> झारखण्ड की विस्थापन एवं पुनर्वास नीति का प्रकाशन झारखण्ड सरकार के गजट में 25 जुलाई, 2008 को किया गया था।
> झारखण्ड की विस्थापन एवं पुनर्वास नीति कुल 9 अध्याय में विभाजित है। इस नीति के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को यहाँ शामिल किया गया है।
अध्याय-1 प्रस्तावना
> झारखण्ड राज्य के ऐतिहासिक घटनाओं का पुनराविलोकन करने पर यह महसूस होता है कि झारखण्ड के लोगों विशेषकर आदिवासी प्रमुखों द्वारा कई विद्रोह किए गए, क्योंकि वे अपनी सभ्यता एवं रीति-रिवाजों में बाहरी हस्तक्षेप के विरूद्ध आक्रोशित थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आदिवासियों एवं स्थानीय व्यक्तियों द्वारा अपने हितों की रक्षा के लिए अलग राज्य की माँग की, जिसके लिए लंबा संघर्ष चलाया। परिणामस्वरूप अंततः 15 नवंबर, 2000 में अलग राज्य की परिकल्पना साकार हुई।
> प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राज्य के लोगों की सोच थी कि राज्य के औद्योगिकीकरण से झारखण्ड के लोगों का भविष्य सुनहरा होगा। पूर्व में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 एवं Coal Bearing Areas (A & D) Act, 1957 के अंतर्गत उद्योगों, डैमों एवं खानों की स्थापना हेतु काफी भूमि अर्जित की गई। भूमि अधिग्रहण से काफी बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए और अपनी वन, भूमि, जल संसाधन, सामुदायिक पहचान एवं जीविकोपार्जन खो बैठे।
> अतः औद्योगिकीकरण एवं उद्योग इत्यादि के लिए भूमि अधिग्रहण के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक है कि वर्तमान स्थिति का आकलन करते हुए उपर्युक्त पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास नीति तैयार की जाय, जिससे पूँजी निवेशकों के साथ-साथ उससे प्रभावित लोगों का भी कल्याण सुनिश्चित हो सके।
> विगत 60-70 वर्षों में रोजगार के लिए झारखण्ड में आनेवाले लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, जिससे झारखण्ड के लोगों की विशेषकर आदिवासी लोगों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक पहचान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
> झारखण्ड राज्य की जनसंख्या में आदिवासियों की जनसंख्या वर्ष 1931 में 50 प्रतिशत से घटकर 2011 में लगभग 26.3 प्रतिशत हो गया है।
> राज्य में आदिवासियों की जनसंख्या घटने के कारण विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की आरक्षित सीटों की संख्या घटकर 1971 में 32 से 28 हो गई । इसी तरह लोकसभा में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 7 से घटकर 5 हो गई।
> सार्वजनिक सुविधाओं एवं आधारभूत संरचना की व्यवस्था करते हुए निजी संपत्ति के अर्जन करते समय 'सर्वोपरि अधिकार' के सिद्धांत के अंतर्गत राज्य के द्वारा कभी-कभी विधिक शक्तियों का प्रयोग करना अपेक्षित होता है। इससे लोगों को भूमि, जीविका, आश्रयस्थल छोड़ना पड़ता है, जिसके कारण इन लागों पर मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़ता है। इसका प्रभाव सबसे ज्यादा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, सीमांत किसानों, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों पर पड़ता है।
> पुनर्वास और पुनर्स्थापन संबंधी मुद्दों को बाह्य रूप से आरोपित आवश्यकताओं की अपेक्षा प्रभावित व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी के साथ तैयार की गई विकासात्मक प्रक्रिया के एक मूलभूत अंग के रूप में स्वीकार करना एक अनिवार्य आवश्यकता है। अनैच्छिक विस्थापन द्वारा प्रतिकूल रूप से प्रभावित परिवारों को आर्थिक मुआवजे के अलावा अतिरिक्त लाभ प्रदान करने होंगे। उन लोगों की स्थिति और भी खराब होती है, जो भूमि के संबंध में विधिक अथवा मान्यता प्राप्त अधिकार नहीं रखते हैं, जैसे- गैरमजरूआ एवं वनभूमि धारक, जिस पर वे अपने जीविकोपार्जन के लिए पूर्णतया आश्रित रहते हैं। इस प्रकार योजनाकर्त्ताओं के लिए विस्थापन एवं पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्रक्रिया में उन लागों को भी शामिल करने की आवश्यकता है, जो ऐसी संपत्तियों के अर्जन से प्रभावित होते हैं।
> उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में विगत वर्षों में झारखण्ड में पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास नीति की अधिक आवश्यकता महसूस हुई।
अध्याय-2 उद्देश्य
> झारखण्ड पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति के उद्देश्य निम्नवत् हैं
1. जहाँ तक संभव हो, न्यूनतम विस्थापन, विस्थापन न करने अथवा कम-से-कम विस्थापन करने के विकल्पों को बढ़ावा देना ।
2. प्रभावित व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी के पर्याप्त पुनर्वास पैकेज सुनिश्चित करना तथा पुनर्वास की प्रक्रिया का तेजी से कार्यान्वयन सुनश्चित करना।
3. समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के अधिकारों की सुरक्षा करने तथा उनके उपचार के संबंध में ध्यानपूर्वक तथा संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई किए जाने पर विशेष ध्यान रखने को सुनिश्चित करना।
4. प्रभावित परिवारों के बेहतर जीवन स्तर उपलब्ध कराने तथा सतत् रूप से आय मुहैया कराने हेतु संयुक्त प्रयास करना।
5. पुनर्वास कार्यों को विकास योजनाओं तथा कार्यान्वयन प्रक्रिया के साथ एकीकृत करना ।
6. जहाँ तक विस्थापन भूमि-अर्जन के कारण होता है, वहाँ पर अर्जनकारी निकाय तथा प्रभावित परिवारों के बीच आपसी सहयोग के जरिये सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करना ।
अध्याय - 3 परिभाषाएँ
> इस नीति में प्रयोग की गई विभिन्न अभिव्यक्तियों की प्रमुख परिभाषाएं निम्नानुसार हैं:
> प्रभावित परिवार - ऐसा परिवार जिसकी संपत्ति किसी परियोजना हेतु भूमि अर्जन किये जाने या अन्य कारण से अनैच्छिक विस्थापन द्वारा प्रभावित हुई है।
