केंद्रीय सूचना आयोग
केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गयी थी। इसकी स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के अंतर्गत शासकीय राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से की गयी थी। इस प्रकार यह एक संवैधानिक निकाय नहीं है।

केंद्रीय सूचना आयोग
संरचना
कार्यकाल एवं सेवा शर्ते
- यदि वे दीवालिया हो गये हों; या
- यदि उन्हें नैतिक चरित्रहीनता के किसी अपराध के संबंध में दोषी करार दिया गया हो (राष्ट्रपति की नजर में ) ; या
- यदि वे अपने कार्यकाल के दौरान किसी अन्य लाभ के पद पर कार्य कर रहे हों; या
- यदि वे (राष्ट्रपति की नजर में) वे शारीरिक या मानसिक रूप से अपने दायित्वों का निवर्हन करने में अक्षम हों; या
- वे किसी ऐसे लाभ को प्राप्त करते हुये पाये जाते हैं, जिससे उनका कार्य या निष्पक्षता प्रभावित होती हो।
शक्तियां एवं कार्य
- आयोग का यह दायित्व है कि वे किसी व्यक्ति से प्राप्त निम्न जानकारी एवं शिकायतों का निराकरण करे:
- जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति न होने के कारण किसी सूचना को प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा हो;
- उसने चाही गयी जानकारी देने से मना कर दिया गया हो;
- उसने चाही गयी जानकारी निर्धारित समय में प्राप्त न हो पायी हो;
- यदि उसे लगता हो कि सूचना के एवज में मांगी फीस सही नहीं है;
- यदि उसे लगता है कि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना अपर्याप्त, झूठी या भ्रामक है; तथा
- सूचना प्राप्ति से संबंधित कोई अन्य मामला।
- यदि किसी ठोस आधार पर कोई मामला प्राप्त होता है तो आयोग ऐसे मामले की जांच का आदेश दे सकता है ( स्व - प्ररेणा शक्ति ) ।
- जांच करते समय, निम्न मामलों के संबंध में आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती हैं:
- वह किसी व्यक्ति को प्रस्तुत होने एवं उस पर दबाव डालने के लिये सम्मन जारी कर सकता है तथा मौखिक या लिखित रूप से शपथ के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है;
- किसी दस्तावेज को मंगाना एवं उसकी जांच करना;
- शपथपत्र के रूप में साक्ष्य प्राप्त करना;
- किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक दस्तावेज को मंगाना;
- किसी गवाह या दस्तावेज की जांच करने के लिये सम्मन जारी करना, तथा;
- कोई अन्य मामला जो निर्दिष्ट किया जाए।
- शिकायत की जांच करते समय, आयोग लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी दस्तावेज या रिकॉर्ड की जांच कर सकता है तथा इस रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर प्रस्तुत करने से इंकार नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, जांच के समय सभी सार्वजनिक दस्तावजों को आयोग के सामने प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है।
- आयोग को यह शक्ति प्राप्त है कि वह लोक प्राधिकारी से अपने निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करें, इसमें सम्मिलित हैं।
- किसी विशेष रूप में सूचना तक पहुंच;
- जहां कोई भी जन सूचना अधिकारी नहीं है, वहां ऐसे अधिकारी को नियुक्त करने का आदेश देना;
- सूचनाओं के प्रकार या किसी सूचना का प्रकाशन;
- रिकॉर्ड के प्रबंधन, रख-रखाव एवं विनिष्टीकरण की रीतियों में किसी प्रकार का आवश्यक परिवर्तन;
- सूचना के अधिकार के बारे में प्रशिक्षण की व्यवस्था;
- इस अधिनियम के अनुपालन के संदर्भ में लोक प्राधिकारी से वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करना;
- आवेदक द्वारा चाही गयी जानकारी के न मिलने पर या उसे क्षति होने पर लोक प्राधिकारी को इसका मुआवजा देने का आदेश करना;
- इस अधिनियम के अंतर्गत अर्थदंड लगाना, तथा;
- किसी याचिका को अस्वीकार करना।
- इस अधिनियम के क्रियान्वयन के संदर्भ में आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन केंद्र सरकार को प्रस्तुत करता है। केंद्र सरकार इस प्रतिवेदन को दोनों सदनों के पटल पर रखती है।
- जब कोई लोक प्राधिकारी इस अधिनियम का पालन नहीं करता तो आयोग इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। ऐसे कदम उठा सकता है, जो इस अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करें।
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