कृदन्त
तुमुन्, शतृ, शानच् आदि ‘कृत’ प्रत्यय कहलाते हैं। धातु के साथ इन कृत् प्रत्ययों के योग से जो पद बनते हैं, वे कृदन्त (कृत् + अन्त) कहलाते हैं।
'योग्य' तथा 'चाहिए' अर्थ में
तव्यत् (तव्य), अनीयर् (अनीय) आदि कृत प्रत्यय कहलाते हैं। 'योग्य’ तथा ‘चाहिए’ के अर्थ में इनका प्रयोग होता है। इन प्रत्ययों से युक्त शब्दों का प्रयोग विशेषण तथा क्रिया के रूप में होता है। तीनों लिंगों में ये प्रयुक्त होते हैं। जैसे—
पठ् + तव्यत् (तव्य) = पठितव्यम् (पढ़ने योग्य, पढ़ना चाहिए)
पठ् + अनीयर् (अनीय) क्रिया के रूप में = पठनीयम् (पढ़ने योग्य, पढ़ना चाहिए)
> क्रिया के रूप में—
तेन पुस्तकं पठितव्यम् (उसे पुस्तक पढ़नी चाहिए)।
> विशेषण के रूप में—
पठनीयम् पुस्तकं पठितव्यम् (पढ़ने योग्य पुस्तक पढ़नी चाहिए)।
कर्मवाच्य में सकर्मक धातु में तव्यत् आदि कृत्य प्रत्यय लगाने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति, कर्म में प्रथमा विभक्ति तथा क्रिया कर्म के अनुसार होती है। अर्थात्, कर्म के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार ही क्रिया होती है। जैसे—
राम को वेद (पुं०) पढ़ना चाहिए – रामेण वेदः पठितव्यः ।
उसे पत्रिका (स्त्री०) पढ़नी चाहिए – तेन पत्रिका पठितव्या ।
मुझे पुस्तक (नपुं०) पढ़नी चाहिए – मया पुस्तकं पठितव्यम् ।
भाववाच्य में अकर्मक धातु में तव्यत् आदि प्रत्यय लगने पर कर्ता में तृतीया विभक्ति तथा क्रिया एकवचनान्त नपुंसकलिंग में होती है। जैसे—
उसे हँसना चाहिए – तेन हसितव्यम् ।
तुझे नहीं हँसना चाहिए - त्वया न हसितव्यम् ।
मुझे नहीं हँसना चाहिए – मया न हसितव्यम् ।
पुँल्लिंग में - पठितव्यः, पठनीयः ('देव' शब्द के समान)
स्त्रीलिंग में— पठितव्या, पठनीया ('लता' शब्द के समान )
नपुंसकलिंग में – पठितव्यम्, पठनीयम् ('फल' शब्द के समान)
मुझे काम करना चाहिए· मया कार्यं कर्तव्यम्।
तुझे सद्ग्रन्थ लिखना चाहिए— त्वया सद्ग्रन्थः लेखितव्यः।
लोगों को कथा सुननी चाहिए – जनैः कथा श्रोतव्या ।
शीला को समाचार पढ़ना चाहिए – शीलया समाचारः पठितव्यः ।
महेश को फूल चुनना चाहिए – महेशेन पुष्पाणि चेतव्यानि ।
करने योग्य काम करना चाहिए – कर्तव्यं कार्यं कर्तव्यम् ।
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