BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
भू-पर्पटी (पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है। इन खनिजों का उपयुक्त शोधन करके ही ये धातुएँ निकाली जाती हैं।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
- भू-पर्पटी (पृथ्वी की ऊपरी परत) विभिन्न खनिजों के योग से बनी चट्टानों से निर्मित है। इन खनिजों का उपयुक्त शोधन करके ही ये धातुएँ निकाली जाती हैं।
- खनिज हमारे जीवन के अति अनिवार्य भाग हैं। लगभग हर चीज जो हम इस्तेमाल करते हैं। एक छोटी सूई से लेकर एक बड़ी इमारत तक या फिर एक बड़ा जहाज आदि सभी खनिजों से बने हैं।
खनिज व वंतमंजन
|
ऊर्जा संसाधन
- ऊर्जा सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक है। खाना पकाने में रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया है। ऊर्जा संसाधनों को परंपरागत तथा गैर-परंपरागत साधनों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- परंपरागत साधनों में लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत (दोनों जल विद्युत व ताप विद्युत) सम्मिलित हैं।
- गैर-परंपरागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय बायोगैस तथा परमाणु ऊर्जा शामिल किये जाते हैं।
- ग्रामीण भारत में लकड़ी व उपले बहुतायत में प्रयोग किये जाते हैं। ग्रामीण घरों में आवश्यक ऊर्जा का 70 प्रतिशत से अधिक इन्हीं दो साधनों से प्राप्त होता है। लेकिन अब घटते वन क्षेत्र के कारण इनका उपयोग करते रहना कठिन होता जा रहा है।
- इसके अतिरिक्त उपलों का उपभोग भी हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि इससे सर्वाधिक मूल्यवान खाद्य का उपभोग होता हैं जिसे कृषि में प्रयोग किया जा सकता है।
परंपरागत ऊर्जा के स्रोत
- भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का महत्त्वपूर्ण भाग प्रदान करता है।
- इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू जरूरतों लिए ऊर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है। भारत अपनी वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मुख्यतः कोयले पर निर्भर है।
- कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक संपीडन से हुआ है। इसीलिए संपीडन की मात्रा, गहराई और दबने के समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है।
- दलदलों में क्षय होते पादपों से पीट उत्पन्न होता है, जिसमें कम कार्बन, नमी की उच्च मात्रा व निम्न ताप क्षमता होती है।
- लिग्नाइट एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है। यह मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है।
- लिग्नाइट के प्रमुख भंडार तमिलनाडु के नैवेली में मिलते हैं और विद्युत उत्पादन में प्रयोग किए जाते हैं। गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को बिटुमिनस कोयला कहा जाता है।
- वाणिज्यिक प्रयोग में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है। धातुशोधन में उच्च श्रेणी के बिटुमिनस कोयले का प्रयोग किया जाता है जिसका लोहे के प्रगलन में विशेष महत्त्व है। एंग्रेसाइट सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।
- भारत में कोयला दो प्रमुख भूगर्भिक युगों के शैल क्रम में पाया जाता है- एक गोंडवाना जिसकी आयु 200 लाख वर्ष से कुछ अधिक है और दूसरा टर्शियरी निक्षेप जो लगभग 55 लाख वर्ष पुराने हैं।
- गोंडवाना कोयले जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन दामोदर घाटी (पश्चिमी बंगाल तथा झारखंड), झरिया, रानीगंज, बोकारो में स्थित हैं जो महत्त्वपूर्ण कोयला क्षेत्र हैं।
- गोदावरी, महानदी, सोन व वर्धा नदी घाटियों में भी कोयले के जमाव पाए जाते हैं।
- टर्शियरी कोयला क्षेत्र उत्तर पूर्वी राज्यों मेघालयं, असम, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।
- कोयला स्थूल पदार्थ है। जिसका प्रयोग करने पर भार घटता है क्योंकि यह राख में परिवर्तित हो जाता है। इसी कारण भारी उद्योग तथा ताप विद्युत गृह कोयला क्षेत्रों अथवा उनके निकट ही स्थापित किये जाते हैं।