> प्रभावित क्षेत्र - ऐसा क्षेत्र जहाँ किसी परियोजना हेतु भूमि अर्जन या अन्य कारण से एक सौ अथवा अधिक परिवारों के विस्थापन की संभावना है।
> कृषि श्रमिक- ऐसा व्यक्ति जो प्रभावित क्षेत्र की घोषणा की तारीख से पूर्व कम से कम अनुसूचित क्षेत्र में 30 वर्षो से तथा गैर - अनुसूचित क्षेत्र में 15 वर्षों से निवास कर रहा हो तथा उस क्षेत्र में शारीरिक श्रम द्वारा कृषि भूमि अर्जित करता हो ।
> कृषि भूमि - ऐसी भूमि जिसका प्रयोग कृषि या बागवानी, डेयरी उद्योग, मुर्गी पालन, मत्स्यन, रेशम उत्पादन अथवा औषधीय जड़ी-बूटियों के उत्पादन हेतु नर्सरी के रूप में, पशुओं की चराई हेतु, घास उगाने आदि के लिए किया जाता है।
> विस्थापन- वास - भूमि अथवा आवासीय स्थान को खो देना ।
> परिवार - एक व्यक्ति, उसकी पत्नी या उसका पति, अविवाहित पुत्र, अविवाहित पुत्रियाँ, अविवाहित भाई, अविवाहित बहनें शामिल हैं। इसमें "एकल परिवार" के अंतर्गत एक व्यक्ति, उसकी पत्नी/उसका पति तथा अवयस्यक बच्चे शामिल हैं। "पृथक परिवार" के तहत 30 वर्ष से अधिक उम्र के अविवाहित पुरूष या महिला, शारीरिक या मानसिक रूप से 40 प्रतिशत से अधिक अपंग व्यक्ति, नाबालिग अनाथ जिसने माता-पिता दोनों खो दिया हो या विधवा होंगे।
> ग्राम-सभा- झारखण्ड पंचायत राज अधिनियम, 2001 में परिभाषित ग्राम सभा ।
> जोत क्षेत्र - किसी एक व्यक्ति द्वारा दखलकार या काश्तकार के रूप में अथवा दोनों ही रूपों में धारित कुल भूमि।
> रैयत - ऐसा व्यक्ति जिसका नाम संदर्भित भूमि के खंड से संबंधित राजस्व अभिलेख में शामिल है।
> भूमि अर्जन – भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 या राज्य सरकार के किसी अन्य कानून के अंतर्गत अर्जित भूमि।
> निगम क्षेत्र - झारखण्ड नगर निगम अधिनियम, 2001 में परिभाषित निगम क्षेत्र ।
> अधिभोगीअनुसूचित जनजाति समुदाय एवं अन्य वनवासी समुदाय का ऐसा सदस्य जो 13 दिसम्बर, 2005 से पहले वन भूमि पर कब्जा रखता हो ।
> परियोजना - ऐसी परियोजना जिसमें भूमि अधिग्रहण के फलस्वरूप अनैच्छिक विस्थापन सम्मिलित हो ।
> अर्जनकारी निकाय- ऐसी कम्पनी, एक निगमित निकाय, एक संस्था अथवा कोई अन्य संगठन जिसके लिए राज्य सरकार द्वारा भूमि का अर्जन किया जाता है।
> पुनर्स्थापन क्षेत्र - ऐसा क्षेत्र जिसे राज्य सरकार द्वारा इस नीति के तहत् पुनर्स्थापन क्षेत्र घोषित किया गया हो।
अध्याय - 4 परियोजनाओं का सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन
> जब भी कोई नई परियोजना शुरू करने अथवा किसी विद्यमान परियोजना का विस्तार करने की इच्छा की जाती है, जिसके अंतर्गत किसी भी क्षेत्र में सामूहिक रूप से एक सौ अथवा अधिक परिवारों का अनैच्छिक विस्थ ापन शामिल हो, तो प्रशासक, पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास में यह सुनिश्चित करेगा कि प्रस्तावित प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन किया जाए।
> सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाएगा कि परियोजना का सार्वजनिक व सामुदायिक संपत्तियों, परिसंपत्तियों और आधारिक ढांचे, सामुदायिक तालाब, चारागाह, भूमि, चारे के लिए भूमि, पौधारोपण, उचित दर की दुकानें, पंचायत घर, सहकारी समितियां, सार्वजनिक उपयोगिताओं जैसे- डाकघर, बीज भंडार, सिंचाई, बिजली, स्वास्थ्य केन्द्र, पार्क, प्रशिक्षण केन्द्र, सामुदायिक केन्द्र, पूजा स्थल, कब्रगाह, श्मशान आदि एवं जनजातीय संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
> ऐसे मामलों जिनमें पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) तथा सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (SIA) दोनों ही किए जाने अपेक्षित हों, उनमें पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के लिए परियोजना प्रभावित क्षेत्र में की गई जन-सुनवाई के अंतर्गत सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन से संबंधित मामलों को भी शामिल किया जाएगा। ऐसी जन-सुनवाई का कार्य 30 दिनों के अंदर पूरा कर लिया जाएगा।
> सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (SIA) स्वीकृति उन सभी मामलों में अनिवार्य होगी, जिनमें सामूहिक रूप में किसी भी क्षेत्र में 100 या उससे अधिक परिवारों का अनैच्छिक विस्थापन होता है तथा सभी संबंधित पक्षों द्वारा SIA की स्वीकृति में निर्धारित की गई शर्तों का विधिवत रूप से पालन किया जाएगा। भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई के पूर्व अधियाची निकाय को इस पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति के प्रावधानों का विधिवत रूप से पालन करने की लिखित रूप से वचनबद्धता प्रमाण-पत्र देना होगा।
अध्याय-5 पुनर्स्थापन तथा पुनर्वास प्रशासक तथा आयुक्त की नियुक्ति तथा उनकी शक्तियाँ और कार्य
> जहाँ पर राज्य सरकार इस बात से संतुष्ट हो कि किसी परियोजना के लिए भूमि अर्जन अथवा किसी अन्य कारण से 100 या अधिक परिवारों का अनैच्छिक विस्थापन होने की संभावना है, तो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा उपायुक्त के स्तर से अन्यून स्तर के किसी अधिकारी को पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक के रूप नियुक्त करेगी। सामूहिक रूप से 100 से कम परिवारों के विस्थापन वाली परियोजनाओं के मामले में उपायुक्त इस नीति के अधीन प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास के लिए जिम्मेदार होंगे।
> पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास प्रशासक की सहायता राज्य सरकार द्वारा निर्णीत अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा की जाएगी।
> पुनर्वास आयुक्त के पर्यवेक्षण, निर्देशों तथा नियंत्रण के अध्ययीन पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक प्रभावित परिवारों के विस्थापन और पुनर्वास के लिए सभी उपाय करेगा।
> पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास योजना तैयार करने, निष्पादित करने और उसकी निगरानी करने के संबंध में समग्र नियंत्रण और पर्यवेक्षण की शक्ति पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासकों में निहित होगी।
> राज्य सरकार के किसी सामान्य अथवा विशेष आदेशों के अधीन पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक निम्नलिखित कार्य और कर्त्तव्य को संपन्न करेगा
1. अर्जनकारी निकाय के परामर्श से व्यक्तियों का न्यूनतम विस्थापन और ऐसे विकल्पों का पता लगाना, जिनसे विस्थापन न हो अथवा कम-से-कम विस्थापन हो ।
2. पुनर्वास और पुनर्स्थापन स्कीम तैयार करते समय प्रभावित व्यक्तियों एवं संबंधित ग्राम सभाओं के साथ परामर्श करना।
3. यह सुनिश्चित करना कि अनुसूचित जनजातियों और कमजोर वर्ग के प्रतिकूल रूप से प्रभावित व्यक्तियों के हितों का सर्वेक्षण हो ।
4. इस नीति के अंतर्गत पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीम के लिए योजना का प्रारूप तैयार करना।
5. प्रभावित परिवारों, संबंधित ग्रामसभा और अर्जनकारी निकाय के प्रतिनिधियों के साथ परामर्श से भूमि अर्जन के विभिन्न घटकों, पुनर्स्थापन और पुनर्वास कार्यकलापों अथवा कार्यक्रमों के लिए अनुमानित व्यय सहित बजट तैयार करना ।
6. प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए पर्याप्त भूमि की व्यवस्था करना ।
7. प्रभावित परिवारों हेतु लाभ स्वीकृत करना ।
8. ऐसे अन्य कार्य निष्पादित करना जिन्हें राज्य सरकार लिखित में आदेश द्वारा समय-समय पर सौंपती है।
> प्रशासक अपने कार्यों के सम्पादन के लिए किसी तकनीकी विशेषज्ञ/संस्थान से अपेक्षित सहयोग ले सकेगा जिस पर व्यय का वहन अधियायी निकाय द्वारा किया जाएगा।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक लिखित रूप में आदेश के द्वारा उसे प्रदत्त ऐसी प्रशासनिक शक्तियों और सौंपे गए कर्त्तव्यों को अंचलाधिकारी से अन्यून पद के किसी अधिकारी अथवा समकक्ष अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकता है।
> इस नीति के तहत राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए सभी अधिकारी और कर्मचारी पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक के अधीनस्थ होंगे।
> राज्य सरकार इस नीति के तहत पुनर्स्थापन और पुनर्वास के सभी मामलों के लिए सरकार के आयुक्त अथवा समकक्ष स्तर के किसी अधिकारी को नियुक्त करेगी जिसे पुनर्स्थापन और पुनर्वास आयुक्त कहा जाएगा।
> इस नीति को लागू करने हेतु नियुक्त प्रशासनिक तथा अन्य अधिकारी और कर्मचारी पुनर्स्थापन और पुनर्वास आयुक्त के अधीन होंगे।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास आयुक्त इस नीति के तहत स्कीमों को तैयार करने तथा योजनाओं के समुचित कार्यान्वयन का पर्यवेक्षण करने हेतु उत्तरदायी होगा।
अध्याय - 6 पुनर्स्थापन तथा पुनर्वास योजना
> इस अध्याय में उल्लिखित प्रक्रिया का प्रभावित क्षेत्रों की घोषणा करने, सर्वेक्षण करने, प्रभावित व्यक्तियों की गणना करने, उपलब्ध सरकारी भूमि तथा पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए व्यवस्था की जाने वाली भूमि का आकलन करने, पुनर्स्थापन क्षेत्र की घोषणा करने, स्कीम या योजना तैयार करने तथा इसके अंतिम रूप से प्रकाशन करने संबंधित सभी मामलों में अनुसरण किया जाएगा।
> किसी परियोजना के लिए भूमि के अर्जन अथवा किसी अन्य कारणवश सामूहिक रूप से किसी भी क्षेत्र में एक सौ अथवा अधिक परिवारों के अनैच्छिक विस्थापन की संभावना है, तो वह एस. आई. ए. स्वीकृति के 15 दिनों के अंदर आदेश के माध्यम से गांवों के क्षेत्र अथवा स्थानों को प्रभावित क्षेत्र घोषित करेगी।
> इस नीति के अंतर्गत की गई प्रत्येक घोषणा को कमम-सेसे कम तीन दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाएगा जिनमें से कम-से-कम दो हिन्दी भाषा में होंगे, जिनका प्रचालन गांवों मे अथवा उन क्षेत्रों में होता हो, जिनके प्रभावित होने की संभावना है।
>>इस नीति के अंतर्गत घोषणा किए जाने पर पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक प्रभावित होने वाले व्यक्तियों तथा परिवारों की पहचान करने के लिए आधारमूलक (बेसलाइन) सर्वेक्षण और गणना आयोजित करेगा।
> इस सर्वेक्षण में प्रभावित परिवारों के बारे में निम्नानुसार ग्रामवार सूचना दी जाएगी
1. परिवार के वे सदस्य जो प्रभावित क्षेत्र में रह रहे हैं, कब से रह रहे हैं, किस व्यापार या कारोबार या पेशे में लगे हुए हैं।
2. कृषि श्रमिक अथवा गैर कृषि श्रमिक।
3. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति, आदिम जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित परिवार ।
4. दिव्यांग, निराश्रित, अनाथ, विधवाएँ, अविवाहित लड़कियाँ, परित्यक्त महिलाएँ अथवा ऐसे व्यक्ति जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है, जिन्हें वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध नहीं कराई गई है अथवा तत्काल उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है और जो अन्यथा परिवार के भाग के रूप में शामिल नहीं होते हैं।
5. ऐसे परिवार, जो भूमिहीन हैं तथा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले, किंतु प्रभावित क्षेत्र की घोषणा की तारीख से पहले प्रभावित क्षेत्र में कम-से-कम गैर- अनुसूचित क्षेत्र में 15 वर्ष एवं अनुसूचित क्षेत्र में 30 वर्षों से अन्यून अवधि से लगातार रह रहे हैं तथा जो संबंधित ग्रामसभा द्वारा प्रमाणित हों।
6. अनुसूचति जनजातियों / अनुसूचित जातियों तथा अन्य वन क्षेत्र में बसे लोगों के ऐसे परिवार जिनके कब्जे में प्रभावित क्षेत्र में 13 दिसम्बर, 2005 से पहले वन भूमि थी ।
> इसके अंतर्गत किए जाने वाले प्रत्येक सर्वेक्षण को घोषणा की तारीख से 60 दिन की अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए
