BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH ECONOMY NOTES | संसाधन के रूप में लोग

शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूँजी में बदल जाती है। वास्तव में, मानव पूँजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH ECONOMY NOTES | संसाधन के रूप में लोग

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH ECONOMY NOTES | संसाधन के रूप में लोग

  • शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूँजी में बदल जाती है। वास्तव में, मानव पूँजी कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है।
  • 'संसाधन के रूप में लोग' वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में किसी देश के कार्यरत लोगों का वर्णन . करने का एक तरीका है। 
  • उत्पादक पहलू की दृष्टि से जनसंख्या पर विचार करना सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उनके योगदान की क्षमता पर बल देता है। दूसरे संसाधनों की भाँति ही जनसंख्या भी एक संसाधन है—‘एक मानव संसाधन ' - यह विशाल जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है, जिसे प्रायः उस वक्त अनदेखा कर दिया जाता है जब हम इसके नकारात्मक पहलू को देखते हैं अर्थात् भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक जनसंख्या की पहुँच की समस्याओं पर विचार करते समय |
  • जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं, जो भौतिक पूँजी निर्माण की ही भाँति देश की उत्पादक शक्ति में वृद्धि करता है।
  • मानव पूँजी में निवेश ( शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के द्वारा) भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है।
  • अधिक शिक्षित या बेहतर प्रशिक्षित लोगों की उच्च उत्पादकता कारण होने वाली अधिक आय और साथ ही अधिक स्वस्थ लोगों की उच्च उत्पादकता के रूप में इसे प्रत्यक्षतः देखा जा सकता है।
  • उच्च आय से न केवल अधिक शिक्षित और अधिक स्वस्थ लोगों को लाभ होता है बल्कि समाज को भी अप्रत्यक्ष तरीकों से लाभ होता है, क्योंकि अधिक शिक्षित या अधिक स्वस्थ जनसंख्या का लाभ उन लोगों तक भी पहुँचता है जो स्वयं प्रत्यक्ष रूप से उतने शिक्षित नहीं हैं या उतनी स्वास्थ्य सेवाएँ उन्हें प्रदान नहीं की गई हैं।
  • वास्तव में, मानव पूँजी एक तरह से अन्य संसाधनों जैसे, भूमि और भौतिक पूँजी से श्रेष्ठ है, क्योंकि मानव संसाधन भूमि और पूँजी का उपयोग कर सकता है।
  • भूमि और पूँजी अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते। अनेक दशकों से भारत में विशाल जनसंख्या को एक परिसंपत्ति की अपेक्षा एक दायित्व माना जाता रहा है। लेकिन, यह आवश्यक नहीं कि एक विशाल जनसंख्या देश के लिए दायित्व ही हो।
  • मानव पूँजी में निवेश द्वारा इसे एक उत्पादक परिसंपत्ति में बदला जा सकता है (उदाहरण के लिए, सबके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य, आधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रयोग में औद्योगिक और कृषि श्रमिकों के प्रशिक्षण, उपयोगी वैज्ञानिक अनुसंधान आदि पर संसाधनों के व्यय द्वारा ) ।
  • मानव संसाधन में (शिक्षा और चिकित्सा सेवा के द्वारा) निवेश से भविष्य में उच्च प्रतिफल प्राप्त हो सकते हैं। लोगों में यह निवेश भूमि और पूँजी में निवेश की ही तरह है।
  • व्यक्ति शेयरों तथा बांडों में भविष्य में उच्च प्रतिफल की आशा से निवेश करता है। एक बच्चा भी, जिसकी शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश किया गया है, भविष्य में उच्च आय और समाज को वृहद योगदान के रूप में अधिक प्रतिफल दे सकता है।
  • यह देखा जाता है कि शिक्षित माँ-बाप अपने बच्चों की शिक्षा पर अधिक निवेश करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्होंने स्वयं भी शिक्षा के महत्त्व को अनुभव किया होता है।
  • वे उचित पोषण और स्वच्छता के प्रति भी सचेत होते हैं। इसी प्रकार वे अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं। इस तरह इस मामले में एक अच्छा चक्र बन जाता है।
