BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH HISTORY NOTES | अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ्रांसीसी समाज
सन् 1774 में बूब राजवंश का लुई XVI फ्रांस की राजगद्दी पर आसीन हुआ। उस समय उसकी उम्र केवल बीस साल थी और उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH HISTORY NOTES | अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ्रांसीसी समाज
- सन् 1774 में बूब राजवंश का लुई XVI फ्रांस की राजगद्दी पर आसीन हुआ। उस समय उसकी उम्र केवल बीस साल थी और उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था।
- राज्यारोहण के समय उसने राजकोष खाली पाया। लंबे समय तक चले युद्धों के कारण फ्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो चुके थे।
- लुई XVI के शासनकाल में फ्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को साझा शत्रु ब्रिटेन से आज़ाद कराने में सहायता दी थी। युद्ध के चलते फ़्रांस पर दस अरब लिव्रे से भी अधिक का कर्ज और जुड़ गया
- सरकार से कर्जदाता अब 10 प्रतिशत ब्याज की माँग करने लगे थे। फलस्वरूप फ्रांसीसी सरकार अपने बजट का बहुत बड़ा हिस्सा दिनोंदिन बढ़ते जा रहे कर्ज को चुकाने पर मजबूर थी ।
- अपने नियमित खर्चों जैसे, सेना के रख-रखाव, राजदरबार, सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने के लिए फ्रांसीसी सरकार करों में वृद्धि के लिए बाध्य हो गई पर यह कदम भी नाकाफ़ी था।
- अठारहवीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा था और केवल तीसरे एस्टेट के लोग (जनसाधारण) ही कर अदा करते थे।
- प्राचीन राजतंत्र पद का प्रयोग सामान्यतः सन् 1789 से पहले के फ्रांसीसी समाज एवं संस्थाओं के लिए होता है।
- पूरी आबादी में लगभग 90 प्रतिशत किसान थे। लेकिन, ज़मीन के मालिक किसानों की संख्या बहुत कम थी। लगभग 60 प्रतिशत ज़मीन पर कुलीनों, चर्च और तीसरे एस्टेट्स के अमीरों का अधिकार था।
- प्रथम दो एस्टेट्स, कुलीन वर्ग एवं पादरी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार जन्मना प्राप्त थे। इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार था -राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट।
- कुलीन वर्ग को कुछ अन्य सामंती विशेषाधिकार भी हासिल थे। वह किसानों से सामंती कर वसूल करता था।
- किसान अपने स्वामी की सेवा - स्वामी के घर एवं खेतों में काम करना, सैन्य सेवाएँ देना अथवा सड़कों के निर्माण में सहयोग आदि करने के लिए बाध्य थे।
- चर्च भी किसानों से करों का एक हिस्सा, टाइद (धार्मिक कर) के रूप में वसूलता था। तीसरे एस्टेट के तमाम लोगों को सरकार को तो कर चुकाना ही होता था।
- करों में टाइल जैसे प्रत्यक्ष कर सहित और अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल थे। अप्रत्यक्ष कर नमक और तम्बाकू जैसी रोज़ाना उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता था।
- राज्य के वित्तीय कामकाज का सारा बोझ करों के माध्यम से जनता वहन करती थी।
- अठारहवीं सदी में एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्य वर्ग कहा गया, जिसने फैलते समुद्रपारीय व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी। ऊनी और रेशमी कपड़ों का या तो निर्यात किया जाता था या समाज के समृद्ध लोग उसे खरीद लेते थे।
- तीसरे एस्टेट में इन सौदागरों एवं निर्माताओं के अलावा प्रशासनिक सेवा व वकील जैसे पेशेवर लोग भी शामिल थे। ये सभी पढ़े-लिखे थे और इनका मानना था कि समाज के किसी भी समूह के पास जन्मना विशेषाधिकार नहीं होने चाहिए। किसी भी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार उसकी योग्यता ही होनी चाहिए।
- स्वतंत्रता, समान नियमों तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित समाज की यह परिकल्पना जॉन लॉक और ज्याँ ज़ाक रूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की थी।
- अपने टू ट्रीटाइज़ेज़ ऑफ़ गवर्नमेंट में लॉक ने राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया था।
- रूसो ने जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा।
- मॉन्टेस्क्यू ने द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़ नामक रचना में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से खुद को आज़ाद घोषित कर दिया तो वहाँ इसी मॉडल की सरकार बनी।
- फ्रांस के राजनीतिक चिंतकों के लिए अमेरिकी संविधान और उसमें दी गई व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी प्रेरणा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी।
- लुई XVI द्वारा राज्य के खर्चों को पूरा करने के लिए फिर से कर लगाये जाने की खबर से विशेषाधिकार वाली व्यवस्था के विरुद्ध गुस्सा भड़क उठा।
- प्राचीन राजतंत्र के तहत फ्रांसीसी सम्राट अपनी मर्जी से कर नहीं लगा सकता था। इसके लिए उसे एस्टेट्स जेनराल (प्रतिनिधि सभा) की बैठक बुला कर नए करों के अपने प्रस्तावों पर मंजूरी लेनी पड़ती थी।
- एस्टेट्स जेनराल एक राजनीतिक संस्था थी जिसमें तीनों अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे। लेकिन सम्राट ही यह निर्णय करता था कि इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाए। इसकी अंतिम बैठक सन् 1614 में बुलाई गई थी।
- फ्रांसीसी सम्राट लुई सोलहवें ने 5 मई 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई।
- पहले और दूसरे एस्टेट ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने-सामने की कतारों में बिठाए गए।
- तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए। तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे।
- किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था। फिर भी लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाई गई, जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे।
- एस्टेट्स जनरल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था। इस बार भी लुई सोलहवाँ इसी प्रथा का पालन करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था।
- तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी कि अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा।
- यह एक लोकतांत्रिक सिद्धांत था जिसे मिसाल के तौर पर रूसो ने अपनी पुस्तक द सोशल कॉन्ट्रैक्ट में प्रस्तुत किया था।
- सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए।
- तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को संपूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए। अपने आप को नैशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जाएगा तब तक असेंबली भंग नहीं होगी।
राजनैतिक कारण
- राजतंत्र की निरंकुशता फ्रांसीसी क्रांति का एक प्रमुख कारण था। राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। वह अपनी इच्छानुसार काम करता था। वह अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि बतलाता था।
- राजा के कार्यों के आलोचकों को बिना कारण बताए जेल में डाल दिया जाता था।
- राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता तबाह थी। वह निरंकुश से छुटकारा पाने के लिए कोशिश करने लगी।
- फ्रांस में शासन का अति केन्द्रीकरण था। शासन के सभी सूत्र राजा के हाथों में थे। भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था।
- राजनैतिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था। लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता भी नहीं थी।
- बंदी प्रत्यक्षीकरण नियम की व्यवस्था नहीं थी। न्याय और स्वतंत्रता की इस नग्न अवहेलना के कारण लोगों का रोष · धीरे-धीरे क्रांति का रूप ले रहा था।
- राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था। सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हुआ होता था।
- रानी बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने में अपार धन खर्च करती थी। एक ओर किसानों, श्रमिकों को भरपेट भोजन नहीं मिलता था तो दूसरी ओर सामंत, कुलीन और राजपरिवार के सदस्य विलासिता का जीवन बिताते थे।
- फ्रांस का शासन में सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं होती थी। राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति राज्य के उच्च पदों पर होती थी।
- भिन्न-भिन्न प्रान्तों में अलग-अलग कानून थे। कानून की विविधता के चलते स्वच्छ न्याय की आशा करना बेकार था ।
सामजिक कारण
- फ्रांस में रोमन कैथोलिक चर्च की प्रधानता थी। चर्च एक स्वतंत्र संस्था के रूप में काम कर रहा था। इसका अपना अलग संगठन था, अपना न्यायालय था और धन प्राप्ति का स्रोत था।
- देश की भूमि का पाँचवा भाग चर्च के पास था। चर्च की वार्षिक आमदनी करीब तीस करोड़ रुपये थी।
- चर्च स्वयं करमुक्त था, लेकिन उसे लोगों पर कर लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त था।
- चर्च की अपार संपत्ति से बड़े-बड़े पादरी भोग-विलास का जीवन बिताते थे।
- धर्म के कार्यों से उन्हें कोई मतलब नहीं था। वे पूर्णतया सांसारिक जीवन व्यतीत करते थे।
- फ्रांस का कुलीन वर्ग सुविधायुक्त एवं सम्पन्न वर्ग था। कुलीनों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। वे राजकीय कर से मुक्त थे।
- राज्य, धर्म और सेना के उच्च पदों पर कुलीनों की नियुक्ति होती थी। वे किसानों से कर वसूल करते थे।
- वे वर्साय के राजमहल में जमे रहते और राजा को अपने प्रभाव में बनाए रखने की पूरी कोशिश करते थे ।
- कुलीनों के विशेषाधिकार और उत्पीड़न ने साधारण लोगों को क्रांतिकारी बनाया था।
- किसानों का वर्ग सबसे अधिक शोषित और पीड़ित था. उन्हें कर का बोझ उठाना पड़ता था। उन्हें राज्य, चर्च और जमींदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे।
- कृषक वर्ग अपनी दशा में सुधार लान चाहते थे और सुधार सिर्फ एक क्रांति द्वारा ही आ सकती थी।
- मजदूरों और कारीगरों की दशा अत्यंत दयनीय थी। औद्योगिक क्रान्ति के कारण घरेलू उद्योग-धंधों का विनाश हो चुका था और मजदूर वर्ग बेरोजगार हो गए थे।
- देहात के मजदूर रोजगार की तलाश में पेरिस भाग रहे थे।
- क्रांति के समय मजदूर वर्ग का एक बड़ा गिरोह तैयार हो चुका था।
- माध्यम वर्ग के लोग सामजिक असमानता को समाप्त करना चाहते थे। चूँकि तत्कालीन शासन के प्रति सबसे अधिक असंतोष मध्यम वर्ग में था, इसलिए क्रांति का संचालन और नेतृत्व इसी वर्ग ने किया।
- विदेशी युद्ध और राजमहल के अपव्यय के कारण फ्रांस की आर्थिक स्थिति लचर हो गयी थी। आय से अधिक व्यय हो चुका था।
- खर्च पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा था। कर की असंतोषजनक व्यवस्था के साथ-साथ शासकों की फिजूलखर्ची से फ्रांसकी हालत और भी खराब हो गई थी।
- विचारकों और दार्शनिकों ने फ्रांसकी राजनैतिक एवं सामाजिक बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया और तत्कालीन व्यवस्था के प्रति असंतोष, घृणा और विद्रोह की भावना को उभरा।
- Montesquieu, Voltaire, Jean-Jacques Rousseam के विचारों से मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित था। Montesquieu ने समाज और शासन-व्यवस्था की प्रसंशा Power-Separation Theory का प्रतिपादन किया।
- वाल्टेयर ने सामाजिक एवं धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार किया। रूसो ने राजतंत्र का विरोध किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया।
- वाल्टेयर ने जनता की सार्वभौमिकता के सिद्धांत (Principles) of Rational and Just Civic Association) का प्रतिपादन किया। इन लेखकों ने लोगों को मानसिक रूप से क्रान्ति के लिए तैयार किया।
- 4 अगस्त, 1789 की रात को असेंबली ने करों, कर्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया।
- पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया गया।
- धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गई। इस प्रकार कम से कम 20 अरब लिव्रे की संपत्ति सरकार के हाथ में आ गई।
- नैशनल असेंबली ने सन् 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य था-सम्राट की शक्तियों को सीमित करना।
- एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं-विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका - में विभाजित एवं हस्तांतरित कर दिया गया इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी।
- सन् 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौंप दिया। नैशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी। सर्वप्रथम नागरिक एक निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे, जो पुनः असेंबली के सदस्यों को चुनते थे।
- सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं था। 25 वर्ष से अधिक उम्र वाले केवल ऐसे पुरुषों को ही सक्रिय नागरिक (जिन्हें मत देने का अधिकार था) का दर्जा दे दिया गया था, जो कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे। शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- निर्वाचक की योग्यता प्राप्त करने तथा असेंबली का सदस्य होने के लिए लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरूरी था।
- संविधान 'पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र' के साथ शुरू हुआ था। जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और कानूनी बराबरी के अधिकार को 'नैसर्गिक एवं अहरणीय' अधिकार के रूप में स्थापित किया गया अर्थात् ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्मना प्राप्त थे और इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता।
- राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे ।
फ्रांस की क्रांतिः भूमिका
- 18वीं शताब्दी के 70-80 के दशकों में विभिन्न कारणों से राजा और तत्कालीन राजव्यवस्था के प्रति फ्रांस के नागरिकों में विद्रोह की भावना पनप रही थी। यह विरोध धीरे-धीरे तीव्र होता चला गया।
- 1789 । राजा लुई 16वाँ (Louis XVI) को एक सभा बुलानी पड़ी। इस सभा का नाम General State था। यह सभा कई वर्षों से बुलाई नहीं गयी थी। इसमें सामंतों के अतिरिक्त सामान्य वर्ग के भी प्रतिनिधि होते थे।
- सभा में जनता की माँगों पर जोरदार बहस हुई। लोगों में व्यवस्था को बदलने की बैचौनी थी।
- सभा के आयोजन के कुछ ही दिनों के बाद सामान्य नागरिकों का एक जुलूस बास्तिल नामक जेल पहुँच गया और उसके दरवाजे तोड़ डाले गए। सभी कैदी बाहर निकल गए।
- नागरिक इस जेल को जनता के दमन का प्रतीक मानते थे। कुछ दिनों के बाद महिलाओं का एक दल राजा के वर्साय स्थित दरबार को घेरने निकल गया जिसके फलस्वरूप राजा को पेरिस चले जाना पड़ा।
- इसी बीच General State ने कई क्रांतिकारी कदम भी उठाना शुरू किए. यथा-
- मानव के अधिकारों की घोषणा.
