झारखण्ड के क्षेत्रीय राजवंश

झारखण्ड के क्षेत्रीय राजवंश

झारखण्ड के क्षेत्रीय राजवंश

> झारखण्ड का मुण्डा राज 
> झारखण्ड की जनजातियों में मुण्डाओं ने ही सर्वप्रथम राज्य निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की। रिता मुण्डा / ऋषा मुण्डा को ही सर्वप्रथम झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का श्रेय जाता है। 
> ऋषा मुण्डा ने सुतिया पाहन को मुण्डाओं का शासक नियुक्त किया और इस नवस्थापित राज्य का नाम सुतिया पाहन के नाम पर सुतिया नागखण्ड पड़ा।
> सुतिया नागखण्ड नामक इस राज्य को सुतिया पाहन ने सात गढ़ों और 21 परगना में विभक्त किया।
> सात गढ़ों व 21 परगना के नाम इस प्रकार हैं:–
7 गढ़ का नाम
नया नाम
21 परगना के नाम
लोहागढ़
लोहरदगा
ओमदंडा
दोईसा
खुखरा
पालुनगढ़
पलामू
सुरगुजा
जसपुर
गंगपुर
हजारीबाग
हजारीबाग
गीरगा
बिरूआ
लचरा
सिंहगढ़
सिंहभूम
बिरना
सोनपुर
बेलखादर
मानगढ़
मानभूम
बेलसिंग तमाड़
लोहारडीह
सुरगुमगढ़
सुरगुजा
खरसिंग
उदयपुर
बोनाई
केसलगढ़ केसलगढ़
कोरया
पोड़हाट
चंगमंगलकर
> यह राज्य अधिक दिनों तक स्थायी नहीं रह सका तथा इस राज्य का अंतिम राजा मदरा मुण्डा था।
> छोटानागपुर खास का नाग वंश
> फणी मुकुट राय
> मुण्डा राज के बाद नाग वंश द्वारा अपना राज्य स्थापित किया गया। 
> अंतिम मुण्डा राजा मदरा मुण्डा व अन्य नेताओं की सर्वसम्मति से 64 ई. में फणी मुकुट राय को राजा चुना गया जिसने नागवंशी राज्य की स्थापना की थी तथा सुतियांबे को अपनी राजधानी बनाया।
> जे. रीड के अनुसार 10वीं सदी ई. में नागवंशी राज्य की स्थापना हुई थी। 
> फणी मुकुट राय पुण्डरीक नाग एवं वाराणसी की ब्राह्मण कन्या पार्वती का पुत्र था। 
> फणी मुकुट राय को नाग वंश का 'आदि पुरूष' भी कहा जाता है।
> फणी मुकुट राय का विवाह पंचेत राज्य (नागवंशी राज्य के पूर्व में स्थित) के राजघराने में हुआ था।
> फणी मुकुट राय ने पंचेत के राजा की मदद से क्योंझोर राज्य (नागवंशी राज्य के दक्षिण में स्थित) को पराजित किया था।
> फणी मुकुट राय का राज्य 66 परगना में विभाजित था।
> फणी मुकुट राय ने अपनी राजधानी सुतियाम्बे को बनाया तथा वहाँ एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। फणी मुकुट राय ने अपने राज्य में गैर-आदिवासियों को भी आश्रय दिया और आश्रय पाने वाले गैर-आदिवासियों में भवराय श्रीवास्तव को अपना दीवान बनाया |
> बाघदेव सिंह ने फणी मुकुट राय की हत्या की थी।
> फणी मुकुट राय के बाद मुकुट राय, मदन राय तथा प्रताप राय शासक बने ।
> प्रताप राय के शासनकाल में पलामू किला का निर्माण कराया गया था।
> प्रताप राय ने अपनी राजधानी सुतियाम्बे से चुटिया स्थानांतरित की तथा काशी तक के लोगों को चुटिया में बसाया। 
> भीम कर्ण (1095-1184 ई.)
