सम्राट अशोक की जीवनी, इतिहास | Samrat Ashok History in Hindi, Biography, Story
सम्राट अशोक भारतीय इतिहास के एक ऐसे महान शासक थे, जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती। वह भारत में मौर्य साम्राज्य के तीसरे शासक थे जिन्होंने 269 ईसापूर्व से 232 ईसापूर्व तक भारत के लगभग सभी महाद्वीपों पर शासन किया था।

सम्राट अशोक को उनके अदभुत साहस, पराक्रम, निडरता और निर्भीकता की वजह से अशोक महान के नाम से पुकारा जाता था। इसके अलावा उन्हें प्रियदर्शी एवं देवानाम्प्रिय आदि नामों भी संबोधित किया जाता था। सम्राट अशोक एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने अपने शासनकाल में अपनी कुशल कूटनीति का इस्तेमाल कर मौर्य सम्राज्य का विस्तार किया था।
अशोक महान ने उत्तर में हिन्दुकश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी तक दक्षिण और कर्नाटक, मैसूर तक और पूरब में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार किया था। अशोक महान ने अपने कुशल प्रशासन से मौर्य सम्राज्य को उस समय तक का भारत का सबसे बड़ा सम्राज्य बनाया था। इसलिए सम्राट अशोक को उनकी कुशल प्रशासन नीति और कूटनीति की वजह के लिए भी जाना जाता था।
सम्राट अशोक का जीवन परिचय
नाम | सम्राट अशोक |
अन्य नाम | प्रियदर्शी |
जन्म | 304 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) |
माता | सुभद्रांगी (जिन्हें धर्मा के नाम से भी जाना गया) |
पिता | बिंदुसार मौर्य |
भाई | विताशोक और 99 अन्य |
पत्नी | देवी, करूवकी, पद्मावती, असंधिमित्रा, तिश्यारक्षा |
पुत्र | महिंदा, कुणाल, तिवाला |
पुत्री | संघमित्रा, चारुमति |
दादा | चंद्रगुप्त मौर्य |
दादी | दुर्धरा |
साम्राज्य | मौर्य साम्राज्य |
धर्म | बौद्ध |
पूर्ववर्ती राजा | बिंदुसार मौर्य |
उत्तराधिकारी राजा | दशरथ |
मृत्यु | 232 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) |
उम्र | 71-72 वर्ष |
जन्म और शुरूआती जीवन
सम्राट अशोक हिस्ट्री हिंदी – अशोक का जन्म मौर्य वंश के राजा बिन्दुसार एवं धर्मा के यहाँ 304 ईसा पूर्व हुआ था। लंका की परंपरा के अनुसार बिन्दुसार की 16 पटरानी एवं 101 पुत्रो का वर्णन मिलता है। इन पुत्रों में से तीन के ही नामो का उल्लेख रहता है – सुसीम (सबसे बड़ा), अशोक एवं तिष्य। एक बार अशोक की माता धर्मा को अपने बेटे अशोक के सम्राट बनने का सपना आया। इस बात की जानकारी मिलने पर बिन्दुसार ने धर्मा को अपनी पत्नी बना लिया यद्यपि वो महिला किसी राजसी कुल से सम्बंधित नहीं थी। अशोक (Samrat Ashok) को अपने जीवन में बहुत से सौतेले भाइयों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
थोड़ा ही बड़ा होने के बाद अशोक की सैन्य कौशल देखने को मिलने लगी थी। उनके युद्ध कौशल को और अधिक निखार देने के लिए शाही प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की गयी थी। इस प्रकार से अशोक को काफी कम आयु में तीरंदाजी के साथ अन्य जरुरी युद्ध कौशलो में काफी अच्छी महारत मिल चुकी थी। इसके साथ ही वे उच्च कोटि के शिकारी भी थे और उनके द्वारा एक छड़ी से शेर में मारने की कला का भी वर्णन मिलता है। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हे मौर्य शासन के अवन्ति में होने वाले दंगों को रोकने भी भेजा गया था।