> उपर्युक्त सर्वेक्षण के पूरा हो जाने पर सात दिनों के अन्दर पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक, आदेश द्वारा सर्वेक्षण के निष्कर्षों के विवरण का मसौदा ऐसे ढंग से प्रकाशित करेगा जिससे कि प्रभावित होने वाले व्यक्तियों को इसकी सूचना प्राप्त हो सके तथा उससे प्रभावित हो सकने वाले सभी व्यक्तियों से आपत्तियाँ और सुझाव आमंत्रित किये जा सकें।
> सर्वेक्षण और ब्यौरों के मसौदे के प्रकाशन की तारीख से 15 दिन की अवधि समाप्त हो जाने पर और इस संबंध में उसे प्राप्त आपत्तियों और सुझावों पर विचार कर अगले 15 दिनों के अंदर पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक, सर्वेक्षण के ब्यौरों के साथ उसके संबंध में अपनी सिफारिश राज्य सरकार को प्रस्तुत करेंगे तथा इसकी एक प्रति आम सूचना हेतु संबंधित ग्रामसभा तथा पंचायत को भेजी जाएगी।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक के सर्वेक्षण और सिफारिशों के ब्यौरों के प्राप्त होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर राज्य सरकार सर्वेक्षण के अंतिम ब्यौरों को शासकीय राजपत्र में प्रकाशित करेगी।
> पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास आयुक्त प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए सर्वेक्षण के ब्यौरों के राजपत्र में प्रकाशन के 15 दिनों के अंदर आदेश के द्वारा किसी क्षेत्र अथवा क्षेत्रों को पुनर्स्थापन क्षेत्र के रूप में घोषित करेगा। पुनर्स्थापन क्षेत्र परियोजना टाउनशिप में अथवा उससे सटे हुए होंगे।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास आयुक्त के द्वारा यथा अनुमोदित पुनर्स्थापन कार्य के पूरा होने के पूर्व कोई भौतिक विस्थापन नहीं किया जाएगा। पुनर्स्थापन के संपन्न होने का प्रमाण पत्र पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक द्वारा संबंधित ग्रामसभा से परामर्श कर निर्गत किया जाएगा। परन्तु प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन हेतु ऐसी भूमि का उपयोग किया जा सकेगा जहाँ भवन आदि अवस्थित न हों।
> पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास प्रशासक उन भूमि की एक सूची तैयार करेगा जो प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए उपलब्ध हो सके। तैयार भूमि की सूची में निम्नलिखित सम्मिलित होंगे
1. परियोजना के लिए उपलब्ध अथवा अर्जित भूमि और इस प्रयोजन के लिए निर्धारित भूमि ।
2. सरकारी बंजर भूमि और कोई अन्य भूमि, जो सरकार में विहित हो तथा प्रभावित परिवारों को आवंटन हेतु उपलब्ध हो ।
3. पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीम अथवा योजना के प्रयोजनार्थ खरीद अथवा अर्जन के लिए उपलब्ध
भूमि ।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक राज्य सरकार की ओर से पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीम के प्रयोजनों के लिए सहमति निर्णय के जरिए या तो किसी व्यक्ति से भूमि खरीद सकता है और इस प्रयोजन के लिए करार कर सकता है अथवा भूमि के अर्जन के लिए राज्य सरकार को कह सकता है।
> प्रभावित परिवारों के आधारिक सर्वेक्षण और गणना तथा पुनर्स्थापन के लिए भूमि की आवश्यकता के आकलन का कार्य पूरा होने के पश्चात् पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक महिलाओं सहित प्रभावित परिवारों के प्रतिनिधियों के साथ तथा अर्जनकारी निकाय के प्रतिनिधि के साथ परामर्श करने के पश्चात् प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए स्कीम या योजना का प्रारूप तैयार करेगा।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीम या योजना के विवरण में निम्नलिखित विवरण होगा
(क) परियोजना के लिए अर्जित की जाने वाली भूमि का क्षेत्रफल और प्रभावित गांवों के नाम।
(ख) प्रभावित व्यक्तियों की ग्राम- वार, परिवार - वार सूची उम्र सहित प्रभावित क्षेत्र में उनके कब्जे में अथवा उनके स्वामित्व में भूमि और अचल संपत्ति की मात्रा और स्वरूप, जिसकी उनके द्वारा खोने की संभावना है।
(ग) ऐसे क्षेत्र में कृषि श्रमि की सूची और ऐसे व्यक्तियों के नाम जिनकी आजीविका कृषि कार्यकलाप पर निर्भर है।
(घ) ऐसे व्यक्तियों की सूची जिनका रोजगार अथवा आजीविका परियोजना के लिए भूमि अर्जन के फलस्वरूप समाप्त हो गई है।
(ड.) ऐसे शिल्पकारों सहित गैर-कृषि श्रमिकों की सूची ।
(च) बिना वास भूमि वाले और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों सहित प्रभावित भूमिहीन परिवारों की सूची, जो ग्रामसभा से विमर्श कर पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक गरीबी रेखा से नीचे के सभी परिवारों की सूची में शामिल किया जाना सुनिश्चित करेगा।
(छ) भेद्द प्रभावित व्यक्तियों की सूची ।
(ज) अधिभोगियों की सूची, यदि कोई हो ।
(झ) जन-सुविधाओं और सरकारी भवनों की सूची जो प्रभावित है अथवा जिनके प्रभावित होने की संभावना है।
(ञ) सार्वजनिक और सामुदायिक संपत्तियों और अवसंरचना का विवरण |
(ट) उन लाभों और पैकेजों की सूची, भूमि के आबंटन हेतु उपलब्ध भूमि की सूची, आधारभूत संरचनाओं का ब्यौरा जो प्रभावित परिवारों को प्रदान किया जाना है।
(ठ) विस्थापित व्यक्तियों को पुनर्स्थापन क्षेत्र में स्थानांतरित करने और बसाने की समय सूची, परियोजना क्षेत्र में पड़ने वाले सेवा भूमि जैसे- पहनई, महतो, मुण्डई, प्रधानी अथवा छोटानागपुर एवं संताल परगना काश्तकारी अधिनियम के अंतर्गत सेवा भूमि |
(ड) प्रभावित परिवारों के सदस्यों की शैक्षणिक योग्यता तथा परियोजना में उपलब्ध रोजगार के अवसर और उसकी पात्रता की योग्यता ।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास संबंधी स्कीम या योजना के प्रारूप पर ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम सभाओं में और उन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पर ग्राम सभाएँ मौजूद न हों, जन सुनवाईयों में विचार-विमर्श किया जाएगा।
> अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा अथवा पंचायतों के साथ समुचित स्तर पर परामर्श पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम, 1996 के उपबंधों के अनुसार होगा।
> अनुसूचित क्षेत्रों में 100 या इससे अधिक अनुसूचित जनजातियों के परिवारों के अनैच्छिक विस्थापन के मामलों में जनजातीय सलाहकार परिषद् से परामर्श किया जाएगा।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास लाभों पर होने वाला पूर्ण व्यय तथा प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास पर होने वाला अन्य व्यय अर्जनकारी निकाय द्वारा वहन किया जाएगा।
> संबंधित योजना या स्कीम की स्वीकृति दिये जाने से पूर्व राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी की स्वीकृति से पूर्व अर्जनकारी निकाय की सहमति हो गयी है तथा संबंधित लागत तथा अन्य व्यय वहन करने हेतु अर्जनकारी निकाय सहमत हो गया है।
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीम या योजना को स्वीकृति दिए जाने के पश्चात् राज्य सरकार इसे शासकीय राजपत्र में प्रकाशित करेगी। पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीम या योजना की अंतिम अधिसूचना के पश्चात् यह लागू हो जाएगी।
> ऐसी परियोजनाओं के मामले में जिनमें अर्जनकारी निकाय की ओर से भूमि अर्जन शामिल है और यदि अर्जनकारी निकाय एक ऐसी कम्पनी है जिसे अंश और ऋणपत्र जारी करने का प्राधिकार प्राप्त है, तो ऐसे प्रभावित परिवारों, जो अर्जित की गई भूमि या संपत्ति के लिए प्रतिकर पाने के हकदार हैं, का अपने पुनर्वास अनुदान की राशि के पच्चीस प्रतिशत तक अर्जनकारी निकाय के अंश और ऋणपत्र अथवा दोनों को लेने का विकल्प दिया जाएगा।
> किसी परियोजना के लिए अनिवार्यतः अर्जित की गई भूमि को सार्वजनिक प्रयोजन के अलावा किसी अन्य प्रयोजन के लिए अंतरित नहीं किया जा सकता है और यह अंतरण राज्य सरकार के पूर्वानुमोदन के बाद किया जाएगा।
> यदि किसी परियोजना के लिए या उसके अंश के लिए अर्जित की गई भूमि अर्जनकारी निकाय द्वारा कब्जे में लेने की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक परियोजना के लिए आंशिक रूप से तथा पंद्रह वर्षों की अवधि तक पूर्ण रूप से उपयोग में नहीं लायी जाती है, तो उस भूमि को उसके अर्जनकारी निकाय का कोई प्रतिकर या क्षतिपूर्ति की अदायगी किए बिना ही राज्य सरकार के कब्जे में और स्वामित्व में वापस कर दिया जाएगा। राज्य सरकार के द्वारा पश्चात् उस भूमि पर अन्य उपयोगी परियोजना स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा एवं ऐसा नहीं हो पाने की स्थिति में भूमि प्रभावित परिवारों को वापस कर दी जाएगी।
> अर्जनकारी निकाय को अधिग्रहीत भूमि के विक्रय का अधिकार नहीं होगा।
> यदि किसी सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अर्जित भूमि को किसी व्यक्ति या संगठन को किसी प्रतिफल के बदले अंतरित किया जाता है, तो इससे प्राप्त राशि के अस्सी प्रतिशत भाग को उन व्यक्तियों के बीच वितरित किया जाएगा जिनसे भूमि का अर्जन किया गया था। राशि का वितरण उस अनुपात में किया जाएगा जिस पर भूमि अर्जित की गई थी।
अध्याय - 7 प्रभावित परिवारों के लिए पुनर्स्थापन और पुनर्वास लाभ
> पुनर्स्थापन और पुनर्वास लाभ को सभी प्रभावित परिवारों के बीच वितरित किया जाएगा।
> ऐसे किसी भी प्रभावित परिवार, जिसके पास अपना घर हो और जिसका घर अधिग्रहीत कर लिया गया हो, को प्रत्येक एकल परिवार के लिए अर्जित किए गए भूमि के लिए ग्रामीण क्षेत्र में 10 डिसमील तथा शहरी क्षेत्र में 5 डिसमील तक आवास के लिए बिना किसी लागत के आवंटित की जाएगी।
> अर्जनकारी निकाय द्वारा आवंटित आवासीय स्थल में एक पक्का घर बनाया जाएगा जिसमें दो शयन कक्ष, एक ड्राइंग कक्ष, एक रसोईघर तथा एक शौचालय हो । इसका विस्तार शहरी क्षेत्र में 100 वर्गमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्गमीटर होगा। यदि कोई व्यक्ति पुनर्वासित क्षेत्र में मकान न लेना चाहता हो, तो उसे एकमुश्त तीन लाख रूपये वित्तीय सहायता दी जाएगी।
> गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी के प्रत्येक परिवार जिनके पास वासभूमि नही हो और जो प्रभावित क्षेत्र की घोषणा की तारीख से पहले गैर-अनुसूचित क्षेत्र में 15 वर्षो से एवं अनुसूचित क्षेत्र में 30 वर्षों से लगातार रह रहा हो और अनैच्छिक रूप से विस्थापित हुआ हो, को पुनर्स्थापन क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्र में 55 वर्गमीटर विस्तार वाला क्षेत्र का मकान मुहैया कराया जा सकता है। ऐसे गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी के परिवारों के लिए बहुमंजिला भवनों का निर्माण कराया जा सकता है जिसमें भूतल पर आच्छादित क्षेत्रफल अधिकतम 50 प्रतिशत ही हो। परन्तु यदि कोई परिवार घर नहीं लेना चाहता है, तो उसे एकमुश्त दो लाख रूपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
> प्रत्येक ऐसे प्रभावित परिवार जिसे सरकारी भूमि नहीं दी जा सके अथवा प्राप्त न करे, भूमि अर्जन के कारण खोई भूमि का 1/10वाँ अंश प्रस्तावित परियोजना या टाउनशिप अथवा इसके सटे हुए क्षेत्र में प्राप्त कर सकेगे।
> प्रभावित परिवारों को आवंटित की गई भूमि अथवा घर के पंजीकरण के लिए अदा की जानेवाली स्टाम्प शुल्क तथा अन्य शुल्कों का वहन अर्जनकारी निकाय द्वारा किया जाएगा।
> इस नीति के अंतर्गत प्रभावित परिवारों को आवंटित भूमि या घर सभी प्रकार के ऋण भारों से मुक्त होंगे।
> इस नीति के अंतर्गत प्रभावित परिवारों को आवंटित भूमि या घर प्रभावित परिवार के पति और पत्नी के संयुक्त नाम से होंगे। साथ ही मौद्रिक राशि का भुगतान पति और पत्नी के नाम से खोले गए संयुक्त खाते के माध्यम से किया जाएगा।
> विस्थापित परिवार के पास यदि पशु हो, तो पशुशाला के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता के रूप में पैंतीस हजार रूपये की राशि प्रदान की जाएगी।
