General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 18वीं शताब्दी में स्थापित नवीन स्वायत्त राज्य एवं ब्रिटिश सत्ता का विस्तार

वर्ष 1707 में औरंगजेब के मृत्यु के पश्चात् महान मुगल शासन के शक्ति, प्रतिष्ठा एवं केंद्रीय शासन व्यवस्था का पतन हुआ।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 18वीं शताब्दी में स्थापित नवीन स्वायत्त राज्य एवं ब्रिटिश सत्ता का विस्तार

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | 18वीं शताब्दी में स्थापित नवीन स्वायत्त राज्य एवं ब्रिटिश सत्ता का विस्तार

वर्ष 1707 में औरंगजेब के मृत्यु के पश्चात् महान मुगल शासन के शक्ति, प्रतिष्ठा एवं केंद्रीय शासन व्यवस्था का पतन हुआ। मुगलो को सम्पूर्ण साम्राज्य जिसने वर्ष 1526 से 1707 तक भारत पर शासन किया था। अब उस सत्ता में निरंतर क्षति हो रही थी । उत्तरवर्ती मुगल शासको के कार्य काल में सभी अधिन राज्यों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित करना प्रारंभ कर दिया। उस क्रम में मुगल सत्ता का न केवल राजनीतिक सीमा संकुचित हुई साथ ही प्रशासनिक ढांचा भी ध्वस्त हो गया। मुगल साम्राज्य के क्षती के अनेकों कारण थे जिसमें प्रमुख था औरंगजेब की गल एवं अदूरदर्शी नीतियां तथा रिक्त राजकोष । उत्तरवर्ती मुगल शासकों के कमजोर होते ही । भारत में तीन स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। इन राज्यों का मुगल साम्राज्य से लगाव सिर्फ उपहार एवं भेंट तक सीमित था ।
17 वीं शताब्दी के स्वतंत्र राज्य 
राज्य वर्ष संस्थापक
1. बंगाल 1713 मुर्शीद कुल खां
2. बुंदेलखंड 1717 वीर दाउद तथा मुहम्मद अली खां
3. हैदराबाद 1724 चिनकिलिच खां
4. अवध 1739 सआदत खां
5. मैसूर 1761 हैदरअली 

बंगाल (Bengal)

17वीं शताब्दी में भौगोलिक दृष्टिकोण से आज के बंगाल में बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा राज्य शामिल थे। राजनीतिक एवं आर्थिक रूप से बंगाल सम्पूर्ण भारत का सबसे संपन्न राज्य था। 1700 में जहां बंगाल की जनसंख्या महज 15000 थी वही 1750 में यह संख्या बढ़कर 1,50,000 हो गई। बंगाल के दो लिले राजनीतिक एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से संपन्न थे। कलकत्ता एवं मुर्शीदाबाद |

