संताल परगना काश्तकारी अधिनियम

संताल परगना काश्तकारी अधिनियम

संताल परगना काश्तकारी अधिनियम
संताल परगना काश्तकारी ( अनुपूरक उपबंध) अधिनियम, 1949 Santal Pargana Tenancy (Supplementary Provisions) Act, 1949
> अध्याय - 1 प्राथमिकी
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  1. संक्षिप्त नाम, प्रारंभ तथा प्रसार
> यह अधिनियम संताल परगना काश्तकारी ( अनुपूरक उपबंध) अधिनियम, 1949 कहलाएगा। 
> यह उस तारीख को लागू होगा, जो राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा नियत करे। 
> यह समस्त संताल परगना प्रमण्डल में लागू होगा जिसके अंतर्गत दुमका, पाकुड़, साहेबगंज, | गोड्डा, देवघर तथा जामताड़ा जिले शामिल हैं। 
धारा  2.  विधान के स्थानीय विस्तार परिवर्तन के अधिकार या किसी क्षेत्र से वापसी
> राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा संताल परगना के किसी भाग से इस विधान या इसके किसी भाग को वापस ले सकती है। इसी प्रकार इस विधान या इसके किसी भाग को पुनः उसी भाग में लागू कर सकती है, जहां से इसे वापस लिया गया हो।
धारा  4. परिभाषायें
> आदिवासी - ऐसा व्यक्ति जो “अनुसूची ख" में निहित आदिवासी या अर्द्ध-आदिवासी जनजाति या जाति से है तथा जो समय-समय पर राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाय। 
> कृषि वर्ष
» जहाँ बँगला साल चलता है, प्रथम वैशाख के प्रारंभ होने वाले वर्ष से है। 
» जहाँ फसली साल चलता है, प्रथम अश्विन से प्रारंभ होने वाले वर्ष से है।
» जहाँ कृषि प्रयोजनों के लिए कोई अन्य वर्ष चलता है, उस वर्ष से है।
> भुगतबंध अथवा पूर्ण भोगबंधक - इसका तात्पर्य ऋण रूप में अग्रिम दी गई अथवा अग्रिम दी जाने वाली राशि के भुगतान के प्रयोजन के लिए रैयत की जोत या उसके आंशिक हित का इस शर्त के साथ हस्तांतरण से है कि कुल सूद सहित ऋण बंधक की अवधि में जोत अथवा आंशिक जोत से उद्भूत लाभ द्वारा चुकता समझा जाएगा।
> जोत- जोत से तात्पर्य भूखंड अथवा भूखंड समूह से है जो रैयत का हो । 
> खास ग्राम- इसका तात्पर्य किसी ग्राम से है जहाँ न तो मूल रैयत हो न उस समय के लिए कोई ग्राम प्रमुख हो ।
> जमींदार - ग्राम प्रमुख या मूल रैयत से भिन्न वह व्यक्ति जिसे लगान पाने का अधिकार है।
> गैर - आदिवासी - ऐसा व्यक्ति जो “अनुसूची ख" में उल्लिखित किसी आदिवासी अथवा अर्ध- आदिवासी जनजाति या जाति का सदस्य न हो।
> रैयत - जमींदार से भिन्न कोई व्यक्ति, जिसने स्वयं अथवा अपने पारिवारिक सदस्यों या भाड़े के मजदूरों द्वारा जोतने के लिए भू धारण करने का अधिकार प्राप्त किया हो। (Note- ग्राम प्रमुख अपनी निजी जोत का रैयत समझा जाएगा। )
> लगान- जो राशि खेवट- खतियान के अनुसार ग्राम प्रमुख या मूल रैयत द्वारा गाँव के जमींदार को विधि-सम्मत देय हो । इसे ही 'ग्राम-लगान' कहा गया है। 
> संताल सिविल रूल्स- इसका तात्पर्य संताल परगना अधिनियम, 1855 की धारा-1 के खंड ( 2 ) के अधीन नियुक्त अधिकारी द्वारा संताल परगना के नागरिक न्यायशासन-प्रबंध के पालन हेतु राज्य सरकार द्वारा जारी किए गये निर्देश से है ।
> लगान की बन्दोबस्ती दर- खेवट- खतियान में उल्लिखित लगान की दर ।
> खाली जोत- परित्यक्त जोत या ऐसी जोत जिसका रैयत बिना उत्तराधिकारी छोड़े मर गया हो।
> ग्राम समुदाय - ग्राम के जमाबंदी रैयतों के सभी व्यक्ति, उनके हिस्सेदार, बच्चे और उत्तराधि. कारी।
> ग्राम प्रमुख- ग्राम-प्रमुख का पद ग्रहण करने लिए इस विधान के तहत विधिवत् नियुक्त कोई व्यक्ति जिसे मुस्तजिर, माँझी अथवा किसी अन्य नाम से जाना जाता हो।
> अध्याय- 2 ग्राम-प्रमुख और मूल रैयत
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  5. ग्राम प्रधान की नियुक्ति
> किसी खास ग्राम के रैयत या जमींदार के आवेदन पत्र देने पर तथा ग्राम के जमाबंदी रैयतों में से कम से कम दो-तिहाई रैयतों की सहमति से उपायुक्त ग्राम प्रधान की नियुक्ति करेगा।
धारा  6. ग्राम प्रधान की मृत्यु का प्रतिवेदन
> यदि किसी ग्राम का, जो खास नहीं है, ग्राम प्रधान मर जाए तो ग्राम का जमींदार इस घटना तीन माह के भीतर नये ग्राम प्रधान की नियुक्ति हेतु उपायुक्त को आवेदन देगा।
धारा  7. ग्राम प्रधान का कबूलियत का लिखा जाना और जमानत देना
> नियुक्ति के पश्चात् ग्राम प्रधान को एक पट्टा दिया जाएगा तथा उसे विहित प्रपत्र में कबूलियत लिखना होगा कि अपने पद के कार्य संपादन में वह राज्य सरकार द्वारा बनाए गये नियमों से शासित होगा।
धारा  8. जमींदार द्वारा नये नियुक्त ग्राम प्रधान को जमाबंदी एवं खेवट-खतियान की प्रतियाँ दिया जाना 
> जब भी आखिरी ग्राम-प्रधान के उत्तराधिकारी के अतिरिक्त कोई अन्य ग्राम प्रधान नियुक्त किया जाय, तो ग्राम के जमींदार का यह कर्त्तव्य होगा कि वह नियुक्ति की तिथि से तीन महीने के भीतर नये ग्राम प्रधान को जमाबंदी एवं खेवट- खतियान की प्रतियाँ देगा।