- मेट्रिक प्रणाली का आरम्भ,
- चर्च के प्रभाव का समापन,
- सामंतवाद की समाप्ति की घोषणा,
- दास प्रथा के अंत की घोषणा आदि ।
- General State के सदस्यों में मतभेद भी हुए। कुछ लोग क्रांति के गति को धीमी रखना चाहते थे। कुछ अन्य प्रखर क्रान्ति के पोषक थे।
- लोगो में आपसी झगड़े भी होने लगे, इनका नेतृत्व कट्टर क्रांतिकारियों के हाथ में रहा। इनके नेता Maximilian Robeseजसने हजारों को मौत के घाट उतार दिया। उसके एक वर्ष के नेतृत्व को आज भी आतंक का राज (Reign of terror) कहते हैं। इसकी परिणति स्वयं Louis 16th और उसकी रानी की हत्या से हुई।
- राजपरिवार के हत्या के पश्चात् यूरोप के अन्य राजाओं में क्रोध उत्पन्न हुआ और वे लोग संयुक्त सेना बना बना कर क्रांतिकारियों के विरुद्ध लड़ने लगे।
- क्रांतिकारियों ने भी एक सेना बना ली जिसमें सामान्य वर्ग के लोग भी सम्मिलित हुए।
- क्रान्ति के नए-नए उत्साह के कारण क्रांतिकारियों की सेना बार-बार सफल हुई और उसका उत्साह बढ़ता चला गया।
- यह सेना फ्रांस के बाहर भी भूमि जीतने लगी। इसी बीच इस सेना का एक सेनापति जिसका नाम नेपोलियन बोनापार्ट था, अपनी विजयों के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ।
- नेपोलियन ने सम्राट की उपाधि धारण कर सत्ता पर कब्जा कर लिया और इस प्रकार फ्रांस में राजतंत्र दुबारा लौट आया।
- फ्रांस के अन्दर कट्टर क्रांति से लोग ऊब चुके थे। इसका लाभ उठाते हुए और अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए नेपोलियन ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और एक Consulate बना कर शासन चालने लगा। यह शासन क्रांतिकारी सिद्धांतों पर चलता रहा।
- 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।
- यह क्रांति निरंकुश राजतंत्र, सामंती शोषण, वर्गीय विशेषाधि कार तथा प्रजा की भलाई के प्रति शासकों की उदासीनता के विरुद्ध प्रारंभ हुई थी ।
- उस समय फ्रांस में न केवल शोषित और असंतुष्ट वर्ग की विद्यमान थे, बल्कि वहाँ के आर्थिक और राजनैतिक ढाँचा में भी विरोधाभास देखा जा सकता था।
- राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण हो चुका था। सम्पूर्ण देश की धुरी एकमात्र राज्य था। समाज का नेतृत्व शनैः शनैः बुद्धिजीवी वर्ग के हाथ में आ रहा था ।
- राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था। राजा की इच्छाएँ ही राज्य का कानून था। लोगों को किसी प्रकार का नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं था। राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता परेशान थी।
- भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था। लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता भी नहीं दी गयी थी। राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था।
- सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हो जाती थी। राज्य के उच्च पदों पर राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति होती थी।
- स्थानीय स्वशासन का अभाव था। फ्रांसीसी समाज दो टुकड़ों में बँट कर रह गया था - एक सुविधा प्राप्त वर्ग और दूसरा सुविधाहीन वर्ग।
- फ्रांस की क्रांति का प्रभाव विश्वव्यापी हुआ। इसके फलस्वरूप निरंकुश शासन तथा सामंती व्यवस्था का अंत हुआ।
- प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली की नींव डाली गई। सामजिक, आर्थिक और धार्मिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार लाये गए।
पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र
- आदमी स्वतंत्र पैदा होते हैं, स्वतंत्र रहते हैं और उनके अधिकार समान होते हैं।
- हरेक राजनीतिक संगठन का लक्ष्य आदमी के नैसर्गिक एवं अहरणीय अधिकारों को संरक्षित रखना है। ये अधिकार हैं स्वतंत्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा एवं शोषण के प्रतिरोध का अधिकार।
- समग्र संप्रभुता का स्रोत राज्य में निहित है कोई भी समूह या व्यक्ति ऐसा अनाधिकार प्रयोग नहीं करेगा जिसे जनता की सत्ता की स्वीकृति न मिली हो ।
- स्वतंत्रता का आशय ऐसे काम करने की शक्ति से है जो औरों के लिए नुकसानदेह न हो।
- समाज के लिए किसी भी हानिकारक कृत्य पर पाबंदी लगाने का अधिकार कानून के पास है।
- कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून की नज़र में सभी नागरिक समान हैं।
- कानूनसम्मत प्रक्रिया के बाहर किसी भी व्यक्ति को न तो दोषी ठहराया जा सकता है और न ही गिरफ्तार अथवा नज़रबंद किया जा सकता है।
- प्रत्येक नागरिक बोलने, लिखने और छापने के लिए आज़ाद है। लेकिन कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत ऐसी स्वतंत्रता के दुरुपयोग की ज़िम्मेदारी भी उसी की होगी।
- सार्वजनिक सेना तथा प्रशासन के खर्चे चलाने के लिए एक सामान्य कर लगाना अपरिहार्य है। सभी नागरिकों पर उनकी आय के अनुसार समान रूप से कर लगाया जाना चाहिए।
- चूँकि संपत्ति का अधिकार एक पावन एवं अनुलंघनीय अधिकार है, अतः किसी भी व्यक्ति को इससे वंचित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत सार्वजनिक आवश्यकता के लिए संपत्ति का अधिग्रहण करना आवश्यक न हो। ऐसे मामले में अग्रिम मुआवज़ा ज़रूर दिया जाना चाहिए।
- लुई XVI ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे, परन्तु प्रशा के राजा से उसकी गुप्त वार्ता भी चल रही थी। फ्रांस की घटनाओं से अन्य पड़ोसी देशों के शासक भी चिंतित थे।
- इसलिए 1789 की गर्मियों के बाद होने वाली ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए इन शासकों ने सेना भेजने की योजना बना ली थी। लेकिन जब तक इस योजना पर अमल होता, अप्रैल 1792 में नैशनल असेंबली ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया।
- प्रांतों से हजारों स्वयंसेवी सेना में भर्ती होने के लिए जमा होने लगे। उन्होंने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता की जंग के रूप में लिया। उनके होठों पर देशभक्ति के जो तराने थे उनमें कवि रॉजेट दि लाइल द्वारा रचित मार्सिले भी था।
