केंद्रशासित प्रदेश

संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत का राज्य क्षेत्र तीन क्षेणियों में बांटा गया है-(अ) राज्य क्षेत्र (ब) केंद्रशासित प्रदेश और (स) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र, जो भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अर्जित किए जाएं। वर्तमान में 29 राज्य, 7 केंद्रशासित प्रदेश हैं, किंतु कोई अर्जित राज्य क्षेत्र नहीं है।

केंद्रशासित प्रदेश

केंद्रशासित प्रदेश

संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत का राज्य क्षेत्र तीन क्षेणियों में बांटा गया है-(अ) राज्य क्षेत्र (ब) केंद्रशासित प्रदेश और (स) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र, जो भारत सरकार द्वारा किसी भी समय अर्जित किए जाएं। वर्तमान में 29 राज्य, 7 केंद्रशासित प्रदेश हैं, किंतु कोई अर्जित राज्य क्षेत्र नहीं है।
सभी राज्य भारत की संघीय व्यवस्था के सदस्य हैं और वह केंद्र के साथ शक्ति के विभाजन के सहभागी हैं। दूसरी ओर, केंद्रशासित प्रदेश वह क्षेत्र है, जो केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में होता है इसलिए ऐसे प्रदेशों को केंद्रशासित क्षेत्र भी कहते हैं। इस प्रकार से ये प्रदेश संघीय प्रणाली से भिन्न हैं। जहां तक इन केंद्रशासित प्रदेशों एवं दिल्ली के संबंध की बात है तो भारत सरकार इस संबंध में पूर्णत: एकाकी है।'

केंद्रशासित प्रदेशों का गठन

ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1874 में कुछ अनुसूचित जिले बनाए गए। बाद में इसे मुख्य आयुक्तीय क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद इन्हें भाग-ग राज्यों तथा घ प्रदेशों की श्रेणी में रखा गया। 1956 में 7वें संविधान संशोधन अधिनियम व राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत इन्हें केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में गठित किया गया। धीरे-धीरे, कुछ केंद्रशासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश व गोवा शुरुआत में केंद्रशासित प्रदेश थे लेकिन अब ये सभी पूर्ण राज्य हैं। दूसरी ओर पुर्तगालियों से लिए गए क्षेत्र (गोवा, दमन-दीव और दादरा और नगर हवेली) तथा फ्रांसीसियों से लिया गया क्षेत्र (पुडुचेरी) केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए।
वर्तमान में नौ केंद्रशासित प्रदेश हैं, ये हैं (गठन के वर्ष के साथ) – (1) अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह - 1956, ( 2 ) दिल्ली - 1956, (3) लक्षद्वीप - 1956, (4) दादरा और नगर हवेली – 1961 (5) दमन व दीव - 1962 (6) पुदुचेरी, तथा (7) चंडीगढ़ - 1966, (8) जम्मू एवं कश्मीर-2019 और (9) लद्दाख-2019। 1973 तक लक्षद्वीप को लकादीव, मिनीकॉय एवं अमिनदिवी दीव के नाम से जाना जाता था। 1992 में दिल्ली को 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली' के रूप में जाना जाने लगा। 2006 तक पुडुचेरी को पांडिचेरी के नाम से जाना जाता था।
केंद्रशासित प्रदेशों का गठन अनेक कारणों से किया गया। ये कारण निम्नलिखित हैं:
  1. राजनीतिक व प्रशासनिक सोच - दिल्ली एवं चंडीगढ़।
  2. सांस्कृतिक भिन्नताएं- पुडुचेरी, दादरा और नागर हवेली।
  3. सामरिक महत्व - अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप |
  4. पिछड़े एवं अनुसूचित लोगों के लिए विशेष बर्ताव व देखभाल–मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा व अरुणाचल प्रदेश ये बाद में पूर्ण राज्य बन गए।
2019 में पूर्व के जम्मू एवं कश्मीर राज्य को दो अलग संघीय क्षेत्र में विभक्त कर दिया गया - जम्मू एवं कश्मीर संघीय क्षेत्र तथा लद्दाख संघीय क्षेत्र। जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 पेश करते समय संसद में भारत सरकार ने इन दो संघीय क्षेत्रों के सृजन के निम्न कारण स्पष्ट किए:
  1. जम्मू एवं कश्मीर राज्य का लद्दाख संभाग विशाल क्षेत्रफल किन्तु विरल जनसंख्या एवं कठिन भूपटल वाला इलाका है। लद्दाख के लोगों की पुरानी मांग थी कि उसे संघीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए जिससे कि वे अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति कर सकें। लद्दाख संघीय क्षेत्र की कोई विधायिका नहीं होगी।
  2. पुन: वर्तमान में आंतरिक सुरक्षा वातावरण को ध्यान में रखते हुए जम्मू एवं कश्मीर राज्य में सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद के कारण जम्मू एवं कश्मीर संघीय क्षेत्र का सृजन किया जा रहा है। जम्मू एवं कश्मीर संघीय क्षेत्र की विधायिका होगी।

केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन

संविधान के भाग VIII के अंतर्गत अनुच्छेद 239-241 में केंद्रशासित प्रदेशों के संबंध में उपबंध हैं। यद्यपि सभी केंद्रशासित प्रदेश एक ही श्रेणी के हैं लेकिन उनकी प्रशासनिक पद्धति में समानता नहीं है ।
प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा संचालित होता है, जो एक प्रशासक के माध्यम से किया जाता है। केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासक राष्ट्रपति का ऐजेंट या अभिकर्ता होता है, न कि राज्यपाल की तरह राज्य प्रमुख । राष्ट्रपति प्रशासक को पदनाम दे सकता है। वर्तमान में उप-राज्यपाल अथवा मुख्य आयुक्त अथवा प्रशासक हो सकता है। इस समय वे उप-राज्यपाल (दिल्ली- अंडमान निकोबार द्वीप समूह, पुडुचेरी, जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख में) या प्रशासक (चण्डीगढ़, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप में) हैं। राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य से सटे केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। इस हैसियत में राज्यपाल अपनी मंत्रिपरिषद के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी (1963), दिल्ली (1992) और जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा गठित की गई और मंत्रिमंडल मुख्यमंत्री के अधीन कर दिया गया। शेष छह केंद्रशासित प्रदेशों में इस तरह की राजनीतिक संस्था नहीं हैं परंतु केंद्रशासित प्रदेशों में इस तरह की व्यवस्था बनाने का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि उन पर राष्ट्रपति व संसद का सर्वोच्च नियंत्रण कम हो गया है।
संसद, केंद्रशासित प्रदेशों के लिए तीनों सूचियों ( राज्य के विषय भी) के विषयों पर विधि बना सकती है। संसद की इस शक्ति का विस्तार पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू एवं कश्मीर तक है, जबकि इनकी अपनी विधायिकायें हैं। इसका अभिप्राय है कि किसी केंद्रशासित राज्य की अपनी विधायिका होने के बावजूद राज्य सूची के विषयों पर संसद की विधायिका शक्ति खत्म नहीं होती है। परंतु पुडुचेरी विधानसभा, राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है। इसी तरह दिल्ली भी राज्य सूची (लोक व्यवस्था, पुलिस व भूमि को छोड़कर) व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बना सकती है।
राष्ट्रपति, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा एवं नगर हवेली, दमन एवं दीव, जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख में शांति, विकास व अच्छी सरकार के लिए विनियम बना सकता है। पुडुचेरी में भी राष्ट्रपति विधि बना सकता है बशर्ते वहां विधानसभा विघटित हो या बर्खास्त हो । राष्ट्रपति द्वारा बनाई गई विधियों की शक्ति व प्रभाव संसद के अधिनियमों की ही तरह है और वह संसद के किसी अधिनियम को समाप्त या संशोधित कर सकता है। उसी प्रकार जम्मू एवं कश्मीर की विधानसभा राज्य सूची (सार्वजनिक व्यवस्था एवं पुलिस को छोड़कर) तथा समवर्ती सूची के अंतर्गत किसी विषय पर कानून बना सकती है।
संसद, किसी केंद्रशासित प्रदेशों में उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है या उसे निकटवर्ती राज्य के उच्च न्यायालय के अधीन कर सकती है। दिल्ली ही एकमात्र ऐसा केंद्रशासित प्रदेश है, जिसका स्वयं का उच्च न्यायालय (1966 से) है। दादरा और नगर हवेली एवं दमन व दीव, बंबई उच्च न्यायालय के दायरे में हैं। उसी तरह अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुडुचेरी क्रमशः कलकत्ता, , पंजाब एवं हरियाणा, केरल व मद्रास उच्च न्यायालय के दायरे में आते हैं।
संविधान में अधिगृहीत प्रदेशों के प्रशासन के लिए अलग से उपबंध नहीं हैं परंतु केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के संवैधानिक उपबंध अधिगृहीत क्षेत्रों के लिए लागू होते हैं।