अपने समय के दो हजार वर्षो ने बाद भी अशोक के राज्य के प्रभाव दक्षिण एशिया में देखने को मिलते है। अपने काल में जो अशोक चिन्ह निर्मित किया था उसका स्थान आज भी भारत के राष्ट्रीय चिन्ह में है। बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के बाद सर्वाधिक स्थान राजा अशोक और उनके धर्म कार्यों को ही दिया जाता है।
अशोक का साम्राज्य
Samrat Ashok Ka Jivan Parichay – अशोक की पत्नी का नाम दिव्यदान में ‘तिष्यरक्षिला’ वर्णिन है। पुराने लेख में सिर्फ ‘करूणावकि’ को उनकी पत्नी के रूप में बताया गया है। दिव्यदान में अशोक के दो ही भाई बताये गए है – सुसीम एवं विगताशोक। इसमें से अपने बड़े भाई सुसीम तक्षशिला के प्रांतपाल भी थे। तक्षशिला में इस समय भारतीय-यूनानी मूल के लोग भारी संख्या में निवास करते थे। अतः ये स्थान विद्रोह के लिए काफी उपर्युक्त हो गया था। इस स्थान पर सुसीन का प्रशासन था जिनके खराब नेतृत्व के कारण यहाँ काफी विद्रोह पनपने लगा। सुसीन की सलाह पर ही राजा बिन्दुसार ने अशोक को इस स्थान पर प्रशासन का कार्य सौपा। किन्तु अशोक के बिना किसी प्रकार के रक्तपात के ही इन लोगो ने विरोध करना बाद कर दिया। किन्तु कुछ समय बाद दुबारा हुए विरोध को अशोक ने बल से कुचल डाला।
इस प्रकार अशोक के कौशल से भाई सुसीन में सिंहासन का भय बढ़ाता जा रहा था। अशोक को रोकने के लिए सुसीन ने सम्राट बिन्दुसार को कहकर अशोक को निर्वास में डलवा दिया। इसके बाद अशोक कलिंग में पहुंचे तो यहाँ पर उनको मत्यस्य कुमारी कौर्वकी से प्यार हो गया। उपलब्ध साक्ष्य बताते है कि ये उनकी दूसरी या तीसरी रानी थी। बिंदुसार ने अशोक को निर्वासन से बुलाकर फिर से विद्रोह को रोकने के लिए भेजा। यहाँ उनके पिता ने अशोक की पहचान को गुप्त रखा चूँकि उनके भाई सुसीन के द्वारा उनकी हत्या का भी खतरा था।
कलिंग का युद्ध (Kalinga War)
जब अशोक को मौर्य साम्राज्य के सम्राट बने हुए 8 साल हो गए थे तब उसने कलिंग का युद्ध किया। कलिंग के युद्ध में एक लाख से ज्यादा लोग मारे गए और 1,50,000 से ज्यादा लोग घायल हो गए और कई हजारों जानवर भी मारे गए। इस भयंकर हत्याकांड से सम्राट अशोक को मन ही मन रुदन हुआ।
उसे एहसास हुआ कि इस युद्ध के कारण लाखों बेगुनाह लोगों व जीवों की जाने चली गई। युद्ध के भीषण खून-खौलाब को देखकर उसका (Samrat Ashoka ) हृदय परिवर्तन हो गया और उसने शपथ ली कि वह आने वाले समय में कभी युद्ध नहीं करेगा।
सम्राट अशोक निर्माण कार्य
सम्राट अशोक का शासन तकरीबन पूरे तत्कालीन भारत मे था और सम्राट अशोक मौर्य भी अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह ही जैन धर्म का अनुयायी था, उसने अपने जीवनकाल में कई भवन, स्तूप, मठ और स्तंभ का निर्माण करवाया। सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गये मठ और स्तूप राजस्थान के बैराठ में मिलते हैं इसके साथ ही साँची का स्तूप भी काफी प्रसिद्ध है और यह भी सम्राट अशोक द्वारा ही बनाया गया था.
