BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH HISTORY NOTES | रूसी क्रांति

यूरोप के सबसे पिछड़े औद्योगिक देशों में से एक, रूस में यह समीकरण उलट गया। 1917 की अक्तूबर क्रांति के ज़रिए रूस की सत्ता पर समाजवादियों ने कब्जा कर लिया। फरवरी 1917 में राजशाही के पतन और अक्तूबर की घटनाओं को ही अक्तूबर क्रांति कहा जाता है।

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH HISTORY NOTES | रूसी क्रांति

BPSC TRE 2.0 SOCIAL SCIENCE CLASS 9TH HISTORY NOTES | रूसी क्रांति

  • यूरोप के सबसे पिछड़े औद्योगिक देशों में से एक, रूस में यह समीकरण उलट गया। 1917 की अक्तूबर क्रांति के ज़रिए रूस की सत्ता पर समाजवादियों ने कब्जा कर लिया। फरवरी 1917 में राजशाही के पतन और अक्तूबर की घटनाओं को ही अक्तूबर क्रांति कहा जाता है।
रूसी साम्राज्य, 1914
  • 1914 में रूस और उसके पूरे साम्राज्य पर ज़ार निकोलस II का शासन था। मास्को के आसपास पड़ने वाले भूक्षेत्र के अलावा आज का फिनलैंड, लातविया, लिथुआनिया एस्तोनिया तथा पोलैंड, यूक्रेन व बेलारूस के कुछ हिस्से रूसी साम्राज्य के अंग थे।
  • यह साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था और आज के मध्य एशियाई राज्यों के साथ-साथ जॉर्जिया, आर्मेनिया व अज़रबैजान भी इसी साम्राज्य के अंतर्गत आते थे।
  • रूस में ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च से उपजी शाखा रूसी ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियैनिटी को मानने वाले बहुमत में थे। लेकिन इस साम्राज्य के तहत रहने वालों में कैथलिक, प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम और बौद्ध भी शामिल थे।
रूस में समाजवाद
  • 1914 से पहले रूस में सभी राजनीतिक पार्टियाँ गैरकानूनी "थीं। मार्क्स के विचारों को मानने वाले समाजवादियों ने 1898 में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी (रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक पार्टी) का गठन किया था।
  • सरकारी आतंक के कारण इस पार्टी को गैरकानूनी संगठन के रूप में काम करना पड़ता था। इस पार्टी का एक अखबार निकलता था, उसने मज़दूरों को संगठित किया था और हड़ताल आदि कार्यक्रम आयोजित किए थे।
  • कुछ रूसी समाजवादियों को लगता था कि रूसी किसान जिस तरह समय-समय पर ज़मीन बाँटते हैं उससे पता चलता है कि वह स्वाभाविक रूप से समाजवादी भावना वाले लोग हैं।
  • रूस में मजदूर नहीं बल्कि किसान ही क्रांति की मुख्य शक्ति बनेंगे। वे क्रांति का नेतृत्व करेंगे और रूस बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा जल्दी समाजवादी देश बन जाएगा।
  • उन्नीसवीं सदी के आखिर में रूस के ग्रामीण इलाकों में समाजवादी काफी सक्रिय थे। सन् 1900 में उन्होंने सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी (समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी) का गठन कर लिया।
  • इस पार्टी ने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और माँग की कि सामंतों के कब्ज़े वाली ज़मीन फौरन किसानों को सौंपी जाए। किसानों के सवाल पर सामाजिक लोकतंत्रवादी (Social Democrats) खेमा समाजवादी क्रांतिकारियों से सहमत नहीं था ।
  • लेनिन का मानना था कि किसानों में एकजुटता नहीं है वे बँटे हुए हैं। कुछ किसान गरीब थे तो कुछ अमीर, कुछ मज़दूरी करते थे तो कुछ पूँजीपति थे जो नौकरों से खेती करवाते थे। इन आपसी 'विभेदों' के चलते वे सभी समाजवादी आंदोलन का हिस्सा नहीं हो सकते थे।
  • सांगठनिक रणनीति के सवाल पर पार्टी में गहरे मतभेद थे। व्लादिमीर लेनिन (बोल्शेविक खेमे के मुखिया) सोचते थे कि ज़ार (राजा) शासित रूस जैसे दमनकारी समाज में पार्टी अत्यंत अनुशासित होनी चाहिए और अपने सदस्यों की संख्या व स्तर पर उसका पूरा नियंत्रण होना चाहिए ।
  • दूसरा खेमा ( मेन्शेविक) मानता था कि पार्टी में सभी को सदस्यता दी जानी चाहिए।
अर्थव्यवस्था और समाज
  • बीसवीं सदी की शुरुआत में रूस की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ था। रूसी साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत जनता आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थी।
  • यूरोप के किसी भी देश में खेती पर आश्रित जनता का प्रतिशत इतना नहीं था । उदाहरण के तौर पर, फ़्रांस और जर्मनी में खेती पर निर्भर आबादी 40-50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी।
  • रूसी साम्राज्य के किसान अपनी ज़रूरतों के साथ-साथ बाज़ार के लिए भी पैदावार करते थे। रूस अनाज का एक बड़ा निर्यातक था।
  • सेंट पीटर्सबर्ग और मास्को प्रमुख औद्योगिक इलाके थे। हालाँकि ज्यादातर उत्पादन कारीगर ही करते थे लेकिन कारीगरों की वर्कशॉपों के साथ-साथ बड़े-बड़े कल-कारखाने भी मौजूद थे।
  • बहुत सारे कारखाने 1890 के दशक में चालू हुए थे जब रूस के रेल नेटवर्क को फैलाया जा रहा था। उसी समय रूसी उद्योगों में विदेशी निवेश भी तेजी से बढ़ा था।
  • इन कारकों के चलते कुछ ही सालों में रूस के कोयला उत्पादन में दोगुना और स्टील उत्पादन में चार गुना वृद्धि हुई थी। सन् 1900 तक कुछ इलाकों में तो कारीगरों और कारखाना मज़दूरों की संख्या लगभग बराबर हो चुकी थी।
  • ज्यादातर कारखाने उद्योगपतियों की निजी संपत्ति थे। मज़दूरों को न्यूनतम वेतन मिलता रहे और काम की पाली के घंटे निश्चित हों- इस बात का ध्यान रखने के लिए सरकारी विभाग बड़ी फैक्ट्रियों पर नज़र रखते थे। लेकिन फैक्ट्री इंस्पेक्टर भी नियमों के उल्लंघन को रोक पाने में नाकामयाब थे।
  • कारीगरों की इकाइयों और वर्कशॉपों में काम की पाली प्राय: 15 घंटे तक खिंच जाती थी जबकि कारखानों में मज़दूर आमतौर पर 10-12 घंटे की पालियों में काम करते थे। मज़दूरों के रहने के लिए भी कमरों से लेकर डॉर्मिटरी तक तरह-तरह की व्यवस्था मौजूद थी।
  • सामाजिक स्तर पर मज़दूर बँटे हुए थे। कुछ मज़दूर अपने मूल गाँवों के साथ अभी भी गहरे संबंध बनाए हुए थे। बहुत सारे मजदूर स्थायी रूप से शहरों में ही बस चुके थे। उनके बीच योग्यता और दक्षता के स्तर पर भी काफी फ़र्क था।
  • 1914 में फ़ैक्ट्री मजदूरों में औरतों की संख्या 31 प्रतिशत थी लेकिन उन्हें पुरुष मज़दूरों के मुकाबले कम वेतन मिलता था मजदूरों के बीच मौजूद फ़ासला उनके पहनावे और व्यवहार में भी साफ़ दिखाई देता था।
  • यद्यपि कुछ मज़दूरों ने बेरोज़गारी या आर्थिक संकट के समय एक-दूसरे की मदद करने के लिए संगठन बना लिए थे लेकिन ऐसे संगठन बहुत कम थे।
  • इन विभेदों के बावजूद, जब किसी को नौकरी से निकाल दिया जाता था स्रोत या उन्हें मालिकों से कोई शिकायत होती थी तो मजदूर एकजुट होकर हड़ताल भी कर देते थे।
  • 1896-1897 के बीच कपड़ा उद्योग में और 1902 में धातु उद्योग में ऐसी हड़तालें काफ़ी बड़ी संख्या में आयोजित की गई।
  • देहात की ज़्यादातर ज़मीन पर किसान खेती करते थे। लेकिन विशाल संपत्तियों पर सामंतों, राजशाही और ऑर्थोडॉक्स चर्च का कब्ज़ा था। मज़दूरों की तरह किसान भी बँटे हुए थे। 
  • किसान बहुत धार्मिक स्वभाव के थे । इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ दिया जाए तो वे सामंतों और नवाबों का बिल्कुल सम्मान नहीं करते थे।
  • नवाबों और सामंतों को जो सत्ता और हैसियत मिली हुई थी वह लोकप्रियता की वजह से नहीं बल्कि ज़ार के प्रति उनकी निष्ठा और सेवाओं के बदले में मिली थी।
  • यहाँ की स्थिति फ्रांस जैसी नहीं थी। मिसाल के तौर पर, फ़ासीसी क्रांति के दौरान ब्रिटनी के किसान न केवल नवाबों का सम्मान करते थे बल्कि उन्होंने नवाबों को बचाने के लिए बाकायदा लड़ाइयाँ भी लड़ीं।
  • इसके विपरीत, रूस के किसान चाहते थे कि नवाबों की ज़मीन छीनकर किसानों के बीच बाँट दी जाए। बहुधा वह लगान भी नहीं चुकाते थे ।
  • कई जगह तो ज़मींदारों की हत्या भी की जा चुकी थी। 1902 में दक्षिणी रूस में ऐसी घटनाएँ बड़े पैमाने पर घटीं। 1905 में तो पूरे रूस में ही ऐसी घटनाएँ घटने लगीं।
  • रूसी किसान यूरोप के बाकी किसानों के मुकाबले एक और लिहाज़ से भी भिन्न थे। यहाँ के किसान समय-समय पर सारी ज़मीन को अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की ज़रूरत के हिसाब से किसानों को ज़मीन बाँटता था।

1905 की क्रांति

  • रूस एक निरंकुश राजशाही था । अन्य यूरोपीय शासकों के विपरीत बीसवीं सदी की शुरुआत में भी ज़ार राष्ट्रीय संसद के अधीन नहीं था। उदारवादियों ने इस स्थिति को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई।
  • 1905 की क्रांति के दौरान उन्होंने संविधान की रचना के लिए सोशल डेमोक्रेट और समाजवादी क्रांतिकारियों को साथ लेकर किसानों और मज़दूरों के बीच काफी काम किया।
  • रूसी साम्राज्य के तहत उन्हें राष्ट्रवादियों (जैसे पोलैंड में) और इस्लाम के आधुनिकीकरण के समर्थक जदीदियों ( मुस्लिम बहुल इलाकों में) का भी समर्थन मिला।
  • रूसी मज़दूरों के लिए 1904 का साल बहुत बुरा रहा। ज़रूरी चीज़ों की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ीं कि वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई। उसी समय मज़दूर संगठनों की सदस्यता में भी तेजी से वृद्धि हुई।
  • जब 1904 में ही गठित की गई असेंबली ऑफ़ रशियन वर्कर्स (रूसी श्रमिक सभा) के चार सदस्यों को प्युतिलोव आयरन वर्क्स में उनकी नौकरी से हटा दिया गया तो मज़दूरों ने आंदोलन छेड़ने का एलान कर दिया।
  • अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 110,000 से ज्यादा मज़दूर काम के घंटे घटाकर आठ घंटे किए जाने, वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की माँग करते हुए हड़ताल पर चले गए।
  • इसी दौरान जब पादरी गैपॉन के नेतृत्व में मज़दूरों का एक जुलूस विंटर पैलेस (ज़ार का महल) के सामने पहुँचा तो पुलिस और कोसैक्स ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया।
  • इस घटना में 100 से ज्यादा मज़दूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए । इतिहास में इस घटना को खूनी रविवार के नाम से याद किया जाता है।
  • 1905 की क्रांति की शुरुआत इसी घटना से हुई थी। सारे देश में हड़तालें होने लगीं। जब नागरिक स्वतंत्रता के अभाव का विरोध करते हुए विद्यार्थी अपनी कक्षाओं का बहिष्कार करने लगे तो विश्वविद्यालय भी बंद कर दिए गए।
  • वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य मध्यवर्गीय कामगारों ने संविधान सभा के गठन की माँग करते हुए यूनियन ऑफ़ यूनियंस की स्थापना कर दी।
  • 1905 की क्रांति के दौरान ज़ार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद या ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दे दी। क्रांति के समय कुछ दिन तक फैक्ट्री मज़दूरों की बहुत सारी ट्रेड यूनियनें और फैक्ट्री कमेटियाँ भी अस्तित्व में रहीं।
  • 1905 के बाद ऐसी ज़्यादातर कमेटियाँ और यूनियनें अनधिकृत रूप से काम करने लगीं क्योंकि उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। राजनीतिक गतिविधियों पर भारी पाबंदियाँ लगा दी गईं।
  • ज़ार ने पहली ड्यूमा को मात्र 75 दिन के भीतर और पुनर्निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया। वह किसी तरह की जवाबदेही या अपनी सत्ता पर किसी तरह का अंकुश नहीं चाहता था।
  • उसने मतदान कानूनों में फेरबदल करके तीसरी ड्यूमा में रुढ़िवादी राजनेताओं को भर डाला। उदारवादियों और क्रांतिकारियों को बाहर रखा गया।
