General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | सूक्ष्मजीव
वे जीव जिन्हें हम खुली आँख से नहीं देख सकते हैं, जिसे देखने हेतु सूक्ष्मदर्शी (Microscope) की आवश्यकता होती है, सूक्ष्मजीव कहलाते हैं । सूक्ष्मजीव का अध्ययन विज्ञान के Microbiology शाखा के अंतर्गत किया जाता है।

General Competition | Science | Biology (जीव विज्ञान) | सूक्ष्मजीव
- वे जीव जिन्हें हम खुली आँख से नहीं देख सकते हैं, जिसे देखने हेतु सूक्ष्मदर्शी (Microscope) की आवश्यकता होती है, सूक्ष्मजीव कहलाते हैं । सूक्ष्मजीव का अध्ययन विज्ञान के Microbiology शाखा के अंतर्गत किया जाता है।
प्रमुख सूक्ष्मजीव
1. Viroids (वाइरॉयड्स)
- सर्वप्रथम Viroids की खोज अमेरिकी जीव वैज्ञानिक थियोडोर डायनर ने किया था । वायरॉयड्स केवल न्यूक्लीक अम्ल के बने होते है ।
- वायरॉयड्स विषाणु से सभी छोटे होते. । यह विषाणु के एक हजारवें भाग के बराबर होते हैं। वायरॉयड्स में केवल न्यूक्लीक अम्ल के रूप में RNA ही रहता है।
- वायरॉयड्स केवल परपोषी (host) के शरीर में ही वृद्धि कर सकता है तथा यह पौधों के कई प्रकार के रोग को फैलाते हैं। वायरॉयड्स केवल पौधे में पाये जाते हैं।
- यह एक असमान्य प्रकार के सूक्ष्मजीव जो केवल प्रोटीन का अणु बना होता है। प्रियॉन का व्यास मात्र 4-5 nm होता है। इसका निर्माण केवल मस्तिष्क कोशिका में ही होता है ।
- प्रियॉन के कारण बकरी और भेड़ में स्क्रापी (Scrapie) नामक रोग होता है जिससे उसका तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।
- प्रियॉन के कारण मनुष्य में क्रोयुट सल्फेट (याकोब) रोग होता है। इस रोग में मनुष्य की यादाश्त में कमी या पागलपन हो सकता है ।
- लैटिन भाषा में वाइरस शब्द का की खोज सर्वप्रथम रूसी वैज्ञानिक आइवेनोस्की ने किया था। आइवेनोस्की ने वायरस की खोज एक रोगग्रस्त तंबाकू के पौधे में किया था तथा उस वायरस का नाम उन्होंने Tobacco Mosaic Virus (TMV) रखा ।
- विषाणु प्रोटीन और न्यूक्लीक एसीड के बने होते हैं। न्यूक्लीक एसीड या तो RNA या DNA के रूप में होता है। पौधा तथा कुछ जंतुओं के वायरस का न्यूक्लीक एसीड RNA होता है, जबकि अन्य जंतु वायरस में यह DNA के रूप में रहता है।
- अधिकांश विषाणु का आकार गोलाकार होता है तथा कुछ विषाणु दंडाकार (छड़ के समान) भी होता है।
- विषाणु की प्रकृति के विषय में सभी जीव वैज्ञानिकों का एक मत नहीं है। कुछ जीव वैज्ञानिक इसे सजीव मानते हैं तथा कुछ निर्जीव I
- विषाणु को निम्न आधार पर निर्जीव माना जाता है-
- वायरस केवल जीवित परपोषी में ही वृद्धि कर सकता है।
- वायरस को क्रिस्टल के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।
- वायरस में श्वसन नहीं होता है।
- जीवित कोशिका के बाहर वायरस में उपापचय (Metabolism) की क्रियाएँ नहीं होती है।
- विषाणु को निम्न आधार पर सजीव माना जाता है-
- भिन्न-भिन्न वायरस का आकार और संरचना भिन्न होता है ।
- वायरस जनन करता है।
- वायरस संवदेनशील होता है तथा वातावरण के प्रति उनमें अनुकूलन पायी जाती है।
