General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | हड़प्पा सभ्यता

विश्व की पहली सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता है । इस सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है । इस सभ्यता का विकास इराक में दजला और फरात नदी के तट पर हुआ था ।

General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | हड़प्पा सभ्यता

General Competition | History | (प्राचीन भारत का इतिहास) | हड़प्पा सभ्यता

⇒ विश्व की पहली सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता है । इस सभ्यता को सुमेरियन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है । इस सभ्यता का विकास इराक में दजला और फरात नदी के तट पर हुआ था ।
⇒ विश्व की दूसरी सभ्यता मिस्र की सभ्यता है जिसका विकास नील नदी के किनारें हुआ है । (नील नदी की देन मिस्र) को कहा जाता है
⇒ विश्व की तीसरी परंतु सर्वाधिक विकसित सभ्यता हड़प्पा सभ्यता है ।
♦ हड़प्पा की समकालीन सभ्यताः- 
(1) मेसोपोटामिया की सभ्यता
(2) मिस्र की सभ्यता
(3) चीन की सभ्यता
♦ हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नामः-
हड़प्पा सभ्यता को कई नामों से जाना जाता है जैसे-
(1) सिंधु सभ्यता
(2) सिंधु घाटी की सभ्यता
(3) हड़प्पा सभ्यता
♦ सर्वाधिक उपर्युक्त नामः-
सभी नामों में सबसे अधिक उपयोग में आने वाले नाम हड़प्पा सभ्यता है क्योंकि इस सभ्यता के अंतर्गत सबसे पहले हड़पपा नामक सथल का ही उत्खनन हुआ !
♦ हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण:-
इस सभ्यता को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। अलग-अलग विद्वानों ने इसका अलग-अलगं काल निर्धारित किया है जैसे-
क्र. सं. विद्वान निर्धारित तिथि
1. जॉन मार्सल 3250 बी.सी. - 2750 बी.सी.
2. अर्नेस्ट मैके 2800 बी.सी. - 2500 बी.सी.
3. मधव स्वरूप वत्स 2700 बी.सी. - 2500 बी.सी.
4. सी. जे. गैड 2350 बी.सी. - 1700 बी.सी.
5. मार्टीमर हवीलर 2500 बी.सी. - 1700 बी.सी. 
6. फेयर सर्विस 2000 बी.सी. - 1500 बी.सी.
♦ सर्वाधिक मान्य काल - 2500 बी.सी. - 1900 बी.सी.
C- 14 (कार्बन डेटिंग / रेडियों कार्बन विधि
2300 बी.सी. - 1700 बी.सी. 
⇒ इतिहास के दृष्टिकोण से:- इतिहास के दृष्टिकोण से इसे आद्य - ऐतिहासिक (Proto-historical age) में रखा जाता है, क्योंकि हड़प्पाकालीन लिपि प्राप्त हुआ है परन्तु इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
⇒ धातु के दृष्टिकोण से:- धातु के दृष्टिकोण से इसे कांस्ययुगीन सभ्यता में रखा गया है, क्योंकि इस काल में ताँबा और टिन के मिश्रण से बनें काँसा का प्रयोग वृहद स्तर पर देखने को मिलता है

खोजकर्ताः (1) हड़प्पा की खोज पहली बार 1826 ई. में चार्ल्स मैसन नामक व्यक्ति ने किया ।

(2) 1853 ई. में ब्रिटिश अभियंता अलेंक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा संस्कृति की मोहर देखी । मुहर के उपर वृषभ और कुल 6 अक्षर अंकित थें, लेकिन उन्होनें उसका महत्व नहीं समझा ।
(3) हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्सल के निर्देशन में “राय बहादुर दयाराम साहनी ने किया था ।
⇒ भौगोलिक विस्तारः- इसका विस्तार वर्तमान समय के तीन देश (1) भारत (2) पाकिस्तान (3) अफगानिस्तान में देखने को मिलता है । इस संस्कृति का उदय भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ है ।
  • पाकिस्तानः- पंजाब, सिंध और ब्लुचिस्तान
  • भारतः- जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र
  • अफगानिस्तानः- मुंडीगाक और सुर्तोगोई
♦ चौहदीः

♦ आकृतिः - त्रिभुजाकार
♦ क्षेत्रफलः 12,99,600 वर्ग किलोमीटर
⇒ हड़प सभ्यता का क्षेत्रफल वर्तमान के पाकिस्तान से बड़ा तो है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा तीसरी और दूसरी शताब्दी ई. पू. विश्व का सबसे बड़ा सभ्यता हड़प्पा सभ्यता था । (क्षेत्रफल)

