General Competition | Indian Polity | संघ का शासन

इसकी चर्चा भारतीय संविधान के भाग -5 के अंतर्गत अनुच्छेद 52-151 के बीच में है। संघ के शासन को तीन भाग में बाँटकर पढ़ते हैं ।

General Competition | Indian Polity | संघ का शासन

General Competition | Indian Polity | संघ का शासन

  • इसकी चर्चा भारतीय संविधान के भाग -5 के अंतर्गत अनुच्छेद 52-151 के बीच में है। संघ के शासन को तीन भाग में बाँटकर पढ़ते हैं ।
    1. कार्यपालिकाः- काम का पालन करनेवाली संस्था या अधिकारी को कार्यपालिका के अंतर्गत रखा जाता है । इसकी चर्चा अनुच्छेद 52-78 के बीच में देखने को मिलती है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और महान्यायवादी आते हैं ।
    2. विधायिका:- विधि का निर्माण करनेवाली संस्था विधायिका कहलाती है। भारत में विधि का निर्माण करनेवाली सर्वोच्च संस्था संसद है । विधायिका के अंतर्गत मुलतः लोकसभा और राजसभा आती है। इसकी चर्चा अनुच्छेद 79-123 में है ।
    3. न्यायपालिकाः- न्याय देने वाली संस्था न्यायपालिका कहलाती है। इसकी चर्चा अनुच्छेद 124-151 के बीच में है। इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायलय और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आते हैं ।

राष्ट्रपति (52-62)

  • राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है। यह देश की एकता, अखंडता और सुदृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। भारतीय संविधान में कार्यो का विवरण राष्ट्रपति के नाम से है इसलिए राष्ट्रपति को भारत का संवैधानिक प्रमुख माना जाता है। लेकिन राष्ट्रपति के कार्यो को वास्तविक तौर पर प्रधानमंत्री करवाता है; इसलिए प्रधानमंत्री को . कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख माना जाता है । 
  • भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होते हैं, इसलिए राष्ट्रपति को भारत राज्य का प्रमुख माना जाता है, वहीं भारत सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं क्योकिं भारत साकार के समस्त निर्णय मंत्रिपरिषद के नेतृत्व में प्रधानमंत्री ही लेते हैं। 
अनुच्छेद- 52
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा ।
अनुच्छेद - 53
यह अनुच्छेद कहता है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है । राष्ट्रपति अपने कार्य को स्वयं करते हैं या अपने अधिनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करवाते हैं ।
अनुच्छेद - 54
यह अनुच्छेद हमें राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल के विषय में जानकारी प्रदान करता है । राष्ट्रपति के चुनाव में सदस्यों का जो समूह भाग लेता है, उसे ही राष्ट्रपति का निर्वाचक मंडल कहते हैं।
अनुच्छेद-55
राष्ट्रपति के चुनाव के रीति या तरीका के विषय में जानकारी देता है ।

अनुच्छेद - 56
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति का कार्यकाल उसके शपथ ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्षो का होगा । इस अवधि के दौरान कभी भी राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के नाम संबोधित कर त्याग पत्र के माध्यम से अपने पद से इस्तीफा दे सकता है ।
अनुच्छेद-57
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत के भीतर कोई भी व्यक्ति जितनी बारं चाहें उतनी बार राष्ट्रपति बन सकता है। अर्थात राष्ट्रपति पुर्ननियुक्ति के पात्र होते हैं। भारत में एकमात्र राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद थें जो दोबारा पुर्ननियुक्त हुए थें । अनके अलावे अभी तक कोई भी राष्ट्रपति दोबारा नियुक्त नहीं हुए हैं।
अनुच्छेद-58
यह अनुच्छेद हमें राष्ट्रपति बनने की योग्यता के विषय में जानकारी प्रदान करता है । राष्ट्रपति बनने की निम्न योग्यता होनी चाहिए ।
(1) भारत का नागरिक हो ।
 (2) उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
 (3) लोकसभा के सदस्य बनने का योग्यता हो ।
(4) पागल या दिवालियाँ ना हो ।
(5) लाभ के पद पर ना हो ।
  • राष्ट्रपति के चुनाव में 50 प्रस्तावक तथा 50 अनुमोदक होना आवश्यक होता है । प्रस्तावक और अनुमोदक वही बन सकता है जो राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेता है। एक ही व्यक्ति प्रस्तावक और अनुमोदक नहीं बन सकता है ।
  • राष्ट्रपति के चुनाव में जमानत की राशी 15,000 /- रूपया होती है। अगर कोई उम्मीदबार राष्ट्रपति के चुनाव में कुल पड़े बैध मतों का 1/6 भाग हासिल नहीं कर पाता है तो उसका जमानत की राशी ज़ब्त कर ली जाती है।
अनुच्छेद-59
राष्ट्रपति पद की शर्तों के बारें में जानकारी प्रदान करता है । यह अनुच्छेद निम्न प्रावधान करता है-
(1) लाभ के पद पर आसीन व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं बन सकता है ।
(2) संसद द्वारा निर्धारित वेतन लेना होगा ।
(3) राष्ट्रपति को राष्ट्रपति भवन में रहना होगा ।
(4) अगर कोई विधानसभा सदस्य या अन्य किसी भी सदन का सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित होता है तो उसे सदन की सदस्यता छोड़नी होगी।
अनुच्छेद-60
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति को शपथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश दिलायेगें ।
अनुच्छेद-61
यह अनुच्छेद कहता है कि अगर राष्ट्रपति संविधान का अतिक्रमण करता है अर्थात, संविधान का उल्लंघन करता है तो उस पर महाभियोग लगाकर उन्हें पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति पर महाभियोग संसद के दोनों सदनों में से कोई भी सदन लगा सकता है। लेकिन शर्त यह है कि 14 दिन पूर्व इसकी सुचना राष्ट्रपति को देना अनिवार्य है । संसद के सदनों में जब महाभियोग प्रक्रिया चल रहा हो तो राष्ट्रपति स्वयं अपना पक्ष संसद में रख सकता है या किसी के माध्यम से रखवा सकता है । संसद के दोनों सदनों को इस प्रक्रिया को विशेष बहुमत से पारित करना होता है । जैसे ही दोनों सदन विशेष बहुमत से प्रक्रिया को पारित कर देता है वैसे ही यह माना जाता है कि महाभियोग प्रक्रिया पूर्ण हुआ और राष्ट्रपति को अपने पद से त्यागपत्र देना होता है। अभी तक किसी भी राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रक्रिया नहीं चलाया गया है।
नोट- (1) राष्ट्रपति पर चलने वाला महाभियोग प्रक्रिया एक अर्द्धन्यायिक प्रक्रिया है । 
(2) संसद के दोनों सदनों के मनोनित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लेते हैं लेकिन महाभियोग प्रक्रिया में भाग लेते हैं ।
(3) सभी राज्यों के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य तथा दिल्ली, पुडुचेरी, जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं लेकिन महाभियोग प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं ।
अनुच्छेद-62
इस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति के पद रिक्त होने के विषय में जानकारी प्राप्त होता है । यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति के पद रिक्त होने के 6 माह के भीतर राष्ट्रपति का चुनाव होना आवश्यक है राष्ट्रपति का पद निम्न स्थिति में रिक्त हो सकता है-
(1) अगर राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति के नाम त्यागपत्र देता है ।
(2) राष्ट्रपति के मृत्यू पश्चात
(3) राष्ट्रपति महाभियोग के तहत् हटाया गया हो ।
(4) अगर राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त हो गया हो।
  • उपर के तीन परिस्थिति में राष्ट्रपति का पद खाली होता है तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में काम करतें हैं । लेकिन चौथे स्थिति में वर्तमान के राष्ट्रपति ही जब तक पद पर बने रहते हैं जब तक कि उनका उत्तराधिकारी चुन कर नहीं आ जाता है।
अनुच्छेद- 55 संबंधी कुछ अल्य प्रावधान : 
भारत में मुख्यतः दो प्रकार से चुनाव होता है ।
(1) First Past the Post System:-
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें सर्वाधिक मत प्राप्त होने पर उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है, उसे ही First Past the Post System कहते हैं। विशेषकर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में यह प्रावधान अपनाई जाती है। इस प्रणाली के तहत् भारत में लोकसभा, विधानसभा और पंचायती राज की चुनाव होती है।
(2) अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणालीः
वैसी चुनाव प्रणाली जिसमें उम्मीदवार को विजेता बनने हुतू कुल पड़े बैध मतों का 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक होता है। उसे अनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली कहा जाता है। जैसे भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, विधानपरिषद, राज्यसभा सदस्य का चुनाव इसी प्रणानी के तहत होता है।
1 M.P (संसद सदस्य) का मत मूल्य = सभी राज्यों के विधायकों के कुल मतों का योग / निर्वाचित संसद सदस्यों की संख्या
  • राष्ट्रपति के चुनाव में M.P और MLA के मतों का मूल्य 1971 की जनगणना के आधार पर निकाला जाता है।
  • सभी राज्यों के विधायकों के मतों का मूल्य अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है। सबसे अधिक मत मूल्य उत्तरप्रदेश के एक विधायक का होता है। वहीं कम मत मूल्य सिक्किम के एक विधायक का होता है।

अब तक भारत के निम्न राष्ट्रपति हैं-

क्र. सं. राष्ट्रपति शासनकाल
1. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 1950-1962
2. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962-1967
3. जाकिर हुसैन 1967-1969
4. वी.वी. गिरी 1969-1974
5. फखरुद्धिन अली 1974-1977
6. नीलम संजीव रेड्डी 1977-1982
7. ज्ञानी जैल सिंह 1982-1987
8. आर. वेंकटरमण 1987-1992
9. शंकर दयाल शर्मा  1992-1997
10. के. के. नारायणन 1997-2002
11. अब्दुल कलाम आजाद 2002-2007
12. श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल 2007-2012
13. प्रणब मुखर्जी 2012-2017
14. रामनाथ कोबिंद 2017-2022
15. श्रीमति द्रोपति मुर्मू 2022 - अब तक (2027)
  • देश के राष्ट्रपति का चुनाव पहली बार 1952 में हुआ था। 1950-52 तक राजेन्दग प्रसाद संविधान सभा द्वारा मनोनित राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहें थें। अभी तक के इतिहास में राष्ट्रपति के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का ही रहा है।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दार्शनिक राष्ट्रपति हुए । इन्होने भारत की सांस्कृतिक विरासत का नेतृत्व किया।
  • देश के प्रथम मुस्लिम राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन हुए । राष्ट्रपति के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल इन्हीं का है।
  • अभी-तक के दो राष्ट्रपति (1) डॉ. जाकिर हुसैन तथा (2) फकरुद्धिन अली अहमद का पद पर रहते हुए निधन हुआ है।
  • देश के प्रथम निर्दलीय राष्ट्रपति वी. वी. गिरी बनें हैं।
  • द्वितीय वरीयता के मत से राष्ट्रपति का चुनाव वी. वी. गिरी ने जीता है। साथ ही साथ सबसे कम मतांतर से चुनाव वी. वी. गिरी ने ही जीता था ।
  • राजेन्द्र प्रसाद के अलावा दो बार राष्ट्रपति का चुनाव नीलम संजीव रेड्डी ने लड़ा है। नीलम संजीव रेड्डी दोनों बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष के पद पर थें ।
  • एकमात्र राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह है जिन्होंने पॉकेट वीटो या जेबी वीटो का प्रयोग किया है |
  • आर. वेंकटरमण ने अपने कार्यकाल के आधार पर अपनी आत्मकथा My Presidention Years लिखा है ।
  • शंकर दयाल शर्मा एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं जो उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और राज्यपाल सभी पदों पर रहें हैं ।
  • देश के प्रथम दलित राष्ट्रपति के. आर. नारायणन (केरल) हैं ।
  • देश के एकमात्र वैज्ञानिक राष्ट्रपति अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम थें।
  • भारत की प्रथम एकमात्र महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल है ।
  • प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बनने से पूर्व भारत के वित्त मंत्री पद पर रहें हैं ।
  • रामनाथ कोबिंद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति के रूप में है ।
  • देश को सर्वाधिक राष्ट्रपति देने वाला राज्य तामिलनाडू है।
    1. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    2. आर. वेंकटरमण
    3. APJ अब्दुल कलाम अजाद
  • रामनाथ कोबिंद, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, शंकर दयाल शर्मा, जाकिर हुसैन राष्ट्रपति बनने से पूर्व राज्यपाल के पद पर कार्यरत थें ।
  • कुल 6 राष्ट्रपति ऐसे हैं जो उपराष्ट्रपति भी बनें हैं।
    (1) डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    (2) जाकिर हुसैन
    (3) वी. वी. गिरी
    (4) आर. वेंकटरमण
    (5) शंकर दयाल शर्मा
    (6) के. आर. नारायणन
  • राधाकृष्णन और के. आर. नारायणन राज्य न्यायिक के पद पर रहें हैं।
  • जाकिर हुसैन का संबंध जामिया मिलिया इस्लामिया विश्व विद्यालय से रहा है।
  • वी. वी. गिरी मजदूर नेता रहें हैं।
  • ज्ञानी जेल सिंह राष्ट्रपति बनने से पूर्व गृहमंत्री के पद पर रह चुके हैं।

