समाचार - पत्रों का इतिहास

समाचार - पत्रों का इतिहास

समाचार - पत्रों का इतिहास

> भारत में आरम्भिक समाचार पत्रों के इतिहास पर प्रकाश डालिए.
भारत में समाचार-पत्रों का प्रकाशन यूरोपीय कम्पनियों के आगमन के बाद ही प्रारम्भ हुआ. पुर्तगाली लोगों ने गोवा में सर्वप्रथम मुद्रणालय (Printing Press) की स्थापना 1557 ई. में की. इसके बाद अंग्रेजों ने 1684 ई. में बम्बई में प्रेस की स्थापना की, लेकिन इसके बाद भी 100 वर्षों तक प्रेस द्वारा कोई समाचार पत्र नहीं निकाला जा सका.
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के असन्तुष्ट बोल्ट्जमैन और उसके साथियों ने कम्पनी के दुष्कृत्यों का पर्दाफाश करने के लिए एक समाचार पत्र निकालने का प्रयास किया, परन्तु उन्हें असफलता ही हाथ लगी.
बोल्ट्जमैन के बाद ऑगस्ट हिक्की ने 1780 ई. में देश का प्रथम अखबार 'बंगाल गजट' या द कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर (The Calcutta General Advertiser ) निकाला. इसने अपने इस अखबार में गवर्नर जनरल, कम्पनी के अधिकारियों एवं न्यायाधीशों की कटु आलोचना की. इसके चलते इनका प्रेस जब्त कर लिया गया.
हिक्की के बाद 1784 ई. में 'कलकत्ता गजट' के नाम से, 1785 ई. में ‘बंगाल जनरल' तथा इसी वर्ष 'दी ओरिएण्टल मैग्जीन ऑफ कलकत्ता' का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया.
प्रारम्भिक वर्षों में इन समाचार पत्रों का प्रचलन कभी भी दो सौ प्रतियों से अधिक नहीं रहा तथा इनका उद्देश्य केवल एंग्लो-इण्डियन लोगों का मनोरंजन करना मात्र रह गया. क्योंकि उस समय यह अपनी शैशव अवस्था में थे. अखबार उन्हें जनमत को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर सकते थे. केवल इस बात का डर था कि अंग्रेजों के बड़े अधिकारी नाराज होकर उनकी प्रेस को जब्त न कर दें.
जबकि कम्पनी के अधिकारी इस बात से भयभीत रहते थे कि ये अखबार कहीं लन्दन न पहुँच जाएँ और उनके दुष्कर्मों का भण्डाफोड़ न कर दें.
इस समय समाचार पत्रों के विषय में कानून नहीं बने थे तथा ये अखबार कम्पनी की दया पर ही निर्भर थे. इस कारण ये प्रारम्भिक अखबार स्वस्थ जनमत का विकास नहीं कर सके, परन्तु फिर भी इन अखबारों ने भविष्य के लिए भूमिका की तैयारी कर दी थी.
> भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में प्रेस की भूमिका का उल्लेख कीजिए.
राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में भारतीय समाचार पत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था. प्रारम्भ में यूरोपीय लोगों ने ही प्रेस की स्थापना की थी, परन्तु धीरे-धीरे भारतीयों द्वारा भी भारतीय भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित किए जाने लगे. ये सभी भारतीय अखबार पाश्चात्य नमूने पर ही विकसित हुए थे. उन्नीसवीं सदी के अन्त में भारतीयों द्वारा अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में अनेक समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे.
भारतीय समाचार पत्रों ने जनमत एवं राष्ट्रीयता के प्रसार में मुख्य भूमिका का निर्वहन किया. अमृत बाजार पत्रिका, इण्डियन मिरर, बंगाली आदि अखबारों ने अंग्रेजों के कृत्यों का भण्डाफोड़ किया.
केसरी व मराठा जैसे अखबारों ने महाराष्ट्र में चेतना की नई लहर पैदा की. इनके सम्पादक बाल गंगाधर तिलक ने अपने राष्ट्रीयता के विचारों का प्रसार इनके माध्यम से किया, जिससे पूरे महाराष्ट्र में एक नवीन जागृति आ गई.
इन अखबारों ने सामाजिक कुरीतियों एवं अन्धविश्वासों का भी भण्डाफोड़ किया. अनेक प्रतिबन्धों के बावजूद भी कई अखबार गुप्त रूप से निकले तथा उन्होंने देश के नवयुवकों में क्रान्तिकारी विचारों का प्रसार किया. 'गदर' ऐसा ही एक अखबार था.
भारतीय अखबारों ने प्रतिनिधि सरकार, स्वतन्त्रता तथा प्रजातन्त्रीय संस्थाओं को जनता में लोकप्रिय बनाया. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारतीय समाचार पत्र भारतीय राष्ट्रवाद का दर्पण बन गए तथा जनता को शिक्षित करने का माध्यम बन गए.
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