जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर की जीवनी और इतिहास

अकबर मुगल राजवंश के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक था। वह एक महान मुस्लिम शासक था जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार करते हुए एक बड़ा साम्राज्य बनाया।

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर की जीवनी और इतिहास

अकबर मुगल राजवंश के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक था। वह एक महान मुस्लिम शासक था जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार करते हुए एक बड़ा साम्राज्य बनाया।

13 वर्ष की आयु से, जब उन्होंने मुगल साम्राज्य की बागडोर संभाली, तो उन्होंने उत्तरी, पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों, विशेष रूप से पंजाब, दिल्ली, आगरा, राजपूताना, गुजरात, बंगाल, काबुल, पर विजय प्राप्त की और राज्य और उपमहाद्वीप पर कब्जा कर लिया।

कंधार, और बलूचिस्तान। उनके विजय के बाद अधिकांश भारत उनके नियंत्रण में आ गया। अनपढ़ होने के बावजूद, उनके पास लगभग सभी विषयों में असाधारण ज्ञान था।

उन्होंने अपने गैर-मुस्लिम विषयों से सम्मान अर्जित किया, मुख्यतः उनकी नीतियों के अपनाने के कारण जिन्होंने उनके विविध साम्राज्य में एक शांतिपूर्ण माहौल बनाया।

उन्होंने कराधान प्रणालियों को भी फिर से संगठित किया, अपनी सेना को मनसबदारी प्रणाली के बाद विभाजित किया, और पश्चिम के साथ विदेशी संबंध स्थापित किए।

कला और संस्कृति के संरक्षक होने के नाते, उन्होंने विभिन्न भाषाओं में कई साहित्यिक पुस्तकें लिखीं और अपने शासनकाल के दौरान कई स्थापत्य कला कृतियों का निर्माण किया

 जैसे कि आगरा किला, बुलंद दरवाजा, फतेहपुर सीकरी, हुमायूं मकबरा, इलाहाबाद किला, लाहौर किला, और सिकंदर का अपना मकबरा।

यहां तक ​​कि उन्होंने विभिन्न धर्मों के तत्वों को प्राप्त करके ‘दीन-ए-इलाही’ नामक एक नया संप्रदाय शुरू किया।

बिन्दू जानकारी
पूरा नाम जलाल उद्दी मोहम्मद अकबर
पिता का नाम नसीरुद्दीन हुमायूँ 
माता का नाम हमीदा बानो
जन्म स्थान  अमरकोट पाकिस्तान
वंशज तैमूर वंश
उपाधियां अकबर-ए आज़म, शहंशाह अकबर

अकबर का जन्म कब हुआ था?

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ईसवी को सिंध में स्थित राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन में हुआ था, जिस वजह से उनके पिता ने उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रख दिया था।

अकबर के जन्म के बाद उनके पिता हुमायूं ने इन्हें देश से बाहर निकाल दिया था और इसीलिए अकबर अपने पिता से दूर होकर अपने चाचा के यहां अफगानिस्तान चला गया। इतिहास के स्रोतों के अनुसार जब हुमायूं द्वारा काबुल जीत लिया गया था तब हुमायूं ने अकबर को बुरी नज़र से बचाने के लिए अकबर के पैदा होने की तारीख को भी बदल दिया था।

अकबर का प्रारंभिक जीवन

अकबर का जन्म तैमूर राजवंश के तीसरे शासक के रूप में हुआ था। अकबर को कई अलग-अलग उपाधियों से भी जाना जाता है, जिसमें “अकबर-ए आज़म, शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह” इत्यादि प्रमुख है।

अकबर के पिता का नाम नसीरुद्दीन हुमायूँ एवं उनके दादा का नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था। अकबर की माता का नाम हमीदा बनो था। अकबर को चंगेज खां का वंशज माना जाता है।

अकबर एक ऐसा राजा था, जिसे हिन्दू और मुस्लिम दोनों वर्गो से काफी प्यार मिला था। अकबर ने हिन्दू और मुस्लिम वर्ग के बीच की दूरियों को कम करने के लिए “दीन-ए-इलाही” नामक एक ग्रंथ की भी रचना की थी। अकबर का दरबार राज्य की जनता के लिए हमेशा खुला रहता था।

अकबर जब शासक बना था तो उस समय अकबर की आयु केवल 13 वर्ष की ही थी। एक सम्राट के रूप में अकबर ने राजपुताने के राजाओं से राजनीतिक और वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये थे।

