BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH POLITICAL SCIENCE NOTES | चुनावी राजनीति

किसी भी लोकतंत्र में नियमित अंतराल पर चुनाव होते हैं। दुनिया के सौ से अधिक देश ऐसे हैं जहाँ जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं। अनेक ऐसे देश जो लोकतांत्रिक नहीं हैं, वहाँ भी चुनाव होते हैं।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH POLITICAL SCIENCE NOTES | चुनावी राजनीति

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH POLITICAL SCIENCE NOTES | चुनावी राजनीति

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की चुनौतियाँ

  • भारत में चुनाव बुनियादी रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष हैं। जो पार्टी चुनाव जीतकर सरकार बनाती है उसे लोगों का समर्थन प्राप्त होता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र पर यह बात लागू होती है।
  • कुछ उम्मीदवार पैसों के जोर पर या गलत तरीकों से जीते हो सकते हैं पर चुनाव का कुल नतीजा अभी भी लोगों की इच्छा को ही बताता है। 
  • पिछले 50 वर्षों में हमारे देश में इस सामान्य नियम के थोड़े बहुत अपवाद हैं और यही चीज भारतीय चुनाव प्रणाली को लोकतांत्रिक बनाती है।
    • ज्यादा रुपये-पैसे वाले उम्मीदवार और पार्टियाँ गलत तरीके से चुनाव जीत ही जाएँगे यह कहना मुश्किल है पर उनकी स्थिति दूसरों से ज्यादा मजबूत रहती है।
    • देश के कुछ इलाकों में आपराधिक पृष्ठभूमि और संबंधों वाले उम्मीदवार दूसरों को चुनाव मैदान से बाहर करने और बड़ी पार्टियों के टिकट पाने में सफल होने लगे हैं।
    • अलग-अलग पार्टियों में कुछेक परिवारों का जोर है और उनके रिश्तेदार आसानी से टिकट पा जाते हैं।
    • अकसर आम आदमी के लिए चुनाव में कोई ढंग का विकल्प नहीं होता क्योंकि दोनों प्रमुख पार्टियों की नीतियाँ और हार कमोबेश एक-से होते हैं।
    • बड़ी पार्टियों की तुलना में छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को कई तरह की परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं।
  • ये चुनौतियाँ भारत की ही नहीं हैं। कई स्थापित लोकतंत्रों की भी यही स्थिति है। कुछ समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए चुनाव प्रणाली में जरूरी बदलावों की माँग नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों की तरफ से होती रही है।
चुनावी धांधली
  • चुनाव में अपने वोट बढ़ाने के लिए उम्मीदवारों और पार्टियों द्व द्वारा की जाने वाली गड़बड़ या फरेब । इसमें कुछ ही लोगों द्व रा काफी सारे लोगों के वोट डाल देना; एक ही व्यक्ति द्व रा अलग-अलग लोगों के नाम पर वोट डालना और मतदान अधिकारियों को डरा धमकाकर या रिश्वत देकर अपने उम्मीदवार के पक्ष में काम करवाना जैसी बातें शामिल हैं।
मतदान केंद्र पर कब्जा
  • किसी उम्मीदवार या पार्टी के समर्थकों या भाड़े के अपराधियों द्वारा मतदान केंद्र पर कब्जा करना, असली मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर आने से रोकना और खुद सारे या ज्यादातर वोट डाल देना ।
निर्वाचन क्षेत्र
  • एक खास भौगोलिक क्षेत्र के मतदाता जो एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।
आचार संहिता
  • चुनाव के समय पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा माने जाने वाले कायदे-कानून और दिशा-निर्देश।
भारत में चुनाव के प्रकार-
  • भारत में विभिन्न स्तर की नियुक्ति के लिए विभिन्न तरह के चुनाव होते हैं। मुख्य तौर पर दो तरह के चुनाव भारत में अति महत्त्वपूर्ण है। ये दो चुनाव है: लोकसभा तथा विधानसभा। 
लोकसभा चुनाव
  • आम तौर पर प्रत्येक पांच साल के अंतराल पर लोकसभा चुनाव होता है। इस चुनाव के लिए देश को विभिन्न संसदीय क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है और प्रत्येक संसदीय क्षेत्र के विभिन्न उम्मीदवारों में से जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है।
  • संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार इस निर्वाचन का नियंत्रण और नियमन भारत निर्वाचन आयोग के हाथों होता है। इस निर्वाचन आयोग के कार्यों को करने के लिए भारतीय सिविल सर्विस द्व रा दो उप निर्वाचन अधीक्षकों की नियुक्ति होती है।
  • इस चुनाव में निर्वाचित लोग देश के संसद में हिस्सा लेते हैं। संसद में कुल 552 सांसद होते हैं। इसे 'लोअर हाउस ऑफ पार्लियामेंट' कहा जाता है। लोकसभा में चुने गये प्रतिनिधियों को सांसद अथवा 'मेम्बर ऑफ पार्लियामेंट (एमपी) कहते हैं।
लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया
  • भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव आयोजित किया जाता है। इसके लिए देश के विभिन्न राज्यों में अलग अलग जगहों को लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में बाँट दिया गया है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से विभिन्न पार्टियाँ अपना उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिए उतारती हैं।
  • विभिन्न पार्टियाँ अपने पार्टी फण्ड का इस्तेमाल करके अपने-अपने उम्मीदवारों का प्रचार करती है। ये प्रचार चुनाव के एक दिन पहले बंद हो जाता है। लोकसभा चुनाव पार्टियों के अलावा निर्दलीय प्रत्याशी भी लड़ सकते हैं।
लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए योग्यता
  • लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को निम्न शर्तों पर खरा उतरना होता है-
    • उम्मीदवार को भारत का नागरिक होना होता है। 
    • उम्मीदवार की उम्र 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
    • साथ ही समय समय पर संसद द्वारा बनाये गये अन्य क्वालिफिकेशन पर खरा उतरना होता है।
    • उम्मीदवार पर किसी तरह का आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए।
    • उम्मीदवार का नाम देश के किसी भी हिस्से से मतदाता सूची में दर्ज होना चाहिए, यानि उम्मीदवार का मतदाता होना अनिवार्य है।
    • यदि उम्मीदवार किसी भी तरह से निम्नलिखित शर्तों के अंतर्गत आता है, तो उसका आवेदन निर्वाचन आयोग द्वारा रद्द कर दिया जायेगा।
    • यदि उम्मीदवार किसी तरह के 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' में शामिल है।
    • यदि उम्मीदवार ' अनुन्मुक्त दिवालिया' हो ।
    • यदि उम्मीदवार किसी तरह से 'लोकसभा उम्मीदवार' होने की शर्तों पर काबिल नहीं हो पाता।
लोकसभा सीट खाली होने के कारण
  • कोई निर्वाचित लोकसभा सदस्य की सदस्यता निम्न कारणों से खारिज भी हो सकती है -
    • यदि सांसद लोकसभा स्पीकर को अपना त्यागपत्र दे देता है।
    • यदि सदस्य लगातार 60 दिनों तक बिना स्पीकर की अनुमति से संसद में अनुपस्थित रहता है ।
    • यदि किसी कारणवश लोकसभा सदस्य अयोग्य घोषित हो जाता है।
राज्यसभा
  • इसे 'अपर हाउस ऑफ पार्लियामेंट' भी कहा जाता है। संवैधानिक तौर पर इसमें कुल 250 सीटें होती हैं। भारत के राष्ट्रपति इस हाउस के लिए कला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों से 12 सदस्यों को चुन सकते हैं।
  • राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, जिसमें प्रत्येक 2 वर्ष में एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं। राज्य सभा में शामिल होने के लिए उम्मीदवार की उम्र न्यूनतम 30 वर्ष की होनी चाहिए।
  • राज्यसभा सांसदों के चुनावों में आम नागरिकों की कोई भूमिका नहीं होती। राज्यसभा सांसदों का निर्वाचन विधासनभा से होता है। देश के विभिन्न राज्यों के विधान सभा से 'सिंगल ट्रांसफरेबल वोट' निर्वाचित राज्यसभा सांसद राज्यसभा के बहस में हिस्सा लेते हैं।
विधान सभा चुनाव
  • विधानसभा राज्य सरकार के गठन के लिए होने वाले चुनावों को कहा जाता है। ये भी देश के विभिन्न राज्यों में प्रत्येक पांच वर्षों में संपन्न होता है।
  • राज्य का कोई भी व्यक्ति जो 18 वर्ष या इससे अधिक का हो तथा इलेक्शन कमीशन में अपना नाम एनरोल कराया हो, अपने विधानसभा निर्वाचन से अपने पसंदीदा उम्मीदवार को अपना वोट दे सकता है। विधान सभा में चुने गए जन-प्रतिनिधि को विधायक कहा जाता है।
विधानसभा की चुनाव प्रक्रिया
  • लोकसभा की तरह विधानसभा चुनाव भी निर्वाचन आयोग की देख-रेख में पांच वर्ष के अंतराल पर होता है। राज्य के आकर और जनसंख्या के अनुसार विभिन्न राज्यों के विभिन्न संख्या में विधानसभा सीटें हैं। इन विधान सभा सीटों से कई क्षेत्रीय पार्टी, निर्दलीय और राष्ट्रीय पार्टियों के प्रतिनिधि चुनाव लड़ते हैं।
पद के उम्मीदवारों की योग्यता
  • उम्मीदवार की आयु कम से कम 25 वर्ष की होनी चाहिए।
  • उम्मीदवार के विरुद्ध किसी तरह का कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए।
  • उम्मीदवार 'मेंटली' स्वस्थ होना चाहिए।
  • उम्मीदवार का भारतीय नागरिक होना अनिवार्य है। साथ ही उम्मीदवार का नाम मतदाता सूची में होना भी अनिवार्य है।

भारत में राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति चुनाव

  • भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा तथा विभिन्न राज्यों के विधायकों की प्रतिभागिता रहती है। ये चुनाव तात्कालिक राष्ट्रपति के कार्यकाल समाप्त होने के पहले होता है।
  • संविधान के अधिनियम संख्या 55 के अनुसार 'प्रोपोरशनल रिप्रेजेंटेशन सिस्टम के अंतर्गत राष्ट्रपति चुनाव होता है, जिसम 'सीक्रेट वेट' व्यवस्था का प्रयोग होता है।
  • भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों के सीधे वोटिंग से होता है। यह चुनाव उपराष्ट्रपति के ऑफिस में निर्वाचन आयोग द्वारा कंडकट होता है।
भारत में चुनाव परिणाम और बहुमत
  • चुनाव के बाद मतगणना की प्रक्रिया शुरू होती है. ये प्रक्रिया काफी देख रेख में होती है। यदि वोटिंग रिजल्ट में किसी पार्टी को कुल सीटों की दो तिहाई सीटों पर जीत हासिल होती है, तो उस राजनैतिक पार्टी की जीत होगी और सरकार बनाने का मौका मिलेगा।
  • यदि किसी भी राजनैतिक पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हो पाता है, तो गठबंधन की सरकार बनती है। इस तरह की सरकारों में एक से अधिक राजनैतिक पार्टियों हिस्सा लेती है और कैविनेट में दोनों पार्टियों के लोग शामिल होते हैं। विपक्ष में आने के लिए हारी हुई पार्टियों में न्यूनतम कुल सीटों का 10 प्रतिशत प्राप्त करना होता है।
भारत का निर्वाचन आयोग-
  • भारत का निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जो भारत के विभिन्न चुनावों की प्रक्रिया पूर्ण करती है। इस संस्था की स्थापना 25 जनवरी, 1950 में हुई थी।
  • इस संस्था की मुख्य भूमिका चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शिता देने में है। देश के लोकतंत्र में निर्वाचन की बहुत अहम् भूमिका है।
भारत में निर्वाचन आयोग की भूमिका-
  • निर्वाचन आयोग का मुख्य कार्य चुनाव के दौरान मॉडल कांड ऑफ कंडक्ट की सहायता से चुनाव को पारदर्शी बनाए रखना है। ये संस्था स्वतंत्र है और किसी सरकार के अधीन कार्य नहीं करती।
  • यदि किसी चुनाव के दौरान कोई उम्मीदवार मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का पालन नहीं करता है, तो आयोग उसके विरुद्ध नोटिस जारी करती है और कंस न्यायलय में पहुँच जाता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। इसके मुख्य चुनाव आयुक्त का चुनाव भारत के राष्ट्रपति करते हैं। चयनित अफसर का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
भारत के निर्वाचन आयोग के कार्य-
  • निर्वाचन आयोग को भारत में होने वाले चुनावों की पारदर्शिता का संरक्षक माना जाता है।
  • ये प्रत्येक चुनाव में राजनैतिक पार्टियों तथा उनके उम्मीदवारों के लिए मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट जारी करता है, ताकि लोकतंत्र पर कोई आंच न आये।
  • ये सभी राजनैतिक पार्टियों का पंजीकरण करता है तथा उनके रेगुलेशन का नियमन करता है।
  • ये सभी राजनैतिक पार्टियों तथा उनके उम्मीदवारों के लिए चुनावी प्रचार के अधिकतम खर्च की सीमा तय करती है।
  • सभी राजनैतिक पार्टियों को अपने वार्षिक रिपोर्ट निर्वाचन आयोग में जमा करना होता है। साथ ही साल भर की ऑडिट भी पार्टियों को जमा करना होता है।
भारत के निर्वाचन आयोग के अधिकार-
  • निर्वाचन आयोग आवश्यकता पड़ने पर ओपिनियन पोल के परिणाम दबा सकता है। आयोग यदि चुनाव के बाद भी किसी उम्मीदवार को ऐसी अवस्था में पाता है कि उसने चुनाव के दौरान आवश्यक निर्देशों की अवहेलना की है, तो उसकी सदस्यता को बर्खास्त करने की पहल कर सकता है।
  • यदि किसी उम्मीदवार को चुनाव के दौरान किसी तरह के गैरकानूनी काम में पाया जाता है, तो भारत का सर्वोच्च न्यायालय आयोग से बात कर सकता है।
  • यदि कोई उम्मीदवार समय पर अपने चुनावी खर्च का ब्यौरा नहीं दे पाता तो, आयोग उसकी सदस्यता बर्खास्त कर सकता है।
  • इस तरह भारत के लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव बहुत जरूरी कदम है। देश के सभी मतदाताओं का चुनाव में हिस्सा लेना और अपनी सूझ बूझ के साथ बिना किसी के बहकावे में आये मतदान करना बहुत जरूरी है।

चुनावों की जरूरत

  • किसी भी लोकतंत्र में नियमित अंतराल पर चुनाव होते हैं। दुनिया के सौ से अधिक देश ऐसे हैं जहाँ जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए चुनाव होते हैं। अनेक ऐसे देश जो लोकतांत्रिक नहीं हैं, वहाँ भी चुनाव होते हैं।
भारत में सरकार क की संरचना