राष्ट्रपति के कार्य, अधिकार और शक्ति

क्षमादान का अधिकांरः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद-72 राष्ट्रपति को 5 प्रकार से क्षमादान का अधिकार प्रदान करता है । जो निम्न है-
(1) क्षमा:-
जब राष्ट्रपति बिना किसी शर्त के किसी दोषी व्यक्ति को पूर्णतः माफ कर देता है तो उसे ही क्षमा कहा जाता है।
(2) परिहार:-
जब राष्ट्रपति किसी दोषी व्यक्ति के सजा की मात्रा को कम कर देता है तो उसे परिहार कहा जाता है ।
जैसे - 10 वर्ष की सजा को कम करके 5 वर्ष कर दिया जाना ।
(3) लघुकरण:-
जब किसी दोषी व्यक्ति के सजा की प्रकृति में बदलाव किया जाता है तो इसे ही लघुकरण कहा जाता है।
जैसे - मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना ।
(4) विरामः-
कुछ विशेष परिस्थिति में, जैसे - विकलांगता, गर्भवती महिला तथा बुढ़ापा, इत्यादि में सजा पर रोक लगा दिया जाना विराम कहलाता है ।
(5) प्रविलंबन:-
कुछ समय के लिए सजा को टालना प्रविलंबन कहलाता है ।

वीटो संबंधी अधिकार

  • वीटो लैटिन भाषा का शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ रोकना होता है। भारत के राष्ट्रपति को वीटो संबंधी अधिकार अनुच्छेद-111 देता है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई भी विधेयक जब राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस विधेयक पर स्वीकृति दे भी सकता है या नहीं दे सकता है। अगर राष्ट्रपति ने विधेयक पर स्वीकृति नहीं दिया तो यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने वीटो का प्रयोग किया है।
    वीटो चार प्रकार के होते हैं-
    (1) आत्यांतिक वीटो
    (2) निलंबनकारी वीटो
    (3) पॉकेट / जेबी वीटो
    (4) विशेषित वीटो
  • उपर्युक्त लिखित वीटो में से भारत के राष्ट्रपति विशेषित वीटो के अलावे अन्य सभी वीटो का प्रयोग करतें हैं। जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति विशेषित वीटो का प्रयोग भी करता है ।
विधेयक दो प्रकार के होते हैं-
(1) सरकारी विधेयकः-
वैसा विधेयक जो भारत सरकार के मंत्री द्वारा लाया जाता है सरकारी विधेयक कहलाता है ।
(2) गैर-सरकारी विधेयकः-
वैसा विधेयक जो मंत्री के अलावे अन्य संसद सदस्य के द्वारा लाया जाता है उसे गैर-सरकारी विधेयक कहते हैं ।
(1) आत्यांतिक वीटो:-
जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति देने से सीधे तौर पर इंकार कर देता है तब यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने आत्यांतिक वीटो का प्रयोग किया है।
इस विधेयक का प्रयोग गैर-सरकारी विधेयक पर किया जाता है
(2) निलंबनकारी विधेयक:-
संसद के दोनों सदनो द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस विधेयक को एक बार पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है। अगर राष्ट्रपति विधेयक को पुर्नविचार के लिए लौटाता है तो यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने निलंबनकारी वीटो का प्रयोग किया है।
(3) पॉकेट वीटो :-
जब संसद द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस पर ना सहमति देता है और ना ही असहमति व्यक्त करता है, तत्पश्चात यह माना जाता है कि राष्ट्रपति ने पॉकेट वीटो का प्रयोग किया है 1
नोट- भारत के एकमात्र राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह थें जिन्होंने डाकघर संसोधन आधिनियम 1986 पर पॉकेट वीटो की प्रयोग किया था ।
कार्यपालिका संबंधी अधिकार:-
अनुच्छेद-: 53 यह कहता है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगा । राष्ट्रपति के द्वारा उपराष्ट्रपति को शपथ दिलाया जाना, प्रधानमंत्री की नियुक्ति, प्रधानमंत्री के सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति, महान्यायवादी की नियुक्ति, राज्यपाल की नियुक्ति, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य की नियुक्ति, इत्यादि राष्ट्रपति के कार्यपालिका संबंधी अधिकार के अंतर्गत आता है।
विधायिका संबंधी अधिकार:-.
विधायिका के अंतर्गत लोकसभा और राजसभा आता है। लोकसभा और राजसभा को लेकर राष्ट्रपति को अधिकार प्राप्त हाकते हैं वे राष्ट्रपति के विधायिका संबंधी अधिकार कहलाते हैं। जो निम्न हैं-
(1) राष्ट्रपति संसद के दोनों के सत्रों का आहुत और सत्रावसान करता है।
(2) राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के सलाह पर लाकसभा को भंग करता है।
(3) जब किसी विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों के बीच मतभेद होता ळै तो इस स्थिति में अनुच्छेद - 108 के तहत् राष्ट्रपति संयुक्त अधिवेशन बुलाता है।
(4) राष्ट्रपति राजसभा में 12 सदस्यों का मनोनयन साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा के क्षेत्र से करते हैं ।
अध्यादेश जारी करने का अधिकारः-
भारत शासन अधिनियम 1935 भारत के राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार प्रदान करता है । अध्यादेश जारी करना के विधायी संबंधी अधिकार में आता है । भारत के राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के तहत् अध्यादेश जारी करता है । राष्ट्रपति निम्न स्थितियों में अध्यादेश जारी करता है-
(1) अगर संसद के दोनों सदन सत्र में ना हो ।
(2) अगर-संसद के एक सदन सत्र में हो और दूसरा सत्र में ना हो।
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश अधिकतम 6 माह तक लागू हो रहता है लेकिन संसद के सत्र शुरू होने के 6 सप्ताह तक ही रहता है।
  • कुछ विधेयक ऐसे होते हैं जो राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से संसद के सदनों में लाये जाते हैं। जैसे- धन विधेयक, राज्य निर्माण संबंधी विधेयक, अनुदान की माँग, संचित विधि से धन निकालने संबंधी विधेयक, इत्यादि । 
राष्ट्रपति के सलाहकारी अधिकारः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 143 राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से कानूनी मसलों पर सलाह लेने का अधिकार प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को सलाह देने को बाध्य है, लेकिन राष्ट्रपति सलाह मानने को बाध्य नहीं होता है।
आपात संबंधी अधिकार:-
अनुच्छेद- 352 के तहत् राष्ट्रपति आपात की घोषणा भारत के राष्ट्रपति मंत्रीमंडल के लिखित सिफारिस पर करता है ।
अनुच्छेद:- 356 के तहत् राष्ट्रपति मंत्रीमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति शासन की घोषणा करता है । 
अनुच्छेद- 360 के तहत् राष्ट्रपति मंत्रीमंडल के सलाह पर वित्तीय आपात की घोषणा करता है।
राजनयिक अधिकारः-
भारत के लिए राजदूत या राजनयिक की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं तथा अन्य देशों से आने वाले राजदूत या राजनयिक से सर्वप्रथम परिचय प्राप्त भारत के राष्ट्रपति करते हैं ।
राष्ट्रपति के विशेषाधिकारः- 
(1) पद पर रहते हुए राष्ट्रपति के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं किया जा सकता है।
(2) पद पर रहते हुए अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति ने जो काम किया है उसको लेकर उसे न्यायलय में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
(3) पद पर रहते राष्ट्रपति के खिलाफ अपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
(4) पद पर रहते राष्ट्रपति के खिलाफ दिवानी मुकदमा चलाया जा सकता है लेकिन 2 माह पूर्व इसकी जानकारी राष्ट्रपति को देनी होती है ।
सैन्य संबंधी अधिकारः-
भारतीय सेना को तीन वर्गो में बाँट गया है- (1) थल सेना (2) जल सेना (3) वायू सेना
  • तीनों सेना का कमांडर भारत का राष्ट्रपति होता है। युद्ध की घोषणा तथा समाप्ति की घोषणा भारत का राष्ट्रपति ही करता है
राष्ट्रपति के विवेकाधिकारः-
समान्यतः भारत के राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के सलाह एवं सहयोग से काम करते हैं। लेकिन अगर कुछ विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति मंत्रिपषिद के सलाह के बिना अथवा स्वयं निर्णय लेता है वही राष्ट्रपति का विवेकाधिकार कहलाता है । जो निम्न है-
(1) लोकसभा के चुनाव में जब किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो सरकार बनाने के लिए राष्ट्रपति किसे आमंत्रित करेगें ये राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर है। लेकिन भारतीय राजव्यवस्था में चली आ रही परंपरा के अनुसार राष्ट्रपति सबसे बड़े इल या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है ।
(2) अगर किसी प्रधानमंत्री ने लोकसभा में बहुमत खो दिया हो तो उस प्रधानमंत्री के बात को मानना या ना मानना राष्ट्रपति के विवके पर निर्भर करता है ।
(3) अगर प्रधानमंत्री का निधन अचानक हो गया हो और उसका अगला कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नहीं हो तो अगला प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किसे किया जायेगा यह राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
(4) संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है तो राष्ट्रपति उस विधेयक को एक बार पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है। यह निर्णय राष्ट्रपति अपने विवेक से लेता है ।

उपराष्ट्रपति (63-70)