अकबर का बचपन

अकबर के बचपन की बात करें तो उनका बचपन उनके चाचा के यहां बिता था। अकबर के चाचा का नाम मिर्जा अस्करी था। अकबर के बचपन में उनकी दोस्ती रामसिंह नामक एक व्यक्ति से हो गई थी, जिसके बाद उनकी यह दोस्ती पूरे जीवन भर रही। अकबर अपने बचपन में कुछ समय अपने चाचा के पास रहने के बाद वे काबुल में रहने लग गये थे।

काबुल से पहले अकबर अपने चाचा के पास कंधार में रहता था। जिस अकबर को हम आज शक्तिशाली मानते है, वह कला अकबर ने अपने चाचा से ही सीखी थी, जिसके बाद अकबर एक शक्तिशाली और निडर शासक बनने में सफल रहा।

अकबर की शादी 

अकबर उन शासकों में से भी है, जिसने एक से अधिक शादियां की है। अकबर ने पहली शादी 1551 में अपने ही चाचा की बेटी रुकैया बेगम से की थी। रुकैया बेगम उनकी पहली और मुख्य बीवी थी।

इसके बाद अकबर ने इस एक शादी के अलावा भी कई राजकुमारियों से शादी की, जिसमें सुल्तान बेगम सहिबा, मरियम उज-जमानी बेगम साहिबा और उसके बाद राजपूत राजकुमारी जोधाबाई से भी शादी की थी।

जोधाबाइ के साथ विवाह :

        जोधाबाइ और अकबर के विवाह के बाद जोधाबाइ कभी अपने माइके नहीं गयी। उन्हे राजपूतना खानदान ने सदा के लिए त्याग दिया था। अकबर के साथ विवाह के बाद जोधाबाइ, मरियम उज-जमनि बेगम साहिबा के नाम से जानी गयी। जोधाबाई और अकबर की कहानी पर वर्ष 2008 में आशुतोष गोवरीकर के द्वारा फिल्म भी बनाई गयी थी। जिसमे मशहूर अभनेता ऋत्विक रोशन ने अकबर का पात्र निभाया था। और जोधाबाई का पात्र ऐश्वर्या राय बच्चन ने निभाया था।

        पूर्व काल सन 1960 में भी “मुगल-ए-आजम” फिल्म बनी थी जो काफी लोकप्रिय हुई थी। इस फिल्म में पृथ्वी राज कपूर साहब ने अकबर का किरदार निभाया था। अकबर के पुत्र का किरदार दिलीप कुमार और उनकी प्रेयसी का पात्र मधुबाला के द्वारा निभाया गया था। निरंतर समय पर अकबर बीरबल के किस्सों, और अकबर की जीवनी पर अलग अलग फिल्म और सीरियल्स बनते आ रहे हैं। इंटरनेट, बुक्स, फिल्म और अन्य कई माध्यम से अकबर और मुग़ल साम्राज्य से जुड़े साहित्य पर नए नए कार्यकर्म बनते आ रहे हैं।

व्यक्तिगत जीवन और विरासत

 उन्होंने अपने पहले चचेरे भाई रुकैया सुल्तान बेगम से 1551 में शादी की। उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी अलग-अलग जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि की 12 और पत्नियां थीं।

राजपूतों के साथ एक राजनीतिक गठबंधन 1562 में हीरा कुंवारी (जिसे हरखा बाई या जोधा बाई भी कहा जाता है) के साथ उनकी शादी में परिणत हुआ। वह उनकी मुख्य रानियों में से एक बन गईं और उन्होंने सलीम नाम के एक बेटे को जन्म दिया, जिसे जहांगीर के नाम से जाना जाने लगा। 1569 है।

अक्टूबर 1605 में, वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और तीन सप्ताह बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनके शव को आगरा के सिकंदर के मकबरे में दफनाया गया था। उनका उत्तराधिकारी उनका बेटा बना।

Akbar Ka Jivan Parichay – कई अंतर्राष्ट्रीय उपन्यास, जैसे कि इयर्स ऑफ राइस एंड साल्ट ’(2002), द सॉलिट्यूड ऑफ एम्पर्स’ (2007) और उसके बाद एनचैरेस ऑफ फ्लोरेंस ’(2008) उनके जीवन पर आधारित है।

