BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ
वस्तुओं तथा सेवाओं के आपूर्ति स्थानों से माँग स्थानों तक ले जाने हेतु परिवहन की आवश्यकता होती है।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ
- वस्तुओं तथा सेवाओं के आपूर्ति स्थानों से माँग स्थानों तक ले जाने हेतु परिवहन की आवश्यकता होती है।
- एक देश के विकास की गति वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के साथ उनके एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन (movement) की सुविधा पर भी निर्भर करना पड़ता है। इसलिए सक्षम परिवहन के साधन तीव्र विकास हेतु पूर्व अपेक्षित हैं।
- वस्तुओं तथा सेवाओं का परिवहन तीन माध्यमों द्वारा होता है- स्थल, जल तथा वायु इन्हीं के आधार पर परिवहन को स्थल, जल व वायु परिवहन में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास के साथ व्यापार व परिवहन के प्रभाव क्षेत्र में विस्तृत वृद्धि हुई है। सक्षम व तीव्र गति वाले परिवहन से आज संसार एक बड़े गाँव में परिवर्तित हो गया है।
- परिवहन का यह विकास संचार साधनों के विकास की सहायता से ही संभव हो सका है। इसीलिए परिवहन, संचार व व्यापार एक दूसरे के पूरक हैं।
- रेल, वायु एवं जल परिवहन, समाचारपत्र, रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा तथा इंटरनेट आदि इसके सामाजिक-आर्थिक विकास में अनेक प्रकार से सहायक हैं।
- भारत के परिवहन मानचित्र पर पाइपलाइन एक नया परिवहन का साधन है। पहले पाइपलाइन का उपयोग शहरों व उद्योगों में पानी पहुँचाने हेतु होता था।
- आज इसका प्रयोग कच्चा तेल, पेट्रोल उत्पाद तथा तेल से प्राप्त प्राकृतिक तथा गैस क्षेत्र से उपलब्ध गैस शोधनशालाओं, उर्वरक कारखानों व बड़े ताप विद्युत गृहों तक पहुँचाने में किया जाता है।
- ठोस पदार्थों को तरल अवस्था (Slurry) में परिवर्तित कर पाइपलाइनों द्वारा ले जाया जाता है।
- सुदूर आंतरिक भागों में स्थित शोधनशालाएँ जैसे बरौनी, मथुरा, पानीपत तथा गैस पर आधारित उर्वरक कारखानों की स्थापना पाइपलाइनों के जाल के कारण ही संभव हो पाई है।
- पाइपलाइन बिछाने की प्रारंभिक लागत अधिक है। लेकिन इसको चलाने की (Running) लागत न्यूनतम है। वाहनांतरण देरी तथा हानियाँ इसमें लगभग नहीं के बराबर है।
- देश में पाइपलाइन परिवहन के तीन प्रमुख जाल हैं-
- ऊपरी असम के तेल क्षेत्रों से गुवाहाटी, बरौनी व इलाहाबाद के रास्ते कानपुर ( उत्तर प्रदेश) तक ।
- इसकी एक शाखा बरौनी से राजबंध होकर हल्दिया तक है दूसरी राजबंध से मौरी ग्राम तक तथा गुवाहाटी से सिलिगुड़ी तक है।
- गुजरात में सलाया से वीरमगाँव, मथुरा, दिल्ली व सोनीपत के रास्ते पंजाब में जालंधर तक। इसकी अन्य शाखा वड़ोदरा के निकट कोयली को चक्शु व अन्य स्थानों से जोड़ती है।
- गैस पाइपलाइन गुजरात में हजीरा को उत्तर प्रदेश में जगदीशपुर से मिलाती है।
- यह मध्य प्रदेश के विजयपुर के रास्ते होकर जाती है। इसकी शाखाएँ राजस्थान में कोटा तथा उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर, बबराला व अन्य स्थानों पर हैं।
- भारत के लोग अनंतकाल से समुद्री यात्राएँ करते रहे हैं। इसके नाविकों ने दूर तथा पास के क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति व व्यापार को फैलाया है।