- भारत में कोयले के पश्चात् ऊर्जा का दूसरा प्रमुख साधन पेट्रोलियम या खनिज तेल है। यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है।
- तेलशोधन शालाएँ - संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती हैं।
- भारत में अधिकांश पेट्रोलियम की उपस्थिति टर्शियरी युग की शैल संरचनाओं के अपनति व भ्रंश ट्रैप में पाई जाती है।
- वलन, अपनति और गुंबदों वाले प्रदेशों में यह वहाँ पाया जाता है जहाँ उद्ववलन के शीर्ष में तेल ट्रैप हुआ होता है।
- तेलधारक परत संरध्र चूना पत्थर या बालुपत्थर होता है जिसमें से तेल प्रवाहित हो सकता है। मध्यवर्ती असरंध्र परतें तेल को ऊपर उठने व नीचे रिसने से रोकती हैं।
- पेट्रोलियम संरध्र और असरंध्र चट्टानों के बीच भ्रंश ट्रैप में भी पाया जाता है। प्राकृतिक गैस हल्की होने के कारण खनिज तेल के ऊपर पाई जाती है।
- भारत में कुल पेट्रोलियम उत्पादन का 63 प्रतिशत भाग मुंबई हाई से, 18 प्रतिशत गुजरात और 16 प्रतिशत असम से प्राप्त होता है। अंकलेश्वर गुजरात का सबसे महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है।
- असम भारत का सबसे पुराना तेल उत्पादक राज्य है। डिगबोई, नहरकटिया मोरन-हुगरीजन इस राज्य के महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र हैं।
- प्राकृतिक गैस एक महत्त्वपूर्ण स्वच्छ ऊर्जा संसाधन है जो पेट्रोलियम के साथ अथवा अलग भी पाई जाती है। इसे ऊर्जा के एक साधन के रूप तथा पेट्रो रासायन उद्योग के एक औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- कार्बनडाई ऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण अनुकूल माना जाता है। इसलिए यह वर्तमान शताब्दी का ईंधन है।
- कृष्णा गोदावरी नदी बेसिन में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार खोजे गए हैं।
- पश्चिमी तट के साथ मुम्बई हाई और सन्निध क्षेत्रों को खंभात की खाड़ी में पाए जाने वाले तेल क्षेत्र संपूरित करते हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं।
- 1700 किलोमीटर लंबी हजीरा - विजयपुरजगदीशपुर (HVJ) गैस पाइपलाइन मुम्बई हाई और बसीन (Bassien) को पश्चिमी व उत्तरी भारत के उर्वरक, विद्युत व अन्य औद्योगिक क्षेत्रों से जोड़ती है। इस धमनी से भारत के गैस उत्पादन को संवेग मिला है।
- ऊर्जा व उर्वरक उद्योग प्राकृतिक गैस के प्रमुख प्रयोक्ता हैं। गाड़ियों में तरल ईंधन का संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) से प्रतिस्थापन देश में लोकप्रिय हो रहा है।
- आधुनिक विश्व में विद्युत के अनुप्रयोग इतने ज्यादा विस्तृत हैं कि इसके प्रति व्यक्ति उपभोग को विकास का सूचकांक माना जाता है।
- विद्युत मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है
- (क) प्रवाही जल से जो हाइड्रो टरबाइन चलाकर जल विद्युत उत्पन्न करता है;
- (ख) अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत उत्पन्न की जाती है। एक बार उत्पन्न हो जाने के बाद विद्युत एक जैसी ही होती है।
- तेज बहते जल से जल विद्युत उत्पन्न की जाती है जो एक नवीकरण योग्य संसाधन है। भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती हैं। जैसे- भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि।
- ताप विद्युत कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है। ताप विद्युत गृह अनवीकरण योग्य जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कर विद्युत उत्पन्न करते हैं।
- ऊर्जा के बढ़ते उपभोग ने देश को कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर कर दिया है।
- गैस व तेल की बढ़ती कीमतों तथा इनकी संभाव्य कमी ने भविष्य में ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के प्रति अनिश्चितताएँ उत्पन्न कर दी हैं।
- इसके राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त जीवाश्मी ईंध नों का प्रयोग गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है।
- अतः नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों जैसे- सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, जैविक ऊर्जा तथा अवशिष्ट पदार्थ जनित ऊर्जा के उपयोग की बहुत जरूरत है। ये ऊर्जा के गैर-परंपरागत साधन कहलाते हैं।