> प्रत्येक विस्थापित परिवार अपने परिवार, भवन निर्माण सामग्री, अपने सामान तथा पशुओं के स्थानांतरण के लिए एक बार दी जाने वाली वित्तीय सहायता के रूप में पंद्रह हजार रूपये प्राप्त करेगा।
> प्रत्येक प्रभावित परिवार जिसकी पक्की दुकान या गुमटी है जिससे वह व्यवसाय करता है और विस्थापित हुआ है, कार्य शेड या दुकान के निर्माण हेतु एक बार में दी जाने वाली वित्तीय सहायता के रूप में पचास हजार रूपये प्राप्त करेगा।
> ऐसी परियोजना जिसमें अर्जनकारी निकाय की ओर भूमि का अर्जन शामिल हो, तो प्रभावित परिवारों के लिए निम्न व्यवस्थाएँ की जाएंगी
> वैसे प्रभावित परिवार जिनके भूमि का अधिग्रहण किया गया हो, अर्जनकारी निकाय निकाय एकल परिवार के कम-से-कम एक अहर्त्ता प्राप्त व्यक्ति को अनिवार्य रूप से परियोजना में रोजगार उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेगा।
> अर्जनकारी निकाय प्रभावित व्यक्तियों के तकनीकी / व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था करेगा ताकि ऐसे व्यक्तियों को प्राथमिकता के आधार पर परियोजना में उपर्युक्त कार्य के लिए सक्षम बनाया जा सके।
> यदि प्रभावित परिवारों के नामित सदस्य अन्यथा नियोजन हेतु पात्र हों, तो आयु की ऊपरी सीमा दस वर्ष तक शिथिल कर दी जाएगी।
> उपलब्धता एवं उपयुक्तता के अधीन समस्त अकुशल नये रोजगार तथा परियोजना में सृजित अर्द्धकुशल नियोजन परियोजना प्रभावित परिवारों के सदस्यों को दी जाएगी।
> यदि प्रभावित परिवार के व्यक्ति की परियोजना में नौकरी के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उसके आश्रितों को परियोजना में अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी जाएगी।
> यदि प्रभावित परिवार को परियोजना में रोजगार मुहैया नहीं कराया गया है अथवा कोई परिवार का सदस्य परियोजना में नियोजन का इच्छुक नहीं है, तो प्रभावित परिवार को प्रति एकड़ प्रति माह 1000 रूपये की राशि विस्थापन की तिथि से तीस वर्षों तक उपलब्ध कराई जाएगी। प्रत्येक दो वर्ष पर इस राशि में 500 रूपये की बढ़ोत्तरी की जाएगी।
> केन्द्र या राज्य सरकार के सार्वजनिक उपक्रम एजेंसी की परियोजनाओं को छोड़कर अन्य व्यावसायिक परियोजनाओं के मामले में परियोजना इकाई के वार्षिक शुद्ध आय का 1 प्रतिशत प्रभावित परिवारों के बीच मौद्रिक रूप में वितरित किया जाएगा। यह राशि वार्षिक वित्तीय परिणाम की घोषणा के तीन माह के अंदर वितरित किया जाएगा।
> अर्जनकारी निकाय द्वारा अनैच्छिक रूप से विस्थापित परिवारों को विस्थापन की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए प्रति माह 25 दिनों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर मासिक जीविका भत्ता प्रदान किया जाएगा।
> परियोजना प्राधिकारी अपनी लागत पर ऐसी वार्षिक पॉलिसियों की व्यवस्था करेंगे, जिसमें भेद्द प्रभावित व्यक्तियों को एक हजार पाँच सौ रूपये प्रति माह की राशि जीवनभर पेंशन के रूप में प्राप्त होंगे।
अनुसूचित जानजातियों और अनुसूचित जातियों से संबंधित परियोजना प्रभावित पुनर्स्थापन और पुनर्वास लाभ
> ऐसी परियोजना जिसमें 100 या इससे अधिक अनुसूचित जनजातियों के परिवारों का अनैच्छिक विस्थापन होता है, तो विशेष अभियान चलाकर प्राप्य भूमि अधिकारों को सुनिश्चित किया जाएगा तथा अंतरित भूमि पर जनजातीय लोगों के स्वामित्व अधिकार बहाल करने हेतु एक जनजातीय विकास योजना तैयार की जाएगी। इस योजना में पाँच वर्षों के भीतर उन जनजातीय समुदायों, जिन्हें वनों से प्राप्त होने वाले लाभों से वंचित रखा गया है, की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त वैकल्पिक ईंधन, चारा और गैर-इमारती लकड़ी जैसे वनोत्पाद संसाधनों के विकास हेतु कार्यक्रम भी शामिल होंगे।
> प्रभावित परिवारों से भूमि अर्जन किए जाने के किसी भी मामले में उन्हें प्राप्य प्रतिकर की राशि का कम-से-कम एकक-तिहाई प्रारंभ में प्रथम किस्त के रूप में अदा किया जाएगा और शेष राशि भूमि का कब्जा लेने के समय अदा की जाएगी।
> प्रभावित अनुसूचित जनजातीय परिवारों को जहाँ तक संभव हो, उसी अनुसूचित क्षेत्र में पुनः बसाया जाएगा।
> ऐसे पुनर्स्थापन क्षेत्र जिनमें मुख्यतया अनुसूचित जनजाति के लोगों की बसावट हो, वहाँ पर सामुदायिक / धार्मिक सभाओं के लिए बिना लागत के भूमि उपलब्ध करायी जाएगी ।
> यदि प्रभावित अनुसूचित जनजाति / अनुसूचित जाति / अन्य पिछड़े वर्ग के परिवारों को जिले के बाहर पुनर्स्थापित किया गया है, तो पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास लाभ 25 प्रतिशत से अधिक मौद्रिक रूप में दिया जाएगा।
> जलविद्युत परियोजनाओं के मामले में प्रभावित परिवारों, जिन्हें प्रभावित क्षेत्र में नदी या तालाब या बाँध में मछली पकड़ने का अधिकार था, को जलविद्युत परियोजनाओं के क्षेत्र में स्थित जलाशयों में मछली पकड़ने के अधिकार दिए जाएंगे।
पुनर्स्थापन क्षेत्रों में उपलब्ध कराई जानेवाली उनमुक्तियाँ तथा अवसंरचनात्मक सुविधाएँ
> किसी भी क्षेत्र में 100 परिवारों या इससे अधिक परिवारों के सामूहिक रूप में अनैच्छिक विस्थापन के सभी मामलों में पुनर्स्थापन क्षेत्र में राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित विस्तृत आधारिक अवसंरचनात्मक सुविधाएँ तथा उनमुक्तियाँ उपलब्ध करायी जाएंगी।
> इस प्रकार की सुविधाओं और उनमुक्तियों में सड़कें, सार्वजनिक परिवहन, जल निकास, सफाई, पेयजल स्रोतों, पशुओं के लिए पेयजल स्रोतों, सामुदायिक तालाब, चारागाह भूमि पौधारोपण व सामाजिक वानिकी, कृषि वानिकी, उचित दर की दुकाने, पंचायत घर, सहकारी समितियाँ, डाकघर, बीज - सह - उर्वरक भंडार, सिंचाई, बिजली, स्वास्थ्य केन्द्र, शिशु - माता अनुपूरक पौषणिक सेवाएँ, बच्चों के लिए खेल मैदान, पार्क, सामुदायिक केन्द्र, प्रशिक्षण हेतु संस्थागत व्यवस्था, पूजा स्थल परंपरागत जनजातीय संस्थाओं के लिए भूमि कब्रगाह / श्मशान भूति तथा सुरक्षा व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
> राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी की पुनर्स्थापन क्षेत्र किसी ग्राम पंचायत अथवा किसी नगरपालिका का एक भाग बने।
> प्रभावित परिवारों को पुनर्स्थापन वासस्थल में जिला प्रशासन द्वारा आवंटित भूमि एवं आवास के स्वामित्व अधि. कार संबंधी कागजात हस्तगत करा दिए जाएंगे। जिला प्रशासन के द्वारा नए पुनर्स्थापन वासस्थल को राजस्व ग्राम के रूप में घोषित किया जाएगा, यदि वह पूर्व में किसी राजस्व ग्राम का हिस्सा न रहा हो ।
> भविष्य में आवासीय प्रमाण पत्र निर्गत करने के मामलों में प्रभावित परिवार द्वारा प्रभावित क्षेत्र में बिताई गई अवधि / राजस्व खतियान में अंकित नाम का उपयोग किया जा सकेगा।
पुनर्वास अनुदान तथा लाभों को सूचीबद्ध करना
> इस नीति के अंतर्गत मौद्रिक के रूप में अभिव्यक्त पुनर्वास अनुदान तथा अन्य लाभों को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ सूचीबद्ध किया जाएगा और राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर इसे संशोधित किया जाएगा।
परियोजना के आस-पास के क्षेत्र का विकास
> अर्जनकारी निकाय राज्य सरकार द्वारा किए गए निर्णय के अनुसार परियोजना स्थल की परिधि के पंद्रह किलोमीटर के आस-पास के भौगोलिक क्षेत्र के विकास हेतु उत्तरदायी होगा तथा इसके कार्य क्षेत्र के साथ सटे हुए क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान करेगा।
> अध्याय - 8 शिकायत निवारण तंत्र
परियोजना स्तर पर पुनर्स्थापन और पुनर्वास समिति
> प्रत्येक परियोजना जिसमें किसी क्षेत्र में सामूहिक रूप से 100 या इससे अधिक परिवारों का अनैच्छिक विस्थापन होता है, राज्य सरकार प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास योजना के कार्यान्वयन के निगरानी व समीक्षा के लिए अनुमंडल पदाधिकारी से अन्यून किसी सरकारी अधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करेगी। इसे ‘पुनर्स्थापन और पुनर्वास समिति' कहा जाएगा। इस समिति में राज्य सरकार के अधिकारियों के अलावा निम्न सदस्य शामिल होंगे
> प्रभावित क्षेत्र में रहनेवाली महिलाओं का प्रतिनिधि
> प्रभावित क्षेत्र में रहनेवाली अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों का एक-एक प्रतिनिधि।
> प्रमुख बैंक का एक प्रतिनिधि।
> प्रभावित क्षेत्र में अवस्थित पंचायतों और नगरपालिकाओं के अध्यक्ष या उनके द्वारा नामित व्यक्ति |
> प्रभावित क्षेत्र में शामिल क्षेत्र के संसद् सदस्य और विधानसभा सदस्य ।
> परियोजना का भूमि अर्जन अधिकारी ।
> अर्जनकारी निकाय का एक प्रतिनिधि |
जिला स्तर पर पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास समिति
> प्रत्येक जिले में राज्य सरकार परियोजना स्तर पर पुनर्स्थापन और पुनर्वास समितियों के अंतर्गत आने वाले मामलों को छोड़कर जिले में प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापन और पुनर्वास के कार्य की प्रगति की निगरानी व समीक्षा के लिए उपायुक्त की अध्यक्षता में एक स्थायी पुनर्स्थापन और पुनर्वास समिति गठित करेगी। इस समिति की शक्तियाँ, कार्य आदि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
न्यायाधिकरण
> इस नीति के अंतर्गत शामिल मामलों से पैदा होने वाली शिकायतों का समयबद्ध निपटान करने हेतु राज्य सरकार द्वारा त्रिसदस्यीय न्यायाधिकरण की नियुक्ति की जाएगी।
> यदि किसी प्रभावित व्यक्ति को इस नीति के अंतर्गत उपलब्ध पुनर्स्थापन और पुनर्वास लाभों को मुहैया न कराने के प्रति कोई शिकायत हो, तो वह अपनी शिकायत के समाधान के लिए उपयुक्त याचिका संबंधित न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
> न्यायाधिकरण को पुनर्स्थापन तथा पुनर्वास प्रशासक अथवा पुनर्स्थापन और पुनर्वास समिति के निर्णय के विरूद्ध पुनर्स्थापन और पुनर्वास से संबंधित सभी शिकायतों पर विचार करने एवं उनका निपटान करने की शक्ति प्राप्त होगी। साथ ही न्यायाधिकरण पुनर्वास प्रशासक या संबंधित अन्य अधिकारी को ऐसे निर्देश जारी कर सकता है जिन्हें वह इस नीति के कार्यान्वयन से संबंधित शिकायतों के निवारण हेतु उचित समझे।
> अर्जनकारी निकाय द्वारा अर्जित भूमि या अन्य सम्पत्ति के लिए प्रतिकर की राशि से संबंधित विवादों का समाधान भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 या उस समय संघ अथवा राज्य सरकार द्वारा लागू अधिनियम जिसके अंतर्गत भूमि अर्जन किया गया है, के उपबंधों के अंतर्गत किया जाएगा और यह न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा।
> अध्याय – 9 निगरानी तंत्र
> राज्य स्तरीय पुनर्स्थापन और पुनर्वास परिषद्
> राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक परिषद् होगा, जो पुनर्स्थापन और पुनर्वास समिति के क्रियान्वयन के संबंध में परामर्श, समीक्षा एवं अनुश्रवण का कार्य करेगा। परिषद् में संबंधित विभाग के मंत्री, राज्य के मुख्य सचिव तथा संबंधित विभाग के सचिव होंगे। इस परिषद् में राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ को सदस्य के रूप में रखा जा सकता है।
> राज्य स्तरीय पुनर्स्थापन और पुनर्वास परिषद की वर्ष में कम से कम दो बैठकें आयोजित की जाएंगी।
अनुश्रवण समिति
> उन सभी मामालों, जिनके लिए यह नीति लागू होती है, से संबंधित पुनर्स्थापन और पुनर्वास स्कीमों या योजनाओं के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा तथा निगरानी करने के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय अनुश्रवण समिति गठित की जाएगी।
