स्वातंत्र्योत्तर भारत : ऐतिहासिक उपब्लियां
1. परिचय
2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के द्वारा संचालित आंदोलन ने देश में तत्कालीन न्च सरकार के खिलाफ एक लहर पैदा कर दी थी। इस आंदोलन के बाद कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए जिससे भारतीय जनता पार्टी तथा विरोधी दलों को लाभ मिला। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'आम आदमी पार्टी' जैसे राजनीतिक दलों का पदार्पण अचानक हुआ तथा दिल्ली जैसे राज्य में इस दल को सत्ता प्राप्ति भी अचानक ही हुई।
परन्तु इन सभी घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा हाथ अन्ना आंदोलन का ही रहा। मनमोहन सिंह सरकार में हुए की कोयला घोटाला, 2G घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घपले इत्यादि जैसे तथाकठित भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी सर विश्वसनीयता कम कर दी थी।
इसी बीच 2013 में भारतीय जनता पार्टी जो तत्काल मुख्य विपक्षी दल थी, उन्हें नये नेतृत्व के बारे में सोचने का अवसर मिल गया। आडवाणी 2009 में भाजपा तथा छ। के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी थे तथा उनके नेतृत्व में भाजपा को हार मिली थी। 2013 में भाजपा के थिंक टैंक को यह लगने लगा कि नेतृत्व परिवर्तन अत्यंत ही आवश्यक है।
भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 2013 के मई में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी' को 2014 के मई में होने वाले चुनाव के लिए प्रचार कमिटी का अध्यक्ष बना दिया। इस बात को लेकर छ। के कुछ घटक दल जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री श्रीमान नितीश कुमार की पार्टी जनता दल (यू.) ने छक। छोड़ने की घोषणा कर दी।
सितम्बर 2013 में भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल ने नरेन्द्र मोदी जी को 2014 में होने वाले आम चुनाव के लिए भाजपा तथा छ। का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। संसदीय दल में आडवाणी की सहमति थी या नहीं, इस पर संशय रखा। जब नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तब भाजपा तथा सहयोगी दलों की प्रचार रणनीति में एक नये उत्साह का संचार हुआ।
नरेंद्र मोदी लगातार 13 वर्षों से गुजरात के मुख्यमंत्री थे तथा 'गुजरात मॉडल' वाले विकास के लिए देश में काफी लोकप्रिय भी थे। भाजपा को यह लगा कि एक युवा नेतृत्व तथा गुजरात के विकास की लोकप्रियता उसे सत्ता के नज. दीक ले जा सकती है।
वैसे भाजपा को नरेन्द्र मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कुछ हानि भी उठानी पड़ी तथा कुछ मात्रा में अंदेशा भी रहा, जैसे-
1. सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी जद (यू.) का अलग हो जाना।
2. विरोधी दलों के द्वारा अल्पसंख्यकों को भाजपा के विरोध के लिए ध्रुवीकरण की कोशिश।
3. आडवाणी जैसे वरिष्ठतम नेताओं की मनःस्थिति पर कोई विचार नहीं प्रकट करना, जैसे मुद्दे भी आ सकते थे।
परंतु 2013 के सितम्बर से ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र दामोदर मोदी ने अपना प्रचार आरंभ कर दिया था। सितम्बर 2013 में रेवाड़ी हरियाणा में उन्होंने अपने भाषण में युवाओं, जवानों तथा महिलाओं का मुद्दा उठाया। इस विषय में मोदी की लोकप्रियता काफी बढ़ गई तथा 2014 का आम चुनाव मनमोहन सिंह सरकार के विरोध से शिफ्ट होकर 'मोदी लहर' में तब्दील हो गया।
नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने अचानक ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बना दिया था। मोदी 2002 गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए थे जब गुजरात भाजपा में केशुभाई पटेल तथा शंकर सिंह वाघेला जैसे वरिष्ठ नेताओं के बीच काफी मनमुटाव चल रहा था। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उस दशा में मोदी को मुख्यमंत्री बनाकर वहाँ भेजा था। मोदी गुजरात के एक ऐसे मुख्यमंत्री साबित हुए जिसमें कुछ नया करने की इच्छा थी । विभिन्न लेखकों के द्वारा गुजरात के विकास में मोदी के मुख्यमंत्रित्व काव्य को 'गुजरात मॉडल' का नाम दिया है।