धारा  9. ग्राम प्रधान को किसी प्रकार पदांतरण का अधिकार नहीं होगा।
धारा  10. किसी जमीन का मूल रैयती जोत समझा जाना 
> कोई बंजर भूमि जो मूल रैयत या सह - रैयत द्वारा आबाद लायक बनायी गई हो या कोई परती जोत जो मूल रैयत या सहरैयत के अधिकार में हो, इस विधान के प्रावधान द्वारा शासित अप. रावर्त्तनीय (non-transferable) रैयत होल्डिंग समझा जाएगा। 
धारा  11. ग्राम प्रधान की पुरस्कार निधि 
> ग्राम-प्रधान, मूल रैयतों तथा रैयतों पर लगाए गए तथा वसूले गए सभी जुर्माने, प्रधानों की पुरस्कार निधि में जमा किए जायेंगे तथा इससे व्यय उपायुक्त द्वारा नियमों के अनुसार किया जाएगा। 
> अध्याय - 3 रैयत
> धारा
> प्रमुख प्रावधान 
धारा  12. रैयतों के वर्ग
> इस विधान के अंतर्गत रैयतों के निम्न वर्ग होंगे:
» निवासी जमाबंदी रैयत- ये अभिलिखित जमाबंदी रैयत हैं जो गाँव में रहते हैं या जिनका पारिवारिक आवास अभिलिखित गाँव में हैं।
» गैर-निवासी जमाबंदी रैयत - जमाबंदी रैयत के रूप में अभिलिखित ऐसे व्यक्ति जो गाँव में नहीं रहते हैं।
» नये रैयत- वे व्यक्ति जो नये रैयत के रूप में अभिलिखित हैं ।
धारा  13. रैयतों के भूमि के उपयोग संबंधी अधिकार
> रैयत उस भूमि का जो उसके जोत में पड़ती है, स्थानीय रीति-रिवाज या किस अन्य रीति से जो भूमि के मूल्य विशेष रूप से नष्ट न करे या जिससे भूमि जोतने-कोड़ने के अयोग्य न हो जाए, उपयोग कर सकता है।
धारा  14. रैयत को बेदखल नहीं किया जाना
> जमींदार द्वारा, सिवा उपायुक्त के बेदखली के आदेश के किसी रैयत को अपने जोत से बेदखल नहीं किया जाएगा।
धारा  15. ईंट और खपड़े बनाने के संबंध में रैयत के अधिकार 
> किसी रैयत को अपने और अपने परिवार के घरेलू अथवा कृषि संबंधी प्रयोजनों के लिए अपने जोत में बिना किसी अधिकार शुल्क या अन्य प्रभार के ईंट और खपड़े बनाने का अधिकार होगा।
धारा  16. अपनी जोत में बाँध इत्यादि बनाने एवं मछली तथा अन्य उत्पादन के उपयोग संबंधी रैयत के अधिकार
> कोई रैयत बिना जमींदार की अनुमति के अपनी निजी जोत या बंदोबस्त भूमि में बाँध, आहर, तालाब, कुँआ एवं जलाशयों व स्रोतों का निर्माण व खुदाई बिना किसी को क्षति पहुँचाये कर सकता है।
> रैयत बिना किसी शुल्क के ऐसे जलाशयों या स्रोतों में मछली तथा अन्य उत्पादन भी कर सकता है। 
> यदि इस बात पर विवाद हो कि किसी को ऐसे निर्माण या खुदाई से क्षति पहुँची है तो उपायुक्त इसका निर्णय करते हुए उचित आदेश देगा।
धारा  17. अपनी निजी जोत के वृक्षों पर रैयत के अधिकार
> रैयत अपनी जोत में स्थित किन्हीं वृक्षों या बाँसों के फूल, फल तथा उत्पादनों का उपयोग कर सकता है। 
> रैयत को अपनी जोत में अपने द्वारा लगाए गए वृक्षों पर बिना शुल्क के लाह उपजाने या रेशम कीट पालन का अधिकार होगा। 
> रैयत अपनी जोत की किसी भूमि पर वृक्ष, उद्यान एवं बाँस लगा सकता है, उन्हें काटकर गिरा सकता है तथा उसका उपयोग कर सकता है।
> परन्तु रैयत अनुमंडल पदाधिकारी की अनुमति के बिना ऐसी जोत पर स्थित वृक्ष नहीं काट सकता है।
धारा  18. भवन निर्माण संबंधी रैयत के अधिकार
> रैयत स्वयं या अपने परिवार के घरेलू या कृषि प्रयोजनों के लिए अपनी जोत पर कच्चा या पक्का मकान बना सकता है।
धारा  19. जोत का विभाजन तथा लगान का वितरण
> जोत का विभाजन तथा उसके लगान का वितरण जमींदार तथा ग्राम प्रमुख या रैयत की सहमति से होगा।
> यदि न्यायालय के आदेश या अन्य प्रकार से जोत बंटवारा या उप-विभाजन का विषय हो और बंटवारा में शामिल पक्ष आपसी समझौते से तथा भूस्वामी, ग्राम प्रमुख या मूल रैयत की सहमति से जोत के लगान के वितरण में असमर्थ हों, तो पक्षों में कोई व्यक्ति लगान के वितरण हेतु उपायुक्त को आवेदन पत्र दे सकता है।
> उपायुक्त को किसी कार्यवाही के किसी पक्ष को खर्चा दिलाने का अधिकार होगा
> यदि जोत के किसी भाग का लगान तीन रूपये से कम होगा, तो किसी भी स्थिति में ऐसी जोत का उप-विभाजन नहीं होगा।
> यदि सरकारी जोत समेत ग्राम प्रमुख का हिस्सा ग्राम लगान के लिए अपर्याप्त जमानत हो, तो किसी भी स्थिति में जमानत के रूप में शपथ ली गई ग्राम प्रमुख की निजी जोत का खण्डीकरण न होगा।
धारा  20. रैयत के अधिकार का हस्तान्तरण
>  विक्रय, दान, बंधक, वसीयत या पट्टा या किसी अन्य संविदा द्वारा प्रकट अपने किसी जोत या उसके अंश के अधिकार का रैयत द्वारा हस्तान्तरण तब तक मान्य नहीं होगा जब तक कि हस्तान्तरण का अधिकार खेवट - खतियान में उल्लिखित नहीं है। किसी अनुमंडल में रैयती भूमि का पट्टा उपायुक्त की पूर्व लिखित अनुमति से एक वर्ष के लिए किया जा सकता है। जहाँ संताल विधान के तहत दर्ज रैयत द्वारा बहन और पुत्री को दान अनुज्ञेय है, वहाँ उपायुक्त की पूर्व लिखित अनुमति से रैयत दान स्वीकार कर सकता है। आदिवासी रैयत उपायुक्त की पूर्व लिखित अनुमति से अपनी भूमि के क्षेत्रफल का अधिकतम आधा जोत अपनी विधवा माँ को या अपनी मृत्यु के बाद निर्वाह हेतु अपनी स्त्री को दान स्वरूप दे सकता है। [ उप धारा ( 1 ) ]