- यह गीत पहली बार मार्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गाया था। इसलिए इस गाने का नाम मार्सिले हो गया जो अब फ़्रांस का राष्ट्रगान है।
- क्रांतिकारी युद्धों से जनता को भारी क्षति एवं आर्थिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं। पुरुषों के मोर्चे पर चले जाने के बाद घर परिवार और रोज़ी-रोटी की ज़िम्मेवारी औरतों के कंधों पर आ पड़ी।
- देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को ऐसा लगता था कि क्रांति के सिलसिले को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है क्योंकि 1791 के संविधान से सिर्फ़ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे।
- लोग राजनीतिक क्लबों में जमा होकर सरकारी नीतियों और अपनी कार्ययोजना पर बहस करते थे। इनमें से जैकोबिन क्लब सबसे सफल था, जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ़ सेंट जेकब के नाम पर पड़ा, जो अब इस राजनीतिक समूह का प्रमुख बन गया था। इस पूरी अवधि में महिलाएँ भी सक्रिय थीं और उन्होंने भी अपने क्लब बना लिए।
- जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर--जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज़, छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मजदूर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था। जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया।
- सन् 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से नाराज़ पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनायी। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और खुद राजा को कई घंटों तक बंधक बनाये रखा।
- बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। नये चुनाव कराये गए। 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं - को मतदान का अधिकार दिया गया।
- नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितंबर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित किया।
- लुई XVI को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा सुना दी गई। 21 जनवरी 1793 को प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। जल्द ही रानी मेरी एन्तोएनेत का भी वही हश्र हुआ।
रॉबेस्पियर
- रॉबेस्पियर 1758 में फ्रांस के अरास में पैदा हुए थे। वह बचपन से पढ़ने में कुशाग्र थे, इसलिए उन्हें पढ़ने के लिए पेरिस भेज दिया गया।
- वहां उन्होंने लाइकी सुई ले ग्रांड से स्नातक किया। चूंकि उनकी रुचि कानून की पढ़ाई में थी इसलिए उन्होंने आगे की पढ़ाई कानून में की। 1781 में वह कानून की उपाधि प्राप्त करने में सफल रहे।
30 की उम्र में एस्टेट जनरल
- रॉबेस्पियर महज 30 साल की उम्र में विधिमंडल के एस्टेट जनरल के लिए चुना गया।
- रॉबेस्पियर ने फ्रांसीसी राजशाही पर अपने हमले तेज कर दिए। वह लोकतांत्रिक सुधार चाहते थे।
- रॉबेस्पियर ने हर मंच से इसकी वकालत शुरु कर दी। उनकी इस पहल ने उनको लोगों का मसीहा बना दिया।
- रॉबेस्पियर ने मौत की सजा और गुलामी का भी विरोध किया। हर हाल में वह लोगों का हित चाहते थे।
- बाद में वह फ्रांस की राष्ट्रीय संविधान सभा, और शक्तिशाली जैकबिन राजनीतिक गुट के अध्यक्ष बनने में भी सफल रहे थे।
फ्रांसीसी संविधान में महत्वपूर्ण भूमिका
- 1792 में विधान सभा में गिरोडीवादी नेताओं ने फ्रांस को ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध घोषित करने की आवाज उठाई, तो रॉबेस्पियर ने उनका विरोध किया।
- रॉबेस्पियर का मत था कि यह युद्ध आम लोगों के हित में नहीं है। इससे फ्रांस को बड़ा नुकसान हो सकता था।
- रॉबेस्पियर ने कहा कि युद्ध हमारी क्रांति के आदर्शों को फैलाने का उचित तरीका नहीं है। कोई भी सशस्त्र मिशनरियों को प्यार नहीं करता है।
- फ्रांसीसी संविधान की नींव रखने में रॉबेस्पियर की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
- इसमें उन्होंने मानव अधिकारों और उनके हितों का ख्याल रखा। वह फ्रांस में रिपब्लिक ऑफ वर्च्यू स्थापित करना चाहते थे।
- फ्रांस की क्रान्ति के समय लुई सोलहवें के मृत्युदण्ड की व्यवस्था कराने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
- उन्होंने राजा को दण्ड देने के लिए सफलतापूर्वक तर्क दिए और लोगों को दमन के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।
आतंक का शासनकाल
- राजशाही के पतन के बाद फ्रेंच क्रांतिकारी राजनेताओं का मानना था कि अराजकता को दबाने के लिए एक स्थिर सरकार की आवश्यकता थी।
- इसी के तहत 1793 के कन्वेंशन में जेकोबिन्स ने एक क्रांतिकारी ट्रिब्यूनल स्थापित किया। इसी के तहत आम सुरक्षा के लिए एक 9 सदस्यीय समिति का निर्माण किया। रॉबेस्पियर इस समिति के हिस्सा बने।
- सामान्य सुरक्षा समिति ने देश में आंतरिक पुलिस का प्रबंधन करना शुरू कर दिया। यह ऐसा दौर था जिसे आतंक का शासनकाल कहा जाता है।
- इसमें वह सभी गुटों के साथ सख्ती से पेश आए, जो क्रांतिकारी सरकार के खिलाफ थे।
- रॉबेस्पियर की समिति ने तय किया कि हेबर्टिस्ट पार्टी का नाश करना होगा। इसी के तहत उन पर चढ़ाई कर दी गई ।
- इस संघर्ष में लगभग 3,00,000 संदिग्ध दुश्मनों को गिरफ्तार किया गया और 17,000 से अधिक लोगों को मार डाला गया। रक्तपात के इस तांडव में रॉबेस्पियर अपने कई राजनीतिक विरोधियों को खत्म करने में सफल रहा था।
- बाद में उस पर सवाल उठे तो उसने कहा कि, यह जरुरी था। रॉबेस्पियर का मत था कि समिति का यह फैसला बिल्कुल सही था।
- रॉबेस्पियर के मुताबिक 'बिना आतंक के सद्गुण और बिना सद्गुण के आतंक निरर्थक होते हैं। हालांकि, उसके इस तर्क को खारिज कर दिया गया था।
पहले जेल फिर मौत
- रॉबेस्पियर और उनके अनुयायियों के विरोध में कुछ नए संगठनों ने आकार लेना शुरु कर दिया। उन्हीं के प्रयासों के चलते रॉबेस्पियर को उनके सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया.
