मुगलों के पतन के कारण - राजनीतिक, प्रशासनिक एवं आर्थिक
> मुगलों के पतन के कारण
मुगल साम्राज्य के पतन के लिए किसी एक कारण को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता. वरन् इसके पतन में राजनैतिक, सैनिक, आर्थिक एवं धार्मिक कारणों ने मिलकर ऐसा योग बनाया कि मुगल राज्य का पतन हो गया. मुगलों के पतन के निम्नलिखित कारण थे—
> राजनीतिक कारण
(i) उत्तराधिकार के नियम का अभाव – मुगलों ने भारत में अपना शासन शक्ति के आधार पर स्थापित किया था. अतः बाबर के बाद जितने भी मुगल शासक भारत में बने सभी ने शक्ति के बल पर राज्य प्राप्त किया था. अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब तथा उसके बाद के सभी शासकों ने अपने भाइयों, सगे-सम्बन्धियों और यहाँ तक कि अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह एवं मार-काट कर सिंहासन प्राप्त किया था. उनके दावेदारी के संघर्ष में मुगल राज्य के दरबारी, सूबेदार, मनसबदार आदि भी भाग लेते थे, जिससे दरबार में एक गुटबन्दी का निर्माण होता था. इस प्रकार के संघर्ष से मुगलों की प्रतिष्ठा, शान-शौकत एवं जन-धन की अपार क्षति हुई और विघटनकारी शक्तियों ने अवसर का लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
(ii) औरंगजेब के अयोग्य उत्तराधिकारी – औरंगजेब के बाद बनने वाले शासक बहादुरशाह - प्रथम से लेकर बहादुरशाह जफर तक सभी के सभी अयोग्य थे, उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति का अभाव था तथा वे सदैव भोग-विलास में डूबे रहते थे, जिसके कारण बजीर एवं अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी लोगों ने सत्ता को अपने अधीन कर लिया और वे शासन-निर्माता बन गए, जहाँ दाराशाह की हत्या कर दी गई, फर्रुखशियर की आँखें फोड़ दी गईं. इसी प्रकार आगे के अन्य शासकों के साथ भी दुर्व्यवहार हुआ.
(iii) प्रान्तीय सूबेदारों की महत्वाकांक्षा - औरंगजेब की मृत्यु के बाद केन्द्रीय शक्ति के कमजोर पड़ जाने के कारण महात्वाकांक्षी मुगल सूबेदारों ने अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना करने लगे तथा कमजोर बादशाहों में इतनी शक्ति नहीं थी कि ये इन्हें रोक सकें. हैदराबाद, अवध, बंगाल, मालवा, बुन्देलखड आदि राज्य स्वतन्त्र हो गए. इस प्रकार मुगल सत्ता केवल दिल्ली और उसके आस-पास ही रह गई.
(iv) दरबारी षड्यन्त्र एवं गुटबाजी – मुगल दरबार औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुटबाजी एवं षड्यन्त्रों का महान् केन्द्र बन गया. इस समग्र दरबार में दो प्रमुख गुट हिन्दुस्तानी और मुगल में बँटा हुआ था. मुगल भी दो गुटों ईरानी और तुर्रानी में बँटे हुए थे. इन गुटों ने आपसी वैमनस्य के कारण बादशाहों को इस प्रकार भ्रमित कर दिया कि, वे समस्याओं पर ध्यान ही न दे सके और मनसबदारों ने अपनी शक्ति का विस्तार करना जारी रखा.
(v) प्रशासनिक भ्रष्टाचार – औरंगजेब के समय तक अधिकांश नियुक्तियाँ मुगल-प्रशासन में योग्यता के आधार पर होती थीं, परन्तु बाद में बादशाह की स्वयं की इच्छा एवं दबाव में नियुक्तियाँ होने लगीं. इसके कारण प्रशासनिक व्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा और स्थानीय प्रशासन में इन अधिकारियों का हस्तक्षेप बहुत अधिक बढ़ गया, जिससे मनसबदारों एवं जागीरदारों का प्रभाव तो बढ़ा, परन्तु बादशाह का प्रभाव कम होता गया.
