संविधान का निर्माण

संविधान का निर्माण
संविधान सभा की मांग
संविधान सभा का गठन
- संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 389 होनी थी। इनमें से 296 सीटें ब्रिटिश भारत और 93 सीटें देसी रियासतों को आवंटित की जानी थीं। ब्रिटिश भारत को आवंटित की गई 296 सीटों में 292 सदस्यों का चयन 11 गवर्नरों के प्रांतों और चार का चयन मुख्य आयुक्तों के प्रांतों (प्रत्येक में से एक) से किया जाना था।
- हर प्रांत व देसी रियासतों (अथवा छोटे राज्यों के मामले में राज्यों के समूह) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आवंटित की जानी थीं। मोटे तौर पर कहा जाए तो प्रत्येक दस लाख लोगों पर एक सीट आवंटित की जानी थी।
- प्रत्येक ब्रिटिश प्रांत को आवंटित की गई सीटों का निर्धारण तीन प्रमुख समुदायों के बीच उनकी जनसंख्या के अनुपात में किया जाना था। ये तीन समुदाय थे- मुस्लिम, सिख व सामान्य ( मुस्लिम और सिख को छोड़कर ) ।
- प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधियों का चुनाव प्रांतीय असेंबली में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाना था और एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से समानुपातिक प्रतिनिधित्व तरीके से मतदान किया जाना था।
- देसी रियासतों के प्रतिनिधियों का चयन रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया जाना था।
संविधान सभा की कार्यप्रणाली
- यह संविधान सभा भारत को एक स्वतंत्र, संप्रभु गणराज्य घोषित करती है तथा अपने भविष्य के प्रशासन को चलाने के लिये एक संविधान के निर्माण की घोषणा करती है।
- ब्रिटिश भारत में शामिल सभी क्षेत्र, भारतीय राज्यों में शामिल सभी क्षेत्र तथा भारत से बाहर के इस प्रकार के सभी क्षेत्र तथा वे अन्य क्षेत्र, जो इसमें शामिल होना चाहेंगे भारतीय संघ का हिस्सा होंगे।
- उक्त वर्णित सभी क्षेत्रों तथा उनकी सीमाओं का निर्धारण संविधान सभा द्वारा किया जायेगा तथा इसके लिये उपरांत के नियमों के अनुसार यदि वे चाहेंगे तो उनकी अवशिष्ट शक्तियां उनमें निहित रहेंगी तथा प्रशासन के संचालन के लिये भी वे सभी शक्तियां, केवल उनको छोड़कर, जो संघ में निहित होंगी इन राज्यों को प्राप्त होंगी।
- संप्रभु स्वतंत्र भारत की सभी शक्तियां एवं प्राधिकार, इसके अभिन्न अंग तथा सरकार के अंग, सभी का स्रोत भारत की जनता होगी।
- भारत के सभी लोगों के लिये न्याय, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता एवं सुरक्षा अवसर की समता, विधि के समक्ष समता, विचार एवं अभिव्यक्ति, विश्वास, भ्रमण, संगठन बनाने आदि की स्वतंत्रता तथा लोक नैतिकता की स्थापना सुनिश्चित की जायेगी।
- अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों तथा जनजातीय क्षेत्रों के लोगों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जायेगी।
- संघ की एकता को अक्षुण्ण बनाये रखा जायेगा तथा इसके भू-क्षेत्र, समुद्र एवं वायु क्षेत्र को सभ्य देश के न्याय एवं विधि के अनुरूप सुरक्षा प्रदान की जायेगी। और
- इस प्राचीन भूमि को विश्व में उसका अधिकार एवं उचित स्थान दिलाया जायेगा तथा विश्व शांति एवं मानव कल्याण को बढ़ावा देने के निमित्त, उसके योगदान को सुनिश्चित किया जायेगा।
- सभा । पूरी तरह संप्रभु निकाय बनाया गया, जो स्वेच्छा से कोई भी संविधान बना सकती थी। इस अधिनियम ने सभा को ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के संबंध में बनाए गए किसी भी कानून को समाप्त करने अथवा बदलने का अधिकार दे दिया।
- संविधान सभा एक विधायिका भी बन गई। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सभा को दो अलग-अलग काम सौंपे गए। इनमें से एक था - स्वतंत्र भारत के लिए संविधान बनाना और दूसरा था, देश के लिए आम कानून लागू करना। इन दोनों कार्यों को अलग-अलग दिन करना था। इस प्रकार संविधान सभा स्वतंत्र भारत की पहली संसद बनी। जब भी सभा की बैठक संविधान सभा के रूप में होती इसकी अध्यक्षता डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद करते और जब बैठक बतौर विधायिका' होती तब इसकी अध्यक्षता जी.वी. मावलंकर करते थे। संविधान सभा 26 नवंबर, 1949 तक इन दोनों रूपों में कार्य करती रही। इस समय तक संविधान निर्माण का कार्य पूरा हो चुका था।