  • इसके विपरीत, स्वयं भी अशिक्षित और अस्वच्छता तथा सुविधावंचित स्थिति में रहने वाले माँ-बाप एक दुष्चक्र सृजित कर लेते हैं और अपने बच्चों को अपनी ही तरह सुविधाओं से वंचित स्थिति में रखते हैं।
  • जापान जैसे देशों ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था। यह विकसित धनी देश है। वे अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात करते हैं ।
  • उन्होंने लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया। उन लोगों ने भूमि और पूँजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है। इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की उसी से ये देश धनी/ विकसित बने । विभिन्न क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रकों-प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक में वर्गीकृत किया गया है-
    • प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत कृषि वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन, मुर्गीपालन और खनन शामिल हैं।
    • द्वितीयक क्षेत्रक में उत्खनन और विनिर्माण शामिल हैं।
    • तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन सेवाएँ इत्यादि शामिल किए जाते हैं। 
  • इस क्षेत्र में क्रिया-कलाप के फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रिया-कलाप राष्ट्रीय आय में मूल्य-वर्धन करते हैं। ये क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं।
  • आर्थिक क्रियाओं के दो भाग होते हैं- बाज़ार क्रियाएँ और गैर-बाज़ार क्रियाएँ ।
  • बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु या सेवाओं का उत्पादन शामिल है।
  • गैर-बाज़ार क्रियाओं से अभिप्राय स्व-उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारणों से परिवार में महिलाओं और पुरुषों के बीच श्रम का विभाजन होता है। आमतौर पर महिलाएँ घर के काम-काज देखती हैं और पुरुष खेतों में काम करते हैं।
  • परिवार के लिए दी गई सेवाओं के बदले महिलाओं को भुगतान नहीं किया जाता। उनकी सेवाओं को राष्ट्रीय आय में नहीं जोड़ा जाता, जो कि देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल योग है।
  • महिलाओं को उनकी सेवाओं के लिए तब भुगतान किया जाता है, जब वे श्रम बाज़ार में प्रवेश करती हैं। उनके पुरुष सहयोगी की ही तरह उनकी आय, उनकी शिक्षा और कौशल के आधार पर निर्धारित की जाती है।
  • शिक्षा व्यक्ति के उपलब्ध आर्थिक अवसरों के बेहतर उपयोग में सहायता करती है। शिक्षा और कौशल बाज़ार में किसी व्यक्ति की आय के प्रमुख निर्धारक हैं।
  • अधिकांश महिलाओं के पास बहुत कम शिक्षा और निम्न कौशल स्तर हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम पारिश्रमिक दिया जाता है।
  • अधिकतर महिलाएँ वहाँ काम करती हैं, जहाँ नौकरी की सुरक्षा नहीं होती तथा कानूनी सुरक्षा का अभाव है।
  • अनियमित रोज़गार और निम्न आय इस क्षेत्रक की विशेषताएँ हैं। इस क्षेत्रक में प्रसूति अवकाश, शिशु देखभाल और अन्य सामाजिक सुरक्षा तंत्र जैसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं। तथापि, उच्च शिक्षा और उच्च कौशल वाली महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन मिलता है।
  • संगठित क्षेत्रक में शिक्षण और चिकित्सा उन्हें सबसे अधिक > आकर्षित करती है। कुछ महिलाओं ने प्रशासनिक और अन्य सेवाओं में प्रवेश किया है, जिनमें वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय सेवा के उच्च स्तर की आवश्यकता पड़ती है।
जनसंख्या की गुणवत्ता
  • जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर जीवन प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है।
  • जनसंख्या की गुणवत्ता अंतत: देश की संवृद्धि दर निर्धारित करती है। निरक्षर और अस्वस्थ जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है। साक्षर और स्वस्थ जनसंख्या परिसंपत्तियाँ होती हैं।
शिक्षा
  • यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्य क्षमता बढ़ाती है। प्राथमिक शिक्षा में सार्वजनिक पहुँच, धारण और गुणवत्ता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है और इस मामले में लड़कियों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय जैसे प्रगति निर्धारक विद्यालयों की स्थापना की गई है।
  • बड़ी संख्या में हाई स्कूल के विद्यार्थियों को ज्ञान और कौशल से संबंधित व्यवसाय उपलब्ध कराने के लिए व्यावसायिक शाखाएँ विकसित की गई हैं।
  • साक्षरता प्रत्येक नागरिक का न केवल अधिकार है, बल्कि यह नागरिकों द्वारा अपने कर्तव्यों का ठीक प्रकार से पालन करने तथा अपने अधिकारों का ठीक प्रकार से लाभ उठाने के लिए अनिवार्य भी है। तथापि, जनसंख्या के विभिन्न भागों के बीच व्यापक अंतर पाया जाता है।
  • महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में साक्षरता दर करीब 50 प्रतिशत अधिक है और ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरीय क्षेत्रों में साक्षरता दर करीब 50 प्रतिशत अधिक है।
  • केरल के कुछ जिलों में साक्षरता दर 96 प्रतिशत है जबकि मध्य प्रदेश के कुछ भागों में यह 30 प्रतिशत से नीचे है।
  • प्राथमिक स्कूल प्रणाली भारत के 5,00,000 से भी अधिक गाँवों में फैली है। दुर्भाग्यवश, स्कूल शिक्षा के इस विस्तार को शिक्षा के निम्न स्तर और पढ़ाई बीच में छोड़ने की उच्च दर ने कमज़ोर कर दिया है।
  • 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • राज्यों, स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केंद्रीय सरकार की यह एक समयबद्ध पहल है। इसके साथ ही, प्राथमिक शिक्षा में नामांकन बढ़ाने के लिए 'सेतु- पाठ्यक्रम' और 'स्कूल लौटो शिविर' प्रारंभ किए गए हैं।
  • कक्षा में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ावा देने, बच्चों के धारण और उनकी पोषण स्थिति में सुधार के लिए दोपहर के भोजन की योजना कार्यान्वित की जा रही है। इन नीतियों से भारत में शिक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
  • 10वीं योजना में योजना अवधि के अंत तक उच्च शिक्षा में > 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में वर्तमान 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की वृद्धि करने का प्रयास किया गया है।
  • यह रणनीति पहुँच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठयक्रम में परिवर्तन को स्वीकार करना, व्यावसायीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग का जाल बिछाने पर केंद्रित है।
  • योजना दूरस्थ शिक्षा, औपचारिक, अनौपचारिक, दूरस्थ तथा संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा देने वाले शिक्षण के > 'अभिसरण पर भी केंद्रित है। पिछले 50 वर्षों में विशेष क्षेत्रों में उच्च शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों की संख्या में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
बेरोजगारी
  • बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सकें। श्रम बल जनसंख्या में वे लोग शामिल किए है, जिनकी उम्र 15 वर्ष से 59 वर्ष के बीच है।
  • भारत के संदर्भ में ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोज़गारी है। तथापि, ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोज़गारी की प्रकृति में अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी और प्रच्छन्न बेरोज़गारी है।
  • नगरीय क्षेत्रों में अधिकांशत: शिक्षित बेरोज़गारी है। मौसमी बेरोज़गारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोज़गार प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
  • कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं, जब बुआई, कटाई, निराई और गहाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।
  • प्रच्छन्न बेरोजगारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूखंड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है।