हड़प्पा सभ्यता

⇒ अब तक इस उपमहादेश में हड़प्पा संस्कृति के लगभग 2800 स्थलों का पता लग चुका है जिसमें से केवल 6 स्थल सर्वाधिक विकसित अवस्था में पाया गया है जिसे नगर की संज्ञा दी गई है। जो निम्न है-
(1) हड़प्पाः- यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मदगोमरी जिला में रावी नदी के किनारें सिथत है। इस स्थल का उत्खनन कार्य 1921 ई. में दयाराम साहनी के नेतृत्व में हुआ ।
(2) मोहनजोदड़ोः- इसका शाब्दिक अर्थ मृतकों / प्रेतों का टीला होता है क्योंकि यहाँ से बड़े पैमाने पर नरकंकाल प्राप्त हुए हैं । मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के किनारे लड़काना जिला में स्थित है। इस स्थल का उत्खनन कार्य राखालदास बनर्जी के संरक्षण में 1922 ई. में हुआ ।
नोट- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दो सर्वाधिक महत्व के नगर थें। दोनों नगर एक-दूसरे से 483 किलोमीटर दूर थें और ये दोनों आपस में सिन्धु नदी के द्वारा जुड़ा हुआ था ।
  • पिग्गॉट नामक विद्वान ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को विस्तृत हड़प्पा सभ्यता के संयुक्त राजधानी की संज्ञा दिया है ।
(3) चन्हूदरों: -यह प्रांत पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिन्धु नदी के किनारे स्थित है। यह मोहनजोदड़ो से 30 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। इस स्थल का उत्खनन कार्य मैके तथा एन. जार के द्वारा किया गया है ।
(4) लोथलः-  यह भारत के गुजरात प्रांत में भोगवा नदी के किनारे स्थित है। इसका उत्खनन कार्य रंगनाथ राव के में संरक्षण हुआ |
(5) कालीबंगा :- इसका शाब्दिक अर्थ काली रेग की चूरियाँ होता है। यह राजस्थान हनुमानगढ़ जिला के घग्घर नदी के किनारे स्थित है। इसका उत्खनन कार्य अमलानंद घोष, बी. बी. लाल तथा बी. के. थापर के नेतृत्व में हुआ ।
(6) बनावलीः- यह हरियाणा के हिसार जिला में रंगोई नदी के तट पर स्थित है। इसका उत्खननकर्ता रविंद्र सिंह विस्ट था।
नोट- हड़प्पा सथ्यता का सबसे बड़ा स्थल मोहनजोदड़ो है जबकि भारत में इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी है। जो हरियाणा में घग्गर नदी पर स्थित है।
⇒ हड़प्पा सभ्यता से संबंधित सर्वाधित स्थल गुजरात से मिले हैं। जैसे- लोथल, रंगपुर, रोजदी, सुरकातदा, धौलावीरा, आदि.....
⇒ हड़प्पा को प्रारूप स्थल कहा जाता है क्योंकि यहीं से उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं को आधार मानकर अल्य स्थलों को हड़प्पा कालीन होने की संज्ञा दी जाती है।
  • प्राक् हड़प्पीय/हड़प्पा पूर्व:- कालीबंगा, बनवाली . 
  • उन्नत हड़प्पा संस्कृतिः– हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदरों, लोथल, कालीबंगा बनावली, सुतकागेंडोर, सुरकोटदा
  • उत्तर हड़प्पाः- रंगपुर, रोजदी
नोट - धौलावीरा और राखीगढ़ी में हड़प्पा संस्कृति की तीनों अवस्थाएँ मिलती है।
⇒ हड़प्पा सभ्यता की विशेषताएँ:- हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता इसकी नगर-योजना प्रणाली थी |
⇒ हड़प्पा काल में नगरों का निर्माण काफी योजनाबद्ध तरीका से होता था। पहला रिचमी भाग जो समान्यता ऊँचा होता था, इसमें राज-महाराज तथा शासक वर्ग के लाग रहते थें। दूसरा, पूर्वी भाग जो नीचा होता था इसमें आम जनता निवास करती थी ।