  • यह देश का दुसरा सर्वोच्च पद है। यह पद अमेरिका से लिया गया है। इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 63-70 के बीच में है।
अनुच्छेद-63
यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा ।
अनुच्छेद-64
यह अनुच्छेद कहता है कि उपराष्ट्रपति राजसभा का पदेन सभापति होगा; अर्थात जो उपराष्ट्रपति होगा वही राजसभा का सभापतित्व करेगा । उपराष्ट्रपति राजसभा का सदस्य नहीं होता है लेकिन इसके बावजूद वो सभापतित्व करता है ।
नोट- राजसभा एक ऐसा सदन है जिसका सभापतित्व उसके सदस्य नहीं करते हैं।
अनुच्छेद-65
यह अनुच्छेद कहता है राष्ट्रपति का पद खाली हो तो उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में काम करेगें। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में काम करता है तब उन्हें राष्ट्रपति के समान ही वेतन भत्ता तथा अन्य उपलब्धियाँ प्राप्त होता है। इस दौरान उपराष्ट्रपति का पद खाली होता है, उसको भरने का कोई उपबंध नहीं है ।
अनुच्छेद:-66
उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी प्रावधान ।
उपराष्ट्रपति बनने की योग्यता निम्न है-
(1) भारत का नागरिक हो ।
(2) उम्र कम से कम 35 वर्ष हो ।
(3) राज्यसभा सदस्य बनने की योग्यता रखता हो ।   
(4) पागल या दिवालियाँ ना हो ।
(5) लाभ के पद पर ना हो । 
  • उपराष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होता है।
  • उपराष्ट्रपति का पहली बार चुनाव 1952 में हुआ था ।
  • पहली बार (1952) तथा दूसरी बार (1957) में उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन के द्वारा संपन्न हुआ ।
  • 11वाँ संविधान संसोधन 1961 के द्वारा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में बदनाव करते हुए यह प्रावधान किया गया कि उपराष्ट्रपति का चुनाव संयुक्त अधिवेशन के आधार पर नहीं होगा बल्कि उपराष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होगा ।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव प्रणाली में लोकसभा राजसभा के सभी सदस्य भाग लेते हैं। इसके अलावे अन्य कोई भाग नहीं लेता है ।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में 20 प्रस्तावक तथा 20 अनुमोदक होते हैं।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में जमानत की राशी 15,000/- रूपया होती है -
अनुच्छेद-67
यह अनुच्छेद कहता है कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल उसके शपथ ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्षो का होगा। अपने कार्यकाल के दौरान उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित कर त्याग पत्र दे सकता है।
अनुच्छेद-68
यह अनुच्छेद हमें उपराष्ट्रपति के पद रिक्ति होने के विषय में जानकारी प्रदान करता है। पद रिक्ति होने के 6 माह के भीतर नये उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव होना आवश्यक होता है। उपराष्ट्रपति का पद निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है ।
(1) त्याग पत्र द्वारा ।
(2) पद पर रहते हुए मृत्यू हो जाने पर ।
(3) पद से हटा दिये गये. पर। -
नोट- उपराष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत राजसभा से होती है। जिससे लोकसभा को सिर्फ सहमत होना होता है ।
अनुच्छेद-69
यह अनुच्छेद कहता है कि उपराष्ट्रपति को शपथ राष्ट्रपति दिलायेगें ।
अनुच्छेद-70
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति का पद दोनों खाली हो जाये तब, राष्ट्रपति के रूप में कार्य देश के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश करेगें
नोट— भारत के एकमात्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश मो हिदायतुल्ला थें जिन्होंने 1969 में भारत के राष्ट्रपति के रूप में काम किया है।
अनुच्छेद-71
यह अनुच्छेद कहता है कि अगर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में कोई वाद-विवाद होता है तो उसका निपटारा भारत का सुप्रीम कोर्ट करेगा।
उपराष्ट्रपति के कार्यः
(1) आकस्मिक राष्ट्रपति का पद खाली होने पर राष्ट्रपति के रूप में काम करना । 
(2) राजसभा का सभापतित्व करना ।
(3) रजसभा में जब किसी विधेयक पर मतदान होता है तो सभापति पहली बार मतदान नहीं करता है, लेकिन जब मत विभाजन के बारें में बराबर की स्थिति उत्पन्न होती है तब सभापति निर्णायक मत देता है।

अब तक के उपराष्ट्रपति

क्र. सं. उपराष्ट्रपति शासनकाल
1. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1952-1962
2. जाकिर हुसैन 1962-1967
3. वी. वी. गिरी 1967-1969
4. गोपाल स्वरूप पाठक 1969-1974
5. वी. डी. जत्ती 1974-1979
6. मो. हिदायतुल्ला 1979-1984
7. आर. वेंटरमण 1984-1987
8. शंकर दयाल शर्मा 1987-1992
9. के. आर. नारायणन 1992-1997
10. कृष्णकांत 1997-2002
11. भैरो सिंह शेखावत 2002-2007
12. हामिद अंसारी 2007-2017
13. वेकैंया नायडू 2017-2022
14. जगदीप धनखर 2022 - अब तक (2027)
  • दो उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और मो. हामिद अंसारी ने लगातार दो कार्यकाल को पूरा किया ।
  • तीन उपराष्ट्रपति र्निविरोध चुने गयें हैं, जो निम्न है-
    (1) सर्वपल्ली राधाकृष्णन
    (2) मो. हिदायतुल्ला
    (3) शंकर दयाल शर्मा
  • अभी तक सुप्रीम एकमात्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश मो. हिदायतुल्ला हुए जिन्होंनें भारत के उपराष्ट्रपंति के तौर पर पूर्ण कार्यकाल पूरा किया है ।
  • उपराष्ट्रपति के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल वी. वी. गिरी का है।
  • एकमात्र उपराष्ट्रपति प्रो. कृष्णकांत हैं जिनका निधन पद पर रहते हुए हुआ है।
  • श्री भैरो सिंह शेखावत एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जो राष्ट्रपति का चुनाव हार गयें।
  • डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति बनने से पहले राजदूत या राजनयिक के पद पर थें ।

प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद

अनुच्छेद-74
यह अनुच्छेद कहता है कि राष्ट्रपति को उसके कार्यो में सलाह एवं सहयोग देने हेतू एक मंत्रिपरिषद होगा जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होता है। राष्ट्रपति से यह आशा की जाती है कि वह मंत्रिपरिषद के सलाह एवं सहयोग से काम करें।
मंत्रिपरिषद में मंत्री तीन प्रकार के होते हैं-
(1) कैबिनेट मंत्री
(2) राज्य मंत्री
(3) उपमंत्री
  • कैबिनेट मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है। सभी प्रकार का निर्णय कैबिनेट मंत्री के द्वारा ही लिए जाते हैं। राज्यमंत्री और उपमंत्री, कैबिनेट मंत्री का सहयोगी होता है ।

मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में अंतरः

मंत्रिपरिषद मंत्रिमंडल
1. मंत्रीपरिषद की चर्चा मूल संविधान के अनुच्छेद-74 में है। 1. मंत्रिमंडल शब्द की चर्चा मूल संविधान में नहीं था । 44वाँ संविधान संसोधन 1978 के तहत् इस शब्द को जोड़ा गया।
2. मंत्रियों का वैसा समूह जिसमें कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उपमंत्री शामिल होता है उसे मंत्रिपरिषद कहते हैं । 2. मंत्रियों का वैसा समूह जिसमें सिर्फ कैबिनेट मंत्री शामिल होता है उसे मंत्रिमंडल कहते हैं ।
3. यह बड़ा निकाय हैं । 3. यह छोटा निकाय है ।
4. इसकी बैठक नहीं होती है। 4. इसकी बैंठक होती है। बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यहाँ पर निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता है।
  • केंद्रीय मंत्रीपरिषद में मंत्रियों की संख्या लोकसभा के कुल सीट के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। इसका निर्धारण 91वाँ संविधान संसोधन 2003 के तहत् किया गया है। इस संविधान संसोधन के तहत् यह भी निर्धारित किया गया कि राज्यमंत्री परिषद में मंत्रियों की संख्या विधानसभा के कुल सीट के 15 प्रतिशत के अधिक नहीं होगा ।
  • दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश में मंत्रियों की संख्या विधानसभा के कुल सीट का मात्र 10 प्रतिशत होता है |
अनुच्छेद-75 (1)
यह अनुच्छेद कहता है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा । अर्थात हम यह कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नियुक्त होने वाला अधिकारी होता है ।
  • लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त भारत के राष्ट्रपति करते हैं |
अनुच्छेद-75 (2)
यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद - पर्यत्न पद धारण करेगा।
अनुच्छेद-75 (3)
यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रिपरिषद सामुहिक तौर पर लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगा। अर्थात केंद्रीय मंत्रिमंडल तब तक अस्तित्व में रह सकती है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत प्राप्त है।
अनुच्छेद-75(4)
यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रीगण अपना कर्तव्य निर्वहन से पहले राष्ट्रपति के समक्ष पद और गोपनियता का शपथ लेगें ।
नोट- मंत्री सुचना की गोपनियता का शपथ लेता है जबकि संसद सदस्य कर्तव्यों के निर्वहन का शपथ लेता है ।
अनुच्छेद-75(5)
यह अनुच्छेद कहता है कोई व्यक्ति लोकसभा / राज्यसभा का सदस्य नहीं है फिर भी वह मंत्री बन सकता है, लेकिन मंत्री बनने के 6 माह के भीतर दोनों में से किसी भी एक सदन का सदस्य होना आवश्यक होता है अन्यथा उन्हें मंत्री पद से हटना होता है।
नोट- मंत्री बनने के लिए दोनों में से (लोकसभा / राजसभा) किसी भी एक सदन की सदस्यता आवश्यक होती है।

विश्वास और अविश्वास प्रस्ताव में अंतर-

विश्वास प्रस्ताव अविश्वास प्रस्ताव
1. यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाता है । 1. यह प्रस्ताव लोकसभा में आता है ।
2. यह सत्ता पक्ष के द्वारा लाया जाता है । 2. यह प्रस्ताव विपक्षी पार्टियों के द्वारा लाया जाता है।
3. अगर यह प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित नहीं होता है तो सरकार गिर जाती है । 3. यह प्रस्ताव लोकसभा के 50 सदस्यों के लिखित समर्थन से लाया जाता है तथा इस प्रस्ताव का कारण बताना भी आवश्यक होता है।
4. इस प्रस्ताव के माध्यम से सत्ता पक्ष यह दिखलाता है कि लोकसभा में उसे बहुमत प्राप्त है। 4. अगर मतदान के दौरान अविश्वास प्रस्ताव साधारण बहुमत से पारित हो जाता है तो सरकार गिर जाती है।
5. सर्वप्रथम यह प्रस्ताव 1963 ई. में प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था ।

प्रधानमंत्री

  • भारत सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। साथ ही साथ कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है। 
  • प्रधानमंत्री को राष्ट्रपति दिलाते हैं ।
  • प्रधानमंत्री अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है । प्रधानमंत्री के त्यागपत्र देने से पुरा मंत्रिमंडल बर्खास्त हो जाता है ।
  • प्रधानमंत्री के निधन होने से भी मंत्रिमंडल बर्खास्त हो जाता है। अभी तक भारतीय इतिहास में तीन ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनका पद पर रहते हुए निधन हुआ है, वे निम्न हैं-
    1. पंडित जवाहर लाल नेहरू 
    2. लाल बहादुर शास्त्री
    3. श्रीमति इन्दिरा गाँधी
  • एकमात्र प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री हैं जिनका निधन भारत से बाहर ताशकंद में हुआ ।
  • पंडित जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन होने के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य गुलजारी लाल नंदा ने किया था ।
निम्नलिखित में से कौन भारत के प्रधानमंत्री रहें हैं ?
(क) शंकर दयाल शर्मा
(ख) गुलजारी लाल नंदा
(ग) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(घ) फकरुद्धिन अहमद
कार्यकालः
समान्यतः प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 वर्षो का होता है लेकिन कोई भी प्रधानमंत्री अपने पद पर तब तक . रहतें हैं. जब तक कि उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त रहता है ।
प्रधानमंत्री का कार्यकाल कितने वर्षो का होता है ?
(क) 5 वर्ष
(ख) जब तक लाकसभा का सदस्य हो ।
(ग) जब तक राज्यसभा का सदस्य हो ।
(घ) जब तक लोकसभा में बहुमत प्राप्त हो ।
  • भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए दोनों सदनों (लोकसभा / राज्यसभा) में से किसी भी एक सदन का सदस्य होना आवश्यक होता है। जैसे- नरेंद्र मोदी लोकसभा का सदस्य हैं तथा मनमोहन सिंह राज्य सभा का सदस्य थें ।
  • प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है |
  • अगर कोई व्यक्ति किसी सदन का सदस्य नहीं है फिर भी वह अधिकतम 6 माह तक प्रधानमंत्री के पद पर रह सकता है लेकिन 6 से अधिक समय तक बनें रहने के लिए उसे दोनों में किसी एक सदन की सदस्यता लेनी आवश्यक होती है ।
  • ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने के लिए 'हाउस ऑफ कॉमन' का सदस्य होना आवश्यक होता है ।
  • ब्रिटेन के संदर्भ में लोकसभा की तुलना 'हाउस ऑफ कॉमन' तथा राज्यसभा की तुलना 'हाउस ऑफ लॉर्डस' से की जाती है ।
प्रधानमंत्री किन परिस्थिति में अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं करता है ?
उत्तर- कोई प्रधानमंत्री तब अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान नहीं करता है जब वह राज्यसभा का सदस्य होता है लेकिन अगर प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य है तो वो अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कर सकता है। जैसे- नरेंद्र मोदी मतदान कर सकते हैं लेकिन मनमोहन सिंह मतदान नहीं कर सकते थें ।