> भीम कर्ण प्रथम प्रतापी शासक था जिसने राय के स्थान पर कर्ण की उपाधि धारण की । कर्ण की उपाधि कल्चुरि राजवंश की उपाधि से प्रभावित थी।
> भीम कर्ण के काल में सरगुजा के रक्सेल राजा ने 12,000 घुड़सवारों तथा विशाल पैदल सेना के साथ नागवंशी राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसे 'बरवा की लड़ाई' के नाम से जाना जाता है।
> भीम कर्ण ने सरगुजा के हेहयवंशी रक्सेल राजा को बरवा की लड़ाई में पराजित किया । इस विजय के बाद भीम कर्ण ने रक्सेलों को लूटा व बरवा तथा पलामू के टोरी ( वर्तमान समय में लातेहार जिले में स्थित) पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई में भीम कर्ण को वासुदेव की एक मूर्ति भी प्राप्त हुयी।
> इस लड़ाई में विजय के बाद नागवंशियों का राज्य गढ़वाल राज्य की सीमा तक विस्तारित हो गया। 
> भीम कर्ण ने भीम सागर का निर्माण कराया।
> नागवंशी राज्य की राजधानी चुटिया, बंगाल पर आक्रमण करने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के मार्ग के अत्यंत निकट था। अत: नागवंशी राज्य पर मुस्लिम आक्रमण से बचने हेतु भीम कर्ण ने 1122 ई. में अपनी राजधानी चुटिया से खुखरा स्थानांतरित कर 
दी ।
> शिवदास कर्ण
> शिवदास कर्ण नागवंशी राज्य का एक प्रमुख शासक था।
> शिवदास कर्ण ने हापामुनि मंदिर (घाघरा, गुमला) में सियानाथ देव के हाथों 1401 ई. में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करवायी।
> प्रताप कर्ण (1451-1469 ई.)
> सल्तनत काल के लोदी वंश के समकालीन नागवंशी राजा - प्रताप कर्ण, छत्र कर्ण एवं विराट कर्ण थे। 
> प्रताप कर्ण के समय नागवंशी राज्य घटवार राजाओं के विद्रोह से त्रस्त था ।
> इस समय तमाड़ के राजा ने नागवंशी राज्य की राजधानी खुखरागढ़ की घेराबंदी कर प्रताप कर्ण को किले में बंदी बना दिया।
> प्रताप कर्ण को इस बंदी से मुक्ति पाने हेतु खैरागढ़ के खरवार राजा बाघदेव की सहायता लेनी पड़ी।
> बाघदेव ने तमाड़ के राजा को पराजित किया जिसके परिणामस्वरूप इसे कर्णपुरा का क्षेत्र पुरस्कार के रूप में मिला।
> छत्र कर्ण ( 1469-1496 ई.)
> छत्र कर्ण लोदी वंश के समकालीन एक प्रतापी नागवंशी राजा था।
> छत्र कर्ण के काल में विष्णु की मूर्ति कोराम्बे में स्थापित की गयी।
> इसी मूर्ति से प्रभावित होकर बंगाल के प्रख्यात वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु मथुरा जाते समय 16वीं सदी के आरंभ में पंचपरगना क्षेत्र में रूके थे। इन्होनें चैतन्य चरितामृत में झारखण्ड के भौगोलिक आकार का वर्णन किया है।
> चैतन्य चरितामृत के अनुसार चैतन्य महाप्रभु ने संथाल परगना के कई गांवों में ठाकुरबाड़ी की स्थापना की थी। 
> चैतन्य महाप्रभु ने झारखण्ड क्षेत्र में वैष्णव मत का प्रचार-प्रसार किया ।
> रामशाह (1690-1715 ई.)
> राम शाह मुगल शासक बहादुर शाह प्रथम के समकालीन था।
> यदुनाथ शाह (1715-24 ई.)
> यह राम शाह के बाद नागवंशी शासक बना।
> नागवंशी शासक यदुनाथ शाह फरूर्खशियर के समकालीन था।
> 1717 ई. में बिहार के मुगल सूबेदार सरबुलंद खाँ ने यदुनाथ शाह पर आक्रमण कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यदुनाथ शाह ने 1 लाख रूपये मालगुजारी देना स्वीकार किया।
> सरबुलंद खाँ के आक्रमण के पश्चात अपने राज्य को सुरक्षित रखने हेतु यदुनाथ शाह ने अपनी राजधानी दोइसा से पालकोट स्थानांतरित कर दी।
> 1719-22 ई. तक टोरी परगना पर पलामू के चेरो राजा रणजीत राय का कब्जा रहा। 
> शिवनाथ शाह (1724-33 ई.)
