय को अपास्त करने हेतु आवेदन दे सकेगा।
धारा  213. अनियमितता या कपट के आधार पर स्थावर संपत्ति के विक्रय को अपास्त करने हेतु आवेदन
> यदि किसी डिक्री के निष्पादन में किसी संपत्ति का विक्रय कर दिया गया हो, तो विक्रय के तुरंत पूर्व ऐसी संपत्ति पर स्वामित्व रखनेवाला व्यक्ति विक्रय की तारीख से तीस दिनों के भीतर उपायुक्त के पास इसके प्रकाशन या संचालन में अनियमितता या कपट के आधार पर विक्रय को अपास्त करने हेतु आवेदन दे सकेगा।
धारा  215. उपायुक्त के आदेश के विरूद्ध अपील
> धारा 139 के अधीन उपायुक्त द्वारा विचारित वादों में एक सौ रूपये तक की वादग्रस्त राशि हेतु उपायुक्त का आदेश अंतिम होगा।
> सौ रूपये से अधिक तथा पांच हजार रूपये से कम रकम के वाद में उपायुक्त के आदेश के विरूद्ध अपील न्यायिक आयुक्त के पास की जा सकेगी तथा पांच हजार से अधिक की वादग्रस्त राशि से संबंधित निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी। 
धारा  217. बोर्ड या आयुक्त द्वारा पुनरीक्षण को छोड़कर और अपीलों का वर्जन
> धारा 215 के अधीन की गयी अपील में आयुक्त या उपायुक्त द्वारा पारित आदेश पर आगे कोई अपील नहीं की जाएगी। उपायुक्त द्वारा पारित आदेश पर आयुक्त या बोर्ड कोई ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जैसा वह उचित समझे।
धारा  220. अपील कब सुनी जाएगी
> उपायुक्त या आयुक्त द्वारा अपील की सुनवाई के लिए एक तारीख नियत की जाएगी। 
> यदि अपील की सुनवाई की तारीख को अपीलकर्ता स्वयं या उसका अभिकर्ता (agent) हाजिर न हो, तो अपील खारिज कर दी जाएगी।
> यदि सुनवाई की तारीख को अपीलकर्ता हाजिर हो तथा दूसरा पक्ष हाजिर न हो, तो अपील की एकपक्षीय सुनवाई कर दी जाएगी ।
धारा  221. अपील का पुनर्गहण
> यदि अपील खारिज किये जाने के तीस दिनों के भीतर अपीलार्थी यह साबित कर दे कि अपील की सुनवाई के समय वह किसी पर्याप्त कारण से हाजिर नहीं हो पाया था, तो उपायुक्त या आयुक्त अपील की पुनः सुनवाई कर सकेगा। 
धारा  222. एकपक्षीय डिक्री पारित किये जाने पर अपील की पुनः सुनवाई
> यदि प्रत्यार्थी (दूसरा पक्ष) की अनुपस्थिति में अपील पर एकपक्षीय सुनवाई कर दी जाए तो प्रत्यार्थी अपीली न्यायालय में पुनः सुनवाई के लिए आवेदन दे सकता है। 
> यदि प्रत्यार्थी अपीली न्यायालय का यह समाधान करा दे कि उसे सुनवाई की सूचना नहीं दी गयी थी अथवा किन्हीं पर्याप्त कारणों से वह सुनवाई में हाजिर नही हो पाया था, तो न्यायालय अपील की पुनः सुनवाई कर सकेगा। 
धारा  224. न्यायिक आयुक्त या उच्च न्यायालय के पास अपील
> न्यायिक आयुक्त द्वारा पारित किसी डिक्री या धारा 215 के अधीन अपील पर पारित किसी आदेश के विरूद्ध इस आधार पर द्वितीय अपील की जा सकेगी कि विनिश्चय (निर्णय) किसी विधि के प्रतिकूल है।
धारा  225. उपायुक्त के बदले न्यायिक आयुक्त द्वारा अपीलों पर सुनवाई
> जहाँ कुछ अपील उपायुक्त तथा कुछ अपील न्यायिक आयुक्त के समक्ष रखी गयी हो तो न्यायिक आयुक्त पक्षकारों में से किसी के आवेदन करने पर, उपायुक्त के न्यायालय में लंबित अपीलों को अपने न्यायालय में अंतरित कर सकेगा।
धारा  229. सिविल प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची के आदेश 41 के नियम 22 का लागू होना 
> सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की प्रथम अनुसूची के आदेश 41 के नियम 22 के उपबंध, जहां तक लागू हो सकें, इस अधिनियम के अधीन उपायुक्त या राजस्व पदाधिकारी के विनिश्चयों पर सभी अपील में लागू होंगे।
> अध्याय-16 क बिहार और उड़ीसा लोक मांग वसूली अधिनियम, 1914 के अधीन लगानों के वूसली की संक्षिप्त प्रक्रिया
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  229 क . कतिपय दशाओं में प्रमाण पत्र प्रक्रिया के अधीन लगान के बकाये की वसूली
> सरकार से भिन्न कोई भूस्वामी बकाया लगान की वसूली के लिए बिहार और उड़ीसा लोक मांग वसूली अधिनियम, 1914 द्वारा विहित प्रक्रिया को लागू करने के लिए आवेदन कर सकेगा तथा राज्य सरकार ऐसे किसी आवेदन को स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकेगी। 
> अध्याय - 17 परिसीमा (Limitation)
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  230. भारतीय परिसीमा अधिनियम, 1908 का लागू होना
> भारतीय परिसीमा अधिनियम, 1908 के उपबंध, जहां तक वे इस अधिनियम से असंगत न हों, इस अधिनियम के अधीन सभी वादों, अपीलों और आवेदनों पर लागू होंगे।
धारा  231. परिसीमा का साधारण नियम
> इस अधिनियम के अधीन संस्थित सभी वाद या आवेदन, जिनके लिए अधिनियम में परिसीमा की कोई समयावधि उपबंधित नहीं हैं, वाद के प्रोद्भूत होने की तारीख से एक वर्ष के भीतर संस्थित और दाखिल किये जायेंगे।
धारा  232. पट्टों आदि के अनुदान के लिए वादों और आवेदनों की परिसीमा
> पट्टे आदि के अनुदान हेतु वाद या आवेदन किसी भी समय संस्थित और दाखिल किये जायेंगे। 
धारा  233. बेदखली के लिए वादों की परिसीमा
> किसी आधार पर अधिभोगी या अनधिभोगी रैयत की बेदखली के लिए वाद, दुरूपयोग या भंग की तारीख से दो वर्षों के भीतर संस्थित किये जायेंगे।
धारा  234. लगान के बकाये के लिए वादों और आवेदनों की परिसीमा
> लगान के बकाये की वसूली के लिए वाद और आवेदन बकाया से संबंधित कृषि वर्ष के तीन वर्षों के भीतर संस्थित किये जायेंगे।
धारा  236. धन, लेखा या कागज पत्र के लिए एजेंटों के विरूद्ध वादों की परिसीमा
> किसी एजेंट के जिम्मे धन वसूली या लेखा अथवा कागज-पत्र के परिदान के लिए वाद, ऐसे एजेंट के पर्यवसान के एक के वर्ष भीतर लाया जा सकता है।
धारा  237. जोत का कब्जा वापस पाने के लिए आवेदन की परिसीमा
> यदि किसी जोत से अधिभोगी रैयत को बेदखल कर दिया गया हो, तो उसका कब्जा वापस पाने हेतु आवेदन बेदखली की तारीख से तीन वर्षों के भीतर अवश्य दे दिया जाएगा।
धारा  238.  ग्राम मुखिया द्वारा कब्जे की वापसी के लिए वादों या आवेदनों की परिसीमा
> किसी कृषि भूमि का कब्जा वापस पाने हेतु किसी ग्राम मुखिया द्वारा वाद या आवेदन बेकब्जा की तारीख से तीन वर्ष के भीतर अवश्य दे दिया जाएगा।
> अध्याय-18 मुण्डारी खूँटकट्टीदारों के विषय में विशेष उपबंध '
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  239.  मुण्डारी खूँटकट्टीदार काश्तकारियों पर पूर्ववर्त्ती धाराओं का लागू होना
> वे पूर्ववर्त्ती धाराएं जो मुण्डारी खूँटकट्टीदारों पर लागू होने योग्य हैं, उन व्यक्तियों और उनकी काश्तकारियों पर लागू करने में, इस अध्याय की अगली धाराओं के अधीन गठित की जायेगी।