- हालांकि, वह जेलर की मदद से जेल से भाग निकलने में सफल रहा और पेरिस के सिटी हॉल में छिप गए थे। जहां पकड़े जाने के डर से उसने आत्महत्या का प्रयास भी किया, लेकिन वह असफल रहे।
- राष्ट्रीय कन्वेंशन के सैनिकों ने इमारत पर हमला किया और उन्हें दुबारा से गिरफ्तार करते हुए मौत दे दी गई ।
- वैसे तो मैक्समिलियन रॉबेस्पियर हिंसक नहीं था। वह तो फ्रांसीसी क्रान्ति से जुड़े प्रभावशाली लोगों में गिना जाता था, लेकिन उसने हिंसा का सहारा लिया था।
- वह अपने विरोधियों को तो खत्म करने में सफल रहा, लेकिन खुद को भी नहीं बचा सका।
- जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के संपन्न तबके के पास सत्ता आ गई। नए संविधान के तहत सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया।
- इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका- डिरेक्ट्री को नियुक्त किया। इस प्रावधान के जरिए जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति केंद्रित कार्यपालिका से बचने की कोशिश की गई।
- डिरेक्टरों का झगड़ा अकसर विधान परिषदों से होता और तब परिषद् उन्हें बर्खास्त करने की चेष्टा करती। डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह - नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। -
- महिलाएँ शुरू से ही फ़ासीसी समाज में इतने अहम परिवतर्न लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भागीदारी क्रांतिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगी।
- तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ जीविका निर्वाह के लिए काम करती थीं। वे सिलाई बुनाई, कपड़ों की धुलाई करती थीं, बाजारों में फल-फूल-सब्जियाँ बेचती थीं अथवा संपन्न घरों में घरेलू काम करती थीं ।
- अधिकांश महिलाओं के पास पढ़ाई-लिखाई तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के मौके नहीं थे। केवल कुलीनों की लड़कियाँ अथवा तीसरे एस्टेट के धनी परिवारों की लड़कियाँ ही कॉन्वेंट में पढ़ पाती थीं, इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती थी।
- कामकाजी महिलाओं को अपने परिवार का पालन-पोषण भी करना पड़ता था--जैसे खाना पकाना, पानी लाना, लाइन लगा कर पावरोटी लाना और बच्चों की देख-रेख आदि करना। उनकी मज़दूरी पुरुषों की तुलना में कम थी।
- महिलाओं ने अपने हितों की हिमायत करने और उन पर चर्चा करने के लिए खुद के राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले। फ़्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए। उनमें 'द सोसाइटी ऑफ़ रेवलूशनरी एंड रिपब्लिकन विमेन' सबसे मशहूर क्लब था।
- प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। महिलाएँ इस बात से निराश हुईं कि 1791 के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था।
- महिलाओं ने मताधिकार असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की माँग रखी। उनका मानना था कि तभी नई सरकार में उनके हितों का प्रतिनिधित्व हो पाएगा।
- प्रारंभिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए।
- सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया। अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे। शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक 'कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा।
- तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और मर्द औरत दोनों को ही इसकी अर्जी देने का अधिकार दिया गया। अब महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और छोटे-मोटे व्यवसाय चला सकती थीं।
- राजनीतिक अधिकारों के लिए महिलाओं का संघर्ष जारी रहा। आतंक राज के दौरान सरकार ने महिला क्लबों को बंद करने और उनकी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून लागू किया। कई जानी-मानी महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और उनमें से कुछ को फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
- मताधिकार और समान वेतन के लिए महिलाओं का आंदोलन अगली सदी में भी अनेक देशों में चलता रहा। मताधिकार का संघर्ष उन्नीसवीं सदी के अंत एवं बीसवीं सदी के प्रारंभ तक अंतर्राष्ट्रीय मताधिकार आंदोलन के जरिए जारी रहा।
- क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान फ्रांसीसी महिलाओं की राजनीतिक सरगर्मियों को प्रेरक स्मृति के रूप में जिंदा रखा गया। अंततः सन् 1946 में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया।
- फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था। कैरिबिआई उपनिवेश मार्टिनिक, गॉडेलोप और सैन डोमिंगों तम्बाकू, नील, चीनी एवं कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे।
- अपरिचित एवं दूर देश जाने और काम करने के प्रति यूरोपियों की अनिच्छा का मतलब था बागानों में श्रम की कमी। इस कमी को यूरोप, अफ्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास - व्यापार द्वारा पूरा किया गया।
- दास - व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुरू हुआ। फ्रांसीसी सौदागर बोर्दे या नान्ते बन्दरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज़ ले जाते थे, जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे।
- दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री यात्रा के लिए जहाजों में बैँस दिया जाता था। वहाँ उन्हें बागान मालिकों को बेच दिया जाता था।
- दास - श्रम के बल पर यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफ़ी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ। बोदें और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास - व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए।
- अठारहवीं सदी में फ्रांस में दास प्रथा की ज्यादा निंदा नहीं हुई । नैशनल असेंबली में लंबी बहस हुई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा को प्रदान किए जाएँ या नहीं। परन्तु दास - व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय से नैशनल असेंबली में कोई कानून पारित नहीं किया गया।
- अंततः सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया। पर यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास प्रथा पुनः शुरू कर दी।