⇒ समान्यता पूर्वी एवं पश्चिमी भागों के अलग-अलग किलाबंदी होता था, हलांकि कालीबंगा से दोनों के एक ही किलाबंदी का विवरण मिल है।
⇒ धौलावीरा से त्रिस्तरीय नगरों का प्रमाण मिला है।
(1) राजप्रसाद वाला क्षेत्र - राजा
(2) मध्यवर्ती नगर- व्यापारी वर्ग
(3) नीचला नगर- आम जनता
⇒ हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत मकान या घर पक्की ईंट से निर्मित होता था ।
⇒ हड़प्पा काल में सड़के एक- दूसरें को समकोण पर काटते हुए आगे की ओर बढ़ती थी जिससे पूरा नगर चौकोर अर्थात Chears Board की भाँति दिखाई पड़ता था । सड़के तीन प्रकार की पायी गयी है-
(1) सबसे चौड़ी सड़क- सबसे चौड़ी सड़क मोहनजोदड़ो में देखने को मिलती है। यह 33 फीट चौड़ी है। इसे राजपथ की संज्ञा दी जाती है।
(2) मध्यम चौड़ी सड़क  aushan
(3) गली वाली पतली सड़क
⇒ सड़को का निर्माण कच्ची ईंट या मिट्टी की सहायता से होता था ।
भवनः 
सड़को के किनारे सुनियोजित तरीका से भवनों का निर्माण होता था । समान्यता एक मंजिले भवन बनते थें। हलांकि मोहनजोदड़ो से दो मंजिले तथा 30 कमरे वाले भवन प्राप्त हुए हैं, जिसे सभा भवन या College भवन की संज्ञा दी गई है।
⇒ इस काल में भवन की जुड़ाई इंग्लिश बॉड पद्धति या ग्रीड पद्धति के आधार पर होता था ।
⇒ भवन की दरवाजा मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलकर गली की ओर खुलती थी। प्रायः सफाई और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका प्रबंध किया जाता है। अपवाद स्वरूप लोथल नगर के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलता था ।
⇒ इस सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत या भवन मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल अन्नागार या धान्यागार या कोठागार है । जिसकी लंबाई 45.71 मी. और चौड़ाई 15.23 मी. है।
⇒ इस सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मी. लंबा, 7.01 मी. चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है। बताया जाता है कि यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना होगा, जो भारत के हर धर्म में आवश्यक रहा है।
⇒ हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता उसकी जल निकासी प्रणाली थी। मोहनजोदड़ो की जल निकासी प्रणाली अदभुत थी ।
⇒ कालीबंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएँ थें ।
⇒ एक उन्नत जल - प्रबंधन व्यवस्था का साक्ष्य धौलावीरा से प्राप्त हुआ है।
हड़प्पा सभ्यता के निर्माता:-
इस हड़प्पा के निर्माताओं के निर्धारण का महत्वपूर्ण स्त्रोत उत्खनन से प्राप्त मानव कंकाल है। सबसे अधिक कंकाल मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं। इनके परीक्षण से यह निर्धारित हुआ है कि सिंधु हड़प्पा में चार प्रजातियाँ के लोग निवास करती थी-
(1) भू-मध्यसागरीय 
(2) प्रोटो- आस्ट्रेलायर
(3) अल्पाइन
(4) मंगोलाइड
⇒ सबसे ज्यादा भू-मध्यसागरीय प्रजाति के लाग थें ।
⇒ सबसे प्रिय देवता - आद्य शिव / शिव
⇒ सबसे प्रिय पशु - एक श्रृंगी बैल / बसहा बैल
⇒ सबसे आदरनीय पक्षी - फाख्ता
⇒ सबसे आदरणीय वृक्ष - पीपल
⇒ सबसे आदरणीय नदी - सिंधु
⇒ हड़प्पा सभ्यता के लोग बहुदेववादी थें ।
⇒ भारत में पहला मूर्ति पूजा का प्रमाण हड़प्पाकाल में देखने को मिलता है |
⇒ हड़प्पा सभ्यता के लोग देवी और देवता दोनों की पूजा किया करते थें |
⇒ हड़प्पाकालीन सभ्यता का लोकप्रिय देवता शिव थें। शिव की पूजा दो रूपों में करतें थें। पहला शिवलिंग की पूजा जिसका सर्वाधिक प्रचलन था । लिंग पूजा की शुरूआत हड़प्पा काल से हुआ है। दूसरा शिव के मानव रूप की पूजा, इसका प्रमाण मोहनजोदड़ो से मिला है। मोहनजोदड़ो से एक शील पर ध्यान की मुद्रा में एक योगी के सिर पर तीन सींग है। उसके चारों ओर एक हाथी एक बाघ, एक गेंडा है । आसन के नीचे एक भैंसा है और पाँवो पर दो हिरण है । मुहर पर चित्रित देवता को पशुपति महादेव बतलाया गया है।
⇒ हड़प्पाकालीन मानव देवीयाँ की पूजा भी दो रूपों में करती थी। पहला देवी के योनी रूप की पूजा और दूसरा मानव स्वरूप में पूजा। हड़प्पा हड़प्पा में पक्की मिट्टी की स्त्री मुर्तिकाएँ भारी संख्या में मिली है। एक मुर्तिकला में गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है। यह संभवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट संबंध पौधे के जन्म और वृद्धि से रहा होगा। इस लिए मालूम होता है कि हड़प्पाई लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थें जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस की पूजा करते थें ।
⇒ हड़प्पा तथा मिस्र की सभ्यता का समाज मातृसत्तात्मक थी ।
⇒ हड़प्पा सभ्यता से मूर्ति के प्रमाण मिले हैं परन्तु मंदिर के प्रमाण नहीं मिले है। लेकिन इसी के समकालीन मिस्र और मेसोपोटामिया में मंदिर का निर्माण किया जाता था । 
⇒ हड़प्पा वासी प्रकृति पूजा में भी विश्वास रखते थें। हड़प्पा वासी सूर्य की पूजा भी करते थें । लोथल के उत्खनन से स्वास्तिक चिन्ह का प्रमाण मिला है जो सूर्य का प्रतीक है।
⇒ हड़प्पा वासी पशु-पक्षी, नदी- झरना, पेड़-पौधा, जीव-जंतु, आदि सभी की पूजा किया करते थें। 
⇒ हड़प्पाकाल के लोगों का सबसे प्रिय पशु एक सींग वाला जानवर (यूनीकान) जो गेंडा हो सकता है या बसहा बैल था। उसके बाद महत्व का कूबड़ वाला साँड़ ।
⇒ हड़प्पावासी यज्ञ प्रथा से भी परिचित थें। विभिन्न अवसरों पर उनके द्वारा यज्ञ किए जाते । कालीबंगा, लोथल एवं वनमाली से अग्निकुंड के साक्ष्य मिले हैं।
⇒ हड़प्पावासी यज्ञ के अवसर पर पशुओं की आहुति भी देते थें जिसका साक्ष्य कालीबंगा से मिला है।
⇒ हड़प्पावासी एहलौकिक (इस जीवनकाल में) पारलौकिक (मृत्यु के बाद) दोनों जीवन में आस्था रखते थें।
⇒ हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से बड़ी तादाद में तावीज मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग भूत-प्रेत में विश्वास रखते थें।
आर्थिक जीवन:-
हड़प्पा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी । भारत में नगरीयकरण का पहला साक्ष्य हड़प्पाकाल में एक संपन्न कृषि व्यवस्था, पशुपालन, उद्योग-धंधा तथा व्यापार वाणिज्य का विवरण मिलता है।
कृषिः - 
हड़प्पाकाल में कृषि व्यवस्था विकसित अवस्था में था । इस समय अधिशेष उत्पादन का विवरण मिलता है ।
⇒ हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहुँ, जौ, राई, मटर, चावल, कपास, तिल, सरसों आदि फसलों से अवगत थें।
♦ कपासः -
सबसे पहले कपास उत्पादन करने का श्रेय सिंधु सभ्यता के लोगों को है। चूँकि कपास का उत्पादन सबसे पहले सिंधु क्षेत्र में ही हुआ, इसलिए यूनान के लोग इसे सिन्डन कहने लगे जो सिन्धु शब्द से निकला है।
♦ जौ:-
इस सभ्यता के लोग दो किस्म के जौ उगाते थें । बढ़िया या उत्तम कोटी के जौ का प्रमान बनावली से मिला है।
♦ चावल:-
चावल का साक्ष्य लोथल से प्राप्त हुआ है। गुजरात के रंगपुर से धान की भूसी का प्रमाण मिला है।
⇒ हड़प्पा मोहनजोदाड़ो तथा कालीबंगा से अनाज के बड़े-बड़े कोठारों का प्रमाण मिला है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि किसानों से राजस्व लिया जाता था |
⇒ हड़प्पावासी दो फसल एक साथ उगाने की कला से परिचित थें इसका साक्ष्य कालीबंगा से मिला है। जहाँ एक समय एक ही खेत में चना और सरसों को उपजाने का विवरण मिलता है।
⇒ कालीबंगा से ही जूते हुए खेत का प्रमाण मिला है।
⇒ बनवाली से हल का प्रमाण मिला है। हल में ताँबा, पीतल, लकड़ी, पत्थर आदि के फाल का प्रयोग किया जाता था । 
⇒ हड़प्पा सभ्यता की मुख्य फसल गेहुँ और जौ थी।
⇒ हड़प्पावासी रागी (मडुआ) से परिचित नहीं थें । 
♦ पशुपालनः-
कृषि पर निर्भर होते हुए भी हड़प्पाई लोग बहुत सारे पशु पालते थें। वे गाय, भैंस, बैल, बकरी और सुअर पालते थें। ये लोग कुत्ता और बिल्ली भी पालते थें ।। इन दोनों के पैर के निशान मिले हैं। वे गधे और उँट भी रखते थें और शायद इसे ढ़ोने के काम में प्रयोग किया जाता है।
हड़प्पाई लोगों को हाथी और गैडे का भी ज्ञान था। खासतौर पर गुजरात में बसे लोग हाथी पालते थें ।
♦ घोड़ा:- 
गुजरात के सुरकोटड़ा घोड़ा की हड्डी प्राप्त हुआ है। इसके अलावे मोहनजोदड़ो और लोथल से घोड़े की मिट्टी की बनी हुई और आग में पकी हुई मूर्ति प्राप्त हुआ है जिसे टेराकोटा कहा जाता है।