- जल परिवहन, परिवहन का सबसे सस्ता साधन है। यह भारी व स्थूलकाय वस्तुएँ ढोने में अनुकूल है। यह परिवहन साधनों में ऊर्जा सक्षम तथा पर्यावरण अनुकूल हैं।
- भारत में अंतः स्थलीय नौसंचालन जलमार्ग 14,500 किमी. लंबा है। इसमें केवल 5,685 किमी. मार्ग ही मशीनीकृत नौकाओं द्वारा तय किया जाता है।
- निम्न जलमार्गों को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है-
- हल्दिया तथा इलाहाबाद के मध्य गंगा जलमार्ग जो 1620 किमी. लंबा है - नौगम्य जलमार्ग संख्या - 1
- सदिया व धुबरी के मध्य 891 किमी. लंबा ब्रह्मपुत्र नदी जल मार्ग - नौगम्य जलमार्ग संख्या - 2
- केरल में पश्चिम-तटीय नहर ( कोट्टापुरम कोल्लम तक, उद्योगमंडल तथा चंपक्कारा नहरें -205 किमी.) नौगम्य जलमार्ग संख्या - 3
- काकीनाडा और पुदुच्चेरी नहर स्ट्रेच के साथ-साथ गोदावरी और कृष्णा नदी का विशेष विस्तार (1078 किमी.)- राष्ट्रीय जलमार्ग-4.
- मातई नदी, महानदी के डेल्टा चैनल, ब्राह्मणी नदी और पूर्वी तटीय नहर के साथ- ब्रह्माणी नदी का विशेष विस्तार (588 किमी.) - राष्ट्रीय जलमार्ग-5.
- कुछ अन्य अंतर जलमार्ग भी हैं जिन पर परिवहन होता है इसमें माण्डवी, जुआरी और कम्बरजुआ, सुन्दरवन, बराक, केरल का पश्चजल और कुछ नदियों का ज्वारीय विस्तार सम्मिलित है।
- इन सबके अतिरिक्त, विदेशी व्यापार भारतीय तट पर स्थित पत्तनों द्वारा किया जाता है। देश का 95 प्रतिशत व्यापार (मुद्रा रूप में 68 प्रतिशत) समुद्रों द्वारा ही होता है।
- भारत की 7516.6 किमी. लंबी समुद्री तट रेखा के साथ 12 प्रमुख तथा 187 मध्यम व छोटे पत्तन हैं। ये प्रमुख पत्तन देश का 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार संचालित करते हैं।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कच्छ में कांडला पत्तन पहले पत्तन के रूप में विकसित किया गया। ऐसा देश विभाजन से कराची पत्तन की कमी को पूरा करने तथा मुंबई से होने वाले व्यापारिक दबाव को कम करने के लिए था।
- कांडला एक ज्वारीय पत्तन है। यह जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात के औद्योगिक तथा खाद्यान्नों के आयात-निर्यात को संचालित करता है।
- मुंबई वृहत्तम पत्तन है जिसके प्राकृतिक खुले, विस्तृत व सुचारु पोताश्रय हैं।
- मुंबई पत्तन के अधिक परिवहन को ध्यान में रखकर इसके सामने जवाहरलाल नेहरू पत्तन विकसित किया गया जो इस पूरे क्षेत्र को एक समूह पत्तन की सुविधा भी प्रदान कर सके। लौह-अयस्क के निर्यात के संदर्भ में मारमागाओ पत्तन देश का महत्वपूर्ण यत्तन है।
- यहाँ से देश के कुल निर्यात का आधा (50 प्रतिशत) लौह अयस्क निर्यात किया जाता है। कर्नाटक में स्थित न्यू- मैंगलोर पत्तन कुद्रेमुख खानों से निकले लौह-अयस्क का निर्यात करता है।
- सुदूर दक्षिण-पश्चिम में कोची पत्तन है। यह एक लैगून के मुहाने पर स्थित एक प्राकृतिक पोताश्रय है।
- पूर्वी तट के साथ तमिलनाडु में दक्षिण-पूर्वी छोर पर तूतीकोरीन पत्तन है। यह एक प्राकृतिक पोताश्रय है तथा इसकी पृष्ठभूमि भी अत्यंत समृद्ध है।
- अतः यह पत्तन हमारे पड़ोसी देशों जैसे- श्रीलंका, मालदीव आदि तथा भारत के तटीय क्षेत्रों की भिन्न वस्तुओं के व्यापार को संचालित करता है।