- बागान मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ़्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गयी । फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया।
- सन् 1789 से बाद के वर्षों में फ़्रांस के पुरुषों, महिलाओं एवं बच्चों के जीवन में ऐसे अनेक परिवर्तन आए।
- क्रांतिकारी सरकारों ने कानून बना कर स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्शों को रोज़ाना की जिंदगी में उतारने का प्रयास किया। बास्तील के विध्वंस के बाद सन् 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था - सेंसरशिप की समाप्ति।
- प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियों किताब, अखबार, नाटक को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था।
- अधिकारों के घोषणापत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप फ्रांस के शहरों में अखबारों, पर्चों, पुस्तकों एवं छपी हुई तस्वीरों की बाढ़ आ गई जहाँ से वह तेज़ी से गाँव-देहात तक जा पहुँची। उनमें फ्रांस में घट रही घटनाओं एवं परिवर्तनों का ब्यौरा और उन पर टिप्पणी होती थी।
- 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की। पुराने राजवंशों को हटा कर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी। नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था। उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलायी।
- शुरू-शुरू बहुत सारे लोगों को नेपालियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतंत्रता दिलाने की उम्मीद थी। पर जल्दी ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे।
- आखिरकार 1815 में वॉटरलू में उसकी हार हुई। यूरोप के बाकी हिस्सों में मुक्ति और आधुनिक कानूनों को फैलाने वाले उसके क्रांतिकारी उपायों का असर उसकी मृत्यु के काफ़ी समय बाद सामने आया।
- स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार फ्रांसीसी क्रांति की • सबसे महत्त्वपूर्ण विरासत थे। ये विचार उन्नीसवीं सदी में फ्रांस से निकल कर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण वहाँ सामंती व्यवस्था का नाश हुआ।
- औपनिवेशिक समाजों ने संप्रभु राष्ट्र राज्य की स्थापना के अपने आंदोलनों में दासता से मुक्ति के विचार को नयी परिभाषा दी। टीपू सुल्तान और राजा राममोहन रॉय क्रांतिकारी फ़्रांस में उपजे विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो ठोस उदाहरण थे।
- फ्रांसीसी क्रांति ने सामाजिक संरचना के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन की संभावनाओं का सूत्रपात कर दिया था। अठारहवीं सदी से. पहले फ्रांस का समाज मोटे तौर पर एस्टेट्स और श्रेणियों में बँटा हुआ था।
- समाज की आर्थिक और सामाजिक सत्ता पर कुलीन वर्ग और चर्च का नियंत्रण था। लेकिन क्रांति के बाद इस संरचना को बदलना संभव दिखाई देने लगा।
- यूरोप और एशिया सहित दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में व्यक्तिगत अधिकारों के स्वरूप और सामाजिक सत्ता पर किसका नियंत्रण हो- इस पर चर्चा छिड़ गई।
- भारत में भी राजा राममोहन रॉय और डेरोजियो ने फ्रांसीसी क्रांति के महत्त्व का उल्लेख किया और भी बहुत सारे लोग क्रांति पश्चात यूरोप की स्थितियों के बारे में चल रही बहस में कूद पड़े। आगे चलकर उपनिवेशों में घटी घटनाओं ने भी इन विचारों को एक नया रूप प्रदान करने में योगदान दिया।
- यूरोप में भी सभी लोग आमूल समाज परिवर्तन के पक्ष में नहीं थे। इस सवाल पर सबकी अलग-अलग राय थी। बहुत सारे लोग बदलाव के लिए तो तैयार थे लेकिन वह चाहते थे कि यह बदलाव धीरे-धीरे हो ।
- समाज का आमूल पुनर्गठन ज़रूरी है। कुछ ‘रुढ़िवादी' (Conservatives) थे तो कुछ 'उदारवादी' (Liberals) या 'आमूल परिवर्तनवादी' (Radical, रैडिकल) समाधानों के पक्ष में थे।
- समाज परिवर्तन के समर्थकों में एक समूह उदारवादियों का था। उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले।
- उस समय यूरोप के देशों में प्रायः किसी एक धर्म को ही ज्यादा महत्व दिया जाता था (ब्रिटेन की सरकार चर्च ऑफ़ इंग्लैंड का समर्थन करती थी, ऑस्ट्रिया और स्पेन, कैथलिक चर्च के समर्थक थे ) ।
- उदारवादी समूह वंश - आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे। वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। उनका कहना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।
- यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो शासकों और अफसरों के प्रभाव से मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन - कार्य चलाए। पर यह समूह 'लोकतंत्रवादी' (Democrat) नहीं था।
- ये लोग सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार यानी सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए।
- उदारवादियों के विपरीत ये लोग बड़े जमींदारों और संपन्न उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशेषाधिकारों के खिलाफ़ थे। वे निजी संपत्ति के विरोधी नहीं थे लेकिन केवल कुछ लोगों के पास संपत्ति के संकेंद्रण का विरोध जरूर करते थे ।
- रुढ़िवादी तबका रैडिकल और उदारवादी, दोनों के खिलाफ़ था। मगर फ्रांसीसी क्रांति के बाद तो रूढ़िवादी भी बदलाव की जरूरत को स्वीकार करने लगे थे। पुराने समय में, यानी अठारहवीं शताब्दी में रुढ़िवादी आमतौर पर परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे।
- उन्नीसवीं सदी तक आते-आते वे भी मानने लगे थे कि कुछ परिवर्तन आवश्यक हो गया है परंतु वह चाहते थे कि अतीत का सम्मान किया जाए अर्थात् अतीत को पूरी तरह ठुकराया न जाए और बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो ।
- फ़ासीसी क्रांति के बाद पैदा हुई राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान सामाजिक परिवर्तन पर केंद्रित इन विविध विचारों बीच काफ़ी टकराव हुए।
- उन्नीसवीं सदी में क्रांति और राष्ट्रीय कायांतरण की विभिन्न कोशिशों ने इन सभी राजनीतिक धाराओं की सीमाओं और संभावनाओं को स्पष्ट कर दिया।
- ये राजनीतिक रुझान एक नए युग का द्योतक थे । यह दौर गहन सामाजिक एवं आर्थिक बदलावों का था। यह ऐसा समय था जब नए शहर बस रहे थे, नए-नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे थे, रेलवे का काफी विस्तार हो चुका था और औद्योगिक क्रांति संपन्न हो चुकी थी।