> यह यदुनाथ शाह का उत्तराधिकारी था।
> 1730 ई. में बिहार के सूबेदार फखरूद्दौला ने छोटानागपुर पर आक्रमण किया। इस समय यहाँ शिवनाथ शाह का शासन था।
> इस आक्रमण के परिणामस्वरूप शिवनाथ शाह ने फखरूद्दौला को 12,000 रूपये मालगुजारी देना स्वीकार किया।
> उदयनाथ शाह (1733-40 ई.)
> यह शिवनाथ शाह का उत्तराधिकारी था। 
> इस समय बिहार का मुगल सूबेदार अलीवर्दी खाँ था।
> टेकारी के जमींदार सुंदर सिंह तथा रामगढ़ के शासक विष्णु सिंह से अलीवर्दी खाँ वार्षिक मालगुजारी वसूलता था। 
> नागवंशी शासक उदयनाथ शाह द्वारा रामगढ़ के शासक विष्णु सिंह के माध्यम से ही अलीवर्दी खाँ को मालगुजारी का भुगतान किया जाता था।
> श्यामसुंदर शाह (1740-45 ई.) 
> यह उदयनाथ शाह का उत्तराधिकारी था।
> श्यामसुंदर शाह के शासनकाल में बंगाल पर आक्रमण करने हेतु मराठों ने झारखण्ड का कई बार प्रयोग किया। 
> 1742 ई. में भास्कर राव पंडित ने झारखण्ड से होकर बंगाल पर आक्रमण किया, परन्तु बंगाल का तत्कालीन सूबेदार अलीवर्दी खाँ ने इसे खदेड़ दिया।
> 1743 ई. में मराठा रघुजी भोंसले ने भी बंगाल पर आक्रमण किया जिसकी शिकायत अलीवर्दी खाँ ने मराठा पेशवा बालाजी राव से की। इस शिकायत पर पेशवा बालाजी राव राजमहल के वामनागाँव होते हुए बंगाल पहुंचा जिसकी खबर पाकर रघुजी भोंसले मानभूम (धनबाद) होकर वापस अपने राज्य लौट गया।
> मराठों द्वारा बार-बार बंगाल पर आक्रमण हेतु झारखण्ड का प्रयोग करने के परिणामस्वरूप झारखण्ड से मुगलों का प्रभाव समाप्त हो गया तथा मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ।
> 31 अगस्त, 1743 को पेशवा बालाजी राव व रघुजी भोंसले के बीच हुए एक समझौते के अनुसार झारखण्ड क्षेत्र पर रघुजी भोंसले का प्रभाव स्थापित हुआ।
> 1745 ई. में रघुजी भोंसेले संथाल परगना से होकर बंगाल में प्रविष्ट हुआ।
> कालांतर में मराठों ने छोटानागपुर खास, पलामू, मानभूम आदि क्षेत्रों का जमकर शोषण किया। 
> नागवंशी शासक – अन्य तथ्य 
> 1498 ई. में संध्या के राजा ने नागवंशी राज्य पर आक्रमण कर कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया जिसे नागवंशी राजा ने खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि कर्ण की सहायता से मुक्त कराया।
> शरणनाथ शाह के समय जमींदारी प्रथा का उन्मूलन कर दिया गया था।
> ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव बड़कागढ़ के ठाकुर महाराज रामशाह के चौथे पुत्र थे। इन्होनें अपनी राजधानी डोयसागढ़ से स्वर्णरेखा नदी के नजदीक सतरंजी में स्थापित की थी। नागवंशी शासक ऐनीनाथ शाहदेव ने 1691 ई. में राँची में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था।
> हटिया बाजार को ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने ही बसाया था।
> ठाकुर ऐनीनाथ शाह की पाँच पत्नियाँ तथा 21 पुत्र थे जिसका उल्लेख नागवंशावली में भी किया गया है। 
> नागवंशी शासक मणिनाथ शाह ने सिल्ली, बुंडू, तमाड़, बरवा आदि के स्थानीय जमींदारों का दमन किया था।
> नागवंशी राज्य की राजधानियाँ
> नागवंशी राजा अपने राज्य को बनाये रखने के लिए अपनी राजधानियाँ समय-समय पर स्थानांतरित करते रहे। 
> नाग वंश की प्रथम राजधानी सुतियाम्बे तथा अंतिम राजधानी रातूगढ़ थी । 
> नाग वंश की राजधानियों तथा उसके संस्थापकों का क्रम निम्न प्रकार है:– 
क्र.सं.