कई टेलीविजन श्रृंखलाएँ – जैसे ‘अकबर-बीरबल’ (1990 के अंत में) और ‘जोधा अकबर’ (2013-2015) – और फिल्में, जैसे ‘मुगल-ए-आज़म’ (1960) और ‘जोधा अकबर’ (2008) ने इस शक्तिशाली शासक को क्रोधित कर दिया।

अकबर का  राजतिलक

शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद उसके पुत्र इस्लाम शाह और सिकंदर शाह की अक्षमता का फायदा उठाकर हुमायूँ ने 1555 में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया लेकिन इसके कुछ माह बाद ही 48 वर्ष की आयु में ही हुमायूँ का अपनी पुस्तकालय की सीढ़ी से भारी नशे की हालात में गिरने के कारण आकस्मिक निधन हो गया। तब अकबर के संरक्षक बैरम खां ने साम्राज्य के हित में इस मृत्यु को कुछ दिनों के लिये छुपाये रखा तथा सारी तैयारियां करने के बाद 14 फ़रवरी, 1556 को अकबर का राजतिलक कर दिया. 13 वर्षीय अकबर का पंजाब में गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर, सुनहरे वस्त्र तथा एक गहरे रंग की पगड़ी में एक नवनिर्मित मंच पर राजतिलक हुआ। ये मंच आज भी बना हुआ है। उसे फारसी भाषा में सम्राट के लिये शब्द शहंशाह से पुकारा गया। वयस्क होने तक उसका राज्य बैरम खां के संरक्षण में ही चला। इस प्रकार अकबर को सत्ता की बागडोर मात्र 13 साल की उम्र में मिल गई थी जब 16 फरवरी 1556 ईस्वी को वह राजा घोषित हुआ. उसके बाद 1605 ईसवी में में अपनी मृत्यु तक 50 वर्षों तक उसने अपने लंबे शासनकाल में न केवल मुगल साम्राज्य के विस्तार और दृढ़ता प्रदान की वरन भारत को सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक और कलात्मक रूप से समृद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया.

अकबर का राज्य विस्तार

अकबर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था इसके लिए उसने सीधी संघर्ष करने वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने , अधीनता स्वीकार करने ,वालो को शासन में पद देने तथा मित्रता करने की नीति अपनयायी. अकबर राजपूतो के साथ मित्रता का महत्त्व समझता था इसलिए उसने राजपूत परिवारों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर स्थिति को मजबूत किया और इसके लिए उसने जोधा (Jodha bai )से विवाह भी किया .और जोधबाई और अकबर के पुत्र जहाँगीर ही अकबर Akbar के बाद मुग़ल बादशाह Mugal Badshah बना | इसतरह जोधा अकबर (Jodhaa Akbar History ) की प्रेम कहानी इतिहास में अमर प्रेम कहानी बन गयी.

        अकबर ने आमेर , जोधपुर , बीकानेर ,जैसलमेर , के राजपूतो को दरवार में सम्मान जनक स्थान दिया . राजपूत राजा भगवान् दास तथा उनके पोते मानसिंह को दरवार में सबसे ऊँचा स्थान दिया | उसने हिंदुयो का जजिया कर की समाप्त कर हिंदुयो को खुश किया | जिससे हिन्दू अकबर पर विस्वास करने लगे. कई राजपूतो ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली परंतु मेवाड़ के माहाराणा प्रताप ने सर झुकाने से इनकार कर दिया , तो अकबर Akbar की सेना और  माहाराणा प्रताप Maharana Pratap का सामना सं 1576 में हल्दीघाटी Haldighati के मैदान में हुआ जो भारतीय  इतिहास में हल्दीघाटी के युद्ध ( Haldighati War ) के नाम से पसंद है | माहाराणा प्रताप  भीषण युद्ध करते हुए बुरी तरह घायल हुए , और उन्हें परिवार सहित जंगल जाना पढ़ा उन्होंने प्राण किया जब तक वह मेवाड़ को वापस नहीं ले लेंगे , वह घास की रोटी खाएंगे | जमीन पर सोएंगे और सभी सुखो का त्याग कर देंगे.