दिल्ली के लिये विशेष उपबंध

1991 में 69वें संविधान संशोधन विधेयक में केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष हैसियत प्रदान की गई और इसे 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली' का दिया गया और लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक नामित किया गया। दिल्ली के लिए विधानसभा व मंत्रिमंडल का गठन किया गया है। पूर्व में दिल्ली में महानगरीय परिषद और कार्यकारी परिषद थी ।
विधानसभा की क्षमता 70 सदस्यीय निर्धारित की गई है, जो लोगों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। चुनाव, भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा कराया जाता है। विधानसभा को राज्य सूची व समवर्ती सूची के विषयों पर विधि बनाने का अधिकार है (राज्य सूची के तीन विषय-लोक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि को छोड़कर) परंतु संसद द्वारा बनाई गई विधि, विधानसभा द्वारा बनाई गई विधि से अधिक प्रभावी होती है।
मंत्रिमंडल की संख्या, विधानसभा की कुल संख्या का 10 प्रतिशत है। यानी मंत्रिमंडल की संख्या सात है- मुख्यमंत्री व छह अन्य मंत्री। राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री को नियुक्त करता है (न कि उप-राज्यपाल ) । अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री की सलाह पर करता है। मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पर होते हैं। मंत्रिमंडल, सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है।
मंत्रिमंडल, मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में उप-राज्यपाल द्वारा स्व-विवेक से लिए गए निर्णयों को छोड़कर बाकी सभी कार्यों में सहयोग व सहायता करती है, लेकिन उप-राज्यपाल व मंत्रिमंडल में किसी मुद्दे पर टकराव होने पर उप-राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।
ऐसी स्थिति में जब क्षेत्र का प्रशासन उपरोक्त उपबंधों के अनुसार नहीं हो पा रहा हो, तो राष्ट्रपति उपरोक्त उपबंधों को खारिज कर सकता है और क्षेत्र के प्रशासन के लिए आवश्यक उपबंध बना सकता है। दूसरे शब्दों में, संवैधानिक विफलता की स्थिति में राष्ट्रपति उस क्षेत्र में अपना शासन लागू कर सकता है। ऐसा उप-राज्यपाल द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर होता है। यह उपबंध अनुच्छेद 356 के समान है, जिसके तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
उप-राज्यपाल को सभा के सत्र में नहीं होने के दौरान अध्यादेश को प्रख्यापित करने का अधिकार होता है। किसी अध्यादेश का प्रभाव उतना ही होता है जितना प्रभाव सभा द्वारा पारित किसी अधिनियम का होता है। ऐसे प्रत्येक अध्यादेश को सभा के पुनः सम्वेत होने के छह सप्ताह के भीतर अवश्य अनुमोदित किया जाना होता है। वे किसी समय उस अध्यादेश को वापस भी ले सकते हैं। किंतु वे सभा भंग होने या स्थगित पर किसी अध्यादेश को प्रख्यापित नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति के पूर्वानुमति के बिना ऐसे किसी अध्यादेश को प्रख्यापित नहीं किया जा सकता है।

संघीय क्षेत्रों (संघ शासित प्रदेशों) के लिए सलाहकार समितियां

भारत सरकार (कार्यवाही आवंटन) नियमावली, 1961 के अंतर्गत गृह मंत्रालय संघीय क्षेत्रों में विधायन वित्त एवं बजट सेवाएं तथा उप-राज्यपाल एवं प्रशासकों की नियुक्ति से संबंधित सभी मामलों के लिए नोडल एजेन्सी है।
सभी छहों संघीय क्षेत्रों (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा एवं नगर हवेली, लक्षद्वीप और लद्दाख) जहां विधायिका नहीं है, वहां गृह मंत्री सलाहकार समिति / या प्रशासक सलाहकार समिति (AAC) का फोरम है। HMAC की बैठक अध्यक्षता केंद्रीय गृहमंत्री करते हैं, जबकि AAC की बैठक अध्यक्षता उस क्षेत्र के प्रशासक करते हैं। सांसद तथा स्थानीय निकायों (जिला पंचायत तथा संबंद्ध संघीय क्षेत्र की निगम परिषद) के सदस्य इन समितियों के सदस्य होते हैं। समिति संघीय क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े सामान्य मुद्दों पर विचार करती है।
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