- चेन्नई हमारे देश का प्राचीनतम कृत्रिम पत्तन है। व्यापार की मात्रा तथा लदे सामान के संदर्भ में इसका मुंबई के बाद दूसरा स्थान है।
- विशाखापट्नम स्थल से घिरा, गहरा व सुरक्षित पत्तन है। प्रारम्भ में यह पत्तन लौह अयस्क निर्यातक के रूप में विकसित किया गया था।
- ओडिशा में स्थित पारादीप पत्तन विशेषत: लौह अयस्क का निर्यात करता है।
- कोलकाता एक अंतः स्थलीय नदीय (Riverine) पत्तन है। यह पत्तन गंगा - ब्रह्मपुत्र बेसिन के वृहत् व समृद्ध पृष्ठभूमि को सेवाएँ प्रदान करता है।
- ज्वारीय (Tidal) पत्तन होने के कारण तथा हुगली के तलछट जमाव से इसे नियमित रूप से साफ करना पड़ता है।
- कोलकाता पत्तन पर बढ़ते व्यापार को कम करने हेतु हल्विया सहायक पत्तन के रूप में विकसित किया गया है।
- आज वायु परिवहन तीव्रतम, आरामदायक व प्रतिष्ठित परिवहन का साधन है। इसके द्वारा अति दुर्गम स्थानों जैसे-ऊँचे पर्वत, मरुस्थलों, घने जंगलों व लंबे समुद्री रास्तों को सुगमता से पार किया जा सकता है।
- वायु परिवहन के अभाव में देश के उत्तरी पूर्वी राज्यों के संदर्भ में जहाँ बड़ी नदियाँ, विच्छिन्न धरातल, घने जंगल, निरंतर बाढ़ आदि एक सामान्य बात है। हवाई यात्रा ने अधिक अभिगम्य बना दिया है।
- सन् 1953 में वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण किया गया। व्यवहारिक तौर पर इंडियन एयर लाइंस, एलाइंस एयर (इंडियन एयरलाइंस की अनुषंगी), तथा कई निजी एयरलाइंस घरेलू विमान सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
- एयर इंडिया अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाएँ प्रदान करती है। पवन हंस हेलीकाप्टर लिमिटेड, तेल व प्राकृतिक गैस आयोग को इसकी अपतटीय संक्रियाओं में तथा अगम्य व दुर्लभ भू-भागों जैसे उत्तरी-पूर्वी राज्यों तथा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड के आंतरिक क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर सेवाएँ उपलब्ध करवाता है।
- इंडियन एयरलाइंस की संक्रियाएँ पड़ोसी देशों- दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया और मध्य एशिया तक विस्तृत हैं।
- हवाई यात्रा सभी व्यक्तियों की पहुँच में नहीं है। केवल उत्तरी-पूर्वी राज्यों में इन सेवाओं को आम आदमी तक उपलब्ध करवाने हेतु विशेष प्रबंध किये गए हैं।
- जब से मानव पृथ्वी पर अवतरित हुआ है, उसने विभिन्न संचार माध्यमों का प्रयोग किया है। लेकिन आधुनिक समय में बदलाव की गति तीव्र है।
- निजी दूरसंचार तथा जनसंचार में दूरदर्शन, रेडियो, समाचार-पत्र समूह, प्रेस तथा सिनेमा, आदि देश के प्रमुख संचार साधन हैं।
- भारत का डाक- संचार तंत्र विश्व का वृहत्तम है। यह पार्सल, निजी पत्र व्यवहार तथा तार आदि को संचालित करता है। कार्ड व लिफाफा बंद चिट्ठी, पहली श्रेणी की डाक समझी जाती है तथा विभिन्न स्थानों पर वायुयान द्वारा पहुँचाए जाते हैं।
- द्वितीय श्रेणी की डाक में रजिस्टर्ड पैकेट, किताबें, अखबार तथा मैंगजीन शामिल हैं।
- ये धरातलीय डाक द्वारा पहुँचाए जाते हैं तथा इनके लिए स्थल व जल परिवहन का प्रयोग किया जाता है। बड़े शहरों व नगरों में डाक - संचार में शीघ्रता हेतु, हाल ही में छः डाक मार्ग बनाए गए हैं।