रूस की क्रांति 1917
  • 1917 की रूसी क्रांति बीसवीं शताब्दी के विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही है।
  • 1789 की फ्रांस की क्रांति में जहां स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की भावना का प्रचार कर यूरोपीय जीवन को प्रभावित किया।
  • वहां रूसी क्रांति ने ना केवल रूस और यूरोप को बल्कि पूरे विश्व पर गहरा प्रभाव डाला।
  • इस क्रांति में ना केवल निरंकुश एकतंत्री, स्वेच्छाचारी, जार शाही शासन का अंत किया
  • बल्कि कुलीन जमींदारों सामंती पूंजीपतियों आदि की आर्थिक और सामाजिक सत्ता को समाप्त करते हुए विश्व में पहली बार मजदूरों और किसानों की सत्ता स्थापित की मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद को मूर्त रूप रूसी क्रांति ने ही दिया।
  • इस क्रांति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित किया यह विचारधारा 1977 के बाद शक्तिशाली हो गई 1950 तक लगभग आधा विश्व इसके अंतर्गत पा चुका था।
  • 1905 में जापान द्वारा रूस पर आक्रमण रूसी की हार जनता द्वारा शासन वर्ग का विरोध जन असंतोष तथा मजदूर वर्ग का विरोध जन असंतोष तथा मजदूर वर्ग की दयनीय स्थिति में क्रांति को आवश्यक बना दिया ।
  • देश को क्रांति की ज्वाला में गिरने से बचाने के लिए स्वायत्त संस्थाओं के उदारवादी नेताओं ने शासन के समक्ष कुछ मांगे रखी जिनको जार ने ना मानकर प्रशासकीय सुधार को आवश्यक दिया। ऐसे समय में हड़ताल मजदूरों ने अपनी मांगों के समर्थन में रूस के शासक जार को एक ज्ञापन सौंपा।
  • जार ने निहत्थे व अनुशासन लोगों पर गोलियों की बौछार करा दी जिसे खूनी रविवार 22 जनवरी 1905 के नाम से जाना जाता है। यहां से क्रांति का आगाज हुआ मजदूरों के साथ कृषकों रेलवे कर्मचारियों ने भी विद्रोह कर दिया।
  • जनता के आक्रोश की बाढ़ को जार (रूसी शासक) सहन नहीं कर पाया और मजबूर होकर उसने जनता को मूल अधिकार व स्वतंत्रता लेने का निर्णय लिया तथा मताधिकार के आधार पर निर्वाचित विधायक शक्ति प्राप्त संसद ड्यूमा स्थापित करने का वचन दिया जो कि इस क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम था।
रूसी क्रांति के प्रमुख कारण
  • निरंकुश और स्वेच्छाचारी जार का शासन रूस में लंबे समय से निरंकुश राजशाही का शासन था जो राजस्व की देवीय सिद्धांत में विश्वास करते थे तथा मानते थे कि जार उसका एक ही पति है और किसी के प्रति उत्तरदाई नहीं है।
  • क्रांति के समय जार निकोलस द्वितीय था इसके समय प्रेस की स्वतंत्रता नहीं थी नागरिकों को किसी प्रकार की अधिकार प्राप्त नहीं थी तथा बौद्धिक गतिविधियों पर कठोर नियंत्रण था ।
  • निरंकुश शासक उस समय मौजूद था। यूरोप में राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे तथा संवैधानिक राजतंत्र और गणतंत्र की स्थापना हो रही थी। ऐसी स्थिति में जार की निरंकुशता जनता के लिए असहनीय हो गए और वह जार शाही के विरुद्ध संगठित हो गए।
  • अयोग्य व भ्रष्ट नौकरशाह ख्र रूस में जारो ने जो नौकरशाही की स्थापना की थी वह और अकुशल थी।
  • शासन के उच्च पदों पर कुलीन वर्ग को नियुक्त किया जाता था जो स्वयं भी निरंकुश और स्वेच्छाचारी थे।
  • यह नौकरशाह वंशानुगत रूप लिए हुए थे इस प्रकार शासन में योग्यता और भ्रष्टाचारी नौकरशाही का बोला था | इसमें जनता को और भी क्रोधित किया।
किसानों की दयनीय दशा
  • 18 वीं सदी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई जिस कारण वह कृषि उत्पादन में वृद्धि नए उद्योग में काम करने के लिए यातायात के साधनों का प्रयोग हुआ। किंतु रूस एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद पिछड़ा रहा यहां कृषकों को दशा अत्यंत दयनीय थी।
  • 1861 में कृषक दास की मुक्ति की व्यवस्था की गई थी इसके कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया अभी भी 68% भूमि जमींदारों के पास 13% भूमि चर्च के अधिकार में थी।
  • जमीदार किसानों से बेगार लेते थे जिसे कोरवी कहा जाता था।
  • इसने किसानों की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया किसान खेती के उन्नत तरीके अपनाने के असमर्थ थे क्योंकि स्वयं के भरण पोषण और जमींदारों का कर निकालते हुए उनके पास पूंजी का अभाव था।
  • अतः पुरातन तरीके से की जाने वाली खेती में उनकी दशा और भी दयनीय हो गई उन्होंने करो की कमी तथा विशेष अधिकारो की समाप्ति की मांग की।
  • असंतोष कृषक वर्ग की दशा का लाभ उठाकर क्रांतिकारी समाजवादी दल ने इन्हें शासन के विरुद्ध खड़ा कर दिया।
श्रमिकों की हीन दशा
  • रूस में औद्योगिकरण की स्थिति बहुत देर से आई ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त भुखमरी और बेरोजगारी से मुक्ति की तलाश में लोग शहरों की ओर उद्योगों में काम करने पहुंचे श्रमिकों की भीड़ में उनके परिश्रम का मूल्य कम कर दिया गया।
  • इससे न्यूनतम मजदूरी के बदले अधिकतम काम लेने की प्रवृत्ति उद्योगपतियों में बढ़ गई श्रमिकों के घंटे निश्चित नहीं थे मजदूरी भी निश्चित नहीं थी शारिरिक क्षतिपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं था। 
  • श्रमिकों के आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा मनोरंजन आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी यह मजदूर संघ स्थापित नहीं कर सकते थे। उनकी दशा अत्यंत दयनीय थी।
  • 1898 में गठित सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी ने श्रमिकों में असंतोष को समाजवादी क्रांति में तब्दील कर दिया।
सामाजिक और आर्थिक असमानता
  • असमानता रूसी समाज दो आसमान वर्गों में बंटा था-
  • प्रथम विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग इसमें कुलीन, सामन्त, जार के कृपा पात्र तथा बड़े पूंजीपति थे।
  • दूसरा अधिकार विहीन श्रमिक वर्ग था जिसमें किसान मजदूर मध्यम वर्ग शिक्षक आदि शामिल थे। प्रथम वर्ग निरंकुश और स्वेच्छाचारी था तथा उत्पादन के सभी साधन उनके हाथों में थे तथा अधिकार विहीन वर्ग उत्पादन के साधनों का सामाजिकरण करने के पक्ष में था।
  • इसी आर्थिक और सामाजिक विषमता के कारण उत्पन्न वर्ग संघर्ष की क्रांति का आधार बना।
समाजवादी विचारधारा का विकास 
  • यूरोप में औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप समाजवादी विचारधारा अस्तित्व में आई। समाजवादियों का उद्देश्य मजदूरों की कार्य एवं आवासीय दशा में सुधार करना था और रूस में भी समाजवादी विचारधारा का तीव्रता से विकास होने लगा।
  • फलस्वरूप 1898 में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी तथा 1902 में सोशियल रिवॉल्यूशनरी पार्टी की स्थापना हुई।
  • सोशलिस्ट रिवॉल्यूशनरी पार्टी किसानों को संगठित कर क्रांति लाना चाहती थी जबकि सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी सर्वहारा वर्ग की क्रांति को आधार मानते थे।
  • सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी 1903 में दो वर्गों में विभाजित हो गई। बोल्शेविक जो बहुमत में था तथा दूसरा मैनशेविक्स जो अल्पमत में था इन समाजवादी दलों ने किसानों और मजदूरों को संगठित कर उनके असंतोष को दूर करके क्रांति के लिए आधार तैयार किया।
  • जार की रूसीकरण की नीति ख्र रूस में रूसी यहूदी, उजबेक , पोल, तातर आदि विभिन्न जातियां रहती थी।
  • जिनकी अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक परंपरा थी जार इनको अपनी संस्कृति छोड़ कर रूसी करन हेतु मजबूर कर रहा था जार अलेक्जेंडर 3 ने नारा भी दिया था।
  • एक चर्च और एक रूस इससे गेर रुसी जातियां जार शाही की कट्टर विरोधी बन गई
प्रगतिशील चेतना का विकास
  • उपन्यासों और नाटकों के माध्यम से रूस की राजनीतिक सामाजिक आर्थिक व सांस्कृतिक सरंचना पर तीखी टिप्पणी होने लगी इससे रूस में एक नई चेतना का विकास हुआ।
  • इस समय टॉलस्टॉय, गोरकी आदि उच्च कोटि के उपन्यास कहानी व नाट्य लेखक ने बोद्धिक चेतना को बढ़ाने में महत्वपूर्ण कार्य किया। इन सब के प्रभाव में एक सशक्त बुद्धिजीवी वर्ग का उदय हुआ
रूस जापान युद्ध
  • 1905 में रूस जापान युद्ध में रूस बुरी तरह हारा । इस पराजय ने उसकी महानता को मिथ्या साबित किया । एशिया के एक छोटे देश जापान से पराजित हो गया था।
  • रूसी जनता देश की व्यवस्था के लिए जार के शासन व्यवस्था को दोषी ठहराने लगी।
  • जिसके प्रमुख मांग एक प्रतिनिधि सभा की स्थापना और शासन को उदार बनाना था।
1905 की क्रांति
  • 9 जनवरी 1905 रविवार के दिन सेंट पीटर्स वर्ग की सड़कों पर मजदूरों का शांतिपूर्वक जुलूस जार के राज महल की ओर प्रस्थान कर रहा था तभी शाही सेना ने मजदुरो पर गोलियों की बौछार कर दी जिसमें हजारों मजदूर मारे गए यह दिन इतिहास में खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
  • इस घटना से देश भर में जार जारशाही के विरुद्ध असंतोष की लहर फैल गई जिससे जार निकोलस को मजबूर होकर उनकी मांगें मानी पड़ी तथा प्रशासकीय सुधारों की घोषणा करनी पड़ी।
  • इससे पहली बार संसद की स्थापना हुई जिसे ड्यूमा कहा जाता है।
  • 1905 की क्रांति को एक वास्तविक क्रांति नहीं कहा जा सकता यह सफलता का एक पड़ाव कहा जा सकता है ।
तात्कालिक कारण
  • प्रथम विश्व युद्ध में रूस की भागीदारी जार की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा ने उसको 1914 के प्रथम विश्व युद्ध में ध केल दिया।
  • उसने मित्र राष्ट्रों की ओर से भागीदारी निभाई युद्ध में जर्मनी ने रूसी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया रूस में किसानों को • जबरन सेना में भर्ती किया गया।
  • उचित प्रशिक्षण अस्त्र शस्त्रों का अभाव तथा लोहे और कोयले की कमी के कारण कारखाने बंद होने लगे तथा परिणाम स्वरूप आर्थिक रूप से जर्जर रूस पतन की ओर पहुंच गया।
  • रूसी सेनाओ की निरंतर पराजय से सैनिकों तथा जनता भी इसे राष्ट्रीय अपमान के रूप में देखने लगी।
  • जारशाही और उसका दरबार बिखरने की कगार पर आ गया सभी को अपने कष्टों का कारण शासन की योग्यता मैं नजर आ रहा था
  • इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध में रूस में क्रांति की प्रक्रिया को तेज कर दिया।
प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18)
  • प्रथम विश्वयुद्ध, विश्व स्तर पर लड़ा जाने वाला प्रथम प्रलयंकारी युद्ध था। इसमें विश्व के लगभग सभी प्रभावशाली राष्ट्रों ने भाग लिया।
  • यह युद्ध मित्र राष्ट्रों (इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली, रूमानिया तथा उनके सहयोगी राष्ट्रों) और केंद्रीय शक्तियों (जर्मनी, ऑस्ट्रिया - हंगरी, तुर्की, बुल्गारिया इत्यादि) के बीच हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय और केंद्रीय शक्तियों की पराजय हुई।
प्रथम विश्व युद्ध के कारण
  • प्रथम विश्व युद्ध को ग्रेट वार अथवा ग्लोबल वार भी कहा जाता है। उस समय ऐसा माना गया कि इस युद्ध के बाद सारे युद्ध खत्म जायेंगे, अत: इसे 'वॉर टू एंड आल वार्स' भी कहा गया। किन्तु ऐसा कुछ हुआ नहीं और इस युद्ध के कुछ सालों बाद द्वितीय विश्व युद्ध भी हुआ।
  • इसे ग्रेट वार इसलिए कहा गया है कि इस समय तक इससे बड़ा युद्ध नहीं हुआ था। यह लड़ाई 28 जुलाई 1914 से लेकर 11 नवम्बर 1918 तक चली थी, जिसमे मरने वालों की संख्या एक करोड़ सत्तर लाख थी।
  • इस आंकड़े में एक करोड़ दस लाख सिपाही और लगभग 60 लाख आम नागरिक मारे गये। इस युद्ध में जख्मी लोगों की संख्या 2 करोड़ थी।
प्रथम विश्व युद्ध में दो योद्धा दल