राजधानी
संस्थापक
1.
सुतियाम्बे
फणी मुकुट राय
2. चुटिया
प्रताप राय
3.
खुखरा
भीम कर्ण
4.
दोइसा / डोइसा
दुर्जन शाह
5.
पालकोट
यदुनाथ शाह
6.
पालकोट भौंरो
जगन्नाथ शाह
7.
रातूगढ़
उदयनाथ शाह
> पलामू का रक्सेल वंश
> प्रारंभ में पलामू रक्सेलों के प्रभाव में था।
> रक्सेल स्वयं को राजपूत कहते थे।
> रक्सेलों का पलामू क्षेत्र में आगमन राजपूताना क्षेत्र से रोहतासगढ़ होते हुए हुआ था । रक्सेलों की दो शाखाएँ थी- देवगन ( हरहरगंज व महाराजगंज से होकर आए) एवं कुंडेलवा (चतरा व पांकी से होकर आए) ।
> रक्सेलों की दोनों शाखाओं ने क्रमशः देवगन एवं कुंडेलवा में किले का निर्माण कराया तथा उसे अपनी राजधानी घोषित किया।
> कोरवा, गोंड, पहाड़िया, किसान और खरवार रक्सेलों के समय की महत्वपूवर्ण जनजातियाँ थी। इनमें खरवार सर्वाधिक संख्या में थे जिनके शासक प्रताप धवल थे।
> रक्सेलों ने पलामू में लम्बे समय तक शासन किया तथा 16वीं सदी में चेरों ने इन्हें अपदस्थ किया।
> पलामू का चेरो वंश
> चेरों ने रक्सेलों को पराजित कर अपने राज्य की स्थापना की।
> इस वंश की स्थापना 1572 ई. में भागवत् राय ने की थी । 
> साहेब राय (1697-1716 ई.)
> ये बहादुरशाह, जहाँदार शाह तथा फर्रुखसियर के समकालीन थे।
> रणजीत राय (1716-22 ई.)
> यह साहेब राय का उत्तराधिकारी था।
> इनके शासन काल में बिहार का मुगल सूबेदार सरबुलंद खाँ पलामू आया था।
> इन्होनें सरबुलंद खाँ से टोरी परगना पर कब्जा करके 1722 ई. तक अपने अधिकार क्षेत्र में रखा।
> जयकृष्ण राय (1722-70 ई.)
> जयकृष्ण राय ने रणजीत राय की हत्या करके पलामू राज्य पर कब्जा कर लिया।
> 1730 ई. में बिहार के सूबेदार फखरूद्दौला ने चेरो राजा जयकृष्ण राय से 5,000 रूपये सालाना कर वसूल किया। 
> 1733 ई. में अलीवर्दी खाँ को बिहार का मुगल सूबेदार बनाया गया तथा इसने जयकृष्ण राय पर 5,000 रूपये वार्षिक कर निर्धारित किया और इसे वसूलने का अधिकार टेकारी के राजा सुंदर सिंह को दिया।
> 1740 ई. में बिहार के मुगल सूबेदार जैनुद्दीन खाँ ने भी जयकृष्ण राय पर 5,000 रूपये वार्षिक कर का निर्धारण किया। 
> जैनुद्दीन खाँ के सैन्य अधिकारी हिदायत अली खाँ ने पलामू के चेरो राजा पर आक्रमण भी किया था। यह मुगलों द्वारा पलामू के चेरो राजाओं पर अंतिम आक्रमण था।
> 1750-65 ई. के दौरान पलामू में राजनीतिक सत्ता का ध्रुवीकरण हुआ और जयकृष्ण के दरबार में षड़यंत्र प्रारंभ हो गया। इस दौरान दक्षिणी पलामू पर चेरो राजाओं का अधिकार रहा जबकि उत्तरी पलामू पर राजपूत व मुस्लिम जमींदारों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
> 1765 ई. में बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इण्डिया कंपनी को मिल गयी तथा इन्होनें पलामू में इसका भरपूर लाभ उठाया।
> सिंहभूम का सिंह वंश
> हो जनजाति के अनुसार सिंहभूम का नामकरण उनके कुल देवता सिंगबोंगा के नाम पर हुआ है।
> सिंह वंश के ग्रंथ 'वंशप्रभा लेखन' में सिंह वंश की दो शाखाओं का वर्णन मिलता है- पहली शाखा तथा दूसरी शाखा ।
> पहली शाखा
> 7वीं सदी के अंत में सिंह लोग सिंहभूम के भुइयों व सरकों के संपर्क में आए एवं इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया तथा 8वीं सदी ई. के आरंभ में सिंह वंश की पहली शाखा की स्थापना हुयी। 