  • भारत में चयनित सरकार की संरचना को समझना बहुत आवश्यक है। इससे देश के लिए सरकार की भूमिका का पता चलता है, साथ ही इस बात को समझने में आसानी होती है, कि क्या सरकार सही रूप में काम कर रही है।
  • केंद्र सरकार की संरचना: भारत सरकार के मुख्यतः तीन भाग हैं इन तीनों भाग के अपने मुख्य कार्य हैं-
  • एग्जीक्यूटिव इसके अंतर्गत देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा कैबिनेट मिनिस्टर आते हैं, जिनका काम संसद में बने कानूनों को पास करना होता है।
  • संसद का विधान मंडल- संसद विधान मंडल के अंतर्गत लोकसभा, राज्यसभा और प्रधानमंत्री आते हैं। सरकार के इस भाग का काम देशवासियों के हित के लिए कानून बनाना है।
  • ज्यूडीशरी इसका काम एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेचर के बीच समन्वय स्थापित करना होता है। इस कार्य के साथ ज्यूडीशरी जन साधारण सम्बंधित अन्य समस्याओं का भी हल निकालती है।
  • राज्य सरकार की संरचना: केंद्र सरकार की ही तरह राज्य सरकार की भी एक व्यवस्थित संरचना है, जिसके अन्तर्गत राज्य सरकार अपना काम करती है। यहाँ पर राज्य सरकार की संरचना का विवरण है। इसके भी तीन मुख्य भाग हैं। केंद्र की तरह इन तीनों भाग के भी अपने मुख्य कार्य हैं।
  • विधानसभा- इसके अंतर्गत वे सभी प्रतिनिधि आते हैं, जिन्हें विधान सभा चुनाव के दौरान निर्वाचित किया जाता है। इस निर्वाचन में आम जनता हिस्सा लेती है।
  • गवर्नर- प्रत्येक राज्य के लिए गवर्नर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
  • विधान परिषद्- इसमें आने वाले सदस्यों को एमएलसी कहा जाता है। फिलहाल देश के 5 राज्यों में एमएलसी नियुक्त किये जाते हैं। ये राज्य हैं: उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक है।
  • केंद्र शासित प्रदेश: भारत देश में कुल 8 केन्द्र शासित प्रदेश मौजूद है।
  • इन केन्द्रशासित प्रदेशों के नाम हैं: दिल्ली, पांडिचेरी, दादरा और नागर दमन और दीव, चंडीगढ़, लक्षद्वीप, अंडमान-निकोबार, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख है।
  • दिल्ली और पांडिचेरी को आंशिक रूप से राज्य का दर्जा मिला है किन्तु यह अभी भी पूर्ण राज्य घोषित नहीं हुआ है। इन केन्द्रशासित प्रदेशों के निर्वाचित मुख्यमंत्री होते हैं। मुख्यमन्त्री के न होने पर प्रदेश का सारा कार्यभार लेफ्टिनेंट गवर्नर संभालता है। 
  • इन दोनों के अलावा बाकी सभी केन्द्रशासित प्रदेश पूर्ण केंद्र सरकार के अधीन है। इन प्रदेशों को चलाने के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा किसी आईएएस अथवा सांसद की नियुक्ति होती है।
  • पंचायत राज सरकार द्वारा गाँवों के लिए जारी योजनाओं के नियमन के लिए पंचायत राज का गठन होता है। इसके अंतर्गत तीन मुख्य भाग आते हैं- ग्राम पंचायत, तालुका अथवा तहसील, जिला पंचायत और ग्रामपंचायत के अंतर्गत सरपंच तथा अन्य सदस्य की नियुक्ति होती है।
भारत के चुनाव में ग्राम पंचायत की भूमिका
  • किसी क्षेत्र का ग्राम पंचायत अपने क्षेत्र के विकास के लिए आर्थिक योजनाएँ बनाता है, उसका नियमन करता है तथा समाज में 'सोशल जस्टिस' को बनाए रखता है।
  • ब्लाक पंचायत अथवा पंचायत समिति में क्षेत्र के सांसद, विधायक, एसडीओ तथा गाँव के पिछड़े हिस्सों का प्रतिनिधित्व करते हुए कुछ लोग शामिल होते हैं।
  • ब्लॉक पंचायत किसी तहसील के लिए कार्य करता है और इसे ब्लॉक डेवलपमेंट कहा जाता है। जिला पंचायत के अंतर्गत आईएएस ऑफिसर तथा उसके साथ कुछ निर्वाचित जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं।
भारत के चुनाव में महानगर निगम
  • महानगर निगम अथवा म्युनिसिपल देश के शहरों के विकास को नियमित करने के लिए गठित होता है। इसके प्रत्येक वार्ड में सभासद और मेयर होते हैं।
  • सभासद आम लोगों द्वारा निर्वाचित होता है। वैसे शहर जिनकी जनसँख्या एक लाख से ऊपर है, म्युनिसिपल कारपोरेशन के अंतर्गत आते हैं। ये आंकड़ा पहले 20,000 था।
  • जिस नगर की जनसँख्या 11,000 से अधिक तथा 25,000 से कम होता है, वैसे नगरों के लिए नगर पंचायत अथवा नगर परिषद् का गठन होता है।

चुनाव में मतदाता

  • मतदाता अपने लिए कानून बनाने वाले का चुनाव कर सकते हैं। सरकार बनाने और बड़े फैसले करने वाले का चुनाव कर सकते हैं। सरकार और उसके द्वारा बनने वाले कानूनों का दिशा-निर्देश करने वाली पार्टी का चुनाव कर सकते हैं।
  • लोकतांत्रिक देशों में चुनाव कई तरह से होते हैं। यहाँ तक कि अधिकांश गैर- लोकतांत्रिक देशों में भी किसी ना किसी तरह के चुनाव होते हैं।