- भारत धूप, जल तथा जीवभार साधनों में समृद्ध है। भारत में नवीकरण योग्य ऊर्जा संसाधनों के विकास हेतु बृहत् कार्यक्रम भी बनाए गए हैं।
- अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है। जब ऐसा परिवर्तन किया जाता है तो ऊष्मा के रूप में काफी ऊर्जा विमुक्त होती है और इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है।
- यूरेनियम और थोरियम जो झारखंड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखला में पाए जाते हैं, का प्रयोग परमाणु अथवा आणविक ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।
- भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है। यहाँ सौर ऊर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं। फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर ऊर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
- कुछ बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए जा रहे हैं ऐसी अपेक्षा है कि सौर ऊर्जा के प्रयोग से ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम किया जा सकेगा।
- भारत में पवन ऊर्जा के उत्पादन की महान संभावनाएँ हैं। भारत में पवन ऊर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है।
- इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्त्वपूर्ण पवन ऊर्जा फार्म हैं। नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन ऊर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए जाने जाते हैं।
- ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।
- जैविक पदार्थों के अपघटन से गैस उत्पन्न होती है, जिसकी तापीय सक्षमता मिट्टी के तेल, उपलों व चारकोल की अपेक्षा अधिक होती है।
- बायोगैस संयंत्र नगरपालिका, सहकारिता तथा निजी स्तर पर लगाए जाते हैं। पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में गोबर गैस प्लांट के नाम से जाने जाते हैं ।
- ये किसानों को दो प्रकार से लाभांवित करते हैं एक ऊर्जा के रूप में और दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में बायोगैस अब तक पशुओं के गोबर का प्रयोग करने में सबसे दक्ष है।
- यह उर्वरक की गुणवत्ता को बढ़ाता है और उपलों तथा लकड़ी को जलाने से होने वाले वृक्षों के नुकसान को रोकता है।
- महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। सँकरी खाड़ी के आर-पार बाढ़ द्वार बना कर बाँध बनाए जाते हैं |
- उच्च ज्वार में इस सँकरी खाड़ीनुमा प्रवेश द्वार से पानी भीतर पर जाता है और द्वार बन्द होने पर बाँध में ही रह जाता है।
- बाढ़ द्वार के बाहर ज्वार उतरने पर बाँध के पानी को इसी रास्ते पाइप द्वारा समुद्र की तरफ बहाया जाता है जो इसे ऊर्जा उत्पादक टरबाइन की ओर ले जाता है।
- भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में सुंदर वन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।
- पृथ्वी के आंतरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।
- भू-तापीय ऊर्जा इसलिए अस्तित्व में होती है क्योंकि बढ़ती गहराई के साथ पृथ्वी प्रगामी ढंग से तप्त होती जाती है। जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता अधिक होती है वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है।
- ऐसे क्षेत्रों में भूमिगत जल चट्टानों से ऊष्मा का अवशोषण कर तप्त हो जाता है। यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलाने और विद्युत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
- भारत में सैंकड़ों गर्म पानी के चश्मे हैं, जिनका विद्युत उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है।
- भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में स्थित है तथा दूसरी लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है।
- भू-वैज्ञानिकों के अनुसार खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्त्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है।