        हुमायु के निर्वासन के दौरान अकबर को काबुल लाया गया और उसके चाचाओ ने उसकी परवरिश की | उन्होंने अपना बचपन शिकार और युद्ध कला में बिताया लेकिन पढना लिखना कभी नही सिखा | 1551 में अकबर Akbar ने अपने चाचा हिंडल मिर्जा की इकलौती बेटी रुकैया सुल्तान बेगम से निकाह कर लिया | इसके कुछ समय बाद ही हिंडल मिर्जा की युद्ध के दौरान मौत हो गयी|हुमायु ने 1555 में शेरशाह सुरी के बेटे इस्लाम शाह को पराजित कर दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया | इसके कुछ समय बाद ही हुमायु की मृत्यु हो गयी | Akbar अकबर के अभिभावक बैरम खान ने  13 वर्ष की उम्र में ही 14 फरवरी 1556 में अकबर को दिल्ली की राजगद्दी पर बिठा दिया |

        बैरम खान ने उसके वयस्क होने तक राजपाट सम्भाला और अकबर को शहंशाह का ख़िताब दिया  | सुरी साम्राज्य ने छोटे बालक का भय ना करते हुए हुमायु की मौत के बाद फिर से आगरा और दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया था|बैरम खान के नेतृत्व में उन्होंने सिकन्दर शाह सुरी के खिलाफ मोर्चा निकाला |उस समय सिंकंद्र शाह सुरी का सेनापति हेमू था और बैरम खान के नेतृत्व में Akbar अकबर की सेना ने हेमू को 1556 में पानीपत के दुसरे युद्ध में पराजित कर दिया | इसके तुरंत बाद मुगल सेना ने आगरा और दिल्ली पर अपना आधिपत्य कर दिया | Akbar अकबर ने दिल्ली पर विजयी प्रवेश किया और एक महीने तक वहा पर निवास किया |उसके बाद अकबर और बैरम खान दोनों पंजाब लौट गये जहा पर सिकंदर शाह फिर से सक्रिय हो गया था |

दिल्ली आगरा विजय

अकबर के शासक बनने के बाद यह अकबर की सबसे पहले पहली विजय थी। 1556 ईं. में अकबर के पिता हुमायूं की मृत्यु के बाद तक अकबर के पास पंजाब का एक छोटा से क्षेत्र था।

अकबर ने अपने राज्य विस्तार को लेकर यह पहला युद्ध किया था। इस युद्ध को पानीपत का युद्ध कहा जाता है। यह युद्ध अकबर और हेमू के मध्य हुआ था, जिसमें अकबर जीतकर दिल्ली-आगरा पर अधिकार कर पाया था।

ग्वालियर, अजमेर, जौनपुर 

अकबर की दिल्ली व आगरा विजय के बाद उसने 1556 और 1560 के बीच ग्वालियर, अजमेर और जौनपुर पर भी विजय प्राप्त कर ली और उन राज्यों को मुगल साम्राज्य में मिला दिया।

अकबर की मालवा विजय 

अकबर के समकालीन अफगान सरदार बहादुर शाह मालवा का शासक था। अकबर ने मालवा को अधीन करने के लिए आधम खां और मीर मोहम्मद के नेतृत्व में एक सेना मालवा की चढ़ाई के लिए भेजी।

इसमें इन दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें मालवा का नरेश हार गया और मालवा पर अकबर का अधिकार हो गया। यह घटना 1560 से 1562 के बीच मानी जाती है।

अकबर की गौंडवाना विजय 

अकबर ने अपने राज्य का और विस्तार करने के लिए गोंडवाना के शासक वीर नारायण के साथ भी दो-दो हाथ किए थे। इस युद्ध को भी अकबर जीत गया था।

वीर नारायण अल्पसंख्यक था, जिसके कारण उसकी मां उसकी देखभाल करती थी। वीर नारायण की मां एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ वह एक श्रेष्ठ सेनापति भी थी।

चित्तौड़ के राजा से सामना 

1567 ई में अकबर ने अपने राज्य विस्तार में राजपूताने के क्षेत्र को भी अपनी और मिलने का सोचा। अकबर पहले चित्तौड़ पर आक्रमण नहीं करना चाहता था व वहाँ की सामाजिक स्थिति व राजनीतिक प्रतिष्ठा से काफी प्रभावित था।

अकबर चित्तौड़ को अपने अधीन करना चाहता था। वहाँ के शासक महाराणा प्रताप को यह बिल्कुल भी मंजूर नहीं था कि वह मुगल साम्राज्य में मिल जाएं।