अब तक कि प्रधानमंत्री

क्र सं. प्रधानमंत्री कार्यकाल
1. पंडित जवाहर लाल नेहरू 1947-1964
2. लल बहादुर शास्त्री 1964-1966
3. इन्दिरा गाँधी 1966-1977 तथा 1980-1984
4. मोरारजी देसाई 1977-1979
5. चौधरी चरण सिंह 1979-1980
6. इन्दिरा गाँधी 1980-1984
7. राजीव गाँधी 1984-1989
8. विश्वनाथ प्रताप सिंह 1989-1990
9. चन्द्रशेखर 1990-1991
10. पी. बी. नरसिम्हा राव 1991-1996
11. अटल बिहारी वाजपेई 1996 (मात्र 13 दिन के लिए)
12. एच. डी. देवगौरा 1996-1997
13. आई. के. गुजराल 1997-1998
14. अटल बिहारी वाजपेई 1998-2002
15. मनमोहन सिंह 2002-2014
16. नरेंद्र मोदी 2014 से अब तक

कुल 6 ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो प्रधानमंत्री बनने से पूर्व किसी ना किसी राज्य के मुख्यमंत्री थें, जो निम्न हैं-

क्र. सं. मुख्यमंत्री राज्य
1. मोरारजी देसाई बंबई प्रांत
2. चौधरी चरण सिंह उत्तरप्रदेश
3. विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तरप्रदेश
4. पी. बी. नरसिम्हा राव आंध्रप्रदेश
5. एच. बी. देवगौरा कर्नाटक
6. नरेंद्र मोदी गुजरात
  • सबसे अधिक उम्र में प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड मोरारजी देसाई ( 81 वर्ष) तथा सबसे कम उम्र में प्रधानमंत्री बनने का रिकॉर्ड राजीव गाँधी (40 वर्ष) के नाम दर्ज है।
  • अभी तक मात्र दो ऐसे हैं जो अलग-अलग अवधि में प्रधानमंत्री रहें हैं-
    1. इन्दिरा गाँधी
    2. अटल बिहारी वाजपेई
  • देश की प्रथम और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी बनी है।
  • विश्वनाथ प्रताप सिंह को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया गया था ।
  • अभी तक प्रधानमंत्री के रूप में सबसे बड़ी कार्यकाल पंडित जवाहर लाल नेहरू का रहा है वहीं सबसे छोटा कार्यकाल अटल बिहारी वाजपेई का रहा है ।
  • दक्षिण भारत से प्रधानमंत्री बनने वाले प्रथम राजनेता पी. बी. नरसिम्हा राव हुए।
  • भारत को सर्वाधिक प्रधानमंत्री उत्तरप्रदेश राज्य ने दिया है ।
  • चौधरी चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो लोकसभा का सामना नहीं किये थें ।
  • निम्न प्रधानमंत्री हैं जो राज्यसभा के सदस्य थें-
    1. इंदिरा गाँधी
    2. एच. डी. देवगौरा
    3. मनमोहन सिंह
    4. आई. के. गुजराल
  • डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारत के प्रधानमंत्री की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति से की है।
  • भरत के राष्ट्रपति की तुलना ब्रिटेन के राजा या रानी से की जाती है।

उप प्रधानमंत्र

  • उप प्रधानमंत्री कोई संवैधानिक पद नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार का कैबिनेट मंत्री होता है। विशेषकर भारतीय राजनीतिक में तुष्टिकरण की राजनीतिक करने हेतू यह पद कभी-कभी सृजित किया जाता है। यह जरूरी नहीं है कि प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में उप प्रधानमंत्री कोई का कार्य करें |
  • भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल बनें थें ।
क्र. सं. प्रधानमंत्री उप प्रधानमंत्री
1. पं. जवाहर लाल नेहरू सरदार बल्लभ भाई पटेल
2. श्रीमति इन्दिरा गाँधी मोरारजी देसाई
3. मेरारजी देसाई चौधरी चरण सिंह तथा जगजीवन राम
4. विश्वनाथ प्रताप सिंह देवी लाल
5. चंद्रशेखर देवी लाल
6. अटल बिहारी वाजपेई लाल कृष्ण अडवाणी
7. चौधरी चरण सिंह V. D. चौहान
  • प्रधानमंत्री भारत सरकार का मुख्य प्रवक्ता होता है। भारत सरकार की समस्त नीतियों की घोषणा प्रधानमंत्री करते हैं।
  • भारत के विदेश नीति को मूर्त रूप भारत के प्रधानमंत्री देते हैं ।
  • आपदा स्थिति में आपदा प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं।
  • भारत के सेनाओं के राजनीतिक प्रमुख प्रधानमंत्री होते हैं ।
  • नीति आयोग (योजना आयोग), राष्ट्रीय विकास परिषद, राष्ट्रीय एकता परिषद, राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद, अंतर्राजीय परिषद, इत्यादि संगठन के बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं ।

महान्यायवादी (Attornoy Genral of India)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-76 यह कहता है कि भारत का एक महान्यायवादी होगा। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है । राष्ट्रपति महान्यायवादी के रूप में उस व्यक्ति को नियुक्त करता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिश बनने की योग्यता हो । महान्यायवादी का अपना कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत्न पद धारण करता है।
  • महान्यायवादी भारत सरकार का सर्वोच्च कानूनी सलाहकार अथवा वकील होता है। पूरे भारत के भीतर सभी न्यायलयों में भारत सरकार का पक्ष महान्यायवादी रखता है।
  • महान्यायवादी को वही वेतन भत्ता प्राप्त होता है जो राष्ट्रपति के द्वारा निर्धारित किया जाता है। इन्हें वर्तमान समय में सुप्रीम कोर्ट के अनुकूल 2,50,000/- रूपया वेतन प्रतिमाह भारत की संचित निधी से दिया जाता है।
  • अनुच्छेद- 88 कहता है कि महान्यायवादी संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में जाकर बैठ सकता है, बोल सकता है. लेकिन मतदान नहीं कर सकता है।
  • महान्यायवादी पद पर रहते हुए निजी प्रैक्टिस कर सकता है। लेकिन वैसे मामले जिसका एक पक्षकार भारत 1 सरकार हो. उसकी पैरवी नहीं कर सकता है।
  • भारत का प्रथम महान्यायवादी एम. सी. शीतलवाड़ बनें हैं। (1950-1963, सबसे लंबा कार्यकाल)
  • महान्यायवादी के रूप में सबसे छोटा कार्यकाल शोली सोराबजी का था । (1989-1990)
  • वर्तमान में भारत का महान्यायवादी के. के. वेनूगोपाल हैं। (2017 - से अब तक 2022 )
अनुच्छेद-73
 संघ के कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
अनुच्छेद-77
भारत सरकार के कार्य संचालन
अनुच्छेद-78
प्रधानमंत्री का कर्तव्य ***
♦ यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रिपरिषद ने जो निर्णय लिया है उस निर्णय को राष्ट्रपति को अवगत प्रधानमंत्री करवाएगें अर्थात, हम यह कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच एक योजक कड़ी के रूप में काम करता है ।

संसद (Parliament)

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 79 यह कहता है कि राष्ट्रपति, लोकसभा और राजसभा को मिलाकर संसद का गठन किया जाता है। भारत के भीतर कानून का निर्माण करनेवाली सर्वोच्च संस्था संसद है। संसद के अंतर्गत जो दो सदन लोकसभा और राजसभा आता है, इन दोनों सदनों के सदस्यों को सांसद कहा जाता है।
  • भारत के लोकसभा की तुलना अमेरिका के प्रतिनिधि सभा तथा ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन से की जाती है।
  • भारत के राजसभा की तुलना अमेरिका के सीनेट तथा ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्डस से की जाती है |
  • अमेरिकी कांग्रेस के अंतर्गत प्रतिनिधि सभा में 435 सदस्य तथा सीनेट में 100 सदस्य होते हैं। इन दोनों संस्थाओं का चुनाव प्रत्यक्ष होता है जिसमें अमेरिका की आम जनता भाग लेती है ।

राजसभा

  • अनुच्छेद - 80 कहता है कि भारत का एक सदन राज्यसभा होगा। इसे उच्च सदन, द्वितीय सदन या बड़ो का सदन कहा जाता है। पहली बार राजसभा के लिए चुनाव 1952 ई. में हुए थें। 1954 ई. में राजपरिषद का नाम बदलकर राजसभा किया गया। यह एक स्थायी सदन है जिस कारण इसे भंग नहीं किया जा सकता है। इस सदन का कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि सदन के सदस्यों का कार्यकाल होता है। सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्षो का होता है। प्रत्येक वर्ष इस सदन के एक तिहाई सदस्य पदमुक्त होते हैं ।
  • राज्यसभा की संरचना: 

     

नोट:- अनुच्छेद - 80 ( 3 ) कहता है कि राष्ट्रपति 12 सदस्यों को साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा के क्षेत्र से मनोनित करेगें ।
  • राजसभा के लिए चुनाव Election Commission of India के द्वारा करवाया जाता है। यह चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा होता है ।
  • राजसभा सदस्य बनने की योग्यताः
    (1) भारत का नागरिक हो ।
    (2) उम्र कम से कम 30 वर्ष हो ।
    (3) लाभ के पद ना हो ।
    (4) भारत के मतदाता सूची में नाम हो ।
    (5) पागल या दिवालिया ना हो ।
नोट:- 2003 ई. में इस व्यवस्था को समाप्त किया गया कि जिस व्यक्ति का नाम जिस राज्य के मतदाता सूची में है उस राज्य से ही चुनकर जायेगा और यह व्यवस्था बनाई गई कि कोई भी भारतीय नागरिक किसी राज्य से राजसभा का सदस्य बन सकता है। जैसे- रंजीता रंजन छत्तीसगढ़ से राजसभा का सदस्य बनने वाली है।
  • राजसभा के सदस्यों के निर्वाचन में राज्य के विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। जैसे- बिहार के 16 राजसभा सीटों के लिए जब चुनाव होता है तो उसमें बिहार के विधानसभा के 243 निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।
  • राजसभा के पदधिकारी:
अनुच्छेद - 89
यह अनुच्छेद कहता है कि राजसभा का एक सभापति होगा और एक उपसभापति होगा । राजसभा का सभापतित्व उपराष्ट्रपति करते हैं जो कि राजसभा का सदस्य नहीं होते हैं लेकिन राजसभा का -उपसभापति बनने के लिए राजसभा का सदस्य होना आवश्यक है।
अनुच्छेद- 90
यह अनुच्छेद उपसभापति के पद रिक्ति के बारे में जानकारी प्रदान करता है । उपसभापति का पदं निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है:-
(1) उपसभापति अपना त्यागपत्र सभापति को देता है, लेकिन सभापति अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है ।
(2) जब उपसभापति राजसभा का सदस्य नहीं रह जाता है ।
(3) उपसभापति को राजसभा साधारण बहुमत से संकल्प पारित कर पद से हटा देता है । (4) पद पर रहते हुए उपसभापति का निधन हो गया हो ।
अनुच्छेद- 91
सभापति के कार्यधिकार शक्ति के विषय में जानकारी प्राप्त होता है। साथ ही साथ सभापति के रूप में कोई भी काम करें उसके भी कार्य अधिकार शक्ति की जानकारी देता है।
अनुच्छेद- 92
यह अनुच्छेद कहता है कि सभापति और उपसभापति को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तो पीठासीन पदाधिकारी (सभापति / उपसभापति ) के तौर पर काम नहीं कर सकेगें अर्थात, अगर राजसभा के सभापति वेंकैया नाइडू को पद से हटाने का संकल्प राजसभा में आया हो तो वे सभापति के रूप में काम नहीं करेगें ।