- पादप वायरस पौधों के कोशिका में रहते हैं और उनमें कई प्रकार के रोग को फैलाते हैं।
- वायरस द्वारा पौधों में होनेवाले प्रमुख रोग-
- तंबाकू, गन्ना, ककड़ी, टमाटर, गोभी, मिर्च में होने वाला मोजैक रोग ।
- आलू का लीफ रोल
- भिंडी का पीत शिरा मोजैक
- टमाटर का लीफ कर्ल
- जन्तु वायरस, पादप वायरस से अलग होते है, क्योंकि इनमें DNA न्यूक्लीक एसीड पाये जाते हैं। वायरस मनुष्य में भी घातक रोग फैलाते हैं। वायरस के कारण मनुष्य में होने वाला प्रमुख रोग -
- इंफ्लूएंजा या फ्लू ( Influenza )
- यह रोग मिक्सो वायरस के कारण होता है जो विश्व के लगभग सभी देशों में पाया जाता है। रोग के विषाणु वायु द्वारा रोगी के छींक के साथ फैलता है ।
- विषाणु संक्रमित व्यक्ति के फेफड़ों में तेजी से वृद्धि करता है एवं 1 से 4 दिन बाद संक्रमित व्यक्ति को बुखार, पूरे शरीर में कंपन कमजोरी, नाक से पानी निकलना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं ।
- इस रोग के नियंत्रण हेतु कई प्रभावी दवा उपलब्ध नहीं है। फिर भी एस्पिरिन, प्रचुर मात्रा में आराम से कुछ राहत मिलती है।
- पोलियो (Polio)
- पोलिया या Polimyelitis रोग पोलियो वायरस के कारण होता है। यह वायरस संक्रमित भोजन, दूध तथा पेयजल के माध्यम से पहले आहारनाल में प्रवेश करता है I
- आहारनाल से होते हुये यह वायरस रक्त कोशिकाओं में पहुँचाता है। अंत में यह वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में प्रवेश कर जाता है।
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में प्रवेश कर यह वायरस तंत्रिका तंत्र की ऐसी कोशिका को, जो शरीर के पेशियों की क्रिया को नियंत्रित करते है, नष्ट कर देता है। इसके कारण पेशियों पर तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण हट जाता है और वे कार्य करना बंद कर देते हैं।
- यह रोग बच्चों में सबसे ज्यादा प्रभावी है खासकर 6 महीने से लेकर 3 वर्ष के उम्र तक । एकबार पोलियो रोग हो जाने पर फिर प्रभावित अंग का इलाज संभव नहीं है सिर्फ फिजियोथेरापी द्वारा रोग की तीव्रता कम किया जा सकता है ।
- इस रोग से बचाव हेतु पूर्ण रूप से सुरक्षित टीक उपलब्ध है ।
- खसरा
- यह मोर्बेली विषाणु के कारण होने वाला रोग है । यह विषाणु वायु के माध्यम से तेजी से फैलता है।
- संक्रमित व्यक्ति को आरंभ में नाक, आँख से पानी बहता है, बुखार होता है तथा 3-4 दिनों बाद शरीर पर लाल दाने हो जाते हैं ।
- इस रोग में रोगी को पर्याप्त आराम तथा उबला हुआ भोजन करना चाहिए ।
- चेचक
- यह वैरिओला विषाणु के कारण होता है। यह बहुत ही संक्रामक रोग है इसके विषाणु वायु के माध्यम से फैलाता है ।
- संक्रमित व्यक्ति को प्रारंभ में बुखार, सिर में दर्द, उल्टी होता है और उसे 4 दिन के बाद मुँह पर लाल दाने निकल आते हैं जो धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाता है।
- इस रोग का टीका उपलब्ध है।
- छोटी माता ( Small Pox)
- यह रोग वैरिसेला जोस्टर विषाणु के कारण होता है। यह भी संक्रामक रोग है, परंतु चेचक से कम ।