धारा  240.  मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारियों के अंतरण पर प्रतिबंध
> कोई मुण्डारी खूँटकट्टीदारी अभिधृत्ति या उसका भाग न्यायालय की डिक्री या आदेश के निष्पादन में विक्रय द्वारा हस्तान्तरणीय नहीं होगा। परन्तु, छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1903 के प्रारंभ के पूर्व रजिस्ट्रीकृत किसी बंधक (भोगबंधक से भिन्न ) के अधीन देय ऋण के समाधान में किसी काश्तकारी या उसके भाग के विक्रय के लिए किसी न्यायालय द्वारा डिक्री या आदेश किया गया हो, तो विक्रय उपायुक्त की पूर्व मंजूरी से किया जा सकेगा। 
> यदि उपायुक्त ऐसी किसी अभिधृत्ति या उसके भाग के विक्रय की मंजूरी देने से इंकार कर दे, तो वह उस भूमि को कुर्क कर लेगा तथा ऋण के समापन के लिए उचित इंतजाम करेगा। 
> मुण्डारी खूँटकट्टीदारी अभिधृत्ति या उसके किसी भाग का कोई बंधक जो भुगतबंध बंधक के रूप में सात वर्षों से अधिक न हो, विधिमान्य नहीं होगा।
> परती भूमि के मुकर्ररी पट्टे, जो मुण्डारी या मुण्डारियों के किसी समुदाय को भूमि के उपयुक्त भागों पर खेती करने हेतु दिये गए हों या किसी मुण्डारी खेतिहर को रैयत के रूप में खेती करने हेतु दिया गया हो, इसके सिवाय मुण्डारी खूँटकट्टीदारी अभिधृत्ति या उसके किसी भाग का कोई पट्टा विधिमान्य नहीं होगा।
( स्पष्टीकरण "परती भूमि" का तात्पर्य ऐसी भूमि से है, जो पहले जोत में थी, फिर भी जिस समय पट्टा दिया गया, उस समय न तो जोत में थी या न खेती के लिए पट्टेदार के अधिभोग में थी। )
> यदि कोई अभिधृत्ति मुण्डारी खूँटकट्टीदारों के समुदाय द्वारा धारित हो, तो अभिधृत्ति का कोई भुगतबंध बंधक या मुकर्ररी पट्टा तब तक विधिमान्य नहीं होगा जब तक कि यह सभी मुण्डारी खूँटकट्टीदारों की सहमति से न किया जाय।
> किसी मुण्डारी खूँटकट्टीदारी अभिधृत्ति या उसके किसी भाग का, पूर्ववर्ती उपधाराओं में उप. बंधित से अन्यथा किए गए किसी करार द्वारा कोई अंतरण विधिमान्य नहीं होगा। 
> पूर्ववर्ती उप-धाराओं की किसी बात से किसी विक्रय पर, उप-धारा (1) के परन्तुक में यथाघोषित के सिवाय, छोटानागपुर काश्तकारी (संशोधन) अधिनियम, 1903 के प्रारंभ के पूर्व किये गये किसी विक्रय या बंधक पटट्टे पर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
धारा  241. कतिपय प्रयोजनों के लिए अंतरण
> धारा 240 में अंतर्विष्ट किसी बात के होने पर भी, कोई मुण्डारी खूँटकट्टीदार अपने भूस्वामी की सहमति के बिना भी काश्तकारी या संपदा की भलाई हेतु निम्न प्रयोजनों से अंतरित कर सकेगा: –
» किसी खैराती, धार्मिक या शैक्षिक प्रयोजनों से अथवा
» विनिर्माण या सिंचाई के प्रयोजनों से अथवा
» ऐसे किसी प्रयोजन के लिए प्रयुक्त भूमि तक पहुंच के लिए
> इस प्रकार के अंतरण हेतु सहमति देने से पूर्व उपायुक्त यह समाधान कर लेगा कि अंतरण द्वारा हुई हानि के लिए भूस्वामी या सह अंशधारियों को पर्याप्त प्रतिकर दे दिया गया है।
धारा  242. ऐसी काश्तकारी का विधि विरूद्ध कब्जा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की बेदखली
> यदि कोई व्यक्ति किसी मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी या उसके किसी भाग का कब्जा धारा 240 के उपबंधों का उल्लंघन करके प्राप्त कर ले तो उपायुक्त उसे वहां से बेदखल कर सकेगा।