> इस समिति में अध्यक्ष के अतिरिक्त सचिव के रूप में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के सचिव होंगे। इसके अतिरिक्त पथ निर्माण, जल संसाधन, उद्योग, कल्याण, स्वास्थ्य, मानव संसाधन, खान एवं भूतत्व, ऊर्जा, वन एवं पर्यावरण, श्रम एवं नियोजन, कृषि, विधि (न्याय विभाग) तथा नगर विकास विभाग के सचिव सदस्य होंगे। साथ ही पुनर्स्थापन और पुनर्वास आयुक्त इस समिति के संयोजक होंगे। इस समिति में प्रशासी मंत्रालय/विभाग के सचिव को, जिसकी परियोजना के लिए भूमि का अर्जन किया जाना है, सदस्य के रूप में आमंत्रित किया जाएगा।
> उत्पन्न होने वाले किसी भी मामले के त्वरित निष्पादन हेतु परियोजना से संबंधित पुनर्स्थापन और पुनर्वास प्रशासक तथा अधियाची निकाय के प्रतिनिधि को राज्य स्तरीय अनुश्रवण समिति में स्थायी रूप से आमंत्रित किया जाएगा।
> सूचना का आदान-प्रदान
> विस्थापन, पुनर्स्थापन और पुनर्वास के संबंधों में सभी सूचना प्रभावित व्यक्तियों के नाम और पुनर्स्थापन और पुनर्वास पैकेज के ब्यौरों को इंटरनेट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा तथा परियोजना प्राधिकारियों द्वारा इस सूचना से संबंधित ग्राम सभाओं, पंचायतों आदि को अवगत कराया जाएगा।
> इस नीति के अंतर्गत शामिल प्रत्येक मुख्य परियोजना के पुनर्स्थापन और पुनर्वास के लिए राज्य सरकार के संबंधित विभाग में एक पर्यावलोकन समिति गठित होगी।
> राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग, झारखण्ड सरकार इस नीति को प्रभावकारी बनाने एवं क्रियान्वयन करने हेतु नोडल विभाग होगा।
>>राज्य सरकार आवश्यकतानुसार इस नीति के प्रावधानों को समय-समय पर संशोधित कर सकेगी।
झारखण्ड भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार नियमावली, 2015
> अधिनियम की धारा-4 के अंतर्गत सामाजिक प्रभाव आकलन कराया जाएगा। सामाजिक प्रभाव आकलन का प्रतिवेदन हिंदी भाषा में तैयार किया जाएगा।
> सामाजिक प्रभाव आकलन, जन सुनवाई एवं पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन जन सुनवाई भूमि अर्जन क्षेत्र के सभी ग्रामसभा एवं वार्ड सभा में हिंदी भाषा के माध्यम से करायी जाएगी। आदिवासी बहुल वार्ड सभा/ग्रामसभा में अनुवादक के माध्यम से स्थानीय भाषा में समझाया जाएगा।
> भूमि अर्जन अधिनियम के अंतर्गत जमीन मालिकों से भूमि अर्जन हेतु सहमति ली जाएगी। अनुसूचित क्षेत्रों में भूस्वामी के साथ-साथ ग्रामसभा की सहमति भी ली जाएगी। अनुसूचित क्षेत्र में ग्रामसभा पेसा अधिनियम के तहत कराया जाएगा।
> भूमि अर्जन हेतु संबंधित अधियायी निकाय से जमीन का मुआवजा एवं पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन की सभी राशि संबंधित उपायुक्त कार्यालय में जमा की जाएगी, ताकि भूस्वामी को राशि ससमय मिल सके।
> वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जिन लोगों को पट्टा दिया जा रहा है, उन परिवारों को भी जमीन का मुआवजा पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन दिया जाएगा।
> भू-अर्जन किए जानेवाले गांवों के व्यक्तियों को उपलब्ध प्रावधान के तहत् पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन सुविधा दी जाएगी।
> कृषि मजदूर, लघु व्यापारी व अन्य कारीगर को पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन हेतु 200 दिनों का वर्तमान दर से मजदूरी भुगतान किया जाएगा।
> भुगुत बंधक को 25000 रूपये प्रति एकड़ उस भूमि के लिए, जिस पर वे फसल पैदा करते हैं, एकमुश्त भुगतान किया जाएगा।
> संबंधित जिला के अपर समाहर्त्ता को पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन आयुक्त के रूप में अधिसूचित किया गया है।
> प्रमण्डलीय आयुक्त को पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन आयुक्त के रूप में अधिसूचित किया गया है।
> सभी जिलों के उपायुक्तों की अध्यक्षता में परियोजना स्तर पर पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन समिति गठित किया गया है। इस समिति में जनप्रतिनिधि एवं प्रभावित परिवारों के प्रतिनिधि भी सदस्य होंगे, ताकि उनकी समस्या का समाधान जिला स्तर पर ही किया जा सके।
> राज्य सरकार स्तर पर पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन योजना की समीक्षा एवं अनुश्रवण करने हेतु विकास आयुक्त की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है।
> सभी जिलों के उपायुक्तों की अध्यक्षता में परियोजना स्तर पर पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन समिति गठित किया गया है। इस समिति में जनप्रतिनिधि एवं प्रभावित परिवारों के प्रतिनिधि भी सदस्य होंगे, ताकि उनकी समस्या का समाधान जिला स्तर पर ही किया जा सके।
> राज्य सरकार स्तर पर पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन योजना की समीक्षा एवं अनुश्रवण करने हेतु विकास आयुक्त की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है।
> सभी प्रमण्डलीय स्तर पर पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकार बनाया जाएगा ताकि उनका निष्पादन प्रमण्डल स्तर पर हो सके। तत्काल व्यवस्था के तहत माननीय उच्च न्यायालय की सहमति /परामर्श से कार्रवाई की जाएगी।
> राज्य सरकार भूमि बैंक बनाने हेतु तत्पर है, ताकि भविष्य में भू-अर्जन की आवश्यकता कम हो सके।
> किसी भी जिले में बहुफसलीय सिंचित क्षेत्र का दो प्रतिशत से ज्यादा जमीन अर्जित नहीं की जाएगी।
> किसी भी जिले में कुल शुद्ध बोए गए क्षेत्र का एक-चौथाई क्षेत्र से ज्यादा जमीन अर्जित नहीं की जाएगी।
> ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अर्जन करने पर भूस्वामियों को भूमि के बाजार मूल्य का चार गुणा एवं शहरी क्षेत्रों में बाजार मूल्य का दो गुणा मुआवजे का भुगतान किया जाएगा।
> विस्थापित परिवारों के लोक और सामुदायिक संपत्तियों, आस्तियों अथवा अवसंरचना विशिष्ट रूप से सड़क, लोक परिवहन, जल निकास, स्वच्छता, पेयजल की स्रोत, सामुदायिक जलाशय, चारागाह जैसी सुविधाएँ भूमि अर्जन प्रक्रिया के माध्यम से उपलब्ध करायी जाएगी।
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