गुजरात मॉडल को विभिन्न बिन्दुओं से इस तरह निरूपित किया जा सकता है -
1. उच्च आर्थिक विकास |
2. न्यूनतम शासन अधिकतम सेवा।
3. कार्यक्रमों को कम्प्यूटरिकृत करना।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सेवाओं को बढ़ाना।
5. शहरी क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास करना ।
6. समावेशी विकास तथा सतत् विकास की अवधारणा ।
7. स्वास्थ्य सेवाओं तथा शिक्षा पर प्रत्यक्ष कार्यक्रमों को मिशन मोड में लेकर पूरे करना ।
8. कानून-व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करना।
उपरोक्त मॉडल ने भारत में गुजरात की लोकप्रियता बढ़ा दी। इसके अलावा यह कहना उचित होगा कि नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार रहित 13 वर्षों के शासन ने इस व्यवस्था को और भी चर्चित बना दिया। 2014 का आम चुनाव जल्दी ही ‘मोदी केन्द्रित' हो गया तथा हमें इस महत्वपूर्ण चीज को नहीं भूलना चाहिए कि इसके पीछे मनमोहन सिंह सरकार के 10 साल के शासन में उपजे तथाकथित घोटालों का आरोप तथा मोदी का गुजरात मॉडल दोनों का योगदान था।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोदी के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए कहा था कि “भाजपा आज अपने वरिष्ठ नेताओं के सम्मान के साथ ही नयी पीढ़ी को नेतृत्व प्रदान करने जा रही है "
2. 2014 का आम चुनाव और भाजपा की जीत
मार्च से मई 2014 के बीच चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न होने की अवस्था में पहली बार 2014 में सोशल मीडिया का प्रयोग किया गया था। भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली तथा मोदी के नेतृत्व में एक नयापन देखने को मिला। मोदी की जीत हुई तथा भाजपा को पहली बार बहुमत मिला तथा 2014 का 16वीं लोकसभा का चुनाव सही मायनों में कांग्रेस के लिए दुःस्वपन साबित हुआ।
कांग्रेस को इतिहास में सबसे कम सीट मिली तथा सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गयी। इस हार ने कांग्रेस के लिए एक प्रकार से आत्मनिरीक्षण के लिए द्वार खोल दिया।
आम चुनाव 2014 में विभिन्न पार्टियों को आने वाली सीटें
भाजपा - 282
एन.डी.ए. सहित - 326
कांग्रेस - 44
यू.पी.ए. - 58
तृणमूल कांग्रेस - 32
अन्ना डी. एम. के. - 37
विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार भाजपा की सरकार की स्थापना संभव हुई तथा 26 मई 2014 को मोदी सरकार विशेष रूप में उन उम्मीदों के लिए थी जो भ्रष्टाचार के विरोध में थी। नरेन्द्र मोदी को एक मजबूत कैबिनेट बनाने का अवसर मिला जिसमें सुषमा स्वराज, अरुण जेटली तथा राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेता शामिल थे।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने उन वादों को प्राथमिकता देने की कोशिश की जो प्रचार में कहा गया था जैसे-
1. काला धन वापस लाने की स्थिति का निर्माण।
2. विभिन्न आर्थिक सुधारों को तरजीह देने की प्राथमिकता ।
3. हरेक साल 2 करोड़ रोजगार के अवसर मुहैया कराने की बात।
बृहत् तौर पर देखा जाए तो भाजपा ने एक आक्रामक प्रचार चलाया था तथा कांग्रेस नीत यू.पी.ए. की सरकार की भ्रष्टाचार से जुड़े हुए आरोपों के मामले पर उस सत्ता के प्रतिनिधियों को रक्षात्मक कर दिया था।