> किसी आदिवासी रैयत का अपने जोत या उसके अंश का हस्तांतरण योग्य अधिकार किसी भी प्रकार उस परगना या तालुक में सचमुच खेती करने वाले आदिवासी रैयत के सिवा अन्य व्यक्ति के नाम हस्तांतरित नहीं किया जाएगा। परन्तु आदिवासी रैयत अपने जोत या उसके किसी भाग को अपने गरदी जमाई या घर जमाई के नाम कर सकता है। उप धारा ( 2 )]
> उप धारा (1) या (2) के विपरीत कोई भी हस्तान्तरण मान्य नहीं होगा या किसी न्यायालय द्वारा दीवानी, फौजदारी एवं राजस्व के अधिकार क्षेत्र के प्रयोग हेतु मान्य नहीं होगा। 
> किसी जोत या उसके किसी भाग में किसी रैयत के अधिकार के विक्रय के लिए किसी न्यायालय या अधिकारी द्वारा डिक्री या आदेश के निष्पादन में ऐसा अधिकार तभी बेचा जा सकता है, यदि हस्तांतरण का रैयत का अधिकार खेवट-खतियान में उल्लिखित हो।
> यदि किसी भी समय उपायुक्त को यह सूचना प्राप्त होती है कि उपधारा (1) या (2) के विपरीत कोई हस्तान्तरण हुआ है तो वह अपने विवेक से हस्तांतरण लेने वाले को निकाल सकता है और हस्तान्तरित भूमि को रैयत या उसके किसी उत्ताधिकारी को लौटा सकता है।
धारा  21. गैर-आदिवासी रैयत द्वारा रैयती भूमि का हस्तान्तरण
> धारा 20 में किसी बात के रहते हुए भी राज्य सरकार सरकारी गजट में अधिसूचना प्रकाशित करके, संपूर्ण संताल परगना या उसके किसी भाग को गैर-आदिवासी रैयत को सूचित तिथि से, अपने धान के खेतों और प्रथम श्रेणी के बारी भूमियों के चतुर्थांश का भुगतबंध या पूर्ण भोगबंधक द्वारा निम्न में से किसी के नाम हस्तान्तरित करने की स्वीकृति दे सकती है:
» राज्य सरकार द्वारा यथाविधि स्थापित भूमि बंधक रखने वाले बैंक को, 
» उपायुक्त द्वारा अभिस्वीकृत किसी अनाज गोला को,
» बिहार और ओडिसा सहकारी समिति अधिनियम, 1935 के अनुसार निबंधित किसी सोसाइटी को,
» संताल परगना के किसी रैयत को।
परन्तु ऐसा हस्तान्तरण निबंधित प्रलेख द्वारा होना आवश्यक है और इसकी रिपोर्ट निबंधन के एक मास के भीतर हस्तान्तरणकर्ता (transferor) और हस्तान्तरिति (transferee) द्वारा उपायुक्त और जमींदार को दे दी जानी चाहिए। साथ ही ऐसा हस्तान्तरण 6 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए नहीं होगा।
> हस्तान्तरिति भूमि का लगान देने का उत्तरदायी होगा तथा लगान नहीं देने की स्थिति में उसे भूमि से निकाल दिया जाएगा और बंधक रद्द कर दिया जाएगा।
> बन्धक की समाप्ति पर उपायुक्त संबंधित पक्षों को बंधक की समाप्ति का नोटिस दिलायेगा तथा हस्तान्तरिति को निकाल कर हस्तान्तरणकर्ता को कब्जा वापस दिलाने की कार्यवाही करेगा।
> उपरोक्त धाराओं के अतिरिक्त अन्य प्रकार किया गया भूमि का हस्तान्तरण धारा 20 की उप धारा (1) के उल्लंघन में किया गया हस्तान्तरण समझा जाएगा।
> बन्धक की समाप्ति के बाद रैयत की भूमि के कब्जे में पाया जाने वाल बन्धकदार (mortgage) को जेल की सजा दी जाएगी। यह सजा तीन माह तक हो सकती तथा उसे पाँच सौ रूपये तक का अर्थदण्ड भी दिया जा सकता है। अपराध जारी रखने के प्रत्येक दिन के लिए अधिकतम दस रूपये का अर्थदण्ड दिया जायेगा।
धारा  22. रैयत द्वारा न्यास पर कृषि के लिए अस्थायी रूप से अपना क्षेत्र दिया जाना
> धारा 20 और 21 में निहित किसी बात के होते हुए भी विभिन्न परिस्थितियों में कोई रैयत अपनी भूमि रजिस्ट्री डाक द्वारा ग्राम प्रमुख, जमींदार और अनुमंडल पदाधिकारी को सूचना देकर न्यास पर जोतने के लिए अस्थायी रूप से दे सकता है। ये परिस्थितियाँ हैं:
» गाँव से रैयत की अस्थायी अनुपस्थिति, या
» उसकी बीमारी या शारीरिक अक्षमता,
» उसके नियंत्रण से बाहर किन्ही कारणों से हल - बैल की क्षति, या
» रैयत के नाबालिग या विधवा होने की दशा
> रैयत की गाँव से अस्थायी अनुपस्थिति या हल - बैल की क्षति की दशा में यदि कोई अवधि नहीं दी गई हो तो 10 वर्ष की अवधि के बाद जोत छोड़ दिया जायेगा।
> उपरोक्त प्रावधानों के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से खेती-बारी करने के लिए किसी जोत का स्थायी या अस्थायी रूप से हस्तान्तरण धारा-20 के उल्लंघन में किया गया हस्तान्तरण समझा जाएगा।
धारा  23. रैयती भूमि का बदलैन ( विनिमय )
> अपनी भूमि को बदलने की इच्छा रखने वाला कोई भी रैयत उपायुक्त को लिखित आवदेन दे सकता है तथा उपायुक्त अपने विवेकानुसार इसकी अनुमति दे सकते हैं। परन्तु उपायुक्त ऐसी अनुमति तब तक नहीं देंगे जब तक कि वे संतुष्ट नहीं हो जाते कि :
» बदलैन के पक्ष में बदली जाने वाली भूमि के सापेक्ष रैयत है,
» बदली जाने वाली भूमियाँ एक ही गाँव में या आस
-पास के गाँवों में है,
» यह गुप्त बिक्री द्वारा नहीं किया जा रहा बल्कि पक्षों की पारस्परिक सुविधा के लिए किया जा रहा हो,
» बदली जाने वाली भूमि समान मूल्य की है।