- इन्हें राजधानी मार्ग, मेट्रो चैनल, ग्रीन चैनल, व्यापार ( Business) चैनल, भारी चैनल तथा दस्तावेज चैनल के नाम से जाना जाता है।
- दूर संचार तंत्र में भारत एशिया महाद्वीप में अग्रणी है। नगरीय क्षेत्रों के अतिरिक्त, भारत के दो तिहाई से अधिक गाँव एस टी डी दूरभाष सेवा से जुड़े हैं।
- सूचनाओं के प्रसार को आधार स्तर से उच्च स्तर तक समृद्ध करने हेतु भारत सरकार ने देश के प्रत्येक गाँव में चौबीस घंटे एस टी डी सुविधा के विशेष प्रबंध किये हैं।
- पूरे देश भर में एस टी डी की दरों को भी नियमित किया है। यह सब सूचना, संचार व अंतरिक्ष प्रोद्यौगिकी के समन्वित विकास से ही संभव हो पाया है।
- जन-संचार, मानव को मनोरंजन के साथ बहुत से राष्ट्रीय कार्यक्रमों व नीतियों के विषय में जागरूक करता है। इसमें रेडियो, दूरदर्शन, समाचार पत्र पत्रिकाएँ, किताबें तथा चलचित्र सम्मिलित हैं।
- आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा स्थानीय भाषा में देश के विभिन्न भागों में अनेक वर्गों के व्यक्तियों के लिए विविध कार्यक्रम प्रसारित करता है।
- दूरदर्शन, देश का राष्ट्रीय समाचार व संदेश माध्यम है तथा विश्व के बृहत्तम संचार तंत्र में एक है। यह विभिन्न आयु वर्ग के व्यक्तियों हेतु मनोरंजक, ज्ञानवर्धक, व खेल-जगत संबंधी कार्यक्रम प्रसारित करता है।
- भारत में वर्ष भर अनेक समाचार पत्र तथा सामयिक पत्रिकाएँ प्रकाशित की जाती हैं। ये पत्रिकाएँ सामयिक होने के नाते (जैसे मासिक, साप्ताहिक आदि) कई प्रकार की हैं।
- समाचार पत्र लगभग 100 भाषाओं तथा बोलियों में प्रकाशित होते हैं। देश में सर्वाधिक समाचार पत्र हिंदी भाषा में प्रकाशित होते हैं तथा इसके बाद अंग्रेजी व उर्दू के समाचार पत्र आते हैं।
- भारत विश्व में सर्वाधिक चलचित्रों का उत्पादक भी है। यह कम अवधि वाली फिल्में, वीडियो फीचर फिल्म तथा छोटी वीडियो फिल्में बनाता है।
- भारतीय व विदेशी सभी फिल्मों को प्रमाणित करने का अधिकार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (Central Board of Film Certification) को है।
- राज्यों व देशों में व्यक्तियों के मध्य वस्तुओं का आदान-प्रदान व्यापार कहलाता है। बाजार एक ऐसी जगह है जहाँ इसका विनिमय होता है।
- दो देशों के मध्य यह व्यापार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है। यह समुद्री, हवाई व स्थलीय मार्गों द्वारा हो सकता है। यद्यपि स्थानीय व्यापार शहरों, कस्बों व गाँवों में होता है, राज्यस्तरीय व्यापार दो या अधिक राज्यों के मध्य होता है।
- एक देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रगति उसके आर्थिक वैभव का सूचक है। इसीलिए इसे राष्ट्र का आर्थिक बैरोमीटर भी कहा जाता है।
- सभी देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भर है क्योंकि संसाधनों की उपलब्धता क्षेत्रीय है अर्थात् इनका वितरण असमान है। आयात तथा निर्यात व्यापार के घटक हैं।
- आयात व निर्यात का अंतर ही देश के व्यापार संतुलन को निर्धारित करता है। अगर निर्यात मूल्य आयात मूल्य से अधिक हो तो उसे अनुकूल व्यापार संतुलन कहते हैं।
- इसके विपरीत निर्यात की अपेक्षा अधिक आयात असंतुलित व्यापार कहलाता है।