> इस शाखा का संस्थापक काशीनाथ सिंह था।
> इस शाखा में तेरह राजाओं ने शासन किया।
> प्रारंभ में इन राजाओं ने छोटानागपुर के नागवंशियों के प्रभुत्व को स्वीकार करते हुए शासन किया, परन्तु बाद में वे स्वतंत्र रूप से शासन करने लगे।
> पहली शाखा का शासन 13वीं सदी के प्रारंभ तक विद्यमान रहा। 
> दूसरी शाखा
> दर्प नारायण सिंह (1205-62 ई.) ने 1205 ई. में सिंह वंश की दूसरी शाखा की स्थापना की। 
> इस वंश का दूसरा शासक युधिष्ठिर (1262-71 ई.) था जिसकी मृत्यु के बाद काशीराम सिंह शासक बना। 
> काशीराम सिंह महिपाल सिंह का उत्तराधिकारी था। यह परवर्ती मुगल शासक बहादुरशाह प्रथम का समकालीन था। 
> काशीराम सिंह ने बनाई क्षेत्र में पोरहाट नामक नयी राजधानी बनायी।
> काशीराम सिंह के बाद शासक अच्युत सिंह ने शासन किया। अच्युत सिंह के शासन काल में सिंह वंश की कुलदेवी के रूप में पौरी देवी की प्राण प्रतिष्ठा की गयी।
> अच्युत सिंह के बाद क्रमशः त्रिलोचन सिंह एवं अर्जुन सिंह प्रथम इस वंश का शासक बना
> अर्जुन सिंह प्रथम एक बार जब बनारस की तीर्थ यात्रा से लौट रहे थे तब रास्ते में मुसलमान उन्हें पकड़कर कटक (उड़ीसा) ले गये । परन्तु कुछ ही समय बाद अपने 32 अनुयायियों के साथ इन्हें वापस राज्य लौटने की अनुमति दे दी गयी।
> अर्जुन सिंह प्रथम के बाद जगन्नाथ सिंह द्वितीय शासक बना जो इस वंश का 13वाँ शासक था। इसके उत्पीड़न से तंग आकर भुईयाँ जनजाति के लोगों ने विद्रोह कर दिया था।
> जगन्नाथ सिंह द्वितीय के बाद उसका पुत्र पुरूषोत्तम सिंह सिंहभूम का शासक बना तथा इसके बाद इसका पुत्र अर्जुन सिंह द्वितीय शासक बना।
> अर्जुन सिंह द्वितीय
> अर्जुन सिंह द्वितीय ने अपने चाचा विक्रम सिंह को 12 गाँवों वाला एक जागीर दिया था, जिसे 'सिंहभूम पीर' कहा जाता था।
> विक्रम सिंह ने अन्य क्षेत्रों को इसमें मिलाकर इसका विस्तार किया तथा इसकी राजधानी सरायकेला को बनाया। बाद में यही सरायकेला राज्य बना।
> विक्रम सिंह ने पटकुम राजा के शासित क्षेत्र कांडू तथा बंकसाई पीर पर कब्जा कर अपनी उत्तरी सीमा को विस्तारित किया। इसी प्रकार उसने उत्तर-पूर्व में गम्हरिया व खरसावां पर भी कब्जा किया।
> अर्जुन सिंह द्वितीय का उत्तराधिकारी अमर सिंह था तथा अमर सिंह के बाद जगन्नाथ सिंह चतुर्थ सिंहवंश की गद्दी पर बैठा।
> जगन्नाथ सिंह चतुर्थ
> जगन्नाथ सिंह चतुर्थ के शासनकाल के समय पोरहाट क्षेत्र में हो एवं कोल जनजातियों द्वारा उपद्रव मचाया जा रहा था।
> हो आदिवासियों के उपद्रव को काबू करने हेतु जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने छोटानागपुर खास के नागवंशी राजा दर्पनाथ सिंह की मदद ली, परंतु हो आदिवासियों ने इनकी संयुक्त सेना को भी पराजित कर दिया। 
> हो जनजातियों के साथ-साथ कोल जनजाति के द्वारा भी इस क्षेत्र में लगातार उपद्रव किया जा रहा था। कोल लड़ाका सिंहभूम क्षेत्र से बाहर जाकर भी लूटपाट करते थे। 
> जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने स्थिति को नियंत्रित करने हेतु अंग्रेजों की सहायता ली तथा 1767 ई. में पहली बार
