> टैगोर हिल / टैगोर पहाड़ी
> यह पहाड़ी राँची के पश्चिमी भाग में स्थित है।
> इस पहाड़ी पर गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिद्रनाथ टैगोर की समाधि निर्मित है।
> ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर 1 अक्टूबर 1908 को शांति की खोज में राँची आए तथा 4 मार्च, 1925 को अपने देहांत तक राँची स्थित टैगोर हिल पर ही रहे । उनका अंतिम संस्कार हरमू घाट पर किया गया था।
> ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर से पूर्व कैप्टन ए. आर. ओस्ली ने इस पहाड़ी पर रहने हेतु 1842 में एक रेस्ट हाउस बनवाया था। 1848 ई. में उनके भाई द्वारा इस रेस्ट हाउस में आत्महत्या कर लेने के बाद उन्होंने इस पहाड़ी पर आना बंद कर दिया।
> ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर ने यहाँ के जमींदार हरिहरनाथ सिंह से 290 रूपये वार्षिक भाड़े पर इसे लेकर रेस्ट हाउस की मरम्मत करायी तथा यहीं रहने लगे।
> ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर ने ही इस पहाड़ी पर चढ़ने हेतु सीढ़ियाँ, तोरण द्वारा तथा पहाड़ी के चोटी पर ध्यान करने हेतु एक खुले मंडप (शैल बलुआ पत्थर से नागर शैली में निर्मित) का निर्माण कराया था।
> ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर ने पहाड़ी पर पूर्व से निर्मित मकान का नाम 'शांतालय' रखा तथा पहाड़ी के नीचे एक नया मकान बनवाया जिसका नाम 'सत्यधाम' रखा।
> योगदा मठ आश्रम
> 1917 ई. में परमहंस योगानंद ने राँची में 'सत्संग सोसाइटी ऑफ इण्डिया' की स्थापना की थी।
> 1918 ई. में कासिम बाजार के महाराज मणीन्द्र चंद्र नंदी ने अपना महल और 25 एकड़ भूमि परमहंस योगानंद को आश्रम व विद्यालय की स्थापना हेतु दान में दे दिया। इसी भूमि पर योगदा सत्संग ब्रह्मचर्य विद्यालय की स्थापना की गयी जिसे बाद में योगदा सत्संग शाखा मठ के नाम से जाना गया।
> योगदा सत्संग के आश्रम राँची कोलकाता, द्वारहाट एवं नोएडा में हैं तथा देश-विदेश में इसके कई ध्यान केन्द्र हैं। इन सभी का संचालन राँची स्थित आश्रम से ही किया जाता है।
> स्वामी परमहंस योगानंद के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं पर लिखी गयी पुस्तक का नाम 'योगी कथामृत है'. जिसे विश्व के कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
> इस आश्रम में शरद् ऋतु के दौरान 'शरद् सत्संग' का आयोजन वृहद स्तर पर किया जाता है।
> 1925 एवं 1934 ई. में महात्मा गाँधी भी इस विद्यालय में आए थे।
> मैक्लुस्कीगंज
> मैक्लुस्कीगंज राँची जिला मुख्यालय से लगभग 60 किमी की दूरी पर है।
> यह विश्व का एकमात्र एंग्लो-इण्डियन गाँव है।
> इस गाँव की स्थापना अर्नेस्ट टिमोथी मैक्लुस्की द्वारा की गयी थी। यही वजह है कि इस गाँव का नाम उनके नाम पर पड़ा।
