General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | ब्रिटिश भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन

18वीं शताब्दी में यूरोप में एक नवीन बौद्धिक क्रांति का सूत्रपात हुआ । तर्कवाद तथा वैज्ञानिक सोच की अवधारणा ने पुरातन विचारों एवं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया।

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | ब्रिटिश भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन

General Competition | History | (आधुनिक भारत का इतिहास) | ब्रिटिश भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन

18वीं शताब्दी में यूरोप में एक नवीन बौद्धिक क्रांति का सूत्रपात हुआ । तर्कवाद तथा वैज्ञानिक सोच की अवधारणा ने पुरातन विचारों एवं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। भारत के प्रबुद्ध एवं नवीन मध्यम वर्ग भी इस अवधारणा से प्रभावित हुआ। यही वह कालखण्ड था जब भारत में औपनिवेश व्यवस्था भी अपनी जड़ मजबूत कर रहा था। ज्ञातव्य है भारतीय सभ्यता पृथ्वी की उपलब्ध पुरातन जीवित सभ्यताओं में शामिल है । अर्थात् हमारी परम्परा, संस्कृति तथा समाज की जीवनशैली भी उतनी ही पुरातन एवं उलझी हुई है। कुछ परम्परा एवं शैली कठोर एवं परिवर्तन के काबिल थी क्योंकि इनमें जड़ता, शोषण और ये मानवीय दृष्टिकोण से निम्न थे। इन सभी सामाजिक जड़ता एवं कठोर पुरातन परम्पराओं पर पाश्चात्य एवं भारतीय समाज सुधारकों ने प्रश्न चिह्न किया तथा नवीन औपनिवेशिक व्यवस्था के सहयोग से इसमें परिवर्तन किया।
  • 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी व्यवस्था एवं परिवर्तन का प्रभाव भारतीय समाज पर स्थायी हो रहा था इसके पूर्व के सभी परिवर्तनों से यह भिन्न था।
  • इसका प्रारंभ भारत से सुदूर पश्चिम में यूरोपीय महाद्वीप में पनप रहे तर्कवाद, विज्ञानवाद एवं बौद्धिक के चेतना के कारण हुआ था।
  • भारत की नवीन शिक्षित मध्यम वर्ग जो सर्वप्रथम यूरोप की 'नवजागरण युग' के सम्पर्क में आयी इस वर्ग भारतीय जनमानस में चेतना के विकास में प्रमुख योगदान दिया था। 
  • यही वह कालखण्ड धा जब भारत का बौद्धिक केन्द्र बंगाल में स्थापित हुआ। अंग्रेजी आधुनिक शिक्षा से सुसज्जित बंगाली युवाओं ने क्रांति को प्रारंभ किया।
  • भारत के प्रबुद्ध युता वर्ग ने भारतीय सामाजिक धार्मिक जड़ता एवं अंधविश्वास को आम जनमानस के समक्ष रखा एवं उसके परिवर्तन की चुनौती स्वीकार किया।
  • जाति प्रथा समाज की बहुत बड़ी बुगई थी । जाति का निर्धारण वर्ण एवं जन्म आधारित था। ना कि कर्म आधारित । जातिगत कट्टरता ने समाज के निचले पायदान के लोगों के लिए सामाजिक जीवन को दुष्कर बना दिया था।
  • अछूत व्यवस्था, अस्पृश्यता एवं निम्न स्तरीय जीवन के शिकार समूचे हिंदु जनसंख्या का लगभग 20% हिस्सा बन चुका था।
  • सती प्रथा, शिशु बध, बाल विवाह तथा अस्पृश्यता अनिवार्य एवं अभिन्न सामाजिक बुराई था। इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज की जटिलता एवं घनघोर परम्परावादी होना था ।
  • 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में लोकतंत्र एवं राष्ट्रवाद के उफान ने भारतीयों एवं भारत की सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं की भी प्रभावित करना पारंभ कर दिया। इसके प्रमुख प्रणेता कुछ शिक्षित भारतीय तथा कुछ विदेशी नागरिक भी थे।

देशी समाज सुधारक

राजा राम मोहन राय (1772-1833 )