धारा  243. लगान में वृद्धि
> किसी मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी का लगान केवल निम्नलिखित दशाओं में ही बढ़ाया जा सकेगा:
» उपायुक्त के आदेश से, तथा
» यदि उपायुक्त के समय यह साबित कर दिया जाय कि लगान वृद्धि की अर्जी के ठीक पहले के बीस वर्षों की अवधि के भीतर काश्तकारी सृजित की गयी थी।
> उपायुक्त के आदेश से ऐसी काश्तकारी का लगान देय लगान के आधे से अधिक नहीं बढ़ाया जाएगा।
धारा  244. प्रमाण पत्र प्रक्रिया के अधीन लगान के बकाये की वसूली
> अधिकार अभिलेख तैयार होने के बाद यदि किसी मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी का लगान बकाया हो तो ऐसी बकाये की वसूली के लिए किसी न्यायालय में वाद नहीं चल सकता। परन्तु भूस्वामी लिखित रूप में उपायुक्त के पास यह आवेदन कर सकेगा कि 12.50 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज के साथ उसकी वसूली करने वाला प्रमाण-पत्र हस्ताक्षरित किया जाय।
धारा  245. स्वत्व के प्रश्न का सिविल न्यायालय में निर्देश
> यदि धारा 244 के अधीन किसी कार्यवाही में कोई स्वत्व का प्रश्न उठाया जाय और उपायुक्त की राय में इसका अवधारण सिविल न्यायालय में अधिक उचित ढंग से किया जा सकता हो, तो उपायुक्त ऐसे प्रश्न को अवधारण के लिए जिले के प्रधान सिविल न्यायालय में निर्दिष्ट कर देगा।
धारा  246. अधिकार अभिलेख के अभाव में लगान बकाये की वसूली वाद द्वारा किया जाना
> यदि किसी मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी के बकाये लगान के संबंध में अधिकार अभिलेख तैयार नहीं किया गया हो, तो भूस्वामी बकाये की वसूली हेतु वाद दे सकेगा। 
> ऐसे किसी वाद में दी गयी डिक्री या आदेश का प्रवर्तन केवल प्रतिवादी की जंगम संपत्ति की कुर्की व बिक्री द्वारा या अन्य ऋणों की कुर्की व वसूली द्वारा या प्रतिवादी के शरीर के विरूद्ध निष्पादन द्वारा किया जा सकेगा।
धारा  247. धारा 244 या 246 के अधीन कार्यवाहियों का संयोजन 
> यदि कोई मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी खूँटकट्टीदारों के समूह द्वारा संयुक्त रूप से धारित हो और धारा 244 के अधीन प्रमाण-पत्र दिये जाने पर अथवा धारा 246 के अधीन वाद चलाये जाने पर इस आधार पर आपत्ति की जाती है कि सभी खूँटकट्टीदारों को कार्यवाही का पक्षकार नहीं बनाया गया है, तो आपत्ति नहीं मानी जाएगी ।
धारा  248. सरकार को देय धन या भूस्वामी को देय लगान की वसूली
> जहां किसी मुण्डारी खुँटकट्टीदार के विरूद्ध सरकार को देय किसी धन अथवा किसी भूस्वामी को देय लगान के लिए बिहार - उड़ीसा लोक मांग वसूली अधिनियम, 1914 के अधीन डिक्री या प्रमाण-पत्र दिया जाए वहां उपायुक्त उसके द्वारा दखल की हुई ऐसी भूमि की कुर्की कर सकेगा।
धारा  249. सह- अंशधारी काश्तकारों से अंशदान की वसूली
> यदि किसी मुण्डारी खूँटकट्टीदार ने अपनी काश्तकारी का लगान सह- अंशधारियों के अं सहित चुका दिया हो, तो सह-अंशधारियों से ब्याज सहित उक्त अंश की वसूली की जाएगी।
धारा  250. अधिकार अभिलेख में मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारियों की प्रविष्टि 