> 1932 ई. में मैक्लुस्की ने पूरे भारत में रह रहे लगभग 2,00,000 एंग्लो-इण्डियन लोगों को इस गाँव में आकर रहने हेतु आमंत्रित किया।
> इस गाँव में लगभग 300 लोग आकर बसे । परन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अधिकतर परिवार यहाँ से विदेश चले गए तथा मात्र 20 परिवार ही यहाँ बच गये।
> मैक्लुस्की ने 1933 ई. में 'कोलोनाइजेशन सोसाइटी ऑफ इण्डिया' का गठन किया तथा रातू महाराज से एक समझौते के तहत 10,000 एकड़ जमीन मैक्लुस्कीगंज गाँव की स्थापना हेतु प्राप्त किया था।
> प्रमुख धार्मिक स्थल
> सूर्य मंदिर, देउड़ी मंदिर, पहाड़ी मंदिर, जगन्नाथपुर मंदिर
> प्रमुख शैक्षणिक संस्थान
> राँची विश्वविद्यालय, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, केन्द्रीय विश्वविद्यालय (ब्राम्बे), राष्ट्रीय विधि अध्ययन एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय, बिड़ला इन्स्टीच्यूट ऑफ टे. क्नालॉजी, मेसरा, राँची कृषि महाविद्यालय, छोटानागपुर लॉ कॉलेज, इण्डियन लाख एण्ड रिसर्च इन्सटीच्यूट (नामकुम), कुष्ठ रोग अनुसंधान केन्द्र, द जेवियर इन्स्टीच्यूट ऑफ सोसल साइंसेज (XISS), भारतीय विधि माप विज्ञान संस्थान, राँची आयुर्विज्ञान संस्थान, रिनपास, श्री कृष्ण लोक प्रशासन प्रशिक्षण संस्थान, झारखण्ड न्यायिक अकादमी, रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय, भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM)
> अन्य तथ्य
> सर्वाधिक जनसंख्या, सर्वाधिक साक्षरता दर ( 76.06%), सर्वाधिक पुरूष साक्षरता दर (84.26%), सर्वाधिक महिला साक्षरता दर (67.44%), सर्वाधिक
अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या, सर्वाधिक विधानसभा क्षेत्र ( 07 )
> डोंबारी बुरू ( पहाड़ी )
> यह पहाड़ी खूँटी जिले के अड़की प्रखण्ड में स्थित है।
> बिरसा उलगुलान के दौरान 9 जनवरी, 1899 ई. को अपने अनुयायियों के बिरसा मुण्डा द्वारा अपने 12 अनुयायियों के साथ एक सभा कर रहे थे। उन्हें सुनने हेतु आस-पास के गाँव से सैंकड़ो लोग (महिलाओं एवं बच्चों सहित) सभा में आ गए जिसे अंग्रेजों ने चारों ओर से घेर कर निर्दोषों लोगों को गोलियों से भून दिया था।
> इस दर्दनाक घटना में सैंकड़ों लोग शहीद हो गये । यद्यपि बिरसा मुण्डा बचकर भागने में सफल रहे थे।
> प्रमुख धार्मिक स्थल
शिव मंदिर, अम्रेश्वर धाम
> अन्य तथ्य
सर्वाधिक अनुसूचित जनजाति प्रतिशत ( 73.25% )
> नेतरहाट
> नेतरहाट को 'पहाड़ों की रानी', 'पहाड़ियों की मल्लिका' तथा 'सूर्योदय एवं सूर्यास्त का सौंदर्यस्थल भी कहा जाता है।
> नेतरहाट एक पठारी क्षेत्र जो चारों ओर से पहाड़ियों, नदी, झरने और जंगलों से घिरा हुआ है।
> नेतरहाट की ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 3700 फीट है।
> नेतरहाट झारखण्ड में न्यूनतम तापमान वाला स्थान भी है।
