BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | मानचित्र अध्ययन उच्चावच निरूपण

मानचित्रण की वह विधि जिसके द्वारा धरातल पर पाई जाने वाली त्रिविमिय आकृति का समतल सतह पर प्रदर्शन किया जाता है।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | मानचित्र अध्ययन उच्चावच निरूपण

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 10TH GEOGRAPHY NOTES | मानचित्र अध्ययन उच्चावच निरूपण

मानचित्रण की वह विधि जिसके द्वारा धरातल पर पाई जाने वाली त्रिविमिय आकृति का समतल सतह पर प्रदर्शन किया जाता है।

समोच्च रेखाएँ:

  • समोच्च रेखाओं की सहायता से उच्चावच प्रदर्शन की विधि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह एक मानक विधि है। वस्तुतः समोच्च रेखाएँ भूतल पर समुद्र जल-तल से एक समान ऊंचाई वाले बिंदुओं/ स्थानों को मिलाकर मानचित्र पर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखाएँ हैं।
  • मानचित्र में प्रत्येक समोच्च रेखा के साथ उसकी ऊँचाई का मान लिख दिया जाता है।
  • मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है।
  • एक समान ढ़ाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को समान दूरी पर खींचा जाता है।
  • खड़ी ढ़ाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं के पास-पास • बनाया जाता है, जबकि मंद ढ़ाल के लिए इन रेखाओं को दूर-दूर बनाया जाता है।
  • जब किसी मानचित्र में अधिक ऊँचाई (मान) की समोच्च रेखाएँ पास-पास तथा कम ऊंचाई की समोच्च रेखाएँ दूर दूर बनी होती है तब यह समझना चाहिए कि इन समोच्च रेखाओं का समुह अवतल ढ़ाल का प्रदर्शन कर रहा है। 
  • इसके विपरित स्थिति उत्तल ढाल का प्रतिनिधित्व करती है। सीढ़ीनुमा ढ़ाल के लिए दो-दो समोच्च रेखा अंतराल खींची जाती है।
समोच्च रेखाओं पर विभिन्न भू-आकृतियों का निरूपणः
  1. पर्वतः पर्वत स्थल पर पाई जाने वाली वह आकृति है, जिसका आधार काफी चौड़ा एवं शिखर काफी पतला अथवा नुकीला होता है। इसका रूप शंक्वाकार या शंकुनुमा होता है।
    • ज्वालामुखी से निर्मित पहाड़ी, शंकु आकृति की होती है।
    • शंक्वाकार पहाड़ी की समोच्च रेखाओं को लगभग वृत्तीय रूप में बनाया जाता है। बाहर से अन्दर की ओर वृतों का आकार छोटा होता जाता है। बीच में सर्वाधिक ऊँचाई वाला वृत्त होता है। बाहर से अंदर की ओर सर्वोच्च रेखाओं का मान क्रमशः बढ़ता जाता है।
  2. पठारः पठारों को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखा किनारों पर पास-पास तथा भीतर की ओर दूर दूर होती हैं। प्रत्येक समोच्च रेखा लंबाकार तथा बंद आकृति में बनायी जाती है। मध्यवर्ती समोच्च रेखा भी चौड़ी होती है।
  3. जलप्रपातः जब किसी नदी का जल अपनी घाटी से गुजरने के दौरान ऊपर से नीचे की ओर तीव्र ढाल पर अकस्मात गिरती है तब इसे जलप्रपात कहा जाता है। इस आकृति को दिखाने के लिए खड़ी ढ़ाल के पास कई समोच्च रेखाओं को एक स्थान पर मिला दिया जाता है तथा शेष रेखाओं को ढाल के अनुरूप बनाया जाता है।
  4. वी (V) आकार की घाटी: इसके लिए समोच्च रेखाओं को अंग्रेजी के "V" अक्षर की उलटी आकृति बनाई जाती है। इसमें समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर क्रमशः घटता जाता है।
  5. 'ट' (T) आकार की घाटी: इस प्रकार की घाटी का निर्माण नदी द्वारा किया जाता है। खड़ी 'ट' आकार की घाटी का निर्माण नदी द्वारा उसके युवावस्था में किया जाता है। इस आकृति को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं को अंग्रेजी के ट अक्षर की उल्टी आकृति बनाई जाती है, जिसमें समोच्च रेखाओं का मान बाहर से अंदर की ओर क्रमशः घटता जाता है।

उच्चावच प्रदर्शन की विधियाँ:

1. हैश्यूर विधिः
  • इस विधि का विकास ऑस्ट्रिया के एक सैन्य अधिकारी लेहमान ने किया था। उच्चावच निरूपण के लिए इस विधि के अंतर्गत मानचित्र में लघु, महीन एवं खंडित रेखाएँ खींची जाती हैं।
  • ये रेखाएँ ढ़ाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं। फलतः अधिक या तीव्र ढाल वाले भागों के पास-पास इन रेखाओं को मोटी एवं गहरी कर दिया जाता है। जबकि, मंद ढालों के लिए ये रेखाएँ पतली एवं दूर-दूर बनाई जाती है। समतल क्षेत्र को खाली छोड़ दिया जाता है।  
  • ऐसी स्थति में धरातल का जो भाग जितना अधिक ढलान होता है, हैश्यर विधि के अंतर्गत मानचित्र पर वह भाग उतना ही अधिक काला दिखाई देता है।
  • इस विधि से ढ़ाल का सही-सही ज्ञान हो पाता है।
2. पर्वतीय छायाकरण:
  • इस विधि के अंतर्गत उच्चावच-प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर उत्तर पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है।
  • इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढ़ाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढ़ाल को हल्की आभा से (या छोड़) भर देते हैं ।
  • इस विधि से पर्वतीय देशों के उच्चावच को प्रभावशाली ढंग से दिखाना संभव हेता है।
3. तल चिह्नः
  • वास्तविक सर्वेक्षण के द्वारा भवनों, पुलों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थाई वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गई ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिह्न को तल चिह्न (Bench Mark) कहा जाता है।
  • स्थानिक ऊँचाई: तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊँचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि  में बिंदुओं के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दिया जाता है।
  • त्रिकोणमितीय स्टेशन: त्रिकोणमितीय स्टेशन का संबंध उन बिंदुओं से है जिनका उपयोग त्रिभूजन विधि (एक प्रकार का सर्वेक्षण) द्वारा सर्वेक्षण करते समय स्टेशन के रूप में हुआ था। मानचित्र पर त्रिभुज बनाकर उसके बगल में धरातल की समुद्र तल से ऊँचाई . लिख दी जाती है।
  • स्तर रंजन: रंगीन मानचित्रों में रंगों के विभिन्न आभाओं के द्वारा उच्चावच प्रदर्शन का एक मानक निश्चित किया जाता है। ऊँचाई में वृद्धि के अनुसार रंगों की आभाएँ हल्की होती जाती है।
  • इनमें समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग से दिखाया जाता है। मैदान को हरा रंग से तथा पर्वतों को बादामी (हल्का कत्थई) रंग से दिखाया जाता है। जबकि बर्फीले क्षेत्र को सफेद रंग से दिखाया जाता है।
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