भाजपा को जीतने में भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना हजारे के द्वारा आयोजित किए गए जनलोकपाल आंदोलन ने भी काफी मदद की। यह आंदोलन दिल्ली में ही रामलीला मैदान में आयोजित किया गया था तथा प्रवृत्ति भी सरकार को उखाड़ फेंकने जैसा था। 26 मई 2014 के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो हमेशा इतिहास में अपनी नवीकरणीय तथा कठोर सुधार की कोशिश के तौर पर जाने जाएंगे। वैसे सत्ता प्राप्ति के बाद मोदी सरकार के कुछ ही दिनों बाद मॉब लिंचिंग तथा गौ-रक्षकों द्वारा की गई छिटपुट हिंसा ने मीडिया का ध्यान खींचा था। फिर भी प्रधानमंत्री की तरफ से बार-बार यह कहा गया कि गौर - रक्षकों की यह करतूत हो ही नहीं सकती। यह गुंडों की करतूत हो सकती है।
मोदी सरकार के द्वारा लिए गए कुछ नीतिगत तथा सामाजिक आर्थिक फैसलों ने इसे यानी गठबंधन को कभी-कभी असहज भी किया पर चुनावी परिणाम पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा।
2014 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव के बाद परिणाम में अरविन्द केजरीवाल की पार्टी 'आम आदमी पार्टी' की जीत ने जरूर भाजपा को असहज किया। 2015 के नवम्बर में नितीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार को बहुमत मिलना भाजपा तथा एन.डी.ए. के लिए एक सबक बना। वैसे 2017 में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर नितीश कुमार की पार्टी जद-यू. भाजपानीत गठबंधन में आ गयी।
भाजपा सरकार ने जो नया किया उसमें प्रमुख थे-
1. योजना आयोग के बदले नीति आयोग की स्थापना करना।
2. बैंकिंग खाता आम आदमी को सुलभ कराने के लिए 'प्रधानमंत्री जनधन योजना' मुहैया कराया।
3. 8 नवम्बर 2016 में बजट के इतर जाकर अचानक नोटबंदी करना। यानी बाजार में 500 और 1000 के नोटों को अवैध घोषित करना।
4. जी.एस.टी. को संसद से पास किया।
जी.एस.टी. तथा नोटबंदी ऐसे फैसले थे जो काफी जिम्मेदारी से लिए गए थे परंतु जनता में इसका विचार कैसे जाएगा, यह भ्रम में था परंतु नोटबंदी के बाद यू.पी. में विधानसभा चुनाव तथा जी.एस.टी. में गुजरात का चुनाव भाजपा के द्वारा जीत जाना एक स्वीकारोक्ति ही माना गया।
नोटबंदी यानी विमुद्रीकरण करने के पीछे विभिन्न कारणों का उल्लेख करते हुए सरकार ने कुछ उद्देश्यों को समाहित किया, जैसे-
1. बाजार में 500 और 1000 के रूप में फैले काले धन पर रोक लगाना ।
2. भारतीय अर्थव्यवस्था में रुपयों के बटाव को सक्रिय करना जिसमें पूँजीगत व्यवसाय में मदद मिल सके।
3. रुपयों की अधिकतम जमा पूंजी को बैंकिंग व्यवस्था में समाहित करने की स्थिति बनाना।
4. बाजार में मुद्राओं की जमाखोरी तथा मुद्राओं की परिवर्तनीयता को संतुलित करना ।
इस फैसले के महत्वपूर्ण उद्देश्य में सबसे अधिक आवश्यक था काले धन को कम करने की प्रवृत्ति ऐसा महसूस हुआ कि विमुद्रीकरण से काले धन पर अंकुश लगेगा। लगभग 2 साल बाद 2018 के अक्टूबर में यह रिपोर्ट बनी कि लगभग 98% मुद्रा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास वापस आ गई है।
विमुद्रीकरण की सफलता-असफलता की चर्चा करना एक अलग विषय हो सकता है लेकिन यह कहना अपेक्षित होगा कि बैंकिंग व्यवस्था की घोर लापरवाही ने तथा कारगुजारियों ने विमुद्रीकरण की पद्धति तथा फैसलों को विवादित तथा औसत सफलता लाने वाला ही बनाया। फिर भी विमुद्रीकरण के कारण कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियों को रेखांकित किया जा सकता है, जैसे
1. कई प्रकार की गलत तथा गैर-कानूनी कम्पनियों का पता चला। इसकी संख्या लाखों में थी तथा उस पर ताले लगे।
2. नकली नोटों का कारोबार बंद होने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई तथा नकली नोट तत्काल रूप में बाजार से बाहर हो गए।
3. यह नकली नोट का धंधा अंतर्राष्ट्रीय स्तर का था।
4. आयकर दाताओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई तथा भारत सरकार की रिपोर्ट में इसमें लगभग 120% की वृद्धि को देखा गया।
उपरोक्त विमुद्रीकरण के फैसले ने सरकार की इच्छा शक्ति को दर्शाया तथा कठोर आर्थिक सुधार करने की उप स्थिति भी दर्ज की।