(vi) मुगलों का विदेशी होना – मुगल मध्य एशिया से भारत में आकर बसे थे. अतः उन्होंने मध्य एशियाई नीति के आधार पर भारत में शासन किया. प्रशासन में उन्होंने भारतीयों की उपेक्षा की. इस कारण कभी भी भारतीयों ने मुगलों को अपना नहीं समझा और जब मुगल सत्ता कमजोर पड़ी तब सिखों और मराठों ने उनके विदेशी होने का जनता में खूब प्रचार किया.
(vii) विदेशी आक्रमण – मुगलों की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाने के लिए नादिरशाह एवं अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किए तथा भयंकर लूटपाट मचाई जिससे मुगल सत्ता का अन्त होना निश्चित हो गया, क्योंकि इन आक्रमणों ने उसकी स्थिति जर्जर बना दी थी.
(viii) भारत में यूरोपीय शक्तियों का विकास – व्यापार के बहाने यूरोपीय शक्तियों ने भारत में अपना राजनैतिक विकास करना प्रारम्भ कर दिया था. प्लासी और बक्सर के युद्धों के बाद अंग्रेजों ने अपनी पकड़ बंगाल पर मजबूत कर ली और अन्त में अंग्रेजों ने मुगल बादशाह को पेंशन भोक्ता बनाकर 1857 ई. में उसकी सत्ता सदा के लिए समाप्त कर दी.
> सैनिक कारण
भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना ही सैनिक शक्ति के बल पर हुई थी. अतः उनकी जब तक भारत में सैनिक श्रेष्ठता बनी रही उनका शासन बना रहा. सम्पूर्ण मुगल सत्ता का स्वरूप सैन्य संगठन पर आधारित था. इस व्यवस्था में केन्द्रीय सत्ता का सुदृढ़ होना आवश्यक था. अतः केन्द्रीय सत्ता के दुर्बल पड़ते ही मुगल साम्राजय बिखरने लगा.
मुगल सैन्य संगठन में मनसबदारी व्यवस्था थी, जिसमें सेना की स्वामिभक्ति साम्राज्य पर नहीं, बल्कि उसके मनसबदार से जुड़ी होती थी. मुगल सेना में विभिन्न प्रदेशों जातियों एवं अलग राष्ट्रीयता वाले सिपाही एवं अधिकारी थे, जोकि संकट के समय में भी कभी एकजुट नहीं रह सकते थे.
मुगल सेना में विलासिता ने भी प्रवेश कर लिया था. सेनापति अपने साथ महिलाओं को लेकर चलते थे. इसके साथ मुगल सेना की अन्य अनेक कमजोरियाँ भी थीं, जैसे— नौसेना का अभाव, केवल मैदानी युद्धों में ही सेना का पारंगत होना तथा पुराने जमाने के अस्त्र-शस्त्रों की प्रधानता ने मुगल सेना को कमजोर बना दिया था.
> धार्मिक कारण
बाबर, हुमायूँ और अकबर ने धर्मनिरपेक्षता की नीति का ही अनुसरण किया, लेकिन धीरे-धीरे यह नीति संकीर्ण होती रही और औरंगजेब के समय यह अपने चरम पर पहुँच गई. इससे अधिकांश हिन्दू जनता मुगल विरोधी बन गई. फलतः जाट, सतनामी, मराठा एवं सिख विद्रोह धार्मिक कारणों से ही हुए.
> आर्थिक कारण
औरंगजेब द्वारा लगातार लड़े गए युद्धों एवं विद्रोहों को दबाने के कारण उसका राजकोष रिक्त हो गया, जिसे भरने का प्रयास सही ढंग से नहीं हो सका. मुगलों की आमदनी का मुख्य स्रोत कृषि राजस्व था, किन्तु केन्द्रीय सत्ता के कमजोर पड़ते ही उसे वसूलना कठिन हो गया और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय के कारण मुगल राज्य की आय भी कम होने लगी. ऐसी स्थिति में सैन्य खर्च एवं मनसबदारों के बड़े-बड़े वेतन का भुगतान सम्भव नहीं रहा और राज्य का विघटन निश्चित हो गया.
इन कारणों के अतिरिक्त मुगल साम्राज्य की विशालता, आवागमन के साधनों का अभाव, दोषपूर्ण सामाजिक संरचना एवं व्यवस्था, शान्ति एवं सुरक्षा का अभाव तथा औरंगजेब की दोषपूर्ण नीतियाँ भी मुगलों के पतन का प्रमुख कारण रहीं.
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