BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH GEOGRAPHY NOTES | अपवाह तंत्र
अपवाह तंत्र एक नदी क्षेत्र के नदी तंत्र की व्याख्या करता है। एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे 'जलग्रहण' (Catchment) क्षेत्र कहा जाता है।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH GEOGRAPHY NOTES | अपवाह तंत्र
- अपवाह तंत्र एक नदी क्षेत्र के नदी तंत्र की व्याख्या करता है। एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे 'जलग्रहण' (Catchment) क्षेत्र कहा जाता है।
- जब विभिन्न दिशाओं से छोटी-छोटी धाराएँ आकर एक साथ मिल जाती है तथा एक मुख्य नदी का निर्माण करता है, अंततः इनका निकास किसी बड़े जलाशय, जैसे झील या समुद्र या महासागर में होता है।
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- एक नदी एवं उस की सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को 'अपवाह द्रोणी' कहते हैं।
- एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को 'जल विभाजक' या 'जल-संघर' (Watershed) कहते हैं। बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी जबकि छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को 'जल-संभर' ही कहा जाता है। नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है, जबकि बल-संभर का आकार छोटा होता है।
- नदी द्रोणी एवं जल-संभर एकता के परिचायक हैं। इनके एक भाग में परिवर्तन का प्रभाव अन्य भागों व पूर्ण क्षेत्र में देखा जा सकता है। इसीलिए इन्हें सूक्ष्म मध्यम व बृहत नियोजन इकाइयों व क्षेत्रों के रूप में लिया जा सकता है।
- भारतीय अपवाह तंत्र को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर इसे दो समूहों में बाँटा जा सकता है।
(i) अरब सागर का अपवाह तंत्र व(ii) बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र।
- भारत के दो मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों से उत्पन्न होने के कारण हिमालय तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं। इनमें वर्ष भर जल रहता है, क्योंकि इन्हें वर्षा के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिघलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है।
- हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय श्रृंखला के उत्तरी भाग से निकलती हैं। इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉर्ज का निर्माण किया है।
- हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति के स्थान से लेकर समुद्र तक के लंबे रास्ते को तय करती हैं। ये अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती हैं तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं।
- मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत-सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती हैं। ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती हैं। अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं, क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है।
- हिमालय की नदियों की तुलना में प्रायद्वीपीय नदियों की लंबाई कम तथा छिछली हैं। फिर भी इनमें से कुछ केंद्रीय उच्चभूमि से निकलती हैं तथा पश्चिम की तरफ बहती हैं। प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती हैं तथा बंगाल की खाड़ी की तरफ बहती हैं।
अपवाह प्रतिरूप
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- ये अपवाह तंत्र दिल्ली कटक अरावली एवं सहयाद्रि द्वारा अलग किए गए हैं। कुल अपवाह क्षेत्र का लगभग 77 प्रतिशत भाग, जिसमें गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा आदि नदियाँ शामिल बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती हैं, जबकि 23 प्रतिशत क्षेत्र, जिसमें सिंधु, नर्मदा, तापी, माही व पेरियार नदियाँ हैं, अपना जल अरब सागर में गिराती हैं।
- प्रमुख नदी द्रोणी, जिनका अपवाह क्षेत्र 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। इसमें 14 नदी द्रोणियाँ शामिल हैं, जैसे- गंगा, बह्मपुत्र, कृष्णा, तापी, नर्मदा, माही, पेन्नार, साबरमती, बराक आदि।
- मध्यम नदी द्रोणी जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 से 20,000 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 44 नदी द्रोणियाँ हैं, जैसे- कालिंदी, पेरियार, मेघना आदि।
- लघु नदी द्रोणी, जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 वर्ग किलोमीटर से कम है। इसमें न्यून वर्षा के क्षेत्रों में बहने वाली बहुत-सी नदियाँ शामिल हैं।
अनेक नदियों का उद्गम स्रोत हिमालय पर्वत है और वे अपना जल बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में विसर्जित करती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की बड़ी नदियों का उद्गम स्थल पश्चिमी घाट है और नदियाँ बंगाल की खाड़ी जल विसर्जन करती हैं।
नर्मदा और तापी दो बड़ी नदियाँ इसका अपवाद हैं। ये और अनेक छोटी नदियाँ अपना जल अरब सागर में विसर्जित करती हैं।
नदियों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जाता है। प्रवाह की प्रकृति के आधार पर इसके निम्नलिखित रूप हैं-
- अनुगामी नदी - जिन नदियों का बहाव ढाल के अनुरूप होता है, उन्हें अनुगामी नदी कहते हैं। भारत की अधिकांश नदियाँ अनुगामी हैं।
- अननुगामी नदी - जिन नदियों का बहाव ढाल के अनुरूप ना होकर इससे असंबद्ध होता है, उन्हें अननुगामी कहते हैं। इनके दो रूप हैं।
- अध्यारोपित नदी- ये नदियाँ घाटियों का निर्माण कर पुरानी चट्टानों पर बहती हैं और उसे निरंतर काटती रहती हैं, जैसे- चंबल नदी ।
- पूर्वगामी नदी- ये बहुत पुरानी नदियाँ हैं। ये पहाड़ों के निर्माण के पहले से ही बहती आ रही है और पहाड़ों के बीच आर-पार बहती है, जैसे-सिंधु, सतलज, कोसी इत्यादि ।
- वृक्षाकार प्रारूप- इसमें मुख्य नदियों की अनेक सहायक नदियाँ वृक्ष की शाखाओं के रूप में बहती हुई उससे मिलती है, उदाहरण गोदावरी, कृष्णा इत्यादि ।
- जालीनुमा प्रारूप- इसमें दो मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समांतर प्रवाहित होते हैं और उनकी सहायक नदी समकोण पर मिलती हो तब जालिनुमा प्रतिरूप निर्मित होता है।
- अरीय या केंद्रत्यागी प्रारूप किसी ऊँची भूमि से निस्सृत होकर बहने वाली नदियाँ सभी दिशाओं में बहती है तो उन्हें केंद्रत्यागी नदियाँ कहते हैं।
- कोई नदी अपनी सहायक नदियों सहित जिस क्षेत्र का जल ग्रहण कर आगे बहती है वह उसका प्रवाह क्षेत्र होता है।
- इस क्षेत्र को नदी द्रोणी, नदी का बेसिन या नदी का जल संग्रहण क्षेत्र कहा जाता है।
- जलसंग्रहण क्षेत्र के आधार पर भारत का जल प्रवाह तंत्र तीन भागों में बाँटा जा सकता है।
- जिन नदियों के जलसंग्रहण क्षेत्र का विस्तार 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक होता है उन्हें प्रमुख नदी कहते हैं।
- भारत की 14 नदियाँ इस वर्ग में सम्मिलित है, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, बराक, माही साबरमती नर्मदा, ताप्ती, महानदी, सुवर्णरख गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और पेनार ।
- जिन नदियों के जलसंग्रहण क्षेत्र का विस्तार 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक नहीं होता है उन्हें मध्यम कोटि की नदी कहते हैं।
- भारत की 44 नदियाँ इस वर्ग में रखी जा सकती है। उनमें प्रमुख है - कालिंदी, पेरियार, मेघना इत्यादि ।
- जिन नदियों के जलसंग्रहण क्षेत्र का विस्तार 2,000 वर्ग किलोमीटर से कम होता है उन्हें लघु नदी कहते हैं। भारत के विभिन्न भागों और कम वर्षा वाले भागों में बहने वाली अनेक नदियाँ इस कोटि में आती है।