- विश्व के सभी भौगोलिक प्रदेशों तथा सभी व्यापारिक खंडों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध हैं।
- पिछले कुछ वर्षों से वर्ष 2016-17 तक, निर्यात वृद्धि वाली वस्तुएँ थी - कृषि वर्षों से संबंधित उत्पाद ( वृद्धि 8.64% ), खनिज व अयस्क (4.0%), रत्न व जवाहरातं ( 17.2% ), तथा पेट्रोलियम उत्पाद ( कोयला सहित) (16.8% ) आदि ।
- भारत में आयातित वस्तुओं में पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पाद (वृद्धि 22.4%), मोती व बहुमूल्य रत्न (12.8%), कोयला, कोक तथा कोयले का गोला (briquettes) (2.7%), मशीनरी (8.9%) आदि शामिल थे।
- एक समूह के रूप में भारी वस्तुओं के आयात में 28.2% प्रतिशत (कुल आयात का) वृद्धि हुई है।
- इस समूह में उर्वरक (3.4%), खाद्यान्न ( 14.3%), वनस्पति तेल ( 17.4%) व न्यूज प्रिंट ( 40.3% ) छपाई मशीनें भी शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पिछले 15 वर्षों में भारी बदलाव आया है। वस्तुओं के आदान-प्रदान की अपेक्षा सूचनाओं, ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान बढ़ा है।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सॉफ्टवेयर महाशक्ति के रूप में उभरा है तथा सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से अत्यधिक विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है।
- पिछले तीन दशकों में भारत में पर्यटन उद्योग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है। वर्ष 2014 की अपेक्षा 2015 के दौरान, देश में विदेशी पर्यटकों के आगमन में 4.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई, जिससे 135,193 करोड़ विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई।
- वर्ष 2015 में भारत में 80.3 लाख से अधिक विदेशी पर्यटक आए 150 लाख से अधिक व्यक्ति पर्यटन उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न हैं। पर्यटन राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करता है तथा स्थानीय हस्तकला व सांस्कृतिक उद्यमों को प्रश्रय देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह हमें संस्कृति तथा विरासत की समझ विकसित करने में सहायक है।
- विदेशी पर्यटक भारत में विरासत पर्यटन, पारि- पर्यटन (eco&tourism), रोमांचकारी पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन तथा व्यापारिक पर्यटन के लिए आते हैं।
- देश के विभिन्न भागों में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। पर्यटन उद्योग के विकास हेतु विभिन्न प्रकार के पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे है।
- राष्ट्रीय राजमार्ग देश के दूरस्थ भागों को जोड़ते हैं। ये प्राथमिक सड़क तंत्र हैं जिनका निर्माण व रखरखाव केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) के अधिकार क्षेत्र में है।
- अनेक प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम दिशाओं में फैले हैं। दिल्ली व अमृतसर के मध्य ऐतिहासिक शेरशाह सूरी मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या - 1, के नाम से जाना जाता है।