- औद्योगीकरण ने औरतों-आदमियों और बच्चों, सबको कारखानों में ला दिया। काम के घंटे यानी पाली बहुत लंबी होती थी और मजदूरी बहुत कम थी। बेरोज़गारी आम समस्या थी । औद्योगिक वस्तुओं की माँग में गिरावट आ जाने पर तो बेरोज़गारी और बढ़ जाती थी।
- शहर तेजी से बसते और फैलते जा रहे थे इसलिए आवास और साफ़-सफाई का काम भी मुश्किल होता जा रहा था । उदारवादी और रैडिकल, दोनों ही इन समस्याओं का हल खोजने की कोशिश कर रहे थे।
- लगभग सभी उद्योग व्यक्तिगत स्वामित्व में थे। बहुत सारे रैडिकल और उदारवादियों के पास भी काफी संपत्ति थी और उनके यहाँ बहुत सारे लोग नौकरी करते थे। उन्होंने व्यापार या औद्योगिक व्यवसायों के ज़रिए धन-दौलत इकट्ठा की थी इसलिए वह चाहते थे कि इस तरह के प्रयासों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाए।
- ये लोग जन्मजात मिलने वाले विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। व्यक्तिगत प्रयास, श्रम और उद्यमशीलता में उनका गहरा विश्वास था। उनकी मान्यता थी कि यदि हरेक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी जाए, गरीबों को रोजगार मिले, और जिनके पास पूँजी है उन्हें बिना रोक-टोक काम करने का मौका दिया जाए तो समाज तरक्की कर सकता है।
- इसी कारण उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में समाज परिवर्तन के इच्छुक बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों के इर्द-गिर्द गोलबंद हो गए थे।
- यूरोप में 1815 में जिस तरह की सरकारें बनीं उनसे छुटकारा पाने के लिए कुछ राष्ट्रवादी, उदारवादी और रैडिकल आंदोलनकारी क्रांति के पक्ष में थे।
- फ्रांस, इटली, जर्मनी और रूस में ऐसे लोग क्रांतिकारी हो गए और राजाओं के तख्तापलट का प्रयास करने लगे। राष्ट्रवादी कार्यकर्ता क्रांति के ज़रिए ऐसे 'राष्ट्रों' की स्थापना करना चाहते थे जिनमें सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हों ।
- 1815 के बाद इटली के राष्ट्रवादी गिसेप्पे मेजिनी ने यही लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपने समर्थकों के साथ मिलकर राजा के खिलाफ़ साजिश रची थी। भारत सहित दुनिया भर के राष्ट्रवादी उसकी रचनाओं को पढ़ते थे।
- समाज के पुनर्गठन की संभवत: सबसे दूरगामी दृष्टि प्रदान करने वाली विचारधारा समाजवाद ही थी। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप में समाजवाद एक जाना-पहचाना विचार था । उसकी तरफ़ बहुत सारे लोगों का ध्यान आकर्षित हो रहा था।
- समाजवादी निजी संपत्ति के विरोधी थे। यानी, वे संपत्ति पर निजी स्वामित्व को सही नहीं मानते थे। उनका कहना था कि संपत्ति के निजी स्वामित्व की व्यवस्था ही सारी समस्याओं की जड़ है।
- उनका तर्क था कि बहुत सारे लोगों के पास संपत्ति तो है जिससे दूसरों को रोज़गार भी मिलता है लेकिन समस्या यह है कि संपत्तिधारी व्यक्ति को सिर्फ अपने फ़ायदे से ही मतलब रहता है वह उनके बारे में नहीं सोचता जो उसकी संपत्ति को उत्पादनशील बनाते हैं।
- इसलिए, अगर संपत्ति पर किसी एक व्यक्ति के बजाय पूरे समाज का नियंत्रण हो तो साझा सामाजिक हितों पर ज्यादा अच्छी तरह ध्यान दिया जा सकता है। समाजवादी इस तरह का बदलाव चाहते थे और इसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया।
- समाजवादियों के पास भविष्य की एक बिल्कुल भिन्न दृष्टि थी। कुछ समाजवादियों को कोऑपरेटिव यानी सामूहिक उद्यम के विचार में दिलचस्पी थी।
- इंग्लैंड के जाने-माने उद्योगपति रॉबर्ट ओवेन (1771-1858) ने इंडियाना (अमेरिका) में नया समन्वय (New Harmony) के नाम से एक नये तरह के समुदाय की रचना का प्रयास किया।
- कुछ समाजवादी मानते थे कि केवल व्यक्तिगत पहलकदमी से बहुत बड़े सामूहिक खेत नहीं बनाए जा सकते । वह चाहते थे कि सरकार अपनी तरफ़ से सामूहिक खेती को बढ़ावा दे। उदाहरण के लिए, फ्रांस में लुई ब्लांक (1813-1882) चाहते थे कि सरकार पूँजीवादी उद्यमों की जगह सामूहिक उद्यमों को बढ़ावा दे।
- कोऑपरेटिव ऐसे लोगों के समूह थे जो मिल कर चीजें बनाते थे और मुनाफ़े को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बाँट लेते थे।
- कार्ल मार्क्स (1818-1882) और फ़्रे डरिक एंगेल्स (18201895) ने इस दिशा में कई नए तर्क पेश किए। मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज 'पूँजीवादी' समाज है। फैक्ट्रियों में लगी पूँजी पर पूँजीपतियों का स्वामित्व है और पूँजीपतियों का मुनाफ़ा मज़दूरों की मेहनत से पैदा होता है।
- मार्क्स का निष्कर्ष था कि जब तक निजी पूँजीपति इसी तरह मुनाफे का संचय करते जाएँगे तब तक मज़दूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।
- अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए मज़दूरों को पूँजीवाद व निजी संपत्ति पर आधारित शासन को उखाड़ फेंकना होगा।
- मार्क्स का विश्वास था कि खुद को पूँजीवादी शोषण से मुक्त कराने के लिए मज़दूरों को एक अत्यंत भिन्न किस्म का समाज बनाना होगा जिसमें सारी संपत्ति पर पूरे समाज का यानी सामाजिक नियंत्रण और स्वामित्व रहेगा। उन्होंने भविष्य के इस समाज को साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज का नाम दिया।
- मार्क्स को विश्वास था कि पूँजीपतियों के साथ होने वाले संघर्ष में जीत अंततः मज़दूरों की ही होगी। उनकी राय में कम्युनिस्ट समाज ही भविष्य का समाज होगा।
- 1870 का दशक आते-आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे। अपने प्रयासों में समन्वय लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनैशनल के नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी।
- इंग्लैंड और जर्मनी के मज़दूरों ने अपनी जीवन और कार्यस्थितियों में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरू कर दिया था।
- संकट के समय अपने सदस्यों को मदद पहुँचाने के लिए इन संगठनों ने कोष स्थापित किए और काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज़ उठाना शुरू कर दिया।
- जर्मनी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ इन संगठनों के काफी गहरे रिश्ते थे और संसदीय चुनावों में वे पार्टी की मदद भी करते थे।