- भारतीय अपवाह तंत्र में अनेक छोटी-बड़ी नदियाँ शामिल हैं। ये तीन बड़ी भू-आकृतिक इकाइयों की उद्-विकास प्रक्रिया तथा वर्षण की प्रकृति व लक्षणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई हैं।
- हिमालयी अपवाह तंत्र भूगर्भिक इतिहास के एक लंबे दौर में विकसित हुआ है। इसमें मुख्यतः गंगा, सिंधु व बह्मपुत्र नदी द्रोणियां शामिल हैं। यहाँ की नदियाँ बारहमासी हैं, क्योंकि ये बर्फ पिघलने व वर्षण दोनों पर निर्भर हैं।
- ये नदियाँ गहरे महाखड्डों (Gorges) से गुजरती हैं, जो हिमालय के उत्थान के साथ-साथ अपरदन क्रिया द्वारा निर्मित हैं। महाखड्डों के अतिरिक्त ये नदियाँ अपने पर्वतीय मार्ग में V-आकार की घाटियाँ क्षिप्रिकाएँ व जलप्रपात भी बनाती हैं।
- जब ये मैदान में प्रवेश करती हैं, तो निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ जैसेसमतल घाटियों, गोखुर झीलें, बाढ़कृत मैदान, गुफित वाहिकाएँ और नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं।
- हिमालय क्षेत्र इन नदियों का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा है, परंतु मैदानी क्षेत्र में इनमें सर्पाकार मार्ग में बहने की प्रवृत्ति पाई जाती है और अपना रास्ता बदलती रहती हैं।
- कोसी नदी, जिसे 'बिहार का शोक' (Sorrow of Bihar) कहते हैं, अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है। यह नदी पर्वतों के ऊपरी क्षेत्रों से भारी मात्रा में अवसाद लाकर मैदानी भाग में जमा करती है। इससे नदी मार्ग अवरुद्ध हो जाता है व परिणामस्वरूप नदी अपना मार्ग बदल लेती है।
मुख्य अपवाह प्रतिरूप
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- इस तंत्र का विकास मायोसीन कल्प में एक विशाल नदी, जिसे शिवालिक या इंडो-ब्रह्म कहा गया है, से हुआ है।
- कालांतर में इंडो-ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में बँट गई: 1. पश्चिम में सिंध और इसकी पाँच सहायक नदियाँ, 2. मध्य में गंगा और हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ और 3. पूर्व में बह्मपुत्र का भाग व हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ।
- विशाल नदी का इस तरह विभाजन संभवतः प्लिस्टोसीन काल में हिमालय के पश्चिमी भाग में व पोटवार पठार के उत्थान के कारण हुआ। यह क्षेत्र सिंधु व गंगा अपवाह तंत्रों के जल विभाजक बन गया।
- इसी प्रकार मध्य प्लिस्टोसीन काल में राजमहल पहाड़ियों और मेघालय पठार के मध्य स्थित माल्दा गैप का अधोक्षेपण हुआ जिसमें गंगा और बह्मपुत्र नदी तंत्रों का दिक्परिवर्तन हुआ और वे बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित हुई।
- हिमालयी अपवाह में अनेक नदी तंत्र हैं
- सिंधु नदी प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी नदी प्रणालियों में शामिल है। इसकी लंबाई 2,900 किलोमीटर है जिसका लगभग तिहाई भाग 1.114 किलोमीटर भारत की सीमा में है।
- इसका जलसंग्रहण क्षेत्र 11 लाख 65 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसका 3,21,289 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भारत में है।
- कैलास की बोखर-चू के निकट एक हिमनद है जो 31°15' N और 80°40'E पर स्थित है। इसी हिमनद से सिंधु नदी निकलती है। तिब्बत में इसे शेरमुख या सिंगी खंबान कहते हैं।
- सिंधु नदी पश्चिमी हिमालय की लद्दाख और जास्कर श्रेणियों के मध्य उत्तर-पश्चिम की दिशा में बहती है।
- लद्दाख और बालतिस्तान से गुजरने के बाद यह जम्मू और कश्मीर के गिलगिट के पास एक महाखड्ड बनाती है। 5,100 मीटर गहरा यह महाखड्ड एक मनोरम एवं दर्शनीय दृश्य उपस्थित करता है।
- इसके बाद यह पाकिस्तान के चिल्लड़ के समीप दरदिस्तान प्रदेश में बहती है। हिमालय की नदियों में यह सबसे पश्चिमी नदी है।
- श्योक, गिलगिट, जास्कर, हुजा, नुवरा, शिगार, गॉस्टिंग और ट्राय नाम की छोटी नदियाँ हिमालय से निकलकर सिंधु में मिल जाती है।
- सभी नदियों का जल लेकर यह अटक के पास की पहाड़ियों से बाहर निकलती है। इसके बाद सुलेमान पहाड़ियों से निकलकर काबुल, खुर्रम, तोची, गोमल, विबोआ, और संगर नामक नदियाँ सिंधु में मिलती है।
- इसके आगे इसका प्रवाह दक्षिण की ओर होने लगता है। पंचनद की पाँचों नदियाँ सतलुज, व्यास, रावी, चेनाब और झेलम का जल मीथनकोट के पास सिंधु में विसर्जित होता है। यह पाँचों पंजाब की प्रमुख नदियाँ हैं।
- भारत में सिंधु नदी जम्मू और कश्मीर के लेह जिले में बहती है और अंततः कराँची के पूर्वी भाग में यह अरब सागर में अपना जल विसर्जित करती है।
- यह नदी श्रीनगर तथा वूलर झील से होकर बहने के बाद एक पतले, सँकरे और गहरे महाखड्ड से होकर गुजरती है तथा पीर पंजाल के गिरिपद स्थित बेरीनाग झरने से निकलकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
- पाकिस्तान में झंग के पास यह चेनाब नदी से मिल जाती है। झेलम का प्राचीन नाम 'वितस्ता' है। सिंधु की सहायक नदियों में यह महत्त्वपूर्ण है।
- यह सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी है। वस्तुतः चंद्रा और भागा नाम की दो नदियाँ हिमाचल प्रदेश में केलांग के पास तांडी स्थान में मिल जाती है और संयुक्त नदी को 'चंद्रभागा' या 'चेनाब' कहते हैं।
- भारत में 1,180 किलोमीटर बहने के बाद यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है और सिंधु में मिल जाती है।
- यह नदी हिमालय प्रदेश के कुल्लू पहाड़ियों में स्थित रोहतांग दरें के पश्चिम से निकलती है।
- चंबा घाटी में यह पीर पंजाल के दक्षिण-पूर्वी भाग और धौलाधार के बीच से बहती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है और सराय सिंधु के निकट यह चेनाब में मिल जाती है। इसका प्राचीन नाम 'इरावती' है।
- यह समुद्रतल से 4 किलोमीटर ऊँचाई पर स्थित रोहतांग दर्रे के पास व्यास कुंड से निकलती है।
- कुल्लू और धौलाधार में बहते समय यह काती और लारगी में महाखड्ड बनाती है।
- इसके बाद यह पंजाब के मैदानी भाग में बहती है और हरीके के पास सतलुज में मिल जाती है।
- सिंधु प्रणाली की यही नदी वस्तुतः पूर्ण रूप से भारत में ही बहती है। इसका प्राचीन नाम 'विपाशा' है।
- यह नदी मानसरोवर के पास 4555 मीटर की ऊँचाई पर स्थित राकस ताल से निकलती है। स्थानीय भाषा में इसका नाम 'लॉगचेन खंबाब' है।
- यह 400 किलोमीटर तक सिंधु के समांतर ही बहती है। इसके बाद रोपड़ में एक महाखड्ड से निकलकर भारत में प्रवेश करती है।
- हिमालय के एक दरें 'शिपकीला' से बहने के बाद यह पंजाब के मैदानी भाग में बहती है। भाखड़ा-नांगल बांध इसी नदी पर बना है। इसका प्राचीन 'नाम - शत्रुद्रि' है।
- गंगा नदी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 3,900 मीटर ऊँचाई पर स्थित गोमुख के पास गंगोत्री नामक हिमनद से निकलती है।
- इसका स्थानीय नाम भागीरथी है। मध्य और लघु हिमालय श्रेणियों को काटती हुई और तंग महाखड्डों से गुजरती हुई यह आगे बढ़ती है।
- देवप्रयाग में एक नदी अलकनंदा इसमें मिल जाती है। इसके बाद ही इसका नाम गंगा कहलाता है।
- अलकनंदा बद्रीनाथ के ऊपर अलकापुरी के 'सतोपंथ' हिमनद से निकलती है। वस्तुत: अलकनंदा धौली और विष्णु गंगा नामक दो धाराओं के मिलने से बनती है। ये धाराएँ जोशीमठ या विष्णुप्रयाग में मिलती है।
- इसके बाद गंगा हरिद्वार में मैदानी भाग में प्रवेश करती है। प्रारंभ में यह दक्षिण की ओर बहती है और बाद में दक्षिण पूर्व की ओर बहने लगती है और अंत में सीधे पूर्व दिशा की ओर बहती है।
- बंगाल की खाड़ी में विसर्जित होने के पूर्व फरक्का के पास दो भागों में विभक्त होकर दक्षिण की ओर बहती है।