लोकसभा

भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 81 कहता है कि संसद का एक सदन लोकसभा होगा। लोकसभा को निम्न सदन / जनता का सदन / लोकप्रिय सदन या प्रथम सदन कहा जाता है। लोकसभा के लिए पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए हैं। जनता का सदन का नाम बदलकर 1954 में लोकसभा किया गया।

लोकसभा बनने की योग्यताः
(1) भारत का नागरिक हो ।
(2) उम्र कम से कम 25 वर्ष हो ।
(3) भारत के मतदाता सूची में नाम हो ।
(4) लाभ के पद पर ना हो ।
(5) पागल या दिवालियाँ ना हो ।
लोकसभा का चुनावः
यह चुनाव Election Commission of India के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान के द्वारा होता है। इस चुनाव में भारत की आम जनता भाग लेती है।
आंग्ल-भारतीयः
यूरोपीय पिता औरं भारतीय माता से जो संतान की उत्पत्ति हुआ है, उसे ही आंग्ल-भारतीय समुदाय का माना गया है। संविधान लागू होने के समय आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों की संख्या लाखों में थी इस कारण संविधान सभा में भारतीय समुदाय के लोगों को लोकसभा और विधानसभा में प्रतिनिधित्व दिया ।
अनुच्छेद-331
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह 2 आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों को लोकसभा में मनोनित कर सकता है ।
अनुच्छेद-333
यह अनुच्छेद राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह विधानसभा में 1 आंग्ल-भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन कर सकता है।
  • हाल ही के दिनों में केंद्र के मोदी सरकार ने 104वाँ संविधान संसोधन अधिनियम 2019 के तहत् आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों के मनोनयन संबंधी प्रावधान को समाप्त कर दिया है।
लोकसभा की संरचनाः
लोकसभा में अधिकतम सदस्यों की संख्या 550 हो सकती है
अनुच्छेद - 81 (1) (क)
यह अनुच्छेद कहता है, लोकसभा में भारत के 28 प्रांतों से 530 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते हैं।
अनुच्छेद - 81 (1) (ख)
यह अनुच्छेद कहता है कि लोकसभा में सभी केंद्रशासित प्रदेश से 20 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते हैं।
  • मूल संविधान में लोकसभा सीटों की संख्या 500 हुआ करता था। 7वाँ संविधान संसोधन 1956 के तहत “लोकसभा में सीटों की संख्या 500 से बढ़ाकर 525 कर दिया गया। कलांतर में 31वाँ संविधान संसोधन 1973 के तहत सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 किया गया ।
  • Protem Speaker (अस्थायी अध्यक्ष): लोकसभा में से नवनिर्वाचित सदस्यों में से सबसे वरिष्ठ सदस्य को Protem Speaker के रूप में नियुक्त भारत के राष्ट्रपति करते हैं । इनका सबसे प्रमुख काम यह है कि ये लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाते हैं।
  • Protem Speaker का कोई कार्यकाल नहीं होता है।
  • लाकसभा के सदस्य अगर बिना किसी शपथ ग्रहण के सदन की कार्यवाही में भाग लेता है तो उसे प्रतिदिन के हिसाब से 500/- रूपया जुर्माना देना पड़ता है।

लोकसभा के पदाधिकारी:

अनुच्छेद-93
यह अनुच्छेद कहता है, लोकसभा का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा ।
  • लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष वही हो सकता है जो लोकसभा का सदस्य होता है।
  • लोकसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से ही साधारण बहुमत के आधार पर एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष को चुनता है ।
अनुच्छेद- 94
यह अनुच्छेद हमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद रिक्त होने के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद निम्न स्थितियों में रिक्त हो सकता है-
(1) निधन होने के पश्चात्
(2) त्यागपत्र देने परः- लोकसभा का अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को देता है और उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को देता है।
(3) अगर लोकसभा संकल्प पारित करके साधारण बहुमत से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को पद से हटा देता है।
अनुच्छेद- 95
यह अनुच्छेद हमें अध्यक्ष के कार्य, अधिकार, शक्ति अथवा अध्यक्ष के रूप में जो भी व्यक्ति काम करें उसके कार्य, अधिकार, शक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
अनुच्छेद-96
यह अनुच्छेद कहता है कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तो वे पीठासीन अधिकारी के तौर पे काम नहीं कर सकेगें ।
अध्यक्ष के कार्यः
(1) लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का शपथ ग्रहण नहीं होता है
(2) लोकसभा में जब किसी विधेयक पर मतदान होता है तो पहली बार अध्यक्ष मतदान में भाग नहीं लेते हैं, लेकिन मतदान के दौरान बराबर की स्थिति उत्पन्न होती है तब लाकसभा के अध्यक्ष निर्णायक मत डालते हैं ।
(3) लोकसभा के अध्यक्ष, अध्यक्ष बनने के बाद अपनी पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र दे सकता है। इस स्थिति में उन पर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होता है।
(4) भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 110 के तहत् धन विधेयक को परिभाषित लोकसभा के अध्यक्ष के द्वारा किया जाता है। धन विधेयक साधारण बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है, नही तो सरकार गिर जाती है। यह विधेयक राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से सर्वप्रथम लाकसभा में लाया जाता है ।
(5) भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 108 के तहत् संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा तब बुलाया जाता है जब किसी विधेयक को लेकर संसद के दोनों सदनों के बीच मतभेद हो जाता है, विशेषकर संयुक्त अधिवेशन साधारण विधेयक को लेकर ही बुलाया जाता है। आज तक भारतीय इतिहास में 3 बार संयुक्त अधिवेशन बुलायें गयें हैं।
(1) दहेज प्रथा प्रतिशेध अधिनियम 1961 को लेकर 1962 में।
(2) बैकिंग सेवा अधिनियम 1977 को लेकर 1978 में ।
(3) निवारक निरोध कानून POTA को लेकर 2002 में ।
नोट- धन विधेयक और संविधान संसोधन विधेयक को लेकर संयुक्त अधिवेशन नहीं बुलाया जा सकता है।
  • संयुक्त अधिवेशन में विधेयक को पारित साधारण बहुमत के आधार पर किया जाता है। साथ ही साथ संयुक्त अधिवेशन का क्रियाकलाप लोकसभा के प्रक्रिया के तहत् होता है ।
  • संयुक्त अधिवेशन बुलाता राष्ट्रपति है लेकिन इसकी अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष करतें हैं। अगर अध्यक्ष नहीं होता है तब उपाध्यक्ष अध्यक्षता करता है, लेकिन जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं होता है तब राजसभा का उपसभापति अध्यक्षता करता है और जब उपसभापति भी नहीं होते हैं तब लोकसभा के 6 सदस्यों के पेनल में से उपस्थित कोई सदस्य करता है ।
  • लोकसभा में विपक्ष का नेताः- सत्ता पार्टी के अलावे वैसी कोई भी राजनीतिक पार्टी जो लोकसभा के कुल सीट के 10% या 1 / 10 भाग सीट प्राप्त करता है तो उस पार्टी के किसी नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा दिया जाता है। अगर एक से अधिक पार्टियों को 10% से अधिक सीट प्राप्त होता है तो इस स्थिति में सबसे अधिक सीट प्राप्त करने वाले पार्टी को विपक्षी पार्टी का दर्जा दिया जाता है। विपक्ष के किसी नेता को विपक्ष के नेता का भी दर्जा दिया जाता है। लोकसभा में विपक्ष के नेता को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है । लोकसभा में विपक्ष पद नेता को स्वीकृति 1969 ई. में मिली है। लोकसभा में प्रथम विपक्ष का नेता 1969 ई. में रामसुभग सिंह बनें थें, वहीं वर्तमान समय में लोकसभा के विपक्ष का नेता कांग्रेस के अधिरंजन चौधरी हैं ।
  • लोकसभा की गणमूर्ति (Quorum):- Quorum वह न्यूनतम संख्या होती है जिसके मौजूद होने से सदन में काम की शुरूआत हो जाती है। लोकसभा का Quorum उसकी कु संख्या का 1 / 10 भाग अर्थात 55 होता है, वहीं राज्यसभा का Quorum भी उसकी कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होता है अर्थात, राज्यसभा का Quorum 25 होता है ।
  • विधि की निर्माण की प्रक्रियाः- विधि के निर्माण हेतू सबसे पहले विधेयक तैयार किया जाता है। विधेयक, संबंधित मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है। विधेयक को जिस सदन में रखना होता है, उस सदन के सभापति अध्यक्ष को विधेयक की सुचना एक माह पूर्व देना आवश्यक होता है तत्पश्चात् निर्धारित तिथि को विधेयक उस सदन में रखा जाता है। विधेयक को लेकर 3 वाचन होता है-

प्रथम वाचन:-

इस वाचन में विधेयक को लाने का उदेश्य बताना होता है, साथ ही साथ विधेयक पर होने वाले खर्च को भी बताता है। जब विधेयक भारत के राजपत्र में प्रकाशित हो जाता है तब यह माना जाता है कि प्रथम वाचन पूरा हुआ ।

द्वितीय वाचनः-

 इस वाचन के दौरान विधेयक पर वाद विवाद और चर्चा होता है। इस वाचन के दौरान ही विधेयक जाँच हेतू प्रबर समिति को सौंपा जाता है । इस वाचन के दौरान ही विधेयक में संसोधन होता है ।

प्रबर समितिः-
किसी विधेयक के जाँच हेतू गठित समिति प्रबर समिति कहलाता है। दोनों सदनों का अलग अलग प्रबर समिति भी होता है तथा दोनों सदनों का संयुक्त प्रबर समिति भी होता है। संयुक्त प्रवर समिति में 45 सदस्य होते हैं, जिसमें से 30 सदस्य लोकसभा तथा 15 सदस्य राज्यसभा से आते हैं, लेकिन वहीं दोनों सदनों के अलग-अलग प्रबर समिति होने पर सदस्यों की संख्या 30 होती है। प्रवर समिति को अपनी रिर्पोट 3 महिना के अंदर सौंपना होता है ।