  • तत्कालीन ब्रिटिश शासन में बंगाल में प्रारंभ हुए समाज सुधार आंदोलन के प्रणेता राजा राम मोहन राय थे।
  • इनको 'नवजागरण के अग्रदूत', सुधार आंदोलनों के प्रवर्तक, आधुनिक भारत का पिता, नव प्रभात का तारा के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
  • इनका जन्म 22 मई, 1772 में बंगाल के हुगली जिले में स्थित राधा नगर में हुआ था।
  • इनके पिता रमाकांत जी बंगाल के नवाब के यहाँ कार्य में थे। इसी स्थान पर राम मोहन को 'राय रायां' की उपाधि भी प्राप्त हुई थी।
  • राजा राम मोहन ने अल्पायु (16 वर्ष की अवस्था) में ही विद्रोही प्रवृति अपनाते हुए हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा का विरोध किया था।
  • वर्ष 1803 में पिता रमाकांत राय की मृत्यु के पश्चात् कंपनी में जॉन डिग्बी के दीवान बने थे तथा यहाँ 1814 तक कार्य किया था।
  • वर्ष 1809 में राजा राम मोहन राय ने फारसी भाषा में 'तुहफात-उल-मुवाहिद्दीन' अर्थात् एकेश्वरवादियों का उपहार नामक पुस्तक की रचना की थी।
  • 1814 में ही इनके द्वारा आत्मीय सभा की स्थापना किया गया जिसमें इनके सहयोगी द्वारका नाथ ठाकुर थे ।
  • 1816 में वेदांत सोसाइटी की स्थापना किया एवं 1820 में बाइबल के आधार पर 'प्रीस्टस ऑफ जीसस' नामक पुस्तक की रचना की थी। इस पुस्तक का प्रकाशन जॉन डिग्बी ने इंग्लैण्ड में कराया था।
  • 1821 में 'कलकत्ता यूनीटेरियन कमेटी' की भी स्थापना इनके द्वारा की गई थी।
  • इनके द्वारा 20 अगस्त, 1828 को 'ब्रह्म समाज' की स्थापना की गई थी। इसको प्रारंभ में 'ब्रह्म सभा' कहा गया था। किंतु कालांतर में यह ब्रह्म समाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
  • ब्रह्म समाज ने भारतीय समाज सुधार आंदोलन के विकास में महती योगदान दिया था। इसको अद्वैतवादी हिंदुओं की संस्था कहा जा सकता था।
  • ब्रह्म समाज ने 'मूर्ति पूजा', अवतारवाद, बहुदेववाद, पुरोहितवाद, इत्यादि विचारों का खंडन किया तथा ईश्वर की एकता पर बल दिया था।
  • इनके सहयोग ने 1817 में डेविड हेयर ने कलकत्ता में 'हिंदू कॉलेज' की स्थापना किया था तथा 1825 में वृंदांत कॉलेज की स्थापना किया गया था।
  • राजा राममोहन राय को 'पत्रकारिता का अग्रदूत' भी माना जाता है। समाचारों की आजादी के लिए इनके द्वारा जनजागरण किया गया था।
  • इनके द्वारा वर्ष 1821 में बंगाली में 'संवाद कौमुदी' और 'प्रज्ञा का चाँद' नामक पुस्तक की रचना की थी।
  • वर्ष 1822 में इनके द्वारा फारसी भाषा में मिरात-उल-अखबार प्रकाशित किया था ।
  • इनके द्वारा 'बंगला व्याकरण' का संकलन भी किया गया था। तथा 'हिंदू उत्तराधिकार नियम' नामक पुस्तक की रचना की गई थी।
  • वर्ष 1811 में राजा राम मोहन राय के बड़े भाई जगमोहन की मृत्यु के पश्चात । इनकी भाभी 'अलका मंजरी' को सती होना पड़ा था।
  • इस घटना से क्षुब्ध राजा राम मोहन राय ने वृहद स्तर सती प्रथा के खिलाफ पर समाज व्यापी आंदोलन चलाया। तथा विलियम बेंटिक को सती प्रथा के विरोधी कानून बनाने में मदद प्रदान किया।
  • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा का विरोध 'संवाद कौमुदी' के माध्यम से किया था।
  • वर्ष 1821 के नंपल्स क्रांति विफलता से दुखी राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1823 के स्पेनिश क्रांति की सफलता का इजहार भोज देकर किया था।
  • वर्ष 1831 में मुगल सम्राट अकबर || ने राम मोहन राय को 'राजा' की की उपाधि दिया था। तथा अपने पेंशन बहाली की वार्ता हेतु विलियम चतुर्थ के दरबार भेजा था।
  • राजा राम मोहन राय ने मुगल बादशाह अकबर ।। की पेंशन से संबंधित वार्ता हेतु, इंग्लैंड की यात्रा की थी।
  • 27 सितम्बर, 1833 को ब्रिस्टल (इंग्लैंड) में मस्तिष्क ज्वर के कारण इनकी मृत्यु हो गई।
  • अपने मृत्यु से पूर्व ही राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज का प्रन्यासकरण पत्र (trust deed) लिखा था।

ब्रह्म समाज

  • राजा राम मोहन राय द्वारा नामित द्वारका नाथ टैगोर ( रवीन्द्र नाथ टैगोर के पिताजी ) तथा पंडित रामचंद्र विद्या वागीश ने प्रारंभ में ब्रह्म समाज को संचालित किया।
  • ज्ञातव्य हो कि कलकत्ता के 'जेरासाकी' में तत्वरंजनी सभा की स्थापना देवेन्द्रनाथ टैगोर ने किया था। 1839 में यही परिवर्तित होकर तत्वबोधिनी सभा के रूप में सामने आई थी।
  • देवेन्द्र नाथ टैगोर के द्वारा 'तत्वबोधिनी' नामक पत्रिका बंगाली भाषा में प्रकाशित भी किया गया था यह पत्रिका ब्रह्म समाज की मुख्य पत्रिका थी।
  • इस पत्रिका के मुख्य संपादक ईश्वरचंद्र विद्यासागर, प्यारे रामचंद्र मित्र, राजनारायण बोस तथा राजेन्द्र लाल मित्र थे।
  • वर्ष 1840 में ब्रह्म समाज के सदस्यों का धर्मशास्त्र एवं विज्ञान तथा पौराणिक विषयों के ज्ञान के लिए 'तत्वबोधिनी' नामक स्कूल की स्थापना की गई थी।
  • समकालीन भारतीय समाज को प्रभावित करने का प्रयास ईसाई धर्म प्रचारक 'अलेक्जेंडर डफ' के द्वारा किया गया।
  • देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 'अलेक्जेंडर डफ' के 'भारतीय संस्कृति के दुष्प्रचार का विरोध किया एवं इसी क्रम में 'ब्रह्म धर्म' नामक धार्मिक पुस्तक का संकलन भी किया।
  • 1857 में देवेन्द्र नाथ टैगोर ने 'ब्रह्म समाज' की सदस्यता केशवचंद्र सेन को सौंप दिया एवं स्वयं संन्यास ले लिया।
  • केशवचंद्र सेन के कार्यकाल में ब्रह्म समाज के विस्तार एवं लोकप्रियता में घनघोर वृद्धि हुई ।
  • ब्रह्म समाज की बंगाल से बाहर पंजाब, उत्तर प्रदेश, बंबई एवं मद्रास में शाखाएँ खोली गई थी। वर्ष 1865 में बंगाल में ही ब्रह्म समाज की 65 शाखाएँ थी ।
  • केशनचंद्र सेन का अन्य धर्मों के प्रति झुकाव एवं सहृदयता के कारण देवेन्द्र नाथ टैगोर से वैचारिक टकराव प्रारंभ हो गए।
  • इसी क्रम में देवेन्द्र नाथ टैगोर ने केशव चंद्र सेन को उनके पद से मुक्त कर दिया। इस टकराव में केशवचंद्र सेन ने ब्रह्म समाज छोड़ दिया।
  • 1865 में ब्रह्म समाज में प्रथम जलगाव हुआ। कं चंद्र सेन ने अपनी नई संस्था आदि ब्रह्म समाज की स्थापना किया था । जो कालांतर में भारतीय ब्रह्म समाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ था।
  • 1870 ई. में केशवचन्द्र सेन 6 महीने के इंग्लैंड प्रवास में 70-80 भाषण दिए थे।
  • 1861 में केशवचंद्र सेन ने इंडियन मिरर नामक अंग्रेजी का प्रथम भारतीय दैनिक का संपादन भी किया था।
  • 1872 में केशव चंद्र सेन के प्रयासों से ब्रह्म विवाह एक्ट पारित हुआ था। इसके अन्तर्गत बाल विवाह, बहुपत्नी विवाह को अवैध घोषित कर दिया गया था।
  • कालांतर में केशव चंद्र सेन अपने मूल विचारों के विरुद्ध जाकर अपनी अल्पायु पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से कर दिया ।
  • इस घटना से ब्रह्म समाज के छवि को ठेस पहुँचा और इस विघअन दोबारा हो गया। इनके सहयोगी आनंद मोहन बोस तथा शिवनाथ शास्त्री के द्वारा 1878 में 'साधारण ब्रह्म समाज' की स्थापना किया गया था।
  • इसी क्रम में केशवचंद्र सेन ने स्त्री शिक्षा और पश्चिमी शिक्षा पर विशेष बल दिया था। इनके द्वारा इंडियन रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना किया गया था।
  • वर्ष 1884 में केशवचंद्र सेन की मृत्यु पर मैक्समूलर ने कहा था " भारत ने अपना श्रेष्ठतम पुत्र खो दिया" ।