> सभी मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारियों की प्रविष्टि अध्याय 12 के अधीन तैयार अभिलेख में इसी प्रकार वर्णित रहेंगी।
धारा  251. धारा 87 के अधीन वादों का वर्जन
> अधिकार-अभिलेख में मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी के संबंध में किसी प्रविष्टि के संबंध में कोई वाद विनिश्चय के लिए धारा 87 के अधीन ग्रहण नहीं किया जाएगा। 
धारा  252. अधिकार-अभिलेख में प्रविष्टि या लुप्ति विषयक विवादों का विनिश्चय 
> इस अधिनियम के अधीन अधिकार - अभिलेख के अंतिम प्रकाशन की तारीख से तीन माह के भीतर मुण्डारी खूँटकट्टीदारी काश्तकारी की किसी प्रविष्टि या किसी लुप्ति से संबंधित कोई वाद निर्णय हेतु राजस्व पदाधिकारी के समक्ष लाया जा सकेगा।
धारा  253. विनिश्चयों के विरूद्ध अपील
> धारा 252 के अधीन राजस्व पदाधिकारी के विनिश्चय ( निर्णय) की अपील विहित रीति से विहित पदाधिकारी के पास हो सकेगी।
धारा  254. अधिकार अभिलेख में विनिश्चयों की प्रविष्टि
> जब धारा 252 के अधीन लाये गये वाद का अंतिम रूप से विनिश्चय हो जाय तब उसे राजस्व पदाधिकारी द्वारा अंतिम रूप से प्रकाशित अधिकार अभिलेख में शामिल किया जाएगा। 
धारा  255. अधिकार अभिलेख तैयार करने में वाद के निर्णय आदि को साक्ष्य के रूप में ग्रहण नहीं किया जाना
> बंगाल काश्तकारी अधिनियम, 1885 के अधीन किसी स्थानीय क्षेत्र, संपदा, भूधृत्ति या उसके किसी भाग से संबंधित आदेश निकाला जाय, तो अधिकार - अभिलेख की तैयारी में लगे राजस्व अधिकारी द्वारा इस दावे के बारे में की गयी किसी जाँच में साक्ष्य के रूप में नहीं लिया जाएगा | कि उक्त क्षेत्र, संपदा, भूधृत्ति या भाग मुण्डारी खूँटकट्टीदारी है या नहीं। 
> अध्याय - 19 अनुपूरक उपबंध
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  257. संयुक्त भूस्वामी
> जब दो या दो से अधिक भूस्वामी हों, तो भूस्वामी से अपेक्षित सभी कार्य उन सभी व्यक्तियों द्वारा या प्राधिकृत अभिकर्ता (agent) द्वारा किया जायेगा।
धारा  258. कतिपय दशाओं में वादों का वर्जन 
> इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से उपबंधित धाराओं के सिवाय, धारा 20, 32, 35, 42, 46, 49, 50, 54, 61, 63, 65, 73, 74क, 75, 85 86 87 89, 91 या अध्याय 13, 14, 15, 16, 18 के अधीन किसी वाद में उपायुक्त या किसी राजस्व पदाधिकारी के आदेश को परिवर्तित या अपास्त करने के लिए कोई वाद ग्रहण नहीं किया जाएगा।
धारा  263. साक्षियों या दस्तावेजों का पेश किया जाना
> इस अधिनियम के अधीन किसी उपायुक्त या राजस्व पदाधिकारी को सम्मन करने एवं साक्ष्यों को हाजिर करने की वही शक्ति प्राप्त है, जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत न्यायालय को है।
धारा  264. अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नियम बनाने की शक्ति
> राज्य सरकार इस अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न नियम बना सकेगी। 
धारा  265. सिविल प्रक्रिया संहिता की प्रक्रिया लागू करने के संबंध में नियम बनाने की शक्ति 
> राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन उन बातों के संबंध में जिनके लिए इसके द्वारा कोई प्रक्रिया उपबंधित नहीं की गई है, उपायुक्त की प्रक्रिया विनियमित करने के लिए नियम बना सकेगी।