हड़प्पा सभ्यता

उद्योग-धंधा:-
हड़प्पा काल में विभिन्न प्रकार के उद्योग-धंधे का प्रचलन था । जैसे - मृदभांड उद्योग, वस्त्र निर्माण उद्योग, धातु उद्योग आदि से हड़प्पावासी परिचित थें ।
⇒ हड़ण सभ्यता के उत्खनन से दो प्रकार के मृदभांड प्राप्त हुए हैं।
(1) गेरूआ रंग का मृदभांड
(2) लाल एवं काले रंग का मृदभांड
⇒ लोथल से एक चित्रित मृदभांड मिला है जिस पर कौआ और लोमड़ी का चित्र बनाया गया है इससे स्पष्ट होता है कि विष्णु शर्मा की रचना पंचतंत्र की कहानी से हड़प्पावासी परिचित थें ।
⇒ हड़प्पा काल में वस्त्र निर्माण उद्योग का प्रचलन था । मोहनजोदड़ो के उत्खनन से सुती वस्त्र का एक टुकड़ा का साक्ष्य मिला है।
⇒ हड़प्पावासी वस्त्र की सिलाई, रंगाई, छपाई आदि कला से भी परिचित थें। इसका प्रमाण धौलावीरा में मिला है।
⇒ हड़प्पावासी लोहा से परिचित नहीं थें इसके अन्य धातु जैसे- सोना, चाँदी, ताँबा, टीन, काँसा इत्यादि से परिचित थें ।
⇒ भारत में लोहा का प्रचलन पहली बार 1000 ई प. से आरंभ हुआ माना जाता है ।
⇒ वर्तामान के भारत में लोहा का पहला साक्ष्य उत्तरप्रदेश के अंतरंजी खेड़ा में देखने को मिला है।
व्यापारः-
⇒ हड़प्पा काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार था। इस काल में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय दोनों प्रकार के व्यापार का प्रचलन था ।
  • हड़प्पा काल में सर्वाधिक विदेशी व्यापार मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ होता था ।
⇒ हड़प्पा एवं मेसोपोटामिया के बीच व्यापारिक क्षेत्र में दिलमुन तथा माकन मध्यस्ता का करता था। दिलमुन की पहचान आज की फारस की खाड़ी में स्थित बहरीन से की गई है जबकि माकन की पहचान मकरान तट से की गई है । 
⇒ हड़प्पा कालिन सबसे विकसित बंदरगाह के रूप में लोथल का विवरण मिलता है।
⇒ हड़प्पाकाल में व्यापार वस्तु विनिमय प्रणाली के आधार पर होता था । लेन-देन में मुहर का प्रयोग होता था जो सेलखड़ी की बनी हुई थी ।
⇒ मोहनजोदड़ो के उत्खनन से नृत्य करती हुई काँसे की नर्तकी की मूर्ति प्राप्त हुई है जो भ्रष्ट मोम तकनिक से बनी हुई है।
⇒ हड़प्पावासी माप-तौल आदी कला से भी परिचित थें। इस गिनती में 16 एवं उसके गुणज का प्रयोग होता था । जो दशमलव प्रणाली की सुचक है।
⇒ लोथल से तराजू का पल्ला जवकि मोहनजोदड़ो से बाट की प्राप्ति हुई है।
क्र. सं. आयातित वस्तु प्रदेश
1. ताँबा खेतड़ी, ब्लुचिस्तान
2. चाँदी अफगानिस्तान, इरान
3. टिन अफगानिस्तान
4. सोना अफगानिस्तान, इरान, कर्नाटक
5. गोमेद सौराष्ट्र
6. लाजवर्त मेसोपोटामिया
7. शीशा ईरान