- गंगा नदी की लंबाई 2525 किलोमीटर (कुछ स्रोतों के अनुसार 2,640 किलोमीटर) है। इसका 110 किलोमीटर उत्तराखंड, 1,450 किलोमीटर उत्तर प्रदेश, 445 किलोमीटर बिहार और 520 किलोमीटर पश्चिम बंगाल में पड़ता है।
- इसके जलसंग्रहण क्षेत्र का विस्तार 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर है। भारत के पूरे जल प्रवाह का बहुत बड़ा भाग इसी के द्वारा प्रवाहित होता है।
- दक्षिणी प्रायद्वीप पठार की कई नदियाँ भी गंगा-प्रणाली में ही अपना जल विसर्जित करती है। इनमें सोन एक प्रमुख नदी है।
- दूसरी ओर हिमालय की अनेक नदियाँ, जैसे- रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा इत्यादि भी इसी में अपना जल विसर्जित करती है।
- गंगा के पश्चिम में बहनेवाली यमुना इसकी प्रमुख सहायक नदी है। यमुना नदी 6,316 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यमुनोत्री हिमनद से निकलती है जो हिमालय में 'बंदरपूँछ' श्रेणी की पश्चिमी ढाल पर स्थित है।
- प्रयागराज (इलाहाबाद) में यमुना गंगा से मिल जाती है। हिण्डन, रिंद, सेंगर, वरुणा इत्यादि उत्तर की ओर से तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ चंबल, सिंध, बेतवा और केन दक्षिण की ओर से यमुना में मिलती हैं।
- प्रसिद्ध यमुना नहर प्रणाली पूर्वी और पश्चिमी भाग में सिंचाई के लिए महत्त्वपूर्ण है। दिल्ली और आगरा यमुना तट के प्रसिद्ध
- यमुना, गंगा की सबसे पश्चिमी और सबसे लंबी सहायक नदी है।
- इसका स्रोत यमुनोत्री हिमनद है, जो हिमालय में बंदरपूंछ श्रेणी की पश्चिमी ढाल पर 6.316 मीटर ऊँचाई पर स्थित है।
- प्रयाग (इलाहाबाद) में इसका गंगा से संगम होता है।
- प्रायद्वीप पठार से निकलने वाली चंबल, सिंध, बेतवा व केन इसके दाहिने तट पर मिलती है।
- जबकि हिंडन, रिंद, सेंगर, वरूणा आदि नदियां इसके बांये तट पर मिलती है।
- इसका अधिकांश जल सिंचाई उद्देश्यों के लिए पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहरों तथा आगरा नहर में आता है।
- यह नदी मालवा पठार के महु के पास से निकलती है। उत्तर की ओर बहते हुए यह एक महाखड्ड से गुजरती है।
- राजस्थान में कोटा में इस पर गाँधी सागर बाँध बनाया गया है। कोटा के बाद बूंदी, सवाई माधोपुर और धौलपुर से होते हुए यह यमुना नदी में मिल जाती है।
- इस नदी में बड़े और गहरे खड्ड हैं जिन्हें चंबल खड्ड कहते हैं। इसकी कुल लंबाई 965 किलोमीटर है।
- यह अमरंकटक पठार से निकलती है। आरा-पटना के बीच यह गंगा से मिल जाती है। इसमें अप्रत्याशित बाढ़ आती है।
- छोटानागपुर पठार की यह एक प्रमुख नदी है जो अपनी भ्रंश - घाटी के लिए प्रसिद्ध है। इसे दामोदर नदी भी कहा जाता है।
- पठारी नदी होने के कारण वर्षा होने पर पहले यह अधिक भयंकर हो जाती थी और इससे बंगाल में भयानक बाढ़ आती थी।
- इसीलिए, इसे 'बंगाल का शोक' भी कहा जाता था। परंतु, स्वाधीनता के बाद इस पर कई जगह बाँध बनाकर एक बहुउद्देशीय योजना चालू की गई ।
- इसे 'दामोदर घाटी परियोजना' कहते हैं। 'बराकर' इसकी एक सहायक नदी है।
- अति प्राचीन चट्टानों में स्थित खनिजों और कोयले का अपार भंडार इस नदी की घाटी में पाया जाता है। यह हुगली में मिलती है।
- हिमालय की दो धाराएँ 'काली गंडक' और त्रिशूलगंगा नेपाल में स्थित धौलागिरि और एवरेस्ट पहाड़ियों से निकलकर आपस में मिल जाती है।
- नेपाल के बीच से बहकर बिहार के चंपारण जिले में भारत के मैदानी भाग में प्रवेश करती है। पटना के पास गंडक गंगा में मिल जाती है ।
- यह एक पूर्ववर्ती नदी है। इसका उद्गम एवरेस्ट चोटी के उत्तर में है। यहाँ इसकी मुख्य धारा अरुण निकलती है जो नेपाल के मध्य से प्रवाहित होती है।
- पश्चिम से एक नदी सोन और पूर्व से एक नदी तमुर इससे मिल जाती है। अरुण से मिलने के बाद इसे सप्तकोसी भी कहते हैं।
- वस्तुतः छोटी-बड़ी सात नदियों का जल इसमें बहता है। नेपाल में वर्षा होने पर विस्तृत क्षेत्र का जल इसमें तीव्र गति से बहता है, जिससे उत्तरी बिहार में भयानक बाढ़ आ जाती है।
- इसीलिए इसे 'बिहार का शोक' कहते हैं। इस पर एक बहुत ऊँचा बाँध बनाया गया है।
- यह 'मापचाचुँगों' नामक हिमनद से निकलती है। तिला, सेती और बेरी नामक छोटी नदियाँ इसमें मिल जाती है।
- शीशापानी में यह एक गहरा महाखड्ड बनाती है। पहाड़ से निकलकर मैदानी भाग में आने पर एक नदी शारदा या काली गंगा इससे मिल जाती है।
- यह नदी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर देवरिया से होकर बहती है और छपरा में गंगा से मिल जाती है।
- यह नदी हिमालय के 'मिलाम' नामक हिमनद से निकलती है। यहाँ इसका स्थानीय नाम गौरी गंगा है।
- भारत और नेपाल की सीमा रेखा पर बहते समय इसका नाम 'चाइक' या काली गंगा है। आगे चलकर यह घाघरा से मिल जाती है।
- इसके बाद घाघरा नदी के सरयू नदी भी कहते हैं। प्राचीन अयोध्या नगर इसी नदी के किनारे बसा है, जो उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में है।
- यह नदी गैरसेन के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलती है। शिवालिक पार करने के बाद यह दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती है।
- उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद में यह मैदानी भाग में प्रवेश करती है और कन्नौज के पास गंगा में मिल जाती है।
- यह नदी दार्जिलिंग की पहाड़ियों से निकलकर पश्चिम बंगाल में गंगा से मिल जाती है। उत्तरी भाग से गंगा में मिलने वाली यह अंतिम नदी है।
- ब्रह्मपुत्र नदी कैलास पर्वतमाला में स्थित प्रसिद्ध मानसरोवर झील के निकट स्थित एक हिमनद से निकलती है जिसका नाम 'चेमायुगडुग' है।
- यह तिब्बत के शुष्क समतल मैदान में सीधे पूर्व दिशा में 1200 किलोमीटर तक धीमी गति से बहती है। इसका स्थानीय नाम सांग्यो या साङ्पो है। साङ्पों का शाब्दिक अर्थ 'शोधक' है। तिब्बत में इसकी दाहिनी ओर से एक और नदी मिल जाती है जिसका नाम रागोंसाङ्पो है।
- हिमालय के 'नामचा बरवा' के निकट समुद्रतल से 7,755 मीटर की ऊँचाई पर यह डिहंग नाम का एक महाखड्ड बनाती है जो 5,500 मीटर गहरा है। इसके बाद इस नदी का वेग बढ़ जाता है।
- गिरिपद में इसका स्थानीय नाम दिशंग ( या सिशंग) है। आगे चलकर यह अरुणाचल प्रदेश में सादिया के पश्चिम ग्वालपाड़ा के पास भारत में प्रवेश करती है। यहाँ इसकी दिशा बदल जाती है और यह दक्षिण-पश्चिम की ओर बहने लगती है।
- इसके बाद सिकांग और लोहित नाम की दो नदियाँ इसकी बायीं ओर से इसमें मिल जाती है। इसी के बाद यह ब्रह्मपुत्र नाम से पुकारी जाती है।
- असम क्षेत्र में यह 750 किलोमीटर की दूरी तय करती है। इसी बीच अनेक छोटी-छोटी नदियाँ इसमें मिल जाती है। बायीं ओर से मिलनेवाली कुछ प्रमुख नदियाँ बूढ़ी, दिहांग, धनसरी (धनश्री) और कालाग हैं तथा दाहिनी ओर से मिलने वाली कुछ प्रमुख नदियाँ कामेग, भरेली, मानस संकोश और सुबनसिरी है।
- सुबनसिरी ( या स्वर्णश्री) एक पूर्ववर्ती नदी है जो तिब्बत से निकलती है। इसके बाद धुबरी के पश्चिम में बांग्लादेश से प्रवेश करती है।
- इसके आगे इसमें तीस्ता नदी मिल जाती है। आगे चलकर इसमें गंगा की एक धारा मिलती है। अब इसका स्थानीय नाम पद्मा हो जाता है।
- यह बांग्लादेश में कई धाराओं में विभक्त होकर बंगाल की खाड़ी में अपना जल विसर्जित करती है और इसके तट पर विस्तृत डेल्टा बनाती है।
- भारी वर्षा के क्षेत्र से गुजरने और अपेक्षाकृत अधिक जल वाली नदियों के मिलने के कारण वर्षाकाल में इसकी बाढ़ एक भयानक प्राकृतिक आपदा है।
- मार्ग परिवर्तन और अपरदन इसकी प्रमुख विशेषता है और प्रमुख लक्षण भी है। कीचड़-बालू लेकर जब यह असम में बहती है तो इसमें कई शाखाएँ बन जाती हैं और इनके बीच असंख्य टापू बन गए हैं।
