General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

यूरोप के बाजार में दक्षिण एशिया ( भारत ) की वस्तुओं की मांग अधिक थी । 15वीं शताब्दी में इन वस्तुओं के व्यापार हेतु अनेक यूरोपीय देशों में कंपनियाँ स्थापित की गई।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन

यूरोप के बाजार में दक्षिण एशिया ( भारत ) की वस्तुओं की मांग अधिक थी । 15वीं शताब्दी में इन वस्तुओं के व्यापार हेतु अनेक यूरोपीय देशों में कंपनियाँ स्थापित की गई। किंतु इन कंपनियों के समक्ष दक्षिण एशिया के व्यापार के बीच अनेक चुनौतियाँ थी। जैसे- इटली का यूरोप के बाजार पर व्यापारिक एकाधिकार । दूसरी सबसे बड़ी चुनौती 1453 में बाइजेंटाइन (Byzantine ) साम्राज्य की राजधानी कुस्तुतुनियां (Constantino ) पर अरब साम्राज्य का आक्रमण एवं कब्जा । कुस्तुतुनिया Constantino) यूरोप से दक्षिण एशिया आनेवाले जल एवं स्थल दोनों मार्गों का प्रवेश द्वार था। उस मार्ग पर अरबों ने यूरोप के व्यापारिक गतिविधि को पूर्णतः बंद कर दिया। वर्षों तक व्यापारिक बंदी के पश्चात् यूरोप के राजवंशों एवं व्यापारियों को एक नवीन जलमार्ग की जरूरत थी। इसी कालखण्ड में नए साहसीक एवं नवीन भौगोलिक खोज भी हुए !

भारत में पुर्तगालियों का आगमन

  • भारत पहुँचने वाले नवीन जलमार्ग की खोज में प्रमुख योगदान पुर्तगाल के राजा डॉनहेनरी 'हेनरी द नेविगेटर' एवं स्पेन की रानी इसाबले की थी ।
  • इन भौगोलिक खोजों में चीन निर्मित कम्पास (दिकसूचक) एवं यूरोप में निर्मित मानचित्र ने प्रमुख योगदान दिया।
  • प्रथम प्रयास 1487 में पुर्तगाल के यात्री बाथलुम्पू डियास (Bartholomphu Dias) ने किया। इसकी नाव भी अफ्रीका महाद्वीप की उत्तरी द्वीप तक ही पहुँच सकी। इस स्थल को डियास ने 'तूफानी (The Cape of Good Hope) के नाम से संबोधित किया।
  • पुर्तगाल राजकुमार डॉन हेनरीक 'हेनरी द नेविगेटर' ( Portagus do Indess ) ( इस्टाडा) नामक कंपनी की स्थापना किया एवं इसका मुख्यालय लिस्बन (Lisbun) में स्थापित किया। प्रिंस हेनरी इस कंपनी के संस्थापक सदस्य थे।
  • प्रिंस हेनरी के प्रतिनिधि के रूप में ही वास्कोडिगामा ने भारत की यात्रा आरंभ किया। वास्कोडिगामा तीन जहाज ( राफेल, ग्रैब्रियल तथा बोरियो ) के साथ पुर्तगाल में भारत के लिए निकला था।
  • 90 दिन के समुद्री यात्रा के पश्चातु वास्कोडिगामा भारत के पथ प्रदर्शक अब्दुल मजीद की सहायता से कालीकट नामक बंदरगाह पर पहुँचा। वास्कोडिगामा 17 मई 1498 को भारत पहुँचने वाला प्रथम जलमार्ग यात्री था। इसने पूर्व से पश्चिम को नवीन मार्ग से जोड़ा एवं इस मार्ग को मशाला मार्ग भी कहा गया।
  • कालीकट ‘कप्पकडापू' नामक बंदरगाह पर बांस्कोडिगामा का जहाजी बेड़ा पहुँचा। जहाँ के हिन्दू शासक 'जेमेरिन' (इसकी पैतृक उपाधि) से सद्भावपूर्ण ढंग से इसका स्वागत किया। अपने यात्रा के वापसी में इसने मशाला एवं कुछ अन्य वस्तुओं की खरीद किया। इन वस्तुओं को यूरोप के बाजार में बिक्री से 60 गुना अधिक लाभ प्राप्त हुआ।
  • वर्ष 1500 में मशाला मार्ग पर द्वितीय व्यापारिक अभियान पैट्रोअम्बारेज कैनाल के द्वारा किया गया। कैवाल की यात्रा का उद्देश्य पूर्णत: कूटनीतिक आधार पर भारत में पुर्तगाल के लिए व्यापारिक आधारशिला का निर्माण करना था ।

