स्वातंत्र्योत्तर भारत : औपनिवेशिक विरासत

स्वातंत्र्योत्तर भारत : औपनिवेशिक विरासत
1. परिचय
2. आखिर ब्रिटिश शासन से भारत में क्या बदलाव हुए ?
यह सत्य है कि अंग्रेजी शासन से भारतीय बुनियादी संरचना में सकारात्मक परिवर्तन हुए, परन्तु यह परिवर्तन मानवीय तथा कल्याणकारी न होकर व्यापारिक ही थे । ब्रिटिश शासन से भारतीय तंत्र पूरी तरह बदल गया । अंग्रेजों ने भारतीय तंत्र में जो भी परिवर्तन किए उसने कहीं-न-कहीं पिछड़ेपन को ही जन्म दिया। ये पिछड़ापन बहुआयामी था। प्रत्येक क्षेत्र इससे प्रभावित हुआ। कृषि, उद्योग, वित्त, नागरिक, शिक्षा, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र इत्यादि क्षेत्रों में ब्रिटिश सरकार के द्वारा असंख्य क्षति पहुँचाई गई। विभिन्न क्षेत्रों में जो क्षति पहुंचाई गई उसका भयंकर परिणाम मिला और वह था एक गुलाम अर्थव्यवस्था तथा अकाल से उत्पन्न गरीबी की मार ।
3. भारतीय कृषि पर उपनिवेश का प्रभाव
- 20वीं सदी के आरम्भ में जो कृषि उत्पादन की व्यवस्था थी वह 1940 के दशक में आते-आते 14 प्रतिशत की गिरावट के साथ उत्पादित होने लगी। इसमें प्रति व्यक्ति की स्थिति तो और भी खराब हो गई। जहां 1901 में प्रतिव्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन अधिशेष में था वह 1940 के बाद 24 प्रतिशत की कमी के रूप में दर्ज होने लगा।
- कृषि क्षेत्रों में सामंतीकरण और उपसामंतीकरण की अवधारणा उत्पन्न होने लगी। इसमें बटाईदारी तथा अधीनस्थ काश्तकारी प्रथा को बल मिला । स्वतंत्रता के पहले दशक में लगभग 70 प्रतिशत भूमि पर जमीदारों का कब्जा हो चुका था।
- महाजन पद्धति की पहचान औपनिवेशिक शासन के लिए एक पर्याय बन गया। औपनिवेशन महाजन गठजोड़ से कृषि उत्पादन का लगभग 50% चट कर जाता था।
- औपनिवेशिक शासन की संकल्पना कृषि विकास के लिए शून्य थी। यह शासन सिर्फ लगान वसूलने में दिलचस्पी रखता था। कृषि के उत्पादन के लिए अंग्रेजी सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया।
- भूमिहीन खेतिहिर मजदूरों की संख्या अत्याधिक हो गई तथा जहां 1875 ई० में कृषक आबादी का सिर्फ 15 प्रतिशत भूमिहीन मजदूर थे, वहीं 1951 में यह लगभग 28% हो गया।
- कृषिगत भूमि के छोटे होने से कृषि हानि का व्यापार हो गया। अधीनस्थ काशतकारी ने इसे काफी आगे बढ़ाया।
- कृषि में व्यावसाधिक उत्पादन का आरम्भ तो हुआ तथा भारत की खेती विश्व के बाजारों से जुड़ गई परन्तु पूंजीवादी खेती के साथ तकनीकी विकास नहीं हो पाया तथा योग्य भूमि को व्यापारिक फसलों के लिए प्रयोग किया जाने लगा।
- कृषि के लिए ब्रिटिश सरकार ने कोई दीर्घकालिक नीति का निर्माण नहीं किया तथा प्रशिक्षण की मात्रा नगण्य ही रही। जिससे खेती का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया। जो भी कृषिगत औजार थे वह सदियों से बदले नहीं गए थे। स्वतंत्रता के पहले अधिकतर मुगलकालीन हल ही प्रयोग में आता था।