वेद समाज एवं प्रार्थना समाज

  • 1864 में मद्रास में कं० श्री धरालु नायडु ने वेद समाज की स्थापना किया था।
  • ज्ञातव्य हो कि श्री धरालू नायडू पर केशवचंद्र सेन का अत्यधिक प्रभाव था। इसी कारण श्री धराल ने वेद समाज को 'दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज' कहा था।
  • केशवचंद्र के प्रभाव से ही 1867 में बंबई में डॉ० आत्माराज पांडुरंग ने 'प्रार्थना समाज' को स्थापित किया था। इसमें महादेव गोविन्द राणाडे पांडुरंग के सहयोगी थे।
  • 1871 में महादेव गोविन्द रानाडे ने 'सार्वजनिक समाज' की स्थापना किया था। इनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इनको 'महाराष्ट्र का सुकरात' नाम से संबोधित किया जाता है।
  • प्रार्थना समाज ने दलित अछूत तथा पिछड़ों के सुधार के लिए
    (A) दलित जाति मण्डल (Depressed Classed Mission)
    (B) समाज सेवा संघ (Social Service League)
    (C) दक्कन शिक्षा सभा (Duccan Education Society)
  • दक्कन एजुकेशन सोसाइटी को ही कालांतर में फांग्यूशन कॉलेज भी कहा गया था। रानाडे को पश्चिम भारत में सांस्कृतिक जागरण का अग्रदूत कहा गया था।
  • 1891 में महाराष्ट्र में विधवा विवाह को प्रचारित करने के उद्देश्य से महादेव गोविन्द रानाडे ने 'विडो रिमैरिज एसोसिएशन' की स्थापना किया था।
  • इसी क्रम में 1899 में धोंदो केशव कर्वे ने विधवा आश्रम संघ (विडो होम) की स्थापना पूना में किया था। जहाँ विधवाओं को आत्मनिर्भर बनाकर जीवन के लिए नए दृष्टिकोण पैदा करने की प्रेरणा दिया जाता था।
  • धोंदो केशव कर्वे फार्ग्युसन कॉलेज के अध्यापक को तथा विधूर थे उन्होंने एक विधवा से 1893 में विवाह किया था । कर्वे ने ही 1916 में महिला शिक्षा हेतु प्रथम महिला विश्वविद्यालय बर्बर में स्थापित किया।

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर

  • 1820 ई. में पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर में इनका जन्म हुआ था। ये बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि के व्यक्ति थे ।
  • 1839 में केवल 19 वर्ष की उम्र में कानून की शिक्षा प्राप्त कर लिया था ।
  • 1841 ई. में कलकत्ता स्थित कोर्ट विलियम कॉलेज के अंतर्गत स्थित संस्कृत कॉलेज में शिक्षक नियुक्त हुए थे।
  • 1841 ई. में ही कलकत्ता स्थित एक संस्कृत कॉलेज के प्रधानाचार्य नियुक्त हुए थे। इस नियुक्ति के पश्चात् सबसे पहले गैर-ब्राह्मणों को संस्कृत पढ़ाने का कार्य प्रारंभ किया।
  • उन्होंने संस्कृत पढ़ाने का नई विद्या प्रारंभ किया था एवं गैर-ब्राह्मणों को संस्कृत पढ़ाने के कारण इनका विरोध प्रारंभ हो गया था।
  • ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के द्वारा बंगाली भाषा के अक्षरों को पढ़ने तथा समझने के लिए 'वर्णो परिचय' नामक पुस्तक की रचना किया था।
  • 'वर्णो परिचय' नामक पुस्तक की रचना के कारण ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को आधुनिक बंगाली भाषा का पिता कहा गया है।
  • ये भारतीय इतिहास में प्रमुख स्त्री शिक्षा के सुधारक थे। 1849 में नारी की उच्च शिक्षा के लिए 'वेथून कॉलेज' का निर्माण कराया था।
  • इनके द्वारा कलकत्ता में मेट्रोपोलिटन कॉलेज की स्थापना किया गया था। यहाँ पर पुरुषों के बराबर महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया गया था।
  • ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रभाव से 1860 ई. में 'Age or concent act' पास हुआ था। जिसमें लड़की की शादी की उम्र कम-से-कम 10 वर्ष कर दिया गया। इससे कम उम्र की शादी को अपराध घोषित कर दिया गया ।
  • इनके द्वारा नारी शिक्षा में विकास के लिए अनेक उपाय किए गए थे।
  • ईश्वरचन्द्र के द्वारा अपने इकलौते पुत्र का विवाह विधवा स्त्री से किया । इस प्रकार यह युगांतकारी घटना थी ।
  • वर्ष 1855-58 के बीच 25 विधवाओं का विवाह करवाया।
  • इनके द्वारा डलहौजी के कार्यकाल में 984 लोगों के हस्ताक्षर लिए विधवा पुर्नविवाह के पक्ष में। इसी क्रम में बर्द्धमान के राजा महताब चंद्र तथा नादिया जिला के राजा श्री चंद्र के सहयोग से डलहौजी तथा इसके कार्यकारणी के समक्ष पत्र भेजे गए।
  • डलहौजी के द्वारा विधवा पुर्नविवाह के पक्ष में प्राप्त हुए पत्र को स्वीकृति भी कर दिया। किंतु कुछ समय में डलहौजी का सेवा समाप्त हो गया।  
  • डलहौजी के पश्चात कैनिंग ने इस पत्र का संज्ञान लेते हुए 26 जुलाई, 1856 को विधवा पुर्नविवाह अधिनियम remariage act) 1956 के धारा 15 के अन्तर्गत विधवा पुर्नविवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गया था।