नोटबंदी का नकारात्मक प्रभाव रोजगार पर विशेष रूप से पड़ा तथा कई हजार नौकरियों को त्याग दिया गया तथा समाप्त कर दिया गया। इसके अलावा आपसी तालमेल से बच निकलने की भी प्रवृत्ति देखी गयी। नोटबंदी के बाद जो मोदी सरकार ने फैसले लिए, उसमें 'जी.एस.टी.' की चर्चा करना अत्यंत आवश्यक है। 'जी.एस.टी. का' 'वस्तु एवं सेवा कर' के रूप में पूर्ण नाम दिया जाता है।
जी.एस.टी. भारत की स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा 'कर सुधार' है। यह विभिन्न अप्रत्यक्ष करों के बदले एक कर है जो जनता को विभिन्न अप्रत्यक्ष करों से छुटकारा देता है। जी.एस.टी. सही रूप में वस्तु एवं सेवा कर को समान रूप में ही मानती है तथा एक ही बार इन दोनों प्रकार के करों को तय कर जटिलता को समाप्त करती है। मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 को जी.एस.टी. की व्यवस्था शुरू की तथा इसे प्रधानमंत्री ने 'अच्छा तथा साधारण कर' बताया। इस जी.एस.टी. में लगभग सभी वस्तुओं तथा लगभग 90% सेवाओं को लाया गया है। कुछ वस्तुएं तथा सेवाओं को तत्काल रूप में इससे बाहर रखा गया है।
सरकार के द्वारा जी.एस.टी. के 4 स्लैब रखे गए हैं तथा इन्हीं चार स्लैबों में विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं को समाहित किया गया है। ये 4 स्लैब 5%, 12%, 18% तथा 28% के स्तर पर है। जी.एस.टी. के कुछ तात्कालिक रूप से नकारात्मक प्रभाव भी पड़े हैं, जिसमें आर्थिक रूप से जी. डी. पी. में कमी तथा व्यापार तथा रोजगार पर खराब प्रभाव पड़ता दिखायी दिया है। किंतु ऐसी नकारात्मकताएं तात्कालिक मानी गयी हैं तथा भविष्य में तस्वीर सकारात्मक होगी। ऐसा माना गया है।
इन सब बातों से इतर जो मोदी सरकार की सबसे सफलतम नीति मानी गई है, उसमें 'विदेश नीति' का योगदान सबसे अहम है। मोदी जी ने सुषमा स्वराज जैसी प्रखर तथा अनुभवी नेत्री को विदेश मंत्री बनाने की इच्छा प्रेषित की थी, वह काफी सफल हुई।
विदेश मंत्री के तौर पर सुषमा स्वराज ने मोदी को ऐसे अनेक उदाहरण तथा सलाह दी जिसमें भारत का पक्ष विश्व स्तर पर इन 5 सालों में सबसे अधिक मजबूत हुआ।
3. मोदी सरकार की विदेश नीति के कुछ लक्षण
1. मोदी ने सत्ता संभालते ही यह कह दिया था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत आंख मिलाकर बात करेगा।
2. विश्व के नेताओं को भारत को सीमा पारीय समस्याओं को समझने में सफलता हाथ लगी तथा विश्व स्तर पर पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने को कहा जाने लगा।
3. मोदी ने अपनी अनगिनत अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं से विश्व के हरेक महादेशों के विभिन्न नेताओं से व्यक्तिगत संबंध बनाए।
4. सुषमा स्वराज की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की आवाज को मजबूती से कहने के कारण भारत की कश्मीर नीति की स्वीकार्यता बढ़ी।
5. फ्रांस जैसे देशों की मदद से अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने में मोदी सरकार सफल हुई।
6. पर्यावरणीय मुद्दों पर विकसित देशों की मनमानी के खिलाफ विकासशील देशों का नेतृत्व करने के लिए भारत को जगह मिली।
7. अफगानिस्तान की समस्याओं को सुलझाने की स्थिति में भारत को वार्ता का भागीदार बनाया गया।
8. संघाई सहयोग संगठन, एम.टी.सी. आर. जैसे संगठनों में भारत की सदस्य के तौर पर नियुक्ति की गई।
9. रूस तथा चीन जैसे देशों के साथ अनौपचारिक वार्ता करने की प्रवृत्ति आयी।
10. अरब देशों के साथ बहुत संबंध कायम हुए तथा यमन युद्ध के समय भारतीय नागरिकों तथा विश्व के और भी देशों के नागरिकों को निकालने में भारत सफल हुआ।
11. अपनी विदेश नीति के बल पर ही भारत पाकिस्तान को लगभग अलग-थलग करने की कोशिश करने में सफल हो रहा है।