धारा  268. देय धन की वसूली
> लगान के वादों में अधिनिर्णित खर्चे और ब्याज लगान के बकाये की भांति वसूल किये जाएंगे। 
धारा  269. एक राजस्व अधिकारी से अन्य राजस्व अधिकारी के पास वादों का अंतरण
> कोई राजस्व पदाधिकारी इस अधिनियम के अधीन लंबित किसी वाद, आवेदन या कार्यवाही को इस अधिनियम में अधीन कार्य करने वाले किसी अन्य प्राधिकृत राजस्व अधिकारी की संचिका में किसी भी समय अंतरित कर सकेगा।
धारा  270. उपायुक्तों और उप-कलक्टरों पर नियंत्रण
> इस अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले उपायुक्त, आयुक्त तथा बोर्ड के निदेश और नियंत्रण के अधीन रहेंगे तथा उपायुक्त के कृत्यों का निर्वहन करने वाले उप-कलक्टर भी उपायुक्त के निदेश और नियंत्रण के अधीन रहेंगे। 
धारा  271. विशेष अधिनियमितियों की व्यावृत्ति (Exclusiveness)
> इस अधिनियम की कोई बात किसी विधि द्वारा परिभाषित बंदोबस्त पदाधिकारियों की शक्तियों एवं कर्त्तव्यों को प्रभावित नहीं करेगी।
> अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
> 11 नवंबर, 1908 * को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम को लागू कर दिया गया। इस अधिनियम को भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892 की धारा-5 के अधीन गवर्नर जनरल की मंजूरी से अधिनियमित किया गया।
> छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम का खाका (Blueprint) एक अंग्रेज जॉन एच. हॉफमैन ने तैयार किया था। 
> छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम मुख्यतः बंगाल काश्तकारी अधिनियम से प्रभावित है। 
> इसे सबसे पहले कलकत्ता गजट में प्रकाशित किया गया था।
> यह अधिनियम कुल 19 अध्यायों में विभाजित है तथा इसमें 271 धाराएँ हैं।
> CNTAct का उद्देश्य 
1. छोटानागपुर में भूमि संबंधी विवादों को समाप्त करना। 
2. जनजाति विद्रोहों को नियंत्रित करना । 
3. जनजाति समुदायों के भूमि संबंधी अधिकारों की रक्षा करना।
4. जनजातियों को भूमि संबंधी मालिकाना हक प्रदान करना।
> भारतीय संविधान के 66वें संशोधन (1990) के द्वारा छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम की कुछ धाराओं को भारतीय संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती तथा संसद को ही इसमें संशोधन करने का अधिकार है। 
> इस अधिनियम की धारा 49 के तहत जनजातीय भूमि का हस्तांतरण या विक्रय उद्योग, खनन एवं कृषि कार्य हेतु गैर-जनजाति को किया जा सकता है।
> झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2016 में इस अधिनियम की धारा 49 में संशोधन प्रस्तावित है, जिसके आलोक में अब उद्योग और खनन कार्यों के अतिरिक्त आधारभूत संरचना, रेल परियोजना, कॉलेज, ट्रांसमिशन लाइन आदि कार्यों के लिए भी सरकार जमीन ले सकेगी। साथ ही सरकार अब विकास हेतु निगम कंपनियों के लिए भी जमीन का अधिग्रहण कर सकेगी।
> इस अधिनियम की धारा 71 (क) के अनुसार किसी जनजातीय भूमि का किसी गैर-जनजाति को अंतरण किये जाने पर′उसे वापस दिलाने का प्रावधान किया गया है। इस धारा के तहत क्षतिपूर्ति के द्वारा किसी जनजातीय जमीन को गैर-जनजाति को अंतरित किया जा सकता था । परन्तु झारखण्ड सरकार द्वारा वर्ष 2016 में प्रस्तावित संशोधन के द्वारा अब क्षतिपूर्ति के आधार पर ऐसा नहीं किया जा सकेगा। साथ ही जमीन वापसी के मुकदमे एस. ए. आर. कोर्ट में दायर होंगे।