सिंहभूम क्षेत्र में अंग्रेजो ने प्रवेश किया।
> अन्य महत्वपूर्ण राजवंश
> मानभूम के मान वंश
> 8 वीं सदी के दूधपानी शिलालेख (हजारीबाग) और 14वीं सदी में कवि गंगाधर द्वारा निर्मित गोविन्दपुर शिलालेख (धनबाद) से मानभूम के मान वंश की जानकारी प्राप्त होती है।
> इनका शासन हजारीबाग एवं मानभूम क्षेत्र (धनबाद) में विस्तारित था।
> मानवंश के शासक अत्यंत अत्याचारी थे।
> 10वीं सदी में प्रसिद्ध भूमिज स्वराज्य आंदोलन इसी राजवंश के अत्याचार के कारण उभरा।
> मान राजाओं ने सबर जनजाति पर ( विशेषकर महिलाओं पर ) घोर अत्याचार किया जिसके जनजाति ने मानभूम क्षेत्र छोड़कर पंचेत क्षेत्र को अपना आश्रय बना लिया।
> पंचेत मानभूम का सबसे शक्तिशाली राज्य था। 
> रामगढ़ राज्य
> रामगढ़ राज्य की स्थापना 1368 ई. के लगभग बाघदेव सिंह ने की थी।
> बाघदेव सिंह अपने बड़े भाई सिंहदेव के साथ नागवंशी शासकों के दरबार में थे, परन्तु नागवंशी शासकों से इनका मतभेद हो गया।
> इस मतभेद के बाद वे बड़कागांव क्षेत्र में कर्णपुरा आ गये तथा यहाँ के स्थानीय शासक को पराजित कर इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
> धीरे-धीरे उन्होनें अन्य 21 परगना पर भी अधिकार प्राप्त कर लिया तथा इनको मिलाकर रामगढ़ राज्य की स्थापना की।
> बाघदेव सिंह ने अपने शासन को स्थायित्व प्रदान करने हेतु समय-समय पर अपनी राजधानी को हस्तानांतरित किया।
> रामगढ़ राज्य का सर्वाधिक उत्कर्ष दलेल सिंह के शासनकाल में हुआ। 
> दलेल सिंह 1667 से 1724 ई. तक रामगढ़ का शासक रहा।
> 1718 ई. में दलेल सिंह ने छै राज्य के राजा मगर सिंह की हत्या कर उसके कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। हालांकि 1724 ई. में मगर सिंह के पुत्र रणभस्त खाँ ने दलेल सिंह को पराजित कर अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
> दलेल सिंह के बाद विष्णु सिंह 1724 से 1763 ई. तक रामगढ़ का शासक रहा ।
> विष्णु सिंह ने छै राज्य पर पुनः कब्जा कर लिया तथा 1747 ई. में रामगढ़ राज्य पर भास्कर राव के नेतृत्व में मराठों के आक्रमण तक यह विष्णु सिंह के अधिकार में ही रहा । 
> 1740 ई. में बंगाल के नवाब अलीवर्दी खाँ ने हिदायत अली खाँ को रामगढ़ से वार्षिक कर वसूलने हेतु भेजा। हिदायत अली खाँ ने रामगढ़ का वार्षिक कर 12,000 रूपये तय किया।
>  1751-52 ई. में नरहत समया के जमींदार कामगार खाँ ने विष्णु सिंह पर आक्रमण कर विष्णु सिंह को समझौता करने हेतु विवश कर दिया।
> बंगाल के नवाब मीर कासिम को सूचना मिली की विष्णु सिंह नवाब विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है, जिसके बाद 1763 ई. में मीर कासिम द्वारा मरकत खाँ और असदुल्लाह खाँ के नेतृत्व में भेजी गयी सेना ने विष्णु सिंह को पराजित कर उसके द्वारा अवैध रूप से हड़पे गए क्षेत्रों को उनके मूल मालिकों को सौंप दिया। इसके बदले में मीर कासिम को मुआवजा प्राप्त हुआ।
> विष्णु सिंह के बाद उसका भाई मुकुंद सिंह रामगढ़ का शासक बना तथा उसने छै राज्य को रामगढ़ राज्य में मिला लिया।
> रामगढ़ राज्य की प्रथम राजधानी सिसिया थी तथा अंतिम राजधानी पद्मा थी । 
> रामगढ़ राज्य की राजधानियों का क्रम निम्न प्रकार है:–
क्र.सं.