  • किसी काम में 5 लोगों की आवश्यकता होती है, लेकिन उसमें 8 लोग लगे होते हैं। इनमें 3 लोग अतिरिक्त हैं। ये तीनों इसी खेत पर काम करते है जिस पर 5 लोग काम करते है।
  • इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान 5 लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोतरी नहीं करता। अगर 3 लोगों को हटा दिया जाए, तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। खेत में 5 लोगों के काम की आवश्यकता है और 3 अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित होते हैं।
  • शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोज़गारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक, स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी अनेक युवक रोज़गार पाने में असमर्थ हैं।
  • एक अध्ययन के अनुसार मैट्रिक की तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर युवकों में बेरोज़गारी अधिक तेज़ी से बढ़ी है। एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आई है कि कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति के आधिक्य के साथ ही कुछ अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी विद्यमान है।
  • एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों के बीच बेरोज़गारी है, तो दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल की कमी भी है। 
  • बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं।
  • युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती।
  • शिक्षित लोगों के साथ, जो कार्य करने के इच्छुक हैं और सार्थक रोजगार प्राप्त करने में समर्थ नहीं हैं, यह एक बड़ा सामाजिक अपव्यय है।
  • बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोजगारों की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
बेरोजगारी का आशय
  • अर्थव्यवस्था चाहे विकसित हो अथवा अल्प विकसित बेरोजगारी एक सामान्य बात है। बेरोजगारी कुशल एवं अकुशल दोनो श्रेणी के श्रमिकों के मध्य पाई जाती है।
  • आर्थिक दृष्टि से देखे तो यह उत्पादन के एक महत्वपूर्ण संसाधन की बर्बादी है। बेराजगारी ऐसी स्थिति का निर्माण करती है जहाँ व्यक्ति का सर्वाधिक नैतिक पतन हो जाता है। बेरोजगारी भारत की एक ज्वलन्त समस्या है जिसकी जड़ गहरी पहुंच चुकी है। आज इसका स्परूप दीर्घता की ओर बढ़ता चला जा रहा है।
  • भारत में बेकारी नहीं अपितु बेकारी की समस्या विश्वव्यापी है। सामान्यतया जब एक व्यक्ति को अपने जीवन निर्वाह के लिए कोई कार्य नहीं मिलता है तो उस व्यक्ति को बेरोजगार और इस समस्या बेराजगारी कहते है।
  • दूसरे शब्दों में जब कोई व्यक्ति कार्य करने का इच्छुक है और वह शारीरिक रूप से कार्य करने में समर्थ भी है लेकिन कोई कार्य नहीं मिलता जिससे की वह अपनी जीविका का निर्वहन कर सके तो इस प्रकार की समस्या बेरोजगारी की समस्या कहलाती है।
  • हम बेरोजगार जनसंख्या के उस बढ़े भाग को नहीं कहते हैं जो काम के लिए नहीं मिलते जैसे विधार्थी बढ़े उम्र के व्यक्ति घरेलू कार्यों में लगी महिलायें आदि। जैसा प्रो. पीगू ने कहा है “एक व्यक्ति तभी ही बेरोजगार कहलाता है। जबकि उसके पास कार्य नहीं हो और वह रोजगार पाने का इच्छुक हो । "
  • अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रकाशन के मुताबिक बेरोजगार शब्द में वे सब व्यक्ति शामिल किये जाने चाहिये जो एक दिये हुए दिन में काम की तलाश में और रोजगार में नहीं लगे हुए हैं किन्तु यदि कोई रोजगार दिया जाय तो काम में लग सकतें है।
  • समस्या को परिभाषित करने के लिए यह आवश्यक है कि आवश्यकता और साधन के बारे में विस्तृत विवेचन किया जाये। 
  • बेरोजगारी के सन्दर्भ में जब हम दृष्टिपात करते है तो पाते है कि रोजगार के अवसरों और रोजगार के साधनों के संख्यात्मक मान में भी बहुत बढ़ा अन्तर है यही अन्तर बेरोजगारी चिन्तन के लिए हमें विवश करता है।
  • बेरोजगारी मूलरुप से गलत आर्थिक नियोजन का परिणाम है। व्यक्ति जहां संसार में एक मुंह के साथ आता है वही श्रम हेतु दो हाथ भी लाता है। जब तक इन हाथों को श्रम के साधन प्राप्त नहीं होते तब तक अर्थव्यवस्था को पूर्ण नियोजित अर्थव्यवस्था नहीं माना जा सकता है।