- इस रोग में रोगी के शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं । हल्का बुखार रहता है तथा जोड़ों पर दर्द होते रहता है।
- इस रोग का कोई स्पष्ट इलाज नहीं है। रोगी को स्वच्छ वातावरण में रखने और पर्याप्त आराम करने से स्वतः ठीक हो जाता है।
- रेबीज (Rabies)
- यह रोग रैब्डी वायरस के कारण होता है। इस वायरस को पहली बार फ्रांस के वैज्ञानिक पाश्चर ने देखा था तथा इस रोग के टीके का विकास भी उन्होंने ही किया ।
- रैब्डीवायरस कुत्ते, चमगादड़, गीदड़ जैसे जीव में पाया जाता है। जब यह जीव मनुष्य को काटता है तब वायरस मनुष्य में प्रवेश करके सीधे मस्तिष्क में चला जाता है।
- इस रोग के प्रारंभिक लक्षण है- सिरदर्द, हल्का बुखार तथा गर्दन में दर्द । धीरे-धीरे रोगी पागल के तरह व्यवहार करने लगता है।
- रेबिज में संक्रमित व्यक्ति का गले की पेशी में संकुचन होना बंद हो जाता है जिससे वे पानी पीने में असमर्थ हो जाता है और पानी को देखते ही काफी डरने लगता है । इस कारण इस रोग को हाइड्रोफोबिया कहते हैं।
- मनुष्य अधिकांशतः कुत्ते के काटने से रेबीज से प्रभावित होते हैं। कुत्ते अगर रेबीज से संक्रमित हो गये तो वे कुत्ते का व्यवहार बदल जाता है-
- संक्रमित कुत्ता अत्यंत क्रोधी एवं उग्र हो जाते हैं और व्यक्ति को काटने दौड़ता है। या
- संक्रमित कुत्ता सुस्त या मौन होकर एकांत स्थान पर पड़ा रहता है ।
- कुत्ता मनुष्य को काटने के 3-5 दिनों के अंदर मर जाता है तो यह मान लेना चाहिये कि, निश्चित वह कुत्ता रेबीज से संक्रमित था ।
- रेबीज वायरस से अगर मस्तिष्क प्रभावित हो गया तो फिर उसका कोई उपचार नहीं है अतः पालतू कुत्ता या रेबिज संक्रमित पशु के काटने के तुरंद बाद ऐंटिरेबीज सूई दिया जाता है।
- हेपेटाइटिस (Hepatitis)
- यकृत में वायरस के संक्रमण से यह रोग होता है । अत्यधिक मात्रा में शराब के सेवन करने से भी यह बिमारी होती है।
- हेपेटाइटिस कई टाईप के होते हैं। जिसमें टाइप - A तथा टाईप - B कॉमन है। हेपेटाइटिस - A दूषित भोजन या पानी द्वारा संक्रमित होता है तथा टाईप - B रूधिर, लार आदि के संक्रमण से होता है ।
- इस रोग में यकृत सामान्य से अधिक बड़ा हो जाता है। हेपेटाइटिस का सबसे प्रधान लक्षण है त्वचा एवं आँखों के सफेद भाग का पीला पर जाना, जिसे आम भाषा में जॉण्डिस कहते हैं ।
- इस रोग का टीका उपलब्ध है ।
- इंफ्लूएंजा या फ्लू ( Influenza )
- वैसे विषाणु जो जीवाणु पर आक्रमण करते हैं बैक्टीरियोफेज कहलाते हैं। बैक्टीरियोफेज एक प्रकार का वाइरस है।
- बैक्टरियोफेज का सर्वप्रथम खोज ट्वार्ट तथा डी हेरेल ने 1917 में किया था । यह विषाणु प्रोटीन एवं DNA के बने होते हैं। विषाणु की आकृति मनुष्य के शुक्राणु कोशिका की तरह होता है।
- बैक्टरियोफेज केवल जीवाणु पर ही आश्रीत रहता है तथा उन सभी स्थानों पर पाये जाते हैं जहाँ जीवाणु की उपस्थिति होती है ।
- गंगा जल में बैक्टीरियोफेज विषाणु पाये जाते हैं ये पानी को सड़ाने वाले जीवाणु का भक्षण करते रहता है यही कारण गंगा-जल काफी अधिक दिन होने पर भी खराब नहीं होता है।