बंगाल में अंग्रेज-

  • अंग्रेजों ने 1613 से 1663 तक मुगल एवं शासित बंगाल में फैक्ट्री एवं कारखाने स्थापित कर शांतिपूर्ण व्यापार का लक्ष्य निर्धारित किया था।
  • 1616 में डॉ. बैंटन के द्वारा मुगल राजवंश की महिला के चिकित्सा उपचार के बदले 3000 रु. वार्षिक का के बदौलत अंग्रेजों को बिहार, बंगाल तथा उड़ीसा में कर मुक्त व्यापार की अनुमति प्राप्त हुई थी।
  • 1651 - इस वर्ष मुगल सम्राट शाहशुजा के द्वारा इस्ट इंडिया कंपनी को सारा नील, रेशम तथा चीनी के व्यापार की अनुमति प्राप्त हुई।
  • 1658 बंगाल के तात्कालीक नवाब मीर जुमला ने अंग्रेजों के कंपनी के व्यापार को बंद कर दिया। किंतु राजनीतिक प्रक्रिया से अंग्रेजों ने शाइस्ता खां से पुनः व्यापारिक अधिकार प्राप्त किया था।
  • 1670 - 1700 उस कालखण्ड में अनिधिकृत व्यापार (Tax free) व्यापार करने वाले व्यापारी 'इंटरपोलर' ने बंगाल में व्यापारिक एकाधिकार जारी रखा। भविष्य में मुगल एवं अंग्रेज इनके व्यापारिक गतिविधी के कारण विरोधी बन गए थे ।
कंपनी एवं बंगाल के नवाब
  • मुर्शीद कुली खां (1717-27)
    • मुर्शीद कुली खां मूलत: दक्षिण का एक ब्राह्मण था । जिसने औरंगजेब के प्रभाव में इस्लाम धर्म स्वीकार लिया था। इसका उपनाम 'मुहम्मद हादी' था। इसके द्वारा स्थापित वंश नासिरी वंश के नाम से जाना गया।
    • मुर्शीद कुली खां भू-राजस्व का विशेषज्ञ था। इसके दौरान भारत में किए गए परिवर्तनों से औरंगजेब प्रभावित हुआ । औरंगजेब के द्वारा मुर्शीद कुली खां को बंगाल का राजस्व संबंधित दीवान नियुक्त किया गया।
    • ढाका के राजनीतिक माहौल से स्वयं को बाहर करने हेतु, इसने अपने दीवानी के कार्य को संचालित करने के लिए कार्य स्थल को ढ़ाका से मकसुदाबाद में स्थापित कर दिया।
    • वर्ष 1717 में मुर्शीद को मुगल सम्रा द्वारा बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया। इसी वर्ष फरूखशीयर ने 3000 रु. कर के बदले व्यापारिक छूट प्रदान किया। मुर्शीद कुली खां ने इस छूट का विरोध किया था।
    • मुर्शीद कुल खां स्वतंत्र बंगाल राज्य की प्रथम गर्वनर था। इसने ढ़ाका के स्थान का बंगाल की राजधानी मुर्शीदाबाद स्थापित कर दिया।
    • मुर्शीद कुली खां ने बंगाल में भू-राज्सव संबंधित अनेकों सुधार किया था ।
  • इजारेदारी प्रथा:- भूराजस्व वसूली हेतु ठेकेदारी व्यवस्था को बढ़ावा देना। इस व्यवस्था में पूर्व निर्धारित भूराजस्व वसूली की व्यवस्था में परिवर्तन किया गया। अब महाजन तथा व्यापारी भी भूराजस्व वसूली का ठेका ले सकते थे। इस कारण पूर्व के जमींदारों ने इस व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया।
    उस क्रम में तीन जमींदार विद्रोह हुए
    प्रथम - सीताराम, उदय नारायण एवं गुलाम अहमद
    द्वितीय - सुजात खां
    तृतीय - नजात खां
  • मुर्शीद ने 1979 में उड़ीसा का बंगाल में विलय कर लिया तथा अपने दामाद शुजाउद्दीन को वहां का सूत्रेदार नियुक्त किया।
  • मुर्शीद कुली खां स्वतंत्र तो था किंतु मुगल सम्राट को भेजता रहा।
शुजाउद्दीन (1727-39)
  • यह मुर्शीद कुली खां का दामाद था। इसको मुर्शीद कुली खां ने उड़ीसा का गवर्नर नियुक्त किया था। मुर्शीद के मृत्यु के पश्चात् स्वतंत्र बंगाल राज्य का दूसरा नवाब था ।
  • 1733 में बंगाल राज्य में बिहार का भी विलय कर लिया गया।
  • शुजाउद्दीन ने अलीवर्दी खां को बिहार का नाइब सूबेदार नियुक्त किया गया था।
  • वर्ष 1739 में शुजाउद्दीन की मृत्यु हो गई थी।
सरफराज खां (1739-40)
  • शुजाउद्दीन द्वारा नियुक्त बिहार के नाइन सूवेदार अलीवर्दी खां के साथ इसका राजस्व संबंधि विवाद हो गया।
  • 1740 में गिरीबा के बुद्ध में अलीवर्दी खां ने सरफराज को हराया तथा बंगाल का नवाब बना।
अलीवर्दी खां (1740-1756)
  • इसके द्वारा स्थापित वंश अफसार वंश या नाजाफी वंश के नाम से जाना गया। अलीवर्दी ने मुर्शीद कुली खां की वंश प्रणाली समाप्त कर दिया तथा अपनी वंश परंपरा प्रारंभ किया। अलीवर्दी के वंश का आखिरी शासक सिराजुद्दौला था ।
  • अलीवर्दी का मूल नाम 'मुहम्मद मिर्जा खान' था। इसने 'वीणा' नामक वाद्य यंत्र के वादन में महाराथ हासिल कर रखी थी।