- भारत विश्व के सर्वाधिक सड़क जाल वाले देशों में से एक है, भारत सड़क परिवहन, रेल परिवहन से पहले प्रारंभ हुआ। निर्माण तथा व्यवस्था में सड़क परिवहन, रेल परिवहन की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक है।
- रेल परिवहन की अपेक्षा सड़क परिवहन की बढ़ती महत्ता निम्न कारणों से है -
- रेलवे लाइन की अपेक्षा सड़कों की निर्माण लागत बहुत कम है।
- अपेक्षाकृत ऊबड़-खाबड़ व विच्छिन्न भू-भागों पर सड़कें बनाई जा सकती हैं।
- अधिक ढाल प्रवणता तथा पहाड़ी क्षेत्रों में भी सड़कें निर्मित की जा सकती हैं।
- अपेक्षाकृत कम व्यक्तियों, कम दूरी व कम वस्तुओं के परिवहन में सड़क मितव्ययी है। यह घर-घर सेवाएँ उपलब्ध करवाती हैं तथा सामान चढ़ाने व उतारने की लागत भी अपेक्षाकृत कम है।
- सड़क परिवहन, अन्य परिवहन साधनों के उपयोग में एक कड़ी के रूप में भी कार्य करता है, जैसे सड़कें, रेलवे स्टेशन, वायु व समुद्री पत्तनों को जोड़ती हैं।
- भारत में सड़कों की सक्षमता के आधार पर इन्हें निम्न छः वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
- राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाली सड़कें राज्य राजमार्ग कहलाती हैं।
- राज्य तथा केंद्रशासित क्षेत्रों में इनकी व्यवस्था तथा निर्माण का दायित्व राज्य के सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) का होता है।
- ये सड़कें जिले के विभिन्न प्रशासनिक केंद्रों को जिला मुख्यालय जोड़ती हैं। इन सड़कों की व्यवस्था का उत्तरदायित्व जिला परिषद् का है।
- इस वर्ग के अंतर्गत वे सड़कें आती हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों तथा गाँवों को शहरों से जोड़ती हैं।
- प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना के तहत इन सड़कों के विकास को विशेष प्रोत्साहन मिला है।
- इस परियोजना के कुछ विशेष प्रावधान हैं जिसमें देश के प्रत्येक गाँव को प्रमुख शहरों से पक्की सड़कों (वे सड़कें जिन पर वर्ष भर वाहन चल सकें) द्वारा जोड़ना प्रस्तावित है।
- उपर्युक्त सड़कों के अतिरिक्त, भारत सरकार प्राधिकरण के अधीन सीमा सड़क संगठन है जो देश के सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण व उनको देख-रेख करता है।
- यह संगठन 1960 में बनाया गया जिसका कार्य उत्तर तथा उतरी-पूर्वी क्षेत्रों में सामरिक महत्त्व की सड़कों का विकास करना था।
- इन सड़कों के विकास से दुर्गम क्षेत्रों में अभिगम्यता बढ़ी है तथा ये इन क्षेत्रों के आर्थिक विकास में भी सहायक हुई हैं।
- सड़क निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ के आधार पर भी। सड़कों को कच्ची व पक्की सड़कों में वर्गीकृत किया जाता है।
- पक्की सड़कें, सीमेंट, कंक्रीट व तारकोल द्वारा निर्मित होती है, अतः ये बारहमासी सड़कें हैं। कच्ची सड़कें वर्षा ऋतु में अनुपयोगी हो जाती है।
- भारत सरकार ने दिल्ली- कोलकाता, चेन्नई - मुंबई व दिल्ली को जोड़ने वाली 6 लेन वाली महा राजमार्गों की सड़क परियोजना प्रारंभ की है।
- इस परियोजना के तहत दो गलियारे प्रस्तावित हैं प्रथम उत्तर-दक्षिण गलियारा जो श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ता है तथा द्वितीय जो पूर्व-पश्चिम गलियारा जो सिलचर (असम) तथा पोरबंदर (गुजरात) को जोड़ता है।