- जीवाणु सर्वव्यापी सूक्ष्मजीव है यह वायु, जल, भूमि- - हर जगह मौजूद है। जीवाणु की खोज सर्वप्रथम ल्यूवेनहॉक ने किया था उन्होंने इसका नाम animalcule रखा था । एहरनबर्ग द्वारा जीवाणु (Bacteria) नाम दिया गया।
- सर्वप्रथम लूई पाश्चर उसके बाद कोच ने पता लगाया की जीवाणु द्वारा मनुष्य में रोग फैलते हैं। जीवाणु में पाये जाने वाला सामन्य लक्षण-
- जीवाणु प्रोकैरोटीक कोशिका है जिसमें कोशिका भित्ती पायी जाती है। जीवाणु की कोशिका भित्त सेलुलोज से न बनकर पेप्टीडोग्लाइकन की बनी होती है।
- जीवाणु अधिकांसतः परपोषी होते है। कुछ जीवाणु स्वपोषी भी होते हैं। स्वपोषी जीवाणु सायनोबैक्टीरिया कहलाते हैं। सायनोबैक्टीरिया में क्लोरोफील पाया जाता है जिससे वे प्रकाश-संश्लेषण कर पाते हैं ।
- विभिन्न जीवाणु का औसत आकार 1 μm से लेकर 5 μm तक होता है।
- जीवाणु के अनेक रूप होते हैं। जीवाणु के रूप के आधार पर विभिन्न नाम दिया गया है-
- गोल आकार के जीवाणु को - कोकाई (Cocci) कहते हैं।
- घन आकार के गोल जीवाणु को - सारसीना (Sarcina) कहते हैं।
- छड़ आकार के जीवाणु को - बैसीलस (Bacillus ) कहते हैं ।
- सर्पिल आकार जीवाणु को - स्पाइरिला (Spirilla) कहते हैं।
- कॉमा आकार जीवाणु को - वाइब्रियो (Vibrio) कहते हैं।
- जीवाणु में जनन प्रायः विखंडन (Fission) द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
- जीवाणु से होने वाला आर्थिक लाभ-
- जीवाणु पारिस्थितिकी तंत्र में अपघटक का कार्य करते हैं। ये मृत जीव शरीर में फँसे कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्व को मिट्टी एवं वातावरण में मुक्त करते हैं।
- कुछ जीवाणु जैसे- एजोटोबैक्टर, क्लोरास्ट्रीडियम, राइजोबीयम (लेग्यूमिनोसीकुल के पौधा) पौधों के जड़ों में सहजीवी के रूप में तथा ये जीवाणु हवा में उपस्थित स्वतंत्र नाइट्रोजन ग्रहण करके नाइट्रोजन यौगिक में बदलते हैं जो खेती के लिए बहुत लाभप्रद होते हैं।
- ऐसे जीवाणु जो स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के यौगिक में बदलते हैं उसे नाइट्रोजन स्थितिकारक जीवाणु कहते हैं ।
- ई. कोलाई जीवाणु मानव के पाचनतंत्र में पाये जाते हैं तथा पाचन क्रिया में सहायक है। ये जीवाणु भोजन के साथ आये हानिकारक जीवाणु को खाकर हमारी रक्षा करते हैं।
- रोमन्थी जीव (जुगाली करने वाला जीव ) के अमाशय में सेलुलोज पचाने वाला बैक्टीरिया होता है। इन प्राणियों द्वारा खाए गये घास के सेल्युलोज को केवल उनके अमाशय में मौजूद जीवाणु ही पचा सकते हैं ।
- दूध को दही में परिवर्तित जीवाणु ही करते हैं लैक्टोबैसिलस जीवाणु दूध के लैक्टोस शर्करा को लैक्टीक अम्ल में बदलता है, जिससे दही बनता है ।
- जीवाणु द्वारा मक्खन तथा पनीर में विशेष सुगंधी लायी जाती है। इस क्रिया को राइपेंनिग कहते हैं ।
- बेसीलस मेगाथीरियम, माइक्रो कोक्कस जीवाणु द्वारा क्रमशः चाय तथा तंबाकू के पत्तों में सुगंध पैदा किया जाता है। इस जीवाणु का उपयोग नील के निर्माण, में चमड़े के शोधन में तथा जूट के रेशों को अलग करने में होता है।
- आजकल अधिकांस एंटीबायोटीक औषधि जीवाणु से तैयार किये जाते हैं। जीवाणु के बहुत सी जातियों द्वारा रोग-प्रतिरोधक टीका भी तैयार किये जाते हैं।