- 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग * पार्टी बना ली थी।
- फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया।
- 1914 तक यूरोप में समाजवादी कहीं भी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाए। संसदीय राजनीति में उनके प्रतिनिधि बड़ी संख्या में जीतते रहे, उन्होंने कानून बनवाने में भी अहम भूमिका निभायी, मगर सरकारों में रुढ़िवादियों, उदारवादियों और रैडिकलों का ही दबदबा बना रहा।
सैनिकों में असंतोष
- फ्रांस की सेना भी तत्कालीन शासन व्यवस्था से असंतुष्ट थी। सेना में असंतोष फैलते ही शासन का पतन अवश्यम्भावी हो जाता है।
- सैनिकों को समय पर वेतन नहीं मिलता था। उनके खाने-पीने तथा रहने की उचित व्यवस्था नहीं थी। उन्हें युद्ध के समय पुराने अस्त्र-शस्त्र दिए जाते थे। ऐसी स्थिति में सेना में रोष का उत्पन्न होना स्वाभाविक था।
फ्रांस की क्रांति से जुड़े तथ्य
- फ्रांस की राज्यक्रांति 1789 ई. में लूई सोलहवां के शासनकाल में हुई।
- फ्रांस की राज्यक्रांति के समय फ्रांस में सामंती व्यवस्था थी ।
- 14 जुलाई, 1789 ई. को क्रांतिकारियों ने बास्तील के कारागृह फाटक को तोड़कर बंदियों को मुक्त कर दिया।
- तब से 14 जुलाई को फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का नारा फ्रांस की राज्यक्रांति की देन है।
- मैं ही राज्य हूं और मेरे ही शब्द कानून हैं- ये कथन लुई चौदहवां का है।
- वर्साय के शीश महल का निमार्ण लुई चौदहवां ने करवाया ।
- लुई चौदहवां ने वर्साय को फ्रांस की राजधानी घोषित किया।
- लुई सोलहवां फ्रांस की गद्दी पर 1774 ई. में बैठा।
- लुई सोलहवां की पत्नी मेरी एंत्वा नेता अस्ट्रिया की राजकुमारी थी।
- लुई सोलहवां को देशद्रोह के अपराध फांसी की सजा दी गई ।
- टैले एक प्रकार का भूमिकर था।
- फ्रांसीसी क्रांति में सबसे अहम योगदान वाल्टेयर, मौटेस्यू एवं रूसो का था।
- वाल्टेयर चर्च का विरोधी था।
- रूसो फ्रांस में लोकतंत्र शासन पद्धति का समर्थक था।
- सौ चूहों की अपेक्षा एक सिंह का शासन उत्तम है- ये कथन वाल्टेयर के थे।
- सोशल कांट्रेक्ट रूसो की रचना है।
- कानून की आत्मा की रचना मौटेस्यू ने की।
- मापतौल की दशमलव प्रणाली फ्रांस की देन है।
- सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का जनक हर्डर को कहा जाता है।
- नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त 1769 ई. में हुआ। नेपोलियन का जन्म कोर्सिका द्वीप की राजधानी अजासियो में हुआ।
- नेपोलियन के पिता का नाम कार्लो बोनापार्ट था।
- नेपोलियन ने ब्रिटेन की सैनिक अकादमी में शिक्षा प्राप्ता की।
- नेपोलियन ने इटली में ऑस्ट्रिया (1796 ई.) के प्रमुख को समाप्त किया।
- फ्रांस में डायरेक्टरी के शासन का अंत 1799 ई. में हुआ।
- पहली बार नेपोलियन 1799 ई. में कॉन्सल बना।
- जीवनभर के लिए नेपोलियन 1802 ई. में कॉन्सल बना।
- नेपोलियन फ्रांस का सम्राट 1804 ई. में बना।
- आधुनिक फ्रांस का निमार्ता नेपोलियन को माना गया है।
- इंग्लैंड को बनियों का देश सबसे पहले नेपोलियन ने कहा था।
- स्ट्राल्फकगर का युद्ध 21 अक्टूबर 1805 ई. में इंगलैंड और नेपोलियन के बीच हुआ।
- बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना 1800 ई. में नेपोलियन ने की।
- नेपोलियन का कोड नेपोलियन द्वारा तैयार कानूनों का संग्रह कहा गया।
- एल्बा के टापू पर नेपोलियन को बंदी बनाकर रखा गया था।
- मित्र राष्ट्रों की सेना ने नेपोलियन को वॉटर लू युद्ध में (18 जून 1815 ई.) में पराजित किया।
- नेपोलियन की मृत्यु 1821 ई. में हुई।
- नेपोलियन को लिट्ल कारपोरल के नाम से जाना जाता था।
- नेपोलियन के पतन का कारण रूस पर आक्रमण करना था।
- इंगलैंड के कारोबार का बहिष्कार करने के लिए नेपोलियन ने महाद्विपीय व्योवस्था का सूत्रपात किया।
- विएना समझौते के तहत यूरोप के देशों ने फ्रांस के प्रभुत्व को 1815 ई. में खत्म किया।
- नेपोलियन को नील नदी के युद्ध में अंग्रेजी जहाजी बेड़े के नायक नेल्सन के हाथों बुरी तरह पराजित होना पड़ा।
फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम
- निरंकुश शासन का अंत कर प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली की नींव डाली गई। प्रशासन के साथ-साथ सामजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
- फ्रांस की क्रांति ने निरंकुश शासन का अंत कर लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत को प्रतिपादित किया।
- क्रांति के पूर्व फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों के शासक निरंकुश थे। उन पर किसी प्रकार का वैधानिक अंकुश नहीं था।
- क्रांति ने राजा के विशेषाधिकारों और दैवी अधिकार सिद्धांत पर आघात किया। इस क्रांति के फलस्वरूप सामंती प्रथा (Feudal System) का अंत हो गया।
- कुलीनों के विदेषाधिकार समाप्त कर दिए गए किसानों को सामंती कर से मुक्त कर दिया गया। कुलीनों और पादरियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गये।
- लोगों को भाषण-लेखन तथा विचार - अभिव्यक्ति का अधिकार दिया गया। फ्रांस की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कर प्रणाली ( tax system) में सुधार लाया गया।
- कार्यपालिका, न्यायपालिका और व्यवस्थापिका को एक-दूसरे से पृथक् कर दिया गया। अब राजा को संसद के परामर्श से काम करना पड़ता था।
- न्याय को सुलभ बनाने के लिए न्यायालय का पुनर्गठन किया गया। सरकार के द्वारा सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था की गई।
- फ्रांस में एक एक प्रकार की शासन व्यवस्था स्थापित की गई, एक प्रकार के आर्थिक नियम बने और नाप-तौल की नयी व्यवस्था चालू की गई।
- लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली। उन्हें किसी भी धर्म के पालन और प्रचार का अधिकार मिला। पादरियों को संविधान के प्रति वफादारी की शपथ लेनी पड़ती थी।
- फ्रांसीसी क्रांति ने लोगों को विश्वास दिलाया कि राजा एक अनुबंध के अंतर्गत प्रजा के प्रति उत्तरदायी है।
- यदि राजा अनुबंध को भंग करता है तो प्रजा का अधिकार है कि वह राजा को पदच्युत कर दे।
- यूरोप के अनेक देशों में निरंकुश राजतंत्र को समाप्त कर प्रजातंत्र की स्थापना की गयी ।
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