> नेतरहाट के निकट विभिन्न पाट हैं जैसे नेतरहाट पाट, पसरी पाट, डुमरू पाट, जोभी पाट, जमेडूरा पाट, दासवान पाट आदि।
> नेतरहाट के नामकरण को लेकर दो धारणाएँ हैं। पहली धारणा यह है कि यहाँ पहले बाँस का बाजार लगता था जिसके कारण इसका नाम बाँस (नेतुर) व बाजार (हाट) को मिलाकर किया गया। दूसरी धारणा के अनुसार अंग्रेजी के शब्द नेचर व हार्ट को मिलकार यह नाम बना है।
> नेतरहाट में एक आवासीय विद्यालय भी स्थित है, जो पूरे देश में अपनी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु प्रसिद्ध है।
> बिहार एवं उड़ीसा के तत्कालीन गवर्नर जनरल सर एडवर्ड गेट ने ग्रीष्मकालीन प्रवास हेतु नेतरहाट को विकसित किया था।
> नेतरहाट में लगभग 100 वर्षों तक ब्रिटिश सरकार का मिलिट्री कैंप भी स्थापित रहा, जिसे पानी की अनुपलब्धता के कारण बंद कर दिया गया था।
> यहाँ मुख्य रूप से असुर, बिरजिया, बिरहोर आदि जनजातियाँ निवास करती हैं, जिनमें असुर सबसे पुरानी जनजाति है।
> नेतरहाट का 'मैगनोलिया प्वाइंट' सूर्यास्त के मनोरम दृश्य हेतु अत्यंत लोकप्रिय है।
> सारंडा वन
> सारंडा वन को 'सात सौ पहाड़ियों का घर' कहा
जाता है।
> सारंडा वन को एशिया में साल वृक्ष का सबसे घना वन माना जाता है। साल के अतिरिक्त इस वन में सागवान, मम्हारी, केंदू, बहेरा, अर्जुन, कुसुम आदि के वृक्ष भी मौजूद हैं।
> इस वन की ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 1800 फीट है।
> इस वन का विस्तार लगभग 820 वर्ग किमी. क्षेत्र में है।
> जैव-विविधता से पूर्ण इस वन में वृक्षों के साथ-साथ वन्यजीवों की भी कई प्रजातियाँ पायी जाती है, जिसमें चीता, तेंदुआ, हाथी, भालू, जंगली सूअर, जंगली भैंसा, सांभर, चीतल आदि प्रमुख हैं।
> इस वनक्षेत्र के बीच टोयबो जलप्रपात, रॉयल व्यू प्वाइंट, लिर्गिदा (दलदली क्षेत्र) आदि इसकी प्राकृतिक खुबसूरती में चार चांद लगा देते हैं।
> इस वनक्षेत्र में दो लिंगवाला शिवलिंग है, जिसे नगाड़ा मंदिर कहा जाता है। इसके साथ ही यहां खंडित शिवलिंग वाला महादेव मंदिर भी है।
> मलूटी गाँव
> यह गाँव दुमका जिले के शिकारीपाड़ा प्रखण्ड में अवस्थित है।
> इसे 'मंदिरों का गाँव/नगर' कहा जाता है। * इस गाँव को 'गुप्तकाशी' भी कहा जाता है।
> इस गाँव में पूर्व में यहाँ 108 मंदिर थे जिनमें से वर्तमान में 72 मंदिर ही शेष बचे हैं। इनमें से 52 शिव मंदिर तथा शेष अन्य देवी-देवताओं के मंदिर हैं।
> सभी शिव मंदिरों का निर्माण 'शिखर शैली' में किया गया है, जो एक कक्षावाला 'चार चाला कुटीर' की आकृति में है।
> इन मंदिरों में टेराकोटा से अत्यंत मनमोहक चित्र बनाए गये हैं, जिसके कारण इसे 'टेराकोटा मंदिर' भी कहा जाता है।
> इन मंदिरों का निर्माण ननकर राज्य के संस्थापक बसंत राय एवं उनके राजपरिवार द्वारा 16वीं शताब्दी में कराया गया था।
