अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग इस संदर्भ में एक संवैधानिक निकाय है कि इसका गठन, संविधान के अनुच्छेद 338 के द्वारा किया गया है।

अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग

अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग इस संदर्भ में एक संवैधानिक निकाय है कि इसका गठन, संविधान के अनुच्छेद 338 के द्वारा किया गया है। दूसरी ओर, अन्य राष्ट्रीय आयोग, जैसे-राष्ट्रीय महिला आयोग (1992), राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (1993), राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (1993), राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (2007), आदि संवैधानिक आयोग न होकर सांविधिक आयोग हैं, क्योंकि इनकी स्थापना संसद के अधिनियम के द्वारा की गयी है।

आयोग का उदय

मूलत: संविधान का अनुच्छेद 338 अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिये एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध करता है, जो अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण करे तथा उनसे संबंधित प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करे। उसे अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयुक्त कहा जायेगा तथा उसे उक्त कार्य सौंपे जायेंगे।
1978 में, सरकार ने ( एक संकल्प के माध्यम से) अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिये एक गैर-साविधिक बहुसदस्यीय आयोग की स्थापना की तथापि अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयुक्त का कार्यालय भी अस्तित्वान रहा।
1987 में, सरकार ने (एक अन्य संकल्प के माध्यम से) आयुक्त के कार्यों में संशोधन किया तथा आयोग का नाम बदलकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग कर दिया।
बाद में, 1990 के 65वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिये एक विशेष अधिकारी के स्थान पर एक उच्च स्तरीय बहुसदस्यीय राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की स्थापना की गयी। इस संवैधानिक आयोग ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयुक्त के साथ ही 1987 में सरकार द्वारा स्थापित आयोग का स्थान लिया।
पुनः 2003 के 89वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा इस राष्ट्रीय आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (अनुच्छेद 338 के अंतर्गत) एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (अनुच्छेद 338क के अंतर्गत) नामक दो नये आयोग बना दिये गये।
वर्ष 2004 से पृथक् राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग अस्तित्व में आया। आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष एवं तीन अन्य सदस्य हैं। वे राष्ट्रपति द्वारा उसके आदेश एवं मुहर लगे आदेश द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। उनकी सेवा शर्तें एवं कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं।'

आयोग के कार्य

आयोग के कार्य निम्नानुसार हैं:
  1. अनुसूचित जातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण एवं अधीक्षण करना तथा उनके क्रियान्वयन की समीक्षा करना ।
  2. अनुसूचित जातियों के हितों का उल्लंघन करने वाले किसी मामले की जांच-पड़ताल एवं सुनवाई करना ।
  3. अनुसूचित जातियों के समाजार्थिक विकास से संबंधित योजनाओं के निर्माण के समय सहभागिता निभाना एवं उचित परामर्श देना तथा संघशासित प्रदेशों एवं अन्य राज्यों में उनके विकास से संबंधित कार्यों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना।
  4. इनके संरक्षण के संबंध में उठाये गये कदमों एवं किये जा रहे कार्यों के बारे में राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष या जब भी आवश्यक हो, प्रतिवेदन प्रस्तुत करना।
  5. इन संरक्षात्मक उपायों के संदर्भ में केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा उठाये गये कदमों की समीक्षा करना एवं इस संबंध में आवश्यक सिफारिशों तथा अनुसूचित जातियों के समाजार्थिक विकास एवं लाभ के लिये प्रयास करना।
  6. यदि राष्ट्रपति आदेश दें तो अनुसूचित जातियों के समाजार्थिक विकास, हितों के संरक्षण एवं संवैधानिक संरक्षण से संबंधित सौंपे गये किसी अन्य कार्य को संपन्न करना।

आयोग का प्रतिवेदन

आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। वह जब भी उचित समझे, अपनी रिपोर्ट दे सकता है।
राष्ट्रपति, इस रिपोर्ट को संबंधित राज्यों के राज्यपालों को भी भेजता है, जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार से संबंधित किसी आयोग की रिपोर्ट को भी राज्य के राज्यपाल के पास भेजते हैं। राज्यपाल इसे आयोग की सिफारिशों पर की गयी कार्रवाई का उल्लेख करते हुए ज्ञापन के साथ राज्य विधानमंडल के समक्ष रखते हैं। इस ज्ञापन में ऐसी किन्हीं सिफारिशों को स्वीकार नहीं किए जाने के कारण भी होने चाहिए।

आयोग की शक्तियां

आयोग को अपने कार्यों को संपन्न करने के लिए शक्तियां प्रदान की गयी हैं।
2018 तक आयोग से अपेक्षा की जाती थी कि वह अन्य पिछड़ा वर्गों (OBCs) के लिए उसी प्रकार कार्य करता रहे। उसे इस दायित्व से 102वें संशोधन अधिनियम, 2018 द्वारा मुक्त कर दिया गया।
जब आयोग किसी कार्य की जांच-पड़ताल कर रहा है या किसी शिकायत की जांच कर रहा है तो इसे दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होंगी, जहां याचिका दायर की जा सकती है तथा विशेषकर निम्नांकित मामलों में:
(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना;
(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समन निकालना;
(च) कोई अन्य विषय जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा अवधारित करे।
संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।
यह आयोग आंग्ल-भारतीय समुदाय के संबंध में भी उसी प्रकार कार्य करेगा, जिस प्रकार वह अनुसूचित जातियों के लिये करता है। दूसरे शब्दों में, आयोग आंग्ल भारतीय समुदाय के संवैधानिक संरक्षण एवं अन्य विधिक संरक्षणों के संबंध में भी जांच करेगा और इस इनके संबंध में राष्ट्रपति की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
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