  • इस युद्ध में एक तरफ अलाइड शक्ति और दूसरी तरफ सेंट्रल शक्ति थे। अलाइड शक्ति रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापान था।
  • संयुक्त राष्ट्र अमेरिका इस युद्ध में साल 1917-18 के दौरान संलग्न रहा। सेंट्रल शक्ति में केवल 3 देश मौजूद थे। ये तीन देश ऑस्ट्रो- हंगेरियन, जर्मनी और ओटोमन एम्पायर था।
  • इस समय ऑस्ट्रो- हंगरी में हब्स्बर्ग नामक वंश का शासन था। ओटोमन आज के समय में ओटोमन तुर्की का इलाका है।
यूरोपीय शक्ति- संतुलन का बिगड़ना
  • 1871 में जर्मनी के एकीकरण के पूर्व युरोपीय राजनीती में जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी, परन्तु बिस्मार्क के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ।
  • इससे युरोपीय शक्ति ख्र संतुलन गड़बड़ा गया। इंग्लैंड और फ्रांस के लिए जर्मनी एक चुनौती बन गया। इससे युरोपीय राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ी।
गुप्त संधिया एवं गुटों का निर्माण
  • जर्मनी के एकीकरण के पश्चात वहां के चांसलर बिस्मार्क ने अपने देश को युरोपीय राजनीती में प्रभावशाली बनाने के लिए तथा फ्रांस को यूरोप की राजनीती में मित्रविहीन बनाए रखने के लिए गुप्त संधियों की नीतियाँ अपनायीं।
  • उसने ऑस्ट्रिया - हंगरी (1879) के साथ द्वैत संधि (Dual Alliance) की।
  • रूस (1881 और 1887) के साथ भी मैत्री संधि की गयी. इंग्लैंड के साथ भी बिस्मार्क ने मैत्रीवत सम्बन्ध बनाये। 1882 में उसने इटली और ऑस्ट्रिया के साथ मैत्री संधि की।
  • फलस्वरूप, यूरोप में एक नए गुट का निर्माण हुआ जिसे त्रिगुट संधि (Triple Alliance) कहा जाता है।
  • इसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया- हंगरी एवं इटली सम्मिलित इंगलैंड और फ्रांस इस गुट से अलग रहे ।
जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता
  • जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी। जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्सेस- लौरेन पर अधिकार कर लिया था।
  • मोरक्को में भी फ्रांसीसी हितो को क्षति पहुचाई गयी थी। इसलिए फ्रांस का जनमत जर्मनी के विरुद्ध था। फ्रांस सदैव जर्मनी को नीचा दिखलाने के प्रयास में लगा रहता था।
  • दूसरी ओर जर्मनी भी फ्रांस को शक्तिहीन बनाये रखना चाहता था। इसलिए जर्मनी ने फ्रांस को मित्रविहीन बनाये रखने के लिए त्रिगुट समझौते कियाद्य बदले में फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध अपने सहयोगी राष्ट्रों का गुट बना लिया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता इतनी बढ़ गयी की इसने युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया।
प्रथम विश्व युद्ध के चार मुख्य कारण
  • इन कारणों को MAIN के रूप में याद रखा जाता है । इस शब्द में M मिलिट्रीज्म, A अलायन्स, सिस्टम, I इम्पेरिअलिस्म और N नेशनलिज्म के लिए आया है।
मिलिट्रीज्म :
  • मिलिट्रीज्म में हर देश ने खुद को हर तरह के आधुनिक हथियारों से लैस करने का प्रयास किया। इस प्रयास के अंतर्गत सभी देशों ने अपने अपने देश में इस समय आविष्कार होने वाले मशीन गन, टैंक, बन्दुक लगे 3 बड़े जहाज, बड़ी आर्मी का कांसेप्ट आदि का आविर्भाव हुआ।
  • कई देशों ने भविष्य के युद्धों की तैयारी में बड़े बड़े आर्मी तैयार कर दिए। इन सभी चीजों में ब्रिटेन और जर्मनी दोनों काफी आगे थे।
  • इनके आगे होने की वजह इन देशों बढ़ना था। औद्योगिक क्रान्ति की वजह से यह देश बहुत अधिक विकसित हुए और अपनी सैन्य क्षमता को बढाया।
  • इन दोनों देशों ने अपने इंडस्ट्रियल कोम्प्लेक्सेस का इस्तेमाल अपनी सैन्य क्षमता को बढाने के लिए किया, जैसे बड़ी बड़ी विभिन्न कम्पनियों में मशीन गन का, टैंक आदि के निर्माण कार्य चलने लगे।
  • इस समय विश्व के अन्य देश चाहते थे कि वे ब्रिटेन और ' जर्मनी की बराबरी कर लें किन्तु ऐसा होना बहुत मुश्किल था। मिलिट्रीज्म की वजह से कुछ देशों में ये अवधारणा बन गयी कि उनकी सैन्य क्षमता अति उत्कृष्ट है और उन्हें कोई किसी भी तरह से हरा नहीं सकता है।
  • ये एक गलत अवधारणा थी और इसी अवधारणा के पीछे कई लोगों ने अपनी मिलिट्री का आकार बड़ा किया। अतः मॉडर्न आर्मी का कांसेप्ट यहीं से शुरू हुआ।
  • विभिन्न संधीयाँ यानि गठबंधन प्रणाली : यूरोप में 19वीं शताब्दी के दौरान शक्ति में संतुलन स्थापित करने के लिए विभिन्न देशों ने अलायन्स अथवा संधियाँ बनानी शुरू की।
  • इस समय कई तरह की संधियाँ गुप्त रूप से हो रही थी। जैसे किसी तीसरे देश को ये पता नहीं चलता था कि उनके सामने के दो देशों के मध्य क्या संधि हुई है।
  • इस समय में मुख्य तौर पर दो संधियाँ हुई, जिसके दूरगामी परिणाम हुए। इन दोनों संधि के विषय में दिया जा रहा है, साल 1882 का ट्रिपल अलायन्स : साल 1882 में जर्मनी ऑस्ट्रिया- हंगरी और इटली के बीच संधि हुई थी।
साल 1907 का ट्रिपल इंटेंट :
  • साल 1907 में फ्रांस, ब्रिटेन और रूस के बीच ट्रिपल इंटेंट हुआ। साल 1904 में ब्रिटेन और रूस के बीच कोर्दिअल इंटेंट नामक संधि हुई। इसके साथ रूस जुड़ने के बाद ट्रिपल इंटेंट के नाम से जाना गया।
  • यद्यपि इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रिया- हंगरी के साथ था किन्तु युद्ध के दौरान इसने अपना पाला बदल लिया था और फ्रांस एवं ब्रिटेन के साथ लड़ाई लड़नी शुरू की।
साम्राज्यवाद :
  • इस समय जितने भी पश्चिमी यूरोप के देश हैं वो चाहते थे, कि उनके कॉलोनिस या विस्तार अफ्रीका और एशिया में भी फैले। इस घटना को 'स्क्रेम्बल ऑफ अफ्रीका' यानि अफ्रीका की दौड़ भी कहा गया, इसका मतलब ये था कि अफ्रिका अपने जितने अधिक क्षेत्र बचा सकता है बचा ले, क्योंकि इस समय अफ्रीका का क्षेत्र बहुत बड़ा था।
  • यह समय 1880 के बाद का था जब सभी बड़े देश अफ्रीका पर कब्जा कर रहे थे। इन देशों में फ्रांस, जर्मनी, होलैंड बेल्जियम आदि थे. इन सभी देशों का नेतृत्व ब्रिटेन कर रहा था।
  • इस नेतृत्व की वजह ये थी कि ब्रिटेन इस समय काफी सफल देश था और बाकी देश इसके विकास मॉडल को कॉपी करना चाहते थे। पूरी दुनिया के 25% हिस्से पर एक समय ब्रिटिश शासन का राजस्व था।
  • इस 25% क्षेत्र की वजह से इनके पास बहुत अधिक संसाधन आ गये थे। इसकी वजह से इनकी सैन्य क्षमता में भी खूब वृद्धि हुई।
  • इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत से 13 लाख सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध में लड़ाई लड़ने के लिए भेजे गये। ब्रिटेन आर्मी में जितनी भारतीय सेना थी, उतनी ब्रिटेन सेना नहीं थी।
राष्ट्रवाद:
  • उन्नसवीं शताब्दी मे देश भक्ति की भावना ने पूरे यूरोप को • अपने कब्जे में कर लिया. जर्मनी, इटली, अन्य बोल्टिक देश आदि जगह पर राष्ट्रवाद पूरी तरह से फैल चूका था।
  • इस वजह से ये लड़ाई एक ग्लोरिअस लड़ाई के रूप मे भी सामने आई और ये लड़ाई 'ग्लोरी ऑफ वार' कहलाई।
  • इन देशों को लगने लगा कि कोई भी देश लड़ाई लड़ के और जीत के ही महान बन सकता है।
  • इस तरह से देश की महानता को उसके क्षेत्रफल से जोड़ के देखा जाने लगा।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के पहले एक पोस्टर बना था, जिसमे कई देश एक दुसरे के पीछे से प्रहार करते हुए नजर आये। इसमें साइबेरिया को सबसे छोते बच्चे के रूप में दिखाया गया।
  • इस पोस्टर में साइबेरिया अपने पीछे खड़े ऑस्ट्रिया को कह रहा था यदि तुम मुझे मारोगे तो रूस तुम्हे मारेगा।
  • इसी तरह यदि रूस ऑस्ट्रिया को मरता है तो जर्मनी रूस को मारेगा। इस तरह सभी एक दुसरे के दुश्मन हो गये, जबकि झगड़ा सिर्फ साइबेरिया और ऑस्ट्रिया के बीच में था।
प्रथम विश्व युद्ध सम्बंधित धारणाये
  • इस समय यूरोप में युद्ध संबंधित धारणाएँ बनी कि तकनीकी विकास होने की वजह से जिस तरह शस्त्र वगैरह तैयार हुए हैं, उनकी वजह से अब यदि युद्ध हुए तो बहुत कम समय में युद्ध खत्म हो जाएगा, किन्तु ऐसा हुआ नहीं।
  • इस समय युद्ध को अलग अलग अखबारों, लेखकों ने गौरव से जोड़ना शुरू किया।
  • उनके अनुसार युद्ध किसी भी देश के निर्माण के लिए बहुत जरूरी है, बिना किसी युद्ध के न तो कोई देश बन सकता है और न ही किसी तरह से भी महान हो सकता है और न ही तरक्की कर सकता है। अतः युद्ध अनिवार्य है।
तत्कालीन कारण
  • प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बना ऑस्ट्रिया की युवराज आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हत्या ।
  • 28 जून 1914 को एक आतंकवादी संगठन काला हाथ से संबंध सर्व प्रजाति के एक बोस्नियाई युवक ने राजकुमार और उनकी पत्नी की गोली मारकर हत्या कर दी।
  • इससे सारा यूरोप स्तब्ध हो गया। ऑस्ट्रिया ने इस घटना के लिए सर्विया को उत्तरदाई माना। ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को धमकी दी कि वह 48 घंटे के अंदर इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करें तथा आतंकवादियों का दमन करे।
  • सर्बिया ने ऑस्ट्रिया की मांगों को ठुकरा दिया। परिणामस्वरूप 28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
  • इसके साथ ही अन्य राष्ट्र भी अपने अपने गुटों के समर्थन में युद्ध में सम्मिलित हो गए. इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ।
प्रथम विश्व युद्ध में यूरोप का पाउडर केग 
  • बाल्कन को यूरोप का पाउडर कंग कहा जाता है। पाठहर केग का मतलब बारूद से भरा कंटेनर होता है, जिसमे कभी भी आग लग सकती है।
  • बाल्कन देशों के बीच साल 1890 से 1912 के बीच वर्चास्व की लड़ाईयां चलीं। इन युद्ध में साइबेरिया, बोस्निया, क्रोएसिया, मॉन्टेंगरो, अल्बानिया, रोमानिया और बल्गारिया आदि देश दिखे थे।
  • ये सभी देश पहले ओटोमन एम्पायर के अंतर्गत आता था, किन्तु उन्नीसवीं सदी के दौरान इन देशों के अन्दर भी स्वतंत्र होने की भावना जागी और इन्होंने खुद को बल्गेरिया से आजाद कर लिया। इस वजह से बाल्कन में हमेशा लड़ाइयाँ जारी रहीं। इस 22 वर्षों में तीन अलग अलग लड़ाईयां लड़ी गयीं।

प्रथम विश्व युद्ध के मुख्य वजह और जुलाई क्राइसिस

  • ऑस्ट्रिया ने इस हत्या के बाद साइबेरिया को अल्टीमेटम दिया कि वे जल्द ही आत्मसमर्पण कर दें और साइबेरिया ऑस्ट्रिया के अधीन हो जाए।
  • इस मसले पर साइबेरिया ने रूस से मदद माँगी और रूस को बाल्टिक्स में हस्तक्षेप करने का एक और मौका मिल गया। रूस का साइबेरिया को मदद करने का एक कारण स्लाविक साइबेरिया को सपोर्ट करना भी था।
  • रूस और साइबेरिया दोनों में रहने वाले लोग को स्लाविक कहा जाता है। इसी समय ऑस्ट्रिया हंगरी ने जर्मनी से मदद मांगनी शुरू की।
  • इस पर जर्मनी ने ऑस्ट्रिया हंगरी को एक 'ब्लॅक चेक' देने की बात कही और कहा कि आप जो करना चाहते हों करें जर्मनी आपको पूरा सहयोग देगा।
  • जर्मनी का समर्थन पा कर ऑस्ट्रिया हंगरी ने साइबेरिया पर हमला करना शुरू किया।
  • इसके बाद रूस ने जर्मनी से लड़ाई की घोषणा की। फिर कुछ दिन बाद फ्रांस ने भी जर्मनी से लड़ाई की घोषणा कर दी।
  • फ्रांस के लड़ने की वजह ट्रिपल इंटेंट संधि थी. इस समय तक ब्रिटेन इस युद्ध में शामिल नहीं हुआ था तब इटली ने भी युद्ध करने से मना कर दिया था। 
  • इटली का कहना था कि ट्रिपल इंटेंट के तहत यदि कोई और हम तीनों में से किसी पर हमला करता है तब हम इकट्ठे होंगे न कि किसी दुसरे देश के लिए।
प्रथम विश्व युद्ध का समय
  • जुलाई क्राइसिस के बाद अगस्त में युद्ध शुरू हो गया. इस समय जर्मनी ने एक योजना बनायी, जिसके तहत उसने पहले 4 फ्रांस को हराने की सोची।