तृतीय वाचन:-

चर्चा-परिचर्चा के बाद जब मतदान होता है, तब यह माना जाता है कि तृतीय वाचन पूर्ण हुए। तीनों वाचन पूरा होने के बाद विधेयक एक सदन से दूसरें सदन में जाता है। दूसरा सदन विधेयक पर निम्न निर्णय लेतें हैं-
(क) स्वीकृति प्रदान करेगा ।
(ख) स्वीकृति प्रदान नहीं करेगा ।
 (ग) संसोधन के साथ स्वीकृति प्रदान करेगा।
 (घ) विधेयक पर कोई निर्णय नहीं देगा। 
  • उपर्युक्त लिखित पहली स्थिति में यह माना जाता है कि दोनों सदनों नक विधेयक को पारित कर दिया, तत्पश्चात् यह विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है और अगर राष्ट्रपति अनुमति दे देता है तो विधेयक कानून बन जाता है।
  • उपर्युक्त लिखित ख, ग, घ की स्थितियों में यह माना जाता है कि संसद के दोनों सदनों के बीच मतभेद हो गया है, तब राष्ट्रपति के द्वारा सामंजस्य बैठाने हेतू अनुच्छेद-1 - 108 के तहत् संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता हैं ।
> दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए जाता है तो राष्ट्रपति उस पर निम्न निर्णय दे सकता है— 
(1) स्वीकृति प्रदान कर सकता है।
(2) स्वीकृति प्रदान नहीं भी कर सकता है ।
ऐसा राष्ट्रपति गैर-सरकारी विधेयक पर करता है।
(3) राष्ट्रपति विधेयक को पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है।
(4) राष्ट्रपति विधेयक पर कोई निर्णय नहीं भी दे सकता है
अनुच्छेद:- 97
यह अनुच्छेद हमें लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति और उपसभापति के वेतन की जानकारी प्रदान करता है ।
अनुच्छेद:- 98
यह अनुच्छेद हमें संसद के सचिवालय के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
> लोकसभा का अपना सचिवालय होता है तथा राज्यसभा का अपना सचिवालय होता है दिन-प्रतिदिन के काम को निपटाता है । सचिवालय का प्रमुख महासचिव होता है । । सचिवालय
लोकसभा के महासचिवः-
लोकसभा के महासचिव की नियुकित लोकसभा के अध्यक्ष करतें हैं। यह एक प्रशासनिक पद होता है। लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बाद, तीसरा सबसे बड़ा पदाधिकारी महासचिव को माना जाता है। लोकसभा के प्रथम महासचिव M. N कौल बनें हैं। लोकसभा के प्रथम महिला महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव बनीं है। वर्तमान लोकसभा के महासचिव उत्पल सिंह 1
राज्यसभा के महासविच:-
राज्यसभा के महासचिव की नियुक्ति राज्यसभा के सभापति करते हैं । सभापति और उपसभापति के बाद, तीसरा सबसे महत्वपूर्ण पद महासचिव का पद है। यह एक प्रशासनिक पद है। राज्यसभा के प्रथम महासचिव S. N मुखर्जी बनें हैं। वर्तमान में राज्यसभा के महासचिव प्रमोद चंद्र मोदी हैं।
नोट- लोकसभा का प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर तथा प्रथम उपाध्यक्ष श्री अनंत शयनम आयंगर बनें हैं। - वर्तमान में लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला हैं ।
  • जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र 'बाहरी दिल्ली' है तो वहीं सबसे छोटा लोकसभा क्षेत्र लक्ष्यद्वीप है ।
  • क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र लद्याख है तो वहीं सबसे छोटा लोकसभा क्षेत्र चाँदनी चौक है।
संसद सदस्यों की अयोग्यता/निरर्हताः
(1) अगर कोई संसद सदस्य भारत की नागरिकता का परित्याग कर दकता है। 
(2) अगर संसद सदस्य पागल या दिवालियाँ हो जाता है ।
(3) अगर क़ोई संसद सदस्य बिना सदन के अध्यक्ष और सीपति को सुचना के लगातार 60 दिनों तक अनुपस्थित रहता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जायेगी ।
(4) कोई भी व्यक्ति एक ही समय में दोनों सदन का सदस्य नहीं बन सकता है। अगर कोई व्यक्ति एक ही समय में दोनों सदन का सदस्य बन जाता है तो उसे एक सदन की सदस्यता छोड़नी होती है, अगर व्यक्ति एक सदन की सदस्यता नहीं छोड़ता है तो यह माना जाता है कि वह पहले से जिस सदन का सदस्य है उस सदन की सदस्यता समाप्त हो गई है। ***
(5) अगर कोई व्यक्ति संसद के साथ-साथ विधानसभा का सदस्य भी बन जाता है तो इस स्थिति में 14 दिन के भीतर दोनों में से किसी एक जगह की सदस्यता छोड़नी होती है। ***
(6) अगर कोई संसद सदस्य न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाता है और उसे 2 वर्ष से अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाता है ।
संसद के सत्रः-
संवैधानिक तौर पर संसद के दो सत्रो का आयोजन होना चाहिए, लेकिन एक वर्ष में संसद के 3 सत्रों का आयोजन होता है। भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि संसद के दो सत्रों के बीच का समय अंतराल 6 माह से ज्यादा नहीं हो सकता है ।
(1) बजट सत्रः-
यह सत्र प्रथम एवं सबसे बड़ा सत्र होता है । यह सत्र फरवरी से मई के बीच में चलता है।
(2) मानसून सत्रः-
यह सत्र जुलाई और अगस्त माह में आयोजित होता है ।
(3) शीत सत्र:-
यह वर्ष का अंतिम सत्र होता है। यह सत्र नवम्बर-दिसम्बर में आयोजित होता है ।
संसद की कार्यविधिः-
संसद में समान्यतः कार्य सुबह के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक चलता है। जिसमें दोपहर 1 से 2 बजे का समय विश्राम काल होता है । संसद की कार्यवाही की शुरूआत राष्ट्रगान जन-गण-मन से जबकि कार्यवाही की समाप्ति राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् से होता है।
प्रश्न कालः -
सुबह 11 से 12 बजे का समय प्रश्न काल कहलाता है । इस अवधि के दौरान संसद सदस्य संबंधित विभाग के मंत्री से प्रश्न पूछता है तथा मंत्री उसका जबाव देता है। प्रश्न मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-
(1) तारांकित प्रश्नः - वैसे प्रश्न जिसका जबाव मौखिक देना होता है तारांकित प्रश्न कहलाता है। इस पर पूरक प्रश्न पूछा जा सकता है। यह प्रश्न हरे रंग के कागज पर लिखा जाता है ।
(2) अतारांकित प्रश्नः- वैसे प्रश्न. जिसका जबाव लिखित देना होता है अतारांकित प्रश्न कहलाता है। इस पर पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता है। यह प्रश्न सफेद कागज में लिखा जाता है।
(3) अल्पसूचना प्रश्न :- 10 दिन से कम समय में सुचना देकर जो किसी लोक- महत्व के मुद्दा को उठाते हुए संसद सदस्यों के द्वारा प्रश्न पूछा जाता है उसे ही अल्पसूचना प्रश्न कहा जाता है इस प्रश्न का जबाव भी मौखिक ही दिया जाता है इसलिए इस पर भी पूरक प्रश्न पूछा जा सकता है। यह प्रश्न हल्के गुलाबी रंग के कागज पर लिखा जाता है।
शून्य काल (12 से 1 बजे ):-
प्रश्न काल के ठीक बाद के समय को शून्य काल कहा जाता है। इस अवधि को शून्यकाल नाम भारतीय मीडिया के द्वारा 1962 ई. में दिया गया है। यह संसदीय व्यवस्था में भारत की देन मानी जाती है ।
संसदीय समितिः-
संसद का काम काफी व्यापक होता है जिस कारण संसद अपने सभी कार्यो को पूरा नहीं कर पाता है। वैसे काम जो संसद नहीं कर पाते हैं, उन कार्यो को करने हेतू ही संसदीय समितियाँ गठित की जाती है । संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती है। (1) स्थायी | (2) अस्थायी
(1) स्थायी:- वैसी समिति जो हमेशा अस्तित्व में रहता है स्थायी समिति कहलाता
(2) अस्थायी: - इसे तदर्थ समिति भी कहा जाता है। किसी खास प्रायोजन के लिए जब समिति गठित की जाती है और उदेश्य के पूरा होते ही समिति भंग कर दिया जाता है उसे ही अस्थायी या तदर्थ समिति कहते हैं ।

स्थायी समिति

वित्तीय समिति:-
सरकार के वित्तीय कार्य से संबंधित संसदीय समिति को वित्तीय समिति कहा जाता है। वित्तीय समिति तीन प्रकार का होता है ।
(1) लोकलेखा समितिः-
यह भारत की सबसे प्राचीनतम वित्तीय समिति है। इस समिति का गठन भारत शासन अधिनियम 1919 के तहत् 1921 में किया गया है। इस समिति में वर्ततान में 22 सदस्य हैं। जिसमें 15 सदस्य लोकसभा और 7 सदस्य राज्यसभा से आते हैं। 1967 ई. में यह प्रावधान किया गया कि इस समिति का अध्यक्ष लाकसभा में विपक्ष का कोई नेता होगा। लोकसभा के विपक्ष के नेता को समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त लोकसभा का अध्यक्ष करता है । इस समिति का सबसे प्रमुख काम भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) के रिपोर्ट की जाँच करना है । (CAG) के रिपोर्ट की जाँच कर अपना प्रतिवेदन लोकसभा के अध्यक्ष को देता है ।
(2) प्राक्कलन समितिः-
इस समिति को कई नाम जैसे- आकलन समिति / स्थायी मितव्यता समिति / Estimate Committee के नाम से जाना जाता है। 1950 ई. में भारत के वित्त मंत्री जॉन मथाई के सिफारिस पर बजट के पूर्व अनुमान को लेकर प्राक्लन समिति का गठन किया गया। इस समिति में सदस्यों की संख्या 30 होती है । यह भारत की सबसे बड़ी स्थायी संसदीय समिति है । इस समिति के सभी सदस्य लोकसभा से ही आते हैं। इस समिति का अध्यक्ष सत्ताधारी दल का ही कोई नेता हो सकता है।
सरकारी उपक्रम / लोक उपक्रम समितिः- .
कृष्ण मेनन समिति के सिफारिस पर 1964 ई. में सरकारी उपक्रम समिति का गठन किया गया है। इस समिति में कुल 22 सदस्य होते हैं। जिसमें से 15 सदस्य लोकसभा तथा 7 सदस्य राज्यसभा से आते हैं । समान्यतः इस समिति के अध्यक्ष भी सत्ताधारी दल का ही कोई नेता होता है। इस समिति का सबसे प्रमुख काम सरकारी कंपनी जैसे - Air India, LIC, BSNL इत्यादि के लेखाओं ( Account) की जाँच करना होता है ।
> उपर्युक्त लिखित तीनों समितियों के सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष का होता है । कोई भी मंत्री इन समितियों का सदस्य नहीं बन सकता है। इन समितियों के सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के आधार पर होता है ।
कार्य मंत्रणा समितिः-
संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग कार्य मंत्रणा समिति होता है । इस समिति का कार्य प्रतिदिन के कार्य प्रणाली को निर्धारित करना होता है ।
  • लोकसभा के कार्य मंत्रणा समिति में 15 सदस्य होते हैं। लोकसभा के कार्य मंत्रणा समिति का अध्यक्ष लोकसभा का अध्यक्ष होता है ।
  • राज्यसभा के कार्य मंत्रणा समिति में 11 सदस्य होते हैं । इस समिति का अध्यक्ष राज्यसभा का सभापति होता है।
महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतिः-
1997 में महिला सशक्तिकरण समिति का गठन हुआ । इस समिति का सबसे प्रमुख काम राष्ट्रीय महिला आयोग के रिपोर्ट की जाँच करना है। इस समिति में कुल 30 सदस्य होते हैं जिसमें 20 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा से आते हैं ।
अनु० जाति / अनु0 जनजातिः-
इस समिति में कुल 30 सदस्य होते हैं जिसमें से 20 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा से आते हैं। SC और ST आयोग के रिपोर्ट की जाँच करना इस समिति का सबसे प्रमुख काम होता है ।
विशेषाधिकार समितिः-
संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग विशेषाधिकार समिति होता है। इस समिति का मुख्य कार्य संसद सदस्यों के विशेषाधिकार के हनन की जाँच करना है। लोकसभा के विशेषाधिकार समिति में 15 सदस्य होते हैं जबकि राज्यसभा के विशेषाधिकार समिति में 10 सदस्य होते हैं ।
विभागीय स्थायी समितिः-
विभागीय स्थायी समिति का सुख्या 24 है। इसमें से 8 समिति राज्यसभा के अधीन आता है तो वहीं 16 समिति लोकसभा के अधीन आता है। प्रत्येक विभागीय स्थायी समिति में कुल 31 सदस्य होते हैं। जिसमें से 21 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा से आते हैं । .