काफी समय तक कोशिश चली फिर आखिर चित्तौड़ पाने के लिए अकबर और महाराणा प्रताप के बीच में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। इस युद्ध में किसकी विजय हुई, इस बात पर इतिहासों में अभी भी मतभेद है। पर ऐसा कहा जा सकता है कि बाद में यह राज्य भी मुगल शासक अकबर के अधीन आ गया था।

राजपुताने के अन्य राज्यों पर विजय

चितौड़ को अधीन करने के कुछ ही समय बाद रणथंभौर, कार्लिजर, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर जैसे राज्य भी अकबर के अधीन आ गये थे। इन सब से एक बात तो पक्की साबित होती है कि अकबर एक विस्तारवादी राजा था।

गुजरात पर विजय

अकबर के उत्तर भारत मे विजय अभियानों के बाद अकबर को अब मध्य भारत और दक्षिण भारत में भी अपना राज्य विस्तार करना था। 1574 में अकबर गुजरात की ओर बढ़ा। अकबर और गुजरात शासक के बीच युद्ध बिलकुल भी नहीं हुआ बल्कि गुजरात शासक ने अकबर की अधीनता युही स्वीकार कर ली थी।

पहली बार जब अकबर यहां से चला गया तो मुरफ्फरशान ने अपने राज्य को एक बार फिर स्वतंत्र घोषित कर दिया, उसके बाद फिर अकबर ने चढ़ाई की और इस बार मुफ्फर शाह हार गया।

अकबर का बंगाल पर विजय

गुजरात विजय के बाद अकबर एक बार फिर पश्चिम बंगाल की ओर रुख किया, उस समय वहाँ का शासक सुलेमान था। सुलेमान ने अकबर के डर से ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी।

इसके बाद सुलेमान की मृत्यु के बाद फिर उसके पुत्र ने एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी। जिसके बाद 1574 में अकबर ने इसके विरोध में एक बार फिर बंगाल पर आक्रमण किया और सुलेमान के पुत्र दाऊद खां को हार का सामना करना पड़ा।

अकबर का काबुल विजय

1585 में जब अकबर ने काबुल पर अधिकार करना चाहा तो उस समय वहाँ का शासक अकबर का सौतेला भाई मिर्ज़ा मुहम्मद हाकिम था। यह वही मिर्ज़ा मुहम्मद हाकिम था, जो खुद भी भारत जीतने की इच्छा रखता था। अकबर ने उसके विरुद्ध भी कार्यवाही की और उसके खिलाफ युद्ध किया।

इस युद्ध में अकबर को विजयश्री प्राप्त हुई, पर उसके बाद अकबर ने उसके भाई पर दया दिखाकर उसका राज्य उसे वापस लौटा दिया। हाकिम की मृत्यु के बाद अकबर ने काबुल को मुगल साम्राज्य में मिला दिया।

इन सब विजयों के बाद अकबर ने कई छोटे बड़े राज्यों को मुगल साम्राज्य में मिला दिया था।

अकबर का पंजाब गमन और दिल्ली की सत्ता-बदली

पंजाब जाते समय उसने दिल्ली का शासन मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबर (Akbar) के लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुँचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की और इस तरह 6 अक्टूबर 1556 को हेमू ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।

दिल्ली में सत्ता की वापसी

अकबर को जब दिल्ली की पराजय का समाचार मिला तो उसने तुरन्त ही बैरम खान से परामर्श कर के दिल्ली की तरफ़ कूच करने का इरादा बना लिया। अकबर के सलाहकारो ने उसे काबुल की शरण में जाने की सलाह दी। अकबर और हेमू की सेना के बीच पानीपत मे युद्ध हुआ। यह युद्ध पानीपत का द्वितीय युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। संख्या में कम होते हुए भी अकबर ने इस युद्ध मे विजय प्राप्त की। डा. आर.पी. त्रिपाठी ने पानीपत के द्वितीय युद्ध के परिणाम के बारे में लिखा है कि-हेमू की पराजय एक दुर्घटना थी, जबकि अकबर की विजय एक दैवीय-संयोग था। इस विजय से अकबर को 1500 हाथी मिले जो बाद में सिकंदर शाह सूरी से युद्ध के समय काम आए। सिकंदर शाह सूरी ने आत्मसमर्पण कर दिया और अकबर ने उसे प्राणदान दे दिया।       