- मुस्लिम लीग के सदस्य ( पाकिस्तान में शामिल हो चुके क्षेत्रों से सम्बद्ध) भारतीय संविधान सभा से अलग हो गए। इसकी वजह से सन 1946 में माउंटबेटन योजना के तहत तय की गई सदस्यों की कुल संख्या 389 सीटों की बजाय 299 तक आ गिरी । भारतीय प्रांतों ( औपचारिक रूप से ब्रिटिश प्रांत) की संख्या 296 से 229 और देसी रियासतों की संख्या 93 से 70 कर दी गई। 31 दिसंबर, 1947 को राज्यवार सदस्यता को तालिका संख्या 2.4 में प्रस्तुत किया गया है।
- इसने मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया।
- इसने 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गान को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गीत को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी, 1950 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना।
संविधान सभा की समितियां
- संघ शक्ति समिति - जवाहरलाल नेहरू
- संघीय संविधान समिति- जवाहरलाल नेहरू
- प्रांतीय संविधान समिति- सरदार पटेल
- प्रारूप समिति - डॉ. बी. आर. अंबेडकर
- मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों एवं जनजातियों तथा बहिष्कृत क्षेत्रों के लिए सलाहकार समिति (परामर्शदाता समिति) - सरदार पटेल। इस समिति के अंतर्गत निम्नलिखित पांच उप-समितियां थीं:
- मौलिक अधिकार उप समिति - जे. बी. कृपलानी
- अल्पसंख्यक उप-समिति- एच. सी. मुखर्जी
- उत्तर- पूर्व सीमांत जनजातीय क्षेत्र असम को छोड़कर तथा आंशिक रूप से छोड़े गए क्षेत्र के लिए उप-समिति- गोपीनाथ बोर्दोलोई ।
- छोड़े गए एवं आंशिक रूप से छोड़े गए क्षेत्रों (असम में सिंचित क्षेत्रों के अलावा) के लिए उप-समितिए.वी. ठक्कर ।
- उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर जनजाति क्षेत्र उप-समिति
- प्रक्रिया नियम समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- राज्यों के लिये समिति (राज्यों से समझौता करने वाली) - जवाहरलाल नेहरू
- संचालन समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- वित्त एवं कर्मचारी (स्टाफ) समिति - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
- प्रत्यायक (क्रेडेन्सियल) समिति - अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर
- सदन समिति - बी. पट्टाभिसीतारमैय्या
- कार्य संचालन समिति - डॉ. के. एम. मुंशी
- राष्ट्र ध्वज सम्बन्धी तदर्थ समिति- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
- संविधान सभा के कार्यो के लिए समिति - जी. वी. मावलंकर
- सर्वोच्च न्यायालय के लिए तदर्थ समिति - एस. वरदाचारी (जो कि सभा के सदस्य नहीं थे )
- मुख्य आयुक्तों के प्रांतों के लिए समिति - बी. पट्टाभिसीतारमैय्या
- संघीय संविधान के वित्तीय प्रावधानों सम्बन्धी समिति नलिनी रंजन सरकार (जो कि सभा के सदस्य नहीं थे)
- भाषाई प्रांत आयोग एस. के. डार ( जो कि सभा के सदस्य नहीं थे )
- प्रारूप संविधान की जांच के लिए विशेष समिति जवाहरलाल नेहरू
- प्रेस दीर्घा समिति - ऊषा नाथ सेन
- नागरिकता पर तदर्थ समिति एस. वरदाचारी (जो कि सभा के सदस्य नहीं थे)
- डॉक्टर बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
- एन. गोपालस्वामी आयंगर
- अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
- डॉक्टर के. एम. मुंशी
- सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला
- एन. माधव राव ( इन्होंने बी.एल. मित्र की जगह ली जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से त्याग-पत्र दे दिया था)
- टी.टी. कृष्णामचारी ( इन्होंने सन् 1948 में डी. पी. खेतान की मृत्यु के बाद उनकी जगह ली )
संविधान का प्रभाव में आना
संविधान का प्रवर्तन
कांग्रेस की विशेषज्ञ समिति
- जवाहरलाल नेहरू
- एम. आसफ अली
- के. एम. मुंशी
- एन. गोपालस्वामी अय्यंगर
- के.टी. सेठ
- डी. आर. गाडगिल
- हुमायूं कबीर
