झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना

झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना
1. आर्कियनकालीन चट्टानें
> झारखण्ड की चट्टानी संरचनाओं में यह सर्वप्रमुख है जिसका विस्तार झारखण्ड के 90% भू-भाग पर है। 
> प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधनों का भंडार होने के कारण ये आर्थिक दृष्टि से झारखण्ड की सर्वप्रमुख चट्टानें हैं। 
> इन चट्टानों में आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित तीनों प्रकार की चट्टानें मौजूद हैं तथा छोटानागपुर पठार की आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित चट्टानों का संबंध इसी काल की चट्टानों से है । 
> इन चट्टानों का विस्तार झारखण्ड के सिंहभूम, सरायकेला, सिमडेगा तथा दक्षिण पूर्वी झारखण्ड के क्षेत्रों में है।
> इन चट्टानों को आर्कियन क्रम व धारवाड़ क्रम की चट्टानों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
> झारखण्ड आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार राज्य के 85% भूभाग पर आग्नेय व रूपांतरित चट्टानों का विस्तार है। 
> आर्कियन क्रम
> ये गर्म व तरल लावा के जमाव से निर्मित ग्रेनाइट चट्टान हैं, जो जीवाश्म रहित हैं।
> इनमें रूपांतरण के पश्चात ये चट्टानें नीस व सिस्ट में परिवर्तित हो गयी हैं।
> धारवाड़ क्रम
> इन चट्टानों का विकास आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण के परिणामस्वरूप हुआ है।
> इन चट्टानों के बारे में सर्वप्रथम जानकारी कर्नाटक के धारवाड़ जिले में मिली थी जिसके कारण इनका नामकरण धारवाड़ क्रम की चट्टान के रूप में किया गया है।
> ये चट्टानें भी जीवाश्म रहित हैं।
> झारखण्ड में इनका मूल विस्तार कोल्हान क्षेत्र में होने के कारण इसे कोल्हान क्रम की चट्टान भी कहा जाता है। 
> इन चट्टानों में लौह-अयस्क की प्रचुर उपलब्धता के कारण इन्हें 'लौह-अयस्क की श्रृंखला' (Iron-Ore Series) कहा जाता है। 
> झारखण्ड में इन चट्टानों का विस्तार पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां जिले में हुआ है।
> इन चट्टानों में धात्विक खनिजों की उपलब्धता है जिसमें लोहा, तांबा, बॉक्साइट, निकेल, सोना, मैंगनीज, चाँदी आदि प्रमुख हैं।
2. विन्ध्यन क्रम की चट्टानें
> विन्ध्यन क्रम की चट्टानें झारखण्ड के उत्तर-पश्चिमी भाग में सोन नदी क्षेत्र (विशेष रूप से गढ़वा) में पायी जाती हैं। ये चट्टानें मूलतः रोहतास पठार का दक्षिणी हिस्सा है।
> अवसादों के जमाव से निर्मित ये चट्टानें बलुआ पत्थर एवं चुना पत्थर से युक्त क्षैतिज परतदार चट्टानें हैं। 
> पारसनाथ पहाड़ी का उत्थान भी इसी काल में हुआ है।
3. गोंडवाना क्रम की चट्टानें
> इन चट्टानों का निर्माण दामोदर घाटी के तलछट से हुआ है।
> इन चट्टानों में प्रचुर मात्रा में कोयला के भंडार के साथ ही बलुआ पत्थर की परत भी पायी जाती है।
> झारखण्ड के प्रमुख कोयला निक्षेपों का निर्माण इसी चट्टान से हुआ है। 
> आर्थिक दृष्टिकोण से ये चट्टानें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
> इन चट्टानों का विस्तार गिरिडीह, राजमहल की पहाड़ियों तथा उत्तरी कोयल नदी की घाटी क्षेत्रों में है। 
4. सिनोजोइक क्रम