- पुनः ये शाखाएँ एक में मिल जाती हैं। इसे नदी का गुफित होना कहते हैं। इन्हीं नदी-द्वीपों में माजुली नाम का विश्व का सबसे बड़ा प्रमुख नदी - द्वीप है। तीस्ता पहले गंगा की सहायक नदी थी।
- परंतु, 1787 की बाढ़ में इसकी धारा पूरब की ओर मुड़ गई और यह ब्रह्मपुत्र में मिल गई।
- यह विश्व का प्राचीनतम नदी तंत्र है। इसका निर्माण कई भूगर्भीय परिवर्तनों से हुआ है। हिमालयी जल-प्रवाह तंत्र से यह करोड़ों वर्ष पुराना है।
- लगभग 5 करोड़ वर्ष पूर्व टर्शियरी कल्प में इसका पश्चिमी भाग नीचे धँसकर समुद्रतल के नीचे चला गया और इसके मूल जल संग्रहण क्षेत्र और प्रवाह तंत्र में विसंगति उत्पन्न हो गई।
- भारतीय प्लेट के लगातार उत्तर की ओर खिसकने और यूरेशियन प्लेट के दबाव के कारण हिमालय की ऊँचाई ज्यों-ज्यों बढ़ने लगी, प्रायद्व प का उत्तरी मध्य भाग जहाँ-तहाँ टूट गया और इसमें भ्रंश-द्रोणियों का निर्माण हुआ। कई दरारें भी बन गई।
- नर्मदा और ताप्ती नदियाँ इन्हीं भ्रंश-द्रोणियाँ में बहती है और अपरदन द्वारा दरारों को भरती रहती है। इन नदियों में जलोढ़ और डेल्टा प्रायः नहीं है।
- इसी काल में एक और घटना घटित हुई। दक्षिणी प्रायद्वीप का उत्तरी-पश्चिमी भाग ऊपर की ओर उठ गया। दक्षिणी पूर्वी भाग कुछ नीचे की ओर झुक गया।
- फलस्वरूप, अधिकतर नदियाँ पूरब की ओर बहने लगी और बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करने लगी।
इनकी गहराई अधिक नहीं है। |
ये अपना मार्ग नहीं बदलती है। |
ये वर्षाजल पर ही निर्भर करती है। प्रायद्वीपीय पठार की कोई भी नदी ग्लेशियर से नहीं निकलती है। वस्तुत: दक्षिण में कोई ग्लेशियर नहीं |
अतः, ग्रीष्मकाल में इनका जल बहुत कम हो जाता है और नदियाँ प्राय: सूख जाती है। |
नर्मदा और ताप्ती इसका अपवाद है, क्योंकि इनमें बहुत जल रहता है और ग्रीष्मकाल में भी सूखती नहीं है।
कावेरी नदी में भी वर्षभर जल रहता है, क्योंकि ग्रीष्मकालीन मानसून और शीतकालीन मानसून दोनों से सुदूर दक्षिण भारत में वर्षा होती है।
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पश्चिमी घाट के पश्चिम की सभी नदियाँ अरब सागर में और पूरब की सभी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में अपना जल विसर्जित करती है।
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प्रायद्वीपीय पठार में दक्षिण की प्रायः सभी बड़ी नदियाँ पूरब की ओर, मध्यभाग की नर्मदा एवं ताप्ती पश्चिम की ओर तथा उत्तरी सिरे की नदियाँ उत्तर दिशा में बहती है।
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उत्तर की नदियों का जल गंगा प्रणाली में मिलता है।
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भारत के मुख्य जल प्रपात
- तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी जिले में पाझयार नदी पर स्थित यह जल प्रपात पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण केन्द्र है।
- इस घेरे हुए क्षेत्र को एक वन्य जीव अभ्यारण्य बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
- कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित यह देश का एक अधिक ऊंचाई वाला जलप्रपात है। यह कर्नाटक में एक जल-बिजली सयंत्र का मूल स्रोत है।
- दूधसागर ( दूध का सागर) एक पंक्तिबद्ध जलप्रपात है जो गोवा राज्य में माण्डवी नदी के ऊपरी खण्ड में स्थित है।
- यह राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केन्द्र है।
- इस जल प्रपात को रैट-टेल' भी कहते हैं तथा यह तमिलनाडु के निकट स्थित है।
- 297 मीटर ऊंचा यह प्रपात तमिलनाडु राज्य में सबसे ऊंचा जल प्रपात है। यह जल प्रपात सड़क से नहीं जुड़ा हुआ है।
जलप्रपात | स्थिति | ऊंचाई (मी.) |
जोग या गरसोप्पा (महात्मा गांधी जलप्रपात ) | शरावती नदी | 255 |
शिवसमुद्रम् जलप्रपात (कर्नाटक) | कावेरी नदी | 90 |
गोकक जलप्रपात (कर्नाटक) | कृष्णा की सहायक गोकक नदी | 55 |
पायकारा जलप्रपात (तमिलनाडू) | नीलगिरी क्षेत्र | - |
चूलिया जलप्रपात | चम्बल नदी | 18 |
पुनासा (मध्य प्रदेश) | चम्बल नदी | 12 |
मंधार जलप्रपात (मध्य प्रदेश) | चम्बल नदी | 12 |
धुंआधार जलप्रपात (मध्य प्रदेश) | नर्मदा नदी | 50 |
हुंडरू जलप्रपात (झारखंड) | स्वर्ण रेखा नदी | 98 |
चित्रकूट जलप्रपात ( भारत का नियाग्रा, छत्तीसगढ़)
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इन्द्रावती |
अगाया गंगई जल प्रपात
- यह कोल्ली पहाड़ियों (पूर्वीघाट, तमिलनाडु) में स्थित है। यह एक मनोरम एकान्त वातावरण प्रदान करता है तथा तमिलनाडु पर्यटन में एक आकर्षण केन्द्र है।
- यह पश्चिमी घाट में तमिलनाडु के विरुवुनगर जिले में स्थित है। यह मुख्यतः शीत मानसून वर्षा से जल प्राप्त करता है ।
- राजापालायम के लोगों द्वारा इस जल प्रपात का पानी पीने के उपयोग में लाया जाता है। यह निकटवर्ती जिलों के लोगों के लिए एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है।
- केरल के थ्रिसूर जिले में स्थित यह भारत का एक प्रसिद्ध जलप्रपात है। यह राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के लिए एक आकर्षण केन्द्र है।
- कर्नाटक के शिमोगा जिले के शरावती नदी पर स्थित यह भारत में सबसे ऊंचा गैर-पंक्तिबद्ध जल प्रपात है।
- यह कर्नाटक के पर्यटन में एक प्रमुख आकर्षण है। इस जलप्रपात को अनेक वैकल्पिक नामों से जाना जाता है, जैसे-गरसोप्पा जलप्रपात तथा जोगाड़ा गुंडी |
- यह जलप्रपात पूर्वी घाट (तमिलनाडु) के सर्वारायन पहाड़ियों में स्थित है। लगभग 100 मीटर की ऊँचाई वाला यह प्रपात तमिलनाडु पर्यटन में एक प्रमुख आकर्षण है।
- तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में स्थित यह जलप्रपात देशी एवं विदेशी पर्यटकों में काफी प्रसिद्ध है।
- बुद्ध जलप्रपात रांची (झारखण्ड) से 40 किमी. दूर बुद्ध नदी पर स्थित है।
- इस प्रपात का नाम गौतम बुद्ध के नाम पर रखा गया है, यहां एक बौद्ध धर्म का मंदिर भी है।
- शिवसमुद्रम प्रपात को पहले कावेरी प्रपात के नाम से जाना जाता है तथा यह भारत में दूसरा सबसे ऊँचा प्रपात है।
- यह मैसूर से 80 किमी. तथा बंगलौर से 120 कि०मी० की दूरी पर स्थित है। यह कर्नाटक पर्यटन में एक प्रमुख आकर्षण है।
- यह पश्चिमी घाट में कोयम्बटूर शहर के जलापूर्ति का एक मुख्य स्रोत है।
- यहाँ बाँध तथा प्रपात का दृश्यपटल सौन्दर्य से भरा हुआ है।
- ओडिश राज्य में कोरापुट जिले से 92 किमी. दूर यह मच्छकुण्ड नवी पर स्थित है। इस जलप्रपात पर एक बड़े जल, बिजली संयंत्र का निर्माण किया गया है।
- यह कर्नाटक के बेलगांव जिले में घाटप्रभा नदी के ऊपरी खण्ड में स्थित है।
- यह जलप्रपात निकटवर्ती शहर गोकेक से लगभग 6 किमी दूर है। यह नियाग्रा प्रपात के सदृश है।
जलप्रपात | स्थिति | ऊंचाई (मी. ) |
जोग या गरसोप्पा (महात्मा गांधी जलप्रपात ) | शरावती नदी | 255 |
येना जलप्रपात | महाबलेश्वर के समीप नर्मदा नदी | 183 |
शिवसमुद्रम् जलप्रपात | कावेरी नदी | 90 |
गोकक जलप्रपात | कृष्णा की सहायक गोकक नदी | 55 |
पायकारा जलप्रपात | नीलगिरी क्षेत्र | - |
चूलिया जलप्रपात | चम्बल नदी | 18 |
पुनासा | चम्बल नदी | 12 |
मंधार जलप्रपात | चम्बल नदी | 12 |
बिहार जलप्रपात | टोंस नदी | 100 |
धुंआधार जलप्रपात | नर्मदा नदी | 50 |
हुंडरू जलप्रपात | स्वर्ण रेखा नदी | 98 |
झीलें
- पृथ्वी की सतह के गर्त वाले भागों में जहाँ जल जमा हो जाता है, उसे झील कहते हैं।
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- भारत में भी बहुत-सी झीलें हैं। ये एक दूसरे से आकार तथा अन्य लक्षणों में भिन्न हैं।
- अधिकतर झीलें स्थायी होती हैं तथा कुछ में केवल वर्षा ऋतु में ही पानी होता है, जैसे- अंतर्देशीय अपवाह वाले अर्धशुष्क क्षेत्रों की द्रोणी वाली झीलें ।