दयानंद सरस्वती

  • इनका जन्म गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र के मौरवी रियासत के राजकोट जिला के टांकारा नामक स्थान / गाँव में 1824 ई. में हुआ था ।
  • इनके बचपन का नाम मूल शंकर था। वे 21 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर दिया था ।
  • वर्ष 1848 ई. में इनकी मुलाकात स्वामी पूर्णानंद जी से हुई। दयानंद सरस्वती इनकी शिष्यता ग्रहण किया था। पूर्णानंद जी ने मूल शंकर का नाम परिवर्तित कर दयानंद सरस्वती कर दिया।
  • वर्ष 1861 ई. में मथुरा पहुँच कर नेत्रहीन स्वामी विरजानंद जी को अपना गुरु बनाया था। इन्होंने विरजानंद जी से ही वैदिक ग्रंथों का आध्यात्मिक एवं दार्शनिक ज्ञान का अध्ययन प्राप्त हुआ था।
  • 1869 ई. में हरिद्वार में पाखंड खंडनी पताका (ध्वज) स्थापना किया था । इसका उद्देश्य धर्म के अंदर के आडंबरवाद को समाप्त करना था ।
  • 1874 ई. में दयानंद सरस्वती के द्वारा 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया था ।
  • दयानंद सरस्वती को इनके धार्मिक व सामाजिक सुधार के कारण इनकी तुलना जर्मनी के मार्टिन लूथर को किया जाता है।
  • इस प्रकार दयानंद सरस्वती को भारत का मार्टिन लूथर भी कहा गया था।
  • 1875 में आर्य समाज की स्थापना बंबई में किया गया। 
  • 1881 में दयानंद सरस्वत से प्रभावित होकर पंडिता रमाबाई अंबेडकर ने आर्य महिला समाज की स्थापना किया था।
  • 1889 में पंडिता रमाबाई ने 'शारदा सदन' तथा 'मुक्तिधाम' नामक दो संस्थान बनाए गए थे।
  • मुक्तिधाम - निराश्रित लोगों के लिए स्थापित किया गया था।
  • गौरक्षा समिति–दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापना किया गया था।
  • गौरक्षा सभा - बाल गंगाधार द्वारा स्थापना किया गया था।
  • गौरक्षा संघ - महात्मा गाँधी द्वारा स्थापना किया गया था।
  • 30 अक्टूबर, 1883 में जोधपुर की तवायफ नन्हीं जान के द्वारा दयानंद सरस्वती को जहर दे दिया गया।
  • दयानंद सरस्वती अपनी मृत्यु के समय अजमेर में थे।

  • आर्य समाज से सबसे प्रभावित क्षेत्र पंजाब था। साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी इसी क्रम महत्वपूर्ण था ।
  • आर्य समाज का दो नारा था जिसे दयानंद सरस्वती ने दिया था-
    (A) वेदों की ओर लौटो
    (B) कंगवंतो विश्वभारयम् (विश्व को आर्य बनाते चलो )
  • 1907 में वेलेन्टाइन शेरोल ने अपनी पुस्तक 'इंडियन अनरेस्ट' में भारत में अशांति का जनक माना था दो लोगों को व्यक्ति के रूप में बाल गंगाधर तिलक को तथा संस्था के रूप में आर्य समाज को माना था ।

  • स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन चलाया था। इसके अन्तर्गत हिंदू धर्म के परित्यन्त व्यक्तियों को पुनः हिन्दु धर्म में वापसी का प्रावधान था ।
  • 1886 में लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) की स्थापना किया गया था।
  • दयानंद सरस्वती का स्वामी श्रद्धानंद से भाषा को लेकर विवाद हो गया। श्रद्धानंद ने 1902 में हरिद्वार के कांगड़ी में गुरुकुल विश्वविद्यालय की स्थापना किया था ।

रामकृष्ण परमहंस

  • 1 मई, 1897 को कलकत्ता के पास बारानगर में 'रामकृष्ण परमहंस' की स्थापना स्वामी विवेकानंद के द्वारा किया गया था।
  • कालांतर में बेलूर इस मिशन का मुख्यालय लय बना था। इस मिशन के सिद्धांतों का आधार वेदांत दर्शन था।
  • स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। इनका मूल नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था जो कलकत्ता दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे।
  • स्वामी रामकृष्ण दक्षिणेश्वर के संत के नाम से भी विख्यात थे। इन पर भैरवी एवं तोतापुरी जैसे संतों का भी प्रभाव था ।
  • 5 वर्ष की अवस्था में इनकी शादी शारदामजी मुखोपाध्याय से हुआ था।

स्वामी विवेकानंद

  • स्वामी विवेकांनद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था।
  • 12 जनवरी को विवेकानंद के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के नाम से मनाया जाता है।
  • 1880 में इनकी मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। ये उनके अतिशीघ्र शिष्य बन गए। कालांतर में रामकृष्ण परमहंस की स्थापना किया।
  • 1891 में सम्पूर्ण भारत की यात्रा की तथा गरीबी एवं भूखमरी को प्रत्यक्ष अनुभव किया। भ्रमण में भारत की वास्तविक सामाजिक स्थिति का आभास होने पर समाज सुधार का प्रण लिया।
  •  राजस्थान स्थित खेताड़ी के महाराजा कुंवर अजीत राज सिंह के सुझाव पर अपना नाम बदलकर विवेकानंद रख लिया ।
  • 1893 में महाराजा के खर्च पर अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित होने वाले प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म ( सनातन धर्म) के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया था । 
  • 11 सितंबर, 1893 को दिए गए अपने ओजस्वी भाषण दिया था। अपने भाषण एवं विद्वता के कारण वे सुप्रसिद्ध हो गए।
  • इनको अमेरिका के समाचार- र-पत्रों में तूफानी भ्रमण करने वाला साधु भी कहा गया था। स्वामी जी ने अपना भविष्यवाणी किया था कि "विश्व पर सर्वहारा वर्ग तथा दलितों का शासन होगा" और इसका पारंभ रूस तथा चीन से होगा।
  • स्वामी जी अगले 3 वर्षों तक शिकागो में निवास किया था। इस क्रम में इन्होंने फरवरी 1896 में न्यूयार्क में 'वेदान्त सोसाइटी' और कैलिफोर्निया में 'शांति आश्रम' की स्थापना किया था।
  • विवेकानंद ने पूरे अमेरिका, इंग्लैंड, स्त्रिट्जरलैंड तथा जर्मनी की यात्रा किया। 4 वर्षों के अपने यात्रा के पश्चात 1897 में भारत पहुँचे थे।
  • 1897 में भारत आगमन के पश्चात कलकत्ता में रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना किया था।
  • रामकृष्ण परमहंस मिशन का मुख्यालय वर्ष 1899 में कलकत्ता के वेलूर में स्थापित किया तथा इसका दूसरा मुख्यालय अल्मोडा के पास मायावती नामक स्थान पर स्थापित किया गया।
  • स्वामी विवेकानंद 1899 में पुनः अमेरिका गए थे। 1900 में इन्होंने पेरिस में आयोजित द्वितीय धर्म सम्मेलन " जिसका शीर्षक था "कांग्रेस ऑफ हिस्ट्री ऑफ रिलीजन' था भी इसको सम्बोधित किया था।
  • पेरिस वापसी के उपरांत कुछ वर्षों में 4 जुलाई, 1902 को कलकत्ता में इनका देहावसान हो गया था ।
  • स्वामी जी के विचार-
    मानव सेवा की सबसे बड़ा धर्म बताया था ।
    मूर्तिपूजा तथा बहुदेववाद का समर्थन किया था।
    नव हिंदू जागरण का संस्थापक भी इनको कहा गया था।