> इस काल में हिमालय के उत्थान के दौरान इसका प्रभाव छोटानागपुर पठारी क्षेत्र पर भी पड़ा। 
> हिमालय के उत्थान व उसके प्रभाव को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसका विवरण निम्नवत है
> पहला उत्थान
> हिमालय के प्रथम उत्थान का संबंध मायोसीन काल से है।
> इस दौरान छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में भूगर्भिक हलचलों के परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र का उत्थान हुआ।
> इस उत्थान के परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र राँची - हजारीबाग पठार से लगभग 1000 फीट ऊपर उठ गया। 
> दूसरा उत्थान
> इस उत्थान का संबंध अंतिम प्लायोसीन काल से है।
> इस दौरान भी छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में भूगर्भिक हलचल हुयी ।
> इस दौरान राँची-हजारीबाग पठार का लगभग 1000 फीट उत्थान हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र लगभग 2000 फीट ऊपर उठ गया।
> तीसरा उत्थान
> इस उत्थान का संबंध प्लीस्टोसीन काल से है।
> इस दौरान भी छोटानागपुर पठारी क्षेत्र मैं भूगर्भिक हलचल हुयी
> इस दौरान राँची - हजारीबाग पठार का लगभग 2000 फीट उत्थान हुआ जिसके परिणामस्वरूप पाट क्षेत्र लगभग 3000-3600 फीट ऊपर उठ गया।
> उपरोक्त तीनों उत्थानों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में विभिन्न नदियों का उद्भव हुआ। कालांतर में इन नदियों के द्वारा किए गए अपरदन के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के धरातलीय स्वरूप की ऊँचाई में कमी आयी।
> इन अपरदनों के पश्चात् इस क्षेत्र की वर्तमान ऊँचाई इस प्रकार है –
» पाट क्षेत्र–900 से 1100 मीटर
» राँची पठारी–600 मीटर से कम
» निम्न छोटानागपुर का पठार–300 मीटर से अधिक
4. राजमहल ट्रैप तथा दक्कन लावा की चट्टानें
> जुरैसिक युग में लावा दक्कन लावा का निर्माण हुआ है। बहाव से राजमहल ट्रैप का निर्माण हुआ है जबकि दरारों में लावा के प्रवाह से
> इन चट्टानों के अपक्षयन के परिणामस्वरूप लैटेराइट एवं बॉक्साइट का निर्माण हुआ है।
> राजमहल ट्रैप का मूल विस्तार झारखण्ड के उत्तरर-पूर्वी भाग में ( साहेबगंज के पूर्वोत्तर भाग व पाकुड़ के पूर्वी भाग में) है। इसके अलावा यह झारखण्ड के पाट क्षेत्र (पलामू, गढ़वा, गुमला तथा लोहरदगा) में भी विस्तारित है।
> इसकी ऊँचाई 900 से 1100 मीटर तक है। 
5. नवीनतम जलोढ़ निक्षेप
> नदियों के अपरदन व जलोढ़ों के निक्षेपण के परिणामस्वरूप इसका निर्माण हुआ है, जो वर्तमान में भी जारी है। 
> झारखण्ड के राजमहल के पूर्वी क्षेत्रों, सोन नदी घाटी तथा स्वर्णरेखा नदी की निचली घाटी के क्षेत्रों में नदियों के जलोंढ़ों के निक्षेपण से इस संरचना का निर्माण हुआ है।
> इनके द्वारा मैदानी क्षेत्र में निक्षेपण के परिणामस्वरूप कई स्थानों पर ग्रेनाइट के उच्च भूभाग का निर्माण हो गया है, जिसे मॉनेडनॉक कहते हैं।
> अन्य तथ्य
> राज्य की अधिकांश चट्टानों का विस्तार पूर्व-पश्चिम दिशा मे है।
> झारखण्ड में धारवाड़ क्रम की चट्टानों का विकास कोल्हान पहाड़ी क्षेत्र में हुआ है। इन चट्टानों को 'लौह अयस्क की श्रृंखला' भी कहा जाता है।
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