- यहाँ कुछ ऐसी झीलें हैं, जिनका निर्माण हिमानियों एवं बर्फ चादर की क्रिया के फलस्वरूप हुआ है। जबकि कुछ अन्य झीलों का निर्माण वायु, नदियों एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण हुआ है।
- एक विसर्प नदी बाढ़ वाले क्षेत्रों में कटकर गौखुर झील का निर्माण करती है। स्पिट तथा बार (रोधिका) तटीय क्षेत्रों में लैगून का निर्माण करते हैं, जैसे- चिल्का झील, पुलीकट झील तथा कोलेरू झील |
- अंतर्देशीय भागों वाली झीलें कभी-कभी मौसमी होती हैं, उदाहरण के लिए राजस्थान की सांभर झील, जो एक लवण जल वाली झील है। इसके जल का उपयोग नमक के निर्माण के लिए किया जाता है।
- मीठे पानी की अधिकांश झीलें हिमालय क्षेत्र में हैं। ये मुख्यतः हिमानी द्वारा बनी हैं। दूसरे शब्दों में, ये तब बनीं जब हिमानियों ने या कोई द्रोणी गहरी बनायी, जो बाद में हिम पिघलने से भर गयी, या किसी क्षेत्र में शिलाओं अथवा मिट्टी से हिमानी मार्ग बँध गये।
- जम्मू तथा कश्मीर की वूलर झील भूगर्भीय क्रियाओं से बनी है। यह भारत की सबसे बड़ी मीठे पानी वाली प्राकृतिक झील है। डल झील, भीमताल, नैनीताल, लोकताक तथा बड़ापानी कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण मीठे पानी की झीलें हैं ।
- इसके अतिरिक्त, जलविद्युत उत्पादन के लिए नदियों पर बाँध बनाने से भी झील का निर्माण हो जाता है, जैसे- गुरु गोविंद सागर ( भाखड़ा नांगल परियोजना ) ।
- झीलें मानव के लिए अत्यधिक लाभदायक होती हैं। एक झील नदी के बहाव को सुचारु बनाने में सहायक होती है।
- अत्यधिक वर्षा के समय यह बाढ़ को रोकती है तथा सूखे के मौसम में यह पानी के बहाव को संतुलित करने में सहायता करती है।
- जल से भरे हुए एक प्राकृतिक गर्त को झील कहते हैं। बढ़ती आबादी तथा जल के अभाव में झील लोगों के लिए जल का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- झीलों को निम्नलिखित प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है।
- इन झीलों का निर्माण पृथ्वी के भूपटल में हुए दरार तथा भ्रंश के लैगून कारण होता है। कश्मीर तथा कुमाऊँ के पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाने वाली ज्यादातर झीलें इस प्रकार की होती है।
- त्सोमोरीरी एवं पाँगाँगसो (जद्दाख ) ऐसी झीलों के उदाहरण हैं।
- क्रेटर झीलों का निर्माण तब होता है जब ज्वालामुखीय विवर तथा ज्वालामुखी कुण्ड जल से भर जाते हैं।
- वे भारत में अल्प संख्या में पाए जाते हैं। बुलदाना (महाराष्ट्र) का लोनार झील क्रेटर झील का उदाहरण है।
- ये झीलें हिमानी अपरदन का परिणाम है। गिरिताल (टार्न) एक लघु पर्वतीय झील है, विशेषकर जो एक हिम गहर बेसिन में जमा होता है तथा जो ऊंचे चट्टानों के पीछे स्थित होता है।
- भारत ज्यादातर हिमानी झीलें लघु आकार की होती है। गंगाजल झील जो कश्मीर के वृहत हिमालय में स्थित है इसका एक उदाहरण है।
- हिमानी झीलें लद्दाख (जम्मू और कश्मीर), हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में पाई जाती हैं।
- नदियाँ अपने अपरदन तथा निक्षेपण की क्रिया के कारण विभिन्न प्रकार के झीलों का निर्माण करती है। सामान्य रूप से नदियाँ झीलों की विध्वंसक है।
- वास्तव में झीलों का अभिलोपन प्रायः अवसादों के भरने से तथा नदियों के अभिशीर्ष अपरदन के कारण होता है। नदीय झीलें सामान्यतः अस्थायी होती है तथा शीघ्र ही अभिलोपित हो जाती है।
- नदीय झीलों में प्रपात कुण्ड झीलें (प्रपात के सामने), गोखुर झीलें, जलोढ़ पंख झीलें, डेल्टा झीलें, बाढ़ मैदानी झीलें तथा राफ्ट (तरापा) अवरुद्ध झीलें (Raft dammed lakes) शामिल है।
- ये सभी झीलें गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के ऊपरी, मध्य तथा निचले मार्ग में देखी जा सकती है।
- हल्के ढाल वाले मैदानों में नदियों के विसर्पण के कारण बने हुए झील जलोढ़ झीलें कहलाती है।
- ये छोटे अस्थायी अवतल अथवा गर्त होते हैं, जो उस स्थान पर स्थित होते हैं, जहाँ पवन रेतीली सतह पर बहती है। पश्चिमी राजस्थान में इस प्रकार की अनेक झीलें हैं।
- मरुस्थली झीलों में सामान्यतः लवण की मात्रा अधिक होती है तथा अक्सर उन्हें लवणीय झील कहा जाता है। पश्चिमी राजस्थान के धाण्ड इसके उदाहरण हैं।
- इन झीलों का निर्माण सतह में एक गर्त के कारण होता है, जो चूना पत्थर तथा जिप्सम जैसे विलयशील शैल के भूमिगत विलयन के कारण बनता है।
- ऐसी झीलें चेरापूंजी में तथा उसके आस-पास, शिलांग (मेघालय), भीमताल, कुमाऊँ तथा गढ़वाल (उत्तराखण्ड) में पायी जाती है।
- इनका निर्माण समुद्र तट के किनारे बालू- भित्ति के निक्षेपण के कारण होता है।
- ओडिशा की चिल्का झील, पुलीकट (आंध्र प्रदेश), वेम्बनाद तथा अष्टमुदी - केरल, कयाल लैगून के कुछ उदाहरण हैं।
- इन झीलों का निर्माण भू-स्खलन तथा शैलपात के कारण होता है, जो नदी के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करते हैं।
- गढ़वाल की गोहना झील का निर्माण गंगा की एक सहायक नदी पर एक बड़े भू-स्खलन के कारण हुआ है।
प्रमुख झीलें
- भोपाल (मध्य प्रदेश) में स्थित, इसमें दो झीलें हैं-ऊपरी झील तथा निचली झील |
- राजधानी नगर के समीप में स्थित यह भारत में एक प्रदूषित झील है।
- यह हिमाचल प्रदेश के लाहौल तथा स्पीति जिले में एक अधिक ऊँचाई वाली झील है।
- यह समुद्री सतह से लगभग 4300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
- लाहूल तथा स्पीति को जोड़ने वाला कुंजम दर्रा इस झील से लगभग 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
- उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल में भीमताल शहर के निकट स्थित यह एक रमणीय झील है, जिसके केन्द्र में एक द्वीप है।
- वर्तमान में यह शहर अनेक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करता है।
- यह केरल के कोल्लम जिले में एक लैगून है । अष्टमुडी का अर्थ “आठ शाखाएँ” हैं। वास्तव में इस झील की अनेक शाखाएँ हैं।
- रामसर समझौते के तहत यह अंतर्राष्ट्रीय महत्व की एक आर्द्रभूमि के रूप में दर्ज है।
- यह तमिलनाडु के चेंगपट्टू जिले में चेन्नई से 40 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। इस झील से ही अड्यार नदी का उद्गम होता है। चेन्नई महानगर की जलापूर्ति इस झील से होती है।
- डल झील श्रीनगर की एक प्रसिद्ध झील है। 18 वर्ग कि.मी. के क्षेत्रफल में फैली हुयी यह झील सेतुकों (Canseways) द्वारा चार बेसिनों में विभाजित है–गगरीबल, लोकुत डल, बोद डल तथा नागिन। यह लगभग 500 शिकारे (House) के लिए प्रसिद्ध है।
- शिकारे के अलावा, यह झील नौकायन (Canoeing), 'वाटर-सर्फिंग' तथा 'किथाकिंग' की सुविधा भी पर्यटकों को प्रदान करता है।
- अत्यधिक प्रदूषित होने के कारण यह झील घटती जा रही है। इस झील में विविध वनस्पति, जैसे-कमल के फूल, कुमुद तथा पानीफल (सिंघाड़ा) पाए जाते हैं।
- ओडिश राज्य में स्थित यह एक खारे पानी की तटीय झील है। भारत में यह सबसे बड़ी तटीय झील है। यह झील महानदी द्वारा गाद - भरने की क्रिया से निर्मित हुई है।
- इस झील का क्षेत्र परिवर्तनशील है, यह मानसून के समय में 1175 वर्ग कि.मी. होता है तथा शुष्क मौसम में 900 वर्ग कि.मी. होता है।
- यह हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में स्थित है, यह डलहौजी से मात्र 24 कि.मी. दूर है।
- देवदार वृक्षों से घिरे होने के कारण यह पर्यटकों के लिए एक रमणीय दृश्य प्रदर्शित करती है।
- यह पश्चिमी सिक्किम में स्थित है। यह हिन्दुओं तथा बौद्ध धर्मियों द्वारा एक पवित्र झील मानी जाती है।
- यह झील बाँस के घने वनों से घिरी है। इस झील को देखने अनेक तीर्थयात्री तथा पर्यटक आते हैं।