अकबर की विस्तारवादी नीतियां

अकबर (Akbar) ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए और उसको दृढ़ता प्रदान करने के लिए राजपूत राजाओं से मित्रता करने की अपने पिता हुमायूं की नीति का विस्तार किया। आमेर के राजा भारमल ने अपनी छोटी बेटी हरखा बाई का विवाह अकबर से कर दिया. अकबर ने अपनी हिंदू पत्नियों को धार्मिक स्वतंत्रता दी और उनके माता-पिता और सगे संबंधियों को ऊंचे ऊंचे ओहदों पर रखा। भारमल को उसने एक बड़ा सरदार बना दिया उसके बेटे भगवानदास को पाँच हजारी का दर्जा दिया और पोते मानसिंह को सबसे ऊंचा सात हजारी का दर्जा प्रदान किया। उसने अपने एक बच्चे की देखभाल के लिए भारमल की पत्नियों की देखरेख में आमेर भेज दिया।

जिन राजपूती परिवारों में अकबर के शादी विवाह के संबंध नहीं थे उनसे भी अकबर ने मित्रता स्थापित की. रणथंभौर के राव सुरजन हांडा को गढ़ कटंगा की जिम्मेदारी सौंपी और उसको दो हजारी का दर्जा प्रदान किया। अकबर की सफलता का एक और बहुत बड़ा कारण था उसकी उदारता और उसकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति का सुखद संयोग। अकबर ने 1564 में जजिया कर हटा दिया इसी प्रकार बनारस, इलाहाबाद जैसे तीर्थ स्थानों में लगने वाला तीर्थ कर भी हटा दिया गया. युद्ध बंदियों का जबर्दस्ती मुसलमान बनाने के चलन को भी समाप्त कर दिया।

हालांकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार अकबर (Akbar) के दरबारी हिन्दू राजाओं की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी और वो अकबर के गुलाम मात्र ही थे. इतिहासकार दशरथ शर्मा लिखते हैं कि हम अकबर को उसके दरबार के इतिहास और वर्णनों जैसे अकबरनामा, आदि के अनुसार महान कहते हैं। लेकिन यदि कोई अन्य उल्लेखनीय कार्यों की ओर देखे, जैसे दलपत विलास, तब स्पष्ट हो जाएगा कि अकबर अपने हिन्दू सामंतों से कितना अभद्र व्यवहार किया करता था। अकबर के नवरत्न राजा मानसिंह द्वारा विश्वनाथ मंदिर के निर्माण को अकबर की अनुमति के बाद किए जाने के कारण हिन्दुओं ने उस मंदिर में जाने का बहिष्कार कर दिया। कारण साफ था, कि राजा मानसिंह के परिवार के अकबर से वैवाहिक संबंध थे। अकबर के हिन्दू सामंत उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और 1595 में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए।

हल्दीघाटी का युद्ध

उस समय पूरे राजस्थान में मात्र एक ऐसा राज्य था जो मुगल अधीनता स्वीकार नहीं कर रहा था और वह था मेवाड़। अकबर ने एक के बाद एक अनेक दूतमंडल महाराणा प्रताप के पास भेज कर उनको राजी करने की कोशिश की लेकिन मानसिंह की मध्यस्था के बावजूद बात नहीं बनी। एक बार तो राणा प्रताप ने अपने बेटे अमर सिंह को मुगल दरबार में भगवान दास के साथ भेज भी दिया था लेकिन स्वाभिमानी राणा प्रताप अकबर (Akbar) के सामने खुद उपस्थित होकर व्यक्तिगत रूप से उसका सम्मान प्रकट नहीं करना चाहते थे इसलिए कोई समझौता नहीं हुआ। इसके पश्चात हल्दीघाटी में दोनों के बीच घमासान लड़ाई हुई. अकबर को राजपूतों का सहयोग प्राप्त था लेकिन राणा प्रताप की सेना में भी उनकी ओर से कुछ मुसलमान लड़ रहे थे. राजपूत योद्धाओं के अलावा राणा प्रताप की सेना में अफ़गानों की एक टुकड़ी भी हकीम खां के साथ थी।