  • अलीवर्दी ने मुगल सम्राट मुहम्मदशाह रंगीला को 2 करोड़ रूपये एकमुस्त देकर बंगाल के नवाब के पद को स्वतंत्र एवं वैधानिक बना लिया। इस राशि के पश्चात् इसने कभी भी मुगल सम्राट को नजराना नहीं दिया। मुगल बादशाह को नजराना देने वाला अलीवर्दी खां आखिरी नवाब था ।
  • अलीवर्दी खां के द्वारा एक कूटनीतिक निर्णय के अंतर्गत मराठा सरदार भोषले को 12 लाख रूपया वार्षिक एवं उड़ीसा का चौध देकर अपनी राजनीतिक सीमा को मराठा आक्रमण से सुरक्षित कर लिया था।
  • इसने अपने शासनकाल में यूरोपीय कंपनीयों को अपनी बस्तियों को किलाबंदी नहीं करने दिया तथा यूरोपीय की तुलना मधुमक्खीयों से किया था।
सिराज उद्दौला (1756-57)
  • एक विद्वान का कथन है " अत्यधिक विरोधी जीवन की आयु एवं उपलब्धि दोनों को कम कर देते है । "
  • यह कथन सिराजुद्दौला का अक्षरश: सत्य सिद्ध हुआ सिराज-उल्-दौला प्रभावशाली, दूरदर्शी तथा सक्षम शासक होने के बावजूद षडयंत्रकारियों के कुचक्र में फंस कर अपनी सत्ता एवं जीवन दोनों समाप्त कर लिया था।
  • सिराज का शाब्दिक अर्थ है- 'राज्य का प्रकाश पुंज'
  • अलीवर्दी खां ने मरते समय सिराज को यूरोपीय कंपनीयों के विरूद्ध सतर्क एवं शक्तिशाली नीति का पालन करने का कहा था।
  • सिराजुद्दौला अंतिम स्वतंत्र नवाब था । इसके पश्चात् बंगाल के सभी स्थापित नवाब कठपुतली नवाब थे।
  • सिराजुद्दौला के नवाब पद ग्रहण के पश्चात् अंग्रेजों ने व्यापारिक अनुमति नहीं प्राप्त किया तथा न ही नजराना पेश किया।
  • अभीचंद के अनुसार "अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को कभी भी बंगाल का नवाब माना ही नहीं था । "
  • दस्तक- अंग्रेजों को वर्ष 1717 में फर्रुखशीयर के द्वारा प्राप्त कर मुक्त व्यापार की अनुमति। कल के अंग्रेज फैक्ट्री का निदेशक उस पत्र को जारी करता था। भविष्य में अंग्रेज व्यापारी दूसरे देशी व्यापारियों को भी इसे बेचने लगे जो अंग्रेज एवं नवाब के बीच टकराव का कारण बना।
सिराज एवं अंग्रेजों का टकराव
  • अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के विद्रोहियों, दीवान राजवल्लभ एवं उसका पुत्र कृष्ण बल्लभ एवं शौकत जंग को कलकता . के किले में शरण दिया था।
  • दिवान राजवल्लभ बिहार के राजस्व एवं घसीटी बेगम के खजाने में भ्रष्टाचार का आरोपी था।
  • यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध के समय बंगाल स्थित सभी कंपनियां अपनी फैक्ट्री के किलाबंदी प्रारंभ प्रारंभ करने लगे। सिराज के मना करने पर फ्रांसीसीयों ने किलाबंदी बंद कर दिया जबकि अंग्रेजों ने आज्ञा मानने से इंकार कर दिया।
  • 4 जून 1756- सिराज ने कासीम बजार फैक्ट्री पर हमला किया तथा अंग्रेजों को पराजित किया।
  • 16 जून 1756- कलकत्ता (विलियम फोर्ट) पर हमला तथा फोर्ट के गवर्नर विलीयम ड्रेक एवं सेनापति मिंचन 'फुल्टा' द्वीप पर भागकर शरण लिए ।
  • 20 जून 1756- एक छोटी-सी कोठरी से 146 अंग्रेज बंद कर दिए गए। जिसमें 123 लोगों की मृत्यु हो गई। जीवित बचे 'हालवेल' ने इस घटना का किया। इसे कालांतर में 'ब्लैक होल' (Black Hole) नामक घटना से जाना गया।
  • समकालीन इतिहासकार गुलाम हुसैन ने अपनी पुस्तक 'सियारूल मुतखैरिन' नामक पुस्तक में घटना का उल्लेख नहीं किया है।
  • ब्लैक होल (Black Hole) नामक घटना को 'A live of wonder' नामक पुस्तक में (holwell) हालवेल नामक अंग्रेज लेखक ने लिखा है।
  • कलकत्ता के दीवान मानीक चंद ने कटनीतिक विधि से कलकत्ता को गुनः अंग्रेजों को सौंप दिया।
अलीनगर की संधि (9 फरवरी 1757)
  • इस संधि के पीछे अंग्रेजों का दबाव एवं मराठों के खतरे का पूर्णतः भय सिराजुद्दौला पर दिखा था। इस संधि में अंग्रेज सिराजुद्दौला पर प्रभावशाली दिखें।
  • संधि की शर्ते-
    • अंग्रेजों को कलकत्ता में किलेबंदी का अधिकार
    • कलकत्ता से अंग्रेज सिक्क ढाल सकते है।
    • बंगाल में कोई भी शक्ति अंग्रेजों के अलावा किलाबंदी नहीं करेगा ।
    • बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में पूर्व की भाति कर मुक्त व्यापार की अनुमति ।
    • नवाब अंग्रेजों को 3 लाख रु. बुद्ध क्षतिपूर्ति के लिए देना तथा नवाब एवं अंग्रेज एक-दूसरे के समप्रभुता का सम्मान करेंगे।