- खनिज प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं, जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक सम्मिलित हैं।
- चट्टानें खनिजों के समरूप तत्वों के यौगिक हैं। कुछ चट्टाने जैसे चूना पत्थर केवल एक ही खनिज से बनी हैं; लेकिन अधिकतर चट्टानें विभिन्न अनुपातों के अनेक खनिजों का योग हैं।
- यद्यपि 2000 से अधिक खनिजों की पहचान की जा चुकी है, लेकिन अधिकतर चट्टानों में केवल कुछ ही खनिजों की बहुतायत है।
- एक खनिज विशेष जो निश्चित तत्त्वों का योग है, उन तत्त्वों का निर्माण उस समय के भौतिक व रासायनिक परिस्थितियों का परिणाम है।
- इसके फलस्वरूप ही खनिजों में विविध रंग, कठोरता, चमक, घनत्व तथा विविध क्रिस्टल पाए जाते हैं। भू-वैज्ञानिक इन्हीं विशेषताओं के आधार पर खनिजों का वर्गीकरण करते हैं।
- सामान्यतः खनिज अयस्कों में पाए जाते हैं। किसी भी खनिज में अन्य अवयवों या तत्त्वों के मिश्रण या संचयन हेतु 'अयस्क' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- खनन का आर्थिक महत्त्व तभी है जब अयस्क में खनिजों का संचयन पर्याप्त मात्रा में हो। खनिजों के खनन की सुविधा इनके निर्माण व संरचना पर निर्भर हैं।
- खनन सुविधा इसके मूल्य को निर्धारित करती है। अतः हमारे लिए मुख्य शैल समूहों को समझना अत्यंत आवश्यक है जिनमें ये खनिज पाये जाते हैं। खनिज प्रायः निम्न शैल समूहों से प्राप्त होते हैं।
- छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं।
- इनका निर्माण भी अधिकतर उस समय होता है जब ये तरल अथवा गैसीय अवस्था में दरारों के सहारे भू-पृष्ठ की ओर धकेले जाते हैं।
- ऊपर आते हुए ये ठंडे होकर जम जाते हैं। मुख्य धात्विक खनिज जैसे - जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि इसी तरह शिराओं व जमावों के रूप में प्राप्त होते हैं।
- कोयला तथा कुछ अन्य प्रकार के लौह अयस्कों का निर्माण लंबी अवधि तक अत्यधिक ऊष्मा व दबाव का परिणाम है।
- अवसादी चट्टानों में दूसरी श्रेणी के खनिजों में जिप्सम, पोटाश, नमक व सोडियम सम्मिलित हैं। इनका निर्माण विशेषकर शुष्क प्रदेशों में वाष्पीकरण के फलस्वरूप होता है।
- चट्टानों के घुलनशील तत्त्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती है। बॉक्साइट का निर्माण इसी ID प्रकार होता है।
- ये निक्षेप 'प्लेसर निक्षेप' के नाम से जाने जाते हैं। इनमें प्राय: ऐसे खनिज होते हैं जो जल द्वारा घर्षित नहीं होते। इन खनिजों में सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।
- भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के पश्चात् ही सम्भव है, किन्तु उत्तर पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत व समुदायों को प्राप्त है।
- मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप पाए जाते हैं। जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्य द्वारा लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट होल खनन कहते हैं।
- मोटे तौर पर प्रायद्वीपीय चट्टानों में कोयले, धात्विक खनिज, अभ्रक व अन्य अनेक अधात्विक खनिजों के अधिकांश भंडार संचित हैं।
- प्रायद्वीप के पश्चिमी और पूर्वी पाश्र्वों पर गुजरात और असम की तलछटी चट्टानों में अधिकांश खनिज तेल निक्षेप पाए जाते हैं।
- प्रायद्वीपीय शैल क्रम के साथ राजस्थान में अनेक अलौह खनिज पाए जाते हैं। उत्तरी भारत के विस्तृत जलोढ़ मैदान आर्थिक महत्त्व के खनिजों से लगभग विहीन है।
- ये विभिन्नताएँ खनिजों की रचना में अंतरग्रस्त भू-गर्भिक संरचना, प्रक्रियाओं और समय के कारण हैं।
- अयस्क में खनिज का सांद्रण उत्खनन की सुगमता और बाजार की निकटता, किसी संचय (reserve) की आर्थिक जीव्यता (Viability) को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- अतः माँग की पूर्ति के लिए अनेक संभव विकल्पों में से चयन करना पड़ता है। ऐसा हो जाने के बाद एक खनिज निक्षेप अथवा 'भंडार' खदान में परिवर्तित हो जाता है।
- लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं। ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