विदेशी समाज सुधारक

थियोसोफिकल सोसाइटल (The theosophical society) 

  • थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना 1875 में मैडम एच. पी. बलावत्सकी द्वारा न्यूयार्क (अमेरिका) में की गई थी। बलावत्सकी मूलत: रूस की स्थायी निवासी थी ।
  • कालांतर में अमेरिकी सहयोगी कर्नल एम. एस. अल्काट के सहयोग से 1879 में थियोसोफिकल सोसायटी का प्रधान कार्यालय न्यूयार्क से बंबई स्थापित कर दिया गया था ।
  • इसी क्रम में वर्ष 1862 में सोसाइटी का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय पद्रास के समीप आडयार में स्थापित किया गया।
  • ये पश्चिमी विचारक (थियोफिस्टो ) का पुर्नजन्म कर्म के सिद्धांत तथा सांख्य तथा वेदांत (उपनिषदों) को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे।
  • 1888 में एनी बेसेंट (आयरिश) ने इंग्लैंड में इस सोसायटी की सदस्यता ग्रहण किया तथा 1893 के शिकागो धर्म सभा में भी गई थी।
  • ऐनी बेसेन्ट ने 1907 में अल्काट की मृत्यु के पश्चात् सोसायटी की अध्यक्षा भी बनी थी। इस सोसायटी की विचारधारा को देव विज्ञान की संज्ञा भी दिया था।
  • ऐनी बेसेन्ट ने 1998 में बनारस में सेन्ट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना किया। यही कॉलेज कालांतर में 1916 में मदन मोहन मालवीय के प्रवासों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में परिणत हो गया था।
  • ऐनी बेसेंट ने इंग्लैंड के होमरूल लीग की भांति भारत में भी होमरूल लीग की स्थापना किया तथा स्वराज के आंदोलनों में महती भूमिका निभाई थी।
  • सामाजिक आधार पर थियोसोफिकल सोसायटी ने छुआछूत, जाति प्रथा तथा बाल विवाह का विरोध किया था।

वंग बंगाल आंदोलन (The young Bengal movement)

  • यंग बंगाल आंदोलन के संस्थापक हिंदू कॉलेज के एंग्लो इंडियन शिक्षक हेनरी विवियन डेरोजियो (1809-31) थे।
  • डेरोजियो फ्रांस की क्रांति से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अपने अनुयायियों एवं छात्रों को स्वतंत्र चिंतन के लिए प्रेरित किया था।
  • इस आंदोलन का प्रभाव बंगाल के बाहर भी पड़ा था। 1834 में एलफिंस्टन कॉलेज की स्थापना हुई थी। यहां के विद्यार्थियों ने यंग बंगाल के तर्ज पर चंग बाम्बे आंदोलन भी चलाया था।
  • डेरोजियो के द्वारा ईस्ट इंडिया दैनिक समाचार-पत्र का भी संपादन किया था।

अन्य धर्मों में सुधार आन्दोलन

मुस्लिम सुधार आंदोलन (Muslim reform novement)

  • 19वीं शताब्दी के धार्मिक सुधार आंदोलन में अनेक धर्मों की भांति मुस्लिम धर्म की कुरीतियों पर भी प्रहार हुआ ।
  • इस क्रम में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन हुए थे।

अलीगढ़ आंदोलन (Aligarh movement) Aligarh

  • इस आंदोलन के प्रवर्तक सर सैयद अहमद खां थे। इनका जन्म दिल्ली में 17 अक्टूबर, 1817 को हुआ था। इनके पूर्वज मूलतः इरानी सामन्त थे।
  • 1857 की क्रांति काल में सर सैयद अहमद ईस्ट इंडिया कम्पनी के न्यायिक सेवा विभाग में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। इनकी तैनाती बिजनौर में थी।
  • 1857 की क्रांति में सर सैयद अहमद ने पूर्णतः ईस्ट इंडिया कंपनी के राजभक्त बने रहे।
  • इनके विचार में मुस्लिम सुधार का एकमात्र उपाय अंग्रेजी का एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली को अपनाना था।
  • इन्होंने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के अनेकों प्रयास किया था। तथा अपने विचार को व्यक्त करने हेतु 1870 में।
  • ‘तहजीब-उल-अखलाख' (सभ्यता एवं नैतिकता) नामक फारसी पत्रिका का संपादन किया।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

  • 24 मई, 1875 को महारानी विक्टोरिया के वर्षगांठ के अवसर पर अलीगढ़ स्कूल (प्राइमरी) की स्थापना किया गया।
  • 8 जनवरी, 1877 को मुहम्मद एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज का नाम दिया गया।
  • ध्यातव्य है कि लार्ड लिंटन ने उस कॉलेज को शिलान्यास किया था । तथा विलियम म्योर (उत्तर प्रदेश के तत्कालिक गवर्नर ) ने इसके लिए भूमि प्रदान किया था।
  • इस कॉलेज के प्रथम प्रिसिंपल थियोडर बैक थे। इसी को 1920 में ' अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय' के नाम से परिवर्तित कर दिया गया।
  • पीरी मुरीदी प्रथा - इस प्रथा में पीरी (सूफी) लोग अपने मुरीदो (सेवकों) को कुछ रहस्यमयी शब्द देकर उनके गुरु बन जाते थे। एवं मुरीदों से दासों जैसी सेवा लेते थे। सर सैयद अहमद ने इस प्रथा का विरोध किया था।
  • सर सैयद अहमद खान ने दास प्रथा को इस्लाम विरुद्ध माना था ।
  • सर सैयद अहमद ने 'इस्लाम पर टीका' लिखा तथा परम्परागत टीकाकारों पर टिप्पणी भी किया। एवं ज्ञान के आधार में वैज्ञानिकता को स्वीकार किया था।
  • सर सैयद अहमद खां ने हमेशा कांग्रेस का विरोध किया था।
  • वर्ष 1888 में बनारस के राजा शिवप्रसाद के सहयोग से ‘यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिएशन' की स्थापना किया था।
  • ज्ञातव्य हैं कि 1864 में सर सैयद अहमद ने कलकत्ता में साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की थी।
  • 1869 में इंग्लैंड गए तथा वही उनका सामना पश्चिमी सभ्यता एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली से हुआ था।
  • वर्ष 1876 तक सर सैयद अहमद खां अलीगढ़ के स्थायी निवासी बन गए थे।
  • 1898 में सर सैयद अहमद की देहावसान हो गया। इनकी मृत्युपरांत अलीगए आंदोलन का नेतृत्व मोहसिनुल मुल्क ने किया था।
  • सर सैयद अहमद खां के अलीगढ़ आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य "भारतीय मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़कर उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थित को सुदृढ़ करना था।