कैप्टन वॉस्कोडिगामा

  • वास्कोडिगामा ने कुल तीन बार भारत की यात्रा की थी। वर्ष 1498, 1502 एवं 1524 में।
  • वर्ष 1524 में वह आखिरी बार पुर्तगाली वायसराय बनकर कोचीन पहुँचा । उसी वर्ष इसकी मृत्यु मलेरिया के कारण हो गई। वास्कोडिगामा की कब्र कोचीन में ही अवस्थित है।
  • दक्षिण पूर्वी तटपर पुर्तगालियों की एक मात्र बस्ती सैंटथामे थी । काली मिर्च एक मशाला व्यापार पर एकाधिकार हेतु पुर्तगालियों ने प्रथम कोठी का निर्माण ( 1503 में) कांचीन में किया था ।
  • द्वितीय कोठी पुलिकट एवं फिर कन्नूर में वर्ष 1505 में किया गया था ।
पुर्तगाल के प्रभावशाली गर्वनर
  1. फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (Frasisis co De - Almedda) (1505-1509)
    • अल्मीडा के प्रभावशाली नीतियों में सबसे सर्वोच्च था शांतजल नीति ( Blue Water Plicy) इस नीति का प्रमुख उद्देश्य व्यापारिक एकाधिकार एवं सर्वोच्चता को स्थापित करना था ।
    • इसने मिस्र, गुजरात एवं तुर्की के संयुक्त सेना को पराजित किया। इसके कार्यकाल में पुर्तगाली हिंद महासागर के नौसेन्य शक्ति में सर्वोच्च में हो गए थे। समकालीन इतिहासकारों के द्वारा पुर्तगालियों को 'सागर के स्वामी' जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया।
  2. अल्फांसो डी अल्बुकर्क (Alfanso-De-Albuquerque) (1509-1515)
    • भारत में पुर्तगाली शक्ति की वास्तविक संस्थापक अल्बुर्कक ही था।
    • वर्ष 1510 में बीजापुर के शासक युसूफ आदिलशाह से गोवा जैसे समृद्धशाली बंदरगाह को बलपूर्वक प्राप्तकर लिया था।
    • 1511 में अल्बुर्कक ने मलक्का पर कब्जा कर लिया तथा 1515 में फारस की खाड़ी में अवस्थित हामूर्ज बंदरगाह को युद्ध में जीत लिया था।
    • अल्बुर्कक प्रथम गर्वनर था जिसने भारत में स्थायी पुर्तगाली बस्तियों के निर्माण पर विचार किया तथा भारत के स्त्रियों से अपने सैनिकों को विवाह की अनुमति भी प्रदान किया।
    • इसने पुर्तगाली प्रभाव क्षेत्र में सती प्रथा बंद करा दिया था । राममोहन राय का अग्रगामी भी कहा जा सकता है।
    • अल्बुकर्क का मजार गोवा में अवस्थित है।
  3. नूनो द कुन्हा (Nuno Da Cunha) (1529-38)
    • 1529 में इसको भारत का गर्वनर नियुक्त किया गया। अल्बुर्कक के पश्चात् सबसे प्रभावशाली गवर्नर साबित हुआ था। इसने 1530 में पुर्तगली प्रशासनिक कार्य का कें कोचीन के स्थान पर गोवा बना दिया।
    • उसने गुजरात के शासक बहादुरशाह तथा मुगलशासक हुमायूँ के बीच के मतभेद का लाभ उठाया। कून्हा 1534 बेसीन द्वीप तथा 1535 में द्वीव पर कब्जा कर लिया।
  • गौसिया द नारनोन्हा (Garcia Da Narnoneha ) :- वर्ष 1538 में यह भारत का पुर्तगाली गर्वनर नियुक्त हुआ। इसके कार्यकाल में पुर्तगाली भारत के दमन, द्वीप, मद्रास, बंबई के साथ दक्षिण एशिया में प्रमुख व्यापारिक अड्डे स्थापित किए। पुर्तगाल का सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र सीलोन (श्रीलंका) भी था।
    • 1559–60 तत्र पुर्तगालियों के पास 60 से अधिक ने दुर्ग तथा 100-150 लगभग जहाजों का बेड़ा था। किंतु यह प्रभाव लंबे समय तक नहीं रह सका। वर्ष 1580 में स्पेन पुर्तगाल पर कब्जा कर लिया। स्पेन के कब्जे के पश्चात् पुर्तगाली भारत में कमजोर होते चले गए। इसी क्रम में डचों (Dutch) एवं अन्य व्यापारिक कंपनियों ने प्रतिस्पर्द्धा में पराजित किया। वर्ष 1761 तक मात्र तीन द्वीप- गांवा, दमन एवं द्वीव पुर्तगालियों के पास रह गया था।
  • पुर्तगालियों के पतन का कारण-
    • विवाह नीति
    • भ्रष्ट प्रशासन
    • दोषपूर्ण एवं अनियंत्रित व्यापार प्रणाली
    • धार्मिक नीति
    • अन्य व्यापारिक कंपनियों का भारत आगमन इत्यादि ।
  • पुर्तगालियों का भारत में योगदान-
    • पुर्तगालियों ने गोवा में प्रथम प्रेस की स्थापना किया तथा आयुर्वेद पर आधारित पुस्तक की छपाई कराया। ध्यात्व्य हो कागज का आविष्कार चीन में हुआ था।
    • नौतन ( बंदरगाह) तथा जहाज निर्माण उद्योग का विकास एवं विस्तार भारत में पुर्तगालियों ने किया था।
    • गोथिक स्थापत्य कला का विकास भी पुर्तगालियों के द्वारा किया गया था।

कार्ट्ज - अरमेडा-काफिला व्यवस्था (Cartaz-Armodia-Cafila System)

  • कार्ट्ज का तात्पर्य परमिट से है । पुर्तगालियों को एकाधिकार कार समुद्री शक्ति पर था। किसी भी व्यापारिक जहाज को बगैर परमिट के समुद्री व्यापार की अनुमति नहीं था। इसका परमिट (Pass) पुर्तगली ही प्रदान करते थे। परमिट (Pass) प्राप्त की हुई जहाज की सुरक्षा में काफिला (Cafila ) अरमेडा (जहाजों का जत्था ) चलता था। जो समुद्री लूट-पाट से सुरक्षित करता था। इसी व्यवस्था को कार्ट्ज-अरमेडा-काफिला व्यवस्था कहा गया। 
    • तत्कालीन मुगल बादशाह की जहाजों को भी कार्ट्ज लेना पड़ता था । पुर्तगाली स्वयं की 'समुद्र का स्वामी' कहते थे।
    • किसी भी भारतीय एवं अरब के जहाज को गोला-बारूद एवं काली मिर्च के व्यापार की अनुमति नहीं थी । उस पर सिर्फ पुर्तगालियों का एकाधिकार था।

डच (Dutch)