राजनीतिक जीवन:-

हड़प्पा काल में स्पष्ट तौर पर किसी राजनीतिक संगठन का आभाष (उदय) नहीं हुआ था । इस काल में शासन प्रणाली राजतंत्रात्मक या जनतंत्रात्मक थी। इसको लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। इसी बीच व्हीलर नामक विद्वान ने यह कहा कि हड़प्पा काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली ना होकर जनतंत्रात्मक प्रणाली हुआ करता था । अधिकतर विद्वानों का मानना था कि हड़प्पा काल में व्यापारी या वाणिक वर्ग सबसे अधिक शक्तिशाली था जिस कारण काल में शासन-प्रशासन वाणिक वर्गो के हाथ में इस करता था।
(1) हंटर के अनुसारः- "मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक ना होकर जनतंत्रात्मक था।"
(2) व्हीलर के अनुसारः- "सिन्धु सभ्यता के लोगों का शासन मध्यवर्गीय जनतंत्रात्मक शासन था और उसमें धर्म की महत्ता थी।"

हड़प्पा सभ्यता

सामाजिक जीवन:-
हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन से जो साक्ष्य मिले हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि हड़प्पाकाल में संभ्वतः मातृसत्तात्मक समाज का प्रचलन था क्योंकि उत्खनन से बड़े पैमाने पर महिलाएँ की मूर्ति मिली है।
⇒ हड़प्पा काल के समाज में चार वर्ग के लोग रहते थें जैसे- (1) पुरोहित (विद्वान ) ( 2 ) योद्धा (3) व्यापारी (4) श्रमिक |  ।
⇒ हड़प्पा कालीन लोग शाकाहारी और माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थें |
⇒ लोथल से मछनी पकड़ने का काँटा, कालीबंगा से पशुओं की कटी हुई हड्डीका साक्ष्य मिला है।
⇒ हड़प्पावासी साज-सज्जा पर विशेष ध्यान देते थें। स्त्री और पुरूष दोनों आभूषण धारण करते थें |
⇒ हड़प्पा से ताँबे का दर्पण, काजल लगाने की सलाई तथा चन्हूदड़ों से लिपस्टिक का साक्ष्य मिला है।
⇒ यहाँ के लोग मनोरंजन के लिए चौपड़ और पासा खेलते थें |
⇒ लोथल से शतरंज के साक्ष्य मिले हैं जबकि हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से पासे की साक्ष्य मिले हैं
⇒ हड़प्पाकाल में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के तीन विधियाँ का प्रचलन था ।
(1) पूर्ण समाधिकरणः- इसके तहत संपुर्ण शव को भूमि में दफना दिया जाता था । यह विधि सबसे ज्यादा प्रचलित थी ।
(2) आंशिक समाधिकरणः- इसके अंतर्गत पशु-पक्षियों के खाने के बाद बचे शेष भाग को भूमि में दफना दिया जाता था ।
(3) दाह-संस्कार 
⇒ हड़प्पा के उत्खनन से एक अनोखी कब्रिस्तान प्राप्त हुआ है जिसे RH - 37 कब्रिस्तान नाम दिया गया है।
⇒ लोथल से युगल शवाधान का साक्ष्य मिले हैं।
⇒ रोपड़ से एक कब्र के भीतर मानव शरीर के साथ कुत्ता का शरीर का साक्ष्य मिला है।
पतनः
क्र. सं. विद्वान पतन के कारण
1. गार्डन चाइल्ड एवं व्हीलर बह्य एवं आर्यो के आक्रमण
2. जॉन मार्शल, अर्नेस्ट मैके एवं S. R. राव बाढ़
3. ऑरेल स्टेइन, अमलानंद घोष जलवायु परिर्वतन
4. M.R. साहनी भूतात्विक परिवर्तन / जलप्लावना
5. जॉन मार्सल प्रशासनिक शिथिलता
6. के. यू. आर. कनेडी प्राकृतिक आपदा (मलेरिया, महामारी)
  • इसमें सर्वाधिक मान्य मत "बाढ़" को बताया गया है।
  • हाल ही हुए उत्खनन से IIT खड़गपुर को सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कुछ प्रमाण मिला है। इस प्रमाण के आधार पर कहा जा रहा है कि इस सभ्यता के पत्तन का अहम कारण जलवायु परिवर्तन को माना गया है।