- के. संथानम
संविधान सभा की आलोचना
- यह प्रतिनिधि निकाय नहीं थी: आलोचकों ने दलीलें दी हैं कि संविधान सभा प्रतिनिधि सभा नहीं थी क्योंकि इसके सदस्यों का चुनाव भारत के लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था।
- संप्रभुता का अभाव: आलोचकों का कहना है कि संविधान सभा एक संप्रभु निकाय नहीं थी क्योंकि इसका निर्माण ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों के आधार पर हुआ। यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा अपनी बैठकों से पहले ब्रिटिश सरकार से इजाज़त लेती थी।
- समय की बर्बादी: आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा ने इसके निर्माण में जरूरत से कहीं ज्यादा समय ले लिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने मात्र 4 माह में अपना काम पूरा कर लिया था। निराजुद्दीन अहमद, संविधान सभा के सदस्य, ने इसके लिए अपनी अवमानना दर्शाने के लिए प्रारूप समिति हेतु एक नया नाम गढ़ा। उन्होंने इसे 'अपवहन समिति' कहा।
- कांग्रेस का प्रभुत्वः आलोचकों का आरोप है कि संविधान सभा में कांग्रेसियों का प्रभुत्व था। ब्रिटेन के संविधान विशेषज्ञ ग्रेनविले ऑस्टिन ने टिप्पणी की, “संविधान सभा एक-दलीय देश का एक-दलीय निकाय है। सभा ही कांग्रेस है और कांग्रेस ही भारत है। "
- वकीलों और राजनीतिज्ञों का प्रभुत्वः यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा में वकीलों और नेताओं का बोलबाला था। उन्होंने कहा कि समाज के अन्य वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला। उनके अनुसार, संविधान के आकार और उसकी जटिल भाषा के पीछे भी यही मुख्य कारण था।
- हिंदुओं का प्रभुत्व: कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में हिंदुओं का वर्चस्व था। लॉर्ड विसकाउंट ने इसे 'हिंदुओं का निकाय' कहा। इसी प्रकार विंस्टन चर्चिल ने टिप्पणी की कि, संविधान सभा ने 'भारत के केवल एक बड़े समुदाय' का प्रतिनिधित्व किया।
आवश्यक तथ्य
- संविधान सभा द्वारा हाथी को प्रतीक (मुहर) के रूप में अपनाया गया था।
- सर बी. एन. राऊ को संविधान सभा के लिए संवैधानिक सलाहकार (कानूनी सलाहकार) के रूप में नियुक्त किया गया था।
- एच. बी. आर. अय्यंगर को संविधान सभा का सचिव नियुक्त किया गया था।
- एल. एन. मुखर्जी को संविधान सभा का मुख्य प्रारूपकार (चीफ ड्राफ्टमैन) नियुक्त किया गया था।
- प्रेम बिहारी नारायण रायजादा भारतीय संविधान के प्रमुख सुलेखक (Calligrapher) थे। मूल संविधान एक प्रवाहमय (इटैलिक) शैली में उनके द्वारा हस्तलिखित किया गया था।
- मूल संस्करण का सौन्दर्यीकरण और सजावट शांति निकेतन के कलाकारों ने किया जिनमें नंदलाल बोस और बिउहर राममनोहर सिन्हा शामिल थे।
- मूल प्रस्तावना को प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा हस्तलिखित एवं बिउहर राममनोहर सिन्हा द्वारा ज्यामितीय, सौंदर्यीकृत एवं अलंकृत किया गया था।
- मूल संविधान के हिन्दी संस्करण का सुलेखन वसंत कृष्ण वैद्य द्वारा किया गया जिसे नंदलाल बोस ने सुन्दर ढंग से अलंकृत एवं ज्यामितीय किया गया।
संविधान का हिंदी पाठ
- इस प्राधिकार के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा करवाये गये अनुवाद का प्रकाशन इस प्रकार होगा:
- संविधान का हिंदी में अनुवाद, यदि इसमें किसी प्रकार के संशोधन की आवश्यकता होगी तो केंद्रीय अधिनियम द्वारा हिंदी के लिये स्वीकार किये गये भाषायी रूप एवं शब्दावली को ही अपनाया जायेगा। संविधान के सभी संशोधन प्रकाशन से पहले सम्मिलित किये जायेंगे।
- संविधान के प्रत्येक संशोधन का, जो अंग्रेजी में है, हिंदी अनुवाद किया जायेगा।
- इस हिंदी पाठ का वही अर्थ लगाया जायेगा, जो अंग्रेजी के मूल पाठ में विहित है। यदि अर्थ लगाने में कोई असुविधा उत्पन्न होगी तो राष्ट्रपति इसका उपयुक्त परीक्षण करायेंगे।
- संविधान के प्रत्येक संशोधन का, जो अंग्रेजी में है, हिंदी अनुवाद किया जायेगा तथा इसे हिंदी भाषा का प्राधिकृत पाठ समझा जायेगा।
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