हॉलैण्ड (नीदरलैण्ड) के निवासी को डच (Dutch ) कहा जाता है। 15वीं शताब्दी में हॉलैण्ड यूरोप व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। पुर्तगाल द्वारा दक्षिण एशिया ( भारत ) से लिस्बन (Lisbun) लाए गए व्यापारिक वस्तुओं को यूरोप के बाजार तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी डचों के पास थी । पुर्तगाली नौसेना में बड़े जहाज थे किंतु डचों ने छोटे नौकाओं का निर्माण किया जिसे फ्लूटशीप कहा गया। इसको ( चप्पू) हाथों से भी चलाया जा सकता था। इस प्रकार डचों ने पुर्तगाली व्यापारिक साम्राज्य को पहले यूरोप में चुनौती दिया फिर भारत में | भारत की वस्तुओं का यूरोप में मांग एवं उसकी किमतों से आकर्षित होकर डचों ने दक्षिण एशिया के व्यापार में कमी दिखाई। प्रारंभ में डचों ने मशाला द्वीप पुंज (इंडोनेशिया) में व्यापारिक केन्द्र स्थापित किया तथा मशाला व्यापार के क्षेत्र में एकाधिकार हासिल किया। किंतु कुछ वर्षों में भारतीय व्यापारिक साम्राज्य में हिस्सेदारी हेतु पुर्तगाल को चुनौती दिया। 1580 में स्पेन का पुर्तगाल पर कब्जे के पश्चात् पुर्तगाली नौसैनिक शक्ति भारत में कमजोर पड़ती गई। उसी का फायदा डचों ने उठाया एवं पुर्तगाल के व्यापारिक खंडहर पर अपना साम्राज्य स्थापित किया।
  • 1595 में प्रथम डच यात्री हाउटमैन भारत आया था। भारत से अपनी धन संपत्ति के साथ वापस डच गया। इसकी यात्रा वृत्तांत ने एवं कुछ अन्य कारणों ने डचों को दक्षिण एशिया (भारत) से व्यापार को प्रेरित किया।
  • 16वीं शताब्दी में डच (नीदरलैंड) यूरोप के व्यापारी गतिविधि का प्रमुख केन्द्र था।
  • वर्ष 1602 मे डच (नीदरलैंड) की संसद द्वारा प्रस्तावित विधेयक से डच इ इंडिया कंपनी की स्थापना की गई।
  • इस कंपनी का नाम 'बेरेनिग्दे ओस्त डेडिसे' (Vereenigde ost Indiscne Compagnic) मतलब 'यूनाइटेड इस्ट इंडिया कम्पनी ऑफ नीदरलैंड' था।
  • डच संसद द्वारा प्राप्त प्रस्ताव में इस कंपनी को 21 वर्षों के लिए भारत एवं देशों के साथ, युद्ध करने, व्यापार करने, संधि करने, स्थायी सेना रखने तथा दुर्ग बनाने का अधिकार प्राप्त था ।
  • इस कंपनी की संयुक्त पूँजी 65 लाख गिल्डार थी तथा समूचे यूरोप में निर्मित कंपनियों में प्रथम कंपनी की जिसने प्रारंभ में सिर्फ मशाला व्यापार पर स्वयं को केन्द्रीत किया। 
  • डच संसद के आदेशानुसार इसमें 17 सदस्य नियुक्त किए गए। इसलिए उस इस्ट इंडिया कंपनी को 'जेंटलमैन - 17' भी कहा गया है।
  • 1602 में डचों ने पुर्तगालियों को बैरम के युद्ध में पराजित किया था तथा गुजरात, कोरोमंडल एवं बंगाल बिहार उडीसा में अपनी फैक्ट्रीयाँ धीरे-धीरे स्थापित किया।
  • डचों ने 'बादेर हेग' के नेतृत्व में वर्ष 1605 में प्रथम व्यापारिक कोठी मसुलीपत्तम (आंध्र प्रदेश) में स्थापित किया ।
  • डचों ने दूसरी कोठी 1610 में पुलिकट (उड़ीसा) में स्थापित किया था। जहाँ उनके स्वर्ण सिक्के ( पैगोडा) हाल जाते थे। पुलिकट को डचों ने प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रूप में स्थापित किया ।
  • डचों ने वर्ष 1690 में पुलिकट से अपने व्यापारिक मुख्यालय को बदलकर नागपट्टनम कर दिया।
  • डच कंपनी के द्वारा बंगाल में अपनी प्रथम फैक्ट्री 1627 में पीपली में स्थापित की गई थी। कुछ राजनीतिक कारणों से पीपली को छोड़ बालासौर चले गए।
  • 1653 में चीनसुरा में डचों ने 'गुस्तावस' नामक किले का निर्माण किया था।
  • 1616 में सूरत में स्थित डच इस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार निदेशालय सर्वाधिक लाभ कमाने वाला प्रतिष्ठान था।
  • उच्चों द्वारा स्थापित अन्य कारखानें
    • विमलीपट्टनम
    • कोचीन (1663)
    • चिनसुरा (1653)
    • कारिकल (1645)
  • डचों का व्यापारिक विस्तार 1630-1665 तक जारी रहा। इस कालखण्ड में भारत से दक्षिण एशिया के अनेक द्वीप एवं देशों पर इनका व्यापारिक साम्राज्य स्थापित था ।
  • 17वीं शताब्दी में भारत से किए जानेवाले मशालों के व्यापार पर डचों का एकाधिकार था ।
  • वर्ष 1759 में 'बेदरा' में अंग्रेज सेनापती क्लाईव के नेतृत्व में डचों से अंग्रेजों ने युद्ध हुआ। उस युद्ध में उच पराजित हुए। इसी युद्ध के पश्चात् अंग्रेज निरंतर शक्तिशाली होते गए जबकि डचों का पतन प्रारंभ हो गया।
  • पुर्तगाली व्यापारिक साम्राज्य को डचों के द्वारा ध्वस्त किया गया था। जबकि अंग्रेजों की नौसेना शक्ति ने डचों को पराजित कर दिया ।

अंग्रेज (The English)