  • लोकतांत्रिक चुनावों के लिए जरूरी न्यूनतम शर्तें निम्नलिखित है :
    • पहला, हर किसी को चुनाव करने की सुविधा हो । यानि हर किसी को मताधिकार हो और हर किसी के मत का समान मोल हो ।
    • दूसरा, चुनाव में विकल्प उपलब्ध हों। पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव में उतरने की आजादी हो और वे मतदाताओं के लिए विकल्प पेश करें।
    • तीसरा, चुनाव का अवसर नियमित अंतराल पर मिलता रहे। नए चुनाव कुछ वर्षों में जरूर कराए जाने चाहिए।
    • चौथा, लोग जिसे चाहें वास्तव में चुनाव उसी का होना चाहिए।
    • पाँचवा चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से कराए जाने चाहिए जिससे लोग सचमुच अपनी इच्छा से व्यक्ति का चुनाव कर सकें।
  • ये शर्ते बहुत आसान और सरल लग सकती हैं, लेकिन अनेक देश ऐसे हैं जहाँ के चुनावों में इन शर्तों को भी पूरा नहीं किया जाता। 
राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता
  • चुनाव का मतलब राजनैतिक प्रतियोगिता या प्रतिद्वंद्विता है। यह प्रतियोगिता कई तरह का रूप ले सकती है। सबसे स्पष्ट रूप है राजनैतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वंद्विता ।
  • निर्वाचन क्षेत्रों में इसका स्वरूप उम्मीदवारों के बीच प्रतिद्वंद्विता का हो जाता है। अगर प्रतिद्वंद्विता नहीं रहे तो चुनाव बेमानी हो जाएँगे।
  • विभिन्न दलों के लोग और नेता अकसर एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते हैं। पार्टियाँ और उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। समाज और देश की सेवा करने की चाह रखने वाले कई अच्छे लोग भी इन्हीं कारणों से चुनावी मुकाबले में नहीं उतरते ।
  • भारतीय संविधान निर्माता इन समस्याओं के प्रति सचेत थे। फिर भी उन्होंने भविष्य के नेताओं के चुनाव के लिए मुक्त चुनावी मुकाबले का ही चयन किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि दीर्घकालिक रूप से यही व्यवस्था बेहतर काम करती है।
  • एक आदर्श दुनिया में ही सभी राजनैतिक नेताओं को मालूम होता है कि लोगों का हित किन चीजों में है तथा ये सभी नेता लोगों की सेवा की प्रेरणा से ही राजनीति में आते हैं। असल जीवन में ऐसा नहीं होता।
  • दुनिया भर के सभी नेताओं को अन्य पेशों के लोगों के समान आगे बढ़ने की, अपना करियर बनाने की चिंता होती है। वे सत्ता में बने रहना चाहते हैं या अपने लिए बड़ी से बड़ी कुर्सी और ज्यादा से ज्यादा अधिकार पाना चाहते हैं।
  • उनके अंदर लोगों की सेवा करने की भावना भी हो पर सिर्फ इस भावना के भरोसे चीजों को छोड़ना जोखिम का काम है। यह भी संभव है कि उनके अंदर लोगों की मदद करने की भावना हो पर उन्हें यह मालूम न हो कि यह काम कैसे किया जा सकता है। या फिर यह भी हो सकता है कि उनके मन में जो विचार हों उनका लोगों की जरूरत या स्थानीय स्थितियों से मेल ही न बैठे।
  • एक तरीका राजनेताओं के ज्ञान और चरित्र में बदलाव और सुधार लाने का है। दूसरा और ज्यादा व्यावहारिक तरीका यह है कि हम ऐसी व्यवस्था बनाएँ जिसमें लोगों की सेवा करने वाले राजनेताओं को पुरस्कार मिले और ऐसा न करने वालों को दंड मिले ।
चुनाव की प्रणाली
  • भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हर पाँच साल बाद होते हैं। पाँच साल के बाद सभी चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
  • लोकसभा और विधानसभाएँ भग हो जाती है। फिर सभी चुनाव क्षेत्र में एक ही दिन या एक छोटे अंतराल में अलग-अलग दिन कुतक होते हैं। इसे आम चुनाव कहते हैं।
  • कई बार सिर्फ एक क्षेत्र में चुनाव होता है जो किसी सदस्य की मृत्यु का इस्तीफे से खाली हुआ होता है। इसे उपचुनाव कहते हैं।
चुतव क्षेत्र
  • भारत में क्षेत्र विशेष पर आधारित प्रतिनिधित्व की प्रणाली से काम करते हैं। चुनाव के उद्देश्य से देश को अनेक क्षेत्रों में बाँट लिया गया है। इन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं।
  • एक क्षेत्र में रहने वाले मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। लोकसभा चुनाव के लिए देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट गया है। हर क्षेत्र से चुने गए प्रतिनिधियों को संसद सदस्य कहते हैं।
  • लांकतांत्रिक चुनाव की एक विशेषता है हर वोट का बराबर मूल्य इसीलिए हमारे संविधान में यह व्यवस्था है कि हर चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या काफी हद तक एक समान ह्यं ।