- भारत अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के पश्चात् बड़ी मात्रा में धात्विक खनिजों का निर्यात करता है।
- लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है। भारत में लौह अयस्क के विपुल संसाधन विद्यमान हैं।
|
- भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है। मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है।
- इसमें सर्वश्रेष्ठ चुंबकीय गुण होते हैं, जो विद्युत उद्योगों में विशेष रूप से उपयोगी हैं। हेमेटाइट सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है। किंतु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी-सी कम होती है। (इसमें लोहांश 50 से 60 प्रतिशत तक पाया जाता है।)
- भारत में लौह अयस्क की पेटियाँ निम्नवत् हैं-
- ओडिशा-झारखंड पेटी ओडिशा में उच्च कोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह अयस्क मयूरभंज व केंदूझर जिलों में बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है।
- इसी से सन्निद्ध झारखंड के सिंहभूम जिले में गुआ तथा नोआमुंडी से. हेमेटाइट अयस्क का खनन किया जाता है।
- दुर्ग- बस्तर - चन्द्रपुर पेटी यह पेटी महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के अंतर्गत पाई जाती है।
- छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में बेलाडिला पहाड़ी शृंखलाओं में अति उत्तम कोटि का हेमेटाइट पाया जाता है जिसमें इस गुणवत्ता के लौह के 14 जमाव मिलते हैं।
- इसमें इस्पात बनाने में आवश्यक सर्वश्रेष्ठ भौतिक गुण विद्यमान हैं। इन खदानों का लौह अयस्क विशाखापट्टनम् पत्तन से जापान तथा दक्षिण कोरिया को निर्यात किया जाता है।
- बेल्लारि- चित्रदुर्ग, चिक्कमंगलूरु - तुमकूरु पेटी कर्नाटक की इस पेटी में लौह अयस्क की बृहत् राशि संचित है।
- कर्नाटक में पश्चिमी घाट में अवस्थित कुद्रेमुख की खानें शत् प्रतिशत निर्यात इकाई हैं। कुद्रेमुख निक्षेप संसार के सबसे बड़े निक्षेपों में से एक माने जाते हैं।
- लौह अयस्क कर्दम (Slurry) रूप में पाइपलाइन द्वारा मंगलूरु के निकट एक पत्तन पर भेजा जाता है।
- महाराष्ट्र - गोआ पेटी यह पेटी गोआ तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में स्थित है। यद्यपि यहाँ का लोहा उत्तम प्रकार का नहीं है तथापि इसका दक्षता से दोहन किया जाता है। मरमागाओ पत्तन से इसका निर्यात किया जाता है।
मैंगनीज
- मैंगनीज मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है। एक टन इस्पात बनाने में लगभग 10 किग्रा, मैंगनीज की आवश्यकता होती है। इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है।
- भारत में उड़ीसा मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वर्ष 2000-01 में देश के कुल उत्पादन का एक तिहाई भाग यहाँ से प्राप्त हुआ।
- भारत में अलौह खनिजों की संचित राशि व उत्पादन अधिक संतोषजनक नहीं है।
- यद्यपि ये खनिज जिनमें ताँबा, बॉक्साइट, सीसा और सोना आते हैं, धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत उद्योगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत में ताँबे के भंडार व उत्पादन क्रांतिक रूप से न्यून हैं। घातवर्ध्य (malleable), तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है।
- मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें देश के लगभग 52 प्रतिशत ताँबा उत्पन्न करती हैं। झारखंड का सिंहभूमि जिला भी ताँबे का मुख्य उत्पादक है। राजस्थान की खेतड़ी खदानें भी ताँबे के लिए प्रसिद्ध थीं।
बॉक्साइट
- यद्यपि अनेक अयस्कों में एल्यूमिनियम पाया जाता है। परंतु सबसे अधिक एल्यूमिना क्ले (Clay) जैसे दिखने वाले पदार्थ बॉक्साइट से ही प्राप्त किया जाता है बॉक्साइट निक्षेपों की रचना एल्यूमिनियम सिलिकेटों से समृद्ध व्यापक भिन्नता वाली चट्टानों के विघटन से होती है।
- एल्यूमिनियम एक महत्त्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। इसमें अत्यधिक घातवर्ध्यता (malleability) भी पाई जाती है।
- भारत में बॉक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा बिलासपुर कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।