सम्राट अशोक मौर्य के शिलालेख
भारत के महान शासक सम्राट अशोक मौर्य ने अपने जीवन में कई निर्माण कार्य कराए थे. सम्राट अशोक ने अपने जीवन में कई शिलालेख भी खुदवाये जिन्हें इतिहास में सम्राट अशोक के शिलालेखों के नाम से जाना जाता है. मौर्य वंश की पूरी जानकारी उनके द्वारा स्थापित इन्ही मौर्य वंश के शिलालेखों में मिलती है। सम्राट अशोक ने इन शिलालेखो को ईरानी शासक की प्रेरणा से खुदवाए थे. सम्राट अशोक के जीवनकाल के करीब 40 शिलालेख इतिहासकारों को मिले हैं जिसमे से कुछ शिलालेख तो भारत के बाहर जैसे अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, वर्तमान बांग्लादेश व पाकिस्तान इत्यादि देशों में मिले हैं. भारत में मौजूद सम्राट अशोक के शिलालेख एवं उनके नाम निम्नलिखित हैं –
जब अशोक के बडे़ भाई सुशीम अवन्ती की राजधानी उज्जैन के प्रांतपाल थे, उसी दौरान अवन्ती में हो रहे विद्रोह में भारतीय और यूनानी मूल के लोगों के बीच दंगा भड़क उठा, जिसको देखते हुए राजा बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को इस विद्रोह को दबाने के लिए भेजा, जिसके बाद अशोक ने अपनी कुशल रणनीति अपनाते हुए इस विद्रोह को शांत किया।
जिससे प्रभावित होकर राजा बिन्दुसार ने सम्राट अशोक को मौर्य वंश का शासक नियुक्त कर दिया गया। अवन्ती में हो रहे विद्रोह को दबाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद सम्राट अशोक को अवंती प्रांत के वायसराय के रुप में भी नियुक्त किया गया था। वहीं इस दौरान उनकी छवि एक कुशल राजनीतिज्ञ योद्धा के रुप में भी बन गई थी।
इसके बाद करीब 272 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के पिता बिंदुसार की मौत हो गई। वहीं इसके बाद सम्राट अशोक के राजा बनाए जाने को लेकर सम्राट अशोक और उनके सौतेले भाईयों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इसी दौरान सम्राट अशोक की शादी विदिशा की बेहद सुंदर राजकुमारी शाक्या कुमारी से हुई।
शादी के बाद दोनों को महेन्द्र और संघमित्रा नाम की संतानें भी प्राप्त हुई। कुछ इतिहासकारों के मुताबिक 268 ईसा पूर्व के दौरान मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार करने के लिए करीब 8 सालों तक युद्ध लड़ा। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ भारत के सभी उपमहाद्धीपों तक मौर्य सम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि भारत और ईरान की सीमा के साथ-साथ अफगानिस्तान के हिन्दूकश में भी मौर्य सम्राज्य का सिक्का चलवाया।
इसके अलावा महान अशोक ने दक्षिण के मैसूर, कर्नाटक और कृष्ण गोदावरी की घाटी में भी कब्जा किया। उनके सम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (मगध, आज का बिहार) और साथ ही उपराजधानी तक्षशिला और उज्जैन भी थी। इस तरह सम्राट अशोक का शासन धीरे-धीरे बढ़ता ही चला गया और उनका सम्राज्य उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय सम्राज्य बना। हालांकि, सम्राट अशोक मौर्य सम्राज्य का विस्तार तमिलनाडू, श्रीलंका और केरल में करने में नाकामयाब हुआ।
तक़रीबन 261 ईसापूर्व में भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और ताकतवर योद्धा सम्राट अशोक ने अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार करने के लिए कलिंग (वर्तमान ओडिशा) राज्य पर आक्रमण कर दिया और इसके खिलाफ एक विध्वंशकारी युद्ध की घोषणा की थी।
इस भीषण युद्ध में करीब 1 लाख लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या सैनिकों की थी। इसके साथ ही इस युद्ध में करीब डेढ़ लाख लोग बुरी तरह घायल हो गए। इस तरह सम्राट अशोक कलिंग पर अपना कब्जा जमाने वाले मौर्य वंश के सबसे पहले शासक तो बन गए, लेकिन इस युध्द में हुए भारी रक्तपात ने उन्हें हिलाकर रख दिया।
बौध्द धर्म
बौद्ध धर्म के प्रचारक के रुप में सम्राट अशोक –
बौद्ध धर्म अपनाने के बाद सम्राट अशोक एक महान शासक एवं एक धर्मपरायण योद्धा के रुप में सामने आए। इसके बाद उन्होंने अपने मौर्य सम्राज्य के सभी लोगों को अहिंसा का मार्ग अपनाने और भलाई कामों को करने की सलाह दी और उन्होंने खुद भी कई लोकहित के काम किए साथ ही उन्हें शिकार और पशु हत्या करना पूरी तरह छोड़ दिया।