अस्थायी/तदर्थ समिति

पुस्तकालय समितिः-
इस समिति में कुल 9 सदस्य होते हैं जिसमें से 6 सदस्य लोकसभा और 3 सदस्य राज्यसभा से आते हैं ।
नियम समितिः-
संसद के दोनों सदन का अलग-अलग नियम समिति होता है। -लोकसभा के नियम समिति में 15 सदस्य होते हैं तथा इस समिति की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करते हैं। राज्यसभा के नियम समिति में 16 सदस्य होते हैं तथा इसकी अध्यक्षता राज्यसभा के सभापति/उपराष्ट्रपति करते हैं।
कार्य सलाहकार समितिः-
संसद के दोनों सदनों का अलग-अलग कार्य सलाहकार समिति होता है। लोकसभा के कार्य सलाहकार समिति में 15 सदस्य होते हैं। इस समिति की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है। राज्यसभा के कार्य सलाहकार समिति में 10 सदस्य होते हैं। इस समिति की अध्यक्षता राज्यसभा का सभापति / उपराष्ट्रपति करता है।
प्रवर समितिः-
यह एक अस्थायी समिति है ।
अधिनस्थ विधायन संबंधी समितिः-
इसका गठन 1953 ई. में हुआ है। लोकसभा के अधिनस्थ विधायन संबंधी समिति में 15 सदस्य होते हैं, वहीं राज्यसभा के अधीनस्थ विधायन संबंधी समिति में 15 सदस्य ही होते हैं।
संयुक्त संसदीय समिति (JPC):-
किसी घटना विशेष की जाँच हेतू इस कमिटी कस गठन किया जाता है। इस कमिटी में राज्यसभा का जितने सदस्य होते हैं, ठीक उसका दोगुना सदस्य लोकसभा का होता है। अभी तक गठित प्रमुख सुयुक्त संसदीय समिति निम्न है-
क्र. सं. वर्ष घोटाला अध्यक्ष
1. 1987 बोफोर्स घोटाला बी. शंकरानंद
2. 1992 हर्षा मेहता का शेयर घोटाला राम निवास मिर्जा
3. 2002 केतन पारिक का शेयर घोटाला अमर मनीक त्रिपाठी
4. 2004 कीटनाशक घोटाला सरद पवार
5. 2011 टू जी एक्सपेट्रम घोटाला पी.सी. चाको
नोट- पहली बार Joint Parliamentry Committee का गठन 1987 में हुआ है।
♦ विधेयक के समाप्त होने तथा नां होने की स्थितियाँ:- विधेयक के सदन में रखें जाने तथा विधेयक के समाप्त के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का अनुच्छेद प्रदान करता है ।
(1) अगर कोई विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में आता है और लोकसभा पारित कर देता है फिर यह विधेयक राज्यसभा में जाता है और उसी समय लोकसभा भंग हो जाता है तो विधयेक समाप्त हो जाता है
(2) अगर कोई विधेयक सर्वप्रथम राज्यसभा में आता हैं और राज्यसभा पारित कर देता है और उसी समय लोकसभा भंग हो जाता है तो विधयेक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(3) अगर कोई विधेयक राज्यसभा में आता है और उसी दौरान राज्यसभा का सत्र समाप्त हो जाता है तो विधेयक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

बजट

√ बजट एक लेख पत्र होता है। जिसमें सारकार के एक वर्ष के आय और व्यय का लेखा-जोखा होता है। भारतीय संविधान में वजट शब्द का प्रयोग नहीं है, बल्कि बजट के स्थान पर वार्षिक वित्तीय विवरण शब्द का उल्लेख है। संसद के सदनों के समक्ष वजट भारत के राष्ट्रपति के द्वारा रखा जाता है, वहीं बजट पेश भारत के वित्त मंत्री द्वारा किया जाता है। अभी तक सबसे ज्यादा बार बजट पेश मोरारजी देशाई (10 बार) ने किया है। वार्षिक वित्तीय विवरण शब्द की चर्चा अनुच्छेद- 112 में है ।
अनुदान की माँग:-
इसकी चर्चा अनुच्छेद- 113 में है। जिस प्रस्ताव के द्वारा सरकार अपने खर्च से संबंधित माँगों " को संसद के समक्ष स्वीकृति के लिए रखवाता है उसे अनुदान की माँग कहा जाता है। यह माँग राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से लोकसभा में सर्वप्रथम लाया जाता है। इस माँग पर ही कटौती प्रस्ताव लाया जाता है। कटौती प्रस्ताव तीन प्रकार का होता है- (1) सांकेतिक कटौती (2) साधारण कटौती ( 3 ) नीति असहमति कटौती
(1) सांकेतिक कटौतीः- इस प्रस्ताव के द्वारा माँगी गई राशी में से 100 रुपया कम करने का प्रस्ताव किया जाता है। I
(2) साधारण कटौती:- इस प्रस्ताव द्वारा माँगी गई राशी में से कुछ रूपया कम करने का प्रस्ताव किया जाता है । जैसे - 10,000 रुपया के बदले 9,000 रुपया दिया जायें।
(3) नीति असहमति कटौती:- इस प्रस्ताव के द्वारा जिस नीति के तहत् धन की माँग की गई है उस नीति को ही खारिज करते हुए धन न देने का प्रस्ताव पारित किया जाता है।

गिलोटिन

  • यह एक फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। बिना चर्चा के अनुदान की माँग को मतदान के लिए रख दिया जाना गिलोटिन कहलाता है ।
विनियोग विधेयकः-
इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 114 में है । यह एक प्रकार का धन विधेयक होता है । वैसा विधेयक जिसके द्वारा भारत की संचित निधि से धन निकाला जाता है उसे विनियोग विधेयक कहते हैं ।
संचित निधि:-
इसकी चर्चा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266 में है । वैसे निधि जिसमें भारत सरकार के समस्त आय जमा होते हैं उसे भारत की संचित निधि कहा जाता है। भारत की संचित निधि पर निम्न व्यय (खर्च) भारित होता है ।
(1) राष्ट्रपति का वेतन, भत्ता, पेंशन
(2) लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन, भत्ता, पेंशन
(3) राज्यसभा के सभापति और उपसभापति का वेतन, भत्ता, पेंशन
(4) सुप्रीम के न्यायधिशों का वेतन, भत्ता, पेंशन, इत्यादि........ |
> अनुच्छेद 266 में ही राज्य के संचित निधि की चर्चा है। राज्य सरकार की समस्त आय राज्य की संचित निधि में जमा होती है। इस आय में निम्नलिखित व्यय (खर्च) भारित होते हैं। जैसे- राज्यपाल का वेतन भत्ता, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन, भत्ता, पेंशन, विधानपरिषद के सभापति और उपसभापति का वेतन, भत्ता, पेंशन, हाई कोर्ट के न्यायधिशों का वेतन, भत्ता, पेंशन, इत्यादि..... |
नोट:- हाईकोर्ट के न्यायधिशों को वेतन राज्य के संचित निधि से दिया जाता है जबकि पेंशन भारत की संचित निधि से दिया जाता है ।
अनुपूरक बजट (अनुच्छेद- 115 ):-
बजट के माध्यम से एक वर्ष हेतू जो खर्च आबंटित होता है अगर वह राशी समय से पहले खर्च हो जाता है तो बचें हुए समय के लिए जो बजट लाया जाता है उसे अनुपूरक बजट कहते हैं। इस बजट के माध्यम से संसद से राशी की स्वीकृति दी जाती है ।
लेखानुदान (अनुच्छेद- 116 ) :-
इसे अग्रिम या पेशगी अनुदान कहा जाता है। जब किसी वजह से बजट समय पर पारित नहीं हो पाता है तो बजट के एक हिस्से को व्यय (खर्च) करने की अनुमति जिस प्रस्ताव के द्वारा दिया जाता है उसे लेखानुदान कहते हैं।
राष्ट्रपति का अभिभाषण:-
इस विषय में जानकारी हमें अनुच्छेद- 87 देता है । राष्ट्रपति का अभिभाषण मंत्रिपरिषद के द्वारा तैयार किया जाता है । इस अभिभाषण में सरकार की उपलब्धियाँ तथा सरकारों की नीतियों की घोषणा की जाती है ।
धन्यवाद प्रस्तावः-
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रस्ताव लाया जाता है, उसे ही धन्यवाद प्रस्ताव कहा जाता है। यह प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में लाया जाता है। इस प्रस्ताव का पारित होना आवश्यक होता है, अन्यथा सरकार गिर जाती है।
धन विधेयक:-
धन विधेयक के बारें में विषेश उपबंध अनुच्छेद- 109 में है, वहीं धन विधेयक की परिभाषा अनुच्छेद- 110 में है। धन विधेयक को परिभाषित लोकसभा का अध्यक्ष करता है। धन विधेयक. राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से सर्वप्रथम लोकसभा में लाया जाता है। लोकसभा को इसे साधारण बहुमत से पारित करना होता है, तत्पश्चात् यह विधेयक राज्यसभा में जाता है। राज्यसभा इस विधेयक को ना अस्वीकार कर सकता है और नाहीं इसमें संसोधन कर सकता है। राज्यसभा धन विधेयक में संसोधन करने करने की सिर्फ सिफारिश कर सकता है। राज्यसभा इस विधेयक को अधिक से अधिक 14 दिन तक रोक सकता है। इस अवधि के दौरान राज्यसभा धन विधेयक को स्वीकार करती है तो ठीक है, अन्यथा धन विधेयक स्वीकार किया हुआ माना जाता जायेगा । अर्थात हम कह सकते हैं कि धन विधेयक को लेकर राज्यसभा को नगन्य अधिकार प्राप्त होते हैं। धन विधेयक पर स्वीकृति देने के लिए राष्ट्रपति बाध्य होता है, क्योंकि यह विधेयक राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से लाया जाता है।
> लोकसभा द्वारा परिभाषित धन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट तक में चुनौती नहीं जा सकती है। इसी तरह विधानसभा अध्यक्ष द्वारा परिभाषित धन विधेयक को उच्च न्यायलय में चुनौती नहीं दी जा सकती है ।
वित्त विधेयक:-
वैसा विधेयक जिसका संबंध वित्तीय मामलों से होता है, वित्त विधेयक कहलाता है। वित्त विधेयक साधारण विधेयक और धन विधेयक का मिश्रित रूप होता है। वित्त विधेयक का वह हिस्सा जो साधारण विधेयक है उसे संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है। साथ ही साथ उस विधेयक को साधारण विधेयक के तरह ही पारित किया जाता है लेकिन वित्त विधेयक का वह हिस्सा जो धन विधेयक होता है उसे धन विधेयक के तरह पारित किया जाता है। वित्त विधेयक से संबंधित उपबंध अनुच्छेद- 117 में है ।
नोट- सभी धन विधेयक वित्त विधेयक हो सकता है लेकिन सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं हो सकता है ।

> निम्नलिखित प्रावधानों को धन विधेयक के अंतर्गत शामिल किया जाता है:- 
(1) किसी कर को लगाना
(2) किसी कर को हटाना 
(3) कर की दर बढ़ना और घटाना
(4) भारत की संचित निधि से धन को निकालना या जमा करना
(5) भारत के आकस्मिक निधि से धन निकालना या जमा करना
(6) भारत सरकार के द्वारा ऋण लिया जाना या ऋण चुकता करना । इत्यादि...