  • इसके लिए उन्होंने बेल्जियम का रास्ता चुना. जैसे ही जर्मनी की मिलिट्री ने बेल्जियम में प्रवेश किया, उधर से ब्रिटेन ने जर्मनी पर हमला कर दिया।
  • इसकी वजह ये थी कि बेल्जियम और ब्रिटेन के बीच सन 1839 में एक समझौता हुआ था।
  • जर्मनी इस समय फ्रांस में घुसने में सफल रहे हालाँकि पेरिस तक नहीं पहुँच पाए।
  • इसके बाद जर्मनी की सेनाओं ने ईस्ट फ्रंट पर रूस को हरा दिया। यहाँ पर लगभग 3 लाख रूसी सैनिक शहीद हुए। इस दौरान ओटोमन एम्पायर ने भी रूस पर हमला कर दिया।
  • इसकी एक वजह ये भी थी कि ओटोमन और रूस दोनों लम्बे समय से एक दुसरे के दुश्मन रहे थे। 
  • इसी के साथ ओटोमन ने सुएज कैनाल पर भी हमला कर दिया. इसकी वजह ये थी कि ब्रिटेन आइलैंड को भारत से जोड़ने के लिए एक बहुत बड़ी कड़ी थी।
  • यदि इस सुरंग पर ओटोमन का अधिपत्य हो जाता तो ब्रिटेन प्रथम विश्व युद्ध हार भी सकता था। हालाँकि सुएज कैनाल बचा लिया गया।
प्रथम विश्व युद्ध के समय के ट्रेंच
  • ट्रेंच युद्ध में वो जगह होती है, जहाँ पर सैनिक रहते हैं, जहाँ से लड़ाई लड़ते हैं, खाना पीना और सोना भी इसी जगह पर होता है। प्रथम विश्व युद्ध में पहली बार इतने लम्बे ट्रेंच बनाए गये।
  • फ्रांस और जर्मनी फ्रंट 3 साल तक ऐसे ही आमने सामने रहे। न तो फ्रांस को आगे बढ़ने का मौका मिला और न ही जर्मनी को। ट्रेंच बनाने का मुख्य कारण आर्टिलरी शेल्लिंग से बचना था।
  • इसकी सहायता से आर्टिलरी गोलों से बचने में मदद मिलती थी, किन्तु बारिश और अन्य मौसमी मार की वजह से कई सारे सैनिक सिर्फ बीमारी से मारे गये।
  • जिस भी समय कोई सैनिक ट्रेंच से बाहर निकलता था, उसी समय दुसरी तरफ से मशीन गन से गोलीबारी शुरू हो जाती और सैनिक मारे जाते।
  • सन 1916 में एक सोम की लड़ाई हुई थी जिसमे एक दिन में 80,000 सैनिक मारे गये।
  • इसमें अधिकतर ब्रिटेन और कनाडा के सैनिक मौजूद थे। कुल मिलाकर इस युद्ध में 3 लाख सैनिक मारे गये।
प्रथम विश्व युद्ध ग्लोबल वार
  • इस समय लगभग पूरी दुनिया में लड़ाई छिड़ी हुई थी। इस वहज से इसे ग्लोबल वर कहा जाता है।
  • अफ्रीका स्थित जर्मनी की कॉलोनिस जैसे टोगो, तंजानिया और कैमरून आदि जगहों पर फ्रांस ने हमला कर दिया।
  • इसके अलावा माइक्रोनेशिया और चीनी जर्मन कॉलोनिस पर जापान ने हमला कर दिया।
  • इस युद्ध में जापान के शामिल होने की वजह ब्रिटेन और जापान के बीच का समझौता था। इसके साथ ही ओटोमन जहाजों ने ब्लैक सागर के रूसी बंदरगाहों पर हमले करना शुरू कर दिया।
  • ब्लैक सी में स्थित सेवास्तापोल रूस का सबसे महत्वपूर्ण नेवल बेस है।
  • यहाँ पर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड के सैन्य बल लड़ रहे थे। इस आर्मी को अन्जक आर्मी कहा जाता था।
  • हालाँकि यहाँ पर इस आर्मी को किसी तरह की सफलता नहीं मिली। इस युद्ध की याद में आज भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड के बीच अन्जक डे मनाया जाता है।
  • इसी के साथ कई बड़े महासागरों में भी नेवी युद्ध शुरू हुए, इसके बाद जर्मनी ने एक पनडुब्बी तैयार किया था जिसका नाम था यू बोट। इस यू बोट ने सभी अलाइड जहाजों पर हमला करना शुरू कर दिया।
  • शुरू में जर्मन के इस यू बोट ने सिर्फ नेवी जहाजों पर हमले किये किन्तु बाद में इस जहाज ने आम नागरिकों के जहाजों पर भी हमला करना शुरू कर दिया।
  • ऐसा ही एक हमला लूसीतानिया नामक एक जहाज जो कि अमेरिका से यूरोप के बीच आम लोगों को लाने ले जाने का काम करती थी, उस पर हमला हुआ और लगभग 1200 लोग मारे गये। ये घटना अटलांटिक महासागर में हुई थी ।
  • इस हमले के बाद ही अमेरिका साल 1917 में प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हो गया और अलाइड शक्तियों का साथ देने लगा। इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन थे ।
  • हालाँकि शुरू में अमेरिका किसी भी तरह से यूरोप की इस .लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहता था, किन्तु अंततः इसे भी इस युद्ध में शामिल होना पड़ा।
प्रथम विश्वयुद्ध की प्रमुख घटनाएं
युद्ध का आरंभिक चरण
  • 28 जुलाई, 1914 को ऑस्ट्रिया द्वारा सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा होते ही युद्ध का बिगुल बज गया। रूस ने सर्बिया के समर्थन में और जर्मनी ने ऑस्ट्रिया के समर्थन में सैनिक कारवाई आरंभ कर दी।
  • रूस के समर्थन में इंग्लैंड और फ्रांस आ गए. जापान ने भी जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जर्मन सेना बेल्जियम को रौंदते हुए फ्रांस की राजधानी पेरिस के निकट पहुंच गई।
  • इसी समय जर्मनी और ऑस्ट्रिया पर रूसी आक्रमण हुआ। इससे जर्मनी ने अपनी सेना की एक टुकड़ी पूर्वी मोर्चे पर रूस के प्रसार को रोकने के लिए भेज दिया।
  • इससे फ्रांससुरक्षित हो गया और पेरिस नगरी बच गई | पश्चिम एशिया में फिलिस्तीन, मेसोपोटामिया और अरब राष्ट्रों में तुर्की और जर्मनी के विरुद्ध अभियान हुए।
  • सुदूरपूर्व में जापान ने जर्मनी अधिकृत क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इंग्लैंड तथा फ्रांस ने अफ्रीका के अधिकांश जर्मन उपनिवेशों पर अधिकार कर लिया।
संयुक्त राज्य अमेरिका का युद्ध में सम्मिलित होना
  • 1917 तक संयुक्त राज्य अमेरिका मित्र राष्ट्रों से सहानुभूति रखते हुए भी युद्ध में तटस्थ रहा। 1915 में जर्मनी के एक ब्रिटिश जहाज लुसितानिया को डुबो दिया जिससे अमेरिकी यात्री भी सवार थे. इस घटना के बाद अमेरिका शांत नहीं रह सका।
  • उसने 6 अप्रैल 1917 को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। अमेरिका द्वारा युद्ध में शामिल होने से युद्ध का पासा पलट गया।
सोवियत संघ का युद्ध से अलग होना
  • 1917 में जहां अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ, वहीं सोवियत संघ युद्ध से अलग हो गया।
  • 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद लेनिन के नेतृत्व वाली सरकार ने युद्ध से अलग होने का निर्णय ले लिया। सोवियत संघ ने जर्मनी से संधि कर ली और युद्ध से अलग हो गया।
युद्ध का निर्णायक चरण
  • अप्रैल 1917 में अमेरिका प्रथम विश्व युद्ध में सम्मिलित हुआ। इसके साथ ही घटनाचक्र तेजी से चला। केंद्रीय शक्तियों की पराजय और मित्र राष्ट्रों की विजय की श्रृंखला आरंभ हुई।
  • बाध्य होकर अक्टूबर-नवंबर 1918 में क्रमश: तुर्की और ऑस्ट्रिया ने आत्मसमर्पण कर दिया। जर्मनी अकेला पड़ गया। युद्ध में पराजय और आर्थिक संकट से जर्मनी में विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस स्थिति में जर्मन सम्राट कैजर विलियम द्वितीय को गद्दी त्यागनी पड़ी।
  • वह भाग कर हालैंड चला गया. जर्मनी में वेमर गणतंत्र की स्थापना हुई। नई सरकार ने 11 नवंबर 1918 को युद्धविराम के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया। इसके साथ ही प्रलयंकारी प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ।
प्रथम विश्वयुद्ध की विशेषताएं
  • 1914-18 के युद्ध को अनेक कारणों से प्रथम विश्वयुद्ध कहा जाता है। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थी-
  • यह प्रथम युद्ध था जिसमें विश्व के लगभग सभी शक्तिशाली राष्ट्रों ने भाग लिया। यह यूरोप तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि एशिया अफ्रीका और सुदूर पूर्व में भी लड़ा गया ऐसा व्यापक युद्ध पहली बार हुआ था। इसलिए 1914 -18 का युद्ध प्रथम विश्वयुद्ध कहलाया। यह युद्ध जमीन के अतिरिक्त आकाश और समुद्र में भी लड़ा गया।
  • इस युद्ध में नय मारक और विध्वंसक अस्त्र-शस्त्रों एवं युद्ध के अन्य साधनों का उपयोग किया गया थाद्य इसमें मशीन गन तथा तरल अग्नि का पहली बार व्यवहार किया गया बम बरसाने के लिए हवाई जहाज का उपयोग किया गया इंग्लैंड में टैंक और जर्मनी ने यू बोट पनडुब्बियों का बड़े स्तर पर व्यवहार कियाद्य
  • प्रथम विश्वयुद्ध में सैनिकों के अतिरिक्त सामान्य जनता ने भी सहायक सेना के रूप में युद्ध में भाग लिया।
  • इस युद्ध में सैनिकों और नागरिकों का जितने बड़े स्तर पर संहार हुआ वैसा पहले के किसी युद्ध में नहीं हुआ था।
  • इस युद्ध में स्पष्ट रूप से यह दिखा दिया कि वैज्ञानिक आविष्कारों का दुरुपयोग मानवता के लिए कितना घातक हो सकता है।
  • इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध को विश्व इतिहास में एक युगांतकारी में घटना माना जा सकता है।
पेरिस शांति सम्मेलन
  • 18 में विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात विजित राष्ट्रों ने पेरिस में एक शांति सम्मेलन का आयोजन जनवरी 1919 में किया।
  • इसके पूर्व जनवरी 1918 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने अपना 14 सूत्री योजना प्रस्तुत किया। इसमें विश्वशांति स्थापना के तत्व निहित थे।
  • इसमें गुप्त संधियों को समाप्त करने,
  • समुद्र की स्वतंत्रता को बनाए रखने,
  • आर्थिक प्रतिबंधों को समाप्त करने,
  • अस्त्र-शस्त्रों को कम करने,
  • शांति स्थापना के लिए विभिन्न राष्ट्रों का संगठन बनाने,
  • रूसी क्षेत्र को मुक्त करने फ्रांस को अल्सेस- लॉरेन देने,
  • सर्बिया को समुद्र तक मार्ग देने,
  • तुर्की साम्राज्य के गैर तुर्कों को स्वायत्त शासन का अधि कार देने,
  • स्वतंत्र पोलैंड का निर्माण करने जैसे सुझाव दिए गए।
  • पेरिस शांति सम्मेलन में इन्हें स्थान दिया गया। पेरिस शांति सम्मेलन में सभी विजय राष्ट्रों के राजनयिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया रूस और पराजित राष्ट्रों को इस सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया।
  • सम्मेलन में 27 देशों ने भाग लिया सम्मेलन के निर्णयों पर अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लॉयड जॉर्ज तथा फ्रांस के प्रधानमंत्री जॉर्ज क्लिमेंसू का प्रभाव था।
  • इस सम्मेलन में पराजित राष्ट्रों के साथ अलग-अलग पांच संधियाँ की गई। यह संधियाँ थी-
  • (1) सेंट जर्मन की संधि
  • (2) त्रियानो की संधि
  • (3) निऊली की संधि
  • (4) वर्साय की संधि तथा
  • (5) सेवर्स की संधि
  • पहली संधि ऑस्ट्रिया के साथ दूसरी हंगरी के साथ तीसरी बुल्गेरिया के साथ चौथी जर्मनी और अंतिम तुर्की के साथ की गई इन संधियों ने यूरोप का मानचित्र बदल दिया।
सेंट जर्मेन की संधि
  • 1919 के द्वारा ऑस्ट्रिया को अपना औद्योगिक क्षेत्र बोहेमिया तथा मोराविया चेकोस्लोवाकिया को बोस्निया और हर्जेगोविना सर्बिया को देना पड़ा।
  • इसके साथ मांटिनिग्रो को मिलांकर युगों स्लोवाकिया का निर्माण किया गया। पोलैंड का पुनर्गठन हुआ। ऑस्ट्रिया का कुछ क्षेत्र इटली को भी दिया गया।
  • त्रियांनो की संधि 1920 के अनुसार स्लोवाकिया तथा रुथेनिया, चेकोस्लोवाकिया को दिया गया। युगोस्लाविया तथा रोमानिया को भी अनेक क्षेत्र दिए गए।
  • इन संधियों के परिणामस्वरुप ऑस्ट्रिया हंगरी की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति अत्यंत दुर्बल हो गई।
  • निऊली की संधि 1919 ने बुल्गेरिया का अनेक क्षेत्र यूनान, युगोस्लाविया और रोमानिया को दे दिया।
  • सेवर्स की संधि 1920 के द्वारा ऑटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया। इसके अनेक क्षेत्र यूनान और इटली को दे दिए गए। फ्रांस को सीरिया तथा पैलेस्तीन, इराक और ट्रांसजॉर्डन को ब्रिटिश मैंडेट के अंतर्गत कर दिया गया।
  • इससे तुर्की में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। इन सभी संधियों में सबसे अधिक व्यापक और प्रभावशाली वर्साय की संधि 1919 थी जो जर्मनी के साथ की गई।