अकबर का प्रशासन

सन 1560 में अकबर ने स्वयं सत्ता संभाल ली और अपने संरक्षक बैरम खां को नपदमुक्त करके मक्का की तीर्थयात्रा के लिए भेज दिया। बैरम खाँ पर मक्का जाते समय गुजरात में अफगानों के एक दल ने आक्रमण कर दिया. मुबारक खाँ नामक एक अफगान ने जिसके पिता को बैरम खाँ ने मच्छीवाङा (1555 ई.) के युद्ध में कत्ल किया था मार डाला। बैरम खाँ की मृत्यु के बाद अकबर ने बैरम खाँ की विधवा सलीमा बेगम से निकाह कर लिया तथा उसके पुत्र अब्दुर्रहीम को अपने नवरत्नों में शामिल करके खान-खाना की उपाधि दी। अबुल फजल ने बैरम खाँ के पतन में सबसे अधिक उत्तरदायी अकबर की धाय माँ माहम अनगा को ठहराया है।

अब अकबर (Akbar) के अपने हाथों में सत्ता थी लेकिन अनेक कठिनाइयाँ भी थीं। जैसे- शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश (1563), उज़बेक विद्रोह (1564-65) और मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह (1566-67) किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामन्तों की संख्या बढ़ाई। सन 1562 में आमेर के शासक से उसने समझौता किया – इस प्रकार राजपूत राजा भी उसकी ओर हो गये। इसी प्रकार उसने ईरान से आने वालों को भी बड़ी सहायता दी। भारतीय मुसलमानों को भी उसने अपने कुशल व्यवहार से अपनी ओर कर लिया। धार्मिक सहिष्णुता का उसने अनोखा परिचय दिया – हिन्दू तीर्थ स्थानों पर लगा कर जज़िया हटा लिया गया (सन 1563)। इससे पूरे राज्यवासियों को अनुभव हो गया कि वह एक परिवर्तित नीति अपनाने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त उसने जबर्दस्ती युद्धबंदियो का धर्म बदलवाना भी बंद करवा दिया।

अकबर ने मनसबदारी प्रथा के तहत बड़े-बड़े सरदारों के मातहत सेना की टुकड़ियों में ऐसी व्यवस्था रखी कि हर अमीर या सरदार की टुकड़ी में मुगल, पठान हिंदुस्तानी और राजपूत चारों जातियों के सिपाही हो। बादशाह रोज सवेरे प्रजा को झरोखा दर्शन देता था और बहुत सारी अर्जियां वहीं निपटा देता था बाकी मामले दरबारे आम में हल किए जाते थे।

अकबर की कामुकता

तमाम इतिहासकारों ने अकबर (Akbar) को महान अकबर कहा है और उसकी अच्छाइयों को ही चित्रित किया है लेकिन यहाँ पर यह जानना भी जरुरी है कि अकबर में कुछ मानवोचित कमजोरियां भी थी जो उसके चारित्रिक लंपटता को दर्शाती हैं. तत्कालीन समाज में वेश्यावृति को अकबर का संरक्षण प्राप्त था। उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे बहुत सी स्त्रियाँ थीं। इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक अपहृत करवा कर वहां रखा गया था। उस समय में सती प्रथा भी जोरों पर थी। तब कहा जाता है कि अकबर के कुछ लोग जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, उसे बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते और सम्राट की आज्ञा बताकर उस स्त्री को हरम में डाल दिया जाता था। हालांकि इस प्रकरण को दरबारी इतिहासकारों ने कुछ इस ढंग से कहा है कि “इस प्रकार बादशाह सलामत ने सती प्रथा का विरोध किया व उन अबला स्त्रियों को संरक्षण दिया।”

अपनी जीवनी में अकबर (Akbar) ने स्वयं लिखा है– यदि मुझे पहले ही यह बुधिमत्ता जागृत हो जाती तो मैं अपनी सल्तनत की किसी भी स्त्री का अपहरण कर अपने हरम में नहीं लाता। इस बात से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि वह सुन्दरियों का अपहरण करवाता था। इसके अलावा अपहरण न करवाने वाली बात की निरर्थकता भी इस तथ्य से ज्ञात होती है कि न तो अकबर के समय में और न ही उसके उतराधिकारियो के समय में हरम बंद हुई थी।