- बहुत से जीवाणु बिषैले पदार्थों को स्रावित कर खाद्य पदार्थों को विषाक्त बना देते हैं। जैसे- स्ट्रेप्टोकोक्कस, क्लोस्ट्रिडियम बोटुलिनियम आदि ।
- कुछ जीवाणु मिट्टी में अवस्थित नाइट्रोजन यौगिक को स्वतंत्र नाइट्रोजन में बदल देते हैं जिससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
- ऐसे जीवाणु जो नाइट्रोजन यौगिक को स्वतंत्र नाइट्रोजन में तोड़ते हैं। विनाइट्रीकारी (Dentrification) जीवाणु कहलाते हैं। जैसे- स्यूडोमोनस, थायोबसिलस
- स्पाइरोकीट साइटीफाज जीवाणु रूई के रेशों को नष्ट कर देते हैं ।
- कुछ जीवाणु पेनिसिलेज नामक एंजाइम का निर्माण करते हैं जिसके प्रभाव से पेनीसीलिन एंटीबायोटीक का प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।
- जीवाणु पौधों में रोग फैलाते हैं। प्रमुख रोग जो जीवाणु द्वारा पौधों में होता है।
- आलू का विल्ट रोग या शैथिल रोग
- गन्ना में लालधारी रोग
- चावल का अंगमारी रोग
- नींबू तथा टमाटर का कैंकर रोग
- सेब और नाशपाती का निरजा रोग या अग्निनीरजा रोग
- बंदगोभी का काला विलगन रोग
- गेहूँ का विलगन रोग
- गेहूँ का टुन्डु रोग
- जीवाणु द्वारा मानव में होने वाला प्रमुख रोग-
- क्षयरोग या टी.वी. (Tuberculosis)
- यह रोग माइकोबैक्टीरियम टिउबरकुलोसिस जीणु के कारण होता है। यह जीवाणु शरीर में जहरीला पदार्थ टिउबरकुलीन स्त्रावित करता है जो मुख्य रूप से फेफड़ा के कोशिका को नष्ट करने लगता है।
- इस रोग के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं। करीब 3 महीने से ज्यादा खांसी के साथ-साथ हल्का बुखार इस रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं।
- इस रोग के जीवाणु प्रायः रोगी के थूक, कफ, तथा खाँसी से फैलता है। टी. वी. हमारे देश का एक प्रमुख बिमारी है। भारत की 10 प्रतिशत जनसंख्या इसकी चपेट में है तथा प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत लोगों की मृत्यु टी. वी. के कारण होता है।
- इस रोग का उपचार संभव है परंतु दबाई का सेवन बहुत ही लंबी अवधि तक अनिवार्य रूप से लेना होता है। बच्चों को टी. वी. से बचाव हेतु जन्म के समय ही BCG (Bascills Calmette Guerin) का टीका दिया जाता है ।
- प्रतिवर्ष 24 मार्च को विश्व टी. वी. दिवस मनाया जाता है।
- टाइफॉइड (Typhoid)
- यह रोग सलमोनेला टाइफी नाम बैक्टीरिया से होने वाल संक्रामक रोग है । यह बैक्टीरिया पेयजल, भोजन, दूध, कच्चेफल, सब्जी के माध्यम से स्वस्थ शरीर में प्रवेश करता है ।
- यह रोग बच्चों को प्रायः होता है। इस बिमारी का प्रारंभिक लक्षण है कमजोरी, सिरदर्द, तेज बुखार । टाइफॉइड बुखार संक्रमित व्यक्ति को तीन सप्ताह तक लगा रहता है।
- टाइफाइड बचाव हेतु प्रत्येक व्यक्ति को हर 3 वर्ष के बाद TAB (typhoid antibacterial) टीका लगवानी चाहिए।
- न्यूमोनिया (Pneumonia)
- इस रोग स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी जीवाणु के कारण होता है। इस रोग में फेफड़ा में स्थित वायुकोष्ठ (Alveoli) का तरल सूख जाते हैं। जिससे सॉस लेने में कठिनाई होती है।