  • प्रत्येक राज्य को उसकी विधानसभा की सीटों के हिसाब से बाँटा गया है। इन सीटों से निर्वाचित प्रतिनिधियों को विधायक कहते हैं।
  • प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा के कई-कई निर्वाचन क्षेत्र आते हैं। पंचायतों नगरपालिका के चुनावों में भी यही तरीका अपनाया जाता है।
  • प्रत्येक पंचायत को कई वार्डो में बाँटा जाता है जो छोटे-छोटे निर्वाचन क्षेत्र हैं। प्रत्येक वार्ड से पंचायत या नगरपालिका के लिए एक सदस्य का चुनाव होता है। कई बार निर्वाचन क्षेत्रों को सीट भी कहा जाता है क्योंकि हर क्षेत्र संसद या विधानसभा की एक सीट का प्रतिनिधित्व करता है।
आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र
  • भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपना प्रतिनिधि चुनने और जनप्रतिनिधि के तौर पर चुने जाने का अधिकार देता है।
  • संविधान निर्माताओं को चिंता थी कि खुले चुनावी मुकाबले में कुछ कमजोर समूहों के लोग लोकसभा और विधानसभाओं में पहुँच नहीं पाएँ। संभव है कि चुनाव लड़ने और जीतने लायक जरूरी संसाधन, शिक्षा और संपर्क उनके पास हो ही नहीं।
  • संसाधनों वाले प्रभावशाली लोग उनको चुनाव जीतने से रोक भी सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो संसद और विधानसभाओं में हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से की आवाज ही नहीं पहुँच पाएगी। इससे हमारे लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का चरित्र कमजोर होगा और यह व्यवस्था कम लोकतांत्रिक होगी।
  • संविधान निर्माताओं ने कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र की विशेष व्यवस्था सोची। इसी कारण कुछ चुनाव क्षेत्र अनुसूचित जातियों के लोगों के लिए आरक्षित हैं तो कुछ क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए।
  • अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर केवल अनुसूचित जाति का ही व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। इसी तरह सिर्फ अनुसूचित जनजाति के ही व्यक्ति अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं।
  • लोकसभा की 79 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए और 41 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें पूरी आबादी में इन समूहों के हिस्से के अनुपात में हैं। इस प्रकार अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटें किसी अन्य समूह के उचित हिस्से में से कुछ नहीं लेतीं ।
  • कमजोर समूहों के लिए आरक्षण की यह व्यवस्था बाद में जिला और स्थानीय स्तर पर भी लागू की गई। अनेक राज्यों में अब ग्रामीण (पंचायतों) और शहरी ( नगरपालिका और नगर निगमों) स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी आरक्षण लागू हो गया है। 
  • हर राज्य में आरक्षित सीटों का अनुपात अलग-अलग है। इसी प्रकार ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं।
मतदाता सूची
  • एक बार जब निर्वाचन क्षेत्र का फैसला हो जाता है तब यह तय किया जाता है कि कौन वोट दे सकता है, कौन नहीं। इस फैसले को अंतिम दिन तक के लिए किसी के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
  • लोकतांत्रिक चुनाव में मतदान की योग्यता रखने वालों की सूची चुनाव से काफी पहले तैयार कर ली जाती है और हर किसी को दे दी जाती है। इस सूची को आधिकारिक रूप से मतदाता सूची कहते हैं। आम बोलचाल में इसे वोटर लिस्ट भी कहते हैं ।
  • यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि इसका सीधा संबंध लोकतांत्रिक चुनाव की पहली शर्त अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए हर किसी को समान अवसर मिलने से है।
  • व्यवहार में सार्वभौम वयस्क मताधिकार का मतलब प्रत्येक व्यक्ति को मत देने का अधिकार होना चाहिए और हर एक का मत समान मोल का होना चाहिए।
  • जब तक ठोस कारण न हों किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। अलग-अलग नागरिक अनेक मामलों में एकदूसरे से भिन्न होते हैं: कोई अमीर है, कोई गरीब; कोई बहुत पढ़ा-लिखा है तो कोई कम या एकदम अशिक्षित; कोई बहुत दयालु है तो कोई नहीं। पर हर कोई इंसान तो है, और, अपनी जरूरतों और विचारों के अनुरूप समाज में योगदान करता है। इसलिए सभी को प्रभावित करने वाले निर्णयों में सबकी भागीदारी होनी चाहिए।
  • हमारे देश में 18 वर्ष और उससे ऊपर की उम्र के सभी नागरिक चुनाव में वोट डाल सकते हैं। नागरिक की जाति, धर्म, लिंग चाहे जो हो उसे मत देने का अधिकार है ।