> यदि इस धारा के प्रावधानों के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से तथा उपायुक्त की बिना लिखित पूर्व स्वीकृति के किसी भूमि को बदला जाता है, तो यह धारा - 20 के उल्लंघन में किया गया हस्तानांतरण समझा जाएगा।
धारा  24. रैयती जोत के कतिपय हस्तान्तरण का निबंधन
> जब कोई रैयती जोत या उसका कोई खेत बिक्री, दान, वसीयत या बदलैन द्वारा हस्तान्तरित किया जाय तो उसका उत्तराधिकारी हस्तान्तरण को गाँव के जमींदार के यहाँ निबंधित करा सकता है।
> जब संताल परगना के अंतर्गत विधिवत् प्रभाव रखने वाली किसी वस्तु में या खतियान में विपरीत किसी बात के होते हुए भी, ऐसे हस्तान्तरण को जमींदार स्वीकृत करेंगे। 
> बिक्री, दान या वसीयत के द्वारा हस्तान्तरण की दशा में निबंधन के लिए जमींदार द्वारा शुल्क तभी लगाया जा सकता है:
» यदि जोत या उसके खंड के लिए लगान दिया जाता है और ऐसा शुल्क वार्षिक लगान के दो प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। साथ ही यह शुल्क आठ आने से कम तथा पचास रूपये से अधिक नहीं होगा।
» यदि जोत का लगान नहीं लगता हो तो शुल्क एक रूपया लगाया जा सकता है। परन्तु यदि " दान करने वाले के पति या पत्नी को हिन्दू लॉ के अधीन गोद लिये गए पुत्र या पुत्री या बहन और संताल लॉ के अधीन गोद लिये गए पुत्र या पुत्री को या दान करने वाले के तीन पिढ़ी से संबंधित रक्त संबंधी को दान किया जाय तो शुल्क नहीं देना होगा।
> अध्याय - 4 - बंजर भूमियों तथा खाली जोतों की बन्दोबस्ती
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  27. बंजर भूमि की बन्दोबस्ती के लिए पट्टे के जरिये किया जाना 
> बंजर भूमि की बन्दोबस्ती निहित प्रपत्र में पट्टे के द्वारा की जाएगी। इसकी चार प्रतियाँ तैयार , होंगी जिसमें से एक उपायुक्त को एक रैयत को, एक भूस्वामी को तथा एक ग्राम प्रधान या मूल रैयत को दी जाएंगी।
धारा  28. बंजर भूमि या खाली भूमि की बन्दोबस्ती में अनुसरण किए जाने वाले सिद्धांत 
> बंजर भूमि या खाली भूमि के जोतों की बन्दोबस्ती में खतियान में दर्ज सिद्धांतों के अतिरिक्त निम्न बातों पर ध्यान दिया जाएगा:-
» प्रत्येक रैयत की आवश्यकताओं तथा उसकी आबाद लायक बनाने और आबाद करने की क्षमता के अनुसार भूमि का उचित वितरण,
» ग्राम जनता, समाज या राज्य के प्रति की गई सेवाओं हेतु कोई विशेष दावा,
» रैयत की जमाबन्दी भूमि से बंजर भूमि का सान्निध्य या साम्य,
» उन भूमिहीन श्रमजीवियों हेतु व्यवस्था जो गाँव के वास्तविक स्थायी निवासी हैं तथा जिनके संबंध में दर्ज है कि गाँव में रहने का घर है।
धारा  29. उपायुक्त की स्वीकृति के बिना जोत की बन्दोबस्ती नहीं किया जाना
> कोई मूल रैयत प्रधान या ग्राम-प्रमुख उपायुक्त की लिखित पूर्व स्वीकृति के बिना अपने साथ या किसी मूल रैयत के साथ कोई बंजर भूमि या खाली जोत बन्दोबस्त नहीं करेगा। 
धारा  30. बन्दोबस्ती के उद्देश्य से किसी खाली जोत का उप-विभाजन नहीं किया जाना
> जमींदार की सहमति तथा उपायुक्त के अनुमोदन के बिना बन्दोबस्ती के प्रयोजन के लिए जोत उप-विभाजन नहीं किया जायेगा।
धारा  31. जब दो या उससे अधिक ग्राम प्रमुख, सह मूल रैयत या जमींदारों द्वारा संयुक्त गाँव में किसी बंजर भूमि की बन्दोबस्ती यदि संयुक्त रूप से नहीं की गई, तो आपत्ति होने पर उपायुक्त उस बन्दोबस्ती को रद्द या संपरिवर्तित कर सकता है।
धारा  32. बंजर भूमि तथा खाली जोत की बन्दोबस्ती के विरूद्ध उपायुक्त के पास आपत्ति 
> यदि कोई व्यक्ति ग्राम-प्रमुख या मूल रैयत या जमींदार की, बंजर भूमि या खाली जोत को बन्दोबस्त करने या बन्दोबस्त अस्वीकार करने की क्रिया से क्षुब्ध हुआ हो, तो जिस तिथि को बन्दोबस्ती अस्वीकृत की गई, उसके एक वर्ष के भीतर उपायुक्त के यहाँ आवेदनन-पत्र दे सकता है।
धारा  33. बंजर भूमि की बन्दोबस्ती की रही, यदि पाँच वर्ष के भीतर आबाद न की जाय 
> यदि किसी बंजर भूमि की बन्दोबस्ती की तिथि से पाँच वर्ष के भीतर आबाद नहीं की गई हो, तो जमाबन्दी रैयत, ग्राम प्रमुख, मूल रैयत या जमींदार के आवेदन पत्र देने पर उपायुक्त को बन्दोबस्ती रद्द करने या उसकी पुनः बन्दोबस्ती करने का अधिकार होगा।
धारा  34. उपायुक्त द्वारा बंजर भूमि को जाहेरथान, श्मशान या कब्रिस्तान के लिए अलग करना 
> यदि जाहेरथान, श्मशान या कब्रिस्तान के रूप में दर्ज कोई क्षेत्र अनुपयुक्त हो तो, उपायुक्त गाँव में निवास करने वाले जमाबन्दी रैयतों तथा ग्राम प्रमुख या मूल रैयत की राय से गाँव की बंजर भूमि का भाग इस हेतु अलग कर सकता है। 
धारा  35. सिंचाई के लिए जलाशयों या धाराओं आदि का आबाद नहीं किया जाना
> बाँध, आहर, पोखर तथा अन्य जलाशय या धाराएँ जिनका व्यवहार या तो बाढ़ से रक्षा के कामों के लिए या सिंचाई, स्नान, धोने या पीने के लिए किया जाता हो, इसकी बन्दोबस्ती बिना ग्राम-प्रमुख तथा रैयतों या जमींदार की राय या उपायुक्त के अनुमोदन के बिना नहीं किया जाएगा।
> किसी भी जमींदार या मालिक को सिंचाई, स्नान, धोने या पीने के प्रयोजनों के लिए जलाशयों तथा धाराओं के पानी के प्रयोग के लिए कोई कर नहीं लगाएगा।