  • गाँधी जी का इस सन्दर्भ में विचार सम्पत्ति व्यक्तिगत नहीं होनी चाहिए उत्पत्ति के साधनों पर नियंत्रण होना चाहिए समाज में उपस्थित विभिन्न आर्थिक तत्व को नियोजित ढंग कुटीर और लघु उद्योगो को प्रश्रय देना चाहिए।
  • जब किसी परिवार को मात्र जीवन निर्वाह स्तर पर रहना पड़ता है, तो उसके स्वास्थ्य स्तर में एक आम गिरावट आती है और स्कूल प्रणाली से अलगाव में वृद्धि होती है। इसलिए, किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है। बेरोज़गारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है।
  • यह संसाधनों की बर्बादी भी करता है, जिन्हें उपयोगी ढंग से नियोजित किया जा सकता था। अगर लोगों को संसाधन के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सका, तो वे स्वाभाविक रूप से अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व बन जाएँगे।
  • सांख्यिकीय रूप से भारत में बेरोज़गारी की दर निम्न है। बड़ी संख्या में निम्न आय और निम्न उत्पादकता वाले लोगों की गिनती नियोजित लोगों में की जाती है। वे पूरे वर्ष काम करते प्रतीत होते हैं, लेकिन उनकी क्षमता और आय के हिसाब से यह उनके लिए पर्याप्त नहीं है।
  • वे काम तो कर रहे हैं, पर ऐसा प्रतीत होता है कि ये काम उन पर थोपे हुए हैं। इसलिए शायद वे अपनी पसंद का कोई अन्य काम करना पसंद कर सकते हैं। वे किसी भी काम से जुड़ जाना चाहते हैं, चाहे उससे कितनी भी कमाई हो । अपनी इस कमाई से वे किसी तरह जीवन निर्वाह कर पाते हैं। इसके अतिरिक्त, प्राथमिक क्षेत्र में स्वरोज़गार एक विशेषता है।
  • यद्यपि सभी लोगों की आवश्यकता नहीं होती है, फिर भी पूरा परिवार खेतों में काम करता है। इस तरह कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोज़गारी होती है। लेकिन, जो भी उत्पादन होता है उसमें पूरे परिवार की हिस्सेदारी होती।
  • खेत के काम में साझेदारी और उत्पादित फसल में हिस्सेदारी की धारणा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी की कठिनाइयों में कमी लाती है। लेकिन, इससे परिवार की गरीबी कम नहीं होती और प्रत्येक परिवार से अधिशेष श्रमिक रोज़गार की तलाश में गाँवों से शहरों की ओर प्रवास करते हैं ।
  • कृषि का सबसे अधिक अवशोषण करने वाला अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक कृषि है। पिछले वर्षों में पूर्व चर्चित प्रच्छन्न बेरोज़गारी के कारण, कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता में कुछ कमी आई है।
  • कृषि अधिशेष श्रम का कुछ भाग द्वितीयक या तृतीयक क्षेत्र में चला गया है। द्वितीयक क्षेत्र में छोटे पैमाने पर होने वाले विनिर्माण में श्रम का सबसे अधिक अभिशोषण है। तृतीयक क्षेत्रक में जैव-प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी आदि सरीखी विभिन्न नयी सेवाएँ सामने आ रही हैं।

स्वास्थ्य

  • किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। अस्वस्थ लोग किसी संगठन के लिए बोझ बन जाते हैं।
  • वास्तव में, स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है।
  • हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पौष्टिक सेवा तक इनकी पहुँच को बेहतर बनाना है। पिछले पाँच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रकों में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए अपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारिक संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।
  • भारत में ऐसे अनेक स्थान हैं जिनमें ये मौलिक सुविधाएँ भी नहीं हैं। केवल चार राज्यों जैसे- कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में कुल 181 मेडिकल कॉलेजों में से 81 मेडिकल कॉलेज हैं। दूसरी तरफ, बिहार और उत्तर प्रदेश > जैसे राज्यों में निम्न स्वास्थ्य सूचक हैं तथा यहाँ बहुत ही कम मेडिकल कॉलेज हैं।
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