> इस गाँव में आदि शक्ति माँ मौलीक्षा का भी एक मंदिर है।
> इस गाँव के पूर्व में सातरंगम गाँव, पश्चिम में भगवछुट्ट गाँव, उत्तर में घटकपुर गाँव तथा दक्षिण में सतीघ्रदा गाँव स्थित है।
> 1979 से पूर्व इस गाँव के बारे में गाँव के बाहर के लोग अधिक नहीं जानते थे। परन्तु 1979 में भागलपुर के तत्क. कालीन आयुक्त अरूण कुमार पाठक इस गाँव में पहुँचे तथा मंदिरों के इस गाँव को देखकर इसकी जानकारी भारतीय पुरातत्व विभाग एवं बिहार पुरातत्व विभाग को दी, जिसके बाद इसके संरक्षण का कार्य प्रारंभ किया गया।
> सन् 2015 के गणतंत्र दिवस समारोह में झारखण्ड के मलूटी मंदिर झांकी को राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया गया था।
> प्रमुख धार्मिक स्थल
वासुकीनाथ मंदिर, छोटेनाथ की मूर्ति
> प्रमुख शैक्षणिक संस्थान
सिद्ध-कान्हू विश्वविद्यालय (दुमका)
> राष्ट्रीय राजमार्ग (NH)
114A, 333
> प्रमुख नदियाँ
अजय, पथरा, जयंती, मयूराक्षी, ब्राह्मणी
> प्रमुख खनिज
क्वार्टजाइट
> प्रमुख उद्योग
डॉबर दवा कंपनी (जसीडीह), हैदराबाद इण्डस्ट्रीज
> प्रमुख पर्यटक स्थल
त्रिकुट पहाड़ी, बकुलिया प्रपात, करौं गाँव
> त्रिकुट पहाड़ी
> यह पहाड़ी देवघर से लगभग 16 किमी दूर दुमका रोड़ पर है।
> इस पहाड़ी पर 840 फीट की ऊँचाई पर रोपवे बना हुआ है।
> किवदंती है माता सीता का हरण करके जाते समय रावण इस पर्वत पर रूका था तथा माता सीता ने यहाँ दिया जलाया था। अतः इसे 'रावण का हेलिपैड' कहा जाता है।
> करौं गाँव
> करौं ऐतिहासिक गाँव है जो अशोककालीन है।
> इस गाँव को अशोक के पुत्र राजा महेन्द्र ने बौद्ध विहार के रूप में बसाया था।
> इस गाँव में अशोक के स्तूप तथा गाँव के आसपास भगवान बुद्ध की प्रतिमाएँ भी मिलती हैं।
> एक किवदंती के अनुसार इस गाँव का नामकरण महाभारतकालीन कर्ण के नाम पर किया गया था, बाद में इसका नाम करौं हो गया।
> यहाँ कर्ण द्वारा स्थापित कर्णोस्वर मंदिर भी है।
> इस गाँव के अंतिम राजा काली प्रसाद सिंह थे, जो झरिया स्टेट के भी राजा थे।
> प्रमुख धार्मिक स्थल
वैद्यनाथ मंदिर, युगल मंदिर, तपोवन मंदिर, लीला मंदिर, कुण्डेश्वरी मंदिर, सत्संग नगर
> सत्संग नगर
> वर्ष 1946 में बांग्लादेश के पवना से आकर श्रीश्री ठाकुर अनुकूलचंद्र जी ने देवघर में सत्संग आश्रम की स्थापना की थी।
> बाद में इसका विस्तार हुआ तथा एक बड़े क्षेत्र में यह सत्संग नगर रूप में बस गया।
> यहाँ सर्वधर्म मंदिर, संग्रहालय, चिड़ियाघर तथा विद्यालय भी निर्मित किए गये हैं।
> प्रमुख शैक्षणिक संस्थान
> हिन्दी विद्यापीठ
> अन्य तथ्य
> दूसरा न्यूनतम वन क्षेत्र (203 वर्ग किमी.) व वन प्रतिशत ( 8.22% ) प्राचीन काल में इसे 'हरितकीवाना' नाम से जाना जाता था।
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