सिन्धु सभ्यता स्थलों से प्राप्त अवशेष एवं वस्तुएँ

♦ हड़प्पाः
शवाधान पेटिका, RH - 37 कब्रिस्तान, शंख का बना बैल, पीतल की इक्का गाड़ी, स्त्री के गर्भ से निकला हुआ पौधा, गेहूँ व जौ के दाने, अन्नागार, स्वास्तिक एवं चक्र के साक्ष्य, तांबे का पैमाना, इत्यादि.......
♦ मोहनजोदड़ोंः
वृहद स्नानागार, मातृदेवी की मूर्ति, काँसे की नर्तकी की मूर्ति, राज मुद्रांक, मुद्रा पर अंकित पशुपति नाथ की मूर्ति, सूति कपड़ा, हाथी का कपाल खंड, घोड़े के दाँत एवं गीली मिट्टी के दीये के साक्ष्य, गले हुए ताँबे के ढ़ेर, सीपी की बनी हुई पटरी, कुंभकारों के 6 भट्टो के अवशेष तथा मिट्टी का तराजू, सबसे बड़ी ईंट का साक्ष्य अदि..........
♦ चन्हूदरों:
अलंकृत हाथी, वक्राकार ईंट, कंघा, लिपस्टिक, मेकप का समान, चार पहियों वाली गाड़ी, मनके, बिल्ली का पीछा करता हुआ कुत्ता, गुड़िया, शीशा, आदि......
♦ कालीबंगा:
आयताकार 7 अग्नि वेदिकाएँ, जुते हुए खेत का साक्ष्य, काँच एवं मिट्टी की चुरियाँ, सिलबट्टा, सूती कपड़ो की छाप, माणिक्य एवं मनके, बेलनाकार मोहरें, मिट्टी के खिलौना, तथा प्रतीकात्मक समाधियाँ आदि..... ।
♦ लोथलः 
बंदरगाह, धान (चावल) और बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, तीन युगल समाधियाँ, धान की भूसी, मनका उद्योग के साक्ष्य, ताँबे का कुत्ता, छोटा दिशा मापक यंत्र इत्यादि........
♦ सुरकोटदाः
घोड़े की अस्थियाँ एवं विशेष प्रकार का कब्रगाह ।
♦ बनावलीः
हल की आकृति वाले मिट्टी के खिलौने, जौ, ताँबे के बाणाग्र आदि......

हड़प्पा सभ्यता

⇒ सिन्धु सभ्यता के प्रमुख स्थलः- 
क्र. सं. प्रमुख स्थल नदी प्रांत खोजकर्ता
1. हड़प्पा रावी पंजाब प्रांत दयाराम साहनी
2. मोहनजोदड़ो सिंधु सिंध प्रांत राखलदास बनर्जी
3. चन्हुदड़ो सिंधु सिंध प्रांत गोपाल मजुमदार
4. कालीबंगा घग्गर राजस्थान अमलानंद घोष, बी.बी. लाल, बी.के. थापर
5. कोदीजी सिंधु सिंध प्रांत फजल अहमद खान
6. सुतकागेंडोर दाश्क ब्लुचिस्तान ऑरेल स्टेइन
7. रंगपुर भादर/ मादर गुजरात रंगनाथ राव
8. धौलावीरा लूनी गुजरात R.S. बिस्ट, J.P. जोशी
9. रोपड़ सतलज पंजाब यज्ञदत्त शर्मा
10. राखीगढ़ी घग्गर हरियाणा सूरजभान
11. आलमगीरपुर हिण्डन उत्तरप्रदेश यज्ञदत्त शर्मा
हड़प्पा सभ्यता की लिपी:-
हड़प्पा लिपि का पहला नमूना / प्रमाण 1853 में पता चला लेकिन यह 1923 ई. में प्रकाश में आया ।
हड़प्पा लिपि का मूल चिन्ह - 64
अक्षर- 200-400 
हड़प्पा लिपि का नामकरण विद्वानों के द्वारा किया गया। उन्होंनें इसका नाम - पिक्टोग्राफ / चित्रात्मक/भावचित्रात्मक
हड़प्पाई लिपि दाएँ से बाएँ की ओर लिखा जाता था ।
हड़प्पा लिपि के प्रमाण से सबसे ज्यादा चित्र - U आकार तथा मछली का चित्र देखने को मिलता है।
⇒ कुछ महत्वपूर्ण तथ्य ( Some Important Points):
  • हड़प्पा सभ्यता के लोग शेर से परिचित नहीं थें ।
  • हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत एकमात्र "स्टेडियम" का पता धौलावीरा से लगा है।
  • स्वतंत्र भारत का पहला उत्खनित स्थल रोपड़ है । यह वर्तमान भारत के पंजाब प्रांत में स्थित है।
  • मोहनजोदड़ो को नखलिस्तान का भाग भी कहा जाता है।
  • पुजारी के प्रस्तर का प्रमाण मोहनजोदड़ों से मिला है।

वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization)

भूमिका:
सैंधव सभ्यता के पश्चाप भारत में जिस सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ उसे वैदिक सभ्यता या आर्य सभ्यता की हैं। इस सभ्यता के निर्माता आर्य था। इस सभ्यता का ज्ञान वेदों से होता है, जिसमें ऋग्वेद सर्वप्राचीन होने के कारण सबसे महत्वपूर्ण है ।
वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा विकसित एक ग्रामीण सभ्यता थी । आर्यो की भाषा संस्कृत थी। आर्य का शाब्दिक अर्थ श्रेष्ठ या कुलीन होता है । सर्वप्रथम मैक्समूलर ने 1853 ई. में आर्य शब्द का प्रयोग एक श्रेष्ठ जाति के रूप में किया ।