अंग्रेज 16वीं शताब्दी में व्यापारिक उद्देश्य से भारत आए थे। यूरोप से भारत समस्त कंपनियों की भांति इनका भी उद्देश्य भारत से व्यापार के द्वारा कंपनी के लाभ को सर्वाधिक करना था। भारत में सर्वाधिक लाभ उसी को प्राप्त होता जिस कंपनी को देशी रजवाड़ों का संरक्षण प्राप्त होता था। अंग्रेजों को भारत में व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करने हेतु दो तरफा संघर्ष करना पड़ा था। एक तरफ यूरोप की कंपनियाँ तथा दूसरी भारत की तात्कालीन राजनीति सत्ता । इस क्रम में सर्वाधिक लाभ से प्रेरित इंगलैंड के राजा चार्ल्स - II ने कंपनी को विशेषाधिकार वर्ष 1661 में प्रदान किया। इस विशेषाधिकार के पश्चात् अंग्रेज भारत में राजनीतिक एवं व्यापारिक दोनों स्तर पर स्वयं को शक्तिशाली कर पाए। अंग्रेजों का सबसे बेहतरीन गुण था समय के साथ स्वयं को शक्तिशाली बनाना इस गुण के साथ अंग्रेज ने क्रमबद्ध तरीके से समूचे भारत पर अपनी शक्ति स्थापित करते गए। बक्सर युद्ध के पूर्व अंग्रेजों ने सम्पूर्ण भारत के देशी तथा यूरोपीय शक्तियों को पराजित किया था। बक्सर युद्ध (21 अक्टूबर, 1764 ) के पश्चात् भारत के नीति निर्माता बन बैठे। 1765 का बंगाल का द्वैध शासन प्रथम कानून का भारतीय जनता पर लागू किया गया। इस क्रम में 1947 तक संवैधानिक विकास प्रक्रिया के साथ भारत का आर्थिक, वैचारिक एवं राजनीतिक शोषण जारी रखा। अंततः अनेकों विधि से भारतीय राजनेताओं एवं जनता ने भारत की स्वतंत्रता को संरक्षित (1947) में संरक्षित किया।
  • 1980 – में विलियम डेक (नाविक) द्वारा समुद्री मार्ग से पुरी दुनिया का चक्कर लगाया था। 
  • 1588 – में अंग्रेजों ने स्पेनिश अमेंडा (नाव का बेड़ा) को पराजित कर अंग्रेजी नौसेना की सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया। इस विजय से प्राप्त वस्तुओं एवं उनके मूल्य ने भारत से व्यापार के लिए अंग्रेजों को प्रेरित किया।
  • 1593 - इसी क्रम में 'जेम्स लंकास्टर' नामक अंग्रेज 'रेड ड्रैगन' नामक जहाज से तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में पहुँचा। इस प्रकार भारत पहुँचने वाला प्रथम अंग्रेजी जहाज "रेड ड्रैगन' था।
  • 1599 – जान मिडेनहॉल स्थलमार्ग से भारत पहुँचने वाला प्रथम अंग्रेज व्यापारी था। भारत के साथ स्थल मार्ग से व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त करने वाली कंपनी लीवेंट (Livent) थी।
  • सितम्बर, 1599 - ब्रिटेन के व्यापारी जान मेयर ने सितम्बर 1599 ई. को व्यापारियों के सहयोग से एक कंपनी का गठन किया था। इस कंपनी का नाम 'Governer and Company of marchant of landon treding to the east Indies' था।
  • प्रारंभ में इस कंपनी का उद्देश्य इंडोनेशिया द्वीप (मशाला द्वीप) के साथ मशालों का व्यापार करना था। इस कंपनी को जॉन की कंपनी (John's Company) भी कहा गया । 
  • दिसंबर, 1600 - ब्रिटेन की महारानी ऐजिलाबेथ टेलर प्रथम ने कंपनी को 15 वर्षों के लिए व्यापार की अनुमति प्रदान किया। परन्तु कभी भी 3 वर्ष पूर्व की सूचना देकर सरकार कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर सकती थी ।
  • कैप्टन हॉकिन्स (1608-1611 ) - हॉकिन्स, तुर्की तथा फारसी दोनों भाषाओं का जानकार था। हॉकिन्स ने जहांगीर से मुगलों की राजकीय भाषा फारसी में बात किया। इसका प्रभाव जहांगीर पर सकारात्मक पड़ा।
    • मुगल शासक जहांगीर ने हॉकिन्स को 400 मनसब प्रदान किए एवं 'फिरंगी खान' की उपाधि भी प्रदान किया।
    • जहाँगीर ने हॉकिन्स की शादी अर्मेनियाई इसाई मुबारक शाह की बेटी से करा दिया था ।
    • हॉकिन्स के साथ ही प्रसिद्ध यात्री विलीयम फिंच (Willium Finch) भी भारत आया था।
    • विलीयम फिंच (Willium Finch) ने ही अनारकली की दंत कथाओं का वर्णन किया है।
    • विलीयम फिंच (Willium Finch) के द्वारा जहांगीर की संपत्ति तथा उसके दरबारी कानूनों का भी वर्णन किया है।
    • इसी क्रम में जहागीर ने हॉकिन्स को अंग्रेजी फैक्ट्री बनाने की अनुमति तो प्रदान किया। किंतु बोहरा व्यापारियों एवं पुर्तगालियों के दबाव में आकर आदेश वापस ले लिया था।
    • अंततः वर्ष 1608-11 तक हॉकिन्स भारत में रहा तथा उसके बाद असफल होकर वापस चला गया था।
  • 1611 - इस वर्ष मसुलीपत्तनम (आंध्र प्रदेश) में अंग्रेजों के द्वारा भारत में प्रथम अस्थायी कारखाना स्थापित किया गया था।
  • 29 नवम्बर, 1612 - ब्रिटिश कमांडर, मिडलटन तथा सेनापति थामस बेस्ट के नेतृत्व में स्वाल्ली नामक स्थान पर पुर्तगालियों का अंग्रेजों से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में अंग्रेजी नौशक्ति ने पुर्तगालियों पर विजय प्राप्त किया इस युद्ध के पराजय के पश्चात् पुर्तगाली व्यापारिक एकाधिकार समाप्त होता गया ।
  • स्वाल्ली (1613 ) - युद्ध से प्रभावित जहाँगीर ने एक आज्ञापत्र के माध्यम से अंग्रेजों की प्रथम कोठी की स्थापना किया था । 1613 में सूरत में स्थापित कारखाना अंग्रेजों की स्थापित प्रथम स्थायी कारखाना था।
    • 1663 - इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने 10 पाउंड वार्षिक कर के बदले में बंबई किराए पर अंग्रेजों को दे दिया। अगले 8 वर्षों में गेराल्ड अंगियार (बंबई के संस्थापक) ने बंबई को आधुनिक रूप दिया था। इस नवीन संरचना के पश्चात् बंबई को पूर्ण आधुनिक शहर में परिवर्तन कर दिया गया तथा बंबई का प्रथम संस्थापक 'जार्ज ऑक्साईन' था।
    • 1688 - इस वर्ष इंग्लैंड में गौरवमय रक्तहीन MODERN HISTORY हुई । अहिंसा के दम पर सत्ता में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। उदारवादी दल की सत्ता स्थापित हुई। इस राजनीतिक परिवर्तन के क्रम में नए राजा एवं रानी भी स्थापित किए गए। विलीयम तृतीय एवं मेरी राज- रानी बनाए गए।
      • इस कालखण्ड में इस्ट इंडिया कंपनी की भांति भारत से व्यापार करते हुए अनेक कंपनीयाँ बनाई गई। कुछ नवीन व्यापारियों के एक समूह के द्वारा "न्यू इंडिया कंपनी" भारत से व्यापार के उद्देश्य से स्थापित की गई। 'न्यू इंडिया' कंपनी के द्वारा 'न्यू ब्रीज' नामक जहाज भी खरीद लिया गया ।
      • इंग्लैंड के तत्कालीम राजनीतिक सत्ता के सहयोग से 'न्यू इंडिया कंपनी' को भारत से व्यापार की अनुमति भी प्राप्त हो गया।
      • वर्ष 1608 से भारत में व्यापार कर रही पुरानी कंपनी 'जॉन की कंपनी' थी। न्यू इंडिया कंपनी को भारत में प्रस्पिर्द्धा इसी कंपनी से करना था ।
    • 1708 - इस वर्ष तक भारत के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से तीन अन्य कंपनियाँ भी गठित हो गई। इन सभी कंपनियों को आपसी व्यापारिक संघर्ष प्रारंभ हो गया और भारत की व्यापारिक स्थिति असंतुलित हो गई।
      • इस व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा की समस्या से बचाव हेतु गुडाल्फीन के राजकुमार के द्वारा इंग्लैंड की संसद में यूनाइटेड बिल का प्रस्ताव रखा गया। जिसके अन्तर्गत तीनों कंपनियों का सम्मीलन करना था।
      • अंततः एक नवीन कंपनी 'The united and Company of marchant of london treding to the east' का गठन किया गया।
      • इसी कंपनी को संक्षिप्त में East India Company भी कहा जाता है ।

