संविधान का संशोधन

संविधान का संशोधन
संशोधन प्रक्रिय
- संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुनः स्थापित करके ही किया जा सकेगा और राज्य विधानमण्डल में नहीं।
- विधेयक को किसी मंत्री या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुनः स्थापित किया जा सकता है और इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है।
- विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित कराना अनिवार्य है। यह बहुमत सदन की कुल सदस्य संख्या के आधार पर सदन में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत या मतदान द्वारा होना चाहिए।
- प्रत्येक सदन में विधेयक को अलग-अलग पारित कराना अनिवार्य है। दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक को पारित कराने का प्रावधान नहीं है।
- यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे आधे राज्यों के विधानमंडलों से भी सामान्य बहुमत से पारित होना चाहिए। यह बहुमत सदन में उपस्थित सदस्यों के बीच मतदान के तहत हो ।
- संसद के दोनों सदनों से पारित होने एवं राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के बाद जहां आवश्यक हो, फिर राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है ।
- राष्ट्रपति विधेयक को सहमति देंगे। वे न तो विधेयक को अपने पास रख सकते हैं और न ही संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं ।
- राष्ट्रपति की सहमति के बाद विधेयक एक अधिनियम बन जाता है (संविधान संशोधन अधिनियम) और संविधान में अधिनियम की तरह इसका समावेश कर लिया जाएगा।
संशोधनों के प्रकार
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन।
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन।
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के उपरांत संशोधन।
- नए राज्यों का प्रवेश या गठन।
- नए राज्यों का निर्माण और उसके क्षेत्र, सीमाओं या संबंधित राज्यों के नामों का परिवर्तन।
- राज्य विधानपरिषद का निर्माण या उसकी समाप्ति।
- दूसरी अनुसूची - राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष, न्यायाधीशों आदि के लिए परिलब्धियां, भत्ते, विशेषाधिकार आदि।
- संसद में गणपूर्ति ।
- संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते ।
- संसद में प्रक्रिया नियम।
- संसद, इसके सदस्यों और इसकी समितियों को विशेषाधिकार ।
- संसद में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग।
- उच्चतम न्यायालयों में अवर न्यायाधीशों की संख्या ।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायक्षेत्र को ज्यादा महत्व प्रदान करना ।
- राजभाषा का प्रयोग।
- नागरिकता की प्राप्ति एवं समाप्ति।
- संसद एवं राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचन
- निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण ।
- केंद्रशासित प्रदेश
- पांचवीं अनुसूची- अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन।
- छठी अनुसूची-जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन ।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं इसकी प्रक्रिया।
- केंद्र एवं राज्य कार्यकारिणी की शक्तियों का विस्तार |
- उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय ।
- केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन ।
- वस्तु और सेवा कर परिषद
- सातवीं अनुसूची से संबद्ध कोई विषय ।
- संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व |
- संविधान का संसोधन करने की संसद की शक्ति और इसके लिए प्रक्रिया (अनुच्छेद 368 स्वयं ) ।
संशोधन प्रक्रिया की आलोचना
- संविधान संशोधन के लिए किसी विशेष निकाय, जैसे-सांविधानिक सभा (अमेरिका) या सांविधानिक परिषद, हेतु कोई उपबंध नहीं है। संसद को संविधायी शक्ति व्यापक रूप से प्राप्त है, कुछ मामलों में राज्य विधानमंडलों को ।
- संविधान संशोधन की शक्ति संसद में निहित है। इस तरह अमेरिका के विपरीत राज्य विधानमंडल राज्य विधानपरिषद के निर्माण या समाप्ति के प्रस्ताव के अतिरिक्त कोई विधेयक या संविधान संशोधन का प्रस्ताव नहीं ला सकता। यहां भी संसद इसे या तो पारित कर सकती है या नहीं या इस पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकती।
- संविधान के बड़े भाग को अकेले संसद ही विशेष बहुमत या साधारण बहुमत द्वारा संशोधित कर सकती है। सिर्फ कुछ मामलों में राज्य विधानमंडल की संस्तुति भी आवश्यक होती है, वह भी उनमें से आधे की, जबकि अमेरिका में यह तीन-चौथाई राज्यों के द्वारा अनुमोदित होना आवश्यक है।
- संविधान ने राज्य विधानमंडलों द्वारा संशोधन संबंधी मंजूरी या उसके विरोध को प्रस्तुत करने की समय सीमा निर्धारित नहीं की है। वह इस मुद्दे पर मौन है कि अपनी संस्तुति के बाद क्या राज्य इसे वापस ले सकता है।
- किसी संविधान संशोधन अधिनियम के संदर्भ में गतिरोध हो तो संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है, दूसरी तरफ एक साधारण विधेयक के मुद्दे पर संयुक्त बैठक आहू की जा सकती है।
- संशोधन की प्रक्रिया विधानमंडलीय प्रक्रिया के समान है। केवल विशेष बहुमत वाले मामले के अतिरिक्त संविधान संशोधन विधेयक को संसद से उसी तरह पारित कराया जा सकता है, जैसे- साधारण विधेयक।
- संशोधन प्रक्रिया से संबद्ध व्यवस्था बहुत अपर्याप्त है अतः इन्हें न्यायपालिका को संदर्भित करने के व्यापक अवसर होते हैं।
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