वर्साय की संधि
  • इस संधि में 440 धाराएं थी। इसने जर्मनी को राजनीतिक सैनिक और आर्थिक दृष्टिकोण से पंगु बना दिया। संधि के मुख्य प्रावधान अग्रलिखित थे-
  • जर्मनी और उसके सहयोगी राष्ट्रों को युद्ध के लिए दोषी मानकर उनकी घोर निंदा की गई। साथ ही, मित्र राष्ट्रों को युद्ध में जो क्षति उठानी पड़ी थी उसके लिए हर्जाना देने का भार जर्मनी पर थोपा गया।
  • 1870 में जर्मनी द्वारा फ्रांस के विजित अलसेस और लॉरेन प्रांत फ्रांस को वापस दे दिए गए. इसके अतिरिक्त जर्मनी का - सार प्रदेश जो लोहे और कोयले की खानों से भरा था, 15 वर्षों के लिए फ्रांस को दिया गया।
  • जर्मनी की पूर्वी सीमा पर का अधिकांश भाग पोलैंड को दे दिया गया। समुद्र तट तक पोलैंड को पहुंचने के लिए जर्मनी के बीचोबीच एक विस्तृत भू भाग निकालकर पोलैंड को दिया गया। यह क्षेत्र पोलिस गलियारा कहलाया।
  • डाजिंग और मेमेल बंदरगाह राष्ट्र संघ के अधीन कर दिए गए. कुल मिलाकर जर्मनी को अपने 13 प्रतिशत भू-भाग और 10% आबादी से हाथ धोना पड़ा।
  • जर्मनी के निरस्त्रीकरण की व्यवस्था की गई। जर्मन सेना की अधिकतम सीमा एक लाख निश्चित की गई। युद्ध उपयोगी सामानों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • जर्मनी के सभी नौसैनिक जहाज जप्त कर उसे सिर्फ छह युद्ध पोत रखने का अधिकार दिया गया। पनडुब्बियों और वायुयान रखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • राइन नदी के बाएं किनारे पर 31 मिल तक के भू भाग का पूर्ण असैनिकीकरण कर इसे 15 वर्षों के लिए मित्र राष्ट्रों के नियंत्रण में दे दिया गया।
  • जर्मनी के सारे उपनिवेश मित्र राष्ट्रों ने आपस में बांट लिए. दक्षिण पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका की उपनिवेशों को इंग्लैंड, बेल्जियम, पुर्तगाल और दक्षिण अफ्रीका को दे दिया गया। तोगोलैंड और कैमरून पर फ्रांस में अधिकार कर लिया। प्रशांत महासागर क्षेत्र तथा चीन के जर्मन अधिकृत क्षेत्र जापान को मिले।
  • वर्साय की संधि जर्मनी के लिए अत्यंत कठोर और अपमानजनक थी। इसकी शर्तें विजय राष्ट्रों द्वारा एक विजित राष्ट्र पर जबरदस्ती और धमकी देकर लादी गई थी।
  • जर्मनी ने इसे विवशता में स्वीकार किया उसने इस संधि को अन्यायपूर्ण कहा जर्मनी को संधि पर हस्ताक्षर करने को विवश किया गया। चूँकि उसने स्वेच्छा से इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया।
  • इसलिए वर्साय की संधि को आरोपित संधि कहते हैं जर्मन नागरिक इसे कभी स्वीकार नहीं कर सके। संधि के विरुद्ध जर्मनी में प्रबल जनमत बन गया।
  • हिटलर और नाजी दल ने वर्साय की संधि के विरुद्ध जनमत को अपने पक्ष में कर सत्ता हथिया ली। शासन में आते ही उसने संधि की व्यवस्था को नकार कर अपनी शक्ति बढ़ानी आरंभ कर दी इसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध में हुई इसलिए कहा जाता है कि वर्साय की संधि में द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज निहित थे।
प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम
  • परिणामों के दृष्टिकोण से प्रथम विश्वयुद्ध को विश्व इतिहास ' का एक परिवर्तन बिंदु माना गया है। इसके अनेक तत्कालीन और दूरगामी परिणाम हुए. इस युद्ध का प्रभाव राजनीतिक, सैनिक, सामाजिक और अर्थव्यवस्था पर पड़ा
राजनीतिक परिणाम
साम्राज्य का अंत
  • प्रथम विश्वयुद्ध में जिन बड़े साम्राज्य में केंद्रीय शक्तियों के साथ भाग लिया था उनका युद्ध के बाद पतन हो गया।
  • पेरिस शांति सम्मेलन के परिणाम स्वरुप ऑस्ट्रिया हंगरी सम्राज्य बिखर गया। 
  • जर्मनी में होहेंज्जोर्लन और ऑस्ट्रिया हंगरी में हेप्स्वर्ग राजवंश का शासन समाप्त हो गया। वहां गणतंत्र की स्थापना हुई।
  • इसी प्रकार 1917 में रूसी क्रांति के परिणाम स्वरुप रूस में रोमोनोव राजवंश की सत्ता समाप्त हो गई एवं गणतंत्र की स्थापना हुई।
  • तुर्की का ऑटोमन साम्राज्य भी समाप्त हो गया उसका अधि कांश भाग यूनान और इटली को दे दिया गया।
विश्व मानचित्र में परिवर्तन
  • प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्व मानचित्र में परिवर्तन आया. साम्राज्यों के विघटन के साथ ही पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, युगोस्लाविया जैसे नए राष्ट्रों का उदय हुआ।
  • ऑस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस और रूस की सीमाएं बदल गई।
  • बाल्टिक साम्राज्य, रूसी साम्राज्य से स्वतंत्र कर दिए गए।
  • एशियाई और अफ्रीकी उपनिवेशों पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार करने से वहां भी परिस्थिति बदली। इसी प्रकार जापान को भी अनेक नए क्षेत्र प्राप्त हुए. इराक को ब्रिटिश एवं सीरिया को फ्रांसीसी संरक्षण में रख दिया गया।
  • फिलिस्तीन, इंग्लैंड को दे दिया गया।
सोवियत संघ का उदय
  • प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूस में 1917 में बोल्शेविक क्रांति हुई. इसके परिणाम स्वरुप रूसी साम्राज्य के स्थान पर सोवियत संघ का उदय हुआ। जारशाही का स्थान समाजवादी सरकार ने ले लिया।
उपनिवेशों में जागरण
  • युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों ने घोषणा की थी की युद्ध समाप्त होने पर अंतिम निर्णय के सिद्धांत को लागू किया जाएगा। इससे अनेक उपनिवेशों और पराधीन देशों में स्वतंत्रता प्राप्त करने की भावना बलवती हुई।
  • प्रत्येक उपनिवेश में राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ हो गए. भारत में भी महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1917 से स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक चरण आरंभ हुआ।
विश्व राजनीति पर से यूरोप का प्रभाव कमजोर पड़ना
  • युद्ध के पूर्व तक विश्व राजनीति में यूरोप का अग्रणी भूमिका थी, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड और रूस के इर्द-गिर्द विश्व राजनीति घूमती थी। परंतु 1918 के बाद यह स्थिति बदल गई योधोत्तर काल में अमेरिका का दबदबा बढ़ गया।
अधिनायकवाद का उदय
  • प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम स्वरुप अधिनायकवाद का उदय हुआ।
  • वर्साय की संधि का सहारा लेकर जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी ने सत्ता हथिया ली।
  • नाजीवाद ने एक नया राजनीतिक दर्शन दिया इससे सारी सत्ता एक शक्तिशाली नेता के हाथों में केंद्रित कर दी गई ।
  • जर्मनी के समान इटली में भी मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवाद का उदय हुआ। इटली भी पेरिस सम्मेलन से असंतुष्ट था।
  • अतः मित्र राष्ट्रों के प्रति इटली की कटुता बढ़ती गई। हिटलर के सामान और मुसोलिनी में भी सारी सत्ता अपने हाथों में केंद्रित कर ली।
द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण
  • प्रथम विश्वयुद्ध ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच भी बो दिए। पराजित राष्ट्रों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया गया इससे वह अपने को अपमानित समझने लगे।
  • उन राष्ट्रों में पुन: उग्र राष्ट्रीयता प्रभावी बन गई प्रत्येक राष्ट्र एक बार फिर से अपने को संगठित कर अपनी शक्ति बढ़ाने लगा एक एक कर संधि की शर्तों को जोड़ा जाने लगा।
  • इससे विश्व एक बार फिर से बारूद के ढेर पर बैठ गया इसकी अंतिम परिणति द्वितीय विश्वयुद्ध में हुई।
विश्व शांति की स्थापना का प्रयास प्रथम
  • विश्वयुद्ध में जन्मदिन की भारी क्षति को देखकर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए तत्कालीन राजनीतिज्ञों ने प्रयास आरंभ कर दिए अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन कि इसमें प्रमुख भूमिका थी।
  • फलतः 1919 में राष्ट्र संघ की स्थापना की गई इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान कर युद्ध की विभीषिका को रोकने का प्रयास करना था दुर्भाग्यवश राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों में विफल रहा।
सैन्य परिणाम
  • पेरिस सम्मेलन में पराजित राष्ट्र की सैन्य शक्ति को कमजोर करने के लिए निरस्त्रीकरण की व्यवस्था की गई। इस नीति का सबसे बड़ा शिकार जर्मनी हुआ।
  • विजित राष्ट्रों ने अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि करनी आरंभ कर दी इस से पराजित राष्ट्रों में भय की भावना जगी। अतः वे भी अपने को मजबूत करने के प्रयास में लग गए इससे हथियारबंदी की होड़ आरंभ हो गई जिसका विश्व शांति पर बुरा प्रभाव पड़ा।

आर्थिक परिणाम

जन धन की अपार क्षति
  • प्रथम विश्वयुद्ध एक प्रलयंकारी युद्ध था। इसमें लाखों व्यक्ति मारे गए। अरबों की संपत्ति नष्ट हुई। इसका सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • हजारों कल कारखाने बंद हो गए. कृषि उद्योग और व्यापार नष्ट प्राय हो गए। बेकारी और भुखमरी की समस्या उठ खड़ी हुई ।
आर्थिक संकट
  • प्रथम विश्वयुद्ध ने विश्व में आर्थिक संकट उत्पन्न कर दिया। वस्तुओं के मूल्य बढ़ गए मुद्रा स्थिति की समस्या उठ खड़ी हुई। फलतः संपूर्ण विश्व में आर्थिक अव्यवस्था व्याप्त गई ऋण का भाड़ बढ़ने से जनता पर करो का बोझ बढ़ गया।
सरकारी आर्थिक नीतियों में परिवर्तन
  • तत्कालीन परिस्थितियों के वशीभूत होकर प्रत्येक राष्ट्र ने अपनी आर्थिक नीति में परिवर्तन किया। नियोजित अर्थव्यवस्था लागू की गई। सरकारी अनुमति के बिना कोई नया व्यवसाय आरंभ नहीं किया जा सकता था।
  • घाटे में चल रहे उद्योगों विशेषता युद्ध उपयोगी सामान बनाने वाले उद्योगों को राजकीय संरक्षण देने की नीति अपनाई गई। विदेशी व्यापार पर राज्य का एकाधिकार स्थापित किया गया।
  • प्रत्येक राष्ट्र को विशेषतः जर्मनी को आर्थिक आत्मनिर्भरता की नीति अपनानी पड़ी। गैर-यूरोपीय राष्ट्र में लगाई जाने वाली पूजी में भारी कमी की गई।

सामाजिक परिणाम

नस्लों की समानता
  • युद्ध के पूर्व यूरोपियन नस्लभेद अथवा काला गोरा के विभेद पर अधिक बल देते थे। वह एशिया अफ्रीका के काले लोगों को अपने से ही मानते थे। परंतु युद्ध में उनकी वीरता देखकर उन्हें अपनी धारणा बदलनी पड़ी। धीरे धीरे काला गोरा का भेद कम होने लगा।
जनसंख्या की क्षति
  • युद्ध में लाखों लोग मरे तथा घायल हुए। इनमे ज्यादा संख्या पुरुषों की थी। इसलिए पुरुष स्त्री लिंग अनुपात में भारी कमी आई । युद्ध के दौरान जनसंख्या की बढ़ोतरी दर में कमी आई। परंतु युद्ध के बाद इस में तेजी से वृद्धि हुई।
स्त्रियों की स्थिति में सुधार
  • विश्वयुद्ध के दौरान अधिकांश पुरुषों के सेना में भर्ती होने से स्त्रियों को घर से बाहर आकर काम करने का अवसर मिला। वह कारखानों, दुकानों, अस्पतालों, स्कूलों और दफ्तर में काम करने लगी।
  • अतः उन में नवजागरण आया। वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत हो गई। अपने अधिकारों के लिए महिलाओं ने आंदोलन चलाए, फलतः उन्हें सीमित मताधिकार मिला। 1918 में इंग्लैंड ने पहली बार महिलाओं को सीमित मताधिकार दिया ।
मजदूरों की स्थिति में सुधार
  • युद्ध काल में युद्ध सामग्री के उत्पादन में मजदूरों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसलिए उनका महत्व बढ़ गया. उन्हें उचित मजदूरी और आवश्यक सुविधाएं देने की व्यवस्था की गई।
  • इससे मजदूरों की स्थिति में सुधार हुआ अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना की गई।
सामाजिक मान्यताओं में बदलाव