    इस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार

    • पश्चिमी तट पर -
      • अंग्रेजों ने वर्ष 1613 में सूरत में अपना प्रथम स्थायी कारखाना स्थापित किया था।
      • 1623 ई. तक भड़ौच, बड़ौदा, खम्भात, अहमादाबाद एवं आगरा तक कंपनियाँ (फैक्ट्रीयाँ) स्थापित हो गई।
      • ईरान के सैन्य सहयोग के दम पर अंग्रेजों ने 1628 में हमुर्ज के बंदरगाह पर कब्जा कर लिया।
    • बंबई- पुर्तगालियों से दहेज में अंग्रेज राजा चार्ल्स-11 को 1661 में प्राप्त हुआ।
    • 1669-77 – जेराल्ड अंगियार ने बंबई को विकसित किया। -
      • बंबई में अंग्रेजों ने सिक्के ढालने की व्यवस्था स्थापित किया। कालांतर में यहाँ के ढाले सिक्के समूचे भारत में मान्य हुए।
    • 1687 - इस वर्ष में बंबई पश्चिमी तटों का केन्द्र (मुख्यालय) बन गया।

    पूर्वी तटों पर कंपनी का विस्तार

    • 1611- इस वर्ष अंग्रेजों ने मसुलीपट्टनम (आध्रं प्रदेश ) में प्रथम अस्थायी कारखाना स्थापित किया था।
    • 1626 – अरमागांव (पुलीकट के निकट) में अंग्रेजों ने दूसरी बस्ती का निर्माण कराया था।
    • 1632 - इस वर्ष गोलकुंडा के शासक ने सुहरा फरनान (Golden order) प्रदान किया। इस फरमान (आदेश) में 500 पैगोडा ( डचों की स्वर्ण मुद्रा) के बदले गोलकुंडा के बंदरगाह पर मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान किया था। जबकि वर्ष 1661 में अंग्रेजों को सिक्का ढालने का अधिकार प्राप्त हुआ था।
    • 1633 - इस वर्ष उड़ीसा में बालासोर, हरिपुर तथा कासिम बाजार ( पश्चिम बंगाल ) पटना (बिहार) इत्यादि स्थान पर व्यापारिक कोठियाँ स्थापित करने की अनुमति प्राप्त हुआ ।
    • इस वर्ष 'फ्रांसीसी डे' नाम अंग्रेज के द्वारा चंद्रगीरी के शासक 'दरमेला वेंकट्टप्पा' से जमीन लीज पर प्राप्त किया तथा वहाँ 'मद्रास' नामक शहर की स्थापना कराई।
      • मद्रास के किले का नाम 'सेंट फोर्ट जार्ज' रखा।

    बंगाल में कंपनी का विस्तार

    • 1651 में हुगली में व्यापारिक कंपनी का निर्माण कराया गया था। इस कोठी की स्थापना का श्रेय 'ब्रिजमैन' को जाता है। ब्रिजमैन के साथ डॉ. बैटन ने बंगाल के शासक शाहशुजा की बहन का इलाज किया था। इस घटना के पश्चात् शाहशुजा ने 3000 Rs. के बदले बंगाल में कर मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान किया था।
    • 1658 – इस वर्ष बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के समस्त क्षेत्र मद्रास स्थित सेंट जॉर्ज फोर्ट के अधीन कर दिया गया था।
    • 1686 – एक राजनीतिक घटना के पश्चात् औरंगजेब ने अंग्रेजों को हुगली के तट पर दंडित किया तथा समस्त व्यापारिक गतिविधि बंद कर बस्तियाँ खाली करने का आदेश भी दिया था।
    • 1690 – एक अंग्रेज अधिकारी जॉब चारनाक ने मुगलों को 1,50,000 Rs. जुर्माना भुगतान किया तथा पुनः व्यापारिक अधिकार प्राप्त किया था। अंग्रेजों ने सूतानाती नामक गांव भी खरीद लिया था।
    • 1690 - बंगाल में वर्द्धमान के जमींदार शोभा सिंह तथा रहिम खान के द्वारा विद्रोह कर दिया गया। इसके साथ तत्कालीन बंगाल की समस्त शक्तियाँ अपनी फैक्ट्रीयाँ किलाबंद करने लगी। इसी अवसर का लाभ अंग्रेजों ने भी उठाया तथा अपनी फैक्ट्रीयों की किलाबंदी कर लिया। किलाबंदी का आदेश तात्कालीन बंगाल के शासक अजीमुशान के द्वारा दिया गया था।
    • 1698 – अजीमुशान ने 1200 Rs. के बदले तीन गांव अंग्रेजों को सौंप दिया था। इसी गांवों के स्थान पर वर्ष 1700 ई. में जॉब चारनाक ने कलकत्ता नामक शहर की स्थापना किया। कलकत्ता में हो 'फॉर्ड विलीयम' किले की स्थापना किया गया 'चार्ल्स आयर' को इस किले का संस्थापक नियुक्त किया गया था।
    • 1709 ई. में बंगाल के शासक शाहसुजा ने सीमा शुल्क 32% से घटाकर 2½% कर दिया था।