धारा  36. उन उप-धाराओं या नालों का बंदोबस्त नहीं किया जाएगा जो गाँवों की सीमाओं, श्मशानों तथा कब्रिस्तानों, शिविर स्थलों, सीमा चिन्ह स्थलों, सार्वजनिक पथों, ग्राम - मार्गो, जाहेरथन तथा अन्य पूजा स्थल पर हों ।
धारा  37. रैयत का मवेशी चराने का अधिकार
> गाँव के सभी रैयतों को अभिलेखांकित चारागाह, उपायुक्त द्वारा चिन्हित चारागाह, संताल परगना रेगुलेशन के अनुसार अलग की गई भूमि और वन- - वृद्धि के लिए रख छोड़ी गई भूमि में अपने मवेशी चराने का अधिकार होगा।
धारा  38. चारागाह आबाद नहीं किया जाना
> कोई भी ऐसी भूमि जो ग्राम चारागाह या गोचर के रूप में अभिलेखांकित हो, किसी व्यक्ति द्व रा बन्दोबस्त, आबाद या चराई से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए प्रयुक्त नहीं की जाएगी। 
> यदि चराई के लिए अभिलेखांकित क्षेत्र गाँव के कुल रकबे के पाँच प्रतिशत से कम हो, तो उपायुक्त, जमींदार, ग्राम प्रमुख या मूल रैयत तथा रैयतों की राय से गाँव की बंजर भूमि का समुचित क्षेत्र चराई के लिए अलग कर दे सकता है।
धारा  39. रैयतों को अपने जोतों से भिन्न भूमियों में पोखर इत्यादि खोदने का अधिकार 
> जमींदार की अनुमति से रैयत अपने जोतों से भिन्न भूमियों में पोखर तथा जलाशय खोद सकते हैं वे जमींदार के साथ किए गए प्रबंध के अनुसार उनकी मछलियों एवं अन्य उत्पादन का उपभोग कर सकते हैं।
धारा  40. खास पोखर संबंधी रैयत के मत्स्य- अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना
> यदि किसी व्यक्ति को किसी पोखर या अन्य जलाशय में मछली मारने का अधिकार हो, तो जमींदार या भूस्वामी या मूल रैयत उसके अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
धारा  41.किसी पहाड़िया गाँव में खाली होल्डिंग तथा बंजर भूमि का गैर पहाड़िया के साथ बंदोबस्त नहीं किया जाना
> किसी पहाड़िया गाँव में कोई बंजर भूमि या खाली जोत की बन्दोबस्ती किसी गैर-पहाड़िया व्यक्ति के साथ नहीं की जा सकेगी।
(Note- पहाड़िया गाँव वह है जो आयुक्त द्वारा उस रूप में घोषित किया गया हो।)
धारा  42. उस व्यक्ति को बेदखल करना जो कृषि भूमि के अनधिकार पूर्ण दखल में हो 
> उपायुक्त अपनी इच्छा से या प्राप्त आवेदन के आधार पर किसी व्यक्ति को बेदखल कर सकता है। जिसने विधि का उल्लंघन करके कृषि भूमि में प्रवेश किया हो या उस पर कब्जा किया हो। 
> अध्याय-5 लगान
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  43 .जिन्स ( वस्तु के रूप ) में लगान नहीं वसूल किया जाना 
> जमींदार या ग्राम-प्रमुख या मूल रैयत को वस्तु के रूप में लगान पाने का अधिकार नहीं होगा।
धारा  44. किसी जमींदार या मूल रैयत का स्वत्व (हित) हस्तान्तरित होने पर कोई रैयत, ग्राम प्रमुख या मूल रैयत हस्तान्तरण के बाद देय और जिनका हित हस्तान्तरित हुआ हो, ऐसे भूस्वामी या मूल रैयत, को सद्भाव में दिए गए लगान के लिए दायी नहीं होगा, जब तक कि स्थानान्तरित लगान देने के पहले हस्तान्तरण की नोटिस रैयत, ग्राम प्रधान या मूल रैयत को न दे दें। 
धारा  45. डाक मनिआर्डर द्वारा लगान चुकती
>  रैयत द्वारा अपने जमींदार, ग्राम प्रमुख या मूल रैयत को डाक मनिआर्डर द्वारा जोत का लगान चुकाया जा सकता है। 
धारा  46. प्रत्येक रैयत के लगान का लेखा रखना अनिवार्य
> जमींदार, ग्राम-प्रमुख या मूल रैयत द्वारा प्रत्येक कृषि वर्ष में प्रत्येक रैयत द्वारा देय लगान, उसके द्वारा चुकाई गयी रकम, बकाया आदि का लेखा रखा जाएगा।
धारा  47. लगान और उसके ब्याज के लिए रसीद
> प्रत्येक रैयत लगान एवं उसका ब्याज चुकाने के बाद भूस्वामी या उसके अभिकर्ता से भुगतान करते समय निःशुल्क रसीद पाने का अधिकारी होगा। 
धारा  48. रसीदों एवं लेखों का प्रपत्र राज्य सरकार प्रस्तुत करेगी
> सभी उचित लेखों के विवरण एवं रसीदों का प्रपत्र राज्य सरकार तैयार कराएगी और इसे सभी अनुमंडल कार्यालय में रखेगी।
धारा  49. लगान होल्डिंगों पर प्रथम प्रभार होगा
> जहाँ रैयत का जोत हस्तान्तरण योग्य है, जोत का लगान जोत का प्रथम प्रभार होगा और ग्राम प्रधान या मूल रैयत की दशा में ग्राम लगान की चुकती के लिए जमींदार, ग्राम प्रमुख या मूल रैयत के जोत पर प्रथम प्रभार होगा।
धारा  50. विशिष्ट कारणों से लगान में कमी
> ऐसे गाँव या हल्के या भूमि का लगान जिनकी बन्दोबस्ती संताल परगना सेट्लमेंट रेगुलेशन के प्रावधानों के अधीन सेट्लमेंट अधिकारी द्वारा किया गया है, उपायुक्त निम्न कारणों से उसका लगान लिखित आदेश द्वारा कम कर सकता है:wwww
» किसी जोत या हल्के या उसके किसी भाग की मिट्टी में बालू पड़ जाने या किसी कारण से उपज में स्थायी रूप से उपज कम हो जाने के कारण।
» ऐसी जोत का जमींदार नोटिस देने पर भी नोटिस के 6 माह के अंदर सिंचाई संबंधी व्यवस्था करने में असमर्थ रहा हो।