प्लासी (Plassey)

प्लासी का कारण
  • सिराजुद्दौला की महत्वकांक्षी नीतियां
  • अंग्रेजों का बंगाल एवं भारत में राजनीतिक शक्ति बनने की महत्वकांझा
  • के. एम. पन्नीकर के अनुसार- "प्लासी का युद्ध नहीं बल्कि वह एक व्यापार एवं विश्वासघात था इसमें नवान्रियत के पद का क्रय-विक्रय किया गया । " मीरजाफर ने अपने नवाब सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात किया जबकि अंग्रेजों ने व्यापार किया।
  • सिराजुद्दौला के द्वारा अपने विरोधियों एवं अंग्रेजों का दमन नहीं किया। इस क्रम में सभी एकत्रित हो सिराजुद्दौला का दमन कर दिया।
सिराज के विरोधी
  • षड्यंत्रकारी
    • मीरजाफर (सेनापति)
    • राय दुर्लभ (सेना नायक )
    • अमीचंद्र (कलकत्ता का प्रभारी)
    • जगत सेठ (कलकता का अमीर)
    • खादिम खां (सेना का प्रभारी)
वाट्सन एवं क्लाइव
  • एक शर्त के अंतर्गत अमीचंद ने सिराजुद्दौला के खजाने से 50% तथा 30 लाख रुपये की मांग किया।
  • क्लाइव ने कूटनीति पूर्व दो कागज बनाए सफेद एवं लाल । सफेद ( वास्तविक कागज ) पर हस्ताक्षर किया जबकि लाल ( जाली ) पर हस्ताक्षर भी फर्जी किया।
  • इस युद्ध के परिणाम से पूर्व ही क्लाइव ने अमीचंद की हत्या करवा दिया।
प्लासी युद्ध (23 जून 1757)
  • क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेज सेना मुर्शीदाबाद पहुंच गई। उस युद्ध का स्थल नदिया जिले की सहायक नदी भागीरथी के तट पर प्लासी के मैदान में हुआ। इस युद्ध में पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार दो सेनापति राय दुर्लभ तथा मीरजाफर अपनी-अपनी सैनिक टुकड़ियों के साथ निष्क्रिय रहे। जबकि स्वामीभक्त सेनापति मीर मदन एवं मोहनलाल युद्ध के मैदान में शहीद हो गए। सिराजुद्दौला जब षड्यंत्र से परिचित हुआ युद्ध मैदान छोड़कर भाग गया। अंतत: मीरजाफर के पुत्र मीरन के द्वारा मुहम्मद बेग नामक सैनिक से सिराज की हत्या करा दिया गया।
  • इस युद्ध के अंत ने भारत में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना की नींव रखी तथा भविष्य में सम्पूर्ण भारत पर उनका एकाधिकार हो गया था।
मीरजाफर
  • सिराजुद्दौला की मृत्यु के पश्चात् पूर्व निर्धारित शर्तों के अनुसार मीरजाफर अगला नवाब नियुक्त हुआ ।
  • यह मात्र कठपुतली शासक था वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के पास संग्रहित थी।
  • नवाब पद के प्राप्ति के पश्चात् पूर्व शर्तों के तहत मीरजाफर ने अकूत संपत्ति अंग्रेजो को सौंप दिया।
  • संभवतः एक दरवारी व्यक्ति ने मीरजाफर को मूर्खता के कारण कर्नल क्लाइव का गदहा कहा था।
  • रॉबर्ट क्लाइव फरवरी 1760 को वापस इंग्लैण्ड चला गया। नए नियुक्त कार्यवाहक गर्वनर हालवेल के आदेश पर मीरजाफर को नवाब के पद से मुक्त कर दिया गया।
  • हालवेल ने मीरजाफर के स्थान पर मीर कासिम को बंगाल का गर्वनर नियुक्त किया।
मीर कासिम (1760-63)
  • इसके समय बंगाल का गर्वनर वेनिस्टार्ट था।
  • मीर कासिम एवं अंग्रेजों के बीच संधि हुई।
  • नवाब पद प्राप्ति के पश्चात् मीर कासिम, वर्द्धमान, मिदनापुर तथा चटगांव का राजस्व अंग्रेजों को सौंप देगा।
  • सिलहट से चुना के व्यापार के लाभ का 50%-50% अंग्रेज एवं नवाब में बांटा जाएगा।
  • मीर कासिम का दुश्मन अंग्रेजों का दुश्मन माना जाता था।
मीर कासिम का प्रारंभिक कार्य-
  • तात्कालीक बंगाल की राजधानी मुर्शीदाबाद से मुंगेर परिवर्तित कर दिया जो बिहार में स्थित था। जो कि अंग्रेजों के प्रभाव से बहुत दूर था।
  • मीर कासिम ने बिहार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने हेतु नए कर रोपित किए तथा काले धन पर नियंत्रण स्थापित किया था।
  • मीर कासिम ने तोड़दार बंदूक की कंपनी भी स्थापित किया ।
  • जर्मनी के एक सैन्य विशेषज्ञ जिसका नाम " वाटर रिन हर्ट" था। उसको कासिम " मेजर समरू" के नाम से संबोधि त करता था। इसे अपनी सेना को नियंत्रण करने के लिए सौंपा।
  • अंग्रेज भक्त अधिकारी रामनारायण, राजवल्लभ एवं गोविंद राय ।
  • अंग्रेज भक्त अधिकारी राम नारायण, राजवल्लभ, गोविंद राय, नौबत राय ( इन सभी अंग्रेज भक्त अधिकारियों की भी हत्या करा दिया । )
  • मीर कासिम तथा गर्वनर वेनीस्टार्ट के बीच कुछ आर्थिक एवं राजनीतिक मतभेद भी हो गए।
  • दस्तक परमीट (Pass) इसका दुरूपयोग भी अंग्रेजों के द्वारा किया जा रहा था। जिससे मीर कासिम को आर्थिक घाटे हो रही थी।
  • अंग्रेजों एवं नवाब का मतभेद अब युद्ध में परिवर्तित हो गया।
  • पटना के अंग्रेज अधिकारी एलिस ने नवाब मीर कासिम के पटना कोठी पर छापा मारा एवं मीर कासिम के नौकर पर शोरा (बम बनाने में प्रयोग होता.. था) संग्रहण के आरोप लगाकर नवाब की कोठी को बंद कर दिया।
  • गुस्साए मीर कासिम पटना पहुँचकर अंग्रेजों के रिहायसी इलाके में घुसकर नरसंहार कर दिया। इसी घटना को कालांतर में पटना हत्याकांड भी कहा गया।
  • पटना हत्याकांड के पश्चात् भी मीर कासिम इलाहाबाद के किला पहुँचा जहाँ पहले से मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय एवं अवध के नवाब शुजाउद्दौला मौजूद था।
बक्सर युद्ध ( 22 अक्टूबर, 1764)