- राजस्थान राज्य में उदयपुर लगभग 45 कि.मी. पूर्व में स्थित यह झील भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह 87 वर्ग कि. मी. के क्षेत्र में फैली हुई है।
- यह 17वीं सदी में उदयपुर के राणा जय सिंह द्वारा बनायी गयी, जब उन्होंने गोमती नदी पर एक संगमरमर का बाँध बनवाया था। इस झील में तीन द्वीप हैं, जैसमंद सैरगाह (Resort) इनमें से सबसे बड़े द्वीप पर स्थित है।
- यह हैदराबाद शहर से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस झील का नाम निजाम (VII) के सबसे छोटे बेटे हिमायत अली खान के नाम पर रखा गया है।
- यह एक कृत्रिम झील है, जो मूसी नदी पर 1927 में निर्मित की गई है।
- यह हैदराबाद शहर में स्थित है। यह हुसैन शाह वली द्वारा 1562 में मूसी नदी के एक सहायक नदी पर बनाया गया। यह हैदराबाद शहर को जलापूर्ति करती है।
- यह एक तटीय झील है, जो तमिलनाडु के विलुप्पुरम जिले में स्थित है।
- यह पुदुचेरी से लगभग 10 कि.मी. उत्तर की ओर स्थित है। यह झील प्रायद्वीपीय भारत के बड़े आर्द्र भूमि में से एक है।
- यह कृषीय भूमि द्वारा अधिकृत किया जा रहा है। इस झील का क्षेत्रफल घटता जा रहा है।
- आंध्र प्रदेश में स्थित यह झील भारत में मीठे पानी की ( अलवण गीय) सबसे बड़ी झील है। यह कृष्णा तथा गोदावरी जिले में कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के डेल्टाओं के बीच स्थित है।
- यह झील इन दोनों नदियों के लिए एक प्राकृतिक बाढ़ संतुलन जलाशय का काम करती है। यह झील लगभग 20 मिलियन आवासीय तथा प्रवासी पक्षियों का प्राकृतिक वास है।
- प्रतिवर्ष अक्टूबर-मार्च के मध्य यहाँ साइबेरिया तथा पूर्वी यूरोप से आए पक्षियों का वास होता है।
- इस झील को भारतीय वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत 1999 में एक वन्य जीव विहार (Sanctuary) शरण - क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया।
- बढ़ते प्रदूषण के कारण इसकी जैव-विविधता का ह्रास हुआ है।
- यह उत्तर-पूर्वी भारत में मीठे (अलवणीय) पानी की सबसे बड़ी झील है।
- यह झील विश्व में 'तैरती द्वीपीय झील' के रूप में प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें तैरते हुए फुम्डीज (तैरते हुए घास ) होते हैं।
- 1990 में रामसर समझौते के तहत यह अंतर्राष्ट्रीय महत्व की एक आर्द्र भूमि मानी गयी।
- यह झील जल- बिजली संयंत्र, सिंचाई तथा पीने के पानी के लिए एक जल स्रोत है।
- यह झील ग्रामीण मछुआरों के लिए भी जीविका का साधन है, जो फुम्डीज (तैरते हुए घास) तथा निकट क्षेत्रों में रहते हैं।
- फुम्डीज वास्तव में वनस्पति, मृदा तथा जैव-पदार्थों के विजातीय ढेर हैं।
- हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित यह एक अधिक ऊँचाई वाली झील है।
- यह झील भिसा (Willow) तथा पहाड़ी पीपल (Popal) वृक्षों से घिरी हुयी है। इस झील के निकट बौद्ध धर्म के चार मंदिर हैं। यह एक पवित्र झील मानी जाती है।
- लद्दाख में स्थित यह झील लेह शहर से लगभग पाँच घंटे की दूरी पर है। यह मार्ग विश्व के तीसरे सबसे बड़े दर्रे ( चांगला दर्रा ) से होकर गुजरता है।
- झील को देखने के लिए एक विशेष अनुमति पत्र की जरूरत होती है। सुरक्षा कारणों से यहाँ नौका-विहार की इजाजत नहीं दी जाती है।
- यह हैदराबाद में एक कृत्रिम झील है। हैदराबाद के अंतिम निजाम (ओसमान अली खान) के द्वारा 1920 में मूसी नदी पर बाँध बनाकर इस झील को निर्मित किया गया तथा यह हैदराबाद शहर के लिए पीने के पानी का स्रोत है।
- 'सागर महल' नाम का एक गेस्ट हाउस जो इस झील का ऊपरी नजारा दिखाता है पूर्व में निज़ाम का ग्रीष्मकालीन सैरगाह था तथा अब यह ऐतिहासिक धरोहर है।
- यह कोरोमण्डल तट पर दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। यह आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु की सीमा पर स्थित है।
- श्रीहरिकोटा का परिध द्वीप इस झील को बंगाल की खाड़ी से अलग करता है।
- लगभग 15,000 हंसावर इस झील में प्रतिवर्ष आते हैं। यहाँ जलसिंह, कौडिल्ला, बगुला, चिंगारा, स्पूनबिल तथा बत्तख भी पाए जाते हैं।
- अजमेर जिले में स्थित यह एक कृत्रिम झील है। इस झील का निर्माण 12वीं सदी में हुआ जब लूनी नदी के नदी शीर्ष पर एक बाँध बनाया गया।
- हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित इस झील का नाम देवी रेणुका के नाम पर है।
- इस जगह एक चिड़ियाघर तथा “लायन सफारी" ( कारवाँ) भी है। नवम्बर के महीने में यहाँ वार्षिक मेला लगता है।
- बारालाचा दरें के शिखर के नीचे स्थित यह एक अधिक ऊँचाई वाली झील है। यह समुद्री सतह से लगभग 4980 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
- यह जयपुर शहर से लगभग 70 कि.मी. दूर पश्चिम की ओर स्थित है तथा भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
- पूर्वी किनारे की ओर यह झील 5 कि.मी. लम्बे बाँध से विभाजित है जो पत्थरों से बनी हुयी है।
- बाँध के पूर्व में लवण वाष्पन कुण्ड है, जहाँ लगभग एक हजार वर्ष पहले से ही नमक का उत्पादन होता आया है।
- इस झील में जल की गहराई शुष्क मौसम में कुछ से.मी. से लेकर मानसून में 3 मीटर तक रहती है।
- सांभर झील को रामसर सूची में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में शामिल किया गया है।
- हजारों साइबेरियाई पक्षी सर्दी के मौसम में इस झील में आते हैं।
- यह केरल राज्य में मीठे पानी की एक बड़ी झील हैं। यह झील कोल्लम जिले में सास्थमकोट्टा में स्थित है तथा यह कोल्लम शहर से लगभग 30 कि.मी. दूर है।
- यह पर्यटकों के लिए एक बड़े आकर्षण का केन्द्र है।
- सोपोर तथा बाँदीपुर के मध्य कश्मीर घाटी में स्थित यह भारत में सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है।
- इस झील का निर्माण अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) काल के दौरान विवर्तनिक क्रियाओं के कारण हुआ।
- मौसम के अनुसार इस झील का आकार बढ़ता-घटता है।
- यह झील झेलम नदी से जलग्रहण करती तथा एक प्राकृतिक जलाशय के रूप में काम करती है।
- तुलबुल परियोजना - एक 'नौसंचालन' बाँध तथा नियंत्रण संरचना, वूलर झील के मुहाने (मुख) पर है।
- यह तमिलनाडु के कुडुलौर जिले में स्थित है। यह चेन्नई से लगभग 235 किमी. दूर है।
- यह उन जलाशयों में से एक है, जिससे चेन्नई शहर की जलापूर्ति की जाती है।
- लगभग 200 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैली हुई यह झील केरल की सबसे बड़ी झील है।
- यह झील समुद्री सतह पर है तथा अरब सागर से एक संकीर्ण परिध द्वीप द्वारा अलग की गयी है।
- अनेक नदियाँ इस झील में प्रवाहित होती है, जैसे- पम्बा तथा पेरियार । यह झील पल्लीपुरम तथा पेरूम्बलम जैसे द्वीपों को घेरे हुए हैं।
- कोच्चि स्थित यह झील वेंबनाद झील का उत्तरी विस्तार है। यह देश के विभिन्न भागों तथा विदेश से अनेक पर्यटकों को आकर्षित करती है।
- कोट्टायम से लगभग 16 किमी. दूर यह नदियों तथा नहरों का एक विस्तृत जालक्रम (नेटवर्क) है।
- एक मनोहर पिकनिक स्थल तथा तेजी से विकसित होता यह स्थान पश्च जल पर्यटन, नौकाविहार और मत्स्ययन के लिए प्रसिद्ध है।
- कुमाराकोम पक्षी अभ्यारण्य वेम्बानट्टु झील के तट पर स्थित है।
- यह उत्तराखण्ड के कुमाऊं प्रखण्ड में भीमताल शहर के नजदीक सात शाँत झीलों का समूह है। ये झीलें औसत समुद्री सतह से लगभग 1370 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। ये झीलें प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग है।
- सिक्किम राज्य में गंगटोक से लगभग 40 किमी दूर यह एक हिमानी टार्न ( गिरिताल) झील है। यह झील अण्डे के आकार (अण्डाकार) की है।
- लगभग 3780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह झील सर्दी के मौसम में जम जाती है। यह बौद्धों तथा हिंदुओं के लिए एक पवित्र झील है।