  • प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम स्वरुप प्रचलित सामाजिक मान्यताओं में भी परिवर्तन आया। वर्ग और संपत्ति का विभेद कमजोर हुआ। मुनाफा खोर और चोर बाजारी करने वाले घृणा और तिरस्कार के पात्र बने। उच्च मध्यम वर्ग के लिए अपनी सुविधाओं को प्रदर्शित करना लज्जाजनक माना गया। कम खाना और पुराने कपड़े पहनना देशभक्ति का प्रतीक बन गया। इसी प्रकार आयुध कारखानों में काम करना भी देशभक्ति माना गया।
वैज्ञानिक प्रगति
  • प्रथम विश्वयुद्ध ने वैज्ञानिक खोजों को गति दी। युद्ध के दौरान नए अस्त्र-शस्त्र बनाए गए विशाल जलयानों पनडुब्बियों और वायुयानों के निर्माण का युद्ध और विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा।
पहला विश्वयुद्ध और रूसी साम्राज्य
  • 1914 में दो यूरोपीय गठबंधनों के बीच युद्ध छिड़ गया। एक खेमे में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और तुर्की (केंद्रीय शक्तियाँ) थे तो दूसरे खेमे में फ्रांस, ब्रिटेन व रूस (बाद में इटली और रूमानिया भी इस खेमे में शमिल हो गए) थे।
  • इन सभी देशों के पास विशाल वैश्विक साम्राज्य थे इसलिए यूरोप के साथ-साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था। इसी युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है।
  • इस युद्ध को शुरू-शुरू में रूसियों का काफ़ी समर्थन मिला। जनता ने जार का साथ दिया। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता गया, जार ने ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा।
  • जर्मनी-विरोधी भावनाएँ दिनोंदिन बलवती होने लगीं। जर्मनी-विरोधी भावनाओं के कारण ही लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदल कर पेट्रोगाड रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था।
  • जारीना (ज़ार की पत्नी - महारानी) अलेक्सांद्रा के जर्मन मूल का होने और उसके घटिया सलाहकारों, खास तौर से रासपुतिन नामक एक संन्यासी ने राजशाही को और अलोकप्रिय बना दिया।
  • प्रथम विश्वयुद्ध के 'पूर्वी मोर्चे' पर चल रही लड़ाई 'पश्चिमी मोर्चे' की लड़ाई से भिन्न थी। पश्चिम में सैनिक पूर्वी फांस की सीमा पर बनी खाइयों से लड़ाई लड़ रहे थे जबकि पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफ़ी बड़ा फ़ासला तय कर लिया था।
  • सेना की पराजय ने रूसियों का मनोबल तोड़ दिया। 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय झेलनी पड़ी।
  • 1917 तक 70 लाख लोग मारे जा चुके थे। पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहाँ टिक ही न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी हो गए।
  • इन हालात ने सरकार और ज़ार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
  • युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा असर पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो वैसे भी बहुत कम थे, अब तो बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई क्योंकि बाल्टिक समुद्र में जिस रास्ते से विदेशी औद्योगिक सामान आते थे उस पर जर्मनी का कब्ज़ा हो चुका था।
  • यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले रूस के औद्योगिक उपकरण ज़्यादा तेजी से बेकार होने लगे। 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगीं। 
  • देश भर में मज़दूरों की कमी पड़ने लगी और ज़रूरी सामान बनाने वाली छोटी-छोटी वर्कशॉप्स ठप्प होने लगीं।
  • ज़्यादातर अनाज सैनिकों का पेट भरने के लिए मोर्चे पर भेजा जाने लगा। शहरों में रहने वालों के लिए रोटी और आटे की 1 किल्लत पैदा हो गई। 1916 की सर्दियों में रोटी की दुकानों पर अकसर दंगे होने लगे।
पेट्रोगाड में फरवरी क्रांति
  • सन् 1917 की सर्दियों में राजधानी पेत्रोग्राद की हालत बहुत ख़राब थी। ऐसा लगता था मानो जनता में मौजूद भिन्नताओं को ध्यान में रखकर ही शहर की बनावट तय की गई थी।
  • मज़दूरों के क्वार्टर और कारखाने नेवा नदी के दाएँ तट पर थे। बाएँ किनारे पर फैशनेबल इलाके, विंटर पैलेस और सरकारी इमारतें थीं। जिस महल में ड्यूमा की बैठक होती थी वह भी इसी तरफ़ था।
  • फरवरी में मज़दूरों के इलाके में खाद्य पदार्थों की भारी कमी पैदा हो गई। उस साल ठंड भी कुछ ज्यादा पड़ी थी । भीषण कोहरा और बर्फबारी हुई थी।
  • संसदीय प्रतिनिधि चाहते थे कि निर्वाचित सरकार बची रहे इसलिए वह जार द्वारा ड्यूमा को भंग करने के लिए की जा रही कोशिशों का विरोध कर रहे थे।
  • 22 फरवरी को दाएँ तट पर स्थित एक फैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फैक्ट्री के मज़दूरों के समर्थन में पचास फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने भी हड़ताल का एलान कर दिया।
  • बहुत सारे कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थीं। इसी दिन को बाद में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का नाम दिया गया। आंदोलनकारी जनता बस्ती पार करके राजधानी के बीचोंबीच नेस्की प्रोस्पेक्ट तक आ गई।
  • इस समय तक कोई राजनीतिक पार्टी आंदोलन को सक्रिय रूप से संगठित और संचालित नहीं कर रही थी। जब फ़ैशनेबल रिहायशी इलाकों और सरकारी इमारतों को मज़दूरों ने घेर लिया तो सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया।
  • शाम तक प्रदर्शनकारी तितर-बितर हो गए लेकिन 24 और 25 तारीख को वह फिर इकट्ठा होने लगे। सरकार ने उन पर नज़र रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया।
  • रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया। सरकार के इस फ़ैसले के खिलाफ़ राजनीतिज्ञ बयान देने लगे।
  • रोटी, तनख्वाह, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए।
  • सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण कायम करने के लिए एक बार फिर घुड़सवार सैनिकों को तैनात कर दिया। लेकिन घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया। गुस्साए सिपाहियों ने एक रेजीमेंट की बैरक में अपने ही एक अफ़सर पर गोली चला दी।
  • तीन दूसरी रेज़ीमेंटों ने भी बगावत कर दी और हड़ताली मज़दूरों के साथ आ मिले। उस शाम को सिपाही और मज़दूर एक सोवियत या 'परिषद्' का गठन करने के लिए उसी इमारत में जमा हुए जहाँ अब तक ड्यूमा की बैठक हुआ करती थी। यहीं से पेत्रोग्राद सोवियत का जन्म हुआ।
  • अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल ज़ार से मिलने गया। सैनिक कमांडरों ने उसे सलाह दी कि वह राजगद्दी छोड़ दे। उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को गद्दी छोड़ दी। सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बना ली।
  • चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाए। फरवरी 1917 में राजशाही को गद्दी से हटाने वाली क्रांति का झंडा पेत्रोग्राद की जनता के हाथों में था।
फरवरी के बाद
  • अंतरिम सरकार में सैनिक अधिकारी, भूस्वामी और उद्योगपति प्रभावशाली थे। उनमें उदारवादी और समाजवादी जल्दी से जल्दी निर्वाचित सरकार का गठन चाहते थे।
  • जन सभा करने और संगठन बनाने पर लगी पाबंदी हटा ली गई। हालाँकि निर्वाचन का तरीका सब जगह एक जैसा नहीं था लेकिन पेत्रोग्राद सोवियत की तर्ज़ पर सब जगह 'सोवियतें ' बना ली गईं।
  • अप्रैल 1917 में बोल्शेविकों के निर्वासित नेता व्लादिमीर लेनिन रूस लौट आए। लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक 1914 से ही युद्ध का विरोध कर रहे थे ।
  • अब सोवियतों को सत्ता अपने हाथों में ले लेनी चाहिए। लेनिन ने बयान दिया कि युद्ध समाप्त किया जाए, सारी ज़मीन किसानों के हवाले की जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए ।
  • इन तीन माँगों को लेनिन की 'अप्रैल थीसिस' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि अब अपने रैडिकल उद्देश्यों को स्पष्ट करने के लिए बोल्शेविक पार्टी का नाम कम्युनिस्ट पार्टी रख दिया जाए।
  • बोल्शेविक पार्टी के ज़्यादातर लोगों को अप्रैल थीसिस के बारे में सुनकर काफ़ी हैरानी हुई। उन्हें लगता था कि अभी समाजवादी क्रांति के लिए सही वक्त नहीं आया है इसलिए फ़िलहाल अंतरिम सरकार को ही समर्थन दिया जाना चाहिए । लेकिन अगले कुछ महीनों की घटनाओं ने उनकी सोच बदल दी।
  • गर्मियों में मज़दूर आंदोलन और फैल गया। औद्योगिक इलाकों में फैक्ट्री कमेटियाँ बनाई गईं। इन कमेटियों के माध्यम से मज़दूर फैक्ट्री चलाने के मालिकों के तौर-तरीकों पर सवाल खड़ा करने लगे। ट्रेड यूनियनों की तादाद बढ़ने लगी। सेना में सिपाहियों की समितियाँ बनने लगीं।
  • जून में लगभग 500 सोवियतों ने अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस में अपने प्रतिनिधि भेजे। जैसे-जैसे अंतरिम सरकार की ताकत कमज़ोर होने लगी और बोल्शेविकों का प्रभाव बढ़ने लगा, सरकार असंतोष को दबाने के लिए सख्त कदम उठाने लगी।
  • सरकार ने फैक्ट्रियाँ चलाने की मज़दूरों द्वारा की जा रही कोशिशों को रोकना और मज़दूरों के नेताओं को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।
  • जुलाई 1917 में बोल्शेविकों द्वारा आयोजित किए गए विशाल प्रदर्शनों का भारी दमन किया गया। बहुत सारे बोल्शेविक नेताओं को छिपना या भागना पड़ा।
  • गांवों में किसान और उनके समाजवादी क्रांतिकारी नेता भूमि पुनर्वितरण के लिए दबाव डालने लगे थे। इस काम के लिए भूमि समितियाँ बना दी गई थीं।
  • सामाजिक क्रांतिकारियों से प्रेरणा और प्रोत्साहन लेते हुए जुलाई से सितंबर के बीच किसानों ने बहुत सारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया।
अक्टूबर 1917 की क्रांति
  • जैसे-जैसे अंतरिम सरकार और बोल्शेविकों के बीच टकराव बढ़ता गया, लेनिन को अंतरिम सरकार द्वारा तानाशाही थोप देने की आशंका दिखाई देने लगी।
  • सितंबर में उन्होंने सरकार के खिलाफ विद्रोह के बारे में चर्चा शुरू कर दी। सेना और फैक्ट्री सोवियतों में मौजूद बोल्शेविकों को इकट्ठा किया गया।
  • 16 अक्तूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए राजी कर लिया। सत्ता पर कब्ज़े के लिए लियॉन ट्रॉट्स्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया। इस बात का खुलासा नहीं किया गया कि योजना को किस दिन लागू किया जाएगा।
  • 24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हो गया। संकट की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री केरेंस्की सैनिक टुकड़ियों को इकट्ठा करने शहर से बाहर चले गए।
  • तड़के ही सरकार के वफ़ादार सैनिकों ने दो बोल्शेविक अखबारों के दफ्तरों पर घेरा डाल दिया। टेलीफ़ोन और टेलीग्राफ़ दफ्तरों पर नियंत्रण प्राप्त करने और विंटर पैलेस की रक्षा करने के लिए सरकार समर्थक सैनिकों को रवाना कर दिया गया।
  • पलक झपकते क्रांतिकारी समिति ने भी अपने समर्थकों को आदेश दे दिया कि सरकारी कार्यालयों पर कब्ज़ा कर लें और मंत्रियों को गिरफ्तार कर लें। 
  • उसी दिन ऑरोरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस पर बमबारी शुरू कर दी। अन्य युद्धपोतों ने नेवा के रास्ते से आगे बढ़ते हुए विभिन्न सैनिक ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • शाम ढलते-ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ चुका था और मंत्रियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। पेत्रोग्राद में अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस की बैठक हुई जिसमें बहुमत ने बोल्शेविकों की कार्रवाई का समर्थन किया।