  • अपराधियों और दिमागी असंतुलन वाले कुछ लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है लेकिन ऐसा सिर्फ बेहद खास स्थितियों में ही होता है।
  • सभी सक्षम मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में हो यह व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है। चूंकि हर अगले चुनाव में नए लोग मतदाता बनने की उम्र तक आ जाते हैं इसलिए हर चुनाव से पूर्व मतदाता सूची को सुधारा जाता है। जो लोग उस इलाके से बाहर चले जाते हैं या जिनकी मौत हो जाती है उनके नाम इस सूची से काट दिए जाते हैं।
  • हर पाँच वर्ष में मतदाता सूची का पूर्ण नवीनीकरण किया जाता है। ऐसा मतदाता सूची को एकदम ताजा रखने के लिए किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से चुनावों में फोटो पहचान-पत्र की नई व्यवस्था लागू की गई है।
  • सरकार ने मतदाता सूची में दर्ज सभी लोगों को यह कार्ड देने की कोशिश की है। वोट देने जाते समय मतदाता को यह पहचान-पत्र साथ रखना होता है जिससे किसी एक का वोट कोई दूसरा न डाल दे।
  • मतदान के लिए यह कार्ड अभी तक अनिवार्य नहीं हुआ है। वोट देने के लिए मतदाता राशन कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे पहचान पत्र भी दिखा सकते हैं।
उम्मीदवारों का नामांकन
  • लोकतांत्रिक चुनावों में लोगों के पास वास्तविक विकल्प होना चाहिए। यह तभी होगा जब किसी के भी चुनाव लड़ने पर लगभग किसी किस्म की बंदिश न हो।
  • हमारी चुनाव प्रणाली ऐसा ही करती है। जो कोई व्यक्ति मतदाता है वह उम्मीदवार भी हो सकता है। सिर्फ एक फर्क यह है कि कोई भी व्यक्ति 18 वर्ष की उम्र में ही वोट डालने का · अधिकारी हो जाता है जबकि उम्मीदवार बनने की न्यूनतम आयु 25 वर्ष है।
  • उम्मीदवार बनने में भी अपराधियों पर रोक है लेकिन यह पाबंदी भी बहुत ही कम मामलों में लागू होती है। राजनैतिक दल अपने उम्मीदवार मनोनीत करते हैं जिन्हें पार्टी का चुनाव चिह्न और समर्थन मिलता है।
  • चुनाव लड़ने के इच्छुक हर एक उम्मीदवार को एक नामांकन पत्र भरना पड़ता है और कुछ रकम जमानत के रूप में जमा करानी पड़ती है। हाल में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर उम्मीदवारों से एक घोषणा-पत्र भरवाने की नई प्रणाली भी शुरू हुई है ।
  • अब हर उम्मीदवार को अपने बारे में कुछ ब्यौरे देते हुए वैधानिक घोषणा करनी होती है। प्रत्येक उम्मीदवार को इन मामलों के सारे विवरण देने होते हैं:
    • उम्मीदवार के खिलाफ चल रहे गंभीर आपराधिक मामले ।
    • उम्मीदवार और उसके परिवार के सदस्यों की संपत्ति और देनदारियों का ब्यौरा |
    • उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता ।
  • इन सूचनाओं को सार्वजनिक किया जाता है, इससे मतदाताओं को उम्मीदवारों द्वारा खुद के बारे में सूचना के आधार पर अपने फैसले करने का मौका मिलता है।
चुनाव अभियान
  • चुनावों का मुख्य उद्देश्य लोगों को अपनी पसंद के प्रतिनिधियों, . सरकार और नीतियों का चुनाव करने का अवसर देना है। इसलिए, कौन प्रतिनिधि बेहतर है, कौन पार्टी अच्छी सरकार देगी या अच्छी नीति कौन-सी है, इस बारे में स्वतंत्र और खुली चर्चा भी बहुत जरूरी है। चुनाव अभियान के दौरान यही होता है।
  • भारत में उम्मीदवारों की अंतिम सूची की घोषणा होने और मतदान की तारीख के बीच आम तौर पर दो सप्ताह का समय चुनाव प्रचार के लिए दिया जाता है।
  • इस अवधि में उम्मीदवार मतदाताओं से संपर्क करते हैं, राजनेता चुनावी सभाओं में भाषण देते हैं और राजनैतिक पार्टियाँ अपने समर्थकों को सक्रिय करती हैं।
  • चुनाव अभियान के दौरान राजनैतिक पार्टियाँ लोगों का ध्यान कुछ बड़े मुद्दों पर केंद्रित कराना चाहती हैं। वे लोगों को इन मद्दों पर आकर्षित करती हैं और अपनी पार्टी के पक्ष में वोट देने को कहती हैं। विभिन्न चुनावों में विभिन्न दलों द्वारा उठाए गए कुछ सफल नारें निम्नलिखित है :
    • इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने 1971 के लोकसभा चुनावों में गरीबी हटाओ का नारा दिया था। पार्टी ने वायदा किया कि वह सरकार की सारी नीतियों में बदलाव करके सबसे पहले देश से गरीबी हटाएगी।
    • 1977 में हुए अगले लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी ने नारा दिया लोकतंत्र बचाओ। पार्टी ने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों को समाप्त करने और नागरिक आजादी को बहाल करने का वायदा किया।
    • वामपंथी दलों ने 1977 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जमीन-जोतने वाले को का नारा दिया था।