> 1969 में अवैध भूमि हस्तांतरण की रोकथाम व वैधीकरण हेतु बिहार अधिसूचित क्षेत्र विनियमन अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत एक विशेष कोर्ट की स्थापना की गयी तथा आदिवासी जमीन के हस्तातंरण एवं विक्रय के संबंध में उपायुक्त को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गयी। इस प्रावधान के तहत उपायुक्त की अनुमति के बिना एक आदिवासी द्वारा दूसरे आदिवासी भूमि का हस्तांतरण या विक्रय नहीं किया जा सकता है। 
> 1947 में इस कानून में अहम संशोधन किया गया ताकि नगरीकरण, औद्योगीकरण तथा विकास परियोजनाओं की स्थापना की जा सके।
> वर्ष 2005 में भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का गठन किया गया जिसने सरकार को सिफारिश की कि किसी भी परियोजना (खनन, विद्युत व अन्य ) की स्थापना हेतु अधिसूचित क्षेत्रों में आदिवासी लोगों का विस्थापन न हो।
> सन् 1894 में ‘सार्वजनिक हित' के आधार पर भूमि का अधिग्रहण करने हेतु 'भूमि अधिग्रहण अधिनियम' पारित किया गया। इस कानून में सन् 2013 में महत्वपूर्ण संशोधन किया गया तथा इस नामकरण 'भूमि अधि ग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013' कर दिया गया। इस अधिनियम में रक्षा व रक्षा उत्पादन, ग्रामीण अवसंरचना विकास (ऊर्जा, आवास, औद्योगिक गलियारा) तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत विकास परियोजनाओं हेतु भूमि अधिग्रहण हेतु 70-80 प्रतिशत भूस्वामियों की सहमति का प्रावधान किया गया। 
> भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापण अधिनियम, 2013 के तहत ऐसे व्यक्ति को भूमि का स्वामी माना गया है जिसका नाम भूस्वामी के रूप में दर्ज हो, वह व्यक्ति जिसे वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वन अधिकार प्राप्त हो तथा वह व्यक्ति जिसे पट्टा जारी करने का अधिकार प्राप्त हो ।
> सन् 1982 तथा 1986 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 की धारा 7, 8 और 76 की वैधानिकता को सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गयी कि इन धाराओं के अंतर्गत महिलाओं की समानता के अधिकार तथा जीवन के अधिकार का अतिक्रमण हो रहा है। यह चुनौती इस आधार पर दी गयी कि छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 के अंतर्गत एक कन्या खूँटकट्टीदार को पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित कर दिया गया है, जो संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
> छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 में अभी तक 26 संशोधन किये जा चुके हैं। इसमें प्रथम संशोधन 1920 ई. में तथा अंतिम संशोधन 1995 में किया गया था। 
> छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 झारखण्ड के उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर तथा पलामू प्रमण्डल में प्रभावी है।
> छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम द्वारा ठेठ बेकारी (बंधुआ मजदूरी) पर प्रतिबंध लगाया गया तथा लगान की दरें कम की गई ।
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