» वर्तमान लगान के चालू रहने की अवधि के भीतर प्रमुख खाद्यान्नों के औसत स्थानीय मूल्य यदि किन्हीं अस्थायी कारणों से गिर गये हों।
धारा  51. लगान कमी की अवधि
> धारा 50 के अधीन लगान कम किये जाने पर लगान की और भी कमी उन्हीं कारणों से तब तक नहीं की जाएगी, जब तक कि संताल परगना बंदोबस्त विनियम के अधीन लगान की सूची प्रकाशित नहीं की जाती ।
धारा  52. देय लगान के अतिरिक्त वसूली पर जमींदार को दण्ड
> यदि कोई जमींदार या उसका अभिकर्ता अपने रैयत या ग्राम प्रधान या मूल रैयत से देय लगान के अतिरिक्त और कुछ वसूल करता है, तो उसे 6 माह का साधारण कैद या 500 रूपये का अर्थदण्ड या दोनों प्रकार के दण्ड दिए जा सकते हैं।
> अध्याय - 6 - कतिपय प्रयोजनों के लिए जमींदार द्वारा भूमि का अधिग्रहण
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  53. भवन निर्माण तथा अन्य प्रयोजनों से भूस्वामी द्वारा भूमि का अधिग्रहण
> यदि कोई जमींदार किसी पर्याप्त प्रयोजन से, जिसका संबंध जोत या जमींदार के हित में हो अथवा किसी धार्मिक या शैक्षिक प्रयोजन से अथवा सिंचाई, कृषि व औद्योगिक उन्नति हेतु अथवा सरकार की कोई राष्ट्रीय नीति प्रभावी करने हेतु, उस ग्राम के किसी जोत या उसके किसी भाग जिस पर ग्राम वासियों का समान अधिकार हो, का अधिग्रहण करना चाहे तो इसके लिए उपायुक्त के पास आवदेन दे सकता है।
> उपायुक्त उचित जाँच के पश्चात् ऐसे आवेदन पर अपनी अनुमति दे सकता है या अस्वीकार कर सकता है।
> उपायुक्त अनुमति देने से पूर्व रैयतों तथा जोत में हित रखने वाले अन्य व्यक्तियों को अपने समक्ष उपस्थित होकर आपत्ति लेख देने हेतु नोटिस जारी करेगा।
> उचित जाँच के बाद उपायुक्त जमींदार या ग्राम प्रमुख या मूल रैयत को यह आदेश दे सकता है कि रैयत या हित रखने वाले अन्य व्यक्ति को उपायुक्त द्वारा निर्धारित उचित क्षतिपूर्ति देकर वे जोत पर कब्जा प्राप्त कर सकते हैं ।
> यदि रैयत या हित रखने वाला व्यक्ति क्षतिपूर्ति सेना अस्वीकार कर दें, तो उपायुक्त ग्राम-प्रमुख या मूल रैयत को उसके (उपायुक्त के) पास उक्त रकम जमा कराने पर उसक का कब्जा दे सकता है।
> वह रैयत जिसकी भूमि अधिग्रहित की गई हो, क्षतिपूर्ति पाने के अतिरिक्त इस बात होअधिकारी होगा कि उसका लगान उसी अनुपात में घटा दिया जाय। 
> यदि कब्जा के पाँच वर्षों के भीतर अधिग्रहीत भूमि उस प्रयोजन हेतु प्रयुक्त नहीं किया गया जिसके लिए यह अपेक्षित थी, तो उपायुक्त आदेश देकर भूमि के मूल रैवत अथवा उसक उत्तराधिकारी अथवा हित रखने वाले व्यक्ति को भूमि वापस दे सकता है। यदि वह व्यक्ति उम भूमि को वापस न ले तो उपायुक्त गाँव की बंजर भूमि की तरह उस भूमि का बंदोबस्त का सकता है।
> अध्याय-7 न्यायिक प्रक्रिया
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  54. प्रक्रिया के संबंध में नियम बनाने का राज्य सरकार का अधिकार
> इस अधिनियम के अनुसार आवेदन पत्रों तथा अन्य कार्यवाहियों के संबंध में प्रक्रिया अथवा नियम की व्यवस्था न होने पर राज्य सरकार नियम बना सकती है।
> नियम न बने या बन जाने पर संताल सिविल रूल्स के प्रावधान इस संबंध में लागू होंगे। 
धारा  55. लगान वसूली के लिए रैयतों के विरूद्ध उत्तरोत्तर मुकदमें
> यदि लगान की वसूली हेतु किसी रैयत के विरुद्ध जमींदार ने कोई मुकदमा किया हो, तो उसके विरूद्ध पहले मुकदमे की तिथि के 6 माह के भीतर लगान की वसूली के लिए दूस मुकदमा दायर नहीं किया जाएगा।
धारा  56. बेदखली
> उपायुक्त के आदेश के बिना कृषि भूमि से कोई व्यक्ति नहीं निकाला जाएगा।
> यदि कोई रैयत संपूर्ण जोत से निकाल दिया गया हो तो उपायुक्त अपने विवेकानुसार उसे अपने निवास भवन पर कब्जा बनाए रखने हेतु अनुमति दे सकता है तथा लगान का निर्धारण कर सकता है।
धारा  57.अपील
> इस अधिनियम के अनुसार निम्नलिखित आदेश के विरूद्ध अपील की जा सकती है:
» यदि आदेश उपायुक्त के अधिकार का प्रयोग करने वाले उपसमाहर्ता द्वारा दिया गया हो, तो अनुमंडल पदाधिकारी के पास, जिसे इस संबंध में उपायुक्त ने अधिकार निहित किए हों। उपायुक्त अपील के संबंध में अपनी संचिका (फाइल) में या अधिकृत उपसमाहर्ता के फाइल में अंतरण करने के लिए आदेश दे सकता है।
» यदि आदेश उपायुक्त के अधिकारों का प्रयोग करने वाले अनुमंडल पदाधिकारी द्वारा दिया गया हो, तो उपायुक्त के पास अपील की जा सकती है।
» यदि आदेश उपायुक्त अथवा अवर उपायुक्त द्वारा गया हो, तो आयुक्त के पास अपील की जा सकती है।
» यदि आदेश आयुक्त द्वारा दिया गया हो, तो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त न्यायाधिकरण के पास अपील की जा सकती है।
धारा  58. दूसरी अपील
> पुनरीक्षण के संबंध में धारा-59 के प्रावधानों के अधीन रहकर सभी दशाओं में अपीलीय आदेश, जहाँ नीचे के न्यायालय के निर्णय का अभिपोषण किया गया हो, अंतिम होगा और दूसरी अपील की अनुमति नहीं दी जाएगी।
> यदि उपायुक्त या अपर उपायुक्त ने नीचे के न्यायालय के निर्णय को परिवर्तित किया हो, 