  • अन्य शहरों में भी बगावतें होने लगीं। दोनों तरफ से जमकर गोलीबारी हुई, खास तौर से मास्को में, लेकिन दिसंबर तक मास्को- पेत्रोग्राद इलाके पर बोल्शेविकों का नियंत्रण स्थापित हो चुका था।
अक्तूबर के बाद परिवर्तन
  • बोल्शेविक निजी संपत्ति की व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ थे। ज्यादातर उद्योगों और बैंकों का नवंबर 1917 में ही राष्ट्रीयकरण किया जा चुका था। उनका स्वामित्व और प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में आ चुका था। ज़मीन को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया।
  • किसानों को सामंतों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने की खुली छूट दे दी गई। शहरों में बोल्शेविकों ने मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़कर उनके बड़े मकानों के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए ताकि बेघरबार या ज़रूरतमंद लोगों को भी रहने की जगह दी जा सके। उन्होंने अभिजात्य वर्ग द्वारा पुरानी पदवियों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी।
  • परिवर्तन को स्पष्ट रूप से सामने लाने के लिए सेना और सरकारी अफ़सरों की वर्दियाँ बदल दी गई। इसके लिए 1918 में एक परिधान प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें सोवियत टोपी (बुदियोनोव्का) का चुनाव किया गया।
  • बोल्शेविक पार्टी का नाम बदल कर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया। नवंबर 1917 में बोल्शेविकों ने संविधान सभा के लिए चुनाव कराए लेकिन इन चुनावों में उन्हें बहुमत नहीं मिल पाया।
  • जनवरी 1918 में असेंबली ने बोल्शेविकों के प्रस्तावों को खारिज कर दिया और लेनिन ने असेंबली बर्खास्त कर दी। उनका मत था कि अनिश्चित परिस्थितियों में चुनी गई असेंबली के मुकाबले अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस कहीं ज्यादा लोकतांत्रिक संस्था है |
  • मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोल्शेविकों ने ब्रेस्ट लिटोव्स्क में जर्मनी से संधि कर ली। आने वाले सालों में बोल्शेविक पार्टी अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने वाली एकमात्र पार्टी रह गई।
  • अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को अब देश की संसद का दर्जा दे दिया गया था। रूस एक दलीय राजनीतिक व्यवस्था वाला देश बन गया।
  • ट्रेड यूनियनों पर पार्टी का नियंत्रण रहता था। गुप्तचर पुलिस (जिसे पहले चेका और बाद में ओजीपीयू तथा एनकेवीडी का नाम दिया गया) बोल्शेविकों की आलोचना करने वालों को दंडित करती थी।
  • बहुत सारे युवा लेखक और कलाकार भी पार्टी की तरफ़ हुए क्योंकि वह समाजवाद और परिवर्तन के प्रति समर्पित थी। अक्तूबर 1917 के बाद ऐसे कलाकारों और लेखकों ने कला और वास्तुशिल्प के क्षेत्र में नए प्रयोग शुरू किए। लेकिन पार्टी द्वारा थोपी गई सेंसरशिप के कारण बहुत सारे लोगों का पार्टी से मोह भंग भी होने लगा था।
गृह युद्ध
  • जब बोल्शेविकों ने ज़मीन के पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूसी सेना टूटने लगी। ज्यादातर सिपाही किसान थे। वे भूमि पुनर्वितरण के लिए घर लौटना चाहते थे इसलिए सेना छोड़कर जाने लगे।
  • गैर-बोल्शेविक समाजवादियों, उदारवादियों और राजशाही के समर्थकों ने बोल्शेविक विद्रोह की निंदा की। उनके नेता दक्षिणी रूस में इकट्ठा होकर बोल्शेविकों ('रेड्स') से लड़ने के लिए टुकड़ियाँ संगठित करने लगे।
  • 1918 और 1919 में रूसी साम्राज्य के ज़्यादातर हिस्सों पर सामाजिक क्रांतिकारियों ('ग्रीन्स') और ज़ार- समर्थकों ('व्हाइट्स') का ही नियंत्रण रहा। उन्हें फ्रांसीसी, अमेरिकी. ब्रिटिश और जापानी टुकड़ियों का भी समर्थन मिल रहा था।
  • ये सभी शक्तियाँ रूस में समाजवाद को फलते-फूलते नहीं देखना चाहती थीं। इन टुकड़ियों और बोल्शेविकों के बीच चले गृह युद्ध के दौरान लूटमार, डकैती और भुखमरी जैसी समस्याएँ बड़े पैमाने पर फैल गई।
  • 'व्हाइट्स' में जो निजी संपत्ति के हिमायती थे उन्होंने ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाले किसानों के खिलाफ़ काफ़ी सख्त रवैया अपनाया। उनकी इन हरकतों के कारण तो गैर-बोल्शेविकों के प्रति जनसमर्थन और भी तेजी से घटने लगा।
  • जनवरी 1920 तक भूतपूर्व रूसी साम्राज्य के ज़्यादातर हिस्सों पर बोल्शेविकों का नियंत्रण कायम हो चुका था। उन्हें गैर-रूसी राष्ट्रवादियों और मुस्लिम जदीदियों की मदद से यह कामयाबी मिली थी।
  • जहाँ रूसी उपनिवेशवादी ही बोल्शेविक विचारधारा के अनुयायी बन गए थे, वहाँ यह मदद काम नहीं आ सकी। मध्य एशिया स्थित खीवा में बोल्शेविक उपनिवेशकों ने समाजवाद की रक्षा के नाम पर स्थानीय राष्ट्रवादियों का बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया। ऐसे हालात में बहुत सारे लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा था कि बोल्शेविक सरकार क्या चाहती है।
  • आंशिक रूप से इसी समस्या से निपटने के लिए ज्यादातर गैर-रूसी राष्ट्रीयताओं को सोवियत संघ (यूएसएसआर) - दिसंबर 1922 में रूसी साम्राज्य में से बोल्शेविकों द्वारा स्थापित किया गया राज्य के अंतर्गत राजनीतिक स्वायत्तता दें दी गई ।
  • बोल्शेविकों ने स्थानीय सरकारों पर कई अलोकप्रिय और सख्त नीतियाँ - जैसे, घुमंतूवाद की रोकथाम की कड़ी कोशिशें थोप दी थीं इसलिए विभिन्न राष्ट्रीयताओं का विश्वास जीतने के प्रयास आंशिक रूप से ही सफल हो पाए।
समाजवादी समाज का निर्माण
  • गृह युद्ध के दौरान बोल्शेविकों ने उद्योगों और बैंकों के राष्ट्रीयकरण को जारी रखा। उन्होंने किसानों को उस ज़मीन पर खेती की छूट दे दी जिसका समाजीकरण किया जा चुका था। ज़ब्त किए गए खेतों का इस्तेमाल बोल्शेविक यह दिखाने के लिए करते थे कि सामूहिकता क्या होती है।
  • शासन के लिए केंद्रीकृत नियोजन की व्यवस्था लागू की गई। अधिकारी इस बात का हिसाब लगाते थे कि अर्थव्यवस्था किस तरह काम कर सकती है। इस आधार पर वे पाँच साल के लिए लक्ष्य तय कर देते थे।
  • इसी आधार पर उन्होंने पंचवर्षीय योजनाएँ बनानी शुरू कीं। पहली दो 'योजनाओं' (1927-1932 और 1933-1938) के दौरान औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सभी तरह की कीमतें स्थिर कर दीं।
  • केंद्रीकृत नियोजन से आर्थिक विकास को काफी गति मिली। औद्योगिक उत्पादन बढ़ने लगा (1929 से 1933 के बीच तेल, कोयले और स्टील के उत्पादन में 100 प्रतिशत वृद्धि हुई ) । नए-नए औद्योगिक शहर अस्तित्व में आए।
  • मगर, तेज निर्माण कार्यों के दबाव में कार्यस्थितियाँ खराब होने लगीं। मैग्नीटोगोर्स्क शहर में एक स्टील संयंत्र का निर्माण कार्य तीन साल के भीतर पूरा कर लिया गया। इस दौरान मज़दूरों को बड़ी सख्त जिंदगी गुजारनी पड़ी।
स्तालिनवाद और सामूहिकीकरण
  • नियोजित अर्थव्यवस्था का शुरुआती दौर खेती के सामूहिकीकरण • से पैदा हुई तबाही से जुड़ा हुआ था। 1927-1928 के आसपास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया था।
  • सरकार ने अनाज की कीमत तय कर दी थी। उससे ज्यादा कीमत पर कोई अनाज नहीं बेच सकता था। लेकिन किसान उस कीमत पर सरकार को अनाज बेचने के लिए तैयार नहीं थे।
  • लेनिन के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे स्तालिन ने स्थिति से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए। उन्हें लगता था कि अमीर किसान और व्यापारी कीमत बढ़ने की उम्मीद में अनाज नहीं बेच रहे हैं।
  • स्थिति पर काबू पाने के लिए सट्टेबाज़ी पर अंकुश लगाना और व्यापारियों के पास जमा अनाज को जब्त करना ज़रूरी था। 1928 में पार्टी के सदस्यों ने अनाज उत्पादक इलाकों का दौरा किया।
  • किसानों से जबरन अनाज खरीदा और 'कुलकों' के ठिकानों पर छापे मारे। रूस में संपन्न किसानों को कुलक कहा जाता था। जब इसके बाद भी अनाज की कमी बनी रही तो खेतों के सामूहिकीकरण का फैसला लिया गया।
  • 1917 के बाद ज़मीन किसानों को सौंप दी गई थी। फलस्वरूप ज़्यादातर किसानों के पास छोटे खेत थे जिनका आधुनिकीकरण नहीं किया जा सकता था।
  • आधुनिक खेत विकसित करने और उन पर मशीनों की सहायता से औद्योगिक खेती करने के लिए 'कुलकों का सफाया' करना, *किसानों से ज़मीन छीनना और राज्य नियंत्रित यानी सरकारी नियंत्रण वाले विशालकाय खेत बनाना ज़रूरी माना गया।
  • इसी के बाद स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम शुरू हुआ। 1929 से पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में काम करने का आदेश जारी कर दिया। ज़्यादातर ज़मीन और साजो-सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए।
  • सभी किसान सामूहिक खेतों पर काम करते थे और कोलखोज़ के मुनाफ़े को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था।
  • इस फैसले से गुस्साए किसानों ने सरकार का विरोध किया और वे अपने जानवरों को खत्म करने लगे।
  • 1929 से 1931 के बीच मवेशियों की संख्या में एक-तिहाई कमी आ गई। सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को सख्त सज़ा दी जाती थी। बहुत सारे लोगों को निर्वासन या देश निकाला दे दिया गया।
  • सामूहिकीकरण का विरोध करने वाले किसानों का कहना था कि वे न तो अमीर हैं और न ही समाजवाद के विरोधी हैं। वे बस विभिन्न कारणों से सामूहिक खेतों पर काम नहीं करना चाहते थे।
  • स्तालिन सरकार ने सीमित स्तर पर स्वतंत्र किसानी की व्यवस्था भी जारी रहने दी लेकिन ऐसे किसानों को कोई खास मदद नहीं दी जाती थी।
  • सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में नाटकीय वृद्धि नहीं हुई। बल्कि 1930-1933 की खराब फसल के बाद तो सोवियत • इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा जिसमें 40 लाख से ज्यादा लोग मारे गए।
  • पार्टी में भी बहुत सारे लोग नियोजित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत औद्योगिक उत्पादन में पैदा हो रहे भ्रम और सामूहिकीकरण के परिणामों की आलोचना करने लगे थे। स्तालिन और उनके सहयोगियों ने ऐसे आलोचकों पर समाजवाद के खिलाफ़ साजिश रचने का आरोप लगाया।
  • देश भर में बहुत सारे लोगों पर इसी तरह के आरोप लगाए गए और 1939 तक आते-आते 20 लाख से ज्यादा लोगों को या तो जेलों में या श्रम शिविरों में भेज दिया गया था। ज़्यादातर लोगों ने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं था।
  • बहुत सारे लोगों को यातनाएँ दे-देकर उनसे इस आशय के बयान लिखवा लिए गए कि उन्होंने समाजवाद के विरुद्ध साजिश में हिस्सा लिया है और इसी आधार पर उन्हें मार दिया गया। इनमें कई प्रतिभावान पेशेवर लोग थे।
रूसी क्रांति के परिणाम / प्रभाव:-
  • 1917 की रूसी क्रांति 20 वी सदी पूर्वार्ध की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना जिसका प्रभाव ना केवल रूस बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
जारशाही की समाप्ति
  • रूसी क्रांति ने निरंकुश और प्रतिक्रियावादी जारशाही को समाप्त कर दिया किसानों के नेतृत्व में समाजवादी शासन व्यवस्था की स्थापना की।
अनेक राजवंश का अंत
  • रूस में चले आ रहे पिछले 300 वर्षों से स्थापित रोमानोव राजवंश का अंत कर दिया इस क्रांति की सफलता ने यूरोप में जो राजनीतिक चेतना उत्पन्न कि उसे राजतंत्र विरोधी भावनाएं और अधिक प्रबल हुई।
  • जिसमें विश्व के अनेक देशों में कई राज्यों का अंत हुआ जैसे ऑस्ट्रिया हंगरी में हेप्सवर्ग राज वंश का अंत तुर्की में युवा तुर्क आंदोलन जिसने खलीफा के सत्ता की समाप्ति ।