उपरोक्त तथ्यों से यह परिलक्षित है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने विदेश नीति को भारतीयता के साथ भव्यता भी प्रदान की है। अब भारत महत्वपूर्ण रूप से अरब और इजरायल दोनों प्रकार के धुर विरोधी देशों का सच्चा मित्र है। मोदी सरकार की विदेश नीति के अलावा आतंक विरोधी नीतियों ने भी काफी प्रभावित किया है। आंतरिक सुरक्षा के मामले में नक्सली प्रभावित जिलों की संख्या तथा सही रूप में पूर्वोत्तर में अशांति की स्थिति को शून्य करने की इच्छाशक्ति जागृत हुई है।
यह सही रूप में कहा जा सकता है कि आंतरिक सुरक्षा के मामले में मोदी सरकार ने कुछ अलग प्रकार के अच्छे विकल्पों को तरजीह दी है। आतंक के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई तथा सीमा पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए सेना को छूट प्रदान करने का निर्णय भी मोदी सरकार की विशेष उपलब्धियों में गिनी जाएंगी।
इसके अलावा जो सबसे अधिक चर्चा में रही वह फरवरी 2019 में कश्मीर घाटी के पुलवामा एक फिदायीन हमले में 40 जवानों की शहीदी के बाद सरकार के द्वारा लिए गए बहुत ही साहस भरे तथा आक्रामक फैसले ने विश्व को चकित कर दिया।
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में एक आत्मघाती हमलावर ने सी. आर. पी. एफ. कैम्प गाड़ी पर हमला कर 40 जवानों को शहीद कर दिया था। सरकार पर इसका बदला लेने का भारी दबाव था। अब सरकार ने सेना को खुली छूट देने की बात कही तथा 27 फरवरी और 28 फरवरी के बीच 3 बजे रात्रि में पाकिस्तान के बालाकोट पर वायु सेना (भारतीय) ने मिराज बम वर्षक विमानों से हमला कर 'जैश-ए-मुहम्मद' नामक आतंकवादी संगठन के मुख्य प्रशिक्षण कैम्पस को तबाह कर दिया।
मोदी सरकार की इस आक्रामकता ने विश्व की नजर में भारत को एक नया स्थान दिलाया। इसके अलावा यह भी परिलक्षित हुआ कि भारत अब आतंकी हमले पर रक्षात्मक रुख अख्तियार कभी नहीं करेगा। मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने विश्व में छठा स्थान हासिल किया। यह भी सही कि मोदी सरकार ने कई सामाजिक-आर्थिक योजनाओं को मिशन का रूप प्रदान किया।
इन सामाजिक-आर्थिक योजनाओं को हम निम्न तौर पर उल्लेखित कर सकते हैं
1. गरीबों को मुफ्त बिजली की कनेक्शन सुविधा
2. मुफ्त स्पच्ण्ळप की कनेक्शन सुविधा प्रदान करना तथा इसे 'उज्जवला' का नाम देना। ।
3. अटल पेंशन योजना
4. प्रधानमंत्री फसल बीमा जना।
5. प्रधानमंत्री जन-धन योजना।
6. आयुष्मान कार्यक्रम
7. डिजिटल इंडिया
8. मेक इन इंडिया
9. स्वच्छ भारत अभियान के तहत हरेक घर में शौचालय।
10. प्रधानमंत्री आवास योजना
विशेष तौर पर देखा जाए तो इन्हीं कार्यक्रमों तथा विदेशी स्तर पर आक्रामक तेवर ने मोदी सरकार को हाल के आम चुनाव में महत्वपूर्ण सफलता प्रदान कराई है।
2019 की 17वीं लोकसभा में भाजपा का 300 सीटें प्राप्त करना तथा एन.डी.ए. को 354 सीटें मिलना, एक महान उपलब्धि ही कही जाएगी।
मोदी की नयी तथा दूसरे कार्यकाल की सरकार को विभिन्न चुनौतियों से भी पार पाना होगा, जैसे-
1. आर्थिक वृद्धि दर को उत्तरोत्तर तरीके से बढ़ाना।
2. रोजगार के साधन उपलब्ध कराना।
3. नगरीय परियोजनाओं को पूर्ण करना।
4. किसानों की आय को दोगुना करने की प्रवृत्ति को वास्तविकता प्रदान करना ।
5. किसानों को ऋण ग्रस्तता से मुक्त करना इत्यादि ।
6. इसके अलावा कश्मीर समस्या का हल करना।
उपरोक्त समस्याओं को एक चुनौती मानकर हल करने की इच्छाशक्ति दिखानी होगी। मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में कश्मीर में पंचायत चुनाव की सफलता ने एक अच्छा संदेश दिया था। परंतु अभी भी धारा 370 तथा 35 शश् जैसे मुद्दों पर विश्वास बहाल करने की प्रखर आवश्यकता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर समस्या की जटिलता तथा भारत की सामाजिक जटिलता को ऐसे ही आसानी से पार नहीं किया जाएगा क्योंकि किसी सरकार की भी अपनी सीमा होती है। परंतु यह भी सही है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति से कुछ भी संभव है।
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