न्यायपालिका

  • भारत में न्यायपालिका के तीन स्तर होते हैं, जिसमें सर्वोच्च स्थान पर भारत का सुप्रीम कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट नीचे - हाई कोर्ट है और हाई कोर्ट के नीचे Subordinate Court है ।
नोटः- भारतीय न्यायायिक व्यवस्था एकहरी और एकिकृत है।
  • संघीय न्यायपालिका के विषय में जानकारी हमें भारतीय संविधान का भाग - 5 तथा अनुच्छेद- 124 से 147 देता है ।
  • भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत् संघीय न्यायलय की स्थापना 1937 में हुई । संविधान लागू होने के बाद संघीय न्यायलय ही 28 जनवरी 1950 से भारत के Supreme Court के रूप में जाना जाने लगा ।
  • भारत का Supreme Court नई दिल्ली में स्थित है। समान्यतः सुप्रीम कोर्ट की बैठक नई दिल्ली में होती है लेकिन राष्ट्रपति के पूर्व अनुमति से इसकी बैठक भारत के किसी भी शहर में आयोजित की जा सकती है। जैसे कि Supreme Court की बैठक श्रीनगर और हैदराबाद में आयोजित किया जा चुका है ।
  • Supreme Court देश का सर्वोच्च अपीलिय न्यायलय है।
  • संविधान का व्याख्याकार Supreme Court है ।
  • देश के आम नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक Supreme Court है ।
  • संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वो Supreme Court में न्यायधिशों की संख्या में इजाफा कर सकता है लेकिन कमी नहीं कर सकता है। यही कारण है कि संसद ने बढ़ते काम के दबाब को देखते हुए Supreme Court में न्यायधिशों की संख्या में इजाफा किया है।
  • जब Supreme Court का गठन हुआ था तो उस समय न्यायधिशों की संख्या 8 हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे न्यायधिशों की संख्या में इजाफा हुआ। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में 34 न्यायधिश है जिसमें 1 मुख्य न्यायधिश तथा 33 अन्य न्यायधिश हैं ।
  • Supreme Court के मुख्य न्यायधिश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति वर्तमान के मुख्य न्यायधिश के सिफारिश पर करते हैं, वहीं Supreme Court के अन्य न्यायधिश की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति मुख्य न्यायधिश के सिफारिश पर करते हैं ।
  • राष्ट्रपति न्यायधिशों की नियुक्ति में "कॉलेजियम' का मदद लेता है। कॉलेजियम व्यवस्था 1990 के दशक में अस्तित्व में आया है। इसमें 5 सदस्य होते हैं जो कि Supreme Court के ही न्यायधिश होते हैं।
  • कॉलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने 99वाँ संविधान संसोधन 2014 के तहत् NJAC (National Judicial Appoitment Commission) राष्ट्रीय न्यायायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रावधान किया । इस संस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई | Supreme Court ने इस संस्था को खारिज कर दिया, जिस कारण आज भी न्यायधिशों की नियुक्ति में कॉलेजियम व्यवस्था ही अस्तित्व में है ।
  • सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिशों का कोई कार्यकाल नहीं होता है, बल्कि उसके सेवा निवृत्ति की आयु 65 वर्ष होता है।
  • अनुच्छेद- 125 हमें Supreme Court के न्यायधिशों के वेतन भत्ता और पेंशन के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • Supreme Court के वेतन भत्ता और पेंशन भारत की संचित निधि पर भारित होता है |
  • वर्तमान में Supreme Court के मुख्य न्यायधिशों को 2,80,000 रुपया तथा अन्य न्यायधिशों को 2,50,000 रुपया वेतन के तौर पर दिया जाता है।
त्याग पत्रः-
Supreme Court के न्यायधिश अपना त्याग पत्र राष्ट्रपति को देकर पद खाली कर सकता है।
पद से हटाया जाता है । :-
Supreme Court के न्यायधिशों को पद से हटाने संबंधी प्रावधान की चर्चा अनुच्छेद- 124 (4) तथा अनुच्छेद- 124 (5) में है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिशों को हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में हो सकता है लेकिन शर्त यह है कि अगर राज्यसभा हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत करता है तो राज्यसभा के 50 सदस्यों का लिखित समर्थन आवश्यक है। लेकिन अगर लोकसभा हटाने की प्रक्रिया की शुरूआत करता है तो लोकसभा के 100 सदस्यों का लिखित समर्थन आवश्यक होता है । जो भी सदन इस प्रक्रिया को शुरूआत करता है उसे पहले इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है, तत्पश्चात् यह प्रस्ताव दूसरे सदन में जाता है। दूसरे सदन को भी इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है। 
नोट- अभी तक Supreme Court के एकमात्र न्यायधिश वी० रामास्वामी पर यह प्रक्रिया चलाया गया, लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों के बाहर जाने के कारण प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाया । . लेकिन
  • अनुच्छेद- 124 (6) हमें Supreme Court के न्यायधिशों के शपथ ग्रहण के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद- 124 (1) यह कहता है कि भारत का एक Supreme Court होगा ।
  • अनुच्छेद- 124 (2) यह कहता है कि न्यायधिशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगें ।
  • अनुच्छेद- 124 (3) Supreme Court के न्यायधिश बनने की योग्यता के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
  • Supreme Court के न्यायधिश बनने की निम्न योगरूता होनी चाहिए:-
    (1.) एक या एक से अधिक उच्च न्यायलय में कम से कम 5 वर्षो तक न्यायधिश के पद पर रहा हो।
                           या
    (2) एक या एक से अधिक उच्च न्यालय में कम से कम 10 वर्षो तक अधिवक्ता (वकील) रहा हो ।
                           या
    (3) राष्ट्रपति के नज़र में विधि का बहुत बड़ा ज्ञाता हो ।
अनुच्छेद- 126
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के कार्यकारी मुख्य न्यायधिश के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • अगंर Supreme Court के मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित रहते हैं या काम करने में असमर्थ होते हैं या पद पर रहते हुए निधन हो जाता है तो इस सभी स्थितियों में भारत के राष्ट्रपति Supreme Court के वरिष्टम न्यायधिश को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करते हैं।
अनुच्छेद- 127
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के तदर्थ न्यायधिश (Adhoc Judge) की नियुक्ति के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
> जब Supreme Court में Quorum की अनुपस्थिति में काम बाधित होता है तो काम बाधित ना हो इसको लेकर मुख्य न्यायधिश तदर्थ न्यायधिश की नियुक्ति करता है ।
अनुच्छेद- 128
यह अनुच्छेद कहता है कि सेवा निवृत्ति के बाद भी (रिटायर्ड के बाद) Supreme Court के न्यायधिश कुछ विशेष परिस्थितियों में Supreme Court की बैठक में भाग ले सकते हैं।
अनुच्छेद- 129
यह अनुच्छेद कहता है कि Supreme Court एक अभिलेख न्यायलय है
अनुच्छेद- 130
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के स्थान के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • भारत का Supreme Court नई दिल्ली में स्थित है।
अनुच्छेद- 131
यह अनुच्छेद हमें Supreme Court के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार या मूल क्षेत्राधिकार के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
  • वैसे मामले जिसे सीधे तौर पर Supreme Court में रखा जाता है वह Supreme Court के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है ।
जैसे-
(1) दो राज्यों के बीच होने वाला विवाद
(2) भारत सरकार और राज्य सरकार के बीच होने वाला विवाद
(3) भारत सरकार तथा दो या दो से अधिक राज्यों के बीच होने वाला विवाद
अपीलीय क्षेत्राधिकारः-
सुप्रीम कोर्ट देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायलय है। इस न्यायलय में उच्च न्यायलय के निर्णय या आदेश के खिलाफ अपील की जाती है। सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय क्षेत्राधिकार के विषय में जानकारी अनुच्छेद - 132, 133, 134 और 136 प्रदान करता है।
संवैधानिक मामलों से जुड़े अपील:-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 132 कहता है कि उच्च न्यायलय के निर्णय में विधि का प्रश्न शामिल हो और उच्च न्यायलय अनुच्छेद- 134 (A) के तहत् असका प्रमाण पत्र दे देता है तो उसकी सुनवाई की अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है।
अनुच्छेद- 133
सिविल मामलों को लेकर हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है ।
अनुच्छेद- 134
अपराधिक या दांडिक मामलों को लेकर हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है ।
अनुच्छेद- 136
सुप्रीम कोर्ट में अपील को लेकर विशेष इजाजत दी जाती है। वैसे मामले जो ना तो संवैधानिक है, ना सिविल है और ना हीं अपराधिक है उन मामलों को लेकर अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है।
पुर्नविचार संबंधी अधिकारः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 137 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह अपने द्वारा दिए गए निर्णय पर पुर्नविचार कर सकता है तथा अपने पुराने निर्णय को पलट भी सकता है ।
जैसे- सुप्रीम कोर्ट ने बेरूवादी वाद 1960 में यह निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं है, कलांतर में केशवानंद भारती वाद 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने निर्णय को पलटते हुए यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है।
सलाहकारी अधिकारः-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 143 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह कानूनी मसलों पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकता है। सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए बाध्य है लेकिन राष्ट्रपति सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है ।
Writ जारी करने का अधिकारः-
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद- 32 के तहत् 5 प्रकार का रिट (याचिका) जारी कर सकता है।
(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(2) परमादेश
(3) अधिकार पृच्छा लेख
(4) प्रतिशेध लेख
(5) उत्प्रेशन
  • सुप्रीम कोर्ट भारत के आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक होता है।
  • देश के सर्वोच्च न्यायलय के द्वारा घोषित विधि देश की सभी न्यायलयों पर बाध्यकारी है । (अनुच्छेद-141)
  • सुप्रीम कोर्ट के प्रथम मुख्य न्यायधिश “हीरालाल जेकानियाँ" बनें हैं।
  • सबसे अधिक वर्षो तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश के पद पर यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (1978-1985) रहें हैं ।
  • सबसे कम वर्षो तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधिश के पद पर कमल नारायण सिंह (17 दिन ) रहें हैं।

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक Comptroller and Auditor Genral of India

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद- 148 से 151 CAG के विषय में जानकारी प्रदान करता है। CAG भारत सरकार के सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है।
  • अनुच्छेद- 148 कहता है कि भारत का एक नियंत्रक महालेखा परीक्षक होगा जिसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष का होता है । जो भी पहले पूरा हो उस अनुसार ये अपना पद छोड़ते हैं।
  • इनका वेतन 2,50,000 /- रुपया होता है।
  • CAG अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है।
  • CAG को उसी तरीका से पद से हटाया जाता है जैसे कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायधिशों को हटाया जाता है। अर्थात संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से पद से हटाया जाता है।
  • स्वतंत्र भारत के प्रथम नियंत्रक महालेखा परीक्षक "नरहरी राव" बनें हैं। तो वहीं वर्त्तमान में भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू हैं ।
  • CAG के कार्य अधिकार शक्ति के विषय में जानकारी हमें अनुच्छेद- 149 से प्राप्त होता है।
  • संघ सरकार और राज्य सरकार के लेखाओं के प्रारूप के विषय में जानकारी हमें अनुच्छेद- 150 प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद- 151 यह जानकारी देता है कि CAG अपना रिपोर्ट किसे देता है ।
    • केंद्र सरकार के संदर्भ में CAG अपना रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को देता है । राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता है । संसद इस रिपोर्ट की जाँच लोक लेखा समिति से करवाता है । लोक लेखा समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा के अध्यक्ष को सौंपती है ।
    • राज्य के संदर्भ में CAG अपना रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है। राज्यपाल इस रिपोर्ट को राज्य विधानमंडल के पटल पर रखवाता है। राज्य का विधानमंडल इस रिपोर्ट की जाँच राज्य की लोक लेखा समिति से करवाता है । यह समिति अपना रिपोर्ट विधानसभा अध्यक्ष को सौंपती है ।
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