  • इस युद्ध से पूर्व ही बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक अंग्रेजों का दल छोड़ भारतीय संयुक्त सेना में शामिल हो गया ।
  • इस युद्ध के बीच में ही मुगलशासक शाहआलम द्वितीय अंग्रेजों के पक्ष में हो गए तथा मीर कासिम बुद्ध से भाग गया। अंतत: वर्ष 1777 में एक भिखारी के भेष में दिल्ली में मृत पाया गया था !
  • बक्सर युद्ध में भारतीय पक्ष से सिर्फ अ १ का नवाब सुजाउद्दौला ने युद्ध किया । अंत में इसने भी कर्नल फ्लेयर के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था।
  • पर्सी ब्राउन - बक्सर हार ने भारत को भाग्य की हथेली पर अगले 200 वर्षों तक की गुलामी उकर दिया।
  • मीर जाफर - वर्ष 1763-65 तक पुन: मीर जाफर को नवाब नियुक्त किया गया था। इस कार्यकाल में मीर जाफर ने अंग्रेजों को पूर्णत: कर मुक्त कर दिया। अंग्रेज अब सिर्फ नमक का (Salt tax) देते थे। 
  • 5 जनवरी 1765 को मीर जाफर की मृत्यु हो गई। अब अगले अनेक वर्षों तक बंगाल में कठपुतली नवाब ही नियक्त हुए थे। मुबारक -उद्-दौला (1766-70) बंगाल का आखिरी नवाब था ।
  • मुबारक की पेंशन घटाकर अंग्रेजों ने 10 लाख कर दिया था। वारेन हेस्टिंग्स ने 1775 में इस पद के अंत की घोषणा कर दिया।

इलाहाबाद की संधि 

बक्सर युद्ध विजय के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत के विजित अवध के नवाब एवं मुगल शासक शाहआलम द्वितीय के साथ संधि किया था। जो प्रायः दो संधियाँ थी। प्रथम 12 अगस्त, 1765 तथा द्वितीय 16 अगस्त 1765 की ।

बंगाल में द्वैध शासन

  • द्वैध शासक उद्दशत्रकर्त्ता लियो कॉर्टिस को माना जाता है।
  • बंगाल प्रशासिक दृष्टिकोण से दो भागों में विभक्त था निजामत एवं दिवानी। अंग्रेजों ने दोनों को बांट दिया।