अहमदिया आंदोलन (Ahamdiya movement)

  • 1889 ई. में इस आंदोलन को पंजाब स्थित गुरुदासपुर जिले के कदिया नामक स्थान से उसको प्रारंभ किया था।
  • इस आंदोलन को इसके जन्म स्थान के आधार पर कदियानी आंदोलन भी कहा गया था।
  • ज्ञातव्य है कि मिर्जा गुलाम अहमद का जन्म 1835 में पंजाब के गुरुदारु में हुआ था। इन्होंने अपने आप को ईश्वर का पैगम्बर बताया था।
  • अहमदिया आंदोलन का उद्देश्य मुस्लिम धर्म की कुरीतियों पर प्रहार करना था। इसने 'जेहाद' का विरोध किया था ।
  • मिर्जा गुलाम अहमद ने स्वयं को 'ईश्वर का पैगम्बर' बताया है जिसका उद्देश्य 'शुद्ध इस्लाम' की स्थापना करना है। इनके द्वारा 1890 में बहरीन - ए - अहमदिया नामक पुस्तक लिखी गई है।

देवबंद आंदोलन

  • यह इस्लाम के पुनर्जागरण आंदोलन था। इसका उद्देश्य कुरान एवं हदीस की शिक्षा को प्रचारित तथा प्रसारित करना था। तथा जेहाद की भावना को जीवित रखना था।
  • इस आंदोलन का प्रारंभ उलेमा 'मोहम्मद कासिम ननौत्वी' तथा 'राशिद अहमद गंगोही' के नेतृत्व में 1866 में हुआ था । इसकी स्थापना सहारनपुर के देवचंद नामक स्थान पर दारूल उलूम की स्थापना की गई थी।
  • 1885 में कांग्रेस की स्थापना का इस आंदोलन ने स्वागत किया था।
  • देवबंद स्कूल के समर्थकों में शिवली नूमानी (1875-1914) फारसी एवं अरबी के प्रतिष्ठित विद्वान थे।
  • शिवली नूमानी परम्परागत मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए औपचारिक शिक्षा के स्थान पर अंग्रेजी भाषा तथा यूरोपीय भाषा को शिक्षा के माध्यम बनाने के समर्थक थे।
  • शिवाली महोदय के द्वारा लखनऊ में नवदत्तल उलमा तथा दारूल उलमा की स्थापना किया था।

सिक्ख सुधार आंदोलन (Sikh Reform Movement) 

  • सिक्ख धर्म समकालीन धर्मों में सबसे नवीन धर्म है। इसके प्रणेता गुरु नानक थे।
  • इस धर्म में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने हेतु प्रगतिशील विचार तथा तर्कबुद्धि के माध्यम से अनेक प्रयास किये गए थे।
  • इस क्षेत्र में प्रथम दयाल साहब ने किया जो निरंकारी आंदोलन के प्रणेता थे।
  • इसी क्रम में कूका आंदोलन भी चला था इसके प्रणेता भगत जवाहर मल थे। इसका प्रयास 1840 में किया गया था।
  • नामधारी आंदोलन (Namdhari movement) भी सिक्ख धर्म में व्याप्त बुराइयों के लिए ही प्रारंभ किया गया था।
  • नामधारी आंदोलन के प्रणेता बाबा राम सिंह (1816-85) एवं उनके शिष्य बालक सिंह थे। वह आंदोलन कूका आंदोलन का ही एक शाखा था।
  • नामधारी आंदोलन के समर्थक मूर्ति, वृक्ष तथा दारगाह की पूजा में विश्वास करते थे। 
  • 19वीं शताब्दी तक सिक्ख धर्म सुधार आंदोलन जारी रहा था । 

पारसी धर्म सुधार आंदोलन 

रहनुमाए माजदायासन सभा

  • इस सभा की स्थापना वर्ष 1851 ई. में बंबई में दादा भाई नौरोजी तथा उनके सहयोगियों के द्वारा किया गया था।
  • इस सभा का उद्देश्य पारसी समुदाय की स्थिति को सुदृढ़ करना था । तथा पारसी धर्म के प्राचीन पवित्रता एवं गौरव को स्थापित करना था ।
  • इस सभा के तत्वावधान में गुजराती भाषा में एक साप्ताहिक पत्र 'रास्त गोप्तार' (सत्यवादी) का प्रकाशन किया गया था !
  • इस संस्थान का प्रमुख उद्देश्य पारसी धर्म कर्मकांड तथा स्त्रियों की दशा आदि पर सुधार करना था ।
  • इस सभा के द्वारा पर्दा प्रथा खत्म करने का प्रयास भी किया गया था।

सामाजिक कुरतियाँ एवं उसमें सुधार

सती प्रथा

  • सती प्रथा भारत में प्राचीन काल से मौजूद था। इसका प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. में गुप्त शासक भानु गुप्त के ऐरण अभिलेख से प्राप्त होता है।
  • ऐरण अभिलेख में गुप्त शासक के मित्र गोपराज की मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी के उनके साथ सती के होने का साक्ष्य प्राप्त हुआ हैं।
  • ज्ञातव्य है कि सती प्रथा के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता अति दिव थी। इसके विरोध में निर्णय लेना बहुत कठिन था। लेकिन काश्मीर के शासक सिकंदर ने इस पर प्रतिबंध 15वीं शताब्दी में लगाया था।
  • कालांतर में मुगल शासक अकबर ने भी इस प्रथा पर प्रतिबंध का प्रयास किया था। किंतु पूर्णतः सफल नहीं हो सका था। इसी क्रम में पेशवाओं ने भी इस प्रथा पर प्रतिबंध का प्रयास किया था।
  • इसी क्रम में अल्फासो डी. अल्बुकर्क (1509-15) ने पुर्तगाली गवर्नर ने भी अपने प्रभाव क्षेत्र में सती प्रथा को बंद की थी।
  • इसी क्रम में कुछ इतिहासकारों के अनुसार फ्रांसीसियों ने भी चंद्रनगर में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाई थी।
  • आधुनिक भारत में इस प्रथा को बंद करने हेतु अनेकों गवर्नर जनरलों ने प्रयास किया था। किंतु इसको पूर्णतः बंद करने का श्रेय लॉर्ड विलियम बैंटिक को जाता है।
  • विलियम बैंटिक को प्रेरित करने का कार्य राजाराम मोहन राय ने किया था। उसके पीछे कारण था इनके बड़े भाई जगमोहन की मृत्यु पर भाभी अलकामंजरी को जबरदस्ती सती बना देना ।
  • अंततः 8 नवम्बर, 1829 में लॉर्ड विलियम बैंटिक ने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रस्ताव रखा था। 4 दिसम्बर, 1829 को अंग्रेजी सरकार ने नियम 17 के अन्तर्गत सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया था।
  • प्रारंभ में यह कानून बंगाल में लागू किया गया था। 1830 ई. में इसको मद्रास तथा बंबई में भी लागू कर दिया गया। कालांतर में यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो गई। 