    अंग्रेजों का व्यापारिक मैग्नाकार्टा

    • 1717–मुगल शासक फर्रुखशीयर पिलीया रोग से पीड़ित था। अंग्रेज डॉक्टर जॉन सरमन अपने दल के साथ मुगल दरबार पहुँचे तथा इसके रोग का इलाज किया। इसके शिष्टमंडल में चार सदस्य थें।
      (i) सर जॉन सरमन
      (ii) डॉ. हॅमिल्टन (पिलीया विशेषज्ञ)
      (iii) ख्वाजा सेहूर्द (अर्मेनिया का द्भाषिया)
      (iv) एडवर्ड एटीफेशन विलीयम
      • इस शिष्टमंडल से फर्रूखशीवर प्रभावित हुआ तथा भारत में अंग्रेजों को व्यापारिक एकाधिकार की असीमित शक्तियाँ प्रदान कर दिया। 
      • रु. 3000 के बदले बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में कर मुक्त व्यापार का अधिकार ।
      • कलकत्ता के नजदीक 38 गांव अंग्रेजों को खरीदने का अधिकार प्रदान किया।
      • रु. 10,000 के बदले अंग्रेजों को सूरत के बंदरगाह में करमुक्त व्यापार का अधिकार ।
      • बंबई में ढाले सिक्के को समूचे भारत में चलाने का अधिकार ।
      • आम्स महोदय ने इस 1717 के व्यापारिक एकाधिकार को अंग्रेजों का 'मैग्नाकार्टा' कहा था।

    फ्रांसीसी (The French)

    यूरोप में फ्रांस भी शक्तिशाली राष्ट्रों में शामिल था तथा यूरोप में अंग्रेजों का प्रमुख प्रतिद्वंदी भी था। कुछ राजनीतिक एक राष्ट्र की समस्याओं के कारण फ्रांस में व्यापारिक कंपनी का निर्माण एवं नौसैन्य शक्ति को मजबूत होने में समय लग गया। फ्रांस में कंपनी निर्माण की प्रक्रिया फ्रांस के तात्कालिन राजा लूई-14 के कार्यकाल में प्रारंभ हुआ था। फ्रांस के मंत्री कोलबर्ट (Colbert) एवं रिचलू (Reschlu) के पहल पर फ्रेंच इस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी ।
    • वर्ष 1664 में स्थापित फ्रांसीसी कंपनी को "कंपनी द इंडस ओरियंटल (Companie des Indes Orientals) नाम दिया गया था। यह कंपनी पूर्णत: फ्रांसीसी सरकार के नियंत्रण में थी ।
    • भारत पहुँचने वाला प्रथम फ्रांसीसी दल 1667 में फ्रैंक मैरो की अध्यक्षता में भारत पहुँचा था । इस दल का सहयोगी ईरानी का स्थायी निवासी 'मकरारा' भी था।
    • वर्ष 1668 में सूरत में फ्रांस के द्वारा प्रथम फ्रांसीसी फैक्ट्री की स्थापना की गई थी। इसी क्रम में व्यापार विस्तार के उद्देश्य से ईरानी सहयोगी "मकरारा" के ग से पूर्वी तट पर वर्ष 1609 में मसुलीपट्टम में फ्रांसीसी कंपनी स्थापित किया गया।
    • फ्रांसीसी शक्ति विस्तार के क्रम में व 1672 में एडमिरल डेला रे गोलकुंडा के सुल्तान को परास्त कर सैंटथामें को बलपूर्वक प्राप्त कर लिया।
    • फ्रांसीसी कंपनी के निदेशक फ्रांसीसी मार्टिन ने अपने सहयोगी 'बेलांग लेस्सिने' की सहायता से वेलांडपुरम के मुस्लिम सूबेदार शेर खां लोदी से पुर्दुचुरी नामक गांव प्राप्त किया था। इस गांव का नामांकरण 'पांडिचेरी' के नाम से किया गया।
    • वर्ष 1701 में पांडिचेरी को पूर्वी तट स्थित समस्त बस्तियों का प्रमुख केंद्र बना दिया गया था।
    • डच फ्रांसीसी व्यापारिक संघर्ष में डचों ने अंग्रेजों की सहायता से पांडिचेरी छीन लिया था। किंतु 1697 संपन्न रिजविक की संधि के पश्चात् पांडिचेरी पुनः फ्रांसीसी को प्राप्त हो गया।
    • पांडिचेरी के कारखाने में ही फ्रांसीसी निदेशक 'फ्रांसीसी मार्टिन' ने एक किले का निर्माण कराया। इस किले का नाम मार्टिन ने फॉर्टलूई रखा।
    • फ्रांस वर्ष 1674 में बंगाल के तत्कालीन नवाब शाइस्ता खां (औरगजेब का मामा) ने कुछ भूमि आवंटित किया था। इसी जमीन पर वर्ष 1690-92 में चंद्रनगर स्थापित किया था। 

    फ्रांसीसी कंपनी द्वारा स्थापित कारखाने

    • 1721, मॉरीशस
    • 1724, मालाबार स्थित माहे
    • 1739, कराइकल
    • वर्ष 1731 में चंद्रनगर (बंगाल) के प्रमुख रूप में फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले की नियक्ति हुई थी।
    • फ्रांसीसी व्यापारिक अक्रामकता में डुप्ले को बहुत योगदान था। इसके कार्यकाल में फ्रांसीसी व्यापारिक साम्राज्य में क्षणिक विस्तार हुआ।
    • डुप्ले (Duple) ने भारत में व्यापारिक साम्राज्य विस्तार के लिए भारत के आंतरिक राजनीति में प्रवेश एवं हस्तक्षेप प्रारंभ किया था। इसके हस्तक्षेप ने अंग्रेज एवं फ्रांसीसी सेना को युद्ध के लिए प्रेरित किया ।