इस नदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के रायपुर में सिंहावा के निकट है। यह छत्तीसगढ़ में बहने के बाद ओडिशा में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इसकी लंबाई 851 किलोमीटर है और इसका जलसंग्रहण क्षेत्र 1.40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है जिसका 53 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में और शेष भाग ओडिशा में पड़ता है।
इस नदी पर हीराकुंड बाँध बना है। इसके मुहाने पर चिल्का नामक प्रसिद्ध और विशाल झील है।
यह दक्षिण की सबसे बड़ी नदी है। इसे 'दक्षिणी गंगा' भी कहा जाता है। इसका उद्गम महाराष्ट्र के नासिक में है।
इसकी लंबाई 1,465 किलोमीटर तथा जलसंग्रहण क्षेत्र 3.13 लाख वर्ग किलोमीटर है जिसका आधा भाग महाराष्ट्र में, चौथाई से कुछ कम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तथा शेष आंध्र प्रदेश में पड़ता हैं।
इन राज्यों की कई छोटी-छोटी नदियाँ भी इसमें मिलती है जिनमें पेनगंगा, वैनगंगा, इंद्रावती, वर्धा, प्राणहिता और मंजरा, प्रमुख हैं।
राजमुंद्री के बाद यह कई शाखाओं में विभक्त होकर बहती है और विस्तृत डेल्टा बनाती है। अंततः यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
गोदावरी के बाद यह दूसरी सबसे लंबी नदी है। इसकी लंबाई 1,400 किलोमीटर है। इसके जलसंग्रहण क्षेत्र का आधे से कुछ कम कर्नाटक में और लगभग चौथाई भाग महाराष्ट्र में और शेष भाग आंध्र प्रदेश में पड़ता है।
मूसी, कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी सहायक नदियाँ है।
यह नदी कर्नाटक के कोडागु में ब्रह्मगिरि पहाड़ियों से निकलती हैं। यह स्थान समुद्रतल से 1341 मीटर ऊँचा है।
इसकी लंबाई 800 किलोमीटर तथा जलसंग्रहण क्षेत्र 81,155 हजार वर्ग किलोमीटर है।
ग्रीष्मकाल में दक्षिण-पश्चिम मानसून एवं शीतऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून की वर्षा होने के कारण इसमें वर्ष भर पानी रहता है।
कई इसके जलसंग्रहण क्षेत्र का 56 प्रतिशत तमिलनाडु, 41% कर्नाटक और शेष केरल में पड़ता है। इसकी सहायक नदियों में कबिनी, भवानी और अमरावती प्रमुख है।
इस नदी में उतार-चढ़ाव बहुत कम है। इसी नदी पर कृष्णा राजसागर बाँध बना है।
यह नदी अमरकंटक के पश्चिमी भाग में 1,057 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। इसकी लंबाई 1312 किलोमीटर है।
यह विंध्याचल और सतपुड़ा के मध्य भ्रंश-घाटी में बहती है। इसके मार्ग में भी कई महाखड्ड हैं।
जबलपुर के पास 'धुआँधार' नाम का प्रसिद्ध झरना भी इसी नदी पर है। यह अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए प्रसिद्ध है। इसके तट पर संगमरमर की चट्टानें हैं।
संगमरमर की मूर्तियों और कलाकृतियों के लिए इसका तट महत्त्वपूर्ण fहै। सरदार सरोवर परियोजना इसी नदी पर निर्मित है।
भड़ौच में अरब सागर में इसके मुहाने पर 27 किलोमीटर लंबा एक ज्वारनदमुख है।
यह नदी मध्य प्रदेश के सतपुड़ा श्रेणी में स्थित बैतूल से निकलती है। इसकी लंबाई किलोमीटर तथा जलसंग्रहण क्षेत्र 65,145 वर्ग किलोमीटर है जिसका 79% महाराष्ट्र 15% मध्य प्रदेश और शेष गुजरात में है।
पुष्कर के समीप सरस्वती और सागरमती नाम की दो नदियाँ निकलती हैं जो गोबिंदगढ़ के पास एक-दूसरे से मिल जाती हैं और अरावली की पहाड़ियों में बहती है।
इसके बाद इस नदी को लूनी कहते हैं। तलवाड़ा में यह पश्चिम की ओर बहती है।
इसके बाद दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान की यह सबसे बड़ी नदी है। यह कच्छ के रन में स्थित साँभर झील में गिरती है।
गर्मी में साँभर झील प्राय: सूख जाती है और इसमें बहुत नमक जमा होता रहता है जिसे सूखने पर निकाला जाता है।
यह नदी रांची के पश्चिम से निकलती है। झारखंड में बहने के बाद पश्चिम बंगाल और ओडिशा की सीमा रेखा के साथ बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इसका जलग्रहण क्षेत्र 19296 वर्ग किलोमीटर में फैला है। एच.ई. सी. जमशेदपुर के दो बड़े उद्योग इसके तट पर हैं।
बंगाल की खाड़ी में इसकी धारा गंगा की धारा को लंबवत काटती है जिससे उसका वेग प्रभावित होता है।
गति रुकने के कारण उसकी गाद जमा होती रहती है जिससे एक टापू जैसा क्षेत्र बन गया है। इसे गंगासागर कहते हैं।
समुद्र के बीच नदियों का यह संगम प्रयाग तीर्थ की तरह पवित्र माना जाता है। सुवर्णरेखा को 'छोटानागपुर की गंगा' भी कहते हैं।
हिमालयी नदी | प्रायद्वीपीय नदी |
हिमालयी नदियां भारत की नदियाँ युवा नूतन नदियाँ है केवल कुछ पूर्ववर्ती नदियो, जैसे सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि को छोड़कर। | प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ अधिक पुरानी हैं। इनमें से कुछ कैम्ब्रियन काल के पहले की है। |
इनमें से कई नदियाँ, जैसे-सिन्धु, प्र सतलज, काली, कोसी, ब्रम्हपुत्र, तीरता प्रत्यानुवर्ती नदियाँ हैं। | अधिकांश नदियाँ अनुवर्ती अथवा पुनयुक्ति नदियाँ है। |
इन नदियों का बेसिन सामान्यतः बड़ा होता है। | गोदावरी को छोड़कर इन नदियों का बेसिन तुलनात्मक रूप से छोटा होता है। |
इन नदियों का नदी तल ऊपरी धारा में महाखड्डों तथा क्षिप्रिकाओं का निर्माण करती है। | इन नदियों का नदीतल चौड़ा है। |
दोनों, ऊर्ध्वाधर तथा पार्श्विक अपरदन महत्त्वपूर्ण है। | ऊर्ध्वाधर अपरदन नगण्य है। |
ये नदियाँ दोनों, तीव्र तथा मंद गति से बहने वाली है। | ये नदियाँ धीमी गति से बहने वाली नदियाँ हैं। |
वे नदियाँ अधिक मात्रा में अवसादों का वहन करती हैं। | इन नदियों की वहन क्षमता निम्न है। |
ये नदियाँ सक्रिय रूप से अपरदन तथा निक्षेपण का कारक (एजेन्ट) है। | ये नदियाँ मुख्यत: निक्षेपण के कारक (एजेन्ट) नहीं हैं। |
मैदानी क्षेत्र में ये नदियाँ अनेक गोखुर झील (Ox bow lake) बनाती है। | ये नदियाँ छिछला विसर्पण बनाती है। |
अधिकांश नदियाँ मैदानों में नौगम्य होती है। | ये नदियाँ सामान्यतः नौगम्य नहीं है। |
ये नदियाँ चिरस्थायी है। | ये नदियाँ मौसमी होती है। |
अधिकांश नदियाँ हिमालय में हिमनदों से निकलती है। | अधिकांश नदियों का उद्गम पश्चिमी घाट तथा पठारी-क्षेत्र से होता है। |
अधिकांश नदियाँ परवर्ती तरूणावस्था में है। | अधिकांश नदियाँ जीर्ण नदियाँ हैं। |
इन नदियों पर अनेक बहुद्देशीय योजनाएँ हैं, उदाहरण के लिए भाखड़ा टिहरी, सलाल | | इन नदियों का उपयोग जल-बिजली संयंत्रों के लिए किया जाता है, उदाहरण के लिए हीराकुंड, कोयना तथा नागार्जुन सागर। |
ये नदियाँ सिर्फ डेल्टा का निर्माण करती है। सुन्दरबन् डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है। | ये नदियाँ डेल्टा (जैसे गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) तथा मुहाना (नर्मदा, तापी) का निर्माण करती है। |
वैतरणी | 12,789 वर्ग किलोमीटर |
ब्राह्मणी | 39,033 वर्ग किलोमीटर |
पेन्नार | 55,213 वर्ग किलोमीटर |
पलार | 17870 वर्ग किलोमीटर |
शेतरुनीजी | यह नदी अमरावती में डलकाहवा से निकलती है। |
भद्रावती | यह नदी राजकोट में अनियाली के पास से निकलती है। |
ढाढर | यह नदी पंचमहल के घंटार से निकलती है। |
साबरमती | यह नदी गुजरात की प्रमुख नदी है। |
माही | यह भी गुजरात की प्रमुख नदी है। |
वैतरणी | यह नदी नासिक की पहाड़ियों में 670 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। |
कालिंदी | यह नदी कर्नाटक के बेलगाँव से निकलकर कारवाड़ की खाड़ी में गिरती है। |
बेदति | यह नदी धानवाड़ से निकलती है। इसकी लंबाई 161 किलोमीटर है। |
शरावती | यह नदी कर्नाटक के शिमोगा से निकलती है। इस पर 271 मीटर ऊँचा जलप्रपात है, जिसका नाम गरसोप्पा या 'जोग' है। |
मांडवी | यह नदी गोवा में है। |