अवध

  1. पश्चिम में कनौज से पूर्व में कर्मनाशा नदी तट फैला है। आज का उत्तर प्रदेश तब अवध प्रांत हुआ करता था। यह आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यंत समृद्धशाली राज्य था ।
  2. मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली दरबार कुल चार गुटों में बट गया था। ईरानी, तुरानी, अफगानी एवं हिंदुस्तानी |
  3. इनमें ईरानी शिया गुट का प्रभावशाली व्यक्ति सआदत खां बुरहानुन मुल्क को मुगलशासक सम्राट मुहम्मदशाह ने अवध का सूबेदार नियुक्त किया था।
  4. वर्ष 1722 में स्वतंत्र अवध राज्य की स्थापना किया था। सअदात खां ने भारत पर जादिरशाह को आक्रमण के लिए प्रेरित किया था। दिल्ली विजय के पश्चात ।
  5. नादिरशाह ने सआदत खां से मांग था शर्म के कारण उसने 1739 में विषमान कर आत्महत्या कर लिया था।
सफदरजंग 1739-54
  • सआदत खां निःसंतान था । इसलिए अवध की गद्दी उसके दामाद अबुल मंसूर खां सफदरजंग को प्राप्त हुई थी।
  • 1742 में एक युद्ध अभियान के अंतर्गत सफदरजंग ने पटना पर अधिकार कर लिया था।
  • 1748 में अहमदशाह अब्दाली भारत आक्रमण के समय सफदरजंग के योगदान से प्रभावित मुगल बादशाह ने इसको बजीर के रूप में नियुक्त किया था।
  • सफदरजंग के कार्यकाल में प्रशासनि दृष्टिकोण से समाज एवं राज्य पूर्णतः सुगठित था। इसके द्वारा लखनवी तहजीब को बढ़ावा दिया गया था।
शुजाउद्दौला (1754-57)
  • सफदरजंग के पश्चात् उसका पुत्र शुजाउद्दौला अवध का नवाब नियुक्त हुआ था।
  • 1761 में शुजाउद्दौला मराठों के विरूद्ध जाकर अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया था।
  • इसने बंगाल का विद्रोही नवाब मीर कासिम का साथ दिया तथा अपने राज्य में शरण दिया था।
  • अंग्रेजों के विरूद्ध भारत की त्रिगुटीय संघ में शामिल हो बक्सर (1764) का युद्ध लड़ा। इस युद्ध में इसकी पराजय हुई थी।
  • 1765 में क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कड़ा और इलाहबाद लेकर मुगलशासक शाहआलम द्वितीय को दे दिया। जब बादशाह कुछ राजनीतिक विवादों में ग्रस्त था तब शुजाउदौला ने अवध में उसको शरण दिया था।
आसफउदौला (1775-97)
  • इसने अवध की राजधानी के फैजाबाद को परिवर्तित कर लखनऊ स्थानांतरित कर दिया था।
  • 1775 ई. में इसके द्वारा फैजाबाद की संधि की गई थी।
  • इसके पश्चात् के नवाब ने भी अग्रेजों, मराठों एवं मुगल शासकों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखने का प्रबल प्रयास किया।
  • अवध का अगला नवाब सआदत खां (1738-1814) ने अंग्रेजों से राज्य की सहायक संधि कर लिया था। अंग्रेजों ने अवध को मध्यवर्ती राज्य ( Buffer State) के रूप में परिवर्तित कर दिया।
  • इसी क्रम में अगले कुछ वर्षों तक मराठों का भी अवध पर पूर्ण नियंत्रण था।
  • अवध के नवाब आसउद्दौला के द्वारा फैजाबाद की संधि की गई थी। किंतु 1781 में हेस्टिंग्स ने इसका उलंघन किया।
  • फैजाबाद की संधि उल्लंघन में जॉन मिडलटन ने अवध के बेगमों से दुर्व्यवहार भी किया। इस कारण हंग्स्टिन पर ब्रिटेन में महाभियोग भी चलाया गया था।
  • वाजिद अली शाह (1847-56) अवध का अंतिम नवाब था। वर्ष 1854 में जेम्स आउट्रम के रिपोर्ट के आधार पर कुशासन का आरोप लगाया गया तथा 4 फरवरी 1856 में अवध का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया गया था।

हैदराबाद

  • हैदराबाद में स्वतंत्र राज्य की स्थापना चिनकिलिय खां के द्वारा किया गया।
  • इसका उपनाम निजामुलमुल्क था।
  • इसे पूर्वज समरकंद के निवासी थे ।
  • गाजीउद्दीन सिद्दीकी फिरोज जंग औरंगजेब के सेवा में कार्यरत था।
  • सम्राट बनने के पश्चात् फरूखशीयर के समय में ही दक्कन को हरा दिया था ।
  • किंग मेकर ( King maker) के नाम से मसहूर सैयद बंधुओं में हुसैन अली की षडयंत्रपूर्वक हत्या कराने की जिम्मेदारी निजाममुलक ने लिया था ।
  • 1722 में मुगल बादशाह मुहम्मदशाह ने इसे अपना वजीर नियुक्त किया था ।
  • 1723 में दिल्ली दरबार के षडयंत्रों से क्षुब्ध चिनकिलिय खां खां बादशाह की अनुमति लिए बगैर दक्कन (दक्षिण) लौट गया। बादशाह के आदेश पर हैदराबाद के सूबेदार मुनारिज खां को ।
  • निजाम के विरूद्ध कार्यवाही का आदेश दिया गया था। 11 अक्टूबर, 1724 को मुबरिज खां एवं निजामुलमुल्क के बीच शुकरखेड़ा 11 अक्टूबर 1724 का युद्ध हुआ । चिनकिलीय खां को बाजीराव पेशवा का साथ प्राप्त हुआ और इस युद्ध में निजाम विजयी रहा था ।
  • मुगल सम्राट मुहम्मदशाह के द्वारा निजामुलमुल्क की स्वतंत्रता को मान्यता देते हुए दक्कन का वायसराय नियुक्त किया गया था ।
  • सम्राट के द्वारा चिनकिलिय को आसफजाह की उपाधि प्रदान किया।
  • निजामुलमुल्क ने 1725 में हैदराबाद को अपनी राजधानी नियुक्त किया था।
  • निजामुलमुल्क एवं बाजीराव के बीच पालखेड़ा का युद्ध हुआ इसमें बाजीराव विजयी हुआ तथा 6 मार्च, 1728 को निजामुलमुल् एवं बाजीराव के बीच मुंशी शिवगांव की संधि हुई थी।
  • निजामुलमुल्क ने क्षत्रपति शाहूजी को चौथ एवं रदेशमुख देना प्रारंभ कर दिया था।