    आंग्ल- फ्रांसीसी संघर्ष

    1. प्रथम कर्नाटक युद्ध (1740-48)
    2. द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54)
    3. तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-63)
    • कर्नाटक युद्ध के कारण-
      • इन दोनों कंपनियाँ व्यापारिक महत्वकांक्षा के लिए भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने लगी। राजनीतिक वर्चस्व के दम पर भारत में व्यापारिक एकाधिकार प्राप्त किया जा सकता था। इस कारण दोनों कंपनियाँ युद्धरत हो गई।
      • यूरोप में अस्ट्रिया (Austria) की महारानी मारिया थेरेसा के मृत्यु के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष प्रारंभ हो गया था। यूरोप में इंग्लैंड एवं फ्रांस दोनों देश लड़ रहे थे। भारत का प्रथम कर्नाटक युद्ध इस युद्ध का विस्तार मात्र था ।
      • भारत के राजनीति में केन्द्रीय एवं शक्तिशाली सत्ता का अभाव था। जो समूचे भारत को बांधकर रख सके। भारत के तीनों शक्तियाँ मराठा, मुगल एवं निजाम तीनों आपसी संघर्ष में व्यस्त थे। इस कारण विदेशी कंपनियों को अपने राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ाने में मदद प्राप्त हुआ।
      • विलीयम फिंच (Willium Finch) ने ही अनारकली की दंत कथाओं का वर्णन किया हैं।
    • प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746-48)-
      • अंग्रेज कैप्टन बनैट के नेतृत्व की एक सेना ने पांडिचेरी जा रही एक फ्रांसीसी जहाज पर कब्जा कर लिया ।
      • पांडिचेरी फ्रांसीसीयों का मुख्यालय था जहां जहाज जा रही थी।
      • कर्नाटक के गवर्नर डुप्ले (Duple) ने मारीशस के तत्कालीन फ्रांसीसी सेनापति ला बूर्दन के सहयोग से डुप्ले ने मद्रास के अंग्रेज गवर्नर निकोलस मोर्स को आत्मसमपर्ण के लिए मजबूर कर दिया। इस युद्ध में अंग्रेज फ्रांसीसी नौसेन्य शक्ति के समक्ष आत्मसमर्पण कर चुके थे।
      • इसी क्रम में कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन ने कप्तान महफूज अली के नेतृत्व में 10,000 सैनिकों ने नवाब की सेना को पराजित कर दिया। यह युद्ध सेंटथॉमे नदी के मुहाने पर लड़ा जा रहा था। इस युद्ध को कालांतर में सेंटथॉमे का युद्ध भी बोला गया था।
      • इस युद्ध के विस्तार में 1748 में अंग्रेज रॉयल एडमिरल बोस्कार्बन के नेतृत्व में एक जहाजी बेड़ा ने पांडिचेरी की घेराबंदी की परन्तु असफल रहे।
      • यूरोप में अंग्रेज और फ्रांसीसी सेना के बीच युद्ध समाप्त हुआ। इस युद्ध का उद्देश्य था अस्ट्रिया का उत्तराधिकार प्राप्त करना। एक्स-ला-शापेल संधि ने इस युद्ध को समाप्त किया। इसी संधि से भारत में भी प्रथम कर्नाटक युद्ध भी समाप्त हो गया। इस संधि से मद्रास पुनः अग्रेजों को प्राप्त हो गया था।
    • द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749-54 )-
      • प्रथम कर्नाटक युद्ध में विजय के पश्चात् फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले अति महत्वाकांक्षी हो गया। साम्राज्य विस्तार हेतु उसने कर्नाटक के आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप प्रारंभ कर दिया था।
      • डुप्ले के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने हैदराबाद के निजाम के चचेरे भाई मुज्जफर जंग का साथ दिया। साथ में नवाव अनवरुद्दीन का जीजा चंदा साहब था ।
      • इन दोनों संघों के बीच 3 अगस्त, 1749 को अंबूर का युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेज एवं उनके समर्थक प्रथम चरण में पराजित हुए। दूसरे चरण में क्लाइव ने 'अर्काट के घेरा' की नीति से युद्ध का अंग्रेजों के पक्ष में पलट दिया।
      • चंदा साहब ने अंबूर (1749) में अनवरुद्दीन को पराजित कर मार डाला। इस युद्ध विजय के पश्चात् चंदा साहब की कर्नाटक में ताजपोशी हुई। हैदराबाद में मुज्जफर जंग भाई नासीर जंग से पराजित हुआ था। लेकिन 1750 में भाई नासीर की मृत्यु के पश्चात् मुज्जफर जंग दक्कन का सुबेदार बन गया।
      • इस युद्ध के विस्तार क्रम में अंग्रेजों का सहयोगी एवं कर्नाटक पूर्व नवाब अनवरुद्दीन का पुत्र मुहम्मद अली त्रिचनापल्ली के किले में भाग कर शरण लिया था। इसी किले में दो प्रसिद्ध अंग्रेज अधिकारी राबर्ट क्लाईव एवं स्ट्रींगर लॉरैस मौजूद थे। डुप्ले ने इस किले की घेराबंदी कर दिया। किला से क्लाईव यूक्तिपूर्वक बाहर निकल गया। इस किले से भागकर क्लाईव ने अर्काट घेरा की योजना बनाई थी।
      • राबर्ट क्लाईव ने बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से अर्काट (कर्नाटक की राजधानी) की घेराबंदी कर दिया। इस किले में तत्कालीन फ्रांस सर्मथित नवाब चंदा साहब मौजूद थे। चंदा साहब का क्लाईव से युद्ध हुआ। इस युद्ध में चंदा साहब गिरफ्तार कर तंजौर लाए गए जहाँ उनका कत्ल कर दिया गया था।
      • इस युद्ध के हार के पश्चात् फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले का कार्यकाल समाप्त कर दिया गया। दो यूरोपीय प्रभावशाली अधिकारी डुप्ले एवं क्लाईव थे । क्लाईव का भाग्योदय इस युद्ध विजय के पश्चात् हुआ जबकि डुप्ले का अंत हो गया।
      • ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सीनीयर पीट्स ने राबर्ट क्लाईव को Haven Born Genral (स्वर्ग में जन्मा जनरल) की उपाधि प्रदान किया था।
      • डुप्ले को फ्रांस बुलाने के पश्चात् 'गोदहे' को फ्रांस का गवर्नर बनाय गया था।
      • द्वितीय कर्नाटक युद्ध की समाप्ति पांडिचेरी की संधि के पश्चात् हुआ था।
    • तृतीय कर्नाटक युद्ध (1756-63)-
      • इस युद्ध का प्रारंभ का तात्कालिक कारण था- दो अंग्रेज अधिकारी क्लाइव एवं सन द्वारा बंगाल स्थित फ्रांसीसी बस्ती चंद्रनगर पर बलपूर्वक अधिकार ।
      • वर्ष 1760 में अंग्रेज एवं फ्रांसीसी सेना के बीच वॉडिवास नामक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व सर आयर कूट ने किया जबकि फ्रांसीसी सेना को काउंट द लाली का नेतृत्व प्राप्त हुआ था । 
      • 16 जनवरी 1761 को पांडिचेरी पर अंग्रेजों ने पूर्णतः अधिकार कर लिया । 
      • तृतीय कर्नाटक युद्ध में वांडिवास युद्ध का नेतृत्व फ्रांसीसी सेनापति काउंट द लाली ने किया था। फ्रांसीसी सेना के पराजय के पश्चात् काउंट द लाली को अंग्रेजों ने केंदी बनाकर इंग्लैंड भेज दिया। विगत 2 वर्षों तक सेनापति काउंट दलाली अंग्रेजों के कैद में रहे उसके बाद फ्रांस को सौंप दिया। फ्रांस के राजा लुई 16 के आदेश पर त्रस्ताइल (बस) के किले में काउंट द लाली को फांसी दे दिया गया था।