    • 1983 के आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनावों में तेलुगु देशम पार्टी के नेता एन.टी. रामाराव ने तेलुगु स्वाभिमान का नारा दिया था।
  • चुनाव के कानूनों के अनुसार कोई भी उम्मीदवार या पार्टी ये सब काम नहीं कर सकती:
    • मतदाता को प्रलोभन देना, घूस देना या धमकी देना।
    • उनसे जाति या धर्म के नाम पर वोट माँगना ।
    • चुनाव अभियान में सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल करना ।
    • लोकसभा में एक निर्वाचन क्षेत्र में 25 लाख या चुनाव विधानसभा चुनाव में 1 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करना ।
  • अगर वे इनमें से किसी भी मामले में दोषी पाए गए तो चुने जाने के बावजूद उनका चुनाव रद्द घोषित हो सकता है। इन कानूनों के अलावा हमारे देश की सभी राजनैतिक पार्टियों ने चुनाव प्रचार की आदर्श आचार संहिता को भी स्वीकार किया है। इसमें उम्मीदवारों और पार्टियों को यह सब करने की मनाही है:
    • चुनाव प्रचार के लिए किसी धर्मस्थल का उपयोग।
    • सरकारी वाहन, विमान या अधिकारियों का चुनाव में उपयोग। 
    • चुनाव की अधिघोषणा हो जाने के बाद मंत्री किसी बड़ी योजना का शिलान्यास, बड़े नीतिगत फैसले या लोगों को सुविधाएँ देने वाले वायदे नहीं कर सकते।
मतदान और मतगणना
  • चुनाव का आखिरी चरण है मतदाताओं द्वारा वोट देना। इस द को आम तौर पर चुनाव का दिन कहते हैं।
  • पहले मतदाता एक मतपत्र पर अलग-अलग छपे उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिह्न में से अपनी पसंद के उम्मीदवार के चुनाव चिह्न पर मोहर लगाकर अपनी पसंद जाहिर करते थे। अब मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल होने लगा है। मशीन के ऊपर उम्मीदवारों के नाम और उनके चुनाव चिह्न बने होते हैं।
  • किसी चुनाव क्षेत्र में सबसे ज्यादा मत पाने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है। आम चुनाव में अमूमन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में मतगणना एक ही तारीख पर होती है।
भारत में लोकतांत्रिक चुनाव
  • अखबार और टीवी चैनलों की खबरों में अकसर ऐसी गड़बड़ियों की चर्चा रहती है और आरोप लगाए जाते हैं। अधिकांश खबरों में कुछ इस तरह की गड़बड़ियों की सूचना होती हैं:
    • मतदाता सूची में फर्जी नाम डालने और असली नामों को गायब करने की।
    • शासक दल द्वारा सरकारी सुविधाओं और अधिकारियों के दुरुपयोग की।
    • अमीर उम्मीदवारों और बड़ी पार्टियों द्वारा बड़े पैमाने पर धन खर्च करने की।
    • मतदान के दिन चुनावी धांधली।
    • मतदाताओं को डराना और फर्जी मतदान करना।
स्वतंत्र चुनाव आयोग
  • चुनाव निष्पक्ष हुए हैं या नहीं इसे जाँचने का एक सरल तरीका है यह देखना कि उनका संचालन कौन करता है। भारत में चुनाव एक स्वतंत्र और बहुत ताकतवर चुनाव आयोग द्वारा कराए जाते हैं। इसे न्यायपालिका के समान ही आजादी प्राप्त है।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति या सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं रहता। अगर शासक पार्टी या सरकार को चुनाव आयोग पसंद न हो तब भी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटा पाना लगभग असंभव है।
  • विश्व के शायद ही किसी चुनाव आयोग को भारत के चुनाव आयोग जितने अधिकार प्राप्त होंगे। चुनाव आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करने से लेकर चुनावी नतीजों की घोषणा तक, पूरी चुनाव प्रक्रिया के संचालन के हर पहलू पर निर्णय लेता है। यह आदर्श चुनाव संहिता लागू कराता है और इसका उल्लंघन करने वाले उम्मीदवारों और पार्टियों को सजा देता है।
  • चुनाव के दौरान चुनाव आयोग सरकार को दिशा-निर्देश मानने का आदेश दे सकता है। इसमें सरकार द्वारा चुनाव जीतने के लिए चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना या अधिकारियों का तबादला करना भी शामिल है।
  • चुनाव ड्यूटी पर तैनात अधिकारी सरकार के नियंत्रण में न होकर चुनाव आयोग के अधीन काम करते हैं। चुनाव अधिकारियों को लगता है कि कुछ मतदान केंद्रों पर या पूरे चुनाव क्षेत्र में मतदान ठीक ढंग से नहीं हुआ है तो वे वहाँ फिर से मतदान का आदेश देते हैं। 
  • अकसर शासक दलों को चुनाव आयोग के कामकाज से परेशानी होती है लेकिन उन्हें चुनाव आयोग के आदेश मानने होते हैं। चुनाव आयोग स्वतंत्र और शक्तिशाली नहीं होता तो यह संभव न था।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here