झारखण्ड के सदान के

झारखण्ड के सदान के

झारखण्ड के सदान के
> झारखण्ड के गैर-जनजातीय मूल निवासियों को सदान कहा जाता है।
(नोट :- झारखण्ड में बाहर से आकर बसने वाले लोगों को आदिवासियों द्वारा 'दिकू ' कहा जाता है।) 
> झारखण्ड की कुल जनसंख्या में इनका हिस्सा लगभग 60% है।
> झारखण्ड की चीक बड़ाइक, करमाली एवं किसान जनजाति स्वयं को सदान मानते हैं।
> इनकी भाषा को सदानी या सादरी कहा जाता है।
> ये लोग खोरठा, नागपुरी, पंचपरगनिया, करमाली आदि भाषा बोलते हैं।
> सदानों का मुख्य पेशा कृषि कार्य है।
> भोजन हेतु सदान मुख्य रूप से चावल, मक्का, दलहन, मडुआ आदि का प्रयोग करते हैं।
> धार्मिक दृष्टि से हिन्दुओं को सदान कहा जा सकता है। प्रजातीय दृष्टि से सदान आर्य हैं। 
> अंग्रेजों ने सदानों को ‘दिकू' (बाहरी) के नाम से पुकारा ताकि आदिवासियों को दिग्भ्रमित कर उन्हें सदानों के विरूद्ध किया जा सके।
> जातिगत दृष्टि से सदानों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है।
> पहले भाग में ऐसे सदानों को रखा जा सकता है जो झारखण्ड के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी निवास करते हैं। जैसे- ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, माली, कुम्हार, कुर्मी, बनिया, सोनार, ठाकुर आदि। 
> दूसरे भाग में ऐसे सदानों को रखा जा सकता है जो केवल झारखण्ड में ही निवास करते हैं। जैसे- बड़ाइक,
देशावली, प्रामाणिक, भुईयाँ, पान, रौतिया, धानु, गोड़ाइत, पाइक, तांतिक, स्वांसी, रक्सैल, लोहड़िया आदि।
> इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे सदान हैं जिनका मूल स्थान झारखण्ड न होकर झारखण्ड से बाहर है। जैसे- गौड़, तिरहुतिया, अवधिया, कनैजिया आदि ।
> सदानों पर जैन धर्म का प्रभाव देखने को मिलता है। जैनियों की ही भांति सदान सूर्यास्त के पश्चात् भोजन नहीं करते तथा मांस-मछली का सेवन नहीं करते हैं ।
> सदान लोग शिव, सूर्य एवं मंशा के उपासक हैं। कुछ सदान वैष्णव परंपरा से भी प्रभावित हैं।
> इनमें हिंदु देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ कुल देवी-देवता की पूजा का भी प्रचलन है।
> सदान महामारियों (चेचक, हैजा आदि) को देवी का प्रकोप मानते हैं तथा इससे बचने हेतु शीतला देवी की पूजा करते हैं।
> धार्मिक रूप से सदान सहिष्णु होते हैं ।
> सदान लोग डायन, भूत-प्रेत तथा ओझा आदि में भी विश्वास करते हैं ।
> सदानों की शारीरिक संरचना में आर्य, द्रविड़ तथा आस्ट्रिक तीनों में लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इनका रंगा गोरा, सांवला तथा काला तीनों प्रकार का है। साथ ही इनकी लंबाई नाटी, मध्यम तथा अधिक तीनों है।
> सदान परंपरागत वस्त्रों का प्रयोग करते हैं जिसमें धोती, कुरता, गमछा, चादर आदि सम्मिलित हैं। 
> सदानों के प्रमुख आभूषण पोला, कंगन, बिछिया, बुलाक, नथिया, बेसर, करन, कर्नाटिका आदि हैं। 
> सदान लोग मिट्टी का बरतन जैसे- हड़िया, गगरी, चूका, ढकनी आदि का प्रयोग करते हैं। पीतल तथा काँसा के बरतन को ये लोग समृद्धि का द्योतक मानते हैं।
> सामूहिक भोज में सदानों द्वारा पत्तल तथा दोने का प्रयोग किया जाता है।
> शिकार हेतु सदानों द्वारा जाल, बंसीडाग, पोलई, धनुष-तीर, तलवार, भाला, चोंगी आदि का प्रयोग किया जाता है। 
> सदानों का समाज पितृसत्तात्मक है तथा यहाँ मातृ एवं पितृ कुल में वैवाहिक संबंध वर्जित होता है। 
> सदानों द्वारा मुख्यतः होली, दिवाली, दशहरा, काली पूजा, मकर सक्रांति जैसे हिन्दु त्योंहार तथा सोहरई, करमा, टुसु आदि आदिवासी त्योहार मनाया जाता है।
> सदानों के गाँव में अखरा होती है जिसमें किसी उत्सव समारोह पर लड़कियों द्वारा सामूहिक नृत्य का आयोजन किया जाता है।
> डोमकच, झूमर, घटवारी, जामदा, चोकरा, संथाल नृत्य, राजपूत नृत्य आदि नृत्यों का प्रचलन सदान समाज में है। इसके अतिरिक्त गणेश नृत्य, कार्तिक नृत्य सदानों का शास्त्रीय नृत्य है।
सदान तथा आदिवासी में अंतर 
सदान
आदिवासी
सदान गैर-जनजातीय मूल निवासी हैं
आदिवासी जनजातीय मूल निवासी हैं।
सदान समुदायी होते हैं।
आदिवासी कबिलाई होते हैं।
सदान स्थायी स्वभाव के होते हैं।
आदिवासी घूमन्तू स्वभाव के होते हैं।
कई सदान जनजाति के रूप में अनुसूचित हैं।
कई आदिवासी अनुसूचित नहीं हैं।

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