जुआरी | यह भी गोवा में है। |
भरतपूझा | यह केरल की सबसे लंबी नदी है। यह (पोंनानी) अनयमलय पहाड़ियों से निकलती है। इसका जलसंग्रहण क्षेत्र 5,397 वर्ग किलोमीटर है। |
पेरियार | यह केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसका जलसंग्रहण क्षेत्र 5,243 वर्ग किलोमीटर में फैला है। |
पांबा | यह केरल की एक छोटी नदी है, जो 177 किलोमीटर लंबी है। उत्तरी भाग में बहकर यह वेम्बानद झील में गिरती है। |
पोन्ना | यह नदी भी केरल में है। |
अमरावती जिले में डलकाहवा से निकलती है। भद्रा नदी राजकोट जिले के अनियाली गाँव के निकट से निकलती है। ढाढ़र नदी पंचमहल जिले के घंटार गाँव से निकलती है। साबरमती और माही गुजरात की दो प्रसिद्ध नदियाँ हैं।
गोवा में दो महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं, जिनका यहाँ उल्लेख किया जा सकता है। एक का नाम मांडवी है और दूसरी जुआरी है। केरल की तट रेखा छोटी है।
केरल की सब से बड़ी नदी भरतपूझा अन्नामलाई पहाड़ियों निकलती है। इसे पोंनानी के नाम से भी जाना जाता है। यह लगभग 5,397 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है।
पेरियार केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 5,243 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। भरतपूझा और पेरियार नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में बहुत कम अंतर है।
केरल की अन्य उल्लेखनीय नदी पांबा है, जो उत्तरी केरल में 177 किलोमीटर लंबा मार्ग तय करती हुई वेंबानाद झील में जा गिरती है।
शेतरुनीजी | यह नदी अमरावती में डलकाहवा से निकलती है। |
भद्रावती | यह नदी राजकोट में अनियाली के पास से निकलती है। |
ढाढर | यह नदी पंचमहल के घंटार से निकलती है। |
साबरमती | यह नदी गुजरात की प्रमुख नदी है। |
माही | यह भी गुजरात की प्रमुख नदी है। |
वैतरणी | यह नदी नासिक की पहाड़ियों में 670 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। |
कालिंदी | यह नदी कर्नाटक के बेलगाँव से निकलकर कारवाड़ की खाड़ी में गिरती है। |
बेदति | यह नदी धानवाड़ से निकलती है। इसकी लंबाई 161 किलोमीटर है। |
शरावती | यह नदी कर्नाटक के शिमोगा से निकलती है। इस पर 271 मीटर ऊँचा जलप्रपात है, जिसका नाम गरसोया या 'जोग' है। |
मांडवी | यह नदी गोवा में है। |
जुआरी | यह भी गोवा में है। |
भरतपूझा | यह केरल की सबसे लंबी नदी है। यह (पोंनानी ) अनयमलय पहाड़ियों से निकलती है। इसका जलसंग्रहण क्षेत्र 5,397 वर्ग किलोमीटर है। |
पेरियार | यह केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। इसका जलसंग्रहण क्षेत्र 5,243 वर्ग किलोमीटर में फैला है। |
पांबा | यह केरल की एक छोटी नदी है, 177 किलोमीटर लंबी है। उत्तरी भाग में बहकर यह वेम्बानद झील में गिरती है। |
पोन्ना | यह नदी भी केरल में है। |
स्वर्णरेखा, वैतरणी, ब्रह्मणी, वामसाधारा, पेंनर, पालार और वैगाई पूर्व की ओर बहने वाली महत्त्वपूर्ण नदियाँ हैं।
वैतरणी | 12,789 वर्ग किलोमीटर |
ब्राह्मणी | 39,033 वर्ग किलोमीटर |
पेन्नार | 55,213 वर्ग किलोमीटर |
पलार | 17,870 वर्ग किलोमीटर |
उत्तर भारत की हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बारहमासी हैं, क्योंकि ये अपना जल बर्फ पिघलने तथा वर्षा होने से प्राप्त करती हैं।
दक्षिण भारत नदियाँ हिमनदों से नहीं निकलती जिससे इनकी बहाव प्रवृत्ति में उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। इनका बहाव मानसून ऋतु में काफी ज्यादा बढ़ जाता है।
इस प्रकार दक्षिण भारत की नदियों के बहाव की प्रवृत्ति वर्षा द्वारा नियंत्रित होती है, जो प्रायद्वीपीय पठार के एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है।
जल विसर्जन नदी में समयानुसार जल प्रवाह के आयतन का माप है। इसे क्यूसेक्स (क्यूबिक फुट प्रति सैकेंड) या क्यूमैक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सैकेंड) में मापा जाता है।
गंगा नदी में न्यूनतम जल प्रवाह जनवरी से जून की अवधि के दौरान से होता है। अधिकतम प्रवाह अगस्त या सितंबर में प्राप्त होता है।
सितंबर के बाद प्रवाह में लगातार कमी होती चली जाती है। इस प्रकार इस नदी की वर्षा ऋतु में जल प्रवाह की प्रवृत्ति मानसूनी होती है।
गंगा द्रोणी के पूर्वी व पश्चिमी भागों की जल बहाव प्रवृत्ति में चौंकाने वाले अंतर नज़र आते हैं। बर्फ पिघलने के कारण गंगा नदी का प्रवाह मानसून आने से पहले भी काफी बड़ा होता है।
फरक्का में गंगा नदी का औसत अधिकतम जल प्रवाह लगभग 55,000 क्यूसेक्स है, जबकि न्यूनतम औसत केवल 1,300 क्यूसेक्स है।
प्रायद्वीप की दो नदियों की प्रवाह प्रवृत्ति हिमालय के नदियों की तुलना में रोचक अंतर प्रस्तुत करती हैं ।
नर्मदा नदी में जल विसर्जन का स्तर जनवरी से जुलाई माह तक बहुत कम रहता है, लेकिन अगस्त में इस नदी का जल प्रवाह अधिकतम हो जाता है, तो यह अचानक उफान पर आ जाती है।
अक्तूबर महीने में बहाव की गिरावट उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितना अगस्त में उफ़ान ।
नाम | उदगम | अंत | लंबाई (किमी.) | विशेषताएँ |
सिंधु | कैलास (तिब्बत) | अरब सागर | 2,900 भारत में 1,114 | तिब्बत में उत्तर-पश्चिम, पाकिस्तान, भारत में दक्षिण पश्चिम बाद में दक्षिण |
गंगा | गंगोत्री (हिमनद ) | बंगाल की खाड़ी | 2,525 | प्रारंभ में दक्षिण, फिर पूरब की ओर, बंगाल में दक्षिण |
ब्रह्मपुत्र | मानसरोवर (पं. तिब्बत) | बंगाल की खाड़ी | 2,900 भारत में 916 | हिमालय में दक्षिण -पश्चिम, फिर दक्षिण में गंगा और पद्मा से मिलकर बहती है। यह गंगा से लंबी नदी है, परन्तु भारत में इसका तिहाई भाग ही है। |
दक्षिण भारत की प्रमुख नदियाँ
नाम | उदगम | अंत | लंबाई (किमी.) | विशेषताएँ |
गोदावरी | पश्चिमी घाट नासिक | बंगाल की खाड़ी | 1465 | पूरब और दक्षिण पूर्व, भारत में दूसरा सबसे बड़ा बेसिन, भारत में कुल बेसिन का 10% |
कृष्णा | पश्चिमी घाट | बंगाल की खाड़ी | 1400 | पूरब की ओर, भारत का तीसरा सबसे बड़ा बेसिन |
कावेरी | पश्चिमी घाट कर्नाटक ब्रह्मगिरी | बंगाल की खाड़ी | 800 | पूरब की ओर |
महानदी | दक्षिणी पठार का पश्चिमोत्तर | बंगाल की खाड़ी | 851 | पूरब की ओर इसका बेसिन चौथे नंबर पर आता है। |
दामोदर | रांची | बंगाल की खाड़ी | 541 | झारखंड में की पूरब ओर, इसकी घाटी में खनिज और कोयले का अपार भंडार है। |
सुवर्णरेखा | अमरकंटक | बंगाल की खाड़ी | 395 | यह छोटानागपुर की गंगा कहलाती है। |
सोन | अमरकंटक | गंगा में | 780 | |
नर्मदा | सतपुड़ा (बेतुल) | अरब सागर | 1312 | पश्चिम की ओर, इसका बेसिन बहुत बड़ा है। संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध है। |
ताप्ती | पश्चिमी घाट | अरब सागर | 724 | पश्चिम की ओर |
शरावती, नेमावती, पेरियार, पांबा, पोन्नर, भद्रावती, साबरमती, माही, जुआरी | अरब सागर | ये सभी छोटी नदियां हैं जो पश्चिमी घाट से निकलकर अरब सागर में गिरती है। |
नदी जल उपयोग की सीमा
भारत की नदियाँ प्रतिवर्ष जल की विशाल मात्रा का वहन करती हैं, लेकिन समय व स्थान की दृष्टि से इसका वितरण समान नहीं है। बारहमासी नदियाँ वर्ष भर जल का वहन करती हैं, परंतु अनित्यवाही नदियों में शुष्क ऋतु में बहुत कम जल होता है। वर्षा ऋतु में, अधिकांश जल बाढ़ में व्यर्थ हो जाता है और समुद्र में बह जाता है। इसी प्रकार, जब देश के एक भाग में बाढ़ होती है तो दूसरा सूखाग्रस्त होता है।
पृथ्वी के धरातल का लगभग 71% भाग जल से ढका है, लेकिन इसका 97% जल लवणीय है। केवल 3% ही स्वच्छ जल के रूप में उपलब्ध है, जिसका तीन-चौथाई भाग हिमानी के रूप में है। |
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