- कृषि को आपदा से बचाने के लिए कोई प्रखर योजना नहीं थी तथा कृषि अनुसांधन के लिए कोई संस्था भी नहीं थी। सही तौर पर देखें तो 1946 तक देश में सिर्फ 9 कृषि महाविद्यालय थे।
4. उपनिवेशवाद का भारतीय उद्योग पर प्रभाव
- भारतीय उद्योग अपनी परम्परागत तथा अंतर्संबंधीय तंत्र के कारण काफी तेजी से विकसित हुआ था। आरम्भ से ही यूरोप तथा मध्य एशिया से भारतीय माल की मांग सर्वाधिक रहती थी। परन्तु अंग्रेजों ने मुक्त व्यापार की नीति लागू कर भारतीय औद्योगिक तंत्र की कमर तोड़ दी।
- ब्रिटेन से सस्ते औद्योगिक वस्तुओं के आयात होने से दस्तकारी तथा शिल्प उद्योग चौपट हो गया तथा कृषि पर इसका विपरीत बोझ पड़ गया।
- औद्योगिक विकास पूरी तरह से ठप्प पड़ गया था तथा जो भी विकास हो रहा था वह चाय, कपास, तथा जूट उद्योग तक ही सीमित था। इससे धीरे-धीरे जनसंख्यात्मक बोझ बढ़ गया था। स्वतंत्रता के तुरंत बाद आधुनिक उद्योगों से प्राप्त कुल राष्ट्रीय आय का मात्र 7.5% था।
- भारतीय उद्योग को ब्रिटिश सरकार ने पूरी तरह परजीवी बना दिया था। 1950 ई० में भारत ने अपनी आवश्यकता की 90 प्रतिशत मशीनों का आयात किया था।
- उद्योगों की पतनशील स्थिति का पता इसी से लगया जा सकता है। कि जब 1901 में मात्र 63.7% लोग खेती पर आश्रित थे वहीं 1941 ई० तक आते-आते यह संख्या 70 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। दूसरी तरफ विभिन्न उद्योगों जैसे:- निर्माण उद्योग में जहां 1902 ई० में 1 करोड़ 40 लाख लोग कार्यरत थे वहीं 1951 में सिर्फ 88 लाख लोग हैं कार्यरत थे।
- 1940 ई० तक भारतीय औद्योगिक तंत्र में विदेशी पूंजी का वर्चस्व हो गया था। विदेशियों ने भारतीय उद्योग की विभिन्न शाखाओं पर कब्जा कर रखा था। अधिकतर कंपनियां जैसे:- बैंकिंग, बीमा, चाय, कोयला, कॉफी यहां तक कि जहाजरानी जैसे उद्योग ब्रिटिश नियंत्रण में आ गए थे।
- भारतीय औद्योगिक तंत्र के गलत नेतृत्व का खामियाजा असमान क्षेत्रीय विकास के रूप में देखने को मिला। देश के कम ही क्षेत्रों में अधिक मात्रा में उद्योग लगे हुए थे। इससे क्षेत्रीय स्तर पर आय की असमानता फैली तथा एकता पर बुरा प्रभाव पड़ा।
5. उपनिवेशवाद का बुनियादी संरचना पर प्रभाव
6. उपनिवेशवाद का शिक्षा पर प्रभाव
7. उपनिवेशवाद तथा भारतीय लोकनीति
8. उपनिवेशवाद तथा भारतीय जनता के स्वास्थ्य की समस्याएं
9. औपनिवेशिक शासन तथा नागरिक अधिकार
10. निष्कर्ष
- गरीबी तथा अकाल
- पिछड़ापन (आर्थिक) तथा दरिद्रता
- भारतीय औद्योगिक तंत्र बर्बाद हो गया।
- कृषि पर बोझ के बढ़ने से आय की दर कम हो गई।
- धन का निष्कासन बृहत् मात्रा में हुआ।
- भारतीय कर ढांचा का विनाश हो गया।
- जनता का जीवन स्तर निम्नतम हो गया।
- भारतीय प्रशासनिक तंत्र ब्रिटिश प्रभाव में चला गया।
- भारतीय भाषा का विकास अवरुद्ध हो गया।
- असमान क्षेत्रीय विकास के होने से अर्थव्यवस्था का विकास ठीक से नहीं हो पाया।
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