आईने अकबरी के अनुसार अब्दुल कादिर बदायूंनी कहते हैं कि बेगमें, कुलीन, दरबारियो की पत्नियां अथवा अन्य स्त्रियां जब कभी बादशाह की सेवा में पेश होने की इच्छा करती हैं तो उन्हें पहले अपने इच्छा की सूचना देकर उत्तर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है; जिन्हें यदि योग्य समझा जाता है तो हरम में प्रवेश की अनुमति दी जाती है। अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन सामूहिक रूप से आयोजित करें जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था। गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी। उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उनके राज्य पर आक्रमण भी किया था। युद्ध के दौरान वीरांगना रानी दुर्गावती ने अनुभव किया कि उसे मारने की नहीं वरन बंदी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तो उसने वहीं आत्महत्या कर ली। तब अकबर ने उसकी बहन और पुत्रबधू को बलपूर्वक अपने हरम में डाल दिया। अकबर (Akbar) ने यह प्रथा भी चलाई थी कि उसके पराजित शत्रु अपने परिवार एवं परिचारिका वर्ग में से चुनी हुई महिलायें उसके हरम में भेजे।

अकबर के उपलब्धि

उनके शासनकाल के दौरान, मुगल साम्राज्य का विस्तार अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप तक था, जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंध्य तक और उत्तर-पश्चिम में हिंदुकुश से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ था।

1563 में, उन्होंने तीर्थयात्रा करते समय हिंदुओं द्वारा देय विशेष कर को रद्द कर दिया। 1564 में, उसने पूरी तरह से गैर-मुस्लिमों द्वारा दिए जाने वाले जजिया या वार्षिक कर को समाप्त कर दिया, इस प्रकार अपने विषयों के सम्मान को अर्जित किया।

1569 में, उन्होंने चित्तौड़गढ़ और रणथंभौर पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए आगरा की एक नई राजधानी की स्थापना की। गुजरात पर विजय प्राप्त करने के बाद 1573 में राजधानी का नाम फतेहपुर सीकरी (विजय नगर) रखा गया।

अकबर की प्रमुख लड़ाई

नवंबर 1556 में, उनकी सेना ने ‘पानीपत की दूसरी लड़ाई’ में हेमू और सूर सेना को हराया, जहां हेमू को उसकी आंख में गोली मार दी गई थी और बाद में उसे पकड़ लिया गया और मार डाला गया।

आसफ खान ने मुगल सेना का नेतृत्व किया और 1564 में गोंडवाना साम्राज्य पर छापा मारा, इसके शासक रानी दुर्गावती को ‘दमोह की लड़ाई’ में हराया। रानी दुर्गावती ने अपने नाबालिग बेटे राजा वीर नारायण को मार डाला और अपना सम्मान बचाने के लिए आत्महत्या कर ली।

1575 में ‘तुकारोई की लड़ाई’ में अकबर ने बंगाल के शासक दाउद खान को हराया। दाऊद खान को एक और लड़ाई में मुगल सेनाओं ने पकड़ लिया और मार डाला, जिससे बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया गया।

अकबर की मृत्यु

अकबर (Akbar) के बारे में बृहद रूप से जानकारी इकठ्ठा करने पर यह पता चलता है कि उसका व्यक्तित्व बहुआयामी था. वह एक तरफ न्यायपालक, उदार, सर्व धर्म सम्भावी और मित्रवत होने का दिखावा करता था तो दूसरी तरफ क्रूर, हत्यारा, कामान्ध व्यक्ति भी था जो यह जानता था कि भारत में लम्बे समय तक राज करने के लिए यहाँ के मूल निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना बहुत जरुरी है। शायद यही कारण रहा होगा कि जब इसकी मृत्यु 27 अक्टूबर 1605 को फतेहपुर सीकरी, आगरा में हुयी तो  उसकी अन्त्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया।

अकबर बादशाह के नव रत्न :

1. बीरबल- (सन 1528 से सन1583) दरबार के विदूषक, परम बुद्धिशाली, और बादशाह के सलहकार।
2. 
फैजि-  (सन 1547 से 1596) फारसी कवि थे। अकबर के बेटे के गणित शिक्षक थे।
3. 
अबुल फज़ल-  (सन 1551 से सन 1602) अकबरनामा, और आईन-ए-अकबरी की रचना की थी।   
4. 
तानसेन-  (तानसेन उत्तम गायक थे। और कवि भी थे)।
5. 
अब्दुल रहीम खान-ए-खान- एक कवि थे, और अकबर के पूर्व काल के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे।
6. 
फकीर अजिओं-दिन-  अकबर के सलाहकार थे।
7. 
टोडरमल-  अकबर के वित्तमंत्री थे।
8. 
मानसिंह- आमेर / जयपुर राज्य के राजा और अकबर की सेना के सेनापती भी थे।
9. 
मुल्लाह दो पिअजा- अकबर के सलहकार थे।

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