शिशुबध (Infant murder)

  • यह प्रथा कितनी प्राचीन थी इसके साक्ष्य नहीं प्राप्त हुए हैं। किंतु इस सर्वाधिक प्रचलन मध्यकाल में हुआ। बंगाल के प्रतिष्ठित लोगों तथा राजपूत समाज में यह प्रथा अत्यंत तीव्र थी।
  • इसका उल्लेख पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पुत्र दिलीप सिंह ने भी किया है। इसको प्रतिबंधित करने का प्रथम प्रयास ब्रिटिश गवर्नर जनरल सर जॉन शोर ने 1795 में किया था।
  • सर जॉन शोर ने बंगाल नियम 21 और वेलेजली ने 1804 में नियम 3 के अन्तर्गत नवजात / शिशु हत्या को सामान्य हत्या के बराबर ही दंडित करने का प्रावधान किया था।
  • इसी क्रम में लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-35) ने राजपुत प्रभाव क्षेत्र में शिशु हत्या पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था।
  • लॉर्ड हार्डिंग (1844-45) ने सम्पूर्ण भारत में बालिका शिशु की हत्या पर प्रतिबंध लगाकर इसको अवैध घोषित कर दिया था।

नरबली प्रथा (Human Sacrifice System)

  • भारतीय समाज में तंत्र-मंत्र की पुरातन मान्यताओं के कारण नरबलि की प्रथा प्रचलित थी।
  • इस प्रथा का उद्देश्य जनजाति / आदिवासी समाज अपने आराध्य को खुश करने का था।
  • नरबली प्रथा को प्रतिबंधित करने का श्रेय लॉर्ड हार्डिंग को जाता है।
  • कैम्पबेल नामक अंग्रेज अधिकारी ने इस प्रथा पर तीव्रता के साथ प्रहार किया तथा 1844-45 में इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।

दास प्रथा (Slavery system)

  • भारत में प्राचीन काल में ही दास प्रथा प्रचलित थी कौटिल्य (चाणक्य) के राजनीति पर आधारित पुस्तक अर्थशास्त्र में 9 प्रकार के दासों का उल्लेख प्राप्त होता है।
  • दिल्ली सल्तनत काल में फिरोजशाह तुगलक ने दासों का विभाग 'दीवान-ए-बंदगान' ही खोल रखा था।
  • समकालीन भारत नहीं समूचे विश्व में दास प्रथा चरम पर थी। अमेरिका, नीग्रो, रोमन जैसे देशों में इसका प्रचलन भी था एवं कठोरता से इसका पालन भी किया जाता था।
  • इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक फिरोजशाह तुगलक ने लगाया था। मुगल सम्राट अकबर के द्वारा 1562 ई. में दास प्रथा पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था।
  • आधुनिक भारत में सर्वप्रथम इस पर प्रतिबंध का प्रयास लिस्टन स्टैन होप ने 1823 में इंग्लैंड में किया था। जबकि ड्यूक ऑफ ग्लोस्तर ने भारत में दास प्रथा बंद करने का अनुरोध किया था।
  • इसी क्रम में 1789 में लॉर्ड कार्नवालिस ने दास प्रथा पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था। लॉर्ड एलनबरो ने 1843 में एक्ट V लगाकर दास प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करा दिया था।

बाल विवाह (Child Marriage )

  • यह भी भारत की प्राचीन काल से चली आ रही परम्परा थी । इसको प्रतिबंधित करने का प्रयास भारतीय राजतंत्र ने नहीं किया था।
  • इस समस्या का प्रतिरोध सर्वप्रथम 1872 में नेटिव मैरिज एक्ट पास करके किया गया था। इस कानून में 14 वर्ष से कम आयु का बालिकाओं का विवाह अवैध घोषित कर दिया गया। 
  • अगला प्रयास पारसी धर्म सुधारक वी. एम. मालाबारी के प्रयत्नों से 1891 में 'सम्पति आयु अधिनियम' पारित हुआ था ।
  • डॉ. हरविलास शारदा के प्रयत्नों से 1929 में 'शारदा एक्ट' पारित हुआ था। इसमें 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों एवं 14 वर्ष से कम आयु के लड़कियों का विवाह वर्जित कर दिया गया था।
  • शारदा अधिनियम लागू किए जाने के समय में भारत के गवर्नर लॉर्ड इरविन थे ।
  • इसी क्रम में बाल विवाह निरोधक अधिनियम वर्ष 1978 में पेश किया गया था। इसमें बालक की आयु 21 एवं बालिका की न्यूनतम आयु 18 वर्ष कर दिया गया।

विधवा पुनर्विवाह (Widow Remarriage)