ऋग्वैदिक काल (1500 बी. सी. 1000 बी.सी.):-
इस काल में ऋग्वेद की रचना हुई जो कि इस काल के जानकारी के विषय में एकमात्र स्त्रोत है ।
⇒ सिन्धु सभ्यता के विपरीत वैदिक सभ्यता मुलतः ग्रामीण सभ्यता थी । आर्यो का आरंभिक जीवन पशु चारण पर आधारित था ।
⇒ ऋग्वेद की अनेक बातें ईरान की मूल ग्रंथ जेन्द अवेस्ता से मिलती जुलती है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वैदिक आर्य इरान से होकर भारत आयें थें ।
नोट- यूनेस्को ने "ऋग्वेद" को विश्व मानव धरोहर के साहित्य में शामिल किया है ।
  • आर्यो का मूल निवास स्थानः
क्र. सं. विद्वान निवास स्थान 
1. प्रो. मैक्समूलर मध्य एशिया (बैक्ट्रिया)
2. बाल गंगाधर तिलक उत्तरी ध्रुव
3. दयानंद सरस्वती तिब्बत
4. पेन्का जर्मनी
5. गाइल्स हंगरी
6. अविनाश चंद्र दास सप्त सैंधव प्रदेश
  • समान्यतः यह माना जाता है कि आर्य मध्य एशिया के निवासी थें |
भौगोलिक दशाः-
आर्यो के आरंभिक इतिहास की जानकारी का मुख्य स्त्रोत ऋगवेद है। ऋग्वेद में आर्य के निवास स्थल के लिए सप्त सैंधव क्षेत्र का उल्लेख मिलता है, जिसका अर्थ है- सात नदियों का क्षेत्र । ये नदियाँ है - सिंधु, सरस्वती, शतुद्रि, विपासा, परूषणी, वितस्ता, अस्किनी ।
⇒ ऋग्वेद में कुल 25 नदियों का विवरण मिलता है। इस काल का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी सिन्धु, जबकि सबसे पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है, जिसे देवीतमा, मातेतमा एवं नदीतमा भी कहा जाता है। ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार, जबकि यमुना नदी का तीन बार उल्लेख हुआ है।
⇒ ऋग्वेद में हिमालय पर्वत एवं इसकी एक चोटी मुजवत का भी उल्लेख किया गया है।
  • ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ:
क्र. सं. प्रचीन नाम आधुनिक नाम
1. परूषणी रावी
2. शतुद्रि सतलज
3. अस्किनी चिनाब
4. वितस्ता झेलम
5. विपासा व्यास
6. गोमती गोमल
7. कुंभा काबल
8. सदानीरा गंडक
9. सिन्धु इण्डस 
10. कुमु कुर्रम
⇒ वैदिक काल के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत वैदिक साहित्य है। वैदिक साहित्य की रचना 1500 बी.सी. - 600 बी.सी. के बीच हुआ। वैदिक साहित्य के अंतर्गत वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, अरण्यक, उपनिषद आता है।
⇒ वैदिक साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण वेद है। वेद का शाब्दिक अर्थ पवित्र ज्ञान या जानना होता है |
⇒ वेद की रचना ईश्वर से किया है इसीलिए वेद को अपौरूषेय कहा गया है। वेद की रचना संस्कृत भाषा में हुई वेदव्यास ने किया । वेद का संकनल गुप्तकाल में वेद की संख्या 4 है- 
(1) ऋग्वेद
(2) यजुर्वेद
(3) सामवेद
(4) अथर्ववेद
ऋग्वेद:- 
यह सभी वेदों में सबसे प्राचीन है। इसमें 10 मंडल, 1028 सुक्त, और 10580 ऋचाएँ हैं। वेद के पढ़ने वाले ऋषि को "होतृ" कहते हैं ।
⇒ ऋग्वेद का सबसे पुराना मंडल दूसरा तथा सातवाँ है, जबकि सबसे नया मंडल पहला तथा दशवाँ है ।
⇒ ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का उल्लेख है जिसकी रचना विश्वामित्र ने किया है ।
⇒ 7वाँ मंडल- भगवान विष्णु
⇒ 9वाँ मंडल - सोम (शिव)
⇒ 10वाँ मंडल— ब्रह्मा और चातुष्वर्ण्य समाज

वैदिक सभ्यता

⇒ यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना उत्तरवैदिक काल में हुई ।
यजुर्वेद:-
इसमें यज्ञों के नियमों व विद्यानों का संकलत है। इसीलिए इसे कर्मकांडीय वेद भी कहा जाता है।
⇒ यजुर्वेद गद्य और पद्य दोनों में है। यजुर्वेद के दो भाग है:-
(1) शुल्क यजुर्वेद ( केवल पद्य)
(2) कृष्ण यजुर्वेद ( यह गद्य एवं पद्य दोनों में है !)
⇒ यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को अर्ध्वयु कहा जाता है ।
⇒ इस वेद में कुल 1990 मंत्र संग्रहीत है।
⇒ यजुर्वेद के प्रमुख उपनिषद - कपोपनिषद, मैत्रायत्री और श्वेताश्वरूपनिषद
• सभवेदः-
साम का अर्थ गान होता है। असमें मुख्यतः यज्ञो के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है। सात स्वरों (सा, रे, ग, म, प, ध, नि ) की उत्पत्ति इसी से हुई है।
⇒ सामवेद में कुल 1875 ऋचाएँ हैं।
⇒ सामवेद में मूल रूप से 99 मंत्र है, शेष ऋग्वेद से लिए गए हैं।
⇒ सामवेद के मंत्रों के उच्चारण करने वाले ऋषि को उद्गाता कहा जाता है। इसमें मुख्यतः सूर्य के स्तुति का मंत्र है ।
⇒ सामवेद के प्रमुख उपनिषद - छांदोगय तथा जैमिनीय
• अथर्ववेदः-
यह सबसे आधुनिक वेद है। इसकी रचना अथर्वा ऋषि के द्वारा किया गया। इसमें 731 सुक्त, 20 अध्याय तथा लगभग 6000 मंत्र है ।
⇒ इसमें आर्यो के साथ-साथ अनार्यो का भी उल्लेख है ।
⇒ इस वेदों में जादू-टोना, रोग निवारण, तंत्र-मंत्र, औषधि प्रयोग इत्यादि का विवरण मिलता है ।
⇒ इसमें सभा और समिति को प्रजापति के दो पुत्री की संज्ञा दिया गया है।
⇒ इस वेद के पाठकर्ता को ब्रह्मा कहा जाता है ।
  • अथर्ववेद का उपनिषदः - मुंडकोपनिषद प्रश्नोपनिषद तथा मांडूक्योपनिषद
नोट- इन चारों वेदों को संहिता कहा जाता है।