  • प्रथम विश्व युद्ध में रूस का हटना ख्र प्रथम विश्व युद्ध रूसी क्रांति का तत्कालीन कारण सिद्ध हुआ था। जारशाही का अंत कर जो बोल्शेविक सरकार सत्ता में आई उसने 1918 मैं जर्मनी के साथ बेस्टलितोवस्की की संधि की और रूस को युद्ध से अलग किया।
  • समाजवादी विचारधारा का प्रचार ख्र 1917 की बोल्शेविक क्रांति की सफलता ने मार्क्सवादी विचारधारा को साकार रूप दिया जिसमें साम्राज्यवाद का व्यवहारिक रूप सामने आया है।
  • यह विचारधारा किसानों मजदूरों तथा दलितों में बहुत लोकप्रिय हुई। रूस में सफलता के बाद यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित होने लगी इसी के लिए 1919 में प्रथम कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की स्थापना की गई। चीन में माओ तसे तुंग तथा वियतनाम के होम ची मिन्ह के संदर्भ में इसे समझा जा सकता है।
उपनिवेशवाद से मुक्ति
  • ऑप्नेवेशिक साम्रज्यवाद का मुख्य उद्देश्य अपने अधीन राष्ट्रों का शोषण करना था तथा इस ने उपनिवेश के निवासियों को प्रजातात्रिक व नागरिक अधिकारों से वंचित किया हुआ था।
  • बोल्शेविक क्रांति ने समाजवादी शक्तियों के विरुद्ध ना केवल स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया बल्कि उनका समर्थन भी किया भारत सहित एशिया और अफ्रीका के सभी देशों में सोवियत संघ को अपना मित्र और समर्थक समझा जाने लगा ।
  • विश्व का दो वैचारिक गुटों में बंटना ख्र बोल्शेविक क्रांति से पूर्व विश्व में राष्ट्रवाद तथा उपनिवेशवाद का बोलबाला था किंतु क्रांति के बाद रूस में समाजवादी सरकार की स्थापना से पूंजीवाद विचारधारा को ठेस लगी और विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया ।
आर्थिक समानता
  • आर्थिक समानता का जन्म क्रांति के बाद उत्पादन के साधनों कारखानों भूमि आदि का समाजीकरण हो गया जमींदारों कुलीनो सामंतों पूजी पतियों का विशेषाधिकार समाप्त हो गया।
  • रूस का आर्थिक व औद्योगिक विकास क्रांति के बाद निजी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण बिना मुवावजे के किया गया और कारखानों पर श्रमिकों के स्वामित्व को लागू किया गया।
  • इससे ना केवल कामगारों और मजदूरों का मनोबल बढ़ा बल्कि उत्पादन की प्रक्रिया पर सार्वजनिक नियंत्रण स्थापित किया जा सका। इससे रूस का स्वतंत्र औद्योगिक आर्थिक विकास हुआ।
नियोजित अर्थव्यवस्था का विकास
  • रूस ने नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिससे उनके आर्थिक विकास में तीव्र वृद्धि हुई और इसी के बल पर वह 1929 की आर्थिक मंदी के दुष्प्रभाव से आगे चलकर भारत सहित अनेक देशों ने अपने आर्थिक विकास के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया।
  • किसान और मजदूरों के जीवन स्तर में सुधार क्रांति के बाद श्रमिकों की बिचौलियों के चंगुल से मुक्त कर के श्रम के अनुपात में वेतन की सुविधा उपलब्ध कराई गई प्रत्येक व्यक्ति को काम देना राज्य का कर्तव्य बन गया शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार की सुनिश्चितता ने मेहनतकश वर्ग को नई स्फूर्ति प्रदान की।
  • वर्ग भेद की समाप्ति क्रांति के बाद विशेषाधिकार समाप्त किए गए कुल, वंश, लिंग, नस्ल, धर्म और जाति भेद किए बिना रूस के सभी नागरिकों को समान अधिकार मिले इससे समानता का लाभ सामाजिक आर्थिक राजनीतिक शैक्षणिक आदि क्षेत्रों में समान अवसर के रूप में संपूर्ण समाज को मिलने लगा।
  • धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा क्रांति के बाद रूस में सभी ध र्मों को समानता का दर्जा दिया गया राज्य का धर्म में कोई हस्तक्षेप नहीं रहा नागरिकों को पूरी स्वतंत्रता दी गई किसी भी धर्म के पालन की।
  • महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन रूसी महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आया अधिक संतान पैदा करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाने लगा।
  • खेत खलियान में ही नहीं कारखानों व प्रयोगशालाओं में भी रूसी महिला पुरुषों के समक्ष कार्य करने लगी। मताधि कार शिक्षा तथा रोजगार में उन्हें पुरुषों के समान अधि कार दिए गए।
बोल्शेविक मैनशेविक में अंतर
  • सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी 1898 तथा सोशल रिवॉल्यूशनरी पार्टी 1902 में स्थापना हुई। सोशल रिवॉल्यूशनरी पार्टी किसानों को संगठित कर क्रांति लाना चाहती थी, जबकि सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी सर्वहारा वर्ग को संगठित कर क्रांति कर सुधार मानते थे। कृषको को नहीं। सोशियल डेमोक्रेटिक पार्टी 1903 में दो वर्गों में विभाजित हो गई
  • बोल्शेविक जो बहुमत में था और क्रांति का रास्ता अपनाकर मजदूरों का शासन स्थापित करना चाहता था बोल्शेविक का प्रमुख नेता लेनिन था।
  • मेनशेविक जो अल्पमत में था यह मार्क्स के सिद्धांतों में तो विश्वास करते थे लेकिन उनके साधनों में नहीं । यह परिवर्तन चाहते थे और देश के क्रमिक विकास में विश्वास रखते थे।
  • शिक्षा से धर्म का नियंत्रण समाप्त हुआ तथा उसमें वैज्ञानिक मूल्य समाहित हुए समाजोपयोगी शिक्षा का विस्तार प्राथमिक माध्यमिक उच्च स्तर पर तीव्र गति से हुआ 8 वीं तक शिक्षा निशुल्क व अनिवार्य कर दी गई ।
रूसी क्रांति और सोवियत संघ का वैश्विक प्रभाव
  • बोल्शेविकों ने जिस तरह सत्ता पर कब्ज़ा किया था और जिस तरह उन्होंने शासन चलाया उसके बारे में यूरोप की समाजवादी पार्टियाँ बहुत सहमत नहीं थीं। लेकिन मेहनतकशों के राज्य की स्थापना की संभावना ने दुनिया भर के लोगों में एक नई उम्मीद जगा दी थी।
  • बहुत सारे देशों कम्युनिस्ट पार्टियों का गठन किया गया जैसे, इंग्लैंड में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन की स्थापना की गई। बोल्शेविकों ने उपनिवेशों की जनता को भी उनके रास्ते का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • सोवियत संघ के अलावा भी बहुत सारे देशों के प्रतिनिधियों ने कॉन्फ्रेस आफ़ेद पीपुल ऑफ़ दि ईस्ट (1920) और बोल्शेविकों द्वारा बनाए गए कॉमिन्टर्न (बोल्शेविक समर्थक समाजवादी पार्टियों का अंतर्राष्ट्रीय महासंघ) में हिस्सा लिया था।
  • कुछ विदेशियों को सोवियत संघ की कम्युनिस्ट युनिवर्सिटी ऑफ़ द वर्कर्स ऑफ़ दि ईस्ट में शिक्षा दी गई।
  • जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तब तक सोवियत संघ की वजह से समाजवाद को एक वैश्विक पहचान और हैसियत मिल चुकी थी। पचास के दशक तक देश के भीतर भी लोग यह समझने लगे थे कि सोवियत संघ की शासन शैली रूसी क्रांति के आदर्शों के अनुरूप नहीं है।
  • विश्व समाजवादी आंदोलन में भी इस बात को मान लिया गया था कि सोवियत संघ में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। एक पिछड़ा हुआ देश महाशक्ति बन चुका था।
विश्व पर प्रभाव
  • विश्व में साम्य वादी विचारों का प्रसार हुआ अनेक देशों में साम्यवादी सरकार स्थापित हुई।
  • श्रमिकों के प्रति नया दृष्टिकोण श्रम की महता तथा उसके पारिश्रमिक के न्याय पूर्ण वितरण का प्रयास |
  • अनेक देशों में श्रमिक संगठनों की स्थापना व आंदोलनों का विकास जैसे आईएलओ की स्थापना ।
  • अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन प्रणाली की शुरुआत।
  • विश्व का दो गुटों में विभाजन जो शीत युद्ध का कारण बना।
  • रूसी क्रांति से प्रेरित होने वालों में बहुत सारे भारतीय भी थे। उनमें से कई ने कम्युनिस्ट विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की।
  • 1920 के दशक में भारत में भी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन कर लिया गया। इस पार्टी के सदस्य सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में रहते थे।
  • कई महत्त्वपूर्ण भारतीय राजनीतिक एवं सांस्कृतिक व्यक्तियों ने सोवियत प्रयोग में दिलचस्पी ली और वहाँ का दौरा किया।
  • रूस जाने वाले भारतीयों में जवाहर लाल नेहरू और रबीन्द्रनाथ टैगोर भी थे जिन्होंने सोवियत समाजवाद के बारे में लिखा भी।
  • भारतीय लेखन में सोवियत रूस की अलग-अलग छवियाँ दिखाई देती थीं ।
रूसी क्रांति से जुड़े तथ्य और जानकारियां 
  • 1917 में दो क्रांतियों ने रूस को पूरी तरह से बदल दिया है। सबसे पहले, फरवरी हुई रूसी क्रांति ने रूसी राजशाही को गिरा दिया और एक अस्थायी सरकार की स्थापना की।
  • फिर अक्टूबर में, एक दूसरे रूसी क्रांति में नेताओं के रूप में बोल्शेविक रखा गया, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के पहले कम्युनिस्ट देश के निर्माण हुआ।
  • 1917 में दो क्रांतियों ने रूस को पूरी तरह से बदल दिया है। सबसे पहले, फरवरी में हुई रूसी क्रांति ने रूसी राजशाही को गिरा दिया और एक अस्थायी सरकार की स्थापना की।
  • फिर अक्टूबर में एक दूसरे रूसी क्रांति में नेताओं के रूप में बोल्शेविक रखा गया, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के पहले कम्युनिस्ट देश के निर्माण हुआ। रूसी क्रांति से जुड़े तथ्य इस प्रकार हैं:
  • समाजवादी शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले रोबर्ट ओवेन ने किया।
  • आदर्शवादी समाजवाद का प्रवक्ता रॉबर्ट ओवेन को माना जाता है।
  • वैज्ञानिक समाजवाद का संस्थापक कार्ल मार्क्स (जर्मनी) था।
  • दास कैपिटल और कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो नामक पुस्तक काल मार्क्स ने लिखी थी।
  • फ्रांसीसी साम्यवाद का जनक सेंट साइमन को माना जाता है।
  • फेबियन सोशसलिज्म का नेतृत्व जॉर्ज बर्नाड शॉ ने किया।
  • लंदन में फेबियन सोसाइटी की स्थापना 1884 ई. में हुई।
  • दुनिया के मजदूरों एक हों- ये नारा कार्ल मार्क्स ने दिया।
  • रूस के शासक को जार कहा जाता था।
  • जाराशाही व्यकवस्था 1917 ई. में समाप्त हुई।
  • जार मुक्तिदाता के नाम से एलेक्सजेंडर द्वितीय को माना जाता है।
  • रूस का अंतिम जार जार निकोलस द्वितीय था। 
  • रूस की क्रांति 1917 ई. में हुई। 
  • 1917 की क्रांति का तात्कालिक कारण प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय था। 
  • वोल्शेविक की क्रांति 7 नवंबर 1917 ई. में हुई थी। 
  • वोल्शेविक क्रांति का नेता लेनिन था। 
  • लेनिन ने चेका का संगठन किया था। 
  • लाल सेना का संगठन ट्राटस्की ने किया। 
  • एक जार, एक चर्च और रूस का नारा जार निकोलस द्वि तीय ने दिया।
  • रूस के जार शासक एलेक्स जेंडर द्वितीय की हत्या बम विस्फोट से हुई।
  • रूस में सबसे अधिक जनसंख्या स्लाव लोगों की थी ।
  • अन्ना कैरेनिना के लेखक लीयो टाल्सटॉय थे।
  • शून्यवाद का जनक इवान को माना जाता है।
  • रूसी साम्यवाद का जनक प्लेखानोवा को माना जाता है।
  • सोशल डेमोक्रेटिक दल की स्थापना 1903 ई. में रूस में हुई।
  • लेनिन ने रूस में 16 अप्रैल 1917 ई. में क्रांतिकारी योजना प्रकाशित की।
  • इस योजना को अप्रैल थीसिस के नाम से जाना गया। 
  • रूस में नई आर्थिक नीति लेनिन ने 1921 ई. में लागू किया। 
  • आधुनिक रूस का निर्माता स्टालिन को माना जाता है। 
  • लेनिन की मृत्युं 1924 ई. में हुई। 
  • राइट्स ऑफ मैन के लेखक टामस पेन है। 
  • मदर की रचना मैक्सिम गोर्की ने की। 
  • स्थायी क्रांति के सिद्धांत का प्रवर्तक ट्राटस्की था। 
  • प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लेनिन का नारा युद्ध का अंत करो था। 
  • कार्ल मार्क्स का आजीवन साथी फ्रेडरिक एंजेल्स रहा।
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