मैसूर

वर्ष 1336 में हरिहर और बुक्का नामक दो भाईयों ने दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किया। विजयनगर राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दक्षिण भारत का सर्वाधिक समृद्ध राज्य था। इसके प्रबल विरोधी बहमनी राज्य के संयुक्त सेना ने वर्ष 1565 में तालीकोटा के युद्ध में विजयनगर पराजित किया । तालीकोट के पराजय में विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया। विजयनगर के राजनीतिक भू-भाग पर 16वीं शताब्दी में अनेक छोटे राजवंशों की नींव पड़ी जिसमें एक मैसूर भी था। मैसूर पर 'वाड्यार' वंश का शासन स्थापित हुआ।

वाड्यार वंश का एक सामान्य सैनिक हैदरअली ने अपनी महत्वाकांक्षा एवं साहस के दम पर स्वयं से मैसूर का शासक बन गया। तत्कालीन पड़ोसी राज्यों एवं अंग्रेजों ने हैदरअली एवं उसके पुत्र टीपू के राजनीतिक विस्तार पर अंकुश लगाया। समकालीन राजनीति में अंग्रेज सबसे प्रभावशाली प्रतिद्वंद्वी थे। उसी कारण अंग्रेजों ओर मैसूर के बीच चार युद्ध हुए और अंततः 1799 में टीपू की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने मैसूर के अस्तित्व को समाप्त कर दिया।