(क) पुनर्विचार अधिकार से निहित अनुमंडल पदाधिकारी ने यदि पुनर्विचार आदेश दिया हो, तो उपायुक्त के पास अपील की जाएगी।
(ख) यदि पुनर्विचार का आदेश उपायुक्त या अपर उपायुक्त ने दिया हो तो आयुक्त के पास अपील की जाएगी।
> अपील करने पर आयुक्त द्वारा अथवा धारा 57 के अनुसार नियुक्त न्यायाधिकरण द्वारा दिये गये आदेश के विरूद्ध दूसरी अपील नहीं की जाएगी।
धारा  59. पुनरीक्षण (Revision)
1. आयुक्त अथवा उपायुक्त अपने प्रेरणा से अथवा अन्य रूप से अपने नियंत्रण के अंतर्गत किसी न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय या किसी मुकदमें का अभिलेख मांग सकतें हैं जिस पर अपील न हो। परन्तु किसी पक्ष के आवदेन देने पर आयुक्त ऐसा आदेश नहीं देगा जब तक कि उपायुक्त अथवा अपर उपायुक्त ने अपील पर सुनवाई की हो और आदेश दिया हो ।
2. उपायुक्त लिखित आदेश द्वारा अपने नियंत्रण में कार्यरत किसी अनुमंडल पदाधिकारी को अधिकृत कर सकते हैं कि वह ऐसे उपसमाहर्त्ता जो उपायुक्त के नियंत्रण में किसी एक अनुमंडल का प्रभार रखता हो, के न्यायालयों के सभी निर्णयों के संबंध में उप धारा (1) के तहत उपायुक्त को प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करे।
धारा  60. पुनर्विलोकन (Review)
1. आयुक्त किसी ऐसे आदेश का पुनर्विलोकन कर सकते हैं जो उन्होनें स्वयं या उनके पूर्वाधिकारी ने इस अधिनियम के तहत प्रदत्त अधिकारों के प्रयोग में दिये हों। 
> आयुक्त के अधीनस्थ कोई अधिकारी किसी ऐसे आदेश का पुनर्विलोकन नहीं कर सकता है, जिसे उसने स्वयं या उसके पूर्वाधिकारी ने दिया हो । परन्तु लिपीकीय भूल अथवा अन्य किसी भूल-चूक का सुधार जो किसी असावधानी के कारण हो, निम्न के बिना पूर्वानुमति के कर सकता है :
(क) उप समाहर्त्ता अथवा अनुमंडल पदाधिकारी की दशा में उपायुक्त की बिना पूर्वानुमति के और
(ख) उपायुक्त अथवा अपर उपायुक्त की दशा में आयुक्त की बिना पूर्वानुमति के ।
धारा  61. केवल प्रावैधिक (Technical) आधार पर किसी आदेश का पुनरीक्षण नहीं किया जाएगा 
> उपायुक्त द्वारा दिया गया आदेश, अपील करने पर अथवा पुनरीक्षण की प्रक्रिया में अनियमितता के कारण परिवर्तित नहीं किया जाएगा, जब तक उस अनियमितता के कारण न्याय की हानि न हुई हो। 
धारा  62. उपायुक्त तथा उपसमाहर्त्ता पर नियंत्रण
> इस अधिनियम के तहत अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन और शक्तियों का प्रयोग करते हुए उपायुक्त, आयुक्त के सामान्य निर्देश एवं नियंत्रण के अधीन रहेंगे तथा अतिरिक्त उपायुक्त, अनुमंडल पदाधिकारी व उपसमाहर्त्ता, उपायुक्त के सामान्य निर्देश एवं नियंत्रण के अधीन रहेंगे।
धारा  63. मुकदमों पर रोक 
> इस अधिनियम के तहत उपायुक्त द्वारा दिये गये किसी भी आदेश को परिवर्तित या अपास्त करने के लिए कोई भी न्यायालय वाद ग्रहण नहीं करेगा।
> अध्याय - 8 परिसीमा (Limitation)
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  64. परिसीमा का सामान्य नियम
> इस अधिनियम के अधीन सभी आवेदन जिसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं हो, अधिनियम के अन्यत्र परिसीमा हेतु कोई अवधि नहीं है, वाद हेतु प्रावधान के दिन से एक वर्ष तक जमा होंगे।
> धारा 42 के लिए आवेदन में परिसीमा के लिए कोई समय सीमा नहीं होगी।
धारा  65. बेदखली के मुकदमों के लिए परिसीमा
> धारा 14 में उल्लिखित आधार पर रैयत की बेदखली का आवेदन उस परिवाद के दुरूपयोग की तारीख से दो वर्ष के भीतर देना होगा।
धारा  65. सरकार के द्वारा लगान का बकाया चुकता के वाद की समय सीमा
> राज्य सरकार के द्वारा बकाया लगान वसूल करने के वाद में जिस कृषि वर्ष के अन्त से लगान बकाया है, वाद की समयसीमा उस वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक होगी।
धारा  66. अपीलों के लिए परिसीमा
> इस अधिनियम के अधीन अपील: –
(क) धारा 57 के तहत नियुक्त न्यायाधिकरण या आयुक्त के समक्ष किसी आदेश के विरूद्ध अपील, आदेश की तारीख से 90 दिनों के भीतर की जाएगी।
(ख) उपायुक्त या अनुमंडल पदाधिकारी के समक्ष किसी आदेश के विरूद्ध अपील, आदेश की तारीख से 60 दिनों के भीतर की जाएगी।
> अध्याय - 9  विविध प्रावधान (Miscellaneous Provisions)
> धारा
> प्रमुख प्रावधान
धारा  67. अर्थदण्ड ( जुर्माना )
1. कोई व्यक्ति दो सौ रूपये जुर्माना तथा अपराध जारी रहने की दशा में प्रतिदिन पाँच रूपये तक यदि:
और जुर्माना का भागी होगा, यदि:–
(क) जमींदार होते हुए किसी बाँध, आहर, धारा, डैम, नाला, डून, तालाब या किसी अन्य जलाशयों व नहर की मरम्मत और रखरखाव से चूकता है जिसके लिए वह बाध्य है।
(ख) जमींदार या जमींदार का अभिकर्त्ता, ग्राम प्रधान या मूल रैयत होते हुए भी इस अधिनियम या किसी विधि के अधीन किसी प्रथा के पालन से चूकता है।