ब्राह्मणों को खुलकर दान किया एवं कई गरीबों एवं असहाय की सेवा की। इसके साथ ही जरूरतमंदों के इलाज के लिए अस्पताल खोला, एवं सड़कों का निर्माण करवाया यही नहीं सम्राट अशोक ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को लेकर 20 हजार से भी ज्यादा विश्वविद्यालयों की नींव रखी।
ह्रद्यय परिवर्तन के बाद सम्राट अशोक ने सबसे पहले पूरे एशिया में बौध्द धर्म का जोरो-शोरों से प्रचार किया। इसके लिए उन्होंने कई धर्म ग्रंथों का सहारा लिया। इस दौरान सम्राट अशोक ने दक्षिण एशिया एवं मध्य एशिया में भगवान बुद्ध के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए करीब 84 हजार स्तूपों का निर्माण भी कराया।
जिनमें वाराणसी के पास स्थित सारनाथ एवं मध्यप्रदेश का सांची स्तूप काफी मशहूर हैं, जिसमें आज भी भगवान बुद्ध के अवशेषों को देखा जा सकता है। अशोका के अनुसार बुद्ध धर्म सामाजिक और राजनैतिक एकता वाला धर्म था। बुद्ध का प्रचार करने हेतु उन्होंने अपने राज्य में जगह-जगह पर भगवान गौतम बुद्ध की प्रतिमाएं स्थापित की। और बुद्ध धर्म का विकास करते चले गये। बौध्द धर्म को अशोक ने ही विश्व धर्म के रूप में मान्यता दिलाई।
बौध्द धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा तक को भिक्षु-भिक्षुणी के रूप में अशोक ने भारत के बाहर, नेपाल, अफगानिस्तान, मिस्त्र, सीरिया, यूनान, श्रीलंका आदि में भेजा। वहीं बौद्ध धर्म के प्रचारक के रुप में सबसे ज्यादा सफलता उनके बेटे महेन्द्र को मिली, महेन्द्र ने श्री लंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म के उपदेशों के बारे में बताया, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना दिया।
सार्वजानिक कल्याण के लिये उन्होंने जो कार्य किये वे तो इतिहास में अमर ही हो गये हैं। नैतिकता, उदारता एवं भाईचारे का संदेश देने वाले अशोक ने कई अनुपम भवनों तथा देश के कोने-कोने में स्तंभों एवं शिलालेखों का निर्माण भी कराया जिन पर बौध्द धर्म के संदेश अंकित थे।
भारत का राष्ट्रीय चिह्न ‘अशोक चक्र’ तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ भी अशोक महान की ही देंन है। ये कृतियां अशोक निर्मित स्तंभों और स्तूपों पर अंकित हैं। सम्राट अशोक का अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है, आज वह हमें भारतीय गणराज्य के तिरंगे के बीच में दिखाई देता है। ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौध्द स्तूप के स्तंभों पर निर्मित शिलामूर्तियों की प्रतिकृति है।
भारतीय इतिहास के महान योद्धा सम्राट अशोक ने अपने-आप को कुशल प्रशासक सिध्द करते हुए बेहद कम समय में ही अपने राज्य में शांति स्थापित की। उनके शासनकाल में देश ने विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की। उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा इमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी।
चोरी और लूटपाट की घटानाएं बिलकुल ही बंद हो गईं। अशोक घोर मानवतावादी थे। वह रात-दिन जनता की भलाई के लिए काम किया करते थे। उन्हें विशाल साम्राज्य के किसी भी हिस्से में होने वाली घटना की जानकारी रहती थी।
धर्म के प्रति कितनी आस्था थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह बिना एक हजार ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाते थे, कलिंग युध्द अशोका के जीवन का आखरी युध्द था, जिससे उनका जीवन ही बदल गया था।
सम्राट अशोक जैसा महान शासक शायद ही इतिहास में कोई दूसरा हो। वे एक आकाश में चमकने वाले तारे की तरह है जो हमेशा चमकता ही रहता है, भारतीय इतिहास का यही चमकता तारा सम्राट अशोका है।
एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा। उन्होंने जो त्याग एवं कार्य किए वैसा इतिहास में दूसरा कोई नहीं कर सका। सम्राट अशोका एक आदर्श सम्राट थे।
इतिहास में अगर हम देखे तो उनके जैसा निडर सम्राट ना कभी हुआ ना ही कभी होंगा। उनके रहते मौर्य साम्राज्य पर कभी कोई विपत्ति नहीं आयी।
सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई थी। मृत्यु के समय उसकी उम्र 71-72 वर्ष थी। अशोक ने लगभग 37 वर्षों तक प्राचीन भारत पर राज किया।
अपने अंतिम दिनों में उन्होंने राज्य की कमाई को सन्यासियों में बांटना शुरू कर दिया। परंतु, मंत्रियों ने ऐसा करने से रोक दिया। तो अशोक ने खुद की चीजों को दान देना शुरू कर दिया।
जब अपना सब कुछ दान दे दिया तो एक विशिष्ट फल जो अशोक के पास रहता था उसे भी दान के रूप में दे दिया। वह पूरी तरह से बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो चुका था। जब अशोक का देहांत हो गया था तो अशोक के शरीर को 7 दिन और रातों तक जलाया गया।
शिलालेख
स्थान
रूपनाथ
जबलपुर ज़िला, मध्य प्रदेश
बैराट
राजस्थान के जयपुर ज़िले में, यह शिला फलक कलकत्ता संग्रहालय में भी है।
मस्की
रायचूर ज़िला, कर्नाटक
येर्रागुडी
कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
जौगढ़
गंजाम जिला, उड़ीसा
धौली
पुरी जिला, उड़ीसा
गुजर्रा
दतिया ज़िला, मध्य प्रदेश
राजुलमंडगिरि
बल्लारी ज़िला, कर्नाटक
गाधीमठ
रायचूर ज़िला, कर्नाटक
ब्रह्मगिरि
चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
पल्किगुंडु
गवीमट के पास, रायचूर, कर्नाटक
सहसराम
शाहाबाद ज़िला, बिहार
सिद्धपुर
चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
जटिंगा रामेश्वर
चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक
येर्रागुडी
कर्नूल ज़िला, आंध्र प्रदेश
अहरौरा
मिर्ज़ापुर ज़िला, उत्तर प्रदेश
दिल्ली
अमर कॉलोनी, दिल्ली
सम्राट अशोक का शासनकाल एवं विशाल मौर्य सम्राज्य का विस्तार – Mauryan Empire Achievements
अशोका और कलिंगा घमासान युध्द – Ashok Kalinga War
कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उसका मन युद्ध से ऊब गया और वह अपने कृत्य को लेकर व्यथित हो उठा। इसी शोक से उबरने के लिए वह बुद्ध के उपदेशों के करीब आता गया और अंत में उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उसने उसे अपने जीवन मे उतारने का प्रयास भी किया। उसने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उसने ब्राह्मणों एवं अन्य सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उसने चिकित्यालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान भी भेजा।
इसी कार्य के लिए उसने अपने पुत्र एवं पुत्री को भी यात्राओं पर भेजा था। अशोक के धर्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली। महेन्द्र ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया, और तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया और अशोक से प्रेरित होकर उसने स्वयं को 'देवनामप्रिय' की उपाधि दी। अशोक के शासनकाल में ही पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता मोगाली पुत्र तिष्या ने की। यहीं अभिधम्मपिटक की रचना भी हुई और बौद्ध भिक्षु विभिन्न देशों में भेजे गये जिनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा भी सम्मिलित थे, जिन्हें श्रीलंका भेजा गया।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अशोक ने उसके प्रचार करने का बीड़ा उठाया । उसने अपने धर्म के अनुशासन के प्रचार के लिए अपने प्रमुख अधिकारीयों युक्त ,राजूक और प्रादेशिक को आज्ञा दी। धर्म की स्थापना , धर्म की देखरेख धर्म की वृद्धि तथा धर्म पर आचरण करने वालो के सुख एवं हितों के लिए धर्म – महामात्र को नियुक्त किया । बौद्ध धर्म का प्रचार करने हेतु अशोक ने अपने राज्य में बहत से स्थान पर भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ स्थापित की । विदेश में बौद्ध धर्म के प्रचा हेतु उसने भिक्षुओं को भेजा । विदेश में बौद्ध धर्म के लिए अशोक ने अपने पुत्र और पुत्री तक को भिक्षु-भिक्षुणी के वेष में भारत से बाहर भेज दिया । इस तरह से वें बुद्ध धर्म का विकास करते चले गये। धर्म के प्रति अशोक की आस्था का पता इसी से चलता है की वे बिना 1000 ब्राम्हणों को भोजन कराए स्वयं कुछ नहीं खाते थे ।
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