  • दक्षिण भारत के विजयनगर एवं बहमनी दो संमृद्धशाली राज्य थे। वर्ष 1565 में ब्रहमनी के संयुक्त सेना का विजयनगर साम्राज्य के साथ तालीकोट्टा (राक्षसतंगडी) नामक युद्ध हुआ ।
  • तालीकोट्टा (1565) के युद्ध में विजयनगर पराजित हुआ एवं इसके साम्राज्य का अंत हो गया।
  • विजयनगर साम्राज्य के ध्वंशासेश पर वर्ष 1612 में वेंकेट II ने मैसूर में वाडयार राजवंश की स्थापना किया। यह विजयनगर साम्राज्य का ही भू-भाग था ।
  • 18वीं शताब्दी में मैसूर का राजा चिक्का कृष्णदेव राय (अल्प वयस्क) था। किंतु इस राज्य का वास्तविक संचालन नंदराज (वित्त एवं प्रधानमंत्री) तथा देवराज ( सेनापति) नामक दो भाइयों के पास था। 
हैदरअली
  • हैदरअली का जन्म वर्ष 1721 में हुआ था । इसका जन्म स्थान मैसूर के कोलार (कर्नाटक) राज्य में स्थित था।
  • हैदरअली के पिता फतेह मोहम्मद मैसूर के राजा की सेना में उच्च पद पर कार्यरत थे।
  • वर्ष 1755 में अपनी कार्यकुशलता एवं दक्षता के दम पर तथा नंदराज के प्रभाव से डींडीगुल का सूबेदार नियुक्त किया गया।
  • हैदरअली निरक्षर व्यक्ति था । इसने अपनी सहायता हेतु खांडेराव नामक कुटिल विद्वान को अपना सलाहकार नियुक्त किया था।
  • हैदरअली ने अपने प्रभाव एवं महत्वकांक्षा में परिवर्तन कर फ्रांसीसियों की मदद से 1755 में डिंडीगुल में आधुनिक शास्त्रागार की स्थापना किया।
  • हैदरअली उच्च महत्वाकांक्षी व्यक्ति था । इसने खंडेराव की कूटनीतिक सहायता से मैसूर राज्य की राजमाल को अपने पक्ष में शामिल करने में सफल रहा।
  • मैसूर के प्रभावशाली मंत्री भाइयों, नंदराज एवं देवराज को चुनौती दिया तथा राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर आक्रमण किया था।
  • वर्ष 1761 में हैदरअली राजा के स्थान पर मैसूर का शासक बन बैठा।
  • यह वह कालखण्ड था जब आंग्ल- फ्रांसीसी संघर्ष चह रहे थे। भारत की राजनीतिक शक्तियाँ वर्चस्व की जंग लड़ रही थी! 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठा राज्य भी समाप्त है गया था।
  • हैदरअली ने तात्कालीक राजनीतिक दशा का लाभ उठाया तथा अपनी राजनीतिक एवं सैन्य शक्ति को मजबूत बनाया।
  • हैदरअली के तीव्र विकास से उसके पड़ोसी राज्य मराठा, हैदराबाद के निजाम तथा अंग्रेजों को समस्या उत्पन्न होने लगी।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • टीपू सुल्तान जैकोबियन क्लब का सदस्य था।
  • हैदरअली का जन्म बुद्दीकोटा (कोलार जिला में हुआ था । )
  • ''आज पूरब का साम्राज्य मेरे कदमों में पड़ा है।" यह कथन किसका है- चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध के समय- वेलेजली ने कहा था।
  • मुहम्मद शाह (1719-48) के कार्यकाल में स्वतंत्र राज्य अवध की स्थापना हुई थी।
  • नादिर शाह के बुलाने पर स्वतंत्र अवध राज्य के संस्थापक सआदत खां के आत्म हत्या कर लिया था।
  • सआदत खां ने 'बुरहानुनमुल्क' की उपाधि धारण किया था।
  • शुजा-उद्-दौला ने बक्सर के युद्ध में भाग लिया था ।
  • छोटा इमामबाड़ा 1838 में मोहम्मद आदिलशाह ने बनाया था ।
  • 18वीं शताब्दी में त्रावणकोण (केरल) स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1729 में राजा मार्तण्ड वर्मा ने किया था ।
  • मार्तण्ड वर्मा के उत्तराधिकारी राम वर्मा के समय त्रवणकोर की राजधानी त्रिवेन्द्र संस्कृत विद्वानों का प्रसिद्ध केन्द्र था ।
  • 18वीं शताब्दी में केरल में कथककली नृत्य का विकास हुआ था।
  • सम्पूर्ण भारत में एकमात्र केरल ही राज्य था। इस राज्य में मातृसत्तात्मक समाज का प्रचलन था एवं सती प्रथा कभी भी लागू नहीं था।
  • मुगलशाह मुहम्मद (1719-48) द्वारा बगाल के प्रसिद्ध व्यापारी फतेहचंद को जगत सेठ की उपाधि प्रदान किया गया था।
  • मीर जाफर को नवाब बनाया जाना बंगाल की प्रथम क्रांति कही गयी थी। जबकि नवाब का पद त्याग देना बंगाल की दूसरी क्रांति (1760) कही जाती है।
  • अमीचंद के द्वारा षड्यंत्रकारियों एवं अंग्रेजों के बीच मध्यस्तता की गई थी। जिसका उद्देश्य सिराजुदौला को अपदस्त करना था ।
  • बक्सर के युद्ध के समय बंगाल का नवाब मीर जाफर था। (1763-65)
  • मीर कासीम के द्वारा नियुक्त मेजर समरू नामक सेनापति का वास्तविक नाम वाल्टर रीन हार्ड था ।
  • सरकारी अफसरों से मीर कासिम ने 'खिजरी' नामक कर वसूला था।
  • वर्ष 1765 में बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्थापित स्थापित किया गया था।
  • वर्ष 1770 में बंगाल में भयंकर दुभिक्ष की अवस्थ पैदा हो गयी थी ।
  • बंगाल में द्वौधशासन की व्यवस्था राबर्ट कलाइव के द्वारा लागू किया गया था।
  • बंगाल का अंतिम नवाब मुबारक-उदौला (1770-75) था।
  • पसीबल स्पीयर महोदय के द्वारा बंगाल के द्वौध शासन (1765-69) को 'खुली एवं बेशर्म लूट' की संज्ञा दी गई थी।
  • 'श्वेत विद्रोह' के समय में हुआ था।
  • बंधुआ मजदूरी परंपरा को सांगडी प्रथा कहते हैं।
  • धार्मिक कार्यों के लिए अनुदानित भूमि भी मदद -ए-मास जो भमि कर से मुक्त होती थी ।
  • पंजाब के राजा दिलीप सिंह का निधन 23 अक्टूबर 1293 को पेरिस में निधन हुआ था।
  • महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की राजधानी लाहौर थी।
  • रणजीत सिंह को सुप्रसिद्ध हीरा प्राप्त किया था - शाहशुजा से 
  • रणजीत सिंह सुमरचकिया मिसल से संबंधित थे।
  • गुरू गोविन्द सिंह के कृति का नाम जफरनामा है।
  • गुरू अर्जुन देव ने आदि ग्रंथ नामक कृति की रचना किया था ।
  • गुरुमुखी लिपि का आविष्कार गुरु अंगद के द्वारा किया गया था ।
  • अमृतसर नगर गुरू रामदास के द्वारा स्थापित किया गया था।
  • हेमकुंड में प्रसिद्ध सिक्ख गुरुद्वारा स्थित है।
  • वर्ष 1699 में प्रसिद्ध 'खालसा पंथ' की स्थापना की गई थी।
  • गुरू अर्जुन देव को मृत्युदण्ड जहांगीर ने दिया था जबकि गुरू तेज बहादुर (औरंगजेब) के द्वारा मार दिया गया था ।
  • पटना में गुरुगोविंद सिंह का जन्म हुआ था।
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