    महत्वपूर्ण तथ्य

    • 1511 - पुर्तगालियों के द्वारा मलाया द्वीप स्थित मलक्कापर कब्जा कर लिया।
    • 1515- फारस खाड़ी के मुहाने स्थित हरमुज बंदरगाह पर पुर्तगालियों के द्वारा कब्जा कर लिया गया।
    • 1530 - उस वर्ष पुर्तगालियों के द्वारा गोवा की प्रशासनिक केन्द्र स्थापित किया ।
    • 1540 - प्रथम जेसइट मिशन फादर आकाविया एवं फादर मासरत अकबर के दरबार पहुँचा ।
    • 1560 - इस वर्ष पुर्तगालियों के द्वारा प्रथम इसाई धार्मिक न्यायालय की स्थापना । इस न्यायालय का उद्देश्य विधर्मी लोगों को सजा करना था।
    • 1612 - सूरत में इसी वर्ष अंग्रेज कप्तान थामस बेस्ट के नेतृत्व की सेना ने पुर्तगालियों को पराजित किया था ।
    • 1580 - इस वर्ष पुर्तगाल पर स्पेन का कब्जा हो गया। यह प्रमुख कारण था पुर्तगाली शक्ति का भारत में पराजित होने का ।
    • 1576 - डचों ने भारत आगमन के साथ दक्षिण एशिया से पुर्तगालियों को इस वर्ष तक बाहर कर दिया था।
    • 1613 - उस वर्ष पुर्तगालियों ने सूरत में मुगल शासक के शाही जहाज लूट लिए। जहांगीर इस घटना के पश्चात् सूरत के मुगल गवर्नर को पुर्तगालियों को दंडीत करने का आदेश दिया था। मुर्बरक खां ने अंग्रेजी नौसेना के कप्तान डॉबटन की सहायता से पुर्तगालियों को सामुद्रिक युद्ध में पराजित किया ।
    मुगल शासक एवं इसाई धर्म
    • कुल तीन बार पुर्तगाली मिशनरीज को अकबर ने सनिवेदन बुलाया था-
      1. 28 फरवरी 1580 को दो पादरी रोडक्लफो एक्वाविवा तथा ऐटोनियों मांसरेट दरबार पहुँचे।
      2. 1590 में दरबार पहुँचे तथा
      3. 1595 में तीसरा मिशन अकबर के दरबार में पहुँचा था ।
    • वर्ष 1606 में जहाँगीर के कार्यकाल में विशाल चर्च को कॉलेजियम या पादरी आवास बनाए रखने की अनुमति दी गई थी।
    • 1608 में आगरा में एक दीक्षा स्थान आयोजित किया गया।
    • इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम का राजदूत कैप्टन हॉकिन्स की जहाँगीर के दरबार में 1608 में उपस्थित हुआ था। हॉकिन्स के विद्वाता से प्रशन्न होकर जहांगीर ने अर्मेनियाई इसाई मुबारक शाह की बेटी से उसकी शादी करा दिया था।
    • पुर्तगालियों ने मुगल शासन के विरूद्ध जाकर हुगली को बंगाल की खाड़ी में लूट-पाट का अड्डा बना दिया था।
    • 1611 में स्थापित मसुलीपट्टनम का कारखाना प्रथम अस्थायी कारखाना है क्योंकि कुछ राजनीतिक विरोध के कारण इनको बंद करना पड़ गया था। तदोपरांत 1613 सूरत में अंग्रेजों ने प्रथम स्थायी कारखाना किया था।
    • वर्ष 1688 में बंबई एवं पश्चिमी समुद्र से मुगल बंदरगाहों का घेरा डाला जाने वाले हजयात्रियों को बंदी बनाने का प्रयास किया। इस कृत्य से गुस्साए औरंगजेब ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का "आदेश दिया था। मुगल शासक ने अंग्रेजों को माफी मांगने पर मजबूर कर दिया था।
    • भारत में व्यापारिक विस्तार के लिए अंग्रेज फ्रांसीसी संघर्ष हुए थे जिसमें विजयी रहे। इस विजय का प्रमुख कारण अंग्रेजी नौसेना का मजबूत होना था।
    • 1580 में पुर्तगाल का स्पेन के साथ जुड़ गया एवं स्पेन पतन के साथ पुर्तगाल का भी पतन हो गया ।
    • 1632 में पटना में इन (Dutch) इस्ट इंडिया कंपनी का प्रवेश द्वारा था जो आर्थिक तंगी के कारण बंद हो गया। वर्तमान में पटना लॉ कॉलेज उसी स्थान पर अवस्थित है।
    • नील की सबसे सर्वोच्च किस्म बनाया में तैयार की जाती थी।
    • विलियम हैजेज (1681-84 ) बंगाल का प्रथम चीफ एजेंट था।
    • एशिया में मुक्त व्यापार करने वाले व्यापारी इंटरपोलर कहलाते थे ।
    • फ्रांसीसी बस्तियों का वास्तविक संस्थापक फ्रांसीसी मार्टिन को माना जाता है।
    • फिजियोक्रेट :- मुक्त व्यापार करने के पक्षधर फ्रांसीसी फिजियोक्रॅट कहलायें ।
    • यूरोप से भारत आए 1616 इंनिश कंपनी ने अपनी प्रथम फैक्ट्री 1620 में तंजौर के ट्रेकबार में ( तमिलनाडु) में स्थापित किया था। जबकि दूसरी फैक्ट्री सीतारामपुर (बंगाल) में स्थापित किया था।
    • 1725 में डेनिश कंपनीयां अपना समस्त व्यापार अंग्रेजों न बेच दिया एवं वापस चले गए।
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