- इस महा राजमार्ग का प्रमुख उद्देश्य भारत के मेगासिटी (Mega cities) के मध्य की दूरी व परिवहन समय को न्यूनतम करना है।
- यह राजमार्ग परियोजना- भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अधिकार क्षेत्र में है।
- भारत में सड़क परिवहन अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। यातायात (traffic) व यात्रियों की संख्या को देखते हुए सड़कों का जाल अपर्याप्त है।
- लगभग आधी सड़कें कच्ची हैं तथा वर्षा ऋतु के दौरान इनका उपयोग सीमित हो जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग भी अपर्याप्त हैं।
- इसके साथ ही शहरों में भी सड़कें अत्यंत तंग तथा भीड़ भरी हैं तथा इन पर बने पुल व पुलिया (culverts) पुराने तथा तंग हैं। परंतु हाल के वर्षों में देश के विभिन्न भागों में सड़क मार्गों का तेजी से विकास हुआ है।
- भारत में रेल परिवहन, वस्तुओं तथा यात्रियों के परिवहन का प्रमुख साधन है।
- रेल परिवहन अनेक कार्यों में सहायक है जैसे - व्यापार, भ्रमण, तीर्थ यात्राएँ व लंबी दूरी तक सामान का परिवहन आदि ।
- एक प्रमुख परिवहन के साधन के अतिरिक्त, पिछले 150 वर्षों से भी अधिक समय से भारतीय रेल एक महत्त्वपूर्ण समन्वयक के रूप में भी जानी जाती है।
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- भारतीय रेलवे देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों व कृषि के तीव्र गति से विकास के लिए उत्तरदायी है।
- भारतीय रेल परिवहन को 17 रेल प्रखंडों में पुन: संकलित किया गया है।
- देश में रेल परिवहन के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में भू-आकृतिक, आर्थिक व प्रशासकीय कारक प्रमुख हैं।
- उत्तरी मैदान अपनी विस्तृत समतल भूमि, सघन जनसंख्या घनत्व, संपन्न कृषि व प्रचुर संसाध नों के कारण रेल परिवहन के विकास व वृद्धि में सहायक रहा है, यद्यपि असंख्य नदियों के विस्तृत जलमार्गों पर पुलों के निर्माण में कुछ बाधाएँ आई है।
- प्रायद्वीप भारत में रेलमार्ग ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी क्षेत्रों, छोटी पहाड़ियों और सुरंगों आदि से होकर गुजरते हैं।
- हिमालय पर्वतीय क्षेत्र भी दुर्लभ उच्चावच, विरल जनसंख्या तथा आर्थिक अवसरों की कमी के कारण रेलवे लाइन के निर्माण में प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है।
- पश्चिमी राजस्थान, गुजरात के दलदली भाग, मध्य प्रदेश के वन क्षेत्र, छत्तीसगढ़, ओड़िशा व झारखंड में रेल लाइन निर्माण करना कठिन है।
- सह्याद्रि तथा उससे सन्निध क्षेत्र को भी घाट या दरों के द्वारा ही पार कर पाना संभव है। कुछ वर्ष पहले भारत के महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र में पश्चिमी तट के साथ कोंकण रेलवे के विकास ने यात्री व वस्तुओं के आवागमन को सुविधाजनक बनाया है।
- यद्यपि यहाँ असंख्य समस्याएँ भी हैं, जैसे- भूस्खलन तथा किसी-किसी भाग में रेलवे ट्रैक का फँसना आदि।
- आज राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में परिवहन के अन्य सभी साधनों की अपेक्षा रेल परिवहन प्रमुख हो गया है। यद्यपि रेल परिवहन समस्याओं से मुक्त नहीं है। बहुत से यात्री बिना टिकट यात्रा करते हैं।
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