- ज्वर, खाँसी, सिरदर्द इस रोग के सामान्य लक्षण है।
- हैजा (Cholera)
- यह बिब्रियो कॉलेरी नामक जीवाणु के कारण होने वाला संक्रामक रोग है I
- इस रोग के जीवाणु आंत में पहुँचकर विषाक्त पदार्थ स्त्रावित करता है जिससे रोगी को बार-बार पानी जैसा पाखाना (दस्त), उल्टी, होते रहता है।
- इस रोग से बचाव हेतु टीका उपलब्ध है।
- एंथ्रेक्स (Anthrax)
- यह रोग बैसिलस एंथेसिस जीवाणु के कारण प्रायः पालतू पशु गाय, भैंस, बकरी को होता है फिर पालतू पशु के संपर्क में आने पर मनुष्य को भी हो जाता है।
- इस जीवाणु का संक्रमण होने से प्रारंभिक लक्षण है- सर्दी, सॉस लेने में दिक्कत, भूख में कमी आदि ।
- क्षयरोग या टी.वी. (Tuberculosis)
- मनुष्य में जीवाणु द्वारा होने वाला अन्य रोग है- डिप्थीरिया, प्लेग, टिटनस, कालीखाँसी, कोढ़ (Leprosy)
- Germ Theory of Disease:
- रॉबर्ट कोच ने सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि सूक्ष्मजीव मानवों में रोग फैलाते हैं। उन्होंने एंथ्रेक्स रोग के जीवाणु का पता लगाकर इसे प्रमाणित किया था। रॉबर्ट कोच का यही मत Germ Theory of Disease कहलाता है।
- Germ Theory of Disease:
- प्रोटिस्टा वर्ग में जलीय, एककोशकीय तथा यूकैरेओटिक कोशिका का बना होता है। इस जगत के जीवों में प्रचलन अंग के रूप में सीलिया, फ्लैजिला, तथा कूट पाद पाये जाते हैं।
- प्रोटिस्ट जगत के सूक्ष्मजीव स्वपोषी तथा परपोषी दोनों स्वभाव के होते हैं। स्वपोषी प्रोटिस्ट के अंतर्गत मुख रूप से एककोशिकीय शैवाल आते हैं। परपोषी के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के प्रोटोजोआ आते हैं-
- यूग्लीना (Euglina)
- यह एककोशकीय मुक्तजीवी जीव है। इसमें प्रचलन अंग के रूप में फ्लेजिला पाये जाते हैं। यूग्लीना स्वपोषी तथा परपोषी दोनों प्रकार का जीवन व्यतीत करता । इसमें पौधे के समान क्लोरोफील पिंगमेट पाये जाते हैं। जिससे यह प्रकाश-संश्लेषण करने में समर्थ है।
- यूग्लीना को हरा प्रोटोजोआ भी कहते हैं। इसे पौधा तथा जंतु के बीच का योजक कड़ी माना जाता है । यूग्लीना के कोशिका में कोशिका भित्ती नहीं पायी जाती है।
- पैरामीशियम (Paramoecium)
- यह एक प्रोटोजोआ है जिसमें सिलिया के द्वारा प्रचलन होता है। इस प्रोटोजोआ का आकार चप्पल से मिलता है जिसके कारण इसे चप्पल जंतु भी कहते हैं ।
- प्लाज्मोडियम (Plasmodium)
- यह एक परजीवी प्रोटोजोआ है जिससे मलेरिया रोग फैलता है। प्लाज्मोडियम को जीवनचक्र पूरा करने हेतु दो पोषक (host) की जरूरत होती है। इसका प्रधान पोषक मनुष्य है। दूसरा पोषक मादा एनोफीलीज मच्छड़ है।
- यह प्रोटोजोआ एनोफीलीज मच्छड से मनुष्य में पहुँचता है। इसके जीवन चक्र की कई अवस्थाएँ होती हैं। जब यह मनुष्य के रक्त के RBC में मेरोज्वाइट (Merezvite) अवस्था में आता है तब RBC के हिमोग्लोबीन नष्ट होने लगता है।
- मलेरिया रोग में कंपन के साथ बुखार रक्त में RBC कोशिका की कमी, प्लीहा का आकार काफी बढ़ जाता है।
- इस रोग हेतु कोई टीका नहीं बना है। इस रोग की मशहुर दवा है- कुनैन जो सिनकोना की छाल से प्राप्त होता है।
- सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीच्यूट लखनऊ के वैज्ञानिक द्वारा अंटेमिसिया नामक पौधा से आर्टीथिर नामक पदार्थ निकाला है, जो कुनैन के तरह ही प्रभावी है।
- इस रोग का नाम मेकुलॉक द्वारा प्रस्तावित किया गया था। सी. एल. ए. लैवेरान नामक प्रांसिसि डॉक्टर ने मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम की खोज की इसके लिए लैवेरान को 1907 में नोबेल पुरस्कार मिला था। सर रोनैल्ड रॉस जो एक ब्रिटिश डॉक्टर थे उन्होंने यह पता लगाया मलेरिया, मलेरिया परजीवी के कारण होता है । रौनैल्ड रॉस की इस कार्य हेतु 1902 में नोबेल पुरस्कार मिला ।
- लीशमैनिया डोनोवानी (Leishmena Donovan)
- इस प्रोटोजोआ के कारण मनुष्य में कालाजार रोग होता है। कालाजार रोग को Black fever भी कहते हैं। कालाजार का संक्रमण बालू मक्खी द्वारा होता है।
- बालू मक्खी नम मिट्टी मिट्टी के दरारों के बीच चूहे के बिल में रहती है। यह मक्खी कम रौशनी वाले जगह पर ही रहता है।
- कालाजार के मुख्य लक्षण है दो हफ्ते से ज्यादा समय बुखार, खून की कमी (एनीमिया) जिगर और तिल्ली का बढ़ना, भूख न लगना ।
- इस रोग का उपचार उपलब्ध है।
- ट्रिपैनोसोमा गैम्बीयेन्स (Tryponosema Gambiens)
- यह प्रोटोजोआ मनुष्य के रक्त में पाये जाते हैं और Sleeping sickness रोग फैलाता है।
- इस रोग को Human African trypanosomiasis रोग भी कहा जाता है। ट्रिपैनोसोमा प्रोटोजोआ मनुष्य में सी-सी मक्खी ( Tse Tese fly) द्वारा पहुँचता है।
- प्रारंभिक लक्षण देखने पर ही इसका उपचार नहीं हुआ तो यह प्रोटोजोआ केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर उसे नष्ट करने लगता है तब यह रोग जानलेवा साबित होता है।
- एण्ट अमीबा जिन जिवैलिस (Antamoeba Gingavalis)
- यह अमीबा समूह का प्रोटोजोआ है जिसके द्वारा मनुष्य में पायरिया रोग होता है ।
- पायरिया रोग दाँत तथा मसूढ़ा खराब हो जाते हैं। यह दाँतों का सामान्य रोग है जिसका उपचार आसानी से हो जाता है ।
- एण्ट अमीबा हिस्टोलिटिका (Antamoeba histolytica)
- यह अमीबा श्रेणी का प्रोटोजोआ है जिसके द्वारा मनुष्य में अमीबीय पेचिश (Amoebic Dysentery) रोग होता है।
- यह प्रोटोजोआ मनुष्य के आंत में प्रवेश कर कोशिका को नष्ट करने लगता है जिससे संक्रमित व्यक्ति को पेट में दर्द तथा मल के साथ रूधिर निकलते रहते हैं। यह पेचिश रोग का सामान्य लक्षण है ।
- इस रोग का उपचार उपलब्ध है। इस रोग में काम आने वाले प्रमुख एंटीबायोटीक है- टेरामाइसीन, एरिथ्रोमाइसिन आदि ।
- एण्ट अमीबा कोलाई
- यह प्रोटोजोआ मनुष्य के बड़ी आंत के कोलेन में उपस्थित रहता है। यह मनुष्य के लिए हानिकारक नहीं होता है क्योंकि यह प्रोटोजोआ स्वस्थ कोशिका को क्षति नहीं पहुंचाती है।
- यह प्रोटोजोआ कोलेन में पहुँचे अपच भोजन में उपस्थित जीवाणु का भक्षण करता है।
- अमीबा (Amoeba)
- अमीबा एक साधारण प्रोटोजोआ है जो समुद्री जल, सादे जल तथा नम भूमि पर पाये जाते हैं। अमीबा में प्रचलन अंग के रूप में कूटपाद (Pseudopodia) पाये जाते हैं जिसका उपयोग यह भोजन ग्रहण करने में भी करता है ।