वैदिक सभ्यता

राजनीतिक स्थितिः
  • ऋग्वैदिक समाज कबीलाई व्यवस्था पर आधारित था । कबीले का एक राजा होता था जिसे गोप कहा जाता था ।
  • आर्यो को पंचजन भी कहा गया है, क्योंकि इनके पाँच कबील (कुल) थें- अनु, द्रुहु, पुरू, तुर्वस तथा यदु ।
  • आर्यो की प्रशासनिक इकाई पाँच वर्गों में विभक्त था जिसका कर्म कुल, ग्राम, विश, जन और राष्ट्र । 
  • इस काल में अनेक जनतांत्रिक संस्थाओं का विकास हुआ जिनमें सभा समिति, और विदथ प्रमुख था । इसमें सबसे बड़ी प्रशासनिक संगठन के रूप में जन का विवरण मिलता है।
  • ऋग्वैदिक काल की सबसे प्राचीन जनतांत्रिक संगठन विदथ । (122 ) - आमजन का संगठन
  • इस काल में सभा और समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी ।
  • सभा ( 8 ) :- सभा संभ्रात एवं श्रेष्ठ लोगों का संगठन था ।
  • समिति ( 9 ) :- यह आमजन का संगठन था ।
  • ऋग्वेद में शतदाय शब्द का विवरण मिलता है। इसका अर्थ होता है किसी व्यक्ति के जान की कीमत 100 गाय ।
  • ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को द्विज कहा गया है, जिसके तहत् इन जातियों को जनेऊ पहनने का अधिकार था ।
  • इस काल में बलि एक प्रकार का कर था जो प्रजा स्वेक्षा से राजा को देता था । इस समय राजा के पास स्थायी सेना नहीं होता था ।
  • ऋग्वेद में राजा को "गौप्ता जनस्य" अर्थात कबीले का संरक्षक कहा जाता था । 
  • इस काल में 'गाय' को पवित्र पशु माना जाता था।
  • आर्यो की अधिकांश लड़ाइयाँ गायों को लेकर ही हुई है।
  • गाय के लिए अधन्या (ना मारे जाने योग्य पशु) माना जाता था । गविष्टि गाय की महत्ता बताने वाला शब्द है । गाय की हत्या करने वालों के लिए वेदों में मृत्युदंड अथवा देश से निकाले जाने की व्यवस्था थी ।
  • पणि नामक व्यापारी गाय की चोरी के लिए कुख्यात था।
  • पुत्री को दुहिता कहा जाता था क्योंकि वही गाय का दूध दुहती थी ।
  • घोड़ा आर्य समाज का अति उपयोगी पशु था ।
  • व्यापार पर पणि का अधिकार था । व्यापार मुख्यतः वस्तु विनिमय प्रणाली द्वारा होता था ।
  • इस काल में सूदखोर को वेकनॉट कहा जाता था ।

परिशिष्ट

  • प्रार्थना को सूक्त कहा जाता था जिसका अर्थ होता है अच्छी तरह से बोला गया ।
  • वैदिक काल में ऋग्वेद का उच्चारण किया जाता था, श्रवण किया जाता था लेकिन ध्यान रहें पढ़ा नहीं जाता क्योंकि वेदों की रचना कई शताब्दी बाद हुआ ।

विविध

  • दस्यु वे लोग थें जो यज्ञ नहीं करते थें तथा दूसरी भाषा बोलते थें ।
  • दास - युद्ध में बंदी बनायें गये पुरूष व स्त्री होते थें ।
  • ऋग्वेद की रचना- सप्त सैंधव क्षेत्र में, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद की रचना - गंगा-यमुना के क्षेत्र में ।
  • जनपद का शाब्दिक अर्थ - जन के बसने की जगह है ।
  • ऋग्वैदिक आर्यो की धर्म - प्रकृति पूजा और यज्ञ था।
  • शतपथ ब्राह्मण से संबंधित राजा विदेह माधव से संबंधित ऋषि गौतम रहुगण था ।
  • आर्यो के आर्कटिक होम सिद्धांत तिलक द्वारा दिया गया।
  • सभी स्मृति ग्रंथों में सबसे प्राचीन मनुस्मृति है जो समाज व्यवस्था से संबंधित है।
  • तीन पगों में तीनों लोक को माप लेने के कारण विष्णु को उपक्रम कहा गया है।
  • ऋग्वैदिक काल से संबंधित मृदभांड - गोरूवर्णी मृदभांड है।
  • उत्तरवैदिक काल से संबंधित - चित्रित धूसर मृदभांड है।
  • मैत्रायणी संहिता में नारी को सुरा और पांसा के साथ तीन प्रमुख बुराइयों में शामिल किया गया है।
  • सबसे प्राचीनतम पुराण मत्स्य पुराण है।
  • वैदिक सुग में जौ को "यव" जबकि चावल को "व्रीहि" कहा जाता था ।
  • प्रथम विधि निर्माता मनु था।
  • कृष्ण भक्ति का प्रथम और प्रधानग्रंथ श्रीमद्भागवतगीता है।
  • दशराज युद्ध परूषणी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया था।
  • धर्म शास्त्रों में भू-राजस्व का दर 1/6 था ।
  • 800 बी.सी. – 600 बी. सी. - ब्राह्मण युग
  • उत्तरवैदिक काल के वेद विरोधी और ब्राह्मण विरोधी धार्मिक अध्यापकों को श्रमण कहा जाता था ।
  • असतो माँ सद्गमय ऋग्वैद से लिया गया है
  • अछूत की अवधारणा स्पष्ट रूप से उदित धर्मशास्त्र के काल में हुई ।
  • वैदिक युग में प्रचलित लोकप्रिय शासन प्रणाली गणतंत्र थी ।
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