  • स्त्रियों की दशा सुधारने हेतु सर्वप्रथम प्रयास ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने किया था। इसकी शुरूआत ईश्वरचंद्र ने अपने पुत्र का विवाह विधवा स्त्री से करके किया था।
  • इसके अतिरिक्त धोंदो केशव कर्वे, तथा वीरेसलिंगम पुण्टुलू ने भी इसमें अपना योगदान दिया था।
  • ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने विधवा विवाह को मान्यता दिलाने के लिए पुराने संस्कृत लेखों व वैदिक उल्लेखों का तर्क दिया था। इनके द्वारा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 (लॉर्ड कैनिंग) के द्वारा विधवा विवाह को वैध मान लिया गया।
  • डी. के. कर्वे फर्ग्यूसन कॉलेज के प्रोफेसर थे, 1893 में स्वयं एक विधवा से शादी किया। तथा विधवाओं के उद्धार हेतु विधवा पुनर्विवाह संघ की स्थापना किया था ।
  • इनके द्वारा 1893 में विधवा विवाह मंडली तथा 1899 में विधवा आश्रम की स्थापना की थी।
  • डी. के. कर्वे को भारत सरकार ने 1955 में पद्म विभूषण प्रदान किया था। इसी क्रम में इनको 1958 में भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
  • 1856 में हिंदू विधवा पुनर्विवाह के पश्चात 1872 में ब्रह्म मैरेज एक्ट या नैटिव मैरेज एक्ट गवर्नर जनरल नार्थ ब्रुक के समय पारित हुआ था। इस एक्ट का उद्देश्य अर्न्तजातीय विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह लागू किया गया था।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1822 ई. में राजा राम मोहन राय की एक पुस्तक 'हिंदू उत्तराधिकार नियम' का प्रकाशन हुआ था।
  • 1821 में राजा मोहन राय ने अपने विचारों के सामान्य जनमानस तक पहुँचाने के उद्देश्य से संवाद कौमुदी तथा 'प्रज्ञानंद' का प्रकाशन किया था।
  • 'संवाद कौमुदी' सभवत: भारतीयों द्वारा संपादित प्रकाशित तथा संचालित प्रथम भारतीय समाचार पत्र था।
  • राजा राम मोहन राय ने फारसी भाषा में मिरातुल अखबार का भी प्रकाशन किया था।
  • 1825 में राजा राम मोहन राव ने वेदांत कॉलेज की स्थापना कराई थी।
  • सुभाष चंद्र बोस ने राजा राम मोहन राय को युगदूत की उपाधि से सम्मानित किया था।
  • ब्रह्म समाज में प्रथम विभाजन से पूर्व आचार्य केशवचंद्र सेन ने संगत सभा की स्थापना आध्यात्मिक तथा सामाजिक समस्याओं पर विचार करने के लिए किया था।
  • 1861 में केशवचंद्र सेन ने इंडियन मिरर नामक अंग्रेजी का प्रथम दैनिक का संपादन किया था।
  • आचार्य केशवचंद्र सेन के प्रयत्नों से मद्रास में वेद समाज तथा महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज का स्थापना हुआ था।
  • पाश्चात्य शिक्षा के विरोधियों में स्वामी श्रद्धानंद, लेखाराम और मुंशीराम प्रमुख थे ।
  • पाश्चात्य शिक्षा के समर्थक लाला हंसराज तथा लाला लाजपत राय थे। इनलोगों ने ही दयाराम एंग्लो वैदिक (DAV) की स्थापना 1889 में की थी। 
  • फेबियन आंदोलन के समर्थक ऐनी बेसेंट थीं। 
  • कन्याकुमारी का रॉक मेमोरियल स्वामी विवेकानंद के लिए समर्पित है।
  • राजा राम मोहन राय का जन्म राधानगर वर्धमान जिला में हुआ था ।
  • ऐनी बेसेंट की विचारधारा को कालांतर में दैव विज्ञान के नाम से जाना गया था।
  • देव समाज की स्थापना 1887 में शिवनारायण अग्निहोत्री ने लाहौर में किया था ।
  • सेवा समिति की स्थापना 1914 में हृदयनाथ कुंजरू ने इलाहाबाद में किया था।
  • सेवा समिति ब्याज स्काउट एसोसिएशन के संस्थापक श्रीराम वाजपेयी थे।
  • भील सेवा मंडल की स्थापना ठक्कर बापा ने 1922 में किया था।
  • पूजा सेवा सदन की स्थापना जे. के. देवधर एवं रमाबाई ने किया था।
  • देवबंद शाखा के संस्थापक कासिम ननौंवी थे।
  • सिक्ख सुधार आंदोलन के प्रणेता दयाल दास थे।
  • हुक्मनामा की रचना भी दयाल दास ने किया था ।
  • मोहम्मद लिटरेरी सोसाइटी की अब्दुल लतीफ ने किया था।
  • मिर्जा गुलाम अहमद ने अपनी पुस्तक बहरीन ए अहमदिया में अहमदिया आंदोलन के सिद्धांतों की व्याख्या किया था।
  • 1843 के एक्ट संख्या V में गुलामी ( दासता ) को गैर-कानूनी बना दिया गया था।
  • कुरान पर टीका लिखने वाले सैयद अहमद खां ने तहजीब उल अखलाक नामक पत्रिका निकाली थी ।
  • सैयद अहमद खां के विश्वासपात्र तथा सलाहकार थियोडर बेक थे |
  • दक्षिण भारत में विधवाओं के पुनर्विवाह से वेरेशलिंगम पुंतल संबंधित था।
  • डॉ. हरविलास शारदा के प्रयत्नों से 1829 में शारदा अधिनियम पारित हुआ था।
  • शारदा अधिनियम के अंतर्गत लड़कियों की विवाह की आयु 14 वर्ष तथा लड़कों की 18 वर्ष कर दिया गया था।
  • सामाजिक सेवा संघ की स्थापना मल्हार जोशी (बंबई) ने किया था।
  • राधाकांत देव बंगाली नेता थे जो सामाजिक धार्मिक सुधारों का विरोध किया था।
  • उत्तरी तमिलनाडु के पल्ली जाति ने स्वयं को आदिम जाति माना था।
  • अरब्बीपुरम आंदोलन 1888 में नारायण गुरू के द्वारा प्रारंभ किया गया था।
  • जस्टिस आंदोलन वर्ष 1916 में प्रारंभ किया गया था।
  • पेरियार ने तमिल में सच्ची रामायण नाम से रामायण की रचना की थी।
  • नारायण सर्विस सोसाइटी के संस्थापक डॉ. आर. शिन्दे थे।
  • केरल में छुआछूत की परम्परा को समाप्त करने के लिए बायकोम सत्याग्रह चलाया गया था।
  • नायर सर्विस सोसाइटी के संस्थापक डी. आर. शिन्दे थे।
  • गाँधीजी ने हरिजन उद्धार के लिए 1933-34 में देश व्यापी दौरा किया था।
  • राधास्वामी सतसंग की स्थापना 1861 ई. में आगरा में शिवदयाल साहब ने किया था।
  • 'दि एज ऑफ कंसेंट एक्ट' 1891 में पारित किया गया था ।
  • हाली पद्धति बंधुआ मजदूरी से संबंधित था।
  • 1924 में तारकेश्वर आंदोलन बंगाल में मंदिरों के भ्रष्टाचार के संबंध में चलाया गया था।
  • राजा राम मोहन राय को मुगल सम्राट अकबर II ने 'राजा' की उपाधि दिया था।
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