- अमीबा का आकार निश्चित नहीं रहता है इसका आकार हमेशा बदलते रहता है।
- किसी भी प्रोटोजोआ में कोशिका भित्ती (Cell wall) नहीं होती है। प्रोटोजोआ यूकैरियोट है।
- इस जगत में बहुकोशिकीय पौधों को रखा गया है। जिसमें कोशिका भित्ती तो है परन्तु क्लोरोफील इसमें नहीं पाये जाते हैं। कोशिका भित्ती की उपस्थिति के कारण कवक को पौधा ही माना गया है ।
- कवक को कोशिका भित्ती सेलुलोज से न बनकर काइटीन की बनी होती है। इसमें जीवों की तरह ग्लाइकोजेन संचित भोजन के रूप में जमा रहते हैं।
- अधिकांश कवक बहुकोशिकीय होते हैं। कुछ कवक एककोशिकीय भी होते है, यीस्ट एककोशिकीय कवक है ।
- कवक परजीवी, सहजीवी और मृतजीवी हो सकते हैं, ये हर जगह तथा सभी परिस्थितियों में पाये जाते हैं। कुछ कवक स्थान विशेष पर ही उगते हैं जिन्हें विशेष नाम से संबोधित करते हैं जैसे- पेड़ की छाल पर उगने वाले कवक को-कोकोलस, गोबर पर उगने वाले कवक को-कोप्रोफीलस, चट्टान पर उगने वाले कवक को सेक्सीकोल्स कहते हैं ।
- कवक के शरीर की संरचना धागे के जाल समान होते हैं। इस जाल को कवक जाल या माइसीलीयम कहते हैं। प्रत्येक कवक जाल से तंतु के समान संरचना निकलती है जिसे हाइफा कहते हाइफा के द्वारा ही कवक पोषी जीव के शरीर से पोषक पदार्थ ग्रहण करते हैं।
- प्रमुख लाभदायक कवक-
- कवक का उपयोग भोजन के रूप में होता है। रोमेरिया, कलेवेसिया, एगेरिकस कवक को मशरूम के रूप में खाया जाता है। मशरूम को खाद्यछत्रक भी कहा जाता है ।
- यीस्ट कवक की प्रजाति सेकरोमाइसीज सेरेवेसी का उपयोग, शराब, बियर उद्योग तथा डबल रोटी को नरम तथा स्पंजी बनाने के में किया जाता है
- क्लेवीसेप्स परप्यूरिया कवक से Ergot प्राप्त होता है जिससे नशीले ड्रग तैयार होते हैं।
- प्रथम प्रतिजैविक पेनीसीलीन का निर्माण पेनीसीलीयम नोटेटम कवक से हुआ था ।
- कवक पारिस्थितिकी तंत्र में अपघटक की भूमिका अदा करते हैं ।
- प्रमुख हानिकारक कवक
- कवक से एल्फाटॉक्सीन बिष स्त्रावित होता है जो पालतु पशु को हानि पहुँचाता है।
- कवक से विभ्रमी पदार्थ LSD (Lysergic acid diethylamide) प्राप्त होता है |
- कवक पौधों में कई भयंकर बिमारी को फैलाता है। कवक द्वारा पौधा में होने वाला रोग-
- आलू का लेट ब्लाइंट (Late Bliglet) रोग फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टेन्स कवक के कारण होता है।
- मूँगफली का टिक्का रोग साकोस्पोरा पर्सीनेटा कवक के कारण होता है।
- गन्ने का लाल सडन रोग
- चने का विल्ट रोग
- बाजरे का ऑगर्ट रोग
- धान का प्रध्वंस रोग (Blast of rice) आदि ।
- आलू का अंगभारी रोग
- अंगूर का पाउडरी मिल्डयू
- गेहूँ का लाल रस्ट
- सरसों का सफेद किट्ट रोग
- कवक मनुष्य में कई रोगों को फैलाते हैं प्रमुख रोग-
- एथलीट फुट - ट्राइकोफाइटॉन कवक से
- खाज - सरकॉप्टस स्केबीज कवक से
- दाद - ट्राइकोफाइटॉन कवक से
- गंजापन – टिनिया केपेटिस कवक से
- एस्पर्जिलेसिस (फेफड़ा रोग)
अभ्यास प्रश्न
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