- ओड़िशा भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है, जहाँ वर्ष 2017-18 में देश के 5.13 प्रतिशत बॉक्साइट का उत्पादन हुआ। यहाँ कोरापुट जिले में 'पंचपतमाली निक्षेप' राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण बॉक्साइट निक्षेप हैं।
- एल्यूमिनियम की खोज के बाद सम्राट नेपोलियन तृतीय अपने कपड़ों पर एल्यूमिनियम से बने हुक व बटन पहनता था तथा अपने खास मेहमानों को एल्यूमिनियम से बने बर्तनों में भोजन कराता, तथा आम मेहमानों को सोने व चाँदी के बर्तनों में भोजन परोसा जाता।
- इस घटना के तीस वर्ष बाद पेरिस में भिखारियों के पास एल्यूमिनियम के बर्तन होना एक आम बात थी।
- अम्रक अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है। इसका चादरों में विपाटन (split) आसानी से हो सकता है।
- ये परतें इतनी महीन हो सकती हैं कि इसकी एक हजार परतें कुछ सेंटीमीटर ऊँचाई में समाहित हो सकती हैं। अभ्रक पारदर्शी, काले, हरे, लाल, पीले अथवा भूरे रंग का हो सकता है।
- इसकी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, ऊर्जा हास का निम्न गुणांक, विंसवाहन के गुण और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता के कारण अभ्रक विद्युत व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।
- अभ्रक के निक्षेप छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारों पर पाए जाते हैं। बिहार-झारखंड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी अग्रणी उत्पादक हैं।
- राजस्थान के मुख्य अभ्रक उत्पादक क्षेत्र अजमेर के आस पास हैं। आंध्र प्रदेश की नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्त्वपूर्ण उत्पादक पेटी है।
- चूना पत्थर (Limestone) चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है।
- यह अधिकांशत: अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है, और लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।
- इस खदानों में काम करने वाले श्रमिक लगातार धूल व हानिकारक धुएँ में साँस लेते हुए फेफड़ों संबंधी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। खदानों की छतों के गिरने, सैलाब आने (जलप्लावित होना), कोयले की खदानों में आग लगने आदि, खतरे खदान श्रमिकों के लिए स्थाई हैं।
- खदान क्षेत्रों में खनन के कारण जल स्रोत संदूषित हो जाते हैं। अवशिष्ट पदार्थों तथा खनिज तरल के मलबे के खत्ता लगाने से भूमि व मिट्टी का अवक्षय होता है और सरिताओं तथा नदियों का प्रदूषण बढ़ता है।
- खनन को घातक उद्योग (Killer Industry) बनने से रोकने के लिए दृढ़ सुरक्षा विनियम और पर्यावरणीय कानूनों का क्रियान्वयन अनिवार्य है।
- हम सभी को उद्योग और कृषि की खनिज निक्षेपों और उनसे विनिर्मित पदार्थों पर भारी निर्भरता सुप्रेक्षित है।
- खनन योग्य निक्षेप की कुल राशि असार्थक अंश है, अर्थात् भू-पर्पटी का एक प्रतिशत जिन खनिज संसाधनों के निर्माण व सांद्रण में लाखो वर्ष लगे हैं, हम उनका शीघ्रता से उपभोग कर रहे हैं।
- खनिज निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी धीमी है कि उनके वर्तमान उपभोग की दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से थोड़ी है। इसीलिए खनिज संसाधन सीमित तथा अनवीकरण योग्य हैं।
- समृद्ध खनिज निक्षेप हमारे देश की अत्यधिक मूल्यवान संपत्ति हैं, लेकिन ये अल्पजीवी हैं। अयस्कों के सतत् उत्खनन से लागत बढ़ती है क्योंकि खनिजों के उत्खनन की गहराई बढ़ने के साथ उनकी गुणवत्ता घटती जाती है।
- खनिज संसाधनों को सुनियोजित एवं सतत् पोषणीय ढंग से प्रयोग करने के लिए एक तालमेल युक्त प्रयास करना होगा।
- निम्न कोटि के अयस्कों का कम लागतों पर प्रयोग करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों का सतत् विकास करते रहना होगा।
- धातुओं का पुनः चक्रण, रद्दी धातुओं का प्रयोग तथा अन्य प्रतिस्थापनों का उपयोग भविष्य में हमारे खनिज संसाधनों के संरक्षण के उपाय हैं।
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here