(ग) जमींदार या जमींदार का अभिकर्त्ता, ग्राम प्रधान या मूल रैयत, रैयतों की सहायता से किसी बाँध, आहर, डैम, धारा, नाला, तालाब और कोई अन्य जलाशय या सिंचाई नहर या गाँव के रास्ते या पड़ाव भूमि या चारागाह की मरम्मत से चूकता है।
(घ) जमींदार या जमींदार का अभिकर्त्ता, गाम- प्रधान या मूल रैयत धारा 20 के विपरीत गाँव की किसी भूमि का हस्तान्तरण करने पर समर्थ अधिकारी को इसका प्रतिवेदन देने से चूकता है।
(ड.) जमींदार या जमींदार का अभिकर्त्ता होते हुए ग्राम प्रमुख की मृत्यु का प्रतिवेदन उपायुक्त को देने से चूकता है।
(च) जमींदार या जमींदार का अभिकर्त्ता, ग्राम प्रमुख या मूल रैयत किसी गाँव की बंजर भूमि, खाली जोत या अन्य जोत की गैर-जमाबंदी रैयत के साथ बन्दोबस्ती करता है ।
(छ) जमींदार या जमींदार का अभिकर्त्ता होते हुए नवनियुक्त ग्राम-प्रमुख को जमाबंदी या अधिकार-अभिलेख की प्रति धारा 8 में निर्दिष्ट निर्धारित अवधि के भीतर देने से चूकता है। 
(ज) रैयत होते हुए – 
1. जमींदार या ग्राम-प्रमुख या मूल रैयत को गाँव के बाँधो, आहरों, मेड़ों, डांडों, नालियों, तालाबों या किन्हीं अन्य जलाशयों और सिंचाई के नालों, गाँव के रास्तों या सीमा- चिन्हों की मरम्मत में सहायता देने से चूकता है।
2. किसी अभिलिखित गाँव के रास्ते, पड़ावभूमि या चारागाह का अतिक्रमण करता है। 
3. धारा 20 के प्रावधानों के विपरीत अपनी भूमि को हस्तान्तरित करता है या इस प्रकार हस्तानांतरित किसी भूमि को जोतता है।
4. गाँव से कोई पेड़ काटता है या गाँव के जंगल का प्रयोग किसी विधि के विपरीत करता है।
2. ऐसा अर्थदण्ड उपायुक्त द्वारा जाँच-पड़ताल के बाद स्व-प्ररेणा से या सूचना पाने पर अपराध किये जाने की तारीख से तीन माह के भीतर परिक्षुब्ध पक्ष के अभियोग- पत्र देने पर लगाया जाएगा। 
3. उपायुक्त द्वारा अर्थदण्ड लगाने के किसी आदेश के विरूद्ध अपील आयुक्त के यहाँ होगी तथा अपील पर आयुक्त द्वारा दिया गया आदेश अंतिम होगा।
धारा  68. जमींदार पर नोटिस की तामीली 
> यदि जमींदार पर तामील की जाने वाली कोई भी नोटिस जमींदार की ओर से उसकी तामीली स्वीकार करने के लिए या उसे लेने हेतु जमींदार द्वारा लिखित रूप में प्राधिकृत किसी अभिकर्त्ता को तामील की जाए, तो ऐसा समझा जाएगा कि नोटिस स्वयं जमींदार को तामील की गई है।
धारा  69. कुछ भूमियों के अधिकार के अर्जन पर रोक
> इस विधि या संताल परगना में विधिवत् प्रभाव रखने वाली किसी वस्तु में किसी बात के होते हुए 
भी –
(क) धारा 20 के प्रावधानों में अधिग्रहित भूमि में, अथवा
(ख) सरकार के लिए या किसी स्थानीय प्राधिकार के लिए या रेलवे कम्पनी के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के अधीन अधिग्रहित भूमि में, जब तक कि ऐसी भूमि सरकार की या किसी स्थानीय प्राधिकार की या रेलवे कम्पनी की सम्पत्ति रहती है, अथवा 
(ग) सरकार या स्थानीय प्राधिकार के अधिकार में अभिलिखित या सीमांकित भूमि में, जो किसी सार्वजनिक कार्य हेतु प्रयोग में है, अथवा
(घ) ग्राम-प्रमुख, मूल रैयत और उनके परिवार के सदस्यों या जमींदार के द्वारा धारित परती जोत में, अथवा
(ड.) ग्राम प्रमुख की जोत, चारागाह, जाहेरथान तथा श्मशान और कब्रिस्तान में किसी व्यक्ति को कोई अधिकार प्रोद्भूत (accrue) नहीं होगा।
धारा  70. बकायों की वसूली
1. इस अधिनियम के अधीन सभी परिव्यय, ब्याज, हानि और क्षतिपूर्तियों की वसूली डिक्री के लिए बाकी धन की वसूली के लिए उपबंधित रीति से वसूल किए जाएंगे।
2. इस अधिनियम के तहत लगाए गए सभी जुर्माने और दण्ड की वसूली सार्वजनिक मांग वसूली के लिए उस समय लागू किसी विधि द्वारा उपबंधित रीति से वसूल किए जाएंगे।
धारा  71. नियम बनाने का अधिकार
1. राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के उद्देश्यों को क्रियान्वित करने के लिए नियम बना सकती है।
2. राज्य सरकार विशेष कर और पूर्व के अधिकार की सामान्यता को आघात पहुँचाए बिना ध. रा 5 के अधीन जमाबंदी रैयतों की सहमति निश्चित करने की रीति, ग्राम प्रमुखों द्वारा अपने कर्त्तव्यों के संपादन की रीति, जमाबंदी की प्रतियाँ प्रमाणित करने की रीति, ग्राम प्रमुख का पुरस्कार निर्धारित करने की रीति, रैयती भूमि का हस्तान्तरण प्रतिवेदित करने की रीति, धारा 25 के अधीन निबंधन अधिकारी को देय प्रक्रिया शुल्क (Process-fee) की राशि तथा जमींदार को सूचना तामील करने की रीति, धारा 32 के अधीन नोटिस तामील कराने की रीति, धारा 53 के अधीन भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबंध तथा ऐसी भूमि पर कब्जा देने की रीति, अन्य कार्यवाहियों में न्यायालयों द्वारा अनुसरणीय प्रक्रिया तथा अन्य कोई विषय जो अपेक्षित हो, के संबंध में नियम बना सकती है ।
धारा  72. विशिष्ट विधानों का व्यावृति
> इस अधिनियम की कोई बात संताल परगना में लागू किसी अन्य विधि को, जो द्वारा स्पष्टतः या आवश्यक विवक्षण द्वारा रद्द नहीं की गई है, प्रभावित नहीं करेगी। 
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