राजधानी
संस्थापक
1.
सिसिया
बाघदेव सिंह
2. उरदा बाघदेव सिंह
3.
बादम
हेमन्त सिंह
4.
रामगढ़
दलेल सिंह
5.
इचाक
तेज सिंह
6.
पद्मा
ब्रह्मदेव नारायण सिंह
> 1937 ई. में रामगढ़ राज्य के शासक कामाख्या नारायण सिंह बने । 
> 26 जनवरी, 1955 को बिहार राज्य भूमि सुधार अधिनियम की धारा-3 के द्वारा बाघदेव सिंह द्वारा स्थापित रामगढ़ राज्य को समाप्त कर दिया गया।
> खड़गडीहा राज्य
> इस राज्य की स्थापना 15वीं सदी में हंसराज देव ने की थी ।
> हंसराज देव ने बंदावत जाति के शासक को पराजित कर हजारीबाग पर अपना प्रभाव स्थापित किया।
> इस राज्य का विस्तार वर्तमान गिरिडीह जिला क्षेत्र तक था। 
> हंसराज देव मूलत: दक्षिण भारत का रहने वाला था तथा उसने उत्तर भारत के ब्राह्मणों से वैवाहिक संबंध स्थापित किया।
> खड़गडीहा राज्य के अन्य राजा शिवनाथ सिंह, मोद नारायण, गिरिवर नारायण देव आदि थे। 
> ढालभूम का ढाल वंश
> ढालभूम क्षेत्र का विस्तार सिंहभूम में था।
> ढाल वंश के शासनकाल में नरबलि प्रथा का प्रचलन था।
> पंचेत राज्य
> पंचेत राज्य मानभूम का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था।
> इस राज्य का राजचिह्न कपिला गाय का पूँछ या चँवर था। इसी कारण इस राज्य के राजाओं को गोमुखी राजा कहा गया।
> विभिन्न काल से संबंधित झारखण्ड के कुछ प्रमुख स्मारक / स्थान
क्र.स. स्मारक /स्थान का नाम
अवस्थिति
विशेषता
1.
हाराडीह मंदिर समूह
तमाड़ (राँची)
दुर्गा व काली के प्राचीन मंदिर
2.
शाहपुर किला
मेदिनीनगर (पलामू)
मुगलकालीन स्थापत्यकला
3.
कोल्हुआ पहाड़ी
चतरा
दंतकथाओं की पेंटिंग प्राप्त
4.
तेलियागढ़ किला
राजमहल (साहेबगंज)
मुगल सरदारों द्वारा निर्मित
5.
नवरत्नगढ़ किला
गुमला
दुर्जन शाल द्वारा निर्मित
6.
प्राचीन स्थल तथा टैंक
बेनीसागर (प० सिंहभूम)
5वीं-6ठी सदी से संबंधित
7.
शिव मंदिर
शेकपरता (लोहरदगा)
मध्यकाल से संबंधित
8.
जामी मस्जिद
हदफ (साहेबगंज)
16वीं सदी से संबंधित
9.
बारादरी
अर्जीमुखीपुर (साहेबगंज)
16वीं सदी से संबंधित
10.
असुर स्थल
कुजला (खूँटी)
ऐतिहासिक स्थल
11.
असुर स्थल
खूँटीटोला (खूँटी)
ऐतिहासिक स्थल
12.
असुर स्थल
सारिदकेल (खूँटी)
ऐतिहासिक स्थल
13.
असुर स्थल
कथरटोली (खूँटी)
ऐतिहासिक स्थल
14.
असुर स्थल
हंसा (खूँटी)
ऐतिहासिक स्थल
15.
पुराना किला
रूआम (पू० सिंहभूम)
ऐतिहासिक स्थल
16.
पुराना टीला, कुलगढ़ा
इटागढ़ (स०-खरसावां)
ऐतिहासिक स्थल
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